प्यार का प्रतिदान: मेघा की सच्चाई जाने के बाद श्री ने उसे अपना पाया

‘‘ओह श्री, अभी तक उठे भी नहीं. वी आर रियली गैटिंग लेट भाई,’’ अपनी प्यार भरी नजरों से देखते हुए मेघा ने अपने पति श्री को   झक  झोर कर उठाते हुए कहा.

प्रत्युत्तर में श्री ने उसे खींच अपनी बांहों में भर लिया तो वह निहाल हो उठी. प्रगाढ़ बंधन में बंधने को उस का आतुर मन स्वतंत्र होने की असफल चेष्टा करता रहा. उस के भीगे बालों में अटके पानी के बूंद मोती बन कर श्री पर बिखर रहे थे.

श्री के आगोश में सिमटी 31 वर्षीय मेघा किसी नवयौवना की तरह सिहर उठी थी और उस का मन यह कह रहा था कि युगों तक श्री के आगोश में वह यों ही बंधी रहे. श्री की परिणीता बने मेघा को मात्र 4 हफ्ते ही हुए थे पर उस का तृषित तनमन अभी तक प्यासा सावन ही था.

अपने शुष्क सूने जीवन में श्री के आगमन के पूर्व जलते रेगिस्तान में नंगे पैर वह अकेली दौड़ ही तो रही थी. चारों ओर फैली खामोशियां एवं वर्षों की तनहाइयों से जू  झती वह टूट कर बिखरने के कगार पर थी कि श्री की सबल बांहों ने उसे थाम लिया था. 10 साल पहले सड़क दुर्घटना में अपने मम्मीपापा को खोने के बाद वह जब इंडिया से न्यूयौर्क गई उस के बाद फिर कभी वहां जा भी कहां पाई थी. श्री से वह शादी कर रही है बस इस की सूचना उस ने अपने मामा को दे दी थी.

उन के लाख कहने पर भी उस ने वहां पर जा कर शादी करने से साफ इनकार कर दिया था. शादी वाले दिन अपने गिनती के दोस्तों के साथ वह शादी के लिए प्रस्थान करने ही वाली थी कि नाना प्रकार के ताम  झाम के साथ उस के मामा इंडिया से भागते आए, तो मम्मीपापा को याद कर उस की आंखें बरस पड़ी थीं. फिर शादी की सारी रस्मों को उन्होंने सहर्ष निभाया और जाते समय इंडिया की सारी प्रौपर्टी को बेच कर जो ऐक्सचेंज लाए थे वह श्री के इनकार करने के बावजूद भी उसे आशीर्वाद के रूप में दे गए.

हनीमून के लिए वे स्विट्जरलैंड गए थे और वहां से आने के आज हफ्ता भर बाद भी उन के प्यार का खुमार अभी तक उतरा नहीं थी. हफ्ता भर घर में ही बिताने के बाद आज न्यूयौर्क घूमने का प्रोग्राम बना था, लेकिन श्री थे कि बिस्तर से उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे. ऐसे पलों की मदहोशी के एहसासों से वह कितनी अनजान थी. घनेरे बादलों से घिरी अंधेरी रात बने उस के जीवन में श्री बिजली की कौंध बन कर उभरा था तो अपने सुख पर वह इतरा उठी थी.

श्री के प्यार ने पूर्णचंद्र बन कर अपनी चांदनी को उस पर बिखेरा क्या कि वह समंदर बन कर उस की ओर उमड़ पड़ी. आज तक उस के जीवन में जो भी उसे प्यारा लगा वह उस से छिनता ही तो रहा था. बचपन में अपने से 8 साल छोटे भाई को नन्ही मां बन कर संभाला तो 1 दिन की बीमारी में वह साथ छोड़ गया. उस का नन्हा सा मन कितना टूटा था. मम्मीपापा के साथ इस आघात को भूलने में उसे वर्षों लगे थे. मम्मीपापा के जीने का वही आसरा बनी थी.

मेघा छलकता रूप ले कर तो पैदा हुई ही थी, समय के साथ खेलखेल में ही जब वह फिजिक्स और मैथ्स के कठिन प्रश्नों को हल करने लगी तो उस की अद्भुत प्रतिभा को देख सभी दंग रह गए. स्कूल के सारे पिछले रिकौर्ड को तोड़ते हुए इंजीनियरिंग में प्रथम स्थान ले कर आईआईटी, कानपुर गई तो मम्मीपापा की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. जिस स्थान पर आज तक लड़के ही विराजते रहे, उस पर अपना अधिपत्य जमा कर उस ने सारे देश को चौंका दिया था. महीनों बधाइयों का सिलसिला जारी रहा. आईआईटी, कानपुर से निकलने के पहले ही स्कूल औफ बिजनैस, हार्वर्ड में उस का ऐडमिशन हो गया था.

इन 6 सालों में न जाने कितनों ने उस की राहों में आंखें बिछाईं, उसे थामने को न जाने कितने हाथ बढ़े पर वह अपनी तपस्या में लगी रही. हार्वर्ड से निकलने के पूर्व ही दुनिया की एक नामी कंपनी ने बहुत ऊंचे पोस्ट पर उस की नियुक्ति करते हुए उस के वीजा आदि का हाथोंहाथ प्रबंध कर दिया. उस के जौइन करने के बाद उस के मम्मीपापा उस के पास आने वाले थे कि रोड दुर्घटना में उन दोनों की असमय मौत की सूचना जैसे बिजली बन कर उस पर गिरी. उन के अंतिम संस्कार कर के वह लौट तो आई, लेकिन मृतवत हो कर.

उस विक्षिप्तावस्था में देव का उस के जीवन में आना किसी चमत्कार से कम नहीं था.

वह उस की बांहों में सिमट कर मम्मीपापा की मृत्यु की असहनीय वेदना को भूलने की कोशिश करती रही और देव हर प्रतिकूल परिस्थिति में उसे संभालता रहा. कितना टूट कर प्यार किया था दोनों ने एकदूसरे को. वे एक तरह से 2 तन 1 मन हो गए थे. जब कभी बीच की दूरियों को   झेलने में दोनों असमर्थ हो जाते थे, तो ‘चलो, आज ही शादी कर लेते हैं,’ देव का ऐसा कहना उस के तनमन को सिहरा कर रख देता था. लेकिन उसे क्या पता था कि इस बार भी कुदरत अपनी कुटिल चाल से उस के अर्धनिर्मित घरौंदे को तहसनहस करने को तैयार बैठी हुई है. उस के लिए तो कोई बंधन नहीं था.

देव के परिवार की सहमति के लिए ही देव की इच्छा को वह ठुकराती रही थी. उन्हें बताने ही तो वह इंडिया में अपने शहर विशाखापट्टनम में गया था. लेकिन जब वह लौटा नहीं तो वह हडसन नदी में कूद कर जान देने को तैयार हो गई. वह तो पुलिस की नजरों में आ जाने के कारण बच गई थी और लुटीपिटी लौट आई थी. दरअसल, बहुत विषम परिस्थिति में पड़ कर देव को बहुत मजबूर हो कर अपनी एक रिलेटिव की बेटी से शादी करनी पड़ी थी.

वह अपने ही किसी रिश्तेदार के बलात्कार की शिकार हो कर प्रैगनैंट हो गई थी और समय ज्यादा हो जाने के कारण उस का गर्भपात भी नहीं करवाया जा सकता था. समाज के डर से जब मांबेटी दोनों जान देने को अड़ गईं तो देव की मां ने उन दोनों की जान बचाने के लिए देव के समक्ष अपना आंचल फैला दिया था. तब तो देव को उस से ब्याह करना ही पड़ा था. उसे खो कर देव भी कहां जीवित रह गया था? उस से सामना न हो जाए इस कारण वह यहां आया भी नहीं. न्यूयौर्क छोड़ने की सारी औपचारिकताओं को इंडिया से ही निभाया और वहीं से विगत को भुला कर उसे जीने की शक्ति दे कर नई दुनिया बसाने का आग्रह करता रहा.

श्री का प्यार शीतल   झोंका बन कर उस के तपते जीवन में आया, तो मेघा ने सब कुछ भूलते हुए श्री के प्यार को समेट लिया. उस के इरादे मजबूद करने में देव का अद्भुद योगदान रहा. लेकिन श्री भी उस से छिन न जाए उस की कल्पना कर ही वह कांप उठती थी.

अतीत के  झरोखे खुल कर उसे और संतप्त करते, उस के पहले ही श्री उसे बांहों में लिए उठ खड़ा हुआ और   झटपट तैयार हो कर वे दोनों एकदूसरे का हाथ थामे निकल गए. आज न्यूयौर्क में घूमने का उन दोनों का दिन भर का प्रोग्राम था. यों तो न्यूयौर्क उस के लिए कोई नया शहर नहीं था. उस के चप्पेचप्पे को वह देव के साथ रौंद चुकी थी. पर आज श्री के साथ इस जादुई नगरी का लुत्फ उठाने की बात कुछ और थी. एकदूसरे में समाए वे हडसन नदी के किनारे चलते रहे फिर वहां से आगे बढ़ कर खुली बस में सवार हो कर घूमने के लिए निकल पड़े. मेघा का मन प्रसन्न हो कर जैसे किशोरावस्था में प्रवेश कर गया था. सारे दर्शनीय स्थल उसे आज अनूठे आनंद की अनुभूति दे रहे थे. श्री भी अपनी नवपरिणीता के इस नए रूप पर मुग्ध था. मेघा को एक पल के लिए भी वह अपनी नजरों से ओ  झल होने नहीं दे रहा था. उसे अपनी बांहों में ही लिए वह घूमता रहा.

सारे दिन घूमघाम कर जब वे बस से उतरे तो शाम का रेशमी अंधेरा रोशनी में नहा रहा था. वहां आइम स्क्वायर में थोड़ी देर इधरउधर घूमने के बाद डिनर के लिए उत्सव रैस्तरां की ओर जा ही रहे थे कि मेघा का बोस्टन का सहपाठी जौर्ज उस से टकरा गया, जिस के चंद बोल उस की खुशियों पर उल्कापात ही कर गए, ‘‘हाय हनी, व्हेयर इज देव?’’ फिर श्री की ओर देखते हुए मुसकराते हुए पूछा, ‘‘न्यू फ्रैंड?’’ वह आगे और कुछ कहता कि उस के पहले वह बोल पड़ी, ‘‘मीट माई हसबैंड श्री,’’ और जौर्ज को हत्प्रभ छोड़ कर श्री का हाथ थामे वह आगे बढ़ गई.

लेकिन श्री को अनमना सा देख उस का दिन भर का उत्साह जाता रहा. रैस्तरां में पहुंचने के बाद भी वह उदासियों के कुहरे में लिपटा रहा. सारा खाना श्री के पसंद का था, लेकिन खाने में उस से कोई दिलचस्पी नहीं थी. खोयाखोया सा वह थिएटर से निकलते लोगों को निहारता रहा तो मेघा किसी दावानाल में घिरी हिरणी सी तड़प उठी. रैस्तरां से निकलने के बाद वह श्री का हाथ थामे फव्वारे के पास बने पत्थर के चबूतरे पर जा कर बैठ गई और अपने और देव के बीच के रिश्ते की सारी सचाई उसे बता गई.

