अस्तित्व: घर की चिकचिक से क्यों परेशान थी राधा

घड़ीका अलार्म एक अजीब सी कर्कशता के साथ कानों में गूंजने लगा तो झल्लाहट के साथ मैं ने उसे बंद कर दिया. सोचा कि क्या करना है सुबह 5 बजे उठ कर. 9 बजे का दफ्तर है लेकिन 10 बजे से पहले कोई नहीं पहुंचता. करवट बदल कर मैं ने चादर को मुंह तक खींच लिया.

‘‘क्या करती हो ममा उठ जाओ. 7 बजे मुझे स्कूल जाना है. बस आ जाएगी,’’ साथ लेटे सोनू ने मुझे हिला कर कहा.

मैं झल्ला कर उठी, ‘‘जाना मुझे है कि तुझे चल तू भी उठ. रोज कहती हूं कि 5 बजे के बजाय 6 बजे का अलार्म लगाया कर, लेकिन तू मुझे 5 बजे ही उठाता है और खुद 6 बजे से पहले नहीं उठता.’’

‘‘सोनू…सोनू…स्कूल नहीं जाना क्या?’’ मैं ने उसे झिझोड़ दिया.

‘‘आप पागल हो मम्मा,’’ कह कर उस ने चादर चेहरे पर खींच लिया. फिर बोला, ‘‘मुझे 10 मिनट भी नहीं लगेंगे तैयार होने में. लेकिन आप ने सारा घर सिर पर उठा लिया.’’

‘‘तू ऐनी को देख. तुझ से छोटा है पर तुझ से पहले उठ चुका है. जबकि उस का स्कूल 8 बजे का है,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बस नाश्ता तैयार कर लो. चाहे

7 बजे मुझे जाना हो और 8 बजे ऐनी को,’’ वह ?ाल्ला कर बोला.

मैं मन मार कर उठी और चाय बनाने लगी. फिर बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां लेते हुए अखबार की सुर्खियों पर नजरें दौड़ा ही रही थी कि अंदर से आवाज आई, ‘‘मम्मी, पापा अखबार मांग रहे हैं.’’

मैं ने बुझे मन से अखबार के कुछ पन्ने पति को पकड़ाए और पेज थ्री पर छपी फिल्मी खबरें पढ़ने लगी. अभी खबरें पूरी पढ़ नहीं पाई थी कि पति ने आ कर ?ाटके से वे पेज भी मेरे सामने से उठा लिए. खबर पूरी न पढ़ पाने की वजह से मजा किरकिरा हो गया.

मैं ने चाय का अंतिम घूंट लिया और रसोई में आ गई. बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. जल्दीजल्दी 2 परांठे सेंके  और गिलास में दूध डाल बच्चों को नाश्ता दे उन का टिफिन तैयार करने लगी.

‘‘मम्मी, मेरी कमीज नहीं मिल रही,’’ ऐनी ने आवाज लगाई.

‘‘तुझे कभी कुछ मिलता भी है?’’ फिर कमरे में आ कर अलमारी से कमीज निकाल कर उसे दी.

‘‘मम्मी दूध ज्यादा गरम है. प्लीज ठंडा कर दो,’’ सोनू ने टाई की नौट बांधते हुए हुक्म फरमा दिया.

दूध ठंडा कर वापस जाने लगी तो सोनू मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया, ‘‘मम्मी

प्लीज 1 मिनट,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी स्कूल बैग से कुछ निकालने लगा. फिर मिन्नतें करने लगा कि मम्मी, मेरा रिपोर्टकार्ड साइन कर दो…प्लीज मम्मी.’’

‘‘जरूर मार्क्स कम आए होंगे. इस बार तो मैं बिलकुल नहीं करूंगी. बेवकूफ समझ रखा है क्या तू ने मुझे जा, अपने पापा से करवा साइन. और तू ने मुझे कल क्यों नहीं दिखाया अपना रिपोर्टकार्ड?’’

‘‘मम्मा, प्लीज धीरे बोलो, पापा सुन लेंगे,’’ उस के चेहरे पर याचना के भाव उभर आए. हाथ पकड़ कर प्यार से मुझे पलंग पर बैठाते हुए

उस ने पेन और रिपोर्टकार्ड मुझे पकड़ा दिया.

‘‘जब भी मार्क्स कम आते हैं तो मुझे कहते हैं और जब ज्यादा आते हैं तो सीधे पापा के पास जाते हैं,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रिपोर्टकार्ड खोल कर देखने लगी. साइंस में 100 में से 89, हिंदी में

85, मैथ्स में 92. मेरी आंखें चमकने लगीं. चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उसे शाबासी देने के लिए मैं ने नजरें उठाई तो देखा कि आईने में बाल संवारता हुआ वह शरारत भरी निगाहों से मुझे ही देख रहा था. मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोल उठा, ‘‘जल्दी से साइन कर दो न मम्मा, इतनी देर से मार्क्स ही देखे जा रही हो.’’

बेकाबू होती खुशी को नियंत्रित करते हुए मैं ने पेन का ढक्कन खोला. रिपोर्टकार्ड के दायीं ओर देखा तो ये पहले ही साइन कर चुके थे.

दोनों फिर मुझे देख कर हंसने लगे तो मैं खिसिया गई.

‘‘घर की चाबी रख ली है न? कहीं ऐसा न हो कि आज मुझे बाहर गमले के पीछे छिपा कर जाना पड़े,’’ मैं ने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा.

बच्चों के काम से फारिग हुई ही थी कि पति ने दोबारा चाय की फरमाइश कर दी. ‘‘पत्ती जरा तेज डालना. सुबह जैसी चाय न बनाना. तुम्हें 16 सालों में चाय बनानी नहीं आई.’’

‘‘तुम अपनी चाय खुद क्यों नहीं बना लेते? कभी पत्ती कम तो कभी दूध ज्यादा. हमेशा मीनमेख निकालते रहते हो,’’ मैं ने भी अपना गुबार निकाल दिया.

आज दफ्तर को देर हो कर रहेगी. अभी सब्जी भी बनानी है और दूध भी उबालना है. क्याक्या करूं. मैं अपनेआप से झंझलाने लगी.

‘‘क्यों, तू समय पर  नहीं आ सकती? ये कौन सा वक्त है आने का? तेरी वजह से क्या मैं दफ्तर जाना छोड़ दूं?’’ मैं ने काम वाली पर सारा गुस्सा उतार दिया.

सारा काम निबटा कर नहाने गई तो देखा बाथरूम बंद.

‘‘तुम रोज जल्दी क्यों नहीं नहाते? जबकि तुम्हें पता है कि इस वक्त ही मेरा काम खत्म हो पाता है. अब जल्दी बाहर निकलो,’’ मैं बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए लगभग चिल्ला दी.

‘‘जब तक मैं नहा कर निकलूं प्लीज मेरा रूमाल और मोजे पलंग पर रख दो,’’ शौवर के शोर को चीरती उन की मद्धिम पड़ गई आवाज सुनाई दी.

‘‘तुम मुझे 2 मिनट भी चैन से जीने मत देना,’’ मैं ने अपना तौलिया और गाउन वहीं पटका और रूमाल और मोजे ढूंढ़ने कमरे में चली गई.

यह इन का रोज का काम था. बापबेटे मुझ पर हुक्म चलाते.

‘चाय कड़क बनाना’

‘अखबार कहां है?’

‘मम्मी, दूध में मालटोवा नहीं डाला?’

‘आमलेट कच्चा है.’

‘मम्मी, ब्रैड में मक्खन नहीं लगाया?’

‘कभी बहुत गरम दूध दे देती हो तो कभी बिलकुल ठंडा. मम्मी, आप को हुआ क्या है?’

‘‘अब किस सोच में खड़ी हो? जाओ नहा लो,’’ पति बाथरूम से बाहर निकल कर बोले.

मैं पैर पटकती बाथरूम में घुस गई.

घर पर ही 10 बज गए. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दफ्तर पहुंची. सोचा कि आज बौस से फिर डांट खानी पड़ेगी. लेकिन अपने सैक्शन में पहुंचने पर पता चला कि आज बौस छुट्टी पर हैं. दिमाग कुछ शांत हुआ.

‘रोज का काम यदि रोज न निबटाओ तो काम का ढेर लग जाता है,’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

कोर्ट केस की फाइल पूरी कर बौस की मेज पर पटकी और अपनी दिनचर्या का

विश्लेषण करने लगी. कभी अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती. घरदफ्तर, पतिबच्चों के बीच एक कठपुतली की तरह दिन भर नाचती रहती हूं. कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी इतनी व्यस्त हो जाएगी. कल से सुबह ठीक 5 बजे उठा करूंगी. ऐनी को आमलेट पसंद नहीं है तो उसे नाश्ते में दूध ब्रैड या परांठा दूंगी. सोनू को आमलेट और फिर अखबार के साथ इन्हें दोबारा कड़क सी चाय.

‘‘किस सोच में बैठी हो मैडम? आज चाय पिलाने का इरादा नहीं है क्या?’’ साथ बैठी सहयोगी ने ताना मारा.

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. चलो कैंटीन चलते हैं,’’ मैं थोड़ा सामान्य हुई.

‘‘आज बड़ी उखड़ीउखड़ी लग रही हो.

क्या बात है? सुबह से कोई बात भी नहीं की,’’ उस ने कैंटीन में इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए कोने में एक खाली मेज की तरफ चलने का इशारा करते हुए कहा.

‘‘यार, बात तो कोई नहीं. लेकिन आजकल काम का बहुत बो?ा है. जिंदगी जैसे रेल सी बन गई है. बस भागते रहो, भागते रहो,’’ कह कर मैं ने चाय की चुसकी ली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. कल मेरे बेटे के पैर में चोट लग गई तो डाक्टर के पास 2 घंटे लग गए. मेरे साहब के पास तो फुरसत ही नहीं है. सब काम मैं ही करूं,’’ झंझलाहट अब उस के चेहरे पर भी आ गई.

‘‘लगता है आज का दिन ही बोझिल है. चलो छोड़ो, कोई दूसरी बात करते हैं. ये भी क्या जिंदगी हुई कि बस सारा दिन बिसूरते रहो,’’ मैं हंस दी.

‘‘मैं ने एक नया सूट लिया है, लेटैस्ट डिजाइन का,’’ वह मुसकराते हुए बोली.

‘‘अच्छा, तुम ने पहले तो नहीं बताया?’’

‘‘दफ्तर के काम की वजह से भूल गई.’’

‘‘कितने का लिया?’’

‘‘700 का. उन्हें बड़ी मुश्किल से मनाया. मेरे नए कपड़े खरीदने से बड़ी परेशानी होती है उन्हें. बच्चे भी उन्हीं के साथ मिल जाते हैं.’’

मेरी हंसी निकल गई, ‘‘मेरे साथ भी तो यही होता है.’’

‘‘कब पहन कर आ रही हो?’’ मैं ने बातों में रस लेते हुए पूछा.

‘‘अभी तो दर्जी के पास है. शायद 3-4 दिन में सिल कर दे दे,’’ उस ने कहा.

‘‘अरे, अगले महीने 21 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन भी तो है, तभी पहनना,’’ मैं ने जैसे अपनी याददाश्त पर गर्व करते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे याद रहा?’’

‘‘हर साल तुम्हें बताती हूं कि मेरे छोटे बेटे का बर्थडे भी उसी दिन पड़ता है, भुलक्कड़ कहीं की.’’

‘‘हां यार, मैं हमेशा भूल जाती हूं,’’ वह खिसिया गई.

कुछ देर इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर, ‘‘चलो अब अंदर चलते हैं. बहुत गप्पें मार लीं. थोड़ाबहुत काम निबटा लें. आज शर्माजी की सेवानिवृत्ति पार्टी भी है,’’ मैं एक ही सांस में कह गई.

