‘‘उफ यह बारिश तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही है,’’ निशा बुदबुदाई.
उस दिन सुबहसुबह ही बड़ी जोर से बारिश शुरू हो गई थी और जैसेजैसे बारिश तेज हो रही थी, वैसेवैसे ‘अब मैं कैसे मिलने जाऊंगी राहुल से इस बारिश में?’ सोचसोच कर निशा की परेशानी और धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. जाना भी जरूरी था राहुल से मिलने, क्योंकि राहुल मुंबई से दिल्ली सिर्फ उस से मिलने के लिए आया था.
उस ने सोचा था कि अपने दोस्त के साथ एक अच्छा वक्त बिताऊंगी. घर के रोजमर्रा के काम करतेकरते वह ऊब गई थी. जिंदगी में थोड़ा बदलाव चाहती थी, इसलिए जब राहुल ने मिलने की पेशकश रखी तो वह मना न कर सकी.
तभी अचानक उस का फोन बज उठा.
फोन राहुल का था. उस ने पूछा, ‘‘तुम कितने
बजे आओगी?’’
निशा ने घबरा कर कहा, ‘‘ऐसा करते हैं कल मिलते हैं.’’
‘‘मैं तो अपने होटल से निकल चुका हूं और कल वापस चला जाऊंगा,’’ बोल कर राहुल ने फोन काट दिया.
फिर निशा के मन में अजीब सी उथलपुथल शुरू हो गई. अब वादा किया है तो निभाना ही पड़ेगा, यही सोच कर तेज बारिश में छाता ले कर वह निकल पड़ी.
उसे राहुल ने सुभाष नगर मैट्रो स्टेशन पर बुलाया था.
चलतेचलते उस का दिल अतीत की गोद में चला गया.
2 महीने पहले नैट पर चैटिंग करते वक्त उसकी राहुल से मुलाकात हुई थी. उस के बाद
राहुल का अपने काम से वक्त निकाल कर उस से फोन पर बात करना, उसे अच्छा लगता था. जबकि उस के पति को उस से बात करने की फुरसत ही नहीं थी. वे अपने काम में इतना उल?ो रहते थे कि पत्नी का अस्तित्व महज 2-4 कामों के लिए था.
उस के एक बार बुलाने पर राहुल का ?ाट से औनलाइन आ जाना, उस की हर बात को ध्यान से सुनना और उस की परवाह करना कुछ ऐसा था, जो उसे राहुल की ओर आकर्षित कर रहा था. तभी एक दिन जब उस ने मैसेज भेजा कि अगर मैं दिल्ली आऊं तो क्या तुम मु?ा से मिलोगी? तो उस ने इस बात को मान लिया था.
राहुल के साथ हुई तमाम चैटिंग को सोचतेसोचते निशा कब मैट्रो स्टेशन पहुंच गई
उसे पता ही नहीं चला. राहुल की बस एक ?ालक ही तो देखी थी उस ने नैट पर, कैसे पहचानेगी उसे वह इसी सोच में गुम थी कि अचानक एक 5 फुट 7 इंच का सांवला सा आदमी टोकन जमा कर के बाहर निकला. इस बात से बेखबर कि 2 अनजान निगाहें उसे घूर रही हैं और पहचानने की कोशिश कर रही हैं. उस ने एक बार उड़ती सी नजर निशा पर डाल कर नजरें फेर लीं. अचानक उसे लगा कि वही
2 निगाहें उसे घूर रही हैं. उस ने पलट कर देखा निशा अभी भी उसे घूर रही थी और हलकेहलके मुसकरा रही थी.
राहुल उसे एकटक देखता ही रह गया. निशा ने सफेद रंग का सूट पहना हुआ था, जो उस के गोरे रंग पर बहुत खिल रहा था और उस की लुभावनी मुसकान ने तो उस का दिल ही हर लिया. उस का मन हुआ कि एक बार उसे बांहों में ले कर एक किस ले ले. पर अपने को संभालते हुए निशा के नजदीक जा कर हलके से मुसकराते हुए बोला, ‘‘हाय, कैसी हो?’’
