Family Story in Hindi: परिवार हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है, जो हर सुख-दुख में आपका सपोर्ट सिस्टम बनती है. साथ ही बिना किसी के स्वार्थ के आपका परिवार साथ खड़ा रहता है. इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Grihshobha की Best Family Story in Hindi 2024.

Top 10 Family Stories in Hindi : टॉप 10 फैमिली कहानियां हिंदी में

1. तबाही: आखिर क्या हुआ था उस तूफानी रात को

सब कुछ पहले की तरह सामान्य होने लगा था. 1 सप्ताह से जिन दफ्तरों में काम बंद था, वे खुल गए थे. सड़कों पर आवाजाही पहले की तरह सामान्य होने लगी थी. तेज रफ्तार दौड़ने वाली गाडि़यां टूटीफूटी सड़कों पर रेंगती सी नजर आ रही थीं. सड़क किनारे हाकर फिर से अपनी रोजीरोटी कमाने के लिए दुकानें सजाने लगे थे. रोज कमा कर खाने वाले मजदूर व घरों में काम करने वाली महरियां फिर से रास्तों में नजर आने लगी थीं.

पिछले दिनों चेन्नई में चक्रवाती तूफान ने जो तबाही मचाई उस का मंजर सड़कों व कच्ची बस्तियों में अभी नजर आ रहा था. अभी भी कई जगहों में पानी भरा था. एअरपोर्ट बंद कर दिया गया था. पिछले दिनों चेन्नई में पानी कमरकमर तक सड़कों पर बह रहा था. सारी फोन लाइनें ठप्प पड़ी थीं, मोबाइल में नैटवर्क नहीं था. गाडि़यों के इंजनों में पानी चला गया था, जिस के चलते कार मालिकों को अपनी गाडि़यां वहीं छोड़ जाना पड़ा था. कई लोग शाम को दफ्तरों से रवाना हुए, तो अगली सुबह तक घर पहुंचे थे और कई तो पानी में ऐसे फंसे कि अगली सुबह तक भी न पहुंचे. कई कालेजों और यूनिवर्सिटीज में छात्रछात्राएं फंसे पड़े थे, जिन्हें नावों द्वारा सेना ने निकाला.  पूरे शहर में बिजली नहीं थी.

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2. डिवोर्सी: मुक्ति ने शादी के महीने भर बाद ही लिया तलाक

वह डिवोर्सी है. यह बात सारे स्टाफ को पता थी. मुझे तो इंटरव्यू के समय ही पता चल गया था. एक बड़े प्राइवेट कालेज में हमारा साक्षात्कार एकसाथ था. मेरे पास पुस्तकालय विज्ञान में डिगरी थी. उस के पास मास्टर डिगरी. कालेज की साक्षात्कार कमेटी में प्राचार्य महोदया जो कालेज की मालकिन, अध्यक्ष सभी कुछ वही एकमात्र थीं. हमें बताया गया था कि कमेटी इंटरव्यू लेगी, मगर जब कमरे के अंदर पहुंचे तो वही थीं यानी पूरी कमेटी स्नेहा ही थीं. उन्होंने हमारे भरे हुए फार्म और डिगरियां देखीं. फिर मुझ से कहा, ‘‘आप शादीशुदा हैं.’’ ‘‘जी.’’

‘‘बी. लिब. हैं?’’ ‘‘जी,’’ मैं ने कहा.

फिर उन्होंने मेरे पास खड़ी उस अति सुंदर व गोरी लड़की से पूछा, ‘‘आप की मास्टर डिगरी है? एम.लिब. हैं आप मुक्ति?’’ ‘‘जी,’’ उस ने कहा. लेकिन उस के जी कहने में मेरे जैसी दीनता नहीं थी.

‘‘आप डिवोर्सी हैं?’’ ‘‘जी,’’ उस ने बेझिझक कहा.

‘‘पूछ सकती हूं क्यों?’’ ‘‘व्यक्तिगत मैटर,’’ उस ने जवाब देना उचित नहीं समझा.

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3. चिराग : करुणा को क्यों बहू नहीं मान पाए अम्मा और बापूजी

कानपुर रेलवे स्टेशन पर परिवार के सभी लोग मुझ को विदा करने आए थे, मां, पिताजी और तीनों भाई, भाभियां. सब की आंखोें में आंसू थे. पिताजी और मां हमेशा की तरह बेहद उदास थे कि उन की पहली संतान और अकेली पुत्री पता नहीं कब उन से फिर मिलेगी. मुझे इस बार भारत में अकेले ही आना पड़ा. बच्चों की छुट्टियां नहीं थीं. वे तीनों अब कालेज जाने लगे थे. जब स्कूल जाते थे तो उन को बहलाफुसला कर भारत ले आती थी. लेकिन अब वे अपनी मरजी के मालिक थे. हां, इन का आने का काफी मन था परंतु तीनों बच्चों के ऊपर घर छोड़ कर भी तो नहीं आया जा सकता था. इस बार पूरे 3 महीने भारत में रही. 2 महीने कानपुर में मायके में बिताए और 1 महीना ससुराल में अम्मा व बाबूजी के साथ.

