एक रिक्त कोना: क्या सुशांत का अकेलापन दूर हो पाया

सुशांत मेरे सामने बैठे अपना अतीत बयान कर रहे थे: ‘‘जीवन में कुछ भी तो चाहने से नहीं होता है. इनसान सोचता कुछ है होता कुछ और है. बचपन से ले कर जवानी तक मैं यही सोचता रहा…आज ठीक होगा, कल ठीक होगा मगर कुछ भी ठीक नहीं हुआ. किसी ने मेरी नहीं सुनी…सभी अपनेअपने रास्ते चले गए. मां अपने रास्ते, पिता अपने रास्ते, भाई अपने रास्ते और मैं खड़ा हूं यहां अकेला. सब के रास्तों पर नजर गड़ाए. कोई पीछे मुड़ कर देखता ही नहीं. मैं क्या करूं?’’

वास्तव में कल उन का कहां था, कल तो उन के पिता का था. उन की मां का था, वैसे कल उस के पिता का भी कहां था, कल तो था उस की दादी का.

विधवा दादी की मां से कभी नहीं बनी और पिता ने मां को तलाक दे दिया. जिस दादी ने अकेले रह जाने पर पिता को पाला था क्या बुढ़ापे में मां से हाथ छुड़ा लेते?

आज उन का घर श्मशान हो गया. घर में सिर्फ रात गुजारने आते हैं वह और उन के पिता, बस.

‘‘मेरा तो घर जाने का मन ही नहीं होता, कोई बोलने वाला नहीं. पानी पीना चाहो तो खुद पिओ. चाय को जी चाहे तो रसोई में जा कर खुद बना लो. साथ कुछ खाना चाहो तो बिस्कुट का पैकेट, नमकीन का पैकेट, कोई चिप्स कोई दाल, भुजिया खा लो.

‘‘मेरे दोस्तों के घर जाओ तो सामने उन की मां हाथ में गरमगरम चाय के साथ खाने को कुछ न कुछ जरूर ले कर चली आती हैं. किसी की मां को देखता हूं तो गलती से अपनी मां की याद आने लगती है.’’

‘‘गलती से क्यों? मां को याद करना क्या गलत है?’’

‘‘गलत ही होगा. ठीक होता तो हम दोनों भाई कभी तो पापा से पूछते कि हमारी मां कहां है. मुझे तो मां की सूरत भी ठीक से याद नहीं है, कैसी थीं वह…कैसी सूरत थी. मन का कोना सदा से रिक्त है… क्या मुझे यह जानने का अधिकार नहीं कि मेरी मां कैसी थीं जिन के शरीर का मैं एक हिस्सा हूं?

‘‘कितनी मजबूर हो गई होंगी मां जब उन्होंने घर छोड़ा होगा…दादी और पापा ने कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा होगा उन के लिए वरना 2-2 बेटों को यों छोड़ कर कभी नहीं जातीं.’’

‘‘आप की भाभी भी तो हैं. उन्होंने घर क्यों छोड़ दिया?’’

‘‘वह भी साथ नहीं रहना चाहती थीं. उन का दम घुटता था हमारे साथ. वह आजाद रहना चाहती थीं इसलिए शादी के कुछ समय बाद ही अलग हो गईं… कभीकभी तो मुझे लगता है कि मेरा घर ही शापित है. शायद मेरी मां ने ही जातेजाते श्राप दिया होगा.’’

‘‘नहीं, कोई मां अपनी संतान को श्राप नहीं देती.’’

‘‘आप कैसे कह सकती हैं?’’

‘‘क्योंकि मेरे पेशे में मनुष्य की मानसिकता का गहन अध्ययन कराया जाता है. बेटा मां का गला काट सकता है लेकिन मां मरती मर जाए, बच्चे को कभी श्राप नहीं देती. यह अलग बात है कि बेटा बहुत बुरा हो तो कोई दुआ भी देने को उस के हाथ न उठें.’’

‘‘मैं नहीं मानता. रोज अखबारों में आप पढ़ती नहीं कि आजकल मां भी मां कहां रह गई हैं.’’

‘‘आप खूनी लोगों की बात छोड़ दीजिए न, जो लोग अपराधी स्वभाव के होते हैं वे तो बस अपराधी होते हैं. वे न मां होते हैं न पिता होते हैं. शराफत के दायरे से बाहर के लोग हमारे दायरे में नहीं आते. हमारा दायरा सामान्य है, हम आम लोग हैं. हमारी अपेक्षाएं, हमारी इच्छाएं साधारण हैं.’’

बेहद गौर से वह मेरा चेहरा पढ़ते रहे. कुछ चुभ सा गया. जब कुछ अच्छा समझाती हूं तो कुछ रुक सा जाते हैं. उन के भाव, उन के चेहरे की रेखाएं फैलती सी लगती हैं मानो कुछ ऐसा सुना जो सुनना चाहते थे.

आंखों में आंसू आ रहे थे सुशांत की.

मुझे यह सोच कर बहुत तकलीफ होती है कि मेरी मां जिंदा हैं और मेरे पास नहीं हैं. वह अब किसी और की पत्नी हैं. मैं मिलना चाह कर भी उन से नहीं मिल सकता. पापा से चोरी-चोरी मैं ने और भाई ने उन्हें तलाश किया था. हम दोनों मां के घर तक भी पहुंच गए थे लेकिन मां हो कर भी उन्होंने हमें लौटा दिया था… सामने पा कर भी उन्होंने हमें छुआ तक नहीं था, और आप कहती हैं कि मां मरती मर जाए पर अपनी संतान को…’’

‘‘अच्छा ही तो किया आप की मां ने. बेचारी, अपने नए परिवार के सामने आप को गले लगा लेतीं तो क्या अपने परिवार के सामने एक प्रश्नचिह्न न खड़ा कर देतीं. कौन जाने आप के पापा की तरह उन्होंने भी इस विषय को पूरी तरह भुला दिया हो. क्या आप चाहते हैं कि वह एक बार फिर से उजड़ जाएं?’’

सुशांत अवाक् मेरा मुंह देखते रह गए थे.

‘‘आप बचपना छोड़ दीजिए. जो छूट गया उसे जाने दीजिए. कम से कम आप तो अपनी मां के साथ अन्याय न कीजिए.’’

मेरी डांट सुन कर सुशांत की आंखों में उमड़ता नमकीन पानी वहीं रुक गया था.

‘‘इनसान के जीवन में सदा वही नहीं होता जो होना चाहिए. याद रखिए, जीवन में मात्र 10 प्रतिशत ऐसा होता है जो संयोग द्वारा निर्धारित किया जाता है, बाकी 90 प्रतिशत तो वही होता है जिस का निर्धारण व्यक्ति स्वयं करता है. अपना कल्याण या अपना सर्वनाश व्यक्ति अपने ही अच्छे या बुरे फैसले द्वारा करता है.

‘‘आप की मां ने समझदारी की जो आप को पहचाना नहीं. उन्हें अपना घर बचाना चाहिए जो उन के पास है…आप को वह गले क्यों लगातीं जबकि आप उन के पास हैं ही नहीं.

‘‘देखिए, आप अपनी मां का पीछा छोड़ दीजिए. यही मान लीजिए कि वह इस संसार में ही नहीं हैं.’’

‘‘कैसे मान लूं, जब मैं ने उन का दाहसंस्कार किया ही नहीं.’’

‘‘आप के पापा ने तो तलाक दे कर रिश्ते का दाहसंस्कार कर दिया था न… फिर अब आप क्यों उस राख को चौराहे का मजाक बनाना चाहते हैं? आप समझते क्यों नहीं कि जो भी आप कर रहे हैं उस से किसी का भी भला होने वाला नहीं है.’’

अपनी जबान की तल्खी का अंदाज मुझे तब हुआ जब सुशांत बिना कुछ कहे उठ कर चले गए. जातेजाते उन्होंने यह भी नहीं बताया कि अब कब मिलेंगे वह. शायद अब कभी नहीं मिलेंगे.

सुशांत पर तरस आ रहा था मुझे क्योंकि उन से मेरे रिश्ते की बात चल रही थी. वह मुझ से मिलने मेरे क्लीनिक में आए थे. अखबार में ही उन का विज्ञापन पढ़ा था मेरे पिताजी ने.

‘‘सुशांत तुम्हें कैसा लगा?’’ मेरे पिता ने मुझ से पूछा.

‘‘बिलकुल वैसा ही जैसा कि एक टूटे परिवार का बच्चा होता है.’’

पिताजी थोड़ी देर तक मेरा चेहरा पढ़ते रहे फिर कहने लगे, ‘‘सोच रहा हूं कि बात आगे बढ़ाऊं या नहीं.’’

पिताजी मेरी सुरक्षा को ले कर परेशान थे…बिलकुल वैसे जैसे उन्हें होना चाहिए था. सुशांत के पिता मेरे पिता को पसंद थे. संयोग से दोनों एक ही विभाग में कार्य करते थे उसी नाते सुशांत 1-2 बार मुझे मेरे क्लीनिक में ही मिलने चले आए थे और अपना रिक्त कोना दिखा बैठे थे.

मैं सुशांत को मात्र एक मरीज मान कर भूल सी गई थी. उस दिन मरीज कम थे सो घर जल्दी आ गई. फुरसत थी और पिताजी भी आने वाले थे इसलिए सोचा, क्यों न आज  चाय के साथ गरमागरम पकौडि़यां और सूजी का हलवा बना लूं.

5 बजे बाहर का दरवाजा खुला और सामने सुशांत को पा कर मैं स्तब्ध रह गई.

‘‘आज आप क्लीनिक से जल्दी आ गईं?’’ दरवाजे पर खड़े हो सुशांत बोले, ‘‘आप के पिताजी मेरे पिताजी के पास गए हैं और मैं उन की इजाजत से ही घर आया हूं…कुछ बुरा तो नहीं किया?’’

‘‘जी,’’ मैं कुछ हैरान सी इतना ही कह पाई थी कि चेहरे पर नारी सुलभ संकोच तैर आया था.

अंदर आने के मेरे आग्रह पर सुशांत दो कदम ही आगे बढे़ थे कि फिर कुछ सोच कर वहीं रुक गए जहां खड़े थे.

‘‘आप के घर में घर जैसी खुशबू है, प्यारीप्यारी सी, मीठीमीठी सी जो मेरे घर में कभी नहीं होती है.’’

‘‘आप उस दिन मेरी बातें सुन कर नाराज हो गए होंगे यही सोच कर मैं ने भी फोन नहीं किया,’’ अपनी सफाई में मुझे कुछ तो कहना था न.

‘‘नहीं…नाराजगी कैसी. आप ने तो दिशा दी है मुझे…मेरी भटकन को एक ठहराव दिया है…आप ने अच्छे से समझा दिया वरना मैं तो बस भटकता ही रहता न…चलिए, छोडि़ए उन बातों को. मैं सीधा आफिस से आ रहा हूं, कुछ खाने को मिलेगा.’’

पता नहीं क्यों, मन भर आया मेरा. एक लंबाचौड़ा पुरुष जो हर महीने लगभग 30 हजार रुपए कमाता है, जिस का अपना घर है, बेघर सा लगता है, मानो सदियों से लावारिस हो.

पापा का और मेरा गरमागरम नाश्ता मेज पर रखा था. अपने दोस्तों के घर जा कर उन की मां के हाथों में छिपी ममता को तरसी आंखों से देखने वाला पुरुष मुझ में भी शायद वही सब तलाश रहा था.

‘‘आइए, बैठिए, मैं आप के लिए चाय लाती हूं. आप पहले हाथमुंह धोना चाहेंगे…मैं आप के लिए तौलिया लाऊं?’’

मैं हतप्रभ सी थी. क्या कहूं और क्या न कहूं. बालक की तरह असहाय से लग रहे थे सुशांत मुझे. मैं ने तौलिया पकड़ा दिया तब एकटक निहारते से लगे.

मैं ने नाश्ता प्लेट में सजा कर सामने रखा. खाया नहीं बस, देखते रहे. मात्र चम्मच चलाते रहे प्लेट में.

‘‘आप लीजिए न,’’ मैं ने खाने का आग्रह किया.

वह मेरी ओर देख कर कहने लगे, ‘‘कल एक डिपार्टमेंटल स्टोर में मेरी मां मिल गईं. वह अकेली थीं इसलिए उन्होंने मुझे पुकार लिया. उन्होंने बड़े प्यार से मेरा हाथ पकड़ लिया था लेकिन मैं ने अपना हाथ छुड़ा लिया.’’