‘‘मैं ठीक हूं, तुम अपनी सुनाओ. आखिर तुम यहां तक आ ही गए मु?ा से मिलने,’’ निशा ने खुश होते हुए कहा.
‘‘क्या एक दोस्त अपने दोस्त को मिलने नहीं आ सकता?’’
‘‘हां, बगैर काम के,’’ निशा ने जैसे ही बोला दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.
फिर राजीव चौक के 2 टोकन ले कर दोनों प्लेटफार्म की सीढि़यां चढ़ने लगे. एक अजीब सा डर खामोशी के रूप में दोनों के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. राहुल के मन में डर था कि कहीं निशा मु?ो किसी जुर्म में फंसा न दे, तो निशा को डर था कि आज कहीं कुछ ऐसा न हो जाए कि उसे अपने इस मिलने के फैसले पर पछताना पड़े.
मैट्रो आई तो दोनों उस पर चढ़ गए. राहुल को निशा की परेशानी का कुछकुछ आभास होने लगा था. उस ने माहौल की बो?िलता को कम करने के लिए पूछा, ‘‘छुट्टियां कैसी बीतीं? कहांकहां घूमीं? बच्चे कैसे हैं?’’
निशा ने चहकते हुए जवाब दिया, ‘‘छुट्टियों में बहुत मस्ती की. बच्चों ने भी नानी के घर खूब धमाचौकड़ी की.’’
अब दोनों थोड़ाथोड़ा सहज होने लगे थे और 20 मिनट में राजीव चौक पहुंच गए. वहां से बाहर निकले तो पास की ही एक बिल्डिंग के नजदीक पहुंचे. उस में राहुल को कुछ काम था.
‘‘मैं यहीं रुकती हूं, तुम अपना काम निबटा आओ,’’ निशा ने घबराते हुए कहा.
‘‘मैं इतना बुरा इंसान नहीं हूं,’’ फिर कुछ सोच कर वह बोला, ‘‘तुम साथ चलो, मैं तुम्हें यहां अकेला नहीं छोड़ सकता,’’ इतना कह कर उस ने उस का हाथ पकड़ा और लिफ्ट की तरफ बढ़ गया.
अगर लिफ्ट को कुछ हो गया तो क्या होगा? अगर यह बीच में रुक गई
तो? अगर मैं समय पर घर नहीं पहुंची तो घर वालों को क्या जवाब दूंगी? सोचसोच कर निशा डर रही थी और सोच रही थी कि न ही मिलने आती तो अच्छा था.
उस के चेहरे पर आतेजाते भाव पर राहुल की नजर थी. वह अपनी तरफ से उस का पूरा खयाल रख रहा था. खैर लिफ्ट कहीं रुकी नहीं और राहुल 10वें फ्लोर के एक औफिस में
अपना काम निबटाने चला गया. निशा बाहर लाउंज में बैठी रही. वहां से आने के बाद राहुल उसे एक फ्लैट पर ले गया, जो उस के दोस्त
का था. कमरे में एक बैड था और एक तरफ कुरसियां व 1 मेज रखी थी. एक तरफ छोटी गैस और 8-10 जरूरत भर की चीजें रखी हुई थीं रसोई के नाम पर.
निशा कुरसी पर बैठी तो राहुल उस के पास आ कर बैठ गया. फिर बाहर बारिश क्या तेज हुई, निशा के दिल की धड़कन भी तेज हो गई. एक अनजाना डर उस के दिल में घर कर गया. तभी अचानक राहुल ने निशा के हाथ पर अपना हाथ रख दिया, तो वह घबरा कर उठ गई.
‘‘रिलैक्स निशा, तुम यह बिलकुल मत सम?ाना कि मैं तुम्हें यहां कोई जोरजबरदस्ती करने के लिए लाया हूं. लोगों की भीड़ में तुम से बात नहीं कर पाता, इसलिए तुम्हें यहां ले आया. अगर तुम्हें कुछ गलत लगता है तो हम अभी बाहर चलते हैं.’’
वह कुछ जवाब नहीं दे पाई. उसे अपनेआप पर और अपने दोस्त पर विश्वास था जिस के चलते वह यहां तक उस के साथ आ गई थी.
