Writer- रेखा भारती मिश्रा
Social Story: सुमन दोपहर का खाना बना रही थी. उस की सास बिट्टो को ले कर हौल में बैठी थी. हौल में बिट्टो के खिलौने बिखरे पड़े थे. बिट्टो सुमन की डेढ़ वर्षीय बेटी थी. सुमन की शादी को अभी 3 साल हीं हुए थे.
सुमन उसे याद है अमन ने उस को एक बार देखा और पसंद कर लिया था. परिवार वाले भी सुमन को बहू बनाने को तैयार थे. लेकिन जब लेनदेन की बात आई तो सुमन के पिता ने हाथ जोड़ लिए और बोले, ‘‘रिटायर आदमी हूं, क्लर्क की नौकरी करता था. ऐसे में भला कहां से मोटी रकम जुटा पाऊंगा. बरात के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ूंगा. जो भी जमा किया पैसा है उसी में खर्च हो जाएगा. मैं दहेज नहीं दे पाऊंगा समधीजी.’’
अमन के परिवार वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे. लेकिन अमन की जिद्द के आगे किसी की नहीं चली, ‘‘हमारे पास किसी चीज की कमी नहीं तो फिर दहेज की मोटी रकम के नाम पर सुमन जैसी लड़की को छोड़ना कितना उचित है? मु?ो सुमन बहुत पसंद है, मेरी शादी यहीं होगी,’’ और फिर उन की शादी हो गई.
अमन के पिता का कपड़ों का व्यवसाय था. सुपर मार्केट में उन की कपड़ों की एक बड़ी दुकान थी जहां अमन, उस का भाई और पिता तीनों बैठते थे. अमन भाई के साथ दोपहर का खाना खाने घर आता था और खाने के बाद
दुकान चला जाता. तब उस के बाद पिताजी आते और खा कर 2 घंटे आराम और फिर शाम में दुकान जाते थे.
रोज की भांति आज भी अमन अपने भाई को ले कर बाइक से घर लौट रहा था. तभी रास्ते में एक टैंपो वाले ने तेजी से बढ़ते हुए जोर का धक्का मारा जिस से अमन का बैलेंस लड़खड़ाया और वह टप्पा खाते हुए एक दूसरी कार पर जा गिरा. अमन का भाई भी दूसरी तरफ जा गिरा और सड़क पर भीड़ लग गई. घर वालों को जैसे ही सूचना मिली वे बदहवास भागे. अमन को गहरी चोटें आई थीं. उस के भाई को भी फै्रक्चर हो गया था मगर उस की जान बचा ली गई. इधर अमन को डाक्टर नहीं बचा पाए.
घर में मातम ने डेरा डाल दिया था. सुमन की तो दुनिया ही उजड़ गई. लेकिन उस के दुखों का सिलसिला शायद अब शुरू हुआ था. अमन को गुजरे अभी महीना भी नहीं हुआ था कि घर वालों ने सुमन को अपने साथ रखने से इनकार कर दिया.
वह मानसिक यातना ?ोलने लगी. वह कोशिश कर रही थी कि दृढ़ हो कर रहे मगर अमन के विछोह से कमजोर पड़ी सुमन घर वालों के प्रतिकूल व्यवहार से टूट रही थी.
वृद्ध पिता से सुमन का दुख देखा नहीं जा रहा था. उन्होंने सुमन को मायके बुला लिया. हालांकि सुमन जाना नहीं चाहती थी. उसे एहसास था कि यहां से जाते हीं ससुराल वालों के मन की बात हो जाएगी. फिर भी बिट्टो को देखते हुए वह भी मायके जाने को तैयार हो गई.
पिता ने भी सम?ाया, ‘‘अभी जख्म ताजा हैं, उन्हें भरने में समय लगेगा. तुम अपनी हालत को देखो. यदि तुम लड़खड़ा जाओगी तो बिट्टो को कौन संभालेगा? एक दिन सब ठीक हो जाएगा. इसलिए कुछ दिन यहीं हमारे साथ रहो.’’
