Holi 2024: शुगर के हैं मरीज, तो त्योहार में इन तरीकों से रखें अपना ख्याल

डायबिटीज़/ मधुमेह क्या है……?

डायबिटीज़ मेलिटस टाईप 1 या टाईप 2 प्रकार का होता है. इस बीमारी में शरीर में ब्लड ग्लुकोज़ की मात्रा बढ़ जाती है. ऐसा इंसुलिन का उत्पादन कम होने या शरीर में इसका सही उपयोग न होने के कारण होता है. अगर डायबिटीज़ का ठीक से नियन्त्रण न किया जाए इसके गंभीर प्रभाव हो सकते हैं. यह जानलेवा दिल की बीमारियों, किडनी रोगों, आंखों की समस्याओं और तंत्रिकाओं की समस्याओं का कारण तक बन सकता है. लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं कि आप त्योहार का आनंद न लें आप डायबिटीज़ के साथ भी त्योहारों का पूरा आनंद ले सकते हैं. इसके लिए आपको सिर्फ अपने डायबिटीज़ पर नियन्त्रण रखना है.

डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए होली के दौरान सुझावः

यहां हम कुछ सुझाव लेकर आए हैं, जिनकी मदद से आप होली का पूरा आनंद ले सकते हैं.

1. खूब पानी पीएं/ हाइड्रेटेड रहें

त्योहार के दौरान खूब सारा पानी पीएं, इससे न केवल आपका पेट साफ रहता है बल्कि आप हमेशा फुल महसूस करते हैं और आपको ऐसा खाना खाने की इच्छा नहीं करती, जो आपके लिए सेहतमंद नहीं है. जहां तक हो सके, चाय, काॅफी, शराब या कार्बोनेटेड पेय के बजाए नींबू पानी, नारियल पानी, लस्सी का सेवन करें.

2. अपनी प्लेट पर नियंत्रण रखें

त्योहारों में सब जगह मीठा ही मीठा दिखाई देता है, एक बीकाजी गुजिया में 174 कैलोरी और एक पूरन पोली में 291 कैलोरी होती हैं. इसलिए अच्छा होगा आप अपने खाने पर ध्यान दें. आजकल कई ब्राण्डस चीनी रहित भारतीय मिठाईयां भी बनाते हैं. आप इन मिठाईयों का सेवन कर सकते हैं. मीठा खाते समय इसकी मात्रा पर खास ध्यान दें, कम से कम मात्रा में ही मिठाई खाएं. ध्यान रखें कि आप क्या और कितनी मात्रा में खा रहे हैं.

3. सेहतमंद स्नैक्स खाएं

खाने के बीच स्नैक्स खाने का मन करे तो मूंगफली क बजाए बादाम, अखरोट, पिस्ता खाएं. तले हुए समोसे- कचोरी से बचें. प्रोटीन युक्त आहार जैसे दाल, पनीर तथा फाइबर युक्त आहार जैसे सलाद, फलों का सेवन करें. इससे आपको मिठाई खाने की इच्छा कम होगी.

4. व्यायाम करना न भूलें

सैर, जौगिंग, सूर्य नमस्कार जैसे व्यायाम करें, इनसे ब्लड शुगर नियन्त्रित बनी रहती है. आउटडोर गतिविधियां करें और त्योहार का भरपूर आनंद लें. डांस करना भी बहुत अच्छा व्यायाम है.

5. ब्लड ग्लुकोज़ को मौनिटर करें

नियमित रूप से अपनी ब्लड शुगर जांचते रहें, साथ ही अपनी दवा लेना भी न भूलें. होली के दौरान आप रोज़मर्रा से अलग खाना खाते हैं, इसलिए ब्लड शुगर पर निगरानी रखना ज़रूरी है. हाई एवं लो ब्लड शुगर के लक्षणों को पहचानों. अगर आप इंसुलिन लेते हैं तो अपने कार्बोहाइड्रेट सेवन के आधार पर इंसुलिन की खुराक एडजस्ट करें.

6. धीरे-धीरे खाएं

धीरे धीरे खाने से आपका पेट जल्दी भरता है और आप ज़्यादा कैलोरीज़ से अपने आप को बचा पाते हैं.

हम त्योहार मनाते हैं उन्हें यादगार बनाने के लिए. इसलिए अपनी सीमाओं को पहचानें, अपनी सहत का ख्याल रखें और त्योहारों का भरपूर लुत्फ़ उठाएं.

फ्लर्ट: क्यों परेशान थी मीता अपने पति से

नैना,माहा और दलजीत तीनों शैतान लड़कियों की आंखों में हंसतेहंसते पानी आ गया था. थोड़ी देर पहले तीनों चुपचाप अपनेअपने लैपटौप पर बिजी थीं. तीनों मुंबई के वाशी एरिया की इस सोसायटी में टू बैडरूम शेयर करती हैं. एक ही औफिस में हैं, बस से ही औफिस आतीजाती थीं पर अब तो ज्यादातर घर से ही काम कर रही हैं. तीनों बहुत ही बोल्ड ऐंड ब्यूटीफुल टाइप लड़कियां हैं, ‘वीरे दी वेडिंग’ मूवी की लड़कियों जैसी. खूब सम?ादार हैं, कोई इन्हें जल्दी बेवकूफ नहीं बना सकता.

इन के बौस अनिलजी भी यहीं रहते हैं. उन्होंने ही इन तीनों को यह फ्लैट दिलवा दिया था. थोड़े रसिक टाइप हैं. उन्होंने सोचा कि 3 हसीनाएं उन के अंडर में काम करती ही हैं, घर भी पास में हो जाएगा तो थोड़ीबहुत फ्लर्टिंग करता रहूंगा. असल में अनिलजी हर लड़की को प्यार कर सकते हैं. हर लड़की को यह यकीन दिला सकते हैं कि वही इस दुनिया की सब से खूबसूरत लड़की है और किसी भी लड़की से उन का बात करने का जो ढंग है, वह ऐसा कि लगता है जैसे डायलाग मारने की कहीं से ट्रेनिंग ली है.

कई लोगों को अनिलजी पर इस बात पर भी गुस्सा आता है कि ये सोसाइटी के सैक्रेटरी हैं और जरा भी अपनी जिम्मेदारी नहीं सम?ाते. इधरउधर खुद ही गंदा करते रहते हैं. कभी सिगरेट के टोटे रोड पर फेंकते हुए चलेंगे, कभी यों ही इधरउधर थूक देंगे और उन्हें लगता है कि उन्हें सब बहुत पसंद करते हैं.

पता है अनिलजी की सब से बड़ी खासीयत क्या है? फ्लर्ट करते हैं और सामने वाली लड़की को यह पता भी नहीं लग सकता कि फ्लर्टिंग हो रही है. एक तो उम्र में बड़े हैं ही, औफिस में भी सीनियर हैं. किसी भी लड़की से बात करते हैं तो इतनी ग्रेसफुली करते हैं कि तेज से तेज लड़की भी पकड़ नहीं सकती कि अनिलजी फ्लर्ट कर रहे हैं. उलटीसीधी बातें करते भी नहीं हैं.

‘‘आज आप को काम ज्यादा तो नहीं है? देर हो जाएगी तो मेरी कार में ही चलना. एक ही सोसाइटी में तो जाना है. मैं तो कहता हूं रोज मेरे साथ आ जा सकती हो.’’

‘‘मैं तो आज जो भी कुछ हूं, अपनी वाइफ की ही सपोर्ट से हूं. मेरी वाइफ बहुत अच्छी है.’’

‘‘आज आप बहुत अच्छी लग रही हैं, यह कलर आप को सूट करता है.’’

‘‘यह औफिस नहीं है, एक फैमिली है. आप को जब भी कोई प्रौब्लम हो तो मु?ो कह सकती हैं.’’

