हिजड़ा: क्यों वह बनीं श्री से सिया

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘छनाक’ की आवाज के साथ आईना चकनाचूर हो गया था. कई टुकड़ों में बंटा हुआ आईने का हर टुकड़ा सिया का अक्स दिखा रहा था.

मांग में भरा सिंदूर, गले का मंगलसूत्र, कानों के कुंडल ये सब मानो सिया को चिढ़ा रहे थे.

शायद समाज के दोहरेपन के आगे वह हार मान चुकी थी.

एकसाथ कई सवाल सिया के मन में उमड़घुमड़ रहे थे.

आईने के नुकीले टुकड़ों में  सिया को उस के सवालों का उत्तर नहीं मिल सका. आंखों में आंसुओं के साथ पिछली यादें किसी फिल्म की तरह सिया की आंखों के सामने से गुजरने लगी थी.

“श्री” नाम था उस का. 20 साल का होतेहोते वह और उस के मांबाप ये समझ चुके थे कि श्री का शरीर भले ही एक पुरुष का हो, पर उस के अंदर आत्मा एक महिला की ही है.

मांबाप ने श्री को कई डाक्टरों और मनोचिकित्सकों को दिखलाया, इलाज भी चला, पर कोई लाभ नहीं हुआ. डाक्टरों ने श्री को ‘जेंडर आइडेंटिटी डिसऔर्डर’ का मरीज बताया, जिस में शरीर तो स्त्री या पुरुष का हो सकता है, पर हावभाव और लक्षण विपरीत लिंग के होते हैं.

श्री के नैननक्श तीखे थे. उस के चेहरे की खूबसूरती और चमक से लड़कियों को जलन होना स्वाभाविक ही था. वह लड़कियों के कपड़े पहनता, उन की तरह हावभाव रखता, गाने गाता और लड़कियों की तरह डांस करना उसे बहुत अच्छा लगता था. किसी से बात करते समय लचकनामचकना श्री की आदत थी. अनजाने में ही श्री के अंदर की स्त्री सहज रूप में उभर कर आती थी.

श्री जीवन के 22वें वर्ष में प्रवेश कर चुका था. बाहर जाने पर भी लड़कियों जैसे कपड़े ही पहनने लगा था वह… मानो अब उसे जमाने के कहनेसुनने की कोई परवाह ही नहीं थी. उस ने अमर नाम का एक दोस्त बनाया था, जिसे वह अपना बौयफ्रैंड कहता था.

अमर को इस बात का अहसास था कि श्री की हरकतें लड़कियों जैसी हैं, पर उसे तो सिर्फ श्री के पैसे से मजे करने थे, इसलिए वह उस के नाज उठाता था. आज वे दोनों श्री का जन्मदिन मनाने के लिए किसी रेस्टोरेंट में जाने वाले थे.

इस खास दिन के लिए श्री ने अपने लंबे बालों को खुला छोड़ा हुआ था और वह सलवारसूट पहने था.

उन दोनों को वापसी में रात के साढ़े 11 बजे गए थे. अमर और श्री एकदूसरे का हाथ पकड़े गाड़ी की पार्किंग की तरफ बढ़ रहे थे.

“अरे लगता है, मैं अपना मोबाइल रेस्टोरेंट में ही भूल आया हूं,” कह कर अमर अंदर की ओर लपक गया, जबकि श्री बाहर ही उस के आने का इंतजार करने लगा था.

एक बड़ी सी गाड़ी श्री के ठीक सामने आ कर खड़ी हुई और उन में से बाहर निकले एक बलशाली लड़के ने श्री को अंदर घसीट लिया और श्री के मुंह पर टेप लगा दिया, ताकि वह शोर न मचा सके. गाड़ी को वे लोग एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के पास ले गए और श्री को बाहर घसीटा.

“आज बहुत दिनों बाद कोई चिकना माल मिला है,” श्री के कपड़े फाड़ते हुए एक वहशी बोला, पर अगले ही पल वह बुरी तरह चौंक गया, “स्साला… ये तो लड़की के वेश में लड़का है… क्यों बे साले… लड़की बन कर घूमने में ज्यादा मजा आता है क्या?” दोचार लातघूंसे रसीद कर दिए थे उस वहशी ने श्री के गाल पर.

“अब क्या करें… सारे मूड का तो सत्यानाश हो गया…अब मूड कैसे फ्रेश करें?” दूसरा युवक बोला.

“भाई तुम लोग अपना सोच लो… मुझे तो आज इस लड़के के साथ ही मजे लेना है… कभीकभी स्वाद भी तो बदलना चाहिए न,” इतना कह कर वह युवक श्री के साथ जबरन दुराचार करने लगा और फिर कुछ देर बाद बारीबारी से तीनों दोस्तों ने  भी श्री के साथ मुंह काला किया और उसे तड़पती अवस्था में छोड़ कर वहां से चले गए.

अर्धबेहोशी की अवस्था में श्री कब तक रहा, उसे कुछ पता नहीं था. आंखें खुलीं, तो उस ने अपनेआप को एक अस्पताल में पाया. पुलिस वाले उस के सामने खड़े थे.

“तो आप का कहना है कि आप के बेटे का बलात्कार हुआ है,” पुलिस वाले ने श्री के पिता से पूछा.

“जी.”

“हमें पीड़ित का बयान लेना होगा,” इंस्पेक्टर ने कहा और श्री से कुछ अटपटे सवाल पूछने के बाद जल्द ही कार्यवाही करने की बात कह कर बाहर निकलते हुए पुलिस कांस्टेबल इंस्पेक्टर से कह रहा था, “साहब, ये सब अमीर घर के लड़कों  के चोंचले हैं… पहले लड़की बन कर घूमते हैं और फिर बलात्कार करवा कर हमारे लिए काम बढ़ा देते हैं… साले हिजड़े कहीं के…”

‘हिजड़े…’ यह शब्द गाली की तरह चुभा था श्री को. श्री का कलेजा अंदर तक छलनी हो गया था.

ये पहला मौका था, जब उसे अपने इस दोहरे जीवन जीने के ढंग पर शर्म आई थी.

करीब 5 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद श्री अपने मांबाप के साथ घर आया और अपने बौयफ्रैंड अमर को फोन लगाया.

काफी देर बाद अमर ने उस का फोन उठाया और सीधे शब्दों में कह दिया कि श्री के साथ जो हादसा हुआ है, उस से उस की काफी बदनामी हो गई है, इसलिए  वह उस के साथ अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता.

जिस दोस्त की अब उसे सब से ज्यादा जरूरत थी, उसी ने उस का साथ छोड़ दिया. ये सोच कर श्री काफी परेशान हो उठा.

श्री ने अपने मर्दाना पर निष्क्रिय पड़े हुए अंग को देखा और नफरत से भर गया. यह पहला मौका था, जब श्री ने अपना लिंग परिवर्तन कराने की बात गहराई से सोची, इस के लिए सब से पहले उस ने इंटरनेट खंगालना शुरू किया. उस के जैसे लक्षणों वाले और बहुत से लोग हैं इस दुनिया में. यह बात उसे पता चली, तो उस के मन को थोड़ा सुकून मिला और गहरे जाने पर श्री को बहुत सी नई बातें पता चलीं. उस में से एक यह बात भी थी कि चिकित्सा के नए स्वरूप में  लिंग परिवर्तन कराना कोई बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है और 10 लाख से भी कम खर्चे में भारत में ही रह कर अपना लिंग परिवर्तन कराया जा सकता है.

ये सारी बातें जान कर श्री एक नई ऊर्जा से भर गया था. अपने लिंग परिवर्तन अर्थात अपनेआप को एक पुरुष से स्त्री के शरीर में ढालने की बात जब श्री ने अपने मांबाप से की, तो पहले तो वे सकते में आ गए, पर बाद में उन्होंने  हामी भर दी.

श्री ने लिंग परिवर्तन के लिए विशेषज्ञों से औनलाइन परामर्श लेना शुरू किया, जिन से उसे पता चला कि ये प्रोसेस धीमा जरूर है, पर इस में धैर्य रख कर इसे सफल बनाया जा सकता है, कुछ और जरूरी खोजबीन के बाद डाक्टर मुकेश माथुर से अपना लिंग परिवर्तन कराने के लिए वह गुजरात में उन से मिला और उन के अस्पताल में भरती हो गया.

डाक्टर माथुर ने सब से पहले उसे हार्मोंस के इंजेक्शन देने शुरू किए और थेरेपी व अन्य दवाएं भी देनी शुरू कीं, जिन के असर से कभीकभी श्री परेशान हो उठता. कभी वह मूड स्विंग्स का शिकार भी हो जाता था. स्त्री के स्वभाव के साथसाथ उस का शरीर भी एक का हो जाएगा, ये सोच कर श्री ये सारे दर्द झेलता रहा.

जब कभी श्री परेशान होता, तो वह रोने लगता. ऐसे में उस के मनोचिकित्सक की कमी डाक्टर मुकेश माथुर पूरी करते.

40 साल के डाक्टर मुकेश माथुर शहर के जानेमाने सर्जन थे और चिकित्सा में उन्होंने कई इनाम भी जीते थे. उन्हें मरीज की मनोदशा का अच्छी तरह से पता था. वह  घंटों श्री का हाथ पकड़ कर उस के सिरहाने बैठे रहते और उसे हिम्मत बंधाते. श्री को उन का आत्मिक होना बहुत अच्छा लगता था.

धीरेधीरे दवाएं और हार्मोंस का असर श्री के शरीर पर आने लगा. उस की काया कमनीय हो चली थी. सीने पर उभार आने लगे और शरीर के बाल पतले हो कर गायब होने लगे थे.

और आखिर वह दिन भी आया, जब डाक्टर मुकेश माथुर के द्वारा श्री को स्त्री घोषित कर दिया गया.

डाक्टर माथुर ने श्री को नया नाम भी दिया, “नए शरीर के साथ तुम्हारा नया होगा… सिया.”

अपने नए नाम को बारबार दोहरा रहा था श्री और ऐसा करते समय उस की आंखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे.

“वैसे तो हमारे देश में अब लिंग परिवर्तन की प्रक्रिया आसान हो गई है, पर डाक्टर मुकेश माथुर ने जितने कम समय और बिना किसी साइड इफेक्ट के इस सर्जरी को अंजाम दिया है, काबिलेतारीफ है,” डाक्टरों  के एक पैनल ने सर्वसम्मति से डाक्टर माथुर को “धन्वंतरि अवार्ड” से नवाजा.

श्री से सिया बन कर उस के जीने का अंदाज ही बदल गया था. अपनेआप को घंटों आईने के सामने निहारती रहती थी सिया.

सिया के नाम से नया फेसबुक एकाउंट भी बना लिया था उस ने. सब से पहली फ्रेंड रिक्वेस्ट उस ने अमर को भेजी, एक सुंदर लड़की की फोटो देख कर अमर ने तुरंत ही फ्रेंडशिप स्वीकार कर ली. धीरेधीरे फोन नंबरों का आदानप्रदान हुआ और अमर और सिया में बातचीत होने लगी. सिया ने वीडियो काल कर अमर को अपनी खूबसूरती की एक झलक भी दिखला दी थी.

अमर सिया से मिलने के लिए बेचैन हो उठा और उस ने सिया को मिलने के लिए एक रेस्टोरेंट में बुलाया, फिर उसे बहाने से एक होटल के कमरे में ले गया. उस की मंशा सिया जैसी खूबसूरत लड़की को भोगने की थी इसलिए, पर वह सिया को बातों मे लगा कर उस के कपड़े उतारने लगा. सिया ने भी कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद सिया पूरी तरह नग्न हो कर अमर के सामने खड़ी थी.

अमर अपलक सिया को निहारे जा रहा था. सिया को बांहों में भर लिया था अमर ने… जैसे ही सिया के शरीर में अमर ने समाने की कोशिश की, सिया ने उसे जोर का धक्का दिया.

यह देख अमर थोड़ा सा चौंक उठा, “अरे सिया, अब इतना नाटक क्यों कर रही हो?”

“मैं नाटक नहीं कर रही, बल्कि मैं तुम्हें ये अहसास कराना चाहती हूं कि तुम ने क्या खोया  है… ये सिया वही श्री है, जिस को तुम ने एक दिन अपनी बदनामी के डर से ठुकरा दिया था.”

ऐसा कह कर सिया ने झट से कपड़े पहने और कमरे से बाहर निकल गई.

अमर को अपने ऊपर भरोसा नहीं हो रहा था कि ये सब हकीकत थी या कोई छलावा था.

सिया अपने मांबाप के साथ रहने लगी. महल्ले के लोगों को पता चल चुका था कि श्री ही लिंग परिवर्तन के बाद की सिया है, इसलिए  सब उसे अजीब नजरों से देखते थे, कभीकभी सिया के पीछे फुसफुसाती आवाजें सिया को अजीब लगतीं, तो कभी 15-16 साल के लड़के उस के पीठ पीछे “हिजड़ा” बोल कर हंसते हुए चले जाते थे.

पहलेपहल तो सिया ने ध्यान नहीं दिया, पर जब इन चीजों की पुनरावृत्ति होने लगी तो सिया के मन में खटास आने लगी.

“मैं कोई हिजड़ा नहीं, बल्कि मैं तो पूरी औरत हूं,” फुसफुसा उठती थी सिया.

इस दौरान उसे हार्मोन थेरेपी के लिए डाक्टर मुकेश माथुर के पास जाना पड़ता था. उस दिन 14 फरवरी अर्थात “वैलेंटाइन डे” था. डाक्टर माथुर ने हाथों में एक सुर्ख गुलाब ले कर सिया को दिया.

“क्या आप किसी लड़की को लाल गुलाब देने का मतलब जानते हैं डाक्टर?” सिया ने पूछा.

“अच्छी तरह जानता हूं…तभी तो दे रहा हूं,” डाक्टर माथुर ने कहा.

“तुम्हारी सर्जरी करने के बाद मुझे तुम से मिलतेमिलते इतना प्यार हो गया है कि अब तुम्हारे बिना मुझ से रहा नहीं जाता है, इसलिए मैं तुम से  शादी करना चाहता हूं.”

एक ट्रांसजेंडर बनने के बाद से ही सिया एक ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ रही थी, जो उस के साथ शादी करने का साहस जुटा सके और उसे औरत के जिस्म का अहसास करा सके.

सिया डाक्टर माथुर की ये बात सुन कर फूली नहीं समा रही थी. उसे लग रहा था कि उस का सपना साकार हो गया है.

सिया के मांबाप को भला इस फैसले से क्या आपत्ति होती… उन्होंने उस की हां में हां मिला दी.

एक सादा समारोह में डाक्टर मुकेश माथुर ने सिया से शादी कर ली. एक ट्रांसजेंडर की एक डाक्टर से शादी को लोकल समाचारपत्रों ने प्रमुखता से स्थान दिया. सोशल मीडिया पर भी डाक्टर मुकेश माथुर और सिया की शादी खूब सुर्खियों में रही.

शादी के बाद डाक्टर मुकेश और सिया जी भर कर सैक्स का सुख लेने लगे. अपने शरीर को ले कर सिया का हर प्रकार का डर खत्म हो गया था.

आज कुछ मीडिया वाले डाक्टर मुकेश का इंटरव्यू लेने आए थे, जो उन से बारबार वही जानना चाह रहे थे कि एक ट्रांसजेंडर के साथ शादी कर के उन्हें कैसा लग रहा है… पत्रकार  घुमाफिरा कर उन के सैक्स संबंधों के बारे में ही सवाल पूछ रहे थे, उन के हर सवाल का जवाब डाक्टर मुकेश माथुर बड़ी गर्मजोशी से जवाब दे रहे थे.

पत्रकारवार्ता खत्म होने के बाद डाक्टर मुकेश के मोबाइल पर एक फोन आया, जिसे सुन कर वे बहुत खुश हुए और सिया से बोले, “सुनो सिया… मैं ने एक लिंग परिवर्तन करवाए हुए एक लड़के से शादी की है. मेरे इस साहसिक निर्णय के लिए मुझे मानव कल्याण संस्था वाले एक अवार्ड दे रहे हैं,” चहक रहे थे डाक्टर मुकेश. उन को खुश देख कर सिया भी खुश हो गई.

2 दिन बाद ही डाक्टर मुकेश माथुर को जब अवार्ड मिल गया, तो उस ने अपने कुछ डाक्टर साथियों को इस खुशी में घर पर पार्टी के लिए बुलाया. सारा खाना बाहर से मंगवाया गया था और महंगी वाली शराब का दौर चल रहा था. मुकेश के सभी साथी नशे में झूमने लगे थे.

“यार मुकेश… शराब तो तू ने पिला दी, पर शबाब के लिए अपनी उस ट्रांसजेंडर बीवी को ही बुला ले,” एक साथी ने कहा.

“हां यार, बड़ा मूड हो रहा है,” दूसरे साथी ने कहा.

“नहीं यार, भले ही वह ट्रांसजेंडर हो… पर है तो उस की बीवी ही,” दूसरे दोस्त ने बचाव किया.

“इन ट्रांसजेंडर की भी क्या इज्जत और क्या बेइज्जती? ये तो ग्रुप सैक्स के लिए भी राजी हो जाते हैं.”

कमाल की बात यह थी कि डाक्टर मुकेश उन सब की बातों का कोई प्रतिरोध नहीं कर रहा था, बल्कि उन की हां में हां मिला रहा था.

दीवार के पीछे खड़ी सिया ये सब सुन रही थी. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. इतने में सिया ने अपनी पीठ पर किसी का मजबूत हाथ महसूस किया. ये डाक्टर मुकेश माथुर था.

मुकेश सिया को घसीटते हुए अपने साथियों के सामने ले गया और बोला,

“लो दोस्तो, शराब के बाद… शबाब… मजे ले लो इस के.”

“ये आप क्या कर रहे हैं… मैं पत्नी हूं आप की.”

बड़ी ज़ोर से हंस पड़ा था डाक्टर मुकेश माथुर.

“अरे ओ… मैं ने तुझ जैसे हिजड़े… सौरी… ट्रांसजेंडर से शादी इसलिए की है कि मुझे समाज में सम्मान मिल सके… अवार्ड मिल सके… और मैं एक हिजड़े का उद्धार करने वाले डाक्टर के रूप मे जाना जाऊं,” नशे में डाक्टर मुकेश माथुर बुरी तरह हावी हो रहा था, जबकि डाक्टर मुकेश के साथी सिया के कपड़े खींचने में लगे हुए थे और कुछ ही देर में सिया उन सब के सामने नंगी खड़ी हुई फफक रही थी. वह हाथों से कैंची बना कर अपने सीने को ढकने की असफल कोशिश कर रही थी. एक व्यक्ति ने उसे बिस्तर पर गिरा लिया. उस के बाद सभी लोगों ने बारीबारी से सिया के साथ मुंह काला किया और इस घटना का वीडियो भी बनाया, ताकि इस बलात्कार की यादें ताजा रहें.