उस ने यह भी कहा कि इस सत्य के साथ अगर वह उसे स्वीकार्य है तो ठीक वरना उस के सारे बंधनों से वह आजाद है.

इस पर श्री की कोई प्रतिक्रिया न देख कर, ‘‘संशय की नींव पर खड़ी रिश्ते की यह इमारत मु  झे किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं,’’ वह बोली,   झटके के साथ उठी और दृढ़ कदमों से चलती हुई सड़क के किनारे की भीड़ में खो

गई. आज श्री उस के जीवन के कटु पर मधुर सत्य से अवगत हो चुका था. जिसे कितनी बार हिम्मत कर के उस ने उस से कहना चाहा था, लेकिन उसे खो देने के डर से वह चुप्पी साधे रही. लेकिन आज तक वह उस के कारण घुटती रही थी.

अब श्री उस के अतीत से अवगत हो चुका था जिस का पछतावा उसे रंचमात्र भी नहीं था. मेघा का मन सब तरह से हलका हो चुका था. इधरउधर घूमते हुए वह रौक फेलर सैंटर में जा कर पत्थर से बनी उसी बैंच पर जा कर अपने घुटनों में सिर छिपा कर बैठ गई जहां वह अकसर देव के साथ बैठा करती थी. यह और बात थी कि आज उस की पीठ पर देव का हाथ नहीं था. फिर भी न होते हुए भी देव की मौजूदगी को वह महसूस कर रही थी, लेकिन उस के आंसू भी लगातार बहे जा रहे थे.

अचानक अपनी पीठ पर किसी का स्पर्श पा कर उस ने सिर उठाया तो श्री को अपने बगल में बैठा देख अकचका गई, ‘‘क्यों मु  झे छोड़ कर यों अकेली चली आईं? देव ने ही तो मु  झे बाध्य कर तुम्हारे पास भेजा था. मैं तुम दोनों के रिश्ते की सचाई से अच्छी तरह वाकिफ हूं लेकिन उस से मु  झे कोई फर्क नहीं पड़ता. मु  झे तो उस ने तुम सी जीवन संगिनी दे कर निहाल कर दिया, पर उसे क्या मिला? यही सोच कर मैं दुखी हो गया था और तुम ने कुछ और ही समझ लिया मेघा.

देव के समक्ष मेरा अस्तित्व कुछ भी नहीं. अरे तुम्हारे प्रति उस के निश्छल प्यार का प्रतिदान बन कर ही तो मैं तुम्हारे जीवन में आया हूं. अगले महीने ही हम देव से मिलने इंडिया जाएंगे. तब कितना चकित एवं खुश होगा वह हम दोनों को अचानक आया देख कर,’’ कहते हुए मेघा के आंसुओं को अपनी हथेलियों में समेटते हुए श्री ने उसे अपनी बांहों में बांध लिया तो मेघा भी रुक नहीं सकी और अपने सारे गिलेशिकवे को भूल वह उस की बांहों में समा गई.

अंतहीन: एक अफवाह कैसे तनु को दुखी कर गई

रामदयाल क्लब के लिए निकल ही रहे थे कि फोन की घंटी बजी. उन के फोन पर ‘हेलो’ कहते ही दूसरी ओर से एक महिला स्वर ने पूछा, ‘‘आप गुंजन के पापा बोल रहे हैं न, फौरन मैत्री अस्पताल के आपात- कालीन विभाग में पहुंचिए. गुंजन गंभीर रूप से घायल हो गया है और वहां भरती है.’’

इस से पहले कि रामदयाल कुछ बोल पाते फोन कट गया. वे जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचना चाह रहे थे पर उन्हें यह शंका भी थी कि कोई बेवकूफ न बना रहा हो क्योंकि गुंजन तो इस समय आफिस में जरूरी मीटिंग में व्यस्त रहता है और मीटिंग में बैठा व्यक्ति भला कैसे घायल हो सकता है?

गुंजन के पास मोबाइल था, उस ने नंबर भी दिया था मगर मालूम नहीं उन्होंने कहां लिखा था. उन्हें इन नई चीजों में दिलचस्पी भी नहीं थी… तभी फिर फोन की घंटी बजी. इस बार गुंजन के दोस्त राघव का फोन था.

‘‘अंकल, आप अभी तक घर पर ही हैं…जल्दी अस्पताल पहुंचिए…पूछताछ का समय नहीं है अंकल…बस, आ जाइए,’’ इतना कह कर उस ने भी फोन रख दिया.

ड्राइवर गाड़ी के पास खड़ा रामदयाल का इंतजार कर रहा था. उन्होंने उसे मैत्री अस्पताल चलने को कहा. अस्पताल के गेट के बाहर ही राघव खड़ा था, उस ने हाथ दे कर गाड़ी रुकवाई और ड्राइवर की साथ वाली सीट पर बैठते हुए बोला, ‘‘सामने जा रही एंबुलैंस के पीछे चलो.’’

‘‘एम्बुलैंस कहां जा रही है?’’ रामदयाल ने पूछा.

‘‘ग्लोबल केयर अस्पताल,’’ राघव ने बताया, ‘‘मैत्री वालों ने गुंजन की सांसें चालू तो कर दी हैं पर उन्हें बरकरार रखने के साधन और उपकरण केवल ग्लोबल वालों के पास ही हैं.’’

‘‘गुंजन घायल कैसे हुआ राघव?’’ रामदयाल ने भर्राए स्वर में पूछा.

‘‘नेहरू प्लैनेटोरियम में किसी ने बम होने की अफवाह उड़ा दी और लोग हड़बड़ा कर एकदूसरे को रौंदते हुए बाहर भागे. इसी हड़कंप में गुंजन कुचला गया.’’

‘‘गुंजन नेहरू प्लैनेटोरियम में क्या कर रहा था?’’ रामदयाल ने हैरानी से पूछा.

‘‘गुंजन तो रोज की तरह प्लैनेटोरियम वाली पहाड़ी पर टहल रहा था…’’

‘‘क्या कह रहे हो राघव? गुंजन रोज नेहरू प्लैनेटोरियम की पहाड़ी पर टहलने जाता था?’’

अब चौंकने की बारी राघव की थी इस से पहले कि वह कुछ बोलता, उस का मोबाइल बजने लगा.

‘‘हां तनु… मैं गुंजन के पापा की गाड़ी में तुम्हारे पीछेपीछे आ रहा हूं…तुम गुंजन के साथ मेडिकल विंग में जाओ, काउंटर पर पैसे जमा करवा कर मैं भी वहीं आता हूं,’’ राघव रामदयाल की ओर मुड़ा, ‘‘अंकल, आप के पास क्रेडिट कार्ड तो है न?’’

‘‘है, चंद हजार नकद भी हैं…’’

‘‘चंद हजार नकद से कुछ नहीं होगा अंकल,’’ राघव ने बात काटी, ‘‘काउंटर पर कम से कम 25 हजार तो अभी जमा करवाने पड़ेंगे, फिर और न जाने कितना मांगें.’’

‘‘परवा नहीं, मेरा बेटा ठीक कर दें, बस. मेरे पास एटीएम कार्ड भी है, जरूरत पड़ी तो घर से चेकबुक भी ले आऊंगा,’’ रामदयाल राघव को आश्वस्त करते हुए बोले.

ग्लोबल केयर अस्पताल आ गया था, एंबुलैंस को तो सीधे अंदर जाने दिया गया लेकिन उन की गाड़ी को दूसरी ओर पार्किंग में जाने को कहा.

‘‘हमें यहीं उतार दो, ड्राइवर,’’ राघव बोला.

दोनों भागते हुए एंबुलैंस के पीछे गए लेकिन रामदयाल को केवल स्ट्रेचर पर पड़े गुंजन के बाल और मुंह पर लगा आक्सीजन मास्क ही दिखाई दिया. राघव उन्हें काउंटर पर पैसा जमा कराने के लिए ले गया और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों इमरजेंसी वार्ड की ओर चले गए.

इमरजेंसी के बाहर एक युवती डाक्टर से बात कर रही थी. राघव और रामदयाल को देख कर उस ने डाक्टर से कहा, ‘‘गुंजन के पापा आ गए हैं, बे्रन सर्जरी के बारे में यही निर्णय लेंगे.’’

डाक्टर ने बताया कि गुंजन का बे्रन स्कैनिंग हो रहा है मगर उस की हालत से लगता है उस के सिर में अंदरूनी चोट आने की वजह से खून जम गया है और आपरेशन कर के ही गांठें निकालनी पड़ेंगी. मुश्किल आपरेशन है, जानलेवा भी हो सकता है और मरीज उम्र भर के लिए सोचनेसमझने और बोलने की शक्ति भी खो सकता है. जब तक स्कैनिंग की रिपोर्ट आती है तब तक आप लोग निर्णय ले लीजिए.

यह कह कर और आश्वासन में युवती का कंधा दबा कर वह अधेड़ डाक्टर चला गया. रामदयाल ने युवती की ओर देखा, सुंदर स्मार्ट लड़की थी. उस के महंगे सूट पर कई जगह खून और कीचड़ के धब्बे थे, चेहरा और दोनों हाथ छिले हुए थे, आंखें लाल और आंसुओं से भरी हुई थीं. तभी कुछ युवक और युवतियां बौखलाए हुए से आए. युवकों को रामदयाल पहचानते थे, गुंजन के सहकर्मी थे. उन में से एक प्रभव तो कल रात ही घर पर आया था और उन्होंने उसे आग्रह कर के खाने के लिए रोका था. लेकिन प्रभव उन्हें अनदेखा कर के युवती की ओर बढ़ गया.

‘‘यह सब कैसे हुआ, तनु?’’

‘‘मैं और गुंजन सूर्यास्त देख कर पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे कि अचानक चीखतेचिल्लाते लोग ‘भागो, बम फटने वाला है’ हमें धक्का देते हुए नीचे भागे. मैं किनारे की ओर थी सो रेलिंग पर जा कर गिरी लेकिन गुंजन को भीड़ की ठोकरों ने नीचे ढकेल दिया. उसे लुढ़कता देख कर मैं रेलिंग के सहारे नीचे भागी. एक सज्जन ने, जो हमारे साथ सूर्यास्त देख कर हम से आगे नीचे उतर रहे थे, गुंजन को देख लिया और लपक कर किसी तरह उस को भीड़ से बाहर खींचा. तब तक गुंजन बेहोश हो चुका था. उन्हीं सज्जन ने हम लोगों को अपनी गाड़ी में मैत्री अस्पताल पहुंचाया.’’

‘‘गुंजन की गाड़ी तो आफिस में खड़ी है, तेरी गाड़ी कहां है?’’ एक युवती ने पूछा.

‘‘प्लैनेटोरियम की पार्किंग में…’’

‘‘उसे वहां से तुरंत ले आ तनु, लावारिस गाड़ी समझ कर पुलिस जब्त कर सकती है,’’ एक युवक बोला.

‘‘अफवाह थी सो गाड़ी तो खैर जब्त नहीं होगी, फिर भी प्लैनेटोरियम बंद होने से पहले तो वहां से लानी ही पड़ेगी,’’ राघव ने कहा.

