Winter Special: आप भी बनना चाहती हैं किचन क्वीन, तो ट्राई करें ये टिप्स

ज्यादातर महिलाएं खाना तो अच्छा बनाती हैं पर उन छोटीछोटी बातों पर ध्यान नहीं देतीं, जिन की वजह से भोजन का स्वाद तो कम होता ही है, कभीकभी उस के पोषक तत्त्व भी नष्ट हो जाते हैं. अब देखिए न, शीलाजी ने फल तो बड़े अच्छे तरीके से एक ही आकार में काटे पर जल्दबाजी में प्याज वाला चाकू और कटिंग बोर्ड इस्तेमाल कर लिया. नतीजा यह हुआ कि फलों से आती प्याज की गंध ने उन का सारा स्वाद किरकिरा कर दिया.

इसी तरह अगर अंडे फेंटे हुए कप को यदि ठीक से न धो कर उस में चाय दे दी जाए तो अंडे न खाने वाले को अच्छी चाय में भी स्वाद नहीं आएगा. अकसर खाना बनाते समय गृहिणियां कई ऐसी छोटीछोटी गलतियां कर देती हैं जिन की वजह से अच्छा खाना तो बेस्वाद होता ही है, गृहिणी की मेहनत, समय और पैसा भी बेकार हो जाते हैं.

तो आइए, जानें किचन में होने वाली गलतियां और उन के समाधान:

गलती नं. 1 : माइक्रोवेव में खाना गरम करने या पकाने के तुरंत बाद माइक्रोवेव डोर ओपन कर के सामग्री बाहर निकालना.

समाधान : खाना गरम करने या पकने के तुरंत बाद माइक्रोवेव डोर न खोलें, क्योंकि बाहर और अंदर के तापमान में अंतर होने की वजह से माइक्रोवेव सेफ कंटेनर टूट सकता है. इस के अलावा माइक्रोवेव बंद होने के कुछ सैकंड्स बाद तक विद्युत तरंगें खाने पर अपनी गरमी छोड़ती हैं. ऐसे में माइक्रोवेव के स्विचऔफ होने के 20-30 सैकंड्स बाद ही कंटेनर बाहर निकालें.

गलती नं. 2 : माइक्रोवेव में खाना बनाने अथवा गरम करने के लिए प्लास्टिक कंटेनर्स का प्रयोग करना.

समाधान : खाना गरम करने या पकाने का सब से फास्ट तरीका माइक्रोवेव ही है. पर प्लास्टिक के बरतनों में खाना गरम करने से प्लास्टिक के बरतनों में मौजूद ऐसे तत्त्व जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं, वे भोजन में मिल जाते हैं. नतीजा यह होता है कि जब हम भोजन करते हैं तो वे हमारे पेट में चले जाते हैं. इस से कैंसर होने की संभावना रहती है. अत: प्लास्टिक के बरतनों का प्रयोग न करें. अच्छी क्वालिटी व माइक्रोवेवपू्रफ कांच के कंटेनर्स का ही प्रयोग करें.

गलती नं. 3 : बचे चावल, सब्जी, दाल आदि को गरम करने से उस की नमी सूख जाती है.

समाधान : चावल, सब्जी, दाल आदि कुछ भी गरम करें तो उस के ऊपर थोड़ा पानी छिड़क दें ताकि भोज्यपदार्थों की नमी बरकरार रहे.

गलती नं. 4 : फ्रिज से खाना निकाल कर तुरंत गरम करना.

समाधान : फ्रिज से भोज्यपदार्थों को गरमी के मौसम में लगभग आधा घंटा पहले और सर्दी के मौसम में 1 घंटा पहले निकाल लें. सामान्य तापमान पर आ जाने पर ही खाना गरम करें. दूसरी प्रमुख बात यह कि खाना चाहे गैस पर गरम करें या माइक्रोवेव में उतना ही गरम करने के लिए निकालें जितनी जरूरत हो. ज्यादातर महिलाएं फ्रिज से सब्जी आदि निकालने के बाद पूरी गरम कर लेती हैं और जब वह बच जाती है तो फिर फ्रिज में रख देती हैं. ऐसे में खाने का स्वाद तो कम होता ही है, साथ ही उस के पोषक तत्त्व भी नष्ट हो जाते हैं.

गलती नं. 5 : तलने के बाद बचे तेल का पुन: प्रयोग करना.

समाधान : अकसर महिलाएं तलने के बाद बचे तेल को रख लेती हैं और पुन: कोई चीज तलने अथवा सब्जी बनाने के लिए प्रयोग करती हैं. ऐसा करना सेहत के नजरिए से बिलकुल सही नहीं है, क्योंकि पुन: तेल को गरम करने से उस का ट्रांस फैट बढ़ता है और अधिक मात्रा में इस के सेवन से हाई ब्लडप्रैशर, मोटापा और दिल की बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है. अत: तेल का उतना ही इस्तेमाल करें जितनी जरूरत हो. यदि फिर भी तेल बच जाए तो उस से उसी समय चिड़वा, नमकपारे, मूंगफली आदि चीजें तल लें.

गलती नं. 6 : स्वाद बढ़ाने के लिए ज्यादा सीजनिंग का प्रयोग करना.

समाधान : महिलाएं सोचती हैं कि सीजनिंग के लिए नमक, कालीमिर्च ज्यादा डालेंगी तो अच्छा रहेगा पर ध्यान रहे कि नमक के ज्यादा सेवन से उच्च रक्तचाप हो सकता है. सीजनिंग के लिए अदरकलहसुन, ताजा हर्ब्स जैसे पुदीनापत्ती, करीपत्ता, बेसिल, धनियापत्ती, अजवाइनपत्ती आदि का प्रयोग करें. इस से भोजन का स्वाद बढ़ेगा और सेहत ठीक रहेगी.

गलती नं. 7 : खाना पकाते समय सही तापमान का सही प्रयोग न करना.

समाधान : जल्दबाजी में या समय बचाने के लिए महिलाएं तेज आंच पर खाना बनाती हैं. ऐसे में भोजन बाहर से तो पक जाता है पर अंदर से कच्चा ही रहता है. इसी तरह तेज आंच पर मसाला भूनने पर उस की खुशबू और स्वाद दोनों ही नष्ट हो जाते हैं. अत: सही तापमान का प्रयोग करें. इस के अलावा खाना ढक कर पकाएं. इस से खाना जल्दी भी पकता है और उस के पोषक तत्त्व भी बने रहते हैं.

गलती नं. 8 : सब्जियों को उबालने के बाद पानी फेंक देना.

समाधान : जिन सब्जियों को उबालना या ब्लांच करना जरूरी हो उन के पानी को फेंकें नहीं. अंकुरित को उबालना हो तो उस के पानी को व चावल के मांड को भी फेंकें नहीं. इन सब के पानी में ‘बी कौंप्लैक्स विटामिंस’ प्रचुर मात्रा में होते हैं. वैसे अच्छा तोयही है कि सब्जियों को भाप में पकाएं. पर यदि पानी में ही उबालनी हैं तो उस पानी को आटा गूंधने, तरी वाली सब्जी में, दाल में अथवा सूप की तरह पीने में प्रयोग लाएं.

गलती नं. 9 : सब्जियां ध्यान से न खरीदना और काटने के बाद सही तरह से पैक कर के न रखना.

समाधान : अकसर महिलाएं सब्जियां खरीदते समय इस बात का ध्यान नहीं करतीं कि सब्जी रंग वाली तो नहीं है. दूसरा अगर उन्हें काट कर 6-7 घंटों के लिए रखना है तो अच्छी तरह जिपपाउच में अथवा सील्ड डब्बे में ही रखें और सब्जियों को अच्छी तरह धोने के बाद कपड़े से पोंछ कर ही काटें.

गलती नं. 10 : पके भोज्यपदार्थों को रखने के लिए सही बरतनों का प्रयोग न करना.

समाधान : जो भी पकी सामग्री होती है उसे रखने के लिए सही आकार के बरतनों का प्रयोग बहुत जरूरी है. साथ ही फ्रिज में रखने से पहले खाद्यपदार्थ व दूध आदि को रूम टैंपरेचर पर आने के बाद ही रखें और ढक कर ही रखें.

गलती नं. 11 : सब्जियां और फल काटने के लिए एक ही चौपिंग बोर्ड का प्रयोग करना.

समाधान : सब्जियां, फल और यदि मांसाहारी हैं तो उस के लिए अलग चौपिंग बोर्ड रखें ताकि एक की महक दूसरे में न जाए और हाथों को अच्छी तरह धो कर ही इन्हें काटें.

2-3 सालों से दोनों घुटनों में बहुत दर्द रहता है?

सवाल-

मैं 48 वर्षीय घरेलू महिला हूं. 2-3 सालों से दोनों घुटनों में बहुत दर्द रहता है. इस से मु झे रोजमर्रा के काम करने में भी दिक्कत हो रही है. मैं आंशिक घुटना प्रत्यारोपण के बारे में जानना चाहती हूं?

जवाब-

उपचार इस पर निर्भर करता है कि आप के घुटनों के दर्द का कारण क्या है और समस्या किस स्तर पर है. अगर पूरा घुटना खराब नहीं है तो आंशिक घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि इस में पूरे घुटने को नहीं केवल क्षतिग्रस्त भाग को बदला जाता है. संपूर्ण घुटना प्रत्यारोपण के विपरीत इस में घुटने का जोड़ 70% सुरक्षित रहता है. इस में मरीज रिकवर भी जल्दी होता है और सर्जरी के बाद उसी या अगले दिन घर जा सकता है. अधिकतर मरीजों को पूरे घुटने के प्रत्यारोपण की जरूरत नहीं होती है. उन के लिए पार्शियल नी रिप्लेसमैंट आसान और बेहतर रहता है.

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एक दशक पहले तक हैजा, टीबी और गर्भाशय का कैंसर महिलाओं को होने वाली सेहत से जुड़ी मुख्य समस्याएं थीं. इन दिनों नई बीमारियां, जैसे कार्डियो वैस्क्यूलर डिजीज, डायबिटीज और आस्टियोआर्थराइटिस जैसे रोग 30 वर्ष से अधिक आयुवर्ग की युवा महिलाओं में फैले हुए हैं.

आर्थराइटिस फाउंडेशन की ओर से हाल ही में हुए अध्ययन के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि 2013 तक देश में लगभग 3.6 करोड़ लोग आस्टियोआर्थराइटिस रोग से प्रभावित हो जाएंगे. कम आमदनी वाले वर्ग की 30-60 वर्ष की भारतीय महिलाओं के बीच हुए एक अध्ययन में अस्थि संरचना के सभी महत्त्वपूर्ण जगहों पर बीएमडी (अस्थि सघनता) विकसित देशों में दर्ज किए गए आंकड़ों से काफी कम थी, जिस के साथ अपर्याप्त पोषण से होने वाले आस्टियोपेनिया (52%) और आस्टियोपोरोसिस (29%) की मौजूदगी ज्यादा थी. अनुमान है कि 50 वर्ष से अधिक की 3 में से 1 महिला को आस्टियोपोरोटिक फ्रैक्चर का अनुभव होगा.

