Latest Hindi Stories : आहटें

Latest Hindi Stories : पड़ोस के घर की घंटी की आवाज सुनते ही शिखा लगभग दौड़ती हुई दरवाजे के पास गई और फिर परदे की ओट कर बाहर झांकने लगी. अपने हिसाबकिताब में व्यस्त सुधीर को शिखा की यह हरकत बड़ी शर्मनाक लगी. वह पहले भी कई बार शिखा को उस की इसी आदत पर टोक चुका है, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आती.  ज्यों ही आसपास के किसी के घर की घंटी बजती शिखा के कान खड़े हो जाते. कौन किस से मिलजुल रहा है, किस पतिपत्नी में कैसा बरताव चल रहा है, इस की पूरी जानकारी रखने का मानो शिखा ने ठेका ले रखा हो.

सुधीर ने कभी ऐसी मनोवृत्ति वाली पत्नी की कामना नहीं की थी. अपना दर्द किस से कहे वह… कभी प्रेम से, कभी तलखी से झिड़कता जरूर है, ‘‘क्या शिखा, तुम भी हमेशा पासपड़ोसियों के घरों की आहटें लेने में लगी रहती हो… अपने घर में दिलचस्पी रखो जरा ताकि घर घर जैसा लगे…’’  सुधीर की लाई तमाम पत्रपत्रिकाएं मेज पर पड़ी शिखा का मुंह ताकती रहतीं.. शिखा अपनी आंखें ताकझांक में ही गड़ाए रखती.

मगर आज तो सुधीर शिखा की इस हरकत पर आगबबूला हो उठा और फिर परदा इतनी जोर से खींचा कि रौड सहित गिर गया.  ‘‘लो, अब ज्यादा साफ नजर आएगा,’’ सुधीर गुस्से से बोला.

शिखा अचकचा कर द्वार से हट गई. देखना तो दूर वह तो अनुमान भी न लगा पाई कि जतिन के घर कौन आया और क्योंकर आया.  सुधीर के क्रोध से कुछ सहमी जरूर, पर झेंप मिटाने हेतु मुसकराने लगी. सुधीर का मूड उखड़ चुका था. उस ने अपने कागज समेट कर अलमारी में रखे और तैयार होने लगा.

शिखा उसे तैयार होते देख चुप न रह सकी. पूछा, ‘‘अब इस वक्त कहां जा रहे हो? शाम को मूवी देखने चलना है या नहीं?’’

‘‘तुम तैयार रहना… मैं आ जाऊंगा वक्त पर,’’ कह कर सुधीर कहां जा रहा है, बताए बिना गाड़ी स्टार्ट कर निकल गया.

गुस्से से भरा कुछ देर तो सुधीर यों ही सड़क पर गाड़ी दौड़ाता रहा. वह मानता है कि थोड़ीबहुत ताकझांक की आदत प्राय: प्रत्येक व्यक्ति में होती है पर शिखा ने तो हद कर रखी है. 1-2 बार उसे ताना भी मारा कि इतनी मुस्तैदी से अगर किसी अखबार में न्यूज देती तो प्रतिष्ठित संवाददाता बन जाती. लेकिन शिखा पर किसी शिक्षा का असर ही नहीं पड़ता था.  पिछले हफ्ते की ही बात है. वह शाम को औफिस से काफी देर से लौटा था. वह ज्यों ही घर में घुसा कि कुछ देर में ही शिखा का रिकौर्ड शुरू हो गया. बच्चों को पुलाव खिला कर सुला चुकी थी. उस के सामने भी दही, अचार, पुलाव रख शुरू कर दिया राग, ‘‘आजकल अमनजी औफिस से 1-2 घंटे पहले ही घर आ जाते हैं. मेरा ध्यान तो काफी पहले चला गया था इस बात पर… इधर उन की माताजी प्रवचन सुनने गईं और उधर से उन की गाड़ी गेट में घुसती. दोनों लड़कियां तो स्कूल से सीधे कोचिंग चली जाती हैं और 7 बजे तक लौटती हैं… अमनजी के घर में घुसते ही दरवाजेखिड़कियां बंद…’’

‘‘अरे बाबा मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है दूसरों के दरवाजों में… तुम पापड़ तल कर दे सको तो दे दो.’’  सुधीर की नाराजगी देख शिखा को चुप हो जाना पड़ा वरना वह आगे भी बोलती.

खाना खा कर सुधीर टीवी देखने लगा. शिखा रसोई निबटा कर उस के पास आ कर बैठी तो सुधीर को बड़ा सुखकर लगा. छोटी सी गृहस्थी जोड़ ली है उस ने… शिखा भी पढ़ीलिखी है. अगर यह भी अपने समय का सदुपयोग करना शुरू कर दे तो घर में अतिरिक्त आय तो होगी ही खाली समय में इधरउधर ताकनेझांकने की आदत भी छूट जाएगी.  ‘धीरेधीरे स्वयं समझ जाएगी,’ सोचते हुए सुधीर भावुकता में शिखा को गले लगाने के लिए उठा ही था कि शिखा चहक उठी, ‘‘अरे यार, वह अमनजी का किस्सा तो अधूरा ही रह गया… मैं समझ तो गई थी पर आज पूरा राज खुल गया… खुद उन की पत्नी आशा ने बताया नेहा को कि लड़कियां बड़ी हो गई हैं… तो एकांत पाने का यह उपाय खोजा है अमनजी ने…’’ कह कर शिखा ने ऐसी विजयी मुसकान फेंकी मानो किला जीत लिया हो.

किंतु सुन कर सुधीर ने तो सिर थाम लिया अपना. उस ने ऐसी पत्नी की भी कल्पना नहीं की थी. वह तो आज भी यही चाहता है उस की शिखा परिवार के प्रति समर्पण भाव रखते हुए पासपड़ोसियों का भी खयाल रखे, उन के सुखदुख में शामिल हो. पर यह नामुमकिन था.  नामुमकिन शब्द सुधीर को हथौड़े सा लगा. ‘भरपूर प्रयास करने  पर तो हर समस्या का हल निकल आता है,’ सोच कर सुधीर को कुछ राहत मिली. उस ने घड़ी देखी. शो का वक्त हो चुका था, मगर आज शिखा के नाम से चिढ़ा था…  सुधीर घर न जा कर एक महंगे रेस्तरां में अकेला जा बैठा. रविवार होने की वजह से ज्यादातर लोग बीवीबच्चों के संग थे… उसे अपना अकेलापन कांटे सा चुभा… बैठे या निकल ले सोच ही रहा था कि नजरें कोने की टेबल पर पड़ते ही सकपका गया. उस के पड़ोसी दस्तूर अपनी पत्नी और बेटी के संग बैठे खानेपीने में मशगूल थे. सुधीर तृषित नजरों से क्षण भर उस परिवार को देखता रह गया.

सुधीर और दस्तूर एक ही संस्थान में तो हैं, साथ में पड़ोसी होने की वजह से बातचीत, आनाजाना भी है. मगर शिखा को दस्तूर परिवार फूटी आंख नहीं सुहाता है. दस्तूर की पत्नी अर्चना से तो ढेरों शिकायतें हैं उसे कि क्या पता दिन भर घर में घुसेघुसे क्या करती रहती है… औरतों से भी मिलेगी तब भी एकदम औपचारिक… मजाल उस के अंतरंग क्षणों का एक भी किस्सा कोई उगलवा सके… ऐसी बातों पर एकदम चुप.

इस के विपरीत सुधीर अर्चना का काफी सम्मान करता है. विवाह से पूर्व वे शिक्षिका थीं और आज एक सफल गृहिणी हैं. लेकिन शिखा ने उन्हें भी नहीं छोड़ा. शिखा के खाली और शैतानी दिमाग से सुधीर भीतर ही भीतर कुंठित हो चला था. इसीलिए दस्तूर दंपती से नजरें चुराता वह रेस्तरां से बाहर निकल आया. रात के 9 बज रहे थे पर उस का मन घर जाने को नहीं कर रहा था. करीब 11 बजे घर पहुंचा ही था कि घंटी बजाते ही शिखा ने द्वार खोल प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

सुधीर आज कुछ तय कर के ही लौटा था. अत: चुपचाप कपड़े बदलता रहा. शिखा परेशान सी उस के आगेपीछे घूम रही थी, ‘‘जब कोई और प्रोग्राम था तो मुझे क्यों बहलाया कि शाम को पिक्चर चलेंगे… किस के साथ थे पूरी शाम?’’

‘‘बस यों समझ लो कि अर्चनाजी के संग था पूरी शाम.’’

शिखा उसे अवाक देखती रह गई. सुधीर भी देख रहा था. वह अभी तक सजीसंवरी कीमती साड़ी में ही थी. सुधीर को अच्छा लगा उसे यों तैयार देख कर, पर स्वयं पर नियंत्रण रख वह सोफे पर बैठा रहा.

‘‘शिखा, तुम ने ही तो अर्चना के बारे में इतनी बातें बताईं कि उन्हें पास से देखने का… यानी तुम्हारे मुताबिक उन के लटकेझटके देखने का कई दिनों से बड़ा मन होने लगा था… आज मौका मिल गया तो क्यों छोड़ता. वे सब भी उसी रेस्तरां में थे… वाकई मैं तो उन की सुखी व शालीनता भरी आंखों में खो गया… इतनी देर मैं उन्हीं के सामने की मेज पर बैठा रहा, पर उन्हें अपने पति व बेटी से फुरसत ही नहीं मिली, अगलबगल ताकनेझांकने की… मुझे ही क्या उन्होंने तो किसी को भी नजर उठा कर नहीं देखा… अपने में ही मस्तव्यस्त… मुझे तो बड़ा अजीब लगा. अरे, कम से कम मुझे अकेला बैठा देख पूछतीं तो कि मैं अकेला क्यों? पर मेरी तरफ ध्यान ही नहीं… पर मैं ने खूब ध्यान से देखा उन्हें… अर्चना साड़ी बड़ी खूबसूरती से बांधती हैं… और साड़ी में लग भी बहुत अच्छी रही थीं.’’

सुधीर की बातें सुन शिखा का मन रोने को हो आया. वह दूसरे कमरे में जाने लगी तो सुधीर भी चल पड़ा, ‘‘अब एकाध दिन आशा… शैली… नेहा… इन सब को भी नजदीक से देखना है.’’ जब शिखा की बरदाश्त से बाहर हो गया तो उस ने रोना शुरू कर दिया. उस ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि नितांत एकांत क्षणों में उस के साथ होने के बावजूद सुधीर पराई स्त्रियों के रूपशृंगार की बात कर सकता है. दूसरों के घरों की आहटें लेने में वह इतनी तल्लीन थी कि उसे खयाल ही नहीं रहा कि उस की इस हरकत पर कभी उस के ही घर में इतना बड़ा धमाका हो सकता है. आहटों से अनुमान लगाने में माहिर शिखा फूटफूट कर रो रही थी.

‘‘अब रोगा कर क्या पासपड़ोस को इकट्ठा करोगी… अर्चना से कुछ सबक लो…

उन्हें तो उस रात दस्तूर ने कई चांटे मारे थे फिर भी उफ न की थी उन्होंने,’’ सुधीर ने शिखा को मनाने के बजाय उसी का सुनाया किस्सा उसे याद दिला दिया.

उस रोज तो वह बिस्तर में ही था कि शिखा ने उसे यह खबर दी थी गुड मौर्निंग न्यूज की भांति. सुधीर जानता था कि आज भी दस्तूर को डीजल शेड नाइट इंसपैक्शन जाना है, मगर शिखा यों बता रही थी जैसे वही सब कुछ जानती हो, ‘‘तुम सोते रहो… पता भी है कल रात को क्या हुआ? दस्तूर साहब इंसपैक्शन कर के करीब 2 बजे रात को लौटे. मेरी नींद तो उन की गाड़ी रुकते ही खुल गई… बेचारे खूब हौर्न बजाते रहे… मगर घर में सन्नाटा. फिर देर तक घंटी बजाते रहे… मुझे तो लगता है मेरी क्या पूरे महल्ले की नींद खुल गई होगी, पर तुम्हारी अर्चना पता नहीं कितनी गहरी नींद में थी… क्या कर रही थी? बड़ी देर बाद दरवाजा खोला… मैं ने दरार में से झांक कर देखा था. दस्तूर साहब दरवाजे में ही खूब नाराज हो रहे थे. फिर जब कुछ देर बाद मैं ने अपने बैडरूम की खिड़की से उन के बैडरूम की आहट ली तो दस्तूर साहब के जोरजोर से बड़बड़ाने की आवाजें आ रही थीं और फिर चाटें मारने की आवाजें भी आईं…’’

‘‘क्या बकवास कर रही हो सुबहसुबह…’’

सुधीर की बात काटते हुए शिखा और ढिठाई से बोली, ‘‘मैं ने खुद अपने कानों से चांटे की स्पष्ट आवाजें सुनी हैं… खुल गई न पोल तुम्हारी अर्चना की… बड़े फिदा हो न उस के सलीके, सुघड़ता और शालीनता पर…’’

सुधीर उस रोज वाकई स्तब्ध रह गया था. यों वह शिखा की बातें कभी गंभीरता से नहीं लेता था पर उस रोज मामला दस्तूर दंपती का था. दस्तूर दंपती जिन्हें वह काफी मानसम्मान देता है उन लोगों के बीच हाथापाई हो जाए चौंकाने वाली बात है. कोई भी सुसंस्कृत, सभ्य पुरुष अपनी पत्नी पर हाथ उठाए… ऐसा कभी हो सकता है और फिर दस्तूर साहब तो अपनी पत्नी व बेटी पर निछावर हैं. उस रोज इसी खलबली में औफिस पहुंचते ही मौका पा कर सुधीर दस्तूरजी के पास जा बैठा. चूंकि एकदम व्यक्तिगत प्रश्न तो किया नहीं जा सकता था, इसलिए औफिस… मौसम आदि की बातें करते हुए गरमी की परेशानी का जिक्र निकाल भेद लेने का पहला प्रयास किया, ‘‘एक बात है दस्तूर साहब… गरमी में नाइट ड्यूटी बढि़या रहती है… मस्त ठंडक… कूलकूल.’’

‘‘नाइट ड्यूटी… अरे नहीं भाई खुद की नींद खराब… फैमिली की नींद हराम… कल रात घर पहुंचा… परेशान हो गया.’’

दस्तूर की बात सुनते ही सुधीर उछल पड़ा, ‘‘क्यों क्या भाभीजी ने घर में नहीं घुसने दिया?’’

‘‘ऐसा होता तो मुझे मंजूर था पर वह भलीमानस एकडेढ़ बजे रात तक मेरा इंतजार करते पढ़ती रही. थक कर उस की झपकी लगी ही होगी कि मैं पहुंचा. दरवाजा देर से खुला तो घबरा ही गया था, क्योंकि बीपी की वजह से आजकल ज्यादा ही परेशान है. उसे सहीसलामत देख कर जान में जान आई.

‘‘खुशीखुशी बैडरूम में पहुंचा तो वहां का नजारा देख बहुत गुस्सा आया मांबेटी पर… बगैर मच्छरदानी लगाए दोनों सोतेजागते मेरी राह देख रही थीं. 10 मिनट तो कमरे में मच्छर मारने पड़े चटाचट… भई बीवीबच्चों को मच्छर काटें… ऐसी ठंडक में काम करने से तो गरमीउमस ही भली…’’

दस्तूर साहब की बातें सुन सुधीर पर घड़ों पानी पड़ गया. शिखा की सोच और अनुमान के आधार पर गढ़े किस्से पर उसे शर्मिंदगी महसूस होनी ही थी. शिखा से वह इतना विरक्त हो चला था कि औफिस से आ कर उस ने बताई तक नहीं यह बात… पर आज बताना ही पड़ा उस चटाचट का रहस्य.

सुन कर शिखा हतप्रभ सी सुधीर को देखती रह गई. वह क्या जवाब देती और किस मुंह से देती? सुधीर एक ही प्रश्न बारबार दोहराए जा रहा था, ‘‘अरे, जो आदमी अपनी पत्नी और बिटिया को मच्छर का काटना बरदाश्त नहीं कर सकता वह अपने हाथों से उन्हें चांटे मारेगा? बोलो शिखा मार सकता है?’’

शिखा अवाक थी. पूरे वातावरण में सन्नाटा पसर गया. दूरदूर तक उसे कोई  आहट सुनाई नहीं दे रही थी. उसे पति द्वारा दिखाए गए आईने में अपनी छवि देख वास्तव में शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. उस ने मन ही मन ठान लिया कि अब वह पासपड़ोस की ताकझांक छोड़ कर अपने घर की साजसंभाल पर ही ध्यान देगी.  कुछ दिन तक तो शिखा अपने मन को मारने में कामयाब रही, पर फिर पुन: उसी राह पर चल पड़ी. ज्यों ही पति एवं बच्चे घर से निकलते, वह उन्हें गेट तक छोड़ने जाने के बहाने एक सरसरी निगाह कालोनी के छोर तक डाल ही लेती.

उस की ताकझांक की आदत को इस दीवाली पर एक और सुविधा भी मिल गई. दीवाली पर इस बार उन्हें दोगुना बोनस मिलने से खरीदारी का जोश भी ज्यादा था.  सुधीर और शिखा दोनों ने जम कर खरीदारी की. ड्राइंगरूम की सजावट पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया. सोफा कवर, कुशन, बैडशीट्स तो नए खरीदे ही, शिखा ने स्टोर पर जैसे ही नैट के परदे देखे वह लुभावने परदों पर मर मिटी और परदों का पूरा सैट ले आई. दीवाली पर जिस ने उस के घर की सजावट देखी, तारीफ की. शिखा तो तारीफ सुन कर 7वें आसमान पर थी. एक खासीयत यह थी कि अब शिखा को सड़क का नजारा या पड़ोसियों के गेट की आहट लेने के लिए दरवाजेखिड़की की आड़ में छिपछिप कर उचकउचक कर देखने की मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी, क्योंकि अब खिड़कीदरवाजों पर जालीदार परदे जो डले थे. इन परदों के पीछे खड़े हो कर वह आराम से बाहर देख सकती थी, किंतु बाहर के व्यक्ति को भनक भी नहीं मिल पाती कि परदे की आड़ में खड़ा कोई उन पर निगरानी कर रहा है.

हां, शिखा को इन परदों से रात को थोड़ी असुविधा होती थी, क्योंकि शाम को लाइट जलते ही बाहर से उस के घर के अंदर का दृश्य स्पष्ट हो जाता था. इसीलिए शाम होते ही वह लाइनिंग के परदे भी सरका लेती.  शाम को उसे ताकझांक की फुरसत कम ही मिल पाती. खाना पकाना, बच्चे और सुधीर उसे पूरी तरह व्यस्त कर देते. मगर सुबह होते ही वही दिनचर्या. घर के काम को ब्रेक दे कर कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, सारी जानकारी से अपडेट रहती.  कल ही शिखा मेथी साफ करने के बहाने खिड़की के सामने रखी कुरसी पर बैठी बाहर भी नजर डालती जा रही थी. तभी उस का ध्यान एक कर्कश से हौर्न से भंग हुआ. चौकन्नी तो वह तब हुई जब उसे अनंत साहब के घर का गेट खुलने की आवाज आई.

शिखा तुरंत खड़ी हो कर झांकने लगी कि इतनी दुपहरी में ऐसी खटारा मोटरसाइकिल से कौन आया है?  शिखा ने देखा 3 नवयुवक गेट खुला छोड़ कर बजाय कालबैल बजाने के अनंत साहब के कमरे की खुली खिड़की की तरफ आए और देखते ही देखते खिड़की पर चढ़े और अंदर कमरे में कूद गए.  दृश्य देख कर शिखा के हाथपैर फूल गए. पल भर में अखबार, टीवी में पढ़ीदेखी लूट की सैकड़ों वारदातें उस के दिमाग में घूम गईं.  शिखा अच्छी तरह जानती थी कि इस वक्त रुचि घर में बिलकुल अकेली होती है. अनंत साहब तो बैंक से प्राय: लेट आते हैं. दोनों बेटे होस्टल में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं. ये सब सोचने में शिखा को क्षण भर लगा.  अगले ही पल अगलबगल 2-4 घरों में मोबाइल पर जानकारी देते हुए दरवाजे पर ताला मार वह अनंत साहब के घर की ओर दौड़ी.

शिखा का अनुमान सच निकला. रुचि के चीखने की आवाजें बाहर तक आ रही थीं. शिखा ने उन के द्वार पर लगी कालबैल लगातार बजानी शुरू कर दी. तब तक पासपड़ोस के काफी लोग जमा हो चुके थे.  किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी थी. मगर पुलिस के आने से पूर्व ही लोगों ने खिड़की फांद कर भागते चोरों को धर दबोचा. भीड़ ने उन की मोटरसाइकिल भी गिरा दी और उस पर कब्जा कर लिया.   रुचि ने दरवाजा खोला. तीनों लड़के उन से चाबियां  मांगते हुए जान से मारने की धमकी दे रहे थे. तीनों के पास चाकू थे और उन्हें घर के बारे में पूरी जानकारी थी.

