YRKKH के लीड एक्टर्स अरमान और रूही को मेकर्स ने दिखाया बाहर का रास्ता, जानें वजह

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ दर्शकों के फेवरेट शो में से एक है. अब इस शो से जुड़ी बड़ी खबर सामने आ रही है. बताया जा रहा है कि शो के मेकर्स ने एक झटके में शहजादा धामी और प्रतीक्षा होनमुखे की छुट्टी कर दी है.

इस शो में ये दोनों कलाकार अरमान और रूही का किरदार निभा रहे थे. इस खबर ने डेली सोप की टीम और फैंस को हैरान कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन दोनों एक्टर्स के नखरों से परेशान होकर मेकर्स ने इन्हें शो से हटाने का बड़ा फैसला लिया है. तो दूसरी तरफ ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम श्रुति उल्तफ ने शहजादा धामी और प्रतिक्षा होनमुखे की हरकतों का खुलासा किया है.

 

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एक इंटरव्यू के अनुसार, उन्होंने इस बारे में खुलकर बात की है.  श्रुति ने शो से शहजादा धामी और प्रतीक्षा होनमुखे को हटाने के फैसले पर कहा कि मेकर्स का ये फैसला बिल्कुल सही है. राजन शाही शांत स्वभाव के इंसान है, उन्होंने कई बार उन दोनों को मौका दिया है, लेकिन चीजों में कोई सुधार नहीं आया. जब पानी सिंर के ऊपर चला जाता है, तो फैसला लेना ही पड़ता है. यह उन सभी एक्टर्स के लिए एक सबक होगा जो अपने काम को नजरअंदाज करते हैं और हल्के में लेते हैं.

 

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श्रुति ने सेट से जुड़ी कई बातें शेयर की. उन्होंने बताया कि प्रतीक्षा होनमुखे-शहजादा धामी के बिहेव के बारे में भी बताया. सेट पर लंच-ब्रेक के दौरान  शहजादा और प्रतीक्षा को छोड़कर लगभग सभी कलाकार एक साथ खाना खाते थे. टीम के लिए  प्रतीक्षा होनमुखे-शहजादा धामी’ का व्यवहार हमेशा से ही एक परेशानी बना हुआ था.

हैप्पी एंडिंग: भाग-1

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

आज10 वर्ष के बाद फिर उसी गली में खड़ी थी. इन्हीं संकरी पगडंडियों के किनारे बनी इस बड़ी हवेली में गुजरा मेरा बचपन, इस हवेली की छत पर पनपा मेरा पहला प्यार… जिस का एहसास मेरे मन को भिगो रहा था. एक बार फिर खुली मेरी यादों की परतें, जिन की बंद तहों पर सिलवटें पड़ी हुई थीं, गलियों से निकलते हुए मेरी नजर चौराहे पर बने गांधी पार्क पर पड़ी, छोटेछोटे बच्चों की खिलखिलाहट से पार्क गुंजायमान हुआ था, पार्क के बाहर अनगिनत फूड स्टौल लगे हुए थे जिन पर महिलाएं खानेपीने के साथ गौसिप में खोई थीं… सुखद एहसास हुआ… चलो, आज की घरेलू औरतें चाहरदीवारी से कुछ समय अपने लिए निकाल रही हैं, मैं ने तो मां, चाचियों को दादी के बनाए नियम के अनुसार ही जीते देखा है, पूरा दिन घर के काम और रसोई से थोड़ी फुर्सत मिलती तो दादी बडि़यां, चिप्स और पापड़ बनाने में लगा देतीं.

चाचियां भुनभुनाती हुई मां के पीछे लगी रहतीं, किसी के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी

कि कुछ समय आराम करने के लिए मांग सके. दादी के तानाशाही रवैये से सभी त्रस्त थे लेकिन ज्यादातर उन की शिकार मैं और मां बनते थे.

पूरे खानदान में मेरे रूपसौंदर्य की चर्चा होती तो वहीं दादी को मैं फूटी आंख नहीं सुहाती, मेरे स्कूल आनेजाने के लिए भाई को साथ लगा

दिया जो कालेज जाने तक साए की तरह साथ लगा रहता.

10 बेटों के बीच मैं एक एकलौती बेटी थी. सभी का भरपूर प्यार मिला लेकिन साथ कई बंदिशें भी, पिताजी अपने 5 भाइयों के साथ बिजनैस संभालने में व्यस्त रहते और भाइयों को मेरी निगरानी में लगा रखा था जो अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते थे.

परीक्षा खत्म होने के साथसाथ गर्मियोें की छुट्टियों में कुछ दिन आजादी के मिलते थे जब मां अपने मायके और मैं और भाई मामा के घर खुद के बनाए नियम में जीते थे. मैं बहुत खुश थी, मामा के घर जाना है लेकिन अगली सुबह ही दादी ने घर में एक नया फरमान जारी किया… ‘‘रीवा कहीं नहीं जाएगी… लड़की जवान हो रही है. ऐसे में तो अपने सगों पर भरोसा नहीं तो मैं कैसे जाने दूं उसे तेरी ससुराल, कुछ ऊंचनीच हो गई तो सारी उम्र सिर फोड़ते रहोगे. तुम्हारी घरवाली जाना चाहे तो जा सकती है बस रीवा नहीं जाएंगी. पिताजी हमेशा की तरह सिर झुकाए हां में हां मिलाए जा रहे थे.’’

मेरी आंखों से गंगाजमुना की धार बह चली थी. पता नहीं उन दिनों इतना रोना क्यों आता था अब तो बड़ी से बड़ी बात हो जाए आंखें सूखी रहती हैं.

खूब रोनाधोना मचाया लेकिन कुछ काम नहीं आया. मुझ पर लगी इस बंदिश ने मां का मायका भी छुड़ा दिया. मां की तकलीफ देख कर दिल से आह निकली ‘‘काश… मैं लड़की नहीं होती’’ उस दिन पहली बार लड़की होने पर दु:ख हुआ था.

छत की मुंडेर पर बैठी चाची के रेडियो से गाने सुन रही थी, रफी के हिट्स चल रहे थे… दर्द भरे गानों में खुद को फिट कर दुखी होने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. तभी पीछे की छत से आवाज आई ‘‘गाना अच्छा है.’’

पीछे मुड़ कर देखा एक हैंडसम लड़का मेरी तरफ देख कर मुसकरा रहा था… ‘‘पर ये हैं कौन?’’ खुद से सवाल किया.

‘‘हाय… मैं सुमित, यह मेरी बूआ का घर है… आप का नाम?’’

अच्छा… तो ये बीना आंटी का भतीजा है.

‘‘मेरा नाम जानने की कोशिश न ही करो यही तुम्हारे लिए बेहतर होगा’’ कहते हुए मैं

अपने कमरे में चली आई. मैं वहां से चली तो आई पर न जाने कैसा एहसास साथ ले आई

थी. 17 की हो गई थी और आज तक कभी

किसी भी लड़के ने मुझ से बात करना तो दूर… नजर उठा कर देखने की भी हिम्मत नहीं की थी और इस का पूरा श्रेय मेरे आदरणीय भाइयों को जाता है.

