Hindi Fiction Stories : झटका – दादी की क्या थी तरकीब

Hindi Fiction Stories : स्कूलके प्रिंसिपल अमनजी के सामने प्रिया और संदीप आंखों में चिंता और तनाव के भाव लिए बैठ गए.

‘‘आप के बेटे समीर को इस वक्त स्कूल में होना चाहिए पर वह यहां नहीं है. पिछले 2 हफ्तों में उस ने यह 5वीं छुट्टी करी है,’’ अमनजी ने बिना कोई भूमिका बांधे यह सूचना दे कर उन दोनों को जोरदार झटका दिया.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है? वह तो रोज सुबह तैयार हो कर स्कूल जाने को घर से निकलता है,’’ प्रिया की आंखों में फौरन हैरानी और उलझन के भाव उभरे.

‘‘क्या वह रोज स्कूल बस में आप की आंखों के सामने बैठता है?’’

‘‘आजकल वह बस से नहीं बल्कि अपने दोस्त रवि के साथ कार से स्कूल आता है.’’

‘‘आप दोनों रवि के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘यही कि उस के मातापिता दोनों आईटी कंपनी में अच्छी पोस्टों पर हैं. कुछ दिन पहले समीर से मैं ने उस के पिछले टैस्टों में आए नंबर पूछे थे. मेरा अंदाजा है कि वह पढ़ने में ज्यादा अच्छा नहीं है,’’ इस बार जवाब संदीप ने दिया.

अमनजी ने कुछ पलों की खामोशी के बाद गंभीर लहजे में उन्हें बताया, ‘‘रवि के मातापिता बहुत दौलतमंद हैं, संदीपजी मेरी नजरों में वह एक बिगड़ा हुआ रईसजादा है. ट्यूशनों के बल पर वह 12वीं कक्षा तक अपनी गाड़ी खींच ले जाएगा पर उस के कभी अच्छे नंबर नहीं आएंगे. उसे अच्छे नंबर लाने की चिंता भी नहीं है क्योंकि अपने मातापिता की गांव की जमीन के बल पर वह कोई डिगरी विदेश में जा कर ले लेगा. क्या समीर के लिए भी आप दोनों ने ऐसा ही कुछ सोच रखा है?’’

‘‘उसे विदेश में पढ़ाने की हमारी औकात नहीं है, सर. हमारी तो बड़े बाजार में गारमैंट की छोटी शौप है.’’

‘‘समीर के 10वीं कक्षा के बोर्ड में 88% आए थे, लेकिन इस साल वह पढ़ने में पिछड़ता जा रहा है. मुझे यह बताते हुए बहुत अफसोस हो रहा है कि वह आजकल गलत दोस्तों के साथ घूमने लगा है.’’

‘‘क्या उस के ये नए, गलत दोस्त भी स्कूल से गायब रहते हैं?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘सर, क्या आप को मामूल है कि ये सब इस वक्त कहां हैं?’’

‘‘रवि के घर. जिस दिन भी क्रिकेट का वन डे मैच होता है ये 4-5 लड़के स्कूल नहीं आते हैं. मुझे इन की गलत आदतों की रिपोर्ट कल ही इन के एक साथी से मिली है. क्या आप दोनों ने समीर के अंदर ऐसा कोई बदलाव महसूस नहीं किया जो उस के यों बिगड़ने की तरफ इशारा करता हो?’’

प्रिया ने फौरन अपने बेटे की उन से शिकायत करी, ‘‘आजकल वह काफी जिद्दी, बदतमीज और झगड़ालू हो गया है. जरा सा डांटो तो फट पलट कर जवाब देता है. अपने दोस्तों की तारीफ करता है और उसे हर चीज बढि़या और ब्रैंडेड चाहिए… यूनिट टैस्ट में तो उस के नंबर कम आ ही रहे हैं.’’

‘‘किसी भी किशोर के बिगड़ने के ये सब शुरुआती लक्षण हैं. औफिस के बाहर उस के दोस्त मोहित और कपिल के मातापिता बैठे हुए हैं. आप सब एकसाथ रवि के घर जाइए और देखिए कि वहां क्या हो रहा है. कल सुबह आप दोनों समीर के साथ मुझ से मिलने आएं,’’ संदीप से मिलाने को हाथ बढ़ा कर प्रिंसिपल साहब ने मुलाकात समाप्त होने का इशारा कर दिया.

आधे घंटे बाद सब लड़कों के मातापिता रवि के पिता के नए फ्लैट के अंदर थे. घर के नौकर ने उन्हें ड्राइंगरूम में बैठा कर के भीतर जाने से रोकना चाहा, पर वे जबरदस्ती रवि के बैडरूम तक जा पहुंचे.

रवि के कमरे में सिगरेट के धुएं की गंध भरी हुई थी. मेज पर बीयर की बोतलें और

गिलास रखे थे. एक लड़की रवि की बगल में उस के साथ सट कर बैठी हुई थी. उस ने किसी और स्कूल की वरदी पहनी हुई थी. टीवी पर आईपीएल मैच चल रहा था.

उन्हें अचानक सामने देख वे सब घबराए से चौंक कर उठ खड़े हुए. मोहित और कपिल के पेरैंट्स की तरह संदीप ने वहीं समीर को डांटना शुरू नहीं किया और उस का हाथ पकड़ उसे कमरे से बाहर ड्राइंगहौल में ले आया.

‘‘आप दोनों को यहां नहीं आना चाहिए था,’’ समीर शर्मिंदा होने के बजाय उलटा उन पर नाराज हो उठा.

‘‘यहां नहीं आते तो तुम्हारी करतूतों का कैसे पता लगता? तुम सिगरेट और शराब पीने लगे हो. शर्म आनी चाहिए तुम्हें,’’ उस के बोलने का गलत ढंग देख संदीप को तेज गुस्सा आ गया.

‘‘थोड़ी सी बीयर पी लेने में शर्म आने की क्या बात है? आप भी तो रोज शाम को पीते हो?’’ समीर ने अपना हाथ झटके से छुड़ाया और मेज पर रखा बैग उठा कर बाहर की तरफ चल पड़ा.

‘‘मेरे साथ तमीज से पेश नहीं आओगे तो मैं थप्पड़ मारमार कर तुम्हारे दांत तोड़ डालूंगा.’’

‘‘शोर कैसे न मचाऊं? क्या तुम हमारी नाक कटाने वाले काम नहीं कर रहे? कल को तुम्हारी यही गंदी आदतें तुम्हारे फेफड़ों और जिगर को खराब कर डालेंगी, बेवकूफ  लड़के.’’

समीर ने इस बार उलट कर कोई जवाब नहीं दिया और हौल से बाहर निकल गया.

सारे रास्ते संदीप और प्रिया उसे डांटतेसमझते हुए आए, पर मुंह सुजा कर बैठे समीर ने एक शब्द भी अपने मुंह से नहीं निकाला. जब घर के सामने कार रुकी तो वह झटके से दरवाजा खोल कर उतरा और पैर पटकता अंदर चला गया.

अंदर आने के बाद संदीप ने उसे गुस्से से भरी आवाज में कई बार पुकारा तो ही वह अपने कमरे से निकल कर ड्राइंगरूम में आया. अब तक समीर की दादी भी अपने कमरे से निकल कर वहीं आ गई थीं.

समीर के तेवर ऐसा दर्शा रहे थे मानो वह अपने मातापिता से उलझने के लिए पूरी तरह से तैयार था और हुआ भी ऐसा ही. संदीप ने अपने बेटे को डांटना शुरू किया तो उस ने पलट कर उलटे जवाब देने शुरू कर दिए.

कुछ देर तक दादी ने चुप रह कर सारे मामले को समझ और फिर ऊंची आवाज में बोलीं, ‘‘अब सब शांत हो कर आपस में बात करो. समीर अभी हम सब से प्रौमिस करेगा कि वह सिगरेट और शराब से दूर रहेगा और ज्यादा मेहनत से पढ़ाई भी करेगा.’’

अपनी मां की सलाह को नजरअंदाज करते हुए संदीप ने समीर पर गुस्सा करना जारी रखा, ‘‘तुम्हारे तेवर देख कर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा है कि तुम रत्ती भर भी बदलोगे. आज तुम्हारी कलई खुली है. तुम शराब, सिगरेट और गलत कंपनी के शिकार बन चुके हो. स्कूल न जा कर बदमाश दोस्तों के साथ आवारागर्दी करते हो.’’

इस बार समीर ने जोर से चिल्ला कर जवाब दिया, ‘‘गलत कंपनी में घूमना मेरी मजबूरी है, डैड. अरे, मैं उन्हीं लड़कों के साथ घूमूंगा न जो मुझे अपना दोस्त बना कर मेरे साथ घूमने को तैयार होंगे. जो लड़के मुझ पर हंसें, जो मेरा मजाक उड़ाएं और मुझ से कटें मैं क्यों उन के साथ घूमूंगा?’’

‘‘लड़के तुम पर क्यों हंसते हैं?’’

‘‘आप दोनों के रोजरोज के लड़ाईझगड़ों ने मुझे तमाशा बनवा दिया है.’’

‘‘ज्यादा बकवास मत करो. हम पहले मातापिता नहीं हैं जिन के बीच लड़ाईझगड़ा होता है. तुम्हारे पढ़ाई में पिछड़ने और बिगड़ने का असली कारण यही है कि तुम गलत सोहबत में पड़ चुके हो. फिर कोई अच्छा सहपाठी तुम्हारे साथ क्यों घूमेगा?’’

‘‘सारा दोष मेरे सिर मढ़ने की कोशिश मत करो, पापा,’’ समीर उन के सामने तन कर खड़ा हो गया, ‘‘असली कारण तो यह है कि हमारे घर में आप दोनों के कारण 24 घंटे मची रहने वाली हायतोबा और गालीगलौज के कारण मैं ढंग से पढ़ नहीं पाता हूं. इसी कारण मैं गलत कंपनी में भी पड़ा हूं. मैं महीने में 10 दिन नानाजी के घर से स्कूल जाता हूं, 20 दिन यहां से. लोग मुझ से इस का कारण पूछते हैं तो मैं शर्म से जमीन में गड़ जाता हूं. मैं उन्हें कैसे बताऊं कि मेरी मां आए दिन लड़ कर मायके भाग आती है? साल में 8 बार तो आप पापा की बिना मरजी के इस तीर्थ और उस आश्रम में रहने चली जाती हैं और पापा अपने काम के बदले राजनीति करने चले जाते हैं. दादी ही घर में रह जाती हैं. क्या मैं पूछ सकता हूं कि अपने व्यवहार के कारण आप दोनों ने मेरी जिंदगी में इतनी टैंशन क्यों भर रखी है? मुझे अपने सहपाठियों के बीच हंसी का पात्र क्यों बनवा रखा है?’’

‘‘इस वक्त बात हमारी नहीं बल्कि तुम्हारी हो रही है.’’

‘‘अपनेआप को कठघरे में खड़ा देखना किसी को अच्छा नहीं लगता डैड. आप दोनों को मेरी फिक्र होती तो रातदिन क्लेश न करते रहते. आप दोनों को तो आपस में मारपीट करने से भी परहेज नहीं है. अगर मुझे आप की नाक कटाने वाला काम नहीं करना चाहिए तो क्या यही बात आप दोनों पर नहीं लागू होती है? पापा, आप बचपन से न जाने कौन सा इतिहास पढ़पढ़ कर ऊंचनीच, भेदभाव, इतिहास का बदला लेने जुलूसों में जा कर पथराव करते रहे हैं और अब मां से झगड़ते हैं. पड़ोस के खान अंकल को तो आप पीठ पीछे न जाने क्याक्या कहते रहते हैं.’’

‘‘इन बातों को छोड़ और यह सोच कि अपनी पढ़ाई का नुकसान कर के तुम

अपना कितना ज्यादा नुकसान कर रहे हो,’’ इस बार संदीप सुर नीचा कर के बोले.

‘‘मुझे पता है कि मैं फेल नहीं होऊंगा. वैसे भी मुझे बिजनैस करना है, कोई डाक्टर, इंजीनियर नहीं बनना है,’’ समीर ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘बेकार की बात मत कर. तुझे पता तो है कि हमारे पास तेरे दोस्त के पिता जितनी दौलत नहीं है जो 40-50 लाख लगा कर बिजनैस करा सकें. तू हवा में उड़ना बंद कर और पढ़ाई में मन लगा.’’

‘‘आप जितना लगा सको, उतना पैसा लगा देना. बाकी का फाइनैंस मेरे दोस्त संभाल लेंगे.’’ इन में से कुछ की रिश्वत की मोटी कमाई है और कुछ ने गांव में करोड़ों की जमीन बेची हैं.

‘‘तेरे ये दोस्त तेरा साथ देंगे, ऐसी गलतफहमी का शिकार मत बनो.’’

‘‘आप दोनों अपनी जिंदगी अपने ढंग से जी रहे हो तो वैसा ही मुझे भी करने दो,’’ समीर ने रुखाई से जवाब दिया.

‘‘तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? तिल बराबर अक्ल नहीं है तेरे पास और चला है खुद अपनी जिंदगी के फैसले करने. पहले मुझे यह बताओ कि शराब और सिगरेट खरीदने को तुम्हारे पास पैसे कहां से आते हैं?’’ संदीप ने प्रिया की तरफ नाराजगी से देखते हुए सवाल किया.

‘‘मेरी तरफ गुस्से से देखने की जरूरत नहीं है. मैं इसे जेबखर्च से ज्यादा पैसे नहीं देती हूं,’’ प्रिया एकदम से गुस्सा उठीं.

‘‘आप दोनों आपस में झगड़ना शुरू करो, उस से पहले मैं ही बता देता हूं कि मैं पैसे कहां से पाता हूं,’’ समीर ने उन का मजाक उड़ाने वाले लहजे में बोलना शुरू किया.

‘‘रात को पीने के बाद क्या सुबह तक आप को याद रहता है कि आप के पर्स में

कितने रुपए थे? क्या किसी को याद है कि मुझे इस महीने की स्कूल फीस किस ने दी  थी?’’

‘‘तुम को फीस मैं ने दी थी,’’ प्रिया ने जवाब दिया.

‘‘नहीं, मैं ने दी थी,’’ संदीप ने हर शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘आप दोनों के अलावा दादी ने भी मुझे फीस दी थी,’’ समीर के होंठों पर व्यंग्य भरी मुसकान झलक उठी.

‘‘इस ने आ कर बताया था कि फीस के पैसे खो गए थे…यह बोला कि तुम पीटोगे, तो मैं ने भी फीस दी थी. अरे शैतान, तू मुझ से भी झठ बोलने लगा है,’’ दादी ने पोते को गुस्से से घूरा.

‘‘सौरी दादी, आप से तो मैं ने रुपए अपने एक दोस्त की फीस भरने को लिए थे,’’ समीर ने दादी से माफी मांगी और फिर अपने मातापिता से शिकायती स्वर में बोला, ‘‘आप दोनों मेरे बारे में या किसी भी और विषय पर आपस में बात ही कहां करते हो. मैं पहले भी ऐसा घोटाला कर चुका हूं. तब क्या आप मुझे पकड़ पाए थे?’’

‘‘शर्म नहीं आ रही है तुझे अपने गलत कामों की तारीफ करते हुए?’’ संदीप गुस्से से फट पड़े.

‘‘मेरे लिए यहां आप दोनों के सामने शर्मिंदा होना कोई बड़ी बात नहीं है, पर मैं अपने दोस्तों के सामने शर्मिंदा नहीं हो सकता हूं. वे 4 दफा मुझ पर पैसे खर्च करेंगे तो 1 बार मुझे भी करने पड़ेंगे या नहीं? मेरी पौकेट मनी बहुत कम है और तभी मुझे हेराफेरी और चोरी करनी पड़ती है.’’

‘‘मेरा दिल कर रहा है कि हंटर मारमार कर तेरी चमड़ी उधेड़ दूं,’’ संदीप उस की तरफ आक्रामक लहजे में बढ़े.

‘‘आप ने अगर मुझ पर हाथ उठाया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा. आप भी जुलूसों में कितना मारने की बातें करते हैं. कितनी बार दुकान बंद कर के हल्ला मचाने भीड़ में जाते रहते हैं. आप मारने की धमकियां देते हैं, मैं खुद मर जाऊंगा.’’

समीर की इस धमकी को सुन संदीप का मुंह हैरानी के मारे खुला का खुला रह गया.

प्रिया ने उसे खींच कर समीर से दूर किया और अपने मन की चिंता व्यक्त करी, ‘‘अब ये बातें छोडि़ए और कल अमनजी से होने वाली मुलाकात के बारे में सोचिए. वहां भी अगर इस ने ऐसी ही बदतमीजी दिखाई तो वे इसे स्कूल से निकाल देंगे.’’

‘‘मौम, डौंट वरी अबाउट हिम. वो रवि को स्कूल से निकालने की हिम्मत नहीं कर सकते हैं क्योंकि रवि के पापा स्कूल के चेयरमैन के गांव के हैं और फिर उन का पैसा भी स्कूल में लगा हैं. अगर रवि स्कूल से नहीं निकलेगा तो हम में से कोई भी नहीं निकलेगा,’’ समीर फिर से लापरवाह नजर आने लगा.

‘‘तुम्हें रवि का साथ छोड़ अपने को सुधारना होगा,’’ प्रिया ने भावुक हो कर उसे सलाह दी.

‘‘अगर तुम ने अपने को फौरन नहीं बदला तो एक दिन बहुत पछताओगे,’’ संदीप अब दुखी और परेशान दिख रहे थे.

‘‘सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि घर में हरेक को बदलना और सुधरना होगा, अब भी आप ऐसा क्यों नहीं कह रहे हो?’’ समीर ने चुभते लहजे में पूछा.

प्रिया और संदीप दोनों से फौरन ही उसे कोई जवाब देते नहीं बना. उन्हें चुप करा कर समीर निडर, विद्रोही भाव से अपने कमरे की तरफ चल पड़ा. दोनों उसे रोकने की हिम्मत नहीं कर सके.

दोनों थकेहारे और टूटे से नजर आ रहे थे. दोनों को आपस में लड़ने या एकदूसरे पर आरोप लगाने की ताकत भी अपने अंदर महसूस नहीं हो रही थी. वे समीर को कैसे डांटते या समझते क्योंकि वह तो उन्हीं को कठघरे में खड़ा कर

गया था.

कुछ देर की खामोशी के बाद प्रिया ने रोनी सूरत बना कर कहा, ‘‘हमारे स्वार्थी

और नासमझ भरे व्यवहार से समीर को गुमराह होने का मौका मिला. पता नहीं वह अब कभी ठीक रास्ते पर लौट भी पाएगा या नहीं? न जाने क्यों हम घर और दुकान का काम छोड़ कर राजनीति के पचड़े में पड़ गए.’’

‘‘हम उसे किसी अच्छे मनोवैज्ञानिक को दिखाएंगे,’’ संदीप ने उस का हाथ पकड़ कर धैर्य बंधाने की कोशिश करी.

दादी ने दोनों को समझते हुए सलाह दी, ‘‘कुछ महीने पहले तक समीर पढ़ाई में पूरी दिलचस्पी लेता था. उस के व्यवहार से भी हमें कोई शिकायत नहीं थी. अब तेज झटका खाने के बाद अगर आगे हम सब समझदारी और प्यार से काम लेंगे तो वह निश्चित रूप से सही राह पर लौट आएगा. गलत व्यवहार की जड़ें अभी उस के मन में ज्यादा गहरी नहीं गई हैं.’’

‘‘हम दोनों आपसी संबंधों का सुधारेंगे क्योंकि समीर के भविष्य से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हमारे लिए कुछ भी नहीं है,’’ प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

समीर ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से चूमा और फिर भावुक हो कर कहा, ‘‘मुझे विश्वास है कि हमारे बदलते ही सबकुछ ठीक

हो जाएगा. हमारी अगर उसे कमियों ने गलत

राह पर धकेला है तो हमारे अंदर आने वाला अच्छा बदलाव उसे सही रात पर आने की प्रेरणा भी देगा.’’

अतीत के सारे गिलेशिकवे भुला कर दोनों लंबे समय के बाद अपनेआप को दूसरे के बहुत करीब महसूस कर रहे थे. समीर की दादी ने सदा सुखी और खुश रहने का आशीर्वाद देते हुए दोनों को अपने गले से लगा लिया था.

Hindi Love Stories : दो युवतियां – क्या हुआ था प्रतिभा के साथ

 Hindi Love Stories : वर्षों पहले एक बड़े शहर में 2 युवतियों की मुलाकात एक कालेज में हुई. एक उसी शहर की थी जबकि दूसरी किसी छोटे कसबे से शहर में पढ़ने आई थी. दोनों युवतियां अलगअलग परिवेश की थीं. दोनों का आर्थिक स्तर और विचारधारा भी अलग थी. दोनों के विचार आपस में बिलकुल नहीं मिलते थे, लेकिन दोनों में एक समानता थी और वह यह कि दोनों ही युवतियां थीं और एक ही कक्षा की छात्राएं थीं.

कक्षा में दोनों साथसाथ ही बैठती थीं, इसलिए विपरीत सोच और स्तर के बावजूद दोनों में दोस्ती हो गई थी. धीरेधीरे उन की यह दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो गई कि वे दो जिस्म एक जान हो गई थीं.

