वूमन इंपावरमैंट : जिम्मेदारियों का बोझ

Women Empowerment : औरतों के रोजमर्रा के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मिसेज’ इन दिनों काफी चर्चा में है. इस फिल्म में एक ऐसी महिला की कहानी को दिखाया गया जिस की चाहत और सपने सिलबट्टे पर चटनी की तरह पिस कर रह गए. इस फिल्म में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि कैसे शादी के बाद एक महिला का जीवन घर की चारदीवारी में घुट कर रह जाता है. कैसे एक महिला का सारा जीवन घरपरिवार की देखभाल और किचन में ही बीत जाता है.

घरेलू कामों का नाता लड़कियों के जीवन से जुड़ा हुआ है. भले ही कोई लड़की किसी समाज, परिवार में पैदा हुई हो, उसे बचपन से ही घर के कामों की शिक्षा दी जाती है यह कह कर कि उसे दूसरे घर जाना है. बुजुर्गों का कहना है कि चाहे लड़कियां कितनी ही पढ़लिख जाएं पर अपनी ससुराल जा कर उन्हें बनानी तो रोटियां हीं हैं.

सदियों से एक प्रथा चली आ रही है कि चाहे जो भी हो, घर के कामों की जिम्मेदारी तो महिलाओं की ही बनती है. उन्हें यह एहसास दिलाया जाता है कि खाना पकाना, कपड़े धोना, बरतन मांजना और घर के सभी सदस्यों का खयाल रखना महिला की ही जिम्मेदारी है. एक ही परिवार में लड़कों को पूरी आजादी दे दी जाती है और लड़कियों को रीतिरिवाजों और संस्कारों की बेडि़यों में बांध दिया जाता है. घर की जिम्मेदारियों के साथ उन्हें धार्मिक कर्मकांडों का भी हिस्सा बनना पड़ता है. आए दिन व्रतउपवास भी करने पड़ते हैं, चाहे उन की मरजी हो या न हो या चाहे वे शारीरिक रूप से कमजोर ही क्यों न हों, उन्हें अपने बेटे, पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह सब करना ही पड़ता है. लेकिन समाज ने पुरुषों के लिए ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है.

कोई क्यों नहीं समझता

शालिनी वर्किंग वूमन है. रोज सुबह 4 बजे उठ जाती है. घर का सारा काम करती है, नाश्ता बना कर, बच्चों को उठा कर उन्हें तैयार कर स्कूल भेजती है. फिर पति और सास के लिए लंच तैयार कर 9 बजे तक अपने औफिस के लिए निकल जाती है. रोज उसे औफिस जानेआने में करीब 3 घंटे लग जाते हैं. शाम को थक कर जब घर पहुंचती है तो कोई उसे एक गिलास पानी के लिए भी नहीं पूछता, उलटे वही सब के लिए चाय बनाती है और फिर रात के खाने की तैयारी में लग जाती है. उसे बिस्तर पर जातेजाते रात के 11 बज जाते हैं. यही रोज का नियम है.

संडे को शालिनी घर के पैंडिंग काम निबटाती है. लेकिन घर के किसी सदस्य से उसे कोई मदद नहीं मिलती है. सब को यही लगता है कि शालिनी के 10 हाथ हैं और वह सबकुछ चुटकियों में कर लेगी. मगर वह भी एक इंसान है, वह भी थकती है, उस के भी शरीर में दर्द होता है, उसे भी आराम की जरूरत है, यह कोई नहीं सम झता.

शालिनी के पति का अपना बिजनैस है. उन की हार्डवेयर का दुकान है. वे 11 बजे आराम से अपनी दुकान पर जाते हैं. लेकिन शालिनी के साथ ऐसा नहीं है, उसे तो रोज टाइम से औफिस जाना होता है. वह कहती है कि मन करता है नौकरी छोड़ दूं. लेकिन बढ़ती महंगाई और फिर बच्चों की महंगी शिक्षा को देखते हुए नौकरी भी नहीं छोड़ सकती है.

यह कहानी केवल शालिनी की नहीं है बल्कि दुनिया की लगभग सभी औरतों की है.

खुद के लिए समय नहीं

माधुरी टीचर है और पति, आलोक भी इसी फील्ड में हैं. दोनों एक ही समय स्कूल के लिए निकलते हैं और घर भी सेम टाइम पहुंचते हैं. लेकिन घर आ कर जहां आलोक टीवी खोल कर बैठ जाते हैं, फोन पर दोस्तों से हाहा, हीही करते हैं, रील्स देखते हैं, वहीं माधुरी किचन में खाना पकाने घुस जाती है, बच्चों का होमवर्क कराती है और फिर बिखरे हुए घर को व्यवस्थित करती है क्योंकि सुबह उस के पास इतना टाइम नहीं होता कि यह सब कर सके.

माधुरी कहती है कि फिर भी कोई न कोई काम रह ही जाता है. घर का काम ठीक से नहीं कर पाने का मु झे मलाल होता है लेकिन मैं भी क्या करूं, कहां से लाऊं ऐक्स्ट्रा समय. मु झे तो खुद के लिए भी टाइम नहीं मिलता. बाल सफेद दिखते हैं, पर उन में कलर करने का टाइम नहीं है मेरे पास. फेशियल करवाए महीनों हो जाते हैं. रात में सोने से पहले भी दिमाग में यही चलता रहता है कि सुबह ब्रेकफास्ट और लंच में क्या बनाऊंगी? कभीकभी तो नींद में भी ऐसे सपने आते हैं कि बच्चों की स्कूल बस छूट गई और मैं हड़बड़ा कर उठ जाती हूं.

पूरा दिन काम और रात को भी ठीक से आराम न मिल पाने के कारण सिर भारीभारी सा लगता है. लेकिन किस से कहूं मैं अपना दुख?

सुनीता वैसे तो हाउसवाइफ है लेकिन २४?७ की जौब है उस की. वह कहती है कि उस के परिवार में 7 लोग हैं और सब के लिए उसे सवेरे उठ कर सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात का खाना बनाना पड़ता है. उसे अपने लिए जरा सा भी समय नहीं मिल पाता है क्योंकि खाना और साफसफाई के आलावा भी घर में और कई काम होते हैं. वह रोज सुबह 5 बजे उठ जाती है और फिर रात के 11 बजे तक ही सो पाती है. थक कर इतनी चूर हो गई होती है कि बिस्तर पर जाते ही नींद आ जाती है. सुनीता अपने घरपरिवार में ऐसी उल झी है कि घर से बाहर जाने का भी समय नहीं मिल पाता. कईकई दिन हो जाते हैं उसे घर से बाहर निकले.

चौंकाने वाले आंकड़े

घरेलू कामों के बो झ के चलते भारतीय शहरों में भी लगभग आधी महिलाएं दिन में एक बार भी घर से बाहर नहीं निकल पाती हैं और जो महिलाएं कामकाजी हैं, उन का दौर भी सिर्फ घर से औफिस तक ही होता है क्योंकि एक जौब से लौट कर दूसरी जौब में लगना पड़ता है. यह चौंकाने वाला तथ्य है- ‘ट्रैवल बिहेवियर ऐंड सोसायटी’ नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र का.

आईआईटी दिल्ली के ‘ट्रांसपोटेशन रिसर्च ऐंड इंजरी प्रिवैशन’ के राहुल गोयल द्वारा लिखित अध्ययन में यह कहा गया है कि भारत में पुरुषों और महिलाओं के बीच मोबिलिटी की तुलना की जाए तो इस में व्यापक अंतराल है जो अपनेआप में दुनियाभर में बेहद दुर्लभ है.

भारत सरकार के नैशनल सैंपल सर्वे औफिस ने 2019 में दैनिक जीवन को ले कर कई आंकड़े जुटाए थे. आईआईएम अहमदाबाद के एक प्रोफैसर ने इन आंकड़ों का विश्लेषण कर के बताया कि 15 से 60 साल की स्त्रियां रोजाना औसतन 7.2 घंटे घरेलू काम करती हैं. पुरुषों का योगदान इस का आधा भी नहीं है. यही नहीं, आय अर्जित करने वाली महिलाएं भी कमाऊ पुरुषों की तुलना में घर के कामों को दोगुना वक्त देती हैं.

दयनीय होती स्थिति

ज्यादातर कामकाजी महिलाएं जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं जैसे मोटापा, थायराइड, ऐनीमिया, विटामिन डी की कमी, मधुमेह और रक्तचाप जैसी समस्याओं से जू झ रही हैं. माहवारी के समय तो उन की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है क्योंकि उसी अवस्था में उन्हें घर के सारे काम करने पड़ते हैं. लेकिन हमारे समाज और परिवार में इस समस्या पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है क्योंकि लोगों की यह सोच बनी हुई है कि महिलाएं बीमार नहीं पड़तीं, वे थकती नहीं हैं.

पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं की भूमिका और उन के काम के कुछ मानदंड बनाए हुए हैं, जिन का पालन करना उन की जिम्मेदारी बना दी गई है. कोई भी महिला अगर पितृसत्तात्मक समाज द्वारा तय मानकों के अनुसार बरताव नहीं करती है तो समाज में उस की आलोचना सब से पहले होती है क्योंकि पूरी दुनिया में घरपरिवार को संभालने की पहली जिम्मेदारी महिलाओं की मानी जाती है. पूरी दुनिया में कोई भी वर्ग हो, कितनी भी संपन्नता हो, घरपरिवार की देखभाल की जिम्मेदारी औरतों की ही मानी गई है.

भारत हो या दुनिया का कोई भी देश हर जगह से जुड़े आंकड़े एकजैसी ही तसवीर पेश करते हैं जिन में घर के कामों में ज्यादा समय महिलाएं व्यतीत करती हैं. दुनियाभर में एक सोच बनी हुई है कि घर के काम तो महिलाओं के ही हैं. भले ही आप कामकाजी महिला हों या फिर हाउसवाइफ, आप बीमार हों या फिर शारीरिक रूप से कमजोर, घरपरिवार और  बच्चेबुजुर्गों की देखभाल की जिम्मेदारी तो

उन्हीं की बनती है. पुरुष अगर बेरोजगार घर में बैठा है तब भी घरेलू कामों की जिम्मेदारी महिला ही संभालती है क्योंकि दिमाग में एक सोच बैठा दी गई है कि घरेलू कामों की जिम्मेदारी महिलाओं की ही है और उन्हें करने ही होंगे चाहे जैसे करें.

किसी भारतीय महिला के जीवन को 3 शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है ‘काम, काम और काम.

प्रभावित होता स्वास्थ्य

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच और मैं किन से हैल्थ इंस्टिट्यूट के शोध से पता चला है कि अगर महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार किया जाए तो 2040 तक दुनियाभर की जीडीपी में सालाना 34.50 लाख करोड़ की बढ़ोतरी हो सकती है. ‘ब्लूप्रिंट टू क्लोज द वूमन हैल्थ गैप: हाउ टू इंप्रूव लाइफ ऐंड इकौनौमीज फौर आल’ नामक यह रिपोर्ट बताती है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने जीवन का 25% हिस्सा खराब स्वास्थ्य में बिता रही हैं. यह रिपोर्ट सभ्य समाज को कठघरे में खड़ा करती है. इस बात में जरा भी संदेह नहीं है कि पूरी दुनिया में महिलाओं का स्वास्थ्य गंभीर मुद्दा नहीं रहा है.

अकसर देखा गया है कि महिलाओं के घर के काम को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता है और न ही उन के स्वास्थ्य को ही उतनी गंभीरता से लिया जाता है. उन के खराब स्वास्थ्य  को उन के भावनात्मक अतिरेक से जोड़ कर देखा जाता है.

2021 में ‘जर्नल औफ पेन’ द्वारा प्रकाशित मियामी विश्वविद्यालय के शोष ने यह बात सामने रखी कि एक मरीज की दर्द प्रतिक्रियाओं को उन के लिंग के आधार पर आंका जाता है. यह अध्ययन बताता है कि 70त्न अमेरिकी महिलाएं जोकि पुराने दर्द से पीडि़त हैं, उन के द्वारा अनुभव किए जाने वाले दर्द को अकसर पुरुषों के दर्द की तुलना में गंभीरता से नहीं लिया जाता है. वहीं ‘जनरल औफ द अमेरिकन हार्ट ऐसोसिएशन’ द्वारा 2020 में प्रकाशित शोध ‘सैक्स डिफरैंसेज इन कार्डियोवैस्क्सुलर इन मैडिकेशन प्रैस्क्रिप्शन इन प्राइमरी केस: अ सिस्टेमैटिक रिव्यू ऐंड मेटाऐनालिसिस’ में पाया गया कि महिलाओं में पुरुषों की तुलना में एस्परीन, कोलैस्ट्रौल कम करने वाले स्टैंटिन और रक्तचाप की दवाएं प्राप्त करने की संभावना काफी कम थी, जोकि हृदय रोग के लिए सामान्य उपचार से संबंधित है.

भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए सब से बड़ी बाधा पोषण युक्त भोजन की कमी है. काम के चक्कर में महिलाएं न तो समय पर खाना खा पाती हैं न ही पौष्टिक आहार लेती हैं. सैर, योग, ध्यान जैसी गतिविधियों के लिए भी उन के पास समय नहीं होता. बीमार होते हुए भी व्रतउपवास में दवाई न लेना, उन के शारीरिक स्वास्थ्य को बुरी तरह बिगाड़ देती है.

बयान पर बवाल

इन्फोसिस के मुखिया नारायण मूर्ति ने कहा था कि भारतीय युवाओं को हफ्ते में 70-80 घंटे काम करने चाहिए जिस पर बवाल भी उठा था कि कैसे कोई इतने घंटे काम कर सकता है. लेकिन भारतीय महिलाएं घरेलू कामों में इस से भी कहीं ज्यादा समय बिताती हैं.

टाइम यूज के मुताबिक, महिलाएं हर दिन घर के कामों में 299 मिनट लगाती हैं यानी 5 घंटे. वहीं पुरुष दिन में सिर्फ 97 मिनट घर के काम मे लगाते हैं यानी डेढ़ घंटा.

महिलाएं घर के सदस्यों की देखभाल और उन का खयाल रखने में रोज 134 मिनट लगाती हैं यानी 2 घंटे से भी ज्यादा वहीं पुरुष इस काम में सिर्फ 76 मिनट खर्च करते हैं.

घरेलू कामों में महिला का योगदान: जैसे घर की सफाई, खाना पकाना, बच्चों की देखभाल, बीमार बुजुर्गों की सेवा, परिवार के सदस्यों की देखभाल आदि में उन्हें घंटों खपाना पढ़ता है.उस पर भी कई पतियों का कहना होता है कि तुम घर पर करती ही क्या हो? अरे काम ही कितना होता है घर में जो काम का रोना रोती रहती हो? लेकिन कभी आप ने यह सोचा है कि जिस टेबल पर बैठ कर आप ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर करते हैं उसे बनाने में एक महिला को कितनी मेहनत करनी पड़ती है? कभी यह सोचा आप ने कि जो कपड़े पहन कर आप औफिस जाते हैं, उन्हें धोने और प्रैस करने में महिलाओं की कमर पर बल पड़ जाते है? घर में और भी कितने छिपे हुए काम होते हैं, जिन्हें माप पाना मुश्किल है क्योंकि ये एक तरह से अदृश्य होते हैं और इन्हें अन्य कामों के साथसाथ किए जाने की जरूरत होती है.

सचाई यह भी है

2019 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से सोशियोलौजी और सोशल पौलिसी में पीएचडी कर रही एलिसन डेमिंगर ने 35 जोडि़यों पर एक शोध किया. इस में भाग लेने वाली अधिकतर जोड़ी को यह एहसास हुआ कि घर के काम का बहुत बड़ा हिस्सा महिलाओं के जिम्मे आता है.

दुनिया तेजी से बदल रहा है. महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. लेकिन सचाई यह है कि भारत में ही नहीं, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे कई देशों में भी महिलाएं पुरुषों की तुलना में घर का ज्यादा काम करती हैं. ग्रीस में भी महिलाएं घर के काम सब से ज्यादा करती हैं.यहां रोजाना खाना पकाने और घर के काम करने वाली 85 फीसदी महिलाओं को देश के सिर्फ 16 फीसदी पुरुषों से ही मदद मिलती है. भारत में भी पुरुषों के मुकाबले महिलाएं बहुत ज्यादा काम करती हैं.

फिर भी उन के कामों को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता जितना पुरुषों के कामों को. वह इसलिए क्योंकि महिलाओं के कामों से किसी प्रकार की धन की उत्पत्ति नहीं होती. इसलिए महिलाओं के घर के काम को उन का कर्तव्य मान कर कम आंका जाता है.

भारत में महिलाओं के घरेलू काम का मेहनताना अगर होता तो कितना होता?

2021 में एक राजनीतिक पार्टी ने वादा किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो घरगृहस्थी संभाल रही महिलाओं को वेतन दिया जाएगा. एक सांसद ने भी इस बात का समर्थन किया था और कहा था कि गृहस्थी संभाल रही महिलाओं को उन की सेवाओं के लिए पैसे देने से उन की ताकत और स्वायत्तता बढ़ेगी और इस से एक यूनिवर्सल बेसिक इनकम पैदा होगी. खासतौर पर ऐसे वक्त में जबकि महिलाएं नौकरियों में जगह गंवा रही हैं.

पूरी दुनिया में महिलाएं घरगृहस्थी के कामों में घंटों लगाती हैं और इस के लिए उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता. ‘इंटरनैशन लेबर और्गनाइजेशन’ के मुताबिक, बिना किसी पगार वाले काम करने में सब से ज्यादा समय इराक की महिलाएं लगाती हैं जो हर दिन 345 मिनट घरेलू कामों में लगाती हैं.

आज भी कई घरों में लड़कियां कम उम्र में ब्याह दी जाती हैं. फिर साल 2 साल में वे 1-2 बच्चों की मां भी बन जाती हैं. कम उम्र में ही बच्चों की जिम्मेदारी और पारिवारिक बो झ तले लड़कियां ऐसी दबती हक्े कि फिर उठ नहीं पाती हैं और एक दिन उसी चारदीवारी में घुट कर मर जाती हैं.

भारत में ऐसी महिलाओं की संख्या 16 करोड़ से भी कहीं ज्यादा है जो घरगृहस्थी संभाल रही हक्े. लेकिन उन्हें कोई पगार नहीं मिलती. कानूनी जानकार गौतम भाटिया तर्क देते हैं कि बिना पगार वाला घरेलू कामकाज जबरन मजदूरी है.

दिसंबर, 2020 में एक अदालत ने सड़क हादसे में मारी गई एक 33 साल की घरेलू महिला के परिवार को 17 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया. इस आदेश में अदालत ने महिला की मासिक सैलरी 5 हजार रुपए महीना मानी थी.

एक फैसले में जजों ने शादियों को एक ‘समान आर्थिक भागीदारी’ के तौर पर देखा और इस तरह से घरेलू महिला की सैलरी पति की सैलरी की आधी बैठी. लेकिन सिर्फ कानून ही बना, ठीक तरह से लागू नहीं हो पाया. अगर होता तो महिलाओं की स्थिति कुछ और बेहतर हो पाती.

