Romantic Story In Hindi: प्रेम लहर की मौत- भाग 1

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

लड़की मेरे सामने वाली विंडो सीट पर बैठी थी. जबकि लड़का खिड़की की रौड पकड़कर प्लेटफार्म पर खड़ा था. दोनों मूकदृष्टि से एकदूसरे को देख रहे थे. लड़की अपने दाहिने हाथ की सब से छोटी अंगुली से लड़के के हाथ को बारबार छू रही थी, मानों उसे महसूस करना चाहती हो. दोनों में कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था. बस, अपलक एकदूसरे को ताके जा रहे थे. ट्रेन का हार्न बजा. धक्के के साथ ट्रेन खिसकी तो दोनों एक साथ बोल पड़े, ‘‘बाय…’’ और इसी के साथ लड़की की आंखों में आंसू छलक आए.

  ‘‘टेक केयर. संभल कर जाना.’’ लड़के ने कहा.

लड़की ने सिर्फ हांमें सिर हिला दिया. आंखों से ओझल होने तक दोनों की नजरें एकदूसरे पर ही टिकी रहीं. जहां तक दिखाई देता रहा, दोनों एकदूसरे को देखते रहे. न चाहते हुए भी मैं उन दोनों के व्यक्तिगत पलों को अनचाहा साझेदार बन कर देखता रहा. लड़की अभी भी खिड़की से बाहर की ओर ही ताक रही थी. मैं अनुभव कर रहा था कि वह आंखों के कोनों में उतर आए आसुंओं को रोकने का निरर्थक प्रयास कर रही है.

मुझ से रहा नहीं गया, मैं ने बैग से पानी की बोतल निकाल कर उस की ओर बढ़ाई. उस ने इनकार में सिर हिलाते हुए धीरे से थैंक्सकहा. इस के बाद वक्त गुजारने के लिए मैं मोबाइल में मन लगाने की कोशिश करने लगा. पता नहीं क्यों, उस समय मोबाइल की अपेक्षा सामने बैठी लड़की ज्यादा आकर्षित कर रही थी.

मोबाइल मेरे हाथ में था, पर न तो फेसबुक खोलने का मन हो रहा था. न किसी दोस्त से चैट करने में मन लगा. मेरा पूरा ध्यान उस लड़की पर था.

खिड़की से आने वाली हवा की वजह से उस के बालों की लटें उस के गालों को चूम रही थीं. वह बहुत सुंदर या अप्सरा जैसा सम्मोहन रखने वाली तो नहीं थी, फिर भी उस में ऐसा तो कुछ था कि उस पर से नजर हटाने का मन नहीं हो रहा था.

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आंखों में दर्द लिए मध्यम कदकाठी की वह लड़की सादगी भरे हलके गुलाबी और आसमानी सलवार सूट में बहुत सुंदर लग रही थी. उस ने अपना एक हाथ खिड़की पर टिका रखा था और दूसरे हाथ की अंगुली में अपने लंबे काले घुंघराले बालों को अंगूठी की तरह ऐसे लपेट और छोड़ रही थी, जैसे मन की किसी गुत्थी को सुलझाने का प्रयास कर रही हो.

कोई जानपहचान न होने के बावजूद ऐसा लग रहा था, जैसे वह मेरी अच्छी परिचित हो. शायद इसीलिए मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने उस से पूछ लिया, ‘‘लगता है, आप ने अपने किसी बहुत करीबी को खोया है, कोई अप्रिय घटना घटी है क्या आप के साथ?’’

बाहर की ओर से नजर फेर कर उस ने मेरी ओर देख कर कहा, ‘‘हां, अकाल बाल मृत्यु हुई है, इस के बाद धीरे से बोली, ‘‘मेरे प्रेम की.’’

उस के ये शब्द मुझे अंदर तक स्पर्श कर गए थे. उस ने जो कुछ कहा वह मेरी समझ में नहीं आया था. इसलिए मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्याऽऽ?’’

  ‘‘अकाल बाल मृत्यु हुई है मेरे प्यार की.’’ उस ने फिर वही बात कही. और इसी के साथ उस की आंखों से आंसू छलक कर गालों पर आ गए. उस ने अश्रुबिंदु को अंगुली पर लिया और खिड़की के बाहर उड़ा दिया.

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मैं ने खुद को रोकने का काफी प्रयास किया, पर मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने अंत में पूछ ही लिया, ‘‘आप का क्या नाम है?’’

उस ने मेरी ओर देख कर बेफिक्री से कहा, ‘‘क्या करेंगे मेरा नाम जान कर? वैसे असीम मुझे अनु कहता था.’’

  ‘‘मैं आप की कोई मदद…?’’ मैं ने बात को आगे बढ़ाने की कोशिश में पूछा, पर मेरी बात पूरी होने के पहले ही वह बीच में बोल पड़ी, ‘‘मेरी मदद…? शायद अब कोई भी मेरी मदद नहीं कर सकता.’’

  ‘‘पर इस तरह आप यह दर्द कब तक सहन करती रहेंगी? मैं अजनबी हूं, पर आप चाहें तो अपना दर्द मुझे बता सकती हैं. कहते हैं दर्द बयां कर देने से कम हो जाता है.’’ मैं ने कहा.

वह भी शायद हृदय का दर्द कम करना चाहती थी, इसलिए उस ने बताना शुरू किया, ‘‘मैं और वैभवी रूममेट थीं. दोनों नौकरी करती थीं और पीजी में रहती थीं. असीम निकी का दोस्त था. दोस्त भी ऐसावैसा नहीं, खास दोस्त. दोनों की फोन पर लंबीलंबी बातें होती थीं. एक दिन शाम को निकी कमरे में नहीं थी, पर उस का मोबाइल कमरे में ही पड़ा था, तभी उस के फोन की घंटी बजी. मैं ने फोन रिसीव कर लिया. असीम से वह मेरी पहली और औपचारिक बातचीत थी.

  ‘‘हम दोनों एकदूसरे से परिचित थे. यह अलग बात थी कि हमारी बातचीत कभी नहीं हुई थी. निकी मुझ से असीम की बातें करती रहती थी तो असीम से मेरी. इस तरह हम दोनों एकदूसरे से परिचित तो थे ही. यही वजह थी कि पहली बातचीत में ही हम घुलमिल गए थे. हम दोनों ने मोबाइल नंबर भी शेयर कर लिए थे.

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  ‘‘इस के बाद फोन पर बातचीत और मैसेज्स का सिलसिला चल निकला था. औफिस की, घर की, दोस्ती की, पसंदनापसंद, फिल्में, हौबी हमारी बातें शुरू होतीं तो खत्म ही नहीं होती थीं. मुझे लिखने का शौक था और असीम को पढ़ने का शौक. मैं कविता या कहानी, कुछ भी लिखती, असीम को अवश्य सुनाती और उस से चर्चा करती.

