बालों और त्वचा के लिए वरदान है जोजोबा का तेल

जोजोबा का तेल त्वचा को पोषित करने के साथ ही बालों को भी मजबूत, घना व स्वस्थ रखता है. इसका इस्तेमाल त्वचा और बालों से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करने में कारगर है. आइए जानते हैं जोजोबा तेल लगाने के फायदे.

हटाए दाग-धब्बे

जोजोबा का तेल मुंहासों को नियंत्रित करता है, इसके इस्तेमाल से मुंहासे नहीं होते हैं और दाग-धब्बे भी दूर हो जाते हैं.

त्वचा के लिए लाभदायक

यह त्वचा को नमी प्रदान करता है. यह अन्य तेलों की तुलना में हल्का होता है और त्वचा में गहराई से समा जाता है. यह त्वचा को मुलायम बनाता है और चमक लाता है. यह त्वचा को जवां बनाता है और उसमें कसाव ले आता है. यह सनबर्न को दूर करने के साथ ही जलन और खुजली भी दूर करता है.

बालों का रूखापन करे दूर

गर्मियों में बाल अक्सर उलझ जाते हैं और रूखे व बेजान हो जाते हैं. जोजोबा का तेल पसीने व अनचाही नमी को ब्लॉक कर बालों का रूखापन दूर करता है और उन्हें मुलायम बनाता है. वहीं यह स्कैल्प को नमी प्रदान करता है, जो अक्सर हानिकारक रसायन युक्त शैम्पू के इस्तेमाल से स्कैल्प से निकल जाता है.

चेहरे की नमी रखे बरकरार

जोजोबा का तेल विटामिन ई और बी युक्त होने के साथ ही एंटीऑक्सीडेंट और मिनरल्स से समृद्ध होता है, जो त्वचा को पोषण और सुरक्षा प्रदान करने के साथ ही नमी भी बरकरार रखता है. जोजोबा के तेल में उच्च स्तर के एंटीऑक्सीडेंट और पोषक तत्व होते हैं. जोजोबा तेजी से कोशिकाओं को रिजेनरेट करता है.

शारीरिक और मानसिक थकान को करे दूर

जोजोबा तेल खासकर लैवेंडर जोजोबा तेल खुशबूदार फूलों की महक से समृद्ध होने के साथ ही सुकून का अहसास कराता है. यह शारीरिक और मानसिक थकान को दूर करता है, अगर तकिए पर इस तेल की कुछ बूंदें डाल दी जाए तो अच्छी नींद आती है.

क्या महिलाओं में सैक्स संबंधी समस्याएं होती हैं?

सवाल-

मेरी उम्र 21 साल है और जल्द ही शादी होने वाली है. मैं शादी के बाद सैक्स को ले कर डरी हुई हूं. क्या महिलाओं में सैक्स संबंधी समस्याएं होती हैं? क्या इन का उपचार संभव है?

जवाब-

शादी के बाद सैक्स को लेकर आप डरी हुई हैं. सैक्स संबंध कुदरती प्रक्रिया है. महिलाओं में भी सैक्स समस्याएं हो सकती हैं जैसे सैक्स संबंध के समय योनि में दर्द, चरमसुख का अभाव, उत्तेजना में कमी आदि. मगर पुरुषों की ही तरह महिलाओं की सैक्स समस्याओं का भी निदान संभव है. आप के लिए बेहतर यही है कि इन सब बातों से डरे बगैर खुद को शादी के लिए तैयार करें.

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शादी जिंदगी का एक अहम रिश्ता होता है. इसके जरिए आपको ढ़ेर सारा प्यार और नए रिश्ते मिलते हैं. शादी और भी कई चीजों से जुड़ी होती है जो आपके जीवन में कई तरह के बदलाव लाती है. ऐसी बहुत सी चीजे हैं जिन्हें आप शादी के बिना अनुभव नहीं कर सकती हैं. जब आप शादी के बंधन में बंध रही होती हैं तो आप एक नई जीवनशैली के साथ भी जुड़ रही होती हैं. शादी के बाद शुरुआत में आपकी जीवनशैली की बहुत सी चीजें बदल सकती है. आइए आज हम ऐसी ही चीजों के बारे में बात करते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 

मशीनें न बन जाएं हम: क्यों परेशान थे लोकेशजी

लोकेशजी परेशान चल रहे हैं बहुत दिन से. जीवन जैसे एक बिंदु पर आ कर खड़ा हो गया है, उन्हें कुछकुछ ऐसा लगने लगा है. समझ नहीं पा रहे जीवन को गति दें भी तो कैसे. जैसे घड़ी भी रुकी नजर आती है. मानो सुइयां चल कर भी चलती नहीं हैं. सब खड़ा है आसपास. बस, एक सांस चल रही है, वह भी घुटती सी लगती है. रोज सैर करने जाते हैं. वहां भी एक बैंच पर चुपचाप बैठ जाते हैं. लोग आगेपीछे सैर करते हैं, टकटकी लगा कर उन्हीं को देखते रहते हैं. बच्चे साइकिल चलाते हैं, फुटबाल खेलते हैं. कभी बौल पास आ जाए तो उठा कर लौटा देते हैं लोकेशजी. यही सिलसिला चल रहा है पिछले काफी समय से.

‘‘क्या बात है, अंकल? कोई परेशानी है?’’ एक प्यारी सी बच्ची ने पास आ कर पूछा. नजरें उठाईं लोकेशजी ने. यह तो वही प्यारी सी बच्ची है जिसे पिछले सालभर के अंतराल से देख रहे हैं लोकेशजी. इसी पार्क में न जाने कितनी सैर करती है, शायद सैर पट्टी पर 20-25 चक्कर लगाती है. काफी मोटी थी पहले, अब छरहरी हो गई है. बहुत सुंदर है, मौडल जैसी चलती है. अकसर हर सैर करने वाले की नजर इसी पर रहती है. सुंदरता सदा सुख का सामान होती है यह पढ़ा था कभी, अब महसूस भी करते हैं. जवानी में भी बड़ी गहराई से महसूस किया था जब अपनी पत्नी से मिले थे. बीच में भूल गए थे क्योंकि सुख का सामान साथ ही रहा सदा, आज भी साथ है. शायद सुखी रहने की आदत भी सुख का महत्त्व कम कर देती है. जो सदा साथ ही रहे उस की कैसी इच्छा.

इस बच्ची पर हर युवा की नजर पड़ती देखते हैं तो फिर से याद आती है एक भूलीबिसरी सी कहानी जब वे भी जवान थे और सगाई के बाद अपनी होने वाली पत्नी की एक झलक पाने के लिए उस के कालेज में छुट्टी होने के समय पहुंच जाया करते थे.

‘‘अंकल, क्या बात है, आप परेशान हैं?’’ पास बैठ गई वह बच्ची. उन की बांह पर हाथ रखा.

‘‘अं…हं…’’ तनिक चौंके लोकेशजी, ‘‘नहीं तो बेटा, ऐसा तो कुछ नहीं.’’

‘‘कुछ तो है, कई दिन से देख रही हूं, आप सैर करने आते तो हैं लेकिन सैर करते ही नहीं?’’

चुप रहे लोकेशजी. हलका सा मुसकरा दिए. बड़ीबड़ी आंखों में सवाल था और होंठों पर प्यारी सी मुसकान.

‘‘घर में तो सब ठीक है न? कुछ तो है, बताइए न?’’

मुसकराहट आ गई लोकेशजी के होंठों पर.

‘‘आप को कहीं ऐसा तो नहीं लग रहा कि मैं आप की किसी व्यक्तिगत समस्या में दखल दे रही हूं. वैसे ऐसा लगना तो नहीं चाहिए क्योंकि आप ने भी एक दिन मेरी व्यक्तिगत समस्या में हस्तक्षेप किया था. मैं ने बुरा नहीं माना था, वास्तव में बड़ा अच्छा लगा था मुझे.’’

‘‘मैं ने कब हस्तक्षेप किया था?’’ लोकेश के होंठों से निकल गया. कुछ याद करने का प्रयास किया. कुछ भी याद नहीं आया.

‘‘हुआ था ऐसा एक दिन.’’

‘‘लेकिन कब, मुझे तो याद नहीं आ रहा.’’

‘‘कुछ आदतें इतनी परिपक्व हो जाती हैं कि हमें खुद ही पता नहीं चलता कि हम कब उस का प्रयोग भी कर जाते हैं. अच्छा इंसान अच्छाई कर जाता है और उसे पता भी नहीं होता क्योंकि उस की आदत है अच्छाई करना.’’

हंस पड़े लोकेशजी. उस बच्ची का सिर थपक दिया.

‘‘बताइए न अंकल, क्या बात है?’’

‘‘कुछ खास नहीं न, बच्ची. क्या बताऊं?’’

‘‘तो फिर उठिए, सैर कीजिए. चुपचाप क्यों बैठे हैं. सैर पट्टी पर न कीजिए, यहीं घास पर ही कीजिए. मैं भी आप के साथसाथ चलती हूं.’’

उठ पड़े लोकेशजी. वह भी साथसाथ चलने लगी. बातें करने लगे और एकदूसरे के विषय में जानने लगे. पता चला, उस के पिता अच्छी नौकरी से रिटायर हुए हैं. एक बहन है जिस की शादी हो चुकी है.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है, बच्चे?’’

‘‘नेहा.’’

बड़ी अच्छी बातें करती है नेहा. बड़ी समझदारी से हर बात का विश्लेषण भी कर जाती. एमबीए है. अच्छी कंपनी में काम करती है. बहुत मोटी थी पहले, अब छरहरी लगती है. धीरेधीरे वह लोकेशजी को बैठे रहने ही न देती. सैर करने के लिए पीछे पड़ जाती.

‘‘चलिए, आइए अंकल, उठिए, बैठना नहीं है, सैर कीजिए, आइएआइए…’’

उस का इशारा होता और लोकेशजी उठ पड़ते. उस से बातें करते. एक दिन सहसा पूछा लोकेशजी ने, ‘‘एक बात तो बताना बेटा, जरा समझाओ मुझे, इंसान संसार में आया, बच्चे से जवान हुआ, शादीब्याह हुआ, बच्चे हुए, उन्हें पालापोसा, बड़ा किया, उन की भी शादियां कीं. वे अपनीअपनी जिंदगी में रचबस गए. इस के बाद अब और क्या? क्या अब उसे चले नहीं जाना चाहिए? क्यों जी रहा है यहां, समझ में नहीं आता.’’

चलतेचलते रुक गई नेहा. कुछ देर लोकेशजी का चेहरा पढ़ती रही.

‘‘तो क्या इतने दिन से आप यही सोच रहे थे यहां बैठ कर?’’

चुप रहे लोकेशजी.

‘‘आप यह सोच रहे थे कि सारे काम समाप्त हो गए, अब चलना चाहिए, यही न. मगर जाएंगे कहां? क्या अपनी मरजी से आए थे जो अपनी मरजी से चले भी जाएंगे? कहां जाएंगे, बताइए? उस जहान का रास्ता मालूम है क्या?’’

‘‘कौन सा जहान?’’

‘‘वही जहां आप और मेरे पापा भी चले जाना चाहते हैं. न जाने कब से बोरियाबिस्तर बांध कर तैयार बैठे हैं. मानो टिकट हाथ में है, जैसे ही गाड़ी आएगी, लपक कर चढ़ जाएंगे. बिना बुलाए ही चले जाएंगे क्या?

‘‘सुना है यमराजजी आते हैं लेने. जब आएंगे चले जाना शान से. अब उन साहब के इंतजार में समय क्यों बरबाद करना. चैन से जीना नहीं आता क्या?’’

‘‘चैन से कैसे जिएं?’’

‘‘चैन से कैसे जिएं, मतलब, सुबह उठिए अखबार के साथ. एक कप चाय पीजिए. नाश्ता कीजिए, अपना समय है न रिटायरमैंट के बाद. कोई बंधन नहीं. सारी उम्र मेहनत की है, क्या चैन से जीना आप का अधिकार नहीं है या चैन से जीना आता ही नहीं है. क्या परेशानी है?’’

‘‘अपने पापा को भी इसी तरह डांटती हो?’’

‘‘तो क्या करूं? जब देखो ऐसी ही उदासीभरी बातें करते हैं. अब मेरी मम्मी तो हैं नहीं जो उन्हें समझाएं.’’

क्षणभर को चौंक गए लोकेशजी. सोचने लगे कि उन के पास पत्नी का साथ तो है लेकिन उस का सुख भी गंवा रहे हैं वे. नेहा के पिता के पास तो वह सहारा भी नहीं.

‘‘चलिए, कल इतवार है न. आप हमारे घर पर आइए, बैठ कर गपशप करेंगे. अपने घर का पता बताइए.’’

पता बताया लोकेशजी ने. फिर अवाक् रहने के अलावा कुछ नहीं सूझा. उन का फ्लैट 25 नंबर और इन का 12. घरों की पिछली दीवारें मिलती हैं. एक कड़वी सी हंसी चली आई नेहा के होंठों पर. कड़वी और खोखली सी भी.

‘‘फेसबुक पर हजारों मित्र हैं मेरे, शायद उस से भी कहीं ज्यादा मेरा सुख मेरा दुख पढ़ते हैं वे. मैं उन का पढ़ती हूं और बस. डब्बा बंद, सूरत गायब. वे अनजान लोग मुझे शायद ही कभी मिलें.

‘‘जरूरत पड़ने पर वे कभी काम नहीं आएंगे क्योंकि वे बहुत दूर हैं. आप उस दिन काम आए थे जब सैरपट्टी पर एक छिछोरा बारबार मेरा रास्ता काट रहा था. आप ने उस का हाथ पकड़ उसे किनारे किया था और मुझे समझाया था कि अंधेरा हो जाने के बाद सैर को न आया करूं.

‘‘आप मेरे इतने पास हैं और मुझे खबर तक नहीं है.’’

आंखें भर आई थीं नेहा की. सच ही तो सोच रही है, हजारों दोस्त हैं जो लैपटौप की स्क्रीन पर हैं, सुनते हैं, सुनाते हैं. पड़ोस में कोई है उस का पता ही नहीं क्योंकि संसार से ही फुरसत नहीं है. पड़ोसी का हाल कौन पूछे. अपनेआप में ही इतने बंद से हो गए हैं कि जरा सा किसी ने कुछ कह दिया कि आहत हो गए. अपनी खुशी का दायरा इतना छोटा कि किसी एक की भी कड़वी बात बीमार ही करने लगी. यों तो हजारों दोस्तों की भीड़ है, लेकिन सामने बैठ कर बात करने वाला एक भी नहीं जो कभी गले लगा कर एक सुरक्षात्मक भाव प्रदान कर सके.