सुशांत की बातें सुन कर मेरी तो सांस रुक सी गई. बरसों बाद मां का स्पर्श कैसा सुखद लगा होगा सुशांत को.

सहसा सुशांत दोनों हाथों में चेहरा छिपा कर बच्चे की तरह रो पड़े. मैं देर तक उन्हें देखती रही. फिर धीरे से सुशांत के कंधे पर हाथ रखा. सहलाती भी रही. काफी समय लग गया उन्हें सहज होने में.

‘‘मैं ने ठीक किया ना?’’ मेरा हाथ पकड़ कर सुशांत बोले, ‘‘आप ने कहा था न कि मुझे अपनी मां को जीने देना चाहिए इसलिए मैं अपना हाथ खींच कर चला आया.’’

क्या कहती मैं? रो पड़ी थी मैं भी. सुशांत मेरा हाथ पकड़े रो रहे थे और मैं उन की पीड़ा, उन की मजबूरी देख कर रो रही थी. हम दोनों ही रो रहे थे. कोई रिश्ता नहीं था हम में फिर भी हम पास बैठे एकदूसरे की पीड़ा को जी रहे थे. सहसा मेरे सिर पर सुशांत का हाथ आया और थपक दिया.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो. जिस दिन से तुम से मिला हूं ऐसा लगता है कोई अपना मिल गया है. 10 दिनों के लिए शहर से बाहर गया था इसलिए मिलने नहीं आ पाया. मैं टूटाफूटा इनसान हूं…स्वीकार कर जोड़ना चाहोगी…मेरे घर को घर बना सकोगी? बस, मैं शांति व सुकून से जीना चाहता हूं. क्या तुम भी मेरे साथ जीना चाहोगी?’’

डबडबाई आंखों से मुझे देख रहे थे सुशांत. एक रिश्ते की डोर को तोड़ कर दुखी भी थे और आहत भी. मुझ में सुशांत क्याक्या तलाश रहे होंगे यह मैं भलीभांति महसूस कर सकती थी. अनायास ही मेरा हाथ उठा और दूसरे ही पल सुशांत मेरी बांहों में समाए फिर उसी पीड़ा में बह गए जिसे मां से हाथ छुड़ाते समय जिया था.

‘‘मैं अपनी मां से हाथ छुड़ा कर चला आया? मैं ने अच्छा किया न…शुभा मैं ने अच्छा किया न?’’ वह बारबार पूछ रहे थे.

‘‘हां, आप ने बहुत अच्छा किया. अब वह भी पीछे मुड़ कर देखने से बच जाएंगी…बहुत अच्छा किया आप ने.’’

एक तड़पतेबिलखते इनसान को किसी तरह संभाला मैं ने. तनिक चेते तब खुद ही अपने को मुझ से अलग कर लिया.

शीशे की तरह पारदर्शी सुशांत का चरित्र मेरे सामने था. कैसे एक साफसुथरे सचरित्र इनसान को यों ही अपने जीवन से चला जाने देती. इसलिए मैं ने सुशांत की बांह पकड़ ली थी.

साड़ी के पल्लू से आंखों को पोंछने का प्रयास किया तो सहसा सुशांत ने मेरा हाथ पकड़ लिया और देर तक मेरा चेहरा निहारते रहे. रोतेरोते मुसकराने लगे. समीप आ कर धीरे से गरदन झुकाई और मेरे ललाट पर एक प्रगाढ़ चुंबन अंकित कर दिया. फिर अपने ही हाथों से अपने आंसू पोंछ लिए.

अपने लिए मैं ने सुशांत को चुन लिया. उन्हें भावनात्मक सहारा दे पाऊंगी यह विश्वास है मुझे. लेकिन उन के मन का वह रिक्त स्थान कभी भर पाऊंगी ऐसा विश्वास नहीं क्योंकि संतान के मन में मां का स्थान तो सदा सुरक्षित होता है न, जिसे मां के सिवा कोई नहीं भर सकता. जो जीवन रहते बेटी को बेटी कह कर छाती से न लगा सकी.

आंगन का बिरवा: सहेली मीरा ने नेहा को क्या दी सलाह

पलकें मूंदे मैं आराम की मुद्रा में लेटी थी तभी सौम्या की आवाज कानों में गूंजी, ‘‘मां, शलभजी आए हैं.’’

उस का यह शलभजी संबोधन मुझे चौंका गया. मैं भीतर तक हिल गई परंतु मैं ने अपने हृदय के भावों को चेहरे पर प्रकट नहीं होने दिया, सहज भाव से सौम्या की तरफ देख कर कहा, ‘‘ड्राइंगरूम में बिठाओ. अभी आ रही हूं.’’

उस के जाने के बाद मैं गहरी चिंता में डूब गई कि कहां चूक हुई मुझ से? यह ‘शलभ अंकल’ से शलभजी के बीच का अंतराल अपने भीतर कितना कुछ रहस्य समेटे हुए है. व्यग्र हो उठी मैं. सच में युवा बेटी की मां होना भी कितना बड़ा उत्तरदायित्व है. जरा सा ध्यान न दीजिए तो बीच चौराहे पर इज्जत नीलाम होते देर नहीं लगती. मुझे धैर्य से काम लेना होगा, शीघ्रता अच्छी नहीं.

प्रारंभ से ही मैं यह समझती आई हूं कि बच्चे अपनी मां की सुघड़ता और फूहड़ता का जीताजागता प्रमाण होते हैं. फिर मैं तो शुरू से ही इस विषय में बहुत सजग, सतर्क रही हूं. मैं ने संदीप और सौम्या के व्यक्तित्व की कमी को दूर कर बड़े सलीके से संवारा है, तभी तो सभी मुक्त कंठ से मेरे बच्चों को सराहते हैं, साथ में मुझे भी, परंतु फिर यह सौम्या…नहीं, इस में सौम्या का भी कोई दोष नहीं. उम्र ही ऐसी है उस की. नहीं, मैं अपने आंगन की सुंदर, सुकोमल बेल को एक बूढ़े, जर्जर, जीर्णशीर्ण दरख्त का सहारा ले, असमय मुरझाने नहीं दूंगी.

अब तक मैं अपने बच्चों के लिए जो करती आई हूं वह तो लगभग अपनी क्षमता और लगन के अनुसार सभी मांएं करती हैं. मेरी परख तो तब होगी जब मैं इस अग्निपरीक्षा में खरी उतरूंगी. मुझे इस कार्य में किसी का सहारा नहीं लेना है, न मायके का और न ससुराल का. मुंह से निकली बात पराई होते देर ही कितनी लगती है. हवा में उड़ती हैं ऐसी बातें. नहीं, किसी पर भरोसा नहीं करना है मुझे,  सिर्फ अपने स्तर पर लड़नी है यह लड़ाई.

बाहर के कमरे से सौम्या और शलभ की सम्मिलित हंसी की गूंज मुझे चौंका गई. मैं धीमे से उठ कर बाहर के कमरे की तरफ चल पड़ी.

‘‘नमस्ते, भाभीजी,’’ शलभ मुसकराए.

‘‘नमस्ते, नमस्ते,’’ मेरे चेहरे पर सहज मीठी मुसकान थी परंतु अंतर में ज्वालामुखी धधक रहा था.

‘‘कैसी तबीयत है आप की,’’ उन्होंने कहा.

‘‘अब ठीक हूं भाईसाहब. बस, आप लोगों की मेहरबानी से उठ खड़ी हुई हूं,’’ कह कर मैं ने सौम्या को कौफी बना लाने के लिए कहा.

‘‘मेहरबानी कैसी भाभीजी. आप जल्दी ठीक न होतीं तो अपने दोस्त को क्या मुंह दिखाता मैं?’’

मुझे वितृष्णा हो रही थी इस दोमुंहे सांप से. थोड़ी देर बाद मैं ने उन्हें विदा किया. मन की उदासी जब वातावरण को बोझिल बनाने लगी तब मैं उठ कर धीमे कदमों से बाहर बरामदे में आ बैठी. कुछ खराब स्वास्थ्य और कुछ इन का दूर होना मुझे बेचैन कर जाता था, विशेषकर शाम के समय. ऊपर  से इस नई चिंता ने तो मुझे जीतेजी अधमरा कर दिया था. मैं ने नहीं सोचा था कि इन के जाने के बाद मैं कई तरह की परेशानियों से घिर जाऊंगी.

उस समय तो सबकुछ सुचारु रूप से चल रहा था, जब इन के लिए अमेरिका के एक विश्वविद्यालय ने उन की कृषि से संबंधित विशेष शोध और विशेष योग्यताओं को देखते हुए, अपने यहां के छात्रों को लाभान्वित करने के लिए 1 साल हेतु आमंत्रित किया था. ये जाने के विषय में तत्काल निर्णय नहीं ले पाए थे. 1 साल का समय कुछ कम नहीं होता. फिर मैं और सौम्या  यहां अकेली पड़ जाएंगी, इस की चिंता भी इन्हें थी.

संदीप का अभियांत्रिकी में चौथा साल था. वह होस्टल में था. ससुराल और पीहर दोनों इतनी दूर थे कि हमेशा किसी की देखरेख संभव नहीं थी. तब मैं ने ही इन्हें पूरी तरह आश्वस्त कर जाने को प्रेरित किया था. ये चिंतित थे, ‘कैसे संभाल पाओगी तुम यह सब अकेले, इतने दिन?’

‘आप को मेरे ऊपर विश्वास नहीं है क्या?’ मैं बोली थी.

‘विश्वास तो पूरा है नेहा. मैं जानता हूं कि तुम घर के लिए पूरी तरह समर्पित पत्नी, मां और सफल शिक्षिका हो. कर्मठ हो, बुद्धिमान हो लेकिन फिर भी…’

‘सब हो जाएगा, इतना अच्छा अवसर आप हाथ से मत जाने दीजिए, बड़ी मुश्किल से मिलता है ऐसा स्वर्णिम अवसर. आप तो ऐसे डर रहे हैं जैसे मैं गांव से पहली बार शहर आई हूं,’ मैं ने हंसते हुए कहा था.

‘तुम जानती हो नेहा, तुम व बच्चे मेरी कमजोरी हो,’ ये भावुक हो उठे थे, ‘मेरे लिए 1 साल तुम सब के बिना काटना किसी सजा जैसा ही होगा.’

फिर इन्होंने मुझे अपने से चिपका लिया था. इन के सीने से लगी मैं भी 1 साल की दूरी की कल्पना से थोड़ी देर के लिए विचलित हो उठी थी, परंतु फिर बरबस अपने ऊपर काबू पा लिया था कि यदि मैं ही कमजोर पड़ गई तो ये जाने से साफ इनकार कर देंगे.

‘नहीं, नहीं, पति के उज्ज्वल भविष्य व नाम के लिए मुझे स्वयं को दृढ़ करना होगा,’ यह सोच मैं ने भर आई आंखों के आंसुओं को भीतर ही सोख लिया और मुसकराते हुए इन की तरफ देख कर कहा, ‘1 साल होता ही कितना है? चुटकियों में बीत जाएगा. फिर यह भी तो सोचिए कि यह 1 साल आप के भविष्य को एक नया आयाम देगा और फिर, कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है न?’

‘पर यह कीमत कुछ ज्यादा नहीं है?’ इन्होंने सीधे मेरी आंखों में झांकते हुए कहा था.

वैसे इन का विचलित होना स्वाभाविक ही था. जहां इन के मित्रगण विश्वविद्यालय के बाद का समय राजनीति और बैठकबाजी में बिताते थे, वहीं ये काम के बाद का अधिकांश समय घर में परिवार के साथ बिताते थे. जहां भी जाना होता, हम दोनों साथ ही जाते थे. आखिरकार सोचसमझ कर ये जाने की तैयारी में लग गए थे. सभी मित्रोंपरिचितों ने भी इन्हें आश्वस्त कर जाने को प्रेरित किया था.

इन के जाने के बाद मैं और सौम्या अकेली रह गई थीं. इन के जाने से घर में अजीब सा सूनापन घिर आया था. मैं अपने विद्यालय चली जाती और सौम्या अपने कालेज. सौम्या का इस साल बीए अंतिम वर्ष था. जब कभी उस की सहेलियां आतीं तो घर की उदासी उन की खिलखिलाहटों से कुछ देर को दूर हो जाती थी.

समय जैसेतैसे कट रहा था. इधर, सौम्या कुछ अनमनी सी रहने लगी थी. पिता की दूरी उसे कुछ ज्यादा ही खल रही थी. हां, इस बीच इन के मित्र कभी अकेले, कभी परिवार सहित आ कर हालचाल पूछ लिया करते थे.