अगली सुबह जब सिया को होश आया था, तब कमरे में  कोई नहीं था, सिर्फ शराब और सिगरेट की गंध शेष थी.

सिया ने किसी तरह से कपड़े पहने और उस की नजर आईने के टूटे हुए टुकड़ों पर पड़ी, जो उसे चिढ़ा रहे थे मानो कह रहे हो कि तू एक हिजड़ा है… तू एक ट्रांसजेंडर है और तुझे समाज वाले इज्जत की नजर से कभी नहीं देखेंगे…बड़ी चली थी शादी करने… सिया ने भरे मन से टूटे आईने का एक टुकड़ा उठाया और अपनी कलाई की नस को काट लिया. उस की कलाई से खून तेजी से टपकने लगा था. सिया के कानों में अब भी आवाजें गूंज रही थीं… ट्रांसजेंडर… हिजड़ा… हिजड़ा…

Summer Special: चेहरे पर लगाएं शहद, पाएं निखरा-निखरा चेहरा

आजकल तेज गरमी और पौल्यूशन से सबसे ज्यादा नुकसान स्किन को होता है, जिसके लिए हम मार्केट से क्रीम खरीदते हैं, लेकिन वह लंबे समय तक के लिए ठीक नही करती. अगर स्किन की खूबसूरती लंबे समय तक बरकरार रखने के लिए हम नेचुरल होममेड टिप्स का इस्तेमाल करें तो वह हमारी स्किन के लिए फायदेमंद होगा. इसीलिए आज हम आपको स्किन के लिए हनी के फायदें बताएंगे. जिससे आप मार्केट से लाएं हुए प्रोडक्ट की जगह होममेड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करेंगे.

1. स्किन को शाइनी बनाएगा हनी

शहद और दूध में मौजूद एंटीऔक्‍सीडेंट शरीर के लिए बहुत अच्‍छा होता है. शहद और दूध से बना मास्‍क त्‍वचा पर लगाने से तुरंत चमक आ जाती है. ऑफिस में पूरा दिन काम करने के बाद इसके इस्‍तेमाल से आप फ्रेश दिखने लगते है. साथ ही नियमित रूप से शहद और दूध के मास्‍क से चेहरे की टैनिंग भी दूर होने लगती है. इसके अलावा विटामिन, मिनरल और प्रोटीन से भरपूर होने के कारण यह रंगत को निखारने में भी मदद करता है.

2. झुर्रियों को दूर करें

अगर आपको उम्र बढ़ने की इस प्रौब्लम का सामना करना पड़ रहा हैं, और आप झुर्रियों को दूर करना चाहते हैं तो हनी और मिल्क से बना फेस पैक इस प्रौब्लम में आपकी मदद कर सकता है. इसके लिए दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर फेस पर लगा लें.

3. फटे लिप्स के लिए होम रेमेडी है हनी

अक्‍सर लोग को फटे होंठों की प्रौब्लम रहती हैं. फटे होंठों को नमी की जरूरत होती है. आप अपने होंठों को नमी देने के लिए इस मैजिकल पेस्ट का इस्‍तेमाल कर सकते हैं. टाइम से इसे लगाने पर आप जल्‍द ही फटे होंठों की प्रौब्लम से निजात पा सकते हैं.

4. बेहतर क्लिंजर है हनी

कच्चा दूध एक अच्छा क्लिंजर है. यह बात तो हम सभी जानते हैं, लेकिन कच्‍चे दूध में शहद को मिलाने से यह स्किन पर अच्छा असर करता है. इसके लिए कच्‍चे दूध में थोड़ा सा शहद मिलाकर कौटन की मदद से पेस्ट को फेस पर लगाकर पांच मिनट लगाने के बाद धो लें. नियमित रूप से ऐसा करने से आपकी स्किन सौफ्ट और क्लीन होने लगेगी.

स्किन के लिए हनी का इस्तेमाल होगा फायदेमंद

अजंता: आखिर क्या हुआ पूजा के साथ

लेखक- सुधीर मौर्य

अजंता को इस बात की बिलकुल भी उम्मीद नहीं रही होगी कि शशांक उस के फ्लैट पर आ जाएगा. डोरबैल बजने पर अजंता ने जब दरवाजा खोला तो सामने शशांक खड़ा था. उसे यों वहां आया देख कर अजंता सोच ही रही थी कि वह कैसे रिएक्ट करे तभी शशांक मुसकराते हुए बोला, ‘‘नमस्ते मैम, यहां से गुजर रहा था तो याद आया इस एरिया में आप रहती हैं. बस दिल में खयाल आया कि आप के साथ चाय पी लूं.’’

‘‘बट अभी मैं कल क्लास में देने वाले लैक्चर की तैयारी कर रही हूं, चाय पीने के लिए नहीं आ सकती,’’ अजंता ने शशांक को दरवाजे से लौटा देने की गरज से कहा.

‘‘अरे मैम, इतनी धूप में आप बाहर आ कर चाय पीएं यह तो हम बिलकुल न चाहेंगे. चाय तो हम यहां फ्लैट में बैठ कर पी सकते हैं. चाय मैं बनाऊंगा आप लैक्चर की तैयारी करते रहना और हां एक बात बता दूं हम चाय बहुत अच्छी बनाते हैं,’’ शशांक ने दरवाजे से फ्लैट के अंदर देखने की कोशिश करते हुए कहा मानो वह यह तहकीकात कर रहा हो कि इस वक्त अजंता फ्लैट में अकेली है या कोई और भी वहां है.

शशांक की कही बात का अजंता कोई जवाब न दे सकी. एक पल चुप रहने के बाद वह बिना कुछ कहे फ्लैट के भीतर आ गई. शशांक भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. शशांक ने दरवाजा बंद किया तो उस की आवाज से अजंता ने पलट कर जब उसे देखा तो शशांक ने झट से पूछा, ‘‘मैम, किचन किधर है?’’

‘‘इट्स ओके,’’ अजंता सोफे की ओर इशारा कर के शशांक से बोली, ‘‘तुम वहां बैठो चाय मैं बना कर लाती हूं.’’

‘‘एज यू विश,’’ शशांक ने मुसकरा कर कहा और फिर सोफे पर यों बैठ गया जैसे वह वहां मेहमान न हो, बल्कि यह फ्लैट उसी का हो.

शशांक को वहां बैठा देख कर अजंता किचन में चली गई. शशांक जाती हुई अजंता की लचकती कमर और रोमहीन पिंडलियां देखता रहा. अजंता नौर्मली जब घर पर होती है ढीलाढाला कुरता और हाफ पाजामा पहनती है. यही उस की स्लीपिंग ड्रैस भी है. इस में वह काफी कंफर्ट महसूस करती है.

‘‘मैम, क्या एक गिलास ठंडा पानी मिल सकता है,’’ गैस जला कर अजंता ने चाय बनाने के लिए पानी चढ़ाया ही था कि अपने बेहद करीब शशांक की आवाज सुन कर चौंक पड़ी. हाथ में पकड़ा चायपत्ती वाला डब्बा हाथ से गिरतेगिरते बचा.

अपनी आवाज से अजंता को यों चौंकते देख कर शशांक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैम, बाहर बहुत धूप है… प्यास से गला सूख गया है.’’

अजंता ने हाथ में पकड़ा चायपत्ती वाला डब्बा एक ओर रख फ्रिज से पानी की बोतल निकाल शशांक को पकड़ा दी. हाथ में पानी की बोतल लिए शशांक ने खुद गिलास लिया. गिलास लेते समय शशांक का जिस्म अजंता के जिस्म से तनिक छू गया. अजंता ने इस टच पर कोई रिएक्शन नहीं दिया. गिलास में पानी डाल कर पीने के बाद शशांक ने कहा, ‘‘मां कहती हैं कि पानी हमेशा गिलास से पीना चाहिए, सीधे बोतल से कभी नहीं.’’

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तुम्हारी मां यह नहीं कहतीं कि एक अकेली लड़की से मिलने उस के घर नहीं जाना चाहिए, अजंता यह कहने ही वाली थी कि उस से पहले ही शशांक ड्राइंगरूम में चला गया. चाय पीते हुए शशांक ने अजंता से ढेरों बातें करने की कोशिश की, लेकिन अजंता उन के जवाब में सिर्फ हां, हूं, नहीं आदि बोल उसे इग्नोर करने का प्रयास करती रही. चाय खत्म होने के बाद शशांक को टालने की गरज से अजंता ने कुछ पेपर उठा लिए और उन्हें मन ही मन पढ़ने का बहाना करने लगी. अजंता को यों अपनेआप में बिजी देख सोफे पर से उठते हुए शशांक ने कहा, ‘‘तो फिर मैं चलता हूं मैम.’’

‘‘हांहां ठीक है. तुम्हें ऐग्जाम की तैयारी भी करनी होगी,’’ कह वह सोच में पड़ गई कि छुट्टी का दिन है और उस से मिलने के लिए प्रशांत कभी भी आ सकता है. एक लड़के को मेरे फ्लैट में देख कर न जाने वह कौन सा सवाल कर बैठे. अजंता खुद चाहती थी कि शशांक जल्दी से जल्दी वहां से चला जाए. इसीलिए उस ने शशांक से पढ़ने की बात कह कर उसे जाने को कहा था पर उसे क्या पता था कि उस की कही बात उस के गले पड़ जाएगी.

‘‘मैम वह सच तो यह है कि मैं इसीलिए यहां आप के पास आया था कि आप से स्टडी में कुछ हैल्प ले सकूं,’’ सोफे पर वापस बैठते हुए शशांक बोला, ‘‘मैम, आप करेंगी न मेरी मदद?’’

‘‘हांहां ठीक है, पर आज नहीं. अभी तुम जाओ. मुझे अभी अपने लैक्चर की तैयारी करनी है,’’ कहतेकहते अजंता की बात में रिक्वैस्ट का पुट आ गया था.

अजंता को रिक्वैस्ट के अंदाज में बोलते देख शशांक को अच्छा लगा और फिर सोफे से उठ कर एहसान करने वाले अंदाज में बोला, ‘‘ओके मैम, आप कह रही हैं तो हम चले जाते हैं पर आप अपना वादा याद रखना.’’

‘‘कैसा वादा?’’ अजंता ने घबराते हुए पूछा.

‘यही कि आप स्टडी में मेरी हैल्प करेंगी,’ शशांक ने हंस कर कहा और फिर दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया.

अजंता दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि शशांक पलट कर बोल पड़ा, ‘‘मैम, आप के पैर बहुत खूबसूरत हैं. जी करता है इन्हें देखता ही रहूं. क्या मेरे लिए आप किसी ओपन लैग्स वाली ड्रैस में आ सकती हैं?’’

शशांक की इस बेहूदा बात पर अजंता चुप रह गई. शशांक ने एक गहरी नजर अजंता की रोमहीन चमकती पिंडलियों पर डाली और फिर मुसकराते हुए चला गया. उस के जाते ही अजंता ने झट से दरवाजा बंद कर के सुकून की सांस ली.

अजंता 23-24 साल की बेहद खूबसूरत युवती थी. इतनी खूबसूरत कि उस के चेहरे को देख कर दुनिया की सब से हसीन लड़की भी शरमा जाए, उस के जिस्म के रंग के आगे सोने का रंग मटमैला लगे. कंधे तक बिखरी जुल्फों का जलवा ऐसा मानो वह जुल्फियां नाम की मुहब्बत की कोई अदीब हो. उस के उन्नत उरोज, पतली कमर, भरेभरे नितंब और मस्तानी चाल यकीनन अजंता की खूबसूरती बेमिसाल थी और आज शशांक के कमैंट ने उसे यह भी बता दिया था कि उस की पिंडलियां भी किसी को आकर्षित कर सकने का दम रखती हैं.

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अजंता न सिर्फ जिस्मानी रूप से बेहद खूबसूरत थी, बल्कि बहुत ही कुशाग्रबुद्धि भी थी. बैंगलुरु के एक मशहूर इंजीनियरिंग कालेज से उस ने मैकैनिकल इंजीनियरिंग में बीटैक की डिग्री ली थी और लखनऊ के एक पौलिटैक्निक कालेज में अस्थाई रूप से जौब कर रही थी. रहने वाली कानुपर की थी. लखनऊ के इंदिरानगर में किराए के फ्लैट में रहती थी.

प्रशांत, अजंता के पापा के दोस्त का लड़का है. उस के पापा राजनीति में हैं, विधायक रह चुके हैं. अब प्रशांत उन का उत्तराधिकार संभाल रहा है. अजंता की उस के साथ इंगेजमैंट हो चुकी है. प्रशांत की मदद से उसे एक अच्छा फ्लैट किराए पर मिल गया था. प्रशांत की फैमिली लखनऊ में रहती थी, इसलिए अजंता के लखनऊ में अकेले रहने से उस की फैमिली उस की तरफ से बेफिक्र थी.

आगे पढ़ें- अजंता और प्रशांत की शादी का फैसला…

अजंता के और प्रशांत के पापा आपस में दोस्त थे. अत: अजंता और प्रशांत भी एकदूसरे को बचपन से जानते थे. हालांकि दोनों के परिवार अलगअलग शहरों में रहते थे फिर भी साल में 1-2 बार जब भी एकदूसरे के शहर जाते तो मुलाकात हो जाती थी. वैसे भी कानपुर और लखनऊ शहर के बीच की दूरी कोई बहुत ज्यादा नहीं है.

अजंता और प्रशांत की शादी का फैसला जब उन के मां और पिता ने लिया तो प्रशांत और अजंता ने कोई ऐतराज नहीं जताया. अजंता जैसी बेहद सुंदर और उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की से तो कोई भी लड़का शादी करने को उतावला हो सकता था, इसलिए प्रशांत ने फौरन हामी भर दी. अजंता ने प्रशांत से शादी करने के लिए अपनी सहमति देने में 1 दिन का वक्त लिया था. शादी के लिए सहमति देने के लिए अजंता ने जो समय लिया उसे दोनों परिवारों ने लड़की सुलभ लज्जा समझा.

अजंता द्वारा लिए गए समय को भले ही दोनों परिवारों ने उस की लज्जा समझा हो पर अजंता सच में शादी जैसे मुद्दे पर सोचने के लिए थोड़ा वक्त चाहती थी. अजंता का यह वक्त लेना लाजिम भी था. भले ही अजंता प्रशांत को बचपन से जानती हो पर उस के मन में कभी प्रशांत के लिए प्यार जैसी किसी भावना ने अंगड़ाई नहीं ली थी.

प्रशांत क्लोज फ्रैंड भी नहीं था. मतलब वह प्रशांत से अपनी निजी बातें शेयर करने में कंफर्ट फील नहीं करती थी न ही उस ने कभी प्रशांत से अंतरंग बातें की थीं. हालांकि जब से उन की इंगेजमैंट हुई थी तब से प्रशांत उस से कभीकभी अंतरंग बातें करता था, जिन का अजंता इस अंदाज में जवाब देती थी जैसे वह इस तरह की बातें करने में ईजी फील नहीं कर रही हो.

प्रशांत न सिर्फ एक नेता का बेटा था, बल्कि खुद भी युवा नेता था, बावजूद इस के उस में कोई खास बुरी आदतें नहीं थीं. कभीकभार किसी फंक्शन के अलावा प्रशांत ड्रिंक भी नहीं लेता था न ही लड़कियों के पीछे भागने वाला लड़का था.

हालांकि कुछ लड़कियां प्रशांत की दोस्त रही थीं. 1-2 लड़कियों से उस के अफेयर के चर्चे भी रहे थे, पर अजंता ने इसे एक सामान्य बात के तौर पर लिया. आजकल के जमाने में लड़कों और लड़कियों का अफेयर होना सामान्य सी बात हो गई है.

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अजंता खुद एक बार एक लड़के के प्रति आकर्षित हुई थी. जब वह बैंगलुरु में बीटैक फर्स्ट ईयर की पढ़ाई कर रही थी तो फाइनल ईयर के स्टूडैंट राजीव की ओर आकर्षित हो गई थी. राजीव हैंडसम और खुशमिजाज लड़का था. वह कानपुर का रहने वाला था. शायद इसीलिए अजंता जल्द ही उस के ओर आकर्षित हो गई. जल्दी ही दोनों दोस्त बन गए और फिर क्लोज फ्रैंड.

अजंता उस समय समझ नहीं पाती थी कि वह सिर्फ राजीव की ओर आकर्षित भर है या फिर उसे प्यार करने लगी है. राजीव लास्ट ईयर का स्टूडैंट था. कालेज कैंपस से उसे एक बड़ी कंपनी में जौब मिल गई और वह ऐग्जाम देते ही दिल्ली चला गया.

कुछ दिनों तक तो राजीव को अजंता ने याद किया और फिर धीरेधीरे उस की स्मृतियां दिल के किसी कोने में खो गईं. राजीव ने भी कभी अजंता को कौंटैक्ट नहीं किया. अब अजंता को समझ में आ गया कि वह राजीव की ओर सिर्फ आकर्षित भर थी, उसे उस से प्यार नहीं हुआ था.

अजंता की जिंदगी में कोई लड़का नहीं था. उस की उम्र भी 23-24 साल की हो रही थी. प्रशांत में कोई कमी भी नहीं थी, इसलिए एक दिन सोचने के बाद उस ने प्रशांत से शादी करने की स्वीकृति दे दी. अजंता के स्वीकृति देते ही दोनों परिवारों ने दोनों की मंगनी कर दी.

अब अजंता अपनी जौब के सिलसिले में लखनऊ में रहती थी, इसलिए प्रशांत और वह एकदूसरे से अकसर मिल लेते थे. हालांकि अजंता कई बार प्रशांत से तनहाई में मिली थी पर अब तक उस ने शारीरिक संबंध नहीं बनाया था. ऐसा नहीं कि प्रशांत ने शारीरिक संबंध बनाने का प्रयास न किया हो पर अजंता ‘प्लीज ये सब शादी के बाद’ कह कर मना करती आई.

अजंता के मना करने के बाद प्रशांत भी उसे ज्यादा फोर्स नहीं करता था. भले ही अजंता और प्रशांत के बीच शारीरिक संबंध नहीं बने थे पर उन दोनों ने एकदूसरे के शरीर को छुआ था, एकदूसरे को किस किया था. वे लड़केलड़की जिन की इंगेजमैंट हो चुकी हो उन के बीच ऐसा होना लाजिम भी है. अजंता को प्रशांत ने कई बार अपने सीने में भी भींचा था, उस का चुंबन लिया था पर न जाने क्यों अजंता को ये सब सतरंगी दुनिया में नहीं ले जा पाते.

करीब 20 साल का शशांक कोई बहुत कुशाग्रबुद्धि का नहीं था. इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद उस ने बीटैक में एडमिशन के लिए कोचिंग ली पर 2 साल तैयारी करने के बाद उसे किसी भी कालेज में दाखिला नहीं मिला. शशांक अपनी क्षमताओं को अच्छी तरह जानता था, इसलिए उस ने दूसरे साल पौलिटैक्निक का भी ऐंट्रैंस ऐग्जाम दिया और उसे राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ में मैकैनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया.