‘‘यही बातें उदास करती हैं मुझे नेहा. आज की पीढ़ी जिंदा इंसानों से कितनी दूर होती जा रही है. सारे संसार की खबर रखते हैं लेकिन हमारे पड़ोसी कौन हैं, नहीं जानते. हमारे साथ वाले घर में कौन रहता है, पता ही नहीं हमें. अमेरिका में क्या हो रहा है, पता न चले तो स्वयं को पिछड़ा हुआ मानते हैं. हजारों मील पार क्या है, जानने की इच्छा है हमें. पड़ोसी चार दिन से नजर नहीं आया. हमें फिक्र नहीं होती. और जब पता चलता है हफ्तेभर से ही मरा पड़ा है तो भी हमारे चेहरे पर दुख के भाव नहीं आते. हम कितने संवेदनहीन हैं. यही सोच कर उदास होने लगता हूं.

‘‘अपने बच्चों को इतना डरा कर रखते हैं कि किसी से बात नहीं करने देते. आसपड़ोस में कहीं आनाजाना नहीं. फ्लैट्स में या पड़ोस में कोई रहता है, बच्चे स्कूल आतेजाते कभी घंटी ही बजा दें, बूढ़ाबूढ़ी का हालचाल ही पूछ लें लेकिन नहीं. ऐसा लगता है हम जंगल में रहते हैं, आसपास इंसान नहीं जानवर रहते हैं. हर इंसान डरा हुआ अपने ही खोल में बंद,’’ कहतेकहते चुप हो गए लोकेशजी.

उन का जमाना कितना अच्छा था. सब से आशीर्वाद लेते थे, सब की दुआएं मिलती थीं. आज ऐसा लगता है सदियां हो गईं किसी को आशीर्वाद नहीं दिया. जो उन्हें विरासत में मिला उन का भी जी चाहता है उसे आने वाली पीढ़ी को परोसें. मगर कैसे परोसें? कोई कभी पास तो आए कोई इज्जत से झुके, मानसम्मान से पेश आए तो मन की गहराई से दुआ निकलती है. आज दुआ देने वाले हाथ तो हैं, ऐसा लगता है दुआ लेना ही हम ने नहीं सिखाया अपने बच्चों को.’’

‘‘अंकल चलिए, आज मेरे साथ मेरे घर. मैं आंटीजी को ले आऊंगी. रात का खाना हम साथ खाएंगे.’’

‘‘आज तुम आओ, बच्चे. तुम्हारी आंटी ने सरसों का साग बनाया है. कह रही थीं, बच्चे दूर हैं अकेले खाने का मजा नहीं आएगा.’’

भीग उठी थीं नेहा की पलकें. आननफानन सब तय हो भी गया. करीब घंटेभर बाद नेहा अपने पिता के साथ लोकेशजी के फ्लैट के बाहर खड़ी थी. लोकेशजी की पत्नी ने दरवाजा खोला. सामने नेहा को देखा.

‘‘अरे आप…आप यहां.’’

एक सुखद आश्चर्य और मिला नेहा को. हर इतवार जब वह सब्जी मंडी सब्जी लेने जाती है तब इन से ही तो मुलाकात होती है. अकसर दोनों की आंख भी मिलती है और कुछ भाव प्रकट होते हैं, जैसे बस जानपहचान सी लगती है.

‘‘तुम जानती हो क्या शोभा को?’’ आतेआते पूछा लोकेशजी ने. चारों आमनेसामने. इस बार नेहा के पिता

भी अवाक्. लोकेशजी का चेहरा जानापहचाना सा लगने लगा था.

‘‘तुम…तुम लोकेश हो न और शोभा तुम…तुम ही हो न?’’

बहुत पुराने मित्र आमनेसामने खड़े थे. नेहा मूकदर्शक बनी पास खड़ी थी. अनजाने ही पुराने मित्रों को मिला दिया था उस ने. शोभा ने हाथ पकड़ कर नेहा को भीतर बुलाया. मित्रों का गले मिलना संपन्न हुआ और शोभा का नेहा को एकटक निहारना देर तक चलता रहा. मक्की की रोटी के साथ सरसों का साग उस दिन ज्यादा ही स्वादिष्ठ लगा.

‘‘देखिए न आंटी, आप का घर इस ब्लौक में और हमारा उस ब्लौक में.

2 साल हो गए हमें यहां आए. आप तो शायद पिछले 5 साल से यहां हैं. कभी मुलाकात ही नहीं हुई.’’

‘‘यही तो आज की पीढ़ी को मिल रहा है बेटा, अकेलापन और अवसाद. मशीनों से घिर गए हैं हम. जो समय बचता है उस में टीवी देखते हैं या लैपटौप पर दुनिया से जुड़ जाते हैं. इंसानों को पढ़ना अब आता किसे है. न तुम किसी को पढ़ते हो न कोई तुम्हें पढ़ता है. भावना तो आज अर्थहीन है. भावुक मनुष्य तो मूर्ख है. आज के युग में, फिर शिकवा कैसा. अपनत्व और स्नेह अगर आज दोगे

नहीं तो कल पाओगे कैसे? यह तो प्रकृति का नियम है. जो आज परोसोगे वही तो कल पाओगे.’’

चुपचाप सुनती रही नेहा. सच ही तो कह रही हैं शोभा आंटी. नई पीढ़ी को यदि अपना आने वाला कल सुखद और मीठा बनाना है तो यही सुख और मिठास आज परोसना भी पड़ेगा वरना वह दिन दूर नहीं जब हमारे आसपास मात्र मशीनें ही होंगी, चलतीफिरती मशीनें, मानवीय रोबोट, मात्र रोबोट. शोभा आंटी बड़ी प्यारी, बड़ी ममतामयी सी लगीं नेहा को. मानो सदियों से जानती हों वे इन्हें.

वह शाम बड़ी अच्छी रही. लोकेश और शोभा देर तक नेहा और उस के पिता से बातें करते रहे. उस समय जब शायद नेहा का जन्म भी नहीं हुआ था तब दोनों परिवार साथसाथ थे. नेहा की मां अपने समय में बहुत सुंदर मानी जाती थीं.

‘‘मेरी मम्मी बहुत सुंदर थीं न? आप ने तो उन्हें देखा था न?’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने नहीं देखा?’’

‘‘बहुत हलका सा याद है, मैं तब

7-8 साल की थी. जब उन की रेल दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. मैं उन की गोद में थी. वे चली गईं और मैं रह गई, यह देखिए उस दुर्घटना की निशानी,’’ माथे पर गहरा लाल निशान दिखाया नेहा ने. मां के हाथ की चूड़ी धंस गई थी उस के माथे की हड्डी में. वह आगे बोली, ‘‘पापा ने बहुत समझाया कि प्लास्टिक सर्जरी करवा लूं, यह दाग अच्छा नहीं लगता. मेरा मन नहीं मानता. मां की निशानी है न, इसे कैसे मिटा दूं.’’

नेहा का स्वर भीग गया. मेज का सामान उठातेउठाते शोभा के हाथ रुक गए. प्यारी सी बच्ची माथे की चोट में भी मां को पा लेने का सुख खोना नहीं चाहती.

वह दिन बीता और उस के बाद न जाने कितने दिन. पुरानी दोस्ती का फिर जीवित हो जाना एक वरदान सा लगा नेहा को. अब उस के पापा पहले की तरह उदास नहीं रहते और लोकेश अंकल भी उदास से पार्क की बैंच पर नहीं बैठते. मानो नेहा के पास 3-3 घर हो गए हों. औफिस से आती तो मेज पर कुछ खाने को मिलता. कभी पोहा, कभी ढोकला, कभी हलवा, कभी इडली सांबर. पूछने पर पता चलता कि लोकेश अंकल छोड़ गए हैं. कभी शोभा आंटी की बाई छोड़ गई है.

खापी कर पार्क को भागती मानो वह तीसरा घर हो जहां लोकेश अंकल इंतजार करते मिलते. वहां से कभी इस घर और कभी उस घर.

लोकेशजी के दोनों बेटे अमेरिका में सैटल हैं. उन की भी दोस्ती हो गई है नेहा से. वीडियो चैटिंग करती है वह उन से. शोभा आंटी उस की सखी भी बन गई हैं अब. वे बातें जो वह अपनी मां से करना चाहती थी, अब शोभाजी से करती है. जीवन कितना आसान लगने लगा है. उस के पापा भी अब उस जहान में जाने की बात नहीं करते जिस का किसी को पता नहीं है. ठीक है जब बुलावा आएगा चले जाएंगे, हम ने कब मना किया. जिंदा हो गए हैं तीनों बूढ़े लोग एकदूसरे का साथ पा कर और नेहा उन तीनों को खुश देख कर, खुशी से चूर है.

क्या आप के पड़ोस में कोई ऐसा है जो उदास है, आप आतेजाते बस उस का हालचाल ही पूछ लें. अच्छा लगेगा आप को भी और उसे भी.

यादों के सहारे : आखिर नीलू की यादों में क्यों गुम रहता था प्रकाश

वह बीते हुए पलों की यादों को भूल जाना चाहता था. और दिनों के बजाय वह आज  ज्यादा गुमसुम था. वह सविता सिनेमा के सामने वाले मैदान में अकेला बैठा था. उस के दोस्त उसे अकेला छोड़ कर जा चुके थे. उस ने घंटों से कुछ खाया तक नहीं था, ताकि भूख से उस लड़की की यादों को भूल जाए. पर यादें जाती ही नहीं दिल से, क्या करे. कैसे भुलाए, उस की समझ में नहीं आया.

उस ने उठने की कोशिश की, तो कमजोरी से पैर लड़खड़ा रहे थे. अगलबगल वाले लोग आपस में बतिया रहे थे, ‘भले घर का लगता है. जरूर किसी से प्यार का चक्कर होगा. लड़की ने इसे धोखा दिया होगा या लड़की के मांबाप ने उस की शादी कहीं और कर दी होगी…

‘प्यार में अकसर ऐसा हो जाता है, बेचारा…’ फिर एक चुप्पी छा गई थी. लोग फिर आपसी बातों में मशगूल हो गए. वह वहां से उठ कर कहीं दूर जा चुका था. उस ने उस लड़की को अपने मकान के सामने वाली सड़क से गुजरते देखा था. उसे देख कर वह लड़की भी एक हलकी सी मुसकान छोड़ जाती थी. वह यहीं के कालेज में पढ़ती थी. धीरेधीरे उस लड़की की मुसकान ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. जब वे आपस में मिले, तो उस ने लड़की से कहा था, ‘‘तुम हर पल आंखों में छाई रहती हो. क्यों न हम हमेशा के लिए एकदूजे के हो जाएं?’’ उस लड़की ने कुछ नहीं कहा था. वह कैमिस्ट से दवा खरीद कर चली गई थी. उस का चेहरा उदासी में डूबा था.

उस लड़की का नाम नीलू था. नीलू के मातापिता उस के उदास चेहरे को देख कर चिंतित हो उठे थे. पिता ने कहा था, ‘‘पहले तो नीलू के चेहरे पर मुसकराहट तैरती थी. लेकिन कई दिनों से उस के चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह रंगत नहीं, वह चिडि़यों की तरह फुदकती नहीं, बल्कि किसी बासी फूल की तरह उस के चेहरे पर पीलापन छाया रहता है.’’

नीलू की मां बोली, ‘‘लड़की सयानी हो गई है. कुछ सोचती होगी.’’

नीलू के पिता बोले, ‘‘क्यों नहीं इस के हाथ पीले कर दिए जाएं?’’

मां ने कहा, ‘‘कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस से तो यही अच्छा रहेगा.’’ नीलू की यादों को न भूल पाने वाले लड़के का नाम प्रकाश था. वह खुद इस कशिश के बारे में नहीं जानता था. वह अपनेआप को संभाल नहीं सका था. उसे अकेलापन खलने लगा था. उस की आंखों के सामने हर घड़ी नीलू का चेहरा तैरता रहता था. एक दिन प्रकाश नीलू से बोला, ‘‘नीलू, क्यों न हम अपनेअपने मम्मीडैडी से इस बारे में बात करें?’’

‘‘मेरे मम्मीडैडी पुराने विचारों के हैं. वे इस संबंध को कभी नहीं स्वीकारेंगे,’’ नीलू ने कहा.

‘‘क्यों?’’ प्रकाश ने पूछा था.

‘‘क्योंकि जाति आड़े आ सकती है प्रकाश. उन के विचार हम लोगों के विचारों से अलग हैं. उन की सोच को कोई बदल नहीं सकता.’’

‘‘कोई रास्ता निकालो नीलू. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’ नीलू कुछ जवाब नहीं दे पाई थी. एक खामोशी उस के चेहरे पर घिर गई थी. दोनों निराश मन लिए अलग हो गए. पूरे महल्ले में उन दोनों के प्यार की चर्चा होने लगी थी.

‘‘जानती हो फूलमती, आजकल प्रकाश और नीलू का चक्कर चल रहा है. दोनों आपस में मिल रहे हैं.’’

‘‘हां दीदी, मैं ने भी स्कूल के पास उन्हें मिलते देखा है. आपस में दोनों हौलेहौले बतिया रहे थे. मुझ पर नजर पड़ते ही दोनों वहां से खिसक लिए थे.’’

‘‘हां, मैं ने भी दोनों को बैंक्वेट हाल के पास देखा है.’’

‘‘ऐसा न हो कि बबीता की कहानी दोहरा दी जाए.’’

‘‘यह प्यारव्यार का चक्कर बहुत ही बेहूदा है. प्यार की आंधी में बह कर लोग अपनी जिंदगी खराब कर लेते हैं.’’

‘‘आज का प्यार वासना से भरा है, प्यार में गंभीरता नहीं है.’’

‘‘देखो, इन दोनों की प्रेम कहानी का नतीजा क्या होता है.’’ प्रकाश के पिता उदय बाबू अपने महल्ले के इज्जतदार लोगों में शुमार थे. किसी भी शख्स के साथ कोई समस्या होती, तो वे ही समाधान किया करते थे. धीरेधीरे यह चर्चा उन के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने घर आ कर अपनी पत्नी से कहा था, ‘‘सुनती हो…’’ पत्नी निशा ने रसोईघर से आ कर पूछा, ‘‘क्या है जी?’’

‘‘महल्ले में प्रकाश और नीलू के प्यार की चर्चा फैली हुई है,’’ उदय बाबू ने कहा.

‘‘तभी तो मैं मन ही मन सोचूं कि आजकल वह उखड़ाउखड़ा सा क्यों रहता है? वह खुल कर किसी से बात भी नहीं करता है.’’

‘‘मैं प्रोफैसर साहब के यहां से आ रहा था. गली में 2-4 औरतें उसी के बारे में बातें कर रही थीं.’’

‘‘मैं प्रकाश को समझाऊंगी कि हमें यह रिश्ता कबूल नहीं है,’’ निशा ने कहा. उधर नीलू के मम्मीडैडी ने सोचा कि जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करवा दें और वे इस जुगाड़ में जुट गए.

नीलू को जब इस बारे में मालूम हुआ था, तो उस ने प्रकाश से कहा, ‘‘प्रकाश, अब हम कभी नहीं मिल सकेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने पूछा था.