इन दिनों कम शारीरिक सक्रियता वाली जीवनशैली की वजह से दबाव संबंधी कारक और मोटापा जोखिम पैदा करने वाले कुछ ऐसे कारक हैं जिन का संबंध आस्टियोआर्थराइटिस जैसी समस्याओं से माना जाता है. इसलिए, यदि कोई स्वस्थ जीवन जीना चाहता है तो जरूरी है कि वह अपनी हड्डियों की देखभाल पर विशेष ध्यान दे. आस्टियोआर्थराइटिस की रोकथाम और काम व जीवन के बीच स्वस्थ संतुलन कायम करने के लिए यहां ऐसे टिप्स बताए जा रहे हैं, जिन पर महिलाओं को ध्यान देना चाहिए.

दाग: भाग 3- माही ने 2 बच्चों के पिता के साथ अफेयर के क्यों किया?

 

बड़े बेटे ने देखा कि पापा और मैडम बातें कर रहे हैं, तो वह फुर्र से बाहर भाग गया.

‘‘अरे…रे…रे… अमृत…’’

माही कप रख हड़बड़ी में उसे पकड़ने के लिए दौड़ी कि अचानक उस का पैर फिसल गया.

वह गिरती उस से पहले ही चंदन ने उसे थाम लिया, ‘‘क्या मुहतरमा, मेरे ही घर में अपने हाथपैर तुड़वाने के इरादे हैं?’’ कह उस ने उसे पलंग पर बैठाया.

जब चंदन ने माही को थामा तो उस के दिल की धड़कनें जोरजोर से चलने लगी थीं. वह मुंह पर हाथ रख अपनेआप को नौर्मल करती हुई उस से नजरें नहीं मिला पा रही थी. उस के पैर की अनामिका उंगली में थोड़ी चोट लग गई थी, जिसे वह सहलाने लगी थी.

‘‘उंगली दर्द कर रही है क्या?’’ चंदन ने पूछा.

‘‘हां.’’

‘‘लाओ ठीक कर दूं,’’ चंदन ने उंगली पकड़ कर एक झटके में खींची. माही की हलकी चीख निकली और उंगली बजी.

‘‘लो ठीक हो गई. तुम्हारे चेहरे से ज्यादा खूबसूरत तुम्हारे पैर हैं. बिलकुल रुई की तरह नर्म और सफेद,’’ पंजे पर हाथ फेरते हुए चंदन ने कहा.

माही सिहर गई और कुछ बोल भी गई वह, ‘‘आप की भी तो छाती के ये कालेकाले घने बाल आसमान में छाए काले बादलों की तरह सलोने हैं.’’

जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि वह गलत बोल गई तो मारे शर्म के पानीपानी हो गई. बोली, ‘‘सौरीसौरी. मैं ने गलत… गलत…’’

चंदन के लिए यह तारीफ मौन प्रेम निवेदन के लिए काफी थी. उस ने उसे चूम लिया. आग के सामने घी कब तक जमा रहता? पिघल गई माही. दोनों जानसमझ रहे थे कि यह गलत है, मगर दोनों के दिल बेकाबू थे और…

जब प्रेम के बादल छंटे तो दोनों को अपनीअपनी गलती का एहसास हुआ. माही होस्टल चली आई. पर मन में डर बुरी तरह समा गया कि यह उस ने क्या कर दिया.

उस ने बच्चों को पढ़ाना छोड़ दिया. रीता जब मायके से आई तो पूछा. उस ने तबीयत खराब होने का बहाना बना दिया.

चंदन अपनेआप को अपराधी मानने लगा था और माही पश्चात्ताप की आग में जलने लगी थी. रातरात भर जगी रह कर अपनी गलती को याद कर आंसू बहाती. उस ने मम्मीपापा के विश्वास को तोड़ दिया. छोटी बहनों पर इस का क्या असर होगा? यह बात जानने पर उस की कितनी बदनामी होगी.

‘‘मामीजी, प्लीज यह बात मेरे मम्मीडैडी…’’ माही ने रोते हुए मेरे हाथ पकड़ लिए.

‘‘तुम मुझ पर विश्वास रखो. तुम्हारी यह बात मुझ तक ही सीमित रहेगी. इसे कोई दूसरा नहीं जान सकता. अभी कोई गड़बड़ वाली बात नहीं है न?’’ मैं आशंकित थी.

‘‘नहीं.’’

‘‘अब तुम इस बात को पूरी तरह से दिल से निकाल दो. हां, तुम ने बहुत बड़ी गलती की है, पर आगे से सचेत रहना नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. तुम जल्दी से अपने 2-4 कपड़े बैग में रख लो. मेरे घर चलो.’’

‘‘पर…’’

‘‘परवर कुछ नहीं. मैं वार्डन से तुम्हारी 4-5 दिन की छुट्टी ले कर आ रही हूं. कल तुम्हें ले कर एक जगह जाना भी है. आज देर हो गई है, इसलिए कल चलेंगे,’’ कह कर मैं नीचे चली आई.

वार्डन ने कोई आपत्ति नहीं की.

रास्ते में मैं ने माही से मना कर दिया कि वह कोई भी बात माधवी पल्लवी से नहीं कहेगी, क्योंकि तीनों बैस्ट फ्रैंड थीं. सारी बातें शेयर करती थीं. हम जैसे ही घर पहुंचे मेरे तीनों बच्चे माही को देख खुशी से उछल पड़े.

सब ने उस की तबीयत के बारे में पूछा. उस ने मेरी तरफ ताकते हुए पढ़ाई की टैंशन का बहाना बनाया.

लेकिन मेरे पति कुछ भांप गए थे. मैं ने झूठ को इतने सच की चाशनी में डाल कर उन के सामने परोसा कि उन्हें विश्वास करना ही पड़ा, ‘‘तुम ने माही को यहां ला कर बहुत अच्छा किया.’’

झूठ बोलने के लिए मैं ने मन ही मन पति से माफी मांगी. क्या करती माही की जिंदगी बचाने के लिए मैं एक क्या हजार झूठ बोलने के लिए तैयार थी.

फोन कर दीदी से उस की पढ़ाई का बोझ बता दिया. मेरा पूरा ध्यान उसी पर था. वह बच्चों से बातें करते हुए उदास हो जाती थी. उस की उदासी गई नहीं थी.

सत्यम उसे खींचते हुए अपने कमरे में ले गया ताकि वह उस के मैथ के सारे प्रश्नों को हल कर दे. उस से बातें करने में तीनों बच्चों को खाने की सुध नहीं थी. फिर वह माधवीपल्लवी के साथ सोने चली गई.

मेरा दिल बहुत भारी हो गया था. नींद की जगह मेरी आंखों में माही ही घूमती रही. उस के और चंदन के बारे में ही सोचती रही. आजकल क्या हो गया है हमारी इस युवा पीढ़ी को? कुछ सोचविचार नहीं और झट से…

कहीं न कहीं हम मांएं भी तो दोषी हैं, जो अपनी बेटियों के साथ खुल कर बात नहीं करतीं और समस्या खड़ी हो जाने पर समाधान ढूंढ़ती हैं.

 

मेरी भी तो 2 बेटियां हैं. उन से खुल कर उन के दोस्तों या दूसरे पुरुषों के बारे में पूछना ही पड़ेगा. शर्म और संकोच करूंगी तो शायद माही से भी बढ़ कर ये दोनों ज्यादा गलत कर बैठेंगी. पहले की अपेक्षा अब मुझे अपने बच्चों से बहुत गहरी दोस्ती रखनी पड़ेगी ताकि वे छोटी से छोटी बात भी मुझ से शेयर करें.

मुझे या दूसरों को माही पर हंसने की क्या जरूरत? यह कोई नहीं जानता कि भविष्य में किस पर कितना बड़ा दाग लगेगा?

सुबह तीनों बच्चे स्कूलकालेज जाने से मना करने लगे कि वे दिन भर माही के साथ मस्ती करेंगे. मगर मैं ने उन्हें समझाबुझा कर भेज दिया.

सब के जाने के बाद मैं ने माही से कहा, ‘‘बेटा, जल्दी से तैयार हो जा. हमें लेडी डाक्टर के पास चलना है.’’

‘‘लेडी डाक्टर… क्यों मामीजी…?’’ लगा कि उसे चक्कर आ जाएगा.

‘‘मैं ने कल तुम से कहीं चलने के लिए कहा था न? मैं तुम्हारी हंसतीखेलती जिंदगी को ले कर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती.’’

लेडी डाक्टर ने उस की पूरी जांच कर कहा, ‘‘सविताजी, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अकसर युवावस्था में माहवारी अनियमित हो जाती है. मैं दवा लिख देती हूं… सब ठीक हो जाएगा. आप की भानजी कुछ कमजोर भी है. थोड़ा इस के खानेपीने पर ध्यान दीजिए.’’

खुशी के मारे मैं ने उन्हें बारबार धन्यवाद कहा. मेरे मन की सारी कुशंका दूर हो गई थी, इसलिए मैं बहुत खुश थी.

रास्ते में मैं ने माही के पसंद के पर्स और जूते खरीदे. उसे होटल में खाना खिलाया. उस की मनपसंद चौकलेट, आइसक्रीम खिलाई. मैं उस बुरी घटना से उस का पीछा छुड़ाने का प्रयास कर रही थी. वह भी अब खुश लग रही थी. खूब सारी शौपिंग कर हम घर पहुंचे.

अचानक माही मेरे गले से झूल गई, ‘‘थैंक्स मामीजी, आप से कल से बात करने से ले कर अब तक मैं बहुत हलकी लग रही हूं.

‘‘सच अगर आप मुझ से डांटडपट कर बात पूछतीं तो मैं अपने दिल की गहरी बात आप से कभी नहीं बताती. मन ही मन घुटती रहती और पता नहीं खुद को कितना नुकसान पहुंचाती.

‘‘आप ने बहुत अच्छे से मुझे संभाल लिया. आज मैं तनावमुक्त महसूस कर रही हूं.

‘‘मगर कभीकभी मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा है या यों कहिए अभी भी मैं अपनेआप को बहुत बड़ा गुनहगार मान रही हूं…’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो आईं.

‘‘बेटा, तू ने गलती तो बहुत बड़ी की है, जो माफी के भी काबिल नहीं है, फिर भी तुम्हें उस गलती का एहसास है, पश्चात्ताप हो रहा है, यह बहुत बड़ी बात है.

‘‘हां, एक बात और. ठीक है, तुम्हारी नादानी से संबंध बन गया, मगर उसी बात को ले कर हरदम दुख के सागर में डूबे रहना उदासपरेशान रहना, यह गलत है. भविष्य में ऐसी गलती न हो, बस इतना ध्यान रखना.