‘‘शिखा, आज तुम ने मेरा घर लुटने से बचा लिया. ये लुटेरे तो मुझे मार ही डालते,’’ कहते हुए रुचि फूटफूट कर रोने लगी.

पूरी कालोनी के लोग शिखा की प्रशंसा कर रहे थे. आहट से अनुमान लगाने की जिस आदत पर वह कई बार सुधीर से डांट खा कर अपमानित हो चुकी थी, आज उस की इसी आदत ने अनंत साहब का परिवार बचा लिया था.  महिला इंस्पैक्टर ने भी शिखा को शाबाशी देते हुए सभी महिलाओं से अपील की, ‘‘यह बहुत अच्छी बात है कि महिलाएं जागरूक रह कर न सिर्फ अपने घर का, बल्कि अपने पासपड़ोस का भी खयाल रखें और जब भी किसी संदिग्ध व्यक्ति को देखें, उस पर कड़ी नजर रख कर उचित कदम उठाने से न घबराएं. एकदूसरे को जानकारी जरूर दें.’’  शाम को घर आने से पूर्व ही सुधीर को बाहर ही शिखा की बहादुरी एवं समझबूझ का किस्सा सुनने को मिल गया.

सुधीर मुसकराते हुए घर में आया और आते ही शिखा को गले से गा लिया, ‘‘शिखा, आहटों से अनुमान लगाने की तुम्हारी इस विशेषता का तो आज मैं भी कायल हो गया.’’

सुन कर शिखा छिटक गई. रोंआसी हो कर बोली, ‘‘आज भी मेरा मजाक उड़ा रहे हैं न?’’

‘‘नहीं, आज मुझे वाकई तुम्हारी इस आदत से खुशी मिली. लेकिन भविष्य की सोच कर चिंतित हूं कि अब तो तुम रोज ही नया किस्सा सुनाओगी तो भी मैं उफ नहीं कर सकूंगा. अब तुम्हारी विशेषता की धाक जो जम गई है,’’ कहते हुए सुधीर ने शिखा को फिर से गले लगा लिया.

शिखा के होंठों पर भी मुसकान खिल उठी.

Hindi Stories Online : फेसबुक की प्रजातियां

Hindi Stories Online :  आपने कभी गौर किया है कि फेसबुक पर पोस्ट करते रहने वाले लोगों को एक कैटेगरी में रखा जा सकता है? कई तरह के लोग हैं, उन की कई तरह की आदतें हैं. जैसे पशुपक्षियों की कई प्रजातियां होती हैं, वैसे ही फेसबुक के महान लोगों की भी कई किस्मे हैं. आज उन्हीं की उदाहरण सहित बात करते हैं:

एक होते हैं विनय जैसे लोग जो जब तक सुबह 10-15 गुड मौर्निंग की अच्छे विचार वाली पोस्ट्स पोस्ट न कर दें, इन के दिन की शुरुआत नहीं होती. इस में भी कमी रह जाती है तो ये फेसबुक के मैसेंजर में जा कर भी शुभ संदेश देते हैं खासकर महिलाओं को.

फिर आते हैं कपिल जैसे लोग जिन्होंने धर्म के हित के लिए कई पोस्ट्स डालने की जिम्मेदारी उठा रखी है. जिस दिन इन की पोस्ट न दिखे तो संदेह होने लगता है कि आज देश में सब ठीक तो है. इन का धर्म आजकल हमेशा खतरे में रहता है.

ये इस तरह की पोस्ट डाल कर समझते हैं कि इन का नाम अब महान देशभक्तों की लिस्ट में आ गया है और ये अब सम्मान के उतने ही अधिकारी हैं जितने दिनरात बौर्डर पर तैनात सिपाही.

एक होते हैं सुनीता जैसे जो नेता नहीं बन पाए तो क्या, उन्हें राजनीति का पूरा ज्ञान है, जो सारा दिन लेटैस्ट राजनीति पर अपना ज्ञान इतना बघारते हैं कि कभीकभी इन की पोस्ट के आसपास से निकलते हुए भी डर लगता है कि कोई गलत बटन न दब जाए और इन की अमानत में खयानत टाइप चीज न हो जाए. ये घर में बैठेबैठे अपने विचारों से असहमत रहने वाले लोगों की नाक में दम कर सकते हैं.

इन्हें अपनी बात काटने वाले लोगों पर इतना गुस्सा आ सकता है कि ये उन्हें फोन कर के भी उन से लड़ सकते हैं. ऐसे गुणों की स्वामिनी घर पर अपने परिवार का क्या हाल करती होगी, इस का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है या ये भी हो सकता है कि घर में उन के विचारों की कद्र न होती हो, वे एक आम सी इंसान समझ जाती हों, फिर क्या करें, कहां जा कर भड़ास निकालें. चलो, फिर फेसबुक पर ही ज्ञान बघारा जाए.

एक होते हैं रेखा जैसे एक लाइक दें, एक लाइक लें, मतलब आप हमारी पोस्ट पर लाइक नहीं करोगे तो हम भी तुम्हारी पोस्ट लाइक नहीं करेंगे. इन का पूरा दिन इस हिसाबकिताब में बीत जाता है कि उस की पोस्ट पर मुझ से ज्यादा लाइक्स कैसे? रेखा की नजर से किसी की पोस्ट बच नहीं सकती पर ये लाइक्स और कमैंट्स का इतना हिसाब रखती हैं कि इन्हें नाम तक याद रहता है कि उस ने फलां की पोस्ट लाइक की, मेरी नहीं की.

एक होती हैं मीरा की तरह प्रेम दीवानी. पता नहीं कितनी भी उम्र बीत जाए, इन का समय कहीं अटक सा गया है. ये शेरोशायरी से बाहर नहीं निकल पातीं. पूरा दिन कहांकहां से ढेरों शेर ला ला ले कर पोस्ट करती हैं. ऐसा लगता है कौन सा जख्म था जो भरने का नाम ही नहीं ले रहा. एक से एक दिलजले शेर पोस्ट करने वाली प्रजाति.

इन के बच्चे ताउम्र नहीं समझ पाते कि माताजी को हुआ क्या है, कैसे कहें कि माताजी आप के शेर अच्छे नहीं होते पर मां मां होती है, मां को प्यार किया जाता है. माताजी को लगता है कि उन्हें उन के लिखे पर तो भारत रत्न मिलना चाहिए. पर ठीक है फेसबुक है न, हम यहीं लिख रहे हैं. दिल हलका हो रहा है, पढ़ने वालों का भारी हो जाए, उन्हें क्या.

एक होती हैं सुनीति जैसी जो घर वालों को बनी हुई डिशबाद में परोसती हैं. फेसबुक  पर पहले पोस्ट करती हैं, जाने कौनसी तमन्ना पूरी नहीं हुई इन की कि जब तक लोग फेसबुक पर खाने की तारीफ न करें, इन्हे संतोष नहीं होता. अगर घर वाले किसी खाने में कोई कमी निकाल दें तो उन का यही जवाब होता है कि लोगों को तो इतनी पसंद आई है, तुम्हीं लोगों के नखरे? अब इन मुहतरमा को कौन बताए कि मैडम, फेसबुक पर किसी ने तुम्हारी ज्यादा नमक वाली डिश टेस्ट थोड़े ही की है.

इन का मन फेसबुक की तारीफों से तृप्त होता है. घर वाले कुछ भी कहते रहें, इन की बला से. शायद इन की लाइफ में विटामिन टी का अभाव होता है. नहीं समझे? विटामिन तारीफ. जब घर से उतनी तारीफ नहीं मिलती जितनी इन को चाहिए होती है तो ये फेसबुक पर मिली झठी तारीफों से खुशी और संतोष पा लेती हैं, उन्हें सच समझ कर.

एक होती हैं माया जैसी. इन्हें घूमने जाने में आनंद ही इसलिए आता है कि वहां जाते ही फेसबुक पर पिक्स पोस्ट करेंगी. इन्हें पहाड़, पेड़, नदी, सागर, फूलों से प्यार ही इसलिए हो गया है कि ये पिक्स पोस्ट कर सकें. किसी रेस्तरां में खाना मुंह में बाद में जाएगा, पहले उस डिश की पोस्ट फेसबुक पर जाएगी. ये जीवन में जो भी करती हैं, फेसबुक के लिए करती हैं.

एक होते हैं सुधीर जैसे लोग जो किसी पर भी गुस्सा आए, फेसबुक पर बिना उस का नाम लिखे लिख देते हैं, नाम भी नहीं आएगा और सामने वाला भी समझ जाएगा कि उस के लिए लिखा है. इन के लिए फेसबुक एक हथियार है जिस का प्रयोग वे लगभग रोज ही करते हैं. अब तो लोग उन से उलझने से डरने लगे हैं कि भाई को कोई बात पसंद नहीं आई तो कल पोस्ट में अपने को भिगोभिगो कर मारेगा.

देखते ही देखते फेसबुक पर एक जमात और तैयार हो गई है समीक्षकों की. ये किसी भी किताब को पढ़ कर उस की समीक्षा सिर्फ इसलिए कर रहे हैं कि किताब का जिक्र होगा तो उन के लिखे का भी जिक्र होगा और उन का भी नाम होगा. लेखक ने मेहनत की है, यह अलग बात है, पर ये सब को ऐसे बताते हैं, ‘‘तुम ने मेरी फलां समीक्षा पड़ी है? मैं ने बहुत मेहनत से लिखी है समीक्षा, जरूर पढ़ना. (किताब पढ़ो या नहीं, मेरी लिखी समीक्षा पढ़ लो, बस, समीक्षा पर लाइक और कमैंट कर दो, बस) ये किताब तो नहीं लिख पाए पर समीक्षा का ऐसा शोर मचा देते हैं कि लगता है, बस ये तो लेखक से भी अच्छा लिख देते हैं.

एक और प्रजाति है. बताती हूं, एक होते हैं जो फेसबुक पर सब देखते हैं, सब पढ़ते हैं पर शांति से जीना चाहते हैं. इन का मानना है कि एक चुप, हजार सुख. तो भाई, तुम्हें लाइक लेने हैं, ले लो, मैं दूंगी, तुम लोग खुश रहो पर कभीकभी कोई पोस्ट ऐसी भी हो जाती है कि जिस पर गलती से भी लाइक का बटन नहीं दब पाता तो उन्हें यह समझना पड़ता है कि हम ने देखी ही नहीं क्योंकि आजकल तो लोग लाइक्स कम मिलने पर फोन करने लगे हैं कि भाई, हमारी पोस्ट नहीं देखी क्या? फिलहाल फेसबुक की अन्य प्रजातियों पर रिसर्च जारी है.

मगर साथ ही मेरा एक अनुभव और सलाह यह भी है कि जितना हो सके, फेसबुक की प्रजाति में अपना नाम दर्ज करवाने से अच्छा है कि किताबें पढ़ने वालों में अपना नाम दर्ज कराएं. किताबों की दुनिया से दूर हो कर फेसबुक के झूठे संसार में अपना समय खराब करने में जरा भी समझदारी नहीं है.

वे लोग यकीनन अपना समय अच्छी चीजों में लगा रहे हैं जो किताबें पढ़ रहे हैं. फेसबुक से आप एक समय बाद बोर हो सकते हैं, किताबों का शौक कभी पुराना नहीं पड़ता, न आप को इस बात का स्ट्रैस देता है कि उस की लाइक्स मेरी लाइक्स से ज्यादा कैसे.

Best Hindi Stories : प्यार अपने से

Best Hindi Stories : झारखंड राज्य का एक शहर है हजारीबाग. यह कुदरत की गोद में बसा छोटा सा, पर बहुत खूबसूरत शहर है. पहाडि़यों से घिरा, हरेभरे घने जंगल, झील, कोयले की खानें इस की खासीयत हैं. हजारीबाग के पास ही में डैम और नैशनल पार्क भी हैं. यह शहर अभी हाल में ही रेल मार्ग से जुड़ा है, पर अभी भी नाम के लिए 1-2 ट्रेनें ही इस लाइन पर चलती हैं. शायद इसी वजह से इस शहर ने अपने कुदरती खूबसूरती बरकरार रखी है.

सोमेन हजारीबाग में फौरैस्ट अफसर थे. उन दिनों हजारीबाग में उतनी सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए उन की बीवी संध्या अपने मायके कोलकाता में ही रहती थी.

दरअसल, शादी के बाद कुछ महीनों तक वे दोनों फौरैस्ट अफसर के शानदार बंगले में रहते थे. जब संध्या मां बनने वाली थी, सोमेन ने उसे कोलकाता भेज दिया था. उन्हें एक बेटी हुई थी. वह बहुत खूबसूरत थी, रिया नाम था उस का. सोमेन हजारीबाग में अकेले रहते थे. बीचबीच में वे कोलकाता जाते रहते थे.

हजारीबाग के बंगले के आउट हाउस में एक आदिवासी जोड़ा रहता था. लक्ष्मी सोमेन के घर का सारा काम करती थी. उन का खाना भी वही बनाती थी. उस का मर्द फूलन निकम्मा था. वह बंगले की बागबानी करता था और सारा दिन हंडि़या पी कर नशे में पड़ा रहता था.

एक दिन दोपहर बाद लक्ष्मी काम करने आई थी. वह रोज शाम तक सारा काम खत्म कर के रात को खाना टेबल पर सजा कर चली जाती थी. उस दिन मौसम बहुत खराब था. घने बादल छाए हुए थे. मूसलाधार बारिश हो रही थी. दिन में ही रात जैसा अंधेरा हो गया था.

अपने आउट हाउस में बंगले तक दौड़ कर आने में ही लक्ष्मी भीग गई थी. सोमेन ने दरवाजा खोला. उस की गीली साड़ी और ब्लाउज के अंदर से उस के सुडौल उभार साफ दिख रहे थे.

सोमेन ने लक्ष्मी को एक पुराना तौलिया दे कर बदन सुखाने को कहा, फिर उसे बैडरूम में ही चाय लाने को कहा. बिजली तो गुल थी. उन्होंने लैंप जला रखा था.

थोड़ी देर में लक्ष्मी चाय ले कर आई. चाय टेबल पर रखने के लिए जब वह झुकी, तो उस का पल्लू सरक कर नीचे जा गिरा और उस के उभार और उजागर हो गए.

सोमेन की सांसें तेज हो गईं और उन्हें लगा कि कनपटी गरम हो रही है. लक्ष्मी अपना पल्लू संभाल चुकी थी. फिर भी सोमेन उसे लगातार देखे जा रहे थे.

यों देखे जाने से लक्ष्मी को लगा कि जैसे उस के कपड़े उतारे जा रहे हैं. इतने में सोमेन की ताकतवर बाजुओं ने उस की कमर को अपनी गिरफ्त में लेते हुए अपनी ओर खींचा.

लक्ष्मी भी रोमांचित हो उठी. उसे मरियल पियक्कड़ पति से ऐसा मजा नहीं मिला था. उस ने कोई विरोध नहीं किया और दोनों एकदूसरे में खो गए.

इस घटना के कुछ महीने बाद सोमेन ने अपनी पत्नी और बेटी रिया को रांची बुला लिया. हजारीबाग से रांची अपनी गाड़ी से 2 ढाई घंटे में पहुंच जाते हैं.

सोमेन ने उन के लिए रांची में एक फ्लैट ले रखा था. उन के प्रमोशन की बात चल रही थी. प्रमोशन के बाद उन का ट्रांसफर रांची भी हो सकता है, ऐसा संकेत उन्हें डिपार्टमैंट से मिल चुका था.

इधर लक्ष्मी भी पेट से हो गई थी. इस के पहले उसे कोई औलाद न थी.

लक्ष्मी के एक बेटा हुआ. नाकनक्श से तो साधारण ही था, पर रंग उस का गोरा था. आमतौर पर आदिवासियों के बच्चे ऐसे नहीं होते हैं.

अभी तक सोमेन हजारीबाग में ही थे. वे मन ही मन यह सोचते थे कि कहीं यह बेटा उन्हीं का तो नहीं है. उन्हें पता था कि लक्ष्मी की शादी हुए 6 साल हो चुके थे, पर वह पहली बार मां बनी थी.

सोमेन को तकरीबन डेढ़ साल बाद प्रमोशन और ट्रांसफर और्डर मिला. तब तक लक्ष्मी का बेटा गोपाल भी डेढ़ साल का हो चुका था.

हजारीबाग से जाने के पहले लक्ष्मी ने सोमेन से अकेले में कहा, ‘‘बाबूजी, आप से एक बात कहना चाहती हूं.’’

‘‘हां, कहो,’’ सोमेन ने कहा.

‘‘गोपाल आप का ही खून है.’’

सोमेन बोले, ‘‘यह तो मैं यकीनी तौर पर नहीं मान सकता हूं. जो भी हो, पर तुम मुझ से चाहती क्या हो?’’

‘‘बाबूजी, मैं बेटे की कसम खा कर कहती हूं, गोपाल आप का ही खून है.’’

‘‘ठीक है. बोलो, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘ज्यादा कुछ नहीं. बस, यह भी पढ़लिख कर अच्छा इनसान बने. मैं किसी से कुछ नहीं बोलूंगी. आप इतना भरोसा तो मुझ पर कर सकते हैं,’’

लक्ष्मी बोली.

‘‘ठीक है. तुम लोगों के बच्चों का तो हर जगह आसानी से रिजर्वेशन कोटे में दाखिला हो ही जाता है. फिर भी मुझ से कोई मदद चाहिए तो बोलना.’’

इस के बाद सोमेन रांची चले गए. समय बीतता गया. सोमेन की बेटी रिया 10वीं पास कर आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई थी.

बीचबीच में इंस्पैक्शन के लिए सोमेन को हजारीबाग जाना पड़ता था. वे वहीं आ कर बंगले में ठहरते थे. लक्ष्मी भी उन से मिला करती थी. उस ने सोमेन से कहा था कि गोपाल भी 10वीं क्लास के बाद दिल्ली के अच्छे स्कूल और कालेज में पढ़ना चाहता है. उसे कुछ माली मदद की जरूरत पड़ सकती है.

सोमेन ने उसे मदद करने का भरोसा दिलाया था. गोपाल अब बड़ा हो गया था. वे उसे देख कर खुश हुए. शक्ल तो मां की थी, पर रंग गोरा था. छरहरे बदन का साधारण, पर आकर्षक लड़का था. उस के नंबर भी अच्छे आते थे.

रिया के दिल्ली जाने के एक साल बाद गोपाल ने भी दिल्ली के उसी स्कूल में दाखिला ले लिया. सोमेन ने गोपाल की 12वीं जमात तक की पढ़ाई के लिए रुपए उस के बैंक में जमा करवा दिए थे.

रिया गोपाल से एक साल सीनियर थी. पर एक राज्य का होने के चलते दोनों में परिचय हो गया. छुट्टियों में ट्रेन में अकसर आनाजाना साथ ही होता था. गोपाल और रिया दोनों का इरादा डाक्टर बनने का था.

रिया ने 12वीं के बाद कुछ मैडिकल कालेज के लिए अलगअलग टैस्ट दिए, पर वह कहीं भी पास नहीं कर सकी थी. तब उस ने एक साल कोचिंग ले कर अगले साल मैडिकल टैस्ट देने की सोची. वहीं दिल्ली के अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट में कोचिंग शुरू की.

अगले साल गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल कालेज में दाखिले के लिए टैस्ट दिए. इस बार दोनों को कामयाबी मिली थी. गोपाल के नंबर कुछ कम थे, पर रिजर्वेशन कोटे में तो उस का दाखिला होना तय था.

गोपाल और रिया दोनों ने बीएचयू मैडिकल कालेज में दाखिला लिया. सोमेन गोपाल की पढ़ाई का भी खर्च उठा रहे थे. अब दोनों की क्लास भी साथ होती थी. आपस में मिलनाजुलना भी ज्यादा हो गया था. छुट्टियों में भी साथ ही घर आते थे.

वहां से शेयर टैक्सी से हजारीबाग जाना आसान था. हजारीबाग के लिए कोई अलग ट्रेन नहीं थी. जब कभी सोमेन रिया को लेने रांची स्टेशन जाते थे, तो वे गोपाल को भी बिठा लेते थे और अगर सोमेन को औफिशियल टूर में हजारीबाग जाना पड़ता था, तो गोपाल को वे साथ ले जाते थे. इस तरह समय बीतता गया और गोपाल व रिया अब काफी नजदीक आ गए थे. वे एकदूसरे से प्यार करने लगे थे.

गोपाल और रिया दोनों असलियत से अनजान थे. दोनों के मातापिता भी उन की प्रेम कहानी से वाकिफ नहीं थे. उन्होंने पढ़ाई के बाद अपना घर बसाने का सपना देख रखा था. साढ़े 4 साल बाद दोनों ने अपनी एमबीबीएस पूरी कर ली. आगे उसी कालेज में दोनों ने एक साल की इंटर्नशिप भी पूरी की.

