अदितिभागीभागी बसस्टौप की तरफ जा रही थी. आज फिर से सारा काम काम खत्म करने में उसे देर हो गई थी. आज वह किसी भी कीमत पर बस नहीं छोड़ना चाहती थी.

बस छूटी और शुरू हो गया पति का लंबा लैक्चर, ‘‘टीचर ही तो हो… फिर भी तुम से कोई काम ढंग से नहीं होता. पता नहीं बच्चों को क्या सिखाती हो?’’

पिछले 5 सालों से वह यही सुन रही है.

अदिति 30 वर्ष की सुंदर नवयुवती है. अपने कैरियर की शुरुआत उस ने एक कंपनी में ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर के पद से करी थी. वही कंपनी में उस की मुलाकात अपने पति अनुराग से हुई, जो उसी कंपनी में सेल्स मैनेजर का काम संभालता था. धीरेधीरे दोनों की दोस्ती प्यार में तबदील हो गई. शादी के बाद प्राथमिकताएं बदल गईं.

अनुराग और अदिति आंखों में ढेर सारे सपने संजो कर जीवन की राह पर चल पड़े. अदिति घर, दफ्तर का काम करतेकरते थक जाती थी. तब अनुराग ने ही एक मेड का बंदोबस्त कर दिया था.

जिंदगी गुजर रही थी और धीरेधीरे दोनों अपनी गृहस्थी को जमाने की कोशिश कर रहे थे. तभी उन की जिंदगी में एक फूल खिलने का आभास हुआ. डाक्टर ने अदिति को बैडरैस्ट करने को कहा, इसलिए उस के पास नौकरी छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं था. एक प्यारी सी परी आ गई थी. उन के जीवन में पर साथ ही बढ़ रही थी जिम्मेदारियां.

अदिति पिछले 2 सालों से घर पर थी, इसी बीच अनुराग ने बैंक से लोन ले कर एक प्लैट भी ले लिया था. उधर पापा भी रिटायर हो गए थे तो उधर की तरफ भी उस की थोड़ी जवाबदेही हो गई थी. जैसे हर मध्यवर्ग के साथ होता है. उन्होंने भी कुछ खर्चों में कटौती करी और मेड को हटा दिया और अदिति ने भी नौकरी के लिए हाथपैर मारने शुरू कर दिए.

 

अदिति ने बहुत कंपनियों में कोशिश करी पर 2 साल का अंतराल एक खाई की तरह हो गया उस के और नौकरी के बीच में. फिर उस ने सोचविचार के बाद स्कूल में अप्लाई किया और जल्द ही एक स्कूल टीचर के रूप में उस की नियुक्ति हो गई.

अनुराग यह सुन कर खुश था क्योंकि वह समय से घर आ सकती है और अपनी बेटी के साथ समय बिता सकती है. समस्या थी कि 1 वर्ष की परी की. उसे किस के भरोसे छोड़ कर जाए, सम झ नहीं आ रहा था. परी के नानानानी और दादादादी उसे अपने साथ रखने को तैयार थे पर वहां आ कर रहना नहीं चाहते थे. मेड के भरोसे पूरा दिन परी को अदिति छोड़ना नहीं चाहती थी. फिर उन्हें पड़ोस में ही एक डे केयर मिल गया, हालांकि उस की फीस काफी ज्यादा थी पर अपनी बच्ची की सुरक्षा उन की प्राथमिकता थी.

आज अदिति को स्कूल जाना था. सुबह से ही अदिति की रेल बन गई. नाश्ता और खाना बनाना, फिर घर की साफसफाई और परी का भी पूरा बैग तैयार करना था. जब वह परी को डे केयर छोड़ कर बाहर निकली तो उस का रोना न सुन सकी और खुद ही कब सुबकने लगी, उसे पता ही नहीं चला. पर अदिति ने महसूस किया, जितनी वह बेबस है. उतनी ही बेबसी अनुराग की आंखों में भी है.

