Romantic Story: राजकुमार लाओगी न- चेष्टा को राजकुमार मिला या नहीं

Romantic Story: ‘‘चेष्टा, पापा के लिए चाय बना देना. हो सके तो सैंडविच भी बना देना? मैं जा रही हूं, मुझे योगा के लिए देर हो रही है,’’ कहती हुई योगिताजी स्कूटी स्टार्ट कर चली गईं. उन्होंने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा, न उन्होंने चेष्टा के उत्तर की प्रतीक्षा की. योगिताजी मध्यम- वर्गीय सांवले रंग की महिला हैं. पति योगेश बैंक में क्लर्क हैं, अच्छीखासी तनख्वाह है. उन का एक बेटा है. उस का नाम युग है. घर में किसी चीज की कमी नहीं है.

जैसा कि सामान्य परिवारों में होता है घर पर योगिताजी का राज था. योगेशजी उन्हीं के इशारों पर नाचने वाले थे. बेटा युग भी बैंक में अधिकारी हो गया था. बेटी चेष्टा एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका बन गई थी. कालेज के दिनों में ही युग की दोस्ती अपने साथ पढ़ने वाली उत्तरा से हो गई. उत्तरा साधारण परिवार से थी. उस के पिता बैंक में चपरासी थे, इसलिए जीवन स्तर सामान्य था. उत्तरा की मां छोटेछोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के साथ ही कुछ सिलाई का काम कर के पैसे कमा लेती थीं.

उत्तरा के मातापिता ईमानदार और चरित्रवान थे इसलिए वह भी गुणवती थी. पढ़ने में काफी तेज थी. उत्तरा का व्यक्तित्व आकर्षक था. दुबलीपतली, सांवली उत्तरा सदा हंसती रहती थी. वह गाती भी अच्छा थी. कालेज के सभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उद्घोषणा का कार्य वही करती थी. उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखों में गजब का आकर्षण था. उस की हंसी में युग ऐसा बंधा कि उस की मां के तमाम विरोध के आगे उस के पैर नहीं डगमगाए और वह उत्तरा के प्यार में मांबाप को भी छोड़ने को तैयार हो गया. योगिताजी को मजबूरी में युग को शादी की इजाजत देनी पड़ी. कोर्टमैरिज कर चुके युग और उत्तरा के विवाह को समाज की स्वीकृति दिलाने के लिए योगिताजी ने एक भव्य पार्टी का आयोजन किया. समाज को दिखाने के लिए बेटे की जिद के आगे योगिताजी झुक तो गईं लेकिन दिल में बड़ी गांठ थी कि उत्तरा एक चपरासी की बेटी है.

दहेज में मिलने वाली नोटों की भारी गड्डियां और ट्रक भरे सामान के अरमान मन में ही रह गए. अपनी कुंठा के कारण वे उत्तरा को तरहतरह से सतातीं. उस के मातापिता के बारे में उलटासीधा बोलती रहतीं. उत्तरा के हर काम में मीनमेख निकालना उन का नित्य का काम था. उत्तरा भी बैंक में नौकरी करती थी. सुबह पापा की चायब्रेड, फिर दोबारा मम्मी की चाय, फिर युग और चेष्टा को नाश्ता देने के बाद वह सब का लंच बना कर अलगअलग पैक करती. मम्मी का खाना डाइनिंग टेबल पर रखने के बाद ही वह घर से बाहर निकलती थी. इस भागदौड़ में उसे अपने मुंह में अन्न का दाना भी डालने को समय न मिलता था.

यद्यपि युग उस से अकसर कहता कि क्यों तुम इतना काम करती हो, लेकिन वह हमेशा हंस कर कहती, ‘‘काम ही कितना है, काम करने से मैं फिट रहती हूं.’’ योगिताजी के अलावा सभी लोग उत्तरा से बहुत खुश थे. योगेशजी तो उत्तरा की तारीफ करते नहीं अघाते. सभी से कहते, ‘‘बहू हो तो उत्तरा जैसी. मेरे बेटे युग ने बहुत अच्छी लड़की चुनी है. हमारे तो भाग्य ही जग गए जो उत्तरा जैसी लड़की हमारे घर आई है.’’

चेष्टा भी अपनी भाभी से घुलमिल गई थी. वह और उत्तरा अकसर खुसरफुसर करती रहती थीं. दोनों एकदूसरे से घंटों बातें करती रहतीं. सुबह उत्तरा को अकेले काम करते देख चेष्टा उस की मदद करने पहुंच जाती. उत्तरा को बहुत अच्छा लगता, ननदभावज दोनों मिल कर सब काम जल्दी निबटा लेतीं. उत्तरा बैंक चली जाती और चेष्टा स्कूल.

योगिताजी बेटी को बहू के साथ हंसहंस कर काम करते देखतीं तो कुढ़ कर रह जातीं…फौरन चेष्टा को आवाज दे कर बुला लेतीं. यही नहीं, बेटी को तरहतरह से भाभी के प्रति भड़कातीं और उलटीसीधी पट्टी पढ़ातीं. उत्तरा की दृष्टि से कुछ छिपा नहीं था लेकिन वह सोचती थी कि कुछ दिन बाद सब सामान्य हो जाएगा. कभी तो मम्मीजी के मन में मेरे प्रति प्यार का पौधा पनपेगा. वह यथासंभव अच्छी तरह

कार्य करने का प्रयास करती, लेकिन योगिताजी को खुश करना बहुत कठिन था. रोज किसी न किसी बात पर उन का नाराज होना आवश्यक था. कभी सब्जी में मसाला तेज तो कभी रोटी कड़ी, कभी दाल में घी ज्यादा तो कभी चाय ठंडी है, दूसरी ला आदि. युग इन बातों से अनजान नहीं था. वह मां के हर अत्याचार को नित्य देखता रहता था. पर उत्तरा की जिद थी कि मैं मम्मीजी का प्यार पाने में एक न एक दिन अवश्य सफल हो जाऊंगी. और वे उसे अपना लेंगी.

योगिताजी को घर के कामों से कोई मतलब नहीं रह गया था, क्योंकि उत्तरा ने पूरे काम को संभाल लिया था, इसलिए वह कई सभासंगठनों से जुड़ कर समाजसेवा के नाम पर यहांवहां घूमती रहती थीं. योगिताजी चेष्टा की शादी को ले कर परेशान रहती थीं, लेकिन उन के ख्वाब बहुत ऊंचे थे. कोई भी लड़का उन्हें अपने स्तर का नहीं लगता था. उन्होंने कई जगह शादी के लिए प्रयास किए लेकिन कहीं चेष्टा का सांवला रंग, कहीं दहेज का मामला…बात नहीं बन पाई.

योगिताजी के ऊंचेऊंचे सपने चेष्टा की शादी में आड़े आ रहे थे. धीरेधीरे चेष्टा के मन में कुंठा जन्म लेने लगी. उत्तरा और युग को हंसते देख कर उसे ईर्ष्या होने लगी थी. चेष्टा अकसर झुंझला उठती. उस के मन में भी अपनी शादी की इच्छा उठती थी. उस को भी सजनेसंवरने की इच्छा होती थी. चेष्टा के तैयार होते ही योगिताजी की आंखें टेढ़ी होने लगतीं. कहतीं, ‘‘शादी के बाद सजना. कुंआरी लड़कियों का सजना- धजना ठीक नहीं.’’ चेष्टा यह सुन कर क्रोध से उबल पड़ती लेकिन कुछ बोल न पाती. योगिताजी के कड़े अनुशासन की जंजीरों में जकड़ी रहती. योगिताजी उस के पलपल का हिसाब रखतीं. पूछतीं, ‘‘स्कूल से आने में देर क्यों हुई? कहां गई थी और किस से मिली थी?’’

योगिताजी के मन में हर क्षण संशय का कांटा चुभता रहता था. उस कुंठा को जाहिर करते हुए वे उत्तरा को अनापशनाप बकने लग जाती थीं. उन की चीख- चिल्लाहट से घर गुलजार रहता. वे हर क्षण उत्तरा पर यही लांछन लगातीं कि यदि तू अपने साथ दहेज लाती तो में वही दहेज दे कर बेटी के लिए अच्छा सा घरवर ढूंढ़ सकती थी. योगिताजी के 2 चेहरे थे. घर में उन का व्यक्तित्व अलग था लेकिन समाज में वह अत्यंत मृदुभाषी थीं. सब के सुखदुख में खड़ी होती थीं. यदि कोई बेटीबहू के बारे में पूछता था तो बिलकुल चुप हो जाती थीं. इसलिए उन की पारिवारिक स्थिति के बारे में कोई नहीं जानता था. योगिताजी के बारे में समाज में लोगों की अलगअलग धारणा थी. कोई उन्हें सहृदय तो कोई घाघ कहता.

एक दिन योगिताजी शाम को अपने चिरपरिचित अंदाज में उत्तरा पर नाराज हो रही थीं, उसे चपरासी की बेटी कह कर अपमानित कर रही थीं तभी युग क्रोधित हो उठा, ‘‘चलो उत्तरा, अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह सकता.’’

घर में कोहराम मच गया. चेष्टा रोए जा रही थी. योगेशजी बेटे को समझाने का प्रयास कर रहे थे. परंतु युग रोजरोज की चिकचिक से तंग हो चुका था. उस ने किसी की न सुनी. दोचार कपड़े अटैची में डाले और उत्तरा का हाथ पकड़ कर घर से निकल गया. योगिताजी के तो हाथों के तोते उड़ गए. वे स्तब्ध रह गईं…कुछ कहनेसुनने को बचा ही नहीं था. युग उत्तरा को ले कर जा चुका था. योगेशजी पत्नी की ओर देख कर बोले, ‘‘अच्छा हुआ, उन्हें इस नरक से छुटकारा तो मिला.’’

योगिताजी अनर्गल प्रलाप करती रहीं. सब रोतेधोते सो गए. सुबह हुई. योगेशजी ने खुद चाय बनाई, बेटी और पत्नी को देने के बाद घर से निकल गए. चेष्टा ने जैसेतैसे अपना लंच बाक्स बंद किया और दौड़तीभागती स्कूल पहुंची.

