शह और मात: भाग-3

उस की इच्छाओं की पूर्ति करतेकरते भी उस से गालियां सुनती है, मार खाती है. पल्लवी उन मूर्खों में से थी जिस ने खुद अपना पैर कुल्हाड़ी पर दे मारा था. अपनी गलतियों के कारण वह संजीव की बिछाई शतरंज की बिसात पर सिर्फ एक मुहरा बन कर रह गई थी. पल्लवी ने आंसू पोंछे और मन मार कर संजीव को खाना परोसने चली गई.

इस के बाद कुछ दिनों तक तो संजीव शांत रहा, लेकिन वह ₹10 हजार रुपयों पर आखिर कितने दिन ऐश करता? उस ने पल्लवी को शरद से ₹1 लाख निकलवाने के लिए कहा और इस के लिए योजना भी समझा दी.

पल्लवी ने संजीव के कहे अनुसार अभिनय करना शुरू कर दिया. एक दोपहर शरद के साथ खाना खाते समय उस ने अपनी छोटी बहन से फोन पर बात करने का नाटक किया और रोने लगी. पल्लवी को इस तरह रोता देख कर शरद परेशान हो गया.

“पल्लवी तुम इस तरह क्यों रो रही हो? घर पर सब ठीक है न?” शरद ने पूछा.

“शरद मेरी मां की तबीयत बहुत खराब है. मुझे उन के औपरेशन के लिए ₹1 लाख का इंतजाम करना होगा और वह भी 2 दिनों के अंदर. मैं इतनी जल्दी इतनी बड़ी रकम कहां से लाऊंगी?” पल्लवी ने परेशान होने का नाटक किया.

“तुम फिक्र मत करो पल्लवी. कोई न कोई इंतजाम हो जाएगा,” शरद ने उसे हौसला बंधाते हुए कहा.

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“कैसे फिक्र न करूं शरद. मेरा बैंक अकाउंट संजीव खाली कर चुका है. जो थोड़ेबहुत गहने थे वे मैंने कर्ज उतारने के लिए बेच दिए थे. अभी कुछ दिन पहले मेरे पास घर का किराया देने के लिए एक फूटी कौड़ी तक नहीं थी. उस वक्त तुम ने मेरी मदद की थी. अब मैं किस के आगे हाथ फैलाऊं?” पल्लवी अपने चेहरे को हथेलियों के पीछे छिपा कर रो पड़ी.

शरद अपनी कुरसी खींच कर पल्लवी के पास ले आया और उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा,“पल्लवी ‌सब ठीक हो जाएगा, पहले तुम रोना बंद करो प्लीज.”

शरद को पिघलता देख कर पल्लवी ने उस की बांह को कस कर पकड़ लिया और अपना सिर उस के कंधे पर टिका दिया और रोते हुए कहा, “अगर मां को कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी. मैं क्या करूं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है. मैं बहुत अकेली हो गई हूं शरद.”

“तुम अकेली नहीं हो पल्लवी. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं,” शरद ने पल्लवी के हाथ पर अपना हाथ रखा. वह उस के चेहरे पर उभरती कुटिल मुसकान से बेखबर था.

अगले दिन औफिस पहुंचने से पहले ही पल्लवी को मालूम था कि शरद ने रुपयों का इंतजाम कर लिया होगा. आखिर उस ने अभिनय भी तो कमाल का किया था.

पल्लवी का अंदाजा बिलकुल सही निकला. शरद ने लंच ब्रैक के समय उस के हाथ में ₹1 लाख थमा दिए.

“थैंक यू सो मच शरद. मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी. मैं जल्द से जल्द तुम्हारे सारे रुपए लौटा दूंगी,” पल्लवी ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा.

“कैसी बातें करती हो पल्लवी, क्या मेरा सब कुछ तुम्हारा नहीं है? अब बातें करने में समय बरबाद मत करो. जाओ और अपनी बहन को यह रुपए दे दो,” शरद ने मुसकरा कर उस का माथा चूम लिया.

पल्लवी ने एक बार फिर से शरद को धन्यवाद कहा और रुपए ले कर अपने घर आ गई. ₹1 लाख देख कर संजीव खुशी से उछल पड़ा और एक पल गंवाए बिना पल्लवी के हाथ से नोट झपट लिए, “अरे वाह पल्लवी, आज तो तुम ने कमाल ही कर दिया. अच्छा यह बताओ शरद को तुम पर शक तो नहीं हुआ?”

“नहीं…”

“वैरी गुड… अब अगली बार ₹2 लाख से कम मत मांगना,” संजीव ने हिदायत दी.

“लेकिन संजीव, इस तरह बारबार बहाने कर के ज्यादा रुपए मांगूगी तो शरद को मुझ पर शक हो जाएगा,” पल्लवी ने तर्क दिया.

“पल्लवी, तुम अपने छोटे से दिमाग पर ज्यादा जोर मत डालो. यह शरद तुम पर पूरी तरह से लट्टू हो चुका है. इस का जितना फायदा उठा सकती हो उठा लो. फिर कोई नया बकरा फंसा लेना,” संजीव ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा और चलता बना.

संजीव के जाने के बाद पल्लवी का हाथ अनायास ही अपने माथे पर चला गया. जब शरद ने उस के माथे को चूमा था तो उसे अजीब सी सुखद अनुभूति हुई थी. शरद ने उसे भीतर तक छू लिया था. आज से पहले उस ने न जाने कितने लोगों के साथ प्यार का नाटक किया था मगर उसे ऐसा तो कभी महसूस नहीं हुआ. सिर्फ यही नहीं, शरद के रुपए संजीव को देते समय उसे ग्लानि हो रही थी. वह संजीव के पूछने पर इनकार कर देती थी लेकिन सच तो यह था कि उसे शरद का साथ अच्छा लगने लगा था.

पल्लवी को आभास हुआ कि उस का मन भटक रहा है. वह शादीशुदा होते हुए भी पता नहीं क्याक्या सोचने लगी थी. उसने मन ही मन खुद को फटकारा और अपना ध्यान बंटाने के लिए घर के काम में व्यस्त हो गई.

₹1 लाख रुपए मिलने के बाद भी संजीव का पेट नहीं भरा. उस;ने जल्द ही सारे रुपए उड़ा दिए और पल्लवी को शरद से दोबारा रुपए मांगने के लिए मजबूर करने लगा. इस बार उस:के लालच के साथ रुपयों की मांग भी बड़ी थी. पल्लवी के इनकार करने पर वह उसे प्रताड़ित करने लगा.

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इधर औफिस में पल्लवी और शरद के बीच नजदीकियां बढ़ती जा रहीं थीं. संजीव का बुरा बरताव आग में घी का काम कर रहा था. संजीव के दिए जख्मों को शरद के प्रेम का मरहम भरने लगा था. पल्लवी के प्रति शरद की परवाह उसे शरद की तरफ खींचती चली जा रही थी. जब पल्लवी शरद के करीब होती तो खुद को बेहद सुरक्षित महसूस करती थी. उसे लगता था कि शरद की बांहों में ही उस का घर है. पल्लवी के लिए प्यार का नाटक धीरेधीरे सच होता चला गया. उस ने बहुत कोशिश की मगर वह खुद को शरद से प्यार करने से नहीं रोक पाई. पल्लवी ने निश्चय कर लिया था कि अब चाहे जो हो जाए, वह शरद से कभी रुपयों की मांग नहीं करेगी.

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ज़िंदगी एक पहेली: भाग-4

पिछला भाग- ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-3

अविरल सुमि से काफी जुड़ाव महसूस करता था.  पर जैसा की हम जानते हैं की समाज की निगाह में एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते. तो बहन का रिश्ता  तो बहुत दूर की बात है. स्कूल change  होने के बाद अविरल और सुमि एक दूसरे से मिलना  तो दूर बात भी नहीं कर पाते  थे.  अविरल और सुमि कभी- कभी अमित  के घर पर मिलते थे. अब आगे-

सुमि आसू से नफरत करती थी. इसका शायद एक  कारण यह भी था कि अविरल ही सुमि को आसू  के बारे में सब कुछ बता चुका था जैसे कि आसू की गुंडागर्दी, उसके कई अफेयर और ब्रेकअप. सुमि अविरल को आसू की propose करने वाली बात बताकर  उसे दुखी नहीं करना चाहती थी. इसलिए  उसने यह बात अविरल से  नहीं बताई.

सारी बातों से अनभिज्ञ अविरल को अब आसू का साथ अच्छा लगने लगा था. अब वह अपना कॉलेज बंक करके आसू के साथ ही घूमता रहता. वह अनु से भी बातें छुपाने लगा. अनु से अविरल थोड़ा दूर होने लगा. अनु को दुःख तो होता था लेकिन वह यह देखकर खुश होती कि अविरल अब घर से बाहर भी खुश रहने लगा. अब अविरल थोड़ा सा खुलने लगा था, उसका हकलापन भी अब पहले से थोड़ा कम हो गया था. लेकिन अगर अविरल नर्वस होता तो उसका हकलापन कई गुना बढ़ जाता.

आसू का बर्ताव अब धीमे धीमे बदलने लगा था. वह लड़कियों से दूर रहने लगा था. कुछ अनमना सा रहता था आशू. अविरल ने कई बार आसू से कारण पूंछा लेकिन हर बार वह बहाना बनाकर चला गया.  लेकिन एक  दिन अविरल ने बहुत जिद की तो आसू ने बुरा न मानने का promise लेकर बता दिया कि वह सुमि से मोहब्बत करने लगा है. अविरल के पैरों के नीचे  से जमीन खिसक गयी. उसे आसू की मोहब्बत पर विश्वास नहीं हुआ. उसे लगा कि आसू दूसरी लड़कियों की तरह ही सुमि  के  साथ भी फ्रॉड करेगा. अविरल वहां से उठा और बिना कुछ बोले वहां से चला गया. आसू को भी कहीं न कहीं ये शक था कि कहीं अविरल भी तो सुमि को प्यार नहीं करता.

अविरल अपने घर चला गया और रात दिन इसी बारे में सोचता रहा. अविरल को आसू के बदलते रवैये को लेकर उसके प्यार में कुछ सच्चाई तो नजर आई लेकिन वह कंफ्यूज था. उसने अमित के घर में सुमि से इस बारे में बात की तो सुमि ने सारी बात बताई. यह जानकर अविरल को बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये बात 1 महिना पुरानी है और आसू जैसा बिगड़ा हुआ लड़का दोबारा सुमि के पास नहीं गया. अब अविरल को आसू की बातों पर विश्वास हो चला था.