और उस दिन पहली बार किसी लड़के ने मुझ से मुसकरा कर मेरा नाम पूछा था… जैसे मेरे अंदर प्रेम की सुप्तावस्था को थपकी दे कर उठा रहा हो, मैं उस के उठने के एहसास से ही भयभीत हो गई थी, क्योंकि मैं जानती थी कि यह एहसास एक बार जग गया तो मेरे साथ मेरी मां भी कभी न शांत होने वाले तूफान में फंस जाएंगी, जिस से निकलने की कोशिश मात्र से ही मेरे अस्तित्व की धज्जियां उड़ जाएंगी.

अगले दिन दिमाग के लाख मना करने के बाद भी दिल ने अपनी बात मुझ से मनवा ली और मैं फिर छत की मुंडेर के उस कोने में खड़ी हो गई. वह सामने ही खड़ा था लैमन यलो कलर की शर्ट के साथ ब्लू जींस में. बहुत हैंडसम दिख रहा था, बीना आंटी भी साथ में थी. उन्हें देख कर मैं ने अपने कदम पीछे करना चाहे तब तक बीना आंटी ने मुझे देख लिया था.

‘‘रीवा, इस बार अपने मामा के घर नहीं गई.’’

‘‘नहीं, आंटी… मां की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए दादी ने मना कर दिया.’’

‘‘ओह, काफी दिनों से सुरेखा भाभी से मिली नहीं, समय मिलते ही आऊंगी उन से मिलने.’’

‘‘जी… आंटी.’’

‘‘अरे हां… इस से मिलो, मेरा भतीजा सुमित… कल ही मद्रास से आया, वहां मैडिकल कालेज में पढ़ता है. 10 दिन की छुट्टियों में इस को बूआ की याद आ गई,’’ हंसते हुए बीना आंटी ने कहा.

‘‘बूआ, अच्छा हुआ मैं इस बार यहां आ गया यह तो पता चला आप के शहर में कितनी खूबसूरती छिपी है,’’ सुमित की आंखें मेरे चेहरे पर टिकी थीं.

मैं गुलाबी हो रही थी… शर्म से, प्रेम से, आनंद से.

मैं ही जानती हूं उस पल मैं वहां कैसे खड़ी थी. आंटी के जाते ही आंधी की तरह भागती हुई अपने कमरे में पहुंच गई, सुमित की आंखें जाने क्याक्या बयां कर गई थीं, उस की आंखों का स्थायित्व मुझे एक अदृश्य डोर में बांध रहा था… मैं बंधती जा रही थी… दिल के साथ अब दिमाग भी विद्रोही हो गया था… क्या इसे ही पहला प्यार कहते हैं, यह कैसा अनुभव है, दिल का चैन खत्म हो चुका था, अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी, भूखप्यास सब खत्म… घर वालों को लगता मैं मामाजी के घर न जाने के कारण ऐसे गुमसुम सी, बेचैन हो कर छत के चक्कर लगाती हूं और उन का यह सोचना मेरे लिए अच्छा था, मुझ पर नजर थोड़ी कम रखी जाती.

आगे पढ़ें-  उस दिन भाई की आवाज सुन कर मैं…

सही डोज: भाग 3- आखिर क्यों बनी सविता के दिल में दीवार

उन दिनों घर का बढ़ता हुआ तनाव दिनबदिन और बढ़ता जा रहा था. सविता हरेक की बात सुनने पर भी नहीं सुनती थी. दिन में कभी भी कमरे में लेट कर उपन्यास पढ़ती रहती थी. सब के जाने के बाद सवेरे ही वह भी घर से निकल पड़ती थी. एक महिला क्लब की सदस्य बन गई थी. दोपहर देर तक ताश खेलती थी. किट्टी पार्टियों में भी जाती थी. कोई कुछ नहीं कह सकता था. नौकरी छुड़वाई थी, सो फिर से कर सकती थी. अलग रहने को बोल दिया था. उस के अलग रहने से घर पर क्या असर पड़ेगा, इतना तो घर वाले सम?ा सकते थे. जब भी सविता मां के घर जाती थी तो यही कह कर कि शाम तक लौट आएगी, पर 3-4 दिनों तक नहीं आती थी. अब उस की इस घर में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई.

एक दिन जब वह घर में थी. रश्मि कुछ ढूंढ़ रही थी, ‘‘भाभी, तुम ने मेरी कापी देखी है कहीं. उस में मेरे कुछ जरूरी नोट्स है. इधर घर में धूल इतनी है कि खोजने में सारे कपड़े गंदे हो गए हैं.’’

सविता बरस पड़ी, ‘‘रश्मि, तुम अपनी चीजों को तो संभाल कर रख नहीं सकतीं, ऊपर से कहती हो सारे घर में धूल की परतें जमी रहती हैं. इतवार को तो तुम घर की सफाई कर सकती हो. कालेज की पढ़ाई मैं ने भी की है पर घर के कामों में अपनी मां का हाथ जरूर बंटाती थी. एक तुम हो कि  पढ़ाई के नाम पर उपन्यास पढ़ती रहती हो. बहुत हो चुका, अब उठो और घर की सफाई करो. महरी भी आती होगी. बरतन सिंक में रख कर नल खोल दो. मैं अपनी एक सहेली के घर जा रही हूं,’’ कह कर सविता चली गई.

क्षुब्ध रश्मि ने पहले अम्मां की ओर देखा. फिर बारीबारी से बाबूजी और भाई की तरफ देखा. कोई कुछ नहीं बोला. नवीन उठ कर अपने कमरे में चला गया. सविता 2 घंटे बाद लौटी. कमरे में जा कर साड़ी बदल रही थी, तभी नवीन आ गया, ‘‘सविता, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे मालूम है कि तुम क्या कहना चाहते हो, उसी का तो इंतजाम करने गई थी.’’

‘‘क्या मतलब? कैसा इंतजाम?’’

‘‘सब समझाजाओगे,’’ कहकर उस ने एक छोटे से सूटकेस में 2-4 कपड़े डाल लिए, फिर बाहर की ओर चल पड़ी.

‘‘बहू, कहां जा रही हो?’’ सास ने ही पूछा.

‘‘भाभी…’’ रश्मि इतना ही कह सकी. बाबूजी ने अखबार मेज पर रख कर अपना चश्मा उतार लिया. इसी बीच नवीन भी आ खड़ा हो गया.

‘‘मैं और नवीन जा रहे हैं. मुझे नौकरी मिल गई है. हैंडलूम हाउस में. नवीन भी मान गया है. मैं ने तो भरसक कोशिश की है इस घर में कुछ व्यवस्था ला सकूं पर मैं अकेली कुछ नहीं कर सकी, घर में काम बहुत होता है, अगर सारा काम एक के ऊपर डाल कर सब लोग निश्चिंत हो जाएं तो कैसे हो सकता है.’’

जातेजाते दरवाजे के पास रुक कर उस ने कहा, ‘‘थोड़ाबहुत सामान है, 2-4 मामूली सी साडि़यां हैं, फिर कभी आ कर दे जाऊंगी.’’

‘‘बहू, हम ने तो तुम से कहा था कि…’’

बात काट कर सविता ने कहा, ‘‘3 साल से ज्यादा हो गया कहे हुए. खैर, अम्मां कोई बात नहीं, मेरा सामान शुभकार्य में लग गया,’’ कह कर वह घर के बाहर निकल गई. नवीन भी तेजी से उस के साथसाथ चलने लगा. पीछे से बाबूजी बोले, ‘‘मुझे पहले ही मालूम था कि एक दिन यह सब होगा.’’