अब ऐसी बातों पर क्या औब्जैक्शन हो सकता है. असल में अनिलजी को

लड़कियों से बातें करने का, उन्हें जोक्स, कोई मैसेज फौरवर्ड करने का बहुत शौक है. अभी तक तीनों लड़कियों में से किसी ने आपस में उन के बारे में कुछ भी यह सोच कर नहीं बोला कि जाने दो, बौस हैं. शायद मु?ो स्पैशल सम?ाते हैं, इसलिए मु?ो जरा ज्यादा मानते हैं, इसलिए थोड़े स्पैशल नजरिए से देखते हैं, क्या बुरा है. कोई नुकसान तो पहुंचा नहीं रहे हैं. अब जो ये तीनों लड़कियां बुरी तरह हंस रही हैं न. वह इसलिए कि अभीअभी अपने फोन में अनिलजी का मैसेज देखते हुए दलजीत बोल पड़ी थी, ‘‘यार, अनिलजी कोरोना पौजिटिव हो गए हैं, हौस्पिटल में एडमिट हो गए हैं, इन के बच्चे तो विदेश में हैं, बेचारी वाइफ अकेली है.’’

नैना और माहा के हाथ में भी अपनाअपना फोन थे, दोनों ने एकसाथ कहा, ‘‘क्या, तुम्हें भी मैसेज भेजा? मु?ो भी भेजा और साथ में सैड इमोजी भी. है न?’’

नैना हंस पड़ी, ‘‘मतलब सब को फौरवर्ड कर दिया. और मैं सम?ाती थी कि मु?ो ज्यादा अटैंशन देते हैं. अरे, सुनो, सच्चीसच्ची बताना तुम लोगों को भी मैसेज भेजते रहते हैं क्या अनिलजी.’’

दोनों जोरजोर से हंस पड़ीं, ‘‘लो भई, ये तो सब को प्यार बांटते चलते हैं और हम सम?ा रही थीं कि हम ही स्पैशल हैं.’’

फिर तो तीनों अपनेअपने मैसेज एकदूसरी को बताने लगीं और अब इन की हंसी नहीं रुक रही है.

माहा ने कहा, ‘‘देखो, एक आइडिया है.’’

‘‘क्या? बोलोबोलो.’’

‘‘ये जो हम सब के साथ फ्लर्ट करते घूम रहे हैं यह आदत छुड़ाने की कोशिश करनी चाहिए न.’’

दलजीत ने कहा, ‘‘अरे, छोड़ो यार, हमें इन से क्या मतलब. मु?ो तो अपने हैरी से मतलब है. बस वह मु?ो और मैं उसे सच्चा प्यार करते हैं, इतना बहुत है.’’

माहा ने घुड़की मारी, ‘‘फिर शुरू कर दिया हैरी पुराण. आपस में प्यारव्यार करने को कौन मना कर रहा है, लौकडाउन है, घर में बोर हो रहे हैं, अनिलजी के साथ थोड़ा खेल नहीं सकते क्या?’’

दलजीत फिर मिनमिनाई, ‘‘हैरी सुनेगा तो उसे अच्छा नहीं लगेगा.’’

हैरी. कोई अंगरेज… न, न, तीनों लड़कियों ने अच्छेभले हरविंदर को हैरी बना दिया है. दलजीत का मंगेतर है.

दलजीत उस पर जिंदा है, कहती है, ‘‘मेरा हैरी तो सनी देओल लगता है बिलकुल.’’

यह अलग बात है कि नैना और माहा इस बात से तनिक सहमत नहीं.

हमेशा की तरह दलजीत को दोनों शैतान लड़कियों ने इस शरारत में शामिल कर ही लिया. अब इतने दिन से घर में बंद हैं, कितना काम करें. कितना कोरियन शोज देखें. आजकल तीनों पर कोरियन शोज देखने का भूत चढ़ा है. हां, तो बाकायदा मजेदार प्लानिंग हुई. अब अनिलजी जैसे चालू पुरजे के साथ थोड़ी मस्ती करना इन का भी तो हक है. यह क्या. सीधे बनबन कर क्या सिर्फ अनिलजी ही अपना टाइम पास करते रहें.

अनिलजी की पत्नी मीता इतनी सीधी भी कभी नहीं लगी जितनी अनिलजी बताते हैं. बढि़या टाइट रखती हैं इन्हें. चेहरे से ही रोब टपकता है. सब के फ्लैट में इंटरकौम है ही, माहा ने मीता को इंटरकौम पर फोन किया,

हालचाल पूछे, फिर कहा, ‘‘अनिलजी का मैसेज आया था, हौस्पिटल में हैं, तो भी मेरा कितना ध्यान रखते हैं. सर बहुत ही अच्छे हैं, इस बीमारी में भी दूसरों की चिंता करते हैं,’’ और बहुत सी शुभकामनाएं दे कर माहा ने फोन रख दिया.

मीता को ये शुभकामनाएं कुछ खास पसंद नहीं आईं. मन तो हुआ कि पति को फोन करे और कहे कि हौस्पिटल में हो, पहले कोरोना संभाल लो अपना, फिर दूसरों की चिंता कर लेना, पर इस समय तो पति को कुछ कहना पत्नी धर्म के खिलाफ हो जाता, घर आने दो, फिर देख लूंगी, सोच कर दिल को सम?ा लिया.

तीनों लड़कियां अनिलजी के हालचाल पूछ रही थीं. उन के मैसेज एकदूसरे को पढ़वा कर अपना अच्छा टाइम पास कर रही थीं. अनिलजी अपनी उखड़ती सांसों के साथ भी फ्लर्टिंग का यह मौका छोड़ना नहीं चाह रहे थे.

सोच रहे थे कि तीनों लड़कियां कितनी बेवकूफ हैं. मैं तो इन तीनों को ही क्या, जानपहचान की हर लड़की को ऐसे मैसेज कर रहा हूं और ये बेवकूफ अपने को खास सम?ा रही हैं. कभी इन की फेसबुक फ्रैंड्स की लिस्ट देखिए, 5 हजार दोस्त होंगे इन के, जिन में से 4 हजार महिलाएं ही होंगी. गजब रसिया टाइप बंदा है. औफिस की सारी लड़कियां, उन की सहेलियां, सहेलियों की सहेलियां, सब क फोटो और कमैंट देखते ही ऐसे लपक कर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजते हैं कि लड़कियों को पहले तो सम?ा नहीं आता कि कौन है, फिर बेचारी कौमन फ्रैंड्स को देख कर इन की रिक्वैस्ट ऐक्सैप्ट कर लेती हैं, सोचती हैं कि जाने दो, कोई उम्रदराज सीनियर है, क्या नुकसान पहुंचाएगा. बस यहीं भूल कर जाती हैं भोली लड़कियां. फिर तो उन की पोस्ट पर लाइक और कमैंट सब से पहले अनिलजी का ही आता है. एक और खास बात. जितनी सुंदर लड़की, उतना बड़ा कमैंट लिखते हैं.

मीता को सोशल मीडिया में इतना इंटरैस्ट है नहीं तो उन्हें पता ही नहीं चलता कि पति क्या कर रहा है. अनिलजी के बच्चे पिता की ऐक्टिविटीज को टाइम पास सम?ा कर इग्नोर कर देते हैं.

हां, तो अगले दिन मिनमिनाती दलजीत के कंधे पर जैसे बंदूक रख कर माहा और नैना ने दलजीत को स्क्रिप्ट लिख कर दी और बताया कि क्या बोलना है तो दलजीत ने मीता को फोन किया, कहा, ‘‘मैडम, अब कैसे हैं सर. उन के बीमार होने से हम तो परेशान हो गए. आतेजाते पूछ लेते थे कि मार्केट से तो कुछ नहीं चाहिए. इस लौकडाउन में तो उन्होंने हमारा बहुत ही ध्यान रखा है. बस अब जल्दी से ठीक हो कर आएं तो हमें भी कुछ आराम हो. अभी तो मैसेज पर ही उन से बात हो रही है. आप ठीक हैं न?’’