सुमन बिट्टो को ले कर मायके आ गई. मायके में मां भले ही नहीं थीं मगर पिता ने सुमन को भरपूर सहारा दिया. अपने शब्दों से उसे मजबूत करते रहते. धीरेधीरे सुमन गम से निकलने की कोशिश करने लगी. उस का अधिकांश समय बिट्टो और वृद्ध पिता के साथ बीतता. घर के कामों में भी भाभी को भरपूर सहयोग देती
मगर भाभी को सुमन से कोई खास लगाव नहीं था. सुमन को मायके में रहते हुए कुछ महीने हो गए लेकिन ससुराल वाले उस की खोजखबर नहीं लेते. वह यदाकदा फोन करती भी तो ससुराल के लोग नंबर देख कर ही कौल काट देते. यहां तक कि सुमन के मायके से किसी का भी फोन जाता तो वे लोग बात नहीं करते. अब सुमन का ससुराल वालों से कोई रिश्ता नहीं रह गया था.
सुमन का भाई एक प्राइवेट कंपनी में अच्छी पोस्ट पर काम करता था. तनख्वाह भी अच्छीखासी थी. मगर फिर भी उस की भाभी पैसों की तंगी का रोना रोती रहती. पिताजी की पैंशन भी उन्हीं लोगों के हाथ रहती. पिताजी की सारी जरूरतें उन की पैंशन से पूरी कर दी जातीं. फिर बची रकम घर खर्च में लगा देते हैं. सुमन और बिट्टो वहां बस अपने दिन गुजार रहे थे.
बिट्टो की भी जरूरतें बढ़ रही थीं. आखिर कब तक सुमन इधरउधर हाथ पसारती. पिता की अवस्था देख कर सुमन भैयाभाभी के व्यवहार के बारे में कुछ नहीं कहती. वह अपने पिता को किसी भी प्रकार से दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए वह एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी करने लगी. उस ने स्कूल जाना शुरू कर दिया मगर बिट्टो को उस की भाभी संभालने को तैयार नहीं हुई. पिता के पास चाह कर भी नहीं छोड़ सकती थी. अब इस उम्र में वे कहां इस बच्ची के पीछे भागते. सुमन बिट्टो को अपने साथ ले कर जाने लगी. वहां स्कूल स्टाफ, सहायिका आदि हाथोंहाथ बच्चे को संभाल लेते. बिट्टो नन्हेनन्हे पैरों से इधरउधर भागती, खेलती.
सुमन अपने काम और बिट्टो में उल?ा कर कुछ सुकून के पल तलाशने में कामयाब होने लगी लेकिन कालचक्र से सुमन का यह सुकून देखा नहीं गया. समय ने करवट बदली. सुमन के पिता को टाइफाइड हो गया जिस में वे गंभीर इन्फैक्शन के शिकार हो गए. इलाज हो रहा था लेकिन बीमारी बढ़ती जा रही थी. उन का वृद्ध शरीर बीमारी के कारण और भी जर्जर हो गया. एक दिन वे इस दुनिया से विदा हो गए. पीछे छूट गया सुमन और बिट्टो का उल?ा जीवन.
मायके में पिता ही मजबूत सहारा थे जिस से सुमन मुश्किल भरे दिनों में भी टिकी हुई थी. अब तो भैयाभाभी पर वह पूरी बो?ा ही लग रही थी, ‘‘अब हम अपनी गृहस्थी देखे या सुमन का जीवन. हमारे बच्चों की तो इस महंगाई में बहुत मुश्किल से कुछ जरूरतें पूरी हो पाती हैं. फिर इस बिट्टो का भार कौन उठाएगा. पढ़ाईलिखाई, शादीब्याह,’’ भाभी ने तीखे स्वर में कहा.
‘‘हम आप पर बो?ा कहां हैं. मैं स्कूल में पढ़ाती हूं और अपना खर्च निकाल लेती हूं,’’ बोलते हुए सुमन की आवाज में दर्द था.
‘‘अपना रोज का खर्च ही तो निकालती हो. उस के अलावा भी तो कई खर्चे हैं जो हमें चलाने पड़ते हैं. रहने का, खाने का, त्योहारों में कपड़े, उपहार देने का.’’