‘‘डैडी मेरा रिश्ता करने की बात चला रहे हैं. हो सकता है कि कुछ ही दिनों में ऐसा हो जाए,’’ इतना कह कर नीलू की आंखों में आंसू डबडबा गए थे.

‘‘क्या तुम ने…?’’

‘‘नहीं प्रकाश, मैं उन के विचारों का विरोध नहीं कर सकती.’’

‘‘तो तुम ने मुझे इतना प्यार क्यों किया था?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘हम एकदूसरे के हो जाएं, क्या इसे प्यार कहते हैं? क्या जिस्मानी संबंध को ही तुम प्यार का नाम देते हो?’’

यह सुन कर प्रकाश चुप था.

‘‘क्या अलग रह कर हम एकदूसरे को प्यार नहीं करते रहेंगे?’’ कुछ देर चुप रह कर नीलू बोली, ‘‘मुझे गलत मत समझना. मेरे मम्मीडैडी मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उन के प्यार को ठेस नहीं पहुंचा सकती.’’

‘‘क्या तुम उन का विरोध नहीं कर सकती?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘जिस ने हमें यह रूप दिया है, हमें बचपन से ले कर आज तक लाड़प्यार दिया है, क्या उन का विरोध करना ठीक होगा?’’ नीलू ने समझाया.

‘‘तो फिर क्या होगा हमारे प्यार का?’’ प्रकाश ने पूछा.ा

‘‘अपनी चाहत को पाने के लिए मैं उन के अरमानों को नहीं तोड़ सकती. उन की सोच हम से बेहतर है.’’ इस के बाद वे दोनों अलग हो गए थे, क्योंकि लोगों की नजरें उन्हें घूर रही थीं. नीलू के मम्मीडैडी की आंखों के सामने बरसों पुराना एक मंजर घूम गया था. उसी महल्ले के गिरधारी बाबू की लड़की बबीता को भी पड़ोस के लड़के से प्यार हो गया था. उस लड़के ने बबीता को खूब सब्जबाग दिखाए थे और जब उस का मकसद पूरा हो गया था, तो वह दिल्ली भाग गया था. कुछ दिनों तक बबीता ने इंतजार भी किया था. गिरधारी बाबू की बड़ी बेइज्जती हुई थी. कई दिनों तक तो वे घर से बाहर निकले नहीं थे. इतना बोले थे, ‘यह तुम ने क्या किया बेटी?’

बबीता मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गई थी. एक दिन चुपके से मुंहअंधेरे घर से निकल पड़ी और हमेशाहमेशा के लिए नदी की गोद में समा गई. गिरधारी बाबू को जब पता चला, तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया था. नीलू की शादी उमाकांत बाबू के यहां तय हो गई थी. जब प्रकाश को शादी की जानकारी हुई, तो उस की आंखों में आंसू डबडबा आए थे. वह अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था. प्रकाश का एक मन कहता, ‘महल्ले को छोड़ दूं, खुदकुशी कर लूं…’ दूसरा मन कहता, ‘ऐसा कर के अपने प्यार को बदनाम करना चाहते हो तुम? नीलू के दिल को ठेस पहुंचाना चाहते हो तुम?’

कुछ पल तक यही हालत रही, फिर प्रकाश ने सोचा कि यह बेवकूफी होगी, बुजदिली होगी. उस ने उम्रभर नीलू की यादों के सहारे जीने की कमस खाई. नीलू की शादी हो रही थी. खूब चहलपहल थी. मेहमानों के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. गाजेबाजे के साथ लड़के की बरात निकल चुकी थी. प्रकाश के घर के सामने वाली सड़क से बरात गुजर रही थी. वह अपनी छत पर खड़ा देख रहा था. वह अपनेआप से बोल रहा था, ‘मैं तुम्हें बदनाम नहीं करूंगा नीलू. इस में मेरे प्यार की रुसवाई होगी. तुम खुश रहो. मैं तुम्हारी यादों के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजार दूंगा…’

प्रकाश ने देखा कि बरात बहुत दूर जा चुकी थी. प्रकाश छत से नीचे उतर आया था. वह अपने कमरे में आ कर कागज के पन्नों पर दूधिया रोशनी में लिख रहा था:

‘प्यारी नीलू,

‘वे पल कितने मधुर थे, जब बाग में शुरूशुरू में हमतुम मिले थे. तुम्हारा साथ पा कर मैं निहाल हो उठा था. ‘मैं रातभर यही सोचता था कि वे पल, जो हम दोनों ने एकसाथ बिताए थे, वे कभी खत्म न हों, पर मेरी चाहत के टीले को जमीन से उखाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर दिया गया. ‘मैं चाहता तो जमाने से रूबरू हो कर लड़ता, पर ऐसा कर के मैं अपनी मुहब्बत को बदनाम नहीं करना चाहता था. मेरे मन में हमेशा यही बात आती रही कि वे पल हमारी जिंदगी में क्यों आए? ‘तुम मेरी जिंदगी से दूर हो गई हो. मैं बेजान हो गया हूं. एक अजीब सा खालीपन पूरे शरीर में पसर गया है. संभाल कर रखूंगा उन मधुर पलों को, जो हम दोनों ने साथ बिताए थे.

‘तुम्हारा प्रकाश…’

प्रकाश की आंखें आंसुओं से टिमटिमा रही थीं. धीरेधीरे नीलू की यादों में खोया वह सो गया था.

 

यह जीवन है: अदिति-अनुराग को कौनसी मुसीबत झेलनी पड़ी

अदितिभागीभागी बसस्टौप की तरफ जा रही थी. आज फिर से सारा काम काम खत्म करने में उसे देर हो गई थी. आज वह किसी भी कीमत पर बस नहीं छोड़ना चाहती थी.

बस छूटी और शुरू हो गया पति का लंबा लैक्चर, ‘‘टीचर ही तो हो… फिर भी तुम से कोई काम ढंग से नहीं होता. पता नहीं बच्चों को क्या सिखाती हो?’’

पिछले 5 सालों से वह यही सुन रही है.

अदिति 30 वर्ष की सुंदर नवयुवती है. अपने कैरियर की शुरुआत उस ने एक कंपनी में ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर के पद से करी थी. वही कंपनी में उस की मुलाकात अपने पति अनुराग से हुई, जो उसी कंपनी में सेल्स मैनेजर का काम संभालता था. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में तबदील हो गई. शादी के बाद प्राथमिकताएं बदल गईं.

अनुराग और अदिति आंखों में ढेर सारे सपने संजो कर जीवन की राह पर चल पड़े. अदिति घर, दफ्तर का काम करतेकरते थक जाती थी. तब अनुराग ने ही एक मेड का बंदोबस्त कर दिया था.

जिंदगी गुजर रही थी और धीरेधीरे दोनों अपनी गृहस्थी को जमाने की कोशिश कर रहे थे. तभी उन की जिंदगी में एक फूल खिलने का आभास हुआ. डाक्टर ने अदिति को बैडरैस्ट करने को कहा, इसलिए उस के पास नौकरी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था. एक प्यारी सी परी आ गई थी. उन के जीवन में पर साथ ही बढ़ रही थी जिम्मेदारियां.

अदिति पिछले 2 सालों से घर पर थी, इसी बीच अनुराग ने बैंक से लोन ले कर एक प्लैट भी ले लिया था. उधर पापा भी रिटायर हो गए थे तो उधर की तरफ भी उस की थोड़ी जवाबदेही हो गई थी. जैसे हर मध्यवर्ग के साथ होता है. उन्होंने भी कुछ खर्चों में कटौती करी और मेड को हटा दिया और अदिति ने भी नौकरी के लिए हाथपैर मारने शुरू कर दिए.

 

अदिति ने बहुत कंपनियों में कोशिश करी पर 2 साल का अंतराल एक खाई की तरह हो गया उस के और नौकरी के बीच में. फिर उस ने सोचविचार के बाद स्कूल में अप्लाई किया और जल्द ही एक स्कूल टीचर के रूप में उस की नियुक्ति हो गई.

अनुराग यह सुन कर खुश था क्योंकि वह समय से घर आ सकती है और अपनी बेटी के साथ समय बिता सकती है. समस्या थी कि 1 वर्ष की परी की. उसे किस के भरोसे छोड़ कर जाए, सम झ नहीं आ रहा था. परी के नानानानी और दादादादी उसे अपने साथ रखने को तैयार थे पर वहां आ कर रहना नहीं चाहते थे. मेड के भरोसे पूरा दिन परी को अदिति छोड़ना नहीं चाहती थी. फिर उन्हें पड़ोस में ही एक डे केयर मिल गया, हालांकि उस की फीस काफी ज्यादा थी पर अपनी बच्ची की सुरक्षा उन की प्राथमिकता थी.

आज अदिति को स्कूल जाना था. सुबह से ही अदिति की रेल बन गई. नाश्ता और खाना बनाना, फिर घर की साफसफाई और परी का भी पूरा बैग तैयार करना था. जब वह परी को डे केयर छोड़ कर बाहर निकली तो उस का रोना न सुन सकी और खुद ही कब सुबकने लगी, उसे पता ही नहीं चला. पर अदिति ने महसूस किया, जितनी वह बेबस है. उतनी ही बेबसी अनुराग की आंखों में भी है.

स्टाफरूप में उस का परिचय सब से कराया गया. सब खिलखिला रहे थे पर उसे सबकुछ नया और अलग लग रहा था. जब वह कंपनी में थी तो वहां पर आप कैसे भी व्यवहार कर सकते थे पर स्कूल के अपने नियमकायदे थे और उन्हें सब से पहले शिक्षक को ही अपने जीवन में उतारना होता है.

कक्षा में पहुंच कर देखा सारे बच्चे शोर मचा रहे थे. वह जोरजोर से चिल्ला रही थी पर कोई फायदा नहीं. उसे महसूस हुआ वह क्लास में नहीं एक सब्जी मंडी आ गई है. पास से ही प्रिंसिपल गुजर रही थीं. शोर सुन कर वे कक्षा में आ गईं, बच्चों को चुपचाप खड़े हो कर एक कड़ी नजर से देखा तो वे एकदम चुप हो कर बैठ गए.

पूरा दिन अदिति का बस चिल्लाते ही बीता. 6 घंटे के स्कूल में उसे बस मुश्किल से 15 मिनट लंच ब्रेक के मिले. अदिति को पहले दिन ही यह अनुमान लग गया कि यह इतना भी आसान नहीं है जितना वह सम झती है.

स्कूल बस में बैठ कर पता ही नहीं चला कब उस की आंख लग गई. जब साथ वाली अध्यापिका ने उसे  झं झोड़ कर उठाया तो उस की आंख खुली. डे केयर से परी को ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ी. वह पसीने से सराबोर थी और भूख से उस के प्राण निकल रहे थे. परी को गोद में लिए उस ने खाना खाया और लेट गई.

शाम को वह जैसे ही कमरे से बाहर निकली तो देखा दोपहर के जूठे बरतन उसे मुंह चिड़ा रहे थे. उस ने बरतन मांजने शुरू ही किए थे कि परी रोने लगी. हाथ का काम छोड़ कर, अदिति ने उस का दूध गरम किया. शाम की चाय उसे 7 बजे मिली. पहले जब वह नौकरी पर थी तो पूरे दिन की एक मेड रहती थी पर क्योंकि इस बार वह बस टीचर ही है और दोपहर तक घर आ जाएगी, यह सोच कर उस ने खुद ही अनुराग से काम वाली को मना कर दिया था. वैसे भी परी की डे केयर की फीस ही उन के बजट को गड़ाबड़ा रही थी.

रात को बिस्तर पर लेट कर अदिति को ऐसे लगा जैसे वह कोई जंग लड़ कर आई हो. अनुराग ने रात में जब प्यार जताने की कोशिश करनी चाही तो उस ने एक  झटके से उसे हटा दिया. बोली, ‘‘सुबह 4 बजे उठना है, प्लीज मैं बहुत थक गई हूं.’’

अनुराग मुंह बना कर बोला, ‘‘क्या थक गई हो? न तुम्हारे टारगेट होंगे न ही कोई गोल, तुम्हें तो हर माह बस फ्री की तनख्वाह मिलेगी, टीचर ही तो हो.’’

अदिति के पास बहस का समय नहीं था. अत: वह मुंह फेर कर सो गई.

अदिति अगले दिन कक्षा में गई और पढ़ाने लगी. आधे से ज्यादा बच्चे उसे न सुन कर अपनी बातों में ही व्यस्त थे. एकदम उसे बहुत तेज गुस्सा आया और उस ने बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया. बाहर खड़े हो कर दोनों बच्चे फील्ड में चले गए और खेलने लगे. छुट्टी की घंटी बजी, तो उस ने बैग उठाया तभी चपरासी आ कर उसे सूचना दे गया कि उन्हें प्रिंसिपल ने बुलाया है.

अदिति भुनभुनाती हुई औफिस की तरफ लपकी. प्रिंसिपल ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘अदिति तुम ने आज 2 बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया… तुम्हें मालूम है वे पूरा दिन फील्ड में खेल रहे थे. एक बच्चे को चोट भी लग गई है. कौन जिम्मेदार है इस का?’’

अदिति बोली, ‘‘मैडम, आप उन बच्चों को नहीं जानतीं कि वे कितने शैतान हैं.’’

प्रिंसिपल ठंडे स्वर में बोलीं, ‘‘अदिति बच्चे शैतान नहीं हैं, आप उन  को संभाल नहीं पाती हैं, यह कोई औफिस नहीं है… आप टीचर हैं, बच्चों की रोल मौडल, ऐसा व्यवहार इस स्कूल में मान्य नहीं है.’’

बस जा चुकी थी और वह बहुत देर तब उबेर की प्रतीक्षा में खड़ी रही. जब 4 बजे उस ने डे केयर में प्रवेश किया तो उस की संचालक ने व्यंग्य किया, ‘‘आजकल टीचर को भी लगता है कंपनी जितना ही काम रहता है.’’

अदिति बिना बोले परी को ले कर अपने घर चल पड़ी. वह जब शाम को उठी तो देखा अंधेरा घिर आया था. उस ने रसोई में देखा जूठे बरतनों का ढेर लगा था और अनुराग फोन पर अपनी मां से गप्पें मार रहा था.

उस ने चाय बनाई और लग गई काम पर. रात 10 बजे जब वह बैडरूम में घुसी तो थक कर चूर हो गई थी. उस ने अनुराग से बोला, ‘‘सुनो एक मेड रखनी होगी… मैं बहुत थक जाती हूं.’’

अनुराग बोला, ‘‘अदिति टीचर ही तो हो… करना क्या होता है तुम्हें, सुबह तो सब कामों में मैं भी तुम्हारी मदद करने की कोशिश करता हूं… पहले जब तुम कंपनी में थी तब बात अलग थी… रात हो जाती थी… अब तो सारा टाइम तुम्हारा है.’’

