विश्वासघात: आखिर कैसे लिया अमृता ने अपना बदला

एक शाम मैं सीडी पर अपनी मनपसंद फिल्म ‘बंदिनी’ देख रही थी कि अपने सामने के खाली पड़े दोमंजिले मकान के सामने ट्रक रुकने और कुछ देर बाद अपने दरवाजे पर दस्तक पड़ते ही समझ गई कि अब मैं फिल्म पूरी नहीं देख पाऊंगी. खिन्नतापूर्वक मैं ने दरवाजा खोला तो सामने ट्रक ड्राइवर को खड़े पाया. वह कह रहा था, ‘‘सामने जब रस्तोगी साहब आ जाएं तो उन्हें कह दीजिएगा, मैं कल आ कर किराया ले जाऊंगा.’’

मैं कुछ कहती, इस से पहले वह चला गया.

मैं बालकनी में ही कुरसी डाल कर बैठ गई. शाम को सामने वाले घर पर आटोरिकशा रुकते देख मैं समझ गई कि वे लोग पहुंच गए हैं.

घंटे भर में नमकीनपूरी और आलूमटर की सब्जी बना कर टिफिन में पैक कर के मैं अपने नौकर के साथ सामने वाले घर पहुंची. कालबैल बजाने पर 5 साल की बच्ची ने दरवाजा खोला. तब तक रस्तोगीजी अपनी पत्नी सहित वहीं आ पहुंचे.

मैं ने बताया कि मैं सामने के मकान में रहती हूं. मिसेज रस्तोगी ने नमस्कार किया और बताया कि उन का मेरठ से दिल्ली स्थानांतरण हुआ है. सफर से थकी हुई हैं,

घर भी व्यवस्थित करना है और बच्चे भूखे हैं, अभी तुरंत तो गैस का कनैक्शन नहीं मिलेगा. कुछ समझ में नहीं आ रहा है, क्या करूं?

मैं ने कहा, ‘‘घबराइए नहीं. मैं घर से खाना बना कर लाई हूं. नहाधो कर खाना वगैरह खा लीजिए. वैसे मेरे घर में 1 अतिरिक्त सिलेंडर है, फिलहाल उस से काम चला लीजिए. बाद में कनैक्शन मिलने पर वापस कर दीजिएगा.’’

इस तरह मेरा परिचय रस्तोगी परिवार से हुआ. उन्होंने अपने तीनों बच्चों का नाम पास के मिशनरी स्कूल में लिखवा दिया था. धीरेधीरे वे नए माहौल में एडजस्ट हो गए.

मेरे चारों बच्चे अपनी पढ़ाई में लगे रहते थे. बेटी पारुल ने मैट्रिक का इम्तहान दिया था, प्रिया आई.काम. कर रही थी. पीयूष एम.बी.ए. और अनुराग मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहा था. इस तरह सभी व्यस्त थे.

कभीकभार मैं सामने रस्तोगीजी के घर उन की पत्नी से गपशप करने पहुंच जाती, कभी वह मेरे घर आ जाती. 27 वर्षीय अमृता बहुत जिंदादिल औरत थी, हमेशा हंसती और हंसाती रहती. मैं ने घर में ही बाहर के कमरे में ब्यूटीपार्लर खोल रखा था. अमृता पार्लर के कामों में मेरी मदद भी कर देती थी.

इधर 3-4 दिनों से वह मेरे घर नहीं आ रही थी तो मैं उस के घर पहुंच गई. कालबैल बजाने पर एक अपरिचित चेहरे ने दरवाजा खोला. मैं अंदर गई. तभी किचन से ही अमृता ने आवाज लगा कर मुझे वहीं बुला लिया. मैं किचन में गई. अमृता आलूगोभी के पकौड़े  तल रही थी. उसी ने बताया कि उस की छोटी बहन रति का दाखिला उन लोगों ने यहीं कराने का फैसला किया है. कालेज के होस्टल में रहने के बजाय वह उन के साथ ही रहेगी.

अमृता का अब पार्लर या मेरे घर आना बहुत कम हो गया था. अब वह बहन, बच्चे और पति की तीमारदारी में ही लगी रहती. कभी घर आती भी तो अपनी बहन रति को फेशियल या हेयर कटिंग कराने. मैं उस से कहती, ‘‘अमृता, कभी अपनी तरफ भी ध्यान दिया करो.’’

अपने चिरपरिचित हंसोड़ अंदाज में वह कहती, ‘‘मुझे कौन सा किसी को दिखाना है. रति को कालेज जाना पड़ता है, इसे ही ब्यूटी ट्रीटमेंट दीजिए.’’

रति नाम के ही अनुरूप खूबसूरत थी, गोरी, लंबी, सुराहीदार गरदन और छरहरा बदन. उस के जिस्म पर पाश्चात्य पोशाकें भी बहुत फबती थीं.

दिन बीतते गए, मैं अपने घर और पार्लर में व्यस्त थी. अमृता का आना बिलकुल खत्म हो गया था. एक दिन मैं पारुल के साथ शौपिंग के लिए निकली हुई थी, कि मार्केट से सटे गायनोकोलोजिस्ट के क्लीनिक की सीढि़यों से उतरते अमृता को देखा. शुरू में तो मैं उसे पहचान भी नहीं पाई. कभी गदराए जिस्म वाली अमृता सिर्फ हड्डियों का ढांचा नजर आ रही थी. जब तक मैं उस तक पहुंचती, उस की टैक्सी दूर निकल गई थी.

शाम को मैं ने उस के घर जाने का निश्चय किया. मैं उस के घर गई तो मुझे देख कर उसे प्रसन्नता नहीं हुई. वह दरवाजे पर ही खड़ी रही तो मैं ने ही कहा, ‘‘क्या अंदर नहीं बुलाओगी?’’

हिचकते हुए वह दरवाजे से हट गई. मैं अंदर घुसी ही थी कि रस्तोगी और रति की सम्मिलित हंसी गूंज उठी. अमृता लगभग खींचते हुए मुझे अपने कमरे में ले आई.

मैं ने ही शुरुआत की, ‘‘सचसच बताना अमृता, क्या बात है?’’

जोर देने पर जैसे रुका हुआ बांध टूट पड़ा. उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप ने सही कहा था, मुझे खुद पर भी ध्यान देना चाहिए था. मैं ने कभी जिस बात की कल्पना भी नहीं की थी, वह हुआ. रति और विजय में नाजायज संबंध हैं. मैं जब रति को वापस भेजने की बात करती हूं तो रति तो कुछ नहीं कहती पर विजय मुझे मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से प्रताडि़त करते हैं. कहते हैं, ‘रति नहीं जाएगी, तुम्हें जहां जाना हो जाओ.’ रति प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहती पर अकेले में मुझे घर से बाहर निकालने की जिद विजय से करती है.’’ मैं सुन कर स्तब्ध रह गई.

‘‘मैं तो डाक्टर के पास भी गई थी. घर में यह स्थिति है और मैं प्रैगनेंट हूं. मैं इस से छुटकारा चाहती थी, पर डाक्टर ने कहा, ‘‘तुम बहुत कमजोर हो, ऐसा नहीं हो सकता,’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम इतनी कमजोर कैसे हो गई हो?’’

उस ने कहा, ‘‘सब समय की मार है.’’

6 महीने बीत गए. एक रात 12 बजे विजय रस्तोगी हांफता हुआ मेरे घर आया. उस ने बताया, ‘‘अमृता को ब्लीडिंग हो रही है, वह तड़प रही है. उसे हास्पिटल ले जाना है, प्लीज अपनी गाड़ी दीजिएगा.’’

यह सुनते ही हम आननफानन उसे गाड़ी पर लाद कर साथ ही अस्पताल पहुंचे. तुरंत उसे आई.सी.यू. में भरती किया गया, सीजेरियन द्वारा उस ने एक पुत्र को जन्म दिया, 4 घंटे बाद वह होश में आई तो उस ने सिर्फ मुझ से मिलना चाहा. नर्स ने सब को बाहर रोक दिया. मैं जब अंदर पहुंची तो उस ने अटकते हुए कुछ कहना चाहा और इशारे से अपने पास बुलाया. मैं पहुंची तो बगल ही में फलों के पास रखी हुई अत्याधुनिक टार्च को उठाने को कहा. उस ने इशारे से फोटो खींचने की बात जैसे ही की कि उस के प्राण पखेरू उड़ गए. मैं ने उस टार्च को अपने बैग में रख लिया.

सभी लोग रोने लगे. रति रोते हुए कह रही थी, ‘‘दीदी का पैर फिसलना उन के लिए काल हो गया. काश, उन का पैर न फिसला होता.’’ अमृता के घर मातमी माहौल था. क्रियाकर्म से निबटने के बाद मैं घर में बैठी आया हुआ ईमेल

चेक कर रही थी. उस में मुझे अमृता का मेल मिला, जिस में मुझे पता चला कि हादसे वाले दिन उस ने सेल्समैन से सिस्टेमैटिक टार्च कम वीडियोकैमरा खरीदा था, जो देखने साधारण टार्च लगता था, परंतु वह वीडियोग्राफी और रोशनी दोनों का काम करता था. वह मुझ से मिल तो नहीं सकती थी, इसलिए मुझे मेल किया था.

मैं ने उस की टार्च को उलटपुलट कर देखा, तो उस में मुझे एक कैसेट मिला. मैं ने उसे सीडी में लगाया. औन करने पर मैं यह देख कर दंग रह गई कि उस में विजय रस्तोगी और रति लातघूंसों से अमृता की पिटाई कर रहे थे. रस्तोगी की लात जोर से पेट पर पड़ने से अमृता छटपटाती हुई फर्श पर गिर कर बेहोश हो गई. पूरा फर्श खून से लाल होने लगा था. महंगी टार्च की असलियत जाने बगैर दोनों ने अमृता को फिजूलखर्ची के लिए पिटाई की थी.

मैं ने तुरंत हरिया को भेज कर अमृता के मम्मीपापा को अपने घर बुला कर उन्हें कैसेट दिखलाया, जिसे देख कर उन्होंने सिर पीट लिया. सहसा उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि रति ऐसा घृणित कार्य कर सकती है, परंतु आंखों देखी को झुठलाया नहीं जा सकता था.

रति और विजय से पूछने पर दोनों बिफर पड़े. तब अमृता के पापा ने उन्हें सीडी औन कर उन की करतूतों का कच्चा चिट्ठा उन्हें दिखा दिया. शर्म, ग्लानि और क्षोभ से रति ने कीटनाशक पी लिया. अस्पताल ले जाने के क्रम में ही रति की मौत हो गई.