कुछ दिनों तक अविरल आसू के घर नहीं गया. एक  दिन आसू के पापा अविरल  के घर आए.  उन्होंने बताया कि काफी दिनों से आसू की हालत ठीक नहीं है उसका किसी चीज में मन नहीं लगता है.  उसका खाना-पीना भी बहुत कम हो गया था.  अभी कुछ दिनों पहले ही उसकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई थी तो उसे हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा था और एक दिन पहले ही आसू डिस्चार्ज होकर घर आया है.  अविरल आसू से मिलने आसू के घर पहुंचा तो उसे आसू के कमरे से रोने की आवाज़ सुनाई दी.  वह खिड़की के बाहर से  छुपकर देखने लगा. आसू अन्दर सुमि की फोटो लेकर बुरी तरह रो रहा था . तभी जाकर अविरल ने उसका हाथ पकड़ लिया.  आसू अविरल के गले लग बुरी तरह रोते हुए बोला ,“मैं सारी बुरी आदतें छोड़ दूंगा, प्लीज मेरी मदद करो”.

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आसू ने अविरल को बताया कि वह हर समय सुमि को देखने के लिए सुमि के घर के रास्ते  में बैठा रहता और छुपकर उसे देखता रहता.  जिस भी दिन सुमि नहीं दिखती, कहीं भी उसका मन नहीं लगता.  अविरल को आसू पर बहुत दुख हुआ और अविरल ने उसका साथ देने का निश्चय किया.

अविरल ने सुमि से आसू के बारे में बात की लेकिन सुमि तो आसू से नफरत करती थी तो सुमि ने साफ-साफ अविरल से बोल दिया कि मेरे सामने आसू की बात मत करना.  अविरल अब अपने आप को बीच में फंसा हुआ महसूस कर रहा था.  उसका मन बिल्कुल भी पढ़ाई में नहीं लगता था.  अनु जब भी उसे कोई question  पूछती, उसके बारे में अविरल को कुछ भी पता नहीं होता. अनु थोड़ा गुस्सा भी होती और उसे समझाती भी, लेकिन अब अनु की बातें अविरल को अच्छी नहीं लगती थी. अब अविरल अनु की बाते अनसुनी करने लगा था. वह अपनी कोचिंग में एक्सट्रा क्लास का बहाना बना कर अपनी कोचिंग 1 घंटे पहले ही  चला जाता और 1 घंटे बाद आता था.  बाकी का सारा समय वह आसू और उसके दोस्तों के बीच बिताने लगा.

अविरल ने आसू के बारे में पल्लवी से बात की और पल्लवी से सुमि को  समझाने के लिए बोला.  अब अविरल और पल्लवी अक्सर सुमि से  आसू की बातें बताते  रहते . ऐसा होते होते 6 माह और बीत गए.  और कहते हैं ना कि पत्थर पर बार-बार रस्सी घिसने से पत्थर पर भी निशान बन जाता है तो सुमि तो इंसान थी.

अब सुमि को भी लगने लगा था कि शायद आसू बदल गया है.  आसू हर दिन उसके कोचिंग आने और जाने का इंतजार करता और जैसे ही सुमि दिखती वह छुप जाता था.  सुमि को उसकी यह हरकत देखकर मन ही मन बहुत हंसी आती .

शायद अब सुमि के मन में कहीं ना कहीं आसू के लिए जगह बनने लगी थी.  अब वो भी जब आते जाते आसू को देख लेती तो आंखें झुका कर निकल जाती थी.  पल्लवी और सोनी का घर आसपास ही था तो वे दोनों रोज मिलती थी और उन दोनों के बीच में रोज ही आसू की बातें होती थी.  अब  सुमि को आसू की बातें अच्छी लगने लगी थी.  इसका एहसास पल्लवी और अविरल को भी हुआ.  अविरल  ने खुशी होकर आसू को सारी बात बताई. आसू भी बहुत खुश हुआ.

आसू अब एनसीसी में सीनियर हो चुका था था तो उसने अविरल का एडमिशन भी एनसीसी में करा लिया.  अविरल अब केवल खाने और सोने के लिए ही घर पर रहता था.  अनु को अविरल की इन हरकतों से बहुत दुख होता था.  अनु ने अविरल को बैठा कर उससे बात की तो अविरल  को भी एहसास हुआ कि वह क्या कर रहा है? लेकिन अब अविरल के लिए काफी देर हो चुकी थी. अविरल का फाइनल एक्जाम आने वाला था.  और कुछ समय बाद अविरल का फाइनल रिजल्ट आया जो कि बहुत ही खराब था.  अविरल ने आसू की मदद से एक फर्जी रिजल्ट बनवाया और घर में दिखाया.  लेकिन अनु को इस बात पर शक था क्योंकि वह जानती थी कि अविरल ने बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं की है.

अनु भी मेडिकल की तैयारी कर रही थी और उसका सेलेक्शन MBBS  में हो गया.  घर में सभी लोग बहुत खुश थे.  अनु के पापा और अनु काउंसलिंग के लिए दिल्ली गए और अनु का एडमिशन करा दिया गया.  एडमिशन के बाद अनु और उसके पापा वापस देहरादून आ गए.  अनु को 15 दिन बाद हॉस्टल जाना था.  अविरल को जब यह बात पता चली उसे बहुत दुख हुआ.  वह अनु से बोला कि, “दीदी यही पढ़ाई कर लो ना”.

अनु का भी दिल्ली जाने का मन नहीं था तो उसने अपने पापा से बात की.  अनु के पापा अपने बच्चों की भावना समझते थे तो उन्होंने बड़े प्यार से बच्चों को समझाया कि अनु  को देश का सबसे अच्छा कॉलेज मिला है.  बहुत समझाने के बाद अविरल और अनु  मान तो गए लेकिन उनका मन बेचैन था.

अगले भाग में हम जानेंगे की अविरल के जीवन में अब कौन सा बड़ा तूफान उसका इंतज़ार कर रहा था ?

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लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-6)

पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-5)

‘‘हैपी बर्थ डे मौसी’’

गिफ्ट ले पुलकित मुख से गुस्सा दिखाया दुर्गा ने, ‘‘कहा था न गिफ्ट मत लाना.’’

वो हंसी. आज बहुत ही सुंदर लग रही है वो एकदम ओस धूली अभीअभी खिली फूल जैसी. कल ही घमासान हुई है बंटी के साथ पर बंटी के चेहरे पर उस की कोई झलक तक नहीं. हंस कर बोला,

‘‘हाई बेबी.’’

‘‘हाई आंटी, नमस्ते. कैसी हैं आप?’’

‘‘ठीक हूं बेटी. पर मंजरी के बिना मेरी शौपिंग, पार्टी, मूवी सब सूनी हो गई. लोग कितनी उमर तक बैठे रहते हैं और उसे ही जल्दी पड़ी थी मुझे छोड़ जाने की. उन्होंने सुगंधित रूमाल सूखे आंखों पर रगड़ा, दुर्गा ने परिवेश भारी होते देख प्रसंग बदला, ‘‘तुझे लंच पर बुलाया था और तू मेहमान की तरह अब आ रही है.’’

बैठ गई शिखा, एक माजा उठाया.

‘‘क्या करूं काम इतना बढ़ गया है कि…’’

कहते ही मन ही मन उस ने सिर पीटा, यह क्या कह गई दुश्मनों के सामने.

‘‘हां सुना है तू ने बड़ी कुशलता से बिजनैस को बढ़ाया है मंजरी जो छोड़ गई थी उस से दो गुना हो गया है…’’

‘‘मुझे भला क्या आता है मांजी? सब दादू की मेहनत है.’’

‘‘हां सुना है अब विदेश में भी खूब काम चल पड़ा है.’’

‘‘खूब तो नहीं बस पैर रखा ही है. बेचारे दादू ही दोतीन बार विदेश दौड़े इस उम्र में अकेले तब जा कर…’’

‘‘तू भी तो सब छोड़ लगी पड़ी है.’’

‘‘लगना पड़ता है. ईमानदारी और सिनसियर ना हो तो बिजनैस मजधार में डूबता है.’’

एकपल के लिए उस ने मांबेटे पर नजर डाली. देखा दोनों का मुंह फूल गया है. नंदा ने बड़ी चालाकी से बात संभालने का प्रयास किया, ‘‘बेबी, हमें सब से ज्यादा खुशी है, तुम्हारी कामयाबी से, पर तुम्हारी मां की जगह मैं हूं इसलिए तुम्हारे लिए चिंता और डर मन में लगा ही रहता है.’’

‘‘क्यों आंटी?’’

‘‘समय अच्छा नहीं है लोग जलते हैं दूसरों को फलताफूलता देख. इसलिए जो है उसे छिपा उल्टी बात प्रचार करना चाहिए.’’

‘‘मतलब बिजनैस डूब रहा है, दीवाला निकल रहा है यही सच…’’

‘‘एकदम ठीक.’’

शिखा खुल कर हंसी,

‘‘अब समझी आंटी बंटी यही बात क्यों कहता है, लोग भी मान चुके हैं कि मेहता संस के बुरे दिन आ गए.’’ नंदा का मुख तमतमा उठा, बंटी के जबड़े कस गए. नथूने फूल उठे. दुर्गा ने बात संभाली,

‘‘बेबी, नमकीन ले चाय पीएगी? बनवा दूं?’’

शाम को ही लौटने का मन बना कर गई थी शिखा पर नहीं लौट पाई. मौसी ने रात के खाने तक रोक ही लिया. इस बीच दुर्गा मौसी ने टूटे तार को जोड़ने की बहुत कोशिश की, धीरेधीरे माहौल सामान्य भी हो गया. खाना खातेखाते 9 बज गए. मौसी ने चिंता जताई,

‘‘बेबी, इतनी रात हो गई तू अकेली जाएगी.’’

‘‘9 ही तो बजे हैं मौसी. मैं चली जाऊंगी. शंकर दादा हैं तो साथ में.’’

शंकर ‘‘कुंजवन’’ के पुराने ड्राईवर हैं. मंजरी नौकरों को नौकर ही समझती थी पर पापा ने ही सिखाया था कि बड़ों का सम्मान करो भले ही वो नौकर ही क्यों ना हो.

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‘‘बंटी तुझे पहुंचा आता.’’

‘‘अरे नहीं रात कहां है?’’

‘‘दिल्ली का माहौल क्या है देख तो रही है. बेबी मुझे तेरी बड़ी चिंता रहती है. अकेली लड़की?’’

‘‘अकेली कैसे? पूरा घर साथ में है.’’

‘‘फिर भी…समय का काम समय पर ही होना चाहिए.’’

अब तेरी एक नहीं सुनूंगी. कल ही पंडितजी को बुला महुरत निकलवाती हूं.

‘‘महुरत?’’

‘‘हां… बंटी भी कब तक बैठा रहेगा?’’ नंदा बोल पड़ी,

‘‘हमारी तो आफत हो गई है. रोज दोचार लड़की वाले आ बैठते हैं.’’

नरम स्वर में शिखा ने कहा

‘‘वो तो होगा ही आंटी, आप का बंटी हीरा जो है.’’

‘‘तू ही बता कब तक मना करूं?’’