‘‘मैत्री से गुंजन का कोट भी लेना है, उस में उस का पर्स, मोबाइल आदि सब हैं मगर मैं कैसे जाऊं?’’ तनु ने असहाय भाव से कहा, ‘‘तुम्हीं लोग ले आओ न, प्लीज.’’

‘‘लेकिन हमें तो कोई गुंजन का सामान नहीं देगा और हो सकता है गाड़ी के बारे में भी कुछ पूछताछ हो,’’ प्रभव ने कहा, ‘‘तुम्हें भी साथ चलना पड़ेगा, तनु.’’

‘‘गुंजन को इस हाल में छोड़ कर?’’ तनु ने आहत स्वर में पूछा.

‘‘गुंजन को तुम ने सही हाथों में सौंप दिया है तनु और फिलहाल सिवा डाक्टरों के उस के लिए कोई और कुछ नहीं कर सकता. तुम्हारी परेशानी और न बढ़े इसलिए तुम गुंजन का सामान और अपनी गाड़ी लेने में देर मत करो,’’ राघव ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं दोनों काम कर के 15-20 मिनट में आ जाऊंगी.’’

‘‘यहां आ कर क्या करोगी तनु? न तो तुम अभी गुंजन से मिल सकती हो और न उस के इलाज के बारे में कोई निर्णय ले सकती हो. अपनी चोटों पर भी दवा लगवा कर तुम घर जा कर आराम करो,’’ राघव ने कहा, ‘‘यहां मैं और प्रभव हैं ही. रजत, तू इन लड़कियों के साथ चला जा और सीमा, मिन्नी तुम में से कोई आज रात तनु के साथ रह लो न.’’

‘‘उस की फिक्र मत करो राघव, मगर तनु को गुंजन के हाल से बराबर सूचित करते रहना,’’ कह कर दोनों युवतियां और रजत तनु को ले कर बगैर रामदयाल की ओर देखे चले गए.

गुंजन की चिंता में त्रस्त रामदयाल सोचे बिना न रह सके कि गुंजन के बाप का तो खयाल नहीं, मगर उस लड़की की चिंता में सब हलकान हुए जा रहे हैं. उन के दिल में तो आया कि वह राघव और प्रभव से भी जाने को कहें मगर इन हालात में न तो अकेले रहने की हिम्मत थी और फिलहाल न ही किसी रिश्तेदार या दोस्त को बुलाने की, क्योंकि सब का पहला सवाल यही होगा कि गुंजन नेहरू प्लैनेटोरियम की पहाड़ी पर शाम के समय क्या कर रहा था जबकि गुंजन ने सब को कह रखा था कि 6 बजे के बाद वह बौस के साथ व्यस्त होता है इसलिए कोई भी उसे फोन न किया करे.

रामदयाल तो समझ गए थे कि कहां किस बौस के साथ, वह व्यस्त होता था मगर लोगों को तो कोई माकूल वजह ही बतानी होगी जो सोचने की मनोस्थिति में वह अभी नहीं थे.

तभी उन्हें वरिष्ठ डाक्टर ने मिलने को बुलाया. रौंदे जाने और लुढ़कने के कारण गुंजन को गंभीर अंदरूनी चोटें आई थीं और उस की बे्रन सर्जरी फौरन होनी चाहिए थी. रामदयाल ने कहा कि डाक्टर, आप आपरेशन की तैयारी करें, वह अभी एटीएम से पैसे निकलवा कर काउंटर पर जमा करवा देते हैं.

प्रभव उन्हें अस्पताल के परिसर में बने एटीएम में ले गया. जब वह पैसे निकलवा कर बाहर आए तो प्रभव किसी से फोन पर बात कर रहा था… ‘‘आफिस के आसपास के रेस्तरां में कब तक जाते यार? उन दोनों को तो एक ऐसी सार्वजनिक मगर एकांत जगह चाहिए जहां वे कुछ देर शांति से बैठ कर एकदूसरे का हाल सुनसुना सकें. नेहरू प्लैनेटोरियम आफिस के नजदीक भी है और उस के बाहर रूमानी माहौल भी. शादी अभी तो मुमकिन नहीं है…गुंजन की मजबूरियों के कारण…विधुर पिता के प्रति इकलौते बेटे की जिम्मेदारियां और लगाव कुछ ज्यादा ही होता है…हां, सीमा या मिन्नी से बात कर ले.’’

उन्हें देख कर प्रभव ने मोबाइल बंद कर दिया. पैसे जमा करवाने के बाद राघव और प्रभव ने उन्हें हाल में पड़ी कुरसियों की ओर ले जा कर कहा, ‘‘अंकल, आप बैठिए. हम गुंजन के बारे में पता कर के आते हैं.’’

रामदयाल के कानों में प्रभव की बात गूंज रही थी, ‘शादी अभी तो मुमकिन नहीं है, गुंजन की मजबूरियों के कारण. विधुर पिता के प्रति इकलौते बेटे की जिम्मेदारियां और लगाव कुछ ज्यादा ही होता है.’ लगाव वाली बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता था लेकिन प्रेमा की मृत्यु के बाद जब प्राय: सभी ने उस से कहा था कि पिता और घर की देखभाल अब उस की जिम्मेदारी है, इसलिए उसे शादी कर लेनी चाहिए तो गुंजन ने बड़ी दृढ़ता से कहा था कि घर संभालने के लिए तो मां से काम सीखे पुराने नौकर हैं ही और फिलहाल शादी करना पापा के साथ ज्यादती होगी क्योंकि फुरसत के चंद घंटे जो अभी सिर्फ पापा के लिए हैं फिर पत्नी के साथ बांटने पड़ेंगे और पापा बिलकुल अकेले पड़ जाएंगे. गुंजन का तर्क सब को समझ में आया था और सब ने उस से शादी करने के लिए कहना छोड़ दिया था.

तभी प्रभव और राघव आ गए. ‘‘अंकल, गुंजन को आपरेशन के लिए ले गए हैं,’’ राघव ने बताया. ‘‘आपरेशन में काफी समय लगेगा और मरीज को होश आने में कई घंटे. हम सब को आदेश है कि अस्पताल में भीड़ न लगाएं और घर जाएं, आपरेशन की सफलता की सूचना आप को फोन पर दे दी जाएगी.’’

‘‘तो फिर अंकल घर ही चलिए, आप को भी आराम की जरूरत है,’’ प्रभव बोला.

‘‘हां, चलो,’’ रामदयाल विवश भाव से उठ खड़े हुए, ‘‘तुम्हें कहां छोड़ना होगा, राघव?’’

‘‘अभी तो आप के साथ ही चल रहे हैं हम दोनों.’’

‘‘नहीं बेटे, अभी तो आस की किरण चमक रही है, उस के सहारे रात कट जाएगी. तुम दोनों भी अपनेअपने घर जा कर आराम करो,’’ रामदयाल ने राघव का कंधा थपथपाया.

हालांकि गुंजन हमेशा उन के लौटने के बाद ही घर आता था लेकिन न जाने क्यों आज घर में एक अजीब मनहूस सा सन्नाटा फैला हुआ था. वह गुंजन के कमरे में आए. वहां उन्हें कुछ अजीब सी राहत और सुकून महसूस हुआ. वह वहीं पलंग पर लेट गए.

तकिये के नीचे कुछ सख्त सा था, उन्होंने तकिया हटा कर देखा तो एक सुंदर सी डायरी थी. उत्सुकतावश रामदयाल ने पहला पन्ना पलट कर देखा तो लिखा था, ‘वह सब जो चाह कर भी कहा नहीं जाता.’ गुंजन की लिखावट वह पहचानते थे. उन्हें जानने की जिज्ञासा हुई कि ऐसा क्या है जो गुंजन जैसा वाचाल भी नहीं कह सकता?

किसी अन्य की डायरी पढ़ना उन की मान्यताआें में नहीं था लेकिन हो सकता है गुंजन ने इस में वह सब लिखा हो यानी उस मजबूरी के बारे में जिस का जिक्र प्रभव कर रहा था. उन्होंने डायरी के पन्ने पलटे. शुरू में तो तनूजा से मुलाकात और फिर उस की ओर अपने झुकाव का जिक्र था. उन्होंने वह सब पढ़ना मुनासिब नहीं समझा और सरसरी निगाह डालते हुए पन्ने पलटते रहे. एक जगह ‘मां’ शब्द देख कर वह चौंके. रामदयाल को गुंजन की मां यानी अपनी पत्नी प्रेमा के बारे में पढ़ना उचित लगा.

‘वैसे तो मुझे कभी मां के जीवन में कोई अभाव या तनाव नहीं लगा, हमेशा खुश व संतुष्ट रहती थीं. मालूम नहीं मां के जीवनकाल में पापा उन की कितनी इच्छाआें को सर्वाधिक महत्त्व देते थे लेकिन उन की मृत्यु के बाद तो वही करते हैं जो मां को पसंद था. जैसे बगीचे में सिर्फ सफेद फूलों के पौधे लगाना, कालीन को हर सप्ताह धूप दिखाना, सूर्यास्त होते ही कुछ देर को पूरे घर में बिजली जलाना आदि.

‘मुझे यकीन है कि मां की इच्छा की दुहाई दे कर पापा सर्वगुण संपन्न और मेरे रोमरोम में बसी तनु को नकार देंगे. उन से इस बारे में बात करना बेकार ही नहीं खतरनाक भी है. मेरा शादी का इरादा सुनते ही वह उत्तर प्रदेश की किसी अनजान लड़की को मेरे गले बांध देंगे. तनु मेरी परेशानी समझती है मगर मेरे साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहती है. उस के लिए समय निकालना कोई समस्या नहीं है लेकिन लोग हमें एकसाथ देख कर उस पर छींटाकशी करें यह मुझे गवारा नहीं है.’

रामदयाल को याद आया कि जब उन्होंने लखनऊ की जायदाद बेच कर यह कोठी बनवानी चाही थी तो प्रेमा ने कहा था कि यह शहर उसे भी बहुत पसंद है मगर वह उत्तर प्रदेश से नाता तोड़ना नहीं चाहती. इसलिए वह गुंजन की शादी उत्तर प्रदेश की किसी लड़की से ही करेगी. उन्होंने प्रेमा को आश्वासन दिया था कि ऐसा करना भी चाहिए क्योंकि उन के परिवार की संस्कृति और मान्यताएं तो उन की अपनी तरफ की लड़की ही समझ सकती है.

गुंजन का सोचना भी सही था, तनु से शादी की इजाजत वह आसानी से देने वाले तो नहीं थे. लेकिन अब सब जानने के बाद वह गुंजन के होश में आते ही उस से कहेंगे कि वह जल्दीजल्दी ठीक हो ताकि उस की शादी तनु से हो सके.

अगली सुबह अखबार में घायलों में गुंजन का नाम पढ़ कर सभी रिश्तेदार और दोस्त आने शुरू हो गए थे. अस्पताल से आपरेशन सफल होने की सूचना भी आ गई थी फिर वह अस्पताल जा कर वरिष्ठ डाक्टर से मिले थे.