तभी मोबाइल की घंटी बजी. कल उसे 4 बच्चों को एक कंपीटिशन के लिए ले कर जाना था. अदिति इस से पहले कुछ और पूछती, मोबाइल बंद हो गया. बच्चों को ले कर जब वह प्रतियोगिता स्थल पर पहुंची तो पला चला कि उन्हें अभी 4 घंटे प्रतीक्षा करनी होगी. उन 4 घंटों में अदिति अपने विद्यार्थियों से बात करने लगी और कब 4 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला. उसे महसूस हुआ ये बच्चे जैसे घर पर अपनी हर बात मातापिता से बांटते हैं, वैसे ही स्कूल में अध्यापकों से बांटते हैं. पहली बार उसे लगा टीचर का कार्य बस पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है.

आज फिर घर पहुंचने में देर हो गई क्योंकि सब विद्यार्थियों को घर पहुंचा कर ही वह अपने घर पहुंच सकी. डे केयर पहुंच कर देखा, परी बुखार से तप रही थी. वह बिना खाएपीए उसे डाक्टर के पास ले गई और अनुराग भी वहां ही आ गया. बस आज इतनी गनीमत थी कि अनुराग ने रात का खाना बना दिया.

रात खाने पर अनुराग बोला, ‘‘अदिति तुम 2-3 दिन की छुट्टी ले लो.’’

अदिति ने स्कूल में फोन किया तो पता चला कि कल उसी के विषय की परीक्षा है तो कल तो उसे जरूर आना पड़ेगा, परीक्षा के बाद भले ही चली जाए.

 

सुबह पति का फूला मुंह छोड़ कर वह स्कूल चली गई. परीक्षा समाप्त होते  ही वह विद्यार्थियों की परीक्षा कौपीज ले कर घर की तरफ भागी. घर पहुंच कर देखा तो परी सोई हुई थी और सासूमां आई हुई थीं, शायद अनुराग ने फोन कर के अपनी मां से उस की यशोगाथा गाई होगी.

उसे देखते ही सासूमां बोली, ‘‘बहू लगता है स्कूल की नौकरी तुम्हें अपनी परी से भी ज्यादा प्यारी है. मैं घर छोड़ कर आ गई हूं और देखा मां ही गायब.’’

अदिति किसकिस को सम झाए और क्या सम झाए जब वह खुद ही अभी सब सम झ रही है.

वह कैसे यह सम झाए उस की जिम्मेदारी अब बस परी की तरफ ही नहीं, अपने विद्यालय के हर 1 बच्चे की तरफ है. उस का काम बस स्कूल तक सीमित नहीं है. वह 24 घंटे का काम है जिस की कहीं कोई गणना नहीं होती. बहुत बार ऐसा भी हुआ कि अदिति को लगा कि वह नौकरी छोड़ कर परी की ही देखभाल करे पर हर माह कोई न कोई मोटा खर्च आ ही जाता.

अदिति की नौकरी का तीनचौथाई भाग तो घर के खर्च और डे केयर की फीस में ही खर्च हो जाता और एकचौथाई भाग से वह अपने कुछ शौक पूरे कर लेती. वहीं अनुराग का हाल और भी बेहाल था. उस की तनख्वाह का 80% तो घर और कार की किस्त में ही निकल जाता और बाकी का 20% उन अनदेखे खर्चों के लिए जमा कर लेता जो कभी भी आ जाते थे. उस के सारे शौक तो न जाने कहां खो गए थे.

अदिति जानेअनजाने अनुराग को अपनी बड़ी बहन और बहनोई का उदाहरण देती रहती जो हर वर्ष विदेश भ्रमण करते हैं और उन के पास खाने वाली से ले कर बच्चों की देखभाल के लिए भी आया थी. उन के रिश्तों में प्यार की जगह अब चिड़चिड़ाहट ने ले ली थी. कभीकभी अदिति की भागदौड़ देख कर उस का मन भी

भर जाता. ऐसा नहीं है अनुराग अदिति को आराम नहीं देना चाहता था पर क्या करे वह कितनी भी कोशिश कर ले, हर माह महंगाई बढ़ती ही जाती…

देखतेदेखते 2 वर्ष बीत गए और अदिति अपनी टीचर की भूमिका में अच्छी तरह ढल गई थी. जब कभी वह सुबहसुबह दौड़ लगाती अपनी बस की तरफ तो सोसाइटी में चलतेफिरते लोग पूछ ही लेते ‘‘आप टीचर हैं क्या किसी स्कूल में?’’

पर अब अदिति मुसकरा कर बोलती, ‘‘जी, तभी तो सुबहसवेरे का सूर्य देखना का मु झे समय नहीं मिलता है.’’

स्कूल अब स्कूल नहीं है उस का दूसरा घर हो गया है. उस की परी भी उस के साथ ही स्कूल जाती है और आती है. औरों की तरह उसे परी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती है. जब उस के पढ़ाई हुए विद्यार्थी उस से मिलने आते हैं तो वह गर्व से भर उठती है. वह टीचर ही तो है, जिंदगी से भरपूर क्योंकि हर वर्ष नए विद्यार्थियों के साथ उस की उम्र साल दर साल बढ़ती नहीं घटती जाती है.

उधर अनुराग भी बहुत खुश था, परी के जन्म के समय से ही उस की प्रोमोशन  लगभग निश्चित थी पर किसी न किसी कारण से वह टलती ही जा रही थी. आज उस के हाथ में प्रोमोशन लैटर था. पूरे 20 हजार की बढ़ोतरी और औफिस की तरफ से कार भी मिल गई. इधर अदिति के साथ परी के आनेजाने से डे केयर का खर्चा भी बच रहा था.

अनुराग ने मन ही मन निश्चिय कर लिया कि इस बार विवाह की वर्षगांठ पर वह और अदिति गोवा जाएंगे. वह सबकुछ पता कर चुका था, पूरे 60 हजार में पूरा पैकेज हो रहा था. अनुराग ने घर पहुंच कर ऐलान किया कि वे आज डिनर बाहर करेंगे और वह अदिति को उस की मनपसंद शौपिंग भी कराना चाहता है.

अदिति आज बहुत दिनों बाद खिलखिला रही थी और परी भी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी. अदिति की वर्षों से एक प्योर शिफौन साड़ी की तम्मना थी. जब दुकानदार ने साड़ी दिखानी शुरू कीं, तो अदिति मूल्य सुन कर बोली, ‘‘अनुराग कहीं और से लेते हैं.’’

तब अनुराग ने अपना प्रोमोशन लैटर दिखाया और बोला, ‘‘इतना तो मैं अब कर सकता हूं.’’

डिनर के समय अनुराग अदिति का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘अदिति बस 1-2 साल की तपस्या और है, फिर मैं अपनी कंपनी में डाइरैक्टर के ओहदे पर पहुंच जाऊंगा.’’

दोनों शायद आज काफी समय बाद घोड़े बेच कर सोए थे. दोनों ने ही आज छुट्टी कर रखी थी. दोनों ही इन लमहों को जी भर कर जीना चाहते थे.

आज अदिति अनुराग से कुछ और भी बात करना चाहती थी. वह अब परी के लिए एक भाई या बहन लाना चाहती थी. इस से पहले कि वह अनुराग से इस बारे में बात करती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘जानता हूं पर इस के लिए प्यार भी जरूरी है,’’ और फिर दोनों प्यार में सराबोर हो गए.’’

1 माह पश्चात अदिति के हाथ में अपनी प्रैगनैंसी रिपोर्ट थी जो पौजिटिव थी. वे बहुत खुश थे. उस ने तय कर लिया था, इस बार वे अपने बच्चे के साथ पूरा समय बिताएगी और जब दोनों ही बच्चे थोड़े सम झदार हो जाएंगे तभी अपने काम के बारे में सोचेगी. अनुराग भी उस की बात से सहमत था. अब अनुराग भी थोड़ा निश्चित हो गया था क्योंकि अब उस की अगले वर्ष प्रोमोशन तय थी.

रविवार की ऐसी ही कुनकुनी दोपहरी में दोनों पक्षियों की तरह गुटरगूं कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उधर से अनुराग की मां घबराई सी बोल रही थीं, ‘‘अनुराग के ?झ को हार्ट अटैक आ गया है और उन्हें हौस्पिटल में एडमिट कर लिया गया है.’’

वहां पहुंच कर पता चला 20 लाख का पूरा खर्च है. अनुराग ने दफ्तर से अपनी तनख्वाह से एडवांस लिया, हिसाब लगाने पर उसे अनुमान हो गया था कि उस की पूरी तनख्वाह बस अब इन किस्तों में ही निकल जाएगी, फिर से कुछ वर्षों तक.

घर पहुंच कर जब उस ने अदिति को सारी बात से अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं अनुराग, मैं हूं न, हम मिल कर सब संभाल लेंगे.’’

हालांकि मन ही मन वह खुद भी परेशान थी. पर यह दोनों को ही सम झ आ गया था कि यही जीवन है, फिर चाहे हंस कर गुजारो या रो कर आप की मरजी है.

अनुराग अपनी मां के  साथ हौस्पिटल के गलियारे में चहलकदमी कर रहा था. अदिति को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई थी. आधे घंटे पश्चात नर्स उन के बेटे को ले कर आई. उसे हाथों में ले कर अनुराग की आंखों में आंसू आ गए.

फिर से 3 माह पश्चात अदिति अपने युवराज को घर छोड़ कर स्कूल जा रही हैं, पर आज वह घबरा नहीं रही है क्योंकि अब अनुराग के मां और पापा उन के साथ ही रह रहे हैं. उधर अदिति के मांपापा ने बच्चों की देखभाल और घर की देखरेख के लिए कुछ समय के लिए अपनी नौकरानी उन के घर भेज दी. जिंदगी बहुत आसान नहीं थी पर मुश्किल भी नहीं थी.

इस बार विवाह की वर्षगांठ पर अनुराग फिर से अदिति को गोवा ले जाना चाहता था और उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार अदिति का वह सपना पूरा कर पाएगा. रास्तों पर चलते हुए वे जीवन के इस सफर को शायद हंसतेखिलखिलाते पूरा कर ही लेंगे.

चिंता: क्या पद्मजा को बचा पाया संपत

पद्मजा उस दिन घर पर अकेली गुमसुम बैठी थीं. पति संपत कैंप पर थे तो बेटा उच्च शिक्षा के लिए पड़ोसी प्रदेश में चला गया था और बेटी समीरा शादी कर के अपने ससुराल चली गई. बेटी के रहते पद्मजा को कभी कोई तकलीफ महसूस नहीं हुई. वह बड़ी हो जाने के बाद भी छोटी बच्ची की तरह मां का पल्लू पकड़े, पीछेपीछे घूमती रहती थी. एक अच्छी सहेली की तरह वह घरेलू कामों में पद्मजा का साथ देती थी. यहां तक कि वह एक सयानी लड़की की तरह मां को यह समझाती रहती थी कि किस मौके पर कौन सी साड़ी पहननी है और किस साड़ी पर कौन से गहने अच्छे लगते हैं.

ससुराल जाने के बाद समीरा अपनी सूक्तियां पत्रों द्वारा भेजती रहती जिन्हें पढ़ते समय पद्मजा को ऐसा लगता मानो बेटी सामने ही खड़ी हो.

उस दिन पद्मजा बड़ी बेचैनी से डाकिए की राह देख रही थीं और मन में सोच रही थीं कि जाने क्यों इस बार समीरा को चिट्ठी लिखने में  इतनी देर हो गई है. इस बार क्या लिखेगी वह चिट्ठी में? क्या वह मां बन जाने की खुशखबरी तो नहीं देगी? वैसी खबर की गंध मिल जाए तो मैं अगले क्षण ही वहां साड़ी, फल, फूलों के साथ पहुंच जाऊंगी.

तभी डाकिया आया और उन के हाथ में एक चिट्ठी दे गया. पद्मजा की उत्सुकता बढ़ गई.

चिट्ठी खोल कर देखा तो उन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. कारण, चिट्ठी में केवल 4 ही पंक्तियां लिखी थीं. उन्होंने उन पंक्तियों पर तुरंत नजर दौड़ाई.

‘‘मां,

तुम ने कई बार मेरी घरगृहस्थी के बारे में सवाल किया, लेकिन मैं इसलिए कुछ भी नहीं बोली कि अगर तुम्हें पता चल जाए तो तुम बरदाश्त नहीं कर पाओगी. मां, हम धोखा खा चुके हैं. वह शराबी हैं, जब भी पी कर घर आते हैं, मुझ से झगड़ा करते हैं. कल रात उन्होंने मुझ पर हाथ भी उठाया. अब मैं इस नरक में एक पल भी नहीं रह पाऊंगी. इसलिए सोचा कि इस दुनिया से विदा लेने से पहले तुम्हारे सामने अपना दिल खोलूं, तुम से भी आज्ञा ले लूं. मुझे माफ करो, मां. यह मेरी आखिरी चिट्ठी है. मैं हमेशाहमेशा के लिए चली जा रही हूं, दूर…इस दुनिया से बहुत दूर.

-समीरा.’’

पद्मजा को लगा मानो उन के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. ऐसा लगा मानो एक भूचाल आया और वह मलबे के नीचे धंसती जा रही हैं.

‘क्या यह सच है? उन के दिल ने खुद से सवाल पूछा, क्योंकि ‘समीरा के लिए जब यह रिश्ता पक्का हुआ था तो वह कितनी खुश थी. समीरा तो फूली न समाई. लेकिन ऐसा कैसे हो गया?’

अतीत की बातें सोच कर पद्मजा का मन बोझिल हो गया. उन की आंखें डबडबाने लगीं.

वह फिर सोचने लगीं कि इस वक्त घर पर मैं अकेली हूं. अब कैसे जाऊं? ट्रेन या बस से जाने पर तो कम से कम 5-6 घंटे लग ही जाएंगे.’ तभी उन के दिमाग में एक उपाय कौंध गया और तुरंत उन्होंने अपने पति के मित्र केशवराव का नंबर मिलाया.

‘‘भैया, मुझे फौरन आप की गाड़ी चाहिए. मुझे अभी-अभी खबर मिली है कि समीरा की हालत बहुत खराब है. आप का एहसान कभी नहीं भूलूंगी,’’

केशवराव ने तुरंत ड्राइवर सहित अपनी गाड़ी भेज दी. गाड़ी में बैठते ही पद्मजा ने ड्राइवर से कहा, ‘‘भैया, जरा गाड़ी तेज चलाना.’’

गाड़ी नेशनल हाईवे पर दौड़ रही थी. पीछे वाली सीट पर बैठी पद्मजा का मन बेचैन था. रहरह कर उन्हें अपनी बेटी समीरा की लाश आंखों के सामने प्रत्यक्ष सी होने लगती थी.

कार की रफ्तार के साथ पद्मजा के विचार भी दौड़ रहे थे. उन का अतीत चलचित्र की भांति आंखों के सामने साकार होने लगा.

‘पद्मजा,’ तेरे मुंह में घीशक्कर. ले… लड़के वालों से चिट्ठी मिल गई. उन को तू पसंद आ गई,’ सावित्रम्मा का मन खुशी से नाच उठा.