मीता का मन हुआ कि हौस्पिटल जा कर अभी पति से फोन छीन ले. पति की नसनस जानती थी पर अनिलजी भी तो चतुर, चालाक हैं, सीधेसीधे कभी कोई ऐसी हरकत नहीं की कि कोई उन के चरित्र पर एंगली उठा दे.

सरेआम पत्नी की तारीफ करते घूमते. कई बार तो इतनी तारीफ कर देते कि मीता भी हैरान रह जातीं कि क्या सचमुच मैं एक सर्वगुणसंपन्न पत्नी हूं.

अगले दिन नैना का नंबर था. मीता से सीधे पूछा, ‘‘अरे, मैडम सर कैसे हैं?

ठीक तो हैं न? सुबह से कोई मैसेज नहीं आया है उन का. चिंता हो रही है, अब तक तो गुडमौर्निंग के दसियों मैसेज आ जाते थे.’’

‘‘ठीक हैं, काफी ठीक हैं. घर आने ही वाले हैं.’’

‘‘शुक्र है… उन के मैसेज की इतनी आदत हो चुकी है कि क्या बताऊं. सारा दिन टच में रहते हैं. हम तो यहां अकेली पड़ी हैं. इतना बिजी होने के बाद भी वे हर समय हालचाल पूछते रहते हैं तो अच्छा लगता है.’’

अनिलजी घर आ गए हैं, उन्हें कमजोरी है, मीता उन का ध्यान रख रही हैं. अच्छी तरह से क्लास भी ले चुकी हैं. टीचर रही हैं. बिगड़े बच्चों को सुधारना उन्हें खूब आता है. और यहां तो बात पति की थी, पति को तो एक आम औरत भी सुधारने का दम रखती है. सब ठीक हो गया है. तीनों शैतान एकदूसरे से पूछती रहती हैं, बौस का कोई मैसेज आया क्या? जवाब हर बार ‘न’ में होता है अब.

Holi 2024: होली की मस्ती में चलाए फैशनेबल टी-शर्ट का जादू

भारतीय फैशन इंडस्ट्री में नित नए बदलाव देखने को मिल रहे है. अब लोग होली के मौके पर रंग खेलने के लिए पुराने कपड़े जैसे कुर्ता, टी-शर्ट और साड़ी नही पहनते बल्कि अब लोग ज्यादा फैशनेबल हो गए है, उन्हें हर मौके पर कुछ खास पहनना है. ऐसे में लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए मार्केट में कस्टमाइज्ड होली मैजिक टी-शर्ट का है चलन खूब है. इस टी-शर्ट को पहन कर आप अपनी होली को खास बना सकते है.

कस्टमाइज्ड टी-शर्ट

इस बार होली के मौके पर दिखना चाहते हैं कुछ खास तो आप कस्टमाइज्ड टी-शर्ट पहन कर अलग लुक अपना सकते है. व्हाइट कलर की टी-शर्ट पर अपने नाम के साथ ‘हैप्पी होली’ लिखवा कर पहन सकते हैं इसके अलावा इस व्हाइट  टी-शर्ट पर आप कलरफुल रंग छोड़ती पिचकारी भी बनवा सकते हैं.

 

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होली मैजिक टी-शर्ट

अगर आप  इस बार होली के मौके पर और खास दिखना है तो आप होली मैजिक टी-शर्ट ट्राय  कर सकते है. इस टी-शर्ट की खास बात यह है कि इस  पर पानी पड़ते ही रंग निकलने लगेंगे. ये बात सामने वाले के लिए किसी जादू से कम नही होगी लेकिन थोड़ी सरप्राइजिंग जरूर होगी. इस टी-शर्ट को पहन कर अब आप होली सादे पानी से खेल सकते हैं. आपको और रंग की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और आप केमिकल वाले रंगों से भी बच सकते हैं.

 

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बजट के अनुसार कीमत

होली टी-शर्ट की कीमत आपके बजट से ज्यादा नहीं है. एक टी-शर्ट आपको 300 रुपये में मिल जाएगी. अगर आप एक साथ कई टी-शर्ट लेंगे तो इसके लिए एडिशनल डिस्काउंट मिल सकता है.आप ग्रुप टी-शर्ट भी बनवा सकते है. इसे आप अपने मन मुताबिक बनवा कर पहन सकते है और कलर के पैसे भी बचा सकते है और केवल पानी के साथ होली का मजा ले सकते हैं.

रेगुलर यूज के लिए है खास

होली टी-शर्ट  सिर्फ होली खेलने के लिए ही नही है इसे आप साफ कर रेगुलर यूज में भी पहन सकते हैं क्योंकि इसका फ्रैब्रिक भी सही है. इस लिए इस बार होली को बनाएं फैशनेबल और बजट फ्रेंडली.

 

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होली का खास तोहफा

इसके अलावा अगर आप घर के लोगों या अपने दोस्तों को इस होली पर कोई तोहफा देना चाहते तो आप भी ऑर्डर कर सकते हैं. ये टी- शर्ट उन सब के बहुत खास होगी इसे पहन कर होली की मस्ती में अलग ही  रंग जमा सकते हैं और इस होली को यादगार बना सकते हैं.

संदेह के बादल- भाग 4

सुरभि को शक निश्चित रूप से शीतला पर ही था, क्योंकि दूसरा कोई घर में आता ही नहीं था. उन्होंने लाख समझाना चाहा, उस से चेन ढूंढ़ने के लिए कहा, पर वह नहीं मानी थी. शीतला हर प्रकार से अपनी सफाई दे रही थी. पर उन्हें इस बात की जरूरत ही नहीं थी. जिस औरत ने कभी 4 पैसे की हेराफरी नहीं की वह इतना बड़ा अपराध कैसे कर सकती है, यह तो वे जानते थे.

अपराधी के कठघरे में भयातुर, डरीसहमी सी शीतला के माथे पर उन्होंने ज्यों ही हाथ रखा था, वह बिलखबिलख कर रो पड़ी थी, ‘‘साहब, आप के घर का नमक खाया है. आप के साथ इतना बड़ा विश्वासघात मैं कैसे करूंगी?’’

पर सुरभि ने शीतला को जेल की चारदीवारी में बंद करवा कर ही चैन की सांस ली. आंख की किरच आंख से निकली ही भली. पर वह शायद यह नहीं समझ पाई थी कि झूठे अहं और संदेह के पलीते से भरा यह ऐसा भयानक विस्फोट था जिस ने पतिपत्नी के भावनात्मक संबंधों को हिला कर रख दिया.

प्रारूप शीतला की जमानत करवा आए थे, अपने घर पर उन्होंने उसे फिर काम नहीं दिया था. उन के लिए उस की आंखों में तिरते उन अनुत्तरित प्रश्नों की शलाकाएं झेलना सहज नहीं था. उस के बाद वे अकसर दौरे पर रहते. घर पर रहते भी तो उदास से, बहुत कम बोलते थे. अपनी किताबों की दुनिया में ही खोए रहते. मृदुल के साथ जरूर बोलबतिया लेते थे. उस विद्रोहिणी नारी ने उन का चैन लूट लिया था. उस का सान्निध्य उन्हें वितृष्णा से भर देता था.