दिन भर फाइलों में सिर खपाती रही तो समय का पता ही नहीं चला.

ओह 5 बज गए… मैं ने घड़ी पर नजर डाली और दफ्तर के गेट के बाहर आ गई.

पति पहले ही मेरे इंतजार में स्कूटर ले कर खडे़ थे. उन्हें देख मैं मुसकरा दी.

रास्ते में इधरउधर की बातें होती रहीं.

‘‘आज बढि़या सा खाना बना लेना.’’

‘‘क्यों, आज कोई खास बात है?’’

‘‘नहीं, कई दिनों से तुम रोज ही दालचावल बना देती हो.’’

‘‘तो तुम सब्जी ला कर दिया करो न.

सब्जी मंडी जाने के नाम पर तुम्हें बुखार चढ़ जाता है.’’

‘‘रोज रेहड़ी वाले गली में घूमते हैं. उन से सब्जी क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘खरीद कर तो तुम्हीं लाओ. चाहे रेहड़ी वाले से, चाहे मंडी से. मुझे तो बस घर में सब्जी चाहिए वरना आज भी दालचावल…’’

‘‘अच्छा मैं तुम्हें घर के पास छोड़ कर सब्जी ले आता हूं. अब तो खुश?’’

‘‘हां, बड़ा एहसान कर रहे हो,’’ कहती हुई मैं घर की सीढि़यां चढ़ने लगी.

‘‘मेरे गुगलूबुगलू क्या कर रहे हैं?’’ मैं ने लाड़ जताते हुए बच्चों से पूछा.

‘‘मम्मी कैंटीन से खाने के लिए क्या लाई हो?’’ ऐनी ने मेरे गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यहां सब्जी बड़ी मुश्किल से आती है, तुझे अपनी पड़ी है,’’ मैं ने पर्स खोलते हुए कहा.

‘‘सब के मम्मीपापा रोज कुछ न कुछ लाते हैं. जस्सी का फ्रिज तो तरहतरह की चीजों से भरा रहता है,’’ सोनू ने उलाहना दिया.

‘‘तो अपने पापा को बोला कर न बाजार से ले आया करें. मैं कहांकहां जाऊं. ये लो,’’ मैं ने एक पैकेट उन की तरफ उछाल दिया.

‘‘ये क्या है?’’

‘‘मिठाई है. औफिस में पार्टी हुई थी. मैं तुम्हारे लिए ले आई.’’

मैं ने पर्स अलमारी में रखा, जल्दीजल्दी कपड़े बदले और टीवी चालू कर दिया. थोड़ी देर में मेरा मनपसंद धारावाहिक आने वाला था.

‘‘आज चाय कौन बनाएगा?’’ मैं ने आवाज में रस घोलते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

कोई उत्तर नहीं मिला तो मैं उठ कर उन के कमरे में गई. देखा दोनों बच्चे कंप्यूटर पर गेम खेलने में मस्त थे.

‘‘रोज खुद चाय बनाओ. इन लड़कों का कोई सुख नहीं. लड़की होती तो कम से कम मां को 1 कप चाय तो बना कर देती,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रसोई में आ गई.

‘‘मम्मी, कुछ कह रही हो क्या?’’

‘‘नहीं,’’ मैं चिल्ला दी.

रोटी का डब्बा खोल कर देखा तो लंच के लिए बनाए परांठों में से 2 परांठे अभी भी उस में पड़े थे.

‘‘दोपहर का खाना किस ने नहीं खाया?’’ मैं ने कमरे में दोबारा आ कर पूछा.

‘‘मैं ने तो खा लिया था,’’ सोनू बोला.

मैं ने ऐनी की तरफ देखा.

‘‘मम्मी आप के बिना खाना अच्छा नहीं लगता…अपने हाथ से खिला दो न,’’ उस ने स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए ही लाड़ से कहा मेरा मन द्रवित हो उठा. खाना गरम कर अपने हाथों से उसे खिलाया और वापस रसोई में आ कर चाय बनाने लगी.

ट्रिंगट्रिंग…

शायद ये आ गए. बच्चों ने जल्दी से कंप्यूटर बंद कर किताबें खोल लीं. मेरी हंसी निकल गई.

‘‘कुंडी खोलने में बड़ी देर लगा दी. कितनी देर से वजन उठाए खड़ा हूं,’’ सब्जी और दूध के लिफाफे रसोई की तरफ लाते हुए ये भुनभुनाए.

‘‘अरे चाय बना रही थी इसीलिए.’’

‘‘जरा ढंग से बना लेना. मेरी चाय में अलग से चाय की पत्ती डाल कर कड़क कर देना. सुबह की चाय फीकीफीकी थी.’’

‘‘अरे सुबह तो मैं ने दोबारा कड़क चाय बनाई थी. किसी दिन पत्ती का सारा डब्बा उड़ेल दूंगी,’’ मैं ने नाराजगी दिखाते हुए कहा. फिर जल्दीजल्दी सुबह का बचा दूध गरम कर बच्चों को दे आई और ताजा दूध को गैस सिम कर उबलने के लिए रख दिया. चाय ले कर कमरे में आई तो मेरा पसंदीदा धारावाहिक शुरू हो चुका था.

विदेशी बहू: क्या तुषार की मां ने किया स्कारलेट को स्वीकार

तुषार उन दिनों कोलकाता के मैरीन इंजीनियरिंग कालेज के फाइनल ईयर में था. अंतिम वर्ष में जहाज पर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग अनिवार्य होती है. उस की ट्रेनिंग एक औयल टैंकर पर थी. यह जहाज हजारों टन तेल ले कर देश की समुद्री सीमा के अंदर ही एक पोर्ट से दूसरे पोर्ट पर जाता है. जहाज पर यह उस का पहला सफर था. तुषार काफी खुश था. वह सपने देख रहा था कि कुछ ही महीनों में उस की पढ़ाई पूरी होने के बाद विदेश जाने वाले जहाज पर वह समुद्र पार जाएगा.

खैर, उस की पढ़ाई और ट्रेनिंग सब पूरी हो गई थी और उसे मैरीन इंजीनियरिंग की डिगरी भी मिल गई थी. तुषार के पिता की मौत हो चुकी थी. उस की मां उस के बड़े भाई कमल के साथ रहती थीं. कमल तुषार से 5 साल बड़ा था. यों तो उस के पिता ने इतनी संपत्ति छोड़ रखी थी कि मां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर थीं, फिर भी बुढ़ापे में कुछ गिरते स्वास्थ्य और बेटे से भावनात्मक लगाव के कारण वे कमल के साथ रहती थीं, पर बहू का स्वभाव अच्छा नहीं था. रोजाना सास को खरीखोटी सुनाती रहती थी. तुषार मां से कहता, ‘मैं ऐसी लड़की से शादी करूंगा जो आप को अपनी मां का दर्जा दे.’

एक शिपिंग कंपनी में तुषार को नौकरी मिल गई. शुरू में फिफ्थ इंजीनियर की पोस्ट पर जौइन करना होता है, जो जहाज का सब से जूनियर इंजीनियर होता है. उस की पोस्ंिटग एक नए जहाज पर हुई. वह जहाज जापान से बन कर आया था. जहाज को कोलकाता से कंपनी के हैडक्वार्टर मुंबई ले जाना था. हैडऔफिस ने इस जहाज को मुंबईआस्ट्रेलिया जलमार्ग पर चलाने का फैसला किया था. तुषार की मनोकामना पूरी होने जा रही थी.

आस्ट्रेलिया का सफर, वह भी नए जहाज पर. मेंटिनैंस के लिए ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी थी. खैर, उस का जहाज कोलकाता से मुंबई के लिए रवाना हुआ. यह सफर भी किसी विदेश यात्रा से कम नहीं था, पूरे 5 दिन लग गए. भारत के तीनों सागर बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर पार करते हुए वह मुंबई पहुंचा. भारतीय जलमार्ग पर इन 5 दिनों के सफर में ही उसे अनुभव हुआ कि समुद्री यात्रा कितनी कठिन होती है. जहाज के समुद्री लहरों पर उछलते रहने से कारण उसे अकसर उलटी होती थी.

मुंबई के कार्गो ले कर जहाज कोलंबो पहुंचा. यह तुषार का पहला विदेशी पड़ाव था. कोलंबो से मसाले, चाय आदि ले कर जहाज को सीधे सिडनी जाना था. जब जहाज समुद्र में चल रहा होता, उसे 4-4 घंटे की 2 शिफ्टें रोज करनी होतीं. जब जहाज पोर्ट या लंगर में होता तब 12 घंटे की शिफ्ट होती थी. उस ने अपने सीनियर्स से बात कर सिडनी पोर्ट पर 12 घंटे की डे शिफ्ट सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक की ड्यूटी रखवा ली थी ताकि वह सिडनी की नाइटलाइफ ऐंजौय कर सके.

इस के बारे में उस ने अपने दोस्तों से जानकारी ले रखी थी. खैर, लहरों पर उछलतेकूदते उस का जहाज सिडनी 12वें दिन पहुंचा. पर पोर्ट पर बर्थ खाली नहीं होने से जहाज को पोर्ट से कुछ दूरी पर लंगर डालना पड़ा. रात का समय था. तुषार डेक पर खड़ा हो कर नजारा देख रहा था. दूर से ही उसे सिडनी शहर की बहुमंजिली इमारतें दिख रही थीं. एक ओर विश्वप्रसिद्ध औपेरा हाउस था तो दूसरी तरफ मशहूर सिडनी हार्बर ब्रिज. उस का मन मचल रहा था कि कब लंगर उठे और जहाज को बर्थ मिले. दूसरे दिन दोपहर तक जहाज को पोर्ट पर एंटर करने की अनुमति मिल गई.

जहाज हार्बर ब्रिज के नीचे से गुजर रहा था और तुषार डेक पर खड़ा हो कर इस दृश्य को देख कर रोमांचित हो रहा था. कुछ ही देर बाद जहाज पोर्ट पर था. इस जहाज को सिडनी में एक सप्ताह रुकना था. अब उसे इंतजार था शाम का. जहाज पर डिनर शाम 6 बजे से मिलने लगता है. तुषार ने जल्दी से डिनर लिया और एक अन्य जहाजी के साथ शहर घूमने निकल पड़ा. एक क्लब में गया. दोनों ने बियर ली. 2 लड़कियां बगल की टेबल पर बैठी बातचीत कर रही थीं. तुषार का वह साथी पहले भी कई बार आस्ट्रेलिया आ चुका था, सो, उसे यहां का आइडिया था. उस ने लड़कियों को ड्रिंक औफर कर अपनी टेबल पर बुलाया.

फिर तो लड़कियों ने जम कर बियर पी. काफी देर तक वे डांस करते रहे. बीचबीच में कुछ देर के लिए टेबल पर आते. कुछ देर बैठ कर बातें करते. और बियर पी लेते. फिर डांसफ्लोर पर लड़की की कमर में बांहें डाल कर थिरकते. तुषार को बहुत मजा आ रहा था. यह उस का पहला मौका था गोरी बाला के साथ डांस करने का. रात 11 बजे वह अपने दोस्त के साथ वापस जहाज पर आ गया.

तुषार ने सिडनी की किंग क्रौस रोड की नाइटलाइफ के बारे में काफी सुन रखा था. दूसरे दिन उस ने किंग क्रौस जाने का फैसला किया, उस के सहकर्मी ने बताया कि वहां जा कर स्ट्रिप टीज का मजा लेना. किंग क्रौस पर नाइट शो क्लब काफी हैं. उस से कहा गया कि उस रोड पर पिंक पैंथर नामक क्लब में अच्छा शो होता है.अगले दिन रात को टैक्सी पकड़ ठीक 8 बजे वह पिंक पैंथर जा पहुंचा. वहां 10 डौलर का टिकट लिया और अंदर डांसिंग रैंप के नजदीक वाली कुरसी पर जा बैठा.