शहरी युवती अत्याधुनिक और खूबसूरत थी. उस का पिता एक बड़ा अफसर था इसलिए वह बड़े बंगले में रहती थी. उस के पास सारी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. वह कार से कालेज आतीजाती और महंगा मोबाइल इस्तेमाल करती थी. वह काफी खुले विचारों की थी इसलिए उस की दोस्ती भी कालेज के कई युवकों से थी. ऐसा लगता था, जैसे वह कालेज के हर युवक से प्रेम करती थी. कालेज का हर छात्र उस का दीवाना था. उस का खुलापन और युवकों के साथ उस की मित्रता देख कर कोई भी यह सहज अनुमान लगा सकता था कि वह उन युवकों में से ही किसी एक के साथ शादी करेगी.

दूसरी तरफ कसबाई युवती इतनी सीधीसादी थी कि वह युवकों से बात करते हुए भी घबराती थी. वह होस्टल में रहती थी लेकिन अपनी कसबाई संस्कृति और संस्कारों से बाहर नहीं निकल पाई थी. उस के पास एक सस्ता सा मोबाइल था, जिस में उस के किसी बौयफ्रैंड का नंबर नहीं था. उस में केवल उस के मांबाप और कुछ रिश्तेदारों के नंबर थे. सुबहशाम वह केवल अपने मांबाप से ही बात करती थी.

शहरी युवती जब भी कालेज कैंपस में होती, उसे देख कर लगता जैसे चांद दिन में निकल कर अपनी शीतल चमक से सब को जगमग कर रहा है. युवक तारों की तरह उस के इर्दगिर्द लटक जाते और टिमटिमाने का प्रयास करते. कसबाई युवती उस के साथ बिलकुल वैसे ही लगती, जैसे एलईडी बल्ब के सामने जीरोवाट का बल्ब जल रहा हो. वह यदि अकेला जलता तो शायद थोड़ीबहुत रोशनी भी देता, लेकिन उस शहरी युवती के सौंदर्य के सामने उस की रोशनी बिलकुल फीकी लगती और ऐसा लगता जैसे दिन की रोशनी में शमा की रोशनी घुलमिल गई हो.

दोनों युवतियों की अपनीअपनी जिंदगी थी, उन की अपनीअपनी सोच थी और वे एकदूसरे के बारे में क्या सोचती थीं, यह अब उन्हीं की जबानी…

शहरी युवती…

जब से कालेज आई हूं, जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन आया है. स्वच्छंदता है, उच्छृंखलता है, मस्ती और जोश है. इतनी सारी खुशियां पहली बार जीवन में आई हैं. समझ नहीं आता, उन्हें किस प्रकार समेट कर अपने दामन में भरूं. अगर समेट लूं, तो उन्हें सहेज कर कहां रखूंगी. डर भी लगता है कि कहीं एक दिन यह खुशियों का संसार टूट कर बिखर न जाए. कहते हैं, ‘खुशियों के दिन कम होते हैं.’ जीवन में जब ज्यादा खुशियां आती हैं, तो दुखों का अंधेरा उन से ज्यादा लंबा और घना होता है, लेकिन आगे आने वाले दुखों के बारे में सोच कर क्यों परेशान हुआ जाए. जब चारों तरफ फूल खिले हों, तो पतझड़ की कल्पना बेमानी लगती है. खुशियों का इंद्रधनुष जब आसमान में खिला हो तो काली घटाओं का आना बुरा लगता है.

ऐसी आजादी कहां मिलेगी? इतने सारे दोस्त और खुला वातावरण… युवकों के साथ दोस्ती करना कितना अच्छा लगता है. पहले कितने प्रतिबंध थे, अब तो कोई रोकनेटोकने वाला नहीं है. चाहे जिस से दोस्ती कर लो. युवक भी पतंगे की तरह युवतियों की तरफ खिंचे चले आते हैं. कितना शौक होता है युवकों को भी जल कर मर जाने का. समझ में नहीं आता, युवक इतने उतावले क्यों होते हैं युवतियों का प्यार हासिल करने के लिए. युवती को देखते ही उन का दिल बागबाग होने लगता है. वे लपक कर पास आ जाते हैं, जैसे युवती किसी विश्वसुंदरी से कमतर नहीं है और युवती के सामने उन की वाणी में कालिदास का मेघदूत आ विराजता है.

मेरी दोस्ती कई युवकों से है. सभी हैंडसम, स्मार्ट और अमीर घरों के हैं. वे मुझ पर मरते हैं. सभी ने मुझ से प्रेम निवेदन किया है, लेकिन मैं जानती हूं, ये सभी झूठे हैं. वे मेरे सौंदर्य पर मोहित हैं और येनकेन प्रकारेण मेरे शरीर को भोगने के लिए मेरे आगेपीछे भंवरे की तरह मंडराते रहते हैं, यह सोच कर कि कभी न कभी तो फूल का रस चूसने को मिलेगा.

लेकिन मैं भी इतनी बेवकूफ नहीं हूं और न ही इतनी नादान कि एकसाथ कई युवकों से प्यार करूं. दोस्ती तक तो ठीक है, लेकिन इतने युवकों का प्यार ले कर मैं कहां रखूंगी? किसी एक से प्यार करना तो संभव हो सकता है, पर इन में से कोई भी युवक मुझे सच्चा प्यार नहीं करता. सब की बातें झूठी हैं, वादे खोखले हैं, बस मुझे लुभा कर वे मेरे सौंदर्य को पाना चाहते हैं. यदि मैं ने हंसीमजाक में किसी से शादी की बात कर ली, तो वह दूसरे दिन ही कालेज छोड़ कर भाग जाएगा, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी. भुलावे में रख कर उन को बेवकूफ बनाया जा सकता है. कम से कम कैंटीन में ले जा कर भरपेट खिलातेपिलाते तो हैं.

युवकों को विश्वास है कि मैं उन्हें दिल से प्यार करती हूं, लेकिन वे भुलावे में जी रहे हैं. मेरा झुकाव किसी की तरफ नहीं है, मैं उन में से किसी के साथ प्यार करने का जोखिम नहीं उठा सकती हूं. प्यार में खुशी के दिन कम और दुख के ज्यादा होते हैं. मिलन के बाद विरह बहुत दुखदायी होता है. मिलन तो क्षणिक होता है, लेकिन विरह की घडि़यां इतनी लंबी होती हैं कि काटे नहीं कटतीं. बिलकुल जाड़े की तरह काली अंधेरी, सिहरती रातों की तरह.

मेरी कोशिश है कि मैं किसी युवक के प्यार में न पड़ूं, इसलिए मैं उन से अकेले में मिलने से बचती हूं. एकांत दो दिलों को ज्यादा करीब ला देता है. एकदूसरे को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का मौका मिलता है. भावुकता भरी बातें होती हैं. ऐसी बातें सुन कर दिल पिघलने लगता है और जब दो दिल साथसाथ पिघलते हैं, तो घुलमिल कर चाशनी की तरह एक हो जाते हैं. मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती.

मगर युवकों का चरित्र भी बड़ा विरोधाभासी होता है. एक तरफ तो वे युवती को प्यार करने का दम भरते हैं और दूसरी तरफ उस पर शंका भी करते हैं, उस के ऊपर एकाधिकार चाहते हैं. जब मैं एक युवक से बात करती हूं, तो दूसरा क्रोध से लालपीला हो जाता है. मेरे ऊपर नाराजगी प्रकट करता है. मुझे दूसरे युवकों से बात करने, उन से मिलनेजुलने और उन के साथ घूमनेफिरने पर मना करता है. तब मैं उस से साफसाफ शब्दों में कह देती हूं, ‘‘मेरे ऊपर हुक्म चलाने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारी दोस्त हूं, कोई खरीदी हुई वस्तु नहीं, समझे.’’

एक ही डांट में युवक को अपनी औकात समझ आ जाती है. वह सहम कर कहता है, ‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं तो बस तुम्हें सचेत कर रहा था. वह युवक अच्छा नहीं है. वह तुम्हें बरगला कर तुम्हारी इज्जत के साथ खिलवाड़ कर सकता है.’’

‘‘अच्छा,’’ मैं मुसकरा कर कहती हूं, ‘‘लेकिन यही बात वह युवक भी तुम्हारे बारे में कहता है.’’

इस के आगे युवक की जबान बंद हो जाती है.

कालेज में युवकों से दोस्ती के दौरान मैं ने एक बात अनुभव की कि युवक हर युवती से अपनी दोस्ती को प्यार समझते हैं और इसी प्यार का वास्ता दे कर वे उस के शरीर को भोगना चाहते हैं. जब तक वे उस के शरीर को भोग नहीं लेते, तब तक उस के आगेपीछे मंडराते रहते हैं. जब उसे भोग लेते हैं तो उस के प्रति उन का प्यार कम होने लगता है और फिर किसी दूसरी युवती की तरफ देखना शुरू कर देते हैं.

यह मेरा ही नहीं बल्कि मेरी अन्य सहेलियों का भी व्यक्तिगत अनुभव है. मैं ने देखा है कि ऐसी युवतियां अकसर दुखी रहती हैं, क्योंकि एक बार अपना सबकुछ लुटा देने के बाद उन के पास कुछ नहीं बचता. फिर भी वे युवकों के प्रति पूरी तरह समर्पित रहती हैं, जबकि युवक भंवरे की तरह दूसरी युवती रूपी तितली के ऊपर मंडराने लगता है. मैं ने इन अनुभवों से यही सीख ली है कि कालेज में युवकों के प्यार में कोई स्थायित्व नहीं होता. यह केवल मौजमस्ती के लिए होता है. असली प्यार वही होता है, जिस में बंधन होता है, दायित्व होता है.

सहेलियों की बात चली तो मैं बता दूं, मेरी एक सहेली है, जो मेरी अन्य सहेलियों से कुछ अलग है, लेकिन मेरी अभिन्न मित्र है. वह मेरी ही कक्षा में है और हम दोनों साथसाथ बैठती हैं, इसलिए दोनों में काफी लगाव है. वह किसी कसबेनुमा गांव की है

और यहां होस्टल में रहती है. बहुत आधुनिक नहीं है, लेकिन बुद्धिमान है. थोड़ी संकोची स्वभाव की है, ज्यादा बोलती नहीं है और युवकों के सामने तो वह शर्म के मारे निगाहें फेर लेती है. मेरे साथ रहती है, लेकिन मेरे किसी दोस्त से बात तक नहीं करती.

प्रतिमा नाम है उस का. वह बहुत खूबसूरत तो नहीं है. पहली नजर में कोई युवक उसे पसंद नहीं करेगा, लेकिन बारबार देखने और मिलने से कोई न कोई उस की तरफ आकर्षित हो सकता है. मैं ने उसे आधुनिक ढंग से सजनेसंवरने और कपड़े पहनने के कुछ टिप्स दिए, जिस से अब वह कुछ सुंदर दिखने लगी है. किसी न किसी दिन कोई युवक उस की तरफ अवश्य आकर्षित होगा. प्रतिमा भोली है. मुझे बस एक ही डर लगता है कि यदि वह किसी युवक के प्यार में गिरफ्तार हो गई तो कहीं वासना के दलदल में न फंस जाए.

आजकल के युवक प्यार के बदले सीधे शरीर मांगते हैं. अब पुराने जमाने की तरह महीनों चोरीचोरी देखना, फिर पत्र लिख कर अपनी भावनाओं को एकदूसरे तक पहुंचाना, उस के बाद मिलने के लिए तड़पना… और सालों बाद जब मुलाकात होती थी, तो पकड़े जाने के डर से कुछ कर भी नहीं पाते थे और आज तो प्यार हो चाहे न हो, शरीर का मिलन तुरंत हो जाता है. फिर कुछ दिन बाद एकदूसरे से अलग भी हो जाते हैं, जैसे यात्रा में 2 व्यक्ति अचानक मिले हों और कुछ पल साथ बिता कर अपने गंतव्य पर जुदा हो कर चल दिए हों. आजकल प्यार नहीं होता, लेनदेन होता है… शरीर और महंगे उपहारों का आदानप्रदान होता है.

मैं यह नहीं कहती कि प्रतिमा दोस्ती और प्यार में फर्क करना नहीं जानती. वह युवा है. कसबे से शहर आई है. ग्रैजुएशन कर रही है. प्यार से तो अनभिज्ञ नहीं होगी, क्योंकि प्यार के खेल तो हर जगह होते हैं. गांव, गली और शहर… सब जगह. कौन इस से अछूता है. क्या पता प्रतिमा भी किसी न किसी को प्यार करती हो. हालांकि उस के हावभाव से लगता नहीं है.

कसबाई युवती…

मेरे हावभाव से किसी को मेरे स्वभाव का जल्दी पता नहीं चलता. मैं बहुत संकोची और शर्मीली हूं. संभवत: कसबाई संस्कृति और संस्कारों ने मेरे अंदर एक स्वाभाविक संकोच भर दिया है. अब मैं 18 वर्ष की आयु में शहर पढ़ने के लिए आई हूं, तो स्वाभाविक तौर पर मुझे अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना होगा.

मैं होस्टल में रहती हूं, जहां एक से एक बदमाश, शैतान और चालू युवतियां रहती हैं. उन सब ने मुझे कितना परेशान किया, कमरे में बंद कर के नंगा नाच करवाया, गाना गवाया और बहुत से ऐसे कृत्य करवाए, जिन का मैं यहां वर्णन नहीं कर सकती. ये सब करवाने के पीछे उन युवतियों का क्या मकसद था, यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया. यदाकदा अब भी सीनियर युवतियां मुझ से वैसा ही दुर्व्यवहार करती रहती हैं, लेकिन मैं न तो उन के जैसी बदमाश और चालू बन सकी, न उन में से किसी के साथ मेरी दोस्ती हो सकी.

मेरी दोस्ती है तो प्रियांशी से, जो मेरी होस्टलमेट नहीं, क्लासमेट है. हम दोनों कक्षा में साथसाथ बैठती हैं और कक्षा के बाहर लाइब्रेरी से ले कर कैंटीन तक साथ रहती हैं. हम दोनों में बहुत सी बातें होती हैं, लेकिन हम दोनों का स्वभाव बिलकुल अलग है. वह खुले विचारों की आधुनिका है, तो मैं संकोची और संस्कारवान रूढि़वादी युवती, लेकिन मैं रूढि़वादी संस्कारों के बंधन में घुटन महसूस कर रही हूं. मैं शहर में आ कर अपने बंधन तोड़ देना चाहती हूं, पंख फैला कर खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं.

मैं खुल कर किसी से बातें नहीं कर पाती. युवकों के सामने पड़ते ही मेरे संस्कार मेरे पैरों को जकड़ लेते हैं, हाथों को बांध देते हैं और जबान पर ताला लगा देते हैं. मैं किसी युवक से अपने मन की बात कह नहीं पाती. लेकिन अगर मैं किसी तरह साहस कर के कुछ कहना चाहूं तो कहूं किस से? कोई युवक मेरी तरफ निगाह उठा कर भी नहीं देखता.

सचाई तो यह है कि हर युवक आवारा भंवरे की तरह सुगंधित और सुंदर फूल का रस चूसने के लिए लालायित ही नहीं बेचैन भी रहता है. वह एक सौंदर्यहीन, असुगंधित जंगली फूल की तरफ कभी आकर्षित नहीं होता. मैं अकसर हीनभावना से ग्रस्त हो जाती हूं. प्रियांशी मेरी घनिष्ठ सहेली है, लेकिन उस के साथ रहते हुए मुझे हीनभावना का एहसास होता है और मैं उस के सौंदर्य से ईर्ष्या करने लगती हूं. वह असीम सौंदर्य की धनी है, शायद मेरे हिस्से का सौंदर्य भी उस के ही खाते में चला गया.

वह इतनी सुंदर और मैं सौंदर्यहीन, दबे हुए रंग की युवती. हालांकि शारीरिक सौष्ठव और अंगों की पुष्टता के मामले में मैं उस से किसी तरह कमतर नहीं हूं, लेकिन युवती की सुंदरता का मापदंड उस का चेहरा होता है, उस का दमकता हुआ माथा, बड़ीबड़ी काली आंखें, सुंदर लंबी नाक, कश्मीरी सेब की तरह गाल, भरे हुए संतरे की फांक जैसे गुलाबी होंठ और लंबी गरदन, यह एक युवती की सुंदरता के मापदंड होते हैं. इन में मैं प्रियांशी के सामने कहीं नहीं ठहरती.

कालेज का हर युवक प्रियांशी की तरफ आकर्षित है, उस के साथ दोस्ती करना चाहता है. दोस्ती क्या, दोस्ती की आड़ में प्यार का नाटक कर के उस को हासिल करने का प्रयास करता है, लेकिन प्रियांशी उन के साथ केवल दोस्ती करती है. मेरे सामने तो वैसे ही दिखाती है, अकेले में मिल कर कैसी बातें करती है, मुझे नहीं पता.

प्रियांशी की दोस्ती कालेज के कई युवकों से है. मैं भी चाहती हूं कि मेरा कोई दोस्त बने. प्रियांशी के कहने पर मैं ने अपने गैटअप में कई परिवर्तन किए और अब मैं पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी हूं. फिर भी कोई युवक मेरी तरफ मुंह उठा कर नहीं देखता. इस का प्रमुख कारण है, प्रियांशी. मैं हर वक्त उस के साथ रहती हूं. उस के सामने मुझे कौन देखेगा, कौन चाहेगा. उस के सुंदर व्यक्तित्व के सामने मेरा थोड़ा सा सौंदर्य बुझे हुए चिराग जैसा हो जाता है.

मुझे अपनी अलग पहचान बनानी होगी. यदि मुझे नए जमाने के साथ चलना है, तो मुझे खुद ही कुछ करना होगा. प्रियांशी के साथ रहते हुए कोई युवक मेरा दोस्त नहीं बनने वाला. मुझे उस से कट कर अकेले रहना होगा. जब मैं अकेली रहूंगी तभी कोई युवक मुझ से बात करने का प्रयास करेगा, तभी मैं उसे अपनी बातों और नयनों के तीर से घायल कर पाऊंगी. फिर मैं उस के घायल दिल पर अपने प्यार का मरहम लगा कर उसे वश में कर लूंगी.

लेकिन मैं किस युवक को अपने वश में करूं, क्योंकि कक्षा के अधिकांश युवक तो प्रियांशी को ही चाहते हैं. मेरी तरफ कोई भूल कर भी नहीं देखता. कैंपस के दूसरे युवक भी किसी न किसी युवती के साथ अटैच्ड हैं. मैं किस को अपनी तरफ आकर्षित करूं?

मैं यह सोच कर परेशान हो जाती हूं, एक अजीब बेचैनी मेरे अंदर घर करती जा रही है. मैं जवान हूं, लेकिन कोई भी युवक मेरा दोस्त नहीं है. सभी युवतियों के दोस्त हैं, बौयफ्रैंड हैं, प्रेमी हैं और एक मैं हूं, जिस की कोई जानपहचान तक किसी युवक से नहीं है. मेरी जैसी युवतियां आज बैकवर्ड मानी जाती हैं.

एक प्रियांशी ही मुझ से दोस्ती का रिश्ता कायम किए हुए है, लेकिन कब तक? जब उस का मन किसी युवक से अकेले में बात करने का होगा, तो वह भी मुझ से किनारा कर लेगी? तब क्या मैं हताश और निराश नहीं हो जाऊंगी. कहते हैं न किसी जवान युवती को अगर सही समय पर प्यार नहीं मिलता और उस की इच्छाएं, कामनाएं और भावनाएं दबी रह जाती हैं, तो वह हताशा की शिकार हो जाती है. उसे दौरे पड़ने लगते हैं और वह हताशा के अतिरेक में आत्महत्या तक कर लेती है.

लेकिन मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. मैं इतनी सुंदर नहीं हूं, पर इतनी बुरी भी नहीं कि कोई युवक मुझे प्यार ही न करे. प्रयास करने से क्या नहीं होता? आज अगर कोई युवक मेरी तरफ प्यार भरी नजर से नहीं देखता, तो यह केवल प्रियांशी के कारण. अब मैं उस के घर में सेंध लगाऊंगी. हां, आप नहीं समझे?

मैं उसी के दोस्तों में से किसी एक को पटाऊंगी और वे सब प्राप्त कर के दिखाऊंगी, जो एक पुरुष से स्त्री को प्राप्त होता है. मैं अधूरी नहीं रहना चाहती. मैं जवान हूं, मेरी कामनाएं हैं और मेरी भी भावनाएं मचलती हैं, मुझे प्यार चाहिए, भरपूर प्यार… एक पुरुष का प्यार… हर तरफ वसंत के फूल खिले हैं. प्यार का रस टपक रहा है. मैं किसी को अकेला नहीं देखती. कैंपस का हर युवक किसी न किसी के प्यार में गिरफ्तार है, तो मैं अकेली पतझड़ की गरम हवा क्यों बरदाश्त करूं? इसी वसंत में कोई मेरे लिए भी प्यार के गीत गाएगा, हवा मेरे लिए भी खुशबू ले कर आएगी. पतझड़ के गीत गाने का मौसम अभी मेरे जीवन में नहीं आया है.

शहरी युवती…

वसंत का आगमन हो चुका है. फूलों ने पेड़ों पर एक अनोखी छटा बिखेरी हुई है. हवा में अनोखी सुगंध है, जो मन को मुग्ध कर देती है. तन और मन दोनों ही मचलते हैं. कुछ करने का मन करता है, लेकिन मैं अपने मन को रोक लेती हूं. तन को बहकने नहीं देती.

