Holi 2024: इन 5 जगहों पर अलग अंदाज में होता है होली सेलिब्रेशन

हर कोई चाहता है कि होली हो या दीवाली, हर त्यौहार खुशियों से भरा हुआ बीते. जहां अपनों का साथ और दिलों में त्यौहारों की उमंग हो. कई लोगों के लिए तो होली का त्यौहार इतना पसंद होता है, कि इसे मनाने के लिए वो किसी खास जगह या लोगों के साथ चले जाते हैं.

वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जहां पर होली का ज्यादा चलन नहीं है. ऐसे में वो होली के दिन बहुत नीरसता का अनुभव करते हैं. अगर आपको भी अपनी होली खास मनानी है, तो हम आपको बताने जा रहे हैं, ऐसी जगहों के बारे में. जहां जाकर आपकी होली खास बन जाएगी. इन जगहों पर होली को अलग अंदाज में मनाया जाता है.

  1. बरसाना

बरसाना की होली लट्ठमार होली नाम से दुनियाभर में मशहूर है. इसे देखने के लिए देश से ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं. तीन दिन तक चलने वाली इस होली को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.

travel in hindi

कैसे पहुंचे : आप दिल्ली-चेन्नई और दिल्ली-मुंबई मुख्य लाइन पर मथुरा है. कई एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनों को दिल्ली, मुंबई, पुणे, चेन्नई, बेंगलूर, हैदराबाद, कोलकाता, ग्वालियर, देहरादून, इंदौर से मथुरा जुड़ा हुआ है. आप मथुरा पहुंचकर आसानी से बरसाना पहुंच सकती हैं.

2. आनंदपुर साहिब

पंजाब के आनंदपुर साहिब की होली का अंदाज बिल्कुल अलग होता है. यहां आपको सिख अंदाज में होली के रंग की जगह करतब और कलाबाजी देखने को मिलेगी, जिसे ‘होला मोहल्ला’ कहा जाता है.

कैसे पहुंचे : आप ट्रेन या बस से पंजाब के आनंदपुर साहिब जा सकती हैं. आपको यहां के तीन दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, उत्तरप्रदेश के लिए आसानी से बस मिल जाएगी.

3. उदयपुर

अगर आप शाही अंदाज को पसंद करती हैं, तो इस बार की होली उदयपुर में मनाएं. राजस्थानी गीत-संगीत के साथ यहां होली काफी भव्यता से मनाई जाती है.

कैसे पहुंचे : आप बस या ट्रेन से आराम से उदयपुर पहुंच सकती हैं.

4. मथुरा-वृंदावन

कृष्ण और राधा की नगरी में मनाई जाने वाली फूलों की होली दुनियाभर में मशहूर है. एक हफ्ते तक मनाए जाने वाले इस उत्सव के दौरान आप यहां के खाने पीने का लुत्फ भी उठा सकती हैं.

travel in hindi

कैसे पहुंचे : आप बस या ट्रेन से मथुरा वृंदावन पहुंच सकती हैं. आप चाहे तो निजी वाहन से भी 4-5 घंटे में मथुरा-वृंदावन पहुंच सकती हैं.

5. शांतिनिकेतन

अगर आपको अबीर और गुलाल की होली पसंद है, तो शांतिनिकेतन की होली आपको बहुत रास आएगी. शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल का प्रसिद्ध विद्यालय है जहां सांस्कृतिक व पारंपरिक अंदाज में गुलाल और अबीर की होली खेली जाती है.

कैसे पहुंचे : आप बस या ट्रेन से कोलकाता पहुंचकर 180 किलोमीटर दूर बस या टैक्सी से शांतिनिकेतन पहुंच सकती हैं.

Holi 2024: होली पर बनाएं राजस्थानी मालपुआ

आज इस भागती दौड़ती जिंदगी में लोग इतने व्यस्त हो गए हैं कि कभी हर घर बनने वाला मालपुआ को भी अब खरीदकर खाने लगे हैं. लेकिन मालपुआ का असल स्वाद चखना है तो घर के बने मालपुए खाएं. क्या आप जानती हैं कि होली के प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक है मालपुआ. और होली भी आने वाला ही है तो इस होली आप बनाएं राजस्थानी मालपुआ.

सामग्री

मैदा – 1 कप

मावा या खोया – 1/2 कप

बेकिंग सोडा – 1

चीनी – 1/2 कप

सौंफ पाउडर – 1/2 चम्मच

इलायची पाउडर – 1/2

घी – आवश्यकता अनुसार

विधि

एक बर्तन में मैदा, इलायची पाउडर, सौंफ पाउडर डाल कर मिलायें. उसके बाद इस मिश्रण में खोया डालें और मिलायें. अब थोड़ा थोड़ा पानी डाल कर गुठ्लिया खत्म होने तक अच्छे तरह फेट लें और गाढा और चिकना घोल तैयार कर लें.

चीनी में 1/4 कप पानी डाल कर उबालने रखें. अब एक तार की चाशनी बनने के बाद 1/4 टी स्पून इलायची डाल कर मिलायें. अब गैस बंद कर दें.

अब कढाई में घी डालें और गर्म होने तक इंतजार करें. मैदा मिश्रण में बेकिंग सोडा डाल कर मिलायें. अब चमचे में घोल भर कर कढाई में गोल गोल फैलाएं. धीमी आंच पर दोनों तरफ हल्का ब्राउन होने तक तल कर निकाल कर चाशनी में डाल दें. इसी तरह सारे मालपुआ बना लें. मालपुआ बन कर तैयार है.

कलंक: बलात्कारी होने का कलंक अपने माथे पर लेकर कैसे जीएंगे वे तीनों ?

उस रात 9 बजे ही ठंड बहुत बढ़ गई थी. संजय, नरेश और आलोक ने गरमाहट पाने के लिए सड़क के किनारे कार रोक कर शराब पी. नशे के चलते सामने आती अकेली लड़की को देख कर उन के भीतर का शैतान जागा तो वे उस लड़की को छेड़ने से खुद को रोक नहीं पाए.

‘‘जानेमन, इतनी रात को अकेली क्यों घूम रही हो? किसी प्यार करने वाले की तलाश है तो हमें आजमा लो,’’ आसपास किसी को न देख कर नरेश ने उस लड़की को ऊंची आवाज में छेड़ा.

‘‘शटअप एंड गो टू हैल, यू बास्टर्ड,’’ उस लड़की ने बिना देर किए अपनी नाराजगी जाहिर की.

‘‘तुम साथ चलो तो ‘हैल’ में भी मौजमस्ती रहेगी, स्वीटहार्ट.’’

‘‘तेरे साथ जाने को पुलिस को बुलाऊं?’’ लड़की ने अपना मोबाइल फोन उन्हें दिखा कर सवाल पूछा.

‘‘पुलिस को बीच में क्यों ला रही हो मेरी जान?’’

‘‘पुलिस नहीं चाहिए तो अपनी मां या बहनों…’’

वह लड़की चीख पाती उस से पहले ही संजय ने उस का मुंह दबोच लिया और झटके से उस लड़की को गोद में उठा कर कार की तरफ बढ़ते हुए अपने दोस्तों को गुस्से से निर्देश दिए, ‘‘इस ‘बिच’ को अब सबक सिखा कर ही छोड़ेंगे. कार स्टार्ट करो. मैं इस की बोटीबोटी कर दूंगा अगर इस ने अपने मुंह से ‘चूं’ भी की.’’

आलोक कूद कर ड्राइवर की सीट पर बैठा और नरेश ने लड़की को काबू में रखने के लिए संजय की मदद की. कार झटके से चल पड़ी.

उस चौड़ी सड़क पर कार सरपट भाग रही थी. संजय ने उस लड़की का मुंह दबा रखा था और नरेश उसे हाथपैर नहीं हिलाने दे रहा था.

‘‘अगर अब जरा भी हिली या चिल्लाई तो तेरा गला दबा दूंगा.’’

संजय की आंखों में उभरी हिंसा को पढ़ कर वह लड़की इतना ज्यादा डरी कि उस का पूरा शरीर बेजान हो गया.

‘‘अब कोई किसी का नाम नहीं लेगा और इस की आंखें भी बंद कर दो,’’ आलोक ने उन दोनों को हिदायत दी और कार को तेज गति से शहर की बाहरी सीमा की तरफ दौड़ाता रहा.

एक उजाड़ पड़े ढाबे के पीछे ले जा कर आलोक ने कार रोकी. उन की धमकियों से डरी लड़की के साथ मारपीट कर के उन तीनों ने बारीबारी से उस लड़की के साथ बलात्कार किया.

लड़की किसी भी तरह का विरोध करने की स्थिति में नहीं थी. बस, हादसे के दौरान उस की बड़ीबड़ी आंखों से आंसू बहते रहे थे.

लौटते हुए संजय ने लड़की को धमकाते हुए कहा, ‘‘अगर पुलिस में रिपोर्ट करने गई, तो हम तुझे फिर ढूंढ़ लेंगे, स्वीटहार्ट. अगर हमारी फिर मुलाकात हुई तो तेजाब की शीशी होगी हमारे हाथ में तेरा यह सुंदर चेहरा बिगाड़ने के लिए.’’

तीनों ने जहां उस लड़की को सड़क पर उतारा. वहीं पास की दीवार के पास 4 दोस्त लघुशंका करने को रुके थे. अंधेरा होने के कारण उन तीनों को वे चारों दिखाई नहीं दिए थे.

उन में से एक की ऊंची आवाज ने इन तीनों को बुरी तरह चौंका दिया, ‘‘हे… कौन हो तुम लोग? इस लड़की को यहां फेंक कर क्यों भाग रहे हो?’’

‘‘रुको जर…सोनू, तू कार का नंबर नोट कर, मुझे सारा मामला गड़बड़ लग रहा है,’’ एक दूसरे आदमी की आवाज उन तक पहुंची तो वे फटाफट कार में वापस घुसे और आलोक ने झटके से कार सड़क पर दौड़ा दी.

‘‘संजय, तुझे तो मैं जिंदा नहीं छोड़ूंगी,’’ उस लड़की की क्रोध से भरी यह चेतावनी उन तीनों के मन में डर और चिंता की तेज लहर उठा गई.

‘‘उसे मेरा नाम कैसे पता लगा?’’ संजय ने डर से कांपती आवाज में सवाल पूछा.

‘‘शायद हम दोनों में से किसी के मुंह से अनजाने में निकल गया होगा,’’ नरेश ने चिंतित लहजे में जवाब दिया.

‘‘आज मारे गए हमसब. मैं ने उन आदमियों में से एक को अपनी हथेली पर कार का नंबर लिखते हुए देखा है. उस लड़की को ‘संजय’ नाम पता है. पुलिस को हमें ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं आएगी,’’ आलोक की इस बात को सुन कर उन दोनों का चेहरा पीला पड़ चुका था.

नरेश ने अचानक सहनशक्ति खो कर संजय से चिढ़े लहजे में पूछा, ‘‘बेवकूफ इनसान, क्या जरूरत थी तुझे उस लड़की को उठा कर कार में डालने की?’’

‘‘यार, उस ने हमारी मांबहन…तो मैं ने अपना आपा खो दिया,’’ संजय ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘तो उसे उलटी हजार गालियां दे लेता…दोचार थप्पड़ मार लेता. तू उसे उठा कर कार में न डालता, तो हमारी इस गंभीर मुसीबत की जड़ तो न उगती.’’