  ‘‘हम लगभग सभी बातें शेयर करते. हमारी मित्रता में औरत या मर्द का बंधन कभी आड़े नहीं आया. इस तरह हम कब आपसे तुमपर आ गए और कब एकदूसरे के प्रेम में डूब गए. पता ही नहीं चला. फिर भी हम ने कभी अपने प्रेम को व्यक्त नहीं किया. जबकि हम दोनों ही जानते थे लेकिन दोनों में से किसी ने पहल नहीं की.

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Romantic Story In Hindi: हमकदम- भाग 3- अनन्या की तरक्की पर क्या था पति का साथ

कभीकभी वह खुद को समझाती हुई सोचती कि जिंदगी में कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. इस तरह के सकारात्मक सोच उस के मन में नवीन उत्साह भर जाते. आखिरकार उत्साह की परिणति लगन में और लगन की परिणति कठोर परिश्रम में हो गई. नतीजा सुखदायक रहा. अनन्या ने विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी में दूसरा स्थान पाया.

चंद्रशेखर ने भी खुश हो कर कहा था, ‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी अनु.’

अनन्या ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से ‘नेट’ करने के बाद उस ने हिंदी साहित्य में पीएच.डी. की उपाधि भी हासिल की.

उच्च शिक्षा ने अनन्या की सोच को बहुत बदल डाला. सहीगलत की पहचान उसे होने लगी थी. कभीकभी वह सोचती कि आज उस के पास सबकुछ है. प्यारी सी बिटिया, स्नेही पति, उच्च शिक्षा, आगे की संभावनाएं. क्या यह बिना चंद्रशेखर के सहयोग के संभव था? उस की राह की सारी मुश्किलों को चंद्रशेखर ने अपने मजबूत कंधों पर उठा रखा था. वह जान गई थी कि प्रेम शब्दों का गुलाम नहीं होता. प्रेम तो एक अनुभूति है जिसे महसूस किया जा सकता है.

अनन्या को लेक्चरर पद के लिए इंटरव्यू देने जाना था. वह तैयार हो कर बैठक में आई तो एक सुखद एहसास से भीग उठी, जब उस ने यह देखा कि चंद्रशेखर उस की मार्कशीट और प्रमाणपत्रों को फाइल में सिलसिलेवार लगा रहे थे. उसे देखते ही चंद्रशेखर ने कहा, ‘जल्दी करो, अनु, नहीं तो बस छूट जाएगी.’

असीम स्नेह से पति को निहारती हुई अनन्या ने धीरे से कहा, ‘मुझे आप से कुछ कहना है.’

‘बातें बाद में होंगी, अभी चलो.’.

‘नहीं, आप को आज मेरी बात सुननी ही होगी.’

‘तुम क्या कहोगी, मुझे पता है, वही रटारटाया वाक्य कि आप मुझ से प्यार नहीं करते,’ चंद्रशेखर व्यंग्य से हंस कर बोला तो अनन्या झेंप गई.

‘ठीक है, चलिए,’ उस ने कहा और तेजी से बाहर निकल गई. आज वह अपने पति से कहना चाहती थी कि वह अपने प्रति उन के प्यार को अब महसूस करने लगी है. पर मन की बात मन में ही रह गई.

साक्षात्कार दे कर आई अनन्या को नौकरी पाने का पूरा भरोसा था. पर उस समय वह जैसे आकाश से गिरी जब उस ने चयनित व्याख्याताओं की सूची में अपना नाम नहीं पाया. हृदय इस चोट को सहने के लिए तैयार नहीं था अत: वह फूटफूट कर रोने लगी.

पत्नी को रोता देख कर चंद्रशेखर भी संज्ञाशून्य सा खड़ा रह गया. जानता था, असफलता का आघात मौत के समान कष्ट से कम नहीं होता.

‘देखो, अनु,’ पत्नी को दिलासा देते हुए चंद्रशेखर बोला, ‘यह भ्रष्टाचार का युग है. पैरवी और पैसे के आगे आज के परिवेश में डिगरियों का कोई महत्त्व नहीं रहा. तुम दिल छोटा मत करो. एक न एक दिन तुम्हें सफलता जरूर मिलेगी.’

एक दिन चंद्रशेखर ने अनन्या को समझाते हुए कहा था, ‘शिक्षा का अर्थ केवल धनोपार्जन नहीं है. हमारे समाज में आज भी शिक्षित महिलाओं की कमी है, तुम इस की अपवाद हो, यही कम है क्या?’

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‘आप मुझे गलत समझ रहे हैं. मैं केवल पैसों के लिए व्याख्याता बनने की इच्छुक नहीं थी. अपनी अस्मिता की तलाश…समाज में एक ऊंचा मुकाम पाने की अभिलाषा है मुझे. मैं आम नहीं खास बनना चाहती हूं. अपने वजूद को पूरे समाज की आंखों में पाना चाहती हूं मैं.’

चंद्रशेखर पत्नी की बदलती मनोदशा से अनजान नहीं था. समझता था, अनन्या अवसाद के उन घोर दुखदायी पलों से गुजर रही है जो इनसान को तोड़ कर रख देते हैं.

एक दिन चंद्रशेखर के दोस्त रमेश ने बातों ही बातों में उसे बताया कि 4-5 महीने में ग्राम पंचायत के चुनाव होने वाले हैं और उस की पत्नी निशा जिला परिषद की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने वाली है.

चंद्रशेखर ने कहा, ‘आज के माहौल में तो कदमकदम पर राजनीति के दांवपेच मिलते हैं. कई लोग चुनाव मैदान में उतर जाएंगे. कुछ गुंडे होंगे, कुछ जमेजमाए तथाकथित नेता. ऐसे में एक महिला का मैदान में उतरना क्या उचित है?’

‘ऐसी बात नहीं है. पंचायत चुनाव में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है. अगर सीट महिला के लिए आरक्षित हो तो प्रयास करने में क्या हर्ज है? देखना, कई पढ़ीलिखी महिलाएं इस क्षेत्र में आगे आएंगी,’ रमेश ने समझाते हुए कहा.

चंद्रशेखर के मन में एक विचार कौंधा, अगर अनन्या भी कोशिश करे तो? उस ने इस बारे में पूरी जानकारी हासिल की तो पता चला कि उस के इलाके की जिला परिषद सीट भी महिला आरक्षित है. चंद्रशेखर के मन में एक नई सोच ने अंगड़ाई ले ली थी.

‘मैं चुनाव लडूं? क्या आप नहीं जानते कि आज की राजनीति कितनी दूषित हो गई है?’ अनन्या बोली.