शीतला के भूख से तड़पते बच्चे और अपाहिज पति की जब कभी कल्पना करते, मन तिरोहित हो उठता. उसे निकालना ही था, तो यों ही निकाल देती सुरभि, यों लांछन लगा कर तो उस ने उस बेचारी को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. अपमानित तो वह हुई ही, अब तो कोई काम पर भी नहीं रखेगा उसे. मन खिन्न हो उठा था. वे खुद भी तो छटपटाने के सिवा कुछ नहीं कर सके. उन का अब घर पर जी नहीं लगता था. पत्नी कई बार रोकने का प्रयत्न करती, पर उन का हर प्रयत्न अकारथ सिद्ध होता, अब उन का मन बुरी तरह उचट गया था.

एक रात प्रारूप दौरे पर गए थे. सुरभि और मृदुल बंगले में अकेले थे. अचानक बत्ती गुल हो गई. एक तो अकेली, ऊपर से अंधेरा. गरमी और उमस से बचने के लिए उस ने खिड़की खोली और स्टोर में जा कर लालटेन में मिट्टी का तेल भरा. उसे ला कर वह ज्यों ही तिपाई पर रखने लगी थी कि लालटेन औंधेमुंह जमीन पर गिर पड़ी और पूरा तेल मेजपोश पर छलक गया और पलक झपकते ही आग ने मेज, परदों और फर्नीचर को अपने चुंगल में ले लिया. फिर देखते ही देखते आग ने विकरालरूप धारण कर लिया. अंधेरे  में जब वह पानी की बालटी लेने बाथरूम में पहुंची तब तक आधा कमरा आग की लपटों में जल गया.

कृत्यअकृत्य के चक्रवात में फंसी सुरभि को यह भी समझ नहीं आया कि बेटे को उठा कर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दे. डर और दहशत से आवाज भी घुट कर रह गई थी. चीखतीचिल्लाती भी तो उस नई अनजान जगह में उस की चीखें दीवारों से ही टक्कर मार कर, उस के कर्णपटल को भेद जातीं. कौन आता उस की सहायता करने?

तभी उस ने झोंपडि़यों की ओर से कुछ लोगों को अपने बंगले की ओर आते देखा. उस ने सोचा, सभी शीतला के रिश्तेदार होंगे. प्रारूप की अनुपस्थिति में लूटखसोट कर के घर का सामान ले जाएंगे और उसे और मृदुल को मार भी डालेंगे. कलुषित मन और सोच भी क्या कर सकता था? घबराहट के मारे सुरभि गश खा कर जमीन पर गिर पड़ी. उस के बाद क्या घटा, उसे नहीं मालूम.

आंख खुली तो वह अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी थी. पास में बिस्तर पर मृदुल लेटा था. सामने प्रारूप खड़े थे. उन के सामने शीतला सपरिवार खड़ी थी.

उस के हाथों की ओर सुरभि की नजर चली गई थी. दोनों हाथों पर पट्टियां थीं. पूरा चेहरा जगहजगह से झुलस गया था. उस ने क्षीण स्वर में पूछा, ‘‘तुम्हारे हाथों को क्या हुआ?’’

‘‘आप को और मृदुल को बचाने के प्रयास में इस के हाथ बुरी तरह झुलस गए हैं. समय पर अगर यह आप को न बचाती तो आप का बचना नामुमकिन था,’’ डाक्टर ने सुरभि को बताया तो एकाएक वह भयानक मंजर उसे याद हो आया था.

देर तक वह शीतला को निहारती रही. पश्चात्ताप के आंसुओं की अविरल धारा अपनी सारी सीमाएं तोड़ कर बह निकली थी, पर तब भी वह कुछ कह नहीं सकी थी. एक बार फिर अहं सामने आ गया.

कुछ दिनोें तक अस्पताल में रहने के बाद सुरभि और मृदुल पूरी तरह से स्वस्थ हो घर आ गए थे. एक शाम प्रारूप के साथ सैर करते हुए वह शीतला की झोंपड़ी की ओर बढ़ने लगी तो प्रारूप ने उसे रोका, ‘‘उधर कहां जा रही हो?’’

‘‘आज मत रोको मुझे. एक बार वहां जा कर प्रायश्चित्त कर लेने दो,’’ कह कर वह आगे बढ़ी और शीतला की झोंपड़ी के बाहर जा कर रुक गई. चिथड़ों में लिपट शीतला के चेहरे पर मुसकान दौड़ गई, दौड़ कर उस ने चारपाई बिछाई और नम्रतापूर्वक उन के बैठने की प्रतीक्षा करने लगी. भूखेनंगे बच्चों को देख कर सुरभि का मन ग्लानि से भर उठा. वह मन ही मन सोचने लगी कि ईर्ष्या और डाह की विषबेल बो कर कैसा बदला लिया था उस जैसी शिक्षित नारी ने उस गरीब से? उस के पास पति था, प्यारा बेटा था, ऐश्वर्य, समृद्धि सभी कुछ तो था. खुद ही तो सहेजसमेट नहीं पाई इस सुख को. इस में दूसरों का क्या दोष? गाज गिराई भी तो उस पर जिस ने उस के पति की सेवा की? शीतला के साथ उस के पूरे परिवार को उस ने अपने परिहास की परिधि में घसीट लिया?

शीतला को पास बुला कर उस ने उसे अपने पास बैठाया. फिर उस का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ‘‘तुम्हारे ऊपर मैं ने इतने आरोप लगाए, फिर भी मेरी और मेरे बेटे की रक्षा की तुम ने, तुम वास्तव में ही महान हो, शीतला.’’

‘‘नहीं बीबीजी, मैं तो कुछ भी नहीं, महान तो बाबूजी हैं. इन्होंने मेरे बच्चों की भूख मिटाई. मेरे अपाहिज पति के इलाज के लिए ठेकेदार से पैसा दिलवाया और सब से बड़ा उपकार तो इन्होंने मेरी इज्जत बचा कर किया.’’

शीतला फिर बोली, ‘‘बीबीजी, एक रात शराब के नशे में मेरे पति ने मुझे ठेकेदार के पास भेज दिया था. उस ने सोचा, इसी तरह से 4 पैसे का जुगाड़ भी हो जाएगा और बच्चों को रोटी, कपड़ा मिलता रहेगा. अब आप ही बताओ कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो उस औरत पर क्या बीतती होगी? तब बाबूजी ने ही मेरी रक्षा की थी. मैं तो अपना भाई, पिता सबकुछ ही इन्हें मानती हूं. मैं ने आप के घर का नमक खाया है और फिर जब मेहनत करने के लिए ये 2 हाथ दिए हैं तो इंसान कुकर्म करे ही क्यों?’’

सुरभि की नजरों में शीतला बहुत ऊपर उठ गई थी. आसमान से भी ऊपर. आज शीतला के कथन ने उसे इस अवधारणा से मुक्त कर दिया था कि औरत और मर्द के बीच हर रिश्ता शरीर तक ही सीमित नहीं, भावनाओं व संवेदनाओं का भी अपना स्थान है.

प्रारूप कुछ कहना चाह ही रहे थे कि उस ने अपनी हथेली उन के होंठों पर रख दी. शीतला को अगले दिन ही काम पर आने के लिए कह कर वह लौट आई थी. अब नई सुबह, वह उस की प्रतीक्षा में खड़ी थी, जिस में संदेह और शंका के लिए कोई स्थान नहीं था.

YRKKH के लीड एक्टर्स अरमान और रूही को मेकर्स ने दिखाया बाहर का रास्ता, जानें वजह

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai: टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ दर्शकों के फेवरेट शो में से एक है. अब इस शो से जुड़ी बड़ी खबर सामने आ रही है. बताया जा रहा है कि शो के मेकर्स ने एक झटके में शहजादा धामी और प्रतीक्षा होनमुखे की छुट्टी कर दी है.

इस शो में ये दोनों कलाकार अरमान और रूही का किरदार निभा रहे थे. इस खबर ने डेली सोप की टीम और फैंस को हैरान कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन दोनों एक्टर्स के नखरों से परेशान होकर मेकर्स ने इन्हें शो से हटाने का बड़ा फैसला लिया है. तो दूसरी तरफ ये रिश्ता क्या कहलाता है फेम श्रुति उल्तफ ने शहजादा धामी और प्रतिक्षा होनमुखे की हरकतों का खुलासा किया है.