‘‘संबंधों का जुड़ाव तन से न हो कर मन से होता है. पतिपत्नी का रिश्ता हो या प्रेमीप्रेमिका का उन का पहला रिश्ता मन की गहराई से होता है, भावनात्मक रूप से होता है.

‘‘तुम्हारा चंदन के साथ ऐसा कोई भी रिश्ता नहीं था, तो फिर उसी बात पर झींकते रहने से क्या फायदा?

‘‘बस, तुम जल्दी से इस मानसिक व्यथा से निकलो और पूरे तनमन से पढ़ाई में जुट जाओ. मुझे इतना तो विश्वास है कि अब आगे तुम से ऐसी गलती नहीं होगी,’’ कह मैं ने उस के गाल थपथपाए.

‘‘एक बार फिर आप को थैंक्स, मामीजी. मुझे इस भंवरजाल से बाहर निकालने के लिए,’’ कहते हुए वह मुझ से लिपट गई.

तभी उस का मोबाइल बजा.

‘‘हाय ममा, मेरी बीमारी तो मामीजी ने चुटकी बजाते ठीक कर दी…’’ प्यार से मेरी तरफ ताकते हुए माही की खनकदार हंसी पूरे घर में गूंज गई.

धंधा अपनाअपना: भाग 1- स्वामीजी के साथ क्या हुआ था

‘‘भक्तजनो,यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेडि़यां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन तुम इन बेडि़यों को तोड़ दोगे उस दिन तुम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाओगे,’’ स्वामी दिव्यानंद की ओजस्वी वाणी गूंज रही थी.

महानगर के सब से वातानुकूलित हाल में एक ऊंचे मंच पर स्वामीजी विराजमान थे. गेरुए रंग के रेशमी वस्त्र, गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर चंदन का तिलक और उंगलियों में जगमगा रही पुखराज की अंगूठियां उन के व्यक्तित्व को अनोखी गरिमा प्रदान कर रही थीं.

प्रचार करा गया था कि स्वामीजी को सिद्धि  प्राप्त है. जिस पर उन की कृपादृष्टि हो जाए उस के कष्ट दूर होते देर नहीं लगती. पूरे शहर में स्वामीजी के बड़ेबड़े पोस्टर लगे थे. दूरदूर के इलाकों से आए भक्तजन स्वामीजी की महिमा का बखान करते रहते. जन सैलाब उन के दर्शन करने के लिए उमड़ा पड़ा था.

सुबह, दोपहर, शाम स्वामीजी दिन में 3 बार भक्तों को दर्शन और प्रवचन देते थे. इस समय उन का अंतिम व्याख्यान चल रहा था. पूरा हाल रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी से जगमगा रहा था. मंच की सज्जा गुलाब के ताजे फूलों से की गई थी, जिन की खुशबू पूरे हाल में बिखरी थी.

स्वामीजी के चरणों में शीश झुका कर आशीर्वाद लेने वालों का तांता लगा था. आश्रम के स्वयंसेवक भी श्रद्धालुओं को अधिकाधिक चढ़ावा चढ़ा कर आशीर्वाद लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे.

रात 9 बजे स्वामीजी का प्रवचन समाप्त हुआ. उन्होंने हाथ उठा कर भक्तों को आशीर्वाद दिया तो उन के जयघोष से पूरा हाल गुंजायमान हो उठा. मंदमंद मुसकराते हुए स्वामीजी उठे और आशीर्वाद की वर्षा करते हुए मंच के पीछे चले गए. उन के जाने के बाद धीरेधीरे हाल खाली हो गया. स्वामीजी के विश्वासपात्र शिष्यों श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंदजी महाराज ने स्वयंसेवकों को भी बाहर निकालने के बाद हाल का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

‘‘चलो भाई, आज की मजदूरी बटोरी जाए’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने अपने गेरुए कुरते की बांहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘दिन भर इन बेवकूफों का स्वागतसत्कार करतेकरते यह नश्वर शरीर थक कर चूरचूर हो गया है. अब इसे तत्काल उत्तम किस्म के विश्राम की आवश्यकता है. इसलिए सारी गिनती शीघ्र पूरी कर ली जाए,’’ सत्यानंदजी महाराज ने अंगड़ाई लेते हुए सहमति जताई.

‘‘जो आज्ञा महाराज, श्रद्धानंदजी महाराज ने मुसकराते हुए मंच के सामने लगे फूलों के ढेर को फर्श पर बिखरा दिया. फूलों के साथ भक्तजनों ने दिल खोल कर दक्षिणा भी अर्पित की थी. दोनों तेजी से उसे बटोरने लगे, किंतु उन की आंखों से लग रहा था कि उन्हें किसी और चीज की तलाश है.

श्रद्धानंदजी महाराज ने फूलों के ढेर को एक बार फिर उलटापुलटा तो उन की आंखें चमक उठीं. वे खुशी से चिल्लाए, ‘‘वह देखो मिल गया.’’

सामने लाल रंग के रेशमी कपड़े में लिपटी कोई वस्तु पड़ी थी. सत्यानंदजी महाराज ने लपक कर उसे उठा लिया. शीघ्रता से उन्होंने उस वस्त्र को खोला तो उस के भीतर 1 लाख रुपए की नई गड्डी चमक रही थी.

‘‘महाराज, आज फिर वह 1 लाख की गड्डी चढ़ा गया है,’’ सत्यानंदजी गड्डी ले कर दिव्यानंदजी के कक्ष की ओर लपके. श्रद्धानंदजी महाराज भी उन के पीछेपीछे दौड़े.

स्वामी दिव्यानंद शानदार महाराजा बैड पर लेटे हुए थे. आवाज सुनते ही वे उठ बैठे. उन्होंने एक लाख की गड्डी को ले कर उलटपुलट कर देखा. उस के असली होने का विश्वास होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘कुछ पता चला कौन था वह?’’

‘‘स्वामीजी, हम ने बहुत कोशिश की, लेकिन पता ही नहीं चल पाया कि वह गड्डी कब और कौन चढ़ा गया,’’ सत्यानंद महाराज ने कहा.

‘‘तुम दोनों माल खाखा कर मुटा गए हो. एक आदमी 5 दिनों से रोज 1 लाख की गड्डी चढ़ा जाता है और तुम दोनों उस का पता नहीं लगा पा रहे हो,’’ स्वामीजी की आंखें लाल हो उठीं.

‘‘क्षमा करें महाराज, हम ने पूरी कोशिश की…’’

‘‘क्या खाक कोशिश की,’’ स्वामीजी उस की बात काटते हुए गरजे, ‘‘तुम दोनों से कुछ नहीं होगा. अब हमें ही कुछ करना होगा,’’ इतना कह कर उन्होंने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर मिलाते हुए बोले, ‘‘हैलो निर्मलजी, मैं जिस मंच पर बैठता हूं उस के ऊपर आज रात में ही सीसी टीवी कैमरा लग जाना चाहिए.’’

‘‘लेकिन स्वामीजी, आप ही ने तो वहां कैमरा लगाने से मना किया था. बाकी सभी जगहों पर कैमरे लगे हुए हैं और उन की चकाचक रिकौर्डिंग हो रही है,’’ निर्मलजी की आवाज आई.

‘‘वत्स, यह सृष्टि परिवर्तनशील है. यहां कुछ भी स्थाई नहीं होता है,’’ स्वामीजी हलका सा हंसे फिर बोले, ‘‘तुम तो जानते हो कि मेरे निर्णय समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं. इसी कारण सफलता सदैव मेरे कदम चूमती है. तुम तो बस इतना बतलाओ कि यह काम कितनी देर में पूरा हो जाएगा. काम तुम्हारा और पैसा हमारा.’’

‘‘सूर्योदय से पहले आप की आज्ञा का पालन हो जाएगा,’’ निर्मलजी ने आश्वासन दिया. फिर झिझकते हुए बोले, ‘‘स्वामीजी कुछ जरूरी काम आ पड़ा है. अगर कुछ पैसे मिल जाते तो कृपा होती.’’

‘‘1 पैसे का भी भरोसा नहीं करते हो मुझ पर,’’ स्वामीजी ने कहा और फिर श्रद्धानंद की ओर मुड़ते हुए बोले, ‘‘निर्मलजी को अभी पैसे पहुंचा दो वरना उन्हें कोई दूसरा जरूरी काम याद आ जाएगा.’’

‘‘जो आज्ञा महाराज,’’ कह श्रद्धानंदजी महाराज सिर नवा कर चले गए.

उधार का बच्चा: क्या खुद को संभाल पाई संध्या

उसदिन सुबह की पहली किरण एक नए सुनहरे इंद्रधनुष को ले कर आई. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि जिसे आज जिले के सर्वश्रेष्ठ होनहार बालक के सम्मान से नवाजा जा रहा है यह वही अर्पण है. मुझे याद आ रही थीं क्लास की बातें.

‘‘मैम, इस ने फिर मुझे मारा.’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया,’’ अर्पण के उत्तर में गुस्सा साफ झलक रहा था.

‘‘आप और बच्चों से पूछ लीजिए मैम और यह कागज का गोला देखिए, मेरी आंख पर लगा है.’’

‘‘नहीं, तुम झूठ बोल रहे हो,’’ अर्पण का फिर इनकार भरा स्वर गूंजा.

मैं इस क्लास की क्लास टीचर हूं. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि सच क्या है. मुझे रोज किसी न किसी मामले में बच्चों का जज बनना पड़ता था और अर्पण मेरे लिए एक पहेली बना हुआ था. मुझे कभीकभी अर्पण की कही बात ही सच लगती, तो बच्चों के इलजाम और गवाही सब उस के प्रतिकूल निर्णय देते नजर आते. आज भी यही हुआ था. मैं मनोविज्ञान की छात्रा रही हूं, लेकिन इस बालक के सामने हारने लगी थी. कक्षा में प्यार से समझाने से अर्पण चुप रहता पर बुद्धि इतनी तेज कि जो एक बार सुन लिया उसे पूछने पर तोते की तरह सुना देता. टिक कर बैठना शायद इस की डिक्शनरी में ही नहीं था. लेकिन कोई काम कहो तो शतप्रतिशत खरा उतरता और पूरा कर के ही दम लेता. पेपर मिलते ही 10 मिनट में उत्तर पुस्तिका दे देता, तो मैं हैरान रह जाती उस की स्पीड देख कर. जितना आता उसे कंप्यूटर प्रिंट की तरह फटाफट कागज पर उतार देता और बाकी समय पूरे स्कूल में घूमता रहता. इस के लिए नियम तो जैसे तोड़ने के लिए ही बने थे. किसी होस्टल से इसी साल यह इस विद्यालय में आया है. पिछले 2 साल इस ने होस्टल में ही काटे थे. मैं सोचती रहती हूं कि यह वहां कैसे रहा होगा? वहां के नियमों ने इसे ऐसा बना दिया या फिर अब खुली हवा में उड़ना सीख रहा है?

सब से चौंका देने वाला तथ्य तो तब सामने आया जब पता चला कि इस के मम्मीपापा दोनों वर्किंग हैं. तब लगा कि सुबह 9 से शाम 5 तक की नौकरी करने वाली मां इसे कैसे संभालती होगी? धीरेधीरे बातों ही बातों में अर्पण ने मुझे बताया कि उस की एक दीदी भी है, जो उस से 5 साल बड़ी है.

‘‘घर में सब से अच्छा कौन लगता है?’’ पूछने पर बोला, ‘‘पापा.’’

मैं ने पूछा, ‘‘क्यों?’’ तो उस का जवाब था, ‘‘क्योंकि वे मुझे खिलौने ला कर देते हैं.’’

‘‘और दीदी?’’ अजीब सा मुंह बना कर वह बोला, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. वह तो सारा दिन मुझे मारती रहती है और मम्मी से शिकायत करती रहती है.’’

अब बात बची थी मम्मी की. लेकिन मैं ने अब उस से कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा. सोचा किसी दिन उन्हीं से मिलूंगी. अगले दिन सुबहसुबह मेरी मेज पर एक डायरी रखी मिली, जिस के साथ प्रिंसिपल का एक नोट लगा था, ‘अर्पण की प्रत्येक गतिविधि और शरारत इस में नोट की जाए.’ अब तो बच्चों को एक अच्छा मौका मिल गया, डायरी भरवाने का. अब तो रोज लाल पेन गति पकड़ने लगा. समस्या समाधान की ओर जाने की बजाय और गहराने लगी. अर्पण की उद्दंडता भी बढ़ने लगी. एक दिन तो हद हो गई जब कक्षा की एक लड़की कनिष्का ने आ कर बताया कि अर्पण ने गर्ल्स वाशरूम में जा कर उस के दरवाजे को धक्का दिया. 8-9 साल का बालक और ऐसी हरकत? मैं तो सुन कर चकित हो गई. मेरा मनोविज्ञान डांवाडोल होने लगा. अब तो पानी सर के ऊपर से जाने लगा था.

हिम्मत कर के मैं कक्षा में गई और दोनों को अलग ले जा कर पूछताछ की, पर अर्पण की तरफ से फिर वही इनकार कि मैं तो वहां गया ही नहीं. कनिष्का से मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने इसे वहां देखा था?’’ जवाब था, ‘‘नहीं, मुझे सुयश ने बताया था.’’

तब सुयश को बुलाया गया और उस से पूछा, ‘‘तुम ने अर्पण को दरवाजे को धक्का देते हुए देखा था?’’

सुयश ने कहा, ‘‘धक्का देते तो नहीं, पर यह गर्ल्स टौयलेट की तरफ छत पर घूम रहा था.’’ सवाल फिर उलझ गया था. पर इस बार भी अर्पण को शक से बचाते हुए मैं ने सुयश को पहले डांटा, ‘‘जब तुम भी छत पर थे तो हो सकता है तुम ने ही दरवाजे को धक्का दिया हो और नाम अर्पण का लग रहे हो.’’ कनिष्का को भी समझाया कि देखो बेटा, जब तुम ने खुद नहीं देखा, तो कैसे किसी के कहने पर किसी का नाम लगा सकती हो? आगे से ध्यान रखना. बच्चों को भेज कर मैं माथा पकड़ कर बैठ गई और सोचने लगी कि इस तरह का प्रतिरोध झेलतेझेलते तो बच्चा और गलत दिशा में चला जाएगा. मैं ने उस की डायरी बंद करने और शनिवार को उस के घर जाने का निश्चय किया. फोन पर समय तय कर शनिवार को शाम 4 बजे मैं अर्पण के घर पहुंची. यह समय मैं ने जानबूझ कर चुना था, क्योंकि उस समय बच्चे बाहर खेलने गए होते हैं. मैं और उस की मम्मी संध्या बालकनी में बैठ कर अर्पण के बारे में बातें करने लगीं.

वह बहुत परेशान थी उसे ले कर. कहने लगी, ‘‘कहांकहां नहीं दिखाया इसे. कई डाक्टरों को, साइकोलौजिस्ट को…’’

‘‘कहीं प्रैगनैंसी के दौरान ली गई किसी दवा का असर तो नहीं है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, सब ठीक था,’’ वह बोली.

लेकिन उस का जवाब और हावभाव मुझे मेल खाती नजर नहीं आया. फिर कुछ पर्सनल सवालों के जवाब जब वह गोलमोल ढंग से देने लगी तो मेरे मन में शक की जड़ें गहराने लगीं. एक तरफ उस ने मुझे बताया कि प्रैगनैंसी के आखिरी 4 महीने वह छुट्टी पर थी तथा डाक्टर की सलाह से किसी हिल स्टेशन पर रही थी, तो दूसरी तरफ वह बोली सब ठीक था.

उस से विदा लेते हुए सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मैं अर्पण के लिए एक अच्छे भविष्य की डगर खोजने आई थी. तुम सहयोग दोगी तो शायद यह संभव हो सके.’’ सीढि़यों से उतरते हुए उस की एक परिचित से मुलाकात हो गई. संयोगवश बात बच्चों की चल पड़ी. अर्पण का नाम सुनते ही वह चुप हो गई. बहुत पूछने पर बस इतना ही कहा कि उसे अपना बनाने के चक्कर में संध्या की ममता अंधी हो गई है. इस गोलमोल और अधूरे वाक्य ने तो मुझे और उलझा दिया. सवालों की अनसुलझी गठरी लिए बोझिल कदमों से मैं घर आ गई. अगली सुबह संध्या ने फोन कर के मेरे पास आने का समय मांगा. मैं ने उसे शाम 5 बजे का समय दिया. लेकिन तब तक मेरा मन न जाने कितने सवालों से घिरा रहा. संध्या क्यों मिलना चाहती है, क्या बताना चाहती है या फिर क्या अर्पण ने कुछ और किया है? आदिआदि.

हालांकि मैं ने सुन रखा था कि अपने घर से भी उस के चीखनेचिल्लाने की आवाजें अन्य लोगों ने सुनी हैं और छुट्टी के दिन सारा दिन वह घर से बाहर ही आवरागर्दी करता है. कमीज के बटन खोल कर सड़क पर साइकिल चलाता रहता है वगैरह. पर बेचारी मां क्या करे. शाम को ठीक 5 बजे घंटी बजी. मैं ने देखा तो संध्या ही थी. मैं ने कौफी तैयार की और उस के साथ बैठ गई. ऐसा लग रहा था जैसे अधूरी फिल्म आज क्लाइमैक्स पर आ कर ही दम लेने वाली हो.

संध्या ने पहले कल के लिए क्षमा मांगी फिर बोली, ‘‘मैम, मैं जानती हूं आप अर्पण का भला चाहती हैं पर मैं तो एक मां हूं. अपने बच्चे के बारे में बुरा कुछ भी सुन नहीं पाती. बड़े अरमानों से पाया था उसे और आज भी वैसी ही भावना उस के प्रति रखती हूं, लेकिन ऐसा भी लगता है कि मैं ने कहीं कोई गलती तो नहीं कर दी. कल, आप से बातें करने के बाद मैं सारी रात सोचती रही और अंत में यही निर्णय कर पाई कि आप ही मेरी बात को समझ सकेंगी.’’

मैं ने संध्या के पास बैठ कर उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘तुम मुझ पर विश्वास कर सकती हो.’’

संध्या पहले तो रो पड़ी फिर संयत होते हुए उस ने कहना शुरू किया, ‘‘बात शादी के 7 साल बाद की है. इलाज के बाद भी मैं एक बच्चे की चाह पूरी नहीं कर पा रही थी. मेरे पति और मुझ में कोई कमी न थी पर शायद कुदरत को मंजूर नहीं था. हम दोनों ने अंत में बच्चा गोद लेने का फैसला किया पर घर वालों को नहीं बताना चाहते थे, अत: बड़ी बेटी के समय तबीयत का बहाना बना कर हम मसूरी में 5 महीने रहे और वहीं से बच्ची दिया को गोद लिया. हम दोनों बहुत खुश थे, पर दिया के दादादादी ने फिर पोते के लिए कहना शुरू कर दिया. हम एक बार अपना झूठ छिपा गए थे, पर एक बार और ऐसा करना मेरे बस में नहीं था. पर आप यह तो जानती हैं कि घर के बड़ेबुजुर्गों की बातें उन का आदेश होती हैं.

‘‘उन की कही बात पूरी करने के लिए मैं ने इस बार दार्जिलिंग में 5 महीने बिताए और जब वापस आई तो दादादादी के लिए पोते को साथ ले कर आई. पर दरवाजे पर ही बेटी ने उसे अपना भाई मानने से इनकार कर दिया. फिर तो दोनों की जंग दिनोंदिन बढ़ती गई और इस का असर शायद अर्पण पर उलटा ही पड़ता गया. इस माहौल से मैं तंग आ चुकी थी, लेकिन अर्पण की हर सहीगलत बात का पक्ष लेती रही. लेकिन मैं दिया और अर्पण दोनों के लिए एक सफल मां नहीं बन सकी,’’ कह कर वह फफकफफक कर रोने लगी. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा उस से क्या कहूं? जिस बात को जानने के लिए मैं बहुत उत्सुक थी, उस के बारे में इतना सपाट सच सुन कर मैं हतप्रभ रह गई थी. मैं ने धीरे से उस का हाथ दबा कर अपनापन जताया.

संध्या ने अपने को संभाल लिया था. वह मुझ से बोली, ‘‘मैं बहुत सालों से अपने अंदर ही घुटती रही हूं. न किसी को बता सकी और न ही कोई हल नजर आ रहा था. मैं ने अर्पण को अच्छा माहौल देने के लिए होस्टल भी भेजा पर वहां के नियम उसे रास नहीं आए. परिवार से तो मेरे डर ने मुझे हमेशा एक फासले पर ही रखा. आज इस दोराहे पर खड़ी मैं आप से पूछती हूं कि क्या मेरा फैसला कहीं गलत था? 2 बच्चों को एक परिवार दे कर अपने परिवार को खुशियां ही तो देना चाहा था मैं ने, लेकिन मुझे मिला क्या? आप तो मनोविज्ञान जानती हो, बताओ न खून का असर ज्यादा गहरा होता है या संस्कारों का? अर्पण को तो सभी अच्छी सुविधाएं और संस्कार देने का प्रयास किया तो फिर ऐसा क्यों हुआ?’’ मैं अपने को इन प्रश्नों से दबा हुआ सा महसूस कर रही थी. लेकिन मैं ने यह सोचते हुए कि सच्चे मन से किए गए कार्य कभी निष्फल नहीं होते. संध्या से पुन: मिलने की मन में ठान ली थी. और आज उसी सोच का परिणाम देख कर आंखें भर आई थीं. अर्पण तो आज सब के लिए एक मिसाल बन गया था.

बेवफा: सरिता ने दीपक से शादी के लिए इंकार क्यों किया था

दीपक और सरिता की शादी होना लगभग तय ही था कि सरिता ने अचानक किसी और से शादी कर ली. 20 साल बाद जब दीपक की बहन रागिनी को इस के पीछे की सचाई का पता चला तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. क्या पता चला था उसे…

‘‘मेरीतबीयत ठीक नहीं है रितु, मैं

घर जा रही हूं. जाते समय चाबी पहुंचा देना…’’

यह आवाज तो जैसे जानीपहचानी है. एक बार तो मेरे मन में आया कि आंखों से गीली रुई हटा कर उसे देखूं. मगर तब तक दूर जाती सैंडलों की आहट से मैं समझ गईर् कि बोलने वाली जा चुकी है. उस की आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही थी, इसलिए मैं अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाई.

‘‘यही तो हैं इस ब्यूटीपार्लर की मालकिन सरिता राजवंश… ऊपर ही अपने पति के साथ रहती हैं. रुपएपैसों की कोई कमी नहीं है. बस खालीपन से बचने के लिए यह पार्लर चलाती हैं,’’ जितना पूछा उस से कहीं ज्यादा बता दिया रितु ने.

नाम सुनते ही मेरा रोमरोम जैसे झनझना उठा. चेहरे पर फेस पैक लगा था वरना अब तक न जाने कितने रंग आते और जाते. पिछले ही हफ्ते मेरे पति का तबादला यहां हुआ था. मैं घर में सामान अरेंज करतेकरते काफी थक गई थी. चेहरे की थकान मिटाने के लिए यहां फेशियल कराने आई थी. आश्चर्य कि यह पार्लर मेरी सब से प्यारी सहेली सरिता का था. विश्वास नहीं होता… मैडिकल की तैयारी करने वाली सरिता एक मामूली सा पार्लर चला रही है. लेकिन उस ने मुझे पहचाना क्यों नहीं या पहचान गई इसलिए यहां से चली गई? और भी न जाने कितने सवाल जिन के जवाब मैं पिछले 20 सालों से खोज रही हूं.

1-1 कर के वे सब जेहन में गूंजने लगे और साथ ही गूंजने लगा एक मधुर संगीत जो हरदम सरिता के होंठों पर रहता था, ‘क्या करूं हाय… कुछकुछ होता है…’

वे स्कूलकालेज के दिन… मैं, दीपक भैया और सरिता सब एकसाथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम पड़ोसी थे. दीपक भैया मुझ से 2 साल बड़े थे, लेकिन पता नहीं क्यों मां ने हम दोनों का नामांकन एक ही क्लास में करवाया था. दोनों परिवारों की एकजैसी हैसियत के कारण ही शायद हमारी दोस्ती बहुत निभती थी. सरिता के पिताजी एक दफ्तर में क्लर्क थे और मेरी मां एक स्कूल में अध्यापिका. मैं छोटी थी तभी पापा चल बसे थे. दीपक भैया और सरिता की बचपन की दोस्ती धीरेधीरे प्यार का रूप लेने लगी थी. दोनों के जवां दिलों में प्यार का अंकुर फूटने लगा था. मुझे आज भी याद है, रविवार की वह शाम जब दोनों परिवारों के सभी सदस्य मिल कर ‘कुछकुछ होता है’ फिल्म देखने गए थे. दीपक भैया ने गुजारिश की और मैं ने अपनी सीट उन से बदल ली ताकि वे सरिता की हथेलियों को अपने हाथों में ले कर इस संगीतमय और रोमांटिक वातावरण में अपने प्यार का इजहार कर सकें.

फिल्म खत्म होने के बाद सरिता की आंखों की चमक देख कर ही मैं समझ गई थी कि मेरी प्यारी सखी अब हमेशा के लिए मेरे घर में आने वाली है.

पापा की मौत के बाद मैं ने अपने जिस भाईर् को एक पिता की तरह गंभीरतापूर्वक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देखा था आज उस के मन में अपनी जिंदगी के प्रति उत्साह एवं आत्मविश्वास देख कर मेरा मन सरिता के प्रति अंदर से झुक जाता था. शायद सरिता के निश्छल प्यार की ही ताकत थी कि पहली बार में ही भैया ने एमबीबीएस की परीक्षा पास कर ली. उस दिन सरिता इतनी खुश थी कि उसे अपने फेल होने का भी कोई गम नहीं था.

सबकुछ इतना अच्छा चल रहा था फिर अचानक एक दिन जब हम दोनों भाईबहन मौसी के घर गए हुए थे और

1 हफ्ते बाद लौटे तो पता चला कि सरिता ने दिल्ली के किसी अमीर आदमी से शादी कर ली है. उस के मम्मीपापा ने भी साफसाफ कुछ बताने से इनकार कर दिया.

फिर तो जैसे दीपक भैया के सारे सपने रेत के घरौंदे की तरह सागर में एकसार हो गए. जिन लहरों से कभी उन्होंने बेपनाह मुहब्बत की थी उन्हीं लहरों ने आज उन्हें गम के सागर में डुबो दिया. उस समय कितनी मुश्किल से मैं ने खुद और भैया को संभाला था यह मैं ही जानती हूं.

‘‘सैवन हंड्रेड हुए मैम,’’ रितु की आवाज सुन कर मैं अतीत से वर्तमान में आ गई. 1 घंटे का फेशियल कब पूरा हो गया पता ही नहीं चला. मैं ने पर्स से रुपए निकाल कर उसे दिए और फिर बाहर आ गई. मैं ने देखा कि बगल में ही ऊपर जाने वाली सीढि़यां थीं.

‘तो सरिता यहीं रहती है,’ सोच मेरे कदम स्वत: ही ऊपर की ओर बढ़ने लगे.

सीढि़यों के खत्म होते ही दाहिनी ओर एक दरवाजा था. मैं ने कौलबैल बजाई. मेरे लिए 1-1 पल असहनीय हो रहा था. मैं अपने सारे सवालों के जवाब जानने के लिए उतावली हो रही थी. 20 वर्ष तो बीत गए, मगर ये

20 सैकंड नहीं कट रहे थे. अब तक मैं 4 बार बैल बजा चुकी थी. पुन: बैल बजाने के लिए हाथ उठाया ही था कि दरवाजा खुल गया. मेरे सामने एक अपाहिज, किंतु शानदार व्यक्तित्व का स्वामी व्हील चेयर पर बैठा था.

उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक साफ झलक रही थी. मुझे देख कर एक क्षण के लिए वह अवाक रह गया. मगर अगले ही पल उस ने मुसकराते हुए मुझे अंदर आने को कहा. ऐसा लगा जैसे किसी पुराने मित्र ने मुझे पहचान लिया हो. मगर मेरी आंखें तो कुछ और ही खोज रही थीं.

‘‘सरिता तो अभी घर पर नहीं है. आप रागिनीजी हैं न?’’

उस व्यक्ति के मुंह से अपना नाम सुन कर मैं जैसे आसमान से गिरी… आवाज गले में ही अटक कर रह गई.

‘‘मेरा नाम सुमित है. मांजी और दीपक कैसे हैं? आप का इस शहर में कैसे आना हुआ? आप की शादी तो मुंबई में होने वाली थी न?’’

सवाल तो मैं पूछने आई थी, मगर मुझे

नहीं मालूम था कि मुझे ऐसे सवाल सुनने पड़ेंगे… तो क्या सरिता ने अपने पति को सबकुछ बता दिया है?

‘‘आप इतना सबकुछ मेरे बारे में…’’ मेरे हलक से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी और फिर मैं बिना कुछ और कहे वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई.

तभी सामने दिखी वह तसवीर, जो हम ने अपने फेयरवैल वाले दिन खिंचवाई थी. मैं दीपक

भैया और सरिता… एक क्षण में मैं समझ गई कि मैं इस घर के लिए अपरिचित नहीं हूं. मगर यह नहीं समझ में आया कि ‘प्यार दोस्ती है,’ कहने वाली सरिता ने अपने प्यार और दोस्ती दोनों के साथ विश्वासघात क्यों किया? वादे को क्यों तोड़ा उस ने?

‘‘अभी 1 घंटा पहले ही सरिता ने आ कर मुझे बताया कि तुम उस के पार्लर में आई हो… वह समझ गईर् थी कि तुम यहां आओगी जरूर. तभी वह यहां से चली गई है.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. आखिर वह कौन सा मुंह ले कर मेरा सामना कर पाएगी,’’ मेरे मन की कड़वाहट शब्दों में स्पष्ट घुल गई थी.

‘‘सरिता ने जैसा बताया था आप बिलकुल वैसी ही हैं. इतने वर्षों में न तो आप बदलीं और न ही आप की सहेली,’’ सुमित ने कहा तो मैं ने अपनी नजरें उस पर टिका दीं. आखिर कौन सी खूबी है इस में जिस के लिए सरिता ने दीपक भैया के प्यार को ठुकरा दिया?

‘‘सरिता तो आज भी 20 साल पुरानी उन्हीं गलियों में भटक रही है, जहां दीपक की यादें बसती हैं. हर दिन, हर पल वह उन्हीं यादों के सहारे जीती है. दुनिया के लिए तो वह मेरी सरिता है, मगर सही माने में वह आज भी दीपक की ही सरिता है.

‘‘मैं एक दुर्घटना में अपाहिज हो गया था. तब एक केयर टेकर के लिए दिया गया मेरा इश्तिहार पढ़ कर सरिता मेरे पास आई और मुझ से शादी करने की विनती करने लगी. अंधा क्या चाहे दो आंखें… बस मैं ने हां कर दी… सच कहूं तो सरिता जैसी केयरटेकर पा कर मैं धन्य हो गया… मेरे जीवन की खुशियां उस की ही देन हैं.’’

‘‘हमारे घर की खुशियों में आग लगा कर उस ने आप के जीवन में रोशन की है… चमक तो होगी ही,’’ पता नहीं क्यों मैं सीधेसीधे सरिता को बेवफा नहीं कह पा रही थी.

‘‘आप थोड़ा रुकिए मैं अभी आप की गलतफहमी दूर किए देता हूं,’’ कह कर सुमित अंदर से एक डायरी ले आए.

‘‘यह डायरी तो सरिता की है. भैया ने ही उसे उस के जन्मदिन पर उपहारस्वरूप दी थी,’’ कह मैं ने जैसे ही डायरी खोली मेरी नजर एक पत्र पर पड़ी. उस की लिखावट बिलकुल मेरी मां की लिखावट से मिलती थी. अरे, यह तो सचमुच मेरी मां का ही लिखा पत्र है जो उन्होंने सरिता के लिए लिखा था आज से 20 साल पहले-

‘‘सरिता बेटी,

‘‘मैं जानती हूं कि तुम दीपक से बेहद प्यार करती हो और रागिनी तुम्हारी प्यारी सहेली है. मेरी बहन ने दीपक की शादी के लिए एक लड़की देखी है. उस के मातापिता दीपक को बहुत अधिक दहेज दे रहे हैं. तुम तो जानती हो कि दीपक की डाक्टरी की पढ़ाई में मेरे सारे जेवर बिक गए हैं. ऐसे में रागिनी की शादी और दीपक के अच्छे भविष्य के लिए मुझे उस लड़की को ही घर की बहू बनाना पड़ेगा. दीपक तो मेरी बात मानेगा नहीं. ऐसे में उस का भविष्य और रागिनी की जिंदगी अब तुम्हारे हाथों में है. मैं जिंदगी भर तुम्हारा एहसान मानूंगी.

‘‘तुम्हारी मजबूर आंटी.’’

पत्र पढ़ते ही मैं सुबक उठी… ‘‘यह तुम ने क्या कर दिया सरिता? हमारी खुशियों के लिए अपनी जिंदगी में आग लगा ली? आखिर क्यों सरिता? क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं था? आज तुम से पूछे बिना मैं यहां से नहीं जाऊंगी. इतने वर्षों तक मैं और दीपक भैया तुम्हें बेवफा समझ कर तुम से नफरत करते रहे और तुम…’’

‘‘दीपक की नफरत ही तो उस के जीने का साधन है. एक ही क्षेत्र में रह कर शायद कहीं किसी मोड़ पर दीपक से मुलाकात न हो जाए, इसीलिए उस ने वह रास्ता ही छोड़ दिया. सरिता कभी नहीं चाहती थी कि तुम लोग उस की हकीकत जानो. इसलिए अगर तुम सच में सरिता को खुश देखना चाहती हो तो उस से बिना मिले ही चली जाओ वरना वह चैन से जी नहीं पाएगी…’’ सुमित ने कहा.

मुझे सुमित की बात सही लगी. मैं एक बार फिर दीपक भैया के प्रति सरिता के प्यार को देख कर नतमस्तक हो गई. सरिता ने तो प्यार और दोस्ती दोनों शब्दों को सार्थक कर दिया था. बस हम ही उसे नहीं समझ पाए.

26 January Special: कायर- नरेंद्र पर क्यों लगे भ्रष्टाचार के आरोप

लेखक- कर्नल पुरुषोत्तम गुप्त (से.नि.)

‘‘अब क्या होगा?’’ माथे का पसीना पोंछते हुए नरेंद्र ने नंदिता की ओर देखा. फरवरी माह में तापमान इतना नहीं होता कि बैठेठाले व्यक्ति को पसीना आने लगे. अंतर्मन में चल रहे द्वंद्व और विकट मनोस्थिति से गुजर रहे नरेंद्र के पसीने छूट रहे थे. यह केवल एक साधारण सा प्रश्न था या उस अवसाद की पराकाष्ठा जो उस को तब से साल रही थी जब से उसे वह पत्र मिला है.

कुछ पल दोनों के बीच मरुस्थल जैसी शांति पसरी रही. फिर नंदिता बोली, ‘‘इतनी चिंता ठीक नहीं. जो होगा सो होगा. शांत मन से उपाय ढूंढ़ो. अकेले तुम तो हो नहीं. हमाम में तो सारे ही नंगे हैं. और फिर ये ढेर सारे मंत्री, जिन की तोंद मोटी करने में तुम्हारा भी अहम योगदान रहा है, क्या तुम्हारी मदद नहीं करेंगे?’’

अपनी बात नंदिता पूरी कर भी नहीं पाई थी कि नरेंद्र ने कहा, ‘‘डूबते जहाज से चूहे तक भाग जाते हैं. यह एक पुरानी कहावत है. मुझे नेता वर्ग से कतई उम्मीद नहीं है कि वे मुझे इस मुसीबत से निकालेंगे. इस घड़ी में मुझे मित्र के नाम पर कोई भी नजर नहीं आता.’’

नरेंद्र के कथन में निराशा और व्यथा का मिश्रण था. नंदिता, जिस की सोच कुछ अधिक जमीनी थी, कुछ पल सोचने के बाद बोली, ‘‘इस परेशानी के हल के लिए भी पक्के तौर पर वकील होंगे जैसे हर बीमारी के लिए अलगअलग डाक्टर होते हैं. जरूरत है तो थोड़े प्रयास की. विश्वासपात्रों के जरिए पता लगाओ और सब से अच्छे वकील की सहायता लो. थोड़ेबहुत संपर्क मेरे भी हैं. मैं भी भरपूर प्रयास करूंगी कि कोई रास्ता निकले.’’

यह कह कर दोनों अपनेअपने काम में लग गए. इस समस्त चर्चा का कारण था वह पत्र जो नरेंद्र को विभाग से मिला था. उस के विरुद्ध भ्रष्टाचार के अनेक आरोप थे जिन का स्पष्टीकरण 2 सप्ताह के भीतर मांगा गया था. नरेंद्र अतीत में डुबकियां लगाने लगा.

15 साल पहले जब वह भारतीय प्रशासनिक सेवा में भरती हुआ था, अनेक सपने उस की आंखों में तैर रहे थे.

देश और समाज के प्रति समर्पित एक ऐसा नवयुवक जो कुछ कर दिखाने का संकल्प ले कर देश की सर्वोच्च सेवा प्रणाली में दाखिल हुआ था. जीवन के बीहड़ में अंधेरे कब उजालों पर हावी होते चले गए, कुछ पता ही नहीं चला. गरमी में पिघलती मोमबत्ती की तरह कब सपने साकार होने से पहले ही मटियामेट हो गए, इस का उसे ज्ञान ही नहीं हुआ.  व्यवस्था का शिकार होना जैसे उस की नियति बन गई. शायद कुछ अच्छे संस्कारों और परवरिश का ही प्रभाव था कि वह कीचड़ में धंस तो अवश्य गया था पर उस ने अपना विवेक पूरी तरह से खोया नहीं था.

भ्रष्ट आचरण उसे विकट परिस्थितियों में अपनाना तो पड़ा पर अपनी नैतिकता की धज्जियां उड़ते देख वह अकसर रो पड़ता. इस अवांछित उत्पीड़न से बचने का वह हरसंभव प्रयास करता और अपने उत्तरदायित्व के सेवाभाव को व्यापार भाव से कलंकित होने से बचाने की कोशिश करता. लगभग 12 वर्ष पहले नंदिता ने उस की पत्नी के रूप में उस के जीवन में प्रवेश किया. नंदिता इतनी सुंदर कि कोई भी उस की आंखों की ऊष्मा से पिघल कर बह जाए.

अत्यंत महत्त्वाकांक्षी और भौतिक युग की हर सुंदर वस्तु से अबाध मोह. नातेरिश्तों का केवल इतना महत्त्व कि वे उस के अपने लक्ष्यों की उपलब्धि में सहायक हों, बाधक नहीं. उस के लिए विवाह एक औपचारिक आवरण था सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने का.

यों तो सामान्य तौर पर वह एक अच्छी पत्नी और 10 वर्षीय बेटे की मां थी, पर कहीं गहरे में उसे ठहराव से नफरत थी. उसे आंधीतूफान की तरह बहना और उड़ना ही रुचिकर लगता था. पति के सेवाकाल में उस के शीर्षस्थ अधिकारियों और राजनीतिक क्षेत्र में प्रभावशाली व्यक्तियों से सामान्य से अधिक घनिष्ठ संबंध थे. उस की धनलोलुपता के कारण उन के आपसी संबंधों में प्राय: कड़वाहट आ जाती. उस की अनंत इच्छाओं की पूर्ति के लिए उसी अनुपात में धन की भी आवश्यकता रहती. नरेंद्र अकसर इस का तीव्र प्रतिरोध करता और अपनी सीमित आय का हवाला देता पर नंदिता उस पर निरंतर दबाव बनाए रहती.

स्वप्नलोक से जब वापस यथार्थ की धरती पर वह आया तो उस पत्र ने उसे फिर से आतंकित करना शुरू कर दिया. पिछले 2 सालों से वह समाज कल्याण विभाग का निदेशक था. काफी बड़ा विभाग था. इस के अंतर्गत आने वाली विविध गतिविधियों का दायरा बहुत बड़ा था. विभाग का सालाना बजट लगभग 600 करोड़ रुपए का था. यह एक अथाह समुद्र था जिस में अधिकतर काम केवल कागजों पर ही होता और धन का बंटवारा हो जाता. नरेंद्र ने इस संस्कृति को बदलने का पूरा प्रयास किया पर उसे आंशिक रूप से ही सफलता मिल सकी.

उस आवें (भट्ठे) में बैठ कर अपना आचरण अलग कैसे निर्धारित कर सकता था, उसे भी तो उसे जलाते रहने के लिए लकडि़यां जुटानी थीं. और फिर नंदिता का लगातार दबाव और अनंत चाहतें. जिंदगी के अंधेरेउजियारे गलियारों को पार करता वह इस मुकाम पर बेदाग पहुंचा था और अब उस को कसौटी पर कसने का प्रबंध किया जा रहा था.

किसी अच्छे वकील से सलाह करने की नंदिता की राय उसे सही लगी. निदेशक के रूप में उस का संपर्क 1-2 वकीलों से था. रमण बाबू का वकील के रूप में काफी दबदबा था. संयोग से उन का टेलीफोन नंबर उस के मोबाइल में था. तुरंत बात कर मिलने का समय तय किया और अगले दिन पहुंच गया उन के चैंबर में. औपचारिक शिष्टाचार के बाद नरेंद्र ने खुद पर लगे आरोपों को विस्तार से बताया और जांच संबंधी मिला पत्र वकील साहब के सामने रख दिया.

कुछ देर शांत रहने के बाद रमण बाबू बोले, ‘‘देखिए, अभी यह केस प्रारंभिक अवस्था में है. यह पत्र किन्हीं ठोस प्रमाणों या साक्ष्यों की ओर इंगित नहीं करता है पर बिना किसी आधार के यह पत्र जारी नहीं किया जाता, इसलिए इस के पीछे कुछ ठोस प्रमाणों के होने की पूरी संभावना है. इसे नकारना या स्वीकारना बुद्धिमानी नहीं होगी. इसे मेरे पास छोड़ दीजिए. इस का उत्तर सामान्य रूप से ही दिया जाएगा और मैं इस का प्रारूप 1-2 दिन में बना कर आप को सूचित कर दूंगा.’’

चायनाश्ते के बाद यह बातचीत समाप्त हो गई और नरेंद्र वापस आ गए. योजनानुसार पत्र का उत्तर रमण बाबू के माध्यम से दिया गया. शेर अपने बाड़े से बाहर आ चुका था तो केवल एक उत्तर से कैसे शांत होता.