कालेज में पढ़ाई से ज्यादा शशांक अन्य ऐक्टिविटीज में ज्यादा दिलचस्पी लेता. खेलकूद में आगे रहता. हमेशा अलमस्त रहने वाला शशांक न जाने क्यों पहले दिन से ही अजंता पर कुछ न कुछ कमैंट करता. अजंता ऐलिमैंट औफ मैकैनिकल इंजीनियरिंग जैसे सब्जैक्ट पढ़ाती थी. इन विषयों से संबंधित सवालों के जवाब शशांक भलीभांति नहीं दे पाता पर वह अजंता से बड़ी डेयरिंग से अन्य बातें कर लेता.

शशांक की कुछ बातें तो ऐसी होतीं कि जिन्हें सुन कर कोई भी लड़की भड़क जाए. बातें अजंता को भी अच्छी नहीं लगतीं पर वह न जाने क्यों वह कभी शशांक पर भड़की नहीं न ही उस की कालेज मैनेजमैंट से कोई शिकायत की. यहां तक कि जब शशांक एक दिन बातों ही बातों में उस के उरोजों और नितंबों की तारीफ कर बैठा तब भी उस ने कोई शिकायत नहीं की पर यह बात सुन कर उस ने रिएक्ट जरूर ऐसे किया जैसे उसे यह बात बेहद नागवार गुजरी हो.

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शशांक ने जब एक दिन हंस कर शादी के लिए प्रपोज किया तब भी उस ने ऐसे ही रिएक्ट किया पर उस रात जब उस की आंख अचानक खुल गई तो शशांक की कही बात सुन कर वह मन ही मन मुसकरा पड़ी.

न जाने क्या था शशांक की आंखों और उस की बातों में कि अजंता ने अपने से करीब 3-4 साल छोटे अपने स्टूडैंट की उन बातों को, जिन्हें लोग अश्लील कहते हैं, पुरजोर विरोध नहीं किया. कभीकभी तो जब अजंता तनहाई में होती तो शशांक उस के खयालों में आ जाता और कोई न कोई ऐसी बात कहता जिसे सुन कर अजंता बाहर से तो गुस्सा दिखाती पर मन में एक गुदगुदी सी महसूस करती.

उस दिन जब शशांक डेयरिंग करते हुए अजंता से मिलने उस के फ्लैट पर आ गया तो अजंता उस के जाने तक सिर्फ यही सोचती रही कि कहीं उसे अकेली देख वह उस के साथ गलत हरकत न करे दे. पर शशांक ने ऐसा कुछ नहीं किया. हालांकि उस ने 1-2 अशिष्ट बातें जरूर कीं. शशांक के जाने के बाद अजंता दरवाजा बंद कर के सुकून की सांस ले ही रही थी कि वापस डोरबैल बज उठी.

अजंता ने धड़कते दिल से दरवाजा खोला तो समाने प्रशांत खड़ा था. बोली, ‘‘आइए, भीतर आ जाइए.’’

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लेखक- सुधीर मौर्य

भले ही अजंता के दिल में अब भी प्रशांत के लिए मुहब्बत के जज्बात न जगे हों पर वह उस का होने वाला पति था, इसलिए उस का मुसकरा कर स्वागत करना लाजिम था. भीतर आ कर प्रशांत उसी सोफे पर बैठ गया जहां कुछ देर पहले शशांक बैठा था. प्रशांत के लिए फ्रिज से पानी निकालते हुए अजंता सोच में पड़ गई कि अगर प्रशांत कुछ देर पहले आ जाता और शशांक के बारे में पूछता तो वह क्या जवाब देती.

‘‘बाहर तो काफी धूप है?’’ अजंता ने पानी देते हुए प्रशांत से जानना चाहा.

पानी पीते हुए प्रशांत ने अजंता को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर गिलास उस के हाथ में देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें मना किया था न ये शौर्ट कपड़े पहनने के लिए.’’

‘‘ओह हां, बट घर में पहनने को तो मना नहीं किया था,’’ अजंता ने कहा और फिर बात बदलने की गरज से झट से बोली, ‘‘आप चाय लेंगे या कौफी?’’

‘‘चाय,’’ प्रशांत सोफे पर पसर और्डर देने के अंदाज में बोला. अजंता किचन की ओर जाने लगी तो प्रशांत ने कहा, ‘‘अजंता मैं चाहता हूं तुम इस तरह के कपड़े घर पर भी मत पहनो.’’

‘‘अरे, घर में इस ड्रैसिंग में क्या प्रौब्लम है और फिर आजकल यह नौर्मल ड्रैसिंग है. ज्यादातर लड़कियां पहनना पसंद करती हैं,’’ चाय बनाने जा रही अजंता ने रुक कर प्रशांत की बात का जवाब दिया.

‘‘नौर्मल ड्रैसिंग है, लड़कियां पसंद करती हैं इस का मतलब यह नहीं कि तुम भी पहनोगी?’’ प्रशांत के स्वर में थोड़ी सख्ती थी.

‘‘अरे, इस तरह की ड्रैसिंग में मैं कंफर्ट फील करती हूं और मुझे भी पसंद है ये सब पहनना,’’ अजंता ने अपनी बात रखी.

‘‘पर मुझे पसंद नहीं अजंता… तुम नहीं पहनोगी आज के बाद यह ड्रैस, अब जाओ चाय बना कर लाओ,’’ और्डर देने वाले अंदाज में प्रशांत के स्वर में सख्ती और बढ़ गई थी.

‘‘तुम्हारी पसंद… क्या मेरी कोई पसंद नहीं?’’ प्रशांत की सख्त बात सुन कर अजंता की आवाज भी थोड़ी तेज हो गई.

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अजंता की तेज आवाज ने प्रशांत के गुस्से को बढ़ा दिया. वह चिल्लाते हुए बोला, ‘‘मैं ने जो कह दिया वह कह दिया और तुम इतने भी मैनर नहीं जानती कि जब पति बाहर से थक कर आता है तो पत्नी उस के साथ बहस नहीं करती.’’

अजंता स्वभाव से सीधीसादी थी. वह समझती थी पति से तालमेल बैठाने के लिए उसे अपनी कुछ इच्छाएं कुरबान करनी ही पडे़ंगी. मगर आज जो प्रशांत कह रहा था वह उसे बुरा लगा. वह पढ़ीलिखी सैल्फ डिपैंडैंट लड़की थी. अत: प्रशांत की बात का विरोध करते हुए बोली, ‘‘प्रशांत, यह तो कोई बात नहीं कि मैं आप की बैसिरपैर की बात मानूं… मुझे इस ड्रैसिंग में कोई दिक्कत नजर नहीं आती और हां आप मेरे होने वाले पति हैं, पति नहीं.’’

अजंता की बात सुन प्रशांत का गुस्सा 7वें आसमान पर जा पहुंचा. लगभग दहाड़ते हुए बोला, ‘‘अजंता, मेरे घर में आने के बाद ये सब नहीं चलेगा. तुम्हें मेरे अनुसार खुद को ढालना ही पड़ेगा. वरना…’’ प्रशांत ने अजंता को थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया पर फिर रुक गया.

प्रशांत का यह रूप अंजता के लिए एकदम नया था. कुछ देर वह हैरानी खड़ी रही, फिर बोली, ‘‘वरनावरना क्या करोगे… मुझे पीटोगे?’’

प्रशांत को लगा उस से गलती हो गई है. अत: अपनी आवाज को ठंडा करते हुए बोला, ‘‘सौरी अजंता वह बाहर धूप है शायद उस की वजह से मेरे सिर में पागलपन भर गया था… मैं गुस्से में बोल गया. चलो अब तो अपने नर्मनर्म हाथों से चाय बना कर लाओ डियर.’’

‘‘धूप से घर आने वाले व्यक्ति को क्या इस बात का सर्टिफिकेट मिल जाता है कि वह अपनी पत्नी को डांटे, उसे पीटे?’’ अजंता की बात में भी अब गुस्सा था.

प्रशांत कुछ देर अजंता को देखता रहा. फिर मन ही मन कुछ सोच कर बोला, ‘‘अच्छा ठीक है जो मेरी होने वाली बीवी मेरी थकान उतारने के लिए मुझे अपने कोमल हाथों से बना कर चाय नहीं पिला सकती तो मैं अपनी प्यारी खूबसूरत पत्नी का गुस्सा उतारने के लिए उसे चाय बना कर पिलाता हूं,’’ कह कर प्रशांत किचन की ओर बढ़ गया.

वह भले ही उच्च शिक्षा प्राप्त लड़की थी पर थी तो फीमेल, नौर्मल फीमेल, अचानक उस के मन में खयाल जागा कि कहीं सही में बाहर की धूप और थकान की वजह से प्रशांत ने गुस्से में तो उस पर हाथ उठाना नहीं चाहा… केवल हाथ ही तो उठाया, मारा तो नहीं… और अब

वह जब गुस्से में है तो उसे मनाने के लिए खुद किचन में चाय बनाने गया है… उस की खुद भी तो गलती है जब प्रशांत ने उस से कहा था वह थक कर आया है उसे 1 कप चाय बना के पिला दो तो वह क्यों उस से बहस करने लगी?

ये सब सोचते हुए अजंता किचन में आ गई. प्रशांत हाथ में लाइटर ले कर गैस जलाने जा रहा था.

‘‘आप चल कर पंखे में बैठिए मैं चाय बना लाती हूं,’’ अजंता प्रशांत से लाइटर लेने की कोशश करते हुए बोली.

‘‘नहीं अब तो मैं ही चाय बनाऊंगा,’’

प्रशांत ने अजंता का हाथ हटा कर गैस जलाने की कोशिश की. अजंता ने फिर लाइटर लेने की कोशिश की. पर प्रशांत ने फिर मना किया. अजंता ने गैस जला रहे प्रशांत का हाथ पकड़ लिया. प्रशांत ने अजंता का हाथ छुड़ाने की कोशिश की. इस छीनाझपटी में अजंता फिसल कर प्रशांत की बांहों में गिर गई. प्रशांत ने उसे बांहों में भर लिया.

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‘‘छोडि़ए चाय बनाने दीजिए,’’ अजंता कसमसाई.

‘‘नहीं अब तो तुम्हारे होंठों को पीने के बाद ही चाय पी जाएगी,’’ कह प्रशांत ने अजंता के होंठों पर होंठ रख दिए. एक लंबे किस ने अजंता को निढाल कर दिया. इतना निढाल कि प्रशांत ने बिना किसी विरोध के उसे ला कर बिस्तर पर लिटा दिया.

कुछ देर बाद जब प्रशांत ने अजंता की कमर से पाजामा खिसकाने की कोशिश की तो अजंता ने विरोध करते हुए कहा, ‘‘नहीं प्रशांत ये सब शादी के बाद.’’

प्रशांत अजंता की बात सुन कर कुछ देर इस अवस्था में रहा जैसे खुद को संयत करने की कोशिश कर रहा हो और फिर अजंता के ऊपर से उठते हुए बोला, ‘‘ओके डियर ऐज यू विश.’’

अजंता ने उठ कर अपने कपड़े सही किए और फिर चाय बनाने के लिए किचन में आ गई.

‘‘जानती हो अजंता तुम्हारी इसी अदा का

तो मैं दीवाना हूं,’’ प्रशांत ने किचन में आ कर कहा.

‘‘कौन सी?’’ अजंता ने बरतन में पानी डाल कर गैस पर चढ़ाते हुए पूछा.

‘‘यही कि ये सब शादी के बाद,’’ प्रशांत ने मुसकरा कर कहा.

प्रशांत की इस बात पर अजंता भी मुसकरा कर रह गई.

‘‘मैं भी यही चाहता हूं कि मैं तुम्हारे

जिस्म को अपनी सुहागरात में पाऊं,’’

प्रशांत ने अजंता के पीछे आ कर उस के गले में बांहें डाल कर कहा.

अजंता कुछ नहीं बोली. उबलते पानी में चायपत्ती और शक्कर डालती रही.

‘‘हर व्यक्ति अपने मन में यह अरमान पालता है,’’ प्रशांत अपनी उंगलियों से अजंता के गालों को धीरेधीरे सहलाते हुए बोला.

‘‘कैसा अरमान?’’ अजंता ने पूछा.

‘‘यही कि उस की बीवी वर्जिन हो और सुहागरात को अपनी वर्जिनिटी अपने पति को तोहफे में दे.’’

कह कर प्रशांत प्लेट से बिस्कुट उठा कर खाने लगा.

प्रशांत की बात सुन कर अजंता को धक्का लगा कि और अगर लड़की ने शादी से पहले अपनी वर्जिनिटी लूज कर दी हो और फिर प्रशांत पर नजरें गड़ा दीं.

‘‘अगर लड़की वर्जिन न हो एक इंसान कैसे उसे प्यार कर सकता है. तुम्हीं बताओ अजंता, कोई व्यक्ति किसी ऐसी लड़की के साथ पूरी जिंदगी कैसे रह पाएगा जिस ने शादी से पहले ही अपनी वर्जिनिटी लूज कर दी हो?

क्या उस का दिल ऐसी लड़की को कभी कबूल कर पाएगा? और सोचो तब क्या होगा जब किसी दिन वह इंसान सामने आ जाए जो उस लड़की का प्रेमी रहा हो. बोलो अजंता उस व्यक्ति पर यह सोच कर क्या गुजरेगी कि यही वह आदमी है जिस की वजह से उस की बीवी ने शादी से पहले ही अपनी वर्जिनिटी खो दी. ऐसी लड़की से शादी के बाद तो जिंदगी नर्क बन जाएगी, नर्क.’’

प्रशांत बोले जा रहा था, अजंता पत्थर की मूर्त बने सुनते जा रही थी. चाय उबल कर नीचे फैलती जा रही थी…

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तुम्हारे बिना देर शाम औफिस से लौट कर, घर आना और फिर अपने ही हाथों से अपार्टमैंट का ताला खोलना, वही ड्राइंगरूम, वही बैडरूम वही बालकनी, वही किचन सबकुछ तो वही है, मगर एक तुम्हारे बिना सबकुछ वैसा ही क्यों नहीं लगता? बेशकीमती कालीन, सुंदर परदे, रंगीन चादर, चमकते झालर, सुनहरा टीवी स्क्रीन, सुंदर हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ सुंदर क्यों नहीं लगता? क्षितिज तक फैला नीला सागर, उस पर उठती ऊंचीऊंची लहरें, सुनहरा रेत, ढलती शाम, सबकुछ सुहाना हो कर भी तुम्हारे बिना सुहाना क्यों नहीं लगता? पर्वत की चोटियों पर झूमती काली घटाएं पहाड़ों से आती सरसराती ठंडी हवाएं, स्वर्ग सा सुंदर, पहाड़ों का दामन, हसीन वादियां, खूबसूरत नजारे बहुत खूबसूरत हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ खूबसूरत क्यों नहीं लगता?

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आ रही थी अजंता को प्रशांत की असलियत का पता चलता जा रहा था. एक दिन तो प्रशांत ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं…

अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे उस की जिंदगी में जद्दोजहद बढ़ती जा रही थी. शशांक की बेबाकियां बदस्तूर जारी थीं और अजंता ने न जाने क्यों कभी उस की बेबाकियों पर कोई प्रतिबंध लगाने की कोशिश नहीं की. शशांक, स्टूडैंट और टीचर के रिश्ते से हट कर अपने से करीब 3-4 साल बड़ी अपनी टीचर अजंता से प्रेमीप्रेमिका का संबंध बनाना चाहता था. अजंता का भी दिल कभी कहता कि अजंता यह शशांक तुझे बहुत प्यार करेगा, यही लड़का है जो तेरी इच्छाओं का सम्मान कर के तेरी जिंदगी में मुहब्बत के फूल खिलाएगा. पर अगले ही पल उस के दिमाग पर प्रशांत छा जाता. प्रशांत यद्यपि गाहेबगाहे अजंता के ऊपर अपनी इच्छाएं लादने का प्रयास करता पर जब कभी अजंता इस का विरोध करती तो वह अपनी गलती मान कर अजंता को खुश करने के लिए कुछ भी करता.

सच कहें तो अजंता की जिंदगी शशांक और प्रशांत के बीच उलझ रही थी. कभीकभी उस का दिल कह उठता कि अजंता ये लड़के शशांक और प्रशांत दोनों ही तेरे लायक नहीं. तू हिम्मत कर के इन दोनों को अपनी जिंदगी से बाहर कर दे. पर अजंता जानती थी वह इतनी सख्त दिल की नहीं. इसलिए न ही वह शशांक को कुछ कह पाती और प्रशांत तो उस के परिवार की पसंद था. इसलिए उसे मना करने वाला जिगर, बेहद कोशिश करने के बाद भी अजंता अपने भीतर कहीं भी ढूंढ़ नहीं पाती.

ऊपर से अजंता का अतीत कभीकभी उस के सामने किसी डरवाने सपने की तरह आ कर खड़ा हो जाता. राजीव, हां जो कभी प्रशांत से शादी करने के बाद किसी दिन उस के सामने आ गया और प्रशांत को पता लग गया कि इस व्यक्ति के साथ उस की पत्नी के अंतरंग संबंध रहे हैं. उस की पत्नी वर्जिन नहीं है तो क्या कयामत टूटेगी… अजंता और प्रशांत दोनों की जिंदगी नर्क बन जाएगी.

अजंता ने शशांक और प्रशांत से दूर होने की कोशिश भी की. वह जब प्रशांत से मिलने जाती तो वे कपड़े पहनती जो शशांक को पसंद होते और जब उसे लगता आज उसे शशांक मिल सकता है तो प्रशांत की पसंद के कपड़े पहनती.

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अजंता को ऐसी ड्रैस में देख कर प्रशांत का मूड खराब हो जाता. वह अजंता को शौर्ट कपड़ों में देख कर डांटने के अदांज में अच्छाखासा लैक्चर झाड़ता और आगे से ऐसे कपड़े न पहनने की हिदायत भी देता और शशांक वह अजंता को सलवारसूट आदि में देख कर कहता कि मैम बहुत खूबसूरत लग रही हो पर अगर आज आप ने स्कर्ट पहनी होती तो और खूबसूरत लगतीं.

शशांक की इन्हीं बातों ने अजंता को अपनी ओर थोड़ाबहुत खींचा भी था. उस की इच्छाओं का सम्मान करने वाला शशांक अजंता के दिल में जगह बनाने लगा. पर प्रशांत उस का मंगेतर था. कुछ समय बाद उन की शादी होने वाली थी. दोनों परिवार वालों के सारे जानने वाले और रिश्तेदारों को इस होने वाली शादी की खबर थी. अगर यह शादी टूटी तो कितनी बदनामी होगी, कितनी बातें उठेंगी.