रिया काफी समझदार थी. उस की शादी के लिए रिश्ते आने लगे, पर उस ने मना कर दिया और कहा कि अभी वह डाक्टरी में पोस्ट ग्रेजुएशन करेगी.

लक्ष्मी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी. इसी बीच सोमेन भी हजारीबाग में थे. उस ने सोमेन से कहा, ‘‘बाबूजी, मेरा अब कोई ठिकाना नहीं है. आप गोपाल का खयाल रखेंगे?’’

सोमेन ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब गोपाल समझदार डाक्टर बन चुका है. वह अपने पैरों पर खड़ा है. फिर भी उसे मेरी जरूरत हुई, तो मैं जरूर मदद करूंगा.’’

कुछ दिनों बाद ही लक्ष्मी की मौत हो गई.

गोपाल और रिया दोनों ने मैडिकल में पोस्ट ग्रैजुएशन का इम्तिहान दिया था. वे तो बीएचयू में पीजी करना चाहते थे, पर वहां उन्हें सीट नहीं मिली. दोनों को रांची मैडिकल कालेज आना पड़ा.

उन में प्रेम तो जरूर था, पर दोनों में से किसी ने भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था. दोनों ने तय किया कि जब तक उन की शादी नहीं होती, इस प्यार को प्यार ही रहने दिया जाए.

रिया की मां संध्या ने एक दिन उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए अच्छेअच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. तुम पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए भी शादी कर सकती हो. बहुत से लड़केलड़कियां ऐसा करते हैं.’’

रिया बोली, ‘‘करते होंगे, पर मैं नहीं करूंगी. मुझ से बिना पूछे शादी की बात भी मत चलाना.’’

‘‘क्यों? तुझे कोई लड़का पसंद है, तो बोल न?’’

‘‘हां, ऐसा ही समझो. पर अभी हम दोनों पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं. शादी की जल्दी किसी को भी नहीं है. पापा को भी बता देना.’’

संध्या ने कोई जवाब नहीं दिया. इसी बीच एक बार सोमेन के दोस्त ने उन्हें खबर दी कि उस ने रिया और गोपाल को एकसाथ सिनेमाघर से निकलते देखा है.

इस के कुछ ही दिनों बाद संध्या के रिश्ते के एक भाई ने बताया कि उस ने गोपाल और रिया को रैस्टौरैंट में लंच करते देखा है.

सोमेन ने अपनी पत्नी संध्या से कहा, ‘‘रिया और गोपाल दोनों को कई बार सिनेमाघर या होटल में साथ देखा गया है. उसे समझाओ कि उस के लिए अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं. सिर्फ उस के हां कहने की देरी है.’’

संध्या बोली, ‘‘रिया ने मुझे बताया था कि वह गोपाल से प्यार करती है.’’

सोमेन चौंक पड़े और बोले, ‘‘क्या? रिया और गोपाल? यह तो बिलकुल भी नहीं हो सकता.’’

अगले दिन सोमेन ने रिया से कहा, ‘‘बेटी, तेरे रिश्ते के लिए काफी अच्छे औफर हैं. तू जिस से बोलेगी, हम आगे बात करेंगे’’

रिया ने कहा, ‘‘पापा, मैं बहुत दिनों से सोच रही थी कि आप को बताऊं कि मैं और गोपाल एकदूसरे को चाहते हैं. मैं ने मम्मी को बताया भी था कि पीजी पूरा कर के मैं शादी करूंगी.’’

‘‘बेटी, कहां गोपाल और कहां तुम? उस से तुम्हारी शादी नहीं हो सकती, उसे भूल जाओ. अपनी जाति के अच्छे रिश्ते तुम्हारे सामने हैं.’’

‘‘पापा, हम दोनों पिछले 5 सालों से एकदूसरे को चाहते हैं. आखिर उस में क्या कमी है?’’

‘‘वह एक आदिवासी है और हम ऊंची जाति के शहरी लोग हैं.’’

‘‘पापा, आजकल यह जातपांत, ऊंचनीच नहीं देखते. गोपाल भी एक अच्छा डाक्टर है और उस से भी पहले बहुत नेक इनसान है.’’

सोमेन ने गरज कर कहा, ‘‘मैं बारबार तुम्हें मना कर रहा हूं… तुम समझती क्यों नहीं हो?’’

‘‘पापा, मैं ने भी गोपाल को वचन दिया है कि मैं शादी उसी से करूंगी.’’

उसी समय संध्या भी वहां आ गई और बोली, ‘‘अगर रिया गोपाल को इतना ही चाहती है, तो उस से शादी करने में क्या दिक्कत है? मुझे तो गोपाल में कोई कमी नहीं दिखती है.’’

सोमेन चिल्ला कर बोले, ‘‘मेरे जीतेजी यह शादी नहीं हो सकती. मैं तो कहूंगा कि मेरे मरने के बाद भी ऐसा नहीं करना. तुम लोगों को मेरी कसम.’’

रिया बोली, ‘‘ठीक है, मैं शादी ही नहीं करूंगी. तब तो आप खुश हो जाएंगे.’’

सोमेन बोले, ‘‘नहीं बेटी, तुझे शादीशुदा देख कर मुझे बेहद खुशी होगी. पर तू गोपाल से शादी करने की जिद छोड़ दे.’’

‘‘पापा, मैं ने आप की एक बात मान ली. मैं गोपाल को भूल जाऊंगी. परंतु आप भी मेरी एक बात मान लें, मुझे किसी और से शादी करने के लिए मजबूर नहीं करेंगे.’’

ये बातें फिलहाल यहीं रुक गईं. रात में संध्या ने पति सोमेन से पूछा, ‘‘क्या आप बेटी को खुश नहीं देखना चाहते हैं? आखिर गोपाल में क्या कमी है?’’

सोमेन ने कहा, ‘‘गोपाल में कोई कमी नहीं है. उस के आदिवासी होने पर भी मुझे कोई एतराज नहीं है. वह सभी तरह से अच्छा लड़का है, फिर भी…’’

रिया को नींद नहीं आ रही थी. वह भी बगल के कमरे में उन की बातें सुन रही थी. वह अपने कमरे से बाहर आई और पापा से बोली, ‘‘फिर भी क्या…? जब गोपाल में कोई कमी नहीं है, फिर आप की यह जिद बेमानी है.’’

सोमेन बोले, ‘‘मैं नहीं चाहता कि तेरी शादी गोपाल से हो.’’

‘‘नहीं पापा, आखिर आप के न चाहने की कोई तो ठोस वजह होनी चाहिए. आप प्लीज मुझे बताएं, आप को मेरी कसम. अगर कोई ऐसी वजह है, तो मैं खुद ही पीछे हट जाऊंगी. प्लीज, मुझे बताएं.’’

सोमेन बहुत घबरा उठे. उन को पसीना छूटने लगा. पसीना पोंछ कर अपनेआप को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह शादी इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि…’’

वे बोल नहीं पा रहे थे, तो संध्या ने उन की पीठ सहलाते हुए उन को हिम्मत दी और कहा, ‘‘हां बोलिए आप, क्योंकि… क्या?’’

सोमेन बोले, ‘‘तो लो सुनो. यह शादी नहीं हो सकती है, क्योंकि गोपाल रिया का छोटा भाई है.

‘‘जब मैं हजारीबाग में अकेला रहता था, तब मुझ से यह भूल हो गई थी.’’

रिया और संध्या को काटो तो खून नहीं. दोनों हैरानी से सोमेन को देख रही थीं. रिया की आंखों से आंसू गिरने लगे. कुछ देर बाद वह सहज हुई और अपने कमरे में चली गई.

रात में ही उस ने गोपाल को फोन कर के कहा, ‘‘गोपाल, क्या तुम मुझ से सच्चा प्यार करते हो?’’

गोपाल बोला, ‘क्या इतनी रात गए यही पूछने के लिए फोन किया है?’

‘‘तुम ने सुना होगा कि प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं है, इस में कभी खोना भी पड़ता है.’’

गोपाल ने कहा, ‘हां, सुना तो है.’’

‘‘अगर यह सही है, तो तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी. बोलो मानोगे?’’ रिया बोली.

गोपाल बोला, ‘यह कैसी बात कर रही हो आज? तुम्हारी हर जायज बात मैं मानूंगा.’

‘‘तो सुनो. बात बिलकुल जायज  है, पर मैं इस की कोई वजह नहीं बता सकती हूं और न ही तुम पूछोगे. ठीक है?’’

‘ठीक है, नहीं पूछूंगा. अब बताओ तो सही.’

रिया बोली, ‘‘हम दोनों की शादी नहीं हो सकती. यह बिलकुल भी मुमकिन नहीं है. वजह जायज है और जैसा कि मैं ने पहले ही कहा है कि वजह न मैं बता सकती हूं, न तुम पूछना कभी.’’

गोपाल ने पूछा, ‘तो क्या हमारा प्यार झूठा था?’

रिया बोली, ‘‘प्यार सच्चा है, पर याद करो, हम ने तय किया था कि शादी नहीं होने तक हमारा प्यार ‘अधूरा प्यार’ रहेगा. बस, यही समझ लो.

‘‘अब तुम कहीं भी शादी कर लो, पर मेरातुम्हारा साथ बना रहेगा और तुम चाहोगे भी तो भी मैं कभी भी तुम्हारे घर आ धमकूंगी,’’ इतना कह कर रिया ने फोन रख दिया.

Famous Hindi Stories : रोशनी – मां के फैसले से अक्षिता हैरान क्यों रह गई?

Famous Hindi Stories :  खिड़कीसे आती रोशनी में बादामी परदे सुनहरे हुए जा रहे थे. मेरी नजर उन से होते हुए ड्राइंगरूम में सजे हलकेनीले रंग के सोफे, कांच की चमकती टेबल, शैल्फ पर सजे खूबसूरत शो पीसेज से वापस सामने बैठी अपनी बेटी अक्षिता के चेहरे पर टिक गई. मेरी पूरी कोशिश थी कि मैं टेबल पर रखे फोटोफ्रेम में उस की बगल में लगे लड़के के फोटो को न देखूं. बगल में बैठे आनंद के बमुश्किल दबाए गुस्से की भभक भी महसूस न करूं. पर ये सब मेरी कनपटी पर धमक पैदा कर रहे थे. सामने बैठी अक्षिता अपने दोस्त आयुष के साथ अपने लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बारे में जाने क्याक्या बताए जा रही थी.

पर मैं उस की बात समझने में लगातार नाकामयाब हुई जा रही थी. दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. और धड़कनें बेलगाम भाग रही थीं. मेरे चश्मे का कांच बारबार धुंधला रहा था, पर उसे उतार कर पोंछने की ताकत नहीं थी मुझ में. मन मान ही नहीं पा रहा था कि मेरी यह नन्ही सी बच्ची जो कुछ वक्त पहले तक मेरी उंगली पकड़ कर चलती थी, मम्मामम्मा करती आगेपीछे घूमती थी, अपने पापा से फरमाइशें करती नहीं थकती थी, बातबात पर रो देती थी. क्या बाहर रह कर नौकरी करते ही अचानक इतनी बड़ी हो गई कि इतना बड़ा कदम उठा बैठी… एक अनजान लड़के के साथ… वह भी बिना शादी किए?

मेरे गले में कुछ अटकने लगा. डबडबाती आंखें बरसने को आतुर होने लगीं. बगल में बैठे आनंद की लगातार बढ़ती कसमसाहट बता रही थी कि अब उन का गुस्सा अपनी हद तोड़ने ही वाला है. ‘‘मम्मा,’’ अक्षिता का हाथ अपनी हथेलियों पर महसूस हुआ, तो मैं चौंक पड़ी.

मेज को हलके से खिसका कर वह मेरे सामने जमीन पर बैठते हुए मुझ से कह रही थी, ‘‘मैं नहीं चाहती थी कि आप को किसी और से यह बात पता चले. तभी आप को बुलाया. मैं आप दोनों को बहुत प्यार करती हूं… पर आप भी तो मेरी बात समझिए. मैं और आयुष… पसंदगी की वजह से साथ रहते हैं पर अपनेअपने बरतन और कपड़े खुद धोते हैं, सारे खर्चे शेयर करते हैं. न मैं उस का देर रात तक इंतजार करती हूं और न वह आप का नाम ले कर मुझे ताने दे सकता है… न मैं उस के लिए बेमन से व्रतउपवास रखने को बाध्य हूं, न ही वह मेरे लिए अपने तौरतरीके बदलने को. अपने कैरियर, अपनी फैमिली के बारे में खुद फैसले लेते हैं, एकदूसरे पर थोपते नहीं. हमारी इन्वैस्टमैंट्स… सेविंग्स सब अलग हैं. पतिपत्नी होने से बेहतर हम दोस्त बनना चाहते हैं पापा. क्या यह इतना गलत है?’’ आनंद के लाल चेहरे पर अब हैरानी थी.

अक्षिता ने आगे कहा, ‘‘शादी के बंधन में बंधने से पहले एकदूसरे को जाननेबूझने में कोई बुराई तो नहीं न? बाद में मजबूरी में शादीशुदा रिश्ता ढोते चले जाने या तलाक की नौटंकी करने से बेहतर है यह देखना कि हम एकदूसरे की इज्जत करते भी हैं या नहीं. अगर हम ऐसा कर पाए, तो शायद हम शादी कर भी लें और अगर नहीं, तो बिना दिल टूटने के खतरे के अलग हो जाएंगे.’’ ‘‘लेकिन…’’

मैं अपनी बात पूरी कर पाती उस से पहले ही अक्षिता ने मेरी गोद में सिर टिका लिया, ‘‘आप दोनों ने मुझे बहुत समझदार बनाया है. अपनी जिंदगी के किसी मुकाम पर पहुंचने से पहले मैं किसी और जिंदगी को इस दुनिया में नहीं लाऊंगी. इतना भरोसा तो मुझ पर है न?’’ मेरा हाथ उस का सिर सहलाने को उठा ही था कि आनंद को उठता देख गिर गया.

वे बोले, ‘‘चलो वंदना…’’ अक्षिता के बुझे चेहरे को देख पहली बार मैं उन से कड़ाई से कुछ बोलने को हुई, तभी उस की पूरी बात ने हमें चौंका दिया. बोले, ‘‘अरे भई, अंदर आराम करते हैं. अब इस आयुष से मिल कर ही वापस जाएंगे.’’

अक्षिता एक झटके में उठ कर हमारे गले लग गई, ‘‘हांहां, मैं उसे फोन कर देती हूं. थैंक्यू पापा… थैंक्यू मम्मी.’’ अक्षिका का माथा चूमते हुए मैं सोच रही थी कि अपनी जिंदगी में सब को कभी न कभी खुद फैसले लेने शुरू कर देने ही चाहिए. मैं ने नहीं किए पर मेरी बेटी ले रही है. अब वह सही निकलेगा या गलत, यह वक्त बताएगा. हालांकि मेरी कामना अभी भी उसे लाल जोड़े में लिपटे इस आयूष के साथ विदा होते देखने की हो रही थी. लेकिन तब जब उस का यह रिश्ता प्यार और भरोसे पर टिका हुआ हो और अगर ऐसा न भी हुआ, तो भी हम हमेशा अपनी बेटी के साथ खड़े रहेंगे. यह फैसला अंदर जाते हुए मैं ले चुकी थी.

नई रोशनी ने हमारे मन में घुमड़ती शंका के बादलों को पूरी तरह भेद डाला था.

Online Hindi Story : आवारा बादल – क्या हो पाया दो आवारा बादलों का मिलन

Online Hindi Story : फाल्गुन अपने रंग धरती पर बिखेरता हुआ, चपलता से गुलाल से गालों को आरक्त करता हुआ, चंचलता से पानी की फुहारों से लोगों के दिलों और उमंगों को भिगोता हुआ चला गया. सेमल के लालनारंगी फूलों से लदे पेड़ और अलगअलग रंगों में यहांवहां से झांकते बोगेनवेलिया के झाड़, हर ओर मानो रंग ही रंग बिखरे हुए थे.

फाल्गुन जातेजाते गरमियों के आने का संकेत भी कर गया. हालांकि उस समय भी धूप के तीखेपन में कोई कमी नहीं थी, पर सुबहशाम तो प्लेजेंट ही रहते थे, लेकिन जातेजाते वह अपने साथ रंगों की मस्ती तो ले ही गया, साथ ही मौसम की गुनगुनाहट भी.

‘‘उफ, यह गरमी, आई सिंपली हेट इट,’’ माथे पर आए पसीने को दुपट्टे से पोंछते हुए इला ने अपने गौगल्स आंखों पर सटा दिए, ‘‘लगता है हर समय या तो छतरी ले कर निकलना होगा या फिर एसी कार में जाना पड़ेगा,’’ कहतेकहते वह खुद ही हंस पड़ी.

‘‘तो मैडम, यह काम क्या इस बंदे को करना होगा कि रोज सुबह आप के घर से निकलने से पहले फोन कर के आप को छतरी रखने के लिए याद दिलाए या फिर खुद ही छतरी ले कर आप की सेवा में हाजिर होना पड़ेगा,’’ व्योम चलतेचलते ठहर गया था.

उस की बात सुन इला को भी हंसी आ गई.

‘‘ज्यादा स्टाइल मारने के बजाय कुछ ठंडा पिला दो तो बेहतर होगा.’’

‘‘क्या लोगी? कोल्ड कौफी या कोल्ड ड्रिंक?’’

‘‘कोल्ड कौफी मिल जाए तो मजा आ जाए,’’ इला चहकी.

‘‘आजकल पहले जैसा तो रहा नहीं कि कोल्ड कौफी कुछ सलैक्टेड आउटलेट्स पर ही मिले. अब तो किसी भी फूड कोर्ट में मिल जाती है. यहीं किसी फूड कोर्ट में बैठते हैं,’’ व्योम बोला.

अब तक दोनों राजीव चौक मैट्रो स्टेशन पर पहुंच चुके थे. भीड़भाड़ और धक्कामुक्की यहां रोज की बात हो गई है. चाहे सुबह हो, दोपहर, शाम या रात, लोगों की आवाजाही में कोई कमी नजर नहीं आती है.

‘‘जहां जाओ हर तरफ शोर और भीड़ ही नजर आती है. पहले ही क्या कम पौल्यूशन था जो अब नौयज पौल्यूशन भी झेलना पड़ता है,’’ इला ने कुरसी पर बैठते हुए कहा.

‘‘अच्छा है यहां एसी है,’’ व्योम मासूम सा चेहरा बना कर बोला, जिसे देख इला जोर से हंस पड़ी, ‘‘उड़ा लो मजाक मेरा, जैसे कि मुझे ही गरमी लगती है.’’

‘‘मैडम गरमी का मौसम है तो गरमी ही लगेगी. अब बिन मौसम बरसात तो आने से रही,’’ व्योम ने कोल्ड कौफी का सिप लेते हुए कहा. उसे इला को छेड़ने में बहुत मजा आ रहा था.

‘‘छेड़ लो बच्चू, कभी तो मेरी बारी भी आएगी,’’ इला ने बनावटी गुस्सा दिखाया.

‘‘बंदे को छेड़ने का पूरा अधिकार है. आखिर प्यार जो करता है और वह भी जीजान से.’’

व्योम की बात से सहमत इला ने सहमति में सिर हिलाया. 2 साल पहले हुई उन की मुलाकात उन के जीवन में प्यार के इतने सतरंगी रंग भर देगी, तब कहां सोचा था उन्होंने. बस, अब तो दोनों को इंतजार है तो एक अच्छी सी नौकरी का. फिर तो तुरंत शादी के बंधन में बंध जाएंगे. व्योेम एमबीए कर चुका था और इला मार्केटिंग के फील्ड में जाना चाहती थी.

‘‘चलो, अब जल्दी करो, पहले ही बहुत देर हो गई है. मां डांटेंगीं कि रोजरोज आखिर व्योम से मिलने क्यों जाना है,’’ इला उठते हुए बोली.

दोनों ग्रीन पार्क स्टेशन से निकल कर बाहर आए ही थे कि वहां बारिश हो रही थी.

‘‘अरे, यह क्या, पीछे तो कहीं भी बारिश नहीं थी. फिर यहां कैसे हो गई? लगता है मौसम भी आज हम पर मेहरबान है, जो बिन मौसम की बारिश से एकदम सुहावना हो गया है,’’ इला हैरान थी.

‘‘मुझे तो लगता है कि दो आवारा बादल के टुकड़े होंगे जो प्यार के नशे की खुमारी में आसमान में टकराए होंगे और बारिश की कुछ बूंदें आ गई होंगी, वरना केवल तुम्हारे ही इलाके में बारिश न हुई होती. जैसे ही उन के नशे की खुमारी उतरेगी, दोनों कहीं दूर छिटक जाएंगे और बस, बारिश भी गायब हो जाएगी,’’ आसमान को देखता हुआ व्योम कुछ शायराना अंदाज में बोला.