अमृता के मातापिता ने तुरंत विजय के नाम केस फाइल किया और सबूत के तौर पर सीडी को पेश किया गया, जिस के आधार पर अमृता की हत्या के जुर्म में विजय रस्तोगी को जेल की सजा हो गई. बच्चों को नानानानी अपने साथ ले गए. मुझे इस बात की बेहद खुशी हुई कि अमृता को तड़पातड़पा कर मारने वाले भी अपने अंजाम को पहुंच गए.

मेरे लिप्स पर व्हाइट स्पौट्स हो रहे हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरे लिप्स पर व्हाइट स्पौट्स हो रहे हैं. कैसे ठीक कर सकते हैं इन्हें?

जवाब-

नीबू, संतरे जैसे खट्टे फलों के जूस को पानी के साथ मिक्स कर के होंठों पर लगाने से धब्बों को कम करने में मदद मिलती है. इस जूस को आप कौटन की मदद से धब्बों पर लगा सकती हैं. इस आसान घरेलू उपचार के उपयोग से कुछ ही दिनों में धब्बे गायब होने लगते हैं. अपने आहार में लहसुन के सेवन को बढ़ाने से आप को सफेद धब्बों को कम करने में मदद मिलेगी.

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सर्दियों में आमतौर पर होंठों की नमी खत्म हो जाती है जिस से होंठ खिंचेखिंचे से लगते हैं. कई बार तो होंठ इतने ड्राई हो जाते हैं कि उन की ऊपर त्वचा निकलने के कारण उन में दर्द होने लगता है. ऐसे में होंठों की मुसकान तो गायब होती है साथ ही इस का हमारी सुंदरता पर भी असर पड़ता है. ऐसे में जरूरी है कि होंठों की प्रोपर केयर हो और वो तभी संभव है जब आप स्ट्रोबैरी एैक्सट्रैक्ट वाले लिप बाम का उपयोग करें.

यहां तक कि स्ट्रोबैरी एैक्सट्रैक्ट के फायदों को देखते हुए आजकल बाजार में इस से बने प्रोडक्ट्स की बड़ी रेंज उपलब्ध हैं, जिन का उपयोग कर आप अपने होंठों को ड्राई होने से बचा पाएंगे.

हिमालया स्ट्रोबैरी शाइन लिप केयर

– इस का मौइश्चर फार्मूला आप के होंठों को सौफ्ट रखने का काम करता है.

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Winter Special: सर्दियों में बनाएं यम्मी परांठा, ट्राई करें ये रेसिपी

सर्दियों के मौसम में सादा रोटी से कुछ अलग चटपटा खाने का मन करता है इसके साथ ही इन दिनों  बाजार में भांति भांति की सब्जियां भी भरपूर मात्रा में मिलतीं हैं. इन दिनों में सिंपल दाल रोटी बेस्वाद लगती है वहीं परांठा, पूरी, कचौरी और कुल्चे जैसे तले हुए खाद्य पदार्थ मन को खूब भाते हैं. आमतौर पर परांठे और कुल्चे को पंजाबियों का भोजन माना जाता है परन्तु आजकल तो देश के प्रत्येक कोने में परांठे भी लोकप्रिय हैं. इसी क्रम में हम आज आपको परांठे और कुल्चे बनाना बता रहे हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-तंदूरी कुल्चा

सामग्री   

मैदा                                     1/2 कटोरी

गेंहूं का आटा                          1/2 कटोरी

प्याज                                   2

बारीक कटी हरी मिर्च                2

बारीक कटा हरा धनिया           1/2 कटोरी

साबुत धनिया                           1/2 टीस्पून

जीरा पाउडर                            1/2 टीस्पून

सौंफ पाउडर                            1/2 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर                      1/4 टीस्पून

गरममसाला                             1/4 टीस्पून

तंदूरी मसाला                           1/2 टीस्पून

मक्खन                                   1 टेबलस्पून

नमक                                      स्वादानुसार

कलौंजी                                  1/2 टीस्पून

विधि

प्याज को एकदम बारीक काटकर नमक लगाकर 30 मिनट के लिए छोड़ दें. 30 मिनट बाद हाथ से निचोड़कर सारा पानी निकाल दें. अब सभी मसाले, हरा धनिया और कटी हरी मिर्च मिलाकर भरावन तैयार कर लें.

मैदा, नमक और गेंहूं के आटे को पानी के सहायता से गूंध लें. तैयार आटे में से 2 रोटी के बराबर लोई लेकर हथेली पर कटोरी जैसा फैलाकर तैयार 1 टेबलस्पून भरावन रखकर चारों तरफ से बंद कर दें. अब चकले पर 4-5 दाने कलौंजी के रखें और कुल्चे को अंडाकार शेप में बेल लें. ध्यान रखें कि कुल्चा बहुत हल्के हाथ से बेलें अन्यथा भरावन बाहर निकलने लगेगा. अब तवे पर 2-4 छींटे पानी के डालें और कुल्चे को रोटी की तरह सेंक लें. तैयार कुल्चे को मक्खन लगाकर मनचाही सब्जी के साथ सर्व करें.

– पालक पनीर परांठा

कितने लोगों के लिए                    6

बनने में लगने वाला समय             20 मिनट

मील टाइप                                वेज

सामग्री (परांठे के लिए)

गेंहूं का आटा                            1 कटोरी

मैदा                                        1 टेबलस्पून

पालक प्यूरी                             1/4 कटोरी

अजवाइन                                1/8 टीस्पून

नमक                                      1/4 टीस्पून

तेल                                      आवश्यकतानुसार

सामग्री (भरावन के लिए)

पनीर                                   250 ग्राम

काली मिर्च पाउडर                 1/4 टीस्पून

चाट मसाला                          1/4 टीस्पून

भुना जीरा पाउडर                  1/8 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया          1 टीस्पून

बारीक कटी हरी मिर्च               4

विधि

गेंहूं के आटे में नमक, अजवाइन, मैदा, 1 टीस्पून तेल और पालक प्यूरी मिलाकर रोटी जैसा आटा लगा लें.

पनीर को किस लें और चाट मसाला, भुना जीरा, काली मिर्च, हरा धनिया और हरी मिर्च को अच्छी तरह मिला लें.

तैयार पालक के मिश्रण में से रोटी के बराबर लोई लेकर हथेली पर फैलाएं और 1 टेबलस्पून पनीर का भरावन भरकर चारों तरफ से बंद कर दें. हल्के हाथ से बेलकर गर्म तवे पर डालें और घी या तेल लगाकर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंकें.चटनी या अचार के साथ सर्व करें.

-दही का परांठा

कितने लोगों के लिए               6

बनने में लगने वाला समय          30 मिनट

मील टाइप                             वेज

सामग्री ( परांठे के लिए)

गेहूं का आटा                         1 कप

नमक                                  स्वादानुसार

अजवाइन                            1/4 टीस्पून

सेंकने के लिए तेल अथवा घी     पर्याप्त मात्रा में

सामग्री (स्टफिंग के लिए)

ताजा दही                           500 ग्राम

बारीक कटा प्याज               1

बारीक कटी हरी मिर्च           4

बारीक कटा हरा धनिया          1 टीस्पून

चिली फ्लैक्स                       1/4 टीस्पून

नमक                                 1/4 टीस्पून

चाट मसाला                        1/4 टीस्पून

भुना जीरा पाउडर               1/4 टीस्पून

विधि

दही को मलमल के कपड़े में बांधकर रात भर के लिए छोड़ दें ताकि हंग कर्ड तैयार हो जाये. अब इसमें सभी मसाले, हरा धनिया और हरी मिर्च डालकर भरावन तैयार कर लें.

गेहूं के आटे में नमक, अजवाइन डालकर पानी की सहायता से नरम आटा गूंथ लें. रोटी के बराबर की लोई लेकर 1 टीस्पून भरावन भरें और हल्के हाथ से बेलकर परांठा तैयार कर लें. चिकनाई लगे तवे पर दोनों तरफ से घी लगाकर धीमी आंच पर सेंककर अचार या चटनी के साथ सर्व करें.

Winter Special: सर्दियों में पाना चाहती हैं ड्रैंड्रफ फ्री बाल, तो स्कैल्प पर लगाएं नीम हेयर पैक

नीम की पत्‍तियों का पेस्‍ट उनके लिये अच्‍छा होता है जिनके बालों में रूसी है और बाल तेजी से झड़ रहे होते हैं. आज हम आपको नीम के हेयर पैक बनाना सिखाएंगे जिसके साथ आप मेथी, दही, नींबू और हिना आदि का प्रयोग कर सकती हैं.

बालों के लिये मेथी का पावडर भी काफी अच्‍छा माना जाता है क्‍योंकि यह भी बालों से रूसी हटाता है. आइये देखते हैं बालों से रूसी मिटाने के लिये नीम का प्रयोग किस तहर से हेयर पैक में किया जा सकता है.

नीम और मूंग दाल हेयर पैक  सामग्री

नीम के पत्ते, गुड़हल के फूल, मूंग दाल, मेथी बीज, दही

पेस्‍ट बनाने की विधि

– मूंग की दाल और मेथी के दाने को रात भर के लिये पानी में भिगो दें और दूसरे दिन महीन पेस्‍ट बना लें.

– इस पेस्‍ट को नीम की पत्‍तियों के जूस और गुडहल के पत्‍तों के पेस्‍ट में मिला लें.

–  इस पेस्‍ट को सिर पर लगा लें और 20 मिनट तक सूखने दें, उसके बाद सिर को पानी से धो लें.

इस पेस्‍ट के गुण

– इस पेस्‍ट को लगाने से सिर से रूसी, जुएं खतम हो जाएंगे. तथा रूखे बाल मुलायम बन जाएंगे.

– मूंग दाल की वजह से सिर की रूसी भी खतम होगी और बालों की ग्रोथ भी होगी. मेथी से रूसी का खात्‍मा होगा और दही के प्रयोग से सिर की खुजलाहट खतम होगी.

बालों का झड़ना और रूसी के लिये हेयर पैक

सामग्री

नीम की पत्‍तियां, पानी

पेस्‍ट बनाने की विधि

– सिर पर बैक्‍टीरिया और फंगस होने की वजह से बालों में रूसी बढ़ जाती है.

– मुठ्ठी भर नीम की पत्‍तियां ले कर उसे 2 कप पानी में उबालें और जब पानी का रंग हरा हो जाए तब गैस बंद कर दें.

– आप इस पानी का प्रयोग बालों को शैंपू करने के बाद आखिर में कर सकते हैं. इससे बालों में मजबूती आएगी और रूसी खतम होगी.

नीम हेयर पैक

सामग्री

नीम पावडर और हिना पावडर, दही, चाय की पत्‍ती, कॉफी और नींबू का रस

पेस्‍ट बनाने की विधि

1 कप नीम पावडर और 1 कप हिना पावडर, 1 चम्‍मच दही, आधा कप चाय का पानी, आधा कप कॉफी और 12 चम्‍मच नींबू का रस मिलाएं. आप इसमें थोड़ी सी शहद भी मिक्‍स कर सकते हैं. इस पेस्‍ट को सिर पर लगाएं और 30 मिनट के बाद शैंपू कर लें और ठंडे पानी का ही उपयोग करें.

रिजल्‍ट

यह नीम हेयर पैक बालों के लिये बहुत प्रभावी है. इसे लगाने से बालों की अच्‍छी ग्रोथ होती है और रूसी का सफाया होता है. आप इसे हफ्ते में दो बार प्रयोग कर सकते हैं.

माई बैटर हाफ: शादी का रिश्ता बनाना चाहते हैं मजबूत, तो अपनाएं ये बातें

हमारे रिश्तेनाते हमारा सामर्थ्य होते हैं. इन में पतिपत्नी का रिश्ता एकदूसरे के प्रति विश्वास, प्रेम और अपनेपन पर आधारित होता है. दो अजनबी प्यार में पड़ कर विवाहित होते हैं और फिर एक तरह से उन के बीच एक अटूट प्रेम का रिश्ता पनपने लगता है. इसी से ही आगे चल कर स्नेह, प्रेम और अपनेपन की भावनाओं से रिश्तों का धागा बुना जाता है.

यह अपनापन ही हमारे मन को हमेशा से उमंग देता रहता है और यही अनुभूति पतिपत्नी के रिश्तों में भी होती है. इस रिश्ते में एक मन होता है विश्वास रखने वाला तो दूसरा मन होता है समझने वाला. कई बार पत्नी अपने पति के काम के बारे में, उस की अच्छीबुरी आदतों के बारे में, उस के स्नेहशील नेचर के बारे में बातें करती रहती है. उस का पति के प्रति प्रेम का अभिमान उस के चेहरे से साफ झलकता है, तो कई बार कामयाब पति के पीछे उस की पत्नी दृढ़ निश्चय से खड़ी रहती है. लेकिन क्या एक कामयाब पत्नी के पीछे, उस की सराहना करने के लिए पुरुष वर्ग भी आगे रहता है?

सिर्फ एक स्टैंप नहीं: समीक्षा गुप्ता

हकीकत में एक कामयाब पत्नी का पति होना गर्व की अनुभूति कराता है. ऐसा ही एक अनूठा रिश्ता है ग्वालियर की मेयर समीक्षा गुप्ता और उन के पति राजीव गुप्ता का. बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से इकोनौमिक्स में स्नातक समीक्षा मूलत: मध्य प्रदेश के राजगढ़ की हैं. शादी के बाद उन्होंने कई साल एक घरेलू महिला की तरह बिताए और अपनी भूमिका को अच्छी तरह निभाया. फिर उन की सासूमां ने उन्हें कौरपोरेटर का चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया तो वे कौरपोरेटर हुईं. यहीं से समीक्षा के नए सफर की शुरुआत हुई. लेकिन समीक्षा ने कभी अपनी जिम्मेदारियों को अनदेखा नहीं किया.

चुनाव जीतने के बाद वे एक स्टैंप न रह कर वार्ड में लोगों के रुके हुए कामों व उन की परेशानियों की तरफ ध्यान देने लगीं. ऐसा कर के ही दूसरी पारी में भी वे अपने चुनाव क्षेत्र से जीतीं. इस के बाद ग्वालियर की जनता ने उन्हें मेयर की कुरसी पर बैठाया. एक कौरपोरेटर के तौर पर उन के काम सिर्फ अपने वार्ड तक ही सीमित थे, लेकिन मेयर होते ही पूरे ग्वालियर शहर के विकास के काम धड़ल्ले से करने शुरू कर दिए.

शहर का सौंदर्यीकरण, चौड़े रास्ते, पार्क, रोड, कन्यादान जैसी योजनाओं पर उन्होंने सफलतापूर्वक काम किया. इस दौरान उन्हें लोगों का विरोध भी सहना पड़ा. पति राजीव कहते हैं, ‘‘जब समीक्षा शहर या शहर के लोगों के बारे में कोई निर्णय लेती हैं तब वे सिर्फ एक शहर की मेयर होती हैं. बाहर के काम के बारे में या किसी समस्या के बारे में वे घर पर विचारविमर्श तो करती हैं, लेकिन अंतिम निर्णय खुद ही लेती हैं.

‘‘घर आने के बाद वे 2 बेटियों की प्यारी मां होती हैं, हमारे अम्मां, बाबूजी की बहू होती हैं. हमारा परिवार संयुक्त परिवार है. वे हर एक रिश्ते का मान रखती हैं. आज समीक्षा स्त्री भू्रण हत्या के साथसाथ महिलाओं पर होने वाले अत्याचार पर काम कर रही हैं, इस का मुझे गर्व है.’’

घर की छांव: छाया नागपुरे

एफआरआर फोरेक्स में सीनियर मैनेजर के पद पर आसीन छाया के पति विजय के चेहरे पर अभिमान स्पष्ट रूप से झलकता है. इस परिवार का बेटा यशराज और बेटी ऐश्वर्या के साथ खुद विजय इन सभी की सफलता का संगम छाया के असीम स्नेह की छांव में ही हो सका, ऐसा उन्हें लगता है.

पहली मुलाकात, पहली तकरार, पहला गिफ्ट, सालगिरह आदि बातें आमतौर पर सिर्फ महिलाओं को ही याद रहती हैं, लेकिन विजय ने उन के प्यार को 26 साल किस दिन हुए, यह बात बहुत ही गौरव से बताई.

उन की जिंदगी में छाया के आने के बाद सब अच्छा ही होता गया, ऐसा बताते हैं विजय. उन्होंने बताया कि छाया ने अपनी पढ़ाई बहुत ही प्रतिकूल हालात में पूरी की है. घर में ट्यूशन पढ़ा कर बी.एससी. पूरी की. उस के बाद विजय के अनुरोध पर उन्होंने लेबर स्टडीज विषय पर एम.एस. किया.

पहली ही नौकरी में उन्हें कामगारों द्वारा की गई हड़ताल की समस्या सुलझाने के लिए सिल्व्हासा में भेजा गया. उस वक्त वे अपनी छोटी बेटी और पति को साथ ले कर गई थीं. वहां पर कामगारों ने उन के साथ अच्छा बरताव नहीं किया था. ‘एक औरत हमारी समस्याएं क्या हल करेगी.’ यही भाव उस वक्त उन के चेहरों पर थे. तब छाया ने वहां का माहौल हलका करने के लिए कहा कि मैं अपने पति और बेटी को ले कर आप के शहर आई हूं. आप का शहर कैसा है यह तो दिखाइए. यह कहने के बाद वहां का माहौल हलका हुआ और मालिक और कामगारों के बीच का तनाव कम हुआ.

विजय कहते हैं कि आज भी परिवार के सगेसंबंधी अपनी समस्याएं ले कर छाया के पास आते हैं तब छाया उन्हें ‘मैं जो कहती हूं वह करना ही चाहिए’ न कह कर उस बात के फायदे और नुकसान के विकल्प उन के सामने रखती हैं. इस से अपनी समस्याओं का हल उन्हें वहीं मिल जाता है. कभीकभी सामने वालों से डीलिंग करते वक्त उन्हें कठोर कदम भी उठाना पड़ता है. इस बारे में छाया खुद कहती हैं, ‘‘आखिर मैं ह्यूमन रिसोर्स यानी व्यक्तियों के साथ डील करती हूं. हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता.

संवाद साधने वाली: लीना

लीना प्रकाश सावंत. लीना यानी नम्र. लेकिन नाम में नम्रता होते हुए भी कहां पर नम्र होना है और कहां पर प्रतिकार करना है, इस की जानकार लीना सावंत के पति कंस्ट्रक्शन के बिजनैस में हैं. कौमर्स से स्नातक लीना नौकरीपेशा प्रकाश सावंत के साथ शादी होने के बाद जब गोवा, पूना घूम रही थीं, तो वहां भी वे समय का सदुपयोग करने के लिए छोटीमोटी नौकरी कर रही थीं.

लेकिन प्रकाश ने जब नौकरी छोड़ कर बिजनैस करने का फैसला कर लिया तब लीना ने उन की कल्पनाओं को साकार करने में मदद की और खुद भी बिजनैस में ध्यान देने लगीं. इस के बारे में प्रकाश ने कहा कि सब से पहले हमें वोडाफोन के ग्लो साइन एडवरटाइजमैंट का कौंट्रैक्ट मिला था. तब आर्थिक प्रबंधन व बाकी सभी कामों की जिम्मेदारी लीना ने स्वयं ही अपने कंधों पर ली थी. इंटरनैशनल क्रिएशन नाम की उन की कंपनी ग्लो साइन बोर्ड में टौपर कंपनी है.

आज उन के घर का इंटीरियर हो या बच्चों का कमरा, हर एक चीज उन्होंने अपनी बेहतरीन कल्पना से डिजाइन की है. आज उन का बड़ा बेटा प्रसाद यूएस में शिक्षा ले कर उन के बिजनैस में मदद कर रहा है, तो दूसरा बेटा केदार इकोल मोंडेल जैसे मशहूर स्कूल में पढ़ रहा है. बच्चों की पढ़ाई घर की जिम्मेदारियां संभालते हुए लीना आज बिजनैस में पति की खूब मदद कर रही हैं.

बदलते समय के कदमों को भांप कर 2006 में प्रकाश सावंत ने कंस्ट्रक्शन के कारोबार में कदम रखा तब लीना उन के पीछे खड़ी रहीं. आज भी कारोबार की रूपरेखा तय करते वक्त सब से पहले लीना के सुझाव ध्यान में रखे जाते हैं.

कई बार हंसीमजाक में कहा जाता है कि आप सुखी हैं या शादीशुदा हैं? लेकिन इन पतियों का उन के बैटर हाफ के बारे में झलकता हुआ प्यार, विचार और विश्वास देख कर हम कह सकते हैं कि कामयाब महिलाओं के कारण ही उन का जीवन अधिकतम समृद्ध और खुशहाल हो पाया.

Winter Special: जानें क्या है गले में खराश के कारण

गले में खराश की वजह से दर्द, खुजली, आवाज बैठना और कुछ निगलने में परेशानी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. ऐसा कभीकभी या फिर बारबार हो सकता है और हो सकता है कि यह लंबे समय तक रहे. लंबे समय तक गले में खराश इन्फैक्शन सहित कई कारणों से हो सकती है, इसलिए जरूरी है कि इस के कारणों का पता लगाया जाए.

लंबे समय तक गले में खराश के कारण

एलर्जी: अगर आप को ऐलर्जी हो तो आप का इम्यून सिस्टम कई चीजों के लिए ज्यादा प्रतिक्रिया करता है, ये पदार्थ ऐलर्जन कहलाते हैं.

आमतौर पर कई खा-पदार्थ, कुछ पौधे, पालतू जानवरों के रोएं, धूल और परागकण ऐलर्जन हो सकते हैं. अगर आप को परागकणों,

धूल, सिंथैटिक खुशबू, मोल्ड आदि से ऐलर्जी हो तो गले में खराश की समस्या लंबे समय तक बनी रह सकती है.

हवा से होने वाली ऐलर्जी के लक्षणों में शामिल हैं

– नाक बहना

– खांसी

– छींकें

– आंखों से पानी बहना.

ऐलर्जी की वजह से पोस्टनेसल ड्रिप और साइनस में सूजन गले में ऐलर्जी के कारण हो सकते हैं.

पोस्टनेसल ड्रिप: इस से ब्यूकस साइनस से आप के गले में चला जाता है. इस से गले में लगातार खराश होती रहती है.

ऐसा मौसम में बदलाव, कुछ दवाओं, मसालेदार भोजन, बलगम, ऐलर्जी, हवा में सूखापन आदि की वजह से हो सकता है.

गले में खराश के अलावा पोस्टनेसल ड्रिप के कुछ लक्षण ये हैं:

– सांस में बदबू

– निगलने में परेशानी

– खांसी जो रात में बढ़ जाए

– मतली आना.

मुंह से सांस लेना: जब आप मुंह से सांस लेते हैं, खासतौर पर नींद में, तो इस के कारण गले में खराश हो सकती है. ऐसे में जब आप सुबह सो कर उठते हैं, तो आप को ज्यादा परेशानी होती है, कुछ पीने के बाद आप बेहतर महसूस करते हैं. रात में मुंह से सांस लेने के लक्षण हैं:

– मुंह सूखना

– गले में सूखापन या खुजली महसूस होना

– आवाज बैठना

– सुबह उठने पर थकान और चिड़चिड़ापन

– सांस में बदबू

– आंखों के चारों ओर काले घेरे

– ब्रेन फोंग.

अकसर नाक में किसी तरह की रुकावट के कारण व्यक्ति मुंह से सांस लेता है, जैसे नाक में कंजैक्शन, स्पीप  एप्रिया, ऐडिनौएड्स या टौंसिल्स का बढ़ना.

ऐसिड रिफलक्स: इसे सीने में जलन भी कहा जाता है. ऐसा तब होता है जब लोअर इसोफेगियल स्फिंक्टर कमजोर हो जाए और ठीक से बंद न हो पाए. इस से पेट की सामग्री फिर से लौट कर इसोफेगस में आ जाती है, कभी भी इस तरह का ऐसिड रिफलक्स गले में खराश का कारण बन जाता है. अगर आप को रोजाना ऐसे लक्षण हों तो परेशानी बढ़ सकती है.

समय की साथ, ऐसिड इ??सोफेगस और गले की लाइनिंग को नुकसान पहुंचने लगता है. इस रिफलक्स के कुछ लक्षण हैं:

– गले में खराश

– सीने में जलन

– मुंह में खटास

– सीने में जलन और पेट में असहज महसूस करना

– निगलने में परेशानी.

टौंसिलाइटिस: अगर आप को लंबे समय तक खराश रहती है और आराम नहीं मिलता तो हो सकता है कि आप को टौंसिलाइटिस हो. अकसर टौंसिलाइटिस बच्चों में पाया जाता है, लेकिन बड़ी उम्र के लोग भी इस का शिकार हो सकते हैं. टौंसिलाइटिस बैक्टीरिया या वायरस के संक्रमण से हो सकता है.

टौंसिलाइटिस साल में कई बार हो सकता है, कई बार इस के इलाज के लिए ऐंटीबायोटिक दवाओं की जरूरत होती है. टौंसिलाइटिस कई प्रकार का हो सकता है. इस के लक्षणों में शामिल हैं:

– निगलने में परेशानी और दर्द

– आवाज बैठना

– गले में खराश

– गले में अकड़न

– लिंफ नोड्स में सूजन के कारण जबड़े और गले में परेशानी

– टौंसिल्स पर सफेद या पीले धब्बे

– सांस में बदबू

– बुखार

– ठंड लगना

– सिर में दर्द.

मोनो: गले में खराश और टौंसिलाइटिस का एक और कारण है मोनोन्युक्लियोसिस, जो एपस्टीन बार वायरस के कारण होता है. मोनो 2 महीने तक चल सकता है. ज्यादातर मामलों में इस के लक्षण हलके होते हैं, थोड़े से इलाज से इसे ठीक किया जा सकता है. मोनो के लक्षण फ्लू जैसे दिखाई देते हैं. इस के लक्षण हैं:

– गले में खराश

– टौंसिल्स में सूजन

– बुखार

– बगल और गरदन की ग्रंथियों में सूजन

– सिर में दर्द

– थकान

– मांसपेशियों में कमजोरी

– रात में पसीना आना.

मोनो से पीडि़त व्यक्ति संक्रमण के दौरान गले में खराश महसूस कर सकता है.

गोनोरिया: यह यौनसंचारी रोग है, जो बैक्टीरिया नीसेरिया गोनोरिया के कारण होता है. हो सकता है कि आप सोचें यौनसंचारी रोगों का असर सिर्फ आप के यौनांगों पर ही पड़ता है, किंतु असुरक्षित ओरल सैक्स के कारण गले में गोनोरिया इन्फैक्शन हो सकता है. ऐसे मामलों में गले में खराश और लालगी हो सकती है.

टौंसिल ऐब्सैस: पेरिटौंसिलर एब्सैस, टौंसिल्स में होने वाला गंभीर बैक्टीरियल इन्फैक्शन है, जो गले में खराश का कारण बन सकता है. अगर टौंसिलाइटिस का ठीक से इलाज न किया जाए तो ऐसा हो सकता है. टौंसिल्स के आसपास इन्फैक्शन होने से कई बार मवाद बन जाता है और इन्फैक्शन आसपास के टिशूज में भी फैल जाता है.

आप गले के पिछले हिस्से में एब्सैस देख सकते हैं. लेकिन हो सकता है कि यह आप के टौंसिल्स के पीछे छिपा हो. इस के लक्षण आमतौर पर टौंसिलाइटिस जैसे होते हैं, लेकिन ज्यादा गंभीर हो सकते हैं. इन में शामिल हैं:

– गले में खराश, आमतौर पर एक साइड में ज्यादा

– गले और जबड़े में ग्रंथियों में सूजन

– खराश वाली साइड पर कान में दर्द

– 1 या दोनों टौंसिल्स में इन्फैक्शन

– मुंह को पूरा खोलने में परेशानी

– निगलने में परेशानी

– लार निगलने में परेशानी

– चेहरे या गरदन में सूजन

– सिर घुमाने या ऊपरनीचे करने में परेशानी

– सिर में दर्द

– आवाज में घरघराहट

– बुखार आना और ठंड लगना

– सांस में बदबू.

धूम्रपान: धूम्रपान या सैकंडहैंड स्मोक गले में खराश का कारण बन सकता है. यह अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, ऐंफाइसेमा को गंभीर बना सकता है. हलके मामलों में सिगरेट के धुएं के संपर्क में रहने से गले में खराश हो सकती है. धूम्रपान कैंसर और गले में दर्द का कारण भी बन सकता है.

-डा. सुधा कंसल

रैसपिरेटरी स्पैश्यलिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल, दिल्ली.    

Saras Salil Cine Award: फिल्मों के हिट होने का बदल चुका है पैमाना- पल्लवी गिरि

कभी मांसल बदन वाली हीरोइनों के लिए पहचानी जाने वाली भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में अब छरहरे बदन की हीरोइनों का बोलबाला है. इन छरहरे बदन वाली हीरोइनों को दर्शक खूब प्यार भी दे रहे हैं. इसी में एक नाम है भोजपुरी हीरोइन पल्लवी गिरि का, जिन्हें हाल ही में आयोजित हुए ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ शो में बैस्ट अलबम ऐक्ट्रैस अवार्ड से नवाजा गया है.

Saras salil awards

पल्लवी गिरि भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की उन गिनीचुनी हीरोइनों में शुमार हैं, जो फिल्मों के साथसाथ भोजपुरी अलबम में भी खूब पसंद की जाती हैं. यही वजह है कि वे अकसर बड़े ऐक्टरों के साथ बनने वाले अलबम में स्क्रीन शेयर करती हुई नजर आती हैं.

‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड’ शो में शिरकत करने आईं पल्लवी गिरि से उन के फिल्मी कैरियर को ले कर ढेर सारी बातें हुईं. पेश हैं, उसी के खास अंश :

आप के फिल्मी कैरियर पर बात करें, उस से पहले अपने खूबसरत बदन और फिट रहने का राज बताएं?

मेरे खूबसूरत बदन और फिट रहने का राज यह है कि मैं खुद को तनाव से दूर रखने की कोशिश करती हूं. मैं खुद पर स्ट्रैस को हावी नहीं होने देती हूं, क्योंकि आप की बौडी जितनी ऐक्टिव रहेगी, उतने ही आप चुस्त और दुरूस्त रहेंगे.

इस के अलावा सुबह उठने के बाद मैं सब से पहले पानी पीने पीती हूं.
इस के अलावा कार्डियो ऐक्सरसाइज, डांस, साइकिलिंग और रनिंग मेरे डेली रूटीन का हिस्सा है. डाइट में ढेर सारी हरी सब्जियां, फल और अंकुरित अनाज लेने के साथ ही नाश्ते में बादाम और अखरोट भी लेती हूं.

आप के फिल्मों की तरफ कदम कैसे बढे?

मुझे बचपन से ही डांसिंग और ऐक्टिंग का खूब शौक था, तो पहले मैं ने डांस इंस्टिट्यूट खोला और बच्चों को डांस सिखाने लगी. इस के बाद मैं ने मौडलिंग करना भी शुरू कर दिया था. चूंकि मेरे बदन की बनावट ही ऐसी थी की लोग मुझे हीरोइन और मौडल कह कर बुलाते थे, इसलिए मैं ने मौडलिंग की दुनिया में भी कदम बढ़ा दिया और इसी दौरान दौरान ‘मिस दिल्ली’ का खिताब भी जीता.

मेरे इस कामयाबी ने फिल्म मेकरों ध्यान मेरी तरफ खींचा और मुझे भोजपुरी फिल्मों के औफर आने लगे. मुझे भी लगा कि अच्छा मौका है और मैं ने फिल्मों में ऐक्टिंग की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए.

आप दर्जनों फिल्मों में अलगअलग किरदार निभा चुकी हैं फिर आप को बैस्ट अलबम ऐक्ट्रैस का अवार्ड क्यों मिला?

-यह तो फिल्म अवार्ड से जुड़ी जूरी तय करती है कि कौन बैस्ट ऐक्ट्रैस होगा और कौन बैस्ट अलबम ऐक्ट्रैस. मैं ने अपना नौमिनेशन ही बैस्ट अलबम ऐक्ट्रैस कैटेगरी के लिए किया था, क्योंकि मेरे कई अलबम ऐसे हैं, जिन्हें फिल्मों से ज्यादा प्यार मिला है. बैस्ट ऐक्ट्रैस के लिए मेरी पूरी फिल्मी लाइफ पड़ी है. मुझे जब लगेगा कि मुझे अब बैस्ट फिल्म ऐक्ट्रैस के लिए नौमिनेशन करना चाहिए, तो मैं नौमिनेशन भेजूंगी.

कागज पर शब्दों में लिखी कहानियों को पढ़ कर उसे खुद में ढाल कर ऐक्टिंग करना कितना मुश्किल है?

-आप ने सही कहा कि अगर हम फिल्म की कथा, पटकथा और संवाद को कागज में पढ़े शब्दों के जरीए पढ़ें तो उस में इमोशंस नहीं जुड़े होते हैं. लेकिन जब उसी कागज पर लिखे शब्दों को हमें संवाद के रूप में बोलते हुए ऐक्टिंग के जरीए दिखाना हो, तो वह चरित्र जिंदा हो जाता है, जिस का किरदार हम निभा रहे हैं.

ऐक्टरों का बड़ा बिजी शैड्यूल होता है. ऐसे में वे खुद को भी समय नहीं दे पाते हैं. ऐसे में क्या ऐक्टर की भी सैल्फ लाइफ होती है?

आम लोगों की तरह ऐक्टरों की भी सैल्फ लाइफ होती है, लेकिन फिल्में उन्हें छीन लेती हैं. अगर आप एक कामयाब कलाकार हैं, तो फिल्मों की मसरूफियत आप की सैल्फ लाइफ छीन लेती है, इसीलिए मैं खुद और परिवार को समय देने के लिए बीच में थोड़े दिनों का ब्रेक जरूर लेती हूं.

आप यह कैसे तय करती हैं कि जिस फिल्म या अलबम में काम कर रही हैं, वह हिट ही होगा?

आज के दौर में फिल्मों के हिट होने का पैमाना बदल चुका है, क्योंकि बीते सालों में सामान्य से विषयों पर बनने वाली फिल्में भी हिट रहीं और कमाई का रिकौर्ड तोड़ा, इसलिए हम यह तय नहीं कर सकते हैं कि दर्शक किन फिल्मों को पसंद करेंगे और किसे नकार देंगे.

आप ने सैकड़ों अलबम और दर्जनों फिल्मों में काम किया है. आप को अलबम के लिए अवार्ड मिला है. आप के सब से करीब कौन सा अलबम है?

मेरे सारे अलबम सुपरहिट रहे हैं, फिर भी रितेश पांडेय के साथ आया अलबम ‘आज जेल होई काल्ह बेल होई ने’ कामयाबी के सारे रिकौर्ड तोड़े और उसे 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने देखा. पवन सिंह के साथ ‘मजनुआ पिटाता’ तकरीबन 8 करोड़ लोगों ने देखा. इस के अलावा अंकुश राजा के साथ ‘हम के दुल्हिन बनालस’ हिट रहा.

आप की और विमल पांडेय की जोड़ी खूब पसंद की जा रही है. इस के पीछे कहीं प्यार और रोमांस का चक्कर तो नहीं है?

फिल्मों में ऐक्टर और ऐक्ट्रैस एकसाथ ज्यादा काम करें या एकसाथ दिखें, तो इस का मतलब यह नहीं हैं कि दोनों में प्यार और रोमांस का चक्कर ही होगा. इस के पीछे की एक वजह यह भी होता है कि इन जोड़ियों को दर्शक ज्यादा प्यार करते हैं और पसंद करते हैं, इसीलिए फिल्म बनाने वाले कुछ खास जोड़ियों के साथ फिल्में ज्यादा बनाते हैं. दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ और आम्रपाली दुबे, खेसारी और मेघाश्री, देव सिंह और अंजना सिंह, कल्लू और यामिनी जैसी तमाम जोड़ियां रही हैं, जिन्हें हम साथ देखते रहे हैं. इन सब की जोड़ियां केवल फिल्मों तक सीमित हैं. और हां, ऐक्ट्रैस को छोड़ दें, तो इन में से सभी ऐक्टर शादीशुदा भी हैं.

मेरी और विमल की जोड़ी भी केवल फिल्मी जोड़ी ही है. अभी मैं केवल फिल्मों पर फोकस कर रही हूं, इसीलिए मै सभी से गुजारिश करूंगी कि बेसिरपैर की बातों पर ध्यान न दें.

प्यार का प्रतिदान: मेघा की सच्चाई जाने के बाद श्री ने उसे अपना पाया

‘‘ओह श्री, अभी तक उठे भी नहीं. वी आर रियली गैटिंग लेट भाई,’’ अपनी प्यार भरी नजरों से देखते हुए मेघा ने अपने पति श्री को   झक  झोर कर उठाते हुए कहा.

प्रत्युत्तर में श्री ने उसे खींच अपनी बांहों में भर लिया तो वह निहाल हो उठी. प्रगाढ़ बंधन में बंधने को उस का आतुर मन स्वतंत्र होने की असफल चेष्टा करता रहा. उस के भीगे बालों में अटके पानी के बूंद मोती बन कर श्री पर बिखर रहे थे.

श्री के आगोश में सिमटी 31 वर्षीय मेघा किसी नवयौवना की तरह सिहर उठी थी और उस का मन यह कह रहा था कि युगों तक श्री के आगोश में वह यों ही बंधी रहे. श्री की परिणीता बने मेघा को मात्र 4 हफ्ते ही हुए थे पर उस का तृषित तनमन अभी तक प्यासा सावन ही था.

अपने शुष्क सूने जीवन में श्री के आगमन के पूर्व जलते रेगिस्तान में नंगे पैर वह अकेली दौड़ ही तो रही थी. चारों ओर फैली खामोशियां एवं वर्षों की तनहाइयों से जू  झती वह टूट कर बिखरने के कगार पर थी कि श्री की सबल बांहों ने उसे थाम लिया था. 10 साल पहले सड़क दुर्घटना में अपने मम्मीपापा को खोने के बाद वह जब इंडिया से न्यूयौर्क गई उस के बाद फिर कभी वहां जा भी कहां पाई थी. श्री से वह शादी कर रही है बस इस की सूचना उस ने अपने मामा को दे दी थी.

उन के लाख कहने पर भी उस ने वहां पर जा कर शादी करने से साफ इनकार कर दिया था. शादी वाले दिन अपने गिनती के दोस्तों के साथ वह शादी के लिए प्रस्थान करने ही वाली थी कि नाना प्रकार के ताम  झाम के साथ उस के मामा इंडिया से भागते आए, तो मम्मीपापा को याद कर उस की आंखें बरस पड़ी थीं. फिर शादी की सारी रस्मों को उन्होंने सहर्ष निभाया और जाते समय इंडिया की सारी प्रौपर्टी को बेच कर जो ऐक्सचेंज लाए थे वह श्री के इनकार करने के बावजूद भी उसे आशीर्वाद के रूप में दे गए.

हनीमून के लिए वे स्विट्जरलैंड गए थे और वहां से आने के आज हफ्ता भर बाद भी उन के प्यार का खुमार अभी तक उतरा नहीं थी. हफ्ता भर घर में ही बिताने के बाद आज न्यूयौर्क घूमने का प्रोग्राम बना था, लेकिन श्री थे कि बिस्तर से उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ऐसे पलों की मदहोशी के एहसासों से वह कितनी अनजान थी. घनेरे बादलों से घिरी अंधेरी रात बने उस के जीवन में श्री बिजली की कौंध बन कर उभरा था तो अपने सुख पर वह इतरा उठी थी.

श्री के प्यार ने पूर्णचंद्र बन कर अपनी चांदनी को उस पर बिखेरा क्या कि वह समंदर बन कर उस की ओर उमड़ पड़ी. आज तक उस के जीवन में जो भी उसे प्यारा लगा वह उस से छिनता ही तो रहा था. बचपन में अपने से 8 साल छोटे भाई को नन्ही मां बन कर संभाला तो 1 दिन की बीमारी में वह साथ छोड़ गया. उस का नन्हा सा मन कितना टूटा था. मम्मीपापा के साथ इस आघात को भूलने में उसे वर्षों लगे थे. मम्मीपापा के जीने का वही आसरा बनी थी.

मेघा छलकता रूप ले कर तो पैदा हुई ही थी, समय के साथ खेलखेल में ही जब वह फिजिक्स और मैथ्स के कठिन प्रश्नों को हल करने लगी तो उस की अद्भुत प्रतिभा को देख सभी दंग रह गए. स्कूल के सारे पिछले रिकौर्ड को तोड़ते हुए इंजीनियरिंग में प्रथम स्थान ले कर आईआईटी, कानपुर गई तो मम्मीपापा की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. जिस स्थान पर आज तक लड़के ही विराजते रहे, उस पर अपना अधिपत्य जमा कर उस ने सारे देश को चौंका दिया था. महीनों बधाइयों का सिलसिला जारी रहा. आईआईटी, कानपुर से निकलने के पहले ही स्कूल औफ बिजनैस, हार्वर्ड में उस का ऐडमिशन हो गया था.

इन 6 सालों में न जाने कितनों ने उस की राहों में आंखें बिछाईं, उसे थामने को न जाने कितने हाथ बढ़े पर वह अपनी तपस्या में लगी रही. हार्वर्ड से निकलने के पूर्व ही दुनिया की एक नामी कंपनी ने बहुत ऊंचे पोस्ट पर उस की नियुक्ति करते हुए उस के वीजा आदि का हाथोंहाथ प्रबंध कर दिया. उस के जौइन करने के बाद उस के मम्मीपापा उस के पास आने वाले थे कि रोड दुर्घटना में उन दोनों की असमय मौत की सूचना जैसे बिजली बन कर उस पर गिरी. उन के अंतिम संस्कार कर के वह लौट तो आई, लेकिन मृतवत हो कर.

उस विक्षिप्तावस्था में देव का उस के जीवन में आना किसी चमत्कार से कम नहीं था.

वह उस की बांहों में सिमट कर मम्मीपापा की मृत्यु की असहनीय वेदना को भूलने की कोशिश करती रही और देव हर प्रतिकूल परिस्थिति में उसे संभालता रहा. कितना टूट कर प्यार किया था दोनों ने एकदूसरे को. वे एक तरह से 2 तन 1 मन हो गए थे. जब कभी बीच की दूरियों को   झेलने में दोनों असमर्थ हो जाते थे, तो ‘चलो, आज ही शादी कर लेते हैं,’ देव का ऐसा कहना उस के तनमन को सिहरा कर रख देता था. लेकिन उसे क्या पता था कि इस बार भी कुदरत अपनी कुटिल चाल से उस के अर्धनिर्मित घरौंदे को तहसनहस करने को तैयार बैठी हुई है. उस के लिए तो कोई बंधन नहीं था.

देव के परिवार की सहमति के लिए ही देव की इच्छा को वह ठुकराती रही थी. उन्हें बताने ही तो वह इंडिया में अपने शहर विशाखापट्टनम में गया था. लेकिन जब वह लौटा नहीं तो वह हडसन नदी में कूद कर जान देने को तैयार हो गई. वह तो पुलिस की नजरों में आ जाने के कारण बच गई थी और लुटीपिटी लौट आई थी. दरअसल, बहुत विषम परिस्थिति में पड़ कर देव को बहुत मजबूर हो कर अपनी एक रिलेटिव की बेटी से शादी करनी पड़ी थी.

वह अपने ही किसी रिश्तेदार के बलात्कार की शिकार हो कर प्रैगनैंट हो गई थी और समय ज्यादा हो जाने के कारण उस का गर्भपात भी नहीं करवाया जा सकता था. समाज के डर से जब मांबेटी दोनों जान देने को अड़ गईं तो देव की मां ने उन दोनों की जान बचाने के लिए देव के समक्ष अपना आंचल फैला दिया था. तब तो देव को उस से ब्याह करना ही पड़ा था. उसे खो कर देव भी कहां जीवित रह गया था? उस से सामना न हो जाए इस कारण वह यहां आया भी नहीं. न्यूयौर्क छोड़ने की सारी औपचारिकताओं को इंडिया से ही निभाया और वहीं से विगत को भुला कर उसे जीने की शक्ति दे कर नई दुनिया बसाने का आग्रह करता रहा.

श्री का प्यार शीतल   झोंका बन कर उस के तपते जीवन में आया, तो मेघा ने सब कुछ भूलते हुए श्री के प्यार को समेट लिया. उस के इरादे मजबूद करने में देव का अद्भुद योगदान रहा. लेकिन श्री भी उस से छिन न जाए उस की कल्पना कर ही वह कांप उठती थी.

अतीत के  झरोखे खुल कर उसे और संतप्त करते, उस के पहले ही श्री उसे बांहों में लिए उठ खड़ा हुआ और   झटपट तैयार हो कर वे दोनों एकदूसरे का हाथ थामे निकल गए. आज न्यूयौर्क में घूमने का उन दोनों का दिन भर का प्रोग्राम था. यों तो न्यूयौर्क उस के लिए कोई नया शहर नहीं था. उस के चप्पेचप्पे को वह देव के साथ रौंद चुकी थी. पर आज श्री के साथ इस जादुई नगरी का लुत्फ उठाने की बात कुछ और थी. एकदूसरे में समाए वे हडसन नदी के किनारे चलते रहे फिर वहां से आगे बढ़ कर खुली बस में सवार हो कर घूमने के लिए निकल पड़े. मेघा का मन प्रसन्न हो कर जैसे किशोरावस्था में प्रवेश कर गया था. सारे दर्शनीय स्थल उसे आज अनूठे आनंद की अनुभूति दे रहे थे. श्री भी अपनी नवपरिणीता के इस नए रूप पर मुग्ध था. मेघा को एक पल के लिए भी वह अपनी नजरों से ओ  झल होने नहीं दे रहा था. उसे अपनी बांहों में ही लिए वह घूमता रहा.

सारे दिन घूमघाम कर जब वे बस से उतरे तो शाम का रेशमी अंधेरा रोशनी में नहा रहा था. वहां आइम स्क्वायर में थोड़ी देर इधरउधर घूमने के बाद डिनर के लिए उत्सव रैस्तरां की ओर जा ही रहे थे कि मेघा का बोस्टन का सहपाठी जौर्ज उस से टकरा गया, जिस के चंद बोल उस की खुशियों पर उल्कापात ही कर गए, ‘‘हाय हनी, व्हेयर इज देव?’’ फिर श्री की ओर देखते हुए मुसकराते हुए पूछा, ‘‘न्यू फ्रैंड?’’ वह आगे और कुछ कहता कि उस के पहले वह बोल पड़ी, ‘‘मीट माई हसबैंड श्री,’’ और जौर्ज को हत्प्रभ छोड़ कर श्री का हाथ थामे वह आगे बढ़ गई.

लेकिन श्री को अनमना सा देख उस का दिन भर का उत्साह जाता रहा. रैस्तरां में पहुंचने के बाद भी वह उदासियों के कुहरे में लिपटा रहा. सारा खाना श्री के पसंद का था, लेकिन खाने में उस से कोई दिलचस्पी नहीं थी. खोयाखोया सा वह थिएटर से निकलते लोगों को निहारता रहा तो मेघा किसी दावानाल में घिरी हिरणी सी तड़प उठी. रैस्तरां से निकलने के बाद वह श्री का हाथ थामे फव्वारे के पास बने पत्थर के चबूतरे पर जा कर बैठ गई और अपने और देव के बीच के रिश्ते की सारी सचाई उसे बता गई.

उस ने यह भी कहा कि इस सत्य के साथ अगर वह उसे स्वीकार्य है तो ठीक वरना उस के सारे बंधनों से वह आजाद है.

इस पर श्री की कोई प्रतिक्रिया न देख कर, ‘‘संशय की नींव पर खड़ी रिश्ते की यह इमारत मु  झे किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं,’’ वह बोली,   झटके के साथ उठी और दृढ़ कदमों से चलती हुई सड़क के किनारे की भीड़ में खो

गई. आज श्री उस के जीवन के कटु पर मधुर सत्य से अवगत हो चुका था. जिसे कितनी बार हिम्मत कर के उस ने उस से कहना चाहा था, लेकिन उसे खो देने के डर से वह चुप्पी साधे रही. लेकिन आज तक वह उस के कारण घुटती रही थी.

अब श्री उस के अतीत से अवगत हो चुका था जिस का पछतावा उसे रंचमात्र भी नहीं था. मेघा का मन सब तरह से हलका हो चुका था. इधरउधर घूमते हुए वह रौक फेलर सैंटर में जा कर पत्थर से बनी उसी बैंच पर जा कर अपने घुटनों में सिर छिपा कर बैठ गई जहां वह अकसर देव के साथ बैठा करती थी. यह और बात थी कि आज उस की पीठ पर देव का हाथ नहीं था. फिर भी न होते हुए भी देव की मौजूदगी को वह महसूस कर रही थी, लेकिन उस के आंसू भी लगातार बहे जा रहे थे.

अचानक अपनी पीठ पर किसी का स्पर्श पा कर उस ने सिर उठाया तो श्री को अपने बगल में बैठा देख अकचका गई, ‘‘क्यों मु  झे छोड़ कर यों अकेली चली आईं? देव ने ही तो मु  झे बाध्य कर तुम्हारे पास भेजा था. मैं तुम दोनों के रिश्ते की सचाई से अच्छी तरह वाकिफ हूं लेकिन उस से मु  झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मु  झे तो उस ने तुम सी जीवन संगिनी दे कर निहाल कर दिया, पर उसे क्या मिला? यही सोच कर मैं दुखी हो गया था और तुम ने कुछ और ही समझ लिया मेघा.

देव के समक्ष मेरा अस्तित्व कुछ भी नहीं. अरे तुम्हारे प्रति उस के निश्छल प्यार का प्रतिदान बन कर ही तो मैं तुम्हारे जीवन में आया हूं. अगले महीने ही हम देव से मिलने इंडिया जाएंगे. तब कितना चकित एवं खुश होगा वह हम दोनों को अचानक आया देख कर,’’ कहते हुए मेघा के आंसुओं को अपनी हथेलियों में समेटते हुए श्री ने उसे अपनी बांहों में बांध लिया तो मेघा भी रुक नहीं सकी और अपने सारे गिलेशिकवे को भूल वह उस की बांहों में समा गई.

अंतहीन: एक अफवाह कैसे तनु को दुखी कर गई

रामदयाल क्लब के लिए निकल ही रहे थे कि फोन की घंटी बजी. उन के फोन पर ‘हेलो’ कहते ही दूसरी ओर से एक महिला स्वर ने पूछा, ‘‘आप गुंजन के पापा बोल रहे हैं न, फौरन मैत्री अस्पताल के आपात- कालीन विभाग में पहुंचिए. गुंजन गंभीर रूप से घायल हो गया है और वहां भरती है.’’

इस से पहले कि रामदयाल कुछ बोल पाते फोन कट गया. वे जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचना चाह रहे थे पर उन्हें यह शंका भी थी कि कोई बेवकूफ न बना रहा हो क्योंकि गुंजन तो इस समय आफिस में जरूरी मीटिंग में व्यस्त रहता है और मीटिंग में बैठा व्यक्ति भला कैसे घायल हो सकता है?

गुंजन के पास मोबाइल था, उस ने नंबर भी दिया था मगर मालूम नहीं उन्होंने कहां लिखा था. उन्हें इन नई चीजों में दिलचस्पी भी नहीं थी… तभी फिर फोन की घंटी बजी. इस बार गुंजन के दोस्त राघव का फोन था.

‘‘अंकल, आप अभी तक घर पर ही हैं…जल्दी अस्पताल पहुंचिए…पूछताछ का समय नहीं है अंकल…बस, आ जाइए,’’ इतना कह कर उस ने भी फोन रख दिया.

ड्राइवर गाड़ी के पास खड़ा रामदयाल का इंतजार कर रहा था. उन्होंने उसे मैत्री अस्पताल चलने को कहा. अस्पताल के गेट के बाहर ही राघव खड़ा था, उस ने हाथ दे कर गाड़ी रुकवाई और ड्राइवर की साथ वाली सीट पर बैठते हुए बोला, ‘‘सामने जा रही एंबुलैंस के पीछे चलो.’’

‘‘एम्बुलैंस कहां जा रही है?’’ रामदयाल ने पूछा.

‘‘ग्लोबल केयर अस्पताल,’’ राघव ने बताया, ‘‘मैत्री वालों ने गुंजन की सांसें चालू तो कर दी हैं पर उन्हें बरकरार रखने के साधन और उपकरण केवल ग्लोबल वालों के पास ही हैं.’’

‘‘गुंजन घायल कैसे हुआ राघव?’’ रामदयाल ने भर्राए स्वर में पूछा.

‘‘नेहरू प्लैनेटोरियम में किसी ने बम होने की अफवाह उड़ा दी और लोग हड़बड़ा कर एकदूसरे को रौंदते हुए बाहर भागे. इसी हड़कंप में गुंजन कुचला गया.’’

‘‘गुंजन नेहरू प्लैनेटोरियम में क्या कर रहा था?’’ रामदयाल ने हैरानी से पूछा.

‘‘गुंजन तो रोज की तरह प्लैनेटोरियम वाली पहाड़ी पर टहल रहा था…’’

‘‘क्या कह रहे हो राघव? गुंजन रोज नेहरू प्लैनेटोरियम की पहाड़ी पर टहलने जाता था?’’

अब चौंकने की बारी राघव की थी इस से पहले कि वह कुछ बोलता, उस का मोबाइल बजने लगा.

‘‘हां तनु… मैं गुंजन के पापा की गाड़ी में तुम्हारे पीछेपीछे आ रहा हूं…तुम गुंजन के साथ मेडिकल विंग में जाओ, काउंटर पर पैसे जमा करवा कर मैं भी वहीं आता हूं,’’ राघव रामदयाल की ओर मुड़ा, ‘‘अंकल, आप के पास क्रेडिट कार्ड तो है न?’’

‘‘है, चंद हजार नकद भी हैं…’’

‘‘चंद हजार नकद से कुछ नहीं होगा अंकल,’’ राघव ने बात काटी, ‘‘काउंटर पर कम से कम 25 हजार तो अभी जमा करवाने पड़ेंगे, फिर और न जाने कितना मांगें.’’

‘‘परवा नहीं, मेरा बेटा ठीक कर दें, बस. मेरे पास एटीएम कार्ड भी है, जरूरत पड़ी तो घर से चेकबुक भी ले आऊंगा,’’ रामदयाल राघव को आश्वस्त करते हुए बोले.

ग्लोबल केयर अस्पताल आ गया था, एंबुलैंस को तो सीधे अंदर जाने दिया गया लेकिन उन की गाड़ी को दूसरी ओर पार्किंग में जाने को कहा.

‘‘हमें यहीं उतार दो, ड्राइवर,’’ राघव बोला.

दोनों भागते हुए एंबुलैंस के पीछे गए लेकिन रामदयाल को केवल स्ट्रेचर पर पड़े गुंजन के बाल और मुंह पर लगा आक्सीजन मास्क ही दिखाई दिया. राघव उन्हें काउंटर पर पैसा जमा कराने के लिए ले गया और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों इमरजेंसी वार्ड की ओर चले गए.

इमरजेंसी के बाहर एक युवती डाक्टर से बात कर रही थी. राघव और रामदयाल को देख कर उस ने डाक्टर से कहा, ‘‘गुंजन के पापा आ गए हैं, बे्रन सर्जरी के बारे में यही निर्णय लेंगे.’’

डाक्टर ने बताया कि गुंजन का बे्रन स्कैनिंग हो रहा है मगर उस की हालत से लगता है उस के सिर में अंदरूनी चोट आने की वजह से खून जम गया है और आपरेशन कर के ही गांठें निकालनी पड़ेंगी. मुश्किल आपरेशन है, जानलेवा भी हो सकता है और मरीज उम्र भर के लिए सोचनेसमझने और बोलने की शक्ति भी खो सकता है. जब तक स्कैनिंग की रिपोर्ट आती है तब तक आप लोग निर्णय ले लीजिए.

यह कह कर और आश्वासन में युवती का कंधा दबा कर वह अधेड़ डाक्टर चला गया. रामदयाल ने युवती की ओर देखा, सुंदर स्मार्ट लड़की थी. उस के महंगे सूट पर कई जगह खून और कीचड़ के धब्बे थे, चेहरा और दोनों हाथ छिले हुए थे, आंखें लाल और आंसुओं से भरी हुई थीं. तभी कुछ युवक और युवतियां बौखलाए हुए से आए. युवकों को रामदयाल पहचानते थे, गुंजन के सहकर्मी थे. उन में से एक प्रभव तो कल रात ही घर पर आया था और उन्होंने उसे आग्रह कर के खाने के लिए रोका था. लेकिन प्रभव उन्हें अनदेखा कर के युवती की ओर बढ़ गया.

‘‘यह सब कैसे हुआ, तनु?’’

‘‘मैं और गुंजन सूर्यास्त देख कर पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे कि अचानक चीखतेचिल्लाते लोग ‘भागो, बम फटने वाला है’ हमें धक्का देते हुए नीचे भागे. मैं किनारे की ओर थी सो रेलिंग पर जा कर गिरी लेकिन गुंजन को भीड़ की ठोकरों ने नीचे ढकेल दिया. उसे लुढ़कता देख कर मैं रेलिंग के सहारे नीचे भागी. एक सज्जन ने, जो हमारे साथ सूर्यास्त देख कर हम से आगे नीचे उतर रहे थे, गुंजन को देख लिया और लपक कर किसी तरह उस को भीड़ से बाहर खींचा. तब तक गुंजन बेहोश हो चुका था. उन्हीं सज्जन ने हम लोगों को अपनी गाड़ी में मैत्री अस्पताल पहुंचाया.’’

‘‘गुंजन की गाड़ी तो आफिस में खड़ी है, तेरी गाड़ी कहां है?’’ एक युवती ने पूछा.

‘‘प्लैनेटोरियम की पार्किंग में…’’

‘‘उसे वहां से तुरंत ले आ तनु, लावारिस गाड़ी समझ कर पुलिस जब्त कर सकती है,’’ एक युवक बोला.

‘‘अफवाह थी सो गाड़ी तो खैर जब्त नहीं होगी, फिर भी प्लैनेटोरियम बंद होने से पहले तो वहां से लानी ही पड़ेगी,’’ राघव ने कहा.

‘‘मैत्री से गुंजन का कोट भी लेना है, उस में उस का पर्स, मोबाइल आदि सब हैं मगर मैं कैसे जाऊं?’’ तनु ने असहाय भाव से कहा, ‘‘तुम्हीं लोग ले आओ न, प्लीज.’’

‘‘लेकिन हमें तो कोई गुंजन का सामान नहीं देगा और हो सकता है गाड़ी के बारे में भी कुछ पूछताछ हो,’’ प्रभव ने कहा, ‘‘तुम्हें भी साथ चलना पड़ेगा, तनु.’’

‘‘गुंजन को इस हाल में छोड़ कर?’’ तनु ने आहत स्वर में पूछा.

‘‘गुंजन को तुम ने सही हाथों में सौंप दिया है तनु और फिलहाल सिवा डाक्टरों के उस के लिए कोई और कुछ नहीं कर सकता. तुम्हारी परेशानी और न बढ़े इसलिए तुम गुंजन का सामान और अपनी गाड़ी लेने में देर मत करो,’’ राघव ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं दोनों काम कर के 15-20 मिनट में आ जाऊंगी.’’

‘‘यहां आ कर क्या करोगी तनु? न तो तुम अभी गुंजन से मिल सकती हो और न उस के इलाज के बारे में कोई निर्णय ले सकती हो. अपनी चोटों पर भी दवा लगवा कर तुम घर जा कर आराम करो,’’ राघव ने कहा, ‘‘यहां मैं और प्रभव हैं ही. रजत, तू इन लड़कियों के साथ चला जा और सीमा, मिन्नी तुम में से कोई आज रात तनु के साथ रह लो न.’’

‘‘उस की फिक्र मत करो राघव, मगर तनु को गुंजन के हाल से बराबर सूचित करते रहना,’’ कह कर दोनों युवतियां और रजत तनु को ले कर बगैर रामदयाल की ओर देखे चले गए.

गुंजन की चिंता में त्रस्त रामदयाल सोचे बिना न रह सके कि गुंजन के बाप का तो खयाल नहीं, मगर उस लड़की की चिंता में सब हलकान हुए जा रहे हैं. उन के दिल में तो आया कि वह राघव और प्रभव से भी जाने को कहें मगर इन हालात में न तो अकेले रहने की हिम्मत थी और फिलहाल न ही किसी रिश्तेदार या दोस्त को बुलाने की, क्योंकि सब का पहला सवाल यही होगा कि गुंजन नेहरू प्लैनेटोरियम की पहाड़ी पर शाम के समय क्या कर रहा था जबकि गुंजन ने सब को कह रखा था कि 6 बजे के बाद वह बौस के साथ व्यस्त होता है इसलिए कोई भी उसे फोन न किया करे.

रामदयाल तो समझ गए थे कि कहां किस बौस के साथ, वह व्यस्त होता था मगर लोगों को तो कोई माकूल वजह ही बतानी होगी जो सोचने की मनोस्थिति में वह अभी नहीं थे.

तभी उन्हें वरिष्ठ डाक्टर ने मिलने को बुलाया. रौंदे जाने और लुढ़कने के कारण गुंजन को गंभीर अंदरूनी चोटें आई थीं और उस की बे्रन सर्जरी फौरन होनी चाहिए थी. रामदयाल ने कहा कि डाक्टर, आप आपरेशन की तैयारी करें, वह अभी एटीएम से पैसे निकलवा कर काउंटर पर जमा करवा देते हैं.

प्रभव उन्हें अस्पताल के परिसर में बने एटीएम में ले गया. जब वह पैसे निकलवा कर बाहर आए तो प्रभव किसी से फोन पर बात कर रहा था… ‘‘आफिस के आसपास के रेस्तरां में कब तक जाते यार? उन दोनों को तो एक ऐसी सार्वजनिक मगर एकांत जगह चाहिए जहां वे कुछ देर शांति से बैठ कर एकदूसरे का हाल सुनसुना सकें. नेहरू प्लैनेटोरियम आफिस के नजदीक भी है और उस के बाहर रूमानी माहौल भी. शादी अभी तो मुमकिन नहीं है…गुंजन की मजबूरियों के कारण…विधुर पिता के प्रति इकलौते बेटे की जिम्मेदारियां और लगाव कुछ ज्यादा ही होता है…हां, सीमा या मिन्नी से बात कर ले.’’

उन्हें देख कर प्रभव ने मोबाइल बंद कर दिया. पैसे जमा करवाने के बाद राघव और प्रभव ने उन्हें हाल में पड़ी कुरसियों की ओर ले जा कर कहा, ‘‘अंकल, आप बैठिए. हम गुंजन के बारे में पता कर के आते हैं.’’

रामदयाल के कानों में प्रभव की बात गूंज रही थी, ‘शादी अभी तो मुमकिन नहीं है, गुंजन की मजबूरियों के कारण. विधुर पिता के प्रति इकलौते बेटे की जिम्मेदारियां और लगाव कुछ ज्यादा ही होता है.’ लगाव वाली बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता था लेकिन प्रेमा की मृत्यु के बाद जब प्राय: सभी ने उस से कहा था कि पिता और घर की देखभाल अब उस की जिम्मेदारी है, इसलिए उसे शादी कर लेनी चाहिए तो गुंजन ने बड़ी दृढ़ता से कहा था कि घर संभालने के लिए तो मां से काम सीखे पुराने नौकर हैं ही और फिलहाल शादी करना पापा के साथ ज्यादती होगी क्योंकि फुरसत के चंद घंटे जो अभी सिर्फ पापा के लिए हैं फिर पत्नी के साथ बांटने पड़ेंगे और पापा बिलकुल अकेले पड़ जाएंगे. गुंजन का तर्क सब को समझ में आया था और सब ने उस से शादी करने के लिए कहना छोड़ दिया था.

तभी प्रभव और राघव आ गए. ‘‘अंकल, गुंजन को आपरेशन के लिए ले गए हैं,’’ राघव ने बताया. ‘‘आपरेशन में काफी समय लगेगा और मरीज को होश आने में कई घंटे. हम सब को आदेश है कि अस्पताल में भीड़ न लगाएं और घर जाएं, आपरेशन की सफलता की सूचना आप को फोन पर दे दी जाएगी.’’

‘‘तो फिर अंकल घर ही चलिए, आप को भी आराम की जरूरत है,’’ प्रभव बोला.

‘‘हां, चलो,’’ रामदयाल विवश भाव से उठ खड़े हुए, ‘‘तुम्हें कहां छोड़ना होगा, राघव?’’

‘‘अभी तो आप के साथ ही चल रहे हैं हम दोनों.’’

‘‘नहीं बेटे, अभी तो आस की किरण चमक रही है, उस के सहारे रात कट जाएगी. तुम दोनों भी अपनेअपने घर जा कर आराम करो,’’ रामदयाल ने राघव का कंधा थपथपाया.

हालांकि गुंजन हमेशा उन के लौटने के बाद ही घर आता था लेकिन न जाने क्यों आज घर में एक अजीब मनहूस सा सन्नाटा फैला हुआ था. वह गुंजन के कमरे में आए. वहां उन्हें कुछ अजीब सी राहत और सुकून महसूस हुआ. वह वहीं पलंग पर लेट गए.

तकिये के नीचे कुछ सख्त सा था, उन्होंने तकिया हटा कर देखा तो एक सुंदर सी डायरी थी. उत्सुकतावश रामदयाल ने पहला पन्ना पलट कर देखा तो लिखा था, ‘वह सब जो चाह कर भी कहा नहीं जाता.’ गुंजन की लिखावट वह पहचानते थे. उन्हें जानने की जिज्ञासा हुई कि ऐसा क्या है जो गुंजन जैसा वाचाल भी नहीं कह सकता?

किसी अन्य की डायरी पढ़ना उन की मान्यताआें में नहीं था लेकिन हो सकता है गुंजन ने इस में वह सब लिखा हो यानी उस मजबूरी के बारे में जिस का जिक्र प्रभव कर रहा था. उन्होंने डायरी के पन्ने पलटे. शुरू में तो तनूजा से मुलाकात और फिर उस की ओर अपने झुकाव का जिक्र था. उन्होंने वह सब पढ़ना मुनासिब नहीं समझा और सरसरी निगाह डालते हुए पन्ने पलटते रहे. एक जगह ‘मां’ शब्द देख कर वह चौंके. रामदयाल को गुंजन की मां यानी अपनी पत्नी प्रेमा के बारे में पढ़ना उचित लगा.

‘वैसे तो मुझे कभी मां के जीवन में कोई अभाव या तनाव नहीं लगा, हमेशा खुश व संतुष्ट रहती थीं. मालूम नहीं मां के जीवनकाल में पापा उन की कितनी इच्छाआें को सर्वाधिक महत्त्व देते थे लेकिन उन की मृत्यु के बाद तो वही करते हैं जो मां को पसंद था. जैसे बगीचे में सिर्फ सफेद फूलों के पौधे लगाना, कालीन को हर सप्ताह धूप दिखाना, सूर्यास्त होते ही कुछ देर को पूरे घर में बिजली जलाना आदि.

‘मुझे यकीन है कि मां की इच्छा की दुहाई दे कर पापा सर्वगुण संपन्न और मेरे रोमरोम में बसी तनु को नकार देंगे. उन से इस बारे में बात करना बेकार ही नहीं खतरनाक भी है. मेरा शादी का इरादा सुनते ही वह उत्तर प्रदेश की किसी अनजान लड़की को मेरे गले बांध देंगे. तनु मेरी परेशानी समझती है मगर मेरे साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहती है. उस के लिए समय निकालना कोई समस्या नहीं है लेकिन लोग हमें एकसाथ देख कर उस पर छींटाकशी करें यह मुझे गवारा नहीं है.’

रामदयाल को याद आया कि जब उन्होंने लखनऊ की जायदाद बेच कर यह कोठी बनवानी चाही थी तो प्रेमा ने कहा था कि यह शहर उसे भी बहुत पसंद है मगर वह उत्तर प्रदेश से नाता तोड़ना नहीं चाहती. इसलिए वह गुंजन की शादी उत्तर प्रदेश की किसी लड़की से ही करेगी. उन्होंने प्रेमा को आश्वासन दिया था कि ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि उन के परिवार की संस्कृति और मान्यताएं तो उन की अपनी तरफ की लड़की ही समझ सकती है.

गुंजन का सोचना भी सही था, तनु से शादी की इजाजत वह आसानी से देने वाले तो नहीं थे. लेकिन अब सब जानने के बाद वह गुंजन के होश में आते ही उस से कहेंगे कि वह जल्दीजल्दी ठीक हो ताकि उस की शादी तनु से हो सके.

अगली सुबह अखबार में घायलों में गुंजन का नाम पढ़ कर सभी रिश्तेदार और दोस्त आने शुरू हो गए थे. अस्पताल से आपरेशन सफल होने की सूचना भी आ गई थी फिर वह अस्पताल जा कर वरिष्ठ डाक्टर से मिले थे.

‘‘मस्तिष्क में जितनी भी गांठें थीं वह सफलता के साथ निकाल दी गई हैं और खून का संचार सुचारुरूप से हो रहा है लेकिन गुंजन की पसलियां भी टूटी हुई हैं और उन्हें जोड़ना बेहद जरूरी है लेकिन दूसरा आपरेशन मरीज के होश में आने के बाद करेंगे. गुंजन को आज रात तक होश आ जाएगा,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘आप फिक्र मत कीजिए, जब हम ने दिमाग का जटिल आपरेशन सफलतापूर्वक कर लिया है तो पसलियों को भी जोड़ देंगे.’’

शाम को अपने अन्य सहकर्मियों के साथ तनुजा भी आई थी. बेहद विचलित और त्रस्त लग रही थी. रामदयाल ने चाहा कि वह अपने पास बुला कर उसे दिलासा और आश्वासन दें कि सब ठीक हो जाएगा लेकिन रिश्तेदारों की मौजूदगी में यह मुनासिब नहीं था.

पसलियों के टूटने के कारण गुंजन के फेफड़ों से खून रिसना शुरू हो गया था जिस के कारण उस की संभली हुई हालत फिर बिगड़ गई और होश में आ कर आंखें खोलने से पहले ही उस ने सदा के लिए आंखें मूंद लीं.

अंत्येष्टि के दिन रामदयाल को आएगए को देखने की सुध नहीं थी लेकिन उठावनी के रोज तनु को देख कर वह सिहर उठे. वह तो उन से भी ज्यादा व्यथित और टूटी हुई लग रही थी. गुंजन के अन्य सहकर्मी और दोस्त भी विह्वल थे, उन्होंने सब को दिलासा दिया. जनममरण की अनिवार्यता पर सुनीसुनाई बातें दोहरा दीं.

सीमा के साथ खड़ी लगातार आंसू पोंछती तनु को उन्होंने चाहा था पास बुला कर गले से लगाएं और फूटफूट कर रोएं. उन की तरह उस का भी तो सबकुछ लुट गया था. वह उस की ओर बढ़े भी लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर दूसरी ओर मुड़ गए.

कुछ दिनों के बाद एक इतवार की सुबह राघव गुंजन का कोट ले कर आया.

‘‘इस की जेब में गुंजन की घड़ी और पर्स वगैरा हैं. अंकल, संभाल लीजिए,’’ कहते हुए राघव का स्वर रुंध गया.

कुछ देर के बाद संयत होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुम्हें कहां मिला, राघव?’’

‘‘तनु ने दिया है.’’

‘‘तनु कैसी है?’’

‘‘कल ही उस की बहन उसे अपने साथ पुणे ले गई है, जगह और माहौल बदलने के लिए. यहां तो बम होने की अफवाहों को सुन कर वह बारबार उन्हीं यादों में चली जाती थी और यह सिलसिला यहां रुकने वाला नहीं है. तनु के बहनोई उस के लिए पुणे में ही नौकरी तलाश कर रहे हैं.’’

‘‘नौकरी ही नहीं कोई अच्छा सा लड़का भी उस के लिए तलाश करें. अभी उम्र नहीं है उस की गुुंजन के नाम पर रोने की?’’

राघव चौंक पड़ा.

‘‘आप को तनु और गुंजन के बारे में मालूम है, अंकल?’’

‘‘हां राघव, मैं उस के दुख को शिद्दत से महसूस कर रहा था, उसे गले लगा कर रोना भी चाहता था लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, अंकल? क्यों नहीं किया आप ने ऐसा? इस से तनु को अपने और गुंजन के रिश्ते की स्वीकृति का एहसास तो हो जाता.’’

‘‘मगर मेरे ऐसा करने से वह जरूर मुझ से कहीं न कहीं जुड़ जाती और मैं नहीं चाहता था कि मेरे जरिए गुंजन की यादों से जुड़ कर वह जीवन भर एक अंतहीन दुख में जीए.’’

अंकल शायद ठीक कहते हैं.

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