घर में सन्नाटा पसर गया था. आपस में सभी एकदूसरे से मुंह चुराते. चेष्टा सुबहशाम रसोई में लगी रहती. घर के कामों का मोर्चा उस ने संभाल लिया था, इसलिए योगिताजी की दिनचर्या में कोई खास असर नहीं पड़ा था. वे वैसे भी सामाजिक कार्यों में ज्यादा व्यस्त रहती थीं. घर की परवा ही उन्हें कहां थी. योगेशजी से जब भी योगिताजी की बातचीत होती चेष्टा की शादी के बारे में बहस हो जाती. उन का मापदंड था कि मेरी एक ही बेटी है, इसलिए दामाद इंजीनियर, डाक्टर या सी.ए. हो. उस का बड़ा सा घर हो. लड़का राजकुमार सा सुंदर हो, परिवार छोटा हो आदि, पर तमाम शर्तें पूरी होती नहीं दिखती थीं.

चेष्टा की उम्र 30 से ऊपर हो चुकी थी. उस का सांवला रंग अब काला पड़ता जा रहा था. तनाव के कारण चेहरे पर अजीब सा रूखापन झलकने लगा था. चिड़चिड़ेपन के कारण उम्र भी ज्यादा दिखने लगी थी. उत्तरा के जाने के बाद चेष्टा गुमसुम हो गई थी. घर में उस से कोई बात करने वाला नहीं था. कभीकभी टेलीविजन देखती थी लेकिन मन ही मन मां के प्रति क्रोध की आग में झुलसती रहती थी. तभी उस को चैतन्य मिला जिस की स्कूल के पास ही एक किताबकापी की दुकान थी. आतेजाते चेष्टा और उस की आंखें चार होती थीं. चेष्टा के कदम अनायास ही वहां थम से जाते. कभी वहां वह मोबाइल रिचार्ज करवाती तो कभी पेन खरीदती. उस की और चैतन्य की दोस्ती बढ़ने लगी. आंखोंआंखों में प्यार पनपने लगा. वह मन ही मन चैतन्य के लिए सपने बुनने लगी थी. दोनों चुपकेचुपके मिलने लगे. कभीकभी शाम भी साथ ही गुजारते. चेष्टा चैतन्य के प्यार में खो गई. यद्यपि चैतन्य भी चेष्टा को प्यार करता था परंतु उस में इतनी हिम्मत न थी कि वह अपने प्यार का इजहार कर सके.

चेष्टा मां से कुछ बताती इस के पहले ही योगिताजी को चेष्टा और चैतन्य के बीच प्यार होने का समाचार नमकमिर्च के साथ मिल गया. योगिताजी तिलमिला उठीं. अपनी बहू उत्तरा के कारण पहले ही उन की बहुत हेठी हो चुकी थी, अब बेटी भी एक छोटे दुकानदार के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही है. यह सुनते ही वे अपना आपा खो बैठीं और चेष्टा पर लातघूंसों की बौछार कर दी.

क्रोध से तड़प कर चेष्टा बोली, ‘‘आप कुछ भी करो, मैं तो चैतन्य से मिलूंगी और जो मेरा मन होगा वही करूंगी.’’ योगिताजी ने मामला बिगड़ता देख कूटनीति से काम लिया. वे बेटी से प्यार से बोलीं, ‘‘मैं तो तेरे लिए राजकुमार ढूंढ़ रही थी. ठीक है, तुझे वह पसंद है तो मैं उस से मिलूंगी.’’

चेष्टा मां के बदले रुख से पहले तो हैरान हुई फिर मन ही मन अपनी जीत पर खुश हो गई. चेष्टा योगिताजी के छल को नहीं समझ पाई. अगले दिन योगिताजी चैतन्य के पास गईं और उस को धमकी दी, ‘‘यदि तुम ने मेरी बेटी चेष्टा की ओर दोबारा देखा तो तुम्हारी व तुम्हारे परिवार की जो दशा होगी, उस के बारे में तुम कभी सोच भी नहीं सकते.’’

इस धमकी से सीधासादा चैतन्य डर गया. वह चेष्टा से नजरें चुराने लगा. चेष्टा के बारबार पूछने पर भी उस ने कुछ नहीं बताया बल्कि यह बोला कि तुम्हारी जैसी लड़कियों का क्या ठिकाना, आज मुझ में रुचि है कल किसी और में होगी. चेष्टा समझ नहीं पाई कि आखिर चैतन्य को क्या हो गया. वह क्यों बदल गया है. चैतन्य ने तो सीधा उस के चरित्र पर ही लांछन लगाया है. वह टूट गई. घंटों रोती रही. अकेलेपन के कारण विक्षिप्त सी रहने लगी. इस मानसिक आघात से वह उबर नहीं पा रही थी. मन ही मन अकेले प्रलाप करती रहती थी. चैतन्य से सामना न हो, इस कारण स्कूल जाना भी बंद कर दिया.

योगिताजी बेटी की दशा देख कर चिंतित हुईं. उस को समझाती हुई बोलीं कि मैं अपनी बेटी के लिए राजकुमार लाऊंगी. फिर उसे डाक्टर के पास ले गईं. डाक्टर बोला, ‘‘आप की लड़की डिप्रेशन की मरीज है,’’ डाक्टर ने कुछ दवाएं दीं और कहा, ‘‘मैडमजी, इस का खास ध्यान रखें. अकेला न छोड़ें. हो सके तो विवाह कर दें.’’

थोड़े दिनों तक तो योगिताजी बेटी के खानेपीने का ध्यान रखती रहीं. चेष्टा जैसे ही थोड़ी ठीक हुई योगिताजी अपनी दुनिया में मस्त हो गईं. जीवन से निराश चेष्टा मन ही मन घुटती रही. एक दिन उस पर डिप्रेशन का दौरा पड़ा, उस ने अपने कमरे का सब सामान तोड़ डाला. योगिताजी ने कमरे की दशा देखी तो आव देखा न ताव, चेष्टा को पकड़ कर थप्पड़ जड़ती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ…चैतन्य ने मना किया है तो क्या हुआ, मैं तुम्हारे लिए राजकुमार जैसा वर लाऊंगी.’’ यह सुनते ही चेष्टा समझ गई कि यह सब इन्हीं का कियाधरा है. कुंठा, तनाव, क्रोध और प्रतिशोध में जलती हुई चेष्टा में जाने कहां की ताकत आ गई. योगिताजी को तो अनुमान ही न था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है. चेष्टा ने योगिताजी की गरदन पकड़ ली और उसे दबाती हुई बोली, ‘‘अच्छा…आप ने ही चैतन्य को भड़काया है…’’

उसे खुद नहीं पता था कि वह क्या कर रही है. उस के क्रोध ने अनहोनी कर दी. योगिताजी की आंखें आकाश में टंग गईं. चेष्टा विक्षिप्त हो कर चिल्लाती जा रही थी, ‘‘मेरे लिए राजकुमार लाओगी न…’’ Romantic Story

Hindi Fictional Story: बाबा का भूत- क्या था बाबा की मौत का रहस्य

Hindi Fictional Story: परदा उठता है. मंच पर अंधेरा है. दाएं पार्श्व पर धीमी रोशनी गिरती है. वहां 2 कुरसियां रखी हैं. एक अधेड़ सा व्यक्ति जोगिया कपड़ों में और एक युवक वहां बैठा है.

परदे के पीछे से आवाजें आती हैं :

‘‘बाबा बीमार है, अब तो चलाचली है, बैंड वालों को बता दिया है. विमान निकलेगा. आसपास के संतों को भी सूचना दी जा चुकी है. उदयपुर से भाई साहब रवाना हो चुके हैं. महामंडलेश्वर श्यामपुरीजी भी आने वाले हैं, पर बाबाओं में झगड़ा है, रामानंदी मंजूनाथ कह रहे हैं, अंतिम संस्कार हमारे ही अखाड़े के तरीके से होगा.’’

आवाजें धीरेधीरे शोर में बढ़ती जाती हैं फिर अचानक परदे के पीछे की आवाजें धीमी पड़ती जाती हैं.

शास्त्रीजी- भैया, अपना आश्रम तो बन गया है, अब पिंकीजी आगे का प्रबंध आप को करना है.

पिंकी- जी वह, बिजली का बिल.

शास्त्रीजी-(इशारा करते हुए) आश्रम का लगा दो.

पिंकी- पर वह तो बाबा के नाम है.

शास्त्रीजी- तो क्या हुआ, अभी तो पूरा आश्रम एक ही है.

पिंकी- यह आश्रम तो अलग बना है.

शास्त्रीजी- (हंसता है) पर बाबा का कोई भरोसा नहीं. मेरा पूरा जीवन यहां निकल गया. (दांत भींचता है) आज क्या कह रहा है, कल क्या कहेगा, मरता भी नहीं है, और मर गया तो ट्रस्ट वाले अलग ऊधम मचाएंगे. जहां गुड़ होता है, हजार चींटे चले आते हैं.

पिंकी- पर आप तो ट्रस्टी हैं और महामंत्री भी.

शास्त्रीजी- अरे, यह तो बाबाओं का मामला है. मैं ने तो बाबा से वसीयत पर दस्तखत भी ले रखे हैं. बात अपने तक रखना…पर वह शिवा है न, बाबा की चेली. सुना है, उस के पास भी वसीयत है. पता नहीं, इस बाबा ने क्याक्या कर रखा है. वह चेली चालाक है, ऊधम मचा देगी.

पिंकी- महाराज, आप तो वर्षों से यहां हैं?

(तभी मोबाइल की घंटी बजती है.)

शास्त्रीजी- हांहां, मैं बोल रहा हूं. क्या खबर है?

उधर से आवाज- हालत गंभीर है.

शास्त्रीजी- (बनावटी) अरे, बहुत बुरी खबर है. मैं कामेसर से कहता हूं, वह प्रेस रिलीज बना देगा, महाराज हमारे पूज्य हैं.

(तभी फोन कट जाता है.)