‘इस में हर्ज ही क्या है. वैसे भी अच्छे विचार के लोग यदि राजनीति में आएंगे तो राजनीति दूषित नहीं रहेगी. तुम अपनेआप को चुनाव लड़ने के लिए तैयार कर लो.’

अनन्या के मन में 2-3 दिन तक तर्कवितर्क चलता रहा. आखिरकार उस ने हामी भर दी.

यह बात जब अनन्या के ससुर ने सुनी तो वह बुरी तरह बिगड़ उठे, ‘लगता है दोनों का दिमाग खराब हो गया है. जमींदार खानदान की बहू गांवगांव, घरघर वोट के लिए घूमती फिरे, यह क्या शोभा देता है? पुरखों की इज्जत क्यों मिट्टी में मिलाने पर तुले हो तुम लोग?’

‘ऐसा कुछ नहीं होगा, बाबूजी, इसे एक कोशिश कर लेने दीजिए. जरा यह तो सोचिए कि अगर यह जीत जाती है तो क्या खानदान का नाम रोशन नहीं होगा?’ चंद्रशेखर ने भरपूर आत्मविश्वास के साथ कहा था.

चंद्रशेखर ने निश्चित तिथि के भीतर ही अनन्या का नामांकनपत्र दाखिल कर दिया. फिर शुरू हुई एक नई जंग.

अनन्या ने आम उम्मीदवारों से अलग हट कर अपना प्रचार अभियान शुरू किया. वह गांव की भोलीभाली अनपढ़ जनता को जिला परिषद और उस से जुड़ी जन कल्याण की तमाम बातों को विस्तार से समझाती थी. धीरेधीरे लोग उस से प्रभावित होने लगे. उन्हें महसूस होने लगा कि जमींदार की बहू में सामंतवादी विचारधारा लेशमात्र भी नहीं है. वह जितने स्नेह से एक उच्च जाति के व्यक्ति से मिलती है उतने ही स्नेह से अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों से भी मिलती है. और उस का व्यवहार भी आम नेताओं जैसा नहीं है.

धीरेधीरे उस की मेहनत रंग लाने लगी. 50 हजार की आबादी वाले पूरे इलाके में अनन्या की चर्चा जोरों पर थी.

मतगणना के दिन ब्लाक कार्यालय के बाहर हजारों की भीड़ जमा थी. आखिरकार 2 हजार वोटों से अनन्या की जीत हुई. उस की जीत ने पूरे समाज को दिखा दिया था कि आज भी जनता ऊंचनीच, जातिपांति, धर्म- समुदाय और अमीरीगरीबी से ऊपर उठ कर योग्य उम्मीदवार का चयन करती है. बड़ी जाति के लोगों की संख्या इलाके में कम होने पर भी हर जाति और धर्म के लोगों से मिले अपार समर्थन ने अनन्या को जीत का सेहरा पहना दिया था.

घर लौट कर अनन्या ने ससुर के चरणस्पर्श किए तो पहली बार उन्होंने कहा, ‘खुश रहो, बहू.’

अनन्या आंतरिक खुशी से अभिभूत हो उठी. उसे लगा, वास्तव में उस की जीत तो इसी पल दर्ज हुई है.

उस ने फिर कभी मुड़ कर पीछे नहीं देखा. हमकदम के रूप में चंद्रशेखर जो हर पल उस के साथ थे. 3 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी वह भारी बहुमत से विजयी हुई. उस का रोमरोम पति के सहयोग का आभारी था. अगर वह हर मोड़ पर उस का साथ न देते तो आज भी वह अवसाद के घने अंधेरे में डूबी जिंदगी को एक बोझ की तरह जी रही होती.

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‘‘खट…’’ तभी कमरे का दरवाजा खुला और अनन्या की सोच पर विराम लग गया. चंद्रशेखर ने भीतर आते हुए पूछा, ‘‘तुम अभी तक सोई नहीं?’’

‘‘आप कहां रह गए थे?’’

‘‘कुछ लोग बाहर बैठे थे. उन्हीं से बातें कर रहा था. तुम से मिलना चाहते थे तो मैं ने कह दिया कि मैडम कल मिलेंगी,’’ चंद्रशेखर ने ‘मैडम’ शब्द पर जोर डाल कर हंसते हुए कहा.

भावुक हो कर अनन्या ने पूछा, ‘‘अगर आप का साथ नहीं मिलता तो क्या आज मैं इस मुकाम पर होती? फिर क्यों आप ने सारा श्रेय मेरी लगन और मेहनत को दे दिया?’’

‘‘तो मैं ने गलत क्या कहा? अगर हर इनसान में तुम्हारी तरह सच्ची लगन हो तो रास्ते खुद ही मंजिल बन जाते हैं. हां, एक बात और कि तुम इसे अपना मुकाम मत समझो. तुम्हारी मंजिल अभी दूर है. जिस दिन तुम सांसद बन कर संसद में जाओगी और इस घर के दरवाजे पर एक बड़ी सी नेमप्लेट लगेगी…डा. अनन्या सिंह, सांसद लोकसभा…उस दिन मेरा सपना सार्थक होगा,’’ चंद्रशेखर ने कहा तो अनन्या की आंखें खुशी से छलक पड़ीं.

‘‘हर औरत को आप की तरह प्यार करने वाला पति मिले.’’

‘‘अच्छा, इस का मतलब तो यह हुआ कि तुम अब मुझ पर यह आरोप नहीं लगाओगी कि मैं तुम से प्यार नहीं करता.’’

‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ अनन्या पति के कंधे पर सिर टिका कर असीम स्नेह से बोली.

‘‘तो तुम अब यह पूरी तरह मान चुकी हो कि मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं,’’ चंद्रशेखर ने मुसकरा कर कहा तो अनन्या भी हंस कर बोल पड़ी, ‘‘हां, मैं समझ चुकी हूं, प्यार की परिभाषा बहुत गूढ़ है. कई रूप होते हैं प्रेम के,

कई रंग होते हैं प्यार करने वालों के, पर सच्चे प्रेमी तो वही होते हैं जो जीवन साथी की तरक्की के रास्ते में अपने अहं का पत्थर नहीं आने देते, ठीक आप

की तरह.’’

एक स्वर्णिम भोर की प्रतीक्षा में रात ढलने को बेताब थी. कुछ क्षणों में पूर्व दिशा में सूर्य की किरणें अपना प्रकाश फैलाने को उदित हो उठीं.

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Romantic Story In Hindi: हमकदम- भाग 2- अनन्या की तरक्की पर क्या था पति का साथ

रात बहुत बीत चुकी थी. अनन्या की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. चंद्रशेखर भी करवटें बदल रहे थे. थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, ‘अनन्या, तुम कल सुबह फार्म भर कर मुझे दे देना. मैं ने सोच लिया है कि तुम आगे जरूर पढ़ोगी.’