मेरे सभी दोस्तों ने वैलेंटाइन डे पर मुझे गुलाब के साथ महंगे गिफ्ट भेंट किए हैं. साथ ही उन्होंने प्रेम निवेदन भी किया है, लेकिन मैं ने बहुत विनम्रता से उन के प्रेम को ठुकरा दिया है. उन सब के चेहरों पर खिले हुए वसंत के फूल मुरझा गए हैं. उन की आंखों के सामने पतझड़ के सुर्ख पत्ते उड़ने लगे. ऐसा लगा, जैसे उन के चेहरे का सारा खून सूख कर पानी बन गया हो. उन के चेहरे एकदम सफेद पड़ गए, लेकिन इस से मुझे क्या? यह उन की समस्या थी. जो प्यार करता है, वह विरह का दुख भी सहता है. मैं ने तो उन्हें प्रेम के लिए उत्प्रेरित नहीं किया था. मैं अगर उन से प्यार नहीं करती तो इस में मेरा क्या दोष? प्यार उन्होंने किया, तो उस का परिणाम भी वही भुगतेंगे.

इस के बाद मैं ने महसूस किया कि सारे युवक मुझ से दूरदूर रहने की कोशिश करने लगे हैं, तो मैं ने भी उन से दोटूक बात कर के उन के मन की बात जाननी चाही और उन से बातें करने के बाद जो सचाई उभर कर सामने आई उस में एक बात पूरी तरह सत्य साबित हो गई कि युवकयुवतियों के बीच की सीमा शारीरिक मिलन पर जा कर समाप्त होती है. यही उस की पूर्णता है. यही शाश्वत सत्य है.

‘‘क्या बात है, आजकल तुम मुझ से दूरदूर रहते हो.’’

‘‘क्या करूं ? पत्थर से सिर टकराने से क्या फायदा? उस में फूल कभी नहीं खिलते,’’ युवक ने मायूसी से कहा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘तुम्हारे पास एक युवती का दिल नहीं है. तुम किसी युवक को प्यार नहीं कर सकती.’’

‘‘कल तक तो मेरे पास सबकुछ था आज मैं ने तुम्हारा प्रेम निवेदन ठुकरा क्या दिया कि मैं युवती ही नहीं रही. वाह, क्या दोस्ती में प्यार नहीं होता.’’

‘‘नहीं, वैसा प्यार नहीं होता, जैसा एक युवकयुवती के बीच होना चाहिए.’’

‘‘यह कैसा प्यार होता है? क्या मुझे समझाने का प्रयत्न करोगे?’’ प्रियांशी ने थोड़ा तल्खी से पूछा.

‘‘तुम सब समझती हो, तभी तो हमारे प्यार को ठुकरा दिया है.’’

‘‘फिर भी बताओ न, तुम्हारे मुख से भी तो सुनूं.’’

‘‘यही न जैसे कि कहीं एकांत में बैठना, प्यार भरी बातें करना, एकदूसरे को स्पर्श करना, चुंबन करना और… और…’’

‘‘और फिर तनबदन में आग लगे, तो वासना के दरिया में डूब कर अपनी प्यास बुझाना, क्यों यही चाहते हो न तुम एक युवती से?’’

‘‘हां, और क्या? सभी ऐसा करते हैं, हम दोनों करेंगे तो कौन सा धरतीआसमान फट जाएंगे.’’

‘‘लेकिन ये सब करने की हमारे संस्कार अनुमति कहां देते हैं. इस के लिए तो शादी जैसा पवित्र रिश्ता बना है. ये सब यदि हम तभी करें तो क्या ज्यादा उचित नहीं होगा. अभी तो हमारी पढ़ाई की उम्र है.’’

‘‘हुंह, पढ़ाई की उम्र… और जो एकदूसरे के प्रति आकर्षण होता है, स्वाभाविक खिंचाव होता है, भावनाएं मचलती हैं, उन का क्या किया जाए. शारीरिक क्रियाएं अपना काम करना बंद नहीं करतीं, समझी, प्रियांशीजी,’’ लड़के के स्वर में तल्खी थी, ‘‘तुम हठी और जिद्दी हो. जानबूझ कर अपनी भावनाओं को कुचल कर दबाने का प्रयास करती हो. देख लेना, अगर यही स्थिति रही तो एक दिन हिस्टीरिया की शिकार हो जाओगी.’’

‘‘उस की फिक्र तुम मत करो दोस्त, ऐसी स्थिति आने से पहले ही मैं शादी कर लूंगी. लेकिन तुम्हारे जैसे किसी लंपट से तो शादी बिलकुल नहीं करूंगी.’’

इस के बाद मेरी दोस्ती उन युवकों से खत्म हो गई. उन के प्यार का रंग बदरंग हो गया. इस से एक बात प्रमाणित हो गई कि युवकयुवती आपस में कभी दोस्त बन कर नहीं रह सकते. उन के बीच जो कुछ होता है, वह मात्र शारीरिक आकर्षण होता है, जो आखिर में शारीरिक मिलन पर जा कर समाप्त होता है.

कहते हैं, दुनिया में कुछ भी टिकाऊ नहीं है… रिश्ते और नाते भी नहीं, स्वार्थ पर आधारित कोई भी चीज टिकाऊ नहीं हो सकती. लेकिन मुझे हैरानी होती है, प्रतिमा और मेरे बीच स्वार्थ का कोई आधार नहीं था, फिर भी आजकल वह मुझ से खिंचीखिंची रहती है. पता नहीं उस के मन में क्या है? वह आजकल मुझ से कम बात करती है. कक्षा में साथ बैठती है, पर ऐसे जैसे दो दुश्मन गलती से अगलबगल बैठ गए हों. मैं उस से कुछ पूछती हूं, तो वह कुछ बताती नहीं है. कक्षा के बाहर भी मेरे साथ नहीं रहती. न साथ लाइब्रेरी जाती है, न कैंटीन. मैं ने अपनी तरफ से प्रयास किया कि उस के साथ मेरे रिश्ते सामान्य बने रहें, लेकिन वह अडिग चट्टान की तरह अपने मन को कठोर बनाए हुए है, तो मैं क्या कर सकती हूं. ऐसी स्थिति में दोस्ती के तार कांच की तरह झनझना कर टूट जाते हैं. मेरा भी मन उस से खट्टा होने लगा है.

मेरी समझ में अच्छी तरह आ गया है कि मेरी सुंदरता प्रियांशी के सामने बिलकुल वैसी ही है, जैसी पूर्णिमा की रात को उस के अगलबगल रहने वाले तारों की होती है, जो चांद की चमक के सामने किसी को दिखाई नहीं देते. मैं ने मन बना लिया है कि यदि मुझे अपने अस्तित्व को बचाए रखना है, तो प्रियांशी से दूर जाना होगा.

वह अच्छी युवती है, अच्छी दोस्त है, सलाहकार है, लेकिन इस उम्र में मुझे एक अच्छी दोस्त की नहीं बल्कि एक अच्छे प्रेमी की आवश्यकता है. मेरे बदन में जो आग है उसे प्रेमी की ठंडी फुहारें ही बुझा सकती हैं. मैं प्रियांशी से धीरेधीरे किनारा कर रही हूं और उसे इस बात का आभास भी हो गया है, लेकिन मुझे उस की चिंता नहीं करनी है. उस की चिंता करूंगी तो मैं कभी किसी युवक का प्यार हासिल नहीं कर पाऊंगी.

सौंदर्य और प्रेम के बीच एक अनोखा विरोधाभास मैं ने अनुभव किया. अधिक सुंदर युवती अति साधारण रंगरूप और कदकाठी वाले युवक के साथ प्यार के रंग में रंग जाती है, तो दूसरी तरफ अति साधारण युवती अति सुंदर और अमीर युवक को फंसाने में कामयाब हो जाती है. इस में अपवाद भी हो सकते हैं, परंतु विरोधाभास बहुत है और यह एक परम सत्य है.

मेरे सौंदर्य पर कई युवक मरने लगे थे. अत: मैं ने किसी एक युवक को चुना. प्रियांशी के ठुकराए प्रेमी ही मेरा शिकार बन सकते थे, क्योंकि घायल की गति घायल ही जान सकता था. मैं ने प्रवीण की तरफ ध्यान दिया. वह अमीर युवक था और कार से कालेज आता था. उस से बात करने में कई दिन लग गए. जब वह एकांत में मिला तो मैं ने हलके से मुसकरा कर उस की तरफ देखा. उस के होंठों पर भी एक टूटी हुई मुसकराहट बिखर गई. मैं ने अपनी शर्म त्याग दी थी, संकोच को दबा दिया था. प्यार के लिए यह दोनों ही दुश्मन होते हैं. मैं ने कहा, ‘‘कैसे हैं?’’

‘‘ठीक हूं. आप कैसी हैं?’’

‘‘बस, ठीक ही हूं. आप तो हम जैसे साधारण लोगों की तरफ ध्यान ही नहीं देते कि कभी हालचाल ही पूछ लें.’’

वह संकोच से दब गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

फिर वह चुप हो कर ध्यान से मेरा चेहरा देखने लगा. मैं एकटक उसे ही देख रही थी. मैं ने बिना हिचक कहा, ‘‘केवल गुलाब के फूल ही खुशबू नहीं देते, दूसरे फूलों में भी खुशबू होती है. कभी दूसरी तरफ भी नजर उठा कर देख लिया कीजिए.’’

प्रवीण के चेहरे पर हैरानी के भाव दिखाई दिए. मैं लगातार मुसकराते हुए उसे देखे जा रही थी. वह मेरे मनोभाव समझ गया. थोड़ा पास खिसक आया और बोला, ‘‘प्रियांशी के साथ रहते हुए कभी ऐसा नहीं लगा कि आप के मन में ऐसा कुछ है. आप तो सीधीसादी, साधारण सी चुप रहने वाली युवती लगती थीं. कभी आप को हंसतेमुसकराते या बात करते नहीं देखा. ऐसी नीरस युवती से कैसे प्यार किया जा सकता है.’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. आप प्रियांशी के सौंदर्य की चमक में खोए हुए थे, तभी तो आप को उस के पास जलता हुआ चिराग दिखाई नहीं दिया. लेकिन यह सत्य है कि चांद सब का नहीं होता और चांद की चमक घटतीबढ़ती रहती है. उस के जीवन में अमावस भी आती है, लेकिन चिराग तो सब के घरों में होता है और यह सदा एक जैसा ही चमकता है.’’

‘‘वाह, बातें तो आप बहुत सुंदर कर लेती हैं. आप का दिल वाकई बहुत खूबसूरत है. मैं समुद्र में पानी तलाश रहा था, जबकि खूबसूरत मीठे जल की झील मेरे सामने ही लहरा रही है.’’

‘‘आप उस झील में डुबकी लगा सकते हैं.’’

‘‘सच, मुझे विश्वास नहीं होता,’’ उस ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया.

मैं ने लपक कर उस का हाथ थाम लिया, ‘‘आप विश्वास कर सकते हैं. मैं प्रियांशी नहीं प्रतिमा हूं.’’

‘‘उसे भूल गया मैं,’’ कह कर उस ने मुझे अपने आगोश में ले लिया.

‘‘आग दोनों तरफ लगी थी और उसे बुझाने की जल्दी भी थी. पहले तो हम उस की कार में घूमे, फिर पार्क के एकांत कोने में बैठ कर गुफ्तगू की, हाथ में हाथ डाल कर टहले. प्यार की प्राथमिक प्रक्रिया हम ने पूरी कर ली, पर इस से तो आग और भड़क गई थी. दोनों ही इसे बुझाना चाहते थे. मैं इशारोंइशारों में उस से कहती, कहीं और चलें?’’

‘‘कहां?’’ वह पूछता.

‘‘कहीं भी, जहां केवल हम दोनों हों, अंधेरा हो और…’’

फिर हम दोनों शहर के बाहर एक रिसोर्ट में गए. प्रवीण ने वहां एक कौटेज बुक कर रखा था. वहां हम दोनों स्वतंत्र थे. दिन में खूब मौजमस्ती की और रात में हम दोनों… वह हमारा पहला मिलन था, बहुत ही अद्भुत और अनोखा… पूरी रात हम आनंद के सागर में गोते लगाते रहे. पता ही नहीं चला कि कब रात बीत गई.

फिर यह सिलसिला चल पड़ा.

प्यार के इस खेल से मैं ऐसी सम्मोहित हुई और उस में इस तरह डूब गई कि पढ़ाई की तरफ से अब मेरा ध्यान एकदम हट गया. वार्षिक परीक्षा में मैं फेल होतेहोते बची. प्रियांशी हैरान थी. उसे पता चल चुका था कि मैं कौन सा खेल खेल रही हूं. उस ने मुझे समझाने का प्रयास किया, लेकिन मैं ने उस पर ध्यान नहीं दिया. प्यार में प्रेमीप्रेमिका को किसी की भी सलाह अच्छी नहीं लगती.

गरमी की छुट्टियों में मैं अपने घर भी नहीं गई. प्रवीण के प्यार ने मुझे इस कदर भरमा दिया कि मैं पूरी तरह उसी के रंग में रंग गई. मांबाप का प्यार पीछे छूट गया. उन से पढ़ाई का झूठा बहाना बनाया और गरमी की छुट्टियों में भी होस्टल में ही रुकी रही. पूरी गरमी प्रवीण के साथ मौजमस्ती में कट गई. पढ़ाई के नाम पर कौपीकिताबों पर धूल की परतें चढ़ती रहीं.

प्रियांशी को पता था कि मैं शहर में ही हूं, उस ने कई बार मिलने का प्रयास किया, पर मैं बहाने बना कर टालती रही. उस से अब दोस्ती केवल हायहैलो तक ही सीमित रह गई थी. मुझे मेरी चाहत मिल गई थी, उस में डूब कर अब बाहर निकलना अच्छा नहीं लग रहा था. देहसुख से बड़ा सुख और कोई नहीं होता. मैं जिस उम्र में थी, उस में इस का चसका लगने के बाद, अब मुझे किसी और सुख की चाह नहीं रह गई थी.

एक दिन प्रियांशी ने कहा, ‘‘प्रतिमा, मुझे नहीं पता तुम क्या कर रही हो, लेकिन मुझे जितना आभास हो रहा है, उस से यही प्रतीत होता है कि तुम पतन के मार्ग पर चल पड़ी हो.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि आज हर युवकयुवती यही कर रहे हैं.’’

‘‘हो सकता है, पर इस राह की मंजिल सुखद नहीं होती.’’

‘‘जब कष्ट मिलेगा, तब यह राह छोड़ देंगे.’’

‘‘तब तक बहुत देर हो जाएगी,’’प्रियांशी के शब्दों में चेतावनी थी. मैं ने ध्यान नहीं दिया. जब आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरे हों, तो आसमान सुहाना लगता है, धरती पर चारों तरफ हरियाली ही नजर आती है. प्रवीण के संसर्ग से मैं कामाग्नि में जलने लगी थी. हर पल उस से मिलने का मन करता, लेकिन रोजरोज मिलना उस के लिए भी संभव नहीं था. मिल भी जाएं, तो संसर्ग नहीं हो पाता. मैं कुढ़ कर रह जाती. उस के सीने को नोचती सी कहती, ‘‘यह तुम ने कहां ला कर खड़ा कर दिया मुझे. मैं बरदाश्त नहीं कर सकती. मुझे कहीं ले कर चलो.’’

वह संशय भरी निगाहों से देखता हुआ कहता, ‘‘प्रतिमा, रोजरोज यह संभव नहीं है. तुम अपने को संभालो, प्यार में केवल सैक्स ही नहीं होता.’’

‘‘लेकिन मैं अपने को संभाल नहीं सकती. मेरे अंदर की आग बढ़ती जा रही है. इसे बुझाने के लिए कुछ करो.’’

प्रवीण जितना कर सकता था, कर रहा था. उस ने मेरे ऊपर काफी रुपया खर्च किया. अधिकांश रुपया तो होटल और रिसोर्ट्स में खर्च हुआ था. बाकी मेरे उपहारों पर… फिर भी मैं संतुष्ट नहीं थी. उपहारों से तो थी, पर शरीर की मांग बढ़ती ही जा रही थी और इसे पूरा करने में प्रवीण खुद को असमर्थ पा रहा था. मैं जितना मांगती, उतना ही वह पीछे हटता जाता.

आखिर प्रवीण मेरी बढ़ती मांग से परेशान हो गया. अब वह मुझ से कटने लगा, लेकिन मैं उसे कहां छोड़ने वाली थी. अभी कुछ छुट्टियां बाकी थीं. मैं ने उस से कहा, ‘‘छुट्टियां खत्म होने से पहले एक बार वाटर पार्क चलते हैं. रात को रिसोर्ट में  ही रुकेंगे.’’

प्रवीण कुछ सोच कर बोला, ‘‘यार, मैं ने काफी पैसा खर्च कर दिया है. अभी छुट्टियां हैं. पिताजी से मांगना मुश्किल है. मैं क्या बताऊंगा उन्हें? मम्मी का पर्स मैं ने खाली कर दिया है. कालेज बंद है इसलिए  कौपीकिताबों का बहाना भी नहीं चल सकता.’’

‘‘तो फिर… कुछ न कुछ करो.’’

‘‘मैं एक काम करता हूं. मैं अपने कुछ दोस्तों से बात करता हूं. हम सभी मिल कर प्रोग्राम बनाते हैं. इस से रिसोर्ट और वाटर पार्क का खर्च आपस में बंट जाएगा. किसी एक के ऊपर बोझ भी नहीं पड़ेगा.’’

‘‘लेकिन तुम और मैं…’’

‘‘हम दोनों अलग कमरे में रह कर मौज करेंगे.’’

मैं ने ज्यादा नहीं सोचा, मान गई. अगले ही दिन प्रवीण अपने 4 दोस्तों के साथ मुझे ले कर एक बहुत अच्छे रिसोर्ट कम वाटर पार्क में चला गया. दिन भर हम लोगों ने वाटर पार्क में मस्ती की. शाम को खाना खाया. प्रवीण ने अपने दोस्तों के साथ बियर पी. कुछ ने शायद ड्रिंक भी ली थी. मैं ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मुझे तो खाना खा कर कमरे में जाने की जल्दी थी, ताकि मैं प्रवीण के साथ अपने कामसुख को प्राप्त कर सकूं.

उस दिन पहली बार ऐसा हुआ जब खाना खातेखाते मुझे झपकी आने लगी. खाना खत्म होने तक मैं मदहोश सी हो गई थी. मुझे याद है, प्रवीण मुझे सहारा दे कर कमरे में लाया था. कमरे के अंदर आते ही मैं ने अनिद्रा में उस को कस कर भींच लिया था. फिर मैं उस को अपने ऊपर लिए पलंग पर गिर पड़ी.

कैसी थी वह रात… भयानक और लिजलिजी सी. सारी रात मैं जागतीसोती सी अवस्था में रही. जब भी मेरी तंद्रा टूटती मुझे लगता, कोई पहाड़ मेरे ऊपर सरक रहा है. मैं फूल सी मसलती जाती और लगता, जैसे मेरे अंदर कोई गरम लावा बह रहा था. बेहोशी के आलम में मैं कुछ समझ न पाती कि मेरे साथ क्या हो रहा था, पर जो भी हो रहा था, वह बहुत घिनौना और भयानक था. पूरी रात न तो मेरी बेहोशी टूटी, न मेरे ऊपर से पहाड़ हटा, मैं टूटी ही नहीं, मसल दी गई थी, पूरी तरह से. अब मैं किसी मंदिर का फूल नहीं थी, मैं सड़क पर गिरा हुआ एक फूल थी, जिस के ऊपर से सैकड़ों लोगों के पैर गुजर चुके थे.

अगले दिन दोपहर को जब मेरी तंद्रा टूटी, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे साथ क्या हुआ था. पूरी रात मुझे 5 दरिंदों ने झिंझोड़ा ही नहीं, नोच कर खाया भी था. मेरे शरीर के खून की एकएक बूंद उन पांचों वहशियों ने पी थी, उन के मुख लाल थे और मैं रक्तविहीन, अर्द्धबेहोशी की हालत में लुटी, असहाय बिस्तर पर निर्वस्त्र पड़ी थी. मुझ में इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मैं उठ कर अपनी अस्मत को कपड़े के एक टुकड़े से ढक सकती.

वे पांचों कुटिलता से मुसकरा रहे थे. मेरा शरीर जल रहा था, लेकिन मैं उठ कर उन के रक्त से सने मुख नहीं नोच सकती थी. मैं ने अपने मुरदा हाथों को उठा कर किसी तरह अपनी जांघों के बीच रखा, तभी प्रवीण की कुटिलता भरी हंसी की ध्वनि मेरे कानों में पड़ी. वह कह रहा था, ‘‘आशा है, अब तुम्हारी कामेच्छा शांत हो गई होगी. इस के बाद अब तुम्हें किसी और के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’’

सुनतेसुनते मैं फिर से बेहोश होने लगी थी और इसी अर्द्धबेहोशी की हालत में मैं ने देखा कि पांचों भेडि़यों के जबड़े फैलने लगे थे. उन की आंखों में क्रूरता और पिपासा के भाव जाग्रत हो रहे थे. वे फिर से मेरे ऊपर हमला करने के लिए स्वयं को तैयार कर रहे थे.