भाभी की बातों ने सुमन को बहुत ही आहत किया. भैया की चुप्पी में सुमन को भाभी के लिए उन का मौन समर्थन नजर आया. सुमन ने मंथन किया. उसे महसूस हुआ कि छोटेमोटे खर्चे के लिए चंद रुपए कमाने से कुछ नहीं होगा. अब उसे अपनी और बिट्टो की जिंदगी को सुरक्षित करना होगा. वह एक वकील से मिली और फिर ससुराल में अपनी हिस्सेदारी के लिए कोर्ट में एक अपील दायर करवाई. सुमन ने अर्जी तो लगा दी मगर उस पर फैसला आना इतना आसान नहीं था. एक तो वैसे ही कोर्ट में न जाने कितने मामले लंबित पड़े थे. ऊपर से सुमन के ससुराल वाले पैसे का लेनदेन कर के मैनेज कर लेते और अपने वकील से तारीख बढ़वा देते. इस तरह सुमन को ससुराल से इतनी आसानी से कुछ मिलने वाला नहीं था.
इधर भाभी का व्यवहार सुमन को टीसता रहता. एक दिन भाभी ने सुमन को शादी करने की सलाह दी.
‘‘भाभी,’’ मैं दूसरी बार दुलहन बनने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हूं. मैं फिलहाल सिर्फ और सिर्फ बिट्टो की मां बन कर जीना चाहती हूं.’’
‘‘दूसरी शादी करने में भला बुराई ही क्या है? भरी जवानी में यों घूमना और अकेले रहना… तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा मगर यह समाज हम पर ताने कसेगा कि जवान ननद के जीवन के बारे में कुछ नहीं सोचा. ऊपर से कल को हम ने अपने बच्चों का भी तो रिश्ता करना है. तुम्हारी शादी नहीं होगी तो उन का भविष्य प्रभावित होगा,’’ भाभी ने फिर शब्दों के तीर छोड़े.
‘‘लेकिन मेरी शादी से उन के भविष्य का क्या संबंध और वैसे भी समाज क्या कहेगा, मैं कुंआरी नहीं विधवा हूं और जीने के लिए एक सहारा ही काफी है बिट्टो.’’
‘‘एक जवान महिला आखिर कब तक अकेले रहेगी. समाज ऐसी महिलाओं के चरित्र को गलत नजर से देखता है,’’ भाभी ने कटाक्ष भरे लहजे में कहा.
यह बात सुमन को भीतर तक चुभ गई मगर खुद को संयमित रखते हुए बोली, ‘‘मैं ऐसे समाज या लोगों की परवाह नहीं करती और वैसे भी जब किसी के पास औरत से जीतने के तरीके नहीं होते तो वे स्त्री के चरित्र पर हीं छींटाकशी करने का हथकंडा अपनाते हैं,’’ यह कहते हुए सुमन वहां से चली गई.
मगर बात यहीं पर खत्म नहीं हुई. सुमन की भाभी किसी भी तरह से उस की शादी करवाने में लगी रहती. इस के लिए वह अपने पति की भी रजामंदी ले लेती. अब सुमन के भैया भी उस पर शादी कर लेने का दबाव डालते हैं. वे बिट्टो की अच्छी परवरिश का हवाला देते.
दबावों से घिरी सुमन दूसरी शादी के लिए तैयार हो गई. सुमन की भाभी अपने मायके में एक दूर के रिश्तेदार के यहां उस की शादी करवाना चाहती थी. वह व्यक्ति विधुर था. उस के 2 बच्चे थे 1 लड़का और 1 लड़की. बहुत मुश्किल से सुमन हामी भर पाई. सोचा चलो बिट्टो को खेलने के लिए 2 दोस्त मिल जाएंगे और वह भी शायद 3 बच्चों के बीच अपने दुख को ढक कर मुसकराहट के पलों को संवार पाएगी. मगर शादी के बाद वे लोग बिट्टो को अपनाने को तैयार नहीं थे. उन लोगों ने सिर्फ सुमन को ही अपनाने की बात बताई.