स्टाफरूप में उस का परिचय सब से कराया गया. सब खिलखिला रहे थे पर उसे सबकुछ नया और अलग लग रहा था. जब वह कंपनी में थी तो वहां पर आप कैसे भी व्यवहार कर सकते थे पर स्कूल के अपने नियमकायदे थे और उन्हें सब से पहले शिक्षक को ही अपने जीवन में उतारना होता है.

कक्षा में पहुंच कर देखा सारे बच्चे शोर मचा रहे थे. वह जोरजोर से चिल्ला रही थी पर कोई फायदा नहीं. उसे महसूस हुआ वह क्लास में नहीं एक सब्जी मंडी आ गई है. पास से ही प्रिंसिपल गुजर रही थीं. शोर सुन कर वे कक्षा में आ गईं, बच्चों को चुपचाप खड़े हो कर एक कड़ी नजर से देखा तो वे एकदम चुप हो कर बैठ गए.

पूरा दिन अदिति का बस चिल्लाते ही बीता. 6 घंटे के स्कूल में उसे बस मुश्किल से 15 मिनट लंच ब्रेक के मिले. अदिति को पहले दिन ही यह अनुमान लग गया कि यह इतना भी आसान नहीं है जितना वह सम झती है.

स्कूल बस में बैठ कर पता ही नहीं चला कब उस की आंख लग गई. जब साथ वाली अध्यापिका ने उसे  झं झोड़ कर उठाया तो उस की आंख खुली. डे केयर से परी को ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ी. वह पसीने से सराबोर थी और भूख से उस के प्राण निकल रहे थे. परी को गोद में लिए उस ने खाना खाया और लेट गई.

शाम को वह जैसे ही कमरे से बाहर निकली तो देखा दोपहर के जूठे बरतन उसे मुंह चिड़ा रहे थे. उस ने बरतन मांजने शुरू ही किए थे कि परी रोने लगी. हाथ का काम छोड़ कर, अदिति ने उस का दूध गरम किया. शाम की चाय उसे 7 बजे मिली. पहले जब वह नौकरी पर थी तो पूरे दिन की एक मेड रहती थी पर क्योंकि इस बार वह बस टीचर ही है और दोपहर तक घर आ जाएगी, यह सोच कर उस ने खुद ही अनुराग से काम वाली को मना कर दिया था. वैसे भी परी की डे केयर की फीस ही उन के बजट को गड़ाबड़ा रही थी.

रात को बिस्तर पर लेट कर अदिति को ऐसे लगा जैसे वह कोई जंग लड़ कर आई हो. अनुराग ने रात में जब प्यार जताने की कोशिश करनी चाही तो उस ने एक  झटके से उसे हटा दिया. बोली, ‘‘सुबह 4 बजे उठना है, प्लीज मैं बहुत थक गई हूं.’’

अनुराग मुंह बना कर बोला, ‘‘क्या थक गई हो? न तुम्हारे टारगेट होंगे न ही कोई गोल, तुम्हें तो हर माह बस फ्री की तनख्वाह मिलेगी, टीचर ही तो हो.’’

अदिति के पास बहस का समय नहीं था. अत: वह मुंह फेर कर सो गई.

अदिति अगले दिन कक्षा में गई और पढ़ाने लगी. आधे से ज्यादा बच्चे उसे न सुन कर अपनी बातों में ही व्यस्त थे. एकदम उसे बहुत तेज गुस्सा आया और उस ने बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया. बाहर खड़े हो कर दोनों बच्चे फील्ड में चले गए और खेलने लगे. छुट्टी की घंटी बजी, तो उस ने बैग उठाया तभी चपरासी आ कर उसे सूचना दे गया कि उन्हें प्रिंसिपल ने बुलाया है.

अदिति भुनभुनाती हुई औफिस की तरफ लपकी. प्रिंसिपल ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘अदिति तुम ने आज 2 बच्चों को क्लास से बाहर खड़ा कर दिया… तुम्हें मालूम है वे पूरा दिन फील्ड में खेल रहे थे. एक बच्चे को चोट भी लग गई है. कौन जिम्मेदार है इस का?’’

अदिति बोली, ‘‘मैडम, आप उन बच्चों को नहीं जानतीं कि वे कितने शैतान हैं.’’