अनन्या को आश्चर्यमिश्रित खुशी हुई, ‘सच?’

‘हां, मैं परसों पटना जा रहा हूं, तुम्हारा फार्म भी विश्वविद्यालय में जमा करता आऊंगा.’

एक दिन चंद्रेशेखर बैंक से लौटा तो बेहद खुश था. उस ने अनन्या से कहा, ‘आज पटना से मेरे दोस्त रमेश का फोन आया था. बता रहा था कि तुम्हारा नाम प्रवेश पाने वालों की सूची में है. प्रवेश लेने की अंतिम तिथि 25 है. तुम कल से ही सामान बांधना शुरू कर दो. हमें परसों जाना है क्योंकि जल्दी पहुंच कर तुम्हारे लिए होस्टल में रहने की भी व्यवस्था करनी होगी.’

‘मैं होस्टल में रहूंगी?’ अनन्या ने पूछा, ‘घर से दूर…अकेली…क्या यहां कालिज नहीं है?’ उस ने अपने मन की बात कह ही डाली.

‘देखो, विश्वविद्यालय की बात ही अलग होती है. तुम ज्यादा सोचो मत. चलने की तैयारी करो. मैं बाबूजी को बता कर आता हूं,’ कहते हुए चंद्रशेखर बाबूजी के कमरे की ओर चला गया.

पटना आते समय अनन्या ने सासससुर के चरणस्पर्श किए तो सास ने उसे झिड़क कर कहा था, ‘जाओ बहू, बेहद कष्ट में थीं न तुम यहां…अब बाहर की दुनिया देखो और मौज करो.’

चंद्रशेखर के प्रयास से अनन्या को महिला छात्रावास में कमरा मिल गया. उसे वहां छोड़ कर आते वक्त उस ने कहा था, ‘तुम्हारे भीतर की लगन को महसूस कर के ही मैं ने अपने परिवार वालों की इच्छा के खिलाफ यह कदम उठाया है. मैं जानता हूं कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी. किसी चीज की जरूरत हो तो फोन कर देना.’

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अनन्या ने धीरे से सिर हिला दिया था. होस्टल के गेट पर खड़ी हो कर वह तब तक पति को देखती रही जब तक वह नजरों से ओझल नहीं हो गए.

उस का मन यह सोच कर दुख से भर उठा था कि उन्होंने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. कितनी निष्ठुरता से छोड़ गए मुझे. इतना तो कह ही सकते थे न कि अनु, मुझे तुम्हारी कमी खलेगी, पर नहीं, सच में मुझ से प्यार हो तब न…

आंसू पोंछ कर वह अपने कमरे में चली आई. कुछ दिनों तक उस का मन खिन्न रहा पर धीरेधीरे सबकुछ भूल कर वह पढ़ाई में रम गई. तेज दिमाग अनन्या ने बी.ए. फाइनल की परीक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए.

एम.ए. में प्रवेश लेने के बाद वह कुछ दिन की छुट्टी में घर आई थी. एक दिन चंद्रशेखर ने उस से कहा, ‘एम.ए. में तुम्हें विश्वविद्यालय में पोजीशन लानी है. उस के लिए बहुत मेहनत की जरूरत है तुम्हें.’

अनु ने सोचा, छुट्टियों में घर आई हूं तब भी वही पढ़ाई की बातें, प्रेम की मीठीमीठी बातों का मधुरिम एहसास और वह दीवानापन न जाने क्यों चंद्रशेखर के मन में है ही नहीं. जब देखो पढ़ो, कैरियर बनाओ…उन्हें मुझ से जरा भी प्यार नहीं.

‘अनु, कहां खो गईं?’ चंद्रशेखर ने कहा, ‘देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूं.’

चंद्रशेखर कहता जा रहा था और अनु जैसे जड़ हो गई थी. मन में विचारों का बवंडर चल रहा था, ‘क्या यही प्यार है? न रस पगे दो मीठे बोल, न मनुहार…ज्यादा खुश हुए तो गए और हिंदी साहित्य की किताब उठा कर ले आए. स्वार्थी कहीं के…’

‘अनु, मैं तुम्हें कुछ दिखा रहा हूं,’ चंद्रशेखर ने फिर कहा तो अनन्या बनावटी हंसी हंस कर बोली, ‘हां, अच्छी किताब है.’

अनन्या ने मन ही मन एक ग्रंथि पाल ली थी कि चंद्रशेखर मुझ से प्यार नहीं करते. तभी तो अपने से दूर मुझे होस्टल भेज कर भी खुश हैं. क्या प्रणय की वह स्वाभाविक आंच जो मुझे हर समय जलाती रहती है, उन्हें तनिक भी नहीं जलाती होगी? शायद नहीं, उन्हें मुझ से प्यार हो तब न…

इन्हीं दिनों अनन्या को पता चला कि वह मां बनने वाली है. पूरा परिवार खुश था. एक दिन चंद्रशेखर ने उस को समझाते हुए कहा, ‘तुम्हें बच्चे के जन्म के बाद परीक्षा देने जरूर जाना चाहिए. साल बरबाद मत करना, बीता समय फिर लौट कर नहीं आता.’

अनन्या पति के साथ कुछ दिनों के लिए मायके आई थी. एक शाम घूमने के क्रम में वह गोलगप्पे वाले खोमचे के सामने ठिठक गई तो चंद्रशेखर ने पूछ लिया, ‘क्या हुआ?’

‘मुझे गोलगप्पे खाने हैं.’

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं चल गया. अपना नहीं तो कम से कम बच्चे का तो खयाल करो,’ चंद्रशेखर ने गुस्से से कहा तो अनन्या पैर पटकती हुई घर चली आई.

‘आप ने एक छोटी सी बात पर मुझे इतनी बुरी तरह क्यों डांटा? एक छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते? अरमान ही रह गया कि आप कभी कोई उपहार देंगे या फिर कहीं घुमाने ले जाएंगे. मेरी खुशी से आप को क्या लेनादेना…मुझ से प्यार हो तब न. जब देखो, पढ़ो…कैरियर बनाओ, जैसे दुनिया में और कुछ है ही नहीं,’ रात में अनन्या मन की भड़ास निकालते हुए बोली.

चंद्रशेखर कुछ पलों तक अपलक पत्नी को निहारता रहा फिर संजीदा हो कर बोला, ‘तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मैं तुम से प्यार नहीं करता, पतिपत्नी का रिश्ता तो प्रेम और समर्पण की डोरी से बंधा होता है.’

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‘अपनी सारी फिलासफी अपने तक ही रखिए. मैं अच्छी तरह जानती हूं कि आप मुझ से…’ ‘हांहां, मैं तुम से प्यार नहीं करता, मुझे प्रमाण देने की जरूरत नहीं है,’ चंद्रशेखर बीच में ही अनन्या की बात काट कर बोला.