शशांक की ओर बढ़ते अपने कदम तथा अपनी ओर बढ़ते शशांक के कदमों को रोकने के लिए अजंता ने एक दिन शशांक को प्रशांत के बारे में बता दिया. वह उस की मंगेतर है और जल्द ही उन की शादी होने वाली है. सुन कर शशांक के चेहरे पर कुछ देर के लिए उदासी छा गई पर फिर तुरंत ही खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘मैम, किसी कवि ने कहा है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.’’

शशांक के चेहरे पर आई उदासी से उदास हुई अजंता ने उस की हंसी देख कर रिलैक्स होते हुए पूछा,‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह मैम कि हम तो तब तक कोशिश करते रहेंगे जब तक आप मेरे इश्क में गिरफ्तार नहीं हो जातीं.’’

‘‘नो चांस,’’ अजंता के यह कहने पर शशांक ने तपाक से कहा, ‘‘मैम, अगर इश्क में आप के गिरफ्तार होने के कोई चांस नहीं तो मुझे ही अपने इश्क में गिरफ्तार कर लीजिए.’’

शशांक की बात सुन कर न चाहते हुए भी अजंता हंस पड़ी और फिर उस ने महसूस किया कि उस का दिल शशांक की ओर थोड़ा और खिंच गया.

आगे के दिनों में अजंता की जिंदगी में 2 घटनाएं ऐसी घटीं जिन्होंने उस की सोच की धारा को बदलने में अहम रोल अदा किया.

पहली घटना…

फाइनल ऐग्जाम से पहले राजकीय पौलिटैक्निक लखनऊ में ऐनुअल स्पोर्ट्स गेम होते थे. पूरे प्रदेश के पौलिटैक्निक के लड़केलड़कियां जिन की खेल में रुचि होती इस इवेंट में हिस्सा लेते. हर कालेज अपने चुने स्टूडैंट्स का एक दल ले कर लखनऊ आता. उन के रहने एवं खेल को सुचारु रूप से संपन्न करवाने के लिए कालेज स्टाफ की सहायता राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ के सीनियर स्टूडैंट्स करते. उन्हें वालेंटियर का एक पास इशू किया जाता.

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उस पास से स्टूडैंट्स किसी भी कैंप में आजा सकते थे. जूनियर लड़कों को कालेज के इतिहास में कभी वालेंटियर का पास इशू नहीं किया गया था. अजंता भी स्पोर्ट्सपर्सन थी, इसलिए वह इस इवेंट में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अजंता उस समय यह देख कर चौंक पड़ी जब उस ने शशांक को वालेंटियर का पास अपने सीने पर लगाए झांसी से आए गु्रप को हैंडल करते देखा.

‘‘मैम, हर शहर से बहुत प्यारीप्यारी लड़कियां आई हैं खेलने के लिए पर उन में कोई भी आप सी प्यारी नहीं,’’ शशांक ने अजंता के पास से गुजरते हुए जब यह कहा तो उस के मन ने सोचा काश वह आज शशांक की टीचर न हो कर स्टूडैंट होती तो शायद शशांक की बात का पौजिटिव रिप्लाई देती.

बाद में जब अजंता ने शशांक से पूछा कि उसे यह पास कैसे मिल गया तो उस ने अलमस्त अंदाजा में कहा, ‘‘बड़ी सरलता से, वार्डन के घर पर उस की पसंदीदा चीज के साथ गया और यह पास ले आया.’’

यद्यपि शशांक का यह काम गलत था, पर अजंता को यह अच्छा लगा. सच तो यह था कि शशांक अब उसे अच्छा लगने लगा था.

हालांकि अजंता को वार्डन की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. पहले उस ने सोचा कि इस प्रकरण की शिकायत प्रधानाचार्य से करे, पर इस से शशांक का पास छिन जाने का डर था, इसलिए अजंता चुप रह गई. यह इस बात का प्रमाण था कि वह शशांक की ओर आकर्षित हो चुकी है.

खेल समाप्त हो चुके थे. अगले दिन रंगारंग कार्यक्रम के बाद पार्टिसिपेट करने आए स्टूडैंट्स को अपनेअपने शहर लौट जाना था. पूरे कालेज कैंपस में खुशी का माहौल था. पर अचानक इसी खुशी के माहौल में एक घिनौनी हरकत ने कुहराम मचा दिया.

झांसी से आई स्टूडैंट पूजा जिस ने 100 मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल किया था, वह फटे कपड़ों एवं खरोंची गई देह के साथ रोबिलख रही थी. वह शायद शौपिंग के लिए मार्केट गई थी. आते समय तक रात हो चुकी थी. उस के साथ 2 और लड़कियां थीं. कालेज के पिछले गेट पर औटो से उतर कर पूजा औटो वाले को पैसे देने लगी. उस की दोनों सहेलियां कालेज कैंपस की ओर बढ़ गईं. कालेज के पिछले गेट वाले रास्ते पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी कम थी.

पूजा जब पैसे दे कर कालेज के अंदर आई तब तक उस की सहेलियां आगे निकल गई थीं. तभी अचानक किसी ने पूजा को दबोच लिया. उस ने चीखने की कोशिश की तो तुरंत मुंह को मजबूत हाथों ने चुप कर दिया. पूजा की अस्मत लूटने से पहले लोगों ने उसे नहीं छोड़ा. वे 2 थे. जब पूजा इस हालत में लड़खड़ाती हुई अपने कैंपस में पहुंची तो उस की यह हालत देख कर वहां कुहराम मच गया. अजंता भी वहां पहुंच गई. सभी पूजा को सांत्वना दे रहे थे.

कुछ आवाजें उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं कि जो हुआ उसे दबा दिया जाए अन्यथा इस से पूजा के ही भविष्य पर असर पड़ेगा. पर एक आवाज थी जिस ने पूजा से कहा कि उठे और अभी पुलिस स्टेशन चले. उसे अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ पूरी ताकत लगा कर लड़ना चाहिए. यह आवाज शशांक की थी.

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‘‘यह लड़का क्या बकवास कर रहा है?’’ अजंता ने पहचानी हुई आवाज की ओर देखा तो प्रशांत खड़ा था.

‘‘आप यहां?’’

‘‘हां, तुम्हारे फ्लैट पर गया तो बंद था,’’ अजंता के सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत ने कहा, ‘‘मुझे लगा कालेज में चल रहे इवेंट की वजह से तुम शायद अब तक कालेज में होगी, सो यहां चला आया. यहां देखा तो यह कांड हुआ है. जरूर इस लड़की ने जो यह शौर्ट स्कर्ट पहनी हुई है वह इस की इस हालत की जिम्मेदार है.’’

आगे पढ़ें- अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि…

लेखक- सुधीर मौर्य

प्रशांत की बात सुन कर अजंता को तेज धक्का लगा. अजंता कुछ कह पाती उस से पहले ही प्रशांत फिर बोल उठा, ‘‘और यह लड़का क्या उलटी बात कर रहा है. अरे जो हुआ सो हुआ. अब इस लड़की की इज्जत इसी में है कि चुप रहे.’’

‘‘और इस के साथ जो अपराध हुआ उस का क्या और अपराधियों को क्या खुला छोड़ दिया जाए?’’

‘‘अरे नेता तुम हो या मैं, यह क्या नेताओं सी बातें कर रही हो,’’ प्रशांत का लहजा तल्ख हो गया.

‘‘अरे हां याद आया, आप तो नेता हैं, तो क्या आप इस पीडि़त लड़की को न्याय दिलाने में मदद नहीं करेंगे?’’ अजंता ने भी तल्ख लहजे में पूछा.

‘‘देखो अजंता, मैं आज की शाम तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं, इस के लिए तुम्हें ढूंढ़ता हुआ यहां तक आया. चलो कहीं बैठ कर डिनर करते हैं.’’

‘‘प्रशांत यह तो संवेदनहीनता है. हमें यहां रुकना चाहिए और पूजा के साथ पुलिस स्टेशन भी चलना चाहिए.’’

‘‘हमारे घर की औरतें पुलिस स्टेशन नहीं जातीं, इसलिए इस लड़की के साथ मैं तुम्हें पुलिस स्टेशन जाने की इजाजत नहीं दूंगा.

‘‘पर प्रशांत?’’

‘‘परवर कुछ नहीं अजंता, तुम मेरे साथ चलो.’’

अजंता और प्रशांत की बहस चल ही रही थी कि तभी शशांक, पूजा को वरदान सर की गाड़ी में बैठा कर 2-3 अन्य लोगों के साथ पुलिस स्टेशन निकल गया.

‘‘मुहतरमा वे लोग गए हैं पुलिस स्टेशन. वे मामला हैंडल कर लेंगे. चलो हम लोग चलते हैं,’’ प्रशांत ने कोमल अंदाज में कहा.

अजंता थकी चाल चल कार में बैठ गई. पूरा रास्ता प्रशांत बोलता रहा. उस ने कहा कलपरसों में दोनों फैमिली वाले मिल कर शादी की डेट फिक्स करने वाले हैं. अजंता पूरा रास्ता चुप रही या फिर हां हूं करती रही.

एक शानदार रैस्टोरैंट के सामने प्रशांत ने गाड़ी रोकी. अंदर आ कर उस ने खाने का और्डर दिया. अजंता क्या खाना पसंद करेगी, उस ने यह तक न पूछा. सब अपनी पसंद की डिश मंगवा लीं.

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वेटर खाना सर्व कर गया.

पहला कौर खाते हुए अजंता ने कहा, ‘‘बेचारी लड़की के साथ बड़ा अपराध हुआ है.’’

‘‘अपराध तो उस लड़के के साथ होगा जिस से इस लड़की की शादी होगी और जब उसे पता चलेगा कि कभी उस की बीवी का बलात्कार हुआ था.’’

प्रशांत की यह बात सुन कर अजंता को ऐसा लगा जैसे उस के मुंह में खाना नहीं, बल्कि कीचड़ रखा हो और उसे अभी उलटी हो जाएगी.

दूसरी घटना…

अजंता और प्रशांत की शादी की डेट फिक्स हो गई थी. दोनों परिवारों में

शादी की तैयारियां शुरू हो गई थीं. इन्विटेशन कार्ड छपने चले गए थे. प्रशांत, अजंता पर और ज्यादा अधिकार जताने लगा था. अजंता के मन में न जाने क्यों अपनी शादी को ले कर उल्लास की कोई भावना जन्म नहीं ले पा रही थी.

अपनी शादी के कार्ड अजंता ने कालेज में बांटे पर न जाने क्या सोच कर उस ने शशांक को कार्ड नहीं दिया. अजंता की शादी की डेट जानने के बाद भी शशांक पर कोई असर नहीं हुआ. वह मस्तमौला बना रहा. उसे यों मस्तमौला देख कर अजंता ने सोचा उस के प्रति शशांक के प्यार का दावा केवल आकर्षण और टाइमपास भर था.

शशांक ने पूजा की हैल्प की. उस की लड़ाई में सहायक बना. उस की कोशिशों से कालेज में ही पढ़ने वाला एक लड़का हेमंत और उस का एक दोस्त पूजा के बलात्कार के जुर्म में पकड़े गए.

एक दिन शशांक कालेज कैंटीन में अजंता को मिला तो उस ने पूछा, ‘‘क्यों मुझ से शादी करने का खयाल दिल से बायबाय हो गया?’’ अजंता ने भीतर से गंभीर हो कर किंतु बाहर से ठिठोली के अंदाज में उस से पूछा.

‘‘आप से शादी करने का खयाल तो तब भी दिल में रहेगा जब आप की शादी हो चुकी होगी मैम,’’ शशांक ने चाय मंगवाने के बाद अजंता के सवाल का जवाब दिया.

‘‘ओह, इतना प्यार करते हो मुझ से, तो मेरे बिना कैसे रह पाओगे?’’ अजंता ने चाय का घूंट भर कर पूछा.

‘‘रह लेंगे?’’ शशांक ने संक्षिप्त जवाब दिया.

‘‘बिना सहारे के?’’ अजंता ने फिर सवाल किया.

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‘‘बिना सहारे के तो मुश्किल होगा.’’

‘‘फिर किस के सहारे?’’

‘‘पूजा से शादी कर लूंगा,’’ शशांक ने गंभीरता से कहा. अजंता ने शशांक को पहली बार इतना गंभीर देखा था.

‘‘ये जानते हुए भी कि उस की इज्जत लुट चुकी है?’’ शशांक की आंखों में देखते हुए अजंता ने पूछा, ‘‘क्या ऐसी लड़की से शादी कर के तुम्हें तकलीफ नहीं होगी जो वर्जिन न हो.’’

‘‘तकलीफ कैसी? यह तो गर्व की बात होगी मैम कि एक ऐसी बहादुर लड़की मेरी बीवी है जिस ने एक सामाजिक अपराध के खिलाफ आवाज बुलंद की.’’

शशांक की बात सुन कर अजंता की आंखें शशांक के सम्मान में झुक गईं.

यह वह दौर था जब बस मोबाइल फोन लौंच ही हुए थे. प्रशांत ने शादी से एक दिन पहले ही अजंता को फोन गिफ्ट किया था. शादी लखनऊ में होने वाली थी. अजंता की फैमिली और रिश्तेदार लखनऊ आ चुके थे. दोनों फैमिली एक ही होटल में रुकी हुई थीं. शादी के लिए पूरा होटल बुक किया गया था.

शादी वाले दिन जैसेजैसे शादी की घड़ी नजदीक आ रही थी अजंता के मन में

एक कसक उठती जा रही थी. अचानक उसे खयाल आया कि उसे कम से शशांक को शादी का इन्विटेशन कार्ड तो देना ही चाहिए था.

शशांक को कार्ड न देना असल में अब अजंता को कचोट रहा था. उसे लग रहा था उस ने गलती की है. फिर अचानक उस ने अपनी गलती सुधारने का फैसला किया. अपने लेडीज पर्स में एक इन्विटेशन कार्ड रखा और होटल से बाहर निकल कर टैक्सी में बैठ गई.

प्रशांत यों ही अजंता से मिलने के लिए उस के रूम में गया. वह वहां नहीं थी. उस के मम्मीपापा से पूछा. उन्हें भी पता नहीं था. होटल में अजंता को न पा कर प्रशांत ने अजंता को

फोन किया.

पर्स से निकाल कर अजंता ने ज्यों ही फोन रिसीव किया दूसरी ओर से प्रशांत ने अधिकारपूर्वक पूछा, ‘‘कहां हो तुम?’’

‘‘एक जानने वाले को इन्विटेशन कार्ड देने जा रही हूं.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं, वापस आ जाओ,’’ प्रशांत बोला.

‘‘अरे उसे नहीं बुलाया तो उसे बुरा लगेगा,’’ अजंता ने समझाना चाहा.

‘‘लगता है बुरा तो लगे… मैं कह रहा हूं तुम लौट आओ.’’

‘‘उसे कार्ड दे कर तुरंत आती हूं.’’

‘‘नो… जहां हो वहीं से वापस आ जाओ.’’

‘‘अरे मैं बस पहुंचने ही वाली हूं वहां.’’

‘‘यू बिच… मैं ने तुम्हारी बहुत हरकतें बरदाश्त कर लीं… अब शादी के बाद ऐसी हरकतें नहीं चलेंगी. चलो, तुरंत वापस आओ.’’

प्रशांत की गाली सुन कर अजंता को ऐसे लगा जैसे उस के कानों में किसी ने पिघला शीशा डाल दिया हो. लाइफ में पहली बार उसे किसी ने गाली दी थी और वह भी उस के होने वाले पति ने. ग्लानि से अजंता का दिल बैठ गया. उस ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया. प्रशांत ने फोन किया तो अजंता ने फिर काट दिया. उस ने फिर फोन किया तो अजंता ने फोन स्विचऔफ कर दिया. अजंता ने सोचा अगर उस ने अब एक भी शब्द इस शख्श का और सुना तो उस का वजूद ही खत्म हो जाएगा. धड़कते दिल के साथ अजंता शशांक के रूममें पहुंची.

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‘‘अरे मैम आप यहां? आज तो आप की शादी है,’’ अजंता को अपने यहां आया देख कर शशांक ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘आप के बिना मेरी शादी कैसे हो सकती है,’’ कह कर अजंता उस के रूम के भीतर आ गई.

‘‘आज सरकार कुछ बदलेबदले नजर आ रहे हैं,’’ शशांक ने शरारत से कहा तो अजंता ने पूछ लिया, ‘‘कैसे बदलेबदले?’’

‘‘आज मुझे ‘तुम’ की जगह ‘आप’ कह रही हैं आप?’’

‘‘और अगर मैं कहूं कि मैं आप को ताउम्र ‘आप’ कहना चाहती हूं तो?’’ कह अजंता ने शशांक की गहरी आंखों में झांका.

‘‘इस के लिए तमाम उम्र साथ रहना पड़ेगा मैम. क्या आप के होने वाले पति रहने देंगे?’’ शशांक की शरारत जाग उठी.

‘‘यकीनन रहने देंगे.’’

‘‘इतना यकीन?’’ शशांक ने अजंता की आंखों में झांकते हुए पूछा, ‘‘ठीक है उन से पूछ लो फिर.’’

शशांक की बात सुन कर कुछ देर के लिए खामोश रह गई अजंता. फिर उस के करीब आते हुए बोली, ‘‘क्या मुझे अपने शशांक के पास रहने देंगे आप?’’

अजंता की बात कुछ समझते, कुछ न समझते हुए शशांक ने पूछा, ‘‘मतलब मैम?’’

‘‘मतलब मैं सबकुछ छोड़ कर आई हूं आप के पास…  आज आप

की कोशिश कामयाब हो गई है, शशांक. आज मैं आप को अपने इश्क में गिरफ्तार करने आई हूं.’’

‘‘मैं तो कब से आप के इश्क में गिरफ्तार हूं मैम,’’ शशांक ने अजंता को कंधों से पकड़ कर तनिक करीब खींचा.

‘‘मैम नहीं अजंता कहो,’’ अजंता ने शशांक के सीने में मुंह छिपा कर कहा.

‘‘अजंता,’’ शशांक ने जब एक लंबी सांस ले कर कहा तो अजंता पूरी तरह से उस के गले लग गई और फिर उस के होंठों से मद्धिम स्वर में निकला, ‘‘लव यू शशांक.’’

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अस्तित्व: क्या प्रणव को हुआ गलती का एहसास

लेखक- नीलमणि शर्मा

का लिज पहुंचते ही तनु ने आज सब से पहले स्टाफ क्वार्टर के लिए आवेदन किया. इतने साल हो गए उसे कालिज में पढ़ाते हुए, चाहती तो कभी का क्वार्टर ले सकती थी पर इतना बड़ा बंगला छोड़ कर यों स्टाफ क्वार्टर में रहने की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. फिर प्रणव को भी तनु के घर आ कर रहना पसंद नहीं था. उन का अभिमान आहत होता था. उन्हें लगता कि वहां वह  ‘मिस्टर तनुश्री राय’ बन कर ही रह जाएंगे. और यह बात उन्हें कतई मंजूर न थी.