(पिंकी अवाक् शास्त्रीजी की ओर देख रहा है.)

शास्त्रीजी- यार, तुम भी क्या सुन रहे हो, अपना काम करो. लाइटें लगवा दो. पैसे की फिक्र नहीं. ऐडवांस चैक दे देता हूं. बाद में खातों पर पाबंदी लग सकती है. अभी मैं सचिव हूं. ए.सी., गीजर, फैन सब लगवा लो. फिर दूसरे खर्चे आएंगे. 13 दिन तक धमाका होगा. सारे बिल आज की तारीख में काट दो. यह बाबा… (दांत भींचता है.)

(तभी जानकी का प्रवेश, वह एक प्रौढ़ सुंदर महिला है, बड़ी सी बिंदी लगा रखी है, वह घबराई सी आती है और शास्त्रीजी के पास पिंकी को बैठा देख कर जाने लगती है.)

शास्त्रीजी- तुम कहां चलीं?

जानकी- (रोते हुए) आप ने सुना नहीं, बाबा की तबीयत बहुत खराब है… जा रहे हैं.

शास्त्रीजी- बाबा जा रहे हैं तो तुझे क्या उन के साथ सती होना है?

जानकी- क्या? (उस की त्योरियां चढ़ जाती हैं, वह पिंकी की ओर देखती है. पिंकी घबरा कर चल देता है. उस के जाते ही वह गुर्रा कर कहती है,) वे दिन भूल गए जब तुम भूखे मर रहे थे. टके का तीन कोई पूछता ही नहीं था. मुझे भी क्या काम सौंपा था. यजमानों को ठंडा पानी पिलाना. यहां ठाट किए, मकान बन गए. शास्त्रीजी कहलाते हो. (हंसती है)

शास्त्रीजी- जा, चली जा, उस की आंखें तेरे लिए तरस रही होंगी. उस ढोंगी बाबा के प्राण भी नहीं निकलते.

जानकी- बहुरूपिए तो तुम पूरे हो. बाबा के सामने आए तो ढोक लगाते हो, चमचे की तरह आगेपीछे घूमते हो, पीठ पीछे गाली.

शास्त्रीजी- तुझे क्यों आग लग गई?

जानकी- आग क्यों लगेगी, तुम तो लगा नहीं पाए, सुनोगे, बस तुम क्या सुनोगे? बरसाने की हूं, लट्ठमार होली खेली है.

शास्त्रीजी- चुप कर…जैसा समझाया है, वैसा करना. बाबा के दस्तखत तो कामेसर की जमीन के लिए ले ले. उधर की जमीन तो बाबा शिवा को दे चुका है. वह वहां अपना योग केंद्र बना रही है. इधरउधर के स्वामी उस के ही साथ हैं, कामेसर से कहना…

जानकी- क्या?

शास्त्रीजी- रहने दे, वहां जाने की जरूरत ही नहीं है, मरता है, मरने दे.

(जानकी अवाक् सी शास्त्री की ओर देखती है. तभी मोबाइल की घंटी बजती है.)

शास्त्रीजी- हैलो, हैलो बोल रहा हूं.

उधर से आवाज- बाबा की हालत गंभीर है. स्वामी शिवपुरी उन से मिलना चाहते हैं.

शास्त्रीजी- क्या कहा… आईसीयू में, नहीं, उन से मना कर दो. आप किस लिए वहां हैं, वहां चिडि़या भी न जाने पाए, ध्यान रखो.

(फोन कट जाता है)

(तभी शिवा का प्रवेश, तेजतर्रार साध्वी, माथे पर लंबा टीका है, आंखों में आंसू हैं.)

शिवा- (रोते हुए) शास्त्रीजी.

शास्त्रीजी- क्या हुआ?

शिवा- बाबा जा रहे हैं, मैं गई थी. आईसीयू में. अंदर जाने नहीं दिया. यही कहा जाता रहा, वे समाधि में हैं.

शास्त्रीजी- हां, (सुबकता है. धोती के छोर से आंसू पोंछता है.) शिवा, अब सारी जिम्मेदारी तुम पर है.

शिवा- नहीं शास्त्रीजी, आप महंत हैं, यह आश्रम आप ने ही अपने खूनपसीने की कमाई से सींचा है.

(फिर इधरउधर देखती है. घूमती है, कोने में रखे बोर्ड को देख कर चौंक जाती

है – ‘पुनीत आश्रम.’)

शिवा- यह क्या, शास्त्रीजी. क्या कोई नया पुनीत आश्रम इधर आ गया है?

शास्त्रीजी- नया नहीं पुराना ही है.

शिवा- (चौंकती है) क्या आप अपना नया आश्रम बनवा रहे हैं. अभी तो बाबा जीवित हैं फिर भी…

शास्त्रीजी- हां, तो क्या हुआ? तू ने भी तो अपना हिस्सा ले कर पंचवटी बनवा ली है. क्या वह अलग आश्रम नहीं है? कल की लड़की क्या सारा ही हड़प जाएगी?

शिवा- बाबा के साथ यह धोखा.

शास्त्रीजी (कड़वाहट से)- बाबा से तेरा बहुत पे्रम है.

शिवा (दांत भींचती है)- और तेरा.

शास्त्रीजी- सब के सामने तू मेरे पांव पर पड़ती है, गुरुजी कहती है, और यहां…

शिवा- जाजा. कम से कम अतिक्रमण कर के तो मैं ने कोई काम नहीं किया. सब हटवा दूंगी… (हंसती है) 10-15 दिन की बात है. सारे स्वामी मेरे साथ हैं.

(वह तेजी से चली जाती है. शास्त्री अवाक् उसे जाते देखता है.)

(मंच पर अंधेरा है. सारंगी बजती है. करुण संगीत की धुन. मंच पर प्रकाश, पलंग बिछा है. वहां बाबा सोए हुए हैं. अस्पताल का कोई कमरा. 2 व्यक्ति डाक्टर की वेशभूषा में खड़े हैं.)

पहला- इस की हालत गंभीर है.

दूसरा- पर है कड़कू.

पहला- इस के आश्रम में नेता बहुत आते हैं.

दूसरा- हां, मेरा तबादला इसी ने करवाया था.

पहला- पर यार, इस का सचिव तो…

दूसरा- मुझे भी पता है.

पहला- बात सही है.

दूसरा- यह तो गलत है.

पहला- पर वह 1 लाख रुपए देने को राजी है.

दूसरा- उस की चेली.

पहला- वह भी राजी है, वह भी आई थी.

दूसरा- क्या वह भी यही चाहती है?

पहला- बाबा को अपनी मौत मरने दो, हम क्यों मारें.

दूसरा- चलें.

(तभी दूसरे कोने से कामेसर का प्रवेश. सीधासादा लड़का है. बाबा के प्रति अत्यधिक आदर रखता है.)

कामेसर- (रोता हुआ) बाबा सा, बाबा सा.

बाबा- (कोई आवाज नहीं. कामेसर बाबा को हिलाता है, फिर चिकोटी काटता है.) हाय. (धीमी आवाज आती है.)

कामेसर- बाबा, कैसे हैं?

बाबा- कौन, कामेसर?

कामेसर- हां.

बाबा- कामेसर, मुझे ले चल. ये यहां मुझे जरूर मार डालेंगे, मरूं तो वहीं मरूं, यहां नहीं.

कामेसर- बाबा कैसे? मैं तो यहां आईसीयू में ही बड़ी मुश्किल से आया हूं. 2 डाक्टर वहां बैठे हैं. अंदर आने नहीं देते हैं. वे पास वाले मौलाना बहुत गंभीर हैं. उन से लोग मिलने आए थे. मैं साथ हो लिया.

बाबा- कुछ कर कामेसर. पता नहीं कौन सी दवा दी है, नींद ही नींद आती है.

कामेसर- वहां सब यही कहते हैं कि आप समाधि मेें हैं, वहां तो विमान की तैयारी की जा रही है. बैंड वालों को भी बुक कर लिया गया है.

बाबा- (कुछ सोचता है) हूं, जानकी मिली?

कामेसर- कौन, मां? वे तो आई थीं, पर बापू ने ही रोक लिया.

बाबा- (गंभीर स्वर में) ठीक ही किया.

(बाबा की आंखें मुंदने लगती हैं और वे लुढ़क जाते हैं.)

(पास के कमरे से रोने की आवाज. कामेसर उधर जाता है. 2 व्यक्ति स्ट्रैचर लिए हुए, जिस पर सफेद कपड़े से ढका कोई शव है, उधर से जा रहे हैं.)

कामेसर- रुको यार.

पहला व दूसरा- क्या बात है?

कामेसर- इसे कहां ले जा रहे हो?

पहला व दूसरा- यह लावारिस है, इसे शवगृह ले जा रहे हैं.

कामेसर- कौन था यह?

पहला- कोई फकीर था, भीख मांगता होगा, मर गया.

कामेसर- वहां क्या होगा?

दूसरा- वहां रख देंगे, और क्या. लावारिस है.

(कामेसर पहले वाले के कान में धीरेधीरे फुसफुसा कर कुछ कहता है.)

पहला- नहीं.

दूसरा- क्या?

(पहला दूसरे के कान में फुसफुसाता है. सौदा 50 में तय होता है. वे दोनों रुक जाते हैं, बाबा को स्ट्रैचर पर लिटा कर उस व्यक्ति को बाबा के बिस्तर पर लिटा कर उसे चादर से ढक देते हैं. कामेसर दूसरे दरवाजे से बाबा को ले कर बाहर हो जाता है.)

(मंच पर अंधेरा, पार्श्व संगीत में सितार बज रहा है. अचानक प्रकाश, मोबाइल की घंटी बज रही है.)

शास्त्रीजी- हां, हां क्या खबर है?

उधर से आवाज आ रही है- पंडितजी, बाबा नहीं रहे, कब गए पता नहीं, पर उन के बिस्तर पर बाबा का शरीर सफेद चादर से ढका हुआ है, उन की ड्यूटी पर आया हूं, कुछ कह नहीं सकता. बाबा कब शांत हुए, पर बाबा अब नहीं रहे.