एक दिन अनन्या गुडि़या जैसी बेटी की मां बन गई. जब बच्ची 3 महीने की हो गई तब चंद्रशेखर ने पत्नी से कहा कि उसे अब एम.ए. की परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए.

‘क्या मैं 6 महीने में परीक्षा की तैयारी कर पाऊंगी? सोचती हूं इस साल ड्राप कर दूं. अभी गुडि़या छोटी है.’

पत्नी की बातों को सुन कर उसे समझाते हुए चंद्रशेखर बोला, ‘देखो, अनन्या, पढ़ाईर् एक बार सिलसिला टूट जाने के बाद फिर ढंग से नहीं हो पाती. मैं गुडि़या के बारे में मां से बात करूंगा.’

अनन्या को लगा जैसे कोई मुट्ठी में ले कर उस का दिल भींच रहा हो. इतना बड़ा फैसला ऐसे सहज ढंग से सुना दिया जैसे छोटी सी बात हो. मेरी नन्ही सी बच्ची मेरे बिना कैसे रहेगी?

अनन्या की सास ने पोती को पास रखने से साफ मना कर दिया, ‘मुझे

तो माफ ही करो तुम लोग. कैसी मां है यह जो बेटी को छोड़ कर पढ़ने जाना चाहती है.’

अनन्या ने चीख कर कहना चाहा कि यह आप के बेटे की इच्छा है, मेरी नहीं पर कह नहीं पाई. एक दिन उस के पिता का फोन आया तो उस ने सारी बातें उन्हें बताते हुए पूछा, ‘अब आप ही बताइए, पापा, मैं क्या करूं?’

‘तुम गुडि़या को हमारे पास छोड़ कर होस्टल जा सकती हो बेटी, समय सब से बड़ी पूंजी है. इसे गंवाना नहीं चाहिए. मेरे खयाल से चंद्रशेखर बाबू ठीक कहते हैं,’ उस के पिता ने कहा.

अनन्या के सिर से एक बोझ सा हट गया. दूसरे ही दिन वह होस्टल जाने की तैयारी करने लगी. नन्ही सी बेटी को मायके छोड़ कर जाते समय अनन्या का दिल रोनेरोने को हो आया था पर मन को मजबूत कर वह रिकशे पर बैठ गई.

धीरेधीरे 6 माह बीत गए. अनन्या जब भी अपनी बेटी के बारे में सोचती उस का मन पढ़ाई से उचट जाता. वह इतनी भावुक हो जाती कि आंसुओं पर उस का बस नहीं रह जाता.

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Romantic Story In Hindi: प्रेम लहर की मौत- भाग 4

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लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

असीम ने तो स्माइल की, पर मेरी आंखों से आंसू टपक पड़े. आंसू गिरते देख उस ने कहा, ‘‘प्लीज अनु, रोना मत.’’

  ‘‘नहीं, मैं बिलकुल नहीं रोऊंगी.’’ मैं ने कहा.

  ‘‘तुम्हें तो पता है अनु, तुम मेरे सामने बिलकुल झूठ नहीं बोल सकती, तो फिर क्यों बेकार की कोशिश कर रही हो. मैं तुम्हें अच्छी तरह से जानता हूं अनु. मुझे पता है कि तुम रोओगी, खूब रोओगी और मुझे यह हर्ट करेगा. जबकि मैं नहीं चाहता कि तुम मेरी वजह से रोओ, जी जलाओ.’’

तभी निकी का फोन आ गया कि ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट हो गया है. हम दोनों एकदूसरे को देखते रहे. थोड़ी देर तक हमारे बीच मौन छाया रहा. अचानक असीम ने पूछा, ‘‘अनु, तुम कम से कम यह तो बता दो कि तुम जा कहां रही हो?’’

  ‘‘नहीं, अब मैं कुछ नहीं बताऊंगी. मेरा यह मोबाइल नंबर भी कल सुबह से बंद हो जाएगा. जहां भी जाऊंगी, नया नंबर ले लूंगी. अब अंत में सिर्फ इतना ही कहूंगी कि तुम खुश रहना, सुखी रहना और प्रियम को भी खुश और सुखी रखना, उसे खूब प्रेम करना और हमारी मुलाकात को एक सुंदर सपना समझ कर भूल जाना. इस के बाद हम स्टेशन पर आ गए. हमारे स्टेशन आतेआते टे्रन आ गई थी. उस के बाद जो हुआ, उसे आप ने देखा ही है.’’ कह कर अनु चुप हो गई.

मैं मन ही मन अनु के प्रेम, उस की संवेदनशीलता, उस की समर्पण भावना को सलाम करते हुए सोच रहा था कि काश! इसी तरह प्रेम करने वाली सुंदर लड़की मुझे भी मिल जाती तो मेरे लिए स्वर्ग इसी धरती पर उतर आता. सच बात तो यह थी कि अनु से मुझे प्यार हो गया था. मन कर रहा था, क्यों न मैं उस से अपने दिल की बात कह कर देखूं.

मैं मन की बात कहने का विचार कर ही रहा था कि उस ने एक ऐसी बात कह दी, जिस से मेरे मन में जो प्रेम पैदा हुआ था, उस की अकाल मौत हो गई थी. एक तरह से मेरा प्रेम पैदा होते ही मर गया था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं यह नौकरी छोड़ने की जो बात कर रही हूं, यह सब नाटक है. मैं ने न नौकरी छोड़ी है और न यह शहर छोड़ कर जा रही हूं.’’

  ‘‘क्या?’’ मैं एकदम से चौंका, ‘‘आप ने यह नाटक क्यों किया, आप ने इतना बड़ा झूठ क्यों बोला?’’

  ‘‘क्योंकि असीम और निकी ने सलाह कर के प्रियम नाम के झूठे करेक्टर को खड़ा कर के मेरे साथ नाटक किया, शायद उन्हें पता नहीं कि मैं उन दोनों से बड़ी नाटकबाज हूं.

  ‘‘अगर असीम मेरे बारे में सब जानता है, तो मैं भी बेवकूफ नहीं हूं कि उस के बारे में सब कुछ न जानती. मैं उस से प्रेम करने लगी थी तो उस के बारे में एकएक चीज का पता लगा कर ही प्रेम किया था. जिस दिन निकी ने मेरे सामने प्रियम का नाम ले कर मुझे चिढ़ाने और परेशान करने के लिए नाटक शुरू किया, उसी के अगले दिन ही मैं ने सच्चाई का पता लगा लिया था, क्योंकि मुझे तुरंत शक हो गया था.’’

  ‘‘कैसे?’’ मैं ने पूछा.