यह सुन कर सुमन काफी नाराज हो गई और शादी करने से इनकार कर दिया.
‘‘बिट्टो को नहीं अपना रहे हैं तो क्या तुम्हें तो बहू बना कर पूरा मान देने को तैयार हैं न. बड़े घर में जा रही हो. किसी चीज की कमी नहीं है वहां,’’ भाभी ?ाल्ला कर बोली.
‘‘सब से बड़ी कमी तो मेरी बिट्टो की होगी भाभी. मैं बिट्टो को नहीं छोड़ूंगी.’’
‘‘अरे छोड़ना क्या है, बिट्टो को किसी अनाथाश्रम में रखवा देते हैं. वहां जा कर कभीकभी अपनी बेटी से मिल लिया करना.’’
‘‘भाभी,’’ सुमन गुस्से से बोली, ‘‘आप सोच भी कैसे सकती है कि मेरी बिट्टो अनाथाश्रम में रहेगी. माना कि उस के सिर पर पिता का हाथ नहीं है मगर उस की मां जीवित है. मेरी बिट्टो अनाथ नहीं है.’’
‘‘ठीक है, जो मन में आए वह करो लेकिन हम से किसी प्रकार की मदद की उम्मीद नहीं करना. अपनी व्यवस्था खुद देख लो,’’ भाभी ने दोटूक जवाब दिया.
सुमन की अपनी भाभी से जोरदार बहस हुई. वह एक बार फिर से दुख की गहराई में उतर रही थी. उसे अपने जीवन में चारों तरफ अंधकार ही अंधकार नजर आ रहा था. मगर उसे बिट्टो के लिए उजाला लाना था. खुशियों के लमहे समेटने थे.
अत: उस ने स्वयं को कठोर बनाना बेहतर सम?ा. उसे आभास हो रहा था कि यदि इस पल वह कमजोर हो गई तो वह रौंद दी जाएगी. उस का अस्तित्व हाशिए पर चला जाएगा और बिट्टो बिट्टो का क्या होगा.
इसी द्वंद्व के बीच रात गुजर गई. सुबह हुई तो भैया ने सुमन को भाभी से माफी मांगने के लिए कहा लेकिन सुमन ने माफी मांगने से इनकार कर दिया और स्पष्ट जवाब दिया, ‘‘मेरा फैसला है कि मैं वहां शादी नहीं करूंगी और हां जब तक मेरी कोई ठोस व्यवस्था न हो जाए या लाइफ सिक्योर न हो जाए तब तक मैं यहां से जाने वाली भी नहीं. मत भूलो, मायके में मेरा भी अधिकार है,’’ कह कर सुमन तैयार हो बिट्टो को ले कर स्कूल चली गई.
इधर सुमन की बातें सुन कर भैयाभाभी दंग थे.
सुमन स्कूल तो आ गई लेकिन आज उस का मन किसी काम में नहीं लग रहा था. वह खुद को सहज दिखाने की भरपूर कोशिश कर रही थी मगर उस के चेहरे के भाव और माथे पर खिंचती लकीरें उस की असहजता का एहसास करा रही थीं जिन्हें पुलकित आसानी से देख रहा था. पुलकित उस स्कूल में संगीत शिक्षक था और सुमन के साथ उस की अच्छी निभती थी.
‘‘क्या बात है सुमन, आज कुछ ज्यादा ही परेशान लग रही हो?’’
‘‘नहीं तो,’’ सुमन ने खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश की.
‘‘लेकिन मु?ो एहसास है तुम्हारी परेशानी का. मु?ो सिर्फ कलीग नहीं अपना हमदर्द भी सम?ा,’’ कहते हुए पुलकित ने सुमन के हाथ पर अपना हाथ रख दिया.
पुलकित के हाथ के स्पर्श ने सुमन को अपनेपन का एहसास कराया. वह चाहती तो अपने हाथों को खींच सकती थी मगर ऐसा कर न सकी. एक लंबी सांस खींचते हुए उस ने अपनी बातें पुलकित को बता दीं.