‘‘तुम भी किसी आवारा बादल की तरह मुझे छोड़ कर तो नहीं चले जाओगे. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे प्यार की खुमारी भी एक दिन उतर जाए और तुम भी मुझ से छिटक कर कहीं दूर चले जाओ,’’ इला की गंभीर आवाज में एक दर्द छिपा था. शायद उस अनजाने भय की निशानी था जो हर प्यार करने वाले के दिल में कहीं न कहीं छिपा होता है.

‘‘कैसी बातें कर रही हो? आखिर तुम सोच भी कैसे लेती हो ऐसा? मैं क्यों जाऊंगा तुम्हें छोड़ कर,’’ व्योम भी भावुक हो गया था, ‘‘मेरा प्यार इतना खोखला नहीं है. मैं खुद इसे साबित नहीं करना चाहता, पर कभी मन में शक आए तो आजमा लेना.’’

‘‘मैं तो मजाक कर रही थी,’’ इला ने व्योम का हाथ कस कर थामते हुए कहा. जब से वह उस की जिंदगी में आया था, उसे लगने लगा था कि हर चीज बहुत खूबसूरत हो गई है. कितना परफैक्ट इंसान है वह. प्यार, सम्मान देने के साथसाथ उसे बखूबी समझता भी है. बिना कुछ कहे भी जब कोई आप की बात समझ जाए तो वही प्यार कहलाता है.

इला को एक कंपनी में मार्केटिंग ऐग्जीक्यूटिव का जौब मिल गया और व्योम का विदेश से औफर आया, लेकिन वह इला से दूर नहीं जाना चाहता था. इला के बहुत समझाने पर वह मान गया और सिंगापुर चला गया. दोनों ने तय किया था कि 6 महीने बाद जब दोनों अपनीअपनी नौकरी में सैट हो जाएंगे, तभी शादी करेंगे. फोन, मैसेज और वैबकैम पर रोज उन की बात होती और अपने दिल का सारा हाल एकदूसरे से कहने के बाद ही उन्हें चैन आता.

इला कंपनी के एक नए प्रोडक्ट की पब्लिसिटी के लिए जयपुर गई थी, क्योंकि उसी मार्केट में उन्हें उस प्रोडक्ट को प्रमोट करना था. वहां से वापस आते हुए वह बहुत उत्साहित थी, क्योंकि उसे बहुत अच्छा रिस्पौंस मिला था और उस ने फोन पर यह बात व्योम को बता भी दी थी. अब एक प्रमोशन उस का ड्यू हो गया था. लेकिन उसे नहीं पता था कि नियति उस की खुशियों के चटकीले रंगों में काले, स्याह रंग उड़ेलने वाली है.

रात का समय था, न जाने कैसे ड्राइवर का बैलेंस बिगड़ा और उन की कार एक ट्रक से टकरा गई. ड्राइवर की तो तभी मौत हो गई. लेकिन हफ्ते बाद जब उसे होश आया तो पता चला कि उसे सिर पर गहरी चोट आई थी और उस की आवाज ही चली गई थी.

धुंधला सा कुछ याद आ रहा था कि वह व्योम से बात कर रही थी कि तभी सामने आते ट्रक को देख उसे लगा था कि शायद वह व्योम से आखिरी बार बात कर रही है और वह चिल्ला कर ड्राइवर को सचेत करना ही चाहती थी कि आवाज ही नहीं निकली थी. सबकुछ खत्म हो चुका था उस के लिए.

परिवार के लोग इसी बात से खुश थे कि इला सकुशल थी. उस की जान बच गई थी, पर वह जो हर पल व्योम से बात करने को लालायित रहती थी, नियति से खफा थी, जिस ने उस की आवाज छीन कर व्योम को भी उस से छीन लिया था.

‘‘तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि व्योम अब तुम्हें नहीं अपनाएगा? वह तुम से प्यार करता है, बहुत प्यार करता है, बेटी. उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा,’’ मां ने लाख समझाया पर इला का दर्द उस की आंखों से लगातार बहता रहता. वह केवल लिख कर ही सब से बात करती. उस ने सब से कह दिया था कि व्योम को इस बारे में कुछ न बताया जाए और न ही वह अब उस से कौंटैक्ट रखना चाहती थी.

‘‘अपने प्यार पर इतना ही भरोसा है तुझे?’’ उस की फ्रैंड रमा ने जब सवाल किया तो इला ने लिखा, ‘अपने प्यार पर तो मुझे बहुत भरोसा है, पर मैं आधीअधूरी इला जो अपनी बात तक किसी को कह न सके, उसे सौंपना नहीं चाहती. वह एक परफैक्ट इंसान है, उसे परफैक्ट ही मिलना चाहिए सबकुछ.’

व्योम ने बहुत बार उस से मिलने की कोशिश की, फोन किया, मैसेज भेजे, चैट पर इन्वाइट किया, पर इला की तो जैसे आवाज के साथसाथ भावनाएं भी मौन हो गई थीं. अपने सपनों को उस ने चुप्पी के तालों के पीछे कैद कर दिया था. उस की आवाज पर कितना फिदा था व्योम. कैसी अजीब विडंबना है न जीवन की, जो चीज सब से प्यारी थी उस से वही छिन गई थी.

3-4 महीने बाद व्योम के साथ उस का संपर्क बिलकुल ही टूट गया. व्योम ने फोन करने बंद कर दिए थे. ऐसा ही तो चाहती थी वह, फिर क्यों उसे बुरा लगता था. कई बार सोचती कि आखिर व्योम भी किसी आवारा बादल की तरह ही निकला जिस के प्यार के नशे की खुमारी उस के एक ऐक्सिडैंट के साथ उतर गई.

वक्त गुजरने के साथ इला ने अपने को संभाल लिया. उस ने साइन लैंग्वेज सीख ली और मूकबधिरों के एक संस्थान में नौकरी कर ली. वक्त तो गुजर जाता था उस का, पर व्योम का प्यार जबतब टीस बन कर उभर आता था. उसे समझ ही नहीं आता था कि उस ने व्योम को बिना कुछ कहनेसुनने का मौका दिए उस के प्यार का अपमान किया था या व्योम ने उसे छला था. जब भी बारिश आती तो आवारा बादल का खयाल उसे आ जाता.

वह मौल में शौपिंग कर रही थी, लगा कोई उस का पीछा कर रहा है. कोई जानीपहचानी आहट, एक परिचित सी खुशबू और दिल के तारों को छूता कोई संगीत सा उसे अपने कानों में बजता महसूस हुआ.

ऐस्केलेटर पर ही पीछे मुड़ कर देखा. चटकीले रंगों में मानो फूल ही फूल हर ओर बिखरते महसूस हुए. जल्दीजल्दी वहां से कदम बढ़ाने लगी, मानो उस परिचय के बंधन से छूट कर भाग जाना चाहती हो. अचानक उस का हाथ कस कर पकड़ लिया उस ने.

ओह, इस छुअन के लिए पूरे एक बरस से तरस रही है वह. मन में असंख्य प्रश्न और तरंगें बहने लगीं. पर कहे तो कैसे कहे वह? लब हिले भी तो वह सच जान जाएगा तब…हाथ छुड़ाना चाहा, पर नाकामयाब रही.

भरपूर नजरों से व्योम ने इला को देखा. प्यार था उस की आंखों में…वही प्यार जो पहले इला को उस की आंखों में दिखता था.

‘‘कैसी हो,’’ व्योम ने हाथों के इशारे से पूछा, ‘‘मुझे बस इतना ही समझा. एक बार भी मेरे प्यार पर भरोसा करने का मन नहीं हुआ तुम्हारा?’’ अनगिनत प्रश्न व्योम पूछ रहा था, पर यह क्या, वह तो साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल कर रहा था.

अवाक थी इला, ‘‘तुम बोल क्यों नहीं रहे हो,’’ उस ने इशारे से पूछा.

‘‘क्योंकि तुम नहीं बोल सकती. तुम ने कैसे सोच लिया कि तुम्हारी आवाज चली गई तो मैं तुम्हें प्यार करना छोड़ दूंगा. मैं कोई आवारा बादल नहीं. जब तुम्हारे मुझ से कौंटैक्ट न रखने की वजह पता चली तो मैं ने ठान लिया कि मैं भी अपना प्यार साबित कर के ही रहूंगा. बस, तब से साइन लैंग्वेज सीख रहा था. अब जब मुझे आ गई तो तुम्हारे सामने आ गया.’’

उस के बाद इशारों में ही दोनों घंटों शिकवेशिकायतें करते रहे. इला के आंसू बहे जा रहे थे. उस के आंसू पोंछते हुए व्योम बोला, ‘‘लगता है दो आवारा बादल इस बार तुम्हारी आंखों से बरस रहे हैं.’’

व्योम के सीने से लगते हुए इला को लगा कि व्योम वह बादल है जो जब आसमान में उड़ता है तो बारिश को तरसती धरती उस की बूंदों से भीग जी उठती है.

Best Hindi Story : फैसला – सुरेश और प्रभाकर में से बिट्टी ने किसे चुना

Best Hindi Story : रजनीगंधा की बड़ी डालियों को माली ने अजीब तरीके से काटछांट दिया था. उन्हें सजाने में मुझे बड़ी मुश्किल हो रही थी. बिट्टी ने अपने झबरे बालों को झटका कर एक बार उन डालियों से झांका, फिर हंस कर पूछा, ‘‘मां, क्यों इतनी परेशान हो रही हो. अरे, प्रभाकर और सुरेश ही तो आ रहे हैं…वे तो अकसर आते ही रहते हैं.’’ ‘‘रोज और आज में फर्क है,’’ अपनी गुडि़या सी लाड़ली बिटिया को मैं ने प्यार से झिड़का, ‘‘एक तो कुछ करनाधरना नहीं, उस पर लैक्चर पिलाने आ गई. आज उन दोनों को हम ने बुलाया है.’’

बिट्टी ने हां में सिर हिलाया और हंसती हुई अपने कमरे में चली गई. अजीब लड़की है, हफ्ताभर पहले तो लगता था, यह बिट्टी नहीं गंभीरता का मुखौटा चढ़ाए उस की कोई प्रतिमा है. खोईखोई आंखें और परेशान चेहरा, मुझे राजदार बनाते ही मानो उस की उदासी कपूर की तरह उड़ गई और वही मस्ती उस की रगों में फिर से समा गई.

‘मां, तुम अनुभवी हो. मैं ने तुम्हें ही सब से करीब पाया है. जो निर्णय तुम्हारा होगा, वही मेरा भी होगा. मेरे सामने 2 रास्ते हैं, मेरा मार्गदर्शन करो.’ फिर आश्वासन देने पर वह मुसकरा दी. परंतु उसे तसल्ली देने के बाद मेरे अंदर जो तूफान उठा, उस से वह अनजान थी. अपनी बेटी के मन में उठती लपटों को मैं ने सहज ही जान लिया था. तभी तो उस दिन उसे पकड़ लिया.

कई दिनों से बिट्टी सुस्त दिख रही थी, खोईखोई सी आंखें और चेहरे पर विषाद की रेखाएं, मैं उसे देखते ही समझ गई थी कि जरूर कोई बात है जो वह अपने दिल में बिठाए हुए है. लेकिन मैं चाहती थी कि बिट्टी हमेशा की तरह स्वयं ही मुझे बताए. उस दिन शाम को जब वह कालेज से लौटी तो रोज की अपेक्षा ज्यादा ही उदास दिखी. उसे चाय का प्याला थमा कर जब मैं लौटने लगी तो उस ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया और रोने लगी.

बचपन से ही बिट्टी का स्वभाव बहुत हंसमुख और चंचल था. बातबात में ठहाके लगाने वाली बिट्टी जब भी उदास होती या उस की मासूम आंखें आंसुओं से डबडबातीं तो मैं विचलित हो उठती. बिट्टी के सिवा मेरा और था ही कौन? पति से मानसिकरूप से दूर, मैं बिट्टी को जितना अपने पास करती, वह उतनी ही मेरे करीब आती गई. वह सारी बातों की जानकारी मुझे देती रहती. वह जानती थी कि उस की खुशी में ही मेरी खुशी झलकती है. इसी कारण उस के मन की उठती व्यथा से वही नहीं, मैं भी विचलित हो उठी. सुरेश हमारे बगल वाले फ्लैट में ही रहता था. बचपन से बिट्टी और सुरेश साथसाथ खेलते आए थे. दोनों परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. उस की मां मुझे मानती थी. मेरे पति योगेश को तो अपने व्यापार से ही फुरसत नहीं थी, पर मैं फुरसत के कुछ पल जरूर उन के साथ बिता लेती. सुरेश बेहद सीधासादा, अपनेआप में खोया रहने वाला लड़का था, लेकिन बिट्टी मस्त लड़की थी.

बिट्टी का रोना कुछ कम हुआ तो मैं ने पूछ लिया, ‘आजकल सुरेश क्यों नहीं आता?’ ‘वह…,’ बिट्टी की नम आंखें उलझ सी गईं.

‘बता न, प्रभाकर अकसर मुझे दिखता है, सुरेश क्यों नहीं?’ मेरा शक सही था. बिट्टी की उदासी का कारण उस के मन का भटकाव ही था. ‘मां, वह मुझ से कटाकटा रहता है.’

‘क्यों?’ ‘वह समझता है, मैं प्रभाकर से प्रेम करती हूं.’

‘और तू?’ मैं ने उसी से प्रश्न कर दिया. ‘मैं…मैं…खुद नहीं जानती कि मैं किसे चाहती हूं. जब प्रभाकर के पास होती हूं तो सुरेश की कमी महसूस होती है, लेकिन जब सुरेश से बातें करती हूं तो प्रभाकर की चाहत मन में उठती है. तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं. किसे अपना जीवनसाथी चुनूं?’ कह कर वह मुझ से लिपट गई.

मैं ने उस के सिर पर हाथ फेरा और सोचने लगी कि कैसा जमाना आ गया है. प्रेम तो एक से ही होता है. प्रेम या जीवनसाथी चुनने का अधिकार उसे मेरे विश्वास ने दिया था. सुरेश उस के बचपन का मित्र था. दोनों एकदूसरे की कमियों को भी जानते थे, जबकि प्रभाकर ने 2 वर्र्ष पूर्व उस के जीवन में प्रवेश किया था. बिट्टी बीएड कर रही थी और हम उस का विवाह शीघ्र कर देना चाहते थे, लेकिन वह स्वयं नहीं समझ पा रही थी कि उस का पति कौन हो सकता है, वह किस से प्रेम करती है और किसे अपनाए. परंतु मैं जानती थी, निश्चितरूप से वह प्रेम पूर्णरूप से किसी एक को ही करती है. दूसरे से महज दोस्ती है. वह नहीं जानती कि वह किसे चाहती है, परंतु निश्चित ही किसी एक का ही पलड़ा भारी होगा. वह किस का है, मुझे यही देखना था.

रात में बिट्टी पढ़तेपढ़ते सो गई तो उसे चादर ओढ़ा कर मैं भी बगल के बिस्तर पर लेट गई. योगेश 2 दिनों से बाहर गए हुए थे. बिट्टी उन की भी बेटी थी, लेकिन मैं जानती थी, यदि वे यहां होते, तो भी बिट्टी के भविष्य से ज्यादा अपने व्यापार को ले कर ही चिंतित होते. कभीकभी मैं समझ नहीं पाती कि उन्हें बेटी या पत्नी से ज्यादा काम क्यों प्यारा है. बिस्तर पर लेट कर रोजाना की तरह मैं ने कुछ पढ़ना चाहा, परंतु एक भी शब्द पल्ले न पड़ा. घूमफिर कर दिमाग पीछे की तरफ दौड़ने लगता. मैं हर बार उसे खींच कर बाहर लाती और वह हर बार बेशर्मों की तरह मुझे अतीत की तरफ खींच लेता. अपने अतीत के अध्याय को तो मैं जाने कब का बंद कर चुकी थी, परंतु बिट्टी के मासूम चेहरे को देखते हुए मैं अपने को अतीत में जाने से न रोक सकी…

जब मैं भी बिट्टी की उम्र की थी, तब मुझे भी यह रोग हो गया था. हां, तब वह रोग ही था. विशेषरूप से हमारे परिवार में तो प्रेम कैंसर से कम खतरनाक नहीं था. तब न तो मेरी मां इतनी सहिष्णु थीं, जो मेरा फैसला मेरे हक में सुना देतीं, न ही पिता इतने उदासीन थे कि मेरी पसंद से उन्हें कुछ लेनादेना ही होता. तब घर की देहरी पर ज्यादा देर खड़ा होना बूआ या दादी की नजरों में बहुत बड़ा गुनाह मान लिया जाता था. किसी लड़के से बात करना तो दूर, किसी लड़की के घर भी भाई को ले कर जाना पड़ता, चाहे भाई छोटा ही क्यों न हो. हजारों बंदिशें थीं, परंतु जवानी कहां किसी के बांधे बंधी है. मेरा अल्हड़ मन आखिर प्रेम से पीडि़त हो ही गया. मैं बड़ी मां के घर गई हुई थी. सुमंत से वहीं मुलाकात हुई थी और मेरा मन प्रेम की पुकार कर बैठा. परंतु बचपन से मिले संस्कारों ने मेरे होंठों का साथ नहीं दिया. सुमंत के प्रणय निवेदन को मां और परिवार के अन्य लोगों ने निष्ठुरता से ठुकरा दिया.

फिर 1 वर्ष के अंदर ही मेरी शादी एक ऐसे व्यक्ति से कर दी गई जो था तो छोटा सा व्यापारी, पर जिस का ध्येय भविष्य में बड़ा आदमी बनने का था. इस के लिए मेरे पति ने व्यापार में हर रास्ता अपनाया. मेरी गोद में बिट्टी को डाल कर वे आश्वस्त हो दिनरात व्यापार की उन्नति के सपने देखते. प्रेम से पराजित मेरा तप्त हृदय पति के प्यार और समर्पण का भूखा था. उन के निस्वार्थ स्पर्श से शायद मैं पहले प्रेम को भूल कर उन की सच्ची सहचरी बनती, पर व्यापार के बीच मेरा बोलना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था. मुझे याद नहीं, व्यापारिक पार्टी के अलावा वे मुझे कभी कहीं अपने साथ ले गए हों.

लेकिन घर और बिट्टी के बारे में सारे फैसले मेरे होते. उन्हें इस के लिए अवकाश ही न था. बिट्टी द्वारा दी गई जिम्मेदारी से मेरे अतीत की पुस्तक फड़फड़ाती रही. अतीत का अध्याय सारी रात चलता रहा, क्योंकि उस के समाप्त होने तक पक्षियों ने चहचहाना शुरू कर दिया था… दूसरे दिन से मैं बिट्टी के विषय में चौकन्नी हो गई. प्रभाकर का फोन आते ही मैं सतर्क हो जाती. बिट्टी का उस से बात करने का ढंग व चहकना देखती. घंटी की आवाज सुनते ही उस का भागना देखती.

एक दिन सुरेश ने कहा, ‘चाचीजी, देखिएगा, एक दिन मैं प्रशासनिक सेवा में आ कर रहूंगा, मां का एक बड़ा सपना पूरा होगा. मैं आगे बढ़ना चाहता हूं, बहुत आगे,’ उस के ये वाक्य मेरे लिए नए नहीं थे, परंतु अब मैं उन्हें भी तोलने लगी.

प्रभाकर से बिट्टी की मुलाकात उस के एक मित्र की शादी में हुई थी. उस दिन पहली बार बिट्टी जिद कर के मुझ से साड़ी बंधवा कर गईर् थी और बालों में वेणी लगाई थी. उस दिन सुरेश साक्षात्कार देने के लिए इलाहाबाद गया हुआ था. बिट्टी अपनी एक मित्र के साथ थी और उसी के साथ वापस भी आना था. मैं सोच रही थी कि सुरेश होता तो उसे भेज कर बिट्टी को बुलवा सकती थी. उस के आने में काफी देर हो गई थी. मैं बेहद घबरा गई. फोन मिलाया तो घंटी बजती रही, किसी ने उठाया ही नहीं.

लेकिन शीघ्र ही फोन आ गया था कि बिट्टी रात को वहीं रुक जाएगी. दूसरे दिन जब बिट्टी लौटी तो उदास सी थी. मैं ने सोचा, सहेली से बिछुड़ने का दर्द होगा. 2 दिन वह शांत रही, फिर मुझे बताया, ‘मां, वहां मुझे प्रभाकर मिला था.’

‘वह कौन है?’ मैं ने प्रश्न किया. ‘मीता के भाई का दोस्त, फोटो खींच रहा था, मेरे भी बहुत सारे फोटो खींचे.’

‘क्यों?’ ‘मां, वह कहता था कि मैं उसे अच्छी लग रही हूं.’