अंतिम हमला मैं ने कैसे झेला, मुझे नहीं पता.

शहर वाली युवती…

प्रतिमा की आंखों में इंद्रधनुषी सपने थे, लेकिन सपने देखने वाला व्यक्ति यह भूल जाता है कि नींद टूटने के बाद केवल सुबह का उजाला ही नहीं दिखाई पड़ता है, कभीकभी चारों तरफ नीरव रात का अंधेरा भी होता है. इंद्रधनुषी आसमान में घनघोर घटाएं भी घिरती हैं जो कभीकभी अतिवृष्टि से धरा को जलमग्न कर देती हैं. तब चारों ओर सैलाब का हाहाकार होता है, जिस में सबकुछ बह जाता है.

मुझे यह महसूस हो रहा था, प्रतिमा प्रेम के रंग में नहीं, बल्कि आधुनिकता की बंधनहीन स्वतंत्रता और उच्छृंखलता के बीच भटक गई थी. वह प्रेम की पवित्रता और मर्यादा को तोड़ कर पाश्चात्य सभ्यता के नवनिर्मित उन्मुक्त संसार में विचरने लगी थी. इस उन्मुक्त संसार में कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. युवकों और युवतियों को जो अच्छा लग रहा था, वही कर रहे थे. मेरा मानना है कि प्रेम को उन्मुक्त नहीं होना चाहिए. बिना किसी प्रतिबंध और प्रतिबद्धता के जब हम कोई कार्य करते हैं, तो उस के दुष्परिणाम भी भयंकर होते हैं.

आज का युवा जिस संसार में सामाजिक मूल्यों को तोड़ कर रह रहा है, उस के दुष्परिणाम दोचार साल में ही सामने आने लगते हैं. एकदूसरे के ऊपर आरोपप्रत्यारोप, अत्याचार, शोषण और बलात्कार के मुकदमे दर्ज हो रहे हैं. जो जीवन में कभी नहीं होता था, वह युवा अपने छात्र जीवन में ही एक अपराधी की तरह झेलने को मजबूर हो जाता है. यही आधुनिक प्रेम की परिणति है.

प्रतिमा कितनी सीधी और शर्मीली थी, लेकिन आज उस ने शर्म और संकोच के सभी बंधन तोड़ दिए हैं. जो व्यक्ति कभी घर से नहीं निकलता है, वह बाहर की धूप में आ कर चौंधिया जाता है, रास्ते उसे भरमाते हैं, तो हवाएं उसे मदहोश कर देती हैं. ऐसे में उस का भटकना स्वाभाविक होता है. प्रतिमा के साथ भी यही हो रहा था. अचानक कसबे से शहर आई तो यहां की चकाचौंध ने उसे भ्रमित कर दिया. चारों तरफ चमकदमक थी और वह उस रंगीन दुनिया में भटक गई.

मैं उस के बारे में चिंतित हूं. मुझे पता चल गया है कि वह प्रवीण के साथ कौन सा खेल खेल रही थी. मैं उसे समझाना चाहती हूं, पर वह मुझ से बात ही नहीं करती, जैसे मैं प्रवीण को उस से छीन लूंगी. मुझे क्या पड़ी है?

प्रवीण को तो मैं ने ही ठुकराया था. फिर मुझे युवकों की क्या कमी? सारे तो मेरे पीछे पड़े रहते हैं, लेकिन प्रतिमा ने ऐसा क्यों किया? चटाक से सारे बंधन तोड़ दिए और परदों को खींच कर फाड़ दिया. क्या कोई विश्वास करेगा कि कुछ दिन पहले तक वह एक शर्मीली युवती थी. इतनी शर्मीली कि युवतियों से भी बात करने में उस की जबान लड़खड़ाने लगती थी, लेकिन आज वह युवकों के साथ तितलियों की तरह उड़ती फिर रही है.

प्रेम की बयार न जाने उसे ले कर कहां पटकेगी?

यों ही एक दिन मेरे मन में आया कि अचानक जा कर प्रतिमा से मिलूं. मैं उस के होस्टल गई, वह वहां नहीं थी. किसी को पता भी नहीं था कि कहां गई है? छुट्टियां थीं, इसलिए वार्डन को भी परवा नहीं थी. मैं ने उस का मोबाइल मिलाया लेकिन वह बंद था. मुझे चिंता हुई. उस के होस्टल के चौकीदार से बस इतना पता चला कि 3-4 दिन से वह होस्टल नहीं आई थी.

कुछ सोच कर मैं ने प्रवीण को फोन मिलाया. उस का फोन भी स्विच औफ था. अचानक दिमाग में आया कि उन दोनों के साथ कोई हादसा तो नहीं हो गया. मैं ने अपनी कुछ क्लासमेट्स से बात की. उन्हें भी उन का कुछ पता नहीं था. प्रतिमा मुझ से विरक्त थी, पर मुझे उस की चिंता थी. पहले मैं ने अपने मम्मीपापा से बात की. उन्होंने भी चिंता व्यक्त की कि कुछ भी हो सकता है. फिर हमसब कालेज प्रशासन से मिले. उन्होंने तत्काल प्रतिमा के घर संपर्क करने के लिए कहा. कालेज रिकौर्ड से उस के घर का पता और फोन नंबर मिल गया. पता चला कि प्रतिमा घर भी नहीं गई थी.

सब ने सलाह की कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए. यह कालेज प्रशासन की तरफ से हुआ. पुलिस ने सब से पहला काम यह किया कि मेरे कहने पर प्रवीण और प्रतिमा के कौल डिटेल्स निकलवाए. उन से पता चला कि प्रतिमा की अंतिम बातचीत प्रवीण के फोन पर हुई थी और उस की अंतिम लोकेशन रोहतक रोड का एक रिसोर्ट था. प्रवीण के फोन की भी यही लोकेशन थी. हालांकि प्रवीण के फोन से बाद में अन्य लोगों से भी बात हुई थी और उस की अंतिम बातें शहर की लोकेशन से हुई थीं. इस से यह साबित हो गया कि अंतिम समय में प्रतिमा और प्रवीण एकसाथ थे.

पुलिस ने सक्रियता दिखाई और सब से पहले प्रवीण के घर पर छापा मारा. वह घर पर निश्चिंत और बेखौफ था. उसे थाने लाया गया. उस से पूछताछ हुई, पर हर पेशेवर अपराधी की तरह उस ने भी मनगढ़ंत कहानियां सुनाईं, पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन फोन के कौल डिटेल्स अलग ही कहानी बयां कर रहे थे. उन के आधार पर प्रवीण टूट गया. फिर जो उस ने कहानी सुनाई, वह प्रतिमा के जोशीले प्रेम के दर्दनाक अंत की कहानी थी.

प्रतिमा ने जब प्रेम के मैदान में कदम रखा तो वह बहुत तेज दौड़ने लगी. प्रवीण उस की हर जरूरत पूरी करता, पर हर रोज प्रतिमा की शारीरिक जरूरत पूरी करना न तो प्रवीण के वश में था, न यह संभव था. इस के लिए वक्त और धन दोनों की आवश्यकता थी. वह प्रतिमा से मना करने लगा तो वह उग्र होने लगी और उसे धमकियां देती कि बलात्कार के मामले में फंसा देगी. तंग आ कर प्रवीण ने उस से छुटकारा पाने का एक खतरनाक तरीका अपनाया.

एक सोचीसमझी साजिश के तहत प्रवीण प्रतिमा को अपने मित्रों के साथ ले कर लोनावला के एक रिसोर्ट में गया. उस ने शाम के खाने में प्रतिमा को बेहोशी की दवा दे दी थी. फिर रात भर उन पांचों ने मिल कर उस के साथ बुरी तरह बलात्कार किया और यह सिलसिला अगले दिन शाम तक जारी रहा. तब तक प्रतिमा मृतप्राय सी हो गई थी. वे भी थक गए थे. रात को उन सब ने मिल कर तय किया कि प्रतिमा को उसी हालत में जंगल में फेंक कर भाग जाएंगे. खुले जंगल में कोई जानवर उसे खा जाएगा या फिर वह यों ही समाप्त हो जाएगी.

मृतप्राय प्रतिमा को ये लोग जंगल में फेंक कर रात को ही शहर भाग आए थे. अब प्रतिमा का पता नहीं था.

पुलिस ने तुरंत प्रवीण के अन्य चारों दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे, जहां प्रतिमा को जीवित या मृत अवस्था में फेंका गया था. वहां न कोई लाश मिली, न उस के अवशेष. संबंधित थाने में पता किया गया, तो पता चला कि 2 दिन पहले एक युवती नग्नावस्था में बेहोश जंगल में कुछ गांव वालों को मिली थी. उन्होंने पुलिस को खबर की, पुलिस ने युवती को कसबे के अस्पताल में भरती करवा दिया था और अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तफतीश आरंभ कर दी थी.

स्थानीय पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सूत्र नहीं मिला, जिस से वह अपनी कार्यवाही आगे बढ़ा सके. प्रतिमा अभी तक बेहोश थी. उस का बयान दर्ज नहीं हुआ था.

अस्पताल जा कर जब मैं ने प्रतिमा की हालत देखी, तो मैं स्वयं बेहोश होतेहोते बची. कोई भेडि़या भी उस को इस तरह नोच कर नहीं खाता, जिस तरह से प्रवीण और उस के दोस्तों ने उस के शरीर के साथ अत्याचार किया था.

काश, प्रतिमा यह बात समझ पाती कि प्रेम जीवन के लिए आवश्यक है, पर इतना भी आवश्यक नहीं कि उस के लिए अपनेआप को ही हवन कर दिया जाए. अगर वह समय पर समझ लेती, तो उस की यह दुर्दशा न होती.

प्रतिमा जाने कब होश में आएगी. जब उसे होश आएगा, तब क्या वह किसी पुरुष को फिर से प्यार करने की हिम्मत जुटा पाएगी? अधिकांश प्रेमसंबंधों का अंत विरह में होता है, पर ऐसा कभी नहीं होता, जैसा. प्रतिमा के प्रेम का हुआ था.

Hindi Fiction Stories : चेतावनी – मीना आंटी ने अर्चना की समस्या का क्या सामाधान निकाला

Hindi Fiction Stories  : संदीप और अर्चना के प्रति मीना की दिलचस्पी इतनी बढ़ी कि वह उन की परेशानी जानने को आतुर हो उठी, यहां तक कि अर्चना को परेशानी से उबारना मीना की जिद बन गई.

पिछले कुछ दिनों से वे दोपहर 1 से 2 के बीच रोज पार्क में आते. उन दोनों की जोड़ी मुझे बहुत जंचती. युवक कार से और युवती पैदल यहां पहुंचती थी. दोनों एक ही बैंच पर बैठते और उन के आपस में बात करने के ढंग को देख कर कोई भी कह सकता था कि वे प्रेमीप्रेमिका हैं.

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मैं रोज जिस जगह घास पर बैठती थी वहां माली ने पानी दे दिया तो मैं ने जगह बदल ली. मन में उन के प्रति उत्सुकता थी, इसलिए उस रोज मैं उन की बैंच के काफी पास शौल से मुंह ढक कर लेटी हुई थी, जब वे दोनों पार्क में आए.

उन के बातचीत का अधिकांश हिस्सा मैं ने सुना. युवती का नाम अर्चना और युवक का संदीप था. न चाहते हुए भी मुझे उन के प्रेमसंबंध में पैदा हुए तनाव व खिंचाव की जानकारी मिल गई.

नाराजगी व गुस्से का शिकार हो कर संदीप कुछ पहले चला गया. मैं ने मुंह पर पड़ा शौल जरा सा हटा कर अर्चना की तरफ देखा तो पाया कि उस की आंखों में आंसू थे.

मैं उस की चिंता व दुखदर्द बांटना चाहती थी. उस की समस्या ने मेरे दिल को छू लिया था, तभी उस के पास जाने से मैं खुद को रोक नहीं सकी.

मुझ जैसी बड़ी उम्र की औरत के लिए किसी लड़की से परिचय बनाना आसान होता है. बड़े सहज ढंग से मैं ने उस के बारे में जानकारी हासिल की. बातचीत ऐसी हलकीफुलकी रखी कि वह भी जल्दी ही मुझ से खुल गई.

इस सार्वजनिक पार्क के एक तरफ आलीशान कोठियां बनी हैं और दूसरी तरफ मध्यवर्गीय आय वालों के फ्लैट्स हैं. मेरा बड़ा बेटा अमित कोठी में रहता है और छोटा अरुण फ्लैट में.

अर्चना भी फ्लैट में रहती थी. उस की समस्या पर उस से जिक्र करने से पहले मैं उस की दोस्त बनना चाहती थी. तभी जिद कर के मैं साथसाथ चाय पीने के लिए उसे अरुण के फ्लैट पर ले आई.

छोटी बहू सीमा ने हमारे लिए झटपट अदरक की चाय बना दी. कुछ समय हमारे पास बैठ कर वह रसोई में चली गई. चाय खत्म कर के मैं और अर्चना बालकनी के एकांत में आ बैठे. मैं ने उस की समस्या पर चर्चा छेड़ दी.

‘‘अर्चना, तुम्हारी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर मैं तुम से कुछ बातें करना चाहूंगी. आशा है कि तुम उस का बुरा नहीं मानोगी,’’ यह कह कर मैं ने उस का हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर प्यार से दबाया.
‘‘मीना आंटी, आप मुझे दिल की बहुत अच्छी लगी हैं. आप कुछ भी पूछें या कहें, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी,’’ उस का भावुक होना मेरे दिल को छू गया.

‘‘वहां पार्क में मैं ने संदीप और तुम्हारी बातें सुनी थीं. तुम संदीप से प्रेम करती हो. वह एक साल के लिए अपनी कंपनी की तरफ से अगले माह विदेश जा रहा है. तुम चाहती हो कि विदेश जाने से पहले तुम दोनों की सगाई हो जाए. संदीप यह काम लौट कर करना चाहता है. इसी बात को ले कर तुम दोनों के बीच मनमुटाव चल रहा है ना?’’ मेरी आवाज में उस के प्रति गहरी सहानुभूति के भाव उभरे.

कुछ पल खामोश रहने के बाद अर्चना ने चिंतित लहजे में जवाब दिया, ‘‘आंटी, संदीप और मैं एकदूसरे के दिल में 3 साल से बसते हैं. दोनों के घर वालों को हमारे इस प्रेम का पता नहीं है. वह बिना सगाई के चला गया तो मैं खुद को बेहद असुरक्षित महसूस करूंगी.’’

‘‘क्या तुम्हें संदीप के प्यार पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा तो पूरा है, आंटी, पर मेरा दिल बिना किसी रस्म के उसे अकेला विदेश भेजने से घबरा रहा है.’’
मैं ने कुछ देर सोचने के बाद पूछा, ‘‘संदीप के बारे में मातापिता को न बताने की कोई तो वजह होगी.’’
‘‘आंटी, मेरी बड़ी दीदी ने प्रेम विवाह किया था और उस की शादी तलाक के कगार पर पहुंची हुई है. पापामम्मी को अगर मैं संदीप से प्रेम करने के बारे में बताऊंगी तो मेरी जान मुसीबत में फंस जाएगी.’’
‘‘और संदीप ने तुम्हें अपने घरवालों से क्यों छिपा कर रखा है?’’

अर्चना ने बेचैनी के साथ जवाब दिया, ‘‘संदीप के पिता बहुत बड़े बिजनेसमैन हैं. आर्थिक दृष्टि से हम उन के सामने कहीं नहीं ठहरते. मैं एमबीए पूरी कर के नौकरी करने लगूं, तब तक के लिए उस ने अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ना टाल रखा है. मेरी एमबीए अगले महीने समाप्त होगा, लेकिन उस के विदेश जाने की बात के कारण स्थिति बदल गई है. मैं चाहती हूं कि वह फौरन अपने मातापिता से इस मामले में चर्चा छेड़े.’’

अर्चना का नजरिया तो मैं समझ गई लेकिन संदीप ने अभी विदेश जाने से पहले अपने मातापिता से शादी का जिक्र छेड़ने से पार्क में साफ इनकार कर दिया था और उस के इनकार करने के ढंग में मैं ने बड़ी कठोरता महसूस की थी. उस ने अर्चना के नजरिए को समझने की कोशिश भी नहीं की थी. मुझे उस का व्यक्तित्व पसंद नहीं आया था. तभी दुखी व परेशान अर्चना का मनोबल बढ़ाने के लिए मैं ने उस की सहायता करने का फैसला लिया था.

मेरा 5 वर्षीय पोता समीर स्कूल से लौट आया तो हम आगे बात नहीं कर सके क्योंकि उस की मांग थी कि उस के कपड़े बदलने, खाना परोसने व खिलाने का काम दादी ही करें.

अर्चना अपने घर जाना चाहती थी पर मैं ने उसे यह कह कर रोक लिया कि बेटी, अगर तुम्हें कोई ऐतराज न हो तो मैं भी तुम्हारे साथ चलूं. तुम्हारी मां से मिलने का दिल है मेरा.

रास्ते में अर्चना ने उलझन भरे लहजे में पूछा, ‘‘मीना आंटी, क्या संदीप के विदेश जाने से पहले उस के साथ सगाई की रस्म हो जाने की मेरी जिद गलत है?’’

‘‘इस सवाल का सीधा ‘हां’ या ‘न’ में जवाब नहीं दिया जा सकता है,’’ मैं ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ से इस समस्या के 2 महत्त्वपूर्ण पहलू हैं.’’

‘‘कौनकौन से, आंटी?’’

‘‘पहला यह कि क्या संदीप का तुम्हारे प्रति प्रेम सच्चा है? अगर इस का जवाब ‘हां’ है तो वह लौट कर तुम से शादी कर ही लेगा. दूसरी तरफ वह ‘रोकने’ की रस्म से इसलिए इनकार कर रहा हो कि तुम से शादी करने का इच्छुक ही न हो.’’

‘‘ऐसी दिल तोड़ने वाली बात मुंह से मत निकालिए, आंटी,’’ अर्चना का गला भर आया.

‘‘बेटी, यह कभी मत भूलो कि तथ्यों से भावनाएं सदा हारती हैं. हमारे चाहने भर से जिंदगी के यथार्थ नहीं बदलते,’’ मैं ने उसे कोमल लहजे में समझाया.

‘‘मुझे संदीप पर पूरा विश्वास है,’’ उस ने यह बात मानो मेरे बजाय खुद से कही थी.

‘‘होना भी चाहिए,’’ मैं ने प्यार से उस की पीठ थपथपाई.

‘‘आंटी, मेरी समस्या का दूसरा पहलू क्या है?’’ अर्चना ने मुसकराने की कोशिश करते हुए पूछा.

‘‘तुम्हारी खुशी है. तुम्हारे मन की सुखशांति.’’

‘‘मैं कुछ समझ नहीं, आंटी.’’

‘‘अभी इस बारे में मुझ से कुछ मत पूछो पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाती हूं कि संदीप के विदेश जाने में अभी 2 सप्ताह बचे हैं और इस समय के अंदर ही तुम्हारी समस्या का उचित समाधान मैं ढूंढ़ लूंगी.’’

ऐसा आश्वासन पा कर अर्चना ने मुझ से आगे कुछ नहीं पूछा.

अर्चना की मां सावित्री एक आम घरेलू औरत थीं. मेरी 2 सहेलियां उन की भी परिचित निकलीं तो हम जल्दी सहज हो कर आपस में हंसनेबोलने लगे.

मैं ने अर्चना की शादी का जिक्र छेड़ा तो सावित्री ने बताया, ‘‘मीना बहनजी, इस के लिए इस की बूआ ने बड़ा अच्छा रिश्ता सुझाया है पर यह जिद्दी लड़की हमें बात आगे नहीं चलाने देती.’’

‘‘क्या कहती है अर्चना?’’ मैं ने उत्सुकता दर्शाई.

‘‘यही कि एमबीए के बाद कम से कम सालभर नौकरी कर के फिर शादी के बारे में सोचूंगी.’’
‘‘उस के ऐसा करने में दिक्कत क्या है, बहनजी?’’

‘‘अर्चना के पापा इतना लंबा इंतजार नहीं करना चाहते. अपनी बहन का भेजा रिश्ता उन्हें बहुत पसंद है.’’

मैं समझ गई कि आने वाले दिनों में अर्चना पर शादी का जबरदस्त दबाव बनेगा. अर्चना की जिद कि संदीप सगाई कर के विदेश जाए, मुझे तब जायज लगी.

‘‘अर्चना, कल तुम पार्क में मुझे संदीप से मिलाना. तब तक मैं तुम्हारी परेशानी का कुछ हल सोचती हूं,’’ इन शब्दों से उस का हौसला बढ़ा कर मैं अपने घर लौट आई.

अगले दिन पार्क में अर्चना ने संदीप से मुझे मिला दिया. एक नजर मेरे साधारण से व्यक्तित्व पर डालने के बाद संदीप की मेरे बारे में दिलचस्पी फौरन बहुत कम हो गई.

मैं ने उस से थोड़े से व्यक्तिगत सवाल सहज ढंग से पूछे. उस ने बड़े खिंचे से अंदाज में उन के जवाब दिए. यह साफ था कि संदीप को मेरी मौजूदगी खल रही थी.