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4.  अभियुक्त: सुमि ने क्या देखा था

घंटी बजने के साथ ही, ‘‘कौन है?’’ भीतर से कर्कश आवाज आई.

‘‘सुमि आई है,’’ दरवाजा खोलने के बाद भैया ने वहीं से जवाब दिया.

‘‘फिर से?’’ भाभी ने पूछा तो सुमि शरम से गड़ गई.

विवेक मन ही मन झुंझला उठा. पत्नी के विरोध भाव को वह बखूबी समझता है. सुमि की दूसरी बार वापसी को वह एक प्रश्नचिह्न मानता है जबकि दीपा इसे अपनी सुखी गृहस्थी पर मंडराता खतरा मानती है. विवेक के स्नेह को वह हिसाब के तराजू पर तौलती है.

चाय पीते समय भी तीनों के बीच मौन पसरा हुआ था.

विवेक की चुप्पी से दीपा भी शांत हो गई लेकिन रात को फिर विवाद छिड़ गया.

‘‘शैलेंद्रजी बातचीत में तो बड़े भले लगते हैं.’’

‘‘ऊपर से इनसान का क्या पता चलता है. नजदीक रहने पर ही उस की असलियत पता चलती है.’’

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5.  सब छत एक समान: अंकुर के जन्मदिन पर क्या हुआ शीला के साथ?

शीला को जरा भी फुरसत नहीं थी. अगले दिन उस के लाड़ले अंकुर का जन्मदिन था. शीला ने पहले से ही निर्णय ले लिया था कि वह अंकुर के इस जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगी और एक शानदार पार्टी देगी.

बारबार पिताजी ने सुरेश को समझाया कि वह बहू को समझाए कि इस महंगाई के दौर में इस तरह की अनावश्यक फुजूलखर्ची उचित नहीं. उन की राय में अपने कुछ निकटतम मित्रों और पड़ोसियों को जलपान करवा देना ही काफी था.

सुरेश ने जब शीला को समझाया तो वह अपने निर्णय से नहीं हटी, उलटे बिगड़ गई थी.

शीला बारबार बालों की लटें पीछे हटाती रसोई की सफाई में लगी थी. उस ने महरी को भी अपनी सहायता के लिए रोक रखा था. दिन में कुछ मसाले भी घर पर कूटने थे, दूसरे भी कई काम थे. इसलिए वह सुबह से ही काम निबटाने में लग गई थी.

6. मिटते फासले: शालिनी की जिंदगी में क्यों मची थी हलचल?

मोबाइल फोन ने तो सुरेखा की दुनिया ही बदल दी है. बेटी से बात भी हो जाती है और अमेरिका दर्शन भी घर बैठेबिठाए हो जाता है. अमेरिका में क्या होता है, सुरेखा को पूरी खबर रहती है. मोबाइल के कारण आसपड़ोस में धाक भी जम गई कि अमेरिका की ताजा से ताजा जानकारी सुरेखा के पास होती है.

सर्दी का दिन था. कुहरा छाया हुआ था. खिड़की से बाहर देख कर ही शरीर में सर्दी की एक झुरझुरी सी तैर जाती थी. अभी थोड़ी देर पहले ही शालिनी से बात हुई थी.

शालिनी 2 महीने बाद छुट्टियों में भारत आ रही है. कुरसी खींच कर आंखें मूंद प्रसन्न मुद्रा में सुरेखा शालिनी के बारे में सोच रही थी. कितनी चहक रही थी भारत में आने के नाम से. अपनों से मिलने के लिए, मोबाइल पर मिलना एक अलग बात है. साक्षात अपनों से मिलने की बात ही कुछ और होती है.

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7. नई रोशनी की एक किरण

बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.

‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’

सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’

8. फूलप्रूफ फार्मूला: क्या हो पाई अपूर्वा औऱ रजत की शादी

औफिस से लौटने में कुछ देर हो गई थी लेकिन बच्चों ने मुंह फुलाने के बजाय चहकते हुए उस का स्वागत किया.

‘‘मम्मा, दिल्ली से रजत अंकल आए हैं, हमें उन के साथ खेलने में बड़ा मजा आ रहा है. आप भी हमारे कमरे में आ जाओ,’’ कह कर प्रणव और प्रभव अपने कमरे में भाग गए.

‘‘आ गई बेटी तू, रजत बड़ी देर से तेरे इंतजार में इन दोनों की शरारतें झेल रहा है,’’ मां ने बगैर रसोई से बाहर आए कहा.

हालांकि दिल्ली रिश्तेदारों से अटी पड़ी थी लेकिन अभी तक किसी रजत से तो कोई रिश्ता जुड़ा नहीं था. पापा और बच्चों के साथ एक सुदर्शन युवक कैरम खेल रहा था. अपूर्वा को याद नहीं आया कि उस ने उसे पहले कभी देखा है. अपूर्वा को देखते ही युवक शालीनता से खड़ा हो गया लेकिन इस से पहले कि वह कुछ बोलता, प्रभवप्रणव चिल्लाए, ‘‘आप गेम बीच में छोड़ कर नहीं जा सकते, अंकल. बैठ जाइए.’’

‘‘इन की बात मान लेने में ही इज्जत है बरखुरदार. जब तक यह खेल खत्म होता है, तू भी फे्रश हो ले बेटी. रजत को हम ने रात के खाने तक रुकने को मना लिया है,’’ विद्याभूषण चहके.

‘‘वैसे मैं अपूर्वाजी का सिर खाए बगैर जाने वाला भी नहीं था,’’ रजत ने हंसते हुए कहा.

‘किस खुशी में भई?’ अपूर्वा पूछना चाह कर भी न पूछ सकी और मुसकरा कर अपने कमरे में आ गई.

जब वह फे्रश हो कर बाहर आई तो बाई चाय ले कर आ गई. चाय की प्याली ले कर वह ड्राइंगरूम की बालकनी में आ गई.

9. प्यार की चाह: क्या रोहन को मिला मां का प्यार

झल्लाई हुई निशा ने जब गाड़ी गैरेज में खड़ी की तो रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी. ‘रवि का यह खेल पुराना है,’ वह काफी देर तक बड़बड़ाती रही, ‘जब भी घर में किसी सोशल गैदरिंग की बात होगी, वह बिजनैस ट्रिप पर भाग खड़ा होगा, अब भुगतो अकेले.’

‘तुम चिंता न करना, मेरा सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा.’

‘हूं,’ सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा. कार्ड बांटने और इनवाइट करने तो पर्सनली ही जाना पड़ता है न.’

‘न जाने पार्टी के नाम से उसे इतनी चिढ़ क्यों है? महेश ने विदेश जाने पर पार्टी दी थी तो अरविंद ने विदेश से लौटने की. राघव की बेटी रिंकी को फिल्मों में हीरोइन का चांस मिला तो पार्टी, भाटिया ने फिल्म का मुहूर्त किया तो पार्टी. अपनी सुधा तो कुत्तेबिल्लियों के जन्मदिन पर भी पार्टी देती है. इधर एकलौते बेटे का जन्मदिन मनाना भी खलता है. फिर इन्हीं पार्टियों की बदौलत सोशल स्टेटस बनता है. सोशल कौंटैक्ट्स बनते है,’ पर रवि के असहयोग से अपने किटी सर्किल में निशा पार्टीचोर के नाम से ही जानी जाती थी. इसी कारण वह तमतमा उठी.

‘‘मेमसाब, खाना गरम करूं?’’  मरिअम्मा ने पूछा.

10. जीवन लीला: क्या हुआ था अनिता के साथ

जीवन के आखिरी पलों में न जाने क्यों आज मेरा मन खुद से बातें करने को हो गया. सोचा अपनी  जिंदगी की कथा या व्यथा मेज पर पड़े कोरे कागजों पर अक्षरों के रूप में अंकित कर दूं.

यह मैं हूं. मेरा नाम अनिता है. कहां पैदा हुई, यह तो पता नहीं, पर इतना जरूर याद है कि मेरे पिता कनाडा में भारतीय दूतावास में एक अच्छे पद पर तैनात थे. उन का औफिस राजधानी ओटावा में था. मां भी उन्हीं के साथ रहती थीं. मैं और मेरा भाई मांट्रियल में मौसी के यहां रहते थे. मेरी पढ़ाई की शुरुआत वहीं से हुई. मेरा भाई रोहन मुझ से 5 साल बड़ा था.

स्कूल घर के पास ही था, मुश्किल से 3-4 मिनट का रास्ता था. तमाम बच्चे पैदल ही स्कूल आतेजाते थे. लेकिन हमारे घर और स्कूल के बीच एक बड़ी सड़क थी, जिस पर तेज रफ्तार से कारें आतीजाती थीं. इसलिए वहां के कानून के हिसाब से स्कूल बस हमें लेने और छोड़ने आती थी.

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