‘‘जाते-जाते, बहुत सुना गई,’’ प्रमिला ने चेहरे में पसीना पोंछते हुए कहा.

‘‘सविता ने ठीक ही सुनाया है. मैं ने तो

तुम्हें उसी समय कहा था कि अपनी हैसियत के अनुसार सामान दो पर तुम ने बहू की सब बढि़या साडि़यां, चांदी के इतने सुंदर बरतन जो उस ने शौक से खरीदे होंगे और स्टील के सारे बरतन बेटी की शादी में दे डाले. ऊपर से उस के हाथों के सोने के दोनों कड़े भी उतरवाकर बेटी को दे दिए.

सविता भी तो हमारी बेटी है. एक बेटी से सामान छीन कर दूसरी बेटी को देना कहां की बुद्धिमानी थी?’’ उधर नवीन ने सविता के साथसाथ चलते हुए कहा, ‘‘मेरी एक बात तो सुन लो, तुम वहां नहीं जाओगी जहां की तुम ने योजना बनाई थी. मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं.’’

‘‘अब क्या दिखाओगे? अच्छी बात है, जो दिखाना चाहता हो वह भी देख लेती हूं.’’ नवीन ने एक टैक्सी रोकी और दोनों बैठ गए. नवीन ने टैक्सी चालक को पता बताया. टैक्सी शहर की भीड़भाड़ से बाहर एक खूबसूरत सी नई कालोनी में जा कर रुक गई.

‘‘उतरो,’’ नवीन ने हाथ से सहारा दे कर सविता को बाहर उतारा, फिर वे एक छोटे से खूबसरत बंगले के बाहर जा कर खड़े हो गए. बाहर ताला लगा था. नवीन ने जेब से चाबी निकाल कर सविता के हाथों पर रख दी, ‘‘खोलो, यह छोटी सी कौटेज तुम्हारी ही है.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’ आश्चर्यचकित हो सविता ने ताला खोला.

‘‘अब भीतर चल कर अपना घर तो देख लो.’’ सपनों में खोई सविता ने नवीन का हाथ पकड़ेपकड़े घर के भीतर प्रवेश किया.

‘‘बहुत खूबसूरत है, क्या सचमुच यह हमारा है? क्या आज से हम यहीं रहेंगे?’’

तन से सविता अपने घर की साजसंवार कर रह रही पर उस के मन में एक पश्चात्ताप था, दुख था. उस ने नवीन को मांबाप और बहन से अलग कर दिया. कुछ दिनों बाद वे दोनों घर गए. घर अब काफी ठीक था. रश्मि का सामान फैला नहीं था. सास ही नहीं ससुर भी घर को साफ रखने में हाथ बंटाते थे. कामवाली बाई लौट आई थी. सविता को देख कर चहक कर बोली, ‘‘मेम साहब, अब तो सब ठीक हो गए हैं. घर का काम करने में कुछ भी देर नहीं लगती. सही डोज दे गई हैं. डोज दे गई हैं.

 

Holi 2024: इस होली आपका आउटफिट हो ऐसा

गुझिया  से लेकर गुलाल तक, होली एक ऐसा त्यौहार है जिसका हम हर साल इंतजार करते हैं.पर जब बात  यह तय करने की आती है कि होली पर क्या पहनना है तब हम हमेशा कंफ्यूज हो जाते हैं. क्यूंकि हम न केवल आरामदायक कपडे पहनना चाहते हैं, बल्कि हम  स्टाइलिश भी लगना  चाहते हैं. लेकिन आज मै आपके इस कन्फ्यूजन को आसान करने जा रही हूँ. जी हां आज हम आपको बताएंगे कि इस बार आप होली पर क्या पहन सकते हैं.

For womens or girl ;-

white चिकन  कुर्ता और जींस- होली पर हर कोई white कलर के आउटफिट में ही होली खेलना चाहता है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि बरसों से इस रंग के फैशन ट्रेंड में बने रहने के पीछे कारण  क्या है? तो चलिए इस होली इस फैशन ट्रेंड की वजह जानते है .

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि होली का त्योहार रंगों का त्योहार होता है और इस दिन सफेद रंग यानी वाइट कलर इसलिए पहना जाता है क्योंकि इस पर बाकी सारे रंग साफ-साफ नजर आएं.

अपनी होली को स्टाइल के साथ मनाने के लिए आप वाइट चिकन कुर्ते के साथ ब्लू जींस कैरी कर सकती हैं. यह हमेशा ही खूबसूरत लगते है और ये कॉम्बिनेशन हर लड़की की अलमारी में बहुत ही आसानी से मिल जाता है. आप इस कॉन्बिनेशन को कॉलेज और  ऑफिस में भी पहनकर होली खेल सकती  हैं.

अगर आपके पास white कलर का चिकन कुर्ता नहीं है तो चिंता न करें आप कोई भी लाइट कलर का कुर्ता भी try कर सकती है.

ब्राइट कलर की टी-शर्ट के साथ हॉट पैंट- अगर आप इस होली तामझाम से दूर रहना चाहते हैं और कुछ कंफर्टेबल पहनने का सोच रहे हैं तो आप एक सिंपल  ब्राइट कलर की टी-शर्ट जैसे ब्राइट येलो ,ऑरेंज या रेड कलर के साथ हॉट पैंट ट्राय कर सकते हैं .यह  इस होली के लिए एक  शानदार विकल्प है. चूँकि यह ऑउटफिट  ढीला  और आरामदायक होता  है, इसलिए यदि आप रंग में सराबोर होते हैं  तो ये  आपके पैरों से नहीं चिपकेगा .

ट्रेडिशनल ड्रेस

जो लोग इस होली पर कुछ ट्रेडिशनल सा ट्राई करना चाहते हैं वो  साड़ी ट्राई कर सकते हैं. आप यह अपनी सोसाइटी या फंक्शन में कैरी कर सकते हैं. जॉर्जेट शिफॉन की सिल्वर बॉर्डर वाली साड़ी पहनना आपके लिए एक अच्छा ऑप्शन रहेगा. इसके अलावा आप कुंदन वर्क वाली वाइट सिल्क साड़ी भी पहन सकते हैं. इसके साथ आप सिल्वर चूड़ियों के साथ हल्की ज्वेलरी भी ट्राई कर सकते हैं. यंग गर्ल्स के लिए यह काफी अच्छा ऑप्शन है .

आप चाहे तो वाइट कलर का short  कुर्ता भी पहन सकती  हैं .आप इस short  कुर्ता के साथ का कलर फुल पटियाला पैजामा भी मैच कर सकती  हैं और अपने लुक को आप शिफॉन के दुपट्टे से कंप्लीट कर सकती हैं .

आप चाहें तो इस होली आप वाइब्रेंट प्रिंट और कलर वाली ड्रेस चुन सकती हैं.

For mens;-

वैसे तो लड़कियों की तुलना में लडको के पास चॉइस और आप्शन कम होते है फिर भी आप चाहे तो  चेक शर्ट को जींस के साथ carry कर सकते है .ये  बहुत अच्छा आप्शन है.

अगर आप चाहे तो ढीले-ढाले सफेद कुर्ते को कम्फर्ट-लाइट ब्लू जींस के साथ भी carry कर सकते हैं. यह लुक आपको स्टाइलिश दिखाने के साथ-साथ तनावमुक्त भी बनाता है.

shoes –अपने पैरों के लिए समझदारी से और आरामदायक  shoes का चयन करें .ऊँची हील वाली  या नाजुक सैंडल बिलकुल मत पहने .आप चाहें तो इसके बजाय फ्लिप-फ्लॉप, crox  या पुराने स्लीपर्स की एक जोड़ी चुन सकते हैं. ये आपके लिए काफी बेहतर और आरामदायक रहेगा.

sunglasses

ये होली खेलने के दौरान सबसे मत्वपूर्ण चीज़ है. यह न केवल आपको स्टाइलिश दिखने में मदद करेंगे बल्कि वे आपकी आंखों को रंग और धूप से बचाने का महत्वपूर्ण कार्य भी करेंगे.

बस यह ध्यान रखें कि आप होली पर जो भी पहन रहे हो कोशिश करें कि वह कॉटन मेटेरिअल  का ही हो .क्योंकि वो आपके लिए कंफर्टेबल रहेगा और रंग और गुलाल लगने के बाद आपकी स्किन को बार-बार iritate नहीं करेगा . सुनिश्चित करें की आप कोई भी ट्रांसपेरेंट ऑउटफिट न पहने क्योंकि जब ये पानी के कांटेक्ट में आता है  तब  यह बॉडी से स्टिक करता है  और आप अनकंफरटेबल फील कर सकते हैं.

Holi 2024: फेस्टिवल पर रखें अपनी सेहत का ख्याल, इन टिप्स को करें फॉलो

होली मौज-मस्ती, हर्ष-उल्लास, उधम-कूद, भागा-दौड़ी का त्योहार है. वसंत ऋतु में आने वाले इस पर्व की अलग की रौनक होती है. इस दौरान बनने वाले खास खाने, मिठाइयां, ठंडई, पकवान इसे और अधिक खास बनाते हैं.

अक्सर इस मौज मस्ती में लोग अपने और अपनो का ख्याल रखने से चूक जाते हैं. रंगों की मौज मस्ती में, खाने पीने में बहुत सी ऐसी लापरवाहियां हो जाती हैं जो होली के उमंग को फीका कर देती हैं. ऐसे में हम होली खेलने के दौरान और खानपान के बारे में कुछ खास टिप्स बताएंगे जिनको ध्यान में रख कर आप इस होली को यादगार और मजेदार बना सकती हैं. तो आइए शुरू करें

1. बचें सिंथेटिक रंगों से

होली में सिंथेटिक रंगों से बच कर रहें. इनमें लेड आक्साइड, मरकरी सल्फाइड ब्रोमाइड, कापर सल्फेट आदि भयानक केमिकल मिले होते हैं जो कि आंखों की एलर्जी, त्वचा में खुजली और अंधा तक बना देते हैं. इन रंगों के दूरी बनाने की कोशिश करें.

2. एलर्जी के मरीज रहें सतर्क

बहुत से लोगों को रंगों से एलर्जी होती है. उन्हें खास कर के इन रंगों से दूर रहना चाहिए. इसके अलावा जिन लोगों को त्वचा संबंधित परेशानियां हैं उन्हें भी इससे दूर रहना चाहिए. एक और जरूरी बात, रंग खेलने से पहले शरीर पर नारियल या सरसो का तेल लगा लें. इससे त्वचा पर रंग नहीं चिपकेगा और आप सुरक्षित रहेंगी.

3. अपने चोट-घाव को बचाएं

जिन लोगों को पहले से चोट या घाव लगी हो उन्हें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. लंबे समय तक पानी के संपर्क में रहने से चोट के बढ़ने का खतरा होता है. ऐसे में अपने चोट पर एंटीसेप्टिक लगा कर रहें.

4. तेल लगाना ना भूलें

रंग खेलते वक्त बालों में खूब तेल लगा लें और सिर को रुमाल या स्कार्फ से ढंक लें. सिंथेटिक रंग आपकी बालों के लिए हानिकारक होते हैं.

5. भांग पीने से बचें

इस मौके पर कोशिश करें कि आप ज्यादा पानी में भींगे नहीं. इससे आपको बुखार, जुकाम जैसी परेशानियां हो सकती हैं.

6. गुब्बारे वाली होली ना खेलें

गुब्बारे वाली होली ना खेलें. इससे आपकी आंखे चोटिल हो सकती हैं.

Holi 2024: बीरा- गांव वालों ने क्यों मांगी माफी

आज भी बीरा के मांबाप को भजन सिंह चेताने आए थे, ‘‘तुम अपनी बेटी को संभाल कर रखो, नहीं तो मैं उस के हाथपैर तोड़ दूंगा.’’

हर रोज बीरा किसी न किसी लड़के से झगड़ा कर लेती थी. गांव के लड़के बीरा को हमेशा छेड़ा करते थे, ‘तुम लड़के जैसी लगती हो, लेकिन तुम्हारी आवाज लड़की जैसी है. एक पप्पी नहीं दोगी…’

कोई लड़का बीरा के गाल को पकड़ लेता तो कोई मौका मिलते ही उस की छाती को भी. बीरा कभी बरदाश्त नहीं करती और मारपीट पर उतारू हो जाती. स्कूल, गलीमहल्ले, खेतखलिहान, खेल के मैदान, बीरा को हर रोज इन समस्याओं से जूझना पड़ता था.

धीरेधीरे पूरे गांव में यह प्रचार होने लगा कि बीरा किन्नर है.

इसी बीच बीरा की मां की मौत हो गई. अब तो बीरा की परेशानियों को दुनिया में समझने वाला भी कोई नहीं रहा. बीरा की मां उसे एक लड़की की तरह जिंदगी जीने का सलीका सिखाने आई थी. खाना बनाना, बरतन धोना, लड़की की तरह सिंगार करना, सबकुछ उस ने अपनी मां से सीखा था.

बीरा के पिता को लोग चिढ़ाने लगे. खुलेआम मजाक उड़ाने लगे, ‘तेरी बेटी किन्नर है. इस ने तो गांव की नाक कटवा दी है. आज तक इस गांव में कोई किन्नर पैदा नहीं हुआ है.’

बीरा के पिता का भी बरताव बदलने लगा. जैसेजैसे बीरा के कदम जवानी की तरफ बढ़ने लगे, गांव के लड़के उस की तरफ खिंचने लगे और मौका मिलते ही और ज्यादा छेड़ने लगे. बीरा इन हरकतों से तंग आ चुकी थी.

एक दिन बीरा के पिता ने कहा, ‘‘तुम घर से निकल जाओ. रोजरोज के झगड़ों से मैं तंग आ चुका हूं.’’

बीरा भी अपने परिवार वालों का रुख देख कर घर से निकल गई और बिना मंजिल के एक ट्रेन पकड़ ली. उसे मालूम नहीं था कि कहां जाना है.

बीरा आसनसोल स्टेशन पहुंची, जहां किन्नरों की हैड से उस की मुलाकात हुई. उस ने खाना खिलाया, प्यार से बातें कीं और ट्रेन में ही गाने गा कर लोगों से पैसा वसूलने का हुनर सिखाया.

बीरा अब पैसा तो कमाती थी, लेकिन उस का सुख नहीं भोगती थी, क्योंकि सारा पैसा किन्नर की हैड ले लेती. वह 4 महीने तक आसनसोल में रही. वह वहां की जिंदगी से भी तंग आ चुकी थी.

एक दिन किसी को बिना बताए बीरा पटना चली आई. वहां उस की रेशमा नामक समाजसेवी किन्नर से मुलाकात हुई. रेशमा ने बीरा के दर्द को समझने की कोशिश की.

बीरा पढ़ना चाहती थी. रेशमा ने उस का बीए में दाखिला करा दिया. वह मन लगा कर पढ़ने लगी. अपना खर्च निकालने के लिए वह शादीब्याह और पर्वत्योहार के मौके पर आरकैस्ट्रा में नाचगाने का काम भी करने लगी.

बीए करने के बाद बीरा ने कोचिंग की और बीपीएससी की तैयारी करने लगी. पहली बार में वह नाकाम हुई, पर दूसरी बार बीपीएससी पास कर गई. उस की बहाली बीडीओ के पद पर हुई. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने अपने साथियों को जम कर पार्टी दी.

बीरा के पिता को जब गांव वालों से मालूम हुआ तो उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिसे वे और गांव वाले हिकारत की नजर से देखते थे, वह बीरा पढ़लिख कर अफसर बन जाएगी.

गांव वालों द्वारा यह सूचना भी उन्हें चिढ़ाने जैसी ही लगी. पर उन के गांव का ही एक लड़का बीरा से मिलवाने के लिए उन्हें ब्लौक दफ्तर ले गया. पिता को गलती का एहसास हुआ.

बीरा ने अपने पिता से गांव का हालचाल पूछा और यह भी बोली, ‘‘पिताजी, अब आप को गांव के लोग यह कह कर नीचा नहीं दिखाएंगे कि आप की बेटी किन्नर है.’’

बीरा ने यह भी पूछा कि गांव की मुख्य समस्या क्या है? पिता ने कहा, ‘‘गांव में स्कूल नहीं है.’’

बीरा ने अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाने का वादा किया. 6 महीने के अंदर बीरा ने बच्चों को पढ़ने के लिए अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाया, जहां गांव के बच्चे मुफ्त में पढ़ने लगे.

गांव वालों ने बीरा से माफी मांगते हुए उसे सम्मानित किया. सम्मान समारोह में लोगों ने यही कहा कि उन के गांव में आज तक कोई ऐसा लड़का या लड़की नहीं पैदा हुई, जो हमारे गांव का नाम रोशन कर सके. बीरा ने इस गांव का मानसम्मान बढ़ाया है.

Holi 2024: रंगों से अपने बालों को रखना चाहते हैं सुरक्षित, तो इन टिप्स को करें फॉलो

रंगों का त्योहार होली बिल्कुल करीब है. इस बसंती त्योहार में आप सभी लोग अपने कपड़ों, बालों, त्वचा और रंगरूप की परवाह किए बिना ही रंगों से रंग जाना पसंद करते हैं. आप भी कहीं न कहीं ये बात जानते हैं कि रंगों से आपके बालों को काफी नुकसान होता है और ऐसे में आपको काफी सावधान रहने की जरूरत भी होती है.

इस समस्या से निपटने के लिए आज हम आपके लिए कुछ सुझाव लेकर आए हैं. तो इस होली बिना किसी चीज की परवाह किए खेलें अपने मनपसंद रंगों से.

1. होली खेलने के 15 मिनट पहले आप अपने बालों पर तेल से मालिश कर लें. इसके लिए आप नारियल का तेल, जैतून, सरसों या किसी भी अन्य तेल का चयन कर सकते हैं. तेल लगाते वक्त ये बात ध्यान रखना चाहिए कि तेल गर्म न हो क्योंकि इससे बाद में आपके बालों को नुकसान हो सकता है.

2. एक बहुत महत्वपूर्ण बात को हमेशा ध्यान में रखें कि होली खेलने के दौरान बालों को कभी खुला न छोड़ें. आप शायद ये बात नहीं जानते होंगे कि आपके खुले बाल ज्यादा रंग सोखते हैं, जिससे सिर पर रंगों का बहुत अधिक मात्रा में जमाव हो जाता है. आप ये कर सकते हैं कि होली खेलने के दौरान बालों को टोपी या स्कार्फ से पूरी तरह अच्छे से ढंक लें.

3. होली खेलते समय टोपी के नीचे प्लास्टिक शॉवर कैप पहनने से बालों की सुरक्षा दोगुनी हो जाती है.

4. अगर आपने सूखे रंगों से होली खेली हो तब होली खेलने के बाद बालों को अच्छी तरह से ब्रश कर लें. केवल ब्रश करने से ही सिर पर जमे रंगों को हटाने में काफी मदद मिलती है.

5. अगर आपने गीले रंगों का प्रयोग कर होली का लुफ्त उठाया है तो सबसे पहले सादे पानी से अपने बालों को अच्छी तरह धो लीजिए, इसके बाद शैम्पू लगा के फिर बाद में बालों को में एक बार फिर साफ पानी से धोएं.

6. होली के कारण आपके बालों पर जमे रंगों को आप जल्दी निकालने की चाहत में शैम्पू को अपने बालों पर बार-बार रगड़ते हैं तो आपको ऐसा नहीं करना चाहिए. बालों पर जमा रंग साफ होने में कुछ समय तो लगता ही है.

7. आप होली के रंगों को अपने बालों से हटाने के लिए बेबी शैम्पू या प्राकृतिक शैम्पू का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.

8. होली के रंगों से सने बालों को गर्म पानी से धोने की गलती न करें, इससे आपके बाल बहुत खराब हो सकते हैं. गर्म पानी बालों को रूखा बना देता है.

9. होली में रंग खेलने के बाद, जब आप अपने बाल धों ले तो उसके बाद अपने बालों को ब्लो-ड्राई अर्थात हवा से बाल न सुखाएं. इसकी जगह साधारण तरीके से उन्हें सूखने दें.

10. आआप होली के बाद अपने बालों को स्पा ट्रीटमेंट भी दे सकते हैं और ये बात भी याद रखें कि होली में रंगों से खेलने के दो सप्ताह बाद तक बालों को कलर न करें.

Holi 2024: होली में मेहमानों को परोसें दही भल्ले, ये रही आसान रेसिपी

अक्सर आपने शादियों और पार्टियों में दही भल्ला खाया होगा, लेकिन क्या आपने कभी घर पर टेस्टी और हेल्दी दही भल्ला बनाकर फैमिली को परोसा है. नहीं तो आज हम आपको घर पर दही भल्ले की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

पनीर – 200 ग्राम,

दही– 04 कप,

आलू – 02 (उबले हुए),

अरारोट – 02 बड़े चम्मच चम्मच,

हरी मिर्च – 01 (बारीक कटी हुई),

अदरक – 1/2 इंच का टुकडा़ (कद्दूकस किया हुआ),

हरी चटनी – 01 कप,

मीठी चटनी – 01 कप,

भुना जीरा – 02 बड़े चम्मच,

लाल मिर्च पाउडर– 1/2 छोटा चम्मच,

काली मिर्च पाउडर– 1/2 छोटा चम्मच,

तेल – तलने के लिये,

काला नमक – 02 बड़ा चम्मच,

सेंधा नमक (व्रत के लिए)/नमक (अन्य दिनों के लिए)-स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

सबसे पहले पनीर को कद्दूकस कर लें. उसके बाद उबले हुए और आलुओं को छील कर कद्दूकस कर लें.

इसके बाद इन दोनों चीजों को एक प्याले में लेकर अच्छी तरह से मिला लें. इस मिश्रण में मिश्रण में अरारोट, अदरक, हरी मिर्च और नमक भी डालें और अच्छी तरह से गूंथ लें.

गुंथी हुई सामग्री में से थोडा सा मिश्रण लें और उसे हथेली से गोल करे वड़े के आकार कर बना लें. अब वड़ा तलने के लिए एक कढ़ाई में तेल डालें और गरम करें.

तेल गरम होने पर तीन-चार वड़े कढ़ाई में डालें और उन्हें उपलट-पलट कर सुनहरा होने तक तल लें. ऊपर से दही, सेंधा नमक/नमक, काला नमक, भुना हुआ जीरा, काली मिर्च पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, मीठी चटनी और हरी चटनी डालकर ठंडा-ठंडा अपनी फैमिली परोसें.

जिंदगी मेरे घर आना: क्यों भाग रहा था शंशाक

दफ्तर में नए जनरल मैनेजर आने वाले थे. हर जबान पर यही चर्चा थी. पुराने जाने वाले थे. दफ्तर के सभी साहब और बाबू यह पता करने की कोशिश में थे कि कहां से तबादला हो कर आ रहे हैं. स्वभाव कैसा है, कितने बच्चे हैं इत्यादि. परंतु कोई खास जानकारी किसी के हाथ नहीं लग रही थी. अलबत्ता उन के तबादलों का इतिहास बड़ा समृद्ध था, यह सब को समझ आने लगा था.

नियत दिन नए मैनेजर ने दफ्तर जौइन किया तो खूब स्वागत किया गया. पुराने मैनेजर को भी बड़े ही सौहार्दपूर्ण ढंग से बिदा किया.

शशांक साहब यानी जनरल मैनेजर वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना होते रहते. न जाने क्यों हर आनेजाने वाले से शंकित निगाहों से बात करते. लोगों में उन का यह व्यवहार करना कुतूहल का विषय था. पर धीरेधीरे दफ्तर के लोग उन के सहयोगपूर्ण और अहंकार रहित व्यवहार के कायल होते गए.

1 महीने की छुट्टी पर गया नीरज जब दफ्तर में आया तो शशांक साहब को नए जनरल मैनेजर के रूप में देख पुलकित हो उठा, क्योंकि वह उन के साथ काम कर चुका था. वैसे ही शंकित रहने वाले साहब नीरज को देख और ज्यादा शंकित दिखने लगे थे. बड़े ही ठंडे उत्साह से उन्होंने नीरज से हाथ मिलाया और फिर तुरंत अपने काम में व्यस्त हो गए.

मगर ज्यों ही नीरज उन से मिलने के बाद चैंबर से बाहर गया, उन के कान दरवाजे पर ही अटक गए. शशांक को महसूस हुआ कि बाहर अचानक जोर के ठहाकों की गूंज हुई. वे वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना हो गए कि न जाने नीरज क्या बता रहा होगा.

अब उन का ध्यान सामने पड़ी फाइलों में नहीं लग रहा था. घड़ी की तरफ देखा. अभी 12 ही बजे थे. मन हुआ घर चले जाएं, फिर सोचा घर जा कर भी अभी से क्या करना है. कोई अरुणा थोड़े है घर में…

‘शायद नीरज अब तक बता चुका होगा. न जाने क्याक्या बताया होगा उस ने. क्या उसे असली बात मालूम होगी,’ शशांक साहब सोच रहे थे, ‘क्या नीरज भी यही समझता होगा कि मैं ने अरुणा को मारा होगा?’

यह सोचते हुए शशांक की यादों का गंदा पिटारा खुलने को बेचैन होने लगा. अधेड़ हो चले शशांक ने वर्तमान का पेपरवेट रखने की कोशिश की कि अतीत के पन्ने कहीं पलट न जाएं पर जो बीत गई सो बात गई का ताला स्मृतियों के पिटारे पर टिक न पाया. काले, जहरीले अशांत सालों के काले धुएं ने आखिर उसे अपनी गिरफ्त में ले ही लिया…

शादी के तुरंत बाद की ही बात थी.

‘‘अरुणा तुम कितनी सुंदर हो, तुम्हें जब देखता हूं तो अपनी मां को मन ही मन धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने तुम्हें मेरे लिए चुना.’’

अरुणा के लाल होते जा रहे गालों और झुकती पलकों ने शशांक की दीवानगी को और हवा दे दी.

क्या दिन थे वे भी. सोने के दिन और चांदी की रातें. शशांक की डायरी के पन्ने उन दिनों कुछ यों भरे जा रहे थे.

‘‘जीत लिखूं या हार लिखूं या दिल का सारा प्यार लिखूं,

मैं अपने सब जज्बात लिखूं या सपनों की सौगात लिखूं,

मैं खिलता सूरज आज लिखूं या चेहरा चांद गुलाब लिखूं,

वो डूबते सूरज को देखूं या उगते फूल की सांस लिखूं.’’

दिल से बेहद नर्म और संवेदनशील शशांक के विपरीत अरुणा में व्यावहारिकता अधिक थी. तभी तो उस ने उस छोटी सी मनीऔर्डर रसीद को ही ज्यादा तवज्जो दी.

‘‘शशांक ये 2 हजार रुपए आप ने किस को भेजे हैं?’’ उस दिन अरुणा ने पहली बार पूछा था.

‘‘यह रसीद तो मेरी डायरी में थी. इस का मतलब तुम ने अपने ऊपर लिखी मेरी सारी कविताओं को पढ़ लिया होगा?’’ शशांक ने उसे निकट खींचते हुए कहा.

‘‘अपनी मां को भेजे हैं, हर महीने भेजता हूं उन के हाथ खर्च हेतु.’’

शशांक ने सहजता से कहा और फिर अपने दफ्तर के किस्से अरुणा को सुनाने लगा.

पर शायद उस ने अचानक बदलने वाली फिजा पर गौर नहीं किया. चंद्रमुखी से सूरजमुखी का दौर शुरू हो चुका था, जिस की आहट कवि हृदय शशांक को सुनाई नहीं दे रही थी. अब आए दिन अरुणा की नईनई फरमाइशें शुरू हो गई थीं.

‘‘अरुणा इस महीने नए परदे नहीं खरीद सकेंगे. अगले महीने ही ले लेना. वैसे भी ये गुलाबी परदे तुम्हारे गालों से मैच करते कितने सुंदर हैं.’’

शशांक चाहता था कि अरुणा एक बजट बना कर चले. मां को पैसे भेजने के बाद बचे सारे पैसे वह उस की हथेली पर रख कर निश्चिंत रहना चाहता था.

‘‘तुम्हारे पिताजी तो कमाते ही हैं. फिर तुम्हारी मां को तुम से भी पैसे लेने की क्या जरूरत है?’’ अरुणा के शब्दबाण छूटने लगे थे.

‘‘अरुणा, पिताजी की आय इतनी नहीं है. फिर बहुत कर्ज भी है. मुझे पढ़ाने, साहब बनाने में मां ने अपनी इच्छाओं का सदा दमन किया है. अब जब मैं साहब बन गया हूं, तो मेरा यह फर्ज है कि मैं उन की अधूरी इच्छाओं को पूरा करूं.’’

शशांक ने सफाई दी थी. परंतु अरुणा मुट्ठी में आए 10 हजार को छोड़ उन 2 हजार के लिए ही अपनी सारी शांति भंग करने लगी. उन दिनों 10-12 हजार तनख्वाह कम नहीं होती थी. पर शायद खुशी और शांति के लिए धन से अधिक समझदारी की जरूरत होती है, विवेक की जरूरत होती है. यहीं से शशांक और अरुणा की सोच में रोज का टकराव होने लगा. गुलाबी डायरी के वे पन्ने जिन में कभी सौंदर्यरस की कविताएं पनाह लेती थीं, मुहब्बत के भीगे गुलाब महकते थे, अब नूनतेललकड़ी के हिसाबकिताब की बदबू से सूखने लगे थे.

शेरोशायरी छोड़ शशांक फुरसत के पलों में बीवी को खुश रखने के नुसखे और अधिक से अधिक कमाई करने के तरीके सोचता. नन्हा कौशल अरुणा और शशांक के मध्य एक मजबूत कड़ी था. परंतु उस की किलकारियां तब असफल हो जातीं जब अरुणा को नाराजगी के दौरे आते. सौम्य, पारदर्शी हृदय का स्वामी शशांक अब गृह व मानसिक शांति हेतु बातों को छिपाने में खासकर अपने मातापिता से संबंधित बातों को छिपाने में माहिर होने लगा.

उस दिन अरुणा सुबह से ही कुछ खास सफाई में लगी हुई थी. पर सफाई कम जासूसी अधिक थी.

‘‘यह तुम्हारे बाबूजी की 2 महीने पहले की चिट्ठी मिली मुझे. इस में इन्होंने तुम से 10 हजार रुपए मांगे हैं. तुम ने भेज तो नहीं दिए?’’

अरुणा के इस प्रश्न पर शशांक का चेहरा उड़ सा गया. पैसे तो उस ने वाकई भेजे थे, पर अरुणा गुस्सा न हो जाए, इसलिए उसे नहीं बताया था. पिछले दिनों उसे तरक्की और एरियर मिला था. इसलिए घर की मरम्मत हेतु बाबूजी को भेज दिए थे.

अरुणा आवेश में आ गई, क्योंकि शशांक का निर्दोष चेहरा झूठ छिपा नहीं पाता था.

‘‘रुको, मैं तुम्हें बताती हूं… ऐसा सबक सिखाऊंगी कि जिंदगी भर याद रखोगे…’’

उस वक्त तक शशांक की सैलरी में अच्छीखासी बढ़ोतरी हो चुकी थी पर अरुणा उन 10 हजार के लिए अपने प्राण देने पर उतारू हो गई थी. आए दिन उस की आत्महत्या की धमकियों से शशांक अब ऊबने लगा था.

सूरजमुखी का अब बस ज्वालामुखी बनना ही शेष था. अरुणा का बड़बड़ाना शुरू हो गया था. शशांक ने नन्हे कौशल का हाथ पकड़ा और उसे स्कूल छोड़ते हुए दफ्तर के लिए निकल गया. अभी दफ्तर पहुंचा ही था कि उस के सहकर्मी ने बताया, ‘‘जल्दी घर जाओ, तुम्हारे पड़ोसी का फोन आया था. भाभीजी बुरी तरह जल गई हैं.’’

बुरी तरह से जली अरुणा अगले 10 दिनों तक बर्न वार्ड में तड़पती रही.

‘‘मैं ने सिर्फ तुम्हें डराने के लिए हलकी सी कोशिश की थी… मुझे बचा लो शशांक,’’ अरुणा बोली.

जाती हुई अरुणा यही बोली थी. अपनी क्रोधाग्नि की ज्वाला में उस ने सिर्फ स्वयं को ही स्वाहा नहीं किया, बल्कि शशांक और कौशल की जिंदगी की समस्त खुशियों और भविष्य को भी खाक कर दिया था. लोकल अखबारों में, समाज में अरुणा की मौत को सब ने अपनी सोच अनुसार रंग दिया. रोने का मानो वक्त ही नहीं मिला. कानूनी पचड़ों के चक्रव्यूह से जब शशांक बाहर निकला तो नन्हे कौशल और अपनी नौकरी की सुधबुध आई. उस के मातापिता अरुणा की मौत के कारणों और वजह के लांछनों से उबर ही नहीं पाए. कुछ महीनों के भीतर ही दोनों की मौत हो गई.

बच गए दोनों बापबेटे, दुख, विछोह, आत्मग्लानि के दरिया में सराबोर. अरुणा नाम की उन की बीवी, मां ने उन के सुखी और शांत जीवन में एक भूचाल सा ला दिया था. खुदगर्ज ने अपना तो फर्ज निभाया नहीं उलटे अपनों के पूरे जीवन को भी कठघरे में बंद कर दिया था. उस कठघरे में कैद बरसोंबरस शशांक हर सामने वाले को कैफियत देता आया था. घृणा हो गई थी उसे अरुणा से, अरुणा की यादों से. भागता फिरने लगा था किसी ऐसे कोने की तलाश में जहां कोई उसे न जानता हो.

अरुणा का यों जाना शशांक के साथसाथ कौशल के भी आत्मविश्वास को गिरा गया था. 14 वर्षीय कौशल आज भी हकलाता था. बरसों उस ने रात के अंधेरे में अपने पिता को एक डायरी सीने से लगाए रोते देखा था. जाने बच्चे ने क्याक्या झेला था.

एक दिन शशांक ने ध्यान दिया कि कौशल बहुत देर से उसे घूर रहा है. अत: उस ने

पूछा, ‘‘क्या हुआ कौशल? कुछ काम है मुझ से?’’

‘‘प…प…पापा क…क… क्या आप ने म…म… मम्मी को मारा था?’’ हकलाते हुए कौशल ने पूछा.

‘‘किस ने कहा तुम से? बकवास है यह. मैं तुम्हारी मां से बहुत प्यार करता था. उस ने खुद ही…’’ बोझिल हो शशांक ने थकेहारे शब्दों में कहा.

‘‘व…व…वह रोहित है न, वह क…क… कह रहा था तुम्हारे प…प..पापामम्मी में बनती नहीं थी सो एक दिन तुम्हारे प…प…पापा ने उन्हें ज…ज… जला दिया,’’ कौशल ने प्रश्नवाचक निगाहों से कहा. उस की आंखें अभी भी शंकित ही थीं.

यही शंकाआशंका शशांक के जीवन में भी उतर गई थी. अपनी तरफ उठती हर निगाह उसे प्रश्न पूछती सी लगती कि क्या तुम ने अपनी बीवी को जला दिया? क्या अरुणा का कोई पूर्व प्रेमी था? क्या अरुणा के पिताजी ने दहेज नहीं दिया था?

जितने लोग उतनी बातें. आशंकाओं और लांछनों का सिलसिला… भागता रहा था शशांक एक जगह से दूसरी जगह बेटे को ले कर. अब थक गया था. वह कहते हैं न कि एक सीमा के बाद दर्द बेअसर होने लगता है.

बड़ी ही तीव्र गति से शशांक का मन बेकाबू रथ सा भूतकाल के पथ पर दौड़ा जा रहा था. चल रहे थे स्मृतियों के अंधड़…

तभी कमरे की दीवार घड़ी ने जोर से घंटा बजाया तो शशांक की तंद्रा भंग हुई. बेलगाम बीते पलों के रथ पर सवार मन पर कस कर लगाम कसी. जो बीत गया सो बात गई…

‘1 बज गया, कौशल भी स्कूल से आता होगा’, चैंबर से बाहर निकला तो देखा पूरा दफ्तर अपने काम में व्यस्त है.

‘‘क्यों आज लंच नहीं करना है आप लोगों को? भई मुझे तो जोर की भूख लगी है?’’ मुसकराने की असफल कोशिश करते हुए शशांक ने कहा.

सभी ने इस का जवाब एकसाथ मुसकराहट में दिया.

घर पहुंच शशांक ने देखा कि खानसामा खाना बना इंतजार कर रहा था.

‘‘खाना लगाऊं साहब, कौशल बाबा कपड़े बदल रहे हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘अरे वाह, आज तो सारी डिशेज मेरी पसंद की हैं,’’ खाने के टेबल पर शशांक ने चहकते हुए कहा.

‘‘पापा आप भूल गए हैं, आज आप का जन्मदिन है. हैप्पी बर्थडे पापा,’’ गले में हाथ डालते हुए कौशल ने कहा.

‘‘तो कैसा रहा आज का दिन. नए स्कूल में मन तो लग रहा है?’’ शशांक ने पूछा. अंदर से उस का दिल धड़क रहा था कि कहीं पिछली जिंदगी का कोई जानकार उसे यहां न मिल गया हो. पर उस ने एक नई चमक कौशल की आंखों में देखी.

‘‘पापा, मैथ्स के टीचर बहुत अच्छे हैं. साइंस और अंगरेजी वाली मैडम भी बहुत अच्छा बताती हैं. बहुत सारे दोस्त बन गए हैं. सब बेहद होशियार हैं. मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी ताकि मैं उन सब के बीच टिक पाऊं…’’

शशांक ने गौर किया कि कौशल का हकलाना अब काफी कम हो गया है. शाम को कौशल ने खानसामे और ड्राइवर की मदद से एक छोटी सरप्राइज बर्थडे पार्टी का आयोजन किया था. उस के नए दोस्त तो आए ही थे, साथ ही उस ने शशांक के दफ्तर के कुछ सहकर्मियों को भी बुला लिया था.

नीरज भी आया था. ऐसा लग रहा था कौशल को उस ने भी सहयोग किया था इस आयोजन में. नीरज को उस ने फिर चोर निगाहों से देखा कि क्या इस ने सचमुच किसी को कुछ नहीं बताया होगा? अब जो हो सो हो, कौशल को खुश देखना ही उस के लिए सुकूनदायक था.

कब तक अतीत से भागता रहेगा. अब कुछ वर्ष टिक कर इस जगह रहेगा और तबादले कौशल की पढ़ाई के लिए अब ठीक न होंगे. वर्षों बाद घर में रौनक और चहलपहल हुई थी.

‘‘पापा आप खुश हैं न? हमेशा दूसरों के घर बर्थडे पार्टी में जाता था, सोचा आज अपने घर कुछ किया जाए,’’ कह कौशल ने एक नई डायरी और पैन शशांक के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘आप के जन्मदिन का गिफ्ट, आप फिर से लिखना शुरू कीजिए पापा, मेरे लिए.’’

उस रात शशांक देर तक आकाश की तरफ देखता रहा. आसमान में काले बादलों का बसेरा था. मानो सुखरूपी चांद को दुखरूपी बादल बाहर आने ही नहीं देना चाहते हों. थोड़ी देर के बाद चांद बादलों संग आंखमिचौली खेलने लगा, ठीक उस के मन की तरह. बादल तत्परता से चांद को उड़ते हुए ढक लेते थे. मानो अंधेरे के साम्राज्य को बनाए रखना ही उन का मकसद हो.

अचानक चांद बादलों को चीर बाहर आ गया और चांदनी की चमक से घोर अंधेरी रात में उजियारा छा गया. शशांक देर तक चांदनी में नहाता रहा. पड़ोस से आती रातरानी की मदमस्त खुशबू से उस का मन तरंगित होने लगा, उस का कवि हृदय जाग्रत होने लगा. उस ने डायरी खोली और पहले पन्ने पर लिखा:

‘‘जिंदगी, जिंदगी मेरे घर आना… फिर से.’’

कृपया बताएं काजल लगाने से मेरी आंखें खराब तो नहीं होंगी?

सवाल-

मेरी उम्र 17 साल है. मुझे आंखों में काजल लगाना काफी पसंद है, लेकिन डरती हूं कि कहीं इस से आंखों पर बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा. कृपया बताएं कि काजल लगाने से मेरी आंखें खराब तो नहीं होंगी?

जवाब-

काजल लगाने से आंखों को नुकसान नहीं होता है बल्कि इस से वे और भी खूबसूरत दिखने लगती हैं. लेकन जरूरी है कि काजल अच्छी क्वालिटी की हो, जिस में लेड की मात्रा न हो. काजल कभी ऐक्सपायर होने के बाद न लगाएं. इससे आंखों को नुकसान पहुंचता है. आंखों में फ्लूया और किसी तरह का इन्फैक्शन हो तो काजल बिलकुल न लगाएं. अपना काजल कभी किसी के साथ शेयर न करें वरना इन्फैक्शन की आशंका रहती है. अगर काजल लगाने के बाद देखने में किसी तरह की परेशानी महसूस होती है तो काजल न लगाएं.

अगर आप जल्‍दी में हैं और आपके पास पूरा आई मेकअप करने का समय नहीं है तो आप अपनी आंखों को केवल काजल से ही सजा सकती हैं. काजल का प्रयोग आईलाइनर और आईशैडो के रुप में भी किया जा सकता है.

आज हम आपको कुछ मेकअप टिप्‍स देगें जिसके द्वारा आप केवल काजल के प्रयोग से ही अपनी आंखों से जादू कर सकती हैं.

काजल से आई मेकअप करने के टिप्‍स

  1. दिन और काम के हिसाब से आप अपनी आंखों को हाइलाइट कर सकती हैं. अगर आपको बस कैजुअल लुक चाहिए तो आप अपनी पलकों पर काजल लगा कर यह लुक पा सकती हैं.
  2. अगर आपको फारमल लुक चाहिए तो आंखों के नीचे का काजल मल कर मोटा न करें. आंखों के नीचे का काजल जितना पतला होगा उसके मिलने और खराब होने के चासेंज उतने ही कम होगें.
  3. अगर आपको अपनी आंखें थोडी बड़ी दिखानी हैं तो आंखों के नीचे और ऊपर मोटा काजल लगाएं इससे आंखें बड़ी और सुदंर दिखेगीं.
  4. शाम को अगर पार्टी में जाना हो तो आपकी आंखें बोलनी चाहिए इसलिए जरुरी है कि आंखों में लगाया जाने वाला काजल थोड़ा ज्‍यादा और उभरा हुआ हो. अपने काजल से आंखों की हाइलाइट करें वो भी सेमी डो आइ मेकअप से.
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