उन दोनों को अकेला छोड़ कर मैं दूर घास पर आराम करने चली गई.

संदीप को विदा करने के बाद अर्चना मेरे पास आई. उस की उदासी मेरी नजरों से छिपी नहीं रह सकी. मैं ने प्यार से उस का हाथ पकड़ा और उस के बोलने का इंतजार खामोशी से करने लगी.

कुछ देर बाद हारे हुए लहजे में उस ने बताया, ‘‘आंटी, वह सगाई करने के लिए तैयार नहीं है. उस की दलील है कि जब शादी एक साल बाद होगी तो अभी से दोनों परिवारों के लिए तनाव पैदा करने का कोई औचित्य नहीं है.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने मुसकराते हुए विषय परिवर्तन किया, ‘‘देखो, परसों मेरे बड़े बेटे अंकित की कोठी में शानदार पार्टी होगी. मेरी पोती शिखा का 8वां जन्मदिन है. तुम्हें उस पार्टी में मेरे साथ शामिल होना होगा.’’

अर्चना ने पढ़ाई का बहाना कर के पार्टी में आने से बचना चाहा पर मेरी जिद के सामने उस की एक न चली. उस की मां से इजाजत दिलवाने की जिम्मेदारी मैं ने अपने ऊपर ले ली थी.

मेरा बेटा अमित व बहू निशा दोनों कंप्यूटर इंजीनियर हैं. उन्होंने प्रेम विवाह किया था. मेरे मायके या ससुराल वालों में दोनों तरफ दूरदूर तक कोई भी उन जैसा अमीर नहीं है.

अमित ने पार्टी का आयोजन अपनी हैसियत के अनुरूप भव्य स्तर पर किया. सभी मेहमान शहर के बड़े और प्रतिष्ठित आदमी थे. उन की देखभाल के लिए वेटरों की पूरी फौज मौजूद थी. शराब के शौकीनों के लिए ‘बार’ था तो डांस के शौकीनों के लिए डीजे सिस्टम मौजूद था.

मेरी छोटी बहू सीमा, अर्चना और मैं खुद इस भव्य पार्टी में मेहमान कम, दर्शक ज्यादा थे. जो एकदो जानपहचान वाले मिले वे भी हम से ज्यादा बातें करने को उत्सुक नहीं थे.

अमित और निशा मेहमानों की देखभाल में बहुत व्यस्त थे. हम ठीक से खापी रहे हैं, यह जानने के लिए दोनों कभीकभी कुछ पल को हमारे पास नियमित आते रहे.

रात को 11 बजे के करीब उन से विदा ले कर जब हम अपने फ्लैट में लौटे, तब तक 80 प्रतिशत से ज्यादा मेहमानों ने डिनर करना भी नहीं शुरू किया था.

पार्टी के बारे में अर्चना की राय जानने के लिए अगले दिन मैं 11 बजे के आसपास उस के घर पहुंच गई थी.

‘‘आंटी, पार्टी बहुत अच्छी थी पर सच कहूं तो मजा नहीं आया,’’ उस ने सकुचाते हुए अपना मत व्यक्त किया.

‘‘मजा क्यों नहीं आया तुम्हें?’’ मैं ने गंभीर हो कर सवाल किया.

‘‘पार्टी में अच्छा खानेपीने के साथसाथ खूब हंसनाबोलना भी होना चाहिए. बस, वहां जानपहचान के लोग न होने के कारण पार्टी का पूरा लुत्फ नहीं उठा सके हम.’’

‘‘अर्चना, हम दूसरे मेहमानों के साथ जानपहचान बढ़ाने की कोशिश करते तो क्या वे हमें स्वीकार करते? मैं चाहूंगी कि तुम मेरे इस सवाल का जवाब सोचसमझ कर दो.’’

कुछ देर सोचने के बाद अर्चना ने जवाब दिया, ‘‘आंटी, वहां आए मेहमानों का सामाजिक व आर्थिक स्तर हम से बहुत ऊंचा था. हमें बराबर का दर्जा देना उन्हें स्वीकार न होता.’’
‘‘एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछिए.’’

‘‘क्या ऐसा ही अंतर तुम्हारे व संदीप के परिवारों में नहीं है?’’

‘‘है,’’ अर्चना का चेहरा उतर गया.

‘‘तब क्या तुम्हारे लिए यह जानना जरूरी नहीं है कि उस के घर वाले तुम्हें बहू के रूप में आदरसम्मान देंगे या नहीं?’’

‘‘आंटी, क्या संदीप का प्यार मुझे ये सभी चीजें उन से नहीं दिलवा सकेगा?’’

‘‘अर्चना, कल की पार्टी में अमित की मां, भाईभतीजा व भाई की पत्नी मौजूद थे. लगभग सभी मेहमान हमें पहचानने के बावजूद हम से बोलना अपनी तौहीन सम?ाते रहे. सिर्फ संदीप की पत्नी बन जाने से क्या तुम्हारे अमीर ससुराल वालों का तुम्हारे प्रति नजरिया बदल जाएगा?’’

अनुभव के आधार पर मैं ने एकएक शब्द पर जोर दिया, ‘‘तुम्हें संदीप के घर वालों से मिलना होगा. वे तुम्हारे साथ सगाई करें या न करें पर इस मुलाकात के लिए तुम अड़ जाओ, अर्चना.’’

मेरे कुछ देर तक समझने के बाद बात उस की समझ में आ गई. मेरी सलाह पर अमल करने का मजबूत इरादा मन में ले कर वह संदीप से मिलने पार्क की तरफ गई.

करीब डेढ़ घंटे बाद जब वह लौटी तो उस की सूजी आंखों को देख कर मैं संदीप का जवाब बिना बताए ही जान गई.

‘‘वह अपने घर वालों से तुम्हें मिलाने को नहीं माना?’’

‘‘नहीं, आंटी,’’ अर्चना ने दुखी स्वर में जवाब दिया, ‘‘मैं उस के साथ लड़ी भी और रोई भी पर संदीप नहीं माना. वह कहता है कि इस मुलाकात को अभी अंजाम देने का न कोई महत्त्व है और न ही जरूरत है.’’
‘‘उस के लिए ऐसा होगा पर हम ऐसी मुलाकात को पूरी अहमियत देते हुए इसे बिना संदीप की इजाजत के अंजाम देंगे, अर्चना. संदीप की जिद के कारण तुम अपनी भावी खुशियों को दांव पर नहीं लगा सकतीं,’’ मेरे गुस्से से लाल चेहरे को देख कर वह घबरा गई थी.

डरीघबराई अर्चना को संदीप की मां से सीधे मिलने को राजी करने में मुझे खासी मेहनत करनी पड़ी पर आखिर में उस की ‘हां’ सुन कर ही मैं उस के घर से उठी.

जीवन हमारी सोचों के अनुसार चलने को जरा भी बाध्य नहीं. अगले दिन दोपहर को संदीप के पिता की कोठी की तरफ जाते हुए अर्चना और मैं काफी ज्यादा तनावग्रस्त थे पर वहां जो भी घटा वह हमारी उम्मीदों से कहीं ज्यादा अच्छा था.

संदीप की मां अंजू व छोटी बहन सपना से हमारी मुलाकात हुई. अर्चना का परिचय मुझे उन्हें नहीं देना पड़ा. कालेज जाने वाली सपना ने उसे संदीप भैया की खास ‘गर्लफ्रैंड’ के रूप में पहचाना और यह जानकारी हमारे सामने ही मां को भी दे दी.

संदीप की जिंदगी में अर्चना विशेष स्थान रखती है, अपनी बेटी से यह जानकारी पाने के बाद अंजू बड़े प्यार व अपनेपन से अर्चना के साथ पेश आईं. सपना का व्यवहार भी उस के साथ किसी सहेली जैसा चुलबुला व छेड़छाड़ वाला रहा.

जिस तरह का सम्मान व अपनापन उन दोनों ने अर्चना के प्रति दर्शाया वह हमें सुखद आश्चर्य से भर गया. गपशप करने को सपना कुछ देर बाद अर्चना को अपने कमरे में ले गई.

अकेले में अंजू ने मुझ से कहा, ‘‘मीनाजी, मैं तो बहू का मुंह देखने को न जाने कब से तरस रही हूं पर संदीप मेरी नहीं सुनता. अगला प्रमोशन होने तक शादी टालने की बात करता है. अब अमेरिका जाने के कारण उस की शादी सालभर को तो टल ही गई न.’’

‘‘आप को अर्चना कैसी लगी है?’’ मैं ने बातचीत को अपनी ओर मोड़ते हुए पूछा. ‘‘बहुत प्यारी है. सब से बड़ी बात कि वह मेरे संदीप को पसंद है,’’ अंजू बेहद खुश नजर आईं.

‘उस के पिता बड़ी साधारण हैसियत रखते हैं. आप लोगों के स्तर की शादी करना उन के बस की बात नहीं.’’

‘‘मीनाजी, मैं खुद स्कूलमास्टर की बेटी हूं. आज सबकुछ है हमारे पास. सुघड़ और सुशील लड़की को हम एक रुपया दहेज में लिए बिना खुशीखुशी बहू बना कर लाएंगे.’’

बेटे की शादी के प्रति उन का सादगीभरा उत्साह देख कर मैं अचानक इतनी भावुक हुई कि मेरी आंखें भर आईं.

अर्चना और मैं ने बहुत खुशीखुशी उन के घर से विदा ली. अंजू और सपना हमें बाहर तक छोड़ने आईं.

‘‘कोमल दिल वाली अंजू के कारण तुम्हें इस घर में कभी कोई दुख नहीं होगा अर्चना. दौलत ने मेरे बड़े बेटे का जैसे दिमाग घुमाया है, वैसी बात यहां नहीं है. अब तुम फोन पर संदीप को इस मुलाकात की सूचना फौरन दे डालो. देखें, अब वह सगाई कराने को तैयार होता है या नहीं.’’ मेरी बात सुन कर अब तक खुश नजर आ रही अर्चना की आंखों में चिंता के बादल मंडरा उठे.

संदीप की प्रतिक्रिया मुझे अगले दिन शाम को अर्चना के घर जा कर ही पता चली. मैं इंतजार करती रही कि वह मेरे घर आए लेकिन जब वह शाम तक नहीं आई तो मैं ही दिल में गहरी चिंता के भाव लिए उस से मिलने पहुंच गई.

हुआ वही जिस का मुझे डर पहले दिन से था. संदीप अर्चना से उस दिन पार्क में खूब जोर से झगड़ा. उसे यह बात बहुत बुरी लगी कि मेरे साथ अर्चना उस की इजाजत के बिना क्यों उस की मां व बहन से मिल कर आई.

‘‘मीना आंटी, मैं आज संदीप से न दबी और न ही कमजोर पड़ी. जब उस की मां को मैं पसंद हूं तो अब उसे सगाई करने से ऐतराज क्यों?’’ अर्चना का गुस्सा मेरे हिसाब से बिलकुल जायज था.
‘‘आखिर में क्या कह रहा था संदीप?’’ उस का अंतिम फैसला जानने को मेरा मन बेचैन हो उठा.
‘‘मुझ से नाराज हो कर भाग गया वह, आंटी. मैं भी उसे ‘चेतावनी’ दे आई हूं.’’

‘‘कैसी ‘चेतावनी’?’’ मैं चौंक पड़ी.

‘‘मैं ने साफ कहा कि अगर उस के मन में खोट नहीं है तो वह सगाई कर के ही विदेश जाएगा वरना मैं समझ लूंगी कि अब तक मैं एक अमीरजादे के हाथ की कठपुतली बन मूर्ख बनती रही हूं.’’

‘‘तू ने ऐसा सचमुच कहा?’’ मेरी हैरानी और बढ़ी.

‘‘आंटी, मैं ने तो यह भी कह दिया कि अगर उस ने मेरी इच्छा नहीं पूरी की तो उस के जहाज के उड़ते ही मैं अपने मम्मीपापा को अपना रिश्ता उन की मनपसंद जगह करने की इजाजत दे दूंगी.’’

एक पल को रुक कर अर्चना फिर बोली, ‘‘आंटी, उस से प्रेम कर के मैं ने कोई गुनाह नहीं किया है जो मैं अब शादी करने को उस के सामने गिड़गिड़ाऊं. अगर मेरा चुनाव गलत है तो मेरा उस से अभी दूर हो जाना ही बेहतर होगा.’’

‘‘मैं तुम से पूरी तरह सहमत हूं, बेटी,’’ मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और बोली, ‘‘दोस्ती और प्रेम के मामले में जो दौलत को महत्त्व देते हैं वे दोस्त या प्रेमी बनने के काबिल नहीं होते.’’

‘‘आप का बहुत बड़ा सहारा है मुझे. अब मैं किसी भी स्थिति का सामना कर लूंगी, मीना आंटी,’’ उस ने मुझे जोर से भींचा और हम दोनों अपने आंसुओं से एकदूसरे के कंधे भिगोने लगीं.

वैसे अर्चना की प्रेम कहानी का अंत बढि़या रहा. अपने विदेश जाने से एक सप्ताह पहले संदीप मातापिता के साथ अर्चना के घर पहुंच गया. अर्चना की जिद मान कर सगाई की रस्म पूरी कर के ही विदेश जाना उसे मंजूर था.

अगले दिन पार्क में मेरी उन दोनों से मुलाकात हुई. मेरे पैर छू कर संदीप ने पूछा, ‘‘मीना आंटी, मैं सगाई या अर्चना को अपने घर वालों से मिलाना टालता रहा, इस कारण आप ने कहीं यह अंदाजा तो नहीं लगाया कि मेरी नीयत में खोट था?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ मैं ने आत्मविश्वास के साथ झुठ बोला, ‘‘मैं ने जो किया, वह यह सोच कर किया कि कहीं तुम नासमझ में अर्चना जैसे हीरे को न खो बैठो.’’
‘‘थैंक यू, आंटी,’’ वह खुश हो गया.

एक पल में ही मैं मीना आंटी से डार्लिंग आंटी बन गई. अर्चना मेरे गले लगी तो लगा कि बेटी विदा हो रही है.

Hindi Stories Online : बिकाऊ माल – क्या बेटों का मोल सिर्फ दहेज है?

Hindi Stories Online : बूआ मुंह से तो न कहतीं लेकिन उन की मंशा यही थी कि लड़कों की शादी में मोटा दहेज वसूलें. लेकिन कहते हैं न ‘लालच बुरी बला.’

रिश्ते में मेरी बूआ की बेटी है जानकी. वह खूब बातूनी है और खूब कंजूस भी. बस, बातों ही में सब की मेहमानदारी कर डालती है और किसी को यह महसूस ही नहीं होने देती कि बूआ और उस ने किसी को पानी तक के लिए नहीं पूछा. कंजूस तो हमारे तीनों कजिन भी हैं.

उन की जानकी मुझे बहन की तरह मानती है. भूलेभटके ही मैं उन के घर जाती हूं तो सभी खुशी से पागल हो जाते हैं. वे समझ नहीं पाते कि मेरी खातिरदारी वे कैसे करें. बातों ही बातों में खानेपीने की चीजों का अंबार लगा देते हैं, लेकिन सामने एक भी डिश नहीं आती. जब मैं उन के घर से वापस आती हूं तो मेरे पेट में भूखे चूहों की इतनी उछलकूद हो रही होती है कि मैं समझ नहीं पाती, घर कैसे जल्दी पहुंचूं और इन्हें थोड़ा चारा डाल कर रास्ते में कैसे शांत करूं.

वैसे तो थोड़ाबहुत मैं खा कर ही जाती हूं, क्योंकि मुझे मालूम होता है कि वहां से खाली पेट आना पड़ेगा. लेकिन जानकी की बातों के जवाब देतेदेते मेरे पेट को भूख महसूस होने लगती है. जब मैं उठने लगती हूं तो जानकी मेरा हाथ पकड़ कर तपाक से कह उठती, ‘नहींनहीं, इतनी जल्दी चली जाएगी, वह भी सुच्चे मुंह, अभी तो बातों से ही मेरा मन नहीं भरा. ठहर, मैं कुछ खाने को मंगवाती हूं.’ फिर वह अपने तीनों भाइयों को आवाज लगा कर अपने पास बुलाएगी और डांटने लगेगी, ‘क्यों रे, बेवकूफो, तुम्हें जरा भी तमीज नहीं है. शादी लायक हो गए लेकिन अक्ल नहीं आई. देख रहे हो, तुम्हारी कजिन 3 घंटे से आई बैठी है और तुम लोग हो कि उस के लिए अभी तक चायनाश्ता ही नहीं मंगाया?’

और वे तीनों शातिर एकदूसरे का मुंह देखने लगते हैं, जैसे पूछ रहे हों, ‘क्या, जानकी सचमुच लाने को कह रही है?’ तभी जानकी फुंफकार उठती है, ‘खड़ेखड़े मुंह क्या देख रहे हो, कौफी बना लाओ.’

उन तीनों के पीठ मोड़ते ही जानकी बोल उठती, ‘ठहरो, इतनी गरमी में वह क्या कौफी पिएगी, पहले ही उस का सिर दुखता है. कुछ ठंडावंडा ले आओ. क्यों, रमा, तू बता न, क्या पिएगी? क्या मंगाऊं? तेरा गला तो ठीक है न? अच्छा रहने दे, दहीपकौड़ी मंगवा देती हूं. हायहाय, मैं भी कैसी भुलक्कड़ हूं. याद ही नहीं रहा, चंदू स्वीट्स की तो आज छुट्टी है. कल उस के बड़े भाई गुजर गए थे न.’

रास्ते में आते हुए मैं ने देखा था कि चंदू स्वीट्स के शोकेस खाने से चमक रहे थे पर नतीजा यह होता है कि मुझे जानकी से हंसतेहंसते कहना पड़ता है, ‘छोड़ो इस खानेपिलाने की झंझट को, क्यों तकलीफ करती हो. मैं तो घर से खा कर आई थी. अभी तक पेट भरा है…’ और इस तरह हर बार मुझे बिना पानी पिए वापस आना पड़ता है.

घर के बाहर तक जानकी छोड़ने आती तो चिंता के मारे उस का चेहरा पीला पड़ गया होता. वह अगली बार के लिए अपने सिर की कसम दे देती कि खबरदार, जो मैं कुछ घर से खा कर आऊं?

इच्छा तो होती है जानकी से कहूं, ‘तेरी अकाल मौत के डर से मैं आज भी भूखी आई थी,’ लेकिन बोलने की इतनी भी ताकत नहीं थी कि मैं उसे समझ सकूं कि झुठी कसमें मत खाया करो, जानकी. क्या पता, किस दिन तुम्हारी वाणी पर सरस्वती विराजमान हो जाए और मेरे सामने ही तुम एनीमिया की शिकार हो जाओ. खाली पेट तो मुझ से अस्पताल भी जाना नहीं हो पाएगा.

हमारी बूआ के 3 बेटे हैं और एक जानकी है. तीनों कजिन ब्याहने लायक हैं. नाम हैं उन के राम, कृष्ण और महावीर. पूरा परिवार बड़ा धार्मिक व अंधविश्वासी है. चाचा ने तो देख कर शादी की थी पर फूफा को न जाने कौन सा भक्ति का रंग चढ़ा कि स्वतंत्रता संग्रामी का चोला छोड़ कर वे देश से विधर्मियों को निकालने की बातें करने लगे और जम कर पूजापाठ करते. हां, दानदक्षिणा कम ही देते, बातें बहुत बनाते.

लड़का रामनवमी के दिन पैदा हुआ था, सो, बूआजी कहती हैं, यह रामचंद्रजी का आशीर्वाद है, इसीलिए इस का नाम राममोहन रखा. बिचला कृष्ण जन्माष्टमी के दिन दुनिया में आया था, सो वह भगवान कृष्ण का प्रसाद है. तीसरा महावीर हनुमान जयंती के दिन पैदा हुआ था इसीलिए वह हनुमानजी की कृपा का फल है. मेरी तीनों कजिनों से कभी नहीं बनी. लेकिन हैं तो कजिन ही न. तीनों अलगथलग रहते थे.

जानकी की समझ में आ गया था कि जब तक उन तीनों की शादियां न होंगी, उस का नंबर नहीं आ सकेगा. वह सब से छोटी जो थी. सो, जानकी उन तीनों के विवाह के लिए चिंतित रहती थी. आतेजाते से लड़कियां ढूंढ़ने के लिए तकाजा करती. मेरे पति को भी वह दिनरात याद दिलाती, ‘भूलना नहीं, जीजाजी. लड़कियां ऐसी ढूंढ़ना, अंदर बैठें तो बाहर तक उन के रूपरंग का उजाला पड़े.’

मेरे पति कभीकभी हंसते हुए जानकी से कह देते, ‘क्यों, जानकी, घर के बिजली खर्च में कटौती करने का इरादा है क्या?’

‘अरे, नहींनहीं, जीजाजी. महिला घर में सुंदर हो तो घर भराभरा लगता है. दहेज तो अपने मुंह से मांगेंगे नहीं. वह तो, बस, लड़की सुंदर मांगती हूं,’ जानकी कहती.

‘यह तो तुम ने अच्छी याद दिलाई, जानकी. कल ही मेरे एक मित्र कह रहे थे, कोई ऐसा लड़का बताओ जो दहेज के चक्कर में न पड़े. आप की तो मुझे याद ही नहीं आई. अब आज ही उस से बात करूंगा.’

