जब भी मेरे मोबाइल पर किसी अनजान व्यक्ति का फोन आता, मैं मजे लेने लग जाती और उसे खूब परेशान करती. एक दिन मेरी यही आदत मुझ पर भारी पड़ गई...

यह कहानी है सन 2006 की...

जब फोन कंपनी के कंप्यूटराइज फोन नंबर पर घंटों लाइन में लगे रहने के बाद आप कौलर ट्यून और अन्य सर्विस का लुत्फ उठा सकते थे.

मैं ठहरी म्यूजिक लवर मु?ो उस जमाने में क्व110 महीना अपने बैलेंस से कटवाना मंजूर था मगर मेरी कौलर ट्यून औरों से बिलकुल अलग और कड़क होनी चाहिए.

ट्रिंग... ट्रिंग...

ट्रिंग... ट्रिंग...

‘‘इस का फोन दे... देखें तो इस कमीनी को अनसेव्ड नंबर से कौन फोन लगा रहा है.’’

नेहा और ज्योति ने मेरी हथेली से फोन खींच कर अंकिता को थमा मु?ो जकड़ लिया.

‘‘हैलो.’’

‘‘हैलो मैडम.’’

‘‘जी बोलिए.’’

‘‘मैडम क्या मैं कामिनीजी से बात कर रहा हूं?’’ एक बिलकुल नवयुवक की तरोताजा आवाज में किसी ने पूछा.

फोन के स्पीकर को अपनी हथेली से दबा कर मेरा फोन पकड़ी हुई अंकिता जोरजोर से हंसते उस युवक से आगे कहने लगी, ‘‘ऐसा क्या काम है आप को हमारी कामिनीजी से हम भी तो सुनें?’’

‘‘नमस्ते मैडम मैं आइडिया सर्विस से सुबोध बात कर रहा हूं, कामिनीजी ने अपनी कौलर ट्यून चेंज करने के लिए रिक्वैस्ट भेजी थी.’’

‘‘अच्छा तो लगा दीजिए कोई भी घटिया सा गाना, वैसे भी इस कमीनी को कोई फोन लगाता भी नहीं है.’’

‘‘जी मैडम क्या?’’

बेतहाशा हंसती हुई ज्योति और नेहा ने मु?ो कस कर पकड़ रखा था कि मैं अंकिता को बात करते समय डिस्टर्ब न कर सकूं मगर जैसे ही उस ने किसी लड़के के सामने मेरे नाम के साथ छेड़खानी की तो मैं ने हंस कर ढीले पड़ चुके उन के हाथों से अपना हाथ ?ाटक कर ?ाट से अंकिता से फोन खींच लिया और अपनी कमान खुद संभालते हुए पूछा, ‘‘हैलो कौन बात कर रहा है?’’

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