‘‘मस्तिष्क में जितनी भी गांठें थीं वह सफलता के साथ निकाल दी गई हैं और खून का संचार सुचारुरूप से हो रहा है लेकिन गुंजन की पसलियां भी टूटी हुई हैं और उन्हें जोड़ना बेहद जरूरी है लेकिन दूसरा आपरेशन मरीज के होश में आने के बाद करेंगे. गुंजन को आज रात तक होश आ जाएगा,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘आप फिक्र मत कीजिए, जब हम ने दिमाग का जटिल आपरेशन सफलतापूर्वक कर लिया है तो पसलियों को भी जोड़ देंगे.’’

शाम को अपने अन्य सहकर्मियों के साथ तनुजा भी आई थी. बेहद विचलित और त्रस्त लग रही थी. रामदयाल ने चाहा कि वह अपने पास बुला कर उसे दिलासा और आश्वासन दें कि सब ठीक हो जाएगा लेकिन रिश्तेदारों की मौजूदगी में यह मुनासिब नहीं था.

पसलियों के टूटने के कारण गुंजन के फेफड़ों से खून रिसना शुरू हो गया था जिस के कारण उस की संभली हुई हालत फिर बिगड़ गई और होश में आ कर आंखें खोलने से पहले ही उस ने सदा के लिए आंखें मूंद लीं.

अंत्येष्टि के दिन रामदयाल को आएगए को देखने की सुध नहीं थी लेकिन उठावनी के रोज तनु को देख कर वह सिहर उठे. वह तो उन से भी ज्यादा व्यथित और टूटी हुई लग रही थी. गुंजन के अन्य सहकर्मी और दोस्त भी विह्वल थे, उन्होंने सब को दिलासा दिया. जनममरण की अनिवार्यता पर सुनीसुनाई बातें दोहरा दीं.

सीमा के साथ खड़ी लगातार आंसू पोंछती तनु को उन्होंने चाहा था पास बुला कर गले से लगाएं और फूटफूट कर रोएं. उन की तरह उस का भी तो सबकुछ लुट गया था. वह उस की ओर बढ़े भी लेकिन फिर न जाने क्या सोच कर दूसरी ओर मुड़ गए.

कुछ दिनों के बाद एक इतवार की सुबह राघव गुंजन का कोट ले कर आया.

‘‘इस की जेब में गुंजन की घड़ी और पर्स वगैरा हैं. अंकल, संभाल लीजिए,’’ कहते हुए राघव का स्वर रुंध गया.

कुछ देर के बाद संयत होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुम्हें कहां मिला, राघव?’’

‘‘तनु ने दिया है.’’

‘‘तनु कैसी है?’’

‘‘कल ही उस की बहन उसे अपने साथ पुणे ले गई है, जगह और माहौल बदलने के लिए. यहां तो बम होने की अफवाहों को सुन कर वह बारबार उन्हीं यादों में चली जाती थी और यह सिलसिला यहां रुकने वाला नहीं है. तनु के बहनोई उस के लिए पुणे में ही नौकरी तलाश कर रहे हैं.’’

‘‘नौकरी ही नहीं कोई अच्छा सा लड़का भी उस के लिए तलाश करें. अभी उम्र नहीं है उस की गुुंजन के नाम पर रोने की?’’

राघव चौंक पड़ा.

‘‘आप को तनु और गुंजन के बारे में मालूम है, अंकल?’’

‘‘हां राघव, मैं उस के दुख को शिद्दत से महसूस कर रहा था, उसे गले लगा कर रोना भी चाहता था लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, अंकल? क्यों नहीं किया आप ने ऐसा? इस से तनु को अपने और गुंजन के रिश्ते की स्वीकृति का एहसास तो हो जाता.’’

‘‘मगर मेरे ऐसा करने से वह जरूर मुझ से कहीं न कहीं जुड़ जाती और मैं नहीं चाहता था कि मेरे जरिए गुंजन की यादों से जुड़ कर वह जीवन भर एक अंतहीन दुख में जीए.’’

अंकल शायद ठीक कहते हैं.

रिश्ता: माया को अर्जुन का साथ मिला क्या

रात  के ढाई बजे हैं. मैं जानती हूं आज नींद नहीं आएगी. बैड से उठ कर चेयर पर बैठ गई और बैड पर नजर डाली. राकेश आराम से सोए हैं. कभीकभी सोचती हूं यह व्यक्ति कैसे जीवन भर इतना निश्चिंत रहा? सब कुछ सुचारु रूप से चलते जाना ही जीवन नहीं है. खिड़की से बाहर दूर चमकती स्ट्रीट लाइट पर उड़ते कुछ कीड़े, शांत पड़ी सड़क और हलकी सी धुंध नजर आती है जो फरवरी माह के इस समय कम ही देखने को मिलती है.

अचानक जिस्म में हलचल होने लगी. ड्रैसिंग रूम में आईने के सामने गाउन उतार कर खड़ा होना अब भी अच्छा लगता है. अपने शरीर को किसी भी युवती की ईर्ष्या के लायक महसूस करते ही अंतर्मन में छिपे गर्व का एहसास चेहरे छा गया. कसी हुई त्वचा, सुडौल उन्नत वक्ष, गहरी कटावदार कमर, सपाट उभार लिए कसा हुआ पेट, चिकनी चमकदार मांसल जांघें, सुडौल नितंब, दमकता गुलाबी रंग और चेहरे पर गहराई में डुबोने वाली हलकी भूरी आंखें, यही तो खूबियां हैं मेरी.

अचानक अर्जुन के कहे शब्द याद आने से चेहरे पर मुसकान कौंधी फिर लाचारी का एहसास होने लगा. सच मैं उस के साथ कितना रह सकती  हूं.

अर्जुन ने कहा था, ‘‘रिश्ते आप के जीवन में पेड़पौधों से आते हैं. जिन में से कुछ पहले से होते हैं, कुछ अंत तक आप के साथ चलते हैं, तो कुछ मौसमी फूलों की तरह बहुत खूबसूरत तो होते हैं, लेकिन सिर्फ एक मौसम के लिए.’’

‘‘और तुम कौन सा पेड़ हो मेरे जीवन में,’’ मैं ने मुसकरा कर उसे छेड़ा था.

‘‘मु झे गन्ना समझिए. एक बार लगा है तो 3 साल काम आएगा.’’

‘‘फिर जोर से हंसे थे हम. अर्जुन बड़ा हाजिरजवाब था. उस का ऐसा होना उस की बातों में अकसर  झलक जाता था. 3 साल से उस का मतलब हमारे 3 साल बाद वापस लुधियाना जाने से था.

अर्जुन कैसे धीरेधीरे दिमाग पर छाता चला गया पता ही न चला. मिला भी अचानक ही था, पाखी की बर्थडे पार्टी में. वहां की भीड़ और म्यूजिक का शोर थका देने वाला था. मैं साइड में लगे सोफे पर बैठ गई थी. कुछ संयत होने पर बगल में नजर गई तो देखा पार्टी से बिलकुल अलग लगभग 24-25 वर्ष का आकर्षक युवक आंखें बंद किए और पीछे सिर टिकाए आराम से सो रहा था.

तभी दीपिका आ कर बोली, ‘‘थक गईं दीदी?’’ फिर उस की नजर सोए उस युवक पर गई, तो वह बोली, ‘‘तुम यहां सोने आए हो…’’ फिर उस ने उस का चेहरा अपने एक हाथ में पकड़ जोर से हिला दिया.

‘‘ओ भाभी, मैं तो बस आंखें बंद किए बैठा था,’’ कह कर वह मुसकराया फिर हंस पड़ा.

‘‘मीट माया दीदी, अभी इन के हसबैंड ट्रांसफर हो कर यहां आए हैं और दीदी ये है अर्जुन रोहित का फ्रैंड,’’ दीपिका ने परिचय कराया था.

‘‘लेकिन रोहित के हमउम्र तो ये लगते नहीं,’’ मैं ने कहा.

‘‘रोहित से 8 साल छोटा है, लेकिन उस का बेहतरीन फ्रैंड और सब का फैं्रड है,’’ फिर बोली, ‘‘अर्जुन दीदी का खयाल रखना.’’

‘‘अरे मु झे यहां से कोई उठा कर ले जाने वाला है, पर क्या?’’ मैं ने दीपिका से कहा.

मैं इसे आप को कंपनी देने के लिए कह रही हूं,’’ कह कर दीपिका मुसकराई फिर बाकी गैस्ट्स को इंटरटैन करने के लिए चली गई. मैं ने अर्जुन की ओर देखा, वह दोबारा सो गया था.

राकेश का ट्रांसफर लुधियाना से हम यहां होने पर मेरठ आए थे. दीपिका के इसी शहर में होने से यहां आनाजाना तो बना ही रहा था, लेकिन व्यवस्थित होने के बाद अकेलापन सालने लगा था. पल्लवी कितनी जल्दी बड़ी हो गई थी. वह इसी साल रोहतक मैडिकल कालेज में ऐडमिशन होने से वहीं चली गई थी.

गाउन पहन मैं वापस कमरे में आ कर चेयर पर आ बैठ गई. बैड पर सिमटे हुए राकेश को देख कर लगता है कितना सरल है जीवन. यदि राकेश की जगह अर्जुन बैड पर होता तो लगता जीवन कितना स्वच्छंद और गतिशील है.

अर्जुन दूसरी बार भी दीपिका के घर पर ही मिला था. वह डिनर के वक्त एक बहुत ही क्यूट छोटा व्हाइट डौगी गोद में लिए अचानक चला आया था. आ कर उस ने डौगी पाखी की गोद में रख दिया. इतना प्यारा डौगी देख पाखी और राघव तो बहुत खुश हो गए थे.

‘‘इसे कहां से उठा लाए तुम?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘पाखी, राघव बहुत दिनों से कह रहे थे, अब मिला तो ले आया.’’

‘‘मुझे से भी तो पूछना चाहिए था,’’ दीपिका ने प्रतिवाद किया

‘‘मुझे ऐसा नहीं लगा,’’ अर्जुन ने मुसकरा कर कहा.

‘‘रोहित यह लड़का…सम झाओ इसे, डौगी वापस ले कर जाए.’’

‘‘तुम भी जानती हो डौगी यहीं रहने वाला है, इसे प्यार से ऐक्सैप्ट करो,’’ रोहित ने कहा.

फिर सभी डिनर टेबल पर आ गए.

‘‘अर्जुन, तुम राकेश से मिले नहीं शायद. यह शास्त्रीनगर ब्रांच में ब्रांच मैनेजर हो कर पिछले महीने ही मेरठ आए हैं और भाईसाब यह अर्जुन है,’’ रोहित ने परिचय कराया, अर्जुन ने खामोशी से हाथ जोड़ दिए.

‘‘आप क्या करते हैं?’’ राकेश ने उत्सुकता से पूछा था.

‘‘जी कुछ नहीं.’’

‘‘मतलब, पढ़ाई कर रहे हो?’’ आवाज से सम्मान गायब हो गया था.

‘‘इसी साल पीएच.डी. अवार्ड हुई है.’’