‘‘अरे, अब आपस में लड़ने के बजाय यह सोचो कि अपनी जान बचाने को हमें क्या करना चाहिए,’’ आलोक की इस सलाह को सुन कर उन दोनों ने अपनेअपने दिमाग को इस गंभीर मुसीबत का समाधान ढूंढ़ने में लगा दिया.

पुलिस उन तक पहुंचे, इस से पहले ही उन्हें अपने बचाव के लिए कदम उठाने होंगे, इस महत्त्वपूर्ण पहलू को समझ कर उन तीनों ने आपस में कार में बैठ कर सलाहमशविरा किया.

अपनी जान बचाने के लिए वे तीनों सब से पहले आलोक के चाचा रामनाथ के पास पहुंचे. वे 2 फैक्टरियों के मालिक थे और राजनीतिबाजों से उन की काफी जानपहचान थी.

रामनाथ ने अकेले में उन तीनों से पूरी घटना की जानकारी ली. आलोक को ही अधिकतर उन के सवालों के जवाब देने पड़े. शर्मिंदा तो वे तीनों ही नजर आ रहे थे, पर सब बताते हुए आलोक ने खुद को मारे शर्म और बेइज्जती के एहसास से जमीन में गड़ता हुआ महसूस किया.

‘‘अंकल, हम मानते हैं कि हम से गलती हुई है पर ऐसा गलत काम हम जिंदगी में फिर कभी नहीं करेंगे. बस, इस बार हमारी जान बचा लीजिए.’’

‘‘दिल तो ऐसा कर रहा है कि तुम सब को जूते मारते हुए मैं खुद पुलिस स्टेशन ले जाऊं, लेकिन मजबूर हूं. अपने बड़े भैया को मैं ने वचन दिया था कि उन के परिवार का पूरा खयाल रखूंगा. तुम तीनों के लिए किसी से कुछ सहायता मांगते हुए मुझे बहुत शर्म आएगी,’’ संजय को आग्नेय दृष्टि से घूरने के बाद रामनाथ ने मोबाइल पर अपने एक वकील दोस्त राकेश मिश्रा का नंबर मिलाया.

राकेश मिश्रा को बुखार ने जकड़ा हुआ था. सारी बात उन को संक्षेप में बता कर रामनाथ ने उन से अगले कदम के बारे में सलाह मांगी.

‘‘जिस इलाके से उस लड़की को तुम्हारे भतीजे और उस के दोनों दोस्तों ने उठाया था, वहां के एसएचओ से जानपहचान निकालनी होगी. रामनाथ, मैं तुम्हें 10-15 मिनट बाद फोन करता हूं,’’ बारबार खांसी होने के कारण वकील साहब को बोलने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘इन तीनों को अब क्या करना चाहिए?’’

‘‘इन्हें घर मत भेजो. ये एक बार पुलिस के हाथ में आ गए तो मामला टेढ़ा हो जाएगा.’’

‘‘इन्हें मैं अपने फार्म हाउस में भेज देता हूं.’’

‘‘उस कार में इन्हें मत भेजना जिसे इन्होंने रेप के लिए इस्तेमाल किया था बल्कि कार को कहीं छिपा दो.’’

‘‘थैंक्यू, माई फैं्रड.’’

‘‘मुझे थैंक्यू मत बोलो, रामनाथ. उस थाना अध्यक्ष को अपने पक्ष में करना बहुत जरूरी है. तुम्हें रुपयों का इंतजाम रखना होगा.’’

‘‘कितने रुपयों का?’’

‘‘मामला लाखों में ही निबटेगा मेरे दोस्त.’’

‘‘जो जरूरी है वह खर्चा तो अब करेंगे ही. इन तीनों की जलील हरकत का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा. तुम मुझे जल्दी से दोबारा फोन करो,’’ रामनाथ ने फोन काटा और परेशान अंदाज में अपनी कनपटियां मसलने लगे थे.

उन की खामोशी से इन तीनों की घबराहट व चिंता और भी ज्यादा बढ़ गई. संजय के पिता की माली हालत अच्छी नहीं थी. इसलिए रुपए खर्च करने की बात सुन कर उस के माथे पर पसीना झलक उठा था.

‘‘फोन कर के तुम दोनों अपनेअपने पिता को यहीं बुला लो. सब मिल कर ही अब इस मामले को निबटाने की कोशिश करेंगे,’’ रामनाथ की इस सलाह पर अमल करने में सब से ज्यादा परेशानी नरेश ने महसूस की थी.

नरेश का रिश्ता कुछ सप्ताह पहले ही तय हुआ था. अगले महीने उस की शादी होने की तारीख भी तय हो चुकी थी. वह रेप के मामले में फंस सकता है, यह जानकारी वह अपने मातापिता व छोटी बहन तक बिलकुल भी नहीं पहुंचने देना चाहता था. उन तीनों की नजरों में गिर कर उन की खुशियां नष्ट करने की कल्पना ही उस के मन को कंपा रही थी. मन के किसी कोने में रिश्ता टूट जाने का भय भी अपनी जड़ें जमाने लगा था.

नरेश अपने पिता को सूचित न करे, यह बात रामनाथ ने स्वीकार नहीं की. मजबूरन उसे अपने पिता को फौरन वहां पहुंचने के लिए फोन करना पड़ा. ऐसा करते हुए उसे संजय अपना सब से बड़ा दुश्मन प्रतीत हो रहा था.

करीब घंटे भर बाद वकील राकेश का फोन आया.

‘‘रामनाथ, उस इलाके के थानाप्रभारी का नाम सतीश है. मैं ने थानेदार को सब समझा दिया है. वह हमारी मदद करेगा पर इस काम के लिए 10 लाख मांग रहा है.’’

‘‘क्या उस लड़की ने रिपोर्ट लिखवा दी है?’’ रामनाथ ने चिंतित स्वर में सवाल पूछा.

‘‘अभी तो रिपोर्ट करने थाने में कोई नहीं आया है. वैसे भी रिपोर्ट लिखाने की नौबत न आए, इसी में हमारा फायदा है. थानेदार सतीश तुम से फोन पर बात करेगा. लड़की का मुंह फौरन रुपयों से बंद करना पड़ेगा. तुम 4-5 लाख कैश का इंतजाम तो तुरंत कर लो.’’

‘‘ठीक है. मैं रुपयों का इंतजाम कर के रखता हूं.’’

संजय के लिए 2 लाख की रकम जुटा पाना नामुमकिन सा ही था. उस के पिता साधारण सी नौकरी कर रहे थे. वह तो अपने दोस्तों की दौलत के बल पर ही ऐश करता आया था. जहां कभी मारपीट करने या किसी को डरानेधमकाने की नौबत आती, वह सब से आगे हो जाता. उस के इसी गुण के कारण उस की मित्रमंडली उसे अपने साथ रखती थी.

वह इस वक्त मामूली रकम भी नहीं जुटा पाएगा, इस सच ने आलोक, नरेश और रामनाथ से उसे बड़ी कड़वी बातें सुनवा दीं.

कुछ देर तो संजय उन की चुभने वाली बातें खामोशी से सुनता रहा, पर अचानक उस के सब्र का घड़ा फूटा और वह बुरी तरह से भड़क उठा था.

‘‘मेरे पीछे हाथ धो कर मत पड़ो तुम सब. जिंदगी में कभी न कभी मैं तुम लोगों को अपने हिस्से की रकम लौटा दूंगा. वैसे मुझे जेल जाने से डर नहीं लगता. हां, तुम दोनों अपने बारे में जरूर सोच लो कि जेल में सड़ना कैसा लगेगा?’’ यों गुस्सा दिखा कर संजय ने उन्हें अपने पीछे पड़ने से रोक दिया था.

थानेदार ने कुछ देर बाद रामनाथ से फोन पर बात की और पैसे के इंतजाम पर जोर डालते हुए कहा कि जरूरत पड़ी तो रात में आप को बुला लूंगा या सुबह मैं खुद ही आ जाऊंगा.

नरेश के पिता विजय कपूर ने जब रामनाथ की कोठी में कदम रखा तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं.

रामनाथ ने उन्हें जब उन तीनों की करतूत बताई तो उन की आंखों में आंसू भर आए थे.

अपने बेटे की तरफ देखे बिना विजय कपूर ने भरे गले से रामनाथ से प्रार्थना की, ‘‘सर, आप इस समस्या को सुलझवाइए, प्लीज. अगले महीने मेरे घर में शादी है. उस में कुछ व्यवधान पड़ा तो मेरी पत्नी जीतेजी मर जाएगी.’’

अपने पिता की आंखों में आंसू देख कर नरेश इतना शर्मिंदा हुआ कि वह उन के सामने से उठ कर बाहर बगीचे में निकल आया.

अब संजय व आलोेक के लिए भी उन दोनों के सामने बैठना असह्य हो गया तो वे भी वहां से उठे और बगीचे में नरेश के पास आ गए.

चिंता और घबराहट ने उन तीनों के मन को जकड़ रखा था. आपस में बातें करने का मन नहीं किया तो वे कुरसियों पर बैठ कर सोचविचार की दुनिया में खो गए.

उस अनजान लड़की के रेप करने से जुड़ी यादें उन के जेहन में रहरह कर उभर आतीं. कई तसवीरें उन के मन में उभरतीं और कई बातें ध्यान में आतीं.

इस वक्त तो बलात्कार से जुड़ी उन की हर याद उन्हें पुलिस के शिकंजे में फंस जाने की आशंका की याद दिला रही थी. जेल जाने के डर के साथसाथ अपने घर वालों और समाज की नजरों में सदा के लिए गिर जाने का भय उन तीनों के दिलों को डरा रहा था. डर और चिंता के ऐसे भावों के चलते वे तीनों ही अब अपने किए पर पछता रहे थे.

संजय का व्यक्तित्व इन दोनों से अलग था. इसलिए सब से पहले उस ने ही इस समस्या को अलग ढंग से देखना शुरू किया.

‘‘हो सकता है कि वह लड़की पुलिस के पास जाए ही नहीं,’’ संजय के मुंह से निकले इस वाक्य को सुन कर नरेश और आलोक चौंक कर सीधे बैठ गए.

‘‘वह रिपोर्ट जरूर करेगी…’’ नरेश ने परेशान लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘तुम्हारी बात ठीक है, पर बलात्कार होने का ढिंढोरा पीट कर हमेशा के लिए लोगों की सहानुभूति दिखाने या मजाक उड़ाने वाली नजरों का सामना करना किसी भी लड़की के लिए आसान नहीं होगा,’’ आलोक ने अपने मन की बात कही.

‘‘वह रिपोर्ट करना भी चाहे तो भी उस के घर वाले उसे ऐसा करने से रोक सकते हैं. अगर रिपोर्ट लिखाने को तैयार होते तो अब तक उन्हें ऐसा कर देना चाहिए था,’’ संजय ने अपनी राय के पक्ष में एक और बात कही.

‘‘मुझे तो एक अजीब सा डर सता रहा है,’’ नरेश ने सहमी सी आवाज में वार्त्तालाप को नया मोड़ दिया.

‘‘कैसा डर?’’

‘‘अगर उस लड़की ने कहीं आत्महत्या कर ली तो हमें फांसी के फंदे से कोई नहीं बचा सकेगा.’’

‘‘उस लड़की का मर जाना उलटे हमारे हक में होगा. तब रेप हम ने किया है, इस का कोई गवाह नहीं रहेगा,’’ संजय ने क्रूर मुसकान होंठों पर ला कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश की.