‘न, न, बेटा. वहां बात मत करना,’ बीच में बूआ घबरा कर बोली, ‘हमारे कहने का यह मतलब नहीं कि हम तीन ही कपड़ों में लड़की ले आएंगे. मैं तो यह कहती हूं कि मैं दहेज नहीं मांगूंगी. वैसे, लड़की के मातापिता देने में कोई कसर थोड़े ही रखते हैं. लड़की खाली हाथ चली आए तो भला ससुराल में उस की कोई इज्जत होती है. पति भी बातबात में बहू को डंक मारता है कि कैसी भिखमंगों की लड़की पल्ले पड़ी है.’

बूआ बड़ी तर्कपूर्ण बात करती. जानकी भी बड़ीबूढ़ी की तरह सिर हिलाती.

‘लेकिन बूआजी, आप अपने राजकुमारों की पढ़ाई तो पूरी हो जाने दो. यह बीवी का ढोल क्यों उन के गले में बांधती हो?’ पति बूआ को समझते.

‘अरे भैया, तुम समझते क्यों नहीं, लड़कियां क्या रास्ते में बैठी हैं जो बात की और उठ कर चल देंगी. समय लगता है उन्हें ढूंढ़ने में. फिर कुछ समय तो सगाई भी रहनी चाहिए. दोनों परिवारों को एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाता है. लड़की के चालचलन का भी पता लग जाता है. इन तीनों का निबटारा हो तो जानकी की बात चलाऊं.’

‘और, बूआजी, यह क्यों नहीं कहतीं कि समधियों से खाने को माल भी मिल जाता है. आप हैं बड़ी समझदार, दूर की सोचती हैं. खैर, यह तो बताइए, हमारे सालों की उम्र क्या है?’

‘अरे, वे क्या छोटे हैं, इसीलिए तो चिंता खाए जा रही है. बड़ा राम रामनवमी पर पूरा 24 का हो जाएगा,’ बूआ होंठों को दांत के नीचे दबा कर बोली थी.
‘और अभी तक वह तो क्लर्क की नौकरी के लिए एग्जाम दे रहा है?’ मेरे पति हैरानी से बोले थे.
‘अरे, वह क्या जानबूझ कर पड़ा है. यह मेरी सरकार ही रिजल्ट सही से नहीं निकालती.

राममोहन खिलाड़ी भी था, हौकी खेलता है. सारा दिन मैदान के पास बैठा रहता है. पहले तो लड़के आते थे पर अब सब की नौकरियां लग गईं तो बच्चों के साथ थोड़ाबहुत खेल कर मन बहलाता है.

जन्माष्टमी पर 21 का हो जाएगा, वह भी 2-3 बार कौरेसपौंडेंस परीक्षा में बैठ कर फेल हो चुका है. तीसरा भी 20 का हो जाएगा. मैं जानती थी कि तीनों अव्वल दर्जे के निकम्मे हैं. फर्नीचर के नाम पर जानकी के घर में 4 कुरसियां और 2 मेजें थीं. हर कुरसी अलग डिजाइन की.

एक कुरसी का बेंत ढीला था. दो कुरसियां अभी जवान थीं. मैं ने एक बार बूआ से कहा था, ‘बूआ, फेंको इन पुरानी कुरसियों को. बैठो तो डर लगता है. न जाने किस वक्त गुस्से में इन की टांग लडखड़ा जाए और बैठने वाले को दंडवत प्रणाम करना पड़े.’

बूआ बड़ी हैरानी से मुझे देखतीं, फिर कहतीं, ‘क्यों बेटा, घर में जो बूढ़े मांबाप हो जाते हैं उन्हें भी फेंक देना चाहिए?’

मैं ने कहा, ‘इंसान और सामान में फर्क होता है, बूआ. कोई ऐसा तो है नहीं कि तुम गरीब हो. प्रकृति का दिया सबकुछ है. मकान, जायदाद, पैसा, जेवर और फूफा की अच्छीखासी ऊपर की कमाई वाली नौकरी.’ जानकी हमेशा की तरह सिर हिलाती बोली, ‘दीदी, ऐसी बातें क्या मुंह से निकाली जाती हैं, दीवारों के भी कान होते हैं. पापा क्या इस पचड़े में पड़ने वाले थे. वह तो भले ही जिद समझ जो थोड़ाबहुत ले लेते हैं. तुम ही सोचो, दीदी खालिस तनख्वाह में कहीं 6 जनों का गुजारा होता है?’

‘लेकिन घर का थोड़ाबहुत सामान तो बनवा लो. आजकल तो मेजकुरसी पर खाने का फैशन है. लेकिन तुम हो कि अभी तक कोने पर, बक्सों पर कुशन रख कर काम चलाती हो. न सही ज्यादा फर्नीचर, बैठने को एक सोफा.’

‘न, न, जैसे हैं, हम उसी तरह अच्छे हैं. घर में कुछ भी सामान लाने का मतलब है लोगों का मुंह खुलवाना. किसी का मुंह बंद तो नहीं किया जाएगा, न यही कहेंगे, ‘साला ऊपर की कमाई खाता है.’ इस तरह सीधेसादे रहने से किसी को शक नहीं होता. फिर अब तेरे भाइयों के ब्याह हैं, तीनतीन दहेज आएंगे. घर भर जाएगा सामान से,’ बूआ ने कहा था.

उन्हीं दिनों जानकी का किसी लड़के से चक्कर चलने लगा था. उस ने मुझे बताया तो सही पर कुछ ज्यादा नहीं. लड़का शायद विधर्मी था पर अच्छा कमा लेता था. जानकी ने बूआ से कई बार कहा कि भाइयों की शादी कर दो पर बूआ तो दहेज के लालच में थी. जब तक मोटा दहेज न मिले वह किसी भी बेटे की शादी करने को तैयार न थी चाहे वे मामूली शक्लसूरत के और निखट्टू थे.

‘‘लेकिन बूआ, यह मकान तो ठीक करवा लो, जगहजगह से टूट रहा है. कल को लड़की वाले घरवर देखने आएं तो ऐसा घर देख तुम्हें कौन अपनी लड़की देगा?’’
‘‘कहती तो तू सच है. हम ने भी इंतजाम कर लिया है. इन के दफ्तर का काम चल रहा है. वह पूरा हुआ कि देखना ठेकेदार हमारे घर का कैसे हुलिया बदल देगा,’’ बूआ धीरे से बोली.
‘‘वह कैसे, बूआ?’’
‘‘तेरे फूफा ने इसी शर्त पर उसे ठेका दिया था,’’ बूआ ने मेरे कान में धीरे से कहा. जानकी के कहने पर बूआ लड़कों की शादी के लिए बड़ी परेशान हो गई. बहुत से लोगों से कह रखा था. लेकिन बूआ के गुणगान सुनते ही लड़की वाले दूर से सलाम कर लेते. बूआ में एक और भी गुण था और वह था झगड़े करने का. झगड़े के ही मारे न तो घर में फूफाजी ही टिकते थे, न बरतन मांजने वाली बाई. बूआ को इस बात से हमेशा ही शिकायत रही, ‘तेरे फूफाजी को 2 बातें घर ले आती हैं, एक भूख और दूसरी नींद. अगर इस आदमी का इन बातों के लिए भी बाहर इंतजाम हो जाए तो घर में झांके तक नहीं.’ और बरतन मांजने वालियां तो बूआ को देखते ही बस कान पकड़ लेतीं. जानकी खुल कर मां से कुछ न कह सकी.

एक दिन बूआ का सवेरेसवेरे बड़े खुश स्वर में फोन आया.

‘‘रमा, मैं कहती थी न कि मेरे लड़के का अच्छा रिश्ता आएगा. अब पास के शहर के घर से रिश्ता आया है. लड़की का फोटो भी आया है. वे 5 लाख रुपए लगाएंगे शादी में.’’

जानकी को मैं ने फोन किया तो बोली, ‘‘दीदी, मां तो वैसे ही कह रही हैं. लड़की पर असल में बचपन में किसी ने तेजाब डाल दिया था और अब उन के पिता वैसे भी शादी कर देना चाहते हैं. तीनों ने फोटो देख कर ही नापसंद कर दिया पर मां अड़ी हैं कि एक से तो शादी कराएंगी,’’ थोड़ा रुक कर वह फिर बोली, ‘‘दीदी, इस चक्कर में मैं बेकार ही पिस रही हूं. मां से कुछ कहना तो आफत बुलवाना है.’’

जानकी और बूआ के घर में क्या चल रहा था, यह मुझे नहीं मालूम चल पा रहा था. बूआ का फोन कुछ कम आता था. अब वे जब भी बात करतीं तो 5 लाख रुपए के दहेज की बात जरूर बता देतीं.

एक दिन मैं ने कहा, ‘‘बूआ, पहले अपना घर तो ठीक करवा लो, एकाध कोई नीलाम घर से ही सोफा ले लो. एकाध दरी ले लो. समधी आएं तो घर देख कर कुछ तो प्रभावित हों.’’

‘‘कुरसियां तो मेरे पास हैं, बेटी.’’
‘‘कहां, इन कुरसियों पर कौन बैठ सकता है बूआ.’’
‘‘बस, दहेज मिलने दे, मैं पूरा घर चकाचक करा दूंगी.’’

हम लोग एक दिन रास्ते में टकरा गए थे. बूआ ने एक बार भी घर आने को नहीं कहा. हां, यह जरूर पूछ लिया कि मेरी गैस्ट लिस्ट में कौनकौन हैं ताकि वे होने वाले समधी को बता सकें.

यह सुनते ही हंसी तो बहुत आई लेकिन पिताजी का खयाल आते ही दबा लेनी पड़ी और कुछ बूआ की नाराजगी का भी डर था. मरते हुए पिताजी ने कहा था, ‘मैं जानता हूं, बेटी, बूआ तुम्हें कभी पसंद नहीं रही. तुम लोग तो मुझे भी मिलने से रोकते थे. लेकिन क्या करूं, सात भाईबहनों में से हम 2 ही तो बचे थे, कैसे छोड़ देता उसे, बहन जो थी. अब मैं तो जा रहा हूं. तुम्हारे दादा की यह अंतिम निशानी रह गई है, इस से रूठना मत, बेटी. मिलतीमिलाती रहना.’

एक दिन मैं ने ही उन्हें फोन किया. इधरउधर की बातें करने के बाद मैं ने बूआ से कहा. ‘‘अभी तो घर पर खर्चा कर डालो. जब शादी होगी तो मय सूद के पैसा वापस आ जाएगा.’’ बूआ ने कोई जवाब नहीं दिया.

खैर, एक दिन आने का संदेश दे दिया. तीनों लड़कों को बूआ ने खूब सजाया था. यही अच्छा था, लड़के अब कालेज में पढ़ते थे, सो चार कपड़े उन के पास अच्छे थे. बूआ के पास न जाने कब का सैंट रखा था. उन्होंने वह भी उन के शरीर पर मल दिया. मेरे पूछने पर बोली, ‘‘कमबख्त 8-8 दिन तक नहाते नहीं. पसीने की बू के बारे नाक सड़ने लगती है. सो, सैंट की गंध से पसीने की बू नहीं आएगी.’’

‘‘कुछ उन के लिए चायपानी का प्रबंध किया, बूआ?’’ मेरे पति बोले.
‘‘अरे बेटा, वे क्या बेटी के घर का खाएंगे?’’
‘‘पर अभी उन्होंने अपनी बेटी दी कहां है?’’ मैं ने कहा.

बूआ बुरा सा मुंह बनाती मान गईं.

लड़की वालों के साथ केवल बूआ ही बात करेंगी, ऐसी बूआ की आज्ञा थी. फूफा तो यह कह कर वहां से चले गए, ‘‘बेटी, तुम पतिपत्नी हो. बात संभाल लेना. मैं यहां रहा तो तेरी बूआ की पचरपचर कहीं मुझे आपे से बाहर न कर दे.’’ जाने को तो मेरे पति भी उठ खड़े हुए लेकिन मैं ने मिन्नत कर उन्हें रोक लिया, ‘‘पुरुष के साथ किसी पुरुष को ही बैठना चाहिए. भले ही उस का मुंह सिला हुआ हो.’’

जानकी कहीं दिख नहीं रही थी. मैं और मेरे पति बाहर वाले कमरे में बैठे थे. तब ही लड़की वाले आए. उन के हाथ खाली थे. 2 पुरुष थे. बूआ ने हमें बाहर ही रोक दिया. शायद वह दहेज की बात गुप्त रखना चाहती थी. हमें कुछ जोर से बोलने की आवाजें सुनाई दे रही थीं.

अचानक बूआ की चीख सुनाई दी, ‘हाय दैया, में तो मर गई.’

हम दोनों अंदर भागे, देखा, बूआ जोरजोर से रो रही थीं और जानकी को कोस रही थीं. सब बातों के बाद लड़कों को दिखाने की बात आई तो बूआ झट से उन के फोटो उठा लाईं. लड़की का पिता बोला, ‘‘हमें सैंपल नहीं, माल चाहिए.’’

उन्हें महावीर मोहन पसंद आया. बूआ ने झट से उस की कीमत भी बता दी, ‘‘मैं ने तो सोचा था, मैं अपने मुंह से दहेज नहीं मांगूंगी लेकिन आप अड़ ही गए हैं तो इस के लिए तो मैं 2 लाख रुपए का दहेज लूंगी.’’

‘‘मेरी तो 3 लड़कियां हैं. गरीब आदमी हूं, इतना कहां दे पाऊंगा. आप ने तो एक एकदम इतने भाव…’’

‘‘इस की बीमारी पर ही मेरा इतना खर्चा हो गया है, भाईसाहब. पढ़ाई का तो मैं ने बताया ही नहीं. जानते हैं, महंगाई का जमाना है. 2 लाख रुपए की कीमत ही क्या है? आप कृष्णमोहन से कर दीजिए रिश्ता,’’ बूआ बोलीं.

‘‘उस की आंख में नुक्स है, बहनजी. फिर जरा वह दादा टाइप है, जैसा कि आप ने बताया है. इसी से छोटा पसंद आया था,’’ समधी नम्रता से बोले.

पता चला कि जानकी ने अपने बौयफ्रैंड से शादी कर ली थी और उस की सूचना अपनी मम्मीपापा को देने की जगह लड़की वालों को दी थी. वे लोग तहकीकात करने आए थे. बूआ को पहले से शक था क्योंकि जानकी एक दिन घर से यह कह कर गई हुई थी कि वह कालेज ट्रिप में कश्मीर जा रही है. उसे स्कौलरशिप मिली है. उसी से पैसे का इंतजाम हो गया. लड़की वालों ने जानकी की शादी के फोटो और वौयस मैसेज लड़की के पिता को भेज दिए थे.

अब लड़की के पिता अपनी तेजाब डाली लड़की की शादी भी निखट्टू लड़कों से करने को मना करने आए थे.

हम दोनों नहीं समझ पा रहे थे कि बूआ का गम क्या है. 5 लाख का नुकसान, जानकी की शादी या बेटों का कुंआरा रह जाना. मेरे पति ने बूआ से कहा, ‘‘बूआ जानकी ने बिलकुल सही किया. मेरे घर के दरवाजे तो उस के लिए हमेशा खुले रहेंगे पर आप के घर के दरवाजे कोई लड़की वाला नहीं खटखटाएगा क्योंकि वजह आप का लालच और झगड़ालूपन है. यह बात सब को मालूम है. मैं बता दूं रमा को बताए बिना मैं जानकी की शादी में गवाह था. मेरे कहने पर ही मजिस्ट्रेट ने बिना कोई अड़चन लगाए शादी कराई थी क्योंकि वह मेरा सहपाठी रह चुका था. रमा को मैं ने नहीं बताया था क्योंकि कहीं आप हमारे घर में क्लेम करने न आ जाएं.’’ यह कह कर मेरे पति मेरा हाथ पकड़ कर बाहर निकल गए. बूआ दहाड़ें मारमार कर रो रही थी.

Modular Kitchen : मौड्यूलर किचन बनाते समय रखें इन बातों का ध्यान

Modular Kitchen : किचन हमारे घर की वह जगह होती है, जहां पूरे घर के लिए भोजन बनाया जाता है. पहले जहां केवल घर की महिला ही किचन में काम करती थी, वहीं आज घर के पुरुष भी किचन में जम कर कुकिंग कर रहे हैं. पहले जहां किचन केवल खाना बनाने का स्थान हुआ करता था, वहीं अब घर के ड्राइंगरूम की ही तरह ही किचन को भी महंगीमहंगी ऐक्सैसरीज के साथ आकर्षक बनाया जा रहा है.

वास्तव में, किचन अब केवल कुकिंग करने की जगह ही नहीं बल्कि ड्राइंगरूम की ही तरह आधुनिकता का प्रतीक है, जिसमें एअरफ्रायर, राइस कुकर, वोफ्ल मेकर, आटा और ब्रैड मेकर जैसे आधुनिक उपकरणों के साथ साथ भांतिभांति की महंगी क्रौकरी भी मौजूद रहती है.

यदि आप भी अपनी पुरानी किचन को मौडर्न लुक देना चाहते हैं या फिर आप अपनी नई किचन भी बनवाने जा रहे हैं, तो निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखें ताकि आप अपनी मौडर्न किचन में काम करते समय कंफर्टेबल भी फील कर सकें.

कैबिनेट्स हैं जरूरी

मौड्यूलर किचन का सब से जरूरी पार्ट होती है उस की कैबिनेट्स क्योंकि कैबिनेट्स के द्वारा ही मौड्यूलर किचन को बनाया जाता है. कैबिनेट्स बनाने के लिए पहले पत्थर या ईंटों के द्वारा पूरी किचन को जगह के अनुसार विभिन्न छोटेबड़े पार्ट्स में विभाजित किया जाता है। उस के बाद उन सभी पार्ट्स पर कुछ बड़े, कुछ छोटे और कुछ लंबे खाने बनाए जाते हैं ताकि किचन का समस्त सामान और बर्तन आसानी से आ सकें.

अब इन स्टील के कैबिनेट्स को लकड़ी के बोर्ड और सनमाइका से कवर किया जाता है ताकि वे देखने में खूबसूरत लगें. आवश्यकतानुसार स्टील के कैबिनेट्स बनाए जाते हैं. कैबिनेट्स में हमेशा हैवी स्टील और अच्छी कंपनी के कैबिनेट्स ही लगवाएं क्योंकि सस्ती क्वालिटी के कैबिनेट्स में जंग लगने का डर रहता है. इन कैबिनेट्स को लकड़ी की अपेक्षा पत्थर या ग्रेनाइट से ही बनवाएं ताकि भविष्य में इन की साफसफाई करना आसान रहे.

आजकल किचन के कौर्नर में लगाने के लिए विशेषरूप से सिंगल और डबल लेयर वाले कैबिनेट बाजार में उपलब्ध हैं, जिन्हें आसानी से खोला भी जा सकता है और इन में सामान भी अच्छीखासी मात्रा में आ जाता है.

माइका देगी खूबसूरती

किचन कैबिनेट्स के बाहरी हिस्से यानि माइका के कलर को चुनते समय विशेष ध्यान रखें क्योंकि माइका कैबिनेट्स का बाहरी हिस्सा होता है जो आप की किचन को आकर्षक लुक देता है. इस के रंग को चुनते समय ट्रैंड का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. आजकल टू टोन कलर फैशन में हैं जिस में एक डार्क रंग के साथ हलके रंग को पेअर किया जाता है. अर्थ टोन, ग्रे, ब्रोंज, मोका या ग्रीन जैसे सूदिंग न्यूट्रल कलर्स को ओक, वौलनट और मेपल जैसे नैचुरल वुड फिनिश के साथ मैच किया जा सकता है.

इस तरह के रंग किचन को मौडर्न के साथ साथ रूरल लुक भी देते हैं. पूरे घर की माइका से किचन की माइका को मैच करने की कोशिश न करें क्योंकि आजकल एकरूपता के स्थान पर विविधता फैशन में है.
आप कंट्रास की अपेक्षा रैट्रो डिजाइन किचन कैबिनेट्स को ज्यामितीय लुक देते हैं. बोल्ड रंगों के साथ लाइट और डार्क शेड्स का मैच कर के आप माइका को चुन सकते हैं. इस में माइका में सैल्फ में ज्यामितीय डिजाइंस होते हैं जिस से कैबिनेट्स बहुत आकर्षक लगते हैं.

हैंडल भी हों आधुनिक

कुछ समय पूर्व तक जहां किचन कैबिनेट्स को खोलनेबंद करने के लिए नौब और हैंडल लगाए जाते थे, वहीं अब किचन कैबिनेट्स को खोलने और बंद करने के लिए हैंडल के स्थान पर पूरी ड्रावर को कवर करने वाले मैटेलिक पुल हैंडल का प्रयोग किया जाता है। इन के प्रयोग से कैबिनेट्स दिखने में तो आकर्षक लगते ही हैं साथ ही इन्हें औपरेट करना भी आसान होता है. इसके अतिरिक्त गंदी हो जाने पर इन्हें साफ करना भी काफी आसान होता है.

आप किचन कैबिनेट्स की माइका के अनुसार मैटेलिक रंग के पुल हैंडल का प्रयोग कर सकते हैं. यदि आप के घर में छोटे बच्चे हैं तो आप लौक वाले हैंडल्स का प्रयोग भी कर सकते हैं.