‘‘चलो मैं तुम्हारे लिए अच्छी सी चाय बनाता हूं.’’
‘‘तुम्हें चाय बनानी आती है?’’ निशा ने हैरानी से पूछा.
‘‘हां भई, शादीशुदा हूं. बीवी ने थोड़ाबहुत तो सिखाया ही है,’’ वह कुछ इस अंदाज में बोला कि दोनों हंसे बिना न रह सके. अब वह कुछ सहज हो गई थी. बारिश अब रुक गई थी और धूप निकल आई थी. चाय पीतेपीते राहुल ने देखा कि सूरज की किरणें निशा के चेहरे पर पड़ रही थीं. उस ने फिर अपनी बीवी और बच्चे के बारे में बताया. बीवी के बारे में कहा कि वह एक अच्छी पत्नी और मां है. उस ने पूरे घर को अच्छे से संभाला हुआ है.
निशा ने भी अपने संयुक्त परिवार के बारे में बताया जहां की वह एक चहेती सदस्या है. सब उस से बहुत प्यार और उस पर विश्वास करते हैं.
बातों का सिलसिला थमा तो निशा ने राहुल को अपनी ओर देखते पाया.
वह घबरा कर उठ गई और बोली, ‘‘अब मु?ो चलना चाहिए.’’
राहुल ने उस का हाथ पकड़ कर आंखों में ?ांकते हुए कहा, ‘‘कुछ देर और नहीं रुक सकतीं?’’
‘‘3 बज गए हैं. बच्चे घर वापस आ गए होंगे और मेरा इंतजार कर रहे होंगे.’’
राहुल ने उसे फिर रुकने के लिए नहीं कहा. दोनों बातें करतेकरते कमरे से बाहर आ कर मैट्रो स्टेशन पहुंच गए और 2 टोकन सुभाष नगर के ले कर मैट्रो में चढ़ गए. अचानक मैट्रो एक ?ाटके से रुकी तो निशा संभलतेसंभलते भी राहुल की बांहों में आ गई. उस ने उसे संभालते हुए पूछा, ‘‘तुम ठीक हो?’’
‘‘हां,’’ उस ने ?ोंपते हुए कहा.
फिर उस ने निशा की आंखों में ?ांकते हुए कहा, ‘‘निशा, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. जब से मेरी तुम से दोस्ती हुई है कहीं मेरे मन में तुम्हें पाने की इच्छा पनपने लगी थी. पर तुम से मिल कर मु?ो आत्मग्लानि महसूस हो रही है कि मैं ने ऐसा सोचा भी कैसे? सूरज की किरणों ने मेरे दिल में छिपी सारी भावनाओं को भेद दिया. तुम एक सफेद गुलाब की तरह हो जो हर किसी को सचाई और पवित्रता का संदेश देता है. तुम्हें पा कर मैं उस का अस्तित्व नहीं मिटाना चाहता.’’
निशा ने उस से कहा, ‘‘कुदरत ने हम स्त्रियों को छठी इंद्रिय दी है, जो आदमी के मनसूबों से रूबरू करवाती है. मु?ो इस बात का आभास था. पर फिर भी मु?ो अपनेआप पर और तुम पर विश्वास था. तुम 100 फीसदी सही थे जब तुम ने कहा था कि मैं इतना बुरा इंसान नहीं हूं. तुम्हारा इस तरह अपनी बात कुबूल करना इस बात का प्रमाण है. हम अगर आज कुछ गलत करते तो वह हमारे पार्टनर के साथ धोखा होता.’’
‘‘शायद तुम्हें पाने की इच्छा मैं फिर न दबा पाऊं, इसलिए हम आज के बाद कभी नहीं मिलेंगे,’’ कह कर राहुल मैट्रो की सीढि़यां उतर कर हमेशा के लिए चला गया. न कोई आस न कोई करार. हां अपनी बात की एक अमिट छाप निशा के दिलोदिमाग पर छोड़ गया. जिस मैट्रो स्टेशन से यह कहानी शुरू हुई थी वहीं आ कर खत्म हो गई.