Crime Hindi Story: पूंजी- क्या था दुलारी का फैसला

Crime Hindi Story: महामारी तो पिछले साल से ही कहर बरपा रही है, लेकिन तब के घोषित लौकडाउन और इस साल के अघोषित लौकडाउन में बहुत फर्क है. पिछले साल सरकार और दूसरी स्वयंसेवी संस्थाएं जरूरतमंदों की मदद के लिए खूब आगे आ रही थीं. मालिक भी अपने मुलाजिमों के काम पर न आने के बावजूद उन्हें तनख्वाह दे रहे थे. चाहे वह सामाजिक दबाव के चलते ही रहा होगा, लेकिन भूख से मरने की नौबत तो कम से कम नहीं आई थी. पर इस साल तो जान बचाना ही भारी लग रहा है.

क्या किया जाए? न अंटी में पैसा, न गांठ में धेला. रोज कमानेखाने वालों के पास जमापूंजी भी कहां होती है. सरकार जनधन जैसी योजनाओं की कामयाबी के लाख दावे करे, लेकिन जमीनी हकीकत से तो भुक्तभोगी ही वाकिफ होगा न. बैंक में खाता खोल देनेभर से रुपया जमा नहीं हो जाता.

रोज सुबह एकएक अंगुल खाली होते जा रहे आटे के कनस्तर को देखती दुलारी मन ही मन अंदाजा लगाती जा रही थी कि कितने दिन और वह अपनी जद्दोजेहद को जारी रख सकती है. जिस दिन कनस्तर का पेंदा बोल जाएगा, उस दिन उसे भी सब सोचविचार छोड़ कर वही रास्ता अपनाना पड़ेगा, जिस पर वह अभी तक विचार करने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाई है.

दुलारी के होश संभालते ही मां ने मन की जमीन पर संस्कारों के बीज डालने शुरू कर दिए थे, जो उम्र के साथसाथ अब पेड़ की माफिक अपनी पक्की जड़ें जमा चुके हैं. पेड़ों को जड़ से उखाड़ना आसान है क्या?

‘हम गरीबों के पास यही एक पूंजी है छोरी और वह है हमारी इज्जत. आंखों का पानी खत्म तो सम झ सब खत्म…’ मां के दिए ऐसे संस्कार दुलारी का पीछा ही नहीं छोड़ते. लेकिन बेचारी मां को क्या पता था कि इस तरह की कोई महामारी भी आ सकती है, जिस की आंधी में उस के लगाए संस्कारों के पेड़ सूखे पत्ते से उड़ जाएंगे.

एक तरफ सरकार कहती है कि लौकडाउन लगाना सही नहीं है, वहीं दूसरी तरफ लोगों से गुजारिश भी करती है कि घर में रहो, बाहरी लोगों से कम से कम मेलजोल रखो. यह दोहरी नीति ही तो जान पर भारी पड़ रही है.

पिछली दफा किसी तरह मरतेबचते गांव वापस गए थे, लेकिन वहां भी क्या मिला? वैसे, कुसूर गांवों का भी नहीं. वहां अगर मजदूरी होती तो लोग शहरों की तरफ भागते ही क्यों? शहर कम से कम भूखा तो नहीं सुलाता था.

जल्दी ही गांव का चश्मा दुलारी की आंखों से उतर गया था. उधर वापस जब सब सामान्य होने लगा, तो सब से पहले उसी ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा था. कितनी मुश्किल से लोगों को भरोसा दिलाया था कि वह ठीक है. अभी कुछ घरों में नियमित काम मिला ही था कि फिर से वही डर के साए.

जब से साहब लोगों के घरों में फिर से लौकडाउन लगने की सुगबुगाहट सुनी है, तब से दुलारी का जी उठाउठा का जा रहा है. काम करते समय हाथ यहां रसोई में और कान वहां टैलीविजन की खबरों पर लगे हुए हैं.

टैलीविजन पर कैसे लोग चिल्लाचिल्ला कर बहस करते हैं. उस के लिए तो अब ये बातें बिलकुल बेमानी हैं कि इन हालात में आने के लिए कौन जिम्मेदार है. किस की कहां चूक थी या किन लापरवाहियों के चलते हालात इतने बिगड़े हैं. अब वह बड़ी सरकार तो है नहीं कि सरकार के फैसले को चुनौती दे. वह तो भेड़ है, जिसे मालिक की हांक के इशारे पर ही चलना पड़ेगा.

शाम को दुलारी घर आई तो मां की आंखों में भी खौफ दिखा. उन्हें भी शायद किसी ने टैलीविजन की खबरों के बारे में बता दिया होगा. मां ने आंखों में सवाल भर कर उस की तरफ देखा तो वह आंखें बचाती हुई रसोई की तरफ मुड़ गई.

अनजाने डर से घिरी दुलारी ने घर के सारे कोने तलाश कर लिए. बामुश्किल 500 रुपए ही निकले. इतने से क्या होगा. कितने दिन प्राणों को शरीर में रोक पाएगी. और फिर वह अकेली कहां है… उस के साथ 2 प्राणी और भी तो जुड़े हैं. एक बूढ़ी मां और दूसरा अपाहिज छोटा भाई.

रातभर दुलारी के मन में उमड़घुमड़ चलती रही, ‘काश, मेरे पास भी कुछ पूंजी होती तो आज यों परेशानी में जागरण नहीं कर रही होती.’

दुलारी ने करवट बदलते हुए ठंडी सांस भरी. तभी पूंजी के नाम से मां की बात याद आ गई, ‘गरीब के पास यही तो एक पूंजी होती है छोरी…’

अपनी पूंजी का खयाल आते ही दुलारी पसीने से भीग गई. कपूर साहब की आंखें उसे अपने शरीर से चिपकी हुई महसूस होने लगीं. उस ने अपना दुपट्टा कस कर अपने चारों तरफ लपेट लिया.

‘ऐसी ही किसी आपदाविपदा के लिए तो पूंजी बचाई जाती है. किसी के पास रुपयापैसा, किसी के पास जमीनजायदाद, तो किसी के पास गहनाअंगूठी. तेरे पास तो यही पूंजी है,’ मन में छिपे कुमन ने दुलारी को उकसाया.

दुलारी कसमसाई और अपने कुमन को पीछे धकेल दिया. उस की धकेल में शायद ज्यादा ताकत नहीं थी. कुमन बेशर्मी से दांत फाड़े फिर से उठ खड़ा हुआ.

‘अरी, इस में गलत क्या है? मुसीबत में काम न आए वह कैसी पूंजी? तेरे पास कोई दूसरा रास्ता है तो वह कर ले, लेकिन अपनी और अपने परिवार की जान बचाना तेरा फर्ज है कि नहीं? जब जान ही न बचेगी तो मान बचा कर क्या करेगी,’ कुमन ने दुलारी को हकीकत दिखाने की कोशिश की.

‘ठीक ही तो कहता है बैरी. मैं खुदकुशी कर भी लूं, लेकिन इन दोनों की हत्या का पाप कैसे अपने सिर ले सकती हूं…’ मन पर कुमन हावी होने लगा और आखिरकार उस की जीत हुई.

दुलारी ने कपूर साहब के पास अपनी पूंजी गिरवी रखने का फैसला कर लिया. मन किसी फैसले पर पहुंचा तो नींद भी आ गई.

आज सुबह वही हुआ, जिस का डर था. सालभर पहले जहां से चले थे, वापस वहीं आ गए. सरकार ने प्रदेशभर में सख्त कर्फ्यू लगाने के आदेश जारी कर दिए थे. दुलारी के आंखकान फोन पर लगे थे. अभी मेमसाहब लोग के काम पर न आने के फोन आने शुरू हो जाएंगे. वह अनमनी सी अपने दैनिक काम निबटा रही थी.

‘फोन नहीं बजा. कहीं बंद तो नहीं पड़ा…’ दुलारी ने फोन उठा कर देखा. फोन चालू था. समय देखा तो 8 बजने वाले थे. एक भीतरी खुशी हुई कि शायद अपनी पूंजी गिरवी न रखनी पड़े.

‘8 बजे वर्मा साहब के घर पहुंचना होता है…’ सोचते हुए दुलारी ने रात की रखी ठंडी रोटी चाय के साथ निगली और मास्क लगा, दुपट्टे से अपना चेहरा ढकते हुए दरवाजे की तरफ लपकी, पर दरवाजे से निकल कर मेन सड़क तक आतेआते मोबाइल की घंटी बज गई.

‘सुनो, अभी कुछ दिन तुम रहने दो. थोड़ा नौर्मल हो जाएगा, तब मैं खुद तुम्हें फोन करूंगी…’ फोन उठाने के साथ ही मिसेज वर्मा ने कहा और बिना दुलारी की नमस्ते का जवाब दिए ही खट से फोन काट दिया, मानो कोरोना का वायरस मोबाइल फोन से फैल रहा हो.

दुलारी एक फीकी सी हंसी हंस कर वापस मुड़ गई. एक बार फिर से अपनी पूंजी को गिरवी रखने की सलाह कुमन देने लगा था.

‘‘ले, अखबार पढ़ ले. लोग तो अखबार से ऐसे डर रहे हैं मानो उन के घर में साक्षात मौत आ रही हो…’’ अखबार बेचने वाला राजू अपनी साइकिल पर बिना बिके अखबारों का बंडल लटकाए भारी कदमों से धीरेधीरे पैडल मारता दुलारी के पास से निकला, तो 2-3 प्रतियां उस के हाथ में थमा गया.

कर्फ्यू में क्या खुला क्या बंद रहेगा की सूची अखबार के पहले पन्ने पर ही लिखी थी… आखिरी लाइन पर आतेआते उस की नजर ठिठक गई. लिखा था, ‘मजदूरों के पलायन को रोकने की खातिर सरकार ने निर्माण कार्य जारी रखने का फैसला किया है…’

यह पढ़ते ही दुलारी की आंखों की बु झती रोशनी फिर से टिमटिमाने लगी.

‘‘नहीं करना घरघर जा कर कपड़ेबरतन. जब तक शरीर में जान है, ईंटगारा ढो लूंगी. दोनों टाइम सब्जीदाल न सही, 3 प्राणियों को चायरोटी का टोटा तो नहीं पड़ने दूंगी,’’ खुद से कह कर दुलारी ने अखबार समेटा और काख में दबाते हुए मुसकरा दी. आज अचानक ही उसे अपने कंधे बहुत मजबूत महसूस होने लगे थे. Crime Hindi Story

Age is Just a Number: लड़कियां क्यों ढूंढती हैं खुद से छोटा पति?

Age is Just a Number: एक समय था जब पति की उम्र पत्नी से ज्यादा होती थी कई बार बहुत ज्यादा भी होती थी. फिर भी उनकी शादी न सिर्फ हो जाती थी बल्कि टिक अर्थात निभ भी जाती थी. इसके पीछे की सबसे बड़ी खास वजह यह थी , पति पैसा कमाने वाला और घर चलाने वाला इकलौता सदस्य होता था, और पत्नी का काम घर में रहकर पूरे परिवार की सेवा करना और बच्चों का पालन पोषण करना होता था. क्योंकि पति अपनी पत्नी और परिवार का हर तरह से ख्याल रखता था तो बीवी को घर से बाहर जाकर पैसा नहीं कमाना पड़ता था.

इसलिए पत्नी पति की हर बात मानती थी  और उम्र और बाकी चीजों का ख्याल ना करके अपनी पूरी जिंदगी परिवार और पति के लिए गुजार देती थी , क्योंकि पहले के मां-बाप भी अपनी बेटियों को ससुराल में एडजस्ट करने की शिक्षा देते थे यह कहकर कि पिता के घर से बेटी की डोली उठती है और पति के घर से अर्थी … अर्थात मरते दम तक पति का साथ मत छोड़ना, इसी धारणा के साथ जीते हुए चाहे कितने ही तकलीफों में पत्नी को रहना पड़े वह अपनी पूरी जिंदगी घर परिवार की सेवा में निकाल देती थी. लेकिन जैसे-जैसे समय बदला लोगों के विचार भी बदले मां बाप बेटियों को ससुराल में जबरदस्ती एडजस्ट करने के बजाय पढ़ा लिखा कर स्वावलंबी बनाने के लिए ज्यादा ध्यान देने लगे ताकि लड़कियां पढ़ लिखकर इतना पैसा कमा ले जिसमें उनका समाज में ही नहीं ससुराल में भी मान सम्मान हो, आज के समय में माता-पिता बेटी को आत्मनिर्भर और आर्थिक रूप से मजबूत देखना चाहते हैं जिसके चलते दिमागी तौर पर मजबूत  और टैलेंटेड लड़कियां इतनी ज्यादा आत्मनिर्भर हो गई कि वह लड़कों से भी ज्यादा कमाने लगी .