‘मां, मैं कई बार तुम से कह चुकी हूं कि यह रिश्ता मुझे पसंद नहीं है. मैं ने शशिधर से प्यार किया है. मैं बस, उसी से शादी करूंगी. वरना…’ पद्मजा की आवाज में दृढ़ता थी.

‘चुप, यह क्या बक रही है तू. अगर कोई सुन लेता तो एक तो हम यह रिश्ता खो बैठेंगे और दूसरे तू जिंदगी भर कुंआरी बैठी रहेगी. मुझे सब पता है. शशिधर से तेरी जोड़ी नहीं बनेगी. वह तेरे लायक नहीं. हम तेरे मांबाप हैं. तुझ से ज्यादा हमें तेरी भलाई की चिंता है. हम तेरे दुश्मन थोड़े ही हैं,’ कहती हुई मां सावित्री गुस्से में वहां से चली गईं.

मां की बातों का असर पद्मजा पर बिलकुल नहीं पड़ा, उलटे उस का क्रोध दोगुना हो गया. वह सोचने लगी कि वह मां मां नहीं और वह बाप बाप नहीं जो अपनी संतान की पसंद, नापसंद को न समझे.

वैसे पद्मजा शुरू से ही तुनकमिजाज थी. उस में जोश ज्यादा था. जब भी कोई ऐसी घटना हो जाती थी जो उस के मन के खिलाफ हो, तो तुरंत वह आपे से बाहर हो जाती. वह अगले पल अपने कमरे में जा कर अंदर से दरवाजा बंद कर देती और पिता की नींद की गोलियां मुट्ठी भर ले कर निगल भी लेती थी.

सावित्रम्मा बेटी पद्मजा का स्वभाव अच्छी तरह से जानती थीं. इस से पहले भी एक बार मेडिकल में सीट न मिलने पर उस ने ब्लेड से अपनी एक नस काट दी थी. नतीजा यह हुआ कि उस की जान आफत में पड़ गई. इसी वजह से, सावित्रम्मा अपनी बेटी के व्यवहार पर नजर गड़ाए बैठी थीं. बेटी के अपने कमरे में घुसते ही उस ने यह खबर पति के कान में डाल दी. पतिपत्नी दोनों के बारबार बुलाने पर भी वह बाहर न आई. लाचार हो कर पतिपत्नी ने दरवाजा तोड़ दिया और पद्मजा को अस्पताल में दाखिल कर दिया.

‘पद्मा, यह तुम क्या कह रही हो? तुम्हारी मूर्खता रोजरोज बढ़ती जा रही है. पढ़ीलिखी हो कर तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए.’ संपत बड़ी बेचैनी से पत्नी पद्मजा से बोला. पद्मजा एकदम बिगड़ गई.

‘हां…पढ़ीलिखी होने की वजह से ही मैं आप से यह पूछ रही हूं. मेरे साथ अन्याय हो तो मैं क्यों बरदाश्त करूं? और कैसे बरदाश्त करूं? मैं पुराणयुग की भोली अबला थोड़े ही हूं कि आप अपनी मनमानी करते रहें, बाहर गुलछर्रे उड़ाएं, ऐश करें और मैं चुपचाप देखती रहूं. आप कभी यह नहीं समझना कि मैं सीतासावित्री के जमाने की हूं और आप की हर भूल को माफ कर दूंगी. आखिर मैं ने क्या भूल की है? क्या अपने पति पर सिर्फ अपना ही हक मानना अपराध है? दूसरी महिलाओं से नाता जोड़ना, उन के चारों ओर चक्कर काटना तो क्या मैं चुपचाप देखती रहूं.’

‘वैसा पूछना गलत नहीं हो सकता है लेकिन मैं ने वैसा किया कब था? यह सब तेरा वहम है. तेरे दिमाग पर शक का भूत सवार है. वह उठतेबैठते, किसी के साथ मिलते, बात करते मेरा पीछा कर रहा है. तेरी राय में मेरी कोई लेडी स्टेनो नहीं रहनी चाहिए. मेरे दोस्तों की बीवियों से भी मुझे बात नहीं करनी चाहिए… है न.’

‘ऐसा मैं ने थोड़े ही कहा है, जो कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा और कानों से सुना वही तो बता रही हूं. सचाई क्या है, मैं जानती हूं. आप के इस तरह चिल्लाने से सचाई दब नहीं सकती.’

‘छि:, बहुत हो गया. यह घर रोजरोज नरक बनता जा रहा है. न सुख है और न शांति.’ चिढ़ता हुआ संपत बाहर चला गया. पद्मजा रोतीबिलखती बिस्तर पर लेट गई.

पद्मजा रोज की तरह उस दिन भी  बाजार गई और वह सब्जी खरीद रही थी कि सामने एक ऐसा नजारा दिखाई पड़ा कि वह फौरन पीछे मुड़ी और बिना कुछ खरीदे ही घर लौट आई.

संपत स्कूटर पर कहीं जा रहा था और पीछे कोई खूबसूरत लड़की बैठी थी. दोनों अपनी दुनिया में मस्त थे. आपस में बातें करते हुए, हंसते हुए लोटपोट हो रहे थे. बस, इसी दृश्य ने पद्मजा को उत्तेजित, पागल और बेचैन कर दिया.

आते ही पद्मजा ने प्लास्टिक की थैली एक कोने में फेंक दी और सीधा रसोईघर में घुस गई. अलमारी से किरोसिन का डब्बा उठा कर उस ने अपने शरीर पर सारा तेल उड़ेल दिया. बस, अब तीली जला कर आत्महत्या करने ही वाली थी कि बाहर स्कूटर की आवाज सुनाई पड़ी.

पद्मजा का क्रोध मानो सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस के मन में ईर्ष्या ने ज्वालामुखी का रूप धारण कर लिया.

‘अब मुझे मर ही जाना चाहिए. जीवन भर उसे 8-8 आंसू बहाते, तड़पतड़प कर रहना चाहिए,’ पद्मजा का दिमाग ऐसे विचारों से भर गया.

संपत को घर में कदम रखते ही मिट्टी के तेल जैसी किसी चीज के जलने की गंध लग गई. रसोई में झांक कर देखा तो ज्वालाओं से घिरी पद्मजा दिखाई पड़ी. संपत हक्काबक्का रह गया. वह जोश में आ कर रसोई का दरवाजा पीटने लगा और पद्मजा को बारबार पुकार रहा था. अंत में दरवाजा टूट गया. 40 प्रतिशत जली पद्मजा अस्पताल में भरती कराई गई. फिर बड़ी मुश्किल से वह बच पाई. पद्मजा को जब यह पता चला कि उस दिन संपत के स्कूटर के पीछे बैठी नजर आई लड़की कोई और नहीं वह तो संपत के ताऊ

की बेटी थी, बस, पद्मजा का मन पश्चात्ताप से भर गया. उसे अपनी गलती महसूस हुई.

पद्मजा में अपने प्रति ग्लानि तब और बढ़ गई जब पति ने इलाज के दौरान जीतोड़ कर सेवा की. उसे बड़ी शरम महसूस हुई और अपनी जल्दबाजी, मूर्खता पर स्वयं को कोसने लगी.

दौड़ती कार के अचानक रुकते ही पद्मजा वर्तमान में आ गई. अतीत के सारे चलचित्र ओझल हो गए.

‘‘गाड़ी क्यों रोकी?’’ उस ने ड्राइवर से पूछा.

‘‘मांजी, यहां एक छोटा होटल है. सोचा, आप थक गई होंगी. प्यास भी लग गई होगी. क्या मैं आप के लिए थोड़ा ठंडा पानी ले आऊं?’’

‘‘नहीं, इस समय मुझे कुछ भी नहीं चाहिए. मुझे फौरन वहां पहुंचना है वरना…’’ इतना कहतेकहते ही पद्मजा का गला भर गया. उस समय केवल समीरा ही उन के दिलोदिमाग पर छाई हुई थी.

पद्मजा पीछे सीट की तरफ झुक गई. खिड़की के शीशे नीचे कर देने से ठंडी हवा के झोंके भीतर आ कर मानो उस की थकावट दूर करते हुए सांत्वना भी दे रहे थे. बस, उस ने अपनी आंखें मूंद लीं.

गाड़ी अचानक ब्रेक के कारण एक झटके के साथ रुकी तो पद्मजा एकदम सामने वाली सीट पर जा गिरी. तभी उस की आंख खुल गई. वह एकदम उछल पड़ी. चारों ओर नजर दौड़ाई. स्थिति सामान्य देख कर वह बोल पड़ी, ‘‘सत्यम, अचानक गाड़ी क्यों रोक दी तूने?’’ पद्मजा ने पूछा.

‘‘आप नींद में चीख उठीं, तो मैं डर गया कि आप के साथ कोई अनहोनी हुई होगी,’’ उस ने अपनी सफाई दी.

कार शहर में पहुंच गई थी और रामनगर महल्ले की तरफ जाने लगी. पद्मजा मन ही मन सोचने लगी कि उस की बिटिया सहीसलामत रहे.

लेकिन, जैसा उस के मन में डर था. पद्मजा ने वहां ऐसा कुछ भी नहीं पाया था. वातावरण एकदम शांत था. गाड़ी के रुकते ही वह दरवाजा खोल कर झट से कूदी और भीतर की तरफ दौड़ पड़ी.

घर के भीतर खामोशी फैली हुई थी. सहमी हुई पद्मजा ने भीतर कदम रखा कि उसे ये बातें सुनाई पड़ीं.

समीरा बोल रही थी. बेटी की आवाज सुन कर पद्मजा के सूखे दिल में मानो शीतल वर्षा हुई.

‘‘आप ने क्यों बचा लिया मुझे? एक पल और बीतता तो मैं फांसी के फंदे में झूल जाती और इस माहौल से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता.’’

‘‘समीरा…’’ यह आवाज पद्मजा के दामाद की थी.

‘‘मैं ने यह बिलकुल नहीं सोचा कि तुम इतनी ‘सेंसिटिव’ हो. अरे, पतिपत्नी के बीच झड़प हो जाती है, झगड़े भी हो जाते हैं. क्या इतनी छोटी सी बात के लिए मर जाएंगे? समीरा, मैं तुम को दिल से चाहता हूं. क्या तुम यह नहीं जानतीं कि मैं बगैर तुम्हारे एक पल भी नहीं रह सकता?’’

‘‘आप जानते हैं कि मुझे शराबियों से सख्त नफरत है. फिर भी आप…’’

‘‘समीरा, मैं शराबी थोड़े ही हूं. तुम्हारा यह सोचना गलत है कि मैं हमेशा पीता रहता हूं लेकिन कभीकभी पार्टियों में दोस्तों का मन रखने के लिए थोड़ा पीता हूं. यह तो सच है कि परसों रात मैं ने थोड़ी सी शराब पी थी लेकिन तुम ने जोश में आ कर भलाबुरा कहा, मेरा मजाक उड़ाया और बेइज्जती की और मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सका.

‘‘तुम पर अनजाने में हाथ उठाया उस के लिए तुम जो भी सजा दोगी, मैं उसे भुगतने को तैयार हूं. लेकिन ऐसी सजा तो मत दो, समीरा. इस दुनिया में तुम से बढ़ कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है. तुम्हारी खातिर मैं शराब छोड़ दूंगा. प्रामिस, तुम्हारी कसम, लेकिन बगैर तुम्हारे यह जिंदगी कोई जिंदगी थोड़े ही है.’’

दामाद के स्वर में अपनी बेटी के प्रति जो प्रेम, जो अपनापन था, उसे सुन कर पद्मजा मानो पिघल गईं. उन की आंखें भी भर आईं. वह अपने आप को संभाल ही नहीं सकीं. और तुरंत दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘कौन है?’’ समीरा और शेखर एकसाथ ही बेडरूम से बाहर आ गए.

मां को देखते ही भावुक हो समीरा दूर से ही ‘मां’ कहते हुए दौड़ आई और उन से लिपट गई.

‘‘यह क्या किया बेटी तूने? तेरी चिट्ठी देखते ही मेरी छाती फट गई. मेरी कोख में आग लगाने का खयाल तुझे क्यों आया? यह तूने सोचा कैसे कि बगैर तेरे हम जिएंगे?’’

‘‘माफ करो मम्मी, मैं ने जोश में आ कर वह चिट्ठी लिख दी थी. यह नहीं सोचा कि वह तुम्हें इतना सदमा पहुंचाएगी.’’

शेखर एकदम शर्मिंदा हो गया. उसे अब तक यह नहीं पता था कि समीरा ने अपनी मां को चिट्ठी लिखी है. उस की नजरें अपराधबोध से झुक गईं.

समीरा मां का चेहरा देख कर भांप गई कि उस ने चिट्ठी पढ़ने से ले कर यहां पहुंचने तक कुछ भी नहीं खाया है.

समीरा ने पंखा चलाया फिर मां और ड्राइवर को ठंडा पानी पिलाया. थोड़ी देर बाद वह गरमागरम काफी बना कर ले आई. उसे पीने के बाद मानो पद्मजा की जान में जान आ गई.

वहां से जाने से पहले पद्मजा बेटी को समझातेबुझाते दामाद के बारे में पूछ बैठीं, ‘‘समीरा, शेखर घर पर नहीं है क्या?’’

‘‘हां हैं,’’ समीरा ने जवाब दिया.

पद्मजा ने भांप लिया कि समीरा इस बात के लिए पछता रही है कि उस के कारण शेखर की नाक कट गई और अपनी मां के सामने वह शरम महसूस कर रही है.

‘‘जा, उसे मेरे जाने की बात बता दे,’’ पद्मजा ने बड़े संक्षेप में कहा.

समीरा के भीतर जा कर बताते ही शेखर बाहर आया. भले ही वह पद्मजा की तरफ मुंह कर के खड़ा था, नजरें जमीन में गड़ी हुई थीं.

‘‘शेखर, समीरा की तरफ से मैं माफी मांगती हूं. उसे माफ कर दो.’’ शेखर विस्मित रह गया.

पद्मजा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोलीं, ‘‘वह शुरू से ऐसी ही है, एकदम मेरे जैसी. वह बहुत भोली है, बिलकुल बच्चों जैसी. उसे यह भी नहीं पता कि जोश में आ कर जो भी फैसला वह करेगी, उस से सिर्फ उस को ही नहीं बल्कि दूसरों को भी दुख होता है.’’

समीरा और शेखर दोनों पद्मजा की बातें सुन कर चौंक पड़े.

‘‘बेटी, तू पूछती थी न, मेरे शरीर पर ये धब्बे क्या हैं? ये घाव के निशान हैं जो जल जाने के कारण हुए. मैं ने तुझे यह कभी नहीं बताया था, ये हुए कैसे? मैं सोचती थी, अगर बता दूं तो मेरे व्यक्तित्व पर कलंक लग जाएगा और मैं तेरी नजर से गिर भी सकती हूं. इसलिए मैं तुझ से झूठ बोलती आई.

