Holi 2024: रंगों से अपने बालों को रखना चाहते हैं सुरक्षित, तो इन टिप्स को करें फॉलो

रंगों का त्योहार होली बिल्कुल करीब है. इस बसंती त्योहार में आप सभी लोग अपने कपड़ों, बालों, त्वचा और रंगरूप की परवाह किए बिना ही रंगों से रंग जाना पसंद करते हैं. आप भी कहीं न कहीं ये बात जानते हैं कि रंगों से आपके बालों को काफी नुकसान होता है और ऐसे में आपको काफी सावधान रहने की जरूरत भी होती है.

इस समस्या से निपटने के लिए आज हम आपके लिए कुछ सुझाव लेकर आए हैं. तो इस होली बिना किसी चीज की परवाह किए खेलें अपने मनपसंद रंगों से.

1. होली खेलने के 15 मिनट पहले आप अपने बालों पर तेल से मालिश कर लें. इसके लिए आप नारियल का तेल, जैतून, सरसों या किसी भी अन्य तेल का चयन कर सकते हैं. तेल लगाते वक्त ये बात ध्यान रखना चाहिए कि तेल गर्म न हो क्योंकि इससे बाद में आपके बालों को नुकसान हो सकता है.

2. एक बहुत महत्वपूर्ण बात को हमेशा ध्यान में रखें कि होली खेलने के दौरान बालों को कभी खुला न छोड़ें. आप शायद ये बात नहीं जानते होंगे कि आपके खुले बाल ज्यादा रंग सोखते हैं, जिससे सिर पर रंगों का बहुत अधिक मात्रा में जमाव हो जाता है. आप ये कर सकते हैं कि होली खेलने के दौरान बालों को टोपी या स्कार्फ से पूरी तरह अच्छे से ढंक लें.

3. होली खेलते समय टोपी के नीचे प्लास्टिक शॉवर कैप पहनने से बालों की सुरक्षा दोगुनी हो जाती है.

4. अगर आपने सूखे रंगों से होली खेली हो तब होली खेलने के बाद बालों को अच्छी तरह से ब्रश कर लें. केवल ब्रश करने से ही सिर पर जमे रंगों को हटाने में काफी मदद मिलती है.

5. अगर आपने गीले रंगों का प्रयोग कर होली का लुफ्त उठाया है तो सबसे पहले सादे पानी से अपने बालों को अच्छी तरह धो लीजिए, इसके बाद शैम्पू लगा के फिर बाद में बालों को में एक बार फिर साफ पानी से धोएं.

6. होली के कारण आपके बालों पर जमे रंगों को आप जल्दी निकालने की चाहत में शैम्पू को अपने बालों पर बार-बार रगड़ते हैं तो आपको ऐसा नहीं करना चाहिए. बालों पर जमा रंग साफ होने में कुछ समय तो लगता ही है.

7. आप होली के रंगों को अपने बालों से हटाने के लिए बेबी शैम्पू या प्राकृतिक शैम्पू का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.

8. होली के रंगों से सने बालों को गर्म पानी से धोने की गलती न करें, इससे आपके बाल बहुत खराब हो सकते हैं. गर्म पानी बालों को रूखा बना देता है.

9. होली में रंग खेलने के बाद, जब आप अपने बाल धों ले तो उसके बाद अपने बालों को ब्लो-ड्राई अर्थात हवा से बाल न सुखाएं. इसकी जगह साधारण तरीके से उन्हें सूखने दें.

10. आआप होली के बाद अपने बालों को स्पा ट्रीटमेंट भी दे सकते हैं और ये बात भी याद रखें कि होली में रंगों से खेलने के दो सप्ताह बाद तक बालों को कलर न करें.

Holi 2024: होली में मेहमानों को परोसें दही भल्ले, ये रही आसान रेसिपी

अक्सर आपने शादियों और पार्टियों में दही भल्ला खाया होगा, लेकिन क्या आपने कभी घर पर टेस्टी और हेल्दी दही भल्ला बनाकर फैमिली को परोसा है. नहीं तो आज हम आपको घर पर दही भल्ले की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

पनीर – 200 ग्राम,

दही– 04 कप,

आलू – 02 (उबले हुए),

अरारोट – 02 बड़े चम्मच चम्मच,

हरी मिर्च – 01 (बारीक कटी हुई),

अदरक – 1/2 इंच का टुकडा़ (कद्दूकस किया हुआ),

हरी चटनी – 01 कप,

मीठी चटनी – 01 कप,

भुना जीरा – 02 बड़े चम्मच,

लाल मिर्च पाउडर– 1/2 छोटा चम्मच,

काली मिर्च पाउडर– 1/2 छोटा चम्मच,

तेल – तलने के लिये,

काला नमक – 02 बड़ा चम्मच,

सेंधा नमक (व्रत के लिए)/नमक (अन्य दिनों के लिए)-स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

सबसे पहले पनीर को कद्दूकस कर लें. उसके बाद उबले हुए और आलुओं को छील कर कद्दूकस कर लें.

इसके बाद इन दोनों चीजों को एक प्याले में लेकर अच्छी तरह से मिला लें. इस मिश्रण में मिश्रण में अरारोट, अदरक, हरी मिर्च और नमक भी डालें और अच्छी तरह से गूंथ लें.

गुंथी हुई सामग्री में से थोडा सा मिश्रण लें और उसे हथेली से गोल करे वड़े के आकार कर बना लें. अब वड़ा तलने के लिए एक कढ़ाई में तेल डालें और गरम करें.

तेल गरम होने पर तीन-चार वड़े कढ़ाई में डालें और उन्हें उपलट-पलट कर सुनहरा होने तक तल लें. ऊपर से दही, सेंधा नमक/नमक, काला नमक, भुना हुआ जीरा, काली मिर्च पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, मीठी चटनी और हरी चटनी डालकर ठंडा-ठंडा अपनी फैमिली परोसें.

जिंदगी मेरे घर आना: क्यों भाग रहा था शंशाक

दफ्तर में नए जनरल मैनेजर आने वाले थे. हर जबान पर यही चर्चा थी. पुराने जाने वाले थे. दफ्तर के सभी साहब और बाबू यह पता करने की कोशिश में थे कि कहां से तबादला हो कर आ रहे हैं. स्वभाव कैसा है, कितने बच्चे हैं इत्यादि. परंतु कोई खास जानकारी किसी के हाथ नहीं लग रही थी. अलबत्ता उन के तबादलों का इतिहास बड़ा समृद्ध था, यह सब को समझ आने लगा था.

नियत दिन नए मैनेजर ने दफ्तर जौइन किया तो खूब स्वागत किया गया. पुराने मैनेजर को भी बड़े ही सौहार्दपूर्ण ढंग से बिदा किया.

शशांक साहब यानी जनरल मैनेजर वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना होते रहते. न जाने क्यों हर आनेजाने वाले से शंकित निगाहों से बात करते. लोगों में उन का यह व्यवहार करना कुतूहल का विषय था. पर धीरेधीरे दफ्तर के लोग उन के सहयोगपूर्ण और अहंकार रहित व्यवहार के कायल होते गए.

1 महीने की छुट्टी पर गया नीरज जब दफ्तर में आया तो शशांक साहब को नए जनरल मैनेजर के रूप में देख पुलकित हो उठा, क्योंकि वह उन के साथ काम कर चुका था. वैसे ही शंकित रहने वाले साहब नीरज को देख और ज्यादा शंकित दिखने लगे थे. बड़े ही ठंडे उत्साह से उन्होंने नीरज से हाथ मिलाया और फिर तुरंत अपने काम में व्यस्त हो गए.

मगर ज्यों ही नीरज उन से मिलने के बाद चैंबर से बाहर गया, उन के कान दरवाजे पर ही अटक गए. शशांक को महसूस हुआ कि बाहर अचानक जोर के ठहाकों की गूंज हुई. वे वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना हो गए कि न जाने नीरज क्या बता रहा होगा.

अब उन का ध्यान सामने पड़ी फाइलों में नहीं लग रहा था. घड़ी की तरफ देखा. अभी 12 ही बजे थे. मन हुआ घर चले जाएं, फिर सोचा घर जा कर भी अभी से क्या करना है. कोई अरुणा थोड़े है घर में…

‘शायद नीरज अब तक बता चुका होगा. न जाने क्याक्या बताया होगा उस ने. क्या उसे असली बात मालूम होगी,’ शशांक साहब सोच रहे थे, ‘क्या नीरज भी यही समझता होगा कि मैं ने अरुणा को मारा होगा?’

यह सोचते हुए शशांक की यादों का गंदा पिटारा खुलने को बेचैन होने लगा. अधेड़ हो चले शशांक ने वर्तमान का पेपरवेट रखने की कोशिश की कि अतीत के पन्ने कहीं पलट न जाएं पर जो बीत गई सो बात गई का ताला स्मृतियों के पिटारे पर टिक न पाया. काले, जहरीले अशांत सालों के काले धुएं ने आखिर उसे अपनी गिरफ्त में ले ही लिया…

शादी के तुरंत बाद की ही बात थी.

‘‘अरुणा तुम कितनी सुंदर हो, तुम्हें जब देखता हूं तो अपनी मां को मन ही मन धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने तुम्हें मेरे लिए चुना.’’

अरुणा के लाल होते जा रहे गालों और झुकती पलकों ने शशांक की दीवानगी को और हवा दे दी.

क्या दिन थे वे भी. सोने के दिन और चांदी की रातें. शशांक की डायरी के पन्ने उन दिनों कुछ यों भरे जा रहे थे.

‘‘जीत लिखूं या हार लिखूं या दिल का सारा प्यार लिखूं,

मैं अपने सब जज्बात लिखूं या सपनों की सौगात लिखूं,

मैं खिलता सूरज आज लिखूं या चेहरा चांद गुलाब लिखूं,

वो डूबते सूरज को देखूं या उगते फूल की सांस लिखूं.’’

दिल से बेहद नर्म और संवेदनशील शशांक के विपरीत अरुणा में व्यावहारिकता अधिक थी. तभी तो उस ने उस छोटी सी मनीऔर्डर रसीद को ही ज्यादा तवज्जो दी.