क्योंकि अगर प्रियम से असीम का प्यार चल रहा होता तो निकी इतने दिनों तक इंतजर न करती. क्योंकि उसे मेरे और असीम के प्रेम संबंध की एकएक बात पता थी. अगर असीम के जीवन में कोई प्रियम होती तो वह मुझे पहले ही बता कर असीम के साथ इतना आगे न बढ़ने देती.

अगले दिन मुझे इस का सबूत भी मिल गया था. निकी सुबह नहा रही थी तो उस का मोबाइल मेरे हाथ लग गया, उस में कुछ मैसेज थे, जिस से मेरा शक यकीन में बदल गया. बस, फिर मैं ने भी नाटक शुरू कर दिया.

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मैं ने ऐसा नाटक किया कि उन्हें लगा मैं सचमुच बहुत दुखी हूं. मुझे तो सच्चाई पता थी. पर उन्हें पता नहीं था कि मैं भी नाटक कर रही हूं. इस खेल में मैं उन से ज्यादा होशियार निकली. क्योंकि वे दोनों मेरे आते वक्त तक सच्चाई उजागर नहीं कर पाए. अब उन्हें डर सता रहा है कि सच्चाई उजागर करने पर मैं उन पर खफा हो जाऊंगी?’

मैं ने अनु को बीच में रोक कर पूछा, ‘‘इस का मतलब आप ने नौकरी छोड़ी नहीं है, सिर्फ उन लोगों से कहा कि नौकरी छोड़ कर जा रही हो.’’

  ‘‘पागल हूं, जो नौकरी छोड़ देती. केवल एक सप्ताह की छुट्टी ले कर घर जा रही हूं. घर पहुंच कर फोन का सिम निकाल दूंगी. औफिस वालों को दूसरा नंबर दे आई हूं्. असीम मुझे परेशान करना चाहता था. बदले में मैं ने उसे सबक सिखाया. मैं उसे इतना प्यार करती हूं कि उस के बिना जी नहीं सकती. अगर सचमुच में प्रियम होती तो मैं आप को अपनी यह कहानी बताने के लिए न होती. किसी मानसिक रोगी अस्पताल में अपना इलाज करा रही होती.’’

  ‘‘सलाम है आप के प्रेम को, जब लौट कर  आओगी तो…’’

मेरी बात बीच में ही काट कर अनु ने कहा, ‘‘यही तो सरप्राइज होगा असीम के लिए.’’

अनु के बारे में सोचते हुए कब आंख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला. मुझे असीम से ईर्ष्या हो रही थी. ट्रेन स्टेशन पर रुकी तो मेरी आंख खुली. पता चला ट्रेन कानपुर में खड़ी थी. अनु खड़ी हुई, अपना बैग और पर्स लिया और उतर कर निकास गेट की ओर बढ़ गई. वह जैसेजैसे दूर जा रही थी, मैं यही सोच रहा था, काश! सचमुच प्रियम होती, तो आज मेरे प्यार की अकाल बाल मौत न होती.

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Romantic Story In Hindi: प्रेम लहर की मौत- भाग 3

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लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

  ‘‘ऐसा क्यों?’’

  ‘‘बिकाज…बिकाज… आई लव यू. अनु एंड आई नो दैट यू आलसो लव मी. इसी बात से डर लग रहा था कि प्रियम के बारे में पता चलने पर कहीं तुम्हें खो न दूं.’’

असीम की बात सुन कर मैं फफकफफक कर रो पड़ी. रोते हुए मैं ने कहा, ‘‘असीम तुम्हें पता है कि प्रियम तुम्हें कितना चाहती है और तुम भी उसे कितना चाहते हो. मात्र 4 महीने के अपने इस संबंध में तुम अपने और प्रियम के 4 सालों के प्यार को कैसे भुला सकोगे? और हमारे बीच संबंध ही क्या है?

  ‘‘असीम, आज भी तुम मात्र प्रियम को ही प्यार करते हो. जितना पहले करते थे, उतना ही, शायद उस से भी ज्यादा. वह अभी तुम्हारे पास यानी तुम्हारे साथ नहीं है. तुम उसे खूब मिस कर रहे हो.

  ‘‘ऐसे में मेरे प्रेम की वजह से तुम्हें ऐसा लगता है कि तुम मुझे प्रेम करते हो. जबकि सच्चाई यह है कि तुम ने मुझे कभी प्रेम किया ही नहीं. तुम मुझ में प्रियम को खोजते हो. मेरा तुम्हारा केयर करना, तुम्हारी छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना, तुम्हें लगता है तुम्हारे लिए यह सब प्रियम कर रही है. तुम्हें ऐसा लगा, इसीलिए तुम मेरे प्रति आकर्षित हुए. बट इट्स नाट लव. असीम, यू नाट लव मी.’’

  ‘‘पर अनु तुम…’’

  ‘‘मैं… यस औफकोर्स आई लव यू. आई लव यू सो मच.’’

  ‘‘तो क्या यह काफी नहीं है.’’

  ‘‘नहीं असीम, यह काफी नहीं है. प्रियम और तुम एकदूसरे को बहुत प्यार करते हो. हां, यह बात भी सच है कि मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करती हूं. पर मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूं कि अपने प्यार के लिए प्रियम के साथ धोखा करूं या धोखा होने दूं. नहीं असीम, मैं अपने सपनों का महल प्रियम की हाय पर नहीं खड़ा करना चाहती. इसीलिए मैं ने तय किया है कि मैं यहां से दूर चली जाऊंगी, तुम से बहुत ही दूर.’’

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  ‘‘अरे, तुम कहां और क्यों जाओगी? जरूरत ही क्या है यहां से कहीं जाने की?’’

  ‘‘क्यों जाऊंगी, कहां जाऊंगी, यह तय नहीं है. पर जाऊंगी जरूर, यह तय है.’’

  ‘‘प्लीज अनु, डोंट डू दिस यू मी. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’

  ‘‘असीम, मैं भी तुम से यही कहती हूं, डोंट डू दिस टू प्रियम, मात्र 4 महीने के प्रेम के लिए तुम 4 साल के प्रियम के प्रेम को कैसे भूल सकते हो. उस के प्रेम की कुर्बानी मत लो असीम.’’

  ‘‘अनु, तुम ने जो निर्णय लिया है, बहुत सही लिया है.’’ निकी ने कहा.

मैं निकी के गले लग कर खूब रोई. उस ने भी मुझे रोने दिया. रोने से दिल हलका हो गया. उस रात मैं ने कुछ नहीं खाया. निकी ने मुझे बहुत समझाया, पर कौर गले के नीचे नहीं उतरा. मैं सो गई. सुबह उठी तो काफी ठीक थी. फ्रैश हो कर मैं औफिस गई.