‘तुम ने उसे पास आने का अवसर दिया होगा?’ मैं ने उसे गहराई से देखा. ‘नहीं, हम लोग डांस कर रहे थे, तभी बीच में वह आया और मुझे ऐसा कह कर चला गया.’

मैं ने उसे आश्वस्त किया कि कुछ लड़के अपना प्रभाव जमाने के लिए बेबाक हरकत करते हैं. फिर शादी वगैरह में तो दूल्हे के मित्र और दुलहन की सहेलियों की नोकझोंक चलती ही रहती है. परंतु 2 दिनों बाद ही प्रभाकर हमारे घर आ गया. उस ने मुझ से भी बातें कीं और बिट्टी से भी. मैं ने लक्ष्य किया कि बिट्टी उस से कम समय में ही खुल गई है.

फिर तो प्रभाकर अकसर ही मेरे सामने ही आता और मुझ से तथा बिट्टी से बतिया कर चला जाता. बिट्टी के कालेज के और मित्र भी आते थे. इस कारण प्रभाकर का आना भी मुझे बुरा नहीं लगा. जिस दिन बिट्टी उस के साथ शीतल पेय या कौफी पी कर आती, मुझे बता देती. एकाध बार वह अपने भाई को ले कर भी आया था. इस दौरान शायद बिट्टी सुरेश को कुछ भूल सी गई. सुरेश भी पढ़ाई में व्यस्त था. फिर प्रभाकर की भी परीक्षा आ गई और वह भी व्यस्त हो गया. बिट्टी अपनी पढ़ाई में लगी थी.

धीरेधीरे 2 वर्ष बीत गए. बिट्टी बीएड करने लगी. उस के विवाह का जिक्र मैं पति से कई बार चुकी थी. बिट्टी को भी मैं बता चुकी थी कि यदि उसे कोई लड़का पति के रूप में पसंद हो तो बता दे. फिर तो एक सप्ताह पूर्व की वह घटना घट गई, जब बिट्टी ने स्वीकारा कि उसे प्रेम है, पर किस से, वह निर्णय वह नहीं ले पा रही है.

सुरेश के परिवार से मैं खूब परिचित थी. प्रभाकर के पिता से भी मिलना जरूरी लगा. पति को जाने का अवसर जाने कब मिलता, इस कारण प्रभाकर को बताए बगैर मैं उस के पिता से मिलने चल दी.

बेहतर आधुनिक सुविधाओं से युक्त उन का मकान न छोटा था, न बहुत बड़ा. प्रभाकर के पिता का अच्छाखासा व्यापार था. पत्नी को गुजरे 5 वर्ष हो चुके थे. बेटी कोई थी नहीं, बेटों से उन्हें बहुत लगाव था. इसी कारण प्रभाकर को भी विश्वास था कि उस की पसंद को पिता कभी नापसंद नहीं करेंगे और हुआ भी वही. वे बोले, ‘मैं बिट्टी से मिल चुका हूं, प्यारी बच्ची है.’ इधरउधर की बातों के बीच ही उन्होंने संकेत में मुझे बता दिया कि प्रभाकर की पसंद से उन्हें इनकार नहीं है और प्रत्यक्षरूप से मैं ने भी जता दिया कि मैं बिट्टी की मां हूं और किस प्रयोजन से उन के पास आई हूं.

‘‘कहां खोई हो, मां?’’ कमरे से बाहर निकलते हुए बिट्टी बोली. मैं चौंक पड़ी. रजनीगंधा की डालियों को पकड़े कब से मैं भावशून्य खड़ी थी. अतीत चलचित्र सा घूमता चला गया. कहानी पूरी नहीं हो पाई थी, अंत बाकी था.

जब घर में प्रभाकर और सुरेश ने एकसाथ प्रवेश किया तो यों प्रतीत हुआ, मानो दोनों एक ही डाली के फूल हों. दोनों ही सुंदर और होनहार थे और बिट्टी को चाहने वाले. प्रभाकर ने तो बिट्टी से विवाह की इच्छा भी प्रकट कर दी थी, परंतु सुरेश अंतर्मुखी व्यक्तित्व का होने के कारण उचित मौके की तलाश में था.

सुरेश ने झुक कर मेरे पांव छुए और बिट्टी को एक गुलाब का फूल पकड़ा कर उस का गाल थपथपा दिया. ‘‘आते समय बगीचे पर नजर पड़ गई, तोड़ लाया.’’

प्रभाकर ने मुझे नमस्ते किया और पूरे घर में नाचते हुए रसोई में प्रवेश कर गया. उस ने दोचार चीजें चखीं और फिर बिट्टी के पास आ कर बैठ गया. मैं भोजन की अंतिम तैयारी में लग गई और बिट्टी ने संगीत की एक मीठी धुन लगा दी. प्रभाकर के पांव बैठेबैठे ही थिरकने लगे. सुरेश बैठक में आते ही रैक के पास जा कर खड़ा हो गया और झुक कर पुस्तकों को देखने लगा. वह जब भी हमारे घर आता, किसी पत्रिका या पुस्तक को देखते ही उसे उठा लेता. वह संकोची स्वभाव का था, भूखा रह जाता. मगर कभी उस ने मुझ से कुछ मांग कर नहीं खाया था.

मैं सोचने लगी, क्या सुरेश के साथ मेरी बेटी खुश रह सकेगी? वह भारतीय प्रशासनिक सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुका है. संभवतया साक्षात्कार भी उत्तीर्ण कर लेगा, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी बनने की गरिमा से युक्त सुरेश बिट्टी को कितना समय दे पाएगा? उस का ध्येय भी मेरे पति की तरह दिनरात अपनी उन्नति और भविष्य को सुखमय बनाने का है जबकि प्रभाकर का भविष्य बिलकुल स्पष्ट है. सुरेश की गंभीरता बिट्टी की चंचलता के साथ कहीं फिट नहीं बैठती. बिट्टी की बातबात में हंसनेचहकने की आदत है. यह बात कल को अगर सुरेश के व्यक्तित्व या गरिमा में खटकने लगी तो? प्रभाकर एक हंसमुख और मस्त युवक है. बिट्टी के लिए सिर्फ शब्दों से ही नहीं वह भाव से भी प्रेम दर्शाने वाला पति साबित होगा. बिट्टी की आंखों में प्रभाकर के लिए जो चमक है, वही उस का प्यार है. यदि उसे सुरेश से प्यार होता तो वह प्रभाकर की तरफ कभी नहीं झुकती, यह आकर्षण नहीं प्रेम है. सुरेश सिर्फ उस का अच्छा मित्र है, प्रेमी नहीं. खाने की मेज पर बैठने के पहले मैं ने फैसला कर लिया था.

Short Story : अंत भला तो सब भला

Short Story : संगीता को यह एहसास था कि आज जो दिन में घटा है, उस के कारण शाम को रवि से झगड़ा होगा और वह इस के लिए मानसिक रूप से तैयार थी. लेकिन जब औफिस से लौटे रवि ने मुसकराते हुए घर में कदम रखा तो वह उलझन में पड़ गई.

‘‘आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारा मूड हो तो खाना बाहर खाया जा सकता है,’’ रवि ने उसे हाथ से पकड़ कर अपने पास बैठा लिया.

‘‘किस कारण इतना खुश नजर आ रहे हो?’’ संगीता ने खिंचे से स्वर में पूछा.

‘‘आज मेरे नए बौस उमेश साहब ने मुझे अपने कैबिन में बुला कर मेरे साथ दोस्ताना अंदाज में बहुत देर तक बातें कीं. उन की वाइफ से तो आज दोपहर में तुम मिली ही थीं. उन्हें एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने मैं ही ले गया था. मेरे दोस्त विपिन के पिताजी उस स्कूल के चेयरमैन को जानते हैं. उन की सिफारिश से बौस की वाइफ को वहां टीचर की जौब मिल जाएगी. बौस मेरे काम से भी बहुत खुश हैं. लगता है इस बार मुझे प्रमोशन जरूर मिल जाएगी,’’ रवि ने एक ही सांस में संगीता को सारी बात बता डाली.

संगीता ने उस की भावी प्रमोशन के प्रति कोई प्रतिक्रिया जाहिर करने के बजाय वार्त्तालाप को नई दिशा में मोड़ दिया, ‘‘प्रौपर्टी डीलर ने कल शाम जो किराए का मकान बताया था, तुम उसे देखने कब चलोगे?’’

‘‘कभी नहीं,’’ रवि एकदम चिड़ उठा.

‘‘2 दिन से घर के सारे लोग बाहर गए हुए हैं और ये 2 दिन हम ने बहुत हंसीखुशी से गुजारे हैं. कल सुबह सब लौट आएंगे और रातदिन का झगड़ा फिर शुरू हो जाएगा. तुम समझते क्यों नहीं हो कि यहां से अलग हुए बिना हम कभी खुश नहीं रह पाएंगे…हम अभी उस मकान को देखने चल रहे हैं,’’ कह संगीता उठ खड़ी हुई.

‘‘मुझे इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाना है. अगर तुम में जरा सी भी बुद्धी है तो अपनी बहन और जीजा के बहकावे में आना छोड़ दो,’’ गुस्से के कारण रवि का स्वर ऊंचा हो गया था.

‘‘मुझे कोई नहीं बहका रहा है. मैं ने 9 महीने इस घर के नर्क में गुजार कर देख लिए हैं. मुझे अलग किराए के मकान में जाना ही है,’’ संगीता रवि से भी ज्यादा जोर से चिल्ला पड़ी.

‘‘इस घर को नर्क बनाने में सब से ज्यादा जिम्मेदार तुम ही हो…पर तुम से बहस करने की ताकत अब मुझ में नहीं रही है,’’ कह रवि उठ कर कपड़े बदलने शयनकक्ष में चला गया और संगीता मुंह फुलाए वहीं बैठी रही.

उन का बाहर खाना खाने का कार्यक्रम तो बना ही नहीं, बल्कि घर में भी दोनों ने खाना अलगअलग और बेमन से खाया. घर में अकेले होने का कोई फायदा वे आपसी प्यार की जड़ें मजबूत करने के लिए नहीं उठा पाए. रात को 12 बजे तक टीवी देखने के बाद जब संगीता शयनकक्ष में आई तो रवि गहरी नींद में सो रहा था.

अपने मन में गहरी शिकायत और गुस्से के भाव समेटे वह उस की तरफ पीठ कर के लेट गई.

किराए के मकान में जाने के लिए रवि पर दबाव बनाए रखने को संगीता अगली सुबह भी उस से सीधे मुंह नहीं बोली. रवि नाश्ता करने के लिए रुका नहीं. नाराजगी से भरा खाली पेट घर से निकल गया और अपना लंच बौक्स भी मेज पर छोड़ गया.

करीब 10 बजे उमाकांत अपनी पत्नी आरती, बड़े बेटे राजेश, बड़ी बहू अंजु और 5 वर्षीय पोते समीर के साथ घर लौटे. वे सब उन के छोटे भाई के बेटे की शादी में शामिल होने के लिए 2 दिनों के लिए गांव गए थे.

फैली हुई रसोई को देख कर आरती ने संगीता से कुछ तीखे शब्द बोले तो दोनों के बीच फौरन ही झगड़ा शुरू हो गया. अंजु ने बीचबचाव की कोशिश की तो संगीता ने उसे भी कड़वी बातें सुनाते हुए झगड़े की चपेट में ले लिया.

इन लोगों के घर पहुंचने के सिर्फ घंटे भर के अंदर ही संगीता लड़भिड़ कर अपने कमरे में बंद हो गई थी. उस की सास ने उसे लंच करने के लिए बुलाया पर वह कमरे से बाहर नहीं निकली.

‘‘यह संगीता रवि भैया को घर से अलग किए बिना न खुद चैन से रहेगी, न किसी और को रहने देगी, मम्मी,’’ अंजु की इस टिप्पणी से उस के सासससुर और पति पूरी तरह सहमत थे.

‘‘इस की बहन और मां इसे भड़काना छोड़ दें तो सब ठीक हो जाए,’’ उमाकांत की विवशता और दुख उन की आवाज में साफ झलक रहा था.

‘‘रवि भी बेकार में ही घर से कभी अलग न होने की जिद पर अड़ा हुआ है. शायद किराए के घर में जा कर संगीता बदल जाए और इन दोनों की विवाहित जिंदगी हंसीखुशी बीतने लगे,’’ आरती ने आशा व्यक्त की.

‘‘किराए के घर में जा कर बदल तो वह जाएगी ही पर रवि को यह अच्छी तरह मालूम है कि उस के घर पर उस की बड़ी साली और सास का राज हो जाएगा और वह इन दोनों को बिलकुल पसंद नहीं करता है. बड़े गलत घर में रिश्ता हो गया उस बेचारे का,’’ उमाकांत के इस जवाब को सुन कर आरती की आंखों में आंसू भर आए तो सब ने इस विषय पर आगे कोई बात करना मुनासिब नहीं समझा.

शाम को औफिस से आ कर रवि उस से पिछले दिन घटी घटना को ले कर झगड़ा करेगा, संगीता की यह आशंका उस शाम भी निर्मूल साबित हुई. रवि परेशान सा घर में घुसा तो जरूर पर उस की परेशानी का कारण कोई और था.

‘‘मुझे अस्थाई तौर पर मुंबई हैड औफिस जाने का आदेश मिला है. मेरी प्रमोशन वहीं से हो जाएगी पर शायद यहां दिल्ली वापस आना संभव न हो पाए,’’ उस के मुंह से यह खबर सुन कर सब से ज्यादा परेशान संगीता हुई.

‘‘प्रमोशन के बाद कहां जाना पड़ेगा आप को?’’ उस ने चिंतित लहजे में पूछा.

‘‘अभी कुछ पता नहीं. हमारी कंपनी की कुछ शाखाएं तो ऐसी घटिया जगह हैं, जहां न अच्छा खानापीना मिलता है और न अस्पताल, स्कूल जैसी सुविधाएं ढंग की हैं,’’ रवि के इस जवाब को सुन कर उस का चेहरा और ज्यादा उतर गया.

‘‘तब आप प्रमोशन लेने से इनकार कर दो,’’ संगीता एकदम चिड़ उठी, ‘‘मुझे दिल्ली छोड़ कर धक्के खाने कहीं और नहीं जाना है.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? मैं अपनी प्रमोशन कैसे छोड़ सकता हूं?’’ रवि गुस्सा हो उठा.

‘‘तब इधरउधर धक्के खाने आप अकेले जाना. मैं अपने घर वालों से दूर कहीं नहीं जाऊंगी,’’ अपना फैसला सुना कर नाराज नजर आती संगीता अपने कमरे में घुस गई.

आगामी शनिवार को रवि हवाईजहाज से मुंबई चला गया. उस के घर छोड़ने से पहले ही अपनी अटैची ले कर संगीता मायके चली गई थी.

रवि के मुंबई चले जाने से संगीता की किराए के अलग घर में रहने की योजना लंगड़ा गई. उस के भैयाभाभी तो पहले ही से ऐसा कदम उठाए जाने के हक में नहीं थे. उस की दीदी और मां रवि की गैरमौजूदगी में उसे अलग मकान दिलाने का हौसला अपने अंदर पैदा नहीं कर पाईं.

विवाहित लड़की का ससुराल वालों से लड़झगड़ कर अपने भाईभाभी के पास आ कर रहना आसान नहीं होता, यह कड़वा सच संगीता को जल्द ही समझ में आने लगा. कंपनी के गैस्टहाउस में रह रहा रवि उसे अपने पास रहने को बुला नहीं सकता था और संगीता ने अपनी ससुराल वालों से संबंध इतने खराब कर रखे थे कि वे उसे रवि की गैरमौजूगी में बुलाना नहीं चाहते थे.

सब से पहले संगीता के संबंध अपनी भाभी से बिगड़ने शुरू हुए. घर के कामों में हाथ बंटाने को ले कर उन के बीच झड़पें शुरू हुईं और फिर भाभी को अपनी ननद की घर में मौजूदगी बुरी तरह खलने लगी.

संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी की तो उन का बेटा उन से झगड़ा करने लगा. तब संगीता की बड़ी बहन और जीजा को झगड़े में कूदना पड़ा. फिर टैंशन बढ़ती चली गई.

‘‘हमारे घर की सुखशांति खराब करने का संगीता को कोई अधिकार नहीं है, मां. इसे या तो रवि के पास जा कर रहना चाहिए या फिर अपनी ससुराल में. अब और ज्यादा इस की इस घर में मौजूदगी मैं बरदाश्त नहीं करूंगा,’’ अपने बेटे की इस चेतावनी को सुन कर संगीता की मां ने घर में काफी क्लेश किया पर ऐसा करने के बाद उन की बेटी का घर में आदरसम्मान बिलकुल समाप्त हो गया.

बहू के साथ अपने संबंध बिगाड़ना उन के हित में नहीं था, इसलिए संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी करना बंद कर दिया. उन में आए बदलाव को नोट कर के संगीता उन से नाराज रहने लगी थी.

संगीता की बड़ी बहन को भी अपने इकलौते भाई को नाराज करने में अपना हित नजर नहीं आया था. रवि की प्रमोशन हो जाने की खबर मिलते ही उस ने अपनी छोटी बहन को सलाह दी, ‘‘संगीता, तुझे रवि के साथ जा कर ही रहना पड़ेगा. भैया के साथ अपने संबंध इतने ज्यादा मत बिगाड़ कि उस के घर के दरवाजे तेरे लिए सदा के लिए बंद हो जाएं. जब तक रवि के पास जाने की सुविधा नहीं हो जाती, तू अपनी ससुराल में जा कर रह.’’

‘‘तुम सब मेरा यों साथ छोड़ दोगे, ऐसी उम्मीद मुझे बिलकुल नहीं थी. तुम लोगों के बहकावे में आ कर ही मैं ने अपनी ससुराल वालों से संबंध बिगाड़े हैं, यह मत भूलो, दीदी,’’ संगीता के इस आरोप को सुन कर उस की बड़ी बहन इतनी नाराज हुई कि दोनों के बीच बोलचाल न के बराबर रह गई.

रवि के लिए संगीता को मुंबई बुलाना संभव नहीं था. संगीता को बिन बुलाए ससुराल लौटने की शर्मिंदगी से हालात ने बचाया.

दरअसल, रवि को मुंबई गए करीब 2 महीने बीते थे जब एक शाम उस के सहयोगी मित्र अरुण ने संगीता को आ कर बताया, ‘‘आज हमारे बौस उमेश साहब के मुंह से बातोंबातों में एक काम की बात निकल गई, संगीता… रवि के दिल्ली लौटने की बात बन सकती है.’’

‘‘कैसे?’’ संगीता ने फौरन पूछा.

अनुंकपा के आधार पर उस की पोस्टिंग यहां हो सकती है.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं?’’ संगीता के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे.

‘‘मैं पूरी बात विस्तार से समझाता हूं. देखो, अगर रवि यह अर्जी दे कि दिल के रोगी पिता की देखभाल के लिए उस का उन के पास रहना जरूरी है तो उमेश साहब के अनुसार उस का तबादला दिल्ली किया जा सकता है.’’

‘‘लेकिन रवि के बड़े भैयाभाभी भी तो मेरे सासससुर के पास रहते हैं. इस कारण क्या रवि की अर्जी नामंजूर नहीं हो जाएगी?’’

‘‘उन का तो अपना फ्लैट है न?’’

‘‘वह तो है.’’

‘‘अगर वे अपने फ्लैट में शिफ्ट हो जाएं तो रवि की अर्जी को नामंजूर करने का यह कारण समाप्त हो जाएगा.’’

‘‘यह बात तो ठीक है.’’

‘‘तब आप अपने जेठजेठानी को उन के फ्लैट में जाने को फटाफट राजी कर के उमेश साहब से मिलने आ जाओ,’’ ऐसी सलाह दे कर अरुण ने विदा ली.

संगीता ने उसी वक्त रवि को फोन मिलाया.

‘‘तुम जा कर भैयाभाभी से मिलो, संगीता. मैं भी उन से फोन पर बात करूंगा,’’ रवि सारी बात सुन कर बहुत खुश हो उठा था.

संगीता को झिझक तो बड़ी हुई पर अपने भावी फायदे की बात सोच कर वह अपनी ससुराल जाने को 15 मिनट में तैयार हो गई.

रवि के बड़े भाई ने उस की सारी बात सुन कर गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘संगीता, इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि रवि का तबादला दिल्ली में हो जाए पर मुझे अपने फ्लैट को किराए पर मजबूरन चढ़ाना पढ़ेगा. उस की मासिक किस्त मैं उसी किराए से भर पाऊंगा.’’

रवि और संगीता के बीच फोन पर 2 दिनों तक दसियों बार बातें हुईं और अंत में उन्हें बड़े भैया के फ्लैट की किस्त रवि की पगार से चुकाने का निर्णय मजबूरन लेना पड़ा.