आज सुबह ही प्रणव ने उसे अपने घर से निकल जाने को कह दिया जबकि तनु को इस घर में 30 साल गुजर चुके हैं. कहने को तो प्रणव ने उसे सबकुछ दिया है, बढि़या सा घर, 2 बच्चे, जमाने की हर सुखसुविधा…लेकिन नहीं दिया तो बस, आत्मसम्मान से जीने का हक. हर अच्छी बात का श्रेय खुद लेना, तनु के हर काम में मीनमेख निकालना और बातबात पर उस को  ‘मिडिल क्लास मानसिकता’ का ताना देना, यही तो किया है प्रणव ने शुरू से अब तक. पलंग पर लेटेलेटे तनु अपने ही जीवन से जुड़ी घटनाओं का तानाबाना बुनने लगी.

इतने वर्षों से तनु को लगने लगा था कि उसे यह सब सहने की आदत सी हो गई है पर आज सुबह उस का धैर्य जवाब दे गया. जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी प्रणव का कहनासुनना बढ़ता जा रहा था और तनु की सहनशीलता खत्म होती जा रही थी.

तनु जानती है कि अमेरिका में रह रहे बेटे के विवाह कर लेने की खबर प्रणव बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं, बल्कि उन के अहम को चोट पहुंची है. अब तक हर बात का फैसला लेने का एकाधिकार उस से छिन जो गया था. प्रणव की नजरों में इस के  लिए तनु ही दोषी है. बच्चों को अच्छे संस्कार जो नहीं दे पाई है…यही तो कहते हैं प्रणव बच्चों की हर गलती या जिद पर.

जबकि वह अच्छी तरह जानते हैं कि बच्चों के बारे में किसी भी तरह का निर्णय लेने का कोई अधिकार उन्होंने तनु को नहीं दिया. यहां तक कि उस के गर्भ के दौरान किस डाक्टर से चैकअप कराना है, क्या खाना है, कितना खाना है आदि बातों में भी अपनी ही मर्जी चलाता. शुरू में तो तनु को यह बात अच्छी लगी थी कि कितना केयरिंग हसबैंड मिला है लेकिन धीरेधीरे पता चला यह केयर नहीं, अपितु स्टेटस का सवाल था.

कितना चाहा था तनु ने कि बेटी कला के क्षेत्र में नाम कमाए पर उसे डाक्टर बनाना पड़ा, क्योंकि प्रणव यही चाहते थे. बेटे को आई.ए.एस. बनाने की चाह भी तनु के मन में धरी की धरी रह गई और वह प्रणव के आदेशानुसार वैज्ञानिक ही बना, जो आजकल नासा में कार्यरत है.

ऐसा नहीं कि बच्चों की सफलता से तनु खुश नहीं है या बच्चे अपने प्राप्यों से संतुष्ट नहीं हैं लेकिन यह भी सत्य है कि प्रणव इस सब से इसलिए संतुष्ट हैं कि बच्चों को इन क्षेत्रों में भेजने से वह और तनु आज सोसाइटी में सब से अलग नजर आ रहे हैं.

पूरी जिंदगी सबकुछ अपनी इच्छा और पसंद को ही सर्वश्रेष्ठ मानने की आदत होने के कारण बेटे की शादी प्रणव को अपनी हार प्रतीत हो रही है. यही हार गुस्से के रूप में पिछले एक सप्ताह से किसी न किसी कारण तनु पर निकल रही है. प्रणव को वैसे भी गुस्सा करने का कोई न कोई कारण सदा से मिलता ही रहा है.

प्रणव यह क्यों नहीं समझते कि बेटे के इस तरह विवाह कर लेने से तनु को भी तो दुख हुआ होगा. पर उन्हें उस की खुशी या दुख से कब सरोकार रहा है. जब बेटे का फोन आया था तो तनु ने कहा भी था,  ‘खुशी है कि तुम्हारी शादी होगी, लेकिन तुम अगर हमें अपनी पसंद बताते तो हम यहीं बुला कर तुम्हारी शादी करवा देते. सभी लोगों को दावत देते…वहां बहू को कैसा लगेगा, जब घर पर नई बहू का स्वागत करने वाला कोई भी नहीं होगा.’

‘क्या मौम आप भी, कोई कैसे नहीं होगा, दीदी और जीजाजी आ रहे हैं न. आप को तो पता है कि अपनी पसंद बताने पर पापा कभी नहीं होने देते यह शादी. दीदी की बार का याद नहीं है आप को. डा. सोमेश को तो दीदी ने उस तरह पसंद भी नहीं किया था. बस, पापा ने उन्हें रेस्तरां में साथ बैठे ही तो देखा था. घर में कितने दिनों तक हंगामा रहा था. दीदी ने कितना कहा था कि डा. सोमेश केवल उन के कुलीग हैं पर कभी पापा ने सुनी? उन्होंने आननफानन में कैसे अपने दोस्त के डा. बेटे के साथ शादी करवा दी. यह ठीक है कि  जीजाजी भी एकदम परफेक्ट हैं.

‘सौरी मौम, मेरी शादी के कारण आप को पापा के गुस्से का सामना करना पडे़गा. रीयली मौम, आज मैं महसूस करता हूं कि आप कैसे उन के साथ इतने वर्षों से निभा रही हैं. यू आर ग्रेट मौम…आई सेल्यूट यू…ओ.के., फोन रखता हूं. शादी की फोटो ईमेल कर दूंगा.’

तनु बेटे की इन बातों से सोच में पड़ गई. सच ही तो कहा था उस ने. लेकिन वह गुस्सा एक बार में खत्म नहीं हुआ था. पिछले एक सप्ताह से रोज ही उसे इस स्थिति से दोचार होना पड़ रहा है. सुबह यही तो हुआ था जब प्रणव ने पूछा था, ‘सुना, कल तुम निमिषा के यहां गई थीं.

‘हां.’

‘मुझे बताया क्यों नहीं.’

‘कल रात आप बहुत लेट आए तो ध्यान नहीं रहा.’

‘‘ध्यान नहीं रहा’ का क्या मतलब है, फोन कर के बता सकती थीं. कोई काम था वहां?’

‘निमिषा बहुत दिनों से बुला रही थी. कालिज में कल शाम की क्लास थी नहीं, सोचा उस से मिलती चलूं.’

‘तुम्हें मौका मिल गया न मुझे नीचा दिखाने का. तुम्हें शर्म नहीं आई कि बेटे ने ऐसी करतूत की और तुम रिश्तेदारी निभाती फिर रही हो.’

‘निमिषा आप की बहन होने के साथसाथ कालिज के जमाने की मेरी सहेली भी है…और रही बात बेटे की, तो उस ने शादी ही तो की है, गुनाह तो नहीं.’

‘पता है मुझे, तुम्हारी ही शह से बिगड़ा है वह. जब मां बिना पूछे काम करती है तो बेटे को कैसे रोक सकती है. भूल जाती हो तुम कि अभी मैं जिंदा हूं, इस- घर का मालिक हूं.’

‘मैं ने क्या काम किया है आप से बिना पूछे. इस घर में कोई सांस तो ले नहीं सकता बिना आप की अनुमति के…हवा भी आप से इजाजत ले कर यहां प्रवेश करती है…जिंदगी की छोटीछोटी खुशियों को भी जीने नहीं दिया…यह तो मैं ही हूं कि जो यह सब सहन करती रही….’

‘क्या सहन कर रही हो तुम, जरा मैं भी तो सुनूं. ऐसा स्टेटस, ऐसी शान, सोसाइटी में एक पहचान है तुम्हारी…और कौन सी खुशियां चाहिए?’

तनु तंग आ गई इन बातों से. हार कर उस ने कह दिया,  ‘देखो प्रणव, यह रोज की खिचखिच बंद करो. अब इस उम्र में मुझ से और सहन नहीं होता. मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता.’

‘नहीं सहन होता तो चली जाओ यहां से, जहां अच्छा लगता है वहां चली जाओ. क्यों रह रही हो फिर यहां.’

‘चली जाऊं, छोड़ दूं, उम्र के इस पड़ाव पर, आप को बेशक यह कहते शर्म नहीं आई हो, पर मुझे सुनने में जरूर आई है. इस उम्र में चली जाऊं, शादी के 30 साल तक सब झेलती रही, अब कहते हो चली जाओ. जाना होता तो कब की सबकुछ छोड़ कर चली गई होती.’

तनु तड़प उठी थी. जिंदगी का सुख प्रणव ने केवल भौतिक सुखसुविधा ही जाना था. पूरी जिंदगी अपनेआप को मार कर जीना ही अपनी तकदीर मान जिस के साथ निष्ठा से बिता दी, उसी ने आज कितनी आसानी से उसे घर से चले जाने को कह दिया.

‘हां, आज मुझे यह घर छोड़ ही देना चाहिए. अब तक पूरी जिंदगी प्रणव के हिसाब से ही जी है, यह भी सही.’ सारी रात तनु ने इसी सोच के साथ बिता दी.

शादी के बाद कितने समय तक तो तनु प्रणव का व्यवहार समझ ही नहीं पाई थी. किस बात पर झगड़ा होगा और किस बात पर प्यार बरसाने लगेंगे, कहा नहीं जा सकता. कालिज से आने में देर हो गई तो क्यों हो गई, घरबार की चिंता नहीं है, और अगर जल्दी आ गई तो कालिज टाइम पास का बहाना है, बच्चों को पढ़ाना थोड़े ही है.

दुनिया की नजर में प्रणव से आदर्श पति और कोई हो ही नहीं सकता. मेरी हर सुखसुविधा का खयाल रखना, विदेशों में घुमाना, एक से एक महंगी साडि़यां खरीदवाना, जेवर, गाड़ी, बंगला, क्या नहीं दिया लेकिन वह यह नहीं समझ सके कि सुखसुविधा और खुशी में बहुत फर्क होता है.

तनु की विचारशृंखला टूटने का नाम ही नहीं ले रही थी…मैं इन की बिना पसंद के एक रूमाल तक नहीं खरीद सकती, बिना इन की इच्छा के बालकनी में नहीं खड़ी हो सकती, इन की इच्छा के बिना घर में फर्नीचर इधर से उधर एक इंच भी सरका नहीं सकती, नया खरीदना तो दूर की बात… क्योंकि इन की नजर में मुझे इन चीजों की, इन बातों की समझ नहीं है. बस, एक नौकरी ही है, जो मैं ने छोड़ी नहीं. प्रणव ने बहुत कहा कि सोसाइटी में सभी की बीवियां किसी न किसी सोशल काम से जुड़ी रहती हैं. तुम भी कुछ ऐसा ही करो. देखो, निमिषा भी तो यही कर रही है पर तुम्हें क्या पता…पहले हमारे बीच खूब बहस होती थी, पर धीरेधीरे मैं ने ही बहस करना छोड़ दिया.

आज मैं थक गई थी ऐसी जिंदगी से. बच्चों ने तो अपना नीड़ अलग बना लिया, अब क्या इस उम्र में मैं…हां…शायद यही उचित होगा…कम से कम जिंदगी की संध्या मैं बिना किसी मानसिक पीड़ा के बिताना चाहती हूं.

प्रणव तो इतना सबकुछ होने के बाद भी सुबह की उड़ान से अपने काम के सिलसिले में एक सप्ताह के लिए फ्रैंकफर्ट चले गए. उन के जाने के बाद तनु ने रात में सोची गई अपनी विचारधारा पर अमल करना शुरू कर दिया. अभी तो रिटायरमेंट में 5-6 वर्ष बाकी हैं इसलिए अभी क्वार्टर लेना ही ठीक है, आगे की आगे देखी जाएगी.

तनु को क्वार्टर मिले आज कई दिन हो गए, लेकिन प्रणव को वह कैसे बताए, कई दिनों से इसी असमंजस में थी. दिन बीतते जा रहे थे. प्रोफेसर दीप्ति, जो तनु के ही विभाग में है और क्वार्टर भी तनु को उस के साथ वाला ही मिला है, कई बार उस से शिफ्ट करने के बारे में पूछ चुकी थी. तनु थी कि बस, आजकल करती टाल रही थी.

सच तो यह है कि तनु ने उस दिन आहत हो कर क्वार्टर के लिए आवेदन कर दिया था और ले भी लिया, पर इस उम्र में पति से अलग होने की हिम्मत वह जुटा नहीं पा रही थी. यह उस के मध्यवर्गीय संस्कार ही थे जिन का प्रणव ने हमेशा ही मजाक उड़ाया है.

ऐसे ही एक महीना बीत गया. इस बीच कई बार छोटीमोटी बातें हुईं पर तनु ने अब खुद को तटस्थ कर लिया, लेकिन वह भूल गई थी कि प्रणव के विस्फोट का एक बहाना उस ने स्वयं ही उसे थाली में परोस कर दे दिया है.

कालिज से मिलने वाली तनख्वाह बेशक प्रणव ने कभी उस से नहीं ली और न ही बैंक मेें जमा पैसे का कभी हिसाब मांगा पर तनु अपनी तनख्वाह का चेक हमेशा ही प्रणव के हाथ में रखती रही है. वह भी उसे बिना देखे लौटा देते हैं. इतने वर्षों से यही नियम चला आ रहा है.

तनु ने जब इस महीने भी चेक ला कर प्रणव को दिया तो उस पर एक नजर डाल कर वह पूछ बैठे, ‘‘इस बार चेक में अमाउंट कम क्यों है?’’

पहली बार ऐसा सवाल सुन कर तनु चौंक गई. उस ने सोचा ही नहीं था कि प्रणव चेक को इतने गौर से देखते हैं. अब उसे बताना ही पड़ा,  ‘‘अगले महीने से ठीक हो जाएगा. इस महीने शायद स्टाफ क्वार्टर के कट गए होंगे.’’

अभी उस का वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था, ‘‘स्टाफ क्वार्टर के…किस का…तुम्हारा…कब लिया…क्यों लिया… और मुझे बताया भी नहीं?’’

तनु से जवाब देते नहीं बना. बहुत मुश्किल से टूटेफूटे शब्द निकले,  ‘‘एकडेढ़ महीना हो गया…मैं बताना चाह रही थी…लेकिन मौका ही नहीं मिला…वैसे भी अब मैं उसे वापस करने की सोच रही हूं…’’

‘‘एक महीने से तुम्हें मौका नहीं मिला…मैं मर गया था क्या? यों कहो कि तुम बताना नहीं चाहती थीं…और जब लिया है तो वापस करने की क्या जरूरत है…रहो उस में… ’’

‘‘नहीं…नहीं, मैं ने रहने के लिए नहीं लिया…’’

‘‘फिर किसलिए लिया है?’’

‘‘उस दिन आप ने ही तो मुझे घर से निकल जाने को कहा था.’’

‘‘तो गईं क्यों नहीं अब तक…मैं पूछता हूं अब तक यहां क्या कर रही हो?’’

‘‘आप की वजह से नहीं गई. समाज क्या कहेगा आप को कि इस उम्र में अपनी पत्नी को निकाल दिया…आप क्या जवाब देंगे…आप की जरूरतों का ध्यान कौन रखेगा?’’

‘‘मैं समाज से नहीं डरता…किस में हिम्मत है जो मुझ से प्रश्न करेगा और मेरी जरूरतों के लिए तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है…जिस के मुंह पर भी चार पैसे मारूंगा…दौड़ कर मेरा काम करेगा…मेरा खयाल कर के नहीं गई…चार पैसे की नौकरी पर इतराती हो. अरे, मेरे बिना तुम हो क्या…तुम्हें समाज में लोग मिसिज प्रणव राय के नाम से जानते हैं.’’

तनु का क्रोध आज फिर अपना चरम पार करने लगा, ‘‘चुप रहिए, मैं ने पहले ही कहा था कि अब मुझ से बरदाश्त नहीं होता. ’’

‘‘कौन कहता है कि बरदाश्त करो…अब तो तुम ने मकान भी ले लिया है. जाओ…चली जाओ यहां से…मैं भूल गया था कि तुम जैसी मिडिल क्लास को कोठीबंगले रास नहीं आते. तुम्हारे लिए तो वही 2-3 कमरों का दड़बा ही ठीक है.’’

तनु इस अपमान को सह नहीं पाई और तुरंत ही अंदर जा कर अपना सूटकेस तैयार किया और वहां से निकल पड़ी. आंखों में आंसू लिए आज कोठी के फाटक को पार करते ही तनु को ऐसा लगा मानो कितने बरसों की घुटन के बाद उस ने खुली हवा में सांस ली है.

सारी रात आंखों में ही काट दी तनु ने अपने नए घर में…सुबह ही झपकी लगी कि डोरबेल से आंख खुल गई. सोचा, शायद प्रणव होंगे पर प्रोफेसर दीप्ति थी.

‘‘बाहर से ताला खुला देखा इसलिए बेल बजा दी. कब आईं आप?’’ शालीनता से पूछा था दीप्ति ने.

‘‘रात ही में.’’

‘‘ओह, अच्छा…पता ही नहीं चला. और मिस्टर राय?’’

‘‘वह बाहर गए हैं…तब तक दोचार दिन मैं यहां रह कर देखती हूं, फिर देखेंगे.’’

दीप्ति भेदभरी मुसकान से ‘बाय’ कह कर वहां से चल दी.

पूरा दिन निकल गया प्रतीक्षा में. तनु को बारबार लग रहा था प्रणव अब आए, तब आए. पर वह नहीं ही आए.

रात होतेहोते तनु ने अपने मन को समझा लिया था कि यह किस का इंतजार था मुझे? उस का जिस ने घर से निकाल दिया. अगर उन्हें आना ही होता तो मुझे निकालते ही क्यों…सचमुच मैं उन की जिंदगी का अवांछनीय अध्याय हूं. लेकिन ऐसा तो नहीं कि मैं जबरदस्ती ही उन की जिंदगी में शामिल हुई थी…

कालिज में मैं और निमिषा एक साथ पढ़ते थे. एक ही कक्षा और एक जैसी रुचियां होने के कारण हमारी शीघ्र ही दोस्ती हो गई. निमिषा और मुझ में कुछ अंतर था तो बस, यही कि वह अपनी कार से कालिज आती जिसे शोफर चलाता और बड़ी इज्जत के साथ कार का गेट खोल कर उसे उतारताबैठाता, और मैं डीटीसी की बस में सफर करती, जो सचमुच ही कभीकभी अंगरेजी भाषा का  ‘सफर’ हो जाता था. मेरा मुख्य उद्देश्य था शिक्षा के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना और निमिषा का केवल ग्रेजुएशन की डिगरी लेना. इस के बावजूद वह पढ़ाई में बहुत बुद्धिमान थी और अभी भी है…

ग्रेजुएशन करने तक मैं कभी निमिषा के घर नहीं गई…अच्छी दोस्ती होने के बाद भी मुझे लगता कि मुझे उस से एक दूरी बनानी है…कहां वह और कहां मैं…लेकिन जब मैं ने एम.ए. का फार्म भरा तो मुझे देख उस ने भी भर दिया और इस तरह हम 2 वर्ष तक और एकसाथ हो गए. इस दौरान मुझे दोचार बार उस के घर जाने का मौका मिला. घर क्या था, महल था.