प्रिंसिपल ठंडे स्वर में बोलीं, ‘‘अदिति बच्चे शैतान नहीं हैं, आप उन  को संभाल नहीं पाती हैं, यह कोई औफिस नहीं है… आप टीचर हैं, बच्चों की रोल मौडल, ऐसा व्यवहार इस स्कूल में मान्य नहीं है.’’

बस जा चुकी थी और वह बहुत देर तब उबेर की प्रतीक्षा में खड़ी रही. जब 4 बजे उस ने डे केयर में प्रवेश किया तो उस की संचालक ने व्यंग्य किया, ‘‘आजकल टीचर को भी लगता है कंपनी जितना ही काम रहता है.’’

अदिति बिना बोले परी को ले कर अपने घर चल पड़ी. वह जब शाम को उठी तो देखा अंधेरा घिर आया था. उस ने रसोई में देखा जूठे बरतनों का ढेर लगा था और अनुराग फोन पर अपनी मां से गप्पें मार रहा था.

उस ने चाय बनाई और लग गई काम पर. रात 10 बजे जब वह बैडरूम में घुसी तो थक कर चूर हो गई थी. उस ने अनुराग से बोला, ‘‘सुनो एक मेड रखनी होगी… मैं बहुत थक जाती हूं.’’

अनुराग बोला, ‘‘अदिति टीचर ही तो हो… करना क्या होता है तुम्हें, सुबह तो सब कामों में मैं भी तुम्हारी मदद करने की कोशिश करता हूं… पहले जब तुम कंपनी में थी तब बात अलग थी… रात हो जाती थी… अब तो सारा टाइम तुम्हारा है.’’

तभी मोबाइल की घंटी बजी. कल उसे 4 बच्चों को एक कंपीटिशन के लिए ले कर जाना था. अदिति इस से पहले कुछ और पूछती, मोबाइल बंद हो गया. बच्चों को ले कर जब वह प्रतियोगिता स्थल पर पहुंची तो पला चला कि उन्हें अभी 4 घंटे प्रतीक्षा करनी होगी. उन 4 घंटों में अदिति अपने विद्यार्थियों से बात करने लगी और कब 4 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला. उसे महसूस हुआ ये बच्चे जैसे घर पर अपनी हर बात मातापिता से बांटते हैं, वैसे ही स्कूल में अध्यापकों से बांटते हैं. पहली बार उसे लगा टीचर का कार्य बस पढ़ाने तक ही सीमित नहीं है.

आज फिर घर पहुंचने में देर हो गई क्योंकि सब विद्यार्थियों को घर पहुंचा कर ही वह अपने घर पहुंच सकी. डे केयर पहुंच कर देखा, परी बुखार से तप रही थी. वह बिना खाएपीए उसे डाक्टर के पास ले गई और अनुराग भी वहां ही आ गया. बस आज इतनी गनीमत थी कि अनुराग ने रात का खाना बना दिया.

रात खाने पर अनुराग बोला, ‘‘अदिति तुम 2-3 दिन की छुट्टी ले लो.’’

अदिति ने स्कूल में फोन किया तो पता चला कि कल उसी के विषय की परीक्षा है तो कल तो उसे जरूर आना पड़ेगा, परीक्षा के बाद भले ही चली जाए.

 

सुबह पति का फूला मुंह छोड़ कर वह स्कूल चली गई. परीक्षा समाप्त होते  ही वह विद्यार्थियों की परीक्षा कौपीज ले कर घर की तरफ भागी. घर पहुंच कर देखा तो परी सोई हुई थी और सासूमां आई हुई थीं, शायद अनुराग ने फोन कर के अपनी मां से उस की यशोगाथा गाई होगी.

उसे देखते ही सासूमां बोली, ‘‘बहू लगता है स्कूल की नौकरी तुम्हें अपनी परी से भी ज्यादा प्यारी है. मैं घर छोड़ कर आ गई हूं और देखा मां ही गायब.’’

अदिति किसकिस को सम झाए और क्या सम झाए जब वह खुद ही अभी सब सम झ रही है.