सप्ताह भर के अंदर बड़े भैया का परिवार अपने फ्लैट में पहुंच गया और संगीता अपना सूटकेस ले कर ससुराल लौट आई.

रवि ने कूरियर से अपनी अर्जी संगीता को भिजवा दी. उसे इस अर्जी को रवि के बौस उमेश साहब तक पहुंचाना था. संगीता ने फोन कर के उन से मिलने का समय मांगा तो उन्होंने उसे रविवार की सुबह अपने घर आने को कहा.

‘‘क्या मैं आप से औफिस में नहीं मिल सकती हूं, सर?’’ संगीता इन शब्दों को बड़ी कठिनाई से अपने मुख ने निकाल पाई.

‘‘मैं तुम्हें औफिस में ज्यादा वक्त नहीं दे पाऊंगा, संगीता. मैं घर पर सारे कागजात तसल्ली से चैक कर लूंगा. मैं नहीं चाहता हूं कि कहीं कोई कमी रह जाए. यह मेरी भी दिली इच्छा है कि रवि जैसा मेहनती और विश्वसनीय इनसान वापस मेरे विभाग में लौट आए. क्या तुम्हें मेरे घर आने पर कोई ऐतराज है?’’

‘‘न… नो, सर. मैं रविवार की सुबह आप के घर आ जाऊंगी,’’ कहते हुए संगीता का पूरा शरीर ठंडे पसीने से नहा गया था.

उस के साथ उमेश साहब के घर चलने के लिए हर कोई तैयार था पर संगीता सारे कागज ले कर वहां अकेली पहुंची. उन के घर में कदम रखते हुए वह शर्म के मारे खुद को जमीन में गड़ता महसूस कर रही थी.

उमेश साहब की पत्नी शिखा का सामना करने की कल्पना करते ही उस का शरीर कांप उठता था. रवि के मुंबई जाने से कुछ दिन पूर्व ही वह शिखा से पहली बार मिली थी. उस मुलाकात में जो घटा था, उसे याद करते ही उस का दिल किया कि वह उलटी भाग जाए. लेकिन अपना काम कराने के लिए उसे उमेश साहब के घर की दहलीज लांघनी ही पड़ी.

अचानक उस दिन का घटना चक्र उस की आंखों के सामने घूम गया.

उस दिन रवि शिखा को एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने ले जा रहा था. रवि का बैंक उस स्कूल के पास ही था. उसे बैंक में कुछ पर्सनल काम कराने थे. जितनी देर में शिखा स्कूल में इंटरव्यू देगी, उतनी देर में वह बैंक के काम करा लेगा, ऐसा सोच कर रवि कुछ जरूरी कागज लेने शिखा के साथ अपने घर आया था.

संगीता उस दिन अपनी मां से मिलने गई हुई थी. वह उस वक्त लौटी जब शिखा एक गिलास ठंडा पानी पी कर उन के घर से अकेली स्कूल जा रही थी.

वह शिखा को पहचानती नहीं थी, क्योंकि उमेश साहब ने कुछ हफ्ते पहले ही अपना पदभार संभाला था.

‘‘कौन हो तुम? मेरे घर में किसलिए आना हुआ?’’ संगीता ने बड़े खराब ढंग से शिखा से पूछा था.

‘‘रवि और मेरे पति एक ही औफिस में काम करते हैं. मेरा नाम शिखा है,’’ संगीता के गलत व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए शिखा मुसकरा उठी थी.

‘‘मेरे घर में तुम्हें मेरी गैरमौजूदगी में आने की कोई जरूरत नहीं है… अपने पति को धोखा देना है तो कोई और शिकार ढूंढ़ो…मेरे पति के साथ इश्क लड़ाने की कोशिश की तो मैं तुम्हारे घर आ कर तुम्हारी बेइज्जती करूंगी,’’ उसे यों अपमानित कर के संगीता अपने घर में घुस गई थी.

तब उसे रोज लगता था कि रवि उस के साथ उस के गलत व्यवहार को ले कर जरूर झगड़ा करेगा पर शिखा ने रवि को उस दिन की घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं था. अब रवि की दिल्ली में बदली कराने के लिए उसे शिखा के पति की सहायता चाहिए थी. अपने गलत व्यवहार को याद कर के संगीता शिखा के सामने पड़ने से बचना चाहती थी पर ऐसा हो नहीं सका.

उन के ड्राइंगरूम में कदम रखते ही संगीता का सामना शिखा से हो गया.

‘‘मैं अकारण अपने घर आए मेहमान का अपमान नहीं करती हूं. तुम बैठो, वे नहा रहे हैं,’’ उसे यह जानकारी दे कर शिखा घर के भीतर चल दी.

‘‘प्लीज, आप 1 मिनट मेरी बात सुन लीजिए,’’ संगीता ने उसे अंदर जाने से रोका.

‘‘कहो,’’ अपने होंठों पर मुसकान सजा कर शिखा उस की तरफ देखने लगी.

‘‘मैं…मैं उस दिन के अपने खराब व्यवहार के लिए क्षमा मांगती हूं,’’ संगीता को अपना गला सूखता लगा.

‘‘क्षमा तो मैं तुम्हें कर दूंगी पर पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो…यह ठीक है कि तुम मुझे नहीं जानती थीं पर अपने पति को तुम ने चरित्रहीन क्यों माना?’’ शिखा ने चुभते स्वर में पूछा.

‘‘उस दिन मुझ से बड़ी भूल हुई…वे चरित्रहीन नहीं हैं,’’ संगीता ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘मेरी पूछताछ का भी यही नतीजा निकला था. फिर तुम ने हम दोनों पर शक क्यों किया था?’’

‘‘उन दिनों मैं काफी परेशान चल रही थी…मुझे माफ कर…’’

‘‘सौरी, संगीता. तुम माफी के लायक नहीं हो. तुम्हारी उस दिन की बदतमीजी की चर्चा मैं ने आज तक किसी से नहीं की है पर अब मैं सारी बात अपने पति को जरूर बताऊंगी.’’

‘‘प्लीज, आप उन से कुछ न कहें.’’

‘‘मेरी नजरों में तुम कैसी भी सहायता पाने की पात्रता नहीं रखती हो. मुझे कई लोगों ने बताया है कि तुम्हारे खराब व्यवहार से रवि और तुम्हारे ससुराल वाले बहुत परेशान हैं. अपने किए का फल सब को भोगना ही पड़ता है, सो तुम भी भोगो.

शिखा को फिर से घर के भीतरी भाग की तरफ जाने को तैयार देख संगीता ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘मैं आप से वादा करती हूं कि मैं अपने व्यवहार को पूरी तरह बदल दूंगी…अपनी मां और बहन का कोई भी हस्तक्षेप अब मुझे अपनी विवाहित जिंदगी में स्वीकार नहीं होगा…मेंरे अकेलेपन और उदासी ने मुझे अपनी भूल का एहसास बड़ी गहराई से करा दिया है.’’

‘‘तब रवि जरूर वापस आएगा… हंसीखुशी से रहने की नई शुरुआत के लिए तुम्हें मेरी शुभकामनाएं संगीता…आज से तुम मुझे अपनी बड़ी बहन मानोगी तो मुझे बड़ी खुशी होगी.’’

‘‘थैंक यू, दीदी,’’ भावविभोर हो इस बार संगीता उन के गले लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी.

उमेश साहब के प्रयास से 4 दिन बाद रवि के दिल्ली तबादला होने के आदेश निकल गए. इस खबर को सुन कर संगीता अपनी सास के गले  लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी.

उसी दिन शाम को रवि के बड़े भैया उमेश साहब का धन्यवाद प्रकट करने उन के घर काजू की बर्फी के डिब्बे के साथ पहुंचे.

‘‘अब तो सब ठीक हो गया न राजेश?’’

‘‘सब बढि़या हो गया, सर. कुछ दिनों में रवि बड़ी पोस्ट पर यहीं आ जाएगा. संगीता का व्यवहार अब सब के साथ अच्छा है. अपनी मां और बहन के साथ उस की फोन पर न के बराबर बातें होती हैं. बस, एक बात जरा ठीक नहीं है, सर.’’

‘‘कौन सी, राजेश?’’

‘‘सर, संयुक्त परिवार में मैं और मेरा परिवार बहुत खुश थे. अपने फ्लैट में हमें बड़ा अकेलापन सा महसूस होता है,’’ राजेश का स्वर उदास हो गया.

‘‘अपने छोटे भाई के वैवाहिक जीवन को खुशियों से भरने के लिए यह कीमत तुम खुशीखुशी चुका दो, राजेश. अपने फ्लैट की किस्त के नाम पर तुम रवि से हर महीने क्व10 हजार लेने कभी बंद मत करना. यह अतिरिक्त खर्चा ही संगीता के दिमाग में किराए के मकान में जाने का कीड़ा पैदा नहीं होने देगा.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. वैसे रवि से रुपए ले कर मैं नियमित रूप से बैंक में जमा कराऊंगा. भविष्य में इस मकान को तोड़ कर नए सिरे से बढि़या और ज्यादा बड़ा दोमंजिला मकान बनाने में यह पैसा काम आएगा. तब मैं अपना फ्लैट बेच दूंगा और हम दोनों भाई फिर से साथ रहने लगेंगे,’’ राजेश भावुक हो उठा.

‘‘पिछले दिनों रवि को मुंबई भेजने और तुम्हारे फ्लैट की किस्त उस से लेने की हम दोनों के बीच जो खिचड़ी पकी है, उस की भनक किसी को कभी नहीं लगनी चाहिए,’’ उमेश साहब ने उसे मुसकराते हुए आगाह किया.

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा, सर. आप मेरी तरफ से शिखा मैडम को भी धन्यवाद देना. उन्होंने रवि के विवाहित जीवन में सुधार लाने का बीड़ा न उठाया होता तो हमारा संयुक्त परिवार बिखर जाता.’’

‘‘अंत भला तो सब भला,’’ उमेश साहब की इस बात ने राजेश के चेहरे को फूल सा खिला दिया था.

Love Story : अधूरा प्यार – शादी के लिए क्या थी जुबेदा की शर्त

Love Story : मैं हैदराबाद में रहता था, पर उन दिनों लंदन घूमने गया था. वहां विश्वविख्यात मैडम तुसाद म्यूजियम देखने भी गया. यहां दुनिया भर की नामीगिरामी हस्तियों की मोम की मूर्तियां बनी हैं. हमारे देश के महात्मा गांधी, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन की भी मोम की मूर्तियां थीं. मैं ने गांधीजी की मूर्ति को प्रणाम किया. फिर मैं दूसरी ओर बनी बच्चन और उन्हीं की बगल में बनी ऐश्वर्या की मूर्ति की ओर गया. उस समय तक वे उन की बहू नहीं बनी थीं. मैं उन दोनों की मूर्तियों से हाथ मिलाते हुए फोटो लेना चाहता था. मैं ने देखा कि एक खूबसूरत लड़की भी लगभग मेरे साथसाथ चल रही है. वह भारतीय मूल की नहीं थी, पर एशियाईर् जरूर लग रही थी. मैं ने साहस कर उस से अंगरेजी में कहा, ‘‘क्या आप इन 2 मूर्तियों के साथ मेरा फोटो खींच देंगी?’’

उस ने कहा, ‘‘श्योर, क्यों नहीं? पर इस के बाद आप को भी इन दोनों के साथ मेरा फोटो खींचना होगा.’’ ‘‘श्योर. पर आप तो भारतीय नहीं लगतीं?’’

‘‘तो क्या हुआ. मेरा नाम जुबेदा है और मैं दुबई से हूं,’’ उस ने कहा. ‘‘और मेरा नाम अशोक है. मैं हैदराबाद से हूं,’’ कह मैं ने अपना सैल फोन उसे फोटो खींचने दे दिया.

मेरा फोटो खींचने के बाद उस ने भी अपना सैल फोन मुझे दे दिया. मैं ने भी उस का फोटो बिग बी और ऐश्वर्या राय के साथ खींच कर फोन उसे दे दिया. जुबेदा ने कहा, ‘‘व्हाट ए सरप्राइज. मेरा जन्म भी हैदराबाद में ही हुआ था. उन दिनों दुबई में उतने अच्छे अस्पताल नहीं थे. अत: पिताजी ने मां की डिलीवरी वहीं कराई थी. इतना ही नहीं, एक बार बचपन में मैं बीमार पड़ी थी तो करीब 2 हफ्ते उसी अस्पताल में ऐडमिट रही थी जहां मेरा जन्म हुआ था.’’

‘‘व्हाट ए प्लीजैंट सरप्राइज,’’ मैं ने कहा. अब तक हम दोनों थोड़ा सहज हो चुके थे. इस के बाद हम दोनों मर्लिन मुनरो की मूर्ति के पास गए. मैं ने जुबेदा को एक फोटो मर्लिन के साथ लेने को कहा तो वह बोली, ‘‘यह लड़की तो इंडियन नहीं है? फिर तुम क्यों इस के साथ फोटो लेना चाहते हो?’’

इस पर हम दोनों हंस पड़े. फिर उस ने कहा, ‘‘क्यों न इस के सामने हम दोनों एक सैल्फी ले लें?’’ उस ने अपने ही फोन से सैल्फी ले कर मेरे फोन पर भेज दी.

मैडम तुसाद म्यूजियम से निकल कर मैं ने पूछा, ‘‘अब आगे का क्या प्रोग्राम है?’’ ‘‘क्यों न हम लंदन व्हील पर बैठ कर लंदन का नजारा देखें?’’ वह बोली.

मैं भी उस की बात से सहमत था. इस पर बैठ कर पूरे लंदन शहर की खूबसूरती का मजा लेंगे. दरअसल, यह थेम्स नदी के ऊपर बना एक बड़ा सा व्हील है. यह इतना धीरेधीरे घूमता है कि इस पर बैठने पर यह एहसास ही नहीं होता कि घूम रहा है. नीचे थेम्स नदी पर दर्जनों क्रूज चलते रहते हैं. फिर हम दोनों ने टिकट से कर व्हील पर बैठ कर पूरे लंदन शहर को देखा. व्हील की सैर पूरी कर जब हम नीचे उतरे तब जुबेदा ने कहा, ‘‘अब जोर से भूख लगी है…पहले पेट पूजा करनी होगी.’’ मैं ने उस से पूछा कि उसे कौन सा खाना चाहिए तो उस ने कहा, ‘‘बेशक इंडियन,’’ और फिर हंस पड़ी.

मैं ने फोन पर इंटरनैट से सब से नजदीक के इंडियन होटल का पता लगाया. फिर टैक्सी कर सीधे वहां जा पहुंचे और दोनों ने पेट भर कर खाना खाया. अब तक शाम के 5 बज गए थे. दोनों ही काफी थक चुके थे. और घूमना आज संभव नहीं था तो दोनों ने तय किया कि अपनेअपने होटल लौट जाएं. मैं ने जुबेदा से जब पूछा कि वह कहां रुकी है तो वह बोली, ‘‘मैं तो हाइड पार्क के पास वेस्मिंस्टर होटल में रुकी हूं. और तुम?’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘जुबेदा, आज तो तुम एक के बाद एक सरप्राइज दिए जा रही हो.’’ ‘‘वह कैसे?’’ ‘‘मैं भी वहीं रुका हूं,’’ मैं ने कहा.

जुबेदा बोली ‘‘अशोक, इतना सब महज इत्तफाक ही है… और क्या कहा जा सकता इसे?’’ ‘‘इत्तफाक भी हो सकता है या कुछ और भी.’’

‘‘क्या मतलब?’’ ‘‘नहीं. बस ऐसे ही. कोई खास मतलब नहीं… चलो टैक्सी ले कर होटल ही चलते हैं,’’ मैं बोला. इस से आगे चाह कर भी नहीं बोल सका था, क्योंकि मैं जानता था कि यह जिस देश की है वहां के लोग कंजर्वेटिव होते हैं.

हम दोनों होटल लौट आए थे. थोड़ी देर आराम करने के बाद मैं ने स्नान किया. कुछ देर टीवी देख कर फिर मैं नीचे होटल के डिनर रूम में गया. मैं ने देखा कि जुबेदा एक कोने में टेबल पर अकेले ही बैठी है. मुझे देख कर उस ने मुझे अपनी टेबल पर ही आने का इशारा किया. मुझे भी अच्छा लगा कि उस का साथ एक बार फिर मिल गया. डिनर के बाद चलने लगे तो उस ने अपने ही कमरे में चलने को कहा. भला मुझे क्यों आपत्ति होती. कमरे में जा कर उस ने 2 कप कौफी और्डर की. थोड़ी देर में कौफी भी आ गई. कौफी पीते हुए कहा ‘‘यू नो, मैं तो 4 सालों से आयरलैंड में पढ़ रही थी. कभी लंदन ठीक से घूम नहीं सकी थी. अब दुबई लौट रही हूं तो सोचा जाने से पहले लंदन देख लूं.’’

मैं ने कहा, ‘‘आयरलैंड कैसे पहुंच गई तुम?’’ उस ने बताया कि उस के पिता मैक एक आयरिश हैं. जुबेदा के नाना का एक तेल का कुआं हैं, जिस में वे काम करते थे. उस कुएं से बहुत कम तेल निकल रहा था, नानाजी ने खास कर जुबेदा के पिताजी को इस का कारण जानने के लिए बुलवाया था. उन्होंने जांच की तो पता चला कि नानाजी के कुएं से जमीन के नीचे से एक दूसरा शेख तेल को अपने कुएं में पंप कर लेता है.

मैक ने इस तेल की चोरी को रोका. ऊपर से जुबेदा के नाना को मुआवजे में भारीभरकम रकम भी मिली थी. तब खुश हो कर उन्होंने मैक को दुबई से ही अच्छी सैलरी दे कर रख लिया. इतना ही नहीं, उन्हें लाभ का 10 प्रतिशत बोनस भी मिलता था. जुबेदा के नानाजी और मैक में अच्छी दोस्ती हो गई थी. अकसर घर पर आनाजाना होता था. धीरेधीरे जुबेदा की मां से मैक को प्यार हो गया. पर शादी के लिए उन्हें इसलाम धर्म कबूल करना पड़ा था. इस के बाद से मैक दुबई में ही रह गया. पर मैक की मां आयरलैंड में ही थीं. अत: जुबेदा वहीं दादी के साथ रह कर पढ़ी थी.

अपने बारे में इतना बताने के बाद जुबेदा ने कहा, ‘‘मैं तो कल शाम ऐमिरेट्स की फ्लाइट से दुबई जा रही हूं…तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?’’ मैं ने कहा ‘‘मैं भी ऐमिरेट्स की फ्लाइट से हैदराबाद जाऊंगा, पर कल नहीं, परसों. इस के पहले तक तो इत्तफाक से हम मिलते रहे थे, पर अब इत्तफाक से बिछड़ रहे हैं. फिर भी जितनी देर का साथ रहा बड़ा ही सुखद रहा.’’

जुबेदा बोली, ‘‘नैवर माइंड. इत्तफाक हुआ तो हम फिर मिलेंगे. वैसे तुम कभी दुबई आए हो?’’ मैं ने कहा, ‘‘हां, एक बार औफिस के काम से 2 दिनों के लिए गया था. मेरी कंपनी के लोग दुबई आतेजाते रहते हैं. हो सकता है मुझे फिर वहां जाने का मौका मिले.’’

‘‘यह तो अच्छा रहेगा. जब कभी आओ मुझ से जरूर मिलना,’’ जुबेदा ने कहा और फिर अपना एक कार्ड मेरे हाथ पर रखते हुए मेरे हाथ को चूमते हुए कहा, ‘‘तुम काफी अच्छे लड़के हो.’’ ‘‘बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’’

‘‘बिना संकोच पूछो. मुझे पूरी उम्मीद हैं कि तुम कोई ऐसीवैसी बात नहीं करोगे जिस से मुझे तकलीफ हो.’’ ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं करूंगा. बस मैं सोच रहा था कि तुम लोग तो काफी परदे में रहते हो, पर तुम्हें देख कर ऐसा कुछ नहीं लगता.’’

वह हंस पड़ी. बोली, ‘‘तुम ठीक सोचते हो दुबई पहुंच कर मुझे वहां के अनुसार परदे में ही रहना होगा. फिर भी मेरा परिवार थोड़ा मौडरेट सोच रखता है. ओके, गुड नाइट. कल सुबह ब्रेकफास्ट पर मिलते हैं.’’

अगली सुबह हम दोनों ने साथ ब्रेकफास्ट किया. उस के बाद जुबेदा मेरे ही रूम में आ गई. हम लोगों ने एकदूसरे की पसंदनापसंद, रुचि और परिवार के बारे में बाते कीं. फिर शाम को मैं उसे विदा करने हीथ्रो ऐयरपोर्ट तक गया. जातेजाते उस ने मुझ से हाथ मिलाया. मेरा हाथ चूमा और कहा, ‘‘दुबई जरूर आना और मुझ से मिलना.’’