‘‘लड़की आत्महत्या कर के मर गई तो उस के पोस्टमार्टम की रिपोर्ट रेप दिखलाएगी. पुलिस की तहकीकात होगी और हम जरूर पकड़े जाएंगे. यह एसएचओ भी तब हमें नहीं बचा पाएगा. इसलिए उस लड़की के आत्महत्या करने की कामना मत करो बेवकूफो,’’ आलोक ने उन दोनों को डपट दिया.

‘‘मुझे लगता है एसएचओ को इतनी जल्दी बीच में ला कर हम ने भयंकर भूल की है, वह अब हमारा पिंड नहीं छोड़ेगा. लड़की ने रिपोर्ट न भी की तो भी वह रुपए जरूर खाएगा,’’ संजय ने अपनी खीज जाहिर की.

‘‘तू इस बात की फिक्र क्यों कर रहा है? रेप करने में सब से आगे था और अब रुपए निकालने में तू सब से पीछे है.’’

आलोक के इस कथन ने संजय के तनबदन में आग सी लगा दी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘अपना हिस्सा मैं दूंगा. मुझे चाहे लूटपाट करनी पड़े या चोरी, पर तुम लोगों को मेरा हिस्सा मिल जाएगा.’’

संजय ने उसी समय मन ही मन जल्द से जल्द अमीर बनने का निर्णय लिया. उस का एक चचेरा भाई लूटपाट और चोरी करने वाले गिरोह का सदस्य था. उस ने उस के गिरोह में शामिल होने का पक्का मन उसी पल बना लिया. उस ने अभावों व जिल्लत की जिंदगी और न जीने की सौगंध खा ली.

नरेश उस वक्त का सामना करने से डर रहा था जब वह अपनी मां व जवान बहन के सामने होगा. एक बलात्कारी होने का ठप्पा माथे पर लगा कर इन दोनों के सामने खड़े होने की कल्पना कर के ही उस की रूह कांप रही थी. जब आंतरिक तनाव बहुत ज्यादा बढ़ गया तो अचानक उस की रुलाई फूट पड़ी.

रामनाथ ने अब उन्हें अपने फार्महाउस में भेजने का विचार बदल दिया क्योंकि एसएचओ उन से सवाल करने का इच्छुक था. उन के सोने का इंतजाम उन्होंने मेहमानों के कमरे में किया.

विजय कपूर अपने बेटे नरेश का इंतजार करतेकरते सो गए, पर वह कमरे में नहीं आया. उस की अपने पिता के सवालों का सामना करने की हिम्मत ही नहीं हुई थी.

सारी रात उन तीनों की आंखों से नींद कोसों दूर रही. उस अनजान लड़की से बलात्कार करना ज्यादा मुश्किल साबित नहीं हुआ था, पर अब पकड़े जाने व परिवार व समाज की नजरों में अपमानित होने के डर ने उन तीनों की हालत खराब कर रखी थी.

सुबह 7 बजे के करीब थानेदार सतीश श्रीवास्तव रामनाथ की कोठी पर अपनी कार से अकेला मिलने आया.

उस का सामना इन तीनों ने डरते हुए किया. थाने में बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाने वह अनजान लड़की रातभर नहीं आई थी, लेकिन थानेदार फिर भी 50 हजार रुपए रामनाथ से ले गया.

‘‘मैं अपनी वरदी को दांव पर लगा कर आप के भतीजे और उस के दोस्तों की सहायता को तैयार हुआ हूं,’’ थानेदार ने रामनाथ से कहा, ‘‘मेरे रजामंद होने की फीस है यह 50 हजार रुपए. वह लड़की थाने न आई तो इन तीनों की खुशकिस्मती, नहीं तो 10 लाख का इंतजाम रखिएगा,’’ इतना कह कर वह उन को घूरता हुआ बोला, ‘‘और तुम तीनों पर मैं भविष्य में नजर रखूंगा. अपनी जवानी को काबू में रखना सीखो, नहीं तो एक दिन बुरी तरह पछताओगे,’’ कठोर स्वर में ऐसी चेतावनी दे कर थानेदार चला गया था.

वे तीनों 9 बजे के आसपास रामनाथ की कोठी से अपनेअपने घरों को जाने के लिए बाहर आए. उस लड़की का रेप करने के बाद करीब 1 दिन गुजर गया था. उसे रेप करने का मजा उन्हें सोचने पर भी याद नहीं आ रहा था.

इस वक्त उन तीनों के दिमाग में कई तरह के भय घूम रहे थे. कटे बालों वाली लंबे कद की किसी भी लड़की पर नजर पड़ते ही पहचाने जाने का डर उन में उभर आता. खाकी वरदी वाले पर नजर पड़ते ही जेल जाने का भय सताता. अपने घर वालों का सामना करने से वे मन ही मन डर रहे थे. उस वक्त की कल्पना कर के उन की रूह कांप जाती जब समाज की नजरों में वे बलात्कारी बन कर सदा जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर होंगे.

अगर तीनों का बस चलता तो वे वक्त को उलटा घुमा कर उस लड़की को रेप करने की घटना घटने से जरूर रोक देते. सिर्फ 12 घंटे में उन की हालत भय, चिंता, तनाव और समाज में बेइज्जती होने के एहसास से खस्ता हो गई थी. इस तरह की मानसिक यंत्रणा उन्हें जिंदगी भर भोगनी पड़ सकती है, इस एहसास के चलते वे तीनों अपनेआप और एकदूसरे को बारबार कोस रहे थे.

Holi 2024: रंगों से अपनी स्किन को बचाएं ऐसे

गुझिया , पिचकारियाँ, गुलाल, ठण्डाई और हँसी यही होली का प्रतीक है और  मार्च का महीना अपने साथ लेकर आता है होली के रंगों की धूम. यह वर्ष का वह समय होता है जिसका शायद हम सभी को बेशब्री से  इंतज़ार होता है और  जब हम रंगों से सराबोर हो जाते हैं.जबकि कुछ लोग ऐसे भी है जो इन रंगों से दूर भागते है कारण है स्किन खराब होने का डर .लेकिन इस दिन इन रंगों से कोई बच नहीं पाता .

अफसोस की बात है कि अब गुलाल का उपयोग होली खेलने के दौरान बहुत कम हो गया है. बाजारों में केमिकल रंग,हर्बल रंगों से कीमतों में ज्यादा सस्ते  होते है और अधिकतर लोग इसी कारण हर्बल रंगों का चयन न करके केमिकल रंगों का चयन करते हैं जो वाकई में बहुत ज्यादा हानिकारक साबित हो सकते हैं.

अब अक्सर लोग ब्राइट और केमिकल रंगों का प्रयोग करते हैं और विशेषज्ञों के अनुसार ये रंग अक्सर  गंभीर स्किन संक्रमण, आंखों में problem  और यहां तक कि बालों के झड़ने का कारण बन सकते हैं.

जाने-माने स्किन विशेषज्ञ और कॉस्मेटोलॉजिस्ट डॉ शेफाली तृसी नेरुरकर कहती हैं, ” होली के दौरान सिंथेटिक रंगों के इस्तेमाल से अक्सर स्किन में जलन, डर्माटाइटिस और स्किन rashes जैसी बहुत सी परेशानी हो  सकती है. कुछ मामलों में जलन इतनी गंभीर होती है कि यह बहुत ज्यादा परेशानी का सबब बन जाती है. “

अगर आप डरते हैं कि ये रंग आपकी स्किन और बालों को नुकसान पहुंचाएंगे तो इस होली अपनी स्किन और बालों की चिंता करना भूल जाएं और रंगों के त्योहार का आनंद लें क्योंकि हम आपके लिए लाए हैं बेहतरीन ब्यूटी टिप्स.चलिए जानते है की इस होली हम अपने स्किन और बालों की देखभाल कैसे करें-

1. sunscreens का use करें

होली हमेशा खुले में खेली जाती है . सूरज की रोशनी शरीर पर लगे रंगों को पक्का कर देती है, जिसकी वजह से उन्हें निकालना मुश्किल हो जाता है.इसलिए  होली खेलने से पहले 20 से 25 spf वाला सनस्क्रीन जरूर लगाएं. यह आपकी स्किन को टैनिंग से बचाएगा  और इसके अलावा धूप में होली खेलने से आप की रंगत बेकार भी नहीं होगी. बाद में जब आप अपनी स्किन  से होली का रंग छुड़ाएंगे तब  वह बड़ी आसानी से आपकी स्किन से निकल जाएंगे.

2. अपनी स्किन और बालों पर तेल लगाएं

ओइलिंग  केवल आपके बालों तक सीमित नहीं होनी चाहिए. आपको अपनी स्किन को भी केमिकल रंगों  से बचाना होगा. इसके लिए ये सुनिश्चित करें की आप अपने बालों में अच्छे से जैतून का तेल लगायें. आप चाहे तो अपना कोई भी पसंदीदा तेल लगा सकते है. अपने बालों के साथ साथ अपने शरीर पर भी नारियल या जैतून के तेल की अच्छे से मालिश कर लें . ये तेल आपकी स्किन और रंगों के बीच एक सुरक्षात्मक परत के रूप में काम करेगा और आपकी स्किन को रंगों से प्रभावित होने से बचाएगा. इसके अलावा होली के बाद रंगों से छुटकारा पाना आपके लिए आसान होगा.

3. अपने नाखूनों को नेल पेंट से कोट करें

इस सीजन  आपका  अपने हाथों को मॉइस्चराइज़ करना पर्याप्त नहीं है,यह  बहुत संभव है कि रंगों से खेलते समय होली के रंग आपके नाखूनों को नुकसान पहुंचा सकते है और उन्हें रूखा और बेजान बना सकते हैं. अक्सर हम देखते हैं कि होली के चार-पांच दिनों बाद तक हमारे नाखूनों पर होली का रंग  चढ़ा रहता है, जो देखने में काफी भद्दा नजर आता है. अगर आप नहीं चाहते कि आपके नाखूनों की रंगत जाए और उस पर होली का रंग चढ़े तो अपने नाखूनों पर नेल पॉलिश का एक मोटा कोट लगाएं. डार्क शेड का विकल्प आपके नाखूनों को दागदार होने से बचाएगा. इससे आपके नाखूनों की रंगत ऐसी ही बनी रहेगी जैसे पहले थी. होली खेलने के बाद में  नेल पॉलिश को नेल रिमूवर से निकाल दें. आप देखेंगे कि आपके नाखूनों पर होली का रंग नहीं चढ़ा है.

एक बात और किसी भी रंग को उंगलियों के बीच फंसने से रोकने के लिए उंगलियों पर पेट्रोलियम जेली जरूर लगायें.

4. waterproof मेकअप करें

अपने चेहरे और गर्दन को रंगों से सुरक्षित रखने के लिए आप अपनी स्किन के हिसाब से कोई भी waterproof फाउंडेशन use कर सकते है. आप अपनी आँखों के लिए कोई भी ब्राइट कलर का waterproof eyeshadow use कर सकते है. आप चाहे तो अपने होठो  पर कोई भी ब्राइट कलर की longlasting लिपस्टिक लगा सकते हैं.  इससे रंग आपकी स्किन के डायरेक्ट कांटेक्ट में नहीं आ पाएंगे और आपकी स्किन रंगों से सुरक्षित भी रहेगी.