मेरी हैरानी तब और बढ़ गई जब एम.फिल. के लिए मेरे साथसाथ उस ने भी आवेदन कर दिया. मेरे पूछने पर निमिषा ने कहा था, ‘यार, मम्मीपापा शादी के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं, जब तक नहीं मिलता, पढ़ लेते हैं. तेरे साथसाथ जब तक चला जाए…’ बिना किसी लक्ष्य के निमिषा मेरे साथ कदम-दर-कदम मिलाती हुई बढ़ती जा रही थी और एक दिन हम दोनों को ही लेक्चरर के लिए नियुक्त कर लिया गया.

इस खुशी में उस के घर में एक भव्य पार्टी का आयोजन किया गया था. उसी पार्टी में पहली बार उस के भाई प्रणव से मेरी मुलाकात हुई. बाद में मुझे पता चला कि उस दिन पार्टी में मेरे रूपसौंदर्य से प्रभावित हो कर निमिषा के मम्मीपापा ने निमिषा की शादी के बाद मुझे अपनी बहू बनाने पर विचार किया, जिस पर अंतिम मोहर मेरे घर वालों को लगानी थी जो इस रिश्ते से मन में खुश भी थे और उन की शानोशौकत से भयभीत भी.

इस सब में लगभग एक साल का समय लगा. प्रणव कई बार मुझ से मिले, वह जानते थे कि मैं एक आम भारतीय समाज की उपज हूं…शानोशौकत मेरे खून में नहीं…लेकिन शादी के पहले मेरी यही बातें, मेरी सादगी, उन्हें अच्छी लगती थी, जो उन की सोसाइटी में पाई जाने वाली लड़कियों से मुझे अलग करती थी.

तनु को यहां रहते एक महीना हो चुका था. कुछ दिन तो दरवाजे की हर घंटी पर वह प्रणव की उम्मीद लगाती, लेकिन उम्मीदें होती ही टूटने के लिए हैं. इस अकेलेपन को तनु समझ ही नहीं पा रही थी. कभी तो अपने छोटे से घर में 55 वर्षीय प्रोफेसर डा. तनुश्री राय का मन कालिज गर्ल की तरह कुलाचें मार रहा होता कि यहां यह मिरर वर्क वाली वाल हैंगिंग सही लगेगी…और यह स्टूल यहां…नहीं…इसे इस कोने में रख देती हूं.

घर में कपडे़ की वाल हैंगिंग लगाते समय तनु को याद आया जब वह जनपथ से यह खरीद कर लाई थी और उसे ड्राइंग रूम में लगाने लगी तो प्रणव ने कैसे डांट कर मना कर दिया था कि यह सौ रुपल्ली का घटिया सा कपडे़ का टुकड़ा यहां लगाओगी…इस का पोंछा बना लो…वही ठीक रहेगा…नहीं तो अपने जैसी ही किसी को भेंट दे देना.

तनु अब अपनी इच्छा से हर चीज सजा रही थी. कोई मीनमेख निकालने वाला या उस का हाथ रोकने वाला नहीं था, लेकिन फिर भी जीवन को किसी रीतेपन ने अपने घेरे में घेर लिया था.

कालिज की फाइनल परीक्षाएं समाप्त हो चुकी थीं. सभी कहीं न कहीं जाने की तैयारियों में थे. प्रणव के साथ मैं भी हमेशा इन दिनों बाहर चली जाया करती थी…सोच कर अचानक तनु को याद आया कि बेटा  ‘यश’ के पास जाना चाहिए…उस की शादी पर तो नहीं जा पाई थी…फिर वहीं से बेटी के पास भी हो कर आऊंगी.

बस, तुरतफुरत बेटे को फोन किया और अपनी तैयारियों में लग गई. कितनी प्रसन्नता झलक रही थी यश की आवाज में. और 3 दिन बाद ही अमेरिका से हवाई जहाज का टिकट भी भेज दिया था.

फ्लाइट का समय हो रहा था… ड्राइवर सामान नीचे ले जा चुका था, तनु हाथ में चाबी ले कर बाहर निकलने को ही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई, उफ, इस समय कौन होगा. देखा, दरवाजे पर प्रणव खड़े हैं.

क्षण भर को तो तनु किंकर्तव्य- विमूढ़ हो गई. उफ, 2 महीनों में ही यह क्या हो गया प्रणव को. मानो बरसों के मरीज हों.

‘‘कहीं जा रही हो क्या?’’ प्रणव ने उस की तंद्रा तोड़ते हुए पूछा.

‘‘हां, यश के पास…पर आप अंदर तो आओ.’’

‘‘अंदर बैठा कर तनु प्रणव के लिए पानी लेने को मुड़ी ही थी कि उस ने तनु का हाथ पकड़ लिया, ‘‘तनु, मुझे माफ नहीं करोगी. इन 2 महीनों में ही मुझे अपने झूठे अहम का एहसास हो गया. जिस प्यार और सम्मान की तुम अधिकारिणी थीं, तुम्हें वह नहीं दे पाया. अपने  ‘स्वाभिमान’ के आवरण में घिरा हुआ मैं तुम्हारे अस्तित्व को पहचान ही नहीं पाया. मैं भूल गया कि तुम से ही मेरा अस्तित्व है. मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूं…यह सच है तनु, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं…पहले भी करता था पर अपने अहम के कारण कहा नहीं, आज कहता हूं तनु, तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगा…मुझे माफ कर दो और अपने घर चलो. बहू को पहली बार अपने घर बुलाने के लिए उस के स्वागत की तैयारी भी तो करनी है…मुझे एक मौका दो अपनी गलती सुधारने का.’’

तनु बुढ़ापे में पहली बार अपने पति के प्यार से सराबोर खुशी के आंसू पोंछती हुई अपने बेटे को अपने न आ पाने की सूचना देने के लिए फोन करने लगा.

 

 

कटी पतंग: बुशरा की डायरी में क्या था लिखा

लेखिका- दिव्या शर्मा

बिस्तर पर एक औरत की लाश पड़ी थी. इंस्पैक्टर ने कमरे का जायजा लेना शुरू किया. कमरे में एक छोटी सी खिड़की थी, जिस पर एक मोटा परदा डला था.

इंस्पैक्टर लाश के नजदीक पहुंच कर ठिठक गई. बैड के पास एक डायरी गिरी हुई थी. उस ने कौंस्टेबल को इशारा कर डायरी अपने पास मंगवाई और पन्ने पलटने लगी. उन पन्नों में लिखी कहानी इंस्पैक्टर की आंखों के सामने चलचित्र की तरह चलनी लगी…

“1जनवरी, 2007

“थैंक यू अब्बू… इस सुंदर डायरी के लिए.

“बुशरा मलिक,

मकान नंबर 10, करीमगंज.”

“3 जनवरी, 2007

“ठीक तो कहता है फैजल कि मैं खूबसूरत हूं, मुझे फिल्मों में होना चाहिए. आज उस की बात सुन कर पहली बार इतने गौर से खुद को आईने में निहारा.

“सुन डायरी, तू तो मेरी दोस्त है ना…इसलिए तुझे आज अपने दिल की बात बताती हूं. फैजल मुझे बेइंतहा मोहब्बत करता है लेकिन बताता नहीं. सब जानती हूं मैं. मुझे जलाने के लिए रूखसाना से बातें करता रहता है जैसेकि मैं सच में जलूंगी…

“मुझे तो मुंबई जाना है. मौका देख कर अब्बू से बात करूंगी लेकिन तब तक यह बात अपने दिल में छिपाए रखना, समझ गई ना…

“चल अब सोती हूं.”

“5 जनवरी,2007

“अब्बू ने आज मुझे बहुत डांटा. बस, इतना ही तो कहा था कि मुझे औडिशन देना है मौडलिंग के लिए. अब्बू कहते हैं कि यह काम शरीफ घरानों की लड़कियों के लिए नहीं है. अब्बू यह क्या बात हुई भला, आप इतने पढेलिखे हैं फिर भी ऐसी बातें करते हैं? आप तो बिलकुल दकियानूसी नहीं थे.

“मैं एक दिन मुंबई जरूर जाऊंगी और देखना, अब्बू आप को अपनी बुशरा पर नाज होगा.”

“10जनवरी, 2007

“आज जन्मदिन है मेरा. अब्बू ने मुझे सोने के झुमके दिए हैं तोहफे में. बहुत प्यार करते हैं मुझे अब्बू. फैजल ने मेकअप बौक्स दिया है. मगर छिपा लिया मैं ने. कोई देख लेता तो तुफान आ जाता.”

“14फरवरी, 2007

“तूझे पता है कि आज फैजल ने मुझे आई लव यू कहा. मुझे बहुत शर्म आई. 4 महीने हो गए हैं फैजल को हमारे शहर में नौकरी करते. बता रहा था कि मुंबई में घर है उस का. मुझ से कहता है कि मुझे हीरोइन बनाएगा, चाहे कुछ भी करना पड़े.

“कह रहा था कि तुम्हारे लिए खुद को भी गिरवी रख दूंगा लेकिन तुम्हारा ख्वाब जरूर पूरा करूंगा…पागल है सच में. ऐसे भी कोई इश्क करता है क्या?”

“20 मार्च, 2007

“आज फिर अम्मी से बात करने की कोशिश की कि अब्बू को समझाए. लेकिन मेरी बात तो हिमाकत लगती है सब को. कह रही थीं कि 19 साल की हो गई हो अब निकाह कर के रूखसत कर देंगी घर से.

“मेरी ख्वाहिश, मेरे अरमानों की फिक्र बस फैजल को है. बेइंतहा मोहब्बत करता है मुझ से. मेरी आंखों में जानें क्या ढूंढ़ते रहता है…बावला है पूरा.

“देख, तुझे बता रही हूं अपने दिल का हाल, लेकिन तू किसी को न कहना.

अब तू भी सो जा. कल फिर तुझ पर मेरी कलम मेरा हाल लिखेगी…”

“5 अप्रैल, 2007

“कल फैजल मुंबई जा रहा है और मैं भी उस के साथ ही चली जाऊंगी. जब सपनों को पूरा कर लूंगी तभी लौट कर आऊंगी. थोड़े से गहने रख लिए हैं साथ में. जरूरत पड़ गई तो बेचारा फैजल कितना करेगा?

“क्या कहा, यह गलत है? अरे, यह गहने अम्मी के नहीं हैं. मेरे निकाह के लिए ही तो बनवाए हैं अम्मी ने. तो इन पर मेरा हक हुआ न…और फिर एक बार हीरोइन बन गई तो ऐसे कितने ही गहने खरीदवा दूंगी अम्मी को…हाय, आज की रात न जाने कैसे बीतेगी.

“तू बहुत बातें करती है डायरी. मुझे भी उलझा देती है नामुराद. चल अब सोती हूं, कल बहुत तैयारी करनी है.”

“10 जनवरी, 2008

“बहुत दिनों बाद तुझे उठा रही हूं डायरी. क्या करती, हिम्मत न थी इन नापाक हाथों से तुझे हाथ लगाने की.

अब्बू बहुत मोहब्बत से मेरे लिए लाए थे तुझे. “आज तुझे सीने से लगाया तो लगा कि अब्बू करीब हैं. मैं मुंबई आ कर अपने अब्बू की बुशरा न रही. अब रोज नए किरदार में खुद को ढालती हूं. रोज बिछती हूं, रोज सिकुड़ती हूं. मरना चाहती हूं लेकिन एक बार अपने अम्मीअब्बू को देख लूं बस.

“किसी तरह मुझे मौका मिल जाए यहां से निकलने का. हीरोइन बनने आई थी लेकिन मालूम न था यह ख्वाहिश मुझे यों तबाह कर देगी. सीने में दर्द उठ रहा है लेकिन तुझ से भी न कहूंगी. यह तो मुझे ही सहना होगा.”

“6 फरवरी, 2008

“जल्दी वापस चली जाऊंगी अपने शहर. एक बार जीभर देख लूं सब को. बस एक बार. फिर तो मर जाऊंगी. 10 बज रहे हैं और मैं यहां अकेली… थकी हुई. आज अगर घर में होती तो अम्मी की गोद में सिर रख कर लेटी होती. अब्बू की लाई कुल्फी खा रही होती लेकिन अब…”

“14 मार्च, 2008

“आज लौट आई हूं वापस अपने शहर लेकिन घर नहीं जा सकती. क्या मुंह दिखाऊंगी किसी को? कैसे कर सकूंगी अब्बू का सामना? कैसे कहूंगी कि आप की बुशरा सब खो चुकी है उस शहर में…

“कैसे कहूं कि फैजल ने नोच दी आप के घर की आबरू. वह बेच गया मुझे मंडी में. बन गई मैं धंधेवाली. नीलाम कर दी बुशरा ने आप की इज्जत. अब तो बस मरने का इंतजार है. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“20 जून, 2008

“अखबार में आज अपनी गुमशुदगी की खबर पढी. 1 साल से अधिक हो गए मुझे घर छोड़े लेकिन वे आज भी मुझे याद करते हैं.

“मन करता है जा कर अम्मी के गले लग जाऊं. अब्बू के कदमों में बैठ कर रो लूं. लेकिन नहीं कर सकती ऐसा. मेरे गुनाह इतने छोटे नहीं. मैं इन्हीं अंधेरे में सही हूं. कम से कम मुझे ढूंढ़ तो ना पाएंगे

“मैं अपनी नापाक शरीर ले कर आप के पास नहीं आ सकती, अब्बू. अकेली बैठी हूं इस छोटे से कमरे में. दम घुटता है मेरा यहां. क्या बनना चाहा और क्या बन गई मैं…

“जिस्म से रोज कपड़े उतरते हैं, रोज आदमी बदलते हैं लेकिन मैं तो वही रहती हूं बेशर्म की पुतली बुशरा. कीड़े रेंगते हैं मेरे जिस्म पर. घिनौनी हो गई हूं मैं. क्यों जिंदा हूं? काश कि मौत आ जाए मुझे…”

“20 जुलाई, 2008

“जी न माना तो चली गई आज चुपचाप अब्बू की दुकान पर. बस दूर से देख आई उन्हें. उन की आंखों में दर्द था…

“कितना नाज था उन्हें मुझ पर लेकिन मैं ने… मैं उन से नजरें नहीं मिला सकती.

“काश कि कुदरत मेरे गुनाहों को माफ कर दे, मेरे अब्बू के चेहरे पर हंसी खिला दे. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“8 सितंबर, 2008

“दुल्हा बना कितना सुंदर लग रहा था मेरा भाई. मन कर रहा था झूम कर नाचूं…लेकिन…बस दूर से ही देख सकी मैं.

“आज अम्मी ने हरा लिबास पहना था. वैसा ही लिबास जैसा मुझे पसंद है. पर वे बुझी हुई लग रही थीं…वे मुझे भूली नहीं.

“बस एक बार भाभी का चेहरा देख पाती लेकिन यह नापाक साया उन पर नहीं डाल सकती. मैं रो रही हूं अब्बू. मुझे ले जाओ यहां से.

“अम्मी मुझे माफ कर दो. मुझे पनाह दे दो अम्मी…

“यह मैं क्या कह रही हूं? नहीं… नहीं… मुझे मरना होगा. अपनी गंदगी का साया अपने घर पर न डालूंगी. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“6 अक्तूबर, 2008

“बुखार से बदन तप रहा है लेकिन मुझ से ज्यादा तपन इन भूखों के शरीर में लगी है. इस शरीर से बेइंतहा मोहब्बत थी मुझे, इस पर गुरूर कर फैजल पर यकीन किया था… लेकिन अब… अब नफरत हो गई… कुदरत अब किसी और बुशरा को उस कमीने के चंगुल में न फंसने देना.

“अब्बू, आप की बुशरा से गुनाह हो गया… मुझे माफ कर दो अब्बू…आप सही कहते थे कि मुंबई बहुत गंदा शहर है. काश, मौत आ जाए मुझे…”

“10 अक्तूबर, 2008

“अपने इस जिस्म पर गुमान कर घर से निकल गई थी… देखो अब्बू… आप की बुशरा इलाज से भी महरूम है. मेरी छींक पर भी बेचैन हो उठते थे आप और आज कैसी गलीच जिंदगी जी रही हूं मैं… काश, मुझे मौत आ जाए…”

“15 अक्तूबर, 2008

“हिम्मत नहीं बची है अब. मौत करीब लग रही है. आज मैं मर जाऊंगी. कुदरत का बुलावा आ गया है. लेकिन मेरे बारे में मेरे परिवार को पता न चले. उन्हें पता न चले कि अब्बू की बुशरा अब धंधेवाली…

“काश, कोई इस जिस्म को लावारिस समझ खाक में मिला दे…”

उस के मासूम चेहरे पर अब भी नजामत दिख रही थी, भले ही प्राण नहीं था शरीर में. इंस्पैक्टर को आंखों में कुछ नमी सी महसूस हुई. डायरी को बंद कर उस ने एक ठंडी सांस ली और फिर मोहब्बत की शिकार ख्वाब देखने वाली बुशरा के मरे जिस्म को उस ने लवारिस लाश में शामिल कर दिया.

कई हफ्तों से लापता तारक मेहता का उल्टा चश्मा के सरदार रोशन सिंह सोढी पहुंचे घर

सब टीवी पर आनेवाले टीवी शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा में सरदार रोशन सिंह सोढी का रोल निभाने वाले एक्टर गुरचरण सिंह शुक्रवार को अपने घर लौट आए हैं. वो 22 अप्रैल से लापता थे. दिल्ली पुलिस ने इस सिलसिले में किडनैपिंग का केस दर्ज किया था और लापता होने पर उन्हें ढूढ़ रहे थे. सिंह ने पुलिस को बताया कि वो रोज की जिंदगी से अलग निकलकर धार्मिक यात्रा पर गए थे. अपनी इस यात्रा में वो पंजाब के अमृतसर और लुधियाना सहित कई शहरों के गुरुद्वारे गए.

एक्टर के पिता ने दिल्ली पुलिस में इस सिलसिले में एक कंपलेंट दर्ज करवाई थी, कंपलेट के अनुसार, गुरचरण 22 अप्रैल 8.30 बजे घर से मुंबई जाने के लिए एयरपोर्ट गए थे लेकिन वो मुंबई नहीं पहुंचे और उनका फोन भी अनरीचेबल जा रहा था. गुरचरण के पिता जी ने जो कंपलेंट दर्ज कराई थी उसमें लिखा था कि मानसिक तौर पर उनके बेटे बिल्कुल ठीक हैं. हम उन्हें ढ़ूढ रहे हैं पर वो लापता हैं.