मेरी सहयोगी शिक्षिकाएं भी बहुधा आती रहतीं, विशेषकर इन के मित्र शलभजी और मेरी सखी मीरा. शलभ इन के परममित्रों में से थे. इन के विभाग में ही रीडर थे एवं अभी तक कुंआरे ही थे. बड़ा मिलनसार स्वभाव था और बड़ा ही आकर्षक व्यक्तित्व. आते तो घंटों बातें करते. सौम्या भी उन से काफी हिलमिल गई थी.

मीरा मेरी सहयोगी प्राध्यापिका और घनिष्ठ मित्र थी. हम दोनों के विचारों में अद्भुत साम्य अंतरंगता स्थापित करने में सहायक हुआ था. मन की बातें, उलझनें, दुखसुख आपस में बता कर हम हलकी हो लेती थीं. उस के पति डाक्टर थे तथा 2 बेटे थे अक्षय और अभय. अक्षय का इसी साल पीसीएस में चयन हुआ था.

सत्र की समाप्ति के बाद संदीप भी आ गया था. उस के आने से घर की रौनक जाग उठी थी. दोनों भाईबहन नितनए कार्यक्रम बनाते और मुझे भी उन का साथ देना ही पड़ता. दोनों के दोस्तों और सहेलियों से घर भर उठता. बच्चों के बीच में मैं भी हंसबोल लेती, पर मन का कोई कोना खालीखाली, उदास रहता. इन की यादों की कसक टीस देती रहती थी.

वैसे भी उम्र के इस तीसरे प्रहर में साथी की दूरी कुछ ज्यादा ही तकलीफदेह होती है. पतिपत्नी एकदूसरे की आदत में शामिल हो जाते हैं. इन के लंबेलंबे पत्र आते. वहां कैसे रहते हैं, क्या करते हैं, सारी बातें लिखी रहतीं. जिस दिन पत्र मिलता, मैं और सौम्या बारबार पढ़ते, कई दिन तक मन तरोताजा, खुश रहता. फिर दूसरे पत्र का इंतजार शुरू हो जाता.

एक दिन विद्यालय में कक्षा लेते समय एकाएक जोर का चक्कर आ जाने से मैं गिर पड़ी. छात्राओं तथा मेरे अन्य सहयोगियों ने मिल कर मुझे तुरंत अस्पताल पहुंचाया. डाक्टर ने उच्च रक्तचाप बतलाया और कम से कम 1 महीना आराम करने की सलाह दी.

इस बीच, सौम्या बिलकुल अकेली पड़ गई. घर, अपना विद्यालय और फिर मुझे तीनों को संभालना उस अकेली के लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था. तब शलभजी और मीरा ने काफी सहारा दिया.

मेरी तो तबीयत खराब थी, इसलिए जो भी आता उस की सौम्या से ही बातें होतीं. हां, मीरा आती तो विद्यालय के समाचार मिलते रहते. शलभजी भी मुझ से हाल पूछ सौम्या से ही अधिकतर बातें करते रहते.

इधर, शलभजी और सौम्या में काफी पटने लगी. आश्चर्य तब होता जब मेरे सामने आते ही दोनों असहज होने लगते. बस, इसी बात ने मुझे चौकन्ना किया.

शलभजी और सौम्या? बापबेटी का सा अंतर, इन से बस 2-4 साल ही छोटे होंगे वे, कनपटियों पर से सफेद होते बाल, इकहरा शरीर, चुस्तदुरुस्त पोशाक और बातें करने का अपना एक विशिष्ट आकर्षक अंदाज, सब मिला कर मर्दाना खूबसूरती का प्रतीक.

मुझे आश्चर्य होता कि मेरा हाल पूछने आए शलभ, मेरा हाल पूछना भूल, खड़ेखड़े ही सौम्या को आवाज लगाते कि सौम्या, आओ, तुम्हें बाहर घुमा लाऊं, बोर हो रही होगी और सौम्या भी ‘अभी आई’ कह कर झट अपनी खूबसूरत पोशाक पहन, सैंडिल खटखटाती बाहर निकल जाती.

सौम्या तो खैर अभी कच्ची उम्र की नासमझ लड़की थी, पर इस परिपक्व प्रौढ़ की बेहयाई देख मैं दंग थी. सोचती, क्या दैहिक भूख इतनी प्रबल हो उठी है कि सारे समीकरण, सारी परिभाषाएं इस तृष्णा के बीच अपनी पहचान खो, बौनी हो जाती हैं, नैतिकता अतृप्ति की अंधी अंतहीन गलियों में कहीं गुम हो जाती है. शायद, हां. तभी तो जिस वर्जित फल का शलभ अपनी जवानी के दिनों में रसास्वादन न कर सके थे,

इस पकी उम्र में उस के लोभ से स्वयं को बचा पाना उन के लिए कठिन हो रहा था. वैसे भी बुढ़ापे में अगर मन विचलित हो जाए तो उस पर नियंत्रण करना कठिन ही होता है. तिस पर सुकोमल, कमनीय, सुंदर सौम्या. दिग्भ्रमित हो उठे थे शलभजी.

वे आए दिन उस के लिए उपहार लाने लगे थे. कभी सलवारकुरता, कभी स्कर्टब्लाउज तो कभी नाइटी. सौम्या भी उन्हें सहर्ष ग्रहण कर लेती. मैं ने 2-3 बार शलभजी से कहा, ‘भाईसाहब, आप इस की आदत खराब कर रहे हैं, कितनी सारी पोशाकें तो हैं इस के पास.’

‘क्यों, क्या मैं इस को कुछ नहीं दे सकता? इतना अधिकार भी नहीं है मुझे? बहुत स्नेह है मुझे इस से,’ कह कर वे प्यारभरी नजरों से सौम्या की तरफ देखते. उस दृष्टि में किसी बुजुर्ग का निश्छल स्नेह नहीं झलकता था, बल्कि वह किसी उच्छृंखल प्रेमी की वासनामय काकदृष्टि थी.

मुझे लगता कि कपटी पुरुष स्नेह का मुखौटा लगा, सौम्या की इस नादानी और भोलेपन का लाभ उठा, उस का जीवन बरबाद कर सकता है. मेरे सामने यह समस्या एक चुनौती के रूप में सामने खड़ी थी. इन के वापस आने में 7 महीने बाकी थे. संदीप का यह अंतिम वर्ष था. उस से कुछ कहना भी उचित नहीं था.

प्रश्नों और संदेहों के चक्रव्यूह में उलझी मैं इस समस्या के घेरे से निकलने के लिए बुरी तरह से हाथपैर मार रही थी. तभी निराशा के गहन अंधकार में दीपशिखा की ज्योति से चमके थे मीरा के ये शब्द, ‘नेहा, सौम्या को तू मुझे सौंप दे, अक्षय के लिए. तुझे लड़का ढूंढ़ना नहीं पड़ेगा और मुझे सुघड़ बहू.’

‘सोच ले, यह लड़की तेरी खटिया खड़ी कर देगी, फिर बाद में मत कहना कि मैं ने बताया नहीं था.’

‘वह तू मुझ पर छोड़ दे,’ और फिर हम दोनों खुल कर हंस पड़ीं.

मीरा के कहे इन शब्दों ने मुझे डूबते को तिनके का सहारा दिया. मैं ने तुरंत उसे फोन किया, ‘‘मीरा, आज तू सपरिवार मेरे घर खाने पर आ जा. अक्षय, अभय से मिले भी बहुत दिन हो गए. रात का खाना साथ ही खाएंगे.’’

‘‘क्यों, एकाएक तुझे ज्यादा शक्ति आ गई क्या? कहे तो 10-20 लोगों को और अपने साथ ले आऊं?’’ उस ने हंसते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, आज मन बहुत ऊब रहा है. सोचा, घर में थोड़ी रौनक हो जाए.’’

‘‘अच्छा जी, तो अब हम नौटंकी के कलाकार हो गए. ठीक है भई, आ जाएंगे सरकार का मनोरंजन करने.’’

मनमस्तिष्क पर छाया तनाव का कुहरा काफी हद तक छंट चुका था और मैं नए उत्साह से शाम की तैयारी में जुट गई. रमिया को निर्देश दे मैं ने कई चीजें बनवा ली थीं. सौम्या ने सारी तैयारियां देख कर कहा था, ‘‘मां, क्या बात है? आज आप बहुत मूड में हैं और यह इतना सारा खाना क्यों बन रहा है?’’

‘‘बस यों…अब तबीयत एकदम ठीक है और शाम को मीरा, अक्षय, अभय और डाक्टर साहब भी आ रहे हैं. खाना यहीं खाएंगे. अक्षय नौकरी मिलने के बाद से पहली बार घर आया है न, मैं ने सोचा एक बार तो खाने पर बुलाना ही चाहिए. हां, तू भी घर पर ही रहना,’’ मैं ने कहा.

‘‘पर मां, मेरा तो शलभजी के साथ फिल्म देखने का कार्यक्रम था?’’

‘‘देख बेटी, फिल्म तो कल भी देखी जा सकती है, आंटी सब के साथ आ रही हैं. मेरे सिवा एक तू ही तो है घर में. तू भी चली जाएगी तो कितना बुरा लगेगा उन्हें. ऐसा कर, तू शलभ अंकल को फोन कर के बता दे कि तू नहीं जा पाएगी,’’ मैं ने भीतर की चिढ़ को दबाते हुए प्यार से कहा.

‘‘ठीक है, मां,’’ सौम्या ने अनमने ढंगसे कहा. शाम को मीरा, डाक्टर साहब, अक्षय, अभय सभी आ गए. विनोदी स्वभाव के डाक्टर साहब ने आते ही कहा, ‘‘बीमारी से उठने के बाद तो आप और भी तरोताजा व खूबसूरत लग रही हैं, नेहाजी.’’

‘‘क्यों मेरी सहेली पर नीयत खराब करते हो इस बुढ़ापे में?’’ मीरा ने पति को टोका.

‘‘लो, सारी जवानी तो तुम ने दाएंबाएं देखने नहीं दिया, अब इस बुढ़ापे में तो बख्श दो.’’

उन की इस बात पर जोर का ठहाका लगा.

सौम्या ने भी बड़ी तत्परता और उत्साह से उन सब का स्वागत किया. कौफी, नाश्ता के बाद वह अक्षय और अभय से बातें करने लगी.

मैं ने अक्षय की ओर दृष्टि घुमाई, ‘ऊंचा, लंबा अक्षय, चेहरे पर शालीन मुसकराहट, दंभ का नामोनिशान नहीं, हंसमुख, मिलनसार स्वभाव. सच, सौम्या के साथ कितनी सटीक जोड़ी रहेगी,’ मैं सोचने लगी. डाक्टर साहब और मीरा के साथ बातें करते हुए भी मेरे मन का चोर अक्षय और सौम्या की गतिविधियों पर दृष्टि जमाए बैठा रहा. मैं ने अक्षय की आंखों में सौम्या के लिए प्रशंसा के भाव तैरते देख लिए. मन थोड़ा आश्वस्त तो हुआ, परंतु अभी सौम्या की प्रतिक्रिया देखनी बाकी थी.

बातों के बीच ही सौम्या ने कुशलता से खाना मेज पर लगा दिया. डाक्टर साहब और मीरा तो सौम्या के सलीके से परिचित थे ही, सौम्या के मोहक रूप और दक्षता ने अक्षय पर भी काफी प्रभाव डाला. खुशगवार माहौल में खाना खत्म हुआ तो अक्षय ने कहा, ‘‘आंटी, आप से मिले और आप के हाथ का स्वादिष्ठ खाना खाए बहुत दिन हो गए थे, आज की यह शाम बहुत दिनों तक याद रहेगी.’’

विदा होने तक अक्षय की मुग्ध दृष्टि सौम्या पर टिकी रही. और सौम्या हंसतीबोलती भी बीचबीच में कुछ सोचने सी लगी, मानो बड़ी असमंजस में हो.

चलतेचलते डाक्टर साहब ने मीरा को छेड़ा, ‘‘मैडम, आप सिर्फ खाना ही जानती हैं या खिलाना भी?’’

मीरा ने उन्हें प्यारभरी आंखों से घूरा और झट से मुझे और सौम्या को दूसरे दिन रात के खाने का न्योता दे डाला.