5. अपने बालों की देखभाल करें

होली में अपने बालों को पानी के रंगों से दूर रखना लगभग नामुमकिन है.इसलिए होली खेलने से पहले अपने बालों में या तो कंडीशनर लगा ले या तो कोई सिरम . यदि आपके बाल छोटे हैं, तो हेयर जेल लगाएं. इस कोशिश से आप अपने बालों को खतरनाक केमिकल से बचा सकते हैं .

अपने बालों को बचाने का सबसे अच्छा तरीका यह भी  है कि आप इसे स्कार्फ से  पूरी तरह से कवर करें. इन तरीकों को अपनाने से रंग खेलने के बाद बाल धोते वक्त बालों पर लगा रंग आसानी से बाहर निकल जाता है.

6. हमेशा हाइड्रेटेड रहें

यह होली खेलने और इसके रंगों के दुष्प्रभावों को रोकने के लिए यह एक बहुत प्रभावी तरीका है. हम होली खेलते समय पूरा वक़्त घर से बाहर रहते है और इस कारण अक्सर हम पानी पीना भूल जाते हैं और परिणामस्वरूप हमारे   शरीर में  पानी की कमी हो जाती  है .इससे खराब टैन होने की अधिक संभावनाएं होती हैं और आपका ऊर्जा स्तर भी नीचे गिर सकता है. चलिए हम-सब मिलकर इस होली को सही मायने में ‘Happy Holi ‘ बनाये.

Holi Special: जरूरी सबक- हवस में अंधे हो कर जब लांघी रिश्तों की मर्यादा

हा को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. दरवाजे की झिर्री से आंख सटा कर उस ने ध्यान से देखा तो जेठजी को अपनी ओर देखते उस के होश फाख्ता हो गए. अगले ही पल उस ने थोड़ी सी ओट ले कर दरवाजे को झटके से बंद किया, मगर थोड़ी देर बाद ही चर्ररर…की आवाज के साथ चरमराते दरवाजे की झिर्री फिर जस की तस हो गई. तनिक ओट में जल्दी से कपड़े पहन नेहा बाथरूम से बाहर निकली. सामने वाले कमरे में जेठजी जा चुके थे. नेहा का पूरा शरीर थर्रा रहा था. क्या उस ने जो देखा वह सच है. क्या जेठजी इतने निर्लज्ज भी हो सकते हैं. अपने छोटे भाई की पत्नी को नहाते हुए देखना, छि, उन्होंने तो मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ लीं…नेहा सोचती जा रही थी.

कितनी बार उस ने मयंक से इस दरवाजे को ठीक करवाने के लिए कहा था, लेकिन हर बार बात आई गई हो गई थी. एक तो पुराना दरवाजा, उस पर टूटी हुई कुंडी, बारबार कस कर लगाने के बाद भी अपनेआप खुल जाया करती थी. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि उस झिर्री से उसे कोई इस तरह देखने का यत्न कर सकता है. पहले भी जेठजी की कुछ हरकतें उसे नागवार लगती थीं, जैसे पैर छूने पर आशीर्वाद देने के बहाने अजीब तरह से उस की पीठ पर हाथ फिराना, बेशर्मों की तरह कई बार उस के सामने पैंट पहनते हुए उस की जिप लगाना, डेढ़ साल के नन्हें भतीजे को उस की गोद से लेते समय उस के हाथों को जबरन छूना और उसे अजीब सी निगाहों से देखना आदि.

नईनई शादी की सकुचाइट में वह मयंक को भी कुछ नहीं बता पाती. कई बार उसे खुद पर संशय होता कि क्या उस का शक सही है या फिर यह सब सिर्फ वहम है. जल्दबाजी में कोई निर्णय कर वह किसी गलत नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहती थी, क्योंकि यह एक बहुत ही करीबी रिश्ते पर प्रश्नचिह्न खड़ा करने जैसा था. लेकिन आज की घटना ने उसे फिर से सोचने पर विवश कर दिया.

घर के आंगन से सटा एक कोने में बना यह कमरा यों तो अनाज की कोठी, भारी संदूक व पुराने कूलर आदि रखने के काम आता था, परंतु रेलवे में पदस्थ सरकारी कर्मचारी उस के जेठ अपनी नाइट ड्यूटी के बाद शांति से सोने के लिए अकसर उक्त कमरे का इस्तेमाल किया करते थे. हालांकि घर में 4-5 कमरे और थे, लेकिन जेठजी इसी कमरे में पड़े एक पुराने दीवान पर बिस्तर लगा कर जबतब सो जाया करते थे. इस कमरे से आंगन में बने बाथरूम का दरवाजा स्पष्ट दिखाई देता था. आज सुबह भी ड्यूटी से आए जेठजी इसी कमरे में सो गए थे. उन की बदनीयती से अनभिज्ञ नेहा सुबह के सभी कामों को निबटा कर बाथरूम में नहाने चली आई थी. नेहा के मन में भारी उथलपुथल मची थी, क्या इस बात की जानकारी उसे मयंक को देना चाहिए या अपनी जेठानी माला से इस बाबत चर्चा कर देखना चाहिए. लेकिन अगर किसी ने उस की बात पर विश्वास नहीं किया तो…मयंक तो अपने बड़े भाई को आदर्श मानता है और भाभी…वे कितनी भली महिला हैं. अगर उन्होंने उस की बात पर विश्वास कर भी लिया तो बेचारी यह जान कर कितनी दुखी हो जाएंगी. दोनों बच्चे तो अभी कितने छोटे हैं. नहींनहीं, यह बात वह घर में किसी को नहीं बता सकती. अच्छाभला घर का माहौल खराब हो जाएगा. वैसे भी, सालछह महीने में मयंक की नौकरी पक्की होते ही वह यहां से दिल्ली उस के पास चली जाएगी. हां, इस बीच अगर जेठजी ने दोबारा कोई ऐसी हरकत दोहराई तो वह उन्हें मुंहतोड़ जवाब देगी, यह सोचते हुए नेहा अपने काम पर लग गई.

उत्तर प्रदेश के कानपुर में 2 वर्षों पहले ब्याह कर आई एमए पास नेहा बहुत समझदार व परिपक्व विचारों की लड़की थी. उस के पति मयंक दिल्ली में एक कंपनी में बतौर अकाउंट्स ट्रेनी काम करते थे. अभी फिलहाल कम सैलरी व नौकरी पक्की न होने के कारण नेहा ससुराल में ही रह रही थी. कुछ पुराना पर खुलाखुला बड़ा सा घर, किसी पुरानी हवेली की याद दिलाता सा लगता था. उस में जेठजेठानी और उन के 2 छोटे बच्चे, यही नेहा की ससुराल थी.

यहां उसे वैसे कोई तकलीफ नहीं थी. बस, अपने जेठ का दोगलापन नेहा को जरा खलता था. सब के सामने प्यार से बेटाबेटा कहने वाले जेठजी जरा सी ओट मिलते ही उस के सामने कुछ अधिक ही खुलने का प्रयास करने लगते, जिस से वह बड़ी ही असहज महसूस करती. स्त्रीसुलभ गुण होने के नाते अपनी देह पर पड़ती जेठजी की नजरों में छिपी कामुकता को उस की अंतर्दृष्टि जल्द ही भांप गई थी. एहतियातन जेठजी से सदा ही वह एक आवश्यक दूरी बनाए रखती थी.

होली आने को थी. माला और बच्चों के साथ मस्ती और खुशियां बिखेरती नेहा जेठजी के सामने आते ही एकदम सावधान हो जाती. उसे होली पर मयंक के घर आने का बेसब्री से इंतजार था. पिछले साल होली के वक्त वह भोपाल अपने मायके में थी. सो, मयंक के साथ उस की यह पहली होली थी. होली के 2 दिनों पहले मयंक के आ जाने से नेहा की खुशी दोगुनी हो गई. पति को रंगने के लिए उस ने बच्चों के साथ मिल कर बड़े जतन से एक योजना बनाई, जिस की भनक भी मयंक को नहीं पड़ने पाई.

होली वाले दिन महल्ले में सुबह से ही बच्चों की धमाचौकड़ी शुरू हो गई थी. नेहा भी सुबह जल्दी उठ कर भाभी के साथ घर के कामों में हाथ बंटाने लगी. ‘‘जल्दीजल्दी हाथ चला नेहा, 10-11 बजे से महल्ले की औरतें धावा बोल देंगी. कम से कम खाना बन जाएगा तो खानेपीने की चिंता नहीं रहेगी,’’ जेठानी की बात सुन नेहा दोगुनी फुरती से काम में लग गई. थोड़ी ही देर में पूड़ी, कचौड़ी, दही वाले आलू, मीठी सेवइयां और अरवी की सूखी सब्जी बना कर दोनों देवरानीजेठानी फारिग हो गईं. ‘‘भाभी, मैं जरा इन को देख कर आती हूं, उठे या नहीं.’’

‘‘हां, जा, पर जरा जल्दी करना,’’ माला मुसकराते हुए बोली. कमरे में घुस कर नेहा ने सो रहे मयंक के चेहरे की खूब गत बनाई और मजे से चौके में आ कर अपना बचा हुआ काम निबटाने लगी.

इधर, मयंक की नींद खुलने पर सभी उस का चेहरा देख कर हंसतेहंसते लोटपोट हो गए. हैरान मयंक ने बरामदे में लगे कांच में अपनी लिपीपुती शक्ल देखी तो नेहा की शरारत समझ गया. ‘‘भाभी, नेहा कहां है?’’ ‘‘भई, तुम्हारी बीवी है, तुम जानो. मुझे तो सुबह से नजर नहीं आई,’’ भाभी ने हंसते हुए जवाब दिया.

‘‘बताता हूं उसे, जरा मिलने दो. अभी तो मुझे अंदर जाना है.’’ हाथ से फ्रैश होने का इशारा करते हुए वह टौयलेट में जा घुसा. इधर, नेहा भाभी के कमरे में जा छिपी थी.

फ्रैश हो कर मयंक ने ब्रश किया और होली खेलने के लिए बढि़या सफेद कुरतापजामा पहना. ‘‘भाभी, नाश्ते में क्या बनाया है, बहुत जोरों की भूख लगी है. फिर दोस्तों के यहां होली खेलने भी निकलना है,’’ मयंक ने भाभी से कहा, इस बीच उस की निगाहें नेहा को लगातार ढूंढ़ रही थीं. मयंक ने नाश्ता खत्म ही किया था कि भतीजी खुशी ने उस के कान में कुछ फुसफुसाया. ‘‘अच्छा…’’ मयंक उस की उंगली थामे उस की बताई जगह पर आंगन में आ खड़ा हुआ. ‘‘बताओ, कहां है चाची?’’ पूछने पर ‘‘एक मिनट चाचा,’’ कहती हुई खुशी उस का हाथ छोड़ कर फुरती से दूर भाग गई. इतने में पहले से ही छत पर खड़ी नेहा ने रंग से भरी पूरी की पूरी बालटी मयंक पर उड़ेल दी. ऊपर से अचानक होती रंगों की बरसात में बेचारा मयंक पूरी तरह नहा गया. उस की हालत देख कर एक बार फिर पूरा घर ठहाकों से गूंज उठा. थोड़ी ही देर पहले पहना गया सफेद कुरतापजामा अब गाढ़े गुलाबी रंग में तबदील हो चुका था.