‘‘बेटी, अब मैं पछता रही हूं कि मैं ने यह पहले ही तुझ से क्यों नहीं कहा? लेकिन मुझे यह देर से पता चला कि बड़ों के अनुभव छोटों को पाठ पढ़ाते हैं. शुरू में मेरे भीतर भी आत्महत्या की भावना रहती थी. हर छोटीबड़ी बात के लिए मैं आत्महत्या कर लेने का निर्णय लेती थी. ऐसा सोचने के पीछे मुझे वेदना या विपत्तियों से मुक्ति पा लेने के विचार की तुलना में किसी से बदला लेने या किसी को दुख पहुंचाने की बात ही ज्यादा रहती थी. कालक्रम में मेरा यह भ्रम दूर होता गया और यह पता चला कि जिंदगी कितनी अनमोल है.

शेखर, जो पहली बार अपनी सासूमां की जीवन संबंधी नई बात सुन रहा था विस्मित हो गया. समीरा की भी लगभग यही हालत थी.

पद्मजा आगे बताने लगी.

‘‘दरअसल, मौत किसी भी समस्या का समाधान नहीं. मौत से मतलब, जिंदगी से डर कर भाग जाना, समस्याओं और चुनौतियों से मुंह मोड़ लेना है. यह तो कायरों के लक्षण हैं. कमजोर दिल वाले ही खुदकुशी की बात सोचते हैं. बेटी, बहादुर लोग जीवन में एक ही बार मरते हैं लेकिन बुजदिल आदमी हर दिन, हर पल मरता रहता है. जिंदगी जीने के लिए है, बेटी, मरने के लिए नहीं. सुखदुख दोनों जीवन के अनिवार्य अंश हैं. जो दोनों को समान मानेगा वही जीवन का आनंद लूट सकेगा. समीरा, यह सब मैं तुझे इसलिए बता रही हूं कि अपनी समस्याओं का समाधान मर कर नहीं जीवित रह कर ढूंढ़ो. जीवन में समस्याओं का उत्पन्न होना स्वाभाविक है. दोनों ठंडे दिमाग से सोच कर समस्या का समाधान ढूंढ़ो.

‘‘मैं भी जोश में आ कर आत्महत्या कर लेने का प्रयास कई बार कर चुकी हूं. उन में से अगर एक भी प्रयत्न सफल हो जाता तो आज न मुझे इतनी अच्छी जिंदगी मिलती, न इतना योग्य पति मिलता, न हीरेमोती जैसी संतानें मिलतीं. और न इतना अच्छा घर. अपने अनुभव के बल पर कहती हूं बेटी, मेरी बातें समझने की कोशिश करो. मुश्किलें कितनी ही कठिन हों, चुनौतियां कितनी ही गंभीर हों, आप अपने सुनहरे भविष्य को मत भूलें. आश्चर्य की बात यह है कि कभी जो उस समय कष्ट पहुंचाते हैं, वे ही भविष्य में हमारे लिए फायदेमंद होते हैं.’’

‘‘चलिए, अगर मैं ऐसा ही बोलती रहूंगी तो इस का कोई अंत नहीं होगा. जिंदगी, जिंदगी ही होती है,’’ बेटीदामाद से अलविदा कह कर वह जाने को तैयार हो गई.

पद्मजा के ओझल हो जाने तक वे दोनों उन्हें वहीं खड़ेखडे़ देखते रहे. उन के चले जाने के बाद जिंदगी के बारे में उन्होंने जो कहा, उस का सार उन दोनों के दिलोदिमाग में भर गया.

जैसे हर यात्रा की एक मंजिल होती है उसी तरह हर जिंदगी का भी एक मकसद होता है, एक लक्ष्य रहता है. यात्रा में थोड़ी सी थकावट महसूस होने पर जहां चाहे वहां नहीं उतर जाना चाहिए. मंजिल को पाने  तक हमारी जिंदगी का सफर चलता रहता है.

इस प्रकार समीरा के विचार नया मोड़ लेने लगे. अब तक की मां की वेदना उस की समझ में आ गई जिस ने चारों ओर नया आलोक फैला दिया. अब वह पहले वाली समीरा नहीं. इस समीरा को तो जीवन के मूल्यों का पता चल गया.

 

मसाले जो स्वाद के साथ हैं, गुणकारी भी, उपयोग की मात्रा हो कितनी, जानें यहां

22 वर्षीय उमा को नौकरी मिली और उसे बंगलुरु जाना पड़ा, लेकिन उन्हें खाना बनाना नहीं आता था, ऐसे में उनकी माँ ने सहज उपाय दिया और रेडीमेड मसाला लेने की बात कही, उमा ने वही किया और सभी तरह के मसाले खरीद लिए और किचन सजा लिया. आज वह अच्छा खाना बना रही है. इसमें उसे ये बात अच्छी लग रही है कि सही मसाले की एक निश्चित मात्रा डालने पर सब्जी अच्छी बन जाती है, क्योंकि इन पैक्ड मसालों में भी कई मसालों का मिश्रण होता है, जो स्वाद और सुगंध मे अच्छा होता है. उमा की किचन में आज किचन किंग, जीरा पाउडर, धनिया पाउडर, हल्दी पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, छोले मसाले, पाँव भाजी मसालें, गरम मसालें आदि सभी है.

मसालें के है कई फायदे

आमतौर पर बिना किसी दुष्प्रभाव के नियमित रूप से इनके सेवन को सुरक्षित माना जाता है. भोजन में मसालों का नियमित सेवन प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के साथ-साथ गठिया, कैंसर, मधुमेह और संक्रमण जैसी बीमारियों से लड़ने में भी सहायता करता सकता है. किसी भी व्यंजन को स्वादिष्ट बनाने में पहले हमारी दादी – नानी मसाले को पीसकर खाना बनाती थी, लेकिन आज उसका स्वरूप बदल चुका है आज हर मसाले को पीसकर उत्तम क्वालिटी के साथ पॅकिंग की जाती है, जिससे उसका स्वाद और गंध सही मात्रा मे मिल जाता है.

मसाले का इतिहास है पुराना

मसाले और सीज़निंग एक डिश को सादे से अलग, टेस्टी बनाने का काम करती है. मसालों की खोज और उनका उपयोग सैकड़ों वर्षों से कई व्यंजनों में किया जा रहा है, जिसे टेस्ट के अनुसार समय – समय पर विकसित किया जाता रहा है. मसाले भारतीय व्यंजनों की टेस्ट को क्रीऐट करने का मुख्य स्त्रोत हैं और उनके बिना, प्रामाणिक भोजन का स्वाद, सुगंध या फ्लेवर बनाना असंभव है. प्रारंभ में, मसालों का उपयोग पके हुए भोजन की ताजगी बनाए रखने के लिए किया जाता था, फिर प्रीजरवेटिव के रूप में किया जाता था, बाद में व्यंजनों में स्वाद और स्वाद जोड़ने के लिए किया जाने लगा है.

शेफ रणवीर ब्रार कहते है कि मसालों के प्रयोग से खाना टेस्टी बनाया जाता है इसलिए सालों से इसका प्रयोग होता आ रहा है, यही वजह है कि आज की हर महिला हो या पुरुष मसालों का प्रयोग अपने हिसाब से करना जानते है, या सीख जाते है, क्योंकि हर मसाले के डिब्बे के ऊपर व्यंजन की सामग्री के अनुसार मसाले के प्रयोग की सूची भी दी जाती है, जिससे खाना बनाना आसान होता है. फीके भोजन मे मसालें का तड़का ही किसी व्यंजन को स्वादिष्ट बनाता है. साथ ही मसाले के प्रयोग से व्यंजन की महक चारों तरफ फैल जाती है, जिससे उसका जायका सबको भोजन को खाने की ओर आकर्षित करता है. हर जगह का अपना मसाला होता है, जिसे लोग अपने हिसाब से प्रयोग करते है.
मसालें, जो किचन में रखना जरूरी

बिना मसालों के किचन बिना मेकअप किट के ब्यूटी क्वीन की तरह है. वह बिना मेकअप के अच्छी लग सकती है, लेकिन मेकअप उसकी प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ा देता है. जैसे बहुत अधिक मेकअप अच्छा नहीं लगता, वैसे ही भोजन के साथ, सही मात्रा और सही मसालों के प्रयोग से सादा भोजन भी मनोरम और स्वादिष्ट बन सकता है. मसाले जादुई रूप से भोजन को बदल सकते हैं. सुगंध जोड़ने से लेकर स्वाद बढ़ाने तक, मसाले आपके भोजन को पूरा करते हैं. व्यंजनों में एक चुटकी मसाले जादू का काम कर सकते हैं और साधारण व्यंजनों को स्वादिष्ट व्यंजनों में बदल सकते हैं.

भोजन के स्वाद को बदलने के लिए मसाले निम्न है, जो किसी भी व्यक्ति के किचन मे अवश्य होने चाहिए,
• काली मिर्च पाउडर, स्वाद की गर्मी और गहराई जोड़ता है. यह दिखने में थोड़ी छोटी, गोल और काले रंग की होती है. इसका स्वाद काफी तीखा होता है. काली मिर्च कई रंगों में आती है, लेकिन सबसे आम काला रंग है. काली मिर्च का इस्‍तेमाल करने का मतलब है कि हर बार जब आप इसे व्यंजन मे ऐड करेंगे, तो स्वाद में अतिरिक्त जायका मिलेगा.
• जीरा पाउडर, मिट्टी जैसा, अखरोट जैसा स्वाद देता है. यह मसाला नॉन-रोस्टेड और रोस्टेड दोनों प्रकार मार्केट में मिल जाते है. भुना हुआ जीरा पाउडर आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसका स्वाद तीखा होता है. अच्छी स्वाद के लिए करी में इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही इसे रायते या चाट पर छिड़कने पर यह तुरंत उस डिश की स्वाद बढ़ा देता है.
• सूखे तेज पत्ते, लकड़ी की सुगंध के साथ सूखे तेज पत्ते अक्सर सूप, लंबे समय तक उबाले हुए व्यंजन, नॉन वेज डिश और सब्जी को बनाने का इस्‍तेमाल किया जा सकता है. अधिकांश व्यंजनों में 1-2 सूखे तेज पत्ते की आवश्यकता होती है क्योंकि बहुत अधिक उपयोग करने से पकवान कड़वा हो सकता है. इन्हें खाने से पहले भोजन से हटा देना चाहिए.
• हर किचन में धनिया पाउडर का इस्‍तेमाल मसाले के तौर पर किया जाता है. धनिए के पौधे से प्राप्त, यह मसाला खाने को और भी स्वादिष्ट व खुशबूदार बना देता है. यह खाने में मीठा और नमकीन स्वाद का मिश्रण जोड़ता है. इसलिए इसे किचन में जरूर होना चाहिए.
• हल्दी पाउडर, जो गर्म, थोड़ा कड़वा स्वाद, जो खाने में पीले रंग को जोड़ता है. जिससे पकवान सुंदर और आकर्षक दिखता है.
• दालचीनी पाउडर, एक मीठा और गर्म स्वाद जोड़ता है, जिसे अक्सर डेसर्ट में इस्तेमाल किया जाता है. बेकिंग के लिए यह खास होता है. दालचीनी पाउडर का इस्‍तेमाल आमतौर पर पाई, योगर्ट जैसी मिठाइयों के लिए किया जाता है, हालांकि इसका इस्‍तेमाल उन व्यंजनों में भी किया जा सकता है, जहां आप कुछ एक्‍स्‍ट्रा मिठास चाहते हैं.
• जो कोई भी थोड़ा मसालेदार खाना पसंद करता है, उसे अपनी किचन की अलमारी में लालमिर्च पाउडर के पाउडर अवश्य रखने चाहिए. ये भी अलग – अलग तीखेपन और स्वाद मे मिलता है, अगर तीखापन कम और केवल एक जायकेदार रंग चाहते है तो वैसी ही मिर्च मार्केट मे आसानी से मिल जाता है. लाल मिर्च पाउडर कई प्रकार करी वाली सब्जियों में एक सुंदर लाल रंग भी जोड़ता है.
• अदरक पाउडर, एक मसालेदार और थोड़ा मीठा स्वाद जोड़ता है. इसे करी या सब्जी बनाने व्यक्त डालने से इसकी अच्छी खुशबू फैलती है.
• गरम मसाला, किचन में अवश्य होना चाहिए. यह सौंफ, तेज पत्ते, लौंग, जीरा, धनिया के बीज जैसे मसालों का कॉम्बिनेशन है. सभी सामग्री को जोड़कर बाजार मे भी ये मसाले आसानी से उपलब्ध हो जाते है. यह किसी भी करी या सूखी रेसिपी में रिचनेस को जोड़ता है. गरम मसाले में बहुत सारे मसाले मौजूद होने की वजह से व्यंजन में खुशबू आती है और जायके में अंतर आता है.
कुछ खास मिक्सचर वालें मसालें
इसके अलावा कई और विभिन्न मिक्स मसाले उपलब्ध हैं, जिसका उपयोग और स्वाद व्यंजन और उसके बनाने के तरीके के आधार पर भिन्न होते हैं. ऐसे खास कॉमबीनेशन वाले मसाले का प्रयोग करना आसान होता है. कुछ निम्न है,
किचन किंग – किचन किंग मसाले विभिन्न व्यंजनों के लिए उपयोग किये जाने वाले सबसे बेहतरीन मसाला होता हैं, इसे किसी भी पकवान में डालना आसान होता है, जैसे कि दाल, सब्जी, चावल, सांभर आदि में एक अलग टेस्ट जोड़ता है. किचन किंग में प्रयोग किये जाने वाले मसालें धनिया के बीज, जीरा, लाल मिर्च, हल्दी, काली मिर्च, आयोडीन युक्त नमक, सूखा अदरक, सरसों, सौंफ, बीज, लहसुन, तेज पत्ता, मेथी के पत्ते, इलायची, लौंग, जायफल, हरी इलायची, जावित्री, हींग आदि सभी का मिश्रण होता है, जिससे खाना पकाने वाले को किसी प्रकार की दूसरे मसाले की ओर झाँकने की जरूरत नहीं पड़ती. एक पाँव गोभी की सब्जी में एक टेबल स्पून इस मसाले को डालने पर सब्जी स्वादिष्ट बन जाती है.
मीट मसाला – बाजार में अच्छे ब्रांड के मीट मसालें मिलते है. नॉन वेज खाने के शौकीन इस मसाले का आसानी से प्रयोग मटन या चिकन में कर सकते है. इस मसालें में धनिया के बीज, जीरा, लाल मिर्च, हल्दी, काली मिर्च, आयोडीन युक्त नमक, सूखा अदरक, सरसों, सौंफ, बीज, लहसुन, तेज पत्ता, मेथी के पत्ते, इलायची, लौंग, जायफल, हरी इलायची, जावित्री, हींग आदि होते है, जिसे आधा किलो मटन या चिकन में दो बड़े भूने हुए प्याज के साथ, दो बड़े चम्मच मीट मसाला मिलाने पर व्यंजन स्वादिष्ट बन जाता है.
पाँव भाजी मसाला – पाँव भाजी मसाला महाराष्ट्र का सबसे प्रिय मसाला है, इसमें धनिया के बीज, जीरा, काली इलायची, स्टार ऐनीज़, हरी इलायची, सौंफ़ के बीज, सूखे अदरक, लाल मिर्च, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग और सूखे आम पाउडर जैसे मूल मसालों से बना होता है, इसका प्रयोग बहुत आसान होता है. आधा किलों सभी सब्जियों के मिश्रण, मसलन पत्ता गोभी, फूल गोभी, बैगन, शिमला मिर्च , आलू, पालक आदि को उबाल कर तड़कें में 2 टेबल स्पून पाँव भाजी मसाला मिलाने पर टेस्टी बन जाता है.
छोले मसालें – छोले मसाले भी छोले बनाने का उत्तम मसाला होता है, जिसमें सूखी लाल मिर्च, सूखा लहसुन, अधरक का पाउडर, तिल, हल्दी, धनिया, तमालपत्र, चक्रफूल और सौंफ होते है. इसका प्रयोग आधे किलो छोले को अच्छी तरह उबालने के बाद तड़के में 2 टेबल स्पून छोले मसाला मिलाकर पका लें, स्वाद निखर आएगा.

सही मात्रा में मसालों का प्रयोग जानें

खाना बनाते समय सही मात्रा में मसाले कैसे डालें, यह सीखने का सबसे अच्छा तरीका अभ्यास और प्रयोग होता है. कुछ सुझाव निम्न है
1. किसी व्यंजन में छोटी मात्रा से मसाले डालना शुरू करना उचित होता है. अत्यधिक मसाले हटाने की तुलना में धीरे-धीरे अधिक मसाले डालना आसान होता है. पहले छोटी मात्रा से मसालें डालने शुरू करें और स्वाद के अनुसार समायोजित करें.
2. खाना पकाते समय हमेशा खाना चखें और समायोजित करें. इससे आपको यह निर्धारित करने में मदद मिलेगी कि क्या अधिक मसालों की आवश्यकता है या नहीं. अपने स्वाद पर भरोसा रखें और उसके अनुसार समायोजन करें.
3. यदि आप मसालों के साथ प्रयोग कर रहे हैं, तो उपयोग किए गए संयोजनों और मात्राओं का रिकॉर्ड रखें. इस तरह सफल इनग्रेडिएंट को वापस देख सकते हैं और भविष्य में उन्हें फिर से बना सकते हैं.
4. विभिन्न मसालों की तीव्रता और स्वाद अलग-अलग होते हैं. उन मसालों से परिचित होना जरूरी होता है.
5. शुरुआत करते समय, मापने वाले चम्मच का उपयोग करें. जैसे – जैसे आप अनुभव प्राप्त करते हैं, आप अपने ज्ञान पर भरोसा कर सकते हैं.
6. पारंपरिक मसालें की इनग्रेडिएंट के बारे में जानने के लिए विभिन्न व्यंजनों और उनके बनाने के तरीके को मैगज़ीन और ऑनलाइन देख सकते है. इससे व्यक्ति को कुछ मसाले एक साथ काम करने के बारें मे जानकारी होगी.
7. मसालों को संतुलित करने की प्रत्यक्ष तकनीक सीखने के लिए अनुभवी रसोइयों का निरीक्षण करें या खाना पकाने की कक्षाओं में शामिल हों.
असल में स्वाद की समझ विकसित करना और अपने पसंदीदा मसाले का स्तर ढूंढना एक व्यक्तिगत जर्नी है, जो समय, अभ्यास और प्रयोग करने की इच्छा के साथ – साथ विकसित होता है. इसलिए खाना बनाने से परहेज न करें, क्योंकि ये आपकी शारीरिक समृद्धि के साथ मानसिक तनाव को भी कम करती है.

जाने सिर दर्द से राहत पाने के टिप्स

सिर दर्द की शिकायत होना बहुत सामान्य है लेकिन सिर दर्द होने पर हमारी पूरी दिनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है. सिर दर्द का सीधा असर हमारे व्यवहार और काम पर पड़ता है.

आमतौर पर ऐसी स्थिति में लोग झट से कोई दर्द-निवारक ले लेते हैं. पर हर बार दर्द-निवारक लेना सही नहीं है. इन दवाओं के कई साइड-इफेक्ट्स हो सकते हैं. जो शुरू में भले नजर न आएं लेकिन उनके खतरनाक परिणाम भविष्य में सामने आ सकते हैं. ऐसे में आप चाहें तो इन देसी उपायों से सिर दर्द पर काबू पा सकते हैं. इसमें से कई चीजें तो ऐसी हैं जो आपको आपके किचन में ही मिल जाएंगी.

इन देसी उपायों से दूर करें सिर दर्द-

1. सिर दर्द दूर करने के लिए सिरके का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहेगा. एक कप गर्म पानी में एक बड़ा चम्मच सिरका मिला लें. इन दोनों को अच्छी तरह मिला लीजिए. सिर दर्द में सिरके और गर्म पानी का ये घोल बहुत फायदेमंद रहेगा. पर इस बात का ध्यान रखें कि इसे पीने के 15 मिनट बाद तक कुछ भी खाएं या पिएं नहीं.

2. अगर सिर दर्द हल्का हो तो ग्रीन टी पीना भी फायदेमंद रहता है. ग्रीन टी में अच्छी मात्रा में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं जो दर्द कम करने में मददगार होते हैं. आप चाहें तो इसमें शहद भी मिला सकते हैं. अगर दर्द तेज हो तो चाय में दालचीनी भी मिला सकते हैं.

3. मसाला चाय पीने से भी सिर दर्द दूर होता है. मसाले के रूप में आप दालचीनी और कालीमिर्च मिला सकते हैं. चीनी की जगह शहद का इस्तेमाल करना भी फायदेमंद रहेगा. अगर आपको अदरक का स्वाद पसंद है तो इसमें अदरक का अर्क भी मिला सकते हैं. अदरक एक अच्छा दर्द निवारक है.

4. सिर दर्द दूर करने का ये सबसे आसान तरीका है. सिर दर्द में गर्म पानी पीना फायदेमंद रहता है. दिनभर कुछ-कुछ मात्रा में गर्म पानी का सेवन करते रहें. गर्म पानी पीने से पाच‍न क्रिया भी बेहतर रहती है.

5. सिर दर्द में कॉफी पीना भी बहुत फायदेमंद है. एक ओर जहां कॉफी पीने से सिर दर्द में राहत मिलती है वहीं इसका बहुत अधिक सेवन नुकसानदेह भी हो सकता है.

मुझे यकीन है: गुलशन के ससुराल वाले क्या ताना देते थे ?

पढ़ीलिखी गुलशन की शादी मसजिद के मुअज्जिन हबीब अली के बेटे परवेज अली से धूमधाम से हुई. लड़का कपड़े का कारोबार करता था. घर में जमीनजायदाद सबकुछ था. गुलशन ब्याह कर आई तो पहली रात ही उसे अपने मर्द की असलियत का पता चल गया. बादल गरजे जरूर, पर ठीक से बरस नहीं पाए और जमीन पानी की बूंदों के लिए तरसती रह गई. वलीमा के बाद गुलशन ससुराल दिल में मायूसी का दर्द ले कर लौटी. खानदानी घर की पढ़ीलिखी लड़की होने के बावजूद सीधीसादी गुलशन को एक ऐसे आदमी को सौंप दिया गया, जो सिर्फ चारापानी का इंतजाम तो करता, पर उस का इस्तेमाल नहीं कर पाता था.

गुलशन को एक हफ्ते बाद हबीब अली ससुराल ले कर आए. उस ने सोचा कि अब शायद जिंदगी में बहार आए, पर उस के अरमान अब भी अधूरे ही रहे. मौका पा कर एक रात को गुलशन ने अपने शौहर परवेज को छेड़ा, ‘‘आप अपना इलाज किसी अच्छे डाक्टर से क्यों नहीं कराते?’’

‘‘तुम चुपचाप सो जाओ. बहस न करो. समझी?’’ परवेज ने कहा.

गुलशन चुपचाप दूसरी तरफ मुंह कर के अपने अरमानों को दबा कर सो गई. समय बीतता गया. ससुराल से मायके आनेजाने का काम चलता रहा. इस बात को दोनों समझ रहे थे, पर कहते किसी से कुछ नहीं थे. दोनों परिवार उन्हें देखदेख कर खुश होते कि उन के बीच आज तक तूतूमैंमैं नहीं हुई है. इसी बीच एक ऐसी घटना घटी, जिस ने गुलशन की जिंदगी बदल दी. मसजिद में एक मौलाना आ कर रुके. उन की बातचीत से मुअज्जिन हबीब अली को ऐसा नशा छाया कि वे उन के मुरीद हो गए. झाड़फूंक व गंडेतावीज दे कर मौलाना ने तमाम लोगों का मन जीत लिया था. वे हबीब अली के घर के एक कमरे में रहने लगे.

‘‘बेटी, तुम्हारी शादी के 2 साल हो गए, पर मुझे दादा बनने का सुख नहीं मिला. कहो तो मौलाना से तावीज डलवा दूं, ताकि इस घर को एक औलाद मिल जाए?’’ हबीब अली ने अपनी बहू गुलशन से कहा. गुलशन समझदार थी. वह ससुर से उन के बेटे की कमी बताने में हिचक रही थी. चूंकि घर में ससुर, बेटे, बहू के सिवा कोई नहीं रहता था, इसलिए वह बोली, ‘‘बाद में देखेंगे अब्बूजी, अभी मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’ हबीब अली ने कुछ नहीं कहा.

मुअज्जिन हबीब अली के घर में रहते मौलाना को 2 महीने बीत गए, पर उन्होंने गुलशन को देखा तक नहीं था. उन के लिए सुबहशाम का खाना खुद हबीब अली लाते थे. दिनभर मौलाना मसजिद में इबादत करते. झाड़फूंक के लिए आने वालों को ले कर वे घर आते, जो मसजिद के करीब था. हबीब अली अपने बेटे परवेज के साथ दुकान में रहते थे. वे सिर्फ नमाज के वक्त घर या मसजिद आते थे. मौलाना की कमाई खूब हो रही थी. इसी बहाने हबीब अली के कपड़ों की बिक्री भी बढ़ गई थी. वे जीजान से मौलाना को चाहते थे और उन की बात नहीं टालते थे. एक दिन दोपहर के वक्त मौलाना घर आए और दरवाजे पर दस्तक दी.

‘‘जी, कौन है?’’ गुलशन ने अंदर से ही पूछा.

‘‘मैं मौलाना… पानी चाहिए.’’

‘‘जी, अभी लाई.’’

गुलशन पानी ले कर जैसे ही दरवाजा खोल कर बाहर निकली, गुलशन के जवां हुस्न को देख कर मौलाना के होश उड़ गए. लाजवाब हुस्न, हिरनी सी आंखें, सफेद संगमरमर सा जिस्म… मौलाना गुलशन को एकटक देखते रहे. वे पानी लेना भूल गए.

‘‘जी पानी,’’ गुलशन ने कहा.

‘‘लाइए,’’ मौलाना ने मुसकराते हुए कहा.

पानी ले कर मौलाना अपने कमरे में लौट आए, पर दिल गुलशन के कदमों में दे कर. इधर गुलशन के दिल में पहली बार किसी पराए मर्द ने दस्तक दी थी. मौलाना अब कोई न कोई बहाना बना कर गुलशन को आवाज दे कर बुलाने लगे. इधर गुलशन भी राह ताकती कि कब मौलाना उसे आवाज दें. एक दिन पानी देने के बहाने गुलशन का हाथ मौलाना के हाथ से टकरा गया, उस के बाद जिस्म में सनसनी सी फैल गई. मुहब्बत ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था. ऊपरी मन से मौलाना ने कहा, ‘‘सुनो मियां हबीब, मैं कब तक तुम्हारा खाना मुफ्त में खाऊंगा. कल से मेरी जिम्मेदारी सब्जी लाने की. आखिर जैसा वह तुम्हारा बेटा, वैसा मेरा भी बेटा हुआ. उस की बहू मेरी बहू हुई. सोच कर कल तक बताओ, नहीं तो मैं दूसरी जगह जा कर रहूंगा.’’

मुअज्जिन हबीब अली ने सोचा कि अगर मौलाना चले गए, तो इस का असर उन की कमाई पर होगा. जो ग्राहक दुकान पर आ रहे हैं, वे नहीं आएंगे. उन को जो इज्जत मौलाना की वजह से मिल रही है, वह नहीं मिलेगी. इस समय पूरा गांव मौलाना के अंधविश्वास की गिरफ्त में था और वे जबरदस्ती तावीज, गंडे, अंगरेजी दवाओं को पीस कर उस में राख मिला कर इलाज कर रहे थे. हड्डियों को चुपचाप हाथों में रख कर भूतप्रेत निकालने का काम कर रहे थे. बापबेटे दोनों ने मौलाना से घर छोड़ कर न जाने की गुजारिश की. अब मौलाना दिखाऊ ‘बेटाबेटी’ कह कर मुअज्जिन हबीब अली का दिल जीतने की कोशिश करने लगे. नमाज के बाद घर लौटते हुए हबीब अली ने मौलाना से कहा, ‘‘जनाब, आप इसे अपना ही घर समझिए. आप की जैसी मरजी हो वैसे रहें. आज से आप घर पर ही खाना खाएंगे, मुझे गैर न समझें.’’ मौलाना के दिल की मुराद पूरी हो गई. अब वे ज्यादा वक्त घर पर गुजारने लगे. बाहर के मरीजों को जल्दी से तावीज दे कर भेज देते. इस काम में अब गुलशन भी चुपकेचुपके हाथ बंटाने लगी थी.

तकरीबन 6 महीने का समय बीत चुका था. गुलशन और मौलाना के बीच मुहब्बत ने जड़ें जमा ली थीं. एक दिन मौलाना ने सोचा कि आज अच्छा मौका है, गुलशन की चाहत का इम्तिहान ले लिया जाए और वे बिस्तर पर पेट दर्द का बहाना बना कर लेट गए. ‘‘मेरा आज पेट दर्द कर रहा है. बहुत तकलीफ हो रही है. तुम जरा सा गरम पानी से सेंक दो,’’ गुलशन के सामने कराहते हुए मौलाना ने कहा.

‘‘जी,’’ कह कर वह पानी गरम करने चली गई. थोड़ी देर बाद वह नजदीक बैठ कर मौलाना का पेट सेंकने लगी. मौलाना कभीकभी उस का हाथ पकड़ कर अपने पेट पर घुमाने लगे.

थोड़ा सा झिझक कर गुलशन मौलाना के पेट पर हाथ फिराने लगी. तभी मौलाना ने जोश में गुलशन का चुंबन ले कर अपने पास लिटा लिया. मौलाना के हाथ अब उस के नाजुक जिस्म के उस हिस्से को सहला रहे थे, जहां पर इनसान अपना सबकुछ भूल जाता है. आज बरसों बाद गुलशन को जवानी का वह मजा मिल रहा था, जिस के सपने उस ने संजो रखे थे. सांसों के तूफान से 2 जिस्म भड़की आग को शांत करने में लगे थे. जब तूफान शांत हुआ, तो गुलशन उठ कर अपने कमरे में पहुंच गई.