ऑटो रिक्शा चलाने से लेकर हवाई जहाज चलाने तक, औरतें हर क्षेत्र में आगे हैं , आज के समय में हालात यह है की लड़कियां अपने पूरे घर का खर्च अकेले चलाने की ताकत रखती है. और मां-बाप भी अपनी बेटी पर गर्व करते हैं. ऐसी लड़कियों के लिए शादी सिर्फ एक समझौता या रिवाज नहीं है बल्कि वह शादी में सुरक्षा और संतुष्टि की भी कामना करती हैं जिसके चलते कई लड़कियां जो पूरी तरह आत्मनिर्भर है वह ऐसे लड़कों से शादी करना चाहती हैं जो उनसे प्यार करने वाला हो उनका सम्मान करने वाला हो और पति से ज्यादा एक अच्छा दोस्त हो यह सारी खूबियां जब लड़कियों को अपनी से छोटी उम्र के लड़के में भी दिखती हैं तो वह उनसे शादी करने में जरा भी हिचकिचाती नहीं है,  बल्कि उम्र में बड़ी और सफल लड़कियां ऐसे लड़कों को अपना जीवन साथी बनाना ज्यादा पसंद करती हैं जो उनको प्यार और सम्मान देता हो दोस्त की तरह सलाह भी देता हो, कई बार ऐसे लड़के जो उम्र में कम है लेकिन पूरी तरह से सेटल नहीं है जिंदगी में कामयाब होने के लिए संघर्ष कर रहे हैं ऐसे कम उम्र के पति को बड़ी उम्र की लड़कियां बतौर पत्नी या प्रेमिका के रूप में फुल सपोर्ट देती है.

आज के समय में जबकि शादी कम तलाक ज्यादा हो रहे हैं इसलिए शादी को लेकर लड़कियां और भी ज्यादा अलर्ट है , क्योंकि कई बार करियर बनाते-बनाते शादी की उम्र निकल जाती है  इसलिए उन्हें जब कोई अच्छा लड़का मिलता है तो वह शादी करने से पीछे नहीं हटती फिर चाहे वह लड़का लड़की से कम उम्र का ही क्यों ना हो, क्योंकि प्यार और शादी में मन अच्छा होना जरूरी है उम्र धर्म जाति कोई मायने नहीं रखती, खास तौर पर आज के समय में ज्यादातर बड़ी उम्र की लड़कियां छोटी उम्र के लड़कों से शादी कर रही हैं और वह शादियां सफल भी हैं , जैसे कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की बीवी सचिन से 7 साल बड़ी है, कैटरीना कैफ विकी कौशल से उम्र में बड़ी है, ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है क्या ऐसी वजह है की बड़ी उम्र की लड़कियां कम उम्र के लड़कों के साथ शादी कर रही हैं ?

ऐसी शादियों में सेक्स लाइफ कितनी सहज होती है? लड़कियां कम उम्र के लड़कों से शादी करने के क्या फायदे पाती है? छोटी उम्र के लड़के बड़ी उम्र की बीवियों के साथ कितना कंफर्टेबल रह पाते हैं? इस तरह का रिश्ता किस आधार पर टिका होता है ? पेश है इसी पर एक नजर…..

बड़ी उम्र की लड़कियों की पहली पसंद क्यों है छोटी उम्र के पति

सीधी सी बात है जहां पहले पति परमेश्वर कहलाता था, पति को भगवान का दर्जा दिया जाता था , पति के अत्याचार के बावजूद औरते पति की सेवा में जुटी रहती थी , सब कुछ सहने के बावजूद उनके खिलाफ नहीं जाती थी , अब वैसा नहीं है , आज पति पत्नी का रिश्ता बराबर का है क्योंकि कोई किसी से कम नहीं है , ऐसा रिश्ता सिर्फ और सिर्फ प्यार समझदारी और अंडरस्टैंडिंग पर टिका होता है.

उम्र कोई मायने नहीं रखती, ऐसा नहीं है कि ऐसे कपल में झगड़ा नहीं होता , या तू तू मैं मैं तकरार नहीं होती, सब कुछ वैसा ही होता है जैसा कि आम पति-पत्नी के बीच शादी के बाद देखा जाता है, लेकिन बड़ी उम्र की पत्नी ज्यादा समझदारी के चलते अपने पति को अपने बस में कर लेती है , कभी उस पति की बात मानकर या पति से बात मनवा कर, क्योंकि कम उम्र के पति पत्नी द्वारा मिले मान सम्मान और कही ना कही पैसों की वजह से  पहले से ही पत्नी के प्यार में लट्टू होते हैं इसलिए झगड़ा या तकरार भी प्यार में बदल जाती है, जैसा कि कहते हैं मियां  बीबी राजी तो क्या करेगा काजी , लिहाजा ऐसे रिश्तों में समाज भले ही कितना भला बुरा कहे , लेकिन प्यार करने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता , उम्र चाहे जो भी हो दिखावा या बड़प्पन की इस रिश्ते में कोई जगह नहीं होती उम्र में बड़ी होने की वजह से पत्नी हर सिचुएशन को हैंडल कर लेती है , पति को पत्नी की रक्षा करने की जरूरत नहीं पड़ती , बल्कि बड़ी उम्र की पत्नी के साथ पति अपने आप को सुरक्षित समझता है और टेंशन फ्री रहता है, क्योंकि उसकी समझदार बीवी सब कुछ अच्छे से हैंडल कर लेती है

छोटे उम्र के पति के साथ सेक्स के दौरान बिस्तर पर भी सहज रहती है बड़ी उम्र की बीवी

कहा जाता है ज्यादातर रिश्ते बिस्तर पर ही टूटते हैं, क्योंकि पति या पत्नी में से अगर कोई भी सेक्स के दौरान असहाय या असहज महसूस करता है, तो ऐसे रिश्तों के बाद पति पत्नी के रिश्ते में दरार आने लगती है , प्यार के नाम पर सेक्स के दौरान क्रूरता या जबरदस्ती शादीशुदा रिश्ते को तलाक तक ले जाती है, ऐसे में बहुत जरूरी होता है के संभोग के दौरान पति-पत्नी एक दूसरे पर हावी ना हो , सेक्स में प्यार की तड़प नजर आए ना कि सेक्स की भूख , पत्नी की उम्र बड़ी और पति छोटे उम्र का होता है तो पत्नी से जवान होने की वजह से छोटे उम्र का पति अपनी पत्नी को संतुष्ट करने में माहिर होता है , इस दौरान पत्नी अगर शर्म के मारे कुछ नहीं बोल पाती तो ऐसे समय में भी कम उम्र का पति पत्नी की जरूरत को समझते हुए संबंध बनाने के दौरान भी उसका पूरा साथ देता है.

इसके विपरीत अगर पति बड़ी उम्र का और पावरफुल इंसान है तो संभोग के दौरान पत्नी की मर्जी के बजाय अपनी मर्जी के हिसाब से संभोग करता है जो कई बार पत्नी के लिए तिरस्कार से भरा और दुखदाई भी होता है. ऐसे में पत्नी अपनी बड़ी उम्र के पति के साथ खुशी खुशी नहीं बल्कि मजबूरी में सेक्स करती है. लेकिन बड़ी उम्र की लड़की अगर छोटे उम्र के आदमी से शादी करती है तो वह शादी से पहले ही अच्छे दोस्त भी होते हैं और एक दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझते हैं जिस वजह से उम्र का फर्क होने के बावजूद प्यार का रिश्ता गहरा हो जाता है, और जिस रिश्ते में दिखावा नहीं होता सिर्फ प्यार सम्मान और समझदारी होती है वही रिश्ता लंबे समय तक टिकता है.

बॉलीवुड के वो शादीशुदा जोड़े जिनमे पत्नियां पति से उम्र में बड़ी है

फिल्म इंडस्ट्री ऐसी जगह है जहां पर शादी के लिए सिर्फ प्यार और अंडरस्टैंडिंग ही सबसे ज्यादा मायने रखता है जिसके चलते फिल्म इंडस्ट्री के शादीशुदा जोड़े धर्म जाति और उम्र के दिखावे से कोसो दूर है , जैसे कि काफी सालों पहले सुनील दत्त की शादी नरगिस से हुई थी जो कि सुनील दत्त से उम्र में काफी बड़ी थी इतना ही नहीं जिस फिल्म मदर इंडिया में नरगिस और सुनील दत्त का प्यार परवान चढ़ा था, उस फिल्म में नरगिस सुनील दत्त की मां के रोल में थी , और एक सीन के दौरान सुनील दत्त ने नरगिस को आग में जलने से बचाया था,  उसके बाद ही सुनील दत्त और नरगिस में प्यार और शादी हुई थी.

इसी तरह फिल्म इंडस्ट्री में कोई और ऐसे जोड़े हैं जिन में हीरोइने अपने पति से उम्र में बड़ी है, जैसे ऐश्वर्या राय अभिषेक बच्चन से 3 साल  उम्र में बड़ी है , कैटरीना कैफ विकी कौशल से 5 साल उम्र में बड़ी है , बिपाशा बसु करण सिंह ग्रोवर से 6 साल बड़ी है. प्रियंका चोपड़ा निक जोनस से 10 साल बड़ी है, नेहा धूपिया अपने पति अंगद बेदी से 2 साल बड़ी है, उर्मिला मातोंडकर अपने पति से मोहसिन अख्तर से 10 साल बड़ी है. कोरियोग्राफर फराह खान अपने पति शिरीष कुंदर  से 8 साल बड़ी है. गौरतलब है बड़ी उम्र की हीरोइन की छोटी उम्र के हीरो से शादी सफल और बरकरार है. Age is Just a Number

Golden Hour Glamour : 5 एक्ट्रैसेस जिन्होंने गोल्ड में बिखेरा जलवा…

Golden Hour Glamour : बौलीवुड की 5 खूबसूरत हीरोइन जो बौलीवुड की दीवा के रूप में जानी जाती हैं . ये दीवा अपनी खूबसूरती के लाइव जलवे बिखेरते हुए जब रेड कार्पेट पर चाहिए हो ड्रामा और रॉयल्टी, तब एक रंग हमेशा छा जाता है और वो है गोल्ड रंग, शाही, बोल्ड और पूरी तरह से अटेंशन-ग्रैबर. शाइनी सीक्विन्स से लेकर लिक्विड मेटैलिक तक, इन पांच दीवाज ने गोल्डन अंदाज में स्टाइल का नया स्टैंडर्ड सेट किया. आइए देखते हैं इस ग्लैमरस गैलरी में वो लम्हे, जहां इन हसीनाओं ने अपने तरीके से रच दी स्टाइल की नई परिभाषा…

1. जान्हवी कपूर: गोल्डन स्कल्प्टेड गॉडेस

जान्हवी का गोल्डन लुक था रॉयल एलिगेंस की मिसाल. फिगर-हगिंग, स्कल्प्टेड गोल्डन गाउन में वो किसी क्लासिक हौलीवुड दिवा से कम नहीं लगीं. सौफ्ट ड्रेप्स, शाइनी फिनिश और मिनिमल ज्वेलरी ने उनके लुक को बना दिया टाइमलेस, ग्रेसफुल और पावरफुल.

2. नुसरत भरुचा: ड्रामा और डैजल का परफेक्ट मेल

नुसरत हमेशा की तरह इस बार भी ड्रामेटिक और ग्लैमरस अंदाज़ में नजर आईं. शिमरी गोल्डन गाउन के साथ उनका फेदर केप उन्हें एक आसमानी परी जैसा लुक दे रहा था.स्लीक बन और कॉन्फिडेंट पोश्चर के साथ उन्होंने पूरी शाम को अपने नाम कर लिया.

3. निकिता दत्ता: द गोल्डन सायरन

निकिता दत्ता इस एसिमेट्रिकल गोल्डन गाउन में किसी ड्रीम सीक्वेंस से उतरी लग रही थीं. वन-शोल्डर कट और गोल्ड सीक्विन्स की चमक ने उन्हें रेड कार्पेट की रॉयल्टी बना दिया.सॉफ्ट वेव्स और मेटैलिक हील्स ने उनके ग्लैम को और निखार दिया.

4. करीना कपूर खान: लग्जरी का न्यू एज ट्विस्ट

करीना ने चुना एक स्ट्रैपलेस मोल्टन गोल्ड गाउन जो चुपचाप चमक बिखेर रहा था. क्रश्ड टेक्सचर ने इसे मौडर्न फील दिया, और क्लासिक कट ने उनके नैचुरल ग्लो को उभार दिया. एक बार फिर उन्होंने साबित किया- बेबो ट्रेंड फौलो नहीं करती, ट्रेंड बनाती हैं.

5. प्रियंका चोपड़ा: फियरलेस, फेरस और फैब्युलस

प्रियंका ने रेड कार्पेट पर फुल ऑन फायर लुक दिया अपने हाई-स्लिट, शीयर गोल्डन गाउन में. इंट्रिकेट एम्ब्रॉयडरी और बोल्ड मेटैलिक बेल्ट ने इस लुक को डिफाइन किया. डीप नेकलाइन और स्लीक स्टाइलिंग के साथ उन्होंने फिर से साबित कर दिया कि वो ग्लोबल स्टाइल क्वीन क्यों हैं.

Parenting : क्यों एडल्ट्स की भावनाओं से ज्यादा बच्चों की फीलिंग्स का हो रहा है जिक्र?

Parenting : 90वीं सदी में जब हर घर में अमूमन 3 से 4 बच्चे होते थे या उससे पहले 80वीं सदी में हर घर में 10-12 बच्चे होना आम बात थी. तब बच्चों की परवरिश उतना ही ध्यान दिया जाता था जितना उनको जरूरत हो, जिसका नतीजा ये होता था कि हर बच्चा 2 साल की उम्र तक इंडिपेंडेट बन जाता था. उनको भूख लगी है या खाना खिलाना है या उनको खेलने के लिए मंहगे खिलौनों की जरुरत है जिससे उनका कौग्निटिव विकास हो सके. ये सब चौंचले बाजी पहले वक्त में नहीं थी. बच्चे पुराने पड़े टायर से अपने लिए खुद खिलौने गाड़ियां बनाते थे. कागज के पन्नों पर चोर-सिपाही खेलते थे. भागते-दौड़ते अपने लिए खुद खेल बनाते थे. ऐसा नहीं है कि वो बच्चे करियर या जीवन में सफल नहीं हुए.

1 या दो बच्चों के कल्चर ने इन दिनों पेरेंट्स को इतना कौंशियस कर दिया है कि वो चाहते हैं उनका बच्चा किसी दूसरे से किसी मामले में कम न हो. सोशल मीडिया का इसमें बहुत बड़ा हाथ है. अगर पड़ोस का बच्चा डांस, स्वीमिंग और फुटबौल खेल रहा है तो हम अपने बच्चे को इनके साथ पेंटिग और म्यूजिक की क्लास भी कराते हैं. सोशल मीडिया पर रोज बच्चों के टिफिन में क्या नया दें इसके दर्जन भर पेज पेरेंट्स फौलो करके रखते हैं और फिर पेरेंट्स ही कौम्पीटिशन में लग जाते हैं बेहतर टिफिन देने के. हालात ये हैं कि घर में क्या खाना बनेगा, दिवारों पर कलर होगा, ये भी छोटे से 5 साल के बच्चे से पूछा जाता है कि कौन सा कलर कराएं और कौन सा नहीं. अब आप जरा खुले दिमाग से सोच कर बताइए इसमें क्या समझदारी की बात है. हमारा बच्चा तो घीया, तोरई नहीं खाता या मार्केट जाते ही इसको कुछ नया खिलौना चाहिए, इस बात इतरा कर बड़े ही प्राउड के साथ पेरेंट्स एक दूसरे को बताते हैं.

दूसरे बच्चे के बाद पहले की चिंता और सोशल मीडिया की गाइडलाइन

आजकल सोशल मीडिया पर बकायदा गाइड होती है कि दूसरे बच्चे के बाद भी पहले को कैसे ‘फील स्पेशल’ कराया जाए. पूरे परिवार की अटेंशन में पला पहला बच्चा, दूसरे बच्चे के बाद कम होती अटेंशन से मेंटल स्ट्रैस में न आ जाए. अब ऐसे में आपको समझना होगा कि जो बच्चा 2 महीने का है वो अपनी हर जरुरत के लिए आपके ऊपर निर्भर है, वो अपनी जरुरत को लेकर बता भी नहीं सकता है. जबकि बड़े बच्चे ऐसा कर सकते हैं. तो जरुरी है उन्हें समय रहते सेल्फ डिपेंडेंट होने दें. अब 5 से 6 साल के बच्चे को भी आप हर बार वॉशरूम लेकर जाएं तो ये बचकाना लगता है. या उसे अपने हाथों से खाना खिला रहे हैं, या फिर मार्केट में जाने के बाद जबरन उसके लिए कुछ न कुछ खरीद कर ला रहे हैं भले ही उसके बाद खिलौनों का अंबार लगा हो जिसे उसने छुआ भी नहीं.

प्यार में पेंपरिंग की लिमिट तय करें

आपने अगर फैसला किया है कि आप 2 बच्चों या 1 बच्चे के पेरेंट बनेंगे तो पहले खुद मैच्योर होना जरूरी है. उतना ही बच्चे को पेंपर करें जितनी जरूरत है. प्यार और बेवकूफी में फर्क है ये पेरेंट्स को समझना होगा. कई घरों में बच्चे पेरेंट्स पर हाथ उठाते हैं चिखते चिल्लाते हैं, या फिर मार्केट या रेस्टोरेंट में ले जाने पर उनकी पसंद का खिलौना न खरीदने पर या मंहगी आइसक्रीम न खरीदने पर टेंट्रम थ्रो करते हैं. सोशल दबाव में आकर पेरेंट्स उनकी जिद पूरी भी कर देते हैं कि बाकी लोग क्या कहेंगे. अब हमें समझना होगा कि ये बाकी लोग कोई नहीं है. मौल में खूम रही ग्रीन ड्रैस की औरत आपके बारे में क्या सोच रही है यो जो अंकल आपको देख रहे हैं वो आपके बारे में क्या सोचेंगे ये सोचना आप बंद करें. अगर घुमाने बच्चों को बाहर ले जा रहे हैं तो पहले से बाउंड्री तय करके जाएं, बच्चे को भी समझाएं भले जो हो नाजायज जिद पूरी नहीं की जाएगी. आपके एक बार झुकने पर बच्चा हर बार वही रोने-धोने चिल्लाने की ट्रिक अपनाएगा और उसी को आदत बना लेगा, जोकि लॉंग टर्म में आपके लिए बेहद नुकसानदायक साबित होगी.

बजट और जरूरत के अनुसार खिलौने दें, ट्रेंड के नहीं

आप इन दिनों किसी 1 साल के बच्चे के घर जाइए. आपको ऐसे-ऐसे खिलौने देखने को मिलेंगे जिनसे बच्चे तो नहीं खेलते बस कमरे में भीड़ जरुर हुई रहती है. अब आप ही बताइए एक साल के बच्चे को क्या रिमोट कंट्रोल कार से खेलना आएगा? नहीं न. अरे उस बच्चे को तो आप एक चम्मच और कटोरी देदें वो उसी से खेल कर पूरा दिन निकाल देगा. अगर यकीन न हो आजमा कर देखें. कई घरों में तो स्पेशल टॉय रूम बना दिए जाते हैं जिसमें 99 प्रतिशत ऐसे मंहगे खिलौने होंगे जिनसे खेलना बच्चे को आता ही नहीं. अगर आपका बजट आपको परमिशन देता है तो जरुर आप खुले दिल से खर्च करें, लेकिन फलां के घर में बच्चों के इतने खिलौने है कि रेस में शामिल होने के लिए अगर आप ऐसा कर रही हैं तो इस आदत को तुरंत त्याग दें.

बेफिजूल जिद को करें इग्नोर

मार्वल कैरेट्स का क्रेज बच्चों में खूब देखने को मिलता है. नतीजा ये है कि हर दुकान पर मार्वल कैरेक्टर देखने को मिल जाएंगे. मैक्सिमम घरों में ये देखने को मिलता है कि अगर बच्चे को लेकर आप मार्केट जाएंगे तो वो जरुर एक नया खिलौनों का सेट खरीद कर लाएगा भले घऱ में उसके पास सेम खिलौने हों. अब आप ही बताइए ये फिजुल खर्च नहीं तो क्या है. ऐसी जिद आपको इग्नोर करनी आनी चाहिए भले ही आपका बच्चा सड़क पर क्यों न लेट जाए. आप ही बताइए 500 के खिलौने जिसको घर आते ही कोई वेल्यू नहीं मिलनी क्योंकि वेसा सेट घर में मौजूद है. उसके लिए आपका बच्चा बाजार में रोए तो क्या आप उसे दिला देंगी. आपको बच्चे से पहले खुद स्ट्रोंग होना होगा. और न कहना सीखना होगा. बच्चे का टेंट्रम 5-10 मिनट का होगा. और जिद पूरी करने में आपको अपनी पूरे दिन मेहनत का पैसा लुटाना होगा. To be true it’s not worth it.

मार्वल हो या मिनियन, हर बार नया खिलौना खरीदना बच्चे के लिए नहीं, आपके पैसे और पेरेंटिंग की हार है, “ना” कहना सीखें, और बच्चे को भी सिखाइए कि हर मांग पूरी नहीं होगी.

बच्चे के लिए रोल मॉडल बनें, आया नहीं

जब से पेरेंट्स के हाथ में फोन आया है तो उनपर बेहतरीन पेरेंटिंग का दबाव और बढ़ गया है. कैसे बच्चों के इमोशन का ध्यान रखें, #Gentle Parenting, बच्चों का बेहतरीन विकास, 2 साल के बच्चों को पढ़ना कैसे सिखाएं और बच्चों को बचपने से कैसे सुपरस्टार बनाएं, इनकी रीलें देखकर पेरेंट्स इन दिनों खुद ही गिल्ट में जा रहे हैं. उन्हें लग रहा है जैसे ये सब ट्रैंड फोलो नहीं किया तो वो अच्छे पेरेंट नहीं बन पाएंगे. कई सोशल मीडिया प्लेटफौर्म तो ऐसे हैं तो मां-बाप को बच्चों की जिद के सामने कैसे झुकें और कैसे अपने दिन का हरएक मिनट बच्चे के लिए एक्टिविटी प्लान करने में गुजारें, उसकी बकायदा पैसे लेकर ट्रैनिंग भी देते हैं. अब के मिलेनियम पैरेंट्स को समझना होगा कि बच्चों को नेचर ने स्ट्रौंग बनाया है, वो देखकर सीखते हैं. तो उनको सीखाने के लिए ज्यादा एफर्ट्स मत लगाएं. जो आपकी दिनचर्या है उसके हिसाब से जीवन बिताएं, न कि बच्चे के हिसाब से खुद को ढालें. कुछ वक्त में बच्चा अपने एनवार्यमेंट को समझ कर खुद आपके हिसाब से एडजस्ट हो जाएगा, जिसके लिए आपको ज्यादा मेहनत करने की जरुरत नहीं है. इसलिए जरुरी है कि आपने पर्सनैलिटी, दिनचर्या, रूटीन और लाइफस्टाइल पर ज्यादा फोकस करके, बच्चे के लिए रोल मौडल बनें, आया नहीं.

बच्चे को एडल्ट की तरह ट्रीट करें- प्यार दें, पर सीमाएं भी तय करें

बच्चों को बचपन से ही एडल्ट की तरह ट्रीट करना जरूरी है. लेकिन ऐसा एडल्ट जिसे प्यार भरपूर मिलेगा लेकिन प्यार के नाम पर उनकी नाजायाज जिद नहीं पूरी की जाएंगी. बच्चों से पूछना कौन से कलर की साइकिल, दीवारों पर कौन सा कलर, डिनर में क्या बनाएं, घूमने कहां जाएं. ये सब बंद करें. बच्चों को समझाएं कि उनकी बात सुनी जाएगी लेकिन किया वही जाएगा जो सही, व्यहारिक और उनकी पौकेट के हिसाब से सही होगा. उनके फैसले तभी मायने रखेंगें जब वो फैसले लेने के लायक होगें. Yes, Opinion matters, की बात को समझा जाएगा. उनकी बात सुनी जरुर जाएगी लेकिन उसपर अमल ये जरुरी नहीं.

गिरेंगे नहीं तो संभलना कैसे सिखेंगे?

यहां पेरेंट्स की भी गलती है. वो ये बच्चों को लेकर कुछ ज्यादा ही परेशान रहते हैं. पार्क भी जाएंगे तो बच्चे को खुला छोड़ने की बजाए उसके पीछे-पीछे चलेंगें की कहीं गिर न जाए, कोई बच्चा ही उसपर हाथ न उठा दे. अब बताइए विदआउट रिस्क क्या कभी कुछ हुआ है. बच्चे गिरेंगें नहीं तो संभलना कैसे सिखेंगे. इसलिए अपने शेयर की गलतियां बच्चों को खुद करने दें. स्लाइड से गिर जाओगे मत चढ़ो, यहां मत जाओ गिर जाओगे, अक्सर यही आपको पार्क में सुनने को मिलेगा. अरे उन्हें खुला छोड़ दें. गिरेंगे तभी सो संभलेंगे. ऐसा तो नहीं कि आपका जीवन परफेक्ट हो और आपने कोई गलती नहीं की. तो बच्चों को भी खुद सीखने-खेलने दें और खुद भी चैन की सांस लें.

माता-पिता को समझना होगा कि जीवन इतना आसान नहीं है जितना उन्होंने अपने बच्चे लिए चार दिवार के अंदर बना दिया है. बाहर बेहद संघर्ष है और उसके लिए बच्चे को स्ट्रोंग घर से ही बनना होगा. अगर घर पर आप बच्चे की हर पसंद-नापसंद पर ध्यान देंगे, तो क्या बाहर भी उसे ऐसा ही मौहोल मिलेगा. नहीं न. इसलिए बच्चे को बचपने से एडजस्ट करने और न सुनने की आदत होने चाहिए. बचपन से बच्चों में अपने काम करने की स्किल्स डेवलप होनी चाहिए. इसके लिए आपको बच्चे को आजादी देनी होगी न कि एक्सट्रा पेम्परिंग. उसे सिखाएं खुद बाथरूम कैसे जाएं. कैसे खाने के बाद न सिर्फ अपने बरतन सिंक में ऱखें बल्कि उन्हें धोंए, हो सकता हो वो शुरु में प्लेट में गंदगी छोड़ दें, लेकिन आपकी ड्यूटी है कि उन्हें अपने काम करने के लिए खुद इनकरेज करें.

तो पेरेंट्स स्टेप बैक एंड रिलैक्स. बच्चों को उनकी जरूरतों के हिसाब से पालिए, ना कि सोशल मीडिया के ट्रेंड्स के मुताबिक.

Hair Care Tips : बालों की देखभाल के दौरान ध्यान रखें ये खास बातें

Hair Care Tips :  खूबसूरत, घने और सेहतमंद बालों में छिपा होता है आकर्षक व्यक्तित्व का राज. तभी तो स्त्रियों के साथसाथ पुरुष भी अपने बालों की केयर करने में कोई कमी नहीं रखते. बालों को हेल्दी और स्टाइलिश लुक देने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना जरूरी है :

  1. केयर
  • बालों को माइल्ड शैंपू से धोएं.
  • बेड पर जाने से पहले बालों में कंघी करना न भूलें.
  • दोमुंहे बालों की समस्या से नजात पाने के लिए 6-7 सप्ताह बाद ट्रिमिंग जरूर करा लें.
  • पानी खूब पीएं.
  • रिलैक्स रहें. स्टे्रस की वजह से हेयर लौस की प्रौब्लम हो सकती है.

2, सावधानी

  • बालों में रबरबैंड न लगाएं. यह खिंचाव पैदा कर इन्हें नुकसान पहुंचाता है.
  • बालों को कवर किए बगैर धूप में न निकलें.
  • बालों में कभी कड़े हाथों से कंघी न करें.
  • बालों को बहुत ठंडे या गरम पानी से न धोएं.
  • बाल सुखाने के लिए हेयरड्रायर का प्रयोग करने से बचें. इस से बाल रूखे और कमजोर होते हैं.
  • हेयरडाई का प्रयोग कम से कम करें. इस के बजाय मेहंदी लगाना बालों की सेहत के लिए बेहतर है. मेहंदी कलरिंग के साथ नैचुरल कंडीशनिंग भी करती है.

3. आयल मसाज

  • रात में सोने से पहले किसी अच्छे हर्बल आयल से बालों की जड़ों में मसाज करें.
  • नैचुरल हेयर प्रोटीन और विटामिन ई युक्त तेल से बालों की मालिश स्कैल्प सर्कुलेशन को बढ़ाती है और बालों में सेहत भरी चमक देती है. बाल सौफ्ट और सिल्की बनते हैं.
  • हर्बल आयल का प्रयोग बालों के टूटने, झड़ने और डैंड्रफ की प्रौब्लम को दूर करता है.

4. डाइट

  • अपनी डाइट में विटामिन बी, सी और ई युक्त पोषक पदार्थों को शामिल करें.
  • पपीता, गाजर, तरबूज, सेब, आड़ू, कद्दू वगैरह में बालों को हेल्दी बनाने के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं. इसलिए खूब फलसब्जियां खाएं.
  • बाल आयली हैं तो फ्राइड फूड और फैट कम मात्रा में लें.
  • बहुत ज्यादा चौकलेट, स्वीट्स, केक और कुकीज न लें, क्योंकि जो भी आप खाती हैं उस का सीधा असर त्वचा व बालों पर पड़ता है.
  • कैल्सियम सप्लीमेंट या 2 गिलास दूध जरूर लें.

5. नुसखे

  • तेल में नीबू का रस मिला कर लगाने से डैंड्रफ की समस्या से राहत मिलती है.
  • केले में शहद मिला कर इसे 30-40 मिनट के लिए बालों में लगा कर छोड़ दें, फिर धोएं और देखें कि बालों में कैसी चमक आती है.
  • धनिया के पत्तों का जूस बालों को हेल्दी बनाता है.
  • बालों में चमक लाने के लिए वाश करने के बाद नीबू के पानी का प्रयोग लाभकारी है.
  • यदि आप को डैंड्रफ की प्रौब्लम है तो बेड पर जाने से पहले विनेगर और पानी का मिक्सचर बालों की जड़ों में लगाएं. सुबह उठ कर विनेगर वाटर से बाल धो लें.

Megha Ray : बारिश की पानी में भीगना है पसंद

Megha Ray : खूबसूरत, चुलबुली, हंसमुख अभिनेत्री मेघा रे मुंबई की हैं. बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था, जिसमें उनका साथ परिवार वालों ने दिया. धारावाहिक दिल ये जिद्दी है, अपना टाइम आएगा, रंग जाऊं तेरे रंग में, सपनों की छलांग आदि में उन्होंने काम किया है. इसके अलावा एक हौरर फिल्म ए क्वाइट रिपल में भी उनके अभिनय को सराहा गया है. मेघा ने मुंबई से कंप्यूटर विज्ञान में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है, इसके बाद उन्होंने एक ब्यूटी ब्लौगर के रूप में काम कुछ दिनों तक काम किया है. मेघा एक भरतनाट्यम डान्सर भी हैं.

इन दिनों मेघा सन नियो चैनल पर धारावाहिक दिव्य प्रेम: प्यार और रहस्य की कहानी में मुख्य भूमिका दिव्या की निभा रही है, जिसे लेकर वह बहुत उत्सुक है, क्योंकि इस कहानी में अभिनय के कई शैड्स उन्हेे मिल रहे है, उन्होंने खास गृहशोभा के साथ बात की, आइए जानते हैं उनकी कहानी उनकी जुबानी.

इस शो में काम करने की खास वजह के बारें में मेघा कहती है कि ये एक अलग तरीके की लव स्टोरी है, जो फिक्शनल है और मैजिकल वर्ल्ड की कहानी है. इसमें एक्शन, डांस, ड्रामा, इमोशन सब एक साथ दिखाया जा रहा है, जो मजेदार है.

सपने देखना जरूरी

मेघा कहती हैं कि मुझे इस तरीके की फैंटेसी और फिक्शनल स्टोरी बहुत पसंद है, क्योंकि ये हमारी समझ से परे होता है. देखा जाय तो सभी लोग सपने देखते हैं और सपना देखना गलत नहीं, क्योंकि सपने ही अंत में कई बार हकीकत बन जाते है. सपने देखने पर ही हम उसे पाने की कोशिश भी करते है और मुझे ऐसी शोज को टीवी पर देखना और अभिनय करना बहुत पसंद है. ये हमेशा नई उम्मीद जगाते है.

रिलेट नहीं करती

मेघा कहती हैं कि ये चरित्र मुझसे काफी अलग है, इससे मैं खुद को रिलेट नहीं कर पाती, क्योंकि लड़की काफी मुश्किलों से आगे बढ़ रही है और बहुत अकेली है, उसे प्यार नहीं मिलता, जिसकी वह तलाश कर रही है. जबकि मेरे साथ कुछ ऐसा नहीं है, मुझे सबका प्यार बहुत मिलता है और चरित्र बोल्ड लड़की की है, जबकि मैं बहुत शांत स्वभाव की हूं.

मिली प्रेरणा

फिल्मों में आने की प्रेरणा के बारें में पूछने पर मेघा बताती है कि मैं एक कौम्प्युटर इंजीनियर हूं, लेकिन मेरे अंदर एक इच्छा थी कि मैं अभिनय करूं, लेकिन किसी को कहा नहीं था, लेकिन जैसे – जैसे मैं जिंदगी में आगे बढ़ती गई, समझ आया कि अगर मैंने कोशिश नहीं की तो शायद मुझसे कोई गलती होगी. कई बार लगा कि मैं जो काम कर रही हूं, उसके लिए बनी नहीं हूं. मैं पढ़ाई को एन्जौय कर रही थी, लेकिन बार – बार मेरे अंदर अभिनय करने की इच्छा जागती रही. इसके बाद मैंने दो साल मैं जौब से निकलकर अभिनय के लिए औडिशन देने का मन बनाया और दो तीन महीने बाद मुझे पहला काम मिल गया. ये इत्तफाक नहीं बचपन की एक इच्छा है, जिसे मैं देर से समझ पाई.

इसके अलावा स्कूल में एक टीचर ने मुझे कहा था कि एक दिन वह मुझे किसी होर्डिंग पर दिखोगी, जो मुझे सुनना अच्छा लगा था, लेकिन ऐसा मेरे साथ वास्तव में होगा, मैंने सोचा नहीं था. मैं एक भरतनाट्यम डान्सर भी हूं और कई बार स्टेज पर परफौरमेंस कर चुकी हूं, जिससे लोग मुझे जानने लगे थे. इसका फायदा मुझे ऐक्टिंग में मिला है.

परिवार का सहयोग

मेघा हंसती हुई कहती है कि मेरे पेरेंट्स ने मुझे हमेशा अपनी पसंद के काम के लिए आजादी दी है, उस समय मैं जौब कर रही थी, मैंने पेरेंट्स से दो साल का समय मांगा और कह दिया था कि अगर मैँ ऐक्टिंग में कामयाब नहीं हुई तो फिर से जौब करूंगी. इसलिए उन्होंने मना नहीं किया और मुझे ऐक्टिंग फील्ड में कोशिश करने का मौका मिल गया.

पहला ब्रेक

मैंने औनलाइन कई सारी चीजें देखकर खुद को ग्रूम किया है, क्योंकि मैं मध्यम वर्गीय परिवार से हूं, ऐसे में लाखों खर्च कर ऐक्टिंग क्लास लेना मेरे लिए संभव नहीं था, फिर कोई गारंटी नहीं थी कि मुझे काम मिल ही जाएगा. इसके अलावा मैं किताबें पढ़ती और आईने के पास खड़ी होकर ऐक्टिंग करती थी. उसी दौरान मुझे एक व्हाट्स एप ग्रुप का पता चला, जिसमें वे टीवी की एक शो के लिए एक फ्रेश फेस की तलाश कर रहे थे, मैंने अप्लाइ किया, ऑडिशन दिया और पहली शो तीन महीने बाद ‘दिल ये जिद्दी है’ मिल गई, लेकिन मैं मेरी दूसरी शो अपना टाइम आएगा से काफी चर्चित हुई, इसमें भोजपुरी सीखना और उस लहजे में बात करना मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था, लेकिन हर शो में मुझे नया काम करने का मौका मिला, इस वजह से मैं खुद को ब्लेस्ड मानती हूं.

किये संघर्ष

मेघा का कहना है कि बिना गौड फादर के अच्छा काम मिलना मुश्किल नहीं होता, जैसा लोग डराते है. मुझे खुद पर विश्वास रहा और मैं मेहनत कर रही थी, कभी डर नहीं लगा, बहुत से लोग ऑडिशन में पास न होने पर डर जाते है, इससे उन्हे आगे काम मिलना मुश्किल होता है और कई बार लोग आपका गलत फायदा उठा लेते है. मैँ कभी डरी नहीं. मेरा उद्देश्य एकदम क्लीयर रहा, जिससे मैं कभी कौन्फ्यूज नहीं हुई. वैसे इंडस्ट्री इतनी भी बुरी नहीं जितना लोग समझते है, आज की तारीख में हर जगह कुछ न कुछ समस्या है, व्यक्ति को खुद उससे दूर रखना पड़ता है.

लड़कियों को मिले आजादी

मेघा कहती है कि आज की हर लड़की आजादी चाहती है और परिवार वाले उन्हे दे भी रहे है, लेकिन कई बार परंपरागत परिवार लड़कियों को आजादी देना नहीं चाहते, जिससे लड़कियां बगावत कर लेती है. इंडिपेंडेंट उसे कहा जाना चाहिए है, जहां लड़कियां ग्रैसफुली अपनी लाइफ को शैप दे सकती है, जिसमें परिवार की भी भागीदारी होनी चाहिए. कुछ लड़कियां ऐसी है, जो इस आजादी का गलत फायदा भी उठा लेती है और गलत संगत में पड़ जाती है. अपनी सीमा भूल जाती है और गलत काम कर जाती है. अपने काम और गोल को साफ रखें, इससे कोई भी व्यक्ति आपका गलत फायदा नहीं उठा सकता.

मी टू मूवमेंट का है असर

इसके आगे मेघा कहती है कि मुझे कभी कास्टिंग काउच का सामना नहीं करना पड़ा. मी टू मूवमेन्ट के बाद चीजें थोड़ी बदल चुकी है, आजकल कोई किसी को कुछ कहने से डरते है. इसके अलावा मुझे समझ में आता है कि कहाँ मुझे मना करना है और मैंने किया भी है. हिन्दी फिल्मों और वेब सीरीज की अच्छी कहानियों में काम करने की इच्छा है, मुझे निर्देशक इम्तियाज अली की फिल्म में अभिनय करने की इच्छा है, क्योंकि उनकी फिल्में बहुत अलग और प्रभावशाली होती है.

इंटीमेट सीन्स को करने के बारें में मेघा ने अभी सोचा नहीं है, कहानी की डिमान्ड के आधार पर ही उस करने के लिए हां कह सकती है.

मौनसून मेरी पहली पसंद

मौनसून मेघा को बहुत पसंद है, वह जब पैदा हुई थी, तो बहुत तेज बारिश हुई थी. वह कहती है, मैं इस मौसम में खुद को हाइड्रेट रखती हूं, इसके लिए पानी खूब पीती हूं. स्किन पर मौइस्चराइजर का प्रयोग करती हूं. इसके अलावा मुझे बारिश में भींगने में भी बहुत मज़ा आता है, वैसे भी मेरा नाम मेघा है.
यूथ के लिए मेघा का मेसेज है कि अपने सपनों और खुद पर भरोसा रखें, पढ़ाई पूरी करें, मेहनत और लगन से जो भी काम मिले करते जाए.

Mental Stress In Youth : युवाओं में मानसिक तनाव और बीमारी बढ़ने की वजह जान कर चौंक जाएंगे आप

Mental Stress In Youth : 20 से 22 साल की उम्र जीवन का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है. इस दौरान शिक्षा, कैरियर और रिश्तों में कई बड़े बदलाव आते हैं. इस उम्र में खुशी, रोमांच और उत्साह आदि सबकुछ साथसाथ होता रहता है, साथ ही अनिश्चितताओं और स्ट्रैस की वजह से बहुत अधिक तनाव भी होता है.

नवी मुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हौस्पिटल की मनोचिकित्सक डाक्टर पार्थ नागडा कहते हैं कि कम उम्र में कोई भी समस्या युवाओं के लिए तनाव बन जाता है, क्योंकि वे छोटीछोटी चीजों से घबरा जाते है. इस का असर उन के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है, इसलिए उन पर नियंत्रण रखना, सही समय पर उपचार कराना जरूरी है.

तनाव से गंभीर मानसिक और शारीरिक बीमारी

डाक्टर पार्थ कहते हैं कि इतनी कम उम्र में लंबे समय तक तनाव में रहने से मानसिक स्वास्थ्य की बड़ी समस्याएं हो सकती हैं. इस दौरान शिक्षा में आगे बढ़ने, एक स्थिर कैरियर हासिल करने और एक अच्छी रिलेशनशिप को बनाए रखने का दबाव हमारे नैचुरल कोपिंग मैकेनिज्म को प्रभावित कर सकता है, जिस से चिंता या निराशा जैसे डिसऔर्डर दिखाई पड़ सकते हैं, मसलन घर से दूर रहना, नए रिश्ते बनाना, वित्तीय निर्णय लेना आदि जैसी कई वजहों से तनाव बढ़ता है.

जर्नल औफ क्लिनिकल मैडिसिन में प्रकाशित, वर्ष 2020 के एक अध्ययन में पाया गया कि जीवन के बदलावों से होने वाला तनाव इस आयु वर्ग में मनोवैज्ञानिक संकट को दर्शाता है, जिस का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ने की संभावना होती है.

इस के अलावा लगातार तनाव से युवाओं में कई शारीरिक गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं, जिन में हृदयरोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अवसाद और चिंता विकार आदि शामिल हैं, जिसे समय रहते पहचान लेना जरूरी होता है.

  • ऐसा देखा गया है कि अत्यधिक तनाव से हृदय गति और रक्तचाप बढ़ सकता है, जिस से हृदयरोग का खतरा बढ़ जाता है.
  • तनाव इंसुलिन प्रतिरोध को बढ़ा सकता है, जिस से मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है.
  • तनाव से रक्तचाप बढ़ सकता है, जिस से उच्च रक्तचाप और हृदयरोग का खतरा बढ़ सकता है.
  • अधिक स्ट्रैस से डिप्रैशन बढ़ सकता है, खासकर जब इसे ठीक से मैनेज न किया या हो.
  • लगातार स्ट्रैस में रहने पर चिंता और घबराहट हो सकती है, जो चिंता कई प्रकार के डिसऔर्डर को जन्म देती है.
  • पाचन संबंधी समस्याएं भी अधिक तनाव की वजह से आज की यूथ में कौमन हो चुका है, जैसेकि इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (आईबीएस) और अल्सर हो सकते हैं.
  • अधिक तनाव से इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है, जिस से अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.

परिवार में मानसिक बीमारी का होना

तनाव से ग्रस्त हर युवा को मानसिक बीमारी हो यह जरूरी नहीं, लेकिन जिन में कुछ कमजोरियां पहले से मौजूद हैं, मसलन परिवार में पहले किसी को मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं होना, आघात या सामाजिक समर्थन की कमी, उन के लिए रिस्क हो सकती है. ऐसे में बीमारी का जल्दी पता लग जाने से उसे इलाज कर ठीक किया जा सकता है.

कुछ लक्षण निम्न हैं :

  • लगातार चिंता, चिड़चिड़ापन, उदासी या निराशा, रोज के काम करने में असमर्थता, भविष्य के बारे में बहुत अधिक सोचना.
  • ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, याद्दाश्त की समस्या.
  • थकान, सिरदर्द, नींद की समस्या, भूख में बदलाव या बिना किसी कारण के दर्द और पीड़ा का होना.
  • लोगों से खुद को अलग कर लेना, अकेले रहना, नशे का आदि होना, खुद को नुकसान पहुंचाना या लापरवाह ड्राइविंग जैसे जोखिमभरे काम करना.
  • आत्महत्या के विचार या खुद को नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहार का होना आदि.

पेरैंट्स के लिए

डाक्टर आगे कहते हैं कि पेरैंट्स को यूथ के अलगअलग व्यवहारों को नोटिस करना जरूरी होता है, ताकि समय रहते उन का इलाज किया जा सकें.

कुछ सुझाव इस प्रकार हैं :

  • यूथ से पेरैंट्स खुल कर बातचीत करें, एक सुरक्षित और नौन जजमैंटल माहौल बनाएं, जहां यूथ अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकें, तुरंत समाधान सुझाने के बजाय उन की बातों को पूरा और ध्यान से सुनें.
  • किसी भी स्थिति, समस्या का सामना स्वस्थ तरीके से करने को प्रोत्साहित करें, जिस में संतुलित दिनचर्या, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद को बढ़ावा देने से तनाव कम होता जाता है.
  • उन की भावनाओं को समझें और स्वीकार करें. उन के तनाव वास्तविक और महत्त्वपूर्ण हैं. किसी प्रकार की सलाह देने से बचें.
  • उन्हें फ्रीडम दें, मार्गदर्शन करें. उन्हें उन के निर्णय लेने में सहायता करें. अपनी अपेक्षाओं को उन पर न थोपें, अगर संभव हो, तो उन्हें कैरियर या शिक्षा के विकल्प तलाशने में मदद करें.

इलाज जरूरी

कुछ मातापिता ऐसे में पूजापाठ, हवन का सहारा लेते है, जो उन्हें अधिक कमजोर बनाती है  तनावग्रस्त व्यक्ति को निरंतर प्रयास और धैर्य बनाए रखने की जरूरत होती है. अगर ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा है, तो डाक्टर की सलाह अवश्य लें. शुरुआती दौर में कुछ थेरैपी से तनाव कम हो जाता है, जबकि अधिक समस्या होने पर दवा की जरूरत पड़ती है.

अधिक प्रतियोगी होना

अपने अनुभव के बारे में डाक्टर पार्थ कहते हैं कि आज की युवाओं में तनाव और अवसाद अधिक मात्रा में बढ़ने की वजह उन्हें हर मोड़ पर कंपीटिशन का सामना करना पड़ता है.

वे बताते हैं कि 23 वर्षीय एक युवती युनिवर्सिटी में पढ़ते हुए अचानक हुए ब्रेकअप से परेशान थी. उस का मन पढ़ाई में बिलकुल भी नहीं लग पा रहा था. उन्हे नींद न आना, चिंता और लोगों से अलग, अकेले रहने जैसे लक्षण विकसित हो चुके थे, जिससे वह बहुत परेशान रहती थी और कुछ भी आगे सोचने में समर्थ नहीं थी. मैं ने मैडिसिन, जीवनशैली में बदलाव, आरईबीटी थेरैपी और परिवार की मदद से उस स्थिति का मुकाबला स्वस्थ तरीके से करने के बारें में सिखाया और आत्मविश्वास हासिल किया.

22 वर्षीय एक युवा ग्रैजुऐट होने के बाद कैरियर की अनिश्चितताओं से जूझ रहा था, जिस से उसे नशे की लत लग गई थी. ऐंटीक्रेविंग दवाओं, स्ट्रैस मैनेजमेंट तकनीकों और कैरियर परामर्श ने उसे तनाव को दूर करने और शराब पीने की आदतों को कम करने में मदद किया.

लड़कियों में तनाव अधिक

ऐसा देखा गया है कि 20 से 22 वर्ष की युवा महिलाओं में पुरुषों की तुलना में चिंता और अवसाद अधिक होती है. इस की वजह अकसर रिश्तों और शैक्षणिक सफलता से जुड़े सामाजिक दबाव का होना है, जिस में एक लड़की को उतनी आजादी नहीं मिलती, जितना एक लड़के को मिलती है.

36% महिलाओं के लिए खुद की लाइफस्टाइल जिसे वे चाहती हैं, उन्हें करने की आजादी नहीं मिलती. इसलिए वे खुदखुशी, खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती हैं जबकि 25% लड़के किसी नशे का आदी बन कर घर से बाहर जा कर तनावमुक्त होने की कोशिश करते हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

वैश्विक स्तर पर 7 में से 1 किशोर (लगभग 166 मिलियन) में मानसिक विकार होते हैं. इस आयु वर्ग में चिंता और अवसाद के 40% मामले पाए जाते हैं, जबकि 66% छात्रों में खराब ग्रेड की वजह से तनाव होते हैं. 55% छात्र तैयारी के बावजूद भी परीक्षाओं को ले कर चिंता में रहते हैं.

लड़कों की तुलना में लड़कियां शिक्षा को ले कर अधिक तनाव में रहती हैं. इस के अलावा सोशल मीडिया और साइबरबुलिंग भी तनाव का कारण हैं.

यह सही है कि आज के अर्ली ऐज में यूथ तनाव का शिकार स्वाभाविक रूप से अधिक हो रहे हैं, जिसे समय रहते दूर किया जाना चाहिए. इस में लक्षणों को जल्द से जल्द पहचानना, परिवार और दोस्तों का मजबूत समर्थन और समय पर ऐक्सपर्ट से इलाज महत्त्वपूर्ण होता है. इसलिए तनाव एक प्रतिक्रिया है, जिसे प्रैक्टिस से दूर करना असंभव नहीं.

Monsoon Makeup Tips : मेकअप करते समय क्या इस्तेमाल करें, फाउंडेशन ब्रश या ब्यूटी ब्लैंडर?

Monsoon Makeup Tips :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मेकअप करते समय फाउंडेशन लगाने के लिए क्या इस्तेमाल करना चाहिए फाउंडेशन ब्रश या ब्यूटी ब्लैंडर?

जवाब

फाउंडेशन लगाने के लिए ब्रश इस्तेमाल करने से फाउंडेशन थोड़ी क्वांटिटी में स्किन पर फैल जाता है और एकसार फैलता है, मगर उसे स्किन के अंदर सही से ब्लैंड कर के ज्यादा देर तक टिकाने के लिए ब्यूटी ब्लैंडर ज्यादा अच्छा रहता है. इस में एक के बाद एक, 2-3 लेयर भी लगा सकते हैं और स्किन के अंदर ब्लैंड कर सकते हैं. इस से फाउंडेशन एकसार भी हो जाता है और स्किन के अंदर ब्लैंड भी हो जाता है और बहुत देर तक टिकता है. सो ब्यूटी ब्लैंडर यूज करना बहुत अच्छा रहता है.

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सवाल

मैं रात को देर तक पढ़ाई करती हूं. मेरी आंखों के आसपास की स्किन काफी डार्क हो गई है. मैं क्या करूं जिस से मुझे पुरानी खूबसूरती वापस मिल जाए?

जवाब

रातभर देरदेर तक जागने से आंखों पर बहुत ज्यादा स्ट्रैस डालने से आंखों के आसपास काले घेरे आ जाते हैं. बीचबीच में आप को रैस्ट करते रहना चाहिए था. कुछ हद तक आप के डार्क सर्कल खुदबखुद कम हो जाएंगे. आप रोज 1 चम्मच आमंड औयल में 10 बूंदें औरेंज औयल की डालें और इस को रख लें. रोज इस औयल से आंखों के चारों तरफ तरजनी उंगली से मालिश करें. इस से आप के डार्क सर्कल्स  कम होने शुरू हो जाएंगे. जब भी फुरसत मिले खीरे को कद्दूकस कर उस का रस निकाल लें. 1 बड़ा चम्मच रस के अंदर 1 बड़ा चम्मच फ्रैश ऐलोवेरा जैल मिला लें और 10 बूंदें नीबू के रस की डाल लें. इस के अंदर 1 छोटा चम्मच औलिव औयल भी मिला लें. इसे अपनी आंखों के चारों तरफ लगा कर 15 मिनट के लिए लेट जाएं और उस के बाद कुनकुने पानी से धो लें. इस से भी आप के डार्क सर्कल काफी हद तक कम होने शुरू हो जाएंगे. खाने में विटामिन ई की मात्रा बढ़ा दें. चाहे तो विटामिन ई के कैप्सूल मार्केट से लेकर 1 महीने तक रोज खाएं.

कहानी : एक चुटकी मिट्टी की कीमत

कहानी :  पहले जब लोगों के दिल बड़े हुआ करते थे, तब घर भी बड़े व हवादार हुआ करते थे, भरेपूरे संयुक्त परिवार हुआ करते थे. जब से लोगों के दिल छोटे हुए, घर भी छोटे व बेकार होने लगे डब्बेनुमा. अब जब कोरोना जैसी महामारी आई तो लोगों को पूर्वजों की बड़ी व खुली सोच और बड़े व खुलेखुले घर की अहमियत समझ में आई.

बात पिछले साल की है. बिहार के अपने लंबेचौड़े, संयुक्त पुश्तैनी घर से दिल्ली के 2 कमरों के सिकुड़ेसिमटे फ्लैट में शिफ्ट हुए एक महीना भी नहीं हुआ था कि कोरोना महामारी ने समूचे विश्व पर अपने भयावह पंजे फैला दिए. लौकडाउन और कर्फ्यू के बीच घर में कैद हम बेबसी में नीरस व बेरंग दिन काट रहे थे, फोन पर प्रियजनों के साथ दूरियों को पाट रहे थे. मन ही मन प्रकृति से दिनरात मिन्नतें कर रहे थे कि, हे प्रकृति, इस विदेशी वायरस को जल्दी से जल्दी इस के मायके भेज दे.

एक दिन मुंह पर मास्कवास्क बांध कर मन ही मन कोरोना के उदगम स्थल को हम अपनी बालकनी में बैठे कोस रहे थे कि अथाह भीड़ वाली दिल्ली की कोरोनाकालीन सूनी सड़क से फूलों का एक ठेले वाला अपनी बेसुरी आवाज में चीखते हुए फूल खरीदने की गुहार मचाता गुजरा. देखते ही देखते महामारी को ठेंगा दिखाते लोगों की भीड़ ठेले के पास जमा हो गई.

हम भारतीयों की ख़ासीयत है कि हम लौकडाउन, कर्फ्यू या मास्कवास्क को अपनी सुविधानुसार ही अहमियत देते हैं. भावताव के साथ संपन्न हो रही थी सौदेबाजी, कोरोना ने कहीं महंगे कर दिए थे फूल तो कहीं सस्ते में भाजी मिल रही थी. थोड़ी ही देर बाद मैं ने देखा कि सामने वाले घर की बालकनी गुलाब के गमलों से सज गई है और गमले में लगे यौवन से उन्मत्त लालपीले सुकुमार गुलाब मेरी ओर बड़ी अदा से देख कर मुसकरा रहे हैं. अकेलेपन से व्यथित मेरे ह्रदय को अपनी ख़ूबसूरती से चुरा रहे हैं. अगलबगल के घरों की बालकनी का भी यही नज़ारा था.

गुलाबों का बेहिसाब हुस्न मेरे दिल को बरबस ही भा चुका था. पर करें क्या, फूल वाला तो अपने सारे गुलाब बेचकर जा चुका था. अब हर दिन मैं फूलवाले के इंतज़ार में बालकनी में बैठी रहती. किसी भी बेसुरी आवाज पर मेरी सारी चेतना कानों में समा जाती. पर सूनी सड़क पर यदाकदा भीख मांगने वाले या फिर शौकिया सड़कों की ख़ाक छानने वाले ही नज़र आते. न जाने फूलवाला कहां लुप्त हो गया था.

आखिरकार, एक हफ्ते बाद फूलवाला दोबारा से सड़क पर प्रकट हुआ. भीड़ का जत्था ठेले तक पहुंचे, इस के पहले ही मैं तेज गति से ठेले के पास जा पहुंची. अलगअलग रंगों के 10 गुलाब पसंद कर के मैं ने फूलवाले से उन्हें गमले में लगा देने को कहा.

“फूल लगाने के पैसे अलग से लगेंगे, मैडम जी,” भीड़ देख कर वह वाला भाव खा रहा था.

मैं बोली, “अरे, तो ले लेना अलग से पैसे, फूल तो लगा दो.”

वह बोला, “फूल कैसे लगा दूं, मैडम जी, मिट्टी किधर है?”

मैं सोच में पड़ गई, मिट्टी कहां है. मुझे पसोपेश में देख वह फूलवाला वाला बोला, “ मिट्टी लेनी है?”

मैं ने झट से हामी भरी तो उस ने एक छोटा सा पैकेट निकाला और बोला, “यह 5 किलो मिट्टी है, 375 रुपए लगेंगे. लेना है, तो बोलो.”

मिट्टी इतनी कम थी कि एक गमला भी ठीक से नहीं भर सकता था. पर फूल वाले ने बड़ी कुशलता से 4 गमलों में जराजरा सी मिट्टी डाल कर गुलाब के पौधे लगा दिए और बाकी मिट्टी कल लाने की बात कह कर चला गया.

6 गुलाब के पौधे बेचारे यों ही बालकनी के फर्श पर गिरे पड़े से थे. अपने अंजाम को सोच कर मानो डरेडरे से थे. मैं ने फोन पर अपनी मित्रमंडली में अपनी परेशानी बताई, तो सब ने औनलाइन मिट्टी खरीदने का सुझाव दिया. मैं झटपट औनलाइन मिट्टी सर्च करने लगी. यहां तो तरहतरह की मिट्टियों की भरमार थी. हम तो एक ही मिट्टी समझते थे. यहां मिट्टी की हजारों किस्में उपलब्ध थीं.

गुलाब के लिए अलग मिट्टी तो सिताब के लिए अलग, गुलबहार के लिए अलग तो गुलनार के लिए अलग, मनीप्लांट के लिए अलग जबकि हनी प्लांट के लिए अलग, आम के लिए अलग तो एरिका पाम के लिए अलग. साथ ही कोरोना की वजह से ‘भारी’ डिस्काउंट भी मिल रहा था. 300 रुपए किलो से 1100 रुपए किलो के बीच हजारों तरह की मिट्टियां औनलाइन बेची जा रही थीं. जैसे रेड सोयल, येलो सोयल, और्गेनिक सोयल, इनआर्गेनिक सोयल, पृथ्वी सोयल, आकाश सोयल, गोबर वाली सोयल, खाद वाली सोयल आदि. और तो और, जरा ज्यादा दाम पर यहां मिट्टी के बिस्कुट भी उपलब्ध थे.

सोने के बिस्कुट, खाने के बिस्कुट तो सुने थे पर ये मिट्टी के बिस्कुट पहली बार सुन रही थी. कई घंटे दिमाग खपाने के बाद मैं ने 15 किलो खाद वाली मिट्टी और 10 मिट्टी के बिस्कुट और्डर किए, जो कि सुबहसुबह एक छोटे से पैकेट में डिलीवरी बौय दे गया.

बड़े बुजुर्ग कह गए थे कि एक समय ऐसा आएगा जब पानी भी पैकेट में बिकेगा. पर मिट्टी भी पैकेट में बिकेगी, यह तो किसी ने सोचा ही न होगा. खैर, बिस्कुट समेत पूरी मिट्टी बमुश्किल 5 से 7 किलो होगी. अभी औनलाइन मिट्टी खरीदने का दुख कम भी नहीं हुआ था कि दोपहर को फूलवाला भी 5 किलो कह कर दोचार मुट्ठी मिट्टी दे गया. बदले में वह पेटीएम के पूरे पैसे ले गया. औनलाइन मिट्टी खरीदने के जख्म को फूलवाला हरा कर गया और जराजरा सी मिट्टी में किसी तरह से गुलाबों को खड़ा कर गया.

ऐसी अज़ीबोगरीब मिट्टी को देख कर बेचारे गुलाब बेहद डरे हुए थे. बड़ी मुश्किल से मुट्ठीभर मिट्टी में झुकेझुके से पड़े हुए थे वे. गुलाबों की दशा देख कर मेरा मन दिल्ली के प्रदूषित आसमान की तरह धुंधवारा सा होने लगा. हाय री मिट्टी, तू तो सोने से भी कीमती निकली. मन किया कि बिहार जा कर एक बोरी मिट्टी ही ले आऊं, पर कोरोना माई की वजह से यह मंसूबा भी पूरा नहीं हो सका. भरेमन से आखिरकार मैं ने गुलाबों को उन के हाल पर छोड़ देने का फैसला किया. एक लंबी सांस के साथ मेरे मुंह से निकला- एक चुटकी मिट्टी की कीमत तुम क्या जानो…

Short Story : यंग फौरएवर थेरैपी

Short Story : करवट बदल कर बांह फैलाई तो हाथ में सिरहाना आ गया. हम समझ गए कि श्रीमतीजी उठ चुकी हैं. सुबह की शुरुआत रोमांटिक हो तो कहना ही क्या. सोचते हुए लगे श्रीमतीजी को खोजने. फिर किचन से धुआं उठता देख समझ गए कि गरमगरम परांठे सिंक रहे हैं, सो वहीं पहुंच पीछे से ही गलबहियां डाल लगे हांकने, ‘‘दिन जवानी के चार यार प्यार किए जा…’’

झटके से हाथ हटातीं श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘हटो, सुबहसुबह तुम्हें और कोई काम नहीं, जाओ बच्चों को उठाओ, स्कूल भेजना है. बुढ़ाती उम्र में भी इन्हें रोमांस सूझता है.’’

श्रीमतीजी के इस देखेभाले अंदाज को इग्नोर करते हम बोले, ‘‘जानम कहां तुम बुढ़ापे की बातें करने लगीं. तन से तो ढलकती जा रही हो मन से तो मत ढलको. यंग फौरएवर थेरैपी अपनाओ और सदाबहार रोमांटिक बनो,’’ कहते हुए हम फिर उन्हें बांहों में भरते हुए बोले, ‘‘ओ मेरी जोराजबीं, तुझे मालूम नहीं तू अभी तक है हसीं और मैं जवान…’’

‘‘हांहां, तुम होगे सदाबहार जवान और रोमांटिक. मैं तो न हसीन रही, न जवान. इस चूल्हेचौके में झोंक कर तुम ने मुझे हसीन और जवान रहने ही कहां दिया?’’ श्रीमतीजी ने ताना मारा, ‘‘और यह यंग फौरएवर थेरैपी क्या है बुड्ढों को जवान बनाने का नुसखा या रोमांटिक बनाने का?’’

‘‘भई अपना कर देखो इस फौर्मूले को, कैसे बुढि़या से गुडि़या बनती हो तुम भी, बिलकुल बार्बी डौल की तरह,’’ हम ने फिर उन्हें बांहों में भरते हुए कहा.

इसी बीच बच्चे खुद ही उठ कर आ गए और हमें आलिंगनबद्ध देख झेंप से गए. हम भी अपना रोमांसासन छोड़ चल दिए पानी गरम करने की रौड लगाने.

औरत सब कुछ सह सकती है लेकिन बूढ़ी, बहनजी होने का ताना नहीं. ऐसे में भाजीतरकारी बेचने वाला भी अगर गलती से माताजी कह दे तो राशनपानी ले कर उस पर सवार हो जाने वाली हमारी श्रीमतीजी के मुख से खुद के लिए खुद ही किया गया बुड्ढी का संबोधन सुन हम अचंभित थे. पर वापस रोमांटिक मुद्रा में आते हुए बोले, ‘‘हमारा मतलब है आप को फौरएवर यंग बनना चाहिए यानी हर बढ़ते वर्ष में भी पिछले वर्ष जैसा जवान और हसीन. फिर देखो आप भी सदाबहार रोमांटिक गाने न गाने लगो तो हमारा नाम नहीं.’’

‘‘यानी अपनी उम्र से भी कम दिखें? लेकिन कैसे, घर के खपेड़ों से फुरसत मिले तो न? हमेशा तो आप चूल्हेचौके में खपाए रहते हो. 15 वर्षों में ही 50 वर्ष की बूढ़ी लगने लगी हूं तिस पर शरीर थुलथुल होता जा रहा है सो अलग,’’ श्रीमतीजी ने अपनी टमी की ओर इशारा किया.

हम भी मौके पर चौका मारते हुए बोल उठे, ‘‘भई कुछ जौगिंग, ऐक्सरसाइज बगैरा कर फिगर का खयाल रखो, स्वास्थ्य का खयाल रखो तो फिर से गुडि़या बन जाओगी, मेरी बुढि़या. हम तो कहते हैं आज से ही शुरू कर दो यंग फौरएवर की जंग.’’

हमारी बात श्रीमतीजी की समझ में आई कि नहीं, पता नहीं पर इतना जरूर समझ गईं कि उन्हें बुढि़या नहीं गुडि़या दिखना है, बिलकुल बार्बी डौल जैसा. वैसे भी उम्र भले बढ़ती रहे, लेकिन नारी कभी नहीं चाहती कि  वह बुढि़या दिखे. अत: श्रीमतीजी ने सोच लिया कि चाहे लाख जतन करने पड़ें, बुढि़या से गुडि़या बन कर ही रहेंगी.

अगले दिन से ही मेकअप से ले कर ऐरोबिक्स और न जाने कौनकौन से नुसखों से खुद को यंग फौरएवर दिखाने के फौर्मूले ढूंढ़ने में ऐसे रातदिन एक किया कि अगर इतना पहले पढ़ लेतीं तो कालेज डिगरी के साथसाथ पीएचडी की डिगरी भी  मिल ही जाती.

लेकिन हमारे लिए पासा उलटा पड़ गया था. बुढि़या से गुडि़या बनने की धुन में सवार हमारी श्रीमतीजी रोज सुबह जौगिंग पर जातीं और जातेजाते हिदायत दे जातीं कि गैस पर दाल रखी है, 2 सीटियां आने पर उतार देना, बच्चों को उठा देना, नाश्ता करवा देना….

अब हम बच्चों को उठाते तो इतने में 2 की जगह 3 सीटियां बज जातीं, बच्चों को नहला रहे होते तो दूध उबल जाता, दाल को एक ओर तड़का लगाते तो दूसरे चूल्हे पर रखी सब्जी जल जाती. किसी तरह सब तैयार होता तो बच्चे लेट हो जाते. उन की स्कूल वैन निकलने का खामियाजा हमें उन्हें स्कूल छोड़ कर आने के रूप में भुगतना पड़ता.

तिस पर रोज श्रीमतीजी की अलगअलग हिदायतें कि आज मौसंबी का जूस पीना है, आज कौर्न का नाश्ता करना है… जवान दिखने के लिए पौष्टिक आहार जरूरी है न.

और तो और उस दिन जौगिंग से आते ही श्रीमतीजी ने फरमाइश रख दी, ‘‘इन कपड़ों में योगा नहीं होता. ट्रैक सूट लेना होगा, जौगिंग शूज भी चाहिए,’’ और फिर कई हजार की चपत लगा अगले ही दिन ट्रैक सूट पहन इतराती हुई बोलीं, ‘‘आज कौर्न का नाश्ता बना कर रखना, साथ में पालक का सूप और कुछ बादाम भिगो देना.’’

हम हां या न कहते उस से पहले घर का दरवाजा खोल निकल लीं. ट्रैक सूट पहने देख हमें लग रहा था कि बुढ़ाते कदम फिर बैक हो रहे हैं. सो हंस दिए. फिर मन में आया कि आज तो संडे है बच्चों ने भी नहीं जाना सो क्यो न पार्क में चल कर देखा जाए कि श्रीमतीजी कैसे बना रही हैं खुद को जवान. सो कौर्न का नाश्ता बनाया, बादाम भिगोए और पालक का सूप तैयार कर चल दिए हम भी पार्क की ओर.

पार्क का दृश्य देख कर तो हम जलभुन कर कोयला ही हो गए. एक बूढ़ा श्रीमतीजी

को योगा सिखाने के बहाने कभी हाथ पकड़ता तो कभी शीर्षासन करवाने के बहाने टांगें पकड़ कर बैलेंस बनवाता. हमें यह देख अच्छा न लगा, लेकिन अपना सा मुंह लिए बिना उन्हें डिस्टर्ब किए घर वापस आ गए.

थोड़ी ही देर में वही बूढ़ा भागता हुआ आता दिखा. आगेआगे हमारी श्रीमतीजी भी भाग रही थीं. फिर घर आ कर उस से परिचय करवाती बोलीं, ‘‘ये हमारे व्यायाम के टीचर हैं… घर देखना चाहते थे. बहुत अच्छी पकड़ है इन की हर आसन पर…’’

‘‘हां देख ली इन की पकड़. हमें तो बुढ़ापे में यौनासन करते नजर आते हैं ये,’’ हम ने कहना चाहा पर बोल न पाए और न चाहते हुए भी बूढ़े से हाथ मिलाया व सोचने लगे कि श्रीमतीजी को कैसे समझाएं कि योगा के बहाने ये आप को कैसेकैसे बैड टच करते हैं.

श्रीमतीजी ने नाश्ते की फरमाइश की तो हम ने बूढ़े के सामने कौर्न और भीगे बादाम ही रख दिए और मन ही मन बोले कि लो खाओ योगीजी.

उस के मना करने पर हम समझ गए कि न पेट में आंत, न मुंह में दांत, यह बुड्ढा क्या खाएगा कौर्न और बादाम.

उन के जाने पर हम ने चैन की सांस ली, लेकिन लगे श्रीमतीजी पर खीज उतारने, ‘‘यंग फौरएवर बनने को कहा था, फास्ट फौरवर्ड बनने को नहीं, जो उस बुड्ढे संग योगा करने लगीं. उस बुड्ढे की जवानी तो वापस आने से रही, हमारा रोमांस भी कहीं धराशायी न हो जाए.’’

हम कहते हुए कुढ़ते रहे और श्रीमतीजी पैर पटक कर चल दीं फ्रैश होने. फिर हम लगे श्रीमतीजी के गुस्से को शांत करने की जुगत ढूंढ़ने.

अब श्रीमतीजी दिनबदिन यंग होती जा रही थीं और हम चूल्हेचौके में फंसे बैकवर्ड. हमें कुढ़न थी कि हमारा रोमांस का मजा छिन रहा है और वह बुड्ढा दूध से मलाई लपकता जा रहा है.

दिन भर के  थकेहारे, सुबहशाम किचन के मारे हम रात को रोमांस की चाह लिए श्रीमतीजी के गलबहियां डालते तो वे कह उठतीं, ‘‘सोने दो सुबह जल्दी उठना है… बुढि़या से गुडि़या बनना है न तुम्हारे लिए.’’

हम खिसियाते से अपना रोमांस मन और सपनों में लिए दूसरी करवट सो जाते.

उस दिन हम औफिस से निकले तो सारे रास्ते इंतजार करते रहे पर श्रीमतीजी का फोन नहीं आया. पहले तो मैट्रो में पैर बाद में रखते थे कि घंटी बज उठती थी और खनखनाती आवाज में पूछा जाता कि कहां पहुंचे? फिर उसी हिसाब से चाय बनती. हम आशंकित हुए.

तभी फोन घनघनाया तो हम खुशी के मारे बल्लियों उछल पड़े. पर अगले ही पल तब हमारी खुशी काफूर हो गई जब श्रीमतीजी ने हिदायत दी कि घर पहुंच कर दाल चढ़ा देना. सब्जी काट रखना. मैं जिम में हूं. आज से ही जौइन किया है. थोड़ा लेट लौटूंगी.

हम खुद पर ही कुढ़े, ‘‘सुबह योगा, जौगिंग क्या कम थी जो अब जिम भी जौइन कर मारा? बुढि़या को गुडि़या बनने का मंत्र क्या मिला कि हमारी तो जान आफत में फंस गई. पर मरता क्या न करता. हम ने श्रीमतीजी की खुशी के लिए यह भी सह लिया यह सोच कर कि वे भी तो हमें जवां दिखाने के लिए संडे के संडे हमारे बाल रंगती हैं, फेशियल कर हमारे बुढ़ाते फेस की झुर्रियां हटाती हैं

खाने का इंतजाम कर श्रीमतीजी का इंतजार कर ही रहे थे कि डोरबैल बजी. दरवाजा खोला तो श्रीमतीजी का हुलिया देख दंग रह गए. स्लीवलैस टीशर्ट और निकर में उन्हें देख हमारी आंखें खुली की खुली रह गईं.

‘‘इस तरह टुकुरटुकुर क्या देख रहे हो? जिम ट्रेनर ने कहा था ऐसी ड्रैस के लिए,’’ श्रीमतीजी ने बताया तो हम समझ गए कि आज फिर यंग फौरएवर की धुन में हमारी जेब कटी.

इस यंग फौरएवर की धुन में हमारी श्रीमतीजी इतनी फास्ट फौरवर्ड हो गईर् थीं कि हमारी हालत पतली हो गई थी. हम रहरह कर उस क्षण को कोसते जब हम ने बुढि़या को गुडि़या बनने का सपना दिखाया था. इस का 1 ही महीने में इतना असर हुआ कि लग रहा था श्रीमतीजी अगले 3-4 महीनों में बुढि़या से गुडि़या नजर आने लगेंगी पर हम चूल्हेचौके और औफिस के बीच सैंडविच बन कर रह जाएंगे.

खैर, अब सुबह के साथ शाम का काम भी हमारे ही सिर मढ़ दिया गया था. तिस पर श्रीमतीजी के लिए अलग पौष्टिक आहार के चक्कर में घर का खर्च बढ़ा सो गलग.

उस दिन शाम को जल्दी औफिस से निकले तो सोचा जिम जा कर श्रीमतीजी की

ट्रेनिंग का जायजा लिया जाए. लेकिन जिम पहुंचते ही वहां का माहौल देख कर हम तमतमा उठे. हमारा चेहरा फक्क रह गया. श्रीमतीजी ट्रेड मिल पर दौड़ लगा रही थीं और आसपास सभी पुरुष ऐक्सरसाइज के बजाय ऐंटरटेनमैंट ज्यादा कर रहे थे. सब की नजरें हमारी श्रीमतीजी के सैक्सी बदन पर ही थीं, बावजूद इस के ट्रेनर भी डंबल, बैंच प्रैस आदि करवाने के बहाने यहांवहां टच कर जाता.

मूक दर्शक बने हम ने सब देखा, फिर न चाहते हुए भी श्रीमतीजी के कहने पर सब से मिले और वापस घर आ कर श्रीमतीजी पर बिगड़े, ‘‘तुम्हें यंग फौरएवर बनाने के चक्कर में हम काफी बैकवर्ड हो गए हैं. संभालो अपना घर हम तो हम, बच्चे भी इग्नोर हो रहे हैं.’’

‘‘हम ने सोचा था आप की काया छरहरी बनेगी, सुंदर दिखोगी, खुश रहोगी, तो रोमांस का मजा भी दोगुना हो जाएगा. लेकिन इस यंग फौरएवर के चक्कर में आप इतनी फास्ट फौरवर्र्ड हो जाएंगी, सोचा न था. देखा, कैसे ट्रेनिंग के बहाने वह ट्रेनर तुम्हें कहांकहां छू रहा था.’’

हमारी दुखती रग का मर्म श्रीमतीजी क्या समझतीं. उन्हें तो यही लग रहा था कि हम ईर्ष्यालु हो गए हैं. सो भड़कीं, ‘‘भाड़ में गया तुम्हारा यंग फौरएवर का फौर्मूला. हम ही पागल थीं जो आप को मेहंदी लगा तुम्हारे बाल काले कर आप को जवान दिखाने की पुरजोर कोशिश में लगी रहीं. समाज में 2 पुरुषों ने क्या देख लिया तुम से सहा न गया इस से तो हम बुढि़या ही ठीक हैं,’’ और फिर पैर पटकती चली गईं.

अब इन्हें कौन समझाए कि वे जिन योगाभ्यासियों और जिम ट्रेनर से ट्रेनिंग लेती हें वे सिर्फ उन्हें पराई नार समझते हैं और ऐसे कपड़ों में झांकते बदन को टुकुरटुकुर देखते हैं जो हमें कतई बरदाश्त नहीं. दूर से देखना तो अलग सिखाने, ऐक्सरसाइज करवाने के बहाने यहांवहां बैड टच करते रहते हैं, समझती हो क्या.

हालांकि श्रीमतीजी अब खूब छरहरी दिखने लगी थीं. खूबसूरत तो वे पहले से ही थीं तिस पर यंग फौरएवर की धुन ने ऐसा गजब ढाया कि बुढि़या वाकई गुडि़या दिखने लगी थीं. गली से निकलतीं तो सब देखते रह जाते. आसपास की सभी औरतें इस कायाकल्प का रहस्य जानने को उत्सुक थीं.

एक दिन श्रीमतीजी जौगिंग पर गई हुई थीं, किसी ने दरवाजा खटखटाया. हम ने दरवाजा खोला तो सामने महल्ले की नामीगरामी औरतें खड़ी दिखीं. पूछने लगीं, ‘‘भाभीजी घर पर हैं?’’

हम पहले तो अवाक उन्हें देखते रह गए, फिर सहज होते हुए बोले, ‘‘नहीं, वे तो जौगिंग पर गई हैं…’’

अभी हमारी बात पूरी भी न हुई थी कि वे बोल पड़ीं, ‘‘भईर्, आजकल भाभीजी कोे देख कर लगता है उन की जवानी वापस आ गई है… कितनी छरहरी हो गई हैं… स्लीवलैस टीशर्ट और निकर में तो किसी कमसिन हसीना से कम नहीं लगतीं. कल राज जब अपने पापा के साथ सैर कर रही थीं तो कितनी हसीन लग रही थीं. हमें भी बताओ इस का राज?’’

‘वे रात अपने पिताजी के साथ सैर कर रही थीं, सुन हम भी हैरान हुए. फिर सकते में आ गए, कल रात तो हम ही दोनों सैर कर रहे थे. और तो क्या हम इतने बुढ़ा गए कि… नहींनहीं,’ हम ने सोचा. दरअसल, बुढि़या से गुडि़या बनने के चक्कर में श्रीमतीजी का हम पर से ध्यान ही हट गया था, महीने से न बालों में मेहंदी लगी थी न फेशियल किया था. तो हम बुड्ढे तो लगेंगे ही.

‘‘बताइए न क्या घुट्टी पिलाई है आप ने उन्हें,’’ रीमा ने दोबारा पूछा तो हमारी तंद्रा भंग हुई. उन महिलाओं में से कोई मोटापे से परेशान थी तो कोई बढ़ा टमी लिए घूमना पसंद नहीं कर पा रही थी. किसी की जांघें बहुत मोटी थीं. रीना के नितंब तो इतने बड़े और बेडौल थे कि उस के सोफे पर बैठते समय हमें लगा कहीं सोफा ही न बैठ जाए.

‘हमारी तपस्या सफल हो गई,’ सोच हम इतराए और फूले न समाए. सोचा, ‘बता दें इन्हें कि यह तो हमारी यंग फौरएवर थेरैपी का कमाल है,’ लेकिन फिर यह सोच चुप रह गए कि ऐसा कहना अपने मुंह मियांमिट्ठू बनना होगा. अत: बोले, ‘‘श्रीमतीजी आएंगी तो स्वयं ही पूछ लीजिएगा आप. तब तक चाय बनाता हूं.’’

वे चाय पी रही थीं तभी श्रीमतीजी आ गईं. लेकिन हमारी उम्मीद कि वे सब को बताएंगी कि हम हैं उन्हें यंग फौरएवर का फौर्मूला बता बुढि़या से गुडि़या बनाने वाले, पर इस उम्मीद के विपरीत वे बोलीं, ‘‘यह तो सुबह पार्क में योगा करने और शाम को जिम जाने का कमाल है. पता है, हमारे योगा के सर बहुत अच्छी तरह योगा सिखाते हैं. उन की और जिम ट्रेनर की वजह से हमें ऐसी सैक्सी फिगर पाने में कामयाबी मिली है.’’

हम खुद पर कुढ़ रहे थे. आदमी छोटी सी भी सफलता हासिल कर ले तो सब कहते हैं कि इस के पीछे औरत का हाथ है, लेकिन आदमी लाख खपे और औरत को कितना भी ऊपर उठाए, तब भी कोई नहीं कहता कि इस के पीछे आदमी का हाथ है. तिस पर श्रीमतीजी ने उस बुड्ढे योगी और जिम ट्रेनर को इस का श्रेय दिया तो हमारी भृकुटियां तन गईं.

उन औरतों के जाने के बाद हम श्रीमतीजी पर बिगड़े, ‘‘हमारे चूल्हे में खपने का, आप को बुढि़या से गुडि़या बनाने हेतु औफिस और घर में तालमेल बैठाने का आप को जरा भी खयाल नहीं आया? सारा श्रेय उन खूसटों को दे दिया. हम तो कुछ हैं ही नहीं,’’ और फिर खूब हो हल्ला मचा हम औफिस चल दिए.

शाम को वापस आ कर भी अनमने से सब समेटा और सोचने लगे, ‘पार्क में भेजो

तो सब बुड्ढे खूसट दिखेंगे आंखें सेंकते. जिम भेजो तो युवकों का डर. ऐसे में हमें लगा दुनिया के सारे मर्द खासकर बुड्ढे ठरकी ही होते हैं जहां औरत देखी, लाइन मारना चालू.’

समाज के इन भेडि़यों से श्रीमतीजी की हिफाजत अपना फर्ज समझ हम ने यह निर्णय लिया कि हमें भी यंग फौरएवर थेरैपी अपनानी होगी. हम भी गृहस्थी का बोझ ढोतेढोते बुढ़ाने लगे हैं. मिल कर घर के काम निबटाएंगे और साथसाथ हैल्थ बनाएंगे.

यह सोच कर हम पलंग पर लेटे ही थे कि श्रीमतीजी आ गईं यह सोच कर कि हम रूठे हैं. फिर मनाती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ आप के सदाबहार रोमांस को? थोड़ी यंग फौरवर्ड थेरैपी खुद भी आजमा लो कुढ़ने से क्या फायदा?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं कल से ही हम भी यह फौर्मूला अपनाएंगे. जिंदगी की गृहस्थी की गाड़ी दोनों मिल कर खींचेंगे, फिर समय निकाल कर यंग फौरएवर थेरैपी पर चलते हुए बुढ़ापे को अंगूठा दिखाएंगे अब सो जाओ,’’ हम ने घुड़का और फिर चादर तान करवट बदल कर यह सोच सो गए कि कल से नई शुरुआत करनी है यंग फौरएवर बनने की.

श्रीमतीजी भी हमें मनातीं चादर में छिपे हमारे शरीर को गुदगुदाती हुई बोलीं, ‘‘चादर ओढ़ कर सो गया… हायहाय भरी जवानी में मेरा बालम बुड्ढा हो गया.’’

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