मैं ने व्यक्तिगत कारणों से नौकरी छोड़ने की बात लिख कर एक महीने का नोटिस दे कर नौकरी से इस्तीफा दे दिया. बौस और सहकर्मियों ने पूछा कि बात क्या है, बताओ तो सही, सब मिल कर उस का हल निकालेंगे, पर मैं अपने निर्णय पर अडिग रही.

उस के बाद मैं कैसे जी रही हूं, मैं ही जानती हूं. जीवन जैसे यंत्रवत हो गया है. हंसना बोलना तो जैसे भूल ही गई हूं. कलेजा अंदर ही अंदर फटता है. मेरी व्यथा या तो मैं जानती हूं या फिर निकी, हां कुछ हद तक असीम भी. किसी तरह 20 दिन बीत गए. इस बीच मैं ने न तो असीम को फोन किया और न मैसेज.

उस के फोन भी आ रहे थे अैर मैसेज भी. पर मैं न फोन उठा रही थी और न मैसेज के जवाब दे रही थी. मैं जानती थी कि उस की भी मेरी जैसी ही व्यथा है. इसलिए मैं ने निकी से कहा कि वह उस के कांटैक्ट में रहे. मेरे साथ तो निकी थी. लेकिन वह तो एकदम अकेला था.

एक दिन उस ने निकी से बहुत रिक्वेस्ट की तो निकी ने मुझ से कहा कि असीम से बात कर लो. मैं ने बात की तो असीम ने कहा, ‘‘अनु, मैं ने जब गंभीरता से विचार किया तो तुम्हारी बात सच निकली, सचमुच मैं आज भी प्रियम को उतना ही प्यारर करता हूं. उस की कमी मुझे खूब खलती है. पर अनु तुम…? हमने इतना समय साथ बिताया, तुम मुझ से काफी जुड़ गई थीं, मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है.’’

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  ‘‘इट्स ओके असीम, आई एम फाइन. तुम मेरी जरा भी चिंता मत करो. मैं इतनी डरपोक या कमजोर नहीं कि खुद को किसी तरह का नुकसान पहुंचाऊं या आत्महत्या जैसी कायराना हरकत के बारे में सोचूं. असीम, मुझे मरना नहीं जीना है, तुम्हारे प्रेम में. और मैं जीऊंगी भी. मैं जानती हूं कि ऐसी स्थिति में मरना बहुत आसान है, जीना बहुत मुश्किल. पर तुम्हारी चाहत और प्रेम को मैं अपने हृदय में संभाल कर जीऊंगी. मैं भले ही तुम्हारा प्रेम नहीं पा सकी, पर तुम्हें, मात्र तुम्हें प्रेम करती हूं और इसी प्रेम के साथ जी सकती हूं.’’ कह कर मैं ने फोन काट दिया.

नोटिस के दौरान मैं ने अपने लिए दूसरे शहर में नौकरी तलाश ली थी. रहने के लिए जगह की भी व्यवस्था कर ली थी. दो दिन पहले असीम का फोन फिर आया. उस ने मुझ से मिलने की इच्छा प्रकट की. मैं मना नहीं कर सकी. मैं ने कहा कि हम स्टेशन पर मिलेंगे. उस की ट्रेन साढ़े 10 बजे आती थी और मेरी टे्रन साढ़े 12 बजे की थी. हमारे पास 2 घंटे का समय था. अंतिम मुलाकात के लिए इतना समय पर्याप्त था.

अनु ये बातें कर रही थी, तभी न जाने क्यों मुझे लगा कि मैं उस के प्रेम, उस की संवेदनशीलता की ओर आकर्षित होने लगा हूं. शायद उसे प्रेम करने लगा हूं. पर उस समय चुपचाप उस की बातें सुनने के अलावा मैं कुछ नहीं कर सकता था. मेरा मूक श्रोता बने रहना ही उचित था. मैं सिर्फ उस की बातें सुनता रहा. उस ने अपनी और असीम की अंतिम मुलाकात की बातें बतानी शुरू कीं.

असीम की ट्रेन 15 मिनट लेट थी. इसलिए उस की ट्रेन पौने 11 बजे आई. मैं अपना सामान ले कर निकी के साथ 10 बजे ही स्टेशन पर पहुंच गई थी. असीम आया, मैं ने उस से हाथ मिलाया. हम स्टेशन के सामने वाले रेस्टोरेंट में कोने की मेज पर आमनेसामने बैठे. सुबह का समय था इसलिए ज्यादा चहलपहल नहीं थी.

हम दोनों की स्थिति ऐसी थी कि दोनों एक शब्द भी नहीं बोल पा रहे थे. फिर भी बात शुरू हुई. उस ने मेरा हाथ हलके से हथेली में ले कर कहा, ‘‘अनु, आई एम वेरी सौरी, मेरी वजह से तुम्हें यह तकलीफ सहन करनी पड़ रही है.’’

  ‘‘प्लीज असीम, डू नाट से सौरी. मेरे नसीब में तुम्हारा बस इतना ही प्यार था. और हां, हम ने साथ बिताए समय के दौरान अगर कभी तुम्हें मेरे लिए, मात्र मेरे लिए सहज भी प्रेम महसूस हुआ हो तो उसी प्रेम की कसम, तुम कभी भी मेरे लिए गिल्टी कांसेस फील मत करना. प्रियम को खूब प्रेम करना. प्रियम को खुश होते देख, समझना मैं खुश हो रही हूं. मुझे पूरा विश्वास है कि तुम मेरी कसम नहीं तोड़ोगे. अब एक बढि़या सी स्माइल कर दो.’’

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Romantic Story In Hindi: प्रेम लहर की मौत- भाग 2

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लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह 

  ‘‘शायद जरूरत ही महसूस नहीं हुई. या फिर दोनों में से कोई हिम्मत नहीं कर सका. हम दोनों के इस प्यार की मूक साक्षी थी निकी. पर पता नहीं क्यों उस ने भी हमारे प्रेम को एकदूसरे के सामने व्यक्त नहीं किया.’’

  ‘‘तुम और असीम, कभी मिले नहीं?’’ मैं ने अनु को रोक कर पूछा.

  ‘‘नहीं, कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई.’’ उस ने कहा.

  ‘‘तुम लोगों की मिलने की इच्छा भी नहीं हुई? एकदूसरे को देखने का भी मन नहीं हुआ?’’ मैं ने पूछा.

  ‘‘क्यों नहीं हुआ? इच्छा तो होती ही है, लेकिन आधुनिक टेक्नोलौजी थी न जोड़े रखने के लिए हम हर रविवार को वीडियो चैट करते थे. यह मिलने जैसा ही था. आज हमारी पहली और अंतिम रूबरू मुलाकात थी.’’ कह कर वह सहज हंसी हंस पड़ी.

  ‘‘जब तुम दोनों के बीच इतनी अच्छी ट्यूनिंग थी तो फिर इस में तुम दोनों के अलग होने की बात कहां से आ गई?’’ मैं ने पूछा.