काम बराबर वेतन कम

यूरोप से ले कर अमेरिका तक दुनिया के सारे देशों में महिला कर्मचारी को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं मिलता है. लेकिन घरपरिवार की पूरी जिम्मेदारी औरतों पर लाद दी गई है. बौलीवुड ऐक्ट्रैस प्रियंका चोपड़ा ने कहा था कि उन्हें बौलीवुड में कभी मेल ऐक्टर के बराबर फीस नहीं मिलती. मेल कोस्टार की सैलरी की 10% ही फीस उन्हें मिलती है. कामकाजी महिलाओं को घर और बाहर दोनों जगहों पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

घर के कामों का बो झ कुछ औरतों को विरासत में मिला है, लेकिन कुछ ने इसे खुद ही ओढ़ रखा है. बहुत सी महिलाएं सामाजिक दबावों और अपेक्षाओं के मुताबिक खुद को ढाल लेती हैं. वे उस से बाहर निकलने के लिए छटपटाती तो हैं लेकिन निकल नहीं पाती हैं क्योंकि यहां ‘गुड वुमन’ या ‘प्लीजिंग’ टैग काम करता है.

टौक्सिक फैमिनिटी

हमारे समाज ने महिलाओं के लिए कुछ ऐसे निश्चित मानक स्थापित किए हैं, जिन का पालन अनिवार्य माना जाता है. अगर कोई उन्हें फौलो न करे तो उसे आलोचना का सामना करना पड़ता है. परिणामस्वरूप अकसर हम अपनी असली पहचान और क्षमताओं को दबा कर उन आदर्शों के अनुसार खुद को ढालने की कोशिश करते हैं. यहीं से जन्म लेता है ‘टौक्सिक फैमिनिटी’ यह वह सोच है जो महिलाओं को गलत मानकों और अपेक्षाओं में बांध देती है और उन की स्वाभाविक पहचान को बाधित कर देती है. यह केवल महिलाओं को दबाने का एक तरीका नहीं है बल्कि इस से समाज के हर व्यक्ति की मानसिकता और विकास प्रभावित होता है. कई महिलाएं जानबू झ कर भी इस का शिकार बन जाती हैं.

हमारे समाज में उन महिला की ज्यादा अच्छी छवि मानी जाती है जो अपनी भावनाओं को दबा कर अपने से जुड़े लोगों की परवाह करने में जुटी रहती हैं. चाहे वे कितनी भी तकलीफ में क्यों न हों लेकिन सब के लिए उन की पसंद का खाना बनाएंगी, उन की छोटीछोटी जरूरतों का खयाल रखेंगी. समाज में इसे प्लीजिंग पर्सनैलिटी वाली स्वीकृति पाने के लिए बहुत सी महिलाएं ‘टौक्सिक फैमिनिटी’ के दायरे में रहने लगती हैं.

जैसे कि अपनी क्षमताओं को कम दिखाना ताकि पुरुष पार्टनर को कमजोर न दिखना पड़े.

मेल पार्टनर का सहारा लेना, यह मान कर कि आप अपना कोई काम खुद नहीं कर सकतीं.

समाज के नियमों के चलते खुद को परेशान करना ताकि वे खुश रहें.

खुद से पहले पुरुषों की इच्छा को आगे रखना आदि.

कमजोर नहीं है औरत

आप यह समझिए कि औरत होने का मतलब कमजोर होना नहीं है. असल में औरत होने का मतलब एक महिला की अपनी पहचान, उस की ताकत, संवेदनशीलता, आत्मनिर्भरता और व्यक्तित्व से है. महिलाओं को अपनी सोच और मानसिकता को ठीक तरह से सम झना चाहिए. उन्हें इस बात की सम झ होनी चाहिए कि ऐसे कौन से सामाजिक दबाव हैं जो समाज में उन्हें पीछे धकेल रहे हैं. खुद को याद दिलाएं कि आप किसी से कम नहीं हैं. सैल्फ लव और आत्मनिर्भता को प्राथमिकता दें.

जरूरी है कि महिलाएं अपने जीवन के फैसले बिना किसी बाहरी दबाव के लें और सब का खयाल रखने से पहले अपनी सेहत का ध्यान रखें. यह सम झें कि आप अपनी जिंदगी की नायिका हैं. शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक देखभाल को प्राथमिकता दें क्योंकि जब आप खुद को पोषित करती हैं तब आप दूसरों के लिए भी मददगार साबित हो सकती हैं. अपनी देखभाल करने से महिलाएं समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती हैं.

Divorce : मेरे रिश्ते में तलाक की नौबत आ गई है, क्या करूंं?

Divorce :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 37 साल का हूं. मैं अपनी पत्नी को सैक्सुअली सैटिस्फाइड नहीं कर पाता हूं, जिस वजह से हमारे बीच कम्युनिकेशन गैप आने लगा. अब हालत यहां तक पहुंच गई है कि बात तलाक तक आ गई है. कृपया कोई उपाय बताएं?

जवाब-

अपनी पार्टनर से सैक्स प्रौब्लम्स के बारे में खुल कर बात करें. ऐसा समय तय करें जब आप दोनों फ्री और रिलैक्स्ड हों. अपनी ऐक्सपैक्टेशंस, फीयर्स, डिजायर्स को ले कर बात करें. आप चाहें तो सैक्सोलौजिस्ट की मदद भी ले सकते हैं.

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बौलीवुड अदाकारा करिश्मा कपूर ने अपने पति संजय कपूर से तलाक लेने का फैसला किया. दोनों ने सुप्रीम कोर्ट में आपसी रजामंदी से तलाक लेने और विवादों का निबटारा करने के कागजात पर दस्तखत किए थे.

करिश्मा कपूर ने 29 सितंबर, 2003 को दिल्ली के बिजनैसमैन संजय कपूर से शादी की थी. लेकिन 2012 में दोनों अलग हो गए. दोनों के 2 बच्चे समायरा और कियान हैं. करिश्मा संजय कपूर की दूसरी पत्नी थीं. उन की पहली शादी डिजाइनर नंदिता मथानी से हुई थी. संजय और नंदिता पढ़ाई के दौरान मिले थे. दोनों ने लव मैरिज की, मगर यह अधिक दिनों तक नहीं टिक सकी.

नंदिता से तलाक लेने के महज 10 दिनों बाद ही संजय ने करिश्मा से शादी कर ली. मगर यह शादी भी आखिर टूट गई और वजह रही संजय का प्रिया सचदेव से रिश्ता.

इसी तरह 33 साल की हौलीवुड अदाकारा बिली पाइपर ने भी अपने दूसरे पति लौरेंस फौक्स से कुछ समय पहले तलाक लेने की घोषणा की.

दरअसल, बिली पाइपर की पहली शादी तब हुई थी जब वे महज 19 साल की थीं. उन का पहला पति क्रिस इवेंस 35 वर्ष का था. दोनों ने लास वेगास में चुपके से शादी की थी, पर 3 साल बाद ही दोनों अलग हो गए. उस वक्त उन के तलाक को ले कर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ था, क्योंकि बिली तब परिपक्व नहीं थीं. उन की कोई संतान भी नहीं थी, इसलिए तलाक के बाद वे जल्दी मजबूत बन कर फिर उभर आईं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे… 

गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Relationship : क्या है थ्री एल बैलेंस

Relationship : किसी  भी रिश्ते की मजबूती के लिए इन 3 एल का बैलेंस होना जरूरी होता है- पहला एल यानी लौयल,  दूसरा एल मतलब लव और  तीसरा एल मतलब लिबर्टी.

बी लौयल

रिश्ते में वफादार या ईमानदार होना: हमारे जीवन में परिवार, रिश्ते और दोस्त बहुत महत्त्व रखते हैं, किसी भी रिलेशनशिप में चाहे वह पतिपत्नी की हो या फिर मातापिता और बच्चों की या फिर दोस्ती की एकदूसरे पर भरोसा होना बेहद जरूरी होता है. यह आप के रिश्ते को मजबूत बनाने में मदद करता है.

एक शादीशुदा जिंदगी में लौंग और हैल्दी रिलेशनशिप के लिए सिर्फ प्यार ही नहीं लौयल होना भी जरूरी होता है. एक महिला हमेशा ऐसा पार्टनर चाहती है जो उसे स्पैशल महसूस कराए, उस के इमोशन का ध्यान रख सके. मगर कई बार महिलाएं अपने लिए केयरिंग, अंडरस्टैंडिंग और सम झदार पार्टनर की तलाश में यह भूल जाती हैं कि रिलेशनशिप में लौयल होना बेहद जरूरी है क्योंकि यह आप के रिश्ते को मजबूत बनाने में मदद करता है.

आज के दौर में रिश्तों की गहराई कम होती जा रही है, रिश्ते में भरोसा व ईमानदारी जैसे गुण खत्म होते जा रहे हैं. ऐसे में ये विशेषताएं रिश्ते को अटूट बनाती हैं, साथ ही आप यह भी जानेंगे कि क्या आप का पार्टनर या दोस्त लौयल है या नहीं:

मुश्किल समय में आप के साथ रहे

सभी के जीवन में उतारचढ़ाव, सुखदुख, सफलताअसफलता आतीजाती रहती है. ऐसे में हम हमेशा चाहते हैं कि हमारा पार्टनर या दोस्त मुश्किल समय में हमारे साथ हो. अगर आप का पार्टनर, दोस्त ऐसे समय में आप की मदद करता हो तो वह आप के लिए लौयल है.

भरोसेमंद हो

अकसर हमारे मन में बहुत सी बातें चलती रहती हैं पर हमेशा उन बातों को खुल कर नहीं बोला जा सकता है लेकिन जब आप का पार्टनर, दोस्त भरोसेमंद हो यानी लौयल हो तो उन बातों और चिंताओं को पार्टनर, दोस्त के साथ शेयर करना बेहद आसान हो जाता है. इस से आप का तनाव भी कम हो जाता है.

बिताएं क्वालिटी टाइम

आजकल के भागदौड़ वाले लाइफस्टाइल के बीच कई बार अपनी पार्टनर, परिवार, दोस्तों के लिए भी समय निकलना थोड़ा मुश्किल होता है. अगर ऐसे में आप का पार्टनर या दोस्त आप के लिए समय निकाल कर आप के साथ क्वालिटी टाइम बिताए तो  आप जान लें वह आप के लिए लौयल है.

सोशल मीडिया ऐक्टिविटी

आज के समय में सोशल मीडिया और इंटरनैट पर अपनी ऐक्टिविटी को ले कर पार्टनर संग ईमानदार रहना आप के रिश्ते को मजबूती देता है क्योंकि जब हम स्वयं में सच्चे व ईमानदार होते हैं तो हमें कुछ भी छिपाने की जरूरत नहीं पड़ती जैसे यदि आप का पार्टनर अपने फोन में लौक नहीं लगाता, साथ ही पिन या लौकपैटर्न आप के साथ शेयर करता है और वह कभी भी आप से अपनी सोशल मीडिया गतिविधि को छिपाने की कोशिश नहीं करता तो वह लौयल है. वहीं दूसरी ओर यदि आप के पास आते ही पार्टनर अपनी स्क्रीन को हाइड कर देता है या दूसरी स्क्रीन पर शिफ्ट हो जाता है तो यह एक संकेत है कि आप का पार्टनर रिश्ते को ले कर ईमानदार नहीं है.

एकदूसरे से बातचीत करना

रिश्ते में ईमानदारी के लिए एकदूसरे से बातचीत करना बहुत जरूरी है खासतौर पर जब आप को रिश्ते में किसी बात को ले कर समस्या या गलतफहमी होती है क्योंकि जब पार्टनर ईमानदार होता है तो वह रिश्ते को सफल बनाने के लिए अपनी तरफ से प्रयास करता है, साथ ही कोशिश करता है कि उस मुद्दे को ले कर दोबारा रिश्ते में समस्या पैदा न हो. इस के लिए आप अपने सीक्रेट्स, व्यक्तिगत आकांक्षाओं, आदतों को सा झा करने से भी नहीं कतराते हैं तब एकदूसरे से बातचीत गलतफहमी और मन ही मन विचारों की उथलपुथल को रोकने में मदद मिलती है.

किसी भी रिश्ते में सब से जरूरी होता है भरोसा. आप का पार्टनर, दोस्त कितना भी अच्छा क्यों न हो लेकिन अगर वह ईमानदार नहीं है तो फिर रिश्ते का लंबे समय तक टिक पाना संभव नहीं है.

लव

प्यार यानी प्रेम प्राय: शारीरिक आकर्षण पर आधारित होता है, जबकि रिश्ते भावनात्मक जुड़ाव पर आधारित होते हैं. अगर आप किसी से प्यार करते हैं तो उसे बताना, इजहार करना भी जरूरी है, फिर चाहे वह संबंध कोई भी हो जैसे मांबाप का हो या पतिपत्नी का हो हर रिश्ते में प्यार का इजहार करना जरूरी है. किसी भी रिलेशनशिप की लंबी उम्र के लिए रिश्ते में प्यार होना बेहद जरूरी है. चाहे महिलाएं हों या पुरुष सभी चाहते हैं कि उन्हें एक ऐसा पार्टनर मिले जो उन का ध्यान रखे और उन्हें बहुत प्यार करे.

आजकल कपल्स के बीच एकदूसरे के साथ समय बिताने का मौका कम ही मिलता है. ऐसे में आप इन ऐक्टिविटीज को कर के आपस में प्यार को बढ़ा सकते हैं.

खुल कर बातें करें

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में रिश्तों को संभालना और प्यार बनाए रखना थोड़ा मुश्किल हो गया है. ऐसे में एकदूसरे से बातें करना, साथी की बातों को ध्यान से सुनना और भावनाओं को सम झना बहुत जरूरी है. अगर आप अपने साथी से अपनी भावनाएं और बातें खुल कर शेयर करेंगे तो रिश्ते में गलतफहमी की गुंजाइश कम होगी और इस से रिश्ते में मजबूती आएगी तथा आप के बीच प्यार और गहरा होगा.

रिश्ते में सरप्राइज देने से खुशी और प्यार बना रहता है. अपने साथी को कभीकभी एक छोटा सा गिफ्ट दें या उस की छोटीछोटी बातों की तारीफ करें. इस से उसे खुशी महसूस होगी और आपका रिश्ता और भी मजबूत होगा.

एकदूसरे के साथ क्वालिटी समय बिताना

एकदूसरे के साथ क्वालिटी समय बिताने के लिए आप ये ऐक्टिविटीज कर सकते हैं जैसे एकदूसरे के साथ खाना खाना, बनाना, टहलने जाना या फिल्म देखना, एकदूसरे के लिए शौपिंग करना, केयर करना, काम में हाथ बंटाना. ये सब छोटीछोटी बातें रिश्ते में प्यार को बढ़ाने का काम करती हैं.

एक दूसरे की गलतियों को करें माफ

रिश्तों में छोटीमोटी गलतियां होती रहती हैं. इन्हें माफ कर आगे बढ़ें, एकदूसरे को सम्मान दें. गलती होने पर नीचा दिखाने से बचें. माफी देने से रिश्ते में कड़वाहट कम होती है और आप दोनों के बीच प्यार बढ़ता है, रिश्ता मजबूत होता है.

लिबर्टी

रिश्ते में दें एकदूसरे को लिबर्टी: यदि किसी रिश्ते में एकदूसरे को अपनी मरजी का काम करने और लाइफ को अपने हिसाब से जीने को मिल जाए तो यह रिश्ता और भी खूबसूरत हो जाता है क्योंकिउसे किसी भी प्रकार का बंधन महसूस नहीं होता. तब पतिपत्नी एकदूसरे की केयर बहुत अच्छे से करते हैं.

कुछ कपल्स चाहते हैं कि हर छोटीछोटी बात एकदूसरे से पूछ कर की जाए और न पूछने पर  झगड़ा भी करते हैं जैसे कहां गई थी या गए थे बता कर नहीं गए, पार्टी करने से पहले एक बार पूछ लेते या लेती, मु झ से बिना पूछे इतनी सारी शौपिंग कैसे कर ली, आज फ्रैंड्स से मिलने जाना है एक बार बता देती, क्या मैं ऐसा कर लूं आदि. ये बहुत छोटीछोटी बातें हैं लेकिन एक हैल्दी रिलेशनशिप के लिए बहुत माने रखती हैं.

जब किसी को कोई भी काम करने के पहले पूछना पड़े और अपनी मरजी का कोई काम न कर पाए तो फिर रिश्ते में हर समय उस के बिगड़ने का खतरा बना रहता है. एक अच्छे और सच्चे रिश्ते में आप को बारबार सफाई नहीं देनी पड़ती है कि अपने ऐसा क्यों किया या ऐसा क्यों नहीं किया आदि. यदि आप एकदूसरे को आजादी देना चाहते हैं या देते हैं तो एकदूसरे पर भरोसा होना अति आवश्यक है ताकि आप पार्टनर को ले कर बेफिक्र रहें ताकि जो भी आप करना चाहते हैं उसे बिना किसी परेशानी एवं टोकाटाकी से पूरा कर सकें जिस से दोनों के बीच किसी भी प्रकार के शक की गुंजाइश न रहे.

इस तरह अपने रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए इन एल के बीच बैलेंस बनाना जरूरी होता है. यदि एक भी चीज कमजोर हुई तो रिश्ते की नींव कमजोर पड़ सकती है जिस से आप का रिश्ता गड़बड़ा सकता है.

Mother’s Day 2025 : फैसला – बेटी के एक फैसले से टूटा मां का सपना

Mother’s Day 2025 : मेरे सामने आज ऐसी समस्या आ खड़ी हुई है, जिस का हल मुझे अभी  निकालना है. मम्मी मेरे कमरे में कई बार झांक कर जा चुकी हैं, लेकिन मैं अभी तक कोई फैसला नहीं कर पाई हूं. अगर मैं ने जल्दी अपना फैसला न सुनाया तो मम्मी आ कर कहेंगी, ‘नेहा, बेटे तुम ने क्या सोचा. देखो, वे लोग अमेरिका से आ कर हमारे फैसले के इंतजार में बैठे हुए हैं. वे चाहते हैं तुम समीर से शादी के लिए हां कर दो.’

हम एक बार रिश्ता खत्म कर चुके हैं, फिर दोबारा उसे जोड़ने की जिद क्यों. मम्मी सोचती हैं कि समीर अच्छा लड़का है, अमेरिका में जमाजमाया बिजनैस है. वे यह क्यों भूल जाती हैं कि समीर की मम्मी ने हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर उन्हें कैसी खरीखोटी सुनाई थी. क्या हम यह भी भूल गए हैं कि समीर के पापा होटल का बिल चुकाए बिना अमेरिका लौट गए थे और बिल पापा को चुकाना पड़ा था. इस तरह की  गलती को कोई कैसे अनदेखा कर सकता है. फिर इस बात की क्या गारंटी है कि आगे ऐसा कुछ नहीं दोहराया जाएगा. अगर कभी ऐसा हुआ तो उस का अंजाम क्या होगा? मैं कहीं की नहीं रहूंगी.

अपनी बेटी को अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मांबाप समीर को बेटी दे देंगे. वरना तब तक मैं राहुल को खो चुकी होउंगी. मैं राहुल को खोना नहीं चाहती, मां.

पिछले साल इन्हीं दिनों समीर से मेरी सगाई हुई थी. मेरी एक आंटी अमेरिका से आईर् हुई थीं, उन्होंने यह रिश्ता बताया था. जब भी मेरी शादी की बात चलती, मम्मीपापा आह भर कर कहते, ‘काश, हमारी बेटी की शादी भी इंगलैंड या अमेरिका में हो जाती.’ पड़ोस में किसी के बेटे की शादी इंगलैंड से हुई है तो किसी की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है. मेरे मम्मीपापा भी चाहते थे कि उन की बेटी भी विदेश में सैटल हो जाए, तब वे भी गर्व से कह सकेंगे कि उन की बेटी अमेरिका में रहती है, बहुत बड़ा बंगला है, बड़ीबड़ी गाडि़यां हैं और तो और घर में स्विमिंग पूल भी है.

बस, इसी लालच के चलते जैसे ही अमेरिका में रहने वाले लड़के का औफर आंटी ने दिया, मम्मी इस रिश्ते के लिए आंटी पर जोर डालने लगीं. आंटी ने कहा कि जब वे अमेरिका लौटेंगी, तब बात कर लेंगी. लेकिन मम्मी को सब्र कहां. आंटी से जिद कर के अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग इंडिया आने वाले थे, लेकिन अभी उन का कार्यक्रम रीशैड्यूल हो रहा है. 2 दिन में आने की डेट बता देंगे.

मम्मी ने 2 दिन बाद ही फिर आंटी से अमेरिका फोन करवा दिया. वे लोग 21 तारीख को आ रहे हैं. इंडिया में 2 हफ्ते तक रुकेंगे. मम्मी ने गिनती कर ली, आज 7 तारीख है, 2 हफ्ते बाद इंडिया आ जाएंगे. मम्मी ने आंटी से कह दिया कि यहां बात पक्की हो जाए तो नेहा अमेरिका शिफ्ट हो जाएगी. हम भी सालछह महीने में चक्कर लगा लिया करेंगे.

तनवी आंटी ने बताया कि समीर अच्छा लड़का है. उन का वहां सालों से जमा हुआ बिजनैस है. शहर में 4 बड़े स्टोर हैं. आंटी ने बढ़चढ़ कर उन की तारीफ कर दी. मम्मी को यह सुन कर अच्छा लगा.

‘यहीं बात पक्की हो जाए तो नेहा की तरफ से हम निश्चिंत हो जाएंगे,’ मम्मी ने आंटी से कह दिया, ‘जैसे ही वे लोग इंडिया आएं, अगले दिन हमारे यहां चाय पर बुला लेना. नेहा को देख कर कोई कैसे मना कर सकता है. रंगरूप में कोईर् कमी नहीं, गोरीचिट्टी, स्लिम और स्मार्ट. हम शादी में कोई कसर छोड़ने वाले नहीं. फाइव स्टार होटल में शादी करेंगे. लेनदेन में भी कोई कमी नहीं रखेंगे.’

जिस दिन वे लोग इंडिया पहुंचे, आंटी ने अगले ही दिन उन्हें चाय पर बुला लिया. मम्मी ने मुझे अच्छी तरह तैयार होने के लिए पहले से ही कह दिया था. आंटी के कहने पर समीर और उस के मम्मीपापा हमारे घर पहुंचे. आंटी ने उन का परिचय करवाया, ‘मीट मिसेज शिखा, मिस्टर हरीश और इन का बेटा समीर.’

समीर की मम्मी ने आंटी को झट टोक दिया, ‘समीर नहीं तनवी, सैमी, इसे हिंदुस्तानी नाम बिलकुल पसंद नहीं.’

‘सैमी… औल राइट,’ शिखा ने जिस सख्ती से विरोध किया, तनवी आंटी ने उतनी ही सहजता से उन की बात मान ली.

‘सौरी मिसेज शिखा, मैं खास व्यक्ति से तो इंट्रोड्यूस करवाना भूल ही गई,‘ आंटी मुझे आते देख उठ खड़ी हुईं. ‘मीट द मोस्ट चार्मिंग गर्ल, नेहा.’ आंटी ने मेरी कमर में हाथ डाल कर बड़े दुलार से उन के आगे मुझे पेश कर दिया, जैसे मैं कोई बड़ी नायाब चीज हूं.

‘नेहा बड़ी होनहार लड़की है, वैरी स्मार्ट, ब्यूटीफुल ऐंड औफकौर्स वैरी वैल ऐजुकेटेड’, आंटी ने मेरे गुणों का बखान कर दिया.

आंटी हमारे बारे में अच्छी बातें बता कर उन्हें प्रभावित कर रही थीं. ‘मिसेज शिखा, नेहा अच्छे संस्कारों वाली लड़की है, इसे अपनी बहू बना लोगी तो हमेशा मेरी आभारी रहोगी.’

आंटी ने उन्हें आश्वस्त कर दिया. शादी में किसी प्रकार की कमी नहीं रहेगी. फाइव स्टार होटल में शादी होगी… वगैरा…वगैरा…

समीर की मम्मी स्वभाव से घमंडी लग रही थीं, अमेरिका में रहती हैं न, शायद इसीलिए. समीर के पापा ज्यादा नहीं बोले, बस पत्नी की ओर देखते रहे, जैसे कहना चाहते हों, ‘श्रीमतीजी, अब बोलिए.’

समीर की मम्मी ने जब सारे घर का अच्छी तरह मुआयना कर लिया, तब मेरी मम्मी से कहा, ‘देखिए, मिसेज रजनी, हमारा इंडिया आने का मकसद समीर के लिए लड़की देखने का नहीं था. तनवी ने जब यह प्रपोजल दिया तो हम ने सोचा, देख लेते हैं. उस के कहने पर हम आप के घर आ गए. नेहा हमें पसंद है, लेकिन हम आप को जल्दी में कोई जवाब नहीं दे सकेंगे. हमें एक हफ्ते का समय चाहिए, वी विल टेक सम टाइम टु डिसाइड, आई होप यू कैन अंडरस्टैंड,’ कहते हुए वे खड़ी हो गईं और साथ ही समीर और उस के पापा भी खड़े हो गए.

‘ओके, मिसेज रजनी, नाइस टु मीट यू औल. तनवी तुम अमेरिका कब लौट रही हो?

‘अभी कुछ दिन यहीं इंडिया में हूं. मेरे भतीजे की शादी है. यहां बहुत से रिश्तेदार हैं. सब से मिलना है. आप अचानक उठ क्यों गए, बैठिए न. चाय तो लीजिए प्लीज,’ आंटी ने कहा.

‘नहीं तनवी, अब चलेंगे. तुम्हारे कहने पर आ गए… ओके…‘ बायबाय कर के वे तीनों बाहर निकल गए.

‘तनवी, लगता है उन्हें बात जमी नहीं. ठीक से चाय भी नहीं पी. मैं ने इतनी अच्छी तैयारी की थी,‘ मेरी मम्मी ने अपनी चिंता जताई.

‘भाभी, आप चिंता न करें,’ शिखा का व्यवहार ही ऐसा है. मैं उन से बात कर के पता लगाऊंगी.

5 दिन गुजर गए, उन की तरफ से कोई खबर नहीं आई. मम्मी आंटी को फोन करने की सोच रही थीं कि तभी आंटी आ पहुंचीं. ‘2 दिन के लिए कानपुर चली गई थी, छोटी बहन के पास. भाभी, मैं अभी मिसेज शिखा से बात कर के आई हूं. कह रही हैं शाम तक बताएंगे.’

शाम तक कोई खबर नहीं आई. रात 9 बजे आंटी का फोन आया. मेरी मम्मी खुशी से उछल पड़ीं. जरूर अच्छी खबर होगी.

‘मिसेज शिखा ने कहा है कि हम सोच रहे हैं.’ आंटी ने बताया, ‘पौजिटिव हैं.’ अगले दिन मैसेज आ गया कि उन्हें रिश्ता मंजूर है.

आंटी ने कहा, ‘जल्दी किसी बड़े होटल में सगाई समारोह करना होगा. आज… या ज्यादा से ज्यादा कल तक.’

अगले ही दिन एक शानदार होटल में बड़ी धूमधाम से समीर के साथ मेरी सगाई हो गई. समीर के परिवार में सभी को बहुत महंगे तोहफे दिए गए. डायमंड की अंगूठियां व महंगी घडि़यों से ले कर डिजाइनर साडि़यां व सूट आदि सभी तोहफे बहुत महंगे थे.

मेरी मम्मी बहुत खुश थीं. पापा को भी सब ठीक लग रहा था. मम्मी की खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी. आखिरकार उन की बेटी अब अमेरिका चली जाएगी. वे भी सालछह महीने में एक बार वहां हो आएंगे.

अमेरिका में सैटल्ड लड़के के साथ मेरी सगाई की बधाइयां अभी भी आ ही रही थीं कि अमेरिका लौटने के अगले ही दिन समीर की मम्मी का फोन आ गया, ‘मिसेज रजनी, आप ने जो तोहफे दिए हैं, वे हमारे किस काम के. यहां अमेरिका में कौन पहनेगा इतनी हैवी साडि़यां और डै्रसेज. डायमंड ऐंड गोल्ड ज्वैलरी इज ओके बट वट टु डू विद दीज हैवी सारीज ऐंड सिल्ली ड्रैसेज. ये सब हमारे लिए बेकार हैं. यही पैसे आप ने समझदारी से खर्च किए होते… इट वुड हैव गिवन सम वैल्यू टु अस.’

समीर की मम्मी का ऐसा रूखा व्यवहार देख कर मम्मी ने अपनी गलती मान ली, ‘शिखाजी, हम से गलती हो गई. आप बुरा न मानें. आगे हम ध्यान रखेंगे.’

मम्मी ने स्वीकार कर लिया ताकि वे नाराज न हो जाएं और आगे सावधानी बरतने का विश्वास भी उन्हें दिला दिया. मुझे समीर की मम्मी का व्यवहार और अपनी मम्मी का गलती मान लेना अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं चुप रही.

‘मिसेज रजनी, हम डायमंड ज्वैलरी और वे गिफ्ट जो हमें ठीक लगे, साथ ले आए हैं, बाकी सब वहीं तनवी के पास छोड़ आए हैं. आप मंगवा लेना, शायद आप के किसी काम आ जाएं.’ मिसेज शिखा ने मम्मी को खूब खरीखोटी सुनाई. मम्मी जीजी करती उन की बेतुकी डांट चुपचाप सुनती रहीं.

सगाई के बाद अमेरिका लौट कर समीर की मम्मी का यह पहला फोन था. मम्मी उम्मीद कर रही थीं कि सगाई की रस्म कम वक्त में इतने बढि़या तरीके से करने पर वे उन का थैंक्स कहेंगी और हमारे दिए तोहफों के लिए आभार जताएंगी, लेकिन इतने करीबी और नएनए जुड़े रिश्ते का भी खयाल न रखते हुए उन्होंने जिस तरह मम्मी के साथ व्यवहार किया, उन्हें उस की जरा भी उम्मीद नहीं थी.

कुछ दिन तक मम्मी बहुत परेशान रहीं. पापा को सारी बात न बता कर इतना बताया कि हमारे तोहफे उन्हें पसंद नहीं आए, इसलिए शादी के वक्त हमें ध्यान रखना होगा. रिश्तों की गरिमा को ताक पर रख कर समीर की मम्मी के कड़वे बोलों ने उन्हें चिंता में डाल दिया था.

अपनी चिंता आंटी से शेयर करने के लिए मम्मी ने उन के भाई के घर फोन किया. वहां से पता चला कि वे अमेरिका लौट गई हैं. उन्होंने उसी वक्त आंटी को अमेरिका फोन कर दिया. आंटी ने मम्मी को विश्वास दिलाया, ‘चिंता की कोई बात नहीं. वे उन लोगों से बात कर के हमें वापस फोन करेंगी.‘

सगाई के बाद जब भी समीर से मेरी बात हुई, वह बेहद फीकी रही. न रोमांचक, न रोचक. जब भी मैं ने कुछ पूछा, उस ने हमेशा सधा सा जवाब दे दिया, ‘जब मैं वहां पहुंचूंगी, सब जान लूंगी.’ कई बार तो बात बस हां और ना पर ही खत्म हो जाती. समीर का इस तरह अनमना व्यवहार मुझे अच्छा नहीं लगा. मैं ने मम्मीपापा को समीर के रूखे व्यवहार के बारे में कुछ नहीं बताया, लेकिन मुझे बहुत बुरा लगा. मैं चुप रही. मम्मी के लिए एक और चिंता खड़ी करने से अच्छा है, चुप रहना.

मैं मम्मी को किसी नई चिंता में उलझने से कहां तक बचा पाती, क्योंकि अगले दिन तनवी आंटी का फोन आ गया. उन्होंने जो बताया, उस से हमारा सारा उत्साह फीका पड़ गया.

‘भाभी, यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा. आप जानती हैं अमेरिका में मंदी आने से बिजनैस पर असर पड़ा है और बिजनैस मंदी की वजह से बुरे दौर से गुजर रहा है. वे लोग भी परेशान हैं. मुझे यह भी पता चला है कि वे लोग इंडिया वापस आने की भी सोच रहे हैं.

पिछली बार इंडिया आने का उन का मकसद यहां सही अवसर देखने के साथ समीर के लिए लड़की देखना भी था. उन्होंने नेहा के अलावा और भी 3-4 लड़कियां देखी थीं. मिसेज शिखा ने तब झूठ बोला

था कि वे मेरे कहने पर नेहा को देखने आ गए थे. यहां आ कर जो कुछ मुझे पता चला है, मैं ने आप को बता दिया. अब आप जैसा ठीक समझें.’

तनवी आंटी ने जो बताया, वह मम्मीपापा के लिए एक बड़ी चिंता का कारण बन गया. वे लोग वापस इंडिया लौटने की सोच रहे हैं. नेहा के अलावा उन्होंने और लड़कियां भी देखीं. मिसेज शिखा कह रही थीं, तनवी ने प्रपोजल दिया, इसलिए हम आ गए.

मम्मी अपना गुस्सा समीर की मम्मी पर निकालने लगीं, ‘वाह शिखाजी, डायमंड ज्वैलरी और महंगे तोहफे तो साथ ले गईं. बाकी यहां छोड़ गईं. ऐसा सामान देते जिस की हमें वैल्यू मिलती. वैल्यू की बड़ी पहचान है आप को.’

मेरे पापा पहले ही उन से नाराज बैठे थे. कुछ दिन पहले समीर के पापा ने अमेरिका से फोन कर अपने लिए होटल बुक करवाने के लिए कहा था और होटल का बिल हमारे नाम करवा कर चले गए. अमेरिका लौट कर फोन पर सौरी कह कर अपनेआप को बचा लिया.

कुछ दिन घर में उदासी छाई रही. मम्मीपापा दोनों परेशान थे. मैं भी असमंजस की स्थिति में थी. इसी उधेड़बुन में 3 महीने से ज्यादा निकल गए. इस बीच न उधर से कोई फोन आया, न ही हम ने उन से बातचीत करने की पहल की. जो भी हुआ हम उसे भुलाने की कोशिश में थे कि अचानक तनवी आंटी का अमेरिका से फोन आ गया. आंटी समीर की मम्मी के पास बैठ कर वहीं से फोन कर रही थीं. उन्होंने मम्मी को बताया कि शिखा ने फोन पर उन्हें जो बुराभला कहा था, उस के लिए वे मेरी मम्मी को सौरी कहना चाहती हैं.

आंटी ने फोन समीर की मम्मी को दे दिया, ‘मिसेज रजनी, मैं शिखा, समीर की मम्मी. दैट डे आई वाज इन ए वैरी बैड मूड. मेरा मकसद आप का दिल दुखाने का नहीं था. आई एम रियली सौरी. नेहा हमें बड़ी अच्छी लगी. शी इज ए लवली गर्ल और हम उसे अपनी बहू बनाना चाहते हैं. आई होप यू विल नौट डिसअपौइंट अस. आप मेरी बात मान लीजिए. मैं आप को फिर एक बार सौरी बोल रही हूं’.

‘शिखाजी, आप ऐसा न कहिए, आप को सौरी बोलने की जरूरत नहीं. आप लोग हमें बड़े अच्छे लगे. आप जैसे लोगों से रिश्ता जोड़ने में हमें कोई प्रौब्लम नहीं है. मैं नेहा के पापा से बात कर के आप को…’

समीर की मम्मी बीच में ही बोल पड़ीं, ‘मिसेज रजनी आप को अपनी बेटी के बारे में फैसला लेने का पूरा हक है. नेहा के पापा आप से क्यों असहमत होने लगे. नाऊ ऐवरीथिंग इज क्लीयर बिटवीन अस. आप जब कहेंगे, हम इंडिया आ जाएंगे. लीजिए, आप तनवी से बात कीजिए,‘ और उन्होंने फोन आंटी को दे दिया.

आंटी फिर उन की वकालत करने लगीं, ‘उन का बिजनैस अब अच्छा चल रहा है. वे लोग 2 और स्टोर खोल रहे हैं. समीर के लिए अलग से घर खरीद लिया है. भाभी, आप जानती हैं अमेरिका में बच्चे बड़े होने पर मांबाप के साथ नहीं रहते. वे अलग रहना पसंद करते हैं, इसलिए समीर शादी के बाद अपने अलग घर में शिफ्ट हो जाएगा.‘

ये सब सुन कर मेरी मम्मी का मन फिर डोलने लगा. अमेरिका सैटल्ड लड़के के साथ मेरे रिश्ते का लालच फिर उन के मन में प्रबल हो उठा.

आंटी ने जैसे ही फोन रखा, मम्मी मेरे पास आ कर बैठ गईं. वे देखना चाहती थीं कि आंटी की बातें सुन कर मुझे कितना अच्छा लगा है. मम्मी चाहती थीं कि मैं समीर से शादी कर के अमेरिका सैटल हो जाऊं. मम्मी की यह चाह कैसे पूरी होगी, मैं नहीं जानती, लेकिन मैं हैरान हूं कि मम्मी हमेशा यह क्यों भूल जाती हैं कि हमारी सगाई पर दिए गए तोहफों को ले कर समीर की मम्मी ने उन्हें कैसे फटकारा था और कैसे झूठ बोल कर हम पर रोब जमाने की कोशिश करती रही थीं. तब मेरी मम्मी से कह रही थीं कि तनवी ने प्रपोजल दिया तो हम नेहा को देखने आ गए, जबकि उन्होंने समीर के लिए और भी लड़कियां देखी थीं.

आंटी के फोन के 2 दिन बाद समीर का फोन आया. फोन मैं ने ही उठाया, मम्मी के पूछने पर मैं ने बताया कि समीर का फोन है. समीर का नाम सुनते ही उन की आंखों में चमक आ गई. वे पहले मेरे नजदीक खड़ी रहीं, फिर दूर जा कर हमारी बातें सुनने की कोशिश करती रहीं.

‘समीर का फोन आने की मुझे उम्मीद नहीं थी, लेकिन मैं जानती थी कि मैं उसे कोई भाव देने वाली नहीं थी. मेरे हैलो करने पर जैसे ही उस ने ‘हैलो, मैं समीर… अमेरिका से,’ बोला, मैं ने अपने अंदर भरे आक्रोश को उगलना शुरू कर दिया, ‘ओह समीर… नहीं…नहीं… सैमी… हिंदुस्तानी नाम तो आप को पसंद नहीं. आप सैमी कहते, तब भी मैं पहचान लेती. क्योंकि मेरी आप से सगाई हो चुकी है.

कब से शादी के सपने देख रही हूं, क्यों न देखूं आखिर सगाई के बाद अगला कदम शादी ही है न. मिस्टर सैमी आप रहते अमेरिका में हैं, लेकिन पत्नी हिंदुस्तानी चाहिए क्योंकि वह तेजतर्रार नहीं होती, बड़ों का मानसम्मान करना जानती है, मुश्किलों में साथ निभाती है जबकि अमेरिकी लड़कियां जराजरा सी बात पर तलाक के कागज भेजने की धमकी दे देती हैं.’

‘प्लीज डोंट मिसअंडरस्टैंड मी. वैन वी टौक, आई वाज टैरिबली अपसैट… इनफैक्ट आई वाज इन ए वैरी बैड मूड…’

‘क्या आप अपनी मम्मी की तरह हमेशा बैड मूड में ही रहते हैं. कुछ दिन पहले आप की मम्मी ने इसी बैड मूड के लिए मेरी मम्मी से सौरी कहने के लिए फोन किया था और आज उन के बेटे ने…’

‘आप इतनी नाराज क्यों हो रही हैं…’

‘शायद आज मैं बैड मूड में हूं… इसलिए.’