सतर्कता विभाग का अगला पत्र और कठोर था जिस में न नकारे जा सकने वाले तथ्यों का ब्योरा था और शीघ्र ही उत्तर की अपेक्षा थी जिस के अभाव में अगली कार्यवाही की चेतावनी भी थी. रमण बाबू ने अपने अनुभव और ज्ञान से तो उत्तम उत्तर ही देने का प्रयास किया, लेकिन सतर्कता विभाग ने उसे खारिज कर जांच के आदेश दे दिए.

नरेंद्र का आत्मविश्वास डगमगा गया था. सचाई से लड़ने की ताकत नरेंद्र में नहीं थी. नंदिता की सोच जैसी भी रही हो, वह इस घड़ी में अपने को अलग नहीं रख सकती थी. एक घनिष्ठ मित्र रहे मंत्री से फोन पर मिलने का समय ले कर वह खूब सजधज कर उन के यहां जा पहुंची.

‘‘वाह जानेमन, आज तुम ने इस नाचीज को कैसे याद किया,’’ मंत्री महोदय ने उत्साहित हो कर नंदिता को अपनी बांहों में भर लिया. नंदिता ने कोई प्रतिरोध नहीं किया पर शीघ्र ही संयत हो कर अपने पति की व्यथा उन के सामने रखी और उन से मदद की अपेक्षा जाहिर की. एकाएक मंत्रीजी ने पैतरा बदला और कुछ पल पहले का आसक्तपूर्ण व्यवहार अत्यंत नाटकीय हो गया. शब्द चाहे कितने ही विनम्र रहे हों पर आशय यही था कि वे इस मामले में पूरी तरह असमर्थ हैं.

उस ने हार नहीं मानी और अपने प्रयासों को और तेज किया. लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात. इस संकट की घड़ी में किसी ने साथ न दिया. उस ने एक आखिरी प्रयास और करने का विचार किया.

नरेंद्र के एक बैचमेट सुधीर काफी लोकप्रिय अधिकारी थे और उन से दोनों के घनिष्ठ संबंध थे. 2 वर्ष पहले उन की पत्नी का एक कार दुर्घटना में देहांत हो गया था. सारी बात सुन कर सुधीर ने सांत्वना दी और इस विपदा में उन का साथ देने का वादा किया पर ठोस रूप से वे कुछ कर पाएंगे, इस की आशा बहुत कम थी.

समय समाप्त होने पर सतर्कता विभाग के डीएसपी ने नरेंद्र से मिलने की पेशकश की. अब स्थिति साफ हो गई थी. शिकंजा धीरेधीरे कसता जा रहा था. निश्चित समय पर नरेंद्र के कार्यालय में डीएसपी रामपाल पहुंच गए. पहले दौर की बातचीत, कार्यालय की कार्यप्रणाली, उस के विभिन्न उपविभागों की जानकारी आदि तक सीमित रही और रामपाल ने किसी विशिष्ट विवरण और स्पष्टीकरण को नहीं छुआ. अगली मीटिंग 7 दिन बाद निश्चित की गई.

इस अंतराल में रामपाल ने एक लंबी प्रश्नावली तैयार की जिस का परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उन आरोपों से गहन संबंध था जो नरेंद्र पर लगे थे. तहकीकात की कला में प्रशिक्षित और अत्यंत बुद्धिमान पुलिस अफसर के रूप में रामपाल की काफी ख्याति थी और यह बात नरेंद्र को भलीभांति मालूम थी.

उसे इस बात का अब पूरा विश्वास हो गया था कि उस का बच कर निकलना असंभव ही है. उस ने रमण बाबू को फोन किया और सारी स्थिति से अवगत कराया. वे भी रामपाल की योग्यता से थोड़ाबहुत परिचित थे, बोले, ‘‘खरीद लो.’’

‘‘क्या कहा?’’ नरेंद्र ने पूछा.

‘‘जो तुम ने सुना. खरीद लो,’’ यह कह कर रमण बाबू ने फोन काट दिया.

अगली मीटिंग निर्धारित दिन और समय पर हुई. इस से पहले कि रामपाल अपनी प्रश्नावली के आधार पर पूछताछ शुरू करते, नरेंद्र ने पूछा, ‘‘डीएसपी साहब, इस गुत्थी को सुलझाने का कोई और विकल्प है? मुझे मालूम है कि मैं इस समय कहां खड़ा हूं. किन परिस्थितियों में यह सब हुआ, उस की विवेचना से कोई लाभ नहीं. क्या आप मुझे किसी प्रकार इस विपत्ति से बचा सकते हैं?’’

रामपाल ने कोई जवाब नहीं दिया. उसे ऐसी स्थितियों से अकसर दोचार होना पड़ता था. कुछ देर खामोशी के बाद पुन: नरेंद्र ने विनय याचना की जिस का कोई प्रभाव रामपाल पर नहीं पड़ा. अंत में नरेंद्र ने कहा, ‘‘डीएसपी साहब, मुझे यह बताएं कि मैं आप के लिए क्या कर सकता हूं?’’

पुलिस अफसर और इस भाषा का अर्थ न समझे, इस की संभावना शून्य थी. रामपाल चुप रहा.

‘‘कहिए, ‘2’ ठीक रहेगा,’’ नरेंद्र ने कहा.

कोई उत्तर तो दूर, कहीं किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया भी रामपाल ने नहीं की.

‘‘कम हैं तो 3 सही, अन्यथा आप ही कुछ सुझाएं,’’ नरेंद्र ने पुन: कहा.

रामपाल निर्लिप्त भाव से बैठे रहे, जैसे वे न समझ में आने वाली कोई फिल्म देख रहे हों.

यह मरघट की सी चुप्पी नरेंद्र के लिए जानलेवा साबित हो रही थी. धीरेधीरे उस ने अपना ‘औफर’ 10 लाख रुपए तक कर दिया पर उस विकट पुलिस अफसर ने न इस का कोई प्रतिवाद किया और न ही किसी प्रकार का आक्रोश जताया.

अंत में रामपाल उठ खड़े हुए और बोले, ‘‘सर, मैं कल इसी समय आऊंगा और तब बात केवल केस से संबंधित विषय पर ही होगी. कृपया इस का ध्यान रखिएगा.’’

नरेंद्र को अब लेशमात्र भी संदेह नहीं रह गया था कि उस के बचाव के सब रास्ते बंद हो चुके हैं. अब संघर्ष की कोई संभावना नहीं बची है. उस की समस्त आशाओं पर पानी फिर चुका था. जीवन में व्यर्थता का बोध बढ़ता जा रहा था. रामपाल से अगली मीटिंग का परिणाम उसे मालूम था. बयान कलमबंद किए गए. अगला कदम कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल करना था.

वह पूरी तरह टूट चुका था और काल ने जैसे यह निश्चय कर लिया था कि वह हरसंभव दुख और परेशानी नरेंद्र की झोली में डाल देगा. परिस्थितियों ने उसे पाट दिया था. आत्मदया के पोखर में वह डूबताउतराता रहता. आने वाली निकृष्ट जिंदगी से आतंकित हो अकेले में विलाप करता. ऐसे प्रताडि़त जीवन की कभी उस ने कल्पना भी न की थी.

आखिरकार उस ने निश्चय कर लिया, यह कोई साधारण निर्णय नहीं था. एक पत्र नंदिता के नाम लिखा :

प्रिय नंदिता

पिछले 2-3 माह की घटनाओं से तुम अवगत हो. किन परिस्थितियों में मैं भ्रष्ट आचरण के मोहजाल में फंस गया, उस से तुम अपरिचित नहीं हो. अब उस के बारे में बात करना बेकार है. कभी सोचा तक न था कि जीवन में ऐसा मोड़ भी आएगा. इस कलंकित जीवन को मैं कैसे झेलूं, मेरी सोच थम गई है. इस कलुषित आत्मा के शुद्धीकरण का कोई उपाय तुम्हारे पास होता तो तुम निश्चित रूप से बतातीं. मैं साहसी कभी रहा ही नहीं और मेरा सामर्थ्य लोगों की घूरती आंखों की अग्नि को झेलने का नहीं है. इस प्रताडि़त जीवन को बचाने के लिए हर सांस का प्रयास कष्टदायी होगा. जीने की चाहत खत्म हो गई है. सुख और शांति की खोज में मैं पलायन कर रहा हूं.

बेटे का ध्यान रखना. इतिहास को मत दोहराना. उस की परवरिश में कोई कमी नहीं रखना. तुम अपना जीवन फिर से नए साथी के साथ प्रारंभ कर सकती हो, मुझे खुशी होगी. साथ बिताए मधुर क्षणों को याद करते हुए हर वर्ष एक दीपक जला कर मुझे याद कर लेना.

ढेर सारे प्यार के साथ

तुम्हारा,

नरेंद्र

सधे हाथों और शांत मन से पत्र लिफाफे में डाल कर सील किया. फिर उस पर पत्नी का नाम लिख कर पास रखी टेबल पर रख दिया. अब कुछ करने को शेष नहीं था. अलमारी से अपनी पिस्तौल निकाल कनपटी पर लगा घोड़ा दबा दिया.

एक आवाज और फिर घोर निस्तब्धता.

नंदिता जो अभी बाहर से आई थी, चौंक कर नरेंद्र के कमरे की ओर दौड़ी. वहां का वीभत्स दृश्य देख वह हतप्रभ रह गई. यह उस के जीवन की सब से बड़ी त्रासदी थी. पास जा कर देखा, नरेंद्र की मृत्यु हो चुकी थी. अपने आंसुओं पर वह अपना नियंत्रण खो बैठी. एक घना जंगल और उस से भी अधिक घना अंधकार.

आंखों में जैसे सारा ब्रह्मांड घूम गया और नंदिता को लगा कि उस का अस्तित्व उड़ते हुए परखचों से अधिक कुछ भी नहीं है. यह अपनेआप में एक आश्चर्य था कि वह अपना संतुलन बनाए रख सकी. किसी प्रकार अपने को संभाल उस ने पुलिस और अन्य कई अधिकारियों को सूचित किया. पिस्तौल की आवाज से सड़क पर चलते आदमी भी रुक गए. नंदिता के रुदन की आवाज से उन्होंने अनुमान लगाने शुरू किए और फिर लालनीली बत्तियों वाली गाडि़यों का आगमन हुआ. कई तरह की टिप्पणियां हुईं–

‘नरेंद्र साहब ने खुद को गोली मार ली.’

‘अरे क्यों, पत्नी से पटती नहीं होगी.’

‘जरूर नौकरी की कोई समस्या रही होगी.’

‘पर जान देने वाली इस में क्या बात है?’

‘भाई, कह नहीं सकते. वजह तो कोई बड़ी ही रही होगी.’

‘वह कायर था,’ पोपले मुंह से निकले एक वृद्ध के ये शब्द किसी सांप की फुफकार से लगे.