‘‘ठहरो, अभी बताता हूं तुम्हें,’’ कहते हुए मयंक जब तक छत पर पहुंचा, नेहा गायब हो चुकी थी. इतने में बाहर से मयंक के दोस्तों का बुलावा आ गया. ‘‘ठीक है, मैं आ कर तुम्हें देखता हूं,’’ भनभनाता हुआ मयंक बाहर निकल गया. उधर, भाभी के कमरे में अलमारी के एक साइड में छिपी नेहा जैसे ही पलटने को हुई, किसी की बांहों ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया. उस ने तुरंत ही अपने को उन बांहों से मुक्त करते हुए जेठजी पर तीखी निगाह डाली.

‘‘आप,’’ उस के चहेरे पर आश्चर्य और घृणा के मिलेजुले भाव थे. ‘‘अरे तुम, मैं समझा माला है,’’ जेठजी ने चौंकने का अभिनय करते हुए कहा. बस, अब और नहीं, मन में यह विचार आते ही नेहा ने भरपूर ताकत से जेठजी के गाल पर तड़ाक से एक तमाचा जड़ दिया.

‘‘अरे, पागल हुई है क्या, मुझ पर हाथ उठाती है?’’ जेठजी का गुस्सा सातवें आसमान पर था. ‘‘पागल नहीं हूं, बल्कि आप के पागलपन का इलाज कर रही हूं, क्योंकि सम्मान की भाषा आप को समझ नहीं आ रही. गलत थी मैं जो सोचती थी कि मेरे बदले हुए व्यवहार से आप को अपनी भूल का एहसास हो जाएगा. पर आप तो निर्लज्जता की सभी सीमाएं लांघ बैठे. अपने छोटे भाई की पत्नी पर बुरी नजर डालते हुए आप को शर्म नहीं आई, कैसे इंसान हैं आप? इस बार आप को इतने में ही छोड़ रही हूं. लेकिन आइंदा से अगर मुझ से जरा सी भी छेड़खानी करने की कोशिश की तो मैं आप का वह हाल करूंगी कि किसी को मुंह दिखाने लायक न रहेंगे. आज आप अपने छोटे भाई, पत्नी और बच्चों की वजह से बचे हो. मेरी नजरों में तो गिर ही चुके हो. आशा करती हूं सब की नजरों में गिरने से पहले संभल जाओगे,’’ कह कर तमतमाती हुई नेहा कमरे के बाहर चली गई.

कमरे के बाहर चुपचाप खड़ी माला नेहा को आते देख तुरंत दरवाजे की ओट में हो गई. वह अपने पति की दिलफेंक आदत और रंगीन तबीयत से अच्छी तरह वाकिफ थी. पर रूढि़वादी बेडि़यों में जकड़ी माला ने हमेशा ही पतिपरमेश्वर वाली परंपरा को शिरोधार्य किया था. वह कभीकभी अपने पति की गलत आदतों के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत न कर पाई थी. लेकिन आज नेहा ने जो बहादुरी और हिम्मत दिखाई, उस के लिए माला ने मन ही मन उस की बहुत सराहना की. नेहा ने उस के पति को जरूरी सबक सिखाने के साथसाथ उस घर की इज्जत पर भी आंच न आने दी. माला नेहा की शुक्रगुजार थी.

उधर, कुछ देर बाद नहा कर निकली नेहा अपने गीले बालों को आंगन में सुखा रही थी. तभी पीछे से मयंक ने उसे अपने बाजुओं में भर कर दोनों मुट्ठियों में भरा रंग उस के गालों पर मल दिया. पति के हाथों प्रेम का रंग चढ़ते ही नेहा के गुलाबी गालों की रंगत और सुर्ख हो चली और वह शरमा कर अपने प्रियतम के गले लग गई. यह देख कर सामने से आ रही माला ने मुसकराते हुए अपनी निगाहें फेर लीं.

Holi 2024: होली पर कैमिकल रंगों से बचना है जरूरी

होली के त्यौहार पर बच्चों से लेकर बूढ़े सभी एक-दूसरे को रंग लगाना पसंद करते हैं. विभिन्न प्रकार के रंगों के साथ सभी के बीच गिले-शिकवे दूर हो जाते हैं और हर जगह हंसी-ठिठोली नजर आती है. लेकिन इस मस्ती में हम एक चीज़ पर ध्यान देना ही भूल जाते हैं और वह है, होली में खेले जाने वाले रंग. बस यही एक लापरवाही हमारी स्किन के लिए कई मुश्किलें पैदा कर देती है. दरअसल, बाज़ार में कई प्रकार के रंग मिलते हैं और ज्यादातर रंग स्किन के लिए हानिकारक होते हैं. ऐसे में न सिर्फ सावधानी बरतें बल्कि ऐसे रंगों का चुनाव करें, जो स्किन को नुकसान न पहुंचाएं.

बाज़ार में उपलब्ध रंगो के प्रकार

डॉ गौरव भारद्वाज ,डर्मेटोलॉजिस्ट, सरोज हॉस्पिटल, बताते हैं कि आमतौर पर बाज़ार में तीन प्रकार के रंग मिलते हैं, जिसमें पेस्ट, पाउडर वाले रंग और गीले रंग शामिल हैं. जहां ये सभी रंग कैमिकल्स से भरे होते हैं, वहीं बाज़ार में हर्बल रंग भी आसानी से मिल जाते हैं, जो स्किन को बिल्कुल नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. आइए जानते हैं ये रंग स्किन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं और इनके फायदे व नुकसान क्या-क्या हैं:

1. पेस्ट

इस प्रकार के रंग ट्यूब के रूप में मिलते हैं, जो किसी जेल की भांति नजर आते हैं. हालांकि, इस प्रकार के रंगों को ज्यादा पसंद नहीं किया जाता है, इसलिए बाज़ार में ये जल्दी नहीं मिलते हैं. इन रंगों में कैमिकल्स की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जो स्किन के लिए बेहद नुकसादायक हैं. ये स्किन को ड्राई कर देते हैं और जलन का कारण भी बनते हैं. इसलिए इस प्रकार के रंगो से दूर रहने में ही फायदा है.

2. पाउडर

होली में पाउडर यानी कि सूखे रंगों को सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. ये कैमिकल व हर्बल दो प्रकार के होते हैं. अधिकतर लोगों में हर्बल रंगों के बारे में अधिक जानकारी न होने के कारण वे कैमिकल वाले रंग खरीद लेते हैं. ये कैमिकल वाले रंग स्किन के लिए बेहद नुकसानदायक होते हैं. इनमें कलरेंट नाम का तत्व पाया जाता है, जो स्किन के लिए बेहद टॉक्सिक होता है. खासकर पानी के साथ इस्तेमाल किए जाने पर ये स्किन को दोगुना नुकसान पहुंचाते हैं. इनसे न सिर्फ स्किन पर जलन होती है बल्कि लाल चकत्ते भी पड़ सकते हैं. हरे रंग में कॉपर सल्फेट मिलाया जाता है, जो स्किन की एलर्जी और कमजोर आँखों के लिए जिम्मेदार होता है. लाल रंग में मरकरी होता है, जिससे स्किन का कैंसर हो सकता है. वहीं नीले रंग में कोबाल्ट नाइट्रेट होता है, जिससे स्किन की एलर्जी, कैंसर और दमा की समस्या हो सकती है.

3. चमकीला पाउडर

चमकीले पाउडर वाले रंगों में एस्बेस्टस नाम का तत्व पाया जाता है. एस्बेस्टस से स्किन कैंसर हो सकता है. ये रंग बाज़ार में आसानी से मिल जाते हैं और चूंकि ये दिखने में काफी आकर्षक होते हैं इसलिए लोग इन्हें खरीदना ज्यादा पसंद करते हैं.

4. पक्के रंग

दरअसल, ये बाज़ार में पाउडर के रूप में ही मिलते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल पानी के साथ किया जाता है. एक बार स्किन पर लगने के बाद इन्हें साफ करना बेहद मुश्किल होता है. स्किन को पूरी तरह से साफ होने में कम से कम 4-5 दिन का वक्त लग जाता है. इनमें मौजूद कैमिकल्स के कारण स्किन में जलन, रूखापन, दाने, लाल धब्बे आदि जैसी समस्याएं होती हैं, इसलिए लोग इनका इस्तेमाल पसंद नहीं करते हैं. पक्के रंगों का इस्तेमाल बच्चे और शरारती लोग ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें अन्य लोगों को परेशान करने का एक अच्छा मौका मिल जाता है.

5. हर्बल रंग

ये रंग गीले व पाउडर के रूप में मिलते हैं. हर्बल रंग स्किन के लिए बिल्कुल सुरक्षित और फायदेमंद होते हैं. चूंकि, हर्बल रंग स्किन को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, इसलिए ये बाकी रंगों की तुलना में मंहगे होते हैं. इन रंगों की खास बात यह है कि इन्हें घर पर आसानी से तैयार किया जा सकता है.

घर पर कैसे तैयार करें हर्बल रंग?

पीला रंग: पिसे हुए चावल या गेहूं के आंटे में हल्दी मिलाकर पीला रंग तैयार किया जा सकता है. इसके अलावा गेंदे के फूलों को पानी में उबालकर भी पीला रंग बनाया जा सकता है.

लाल रंग: लाल रंगों के लिए लाल गुड़हल, लाल गुलाब या चुकंदर को पानी में उबालें या लाल चंदन का इस्तेमाल करें.

हरा रंग: हरे रंग को बनाने के लिए पालक या धनिया के पत्तों को पानी में उबालें या मिक्सी की मदद से इनका पेस्ट तैयार कर लें.

गुलाबी रंग: गुलाबी रंग के लिए गुलाबी गुलाब को पानी में उबालें.

इन बातों का खास ख्याल रखें:

केवल हर्बल रंगों का इस्तेमाल करें.

पक्के रंगों का इस्तेमाल बिल्कुल न करें.

रंग खेलने से पहले शरीर पर सरसों तेल या जैतून का तेल लगाएं.

रंग खलते वक्त पूरे शरीर को ढ़कने वाले कपड़े पहने, जिससे रंग पूरे शरीर पर न लग सके.

रंगों को आँखों में बिल्कुल न जाने दें. यदि रंग आँखों में चला भी जाए तो आँखों को ठंडे पानी से साफ करें. ज्यादा समस्या होने पर डॉक्टर से संपर्क करें.

पूरा दिन होली खेलने की बजाए, कुछ देर खेलकर शरीर की अच्छे से सफाई करें.

पक्का रंग निकालने के लिए दही और बेसन के पेस्ट का इस्तेमाल करें.

रंग निकालने के लिए स्किन को रगड़े नहीं. यदि सफाई के बाद भी रंग नहीं निकल रहा है तो उसे ज़बरदस्ती निकालने की कोशिश न करें.

नहाने के बाद स्किन पर नारियल का तेल लगाएं.

डॉ गौरव भारद्वाज सीनियर कंसलटेंट ,डर्मेटोलॉजिस्ट सरोज हॉस्पिटल, नई दिल्ली, से बातचीत पर आधारित.

क्या भ्रूण की संख्या प्रैग्नेंट होने की संभावना पर असर करती है?

सवाल

मैं 35 साल की विवाहित महिला हूं. मैं आईवीएफ तकनीक की मदद से मां बनना चाहती हूं और उम्मीद करती हूं कि तकनीक सफल रहे. इसलिए मैं जानना चाहती हूं कि क्या भ्रूण की संख्या गर्भवती होने की संभावना को प्रभावित करती है?