मेरे लिए तो यह मुंहमांगी मुराद थी, अक्षय और सौम्या को समीप करने के लिए. दूसरे दिन जब शलभजी आए तो सौम्या ने कुछ ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया. फिल्म के लिए जब उन्होंने पूछा तो उस ने कहा, ‘‘आज मीरा आंटी के यहां जाना है, मां के साथ…इसलिए…’’ उस ने बात अधूरी छोड़ दी.

वे थोड़ी देर बैठने के बाद चले गए. मैं भीतर ही भीतर पुलकित हो उठी. मुझे लगा कि प्रकृति शायद स्वयं सौम्या को समझा रही है और यही मैं चाहती भी थी.

दूसरे दिन शाम को मीरा के यहां जाने के लिए तैयार होने से पहले मैं ने सौम्या से कहा, ‘‘सौम्या, आज तू गुलाबी साड़ी पहन ले.’’

‘‘कौन सी? वह जार्जेट की जरीकिनारे वाली?’’

‘‘हांहां, वही.’’

इस साड़ी के लिए हमेशा ‘नानुकुर’ करने वाली सौम्या ने आज चुपचाप वही साड़ी पहन ली. यह मेरे लिए बहुत आश्चर्य की बात थी. गुलाबी साड़ी में खूबसूरत सौम्या का रूप और भी निखर आया.

न चाहते हुए भी एक बार फिर मेरी दृष्टि उस के ऊपर चली गई. अपलक, ठगी सी कुछ क्षण तक मैं अपनी मोहक, सलोनी बेटी का अप्रतिम, अनुपम, निर्दोष सौंदर्य देखती रह गई.

‘‘चलिए न मां, क्या सोचने लगीं?’’

सौम्या ने ही उबारा था इस स्थिति से मुझे.

मीरा के घर पहुंचतेपहुंचते हलकी सांझ घिर आई थी. डाक्टर साहब, मीरा, अक्षय सभी लौन में ही बैठे थे. अभय शायद अपने किसी दोस्त से मिलने गया था. हम दोनों जब उन के समीप पहुंचे तो सभी की दृष्टि कुछ पल को सौम्या पर स्थिर हो गई.

मैं ने अक्षय की ओर देखा तो पाया कि यंत्रविद्ध सी सम्मोहित उस की आंखें पलक झपकना भूल सौम्या को एकटक निहारे जा रही थीं.

‘‘अरे भई, इन्हें बिठाओगे भी तुम लोग कि खड़ेखड़े ही विदा कर देने का इरादा है?’’ डाक्टर साहब ने सम्मोहन भंग किया.

‘‘अरे हांहां, बैठो नेहा,’’ मीरा ने कहा और फिर हाथ पकड़ अपने पास ही सौम्या को बिठाते हुए मुझ से बोली, ‘‘नेहा, आज मेरी नजर सौम्या को जरूर लगेगी, बहुत ही प्यारी लग रही है.’’

‘‘मेरी भी,’’ डाक्टर साहब ने जोड़ा.

सौम्या शरमा उठी, ‘‘अंकल, क्यों मेरी खिंचाई कर रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि तू और लंबी हो जाए,’’ उन्होंने पट से कहा और जोर से हंस पड़े.

कुछ देर इधरउधर की बातों के बाद मीरा कौफी बनाने उठी थी, पर सौम्या ने तुरंत उन्हें बिठा दिया, ‘‘कौफी मैं बनाती हूं आंटी, आप लोग बातें कीजिए.’’

‘‘हांहां, मैं भी यही चाह रहा था बेटी. इन के हाथ का काढ़ा पीने से बेहतर है, ठंडा पानी पी कर संतोष कर लिया जाए,’’ डाक्टर साहब ने मीरा को तिरछी दृष्टि से देख कर कहा तो हम सभी हंस पड़े. सौम्या उठी तो अक्षय ने तुरंत कहा, ‘‘चलिए, मैं आप की मदद करता हूं.’’

दोनों को साथसाथ जाते देख डाक्टर साहब बोले, ‘‘वाह, कितनी सुंदर जोड़ी है.’’

‘‘सच,’’ मीरा ने समर्थन किया. फिर मुझ से बोली, ‘‘नेहा, सौम्या मुझे और इन्हें बेहद पसंद है और मुझे ऐसा लग रहा है कि अक्षय भी उस से प्रभावित है क्योंकि अभी तक तो शादी के नाम पर छत्तीस बहाने करता था, परंतु कल जब मैं ने सौम्या के लिए पूछा तो मुसकरा कर रह गया. अब अच्छी नौकरी में भी तो आ गया है…मुझे उस की शादी करनी ही है. नेहा, अगर कहे तो अभी मंगनी कर देते हैं. शादी भाईसाहब के आने पर कर देंगे. वैसे तू सौम्या से पूछ ले.’’

हर्ष के अतिरेक से मेरी आंखें भर आईं. मीरा ने मुझे किस मनोस्थिति से उबारा था, इस का रंचमात्र भी आभास नहीं था. भरे गले से मैं उस से बोली, ‘‘मेरी बेटी को इतना अच्छा लड़का मिलेगा मीरा, मैं नहीं जानती थी. उस से क्या पूछूं. अक्षय जैसा लड़का, ऐसे सासससुर और इतना अच्छा परिवार, सच, मुझे तो घरबैठे हीरा मिल गया.’’

‘‘मैं ने भी नहीं सोचा था कि इस बुद्धू अक्षय के हिस्से में ऐसा चांद का टुकड़ा आएगा,’’ मीरा बोली थी.

‘‘और मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इतनी हसीन समधिन मिलेगी,’’ डाक्टर साहब ने हंसते हुए कहा तो हम सब एक बार फिर से हंस पड़े.

तभी एकाएक चौंक पड़े थे डाक्टर साहब, ‘‘अरे भई, यह कबूतरों की जोड़ी कौफी उगा रही है

क्या अंदर?’’

तब मैं और मीरा रसोई की तरफ चलीं पर द्वार पर ही ठिठक कर रुक जाना पड़ा. मीरा ने मेरा हाथ धीरे से दबा कर अंदर की ओर इशारा किया तो मैं ने देखा, अंदर गैस पर रखी हुई कौफी उबलउबल कर गिर रही है और सामने अक्षय सौम्या का हाथ थामे हुए धीमे स्वर में कुछ कह रहा है.

सौम्या की बड़ीबड़ी हिरनी की सी आंखें शर्म से झुकी हुई थीं और उस के पतले गुलाबी होंठों पर मीठी प्यारी सी मुसकान थी.

मैं और मीरा धीमे कदमों से बाहर चली आईं. उफनती नदी का चंचल बहाव प्रकृति ने सही दिशा की ओर मोड़ दिया था.

26 January Special: औपरेशन- आखिर किस के शिकार बने थे डाक्टर सारांश

रामबन, कश्मीर घाटी का एक संवेदनशील जिला. ऊंचे पहाड़, दुर्गम रास्ते और गहरी खाइयों के बीच स्थित है यह छोटा सा इलाका. भोलेभाले ग्रामीण जो मौसम की मार सहने के तो आदी थे मगर हाल ही में हुईं आतंकी वारदातों की मार के उतने आदी नहीं थे. मन मार कर इस को भी झेलने के अलावा उन के पास कोई चारा न था. सभी अच्छे दिनों की कल्पना को मन ही मन संजो रहे थे इस यकीन के साथ कि दुखों की रात की कभी तो खुशियोंभरी सुबह होगी.

पूरे इलाके में रामबन में ही एक सरकारी स्कूल, छोटा सा डाकखाना और एक अस्पताल था. राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़े होने के चलते कभीकभी इन सेवाओं की अहमियत बढ़ जाती थी. हालांकि स्कूल था मगर शिक्षक नदारद थे, अस्पताल था मगर सुविधाएं ना के बराबर थीं, डाकखाना था जो डाकबाबू के रहमोकरम पर चल रहा था. मगर फिर भी उन की इमारतें उन के होने का सुबूत दे रही थीं.

उस दिन रामबन और आसपास के जिलों में मंत्रीजी का दौरा था. पूरा प्रशासन उन के स्वागत में एकपैर पर खड़ा था. सुरक्षाकर्मियों की नींद उड़ी हुई थी. आएदिन आतंकी घटनाओं ने वैसे भी सुरक्षा एजेंसियों की नाक में दम किया हुआ था, उस पर मंत्रीजी को अपने लावलशकर के साथ इलाके का दौरा करना उन के लिए किसी आपदा से कम न था. अस्पताल वालों को भी मुस्तैद रहने की हिदायत थी और सुरक्षाकर्मियों का वहां भी जमावड़ा था.

मैडिकल डाइरैक्टर अस्पताल के अफसर डाक्टर सारांश को समझा रहे थे कि मंत्रीजी का किस तरह से स्वागत करना है. डाइरैक्टर साहब कहे जा रहे थे और डा. सारांश हैरानी से उन्हें ताकते जा रहे थे.

‘‘सर, यह काम हमारा नहीं है, हमारा काम है मरीजों की तीमारदारी करना, उन का इलाज करना न कि आनेजाने वाले मंत्रियों की सेवा करना,’’ डा. सारांश ने अपनी बात कही तो मैडिकल डाइरैक्टर ने उन्हें समझाइश दी, ‘‘मैं जानता हूं डा. सारांश, मगर करना पड़ता है. यह हमारे सिस्टम का ही हिस्सा है.’’

‘‘तो बदल क्यों नहीं देते यह सिस्टम, सालों से चल रहे ऐसे सिस्टम को तिलांजलि क्यों नहीं दे देते हम,’’

डा. सारांश यह कहते हुए अपने कक्ष की तरफ बढ़ गए. इधर जहां सारा प्र्रशासन मंत्रीजी की फिक्र में घबराया हुआ सा था, वहीं महज कुछ ही मील दूर सेना की एक टुकड़ी औपरेशन विनाश की तैयारी में थी. फोनलाइन पर सीमापार से हो रही आतंकियों की बातचीत को सुना गया था. सूचना थी कि पाकिस्तान ने आतंकवादियों की एक टोली भारत की सीमा में ढकेल दी थी और आतंकियों ने रामबन के जंगलों में अपना आशियाना बनाया हुआ था. आतंकी पूरे असलहों और साजोसामान से लैस थे. वे एक बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे.

खबर पक्की थी. सो, कमांडिंग अफसर ने कोई जोखिम नहीं लिया और अलगअलग टोलियां बना कर बीहड़ की अलगअलग दिशाओं में भेज दीं. उन्हीं में से एक टोली का नेतृत्व कर रहे थे मेजर बलदेव राज. मेजर बलदेव एक अच्छे खानदान से थे. उन के सारे भाईबहन विदेशों में अच्छी नौकरियों और बिजनैस से जुड़े थे. वतनपरस्ती के जज्बे ने

उन्हें विदेशी शानोशौकत के बजाय फौज में पहुंचा दिया था जहां उन की गिनती जांबाज अफसरों में होती थी. लिहाजा, पाकिस्तान से आए 4 आतंकवादियों को पकड़ने के लिए उन्हें खास जिम्मेदारी दी गई थी.

पीठ पर वजनी साजोसामान, हाथ में बंदूक और सिर पर भारीभरकम हैलमेट पहने मेजर बलदेव के नेतृत्व में उन की टोली जंगल के चप्पेचप्पे की छानबीन कर रही थी. खबर पक्की थी कि आतंकवादी उन्हीं जंगलों में छिपे थे, इसलिए मेजर बलदेव गुप्त भाषा में अपने सिपाहियों को बारबार आगाह कर रहे थे. शाम का साया धीरेधीरे बादलों पर छा रहा था. तभी पत्तों की सरसराहट हुई और जवानों को आभास हो गया कि आतंकवादी आसपास ही थे.

धीरेधीरे जवान उस ओर बढ़ने लगे जहां से सरसराहट हो रही थी. तभी अचानक दूसरी दिशा से अंधाधुंध फायरिंग शुरू हो गई. मेजर बलदेव को ऐसे ही किसी हमले की आशंका थी, लिहाजा, उन की टोली के कुछ सिपाहियों का रुख दूसरी ओर था.

अगले चंद मिनट आग के गोले, धुएं और शोर के बीच बीत गए. दूसरी ओर से फायरिंग बंद हो गई तो मेजर बलदेव समझ गए कि दुश्मन का खात्मा हो गया है. अगले ही पल धुआं छटा और अपने साथियों को करीब पा कर उन्होंने राहत की सांस ली. ‘‘सर, चारों आतंकवादी मारे गए हैं, आइए उन की लाशें देखिए और हैडक्वार्टर को इत्तला कर दीजिए.’’