‘‘तुम्हारी परिस्थितियां विकट होती जा रही हैं. तुम्हें ससुराल वालों के साथसाथ अपने मायके वालों से भी संघर्ष करना पड़ रहा है. मु?ो डर है कि कहीं विचलित हो कर तुम कोई गलत कदम न उठा लो.’’
‘‘नहीं पुलकित, मु?ो बिट्टो की फिक्र है और मैं इस मासूम के जीवन को सुंदर बनाना चाहती हूं इसलिए खुद को सुदृढ़ रखना जरूरी है.’’
सुमन के शब्द और आंखें एकदूसरे से मेल नहीं खा रहे थे. शब्द दृढ़ता की बात कर रहे थे मगर आंखों की नमी उस की तकलीफ का स्तर बता रही थी.
पुलकित आगे कुछ बोलना नहीं चाह रहा था. सुमन के मन को बदलने के खयाल से उस
ने सुमन को अपने घर चाय पर आने को कहा. सुमन मना नहीं कर सकी और स्कूल की छुट्टी होने पर बिट्टो को ले कर पुलकित के साथ उस
के घर चली गई. पुलकित सुमन के लिए कुछ खाने की व्यवस्था करना चाह रहा था मगर उस
ने मना कर दिया. बिट्टो को बिस्कुट, टौफी दे
कर पुलकित 2 कौफी बना कर ले आया. कौफी पीते हुए दोनों के बीच सामान्य बातें होती रहीं. इस सहज माहौल में सुमन को सुकून की मिठास घुली नजर आ रही थी. अचानक वक्त का ध्यान आया तो सुमन वापस घर के लिए वहां से निकल गई.
पुलकित के घर से निकलते समय सुमन को एक व्यक्ति ने देखा जो उस की ससुराल से परिचित था. उस व्यक्ति ने सुमन के ससुराल वालों को यह बात गलत तरीके से बताई जिस के कारण लोग सुमन के चरित्र पर शक करने लगे.
सुमन का संघर्ष मायके और ससुराल दोनों तरफ के लोगों से बढ़ रहा था. इधर पुलकित का स्नेहिल साथ सुमन को तपती धूप में शीतल छांव की भांति राहत भी देने लगा था. वह जब भी बहुत परेशान या तनावग्रस्त होती तो पुलकित के साथ बैठ कर कुछ मन हलका कर लेती. ससुराल वालों ने सुमन के चरित्र पर आक्षेप लगाना भी शुरू कर दिया. उन की कोशिश थी कि सुमन को बदनामी के गर्त में इतना धकेल दिया जाए कि वह फिर सामने आ कर यहां अपना अधिकार न मांग सके.
बात उड़तेउड़ते सुमन के मायके तक भी पहुंच चुकी थी. आसपास के लोगों में सुमन को ले कर कानाफूसी होने लगी.
इधर भाभी की कर्कशता भी बढ़ गई, ‘‘अब सम?ा में आया कि शादी से इनकार क्यों कर रही थी, इसे तो कुंआरा छैलछबीला रास आया. फांस लिया उसे अपने रूपजाल में.’’
‘‘यह क्या बोल रही हो भाभी? एक स्त्री हो कर दूसरी स्त्री पर गलत आक्षेप लगाना कहां तक जायज है?’’
‘‘आक्षेप,’’ उस संगीत मास्टर के साथ जो प्रेम राग अलाप रही हो न उस से समाज में हमारी नाक कट गई है. अरे तेरी छोड़, अब तो हमें चिंता है कि कल हमारे बच्चों के रिश्ते कैसे तय होंगे?’’
‘‘समाज, समाज तो अकसर स्त्रियों के लिए पंच बन कर तैयार बैठा रहता है. बस उसे थोड़ा सा भी मौका मिले की स्त्री को कुलटा और चरित्रहीन दिखाने में लग जाता है लेकिन यह भी सच है कि इसी समाज में कुछ अच्छे लोग भी होते हैं जो महिलाओं को चरित्र प्रमाणपत्र बांटने के बदले उन के सहयोगी और संबल बनने का प्रयास करते हैं. पुलकित भी उन्हीं में से एक है,’’ सुमन भी भाभी को करारा जवाब दिया.