जवाब-

गर्भवती होने के लिए एक भू्रण के साथ सफलता की उम्मीद 28% होती है, जबकि 2 भू्रण के साथ सफलता की उम्मीद 48% होती है. लेकिन इस के साथ ही जुड़वां बच्चे होने की संभावना भी अधिक हो जाती है. यदि आप जुड़वां बच्चों का रिस्क नहीं लेना चाहती हैं, तो आप एक ही भू्रण को इंप्लांट करवा सकती हैं. इस के लिए आप के स्वस्थ अंडे का भू्रण तैयार किया जाएगा और फिर उस भू्रण को आप के गर्भ में इंप्लांट कर दिया जाएगा. यह आप की प्रैगनैंसी की संभावना को भी बढ़ाएगा और आप को अधिक समस्या का भी सामना नहीं करना पड़ेगा.

ये भी पढ़ें- 

गर्भावस्था में सही खान-पान मां और बच्चे दोनों के लिए बेहद जरूरी होता है. ठीक तरह से खाना लेने से गर्भस्थ्य शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास अच्छी तरह से हो पाता है. कई बार गर्भ के दौरान महिलाओं को इस बात का पता नहीं होता है कि उन्हें किन फलों के सेवन से बचना चाहिए. सही जानकारी का पता होना हर गर्भवती महिला के लिए जरूरी है. इसलिए आज हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था के दौरान किन फलों को और क्यों नहीं खाना चाहिए.

गर्भ के दौरान कई बार महिलाएं कुछ गलतियां कर बैठती हैं जिसकी वजह से गर्भपात तक हो सकता है. गर्भ के दौरान कई सारी चीजें निर्भर करती हैं महिला के खान पान पर. यदि वह इस दौरान कुछ गलत फलों को चयन करती हैं जो गर्भ के दौरान नहीं लेने चाहिए. तो इससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

उतरन: क्यों बड़े भाई की उतरन पर जी रहा था प्रकाश

लेखिका- रेखा विनायक नाबर

भैया अमेरिका जाने वाले हैं, यह जान कर मैं फूला न समाया. भैया से भी ज्यादा खुशी मुझे हुई थी. जानते हो क्यों? अब मुझे उन के पुराने कपड़े, जूते नहीं पहनने पड़ेंगे. बस, यह सोच कर ही मैं बेहद खुश था. आज तक मैं हमेशा उन के पुराने कपड़े, जूते, यहां तक कि किताबें भी इस्तेमाल करता आया था. बस, एक दीवाली ही थी जब मुझे नए कपड़े मिलते थे. पुरानी चीजों का इस्तेमाल करकर के मैं ऊब गया था.

मां से मैं हमेशा शिकायत करता था, ‘मां, मैं क्या जिंदगीभर पुरानी चीजें इस्तेमाल करूं?’

‘बेटे, वह तुम से 2 साल ही तो बड़ा है. तुम बेटे भी न जल्दीजल्दी बड़े हो जाते हो. अभी उसे तो एक साल में कपड़े छोटे होते हैं. उसे नए सिलवा देती हूं. लेकिन ये कपड़े मैं अच्छे से धो कर रखती हूं, देखो न, बिलकुल नए जैसे दिखते हैं. तो क्या हर्ज है? जूतों का भी ऐसे ही है. अब किताबों का पूछोगे तो हर साल कहां सिलेबस बदलता है. उस की किताबें भी तुम्हारे काम आ जाती हैं. देखो बेटे, बाइंडिंग कर के अच्छा कवर लगा कर देती हूं तुम्हें. क्यों फुजूल खर्च करना. मेरा अच्छा बेटा. तेरे लिए भी नई चीजें लाएंगे,’ मां शहद में घुली मीठी जबान से समझती थीं और मैं चुप हो जाता था.

मुझे कभी भी नई चीजें नहीं मिलती थीं. स्कूल के पहले दिन दोस्तों की नईर् किताबें, यूनिफौर्म, उन की एक अलग गंध, इन सब से मैं प्रभावित होता था. साथ ही बहुत दुख होता था. क्या इस खुशी से मैं हमेशा के लिए वंचित रहूंगा? ऐसा सवाल मन में आता था. पुरानी किताबें इस्तेमाल कर के मैं इतना ऊब गया था कि 10वीं कक्षा पास होने के बाद मैं ने साइंस में ऐडमिशन लिया. भैया तब 12वीं कौमर्स में थे. 11वीं कक्षा में मुझे पहली बार नई किताबें मिलीं. कैमिस्ट्री प्रैक्टिकल में मुझे चक्कर आने लगे. बदन पर धब्बे आने लगे. कुछ घर के उपाय करने के बाद पिताजी डाक्टर के पास ले गए.

‘अरे, इसे तो कैमिकल की एलर्जी है. कैमिस्ट्री नहीं होगी इस से.’

‘इस का मतलब यह साइंस नहीं पढ़ पाएगा?’

‘बिलकुल नहीं.’

डाक्टर के साथ इस बातचीत के बाद पिताजी सोच में पड़ गए. आर्ट्स का तो स्कोप नहीं. फिर क्या, मेरा भी ऐडमिशन कौमर्स में कराया गया, और फिर से उसी स्थिति में आ गया. भैया की वही पुरानी किताबें, गाइड्स. घर में सब से छोटा करने के लिए मैं मन ही मन मम्मीपापा को कोसता रहा. भैया ने बीकौम के बाद एमबीए किया और मैं सीए पूरा करने में जुट गया. सोचा, चलो पुरानी किताबों का झमेला तो खत्म हुआ. एमबीए पूरा होने के बाद भैया कैंपस इंटरव्यू में एक विख्यात मल्टीनैशल कंपनी में चुने गए. यही कंपनी उन्हें अमेरिका भेज रही थी. भैया भी जोरशोर से तैयारी में जुटे थे और मैं भी मदद कर रहा था. वे अमेरिका चले गए. समय के साथ मेरा भी सीए पूरा हुआ. इंटरव्यू कौल्स आने लगे.

‘‘मां, इंटरव्यू कौल्स आ रहे हैं, सोचता हूं कुछ नए कपड़े सिलवाऊं.’’

मां ने भैया की अलमारी खोल कर दिखाई, ‘‘देखो, भैया कितने सारे कपड़े छोड़ गया है. शायद तुम्हारे लिए ही हैं. नए ही दिख रहे हैं. सूट भी हैं. ऐसे लग रहे हैं जैसे अभीअभी खरीदे हैं. फिर भी तुम्हें लगता हो, तो लौंड्री में दे देना.’’

मां क्या कह रही हैं, मैं समझ गया. मैं पहले ही इंटरव्यू में पास हो गया. मां खुश हुईं और बोलीं, ‘‘देखो, भैया के कपड़े की वजह से पहले ही इंटरव्यू में नौकरी मिल गई. वह बड़ा खुश होगा.’’ एक तो पुराने कपड़े पहन कर मैं ऊब गया था और मां जले पर नमक छिड़क रही थीं. क्या मेरी गुणवत्ता का कोई मोल नहीं? मां का भैया की ओर झकाव मुझे दिल ही दिल में खाए जा रहा था. पहली सैलरी में कुछ अच्छे कपड़े खरीद कर मैं ने इस चक्रव्यूह को तोड़ा था. भैया के कपड़े मैं ने अलमारी में लौक कर डाले. मैं अपने लिए नईनई चीजें खरीदने लगा.

भैया अमेरिका में सैटल हो गए. अब उन्हें शादी के लिए उच्चशिक्षित, संपन्न रिश्ते आ रहे थे. भैया के कहेअनुसार हम लड़की देखने जा रहे थे. आखिरकार हम ने भैया के लिए 4 लड़कियां चुनीं. एक महीने बाद भैया इंडिया लौटे. सब लड़कियों से मिले और शर्मिला के साथ रिश्ता पक्का किया. शर्मिला ने बीकौम किया था, मांबाप की वह इकलौती लड़की थी. उस के पिता देशमुख का स्पेयरपार्ट का कारखाना था. शर्मिला सुंदर व सुशील थी.

‘‘क्यों पक्या, भाभी पसंद आई तुझे?’’ भैया ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं, शर्मिला टैगोर भी मात खाएगी, इतनी सुंदर और शालीन मेरी भाभी हैं. ऐसी भाभी किस को अच्छी नहीं लगेंगी. जोड़ी तो खूब जंच रही है आप की.’’

जल्दी ही सगाई हुई और 3 हफ्ते बाद शादी की तारीख तय हुई. बाद में एक महीने बाद दोनों अमेरिका जाने वाले थे. यह सब भैया ने ही तय किया था. दोनों साथसाथ घूमने लगे थे. सब खुशी में मशगूल थे. दोनों ओर शादी की शौपिंग चल रही थी.

‘‘चल पक्या, मेरे साथ शौपिंग को. सूट लेना है मुझे.’’

‘‘मैं? सूट तो आप को लेना है. तो भाभी को ले कर जाओ न.’’

‘‘भाभी? ओह शर्मिला, ये क्या पुराने लोगों जैसा भाभी बुलाते हो. शर्मिला बुलाओ, इतना अच्छा नाम है.’’

‘‘तो उन्हें बताइए मुझे प्रकाश नाम से बुलाए.’’

‘‘ओफ्फो, तुम दोनों भी न…बताता हूं उसे, लेकिन हम दोनों आज शौपिंग करने जा रहे हैं. नो मोर डिस्कशन.’’

हम शौपिंग करने गए. उन्होंने मेरे लिए भी अपने जैसा सूट खरीदा. यह मेरे लिए सरप्राइज था. शादी के दिन पहनने की शेरवानी भी दोनों की एकजैसी थी.

‘‘भैया शादी तुम्हारी है. मेरे लिए इन सब की क्या जरूरत थी?’’

‘‘अरे तेरी भी तो जल्दी शादी होगी. उस वक्त जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘लगता है जेब गरम है आप की.’’

‘‘पूरी तैयारी के साथ आया हूं. शर्मिला के लिए अमेरिकन डायमंड का सैट भी ले कर आया हूं. मम्मीडैडी को भी शौपिंग करवाने वाला हूं. मेरे पुराने कपड़े तुझे पहनने पड़ते थे. चल, आज तुझे खुश कर देता हूं.’’

हमें कहां मालूम था कि यह खुशी दो पल की ही है. भैया के लिए मेरे मन में कृतज्ञता थी. कितने बड़े दिल के हैं भैया. उन्हें पूरा सहकार्य देने का मैं ने मन ही मन प्रण कर लिया. हम सब खुशी के 7वें आसमान पर थे, तब नियति हम पर हंस रही थी.

शादी का नजारा तो पूछो ही मत. शर्मिला सोलह सिंगार कर के मंडप में आई थी. सब की नजरें उस पर ही टिकी थीं. लड़की वालों ने शादी में किसी बात की कमी नहीं की. हम सब खुशी की लहर पर सवार थे.

ऐसे में बूआ ने मां को सलाह दी, ‘‘भाभी, प्रसाद के लिए शर्मिला तो ले आईं, अब प्रकाश के लिए उर्मिला ले आओ.’’ मैं ने तय किया अपनी पत्नी का नाम मैं उर्मिला ही रखूंगा, शर्मिला की मैचिंग. शादी की रस्में चल रही थीं. बीचबीच में दोनों की कानाफूसी चल रही थी. शर्मिला की मुसकराहट देख कर लग रहा था मानो दोनों मेड फौर ईच अदर हैं.’’ शर्मिला के आने से घर में एक अजीब सी सुगंध फैल गई. बहुत ही कम समय में वह सारे घर में घुलमिल गई. शादी के बाद सब रस्में पूरी कर नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए बेंगलुरु रवाना हुआ. वे दोनों एक हफ्ते बाद लौटने वाले थे. उस के 2 हफ्ते बाद वे अमेरिका जाने वाले थे. भैया ने ही यह सारा प्रोग्राम तय किया था.