लापता होने से 4 दिन पहले गुरचरण ने अपने पिता जी को फोन पर विश किया था और लिखा था, ‘’डिवाइन बर्थडे टू फादर”. साथ ही गुरचरण ने अपने पिता की कई सारी तस्वीरों को जोड़कर एक वीडियो बनाया था. इन तस्वीरों को लेकर की गई पोस्ट में गुरचरण बहुत खुश नजर आ रहे थे.

 


पुलिस को जांच के दौरान ये भी पता लगा है कि गुरचरण आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे. उन पर कई लोन भी हैं. वो मेडिटेशन में बहुत विश्वास रखते हैं और उन्होंने हिमालय जाने की इच्छा भी थी. आपको बता दें कि गुरचरण सिंह ने साल 2013 में तारक मेहता शो छोड़ दिया था फिर दर्शकों की डिमांड पर वापस आए लेकिन साल 2020 में उन्होंने फाइनली शो छोड़ दिया और उनकी जगह एक्टर बलविंदर सिंह सूरी को शो में लिया गया.

 

शो में रोशन सिंह सोढी का किरदार ऐसा किरदार है जो अपने जोक्स और स्टाइल से लोगों को हंसाता है. इसमें वो सरदार जी हैं जो अपने गरैज चलाते हैं और गाड़ियों को रिपेयर करने का काम करते हैं. किरदार की बत करें तो वह हमेशा दूसरो को मदद करने के लिए तैयार रहता है. सोढी ने पारसी महिला रोशन से शादी की है और दोनों के एक बच्चा है गोगी उर्फ गुरुचरण सिंह सोढी. इसका किरदार भी बहुत हंसमुख है. दोनों बाप बेटे की जोड़ी लस्सी पीते रहते हैं और खुश रहते हैं.

कैसी है सीमा: अच्छे व्यवहार के बावजूद क्यों ससुरालवालों का दिल नहीं जीत पाई सीमा

 ‘‘आज जरा चेक पर दस्तखत कर देना,’’ प्रभात ने शहद घुली आवाज में कहा.

सीमा ने रोटी बेलतेबेलते पलट कर देखा, चेक पर दस्तखत करवाते समय प्रभात कितने बदल जाते हैं, ‘‘आप की तनख्वाह खत्म हो गई?’’ वह बोली.

‘‘गांव से पिताजी का पत्र आया था. वहां 400 रुपए भेजने पड़े. फिर लीला मौसी भी आई हुई हैं. घर में मेहमान हों तो खर्च बढ़ेगा ही न?’’

सीमा चुप रह गई.

‘‘पैसा नहीं देना है तो मत दो. किसी से उधार ले कर काम चला लूंगा. जब भी पैसों की जरूरत होती है, तुम इसी तरह अकड़ दिखाती हो.’’

‘‘अकड़ दिखाने की बात नहीं है. प्रश्न यह है कि रुपया देने वाली की कुछ कद्र तो हो.’’

‘‘मैं बीवी का गुलाम बन कर नहीं रह सकता, समझीं.’’

बीवी के गुलाम होने वाली सदियों पुरानी उक्ति पुरुष को आज भी याद है. किंतु स्त्रीधन का उपयोग न करने की गौरवशाली परंपरा को वह कैसे भूल गया?

बहस और कटु हो जाए, इस के पहले ही सीमा ने चेक पर हस्ताक्षर कर दिए.

शाम को प्रभात दफ्तर से लौटे तो लीला मौसी को 100 का नोट दे कर बोले, ‘‘मौसी, तुम पड़ोस वाली चाची के साथ जा कर आंखों की जांच करवा आना.’’

‘‘अरे, रहने दे भैया, मैं तो यों ही कह रही थी. अभी ऐसी जल्दी नहीं है. रायपुर जा कर जांच करा लूंगी.’’

‘‘नहीं मौसी, आंखों की बात है. जल्दी दिखा देना ही ठीक है.’’

मौसी मन ही मन गद्गद हो गईं.

प्रभात मौसी का बहुत खयाल रखते हैं. मौसी का ही क्यों, रिश्ते की बहनों, बूआओं, चाचाताउओं सभी का. कोई रिश्तेदार आ जाए तो प्रभात एकदम प्रसन्न हो उठते हैं. उस समय वह इतने उदार हो जाते हैं कि खर्च करते समय आगापीछा नहीं सोचते. मेहमानों की तीमारदारी के लिए ऐसे आकुलव्याकुल हो उठते हैं कि उन के आदेशों की धमक से सीमा का सिर घूमने लगता है.

‘‘सीमा, आज क्या सब्जी बनी?है?’’ प्रभात पूछ रहे थे.

‘‘बैगन की.’’

‘‘बैगन की. मौसी की आंखों में तकलीफ है. बैगन की सब्जी खाने से तकलीफ बढ़ेगी नहीं? उन के लिए परवल की सब्जी बना लो.’’

‘‘नहीं. मैं बैगन की सब्जी खा लूंगी, बेटा. बहू को एक और सब्जी बनाने में कष्ट होगा. कालिज से थक कर आई है.’’

‘‘इस उम्र में थकना क्या है, मौसी? वह तो इन के घर वालों ने काम की आदत नहीं डाली, इसी से थक जाती हैं.’’

‘‘हां, बेटा. आजकल लड़कियों को घरगृहस्थी संभालने की आदत ही नहीं रहती. हम लोग घर के सब काम कर के 10 किलो चना दल कर फेंक देते थे,’’ मौसी बोलीं.

बस, इसी बात से सीमा चिढ़ जाती है. उस के मायके वालों ने काम की आदत नहीं डाली तो क्या प्रभात ने उस के लिए नौकरों की फौज खड़ी कर दी? एक बरतनकपड़े साफ करने वाली के अलावा दूसरा कोई नौकर तो देखा ही नहीं इस घर में.

और लीला मौसी के जमाने में घरगृहस्थी ही तो संभालती थीं लड़कियां. न पढ़ाईलिखाई में सिर खपाना था और न नौकरी के पीछे मारेमारे घूमना था.

सीमा सोचने लगी, ‘लीला मौसी तो खैर अशिक्षित महिला हैं, परंतु प्रभात की समझ में यह बात क्यों नहीं आती?’

अभी पिछले सप्ताह भी ऐसा ही हुआ था. सीमा ने करेले की सब्जी बनाई थी. प्रभात ने देखा तो बोले, ‘‘करेले बनाए हैं? क्या मौसी को दुबला करने का विचार है? उन के लिए कुछ और बना लो.’’

सीमा एकदम हतप्रभ रह गई. मौसी हंसीं, ‘‘नहीं… नहीं, कुछ मत बनाओ, बहू. बस, दाल को तड़का दे दो. तब तक मैं टमाटर की चटनी पीस लेती हूं.’’

‘‘मौसी, बहू के रहते तुम्हें काम करने की क्या जरूरत है? आओ, उस कमरे में बैठें,’’ प्रभात बोले.

सीमा अकेली रसोई में खटती रही. उधर साथ वाले कमरे में मौसी प्रभात को झूठेसच्चे किस्से बताती रहीं, ‘‘तुम्हारे बड़े नानाजी खेत में पहुंचे तो देखा, सामने गांव के धोबी का भूत खड़ा है…’’

मौसी खूब अंधविश्वासी हैं. मनगढ़ंत किस्से खूब बताती हैं. भूतप्रेतों के, प्रभात के बड़े नाना, मझले नाना और छोटे नाना के, दूध सी सफेद छोटी नानी के, प्रभात की ननिहाल के जमींदार महेंद्रप्रताप सिंह और रूपा डाकू के भी. इन किस्सों के साथसाथ मौसी लोगों की मेहमाननवाजी और बढि़या भोजन को भी खूब याद करतीं. उन की व्यंजन चर्चा सुन कर श्रोताओं के मुंह में भी पानी भर आता.

मौसी मूंग के लड्डू, खस्ता, कचौरी, मेवे की गुझिया और खोए की पूरियों को याद किया करतीं.

प्रभात उन की हर फरमाइश पूरी करवाते. सीमा को कालिज जाने तक रसोई में जुटे रहना पड़ता. थकान के कारण खाना भी न खाया जाता. उस दिन भी ऐसा ही हुआ था. कालिज से लौट कर वह कुछ खाना ही चाहती थी कि प्रभात के मित्र आ गए. उस ने किसी तरह उन्हें चायनाश्ता करवाया. दूध का बरतन उठा कर अलमारी में रखने लगी तो सहसा चक्कर खा कर गिर पड़ी. सारे कमरे में दूध ही दूध फैल गया.

मौसी और प्रभात दौड़े आए. अपने निष्प्राण से शरीर को किसी तरह खींचती हुई सीमा पलंग पर जा लेटी. आंखें बंद कर के वह न जाने कितनी देर तक लेटी रही.

अचानक प्रभात ने धीरे से उसे उठाते हुए कहा, ‘‘सुनो, अब उठ कर जरा रसोई में देख लो. तब से मौसी ही लगी हुई हैं.’’

शरीर में उठने की शक्ति ही नहीं थी. ‘हूं’ कह कर सीमा ने दूसरी ओर करवट ले ली.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, यह मैं मानता हूं परंतु अपने घर का काम कोई और करे यह तो शोभा नहीं देता,’’ प्रभात धीरे से बोले.

सीमा का मन हुआ चीख कर कह दे, ‘मौसी के घर में बहूबेटी बीमार होती हैं, तब क्या वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती हैं? एक समय भोजन बना भी लेंगी तो ऐसी क्या प्रलय हो जाएगी?’ लेकिन कहा कुछ नहीं. आवाज कहीं गले में ही फंस कर रह गई. आंखों से आंसू बह निकले. उठ कर बचा हुआ काम निबटाया.

मौसी प्रभात की प्रशंसा करते नहीं थकतीं. उस दिन किसी से कह रही थीं, ‘‘हमारे परिवार में प्रभात हीरा है. सब के सुखदुख में साथ देता है. रुपएपैसे की परवाह नहीं करता. ऐसा आदरसम्मान करता है कि पूछो मत. बहू बड़े घर की लड़की?है, पर प्रभात का ऐसा शासन?है कि मजाल है बहू जरा भी गड़बड़ कर जाए.’’

यह प्रशंसा वह पहली बार नहीं सुन रही थी. ऐसी प्रशंसा प्रभात के परिवार के हर छोटेबड़े के मुख पर रहती है. ससुराल वालों को इतना आतिथ्यसत्कार तथा सेवा करने और बैंक के चेक फाड़फाड़ कर देने के बाद भी वह प्रभात के इस सुयश की भागीदार नहीं बन सकी. या यों कहा जाए कि प्रभात ने इस में उसे भागीदार बनाया ही नहीं बल्कि अपने लोगों के सामने उसे बौना बनाने में ही वह गर्व महसूस करते रहे. उस  की कमियों और गलतियों को वह बढ़ाचढ़ा कर सुनाया करते और सारा परिवार रस ले ले कर सुना करता.

इस संबंध में सीमा को अपनी देवरानी मंगला से ईर्ष्या होती है. देवर सुनील उस के सम्मान को बढ़ाने का एक भी अवसर हाथ से नहीं जाने देते. हैदराबाद से वह साल में एक बार घर आते हैं. छोटेबड़े सभी के लिए कुछ न कुछ लाने का उन का नियम है, लेकिन लेनदेन का दायित्व उन्होंने मंगला को ही सौंप रखा है.

जब सारा परिवार मिल कर बैठता?है तब सुनील पत्नी को गौरवान्वित करते हुए कहते हैं, ‘‘मंगला, निकालो भई, सब चीजें. दिखाओ सब को, क्याक्या लाई हो तुम उन के लिए,’’ सब की नजरें मंगला पर टिक जाती?हैं. वह कितनी ऊंची हो जाती है सब की दृष्टि में.

मंगला की अनुपस्थिति में जब परिवार के लोग मिल बैठते हैं तो उस के लाए उपहारों की चर्चा होती?है. उस की दरियादिली की प्रशंसा होती है. परंतु सीमा की मेहनत की कमाई से भेजे गए मनीआर्डरों का कभी जिक्र नहीं होता. उस का सारा श्रेय प्रभात को जाता है. कभी बात चलती?है तो अम्मां उसे सुना कर साफ कह देती हैं, ‘‘सीमा की कमाई से हमें क्या मतलब? प्रभात घर का बड़ा बेटा है, उस की कमाई पर तो हमारा पूरा हक है.’’

कभीकभी सीमा सोचती है, ‘नेकी करते हुए भी किसी के हिस्से में यश और किसी के हिस्से में अपयश क्यों आता है?’ वैसे इस विषय में ज्यादा सोच कर वह अपना मन खराब नहीं करती. फिर भी उस का स्वास्थ्य ठीक नहीं रह पाता. पिछले दिनों डाक्टर ने बताया था, ‘‘पैर भारी हैं. थोड़ा आराम करना चाहिए.’’

इधर मौसी कहती थीं, ‘‘एक रोटी बनाने का ही तो काम है घर में. न चक्की पीसनी है, न कुएं से पानी खींच कर लाना है. खूब मेहनत करो और डट कर खाओ. तभी तो सेहत बनेगी.’’

और एक दिन सेहत बनाने के चक्कर में लड्डू बांधतेबांधते कालिज जाने का समय हो गया था. सीमा जल्दीजल्दी सीढि़यां उतरने लगी तो अचानक पैर फिसल गया. 3-4 सीढि़यां लांघती हुई वह नीचे जा गिरी. चोट तो उसे विशेष नहीं आई, पर पेट में दर्द होने लगा था.

‘‘इन के लिए बिस्तर पर आराम करना बहुत जरूरी है,’’ डाक्टर ने प्रभात से कहा था.

प्रभात ने लापरवाही के लिए सीमा को जी भर कर कोसा, किंतु इस परिस्थिति में डाक्टर की सलाह मानना आवश्यक हो गया.

झाड़ूपोंछा तो महरी करने लगी पर भोजन बनाने का भार मौसी पर आ पड़ा. वह नाश्ता और खाना बनाने में परेशान हो जातीं. अब वह बिना मसाले की सादी सब्जी से काम चला लेतीं. कहतीं, ‘‘अब उम्र हो गई. काम करने की पहले जैसी ताकत थोड़े ही रह गई है.’’

सीमा का मन होता, पूछे, मौसी, सिर्फ खाना ही तो बनाना?है. और खाना बनाना भी कोई काम है? तुम तो कहती थीं, दालचावल और सब्जीरोटी तो कैदियों का खाना है. तुम ऐसा खाना क्यों बना रही हो, मौसी?

किसी तरह सप्ताह बीता था कि मौसी का मन उखड़ने लगा. एक दिन प्रभात से बोलीं, ‘‘बेटा, तुम्हारे पास बहुत दिन रह ली. सुरेखा रोज सपने में दिखाई देती है. जाने क्या बात है. बहू जैसी ही उस की भी हालत है.’’

प्रभात सन्न रह गए, ‘‘मौसी, ऐसी कोई बात होती तो सुरेखा का पत्र जरूर आता. तुम चली जाओगी तो बड़ी मुसीबत होगी. अच्छा होता जो कुछ दिन और रुकजातीं.’’

पर मौसी नहीं मानीं. वह बेटी को याद कर के रोने लगीं. प्रभात निरुपाय हो गए. उन्होंने उसी दिन गांव पत्र लिखा.

सुशीला जीजी पिछले साल 2 माह रह कर गई थीं. उन्हें भी एक पत्र विस्तार से लिखा. कई दिनों बाद गांव से पत्र आया कि 15 दिनों बाद अम्मां स्वयं आएंगी. पर 15 दिनों के लिए दूसरी क्या व्यवस्था हो सकेगी?

प्रभात को याद आया कि मंगला की बीमारी का समाचार मिलते ही गांव के लोग किस तरह हैदराबाद तक दौड़े चले जाते हैं. फिर सीमा के लिए ऐसा क्यों? शायद इस का कारण वह स्वयं ही है. जिस तरह सुनील ने अपने परिजनों के हृदय में मंगला के लिए स्नेह और सम्मान के बीज बोए थे, वैसा सीमा के लिए कभी किया था उस ने?

15 दिन बाद अम्मां गांव से आ गईं. उन के आते ही प्रभात निश्चिंत हो गए. उन्हें विश्वास था कि अम्मां अब सब संभाल लेंगी. मार्च का महीना?था. वह अपने दफ्तर के कार्यों में व्यस्त हो गए. सुबह घर से जल्द निकलते और रात को देर से घर लौटते.

पिछले वर्ष जब मंगला को आपरेशन से बच्चा हुआ था, उस समय अम्मां हैदराबाद में ही थीं. उन्होंने उस की खूब सेवा की थी. उस की सेवा का औचित्य उन की समझ में आता था, लेकिन सीमा को क्या हुआ, यह उन की समझ में ही न आता. वह दिनभर काम करें और बहू आराम करे, यह उन के लिए असहाय था.

प्रभात के सामने तो अम्मांजी चुपचाप काम किए जातीं, परंतु उन के जाते ही व्यंग्य बाण उन के तरकस में कसमसाने लगते. कभी वह इधरउधर निकल जातीं.

महल्ले की स्त्रियां मजा लेने के लिए उन्हें छेड़तीं, ‘‘अम्मां, हो गया काम?’’

‘‘हां भई, काम तो करना ही है. पुराने जमाने में बहुएं सास की सेवा करती थीं, आज के जमाने में सास को बहुओं की सेवा करनी पड़ती?है.’’

सीमा सुनती तो संकोच से गड़ जाती. किस मजबूरी में वह उन की सेवा ग्रहण कर रही थी, इसे तो वही जानती थी.

उसी समय प्रभात को दफ्तर के काम से सूरत जाना पड़ा. उन के जाने की बात सुन कर सीमा विकल हो उठी थी. जाने के 2 दिन पहले उस ने प्रभात से कहा भी, ‘‘अम्मां से कार्य करवाना मुझे अच्छा नहीं लगता. उन की यहां रहने की इच्छा भी नहीं है. उन्हें जाने दीजिए. यहां जैसा होगा, देखा जाएगा.’’

‘‘परिवार से संबंध बनाना तुम जानती ही नहीं हो,’’ प्रभात ने उपेक्षा से कहा था.

प्रभात के जाते ही अम्मां मुक्त हो गई थीं. वह कभी मंदिर निकल जातीं, कभी अड़ोसपड़ोस में जा बैठतीं. सीमा को यह सब अच्छा ही लगता. उन की उपस्थिति में जाने क्यों उस का दम घुटता था.