 

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एक इंटरव्यू के अनुसार, उन्होंने इस बारे में खुलकर बात की है.  श्रुति ने शो से शहजादा धामी और प्रतीक्षा होनमुखे को हटाने के फैसले पर कहा कि मेकर्स का ये फैसला बिल्कुल सही है. राजन शाही शांत स्वभाव के इंसान है, उन्होंने कई बार उन दोनों को मौका दिया है, लेकिन चीजों में कोई सुधार नहीं आया. जब पानी सिंर के ऊपर चला जाता है, तो फैसला लेना ही पड़ता है. यह उन सभी एक्टर्स के लिए एक सबक होगा जो अपने काम को नजरअंदाज करते हैं और हल्के में लेते हैं.

 

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श्रुति ने सेट से जुड़ी कई बातें शेयर की. उन्होंने बताया कि प्रतीक्षा होनमुखे-शहजादा धामी के बिहेव के बारे में भी बताया. सेट पर लंच-ब्रेक के दौरान  शहजादा और प्रतीक्षा को छोड़कर लगभग सभी कलाकार एक साथ खाना खाते थे. टीम के लिए  प्रतीक्षा होनमुखे-शहजादा धामी’ का व्यवहार हमेशा से ही एक परेशानी बना हुआ था.

हैप्पी एंडिंग: भाग-1

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

आज10 वर्ष के बाद फिर उसी गली में खड़ी थी. इन्हीं संकरी पगडंडियों के किनारे बनी इस बड़ी हवेली में गुजरा मेरा बचपन, इस हवेली की छत पर पनपा मेरा पहला प्यार… जिस का एहसास मेरे मन को भिगो रहा था. एक बार फिर खुली मेरी यादों की परतें, जिन की बंद तहों पर सिलवटें पड़ी हुई थीं, गलियों से निकलते हुए मेरी नजर चौराहे पर बने गांधी पार्क पर पड़ी, छोटेछोटे बच्चों की खिलखिलाहट से पार्क गुंजायमान हुआ था, पार्क के बाहर अनगिनत फूड स्टौल लगे हुए थे जिन पर महिलाएं खानेपीने के साथ गौसिप में खोई थीं… सुखद एहसास हुआ… चलो, आज की घरेलू औरतें चाहरदीवारी से कुछ समय अपने लिए निकाल रही हैं, मैं ने तो मां, चाचियों को दादी के बनाए नियम के अनुसार ही जीते देखा है, पूरा दिन घर के काम और रसोई से थोड़ी फुर्सत मिलती तो दादी बडि़यां, चिप्स और पापड़ बनाने में लगा देतीं.

चाचियां भुनभुनाती हुई मां के पीछे लगी रहतीं, किसी के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी

कि कुछ समय आराम करने के लिए मांग सके. दादी के तानाशाही रवैये से सभी त्रस्त थे लेकिन ज्यादातर उन की शिकार मैं और मां बनते थे.

पूरे खानदान में मेरे रूपसौंदर्य की चर्चा होती तो वहीं दादी को मैं फूटी आंख नहीं सुहाती, मेरे स्कूल आनेजाने के लिए भाई को साथ लगा

दिया जो कालेज जाने तक साए की तरह साथ लगा रहता.

10 बेटों के बीच मैं एक एकलौती बेटी थी. सभी का भरपूर प्यार मिला लेकिन साथ कई बंदिशें भी, पिताजी अपने 5 भाइयों के साथ बिजनैस संभालने में व्यस्त रहते और भाइयों को मेरी निगरानी में लगा रखा था जो अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते थे.

परीक्षा खत्म होने के साथसाथ गर्मियोें की छुट्टियों में कुछ दिन आजादी के मिलते थे जब मां अपने मायके और मैं और भाई मामा के घर खुद के बनाए नियम में जीते थे. मैं बहुत खुश थी, मामा के घर जाना है लेकिन अगली सुबह ही दादी ने घर में एक नया फरमान जारी किया… ‘‘रीवा कहीं नहीं जाएगी… लड़की जवान हो रही है. ऐसे में तो अपने सगों पर भरोसा नहीं तो मैं कैसे जाने दूं उसे तेरी ससुराल, कुछ ऊंचनीच हो गई तो सारी उम्र सिर फोड़ते रहोगे. तुम्हारी घरवाली जाना चाहे तो जा सकती है बस रीवा नहीं जाएंगी. पिताजी हमेशा की तरह सिर झुकाए हां में हां मिलाए जा रहे थे.’’

मेरी आंखों से गंगाजमुना की धार बह चली थी. पता नहीं उन दिनों इतना रोना क्यों आता था अब तो बड़ी से बड़ी बात हो जाए आंखें सूखी रहती हैं.

खूब रोनाधोना मचाया लेकिन कुछ काम नहीं आया. मुझ पर लगी इस बंदिश ने मां का मायका भी छुड़ा दिया. मां की तकलीफ देख कर दिल से आह निकली ‘‘काश… मैं लड़की नहीं होती’’ उस दिन पहली बार लड़की होने पर दु:ख हुआ था.

छत की मुंडेर पर बैठी चाची के रेडियो से गाने सुन रही थी, रफी के हिट्स चल रहे थे… दर्द भरे गानों में खुद को फिट कर दुखी होने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. तभी पीछे की छत से आवाज आई ‘‘गाना अच्छा है.’’

पीछे मुड़ कर देखा एक हैंडसम लड़का मेरी तरफ देख कर मुसकरा रहा था… ‘‘पर ये हैं कौन?’’ खुद से सवाल किया.

‘‘हाय… मैं सुमित, यह मेरी बूआ का घर है… आप का नाम?’’

अच्छा… तो ये बीना आंटी का भतीजा है.

‘‘मेरा नाम जानने की कोशिश न ही करो यही तुम्हारे लिए बेहतर होगा’’ कहते हुए मैं

अपने कमरे में चली आई. मैं वहां से चली तो आई पर न जाने कैसा एहसास साथ ले आई

थी. 17 की हो गई थी और आज तक कभी

किसी भी लड़के ने मुझ से बात करना तो दूर… नजर उठा कर देखने की भी हिम्मत नहीं की थी और इस का पूरा श्रेय मेरे आदरणीय भाइयों को जाता है.

और उस दिन पहली बार किसी लड़के ने मुझ से मुसकरा कर मेरा नाम पूछा था… जैसे मेरे अंदर प्रेम की सुप्तावस्था को थपकी दे कर उठा रहा हो, मैं उस के उठने के एहसास से ही भयभीत हो गई थी, क्योंकि मैं जानती थी कि यह एहसास एक बार जग गया तो मेरे साथ मेरी मां भी कभी न शांत होने वाले तूफान में फंस जाएंगी, जिस से निकलने की कोशिश मात्र से ही मेरे अस्तित्व की धज्जियां उड़ जाएंगी.

अगले दिन दिमाग के लाख मना करने के बाद भी दिल ने अपनी बात मुझ से मनवा ली और मैं फिर छत की मुंडेर के उस कोने में खड़ी हो गई. वह सामने ही खड़ा था लैमन यलो कलर की शर्ट के साथ ब्लू जींस में. बहुत हैंडसम दिख रहा था, बीना आंटी भी साथ में थी. उन्हें देख कर मैं ने अपने कदम पीछे करना चाहे तब तक बीना आंटी ने मुझे देख लिया था.

‘‘रीवा, इस बार अपने मामा के घर नहीं गई.’’

‘‘नहीं, आंटी… मां की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए दादी ने मना कर दिया.’’