बात पुलकित तक भी पहुंच गई. स्कूल में सुमन से वह संकोच भरी नजरों से मिलता है. मगर उस की आंखों में सुमन के लिए स्नेह कम भी नहीं हुआ. स्टाफरूम में थोड़ी चुप्पी के बाद उस ने बोलने की हिम्मत जुटाई, ‘‘सौरी सुमन, मु?ो नहीं मालूम था कि तुम्हें खुशी और सुकून देने की कोशिश में हमारी यों बदनामी हो जाएगी.’’
‘‘सौरी मत बोलो पुलकित, तुम ने कुछ भी गलत नहीं किया. गलत तो लोगों की नजरें हैं जो तुम्हारे पवित्र स्नेह को दैहिक प्रेम समझ रही हैं.’’
‘‘सुमन, मैं तुम्हारे मन की नहीं जानता लेकिन यदि तुम्हारी सहमति हो तो हम आजीवन एकदूसरे का संबल बन सकते हैं.’’
पुलकित द्वारा अचानक बोली गई यह
बात सुमन को आश्चर्य में डाल गई, ‘‘मतलब तुम्हारे मन में… ओह मैं तो सोच भी नहीं पाई थी. तुम अफवाह को हकीकत बनाने की कोशिश कर रहे हो.’’
‘‘तुम गलत न सम?ा सुमन. मैं तुम्हारे हर फैसले का सम्मान करूंगा. तुम्हारे ऊपर मैं भावनात्मक दबाव नहीं डाल रहा. बस अपने मन की साझा कर रहा हूं. तुम्हें पीड़ा से उबारना चाहता हूं.’’
‘‘पीड़ा, पीड़ा तो हम जैसी महिलाओं की शक्ति होती है. हम वेदना से टूटते नहीं जू?ाते हैं. आलोचना का श्रंगार कर खुद को स्थापित करते हैं.’’
थोड़ा रुक कर एक लंबी सांस खींच सुमन ने आगे कहा, ‘‘अभी कुछ नहीं कह सकती मु?ो थोड़ा वक्त दो.’’
सुमन घर लौट आई. बीच में शनिवाररविवार की छुट्टी थी. वह न तो पुलकित से मिली और न ही बात की मगर उस के शब्द सुमन के साथ थे. इधर घर में लोगों के ताने उधर ससुराल पक्ष से कई तरह के ?ाठे आरोप, किसकिस को जवाब दे, वह सोचने लगी कि इज्जत का गहना, बदनामी की धार आखिर सिर्फ स्त्री के लिए ही क्यों है? हमेशा स्त्री ही क्यों कठघरे में खड़ी की जाती है? नहीं, मु?ो इन चीजों से बाहर आना होगा. जिसे जो कहना है कहे लेकिन मु?ो अपने और बिट्टो के जीवन को देखते हुए फैसले लेने होंगे.
काफी सोचने के बाद सुमन ने पुलकित को फोन किया, ‘‘हैलो, पुलकित, मैं तुम्हें पिछले दिनों में जितना सम?ा पाई हूं उस के आधार पर यह तय किया है कि मैं तुम से शादी करने के लिए तैयार हूं मगर तुम्हें सिर्फ पति नहीं अच्छा पिता भी बनना होगा. बिट्टो के प्रति पिता के रूप में प्रेम और जिम्मेदारियां बखूबी निभानी होंगी.’’
‘‘तुम निश्चिंत रहो सुमन. एक पिता के फर्ज और दायित्व से मैं पीछे नहीं हटाने वाला.’’
पुलकित के शब्दों में खुशी की ध्वनि सुमन को स्पष्ट सुनाई दे रही थी. उस ने फोन रख दिया और फिर स्नेहभरी नजरों से देखते हुए बिट्टो के सिर पर हाथ फेरा क्योंकि उस के जीवन में खुशियों को लाने के लिए उसने साहस का पिटारा खोल दिया था. अब वह मुश्किलों को बांध कर हौसले की उड़ान भरने के लिए तैयार थी.
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