वह कैसे यह सम झाए उस की जिम्मेदारी अब बस परी की तरफ ही नहीं, अपने विद्यालय के हर 1 बच्चे की तरफ है. उस का काम बस स्कूल तक सीमित नहीं है. वह 24 घंटे का काम है जिस की कहीं कोई गणना नहीं होती. बहुत बार ऐसा भी हुआ कि अदिति को लगा कि वह नौकरी छोड़ कर परी की ही देखभाल करे पर हर माह कोई न कोई मोटा खर्च आ ही जाता.

अदिति की नौकरी का तीनचौथाई भाग तो घर के खर्च और डे केयर की फीस में ही खर्च हो जाता और एकचौथाई भाग से वह अपने कुछ शौक पूरे कर लेती. वहीं अनुराग का हाल और भी बेहाल था. उस की तनख्वाह का 80% तो घर और कार की किस्त में ही निकल जाता और बाकी का 20% उन अनदेखे खर्चों के लिए जमा कर लेता जो कभी भी आ जाते थे. उस के सारे शौक तो न जाने कहां खो गए थे.

अदिति जानेअनजाने अनुराग को अपनी बड़ी बहन और बहनोई का उदाहरण देती रहती जो हर वर्ष विदेश भ्रमण करते हैं और उन के पास खाने वाली से ले कर बच्चों की देखभाल के लिए भी आया थी. उन के रिश्तों में प्यार की जगह अब चिड़चिड़ाहट ने ले ली थी. कभीकभी अदिति की भागदौड़ देख कर उस का मन भी

भर जाता. ऐसा नहीं है अनुराग अदिति को आराम नहीं देना चाहता था पर क्या करे वह कितनी भी कोशिश कर ले, हर माह महंगाई बढ़ती ही जाती…

देखतेदेखते 2 वर्ष बीत गए और अदिति अपनी टीचर की भूमिका में अच्छी तरह ढल गई थी. जब कभी वह सुबहसुबह दौड़ लगाती अपनी बस की तरफ तो सोसाइटी में चलतेफिरते लोग पूछ ही लेते ‘‘आप टीचर हैं क्या किसी स्कूल में?’’

पर अब अदिति मुसकरा कर बोलती, ‘‘जी, तभी तो सुबहसवेरे का सूर्य देखना का मु झे समय नहीं मिलता है.’’

स्कूल अब स्कूल नहीं है उस का दूसरा घर हो गया है. उस की परी भी उस के साथ ही स्कूल जाती है और आती है. औरों की तरह उसे परी की सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रहती है. जब उस के पढ़ाई हुए विद्यार्थी उस से मिलने आते हैं तो वह गर्व से भर उठती है. वह टीचर ही तो है, जिंदगी से भरपूर क्योंकि हर वर्ष नए विद्यार्थियों के साथ उस की उम्र साल दर साल बढ़ती नहीं घटती जाती है.

उधर अनुराग भी बहुत खुश था, परी के जन्म के समय से ही उस की प्रोमोशन  लगभग निश्चित थी पर किसी न किसी कारण से वह टलती ही जा रही थी. आज उस के हाथ में प्रोमोशन लैटर था. पूरे 20 हजार की बढ़ोतरी और औफिस की तरफ से कार भी मिल गई. इधर अदिति के साथ परी के आनेजाने से डे केयर का खर्चा भी बच रहा था.

अनुराग ने मन ही मन निश्चिय कर लिया कि इस बार विवाह की वर्षगांठ पर वह और अदिति गोवा जाएंगे. वह सबकुछ पता कर चुका था, पूरे 60 हजार में पूरा पैकेज हो रहा था. अनुराग ने घर पहुंच कर ऐलान किया कि वे आज डिनर बाहर करेंगे और वह अदिति को उस की मनपसंद शौपिंग भी कराना चाहता है.

अदिति आज बहुत दिनों बाद खिलखिला रही थी और परी भी एकदम आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी. अदिति की वर्षों से एक प्योर शिफौन साड़ी की तम्मना थी. जब दुकानदार ने साड़ी दिखानी शुरू कीं, तो अदिति मूल्य सुन कर बोली, ‘‘अनुराग कहीं और से लेते हैं.’’