‘‘देखो न, कितनी जल्दी दिल जीत लिया. 8 दिनों के लिए गईर् तो घर सूनासूना लग रहा है. हमेशा के लिए गई, तो क्या हाल होगा? मां ने फोन पर भैया को कहा?’’ मगर मां घर तो नहीं रख सकते हैं न,’’ भैया बोले. उस के बाद 2 दिन दोनों लगातार फोन पर संपर्क में थे. लेकिन फिर वह काला दिन आया. छुट्टी का दिन था, इसलिए मैं घर पर ही था. दोपहर 3 बजे मेरा मोबाइल बजा.

‘‘हैलो मैं…मैं…शर्मिला, प्रकाश, एक भयंकर घटना घटी है,’’ वह रोतेरोते बोल रही थी. घबराईर् लग रही थी. मैं भी सहम सा गया.

‘‘शर्मिला, शांत हो जाओ, रोना बंद करो. क्या हुआ, ठीक से बताओ. भैया कैसे हैं? आप कहां से बोल रही हो?’’

‘‘प्रसाद नहीं हैं.’’

वह सिसकसिसक कर रोने लगी. तनाव और डर से मैं अपना संयम खो बैठा और जोर से चिल्लाया.

‘‘नहीं हैं, मतलब? हुआ क्या है? प्लीज, जल्दी बताओ. मेरी टैंशन बढ़ती जा रही है. पहले रोना बंद करो.’’

अब तक कुछ विचित्र हुआ है, यह मांबाबूजी के ध्यान में आ गया था. वे भी हक्केबक्के रह गए थे.

‘‘प्रकाश, प्रसाद अमेरिका चले गए.’’

‘‘कुछ भी क्या बोल रही हो, आप को छोड़ कर कैसे गए? और आप ने जाने कैसे दिया? सब डिटेल में बताओ. कुछ तो सौल्यूशन निकालेंगे. हम सब तुम्हारे साथ हैं. चिंता मत करो. मगर हुआ क्या है यह तो बताओ. खुद को संभालो और बताओ, क्या हुआ?’’

वह धीरज के साथ बोली, ‘‘प्रसाद सुबह 10 बजे कोडाइकनाल की टिकटें निकालने के लिए बाहर गए. 2 दिन उधर रह कर मुंबई वापस आने का प्लान था. अगर उन्हें आने में देर हुई तो खाना खाने को कह गए थे. मैं ने 2 बजे तक उन का इंतजार किया. उन का मोबाइल स्विचऔफ है. खाना खाने का सोच ही रही थी तो रूमबौय एक लिफाफा ले कर आया. मुझे लगा बिल होगा. खोल कर देखा तो ‘मैं अमेरिका जा रहा हूं’ ऐसा चिट्ठी में लिखा था और प्रसाद ने नीचे साइन किया था. मेरे ऊपर मानो आसमान टूट पड़ा. बेहोश ही होना बाकी था. जैसेतैसे हिम्मत जुटाई. बाद में देखा तो मेरे गहने भी नहीं थे जो रात को मैं ने अलमारी में रखे थे. मेरे पास पैसे भी नहीं हैं. मैं बहुत असहाय हूं. क्या करूं मैं अब पिताजी को भी नहीं बताया है.’’

वह फिर से रोने लगी. मैं भी अंदर से पूरा हिल गया. खुद को संभाल कर उसे धीरज देना आवश्यक था. ‘‘आप ने अपने पिताजी को नहीं बताया, यह अच्छा किया. शर्मिला, रोओ मत. आप अकेली नहीं हो. आप के पिताजी को कैसे बताना है, यह मैं देखता हूं. बहुत कठिन परिस्थिति है, लेकिन कोई न कोईर् हल जरूर निकालेंगे. आप होटल में ही रुको. कुछ खा लो. मैं सब से बात कर के उधर आप को लेने आता हूं. आज रात नहीं तो सुबह तक हम लोग पहुंच जाएंगे. फोन रखता हूं.’’

मां-बाबूजी को सारी कहानी सुनाई. बाबूजी बहुत शर्मिंदा थे. मां तो फूटफूट कर रोने लगीं.

‘‘मांबाबूजी, शर्मिला के पिता को कुछ नहीं मालूम. उन्हें बताना चाहिए. मैं खुद जा कर बताता हूं.’’

‘‘मैं भी आता हूं.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मां अभी आने की स्थिति में नहीं हैं. उन्हें अकेला भी छोड़ना ठीक नहीं. मैं अकेले ही हो आता हूं. कठिन लग रहा है, लेकिन यह घड़ी मुझे ही संभालनी होगी.’’

मैं दबेपांव भाभी के घर गया.

‘‘आओ बेटा, और प्रसाद कब आ रहे हैं?’’

‘‘नहीं, मैं किसी और काम से आप के यहां आया हूं.’’

‘‘हांहां, बोलो, कुछ प्रौब्लम है क्या?’’

‘‘हां…हां, बहुत कठिन समस्या है. भैया अमेरिका चले गए.’’

‘‘क्या? लेकिन कल रात ही शमु का फोन आया था, उस ने तो कुछ नहीं कहा. यों अचानक कैसे तय किया?’’

‘‘नहीं, वे अकेले ही चले गए.’’

‘‘और शमु?’’

फिर मैं ने उन्हें सारी हकीकत बयान की. वे क्रोध से लाल हो गए. क्रोध से उन का शरीर कांप रहा था. उन्हें भी मैं ने गहनों के बारे में कुछ नहीं बताया.

‘‘हरामखोर, मेरी इकलौती बेटी की जिंदगी बरबाद कर दी. सामने होता तो गोली से उड़ा देता. मैं छोड़ं ूगा नहीं उसे.’’

उन को संभालने के लिए शर्मिला की मां आगे आईं, ‘‘आप शांत हो जाइए. यह लीजिए पानी पीजिए. संकट की घड़ी है. हमें पहले शमु को संभालना चाहिए. यह कैसा पहाड़ टूट पड़ा मेरी बेटी पर. है कहां है वह?’’

‘‘वे बेंगलुरु में होटल में हैं, मैं उन्हें लेने जा रहा हूं.’’

‘‘नहीं, हम दोनों उसे ले कर आते हैं. शमु से एक बार बात कर लेते हैं.’’

मैं ने शर्मिला के मोबाइल पर फोन लगाया.

‘‘मैं प्रकाश बोल रहा हूं, आप के घर से. आप कैसी हो? लो, बात करो उन से.’’

‘‘शमु, रो मत, धीरज रख. देख मैं उस के साथ ऐसा खेल खेलूंगा कि उसे फूटफूट कर रोना पड़ेगा. हम दोनों आ रहे हैं तुझे लेने. आखिरी फ्लाइट से निकलते हैं. तब तक खुद का ध्यान रख,’’ शर्मिला के पिताजी बोले.

क्रोध की जगह करुणा ने ले ली. शर्मिला की आंखों से आंसू छलक रहे थे. शर्मिला की मां भी व्याकुल थीं, लेकिन झठमूठ का धीरज दे रही थीं. मेरी मां ने तो बिस्तर पकड़ लिया था. उन के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इतने बड़े दुख में धकेलने वाले निर्दयी भैया से मुझे घृणा आने लगी. शर्मिला के अपने घर आने पर हम वहां पहुंचे.

‘‘शर्मिला, यह क्या हुआ बेटा,’’ यह बोल कर मां बेहोश हो गईं. बाबूजी शर्मिंदा हो कर उस के सामने हाथ जोड़ रहे थे.

‘‘हम आप के कुसूरवार हैं. ऐसा कुलक्षणी बेटा जना, मुझे शर्म आती है.’’

शर्मिला के पापा अब तक शांत हो गए थे.

शर्मिला की मां और शर्मिला मेरी मां को समझ रहे थे.

‘‘हम सब को यह दुख भोगना था शायद, लेकिन आप खुद को कुसूरवार न समझें. मैं उसे पाताल से भी ढूंढ़ कर लाऊंगा और सजा दूंगा. प्रकाश उसे अमेरिका में संपर्क करने का कोई रास्ता है क्या?’’ ‘‘हां पापा, प्रसाद का औफिस का नंबर तो नहीं है पर जहां रहता है वहां का नंबर ट्रेर्स करता हूं.’’

‘‘फोन लगाया था तो पता चला भैया 3 महीने पहले ही अपार्टमैंट छोड़ चुके थे.’’

‘‘हरामखोर, पहले से ही प्लान कर चुका था. उस ने मेरी बेटी की जिंदगी बरबाद कर दी. नया बिजनैस शुरू करने के बहाने मेरे पास से 5 लाख रुपए ले गया था.’’

‘‘हां, मुझे भी यही कारण बता कर पैसे मांगे, मैं ने पीएफ से 2 लाख रुपए निकाल कर दिए, शर्मिला के गहने भी गायब हुए हैं.’’ मैं ने बताया.

‘‘नीच अमानुष. अब मैं यह हकीकत अखबार में छपवाने वाला हूं. अमेरिका में मेरे कुछ रिश्तेदार हैं, उन को भी खबर दूंगा. सब जगह उस की बदनामी करूंगा.’’

अब बदनामी होगी, इस कारण बाबूजी डर गए.

‘‘देखिए, हमारे बेटे से अक्षम्य अपराध हुआ है. लेकिन जरा धीरज से काम लीजिए. ऐसी घड़ी में सोचविचार कर के निर्णय लीजिए, आप देख ही रहे हो हालात कितने नाजुक हैं और शर्मिला के भविष्य की दृष्टि से भी सोचना चाहिए. बस, एक हफ्ते का समय दीजिए हमें. देखते हैं कुछ हल निकलता है क्या. नहीं तो मानहानि सहने के सिवा और कोई चारा नहीं.’’

वे एक हफ्ता रुकने को राजी हो गए. बड़ी कृपा हुई थी हम पर. गए हफ्ते खुशी की तरंगों पर तैरने वाले हम, आज दुख के सागर में डूब चुके थे. केवल भैया की इस घिनौनी हरकत की वजह से फूल जैसी शर्मिला मुरझ कर सांवली पड़ गईर् थी. उस ने जैसे न बोलने का प्रण लिया था. हम दोनों सहारा बने, इसलिए मां थोड़ी संभल गईं, वरना उन के लिए सदमा असहनीय था.

‘‘कलमुंहा, बच्ची की जिंदगी की होली कर डाली.’’

‘‘सही कहती हो आप. हम उस के अपराधी हैं. कभी न भरने वाला जख्म है यह.’’ शर्मिला मां से मिल कर गई. आश्चर्य यह था कि दोनों संयम से काम ले रही थीं. एक दिन मैं औफिस से आया तो मांबाबूजी अभीअभी शर्मिला के घर से लौटे थे.

‘‘बाबूजी, उन्होंने बुलाया था क्या?’’

‘‘नहीं, ऐसे ही मिल कर आए, काफी दिन हुए, मिले नहीं थे. शर्मिला को भी देखने को दिल कर रहा था.’’

‘‘सब कुछ ठीक है न?’’