(इधरउधर से लोग दौड़ रहे हैं, मंच पर कुछ लोग शास्त्री के पास ठहर जाते हैं. शिवा रोती हुई आती है और मंच पर धड़ाम से गिर जाती है.)

शिवा- बाबा नहीं रहे, मुझे भी साथ ले जाते. (करुण विलाप)

शास्त्रीजी- (रोते हुए) जानकी… बाबा नहीं रहे.

(रोती हुई जानकी आती है. मंच पर अफरातफरी मच गई है.)

शास्त्रीजी- हांहां, तैयारी करो, कामेसर कहां है? प्रेस वालों को बुलाओ, विमान निकलेगा, बैंड बाजे बुलाओ, सभी अखाड़े वालों को फोन करो, बाबा नहीं रहे, चादर तो संप्रदाय वाले ही पहनाएंगे.

(स्वामी चेतनपुरी, जो कोने में खड़ा है, आगे बढ़ता है.)

चेतनपुरी- क्या कहा? बाबा पुरी थे. हमारे दशनामी संप्रदाय के थे. सारी रस्में उसी तरह से होंगी. दशनामी अखाड़े को मैं ने खबर दे दी है. श्यामपुरीजी आने वाले हैं. जब तक वे नहीं आते, आप यहां की किसी चीज को हाथ न लगावें. यह आश्रम हमारे पुरी अखाड़े का है.

शिवा- (दहाड़ती है) तू कौन है मालिक बनने वाला?

चेतनपुरी- (गुर्राता है) जबान संभाल कर बात कर. इतने दिनों तक हम ने मुंह नहीं खोला, इस का यह मतलब नहीं कि हम कायर हैं. हम तुझ जैसी गंदी औरत के मुंह नहीं लगते.

शिवा- (गरजती है) तू यहां हमारा अपमान करता है अधर्मी, तेरा खून पी जाऊंगी.

शास्त्रीजी- आप संन्यासी हैं, आप लडि़ए मत, यह दुख की घड़ी है, लोग क्या कहेंगे?

चेतनपुरी- (हंसता है) लोग क्या कहेंगे…तू ने अपने परिवार का घर भर लिया. यहां की सारी संपत्ति लील गया. क्या हमें नहीं पता. बरसाने में कथा बांचने वाला यहां का मठाधीश बन गया.

शास्त्री- चुप कर, नहीं तो…

(मंच पर तेज शोर मच जाता है. धीरेधीरे अंधेरा हलका होता है. दाएं पार्श्व से किसी का चेहरा मंच पर झांकता हुआ दिखाई पड़ता है. दूसरी तरफ धीमी रोशनी हो रही है.)

(शिवा डरते हुए, तेज आवाज में हनुमान चालीसा गाती है. सब लोग उस के साथ धीरेधीरे गाते हैं.)

शास्त्रीजी- कोई था.

चेतनपुरी- हां, एक चेहरा तो मैं ने भी देखा था.

शास्त्रीजी- कितना डरावना चेहरा था.

(पीछे से थपथपथप की आवाज आ रही है जैसे कोई चल रहा हो…कोई इधर ही आ रहा है. मंच पर फिर अंधेरा हो जाता है, दाएं पार्श्व में बाबा का प्रवेश. थका हुआ, धीरेधीरे चल रहा है.)

बाबा- क्या हो गया यहां? पहले कैसी खुशहाली थी. सब उजड़ गया. अरे, सब चुप क्यों हैं?

नेपथ्य से आवाजें आ रही हैं –

‘शास्त्रीजी, बैंड वाले आ गए हैं.’

‘अभी विमान भी आ गया है.’ (पोंपोंपों वाहनों की आवाजें.)

‘बाबा श्यामपुरी पधारे हैं.’

बाबा- इतने लोग यहां आए हैं. यहां क्या हो रहा है?

शास्त्रीजी- (उठ कर खड़ा हो जाता है… घबराते हुए) आप… आप, आप…

बाबा- नहीं पहचाना, शास्त्री, मैं बाबा हूं, बाबा.

शास्त्रीजी- बाबा…बाबा (उस का गला भर्रा जाता है, वह बेहोश हो कर नीचे गिर जाता है.)

(शिवा खड़ी होती है, बाबा को देखती है और चीखती हुई भाग जाती है.)

बाबा- अरे, सब डर गए. मैं बाबा हूं, बाबा.

(तभी कामेसर का प्रवेश)

कामेसर- बाबा, आप आ गए, मैं तो वहां आप की तलाश कर रहा था. वे सफाई वाले आ गए हैं, उन्हें 50 हजार रुपए देने हैं.

शास्त्रीजी- कामेसर.

बाबा- शास्त्री, मैं मर कर भूत हो गया हूं. मुझ से डरो…डरो…डरो…डरो.

कामेसर- बाबा, आप बैठ जाओ, गिर पड़ोगे. (और वह दौड़ कर कुरसी लाता है.)

बाबा- मैं भूत हूं… डरो मुझ से. भूत मर कर भी जिंदा है. (बाबा जोर से हंसता है.) बजाओ, बैंड बजाओ, नाचो. कामेसर, मिठाई बांट, देख तेरा बाबा मर कर भूत बन गया है. भूत, भूत.. Hindi Fictional Story

Rakhi : शरारती झगड़े और भावुक पलों को शेयर करते सोनी सब टीवी के कलाकार

Rakhi : हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि के साथ रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही सावन का महीना ख़तम हो जाता है और भाद्रपद का महीना शुरू हो जाता है। इस साल रक्षाबंधन का फेस्टिवल 9 अगस्त, शनिवार को मनाया जा रहा है।
यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर रोली टीका और चावल लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते है, बहने ये राखी बांधकर ही अपने भाई के उज्जवल भविष्य की कामना भी करती है। इसके साथ ही भाई भी बहनों को गिफ्ट देने के साथ उनकी प्रोटेक्शन और सेफ्टी का प्रॉमिस करते हैं।

यादों को सजोते सोनी टीवी के कलाकार

यह दिलों को जोड़ने, यादों को संजोने और भाई-बहन के रिश्ते की अनकही मजबूती को मनाने का अवसर है। जब देश इस पारंपरिक पर्व को एकजुट होकर मना रहा है, तब सोनी सब के पॉपुलर चेहरे शब्बीर आह्लूवालिया, आशी सिंह, आन तिवारी और गरिमा परिहार अपने बचपन के रक्षाबंधन की रस्मों, शरारती झगड़ों और भावुक पलों को याद कर रहे हैं, जिन्होंने इस त्योहार को उनके लिए खास बना दिया। उनकी बातों में इस पर्व की मिठास झलकती है, जो स्क्रीन पर उनके नेचुरल इमोशनल कनेक्शन को और ऑथेंटिक बनाती है।

गरिमा परिहार

एक्ट्रेस गरिमा का कहना है, “मुझमे और मेरे भाई में 10 साल का अंतर है, लेकिन हमारा रिलेशनशिप परिपक्वता और शरारत (maturity and mischief)का परफेक्ट बैलेंस है। हर रक्षाबंधन मुझे इसी स्पेशल बांड की याद दिलाता है। हम बड़े हो गए हैं, लेकिन आज भी जो राखी मैं उनकी कलाई पर बांधती हूं, उसमें वही चाइल्डहुड वाला लव, सिक्योरिटी और मेमोरीज बसती हैं। वो मेरे लिए सेकंड फादर जैसे हैं. हमेशा प्रोटेक्टिव और सपोर्ट बनने वाले। उन्हें बस मुझे देखकर ही पता चल जाता है कि मैं ठीक हूं या नहीं। अब जब वो खुद पिता बन गए हैं, तो उनके छोटे बेटे को हमारे रक्षाबंधन के रीति-रिवाजों में शामिल होते देखना बहुत सुखद लगता है। हम आज भी एक-दूसरे की खिंचाई करते हैं, लेकिन दिन के अंत में हम सुनिश्चित करते हैं कि घर मुस्कानों से भरा रहे। रक्षाबंधन केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि उनके उस सुकून भरे साथ का जश्न है, जो मेरी जिंदगी में हमेशा रहा है।”

आशी सिंह

एक्ट्रेस आशी सिंह का कहना है, “रक्षाबंधन हमेशा से मेरे लिए बहुत खास रहा है, सिर्फ मेरे भाई की वजह से ही नहीं, बल्कि इसलिए भी क्योंकि मेरी तीन शानदार बहनें भी हैं! हमारे घर में इस दिन का माहौल पूरी तरह जश्न में बदल जाता है ढेर सारी खिंचाई, सजना-संवरना और चार भाई-बहनों के होने की वजह से होने वाला हंगामा! मेरा भाई इकलौता लड़का है, इसलिए उसे बराबर से दुलार और छेड़छाड़ दोनों मिलती है! इस साल मैंने पहले ही कह दिया है कि मुझे उससे खास गिफ्ट चाहिए कोई बहाना नहीं चलेगा! हम बचपन से चॉकलेट से लेकर राज़ तक सबकुछ शेयर करते आए हैं, और रक्षाबंधन वह दिन है जब प्यार और खिंचाई दोनों कई गुना बढ़ जाते हैं। चाहे जिंदगी कितनी भी बिजी हो जाए, यह दिन हम सबको एक साथ लाता है और यही मुझे सबसे ज्यादा प्रिय है।”

शब्बीर अहलुवालिया

एक्टर शब्बीर का कहना है, “रक्षाबंधन हमेशा मेरे दिल के करीब रहा है क्योंकि यह केवल एक रस्म नहीं है, बल्कि हमेशा एक-दूसरे के लिए मौजूद रहने का वादा है। मेरी बहन शेफाली और मैं भले ही अब अलग-अलग शहरों में रहते हों, लेकिन हमारा रिश्ता उतना ही मजबूत है, शायद पहले से भी ज्यादा। हम बचपन से एक-दूसरे के सबसे बड़े सपोर्टर रहे हैं और दूरी ने इसे बदला नहीं है। इस साल मैं उसे एक खास गिफ्ट से सरप्राइज करने की योजना बना रहा हूं, जो उसके चेहरे पर मुस्कान लाए क्योंकि वह इसकी हकदार है। भले ही हम रक्षाबंधन पर एक साथ न हों, लेकिन हमारे बीच का प्यार और जुड़ाव राखी से कहीं ज्यादा गहरा है।”

आन तिवारी

एक्टर आन तिवारी का कहना है, “साची दीदी और मेरा रिश्ता प्यार, हंसी आन तिवारी और ढेर सारे राज़ों से भरा है! मैं खुद को बहुत लकी मानता हूं कि वह मेरी जिंदगी में हैं। वह मेरे लिए दूसरी मां जैसी हैं हमेशा मार्गदर्शन करने वाली, सहारा देने वाली और सही रास्ता दिखाने वाली। और मैं? मैं उनका सबसे बड़ा चीयरलीडर और रक्षक हूं उनके सामने कोई कुछ कह नहीं सकता! जब वह उदास होती हैं, तो मैं उन्हें सबसे बड़ा हग देता हूं और उन्हें हंसाने के लिए कुछ भी करता हूं। मेरे लिए यही रक्षाबंधन है उस अटूट, बिना शर्त वाले प्यार का जश्न।”

इन टीवी कलाकारों की तरह हर भाई-बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन सभी के लिए खास होता है। ये फेस्टिवल हर साल ये एहसास दिलाने आता है कि एक रिश्ता ऐसा भी है जिसमें कोई छल कपट नहीं होता है। सिर्फ चाइल्डहुड वाला लव, सिक्योरिटी,प्रोटेक्शन और मेमोरीज बसती है! Rakhi

Rakhi : बॉलीवुड स्टार्स और उनके राखी भाई और बहन

Rakhi :  रिश्ता कोई भी हो उसमें मिलावट नहीं होनी चाहिए, रिश्ता भाई बहन का हो या दोस्ती, और प्यार का लेकिन उसमें अगर स्वार्थ छल कपट, पैसा और प्रापर्टी का लालच आ गया तो वह रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टिकता , फिर चाहे वह रिश्ता खून का रिश्ता ही क्यों ना हो, आज के आधुनिक युग में जहां हर कोई अपने-अपने जिंदगी में व्यस्त है , पैसा कमाने और अच्छी जिंदगी जीने के लिए परिवार से दूर है. ऐसे में यह सारे रिश्ते खून के रिश्ते होने के बावजूद लॉन्ग डिस्टेंस के चलते उस वक्त काम नहीं आते जब हमें उनकी सख्त जरूरत होती है.

उस दौरान हमारे साथ कुछ ऐसे रिश्ते जुड़े होते हैं जो खून के रिश्ते तो नहीं होते, लेकिन बुरे वक्त में साथ देने वाले जरूर होते हैं. क्योंकि इनसे हमारा दिल का और सच्चा रिश्ता होता है.
जैसे कि रक्षाबंधन के शुभ अवसर पर हर किसी की तमन्ना होती है कि वह इस त्यौहार को खुशी खुशी और पूरे धूमधाम से मनाए और अपने भाई बहन के साथ राखी बांधकर इस त्यौहार को एंजॉय करें. लेकिन वक्त और हालात के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाता , क्योंकि हम अपने काम धंधे और करियर को संवारने के चक्कर में अपने परिवार से कोसों दूर होते हैं, ऐसे मौके पर हमारे राखी भाई और बहन जो दिल से जुड़े होते हैं और हमेशा हमारे साथ और हमारे काम आते हैं.
ऐसे राखी भाई बहन के रिश्ते में ना तो कोई दिखावा होता है , और ना हीं कोई फॉर्मेलिटी होती है, इस रिश्ते के पीछे ना कोई स्वार्थ होता है, ना ही कोई लालच होता है लेकिन इस रिश्ते में विश्वास , सम्मान, प्यार, अपनापन, जरूर होता है. जो आपको मुसीबत में देखकर बिना कुछ कहे सुने आपकी मदद के लिए आ जाता है . राखी के बंधन से बंधे ये प्यारे भाई बहन आपकी चिंता करते हैं, आपसे प्यार करते हैं और इस राखी भाई बहन वाले रिश्ते को पूरे दिल से निभाते है . बॉलीवुड सेलिब्रिटीज भी इससे अछूते नहीं है. फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई हीरो हीरोइन रक्षाबंधन पर अपने राखी भाई बहन के साथ इस त्योहार को पूरे जोश के साथ मनाते हैं. सो पेश है खून के रिश्ते नहीं बल्कि दिल से जुड़े फिल्मी कलाकारों के राखी भाई बहनों पर एक नजर….

बॉलीवुड स्टार्स और उनके राखी भाई बहन….
रक्षाबंधन का त्यौहार अटूट प्यार की मिसाल होता है लेकिन इस खास दिन पर वह लोग जरूर मायूस हो जाते हैं जिनका कोई भाई बहन यह त्यौहार मनाने के लिए उनके साथ नहीं होता, फिल्म इंडस्ट्री के गलियारे में कई ऐसे एक्टर है जो राखी बहन या भाई के साथ रक्षाबंधन के त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं. ना सिर्फ साथ निभाने का वादा करते हैं, बल्कि हर मुश्किल में साथ निभाते भी है,
एक जमाने के प्रसिद्ध एक्टर और शो मैन कहलाने वाले राज कपूर साहब अभिनेत्री निम्मी को अपनी राखी बहन मानते थे . राज कपूर और निम्मी का भाई बहन का रिश्ता फिल्म बरसात के समय शुरू हुआ था . जिसमें निम्मी ने राज कपूर की बहन का किरदार निभाया था. बॉलीवुड की हॉट एंड सेक्सी हीरोइन कैटरीना कैफ अर्जुन कपूर को अपना राखी भाई मानती हैं. और डायरेक्टर कबीर के साथ भी कैटरीना का राखी भाई वाला रिश्ता है. ऐश्वर्या राय सोनू सूद को अपना राखी भाई मानती हैं, और हर साल सोनू को बिना भूले राखी बांधती है . ऐश्वर्या और सोनू सूद का राखी भाई बहन का रिश्ता, आशुतोष गोवारिकर की फिल्म जोधा अकबर की शूटिंग से शुरू हुआ था, जो आज तक बरकरार है. बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान एक्टर पुलकित सम्राट की पत्नी श्वेता रोहिरा से हर साल राखी बंधवाते है , श्वेता से सलमान का राखी बहन का रिश्ता काफी पुराना है. प्राप्त सूत्रों के अनुसार सलमान ने श्वेता की पुलकित से शादी के दौरान कन्यादान भी किया था.
बॉलीवुड की सेक्सी हीरोइन बिपाशा बसु जॉन अब्राहम के मेकअप आर्टिस्ट वेंकी को राखी बांधती है, बिपाशा और वेंकी का भाई बहन का रिश्ता बहुत पक्का रिश्ता है जिसके तहत दोनों ही हर साल रक्षा बंधन एक साथ मानना नहीं भूलते. एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया जो हिंदी और साउथ फिल्मों में अपने अभिनय और डांस का झंडा फहरा रही है, वह साजिद नाडियाडवाला को अपना राखी भाई मानती है. साजिद की फिल्म हमशकल के दौरान तमन्ना भाटिया और साजिद के इस प्यार भरे रिश्ते राखी भाई बहन की शुरुवात हुई थी. आज की प्रसिद्ध अभिनेत्री आलिया भट्ट करण जौहर के बेटे यश जौहर को हर साल राखी बांधती है, क्योंकि आलिया निर्माता निर्देशक करण जौहर को अपना पिता समान मानती है, इसलिए करण जौहर के बेटे यश को अपना राखी भाई मानती है. दीपिका पादुकोण अपने बॉडीगार्ड जलाल को अपना राखी भाई मानती है . Rakhi

फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ को मिला नैशनल अवार्ड, सोनम बाजवा ने कही ये बात

Godday Godday Chaa: सोनम बाजवा की सुपरहिट पंजाबी फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’, जिस में वे लीड रोल में नजर आई थीं, को मिला है सर्वश्रेष्ठ पंजाबी भाषा की फिल्म का नैशनल अवार्ड.

कमर्शियल फिल्मों की क्वीन और दमदार फीमेल कैरेक्टर्स की चैंपियन सोनम कहती हैं कि फिल्म ‘गोड्डे गोड्डे चा’ के लिए बैस्ट पंजाबी फिल्म का नैशनल अवार्ड मिलना बेहद खास एहसास है. फिल्म को बौक्स औफिस पर जबरदस्त प्यार मिला था और अब इसे नैशनल लेवल पर पहचान मिली है.”

कुछ हट कर करने की ख्वाहिश

सोनम की यह दूसरी पंजाबी फिल्म है जिसे नैशनल अवार्ड मिला है. उन की पहली फिल्म थी ‘पंजाब 1984’, जिसे डाइरैक्ट किया था अनुराग सिंह ने, जो फिल्म ‘केसरी’ और अपकमिंग फिल्म ‘बार्डर 2’ के भी डाइरैक्टर हैं.

सोनम कहती हैं, “मैं पंजाबी और हिंदी दोनों भाषाओं में कमर्शियल और हट कर सिनेमा करती रहूंगी. असली मजा तो तब है जब फिल्म की कहानी मनोरंजक हो, जो दिलों को छू जाएं, और नैशनल लेवल पर सराही भी जाए.

हिंदी फिल्मों में भी कामयाबी

सोनम बाजवा हिंदी फिल्मों में भी अपने अभिनय का डंका बजवा चुकी हैं। फिल्म ‘हाउसफुल 5’ से बौलीवुड में ऐंट्री करने के बाद वे फिल्म ‘बागी 4’, ‘दीवानियत‘ और ‘बौर्डर 2’ में भी नजर आने वाली हैं. Godday Godday Chaa

जब ऐक्ट्रैस Rashami Desai की मां ने औडिशन लेने वाले को जड़ दिए थे थप्पड़

Rashami Desai: ग्लैमर वर्ल्ड में अच्छे लोग कम और बुरे लोगों की तादाद ज्यादा है, जो छोटे शहरों और गांवों से आने वाले लड़केलड़कियों की मजबूरियों और भोलेपन का फायदा उठा कर उन के साथ गलत व्यवहार करते हैं. इन के साथ न सिर्फ बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करते हैं, काम देने के बहाने समझौता करने को बोलते हैं.

इन्हीं सब बातों की वजह से पहले की नामचीन हीरोइनें अपने साथ अपनी मां को रखती थीं ताकि उन पर कोई आंच न आए. बौलीवुड में लड़कियां ही नहीं लड़के भी सुरक्षित नहीं हैं.

क्या हुआ था उस दिन

ऐसा ही एक हादसा टीवी ऐक्ट्रैस रश्मि देसाई ने अपने एक इंटरव्यू में साझा किया. रश्मि देसाई के अनुसार, जब वे 16 साल की थीं तो टीवी सीरियलों और फिल्मों में काम के लिए औडिशंस दिया करती थीं.

रश्मि ने मीडिया से बात करते हुए बताया,”मुझे एक औडिशन के लिए बुलाया गया था. जब मैं वहां गई तो औडिशन लेने वाले आदमी ने मुझे बेहोश करने की कोशिश की, लेकिन असहज महसूस होने पर किसी तरह मैं वहां से बाहर निकलने में सफल हो गई और उसी दिन घर जा कर मैं ने अपनी मां को सारी बात बता दी.”

हार नहीं मानी

रश्मि कहती हैं कि इस घटना के बाद भी मैं ने हार नहीं मानी और दूसरे ही दिन मैं अपनी मां के साथ उसी जगह औडिशन देने के लिए पहुंच गई. वह आदमी मुझे वहां फिर से देख कर चकित रह गया और मेरे साथ मेरी मां को देख कर घबरा उठा.

उन्होंने बताया कि उस को देखने के बाद मेरी मां का गुस्सा कंट्रोल में नहीं रहा और उस औडिशन लेने वाले व्यक्ति को मां ने जोरदार थप्पड़ जड़ दिए. इस घटना के बाद हम वहां से चले आए.

कड़वा सच

रश्मि देसाई के अनुसार, कास्टिंग काउच ग्लैमर वर्ल्ड का कड़वा सच है लेकिन संयोग रहा कि मुझे अच्छे लोगों के साथ काम करने का मौका मिला और मेरे अनुभव भी अच्छे रहे.

कहने का मतलब यह कि ग्लैमर वर्ल्ड हो या कोई और फील्ड, हर जगह अच्छे और बुरे दोनों लोग होते हैं, ऐसे में चौकन्ना रहने की जरूरत है, ताकि कोई आप का फायदा न उठा सके. Rashami Desai

Bubble Bath Tips: बच्चों को बबल बाथ देने से पहले यह जरूर जानें

Bubble Bath Tips: छोटे बच्चों को नहाने के लिए तैयार करना कई बार माताओं के लिए चुनौती बन जाती है. ऐसे में बबल बाथ एक आसान उपाय लगता है क्योंकि रंगबिरंगे झाग बच्चों को आकर्षित करते हैं. लेकिन यह उपाय स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक साबित हो सकता है.

क्या है बबल बाथ

बबल बाथ में पानी को झागदार, सुगंधित व रंगीन बना कर बच्चों के लिए नहाने को मजेदार बनाया जाता है. लेकिन इन में मौजूद कैमिकल्स बच्चों की कोमल त्वचा और स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकते हैं.

संभावित नुकसान

संवेदनशील त्वचा : कैमिकल और कृत्रिम खुशबू से जलन, खुजली या लाल चकत्ते हो सकते हैं.

आंखों का संक्रमण :  झागदार पानी आंखों में जाने पर जलन व लालिमा हो सकती हैं.

त्वचा का असंतुलित pH : बबल बाथ का pH त्वचा के प्राकृतिक स्तर से अलग होता है, जिस से त्वचा रूखी व खुजलीदार हो जाती है.

यूटीआई (UTI) का खतरा : खासतौर पर बच्चियों में, कैमिकल युक्त पानी प्राइवेट पार्ट्स में जलन व संक्रमण का कारण बन सकता है.

सुरक्षित विकल्प

  • गुनगुने पानी में गुलाब की पंखुड़ियां या दूध डालें.
  • नारियल तेल या एलोवेरा युक्त पीएच बैलेंस्ड साबुन का प्रयोग करें.

ध्यान रखने योग्य बातें

  • 5 साल से छोटे बच्चों को बबल बाथ देने से बचें. अगर देना हो तो फ्रैगरेंस फ्री, पैराबेन फ्री, सल्फेट फ्री और डर्मेटोलौजिस्ट टेस्टेड प्रोडक्ट्स ही लें.
  • हमेशा पैच टेस्ट करें और बाथ के दौरान बच्चे पर नजर रखें ताकि फिसलने, संक्रमण या चोट की संभावना न हो. अंत में साफ पानी से अच्छी तरह धोना न भूलें. Bubble Bath Tips

Rakhi Special: पति की मुंहबोली बहनों को कैसे हैंडल करें

Rakhi Special: भाईबहन का रिश्ता अनमोल होता है. शादी के बाद कई बार भाईबहन एकदूसरे से दूर हो जाते हैं. लेकिन फिर भी औफिस में या पड़ोस में कोई बहन बन जाती है और पति पूरी शिद्दत से उस नए बने भाईबहन के रिश्ते को निभाता है. लेकिन दिक्कत तब आती है जब पत्नी उसे अपनी ननद नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी समझने लगती है. वह उस से सिर्फ जलती ही नहीं बल्कि उस के और पति के रिलेशन पर शक भी करने लगती है, जिस से सभी का रिश्ता उलझ जाता है. कई बार यह शक सही भी हो सकता है लेकिन ज्यादातर बेवजह ही होता है.

यह बड़ी बात है कि आज के समय में कोई अपना कहने वाला आप की जिंदगी में है, जो एक आवाज पर आ जाएगा. उसे अपने बेकार के शक के चलते न खोएं. आज की तारीख में मांबाप पता नहीं कहां चले जाएंगे. असली भाईबहन पता नहीं कितनी दूर चले जाएंगे. पहले 5 पीढ़ियां एक ही घर में रहती थी तो पता था खाना तो मिल ही जाएगा, बीमार होने पर कोई न कोई केयर भी कर ही देगा. लेकिन अब घर अलगअलग हो गए. सामने के घर में कौन पड़ोसी है पता नहीं. इसलिए अगर कुछ सच्चे रिश्ते मिल रहे हैं तो उन्हें संभाल कर रखें न कि उन्हें ऐसे ही हाथ से जाने दें.

ऐसे करें हैंडल

उन्हें शक के घेरे में बहुत हद तक न लाएं. कई बार बेवजह ही हम पति की बनाई हुई बहनों पर शक करने लगते हैं और अच्छेभले रिश्तों को अपनी बेकार की सनक के चलते खराब कर देते हैं. जैसेकि सिर्फ इसलिए कि एक दिन वह सिनेमा हाल में फिल्म देखते मिल गए या फिर किसी कौफी पीते दिख गए तो शक की वजह मिल गई, ऐसा नहीं होना चाहिए. इस पर यह न सोच लें कि दोनों रात में सो भी साथ ही रहे हैं. कौफी हाउस में कौफी पीना कोई गुनाह नहीं है.

इसी तरह इस बात पर न लड़ें कि हम ने उन्हें खाने पर बुलाया था और तुम उसे ले कर कोने में खुसुरपुसुर कर रहे थे. अगर कर भी रहे थे तो क्या हुआ होगी कोई बात. हो सकता है कि आप को ही सरप्राइज देनी की तैयारी चल रही हो और आप ने बीच में घुस कर लड़ना शुरू कर दिया कि मैं तम्हें छोड़ कर जा रही हूं.

पति की मुंहबोली बहन को दीदी ही कहें और भाभी ही बुलवाएं

आप खुद से रिश्तों की मर्यादा बनाएं. पति की बहन को दीदी बुलाएं, भले ही वह उम्र में आप से कुछ छोटी ही क्यों न हो. इस से आपके बीच ननद भाभी का रिश्ता हो जाएगा. वह भी आप को भाभी ही बोलेगी और आप के पति को भाई समझ कर ही व्यवहार करेगी.

एकदूसरे से ईर्ष्या न रखें

सगी बहनों को तो भाभी फिर भी झेल लेती है लेकिन इस तरह की नकली बहन जो औफिस या घर के आसपास बनी हो भाभी कम ही झेल पाती है. लेकिन भाभी और ननद को जलन और तुलना करने वाली सोच से भी बचना चाहिए क्योंकि घर के हर सदस्य की अपनी पहचान और महत्ता होती है. ऐसे में भाभी को ननद से और ननद को भाभी से जलन नहीं करनी चाहिए. अगर आप जलन की भावना नहीं रखेंगी, तो रिश्ते में प्यार और सम्मान बढ़ता है.

खुद भी ननद के साथ टाइम स्पैंड करें

अपनी ननद की दोस्त बनने की कोशिश करें. ऐसा न हो कि बहन का रिश्ता सिर्फ भाई से ही हो बल्कि आप भी अपनी ननद के साथ टाइम स्पैंड करें. उस के साथ कोई बिजनैस या कोई काम करें. कोई काम साथ साथ करेंगे तो असलियत में शक का कीड़ा कम होगा. दोनों घूमने या शौपिंग के लिए जाएं. आपस में रिलेशन बेहतर रखें. भाभी को साड़ी खरीदनी है और समझ नहीं आ रहा क्या खरीदें, तो उन की मदद करें. अगर बहन से संबंध बनाए रखना है, तो उस की शौपिंग की सलह भी मानें और आप दोनों भी एकदूसरे के करीब आएं.

स्पेस का सम्मान करें

ननद और भाभी, दोनों की ही पर्सनल लाइफ होती है और जीने का तरीका भी अलग होता है. ऐसे में ननद को भाभी की जिंदगी में दखल देने से बचना चाहिए और यही बात भाभी को भी ध्यान रखनी चाहिए. ननद और भाभी को रिश्ता मजबूत बनाए रखने के लिए पर्सनल स्पेस और प्राइवेसी का सम्मान करना चाहिए.

स्पैशल दिनों का रखें खयाल

भाभी और ननद दोनों को ही एकदूसरे के जन्मदिन, शादी की सालगिरह और अन्य खास दिनों का खयाल रखना चाहिए. सिर्फ खयाल ही नहीं, कोशिश करें कि इन खास दिनों को साथ बिताएं और यादगार बनाने के लिए ऐफर्ट्स डालें. स्पैशल दिनों पर विश करने के साथसाथ गिफ्ट दे कर भी आप पति की बहनों के साथ रिश्ता बेहतर बनाए रख सकती हैं.

Rakshabandhan Special: भाईबहन इस राखी पर गिले शिकवे करें दूर

Rakshabandhan Special: रक्षाबंधन का त्योहार भाईबहनों के बीच प्यार और स्नेह का प्रतीक है. यदि किसी भाईबहन में अनबन हो गई है, तो रक्षाबंधन इसे सुलझाने का एक शानदार अवसर है. प्यार और सम्मान के साथ वे अपनी गलतफहमियों को दूर कर सकते हैं और अपने रिश्ते को फिर से मजबूत कर सकते हैं, कुछ इस तरह :

कम्युनिकेशन गैप को कहें बायबाय

कम्युनिकेशन गैप हर मसले की जड़ है. अगर आप ने भी बातचीत के सारे रास्ते बंद किए हुए हैं, तो उसे खोल दें. बात इतनी बड़ी नहीं होती जितनी बड़ी बात न करने से बन जाती है. लोग उस पर मसाला लगते हैं और 2 लोगों के बीच रिश्ता टूट जाता है. अगर कोई बात बुरी लगी है तो इस राखी आमनेसामने बैठ कर बात को सुलझा लें. शकवेशिकायते कर लें, लड़ लें. लेकिन बात करें, तभी किसी समस्या का हल निकलेगा.

एक चुप सौ को हराता है

अगर बहन जबान की थोड़ी तेज है और जल्दी गुस्सा हो जाती है तो आप ही चुप लगा जाएं. आखिर यह कहावत तो आप ने सुनी ही होगी,’एक चुप सौ को हराता है.’ अगर बहन से कोई लड़ाई चल रही है, तो अब उसे सुलझा लें और बहन की सारी बातें चुपचाप सुन कर मन से निकल दें और रिश्ता अच्छा कर लें.

इस बार माफी उपहार में दे दो न

अगर भाईबहन में झगड़ा और बोलचाल बंद है, बस फौर्मेलिटी में राखी बांध देते हैं तो इस बार उसे यहीं तक सीमित न रखें. इस बार दोनों एकदूसरे को माफ कर के नए सिरे से यह रिश्ता शुरू करें. एक बार आप ही पहल कर के देखें. हो सकता है कि बहन खुद भी लड़ाई खत्म करना चाह रही हो बस ईगो बीच में आ रही हो.

रिश्तों की अहमियत को समझें

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो जन्म से जुड़े होते हैं और उन्हें हम चाह कर भी नहीं तोड़ सकते. लेकिन कई बार आपस में मनमुटाव होना काफी आम बात है. लेकिन इस मनमुटाव को ज्यादा न बढ़ने दें और अगर रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच गए हैं तो इस बात को समझें कि आप की जगह कोई और नहीं ले सकता.

कई बार पत्नी की इन्सिक्योरिटी की वजह से भी रिश्ते खराब हो जाते हैं

कई बार पत्नी को ऐसा लगता है कि पति अपनी बहनों की बातों में आ कर उन्हें अनदेखा कर देते हैं और उन की बात नहीं सुनते हैं. इसलिए वह हमेशा पति को अपनी बहनों से दूर करने की कोशिश करती रहती है. ऐसा करने से सब के बीच का रिश्ता खराब होता है और दूरियां आती हैं. अगर ऐसा हुआ है तो पत्नी को समझाएं और बहन से उस का रिश्ता मजबूत करवाएं.

भाभी और ननद अपना मनमुटाव दूर करें

भाभी और ननद कई बार बहनों की तरह प्यार से रहती हैं तो कहीं दूसरे की दुश्मन बन बैठती हैं. लेकिन इस रक्षाबंधन आप अपनी ननदों के साथ तुलना करने के बजाए उन के साथ अपनापन बढ़ाने की कोशिश करें. जब आप ऐसा करना शुरू करेंगी तो खुद से आप का रिश्ता अपनी ननदों के साथ अच्छा होगा और आप को भाईबहन के बीच के प्यार से जलन नहीं होगी.

ननदों के साथ ग्रुपिंग न करें

हो सकता है कि आप की सारी ननदों में कुछ के साथ आप के रिश्ते बहुत अच्छे हों और कुछ के साथ खराब हों. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि उन कुछ के साथ बाकियों के खिलाफ आप ग्रुपिंग करने लगें और आप बाकी ननदों को अलगथलग महसूस कराने लगें.

इस को ऐसे समझिए कि आप अकेली भाभी हैं तो सारी ननदें आप से बना कर रखना चाहेंगी. लेकिन आप कुछ के साथ ही रिश्ते बनाएंगी तो यह बात बाकी ननदों को गुस्सा तो दिलाएगा ही, उन्हें दुखी भी होगा.

किसी को दुख पहुंचा कर आप को अच्छा तो नहीं लगेगा न. इसलिए अकेली भाभी हैं तो ग्रुपिंग से बचें. सब को साथ ले कर चलने की कोशिश करें फिर चाहे सामने से आप को ऐसा व्यवहार मिले या नहीं.

इसलिए ध्यान कर के सब से बराबरी का व्यवहार करने की कोशिश करें. भाभी और ननद के रिश्ते में प्यार लाने के लिए छोटीछोटी परेशानी शेयर करें और उन्हें सुलझाने की कोशिश भी करें. इसी तरह रिश्ता मजबूत होता है. Rakshabandhan Special

Hindi Sad Story: तेरा जाना- आखिर क्यों संजना ने लिया ऐसा फैसला?

Hindi Sad Story: दोमंजिले मकान के ऊपरी माले में अपनी पैरालाइज्ड मां के साथ अकेला बैठा अनिल खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था. मां सो रही थी. कमरा बिखरा पड़ा था. उसे अपनी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. सुबह के 11 बज चुके थे. पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं गया था. ऐसे में उठ कर नाश्ता बनाना आसान नहीं था. वैसे पिछले कई दिनों से नाश्ते के नाम पर वह ब्रेड बटर और दूध ले रहा था.

किसी तरह फ्रेश हो कर वह किचन में घुसा. दूध और ब्रेड खत्म हो चुके थे. घर में कोई ऐसा था नहीं जिसे भेज कर दूध मंगाया जा सके. खुद ही घिसटता हुआ किराने की शॉप तक पहुंचा. दूध, मैगी और ब्रेड के पैकेट खरीद कर घर आ गया.

अपनी पत्नी संजना के जाने के बाद वह यही सब खा कर जिंदगी बसर कर रहा था. घर आ कर जल्दी से उस ने दूध उबालने को रखा और ब्रेड सेकने लगा.

तभी मां ने आवाज लगाई,” बेटा जल्दी आ. मुझे टॉयलेट लगी है.”

अनिल ने ब्रैड वाली गैस बंद की और दूध वाली गैस थोड़ी हल्की कर के मां के कमरे की तरफ भागा. तब तक मां सब कुछ बिस्तर पर ही कर चुकी थीं. उन से कुछ भी रोका नहीं जाता. वह मां पर चीख पड़ा,” क्या मां, मैं 2 सेकंड में दौड़ता हुआ आ गया पर तुम ने बिस्तर खराब कर दिया. अब यह सब बैठ कर मुझे ही धोना पड़ेगा. कामवाली भी तो नहीं आ रही न.”

मां सकपका गईं. दुखी नजरों से उसे देखती हुई बोलीं,” माफ कर देना बेटा. पता नहीं कैसी हालत हो गई है मेरी. कितनी तकलीफ देती हूं तुझे. मैं मर क्यों नहीं जाती” कहते हुए वह रोने लगी थीं.

“ऐसा मत कह मां.”अनिल ने मां का हाथ पकड़ लिया.” पिताजी पहले ही हमें छोड़ कर जा चुके. भाई दूसरे शहर चला गया. संजना किसी और के साथ भाग गई. अब मेरा है ही कौन तेरे सिवा. तू भी चली जाएगी तो पूरी तरह अकेला हो जाऊंगा.”

अनिल की भी आंखें भर आई थीं. उसे संजना की याद तड़पाने लगी थी. संजना थी तो सब कुछ कितनी सहजता से संभाले रखती थी. मां की तबियत तब भी खराब थी मगर संजना इस तरह मां की सेवा करती थी कि तकलीफों के बावजूद वे हंसती रहती थीं. उस समय छोटा भाई और पिताजी भी थे. मगर घर के काम पलक झपकते निबट जाते थे.

अनिल की आंखों के आगे संजना का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया जब वह ब्याह कर घर आई थी. नईनवेली बहू इधर से उधर फुदकती फिरती थी. मगर अनिल उस की मासूमियत को बेवकूफी का नाम देता था. वक्तबेवक्त उसे झिड़कता रहता था. वह घर से एक भी कदम बाहर रख देती थी तो घर सिर पर उठा लेता था. उस की सहेलियों तक से उसे मिलने नहीं देता था. समय के साथ चपल हिरनी सी संजना   पिंजरे में कैद बुलबुल जैसी गमगीन हो गई. हंसी के बजाय उस की आंखों में पीड़ा झांकने लगी थी. फिर भी कोई शिकायत किए बिना वह पूरे दिन घर के कामों में लगी रहती.

आज अनिल को याद आ रहा था वह दिन जब संजना की मौजूदगी में एक बार उसे बुखार आ गया था. उस वक्त उन की शादी को ज्यादा दिन नहीं हुए थे. तब संजना पूरे दिन  उस के हाथपैरों की मालिश करती रही थी. अनिल कभी संजना से सिर दबाने को कहता, कभी कुछ खाने को मंगाता तो कभी पत्रिकाओं में से कहानियां पढ़ कर सुनाने को कहता  हर समय संजना को अपनी सेवा में लगाए रखता.

एक दिन उस के मन की थाह लेने के लिए अनिल ने पूछा था,” मेरी बीमारी में तुम मुझ से परेशान तो नहीं हो गई? ज्यादा काम तो नहीं करा रहा हूं मैं ?”

संजना ने कुछ कहा नहीं केवल मुस्कुरा भर दिया तो अनिल ने उसे तुलसीदास का दोहा सुनाते हुए कहा था,” धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी…. आपद काल परखिए चारी…. जानती हो इस का मतलब क्या है?”

नहीं तो. आप बताइए क्या मतलब है?” संजना ने गोलगोल आंखें नचाते हुए पूछा तो अनिल ने समझाया,” इस का मतलब है खराब समय में ही धीरज, धर्म, मित्र और औरत की परीक्षा होती है. बुरे समय में पत्नी आप का साथ देती है या नहीं यह देखना जरूरी है. इसी से पत्नी की परीक्षा होती है.”

संजना के बारे में सोचतेसोचते काफी समय तक अनिल यों ही बैठा रहा. तभी उसे याद आया कि उस ने गैस पर दूध चढ़ा रखा है. वह दौड़ता हुआ किचन में घुसा तो देखा आधा से ज्यादा दूर जमीन पर बह गया है और बाकी जल चुका है. भगोना भी काला हो गया है. अनिल सिर पकड़ कर बैठ गया. किचन की सफाई का काम बढ़ गया था. दूध भी फिर से लाना होगा. उधर मां के बिस्तर की सफाई भी करनी थी.

सब काम निबटातेनिबटाते दोपहर के 2 बज गए. दूध के साथ ब्रेड खाते हुए अनिल को फिर से पुराने दिन याद आने लगे. संजना को उस के लिए पिताजी ने पसंद किया था. वह खूबसूरत, पढ़ीलिखी और सुशील लड़की थी. जबकि अनिल कपड़ों का थोक विक्रेता था.

घर में रुपएपैसों की कमी नहीं थी. फिर भी संजना जॉब करना चाहती थी. वह इस बहाने खुली हवा में सांस लेना चाहती थी. मगर अनिल ने उस की यह गुजारिश सिरे से नकार दी थी. अनिल को डर लगने लगा था कि कमला यदि बाहर जाएगी या अपनी सहेलियों से मिलेगी तो वे उसे भड़काएंगी. यही सोच कर उस ने संजना को जॉब करने या सहेलियों से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

एक दिन वह दुकान से जल्दी घर लौट आया. उस ने देखा कि कपड़े प्रेस करतेकरते संजना अपनी किसी सहेली से बातें कर रही है. अनिल दबे पांव कमरे में दाखिल हुआ और बिस्तर पर बैठ कर चुपके से संजना की बातें सुनने लगा. वह अपनी सहेली से कह रही थी,” मीना सच कहूं तो कभीकभी दिल करता है इन को छोड़ कर कहीं दूर चली जाऊं. कभीकभी बहुत परेशान करते हैं. मगर उस वक्त सुनयना दीदी का ख्याल आ जाता है. वह इतनी सुंदर हैं पर विधवा होने की वजह से उन की कहीं शादी नहीं हो पाई. कितनी बेबस और अकेली रह गई हैं. एक औरत के लिए दूसरी शादी कर पाना आसान नहीं होता. कभी मन गवाह नहीं देता तो कभी समाज. एक बात बताऊं मीना…” संजना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनिल चीख पड़ा,” संजना फोन रखो. मैं कहता हूं फोन रखो.” डर कर संजना ने फोन रख दिया.

अनिल ने खींच कर एक झापड़ उसे रसीद किया. संजना बिस्तर पर बैठ कर सुबकने लगी. अनिल ने उस के कानों में तुलसीदास का दोहा बुदबुदाया,” ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी …. ये सब ताड़न के अधिकारी….”

संजना ने सवालिया नजरों से अनिल की ओर देखा तो अनिल फिर चीखा,”जानती है इस दोहे का मतलब क्या है? नहीं जानती न. इस का मतलब है कि औरतों को अक्ल सिखाने के लिए उन्हें पीटना जरूरी होता है. वे ताड़न की अधिकारी होती हैं और मैं तेरी जैसी औरतों को पीटना अच्छी तरह जानता हूं. पति की बुराई मोहल्ले भर में करती चलती हो. सहेलियों के आगे बुराइयों का पोथा खोल रखा है. छोड़ कर जाएगी मुझे? क्या कमी रखी है मैं ने? जाहिल औरत बता क्या कमी रखी है?” कहते हुए अनिल ने गर्म प्रेस उस की हथेली पर रख दी.

संजना जोर से चीख उठी. बगल के कमरे से पिताजी दौड़े आए.” बस कर अनिल क्या कर रहा है तू ? चल तेरी मां दवा मांग रही है.”

पिताजी अनिल को खींचते हुए ले गए. फिर संजना देर तक नल के नीचे बहते पानी में हाथ रखी रोती रही. उस दिन संजना के अंदर कुछ टूट गया था. यह चोट फिर कभी ठीक नहीं हुई. उस दिन के बाद संजना ने अपनी सहेलियों से भी बातें करना छोड़ दिया. हंसनाखिलखिलाना सब कुछ छूट गया. वह अनिल के सारे काम करती मगर बिना एक शब्द मुंह से निकाले. रात में जब अनिल उसे अपनी तरफ खींचता तो उसे महसूस होता जैसे बहुत सारे बिच्छूओं ने एक साथ डंक मार दिया हो. पर वह बेबस थी. उसे कोई रास्ता नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

इस तरह जिंदगी के करीब 3 साल बीत गए. उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. संजना वैसे भी बच्चे के पक्ष में नहीं थी. उसे लगता था कि इतने घुटन भरे माहौल में वह अपने बच्चे को कौन सी खुशी दे पाएगी?

एक दिन वह शाम के समय सब्जी लाने बाजार गई थी. वहीं उस की मुलाकात अपने सहपाठी नीरज से हुई. वह अपने भाई निलय के साथ के सब्जी और फल खरीदने आया था. संजना को देखते ही नीरज ने उसे पुकारा,” कैसी हो संजना पहचाना मुझे?”

नीरज को देख कर संजना का चेहरा खिल उठा,”अरे कैसे नहीं पहचानूंगी. तुम तो कॉलेज के जान थे.”

“पर तुम्हें पहचानना कठिन हो रहा है. कितनी मुरझा गई हो.सब ठीक तो है?” चिंता भरे स्वर में नीरज ने पूछा तो संजना ने सब सच बता दिया.

ढांढस बंधाते हुए नीरज ने संजना का परिचय अपने भाई से कराया,” यह मेरा भाई है. यहीं पास में ही रहता है. बीवी से तलाक हो चुका है. बीवी बहुत रुखे स्वभाव की थी जबकि यह बहुत कोमल हृदय का है. मैं तो जयपुर में रहता हूं मगर तुम्हें जब भी कोई समस्या आए तो मेरे भाई से बात कर सकती हो. यह तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा.”

इस छोटी सी मुलाकात में निलय ने अपना नंबर देते हुए हर मुश्किल घड़ी में साथ  निभाने का वादा किया था.

संजना को जैसे एक आसरा मिल गया था. वैसे भी निलय उसे जिन निगाहों से देख रहा था वे निगाहें घर आने के बाद भी उस का पीछा करती रही थीं. अजीब सी कशिश थी उस की निगाहों में. संजना चाह कर भी निलय को भूल नहीं पा रही थी.

करीब चारपांच दिन बीत गए. हमेशा की तरह संजना अपने घर के कामों में व्यस्त थी कि तभी निलय का फोन आया. उस का नंबर संजना ने सुधा नाम से सेव किया था. संजना ने दौड़ कर फोन उठाया.  निलय की आवाज में एक सुरुर था. वैसे उस ने संजना का हालचाल पूछने के लिए फोन किया था मगर उस के बात करने का अंदाज ऐसा था कि संजना दोतीन दिनों तक फिर से निलय के ख्यालों में गुम रही.

इस बार उसी ने निलय को फोन किया. दोनों देर तक बातें करते रहे. हालचाल से बढ़ कर अब जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर भी बातें होने लगीं थीं. अब हर रोज दोपहर करीब 2- 3 बजे दोनों बातें करने लगे. दोनों ने अपनीअपनी फीलिंग्स शेयर की और फिर एक दिन एकदूसरे के साथ कहीं दूर भाग जाने की योजना भी बना डाली. संजना के लिए यह फैसला लेना कठिन नहीं हुआ था. वह ऐसे भी अनिल से आजिज आ चुकी थी. अनिल ने जिस तरह से उसे मारापीटा और गुलाम बना कर रखा था वह उस के जैसी स्वाभिमानी स्त्री के लिए असहनीय था.

एक दिन अनिल के नाम एक चिट्ठी छोड़ कर संजना निलय के साथ भाग गई. वह कहां गई इस की खबर उस ने अनिल को नहीं दी मगर क्यों गई और किस के साथ गई इन सब बातों की जानकारी खत के माध्यम से अनिल को दे दी. साथ ही उस ने खत में स्पष्ट रूप से लिख दिया था कि वह अनिल को तलाक नहीं देगी और उस के साथ रहेगी भी नहीं.

अनिल के पास हाथ मलने और पछताने के सिवा कोई रास्ता नहीं था. इस बात को डेढ़ साल बीत चुके थे. अनिल की जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी. मन में बेचैनी का असर दुकान पर भी पड़ा. उस का व्यवसाय ठप पड़ने लगा. अनिल के पिता की मौत हो गई और घर के हालात देखते हुए अनिल के भाई ने लव मैरिज की और दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया.

अब अनिल अकेला अपनी बीमार मां के साथ जिंदगी की रेतीली धरती पर अपने कर्मों का हिसाब देने को विवश था. Hindi Sad Story

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