‘‘अब्बू, मुझे यकीन है कि मौलाना के तावीज से जरूर कामयाबी मिलेगी,’’ गुलशन ने अपने ससुर हबीब अली से कहा.

‘‘हां बेटी, मुझे भी यकीन है.’’

अब हबीब अली काफी मालदार हो गए थे. दिन काफी हंसीखुशी से गुजर रहे थे. तभी वक्त ने ऐसी करवट बदली कि मुअज्जिन हबीब अली की जिंदगी में अंधेरा छा गया. एक दिन हबीब अली अचानक किसी जरूरी काम से घर आए. दरवाजे पर दस्तक देने के काफी देर बाद गुलशन ने आ कर दरवाजा खोला और पीछे हट गई. उस का चेहरा घबराहट से लाल हो गया था. बदन में कंपकंपी आ गई थी. हबीब अली ने अंदर जा कर देखा, तो गुलशन के बिस्तर पर मौलाना सोने का बहाना बना कर चुपचाप मुंह ढक कर लेटे थे. यह देख कर हबीब अली के हाथपैर फूल गए, पर वे चुपचाप दुकान लौट आए.

‘‘अब क्या होगा? मुझे डर लग रहा है,’’ कहते हुए गुलशन मौलाना के सीने से लिपट गई.

कुछ नहीं होगा. हम आज ही रात में घर छोड़ कर नई दुनिया बसाने निकल जाएंगे. मैं शहर से गाड़ी का इंतजाम कर के आता हूं. तुम तैयार हो न?’’ ‘‘मैं तैयार हूं. जैसा आप मुनासिब समझें.’’ मौलाना चुपचाप शहर चले गए. मौलाना को न पा कर हबीब अली ने समझा कि उन के डर की वजह से वह भाग गया है.

सुबह हबीब अली के बेटे परवेज ने बताया, ‘‘अब्बू, गुलशन भी घर पर नहीं है. मैं ने तमाम जगह खोज लिया, पर कहीं उस का पता नहीं है. वह बक्सा भी नहीं है, जिस में गहने रखे हैं.’’ हबीब अली घबरा कर अपनी जिंदगी की कमाई और बहू गुलशन को खोजने में लग गए. पर गुलशन उन की पहुंच से काफी दूर जा चुकी थी, मौलाना के साथ अपना नया घर बसान.

हवस का नतीजा : राज ने भाभी के साथ क्या किया

मुग्धा का बदन बुखार से तप रहा था. ऊपर से रसोई की जिम्मेदारी. किसी तरह सब्जी चलाए जा रही थी तभी उस का देवर राज वहां पानी पीने आया. उस ने मुग्धा के हावभाव देखे तो उस के माथे पर हाथ रखा और बोला, ‘‘भाभी, आप को तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां…’’ मुग्धा ने कमजोर आवाज में कहा, ‘‘सुबह कुछ नहीं था. दोपहर से अचानक…’’

‘‘भैया को बताया?’’

‘‘नहीं, वे तो परसों आने ही वाले हैं वैसे भी… बेकार परेशान होंगे. आज तो रात हो ही गई… बस कल की बात है.’’

‘‘अरे, लेकिन…’’ राज की फिक्र कम नहीं हुई थी. मगर मुग्धा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मामूली बुखार ही तो है. तुम जा कर पढ़ाई करो, खाना बनते ही बुला लूंगी.’’

‘‘खाना बनते ही बुला लूंगी…’’ मुग्धा की नकल उतार कर चिढ़ाते हुए राज ने उस के हाथ से बेलन छीना और बोला, ‘‘लाइए, मैं बना देता हूं. आप जा कर आराम कीजिए.’’

‘‘न… न… लेट गई तो मैं और बीमार हो जाऊंगी,’’ मुग्धा बैठने वालियों में से नहीं थी. वह बोली, ‘‘हम दोनों मिल कर बना लेते हैं,’’ और वे दोनों मिल कर खाना बनाने लगे.

मुग्धा का पति विनय कंपनी के किसी काम से 3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ था. वह कर्मचारी तो कोई बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन बौस का भरोसेमंद था. सो, किसी भी काम के लिए वे उसे ही भेजते थे.

मुग्धा का 21 साल का देवर राज प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. विनय जैसा प्यार करने वाला पति पा कर मुग्धा भी खुश रहती थी. कुछ पति की तनख्वाह और कुछ वह खुद जो निजी स्कूल में पढ़ाती, दोनों से मिला कर घर का खर्च अच्छे से निकल आता. सासससुर गांव में रहते थे. देवर राज अपनी पढ़ाई के चलते उन के साथ ही रहता था.

जिंदगी में कमी थी तो बस यही कि खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 10 सालों के बाद भी उन के कोई औलाद नहीं थी. अब मुग्धा 35 साल की हो चुकी थी. अपनी हमउम्र बाकी टीचरों को उन के बच्चों के साथ देखती तो न चाहते हुए भी उसे रोना आ ही जाता. वह अपनी डायरी के पन्ने इसी पीड़ा से रंगती जाती.

रोटियां बन चुकी थीं. राज ने उसे कुरसी पर बैठने को बोला और सामान समेटने लगा. मुग्धा ने सिर पीछे की ओर टिकाया और आंखें बंद कर लीं. वातावरण एकदम शांत था. तभी वहां वही तूफान फिर से गरजने लगा जिस का शोर मुग्धा आज तक नहीं भांप पाई थी.

राज की गरदन धीरे से मुग्धा की ओर घूम चुकी थी. वह कनखियों से मुग्धा की फिटिंग वाली समीज में कैद उस के उभारों को देखने लगा था. मुग्धा की सांसों के साथ जैसेजैसे वे ऊपरनीचे होते, वैसेवैसे राज के अंदर का शैतान जागता जाता.

‘‘हो गया सब काम…?’’ बरतनों की आवाज बंद जान कर मुग्धा ने अचानक पूछते हुए अपनी आंखें खोल दीं.

राज हकबका गया और बोला, ‘‘हां भाभी, बस हो ही गया…’’ कह कर राज ने जल्दीजल्दी बाकी काम निबटाया और खाने की चीजों को उठा कर मेज पर ले गया.

मुग्धा ने मुश्किल से 2 रोटियां खाईं, वह भी राज की जिद पर. वह जबरदस्ती सब्जी उस की प्लेट में डाल दे रहा था. खाने के बाद मुग्धा सोने जाने लगी तो राज बोला, ‘‘भाभी, 15 मिनट के लिए आगे वाले कमरे में बैठिए न… मैं आप के लिए दवा ले आता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, रातभर में उतर जाएगा…’’ मुग्धा ने मना किया लेकिन राज कहां मानने वाला था.

‘‘मैं पास वाले कैमिस्ट से ही दवा ले कर आ रहा हूं भाभी… जहां से आप मंगाती हैं हमेशा… दरवाजा बंद कर लीजिए… मैं अभी आया…’’ कहता हुआ वह निकल गया.

मुग्धा ने दरवाजा बंद किया और सोफे पर पैर ऊपर कर के बैठ गई.

राज ने तय कर लिया था कि आज तो वह अपने मन की कर के ही रहेगा. इस बीच कैमिस्ट की दुकान आ गई.

‘‘क्या बात है राज बाबू?’’ कैमिस्ट ने राज को खोया सा देखा तो पूछा. राज का ध्यान वापस दुकान पर आया.

‘‘दवा चाहिए थी,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अबे तो यहां क्या मिठाई मिलती है?’’ कैमिस्ट उसे छेड़ते हुए बोला. वह उस का पुराना दोस्त था.

राज मुसकरा उठा और कहा, ‘‘अरे, जल्दी दे न…’’

‘‘जल्दी दे न…’’ बड़बड़ाते हुए कैमिस्ट ने हैरत से उस की ओर देखा, ‘‘कौन सी दवा चाहिए, यह तो बता?’’

राज को याद आया कि उस ने तो सचमुच कोई दवा मांगी ही नहीं है. उस ने ऐसे ही बोल दिया, ‘‘भाभी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है. जरा नींद की गोली देना.’’

‘नींद की गोली बुखार के लिए…’ सोचते हुए कैमिस्ट ने उसे देखा. वह खुद भी मुग्धा के हुस्न का दीवाना था. हमेशा उस के बारे में चटकारे लेले कर बातें किया करता था. उस ने राज के मन की बात ताड़ ली. ऐसी बातों का उसे बहुत अनुभव जो था. उस ने नींद की गोली के साथ बुखार की भी दवा दे दी.

राज ने लिफाफा जेब में रखा और तेजी से वापस चलने को हुआ कि तभी कैमिस्ट चिल्लाया, ‘‘अरे भाई, खुराक तो सुन ले.’’

राज को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह काउंटर पर आया. कैमिस्ट ने उसे डोज बताई और आंख मारते हुए बोला, ‘‘यह नींद वाली एक से ज्यादा मत देना… टाइट चीज है…’’

‘‘अबे, क्या बकवास कर रहा है,’’ राज के मन का डर उस की जबान से बोल पड़ा. उस की तो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली हालत हो गई. वह जाने लगा.

कैमिस्ट पीछे से कह रहा था, ‘‘अगली बार हम को भी याद रखना दोस्त…’’

राज उस को अनसुना करता हुआ आगे बढ़ गया. घर लौटने पर डोर बैल बजाते ही मुग्धा ने दरवाजा खोल दिया और बोली, ‘‘यहीं बैठी थी लगातार…’’

‘‘जी भाभी, आइए अंदर चलिए…’’ राज ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा.

मुग्धा अपने कमरे में आ कर लेट गई. राज ने उसे पहले बुखार की दवा दी. मुग्धा दवा ले कर सोने के लिए लेटने लगी तो राज ने उसे रोका, ‘‘भाभी, अभी एक दवा बाकी है…’’

‘‘कितनी सारी ले आए भैया?’’ मुग्धा ने थकी आवाज में बोला और बाम ले कर माथे पर लगाने लगी.

‘‘भाभी दीजिए, मैं लगा देता हूं,’’ कह कर राज ने उस से बाम की डब्बी ले ली और उस के माथे पर मलने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने मुग्धा को नींद वाली गोली भी खिला दी और लिटा दिया.

राज उस का माथा दबाता रहा. थोड़ी देर बाद उस ने पुष्टि करने के लिए मुग्धा को आवाज दी. ‘‘भाभी सो गईं क्या?’’

कोई जवाब नहीं मिला. राज ने उस के चेहरे को हिलाडुला कर भी देख लिया. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह समझ गया कि रास्ता साफ हो चुका है.

राज की कनपटियों में खून तेजी से दौड़ने लगा. वह बत्ती जलती ही छोड़ मुग्धा के ऊपर आ गया. मर्यादा के आवरण प्याज के छिलकों की तरह उतरते चले गए. कमरे में आए भूचाल से मेज पर रखी विनयमुग्धा की तसवीर गिर कर टूट गई.

सबकुछ शांत होने पर राज थक कर चूरचूर हो कर मुग्धा के बगल में लेट गया.

‘‘बस अब बुखार उतर जाएगा भाभीजी… इतना पसीना जो निकलवा दिया मैं ने आप का,’’ राज बेशर्मी से बड़बड़ाया और मुग्धा की कुछ तसवीरें खींचने के बाद उसे कपड़े पहना दिए.

मुग्धा अब तक धीमेधीमे कराह रही थी. राज पलंग से उतरा और खुद भी कपड़े पहनने लगा. तभी उस की नजर आधी खुली दराज पर गई. भूल से मुग्धा अपनी डायरी उसी में छोड़ी हुई थी. राज ने उसे निकाला और कपड़े पहनतेपहनते उस के पन्ने पलटने लगा.

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में मुग्धा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

राज की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया और जोरजोर से रोने लगा, फिर भाग कर मुग्धा के पैरों को पकड़ कर अपना माथा उस से रगड़ते हुए रोने लगा, ‘‘भाभी, मुझे माफ कर दो… यह क्या हो गया मुझ से.’’

अचानक राज का ध्यान मुग्धा के बिखरे बालों पर गया. उस ने जल्दी से जमीन पर गिरी उस की हेयर क्लिप उठाई और मुग्धा का सिर अपनी गोद में रख कर बालों को संवारने लगा. वह किसी मशीन की तरह सबकुछ कर रहा था. हेयर क्लिप अच्छे से उस के बालों में लगा कर राज उठा और घर से निकल गया.

अगली सुबह तकरीबन 8 बजे मुग्धा की आंखें खुलीं. उस का सिर अभी तक भारी था. घर में भीड़ लग चुकी थी.

एक आदमी ने आखिरकार बोल ही दिया, ‘‘देवरभाभी के रिश्ते पर भरोसा करना ही पागलपन है…’’

मुग्धा के सिर में जैसे करंट लगा. वह सवालिया नजरों से उसे देखने लगी. तभी इलाके के पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रवेश किया और बताया, ‘‘आप के देवर राज की लाश पास वाली नदी से मिली है. उस ने रात को खुदकुशी कर ली…’’

मुग्धा का कलेजा मुंह को आने लगा. वह हड़बड़ा कर पलंग से उठी लेकिन लड़खड़ा कर गिर गई.

एक महिला सिपाही ने राज के मोबाइल फोन में कैद मुग्धा की कल रात वाली तसवीरें उसे दिखाईं और कड़क कर पूछा, ‘‘कल रंगरलियां मनातेमनाते ऐसा क्या कह दिया लड़के से तू ने जो उस ने अपनी जान दे दी?’’

तसवीरें देख कर मुग्धा हैरान रह गई. अपनी शारीरिक हालत से उसे ऐसी ही किसी घटना का शक तो हो रहा था लेकिन दिल अब तक मानने को तैयार नहीं था. वह फूटफूट कर रोने लगी.

इंस्पैक्टर ने उस महिला सिपाही को अभी कुछ न पूछने का इशारा किया और बाकी औपचारिकताएं पूरी कर वहां से चला गया. धीरेधीरे औरतों की भीड़ भी छंटती गई.

विनय का फोन आया था कि वह आ रहा है, घबराए नहीं, लेकिन मुग्धा बस सुनती रही. उस की सूनी आंखों के सामने राज का बचपन चल रहा था. जब वह नईनई इस घर में आई थी.

दोपहर तक विनय लौट आया और भागते हुए मुग्धा के पास कमरे में पहुंचा. वह जड़वत अभी भी पलंग पर बैठी शून्य में ताक रही थी. विनय ने उसके कंधे पर हाथ रखा लेकिन मुग्धा का शरीर एक ओर लुढ़क गया.

‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’ चीखता हुआ विनय उसे झकझोरे जा रहा था, पर मुग्धा कभी न जागने वाली नींद में सो चुकी थी.

 

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