‘‘मना कर ही क्यों रही हैं. कर दीजिए न शादी.’’

‘‘कैसे कर दूं. मंजरी को वचन दिया था उस का पालन ना करने का पाप कैसे सिर पर लूं?’’

दुर्गा ने समर्थन किया

‘‘बात सच है. मंजरी तेरी शादी बंटी से ही तय कर गई है.’’

‘‘शादी तो मुझे करनी है, और मैं बालिग भी कब की हो चुकी तो मैं ही तय करूंगी कि किस से शादी करूंगी.’’

‘‘पर बेटा बंटी तेरा बचपन का दोस्त है. वो तुझे चाहता है.’’

‘‘मौसी मुझे छोड़ उस के दर्जनभर दोस्त और भी हैं जिन को वो चाहता है तो क्या उन सब से शादी करेगा?’’

बंटी चीखा.

‘‘शिखा, जबान संभाल के बात करो,’’

‘‘मैं भी चाहती हूं तुम से बात ना करूं. मजबूर किया गया बोलने को. मौसी मैं चली. याद रखना इन के साथ मुझे अपने घर कभी मत बुलाना.’’

उस के निकलते ही नंदा बेटे पर झिड़की.

‘‘बापबेटे कटोरा ले चौराहे पर खड़े होना.’’

बचने की आखरी उम्मीद है शिखा. उसे नाराज कर दिया नालायक अब डूबो मझधार में. तेवर दिखाने चला तो शिखा को.

‘‘बात सही है. बचना चाहो तो बेबी को मनाओ.’’

घर लौटते हुए शिखा ने मन ही मन निर्णय लिया कि आज की घटना के विषय में दादू को कुछ नहीं बताएगी. उस की गाड़ी की आवाज सुनते ही जानकीदास ड्राईंगरूम में आ गए. शिखा हंसी.

‘‘मुझे पता था मेरे लौटने तक तुम बैठे रहोगे. रात की दवाई ली?’’

‘‘बस अब ले कर सीधे सोने जाता हूं.’’

‘‘साड़े दस बज गए.’’

‘‘हां तू भी जा कर सो जा टीवी या किताब ले मत बैठना. अपने कमरे में आ कर फ्रैश हो ली शिखा. नरम फूल सा नाईट सूट पहन बिस्तर पर बैठ क्रीम लगाते हुए आज उस ने हलका महसूस किया. मेहता परिवार में आज मातम छा गया होगा. एक बड़ा सा सपनों का महल था उन के सामने उस के दम पर उछलते फिर रहे थे. जल्दी से शादी कर उस के दम पर अपने को सड़क पर आने से बचाना चाहते थे. उधेड़बुन में ना रख कर शिखा उन की सारी आशाओं की जड़ ही काट आई. उस का अपना सिर दर्द समाप्त हुआ. बत्ती बंद कर वो लेट गई. मां उस की शुभचिंतक कभी नहीं रही. सदा ही उस की इच्छा, पसंद, शौक का गला दबा अपनी दिशा में हांकती रही. उस की छोटीछोटी खुशियों की हत्या कर मन ही मन अपनी जीत पर गर्व करती रही. उस के प्यार को भी उस से छीन पता नहीं कहां कितनी दूर फेंक दिया जिसे वो इस जीवन में नहीं खोज पाएगी. सुकुमार वचन का पक्का है वचन दे कर गया है कि अब कभी उस को अपना मुख नहीं दिखाएगा.’’

उस दिन तो शिखा ने मां को ही समर्थन किया था उसे अपने से बहुत नीचे स्तर का कह धिक्कारा था. व्यंग किया था, पैसों का लालची कहा था और गेट से बाहर निकाल दिया था. उस दिन के बाद वो कभी नहीं दिखाई दिया ‘कुंजवन’ के बाहर आते ही तो शिखा की प्यासी व्यथित दोनों आंखें उसी को खोजती हैं पर कहां है वो, कहां चले गए तुम? मेरे मुंह के बोल सुन मुझे छोड़ गए एक बार मेरी आंखों में भी तो झांकते मन को पढ़ते कि मैं ने ऐसा क्यों किया? मुझे समझने की कोशिश करते. तुम मेरे बचपन के प्यार हो, तुम मुझे कैसे छोड़ गए बस मेरे दो मुंह के बोल सुन कर. लौट आओ प्लीज, मेरे पास लौट आओ. मैं बहुत अकेली हूं. उस ने आंसू पोंछे. मां जातेजाते उस के साथ एक और शत्रुता कर गई. बंटी से उस के विवाह की बात कह कर उसे सिर चढ़ा गई. मेहता परिवार तो आसमान पर छलांगे लगाने लगा खास कर बंटी. सब के सामने ऐसा दिखाने लगा मानो उस का विवाह ही हो चुका है शिखा के साथ, जबकि शिखा ने एक दिन भी घास नहीं डाली उसे. राजकन्या के साथ पूरा साम्राज्य मुट्ठी में आ रहा है. बंटी ने अय्याशी बढ़ा दी, चमचे भी जुट गए. व्यापार डूबने लगा तो क्या, शिखा तो अपने व्यापार को चौगुना बढ़ा रही है ब्याह होते ही सब कुछ मुट्ठी में, तब तक जरा हिचकोले खा ही लेंगे. आज शिखा रोजरोज की फजिहत की जड़ ही काट आई है. इतनी देर में उसे नींद आई.

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#coronavirus: कोरोना वायरस पर एक हाउसवाइफ का लेटर

कोरोना,तुम मेरे देश को जानते नहीं? हम तुम्हें गोबर से भी भगा सकते हैं. तुम ने यहां आ कर एक हाउसवाइफ के साथ अन्याय किया है. जब तुम्हारे डर का शोर मेरे बेटे के स्कूल में मचा तब मैं फेशियल करवा रही थी.

पति अमित टूर पर थे. मेरा मोबाइल बजा. वैसे तो मैं न उठाती, पर स्कूल का नाम देख कर उठाना ही पड़ा. मैसेज था अपने बच्चे को ले जाओ. ऐसा धक्का लगा न उस समय तुम्हें बहुत कोसा मैं ने. उस के बाद हमारी किट्टी पार्टी भी थी. टिशू पेपर से मुंह पोंछ कर मैं बंटी को लेने उस के स्कूल पहुंची. ऊपर से बुरी खबर. स्कूल ही बंद हो गए. बंटी को जानते नहीं हो न? इस की छुट्टियां मतलब मैं तलवार की नोक पर चलती हूं, कठपुतली की तरह नाचती हूं.

अमित जब बाहर से गुनगुनाते हुए घर में घुसते हैं इस का मतलब होता है मैं अलर्ट हो जाऊं, कुछ ऐसा हुआ जो अमित को तो पसंद है, पर मुझ पर भारी पड़ेगा. वही हुआ. तुम्हें यह लिखते हुए फिर मेरी आंखें भर आई हैं कि अमित के पूरे औफिस को अगले 3 महीनों के लिए वर्क फ्रौम होम का और्डर मिल गया. वर्क फ्रौम होम का मतलब किसी हाउसवाइफ से पूछो.

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तो वर्क फ्रौम होम शुरू हो गया. मतलब अमित अब आराम से उठेंगे, उन के चायनाश्ते का टाइम अब तय नहीं होगा. मतलब मेरा मौर्निंग वाक अब गया तेल लेने… बंटी और अमित अब पूरा दिन रिलैक्स करेंगे कि पूछो मत. बंटी के स्कूल तो शायद कुद दिनों बाद खुल भी जाएंगे, पर अमित? 3 महीने? घर पर? वर्क फ्रौम होम? लैपटौप खुला रहेगा, रमाबाई की सफाई पर छींटाकशी होती रहेगी, मेरे अच्छेभले रूटीन पर कमैंट्स होते रहेंगे. बीचबीच में चाय बनाने के लिए कहा जाएगा, बाजार का कोई काम कहने पर ‘घर में तो काम करना मुश्किल हो जाता है,’ डायलौग है ही.

अमित कितने खुश हैं. अब मैं भीड़ से बचने के लिए वीकैंड पर मूवी देखने के लिए भी नहीं कहूंगी. ट्रेन, फ्लाइट की भीड़ से भी बचना है. यह भी तो नहीं कि अमित अगर घर पर हैं तो कुछ ऐक्स्ट्रा रोमांस, मुहब्बत जैसी कोई चीज हो रही है… अब तो साबुन, टिशू पेपर, सैनेटाइजर की ही बातें हैं न… कितनी बार हाथ धोती हूं, हाथों की स्किन ड्राई हो गई है…

और यह मेड भी तो कम नहीं. पता है कल रमाबाई क्या कह रही थी? कह रही

थी, ‘‘दीदी, मेरा पति कह रहा है, कोरोना कहीं तुम्हें मार न दे… रमा सब लोग वर्क फ्रौम होम ले रहे हैं… तुम भी 10 दिन की छुट्टी ले लो.’’

मैं ने घूरा तो भोली बन कर बोली, ‘‘दीदी क्या करें, आप लोगों की चिंता है… हम ही कहीं से न ले आएं यह कोरोना का इन्फैक्शन.’’

मैं अलर्ट हुई. जितना मीठा बोल सकती थी, उतना मीठा बोली, ‘‘नहीं रमा, तुम चिंता न करो… जो होगा देखा जाएगा… तुम आती रहना. बस आ कर हाथ अच्छी तरह धो लिया करो,’’ मन ही मन सोचा कि अमित और बंटी की छुट्टियां और कहीं यह भी गायब हो गई तो कोरोना के बच्चे, तुम्हें मेरे 7 पुश्ते भी माफ नहीं करेंगे.

बंटी और अमित की फरमाइशों पर नाचतेनाचते ही न मर जाऊं कहीं… हाय, ये दोनों कितने खुश हैं… उफ, अमित की आवाज आई है… बापबेटे का मन शाम की चाय के साथ पकौड़ों का हो आया है… वर्क फ्रौम होम है न, तो अब औफिस की कैंटीन की चटरपटर की आदत तो मुझे ही झेलनी है न… छोड़ो, मुझे कोरोना की बात ही नहीं करनी.

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लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-5)

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पता नहीं उसी दिन से सुकुमार एकदम गायब हो गया, कहीं भी कभी भी किसी को दिखाई नहीं दिया. हवा में कपूर की तरह अदृश्य हो गया. फिर तो मम्मा ने उसे ‘लंदन’ ही भेज दिया एमबीए करने. इस घटना से बंटी का खून दुगना हो गया ऊपर से मम्मा की शह पा वो शिखा को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति ही मानने लगा. मम्मा ने कई बार दोनों की मंगनी की बात कही अवश्य थी पर वो भी व्यस्त थीं तो बात बस बात ही बन कर रह गई है अभी तक. शिखा ने उसे कभी पसंद नहीं किया अब मम्मा के बाद तो उठतेबैठते उसे काटती है. पता नहीं सुकुमार अब कहां है. किस हाल में है. भावुक लड़का, शिखा को खो कर कहीं उस ने आत्महत्या तो… सिहर उठी. ना…ना भगवान, वो जहां भी हो उस की रक्षा करना, उसे स्वस्थ और सुखी रखना. एक प्रतिभा की अकालमृत्यु मत होने देना प्रभू.

आंसू पोंछे शिखा ने लैपटौप औन करते ही कल की घटना याद हो आई लंच के बाद से सिर थोड़ा भारी हो रहा था. घर आ कर सोने की सोच रही थी कि बंटी आया. ठीक उसी चाल से दनदनाता आ कर कुरसी खींच बैठ गया. कोई औपचारिकता की परवा किए बिना. पीछे से रामदयाल सहमा सा, डरा सा झांकने लगा शिखा ने इशारा किया तो वो चला गया. गुस्से से सिर जल रहा था पर संयम और धैर्य की शिक्षा उस ने पापा से ली है नहीं तो मम्मा जैसी महिला को झेलना आसान नहीं था. बंटी सीधे अपने मुद्दे पर आया, ‘डील तो तुम ने कर ली पर इतनी बड़ी सप्लाई तीन महीने में दे पाओगी?’

शिखा ने सामने की खुली फाइल बंद की और कुरसी की पीठ पर ढीली पड़ गई.

‘‘लगता है मेरे बिजनैस को ले कर तुम को मुझ से भी ज्यादा चिंता है.’’

‘‘क्यों न हो. दो दिन बाद मुझे ही तो संभालना है.’’

‘‘ओ रिऐली, मुझे तो पता नहीं कि मैं सब कुछ छोड़ कर सन्यास ले रही हूं.’’

‘‘सन्यास की बात किस ने की? शादी के बाद दायित्व तो दायित्व मेरा ही होगा.’’

‘‘किस की शादी?’’

‘‘सारी दुनिया जानती है मैं तुम्हारा मंगेतर हूं.’’

‘‘कोई रस्म हुई है क्या?’’

‘‘वो भी कर लेते हैं. अब मुझे शादी की जल्दी है.’’

‘‘तुम को होगी ही अपनी डूबती नाव को किनारे पर लाने की, पर मेरे साथ ऐसी कोई समस्या नहीं.’’

‘‘अरे आंटी का दिया वचन…’’

‘‘नशे में धुत् हो कर कोई भी अपने को भारत का प्रधानमंत्री घोषित करे तो क्या वो हो जाएगा.’’

रंग उड़ गया बंटी का, ‘‘क्या कह रही हो?’’

‘‘जो तुम सुन रहे हो.’’

‘‘सारा समाज जानता है आंटी ने वचन दिया था.’’

‘‘मैं भी जानती हूं इस बात का प्रचार तुम लोगों ने ही जोरशोर से किया है. उस से कोई फर्क नहीं पड़ता. जाने दो यह काम का समय है तुम को कोई काम हो तो कहो.’’

नरम पड़ा बंटी,

‘‘देखो इतना बड़ा सप्लाई इतने कम समय में कोई एक कंपनी तो दे नहीं पाएगी तुम को कई कंपनियों से काम करवाना पड़ेगा. एक लाट हमें भी दे दो.’’

‘‘सौरी,’’ मैं ठेका दे चुकी.

‘‘मुझे बताया तक नहीं?’’

‘‘नहीं. पहला विदेशी आर्डर है. मैं ने उन को काम दिया है जिन पर मुझे भरोसा है, विश्वास है. तुम पर विश्वास का ही प्रश्न नहीं तो भरोसा क्या होगा?’’

बंटी का गोरा मुख लाल हो गया. शिखा ध्यान से उसे देख रही थी. वो वास्तव में हैंडसम है, लंबा, गोरा तीखे नैन नक्श उसी का हम उम्र पर अत्यधिक शराब और अय्याशी ने अभी से उस के शरीर को थुलथुल बनाना शुरू कर दिया है. मुख पर, आंखों के नीचे चर्बी की परतें जमनी शुरू हो गई हैं. उसे लगा थोड़ी थकान भी है.

बंटी उठ खड़ा हुआ.

‘‘तो तुम आंटी के वचन की परवा नहीं करोगी?’’

‘‘परवा तो तब करती अगर वचन होता.’’ शराब पिला कर बड़ीबड़ी संपत्ति लिखवा लेते हैं लोग. बिना कुछ बोले चला गया था बंटी, शिखा विचलित नहीं हुई पर घटना सुन कर चिंता में पड़ गए थे जानकीदास.

‘‘बेटा, यह अच्छा नहीं हुआ.’’ यह अच्छे लोग नहीं हैं चुप नहीं बैठेंगे.

‘‘आप इतने दुखी क्यों हैं दादू?’’ क्या करेंगे वो?

‘‘यह तो नहीं जानता पर चिंता तो हो रही है.’’

‘‘बिजनैस में दुशमनी तो चलती ही रहती है.’’

‘‘पता है जीवनभर इसी से जुड़ा हूं. शरीफों की दुशमनी से डर नहीं लगता वो जो भी करें अपने स्वर से नीचे नहीं गिरते पर यह लोग तो इतने गिरे हुए हैं और इस समय बौखलाए हुए हैं, क्योंकि सड़क पर आने ही वाले हैं बस…’’

‘‘जो होगा देखा जाएगा.’’

‘‘बेबी.’’

‘‘कुछ कहोगे दादू.’’

‘‘बेटा तू हमारी अकेली वारिस है. शादी नहीं करेगी क्या?’’

अनमनी हो गई थी शिखा,

‘‘पता नहीं दादू. हाथ में शादी की लकीर डालना ही भूल गए होंगे विधाता पुरुष.’’

उस ने हंस कर ही टाला पर मानो एक जलता तीर उस के हृदय के अंदर जा घुसा.

दूसरे दिन सुबह आफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी कि मोबाइल बजा. उस ने देखा दुर्गा मौसी. मां की ममेरी बहन पर सहेली थी मां की, एक स्कूल की क्लास में. रहीस खानदान की नाकचढ़ी मालकिन. मम्मा रहते बहुत आना जाना था अब बहुत कम हो गया. असल में शिखा को ही समय नहीं मिलता. ‘हैलो मौसी. गुड मौर्निंग. कैसी हो आप?’

‘‘बस रहने दे. मैं कैसी हूं उस से तुझे क्या?’’

‘‘सौरी मौसी. गुस्सा मत करो. विश्वास करो एकदम समय नहीं मिलता.’’

‘‘जाने दे. कहां है तू? रास्ते में तो नहीं?’’

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‘‘बस निकलने ही वाली हूं.’’

‘‘सुन, आज शाम मेरे घर आ जा साथ खाना खाएंगे.’’

‘‘अचानक डिनर का निमंत्रण ओहो ध्यान ही नहीं था. हैपी बर्थ डे मौसी. जरूर आऊंगी.’’

गला भारी हो गया मौसी का.

‘‘मंजरी क्या गई तू ने मौसी से रिश्ता ही तोड़ दिया.’’

शिखा का भी मन भर आया.

‘‘नहीं मौसी, जनम का रिश्ता कभी टूटता है भला. मुझे इतना काम रहता है…’’

‘‘सारा काम तू ने अपने सिर पर लिया क्यों है. उस बूढ्ढे को मोटी रकम दे कर क्यों रखा है. पड़ेपड़े छप्पन भोग उड़ाने.’’

दादू के प्रति अपमानजनक शब्दों से मन ही मन आहत हुई शिखा. मन में जो प्रसन्नता जागी थी वो विराग में बदल गया. रसहीन शब्दों में बोली,

‘‘उन्होंने ही सब कुछ संभाल रखा है. नहीं तो मुझे भला क्या आता था?’’

‘‘काम तेरा है संभालना तो तुझे ही पड़ेगा. वो तो कर्मचारी ही हैं.’’

‘‘और मेरे सब से बड़े सहारा जाने दो. अब चलूं.’’

‘‘सुन तू आफिस से सीधे यहां आना. रात को खाना खा कर घर जाएगी और हां यह गिफ्टविफ्ट के चक्कर में मत पड़ना.’’

‘‘एकदम नहीं पड़ूंगी.’’

आफिस से जल्दी निकल शिखा ने सीधे कनाट प्लेस आ कर मौसी के लिए पिओर लैदर का बैग खरीदा. फिर नहाधो कर तैयार हुई. आज उस ने सफेद सीधेसादे शर्ट के नीचे लंबे खादी का स्कर्ट पहना घेरदार जयपूरी प्रिंट का. इस समय वो मासूम किशोरी सी लग रही थी. जब मौसी के घर पहुंची तब पांच बज चुके थे. ड्राइंगरूम में पैर रखते ही उस का सुबह से हलके मिजाज पर काले पत्थर का बोझ पड़ गया. बंटी और उस की मां वहां पहले से महफिल जमाए बैठे हैं. कोल्ड ड्रिंक और नमकीन का दौर चल रहा है. यह कोई अनहोनी बात नहीं दुर्गा मौसी भी बंटी की मां नंदा की क्लासमेट थी और अकसर पार्टियों में साथ घूमती हैं. उसे इन बातों की जानकारी होते भी मन में विराग आना नहीं चाहिए था. उस ने गिफ्ट पकड़ाया.

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लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-4)

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तैयार हो वो औफिस आई. बैठते ही रामदयाल पानी ले आया. पुराना स्टाफ, सीधासादा, वयोवृद्ध. पहले बिटिया कहता था अब मालकिन का सम्मान देता है. पानी ले उस ने कहा.

‘‘रामदयाल.’’

‘‘जी साब.’’

‘‘ब्रिजेश बाबू आ गए?’’

‘‘जी साब जी.’’

‘‘उन को बुला दो.’’

थोड़ी देर में ब्रिजेश बाबू आए. दादू से थोड़े ही छोटे हैं, सरल स्वभाव के हैं.

‘‘आइए बाबूजी बैठिए.’’

‘‘कोई समस्या है क्या मैडम.’’

‘‘जी, देखने में तो छोटी बात है पर समस्या छोटी नहीं बहुत बड़ी हो सकती है.’’

वो घबराए.

‘‘क्या हो गया?’’

‘‘आप तो जानते हैं हर कंपनी का नियम है कि उस की डील छोटी हो या बड़ी उसे सिक्रेट रखा जाता है.’’

‘‘हां यह तो व्यापार का पहला नियम है.’’

‘‘हमारी कंपनी में इस नियम का पालन नहीं हो रहा.’’

चौंके वो, ‘‘क्या?’’

‘‘हाल में जो डील हुई है उस की खबर बाहर फैली है…कैसे?’’

वो घबराए, मुख पर चिंता की रेखाएं उभर आईं, ‘‘पर…उस की खबर तो आप, सरजी और मुझे ही है बाकी किसी को पता नहीं.’’

‘‘तभी तो यह प्रश्न उठ रहा है सूचना बाहर कैसे गई?’’

उन्होंने सोचा, शिखा ने सोचने के लिए उन को समय दिया.

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे छोड़ दो और लोगों को पता हो सकता है.’’

‘‘वो कौन हैं?’’

‘‘एक तो मेरा सहकारी जो सारे कागजपत्तर संभालता है दूसरा टाईपिस्ट जिस ने डील के पेपर मतलब टर्म्स औफ कंडीशंस टाईप किया था.’’

‘‘आप के पास कितने दिनों से काम कर रहे हैं?’’

‘‘हो गए चारपांच वर्ष.’’

‘‘स्वभाव के कैसे हैं दोनों?’’

‘‘सहकारी राजीव तो प्रश्न के बाहर है. रामदयाल का पोता गरीब पर ईमानदार सज्जन परिवार वैसे ही सहमा रहता है दादा के डर से.’’

‘‘दूसरा?’’

‘‘टाईपिस्ट विकास हां वो थोड़ा शौकीन और चंचल स्वभाव का है. पर इस प्रकार का अपराध कभी कुछ किया नहीं…’’

‘‘वो बिक सकता है?’’

‘‘शायद.’’

‘‘उस पर नजर रखिए. जरूरत हो तो निकाल सकते हैं.’’

‘‘अगर लीक हुआ हो तो कंपनी को नुकसान?’’

‘‘बहुत ज्यादा नहीं पक्की डील है हमारी. काम भी शुरू हो जाएगा बस, इस की थोड़ी चिंता रहेगी.’’

‘‘मैं उस पर नजर रखता हूं.’’

अगले दिन छुट्टी थी. ड्राइंगरूम में बैठ दादू पोती बात कर रहे थे, ‘‘दादू, टाईपिस्ट विकास ही चोर निकला आखिर.’’

‘‘हां, मेहता ने खरीदा था उसे.’’

‘‘तब तो वो हमारे लिए खतरनाक है.’’

‘‘पर अब वो हमारे काम का है.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘उस ने यह काम एक मुश्त मामूली पैसों के लिए किया था. मैं ने प्रतिमाह हजार रुपए बढ़ा दिए.’’

‘‘यह लो, सजा के बदले ईनाम.’’

‘‘बड़ी कंपनी चलाने के लिए दोचार कांटे भी पालने पड़ जाते हैं बेबी.’’

‘‘आप जो ठीक समझो.’’

‘‘बेबी, एक बात तुझ से कहने की सोच रहा था. मेहता संस की हालत अच्छी नहीं है. मतलब डूबने के कगार पर है.’’

‘‘पुरानी खबर है दादू.’’

‘‘तू जानती है? कैसे पता? इन लोगों ने खबर छिपा रखी है और बापबेटे लंबी चौड़ी हांकते घूम रहे हैं.’’

‘‘मैं तो आम स्कूल में नहीं पढ़ी वो स्कूल महंगा स्कूल था. मेरे नब्बे प्रतिशत दोस्त व्यापारी परिवारों के बच्चे थे जिन में बंटी भी था. इन का घर भी गिरवी पड़ा है.’’

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‘‘इतना नहीं पता था मुझे.’’

‘‘हां, व्यापार डूबा है बेईमानी और धोखाधड़ी के कारण और बापबेटे के खराब, दिखावा, अय्याशी के खर्चे में अभी भी कोई कमी नहीं.’’

‘‘बेबी, तेरा भविष्य तो तेरी मम्मा वहां ही बांध गई है. क्या होगा बेटा?’’

‘‘चिंता मत करो दादू. कोई बंधन नहीं, शराब के नशे में इंसान अनापशनाप बोलते ही रहते हैं.’’

‘‘पर उसी को इन लोगों ने पत्थर की लकीर मान लिया है.’’

‘‘इन के मानने से क्या होगा? मैं नाबालिक हूं क्या?’’

‘‘कितने दुख की बात है हाथ का हीरा फेंक कांच का टुकड़ा उठा लिया तेरी मां ने.’’

‘‘मां की बात मां जाने’’ जीवन तो मेरा है.

दोपहर सोने की आदत नहीं थी शिखा को. टीवी का नशा भी नहीं. तो कंप्यूटर खोल कुछ बकाया काम निबटाने बैठी. जो डील हुई है उस से अब निश्चिंत है. तीन बड़ी गारमेंट्स कंपनी को ठेका दे दिया है ढाई महीना समय सीमा दे कर. पंद्रह दिन हाथ में रखा है पैकिंग, कारगो की व्यवस्था इन सब के लिए. यह तीनों कंपनियों के साथ सोनी कंपनी पहले भी काम कर चुकी हैं. भरोसे की पार्टी है समय पर सप्लाई और माल की गुणवत्ता में कभी कोई शिकायत का मौका नहीं मिला और अच्छे व्यापार के लिए यही दोनों बातें अहम हैं फिर भी दादू ने बारबार उन को सावधान कर दिया है कि पहला विदेशी सप्लाई है बीस से साड़े उन्नीस भी नहीं होना चाहिए. सच दादू न होते तो वो कुछ भी नहीं कर पाती. दादू की छाया में रह कर ही वो इतनी कुशलता से सिर्फ व्यापार को चला ही नहीं रही वरन् ऊंचाई पर ले जाने में सफल हो रही है. और मम्मा ने दादू को सदा ही वेतन पाने वाला कर्मचारी ही समझा ससुर का आदर सम्मान कभी दिया ही नहीं उन को, दादू बेटा जाने के बाद भी यहां टिके रहे बस शिखा के लिए, नहीं तो उन के जैसे अनुभवी और ईमानदार व्यक्ति का आदर कम नहीं. कोई भी दुगने पैसों से उन का स्वागत कर लेता. कल दादू ने ठीक ही कहा था मम्मा ने हाथ से कच्चा हीरा फेंक कांच का टुकड़ा उठा लिया था यह भी नहीं सोचा कि कांच हथेली को काट लहूलुहान कर देगा.

कच्चा हीरा था सुकुमार, नाम जैसा ही कोमल भावुक और मृदुभाषी. रंग सांवला अवश्य था पर सौम्यता लिए आकर्षक व्यक्तित्त्व था उस का. कितना मीठा गला था उस का और क्लास क्या पूरे स्कूल का बैस्ट स्टूडैंट. मां के विराग का एक ही कारण था कि वह गरीब था. मातापिता नहीं थे एक आश्रम में बड़ा हुआ वो भी उम्र की एक सीमा तक फिर तो घर के दो बच्चों को मुफ्त पढ़ाने के बदले किसी बड़े आदमी के आउट हाऊस में रहता था कुछ और बच्चे पढ़ा अपना खर्चा चलाता था. शिखा, बंटी यह सब जिस स्कूल में पढ़ते थे वो महंगा स्कूल था बड़े बिजनैसमैन, नेता, मंत्री, अभिनेता जैसे लोगों के बच्चे ही वहां प्रवेश पाते. वहां ही सुकुमार पढ़ता था यह भी संयोग की बात थी. असल में इस स्कूल के प्रतिष्ठक जो थे वो धार्मिक और दयालू थे. उन्होंने एक नियम बनाया था कि प्रतिवर्ष छटी क्लास में कोई गरीब बेसहारा पर मेधावी को स्कूल ट्रस्ट गोद लेगा उस के ग्रैजुऐशन तक स्कूल कालेज का पूरा खर्चा उठाएगा. उन का चुनाव होगा एक प्रतियोगिता के द्वारा. सुकुमार उस में भी प्रथम आया था तो सहपाठी बन गया. अपने गुण के कारण वो सब का प्रिय बन गया था और शिखा का प्रियतम. उस का पहला प्यार, बचपन का प्यार. मेहता परिवार की नजर शुरू से शिखा पर थी, इतना बड़ा राजपाट अकेली मालकिन वो. बंटी भी बचपन से अति चालाक था वो शिखा से चिपकाचिपका रहता जिस से सुकुमार उस के पास ना आ पाए. शिखा उसे कभी पसंद नहीं करती, काटने की कोशिश भी करती पर मम्मा बंटी की स्कूल की सहेली होने के नाते इस परिवार और बंटी के लिए कोठी नं. 55 के द्वार सदा चौरस खुले रहते बंटी उस का लाभ उठाता. शिखा उस से बोले ना बोले, उस के साथ खेले ना खेले यहां ही पड़ा रहता. पर शिखा, सुकुमार एकदूसरे के प्रति समर्पितप्राण थे पहले ही दिन से. ग्रैजुएशन से पहले ही उस ने मम्मा से उस का हाथ मांगने का साहस कर डाला उसे कुत्ते की तरह दुत्कार ‘कुंजवन’ से निकाला मम्मा ने सब के सामने और शिखा को भी पता नहीं क्या हो गया मम्मा के सुर में सुर मिला उस ने भी उसे अपमानित तो किया ही साथ ही कड़े शब्दों में कह दिया कि आगे वे अपनी शक्ल उसे कभी ना दिखाए.

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तालमेल: भाग-1

‘‘गोपाल जीजाजी सुनिए,’’ अचानक अपने लिए जीजाजी का संबोधन सुन कर विधुर गोपाल चौंक पड़ा. उस ने मुड़ कर देखा, ऋतु एक सुदर्शन युवक के साथ खड़ी मुसकरा रही थी. चंडीगढ़ में उस के परिवार के साथ गोपाल और उस की पत्नी रचना का दिनरात का उठनाबैठना था.

‘‘अरे, साली साहिबा आप? अरे, शादी कर ली और मुझे बताया तक नहीं?’’

‘‘आप का कोई अतापता होता तो शादी में बुलाती,’’ ऋतु ने शिकायत भरे स्वर में कहा और फिर युवक की ओर मुड़ कर बोली, ‘‘राहुल, यह गोपाल जीजाजी हैं.’’

‘‘मुझे मालूम है. जब पहली बार तुम्हारे घर आया था तो अलबम में इन की कई तसवीरें देखी थीं. पापा ने बताया था कि ये भी कभी परिवार के ही सदस्य थे. दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद भी संपर्क रहा था. फिर पत्नी के आकस्मिक निधन के बाद न जाने कहां गायब हो गए,’’ राहुल बीच ही में बोल उठा.

‘‘रचना के निधन के बाद मनु को अकेले संभालना मुश्किल था, इसलिए उसे देहरादून में एक होस्टल में डाल दिया. यहां से देहरादून नजदीक है, इसलिए अपना ट्रांसफर भी यहीं करवा लिया. अकसर आप लोगों से संपर्क करने की सोचता था, मगर व्यस्तता के चलते टाल जाता था.’’

गोपाल ने जैसे सफाई दी, ‘‘चलो, सामने रेस्तरां में बैठ कर इतमीनान से बातें करते हैं. अकेले रहता हूं, इसलिए घर तो ले जा नहीं सकता.’’

‘‘तो हमारे घर चलिए न जीजाजी,’’ राहुल ने आग्रह किया.