इलैक्ट्रिक बोर्ड्स हों पर्याप्त

संपूर्ण घर की ही भांति इलैक्ट्रिक बोर्ड्स किचन में भी बहुत अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि आजकल किचन के अधिकांश उपकरण बिजली से ही चलते हैं, भले ही आप के पास कुछ आधुनिक उपकरण न हों पर फिर भी आप उन के लिए बोर्ड्स की व्यवस्था कर के रखें ताकि भविष्य में आप जब भी उपकरण खरीदें तो आप को अपनी किचन में किसी प्रकार की टूटफूट न करवानी पड़े. इलैक्ट्रिक बोर्ड्स को प्लेटफौर्म से 6 इंच से 1 फूट की दूरी पर ही लगवाएं ताकि उपकरणों को प्रयोग करते समय उन के वायर किचन में इधरउधर फैल कर अनावश्यक जगह न घेरें.

स्टोरेज स्पेस

किचन में पर्याप्त स्टोरेज स्पेस बनवाएं, टोमेटो सौस, शरबत, तेल जैसी लंबी और छोटी बौटल्स को रखने के लिए बोतल पुलआउट वही सब्जी फल आदि रखने के लिए वैजिटेबल बास्केट, मसालों, उपकरणों, बर्तनों के लिए स्मार्ट स्टोरेज और सैक्शनल ड्रावर्स बनवाएं ताकि किचन का सभी सामान एक ही स्थान पर रखा जा सके.

आजकल सालभर की खाद्य सामग्री को स्टोर करने का चलन समाप्त हो चुका है। इसलिए किचन में बहुत अधिक बड़े कंटेनर्स को लाने से बचें. काउंटर टौप के ऊपर और बैक वाले हिस्से में कैबिनेट्स को कवर करने के लिए हाइड्रोलिक और शटर वाले डोर्स का प्रयोग करें ताकि इन्हें आसानी से कम जगह में खोला जा सके.

किचन के एक साइड में क्रौकरी के लिए स्पेस अवश्य बनवाएं ताकि आप अपनी बहुमूल्य क्रौकरी को डिस्प्ले कर सकें.

काउंटर टौप

काउंटर टौप बनवाते समय उस की चौड़ाई पर ध्यान देना बेहद आवश्यक है.

कामकाजी महिला सीमा ने कुछ समय पूर्व ही अपनी मौड्यूलर किचन बनवाई पर तब उस के पास 2 बर्नर वाला गैस चूल्हा था तो उस ने उस की चौड़ाई पर विशेष ध्यान नहीं दिया। पर अब वह 4 बर्नर वाला गैस चूल्हा खरीदना चाहती है, जिस के लिए उसके काउंटरटौप की चौड़ाई कम है, क्योंकि 4 बर्नर वाले चूल्हे 2 बर्नर वाले चुल्हे की अपेक्षा अधिक चौड़े होते हैं। अब दोबारा से काउंटर टौप को तो बनवाया नहीं जा सकता इसलिए मन मार कर उसे अब 2 बर्नर वाले चूल्हे से ही काम चलाना पड़ रहा है.

काउंटर टौप को हैवी ड्यूटी वाले व्हाइट, ग्रे, ब्लैक या रैड ग्रेनाइट से ही बनवाएं क्योंकि ग्रेनाइट को मेनटेन करना भी काफी आसान होता है.

लाइट और चिमनी

किचन में लाइट की पर्याप्त व्यवस्था होना आवश्यक होता है. यों तो आजकल किचन में भी फाल्स सीलिंग बनाई जाने लगी है, इस में रोशनी के लिए एलईडी लाइट्स का प्रयोग किया जाता है, जिस से किचन में भी अच्छीखासी मात्रा में लाइट हो जाती है.

यदि संभव हो तो किचन में अतिरक्त हैंगिग लाइट भी लगवाएं। यह आप की किचन में रोशनी के साथसाथ उसे आकर्षक लुक भी प्रदान करेंगी.
कुकटौप के जस्ट ऊपर चिमनी लगवाएं ताकि खाना बनाते समय निकलने वाला तैलीय धुआं आप की किचन को गंदा न कर सके.

सिंक

सिंक मूलतया 2 प्रकार के होते हैं- डबल सिंक और सिंगल सिंक. यदि आप की किचन में पर्याप्त स्पैस है तो आप डबल सिंक का चुनाव कर सकते हैं. इस में एक सिंक बर्तन धोने के लिए और दूसरे सिंक का प्रयोग सब्जी, फल आदि धोने के लिए किया जाता है.

यों तो ग्रेनाइट, मार्बल और पत्थर के भी सिंक बनाए जाते हैं पर आजकल सर्वाधिक रूप से स्टील के सिंक ही बनाए जाते हैं क्योंकि इन्हें प्रयोग करना काफी आसान होता है. आप अपनी आवश्यकतानुसार और बजट के अनुसार स्टील के सिंक का प्रयोग कर सकते हैं.

फिल्म सिलसिला में जब परवीन बौबी को आउट करके Jaya Bachchan को लिया गया….

Jaya Bachchan : अमिताभ बच्चन रेखा की प्रेम कहानी और रेखा अमिताभ जया की, पतिपत्नी और वो वाली ट्रैंगल लव स्टोरी किसी से छुपी नहीं है, आज भी रेखा अमिताभ के प्रति अपना प्यार पब्लिकली धड़ल्ले से एक्सप्रेस कर देती है. भले ही अमिताभ पब्लिकली रेखा के साथ अपने प्रेम संबंध को छुपा कर रखते हैं, लेकिन जब भी किसी अवार्ड फंक्शन में यह दोनों हस्तियों आमनेसामने होती हैं तो सभी की नजर उनकी नजरों पर होती है, इसी के चलते बात उन दिनों की है, जब अमिताभ बच्चन, रेखा. परवीन बौबी, जीनत अमान आदि कलाकारों का दौर चल रहा था. लेकिन उस दौरान भी अमिताभ बच्चन के साथ किसी हीरोइन का काम करना उस हीरोइन के फिल्मी करियर के लिए फायदेमंद माना जाता था.

उसी दौरान फिल्म सिलसिला के लिए मेकर यश चोपड़ा ने जया बच्चन वाले रोल के लिए पहले अभिनेत्री परवीन बौबी को साइन किया था, लेकिन जब रेखा और अमिताभ की प्रेम कहानी की वजह से जया बच्चन दोनों के आड़े आई, तो इस रियल लाइफ ट्रैंगल लव स्टोरी को भुनाने के चक्कर में यश चोपड़ा ने फिल्म सिलसिला से परवीन बौबी को हटाकर जया बच्चन को फिल्म ले लिया.

इस बात का अफसोस परवीन बौबी को इतना हुआ कि वह फिल्म छूटने के दुख से रोने लगी, इस बात का जिक्र हाल ही में विलेन रंजीत ने एक इंटरव्यू के दौरान किया. रंजीत के अनुसार परवीन बौबी के साथ उनके अच्छे संबंध थे, उस दौरान जब परवीन बौबी को बिना वजह फिल्म से हटा दिया गया तो परवीन बौबी ने अपना यह दुख रंजीत के साथ शेयर किया था. पहले मैंने परवीन बौबी की यह बात सीक्रेट रखी थी क्योंकि वह मेरी अच्छी फ्रेंड थी, लेकिन अब मैं यह बात बोल सकता हूं कि फिल्म सिलसिला में अगर जया जी नहीं होती तो परवीन बौबी उनकी जगह होती. तब शायद फिल्म का इफैक्ट भी कुछ और होता.

Met Gala 2025 : देसी गर्ल ने पोल्का डौट्स में रेड कार्पेट पर बिखेरा जलवा, यूजर्स ने कहा ‘भूमि पेडनेकर की कौपी’

Met Gala 2025 :  मेट गाला 2025 इस बार भारतीयों के लिए बेहद ही खास साबित हुआ. क्योंकि भारतीय सेलिब्रिटीज शाहरुख खान से लेकर कियारा अडवाणी तक इस फैशन शो में जलवा दिखाया. मौम टू बी कियारा ने अपने बेबी बंप लुक से सबका ध्यान आकर्षित किया तो वहीं ग्लोबल स्टार बन चुकी प्रियंका चोपड़ा का मेट गाला लुक सुर्खियों में रहा.

कोऔर्ड सेट में प्रियंका चोपड़ा ने सबका ध्यान खींचा

इस फैशन शो में प्रियंका चोपड़ा और निक जोनस ने अपनी शानदार स्टाइल से लोगों का ध्यान खींच लिया.
प्रियंका का मेट गाला लुक बालमैन के डिजाइनर ओलिवियर रूस्टिंग द्वारा बनाया गया एक खास कोऔर्ड सेट को प्रियंका चोपड़ा ने वियर किया. जिसमें सफेद और काले पोल्का डौट्स थे.

प्रियंका चोपड़ा ने  मेट गाला 2025 के थीम से मैच की अपनी ड्रैस

प्रियंका का यह लुक मेट गाला 2025 के थीम “सुपरफाइन: टेलरिंग ब्लैक स्टाइल” और ड्रेस कोड “टेलर्ड फार यू” से पूरी तरह मैच किया. प्रियंका का यह आउटफिट जिसमें काले पोल्का डौट्स इसे क्लासिक और मौडर्न दिखा. उन्होंने इस ड्रैस के साथ काले हैट और बुल्गारी के शानदार ज्वेलरी सेट के साथ कैरी किया.जिसमें पेंडेंट सबसे ज्यादा अट्रैक्टिव लग रहा था.

यूजर ने कहा, गोरे लोगों को कौपी ना करें

हालांकि सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने कहा कि प्रियंका, ऐक्ट्रैस भूमि पेडनेकर जैसी लग रही हैं. एक यूजर ने प्रियंका के फोटो पर कमेंट करते हुए लिखा कि नॉट गुड तो वहीं दूसरे यूजर ने कहा कि गौरे लोगों को कॉपी ना करें. एक अन्य यूजर ने कहा कि मुझे लगा ये भूमि पेडनेकर हैं. प्रियंका के लुक को लेकर इस तरह के कई कमेंट्स लगातार सोशल मीडिया पर आ रहे हैं. आपको बता दें कि प्रियंका चोपड़ा मेट गाला 2025 में पांचवीं बार पहुंची थीं. इससे पहले भी एक्ट्रेस चार बार इस फैशन शो में जा चुकी हैं.

छोटी उम्र की हीरोइन के साथ काम करने में एतराज नहीं : सलमान खान

Salman Khan : बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान की फिल्म हिट हो या फ्लौप, दर्शकों के बीच उन का क्रेज लगातार बना हुआ है. लाखोंकरोड़ों फैंस की वजह से आज भी वे इंडस्ट्री में सिर्फ टिके हुए ही नहीं हैं बल्कि बेइंतहा लोकप्रिय भी हैं. हर साल ईद पर सलमान खान की नई फिल्म रिलीज होती है. लिहाजा हर ईद पर दर्शकों को उन की फिल्म का इंतजार रहता है.

इस बार भी ईद पर सलमान खान की फिल्म ‘सिकंदर’ रिलीज हुई जिस का क्रेज दर्शकों के बीच देखने को मिला. फिल्म रिलीज से पहले ही टिकटों की लाखों में बिक्री हो गई थी और यह सिलसिला अभी भी जारी है.

इसी फिल्म के प्रमोशन के लिए हाल ही में जब सलमान खान से मुलाकात हुई तो ऐसा लगा कि वे शायद अपनी जान के खतरे को ले कर डरे हुए नजर आएंगे. लेकिन इस के विपरीत सलमान मीडिया से न सिर्फ प्यार से मिले बल्कि हंसीमजाक करते हुए भी नजर आए. लिहाजा, हम ने बातचीत की शुरुआत करते हुए सलमान के लिए कड़क सिक्युरिटी के बीच उन का रहने का अनुभव, ‘सिकंदर’ की रिलीज को ले कर प्रतिक्रिया, बड़ी उम्र के साथ छोटी हीरोइन रश्मिका के साथ फिल्म में रोमांस करने को ले कर कई दिलचस्प सवाल किए जिन के जवाब सलमान ने पूरी ईमानदारी के साथ, हलकेफुलके मजाकिया अंदाज में.

पेश हैं, सलमान खान से हुई खास बातचीत की चुनिंदा अंश:

सलमान आप की सिक्युरिटी लगातार बढ़ रही है. पर्सनल सिक्युरिटी के अलावा महाराष्ट्र पुलिस भी आप को सुरक्षा दे रही है. बिश्नोई गैंग की धमकी और इस कड़क सिक्युरिटी के बीच रहना पर्सनली आप को कितना डरा रहा है? क्या आप अपनी जान के खतरे को ले कर नर्वस हैं?

अपनों से ही डर

अपने लिए नहीं अपनों के लिए डर लगता है जो मुझ से जुड़े हुए हैं, जो मेरी जिम्मेदारी हैं और जो मेरे भरोसे हैं उन के लिए चिंता होती है. मौत को ले कर नहीं डरता क्योंकि वह पहले से तय है कि कब जाना है. अगर मेरा समय आ गया है तो दुनिया की कोई ताकत मुझे बचा नहीं सकती और अगर मेरी और सांसें बाकी हैं तो मुझे दुनिया की कोई ताकत मार नहीं सकती. इसलिए मैं मौत से नहीं डरता. लेकिन कई लोगों की जिंदगी मुझे से जुड़ी है इसलिए अब मैं शूटिंग के बाद सीधा घर गैलेक्सी अपार्टमैंट चला जाता. पहले की तरह अपने मनमुताबिक कहीं भी जा कर मटरगश्ती अब नहीं करता.

आप की फिल्म से लोगों को बौक्स औफिस पर 300 करोड़ तक कमाने की उम्मीद होती है. इस बार आप अपनी फिल्म से कितना उम्मीद कर रहे हैं?

मैं तो चाहूंगा कि मेरी फिल्म 300 करोड़ से भी ज्यादा बिजनैस करे. लेकिन यह भी जरूरी नहीं है कि जो मैं सोचूं वह हो ही. अगर फिल्म दर्शकों को अच्छी लगी तो वह अच्छा बिजनैस करेगी और अगर अच्छी नहीं लगी तो फ्लौप भी हो सकती है. लेकिन दिल से तो मैं चाहता हूं कि फिल्म अच्छी चले क्योंकि मैं ने फिल्म में बहुत मेहनत की है. मैं ने यही कोशिश की है कि दर्शकों को मेरा काम पसंद आए और ‘सिकंदर’ अच्छा बिजनैस करे.

बेहतरीन अनुभव

‘सिकंदर’ के डाइरैक्टर साउथ के प्रसिद्ध डाइरैक्टर ए.आर. मुरुगदास हैं जिन की इस से पहले की फिल्म ‘गजनी’ ने बौक्स औफिस पर बहुत अच्छा बिजनैस किया था. इस के अलावा भी उन्होंने हिंदी और साउथ में कई अच्छी फिल्में बनाई हैं. आप का उन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

बहुत ही अच्छा. मुरुगदास बहुत अच्छे डाइरैक्टर हैं. मेरा उन के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहा. उन की डाइरैक्शन में बहुत अच्छी पकड़ है. कलाकारों से कैसे काम निकालना है यह बहुत अच्छी तरह से जानते हैं. उन्हें टैक्निकल जानकारी भी बहुत है जो आप को फिल्म में देखने को मिलेगी.

आप की फिल्म ‘सिकंदर’ की हीरोइन रश्मिका मंदाना को ले कर भी आप को ट्रोल किया जा रहा है. लोगों का मानना है कि अपने से आधी उम्र की हीरोइन के साथ जोड़ी बनाना सही नहीं लगता. आप इस बारे में क्या कहते हैं?

पहली बात यह है कि मैं हीरोइन का चयन नहीं करता. मेकर्स डिसाइड करते हैं कि किस को हीरोइन लेना है और किस को नहीं. जहां तक मेरी इस बारे में क्या राय है तो मैं यही कहूंगा कि मुझेअपने से छोटी उम्र की हीरोइन के साथ काम करने में कोई एतराज नहीं है हीरोइन को काम करने में कोई एतराज नहीं है तो लोगों को क्यों तकलीफ हो रही है कि मैं किस के साथ काम कर रहा हूं और किस के साथ नहीं? मैं तो अनन्य पांडे और जाह्नवी कपूर के साथ भी काम करना चाहूंगा अगर वे मेरे साथ काम करना चाहें तो.

काम करने में तकलीफ नहीं

हाल ही में यूट्यूब पर एक सर्वे में पाकिस्तान की टौप की हीरोइन ने आप के साथ काम करने की इच्छा जताई. क्या आप उन के साथ फिल्म करना चाहेंगे?

जैसाकि मैं ने कहा कि मुझे किसी भी हीरोइन के साथ काम करने में कोई तकलीफ नहीं है फिर चाहे वह साउथ की हो, बौलीवुड की हो या मुझ से कम उम्र या बड़ी उम्र की हो. जहां तक पाकिस्तानी हीरोइन का सवाल है तो अगर वह भारत सरकार से एनओसी ले कर आए तो मुझे उन के साथ भी काम करना पसंद है.

काफी समय से आप ने दाढ़ी के साथ अपना लुक रखा था. यहां तक कि फिल्म ‘सिकंदर’ में भी आप दाढ़ीमूंछों के साथ ही नजर आए हैं. लेकिन अब आप पूरी तरह से क्लीन शेव कर चुके हैं. ऐसे में क्या आप बताएंगे कि आप को कौन सा वाला लुक ज्यादा पसंद है?

वैसे तो मुझे दोनों ही लुक पसंद हैं, दाढ़ीमूंछों के साथ भी और क्लीन शेव भी लेकिन दाढ़ी रखने पर बहुत सारी कमियां छिप जाती हैं. दाढ़ी करते ही चेहरे पर कहांकहां चरबी चढ़ गई है, चेहरा कहां से मोटापतला और खराब दिख रहा है वह सब नजर आने लगता है. इसलिए क्लीन शेव रखते समय चेहरे को ले कर सचेत रहना पड़ता है.

असफल फिल्मों का दौर

अगर फिल्मों की सफलता की बात करें तो आज सौ में से 2-3 फिल्में ही चल रही हैं. कई सारी फिल्मों की लगातार असफलता को देख कर आप इस बारे में क्या कहेंगे?

कहीं न कहीं मेकिंग में गलती हो रही है, जिस के चलते फिल्में दर्शकों का दिल नहीं जीत पा रहीं. सच बात तो यह है कि अगर अच्छी फिल्म होती है तो वह जरूर चलती है. वैसे फिल्मों की असफलता को ले कर कई सारे कारण बताए जा रहे हैं जैसे मल्टीप्लैक्स, टिकट का ज्यादा प्राइस, सिंगल स्क्रीन की कमी, ओटीटी प्लेटफौर्म का  बोलबाला आदि लेकिन एक सच यह भी है कि अगर मल्टीप्लैक्स या टिकट के प्राइस फिल्म की असफलता का कारण हैं तो ‘पुष्पा 2,’ ‘स्त्री 2’ आदि कई फिल्में कैसे हिट हो जाती हैं. कहने का मतलब यही है कि अगर फिल्म अच्छी होगी तो वह जरूर चलेगी.

साउथ की फिल्में ज्यादातर अच्छी चलती हैं. लेकिन बौलीवुड फिल्मों को सफलता हमेशा नहीं मिलती जैसेकि आप के लाखोंकरोड़ों फेन हैं लेकिन आप की भी पिछली कई फिल्में नहीं चलीं?

यह सच है कि मेरे बहुत सारे फैन हैं लेकिन साउथ के कलाकारों की जो फैन फौलोइंग है वह बहुत स्ट्रौंग है. वहां के फैन अपने कलाकार को बहुत मानते हैं और चाहे जो हो जाए वे अपने फैवरिट ऐक्टर की फिल्म देखने जरूर जाते हैं. हमारे भी यहां बहुत फैन हैं लेकिन वे अगर फिल्म अच्छी नहीं है तो फैन होने के नाते तारीफ नहीं करते, अगर फिल्म अच्छी है तो ही तारीफ करते हैं और फिल्म देखने जाते हैं.

राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं

फिल्म ‘सिकंदर’ में आप का डायलौग है अगर पीएम, सीएम नहीं बना तो एमएलए, एमपी तो बन ही सकता हूं. कहीं इस डायलौग के जरीए आप का इशारा राजनीति में जाने की ओर तो नहीं है?

नहीं, मेरी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि मेरा मानना है जिस चीज की आप को पूरी तरह से जानकारी हो वही काम करना चाहिए. मैं हमेशा ऐक्टर ही रहना चाहूंगा. मेरी किसी और काम में दिलचस्पी नहीं है.

आप शाहरुख खान की फिल्म जवान के डाइरैक्टर एटली के साथ एक फिल्म कर रहे थे, जिस की काफी चर्चा भी थी लेकिन बाद में यह फिल्म नहीं बनीं इस के पीछे क्या वजह है?

उस फिल्म को ले कर हमारे बीच काफी बातचीत भी हुई. फिल्म शुरू भी होने वाली थी. लेकिन बाद में फिल्म का काम बंद हो गया. शायद बजट की प्रौब्लम थी. एटली के साथ वाली फिल्म मेगा बजट वाली फिल्म थी जो बाद में संभव नहीं हो पाया. अब वह फिल्म डब्बाबंद हो गई है.