मैं ने भी उसे अपना एक कार्ड दे दिया. फिर वह ‘बाय’ बोली और हाथ हिलाते हुए ऐयरपोर्ट के अंदर चली गई. मैं भी अगले दिन अपने देश लौट आया. जुबेदा से मेरा संपर्क फेसबुक या स्काइप पर कभीकभी हो जाता था. एक बार तो उस ने अपने मातापिता से भी स्काइप पर वीडियो चैटिंग कराई. उन्होंने कहा कि जुबेदा ने मेरी काफी तारीफ की थी उन से. मुझे तो वह बहुत अच्छी लगती थी. देखने में अति सुंदर. मगर मेरे एकतरफा चाहने से कोई फायदा नहीं था.

1 साल से कुछ ज्यादा समय बीत चुका था. तब जा कर मुझे दुबई जाने का मौका मिला. मेरी कंपनी को एक प्रोडक्ट अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लौंच करना था. इसी सिलसिले में मुझे 5 दिन रविवार से गुरुवार तक दुबई में रहना था. अगले हफ्ते शनिवार शाम को मैं दुबई पहुंचा. वहां ऐेयरपोर्ट पर जुबेदा भी आई थी. पर शुरू में मैं उसे पहचान नहीं सका, क्योंकि वह बुरके में थी. उसी ने मुझे पहचाना. उस ने बताया कि उस के नाना का एक होटल भी है. उसी में मुझे उन का मेहमान बन कर रहना है. फिर उस ने एक टैक्सी बुला कर मुझे होटल छोड़ने को कहा. हालांकि वह स्वयं अपनी कार से आई थी.

जुबेदा पहले से ही होटल पहुंच कर मेरा इंतजार कर रही थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी कार में भी तो आ सकता था?’’ वह बोली, ‘‘नहीं, अगर तुम्हारे साथ कोई औरत होती तब मैं तुम्हें अपने साथ ला सकती थी. औनली जैंट्स, नौट पौसिबल हियर. अच्छा जिस होटल में तुम्हारे औफिस का प्रोग्राम है. वह यहां से 5 मिनट की वाक पर है. तुम कहो तो मैं ड्राइवर को कार ले कर भेज दूंगी.’’

‘‘नो थैंक्स. पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है,’’ मैं ने कहा. जुबेदा अपने घर लौट गई थी और मैं अपने रूम में आ गया था. अगली सुबह रविवार से गुरुवार तक मुझे कंपनी का काम करना था. जुबेदा बीचबीच में फोन पर बात कर लेती थी. गुरुवार शाम तक मेरा काम पूरा हो गया था. जुबेदा ने शुक्रवार को खाने पर बुलाया था. मुझे इस की उम्मीद भी थी.

मैं इंडिया से उस के पूरे परिवार के लिए उपहार ले आया था- संगमरमर का बड़ा सा ताजमहल, अजमेर शरीफ के फोटो, कपड़े, इंडियन स्वीट्स और हैदराबाद की मशहूर कराची बेकरी के बिस्कुट व स्नैक्स आदि. सब ने बहुत गर्मजोशी से स्वागत किया और स्वादिष्ठ शाकाहारी भोजन कराया. लगभग शाम को जब चलने लगा तो उस की मां ने मुझे एक छोटा सा सुंदर पैकेट दिया. मैं उसे यों ही हाथ में लिए अपने होटल लौट आया. जुबेदा का ड्राइवर छोड़ गया था.

अभी मैं होटल पहुंचा ही था कि जुबेदा का फोन आया, ‘‘गिफ्ट कैसा लगा?’’ मैं ने कहा, ‘‘अभी तो खोल कर देखा भी नहीं.’’ जुबेदा, ‘‘यह तो हमारे तोहफे की तौहीन होगी.’’

‘‘सौरी, अभी तुम लाइन पर रहो. 1 मिनट में पैकेट खोल कर बताता हूं,’’ कह मैं ने जब पैकेट खोला तो उस में बेहद खूबसूरत और बेशकीमती हीरे की अंगूठी थी. मैं तो कुछ पल आश्चर्य से आंखें फाड़े उसे देखता रहा. तब तक फिर जुबेदा ने ही पूछा, ‘‘क्या हुआ, कुछ बोलते क्यों नहीं?’’

‘‘यह क्या किया तुम ने? मुझ से कुछ कहते नहीं बन रहा है.’’ ‘‘पसंद नहीं आया?’’ जुबेदा ने पूछा.

‘‘क्यों शर्मिंदा कर रही हो… इतना महंगा गिफ्ट मेरी हैसियत से बाहर की बात है.’’ जुबेदा बोली, ‘‘ऐसा कुछ भी नहीं है. यह तो पर्सनली तुम्हारे लिए है. मां ने कहा है कि जाने से पहले तुम्हारे भाई और बहन के लिए भी कुछ देना है…तुम्हें गिफ्ट पसंद आया या नहीं?’’

मैं ने कहा, ‘‘पसंद न आने का सवाल ही नहीं है. इतने सुंदर और कौस्टली गिफ्ट की तो मैं सपने में भी कल्पना नहीं कर सकता हूं.’’ ‘‘खैर, बातें न बनाओ. मां ने कल दुबई मौल में मिलने को कहा है. मैं भी रहूंगी. गाड़ी भेज दूंगी, आ जाना.’’

अगले दिन शनिवार को जुबेदा ने गाड़ी भेज दी. मैं दुबई मौल में जुबेदा और उस की मां के साथ बैठा था. उस की मां ने मेरे पूरे परिवार के बारे में पूछा. फिर मौल से ही मेरे भाईबहन के लिए गिफ्ट खरीद कर देते हुए कहा, ‘‘तुम बहुत अच्छे लड़के हो. जुबेदा भी तुम्हारी तारीफ करते नहीं थकती है. अभी तो तुम्हारी शादी नहीं हुई है. अगर तुम्हें दुबई में अच्छी नौकरी मिले तो क्या यहां सैटल होना चाहोगे?’’ उन का अंतिम वाक्य मुझे कुछ अजीब सा लगा. मैं ने कहा, ‘‘दुबई बेशक बहुत अच्छी

जगह है, पर मेरे अपने लोग तो इंडिया में ही हैं. फिर भी वहां लौट कर सोचूंगा.’’ जुबेदा मेरी ओर प्रश्नभरी आंखों से देख रही थी. मानो कुछ कहना चाहती हो पर बोल नहीं पा रही थी. मौल से निकलने से पहले एक मिनट के लिए मुझ से अकेले में कहा कि उसे मेरे दुबई में सैटल होने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए. खैर अगले दिन रविवार को मैं इंडिया लौट गया.

मेरे इंडिया पहुंचने के कुछ घंटों के अंदर ही जुबेदा ने मेरे कुशल पहुंचने की जानकारी ली. कुछ दिनों के अंदर ही फिर जुबेदा का फोन आया, बोली, ‘‘अशोक, तुम ने क्या फैसला लिया दुबई में सैटल होने के बारे में?’’ मैं ने कहा, ‘‘अभी तक कुछ नहीं सोचा… इतनी जल्दी यह सोचना आसान नहीं है.’’

‘‘अशोक, यह बात तो अब तक तुम भी समझ गए हो कि मैं तुम्हें चाहने लगी हूं. यहां तक कि मेरे मातापिता भी यह समझ रहे हैं. अच्छा, तुम साफसाफ बताओ कि क्या तुम मुझे नहीं चाहते?’’ जुबेदा बोली.

मैं ने कहा, ‘‘हां, मैं भी तुम्हें चाहता हूं. पर हर वह चीज जिसे हम चाहते हैं, मिल ही जाए जरूरी तो नहीं?’’ ‘‘पर प्रयास तो करना चाहिए अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए,’’ जुबेदा बोली.

‘‘मुझे क्या करना होगा तुम्हारे मुताबिक?’’ मैं ने पूछा. ‘‘तुम्हें मुझ से निकाह करना होगा. इस के लिए तुम्हें सिर्फ एक काम करना होगा. यानी इसलाम कबूल करना होगा. बाकी सब यहां हम लोग संभाल लेंगे. और हां, चाहो तो अपने भाई को भी यहां बुला लेना. बाद में उसे भी अच्छी नौकरी दिला देंगे.’’

‘‘इस्लाम कबूल करना जरूरी है क्या? बिना इस के नहीं हो सकता है निकाह?’’ ‘‘नहीं बिना इसलाम धर्म अपनाए यहां तुम मुझ से शादी नहीं कर सकते हो. तुम ने देखा है न कि मां के लिए मेरे पिता को भी हमारा धर्म स्वीकार करना पड़ा था. उन को यहां आ कर काफी फायदा भी हुआ. प्यार में कंप्रोमाइज करना बुरा नहीं.’’

‘‘सिर्फ फायदे के लिए ही सब काम नहीं किया जाता है और प्यार में कंप्रोमाइज से बेहतर सैक्रिफाइस होता है. मैं दुबई आ सकता हूं, तुम से शादी भी कर सकता हूं, पर मैं भी मजबूर हूं, अपना धर्म नहीं बदल सकता हूं… मैं एक विकल्प दे सकता हूं… तुम इंडिया आ सकती हो… यहां शादी कर सैटल हो सकती हो. मैं तुम्हें धर्म बदलने को मजबूर नहीं करूंगा. धर्म की दीवार हमारे बीच नहीं होगी.’’ ‘‘नहीं, मेरे मातापिता इस की इजाजत नहीं देंगे. मेरी मां भी और मैं भी अपने मातापिता की एकलौती संतान हैं. हमारे यहां बड़ा बिजनैस और प्रौपर्टी है. फिर वैसे भी मुझे दूसरे धर्म के लड़के से शादी करने की न तो इजाजत मिलेगी और न ही इस की हिम्मत है मुझ में,’’ जुबेदा बोली.

मैं ने कहा, ‘‘मेरे औफर में किसी को धर्म बदलने की आवश्यकता नहीं होगी. मैं तुम्हें इंडिया में सारी खुशियां दूंगा. मेरा देश बहुत उदार है. यहां सभी धर्मों के लोग अमनचैन से रह सकते हैं, कुछ सैक्रिफाइस तुम करो, कुछ मैं करता हूं पर मैं अपना धर्म नहीं बदल सकता हूं.’’ ‘‘तो यह तुम्हारा अंतिम फैसला है?’’

‘‘सौरी. मैं अपना धर्म नहीं बदल सकता हूं. मैं सोच रहा हूं कि जब अगली बार दुबई आऊंगा तुम्हारी हीरे की अंगूठी वापस कर दूंगा. इतनी कीमती चीज मुझ पर कर्ज है.’’ ‘‘अशोक, प्लीज बुरा न मानो. इस अंगूठी को बीच में न लाओ. हमारी शादी का इस से कोई लेनादेना नहीं है. डायमंड आर फौर एवर, यू हैव टु कीप इट फौरएवर. इसे हमारे अधूरे प्यार की निशानी समझ कर हमेशा अपने साथ रखना. बाय टेक केयर औफ योरसैल्फ.’’

‘‘तुम भी सदा खुश रहो… यू टू टेक केयर औफ योरसैल्फ.’’ ‘‘थैंक्स,’’ इतना कह कर जुबेदा ने फोन काट दिया. यह जुबेदा से मेरी आखिरी बात थी. उस की दी हुई हीरे की अंगूठी अभी तक मेरे पास है. यह हमारे अधूरे प्यार की अनमोल निशानी है.

Hindi Kahani : ऐ दिल संभल जा – दिल का क्या पता कब और कैसे मचल जाए

Hindi Kahani : रीमा की आंखों के सामने बारबार डाक्टर गोविंद का चेहरा घूम रहा था. हंसमुख लेकिन सौम्य मुखमंडल, 6 फुट लंबा इकहरा बदन और इन सब से बढ़ कर उन का बात करने का अंदाज. उन की गंभीर मगर चुटीली बातों में बहुत वजन होता था, गहरी दृष्टि और गजब की याददाश्त. एक बार किसी को देख लें तो फिर उसे भूलते नहीं. उन की ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा के गुण सभी गाते थे. उम्र 50 वर्ष के करीब तो होगी ही लेकिन मुश्किल से 35-36 के दिखते थे. रीमा बारबार अपना ध्यान मैगजीन पढ़ने में लगा रही थी लेकिन उस के खयालों में डाक्टर गोविंद आजा रहे थे.

रीमा ने जैसे ही पन्ना पलटा, फिर डाक्टर गोविंद का चेहरा सामने आ गया जैसे हर पन्ने पर उन का चेहरा हो वह हर पन्ने के बाद यही सोचती कि अब नहीं सोचूंगी उन के बारे में. ‘‘रीमा, जरा इधर आना,’’ रमा की मम्मी किचन से चिल्लाई.

‘‘अभी आई,’’ कहती हुई रीमा मैगजीन रख कर किचन में आ गई. ‘इस लड़की ने जब से कालेज में दाखिला लिया है, इस का दिमाग न जाने कहां रहता है’ मम्मी बड़बड़ा रही थी.

रीमा मैनेजमैंट का कोर्स कर रही है. मम्मी उसे कालेज भेजना ही नहीं चाहती थी. वह हमेशा चिल्लाती रहती कि 20वां चल रहा है, इस के हाथ पीले कर दो, लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने से क्या लाभ. रीमा की जिद और पापा के सपोर्ट की वजह से उस का दाखिला कालेज में हुआ. मम्मी कम पढ़ीलिखी थी. उन का पढ़ाई पर जोर कम ही था. मम्मी की बातों से रीमा कुढ़ती रहती. और जब से उस ने डाक्टर गोविंद को देखा है, उसे और कुछ दिखता ही नहीं.

डाक्टर गोविंद जब क्लास ले रहे होते, रीमा सिर्फ उन्हें ही देखती रह जाती. वे किस टौपिक पर चर्चा कर रहे हैं, इस की भी सुध उसे कई बार नहीं होती. यह तो शुक्र था उस के सहपाठी अमित का, जो बाद में उस की मदद करता, अपने नोट्स उसे दे देता और यदि कोई टौपिक उस की समझ में नहीं आता तो वह उसे समझा भी देता. वैसे रीमा खुद भी तेज थी. कोई चीज उस की नजरों से एक बार गुजर जाती, उसे वह कभी नहीं भूलती. डाक्टर गोविंद भी उस की तारीफ करते. उन के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर रीमा को बहुत अच्छा लगता. शर्म से उस की नजरें झुक जातीं. उसे ऐसा लगता कि डाक्टर गोविंद सिर्फ उसे ही देख रहे हैं. उस के चेहरे को पढ़ रहे हैं.

डाक्टर गोविंद रीमा के रोल मौडल बन गए. वह हर समय उन की तारीफ करती रहती. कोई स्टूडैंट उन के खिलाफ कुछ कहना चाहता तो वह एक शब्द न सुनती. एक दिन उस की सहेली सुजाता ने यों ही कह दिया, ‘गोविंद सर कुछ स्टूडैंट्स पर ज्यादा ही ध्यान देते हैं.’ बस, इतनी सी बात पर रीमा उस से झगड़ पड़ी. उस से बात करनी बंद कर दी. रीमा भावनाओं में बह रही थी. उस ने डाक्टर गोविंद को समझने की कोशिश भी नहीं की. उन के दिल में अपने सभी छात्रों के लिए समान स्नेह था. वे सभी को प्रोत्साहित करते और जहां जरूरत होती, प्रशंसा करते. यह सब रीमा को नजर नहीं आता. वह कल्पनालोक की सैर करती रहती. उसे हर पल, चारों ओर डाक्टर गोविंद ही नजर आते.

उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह अपने दिल की बात डाक्टर गोविंद को जरूर बताएगी. कल वे मेरी ओर देख कर कैसे मुसकरा रहे थे. वे भी उस में दिलचस्पी लेते हैं. उस से अधिक बातें करते हैं. अगर वे मुझे पसंद नहीं करते तो क्यों सिर्फ मुझे नोट्स देने के बहाने बुलाते. देर तक मुझ से बातें करते रहते. शायद वे मुझ से अपनी चाहत का इजहार करना चाहते हैं लेकिन संकोचवश कर नहीं पाते. रीमा को रातभर नींद नहीं आई, उनींदी में रात काटी और सुबह समय से पहले कालेज पहुंच गई. क्लास शुरू होने में अभी देर थी. मैरून कलर की कमीज, चूड़ीदार पजामा और गले में मैचिंग दुपट्टा डाले रीमा गजब की खूबसूरत लग रही थी. वह चहकती हुई सीढि़यां चढ़ रही थी. डाक्टर गोविंद अपनी क्लास ले कर उतर रहे थे. ‘‘अरे रीमा, तुम आ गई.’’

‘‘नमस्ते सर,’’ कहते हुए रीमा झेंप गई. ‘‘यह लो,’’ उन्होंने अपने हाथ में लिया गुलाब का फूल रीमा की ओर बढ़ा दिया.

‘‘थैंक्यू सर,’’ कह कर रीमा जल्दीजल्दी सीढि़यां चढ़ गई. वह क्लास में जा कर ही रुकी. उस की सांसें तेजतेज चल रही थी. वह बैंच पर बैठ गई. गुलाब का फूल देखदेख बारबार उस के होंठों पर मुसकराहट आ रही थी. उसे लगा उस का सपना साकार हो गया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. तभी अमित आ गया. ‘‘अकेली बैठी यहां क्या कर रही हो? अरे, गुलाब का फूल. बहुत खूबसूरत है. मेरे लिए लाई हो तो दो न. शरमा क्यों रही हो?’’ अमित ने गुलाब छूने के लिए हाथ बढ़ाया.

रीमा बिफर पड़ी. ‘‘यह क्या तरीका है? ऐसे क्यों बिहेव कर रहे हो, जंगली की तरह.’’ ‘‘अरे, तुम्हें क्या हो गया? मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं किया. वैसे, बिहेवियर तो तुम्हारा बदला हुआ है. कहां खोई रहती हैं मैडम आजकल?’’

‘‘सौरी अमित, पता नहीं मुझे क्या हुआ अचानक…’’ ‘‘अच्छा, छोड़ो इन बातों को. सैमिनार हौल में चलो.’’

‘‘क्यों? अभी तो गोविंद सर की क्लास है.’’ ‘‘अरे पागल, गोविंद सर अब क्लास नहीं लेंगे. वे आज ही यहां से जा रहे हैं. उन का दिल्ली यूनिवर्सिटी में वीसी के पद पर चयन हुआ है. सभी लोग हौल में जमा हो रहे हैं. उन का विदाई समारोह है. उठो, चलो.’’

रीमा की समझ में कुछ नहीं आया. वह सम्मोहित सी अमित के पीछेपीछे चल पड़ी. सैमिनार हौल में छात्र जमा थे. रीमा को आश्चर्य हो रहा था कि इतना कुछ हो गया, उसे पता ही नहीं चला. वह कल्पनालोक में विचरती रही और हकीकत में उस का सारा नाता टूटता गया. वह इन्हीं विचारों में मग्न थी कि गोविंद सर की बातों ने उस का ध्यान भंग किया.

‘‘मैं भले ही यहां से जा रहा हूं लेकिन चाहता हूं कि जीवन में किसी मोड़ पर कोई स्टूटैंट मुझे मिले तो वह तरक्की की नई ऊंचाई पर मिले. एक छात्र का एकमात्र उद्देश्य अपनी मंजिल पाना होना चाहिए. अन्य बातों को उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि एक बार मन भटका, तो फिर अपना लक्ष्य पाना अत्यंत मुश्किल हो जाता है. मेरे लिए सभी छात्र मेरी संतान के समान हैं. मैं चाहता हूं कि सभी खूब पढ़ें और अपना व अपने मातापिता का नाम रोशन करें.’’ तालियों की गड़गड़ाहट में उन की आवाज दब गई. सभी उन्हें विदा करने को खड़े थे. कई छात्रों की आंखें नम थीं लेकिन होंठों पर मुसकराहट तैर रही थी. डाक्टर गोविंद के शब्दों में जाने क्या जादू था कि रीमा भी नम आंखों और होंठों पर मुसकराहट लिए अपना हाथ हिला रही थी. गुलाब का फूल अपनी खुशबू बिखेर रहा था.

Hindi Story : सहचारिणी – क्या सुरुचि उस परदे को हटाने में कामयाब हो पाई

Hindi Story : आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से खास दिन है. मेरा एक लंबा इंतजार समाप्त हुआ. तुम मेरी जिंदगी में आए. या यों कहूं कि तुम्हारी जिंदगी में मैं आ गई. तुम्हारी नजर जैसे ही मुझ पर पड़ी, मेरा मन पुलकित हो उठा. लेकिन मुझे डर लगा कि कहीं तुम मेरा तिरस्कार न कर दो, क्योंकि पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है. लोग आते, मुझे देखते, नाकभौं सिकोड़ते और बिना कुछ कहे चले जाते. मैं लोगों से तिरस्कृत हो कर अपमानित महसूस करती. जीवन के सीलन भरे अंधेरों में भटकतेभटकते कभी यहां टकराती कभी वहां. कभी यहां चोट लगती तो कभी वहां. चोट खातेखाते हृदय क्षतविक्षत हो गया था. दम घुटने लगा था मेरा. जीने की चाह ही नहीं रह गई थी. मैं ऐसी जिंदगी से छुटकारा पाना चाहती थी. धीरेधीरे मेरा आत्मविश्वास खोता जा रहा था.