उस दिन अम्मां सामने के घर में बैठी बतिया रही थीं. सीमा ने टंकी में से आधी बालटी पानी निकाला और उठाने ही जा रही थी कि देखा, अम्मां सामने खड़ी हैं. उसे याद आया अम्मां पीछे वाली पड़ोसिन से कह रही थीं, ‘‘प्रभात पेट में था, तब छोटी ननद की शादी पड़ी. हमें बड़ेबड़े बरतन उठाने पड़े,  पर कहीं कुछ नहीं हुआ. हमारी बहू तो 2-2 लोटा पानी ले कर बालटी भरती है, तब नहाती?है.’’

सीमा ने झेंप कर बालटी भरी और उठा कर स्नानघर तक पहुंची ही थी कि दर्द के कारण बैठ जाना पड़ा. जिस का भय था, वही हो गया. डाक्टर निरुपाय थे. गर्भपात कराना जरूरी हो गया.

अम्मां रोरो कर सब से कह रही थीं, ‘‘हम इतना काम करते थे तो भला क्या इन्हें बालटी भर पानी नहीं दे सकते थे. हमारे रहने का क्या फायदा हुआ?’’

उसी दिन शाम को प्रभात घर लौटे. अस्पताल पहुंचे तो डाक्टर गर्भपात कर के बाहर निकल रही थीं. उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘बच्चा निकालना जरूरी हो गया था. लड़का था.’’

प्रभात हतबुद्धि से डाक्टर को देखते रह गए. फिर अचकचा कर पूछा, ‘‘सीमा कैसी है?’’

शादी के लिए हां करने से पहले पार्टनर से पूछें ये 6 सवाल, तीसरा है सबसे जरूरी

शादी यह शब्द सुनते ही किसी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है तो किसी के चेहरे पर टेंशन. कई लोगों के साथ ये दोनों चीजें होती हैं. मतलब वे कभी खुश होते हैं तो कभी चिंता में पड़ जाते हैं. एक तरफ नए रिश्ते की एक्साइटमेंट होती है तो दूसरी तरफ जिम्मेदारियों का एहसास. कहते हैं ना शादी का लड्डू, जो खाए वो पछताए जो ना खाएं वो भी पछताए.  भई, जब पछताना ही है तो क्यों ना खाकर ही पछताया जाए. तो अब जब आपने शादी करने का मन बना ही लिया है तो कुछ सवालों के जवाब जानना आपके लिए बेहद जरूरी है. चाहें आप लव मैरिज कर रही हों या फिर अरेंज.

शादी के बाद आप रोज कुछ ना कुछ अपने पार्टनर के बारे में नई बातें जान सकती हैं, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो शादी से पहले ही आप दोनों को जानना जरूरी है. इनके जवाब जानने के बाद आपको यह पता चल जाता है कि आप उनसे शादी कर सकती हैं या नहीं. साथ ही इस बात का एहसास हो जाता है कि आप दोनों के लिए आने वाली लाइफ कैसी हो सकती है.

1. घर के काम की जिम्मेदारी

अब वो समय नहीं रहा कि किसी एक पर काम का पूरा बोझ दे दिया जाय. शादी के बाद ज्यादातर लड़ाई इसी बात की होती है कि झाड़ू, पोछा, बरतन, कपड़े धोने और खाना बनाने का काम कौन करेगा. अगर होने वाला लाइफ पार्टनर आपसे यह कहता है कि वह तो पानी भी नहीं उबाल सकता, घर के काम करना तो दूर की बात है. फिर आप सोच लीजिए. अगर आप मैनेज कर सकती हैं तो इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन अगर आपको लगता है कि घर के कामों में उन्हें भी मदद करना चाहिए तो यह बात उनको बता दें. अगर वह यह जवाब जेते हैं कि वह इसके लिए तैयार हैं तब तो रिश्ते को आगे ले जाइए, लेकिन अगर वह यह जताते हैं कि घर के काम की जिम्मेदारी सिर्फ औरत की है तो ऐसे रिश्ते में संभल जाना ही बेहतर है.

2. शादी के बाद का करियर

अपने करियर के बारे में अपने होने वाले लाइफपार्टनर से पहले ही बता दें. जैसे आप करियर को लेकर काफी सीरियस और प्रोफेशलन हैं. इसके लिए आप काफी मेहनत भी कर रही हैं और शादी के बाद भी बाहर जाकर काम करना चाहती हैं. वहीं अगर शादी के बाद आप काम नहीं करना चाहतीं तो भी उनसे साफ-साफ बता दें. साथ ही उनसे भी पूछें कि आगे चलकर उनके करियर प्लानिंग क्या हैं. अगर वो ट्रांसफर लेना चाहते हैं तो क्या आपके लिए यह पौसिबल है, यह शादी से पहले की क्लीयर कर लेना चाहिए.

3. कर्ज तो नहीं

शादी के कई साल बाद अगर पता चलता है कि एक ने लाखों का कर्ज लिया है तो बसी बसाई गृहस्थी भी खराब हो जाती है. इसलिए उनसे पहले ही पूछ लें कि क्या कोई उधार या क्रेडिट कार्ड का बड़ा बकाया बिल तो नहीं है. उनके जवाब के बाद सोच समझकर अगला कदम बढ़ाएं, क्योंकि आर्थिक वजह से भी बड़े-बड़े झगड़े होते हैं.

4. बच्चों के बारे में

अभी के दौर में बहुत सारे कपल ऐसे हैं जो बच्चे पैदा नहीं करना चाहते. वो एडॉप्शन या IVF को बेहतर मानते हैं. इसलिए शादी के पहले ही एक-दूसरे का विचार जानना जरूरी है. क्या पता आप बच्चा चाहती हों और वो नहीं या यह भी हो सकता है कि वो बच्चा चाहते हों लेकिन आप नहीं. इसलिए इसपर खुलकर बात कर लें.

5. धार्मिक, राजनैतिक विचार और रिस्पेक्ट

आप दोनों एक दूसरे से अपने धार्मिक और राजनैतिक विचार शेयर करें. आजकल हर किसी की अपनी राजनैतिक विचारधारा और धार्मिक नजरिया होता है. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो धार्मिक या नास्तिक होते हुए भी किसी और पर अपनी सोच नहीं थोपते और कुछ ऐसे भी होते हैं जो दूसरे पर बहुत ज्यादा हावी हो जाते हैं. तो आप उनके सामने अपनी बात रखिए हो सकता है कि आप दोनों की सोच एक हो और अगर एक ना भी हो तो भी उनसे पूछिए कि फ्यूचर में आप दोनों एक दूसरे की विचारधाराओं का सम्मान कर पाएंगे या नहीं. क्या एक दूसरे को इसकी आजादी दे पाएंगे. कहीं यह आपके बीच दूरी की वजह तो नहीं बनेगी.

6. हैल्थ प्रौब्लम

वैसे तो होने वाले पार्टनर से शादी से पहले कोई ऐसी बात नहीं छिपानी चाहिए जिससे आगे चलकर आप दोनों के रिश्ते में दरार पड़े, लेकिन आज के दौर में एक अहम सवाल का जवाब जानना बेहद जरूरी हो गया है वह है हैल्थ प्रोब्लम. जरूरी नहीं है कि बीमारी बड़ी हो. आप दोनों को अपनी स्वास्थ्य समस्याओं पर बात कर लेनी चाहिए भले ही वह छोटी बीमारी क्यों ना हो. आप दोनों अगर मैनेज कर सकते हैं तो रिश्ते में आगे बढ़ने में कोई बुराई नहीं है.

प्रतिक्रिया: असीम ने कौनसा पूछा था सवाल

उस बेढंगे से आदमी का चेहरा मुझे आज भी याद है. वह शायद मेरे भाषण की समाप्ति की प्रतीक्षा ही कर रहा था. वक्ताओं की सूची में उस का कहीं नाम न था, किंतु मेरे तुरंत बाद उस ने बिना संयोजक की अनुमति के ही माइक संभाल लिया और धाराप्रवाह बोलना शुरू कर दिया.

वह बहुत उम्दा बोल रहा था और श्रोता उस के भाषण से प्रभावित भी लग रहे थे. एकाएक ही उस ने कड़ा रुख अपना लिया. वह कह रहा था, ‘‘मेरी बात कान खोल कर सुन लो. जब तक देश में ये राक्षस मौजूद हैं, हिंदी यहां कभी फलफूल नहीं सकती. ये लोग अपने को हिंदी के सेवक और प्रचारक बताते हैं. लंबेलंबे भाषण देते हैं. दूसरों को उपदेश देते हैं और स्वयं…मैं इन लोगों से पूछना चाहूंगा कि इन में से ऐसे कितने हिंदीसेवी हैं, जिन के बच्चे अंगरेजी स्कूलों में नहीं पढ़ते.’’

उस का संकेत व्यक्तिगत रूप से मेरी ओर नहीं था. मुझे तो इस से पूर्व वह कभी मिला भी नहीं था. मगर तब लगा यही था कि उस ने यह तमाचा मेरे ही गाल पर जड़ा है.

मैं कई दिनों तक उधेड़बुन में रहा. फिर मैं ने अपना निर्णय घर में और मित्रों के बीच सुना दिया था. यह बात नहीं कि मुझे तब किसी ने टोका या समझाया नहीं था. सभी ने एक ही बात कही थी, ‘‘आप गलती कर रहे हैं. इस तरह भावुकता में आ कर बच्चे का भविष्य तबाह करना कहां की अक्लमंदी है?’’

किंतु मैं तो भावनाओं की बाढ़ में बह ही चुका था. असीम के स्कूल जा कर मैं ने उस का तबादला प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिया. हिंदी माध्यम स्कूल में उसे आसानी से प्रवेश मिल गया. स्कूल बदलते हुए उस ने मामूली सी आपत्ति उठाई थी. वह शायद थोड़ा सा रोया भी था, किंतु मेरे आदर्शवादी भाषण और पुचकार के आगे उस ने शीघ्र ही घुटने टेक दिए और एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह वह कंधे पर बस्ता लटका कर नए स्कूल जाने लगा.

मैं उसे बाद में भी समझाता रहा कि यह नया स्कूल मामूली नहीं है. यह सरकारी स्कूल है जहां अंगरेजी स्कूलों के अनुपात में अध्यापकों को तीनगुना वेतन मिलता है. सभी अध्यापक योग्य और प्रशिक्षित हैं. इन्हीं स्कूलों में पढ़े हुए कितने ही विद्यार्थी बाद में ऊंचे पदों पर पहुंचे हैं. तुम भी मन लगा कर मेहनत करो और बड़े आदमी बनो.

किंतु असीम बुझाबुझा सा रहने लगा था. अब वह स्कूल जाते समय न स्कूल की वरदी की परवा करता और न पहले की तरह जूते चमकाता. पहले साल वह काफी अच्छे अंक ले कर पास हुआ. किंतु अगले वर्ष न जाने क्या हुआ, वह मध्य स्तर के विद्यार्थियों में गिना जाने लगा. स्कूल में उस का कोई मित्र न था. अब वह किसी खेल या नाटक आदि में भी भाग न लेता. मैं कुछ समझाता तो वह चुपचाप बैठा जमीन की ओर देखता रहता. एक दिन सोचा कि स्कूल जा कर पता किया जाए. किंतु स्कूल की दशा देख कर दिल धक से रह गया. अनुशासन नाम की वहां कोई चीज ही न थी. अध्यापक गप्पें हांकने या अखबार पढ़ने में व्यस्त थे. अध्यापिकाएं स्वेटर बुन रही थीं और आपस में दुखसुख की बातें कर रही थीं. बच्चे शोर मचा रहे थे, मारपीट कर रहे थे या डेस्कों पर तबला बजाते हुए फिल्मी गाने गा रहे थे. असीम कक्षा में एक कोने में गुमसुम बैठा था. वह न पढ़लिख रहा था और न अन्य बच्चों की किसी गतिविधि में ही शामिल था.

मैं प्रिंसिपल साहब के कमरे में गया. चाहा कि उन से स्कूल की दशा के बारे में बातचीत करूं, किंतु मेरे कुछ कहने से पूर्व ही वह अखबार को एक ओर पटक कर मुझ पर झपट पड़े और बोले, ‘‘मैं पत्र लिख कर आप को बुलाने ही वाला था. आप अपने लड़के की बिलकुल परवा नहीं कर रहे हैं. मेरे स्कूल में तो ऐसा नहीं चलेगा. बहुत मुश्किल होगा इस तरह तो. घर पर इस का मार्गदर्शन कीजिए या पढ़ाने के लिए घर पर किसी अध्यापक की व्यवस्था कीजिए, वरना…’’

असीम को इस स्कूल से निकाल कर पुन: पहले वाले स्कूल में दाखिल कराना संभव नहीं था. वहां न तो उसे प्रवेश मिल सकता था और न वह अब इस योग्य ही रह गया था कि वहां के स्तर पर अपने को चला सके. मैं ने इस विषय में उस के लिए ट्यूशन का प्रबंध कर दिया. किंतु उस का तो अब सभी विषयों में बुरा हाल था.

उस ने मरखप कर हाईस्कूल पास कर लिया. इंटर में भी उस के कुछ अच्छे अंक नहीं रहे. उसी तरह उस ने बी.ए. में रेंगना शुरू कर दिया. मैं ने उस से पूछा कि यदि वह पढ़ना नहीं चाहता तो कोई हाथ का काम सीखने की कोशिश करे. मगर उस ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया.

वैसे भी वह अब मुझ से कम ही बात करता था. उस का शरीर सूख सा गया था. दाढ़ी बढ़ा ली थी. हर रोज वह कंधे पर थैला लटका कर न जाने किधर चल देता और कभीकभी शाम को भी लौट कर घर न आता.

उस के पुराने साथी कामधंधे पर लग गए थे. उन में से कुछ अफसर भी चुन लिए गए थे, किंतु असीम कितनी ही प्रतियोगिताओं में भाग लेने के बावजूद किसी साधारण पद के लिए भी नहीं चुना गया था.

एक दिन वह सुबह का नाश्ता ले कर और हर रोज की तरह कंधे पर थैला लटका कर घर से निकलने ही लगा था कि मैं ने रोक कर पूछा, ‘‘ऐसा कब तक चलेगा?’’

वह चुपचाप मेरी ओर देखता रहा, तो मैं ने पूछा, ‘‘तुम क्या समझते हो, यह सब ठीक कर रहे हो?’’ इस बार उस ने नजर उठा कर मेरी ओर देखा और सधे हुए लहजे में बोला, ‘‘आप ने जो मेरे साथ किया, क्या वह ठीक था?’’

‘‘मैं ने क्या किया?’’

‘‘अपने खोखले आदर्शों की बलिवेदी पर मुझे चढ़ा दिया, यह अच्छा किया आप ने?’’

मैं उसे कोई उत्तर न दे सका. यह भी नहीं समझा सका कि ये आदर्श खोखले नहीं हैं. खोखली है यह व्यवस्था जिस की चक्की के पाट कमजोर नहीं हैं और इन पाटों के बीच कुछ लोग नहीं, युग भी पिस कर रह जाते हैं.

जब वह चला गया तो मैं ने गौर किया कि मेरे अपने बेटे का चेहरा उस दिन मंच पर भाषण देने वाले बेढंगे से आदमी के चेहरे से कितना मेल खाने लगा है.

डिनर में बनाएं स्मोकी कॉर्न रायता और लौकी स्टफ्ड परांठा

मौसम चाहे कोई भी हो हमें हर दिन तीन टाइम का भोजन तो बनाना ही होता है. सर्दियों की अपेक्षा गर्मियों के दिनों में हमें ऐसे भोजन की आवश्यकता होती है जो हल्का और सुपाच्य तो हो ही साथ ही जल्दी बनने वाला भी हो ताकि अधिक समय तक गर्मी में न रहना पड़े. आज हम आपको ऐसी ही 2 रेसिपी बनाना बता रहे हैं जो सुपाच्य और पौष्टिक तो हैं ही साथ ही इन्हें बहुत आसानी से डिनर, लंच या नाश्ते में बड़ी आसानी से घर में उपलब्ध सामग्री से ही बनाया जा सकता है. तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-स्मोकी कॉर्न रायता
कितने लोगों के लिए              4
बनने में लगने वाला समय       20 मिनट
मील टाइप                            वेज
सामग्री (रायते के लिए)
फ्रोजन या ताजा भुट्टा                         1
ताजा दही                                250 ग्राम
काला नमक                            स्वादानुसार
भुना जीरा पाउडर                    1/4 टीस्पून
बारीक कटी हरी मिर्च                 2
बारीक कटा हरा धनिया                1 टीस्पून
सामग्री (तड़के के लिए)
सरसों का तेल                          1/2 टीस्पून
राई के दाने                             1/4 टीस्पून
साबुत लाल मिर्च(छोटे टुकड़ों में कटी) 1
कश्मीरी लाल मिर्च                   1/4 टीस्पून
विधि

भुट्टे को साफ पानी से धोकर गैस पर एकदम धीमी आंच पर उलटते पलटते हुए भूनें. ठंडा होने पर चाकू से काटकर इसके दाने अलग कर लें. दही को अच्छी तरह फेंटकर सभी मसाले, हरा धनिया और हरी मिर्च मिलाएं. एक तड़का पैन में सरसों का तेल गरम करके तड़के की समस्त सामग्री डालें और तैयार रायते में तड़का लगाएं. अब इसे फ्रिज में ठंडा होने रख दें.
-स्टफ्ड लौकी परांठा
कितने लोगों के लिए                4
बनने में लगने वाला समय         20 मिनट
मील टाइप                            वेज
सामग्री (परांठे के लिए)
गेहूं का आटा                        2 कप
नमक                                   1/4 टीस्पून
अजवाइन                             1/4 टीस्पून
तेल                                       1 टीस्पून
घी या तेल                          परांठा बनाने के लिए
सामग्री (स्टफिंग के लिए)
लौकी                                1 किलो
बारीक कटी हरी मिर्च             2
बारीक कटा प्याज                   1
बारीक कटा हरा धनिया           1 लच्छी
नमक                                 स्वादानुसार
अमचूर पाउडर                      1/4 टीस्पून
लाल मिर्च पाउडर                   1/4 टीस्पून
गर्म मसाला                           1/4 टीस्पून
बारीक बेसन भुजिया              1 टेबलस्पून
विधि

आटे में समस्त सामग्री को मिलाकर गुनगुने पानी से नरम गूंथकर एक सूती कपड़े से ढककर 20 मिनट के लिए रख दें. लौकी को किसकर मलमल के कपड़े में बांधकर हाथों से दबाते हुए इसका पानी निकाल दें. अब लौकी को एक प्लेट में डालकर सभी मसाले, कटा प्याज, हरा धनिया, हरी मिर्च और सेव अच्छी तरह मिला दें. अब तैयार आटे से एक लोई लेकर हथेली पर फैलाएं और इसमें एक बड़ा चम्मच स्टफिंग भरकर चारों तरफ से अच्छी तरह बंद कर दें. इसे चकले पर हल्के हाथ से बेलकर चिकनाई लगे तवे पर घी लगाकर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंकें. गर्मागर्म परांठे को ठंडे ठंडे रायते के साथ सर्व करें.

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