‘‘अच्छा अब लैक्चरर बनोगे,’’

‘‘जी नहीं…’’

तभी बीच में रोहित बोल पड़ा, ‘‘भाईसाहब यह अभी भी आप के मतलब का आदमी है. इस के गांव में आम के 3 बाग, खेत, शहर में दुकानों और होस्टल कुल मिला कर ढाईतीन लाख रुपए का मंथली ट्रांजैक्शन है, जिसे इस के पापा देखते हैं इन का सीए मैं ही हूं.’’

‘‘गुड, इन का अकाउंट हमारे यहां कराओ, राकेश चहका.’’

‘‘कह दूंगा इस के पापा से,’’ रोहित ने कहा.

‘‘हमारे घर आओ कभी,’’ राकेश ने अर्जुन से कहा.

‘‘जी.’’

‘‘यह डिफैंस कालोनी में अकेला रहता है,’’ दीपिका ने कहा फिर अर्जुन से बोली, ‘‘तुम दीदी को बाहर आनेजाने में हैल्प किया करो. रक्षापुरम में घर लिया है इन्होंने.’’

‘‘जी.’’

मुझे बाद में पता चला था शब्दों का कंजूस अर्जुन शब्दों का कितना सटीक प्रयोग जानता है. रात के 3 बजे हैं. सब कुछ शांत है. ऐसा लग रहा है जैसे कभी टूटेगा ही नहीं. बांहों के रोम उभर आए हैं. उन पर हथेलियां फिराना भला लग रहा है. अगर यही हथेलियां अर्जुन की होतीं तो उष्णता होती इन में, शायद पूरे शरीर को  झुलसा देने वाली. हमेशा ही तो ऐसा लगता रहा, जब कभी अर्जुन की उंगलियां जिस्म में धंसी होती थीं तब कितना मायावी हो जाता था. सच में सभी पुरुष एक से नहीं होते. तनमन, यौवन सभी तो, फर्क होता है और उस से भी अधिक फर्क इन तीनों के संयोजन और नियत्रंण में होता है.

किशोरावस्था से ही देखती आई हूं पुरुषों की कामनाओं और अभिव्यक्तियों के वैविध्य को. समय से हारते अपने प्यार सचिन की लाचारी आज तक याद है. उस रोमानियत में बहते न उस ने न कभी मैं ने ही सोचा था कि अचानक खुमार ऐसे टूट आएगा. अभी ग्रैजुएशन का सैकंड ईयर चल ही रहा था कि मां को मेरी सुरक्षा मेरे विवाह में ही नजर आई. कितना बड़ा विश्वास टूटा था हम सब का. डैड की जाफना में हुई शहादत के बाद अपने भाइयों का ही तो सहारा था मां को. उन्हीं के भरोसे वे अपनी दोनों बेटियों के साथ देहरादून छोड़ सहारनपुर आ कर अपने मायके में रहने लगी थीं. सब कुछ ठीक चला. नानानानी और तीनों मामाओं के भरोसे हमारा जीवन पटरी पर लौटा था, लेकिन फिर भयावाह हो कर खंडित हो गया.

मां दीपिका को ले कर चाचाजी के घर गई थीं जबकि गरमी के उन दिनों अपने ऐग्जाम्स के कारण मैं नहीं जा सकी थी, इसलिए नानाजी के घर पर थी. नानानानी 3 मामाओं और 3 मामियों व बच्चों  वाला उन का बड़ा सा घर मु झे भीड़भाड़ वाला तो लगता था, लेकिन अच्छा भी लगता था. लेकिन वहां एक दिन अचानक मेरे साथ एक घटना घटी. उस दिन मेरे रूम से अटैच बाथरूम की सिटकनी टूटी हुई मिली. इस पर ध्यान न दे कर मैं नहाने लगी, क्योंकि उस बाथरूम में मेरे सिवा कोई जाता नहीं था.

वहां अचानक जब दरवाजा खोल कर म झले मामा को नंगधडंग आ कर अपने से लिपटा पापा तो भय से चीख उठी थी मैं. मेरे जोर से चीखने से मामा भाग गए तो उस दिन मेरी जान बच गई, लेकिन मां के वापस लौटने पर जब मैं ने उन्हें यह बात बताई तो मां को अपनी असहाय स्थिति का भय दिनरात सालने लगा.

परिणाम यह हुआ कि हम ने दोबारा देहरादून शिफ्ट किया, लेकिन मां ने उसी वर्ष मेरी शादी में मेरी सुरक्षा ढूंढ़ ली जबकि दीपिका अभी बहुत छोटी थी.

राकेश अच्छे किंतु साधारण व्यक्ति हैं, काम और सान्निध्य ही इन के लिए अहम रहा. मानसिक स्तर पर न इन में उद्वेग था न ही मैं ने कभी कोई अभिलाषा दिखाई. पल्लवी के जन्म के बाद मेरा

जीवन पूरी तरह से उस पर केंद्रित हो गया था. राकेश के लिए बहुत खुशी की बात यह थी कि उन की पत्नी ग्रेसफुली घर चलाती है बच्चे को देखती है और नानुकर किए बिना शरीर सौंप देती है. कभी सोचती हूं तो लगता है यही जीवन तो सब जी रहे हैं, इस में गलती कहां है.

धीरेधीरे पहचान बढ़ने पर मैं ने ही अर्जुन को घर बुलाना शुरू किया था. तब मु झे ड्राइविंग नहीं आती थी और सभी मार्केट यहां से बहुत दूर हैं. बिना कार ऐसी कालोनी में रहना दूभर होता है. कुछ भी तो नहीं मिलता आसपास. ऐसे में अर्जुन बड़ा मददगार लगा. वह अकसर मु झे मार्केट ले जाता था. मु झे दिन भर अर्जुन के साथ रहना और घूमना सब कुछ जीवन के भले पलों की तरह कटता रहा. शादी के बाद पहली बार कोई लड़का इतना निकट हुआ था, जीवन में आए एकमात्र मित्र सा.

फिर सहसा ही वह पुरुष में परिवर्तित हो गया. कार चलाना सिखाते हुए अचानक ही कहा था उस ने काश आप को चलाना

कभी न आए हमेशा ऐसे ही सीखती रहें. आप को छूना बहुत अच्छा लगता है.’’

दहल गई थी मैं, ‘‘पागल

हो गए हो?’’ खुद को संयत

रखने का प्रयास करते हुए मैं ने प्रतिवाद किया.

इन 4 महीनों में उस का व्यवहार कुछ तो सम झ आने लगा था. मैं ने जान लिया कि वह वही कह रहा था, जो उस के मन में था. मैं ने कार को वापस घर की ओर मोड़ दिया. असहजता बढ़ने लगी थी. अर्जुन वैसा ही शांत बैठा था. मैं बहुत कुछ कहना चाहती थी उस से होंठ खुल ही नहीं पाए.

‘‘आउट,’’ घर पहुंचने पर कार रोक कर मैं क्रोध से बोली.

वह खामोशी से उतरा और चला गया. मैं चाहती थी वह सौरी बोले कुछ सफाई दे, लेकिन वह चुपचाप चला गया. उस के इस तरह जाने ने मुझे  झक झोर दिया. बाद में घंटों उस का नंबर डायल करती रही, लेकिन फोन नहीं उठाया.

अगले दिन मैं उस के घर पहुंच गई, लेकिन गेट पर ताला लगा था. फोन अब भी नहीं उठ रहा था. दीपिका से उस के बारे

में पता करने का प्रयास किया तो पता चला वह कल से फोन ही नहीं उठा रहा है. धीमे कदमों से घर पहुंची. गेट के सामने अर्जुन को खड़ा पाया. दिल हुआ कि एक चांटा खींच कर मारूं इस को, लेकिन वह हमेशा की तरह शांत शब्दों में बोला, ‘‘कल मोबाइल आप की कार की सीट पर पड़ा रह गया था.’’

‘‘ओह गौड…मैं ने सिर पकड़ लिया.’’

फिर 3 साल जैसे प्रकाश गति से निकल चले. उस दिन जब घर में अर्जुन ने मु झे पहली बार बांहों में लिया था तब एहसास हुआ था कि शरीर सैक्स के लिए भी बना है. कितना बेबाक स्पर्श था उस का. अपने चेहरे पर उस के होंठ

अनुभव करती मैं नवयौवना सी कांप उठी थी. उस की उंगलियों की हरकतें, मैं ने कितने सुख से अपने को सौंप दिया उसे. उस के वस्त्र उतारते हाथ प्रिय लगे. पूर्ण निर्वस्त्र उस की बांहों में सिमट कर एहसास हुआ था कि अभी तक मैं कभी राकेश के सामने भी वस्त्रहीन नहीं हुई थी. अर्जुन एक सुखद अनुभव सा जीवन में आया था. उस के साथ बने रिश्ते ने जीवन को नया उद्देश्य, नई सम झ दी थी. अब जीवन को सच झूठ, सहीगलत, पापपुण्य से अलग अनुभव करना आ गया था.

3 साल बीत गए ट्रांसफर ड्यू था सो राकेश ने वापस ट्रांसफर लुधियाना करवा लिया. सामान्य हालात में यह खुशी का क्षण होता, लेकिन अब जैसे बहती नदी अचानक रोक दी गई थी. जानती हूं सदा तो अर्जुन के साथ नहीं रह सकती. परिवार और समाज का बंधन जो है. सोचती रही कि

अर्जुन कैसे रिएक्ट करेगा, इसलिए एक हफ्ते यह बात दबाए रही, लेकिन कल शाम तो उसे बताना ही पड़ा. मौन, सिर  झुकाए वह चला गया बिना कुछ कहे, बिना कोई एहसास छोड़े.

सुबह 8 बजे जाना है, 4 बज चुके हैं. आंखों में नींद नहीं, राकेश पहले की  तरह सुख से सोए हैं. अचानक मोबाइल में बीप की आवाज. नोटिफिकेशन है अर्जुन के ब्लौग पर नई पोस्ट जो एक कविता है:

मोड़ से पहले

जहां गुलदाउदी के फूल हैं,

लहू की कुछ बूंदें

चमक रही हैं.

माली ने शायद

उंगली काट ली हो.

जब निकलोगी सुबह

रुक कर देखना,

क्या धूप में रक्त

7 रंग देता है.

नहीं तो जीवन

इंद्रधनुषी कैसे हो गया.

जब जाने लगो

देखना माली के हाथों पर,

सूखे पपड़ाए जख्म मिलेंगे

रुकना मत.

जीवन साथ लिए

जीवन सी ही निकल जाना.

मोड़ से पहले

जहां गुलदाउदी के फूल हैं ,

कुछ खत्म हुआ है

तुम्हारे सपनों सा.

पर मैं सदा ही

जीवित रहूंगा तुम्हारे

सपनों में.