Women Health Tips : 35 की उम्र के बाद फैमिली प्लानिंग कर सकते हैं?

Women Health Tips : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी उम्र 26 साल है. पिछले महीने ही मेरी शादी हुई है. मुझे पिछले कुछ सालों से फायब्रौयड्स की समस्या है. क्या इस से मुझे गर्भधारण करने में परेशानी आएगी?

जवाब

फायब्रौयड्स की समस्या महिलाओं में आम है. अगर हम 10 महिलाओं का अल्ट्रासाउंड करते हैं तो उन में 5 महिलाओं में यह समस्या होती है. दरअसल, फायब्रौयड्स के आकार, संख्या और स्थिति पर निर्भर करता है कि गर्भधारण करने में कितनी परेशानी आएगी. अगर फायब्रौयड्स छोटे हैं और संख्या कम है तो आप को उपचार की कोई जरूरत नहीं है. आप सामान्य रूप से गर्भधारण कर सकती हैं. लेकिन अगर फायब्रौयड्स का आकार बड़ा है तो उन का उपचार कराना जरूरी हो जाता है. लैप्रोस्कोपिक तकनीक ने फायब्रौयड्स के उपचार को आसान बना दिया है. उपचार के पश्चात ऐसी स्थिति में भी सामान्य रूप से गर्भधारण करना संभव है.

सवाल

मुझे पीरियड्स को लेकर काफी समस्या है. 2-3 महीनों में एक बार पीरियड्स आते हैं. शादी को 7 साल हो गए, लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है. क्या मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?

जवाब

2-3 महीनों में एक बार पीरियड्स आना पीसीओडी (पौलिसिस्टिक ओवरी डिसऔर्डर) की ओर संकेत देता है. यह आज एक आम समस्या है. खानपान व जीवनशैली में बदलाव और मोटापा इस के सब से प्रमुख कारण हैं. लेकिन इस का उपचार भी बहुत आसान है. आप रोज वर्कआउट करें, ताजा फल, सब्जियां खाएं, कार्बोहाइड्रेट (रोटी, चावल, ब्रैड) का सेवन कम करें, रिफाइंड शुगर का सेवन बंद कर दें और अपना वजन सामान्य बनाए रखें. इन बदलावों से आप की माहवारी सामान्य हो जाएगी. लेकिन इस के बाद भी अगर गर्भधारण करने में परेशानी आ रही है तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाएं. दवा, इंजैक्शन आदि उपचारों के द्वारा पीसीओडी के मामलों में आसानी से गर्भधारण किया जा सकता है.

सवाल

मुझे ऐंडोमिट्रिओसिस है. 2 महीने बाद मेरी शादी है. क्या इस वजह से मुझे गर्भधारण करने में समस्या आएगी?

जवाब

ऐंडोमिट्रिओसिस गर्भाशय से जुड़ी एक समस्या है. यह समस्या महिलाओं की प्रजनन क्षमता को सर्वाधिक प्रभावित करती है, क्योंकि गर्भधारण करने और बच्चे को जन्म देने में गर्भाशय की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐंडोमिट्रिओसिस के

4 ग्रेड होते हैं, मिनमल, माइल्ड, मौडरेट और सीवियर. ज्यादातर कोई परेशानी होती है, पहले वाली 2 स्थितियों में गर्भधारण करने में कोई परेशानी नहीं होती है, लेकिन अगर समस्या 3 और 4 ग्रेड तक पहुंच गई है तो गर्भधारण मुश्किल हो सकता है. शादी के बाद 6 महीनों तक प्रयास करें. अगर आप गर्भधारण नहीं कर पाएं तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ को दिखाएं. उपचार कराने में देरी न करें.

सवाल

मेरी उम्र 34 साल है. अगले 5 सालों तक मैं और मेरे पति दोनों कैरियर पर फोकस करना चाहते हैं. कहीं बढ़ती उम्र बांझपन का कारण तो नहीं बन जाएगी और हम अपनी प्रजनन क्षमता कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?

जवाब

34 साल महिलाओं के लिए प्रजनन क्षमता के हिसाब से एक महत्त्वपूर्ण उम्र है, क्योंकि हर महिला एक निश्चित संख्या में अंडों के साथ जन्म लेती है, जिसे ओवेरियन रिजर्व कहते हैं. उम्र के साथ यह रिजर्व घटता जाता है और 35 के बाद ये ओवेरियन रिजर्व तेजी से कम होने लगते हैं. इसलिए 35 के पहले ही फैमिली प्लानिंग कर लेनी चाहिए. बहुत देर नहीं करनी चाहिए. लेकिन आज कई लोग बहुत सारे कारणों से35 के बाद फैमिली प्लानिंग करते हैं.

ऐसी स्थिति में हमारे पास कई विकल्प उपलब्ध हैं, जैसे एग फ्रीजिंग और ऐंब्रयो फ्रीजिंग आदि. अगर आप यह विकल्प नहीं चुनना चाहती हैं, तो एएमएच ब्लड टैस्ट करा लें, जिस से आप को पता चल जाएगा कि आप की प्रजनन क्षमता कैसी है और आप कितना डिले कर सकती हैं. इस के अलावा आप अपने खानपान पर ध्यान दें. अपनी डाइट में फल, सब्जियां, सूखे मेवे, खजूर आदि शामिल करें. ये सेहत के लिए जरूरी हैं और अंडाशय और गर्भाशय की सेहत के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं. अपनी प्रजनन क्षमता को बेहतर बनाए रखने के लिए शराब और धूम्रपान से दूर रहें, क्योंकि इन का सीधा प्रभाव अंडों और गर्भाशय पर पड़ता है.

मैं 32 साल की कामकाजी महिला हूं. मेरी शादी को 5 साल हो गए हैं. मेरे गर्भाशय की लाइनिंग बहुत पतली है. डाक्टरों का कहना है कि मैं मां नहीं बन सकती?

जब गर्भाशय की सब से अंदरूनी परत जिसे ऐंडोमिट्रिओसिस कहते हैं, बहुत पतली हो तो गर्भधारण करने में ज्यादातर परेशानी आती है. लेकिन आज बहुत सारी तकनीकें हैं, जिन से इस का उपचार संभव है. अगर आप को माहवारी सही समय पर आती है और फ्लो भी ठीक है तो दवा, इंजैक्शन, स्पेम सैल और पीआरपी (प्लेटलेट रिच प्लाज्मा-ग्रोथ फैक्टर) तकनीक के  द्वारा गर्भाशय की लाइनिंग, जिसे ऐंडोमिट्रियल थिकनैस कहा जाता है को मोटा किया जा सकता है. आजकल ऐंडोमिट्रियल थिकनेस को बढ़ाने में पीआरपी का इस्तेमाल बहुत अधिक किया जा रहा है.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055

कृपया अपना मोबाइल नंबर जरूर लिखें. व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

टेक्नोलौजी का सही उपयोग करके बिजनेस पर स्थायी प्रभाव डाला जा सकता है : जया वैद्यनाथन

Jaya Vaidhyanathan : जया वैद्यनाथन बीसीटी डिजिटल प्राइवेट लिमिटेड की सीईओ हैं जो एक अग्रणी फिनटेक, रेगटेक और सस्टेनेटेक कंपनी है. वह PwC ग्लोबल और PwC इंडिया के बोर्ड में नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में कार्यरत हैं. इसके अलावा वह यूटीआई एसेट मैनेजमेंट कंपनी, इंडीग्रिड और गोदरेज प्रॉपर्टीज में इंडिपेंडेंट डायरेक्टर के रूप में काम करती हैं.

इंजीनियर से मैनेजमेंट प्रोफेशनल बनीं जया ने मद्रास विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में बीई की डिग्री प्राप्त की है और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से फाइनेंस और स्ट्रैटेजी में एमबीए किया है. वह सीएफए चार्टर होल्डर भी है. दो दशकों से अधिक के अनुभव के साथ जया वैद्यनाथन ने एचसीएल टेक्नोलॉजीज, एक्सेंचर और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक जैसी प्रमुख कंपनियों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है.

उन का मानना है कि टेक्नोलॉजी का सही उपयोग करके बिजनेस पर स्थायी प्रभाव डाला जा सकता है. उन के अनुसार भविष्य के लिए तैयार ऐसे वित्तीय इकोसिस्टम बनाए जाएं जो इनोवेशन, स्ट्रेंथ और एथिकल गवर्नेंस का सही तालमेल हो.

पेश है उन से की गई बातचीत के मुख्य अंश;

आपने इस क्षेत्र में आने का निर्णय कब और कैसे लिया?

शुरू से ही मुझे बड़ी समस्याओं को हल करने में रुचि थी और फाइनेंस में कुछ सबसे जटिल चुनौतियां होती हैं जैसे रिस्क मैनेजमेंट और रेगुलेटरी कंप्लायंस. उस में मैंने अपने आपको निखारा. जब मैं लीडर के रोल में आई तो मैंने देखा कि कैसे पारंपरिक सिस्टम बदलते वित्तीय माहौल के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे. टेक्नोलॉजी केवल एक सहायक माध्यम नहीं थी बल्कि यह पूरे फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन्स को बदलने की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी.

यह एहसास मुझे ऐसे सॉल्यूशंस बनाने की दिशा में ले गया जो जोखिमों को रोकने और उसका पूर्वानुमान करने में मदद कर सकें बजाय इसके कि नुकसान होने के बाद सॉल्यूशन खोजे जाएं. यही सोच एआई-आधारित रियल-टाइम रिस्क इंटेलिजेंस पर ध्यान केंद्रित करने का कारण बनी जिससे आरटी 360 बना जो
वित्तीय संस्थानों को जोखिम और फ्रॉड से बचाने में मदद करता है. मेरा लक्ष्य हमेशा स्पष्ट रहा है कि टेक्नोलॉजी का उपयोग करके वास्तविक वित्तीय समस्याओं को हल करना और मजबूत, भविष्य-के-लिए-तैयार सिस्टम बनाया जाए.

आपका सबसे बड़ा सपोर्ट कौन रहा है?

सफलता कभी भी एक व्यक्ति की नहीं होती है. यह मेंटर, सहकर्मियों और परिवार के समर्थन पर आधारित होती है. मुझे प्रेरित करने वाले मेंटर मिले जिन्होंने मुझे रूढ़ियों को चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित किया. एक समर्पित टीम जो मेरे विजन को अपनाती है और एक परिवार जिसने हमेशा मेरी महत्वाकांक्षाओं का समर्थन किया है. मुझ पर उनका विश्वास प्रोफेशनल और व्यक्तिगत दोनों तरह से मेरे विकास का आधार रहा है.

आपके जीवन में घटी कोई घटना जिसने आपका नजरिया बदल दिया हो या आपके जीवन
को नया स्वरूप दिया हो?

मेरे करियर के सबसे निर्णायक क्षणों में से एक, कॉरपोरेट लीडरशिप से टेक ड्रिवेन रिस्क सॉल्यूशन कंपनी बनाने का फैसला था. चैलेंजेज को मैनेज करने से लेकर उन्हें बड़े पैमाने पर हल करने तक जाने से मेरा दृष्टिकोण बदल गया. सच्चा प्रभाव समस्याओं पर प्रतिक्रिया करने के बारे में नहीं है बल्कि यह उन सॉल्यूशन को बनाने के बारे में है जो उन्हें पहले स्थान पर होने से रोकते हैं. इस विश्वास ने लीडरशिप, इनोवेशन और रिस्क मैनेजमेंट के प्रति मेरे एप्रोच को आकार दिया है.

आपकी राय में महिलाओं की सबसे बड़ी ताकत क्या है?

महिलाओं की सबसे बड़ी ताकत उन की फ्लेक्सिबिलिटी और एम्पैथी है. आज की तेजी से विकसित होती दुनिया में ये दो गुण आवश्यक हैं. महिलाएं सिर्फ चुनौतियों का सामना नहीं करतीं वे उसे अपनाती भी हैं. इनोवेट करती हैं और बाधाओं को अवसरों में बदल देती हैं.

लीडरशिप पॉइंट ऑफ़ व्यू से मुझे हर दिन इसका नजारा देखने को मिलता है जहां महिलाएं प्रॉब्लम सॉल्विंग, सहयोग और परिवर्तन लाने में आगे हैं. वे लॉजिक और इंट्यूशन को संतुलित करती हैं, यह सुनिश्चित करती हैं कि निर्णय स्ट्रैटेजिक और पीपुल सेंटर्ड हों. यह टेक्नोलॉजी से लेकर फाइनेंस तक
किसी भी क्षेत्र में एक जरूरी एसेट है.

महिलाओं को जो बात अलग बनाती है वह है उनकी स्ट्रेंथ और कम्पैशन के साथ लीडरशिप की क्षमता. वे बड़ी बात को ध्यान में रखते हुए कठिन निर्णय लेती हैं जिससे टीमों, व्यवसायों और समाज के लिए दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित होती है. खुद आगे बढ़ते हुए दूसरों को आगे बढ़ाने की उनकी क्षमता उन्हें
प्रगति और इनोवेशन के लिए अमूल्य बनाती है.

एक महिला के सफल बिजनेसवुमेन बनने के लिए क्या जरूरी है?

किसी भी व्यवसाय का लक्ष्य किसी समस्या का स़ॉल्यूशन करना होता है और साथ ही हितधारकों के लिए वैल्यू क्रिएशन के इरादे से रेवेन्यू और प्राफिट अर्जित करना होता है. जो भी महिला व्यवसाय की दुनिया में प्रवेश करना चाहती हैं उन्हें पहला कदम उठाने और आगे आने की जरूरत है. पहला कदम समस्या की पहचान करना, रूढ़िवादिता को तोड़ना और यथास्थिति को चुनौती देना है.

आप दूसरों से अलग कैसे सोचती हैं?

मैं कम इस्तेमाल होने वाला रास्ता चुनती हूं. मैं चुनौतियों का सामना साल्यूशन-फर्स्ट माइंडसेट के साथ करती हूं. इस बात पर ध्यान केंद्रित करती हूं कि कैसे टेक्नोलॉजी जोखिमों पर प्रतिक्रिया करने के बजाय उन्हें पहले से ही रोक सकती है. सीमाओं को स्वीकार करने के बजाय मैं बाधाओं को तोड़ने का तरीका देखती हूं चाहे वह फाइनेंस, टेक्नोलॉजी या लीडरशिप में हो.

मैं इनोवेशन और प्रैक्टिकैलिटी के बीच बैलेंस बनाने में विश्वास करती हूं. मुश्किलें तभी मूल्यवान होती हैं जब वे रियल, मापने योग्य प्रभाव पैदा करती हैं. मेरा फोकस विजन और एग्जीक्यूशन के बीच की खाई को पाटने पर है. यह सुनिश्चित करना कि विचार व्यावसायिक परिणामों में तब्दील हों.

मेरे लिए अलग ढंग से सोचने का मतलब सिर्फ नए विचार रखना नहीं है. इसका मतलब है उन्हें प्रभावी ढंग से क्रियान्वित करने का दृढ़ विश्वास रखना.

आपके जीवन का कोई ऐसा पल जब आप बहुत भावुक हो गईं हों?

मेरे लिए कई भावुक करने वाले पल हैं जैसे मेरे बेटे का जन्म. पहली बार जब उस ने चलना शुरू किया और मुझे ‘अम्मा’ कहकर पुकारा तो मैं बहुत भावुक हो उठी थी इसके अलावा कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिलना मेरे लिए ‘सपनों को पंख लगने’ जैसा था.

हमें अपने बिजनेस के बारे में बताएं

बीसीटी डिजिटल एक रिस्क और कंप्लायंस प्रोडक्ट कंपनी है. हम वित्तीय संस्थानों को धोखाधड़ी से निपटने, कंप्लायंस का प्रबंधन करने और रिस्क को सक्रिय रूप से कम करने के लिए रियल टाइम साल्यूशंस से लैस करके रिस्क मैनेजमेंट को फिर से परिभाषित करते हैं. हमारा rt360 सुइट मार्केट में सबसे आगे है. भारत के सरकारी बैंकों में 80% हिस्सा हासिल करता है और सालाना 21 लाख करोड़ रुपये ($250 अरब) से अधिक की संपत्ति पर की निगरानी करता है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने संभावित NPA में 2,100 करोड़ रुपये ($2.5 अरब) की रिकवरी करने में मदद की है जिससे वित्तीय
स्थिरता मजबूत हुई है.

हमारे इनोवेशंस को रेगुलेटर्स ने भी मान्यता दी है. भारतीय रिजर्व बैंक के रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के हिस्से के रूप में, हमारे आरटी360 रियल-टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम (आरटीएमएस) का एक अग्रणी बैंक के साथ सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया जिससे मिलीसेकंड में धोखाधड़ी वाले लेनदेन का पता लगाने
की इसकी क्षमता साबित हुई.

आपकी सफलता का क्या राज है?

किसी भी बिजनेस की सफलता के केंद्र में टीम होती है. ऐसे लोगों को काम पर रखें जिन पर आप भरोसा करते हैं और जो आप पर भरोसा करते हैं और उन्हें सशक्त बनाएं. इस के परिणाम स्वरुप ऐसे लोग मिलते हैं जो रूढ़ियों को चुनौती देते हैं, स्वतंत्र रूप से सोचते हैं और विविध दृष्टिकोण रखते हैं.

सफलता की कुंजी लचीलापन, दूरदर्शिता और एग्जीक्यूशन में निहित है. चुनौतियों का पहले से अनुमान लगाना और सार्थक परिवर्तन लाने के लिए टेक्नोलौजी का लाभ उठाना ही सफलता के प्रति मेरा विजन रहा है.

साल्यूशन-फर्स्ट माइंडसेट ने मुझे बैंकिंग जोखिमों, एआई-संचालित वित्तीय स्थिरता और उद्योग व्यवधानों से निपटने में मदद की है. सफलता सिर्फ इनोवेशन के बारे में नहीं है. यह स्केलेबिलिटी और इम्पैक्ट के बारे में है.

आज के समय में महिलाओं को किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

प्रोग्रेस के बावजूद महिलाओं को अभी भी ऐसी सिस्टेमिक चैलेंजेज का सामना करना पड़ रहा है जो उनके प्रोफेशनल ग्रोथ और आर्थिक भागीदारी में बाधा डालती हैं. कार्यस्थल पर पक्षपात, नेतृत्व में कम प्रतिनिधित्व और जेंडर पे गैप महिलाओं को खुद को साबित करने के लिए कड़ी मेहनत करने के लिए मजबूर करता है, जिससे निर्णय लेने वाली भूमिकाओं तक उनकी पहुंच सीमित हो जाती है. इसके अलावा अनपैड लेबर , केयरगिविंग और घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ कैरियर की उन्नति को प्रभावित करती हैं. व्यवसायों में शिक्षा और कौशल विकास में लिंग-आधारित बाधाएं अवसरों को सीमित करती हैं.

इन बाधाओं को तोड़ने के लिए इनक्लूजिव लीडरशिप, समान वेतन, फंडिंग तक पहुंच और मेंटरशिप कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है. विविधता को अपनाने वाली कंपनियां न सिर्फ महिलाओं को सशक्त बनाती हैं वे मजबूत फाइनेंशियल परफॉरमेंस और इनोवेशन को बढ़ावा देती हैं. बिजनेस का भविष्य एक ऐसा माहौल बनाने पर निर्भर करता है जहां महिलाएं आत्मविश्वास से नेतृत्व कर सकें और बिना किसी सीमा के उद्योगों को आकार दे सकें.

आपकी उपलब्धियां क्या हैं? क्या आपको कोई पुरस्कार मिला है?

मेरी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने में हमारी आरटी360 रियल-टाइम मॉनिटरिंग प्रणाली (आरटीएमएस) को इसकी प्रभावशीलता के लिए रिकग्नाइज किया जिसके परिणामस्वरूप रेगुलेटेड संस्थाओं द्वारा इसे अपनाया गया. आज हमारे सॉल्यूशन 21 लाख करोड़ रुपये ($250 बिलियन) से अधिक की एसेट्स को ट्रैक करते हैं और 2,100 करोड़ रुपये ($2.5 बिलियन) के संभावित एनपीए को रोकने में मदद कर चुके हैं.

इंडस्ट्री रिकग्निशन:

चार्टिस ने रिस्कटेक 100 रिपोर्ट में बीसीटी डिजिटल को 68वां स्थान दिया भारतीय रिजर्व बैंक ने रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के चौथे कॉहोर्ट के दौरान बीसीटी डिजिटल के आरटी360 रियल टाइम मॉनिटरिंग सॉल्यूशन का सफलतापूर्वक परीक्षण और मूल्यांकन किया.

फिनटेक लीडर ऑफ द ईयर 2025 (भारत फिनटेक समिट, द डिजिटल फिफ्थ)

द फिनटेक मेवरिक – मोस्ट डेयरिंग सीईओ 2024 (एंटरप्रेन्योर इंडिया)

फिनटेक लीडर ऑफ द ईयर 2023 (बिजनेसवर्ल्ड फेस्टिवल ऑफ फिनटेक)

भारत का सबसे भरोसेमंद सीईओ अवार्ड 2022 (WCRC)

लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 2022 (वर्ल्ड एचआरडी कांग्रेस और तमिलनाडु
बिजनेस लीडर ऑफ द ईयर)

उन्हें फिनटेक लीडर पुरस्कार सहित विभिन्न वैश्विक पुरस्कार मिले हैं.

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