‘‘शशांक ये 2 हजार रुपए आप ने किस को भेजे हैं?’’ उस दिन अरुणा ने पहली बार पूछा था.

‘‘यह रसीद तो मेरी डायरी में थी. इस का मतलब तुम ने अपने ऊपर लिखी मेरी सारी कविताओं को पढ़ लिया होगा?’’ शशांक ने उसे निकट खींचते हुए कहा.

‘‘अपनी मां को भेजे हैं, हर महीने भेजता हूं उन के हाथ खर्च हेतु.’’

शशांक ने सहजता से कहा और फिर अपने दफ्तर के किस्से अरुणा को सुनाने लगा.

पर शायद उस ने अचानक बदलने वाली फिजा पर गौर नहीं किया. चंद्रमुखी से सूरजमुखी का दौर शुरू हो चुका था, जिस की आहट कवि हृदय शशांक को सुनाई नहीं दे रही थी. अब आए दिन अरुणा की नईनई फरमाइशें शुरू हो गई थीं.

‘‘अरुणा इस महीने नए परदे नहीं खरीद सकेंगे. अगले महीने ही ले लेना. वैसे भी ये गुलाबी परदे तुम्हारे गालों से मैच करते कितने सुंदर हैं.’’

शशांक चाहता था कि अरुणा एक बजट बना कर चले. मां को पैसे भेजने के बाद बचे सारे पैसे वह उस की हथेली पर रख कर निश्चिंत रहना चाहता था.

‘‘तुम्हारे पिताजी तो कमाते ही हैं. फिर तुम्हारी मां को तुम से भी पैसे लेने की क्या जरूरत है?’’ अरुणा के शब्दबाण छूटने लगे थे.

‘‘अरुणा, पिताजी की आय इतनी नहीं है. फिर बहुत कर्ज भी है. मुझे पढ़ाने, साहब बनाने में मां ने अपनी इच्छाओं का सदा दमन किया है. अब जब मैं साहब बन गया हूं, तो मेरा यह फर्ज है कि मैं उन की अधूरी इच्छाओं को पूरा करूं.’’

शशांक ने सफाई दी थी. परंतु अरुणा मुट्ठी में आए 10 हजार को छोड़ उन 2 हजार के लिए ही अपनी सारी शांति भंग करने लगी. उन दिनों 10-12 हजार तनख्वाह कम नहीं होती थी. पर शायद खुशी और शांति के लिए धन से अधिक समझदारी की जरूरत होती है, विवेक की जरूरत होती है. यहीं से शशांक और अरुणा की सोच में रोज का टकराव होने लगा. गुलाबी डायरी के वे पन्ने जिन में कभी सौंदर्यरस की कविताएं पनाह लेती थीं, मुहब्बत के भीगे गुलाब महकते थे, अब नूनतेललकड़ी के हिसाबकिताब की बदबू से सूखने लगे थे.

शेरोशायरी छोड़ शशांक फुरसत के पलों में बीवी को खुश रखने के नुसखे और अधिक से अधिक कमाई करने के तरीके सोचता. नन्हा कौशल अरुणा और शशांक के मध्य एक मजबूत कड़ी था. परंतु उस की किलकारियां तब असफल हो जातीं जब अरुणा को नाराजगी के दौरे आते. सौम्य, पारदर्शी हृदय का स्वामी शशांक अब गृह व मानसिक शांति हेतु बातों को छिपाने में खासकर अपने मातापिता से संबंधित बातों को छिपाने में माहिर होने लगा.

उस दिन अरुणा सुबह से ही कुछ खास सफाई में लगी हुई थी. पर सफाई कम जासूसी अधिक थी.

‘‘यह तुम्हारे बाबूजी की 2 महीने पहले की चिट्ठी मिली मुझे. इस में इन्होंने तुम से 10 हजार रुपए मांगे हैं. तुम ने भेज तो नहीं दिए?’’

अरुणा के इस प्रश्न पर शशांक का चेहरा उड़ सा गया. पैसे तो उस ने वाकई भेजे थे, पर अरुणा गुस्सा न हो जाए, इसलिए उसे नहीं बताया था. पिछले दिनों उसे तरक्की और एरियर मिला था. इसलिए घर की मरम्मत हेतु बाबूजी को भेज दिए थे.

अरुणा आवेश में आ गई, क्योंकि शशांक का निर्दोष चेहरा झूठ छिपा नहीं पाता था.

‘‘रुको, मैं तुम्हें बताती हूं… ऐसा सबक सिखाऊंगी कि जिंदगी भर याद रखोगे…’’

उस वक्त तक शशांक की सैलरी में अच्छीखासी बढ़ोतरी हो चुकी थी पर अरुणा उन 10 हजार के लिए अपने प्राण देने पर उतारू हो गई थी. आए दिन उस की आत्महत्या की धमकियों से शशांक अब ऊबने लगा था.

सूरजमुखी का अब बस ज्वालामुखी बनना ही शेष था. अरुणा का बड़बड़ाना शुरू हो गया था. शशांक ने नन्हे कौशल का हाथ पकड़ा और उसे स्कूल छोड़ते हुए दफ्तर के लिए निकल गया. अभी दफ्तर पहुंचा ही था कि उस के सहकर्मी ने बताया, ‘‘जल्दी घर जाओ, तुम्हारे पड़ोसी का फोन आया था. भाभीजी बुरी तरह जल गई हैं.’’

बुरी तरह से जली अरुणा अगले 10 दिनों तक बर्न वार्ड में तड़पती रही.

‘‘मैं ने सिर्फ तुम्हें डराने के लिए हलकी सी कोशिश की थी… मुझे बचा लो शशांक,’’ अरुणा बोली.

जाती हुई अरुणा यही बोली थी. अपनी क्रोधाग्नि की ज्वाला में उस ने सिर्फ स्वयं को ही स्वाहा नहीं किया, बल्कि शशांक और कौशल की जिंदगी की समस्त खुशियों और भविष्य को भी खाक कर दिया था. लोकल अखबारों में, समाज में अरुणा की मौत को सब ने अपनी सोच अनुसार रंग दिया. रोने का मानो वक्त ही नहीं मिला. कानूनी पचड़ों के चक्रव्यूह से जब शशांक बाहर निकला तो नन्हे कौशल और अपनी नौकरी की सुधबुध आई. उस के मातापिता अरुणा की मौत के कारणों और वजह के लांछनों से उबर ही नहीं पाए. कुछ महीनों के भीतर ही दोनों की मौत हो गई.

बच गए दोनों बापबेटे, दुख, विछोह, आत्मग्लानि के दरिया में सराबोर. अरुणा नाम की उन की बीवी, मां ने उन के सुखी और शांत जीवन में एक भूचाल सा ला दिया था. खुदगर्ज ने अपना तो फर्ज निभाया नहीं उलटे अपनों के पूरे जीवन को भी कठघरे में बंद कर दिया था. उस कठघरे में कैद बरसोंबरस शशांक हर सामने वाले को कैफियत देता आया था. घृणा हो गई थी उसे अरुणा से, अरुणा की यादों से. भागता फिरने लगा था किसी ऐसे कोने की तलाश में जहां कोई उसे न जानता हो.

अरुणा का यों जाना शशांक के साथसाथ कौशल के भी आत्मविश्वास को गिरा गया था. 14 वर्षीय कौशल आज भी हकलाता था. बरसों उस ने रात के अंधेरे में अपने पिता को एक डायरी सीने से लगाए रोते देखा था. जाने बच्चे ने क्याक्या झेला था.

एक दिन शशांक ने ध्यान दिया कि कौशल बहुत देर से उसे घूर रहा है. अत: उस ने

पूछा, ‘‘क्या हुआ कौशल? कुछ काम है मुझ से?’’

‘‘प…प…पापा क…क… क्या आप ने म…म… मम्मी को मारा था?’’ हकलाते हुए कौशल ने पूछा.

‘‘किस ने कहा तुम से? बकवास है यह. मैं तुम्हारी मां से बहुत प्यार करता था. उस ने खुद ही…’’ बोझिल हो शशांक ने थकेहारे शब्दों में कहा.

‘‘व…व…वह रोहित है न, वह क…क… कह रहा था तुम्हारे प…प..पापामम्मी में बनती नहीं थी सो एक दिन तुम्हारे प…प…पापा ने उन्हें ज…ज… जला दिया,’’ कौशल ने प्रश्नवाचक निगाहों से कहा. उस की आंखें अभी भी शंकित ही थीं.

यही शंकाआशंका शशांक के जीवन में भी उतर गई थी. अपनी तरफ उठती हर निगाह उसे प्रश्न पूछती सी लगती कि क्या तुम ने अपनी बीवी को जला दिया? क्या अरुणा का कोई पूर्व प्रेमी था? क्या अरुणा के पिताजी ने दहेज नहीं दिया था?

जितने लोग उतनी बातें. आशंकाओं और लांछनों का सिलसिला… भागता रहा था शशांक एक जगह से दूसरी जगह बेटे को ले कर. अब थक गया था. वह कहते हैं न कि एक सीमा के बाद दर्द बेअसर होने लगता है.

बड़ी ही तीव्र गति से शशांक का मन बेकाबू रथ सा भूतकाल के पथ पर दौड़ा जा रहा था. चल रहे थे स्मृतियों के अंधड़…

तभी कमरे की दीवार घड़ी ने जोर से घंटा बजाया तो शशांक की तंद्रा भंग हुई. बेलगाम बीते पलों के रथ पर सवार मन पर कस कर लगाम कसी. जो बीत गया सो बात गई…

‘1 बज गया, कौशल भी स्कूल से आता होगा’, चैंबर से बाहर निकला तो देखा पूरा दफ्तर अपने काम में व्यस्त है.

‘‘क्यों आज लंच नहीं करना है आप लोगों को? भई मुझे तो जोर की भूख लगी है?’’ मुसकराने की असफल कोशिश करते हुए शशांक ने कहा.

सभी ने इस का जवाब एकसाथ मुसकराहट में दिया.

घर पहुंच शशांक ने देखा कि खानसामा खाना बना इंतजार कर रहा था.

‘‘खाना लगाऊं साहब, कौशल बाबा कपड़े बदल रहे हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘अरे वाह, आज तो सारी डिशेज मेरी पसंद की हैं,’’ खाने के टेबल पर शशांक ने चहकते हुए कहा.

‘‘पापा आप भूल गए हैं, आज आप का जन्मदिन है. हैप्पी बर्थडे पापा,’’ गले में हाथ डालते हुए कौशल ने कहा.

‘‘तो कैसा रहा आज का दिन. नए स्कूल में मन तो लग रहा है?’’ शशांक ने पूछा. अंदर से उस का दिल धड़क रहा था कि कहीं पिछली जिंदगी का कोई जानकार उसे यहां न मिल गया हो. पर उस ने एक नई चमक कौशल की आंखों में देखी.

‘‘पापा, मैथ्स के टीचर बहुत अच्छे हैं. साइंस और अंगरेजी वाली मैडम भी बहुत अच्छा बताती हैं. बहुत सारे दोस्त बन गए हैं. सब बेहद होशियार हैं. मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी ताकि मैं उन सब के बीच टिक पाऊं…’’

शशांक ने गौर किया कि कौशल का हकलाना अब काफी कम हो गया है. शाम को कौशल ने खानसामे और ड्राइवर की मदद से एक छोटी सरप्राइज बर्थडे पार्टी का आयोजन किया था. उस के नए दोस्त तो आए ही थे, साथ ही उस ने शशांक के दफ्तर के कुछ सहकर्मियों को भी बुला लिया था.

नीरज भी आया था. ऐसा लग रहा था कौशल को उस ने भी सहयोग किया था इस आयोजन में. नीरज को उस ने फिर चोर निगाहों से देखा कि क्या इस ने सचमुच किसी को कुछ नहीं बताया होगा? अब जो हो सो हो, कौशल को खुश देखना ही उस के लिए सुकूनदायक था.

कब तक अतीत से भागता रहेगा. अब कुछ वर्ष टिक कर इस जगह रहेगा और तबादले कौशल की पढ़ाई के लिए अब ठीक न होंगे. वर्षों बाद घर में रौनक और चहलपहल हुई थी.

‘‘पापा आप खुश हैं न? हमेशा दूसरों के घर बर्थडे पार्टी में जाता था, सोचा आज अपने घर कुछ किया जाए,’’ कह कौशल ने एक नई डायरी और पैन शशांक के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘आप के जन्मदिन का गिफ्ट, आप फिर से लिखना शुरू कीजिए पापा, मेरे लिए.’’

उस रात शशांक देर तक आकाश की तरफ देखता रहा. आसमान में काले बादलों का बसेरा था. मानो सुखरूपी चांद को दुखरूपी बादल बाहर आने ही नहीं देना चाहते हों. थोड़ी देर के बाद चांद बादलों संग आंखमिचौली खेलने लगा, ठीक उस के मन की तरह. बादल तत्परता से चांद को उड़ते हुए ढक लेते थे. मानो अंधेरे के साम्राज्य को बनाए रखना ही उन का मकसद हो.

अचानक चांद बादलों को चीर बाहर आ गया और चांदनी की चमक से घोर अंधेरी रात में उजियारा छा गया. शशांक देर तक चांदनी में नहाता रहा. पड़ोस से आती रातरानी की मदमस्त खुशबू से उस का मन तरंगित होने लगा, उस का कवि हृदय जाग्रत होने लगा. उस ने डायरी खोली और पहले पन्ने पर लिखा:

‘‘जिंदगी, जिंदगी मेरे घर आना… फिर से.’’

कृपया बताएं काजल लगाने से मेरी आंखें खराब तो नहीं होंगी?

सवाल-

मेरी उम्र 17 साल है. मुझे आंखों में काजल लगाना काफी पसंद है, लेकिन डरती हूं कि कहीं इस से आंखों पर बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा. कृपया बताएं कि काजल लगाने से मेरी आंखें खराब तो नहीं होंगी?

जवाब-

काजल लगाने से आंखों को नुकसान नहीं होता है बल्कि इस से वे और भी खूबसूरत दिखने लगती हैं. लेकन जरूरी है कि काजल अच्छी क्वालिटी की हो, जिस में लेड की मात्रा न हो. काजल कभी ऐक्सपायर होने के बाद न लगाएं. इससे आंखों को नुकसान पहुंचता है. आंखों में फ्लूया और किसी तरह का इन्फैक्शन हो तो काजल बिलकुल न लगाएं. अपना काजल कभी किसी के साथ शेयर न करें वरना इन्फैक्शन की आशंका रहती है. अगर काजल लगाने के बाद देखने में किसी तरह की परेशानी महसूस होती है तो काजल न लगाएं.

अगर आप जल्‍दी में हैं और आपके पास पूरा आई मेकअप करने का समय नहीं है तो आप अपनी आंखों को केवल काजल से ही सजा सकती हैं. काजल का प्रयोग आईलाइनर और आईशैडो के रुप में भी किया जा सकता है.

आज हम आपको कुछ मेकअप टिप्‍स देगें जिसके द्वारा आप केवल काजल के प्रयोग से ही अपनी आंखों से जादू कर सकती हैं.

काजल से आई मेकअप करने के टिप्‍स

  1. दिन और काम के हिसाब से आप अपनी आंखों को हाइलाइट कर सकती हैं. अगर आपको बस कैजुअल लुक चाहिए तो आप अपनी पलकों पर काजल लगा कर यह लुक पा सकती हैं.
  2. अगर आपको फारमल लुक चाहिए तो आंखों के नीचे का काजल मल कर मोटा न करें. आंखों के नीचे का काजल जितना पतला होगा उसके मिलने और खराब होने के चासेंज उतने ही कम होगें.
  3. अगर आपको अपनी आंखें थोडी बड़ी दिखानी हैं तो आंखों के नीचे और ऊपर मोटा काजल लगाएं इससे आंखें बड़ी और सुदंर दिखेगीं.
  4. शाम को अगर पार्टी में जाना हो तो आपकी आंखें बोलनी चाहिए इसलिए जरुरी है कि आंखों में लगाया जाने वाला काजल थोड़ा ज्‍यादा और उभरा हुआ हो. अपने काजल से आंखों की हाइलाइट करें वो भी सेमी डो आइ मेकअप से.

Holi 2024: धुंध- घर में मीनाक्षी को अपना अस्तित्व क्यों खत्म होने का एहसास हुआ?

‘‘अरे, अब बस भी करो रघु की मां, क्या बहू को पूरी दुकान ही भेज देने का इरादा है?’’

‘‘मेरा बस चले तो भेज ही दूं, पर अब अपने हाथों में इतना दम तो है नहीं. अरे, कमिश्नर की बेटी है कितना तो दिया है शादी में बेटी को. थोड़ा सा शगुन भेज कर हमें अपनी जगहंसाई करानी है क्या? मीनाक्षी, जरा गुझिया में खोया ज्यादा भरना वरना रघु की ससुराल वाले कहेंगे कि हमें गुझिया बनानी ही नहीं आती.’’

मीनाक्षी का मन कसैला हो उठा. इतनी आवभगत से कभी उस के मायके तो गया नहीं कुछ. मानते हैं, उस की शादी 10 वर्ष पूर्व हुई थी, उस समय के हिसाब से उस के बाबूजी ने खर्च भी किया था. पर उस की पहली होली जब मायके में पड़ी थी तब तो अम्माजी ने इतने मनुहार से कुछ नहीं भेजा था. पर यहां तो समधिन से ले कर छोटी बहन तक के कपड़े भेजे जा रहे हैं. ऊपर से बातबात में नसीहत दी जा रही है, ‘यह ठीक से रखो’, ‘यह सस्ता लग रहा है’, ‘इस में मेवा कम है’ आदि.

मखमल की चादर में टाट का पैबंद लगा हो तो दूर से झलकता है, पर रेशमी चादर में मखमल का पैबंद लग जाए तो उसे अच्छा समझा जाता है. मीनाक्षी की ससुराल भी ऐसी ही थी. मध्यम वर्ग के प्राणी थे. मीनाक्षी आई तो घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न थी. पति बाट व माप निरीक्षक थे. दोनों छोटे देवर पढ़ रहे थे, ननद विवाह के योग्य थी.

कितना कुछ तो सहा और किया था उस ने. यदि उंगलियों पर गिनना चाहे तो गिनती भूल जाए. उस ने गिनने का प्रयास भी कभी न किया. पर आज ही नहीं, देवर की शादी के बाद मधु के आगमन के साथ ही अम्माजी का सारा स्नेह मधु पर ही बरसते देख उस का मन खिन्न हो उठा था.

12 टोकरों के साथ बड़ी सी अटैची ले कर जब मीनाक्षी के पति गिरीश चलने लगे तो उस ने धीमे से पति से कहा, ‘‘मधु से मिल लीजिएगा. उस के बगैर होली फीकी लगेगी.’’

गिरीश ने कुछ कहा नहीं, पर मीनाक्षी के नेत्रों से झांकती उदासी उन से छिपी न रही.

होली के दिन सुबह हुल्लड़बाजी शुरू हो गई थी. महल्ले के लड़केलड़कियां आते गए और पुरानी भाभी से अपना रिश्ता निभाते हुए हंसीमजाक के बीच रंग भी खेलते गए.

मीनाक्षी मृदु स्वभाव की सीधीसादी महिला थी. महल्ले के सारे लड़के उस के देवर थे, लड़कियां ननदें एवं वृद्ध लोग चाचाचाची आदि.

शाम को मधु के मायके से उस के भाई मिठाई ले कर आए. जितना कुछ मीनाक्षी की सास ने भेजा था उस से कहीं ज्यादा ही वे लोग लाए थे. मीनाक्षी दौड़दौड़ कर सब की खातिर कर रही थी. बड़ी दीदी के नाते सब ने उस के पांव छुए तो मीनाक्षी को आंतरिक खुशी मिली.

अम्माजी भी बड़े ही प्यार एवं अपनत्व से सब की खातिर कर रही थीं. देखते ही देखते मात्र दिखावे के नाम पर काफी रुपए खर्च हो गए. मीनाक्षी जानती थी कि इतने पैसे खर्च होने से घर का मासिक बजट गड़बड़ा जाएगा, पर वह खामोश ही रही.

मीनाक्षी का देवर रघु प्रशासनिक अभियंता था. कमिश्नर की बेटी का रिश्ता स्वीकार करने के पीछे मधु की सुंदरता एवं उच्च शिक्षित होना भी उस के महत्त्वपूर्ण गुण थे. ढेर सारे दहेज के साथ मधु उस मध्यम वर्ग के घर में जब दुलहन बन कर आई तो पहली बार मीनाक्षी को अपनी वास्तविक स्थिति का भान हुआ.

सिर्फ 2 दिन ही तो मधु रह पाई थी. फिर होली का पर्व आ गया और उस के भाई आ कर उसे ले गए. होली के दूसरे ही दिन मधु को लेने रघु मीनाक्षी के

8 वर्षीय पुत्र के साथ जाने लगा तो अम्माजी ने फिर मधु के लिए साड़ी व मिठाई देनी चाही तो गिरीश ने कह दिया, ‘‘अम्मा, इतना सारा लेनदेन करना अच्छा नहीं है. उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर हमारी तो आर्थिक स्थिति चरमरा जाएगी. मानते हैं कि रघु की नौकरी अच्छी है पर यदि उसे भी अपने पैसे से यह सब करना पड़े तो शायद वह भी न करे.’’

‘‘तो क्या कुछ न भेज कर अपनी नाक नीची करवाएं? सुना तुम ने?’’ वह पति से बोली, ‘‘क्या हमें अपनी बहू को कुछ उपहार नहीं भेजना चाहिए? आखिर इतना कुछ दिया है उन्होंने.’’

‘‘पर रघु की मां, दिया उन्होंने अपनी बेटी को है. और जो नकद दिया है उस पर हमारा कोई हक नहीं बनता. वह हम ने मधु और रघु के संयुक्त खाते में जमा करवा दिया है. इतना कुछ खर्च करना तो मुझे भी ठीक नहीं लग रहा है.’’

पति का समर्थन न मिलते देख कर अम्माजी चुप हो गईं. हालांकि उन के चेहरे से यह प्रतीत हो रहा था कि वह इस से संतुष्ट नहीं हैं.

दोपहर का सारा काम निबटा कर मीनाक्षी अपने कमरे में चली आई थी. मधु भी सुबह आ गई थी. मीनाक्षी सोचने लगी, यदि मधु के पति की नौकरी कहीं अन्यत्र होती तो कोई परेशानी वाली बात नहीं थी पर चूंकि दोनों बहुओं को सासससुर के साथ एक ही घर में रहना था, चिंता का विषय यही था.

इन 10 दिनों के दौरान मीनाक्षी ने महसूस कर लिया था कि अम्माजी का सारा लाड़ अब मधु पर ही उतरेगा जोकि उचित न था. ऐसा नहीं कि उसे मधु से स्नेह न था पर यदि अम्मा अपना सारा स्नेह भंडार मधु पर ही न्योछावर करेंगी तो संभव है कि कल को वे मीनाक्षी की भी अवहेलना शुरू कर दें. संयुक्त परिवार में हर एक को त्याग कर के चलना पड़ता है. स्वार्थ की परिधि में रहने वाला प्राणी ऐसे परिवार में ज्यादा दिन नहीं रह सकता.

‘‘दीदी,’’ सहसा मधु के स्वर पर उस ने चौंक कर देखा, ‘‘अरे मधु, आओ, बैठो न,’’ मीनाक्षी उठ कर खड़ी हो गई.

‘‘यह आप के लिए है,’’ मधु ने एक पैकेट उस की तरफ बढ़ा दिया.

‘‘क्या है यह?’’

‘‘साड़ी. देखिए, रंग आप को पसंद है?’’

जाने कहां का आक्रोश एकदम से मीनाक्षी के मन में भर आया, वह खुद भी न समझ सकी. मधु के घर वालों के सामने होली के दिन उस ने सूती साड़ी पहनी थी. क्या इसीलिए मधु उस के लिए साउथ सिल्क की महंगी साड़ी ले कर चली आई?

‘‘मधु, मैं यह साड़ी नहीं ले सकती,’’ बड़ी मुश्किल से अपने भावों को बाहर आने से मीनाक्षी ने रोका.

‘‘क्यों, दीदी? पर मैं तो आप के लिए ले कर आई हूं.’’

‘‘क्योंकि मैं इस के बदले में तुम्हें इस से अच्छी साड़ी नहीं दे सकती. मेरे पति इतना नहीं कमाते कि हम अंधाधुंध खर्च कर सकें. अच्छा होगा, तुम भी यह सब समझ लो क्योंकि हमें साथ ही रहना है.’’

मधु सिर झुकाए चुपचाप सुनती रही. मीनाक्षी का क्रोध जब शांत हुआ तो उस ने देखा कि साड़ी का पैकेट यों ही पड़ा है और मधु वहां से जा चुकी है.

मधु के जाने के बाद मीनाक्षी को महसूस हुआ कि उस से कुछ गलत हो गया है. उसे इतना कठोर नहीं होना चाहिए था. आखिर वह कितने प्यार से उस के लिए उपहार लाई थी. उस समय रख लेती, नसीहत बाद में भी दे सकती थी. पर इतने दिनों का आक्रोश फटा भी तो नईनवेली मधु के ही ऊपर.

सुबह मीनाक्षी की आंख खुली तो धूप थोड़ी चढ़ आई थी. सोचने लगी कि इतनी देर कैसे हो गई? कमरे से निकल कर उस ने देखा, हर कोई अपने काम में लगा है. मधु ने उसे देखते ही कहा, ‘‘आप सो रही थीं, दीदी, इस कारण मैं ने चाय नहीं दी, आप ब्रश करें, तब तक मैं चाय बनाती हूं.’’

मीनाक्षी के लिए सब कुछ अप्रत्याशित था. सुबह घर का प्रत्येक सदस्य उस के हाथ की चाय पीने का अभ्यस्त था. आज मधु के हाथ की चाय पी कर भी किसी के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं झलक रहा था. बाबूजी वैसे ही लौन में अखबार पढ़ रहे थे. अम्माजी नहा कर भीगे बालों से धूप में कुरसी डाले माला फेर रही थीं. रघु दाढ़ी बना रहा था और गिरीश दोनों बच्चों के साथ लौन में खेल रहा था.

दोपहर के भोजन के लिए मीनाक्षी रसोई में पहुंची तो देखा, मधु डलिया में सब्जी निकाल रही थी, ‘‘सब्जी क्या बनेगी, दीदी?’’

‘‘देखो मधु, अभी तुम नईनवेली हो. नई बहू का यों काम करना अच्छा नहीं लगता. कुछ दिन आराम करो फिर काम करना.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है कि आप काम करें और मैं आराम करूं. आप बताती जाएं, मैं सब करती जाऊंगी.’’

बात सीधी थी, पर जाने क्यों मीनाक्षी को लग रहा था कि उस का स्थान मधु हथियाती जा रही है. पर घर की पूरी जिम्मेदारी ओढ़ कर पहले जहां वह कभीकभी झुंझला जाती थी, आज उसी को हस्तांतरित होता देख वह बेचैन हो उठी.

वह गरमी की उमस भरी दोपहर थी. अम्मा व बाबूजी किसी शादी में दूसरे शहर गए थे. घर पर मधु एवं मीनाक्षी ही थीं. मीनाक्षी ज्यादा न बोलती, पर मधु सदा उस के साथसाथ लगी रहती. मीनाक्षी को हमेशा लगता कि मधु अपनी अमीरी का रौब मारेगी. अपनी आर्थिक संपन्नता का एहसास जताएगी, पर मधु के व्यवहार में ऐसा कुछ भी न था.

उसी दिन दोपहर को मीनाक्षी को आंगन में नीचे कुछ हलचल सुनाई दी. उस ने झांक कर देखा. मधु की मां एवं भाई आए हुए थे. साथ में छोटी बहन भी थी. वह झट से नीचे उतर आई.

‘‘आइए, मांजी, बड़ा अच्छा हुआ, आप आ गईं. अरे, मधुप और सुधा भी आए हैं. अरे मधु, देखो तो कौन आया है,’’ मीनाक्षी ने उन्हें आदर के साथ बैठाया और खुद चाय आदि का प्रबंध करने के लिए रसोई में घुस गई.

पूरे 4 दिन मधु की मां वहां रहीं. इन दिनों पूरे घर पर उन्हीं का साम्राज्य छाया रहा. सास घर पर नहीं थीं. इस कारण पूरा आदरसम्मान मीनाक्षी उन्हें देती रही. इस का परिणाम यह रहा कि वे हर घड़ी हर चीज के बारे में अपनी राय जताती रहीं.

गिरीश वैसे ही शांत स्वभाव का था. मधु की मां की बात को वह खामोशी से सुनता रहता. रघु का भी स्वभाव सीधासादा था. इस कारण पूरे घर में मालिकाना अंदाज में मधु की मां घूमती रहीं.

एक दिन मीनाक्षी ने सुना, वे मधु से कह रही थीं, ‘‘मेरी मान, रघु से कह कर तबादला कहीं और करवा ले. मुझे तो तुम्हारे जेठ व जेठानी का स्तर अच्छा नहीं  लगता. देख, रघु का वेतन ज्यादा है, पर एकसाथ रहने से उस का सारा वेतन इसी घर में खर्च हो जाता है.’’

‘‘कैसी बातें करती हो मां. एक तो इन की नौकरी ऐसी है कि कभी भी तबादला हो सकता है. जितने दिन हमें साथ रहना है, हम कलह कर के क्यों रहें? फिर नौकरी से अवकाश के बाद हमें साथ ही रहना है. क्या हमारी इन हरकतों से भैया व भाभी को तकलीफ नहीं होगी?’’

‘‘तुम मकान क्या यहीं बनवाओगी? मैं ने तो तेरे बाबूजी से जमीन की बात भी कर ली है.’’

‘‘नहीं मां, मकान तो यही रहेगा. हां, दोनों भाई मिल कर इस की मरम्मत करवा लेंगे. सब एक ही परिवार के तो हैं.’’

मधु की मां एवं भाईबहन की विदाई मीनाक्षी ने अपनी समझ व हैसियत से अच्छी तरह की थी. सुधा को उस ने फिल्म दिखाई थी. मधुप को एक बैगी शर्ट दी थी. दोनों का स्वभाव उसे बहुत अच्छा लगा था. सुधा से उस के पलंग का नाइट लैंप टूट गया था, पर मीनाक्षी ने बजाय डांटने के उसे तसल्ली ही दी थी और मधु को भी सुधा को डांटने से रोक दिया था.

तब मधु की मां बोली थीं, ‘‘क्या हो गया, शीशा ही तो टूटा है.’’

‘‘सुधा को क्या पता है कि यहां की हर चीज अनमोल है. दूसरी आने में सालों लग जाते हैं.’’

‘‘मां,’’ मधु की क्रोध भरी आवाज पर मीनाक्षी ने झट से उस का हाथ थाम लिया, ‘‘नहीं, मधु.’’

मीनाक्षी की सास जब लौट कर आईं और उन्हें पता चला कि मधु की मां आई थीं तो उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया, ‘‘अरे, कुछ खातिर भी की या यों ही टरका दिया. अरे मधु बेटी, मां का ध्यान ठीक से रखा न?’’

तभी बाबूजी ने गुस्से से पत्नी से कहा, ‘‘तुम तो ऐसे चिल्ला रही हो मानो रघु की सास नहीं, तुम्हारी बेटी की सास आई हों.’’

‘‘यह देखो,’’ हीरे की अंगूठी पति को दिखाते हुए वे बोलीं, ‘‘दी है किसी ने मुझे ऐसी अंगूठी? रघु की ससुराल की बदौलत हीरा तो पहन लिया. कैसे प्यार से समधिन के लिए भेजी थी उन्होंने.’’

‘‘तुम तो,’’ बाबूजी इतना कह कर चुप हो गए. वे समझ गए कि उन के सिर पर झूठे वैभव का भूत सवार है.

धीरेधीरे दिन बीतने लगे. मधु का पांव भारी हुआ. अम्माजी की खुशी की सीमा न रही. काफी दिनों बाद घर में किसी बच्चे की किलकारी गूंजने वाली थी. मीनाक्षी ने इतने दिनों में यह महसूस किया कि मधु काफी सुलझे विचारों की लड़की है. अपने मायके की अमीरी का जरा भी दंभ उस में नहीं है. एक दिन उस ने देखा, उस का बेटा पंकज अपनी पुस्तक लिए मधु के पास बैठा है.

‘‘क्या पढ़ रहा है, बेटा?’’

‘‘चाचीजी से गणित. तुम्हें पता है मां, चाचीजी गणित बहुत अच्छा पढ़ाती हैं.’’

मीनाक्षी ने हंस कर ‘हां’ में सिर हिला दिया. मधु ने उसे देख कर उठते हुए कहा, ‘‘आइए न, दीदी.’’

‘‘ठीक है मधु, तुम पढ़ाओ, मैं रसोई देखती हूं.’’

‘‘अच्छा दीदी,’’ कह कर मधु फिर से पंकज को पढ़ाने लगी.

मौसम बदलते हैं, ऋतुओं के साथ फूलों के रंग भी बदलते हैं. एक नहीं बदलता है तो इंसान का मन, लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि किसी घटना ने मानव का हृदय परिवर्तन कर दिया हो. मीनाक्षी ने 10 वर्ष जिस परिवेश में बिताए थे, अमीरी का उस में कोई स्थान न था. उस ने सास के व्यंग्यबाणों को झेला था तो ससुर का स्नेह भी पाया था. पति का प्यार मिला था, देवर से इज्जत और बच्चों से वात्सल्य.

इस भरेपूरे परिवार में व्यवधान पड़ा था मधु के आगमन से. इस को भी वह सुगमता से व्यवस्थित कर लेती, यदि अम्मा हर बात में यह एहसास न जताती रहतीं कि मधु बड़े घर की बेटी है.

दीवाली आई और बीत गई. होली का त्योहार पास आता गया और इस के साथ मधु का प्रसव दिन भी करीब आ गया.

एक दिन शाम को घर के सदस्य बैठे चाय पी रहे थे. तभी रघु आया तो मधु उसे कपड़े देने के लिए उठने लगी.

सहसा बाबूजी ने कहा, ‘‘पहले चाय पी लो, कपड़े बाद में बदलना.’’

मीनाक्षी ने रघु के लिए भी चाय बना दी. अम्माजी ने गिरीश की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘सोचती हूं, मधु को मायके भिजवा दूं. प्रसव का दिन पास आ रहा है.’’

तभी मधु ने पूछा, ‘‘मायके क्यों, मांजी?’’

‘‘रस्म के मुताबिक पहला जापा मायके में ही होता है.’’

तभी मधु उठ कर अंदर चली गई. शाम को मीनाक्षी सब्जी बना रही थी तो मधु ने आ कर कहा, ‘‘दीदी, मैं मायके नहीं जाऊंगी.’’

‘‘क्यों, मधु? पहले प्रसव में मैं भी तो मायके गई थी. यह तो घर की पुरानी रीति है.’’

‘‘दीदी, मायके जा कर कौन लड़की खुश नहीं होती, पर मैं नहीं चाहती कि फिर वही तमाशा हो जो मेरे होली के अवसर पर जाने पर हुआ था.’’

‘‘क्या?’’

‘‘दीदी, मैं इस घर की मेहमान नहीं, एक सदस्य हूं. मुझे इस घर की आर्थिक स्थिति का अनुमान है. मेरा प्रसव मायके में होगा तो अम्माजी उपहार भेजने से न चूकेंगी. बाबूजी शादी का पैसा लगाएंगे नहीं. फिर कहां से आएगा पैसा? घर की आर्थिक स्थिति जो सुधरी है, वह फिर से चरमरा न जाएगी. दीदी, तुम मांजी को समझा दो, मैं मायके नहीं जाऊंगी.’’

‘‘मधु, बावली मत बनो. कहीं कुछ उलटासीधा हो गया तो?’’

‘‘उलटासीधा होना होगा तो वहां भी हो सकता है. फिर जिस डाक्टर को मैं यहां दिखा रही हूं वह मेरे केस से पूरी तरह से परिचित है. वहां नई डाक्टर देखेगी न दीदी, मैं नहीं जाऊंगी.’’

मधु के मायके न जाने में रघु ने भी पूरा सहयोग दिया. मां से उस ने स्पष्ट कह दिया कि मधु मायके नहीं जाएगी.

होली के 1 दिन पूर्व मधु ने बेटे को जन्म दिया. प्रसव नर्सिंगहोम में हुआ था. होली के दिन लोग आते रहे और मधु व बच्चे की कुशलता पूछते रहे. चंचल लड़कों ने तो इनकार करने के बावजूद मधु के गाल पर हलका सा गुलाल लगा ही दिया.

चारों तरफ होली का शोर था. मीनाक्षी खुद बचने की कोशिश के बावजूद रंग से भीग गई थी. फिर भी वह दौड़दौड़ कर मधु के सब काम करती रही.

‘‘दीदी,’’ मधु के स्वर पर मीनाक्षी ने चौंक कर देखा. वह कुहनियों के सहारे बिस्तर पर बैठी थी.

‘‘क्या है, मधु, कोई तकलीफ है?’’

‘‘हां.’’

‘‘डाक्टर को बुलाऊं?’’

‘‘नहीं दीदी, तकलीफ इस बात की है कि मैं होली का आनंद नहीं उठा पा रही. पिछली होली मायके में पड़ी, इस बार अस्पताल में. सोचा था, इस बार यहां की रंगीनी देखूंगी. कितना अच्छा लग रहा है, आप का यह रंगों वाला रूप.’’

‘‘घबराओ मत, देवरजी खड़े हैं बाहर. जरा खापी कर तंदुरुस्त हो जाओ, फिर जी भर कर रंग खेल लेना.’’

मधु शरमा गई और मीनाक्षी मुद्दत के बाद खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के मन पर छाई धुंध छंट गई थी. बाहर शोर मचा था, ‘बुरा न मानो होली है.’

वार्निंग साइन बोर्ड: आखिर क्या हुआ था 7 साल की निधि के साथ?

Top 10 Best Family Story in Hindi: पढ़ें रिश्तों से जुड़ी भावुक कर देने वाली पारिवारिक कहानियां

Family Story in Hindi: परिवार हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है, जो हर सुख-दुख में आपका सपोर्ट सिस्टम बनती है. साथ ही बिना किसी के स्वार्थ के आपका परिवार साथ खड़ा रहता है. इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Grihshobha की Best Family Story in Hindi 2024.

Top 10 Family Stories in Hindi : टॉप 10 फैमिली कहानियां हिंदी में

1. तबाही: आखिर क्या हुआ था उस तूफानी रात को

सब कुछ पहले की तरह सामान्य होने लगा था. 1 सप्ताह से जिन दफ्तरों में काम बंद था, वे खुल गए थे. सड़कों पर आवाजाही पहले की तरह सामान्य होने लगी थी. तेज रफ्तार दौड़ने वाली गाडि़यां टूटीफूटी सड़कों पर रेंगती सी नजर आ रही थीं. सड़क किनारे हाकर फिर से अपनी रोजीरोटी कमाने के लिए दुकानें सजाने लगे थे. रोज कमा कर खाने वाले मजदूर व घरों में काम करने वाली महरियां फिर से रास्तों में नजर आने लगी थीं.

पिछले दिनों चेन्नई में चक्रवाती तूफान ने जो तबाही मचाई उस का मंजर सड़कों व कच्ची बस्तियों में अभी नजर आ रहा था. अभी भी कई जगहों में पानी भरा था. एअरपोर्ट बंद कर दिया गया था. पिछले दिनों चेन्नई में पानी कमरकमर तक सड़कों पर बह रहा था. सारी फोन लाइनें ठप्प पड़ी थीं, मोबाइल में नैटवर्क नहीं था. गाडि़यों के इंजनों में पानी चला गया था, जिस के चलते कार मालिकों को अपनी गाडि़यां वहीं छोड़ जाना पड़ा था. कई लोग शाम को दफ्तरों से रवाना हुए, तो अगली सुबह तक घर पहुंचे थे और कई तो पानी में ऐसे फंसे कि अगली सुबह तक भी न पहुंचे. कई कालेजों और यूनिवर्सिटीज में छात्रछात्राएं फंसे पड़े थे, जिन्हें नावों द्वारा सेना ने निकाला.  पूरे शहर में बिजली नहीं थी.

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2. डिवोर्सी: मुक्ति ने शादी के महीने भर बाद ही लिया तलाक

वह डिवोर्सी है. यह बात सारे स्टाफ को पता थी. मुझे तो इंटरव्यू के समय ही पता चल गया था. एक बड़े प्राइवेट कालेज में हमारा साक्षात्कार एकसाथ था. मेरे पास पुस्तकालय विज्ञान में डिगरी थी. उस के पास मास्टर डिगरी. कालेज की साक्षात्कार कमेटी में प्राचार्य महोदया जो कालेज की मालकिन, अध्यक्ष सभी कुछ वही एकमात्र थीं. हमें बताया गया था कि कमेटी इंटरव्यू लेगी, मगर जब कमरे के अंदर पहुंचे तो वही थीं यानी पूरी कमेटी स्नेहा ही थीं. उन्होंने हमारे भरे हुए फार्म और डिगरियां देखीं. फिर मुझ से कहा, ‘‘आप शादीशुदा हैं.’’ ‘‘जी.’’

‘‘बी. लिब. हैं?’’ ‘‘जी,’’ मैं ने कहा.

फिर उन्होंने मेरे पास खड़ी उस अति सुंदर व गोरी लड़की से पूछा, ‘‘आप की मास्टर डिगरी है? एम.लिब. हैं आप मुक्ति?’’ ‘‘जी,’’ उस ने कहा. लेकिन उस के जी कहने में मेरे जैसी दीनता नहीं थी.

‘‘आप डिवोर्सी हैं?’’ ‘‘जी,’’ उस ने बेझिझक कहा.

‘‘पूछ सकती हूं क्यों?’’ ‘‘व्यक्तिगत मैटर,’’ उस ने जवाब देना उचित नहीं समझा.

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3. चिराग : करुणा को क्यों बहू नहीं मान पाए अम्मा और बापूजी

कानपुर रेलवे स्टेशन पर परिवार के सभी लोग मुझ को विदा करने आए थे, मां, पिताजी और तीनों भाई, भाभियां. सब की आंखोें में आंसू थे. पिताजी और मां हमेशा की तरह बेहद उदास थे कि उन की पहली संतान और अकेली पुत्री पता नहीं कब उन से फिर मिलेगी. मुझे इस बार भारत में अकेले ही आना पड़ा. बच्चों की छुट्टियां नहीं थीं. वे तीनों अब कालेज जाने लगे थे. जब स्कूल जाते थे तो उन को बहलाफुसला कर भारत ले आती थी. लेकिन अब वे अपनी मरजी के मालिक थे. हां, इन का आने का काफी मन था परंतु तीनों बच्चों के ऊपर घर छोड़ कर भी तो नहीं आया जा सकता था. इस बार पूरे 3 महीने भारत में रही. 2 महीने कानपुर में मायके में बिताए और 1 महीना ससुराल में अम्मा व बाबूजी के साथ.

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4.  अभियुक्त: सुमि ने क्या देखा था

घंटी बजने के साथ ही, ‘‘कौन है?’’ भीतर से कर्कश आवाज आई.

‘‘सुमि आई है,’’ दरवाजा खोलने के बाद भैया ने वहीं से जवाब दिया.

‘‘फिर से?’’ भाभी ने पूछा तो सुमि शरम से गड़ गई.

विवेक मन ही मन झुंझला उठा. पत्नी के विरोध भाव को वह बखूबी समझता है. सुमि की दूसरी बार वापसी को वह एक प्रश्नचिह्न मानता है जबकि दीपा इसे अपनी सुखी गृहस्थी पर मंडराता खतरा मानती है. विवेक के स्नेह को वह हिसाब के तराजू पर तौलती है.

चाय पीते समय भी तीनों के बीच मौन पसरा हुआ था.

विवेक की चुप्पी से दीपा भी शांत हो गई लेकिन रात को फिर विवाद छिड़ गया.

‘‘शैलेंद्रजी बातचीत में तो बड़े भले लगते हैं.’’

‘‘ऊपर से इनसान का क्या पता चलता है. नजदीक रहने पर ही उस की असलियत पता चलती है.’’

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5.  सब छत एक समान: अंकुर के जन्मदिन पर क्या हुआ शीला के साथ?

शीला को जरा भी फुरसत नहीं थी. अगले दिन उस के लाड़ले अंकुर का जन्मदिन था. शीला ने पहले से ही निर्णय ले लिया था कि वह अंकुर के इस जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगी और एक शानदार पार्टी देगी.

बारबार पिताजी ने सुरेश को समझाया कि वह बहू को समझाए कि इस महंगाई के दौर में इस तरह की अनावश्यक फुजूलखर्ची उचित नहीं. उन की राय में अपने कुछ निकटतम मित्रों और पड़ोसियों को जलपान करवा देना ही काफी था.

सुरेश ने जब शीला को समझाया तो वह अपने निर्णय से नहीं हटी, उलटे बिगड़ गई थी.

शीला बारबार बालों की लटें पीछे हटाती रसोई की सफाई में लगी थी. उस ने महरी को भी अपनी सहायता के लिए रोक रखा था. दिन में कुछ मसाले भी घर पर कूटने थे, दूसरे भी कई काम थे. इसलिए वह सुबह से ही काम निबटाने में लग गई थी.

6. मिटते फासले: शालिनी की जिंदगी में क्यों मची थी हलचल?

मोबाइल फोन ने तो सुरेखा की दुनिया ही बदल दी है. बेटी से बात भी हो जाती है और अमेरिका दर्शन भी घर बैठेबिठाए हो जाता है. अमेरिका में क्या होता है, सुरेखा को पूरी खबर रहती है. मोबाइल के कारण आसपड़ोस में धाक भी जम गई कि अमेरिका की ताजा से ताजा जानकारी सुरेखा के पास होती है.

सर्दी का दिन था. कुहरा छाया हुआ था. खिड़की से बाहर देख कर ही शरीर में सर्दी की एक झुरझुरी सी तैर जाती थी. अभी थोड़ी देर पहले ही शालिनी से बात हुई थी.

शालिनी 2 महीने बाद छुट्टियों में भारत आ रही है. कुरसी खींच कर आंखें मूंद प्रसन्न मुद्रा में सुरेखा शालिनी के बारे में सोच रही थी. कितनी चहक रही थी भारत में आने के नाम से. अपनों से मिलने के लिए, मोबाइल पर मिलना एक अलग बात है. साक्षात अपनों से मिलने की बात ही कुछ और होती है.

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7. नई रोशनी की एक किरण

बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.

‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’

सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’

8. फूलप्रूफ फार्मूला: क्या हो पाई अपूर्वा औऱ रजत की शादी

औफिस से लौटने में कुछ देर हो गई थी लेकिन बच्चों ने मुंह फुलाने के बजाय चहकते हुए उस का स्वागत किया.

‘‘मम्मा, दिल्ली से रजत अंकल आए हैं, हमें उन के साथ खेलने में बड़ा मजा आ रहा है. आप भी हमारे कमरे में आ जाओ,’’ कह कर प्रणव और प्रभव अपने कमरे में भाग गए.

‘‘आ गई बेटी तू, रजत बड़ी देर से तेरे इंतजार में इन दोनों की शरारतें झेल रहा है,’’ मां ने बगैर रसोई से बाहर आए कहा.

हालांकि दिल्ली रिश्तेदारों से अटी पड़ी थी लेकिन अभी तक किसी रजत से तो कोई रिश्ता जुड़ा नहीं था. पापा और बच्चों के साथ एक सुदर्शन युवक कैरम खेल रहा था. अपूर्वा को याद नहीं आया कि उस ने उसे पहले कभी देखा है. अपूर्वा को देखते ही युवक शालीनता से खड़ा हो गया लेकिन इस से पहले कि वह कुछ बोलता, प्रभवप्रणव चिल्लाए, ‘‘आप गेम बीच में छोड़ कर नहीं जा सकते, अंकल. बैठ जाइए.’’

‘‘इन की बात मान लेने में ही इज्जत है बरखुरदार. जब तक यह खेल खत्म होता है, तू भी फे्रश हो ले बेटी. रजत को हम ने रात के खाने तक रुकने को मना लिया है,’’ विद्याभूषण चहके.

‘‘वैसे मैं अपूर्वाजी का सिर खाए बगैर जाने वाला भी नहीं था,’’ रजत ने हंसते हुए कहा.

‘किस खुशी में भई?’ अपूर्वा पूछना चाह कर भी न पूछ सकी और मुसकरा कर अपने कमरे में आ गई.

जब वह फे्रश हो कर बाहर आई तो बाई चाय ले कर आ गई. चाय की प्याली ले कर वह ड्राइंगरूम की बालकनी में आ गई.

9. प्यार की चाह: क्या रोहन को मिला मां का प्यार

झल्लाई हुई निशा ने जब गाड़ी गैरेज में खड़ी की तो रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी. ‘रवि का यह खेल पुराना है,’ वह काफी देर तक बड़बड़ाती रही, ‘जब भी घर में किसी सोशल गैदरिंग की बात होगी, वह बिजनैस ट्रिप पर भाग खड़ा होगा, अब भुगतो अकेले.’

‘तुम चिंता न करना, मेरा सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा.’

‘हूं,’ सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा. कार्ड बांटने और इनवाइट करने तो पर्सनली ही जाना पड़ता है न.’

‘न जाने पार्टी के नाम से उसे इतनी चिढ़ क्यों है? महेश ने विदेश जाने पर पार्टी दी थी तो अरविंद ने विदेश से लौटने की. राघव की बेटी रिंकी को फिल्मों में हीरोइन का चांस मिला तो पार्टी, भाटिया ने फिल्म का मुहूर्त किया तो पार्टी. अपनी सुधा तो कुत्तेबिल्लियों के जन्मदिन पर भी पार्टी देती है. इधर एकलौते बेटे का जन्मदिन मनाना भी खलता है. फिर इन्हीं पार्टियों की बदौलत सोशल स्टेटस बनता है. सोशल कौंटैक्ट्स बनते है,’ पर रवि के असहयोग से अपने किटी सर्किल में निशा पार्टीचोर के नाम से ही जानी जाती थी. इसी कारण वह तमतमा उठी.

‘‘मेमसाब, खाना गरम करूं?’’  मरिअम्मा ने पूछा.

10. जीवन लीला: क्या हुआ था अनिता के साथ

जीवन के आखिरी पलों में न जाने क्यों आज मेरा मन खुद से बातें करने को हो गया. सोचा अपनी  जिंदगी की कथा या व्यथा मेज पर पड़े कोरे कागजों पर अक्षरों के रूप में अंकित कर दूं.

यह मैं हूं. मेरा नाम अनिता है. कहां पैदा हुई, यह तो पता नहीं, पर इतना जरूर याद है कि मेरे पिता कनाडा में भारतीय दूतावास में एक अच्छे पद पर तैनात थे. उन का औफिस राजधानी ओटावा में था. मां भी उन्हीं के साथ रहती थीं. मैं और मेरा भाई मांट्रियल में मौसी के यहां रहते थे. मेरी पढ़ाई की शुरुआत वहीं से हुई. मेरा भाई रोहन मुझ से 5 साल बड़ा था.

स्कूल घर के पास ही था, मुश्किल से 3-4 मिनट का रास्ता था. तमाम बच्चे पैदल ही स्कूल आतेजाते थे. लेकिन हमारे घर और स्कूल के बीच एक बड़ी सड़क थी, जिस पर तेज रफ्तार से कारें आतीजाती थीं. इसलिए वहां के कानून के हिसाब से स्कूल बस हमें लेने और छोड़ने आती थी.

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Lakme Fashion Week 2024: रैंप पर इन हसीनाओं ने बिखेरा सस्टैनेबल फैशन का जलवा

Lakme Fashion Week 2024: लक्मे फैशन वीक एफडीसीआई की समर कलेक्शन में इस बार घरेलू सूत से बने कपड़ों की खूबसूरती दिखी, लेकिन इस बार का फैशन शो कुछ हद तक फीकी रही. शो की शुरुआत यावी ब्रांड की यादवी अग्रवाल, तिल की अंकुर वर्मा और इंका की अमित हंसराज ने किया. इसमे ब्यूटी और स्टाइल को अमित हंसराज ने रैम्प पर उतारा, जिसमे उनके फ्री फ्लोइंग कलर फुल आरामदायक कपड़े, देखने लायक थे. इस दिन सभी ने टिकाऊँ और स्लो फैशन को फॉलो करते हुए कपड़े रैम्प पर उतारें.

पर्यावरण पर ध्यान

डिजाइनर अमित हंसराज की शो स्टॉपर अभिनेत्री दिया मिर्जा रही, जो पर्यावरण के बारें में लोगों को जागरूक करने के लिए काफी काम करती है. वह कहती है कि हमारे देश में ही नहीं पूरे विश्व में पर्यावरण पर लोग कम ध्यान देते है, मुझे याद आता है कि मेरी दादी, नानी की साड़ियाँ आज भी मैँ पहन सकती हूँ, उन दिनों परंपरा के अनुसार इन चीजों को देने का रिवाज था, जिसे नई जेनरेशन खुशी – खुशी स्वीकार करती थी. मेरा सभी से अनुरोध है कि किसी भी प्राकृतिक चीजों को नष्ट न करें, उसका कम से कम उपयोग करें.

विश्व की चाय संस्कृति और चोला लेबल के साथ डिजाइनर सोहाया मिश्रा ने इन्क्लूसिव, सशक्तिकरण और प्रामाणिकता को दिखाते हुए अपने पोशाक रैम्प पर उतारे. हेरिटेज वस्त्रों के उपयोग ने शो को एक अद्भुत रूप दिया. जो आधुनिकता के साथ – साथ आरामदायक भी दिखे. गर्मी के महीने को ध्यान मे रखते हुए हल्के रंगों का प्रयोग अधिक किया गया.

रंगों का मेला    

डिजाइनर गौरांग ने होली यानि अबीर और गुलाल को ध्यान मे रखते हुए गुलाबी रंगों के परिधान से पूरे रैम्प को आकर्षक बना दिया.  45 मॉडल्स ने भारत के विभिन्न क्राफ्ट को साड़ी और घाघरा चोली के साथ रैम्प पर वाक किया, जिसमे कई सुपर मॉडल्स भी थी. उनकी परिधान में देश की एकता की झलक दिखी, क्योंकि गौरांग ने जामदानी, चँदेरी, पटोला, बांधनी, बनारसी, खादी सिल्क आदि सभी प्रकार के फेब्रिक पर हैन्ड एम्ब्रॉइडरी, फुलकारी, जारदोजी वर्क को प्रस्तुत किया.

इस अवसर पर अपने कलेक्शन के बारें में गौरांग का कहना है कि मैँ हमेशा फैशन के साथ ससटेंनिबिलिटी पर ध्यान देता हूँ, क्योंकि फैशन इंडस्ट्री का एक बहुत बड़ा भाग वातावरण को प्रदूषित करता है. इसलिए मैँ स्लो फैशन पर अधिक जोर देता हूँ.  मेरे कलेक्शन मे प्रयोग किये जाने वाले सारे रंग नैचुरल होते है और इसे बेटी से लेकर मा दादी या नानी कोई भी कभी भी मिक्स मैच के साथ पहन सकती है. इसके अलावा इंडियन ट्रेडिशन मे साड़ी और घाघरा चोली हमेशा सुंदर दिखती है और आज की लड़की भी मेरे किसी भी कलेक्शन को पहनकर एलीगेन्ट लग सकती है.

रिसाइकल से बने कपड़े

अनुभवी डिजाइनर जे जे वलाया ने फैशन वीक के दूसरे दिन शो के लिए आर|एलन के साथ साझेदारी की, जो स्टैबल फैशन का प्रतीक रहा. सारे कपड़े ग्रीन, गोल्ड जैसे पर्यावरण अनुकूल कपड़ों से बनाया गया.  100 प्रतिशत प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकल कर बने ये कपड़े फैशन इंडस्ट्री की एक बड़ी उपलब्धि है. उनका कहना है कि इन प्लास्टिक से बने कपड़े हल्के, आरामदायक और टिकाऊँ होते है, स्किन के लिए भी ये परफेक्ट है. उनके शो की शो स्टॉपर अभिनेत्री रसिका दुग्गल, कुब्रा सैत और सुशांत दिवगीकर रहे.

Anupamaa: अनुज और श्रुति अनुपमा को देंगे अपनी शादी का कार्ड, शो में आएगा बड़ा ट्विस्ट

Anupamaa: अनुपमा सीरियल  में इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में दिखाया जा रहा है कि यशदीप और बीजी अनुपमा का बर्थडे सेलिब्रेट करने की तैयारी कर रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ अनुज श्रुति के साथ शादी करने की तैयारी कर रहा है. शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा को श्रुति और अनुज अपनी शादी का इन्विटेशन देने जाएंगे. आइए विस्तार से जानते हैं शो के अपकमिंग एपिसोड के बारे में.

आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि आद्या को पता लग जाएगा कि उसके पापा ने रात में केक काटकर अनुपमा का बर्थडे मनाया है. ऐसे में वह अनुज को फिर से श्रुति के बारे में याद दिलाएगी.

आद्या यह भी कहेगी कि आज वह जानती है अनुपमा का बर्थडे है, तो आप उन्हें विश करने के लिए रेस्टोरेंट जाएंगे. ऐसे में अनुज कहेगा कि वह सिर्फ ऑफिस जा रहा है और कही नहीं. दूसरी तरफ श्रुति उन दोनों की बातें सुन लेगी.

 

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रेस्टोरेंट में पूरा स्टाफ अनुपमा का बर्थडे सेलिब्रेट करने की तैयारी में जुटेंगे. दूसरी तरफ यशदीप और बीजी अनु को सरप्राइज पार्टी देंगे. शो में आप यह भी देखेंगे कि गिफ्ट के तौर पर यशदीप, अनुपमा के नाम से चाय मसाला ब्रांड बनाकर देगा. जिसे देखकर अनुपमा बहुत खुश होगी.

अनुपमा बर्थ डे पार्टी एंजॉय करेगी, सभी मिलकर डांस करेंगे. तभी अनुज और श्रुति रेस्टोरेंट आ जाएंगे. श्रुति अनुपमा को बर्थडे विश करेगी और फिर अपनी शादी का कार्ड देगी और कहेगी कि मैं और अनुज शादी कर रहे हैं. यह सुनकर अनुपमा और अनुज के चेहरे का रंग उड़ जाएगा. शो में आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुज, अनुपमा और श्रुति के की कहानी में क्या नया मोड़ आएगा?

 

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आखिरी पेशी: भाग-2 आखिर क्यों मीनू हमेशा सुवीर पर शक करती रहती थी

अंधेरे भविष्य के काले बादल मेरी आंखों के आगे गरजतेघुमड़ते रहे और मेरी आंखें बरसती रहीं. करीब 2 घंटे बाद जब दरवाजा खटखटाने की आवाज आईर् मेरी तंद्रा टूटी.

उठ कर मैं ने दरवाजा खोल दिया. सामने सुवीर खड़े थे और उन के बाल बिखरे हुए थे. जी तो हुआ कि उन्हें बाहर ही रहने दूं और एक ?ाटके से दरवाजा बंद कर दूं पर तभी सुवीर कमरे में आ गए थे और उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया.

सुवीर पहले तो मेरे गुस्से भरे चेहरे और अस्तव्यस्त वेशभूषा को देखते रहे. फिर बोले, ‘‘माफ करना, मीनू, मुझसे आज गलती हो गई. असल में मैं उसे जानता था. उस का नाम सविता है. तुम से पहले मैं सविता को बहुत प्यार करता था, उस से शादी भी करना चाहता था. वह हमारे पड़ोस में ही रहती थी. अकसर हमारे घर आयाजाया करती थी.

‘‘किंतु मैं अपना प्यार उस पर जाहिर करता, शादी का पैगाम भिजवाता, उस से पहले ही उस के पिताजीका यहां से तबादला हो गया और वह कहीं चली गई —-बिना मिले, बिना कुछ कहे ही. मैं कितनी रातें तड़पा, कितनी रातें मैं ने जागजाग कर काटीं, यह मैं ही जानता हूं.

‘‘जी तो चाहता था कि आत्महत्या कर लूं पर मांबाप का खयाल कर के रह गया. मु?ो

हर वक्त लगता जैसे उस के बिना मेरी जिंदगी बेकार हो गई है. ‘‘सोचा था, कभी शादी नहीं करूंगा, जब वह मिलेगी तभी करूंगा पर मांबाप ने शादी कर लो… शादी कर लो की इतनी रट लगाई कि मैं चुप लगा गया.

‘‘और फिर मैं ने सोचा जब मैं लड़की को पसंद ही नहीं करूंगा तो कैसे शादी होगी पर तभी तुम पसंद आ गईं. तुम्हें देख कर मु?ो लगा कि तुम्हारी जैसी पढ़ीलिखी, कामकाजी और सुंदर लड़की के साथ मैं फिर से जीवन शुरू कर सकूंगा और वास्तव मैं तुम ने मेरे बिखरे जीवन को समेट लिया, मेरे घाव भर दिए.

‘‘शादी के बाद मैं तुम्हें बताना भी चाहता था पर यही सोच कर नहीं बताया कि इस से शायद तुम्हें दुख होगा, जीवन में व्यर्थ ही कड़वाहट आ जाएगी, सो टाल गया और आज अचानक उसे देख कर…’’

और सुवीर मानो इतना ही कह कर हलके हो गए थे. वाक्य अधूरा छोड़ कर पलंग पर बैठ कर यों जूते खोलने लगे जैसे मैं ने उन की बात पर विश्वास कर लिया हो.

सुवीर के एक ही सांस में बिना रुके इतना कुछ कह जाने की मु?ो आशा नहीं थी. उन की शक्ल देख कर उन की बात पर विश्वास कर लेना भी कोई बड़ी बात नहीं थी. पर मुझे अभिमानिनी के दिल के एक पक्ष ने धीमे से मुझसे से कहा था कि सब बकवास है. 2 घंटे में सुवीर कोई कहानी गढ़ लाए हैं और तुझे भोली समझ कर ठग रहे हैं. यदि इतनी ही बात थी तो ? सवाल पर ही मुझे हाथ पकड़ कर रोक क्यों नहीं लिया? वहीं सारी दास्तां क्यों नहीं सुना दी?

और पता नहीं कैसे मेरे मुंह से यह विष भरा वाक्य निकल गया, ‘‘ज्यादा सफाई देने की जरूरत नहीं. ऐसी कई कहानियां मैं ने सुन रखी हैं.’’

मेरे यह कहते ही सुवीर मुझे घूर कर फिर से जूते पहन कर कमरे से बाहर चले गए थे. उस पूरी रात न सुवीर मुझसे बोले और न मैं. बस अनकहे शब्द हम दोनों के बीच तैरते रहे. मुझे लगा था सुवीर अभी हाथ बढ़ा कर मुझे अपने पास बुला लेंगे और मुझे मना कर ही छोडे़ंगे पर जैसे ही सुवीर ने खर्राटे लेने शुरू किए तो मेरा गुस्सा और भी भड़क उठा. यह भी कोई बात हुई? फिर से बातों का क्रम जोड़ कर मुझे  मना तो सकते थे या अपनी एकतरफा प्रेमकथा की सचाई का कोई सुबूत तो दे सकते थे.

मगर नहीं सुवीर को अकेले सोते देखकर मेरा विद्रोही भावुक मन तरह-तरह की कुलांचें भरने लगा. पूरी रात आंखों में ही कट गई. सुबह कहीं जाकर आंख लगी तो बड़ी देर बाद नींद खुली. सुवीर फैक्टरी जा चुके थे. मन के कोने ने फिर कोंचा, देखा, तेरी जरा भी परवाह नहीं. रात को भी नहीं मनाया और अब भी मिल कर नहीं गए. मन तो वैसे ही खिन्न हो रहा था. देर से सोने और धूप चढ़े उठने की वजह से सिर भी भारी हो रहा था.

मैं ने चुपचाप कैंटीन से 1 कप चाय मंगाई और स्कूल पहुंचतेपहुंचते देर हो गई. एक बार मन में आया था कि जो हुआ, अब मुझे सुवीर को संभालना चाहिए पर दूसरे ही पल कमजोर मन का पक्ष बोलने लगा कि यदि यह बात सच थी तो सुवीर ने या सास ने बातोंबातों में मुझे पहले क्यों नहीं बताया? आखिर छिपा कर क्यों रखा? जब भेद खुल गया तब कहीं… और इस विचार के आते ही मन फिर अजीब सा हो गया.

शाम को मैं सुवीर का बेचैनी से इंतजार कर रही थी पर सुवीर रोज शाम के 5 बजे के स्थान पर रात के 9 बजे आए और बजाय देर से आने का कोई बहाना बनाने या कुछ कहने के वे सीधे अपने कमरे में चले गए और पलंग पर लेट गए. उन की लाललाल आंखों ने मुझे भयभीत कर दिया और मेरा शक ठीक निकला. वे पीकर आए थे. पहले कभी उन्होंने पी थी मुझे मालूम नहीं. हमारे दोस्त उन्हें हमेशा कहते पर वे कभी हाथ नहीं लगाते थे.

सुवीर के मांबाप भी परेशान थे और मैं तो थी ही. एक ही दिन में मेरी दुनिया इस तरह बदल जाएगी, इस का मुझे कभी खयाल भी न आया था. मैं कुछ कहने के लिए भूमिका बांध ही रही थी कि सुवीर के खर्राटों की आवाजें आने लगीं. मेरी रुलाई फूट कर वह निकली. दिनभर के उपवास और मौन ने मुझे तोड़ दिया. मैं भाग कर दरवाजे पर खड़ी सास के गले जा लगी और खूब रोई.

सास ने इतना ही कहा, ‘‘मेरे बेटे की खुशी में ही सारे घर की खुशी है. हां, एक बात का खयाल रखना, सुवीर बेहद जिद्दी है, उसे प्यार से ही जीता जा सकता है और किसी चीज से नहीं,’’ और यह कह कर उन्होंने जबरन मु?ो अपने कंधे से अलग कर दिया. मैं कंधे से अलग हो कर कुछ निश्चय करती हुई गुसलखाने में जा कर हाथमुंह धो आई.

सुवीर जूतों समेत ही सोए थे. उन के जूते, मोजे खोले, टाई की गांठ खोली और चादर डाल कर चुपचाप बिस्तर पर आ कर न जाने कब सो गई. सुबह उठी तो सुवीर लगभग तैयार ही थे. मैं यंत्रवत उन के बचे हुए काम करती रही और उन के चलते समय बोली, ‘‘शाम को वक्त पर घर आ जाना.’’ सुन कर सुवीर मु?ो कुछ देर देखते रहे, फिर चले गए. उन के जाने के बाद मुझे लगा कि मेरे कहने का ढंग प्रार्थना वाला न हो कर आदेश वाला था. और सुवीर वास्तव में ही शाम को वक्त पर नहीं लौटे. इंतजार करतेकरते मु?ो लगने लगा कि  ऊंचीऊंची दीवारों के बीच मैं कैद हूं और ये दीवारें बेहद संकरी होहो कर मुझे दबा देंगी.

सुवीर पिछले दिन से भी ज्यादा देर से लौटे, पीकर रात के 10 बजे और पिछले दिन की ही तरह बिस्तर पर जूतों समेत सो गए. मन किस कदर बिखर गया था तब. मैं माफी मांगने के कितने-कितने शब्दजाल दिनभर बुनती रहती और सुवीर थे कि बात भी करना पसंद नहीं कर रहे थे. मैं क्लास में भी ढंग से पढ़ा नहीं सकी और बेमतलब में 1-2 स्टूडैंट्स को डांट दिया.

मैं सोचा करती, यदि उस लड़की को उस के चले जाने के कारण वे पहले नहीं पा सके तो अब मैं क्या कर सकती हूं? ऊपर से शराब पी कर और नजारे पेश कर रहे हैं. इस का साफ मतलब है कि अभी भी उसी को चाहते हैं और यदि मैं चली जाऊं तो उसी को ला कर अपनी भूल का प्रायश्चित्त करेंगे. अचानक लगने लगा कि हमारा संबंध बहुत उथला है और इन चुकते जाते संबंधों को जोड़ने के लिए स्वयं को टुकड़ों में बांटने की आवश्यकता नहीं. सुवीर के रवैए ने मुझे निरपेक्ष बने रहने के लिए मजबूर कर दिया. मन के उसी कोने ने फिर कहा,  यदि उस लड़की को ये भुलाना ही चाहते तो मेरे साथ ऐसा व्यवहार कदापि न करते और फिर क्या पता फैक्टरी के बाद का तमाम समय कहां बिताते हैं?

मन की रिक्तता ने मेरी अजीब दशा कर दी थी. दिनभर मेरी जबान पर ताला जड़ा रहता और मन ही मन मेरे और सुवीर के बीच की खाई चौड़ी होती रहती.

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