यहां वह एक बार के टिकट में ही 2-2 घंटे के स्ट्रिप टीज शोज रातभर देख सकता था. इन 2 घंटों में 12 सुंदरियां एकएक कर आ कर अपने कपड़े उतारतीं और कम से कम वस्त्रों में या कभी बिलकुल नग्न हो कर गाने पर ‘पोल डांस’ भी दिखाती थीं. शो के बीच में बार टैंडर लड़कियां आ कर सिगरेट, बियर आदि बेचतीं. वे गले में पट्टे के सहारे एक टे्र में बियर, सिगरेट आदि बेचतीं. एक ने तुषार से पूछा, ‘‘कुछ चाहिए?’’ तो वह बोला, ‘‘एक स्वान लैगर बियर कैन प्लीज.’’ वह बोली, ‘‘आप को 5 मिनट बाद ला कर देती हूं. अभी मेरी ट्रे में नहीं है.’’ इतना बोल कर वह चली गई पर तुषार उसे देखे जा रहा था.

वह लगभग 18 साल की सुंदरी थी. 5 मिनट बाद उस ने बियर ला कर तुषार को दी और पूछा, ‘‘और कुछ?’’ तुषार बोला, ‘‘और कुछ नहीं, बट…’’ ‘‘बट मतलब?’’ ‘‘तुम इस शो के बाद मेरे साथ कुछ समय बिता सकती हो?’’ धीरे से मुसकरा कर वह बोली, ‘‘आप जो समझ रहे हैं, मैं वह लड़की नहीं हूं. हां, आप को उस टाइप की लड़की चाहिए तो यहां और भी हैं. क्या मैं उन में से एक को बोल दूं?’’ ‘‘अरे नहीं, मैं भी वैसा नहीं जो तुम समझ बैठी. बस, 2-3 घंटे टाइमपास, साथ बैठ कर बातें, डिनर और बियर, इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’ ‘‘श्योर?’’ लड़की ने पूछा. तुषार बोला, ‘‘हंड्रैड परसैंट श्योर. तो कल संडे है, शाम को मिलो.’’ ‘‘नहीं, छुट्टी के दिन यहां अच्छी कमाई हो जाती है.

50 डौलर से अधिक टिप्स में मिल जाते हैं. मैं भी बस पार्टटाइम 4 घंटे के लिए आती हूं.’’ तुषार ने कहा, ‘‘ओके, मंडे शाम को. डार्लिंग हार्बर के निकट तुंबलोंग पार्क में मिलो. मैं सिर्फ 5 दिन और यहां हूं. कल शाम भी यहां मिलूंगा, तुम अपना नाम तो बताओ.’’ ‘‘मैं, स्कारलेट,’’ लड़की बोली. ‘‘और मैं तुषार.’’ संडे शाम को तुषार फिर पिंक पैंथर में था. इस बार जान कर वह पीछे की सीट पर बैठा ताकि स्कारलेट से आराम से कुछ बातें कर सके. शो चल रहा था, स्कारलेट आ कर बोली, ‘‘आप का स्वान लैगर बियर?’’ तुषार ने बियर की पेमैंट और टिप दी और कहा, ‘‘दो मिनट मेरे पास रुको न.’’ ‘‘आज काफी भीड़ है. कुछ कमा लेने दो. कल शाम 6 बजे तो मिल ही रहे हैं. 4-5 घंटे आराम से बातें करेंगे दोनों.’’

उस दिन तुषार बस 2 घंटे का एक शो देख कर जहाज पर लौट आया. अगले दिन सोमवार शाम को ठीक 6 बजे तुषार और स्कारलेट पार्क में मिले. तुषार ने पूछा, ‘‘वेल स्कारलेट, तुम पिंक पैंथर जैसी जगह में क्यों काम करती हो?’’ ‘‘मैं अनाथ हूं. मेरे मातापिता दोनों की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. कुछ साल मैं अंकल के साथ रही. उन्हीं के यहां रह कर स्कूलिंग कर रही थी. उन का व्यवहार ठीक नहीं था, तो पिछले साल मैं अलग एक गर्ल्स होस्टल में शिफ्ट हो गई. एक और लड़की के साथ रूम शेयर करती हूं. पिंक पैंथर जैसी जगह पर काम करने के लिए कोई डिगरी या अनुभव नहीं चाहिए.

बस, अपनी इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए. पार्टटाइम काम करती हूं. स्कूल का फाइनल ईयर है और अब तुम बताओ अपने बारे में.’’ इतना कुछ वह एकसाथ बोल गई. तुषार ने अपना परिचय देते हुए अपने परिवार के बारे में संक्षेप में बताया. फिर उस ने पूछा, ‘‘पिंक पैंथर्स से तुम्हारा खर्च निकल आता है?’’ ‘‘नहीं. कुछ पैसे पिताजी भी छोड़ गए थे. हालांकि उसी की बदौलत पिछले साल तक मेरा काम चला है. कुछ अंकल ने हड़प लिए. वैसे पिंक पैंथर के अलावा सुबह 2 घंटे एक घर में मेड का भी काम करती हूं. दोनों मिला कर काम चल जाता है.’’ तुषार और स्कारलेट दोनों कुछ देर बातें करते रहे. फिर एक इंडियन रैस्टोरैंट में दोनों ने डिनर किया. स्कारलेट ने पहली बार इंडियन खाना खाया था.

उसे यह बहुत अच्छा लगा. तुषार ने पूछा, ‘‘ड्रिंक करती हो?’’ वह बोली, ‘‘सिर्फ बियर. और कुछ नहीं.’’ ‘‘अच्छा संयोग है. मैं भी सिर्फ बियर ही लेता हूं.’’ रैस्टोरैंट से निकल कर उस ने 2 बियर कैन लिए. एक स्कारलेट को दे दिया. दोनों ने अपनीअपनी बियर पी. तब तक रात के 10 बज चुके थे. तुषार ने टैक्सी बुलाईर् और कहा, ‘‘मैं तुम्हें होस्टल छोड़ते हुए जहाज पर चला जाऊंगा.’’ रास्ते में उस ने स्कारलेट से कल का प्रोग्राम पूछा तो वह बोली, ‘‘तुम ने औपेरा हाउस देखा है?’’ ‘‘हां, बाहर से देखा है. वैसे मुझे थिएटर में रुचि नहीं है.’’ ‘‘तो फिर कल तुम्हें हार्बर आईलैंड घुमा लाती हूं.’’ ‘‘मेरी डे शिफ्ट है. अपने मित्र से म्यूचुअल चेंज करने की कोशिश करता हूं. अगर चेंज हो गया तो तुम्हें फोन करूंगा.’’

स्कारलेट को होस्टल छोड़ कर वह पोर्ट चला आया. फिर अपने दोस्त से शिफ्ट म्यूचुअल चेंज कर फटाफट स्कारलेट को खबर दे दी. उस ने तुषार को सर्कुलर के फेरी स्टेशन के टिकट काउंटर पर सुबह 9 बजे मिलने बुलाया. अगले दिन दोनों फेरी पकड़ कर सागर के बीच में आईलैंड गए. वहां शहर की भीड़भाड़ से दूर आईलैंड पर तुषार को काफी अच्छा लगा. वहां से सिडनी शहर, हार्बर ब्रिज, औपेरा हाउस सब दिख रहे थे. दिनभर सैरसपाटे, गपशप करते 4 बजे तक वे वापस आ गए. फेरी स्टेशन पर कौफी सिप करते हुए तुषार बोला, ‘‘मेरा शिप परसों इंडिया के लिए रवाना हो जाएगा.’’ वह बोली, ‘‘ओह, रियली. अभी तो हम ठीक से मिले भी नहीं और इतनी जल्दी जुदाई. विल मिस यू स्वीट गाई.’’ ‘‘आई टू विल मिस यू. खैर, कल कहां मिलोगी?’’ स्कारलेट बोली, ‘‘वहीं पिंक पैंथर में.’’ ‘‘मुझे रोजरोज वहां अच्छा नहीं लगता है. तुम उस नौकरी को छोड़ नहीं सकतीं? मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’ ‘‘कोशिश करूंगी, पर तुम्हें क्यों बुरा लगता है. मैं न तो तुम्हारी गर्लफ्रैंड हूं और न ही वाइफ.’’

तुषार बोला, ‘‘पर क्या पता, आगे बन जाओ.’’ ‘‘यू नौटी बौय,’’ कह कर स्कारलेट उस से लिपट गई. दूसरे दिन दोनों थोड़ी देर के लिए उसी क्लब के बाहर मिले. तुषार अंदर नहीं जाना चाहता था. तुषार ने बताया कि कल सुबह 10 बजे उस का शिप भारत रवाना हो रहा है. अगले दिन वह सुबह 9 बजे शिप पर मिलने आई. थोड़ी देर दोनों साथ रहे. तुषार ने अपने पैंट्री से कुछ इंडियन स्नैक्स, बियर कैन्स और चौकलेट्स पहले से मंगवा कर पैक करा रखे थे. उन्हें स्कारलेट को दिया. दोनों ने फोन और ईमेल से कौंटैक्ट में रहने की बात की. स्कारलेट बोली, ‘‘फिर कब मिलोगे?’’ तुषार बोला, ‘‘कुछ कह नहीं सकता. पर अगर इसी शिप पर रहा तो 3-4 महीने बाद फिर आना हो सकता है.’’

इस बार तुषार ने स्कारलेट को गले से लगा लिया. उस ने आंसूभरी आंखों से तुषार को विदा किया. जहाज सिडनी हार्बर छोड़ चुका था. तुषार वापसी में कुछ और देशों के बंदरगाह होते हुए मुंबई पहुंचा. वहां उसे बताया गया कि 3 महीने बाद फिर उसे सिडनी जाना होगा. वह खुश हुआ यह सोच कर कि फिर स्कारलेट से मिल सकेगा. तुषार ने एक हफ्ते की छुट्टी ली. मां से मिलने कोलकाता गया. उस ने अपनी भाभी को स्कारलेट के बारे में बताया और उस की काफी तारीफ की, पर उन्हें उस की नौकरी की बात नहीं बताई. भाभी ने व्यंग्य करते हुए सास से कहा, ‘‘देवरजी, विदेशी बहू ला रहे हैं आप के लिए.’’ मां बोलीं, ‘‘तुषार जिस में खुश, मैं उसी में खुश.’’ तुषार के भैया कमल भी वहीं थे.

वे भी मां की बात से सहमत थे. पर तुषार बोला, ‘‘अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं है. बस, 4-5 दिनों की मुलाकात थी.’’ 3 महीने बाद तुषार का शिप फिर सिडनी पोर्ट पहुंचा. उस ने स्कारलेट को सूचित कर दिया था. उस ने फोन पर पूछा, ‘‘कहां मिलोगी, वहीं पिंक पैंथर में?’’ वह बोली, ‘‘नहीं, एक महीने पहले मैं ने वह नौकरी छोड़ दी है. अब एक ट्रैवल एजेंट के यहां रिसैप्शनिस्ट हूं और उसी होस्टल में रहती हूं पर अब सिंगल रूम में रहती हूं.’’ ‘‘ठीक है, शाम को मिलते हैं.’’ इस बार भी करीब एक हफ्ते तक उसे सिडनी रुकना था. दोनों रोज शाम को 3-4 घंटे साथ बिताते. कभी स्कारलेट ही उस से मिलने शिप पर आ जाती. अब दोनों पहले से ज्यादा करीब आ चुके थे. लगभग डेढ़ साल तक तुषार इसी तरह हर 3-4 महीने बाद स्कारलेट से मिलता. दोनों में अब प्यार हो गया था.