‘‘हां, ठीक ही कहना चाहिए, लेकिन भविष्य के बारे में सोचना जरूरी है.’’

‘‘प्रकाश अभीअभी आए हो न? हाथपांव धो आओ. मैं चाय बनाती हूं. कुछ खा भी लो.’’ मुझे मां का यह बरताव अजीब लगा.

चायनाश्ता हो गया. हम तीनों वहीं बैठे बातें कर रहे थे. मां मुझ से कुछ कहना चाहती हैं, ऐसा मैं महसूस कर रहा था. वे बहुत टैंशन में लग रही थीं.

‘‘मां, क्या हुआ, कुछ कहना है क्या, टैंशन में लग रही हो. बताओ अभी, क्यों टैंशन बढ़ा रही हो?’’

‘‘प्रकाश, देखो…हमें ऐसा लगता है, इसलिए सुझाव दे रही हूं. लेकिन सोच कर ही बताना.’’

‘‘क्या सोचना है? क्या सुझाव  दे रही हो? और ऐसे हकला कर क्यों बोल रही हो?’’

आखिरकार बाबूजी ने बड़ी हिम्मत कर बोल ही दिया, ‘‘प्रकाश, हमें लगता है कि तुम शर्मिला को पत्नी के रूप में स्वीकार करो.’’

ऐसे लग रहा था मानो सारे बदन में बिजली दौड़ रही है. मैं जोर से चिल्लाया. ‘‘यह कैसे हो सकता है? भाभी और पत्नी? नहीं, मैं सोच भी नहीं सकता. आप मुझे  ऐसा सुझाव कैसे दे सकते हो?’’

‘‘प्रकाश बेटे, यह कहते हुए हमें भी अच्छा नहीं लग रहा. हम जानते हैं कि तुम्हारे भी अपने वैवाहिक जीवन के कुछ सपने होंगे. तुम अच्छे पढ़ेलिखे हो, अच्छी तनख्वाह मिलती है तुम्हें. तुम्हें अच्छी लड़की मिल सकती है. लेकिन, हमें शर्मिला के बारे में भी तो सोचना चाहिए. उस की कोई गलती न होते हुए भी उस की जिंदगी यों बरबाद हो गई, और हमें यह देखना पड़ रहा है. अनजाने में हम ही इस के जिम्मेदार हैं न?’’

मां फिर से सिसकसिसक कर रोने लगीं.

‘‘मां, मुझे सोचने के लिए वक्त चाहिए. यही बोलने के लिए आप उन के यहां हो आए? क्या कहा उन्होंने?’’

‘‘हम ने बात की उन से. कुछ कहा नहीं उन्होंने. उन्हें भी वक्त चाहिए. फोन करेंगे वे. तुम्हारा कहना क्या है, यह पूछने को कहा है.’’

मेरे पांवतले जमीन खिसक रही थी. जेहन ने काम करना बंद कर दिया था.

‘‘मैं जरा घूम कर आता हूं.’’

‘‘इस वक्त?’’

‘‘हां.’’

दूर बगीचे तक घूम कर आया. तब कहीं थोड़ा सुकून महसूस हुआ. मेरे लौटने तक मांबाबूजी चिंता कर रहे थे. खाना गले के नीचे नहीं उतर रहा था. उठ कर बिस्तर पर लेटा. नींद आने का सवाल ही नहीं था. मेरी वैवाहिक जिंदगी शुरू होते ही खत्म होने वाली थी. भैया के पुराने कपड़े, किताबें इस्तेमाल करने वाला मैं अब उन की त्यागी पत्नी… नहीं, यह नहीं हो सकता. इस प्रस्ताव को नकारना चाहिए. मैं बहुत बेचैन था. लेकिन आंखों के सामने आंसू निगलती मां, शर्मिंदा बाबूजी, क्रोधित शर्मिला के पिता, उन को संभालने की कोशिश करती हुई शर्मिला की मां और जिंदगी के वीरान रेगिस्तान की बालू की तरह शुष्क शर्मिला दिखने लगी. इन सब की नजरें बड़ी आशा से मुझे  देख रही हैं, ऐसा लगने लगा. फिर से एक बार मेरे नसीब में उतरन ही आईर् थी. इस कल्पना से दिल जख्मी हो रहा था. ऐसी स्थिति में मुझे बचपन की एक घटना याद आई.

भैया की ड्राइंग अच्छी थी, वे बहुत अच्छे चित्र बनाते थे, और पूरे होने के बाद दोस्तों को दिखाने जाते थे. सारा सामान वैसे ही रखते थे. घर साफ होना चाहिए, इस पर बाबूजी का ध्यान रहता था. फिर मां मुझे मनाती थीं, ‘प्रकाश, ये सामान जरा उठा कर रख बेटे. वो देखेंगे तो बिगड़ेंगे. मैं ने लड्डू बनाए हैं. मैं लाती हूं तेरे लिए.’

‘मां भैया अपना सामान क्यों खुद नहीं रखते? लड्डू का लालच दे कर आप मुझे  से काम करवाती हो. भैया बिगाड़ेंगे और मैं संवारूंगा, यह अलिखित नियम बनाया है क्या आप ने.’

मां का यह अलिखित नियम मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ा था. जिंदगी के इस मोड़ पर उस के किए अक्षम्य अपराध को मुझे ही सही करना था, मुझे ही अब शर्मिला से शादी करनी थी.

क्यों, क्योंकि वह सिर्फ मेरा बड़ा भाई है, इसलिए.

Holi 2024: होली पर मीठे में बनाएं स्टफ्ड ब्रेड फिंगर्स

होली का त्यौहार बस आ ही गया है और त्यौहार का मतलब है मिठाइयां. चूंकि इस समय मिठाइयों की खपत बहुत अधिक बढ़ जाती है इसलिए इन दिनों बाजार में बहुत मिलावटी मिठाइयां मिलतीं हैं जिनमे स्वाद बढ़ाने के लिए अनेकों केमिकल्स, टेस्ट इन्हेन्सर और रंगों का उपयोग किया जाता है. घर पर बनी मिठाइयां शुद्ध तो होतीं ही हैं साथ ही ये काफी सस्ती भी पड़तीं हैं. इन दिनों बाजार में मावा भी शुद्ध नहीं मिलता इसलिए बेहतर है कि बिना मावा की मिठाइयों का प्रयोग किया जाए. आज हम आपको ऐसी ही एक मिठाई बनाना बता रहे है जिसे आप बिना मावा के केवल ब्रेड से ही बड़ी आसानी से घर पर बना सकतीं हैं. तो आइए देखते है कि इसे कैस

  • कितने लोगों के लिए 6
  • बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
  • मील टाइप वेज
  • सामग्री (कवर के लिए)
  • ब्रेड स्लाइस 6
  • कन्डेन्स्ड मिल्क आधा टिन
  • घी या तेल तलने के लिए
  • सामग्री (स्टफिंग के लिए)
  • नारियल बुरादा 2 कप
  • बारीक कटे मेवा 1/4 कप
  • मिल्क पाउडर 1/2 कप
  • इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून

    विधि

    नारियल बुरादा को कड़ाही में बिना घी तेल के 5 मिनट तक भूनकर एक बाउल में निकाल लें. अब इसी कड़ाही में मेवा को भी भून लें. मिल्क पाउडर ,कन्डेन्स्ड मिल्क, इलायची पाउडर और मेवा को इसमें अच्छी तरह मिक्स करें. हथेली पर हल्का सा घी लगाकर तैयार मिश्रण को 6 भागों में डिवाइड करके लंबे लंबे रोल बना लें. अब ब्रेड स्लाइस के किनारे काट लें. यदि ब्रेड जरा भी सख्त है तो एक स्टीमर में पानी भरकर छलनी रखें और उस पर ब्रेड स्लाइस को 2-3 मिनट रखकर उठा लें इससे कितनी हार्ड ब्रेड स्लाइस एकदम ताजी जैसी हो जाएगी. अब इस ब्रेड स्लाइस को बेलन से एकदम पतला बेल लें. तैयार रोल को इनके अंदर रखकर रोल कर दें इसी प्रकार सारे फिंगर्स तैयार कर लें. दोनों तरफ के किनारों को भी हल्का सा दबा दें ताकि फिलिंग बाहर न निकले. अब इन फिंगर्स को गर्म घी में सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें. सर्विंग प्लेट में डालकर ऊपर से थोड़ा सा कन्डेन्स्ड मिल्क और कटे पिस्ता से सजाकर सर्व करें.

सरकार की एक और भूल

इंटरनैट ट्रोलों की भगवा सेना के मालदीव बायकौट आक्रमण के बावजूद मालदीव ने भारतीय सेना को 15 मार्च तक मालदीव का अपना ठिकाना बंद करने को कह दिया है. राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने चीन में शी जिनपिंग से मुलाकात कर के लौटने के तुरंत बाद यह घोषणा ही नहीं की, यह भी कह डाला कि हम छोटे हैं तो इस का मतलब यह नहीं कि  हरकोई हमें बुली कर सकता है.

यह भारत की विदेश नीति में एक और ईंट का खिसकना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस का एहसास होने लगा था इसलिए उन्होंने विदेश मंत्रालय धीरेधीरे विदेश मंत्री जयशंकर को सौंप दिया था और खुद राममंदिर में लग गए थे. 2014 से 2019 तक जब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं, उन्हें कभी कोई पौलिसी निर्णय तक नहीं लेने दिया था पर अब सारी मुलाकातें जयशंकर ही करते हैं. प्रधानमंत्री के विदेशी दौरे भी कम हो गए हैं और बड़े देशों के नेता तभी भारत आते हैं जब कोई सामान बेचना हो.

मालदीव का रूठना वैसे सामरिक या कूटनीतिक दृष्टि से कोई ज्यादा मतलब का नहीं है. बड़े देशों के निकट के छोटे देश आमतौर पर बड़े देश से नाराज ही चलते हैं क्योंकि बड़ा देश अपनी धौंस जमाए बिना नहीं रहता. यह वैसा ही है जैसा रिहायशी कालोनियों या सोसायटियों में होता है, जहां बड़े मकान वाले दबाव डाल कर अपनी मनमानी कर डालते हैं क्योंकि जब वे अपने आलीशान मकान पर 56 तरह के खाने खिलाते हैं तो पड़ोसी सकुचा ही जाते हैं.

भारत बड़ा चाहे हो पर उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि मालदीव, श्रीलंका, बंगलादेश, भूटान प्रति व्यक्ति औसत आय में भारत से आगे हैं, पीछे नहीं. भारत भारीभरकम हिप्पो हो सकता है पर वह छोटे खरगोश की तरह चपल और फुरतीला नहीं है.

मालदीव अपनी भौगोलिक पोजीशन और अपने लोगों की अच्छी कमाई के कारण भारत से ज्यादा पर्यटकों का आकर्षण है और इसीलिए भारत के लाखों पर्यटक हर साल वहां जा कर साफ हवा और सुंदर होटलों का आनंद लेते हैं. भारत के अमीरों के लिए अब देश के पर्यटन स्थल केवल तीर्थ रह गए हैं.

भारत सरकार की तरह भारत के अमीर भी आजकल मालदीव, श्रीलंका नहीं अयोध्या जा रहे हैं ताकि उन की संपत्ति पर रामजी की कृपा बनी रहे. हमारी विदेश नीति में क्या हो रहा है यह किसी के न पल्ले पड़ता है, न कोई चिंता करता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें