Best Family Story: महाभारत- माता-पिता को क्या बदल पाए बच्चे

Best Family Story: दरवाजा बंद था लेकिन ऊंचे स्वर में होते वाक्युद्ध से लगता था किसी भी क्षण हाथापाई शुरू हो जाएगी. जब अधिक बर्दाश्त नहीं हुआ तो कजरी दरवाजे पर दस्तक देने के लिए उठी पर विवेक ने उसे पीछे खींच लिया, फिर समझाते हुए कहा, ‘‘एक तो यह रोज की बात है, दूसरे, यह पतिपत्नी का आपसी मामला है. तुम्हारे हस्तक्षेप करने से बात बिगड़ सकती है.’’

‘‘लेकिन विवेक, यह कब तक चलेगा?’’ कजरी ने हताश हो कर कहा.

‘‘पता नहीं,’’ विवेक ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘थोड़े दिन और देखते हैं, अगर नहीं समझे तो उन्हें वापस कानपुर भेज देंगे. बड़े भैया अपनेआप झेलेंगे.’’

‘‘कितनी आशा से हम ने मम्मीडैडी को अपने पास रहने के लिए बुलाया था,’’ कजरी ने गहरी सांस ली, ‘‘सोचा था उन का भी थोड़ा घूमनाफिरना हो जाएगा और हमें भी अच्छा लगेगा.’’

‘‘मम्मीडैडी में झगड़ा तो अकसर होता था,’’ विवेक ने कटुता से कहा, ‘‘लेकिन आपसी संबंध इतने बिगड़ जाएंगे यह नहीं सोचा था.’’

मम्मीडैडी में किसी न किसी बात पर रोज घमासान होता था. मम्मी की जलीकटी बातों का उत्तर डैडी गाली दे कर देते थे.

विवेक ने कजरी से कहा, ‘‘गरमागरम कौफी बना लाओ. पी कर कम से कम मेरा मूड तो ठीक होगा.’’

कजरी कौफी लाई तो विवेक ने दरवाजे पर दस्तक दी.

लगभग एक मिनट के बाद डैडी ने दरवाजा खोला और घूर कर देखा.

‘‘लीजिए डैडी, गरमागरम कौफी. आप शांति से पीजिए,’’ विवेक ने मम्मी से कहा, ‘‘आगे का प्रोग्राम ब्रेक के बाद.’’

विवेक अकसर मम्मीडैडी को बतौर मनोरंजन कुछ न कुछ कह कर हंसाता रहता था, लेकिन आज दोनों बहुत गंभीर थे. तनी भृकुटी पर कोई असर नहीं हुआ.

एक दिन मामला बहुत गरम हो गया. मम्मीडैडी का स्वर बाहर तक सुनाई पड़ रहा था.

‘‘मैं एक मिनट इस घर में नहीं रह सकती,’’ मम्मी ने ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘मैं हमेशा के लिए छोड़ कर चली जाऊंगी.’’

‘‘मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं,’’ डैडी ने क्रोध से कहा, ‘‘मेरा पीछा छोड़ दो.’’

‘‘मुझे कौन साथ रहने का शौक है,’’ मम्मी ने भी क्रोध से कहा. लड़ाई चरम सीमा पर पहुंच गई थी. कजरी और विवेक माथा पकड़ कर बैठ गए.

‘‘मैं भैया को फोन करता हूं,’’ विवेक ने दृढ़ता से कहा, ‘‘आएं और तुरंत ले जाएं.’’

‘‘नहीं, विवेक, उन्हें क्यों परेशान करते हो.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो,’’ विवेक ने सोच कर कहा, ‘‘एक कोशिश और करते हैं. मम्मीडैडी के लिए मनोरंजन का कोई और रास्ता ढूंढ़ना होगा. शायद बात बन जाए.’’

कजरी ने सहमति में सिर हिलाया और हंस पड़ी.

‘‘मम्मी,’’ विवेक ने कहा, ‘‘आप तो कभी बहुत पिक्चर देखती थीं. अब क्या हो गया?’’

मम्मी ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘कोई साथ हो तब न.’’

‘‘मैं 2 टिकट ले आया हूं. तैयार हो जाओ. डैडी को भी बोल कर आता हूं.’’

मम्मी को पिक्चर देखने का बहुत शौक था. पिक्चरहाल ज्यादा दूर नहीं था फिर भी विवेक ने रिकशा कर के दोनों को उस पर बैठा दिया.

थोड़ी देर में मम्मीडैडी सिनेमा देखने जा चुके थे.

उन के जाने के बाद विवेक ने पूछा, ‘‘हम कौन सी पार्टी में जा रहे हैं?’’

‘‘कोई पार्टी नहीं है तो क्या हुआ,’’ कजरी ने हंसते हुए कहा, ‘‘अब चले चलते हैं. तुम ने कहा था न एक बार कि कैलीफोर्निया में चाइनीज खाना बहुत अच्छा मिलता है.’’

कैलीफोर्निया अभीअभी एक नया रेस्तरां खुला था और अपने स्वादिष्ठ खाने की वजह से जल्द ही बहुत मशहूर हो गया था.

जब मम्मीडैडी घर आए तो बहुत प्रसन्न थे. आदत के अनुसार मम्मी फिल्म की कहानी सुनाने लगीं और डैडी अपनी टिप्पणी दे रहे थे. विवेक और कजरी ने राहत की सांस ली.

अब तो विवेक हर 10-15 दिन में किसी नई फिल्म के 2 टिकट ले आता था. मम्मीडैडी जितना खुश हो कर जाते थे उस से अधिक प्रसन्न हो कर लौटते थे.

एक दिन विवेक के एक दोस्त ने नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के एक बहुचर्चित नाटक के 2 टिकट ला कर दिए. वे टिकट विवेक ने मम्मीडैडी को दे दिए.

दोनों बहुत प्रसन्न थे. कोई नाटक देखे उन्हें वर्षों बीत गए थे.

मम्मीडैडी के आने की प्रतीक्षा में कजरी और विवेक बैठ कर सासबहू वाला धारावाहिक देख रहे थे. आज कहानी ने एक दिलचस्प मोड़ लिया था. अचानक फोन की घंटी ने ध्यान भंग कर दिया, ‘‘देखो, किस का फोन है,’’ विवेक नेकहा.

‘‘तुम देखो,’’ कजरी बोली. विवेक अनिच्छा से उठा.

‘‘हैलो,’’ विवेक ने सूखे कंठ से कहा.

‘‘जानेमन, कैसे हो?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘कस्तूरी, तुम?’’ विवेक ने आश्चर्य से चौंक कर पूछा, ‘‘कैसे याद किया?’’

‘‘परसों तुम दोनों मेरे यहां खाने पर आओ,’’ कस्तूरी ने कहा.

‘‘किस खुशी में?’’

‘‘मेरा जन्मदिन है,’’ कस्तूरी खिलखिला पड़ी, ‘‘साल में कितने जन्मदिन मनाती हो?’’ विवेक ने हंस कर पूछा.

‘‘अपनी डायरी में देखो, कहीं लिखा होगा,’’ कस्तूरी ने कहा, ‘‘सच ही मेरा जन्मदिन है और तुम दोनों को जरूर आना है.’’ इस से पहले कि विवेक कुछ कहता कस्तूरी ने फोन रख दिया था. विवेक उलझन में पड़ा फोन हाथ में लिए खड़ा था. क्या करे इस कस्तूरी का. जब भी फोन करती है घर में कलह हो ही जाती है.

कजरी ने तीखे स्वर में पूछा, ‘‘क्या कह रही थी, कस्तूरी?’’

‘‘खाने पर बुला रही है. जन्मदिन की पार्टी कर रही है,’’ विवेक ने खुलासाकिया.

‘‘माना, किसी जमाने में कस्तूरी तुम्हारी गर्लफ्रैंड थी, लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं कि उसे खुलेआम तुम्हारे से फ्लर्ट करने का लाइसेंस मिल गया,’’ कजरी ने क्रोध से कहा, ‘‘जब भी मिलती है ऐसे चिपक कर बैठती है जैसे पत्नी वह है और मैं ‘वो’ हूं.’’

‘‘तुम जानती तो हो कि मैं उसे ऐसा करने की दावत नहीं देता,’’ विवेक ने हाथ हिलाते हुए कहा, ‘‘वह है ही ऐसी.’’

‘‘ताली एक हाथ से नहीं बजती,’’ कजरी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘तुम मौका देते हो तभी तो उस की ऐसा करने की हिम्मत होती है.’’

‘‘मैं मौका देता हूं?’’ विवेक ने ऊंचे स्वर में कहा, फिर पूछा, ‘‘तुम्हें उस की पार्टी में चलना है या नहीं?’’

दोनों एक-दूसरे को इस तरह घूर रहे थे मानो खा ही जाएंगे.

पार्टी में तो कोई नहीं गया लेकिन दोनों के बीच शीतयुद्ध जारी रहा. सारा काम इशारों से चल रहा था या मम्मीडैडी से कह कर.

आज छुट्टी का दिन था लेकिन माहौल मनहूसियत से भरा हुआ था. नाश्ते के बाद डैडी बाहर चले गए.

‘‘विवेक,’’ थोड़ी देर बाद डैडी ने अंदर आते हुए आवाज लगाई, ‘‘बहू, तुम भी आओ. देखो, क्या लाया हूं मैं.’’

दोनों आ कर आश्चर्य से देखने लगे.

‘‘ये लो,’’ डैडी ने एक लिफाफा पकड़ाया.

‘‘इस में क्या है?’’ दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘बेटा, हनीमून हाल के टिकट हैं. मैं तुम दोनों के लिए फिल्म ‘देवदास’ के टिकट ले आया हूं. इतने दिनों से तुम्हें ‘देवदास’ बना देख रहा हूं. सोचा क्यों न फिल्म ही दिखा दूं.’’

मम्मीडैडी दोनों हंस रहे थे. कुछ क्षणों तक कजरी और विवेक ने आश्चर्य से देखा और फिर हंसी न रोक सके. डैडी ने उन का फार्मूला उन्हीं पर आजमा दिया था.

Best Family Story

Long Story in Hindi: चांद किस का होगा

Long Story in Hindi: 22 साल की नव्या लेयर्स में कटे अपने लंबे हलके ब्राउन रंग के बालों को झटकते हुए तौलिए से पोंछ रही थी और बालकनी में खड़ी अपार्टमैंट के नीचे मेन गेट से एक आकर्षक स्त्री को दरबान से कुछ पूछते देख रही थी. नहाधो कर अपने धुले हुए कपड़ों को बालकनी में रखे क्लोथ स्टैंड में सुखाते और गीले बालों को धूप दिखाते हुए वह सुबह 9 बजे अपार्टमैंट के नीचे का नजारा भी अकसर ले लेती है. बस, इस के बाद वर्क फ्रौम होम की हड़बड़ी. ओट्स, नूडल, ब्रैड कुछ भी नाश्ते में और लैपटौप खोल कर बैठ जाना.

लखनऊ के इंदिरा नगर के जिस अपार्टमैंट के एक फ्लैट में नव्या रहती है वह चौथे माले पर है. उस में 3 कमरे हैं, तीनों में अटैच लैट, बाथ और बालकनी है. हर कमरे में एसीपंखा, डबल बैड, छोटा सोफा, साइड टेबल, अलमीरा और दीवार में वार्डरोब है यानी संपूर्ण निवास की व्यवस्था है इस फ्लैट में. हौल में बड़ा सोफा, बड़ा टीवी और सैंटर टेबल अपनी निश्चित जगह पर सजी है. कौमन ओपन रसोई की बगल में थ्री सीटर डाइनिंग का भी इंतजाम है, जिस का फिलहाल यहां रहने वाले प्रयोग नहीं करते.

गैस कनैक्शन फ्लैट की ओनर लेडी का है और किराएदार सिलिंडर का पैसा चुकाते हैं.

इस फ्लैट में रहने वाले हर किराएदार को 7 हजार महीने के देने पड़ते हैं. इस के अलावा मेड का पैसा यही लोग साझा करते हैं.

नव्या अपने कमरे में पलंग पर औफिस का सामान सजा कर काम करने बैठ चुकी थी. दोपहर 12 बजे वह लंच बनाने के लिए उठेगी और तब शमा से उस की मुलाकात होगी.

कुछ गपशप और साथ रसोई में लंच तैयार करना फिर काम पर बैठ जाना. शमा जिसे नव्या शमा मैम कहती है, नव्या की कंपनी में ही उस से तीन 3 सीनियर टीम मैनेजर है.

नव्या है शोख, चंचल, नाजुक जिसे आजकल गर्ली कहा जाता है, जबकि शमा नव्या से बिलकुल अलग है. 26 साल की सांवलीसलोनी शमा 5 फुट 6 इंच की हाइट के साथ स्ट्रौंग पर्सनैलिटी की धनी है. उसे न तो नव्या की तरह 10 बार सैल्फी ले कर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की आदत है, न ही इंस्टा पर अपने फौलोअर्स बढ़ाने को ले कर कोई धुन. वह बिंदास अपने काम और नौकरी में मशरूफ रहती है, कभी मन किया तो घूमनाफिरना या फिर अपनी कोई पसंदीदा मूवी देख लेना. क्लीयर विजन, साफ सोच और तनाव से दूरी. शमा अपनी जिंदगी अपने बूते जीने की दम रखती है.

कोई उस की आलोचना करे, उस के रंग पर टिप्पणी करे, उसे खास फर्क नहीं पड़ता.

नव्या का कमरा हौल के बीच में था, एक ओर शमा का कमरा था, दूसरी ओर का कमरा अभी खाली था.

नव्या औफिस के काम में व्यस्त थी कि मुख्य दरवाजे की घंटी बजी. शमा नव्या की सीनियर थी, प्राइवेट कंपनी के सीनियरजूनियर कल्चर को निभाते हुए दरवाजा अकसर नव्या ही खोला करती थी. दरवाजा खोलते ही मकानमालकिन बिना कुछ कहे उस महिला को अंदर ले आई जिसे अभी कुछ देर पहले नव्या ने नीचे देखा था.

नव्या को मकानमालकिन से बस इतनी जानकारी मिली कि यह अश्विनाजी हैं, नजदीक के सरकारी कालेज में लैक्चरर बन कर आई हैं. अश्विनाजी तीसरे कमरे में किराएदार बन कर आ रही हैं.

नव्या कमरे में चली गई वह कुछ हद तक बो?िल महसूस करने लगी. शमा मैम के साथ उस की लगभग पटरी तो बैठी ही थी, भले गहरी न भी छने लेकिन यह अश्विनाजी पता नहीं कैसी होगी. कहीं ज्यादा रोकटोक, साजसंभाल पर न उतर आए. किशोरी से जुम्माजुम्मा 4-5 साल ही तो हुए थे उसे जवानी की दहलीज पर कदम रखे. आजादी के माने उस के लिए अपनी मरजी से पैर पसार कर जीना था. खैर, जो होगा देखा जाएगा.

दूसरे दिन दोपहर तक अश्विना आ गई. एक चौवन इंच के सूटकेस और दो हैंड बैग के साथ वह कमरे में आई और कमरे की साफसफाई में व्यस्त हो गई.

नव्या ने ही दरवाजा खोला था और छोटी सी मुसकराहट के सिवा इन दोनों के बीच कोई और बात नहीं हुई.

लंच के वक्त शमा ने नव्या को भेजा कि लंच के बारे में पूछ ले पर नव्या को अश्विना ने मना कर दिया. दोनों रोज की तरह अपनीअपनी प्लेट ले कर अपनेअपने कमरे में बंद हो गईं.

शाम 6 बजे नहाधो कर गुलाबी और सफेद जोड़ी का ए लाइन सूट पहन अश्विना ने 3 कप कौफी ट्रे में सजा कर शमा और नव्या के कमरे के बंद दरवाजे पर आवाज लगाई.

दोनों अपने कमरे से बाहर आईं तो अश्विना ने कहा, ‘‘मैं अश्विना, मेरी उम्र 32 साल है, आप लोग मु?ो दीदी कह सकतीं, मुझे अच्छा लगेगा. आओ कौफी पीती हैं. लंच के वक्त मेरी सफाई पूरी नहीं हुई थी…’’

‘‘अरे हम समझ गई थीं, कोई बात नहीं, चलिए आइए मेरे कमरे में, मेरा अभी कंप्यूटर से हटना मुश्किल है,’’ शमा ने कहा.

शमा और नव्या ने अपनी कौफी ले ली. दोनों शमा के साथ उस के कमरे में आ गईं.

शमा ने दोनों को पास अपने पलंग पर ही बैठा लिया. इन की शाम 8 बजे छुट्टी होती थी. अपनी इच्छा से वे 15 मिनट का टी ब्रेक ले सकती थीं और अभी उसी सुविधा के तहत नव्या अपने काम से कुछ देर के लिए उठ कर यहां आई थी.

तीनों एकदूसरे से घनिष्ठ होते हुए कौफी का आनंद ले रही थीं कि शमा की नजर अश्विना के पेट पर गई. उसे थोड़ा अजीब सा लगा. पेट सामान्य से बड़ा है न या शमा ही गलत देख रही है. देखने से तो अश्विना अविवाहित लग रही थी. शादीशुदा लड़की अकेली इस तरह भला क्यों रहने आएगी? शमा अपनी सोच को विराम दे कर फिर से काम पर लग गई.

अश्विना ने कहा, ‘‘मैं तुम ही कहूंगी तुम दोनों को, ठीक है न?’’

दोनों ने मुसकरा कर सहमति दी तो अश्विना ने कहा, ‘‘मेरा चयन यहां के सरकारी कालेज में बतौर लैक्चरर हुआ है, फिलहाल घर पर ही हूं. जब तक कालेज शुरू नहीं होता, लंच मैं ही बना लूंगी. हम सब अब से थोड़ी देर डिनर टेबल पर ही साथ डिनर करेंगे, लंच भले ही तुम लोग औफिस के काम के साथ ही कर लेना. क्यों यह ठीक होगा न?’’

‘‘अरे नहीं, हम अपना बना लेंगे,’’ नव्या ने कहा तो अश्विना ने कहा, ‘‘यह तो हो गई न पराएपन की बात. मैं आई हूं न तुम दोनों की दीदी. फिर तुम दोनों अपने औफिस का काम करो न. लंच तैयार कर के मैं बुला लूंगी न तुम दोनों को. अकेले नहीं खा पाऊंगी.’’

तीनों हंस पड़ीं, फिर नव्या उठ कर गई तो शमा ने कहा, ‘‘दी, आप को एतराज न हो तो हमें अपने बारे में बताएं?’’

‘‘मेरी कहानी में पेच है, इसलिए खुलतेखुलते ही खुलेगी. तुम बताओ तुम कहां की हो?’’ अश्विना इतनी जल्दी शायद खुद को खोलना नहीं चाहती थी.

‘‘मैं लखनऊ के गोमतीनगर की बेटी हूं. वहां मेरा पूरा परिवार है, संयुक्त परिवार. पापामां, मेरी 1 छोटी बहन, चाचाचाची और उन की 2 बेटियां और 1 बेटा.’’

‘‘फिर तुम यहां किराए के फ्लैट में?’’

शमा ने कंप्यूटर बंद कर दिया. शायद उस की आज की ड्यूटी खत्म हो गई थी. उस ने कहा, ‘‘दरअसल, मेरी जिंदगी अजीबोगरीब पड़ाव पर आ कर रुक गई थी. अगर मैं यहां आ कर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत नहीं करती और परिवार और समाज की तथाकथित लाज और इज्जत की खातिर खुद को मिटा देती तो मेरी जिंदगी मेरी उन सहेलियों और पहचान की लड़कियों की तरह हो जाती जिन्होंने शिद्दत से अपनी जिंदगी बनाई, मेहनत की, डिगरी ली और अब एक साड़ी के रंग के लिए पति की निर्णय के अधीन हैं, जिन का प्रोफैशन बस सोशल मीडिया में खुद की सैल्फी पोस्ट कर के खुश रहना है. मैं ऐसे नहीं जी सकती थी इसलिए आज मैं यहां हूं.’’

‘‘तुम तो शानदार हो. तुम घर भी नहीं जाती?’’

‘‘उन्हें बताया भी नहीं कहां हूं, मां से कभी बात कर लेती हूं, दरअसल, मां की मौन सहमति तो है मेरे निर्णय पर लेकिन परिवार के डर से कभी जताती नहीं.’’

आज डिनर टेबल को अश्विना ने अच्छी तरह साफ कर लिया था. तीनों ने बनाई थी गोभीमटर की सब्जी, रोटी और अश्विना की खास दाल फ्राई.

साथ खाते हुए अश्विना ने नव्या से पूछा, ‘‘छुटकी तुम कहां की हो?’’

‘‘मैं गया बिहार की हूं दीदी.’’

‘‘बहुत दिन हो गए होंगे घर गए? अश्विना ने उस पर नेह जताया.

‘‘मेरे लिए क्या देर क्या सबेर. मैं ने तो प्रण कर घर छोड़ा है कि लौट कर दोबारा नहीं जाऊंगी.’’

अश्विना अवाक थी. संवेदना जताते पूछा, ‘‘हुआ क्या आखिर? ’’

‘‘मेरे पापा सही नहीं हैं, मां से मारपीट करते हैं, नशा भी करते हैं और फिर वही लड़ाई?ागड़ा, भाई तो दिनभर बाहर रह कर वक्त निकाल लेता है, लेकिन मेरी जो हालत होती मैं ही जानती थी. पढ़ाई पूरी करते ही मैं ने नौकरी की कोशिश की और जानबू?ा कर शहर से इतनी दूर चली आई.’’

‘‘मां के बारे में नहीं सोचा, बेचारी अकेली पिसने के लिए रह गई?’’ अश्विना कुछ दुखी दिख रही थी.

नव्या ने कहा, ‘‘अब यह तो उस की मरजी. चाहती तो पापा को छोड़ देती. वहां जाऊंगी तो पापा जबरदस्ती मेरी शादी करवा देंगे और वह भी अपने जैसे किसी लड़के से. मेरी मां कुछ भी नहीं कर पाएगी. अभी कम से कम अपना खर्चा मैं खुद उठा रही हूं, भाई को खर्चा भेज देती हूं कभीकभी… मुझे वहां याद ही कौन करता है… मैं यहां खुश हूं और घर कभी नहीं जाने वाली.’’

अश्विना ने अपना सिर झुका लिया. शमा समझ गई थी कि अश्विना को नव्या की अपनी मां के प्रति बेरुखी पसंद नहीं आई.

नव्या ने उत्सुक हो कर पूछा, ‘‘दी, आप बताइए न आप क्या लखनऊ की हैं?’’

अश्विना चुपचाप खाती रही तो शमा ने ही टोक दिया, ‘‘कहिए तो दीदी, हम साथ हैं, कुछ तो एकदूसरे से परिचित होना जरूरी है.’’

अश्विना ने अपना फोन उठाया और गैलरी में कुछ टटोलती दिखी.

कहा, ‘‘मैं लखनऊ की नहीं हूं, मैं मेरठ की हूं. 25 साल की थी, तब प्राइवेट स्कूल में बतौर टीचर पढ़ाने लगी. हम राजपूत हैं, हमारी बिरादरी में लड़कियों को समाज के सिर पर पगड़ी समझ जाता है. हमारी इंसानी रूह पगड़ी बनेबने ही एक दिन खत्म हो जाती है. लेकिन मैं ने ठान रखा था, रस्मरिवाज पर खुद की बलि मैं नहीं चढ़ाऊंगी. मेरी नौकरी लगते ही घर वाले मेरी शादी को उतावले हो गए. इधर मेरी जिंदगी में कुछ नया होना लिखा था. जिस प्राइवेट स्कूल में मैं टीचर थी, वहां के डाइरैक्टर शादाब सर टीचर्स डे पर अपने घर पर टीचरों के लिए पार्टी रखा करते थे.

‘‘शादाब सर की उम्र कोई 45 के पास की होगी, बहुत नेकदिल और मिलनसार थे. इस बार उन के यहां मेरी पहली पार्टी थी. मैं ने गुजराती ऐंब्रौयडरी में आसमानी रंग का पूरी बांह का केडिया टौप और आसमानी रंग का सफेद नीले सितारे जड़ा लहंगा पहन रखा था. मैं अपनी एक टीचर के साथ बात कर रही थी कि शादाब साहब अपने साले साहब को ले कर आए.

‘‘जरा छेड़छाड़ की अदा में मु?ा से मुखातिब हुए और कहा. मैं ने दीया ले कर बहुत ढूंढ़ा लेकिन हमारे साले साहब की बराबरी में आप से बढ़ कर कोई दिखी नहीं. ये हमारे इकलौते साले साहब महताब शेख हैं. नामी बिजनैस मैन और महताब ये हैं हमारे स्कूल की नई कैमिस्ट्री टीचर अश्विनाजी. चलो मैं जरा दावतखाने का देख आऊं, आप लोग मिलो एकदूसरे से.

‘‘शादाब सर के चले जाने के कुछ पल तक हम बेबाक से एकदूसरे के पास खड़े रहे. महताब हलके पीले फूल वाली शर्ट और नेवी डैनिम जींस में गजब के स्मार्ट लग रहे थे. मेरी हाइट 5 फुट 4 इंच की है, वे 5 फुट 10 इंच के हैं. मुझ से गोरे, चेहरे पर घनी काली दाढ़ी उन्हे मजबूत शख्स बना रही थी.

‘‘पार्टी शादाब सर के बंगले से लगे फूलों के गार्डन में चल रही थी. खूबसूरत रोशनी, संगीत, लजीज खाना और ड्रिंक्स माहौल था, जोश था, चाहतें थीं, सपने थे. महताब ने बात शुरू की, ‘‘आप आसमानी ख्वाब की हूर हो. मुझे अपना पता बता दो.’’

‘‘मैं अंदर ही अंदर चौंक गई. यह व्यक्ति पहली ही मुलाकात में शायरी कर गया, कहीं सही तो होगा न. लेकिन कैमिस्ट्री के सूखे रसायन में झरने की कलकल ध्वनि सुनाई दे गई मुझे और मैं उसी झरने की खोज में चल निकली.

‘‘मुझे भी बोलना आ गया. मैं ने कहा, ‘‘मैं कोई हूर नहीं, आप की नजरों में नूर हूं वरना मुझ जैसी साधारण…’’

‘‘अरे बस, इतना भी मत पिघलो कि मैं थाम न पाऊं, शरारत से जरा सा मुसकराए तो मैं ने पहली बार किसी पुरुष को देख शर्म से नजरें नीची कीं.

‘‘हमारा परिचय यों होतेहोते वक्त से वक्त चुरा कर मिलतेमिलाते हम इतने करीब आ गए कि हमें अब साथ रहने के कदम उठाने थे. महताब टाइल्स और होम डैकोर के बड़े बिजनैसमैन थे. मेरठ के अलावा कई और शहरों में उन का बिजनैस फैला था, जिन में एक लखनऊ भी था.

अश्विना ने उन दोनों को महताब और उस की साथ वाली तसवीर दिखाई. शमा की आंखों में तारीफ थी, लेकिन नव्या चहक उठी, ‘‘वाह आप मिनी स्कर्ट में? जीजू तो गजब के स्मार्ट लग रहे हैं. कितनी उम्र रही होगी उन की तब?’’ नव्या ने तसवीर अपने हाथ में लेते हुए कहा.

‘‘यह तसवीर हमारे परिचय के बाद छह महीने के अंदर की है. उन की तब उम्र 32 थी और मैं 26 की.

‘‘नव्या तसवीर से नजर हटा नहीं पा रही थी यह बात दोनों ने गौर की खासकर शमा ने देखा वह महताब को एकटक देख रही थी. शमा की अश्विना में दिलचस्पी बढ़ गई. उस ने पूछा, ‘‘फिर आप इधर कैसे आ गईं?’’

‘‘अश्विना खुलने लगी. मेरठ में जब हमारी मुलाकात हुई थी उस के सालभर पहले महताब का उस की पत्नी से तलाक हुआ था, दोनों को कोई बच्चा नहीं था, 5 साल की शादी के बाद तलाक की वजह बच्चा न होना बताया था मुझे महताब ने. खैर, हमारी शादी को मेरे घर वाले तो कतई तैयार नहीं होते, बड़े कट्टर हैं वे. इधर महताब भी एक शादी से निकलने के बाद तुरंत दूसरी शादी को तैयार नहीं थे, मजबूरन मैं ने तय किया कि उसी की शर्तों पर उस के साथ रहूं यानी लिव इन में. महताब भी इस के लिए तैयार थे. हमें न समाज की सहमति की जरूरत थी, न कानून और धर्म की. हम बड़ी बेसब्री से एकदूसरे को चाहते थे. बीच में कई सारे बिचौलिए थे, जाति, धर्म, समाज और इस के रिवाज. हम किसकिस की खुशामद करते और क्यों करते. हम आर्थिक रूप से स्वतंत्र थे और किसी भी सूरत में किसी का नुकसान नहीं कर रहे थे. लिव इन में अगर रिश्ते में कोई परेशानी आती है तो क्या वह शादी में नहीं आती? महताब की शादी ही तो टूटी थी. मैं ने सोचा रिश्ते में आपसी प्यार और भरोसा एकदूसरे को बांधे रखता है. कौन सा कानून हुआ है जो 2 लोगों को प्यार की डोर में बांधे रखता हो. महताब का लखनऊ में अच्छा व्यवसाय था, एक फ्लैट भी था जहां वे ठहरते थे. मैं ने घर वालों से बगावत कर के और शादाब सर की मदद से लखनऊ महताब के साथ बस गई. अब तक अच्छा ही चल रहा था या कह सकती हूं. मैं अच्छा चल रही थी क्योंकि अब मैं रुक गई तो सब रुक गया.

‘‘आज इतने सालों बाद जब हमारा बच्चा आ रहा है, महताब अब भी शादी को तैयार नहीं. कहते हैं शादी के लिए धर्म परिवर्तन करना पड़ सकता है जो उन्हें पसंद नहीं. मैं तैयार हूं उस के लिए भी, क्या फर्क पड़ता है, हम दोनों ही धर्म और कर्मकांड के बिन रोजाना जी रहे हैं, फिर हिंदू कहो या मुसलिम. मेरे लिए महताब का स्थाई साथ महत्त्व रखता है.

‘‘मगर महताब राजी नहीं. कहते हैं बच्चा आ रहा है तो उस के लिए मैं अपने जीने का तरीका नहीं बदल सकता. उसे भी इस सच के साथ जीने दो. लेकिन एक मां के लिए यह लज्जा की बात है कि वह अबोध बालक या बालिका को समाज और कानून की कैफियत के सामने खड़ा कर दे.

‘‘6 महीने और गुजर गए. अश्विना को बेटा हुआ था. नव्या कभीकभी बच्चे के साथ खेल कर चली जाती. शमा अपने काम से समय निकाल कर अश्विना के बच्चे की देखभाल में हाथ बंटाती.

‘‘अश्विना ने कालेज से 6 महीने की छुट्टी ली हुई थी. शमा बेटे का दूध बना कर लाई तो देखा अश्विना की आंखों से विकलता की यमुना बह रही है. शमा ने पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ फिराते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ दी, आप इतनी लाचार और टूटी दिख रही हैं? कुछ और नया हुआ क्या?’’

‘‘मैं ने बेटे की तसवीर उसे कल रात को भेजी थी. यह बेटे की पहली तसवीर उस के 1 महीना पूरा होने पर भेजी. महताब ने देख कर रख दिया, लेकिन कहा कुछ नहीं.’’

‘‘दी मैं आप को दिलासा नहीं दूंगी कि व्यस्त होंगे या बाद में कहेंगे. मैं आप से पूछती हूं आप ने कमजोर पड़ने के लिए स्वतंत्रता का निर्णय लिया है? किसी उम्मीद पर घर छोड़ा है कि वे बाद में पसीज जाएंगे. आप ने तसवीर के साथ कुछ लिखा भी था?’’

‘‘लिखा कुछ नहीं, पता भेजा था,’’ अश्विना ने अपने सीने में अपना चेहरा छिपा लिया. शमा समझ रही थी उस के दर्द को.

‘‘दी आप को तो महताबजी याद आने लगे. आप रोक लो खुद को. अभी भी आप सम?ा नहीं. महताबजी की दिलचस्पी आप में रही नहीं. हो सकता है वे किसी और से…’’

‘‘अश्विना ने अपना सिर ऊपर किया, वह उठ कर बैठ गई. शायद शमा के मजबूत इरादे उसे हिम्मत देने लगे थे. उस ने कहा, ‘‘मैं ने आने से पहले पूछा कि क्या हमेशा मेरे साथ रहने की तुम्हारी मंशा नहीं? तुम अपनेआप में व्यस्त रहते हो, मैं कभी कुछ कहती नहीं, कई रातें वापस नहीं लौटते, बताने की जरूरत भी नहीं सम?ाते कि कहां थे, पूछती तो बिना जवाब दिए चले जाते जैसेकि मैं बीवी बनने की कोशिश न करूं. क्या मैं जबरदस्ती रुकी हूं? तुम मु?ो जाने को कहना चाहते हो? बच्चे के आने की खबर पर तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं. बच्चे के लिए क्या हमें अब शादी नहीं करनी चाहिए?’’

उस ने कहा, ‘‘तुम्हें जैसा ठीक लगे करो, बच्चे के नाम पर शादी नहीं करूंगा. तुम अपनी मरजी से आई थी, अपनी मरजी से जाओगी, मैं ने कोई जबरदस्ती नहीं की,’’ वह साफ मुझे  जाने को कह रहा था और मै निकल आई.

अश्विना के हाथों को अपने हाथ में ले शमा ने कहा, ‘‘दी, आप पीछे की छूटी हुई दुनिया को भूल जाइए, आगे हम सब हैं न साथ, मुन्ना है.’’

‘‘शाम की चाय ये तीनों साथ ले रहे थे कि दरवाजे की घंटी बजी. पता नहीं अश्विना को क्या हुआ वह दौड़ कर दरवाजे पर गई और एक झटके से दरवाजा खोल दिया.

‘‘महताब खड़े थे सामने. एक बुके और बच्चे के लिए खिलौने और कुछ कपड़ों के सैट ले कर. लड़कियां अश्विना के पास आ गईं. शमा ने महताब के हाथ से सामान लिया और सभी को सोफे तक ले आई. अश्विना की आंखों में मोतियों की लड़ें सज चुकी थीं कि अब टूट पड़ेगी कि तब. शमा ने उन्हें इशारा किया और अश्विना ने अपने आंसुओं को जज्ब कर लिया.

‘‘नव्या की चहलपहल देखते ही बनती थी. वह तो हर कायदे को धता बता कर महताब के करीब हो जाने का बहाना ढूंढ़ रही थी. आश्चर्य कि नव्या ने उन के बेटे को महताब की गोद में दिया और उस ने उसे किसी और के बच्चे की तरह कुछ देर प्यार कर के नव्या को ही वापस थमा दिया. अश्विना से बहुत सामान्य बातचीत की जैसे उस की तबीयत कैसी है, कब कालेज जाएगी या बेटे का नाम क्या रखेगी? शमा ने देखा अश्विना बारबार कुछ और बातों की उम्मीद कर रही थी, बारबार टूटी हुई उम्मीद पर आसूं पी रही थी. डिनर महताब ने बाहर से मंगाया और सभी से घुलमिल कर बातें कीं. इस औपचारिकता के बाद अश्विना को महताब से कोई संपर्क नहीं हो पाया. इधर शमा गौर कर रही थी नव्या पर. जैसे उस की जिंदगी में पहले से कुछ अलग हो रहा था. जैसे पपीहे ने नया गीत गाया था, जैसे एक बंद पड़े बगीचे में वसंत आया था. कभी दरवाजे खोलती और कहीं से कोई आया गिफ्ट ले कर, वह उसे लिए अंदर चली जाती, कभी साथ बैठी हो और किसी के एक फोन पर उठ कर अपने कमरे में चली जाए और अंदर से कमरा बंद कर ले.

‘‘शमा वैसे तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट से खास लगाव नहीं रखती थी लेकिन नव्या की गतिविधि ने उसे उकसाया कि वह नव्या के साथ जुड़े हुए अकाउंट खोल कर नव्या को चैक करे. हां बस जिस का अंदेशा था शमा को, नव्या ने एक बौडी ऐक्सपोज्ड ड्रैस में अपनी तसवीर के साथ महताब की तसवीर दे कर लिखा था, ‘‘मेरे महबूब का अनमोल तोहफा.’’

‘‘शमा को अश्विना के लिए बहुत बुरा महसूस हो रहा था. महताब देखने में जितना खूबसूरत है, अंदर से उतना ही हृदयहीन. शायद उसे नई लड़कियों से संबंध गढ़ने का चसका था. साथ में रहते हुए कभी तो अश्विना को यह बात पता चलेगी और यह उस के लिए बेहद बड़ा सदमा होगा. पर शमा नव्या को सम?ाएगी कैसे? वह अपने आगे किसी का दर्द नहीं सम?ाती? एक बात क्यों न करे वह. अगले दिन उसने अश्विना को किसी तरह राजी कर लिया कि वे दोनों मेरठ चलें अश्विना के घर. सोचा अश्विना अगर एक महीना भी अपने घर रह ले, शमा नव्या को महताब से हटा लेगी और अश्विना को इस अजाब से गुजरना नहीं पड़ेगा. दोनों अश्विना के घर पहुंचे और घर वालों के सर्द व्यवहार के बावजूद मां ने उन दोनों के लिए अतिथिकक्ष साफ करवा दिया.

‘‘शमा सोच रही थी कि किसी तरह बात चले तो वह इन की सोच की कुछ मरम्मत कर सके. यह मौका मिल ही गया. डाइनिंग पर अश्विना के पापा ने कहा, ‘‘तुम ने हमें त्याग कर एक मुसलिम से शादी रचाई, हम चुप्पी साध गए, मगर अब तुम बच्चे के साथ वापस आ गई हो तो अब तुम्हें हमारे कहे अनुसार चलना होगा.’’

शमा का पारा चढ़ने लगा. यह बड़ी कमाल की बात होती है, ‘‘हमारे अनुसार चलना होगा,’’ अश्विना और शमा दोनों तन गई. शमा ने कहा, ‘‘माफ करें, आप सही नहीं हो तब भी आप के अनुसार चलना होगा?’’

‘‘बिलकुल. यह सरासर लव जेहाद का मामला है, बेटी को बरगला कर मुसलिम धर्म में ले गए और बाद में छोड़ दिया.’’

‘‘अश्विना से अब चुप न रहा गया. वह लगभग चीख ही पड़ी,

‘‘किसी मुसलिम और हिंदू ने शादी की नहीं कि लव जेहाद का मामला बना दिया. बहुत आसान हो गया है न प्यार का कानूनी आड़ में कत्ल कर देना. हम दोनों ने प्रेम किया था, धर्म और जाति देख कर सौदा नहीं किया था. यह और बात है कि लिव इन में किन्हीं व्यक्तिगत कारणों से रहा नहीं गया. पर न हमारी शादी हुई न तो पति ने तलाक दिया. मैं ने खुद उस का घर छोड़ा.

‘‘चाची ने बीच में बेसुरा राग छेड़ा, ‘‘वाह क्या खूब काम किया, बिन ब्याही मां बन गई.’’

‘‘शमा से अब चुप न बैठा गया. उस ने तुरंत कहा, ‘‘अरे किस गली में भटक रही हैं चाची. मुख्य सड़क पर आइए. जब इन्होंने प्यार किया, 6 साल साथ रह कर सुखदुख सा?ा किया, तो बच्चा होना कौन सा बड़ा गुनाह है. इस से महताबजी की बेरुखी सहन नहीं हुई और इस ने उस के साथ रहने को इनकार किया. खुद्दारी देखिए जरा. शादी के बाद औरतें क्या करती हैं? पति अनदेखी करे तो परमेश्वर, गाली दे तो परमेश्वर, अपना स्वार्थ साध कर फेंक दे, दूसरी औरतों पर नजर सेंके, परमेश्वर. शादी के बाद तो पति का पत्नी पर जिंदगीभर अत्याचार करने की वसीयत बन जाती है न. और बच्चा शादी के बाद होता है तो कौन सा हमेशा प्यार का फसल होता है? अकसर तो वह पति के पत्नी पर बलात्कार का ही नतीजा होता है. यह बच्चा तो कम से कम प्यार का परिणाम है.’’

चाचा ने अब अपना लौजिक पेश किया, ‘‘खुद मुसलिम है इसलिए मुसलिम की तरफदारी कर रही है.’’

‘‘शमा इन के तर्क शास्त्र की कारीगरी पर सिर पीट रही थी, कहा, ‘‘चाचाजी, आप फिर दिशाहीन बातें कर रहे हैं. मेरी बातें आप को धार्मिक रूप से कट्टर लगीं? आज फिर सुन ही लीजिए, यह बात अश्विना दी को भी मैं बताते हुए रह गई थी. मेरे घर वालों ने मेरा नाम स्वर्णा रखा था. धर्म की आंख से देखिए तो वे हिंदू हैं. मेरी शादी भी हुई जमींदारी ठाकुर घराने में, पति को पुश्तैनी संपत्ति का बड़ा गुरूर था, कामधाम करना नहीं था, बस बापदादाओं की जमींदारी पर मौज और रौब. मेरे घर में पापा और चाचा की बेटियां हुईं 4. हमारा खानदान भी अच्छाभला खातापीता है और परिवार वालों को बेटी से ज्यादा खानदानी हैसियत की पड़ी रहती थी. शादी के वक्त मैं नौकरी कर रही थी और बता दिया था कि नौकरी नही छोड़ूंगी. शादी के बाद ही पति के रंगढंग से तो परेशान हो ही गई, महाशय अपने अहंकार की परवरिश के लिए मुझे नौकरी छोड़ने पर मजबूर करने लगे. मैं समझ गई चाहे अपनी जिंदगी भी दे दूं, इस के साथ मैं एक दिन भी खुश नहीं रह सकती. लेकिन खानदान की पहचान का ऐसा हौआ था कि मैं कहीं निकलने की सोच भी नहीं पा रही थी. एक दिन धोखे से मुझे वह मायके ले आया और हंगामा जो बरपाया कि सारे लोग मुझे ही कोसने लगे. आखिर उन्हें क्या समझती कि मै नौकरी मजे करने और पैसे लुटाने को नहीं कर रही थी. यह मेरे स्वतंत्र निर्णय और पहचान से जुड़ा मसला था.

‘‘पति मुझे इस धमकी पर छोड़ गया कि नौकरी छोड़ दूं तभी वह मुझे वापस ले जाएगा. वह कोई काम करता नहीं था, मातापिता थे नहीं उस के, अब नौकरी करने से मेरी आर्थिक स्थिति इतनी थी कि मैं उस की मुहताज नहीं थी और यह बात उसे बेहद खटकती थी. घर वालों ने एड़ी चोटी का जोर लगाया कि मैं अपने पति के घर जाने के लिए नौकरी छोड़ दूं. एक दिन मैं ने सख्ती से खुद को समझाया और अपने लिए आसरा ढूंढ़ने निकली. अपना नाम भी बदला. और मैं शमा हो गई.

‘‘शमा क्यों? हिंदू हो कर मुसलिम नाम?’’ अश्विना के पापा ने हैरत से पूछा, ‘‘जी क्योंकि नाम खुद ही एक पहचान है. उस की पहचान हिंदूमुसलिम की नहीं होती. यह दीवार इंसानी दिमाग की पैदा की हुई है, दूसरों को नीचा दिखाने और अपने को सब से अलग करने के लिए. नाम तो भाषा और लिपि का एक शब्द है, जिसे कोई भी इस्तेमाल या उपयोग कर सकता है. उर्दू बड़ी मीठी भाषा है और मुझे यह नाम बचपन से पसंद था, इसलिए मैं ने इसे अपने लिए चुना. मैं अपनी स्वतंत्र पहचान चाहती थी और पति और जबरदस्ती करने वालों से अपनी पहचान छिपाना चाहती थी, शमा का अर्थ रोशनी है और…’’

‘‘और मेरी जिंदगी में शमा आई है,’’ अश्विना ने दिल पर हाथ रख कहा.

‘‘शमा लखनऊ लौट आई थी और नव्या के हालचाल उसे ठीक नहीं लगे थे. मगर शमा सम?ा रही थी कि नव्या को रोकना मुमकिन नहीं. अश्विना के घर वालों पर कुछ तो असर हुआ था, अश्विना शमा को फोन पर बताती थी. शमा ने अश्विना से अभी एकाध महीने मायके में ही रुकने का अनुरोध किया था.

‘‘ऐसा क्या था महताब में जो लड़कियां खुद उस के पीछे चलने लगतीं. शमा

जानना चाहती थी. कुछ सोच कर शमा ने नव्या के इंस्टा से महताब को फौलो किया और उसे डीएम कर के यानी डाइरैक्ट मैसेज भेज कर सूचित किया.

‘‘तुरंत ही महताब ने शमा को फौलो कर लिया और संदेश दे कर प्यार और आभार कहा. अपना व्हाट्सऐप नंबर भी खुद ही महताब ने शमा को दे दिया. थोड़ेथोड़े हंसीमजाक के साथ शमा महताब के साथ घुलतीमिलती रही. एक दिन महताब ने उसे संदेश भेजा कि वह शमा से मिल कर अपनी दिल की बात उसे बताना चाहता है, वह शमा को अपनी जिंदगी में चाहता है.

‘‘शमा ने कहा, ‘‘यह तो मेरे लिए बड़ी खुशी की बात है जो महताब मुझे चाहता है वरना मुझ में है क्या?’’

‘‘क्या बात करती हो, तुम्हारे चेहरे का यूनीक फीचर, यह सलोना कृष्णचूड़ा सा रंग, यह गजब की स्टनिंग फिगर और सब से बड़ी खूबी…’’

‘‘रुकोरुको. सब से बड़ी खूबी आप मुझे मेरे सामने आ कर सुनाओ.’’

‘‘तय हुई कि अगले सप्ताह रविवार को महताब शमा के फ्लैट में आए, उस दिन वह अकेली होगी. अगले रविवार को महताब आए और फ्लैट के दोनों कमरों में किसी को न पा कर निश्चिंत हुए. शमा अपने कमरे में थी, महताब को भी वहीं ले गई. महताब उस के पलंग पर पसर कर बैठ गए. लगभग 39 साल के महताब अब सपना देख रहे थे 26 साल की शमा का.

शमा बोली, ‘‘तो आप बता रहे थे मेरी सब से बड़ी खूबी?

‘‘हां बता तो रहा था लेकिन उस से पहले यह हीरे की अंगूठी तुम्हारे लिए. अपना बायां हाथ दो.’’

‘‘यह तो बाद में, पहले कुछ बातें हो जाएं, मुलाकातें हो जाएं. कहिए न क्या खूबी है मुझ में जो आप ने अश्विना, नव्या को छोड़ मुझे चुना वह भी शादी के प्रस्ताव के साथ, कोई और भी था तो वह भी बता दीजिएगा. मैं इन सब बातों का बुरा नहीं मानती.’’

‘‘यही तो गजब की खूबी है तुम में. तुम और लड़कियों की तरह मेल पार्टनर पर दवाब नही बनाती कि एक ही से जिंदगीभर रिश्ता रखे. तुम में गजब का आत्मविश्वास है, इसलिए तुम्हें बुरा नहीं लगता अपने पार्टनर का दूसरी लड़की के साथ भी रिश्ता रखना.’’

‘‘आप को अच्छा लगेगा यदि आप की फीमेल पार्टनर आप के सिवा दूसरे के साथ वही रिश्ता रखे जो उस का आप के साथ है? आप को ठेस तो न पहुंचेगी?’’

महताब उसे एकटक देखता रहा, फिर बोला, ‘‘पहुंच सकती है. मेल इसे अपनी इज्जत पर लेते हैं.’’

‘‘इसलिए क्योंकि वे लड़की को अपनी जागीर समझते हैं, हैं न? जबकि अपनी पार्टनर को बगल में रख दूसरी, तीसरी को भी लिए चलते हैं क्योंकि फीमेल पार्टनर के प्रति पुरुष का नजरिया बराबरी का नहीं होता.’’

‘‘तुम तो नव्या के रहते मेरी जिंदगी में आई,’’ महताब शमा को सम?ाने की कोशिश कर रहे थे. उधर शमा अपने तरीके से आगे बढ़ रही थी. बोली, ‘‘आप अश्विना के साथ रिश्ते में रहते, कितने और रिश्ते में रहे? आप अपने बारे में बताइए तभी मैं आगे बढ़ सकूंगी.’’

‘‘पिछले 2 सालों से अश्विना के अलावा मेरे और 2 संबंध थे, जो टूट गए. नव्या से मेरा रिश्ता हंसीखेल का था.

‘‘आप खेल रहे थे उस के साथ? वह अभी बच्ची ही है आप लगभग 40 साल के.’’

‘‘मैं इस में क्या करूं? उस की मु?ा में रुचि थी, मैं उसे जो भी कहता वह तुरंत करने को तैयार रहती. अब अगर वह खुद ही बिछ रही है तो मैं क्यों पीछे रहूं?’’

‘‘और अश्विना के सच्चे प्यार की आप ने कद्र नहीं की? वह क्यों?’’

‘‘अश्विना की बात ही बेकार है. वह चाहती थी, उसी की तरह मैं भी उस का ही नाम जपता रहूं. वह खुद घर छोड़ कर मेरे साथ लिव इन में रही, उसे याद रखना चाहिए था, मैं शादी के ?ां?ाट में नहीं पड़ा ताकि हमारे बीच आजादी बनी रहे. 2 साल से मैं ने उस के साथ रहते दो और लड़कियों से रिश्ते रखे.’’

‘‘उसे भनक पड़ी?’’

‘‘नहीं क्योंकि मैं इस काबिल हूं कि सब को ले कर चल सकूं.’’

‘‘वाह क्या बात है महताबजी. आप ने तो प्यार, इज्जत, समर्पण, भरोसा हर

चीज का कौन्सैप्ट ही बदल दिया ताकि आप का सैक्सुअल डिसऔर्डर (डिजायर नहीं) संतुष्ट होता रहे.’’

‘‘अश्विना दी और नव्या आप लोग अब मेरे बाथरूम से निकल आओ. आप को महताबजी के बारे में अब तक पूरी जानकारी हो गई होगी,’’ शमा नव्या और अश्विना को अपने बाथरूम से बाहर आ जाने को आवाज दे रही थी. दोनों पूर्व साथियों को कमरे में देख महताब भौचक रह गए. शमा से कहा, ‘‘मैं ने सोचा था तुम मेरे धर्म की हो, अब घर ही बसा लूंगा.’’

‘‘महताबजी, जब धर्म को तवज्जो न दे कर आप सही सोच रखते हैं, तो धर्म के अनुरूप शादी क्यों? ऐसे भी मैं स्वर्णा हूं, जिस ने खुद को प्यार से शमा बुलाया है.’’

महताब जल्दी से जल्दी वहां से निकल गए. अश्विना ने कहा, ‘‘महताब यानी चांद, चांद किसी का न हुआ.’’

‘‘हम अपनेअपने दाग के साथ खुद ही चांद हैं अश्विना दी. फिर अपना चंद्रिम है न. हम 3 का दुलारा आप का बेटा,’’ शमा ने अश्विना और नव्या को अपनी बांहों के घेरे में ले लिया था.

नव्या ने कहा, ‘‘अश्विना दी, आप के बेटे का नामकरण कर दिया शमा मैम ने.’’

अश्विना ने कहा, ‘‘मां के पास बेटे को छोड़ कर आ रही थी तो मां ने उस का नाम सोचने को कहा था. अभी बता देती हूं उस का नाम. शमा का दिया नाम चंद्रिम होगा. कल ही मेरठ जा कर बेटे चंद्रिम को शमा मौसी के पास ले आती हूं.’’

‘‘सांझ के अंधेरे आकाश में उगा चांद उन की खिड़की से झांकता हुआ मुसकराने लगा था.’’

Long Story in Hindi

Comedy : टैक्स की कमाई से कौन खा रहा है मलाई

Comedy : जल्द ही सरकार कचरे पर भी कर लगाने जा रही है. तय है कि यह समाचार पढ़ कर कई लोग चौंके होंगे. वजह, कर चोरी की लत विशेषज्ञता नहीं, बल्कि कर का गिरता स्तर है. सरकार देती एक हाथ से है पर लेती हजार हाथों से है. कर लेते ये हजारों हाथ अर्थव्यवस्था की हड्डियां हैं जिन की मजबूती पैसे रूपी कैल्शियम से होती है.

मैं भी सैकड़ों तरह के कर देता हूं. आमदनी हो न हो, कर देना जरूरी है. यह गुजाराभत्ता कानून से मेल खाता है कि पति कमाए न कमाए, पत्नी को जिंदा रखने के लिए पैसा देना होगा.

प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष और मिश्रित के अलावा जाने कितने तरह के टैक्स दे कर मैं तकरीबन कंगाल हो चला हूं मगर शरीर चलाए रखने के लिए आयकर, विक्रयकर, सेवाकर, आबकारीकर, वाणिज्यकर, मनोरंजनकर, संपत्तिकर, शिक्षा कर जैसे दर्जनों कर जानेअनजाने बिना नागा देता रहता हूं, जिस से सरकार चलती रहे, देश चलता रहे.

अपने मरियल से शरीर को चलाने के लिए दो वक्त की रोटी काफी होती है मगर मेरे शरीर का हर हिस्सा करदाता है. तेल खरीदता हूं तो सर के बाल कर देते हैं, शेविंग क्रीम लूं तो चेहरा करदाता हो जाता है. कहने की जरूरत नहीं कि आंख, कान, नाक, हाथ, पैर, पीठ, पेट सब टैक्सपेयी हैं. मैं तो सोते वक्त भी टैक्स देता सोऊंगा. यह बात फ्यूचर परफेक्ट कंटीन्यूस टेंस की न हो कर जीतीजागती हकीकत है. सुबह उठते ही मैं टैक्स देना शुरू कर देता हूं तो यह सिलसिला देर रात तक चलता है.

पैट्रोल, मोबाइल, पैन, कागज और पानी समेत मैं टैक्सी पर भी टैक्स देता हूं. हिसाबकिताब कभीकभी लगाता हूं तो चकरा जाता हूं कि मैं टैक्स पर भी टैक्स देता हूं और आमदनी से ज्यादा देता हूं. बापदादों की छोड़ी जमीनजायदाद इस तरह सरकार के खाते में टुकडे़टुकड़े हो कर समा रही है. इनसाफ चाहिए तो टैक्स, इलाज करवाना हो तो टैक्स भरो, श्मशान तक में टैक्स का मीटर घूमता रहता है. आदमी का घूमना बंद हो जाता है पर टैक्स का पहिया चलता रहता है. अपने देश में फख्र की बात है कि भ्रूण भी कर देता है और आत्मा भी करदाता होती है.

संसद और विधानसभाएं कम पड़ रही थीं इसलिए सरकार ने नगर निगम पालिकाएं और पंचायतें खड़ी कर दीं. मधुमक्खी के टूटे छत्ते से जितनी मधुमक्खियां नहीं निकलतीं उस से ज्यादा टैक्स इंस्पेक्टर पैदा हो रहे हैं. इन के पालनपोषण के लिए भी टैक्स देना पड़ता है.

टैक्स को अब मैं देहाती भाषा की तर्ज पर ‘देह धरे का दंड’ यानी शरीर धारण करने की सजा कहने लगा हूं. भारत कृषि नहीं कर प्रधान देश है जिस की खूबी यह है कि जो भी उत्पाद मैं खरीदता हूं उस का कर पहले से ही सरकार वसूल कर चुकी होती है. इसलिए हर एक पैकिंग पर चाहे वह दूध का पैकेट हो, क्रीम हो या दवा का रैपर, छोटेछोटे अक्षरों में लिखा रहता है एम.आर.पी. (इतनी) इनक्लूसिव औल टैक्सेस.

भगवान की तरह सरकार भी हर जगह टैक्स वसूलने के लिए खड़ी मिलती है. उस की महिमा वाकई अपरंपार है. वह बंदरगाह पर भी है, हवाई अड्डे पर भी है और रेलवे स्टेशन पर भी है. वह घर में है तो बाहर भी है. निगाह की हद तक सरकार ने जाल बिछा रखा है जिस में कोई सवा अरब लोग फड़फड़ा रहे हैं. ये आम नागरिक नहीं करदाता हैं जो कर्ज में डूबे हैं.

यह सोचना बेमानी है कि अमीर लोग ही टैक्स देते हैं. अपने देश में भिखारी को भी टैक्स देना पड़ता है. यह दीगर बात है कि खुद के करदाता होने का उसे पता नहीं रहता. इस के बावजूद सरकार घाटे में चलती है. छोड़ती इतना भर है कि आदमी जिंदा रहे, चलताफिरता रहे जिस से टैक्स वसूलने में सहूलियत हो.

सरकार किसी की आमदनी नहीं बढ़ा सकती मगर टैक्स जरूर बढ़ाती है. अपने मुलाजिमों की पगार भी वह बढ़ाती रहती है जिस से वे टैक्स के दायरे में रहें. हम सरकार चुनने को बाध्य हैं. वोट देते हैं ताकि कोई तो हो जो हमारी आमदनी में से टैक्स रूपी दक्षिणा मांगे.

कई समझदार लोगों ने टैक्स से बचने की बेवकूफी की है, मगर वे पकड़े गए हैं. कुछ ने घूस देने की कोशिश की मगर गच्चा खा गए. घूस और टैक्स में कोई खास फर्क नहीं रह गया है. घूस ऐच्छिक है टैक्स अनिवार्य है. जिन्होंने ऐच्छिक चुन कर अनिवार्य से बचने की कोशिश की उन के यहां छापे पड़ गए. करोड़ोंअरबों के घोटाले महज टैक्स न देने और घूस देने की वजह से उजागर हुए. जो लाखों की घूस दे सकता है, सरकार सूंघ लेती है कि वह करोड़ों का टैक्स बचा रहा है.

शुरूशुरू में सरकार ढील देती है. व्यापारी, आई.ए.एस. अफसर और मझोले किस्म के नेता, जो हकीकत में कारोबारी होते हैं, सभी खुशी से अपनी पीठ थपथपाते हैं कि बच गए मगर इन लोगों को यह ज्ञान नहीं रहता कि सरकार के कमरे में सी.सी. टी.वी. लगा है. जब घूस का दृश्य खत्म हो जाता है तो सरकार छापामारी का सीन शुरू कर देती है. कर चोर पकड़े जाते हैं. उन की जायदाद जब्त कर ली जाती है. इन नामी इज्जतदार रईसों को तुरंत जेल नहीं होती. उन्हें मुकदमा लड़ने का मौका दिया जाता है जिस से बची और छिपाई रकम भी बाहर आ जाए. अदालत में क्या होता है, यह कोई नहीं देखता. ऐसे छापों में 2 तरह के संदेश जाते हैं. पहला कि टैक्स चोरी की जा रही है. दूसरा कि टैक्स चोरी पकड़ी भी जाती है, जिसे जो पसंद हो अपना ले.

बहरहाल, इतने सारे और तरहतरह के टैक्स देने के बाद भी मैं हताश नहीं हूं. सरकार चलाने के लिए मैं कचरा कर भी दूंगा. नींद पर टैक्स लगाया जाएगा, स्लीपिंग टैक्स भी दूंगा, सोने के घंटे कम कर दूंगा मगर सरकार चलाने में अपना योगदान देता रहूंगा.

मेरे टैक्स के पैसे से सियासी पार्क बनें या नेताओं के पिता, परपिताओं के नाम पर कल्याणकारी योजनाएं बनें, जो मूलत: कइयों की रोजीरोटी हैं, इन के खिलाफ सोचने की बेवकूफी मैं नहीं करता. मेरा काम है टैक्स देना. मेरे पिताजी टैक्स देतेदेते बोल गए. मैं तो कराह ही रहा हूं. अब सारी उम्मीदें बेटे पर टिकी हैं कि वह भी बदस्तूर टैक्स परंपरा को निभाएगा. कमाएगा खुद के लिए नहीं सरकार के लिए, इसलिए मैं ने टैक्स पुराण उसे अभी से रटवाना शुरू कर दिया है.

कोई माने या न माने पर मैं मानता हूं कि तरक्की हो रही है, कारखाने और भारीभरकम उद्योग बढ़ रहे हैं. यह टैक्स के दम पर नहीं, टैक्स चोरी, घूसखोरी और भ्रष्टाचार से बच गए पैसों के दम पर हो रहा है, जो कुल टैक्स का केवल 10 फीसदी है. सोचने में हर्ज नहीं कि बचा 90 फीसदी भी देश की तरक्की में लग जाता तो वाकई हम दुनिया के सिरमौर होते.

मुझे खुशी होती है कि मेरे जैसे लोगों द्वारा दी गई टैक्सों की कुल जमा रकम से अफसरों, मंत्रियों, मुलाजिमों को पगार मिलती है. वे काम करने के लिए हवाई जहाज में उड़ते हैं. उन के कुत्ते तक हड्डी मेरे पास से खाते हैं. उन के माली, ड्राइवर और रसोइए मेरे टैक्स के मोहताज हैं. इस बाबत मुझे कोई भी पदक भी नहीं चाहिए. वजह, मैं कर दाता हूं.

Online Hindi Story : गलती का एहसास

Online Hindi Story : सुबह से ही घर का माहौल थोड़ा गरम था. महेश की अपने पिता से रात को किसी बात पर अनबन हो गई थी. यह पहली बार नहीं हुआ था.

ऐसा अकसर ही होता था। महेश के विचार अपने पिता के विचारों से बिलकुल अलग थे पर महेश अपने पिता को ही अपना आदर्श मानता था और उन से बहुत प्रेम भी करता था.

महेश बहुत ही साफदिल इंसान था. किसी भी तरह के दिखावे या बनावटीपन की उस की जिंदगी में कोई जगह नहीं थी.

महेश के पिता मनमोहन राव लखनऊ के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. बड़ेबड़े लोगों के साथ उन का उठनाबैठना था. उन्होंने अपनी मेहनत से कपड़ों का बहुत बड़ा कारोबार खड़ा किया था. इस बात का उन्हें बहुत गुमान भी था और होता भी क्यों नहीं, तिनके से ताज तक का सफर उन्होंने अकेले ही तय किया था.

महेश को इस बात का बिलकुल घमंड नहीं था. अपने मातापिता की इकलौती संतान होने का फायदा उस ने कभी नहीं उठाया था. महेश की मां रमा ने उस की बहुत अच्छी परवरिश की थी. उस में संस्कारों की कोई कमी नहीं थी. हर किसी का आदरसम्मान करना और जरूरतमंदों के लिए दिल में दया रखना उस का स्वभाव था. वह घर के नौकरों से भी बहुत तमीज और सलीके से बात करता था. उस के स्वभाव के कारण वह अपने दोस्तों में भी बहुत प्रिय था.

आधी रात को भी अगर कोई परेशानी में होता था तो एक फोन आने पर महेश तुरंत उस की मदद के लिए पहुंच जाता था. किसी के काम आ कर उस की सहायता कर के महेश को बहुत सुकून मिलता था.

11 दिसंबर का दिन था. दोहरी खुशी का अवसर था. महेश के पिता मनमोहन राव का जन्मदिन था और साथ में उन की नई फैक्टरी का उद्घाटन भी था. इस अवसर पर घर में बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया गया था.

महेश की मां ने सुबह ही उस को चेतावनी देते हुए कहा,”शाम को मेहमानों के आने से पहले घर जल्दी आ जाना.”

महेश देर से घर नहीं आता था, पर औफिस के बाद दोस्तों के साथ कभी इधरउधर चला भी गया तो घर आने में थोड़ी देर हो जाती थी.

अपने पिता का इतना बड़ा कारोबार होने के बाद भी महेश एक मैगजीन के लिए फोटोग्राफी का काम करता था. उसे इस काम में शुरू से ही दिलचस्पी थी और उस ने तय किया था कि अपने काम से ही एक दिन खुद की एक पहचान बनाएगा.

उस की सैलरी बहुत ज्यादा नहीं थी पर महेश को बहुत ज्यादा की ख्वाहिश कभी रही भी नहीं. वह बहुत थोड़े में ही संतुष्ट होने वाला इंसान था.

शाम होने को आई थी. मेहमानों का आगमन शुरू हो गया था. महेश भी औफिस से आ कर अपने कमरे में तैयार होने चला गया था.

मनमोहन राव और उन की पत्नी रमा मुख्यद्वार पर मेहमानों का स्वागत करने के लिए खड़े थे. महेश भी तैयार हो कर आ गया था. थोड़ी ही देर में उन का बगीचा मेहमानों की उपस्थिति से रौनक हो चुका था. महेश की मां के बहुत जोर दे कर बोलने पर भी महेश ने अपने किसी दोस्त को पार्टी में आने का आमंत्रण नहीं दिया था.

टेबल पर केक रख दिया गया था. महेश के पिता ने केक काट कर पहला टुकड़ा अपनी पत्नी रमा को खिलाया फिर दूसरा टुकड़ा ले कर वह बेटे को खिलाने लगे तो महेश ने उन के हाथ से केक ले लिया और उन्हें खिला दिया.

फिर अपने पिता के पैर छू कर बोला,”जन्मदिन की बहुतबहुत शुभकामनाएं पिताजी.”

मनमोहन राव ने बेटे को सीने से लगा लिया. महेश की मां यह सब देख कर बहुत खुश हो रही थीं.

बहुत कम ही अवसर होते थे जब बापबेटे का यह स्नेह देखने को मिलता था, नहीं तो विचारों में मतभेद के कारण दोनों में बात करतेकरते बहस शुरू हो जाती थी और बातचीत का सिलसिला कई दिनों तक बंद रहता था.

वेटर स्नैक्स और ड्रिंक्स ले कर घूम रहे थे. अकसर बड़ीबड़ी पार्टियां और समारोहों में ऐसा ही होता है और इस तरह की पार्टीयों को ही आधुनिकता का प्रतीक माना जाता है.

इस तरह की पार्टियां महेश ने बचपन से ही अपने घर में देखी थी, इस के बावजूद भी वह इस तरह की पार्टियों का आदी नहीं था. ऐसे माहौल में उसे बहुत जल्द घुटन महसूस होने लगती थी.

महेश के पिता ने उस को आवाज दे कर बुलाया,”महेश, इधर आओ. विजय अंकल से मिलो, कब से तुम्हें पूछ रहे हैं.” विजय अंकल मनमोहन राव के बहुत करीबी मित्रों में से एक थे और उन का भी लखनऊ में अच्छाखासा कारोबार फैला था.

महेश ने “हैलो अंकल” बोल कर उन के पैर छुए तो वह बोलने लगे,”यार मनमोहन तुम्हारा बेटा तो हाईफाई करने के जमाने में भी पैर छूता है, आधुनिकता से कितनी दूर है. तुम्हें कितनी बार समझाया था कि इकलौता बेटा है तुम्हारा, इसे अमेरिका भेजो पढ़ाई के लिए, थोड़ा तो आधुनिक हो कर आता.”

महेश चुपचाप मुसकराता हुआ खड़ा था.

विजय अंकल फिर बोलने लगे,”और बताओ कैसी चल रही है तुम्हारी फोटोग्राफी की नौकरी? अब छोड़ो भी यह सब. क्या मिलता है यह सब कर के?

“अब अपने पिता के कारोबार की डोर संभालो. जितनी सैलरी तुम्हें मिलती है उतनी तो तुम्हारे पिता घर के नौकरों में बांट देते हैं. अपने पिता की शख्सियत का तो खयाल रखो.”

पिता की शख्सियत की बात सुन कर महेश ने अपनी चुप्पी तोड़ने का निर्णय ले लिया था.

महेश बोला,”अंकल, काम को ले कर मेरा नजरिया जरा अलग है. काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता और मुझे नहीं लगता कि मैं ने आज तक ऐसा कोई भी काम किया है जिस से
मेरे पिताजी की छवि या उन की शख्सियत को कोई हानि पहुंची हो.

“फोटोग्राफी मेरा शौक है. इस काम को करने से मुझे खुशी मिलती है और रही बात पैसों की, तो ज्यादा पैसों की ना मुझे जरूरत है और ना ही कोई चाह,” बोलतेबोलते महेश की आवाज ने जोर पकड़ लिया था.

मनमोहन राव को महेश का इतने खुले शब्दों में बात करना पसंद नहीं आया.

उन्होंने लगभग चिल्लाने के लहजे में बोला,”चुप हो जाओ महेश. यह कोई तरीका है बात करने का? अपनी इस बदतमीजी के लिए तुम्हें अभी माफी मांगनी होगी.”

महेश ने साफ इनकार करते हुए कहा,”माफी किस बात की पिताजी?
मैं ने कोई गलती नहीं करी है, सिर्फ अपनी बात रखी है.

“आप ही बताइए कि मैं ने आज तक ऐसा कौन सा काम किया है जिस की वजह से आप को शर्मिंदा होना पड़ा हो.”

मनमोहन राव बोले,”मैं कुछ नहीं सुनना चाहता महेश, मेरे प्रतिद्वंदी भी इस पार्टी में मौजूद हैं. सब के सामने मेरा मजाक मत बनाओ.”

महेश बोला,”मुझे किसी की परवाह नहीं है, पिताजी कि कौन देख रहा है और कौन क्या सोच रहा है? मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि आप मुझे समझो.

“मैं ने जब से होश संभाला है तब से आज तक उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब आप मुझे समझोगे. इंसान बड़ा काम या बड़ा कारोबार कर के ही बड़ा नहीं होता पिताजी. छोटेछोटे काम कर के भी इंसान अपनी एक पहचान बना सकता है. बड़े बनने का सफर भी तो छोटे सफर से ही तय होती है. इस बात का उदाहरण तो आप खुद भी हैं पिताजी, फिर आप क्यों नहीं समझते?”

मनमोहन राव का सब्र खत्म हो चुका था. अब बात उन्हें अपनी प्रतिष्ठा पर चोट पहुंचने जैसी लग रही थी.

उन्होंने महेश से कहा,”तुम या तो विजय अंकल से माफी मांगो या अभी इसी वक्त घर से निकल जाओ.”

महेश की मां रमा जो इतनी देर से दूर खड़े हो कर सब देखसुन रही थीं, सोचने लगीं कि पति की प्रतिष्ठा का खयाल रखना जरूरी है पर बेटे के आत्मसम्मान को चोट पहुंचा कर नहीं।

वे पति से बोलीं,”यह क्या बोल रहे हो आप? इतनी सी बात के लिए कोई अपनी इकलौती औलाद को घर से जाने के लिए कहता है क्या?”

मनमोहन राव को जब गुस्सा आता था तब वे किसी की भी नहीं सुनते थे. हमेशा की तरह उन्होंने रमा को बोल कर चुप करा दिया था.

महेश बोला,”मुझे नहीं पता था पिताजी की आप को अपने बेटे से ज्यादा इन बाहरी लोगों की परवाह है,
जो आज आप के साथ सिर्फ आप की शख्सियत की वजह से हैं.

“यहां खड़ा हुआ हरएक इंसान आप के लिए अपने दिल में इज्जत लिए नहीं खड़ा है, बल्कि अपने दिमाग में आप से जुड़ा नफा और नुकसान लिए खड़ा है. इस सचाई को आप स्वीकार नहीं करना चाहते,” ऐसा बोल कर महेश मां के पास आया और पैर छू कर बोला,”चलता हूं मां, तुम अपना खयाल रखना.”

रमा पति से गुहार लगाती रही मगर मनमोहन राव ने एक नहीं सुनी.

वे चिल्लाते हुए बोले,”जाओ तुम्हारी हैसियत ही क्या है मेरे बिना. 4 दिन में वापस आओगे ठोकरें खा कर.”

हंसीखुशी भरे माहौल का अंत इस तरह से होगा यह किसी ने कल्पना नहीं करी थी.

इस घटना को पूरे 5 वर्ष बीत चुके थे पर ना महेश वापस आया था और ना ही उस की कोई खबर आई थी. बेटे के जाने के गम में रमा की तबीयत दिनबदिन खराब होती जा रही थी. वे अकसर बीमार रहती थीं. उन की जिंदगी से खुशी और चेहरे से हंसी हमेशा के लिए चली गई थी.

मनमोहन राव को भी बेटे के जाने का बहुत अफसोस था. उस दिन की घटना के लिए उन्होंने अपनेआप को ना जाने कितनी बार कोसा था.

एक मां को उस के बेटे से दूर करने का दोषी भी वे खुद को ही मानते थे. अकेले में महेश को याद कर के कई बार वे रो भी लेते थे.

एक मां के लिए उस की औलाद का उस से दूर जाना बहुत बड़े दुख का कारण बन जाता है पर एक पिता के लिए उस के जवान बेटे का घर छोड़ कर चले जाना किसी सदमे से कम नहीं होता.

रमा और कमजोर ना पड़ जाए इसीलिए उस के सामने मनमोहन राव खुद को कारोबार में व्यस्त रखने का दिखावा करते थे. वे अकसर रमा को यह बोल कर शांत कराते थे कि आज नहीं तो कल आ ही जाएगा तुम्हारा बेटा.

रमा अपने मन में सोचती कि मैं मां हूं उस की, मुझे पता है वह स्वाभिमानी और दृढ़निश्चयी है. एक बार जो ठान लेता है वह कर के ही शांत होता है.

अचानक एक दिन फोन की घंटी बजी। सुबह के 10 बज रहे थे. रमा दूसरे कमरे में थीं।

नौकर ने फोन उठाया और जोर से चिल्लाया,”मैडममैडम…”

रमा एकदम से चौंक गईं। दूसरे कमरे से ही नौकर को चिल्लाते हुए बोलीं,”क्यों चीख रहे हो? किस का फोन है?”

“छोटे साहब का फोन है मैडम,”नौकर बोला.

रमा को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था.

वे फोन की तरफ लपकीं और नौकर के हाथ से फोन लगभग छीनते हुए ले कर बोलीं,”हेलो, महेश बेटा… कैसे हो बेटे? 5 साल लगा दी अपनी मां को याद करने में? घर वापस कब आ रहे हो बेटा? तू ठीक तो है ना?”

महेश बोला,”बसबस मां, तुम रुकोगी तब तो कुछ बोल पाऊंगा ना मैं. पिताजी कैसे हैं मां? आप दोनों की तबीयत तो ठीक है ना?

“आप दोनों की खबर लेता रहता था मैं, पर आज इतने सालों बाद आप की आवाज सुन कर मन को बहुत तसल्ली हो गई मां…

“पिताजी से बात कराओ ना,”महेश ने आग्रह किया तो रमा बोलीं,”वे औफिस में हैं बेटा.

“तू सब कुछ छोड़, पहले बता घर वापस कब आ रहा है? कहां है तू ?
मैं अभी ड्राइवर को भेजती हूं तुझे लाने के लिए…”

महेश हंसते हुए बोला,”मैं लंदन में हूं मां.”

“लंदन में…” आश्चर्य से बोलीं रमा,”बेटा, वहां क्यों चला गया?
तू ठीक तो है ना? किसी तकलीफ में तो नहीं हो ना?”

अकसर जब औलादें अपने मातापिता से दूर हो जाती हैं किसी कारण से तो ऐसी ही चिंता उन्हें घेरे रहती हैं कि वे किसी गलत संगत में ना पड़ जाएं, अकेले खुद को कैसे संभालेंगे? रमा के बारबार बीमार रहने की वजह भी यही सब चिंताएं थीं.

महेश सोचने लगा कि मां ने 5 साल मेरे बिना कैसे निकाले होंगे पता नहीं. मां की बातों से उस की फिक्र साफ झलक रही थी.

“मेरी बात सुनो मां,” महेश बोला,”घर से निकलने के बाद मैं 2 साल लखनऊ में ही था. जिस मैगजीन के लिए मैं काम करता था, उस की तरफ से ही मुझे 3 साल पहले एक प्रोजैक्ट के लिए लंदन भेजा गया था. मेरा प्रोजैक्ट बहुत ही सफल रहा.

“यहां लंदन में मेरे काम को बहुत ही सराहा गया और अगले महीने यहां एक पुरस्कार समारोह का आयोजन
है जिस में तुम्हारे बेटे को ‘बैस्ट फोटोग्राफर औफ द ईयर’ का पुरस्कार मिलने वाला है.

“मां, आप के और पिताजी के आशीर्वाद और मेरी इतनी सालों की मेहनत का परिणाम मुझे इस पुरस्कार के रूप में मिलने जा रहा है. मेरी बहुत इच्छा है कि इस अवसर पर मेरा परिवार मेरे मातापिता मेरे साथ रहें.

“मेरी जिंदगी की इतनी बड़ी खुशी को बांटने के लिए आज मेरे साथ यहां कोई नहीं है मां,” बोलतेबोलते महेश का गला भर आया था.

उधर रमा की आंखों से निकले आंसूओं ने भी उस के आंचल को भिगो दिया था और उन का दिल खुशी से चिल्लाने को कर रहा था कि मेरे बेटे की हैसियत देखने वालो देखो, आज अपनी मेहनत से मेरा बेटा किस मुकाम पर पहुंचा है. दूसरे देश में जा कर दूसरे लोगों के बीच में अपने काम से अपनी पहचान बनाना अपनेआप में बहुत बड़ी जीत का प्रमाण है.

महेश ने आगे बोला,”मां, आप के और पिताजी के लिए लंदन की टिकट भेज रहा हूं. पिताजी को ले कर जल्दी यहां आ जाओ मां.”

“हां बेटा, हम जरूर आएंगे,” रमा ने कहा,”कौन से मातापिता नहीं चाहेंगे कि दुनिया की नजरों में अपने बेटे के लिए इतना मानसम्मान और इज्जत देखना. तू ने हमें यह अवसर दिया है, हम जरूर आएंगे बेटा, जरूर आएंगे,”ऐसा कह कर रमा
ने फोन रख दिया।

आज रमा को अपनी परवरिश पर बहुत नाज हो रहा था. 5 साल की जुदाई का दर्द आज बेटे की सफलता के आगे उसे बहुत छोटा लग रहा था।

वे बहुत बेसब्री से महेश के पिता के घर वापस आने का इंतजार कर रही थीं. फोन पर इतनी बड़ी खुशखबरी वे नहीं देना चाहती थीं। वे चाह रही थीं कि बेटे की सफलता की खुशी को अपनी आंखों से उस के पिता के चेहरे पर देखें।

दरवाजे की घंटी बजी तो नौकर ने जा कर दरवाजा खोला। महेश के पिता जैसे ही घर के अंदर दाखिल हुए तो उन्होंने जो देखा उस की कल्पना नहीं की थी. रमा अपनी खोई हुई मुसकान चेहरे पर लिए हुए खड़ी थीं.

देखते ही बोले मनमोहन राव,”इतने साल बाद तुम्हारे चेहरे पर खुशी देख कर बहुत सुकून मिल रहा है. इस की वजह पता चलेगी कि नहीं? तुम्हारा बेटा वापस आ गया क्या?”

रमा बोलीं,”जी नहीं, बेटा नहीं आया पर आज दोपहर में उस का फोन आया था.”

इस खबर को सुनने का इंतजार वे भी
ना जाने कब से कर रहे थे।

“अच्छा कैसा है वह? मेरे बारे में पूछा कि नहीं उस ने? नाराज है क्या अब तक मेरे से?” उन की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी.

रमा बोलीं,”बिलकुल नाराज नहीं है और बारबार आप को ही पूछ रहा था। और सुनिए, लंदन में है हमारा बेटा.”

बेटा लंदन में है, सुन कर महेश के पिता सोफे से उठ खड़े हुए थे.

“जी हां, लंदन में और अगले महीने वहां एक बहुत बड़े पुरस्कार से सम्मानित होने जा रहा है आप का बेटा,” बोलते हुए मिठाई का एक टुकड़ा रमा ने ममनमोहन राव के मुंह
में डाल दिया था.

उन की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.

“तुम सच कह रही हो ना रमा?”

रमा बोलीं,”जी हां, बिलकुल सच.”

मनमोहन राव ने रमा को सीने से लगा लिया और दोनों अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए.

रमा ने खुद को संभालते हुए कहा,”आगे तो सुनिए, हमारे लिए लंदन की टिकट भेज रहा है. पुरस्कार समारोह में वह हम दोनों के साथ शामिल होना चाहता है.”

मनमोहन राव के आंसुओं का बहाव और तेज हो चुका था. जिस बेटे को 5 साल पहले उन्होंने बोला था कि तुम्हारी हैसियत क्या है मेरे बिना, उस ने अपनी हैसियत से शख्सियत तक का सफर क्या बखूबी पूरा किया था.

आंसुओं ने उन के चेहरे को पूरी तरह से भिगो दिया था और बेटे से मिलने की तड़प में दिल मचल उठा था.

Breakup Story : धोखेबाज गर्लफ्रैंड

Breakup Story: ड्राइंगरूममें सोफे पर बैठ पत्रिका पढ़ रही स्मिता का ध्यान डोरबैल बजने से टूटा. दरवाजा खोलने पर स्मिता को बेटे यश का उड़ा चेहरा देख धक्का लगा. घबराई सी स्मिता बेटे से पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ यश? सब ठीक तो है?’’

बिना कुछ कहे यश सीधे अपने बैडरूम में चला गया. स्मिता तेज कदमों से पीछेपीछे भागी सी गई. पूछा, ‘‘क्या हुआ यश?’’

यश सिर पकड़े बैड पर बैठा सिसकने लगा. जैसे ही स्मिता ने उस के पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ रखा वह मां की गोद में ढह सा गया और फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

स्मिता ने बेहद परेशान होते हुए पूछा, ‘‘बताओ तो यश क्या हुआ?’’

यश रोए जा रहा था. स्मिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस का 25 साल का बेटा आज तक ऐसे नहीं रोया था. उस का सिर सहलाती वह चुप हो गई थी. समझ गई थी कि थोड़ा संभलने पर ही बता पाएगा. यश की सिसकियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. कुछ देर बाद फिर स्मिता ने पूछा, ‘‘बताओ बेटा क्या हुआ?’’

‘‘मां, नविका से ब्रेकअप हो गया.’’

‘‘क्या? यह कैसे हो सकता है? नविका को यह क्या हुआ? बेटा यह तो नामुमकिन है.’’

यश ने रोते हुए कहा, ‘‘नविका ने अभी फोन पर कहा कि अब हम साथ नहीं हैं. वह यह रिश्ता खत्म करना चाहती है.’’

स्मिता को गहरा धक्का लगा. यह कैसे हो सकता है. 4 साल से वह, यश के पापा विपुल, यश की छोटी बहन समृद्धि नविका को इस घर की बहू के रूप में ही देख रहे हैं. इतने समय से स्मिता यही सोच कर चिंतामुक्त रही कि जैसी केयर नविका यश की करती है, वैसी वह मां हो कर भी नहीं कर पाती. इस लड़की को यह क्या हुआ? स्मिता के कानों में नविका का मधुर स्वर मां…मां… कहना गूंज उठा. बीते साल आंखों के आगे घूम गए. बेटे को कैसे चुप करवाए वह तो खुद ही रोने लगी. वह तो खुद ही इस लड़की से गहराई से जुड़ चुकी है.

अचानक यश उठ कर बैठ गया. मां की आंखों में आंसू देखे, तो उन्हें पोंछते हुए फिर से रोने लगा, ‘‘मां, यह नविका ने क्या किया?’’

‘‘उस ने ऐसे क्यों किया, यश? कल रात तो वह यहां हमारे साथ डिनर कर के गई. फिर रातोंरात ऐसी कौन सी बात हो गई?’’

‘‘पता नहीं, मां. उस ने कहा कि अब वह इस रिश्ते को और आगे नहीं ले जा पाएगी. उसे महसूस हो रहा है कि वह इस रिश्ते में जीवनभर के लिए नहीं बंध सकती. वह भी हम सब को बहुत मिस करेगी, उस के लिए भी मुश्किल होगा पर वह अपनेआप को संभाल लेगी और कहा कि मैं भी खुद को संभाल लूं और आप सब को उस की तरफ से सौरी कह दूं.’’

स्मिता हैरान व ठगी से बैठी रह गई थी. यह क्या हो रहा है? लड़कों की

बेवफाई, दगाबाजी तो सुनी थी पर यह लड़की क्या खेल खेल गई मेरे बेटे के साथ… हम सब की भावनाओं के साथ. दोनों मांबेटे ठगे से बैठे थे. स्मिता ने बहुत कहा पर यश ने कुछ नहीं खाया. चुपचाप बैड पर आंसू बहाते हुए लेटा रहा. स्मिता बेचैन सी पूरे घर में इधर से उधर चक्कर लगाती रही.

शाम को विपुल और समृद्धि भी आ गए. आते ही दोनों ने घर में पसरी उदासी महसूस कर ली थी. सब बात जानने के बाद वे दोनों भी सिर पकड़ कर बैठ गए. यह कोई आम सी लड़की और एक आम से लड़के के ब्रेकअप की खबर थोड़े ही थी. इतने लंबे समय में नविका सब के दिलों में बस सी गई थी.

इस घर से दूर नविका तो खुद ही नहीं रह सकती थी. घर में हर किसी को खुश करती थकती नहीं थी. विपुल के बहुत जोर देने पर यश ने सब के साथ बैठ कर मुश्किल से खाना खाया, डाइनिंगटेबल पर अजीब सा सन्नाटा था. समृद्धि को भी नविका के साथ बिताया एकएक पल याद आ रहा था. नविका से कितनी छोटी है वह पर कैसी दोस्त बन गई थी. कुछ भी दिक्कत हो नविका झट से दूर कर देती थी.

विपुल को भी उस का पापा कह कर बात करना याद आ रहा था. सब सोच में डूबे हुए थे कि यह हुआ क्या? कल ही तो यहां साथ में बैठ कर डिनर कर रही थी. आज ब्रेकअप हो गया. यह एक लड़के से ब्रेकअप नहीं था. नविका के साथ पूरा परिवार जुड़ चुका था. सब ने बहुत बेचैनी भरी उदासी से खाना खत्म किया. कोई कुछ नहीं बोल रहा था.

स्मिता से बेटे की आंसू भरी आंखें देखी नहीं जा रही थीं. उस के लिए बेटे को इस हाल

में देखना मुश्किल हो रहा था. रात को सोने

से पहले स्मिता ने पूछा, ‘‘यश, मैं नविका से

बात करूं?’’

‘‘नहीं मां, रहने दो. अब वह बात ही नहीं करना चाहती. फोन ही नहीं उठा रही है.’’

स्मिता हैरान. दुखी मन से बैड पर लेट तो गई पर उस की आंखों से नींद कोसों दूर विपुल के सोने के बाद बालकनी में रखी कुरसी पर आ कर बैठ गई. पिछले 4 सालों की एकएक बात आंखों के सामने आती चली गई…

यश और नविका मुंबई में ही एक दोस्त की पार्टी में मिले थे. दोनों की दोस्ती हो गई थी. नविका यश से 3 साल बड़ी थी, यह जान कर भी यश को कोई फर्क नहीं पड़ा था. वह नविका से बहुत प्रभावित हुआ था. नविका सुंदर, आत्मनिर्भर, आधुनिक, होशियार थी. अपनी उम्र से बहुत कम ही दिखती थी. स्मिता के परिवार को भी उस से मिल कर अच्छा लगा था.

चुटकियों में यश और समृद्धि के किसी भी प्रोजैक्ट में हैल्प करती. बेटे से बड़ी लड़की को भी उस की खूबियों के कारण स्मिता ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था. स्मिता और विपुल खुले विचारों के थे. नविका के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक भाई था. एक दिन नविका ने स्मिता से कहा कि मां आप मुझे कितना प्यार करती हैं और मेरी मम्मी तो बस मेरे भाई के ही चारों तरफ घूमती रहती हैं. मैं कहां जा रही हूं, क्या कर रही हूं, मम्मीपापा को इस से कुछ लेनादेना नहीं होता. भाई ही उन दोनों की दुनिया है. इसलिए मैं जल्दी आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं.

सुन कर स्मिता ने नविका पर अपने स्नेह की बरसात कर दी थी.

उस दिन से तो जैसे स्मिता ने मान लिया कि उस के 2 नहीं 3 बच्चे हैं. कुछ भी होता

नविका जरूर होती. कहीं जाना हो नविका साथ होती. यह तय सा ही हो गया था कि यश के सैटल हो जाने के बाद दोनों का विवाह कर दिया जाएगा.

एक दिन स्मिता ने कहा, ‘‘नविका, मैं सोच रही हूं कि तुम्हारे पेरैंट्स से मिल लूं.’’

इस पर नविका बोली, ‘‘रहने दो मां. अभी नहीं. मेरे परिवार वाले बहुत रूढि़वादी हैं. जल्दी नहीं मानेंगे. मुझे लगता कि अभी रुकना चाहिए.’’

यश तो आंखें बंद कर नविका की हर बात में हां में हां ऐसे मिलाता था कि कई बार स्मिता हंस कर कह उठती थी, ‘‘विपुल, यह तो पक्का जोरू का गुलाम निकलेगा.’’

विपुल भी हंस कर कहते थे, ‘‘परंपरा निभाएगा. बाप की तरह बेटा भी जोरू का

गुलाम बनेगा.’’

कई बार स्मिता तो यह सोच कर सचमुच मन ही मन गंभीर हो उठती थी कि यश सचमुच नविका के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता. अपनी हर चीज के लिए उस पर निर्भर रहता है. कोई फौर्म हो, कहीं आवेदन करना हो, उस के सब काम नविका ही करती और नविका यश को खुश रखने का हर जतन करती. उसे मुंबई में ही अच्छी जौब मिल गई थी.

जौब के साथसाथ वह घर के हर सदस्य की हर चीज में हमेशा हैल्प करती. स्मिता मन ही मन हैरान होती कि यह लड़की क्या है… इतना कौन करता है? किसी को कोई भी जरूरत हो, नविका हाजिर और उस का खुशमिजाज स्वभाव भी लाजवाब था जिस के कारण स्मिता का उस से रोज मिलने पर भी मन नहीं भरता था. जितनी देर घर में रहती हंसती ही रहती. स्मिता नविका को याद कर रो पड़ी. रात के 2 बजे बालकनी में बैठ कर वह नविका को याद कर रो रही थी.

स्मिता का बारबार नविका को फोन कर पूछने का मन हो रहा था कि यह क्या किया तुम ने? यश के मना करने के बावजूद स्मिता यह ठान चुकी थी कि वह यह जरूर पूछेगी नविका से कि उस ने यह इमोशनल चीटिंग क्यों की? क्या इतने दिनों से वह टाइमपास कर रही थी? अचानक बिना कारण बताए कोई लड़की ब्रेकअप की घोषणा कर देती है, वह भी यश जैसे नर्म दिल स्वभाव वाले लड़के के साथ जो नविका को खुश देख कर ही खुश रहता था.

इतने में ही अपने कंधे पर हाथ  का स्पर्श महसूस हुआ तो स्मिता चौंकी. यश था, उस की गोद में सिर रख कर जमीन पर ही बैठ गया. दोनों चुप रहे. दोनों की आंखों से आंसू बहते रहे.

फिर विपुल भी उठ कर आ गए. दोनों को प्यार से उठाते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘‘जो हो गया, सो हो गया, अब यही सोच कर तुम लोग परेशान मत हो. आराम करो, कल बात करेंगे.’’

अगले दिन भी घर में सन्नाटा पसरा रहा. यश चुपचाप सुबह कालेज चला गया. स्मिता ने उस से दिन में 2-3 बार बात की. पूछा, ‘‘नविका से बात हुई?’’

‘‘नहीं, मम्मी वह फोन नहीं उठा रही है.’’

उदासीभरी हैरानी में स्मिता ने भी दिन बिताया. वह बारबार

अपना फोन चैक कर रही थी. इतने सालों में आज पहली बार न नविका का कोई मैसेज था न ही मिस्ड कौल. स्मिता को तो स्वयं ही नविका के टच में रहने की इतनी आदत थी फिर यश को कैसा लगा रहा होगा. यह सोच कर ही उस का मन उदास हो जाता था.

3 दिन बीत गए, नविका ने किसी से संपर्क नहीं किया. घर में चारों उदास थे, जैसे घर का कोई महत्त्वपूर्ण सदस्य एकदम से साथ छोड़ गया हो. सब चुप थे. अब नविका का कोई नाम ही नहीं ले रहा था ताकि कोई दुखी न हो. मगर बिना कारण जाने स्मिता को चैन नहीं आ रहा था. वह बिना किसी को बताए बांद्रा कुर्ला कौंप्लैक्स पहुंच गई. नविका का औफिस उसे पता था.

अत: उस के औफिस चल दी. औफिस के बाहर पहुंच सोचा एक बार फोन करती. अगर उठा लिया तो ठीक वरना औफिस में चली जाएगी.

अत: नविका के औफिस की बिल्डिंग के बाहर खड़ी हो कर स्मिता ने फोन किया. हैरान हुई जब नविका ने उस का फोन उठा लिया, ‘‘नविका, मैं तुम्हारे औफिस के बाहर खड़ी हूं, मिलना है तुम से.’’

‘‘अरे, मां, आप यहां? मैं अभी

आती हूं.’’

नविका दूर से भागी सी आती दिखी तो स्मिता की आंखें उसे इतने दिनों बाद देख भीग सी गईं. वह सचमुच नविका को प्यार करने लगी थी. उसे बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी. उस पर अथाह स्नेह लुटाया था. फिर यह लड़की अचानक गैर क्यों

हो गई?

नविका आते ही उस के गले लग गई. दोनों रोड पर यों ही बिना कुछ कहे कुछ पल खड़ी रहीं. फिर नविका ने कहा, ‘‘आइए, मां, कौफी हाउस चलते हैं.’’

नविका स्मिता का हाथ पकड़े चल रही थी. स्मिता का दिल भर आया. यह हाथ, साथ, छूट गया है. दोनों जब एक कौर्नर की टेबल पर बैठ गईं तो नविका ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘मां, आप कैसी हैं?’’

स्मिता ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया, मैं जानने आई हूं?’’

नविका ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मां, मैं थकने लगी थी.’’

‘‘क्यों? किस बात से? हम लोगों के प्यार में कहां कमी देखी तुम ने? इतने साल हम से जुड़ी रही और अचानक बिना कारण बताए यह सब किया जाता है? यह पूरे परिवार के साथ इमोशनल चीटिंग नहीं है?’’ स्मिता के स्वर में नाराजगी घुल आई.

‘‘नहीं मां, आप लोगों के प्यार में तो कोई कमी नहीं थी, पर मैं अपने ही झूठ से थकने लगी थी. मैं ने आप लोगों से झूठ बोला था. मैं यश से 3 नहीं, 7 साल बड़ी हूं.’’

स्मिता बुरी तरह चौंकी, ‘‘क्या?’’

‘‘हां, मैं तलाकशुदा भी हूं. इसलिए मैं ने आप को कभी अपनी फैमिली से मिलने नहीं दिया. मैं जानती थी आप लोग यह सुन कर मुझ से दूर हो जाएंगे. मैं इतनी लविंग फैमिली खोना नहीं चाहती थी. इसलिए झूठ बोलती थी.’’

‘‘शादी कहां हुई थी? तलाक क्यों हुआ था?’’

‘‘यहीं मुंबई में ही. मैं ने घर से भाग कर शादी की थी. मेरे पेरैंट्स आज तक मुझ से नाराज हैं और फिर मेरी उस से नहीं बनी तो तलाक हो गया. मैं मम्मीपापा के पास वापस आ गई. उन्होंने मुझे कभी माफ नहीं किया. मैं ने आगे पढ़ाई

की. आज मैं अच्छी जौब पर हूं. फिर यश मिल गया तो अच्छा लगा. मैं ने अपना सब सच छिपा लिया. यश अच्छा लड़का है. मुझ से काफी छोटा है, पर उस के साथ रहने पर उस की उम्र के हिसाब से मुझे कई दिक्कतें होती हैं. उस की उम्र से मैच करने में अपनेआप पर काफी मेहनत करनी पड़ती है. आजकल मानसिक रूप से थकने लगी हूं.

‘‘यश कभी अपनी दूसरी दोस्तों के साथ बात भी करता है तो मैं असुरक्षित

महसूस करती हूं. मैं ने बहुत सोचा मां. उम्र के अंतर के कारण मैं शायद यह असुरक्षा हमेशा महसूस करूंगी. मैं ने भी दुनिया देखी है मां. बहुत सोचने के बाद मुझे यही लगा कि अब मुझे आप लोगों की जिंदगी से दूर हो जाना चाहिए. मैं वैसे भी अपनी शर्तों पर, अपने हिसाब से जीना चाहती हूं. आत्मनिर्भर हूं, आप लोगों से जुड़ कर समाज का कोई ताना, व्यंग्य भविष्य में मैं सुनना पसंद नहीं करूंगी.

‘‘मैं ने बहुत मेहनत की है. अभी और ऊंचाइयों पर जाऊंगी, आप लोग हमेशा याद आएंगे. लाइफ ऐसी ही है, चलती रहती है. आप ठीक समझें तो घर में सब को बता देना, सब आप के ऊपर है और हम कोई सैलिब्रिटी तो हैं नहीं, जिन्हें इस तरह का कदम उठाने पर समाज का कोई डर नहीं होता. हम तो आम लोग हैं. मुझे या आप लोगों को रोजरोज के तानेउलाहने पसंद नहीं आएंगे. यश में अभी बहुत बचपना है. यह भी हो सकता है कि समाज से पहले वही खुद बातबात में मेरा मजाक उड़ाने लगे. मुझे बहुत सारी बातें सोच कर आप सब से दूर होना ही सही लग रहा है.’’

कौफी ठंडी हो चुकी थी. नविका पेमैंट कर उठ खड़ी हुई. कैब आ गई तो स्मिता के गले लगते हुए बोली, ‘‘आई विल मिस यू, मां,’’ और फिर चल दी.

स्मिता अजीब सी मनोदशा में कैब में बैठ गई. दिल चाह रहा था, दूर जाती हुई नविका को आवाज दे कर बुला ले और कस कर गले से लगा ले, पर वह  जा चुकी थी, हमेशा के लिए. उसे कह भी नहीं पाई थी कि उसे भी उस की बहुत याद आएगी. 4 सालों से अपने सारे सच छिपा कर सब के दिलों में जगह बना चुकी थी वह. सच ही कह रही थी वह कि सच छिपातेछिपाते थक सी गई होगी. अगर वह अपने भविष्य को ले कर पौजिटिव है, आगे बढ़ना चाहती है, स्मिता को भले ही अपने परिवार के साथ यह इमोशनल चीटिंग लग रही हो, पर नविका को पूरा हक है अपनी सोच, अपने मन से जीने का.

अगर वह अभी से इस रिश्ते में मानसिक रूप से थक रही है, अभी से यश और अपनी उम्र के अंतर के बोझ से थक रही है तो उसे पूरा हक है इस रिश्ते से आजाद होने का. मगर यह सच है कि स्मिता को उस की याद बहुत आएगी. मन ही मन नविका को भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे कर स्मिता ने गहरी सांस लेते हुए कार की सीट पर बैठ कर आंखें मूंद लीं.

Old Fashion: ओल्ड इज गोल्ड विद मौडर्न टच

Old Fashion: फैशन की असली खूबसूरती यही है कि यह बारबार बदलता है और हर बार कुछ नया ले कर आता है. लेकिन आजकल का सब से बड़ा ट्रेंड है पुराने को नए रूप में पहनना. अलमारी में रखे पुराने फैब्रिक और प्रिंट अब आउटडेटेड नहीं माने जाते, बल्कि इन्हें नए कट्स और स्टाइल्स के साथ पहनना आज की स्मार्ट चौइस है.

पुराने प्रिंट का नया अंदाज

आप को पता होना चाहिए कि ब्लौक प्रिंट, पोलका डौट्स या फ्लोरल प्रिंट आदि सदाबहार डिजाइन हैं. फर्क बस इतना है कि इन्हें पहले पारंपरिक रूप में पहना जाता था, लेकिन आज इन्हीं से बन रहे हैं मौडर्न ड्रैसेज, जैसे क्रौप टौप और स्कर्ट.

श्रग और जैकेट्स

वनपीस ड्रैस : यानी प्रिंट वही है, लेकिन कटिंग और स्टाइलिंग बिलकुल नया.

पारंपरिक फैब्रिक, वैस्टर्न टच

भारत के पारंपरिक फैब्रिक जैसे खादी, सिल्क, कौटन और लिनेन कभी पुराने नहीं होते. फर्क सिर्फ इन के यूज का है.

खादी से बना ओवरसाइज कोट

सिल्क से डिजाइनर स्कर्ट, कौटन से स्टाइलिश जंपसूट सब पुराने फैब्रिक को भी एकदम मौडर्न और ग्लैमरस बना देते हैं.

साड़ी और दुपट्टे से नया फैशन

हर घर में पुरानी साड़ियां और दुपट्टे पड़े रहते हैं. इन्हें फेंकने की बजाय अगर आप थोड़ी क्रिएटिविटी दिखाएं तो साड़ी से बन सकता है स्टाइलिश गाउन या इंडो वैस्टर्न ड्रैस.

दुपट्टे से तैयार हो सकती है ट्रेंडी स्कर्ट या कुरता ड्रैस, पुराने चुनरी से बन सकता है श्रग या केप स्टाइल जैकेट. इस से न केवल नया फैशन तैयार होता है, बल्कि उस में इमोशंस  की खूबसूरती भी जुड़ी रहती है.

ऐक्सैसरीज का कमाल

कपड़ों को नया लुक देने के लिए ऐक्सैसरीज सब से आसान तरीका है. एक बेल्ट से ढीली ड्रैस को फिगर फिटिंग लुक दें. मौडर्न ज्वैलरी के साथ पारंपरिक फैब्रिक और प्रिंट और भी आकर्षक लगता है.

स्टाइलिश बैग और फुटवियर पुराने डिजाइन को भी ट्रेंडी बना देते हैं.

सस्टेनेबल फैशन समय की जरूरत

आज जब पूरी दुनिया में सस्टेनेबल फैशन की बात हो रही है, तो पुराना फैब्रिक इस्तेमाल करना एक समझदारी भरा कदम है. इस से पर्यावरण को नुकसान नहीं होता.

नए कपड़े बनाने में लगने वाला खर्च और संसाधन बचते हैं. आप अपनी वार्डरोब में यूनिक और पर्सनलाइज्ड स्टाइल जोड़ पाते हैं.

अपनी पहचान खुद बनाएं

फैशन का असली मतलब सिर्फ नया पहनना नहीं, बल्कि खुद की पहचान को स्टाइल में पेश करना है. जब आप पुराने फैब्रिक और प्रिंट से नए कपड़े बनवाते हैं, तो यह आप की क्रिएटिविटी, पर्सनैलिटी और स्मार्ट चौइस दोनों को दिखाता है.

पुराना फैब्रिक और प्रिंट कभी आउटडेटेड नहीं होता. फर्क सिर्फ इतना है कि आप उसे किस तरह पहनते और स्टाइल करते हैं. इसलिए अब पुराने कपड़ों को बेकार समझ कर अलमारी में न रखें, बल्कि उन्हें नया रूप दे कर अपने फैशन में शामिल करें. यही है आज का असली ट्रेंड- ओल्ड इज गोल्ड विद मौडर्न टच.

Old Fashion

Glamour World Reality: सैक्स और संबंध- परदे के पीछे की मिस्ट्री

Glamour World Reality: ग्लैमर वर्ल्ड में आएदिन कोई डाइरैक्टर हो, ऐक्टर हो या कोई और, लड़कियों द्वारा बैडटच, रेप, मौलेस्टेशन आदि घिनौने आरोप लगते रहते हैं, जिन के चलते इस मामले से जुड़े कुछ लोग जहां हवालात पहुंच गए, कुछ पर केस चल रहा है, तो वहीं कई लोगों का कैरियर भी बरबाद हो चुका है.

इतना ही नहीं, इसी मामले से जुड़ी कई लड़कियों ने आत्महत्या तक कर ली है और इस के लिए इंडस्ट्री से जुड़े मर्दों को जिम्मेदार ठहराया गया है.

ऐसी हीरोइनों की आत्महत्या के पीछे क्या ठोस वजह थी, वह भी साफ नहीं हो पाता क्योंकि आत्महत्या करने वाली लड़कियां अपने ऊपर हुए अत्याचार का कोई पुख्ता सुबूत नहीं छोड़तीं.

सवाल गंभीर है

ऐसे में सवाल यह उठता है कि 21वीं सदी में समानता का हक मांगने वाली, आजाद खयालों की लङकियां पुरुष प्रधान इंडस्ट्री में दया की पात्र क्यों बनी हुई हैं? अत्याचार पीड़ित ऐसी सभी महिलाएं जो ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी हैं सिवाय कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के और सोशल मीडिया पर अपने ऊपर हुए अत्याचार की बयानबाजी कर के तमाशा करने के अलावा कुछ और क्यों नहीं कर रहीं? क्या इस के पीछे छिपा हुआ कोई स्वार्थ है जो बदले की भावना, बदनामी का डर दिखा कर सामने वाले इंसान से काम पाना है या खुद की बदनामी का डर और कमजोर होना है.

ग्लैमर वर्ल्ड जहां पर स्त्री और पुरुष में आमतौर पर कोई भेदभाव नहीं माना जाता, अंग प्रदर्शन से ले कर प्रेम संबंधों तक नैतिक हो या अनैतिक कोई रोकटोक नहीं है, काम के दौरान भी महिलाओं से भी उतना ही काम करवाया जाता है जितना कि पुरुष करते हैं, तो ऐसे में क्या वजह है कि ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी स्त्रियां चाहे वे भोजपुरी इंडस्ट्री की हों, बौलीवुड या साउथ इंडस्ट्री की, आएदिन पुरुषों द्वारा हुए अत्याचार, बलात्कार के इल्जाम सोशल मीडिया पर लगाती रहती हैं.

बवाल होना स्वाभाविक

ऐसे में सवाल यह उठता है कि ग्लैमर वर्ल्ड में एकसाथ काम करने वाले स्त्रीपुरुष, जो सैक्सी सीन से ले कर इंटिमेट सीन, किसिंग सीन धड़ल्ले से करते हैं, महीनों एकसाथ फिल्म या सीरियल के लिए काम करते हैं, कई बार इंडिया के बाहर जा कर भी साथ शूटिंग करते हैं, वे सारे हीरोहीरोइन इतने मतभेद से कैसे गुजर रहे हैं?

हालांकि अगर किसी और क्षेत्र की बात करें तो वहां जहां पर स्त्री और पुरुष एकसाथ काम करते हैं, वहां दोनों के बीच कुछ सीमाएं तय रहती हैं. उन के बीच कुछ सीमित दूरी रहती है, बावजूद इस के अगर कुछ गलत होता है तो बवाल होना स्वाभाविक है, लेकिन ग्लैमर वर्ल्ड जहां पर मर्द और औरत एकसाथ काम करते हैं, उन के बीच इतना अच्छा रिश्ता तो बन ही जाता है जो दोस्ती या दुश्मनी जैसी भले हो, लेकिन कोई किसी से कमजोर नहीं होता.

आरोप में दम या फिर कुछ और

औरत होने की वजह से मजबूर या मर्द होने की वजह से ताकतवर वाला कम से कम ग्लैमर वर्ल्ड में कम ही देखने को मिलता है. अगर कोई कमजोर रिश्ता होता है तो वह सामने वाले का पावरफुल होना यानि ऊंची पोस्ट पर होना और दूसरी तरफ काम न मिलने वाला और संघर्ष करने वाला इंसान होना, जो लड़का या लड़की कोई भी हो सकता है.

ग्लैमर वर्ल्ड ही एक ऐसी जगह है जहां सभी को समान समझा जाता है. साथ काम करने वालों के बीच प्यार तो कभी दोस्ती का रिश्ता होता है. मगर फिर ऐसा क्या हो जाता है कि इस इंडस्ट्री से जुड़ी लड़कियां इंडस्ट्री के मर्दों पर बैडटच, रेप, अश्लीलतापूर्ण जबरदस्ती करने का आरोप लगाती नजर आती हैं?

समानता का पाठ पढ़ाने वाला ग्लैमर वर्ल्ड के मर्द औरतों का फायदा उठाने वाले श्रेणी में आ जाते हैं. मगर सवाल यह उठता है कि ग्लैमर वर्ल्ड मे छिपे इस चमक के पीछे काले साए में लिप्त लोग कौन हैं? ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी वे लड़कियां जो शोषण का शिकार होती हैं या वे हीरो, फिल्ममेकर या पावरफुल लोग जो काम देने के बहाने अपने से कमजोर लोगों का फायदा उठा कर मौके पर चौका मार कर इंडस्ट्री से जुड़ी लड़कियों का शोषण करते हैं, उन की असली मानसिकता क्या है?

कङवा सच

शुरू से ही औरत व आदमी एकदूसरे के पूरक रहे हैं क्योंकि यह एक कड़वा सच है कि बिना आदमी के औरत और बिना औरत के आदमी अधूरा है. घर हो या बाहर, दोनों को ही एकदूसरे की जरूरत शारीरिक, मानसिक और आर्थिक तौर पर रहती ही है, जैसे कि गाड़ी भी एक पहिए पर नहीं चलती 2 पहिए  जरूरी होते हैं, इसी तरह आदमीऔरत की जिंदगी एकदूसरे के सहारे के बगैर नहीं चलती. बावजूद इस के तकरीबन हर क्षेत्र में आदमी के बीच सम्मानित तौर पर एक सीमा है जिस के तहत दोनों अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए निश्चित दूरी रखते हैं.

लेकिन ग्लैमर वर्ल्ड एक ऐसी जगह है, जहां पर औरतआदमी में ज्यादा फर्क नहीं देखा जाता. अगर शुरुआत से बात करें तो जिन दिनों सर्कस हुआ करता था उस दौरान भी स्त्री और पुरुष सर्कस में काम करने की वजह से हीनों तक एकसाथ अलगअलग शहरों और देश में घूमा करते थे. ऐसे ही खेल हो, ओलिंपिक हो, स्त्री और पुरुष साथ में ट्रैवल ही नहीं करते हैं बल्कि कई दिनों और महीनों तक साथ में भी रहते हैं. ऐसे में आदमीऔरत नहीं बल्कि कलीग यानि साथ में काम करने वाले कहलाते हैं, जिस के तहत आपस में लगाव, दोस्ती, आत्मीयता आम बात है.

दोस्ती और सैक्स संबंध

कई बार यह दोस्ती शारीरिक संबंधों में भी बदल जाती है, जब दोस्ती से ज्यादा रिश्ते में करीबी आ जाती है. लेकिन यह सब खुल कर सामने नहीं आता. इस के विपरीत ग्लैमर वर्ल्ड में साथ काम करने वाले लड़का या लड़की अपनी सीमाएं खुद तय करते हैं. उन के बीच शारीरिक संबंध या गहरी दोस्ती आम बात है क्योंकि वे सिर्फ काम ही नहीं करते काम खत्म होने के बाद साथ घूमतेफिरते भी हैं और पार्टी भी करते हैं. ऐसे में खुलापन और स्वतंत्र विचारों के चलते साथ काम करने वालों के बीच संबंध बन जाना, इंटिमेट होना आम बात है.

ग्लैमर वर्ल्ड से प्रभावित कई लड़कियां अपनी जगह बनाने के लिए, काम पाने के लिए अपनी मरजी से न सिर्फ समझौता करती हैं, बल्कि यातनाएं भी सहती हैं, जिस के एवज में उन को काम, पैसा और शोहरत भी मिलता है. लेकिन वे हीरोइन जो उस वक्त अपने साथ हुए अन्याय को झेल कर चुप रहती हैं, सफलता पाने के बाद उन दिनों को याद कर के उन हीरो और डाइरैक्टर के चेहरे से शराफत का नकाब हटा कर अपने साथ हुए अन्याय को दुनिया तक पहुंचा देती हैं. फिर चाहे हीरोइन रेखा हो, मुमताज हो या फिर कंगना रनौत, इन सभी ने अपने ऊपर हुए अन्याय और जबरदस्ती किए गए इंटीमेट सीन अपने इंटरव्यू के दौरान बताए हैं.

फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े ऐक्टर डाइरैक्टर, म्यूजिक डाइरैक्टर मी टू  के आरोप के बाद प्रोफैशनली बरबाद हो गए हैं फिर चाहे वे साजिद खान हों या हीरो शाइनी आहूजा, बदनामी के चलते ऐसे कई लोगों को फिल्म इंडस्ट्री में काम मिलना बंद हो गया.

क्या है खास वजह

ग्लैमर वर्ल्ड में भले ही रिश्तो में खुलापन हो, अंग प्रदर्शन के नाम पर नग्नता हो, फैशन के नाम पर शराब और सिगरेट का सेवन ही क्यों न हो, लेकिन यह सब कुछ वे अपनी मरजी से करते हैं, लेकिन अगर बिना मरजी के उन्हीं के क्षेत्र से जुड़ा इंसान जबरदस्ती कर के या यों कहें कि बलात्कार कर के शरीफ बनने की कोशिश करे, तो वह उस लड़की की नजर में ही नहीं, पूरी दुनिया की नजर में गुनहगार होता है.

पिछले दिनों अमिताभ बच्चन की एक फिल्म आई थी जिस का नाम था ‘पिंक.’ उस में कोर्ट सीन में वकील बने अमिताभ बच्चन ने अपनी क्लाइंट तापसी पन्नू को ले कर एक डायलाग बोला था कि अगर कोई लड़की किसी के साथ संबंध बनाना नहीं चाहती और उस के साथ जबरदस्ती होती है तो वह गुनाह ही है और ऐसा करने वाला गुनहगार है. अगर लड़की नो बोल रही है तो नो का मतलब नो ही होता है.

इस से यही निष्कर्ष निकलता है ग्लैमर वर्ल्ड हो या कोई और फील्ड, अगर लड़की नहीं चाहती और उस के साथ जबरदस्ती होती है तो वह उस के खिलाफ आवाज जरूर उठाएगी, फिर चाहे वह आज हो या कुछ सालों बाद ही क्यों न क्योंकि शरीरिक चोट सही जा सकती है, लेकिन दिलोदिमाग पर लगी चोट का हिसाब देना ही पड़ता है.

Glamour World Reality

Twins: बच्चे के विकास के अंतर को न करें नजरअंदाज, झाड़फूंक नहीं डाक्टर को दिखाएं

Twins: सिमरन के 2 जुड़वा बेटे हैं। 1 मिनट के अंतर पर पैदा हुए दोनों बेटों में एक की ग्रोथ दूसरे से कम है, मसलन ढाई साल का एक बच्चा पूरी बातें कर लेता है, जबकि दूसरा बीचबीच में कभी 1-1 शब्द बोलता है. इस से बच्चों के पेरैंट्स हमेशा चिंता में रहते हैं कि आखिर दोनों की ग्रोथ एकजैसी होगी या नहीं? क्या डाक्टर से परामर्श ले लेनी चाहिए या नहीं? इस पर वे सोचतेसोचते डाक्टर के पास गए, जहां उन्हें स्पीच थेरैपी करने के बारे में कहा गया, ताकि उस के बोलने की आदत बने. अब दूसरा बच्चा भी कुछ बोलने और समझने लगा है, जो तकरीबन 1 साल बाद हो पाया.

असल में जुड़वा बच्चों के विकास में अंतर हो सकता है और यह गर्भावस्था के दौरान ही शुरू हो सकता है. इस के कारण निम्न हैं :

 

  • प्रत्येक जुड़वा बच्चे को गर्भ में रक्त और पोषक तत्त्वों की अलगअलग मात्रा मिलती है, भले ही वे आनुवंशिक रूप से समान हों. यह विकासात्मक भिन्नता, जिस का बाद में स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है, जन्म के समय के वजन में अंतर और जीवनभर अन्य विकास संबंधी समस्याओं का कारण बन सकती है.

 

  • ऐसा देखा गया है कि गर्भाशय में प्रत्येक जुड़वा बच्चे को रक्त और पोषण की अलगअलग मात्रा मिल सकती है, जो जुड़वा बच्चा कम पोषक तत्त्व प्राप्त करता है, उसे विकास संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

 

  • कुछ जुड़वा गर्भधारण में, प्लेसेंटा (गर्भनाल) दोनों जुड़वा भ्रूणों में असमान रूप से वितरित होता है, जिस से एक को अधिक और दूसरे को कम पोषण मिलता है.

आईवीएफ से जुड़वा बच्चे

इस के अलावा आजकल आईवीएफ से भी बच्चे जुड़वा या ट्रिप्लेट होते हैं, जिस का प्रभाव इन बच्चों के विकास पर हो सकता है. दिल्ली एनसीआर के नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी की फर्टिलिटी स्पैशलिस्ट डा.अस्वति नायर कहती हैं कि जुड़वा और ट्रिप्लेट बच्चे आईवीएफ में हो सकते हैं, क्योंकि कभीकभी एक ही ऐंब्रियो 2 हिस्सों में बंट कर जुड़वा बना देता है, लेकिन यह बहुत कम होता है. वे कहती हैं कि एक ही बच्चे वाली प्रैगनैंसी सब से सुरक्षित मानी जाती है. जुड़वा में रिस्क थोड़ा बढ़ जाता है और ट्रिपलेट्स में जटिलताओं का खतरा काफी ज्यादा होता है.

क्लिनिकली देखा गया है कि सिंगल ऐंब्रियो ट्रांसफर से सब से अच्छे नतीजे मिलते हैं। जुड़वा में जोखिम मध्यम रहता है और ट्रिपलेट्स में जटिलताओं का खतरा काफी ज्यादा होता है. अगर एक ऐंब्रियो 2 में बंट कर जुड़वा बनता है, मसलन (मोनोएम्नियोटिक ट्विंस), तो इस में विशेष तरह के रिस्क हो सकते हैं, जैसे ट्विन टू ट्विन ट्रांसफ्यूजन सिंड्रोम यानि एक बच्चे में अधिक ग्रोथ का रुकना और क्रोमोसोमल गड़बड़ी का खतरा, जो आगे जा कर विकास को प्रभावित कर सकते हैं.

आईवीएफ और नैचुरल बच्चों के विकास में फर्क 

डाक्टर आगे कहती हैं कि आईवीएफ और नैचुरल प्रैगनैंसी से जन्मे बच्चों में अंतर बहुत ही मामूली और लगभग न के बराबर होता है. फर्क सिर्फ गर्भधारण की प्रक्रिया का है. एक बार जब स्वस्थ ऐंब्रियो गर्भाशय में लग जाता है और गर्भावस्था सामान्यरूप से चलती है, तो बच्चों की ग्रोथ, विकास और माइलस्टोन नैचुरल बच्चों जैसे ही रहते हैं.

आनुवंशिक रूप से समान जुड़वा

बच्चों के भी अलगअलग रूपरंग और व्यक्तित्व हो सकते हैं, क्योंकि पर्यावरण और रैंडम संयोग जीन की अभिव्यक्ति को प्रभावित करते हैं. कम पोषक तत्त्व प्राप्त करने वाले जुड़वा बच्चे का जन्म वजन दूसरे की तुलना में कम हो सकता है.

इस के अलावा भले ही जुड़वा बच्चे आनुवंशिक रूप से बहुत करीब हों, हर बच्चा अपने अनूठे तरीके से बढ़ता है, इसलिए वे विकासात्मक रूप से धीमा हो सकते हैं.

साथ ही गर्भ में प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण कुछ जुड़वां बच्चों को जीवनभर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

क्या करें

जुड़वा बच्चों को 1-1 करके पेरैंट्स को समय देना उन के बीच व्यक्तिगत जुड़ाव को बढ़ावा दे सकता है, जो उन के भाषा विकास और अन्य क्षेत्रों के लिए महत्त्वपूर्ण है.

इस के अलावा जुड़वा बच्चों के विकास पर लगातार नजर रखने के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच महत्त्वपूर्ण है.

इस प्रकार आप के बच्चे में आए किसी भी कमी को नजरअंदाज न करें, किसी से छिपाए नहीं, झाड़फूंक या पूजापाठ का सहारा न लें, क्योंकि समय रहते इलाज करने पर उस की इस कमी को दूर किया जा सकता है और वह एक स्वस्थ और विकसित बच्चा हो सकता है.

Twins

Emotional Story: सीलन- उमा बचपन की सहेली से क्यों अलग हो गई?

Emotional Story: बचपन से ही वह हमेशा नकाब में रहती थी. स्कूल के किसी बच्चे ने कभी उस का चेहरा नहीं देखा था. हां, मछलियों सी उस की आंखें अकसर चमकती रहती थीं. कभी शरारत से भरी हुई, तो कभी एकदम शांत और मासूम. लेकिन कभीकभी उन आंखों में एक डर भी दिखाई देता था. हम दोनों साथसाथ पढ़ते थे. पढ़ाई में वह बेहद अव्वल थी. जोड़घटाव तो जैसे उस की जबां पर रहता था. मुझे अक्षर ज्ञान में मजा आता था. कहानियां, कविताएं पसंद आती थीं, जबकि गणित के समीकरण, विज्ञान, ये सब उस के पसंदीदा सब्जैक्ट थे.

वह थोड़ी संकोची, किसी नदी सी शांत और मैं एकदम बातूनी. दूर से ही मेरी आवाज उसे सुनाई दे जाती थी, बिलकुल किसी समुद्र की तरह. स्कूल में अकसर ही उसे ले कर कानाफूसी होती थी. हालांकि उस कानाफूसी का हिस्सा मैं कभी नहीं बनता था, लेकिन दोस्तों के मजाक का पात्र जरूर बन जाता था. मैं रिया के परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता था. वैसे भी बचपन की दोस्ती घरपरिवार सब से परे होती है. बचपन से ही मुझे उस का नकाब बेहद पसंद था, तब तो मैं नकाब का मतलब भी नहीं जानता था. शक्लसूरत उस की अच्छी थी, फिर भी मुझे वह नकाब में ज्यादा अच्छी लगती थी.

बड़ी क्लास में पहुंचते ही हम दोनों के स्कूल अलग हो गए. उस का दाखिला शहर के एक गर्ल्स स्कूल में हो गया, जबकि मेरा दाखिला लड़कों के स्कूल में करवा दिया गया. अब हम धीरेधीरे अपनीअपनी दिलचस्पी के काम के साथ ही पढ़ाई में भी बिजी हो गए थे, लेकिन हमारी दोस्ती बरकरार रही. पढ़ाईलिखाई से वक्त निकाल कर हम अब भी मिलते थे. वह जब तक मेरे साथ रहती, खुश रहती, खिली रहती. लेकिन उस की आंखों में हर वक्त एक डर दिखता था. मुझे कभी उस डर की वजह समझ नहीं आई. अकसर मुझे उस के परिवार के बारे में जानने की इच्छा होती. मैं उस से पूछता भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती.

हालांकि अब मुझे समझ आने लगा था कि नकाब की वजह कोई धर्म नहीं था, फिर ऐसा क्या था, जो उसे अपना चेहरा छिपाने को मजबूर करता था? मैं अकसर ऐसे सवालों में उलझ जाता. कालेज में भी मेरे अलावा उस की सिर्फ एक ही सहेली थी उमा, जो बचपन से उस के साथ थी. मेरे मन में उसे और उस के परिवार को करीब से जानने के कीड़े ने कुलबुलाना शुरू कर दिया था. शायद दिल के किसी कोने में प्यार के बीज ने भी जन्म ले लिया था. मैं हर मुलाकात में उस के परिवार के बारे में पूछना चाहता था, लेकिन उस की खिलखिलाहट में सब भूल जाता था. अकसर मैं अपनी कहानियों और कविताओं की काल्पनिक दुनिया उस के साथ ही बनाता और सजाता गया.

बड़े होने के साथ ही हम दोनों की मुलाकात में भी कमी आने लगी. वहीं मेरी दोस्ती का दायरा भी बढ़ा. कई नए दोस्त जिंदगी में आए. उन्हें मेरी और रिया की दोस्ती की खबर हुई. एक दिन उन्होंने मुझे उस से दूर रहने की नसीहत दे डाली. मैं ने उन्हें बहुत फटकारा. लेकिन उन के लांछन ने मुझे सकते में डाल दिया था. वे चिल्ला रहे थे, ‘जिस के लिए तू हम से लड़ रहा है. देखना, एक दिन वह तुझे ही दुत्कार कर चली जाएगी. गंदी नाली का कीड़ा है वह.’ मैं कसमसाया सा उन्हें अपने तरीके से लताड़ रहा था. पहली बार उस के लिए दोस्तों से लड़ाई की थी. मैं बचपन से ही अकेला रहा था. मातापिता के पास समय नहीं होता था, जो मेरे साथ बिता सकें. उमा और रिया के अलावा किसी से कोई दोस्ती नहीं. पहली बार किसी से दोस्ती हुई और

वह भी टूट गई. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह एक सर्द दोपहर थी. सूरज की गरमाहट कम पड़ रही थी. कई महीनों बाद हमारी मुलाकात हुई थी. उस दोपहर रिया के घर जाने की जिद मेरे सिर पर सवार थी. कहीं न कहीं दोस्तों की बातें दिल में चुभी हुई थीं.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मातापिता से मिलना है.’’

‘‘पिता का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरी बहुत सी मांएं हैं. उन से मिलना है, तो चलो.’’ मैं ने हैरानी से उस के चेहरे की ओर देखा. वह मुसकराते हुए स्कूटी की ओर बढ़ी. मैं भी उस के साथ बढ़ा. उस ने फिर से अपने खूबसूरत चेहरे को बुरके से ढक लिया. शाम ढलने लगी थी. अंधेरा फैल रहा था. मैं स्कूटी पर उस के पीछे बैठ गया. मेन सड़क से होती हुई स्कूटी आगे बढ़ने लगी. उस रोज मेरे दिल की रफ्तार स्कूटी से भी ज्यादा तेज थी. अब स्कूटी बदनाम बस्ती की गलियों में हिचकोले खा रही थी.

मैं ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘रास्ता भूल गई हो क्या?’’

उस ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल सही रास्ते पर हूं.’’ उस ने वहीं एक घर के किनारे स्कूटी खड़ी कर दी. मेरे लिए वह एक बड़ा झटका था. रिया मेरा हाथ पकड़ कर तकरीबन खींचते हुए एक घर के अंदर ले गई. अब मैं सीढि़यां चढ़ रहा था. हर मंजिल पर औरतें भरी पड़ी थीं, वे भी भद्दे से मेकअप और कपड़ों में सजीधजी. अब तक फिल्मों में जैसा देखता आया था, उस से एकदम अलग… बिना किसी चकाचौंध के… हर तरफ अंधेरा, सीलन और बेहद संकरी सीढि़यां. हर मंजिल से अजीब सी बदबू आ रही थी. जाने कितनी मंजिल पार कर हम लोग सब से ऊपर वाली मंजिल पर पहुंचे. वहां भी कमोबेश वही हालत थी. हर तरफ सीलन और बदबू. बाहर से देखने पर एकदम छोटा सा कमरा, जहां लोगों के होने का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था. ज्यों ही मैं कमरे के अंदर पहुंचा, वहां ढेर सारी औरतें थीं. ऐसा लग रहा था, मानो वे सब एक ही परिवार की हों.

मुझे रिया के साथ देख कर उन में से कुछ की त्योरियां चढ़ गईं, लेकिन साथ वालियों को शायद रिया ने मेरे बारे में बता रखा था, उन्होंने उन के कान में कुछ कहा और फिर सब सामान्य हो गईं.

एकसाथ हंसनाबोलना, रहना… उन्हें देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि मैं किसी ऐसी जगह पर आ गया हूं, जो अच्छे घर के लोगों के लिए बैन है. वहां छोटेछोटे बच्चे भी थे. वे अपने बच्चों के साथ खेल रही थीं, उन से तोतली बोली में बातें कर रही थीं. घर का माहौल देख कर घबराहट और डर थोड़ा कम हुआ और मैं सहज हो गया. मेरे अंदर का लेखक जागा. उन्हें और जानने की जिज्ञासा से धीरेधीरे मैं ने उन से बातें करना शुरू कीं.

‘‘यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘बस आ गई… मजबूरी थी.’’

‘‘क्या मजबूरी थी?’’

‘‘घर की मजबूरी थी. अपना, अपने बच्चों का, परिवार का पेट पालना था.’’

‘‘क्या घर पर सभी जानते हैं?’’

‘‘नहीं, घर पर तो कोई नहीं जानता. सब यह जानते हैं कि मैं दिल्ली में रहती हूं, नौकरी करती हूं. कहां रहती हूं, क्या करती हूं, ये कोई भी नहीं जानता.’’

मैं ने एक और औरत को बुलाया, जिस की उम्र 45 साल के आसपास रही होगी.

मेरा पहला सवाल वही था, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘मजबूरी.’’

‘‘कैसी?’’

‘‘घर में ससुर नहीं, पति नहीं, सिर्फ बच्चे और सास. तो रोजीरोटी के लिए किसी न किसी को तो घर से बाहर निकलना ही होता.’’

‘‘अब?’’

‘‘अब तो मैं बहुत बीमार रहती हूं. बच्चेदानी खराब हो गई है. सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए गई. डाक्टर का कहना है कि खून चाहिए, वह भी परिवार के किसी सदस्य का. अब कहां से लाएं खून?’’

‘‘क्या परिवार में वापस जाने का मन नहीं करता?’’

‘‘परिवार वाले अब मुझे अपनाएंगे नहीं. वैसे भी जब जिंदगीभर यहां कमायाखाया, तो अब क्यों जाएं वापस?’’

यह सुन कर मैं चुप हो गया… अकसर बाहर से चीजें जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं. उन लोगों से बातें कर के एहसास हो रहा था कि उन का यहां होना उन की कितनी बड़ी मजबूरी है. रिया दूर से ये सब देख रही थी. मेरे चेहरे के हर भावों से वह वाकिफ थी. उस के चेहरे पर मुसकान तैर रही थी. मैं ने एक और औरत को बुलाया, जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर थी. मैं ने कहा, ‘‘आप को यहां कोई परेशानी तो नहीं है?’’

उस ने मेरी ओर देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘जब तक जवान थी, यहां भीड़ हुआ करती थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी. लेकिन अब कोई पूछने वाला नहीं है. अब तो ऐसा होता है कि नीचे से ही दलाल ग्राहकों को भड़का कर, डराधमका कर दूसरी जगह ले जाते हैं. बस ऐसे ही गुजरबसर चल रही है. ‘‘आएदिन यहां किसी न किसी की हत्या हो जाती है या फिर किसी औरत के चेहरे पर ब्लेड मार दिया जाता है. ‘‘अब लगता है कि काश, हमारा भी घर होता. अपना परिवार होता. कम से कम जिंदगी के आखिरी दिन सुकून से तो गुजर पाते,’’ छलछलाई आंखों से चंद बूंदें उस के गालों पर लुढ़क आईं और वह न जाने किस सोच में खो गई.मुझे अचानक वह ककनू पक्षी सी लगने लगी. ऐसा लगने लगा कि मैं ककनू पक्षियों की दुनिया में आ गया हूं. मुझे घबराहट सी होने लगी. धीरेधीरे उस के हाथों की जगह बड़ेबड़े पंख उग आए. ऐसा लगा, मानो इन पंखों से थोड़ी ही देर में आग की लपटें निकलेंगी और वह उसी में जल कर राख हो जाएंगी. क्या मैं ऐसी जगह से आने वाली लड़की को अपना हमसफर बना सकता हूं? दिमाग ऐसे ही सवालों के जाल में फंस गया था.

अचानक ही मुझे बुरके में से झांकतीचमकती सी रिया की उदास डरी हुई आंखें दिखीं. मुझे अपने मातापिता  की भागदौड़ भरी जिंदगी दिख रही थी, जिन के पास मुझ से बात करने का वक्त नहीं था और साथ ही, वे दोस्त भी दिखे, जो अब भी कह रहे थे, ‘निकल जा इस दलदल से, वह तुम्हारी कभी नहीं होगी.’ मेरा वहां दम घुटने लगा. मैं वहां से बाहर भागा. बाहर आते ही रिया की अलमस्त सुबह सी चमकती हंसी ने हर सोच पर ब्रेक लगा दिया. मैं दूर से ही उसे खिलखिलाते देख रहा था. उफ, इतने दमघोंटू माहौल में भी कोई खुश रह सकता है भला क्या?

Emotional Story

Family Story in Hindi: अब बस पापा

Family Story in Hindi; आशा का मन बहुत परेशान था. आज पापा ने फिर मां के ऊपर हाथ उठाया था. विमला, उस की मां 70 साल की हो चली थी. इस उम्र में भी उस के 76 वर्षीय पिता जबतब अपनी पत्नी पर हाथ उठाते थे. अभीअभी मोबाइल पर मां से बात कर के उस का मन आहत हो चुका था. पर उस की मजबूरी यह थी कि वह अपनी यह परेशानी किसी को बता नहीं सकती थी. अपने पति व बच्चों को भी कैसे बताती कि इस उम्र में भी उस के पिता उस की मां पर हाथ उठाते हैं.

मां के शब्द अभी भी उस के दिमाग में गूंज रहे थे, ‘बेटा, अब और नहीं सहा जाता है. इन बूढ़ी हड्डियों में अब इतनी जान नहीं बची है कि तुम्हारे पापा के हाथों से बरसते मुक्कों का वेग सह सकें. पहले शरीर में ताकत थी. मार खाने के बाद भी लगातार काम में लगी रहती थी. कभी तुम लोगों पर अपनी तकलीफ जाहिर नहीं होने दी. पर अब मार खाने के बाद हाथ, पैर, पीठ, गरदन पूरा शरीर जैसे जवाब दे देता है. दर्द के कारण रातरात भर नींद नहीं आती है. कराहती हूं तो भी चिल्लाते हैं. शरीर जैसे जिंदा लाश में तबदील हो गया है. जी करता है, या तो कहीं चली जाऊं या फिर मौत ही आ जाए ताकि इस दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए. पर दोनों ही बातें नहीं हो पातीं. चलने तक को मुहताज हो गई हूं.’

आशा मां के दर्द, पीड़ा और बेबसी से अच्छी तरह वाकिफ थी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. मां को अपने घर ले आना भी तो समस्या का समाधान नहीं था, और आखिर कब तक मां को वह अपने घर रख सकती थी? अपनी घरगृहस्थी के प्रति भी तो उस की कोई जिम्मेदारी थी. ऊपर से भाइयों के ताने सुनने को मिलते, सो अलग. उस के दोनों भाई अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त थे. अलग रह रहे मांबाप की भी कभीकभी टोह ले लिया करते थे.

वैसे तो बचपन से उस ने अपनी मां को पापा से मार खाते देखा था. घर के हर छोटेबड़े निर्णय पर मां की चुप्पी व पिता के कथन की मुहर लगते देखा था. वह दोनों के स्वभाव से परिचित थी. वह जानती थी कि सदा से ही घरगृहस्थी के प्रति बेपरवाह व लापरवाह पापा के साथ मां ने कितनी तकलीफें सही हैं और बड़ी मेहनत से तिनकातिनका जोड़ कर अपनी गृहस्थी बसाई व बच्चों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाया. वरना पापा को तो यह तक नहीं मालूम था कि कौन सा बच्चा किस क्लास में पढ़ रहा है. वे तो अपनी मौजमस्ती में ही सदा रमे रहे.

उन दोनों के व्यक्तित्व व व्यवहार में जमीनआसमान का फर्क था. एक तरफ जहां मां आत्मविश्वासी, ईमानदार, मेहनती, कुशल और सादगीपसंद महिला थीं, वहीं दूसरी ओर उस के पिता मस्तमौला, स्वार्थी, लालची और रसिया किस्म के इंसान थे, जो स्थिति के अनुसार अपना रंग बदलने में भी माहिर थे. आज भी दोनों के व्यक्तित्व में इंचमात्र भी अंतर नहीं आया था. हां, शारीरिक रूप से अस्वस्थ व कमजोर होने के कारण मां थोड़ी चिड़चिड़ी अवश्य हो गई थीं. इसलिए अब जब भी उन के बीच वादविवाद की स्थिति बनती थी तो वे प्रत्युत्तर में पापा को बुराभला जरूर कहती थीं. यह बात पापा को कतई बरदाश्त नहीं होती थी. आखिर सालों से वे उन होंठों पर चुप्पी की मुहर देखते आए थे, सो, इस बात को हजम करने में उन्हें बहुत मुश्किल होती थी कि उन की पत्नी उन से जबान लड़ाती है. दोनों भाई भी यों तो मां को बहुत प्यार करते थे लेकिन उन की आपसी लड़ाई में अकसर पापा का ही पक्ष लिया करते थे.

आशा को मालूम था कि पिछली बार जब पापा ने मां पर हाथ उठाया था तो अत्यधिक आवेश व क्षोभ में मां ने भी उन का हाथ पकड़ कर उन्हें झिंझोड़ दिया था, और सख्त ताकीद की थी कि वे अब ये सब नही सहेंगी. तब आननफानन पापा ने सभी बच्चों को फोन लगा कर उन्हें उन की मां द्वारा की गई इस हरकत के बारे में बताया था. तब छोटे भैया ने घर पहुंच कर मां को खूब लताड़ लगाई थी और यह तक कह दिया था कि आप की बहू आप से सौ गुना अच्छी है, जो अपने पति से इस तरह का व्यवहार तो नहीं करती है. पता नहीं, पर शायद उन की भी पुरुषवादी सोच मां के इस कृत्य से आहत हो गई थी.

आशा को बहुत बुरा लगा था, आखिर इन मर्दों को यह क्यों नहीं समझ आता कि औरत भी हाड़मांस से बनी एक इंसान है, वह कोई मशीन नहीं जिस में कोई संवेदना न हो. उसे भी दर्द और तकलीफ होती है, वह भी कितना और कब तक सहे? और आखिर सहे भी क्यों?

भैया ने उस से भी फोन कर मां की शिकायत की थी, इस उद्देश्य से कि वह मां को समझाए कि इस उम्र में ये बातें उन्हें शोभा नहीं देतीं. बोलना तो वह भी बहुतकुछ चाहती थी, पर इस डर से कि बात कहीं और न बिगड़ जाए, सिर्फ हांहूं कर के फोन रख दिया था. काश, उस वक्त उस ने भी सचाई बोल कर भाई का मुंह बंद कर दिया होता, कि भैया, मां से तो आप की पत्नी की तुलना हो भी नहीं सकती है. क्योंकि न ही वे भाभी जैसे झूठ बोलने में यकीन रखती हैं और न अपना आत्मसम्मान कभी गिरवी रख सकती हैं. उन्होंने तो सदा सिर्फ अपनी जिम्मेदारियां ही निभाई हैं, बिना अपने अधिकारों की परवा किए. पर आप की पत्नी तो हमेशा से ही मस्त व बिंदास रही हैं, जबजब आप ने उन की मरजी के खिलाफ कोई भी काम किया है तबतब उन्होंने क्याक्या तांडव किए हैं, क्या आप को याद नहीं है? और अब जबकि आप उन की जीहुजूरी में हमेशा ही लगे रहते हो तो वे आप का विरोध करेंगी ही क्यों? भाभी की याद करतेकरते आशा के मुंह में जैसे कड़वाहट सी घुल गई.

विचारों के भंवर में इसी तरह गोते लगाती हुई आशा की तंद्रा दरवाजे की घंटी की आवाज से टूट गई. घड़ी की ओर निगाहें घुमा कर वह मन ही मन बुदबुदा उठी, ‘अब कैसे होगा काम, बच्चे आ गए, आज उस का सारा काम पड़ा हुआ है.’ भारी मन से उठते हुए उस ने दरवाजा खोला, तो चहकते हुए दोनों बच्चों ने घर में प्रवेश किया, ‘‘ममा, पता है, आज ड्राइंग टीचर को मेरी ड्राइंग बहुत अच्छी लगी, पूरी क्लास ने मेरे लिए क्लैप किया. टीचर ने मुझे टू स्टार्स भी दिए हैं. देखो,’’ नन्हीं परी ने मां को अपनी ड्राइंग शीट दिखाते हुए कहा.

‘‘ओहो, मेरी रानी बिटिया तो बड़ी होशियार है, आई एम प्राउड औफ यू,’’ कहते हुए उस ने नन्हीं परी को गले लगा लिया. परी अभी 7 साल की थी व दूसरी कक्षा में पड़ती थी. उस से बड़ा सौरभ था. जो कि 7वीं क्लास में पढ़ता था.

‘‘ममा, बहुत भूख लगी है, मेरे लिए पहले खाना लगा दो प्लीज,’’ सौरभ अपना बैग रखते हुए बोला.

‘‘ओके, बच्चो, आप फ्रैश हो कर आओ, तब तक मैं जल्दी से आप के लिए खाना परोसती हूं,’’ कह कर आशा किचन की तरफ चल दी. उस ने अभी तक कुछ भी खाने को नहीं बनाया था. बस, कामवाली काम कर के जा चुकी थी, लेकिन उस ने घर भी नहीं समेटा था. बच्चों की पसंद ध्यान में रखते हुए उस ने जल्दी से गरमागरम परांठे और आलू फ्राई बना कर सौस के साथ परोस दिया. बच्चों को खिलातेखिलाते भी उस के दिमाग में कुछ उधेड़बुन चल रही थी.

कुछ देर बाद उस ने दोनों बच्चों को तैयार कर अपनी पड़ोसिन सीमा के पास छोड़ा. और खुद सीधा अपनी मां के घर चल दी. वहां पहुंच कर पता चला कि पापा कहीं बाहर गए हैं. मां की हालत देख उस की रुलाई फूट पड़ी, पर अपने आंसुओं को जब्त कर वह बड़े ही शांत स्वर में बोली, ‘‘मां, चलो तैयार हो जाओ, हमें पुलिस स्टेशन चलना है.’’

‘‘लेकिन बेटा, एक बार और सोच

ले. अभी बात ढकी हुई है, कल को आसपड़ोस, समाजबिरादरी, नातेरिश्तेदारों तक फैल जाएगी. लोग क्या कहेंगे? बहुत बदनामी होगी हमारी. सब क्या सोचेंगे?’’ मां ने कुछ अनुनयपूर्वक कहा.

‘‘जिस को जो सोचना है सोच ले, मगर अब मैं आप को और जुल्म सहने नहीं दूंगी. मां, तुम समझती क्यों नहीं हो, जुल्म सहना भी एक बहुत बड़ा अपराध है और आज तक आप सब सहती आई हो. आप की इसी सहनशीलता ने पापा को और प्रोत्साहित किया. मगर अब, पापा को यह बात समझनी ही होगी कि आप पर हाथ उठाना उन के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.’’

मां को तैयार कर आटो में उन का हाथ थाम कर उन के साथ बैठती आशा ने जैसे मन ही मन ठान लिया था, अब बस, पापा.

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