मेजर बलदेव ने उठने की कोशिश की मगर उठ नहीं पाए. उन की दायीं टांग लहूलुहान थी, होंठों पर दर्द था मगर आंखों में विजय की मुसकान थी. उन्होंने बड़ी मुश्किल से हैडक्वार्टर को मैसेज भिजवाया और एक बार फिर ब्रिगेडियर साहब से भूरिभूरि प्रशंसा पाई.

मेजर बलदेव के घायल होने की सूचना पा कर एक जीप वहां भेजी गई. पहाड़ी इलाके में वाहन के पहुंचने में लगे समय के दौरान मेजर बलदेव के जिस्म से काफी खून बह चुका था. बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को संभाला हुआ था.

मामले की नजाकत को समझते हुए उन्हें करीब के सिविल अस्पताल में ले जाने का फैसला लिया गया और थोड़ी देर में जीप रामबन के सिविल अस्पताल के बाहर थी. मैडिकल डाइरैक्टर खुद वहां मौजूद थे. उन्होंने मेजर को वार्ड में पहुंचा कर डाक्टर सारांश को उन का इलाज करने का आदेश दिया.

डाक्टर सारांश ने मेजर बलदेव का चैकअप किया और फौरन मैडिकल डाइरैक्टर के रूम की ओर भागे, ‘‘सर, मेजर साहब बुरी तरह जख्मी हैं, फौरन उन का औपरेशन करना पड़ेगा.’’ मैडिकल डाइरैक्टर मानो इस सवाल के लिए तैयार थे, ‘‘इन्हें फौरन अनंतनाग या उधमपुर भिजवाने का इंतजाम कराओ, वहीं इन का मुकम्मल इलाज हो पाएगा.’’

‘‘मगर सर, इतना वक्त नहीं है हमारे पास. जहर जिस्म में फैलता जा रहा है. अगर फौरन औपरेशन नहीं किया तो टांग काटनी पड़ जाएगी. फौज का एक तंदुरुस्त जवान अपाहिज हो जाएगा. अगर ज्यादा देर हुई तो उन की जान भी जा सकती है.’’

‘‘डाक्टर सारांश, आप से जो कहा जाए वही कीजिए, फैसला लेने का हक मेरा है, न कि आप का.’’

‘‘सुना है आप ने औपरेशन थिएटर और आसपास के कमरे मंत्रीजी को दिए हुए हैं ताकि वे इस सर्द और बरसाती रात में आराम फरमा सकें.’’ मेजर की टोली के एक जवान ने कहा तो एक बार के लिए मैडिकल डाइरैक्टर की पेशानी पर पसीने की बूंदें उभर आईं, लेकिन अगले ही पल उन्होंने बेशर्मी से कहा, ‘‘आप समय बरबाद कर रहे हैं अपना भी, मेरा भी और सब से ज्यादा घायल मेजर का. जल्दी ही इन्हें ले जाने का इंतजाम कीजिए. जरूरत पड़े तो एयरलिफ्ट करवाइए.’’

‘‘आप जानते हैं सर, इस बरसाती रात में एयरलिफ्ट करवाना मुमकिन नहीं है,’’ डा. सारांश ने आखिरी दावं खेला.

‘‘फिर तो आप को फौरन रवाना होना चाहिए. एकएक पल कीमती है आप के लिए,’’ मैडिकल डाइरैक्टर अड़े रहे.

डाक्टर सारांश पसोपेश में पड़ गए. वे घायल सिपाही, अपना फर्ज और लाल फीताशाही के बीच फंसे बेबस से खड़े किसी भी नतीजे पर पहुंच नहीं पा रहे थे.

डाक्टर सारांश ने कुछ ही पलों में मानो फैसला कर लिया. उन्होंने अस्पताल के कुछ कर्मचारियों को बुलाया और उन से रायमशवरा करने के बाद मेजर को टीले के उस ओर ले गए जहां पर बरसात का प्रकोप कम था. वहीं उन्होंने 2 पेड़ों के बीच रस्सी बांध कर मचान बनाया और अस्पताल से लाए औजारों की मदद से गोली निकालने का काम शुरू कर दिया. फौज की जीप की हैडलाइट्स की रोशनी में उन्होंने गोली निकाली और औपरेशन को अंजाम दिया. औपरेशन कामयाब रहा और पौ फटतेफटते मेजर को होश आ गया. फिर थोड़ी ही देर में हैलिकौप्टर मेजर को ले कर उधमपुर की ओर उड़ गया.

डाक्टर सारांश के इस औपरेशन की खबर पूरे जिले में फैल गई और जैसा कि डाक्टर सारांश को अंदेशा था, दफ्तर से आए एक कर्मचारी ने उन्हें सस्पैंशन और्डर थमा दिया. पत्र में उन पर कई तरह के इलजाम लगाए गए थे और उन की शिकायत मैडिकल काउंसिल में कर दी गई थी जिस में सिफारिश की गई थी कि डाक्टर सारांश का मैडिकल लाइसैंस रद्द कर दिया जाए.

डाक्टर सारांश के औपरेशन की खबर कुछ यों फैली कि शाम होतेहोते कई रोगी उन तक पहुंच गए और उन के परिजन हाथ जोड़जोड़ कर उन से रोगियों के औपरेशन की गुहार करने लगे. डाक्टर सारांश के समझानेबुझाने का उन पर कोई असर नहीं हुआ. आखिरकार डाक्टर सारांश ने दूसरी रात भी 4 औपरेशन उसी हालात में कर डाले, जो कामयाब भी हुए. फिर तो यह रोज का सिलसिला हो गया और डाक्टर सारांश की ख्याति दूरदूर तक फैल गई. भारी तादाद में रोगी उन तक पहुंचने लगे.

मैडिकल डाइरैक्टर ने बौखलाहट में डाक्टर सारांश के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी जिस में उन पर गैरकानूनी ढंग से औपरेशन करने और अस्पताल के सामान की चोरी का इलजाम भी शामिल था.

डाक्टर सारांश ने जमानत लेने के बजाय जेल जाना पसंद किया और उन पर कई धाराएं लगा कर उन्हें फौजी जेल में डाल दिया गया. मामले की सुनवाई जिला अदालत में शुरू हो गई.

चंद ही दिन बीते थे कि एक ऐसी घटना हुई जिस की डाक्टर सारांश को भी उम्मीद न थी. कूरियर से एक लिफाफा उन के नाम आया जिस में उन के नाम का एक प्रशस्तिपत्र और सिंगापुर आनेजाने का टिकट था. डाक्टर सारांश हैरान थे कि यह कैसे हुआ. उन की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. अगले ही दिन उन्हें अदालत के आदेश से छोड़ दिया गया और दिल्ली होते हुए वे सिंगापुर के जहाज में बैठ गए.

सिंगापुर पहुंचते ही उन का तहेदिल से स्वागत हुआ और एक समारोह में उन की उपलब्धियां गिनाई गईं, वे उपलब्धियां जो भारत में गुनाह समझी गई थीं और उन्हें जेल में डाल दिया गया था. उन्हें मानवता का रखवाला और कई जानें बचाने वाला महामानव बताया गया था. चर्चा हुई और उन से सवालजवाब हुए कि उन्होंने किस तरह संसाधन न होते हुए भी इतने औपरेशन किए जोकि कामयाब रहे. मानवता के नाम पर उठाया गया उन का एक कदम इतनी लंबी छलांग लगा देगा, इस का उन को गुमान न था.

भारतीय मैडिकल काउंसिल जहां उन पर अनुशासनहीनता की कार्यवाही कर रही थी, अदालत उन को मुजरिम की तरह कठघरे में खड़ी कर रही थी, मंत्रालय उन पर सख्त से सख्त कार्यवाही करने का मन बना रहा था, वहीं परदेस में डाक्टर सारांश को डाक्टरों के काम का सर्वोच्च आदर और मान मिल रहा था.

डाक्टर सारांश मंच पर खड़े लोगों के सवालों का जवाब दे रहे थे. तभी कोने से एक व्यक्ति ने वही प्रश्न किया जो उन के दिमाग पर दस्तक दिए जा रहा था. ‘‘क्या आप मानते हैं कि आज भी भारत में सारी व्यवस्था राजनीतिज्ञों के इर्दगिर्द घूमती है और पढ़ालिखा डाक्टर सारांश भी उसी व्यवस्था की भेंट चढ़ जाता है जब उसे एक भारतीय फौजी मेजर बलदेव राज की जान बचाने के लिए अपने कैरियर को जोखिम में डालना पड़ता है और बदले में उसे जिल्लत का सामना करना पड़ता है?’’

डाक्टर सारांश की आंख उस ओर मुड़ गई, उन्हें पहचानने में देर नहीं लगी कि प्रश्न मेजर बलदेव राज का था. ‘‘बात कुछ हद तक  सही भी है मगर मैं सकारात्मक सोच रखता हूं और मुझे यकीन है कि सबकुछ बदल रहा है, हर बदलाव में समय तो लगता ही है. जहां तक मेरा प्रश्न है, मुझे अनगिनत लोगों से प्यार मिला है और उस प्यार के सामने उस जिल्लत की मेरे लिए कई अहमियत नहीं है जो चंद सरकारी लोगों ने मुझे दी. मुझे इस के आगे कुछ नहीं कहना है.’’

समारोह के खत्म होने के बाद डाक्टर सारांश अपने होटल की ओर जा रहे थे. सामने से मेजर बलदेव आते नजर आए, ‘‘आप ने मेरी जान तो बचा ली लेकिन दुश्मन की गोली अपना काम कर चुकी थी. फौज के नियमों के तहत घायल सैनिक को दफ्तर की पोस्ंिटग दी जाती है. भला मुझ जैसा दौड़नेभागने वाला अफसर दफ्तर की चारदीवारी में क्या करेगा, लेकिन चाह कर भी फौज छोड़ न पाया. सेना से तो जीवनमृत्यु का गठबंधन है. कैसे तोड़ पाता यह संबंध. यहां मैं भारतीय दूतावास में हूं. यह दोस्त मुल्क है, इसलिए यहां कुछ ज्यादा करने को नहीं, मगर यहां से दुश्मन मुल्कों को देखना आसान है.’’

‘‘अगर मैं गलत नहीं सोच रहा तो, मुझे यहां तक लाने में आप का ही हाथ है,’’ डाक्टर सारांश ने कहा.

‘‘हां, डाक्टर साहब, मैं आप को फौलो कर रहा था. यहां काउंसिल में मैं ने आप के बारे में जानकारी दी. इन्होंने भारत सरकार की मदद ली और आप को यहां तक ले आए. मैं जानता हूं आप ने कितनी तकलीफ झेली. आप चाहते तो अपने उसूलों से हट सकते थे. मुझे उधमपुर या जम्मू भेजना आप के लिए बहुत आसान था, लेकिन यह भी तय था कि मैं वहां तक नहीं पहुंच पाता. हां, तिरंगे में लपेटा हुआ एक सैनिक जरूर पहुंचता, जिस पर कुछ दिन सियासत होती, फिर भुला दिया जाता. आप के उपकार के एवज में मैं ने जो भी कुछ किया वह कुछ नहीं था.’’

डाक्टर सारांश ने एक ठंडी सांस ली और मेजर को धन्यवाद दिया. इस बीच, मेजर साहब ने डाक्टर सारांश के हाथ में एक लिफाफा पकड़ा दिया.

‘‘यह क्या है?’’ डा. सारांश ने पूछा.

‘‘यहां के सब से बड़े अस्पताल का आप के नाम प्रशस्तिपत्र.’’ डाक्टर सारांश ने लिफाफा अपने ब्रीफकेस में डाल दिया.

‘‘बेहतर होता कि आप इस पर एक नजर डाल लेते,’’ मेजर साहब ने कहा तो डाक्टर सारांश ने लिफाफा खोल कर पत्र पढ़ना शुरू किया. एक ही सांस में पत्र पढ़ कर उन्होंने फिर से उसे अपने ब्रीफकेस में डाल दिया और होटल की ओर चल पड़े.

‘‘आप ने डाक्टर सारांश को हमारा पत्र दे दिया?’’ यह सिंगापुर के अस्पताल के डाइरैक्टर एक भारतीय डाक्टर निकुंज का फोन था.