उस ने अपनी बात आगे बढ़ाई.

हम दोनों का एकदूसरे के प्रति प्रेम चरम पर था. अब तक असीम मुझे मुझ से ज्यादा जाननेपहचानने और समझने लगा था. मेरी छोटी से छोटी तकलीफ को बिना बताए ही जान जाता था. कई बार छोटीछोटी बात में मेरा मूड औफ हो जाता था. पर मुझे मनाने में उस का जवाब नहीं था. मुझे हंसा कर ही रहता था. मैं कभी भी उस से झूठ नहीं बोल पाती थी. वह तुरंत पकड़ लेता था कि मैं कुछ छुपा रही हूं. सच्चाई जान कर ही रहता था.

उस का ध्यान रखना, उस की देखभाल करना मुझे अच्छा लगता था. उस की मीटिंग हो या उसे कहीं बाहर जाना हो, मैं उसे सभी चीजों की याद दिलाती. उस के खाने, सोने और उठने, लगभग सभी बातों का मैं खयाल रखती थी.

सब ठीक चल रहा था कि एक दिन निकी ने मुझ से कहा, ‘‘अनु, असीम और तुम पिछले 4 महीने से एकदूसरे को जानते हो और जहां तक मैं समझा हूं 3 महीने से तुम दोनों एकदूसरे को प्रेम करते हो. इस बीच असीम ने तुम से कभी प्रियम के बारे में कोई बात की?’’

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  ‘‘प्रियम…? प्रियम कौन है?’’

  ‘‘सौरी टू से यू बट… मुझे लगा कि तुम्हें प्रियम के बारे में पता नहीं है. अगर पता होता तो तुम इस संबंध में इतना आगे न बढ़ती.’’ निकी ने कहा.

  ‘‘यार निकी प्लीज, अब तू इस तरह पहेली मत बुझा, जो भी बात है सीधेसीधे बता दे. कौन है यह प्रियम और असीम से उस का क्या संबंध है?’’ मैं ने झल्ला कर कहा.

  ‘‘अनु, असीम और प्रियम ने एक साथ एमबीए किया था और पिछले 4 सालों से दोनों एक साथ प्रणयफाग खेल रहे हैं. 6 महीने पहले प्रियम फ्यूचर स्टडीज के लिए यूएसए चली गई है.’’

  ‘‘निकी इतने दिनों तक तुम ने मुझ से यह बात छुपाए क्यों रखी, तुम्हें पहले ही बता देना चाहिए था.’’

  ‘‘अनु, मैं सोच रही थी कि यह बात तुम से असीम खुद कहे तो ज्यादा अच्छा होगा. पर जब मुझे लगा कि शायद असीम भी तुम्हें प्यार करने लगा है तो अब वह तुम से यह बात नहीं कह सकता. तब मुझे यह बात कहनी पड़ी. अनु असीम प्रियम को बहुत प्यार करता है, इसलिए अब तुम्हें इस संबंध में और अधिक गहरे जाने की जरूरत नहीं है. क्योंकि बाद में जब सहन करने की बात आएगी तो वह तुम्हारे हिस्से में ही आएगी.’’ निकी ने कहा.

  ‘‘सहन करने वाली बात मेरे ही हिस्से में क्यों आएगी?’’ निकी की बात मेरी समझ में नहीं आई, इसलिए मैं ने पूछा.

  ‘‘अगर प्रियम को अंधेरे में रख कर यानी उसे धोखा दे कर असीम तुम से शादी कर लेता है और भविष्य में कभी तुम्हें प्रियम और असीम के पुराने संबंध के बारे में पता चलता तो मन में अपराध बोध की जो भावना पैदा होगी वह तुम्हें.

  ‘‘अनु, तुम मेरी बात पर गहराई से विचार करो. उस के बाद खूब सोचसमझ कर आगे बढ़ो. मेरे कहने का मतलब यह है कि इस मामले में पूरी परिपक्वता दिखा कर ही निर्णय लो. मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम जो भी निर्णय लोगी, सोचसमझ कर ही लोगी. तुम्हारा जो भी निर्णय होगा, उस में मैं तुम्हारे साथ हूं.’’ निकी ने कहा.

निकी की बात सुन कर मेरे मन में भूकंप सा आ गया था. उस की इन बातों से मेरे दिल पर क्या बीती, यह सिर्फ मैं ही जानती हूं. मैं पूरे दिन रोती रही. मैं ने न तो असीम को फोन किया और न ही मैसेज भेजा. उस के मैसेज के जवाब भी नहीं दिए. सच बात तो यह थी कि मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. मैं बिजी होऊंगी. यह सोच कर असीम ने भी कोई रिएक्ट नहीं किया.

पर शाम को जब उस ने फोन किया तो मेरी बातों से ही उसे लग गया कि कुछ गड़बड़ है. तब उस ने पूछा, ‘‘अनु बात क्या है, आज तुम्हारी आवाज अलग क्यों लग रही है? ऐसा लगता है आज तुम खूब रोई हो, शायद अभी भी रो रही हो?’’

  ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’ मैं ने कहा.

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पर असीम कहां मानने वाला था. उस ने कहा, ‘‘अनु, तुम्हें तो पता है कि तुम मेरे सामने झूठ नहीं बोल पातीं. इसलिए बेकार की कोशिश मत करो. सचसच बताओ, क्या बात है? तुम्हें मेरी कसम, बताओ तुम डिस्टर्ब क्यों हो? औफिस में कुछ हुआ है? किसी ने कुछ कहा है? प्लीज अनु, आइ एम वरीड यार…’’

  ‘‘मैं आज औफिस गई ही नहीं थी.’’ मैं ने कहा.

  ‘‘ क्यों? जब तुम औफिस नहीं गई थीं तो फोन क्यों नहीं किया, मैसेज करने की कौन कहे, जवाब भी नहीं दिया? क्यों अनु?’’ असीम को मेरी बात पर आश्चर्य हुआ.

  ‘‘असीम, यह प्रियम कौन है?’’ मैं ने असीम से सीधे पूछा.

मेरे इस सवाल पर पहले वह थोड़ा हिचकिचाया, फिर बोला, ‘‘…तो यह बात है. आखिर निकी ने बता ही दिया.’’

  ‘‘हां, उसी ने बताया है मुझे.’’ मैं ने बेरुखी से कहा, ‘‘पिछले 4 महीने में तुम ने कभी भी नहीं बताया, तुम्हें कभी नहीं लगा कि तुम्हें प्रियम के बारे में मुझे बताना चाहिए?’’

  ‘‘लगा था मुझे, कई बार लगा था, कई बार सोचा भी कि तुम से प्रियम के बारे में बता दूं. पर जुबान ही नहीं खुलती थी.’’

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