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‘‘तुम्हारे घर जाने और वहां खाना बनने में देर लगेगी और मुझे बहुत भूख लगी है. मैं रेस्तरां में खाना खाने जा रहा हूं, तुम भी मेरे साथ खाना खाओ. अब मुलाकात हो गई है तो घर आनाजाना तो होता ही रहेगा.’’

रेस्तरां में खाना और्डर करने के बाद गोपाल ने ऋतु से उस के परिवार का हालचाल पूछा और फिर राहुल से उस के बारे में. राहुल ने बताया कि वह एक फैक्टरी में इंजीनियर है.

‘‘नया प्लांट लगाने की जिम्मेदारी मुझ पर है, इसलिए बहुत व्यस्त रहता हूं. घर वालों से बहुत कहा था कि फिलहाल मेरे पास घरगृहस्थी के लिए बिलकुल समय नहीं होगा. अत: शादी स्थगित कर दें. मगर कोई माना ही नहीं और उस की सजा भुगतनी पड़ ही है बेचारी ऋतु को. खैर, अब आप मिल गए हैं तो मेरी चिंता दूर हो गई. अब आप इसे संभालिए और मैं अपनी नौकरी को समय देता हूं. अगर मैं यह प्रोजैक्ट समय पर यानी अगले 3 महीने में सफलतापूर्वक पूरा नहीं कर सका तो मेरी यह नौकरी ही नहीं पूरा भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा जीजाजी,’’ राहुल ने बताया.

‘‘दायित्व वाली नौकरी में तो ऐसे तनाव और दबाव रहते ही हैं. खैर, अब साली साहिबा की फिक्र छोड़ कर तुम अपने प्रोजैक्ट पर ध्यान दो और फिलहाल खाने का मजा लो, अच्छा लग रहा है न?’’

‘‘हां, क्या आप रोज यहीं खाना खाते हैं?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘अकसर सुबह नौकरानी नाश्ता और साथ ले जाने के लिए लंच बना देती है, शाम को यहीं कहीं खा लेता हूं.’’

‘‘अब आप इधरउधर नहीं हमारे साथ खाना खाया करेंगे जीजाजी. ऋतु बढि़या खाना बनाती है.’’

‘‘जीजाजी को मालूम है, मैं ने रचना दीदी से ही तो तरहतरह का खाना बनाना सीखा है,’’ ऋतु बोली.

‘‘तब तो तुम्हें जीजा को क्याक्या पसंद है, यह भी मालूम होगा?’’ राहुल ने पूछा, तो ऋतु ने सहमति में सिर हिला दिया.

‘‘तो फिर कल रात का डिनर जीजाजी की पसंद का बनेगा,’’ राहुल ने कहा, ‘‘मना न करिएगा जीजाजी.’’

‘‘जीजाजी को अपने घर का पता तो बताओ,’’ ऋतु बोली.

‘‘आप के पास व्हीकल है न जीजाजी?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘हां, मोटरसाइकिल है.’’

‘‘तो फिर पता क्या बताना तुम घर ही दिखा दो न. मैं यहां से सीधा फैक्टरी के लिए निकल जाता हूं. तुम जीजाजी के साथ घर जाओ, मैं एक राउंड लगा कर आता हूं. तब तक आप लोग बरसों की जमा की हुई बातें कर लेना.’’

‘‘कमाल के आदमी हो यार… कुछ देर पहले मिले अजनबी के भरोसे बीवी को छोड़ कर जा रहे हो.’’

‘‘क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं जीजाजी, ऋतु के घर में आप की भी वही इज्जत है, जो ललित जीजाजी की,’’ राहुल ने उठते हुए कहा.

गोपाल अभिभूत हो गया. ललित ऋतु की बड़ी बहन लतिका का पति था. मोटरसाइकिल पर ऋतु उस से सट कर बैठी. एक अरसे के बाद नारीदेह के स्पर्श से शरीर में एक अजीब सी अनुभूति का एहसास हुआ. लेकिन अगले ही पल उस ने उस एहसास को झटक दिया कि ऐसा सोचना भी राहुल और ऋतु के परिवार के साथ विश्वासघात है. बातों में समय कब बीत गया पता ही नहीं चला. राहुल के लौटने के बाद वह चलने के लिए उठ खड़ा हुआ.

‘‘आप कल जरूर आना जीजाजी,’’ राहुल ने याद दिलाया.

‘कल नहीं, आज शाम

को कहो, 12 बज चुके हैं बरखुरदार. वैसे भी शाम को मुझे औफिस में देर हो जाएगी, इसलिए फिर कभी आऊंगा.’’

‘‘देरसवेर से अपने यहां कुछ फर्क नहीं पड़ता जीजाजी और फिर देर तक काम करने के बाद तो घर का बना खाना ही खाना चाहिए,’’ राहुल ने जोड़ा.

‘‘लेकिन हलका, दावत वाला नहीं,’’ गोपाल ने हथियार डाल दिए.

‘‘हलका यानी दालचावल बना लूंगी, मगर आप को आना जरूर है,’’ ऋतु ठुनकी.

शाम को जब गोपाल ऋतु के घर पहुंचा तो राहुल तब तक नहीं आया था.

‘‘हो सकता है 10 मिनट में आ जाएं और यह भी हो सकता है कि 10 बजे तक भी न आएं… फोन कर बता देती हूं कि आप आ गए हैं,’’ ऋतु ने मोबाइल उठाते हुए कहा.

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‘‘ठीक है, मैं खाना पैक कर देती हूं. आप ड्राइवर को आने के लिए कह दीजिए,’’ कह कर ऋतु ने मोबाइल रख दिया. बोली, ‘‘कहते हैं आने में देर हो जाएगी, ड्राइवर को खाना लाने भेज रहे हैं. आप टीवी देखिए जीजाजी, मैं अभी इन का टिफिन पैक कर के आती हूं.’’

‘‘मुझे फोन दो पूछता हूं कि यह कहां की शराफत है कि मुझे घर बुला कर खुद औफिस

में खाना खा रहा है,’’ गोपाल की बात सुन

कर ऋतु ने नंबर मिला कर मोबाइल उसे पकड़ा दिया.

‘‘आप घर पर हैं, इसलिए मैं भी समय पर घर का खाना खा लूंगा जीजाजी वरना

अकेली ऋतु के पास तो ड्राइवर को घर पर खाना लाने नहीं भेज सकता ना,’’ गोपाल की शिकायत सुन कर राहुल ने कहा, ‘‘आप के साथ ऋतु भी खा लेगी वरना भूखी ही सो जाती है.

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ज़िंदगी-एक पहेली: भाग-3

आइये अब जानते हैं अविरल की आने वाली जिंदगी के बारे में-

अविरल और अनु के फ़ाइनल एक्जाम के रिज़ल्ट काफी अच्छे आए थे . 4th के एक्जाम टॉप करने के बावजूद अविरल खुश नहीं थी. उसकी  खुशी कहीं गुम सी हो गयी थी.वह हर समय उदास रहने लगा. कोई नहीं समझ पा रहा था की अविरल क्यों उदास है पर अनु को अविरल की उदासी का कारण साफ-साफ समझ आ रहा था . अनु उसे समझाती  की भले ही उनके स्कूल अलग-अलग हो पर वो हर कंडिशन में उसके साथ है.वह उसे बहुत  समझाने कि कोशिश करती.  अविरल को थोड़ी देर तो समझ आता लेकिन फिर वो उदास हो जाता. एड्मिशन का टाइम आ चुका था. अनु का एड्मिशन दूसरे स्कूल में हो गया.

अविरल  को आज पहले दिन अकेले स्कूल जाना था. उसका मन भरा हुआ था .अनु भी बहुत उदास थी पर क्या करती . अविरल  अब स्कूल में एकदम शांत हो गया.  बच्चे उसे “ए हकले – ए हकले” कहकर चिढ़ाते लेकिन वह कुछ न बोलता. बस वहाँ से चला जाता. अविरल  स्कूल के दरवाजों की तरफ  बार बार देखता जहां से अनु हर पीरियड के बाद आती थी.

अब वो अपने आपको बहुत अकेला महसूस करने लगा था. अब अविरल का मन पढ़ाई में भी कम लगता था. कुछ दिनो में अविरल  का टूर फिर से जाने वाला था लेकिन इस बार अनु के बिना टूर पर जाने का उसका मन नहीं था. लेकिन माता- पिता और अनु  के समझाने पर वह चला गया.

अविरल को अनु ने समझा-बुझा कर टूर पर तो भेज दिया लेकिन कहीं न कहीं उसका मन बहुत बेचैन होने लगा था. उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था .वो रात दिन उसका इंतज़ार करती थी.

और हाँ यह बात 1995 कि है जब फोन नहीं हुआ करते थे. टूर में बच्चों ने अविरल  का खूब मज़ाक बनाया. यहाँ तक की  उसका सूटकेस भी  तोड़ दिया. वह रोने लगा . वह जल्दी से घर पहुँचने कि राह देखने लगा. यहाँ अनु भी अविरल  कि जगह तकिया लगाकर सोती. उसने खेलने कि जगहों पर कई बार लिखा-“भैया कब आओगे, जल्दी आओ न”.

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10 दिनों बाद अविरल  वापस आ गया. समय बीतने लगा. माता पिता को लगता था कि अविरल  का हकलापन समय के साथ ठीक हो जाएगा लेकिन अब अविरल  डिप्रेशन में जाने लगा था. वह लोगों से दूर रहने लगा. कुछ समय बाद उसकी दोस्ती अमित से हो गयी. अमित की दोस्ती ने अविरल को एक सहारा तो दिया लेकिन कहीं न कहीं उसकी पढ़ाई पर असर भी डाला . 5th क्लास का रिज़ल्ट कुछ खास अच्छा नहीं आया. दो तीन साल और बीत गए. अब अविरल  के स्कूल में भी कोएड एडुकेशन स्टार्ट हो गयी.

अमित की चचेरी बहन पल्लवी  और उसकी दोस्त सुमि का एड्मिशन भी उसी स्कूल में हो गया. अमित, अविरल  और पल्लवी तीनों अच्छे दोस्त बन गए और बाद में पल्लवी की दोस्त सुमि भी अविरल  से बात करने लगी. इनमे से कोई भी कभी अविरल  का मज़ाक नहीं बनाता था. सभी उससे बोलते थे कि जब तुम्हें आन्सर आता है तो तुम क्लास में बताते क्यूँ नहीं. अविरल  कुछ नहीं बोलता था. अविरल  के दोस्तों को अविरल  का भोलापन देखकर बहुत दुख होता.