‘‘हां, दे दिया, उन्होंने इनकार नहीं किया, बल्कि कुछ कहा भी नहीं.’’ ‘‘सबकुछ कहा नहीं जाता मेजर, कुछ चीजें समझी जाती हैं. आप कह रहे थे डाक्टर सारांश पत्र पढ़ कर उसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर देंगे, मगर मैं जानता था कि इतना अच्छा औफर कोई पागल ही ठुकरा सकता है.’’ डा. निकुंज ने कहा तो मेजर ने फौरन कहा, ‘‘डाक्टर सारांश पागल ही हैं सर.’’

दूसरे दिन हवाईअड्डे पर डाक्टर सारांश को छोड़ने आए वीआईपी लोगों में सिंगापुर अस्पताल के निदेशक और मेजर बलदेव मौजूद थे.

‘‘मुझे आप का प्रस्ताव मंजूर है,’’ डाक्टर सारांश ने कोट की जेब से एक लिफाफा पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इस में कुछ शर्ते हैं जिन के बारे में आप को सोचना है.’’

‘‘हमें आप की सारी शर्तें मंजूर हैं, बस, आप की हां चाहिए. मैं आज ही काउंसिल की मीटिंग में इन पर विचार कर के आप को जवाब भेज दूंगा.’’

मेजर बलदेव को डाक्टर सारांश से शायद कुछ और ही उम्मीद थी. उन के चेहरे पर निराशा के भाव थे. डाक्टर सारांश का हवाई जहाज उड़ चुका था. मेजर बलदेव अनमने से हवाई अड्डे पर ही खड़ेखड़े कौफी की चुस्कियों के साथ कुछ सोच रहे थे, ‘इंसानी जरूरतें, भारत में डाक्टर सारांश के साथ हुई बेइंसाफी, ऐसे में अगर उन्होंने सिंगापुर का औफर स्वीकार कर लिया तो क्या बुरा किया. उन की जगह कोई भी होता तो यही करता जो उन्होंने किया.’

कौफी पीने के बाद थोड़ा आगे बढ़े तो डाक्टर निकुंज मिल गए. ‘‘मेजर साहब, अपने डाक्टर सारांश का जवाब पढ़ना नहीं चाहेंगे,’’ यह कहते हुए उन्होंने डाक्टर सारांश का पत्र मेजर के सामने कर दिया.

मेजर बलदेव ने एक सांस में ही पत्र पढ़ लिया था. डाक्टर सारांश ने प्रस्ताव तो मंजूर किया था मगर शर्त यह रखी थी कि अस्पताल कश्मीर के रामबन इलाके में ही बने, जहां मैडिकल सुविधाएं न के बराबर हैं. लोगों को इलाज के लिए श्रीनगर या जम्मू जाना पड़ता है.

‘‘डाक्टर सारांश ने एक तरह से हमारी पेशकश ठुकरा दी है. मगर मैं हार मानने वाला नहीं हूं. मैं काउंसिल से अस्पताल वहीं बनाने की सिफारिश करूंगा, जहां डाक्टर सारांश चाहते हैं,’’ डा. निकुंज ने कहा.

मेजर बलदेव कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि इस पर वे क्या प्रतिक्रिया दें. एक पल उन्होंने सोचा और कहा, ‘‘डाक्टर निकुंज, मेरी एक राय है. आप इस बात को यहीं खत्म कर दें. काउंसिल में अधिकतर विदेशी हैं, मैं नहीं चाहता कि अपने देश का नाम नीचे हो.’’

‘‘यह कैसी बातें कर रहे हैं मेजर साहब. इस से तो हमारे देश का नाम ऊंचा होगा. डाक्टर सारांश को भी वह सम्मान मिलेगा जिस के वे सही माने में हकदार हैं.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं मगर आप भी एक भारतीय हैं. माना कि आप बरसों से यहां बसे हुए हैं मगर हमारे देश की कार्यप्रणाली को नहीं भूले होंगे. माना कि बदलाव आ रहा है मगर अभी भी बहुतकुछ पहले जैसा ही है, समय लगेगा. आप का प्रस्ताव बरसों दफ्तरों के चक्कर लगाता रहेगा. फाइलें इधर से उधर घूमती रहेंगी. राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच खेल शुरू हो जाएगा. विरोधी दल सियासत करेंगे. जम्मू और कश्मीर के खास दर्जे पर चर्चा होगी. सबकुछ होगा मगर अस्पताल का प्रोजैक्ट पास नहीं होगा. सोचिए, क्या गुजरेगी डाक्टर सारांश पर और क्या सोचेंगे आप के विदेशी साथी और सहयोगी.’’

‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं,’’ डाक्टर निकुंज ने ठंडी आह भरते हुए कहा, ‘‘सिर्फ एक डाक्टर सारांश के आगे आने से काम नहीं चलेगा. आवश्यकता है कि सरकार के मंत्री और सरकारी कर्मचारी दोनों ही अपनी सोच को बदलें. तभी सही मानों में बदलाव आएगा. बहुत जरूरी है कि देश में वीआईपी कल्चर, लालफीताशाही और जिम्मेदारी से दाएंबाएं होने का खेल सरकारी दफ्तरों से खत्म हो. तभी विदेशों में हमारी छवि और लोगों की हमारे बारे में सोच बदलेगी. वे हमें गंभीरता से लेंगे.’’

डाक्टर सारांश का हवाई जहाज जब दिल्ली पहुंचा तो उन के स्वागत के लिए कई लोग हवाई अड्डे पर मौजूद थे. भीड़ में सब से आगे मंत्री महोदय और मैडिकल डाइरैक्टर थे. उन के चेहरों पर कुटिल मुसकान अभी भी मौजूद थी.

घुटनों पर बैठकर विक्की ने अंकिता से मांगी माफी, पढ़ें खबर

सलमान खान का कॉन्ट्रोवर्शियल रियलटी शो बिग बॉस 17 अपने फिनाले वीक में पहुंच गया. बिग बॉस 17 को टॉप 6 फाइनलिस्ट मिल गए है. अंकिता लोखंडे, विकी जैन, मुनव्वर फारूकी, मन्नरा चोपड़ा, अभिषेक कुमार और अरुण कुमार से मीडिया ने कई सवाल किए. बिग बॉस 17 में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सबसे ज्यादा मुद्दा विकी और अंकिता का था. मीडिया के सामने विकी जैन अपनी पत्नी अंकिता लोखंडे से माफी मांगते नजर आए.

विकी ने मांगी माफी

बिग बॉस 17 में विकी जैन अपनी पत्नी अंकिता लोखंडे के साथ बुरा बर्ताव करते कई बार नजर आए हैं. मीडिया ने विकी के द्वारा अंकिता पर किए गलत व्यवहार के चलते सावल किए. उन्हें बोला गया कि वह रेड फ्लैग इंडीकेट करते है. इसके साथ ही किसी और ने पूछा कि क्या आप कपल थेरेपी के लिए जाएंगे तो इस पर विकी ने कहा, थेरेपी यही है कि अभी मैं घुटने में जाकर इनको सॉरी बोल दूंगा. इसके बाद विकी अपने घुटने पर बैठकर अंकिता से माफी मांगते है.

विकी ने स्वीकार की गलती

वह कहते है, सॉरी मंकु, मैंने गलतियां की है, मुझे माफ कर दो. विकी आगे समझाते हैं कि मैं एक बात सच बोलना चाहता हूं. बाहर भी हम दोनों घर पर ही रहते हैं तो उस वक्त आपको आपकी गलतियां बताने वाला कोई नहीं होता है और आपको समझ भी नहीं आता अपनी गलतियां. आज पहली बार ऐसा हो रहा है कि ये 100 दिनों में मुझे इतने सारे लोग वहीं जब वहीं सावल पूछ रहे हैं ना तो शायद मैं अपना लुकबैक कर रहा हूं तो मुझे ऐसा लग रहा है कि शायद उस समय ऐसी चीजें हो रही थी जो बिलकुल नहीं होनी चाहिए थी.

अंकिता ने किया माफ

विकी आगे बोलते है कि वह बिल्कुल खराब नहीं है और हमेशा अंकिता के सपोर्ट में खड़े रहे है. उन्होंने आगे कहा- मैं शुक्रगुजर हूं अंकिता का क्योंकि उनकी वजह से ही मैं यहां पर हूं. मुझे इस बात को कबूलने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती. हां, मैं शो के बारे मैं ज्यादा सोच रहा था अपने रिश्ते पर ध्यान नहीं दे पा रहा था. इतना सब सुनकर अंकिता खुश हो जाती है वह विकी को गल पर किस करके माफ कर देती है.

Anupamaa: पाखी और टीटू में हुई बहस, अनुपमा की जान बचाएगा दीपू!

 Anupamaa wirtten Update: टीवी सीरियल अनुपमा में जबरदस्त ड्रमा देखने को मिल रहा है. शो में नए-नए ट्विस्ट और टर्न्स खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. अनुपमा के बीते एपिसोड में देखने को मिला था कि यशपाल के रेस्टोरेंट में आग लग जाती है. जिसमें अनुपमा को यशपाल का भाई दीपू बचा लेता है. टीवी सीरियल अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में आध्या श्रुति के सामने सारा दर्द बयां करेगी. आध्या श्रुति को बताएगी अनुपमा ने कभी भी उसे अपनी बेटी नहीं माना. वह हमेशा से ही लास्ट में थी. इसके बाद श्रुति आध्या को समझाती है. चलिए आपको सीरियल की अपकमिंग एपिसोड के बारे में बताते है.

किंजल तोषू को खरी-खोटी सुनाएगी

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर अनुपमा में देखने को मिलेगा कि किंजल अपने घर में एक मीटिंग लेने के बाद हॉल में जाती है, लेकिन यहां पर तोषू ने सब कुछ फैलाकर रखता है और इस वजह से किंजल पारा असमान पर पहुंच जाता है. वह तोषू को खूब सुनाती है, तोषू किसी भी बात पर ध्यान नहीं देता. इस पर वह कहती है- तुम्हारे इस एटीट्यूड की वजह से हमारा रिश्ता कहीं पीछे रह गया है. इसके बाद किंजल तोषू से पूछती परी के स्कूल के बारे में. लेकिन तोषू इस बात को भी इग्नोर कर देता है, जिस वजह से दोनों का झगड़ा शुरू हो जाता है. तभी परी आती है और बोलती है, ‘अगर आप लोग ज्यादा लड़ेंगे तो मैं दादी के पास चली जाऊंगी. मुझे उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा.’  जैसे ही तोषू को पता चला है कि किंजल और परी अनुपमा से मिले हैं तो वह भड़क जाता है और वह किंजल को उनसे दूर रहने के लिए कहता है, लेकिन किंजल साफ बोल देती है, ‘मैं और परी मम्मी से जरूर मिलेंगे. भूलो मत मैं तुम पर नहीं..तुम मेरे ऊपर डिपेंड हो.

पाखी टीटू पर लाइन मारेगी

टीवी सीरियल अनुपमा में आगे देखने को मिलेगा कि टीटू शाह हाउस जाने के लिए बैग पैक करता है. तभी पाखी आती है उसे रोकने की कोशिश करती है. वह टीटू को मॉडलिंग का ऑफर देती है और उसे रोकने के लिए कहती है कि, ‘मैं भी तुम्हारी तरह ही हूं. मुझे भी तुम्हारी तरह पार्टी करना, सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना पसंद है.’ इसके जवाब में टीटू बोलता है. ‘इसी वजह से तुमने अधिक को छोड़ दिया.’ तभी वहां पर डिंपी आ जाती है. पाखी डिंपी को भी टीटू को रोकने के लिए कहती है, लेकिन डिंपी ऐसा करने से मना कर देती है.

अनुपमा दीपू के घर रहेगी

टीवी सीरियम में आगे देखने को मिलेगा कि स्टोर में आग लगने की वजह से अनुपमा बेहोश हो जाती है. उसके बाद वह खुद को दीपू के घर में देखकर घबरा जाती है और दीपू की मां को बताएगी कि उसने रेस्टोरेंट को बचाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं बचा पाई. इसके बाद आगे शाह हाउस में टीटू घर छोड़कर जाएगा.

Winter Special: पंजाबी स्टाइल में बनाएं सरसों का साग, बहुत आसान है इसकी रेसिपी

अगर आप सर्दियों में कुछ टेस्टी और हैल्दी बनाना चाहते हैं तो पंजाबी सरसों का साग की रेसिपी आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. पंजाबी सरसों का साग बनाकर आप अपनी फैमिली की वाहवाही लूट सकते हैं.