गर्भवती महिलाओं के लिए लोकप्रिय होता मल्टी-माइक्रोन्यूट्रिएंट्स सप्लीमेंट: डॉ राजकमल अगरवाल

गर्भावस्था में आमतौर पर आयरन, फोलेट और कैल्शियम सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं, लेकिन एमएमएन ऐसा सप्लीमेंट है जो इन सभी और अन्य महत्वपूर्ण माइक्रोन्यूट्रिएंट्स को एक साथ मिला कर प्रदान करता है. यह एक अच्छी तरह से जाना गया तथ्य है कि आवश्यक विटामिन्स और खनिजों की कमी भारत के 80 प्रतिशत जनसंख्या को प्रभावित करती है. हर दो में से एक गर्भवती महिला माइक्रोन्यूट्रिएंट में कमी होती है. इसलिए गर्भावस्था से बच्चे के दूसरे जन्मदिन तक पहले 1000 दिनों का खास महत्व है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि माँ और बच्चा दोनों इस महत्वपूर्ण समय में स्वस्थ रहें जब पोषण सब से ज्यादा मायने रखता है. माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी से बच्चे के स्वास्थ्य में लम्बे और छोटे समय की समस्याएं हो सकती हैं.

पारंपरिक तौर पर डॉक्टर्स गर्भावस्था के दौरान लोगों को आयरन-फोलेट कैल्शियम (आईएफसी) की दवाओं के सुझाव देते हैं. लेकिन हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने माना है कि बहु माइक्रोन्यूट्रिएंट (एमएमएन) सप्लीमेंट्स भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. इन से नकारात्मक गर्भावस्था और जन्म के परिणामों को कम किया जा सकता है जिस के कारण ये लोकप्रिय हो रहे हैं. इस के अलावा आईएफसी की तुलना में गर्भावस्था के दौरान बहु माइक्रोन्यूट्रिएंट सप्लीमेंट्स ने अतिरिक्त फायदे दिखाए हैं.

दक्षिण-पूर्व एशिया में एक तुलनात्मक अध्ययन में पाया गया कि एमएमएन सप्लीमेंट्स आईएफसी सप्लीमेंट्स की तुलना में बेहतर हैं. उस से हर साल 15,000 से अधिक मौत और 30,000 प्रीटर्म जन्मों से बचाव हो सकता है. एक और अध्ययन ने दिखाया कि माताओं के एमएमएन सप्लीमेंट्स से बच्चों के दिमागी विकास में लंबे समय तक फायदेमंद प्रभाव होता है जो बचपन में बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस से साबित हो रहा है कि आईएफसी सप्लीमेंट्स से एमएमएन सप्लीमेंट्स बेहतर है. एक सामान्य भारतीय डाइट की सीमाओं के कारण खासकर शहरी इलाकों में मां की अच्छी सेहत और बच्चे के सही विकास के लिए सभी जरूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स उपलब्ध नहीं होते. इसलिए अब बाहरी सप्लीमेंट्स जैसे एमएमएन को एक बेहतर ऑप्शन के रूप में देखा जा रहा है जो मां-बच्चे की अच्छी देखभाल के लिए एक प्रभावी तरीका है. इसके साथ ही बहुत सी महिलाएं ऐसा खाना खाती हैं जिन में पोषण की कमी होती है. इसलिए उन्हें ये सप्लीमेंट्स की आवश्यकता होती है. इस से उन्हें वो न्यूट्रिएंट्स मिल पाते हैं जो उन की डाइट में नहीं होते.

supplement

माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी को 'छुपी भूख' कहा जाता है और भारत में हर दो महिलाओं में से एक इस से प्रभावित होती है. ये समस्याएं शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में और सभी सामाजिक-आर्थिक वर्गों में पाई जाती हैं. छुपी भूख के प्रभाव से मां को  उच्च रक्तचाप, मधुमेह, बालों का झड़ना, थायराइड और डिप्रेशन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक अधिकार अधिनियम (एफएसएसएआई) के मुताबिक भारत में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता बन गई है. कई योजनाएं जैसे कि संघटित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) योजना, मध्याह्न भोजन कार्यक्रम, नेशनल आयरन प्लस पहल (एनआईपीआई), नेशनल आयोडीन डिफिशेंसी डिसऑर्डर कंट्रोल प्रोग्राम (एनआईडीडीसीपी) और राष्ट्रीय न्यूट्रीशनल ब्लाइंडनेस के खिलाफ प्रोफिलैक्सिस प्रोग्राम (विटामिन ए की कमी के कारण) के जरिए वर्षों से चलाई जा रही हैं जिनका उद्देश्य जनसंख्या के पोषण और स्वास्थ्य स्थिति में सुधार करना है.

आईएफसी (IFC) मॉडल से एमएमएन मॉडल में परिवर्तन करना महत्वपूर्ण है. विकसित देश पिछले दो दशकों से एमएमएन का सेवन कर रहे हैं. भारत में लगभग 80 प्रतिशत महिलाएं एनीमिक हैं और उन्हें बी12 और विटामिन सी की कमी भी है. विशेषज्ञ सहमत हैं कि स्वस्थ और संतुलित मातृत्व का पोषण एक स्वस्थ गर्भावस्था और भविष्य में शिशु के विकास की कुंजी है.

ट्राइमाकेयर, प्लस प्लस लाइफसाइंसेज का 3-स्टेज मल्टी-माइक्रोन्यूट्रिएंट गर्भावस्था सप्लीमेंट राष्ट्रीय स्तर पर लॉन्च के लिए तैयार है. ट्राइमाकेयर एक मल्टी-माइक्रोन्यूट्रिएंट गर्भावस्था सप्लीमेंट है. प्लस लाइफसाइंसेज की सुरभि गुप्ता और समीर अगरवाल द्वारा विकसित यह गर्भावस्था के प्रत्येक तिमाही के लिए 3- स्तर का सप्लीमेंट है. प्लसप्लस लाइफसाइंसेज द्वारा विकसित 3-स्टेज मल्टी-माइक्रोन्यूट्रिएंट (एमएमएन) आधारित गर्भावस्था पूरक ट्राइमाकेयर उत्तर भारत में पहले से ही व्यापक रूप से उपलब्ध है. अब इसे जल्द ही पूरे भारत में लॉन्च किया जाएगा. साथ ही ट्राइमाकेयर धीरे-धीरे देश भर के अस्पतालों, प्रजनन और शिशु देखभाल केंद्रों में भी अपनी उपस्थिति बनाएगा. प्लसप्लस लाइफसाइंसेज की सुरभि गुप्ता और समीर अगरवाल को इस साल की शुरुआत में गर्भावस्था के पूरक के लिए पेटेंट मिला जिस ने इस के राष्ट्रव्यापी लॉन्च और वितरण का मार्ग प्रशस्त किया है.

ट्राइमाकेयर गर्भावस्था की सहायता करने वाला एक सप्लीमेंट है जो विभिन्न महत्वपूर्ण चीजों को एक साथ मिला कर बनाया गया है. इस में आयरन, फोलिक एसिड, कैल्शियम के साथ-साथ आयोडीन, जिंक, ओमेगा-3, फैटी एसिड, विटामिन A, B और D जैसे और भी कई खास तत्व होते हैं. ये सब चीजें माँ और शिशु के स्वास्थ्य के लिए गर्भावस्था के दौरान और बाद में जरूरी होती हैं. एमएमएन औषधि मॉडल माँ के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है, जन्म वजन को बढ़ाता है और प्रीटर्म शिशु जन्म के जोखिम को कम करता है. साथ ही बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार करता है जैसे कि उसके विकास में, रक्तचाप में, और सांस लेने और सोचने की क्षमता में. एमएमएन औषधि का उपयोग एनीमिया की चिकित्सा में भी बेहतर होता है.

ट्राइमाकेयर भारत का सब से बेहतर गर्भावस्था सप्लीमेंट है. यह एक पूर्ण समाधान है क्योंकि इस में L-मिथाइल फोलेट, आयरन, जिंक, ओमेगा-3 और अन्य विटामिन और पोषक तत्व हैं जो गर्भावस्था के दौरान जरूरी होते हैं. इसके अलावा ओमेगा-3 का स्रोत प्लांट-आधारित है और इसलिए ट्राइमाकेयर शाकाहारी रोगियों के लिए उपयुक्त है. ट्राइमाकेयर एक 3-चरण कोर्स है जो मां और उन के शिशु की बेहतर देखभाल के लिए बनाया गया है. T1 पहले 3 महीने के लिए, T2 दूसरे 3 महीने के लिए और T3 आखिरी 3 महीने के लिए होता है. हर चरण की खास दवा मां और शिशु की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है. ट्राइमाकेयर गर्भावस्था के दौरान मां के लक्षणों को कम करके शिशु के मस्तिष्क और अंगों के विकास को प्रोत्साहित करता है. यह एक सरल समाधान है जो गर्भवती महिलाओं को प्रभावी चिकित्सा प्रदान करता है. यह खासकर उन 40% महिलाओं के लिए खास उपयोगी है जिन्हें गर्भावस्था के दौरान अलग-अलग 7-8 दवाओं का सेवन करना मुश्किल होता है.

ट्राइमाकेयर ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं ताकि गर्भवती महिलाओं के सप्लीमेंट्स लेने का अनुभव बेहतर हो सके. जैसे कि आयरन को समय पर जारी किया जाना पेट से संबंधित साइड इफेक्ट्स जैसे कि पेट में फूलन और कब्ज को कम करता है. इसके साथ ही, L-मेथाइलेट फोलिक एसिड भारतीय महिलाओं द्वारा अच्छी तरह अवशोषित होता है जो बच्चे के नैरो-ट्यूब के स्वाभाविक विकास के लिए महत्वपूर्ण है. ट्राइमाकेयर गर्भवती महिलाओं और बच्चों की जरूरतों के लिए तैयार है. उस में एडवांस्ड सॉल्ट शामिल हैं जो शाकाहारी होते हैं और उच्च गुणवत्ता और प्रभावकारिता के मानकों को पूरा करते हैं.

ट्राइमाकेयर के देशव्यापी लॉन्च के बारे में बोलते हुए प्लसप्लस लाइफसाइंसेज के अध्यक्ष डॉ. राजकमल अगरवाल ने कहा कि हमें खुशी है कि हम अपने नए 3-चरणीय गर्भावस्था सप्लीमेंट, ट्राइमाकेयर का देशव्यापी लॉन्च कर रहे हैं. इस में 20 से अधिक महत्वपूर्ण पोषक तत्व हैं जो हर तिमाही के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए हैं. यह हमारे संकल्प का हिस्सा है जो गर्भवती महिलाओं को मजबूत बनाने और मां-बच्चे के लिए अच्छी देखभाल सुनिश्चित करने का काम करता है.