अविरल को दोस्त तो मिल गए थे लेकिन उसकी कमी उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी. जब वह औरों से अपनी तुलना करता तब वह अपने हकलापन को अपनी सबसे बड़ी कमी समझता . उसका रिज़ल्ट भी साल दर साल खराब होता चला गया. अविरल  सुमि को अपनी दूसरी बहन मानने लगा था जो कि स्कूल में हमेशा उसके साथ रहती. वो अनु की तरह ही अविरल  को समझाती और उसकी बात सुनती थी. देखते ही  देखते 10th  का रिज़ल्ट भी  आ गया. अविरल  का रिज़ल्ट बहुत खराब आया. अविरल  के माता पिता बहुत गुस्सा हुए लेकिन अनु ने सबको समझा लिया.

अब अविरल  को लगने लगा कि वो न ढंग से  बोल पाता है, न पढ़ाई में अच्छा है तो उसका मर जाना ही अच्छा है. उसने कई बार सुसाइड करने की कोशिश की लेकिन अनु का रोता हुआ चेहरा याद आता और वह रुक जाता.

10th के बाद अविरल  का एड्मिशन दूसरे कॉलेज में हो गया. वहाँ भी लड़के उसे चिढ़ाते थे ।अब अविरल को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा था . एक बार तो वह जाकर लड़कों से भिड़ गया जहां उसे काफी चोटें भी आई. जब घरवालों ने उससे चोट के बारें में पूछा तो उसने बहाना बनाकर बात टाल दी.

लेकिन हर बार की इन्सल्ट उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी . एक दिन वह अपने  चचेरे भाई आसू के पास गया जो की लड़ाई झगड़े में लगा रहता था. उसने सारी बातें आसू को बताई ।अगले दिन अविरल और आसू कुछ लड़कों के साथ गए और जो अविरल को चिढ़ाते थे उनसे खूब मारपीट की. आज अविरल  बहुत खुश था. धीरे- धीरे अविरल  गलत संगत में पड़ने लगा. उसे यह सब अच्छा लगने लगा .अनु काफी हद तक उसे समझा कर रखती. लेकिन अविरल अब बड़ा हो रहा था उसे अपने आगे किसी की बात समझ नहीं आती थी.

अविरल  ने एक बार आसू  को बताया कि उसकी क्लास में एक लड़की (सुमि) है जिसे वह अपनी बहन मानता है उसे कुछ लड़के घर आते- जाते  परेशान करते हैं. अगले दिन अविरल  और आसू  कुछ लड़कों के साथ सुमि  के पीछे- पीछे चलने लगे. जैसे ही कुछ लड़के सुमि को परेशान करने आए, आसू अपने दोस्तों के साथ वहाँ लड़ने पहुँच गया. उसके बाद वो लड़के कभी सुमि  को परेशान करने नहीं आए.

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आसू  मन ही मन सुमि  से प्यार करने लगा. लेकिन सुमि  उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी. वह अविरल  से भी कहती कि आसू  से अलग रहे, लेकिन अविरल  नहीं मानता. आसू  ने 1 बार राश्ते में सुमि  को प्रपोज़ किया लेकिन सुमि  ने डांटते हुए कहा कि “मैं तुमसे नफरत करती हूँ, अगली बार मेरे पास मत आना”.

आसू दुखी होकर घर लौट गया.

अगले भाग में हम जानेंगे कि क्या सुमि आसू  को पसंद करेगी और क्या अविरल  उनकी हेल्प करेगा?

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-3)

पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-2)

इस बार जानकीदास चौंके, ‘‘क्या कह रही है? यह शादी तो तेरी मां ही तय कर के गई है.’’

‘‘4 वर्ष पहले मुंह की बात थी बस. 4 वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है…’’

उन्होंने हैरानी के साथ पोती को देखा, ‘‘पर तू तो बंटी को पसंद करती है.’’

‘‘मैं बंटी को पसंद करती हूं यह तो नई खबर है? किस ने खबर दी आप को?’’

वो थोड़ा सकपका गए, ‘‘नहीं…वो इतना हैंडसम और स्मार्ट है. तू पार्टी पिकनिक क्लब में भी उस के साथ जाती है तो…’’

‘‘तो उस का मतलब मैं उसे पसंद करती हूं. ना दादू वो स्मार्ट नहीं सियार की तरह धूर्त है और हैंडसम तो धतूरे का फूल भी सुंदर लगता है पर है विषैला. रही उस के साथ पार्टी पिकनिक की बात तो दादू आप की मालकिन बहू ने इस घर के दरवाजे उस नालायक के लिए सपाट खोल रखे थे बंद करने में थोड़ा समय तो लगेगा. उसी समय की प्रतीक्षा है मुझे.’’

जानकीदास के मुख पर स्वरित की रेखाएं उभर आईं, ‘‘आज बहुत काम है मैं जल्दी निकल जाऊंगा तुम आराम से आना बेटी.’’

‘‘ठीक है. लंच टाइम में मिलेंगे.’’

बातों के भी पर होते हैं. जानकीदास ने ठीक ही कहा था. जो उड़ती चिडि़या पकड़ना जानते हैं वो पकड़ भी लेते हैं. थोड़ा लेट पहुंची शिखा. दादू आ गए थे तो चिंता नहीं थी. दादू वास्तव में ढाल की तरह सदा पोती के सिर पर छाया रखते हैं फिर भी मां के छोड़े बिजनैस को शिखा ने मजबूत हाथों से संभाला. डगमगाना तो दूर और भी फलाफूला. असल में शिखा ने भी अपने सामने आने वाले लंबे जीवन का एकमात्र सहारा इस बिजनैस को ही मान लिया है. उस के जीवन के सारे सुंदर और मधुर भावनाओं को तो उस की मां ही कुचल कर चली गईं और जातेजाते एक वायरस से चिपका गई जिस का नाम है ‘बंटी’. वो कहते हैं न कि शैतान का नाम लो तो शैतान हाजिर वही हुआ. सामने पड़ी फाइल को छूआ भी नहीं था शिखा ने कि दनदनाता अंदर आया ‘बंटी’. सामने की कुरसी खींच बैठ गया. मम्मा का सिर चढ़ाया ‘कुंजवन’ और ‘सोनी कंपनी’ के आफिस को अपनी बपौती समझता है. किसी प्रकार की औपचारिकता की परवा उसे नहीं शिखा का सिर तक जल उठा क्रोध से. उस के माथे पर बल पड़ गए. कठोर शब्दों में कहा, ‘‘यह औफिस है, यहां कुछ फौरमेलिटियों का पालन करना पड़ता है.’’ इस तरह एकदम मेरे कमरे में मत चले आया करो.

मुंह बनाया बंटी ने, ‘‘फौरमेलिटि, माई फुट… मिजाज खट्टा मत करो मेरा. आया हूं एक नेक काम के लिए…’’

मिजाज खट्टा तो शिखा का ही हो गया था बंटी को देखते ही. उस ने कड़वे स्वर में कहा, ‘‘रिएली, क्या है तुम्हारा नेक काम?’’

‘‘तुम को कौंग्रेचूलेट करना…’’

‘‘किस बात के लिए?’’

‘‘अरे वाह, विदेशी कंपनी से गठबंधन, करोड़ों का कौंट्रैक्ट क्या कम खुशी की बात है?’’

वास्तव में बातों के पर होते हैं अब शिखा को खोजना पड़ेगा अपने खास स्टाफों में वो कौन है जिसे बंटी ने खरीदा है. ऊपर से शांत रही.

‘‘बिजनैस में कौंटै्रक्ट और गठबंधन तो होते ही रहते हैं तुम्हारा भी तो बिजनैस है, यह बात तो जानते ही होंगे.’’

‘‘जानता हूं पर इतनी बड़ी डील यही बड़ी बात है. बधाई भी उसी के लिए.’’

‘‘तुम तो व्यापारी परिवार के बेटे हो मेरी ही तरह, तो यह भी जानते होंगे कि देशी हो या विदेशी, छोटी हो या बड़ी डील ही हमारी रोजीरोटी है. उस पर उछलने वाली कोई बात नहीं होती. फिर भी धन्यवाद चल कर आ कर बधाई देने के लिए.’’

‘‘अरे तुम तो सचमुच गुस्से में हो. स्वीटहार्ट, तुम समझ क्यों नहीं पातीं कि मैं तुम से मिलने का बहाना खोजता फिरता हूं, बिना मिले चैन नहीं पड़ता.’’

इसे नहीं काटा तो यह दिमाग चाटेगा. आज बहुत काम करना है उसे. शिखा ने फाइल हटा सीधे बंटी की तरफ देखा, ‘‘नहीं जानती थी. जो भी हो, आज तो मेरे दर्शन हो गए बधाई भी दे दी. अब कट लो बहुत काम है मुझे.’’

‘‘मेरे कटने की बात मत करो कट तो तुम रही हो.’’

‘‘समझते हो तो अच्छी बात है.’’

‘‘हां,’’ बंटी का स्वर नरम पड़ गया, ‘‘देखो, हमारा संबंध तो जुड़ ही गया है तो कटनाकाटना क्यों?’’

‘‘संबंध कोई नहीं जुड़ा. मम्मा उल्टासीधा क्या बक गई विलायती शराब के नशे में, वो मेरे हाथ की लकीर नहीं बन सकती.’’

‘‘मुझे बहुत काम है. इस समय बकवास अच्छी नहीं लग रही.’’

‘‘ठीक है ठीक है. अभी चला जाऊंगा. जो कहने आया था…आज शाम 6 बजे तैयार रहना मैं तुम को उठा लूंगा. एक पार्टी है.’’

माथे पर बल पड़ गए शिखा के.

‘‘मेरे पास न निमंत्रण है न कोई खबर मैं क्यों जाऊंगी.’’

‘‘अरे मैं कहने ही तो आया था. मेरा दोस्त विवेक है न, उस का ‘गुड़गांव’ में एक फार्म हाऊस है वहां ही वो पार्टी दे रहा है.’’

‘‘विवेक…वो भ्रष्ट मंत्री का बेटा? यह फार्म हाऊस भी तो घूस में कमाया हुआ है. किसी उद्योगपति ने दिया है और शराब पी कर गाड़ी चला कर उस ने तीन गरीबों की हत्या भी की जिस की जगह फांसी का तखता होना चाहिए वो फार्म हाऊस पार्टी दे रहा है, अति महान देश है हमारा.’’ सहम गया बंटी. शिखा को इतना कड़वा बोलते पहले कभी नहीं सुना. क्या बड़ी डील होने से मिजाज आसमान पर जा बैठा है लड़की का. जो भी हो इस समय उस के व्यापार की दशा अब डूबे या तब डूबे है. शिखा वो मजबूत किनारा है जो खींच कर उसे डूबने से बचा सकती है. शादी हो जाती तो सोनी कंपनी उस की मुट्ठी में होती पर अब तो नरमाई से ही काम लेना पड़ेगा.

‘‘अरे उस से तुम को क्या लेनादेना. पार्टी इनजौए करेंगे और चले जाएंगे बस. मैं तो साथ हूं ना…?’’

‘‘तुम…तुम दूध के धुले हो…नहीं पता था और लेनादेना तो बहुत है मानवता के नाते.’’

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अंदर ही अंदर जल कर भी बंटी चुप रहा. शिखा की सहायता इस समय उसे बहुत जरूरी है. उठ खड़ा हुआ. ‘‘चलती तो अच्छा लगता. सब की गर्लफ्रैंड आ रही हैं.’’ आग लग गई शिखा को.

‘‘सुनो बंटी सावधान कर रही हूं आगे से मुझे गर्लफ्रैंड कहने की भूल या साहस मत करना. हम दो परिचित परिवार के हैं बस और कुछ नहीं.’’

‘‘पर…हमारा रिश्ता…?’’

‘‘अभी तक तो कुछ भी नहीं. बाए…’’

उस ने फिर फाइल खींच ली.

थोड़ी देर से जागी शिखा, बाथरूम से फ्रेश हो नीचे उतरी. सदा की तरह नाश्ते की मेज पर जानकीदास पहले से विराजमान. नहाधो तरोताजा, आकर्षक व्यक्तित्त्व, पापा के प्रतिरूप. रसोई से कचौड़ी की सुगंध आ रही थी.

‘‘गुड मौर्निंग दादू.’’

‘‘वेरी गुड मौर्निंग बेबी.’’

वो हंसी, ‘‘दादू एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो…’’

‘‘आप फिल्म लाइन में क्यों नहीं गए?’’

‘‘गया तो था.’’

‘‘हैं…यह तो पता नहीं था.’’

‘‘बात जरा सिके्रट है.’’

‘‘लाइन से हीरो के रोल मिल गए तो उस समय के सारे हीरो हाथ जोड़ खड़े हो गए मेरे सामने आ कर. उन में दिलीप, देवानंद भी थे. लगे रोने कि तू हमारी रोजीरोटी मारने इस लाइन में क्यों चला आया? भईया, कुछ और काम कर ले. तरस आ गया तो छोड़ कर आ गया.’’

लच्छो मौसी थालभर कचौड़ी लाई थी वो भी हंस पड़ी. शिखा तो लोटपोट हो रही थी. मन एकदम हलका हो गया. दादू ना होते तो शिखा तनाव में घुटघुट कर मर ही जाती. मां ने बेटी के लिए बस एक यही अच्छा काम किया है नहीं तो सर्वनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जानकीदास ने कचौड़ी उठाने को ज्यों ही हाथ उठाया त्यों ही लच्छो ने थाल हटा लिया.

‘‘बाबूजी, आप का दलिया अभी लाई.’’

‘‘क्या? दलिया…कौन खाएगा दलिया.’’

गुस्से में लाल हो गए वो. आराम से कचौड़ी चबाती शिखा बोली, ‘‘आप खाएंगे…यह सब आप के सेहत के लिए ठीक नहीं.’’

‘‘मुझे खाना ही नहीं है.’’

वे उठने लगे तो शिखा ने रोका, ‘‘अरे अरे…बैठिए…मौसी दादू को कचौड़ी दो पर गिन कर दो कचौड़ी बस.’’

जानकीदास खा तो रहे थे पर चिंता में थे. शिखा ने पूछा, ‘‘दादू, क्या सोच रहे हैं.’’

‘‘यही कि डील होते ही मेहता परिवार को पता कैसे चला?’’

‘‘घर का भेदी लंका ढावे.’’

‘‘पर यह भेदी कौन हो सकता है इस का पता तो लगाना ही पड़ेगा नहीं तो पूरी लंका ढह जाएगी.’’

‘‘डील का पता किसकिस को था?’’

‘‘ब्रजेशबाबू तो एकाउंटेंट हैं उन को तो पता होगा ही.’’

‘‘ना ना वो सब से पुराने और अति ईमानदार हैं. और कोई.’’

‘‘देख कोई भी काम हो कागजपत्तर बनवाने हो तो दोतीन जनों की मदद चाहिए ही.’’

‘‘तो इन दोतीनों में ही खोजना होगा.’’

‘‘काम कठिन है पर करना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘एक बात और है, लंदन की एक कंपनी से प्रस्ताव आया है. यह भी बड़ी डील है.’’

‘‘ले पाएंगे?’’

‘‘उस में अभी समय है. पहले इस काम को पूरा कर लें. काम अभी शुरू करना है. मैं ने कई टेंडर मांगे थे आ गए हैं तीन चार, आज मैं बैठता हूं लंच के बाद तेरे साथ कम से कम दो को चुन कर काम शुरू करवाना है. समय बहुत ज्यादा नहीं है हमारे पास.’’

‘‘दादू, एक बात का ध्यान रखना, क्वालिटी क्लास होनी चाहिए. हफ्ता दसदिन समय बढ़ाना भी पड़े तो कोई बात नहीं पर क्वालिटी से कोई समझौता नहीं.’’

‘‘वो तो है ही.’’

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ज़िन्दगी –एक पहेली:  भाग 2

अविरल अब 7 साल का हो चुका था और स्कूल भी जाता था. अविरल बहुत होशियार था . वह स्कूल में हमेशा पहले नंबर पे रहता था चाहे वह पढ़ाई हो या खेल. लेकिन वह स्वभाव से बहुत संकोची था. वह बहुत कम बोलता था. शायद इसका एक  कारण यह भी था कि जब वह बोलता था तो लोग उसका मज़ाक बनाते थे क्योंकि  वह हकलाता था. लोग उसे हकला- हकला कहकर चिढ़ाने लगते थे . यहाँ तक की अविरल के कुछ रिश्तेदार भी उसका मज़ाक बनाने से पीछे नहीं हटते थे. वो अक्सर उसे हक्कू कहकर बुलाते थे.

अविरल  के दिमाग में इसका गहरा असर पड़ने लगा. अविरल  के माता पिता भी थोड़ा परेशान हुए लेकिन उन्होने सोचा कि जैसे- जैसे अविरल  बड़ा होगा, सब ठीक हो जाएगा. अविरल के माता पिता हमेशा उसे समझाते कि सब ठीक हो जाएगा. अवि के पास लोग आते तो थे, उससे  बात भी करते थे लेकिन केवल उसका मज़ाक बनाने के लिए. अवि अब लोगो के पास जाने से डरने लगा था.

अविरल हर किसी से अपनी परेशानी बताने में डरता था .यहाँ तक की वो अपने माता-पिता से भी अपने दिल की बात नहीं कह पाता  था. एक उसकी बहन ही तो थी जिससे वो अपने मन की सारी बाते कह पाता था.उसके लिए   उसकी बहन अनु ही उसकी पूरी दुनिया बन गयी थी.

अविरल  हमेशा दुखी होकर अनु से बोलता कि दीदी मै औरों की तरह क्यों नहीं हूँ ? भगवान जी ने ऐसा क्यों किया?  वह उसे समझाती, कि मेरा भाई सबसे अच्छा है. वह अविरल को उसकी  अच्छाइयाँ बताती और बोलती कि जो मेरे भाई का मज़ाक बनाते हैं न एक  दिन मेरा भाई उन सभी से हजारों कदम आगे निकलेगा और ये लोग मुंह  देखते रह जाएंगे. अविरल  खुश हो जाता और फिर दोनों भाई बहन अपनी छोटी सी दुनिया में मशगूल हो जाते. अनु अविरल को समझा तो देती पर मन ही मन वो बहुत दुखी होती. वो बाद में  उन लोगों के पास जाती जो अविरल को चिढाते थे और उनसे झगड़ा करती लेकिन इससे कोई फायदा नहीं हुआ.

कुछ सालों बाद  अविरल  के पापा ने अपना बिज़नेस देहरादून  में सेट अप किया जिससे कि बच्चों की और अच्छे से पढ़ाई-लिखाई  हो पाये.  दोनों का एड्मिशन एक जाने माने स्कूल में करा दिया गया. अनु तो तुरंत स्कूल में घुल मिल गयी लेकिन अविरल  स्कूल जाने में डरने लगा. जब भी वह स्कूल जाता, बहुत रोता. अनु उसे अपने साथ स्कूल ले जाती और अपने साथ ही बिठाये रहती. अविरल  की मम्मी  ने भी टीचर से request की  कि कुछ दिन अविरल  को अनु के साथ ही बैठने दे. अनु लगातार अविरल  को समझाती रहती जिससे कुछ समय बाद अविरल  अपनी क्लास में बैठने लगा.

लेकिन यहाँ भी अविरल  कि समस्या आगे आ गयी. अविरल  के हकलाने पर सारे बच्चे ज़ोर से हँसते. कुछ  टीचर्स  भी अविरल  के हकलाने पर हँसते और बार बार उससे ही question  पूछते . अब अविरल  ने क्लास में answer  करना ही बंद कर दिया, जिससे उसे हमेशा punish  किया जाता. अविरल  बहन को परेशान देखकर उससे यह बातें छुपाने लगा  और रोज़  पनिशमेंट सहने लगा.

लेकिन अविरल  हमेशा exam में टॉप करता. स्कूल की  प्रिन्सिपल अविरल  को बहुत पसंद करती थी. उन्होंने  अविरल  को अपने पास बुलाया  और प्यार करते हुए बोली  की  इतने सुंदर और होनहार बच्चे को ये कमी क्यूँ हो गयी.

एक बार अनु की एक सहेली ने अविरल को अपने पास बुलाकर उससे कहा की तुम मुझे ज़रा अपनी tongue दिखाओ. उसने अविरल की tongue देखी  और बोली  की तुम्हारी tongue  ज्यादा जुड़ी है. जिसकी वजह से ये problem है. अविरल ने यह बात अपने पापा से बताई और बोला की इसे नीचे से काट दो. लेकिन पापा ने समझाया की,”नहीं बेटा ऐसा कुछ भी नहीं है ,ऐसा कभी सोचना भी मत”. अविरल उस समय तो ये बात  समझ गया. लेकिन अनु की सहेली की बात उसके दिमाग में बस गयी थी.

अविरल  अब 4th क्लास में आ चुका था. उसके स्कूल का 1 टूर जाना था जिसमे भाई बहन दोनों शामिल हुए. सभी क्लास के अलग ग्रुप थे ,लेकिन अनु ने टीचर्स से request करके  अविरल  को अपने ग्रुप में रखा. टूर में अनु उसे अपने साथ रखती. भाई बहन का ऐसा प्यार देखकर सभी की आँखों में आँसू आ जाते.

अविरल  अब फिर से परेशान रहने लगा क्यूँ की उसकी बहन 5 स्टैंडर्ड में थी और स्कूल 5 के बाद coed  नहीं था. अनु को अब अलग स्कूल में जाना था. अविरल ये सोच- सोच कर  अकेले में रोता रहता. अनु भी बहुत दुखी थी लेकिन अब भाई बहन को थोड़ा अलग होना ही था.

अगले भाग में जानेंगे की अविरल आगे की चुनौतियों का कैसे सामना करता है?

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