इस बात को दोनों ने स्वीकार भी किया. एक बार जब तुषार स्कारलेट को होस्टल ड्रौप कर पोर्ट लौट रहा था, उस की टैक्सी का ऐक्सिडैंट हो गया. तुषार के दाएं पैर में काफी चोट आई थी. इस के अलावा और भी चोटें आई थीं. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती कर शिप के कैप्टन और भारतीय कौंसुलेट को सूचित कर दिया था. तुषार ने स्कारलेट को भी खबर करवाई. स्कारलेट तुरंत अस्पताल पहुंच गई. तुषार के शिप से भी एक अफसर आया था. उस के दाएं पैर में मल्टीपल फ्रैक्चर थे. डाक्टर ने बताया कि उस के ठीक होने में लगभग 3 महीने लग सकते हैं.

उस के बाद भी जहाज के इंजनरूम में शायद काम करना उस के लिए सुरक्षित न हो. शिपिंग कंपनी ने तुषार के घर वालों को भी खबर भेज दी. उस की मां बहुत घबराई थी. उस ने बेटे से फोन पर बात की. शिप के अफसर ने उन्हें बताया कि चिंता की बात नहीं. कंपनी उन के बेटे का पूरा इलाज करा रही है. डाक्टर ने बताया कि कम से कम प्लास्टर कटने तक तुषार को अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. स्कारलेट अब रोज शाम को तुषार से मिलने आती. विजिटिंग औवर्स तक उस के पास बैठी रहती. वीकैंड में वह 2 बार मिलने आती. अकसर इंडियन रैस्टोरैंट से कुछ देशी खाना भी उस के लिए लाती. अब उन का प्रेम और गहरा हो गया था. बीचबीच में स्कारलेट अपने फोन से ही तुषार की मां उस की बात करा देती.

3 हफ्ते बाद तुषार का प्लास्टर कटा. एक्सरे के बाद डाक्टर ने बताया कि अभी उस की हड्डी ठीक से नहीं जुड़ी है. दोबारा 3 हफ्ते के लिए प्लास्टर बांधना होगा. इसी बीच तुषार की मां ने बताया कि अब वे ओल्डएज होम में रह रही हैं. बहू की रोजरोज खिचखिच से तंग आ कर बेटे ने मां को वहां शिफ्ट कर दिया था. यह जान कर स्कारलेट को भी दुख हुआ. उस ने तो सुन रखा था कि इंडिया में रिश्तों की काफी अहमियत है. तुषार का प्लास्टर कटा. डाक्टर ने कहा कि अब वह घर जा सकता है. पर अगले एक महीने तक थेरैपी लेनी होगी और सावधानी से छड़ी के सहारे चलना होगा.

तुषार ने मां को स्कारलेट के बारे में बताया कि 2 महीने से वही उस की देखभाल कर रही थी. मां ने स्कारलेट को शुभकामनाएं दीं और पूछा कि क्या वह तुषार की जीवनसंगिनी बनेगी. इस पर स्कारलेट ने मां से कहा, ‘‘मुझे तो कभी परिवार के साथ रहने का अवसर ही नहीं मिला है. अगर आप और तुषार चाहें तो मैं आप की छोटी बहू बन कर गर्व महसूस करूंगी.’’ तुषार ने स्कारलेट को गले लगा कर उस के गाल को प्यार से चूम लिया.

इधर शिपिंग कंपनी ने तुषार की पोस्ंिटग कोलकाता के ही एक कारखाने में कर दी. वहां उसे जहाज के कलपुरजों की मेंटिनैंस का काम देखना होगा और मैरीन छात्रों की ट्रेनिंग भी देखनी होगी. तुषार और शिपिंग कंपनी ने मिल कर कौंसुलेट से स्कारलेट के वीसा का प्रबंध किया. दोनों कोलकाता आए. कंपनी ने तुषार के लिए एक फ्लैट का इंतजाम कर दिया था. सब से पहले तुषार और स्कारलेट दोनों ओल्डएज होम जा कर मां को घर ले आए. बंगाली विधि से दोनों की शादी हुई. तुषार की मां अपनी विदेशी बहू से संतुष्ट है.

Winter Special: सर्दियों के मौसम में इस तरह से करें अपने घर की सजावट

हर एक इंसान की अपनी पसंद होती है, चाहे खानेपीने की हो या महंगे कपड़ों या फिर घरों के सजावट की. जी हां, हम बात कर रहे हैं अपने घरों को मौसम के हिसाब से कैसे सजाएं. अब सर्दी का मौसम शुरू हो गया है. जब ज्यादा ठंड बढ़ जाती है तो काम करने का मन नहीं होता. ऐसे में आप अपने घर को नया लुक दे कर टाइमपास करने के साथ ही घर को खूबसूरत बना सकते हैं. सभी की ख्वाहिश होती है कि हमारा घर दूसरों से अलग दिखे. इस के लिए आप को दूसरों से कुछ अलग करना होगा. कुछ अलग करने के लिए अलग सोचना होगा.

ठंड के मौसम में अपने घर या औफिस को सजाने से पहले यह पता लगाएं कि इस साल कौनकौन सी नई सजावटी चीजें आई हैं. साथ ही, यह भी देखें कि आप के घर और औफिस के लिहाज से क्या बेहतर होगा.

खूबसूरती में इजाफा

घर को सजाने में बरामदे को न भूलें. अगर आप घर की सजावट कोले कर गंभीर हैं तो आप को थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. ठंड में आप जिस तरह से अपने रूम को सजाते हैं, वैसे ही अपने बरामदे को भी सजाएं. यह आप के घर की खूबसूरती में इजाफा कर देगा. अगर वहां धूप आती है तो उस में बैठना तभी अच्छा लगेगा जब वह ढंग से सजा हो.

बहुत ज्यादा ठंड पड़ने पर वार्डरोब से ले कर खानपान सबकुछ बदल जाता है. ऐसे में आप विंटर डैकोरेशन के कुछ टिप्स अपना कर अपने घर को हौट रखने के साथ नया लुक दे सकते हैं, ठंड से बचने के लिए नैचुरल तरीके से कमरे को गरम रख सकते हैं.

सीलिंग रूम या घर का ऐसा हिस्सा होता है जो सब से पहले ठंडा होता है. इसलिए इसे गरम करने के उपाय के साथ इस का खूबसूरत होना भी जरूरी है. इस के लिए सीलिंग बनाते वक्त अगर थर्माकोल लगा दिया जाए तो यह ठंड में फायदेमंद होता है.

इन दिनों पर्पल कलर की काफी डिमांड है. यदि आप चाहें तो लाइट और डार्क कलर का कौंबिनेशन भी दीवारों पर ट्राय कर सकती हैं. वौल को ब्राइट कलर, जैसे कि औरेंज, रेड व ब्लू कलर्स से सजाएं. यह भी काफी अच्छा लुक देगा.

दीवारों पर वौलपेपर भी इस्तेमाल किया जा सकता है. डार्क शेडके वौलपेपर दीवारों पर लगाएजा सकते हैं. यह भी गरमी का एहसास दिलाएगा.

ठंड बहुत ज्यादा पड़ने पर आप हीटर का तो इस्तेमाल करती ही हैं लेकिन, चाहें तो, आप आगे के लिए ढेर सारी लकडि़यां जमा कर लें. घर को नैचुरल तरीके से गरम करने का यह आसान तरीका है.

कैंडल्स की गरमाहट सर्दी की शाम को अपनी मद्धिम रोशनी से गरम और खूबसूरत बना देती है. कमरे में सैंटर टेबल, डाइनिंग टेबल या साइड टेबल पर खुशबूदार मोमबत्ती जलाएं और गरमाहट का एहसास पाएं.

स्वेटरों, जो अब पुराने हो गए हैं, से आप कई प्रकार के क्राफ्ट बना सकती हैं. तकिए, फुट मैट, कुशन, डैकोरेशन की कई चीजें बनाई जा सकती हैं उन से.

ठंड के मौसम में खिड़कियों से हलके परदे उतार कर भारी परदे लगाएं. इन से हवा कम घुसती है और कमरे में गरमी बनी रहती है.

सर्दी के दिनों में कुशन और तकिए आदि के ऊनी कवर इस्तेमाल करें. बैड पर भी ऊनी कंबल या शीट बिछा लें. इस से आप को लेटतेबैठते समय सर्दी का एहसास नहीं होगा और गरमी मिलेगी.

ठंड के दिनों में बिस्तर पर मोटा गद्दा बिछाएं, ऊनी कंबल बिछाएं और उस पर चादर डालें. इस से बिस्तर गुदगुदा होगा और सर्दी भी नहीं लगेगी.

खाने के दौरान सब से ज्यादा ठंड लगती है, इसलिए अपनी डाइनिंग टेबल को मोटे कवर से ढकें और उसे चेंज लुक दें जो गरमी का एहसास करवाता है. आप टेबल पर कैंडल को जलाएं चाहे बल्ब जल ही क्यों न रहा हो.

ठंड के समय साजसज्जा के साथ आप अपने बजट का भी ध्यान रखें. जहां तक हो सके अपने बजट को कम रखने की कोशिश करें. सजावट का मतलब यह नहीं होता कि आप बेकार में पैसे खर्च करें. आप घर के भी कुछ सामानों का इस्तेमाल सजावट में कर सकते हैं. ठंड में विंटर वैकेशन यानी छुट्टियों का समय होता है, तो इस बार ठंड में अपने घर को सजा कर छुट्टियों को और भी ज्यादा खुशनुमा बनाएं.

बैठने की जगह को बनाएं गरम

अपने लिविंगरूम को गरम बनाएं, इस के लिए उस के रंग को चेंज करवाएं. हर मौसम में अपने घर में नए प्रकार का रंगरोगन करवाना संभव नहीं है पर आप किसी और तरीके से गरमाहट भरे रंगों जैसे नारंगी लाल रंग से घर की सजावट करें. डार्क ब्राउन, चौकलेटी रंग भी गरमाहट का एहसास देते हैं.

स्ट्रक्चरल एलमेंट का इस्तेमाल

ठंड में आप अपने गार्डन को उतना ही खूबसूरत बना सकते हैं, जितना कि यह गरमी के वक्त में रहता है. इस के लिए आप इस में कुछ स्ट्रक्चरल एलमेंट्स लगा सकते हैं. कुछ रंगों का इस्तेमाल कर के आप अपने गार्डन को खूबसूरत व कलरफुल बना सकते हैं. ठंड के समय आप का गार्डन मौसम की तरह ही खास होना चाहिए. आप थोड़ा सा ध्यान दे कर इसे और खूबसूरत बना सकते हैं.

Winter Special: औयली स्किन से छुटकारा पाने के लिए परफेक्ट है ये होममेड 6 टिप्स

बदलते मौसम का असर हमारी सेहत के साथ-साथ स्किन पर भी दिखाई देता है. स्किन हमारे शरीर का बेहद संवेदनशील हिस्सा माना गया है. जाहिर है कि पहले सरदी फिर गर्मी का असर  इस पर साफ देखने को मिलेगा. बात अगर औयली टी  जोन की ,की जाए तो इसे फिक्स करना बेहद ही मुश्किल है. इन समस्याओं से बहुत सी महिलाओं को जूझना पड़ जाता है. दरअसल इस तरह की स्किन  में आपके फोरहेड, नाक और चिन पर भरपूर मात्रा में तेल जमा हो जाता है. जिससे आपके पोर्स बड़े दिखने लगते हैं.  नतीजन आप अपना मनोबल खोने लगते हैं. अपनी इस प्रौब्लम को फिक्स   कर सकती हैं कुछ प्रोडक्ट के इस्तेमाल के बाद. जिससे आपको मिलेगी सुपर मैट फिनिश.

1. एलोवेरा जेल

क्या आप जानते हैं कि एलोवेरा में सूदिंग प्रौपर्टीज होने के साथ-साथ और भी कई गुण होते हैं.  जी हां एलोवेरा आपके चेहरे से एक्स्ट्रा आयल को हटाते हुए आपको सुपर मैट फिनिश देता है. स्किन को हेल्दी बनाने में एलोवेरा की बेहद अहम भूमिका होती है. सिर्फ 15 मिनट में आप एलोवेरा जेल से चेहरे की मसाज करें और फिर देखें कमाल.

2. ब्लोटिंग शीट्स 

आयल को कंट्रोल करने का सबसे बेहतर उपाय है कि ब्लोटिंग पेपर.  इस से आप अपने चेहरे को पौछें जिससे अतिरिक्त आयल ब्लोटिंग पेपर सोख लेगा . आपको तुरंत अपनी स्किन  के टेक्सचर में भी बदलाव दिखाई देगा .

3. कॉन्पैक्ट पाउडर

पार्टी में या ट्रेवलिंग करते वक़्त यदि आप अपनी स्किन  के एक्स्ट्रा आयल से परेशान हैं तो कॉन्पैक्ट पाउडर का प्रयोग करें. यह आपके चेहरे से औयल की मात्रा को कम करते हुए, आपको हर ओकेजन के लिए देता है, सुपर कूल लुक.

4. प्राइमर

जिन महिलाओं का टी जोन औयली होता है, वह मेकअप करने से पहले से प्राइमिंग जरूर कर लें.  फाउंडेशन का असर तब दिखाई देता है, जब आपने प्राइमिंग जैसे बेसिक स्टेप्स को फॉलो किया हो. दरअसल प्राइमिंग आपके चेहरे के एक्स्ट्रा आयल को कंट्रोल कर लेता है और स्किन  को मैट लुक देता है.

5. मैटिफाइंग स्किन सीरम

मैटिफाइंग वैसे तो कई प्रकार के होते हैं. बात करें मैटिफाइंग सीरम   की तो यह आपके चेहरे से तेल की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं . चेहरे को धोने के बाद में मैटिफाइंग सीरम का प्रयोग करें . यह आपके चेहरे के माइश्चर को बरकरार रखेगा और आप खूबसूरत दिखेंगी.

6. क्ले मास्क

क्ले मास्क यानी मुल्तानी मिट्टी ,आपकी स्किन को हेल्दी  बनाने में बहुत मदद करती है. यह आपकी स्किन  के पोर्स को टाइट करती  हैं. आपकी स्किन  में गजब का कसाव लाती है. यहां तक की स्किन को ब्लेमिशेस से मुक्त करने में भी काफी सहायक है. गुलाब जल में मुल्तानी मिट्टी को अच्छे से मिलाएं और हफ्ते में चेहरे पर कम से कम 2 बार प्रयोग करें. रंगत के साथ साथ आपको अपनी स्किन  में भी काफी फर्क देखने को मिलेगा.

वैक्सिंग के बाद हाथ-पैरों पर लालनिशान पड़ जाते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल-

जब भी मैं वैक्स करवाती हूं तो मेरे हाथ, पैरों पर लाललाल निशान पड़ जाते हैं ? इस समस्या के कारण अब मैं वैक्स करवाने से भी डरने लगी हूँ. आप ही कोई समाधान बताएं?

जवाब

आपका डरना बिलकुल जायज है. क्योंकि जिस वैक्स का इस्तेमाल आप अपने हाथपैरों को क्लीन करने के लिए करती हैं , अगर वे आपको खूबसूरत बनाने के बजाह आपके शरीर पर दागधब्बे छोड़ दे तो आप उसका इस्तेमाल करने से पहले 10 बार सोचेंगी. लेकिन आपको बता दें कि ऐसा अकसर सेंसिटिव स्किन वाले लोगों के साथ ज्यादा होता है. जिससे स्किन पर लाललाल स्पोट्स पड़ जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वैक्स में इस्तेमाल किए गए केमिकल्स व फ्रैंगरेंस के संपर्क में जब स्किन आती है तो एलर्जी की वजह से भी स्किन पर लाललाल निशान यानि रेड बम्प्स हो जाते हैं.  कई बार स्किन पर पहले से ही इंफेक्शन होता है और फिर उस पर अगर वैक्स का इस्तेमाल किया जाता है तो उससे स्किन में और जलन व इर्रिटेशन पैदा होने के कारण ये समस्या होती है. या फिर अगर आप वैक्सिंग बहुत जल्दी जल्दी करवाती हैं तो उससे अंडररुट बालों को जड़ से निकालने के लिए जब वैक्स का इस्तेमाल किया जाता है तो उससे भी स्किन को नुकसान पहुंचता है. इसलिए कोशिश करें कि जब तक पूरी ग्रोथ न आए तब तक वैक्स न करवाएं.

अगर आपको रेड बम्प्स हो गए हैं तो उससे कैसे निबटें – 

– अगर आपको वैक्स करवाने के बाद हाथपैरों पर जलन महसूस हो रही है तो तुरंत ही बर्फ या ठंडा पानी अप्लाई करें. इससे जलन, सूजन व इर्रिटेशन को कम होने में मदद मिलेगी.

– एलोवीरा जैल इस प्रोब्लम के लिए बेस्ट माना जाता है. क्योंकि इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होने के कारण ये स्किन की जलन को कम करके स्किन को नौरिश करने का काम करता है.

– अगर वैक्स करवाने के बाद आपकी स्किन रेड पड़ने के साथ जल रही है, तो आप उस पर टी ट्री आयल में कोकोनट आयल मिलाकर उसे प्रभावित जगह पर लगाएं. असल में इसमें एंटी इंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होती हैं , जो स्किन को स्मूद बनाने के साथ दर्द, सूजन व रेडनेस को कम करने में मददगार साबित होती हैं .

– बता दें कि एप्पल साइडर विनेगर में एंटीसेप्टिक और एस्ट्रिंजेंट प्रोपर्टीज होने के कारण ये स्किन के पीएच लेवल को बैलेंस करने के साथ जलन को कम करने का काम करता है. इसके लिए आप दोनों को बराबर मात्रा में लेकर रुई की मदद से अफेक्टेड एरिया में अप्लाई करें. फिर ड्राई होने के बाद पानी से क्लीन करें. रोजाना ऐसा करने पर आपको तुरंत सुधार नजर आने लगेगा.

– स्किन को सोफ्ट बनाने व उसकी जलन को कम करने के लिए हमेशा खुशबू रहित मोइस्चराइज़र का ही इस्तेमाल करें.

कैसी हो आपकी वैक्स 

अगर आपकी स्किन बारबार रेड हो जाती है तो आप सिर्फ सेंसिटिव स्किन के लिए ही बनी वैक्स का इस्तेमाल करें, क्योंकि इसमें नेचुरल इंग्रीडिएंट्स का इस्तेमाल होने के साथसाथ एंटीइंफ्लेमेटरी प्रोपर्टीज होती हैं , जो स्किन में जलन पैदा होने से रोकती है. साथ ही स्किन को सोफ्ट व स्मूद बनाने का भी काम करती है. सेंसिटिव स्किन वालों के लिए बीन्स वैक्स, क्रीम वैक्स और लिपसोलुबल वैक्स बेस्ट रहती है. क्योंकि ये स्किन पर एकदम से गर्म नहीं लगती और सोफ्टली हेयर्स को रिमूव करने का काम करती हैं. अंडररूट्स हेयर्स को भी स्किन को नुकसान पहुंचाए बिना आसानी से  रिमूव कर देती है. इसलिए आप कोई भी वैक्स के इस्तेमाल करने से बचें. आप चाहें तो परमानेंट लेज़र ट्रीटमेंट का भी सहारा ले सकती हैं.

इन बातों का भी रखें ख्याल 

वैक्सिंग से पहले अपनी स्किन को मोइस्चराइज़ जरूर करें, क्योंकि इससे वैक्स स्किन पर आसानी से अप्लाई होकर स्किन से आसानी से हेयर्स निकल जाते हैं. इस बात का भी ध्यान रखें कि आप वैक्सिंग से पहले सैलिसिलिक एसिड वाले प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें. क्योंकि ये स्किन को पतला बनाने का काम करते हैं , जिससे आपकी स्किन जल्दी हर्ट हो सकती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

सिंदूर का हक: आखिर शन्नो का क्या था राज

स्नेहाका मोबाइल दोबारा बजने लगा. स्नेहा बाथरूम से अभी नहीं निकली थी. अत: सलिल को मोबाइल उठाना पड़ा. सलिल के हैलो कहते ही दूसरी ओर से एक लड़की ने सिसकते हुए पूछा, ‘‘स्नेहा
दीदी हैं?’’

‘‘हां, अभी बाथरूम में है.’’ ‘‘आप उन्हें बता देना कि शरणा दीदी नहीं रहीं.’’ यह सुनते ही सलिल सकते में आ गया. शरणा यानी शरणवती उर्फ शन्नो. स्नेहा की बचपन की अभिन्न सहेली. शन्नो के वर्षों बाद अचानक स्नेहा से मिलने पर सलिल की जिंदगी बेहद सहज हो गई थी. उस की सब से बड़ी समस्या थी स्नेहा और बच्चों को बोरियत से बचाने के लिए सप्ताह में 1 बार बाहर ले जाने की वजह से छुट्टी के दिन भी आराम न कर पाना. शन्नो के मिलते ही इस समस्या का समाधान हो गया था. शन्नो एक टीवी चैनल में न्यूज ऐडिटर थी.

वह फुरसत मिलते ही स्नेहा और बच्चों को घुमाने ले जाती थी. स्नेहा के कहने पर गाड़ी भी भेज देती थी, जिस से स्नेहा वे सभी काम कर लेती थी जिन्हें करने के लिए सलिल को आधे दिन की छुट्टी लेनी पड़ती थी. सब से अच्छी बात यह थी कि दोनों सहेलियों ने अपनी दोस्ती कभी सलिल पर नहीं थोपी थी. न तो स्नेहा उसे शन्नो के घर चलने को कहती थी और न ही जबतब शन्नो को अपने घर बुलाती थी. यदाकदा शन्नो से मिलना सलिल को भी अच्छा लगता था. दोनों में सालीजीजा वाली नोक झोंक हो जाती थी.

कुछ महीने पहले स्नेहा ने उसे बताया था कि शन्नो दिल की मरीज है और पेसमेकर के सहारे जी रही है, लेकिन उस का इतनी जल्दी और इस तरह चले जाना अप्रत्याशित था. न जाने स्नेहा इस आघात को कैसे झेलेगी?

चूंकि वह कल रात ही टूअर से लौटा था, इसलिए आज औफिस जाना जरूरी था. लेकिन उस से भी ज्यादा स्नेहा के साथ रहना, जरूरी है सलिल ने सोचा. फिर उस ने दबी जबान स्नेहा को यह बताया.

‘‘यह तो होना ही था,’’ स्नेहा ने उसांस ले कर कहा, ‘‘1 सप्ताह से असपताल में थी. डाक्टरों के यह कहते ही कि पेस मेकर कभी भी साथ छोड़ सकता है, मैं ने आप से बगैर सलाह किए बच्चों को छुट्टियां मनाने राधिका भाभी और उन के बच्चों के साथ पंचमढ़ी भेजना बेहतर सम झा.’’

‘‘ठीक किया स्नेहा, बच्चों को शन्नो मौसी से कितना स्नेह हो गया था. उसे अस्पताल में देख कर व्यथित हो जाते,’’ सलिल बोला, ‘‘दुखी तो खैर अभी भी बहुत होंगे.’’

‘‘वह तो स्वाभाविक है,’’ कह कर स्नेहा ने मोबाइल उठा लिया, ‘‘माधवी, कब हुआ यह सब… बौडी को और्गन डोनेशन के लिए भिजवा दिया… तो तुम भी घर चली जाओ… मैं कुछ देर में वहीं आ रही हूं… जिसे भी खबर करनी है उस की लिस्ट बना लो. मैं आने के बाद फोन कर दूंगी,’’ और फिर स्नेहा मोबाइल बंद कर किचन की ओर बढ़ गई.

‘‘बस 1 कप चाय दे दो स्नेहा, नाश्ते के चक्कर में मत पड़ो,’’ सलिल ने धीरे से कहा.

‘‘नाश्ता बनाने में कुछ देर नहीं लगती. लंच नहीं बना सकूंगी, औफिस की कैंटीन से ही कुछ मंगवा लेना.’’

‘‘मैं आज औफिस नहीं जा रहा. तुम्हारे साथ चल रहा हूं स्नेहा… कितनी भी सादगी से करो अंतिम संस्कार फिर भी बहुत काम होते हैं.’’

‘‘उन्हें संभालने के लिए रमण भैया हैं.’’

‘‘रमण भैया शन्नो को जानते हैं?’’ सलिल ने हैरानी से पूछा.

राजस्व विभाग का उच्चाधिकारी राधारमण स्नेहा का फुफेरा भाई था. इसलिए अकसर मुलाकात होती रहती थी. लेकिन शन्नो के बारे में दोनों भाईबहन को कभी बात करते नहीं देखा था.

‘‘आप को बताया तो था कि रमण भैया एम.कौम. और फिर प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षा की पढ़ाई के लिए 3 साल तक हमारे ही घर में रहे थे. फिर सामने की कोठी में रहने वाली मेरी अभिन्न सहेली शन्नो को कैसे नहीं जानेंगे?’’

‘‘फिर तुम ने कभी रमण भैया के परिवार के साथ चाय या खाने पर शन्नो को क्यों नहीं बुलाया? कभी उन लोगों से शन्नो के बारे में बात भी नहीं की. मु झे भी यह तो नहीं बताया कि उन दोनों में भी इतनी अभिन्नता है कि अपने सब कामधाम छोड़ कर अतिव्यस्त रमण भैया उस के अंतिम संस्कार का ताम झाम
संभालने को मौजूद हैं?’’ सलिल ने शिकायती स्वर में पूछा.

स्नेहा हैरान हो कर कुछ देर चुप रही, फिर गहरी सांस ले कर बोली, ‘‘किसी के जीवन के बंद परिच्छेद खोलने का मु झे हक तो नहीं है. मगर अब जब तुम्हारी जिज्ञासा जगा ही दी है तो चलो, आज पूरी कहानी सुना देती हूं…

‘‘रमण भैया और शन्नो को पहली नजर में ही प्यार हो गया था और मेरे सहयोग से वह प्यार परवान चढ़ने लगा. जातपांत का लफड़ा नहीं था. फिर मेधावी भैया प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर ही रहे थे.
‘‘शन्नो पूरी तरह आश्वस्त थी कि उस के घमंडी आला अफसर पिता को प्रशासनिक अधिकारी रमण भैया से उस की शादी करने में कोई एतराज नहीं होगा. अत: वह बेखटके भैया के साथ प्यार की पींगें बढ़ा रही थी. 3 साल तक बगैर किसी को पता चले सब कुछ मजे में चलता रहा.

‘‘हमारी एम.ए. की और भैया की प्रतियोगी परीक्षाएं शुरू होने वाली थी. उस के बाद भैया का हमारे घर रुकने और दोनों की शादी 2 वर्षों तक होने का सवाल ही नहीं था. यह सोच कर भैया खासकर शन्नो बहुत परेशान रहती थी.

‘‘इसी बीच एक दिन बूआजी ने फोन कर बताया कि उन्होंने रमण भैया की छोटी बहन का रिश्ता उस की पसंद के लड़के से तय कर दिया है. भैया को लगा कि जब बहन का रिश्ता उस की पसंद से हो सकता है तो उन का क्यों नहीं और फिर छोटी बहन की शादी के बाद तो उन की शादी में कोई अड़चन भी नहीं रहनी चाहिए. इस सब से आश्वस्त हो कर भैया ने होली पर गुलाल के बजाय शन्नो की मांग में सिंदूर भर दिया. हालांकि शन्नो ने उस सिंदूर को सिर पर ढेर सा गुलाल डलवा कर छिपा दिया, लेकिन वह उस की मां की पैनी नजरों से नहीं छिप सका और यह भी कि यह भरा किस ने.

‘‘शन्नो की जितनी लानतमलानत होनी थी हुई और उस के हमारे घर आने और फोन करने पर रोक लग गई. शन्नो के यह कहने पर कि भैया उस के लिए सर्वथा उपयुक्त हैं और प्रतियोगी परीक्षा दे रहे हैं उस के पिता ने व्यंग्य से कहा कि दूसरों के घर रहने और लड़कियों से आंख लड़ाने वाले लड़के का इस परीक्षा में पास होने का सवाल ही नहीं उठता. न ही बिजनौर में वकालत करने वाले रमण के बाप की हैसियत उन का समधी बनने लायक है. अत: शन्नो पर रमण की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए.

‘‘परीक्षा दिलवाने के लिए भी शन्नो की मां उसे छोड़ने और लेने आती थीं. लेकिन परीक्षा हौल से बाहर निकलने के पहले मैं और शन्नो बात कर लिया करती थीं. उसे भैया का पत्र दे देती थी और उस से भैया का ले लेती थी. शन्नो ने बताया था कि पापा ने वहां से बदली करवा ली है. उस की परीक्षा खत्म होते ही वहां से चले जाएंगे. कहां जाएंगे, यह किसी को नहीं बता रहे. भैया ने उसे आश्वस्त कर दिया कि किसी भी सरकारी अफसर का पताठिकाना खोजना मुश्किल नहीं होता. कहीं भी चले जाएं, प्रशासनिक सेवा में चयन होते ही वह उस के पिता से मिलने आएंगे. शन्नो बस तब तक अपनी शादी टाल दे.

‘‘शन्नो ने भी आश्वासन दिया था कि व्यावसायिक कोर्स करने के बहाने 2 वर्ष आसानी से शादी टाली जा सकती है. ‘‘शन्नो की परीक्षा खत्म होने की अगली सुबह ही उन की कोठी पर ताला लगा हुआ दिखा. कुछ रोज के बाद भैया भी अपने घर चले गए और मैं दीदी के पास छुट्टियों में पुणे. वहां जीजू के कहने पर मैं ने कंप्यूटर सीखा तो समय गुजारने को था, लेकिन उस में मु झे इतना मजा आया कि मैं ने उसी में स्पैशलाइजेशन करने का फैसला किया और उस के लिए दीदी के पास ही रहने लगी. फिर वहीं तुम से मुलाकात हो गई. कुछ समय बाद पता चला कि रमण भैया का चयन राजस्व सेवा में हो गया है और उन की शादी हो रही है. सुन कर धक्का तो लगा था, लेकिन तब तक मेरी दुनिया तुम्हारे नाम से शुरू और खत्म होने लगी थी. अत: न तो मैं ने रमण भैया से संपर्क किया, न ही उन की शादी में गई और न ही वे मेरी शादी में आए. शन्नो ने भी मु झ से संपर्क नहीं किया. मेरे पास तो उस का अतापता भी न था.

‘‘कई वर्षों बाद रमण भैया की पोस्टिंग यहां होने पर मुलाकात हुई. वह राधिका भाभी और बच्चों के साथ खुश थे. अत: मैं ने भी पुरानी बातों का जिक्र करना मुनासिब नहीं सम झा. लेकिन एक दिन भाभी और बच्चों की गैरहाजिरी में भैया ने मु झे बताया कि पढ़ाई पूरी कर के उन के घर लौटने से पहले ही उन के मातापिता ने उन का सौदा राधिका भाभी के साथ कर के उन के दहेज में मिलने वाली राशि के बल पर छोटी बहन का उस की पसंद के लड़के से धूमधाम से रोका भी कर दिया था. छोटी बहन की खुशी की खातिर भैया के पास चुपचाप बिकने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.’’

गनीमत यह थी कि राधिका भाभी उन के सर्वथा अनुकूल थीं. फिर भी वे आज तक अपने पहले प्यार शन्नो को नहीं भूल सके थे. उन्होंने ही मु झे बताया कि शन्नो यहीं एक चैनल में न्यूज ऐडिटर है. शादी तो नहीं की थी, लेकिन अपनी उपलब्धियों और परिवेश में पूर्णतया संतुष्ट लगती थी. इसलिए वे उस से मिल कर अपने और उस के स्थिर जीवन में उथलपुथल नहीं मचाना चाहते. लेकिन चाहते थे कि मैं उस से मिलूं, शन्नो से मिलने को तो मैं स्वयं भी तड़प रही थी. शुरू में तो शन्नो भी मु झे खुश ही लगी और मैं ने भी रमण भैया या उस के व्यक्तिगत जीवन के बारे में बात नहीं की, लेकिन एक दिन अचानक तबीयत खराब होने पर उस ने मु झे बताया कि उसे अब तक 2 बार हार्टअटैक हो चुका है और वह पेसमेकर के सहारे जी रही है.’’
‘‘लेकिन अब मु झ से मिलने के बाद वह चैन से मरेगी. उसे विश्वास है कि मैं उसे उस के सिंदूर का हक जरूर दिलवा दूंगी यानी रमण के हाथों अग्निदाह. मु झे स्तब्ध देख कर उस ने कहा कि उस ने हमेशा रमण की खोजखबर रखी है. उसे रमण से कोई शिकायत नहीं है. उस के द्वारा मांग में भरे गए सिंदूर और यादों के सहारे जिंदगी तो गुजार ली है, लेकिन मरने के बाद अपने सिंदूर का हक जरूर चाहेगी, यानी एक सुहागिन जैसी मौत और मौत बारबार तो होगी नहीं.’’

‘‘मेरे यह कहने पर कि भैया उसे भूले नहीं हैं और वह जब चाहे मेरे घर पर रमण भैया से बेखटके मिल सकती है तो शन्नो ने यह कह कर मिलने से मना कर दिया कि कितने भी सतर्क रहो, ऐसी बातों को छिपाना आसान नहीं होता है और इस से रमण की सुखी गृहस्थी बरबाद हो सकती है.

‘‘अंतिम संस्कार के लिए भी मु झे रमण को बुलाने के लिए शन्नो को अपनी दूर की रिश्तेदार बनाना पड़ेगा, शन्नो को तो मैं ने आश्वस्त कर दिया, लेकिन रमण भैया को सब बातें बता दीं और दुखी विह्वाल तो खैर होना ही था और बहुत हुए भी. उन्होंने भी मु झ से वादा लिया कि जब भी शन्नो की तबीयत खराब हो मैं उन्हें खबर कर दूं. वे उस के अंतिम दिनों में बगैर किसी की परवाह किए उस के साथ रहेंगे और राधिका को उस समय जो ठीक सम झेंगे वह बता देंगे.

‘‘पिछले सप्ताह शन्नो की तबीयत के बारे में पता चलते ही मैं ने रमण भैया को खबर कर दी फिर सब बच्चों को उकसाया कि उन्हें छुट्टियों में बाहर घूमने जाना चाहिए. फिर किसी तरह राधिका भाभी को उन के साथ पचमढ़ी भिजवा दिया ताकि रमण भैया इतमीनान से शन्नो के पास रह सकें.’’

‘‘मु झे तसल्ली है कि मैं ने अपनी सहेली को उस के अंतिम दिनों में रमण भैया का भरपूर सान्निध्य और उस के सिंदूर का हक दिलवा दिया. मैं नहीं चाहती कि तुम मेरे साथ चल कर रमण भैया को अपने कर्तव्य निर्वहन से रोको,’’ स्नेहा ने अनुरोध किया.

‘‘बेफिक्र रहो स्नेहा, जितना हक शन्नो का अपने सिंदूर पर था उतना ही कर्तव्य रमण भैया का भी उस सिंदूर की लाज रखने का है,’’ सलिल ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मैं रमण भैया से वह कर्तव्य निभाने का सुख और उन की गोपनीयता नहीं छीनूंगा.’’

Top 10 Best Family Story in hindi: कहानियां पढ़ने के हैं शौकीन, तो पढ़ें ये टॉप 10 बेस्ट फैमिली स्टोरीज

Best Family Story in Hindi: परिवार हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है, जो हर सुख-दुख में हमारा सपोर्ट सिस्टम साबित होता है. परिवार बिना किसी लालच और स्वार्थ के साथ हमारे साथ खड़ा होता है.  इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Grihshobha की Best Family Story in Hindi.

Top 10 Family stories in hindi: दिल छू लेने वाली बेहतरीन कहानियां

1. मेरे घर आई नन्ही परी: क्यों परेशान हो गई समीरा

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समीरा परी को गोद में लिए शून्य में ताक रही थी. उस की आंखों से आंसुओं की झमाझम बरसात हो रही थी. उसे सम नहीं आ रहा था कि क्यों उसे परी के लिए वह ममता महसूस नहीं हो रही हैं जैसे एक आम मां को होती है. समीरा को तो यह खुद को भी बताने में शर्म आ रही थी कि उसे परी से कोई लगाव महसूस नहीं होता. तभी परी ने अचानक रोना शुरू कर दीया.
 
समीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे रोना क्यों आ रहा है. उसे लग रहा था कि जैसे उसे किसी ने बांध दीया हो. उस की पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त सी हो गई थी. वह अपनेआप को ही नहीं पहचान पा रही थी.
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2. मैं चुप रहूंगी: विजय की असलियत जब उसकी पत्नी की सहेली को चली पता

Family story hindi
पिछले दिनों मैं दीदी के बेटे नीरज के मुंडन पर मुंबई गई थी. एक दोपहर दीदी मुझे बाजार ले गईं. वे मेरे लिए मेरी पसंद का तोहफा खरीदना चाहती थीं. कपड़ों के एक बड़े शोरूम से जैसे ही हम दोनों बाहर निकलीं, एक गाड़ी हमारे सामने आ कर रुकी. उस से उतरने वाला युवक कोई और नहीं, विजय ही था. मैं उसे देख कर पल भर को ठिठक गई. वह भी मुझे देख कर एकाएक चौंक गया. इस से पहले कि मैं उस के पास जाती या कुछ पूछती वह तुरंत गाड़ी में बैठा और मेरी आंखों से ओझल हो गया. वह पक्का विजय ही था, लेकिन मेरी जानकारी के हिसाब से तो वह इन दिनों अमेरिका में है. मुंबई आने से 2 दिन पहले ही तो मैं मीनाक्षी से मिली थी.
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3. स्वयंवर: मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

टेक्सटाइल डिजाइनर मीता रोज की तरह उस दिन भी शाम को अकेली अपने फ्लैट में लौटी, परंतु वह रोज जैसी नहीं थी. दोपहर भोजन के बाद से ही उस के भीतर एक कशमकश, एक उथलपुथल, एक अजीब सा द्वंद्व चल पड़ा था और उस द्वंद्व ने उस का पीछा अब तक नहीं छोड़ा था.
 
सुलभा ने दीपिका के बारे में अचानक यह घोषणा कर दी थी कि उस के मांबाप को बिना किसी परिश्रम और दानदहेज की शर्त के दीपिका के लिए अच्छाखासा चार्टर्ड अकाउंटैंट वर मिल गया है. दीपिका के तो मजे ही मजे हैं. 10 हजार रुपए वह कमाएगा और 4-5 हजार दीपिका, 15 हजार की आमदनी दिल्ली में पतिपत्नी के ऐशोआराम के लिए बहुत है.

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4.खोया हुआ सच: सीमा के दुख की क्या थी वजह

सीमा रसोई के दरवाजे से चिपकी खड़ी रही, लेकिन अपनेआप में खोए हुए उस के पति रमेश ने एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. बाएं हाथ में फाइलें दबाए वह चुपचाप दरवाजा ठेल कर बाहर निकल गया और धीरेधीरे उस की आंखों से ओझल हो गया. सीमा के मुंह से एक निश्वास सा निकला, आज चौथा दिन था कि रमेश उस से एक शब्द भी नहीं बोला था. आखिर उपेक्षाभरी इस कड़वी जिंदगी के जहरीले घूंट वह कब तक पिएगी?

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5. अब तुम्हारी बारी

दीप्ति जल्दीजल्दी तैयार हो रही थी. उस ने अपने बेटे अनुज को भी फटाफट तैयार कर दिया. आज शनिवार था और अनुज को प्रदीप के घर छोड़ कर उसे औफिस भी जाना था. शनिवार और रविवार वह अनुज को प्रदीप के घर छोड़ कर आती है क्योंकि उस की छुट्टी होती है. प्रदीप की लिव इन पार्टनर यानी प्रिया भी उस दिन अपनी मां के यहां मेरठ गई हुई होती है. अगर वह कभीकभार घर में होती भी है तो अनुज के साथ ऐंजौय ही करती है.

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6.भटकाव के बाद: परिवार को चुनने की क्या थी मुकेश की वजह

 

संजीव का फोन आया था कि वह दिल्ली आया हुआ है और उस से मिलना चाहता है. मुकेश तब औफिस में था और उस ने कहा था कि वह औफिस ही आ जाए. साथसाथ चाय पीते हुए गप मारेंगे और पुरानी यादें ताजा करेंगे. संजीव और मुकेश बचपन के दोस्त थे, साथसाथ पढ़े थे. विश्वविद्यालय से निकलने के बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए थे. मुकेश ने प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से केंद्र सरकार की नौकरी जौइन कर ली थी. प्रथम पदस्थापना दिल्ली में हुई थी और तब से वह दिल्ली के पथरीले जंगल में एक भटके हुए जानवर की तरह अपने परिवार के साथ जीवनयापन और 2 छोटे बच्चों को उचित शिक्षा दिलाने की जद्दोजहद से जूझ रहा था. संजीव के पिता मुंबई में रहते थे. शिक्षा पूरी कर के वह वहीं चला गया था और उन के कारोबार को संभाल लिया. आज वह करोड़ों में नहीं तो लाखों में अवश्य खेल रहा था. शादी संजीव ने भी कर ली थी, परंतु उस के जीवन में स्वच्छंदता थी, उच्छृंखलता थी और अब तो पता चला कि वह शराब का सेवन भी करने लगा था. इधरउधर मुंह मारने की आदत पहले से थी.

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7. विश्वासघात: जूही ने कैसे छीना नीता का पति

नीला आसमान अचानक ही स्याह हो चला था. बारिश की छोटीछोटी बूंदें अंबर से टपकने लगी थीं. तूफान जोरों पर था. दरवाजों के टकराने की आवाज सुन कर जूही बाहर आई. अंधेरा देख कर अतीत की स्मृतियां ताजा हो गईं…

कुछ ऐसा ही तूफानी मंजर था आज से 1 साल पहले का. उस दिन उस ने जीन्स पर टौप पहना था. अपने रेशमी केशों की पोनीटेल बनाई थी. वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. उस ने आंखों पर सनग्लासेज चढ़ाए और ड्राइविंग सीट पर बैठ गई.

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8. नई कालोनी: जब महरी को दिखा तेंदुआ

आधुनिक स्कूलों की जाती एसी बसों में भारी बस्ते लिए बच्चे चढ़ रहे थे. उन की मौडर्न मांएं कैपरीटीशर्ट के ऊपर लिए दुपट्टे को संभालती हुई बायबाय कर रही थीं. कारें दफ्तरों, कारोबारों की तरफ रवाना हो रही थीं. पिछली सीट पर अपने सैलफोन में व्यस्त साहब लोग गार्ड्स के सलाम ठोकने को आंख उठा कर नहीं देखते. 11, 13 और 15 बरस की महरियां काम पर आ रही थीं और कालोनी के सुरक्षा गार्ड्स उन्हें छेड़ रहे थे.

पौश कालोनी के सामने हाईवे सड़क की झडि़यों पर फूल सी कोमल धूप खिल ही रही थी. उस में आज फिर धूल के तेज गुबार आआ कर मिल उठ गए थे. उस पार कलोनाइजर की मशीनी फौज उधर के बचे जंगल को मैदान में बदल रही थी. हाईवे सड़क के आरपार 2 ऊंचे बोर्ड थे. निर्माणाधीन नील जंगल सिटी, नवनिर्मित नील झरना सिटी.

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9.मुलाकात: क्या आरती को मिला मदन का प्यार

आरती ने जब कार से उतरने के लिए पैर बाहर निकाला तो अचानक पूरे बदन में सिहरन सी हुई. उसे लगा कि वापस चली जाए और दावत को टाल दे, मगर फिर उस ने दोबारा कुछ सोचा और कार लौक कर के फटाफट आयोजनस्थल की तरफ चल दी.
 
आरती को उस की एक परिचिता ने इस आयोजन का कार्ड दिया था. मगर अभीअभी उस की परिचिता ने फोन कर उसे बताया कि उसे अचानक शहर से बाहर जाना पड़ रहा है. मगर आरती तब तक तैयार हो कर घर से निकल चुकी थी. आयोजनस्थल में काफी रौनक थी.

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10. मेड इन हैवन: गरिमा के साथ कौन-सी घटना घटी

 
फाइनली गरिमा और हेमंत की शादी हो ही गई. दोनों हनीमून ट्रिप पर स्विट्जरलैंड में ऐश कर रहे हैं. उन के घर वालों का तो पता नहीं परंतु मैं बहुत ख़ुश हूं क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही गरिमा ने 2 मिनट के लिए स्विट्जरलैंड से बात की, ‘‘थैंक्स आंटी इतना अच्छा लाइफपार्टनर मिलवाने के लिए.’’
 
पीछे से हेमंत का भी स्वर उभरा, ‘‘डार्लिंग, मेरी तरफ से भी आंटी को थैंक्स बोल देना,’’ फिर दोनों की सम्मिलित हंसी का स्वर उभरा और फोन काट दिया गया.
 
गरिमा और हेमंत दोनों बहुत खुश लग रहे थे. मैं ने राहत की सांस ली क्योंकि दोनों को मिलवाने में मैं ने ही बीच की कड़ी का काम किया था. संयोगिक घटनाओं की विचित्रता को भला कौन सम?ा सकता है. मेरे मन में यादों की फाइल के पन्ने फड़फड़ाने लगे…

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संयोगिता पुराण: संगीता को किसका था इंतजार

family story in hindi

नेपाली लड़की: कौन थी वह

प्रमोद ने अपने घर में झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की संजू से कहा था कि अगर वह अंगरेजी कंप्यूटर टाइपिंग करने वाली किसी स्टूडैंट को जानती है और जिसे पार्टटाइम नौकरी की जरूरत है, तो उसे ले आए.

संजू 3 दिन बाद जिस लड़की को लाई, वह कद में कुछ कम ऊंची, पर गठा हुआ बदन, गोल चेहरा, रंग साफ, बाल बौबकट थे, जो उस के गोल चेहरे को खूबसूरत बना रहे थे. पहनावे से वह आम लड़की दिखती थी. उस की उम्र का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था.

जो भी हो, प्रमोद को अंगरेजी कंप्यूटर टाइपिंग जानने वाले की जरूरत थी, इसलिए उस ने ज्यादा पूछताछ किए बिना ही उस लड़की को अपने दफ्तर में टाइपिस्ट का काम दे दिया.

उस लड़की ने अपना नाम जानकी बहादुर बताया था. शक्ल से वह किसी उत्तरपूर्वी प्रदेश की लगती थी.

बाद में प्रमोद ने नाम से अंदाजा लगाया कि जानकी बहादुर नेपाल से आए किसी परिवार की लड़की है. उसे उस लड़की की राष्ट्रीयता से कुछ लेनादेना नहीं था, इसलिए इस ओर ध्यान भी नहीं दिया.

शुरूशुरू में प्रमोद जानकी को डिक्टेशन देता था, ज्यादातर ईमेल, बिजनैस लैटर लिखवाता था. चूंकि वह कौमर्स की छात्रा थी, तो लैटर का कंटैंट समझने में उसे मुश्किल नहीं हुई, लेकिन टाइपिंग में स्पैलिंग की गलतियां होती थीं. हो सकता है कि वह प्रमोद का अंगरेजी उच्चारण समझ न पाती हो या फिर हिंदी मीडियम से कौमर्स करने के चलते कौमर्स के तकनीकी अंगरेजी शब्द उस के लिए अजनबी थे, इसलिए प्रमोद उस को डिक्टेशन न दे कर खुद चिट्ठियां लिख कर देने लगा.

1-2 महीने में ही प्रमोद को यह देख कर बेहद हैरानी हुई कि अब उस लड़की द्वारा टाइप की गई चिट्ठियों में से गलतियां नदारद थीं.

एक दिन जानकी ने प्रमोद से कहा, ‘‘सर, क्या आप मुझे फुलटाइम के लिए दफ्तर में रख सकते हैं?’’

‘‘तुम दफ्तर का और क्या काम कर सकती हो?’’

‘‘आप जो भी करने को कहेंगे?’’

‘‘और कालेज?’’

‘‘मैं प्राइवेट पढ़ाई कर रही हूं.’’

‘‘ठीक है…’’ फिर प्रमोद ने उस से पूछा, ‘‘हिंदी की टाइपिंग कर सकोगी?’’

‘‘10-15 दिन में सीख लूंगी,’’ जानकी ने बड़े यकीन के साथ कहा.

प्रमोद के पास इस बात पर यकीन न करने की कोई वजह नहीं थी, क्योंकि 2-3 महीनों में वह काम के प्रति उस की लगन देख कर हैरान था.

जानकी न तो दफ्तर बंद होते ही घर भागती थी और न ही उस ने कभी बहाना किया कि सर, मेरे पास काम बहुत है, या फिर 5 बज गए हैं.

बौस को और क्या चाहिए? बस, ज्यादा से ज्यादा काम और अच्छे ढंग से किया गया काम.

देखते ही देखते प्रमोद जानकी पर पूरी तरह निर्भर हो गया. वह न केवल दफ्तर के कामों में माहिर हो गई, बल्कि प्रमोद ने दफ्तर के बाहर का काम भी उसे सौंप दिया. स्टेशनरी खरीदना, और्डर भेजना, रिसीव करना, हिसाबकिताब रखना वगैरह. वह एकएक पैसे का हिसाब रखती थी और सच पूछो तो उस से हिसाब मांगने की प्रमोद को कभी जरूरत नहीं पड़ी.

एक बार प्रमोद गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. जानकी जानती थी कि उस का शहर में अपना कोई नहीं है, तो वह एक हफ्ते तक अस्पताल में रातदिन एक नर्स की तरह उस की देखभाल करती रही.

प्रमोद ने इस दौरान दफ्तर में अपना काम जानकी को करने को कहा, तो उस ने बड़ी खुशी से उसे स्वीकारा और निभाया.

अस्पताल में प्रमोद ने जानकी से पूछा था, ‘‘मेरे लिए जो तुम इतना कर रही हो, क्या

इस के लिए तुम ने अपने मम्मीपापा से पूछा था?’’

‘‘हां सर, रात में अस्पताल में रहने के लिए जरूर पूछा था.’’

अस्पताल से छुट्टी देते हुए डाक्टर ने प्रमोद से कहा था, ‘‘उम्र ज्यादा होने के चलते आप का शरीर पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, इसलिए अभी कुछ समय और आराम की जरूरत है. कुछ दिन आप दफ्तर के कामों में मत पडि़ए.’’

डाक्टर की सलाह मान कर प्रमोद ने दफ्तर से 3-4 महीने की छुट्टी लेने का निश्चय किया. वह अपने बेटे के पास बेंगलुरु जाना चाहता था. पर इतने लंबे समय तक दफ्तर कौन संभालेगा?

प्रमोद ने कुछ सोच कर स्टाफ की मीटिंग बुलाई और बात की.

प्रमोद जानकी को जिम्मेदारी सौंपना चाहता था, पर उस ने जैसे ही उस का नाम लिया, स्टाफ की दूसरी लड़कियां भड़क गईं.

‘‘सर, वह जूनियर है,’’ एक लड़की बोली,

‘‘आप को यह जिम्मेदारी मिसेज दीक्षित को देनी चाहिए, जो पिछले

10 साल से इस दफ्तर में काम कर रही हैं,’’ दूसरी लड़की बोली.

‘‘सर, जानकी को दफ्तर में आए डेढ़ साल ही हुआ है और आप उस को इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं?’’ तीसरी लड़की ने कहा.

‘‘वह नेपाली है…’’ एक और लड़की बोली.

अब प्रमोद से सहन नहीं हुआ. डाक्टर ने कहा था कि तनाव से बचना, ब्लडप्रैशर बढ़ सकता है. पर यह आखिरी वाक्य उसे गाली जैसा लगा, तो उसे कहना पड़ा, ‘‘तो क्या हुआ? हमारी संस्था के प्रति उस की निष्ठा आप सब से कहीं ज्यादा है. वह संस्था को अपना समझ कर काम करती है, केवल तनख्वाह के लिए नहीं…’’

प्रमोद लैक्चर दे रहा था और स्टाफ सिर झुकाए सुन रहा था.

5 बजे दफ्तर बंद हुआ, तो मिसेज दीक्षित प्रमोद के पास आईं.

‘‘सर, मुझे आप से एक बात कहनी है,’’ मिसेज दीक्षित बोलीं.

‘‘उम्मीद है, तुम्हारी परेशानी सुन कर मेरा ब्लडप्रैशर नहीं बढ़ेगा,’’ प्रमोद ने कहा.

‘‘सर, आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं,’’ मिसेज दीक्षित ने कहा.

‘‘नहीं, बोलो,’’ प्रमोद बोला.

वे थोड़ी देर तक चुप रहीं. शायद सोचती रहीं कि बोलें कि न बोलें. फिर उन्होंने लंबी सांस ली और कहा, ‘‘सर, यह किसी के खिलाफ शिकायत नहीं है, पर आप को बताना जरूरी है. सर, जानकी जिस रेलवे कालोनी में रहती है, मैं भी वहीं रहती हूं. उस का और मेरा क्वार्टर दूर नहीं है.

‘‘सर, आप बुरा मत मानना. जानकी के पिता शराबी हैं. उन के घर में आएदिन लड़ाई होती रहती है. उधार की शराब पीपी कर उन पर इतना कर्ज हो गया है कि कर्ज देने वाले हर दिन उन के दरवाजे पर खड़े रहते हैं, गालीगलौज करते हैं. कालोनी वाले इस बात की शिकायत रेलवे मंडल अधिकारी से भी कर चुके हैं…’’

प्रमोद ने मिसेज दीक्षित की बात काट कर कहा, ‘‘तो इन बातों का हमारे दफ्तर से क्या संबंध है? या फिर जानकी का क्या संबंध है? ये बातें तो मैं भी जानता हूं.’’

‘‘जी…?’’ मिसेज दीक्षित की आंखें हैरानी से फैल गईं.

प्रमोद ने उन से कहा, ‘‘वह कुरसी खींच लीजिए और बैठ जाइए.’’

प्रमोद का दफ्तर एक अमेरिकी मिशनरी के पुराने बंगले में था. उस मिशनरी के लौट जाने के बाद प्रमोद की संस्था ने उस को खरीद लिया था. आधे में दफ्तर और आधे में उस का घर.

पत्नी की मौत के बाद प्रमोद अकेला ही कोठी में रहता था और संस्था चलाता था. संस्था प्रकाशन का काम करती थी और प्रमोद उस का संपादक था. सारे प्रकाशन की जिम्मेदारी उस पर ही थी.

प्रमोद ने मिसेज दीक्षित से कहा, ‘‘जानकी ने खुद मुझे अपने परिवार के बारे में बताया है. आज से 40 साल पहले जानकी के पिता उस की मां को भगा कर भारत में लाए थे.

‘‘वे नेपाल से सीधे जबलपुर कैसे पहुंच गए, यह वह भी अपनेआप में एक दिलचस्प कहानी है. पहले वे रेलवे के किसी अफसर के यहां खाना बनाते थे और उसी के गैस्ट हाउस में रहते थे.

‘‘परिवार में लड़ाईझगड़े तो तब शुरू हुए, जब जानकी की मां ने हर साल लड़कियों को जन्म देना शुरू किया. यह सिलसिला तभी रुका, जब एक दिन जानकी के पिता अचानक नेपाल भाग गए. उन की पत्नी अपनी 3 छोटीछोटी बेटियों के साथ जबलपुर में रह गईं.

‘‘वैसे, जबलपुर में नेपालियों की आबादी कम नहीं है. इन की वफादारी और ईमानदारी के चलते जहां भी चौकीदार की जरूरत पड़ती है, वहां ये लोग ही आप को मिलेंगे.

‘‘हां, अब होटलों में चाइनीज फूड बनाने वाले भी नेपाली मिलने लगे हैं. ऐसे ही दूर के एक रिश्तेदार ने 3 बच्चियों की मां को सहारा दिया. उस का अपना छोटा सा ढाबा था. बच्चियों को सिखाया गया कि उसे ‘मामा’ कहो.

‘‘बच्चियों के वे मामा समझदार थे. उन्होंने बिना देर किए तीनों लड़कियों को सरकारी स्कूल में भरती कर दिया.

‘‘मामा के साथ यह परिवार खुशीखुशी दिन बिता रहा था कि कुछ सालों बाद जानकी के पिता एक और नेपाली लड़की को ले कर जबलपुर आ टपके.

‘‘उन्होंने एक रेलवे अफसर को खुश कर उन के रिटायरमैंट के पहले रेलवे अस्पताल में मरीजों को खाना खिलाने  की नौकरी पा ली. इतना ही नहीं, नौकरी के साथ रेलवे क्वार्टर भी मिल गया. उधर जानकी अपनी मां और बहनों के साथ अपने दूर के रिश्तेदार के साथ रह कर बड़ी हो रही थी.

‘‘जानकी की मां को खबर मिली कि जिस लड़की को उस के पति नेपाल से लाए थे, वह उन्हें छोड़ कर वापस नेपाल चली गई है. ढलती उम्र और अकेलेपन ने जानकी के पिता को अपने परिवार में लौटने के लिए मजबूर कर दिया.

‘‘लेकिन अब जबलपुर के हवापानी ने जानकी की मां को काफी समझदार बना दिया था. उन में सम्मान की भावना जाग चुकी थी और वे जान चुकी थीं कि उन का और उन की लड़कियों का फायदा किस के साथ रहने में है. लिहाजा, उन्होंने घर जाने से इनकार कर दिया.

‘‘इस से उन के पति की मर्दानगी को गहरी ठेस लगी और वे अपने अकेलेपन को मिटाने के लिए शराबी बन गए और रेलवे अस्पताल के एक सूदखोर काले खां से उधार पैसा ले कर वे शराब पीने लगे.

‘‘यह सब जानकी की मां से देखा न गया. पति की घर वापसी हुई, पर वे उन की लत न छुड़ा सकीं.

‘‘नशे की हालत में जानकी के पिता अपनी पत्नी को कोसते हैं, तो वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देती हैं. बेटियां अपने मांबाप में बीचबचाव करती हैं. कालोनी वाले तमाशे का मुफ्त मजा लेते हैं.

‘‘ऐसे माहौल में जानकी की मां का जिंदगी बिताना क्या आप के दिल में हमदर्दी पैदा नहीं करता मिसेज दीक्षित? अगर कोई कीचड़ से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है, तो क्या हमें अपना हाथ बढ़ा कर उसे बाहर नहीं निकालना चाहिए?’’

मिसेज दीक्षित भरे गले से बोलीं, ‘‘सौरी सर.’’

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