डॉ राजकमल अगरवाल , प्रेसिडेंट प्लस प्लस लाइफसाइंसेज

तलाक का दंश पड़ने ना दे भारी

आजकल एक ऐसी माँ बहुत चर्चा में है जिसने अपने 4 साल के बेटे को ही मौत के घाट उतार दिया. सुचना सेठ एक पढ़ी लिखी महिला है जो की एक कम्पनी की सीईओ हैं 2010 में उसकी शादी वेंकट रमन के साथ हुई और 2019 में उन्हें एक बेटा हुआ. उसके बाद से इनके रिश्ते में अनबन रहने लगी और इन दोनों का 2020 में तलाक हो गया।कोर्ट ने रमन को बच्चे  से हफ्ते में एक बार मिलने   की परमिशन भी दी. लेकिन सुचना इस बात से इस  कदर  नाखुश थी कि उसने अपने मासूम  बच्चे को ही अपनी नफरत का शिकार बना लिया और उसको मौत के घाट उतार दिया. सुचना का कहना था की उसके बच्चे की शकल वेंकट से बहुत मिलती थी जिस कारण उसे बहुत गुस्सा आता था.अब  सोचने  वाली बात यह है कि एक माँ अपने मासूम से बच्चे का कत्ल कैसे कर सकती है. साइकोलॉजी के अनुसार अगर हम इस केस पर नजर डालते हैं तो तलाक के बाद रिश्ते में उतार चढ़ाव इसका एक कारण हो सकता है तलाक भावनात्‍मक रूप से तो भयानक होता ही है, समाजिक रूप से भी लोगों को भीतर तक तोड़ कर रख देता  है कभी कभी यह इस कदर  हावी हो जाता है  कि  मेन्टल हेल्थ पर असर पड़ने लगता है सिकोपेथी  के अनुसार किसी अनहोनी से बचने के लिए जरूरी है कि इन बातों का ध्यान रखें जिससे आप सुरक्षित और खुशहाल जीवन जी सकें.

 

तलाक के बाद ना सिर्फ पार्टनर से ही रिश्ता टूटता है बल्कि कभी कभी  परिवार व समाज से भी रिश्ता खराब हो जाता है जिससे तलाक शुदा होने का दंश तो व्यक्ति झेलता ही है साथ में अकेलेपन का शिकार भी होने लगता है लेकिन तलाक का अर्थ सब कुछ खत्म होना नहीं बल्कि  जीवन कि नई शुरुवात भी होता है और वो आप पर निर्भर करता है कि आप खुद को मजबूत बनाना चाहते हैं या कमजोर. अगर आप अपने जीवन को सुखद बनाना चाहते हैं तो यह लेख आपको बहुत कुछ पाने में लाभकारी सिद्ध होगा.

खुद को जाने

तलाक के बाद का आपका व्यवहार या तलाक से पहले का आपका रविया यदि बदल रहा है तो आप खुद  के बारे में अध्ययन करें क्योंकि अपने बदलते व्यवहार को हम अच्छी  तरह से जान सकते हैं वरना अपने किसी दोस्त या नजदीकी रिश्तेदार  से भी पूछ सकते हैं और अपने मन कि बातों को भी किसी ना किसी के साथ शेयर अवश्य करें.

हिम्मत बढ़ाए

यदि आपके बच्चे हैं तो उन्हें अपनी कमजोरी ना बनाए बल्कि अपनी हिम्मत बनाए क्योंकि कई बार लोगो के ताने, बच्चे के सवाल (आपके तलाक के बारे में ), या आपके पार्टनर से मिलती हुई बच्चे कि आदत या शकल आपकी शादी से मिले ज़ख्म को कुरेद सकते हैं तो ऐसी परिस्थिति में आपको सेहजता के साथ खुद को संभालना होगा व अपने बच्चे के दिमाग़ में भी सकरात्मक सोच के साथ अपने लिए स्नेह  बढ़ाना होगा जिससे समय रहते वो आपकी कड़वी यादों को भुलाने में मदद भी करेगा.

सकरात्मकता में बढ़ोतरी करें

किसी भी कठिन समय को सही तरीके से सिर्फ और सिर्फ सकरात्मक सोच से ही जीता जा सकता है। कई बार हालत इस कदर हावी हो जाते हैं कि अकेला व्यक्ति मानसिक तनाव के चलते गलत कदम उठाने कि तरफ बढ़ने लगता है फिर चाहे ख़ुदकुशी हो या जिससे वह नफरत करता है उसको दर्द देने कि फिराक में।ऐसे में हमें सकरात्मकता के साथ हलात पर काबू करना होगा यदि जरूरत पड़े तो समय रहते सायकाट्रिस्ट को दिखाएं या कॉउंसलिंग कराएं जिससे आपको अपनी सोच बदलने में सहायता मिलेगी. क्योंकि आपका एक गलत कदम ना जाने कितनी जिंदगी खराब कर सकता है.

डौक्टर ने मुझे टैनिस एल्बो की समस्या बताई है, मैं क्या करूं?

सवाल-

डाक्टर ने मुझे टैनिस एल्बो की समस्या बताई है. लेकिन मैं तो सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मैंने कभी यह खेल नहीं खेला है. मुझे टैनिस ऐल्बो कैसे हो सकता है?

जवाब-

ऐसा नहीं है कि जो टैनिस न खेलते हों उन्हें यह समस्या न हो. इस में हाथों के टेंडन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. टैनिंस ऐल्बो की समस्या उन लोगों में अधिक देखी जाती है, जो आगे की भुजाओं और कलाइयों का इस्तेमाल अधिक करते हैं. इस से इन भागों की मांसपेशियां और टेंडन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. जो लोग लगातार कंप्यूटर पर काम करते हैं उन्हें भी माउस के लगातार इस्तेमाल करने से यह समस्या हो जाती है. आप हर 1-2 घंटों में 10 मिनट का ब्रेक लें, कलाइयों और हाथों की ऐक्सरसाइज करें, कैल्सियम और विटामिन डी से भरपूर भोजन का सेवन करें.

ये बात तो आप जानते ही हैं कि शरीर के वे हिस्से जहां हड्डियां आपस में मिलती हैं, उन्हें ही जोड़ कहते हैं. जैसे घुटने, कंधे, कोहनी आदि-आदि. अगर शरीर के इन जोड़ों में कठोरता या सूजन जैसी किसी भी तरह की तकलीफ हो जाती है तो इससे आपको दर्द शुरू हो जाता है और इसे ही जोड़ों में दर्द होने की शिकायत कहा गया है. आजकल देखा गया है कि शरीर में जोड़ों के दर्द की समस्या एक आम सी समस्या बनती जा रही है और इस कारण से लगातार अस्पताल जाते रहने और दवा खाना की मजबूरी हो ही जाती है.

एक बात जो आपके जाननी चाहिए कि ‘अर्थराइटिस’ की शिकायत, जोड़ों में दर्द होने का सबसे आम कारण है. पर इसके अलावा जोड़ों में दर्द होने की कई और भी अन्य वजहे होती हैं, जैसे कि लिगामेंट, कार्टिलेज या छोटी हड्डियों में से किसी की भी रचना में चोट लग जाने के कारण भी आपके जोड़ों में दर्द हो सकता है. ये शरीर का बहुत अहम हिस्सा होते हैं. इनके कारण ही आप उठना, बैठना, चलना, शरीर को मोड़ना आदि कर पाते हैं और ऐसा सब करना संभव हो पाता है. इसीलिए जोड़ों में दर्द होने पर पूरे आपके शरीर का संपूर्ण स्वास्थ्य प्रभावित हो जाता है.

आज हम आपको जोड़ों में दर्द से जुडी कई महत्वपूर्ण बातें बताएंगे. इनके कारण जानने के बाद आप इनसे परहेज कर सकेंगे. यहां हम आपको जोड़ों के दर्द से निजात पाने के लिए कुछ उपचार भी बता रहे हैं. इन्हें अपनाकर आप इस दर्द से जल्दी छुटकारा पा सकते हैं.

Winter Special: फटी एड़ियों ने छीन ली हैं पैरों की खूबसूरती, तो अपनाएं ये घरेलू उपाय

अक्सर ऐड़ियां जब फट जाती हैे तो बहुत परेशानी होती है और कभी कभी एड़ियों में दर्द भी होने लगता है. इन सभी परेशानियों से बचने के लिए कुछ घरेलू उपचार करने चाहिए. जिनसे आपकी फटी हुई एड़ियां जल्द ठीक हो जाऐंगी और खूबसूरत भी नजर आऐंगी.

एडियों की साफ-सफाई का ध्यान रखें:

नहाते समय एड़ियों को अच्छी तरह से साफ करना चाहिए और इसके बाद एड़ियों पर सरसों का तेल लगाना चाहिए.

 पैरों को गर्म पानी से धोऐं:

गुनगुने पानी में दो चम्मच नमक डालकर उस पानी में 10-15 मिनट दोनों पैरों को डालकर बैठें और इसके बाद एड़ियों और तलवों पर सरसों का तेल लगाकर, मोजे पहनना चाहिए इससे एड़ियां सुरक्षित रहती हैं. ऐसा करने से फटी हुई एड़ियां कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती हैं.

नाभि में सरसों का तेल लगायें:

सोते समय नाभि में सरसों का तेल लगाकर सोना फटी एड़ियों के उपचार में लाभकारी होता है. नाभि को तेल के साथ 20-25 बार मलना भी फायदा करता है.

गुलाब जल और ग्लिसरीन भी लाभकारी:

रात को सोने से पहले ग्लिसरीन, गुलाबजल और ऑलिव ऑयल को एकसाथ मिला कर, इससे तलुवों और एड़ियों की मालिश करने से भी फटी एड़ियां जल्दी ठीक हो जाती हैं.

फलों का पेस्ट लगाना है असरकारी:

कच्चे आम को पीसकर फटी हुई एड़ियों पर मालिश करने से फटी एड़ियां जल्दी ठीक हो जाती हैं. इसके अलावा कच्चा पपीता पीस कर उसमें थोड़ा सा सरसों का तेल और हल्दी को मिलाकर भी एड़ियों पर लगाकर ऊपर से कपड़ा बांध लें और कुछ दिन लगातार ऐसा करें तो ही बहुत कम समय में फटी एड़ियां ठीक हो जाती हैं.

आजमाए इन्हें भी :

हरी मुलायम घास और नीम के 10 से 12 पत्ते पीसकर एड़ियों पर अच्छी तरह से लगाकर आधे घंटे बाद धोने से फटी एड़ियों में आराम मिलता है. बरगद का दूध फटी हुई एड़ियों पर लगाने से बहुत अधिक लाभ मिलता है. फटी हुई एड़ियों पर पिसी हुई मेहंदी, सरसों के तेल में मोम मिलाकर लगाने से, प्रतिदिन घी लगाने से फटी हुई एड़ियां ठीक हो जाती हैं. फटी हुई एड़ियों को साबुन, राख, मिट्टी और कीचड़ से बचाकर रखना चाहिए. हफ्ते में एक बार नींबू का रस मिले हुए पानी से पैरों को धोना चाहिए.

पाचन शक्ति बढ़ाएं

पाचनशक्ति के कमजोर हो जाने से भी एड़ियां फटने लगती हैं इसलिए यदि पाचनशक्ति कमजोर है तो सबसे पहले उसे ठीक करने का उपाय करना चाहिए. पाचन शक्ति को ठीक करने के लिए पौष्टिक खाना और पाचनशक्ति बढ़ाने वाले और ‘विटामिन सी ‘ युक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए. एड़ियों को फटने से रोकने के लिए सुबह के समय में नंगे पैर घास पर चलना चाहिये और रोज हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए.