हमें चाहिए-

–  1/2 किलो सरसों का साग

–  125 ग्राम पालक

– 100 ग्राम बथुआ

– 1/4 कप मूली कद्दूकस

– 1 बड़ा चम्मच अदरक बारीक कटा

–  4 लहसुन कलियां

– 4 हरीमिर्चें कटी

– 2 बड़े चम्मच मक्के का आटा

– 2 छोटे चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट द्य 3 बड़े चम्मच देसी घी

– 50 ग्राम मक्खन

–  नमक ( स्वादानुसार)

बनाने का तरीका

– सभी सब्जियों को धो काट कर कद्दूकस की मूली, बारीक कटे अदरक, लहसुन व नमक के साथ प्रैशर     कुकर  में उबालें.

– सीटी आने के बाद लगभग 20 मिनट धीमी आंच पर रखें.

– ठंडा कर के हैंड मिक्सर से चर्न करें.

– एक कड़ाही में देसी घी गरम कर के अदरक-लहसुन पेस्ट व हरीमिर्च भूनें.

– फिर कड़ाही में  साग डाल दें.

– मक्का के आटे को थोड़े से पानी के साथ घोलें और उबलते साग में धीरे-धीरे कर के मिलाएं ताकि             गुठलियां न पड़ें.

– 10 मिनट धीमी आंच पर पकाते रहें.

–  पकने के बाद सर्विंग डिश में पलटें.

ऊपर से मक्खन डाल कर मक्के की रोटी, गुड़ व अचार के साथ सर्व करें.

Women Health Tips: महिलाओं को ओवरी के बारे में पता होनी चाहिए ये बातें

आम तौर पर देखा जाता है कि महिलाएं सेक्स या सेक्शुअल हेल्थ पर बात करने से कतराती हैं. जबकि उन्हें कई बातों के बारे में उन्हें जानने की जरूरत है. जानकारी के अभाव में उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस खबर में हम आपको महिलाओं के ओवरी (अंडाशय) के बारे में कुछ जरूरी बातें बताएंगे. ओवरी से जुड़ी ये कुछ ज़रूरी बातें हैं जो आपको पता होनी चाहिए.

1. ओवरी के साइज में बदलाव होत रहता है

शरीर के अन्य अंग भले ही एक साइज पर आकर रुक जाते हों, पर ओवरी की साइज बदलती रहती है. ये बदलाव उम्र के साथ और पीरियड्स के दौरान होता है. आपको बता दें कि जब ये अंडा बना रही होती है तो ये आकार में बढ़ जाती है. इसमे करीब 5 सेंटीमीटर तक का बदलाव होता है.

2. ओवरी को होता है स्ट्रेस

जिस समय आपकी ओवरीज अंडे बना रही होती हैं, उस वक्त को ओव्यूलेशन कहते हैं. और स्ट्रेस का इस पर बहुत असर पड़ता है. उस दौरान अगर आप वाकई बहुत ज़्यादा स्ट्रेस में हैं, तो आपकी ओवरीज़ अंडे बनाना बंद कर देगी.

3. बर्थ कंट्रोल पिल से ओवरीज होती हैं प्रभावित

जानकारों की माने तो बर्थ कंट्रोल पिल्स ओवरीज़ पर सकारात्मक असर करती हैं. सुनने में ये भले ही अजीब लग रहा हो, पर ये सच है. हम बात कर रहे हैं गर्भनिरोधक गोलियों की. उनको लेने से ओवेरियन कैंसर होने का रिस्क काफी कम रहता है.

4. ओवेरियन सिस्ट अकसर अपने आप ठीक हो जाते हैं

बहुत सी औरतों के ओवरी में सिस्ट हो जाता है. ये कैविटी जैसी एक चीज है जिसमें पस भर जाता है. इसे ठीक करने के लिए कई तरह की दवाइयां और सर्जरी हैं. ओवरी के सिस्ट से घबराएं नहीं. ये तीन चार महीनों में अपने आप ठीक हो जाते हैं.

Winter Special: सर्दियों में बालों को दें हीलिंग पावर

ज्यादातर महिलाओं को सर्दी का मौसम अच्छा लगता है, लेकिन आप के बालों को? शायद आप के बाल सर्दी को इतना पसंद नहीं करते. वजह है हेयर फौल और डैंड्रफ. जी हां, ठंड के मौसम में बाल गिरते हैं और स्कैल्प से संबंधित परेशानियां भी शुरू हो जाती हैं. फिर परेशान हो कर तरहतरह के उपाय करने लगती हैं. मगर सही जानकारी न होने की वजह से कुछ फायदा होता नजर नहीं आता.

यहां आप को कुछ ऐसे तरीकों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें अपना कर आप इस सर्दी के मौसम में अपने बालों को हील कर सकती हैं. मतलब, आप हेयर फौल, स्प्लिट एंड्स, ड्राइनैस और डैंड्रफ की चिंता किए बगैर सर्दी का मजा ले सकती हैं:

1. बालों की देखभाल का पहला नियम

अगर आप चाहती हैं कि सर्दी में आप के बाल बेहाल न हों तो उन की साफसफाई में लापरवाही न बरतें. होता यह है कि ठंड की वजह से हम बालों की नियमित सफाई नहीं करते, जिस की वजह से वे गिरने लगते हैं. इसलिए उन की साफसफाई का ध्यान रखना बहत जरूरी है. इस के लिए हफ्ते में 2 बार सल्फेट फ्री शैंपू का इस्तेमाल करें. लेकिन बारबार बाल न धोएं. ज्यादा शैंपू करने से प्राकृतिक तेल की जगह कृत्रिम तेल ले लेता है, जिस की वजह से स्कैल्प में खुजली और रूसी की समस्या होती है. शैंपू करते वक्त उंगलियों से 5 मिनट तक स्कैल्प की मसाज भी जरूर करें.

2. गरम पानी से शैंपू न बाबा न

माना कि सर्दी में ठंडे पानी से शैंपू करना आसान नहीं है, लेकिन गरम पानी के इस्तेमाल से आप ठंड से तो बच जाती हैं, लेकिन बालों की हालत खराब हो जाती है. इसलिए सर्दी के मौसम में गरम पानी से बालों को न धोएं. हां, इस के बदले फ्रैश या हलके गरम पानी का इस्तेमाल कर सकती हैं.

3. गीले बालों में न करें कंघी

बाल झड़ने की एक बड़ी वजह है गीले बालों में कंघी करना. अगर आजकल किसी के पास नहीं है तो वह है वक्त. ऐसे में अगर आप भी शैंपू के बाद गीले बालों में कंघी कर औफिस या कालेज निकल जाती हैं तो सावधान हो जाएं, क्योंकि ऐसा करने से सब से ज्यादा हेयर फौल होता है. इस के बजाय गीले बालों को उंगलियों से सुलझा लें और उन्हें नैचुरली सूखने दें. उस के बाद ही कंघी करें. अगर बहुत ज्यादा जरूरी हो तो बालों पर प्रोटैक्शन के लिए पहले सीरम लगा लें, फिर लो टैंपरेचर पर हेयरड्रायर या प्रैसिंग का इस्तेमाल करें, साथ ही बालों को सुखाने के लिए कौटन के तौलिए का प्रयोग करें. इस से बालों में वौल्यूम भी बना रहेगा.

4. स्कार्फ या कैप

स्कार्फ या कैप आप को ठंड से तो बचाता ही है, साथ ही बालों को प्रोटैक्ट करने का काम भी करता है, जिस से बाल न तो टूटते हैं और न ही झड़ते हैं. ध्यान रहे कि कैप या स्कार्फ टाइट न हो वरना स्कैल्प में खून का संचार होना बंद हो जाएगा जो बालों के लिए सही नहीं होता.

5. डीप कंडीशनिंग से बनेगी बात

सर्दी के मौसम में बालों को रूखा और बेजान होने से बचाने के लिए डीप कंडीशनिंग करनी चाहिए. इस के लिए बालों को धोने के बाद रूट से टिप तक कंडीशनर लगाएं और 5 मिनट बाद अच्छी तरह धो लें. हां, इस के बाद सीरम लगाना न भूलें.

6. डाइट पर दें ध्यान

महिलाएं घर के सभी सदस्यों का ध्यान तो रखती हैं, लेकिन खुद की बारी आती है तो लापरवाही करती हैं. जैसा हम खातेपीते हैं वैसा ही असर हमारी बौडी पर दिखता है. हम कितना भी मेकअप कर लें या कौस्मैटिक यूज कर लें अगर अंदर से हैल्दी नहीं हैं तो न त्वचा चमकेगी और न बाल. इसलिए अगर आप नौनवैजिटेरियन हैं तो अंडे का सेवन जरूर करें, क्योंकि इस में प्रोटीन होता है जो बालों को हैल्दी और शाइनी बनाता है. इस के अलावा मीट, मछली को भी अपनी डाइट में शामिल कर सकती हैं. अगर आप वैजिटेरियन हैं तो राजमा, सोयाबीन, डेयरी प्रोडक्ट्स, दालें, ड्राई नट्स जरूर खाएं.

7. हेयर मास्क का करें प्रयोग

हेयर ऐक्सपर्ट अकसर यह सलाह देते हैं कि सर्दी के मौसम में हेयर मास्क का यूज करना चाहिए. आप इसे घर पर भी बना सकती हैं. ऐलोवेरा जैल में कुछ बूंदें नीबू का रस मिला लें और इसे बालों में लगाएं. चाहें तो अंडे के सफेद भाग में जैतून का तेल मिला कर भी लगा सकती हैं. इस के अलावा ड्राई बालों के लिए जैतून या नारियल के तेल को हलका गरम कर के उस से स्कैल्प की मसाज करें. ऐसा करने से बाल मुलायम और मजबूत होते हैं.

8. हेयर स्पा भी है जरूरी

जैतून या नारियल के तेल में नीबू के रस की कुछ बूंदें मिला कर उसे स्कैल्प पर लगाएं. इस के बाद तौलिए की सहायता से बालों को स्टीम दें. इस के लिए तौलिए को गरम पानी में डालें, फिर निकाल कर निचोड़ें फिर सिर पर लपेटें. ऐसा करने पर सर्दी के मौसम में भी बाल ड्राई नहीं होंगे.

9. घरेलू नुस्खे लाएं बालों में नई जान

द्य एक लिटर पानी में 2 चम्मच सिरका डालें और बालों में शैंपू और कंडीशनर के बाद इस पानी से बालों को धोएं. सिरके की जगह नीबू का रस भी यूज कर सकती हैं. इस से बाल हैल्दी और शाइनी होते हैं.

द्य दही को 25 मिनट बालों में लगा कर पानी से धो लें. 1 महीना ऐसा करें और फिर रिजल्ट देखें.

द्य पानी में 2 टी बैग डाल कर  5 मिनट उबालें. जब यह ठंडा हो जाए तो इस पानी से बालों को धोएं. चमक के साथ बाल काले भी हो जाएंगे.

10. गंजेपन से बचने के उपाय

महिलाएं अकसर अपने खानपान पर ध्यान नहीं देतीं, जिस से उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन में बालों का झड़ना भी शामिल है. कई बार बालों के ज्यादा झड़ने की वजह से गंजेपन की नौबत भी आ जाती है. आप के साथ भी यह समस्या न हो इसलिए अपना खयाल रखें.

11. तनाव न लें

मीरा देखने में बहुत खूबसूरत है, लेकिन कुछ दिनों से उसे काफी हैयर फौल हो रहा था. वह जब भी शैंपू या कंघी करती तो गुच्छेगुच्छे में बाल निकलते. बाल झड़ने की वजह से उस ने कंघी करना ही बंद कर दिया. वह तभी कंघी करती जब उसे बाहर जाना होता. बचे बालों से स्कैल्प को छिपाने की कोशिश करती. स्किन ऐक्सपर्ट को भी दिखाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

इस के बाद मीरा ने जब एक डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह किसी बीमारी से पीडि़त नहीं है, लेकिन जरूरत से ज्यादा चिंता करती है. इसलिए उस के बाल झड़ते हैं. तब उस ने सोचना कम कर दिया है और नारियल, कलौंजी और कैस्टर का तेल मिला कर सिर की मालिश करती है और सुबह शैंपू करती है, जिस से अब बाल झड़ने धीरेधीरे कम हो रहे हैं.

12. गंजेपन की वजह बनते गैजेट्स

महिलाओं में बाल झड़ने की समस्या के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार हारमोनल बदलाव है, जिस की वजह जंक फूड और तनाव है. इस के अलावा जिन महिलाओं को पीसीओडी की प्रौब्लम है उन के भी बाल झड़ते हैं. इसलिए महिलाओं को पूरी नींद लेनी चाहिए. गैजेट्स का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए खासकर मोबाइल का. इस के साथ ही कैमिकल हेयर ट्रीटमैंट से बचें और समयसमय पर डर्मैटोलौजिस्ट से राय लेती रहें.

 

Winter Special: आप भी बनना चाहती हैं किचन क्वीन, तो ट्राई करें ये टिप्स

ज्यादातर महिलाएं खाना तो अच्छा बनाती हैं पर उन छोटीछोटी बातों पर ध्यान नहीं देतीं, जिन की वजह से भोजन का स्वाद तो कम होता ही है, कभीकभी उस के पोषक तत्त्व भी नष्ट हो जाते हैं. अब देखिए न, शीलाजी ने फल तो बड़े अच्छे तरीके से एक ही आकार में काटे पर जल्दबाजी में प्याज वाला चाकू और कटिंग बोर्ड इस्तेमाल कर लिया. नतीजा यह हुआ कि फलों से आती प्याज की गंध ने उन का सारा स्वाद किरकिरा कर दिया.

इसी तरह अगर अंडे फेंटे हुए कप को यदि ठीक से न धो कर उस में चाय दे दी जाए तो अंडे न खाने वाले को अच्छी चाय में भी स्वाद नहीं आएगा. अकसर खाना बनाते समय गृहिणियां कई ऐसी छोटीछोटी गलतियां कर देती हैं जिन की वजह से अच्छा खाना तो बेस्वाद होता ही है, गृहिणी की मेहनत, समय और पैसा भी बेकार हो जाते हैं.

तो आइए, जानें किचन में होने वाली गलतियां और उन के समाधान:

गलती नं. 1 : माइक्रोवेव में खाना गरम करने या पकाने के तुरंत बाद माइक्रोवेव डोर ओपन कर के सामग्री बाहर निकालना.

समाधान : खाना गरम करने या पकने के तुरंत बाद माइक्रोवेव डोर न खोलें, क्योंकि बाहर और अंदर के तापमान में अंतर होने की वजह से माइक्रोवेव सेफ कंटेनर टूट सकता है. इस के अलावा माइक्रोवेव बंद होने के कुछ सैकंड्स बाद तक विद्युत तरंगें खाने पर अपनी गरमी छोड़ती हैं. ऐसे में माइक्रोवेव के स्विचऔफ होने के 20-30 सैकंड्स बाद ही कंटेनर बाहर निकालें.

गलती नं. 2 : माइक्रोवेव में खाना बनाने अथवा गरम करने के लिए प्लास्टिक कंटेनर्स का प्रयोग करना.

समाधान : खाना गरम करने या पकाने का सब से फास्ट तरीका माइक्रोवेव ही है. पर प्लास्टिक के बरतनों में खाना गरम करने से प्लास्टिक के बरतनों में मौजूद ऐसे तत्त्व जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, वे भोजन में मिल जाते हैं. नतीजा यह होता है कि जब हम भोजन करते हैं तो वे हमारे पेट में चले जाते हैं. इस से कैंसर होने की संभावना रहती है. अत: प्लास्टिक के बरतनों का प्रयोग न करें. अच्छी क्वालिटी व माइक्रोवेवपू्रफ कांच के कंटेनर्स का ही प्रयोग करें.

गलती नं. 3 : बचे चावल, सब्जी, दाल आदि को गरम करने से उस की नमी सूख जाती है.

समाधान : चावल, सब्जी, दाल आदि कुछ भी गरम करें तो उस के ऊपर थोड़ा पानी छिड़क दें ताकि भोज्यपदार्थों की नमी बरकरार रहे.

गलती नं. 4 : फ्रिज से खाना निकाल कर तुरंत गरम करना.

समाधान : फ्रिज से भोज्यपदार्थों को गरमी के मौसम में लगभग आधा घंटा पहले और सर्दी के मौसम में 1 घंटा पहले निकाल लें. सामान्य तापमान पर आ जाने पर ही खाना गरम करें. दूसरी प्रमुख बात यह कि खाना चाहे गैस पर गरम करें या माइक्रोवेव में उतना ही गरम करने के लिए निकालें जितनी जरूरत हो. ज्यादातर महिलाएं फ्रिज से सब्जी आदि निकालने के बाद पूरी गरम कर लेती हैं और जब वह बच जाती है तो फिर फ्रिज में रख देती हैं. ऐसे में खाने का स्वाद तो कम होता ही है, साथ ही उस के पोषक तत्त्व भी नष्ट हो जाते हैं.

गलती नं. 5 : तलने के बाद बचे तेल का पुन: प्रयोग करना.

समाधान : अकसर महिलाएं तलने के बाद बचे तेल को रख लेती हैं और पुन: कोई चीज तलने अथवा सब्जी बनाने के लिए प्रयोग करती हैं. ऐसा करना सेहत के नजरिए से बिलकुल सही नहीं है, क्योंकि पुन: तेल को गरम करने से उस का ट्रांस फैट बढ़ता है और अधिक मात्रा में इस के सेवन से हाई ब्लडप्रैशर, मोटापा और दिल की बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है. अत: तेल का उतना ही इस्तेमाल करें जितनी जरूरत हो. यदि फिर भी तेल बच जाए तो उस से उसी समय चिड़वा, नमकपारे, मूंगफली आदि चीजें तल लें.

गलती नं. 6 : स्वाद बढ़ाने के लिए ज्यादा सीजनिंग का प्रयोग करना.

समाधान : महिलाएं सोचती हैं कि सीजनिंग के लिए नमक, कालीमिर्च ज्यादा डालेंगी तो अच्छा रहेगा पर ध्यान रहे कि नमक के ज्यादा सेवन से उच्च रक्तचाप हो सकता है. सीजनिंग के लिए अदरकलहसुन, ताजा हर्ब्स जैसे पुदीनापत्ती, करीपत्ता, बेसिल, धनियापत्ती, अजवाइनपत्ती आदि का प्रयोग करें. इस से भोजन का स्वाद बढ़ेगा और सेहत ठीक रहेगी.

गलती नं. 7 : खाना पकाते समय सही तापमान का सही प्रयोग न करना.

समाधान : जल्दबाजी में या समय बचाने के लिए महिलाएं तेज आंच पर खाना बनाती हैं. ऐसे में भोजन बाहर से तो पक जाता है पर अंदर से कच्चा ही रहता है. इसी तरह तेज आंच पर मसाला भूनने पर उस की खुशबू और स्वाद दोनों ही नष्ट हो जाते हैं. अत: सही तापमान का प्रयोग करें. इस के अलावा खाना ढक कर पकाएं. इस से खाना जल्दी भी पकता है और उस के पोषक तत्त्व भी बने रहते हैं.

गलती नं. 8 : सब्जियों को उबालने के बाद पानी फेंक देना.

समाधान : जिन सब्जियों को उबालना या ब्लांच करना जरूरी हो उन के पानी को फेंकें नहीं. अंकुरित को उबालना हो तो उस के पानी को व चावल के मांड को भी फेंकें नहीं. इन सब के पानी में ‘बी कौंप्लैक्स विटामिंस’ प्रचुर मात्रा में होते हैं. वैसे अच्छा तोयही है कि सब्जियों को भाप में पकाएं. पर यदि पानी में ही उबालनी हैं तो उस पानी को आटा गूंधने, तरी वाली सब्जी में, दाल में अथवा सूप की तरह पीने में प्रयोग लाएं.

गलती नं. 9 : सब्जियां ध्यान से न खरीदना और काटने के बाद सही तरह से पैक कर के न रखना.

समाधान : अकसर महिलाएं सब्जियां खरीदते समय इस बात का ध्यान नहीं करतीं कि सब्जी रंग वाली तो नहीं है. दूसरा अगर उन्हें काट कर 6-7 घंटों के लिए रखना है तो अच्छी तरह जिपपाउच में अथवा सील्ड डब्बे में ही रखें और सब्जियों को अच्छी तरह धोने के बाद कपड़े से पोंछ कर ही काटें.

गलती नं. 10 : पके भोज्यपदार्थों को रखने के लिए सही बरतनों का प्रयोग न करना.

समाधान : जो भी पकी सामग्री होती है उसे रखने के लिए सही आकार के बरतनों का प्रयोग बहुत जरूरी है. साथ ही फ्रिज में रखने से पहले खाद्यपदार्थ व दूध आदि को रूम टैंपरेचर पर आने के बाद ही रखें और ढक कर ही रखें.

गलती नं. 11 : सब्जियां और फल काटने के लिए एक ही चौपिंग बोर्ड का प्रयोग करना.

समाधान : सब्जियां, फल और यदि मांसाहारी हैं तो उस के लिए अलग चौपिंग बोर्ड रखें ताकि एक की महक दूसरे में न जाए और हाथों को अच्छी तरह धो कर ही इन्हें काटें.

2-3 सालों से दोनों घुटनों में बहुत दर्द रहता है?

सवाल-

मैं 48 वर्षीय घरेलू महिला हूं. 2-3 सालों से दोनों घुटनों में बहुत दर्द रहता है. इस से मु झे रोजमर्रा के काम करने में भी दिक्कत हो रही है. मैं आंशिक घुटना प्रत्यारोपण के बारे में जानना चाहती हूं?

जवाब-

उपचार इस पर निर्भर करता है कि आप के घुटनों के दर्द का कारण क्या है और समस्या किस स्तर पर है. अगर पूरा घुटना खराब नहीं है तो आंशिक घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि इस में पूरे घुटने को नहीं केवल क्षतिग्रस्त भाग को बदला जाता है. संपूर्ण घुटना प्रत्यारोपण के विपरीत इस में घुटने का जोड़ 70% सुरक्षित रहता है. इस में मरीज रिकवर भी जल्दी होता है और सर्जरी के बाद उसी या अगले दिन घर जा सकता है. अधिकतर मरीजों को पूरे घुटने के प्रत्यारोपण की जरूरत नहीं होती है. उन के लिए पार्शियल नी रिप्लेसमैंट आसान और बेहतर रहता है.

ये भी पढ़ें- 

क्या आप को हैरानी हुई है कि छरहरी महिलाएं भी कमजोर और अस्वस्थ क्यों हो जाती हैं?

क्या आप ने कभी सोचा है कि सब का खयाल रखने वाली परिवार की कोई सदस्य अकसर बीमार क्यों पड़ जाती है?

एक दशक पहले तक हैजा, टीबी और गर्भाशय का कैंसर महिलाओं को होने वाली सेहत से जुड़ी मुख्य समस्याएं थीं. इन दिनों नई बीमारियां, जैसे कार्डियो वैस्क्यूलर डिजीज, डायबिटीज और आस्टियोआर्थराइटिस जैसे रोग 30 वर्ष से अधिक आयुवर्ग की युवा महिलाओं में फैले हुए हैं.

आर्थराइटिस फाउंडेशन की ओर से हाल ही में हुए अध्ययन के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि 2013 तक देश में लगभग 3.6 करोड़ लोग आस्टियोआर्थराइटिस रोग से प्रभावित हो जाएंगे. कम आमदनी वाले वर्ग की 30-60 वर्ष की भारतीय महिलाओं के बीच हुए एक अध्ययन में अस्थि संरचना के सभी महत्त्वपूर्ण जगहों पर बीएमडी (अस्थि सघनता) विकसित देशों में दर्ज किए गए आंकड़ों से काफी कम थी, जिस के साथ अपर्याप्त पोषण से होने वाले आस्टियोपेनिया (52%) और आस्टियोपोरोसिस (29%) की मौजूदगी ज्यादा थी. अनुमान है कि 50 वर्ष से अधिक की 3 में से 1 महिला को आस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर का अनुभव होगा.

इन दिनों कम शारीरिक सक्रियता वाली जीवनशैली की वजह से दबाव संबंधी कारक और मोटापा जोखिम पैदा करने वाले कुछ ऐसे कारक हैं जिन का संबंध आस्टियोआर्थराइटिस जैसी समस्याओं से माना जाता है. इसलिए, यदि कोई स्वस्थ जीवन जीना चाहता है तो जरूरी है कि वह अपनी हड्डियों की देखभाल पर विशेष ध्यान दे. आस्टियोआर्थराइटिस की रोकथाम और काम व जीवन के बीच स्वस्थ संतुलन कायम करने के लिए यहां ऐसे टिप्स बताए जा रहे हैं, जिन पर महिलाओं को ध्यान देना चाहिए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें