‘‘ओह श्री, अभी तक उठे भी नहीं. वी आर रियली गैटिंग लेट भाई,’’ अपनी प्यार भरी नजरों से देखते हुए मेघा ने अपने पति श्री को झक झोर कर उठाते हुए कहा.
प्रत्युत्तर में श्री ने उसे खींच अपनी बांहों में भर लिया तो वह निहाल हो उठी. प्रगाढ़ बंधन में बंधने को उस का आतुर मन स्वतंत्र होने की असफल चेष्टा करता रहा. उस के भीगे बालों में अटके पानी के बूंद मोती बन कर श्री पर बिखर रहे थे.
श्री के आगोश में सिमटी 31 वर्षीय मेघा किसी नवयौवना की तरह सिहर उठी थी और उस का मन यह कह रहा था कि युगों तक श्री के आगोश में वह यों ही बंधी रहे. श्री की परिणीता बने मेघा को मात्र 4 हफ्ते ही हुए थे पर उस का तृषित तनमन अभी तक प्यासा सावन ही था.
अपने शुष्क सूने जीवन में श्री के आगमन के पूर्व जलते रेगिस्तान में नंगे पैर वह अकेली दौड़ ही तो रही थी. चारों ओर फैली खामोशियां एवं वर्षों की तनहाइयों से जू झती वह टूट कर बिखरने के कगार पर थी कि श्री की सबल बांहों ने उसे थाम लिया था. 10 साल पहले सड़क दुर्घटना में अपने मम्मीपापा को खोने के बाद वह जब इंडिया से न्यूयौर्क गई उस के बाद फिर कभी वहां जा भी कहां पाई थी. श्री से वह शादी कर रही है बस इस की सूचना उस ने अपने मामा को दे दी थी.
उन के लाख कहने पर भी उस ने वहां पर जा कर शादी करने से साफ इनकार कर दिया था. शादी वाले दिन अपने गिनती के दोस्तों के साथ वह शादी के लिए प्रस्थान करने ही वाली थी कि नाना प्रकार के ताम झाम के साथ उस के मामा इंडिया से भागते आए, तो मम्मीपापा को याद कर उस की आंखें बरस पड़ी थीं. फिर शादी की सारी रस्मों को उन्होंने सहर्ष निभाया और जाते समय इंडिया की सारी प्रौपर्टी को बेच कर जो ऐक्सचेंज लाए थे वह श्री के इनकार करने के बावजूद भी उसे आशीर्वाद के रूप में दे गए.
हनीमून के लिए वे स्विट्जरलैंड गए थे और वहां से आने के आज हफ्ता भर बाद भी उन के प्यार का खुमार अभी तक उतरा नहीं थी. हफ्ता भर घर में ही बिताने के बाद आज न्यूयौर्क घूमने का प्रोग्राम बना था, लेकिन श्री थे कि बिस्तर से उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ऐसे पलों की मदहोशी के एहसासों से वह कितनी अनजान थी. घनेरे बादलों से घिरी अंधेरी रात बने उस के जीवन में श्री बिजली की कौंध बन कर उभरा था तो अपने सुख पर वह इतरा उठी थी.
श्री के प्यार ने पूर्णचंद्र बन कर अपनी चांदनी को उस पर बिखेरा क्या कि वह समंदर बन कर उस की ओर उमड़ पड़ी. आज तक उस के जीवन में जो भी उसे प्यारा लगा वह उस से छिनता ही तो रहा था. बचपन में अपने से 8 साल छोटे भाई को नन्ही मां बन कर संभाला तो 1 दिन की बीमारी में वह साथ छोड़ गया. उस का नन्हा सा मन कितना टूटा था. मम्मीपापा के साथ इस आघात को भूलने में उसे वर्षों लगे थे. मम्मीपापा के जीने का वही आसरा बनी थी.
मेघा छलकता रूप ले कर तो पैदा हुई ही थी, समय के साथ खेलखेल में ही जब वह फिजिक्स और मैथ्स के कठिन प्रश्नों को हल करने लगी तो उस की अद्भुत प्रतिभा को देख सभी दंग रह गए. स्कूल के सारे पिछले रिकौर्ड को तोड़ते हुए इंजीनियरिंग में प्रथम स्थान ले कर आईआईटी, कानपुर गई तो मम्मीपापा की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. जिस स्थान पर आज तक लड़के ही विराजते रहे, उस पर अपना अधिपत्य जमा कर उस ने सारे देश को चौंका दिया था. महीनों बधाइयों का सिलसिला जारी रहा. आईआईटी, कानपुर से निकलने के पहले ही स्कूल औफ बिजनैस, हार्वर्ड में उस का ऐडमिशन हो गया था.
इन 6 सालों में न जाने कितनों ने उस की राहों में आंखें बिछाईं, उसे थामने को न जाने कितने हाथ बढ़े पर वह अपनी तपस्या में लगी रही. हार्वर्ड से निकलने के पूर्व ही दुनिया की एक नामी कंपनी ने बहुत ऊंचे पोस्ट पर उस की नियुक्ति करते हुए उस के वीजा आदि का हाथोंहाथ प्रबंध कर दिया. उस के जौइन करने के बाद उस के मम्मीपापा उस के पास आने वाले थे कि रोड दुर्घटना में उन दोनों की असमय मौत की सूचना जैसे बिजली बन कर उस पर गिरी. उन के अंतिम संस्कार कर के वह लौट तो आई, लेकिन मृतवत हो कर.
उस विक्षिप्तावस्था में देव का उस के जीवन में आना किसी चमत्कार से कम नहीं था.
वह उस की बांहों में सिमट कर मम्मीपापा की मृत्यु की असहनीय वेदना को भूलने की कोशिश करती रही और देव हर प्रतिकूल परिस्थिति में उसे संभालता रहा. कितना टूट कर प्यार किया था दोनों ने एकदूसरे को. वे एक तरह से 2 तन 1 मन हो गए थे. जब कभी बीच की दूरियों को झेलने में दोनों असमर्थ हो जाते थे, तो ‘चलो, आज ही शादी कर लेते हैं,’ देव का ऐसा कहना उस के तनमन को सिहरा कर रख देता था. लेकिन उसे क्या पता था कि इस बार भी कुदरत अपनी कुटिल चाल से उस के अर्धनिर्मित घरौंदे को तहसनहस करने को तैयार बैठी हुई है. उस के लिए तो कोई बंधन नहीं था.
देव के परिवार की सहमति के लिए ही देव की इच्छा को वह ठुकराती रही थी. उन्हें बताने ही तो वह इंडिया में अपने शहर विशाखापट्टनम में गया था. लेकिन जब वह लौटा नहीं तो वह हडसन नदी में कूद कर जान देने को तैयार हो गई. वह तो पुलिस की नजरों में आ जाने के कारण बच गई थी और लुटीपिटी लौट आई थी. दरअसल, बहुत विषम परिस्थिति में पड़ कर देव को बहुत मजबूर हो कर अपनी एक रिलेटिव की बेटी से शादी करनी पड़ी थी.
वह अपने ही किसी रिश्तेदार के बलात्कार की शिकार हो कर प्रैगनैंट हो गई थी और समय ज्यादा हो जाने के कारण उस का गर्भपात भी नहीं करवाया जा सकता था. समाज के डर से जब मांबेटी दोनों जान देने को अड़ गईं तो देव की मां ने उन दोनों की जान बचाने के लिए देव के समक्ष अपना आंचल फैला दिया था. तब तो देव को उस से ब्याह करना ही पड़ा था. उसे खो कर देव भी कहां जीवित रह गया था? उस से सामना न हो जाए इस कारण वह यहां आया भी नहीं. न्यूयौर्क छोड़ने की सारी औपचारिकताओं को इंडिया से ही निभाया और वहीं से विगत को भुला कर उसे जीने की शक्ति दे कर नई दुनिया बसाने का आग्रह करता रहा.
श्री का प्यार शीतल झोंका बन कर उस के तपते जीवन में आया, तो मेघा ने सब कुछ भूलते हुए श्री के प्यार को समेट लिया. उस के इरादे मजबूद करने में देव का अद्भुद योगदान रहा. लेकिन श्री भी उस से छिन न जाए उस की कल्पना कर ही वह कांप उठती थी.
अतीत के झरोखे खुल कर उसे और संतप्त करते, उस के पहले ही श्री उसे बांहों में लिए उठ खड़ा हुआ और झटपट तैयार हो कर वे दोनों एकदूसरे का हाथ थामे निकल गए. आज न्यूयौर्क में घूमने का उन दोनों का दिन भर का प्रोग्राम था. यों तो न्यूयौर्क उस के लिए कोई नया शहर नहीं था. उस के चप्पेचप्पे को वह देव के साथ रौंद चुकी थी. पर आज श्री के साथ इस जादुई नगरी का लुत्फ उठाने की बात कुछ और थी. एकदूसरे में समाए वे हडसन नदी के किनारे चलते रहे फिर वहां से आगे बढ़ कर खुली बस में सवार हो कर घूमने के लिए निकल पड़े. मेघा का मन प्रसन्न हो कर जैसे किशोरावस्था में प्रवेश कर गया था. सारे दर्शनीय स्थल उसे आज अनूठे आनंद की अनुभूति दे रहे थे. श्री भी अपनी नवपरिणीता के इस नए रूप पर मुग्ध था. मेघा को एक पल के लिए भी वह अपनी नजरों से ओ झल होने नहीं दे रहा था. उसे अपनी बांहों में ही लिए वह घूमता रहा.
सारे दिन घूमघाम कर जब वे बस से उतरे तो शाम का रेशमी अंधेरा रोशनी में नहा रहा था. वहां आइम स्क्वायर में थोड़ी देर इधरउधर घूमने के बाद डिनर के लिए उत्सव रैस्तरां की ओर जा ही रहे थे कि मेघा का बोस्टन का सहपाठी जौर्ज उस से टकरा गया, जिस के चंद बोल उस की खुशियों पर उल्कापात ही कर गए, ‘‘हाय हनी, व्हेयर इज देव?’’ फिर श्री की ओर देखते हुए मुसकराते हुए पूछा, ‘‘न्यू फ्रैंड?’’ वह आगे और कुछ कहता कि उस के पहले वह बोल पड़ी, ‘‘मीट माई हसबैंड श्री,’’ और जौर्ज को हत्प्रभ छोड़ कर श्री का हाथ थामे वह आगे बढ़ गई.
लेकिन श्री को अनमना सा देख उस का दिन भर का उत्साह जाता रहा. रैस्तरां में पहुंचने के बाद भी वह उदासियों के कुहरे में लिपटा रहा. सारा खाना श्री के पसंद का था, लेकिन खाने में उस से कोई दिलचस्पी नहीं थी. खोयाखोया सा वह थिएटर से निकलते लोगों को निहारता रहा तो मेघा किसी दावानाल में घिरी हिरणी सी तड़प उठी. रैस्तरां से निकलने के बाद वह श्री का हाथ थामे फव्वारे के पास बने पत्थर के चबूतरे पर जा कर बैठ गई और अपने और देव के बीच के रिश्ते की सारी सचाई उसे बता गई.
उस ने यह भी कहा कि इस सत्य के साथ अगर वह उसे स्वीकार्य है तो ठीक वरना उस के सारे बंधनों से वह आजाद है.
इस पर श्री की कोई प्रतिक्रिया न देख कर, ‘‘संशय की नींव पर खड़ी रिश्ते की यह इमारत मु झे किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं,’’ वह बोली, झटके के साथ उठी और दृढ़ कदमों से चलती हुई सड़क के किनारे की भीड़ में खो
गई. आज श्री उस के जीवन के कटु पर मधुर सत्य से अवगत हो चुका था. जिसे कितनी बार हिम्मत कर के उस ने उस से कहना चाहा था, लेकिन उसे खो देने के डर से वह चुप्पी साधे रही. लेकिन आज तक वह उस के कारण घुटती रही थी.
अब श्री उस के अतीत से अवगत हो चुका था जिस का पछतावा उसे रंचमात्र भी नहीं था. मेघा का मन सब तरह से हलका हो चुका था. इधरउधर घूमते हुए वह रौक फेलर सैंटर में जा कर पत्थर से बनी उसी बैंच पर जा कर अपने घुटनों में सिर छिपा कर बैठ गई जहां वह अकसर देव के साथ बैठा करती थी. यह और बात थी कि आज उस की पीठ पर देव का हाथ नहीं था. फिर भी न होते हुए भी देव की मौजूदगी को वह महसूस कर रही थी, लेकिन उस के आंसू भी लगातार बहे जा रहे थे.
अचानक अपनी पीठ पर किसी का स्पर्श पा कर उस ने सिर उठाया तो श्री को अपने बगल में बैठा देख अकचका गई, ‘‘क्यों मु झे छोड़ कर यों अकेली चली आईं? देव ने ही तो मु झे बाध्य कर तुम्हारे पास भेजा था. मैं तुम दोनों के रिश्ते की सचाई से अच्छी तरह वाकिफ हूं लेकिन उस से मु झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मु झे तो उस ने तुम सी जीवन संगिनी दे कर निहाल कर दिया, पर उसे क्या मिला? यही सोच कर मैं दुखी हो गया था और तुम ने कुछ और ही समझ लिया मेघा.
देव के समक्ष मेरा अस्तित्व कुछ भी नहीं. अरे तुम्हारे प्रति उस के निश्छल प्यार का प्रतिदान बन कर ही तो मैं तुम्हारे जीवन में आया हूं. अगले महीने ही हम देव से मिलने इंडिया जाएंगे. तब कितना चकित एवं खुश होगा वह हम दोनों को अचानक आया देख कर,’’ कहते हुए मेघा के आंसुओं को अपनी हथेलियों में समेटते हुए श्री ने उसे अपनी बांहों में बांध लिया तो मेघा भी रुक नहीं सकी और अपने सारे गिलेशिकवे को भूल वह उस की बांहों में समा गई.