‘‘ओह, काफी दिनों से सुरेखा भाभी से मिली नहीं, समय मिलते ही आऊंगी उन से मिलने.’’

‘‘जी… आंटी.’’

‘‘अरे हां… इस से मिलो, मेरा भतीजा सुमित… कल ही मद्रास से आया, वहां मैडिकल कालेज में पढ़ता है. 10 दिन की छुट्टियों में इस को बूआ की याद आ गई,’’ हंसते हुए बीना आंटी ने कहा.

‘‘बूआ, अच्छा हुआ मैं इस बार यहां आ गया यह तो पता चला आप के शहर में कितनी खूबसूरती छिपी है,’’ सुमित की आंखें मेरे चेहरे पर टिकी थीं.

मैं गुलाबी हो रही थी… शर्म से, प्रेम से, आनंद से.

मैं ही जानती हूं उस पल मैं वहां कैसे खड़ी थी. आंटी के जाते ही आंधी की तरह भागती हुई अपने कमरे में पहुंच गई, सुमित की आंखें जाने क्याक्या बयां कर गई थीं, उस की आंखों का स्थायित्व मुझे एक अदृश्य डोर में बांध रहा था… मैं बंधती जा रही थी… दिल के साथ अब दिमाग भी विद्रोही हो गया था… क्या इसे ही पहला प्यार कहते हैं, यह कैसा अनुभव है, दिल का चैन खत्म हो चुका था, अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी, भूखप्यास सब खत्म… घर वालों को लगता मैं मामाजी के घर न जाने के कारण ऐसे गुमसुम सी, बेचैन हो कर छत के चक्कर लगाती हूं और उन का यह सोचना मेरे लिए अच्छा था, मुझ पर नजर थोड़ी कम रखी जाती.

आगे पढ़ें-  उस दिन भाई की आवाज सुन कर मैं…

सही डोज: भाग 3- आखिर क्यों बनी सविता के दिल में दीवार

उन दिनों घर का बढ़ता हुआ तनाव दिनबदिन और बढ़ता जा रहा था. सविता हरेक की बात सुनने पर भी नहीं सुनती थी. दिन में कभी भी कमरे में लेट कर उपन्यास पढ़ती रहती थी. सब के जाने के बाद सवेरे ही वह भी घर से निकल पड़ती थी. एक महिला क्लब की सदस्य बन गई थी. दोपहर देर तक ताश खेलती थी. किट्टी पार्टियों में भी जाती थी. कोई कुछ नहीं कह सकता था. नौकरी छुड़वाई थी, सो फिर से कर सकती थी. अलग रहने को बोल दिया था. उस के अलग रहने से घर पर क्या असर पड़ेगा, इतना तो घर वाले सम?ा सकते थे. जब भी सविता मां के घर जाती थी तो यही कह कर कि शाम तक लौट आएगी, पर 3-4 दिनों तक नहीं आती थी. अब उस की इस घर में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई.

एक दिन जब वह घर में थी. रश्मि कुछ ढूंढ़ रही थी, ‘‘भाभी, तुम ने मेरी कापी देखी है कहीं. उस में मेरे कुछ जरूरी नोट्स है. इधर घर में धूल इतनी है कि खोजने में सारे कपड़े गंदे हो गए हैं.’’

सविता बरस पड़ी, ‘‘रश्मि, तुम अपनी चीजों को तो संभाल कर रख नहीं सकतीं, ऊपर से कहती हो सारे घर में धूल की परतें जमी रहती हैं. इतवार को तो तुम घर की सफाई कर सकती हो. कालेज की पढ़ाई मैं ने भी की है पर घर के कामों में अपनी मां का हाथ जरूर बंटाती थी. एक तुम हो कि  पढ़ाई के नाम पर उपन्यास पढ़ती रहती हो. बहुत हो चुका, अब उठो और घर की सफाई करो. महरी भी आती होगी. बरतन सिंक में रख कर नल खोल दो. मैं अपनी एक सहेली के घर जा रही हूं,’’ कह कर सविता चली गई.

क्षुब्ध रश्मि ने पहले अम्मां की ओर देखा. फिर बारीबारी से बाबूजी और भाई की तरफ देखा. कोई कुछ नहीं बोला. नवीन उठ कर अपने कमरे में चला गया. सविता 2 घंटे बाद लौटी. कमरे में जा कर साड़ी बदल रही थी, तभी नवीन आ गया, ‘‘सविता, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं.’’

‘‘मुझे मालूम है कि तुम क्या कहना चाहते हो, उसी का तो इंतजाम करने गई थी.’’

‘‘क्या मतलब? कैसा इंतजाम?’’

‘‘सब समझाजाओगे,’’ कहकर उस ने एक छोटे से सूटकेस में 2-4 कपड़े डाल लिए, फिर बाहर की ओर चल पड़ी.

‘‘बहू, कहां जा रही हो?’’ सास ने ही पूछा.

‘‘भाभी…’’ रश्मि इतना ही कह सकी. बाबूजी ने अखबार मेज पर रख कर अपना चश्मा उतार लिया. इसी बीच नवीन भी आ खड़ा हो गया.

‘‘मैं और नवीन जा रहे हैं. मुझे नौकरी मिल गई है. हैंडलूम हाउस में. नवीन भी मान गया है. मैं ने तो भरसक कोशिश की है इस घर में कुछ व्यवस्था ला सकूं पर मैं अकेली कुछ नहीं कर सकी, घर में काम बहुत होता है, अगर सारा काम एक के ऊपर डाल कर सब लोग निश्चिंत हो जाएं तो कैसे हो सकता है.’’

जातेजाते दरवाजे के पास रुक कर उस ने कहा, ‘‘थोड़ाबहुत सामान है, 2-4 मामूली सी साडि़यां हैं, फिर कभी आ कर दे जाऊंगी.’’

‘‘बहू, हम ने तो तुम से कहा था कि…’’

बात काट कर सविता ने कहा, ‘‘3 साल से ज्यादा हो गया कहे हुए. खैर, अम्मां कोई बात नहीं, मेरा सामान शुभकार्य में लग गया,’’ कह कर वह घर के बाहर निकल गई. नवीन भी तेजी से उस के साथसाथ चलने लगा. पीछे से बाबूजी बोले, ‘‘मुझे पहले ही मालूम था कि एक दिन यह सब होगा.’’

‘‘जाते-जाते, बहुत सुना गई,’’ प्रमिला ने चेहरे में पसीना पोंछते हुए कहा.

‘‘सविता ने ठीक ही सुनाया है. मैं ने तो

तुम्हें उसी समय कहा था कि अपनी हैसियत के अनुसार सामान दो पर तुम ने बहू की सब बढि़या साडि़यां, चांदी के इतने सुंदर बरतन जो उस ने शौक से खरीदे होंगे और स्टील के सारे बरतन बेटी की शादी में दे डाले. ऊपर से उस के हाथों के सोने के दोनों कड़े भी उतरवाकर बेटी को दे दिए.

सविता भी तो हमारी बेटी है. एक बेटी से सामान छीन कर दूसरी बेटी को देना कहां की बुद्धिमानी थी?’’ उधर नवीन ने सविता के साथसाथ चलते हुए कहा, ‘‘मेरी एक बात तो सुन लो, तुम वहां नहीं जाओगी जहां की तुम ने योजना बनाई थी. मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं.’’

‘‘अब क्या दिखाओगे? अच्छी बात है, जो दिखाना चाहता हो वह भी देख लेती हूं.’’ नवीन ने एक टैक्सी रोकी और दोनों बैठ गए. नवीन ने टैक्सी चालक को पता बताया. टैक्सी शहर की भीड़भाड़ से बाहर एक खूबसूरत सी नई कालोनी में जा कर रुक गई.