वैसे मुझ में आत्मविश्वास था ही कहां? वह तो मेरी मां के जाने पर उन के साथ चला गया था. वे बहुत प्यार करती थीं मुझे. उन की मीठी आवाज में लोरी सुने बिना मुझे नींद नहीं आती थी. मैं परी थी, राजकुमारी थी उन के लिए. पता नहीं वे मुझ जैसी साधारण रूपरंग वाली सामान्य सी लड़की में कहां से खूबियां ढूंढ़ लेती थीं.

मगर मेरे पास यह सुख बहुत कम समय रहा. मैं जब 5 वर्ष की थी, मेरी मां मुझे छोड़ कर इस दुनिया से चली गईं. फिर अगले बरस ही घर में मेरी छोटी मां आ गईं. उन्हें पा कर मैं बहुत खुश हो गई थी कि चलो मुझे फिर से मां मिल गईं.

वे बहुत सुंदर थीं. शायद इसी सुंदरता के वश में आ गए थे मेरे बाबूजी. मगर सुंदरता में बसा था विकराल स्वभाव. अपनी शादी के दौरान पूरे समय छोटी मां मुझे अपने साथ चिपकाए रहीं तो मैं बहुत खुश हो गई थी कि छोटी मां भी मुझे मेरी अपनी मां की तरह प्यार करेंगी. लेकिन धीरेधीरे असलियत सामने आई. बरस की छोटी सी उम्र में ही मेरे दिल ने मुझे चेता दिया कि खबरदार खतरा. मगर यह खतरा क्या था, यह मेरी समझ में नहीं आया.

सब के सामने तो छोटी मां दिखाती थीं कि वे मुझे बहुत प्यार करती हैं. मुझे अच्छे कपड़े और वे सारी चीजें मिलती थीं, जो हर छोटे बच्चे को मिलती हैं. पर केवल लोगों को दिखाने के लिए. यह कोई नहीं समझ पा रहा था कि मैं प्यार के लिए तरस रही हूं और छोटी मां के दोगले व्यवहार से सहमी हुई हूं.

सुंदर दिखने वाली छोटी मां जब दिल दहलाने वाली बातें कहतीं तो मैं कांप जाती. वे दूसरों के सामने तो शहद में घुली बातें करतीं पर अकेले में उतनी ही कड़वाहट होती थी उन की बातों में. उन की हर बात में यही बात दोहराई जाती थी कि मैं इतनी बदनसीब हूं कि बचपन में ही मां को खा गई. और मैं इतनी बदसूरत हूं कि किसी को भी अच्छी नहीं लग सकती.

उस समय उन की बात और कुटिल मुसकान का मुझे अर्थ समझ में नहीं आता था. मगर जैसेजैसे मैं बड़ी होती गई वैसेवैसे मुझे समझ में आने लगा. मगर मेरा दुख बांटने वाला कोई न था. मैं किस से कहूं और क्या कहूं? मेरे पिता भी अब मेरे नहीं रह गए थे. वे पहले भी मुझ से बहुत जुड़े हुए नहीं थे पर अब तो उन से जैसे नाता ही टूट गया था.

मैं जब युवा हुई तो मैं ने देखा कि दुनिया बड़ी रंगीन है. चारों तरफ सुंदरता है, खुशियां हैं, आजादी है और मौजमस्ती है. पर मेरे लिए कुछ भी नहीं था. मैं लड़कों से दूर रहती. अड़ोसपड़ोस के लोग घर में आते तो मुझ से नौकरानी सा व्यवहार करते. मेरी हंसी उड़ाते. अब आगे मैं कुछ न कहूंगी. कहने के लिए है ही क्या? मैं पूरी तरह अंतर्मुखी, डरपोक और कायर बन चुकी थी.

लेकिन कहते हैं न हर अंधेरी रात की एक सुनहरी सुबह होती है. सुनहरी सुबह मेरी जिंदगी में भी तब आई जब तुम बहार बन कर मेरी वीरान जिंदगी में आए.

तुम्हारी वह नजर… मैं कैसे भूल जाऊं उसे. मुझे देखते ही तुम्हारी आंखों में जो चमक आ गई थी वह जैसे मुझे एक नई जिंदगी दे गई. याद है मुझे वह दिन जब तुम किसी काम से मेरे घर आए थे. काम तुरंत पूरा न होने के कारण तुम्हें अगले दिन भी हमारे घर रुक जाना पड़ा था.

उन 2 दिनों में जब कभी हमारी नजरें टकरा जातीं या पानी या चाय देते समय जरा भी उंगलियां छू जातीं तो मेरा तनमन रोमांचित हो उठता. मेरी जिंदगी में उत्साह की नई लहर दौड़ गई थी.

फिर सब कुछ बहुत जल्दीजल्दी घट गया और तुम हमेशा के लिए मेरी जिंदगी में आ गए. एक लंबी तपस्या जैसे सफल हो गई. छोटी मां ने अनजाने में ही मुझ पर बहुत बड़ा उपकार कर दिया. उन्हें लगा होगा बिना दहेज के इतना अच्छा रिश्ता मिल रहा है और यह अनचाही बला जितनी जल्दी घर से निकल जाए उतना अच्छा.

तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जा कर ही मुझे पता चला कि तुम दफ्तर जा कर कलम घिसने वाले व्यक्ति नहीं, बल्कि फैशन डिजाइनिंग क्षेत्र के बहुत बड़ी हस्ती हो. तुम्हारा आलीशान मकान तो किसी फिल्म के सैट से कम नहीं था. नौकरचाकर, ऐशोआराम की कमी नहीं थी. मैं तो जैसे सातवें आसमान में पहुंच गई थी. फिर भी मेरे दिमाग में वही संदेह. इतने बड़े आदमी हो कर तुम ने मुझे क्यों चुना?

मेरी जिंदगी में कई अविस्मरणीय घटनाएं घटीं. अलौकिक आनंद के पल भी आए. जब भी तुम्हें कोई सफलता मिलती तुम मुझे अपनी बांहों में भर लेते और सीने से लगा लेते. उस स्पर्श की सुकोमलता तथा तुम्हारी आंखों में लहराता प्यार का सागर और तुम्हारे नम होंठों की नरमी को मैं कैसे भूल सकती हूं? ऐसे मधुर क्षणों में मुझे अपने पर गर्व होता. पर दूसरे ही पल मन में यह शंका शूल सी चुभती कि क्या मैं इस सुख के काबिल हूं? तुम मुझ पर इतने मेहरबान क्यों? जब कभी मैं ने अपने इन विचारों को तुम्हारे सामने प्रकट किया, तुम्हारे होंठों पर वही निश्छल हंसी आ जाती जिस ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था. फिर मैं सब कुछ भूल कर तुम्हारे प्यार में खो जाती.

मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए तुम कहते, ‘‘तुम नहीं जानतीं कि तुम क्या हो. अब रही सुंदरता की बात, तो मुझे रैंप पर कैटवाक करती विश्व सुंदरी नहीं चाहिए. मुझे जो सुंदरता चाहिए वह तुम में है.’’

‘‘एक बात कहूं, तुम ने मुझे अपना कर मुझे वह सम्मान दिया है, जो किसी को विरले ही मिलता है. मगर एक प्रश्न है मेरा…’’

‘‘हां मुझे मालूम है. अब तुम यह पूछोगी न कि तुम तो दावा करते हो कि मैं तुम्हें पहली ही नजर में भा गई. मगर पहली ही नजर में तुम्हें मेरे बारे में सब कुछ कैसे पता चला? यही है न तुम्हारा प्रश्न?’’ तुम ने मेरी आंखों में झांकते हुए शरारत भरी हंसी के साथ कहा तो मुझे मानना ही पड़ा कि तुम सुंदरता ही नहीं लोगों के दिलों के भी पारखी हो.

तुम ने मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘तो सुनो. तुम ने यह प्रश्न कई बार मुझ से कहे अनकहे शब्दों में पूछा. मगर हर बार मैं हंस कर टाल गया. आज जैसा मैं तुम्हें दिख रहा हूं मूलतया मैं वैसा नहीं हूं. मुझे डर था कि कहीं एक अनाथ जान कर तुम मुझ से दूर न हो जाओ. मैं ने जब से होश संभाला अपनेआप को एक अनाथाश्रम में पाया. सभी अनाथाश्रम फिल्मों या कहानियों जैसे नहीं होते. इस अनाथाश्रम की स्थापना एक ऐसे दंपती ने की थी जिन्हें ढलती उम्र में एक पुत्र पैदा हुआ था और वह बेशुमार दौलत और ऐशोआराम पा कर बुरी संगत में पड़ गया था. वह जिस तरह दोनों हाथों से रुपया लुटाता था और ऐश करता था, उसी तरह उसे दोनों हाथों से ढेरों बीमारियां भी बटोरनी पड़ीं. शादीब्याह कर अपना घर बसाने की उम्र में वह इन का घर उजाड़ कर चल बसा.

‘‘वे कुछ समय तक तो इस झटके को सह नहीं पाए और गहरे अवसाद में चले गए. पर अचानक एक दिन उन के घर के आंगन में मैं उन्हें मिल गया तो मेरी देखभाल करते हुए उन्हें जैसे अचानक यह बोध हुआ कि इस दुनिया में ऐसे कई बच्चे हैं, जो मातापिता के प्यार और सही मार्गदर्शन के अभाव में या तो सड़कों पर भीख मांगते हैं या गलत राह पर चल पड़ते हैं. उन्होंने निश्चय किया कि उन के पास जो अपार धनदौलत है उस का सदुपयोग होना चाहिए.

‘‘फिर उन्होंने एक ऐसे आदर्श अनाथाश्रम की स्थापना की जहां मुझ जैसे अनाथ बच्चों को घर की शीतल छाया ही नहीं, मांबाप का प्यार भी मिलता है.

‘‘मैं ने डै्रस डिजाइनिंग में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की. उस के बाद एक दोस्त के आग्रह पर उस के काम से जुड़ गया. दोस्त पैसा लगाता है और मैं उस के व्यापार को कार्यान्वित करता हूं. तुम तो जानती ही हो कि इस क्षेत्र में कितनी होड़ लगी रहती है. इस के लिए पैसे तो चाहिए ही. पर पैसों से ज्यादा अहमियत है एक क्रिएटिव माइंड की और मेरे मित्र को इस के लिए मुझ पर भरोसा ही नहीं गर्व भी है. और मेरी इस खूबी का खादपानी यानी जान तुम ही हो,’’ तुम ने मेरी नाक को पकड़ कर झिंझोड़ते हुए कहा तो मुझे अपने आप पर गर्व ही नहीं हुआ मानसिक शांति भी मिली. तुम ने आगे कहना जारी रखा, ‘‘मगर तुम्हारे अंदर एक बहुत बड़ा अवगुण है, जो मुझे बहुत खटकता है.’’

‘‘क्या?’’ मेरा गला सूख गया.

‘‘आत्मविश्वास की कमी. तुम जो हो, अपनेआप को उस से कम समझती हो. मैं ने लाख कोशिश की पर तुम मन के इस भाव से उबर नहीं पा रही हो.’’

यह सब सुन कर मैं अपनेआप पर इतराने लगी थी. मुझे लग रहा था कि मैं दुनिया की ऐसी खुशकिस्मत पत्नी हूं जिस का पति उसे बहुत प्यार करता है और मानसम्मान देता है. मैं और भी लगन से तुम्हारे प्रति समर्पित हो गई.

तुम रातरात भर जागते तो मैं भी तुम्हारे रंगीन कल्पनालोक में तुम्हारे साथसाथ विचरण करती. तुम जब अपने सपनों को स्कैचेज के रूप में कागज पर रखते तो मुझे दिखाते और मेरे सुझाव मांगते तो मुझे बहुत खुशी होती और मैं अपनी बुद्धि को पैनी बनाते हुए सुझाव भी देती.

लेकिन जैसा हर कलाकार होता है, तुम भी बड़े संवेदनशील हो. अपनी छोटी सी असफलता भी तुम से बरदाश्त नहीं होती. तुम्हारी आंखों की उदासी मुझ से देखी नहीं जाती. मैं जी जान से तुम्हें खुश करने की कोशिश करती और तुम सचमुच छोटे बच्चे की तरह मेरे आगोश में आ कर अपना हर गम भूल जाते. फिर नए उत्साह और जोश के साथ नए सिरे से उस काम को करते और सफलता प्राप्त कर के ही दम लेते. तब मुझे बड़ी खुशी होती और गर्व होता अपनेआप पर. धीरेधीरे मेरा यह गर्व घमंड में बदलने लगा. मुझे पता ही नहीं चला कि कब और कैसे मैं एक अभिमानी और सिरफिरी नारी बनती गई.

मुझे लगने लगा था कि ये सारी औरतें, जो धनदौलत, रूपयौवन आदि सब कुछ रखती हैं. वे सब मेरे सामने तुच्छ हैं. उन्हें अपने पतियों का प्यार पाना या उन्हें अपने वश में रखना आता ही नहीं है. मेरा यह घमंड मेरे हावभाव और बातचीत में भी छलकने लगा था. जो लोग मुझ से बड़े प्यार और अपनेपन से मिलते थे, वे अब औपचारिकता निभाने लगे थे. उन की बातचीत में शुष्कता और बनावटीपन साफ दिखता था. मुझे गुस्सा आता. मुझे लगता कि ये औरतें जलती हैं मुझ से. खुद तो नाकाम हैं पति का प्यार पाने में और मेरी सफलता इन्हें चुभती है. इन के धनदौलत और रूपयौवन का क्या फायदा?

उसी समय हमारी जिंदगी में अनुराग आ गया, हमारे प्यार की निशानी. तब जिंदगी में जैसे एक संपूर्णता आ गई. मैं बहुत खुश तो थी पर दिल के किसी एक कोने में एक बात चुभ रही थी. कहीं प्रसव के बाद मेरा शरीर बेडौल हो गया तो? मैं सुंदरी तो नहीं थी पर मुझ में जो थोड़ाबहुत आकर्षण है, वह भी खो गया तो? पता नहीं कहां से एक असुरक्षा की भावना मेरे मन में कुलबुलाने लगी. एक बार शक या डर का बीज मन में पड़ जाता है तो वह महावृक्ष बन कर मानता है. मेरे मन में बारबार यह विचार आता कि तुम्हारा वास्ता तो सुंदरसुंदर लड़कियों से पड़ता है. तुम रोज नएनए लोगों से मिलते हो. कहीं तुम मुझ से ऊब कर दूर न हो जाओ. मैं तुम्हारे बिना अपने बारे में कुछ सोच भी नहीं सकती थी.

अब मैं तुम्हारी हर हरकत पर नजर रखने लगी. तुम कहांकहां जाते हो, किसकिस से मिलते हो, क्याक्या करते हो… यानी तुम्हारी छोटी से छोटी बात मुझे पता होती थी. इस के लिए मुझे कई पापड़ बेलने पड़े, क्योंकि यह काम इतना आसान नहीं था.

अब मैं दिनरात अपनेआप में कुढ़ती रहती. जब भी सुंदर और कामयाब स्त्रियां तुम्हारे आसपास होतीं, तो मैं ईर्ष्या की आग में जलती. तब कोई न कोई कड़वी बात मेरे मुंह से निकलती, जो सारे माहौल को खराब कर देती.

यहां तक कि घर में भी छिटपुट वादविवाद और चिड़चिड़ापन वातावरण को गरमा देता. मेरे अंदर जलती आग की आंच तुम तक पहुंच तो गई पर तुम नहीं समझ पाए कि इस का असली कारण क्या था. तुम्हारी भलमानसी को मैं क्या कहूं कि तुम अपनी तरफ से घर में शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करते रहे. तुम समझते रहे कि घर में छोटे बच्चे का आना ही मेरे चिड़चिड़ेपन का कारण है. उसे मैं संभाल नहीं पा रही हूं. उस की देखभाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी के कारण मैं थक जाती हूं, इसीलिए मेरा व्यवहार इतना रूखा और चिड़चिड़ा हो गया है. तुम्हें अपने पर ग्लानि होने लगी कि तुम मुझे और बच्चे को इतना समय नहीं दे पा रहे हो, जितना देना चाहिए.

आज तुम्हारे सामने एक बात स्वीकारने में मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं होगी. भले ही मेरी नादानी पर तुम जी खोल कर हंस लो या नाराज हो जाओ. अगर तुम नाराज भी हो गए तो मैं तुम से क्षमा मांग कर तुम्हें मना लूंगी. मैं जानती हूं कि तुम मुझ से ज्यादा देर तक नाराज नहीं रह सकते. सच कहूं? मेरी आंखें खोलने का सारा श्रेय मेरी सहेली सुरुचि को जाता है. जानते हो कल क्या हुआ था? मुझे अचानक तेज सिरदर्द हो गया था. लेकिन वास्तव में मुझे कोई सिरदर्द विरदर्द नहीं था. मैं अंदर ही अंदर जलन की ज्वाला में जल रही थी. यह बीमारी तो मुझे कई दिनों से हो गई थी जिस का तुम्हें आभास तक नहीं है. हो भी कैसे? तुम्हें उलटासीधा सोचना जो आता नहीं है. मगर सुरुचि को बहुत पहले ही अंदाजा हो गया था.

कल शाम मुझे अकेली माथे पर बल डाले बैठी देख वह मेरे पास आ कर बैठते हुए बोली, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम यहां अकेली बैठ कर क्या कर रही हो. मैं कई दिनों से तुम से कहना चाह रही थी मगर मैं जानती हूं कि तुम बहुत संवेदनशील हो और दूसरी बात मुझे आशा थी कि तुम समझदार हो और अपने परिवार का बुराभला देरसवेर स्वयं समझ जाओगी. मगर अब मुझ से तुम्हारी हालत देखी नहीं जाती. तुम जो कुछ भी कर रही हो न वह बिलकुल गलत है. अपने मन को वश में रखना सीखो. लोगों को सही पहचानना सीखो. तुम्हारा सारा ध्यान अपने पति के इर्दगिर्द घूमती चकाचौंध कर देने वाली लड़कियों पर है. उन की भड़कीली चमक के कारण तुम्हें अपने पति का असली रूप भी नजर नहीं आ रहा है. अरे एक बार स्वच्छ मन से उन की आंखों में झांक कर देखो, वहां तुम्हारे लिए हिलोरें लेता प्यार नजर आएगा.

‘‘तुम पुरु भाईसाहब को तो जानती ही हो. वे इतने रंगीन मिजाज हैं कि रंगरेलियों का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते. वही क्यों? इस ग्लैमर की दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं. ऐसे माहौल में तुम्हारे पति ऐसे लोगों से बिलकुल अलग हैं. पुरु भाई साहब की बीवी, बेचारी मीना कितनी दुखी होगी अपने पति के इस रंगीन मिजाज को ले कर. सब के बीच कितनी अपमानित महसूस करती होगी. किस से कहे वह अपना दुख? तुम जानती नहीं हो कि कितने लोग तुम्हारी जिंदगी से जलते हैं.

‘‘पुरु भाईसाहब जैसे लोग जब उन्हें गलत कामों के लिए उकसाते हैं. तब जानती हो वे क्या कहते हैं? देखो, घर के स्वादिष्ठ भोजन को छोड़ कर मैं सड़क की जूठी पत्तलों पर मुंह मारना पसंद नहीं करता. मेरी पत्नी मेरी सर्वस्व है. वह अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर मेरे साथ आई है और अपना सर्वस्व मुझ पर निछावर करती है. उस की खुशी मेरी खुशी में है. वह मेरे दुख से दुखी हो कर आंसू बहाती है. ऐसी पत्नी को मैं धोखा नहीं दे सकता. वह मेरी प्रेरणा है. मेरी और मेरे परिवार की खुशहाली उसी के हाथों में है.’’

फिर सुरुचि ने मुझे डांटते हुए कहा ‘‘तुम्हें तो ऐसे पति को पा कर निहाल हो जाना चाहिए और अपनेआप को धन्य समझना चाहिए.’’

उस की इन बातों से मुझे अपनेआप पर ग्लानि हुई. उस के गले लग कर मैं इतनी रोई कि मेरे मन का सारा मैल धुल गया और मुझे असीम शांति मिली. मुझे ऐसा लगा जैसे धूप में भटकते राही को ठंडी छांव मिल गई. मैं तुम से माफी मांगना चाहती हूं और तुम्हारे सामने समर्पण करना चाहती हूं. अब ये तुम्हारे हाथ में है कि तुम अपनी इस भटकी हुई पुजारिन को अपनाते हो या ठुकरा देते हो.

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