Winter Special: डायबिटीज के मरीज भी खा सकते हैं ये टेस्टी चिक्कियां, जानें बनाने का तरीका

सर्दियों में  चिक्की खाने का विशेष महत्त्व होता है…चूंकि चिक्की को बनाई जाने वाली सामग्री की तासीर गर्म होती है इसीलिए इसे सर्दियों में अपने भोजन में अवश्य शामिल करना चाहिए. चिक्की को आमतौर पर मूंगफली, तिल, मुरमुरे, ड्राइफ्रूट्स, गुड़ तथा शकर से बनाया जाता है परन्तु आजकल गुड़ के स्थान पर खजूर का भी प्रयोग किया जाने लगा है. ख़जूर की चिक्की को संतुलित मात्रा में डायबिटीज के मरीज भी खा सकते हैं. आज हम आपको ऐसी ही कुछ चिक्कियों को बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप बड़ी आसानी से घर पर बना सकतीं हैं-

1. पीनट चिक्की

कितने लोगों के लिए           10

बनने में लगने वाला समय     20 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

मूंगफली के छिल्का उतरे दाने       सवा कप

किसा गुड़                                 1 कप

घी                                           1 टीस्पून

विधि

मूंगफली दाने को हल्का सा दरदरा कर लें. गुड़ और घी को कड़ाही में गर्म करें. लगातार धीमी  आंच पर चलाते रहें. जब गुड़ एकदम गाढ़ा सा दिखने लगे तो कलछी से 1 बून्द ठंडे पानी में डालें, इसे उंगली से चपटा करके तोड़ें, यदि तोड़ने पर आवाज आये तो समझें कि गुड़ चिक्की बनाने के लिए तैयार है, इस स्टेज पर आप गैस बंद कर दें. अब इसमें दरदरे मूंगफली दाने डालकर अच्छी तरह चलाएं. जब मिश्रण बीच में इकट्ठा सा होने लगे तो इसे एक सिल्वर फॉयल या चिकनाई लगे चकले पर रखकर बेलन से पतला बेल लें. तेज धार वाले चाकू से मनचाहे पीसेज में काटकर एयरटाइट जार में भरकर प्रयोग करें.

2. शुगरफ्री ड्रायफ्रूट चिक्की

कितने लोंगों के लिए              8

बनने में लगने वाला समय       30 मिनट

मील टाइप                          वेज

सामग्री

बीज निकले खजूर            500 ग्राम

घी                                  2 टेबलस्पून

मिक्स नट्स(काजू, बादाम, अखरोट और पिस्ता समान मात्रा में)      कुल 250 ग्राम

नारियल बुरादा               1 कप

विधि

खजूर को बारीक टुकड़ों में काटकर मिक्सी में पल्स मोड पर पीस लें. सभी मेवा को गरम घी में तलकर निकाल लें. अब बचे घी में पिसे खजूर डालकर अच्छी तरह गाढ़ा होने तक लगातार चलाते हुए भूनें. जब मिश्रण पैन में चिपकना छोड़ दे तो भुनी मेवा डालकर चलाएं और गैस बंद कर दें.तैयार मिश्रण को चिकनाई लगी ट्रे में फैलाएं. ठंडा होने पर चौकोर टुकड़ों में काटकर एयरटाइट जार में भरें.

-मुरमुरा चिक्की

कितने लोगों के लिए          10

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री

मुरमुरे(पफ्ड राइस)            ढाई कप

गुड़                                 1 कप

घी                                  1 टेबलस्पून

विधि

मुरमुरे को बिना घी के भारी तले की कढ़ाई में लगातार चलाते हुए धीमी आंच पर 5 से 10 मिनट तक भूनकर एक थाली में निकाल लें. अब इसी पैन में घी डालकर गुड़ तोड़कर डालें. जब गुड़ में बुलबुले आने लगें तो एक कटोरी ठंडे पानी मे एक बूंद डालें, बून्द की गोली सी बनने लगे तो समझें कि चाशनी तैयार है. तैयार चाशनी में मुरमुरे डालकर अच्छी तरह चलाकर चिकनाई लगी ट्रे में जमाएं. मुरमुरे की प्रक्रिया को बहुत जल्दी जल्दी करने की आवश्यकता होती अन्यथा यह ठंडा हो जाता है और फिर जमने में परेशानी होती है. गर्म में ही चाकू से निशान बनाएं और ठंडा होने पर तोड़कर एयरटाइट जार में भरें.

3. कोकोनट चिक्की

कितने लोगों के लिए          8

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

नारियल लच्छा               2 कप

शकर                            1/2 कप

गुड़                               1/2 कप

घी                                1 टेबलस्पून

विधि

एक नॉनस्टिक पैन में बिना घी के नारियल लच्छा को धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए हल्का सा भूनकर अलग निकाल लें. अब इसी पैन में घी गरम करके शकर और गुड़ डाल दें. आंच एकदम धीमी रखें. इसे एकदम गाढ़ा और सख्त होने तक पकाएं. अब गैस बंद करके  इसमें नारियल लच्छा मिलाकर चिकनाई लगी ट्रे में डालकर एकसार करके जमा दें. मनचाहे टुकड़ों में काटकर एयरटाइट जार में भरकर प्रयोग करें.

Winter Special: सर्दियों में बीमारियों से बचाव के लिए लाइफस्टाइल में करें ये बदलाव

खुशगवार सर्दी का मौसम अपने साथ हैल्थ से संबंधित समस्याएं भी लाता है. इस का सब से बड़ा कारण बदलते मौसम की अनदेखी करना है. बदलते मौसम की वजह से वायरल, गले का इन्फैक्शन, जोड़ों में दर्द, डेंगू, मलेरिया, निमोनिया, अस्थमा, आर्थ्राइटिस, दिल व त्वचा से संबंधित समस्याएं अधिक बढ़ जाती हैं. अगर इस मौसम का लुत्फ उठाना है, तो अपनी दिनचर्या को मौसम के अनुरूप ढालना बेहद जरूरी है.

सर्दियों में किसी भी तरह के बुखार को अनदेखा न करें. छाती का संक्रमण हो या टाइफाइड अथवा वायरल, इस की जांच जरूर कराएं. मलेरिया का शक हो तो पीएच टैस्ट करवाएं. ये सभी जांचें बेहद सामान्य हैं तथा किसी भी अस्पताल में आसानी से हो जाती हैं.

सर्दी के शुरू होते ही आर्थ्राइटिस यानी जोड़ों के दर्द की समस्या काफी बढ़ जाती है. इस के मरीज कुनकुने पानी से नहाना शुरू कर दें. हाथपैरों को ठंड से बचा कर रखें. सुबह के समय धूप में बैठें. इस से शरीर को विटामिन डी मिलता है. प्रोटीन और कैल्सियमयुक्त डाइट लें और ठंडी चीजों का सेवन न करें.

गरमी के बाद एकदम सर्दी आने पर हड्डियों, साइनस और दिल से संबंधित बीमारियां तेजी से बढ़ जाती हैं. हाई ब्लडप्रैशर और दिल के रोगियों के लिए यह मौसम अनुकूल नहीं होता. ऐसे में बेहद जरूरी है कि बाहर के बदलते तापमान के अनुसार शरीर के तापमान को नियंत्रित रखा जाए. जरूरत से ज्यादा खाने से भी बचें, क्योंकि सर्दियों में फिजिकल वर्क कम हो जाता है, जो वजन बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है. सादा और संतुलित भोजन लें और नमक का कम प्रयोग करें. तनाव व डिप्रैशन से दूर रहने के लिए खुद को अन्य कामों में व्यस्त रखें. छाती में किसी भी कारण दर्द महसूस हो या जलन बनी रहे तो इसे हलके में न लें. डाक्टर को जरूर दिखाएं.

सांस से संबंधित बीमारियां भी इस मौसम में अपना असर दिखाने लगती हैं. एहतियात के तौर पर सांस की बीमारियों के मरीजों को बंद कमरे में हीटर आदि नहीं चलाना चाहिए, इस से हवा में औक्सीजन कम हो जाती है और सांस लेने में तकलीफ होती है. तेज स्प्रे, कीटनाशक, धुआं या कोई गंध जिस से सांस में तकलीफ हो, उस से भी दूर रहें. परेशानी ज्यादा बढ़ने पर डाक्टर की सलाह लें.

त्वचा और केशों से जुड़ी समस्याएं भी सर्दियों से अछूती नहीं हैं. हथेलियों और एडि़यों में दरारें पड़ना, नाखूनों का कमजोर पड़ना, होंठों के फटने और सूखने की समस्या, सिर में खुश्की और रूखापन तथा केशों के झड़ने की समस्या सर्दियों में हो सकती है.

बीमारियों से बचाव के टिप्स

बच्चों के कपड़ों आदि का पूरा ध्यान रखें. उन के हाथपैरों और सिर को ढक कर रखें. उन्हें गीले कपड़ों में न रहने दें. ठंडी चीजें न खिलाएं और ठंडी हवा में बाहर न जाने दें. बच्चों के लिए थोड़ी सी भी सर्दी हानिकारक हो सकती है.

अस्थमा से पीडि़त और बुजुर्ग धुंध छंटने के बाद ही बाहर निकलें. दवाएं और इनहेलर वक्त पर लेते रहें.

हाथपैरों को फटने और नाखूनों को टूटने से बचाने के लिए उन्हें रात को हलके गरम पानी में नमक डाल कर धोएं, फिर अच्छी तरह सुखा कर कोई कोल्ड क्रीम लगाएं. होंठों पर ग्लिसरीन लगाएं.

ऐलर्जी से पीडि़त लोग साबुन, डिटर्जैंट और ऊनी कपड़ों के सीधे संपर्क से बचें.

कभी खाली पेट घर से बाहर न निकलें, क्योंकि खाली पेट शरीर को कमजोर करता है. ऐसे में वायरल इन्फैक्शन का डर ज्यादा रहता है.

मौसमी फलसब्जियां जरूर खाएं. बासी खाना या पहले से कटी हुई फलसब्जियां न खाएं.

अगर मौर्निंग वाक की आदत है तो हलकी धूप निकलने के बाद ही बाहर टहलने निकलें.

जिन्हें ऐंजाइना या स्ट्रोक हो चुका हो, उन्हें इस मौसम में नियमित रूप से दवा लेनी चाहिए और सर्दियां शुरू होते ही एक बार चैकअप करा लेना चाहिए. डाक्टर की सलाह से जरूरी दवा साथ रखें.

ठंडे, खट्टे, तले व प्रिजर्वेटिव खाने के सेवन से इस मौसम में संक्रमण की आशंका कहीं अधिक बढ़ जाती है. इम्यून सिस्टम को मजबूत रखने के लिए विटामिन सी से भरपूर फलों एवं ताजा दही का सेवन करें. हरी पत्तेदार सब्जियों के साथसाथ फाइबरयुक्त भोजन को भी अहमियत दें.

इस मौसम में त्वचा पर भी काफी प्रभाव पड़ता है. त्वचा में रूखापन बढ़ जाता है. इसलिए अधिक मसालेदार और तलाभुना खाना न खाएं, क्योंकि यह त्वचा को खुश्क बनाता है.

सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पानी पीना कम न करें. इस मौसम में आमतौर पर लोग पानी कम पीते हैं, जो सही नहीं है. इस से शरीर में पानी की कमी हो जाती है, जिस कारण कई दिक्कतें आती हैं.

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