‘‘उतरो,’’ नवीन ने हाथ से सहारा दे कर सविता को बाहर उतारा, फिर वे एक छोटे से खूबसरत बंगले के बाहर जा कर खड़े हो गए. बाहर ताला लगा था. नवीन ने जेब से चाबी निकाल कर सविता के हाथों पर रख दी, ‘‘खोलो, यह छोटी सी कौटेज तुम्हारी ही है.’’

‘‘क्या कह रहे हो?’’ आश्चर्यचकित हो सविता ने ताला खोला.

‘‘अब भीतर चल कर अपना घर तो देख लो.’’ सपनों में खोई सविता ने नवीन का हाथ पकड़ेपकड़े घर के भीतर प्रवेश किया.

‘‘बहुत खूबसूरत है, क्या सचमुच यह हमारा है? क्या आज से हम यहीं रहेंगे?’’

तन से सविता अपने घर की साजसंवार कर रह रही पर उस के मन में एक पश्चात्ताप था, दुख था. उस ने नवीन को मांबाप और बहन से अलग कर दिया. कुछ दिनों बाद वे दोनों घर गए. घर अब काफी ठीक था. रश्मि का सामान फैला नहीं था. सास ही नहीं ससुर भी घर को साफ रखने में हाथ बंटाते थे. कामवाली बाई लौट आई थी. सविता को देख कर चहक कर बोली, ‘‘मेम साहब, अब तो सब ठीक हो गए हैं. घर का काम करने में कुछ भी देर नहीं लगती. सही डोज दे गई हैं. डोज दे गई हैं.

 

Holi 2024: इस होली आपका आउटफिट हो ऐसा

गुझिया  से लेकर गुलाल तक, होली एक ऐसा त्यौहार है जिसका हम हर साल इंतजार करते हैं.पर जब बात  यह तय करने की आती है कि होली पर क्या पहनना है तब हम हमेशा कंफ्यूज हो जाते हैं. क्यूंकि हम न केवल आरामदायक कपडे पहनना चाहते हैं, बल्कि हम  स्टाइलिश भी लगना  चाहते हैं. लेकिन आज मै आपके इस कन्फ्यूजन को आसान करने जा रही हूँ. जी हां आज हम आपको बताएंगे कि इस बार आप होली पर क्या पहन सकते हैं.

For womens or girl ;-

white चिकन  कुर्ता और जींस- होली पर हर कोई white कलर के आउटफिट में ही होली खेलना चाहता है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि बरसों से इस रंग के फैशन ट्रेंड में बने रहने के पीछे कारण  क्या है? तो चलिए इस होली इस फैशन ट्रेंड की वजह जानते है .

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि होली का त्योहार रंगों का त्योहार होता है और इस दिन सफेद रंग यानी वाइट कलर इसलिए पहना जाता है क्योंकि इस पर बाकी सारे रंग साफ-साफ नजर आएं.

अपनी होली को स्टाइल के साथ मनाने के लिए आप वाइट चिकन कुर्ते के साथ ब्लू जींस कैरी कर सकती हैं. यह हमेशा ही खूबसूरत लगते है और ये कॉम्बिनेशन हर लड़की की अलमारी में बहुत ही आसानी से मिल जाता है. आप इस कॉन्बिनेशन को कॉलेज और  ऑफिस में भी पहनकर होली खेल सकती  हैं.

अगर आपके पास white कलर का चिकन कुर्ता नहीं है तो चिंता न करें आप कोई भी लाइट कलर का कुर्ता भी try कर सकती है.

ब्राइट कलर की टी-शर्ट के साथ हॉट पैंट- अगर आप इस होली तामझाम से दूर रहना चाहते हैं और कुछ कंफर्टेबल पहनने का सोच रहे हैं तो आप एक सिंपल  ब्राइट कलर की टी-शर्ट जैसे ब्राइट येलो ,ऑरेंज या रेड कलर के साथ हॉट पैंट ट्राय कर सकते हैं .यह  इस होली के लिए एक  शानदार विकल्प है. चूँकि यह ऑउटफिट  ढीला  और आरामदायक होता  है, इसलिए यदि आप रंग में सराबोर होते हैं  तो ये  आपके पैरों से नहीं चिपकेगा .

ट्रेडिशनल ड्रेस

जो लोग इस होली पर कुछ ट्रेडिशनल सा ट्राई करना चाहते हैं वो  साड़ी ट्राई कर सकते हैं. आप यह अपनी सोसाइटी या फंक्शन में कैरी कर सकते हैं. जॉर्जेट शिफॉन की सिल्वर बॉर्डर वाली साड़ी पहनना आपके लिए एक अच्छा ऑप्शन रहेगा. इसके अलावा आप कुंदन वर्क वाली वाइट सिल्क साड़ी भी पहन सकते हैं. इसके साथ आप सिल्वर चूड़ियों के साथ हल्की ज्वेलरी भी ट्राई कर सकते हैं. यंग गर्ल्स के लिए यह काफी अच्छा ऑप्शन है .

आप चाहे तो वाइट कलर का short  कुर्ता भी पहन सकती  हैं .आप इस short  कुर्ता के साथ का कलर फुल पटियाला पैजामा भी मैच कर सकती  हैं और अपने लुक को आप शिफॉन के दुपट्टे से कंप्लीट कर सकती हैं .

आप चाहें तो इस होली आप वाइब्रेंट प्रिंट और कलर वाली ड्रेस चुन सकती हैं.

For mens;-

वैसे तो लड़कियों की तुलना में लडको के पास चॉइस और आप्शन कम होते है फिर भी आप चाहे तो  चेक शर्ट को जींस के साथ carry कर सकते है .ये  बहुत अच्छा आप्शन है.

अगर आप चाहे तो ढीले-ढाले सफेद कुर्ते को कम्फर्ट-लाइट ब्लू जींस के साथ भी carry कर सकते हैं. यह लुक आपको स्टाइलिश दिखाने के साथ-साथ तनावमुक्त भी बनाता है.

shoes –अपने पैरों के लिए समझदारी से और आरामदायक  shoes का चयन करें .ऊँची हील वाली  या नाजुक सैंडल बिलकुल मत पहने .आप चाहें तो इसके बजाय फ्लिप-फ्लॉप, crox  या पुराने स्लीपर्स की एक जोड़ी चुन सकते हैं. ये आपके लिए काफी बेहतर और आरामदायक रहेगा.

sunglasses

ये होली खेलने के दौरान सबसे मत्वपूर्ण चीज़ है. यह न केवल आपको स्टाइलिश दिखने में मदद करेंगे बल्कि वे आपकी आंखों को रंग और धूप से बचाने का महत्वपूर्ण कार्य भी करेंगे.

बस यह ध्यान रखें कि आप होली पर जो भी पहन रहे हो कोशिश करें कि वह कॉटन मेटेरिअल  का ही हो .क्योंकि वो आपके लिए कंफर्टेबल रहेगा और रंग और गुलाल लगने के बाद आपकी स्किन को बार-बार iritate नहीं करेगा . सुनिश्चित करें की आप कोई भी ट्रांसपेरेंट ऑउटफिट न पहने क्योंकि जब ये पानी के कांटेक्ट में आता है  तब  यह बॉडी से स्टिक करता है  और आप अनकंफरटेबल फील कर सकते हैं.

Holi 2024: फेस्टिवल पर रखें अपनी सेहत का ख्याल, इन टिप्स को करें फॉलो

होली मौज-मस्ती, हर्ष-उल्लास, उधम-कूद, भागा-दौड़ी का त्योहार है. वसंत ऋतु में आने वाले इस पर्व की अलग की रौनक होती है. इस दौरान बनने वाले खास खाने, मिठाइयां, ठंडई, पकवान इसे और अधिक खास बनाते हैं.