‘आई एम रियली सौरी. आप जो चाहे मुझे सजा दें. बट…बट प्लीज डोंट स्पौयल…’

‘मिस्टर सैमी, आप और आप की मम्मी दोनों इस रिश्ते को बिगाड़ने के लिए जिम्मेदार हैं. मेरी मम्मी तो आज भी आप की मम्मी के बेहद रूखे और डांटडपट वाले व्यवहार को भूल कर इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए तैयार बैठी हैं, लेकिन मिस्टर सैमी अब ऐसा कभी नहीं हो पाएगा.’

‘प्लीज डोंट से दैट. आई विल बी डिसअपौइंटेड…’

‘आप डिसअपौइंट क्यों हो रहे हैं. आप को हिंदुस्तानी लड़की से ही शादी करनी

है, बड़े शौक से करिए. यहां आप कुछ और लड़कियां देख गए थे. चुन लीजिए, उन में से कोई. मेरी मम्मी की तरह अमेरिका भेजने के लालच में कोई और मातापिता आप को अपनी बेटी देने के लिए तैयार हो जाएंगे.’

‘आई कैन अंडरस्टैंड योर ऐंगर. आई स्वीयर इन फ्यूचर नथिंग लाइक दिस विल हैपन.’

‘आप के स्वीयर करने या सौरी कहने से क्या हमारी तकलीफें कम हो जाएंगी? हाऊ मच वी हैव सफर्ड, यू कांट इमैजिन. मैं दुआ करती हूं कि आप को जल्दी एक हिंदुस्तानी लड़की मिल जाए और आप की मम्मी को उन के दिए गए तोहफों की पूरी वैल्यू न मिलने पर खरीखोटी सुनाने का मौका एक बार फिर मिल जाए,’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

जैसे ही मैं ने फोन रखा, मम्मी गुस्से से घूरती हुई मुझे डांटने लगीं, ‘नेहा

बेटे, यह कैसा तरीका है समीर से बात करने का.’

‘क्यों मम्मा, क्या मैं कहती कि समीरजी कब से हम आप का इंतजार कर रहे थे. आप कब सेहरा बांध कर हमारे घर आओगे. जिन राहों से आप आने वाले थे, उन पर हम ने अब भी फूल बिछा रखे हैं वगैरा…वगैरा… ‘

मम्मी का गुस्सा अब भी बरकरार था, ‘बसबस बेटा, जो तुम ने किया वह ठीक नहीं था. उसे बहुत बुरा लगा होगा.’

‘बुरा लगा हो… जरूर लगे. हमें कोई परवा नहीं. अब हम क्या चाहते हैं, यह समीर की समझ में आ गया होगा. मम्मी आप की बेटी अब अमेरिका जाने वाली नहीं. वह यहीं रहेगी आप के आसपास. अब आप समीर का नाम हमेशा के लिए भूल जाएं. मम्मी, मैं आप को विश्वास दिलाती हूं, राहुल के साथ मेरी जिंदगी बड़े मजे में कटेगी. मैं खुश रहूंगी और आप भी निश्चिंत रहेंगे. आप राहुल को जानती हैं, कालेज के दिनों में वह 2 बार हमारे घर आ चुका है. जब आप उसे देखेंगी, एकदम पहचान लेंगी. कालेज के दिनों से हमारी आपस में खूब जमती थी.’

लगभग 5 साल बाद राहुल से मेरी मुलाकात बड़े अजीब तरीके से हुई. समीर के साथ रिश्ता खत्म होने के बाद मैं ने पापा से जौब करने की अनुमति ले ली थी. जिस कंपनी में मुझे जौब मिली थी, राहुल वहां सीनियर पोस्ट पर था. जौब जौइन करने के पहले दिन जब मैं औफिस में ऐंटर कर रही थी तो उसी वक्त राहुल भी औफिस पहुंच रहा था. गार्ड ने जैसे ही दरवाजा खोला, राहुल ने मुझे पहले अंदर जाने के लिए इशारा किया. मैं ने उस की ओर देखा. मुझे उस का चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. राहुल ने दोबारा मेरी ओर देखा और हैरानी से बोला, ‘नेहा… मैं राहुल…’

‘ओ, राहुल…, कैसे हो, कहां हो.’

‘ठीक हूं, यहीं तुम्हारे शहर में हूं. इसी कंपनी में जौब कर रहा हूं. तुम ने सोचा, राहुल दुनिया से गया… अभी इतनी जल्दी नहीं है… अभी बहुत कुछ करना है. शादी करनी है, बच्चे होंगे… पापापापा बुलाएंगे… फिर उन के बच्चे…’

इतने सालों बाद मिलने पर भी राहुल सबकुछ इतना सहज कह गया, मुझे हैरानी हुई, लेकिन मैं ने सावधानी बरतते हुए तपाक से कह दिया, ‘तुम नहीं बदलोगे राहुल, उसी तरह मस्तमौला, शरारती.’

‘और बताओ नेहा जौब क्यों, तुम्हें तो वर्किंग वूमन नहीं बनना था, वाए चेंज औफ माइंड?’ राहुल ने पूछा.

इसी तरह बातें करतेकरते हम औफिस में ऐंटर कर गए.

कालेज के दिनों की लाइफ में कितनी बेफिक्री और मौजमस्ती थी. हम एकदूसरे को चाहते थे, ऐसा कुछ नहीं था. राहुल कभी मेरा हाथ थाम लेता, कभी अजीब नहीं लगता. अब 5 साल बाद मिलने पर उस तरह की सहजता इतनी जल्दी नहीं आ पाई, लेकिन धीरेधीरे हम पहले की तरह घुलनेमिलने लगे. कईर् बार वह मुझे अपनी बाइक पर घर ड्रौप कर देता.

पिछले 3-4 महीने में राहुल कई बार हमारे घर चायकौफी पर आया था. हम दोनों कितनी बार रैस्टोरैंट में बैठे गपशप कर चुके थे. एक दिन लंच टाइम में राहुल ने पूछा, ‘क्या आज शाम हम कौफी पीने जा सकते हैं?’

‘हां… क्यों नहीं,’ मैं सोच में पड़ गई. कई बार पहले भी हम जा चुके हैं. आखिर आज क्या कुछ नया है. हम उसी रैस्टोरैंट में जा बैठे जहां आमतौर पर जाया करते थे. वेटर कौफी और सैंडविच टेबल पर रख गया. अभी हम ने कौफी पीनी शुरू नहीं की थी कि राहुल ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया. मुझे हलका कंपन हुआ. पहले कितनी बार राहुल ने मेरा हाथ थामा होगा,  लेकिन कभी ऐसा नहीं लगा, जैसा आज… मुझे लगा हमारे बीच आज कुछ नया घटता जा रहा है, जो पहले से बहुत अलग है.

राहुल कुछ कहना चाहता था, लेकिन नहीं कह सका. कौफी पीने के बाद राहुल ने मुझे घर ड्रौप कर दिया. वह बिना कुछ बोले बाय कर हाथ हिला कर चला गया. अगले दिन औफिस आते समय राहुल की बाइक तेज गति से आती कार से टकरा गई. उसे गंभीर चोटें आईं. उस की सर्जरी हुई और टांग में रौड डाली गई.

एक हफ्ते बाद राहुल को अस्पताल से छुट्टी मिल गई. जब राहुल औफिस आया  तो उसे देख कर मुझे अच्छा लगा लेकिन उस के हंसमुख चेहरे पर हलकी उदासी देख कर मुझे चिंता भी हुई, ‘राहुल, तुम्हें इतना बुझाबुझा पहले कभी नहीं देखा.’

राहुल की उदासी दूर करने के लिए मैं उस जैसे शरारती अंदाज में उसे ‘बकअप’ करने लगी, ‘राहुल भूल गए, तुम ने कहा था शादी करनी है, बच्चे होंगे, पापापापा बुलाएंगे. फिर उन के बच्चे…’

राहुल का शरारती चेहरा अपने असली रंग में आ गया. चंचल, मौजमस्ती वाला. मुझे लगा राहुल का असली रूप कितना लुभावना है.

राहुल ने चुटकी बजा कर मुझे सचेत किया. वह मेरी ओर देख रहा था… लगातार… उस की आंखों में एक प्रश्न था, जिस का उत्तर वह मुझ से मांग रहा था.

मैं ने ‘हां’ में सिर हिला कर उस के प्रश्न का उत्तर दे दिया. मुझे लगा हमारे बीच नए रिश्ते की नन्ही सी, प्यारी सी कोंपल फूट आई है.

मेरी मम्मी कमरे के आसपास थीं. उन्हें बुला कर मैं ने कह दिया, ‘मैं ने फैसला कर लिया है मम्मी, समीर से कह दो वह यहां किसी उम्मीद से न आए. मैं ने राहुल को अपना बनाने का फैसला कर लिया है, लेकिन अफसोस मम्मी, अब आप यह नहीं कह सकेंगी कि आप की बेटी अमेरिका में सैटल्ड है और न ही आप सालछह महीने में अपनी बेटी के पास अमेरिका जा पाएंगी.

मेरी शरारत भरी चुटकी मम्मी को पसंद आई कि नहीं, नहीं जानती, लेकिन मेरा फैसला उन्हें अच्छा नहीं लगा.

Short Stories in Hindi : नि:शुल्क मोटापा मुक्ति कैंप

Short Stories in Hindi : उस दिन औफिस से हारेथके हम घर पहुंचे ही थे कि श्रीमतीजी ने दरवाजा खोलते ही अपना अभिभाषण शुरू कर दिया, ‘‘आप ने सुना… आज बहुत बड़ी खुशी की बात. वह कहावत है न कि जिसे ढूंढ़ते थे हम गलीगली, अरे वह तो हमें घर के दरवाजे पर ही मिल गई. फ्लैट के सामने वह जो पार्क है न, उसी में मोटापा से मुक्ति का कैंप लग रहा है.’’

‘‘अरे तो इस में खुशी की क्या बात हो गई? नगर में जबतब मोटापा मुक्ति कैंप लगते रहते हैं,’’ हम ने इतना कहा ही था कि श्रीमतीजी फिर बिफर गईं, ‘‘आप तो रिटायरमैंट से पहले मस्तिष्क से पूरी तरह रिटायर्ड हो चुके हो. अरे, आप ही तो रोजरोज कहते हो, मैं बहुत मोटी हो रही हूं. पार्टियों में मुझे साथ ले जाते हुए आप को शर्म आती है. राजीव कपूर की पार्टी में आप मुझे साथ नहीं ले जा रहे थे. कह रहे थे, कपूर की बीवी रश्मि के सामने बेलन सी लगोगी. अरे, उसी मोटापे को खत्म करने के लिए मोटापा मुक्ति कैंप लग रहा है… संडे को कैंप का उद्घाटन होगा. आप को यह तो बताना ही भूल गई कि कैंप नि:शुल्क लग रहा है. है न मजेदार बात? मोटापा भी नष्ट होगा और कोई पैसा भी नहीं खर्च करना पड़ेगा.’’

‘‘नि:शुल्क मोटापा कैंप में चली जाना… पर कैंप के चक्कर में क्या आज कुछ चायनाश्ता नहीं कराओगी? औफिस से बहुत थकेहारे घर लौट रहे हैं हम,’’ श्रीमतीजी के भाषण के बीच हम ने उन्हें याद दिलाया.

‘‘हां, हां, चायनाश्ते की याद है…

भुलक्कड़ तो आप हो ही. संडे तक का पता नहीं आप का… कितनी बार नि:शुल्क मोटापा मुक्ति कैंप की बात याद दिलानी पड़ेगी,’’ यह कहते हुए श्रीमतीजी पांव पटकती हुई किचन में चली गईं. किचन से बरतनों के आपस में टकराने की आवाज से श्रीमतीजी के गुस्से का पता चलता रहा.

एक दिन बाद ही संडे था. शानिवार की रात को फ्लैट के सामने बड़ेबड़े शामियाने लगा कर कैंप बना दिया गया था. सुबह से ही कैंप के प्रवेशद्वार पर मोटे स्त्रीपुरुषों की लाइनें लगने लगी थीं. कैंप के मुख्य दरवाजे पर 3 मेजों के पास कुरसियों पर 3 सुंदरी बालाएं बैठी थीं. उन बालाओं को कैंप में आने वालों के रजिस्ट्रेशन के लिए बैठाया गया था.

कैंप में मोटापा कम करने वालों के लिए 50 रजिस्ट्रेशन फीस थी. स्त्रीपुरुष 50-50 के नोट बरसा रहे थे. नि:शुल्क मोटापा कैंप में नोट बरसाने वालों की कोई कमी नहीं थी. आखिर श्रीमतीजी ने 50 दे कर रजिस्ट्रेशन करा लिया.

एक दिन मोटापा मुक्ति कैंप में संयासियों जैसे बड़ेबड़े कुरते पहने, लंबीलंबी दाढ़ी वाले कुछ लोगों ने भाषण दिए. मोटापे पर भाषण के दौरान उन्होंने चाटपकौड़ी नहीं खाने पर लंबेलंबे भाषण दिए. उसी कैंप की एक साइड में बहुत सी खानेपीने की दुकानें भी सजी थीं.

उन दुकानों के बीच कुछ रेस्तरां भी बने थे. उन रेस्तरां में पिज्जा, डोसा, इडली, समोसे, कचौड़ी के बैनर भी लगे थे. सभी रेस्तराओं के आगे स्त्रीपुरुषों की भीड़ लगी थी. कैंप के नुक्कड़ पर एक गोलगप्पे का स्टाल था. मोटापा मुक्ति कैंप में सब से ज्यादा उस स्टाल के आगे स्त्रियों की भीड़ थी. शायद उस दिन सभी स्त्रियां गोलगप्पे खा कर अपने मोटापे से मुक्ति पा लेना चाहती थीं.

मोटापे पर भाषण देने वाले संयासी कुरते पहने लोगों ने मोटापे से डायबिटीज, हार्ट अटैक, हाई ब्लडप्रैशर, किडनी फेल्योर, जोड़ों का दर्र्द होने की बात कहते हुए कैंसर भी मोटे स्त्रीपुरुषों को होने की बात कही. आजकल स्त्रीपुरुष किसी महानुभावक की बातें चाहे न मानें, लेकिन संन्यासी जैसे रंगीन कुरते पहने लोगों की बातें अवश्य मानते हैं. तभी तो देश में सभी साधुसंन्यासी प्रवचन करतेकरते बड़ेबड़े व्यापारी बन गए हैं. सभी साधुसंन्यासियों ने लोगों को मोटापा और दूसरी बीमारियों को नष्ट करने वाली दवाएं बेचना शुरू कर दिया है. एक बड़े संन्यासी बाबा तो प्रवचन करतेकरते, दवा बेचतेबेचते जेल चले गए. सुना है कि बाबा जेल में रहतेरहते भी खुद दवा बेच रहे हैं.

2-3 दिन मोटापे पर भाषण देने के बाद मंच से घोषणा की गई कि जो स्त्रीपुरुष डायबिटीज, हृदय रोग, हाई ब्लडप्रैशर आदि रोगों से पीडि़त हैं वे कैंप में लगे स्टालों से अपनीअपनी बीमारी की दवा खरीद लें. बीमारी नष्ट किए बिना मोटापा कम नहीं होता है. बस फिर क्या था, सभी स्त्रीपुरुष कैंप में लगे दवा के स्टालों की ओर दौड़ पड़े. दवा के स्टालों के आगे लंबीलंबी लाइनें लगने लगीं.

उस दिन हम श्रीमतीजी के साथ किसी दवा के स्टाल पर नहीं जा सके, क्योंकि उस दिन हमें औफिस से छुट्टी नहीं मिल सकी थी. मोटापा मुक्ति कैंप में श्रीमतीजी के साथ निपटने के लिए औफिस से 4 छुट्टियां ले चुके थे हम. उस दिन शाम को औफिस से घर पहुंचे तो श्रीमतीजी ने मेज पर कई डब्बे और शीशियां सजा दी.

आज मोटापा मुक्ति कैंप में 500 की दवा खरीद कर लाई हूं. बाबाजी ने कहा था कि बीमारी के चलते मोटापा कम नहीं होता है.

‘‘लेकिन आप को तो कोई बीमारी नहीं थी? फिर इतनी मंहगी दवा क्यों खरीद लाईं?’’ हम ने पूछा तो श्रीमतीजी तुनक कर बोलीं,

‘‘आप को क्या पता है कि हमें क्या बीमारी है. अरे, कब्ज की बीमारी है बाबाजी ने बताया है कि कब्ज के कारण ही मोटापा हुआ है.

मोटापा कम करने के लिए पहले कब्ज को नष्ट करना होगा.’’

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‘‘कब्ज नष्ट करने के लिए 500 की दवा? अरे, कब्ज तो आधा किलो पपीता खाने से नष्ट हो जाती है.’’

‘‘आप तो 500 की बात सुन कर ही घबरा रहे हो, बाबाजी ने तो कहा है कि 500-600 की दवा कई बार खानी पड़ेगी तभी कब्ज नष्ट हो पाएगी. आप यह क्यों नहीं सोचते कि नि:शुल्क मोटापा मुक्ति कैंप लगा है. आखिर दवागोली पर कुछ तो खर्च करना पड़ेगा. बाबाजी मोटापे से मुक्ति दिलाने पर कुछ तो मांग नहीं रहे,’’ कह श्रीमती पांव पटकती हुई किचन में चली गईं तो हम अपना सिर पकड़ कर बैठ गए.

अगले दिन मोटापा मुक्ति कैंप में सभी स्त्रीपुरुषों को मोटापा कम करने के लिए योगासनों का अभ्यास कराया गया. उत्तानपादासन, भुजंगासन, धनुरासन, चक्रासन आदि का प्रदर्शन कर के एक संन्यासी वेशभूषा वाले बाबाजी ने घर पर जा कर सर्वांगासन करने के लिए बताया.

उस दिन रविवार होने के कारण देर तक सोने को मन कर रहा था. तभी दूसरे कमरे से श्रीमतीजी के जोरजोर से चिल्लाने की आवाजें सुन कर उन के कमरे में पहुंचे तो श्रीमतीजी फर्श पर बिखरी पड़ी जोरजोर से कराह रही थीं, ‘‘आह, मर गई… मेरी तो गरदन टूट गई.’’

हम ने पास जा कर पूछा, ‘‘सुबहसुबह क्यों चिल्ला रही हो? सुबहसुबह पास के फ्लैट वाले आप की आवाजें सुनेंगे तो सब हाल पूछने आ धमकेंगे और फिर सब को चायनाश्ता कराना पड़ेगा. आप की सहेलियां तो चायनाश्ता किए बिना सोफे से उठने का नाम नहीं लेगीं.’’

‘‘अरे, अब खड़ेखड़े भाषण ही देते रहोगे… मुझे उठा कर डाक्टर के पास ले चलने की तैयारी करो. सर्वांगासन करते हुए मेरी तो गरदन ही टूट गई. आह… बहुत दर्द हो रहा है… आह मैं मर गई.’’

श्रीमतीजी की चीखपुकार निरंतर बढ़ रही थी. पड़ोस के लोगों की सहायता से श्रीमतीजी को उठा कर पास के नर्सिंग होम में ले जाना पड़ा. उस दिन शाम तक उस नर्सिंग होम में रहना पड़ा. सर्वांगासन करने में श्रीमतीजी के कंधे में चोट लगी थी और डाक्टर ने प्लास्टर चढ़ा दिया था. शाम तक नर्सिंग होम में रहने और प्लास्टर कराने का 3 हजार से अधिक का बिल बन गया था.

मोटापा मुक्ति कैंप में जाने से श्रीमतीजी का मोटापा तो 1 इंच भी कम नहीं हो पाया, उलटे 5 हजार का बिल चुकाना पड़ा… अभी तो प्लास्टर चढ़ा है पता नहीं आगे नर्सिंग होम के कितने बिल चुकाने पड़ेंगे.

Mother’s Day 2025 : क्या उसे औलाद का सुख मिला?

Mother’s Day 2025 : चिकित्सा के उन्नत कहे जाने वाले युग को ऐसा कहा भी जाए या नहीं, कुछ घटनाएं घटते समय यह प्रश्न खड़ा कर देती हैं. वे घटनाएं आएदिन घट कर चिकित्सकों को तो अपना अभ्यस्त बना देती हैं लेकिन उन की कसमसाहट मिनटों, घंटों या कुछ दिनों तक ही सीमित रह जाती है. हद से हद फुरसत के क्षणों में कोई इक्कादुक्का डाक्टर उन्हें अपनी डायरी के पन्नों पर उतार लेता है. परंतु जिन के साथ वे घटी होती हैं उन के सीने में तो दर्द की स्थायी कील गाड़ देती हैं. विद्या दी अदने से मच्छर के कारण हुए डेंगू में अपने 10 वर्षीय बेटे को खो कर अपने सीने में दर्द की ऐसी ही अनगिनत कीलें गाड़ लाई थीं.

विवाह के कई वर्ष बाद, ऐलोपैथी, होम्योपैथी, गंडेतावीज, झाड़फूंक और निरी मन्नतों की बैसाखियों पर चढ़ कर पैदा हुआ था वह. दुख का उत्पीड़न सहती विद्या दी अपना मानसिक संतुलन लगभग खो ही बैठी थीं. 3 बहनों में सब से बड़ी विद्या दी की ऐसी अवस्था देख मझली सारिका ने अपना नवजात शिशु, जो उस की दूसरी संतान था, विद्या दी की गोद में डाल कर उन्हें उन के करोड़ों के व्यवसाय का उत्तराधिकारी दे दिया. बेटे को खो देने के दुख को, बेटा पा कर विद्या दी तहखानों के ढीठ अंधेरों में धकेल आईं. आरंभिक उदास, संकोची सी खुशी कुछ ही दिनों में उन के बुझे हुए चेहरे पर उन्मुक्त हो कर खिलखिला उठी.

इसे विडंबना ही कहेंगे कि तीनों बहनों में छोटी जूही के विवाह के 10 बरस बाद भी संतान का सुख प्राप्त नहीं हुआ था. ताउम्र निसंतान रह जाने से पतिपत्नी ने किसी बालक को गोद ले लेना बेहतर समझा. घर वाले विद्या दी की तरह ही किसी नातेदार के बच्चे को गोद लेने पर जोर देने लगे. परंतु उस दंपती के विचार में उस बच्चे को जिस दिन से उन रिश्तेदारों का अपने मातापिता होना पता चलेगा उसी दिन से वे दोनों उस के नाममात्र के ही मातापिता रह जाएंगे उन्होंने किसी ऐसे अनाथ बच्चे को गोद लेने का निश्चय किया जो उन की गोद में आने के बाद किसी और का न रह जाता हो.

परंतु लोगों ने किसी अनजाने अनाथ को गोद लेने में सैकड़ों भयानक खतरे बता डाले. जैसे, कौन जाने कौन जात का होगा, क्या पता किसी चोरउचक्के का ही खून हो. आंखों का, कानों का, गले का, दिलदिमाग का या फिर सब से बड़ा रोग एड्स ही ले कर आए. अनेक तर्कवितर्कों के बाद सम्मति बनी कि जानीमानी वंशपरंपरा के अभाव में सभ्य, संस्कारी लोग किसी अनजाने बच्चे को गोद नहीं ले सकते. परंतु जूही और उस के पति का निर्णय किसी के बहकाए नहीं बहका. उन्होंने बच्चे को सिर्फ और सिर्फ बच्चा जात का माना. तर्क रखा कि हमारे सभी रिश्तेदार हम से ज्यादा पैसे वाले हैं. ऐसे में हम उन के बच्चे की अधिक सुविधा वाली जिंदगी छीन कर अपना मध्यवर्गीय स्तर दे कर उस के साथ अन्याय ही करेंगे. हम क्यों न किसी ऐसे बच्चे को मातापिता के रिश्ते की सघन छांव दें जिस ने उस छांव के तले क्षणभर गुजारे बगैर ही उसे खो दिया. रही बच्चे के साथ आने वाले संभावित रोगों की बात, तो क्या आज तक किसी का अपना बच्चा कोई रोग ले कर नहीं आया. रोगों का तो आजकल क्या भरोसा, न जाने कितने लोगों को अस्पताल की गलती से एड्स से संक्रमित रोगी का रक्त चढ़ा दिया गया है. उन को एड्स होना तय है फिर वे कौन सी वंशपरंपरा के कहलाएंगे. ऐसे ही अनेक तर्क दे कर एक बड़े अस्पताल की नर्सरी से एक ऐसा शिशु गोद ले लिया गया जिस के मातापिता हमेशा जूही और उस का पति ही सिद्ध होने थे.

हर नवजात अपनी मां के लिए अनचीन्हा, अनदेखा ही होता है. कौन जाने अस्पतालों में स्टाफ की गलती से या कभी जानबूझ कर बच्चे बदल भी दिए जाते हों, कहां पहचान पाती हैं माताएं अपने नवजात को. विज्ञान के अनुसार, शिशु भले अपनी मां के गर्भ में ही उस की आवाज पहचानना सीख जाता हो पर बाहर आने पर वह भी उस के संकेत धीरेधीरे ही दे पाता है.

जूही के अनजाने बच्चे ने भी धीरेधीरे अपनी प्यारी मां को पहचान लेने के संकेत ठीक वैसे ही देने शुरू कर दिए थे जैसे कोई उस की अपनी ही कोख से जन्म ले कर देता. जब वह मातापिता को देख कर अद्भुत रूप भर मुसकराता तो कईकई पूर्व जन्मों से स्वयं को उन का अनन्य हिस्सा साबित कर देता. उस की किलकारियों के संगीत की नूतन धुनें उस दंपती के कानों में ठीक वैसे ही रस घोलतीं जैसे उन के खुद के जन्मे बच्चे की घोल पातीं. जब वह अपनी नन्हीनन्ही कोमल बांहें जूही और उस के पति के गले में पहना देता तो एक से एक नायाब फूलों की माला की रंगत भी पल में फीकी पड़ जाती. जब वह थोड़ा बड़ा हुआ तो उस दंपती को उस के हाथों अपनी वंशपरंपरा सुरक्षित दिखने लगी. उन्हें विश्वास हो गया कि अगर वे किसी संतान को जन्म दे पाते तो उस में और इस नन्हे बच्चे में कोई खास फर्क तो नहीं ही होता. विद्या दी का बेटा विलास और जूही का बेटा अविरल खूब लाड़प्यार में पलने लगे, विशेषकर विद्या दी का बेटा विलास. उस के अधिक लाड़प्यार का पहला कारण विद्या दी के दुख से जुड़ा था. अपने इकलौते बेटे को खो देने के बाद उस के हिस्से का लाड़प्यार वे स्वयं पर ऋण सरीखा समझती थीं, सो उसे विलास पर उड़ेल कर उऋण हो जाना चाहती थीं. दूसरा और शायद अधिक महत्त्वपूर्ण कारण था कि विद्या दी मझली के पति और उस के ससुरालियों को यह दिखा देना चाहती थीं कि उन की अपेक्षा उन के बेटे को उन से अधिक लाड़प्यार दे कर पाल रही हैं.

तीसरा कारण दूसरे से जुड़ा था, यह दिखाने का प्रयास कि उन की अपेक्षा वे उसे अधिक सुखसुविधाओ में पाल रही हैं. इसी धुन में विलास की हर जायजनाजायज बात मान ली जाती. परिणामस्वरूप उस की इच्छाएं दिन पर दिन बढ़ने लगी थीं. वह जो भी चीज जितनी मांगता, उस से अधिक मिलती. यही बात रुपयों पर भी लागू थी. विद्या दी के विवेकहीन प्यार का दुष्परिणाम जल्दी ही सामने आने लगा. विलास का ध्यान पढ़ाईलिखाई से पूरी तरह हट गया था. उस ने पैसे खर्च करना सीखने की उम्र से पहले ही उसे बरबाद करने के सैकड़ों तरीके खोज निकाले. उस ने धीरेधीरे विद्या दी के करोड़ों के कारोबार से अपना हाथ खींचना आरंभ कर दिया. करोड़ों का व्यापार लाखों में सिमटा, लाखों का हजारों में और हजारों से नीचे आने का अर्थ था पूरी तरह सिमटना. ‘जो चीज बढ़ती नहीं, घट जाती है,’ कहावत चरितार्थ हो गई.

विलास की आदतें बिगड़ैल रईसों के जैसी हो गई थीं. पर विद्या दी में उस की जिदें पूरी करने की सामर्थ्य अब नहीं रह गई थी. शुरू में तो पैसों के लिए वह उन से मौखिक लड़ाइयां करता, बाद में उस ने धक्कामुक्की तक करना शुरू कर दिया. एक बार तो जूही और उस के बेटे अविरल के सामने ही उस ने विद्या दी को धक्का दे दिया था. उस दिन अविरल ने ही उन्हें गिरने से बचाया था और विलास को ऐसा न करने के लिए समझाना चाहा था पर वह उसे भी धकिया कर घर से बाहर निकल गया था. उस दिन विद्या दी ने अश्रुविगलित हो कर आंखों ही आंखों में जूही के तथाकथित संस्कारविहीन बेटे को सराहा था. उन की आंखों में ऐसी निरीहता दिखाई दी थी कि जैसे उस गाय की आंखों में जिसे कसाई बस काटना ही चाहता हो. उस दिन विद्या दी अपनी लाचारी पर तो बहुत रोईं परंतु स्वयं के अपने व्यवहार को उस दिन भी दोष नहीं दिया.

मझली बहन सारिका ने जब अपना बेटा विलास विद्या दी को सौंपा था तब विद्या दी सर्वसंपन्न थीं और सारिका सुखसुविधाओं में उन से काफी पीछे. परंतु अब सारिका के पति का व्यापार काफी बढ़ चुका था. अब सारिका स्वयं संपन्नता में रह कर अपने बेटे को पैसेपैसे के लिए लड़ते देख पश्चात्ताप से भर उठती. पैसे की कमी ने विलास को चोरी की लत लगा दी थी. अब उस के घर जो भी आता, वह उस के पर्स का बोझ थोड़ा हलका कर के ही भेजता. हद तो तब हो गई जब विलास ने स्कूल टीचर के पर्स से पैसे उड़ा लिए, एक बार नहीं कईकई बार. अनेक बार चेतावनी देने के बाद भी जब उस ने अपनी गलती को नहीं सुधारा बल्कि मारपिटाई और करने लगा तो प्रिंसिपल ने उसे स्कूल से निकाल दिया. अब उस की आवारगी प्रमाणित थी. उस की बरबादी का मार्ग पूरी तरह तब प्रशस्त हो गया जब विद्या दी के पति को लकवा मार गया और वे बिस्तर पर आ टिके. अथाह दौलत की मालकिन विद्या दी को घर का खर्च चलाने के लिए भी घर का आधा हिस्सा किराए पर देना पड़ा था.

विलास अब पूरी तरह स्वतंत्र था. अपनी आवारगी को अंजाम देने के लिए घर के सामान तक बेच आता. शराब पीता, ड्रग्स लेता, आएदिन लोगों से झगड़ा करता. पड़ोसियों ने उस की आदतों से आजिज आ कर उसे पुलिस के हवाले कर दिया. उस दिन उसे सारिका और उस का पति ही छुड़ा कर लाए, इस वादे के साथ कि वह जेल तक पहुंचने की कोई भी राह फिर कभी नहीं पकड़ेगा. परंतु वादों का स्थायित्व आचरण का अनुगामी होता है. वादा जल्दी ही टूट गया. जूही का बेटा अविरल सत्य से अनभिज्ञ था और वह दंपती अनभिज्ञ हो जाना चाहता था. सत्य की इस सुखद अनभिज्ञता में उन दोनों के चेतन मन तक ने धीरेधीरे सत्य को सचमुच ही धुंधला दिया. पुत्र से प्रेम और भी प्रगाढ़ हो गया. अब तो बस यही सच था कि जूही और उस का पति ही उस बच्चे के सगे मातापिता हैं जिन्होंने उस की राह के सब कांटों को समूल नष्ट कर दिया है. वरना क्या उन्हें उस के सगे मातापिता कहना होगा जिन्होंने निष्ठुरता की हद पार कर के उसे क्षणभर में अनाथ बना कर उस के रास्ते को अंगारों से पाट दिया था.

जूही और उस के पति ने अपने उस तथाकथित वंशहीन, जातिहीन, संस्कारविहीन संभावित रोगों की खान बेटे का पालनपोषण, सूझबूझ भरे मातापिता बन कर किया. उन्होंने अपनी शिक्षा और संस्कारों से उसे आपादमस्तक नहला दिया, अपने मनचाहे व्यवहार की शिक्षा को उस की रगरग में बहना सिखा दिया. कोरे कैनवास जैसे उस मासूम पर उन्होंने अपने मनपसंद दृष्टि लुभाते शीतल रंगों के साथ मनचाहे चित्र उकेरे. एक साधारण से बच्चे को असाधारण प्रयास कर समाज के हर क्षेत्र में मुंहबाए खड़ी प्रतियोगिताओं की कतार में सब से आगे ला खड़ा किया, जैसे किसी देसी आम के पौधे पर किसी बेहतरीन किस्म के आम की कलम लगा कर स्वादिष्ठ फल उतारे जाएं. उन दोनों के संतुलित लाड़प्यार और देखरेख ने उस अबोध के मन की सभी अवांछनीय उमंगों को स्थायी रूप से समाप्त कर दिया. विद्या दी अपनी संस्कारी बहन के निश्चित रूप से संस्कारी निकलने वाले पुत्र को भी अपनी अक्षम्य भूलों के अंधड़ में पाल कर संस्कारी नहीं बना पाई थीं. हर किसी की तरह अति ने उन्हें भी बुरा ही फल दिया था.

एक दिन विलास ने विद्या दी की अनुपस्थिति में उन के बचेखुचे गहनों को निकाल कर बेच दिया और हफ्तों के लिए घर से गायब हो गया. बिस्तर पर पड़े विद्या दी के पति विलास की विलासिता की जीत के आगे अपने जीवन की जंग हार गए. जिस दिन के लिए हिंदू समाज में लोग पुत्र की कामना करते हैं उसी दिन वह उन के साथ नहीं था और जब वह लौटा विद्या दी के पति के सभी कार्य हमेशा के लिए पूरे हो चुके थे. अब घर में विद्या दी और विलास ही रह गए थे. अब बेचने के लिए बरतनों और कपड़ों के सिवा कुछ बचा नहीं था. अपने नशे की आदतों को संतुष्ट करने के लिए विलास उन्हें भी बेच आता. विद्या दी को दबा माल निकालने का आदेश करता, नहीं मानने पर जान से मार डालने की भयावह धमकी देता. उस की सारी बांहें नशे के इंजैक्शन की सुइयों से छिदी रहतीं, घर में जगहजगह उस का संस्कारी खून टपका पड़ा रहता. अब उस के साथ विद्या दी को अपना जीवन खतरे में दिखाई देने लगा था. उन की अमीरी के समय उन की गोद में अपनी संतान डाल जाने वाली बहन ने उन की मुश्किल घड़ी में उन्हें दुखी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अपने बेटे की बरबादी का दोष उस ने अकेली विद्या दी के सिर ही मढ़ा, किसी क्षण उन्हें अपने बेटे को गोद लेने के पश्चात्ताप से मुक्त नहीं होने दिया.

जूही ने अपने बच्चे को उस के छिन जाने के डर से रहित किसी के उलाहनों से भी इतर हो स्वतंत्र रूप से सिर्फ अपनी तरह पाला. अपनी उपस्थिति से वातावरण को सकारात्मक ऊर्जा से भर देने वाला उस का बेटा अब हट्टाकट्टा जवान हो कर नौसेना में इंजीनियर के पद पर कार्यरत था. उस ने अपने मातापिता को समाज में और भी सम्मानित बना दिया था. विद्या दी एक आवारा, नशेड़ी के साथ अपमानित और मृत्यु से मिलताजुलता जीवन जीने को अभिशप्त थीं. अपमानों और अभिशापों से भरे सैकड़ों दिनों में उस एक दिन विद्या दी के स्नान करते समय विलास ने उन की पुरानी अलमारी का ताला तोड़ लिया. कागजों से मेलजोल तो नहीं था उस का पर कुछ रुपए मिल जाने की फिराक में वह कागजों को उलटनेपलटने लगा. विद्या दी स्नान कर जल्दी ही आ गईं, उन्होंने उस के हाथ से वह फाइल छीननी चाही. फाइल की छीनाझपटी में एक पुराना सा पीला पड़ गया लिफाफा हवा में तैरता हुआ जमीन पर जा गिरा. विद्या दी उसे उठाने के लिए झुकी ही थीं कि विलास ने उन्हें धक्का दे कर वह लिफाफा उठा लिया. धक्का खा कर विद्या दी का सिर दीवार से टकराया और वे जमीन पर गिर गईं. उन की तरफ ध्यान दिए बगैर विलास लिफाफे को खोल कर पढ़ने लगा जिस में उस की सगी मां सारिका का उसे विद्या दी को सौंपने को ले कर पश्चात्ताप से भरा पत्र था जिस में उस ने अपने बेटे को वापस मांगने का विनम्र आग्रह किया था. परंतु विद्या दी का मन विलास से ऐसे जुड़ गया था जैसे जल से मीन. सो उन्होंने उस की वापसी से इनकार कर दिया.

सारिका ने बड़ी बहन की बात तो रखी परंतु कभी उन के घर जा कर, कभी विलास को अपने घर बुला कर उन्हें बताए बिना, किसी जरूरत के भी बिना उसे मुट्ठियां भरभर नोट पकड़ाने शुरू कर दिए. विद्या दी का विलास के लिए अंधा प्यार तो उसे बरबाद कर देने का सब से बड़ा अपराधी था ही, सारिका के कुतर्की व्यवहार ने भी छोटी भूमिका तो नहीं ही निभाई थी उसे आवारा बनाने में. विलास ने पत्र पढ़ लिया था. अब उस के हाथ कुबेर का दूसरा खजाना आ गया था बरबाद करने के लिए. वह विद्या दी से लड़ने के पूर्व कृत्य में उन्हें झंझोड़ने लगा था. पर वे अपने लाड़ले विलास को खो देने और फिर से निसंतान हो जाने के डर से भयभीत हो चुपचाप निकल गई थीं जीवन की जद्दोजहद से.

Hindi Love Stories : क्या मानसी अपने पति को धोखा दे रही थी?

Hindi Love Stories : अचानक शुरू हुई रिमझिम ने मौसम खुशगवार कर दिया था. मानसी ने एक नजर खिड़की के बाहर डाली. पेड़पौधों पर झरझर गिरता पानी उन का रूप संवार रहा था. इस मदमाते मौसम में मानसी का मन हुआ कि इस रिमझिम में वह भी अपना तनमन भिगो ले.

मगर उस की दिनचर्या ने उसे रोकना चाहा. मानो कह रही हो हमें छोड़ कर कहां चली. पहले हम से तो रूबरू हो लो.

रोज वही ढाक के तीन पात. मैं ऊब गई हूं इन सब से. सुबहशाम बंधन ही बंधन. कभी तन के, कभी मन के. जाओ मैं अभी नहीं मिलूंगी तुम से. मन ही मन निश्चय कर मानसी ने कामकाज छोड़ कर बारिश में भीगने का मन बना लिया.

क्षितिज औफिस जा चुका था और मानसी घर में अकेली थी. जब तक क्षितिज घर पर रहता था वह कुछ न कुछ हलचल मचाए रखता था और अपने साथसाथ मानसी को भी उसी में उलझाए रखता था. हालांकि मानसी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी और वह सहर्ष क्षितिज का साथ निभाती थी. फिर भी वह क्षितिज के औफिस जाते ही स्वयं को बंधनमुक्त महसूस करती थी और मनमानी करने को मचल उठती थी.

इस समय भी मानसी एक स्वच्छंद पंछी की तरह उड़ने को तैयार थी. उस ने बालों से कल्चर निकाल उन्हें खुला लहराने के लिए छोड़ दिया जो क्षितिज को बिलकुल पसंद नहीं था. अपने मोबाइल को स्पीकर से अटैच कर मनपसंद फिल्मी संगीत लगा दिया जो क्षितिज की नजरों में बिलकुल बेकार और फूहड़ था.

अत: जब तक वह घर में रहता था, नहीं बजाया जा सकता था. यानी अब मानसी अपनी आजादी के सुख को पूरी तरह भोग रही थी.

अब बारी थी मौसम का आनंद उठाने की. उस के लिए वह बारिश में भीगने के लिए आंगन में जाने ही वाली थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

इस भरी बरसात में कौन हो सकता है. पोस्टमैन के आने में तो अभी देरी है. धोबी नहीं हो सकता. दूध वाला भी नहीं. तो फिर कौन है? सोचतीसोचती मानसी दरवाजे तक जा पहुंची.

दरवाजे पर वह व्यक्ति था जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

‘‘आइए,’’ उस ने दरवाजा खोलते हुए कुछ संकोच से कहा और फिर जैसे ही वह आगंतुक अंदर आने को हुआ बोली, ‘‘पर वे तो औफिस चले गए हैं.’’

‘‘हां, मुझे पता है. मैं ने उन की गाड़ी निकलते देख ली थी,’’ आगंतुक जोकि उन के महल्ले का ही था ने अंदर आ कर सोफे पर बैठते हुए कहा.

यह सुन कर मानसी मन ही मन बड़बड़ाई कि जब देख ही लिया था तो फिर क्यों चले आए हो… वह मन ही मन आकाश के बेवक्त यहां आने पर कु्रद्ध थी, क्योंकि उन के आने से उस का बारिश में भीगने का बनाबनाया प्रोग्राम चौपट हो रहा था. मगर मन मार कर वह भी वहीं सोफे पर बैठ गई.

शिष्टाचारवश मानसी ने बातचीत का सिलसिला शुरू किया, ‘‘कैसे हैं आप? काफी दिनों बाद नजर आए.’’

‘‘जैसा कि आप देख ही रहीं… बिलकुल ठीक हूं. काम पर जाने के लिए निकला ही था कि बरसात शुरू हो गई. सोचा यहीं रुक जाऊं. इस बहाने आप से मुलाकात भी हो जाएगी.’’

‘‘ठीक किया जो चले आए. अपना ही घर है. चायकौफी क्या लेंगे आप?’’

‘‘जो भी आप पिला दें. आप का साथ और आप के हाथ हर चीज मंजूर है,’’ आकाश ने मुसकरा कर कहा तो मानसी का बिगड़ा मूड कुछ हद तक सामान्य हो गया, क्योंकि उस मुस्कराहट में अपनापन था.

मानसी जल्दी 2 कप चाय बना लाई. चाय के दौरान भी कुछ औपचारिक बातें होती रहीं. इसी बीच बूंदाबांदी कम हो गई.

‘‘आप की इजाजत हो तो अब मैं चलूं?’’ फिर आकाश के चेहरे पर वही मुसकराहट थी.

‘‘जी,’’ मानसी ने कहा, ‘‘फिर कभी फुरसत से आइएगा भाभीजी के साथ.’’

‘‘अवश्य यदि वह आना चाहेगी तो उसे भी ले आऊंगा. आप तो जानती ही हैं कि उसे कहीं आनाजाना पसंद नहीं,’’ कहतेकहते आकाश के चेहरे पर उदासी छा गई.

मानसी को लगा कि उस ने आकाश की दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, क्योंकि वह जानती थी कि आकाश की पत्नी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और इसी कारण लोगों से बात करने में हिचकिचाती है.

‘‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अगले दिन भी जब उसी मुसकराहट के साथ आकाश ने पूछा तो जवाब में मानसी भी मुसकरा दी और दरवाजा खोल दिया.

‘‘चाय या कौफी?’’

‘‘कुछ नहीं… औपचारिकता करने की आवश्यकता नहीं. आज भी तुम से दो घड़ी बात करने की इच्छा हुई तो फिर चला आया.’’

‘‘अच्छा किया. मैं भी बोर ही हो रही थी,’’ मानसी जानती थी कि उन्हें यह बताने की आवश्यकता नहीं थी कि क्षितिज कहां है, क्योंकि निश्चय ही वे जानते थे कि वे घर पर नहीं हैं.

इस तरह आकाश के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया वरना इस महल्ले में किसी के घर आनेजाने का रिवाज कम ही था. यहां अधिकांश स्त्रियां नौकरीपेशा थीं या फिर छोटे बालबच्चों वाली. एक वही अपवाद थी जो न तो कोई जौब करती थी और न ही छोटे बच्चों वाली थी.

मानसी का एकमात्र बेटा 10वीं कक्षा में बोर्डिंग स्कूल में पढ़ता था. अपने अकेलेपन से जूझती मानसी को अकसर अपने लिए एक मित्र की आवश्यकता महसूस होती थी और अब वह आवश्यकता आकाश के आने से पूरी होने लगी थी, क्योंकि वे घरगृहस्थी की बातों से ले कर फिल्मों, राजनीति, साहित्य सभी तरह की चर्चा कर लेते थे.

आकाश लगभग रोज ही आफिस जाने से पूर्व मानसी से मिलते हुए जाते थे और अब स्थिति यह थी कि मानसी क्षितिज के जाते ही आकाश के आने का इंतजार करने लग जाती थी.

एक दिन जब आकाश नहीं आए तो अगले दिन उन के आते ही मानसी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, कल क्यों नहीं आए? मैं ने कितना इंतजार किया.’’

आकाश ने हैरानी से मानसी की ओर देखा और फिर बोले, ‘‘क्या मतलब? मैं ने रोज आने का वादा ही कब किया है?’’

‘‘सभी वादे किए नहीं जाते… कुछ स्वयं ही हो जाते हैं. अब मुझे आप के रोज आने की आदत जो हो गई है.’’

‘‘आदत या मुहब्बत?’’ आकाश ने मुसकरा कर पूछा तो मानसी चौंकी, उस ने देखा कि आज उन की मुसकराहट अन्य दिनों से कुछ अलग है.

मानसी सकपका गई. पर फिर उसे लगा कि शायद वे मजाक कर रहे हैं. अपनी सकपकाहट से अनभिज्ञता का उपक्रम करते हुए वह सदा की भांति बोली, ‘‘बैठिए, आज क्षितिज का जन्मदिन है. मैं ने केक बनाया है. अभी ले कर आती हूं.’’

‘‘तुम ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया.’’ आकाश फिर बोले तो उसे बात की गंभीरता का एहसास हुआ.

‘‘क्या जवाब देती.’’

‘‘कह दो कि तुम मेरा इंतजार इसलिए करती हो कि तुम मुझे पसंद करती हो.’’

‘‘हां दोनों ही बातें सही हैं.’’

‘‘यानी मुहब्बत है.’’

‘‘नहीं, मित्रता.’’

‘‘एक ही बात है. स्त्री और पुरुष की मित्रता को यही नाम दिया जाता है,’’ आकाश ने मानसी की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘हां दिया जाता है,’’ मानसी ने हाथ को हटाते हुए कहा, ‘‘क्योंकि साधारण स्त्रीपुरुष मित्रता का अर्थ इसी रूप में जानते हैं और मित्रता के नाम पर वही करते हैं जो मुहब्बत में होता है.’’

‘‘हम भी तो साधारण स्त्रीपुरुष ही हैं.’’

‘‘हां हैं, परंतु मेरी सोच कुछ अलग है.’’

‘‘सोच या डर?’’

‘‘डर किस बात का?’’

‘‘क्षितिज का. तुम डरती हो कि कहीं उसे पता चल गया तो?’’

‘‘नहीं, प्यार, वफा और समर्पण को डर नहीं कहते. सच तो यह है कि क्षितिज तो अपने काम में इतना व्यस्त है कि मैं उस के पीछे क्या करती हूं, वह नहीं जानता और यदि मैं न चाहूं तो वह कभी जान भी नहीं पाएगा.’’

‘‘फिर अड़चन क्या है?’’

‘‘अड़चन मानसिकता की है, विचारधारा की है.’’

‘‘मानसिकता बदली जा सकती है.’’

‘‘हां, यदि आवश्यकता हो तो… परंतु मैं इस की आवश्यकता नहीं समझती.’’

‘‘इस में बुराई ही क्या है?’’

‘‘बुराई है… आकाश, आप नहीं जानते हमारे समाज में स्त्रीपुरुष की दोस्ती को उपेक्षा की दृष्टि से देखने का यही मुख्य कारण है. जानते हो एक स्त्री और पुरुष बहुत अच्छे मित्र हो सकते हैं, क्योंकि उन के सोचने का दृष्टिकोण अलग होता है. इस से विचारों में विभिन्नता आती है. ऐसे में बातचीत का आनंद आता है, परंतु ऐसा नहीं होता.’’

‘‘अकसर एक स्त्री और पुरुष अच्छे मित्र बनने के बजाय प्रेमी बन कर रह जाते हैं और फिर कई बार हालात के वशीभूत हो कर एक ऐसी अंतहीन दिशा में बहने लगते हैं जिस की कोई मंजिल नहीं होती.’’

‘‘परंतु यह स्वाभाविक है, प्राकृतिक है, इसे क्यों और कैसे रोका जाए?’’

‘‘अपने हित के लिए ठीक उसी प्रकार जैसे हम ने अन्य प्राकृतिक चीजों, जिन से हमें नुकसान हो सकता है, पर नियंत्रण पा लिया है.’’

‘‘यानी तुम्हारा इनकार है,’’ ऐसा लगता था आकाश कुछ बुझ से गए थे.

‘‘इस में इनकार या इकरार का प्रश्न ही कहां है? मुझे आप की मित्रता पर अभी भी कोई आपति नहीं है बशर्ते आप मुझ से अन्य कोई अपेक्षा न रखें.’’

‘‘दोनों बातों का समानांतर चलना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘जानती हूं फिर भी कोशिश कीजिएगा.’’

‘‘चलता हूं.’’

‘‘कल आओगे?’’

‘‘कुछ कह नहीं सकता.’’

सुबह के 10 बजे हैं. क्षितिज औफिस चला गया है पर आकाश अभी तक नहीं आए. मानसी को फिर से अकेलापन महसूस होने लगा है.

‘लगता है आकाश आज नहीं आएंगे. शायद मेरा व्यवहार उन के लिए अप्रत्याशित था, उन्हें मेरी बातें अवश्य बुरी लगी होंगी. काश वे मुझे समझ पाते,’ सोच मानसी ने म्यूजिक औन कर दिया और फिर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगीं.

सहसा किसी ने दरवाजा खटखटाया. मानसी दरवाजे की ओर लपकी. देखा दरवाजे पर सदा की तरह मुसकराते हुए आकाश ही थे. मानसी ने भी मुसकरा कर दरवाजा खोल दिया. उस ने आकाश की ओर देखा. आज उन की वही पुरानी चिरपरिचित मुसकान फिर लौट आई थी.

इसी के साथ आज मानसी को विश्वास हो गया कि अब समाज में स्त्रीपुरुष के रिश्ते की उड़ान को नई दिशाएं अवश्य मिल जाएंगी, क्योंकि उन्हें वहां एक आकाश और मिल गया है.

Mothers’s Day 2025 : गुरू घंटाल- मां अनीता के अंधविश्वास ने बदल दी बेटी नीति की जिंदगी

Mothers’s Day 2025 : ‘‘मैं कुछ नहीं जानती. आज मुझे आश्रम जाना है. नाश्ता बना दिया है. दिन का खाना औफिस की कैंटीन में कर लेना या फिर गुरुजी के आश्रम में लंगर करने आ जाना,’’ अनीता ड्रैसिंगटेबल के सामने तैयार होते हुए बोली.

‘‘आज मेरी मीटिंग है. इतना समय नहीं होगा कि मैं लंच के लिए कहीं जा सकूं. मीटिंग कितनी देर चलेगी, कुछ पता नहीं,’’ विनय परेशान होते हुए बोला.

45 वर्षीय अनीता कर्कश स्वभाव की महिला है. हर वक्त लड़ने के मूड में रहती है. फिर चाहे घर हो या बाहर. लड़ने का कोई मौका नहीं चूकती. पति विनय और बेटी नीति उस के सामने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं. पड़ोसी भी उसे ज्यादा मुंह नहीं लगाते हैं. पूरी कालोनी में लड़ाकिन के नाम से बदनाम है. घर में कोई महरी नहीं टिक पाती. कोई न कोई इलजाम लगा कर महीने 2 महीने में भगा देगी. साल भर बाद फिर कोई नई मिली तो बहलाफुसला कर काम पर रख लेगी और फिर 2-4 महीनों में शक की बिना पर उसे बाहर का रास्ता दिखा देगी. ऐसे एक से बढ़ कर एक विभेष गुण भरे हैं उस में. पैसों को दांत से पकड़े रहती है. क्या मजाल पति की जो उस से पूछे बिना 1 रुपया भी खर्च ले. सुबह औफिस जाते समय गिन कर रुपए देगी और फिर शाम को उन का पूरा हिसाब लेगी. पति सरकारी अफसर है. मगर घर में उस की चपरासी की भी हैसियत नहीं है. पता नहीं अपने शौक कैसे पूरे करता है. शायद कुछ ऊपर की कमाई हो जाती होगी या फिर जिन का औफिस में उस से काम पड़ता होगा वही उस के शौक पूरे कर देते होंगे, क्योंकि जब विनय देर रात फाइवस्टार होटल में डिनर कर घर लौटता है तो अनीता अगली सुबह ही मेरे फ्लैट पर आ जाएगी अपना रोना रोने. बगल के फ्लैट में ही तो रहती है. देर रात की उठापटक से आधी कहानी तो मुझे वैसे ही पता चल जाती है और आधी का रोना वह मुझे सुबहसुबह खुद सुना जाती.

उस के पति से मैं इसलिए ज्यादा बात नहीं करती चूंकि मुझे पता है मेरे चरित्र पर भी कीचड़ उछालते उसे देर नहीं लगेगी. जो अपने पति पर विश्वास नहीं करती है वह भला मुझ पर क्या करेगी? अकसर मेरे से आ कर यही कहती है कि लगता है मेरे आदमी का अपनी सैक्रेटरी से चक्कर है. किसी दिन अचानक औफिस पहुंच कर रंगे हाथों पकड़ूंगी.

‘‘पर औफिस में वे 2 ही तो केवल काम नहीं करते, जो रंगरलियां मनाएंगे अनीता? वहां पूरा स्टाफ रहता है,’’ मैं ने कहा.

‘‘वह तो मुझे पता है, लेकिन उस का कैबिन अलग है. वहां सोफा भी रखा है,’’ अनीता आंखें नचाते हुए बोली.

‘‘तो क्या सोफा इसीलिए रखवाया है?’’ मैं अपनी हंसी नहीं रोक पाई.

‘‘हंस ले खूब हंस ले, क्योंकि तेरा मियां, तो नाक की सीध में चलता है न… अगर मेरे आदमी की तरह टेढ़े दिमाग का मिला होता तो मैं भी देखती कि तू कितना हंस पाती,’’ अनीता बिफर पड़ी.

मैं तो अपने पति से यह कभी नहीं पूछती हूं कि उन्होंने दिन भर में किसकिस से मुलाकातें कीं? मुझे विश्वास है कि दिन भर के काम के तनाव के बीच रोमांस का समय कहां है उन के पास और फिर मुझ से ही पीछा नहीं छूटता है तो दूसरों के पास कैसे जा पाएंगे… मैं तो उलटे उन के तनाव को कम करने की कोशिश करती हूं.’’

‘‘मेरा आदमी तो हमेशा दूसरी औरतों की ही तारीफ करता रहता है. कहता है 102 वाली की ड्रैस सैंस कितनी अच्छी है, 108 वाली के बाल कितने सुंदर हैं, 105 वाली की फिगर कितनी सैक्सी है. अगर उन सब को अपने आदमी की बातें बता दूं तो इतने जूते पड़ेंगे कि सारे फ्लैट्स नंबर भूल जाएगा.’’

‘‘अनीता वे चाहते होंगे कि जब वे औफिस से लौटें तो सजीधजी बीवी घर का दरवाजा मुसकराते हुए खोले,’’ मैं ने समझाने की कोशिश की.

‘‘घर के काम क्या उस के रिश्तेदार करेंगे? पूरे घर की सफाई, खाना, बरतन करूं या फिर सजधज कर बैठक में टंग जाऊं?’’ अनीता हर बात को उलटा ही लेती.

‘‘तो महरी रख लो. क्यों सारा दिन खटती रहती हो… कुछ अपना भी खयाल कर लिया करो.’’

‘‘इस का तो महरी से भी चक्कर चल जाता है. उस से भी न जाने क्याक्या बातें करता रहता है. क्या पता चोरीछिपे पैसे भी पकड़ा देता हो. मैं तो तब तक स्नान भी नहीं कर पाती हूं, जब तक वह औफिस नहीं चला जाता,’’ अनीता ने बताया.

सुन कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ. पूछा, ‘‘क्यों स्नान नहीं कर पाती?’’

‘‘अरे, तुम्हें पता तो है कि बेटी तो सुबह ही कालेज चली जाती है, फिर घर में हम दोनों ही रहते हैं. अगर मैं भी स्नानघर में चली गई तो इसे खुली छूट मिल जाएगी उस के साथ…’’ अनीता ने अपने शक का बखान किया.

अपने शक के चलते अनीता घर को नर्क बनाए रहती. इधर 5-6 सालों से गुरुजी की तरफ झुकाव तेजी से बढ़ गया था उस का. कभी अभिमंत्रित जल ला कर पति को पिलाती, तो कभी प्रसाद ला कर देती. बेटी भी मां के नक्शेकदम पर चलने लगी थी. वह भी पापा से कटने लगी थी और हर बृहस्पतिवार और रविवार को आश्रम चल देती. बेटी गाड़ी ड्राइव कर लेती तो अब आनेजाने में आसानी हो गई थी उन्हें. बेटी का एमबीए कंप्लीट हो गया था. गुरुजी की कृपा से उन के एक चेले ने अपने कालेज में नीति को नौकरी दिला दी. तब से मांबेटी तो गुरुजी की चरणरज पीने को तैयार रहने लगीं. पति को भी जबतब भोज, महाभोज के नाम पर आश्रम घसीट ही ले जातीं. अपनी मां को विनय गांव छोड़ आया था. 3-4 साल में 1-2 महीने उन के पास रहतीं तो घर में महाभारत चरम पर होता. इन सब से ऊब कर विनय मां को वापस गांव छोड़ आता. विनय के अन्य किसी घर वाले की हिम्मत ही न होती उस के घर आने की. अत: सब से कट कर रह गया था विनय.

एक दिन मुझे भी अपने संग आश्रम घसीट ले गई, ‘‘चल, तुझे आज नीति के होने वाले पति से मिलवाने ले चलती हूं. गुरुजी की बड़ी कृपा है. बड़े होनहार युवक से हमारी बेटी का रिश्ता तय करवा दिया है. तू तो जानती है इस कालोनी में सब मुझ से कितने जलते हैं. तू शादी होने तक किसी को रिश्ते की बात मत बताना,’’ अनीता मानो मुझे बता कर कोई एहसान कर रही हो.

‘‘चलो, चलते हैं,’’ मैं ने मन की मन सोचा कि अगर अब जाने से मना किया तो मेरे लिए भी यही कहेगी कि जलन के मारे नहीं गई.

हम गाड़ी से आश्रम पहुंच गए. आश्रम 8-10 एकड़ में फैला था. चारों तरफ फैली हरियाली आंखों को सुकून देने वाली थी. गुरुजी का मुख्य भवन थोड़ा अलग हट कर बना था. वहां जाने की अनुमति गिनेचुने लोगों को ही थी.

मैं ने अनीता से कहा, ‘‘तुम भीतर जा कर दर्शन करो. मैं ताजा हवा का आनंद ले रही हूं.’’

मगर वह न मानी. अपने साथ मुझे भी भीतर घसीट ले गई. अंदर 2-3 जगह तो हमारी ऐसी तलाशी ली गई मानो हम देश के किसी गोपनीय विभाग में प्रवेश कर रहे हों. बाद में एक बड़े हौल में पहुंचे जहां करीने से कुरसियां लगी थीं. अनीता झट आगे बढ़ पहली पंक्ति में बैठ गई और अपनी बगल के छोटे बच्चे को उठा कर मुझे बैठने का इशारा किया. बच्चा अपनी मां की गोद में बैठ गया. मैं चुपचाप अनीता की बगल में बैठ गई.

थोड़ी देर बाद सामने बने ऊंचे चबूतरे में लगे आसन पर गुरु का आगमन हुआ. जयजयकार और पुष्पवर्षा होने लगी. गुरु 50-55 वर्ष की उम्र के लग रहे थे. गेरुआ रंग का कुरता और उसी रंग की लुंगी, गले और हाथों में रुद्राक्ष की मालाएं, आधे से ज्यादा माथे पर पीला चंदन का टीका और उस के ऊपर लाल टीका, दाड़ीमूंछ और सिर के बाल सभी सफाचट. मैं ने मन ही मन सोचा सफेद हो गए होंगे तो सब साफ कर दिए. गोरे गोल मुंह पर छोटीछोटी मिचमिचाती आंखें और मोटेमोटे होंठों की जुगलबंदी देखने लायक थी. वे क्या बोल रहे थे और क्या नहीं, मैं ने ध्यान नहीं दिया. मेरा ध्यान तो उन की मुखमुद्रा के बनतेबिगड़ते रूप पर था.

अचानक अनीता ने मेरा हाथ दबाया तो मैं वर्तमान में लौटी. पूरा हौल खाली हो चुका था. लोग 1-1 कर गुरुजी के आसन के पास जा कर अपना दुखड़ा रोते. कुछ सलाहमशवरा होता और गुरुजी किसी का माथा चूम कर तो किसी के हाथ चूम कर आश्वस्त कर रहे थे. वह कृतज्ञ हो बाहर चला जाता. अनीता सब के जाने के इंतजार में थी. आखिर में उठी, मुझे भी खींचा, पर मैं जड़वत हो गई कि कोई पराया पुरुष मेरा स्पर्श करे और वह भी मेरी मरजी के बिना, मुझे गवारा न था. गुस्से से मेरा हाथ झटक गुरुजी के आसन के नीचे बैठ गई. गुरुजी के इशारे पर पीछे पंक्ति में बैठा नवयुवक भी आ कर गुरुजी के चरणों में बैठ गया. मैं समझ गई कि यही है अनीता का होने वाला दामाद. देखने में युवक लंबा, गोराचिट्टा और अच्छे स्वास्थ्य का मालिक लग रहा था. थोड़ी देर की खुसुरफुसुर के बाद गुरुजी ने उन दोनों को अपना चुंबनरूपी आशीर्वाद दिया और उठ कर चले गए. अब हौल में हम 3 ही थे. युवक का नाम अभिषेक था. वह काफी हंसमुख व मिलनसार लग रहा था. अनीता तो उसे ऐसे गले लगा रही थी मानो कोई खजाना हाथ लग गया हो. लौटते समय भी गाड़ी में अभिषेक का गुणगान करती रही. बोली, ‘‘देखा कितना सुदर्शन है मेरा दामाद. मेरी ससुराल वालों के कलेजे में तो इसे देख कर सांप लोटने लगेंगे. आज तक परिवार में इतना सुंदर दामाद किसी का भी नहीं आया है. मेरे गुरुजी का मजाक उड़ाते थे. अब जब शादी में आएंगे तो मुझ से गुरुजी का पता पूछते फिरेंगे. मैं क्यों मिलवाऊं सब को गुरुजी से… इतने सालों से आश्रम में सेवा कर रही हूं. उसी का फल मिला है मुझे. तुझे तो मिलवा दिया, क्योंकि एक तू ही तो मेरे काम आती है. अब शादी में भी तुझे ही सारी जिम्मेदारी निभानी होगी. मुझे किसी पर विश्वास नहीं है,’’ और भी न जाने क्याक्या बड़बड़ करती रही.

‘‘तुम लोग तो कुलीन ब्राह्मण हो, क्या ये भी ब्राह्मण हैं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे देखा नहीं, कितना सुदर्शन है. हां, हमारी जातिबिरादरी का नहीं है… मगर हिमाचल प्रदेश के कुलीन घराने का है. गुरुजी के तो पूरे देश में आश्रम हैं और शिष्य भी.’’

‘‘तुम कब मिली उस के घर वालों से?’’ मैं ने जिज्ञासा प्रकट की.

‘‘इतनी जल्दी क्या है… अभी से मिलूंगी, तो वही लेनदेन शुरू करना पड़ेगा तीजत्योहार का… लड़कालड़की राजी हैं… वह अब घर भी आया करेगा. गुरुजी का कहना है कि घर आनेजाने से उसे भी हमें समझने का मौका मिलेगा और हमें उसे,’’ अनीता ने कहा.

मैं ने कुछ बोलना उचित न समझा, क्योंकि वह कौन सा मेरे कहे अनुसार कुछ करने वाली थी.

कुछ महीनों से मैं ने नीति और अभिषेक को कई बार साथ आतेजाते देखा. अनीता ने बताया था कि वह नियमित आश्रम जाता है तो नीति को भी अपने साथ ले जाता है. गुरुजी दोनों से बड़े खुश हैं. फिर अचानक मांबेटी लापता हो गईं. जब लौटीं तो अनीता की बेटी की गोद में बच्चा था. पूरी कालोनी में खबर फैला दी कि दामाद विदेश चला गया है. हम बेटी की शादी हिमाचल जा कर कर के आए हैं. किसी को यह बात हजम नहीं हो रही थी. मगर अनीता के मुंह लगने की किसी की हिम्मत नहीं थी. बेटी घर से कम ही निकलती.

मैं ने उस के बच्चे के लिए कपड़े, खिलौने लिए और मिलने चल दी. मुझे देख कर अनीता शांत बैठी रही. फिर मैं ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘कोई बात नहीं अनीता, बच्चों से गलती हो ही जाती है… तू ने दोनों की झटपट शादी करा कर ठीक ही किया… जरूरी थोड़े है कि सारे रिश्तेदारों को बुलाओ.’’

‘‘हां, नजर लगा दी लोगों ने… मेरा बड़ा अरमान था कि इस की शादी धूमधाम से करूंगी, मगर सारे अरमान दिल में ही रह गए,’’ अनीता मायूसी से बोली.

‘‘कोई बात नहीं, अभिषेक जब वापस आएगा तो धूमधाम से बच्चे का जन्मोत्सव मना लेना… सब के मुंह भी बंद हो जाएंगे और तुम्हारे अरमान भी पूरे हो जाएंगे,’’ मैं ने सांत्वना दी.

‘‘तुझे तो पता है कि वह 2 साल के लिए विदेश जाने वाला था. मैं ने सोचा था कि शादी 2 साल बाद ही करूंगी. मगर जल्दबाजी में करनी पड़ी. विनय भी तो केवल हफ्ते भर के लिए वहां आ पाया. सब कुछ मुझे ही देखना पड़ा. अभी बच्चा छोटा है तो विदेश में कैसे पाल पाएगी. इस की ससुराल वाले तो भेज ही नहीं रहे थे मगर मैं ने वहां भी अपने साथ ही रखा और फिर यहां ले आई. कौन इन ससुराल वालों का विश्वास करे. खानेपहनने को दें न दें. पति जो साथ में नहीं है,’’ मैं अनीता के स्वभाव से भलीभांति परिचित थी, विश्वास तो उसे अपनी सालों पुरानी ससुराल पर भी नहीं था तो बेटी की नईनवेली ससुराल की तो बात ही दूर थी.

मैं ने माहौल हलकाफुलका करने के उद्देश्य से कहा, ‘‘अरे भई, नन्हेमुन्ने का मुंह तो दिखाओ… मैं आज तुम से नहीं, उस से मिलने आई हूं.’’

‘‘बेटी की तबीयत ठीक नहीं है. वह अभी दवा खा कर लेटी है. मैं मुन्ने को यहीं बैठक में उठा लाती हूं,’’ और मेरे जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर तेजी से उठ कर चल दी.

गोराचिट्टा, गोलमटोल, शिशु को उस ने मेरी गोद में डाल दिया. उसे देखते ही मेरे मुख से निकल गया, ‘‘बिलकुल अपने बाप पर गया है. नीति का रंग तो थोड़ा दबा है. इसे देखो कैसा उजलाउजला है. बाप की तरह ही लंबाचौड़ा निकलेगा,’’ मैं ने बच्चे को प्यार करते हुए कहा.

मेरी बातों से अनीता खुश हो कर बोली, ‘‘तू इसे संभाल मैं तेरे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘सुन, चाय की जरूरत नहीं है. तू बैठ न थोड़ी देर,’’ मैं ने कहा.

मगर अनीता नहीं मानी. बोली, ‘‘अरे नाती की मिठाई खिलाए बगैर थोड़े न जाने दूंगी.’’

फिर थोड़ी ही देर में चाय, मिठाई की ट्रे सजाए अनीता आते ही बोली, ‘‘इन कालोनी वालों के मुंह कैसे बंद करूं? अभिषेक सालछह महीने से पहले नहीं आने वाला.’’

‘‘तू एक छोटा सा गैटटूगैदर कर सभी को चायनाश्ता करा कर मुंह बंद कर दे. इस महीने का दूसरा शनिवार कैसा रहेगा?’’ मैं ने सुझाव दिया.

अपने स्वभाव के विपरीत जा कर उस ने उसे मान लिया, पर फिर अचानक बोली, ‘‘वैसे इन का ट्रांसफर दिल्ली होने वाला है… बिना बात इन लोगों पर क्यों खर्च करूं?’’

‘‘जैसा तुम्हें उचित लगे वैसा ही करो,’’ मैं ने कहा.

तभी अचानक बच्चा कुनमुनाया, ‘‘लगता है कुछ गड़बड़ की है इस ने… इस का डायपर बदलना पड़ेगा,’’ मैं ने अपनी बगल में सोए शिशु पर एक नजर डाल कर कहा.

अनीता डायपर लेने गई, तो मैं शिशु को निहारने लगी. अचानक एक झटका लगा मुझे. शिशु अपनी आंखें और होंठ एकसाथ चलाने लगा तो मेरी आंखों के सामने अचानक उस तथाकथित गुरुजी का चेहरा नाचने लगा. मेरा सिर घूमने लगा. वहां एक क्षण भी टिकना कठिन लगने लगा. फिर जैसे ही अनीता आई मैं बोल पड़ी, ‘‘अब मैं चलती हूं… लगता है बीपी लो हो रहा है मेरा.’’

‘‘फिर आना… थोड़े दिन ही हैं अब यहां,’’ अनीता ने कहा तो मैं ने सहमति में सिर हिला दिया और फिर कुछ अनुत्तरित सवालों के साथ अपने घर आ गई. अभिषेक से शादी हुई भी कि नहीं? शिशु का बाप कौन है? अगर आननफानन में भी शादी की तो उस के फोटोग्राफ्स कहां हैं? फिर अचानक तबादला क्यों ले कर जा रहे हैं? नीति क्यों नहीं लोगों का सामना करना चाहती?

कुछ भी हो इन सब की जड़ गुरु ही है यानी वही गुरू घंटाल. एक सुशिक्षित कन्या का जीवन बरबाद हो गया है. अब यहां से चले भी जाएंगे, तो भी क्या? नीति की जिंदगी में तो पतझड़ का मौसम पसर गया न.

Mother’s Day 2025 : मां चली गई

Mother’s Day 2025 : “मां चली गई”, पति ने कमरे में आते ही धीमी आवाज़ में कहा. मेरी प्रतिक्रिया देखे बिना वे तेज़ी से बाथरुम की ओर चले गए. मुझे भी अचानक मिली खबर से चौंकने की आवश्यकता नहीं थी. चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति क्यों न हो धीरज खोने का साहस मुझमें नहीं है.

जीवन के थपेड़ों से हुए अपने पाषाण ह्रदय की कठोर चट्टान पर एक बूंद आंसू क्या मायने रखता है? जैसे गर्म तवे पर पानी का छींटा. पलकों की कोरें नम होने में काफी समय लगा. घड़ी में वक्त देखने के लिए नज़रें उठाई, तो पाया, पलकों पर आए आंसू छलक कर गालों को भिगोने लगे हैं. भावनाओं का ज्वार उठा और ह्रदय से एक सिसकी, कुछ बूंदे और बस एक चुप्पी.

कमरे में अंधेरा था, अंधेरे में उठते ,सवालों को जवाबों की आवश्यकता नहीं होती.” अभी जाओगी?” “नहीं सबेरे”. सारी समस्याओं का जैसे अंत हो गया. रात के दस बजे थे. “सबेरा कब होगा? ” अपने आप से सवाल कर बिस्तर पर लेट गई. मन अतीत के अंधेरों से घिरने लगा.

तब जब अनचाहे गर्भ से मुक्ति पाने के लिए मां ने क्या-क्या युक्ति की होगी. लेकिन मां के सारे प्रयास विफल रहे. बचपन तितली और परियों की कहानियां सुनते कहते बीतने लगा. पिता का स्नेह और मां की फटकार के बाद का दुलार मन को हर्षोन्मत्त कर देता.

जीवन धारा मंथर गति से बह रही थी कि अचानक किसी ने जैसे शांत झील में पत्थर फेंक दिया. मां और पिता में कभी धीमी तो कभी तेज़ आवाज़ में बहस होने लगी. बालमन कुछ समझ नहीं पाता था.

समय सरकता गया और माहौल शांत होता गया. परपिता की नम आंखों ने सारी कहानी कह डाली थी. पिता के पक्ष में केवल मैं थी, पर मां का विरोध भी कभी सामने आ कर नहीं किया. मन में सवाल उठते, क्या स्त्री को मां बनने के बाद अपनी गरिमा क ध्यान नहीं रखना चाहिए? समाज स्त्री को त्याग की मूर्ति समझकर पूजता है. उसे संयम रखना चाहिए? स्त्री की छोटी सी गलती उसे समाज में, परिवार में और संतान की नज़रों में गिरा देती है.

“मां ” शब्द की मर्यादा स्त्री को देवताओं से भी ऊपर का स्थान प्रदान करती है और वह संस्कारों की धुरी भी है. कभी सोचती,पर मां एक स्त्री भी तो है. कई वर्ष बीत गए. मैंने कभी “मां “शब्द की गरिमा को ठेस नहीं पहुंचाई. हमेशा कोशिश रही कि अपने चरित्र, व्यवहार और त्याग से समाज में एक स्थान पा सकूं.

आज वर्षों बाद मां से मिली, बहुत कष्ट हो रहा था उन्हें, दर्द असहनीय था. लगा कुछ कहना चाहती हैं. मैं भी चाहती थी कि अपने अंतिम क्षणों मां मुझसे कुछ कहे. लेकिन नहीं आज भी मां के अंदर छिपी स्त्री ने उनके होंठ सी दिए थे.

मुझसे रहा नहीं गया, कहा -“मां” प्राण ऐसे नहीं छूटेंगे. मानव जब दुनिया में आता है तो वह निश्छल, निष्पाप, सरल ह्रदय और दोषरहित एक पवित्र आत्मा होता है. वापसी में भी उसे शुद्ध और पवित्र होना चाहिये. तो मां पश्चाताप कर लें. अंतर्मन की पीड़ा का बोझ कम कर लें. आत्मा अपराध-बोध से मुक्त हो जाएगी, पवित्र हो जाएगी. देखा, मां की आंखें भर आईं. मैं बाहर आ गई. पति से कहा,” घर चलें “.

घर पहुंचकर मन विचलित रहा. क्या आवश्यकता थी मां को नीचा दिखाने की? इतने वर्षों तक मौन रहने वाली यह जिव्हा क्यों आज वाचाल हो गई?

आत्मग्लानि से ह्रदय कंपकंपा रहा था कि…………….मां की खबर आ गई………
मन शांत हो गया, यह सोचकर कि मां के अंतर्मन ने शायद पश्चाताप कर लिया होगा जो भी हो.
अब ह्दय और आत्मा दोनों को ही शांति का अनुभव हो रहा था.
एक गहरी सांस के साथ मन से आवाज़ आई, आखिर “मां चली गई.”

 राइटर- ज्योति दिग्विजय सिंह

Interesting Hindi Stories : सिंदूरी मूर्ति – जाति का बंधन जब आया राघव और रम्या के प्यार के बीच

Interesting Hindi Stories : अभी लोकल ट्रेन आने में 15 मिनट बाकी थे. रम्या बारबार प्लेटफौर्म की दूसरी तरफ देख रही थी. ‘राघव अभी तक नहीं आया. अगर यह लोकल ट्रेन छूट गई तो फिर अगली के लिए आधे घंटे का इंतजार करना पड़ेगा’, रम्या सोच रही थी.

तभी रम्या को राघव आता दिखाई दिया. उस ने मुसकरा कर हाथ हिलाया. राघव ने भी उसे एक मुसकान उछाल दी. रम्या ने अपने इर्दगिर्द नजर दौड़ाई. अभी सुबह के 7 बजे थे. लिहाजा स्टेशन पर अधिक भीड़ नहीं थी. एक कोने में कंधे से स्कूल बैग लटकाए 3-4 किशोर, एक अधेड़ उम्र का जोड़ा व कुछ दूरी पर खड़े लफंगे टाइप के 4-5 युवकों के अलावा स्टेशन एकदम खाली था.

रम्या प्लेफौर्म की बैंच से उठ कर प्लेटफौर्म के किनारे आ कर खड़ी हुई तो उस का मोबाइल बज उठा. उस ने अपने मोबाइल को औन किया ही था कि अचानक किसी ने पीछे से उस की पीठ में छुरा भोंक दिया. एक तेज धक्के से वह पेट के बल गिर पड़ी, जिस से उस का सिर भी फट गया और वह बेहोश हो गई.

राघव जब तक उस तक पहुंच पाता, हमलावर नौ दो ग्यारह हो चुका था. चारों तरफ चीखपुकार गूंज उठी. रेलवे पुलिस ने तत्काल उसे सरकारी अस्पताल पहुंचाने का इंतजाम किया. रम्या के मोबाइल फोन से उस के पापा को कौल की. संयोग से वे स्टेशन के बाहर ही खड़े हो अपने एक पुराने परिचित से बातचीत में मग्न हो गए थे. वे उस रोज रम्या के साथ ही घर से स्टेशन तक आए थे. उन्हें चेंग्ल्पप्त स्टेशन पर कुछ काम था. इसीलिए वे बाहर निकल गए जबकि रम्या परानुरू की लोकल ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पर ही रुक गई. रम्या रोज 2 ट्रेनें बदल कर महिंद्रा सिटी अपने औफिस पहुंचती थी.

अचानक फोन पर यह खबर सुन कर रम्या के पिता की हालत बिगड़ने लगी. यह देख कर उन के परिचित उन्हें धैर्य बंधाते हुए साथ में अस्पताल चल पड़े.

रम्या को तुरंत आईसीयू में भरती कर लिया गया. घर से भी उस की मां, बड़ी बहन, जीजा सभी अस्पताल पहुंच गए. डाक्टर ने 24 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए कह दिया कि यदि इतने घंटे सकुशल निकल गए तो बचने की उम्मीद है.

मां और बहन का रोरो कर बुरा हाल था. उन का दामाद, डाक्टर और मैडिकल स्टोर के बीच चक्करघिन्नी सा घूम रहा था.

राघव सिर पकड़े एक कोने की बैंच पर  बैठ गया. वह दूर से रम्या के मम्मीपापा और बड़ी बहन को देख रहा था. क्या बोले और कैसे, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. रम्या ने बताया था कि उस के परिवार के लोग गांव में रहते हैं. अत: वे तमिल के अलावा और कोई भाषा नहीं जानते थे जबकि वह शुरू से ही पढ़ाई में होशियार थी. इसीलिए गांव से निकल कर होस्टल में पढ़ने आ गई थी और फिर इंजीनियरिंग कर नौकरी कर रही थी वरना उस की दीदी का तो 12वीं कक्षा के बाद ही पास के गांव में एक संपन्न किसान परिवार में विवाह कर दिया गया था. सुबह से दोपहर हो गई वह अपनी जगह से हिला ही नहीं, अंदर जाने की किसी को अनुमति नहीं थी. उस ने रम्या की खबर उस के औफिस में दी तो कुछ सहकर्मियों ने शाम को हौस्पिटल आने का आश्वासन दिया. अब वह बैठा उन लोगों का इंतजार कर रहा था. वे आए तभी वह भी रम्या के मातापिता से अपनी भावनाएं व्यक्त कर सका.

पिछले 2 सालों से राघव और रम्या औफिस की एक ही बिल्डिंग में काम कर रहे थे. रम्या एक तमिल ब्राह्मण परिवार से थी, जो काफी संपन्न किसान परिवार था, जबकि राघव उत्तर प्रदेश के पिछड़े वर्ग के गरीब परिवार से था. उस का और रम्या का कोई तालमेल ही नहीं, मगर न जाने वह कौन सी अदृश्य डोर से उस की ओर खिंचा चला गया.

उस की पहली मुलाकात भी रम्या से इसी चेंग्ल्पप्त स्टेशन पर हुई थी, जहां से उसे परानुरू के लिए लोकल ट्रेन पकड़नी थी. उस दिन अपनी कंपनी का ही आईडी कार्ड लटकाए रम्या को देख कर वह हिम्मत कर उस के नजदीक पहुंच गया. जब रम्या को ज्ञात हुआ कि वह पहली बार लोकल ट्रेन पकड़ने आया है तो उस ने उस से कहा भी था कि जब उसे पीजी में ही रहना है तो परानुरू की महिंद्रा सिटी में शिफ्ट हो जाए. रोजरोज की परानुरू से चेंग्ल्पप्त की लोकल नहीं पकड़नी पड़ेगी.

खुद रम्या को तो रोज 2 ट्रेनें बदल कर अपने गांव से यहां आना पड़ता था. उन की बातों के दौरान ही ट्रेन आ गईं. जब तक वह कुछ समझता ट्रेन चल पड़ी. रम्या उस में सवार हो चुकी थी और वह प्लेटफौर्म पर ही रह गया. यह क्या अचानक रम्या प्लेटफौर्म पर कूद गई.

रम्या जब कूदी उस समय ट्रेन रफ्तार में नहीं थी. अत: वह कूदते ही थोड़ा सा लड़खड़ाई पर फिर संभल गई.

राघव हक्काबक्का सा उसे देखते रह गया. फिर सकुचा कर बोला, ‘‘तुम्हें इस तरह नहीं कूदना चाहिए था?’’

‘‘तुम अभी मुझ से ट्रेन के अप और डाउन के बारे में पूछ रहे थे… तुम यहां नए हो… मुझे लगा तुम किसी गलत ट्रेन में न बैठ जाओ सो उतर गई,’’ कह रम्या मुसकराई.

रम्या के सांवले मुखड़े को घेरे हुए उस के घुंघराले बाल हवा में उड़ रहे थे. चौड़े ललाट पर पसीने की बूंदों के बीच छोटी सी काली बिंदी, पतली नाक और पतले होंठों के बीच एक मधुर मुसकान खेल रही थी. राघव को लगा यह तो वही काली मिट्टी से बनी मूर्ति है जिसे उस के पिता बचपन में उसे रंग भरने को थमा देते थे.

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ रम्या ने पूछा.

‘‘यही कि तुम्हें कुछ हो जाता तो, मैं पूरी जिंदगी अपनेआप को माफ न कर पाता… तुम्हें ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए था.’’

‘‘ब्लड… ब्लड…’’ यही शब्द उन वाक्यों के उसे समझ आए, जो डाक्टर रम्या की फैमिली से तमिल में बोल रहा था.

राघव तुरंत डाक्टर के पास पहुंच गया. बोला, ‘‘सर, माई ब्लड ग्रुप इज ओ पौजिटिव.’’

‘‘कम विद मी,’’ डाक्टर ने कहा तो राघव डाक्टर के साथ चल पड़ा. उन्हीं से राघव को पता चला कि शाम तक 5-6 यूनिट खून की जरूरत पड़ सकती है. राघव ने डाक्टर को बताया कि शाम तक अन्य सहकर्मी भी आ रहे हैं. अत: ब्लड की कमी नहीं पड़ेगी.

रक्तदान के बाद राघव अस्पताल के एहाते में बनी कैंटीन में कौफी पीने के लिए आ गया. अस्पताल आए 6 घंटे बीत चुके थे. उस ने एक बिस्कुट का पैकेट लिया और कौफी में डुबोडुबो कर खाने लगा.

तभी उस की नजर सामने बैठे व्यक्ति पर पड़ी, जो कौफी के छोटे से गिलास को साथ में दिए छोटे कटोरे (जिसे यहां सब डिग्री बोलते हैं) में पलट कर ठंडा कर उसे जल्दीजल्दी पीए जा रहा था. रम्या ने बताया था कि उस के अप्पा जब भी बाहर कौफी पीते हैं, तो इसी अंदाज में, क्योंकि वे दूसरे बरतन में अपना मुंह नहीं लगाना चाहते. अरे, हां ये तो रम्या के अप्पा ही हैं. मगर वह उन से कोई बात नहीं कर सकता. वही भाषा की मुसीबत.

तभी उस की नजर पुलिस पर पड़ी, जिस ने पास आ कर उस से स्टेटमैंट ली और उसे शहर छोड़ कर जाने से पहले थाने आ कर अनुमति लेने की हिदायत व पुलिस के साथ पूरा सहयोग करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

शाम के 6 बज चुके थे. जब उस के सहकर्मी आए तो राघव की सांस में सांस आई. वे

सभी रक्तदान करने के पश्चात रम्या के परिजनों से मिले और राघव का भी परिचय कराया.

तब उस की अम्मां ने कहा, ‘‘हां, मैं ने सुबह से ही इसे यहीं बैठे देखा था. मगर मैं नहीं जान पाई कि ये भी उस के सहकर्मी हैं,’’ और फिर वे राघव का हाथ थाम कर रो पड़ीं.

उन लोगों के साथ राघव भी लौट गया. वह रोज शाम 7 बजे अस्पताल पहुंच जाता और 9 बजे लौट आता. पूरे 15 दिन तक आईसीयू में रहने के बाद जब रम्या प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट हुई तब जा कर उसे रम्या की झलक मिल सकी. रम्या की पीठ का घाव तो भरने लगा था, मगर उस के शरीर का दायां भाग लकवे का शिकार हो गया था, जबकि बाएं भाग में गहरा घाव होने से उसे ज्यादा हिलनेडुलने को डाक्टर ने मना किया था. रम्या निर्जीव सी बिस्तर पर लेटी रहती. अपनी असमर्थता पर आंसू गिरा कर रह जाती.

दुर्घटना के पूरे 6 महीनों के बाद स्वास्थ्य लाभ कर उस दिन रम्या औफिस जौइन करने जा रही थी. सुबह से रम्या को कई फोन आ चुके थे कि वह आज जरूर आए. उस दिन राघव की विदाई पार्टी थी. वह कंपनी की चंडीगढ़ ब्रांच में ट्रांसफर ले चुका था. वह दिन उस का अंतिम कार्यदिवस था.

कंपनी के गेट तक रम्या अपने अप्पा के साथ आई थी. वे वहीं से लौट गए, क्योंकि औफिस में शनिवार के अतिरिक्त अन्य किसी भी दिन आगंतुक का अंदर प्रवेश प्रतिबंधित था. उस का स्वागत करने को कई मित्र गेट पर ही रुके थे. उस ने मुसकरा कर सब का धन्यवाद दिया. राघव एक गुलदस्ता लिए सब से पीछे खड़ा था.

रम्या ने खुद आगे बढ़ कर उस के हाथ से गुलदस्ता लेते हुए कहा, ‘‘शायद तुम इसे मुझे देने के लिए ही लाए हो.’’

एक सम्मिलित ठहाका गूंज उठा. ‘तुम्हारी यही जिंदादिली तो मिस कर रहे थे हम सब,’ राघव ने मन ही मन सोचा.

रम्या को औफिस आ कर ही पता चला कि आज की लंच पार्टी रम्या की स्वागतपार्टी और राघव की विदाई पार्टी है. दोनों ही सोच में डूबे हुए अपनेअपने कंप्यूटर की स्क्रीन से जूझने लगे.

राघव सोच रहा था कि रम्या की जिंदगी के इस दिन का उसे कितना इंतजार था कि स्वस्थ हो दोबारा औफिस जौइन कर ले. मगर वही दिन उसे रम्या की जिंदगी से दूर भी ले कर जा रहा था.

रम्या सोच रही थी कि जब मैं अस्पताल में थी तो राघव नियम से मुझ से मिलने आता था और कितनी बातें करता था. शुरूशुरू में तो मां को उसी पर शक हो गया था कि यह रोज क्यों आता है? कहीं इसी ने तो हमला नहीं करवाया और अब हीरो बन सेवा करने आता है? और अप्पा को तो मामा पर शक हो गया था, क्योंकि मैं ने मामा से शादी करने को मना कर दिया था और छोेटा मामा तो वैसे भी निकम्मा और बुरी संगत का था. अप्पा को लगा मामा ने ही मुझ से नाराज हो कर हमला करवाया है. जब राघव को मैं ने मामा की शादी के प्रोपोजल के बारे में बताया तो वह हैरान रह गया. उस का कहना था कि उन के यहां मामाभानजी का रिश्ता बहुत पवित्र माना जाता है. अगर गलती से भी पैर छू जाए तो भानजी के पैर छू कर माफी मांगते हैं. पर हमारी तरफ तो शादी होना आम बात है. मामा की उम्र अधिक होने पर उन के बेटे से भी शादी कर सकते हैं.

उन दिनों कितनी प्रौब्ल्म्स हो गई थीं घर में… हर किसी को शक की निगाह से देखने लगे थे हम. राघव, मामा, हमारे पड़ोसियों सभी को… अम्मां को भी अस्पताल के पास ही घर किराए पर ले कर रहना पड़ा. आखिर कब तक अस्पताल में रहतीं. 1 महीने बाद अस्पताल छोड़ना पड़ा. मगर लकवाग्रस्त हालत में गांव कैसे जाती? फिजियोथेरैपिस्ट कहां मिलते? राघव ने भी मुझ से ही पूछा था कि अगर वह शनिवार, रविवार को मुझ से मिलने घर आए तो मेरे मातापिता को कोई आपत्ति तो नहीं होगी. अम्मांअप्पा ने अनुमति दे दी. वे भी देखते थे कि दिन भर की मुरझाई मैं शाम को उस की बातों से कैसे खिल जाती हूं, हमारा अंगरेजी का वार्त्तालाप अम्मां की समझ से दूर रहता. मगर मेरे चेहरे की चमक उन्हें समझ आती थी.

मामा ने गुस्से में आना कम कर दिया तो अप्पा का शक और बढ़ गया. वह तो

2 महीने पहले ही पुलिस ने केस सुलझा लिया और हमलावर पकड़ा गया वरना राघव का भी अपने घर जाना मुश्किल हो गया था. मैं ने आखिरी कौल राघव को ही की थी कि मैं स्टेशन पहुंच गई हूं, तुम भी आ जाओ. उस के बाद उस अनजान कौल को रिसीव करने के बीच ही वह हमला हो गया.

राघव ने जब बताया था कि वह बाराबंकी के कुंभकार परिवार से है और उस का बचपन मूर्ति में रंग भरने में ही बीता है, तो मैं ने कहा था कि वह मूर्ति बना कर दिखाए. तब उस ने रंगीन क्ले ला कर बहुत सुंदर मूर्ति बनाई जो संभाल कर रख ली.

‘रम्या भी तो एक बेजान मूर्ति में परिवर्तित हो गई थी उन दिनों,’ राघव ने सोचा. वह हर शनिवाररविवार जब मिलने जाता तब उसे रम्या में वही स्वरूप दिखाई देता जैसा उस के बाबा दीवाली में लक्ष्मी का रूप बनाते थे. काली मिट्टी से बनी सौम्य मूर्ति. उस मूर्ति में जब वह लाल, गुलाबी, पीले और चमकीले रंगों में ब्रश डुबोडुबो कर रंग भरता, तो उस मूर्ति से बातें भी करता.

यही स्थिति अभी भी हो गई है. रम्या के बेजान मूर्तिवत स्वरूप से तो वह कितनी बातें करता था. लकवाग्रस्त होने के कारण शुरूशुरू में वह कुछ बोल भी नहीं पाती थी, केवल अपने होंठ फड़फड़ा कर या पलकें झपका कर रह जाती. बाद में तो वह भी कितनी बातें करने लगी थी. उस की जिंदगी में भी रंग भरने लगे थे. वह समझ ही नहीं पाया कि रंग भर कौन रहा है? वह रम्या की जिंदगी में या रम्या उस की जिंदगी में? अब रम्या जीवन के रंगों से भरपूर है. अपने अम्मांअप्पा के संरक्षण में गांव लौट गई है, उस की पहुंच से दूर. अब उस की सेवा की रम्या को क्या आवश्यकता? अब वह भी यहां से चला जाएगा. रम्या से फेसबुक और व्हाट्सऐप के माध्यम से जुड़ा रहेगा वैसे ही जैसे पंडाल में सजी मूर्तियों से मन ही मन जुड़ा रहता था.

‘‘चलो, सब आज सब का लंच साथ हैं याद है न?’’ रमन ने मेज थपथपाई.

सभी एकसाथ लंच करने बैठ गए तो रम्या ने कहा, ‘‘धन्यवाद तो मुझे तुम सब का देना चाहिए जो रक्तदान कर मेरे प्राण बचाए…’’

‘‘सौरी, मैं तुम्हें रोक रहा हूं. मगर सब से पहले तुम्हें राघव को धन्यवाद करना चाहिए. इस ने सर्वप्रथम खून दे कर तुम्हें जीवनदान दिया है,’’ मुरली मोहन बोला.

‘‘ठीक है, उसे मैं अलग से धन्यवाद दे दूंगी,’’ कह रम्या हंस रही थी. राघव ने देखा आज उस ने काले की जगह लाल रंग की बिंदी लगाई थी.

‘‘वैसे वह तेरा वनसाइड लवर भी बड़ा खतरनाक था… तुझे अपने इस पड़ोसी पर पहले कभी शक नहीं हुआ?’’ सुभ्रा ने पूछा.

‘‘अरे वह तो उम्र में भी 2 साल छोटा है मुझ से. कई बार कुछ न कुछ पूछने को किसी न किसी विषय की किताब ले कर घर आ धमकता था. मगर मैं नहीं जानती थी कि वह क्या सोचता है मेरे बारे में,’’ रम्या अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

लगभग सभी खापी कर उठ चुके थे. राघव अपने कौफी के कप को घूरने में लगा था मानो उस में उस का भविष्य दिख रहा हो.

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है उस लड़के के बारे में?’’ रम्या ने पास आ कर उस से पूछा.

‘‘प्यार मेरी नजर में कुछ पाने का नहीं, बल्कि दूसरे को खुशियां देने का नाम है. अगर हम प्रतिदान चाहते हैं, तो वह प्यार नहीं स्वार्थ है और मेरी नजर में प्यार स्वार्थ से बहुत ऊपर की भावना है.’’

‘‘इस के अलावा भी कुछ और कहना है तुम्हें?’’ रम्या ने शरारत से राघव से पूछा.

‘‘हां, तुम हमेशा इसी तरह हंसतीमुसकराती रहना और अपनी फ्रैंड लिस्ट में मुझे भी ऐड कर लेना. अब वही एक माध्यम रह जाएगा एकदूसरे की जानकारी लेने का.’’

‘‘ठीक है, मगर तुम ने मुझ से नहीं पूछा?’’

‘‘क्या?’’

‘‘यही कि मुझे कुछ कहना है कि नहीं?’’ रम्या ने कहा तो राघव सोच में पड़ गया.

‘‘क्या सोचते रहते हो मन ही मन? राघव, अब मेरे मन की सुनो. अगले महीने अप्पा बाराबंकी जाएंगे तुम्हारे घर मेरे रिश्ते की बात करने.’’

‘‘उन्हें मेरी जाति के बारे में नहीं पता शायद,’’ राघव को अप्पा का कौफी पीना याद आ गया.

‘‘यह देखो इन रगों में तुम्हारे खून की

लाली ही तो दौड़ रही है और जो जिंदगी के पढ़ाए पाठ से भी सबक न सीख सके वह इनसान ही क्या… मेरे अप्पा इनसानियत का पाठ पढ़ चुके हैं. अब उन्हें किसी बाह्य आडंबर की जरूरत नहीं है,’’ रम्या ने अपना हाथ उस की हथेलियों में रख कर कहा, ‘‘अब अप्पा भी चाह कर मेरे और तुम्हारे खून को अलगअलग नहीं कर सकते.’’

‘‘तुम ने आज लाल बिंदी लगई है,’’ राघव अपने को कहने से न रोक सका.

‘‘नोटिस कर लिया तुम ने? यह तुम्हारा ही दिया रंग है, जो मेरी बिंदी में झलक आया है और जल्द ही सिंदूर बन मेरे वजूद में छा जाएगा,’’ रम्या बोली और फिर दोनों एकदूसरे का हाथ थामें जिंदगी के कैनवास में नए रंग भरने निकल पड़े.

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