तब अनुराग ने अपना प्रोमोशन लैटर दिखाया और बोला, ‘‘इतना तो मैं अब कर सकता हूं.’’

डिनर के समय अनुराग अदिति का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘अदिति बस 1-2 साल की तपस्या और है, फिर मैं अपनी कंपनी में डाइरैक्टर के ओहदे पर पहुंच जाऊंगा.’’

दोनों शायद आज काफी समय बाद घोड़े बेच कर सोए थे. दोनों ने ही आज छुट्टी कर रखी थी. दोनों ही इन लमहों को जी भर कर जीना चाहते थे.

आज अदिति अनुराग से कुछ और भी बात करना चाहती थी. वह अब परी के लिए एक भाई या बहन लाना चाहती थी. इस से पहले कि वह अनुराग से इस बारे में बात करती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख कर कहा, ‘‘जानता हूं पर इस के लिए प्यार भी जरूरी है,’’ और फिर दोनों प्यार में सराबोर हो गए.’’

1 माह पश्चात अदिति के हाथ में अपनी प्रैगनैंसी रिपोर्ट थी जो पौजिटिव थी. वे बहुत खुश थे. उस ने तय कर लिया था, इस बार वे अपने बच्चे के साथ पूरा समय बिताएगी और जब दोनों ही बच्चे थोड़े सम झदार हो जाएंगे तभी अपने काम के बारे में सोचेगी. अनुराग भी उस की बात से सहमत था. अब अनुराग भी थोड़ा निश्चित हो गया था क्योंकि अब उस की अगले वर्ष प्रोमोशन तय थी.

रविवार की ऐसी ही कुनकुनी दोपहरी में दोनों पक्षियों की तरह गुटरगूं कर रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उधर से अनुराग की मां घबराई सी बोल रही थीं, ‘‘अनुराग के ?झ को हार्ट अटैक आ गया है और उन्हें हौस्पिटल में एडमिट कर लिया गया है.’’

वहां पहुंच कर पता चला 20 लाख का पूरा खर्च है. अनुराग ने दफ्तर से अपनी तनख्वाह से एडवांस लिया, हिसाब लगाने पर उसे अनुमान हो गया था कि उस की पूरी तनख्वाह बस अब इन किस्तों में ही निकल जाएगी, फिर से कुछ वर्षों तक.

घर पहुंच कर जब उस ने अदिति को सारी बात से अवगत कराया तो वह बोली, ‘‘कोई बात नहीं अनुराग, मैं हूं न, हम मिल कर सब संभाल लेंगे.’’

हालांकि मन ही मन वह खुद भी परेशान थी. पर यह दोनों को ही सम झ आ गया था कि यही जीवन है, फिर चाहे हंस कर गुजारो या रो कर आप की मरजी है.

अनुराग अपनी मां के  साथ हौस्पिटल के गलियारे में चहलकदमी कर रहा था. अदिति को प्रसवपीड़ा शुरू हो गई थी. आधे घंटे पश्चात नर्स उन के बेटे को ले कर आई. उसे हाथों में ले कर अनुराग की आंखों में आंसू आ गए.

फिर से 3 माह पश्चात अदिति अपने युवराज को घर छोड़ कर स्कूल जा रही हैं, पर आज वह घबरा नहीं रही है क्योंकि अब अनुराग के मां और पापा उन के साथ ही रह रहे हैं. उधर अदिति के मांपापा ने बच्चों की देखभाल और घर की देखरेख के लिए कुछ समय के लिए अपनी नौकरानी उन के घर भेज दी. जिंदगी बहुत आसान नहीं थी पर मुश्किल भी नहीं थी.

इस बार विवाह की वर्षगांठ पर अनुराग फिर से अदिति को गोवा ले जाना चाहता था और उसे पूरी उम्मीद थी कि इस बार अदिति का वह सपना पूरा कर पाएगा. रास्तों पर चलते हुए वे जीवन के इस सफर को शायद हंसतेखिलखिलाते पूरा कर ही लेंगे.

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