अक्सर इस मौज मस्ती में लोग अपने और अपनो का ख्याल रखने से चूक जाते हैं. रंगों की मौज मस्ती में, खाने पीने में बहुत सी ऐसी लापरवाहियां हो जाती हैं जो होली के उमंग को फीका कर देती हैं. ऐसे में हम होली खेलने के दौरान और खानपान के बारे में कुछ खास टिप्स बताएंगे जिनको ध्यान में रख कर आप इस होली को यादगार और मजेदार बना सकती हैं. तो आइए शुरू करें

1. बचें सिंथेटिक रंगों से

होली में सिंथेटिक रंगों से बच कर रहें. इनमें लेड आक्साइड, मरकरी सल्फाइड ब्रोमाइड, कापर सल्फेट आदि भयानक केमिकल मिले होते हैं जो कि आंखों की एलर्जी, त्वचा में खुजली और अंधा तक बना देते हैं. इन रंगों के दूरी बनाने की कोशिश करें.

2. एलर्जी के मरीज रहें सतर्क

बहुत से लोगों को रंगों से एलर्जी होती है. उन्हें खास कर के इन रंगों से दूर रहना चाहिए. इसके अलावा जिन लोगों को त्वचा संबंधित परेशानियां हैं उन्हें भी इससे दूर रहना चाहिए. एक और जरूरी बात, रंग खेलने से पहले शरीर पर नारियल या सरसो का तेल लगा लें. इससे त्वचा पर रंग नहीं चिपकेगा और आप सुरक्षित रहेंगी.

3. अपने चोट-घाव को बचाएं

जिन लोगों को पहले से चोट या घाव लगी हो उन्हें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. लंबे समय तक पानी के संपर्क में रहने से चोट के बढ़ने का खतरा होता है. ऐसे में अपने चोट पर एंटीसेप्टिक लगा कर रहें.

4. तेल लगाना ना भूलें

रंग खेलते वक्त बालों में खूब तेल लगा लें और सिर को रुमाल या स्कार्फ से ढंक लें. सिंथेटिक रंग आपकी बालों के लिए हानिकारक होते हैं.

5. भांग पीने से बचें

इस मौके पर कोशिश करें कि आप ज्यादा पानी में भींगे नहीं. इससे आपको बुखार, जुकाम जैसी परेशानियां हो सकती हैं.

6. गुब्बारे वाली होली ना खेलें

गुब्बारे वाली होली ना खेलें. इससे आपकी आंखे चोटिल हो सकती हैं.

Holi 2024: बीरा- गांव वालों ने क्यों मांगी माफी

आज भी बीरा के मांबाप को भजन सिंह चेताने आए थे, ‘‘तुम अपनी बेटी को संभाल कर रखो, नहीं तो मैं उस के हाथपैर तोड़ दूंगा.’’

हर रोज बीरा किसी न किसी लड़के से झगड़ा कर लेती थी. गांव के लड़के बीरा को हमेशा छेड़ा करते थे, ‘तुम लड़के जैसी लगती हो, लेकिन तुम्हारी आवाज लड़की जैसी है. एक पप्पी नहीं दोगी…’

कोई लड़का बीरा के गाल को पकड़ लेता तो कोई मौका मिलते ही उस की छाती को भी. बीरा कभी बरदाश्त नहीं करती और मारपीट पर उतारू हो जाती. स्कूल, गलीमहल्ले, खेतखलिहान, खेल के मैदान, बीरा को हर रोज इन समस्याओं से जूझना पड़ता था.

धीरेधीरे पूरे गांव में यह प्रचार होने लगा कि बीरा किन्नर है.

इसी बीच बीरा की मां की मौत हो गई. अब तो बीरा की परेशानियों को दुनिया में समझने वाला भी कोई नहीं रहा. बीरा की मां उसे एक लड़की की तरह जिंदगी जीने का सलीका सिखाने आई थी. खाना बनाना, बरतन धोना, लड़की की तरह सिंगार करना, सबकुछ उस ने अपनी मां से सीखा था.

बीरा के पिता को लोग चिढ़ाने लगे. खुलेआम मजाक उड़ाने लगे, ‘तेरी बेटी किन्नर है. इस ने तो गांव की नाक कटवा दी है. आज तक इस गांव में कोई किन्नर पैदा नहीं हुआ है.’

बीरा के पिता का भी बरताव बदलने लगा. जैसेजैसे बीरा के कदम जवानी की तरफ बढ़ने लगे, गांव के लड़के उस की तरफ खिंचने लगे और मौका मिलते ही और ज्यादा छेड़ने लगे. बीरा इन हरकतों से तंग आ चुकी थी.

एक दिन बीरा के पिता ने कहा, ‘‘तुम घर से निकल जाओ. रोजरोज के झगड़ों से मैं तंग आ चुका हूं.’’

बीरा भी अपने परिवार वालों का रुख देख कर घर से निकल गई और बिना मंजिल के एक ट्रेन पकड़ ली. उसे मालूम नहीं था कि कहां जाना है.

बीरा आसनसोल स्टेशन पहुंची, जहां किन्नरों की हैड से उस की मुलाकात हुई. उस ने खाना खिलाया, प्यार से बातें कीं और ट्रेन में ही गाने गा कर लोगों से पैसा वसूलने का हुनर सिखाया.

बीरा अब पैसा तो कमाती थी, लेकिन उस का सुख नहीं भोगती थी, क्योंकि सारा पैसा किन्नर की हैड ले लेती. वह 4 महीने तक आसनसोल में रही. वह वहां की जिंदगी से भी तंग आ चुकी थी.

एक दिन किसी को बिना बताए बीरा पटना चली आई. वहां उस की रेशमा नामक समाजसेवी किन्नर से मुलाकात हुई. रेशमा ने बीरा के दर्द को समझने की कोशिश की.

बीरा पढ़ना चाहती थी. रेशमा ने उस का बीए में दाखिला करा दिया. वह मन लगा कर पढ़ने लगी. अपना खर्च निकालने के लिए वह शादीब्याह और पर्वत्योहार के मौके पर आरकैस्ट्रा में नाचगाने का काम भी करने लगी.

बीए करने के बाद बीरा ने कोचिंग की और बीपीएससी की तैयारी करने लगी. पहली बार में वह नाकाम हुई, पर दूसरी बार बीपीएससी पास कर गई. उस की बहाली बीडीओ के पद पर हुई. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने अपने साथियों को जम कर पार्टी दी.

बीरा के पिता को जब गांव वालों से मालूम हुआ तो उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिसे वे और गांव वाले हिकारत की नजर से देखते थे, वह बीरा पढ़लिख कर अफसर बन जाएगी.

गांव वालों द्वारा यह सूचना भी उन्हें चिढ़ाने जैसी ही लगी. पर उन के गांव का ही एक लड़का बीरा से मिलवाने के लिए उन्हें ब्लौक दफ्तर ले गया. पिता को गलती का एहसास हुआ.

बीरा ने अपने पिता से गांव का हालचाल पूछा और यह भी बोली, ‘‘पिताजी, अब आप को गांव के लोग यह कह कर नीचा नहीं दिखाएंगे कि आप की बेटी किन्नर है.’’

बीरा ने यह भी पूछा कि गांव की मुख्य समस्या क्या है? पिता ने कहा, ‘‘गांव में स्कूल नहीं है.’’

बीरा ने अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाने का वादा किया. 6 महीने के अंदर बीरा ने बच्चों को पढ़ने के लिए अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाया, जहां गांव के बच्चे मुफ्त में पढ़ने लगे.

गांव वालों ने बीरा से माफी मांगते हुए उसे सम्मानित किया. सम्मान समारोह में लोगों ने यही कहा कि उन के गांव में आज तक कोई ऐसा लड़का या लड़की नहीं पैदा हुई, जो हमारे गांव का नाम रोशन कर सके. बीरा ने इस गांव का मानसम्मान बढ़ाया है.

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