बहरहाल, पुलिस की छानबीन के बाद केस आत्महत्या का बना और उचित कार्यवाही के बाद बंद कर दिया गया.

Winter Special: 15 मिनट लें सुबह की धूप, जीवनभर बने रहेंगे Healthy और Energetic

लेखिका- दीप्ति गुप्ता

सुबह की धूप हमारे लिए बहुत फायदेमंद होती है. लेकिन बढ़ते फ्लैट कल्चर के चलते लोग धूप लेने से वंचित रह जाते हैं, जिसकी वजह से कई मानसिक और शारीरिक बीमारियों का सामना आगे करना पड़ता है. मगर दोस्तों, विशेषज्ञों कहते हैं कि सुबह केवल 10-15 मिनट धूप में टहलने या बैठने से आप सेहत से जुड़ी सभी परेशानियों से खुद को बचा सकते हैं. यहां तक की प्राकृतिक चिकित्सा में भी सूर्य चिकित्सा का अहम रोल है. एक स्टडी के अनुसार, अगर आपको सुबह की धूप नहीं मिलती , तो इससे हाई ब्लड प्रेशर की संभावना बढ़ जाती है. तो चलिए आज के इस आर्टिकल में हम बात करते हैं उन सभी बड़े फायदों के बारे में जो हमें सुबह की धूप लेने से मिल सकते हैं.

सुबह की धूप कैसे है फायदेमंद

डिप्रेशन दूर करे- अगर आप रोज सुबह 10-15 मिनट तक सुबह धूप में टहलते या बैठते हैं, तो इससे डिप्रेशन की समस्या से छुटकारा मिलेगा. डॉक्टर्स भी डिप्रेशन दूर करने के लिए सुबह की धूप लेने की सलाह देते हैं, क्योंकि ऐसा करने से शरीर में एंडोर्फिन रिलीज होता है. यह एक नेचुरल एंटी डिप्रेजेंट है.

ब्लड सकुर्लेशन बढ़ाए- सुबह की धूप में कुछ देर टहलना या बैठना आपकी हड्डियों के लिए काफी फायदेमंद है. इससे मिलने वाला विटामिन डी आपके ब्लड सकुर्लेशन को बढ़ाने का काम करता है. इतना ही नहीं, ये आपके ब्लड प्रेशर को भी रेगुलेट करने में मदद करती है.

वजन घटाए- अगर आप बढ़ते वजन से परेशान हैं, तो सुबह की धूप में टहलना शुरू कर दें. ऐसा करने से आपका वजन बहुत जल्दी कम हो जाएगा. कई शोधों में पाया गया है कि जिन लोगों को सुबह की धूप नहीं मिलती, उनका वजन बहुत तेजी से बढ़ता है, उनके भीतर चर्बी ज्यादा जमा हो जाती है, उनके मुकाबले जो सुबह की धूप लेते हैं.

खुश रखे- व्यस्त भरी दिनचर्या में व्यक्ति को खुश होने का अवसर बहुत कम मिलता है, लेकिन सुबह की धूप में टहलने से आपको ये खुशी मिल सकती है. जी हां, धूप में सिर्फ दस मिनट तक टहलने से आपके अंदर सेराटॉनिन का लेवल बढ़ जाता है. बता दें, कि यह एक हैप्पी हार्मोन है, जिसकी वजह से आप थके होने के बाद भी आप हैप्पी और एनर्जेटिक फील करते हैं.

सुबह की धूप लेने का तरीका-

अब हम आपको बताते हैं कि सुबह की धूप लेने का सही तरीका क्या है. आपको बता दें कि सर्दियों में सुबह आठ से दस बजे तक की धूप आपके लिए बहुत असरदार होती है. वहीं गर्मियों में सुबह 7 से 9 बजे तक आप धूप में टहल सकते हैं. अब जानिए 15 मिनट में सुबह की धूप कैसे ले सकते हैं.

– आपको जहां भी धूप अच्छे से मिलती है, वहां आप टहलना शुरू कर दें या फिर कुछ देर के लिए वहां बैठ जाएं. बैठने के बाद आंखें बंद कर लें. अब नाक से गहरी सांस लें. सांस आपकी नाभि के नीचे तक पहुंचनी चाहिए. ध्यान रखें, कि नाक से ही सांस लेनी है और नाक से ही सांस छोड़नी  है. पहले पांच मिनट में आपको यह अभ्यास करना है.

– अगले पांच मिनट में अंदर ली गई सांस और बाहर छोड़ी गई सांस पर ध्यान दें. याद रखें, इस वक्त मन में कोई और विचार न लाएं. बस रिलेक्स होकर आपकी सांस पर ध्यान देना है. लगभग 5 मिनट तक आपको ये प्रयास करना है.

– अब बाद के पांच मिनट अपने आप में महत्वपूर्ण हैं. इस वक्त आप केवल महसूस करेंगे कि सूर्य की किरणें आपके सिर के ऊपर से होते हुए आपके भीतर प्रवेश कर रही हैं और धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल रही हैं. ये किरणें आपकी बॉडी में मौजूद हर बीमारी से आपको सुरक्षा प्रदान करती हैं.

अगर आप भी खुद को स्वस्थ और ऊर्जावान बनाना चाहते हैं, तो कुछ देर के लिए ही सही, लेकिन सुबह की धूप लेना शुरू कर दें. इससे न केवल आपके भीतर की बीमारियां दूर होंगी, बल्कि आपके अंदर पॉजिटिविटी का लेवल भी बढ़ेगा.

Winter Special: स्नैक्स में परोसें टेस्टी मशरूम पौपकौर्न

अगर आप बच्चों को स्नैक्स में कुछ हेल्दी और टेस्टी खिलाना चाहते हैं तो ये रेसिपी ट्राय करें. मशरूम पौपकौर्न की ये रेसिपी टेस्टी की साथ-साथ आसानी से बनने वाली रेसिपी है. आप इसे कभी भी अपनी फैमिली के लिए फिल्म देखने के लिए बना सकती हैं.

हमें चाहिए

–  10-15 मशरूम

–  1 छोटा चम्मच अदरक व लहसुन का पाउडर

–  1 छोटा चम्मच प्याज का पाउडर

–  1 कप बै्रडक्रंब्स

–  1 छोटा चम्मच लहसुन बारीक कटा\

–  1 नींबू

–  1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर

–  तेल आवश्यकतानुसार

–  1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

–  1 बड़ा चम्मच शहद.

बनाने का तरीका

मशरूम को आधाआधा काट लें. ब्रैडक्रंब्स एक प्लेट में निकाल लें. बाकी सारी सामग्री को एक बड़े बरतन में डालें. थोड़ा सा पानी डाल कर मैरिनेशन तैयार कर लें. इस तैयार मैरिनेशन में मशरूम मिला कर अच्छी तरह मिक्स कर लें. अब 1-1 मशरूम उठा कर ब्रैड क्रंब्स में लपेट लें. सारे तैयार मशरूम एक ट्रे में रख कर 1-2 घंटों के लिए फ्रिज में रख दें. तेल में तल कर चटनी के साथ परोसें.

Skin Care Tips: टैटू हटाने के लिए अपनाएं ये आसान उपाय

आजकल के युवाओं में टैटू का क्रेज़ बहुत है. वे जितनी जल्दी टैटू बनवाते है, उतनी हो जल्दी उससे बोर होकर मिटाने की कोशिश करते है. ऐसे में सही जगह की तलाश कर उसे मिटाना सही होता है. गंदे और अनहाइजीनिक स्थान पर जाने से व्यक्ति को लेने के देने पड़ सकते है. इस बारें में एलायन्स टैटू स्टूडियो के सेलेब्रिटी टैटू आर्टिस्ट सनी भानुशाली बताते है कि टैटू का ट्रैंड पिछले कई सालों से हमारे देश में शुरू हुआ है. समय के साथ-साथ इसकी पौपुलैरिटी बढती गई है, ऐसे में वे कई बार बिना सोचे समझे टैटू करवा लेते है और बाद में उसे मिटाने के लिए आसपास के किसी टैटू आर्टिस्ट के पास जाते है, जिससे उन्हें मनचाहा परिणाम नहीं मिलता. टैटू रिमूवल के लिए कुछ बातों पर जरूर ध्यान दें…

1. टैटू रिमूवल के लिए करें रिसर्च

सबसे पहले इस पर रिसर्च कर लें कि कहाँ और कैसे टैटू रिमूव किया जाता हो, कई बार ऐसा करने पर भी धोखा हो जाता है, इसलिए इसे बारीकी से देखें और डौक्टर से कंसल्ट करे और जाने आपकी खोज सही है या नहीं.

2. लेजर रिमूवल है अच्छा औप्शन

लेज़र रिमूवल एक अच्छा विकल्प है, जिसे रिमूव करने में कई सेशन लगते है जो महीनों से लेकर साल तक भी होता है.

3. डौक्टर की एडवाइस से पहनें कपड़े

टैटू रिमूवल महंगा होता है,क्योंकि टैटू बनवाने के बाद उसे रिमूव करना कठिन होता है. यह दर्दनाक भी होता है, रिमूव के बाद डॉक्टर की सलाह के अनुसार कपड़े पहनने की जरुरत होती है,

4. एंटीबायोटिक औइंटमेंट की लेयर लगाना है बेस्ट

कई बार रिमूव किये गए टैटू के उपर पहले तीन दिन जब तक घाव थोड़ी भर न जाय, एंटीबायोटिक औइंटमेंट की एक लेयर लगाना भी अच्छा रहता है. टैटू में प्रयोग किये गए रंग को हल्का कर उसमें कुछ अलग आकृति भी बनायी जा सकती है.

5. टैटू बनवाने से पहले सोच लें

टैटू को रिमूव करने के बाद कई बार सफेद रंग के पैचेस और स्कार्स रहते है, इसलिए टैटू करवाने से पहले ही अच्छी तरह से सोच विचार कर लें,

6. टैटू रिमूव करने से पहले डर्मेटोलौजिस्ट के पास जाएं

किसी भी स्थान पर टैटू रिमूव न करवाएं, किसी भी अच्छे डर्मेटोलौजिस्ट के पास जाएं, जिनके स्किन टोन डार्क है लेज़र रिमूवल से उनके स्किन के जलने का खतरा रहता है.

7. ब्लैक टैटू रिमूव करना रहता है आसान

सभी टैटू को रिमूव करना आसान नहीं होता, काले रंग के टैटू को रिमूव करना चटकदार रंगों की तुलना में आसान होता है, ग्रीन और ब्लू रंग के टैटू को रिमूव करना चुनौतीपूर्ण होता है. इसके आगे सनी कहते है कि टैटू को रिमूव करना बहुत मुश्किल होता है इसलिए अधिक से अधिक कोशिश उसे कवर कर नया रूप देने के बारें में सोचे, ताकि आपको बाद में किसी समस्या का सामना करना न पड़े.

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