क्या स्किन केयर में आप भी हाइजीन को करती हैं इग्नोर, तो जान लें ये जरूरी बातें

ब्यूटी के साथ हाइजीन का खयाल रखना भी बहुत जरूरी है. बाजार में कई तरह के प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, जो त्वचा सुंदर बनाने का भरोसा दिलाते हैं. लेकिन असल में खूबसूरत स्किन के लिए सब से जरूरी है अपने लाइफस्टाइल और हाइजीन में बदलाव. यदि अपनी दिनचर्या में हाइजीन का खयाल रखेंगे तो सुंदरता भी बनी रहेगी.

त्वचा को साफ, स्वच्छ और मुलायम बनाने के लिए बस आवश्यकता है अच्छे स्किन केयर रूटीन की. त्वचा को साफ और मुलायम रखने के लिए रोज इस पर काम करना होगा. कोई बहाना नहीं चलेगा.

कई महिलाएं त्वचा को स्वस्थ रखने वाले स्किन केयर रूटीन के मामले में बहुत आलसी होती हैं. इस के चलते उन की त्वचा को नुकसान पहुंचाता है. एक स्ट्रिक्ट रूटीन के बिना सभी प्रयास बेकार हो सकते हैं.

ये टिप्स आप की त्वचा को स्वस्थ, कोमल और आकर्षक बनाएंगे:

दिन की शुरुआत ड्राई ब्रशिंग के साथ

दिन की शुरुआत में ड्राई ब्रशिंग का प्रयोग करना चाहिए. ड्राई ब्रशिंग मृत कोशिकाओं को हटाने के लिए उपयोग की जाने वाली प्राचीन तकनीक है और इस से शरीर में रक्त संचार सुचारु होता है. रोज ड्राई ब्रशिंग करने से त्वचा चमकने लगती है.

– ऐसा ड्राई ब्रश को चुनें, जो नैचुरल फाइबर से बना हो न कि प्लास्टिक से. नैचुरल फाइबर से बने ब्रश से त्वचा खुरदरी नहीं होती है.

– बाहर से अंदर की तरफ अपने पैरों से शुरू कर ऊपर की तरफ बढ़ते हुए थोड़ोथोड़ा कर आराम से ब्रश को शरीर पर चलाएं. पैर, बौडी और हाथों पर ब्रश चलाएं. चेहरे के लिए छोटे और मुलायम ब्रश का इस्तेमाल करें.

– ड्राई ब्रशिंग शुरू करते समय हमेशा ब्रश और त्वचा सूखी होनी चाहिए. गीली त्वचा पर ब्रश करने से उतना असर नहीं होगा.

चेहरे को मौइस्चराइज करें

चेहरा धोने के बाद ब्रेकआउट और जलन को रोकने के लिए मौइस्चराइजर लगाना न भूलें. चेहरा धोने के बाद रूखा और बेजान हो जाता है और जलन भी होती है खासकर सर्दियों के मौसम में यह समस्या ज्यादा होती है. मार्केट में अलगअलग प्रकार के मौइस्चराइजर उपलब्ध हैं. आप उन का अपनी त्वचा के अनुसार प्रयोग कर सकती हैं.

चेहरे पर नीबू रस या टूथपेस्ट का प्रयोग न करें

हम सभी ने अकसर पिंपल्स और धब्बों के लिए कई अलगअलग प्रकार के घरेलू नुसखों के बारे में सुना है. यदि उन में से किसी भी उपचार में नीबू का रस या टूथपेस्ट अपने चेहरे पर लगाना शामिल है, तो ऐसा बिलकुल न करें, क्योंकि नीबू का रस बेहद ऐसिडिक होता है और रैडनैस और जलन पैदा कर सकता है.

टूथपेस्ट में सफेद करने वाले तत्त्व होते हैं, जो नीबू के रस की तरह त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस के स्थान पर मुंहासों से छुटकारा पाने के लिए ऐंटीस्पौट ट्रीटमैंट या ऐसैंशियल औयल का विकल्प चुन सकती हैं.

मेकअप ब्रश को हर हफ्ते धोएं

अधिकांश महिलाएं ऐसा नहीं करती हैं, लेकिन जब सुंदरता और स्वच्छता की बात आती है तो यह गलत कदम हो सकता है. न केवल आप के मेकअप ब्रश के बिल्डअप आप की त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि ब्रश पर बचा मेकअप भी आप की त्वचा पर आगे होने वाले मेकअप को खराब कर सकता है.

यूज्ड मेकअप ब्रश को धोने के लिए बेबी वाश या बेबी शैंपू और गरम पानी का प्रयोग करें. इस से आप की त्वचा स्वच्छ बनी रहेगी.

ऐक्सफोलिएटिंग क्लींजर का प्रयोग करें

ऐक्सफोलिएटिंग क्लींजर का प्रयोग करें. आप इसे आसानी से किसी भी किराने या दवा की दुकान से खरीद सकती हैं. ऐसे क्लींजर में होने वाले छोटेछोटे ग्रैन्यूल्स आप की त्वचा की सफाई करते हैं. सभी प्रकार की स्किन के लिए ऐक्सफौलिएटिंग क्लींजर उत्तम होते हैं.

सनस्क्रीन लगाएं

सनस्क्रीन केवल बीच पर छुट्टियां मनाने के लिए ही अच्छा नहीं है, बल्कि इस का हर दिन प्रयोग किया जाना चाहिए. भले आप घर के अंदर ही क्यों न हों. सनस्क्रीन त्वचा को सूर्य की किरणों से बचाने और झर्रियों की शुरुआत से लड़ने में मदद कर सकता है. अधिकांश मेकअप उत्पाद एसपीएफ के साथ आते हैं.

आप मौइस्चराजर खरीदते हुए यह जरूर ध्यान रखें कि बाहर पैक पर एसपीएफ फैक्टर लिखा हो जिस से न केवल आप अपने फेस को कवर कर सकती हैं, बल्कि इस के साथ अपने पूरे शरीर को भी धूल से बचा सकती हैं.

मेकअप ब्रश या टूथब्रश टौयलेट में न ले जाएं

आप जो नहीं जानती हैं वह यह है कि जब आप शौचालय को फ्लश करती हैं तो शौचालय से पानी के पार्टिकल्स 16 फुट ऊपर तक पहुंच सकते हैं. इस का मतलब यह है कि सिंक या शौचालय द्वारा आप के सभी ब्रशों में ये पार्टिकल्स घर कर सकते हैं. इस से ब्रश कीटाणुओं के रहने के लिए एकदम सही जगह भी बन जाएगा और आप की हैल्थ को नुकसान होने का सहज जरीया भी बनेगा. इस अस्वाभाविक जोखिम से बचने के लिए अपने ब्रश को बंद कैबिनेट में या जहां तक संभव हो शौचालय से दूर रखें. सब से बेहतर यह है कि टूथब्रश कैप का प्रयोग करें.

खूब पानी पीएं

पानी का प्रयोग अधिक करना चाहिए. पानी त्वचा को हाइड्रेटेड रखते हैं. अपनी त्वचा को हाइड्रेटेड रखना ही आप की त्वचा की बनावट में सुधार करेगा और इसे अच्छे स्वास्थ्य के लिए मौइस्चराइज रखेगा. इस के अतिरिक्त मीठे पेय पीने से बचें. ये न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, बल्कि त्वचा पर मुंहासे और सूजन भी पैदा कर सकते हैं.

टैनिंग से बचें

आप की त्वचा को सूर्य के ओवरऐक्सपोजर से बहुत नुकसान हो सकता है. सनबर्न से बचने के लिए आप ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक सनस्क्रीन का उपयोग करने का प्रयास करें जो त्वचा की प्राकृतिक चमक को बढ़ाते हैं और ज्यादा टैनिंग से भी बचाते हैं.

पिंपल्स को पौप न करें

यदि आप के चेहरे पर पिंपल्स आ रहे हैं तो उन्हें पौप करने से बचें. चेहरे पर आ रहे पिंपल्स को पौप करने या उन्हें बारबार छूने से चेहरे पर निशान पड़ जाएंगे और जलन व लामिला पैदा होगी जो लंबे समय तक बनी रह सकती है. इसलिए यह ध्यान रखें कि अगली बार जब आप चेहरे पर पिंपल्स महसूस करें तो एक फेसमास्क का प्रयोग करें या फिर एक ऐंटीस्पौट ट्रीटमैंट का प्रयोग करें.

-पचौली वैलनैस क्लीनिक की कौस्मैटोलौजिस्ट प्रीति सेठ से बातचीत पर आधारित

मेरा होने वाला पति विवाह से पहले मेरा मैडिकल चैकअप कराना चाहता है?

सवाल-

मैं 20 वर्षीय युवती हूं. सगाई हो चुकी है. जल्द ही शादी होने वाली है. मैं कई बार शारीरिक संबंध बना चुकी हूं. अब समस्या यह है कि मेरा होने वाला पति विवाह से पहले मेरा मैडिकल चैकअप कराना चाहता है. यदि ऐसा हुआ तो मेरे अवैध संबंधों की बाबत सब जान जाएंगे. जब से उस ने यह बात कही है मेरी रातों की नींद उड़ गई है. बताएं, क्या करूं?

जवाब-

आप को ऐसे शक्की व्यक्ति से विवाह हरगिज नहीं करना चाहिए, जो शादी से पहले ही इस तरह की शर्तें रख रहा है वह बाद में न जाने क्या करे. ऐसे दकियानूसी खयाल रखने वाला मनोरोगी लगता है. अत: किसी प्रकार का संकोच न करें और साफसाफ मना कर दें.

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श्वेता और अमन की कुंडली व गुण मिला कर विवाह कराया गया. ज्योतिषी ने दावा करते हुए कहा था, ‘‘श्वेता और अमन जीवनभर खुश रहेंगे.’’

मगर विडंबना देखिए कि शादी के दूसरे दिन ही श्वेता आंखों में आंसू लिए घर लौट आई. उसे शादी में आए किसी रिश्तेदार से पता चला कि अमन को एड्स है. विवाह से पहले अमन ने उस से इतनी बड़ी बात छिपा ली थी. यदि ज्योतिष के पाखंड में न पड़ कर दोनों की मैडिकल जांच की गई होती तो श्वेता को यह दुख न भोगना पड़ता.

आज के विज्ञान के युग में भी ज्यादातर लोगों को ऐसा लगता है कि मैडिकल टैस्ट कराना बेकार है. मैडिकल टैस्ट कराने में उन के अहंकार को चोट पहुंचती है. उन्हें लगता है कि जब उन्हें बीमारी है ही नहीं तो बेकार में मैडिकल टैस्ट क्यों कराया जाए. कुछ लोग सबकुछ भाग्य के भरोसे छोड़ देते हैं. कुछ सोचते हैं कि शादी के बाद कोई बीमारी हो जाएगी तब भी तो निभाना पड़ेगा. कुछ को ऐसा भी लगता है कि मैडिकल टैस्ट पर क्यों बेकार में इतने रुपए खर्च किए जाएं. मगर यदि डाक्टर की सलाह ले कर छोटी सी सावधानी बरतते हुए विवाह से पहले कुछ टैस्ट करा लिए जाएं तो दोनों परिवार बहुत सी परेशानियों से बच सकते हैं.

अब समय बदल रहा है. आजकल बड़ी उम्र में विवाह होते हैं. मैडिकल साइंस भी दिनप्रतिदिन तरक्की कर रही है. आज का युवावर्ग बहुत समझदार हो गया है. पहले की तरह मात्र जन्मपत्री मिला कर शादी कर लेना युवाओं को भी अब मान्य नहीं. सफल एवं सुरक्षित वैवाहिक जीवन के लिए यह जरूरी है कि विवाह से पहले लड़कालड़की अपनी इच्छा से अपनी मैडिकल जांच जरूर कराएं ताकि औलाद और खुद को रोगों से बचाया जा सके. इस से वैवाहिक जीवन में प्रेम और स्थिरता बनी रहेगी.

Winter Special: सर्दियों में बढ़ाना चाहते हैं खाने का स्वाद, तो बनाएं गोभी मसाला

पति का लंच, बच्चे का टिफिन और संडे का ब्रंच तब तक पूरे नहीं होते जब तक फूलगोभी का जायका नहीं मिलता. मां भी तो यही करती थी, दोपहर में जब स्कूल का टिफिन खोलते थे और जायकेदार मसाला गोभी पूरी या पराठों के साथ दिखती थी तो मुंह में पानी आ जाता था.

शुक्र है कि मां के हाथों की बनी गोभी मसाला का जायका फिर याद दिलाने के लिए सनराइज़ का शाही गरम मसाला है. इस के इस्तेमाल से फूलगोभी का स्वाद भी बरकरार रहता है डिश का जायका भी बढ़ जाता है.

गोभी मसाला

सामग्री

250 ग्राम गोभी के टुकड़े,

1 बड़ा प्याज,

1 टमाटर कटा,

1/2 छोटा चम्मच

अदरक-लहसुन का पेस्ट,

1 चम्मच

सनराइज़ शाही गरम मसाला,

जरूरतानुसार तेल,

नमक स्वादानुसार,

धनियापत्ती गार्निश के लिए.

विधि

कड़ाही में तेल गरम कर प्याज भूनें और फिर अदरक-लहसुन का पेस्ट डालकर चलाते हुए भनें. गोभी के टुकड़े मिलाकर  2 मिनट तक भूनें. अब सनराइज़  शाही गरम मसाला  और थोड़ा पानी मिलाकर थोड़ी देर ढक कर पकाएं.  अब टमाटर और नमक मिलाकर धीमी आंच पर चलाते हुए अच्छी तरह भूनें. धनियापत्ती से गार्निश कर पराठों के साथ परोसें.

Winter Special: अदरक की मदद से करें कमर और जांघों की फैट कम

अदरक में कई गुण होते हैं. खाने का स्वाद बढ़ाने से लिए व्यक्ति को स्वस्थ रखने के लिए अदरक काफी फायदेमंद और लाभकारी है. दाल का स्वाद बढ़ाना हो या ठंढ में चाय में गर्मी लानी हो, अदरक काफी कारगर होता है. इसके अलावा खांसी, कफ में ये काफी फायदेमंद है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि अदरक से आप वजन कैसे कम कर सकेंगी. इसके अलावा आप इसका प्रयोग हिप्स, वेस्ट और थाइज पर जमा फैट बर्न करने में कर सकती हैं.

कैसे बनाएं ये रेसिपी

1.5 लीटर पानी में आप 3 से 4 टुकड़े अदरक के डाल लें. इसके बाद इसे हल्के आंच पर उबाल लें. करीब 15 मीनट तक पानी उबालने के बाद आप उसे हल्का ठंडा होने दें. अब इस पानी का सेवन कर आप अपना वजन कम कर सकेंगी.

गुणकारी है अदरक

आपको बता दें कि अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं. इसकी वजह से जोड़ों के दर्द और सूजन से राहत मिलती है. यह गठिया और पुराने औस्टियोआर्थराइटिस जैसे रोगों के लिए अत्यधिक प्रभावी है.

कोलेस्ट्रौल को घटाने में है लाभकारी

अदरक में ऐसे कई गुण होते हैं जिस वजह से यह कोलेस्ट्रैल लेवल को भी कम करता है. आपको बता दें कि कोलेस्ट्रौल बढ़ने से कैंसर और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है. अदरक का पानी पीने से सीरम और लीवर में कोलेस्ट्रॉल का लेवल कम होता है. इसके अलावा इससे ब्लड प्रेशर भी समान्य रहता है.

40 के बाद कुछ इस तरह रखें अपनी आंखों का ख्याल

“तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या हैं ” ‘इस तरह के ना जाने कितने गाने आपने जवानी में  अपनी आँखों के लिए सुने होंगे या किसी के लिए गाये होंगे. लेकिन ढलती उम्र के साथ आपकी आँखों कि खूबसूरती भी मानो खोने लगती है.हमारी ऑंखें चेहरे की  खूबसूरती में चार चाँद लगा देती हैं. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ चेहरे की रंगत तो खोती  ही है साथ में आँखों पर काले घेरे, झाई, आँखों का अंदर की  तरफ जाना सभी के लिए आम बात है लेकिन कुछ लोग समय रहते अपने चेहरे व आँखों का ख्याल कर लेते है और कुछ लापरवाही करते हैं. आँखों के पास की  स्किन हमारे चेहरे की स्किन से काफ़ी नाजुक होती है जिस कारण बढ़ती उम्र, तनाव, अच्छी नींद ना लेना,डाइट सही ना लेना, विटामिन सी  की कमी होने का असर बहुत जल्दी हमारी आँखों पर दिखने लगता है. इस लेख में हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बताने जा रहें हैं जिस के जरिए आप अपनी आँखों की खूबसूरती को लम्बे समय तक बरकरार रख सकते हैं और यह परेशानी कोई  जेंडर देख कर नहीं होती इसलिए आप महिला हैं  या पुरुष दोनों में से कोई भी इन टिप्स को फॉलो  कर सकते हैं.

आहार पर दे ध्यान

40 की उम्र में अपनी आंखों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है सही डाइट लेना. गाजर,आंवला, मछली, अड़े जैसे पर्दार्थ के साथ ओमेगा -3 फैटी एसिड, विटामिन सी और विटामिन ई से भरपूर पर्दार्थ  अपनी डाइट में शामिल करें. इनसे  आँखों की रौशनी भी बढ़ती है और साथ ही चेहरे और आँखों को झाई से भी बचाते हैं.

सही क्रीम व मॉइश्चराइजर का प्रयोग

आंखो के आस पास झाई या काले घेरे होने लगे हैं तो विटामिन सी  युक्त क्रीम का प्रयोग करें।विटामिन सी स्किन को ऑक्सीडेटिव डैमेज होने से बचाता हैं व स्किन को स्ट्रॉन्ग भी  बनाता है. दिन में दो से तीन बार स्किन को मॉइस्चरइज़ अवश्य करें इससे स्किन हाइड्रेट रहती है. बादाम के  तेल या नारियल के तेल से आँखों के पास अच्छे से मसाज करें क्योंकि इस में विटामिन ई होता हैं जिससे  आँखों की एक्सरसाइज भी हो जाती हैं और उन्हें काले घेरे, अंदर की तरफ जाने से बचाने में मदद करता है.

एलोवेरा हैं गुणकारी

एलोवेरा एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुणों से भरपूर होता है आंखों के पास से स्किन को साफ कर ले और एलोवेरा पल्प  से अच्छे से मसाज कर के 15 मिनट बाद धो दे इससे स्किन भी रिपेयर होंगी. साथ ही आँखों में जलन व खुजली से भी राहत मिलेगी.

 स्क्रीन से दूरी बनाए

आज के समय में हम फ़ोन, कंप्यूटर का अत्यधिक उपयोग करते हैं जिससे स्क्रीन टाइम बहुत ज्यादा बढ़ने लगा है और आँखों पर अधिक दबाव बना रहता है इसलिए फोन का प्रयोग कम करें और यदि जरूरी भी हैं  तो आँखों को हर 30 मिनट बाद आराम दे व पानी से धोए.

चेक अप अवश्य कराएं

40 की उम्र के बाद परेशानी ना होने पर भी ग्लूकोमा की जांच कराएं और यदि किसी के परिवार में  मधुमेह, उच्च रक्तचाप के रोगी हैं या खुद पीड़ित हैं तो हर 6 महीने में आँखों  की जाँच अवश्य कराएं.

जानिए कितने प्रकार की होती है बिरयानी और उनमें क्या है अंतर

बिरयानी जिसे मुख्यतया चावल और कुछ सब्जियों के द्वारा बनाया जाता है परन्तु चूंकि इसे बनाने का तरीका बहुत ख़ास होता है जिसके कारण यह न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपने नाम से ही जानी जाती है. भारत में सिन्धी, थालास्सेरी, कोलकाता, कोल्हापुरी, श्रीलंकन जैसी अनेकों बिरयानी पायी जातीं हैं परन्तु हैदराबादी, मुरादाबादी और नबाबों के शहर लखनऊ की बिरयानी न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में अपने स्वाद और फ्लेवर के लिए बहुत प्रसिद्ध है. बिरयानी वेज और नानवेज दोनों प्रकार की होती है. नानवेज बिरयानी को मीट, पके चावल और मसालों के साथ पकाया जाता है वहीँ नानवेज बिरयानी को सब्जियों, पके चावल, और मसालों की परत लगाकर बनाया जाता है. दरअसल बिरयानी बनाने में उसके मसालों का ही ख़ास महत्व होता है और इसे बनाने में प्रयोग किये जाने वाले मसाले ही उसकी अपनी पहचान होती हैं तो आइये आज हम जानते हैं तरह तरह की बिरयानी के अंतर और उसमें प्रयोग किये जाने वाले मसालों के बारे में

  1. हैदराबादी बिरयानी

हैदराबादी बिरयानी अपने तीखेपन के लिए जानी जाती है इसे बनाने के लिए तीखी लाल मिर्च, स्टार, गरम मसाला और धनिया पाउडर का प्रयोग किया जाता है. इसे दम लगाकर पकाया जाता है जिससे इसमें मसालों का फ्लेवर निखर कर आता है इसीलिए इसका स्वाद अन्य बिरयानी से एकदम अलग होता है. इसे धनिया, पोदीना की पत्तियों से गार्निश करके मिर्च के सालन और रायते के साथ सर्व किया जाता है.

2. मुरादाबादी बिरयानी

उत्तर भारत के मुरादाबाद शहर की फेमस मुरादाबादी बिरयानी को दालचीनी, प्याज और लहसुन की अच्छी खासी मात्रा के साथ बनाया जाता है. इसे भाप की जगह सीधा गैस पर पकाया जाता है जिससे इसका स्वाद काफी अलग होता है. हैदराबादी बिरयानी की अपेक्षा यह काफी कम तीखी होती है.

3. लखनऊ की बिरयानी

नबाबों के शहर लखनऊ की बिरयानी को अवधी बिरयानी भी कहा जाता है. इसे खुशबू और स्वाद के लिए जाना जाता है इसे बनाने में केसर, जायफल और इलायची का काफी मात्रा में प्रयोग किया जाता है. इसे दही के साथ एकदम धीमी आंच पर पकाया जाता है. इसे दही के साथ सर्व किया जाता है.

4. कलकत्ता की बिरयानी

इसे भी लेयरिंग करके मसालों, मीट, सब्जी के साथ बनाया जाता है परन्तु कलकत्ता की बिरयानी में आलू का प्रयोग अवश्य किया जाता है जो इसे अन्य बिरयानी से अकदम अलग करता है. इसे पीले चावल से बनाया जाता है और कम मसालों का प्रयोग किया जाता है. जायफल और केवडा वाटर इसकी सुगंध और स्वाद को बढ़ाता है.

5. अम्बुर की बिरयानी

तमिलनाडु की अम्बुर बिरयानी को सीरागा साम्बा नामक विशेष प्रकार के चावलों के द्वारा पकाया जाता है जिनका स्वाद सामान्य चावलों से काफी अलग होता है. इसे खट्टी बैगन की करी जिसे तमिल में एन्नाई कथरिका कहा जाता है के साथ सर्व किया जाता है.

क्या है लेयरिंग और दम

सामान्य चावलों को जहां उबालकर बनाया जाता है वहीँ बिरयानी बनाते समय चावलों को पानी में उबालकर आधा पकाया जाता है. सब्जियों या मीट को दही और मसालों के साथ मेरिनेट करके हाफ कुक किया जाता है और फिर जिस बर्तन या हांड़ी में आप बिरयानी पका रहे हैं उसमें चावल और सब्जियों की क्रमशः परत 3 से 4 परतें लगाई जातीं हैं. मूलतः दम को हांड़ी या भगौने में लगाया जाता है ताकि उसकी भाप बाहर न निकले. दम लगाने के लिए गीले आटे को बर्तन के ढक्कन के चारों तरफ लगाकर बिरयानी को एकदम धीमी आंच पर पकाया जाता है ताकि मसालों के फ्लेवर अच्छी तरह चावलों में आ जायें.

बिरयानी बनाते समय रखें इन बातों का ध्यान

  • बिरयानी बनाने के लिए बाजार में विशेष रूप से चावल आता है उससे ही बिरयानी बनाएं क्योंकि सामान्य चावल के मुकाबले उसका दाना काफी लम्बा होता है जो कि प्रत्येक बिरयानी की खासियत होती है. सामान्य चावल से बनाने पर बिरयानी का स्वाद और टेक्सचर दोनों ही नहीं आ पाते.
  • बिरयानी को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए प्याज को लम्बाई में काटकर नमक के पानी में डालें और फिर उन्हें हाथ से निचोड़कर गरम तेल में सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें और बिरयानी के ऊपर डालकर सर्व करें.
  • बिरयानी का वास्तविक स्वाद प्राप्त करने के लिए रेडीमेड बिरयानी मसाला का प्रयोग करना उत्तम रहता है.
  • बिरयानी तेल या रिफाइंड के स्थान पर घी और मक्खन से बनाने पर अधिक स्वाद आता है.
  • बिरयानी को बथुआ, बूंदी या मिक्स वेज रायते और हरे धनिया व पोदीने की चटनी के साथ सर्व करें.
  • यदि आप घर पर हांड़ी बिरयानी बना रहे हैं तो हांड़ी को गैस पर सीधे न रखकर कोई स्टैंड रखकर उसके ऊपर हांड़ी को रखें अन्यथा बिरयानी के तेज आंच पर तले में जल जाने की सम्भावना रहती है.
  • बिरयानी में सुगंध के लिए केवडा, रोज एसेंस का प्रयोग सावधानी से करें इसके लिए आप बिरयानी की मात्र के अनुसार कुछ बूंदों को पानी में मिलाकर बिरयानी में डालें.

एहसास: कौनसी बात ने झकझोर दिया सविता का अस्तित्व

कहानी- अवनीश शर्मा

शिखा और मैं 1 सप्ताह नैनीताल में बिता कर लौटे हैं. वह अपनी बड़ी बहन सविता को बडे़ जोशीले अंदाज में अपने खट्टेमीठे अनुभव सुना रही है.

सविता की पूरी दिलचस्पी शिखा की बातों में है. मैं दिवान पर लेटालेटा कभी शिखा की कोई बात सुन कर मुसकरा पड़ता हूं तो कभी छोटी सी झपकी का मजा ले लेता हूं.

मेरी सास आरती देवी रसोई में खाना गरम करने गई हैं. मुझे पता है कि सारा खाना सविता पहले ही बना चुकी हैं.

सारा भोजन मेरी पसंद का निकलेगा, पुराने अनुभवों के आधार पर मेरे लिए यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं. ससुराल में मेरी खूब खातिर होती है और इस का पूरा श्रेय मेरी बड़ी साली सविता को ही जाता है.

शिखा अपनी बड़ी बहन सविता के बहुत करीब है, क्योंकि वह उस की सब से अच्छी सहेली और मार्गदर्शक दोनों हैं. शायद ही कोई बात वह अपनी बड़ी बहन से छिपाती हो. उन की सलाह के खिलाफ शिखा से कुछ करवा लेना असंभव सा ही है.

‘‘हमें पहला बच्चा शादी के 2 साल बाद करना चाहिए,’’ हमारी शादी के सप्ताह भर बाद ही शिखा ने शरमाते हुए यों अपनी इच्छा बताई तो मैं हंस पड़ा था.

‘‘मैं तो इतना लंबा इंतजार नहीं कर सकता हूं,’’ उसे छेड़ने के लिए मैं ने उस की इच्छा का विरोध किया.

‘‘मेरे ऐसा कहने के पीछे एक कारण है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘इन पहले 2 सालों में हम अपने वैवाहिक जीवन का भरपूर मजा लेंगे, सौरभ. अगर मैं जल्दी मां बनने के झंझट में फंस गई तो हो सकता तुम इधरउधर ताकझांक करने लगो और वह हरकत मुझे कभी बरदाश्त नहीं होगी.’’

‘‘यह कैसी बेकार की बातें मुंह से निकाल रही हो?’’ उसे सचमुच परेशान देख कर मैं खीज उठा.

‘‘मेरी दीदी हमेशा मुझे सही सलाह देती हैं और हम बच्चा…’’

‘‘तो यह बात तुम्हारी दीदी ने तुम्हारे दिमाग में डाली है.’’

‘‘जी हां, और वह गलत नहीं हैं.’’

‘‘चलो, मान लिया कि वह गलत नहीं हैं पर एक बात बताओ. क्या तुम हर तरह की बातें अपनी दीदी से कर लेती हो?’’

‘‘बिलकुल कर लेती हूं.’’

‘‘वह बातें भी जो बंद कमरे में हमारे बीच होती हैं?’’ मैं ने चुटकी ली.

‘‘जी, नहीं.’’

वैसे मुझे उस के इनकार पर उस दिन भरोसा नहीं हुआ क्योंकि मेरा सवाल सुन कर उस के हावभाव वैसे हो गए थे जैसे चोरी करने वाले बच्चे को रंगे हाथों पकडे़ जाने पर होते हैं.

इस बात की पुष्टि अनेक मौकों पर हो चुकी है कि शिखा अपनी बड़ी बहन को हर बात बताती है. इस कारण अगर मैं या मेरे परिवार वाले परेशान नहीं हैं तो इसलिए कि सविता बेहद समझदार और गुणवान हैं. मैं उन्हें अपने परिवार का मजबूत सहारा मानता हूं, टांग अड़ा कर परेशानी खड़ी करने वाला रिश्तेदार नहीं.

सविता के पास न रंगरूप की कमी है न गुणों की. कमाती भी अच्छा हैं पर दुर्भाग्य की बात यह है कि बिना शादी किए ही वह खुद को विधवा मानती हैं.

रवि नाम के जिस युवक को वह किशोरावस्था से प्रेम करती थीं, करीब 2 साल पहले उस का एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया. इस सदमे के कारण सविता ने कभी शादी न करने का फैसला कर लिया है. किसी के भी समझाने का सविता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता.

मेरे मातापिता ने भी उन्हें शादी करने के लिए राजी करने की कोशिश दिल से की थी. तब उन का कहना था, ‘‘मेरी तकदीर में अपनी घरगृहस्थी के सुख लिखे होते तो मैं जिसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहती थी वह मुझे यों छोड़ कर नहीं जाता. रवि की जगह मैं किसी और को नहीं दे सकती.’’

करीब महीने भर पहले मेरा जन्मदिन था. सविता ने कमीजपैंट और मैचिंग टाई का उपहार मुझे दिया था.

‘‘थैंक यू, बड़ी साली साहिबा,’’ मैं ने मुसकराते हुए उपहार स्वीकार किया और फिर भावुक लहजे में बोला,  ‘‘मुझे आप से एक तोहफा और चाहिए. आशा है कि आप मना नहीं करोगी.’’

‘‘बिलकुल नहीं करूंगी,’’ उन्होंने आत्मविश्वास से भरे स्वर में फौरन जवाब दिया.

‘‘आप शादी कर लो, प्लीज,’’ मैं ने विनती सी की.

पहले तो वह चौंकीं, फिर उन की आंखों में गंभीरता के भाव उपजे और अगले ही पल वह खिलखिला कर हंस भी पड़ीं.

‘‘सौरी, सौरभ, उपहार तुम्हें अपने लिए मांगना था. मेरा शादी करना तुम्हारे लिए गिफ्ट कैसे बन सकता है?’’

‘‘आप का अकेलापन दूर हो जाए, इस से बड़ा गिफ्ट मेरे लिए और कुछ नहीं हो सकता.’’

‘‘तुम सब के होते हुए मुझे अकेलेपन का एहसास कैसे हो सकता है?’’ शिखा और मेरी बहन प्रिया के गले में बांहें डाल कर सविता हंस पड़ीं. और मेरा प्रयास एक बार फिर बेकार चला गया.

हमारे नैनीताल घूम कर आने के बाद सविता दीदी ने मुझे और शिखा को पास बिठा कर एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा शुरू की थी.

‘‘सौरभ, तुम को भविष्य को ध्यान में रख कर अब चलना शुरू कर देना चाहिए. खर्चे संभल कर करना शुरू करो. बचत करोगे तो ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाओगे… अपने मकान में रह सकोगे,’’ वह हमें इस तरह समझाते हुए काफी गंभीर नजर आ रही थीं.

‘‘हम दोनों नौकरी करते हैं, पर आज के समय में मकान खरीदना बड़ा महंगा हो गया है. अपने मकान में रहने का सपना जल्दी से पूरा होने का फिलहाल कोई मौका नहीं है,’’ मैं ने दबी आवाज में कहा.

‘‘तुम दोनों क्या मुझे पराया समझते हो?’’ उन्होंने फौरन आहत भाव से पूछा.

‘‘ऐसा बिलकुल भी नहीं है.’’

‘‘तब अपने मकान का सपना पूरा करना तुम दोनों की नहीं, बल्कि हम तीनों की जिम्मेदारी है. सौरभ, आखिर मैं, मां और तुम दोनों के अलावा और किस के लिए कमा रही हूं?’’

वह नाराज हो गई थीं. उन्हें मनाने के लिए मुझे कहना पड़ा कि जल्दी ही हम 3 बेडरूम वाला फ्लैट बुक कराएंगे और उन की आर्थिक सहायता सहर्ष स्वीकार करेंगे. मेरे द्वारा ऐसा वादा करा लेने के बाद ही उन का मूड सुधरा था.

शिखा और मेरे मन में उन के प्रति कृतज्ञता का बड़ा गहरा भाव है. हम दोनों उन के साथ बड़ी गहराई से जुड़े हुए हैं. तभी उन की व्यक्तिगत जिंदगी का खालीपन हमें बहुत चुभता है. बाहर के लोगों के सामने वह सदा गंभीर बनी रहती हैं, पर हम दोनों से खूब खुली हुई हैं.

उस दिन दोपहर का खाना सचमुच मेरी पसंद को ध्यान में रख कर सविता ने तैयार किया था. मैं ने दिल खोल कर उन की प्रशंसा की और वह प्रसन्न भाव से मंदमंद मुसकराती रहीं.

खाना खाने के बाद मैं ने 2 घंटे आराम किया. जब नींद खुली तो पाया कि शरीर यों टूट रहा था मानो बुखार हो. कुछ देर बाद ठंड लगने लगी और घंटे भर के भीतर पूरा शरीर भट्ठी की तरह जलने लगा.

सविता दीदी जिद कर के मुझे शाम को डाक्टर के पास ले गईं. हमें रात को घर लौट जाना था पर उन्होंने जाने नहीं दिया.

‘‘ज्यादा परेशान मत होइए आप,’’ मैं ने उन्हें समझाते हुए कहा, ‘‘इस मौसम में यह बुखार मुझे हर साल पकड़ लेता है. 2-4 दिन में ठीक हो जाऊंगा.’’

उन की चिंता दूर करने के लिए मैं ने अपनी आवाज में लापरवाही के भाव पैदा किए तो वह गुस्सा हो गईं.

‘‘सौरभ, हर साल तुम बीमार नहीं पड़ोगे तो कौन पड़ेगा?’’ उन्होंने मुझे डांटना शुरू किया, ‘‘तुम्हारा न खाने का कोई समय है, न ही सोने का. दूध से तुम्हें एलर्जी है. फल खाने के बजाय तुम टिक्की और समोसे पर खर्च करना बेहतर मानते हो. अब अगर तुम नहीं सुधरे तो मैं तुम से बोलना बंद कर दूंगी.’’

‘‘दीदी, आप इतना गुस्सा मत करो,’’ मैं ने फौरन नाटकीय अंदाज में हाथ जोडे़,  ‘‘मैं ने दूध पीना शुरू कर दिया है. आप के आदेश पर अब लंच भी ले जाने लगा हूं. वैसे एक बात आप मेरी भी सुन लो, अगर कभी सचमुच आप ने मुझ से बोलना छोड़ा तो मैं आमरण अनशन कर दूंगा. फिर मेरी मौत की जिम्मेदार…’’

सविता ने आगे बढ़ कर मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और मेरे देखते ही देखते उन की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘इतने खराब शब्द फिर कभी अपनी जबान पर मत लाना सौरभ. किसी अपने को खोने की कल्पना भी मेरे लिए असहनीय पीड़ा बन जाती है,’’ उन का गला भर आया.

‘‘आई एम सौरी,’’ भावुक हो कर मैं ने उन का हाथ चूमा और माफी मांगी.

उन्होंने अचानक झटका दे कर अपना हाथ छुड़ाया और तेज चाल से चलती कमरे से बाहर निकल गईं.

मैं ने मन ही मन पक्का संकल्प किया कि आगे से ऐसी कोई बात मुंह से नहीं निकालूंगा जिस के कारण सविता के दिल में रवि की याद ताजा हो और दिल पर लगा जख्म फिर से टीसने लगे.

अगले दिन सुबह भी मुझे तेज बुखार बना रहा. शिखा को आफिस जाना जरूरी था. मेरी देखभाल के लिए सविता ने फौरन छुट्टी ले ली.

उस दिन सविता के दिल की गहराइयों में मुझे झांकने का मौका मिला. उन्होंने रवि के बारे में मुझे बहुत कुछ बताया. कई बार वह रोईं भी. फिर किसी अच्छी घटना की चर्चा करते हुए बेहद खुश हो जातीं और अपने दिवंगत प्रेमी के प्रति गहरे प्यार के भाव उन के हावभाव में झलक उठते.

मुझे नहीं लगता कि सविता ने मेरे अलावा कभी किसी दूसरे से इन सब यादों को बांटा होगा. उन्होंने मुझे अपने बहुत करीब समझा है, इस  एहसास ने मेरे  अहम को बड़ा सुख दिया.

शाम को मेरी तबीयत ठीक रही पर रात को फिर बुखार चढ़ गया. शिखा भी अपनेआप को ढीला महसूस कर रही थी, सो वह मेरे पास सोने के बजाय अपनी मां के पास जा कर सो गई.

सविता को अब 2 मरीजों की देखभाल करनी थी. हम दोनों को उन्होंने जबरदस्ती थोड़ा सा खाना खिलाया. वह नहीं चाहती थीं कि भूखे रह कर हम अपनी कमजोरी बढ़ाएं.

रात 11 बजे के आसपास मेरा बुखार बहुत तेज हो गया. सब सो चुके थे, इसलिए मैं चुपचाप लेटा बेचैनी से करवटें बदलता रहा. नींद आ रही थी पर तेज बदन दर्द के कारण मैं सो नहीं सका.

शायद कुछ देर को आंख लग गई होगी, क्योंकि मुझे न तो सविता के कमरे  में आने का पता लगा और न ही यह  कि उन्होंने कब से मेरे माथे पर गीली पट्टियां रखनी शुरू कीं.

तपते बुखार में गीली पट्टियों से बड़ी राहत महसूस हो रही थी. मैं आंखें खोलने को हुआ कि सविता ने मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए सिर की हलकी मालिश शुरू कर दी. इस कारण आंखें खोलने का इरादा मैं ने कुछ देर के लिए टाल दिया.

जिस बात ने मुझे बहुत जोर से कुछ देर बाद चौंकाया, वह सविता के होंठों का मेरे माथे पर हलका सा चुंबन अंकित करना था.

इस चुंबन के कारण एक अजीब सी लहर मेरे पूरे बदन में दौड़ गई. मैं सविता के बदन से उठ रही महक के प्रति एकदम से सचेत हुआ. उन की नजदीकी मेरे लिए बड़ा सुखद एहसास बनी हुई थी. मैं ने झटके से आंखें खोल दीं.

सविता की आंखें बंद थीं. वह न जाने किस दुनिया में खोई हुई थीं. उन के चेहरे पर मुझे बड़ा सुकून और खुशी का भाव नजर आया.

‘‘सविता,’’ अपने माथे पर रखे उन के हाथ को पकड़ कर मैं ने कोमल स्वर में उन का नाम पुकारा.

सविता फौरन अपने सपनों की दुनिया से बाहर आईं. मुझ से आंखें मिलते ही उन्होंने लाज से अपनी नजरें झुका लीं. अपना हाथ छुड़ाने की उन्होंने कोशिश की, पर मेरी पकड़ मजबूत थी.

‘‘सविता, तुम दिल की बहुत अच्छी हो…बहुत प्यारी हो…बड़ी सुंदर हो,’’ इन भावुक शब्दों को मुंह से निकालने के लिए मुझे कोई कोशिश नहीं करनी पड़ी.

जवाब में खामोश रह कर वह अपना हाथ छुड़ाने का प्रयास करती रही.

एक बार फिर मैं ने उस का हाथ चूमा तो उन्होंने अपना हाथ मेरे हाथ में ढीला छोड़ दिया.

मैं उठ कर बैठ गया. सविता की आंखों में मैं ने प्यार से झांका. वह मुझ से नजरें न मिला सकीं और उन्होंने आंखें मूंद लीं.

सविता का रूप मुझे दीवाना बना रहा था. मैं उन के चेहरे की तरफ झुका. उन के गुलाबी होंठों का निमंत्रण अस्वीकार करना मेरे लिए असंभव था.

मेरे होंठ उन के होंठों से जुडे़ तो उसे तेज झटका लगा. उन की खुली आंखों में बेचैनी के भाव उभरे. कुछ कहने को उन के होंठ फड़फड़ाए, पर शब्द कोई नहीं निकला.

सविता ने  झटके से अपना हाथ छुड़ाया और कुरसी से उठ कर कमरे से बाहर चल पड़ीं. मैं ने उन्हें पुकारा पर वह रुकी नहीं.

मैं सारी रात सो नहीं सका. मन में अजीब से अपराधबोध व बेचैनी के भावों के साथसाथ गुदगुदी सी भी थी.

अगले दिन सुबह सविता, अपनी मां और शिखा के साथ कमरे में आईं. मैं काफी बेहतर महसूस कर रहा था.

‘‘सौरभ बेटे, एक खुशखबरी सुनो. सविता ने शादी के लिए  ‘हां’ कर दी है,’’ यह खबर सुनाते हुए मेरी सास की आंखों में खुशी के आंसू उभर आए.

‘‘अरे, यह कैसे हुआ?’’ मैं ने चौंक कर सविता की तरफ अर्थपूर्ण दृष्टि से देखा.

‘‘मुझे अचानक एहसास हुआ कि मेरे अंदर की औरत, जिसे मैं मरा समझती थी, जिंदा है और उसे जीने का भरपूर मौका देने के लिए मुझे अपनी अलग दुनिया बसानी ही पडे़गी, सौरभ,’’ सविता ने मुझ से बेधड़क आंखें मिलाते हुए जवाब दिया.

‘‘आप का फैसला बिलकुल सही है. बधाई हो,’’ अपनी बेचैनी को छिपा कर मैं मुसकरा पड़ा.

‘‘थैंक यू, सौरभ. तुम ने रात को मेरी आंखें खोलने में जो मदद की है, उस के लिए मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी,’’ सविता सहज भाव से मुसकरा उठीं.

‘‘सौरभ, ऐसा क्या समझाया तुम ने, जो दीदी ने अपना कट्टर फैसला बदल लिया?’’ शिखा ने उत्सुक लहजे में सवाल पूछा.

मैं ने कुछ देर सोचने के बाद गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘मेरे कारण सविता को शायद यह समझ में आ गया है कि टेलीविजन धारावाहिक या फिल्में देख कर…या फिर किसी दूसरे की घरगृहस्थी का हिस्सा बन कर जीने का असली आनंद नहीं लिया जा सकता है. जिंदगी के कुछ अनुभव शेयर नहीं हो सकते…शेयर नहीं करने चाहिए. मैं ठीक कह रहा हूं न, सविता जी?’’

सविता से हाथ मिलाते हुए मैं ने उन्हें एक बार फिर शुभकामनाएं दीं. वह प्रसन्नता से भरी आफिस जाने की तैयारी में जुट गईं.

मैं भी अपनेआप को अचानक बड़ा हलका, तरोताजा और खुश महसूस कर रहा था. शिखा का हाथ अपने हाथों में ले कर मैं ने सविता को दिल से धन्यवाद दिया क्योंकि उन्होंने मुझे बड़ी भूल व गलती की दलदल में फंसने से बचा लिया था.

सविता के प्रति मेरे मन में आदरसम्मान के भाव पहले से भी ज्यादा गहरे हो गए थे.

अस्तित्व: घर की चिकचिक से क्यों परेशान थी राधा

घड़ीका अलार्म एक अजीब सी कर्कशता के साथ कानों में गूंजने लगा तो झल्लाहट के साथ मैं ने उसे बंद कर दिया. सोचा कि क्या करना है सुबह 5 बजे उठ कर. 9 बजे का दफ्तर है लेकिन 10 बजे से पहले कोई नहीं पहुंचता. करवट बदल कर मैं ने चादर को मुंह तक खींच लिया.

‘‘क्या करती हो ममा उठ जाओ. 7 बजे मुझे स्कूल जाना है. बस आ जाएगी,’’ साथ लेटे सोनू ने मुझे हिला कर कहा.

मैं झल्ला कर उठी, ‘‘जाना मुझे है कि तुझे चल तू भी उठ. रोज कहती हूं कि 5 बजे के बजाय 6 बजे का अलार्म लगाया कर, लेकिन तू मुझे 5 बजे ही उठाता है और खुद 6 बजे से पहले नहीं उठता.’’

‘‘सोनू…सोनू…स्कूल नहीं जाना क्या?’’ मैं ने उसे झिझोड़ दिया.

‘‘आप पागल हो मम्मा,’’ कह कर उस ने चादर चेहरे पर खींच लिया. फिर बोला, ‘‘मुझे 10 मिनट भी नहीं लगेंगे तैयार होने में. लेकिन आप ने सारा घर सिर पर उठा लिया.’’

‘‘तू ऐनी को देख. तुझ से छोटा है पर तुझ से पहले उठ चुका है. जबकि उस का स्कूल 8 बजे का है,’’ मैं ने कहा.

‘‘आप बस नाश्ता तैयार कर लो. चाहे

7 बजे मुझे जाना हो और 8 बजे ऐनी को,’’ वह ?ाल्ला कर बोला.

मैं मन मार कर उठी और चाय बनाने लगी. फिर बालकनी में बैठ कर चाय की चुसकियां लेते हुए अखबार की सुर्खियों पर नजरें दौड़ा ही रही थी कि अंदर से आवाज आई, ‘‘मम्मी, पापा अखबार मांग रहे हैं.’’

मैं ने बुझे मन से अखबार के कुछ पन्ने पति को पकड़ाए और पेज थ्री पर छपी फिल्मी खबरें पढ़ने लगी. अभी खबरें पूरी पढ़ नहीं पाई थी कि पति ने आ कर ?ाटके से वे पेज भी मेरे सामने से उठा लिए. खबर पूरी न पढ़ पाने की वजह से मजा किरकिरा हो गया.

मैं ने चाय का अंतिम घूंट लिया और रसोई में आ गई. बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे. जल्दीजल्दी 2 परांठे सेंके  और गिलास में दूध डाल बच्चों को नाश्ता दे उन का टिफिन तैयार करने लगी.

‘‘मम्मी, मेरी कमीज नहीं मिल रही,’’ ऐनी ने आवाज लगाई.

‘‘तुझे कभी कुछ मिलता भी है?’’ फिर कमरे में आ कर अलमारी से कमीज निकाल कर उसे दी.

‘‘मम्मी दूध ज्यादा गरम है. प्लीज ठंडा कर दो,’’ सोनू ने टाई की नौट बांधते हुए हुक्म फरमा दिया.

दूध ठंडा कर वापस जाने लगी तो सोनू मेरा रास्ता रोक कर खड़ा हो गया, ‘‘मम्मी

प्लीज 1 मिनट,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी स्कूल बैग से कुछ निकालने लगा. फिर मिन्नतें करने लगा कि मम्मी, मेरा रिपोर्टकार्ड साइन कर दो…प्लीज मम्मी.’’

‘‘जरूर मार्क्स कम आए होंगे. इस बार तो मैं बिलकुल नहीं करूंगी. बेवकूफ समझ रखा है क्या तू ने मुझे जा, अपने पापा से करवा साइन. और तू ने मुझे कल क्यों नहीं दिखाया अपना रिपोर्टकार्ड?’’

‘‘मम्मा, प्लीज धीरे बोलो, पापा सुन लेंगे,’’ उस के चेहरे पर याचना के भाव उभर आए. हाथ पकड़ कर प्यार से मुझे पलंग पर बैठाते हुए

उस ने पेन और रिपोर्टकार्ड मुझे पकड़ा दिया.

‘‘जब भी मार्क्स कम आते हैं तो मुझे कहते हैं और जब ज्यादा आते हैं तो सीधे पापा के पास जाते हैं,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रिपोर्टकार्ड खोल कर देखने लगी. साइंस में 100 में से 89, हिंदी में

85, मैथ्स में 92. मेरी आंखें चमकने लगीं. चेहरे पर मुसकान दौड़ गई. उसे शाबासी देने के लिए मैं ने नजरें उठाई तो देखा कि आईने में बाल संवारता हुआ वह शरारत भरी निगाहों से मुझे ही देख रहा था. मेरे कुछ कहने से पहले ही वह बोल उठा, ‘‘जल्दी से साइन कर दो न मम्मा, इतनी देर से मार्क्स ही देखे जा रही हो.’’

बेकाबू होती खुशी को नियंत्रित करते हुए मैं ने पेन का ढक्कन खोला. रिपोर्टकार्ड के दायीं ओर देखा तो ये पहले ही साइन कर चुके थे.

दोनों फिर मुझे देख कर हंसने लगे तो मैं खिसिया गई.

‘‘घर की चाबी रख ली है न? कहीं ऐसा न हो कि आज मुझे बाहर गमले के पीछे छिपा कर जाना पड़े,’’ मैं ने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा.

बच्चों के काम से फारिग हुई ही थी कि पति ने दोबारा चाय की फरमाइश कर दी. ‘‘पत्ती जरा तेज डालना. सुबह जैसी चाय न बनाना. तुम्हें 16 सालों में चाय बनानी नहीं आई.’’

‘‘तुम अपनी चाय खुद क्यों नहीं बना लेते? कभी पत्ती कम तो कभी दूध ज्यादा. हमेशा मीनमेख निकालते रहते हो,’’ मैं ने भी अपना गुबार निकाल दिया.

आज दफ्तर को देर हो कर रहेगी. अभी सब्जी भी बनानी है और दूध भी उबालना है. क्याक्या करूं. मैं अपनेआप से झंझलाने लगी.

‘‘क्यों, तू समय पर  नहीं आ सकती? ये कौन सा वक्त है आने का? तेरी वजह से क्या मैं दफ्तर जाना छोड़ दूं?’’ मैं ने काम वाली पर सारा गुस्सा उतार दिया.

सारा काम निबटा कर नहाने गई तो देखा बाथरूम बंद.

‘‘तुम रोज जल्दी क्यों नहीं नहाते? जबकि तुम्हें पता है कि इस वक्त ही मेरा काम खत्म हो पाता है. अब जल्दी बाहर निकलो,’’ मैं बाथरूम का दरवाजा खटखटाते हुए लगभग चिल्ला दी.

‘‘जब तक मैं नहा कर निकलूं प्लीज मेरा रूमाल और मोजे पलंग पर रख दो,’’ शौवर के शोर को चीरती उन की मद्धिम पड़ गई आवाज सुनाई दी.

‘‘तुम मुझे 2 मिनट भी चैन से जीने मत देना,’’ मैं ने अपना तौलिया और गाउन वहीं पटका और रूमाल और मोजे ढूंढ़ने कमरे में चली गई.

यह इन का रोज का काम था. बापबेटे मुझ पर हुक्म चलाते.

‘चाय कड़क बनाना’

‘अखबार कहां है?’

‘मम्मी, दूध में मालटोवा नहीं डाला?’

‘आमलेट कच्चा है.’

‘मम्मी, ब्रैड में मक्खन नहीं लगाया?’

‘कभी बहुत गरम दूध दे देती हो तो कभी बिलकुल ठंडा. मम्मी, आप को हुआ क्या है?’

‘‘अब किस सोच में खड़ी हो? जाओ नहा लो,’’ पति बाथरूम से बाहर निकल कर बोले.

मैं पैर पटकती बाथरूम में घुस गई.

घर पर ही 10 बज गए. जल्दीजल्दी तैयार हो कर दफ्तर पहुंची. सोचा कि आज बौस से फिर डांट खानी पड़ेगी. लेकिन अपने सैक्शन में पहुंचने पर पता चला कि आज बौस छुट्टी पर हैं. दिमाग कुछ शांत हुआ.

‘रोज का काम यदि रोज न निबटाओ तो काम का ढेर लग जाता है,’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

कोर्ट केस की फाइल पूरी कर बौस की मेज पर पटकी और अपनी दिनचर्या का

विश्लेषण करने लगी. कभी अपने बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं मिलती. घरदफ्तर, पतिबच्चों के बीच एक कठपुतली की तरह दिन भर नाचती रहती हूं. कभी सोचा भी नहीं था कि जिंदगी इतनी व्यस्त हो जाएगी. कल से सुबह ठीक 5 बजे उठा करूंगी. ऐनी को आमलेट पसंद नहीं है तो उसे नाश्ते में दूध ब्रैड या परांठा दूंगी. सोनू को आमलेट और फिर अखबार के साथ इन्हें दोबारा कड़क सी चाय.

‘‘किस सोच में बैठी हो मैडम? आज चाय पिलाने का इरादा नहीं है क्या?’’ साथ बैठी सहयोगी ने ताना मारा.

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. चलो कैंटीन चलते हैं,’’ मैं थोड़ा सामान्य हुई.

‘‘आज बड़ी उखड़ीउखड़ी लग रही हो.

क्या बात है? सुबह से कोई बात भी नहीं की,’’ उस ने कैंटीन में इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए कोने में एक खाली मेज की तरफ चलने का इशारा करते हुए कहा.

‘‘यार, बात तो कोई नहीं. लेकिन आजकल काम का बहुत बो?ा है. जिंदगी जैसे रेल सी बन गई है. बस भागते रहो, भागते रहो,’’ कह कर मैं ने चाय की चुसकी ली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. कल मेरे बेटे के पैर में चोट लग गई तो डाक्टर के पास 2 घंटे लग गए. मेरे साहब के पास तो फुरसत ही नहीं है. सब काम मैं ही करूं,’’ झंझलाहट अब उस के चेहरे पर भी आ गई.

‘‘लगता है आज का दिन ही बोझिल है. चलो छोड़ो, कोई दूसरी बात करते हैं. ये भी क्या जिंदगी हुई कि बस सारा दिन बिसूरते रहो,’’ मैं हंस दी.

‘‘मैं ने एक नया सूट लिया है, लेटैस्ट डिजाइन का,’’ वह मुसकराते हुए बोली.

‘‘अच्छा, तुम ने पहले तो नहीं बताया?’’

‘‘दफ्तर के काम की वजह से भूल गई.’’

‘‘कितने का लिया?’’

‘‘700 का. उन्हें बड़ी मुश्किल से मनाया. मेरे नए कपड़े खरीदने से बड़ी परेशानी होती है उन्हें. बच्चे भी उन्हीं के साथ मिल जाते हैं.’’

मेरी हंसी निकल गई, ‘‘मेरे साथ भी तो यही होता है.’’

‘‘कब पहन कर आ रही हो?’’ मैं ने बातों में रस लेते हुए पूछा.

‘‘अभी तो दर्जी के पास है. शायद 3-4 दिन में सिल कर दे दे,’’ उस ने कहा.

‘‘अरे, अगले महीने 21 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन भी तो है, तभी पहनना,’’ मैं ने जैसे अपनी याददाश्त पर गर्व करते हुए कहा.

‘‘तुम्हें कैसे याद रहा?’’

‘‘हर साल तुम्हें बताती हूं कि मेरे छोटे बेटे का बर्थडे भी उसी दिन पड़ता है, भुलक्कड़ कहीं की.’’

‘‘हां यार, मैं हमेशा भूल जाती हूं,’’ वह खिसिया गई.

कुछ देर इधरउधर की बातें होती रहीं. फिर, ‘‘चलो अब अंदर चलते हैं. बहुत गप्पें मार लीं. थोड़ाबहुत काम निबटा लें. आज शर्माजी की सेवानिवृत्ति पार्टी भी है,’’ मैं एक ही सांस में कह गई.

दिन भर फाइलों में सिर खपाती रही तो समय का पता ही नहीं चला.

ओह 5 बज गए… मैं ने घड़ी पर नजर डाली और दफ्तर के गेट के बाहर आ गई.

पति पहले ही मेरे इंतजार में स्कूटर ले कर खडे़ थे. उन्हें देख मैं मुसकरा दी.

रास्ते में इधरउधर की बातें होती रहीं.

‘‘आज बढि़या सा खाना बना लेना.’’

‘‘क्यों, आज कोई खास बात है?’’

‘‘नहीं, कई दिनों से तुम रोज ही दालचावल बना देती हो.’’

‘‘तो तुम सब्जी ला कर दिया करो न.

सब्जी मंडी जाने के नाम पर तुम्हें बुखार चढ़ जाता है.’’

‘‘रोज रेहड़ी वाले गली में घूमते हैं. उन से सब्जी क्यों नहीं लेतीं?’’

‘‘खरीद कर तो तुम्हीं लाओ. चाहे रेहड़ी वाले से, चाहे मंडी से. मुझे तो बस घर में सब्जी चाहिए वरना आज भी दालचावल…’’

‘‘अच्छा मैं तुम्हें घर के पास छोड़ कर सब्जी ले आता हूं. अब तो खुश?’’

‘‘हां, बड़ा एहसान कर रहे हो,’’ कहती हुई मैं घर की सीढि़यां चढ़ने लगी.

‘‘मेरे गुगलूबुगलू क्या कर रहे हैं?’’ मैं ने लाड़ जताते हुए बच्चों से पूछा.

‘‘मम्मी कैंटीन से खाने के लिए क्या लाई हो?’’ ऐनी ने मेरे गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यहां सब्जी बड़ी मुश्किल से आती है, तुझे अपनी पड़ी है,’’ मैं ने पर्स खोलते हुए कहा.

‘‘सब के मम्मीपापा रोज कुछ न कुछ लाते हैं. जस्सी का फ्रिज तो तरहतरह की चीजों से भरा रहता है,’’ सोनू ने उलाहना दिया.

‘‘तो अपने पापा को बोला कर न बाजार से ले आया करें. मैं कहांकहां जाऊं. ये लो,’’ मैं ने एक पैकेट उन की तरफ उछाल दिया.

‘‘ये क्या है?’’

‘‘मिठाई है. औफिस में पार्टी हुई थी. मैं तुम्हारे लिए ले आई.’’

मैं ने पर्स अलमारी में रखा, जल्दीजल्दी कपड़े बदले और टीवी चालू कर दिया. थोड़ी देर में मेरा मनपसंद धारावाहिक आने वाला था.

‘‘आज चाय कौन बनाएगा?’’ मैं ने आवाज में रस घोलते हुए थोड़ी ऊंची आवाज में कहा.

कोई उत्तर नहीं मिला तो मैं उठ कर उन के कमरे में गई. देखा दोनों बच्चे कंप्यूटर पर गेम खेलने में मस्त थे.

‘‘रोज खुद चाय बनाओ. इन लड़कों का कोई सुख नहीं. लड़की होती तो कम से कम मां को 1 कप चाय तो बना कर देती,’’ मैं बड़बड़ाती हुई रसोई में आ गई.

‘‘मम्मी, कुछ कह रही हो क्या?’’

‘‘नहीं,’’ मैं चिल्ला दी.

रोटी का डब्बा खोल कर देखा तो लंच के लिए बनाए परांठों में से 2 परांठे अभी भी उस में पड़े थे.

‘‘दोपहर का खाना किस ने नहीं खाया?’’ मैं ने कमरे में दोबारा आ कर पूछा.

‘‘मैं ने तो खा लिया था,’’ सोनू बोला.

मैं ने ऐनी की तरफ देखा.

‘‘मम्मी आप के बिना खाना अच्छा नहीं लगता…अपने हाथ से खिला दो न,’’ उस ने स्क्रीन पर नजरें गड़ाए हुए ही लाड़ से कहा मेरा मन द्रवित हो उठा. खाना गरम कर अपने हाथों से उसे खिलाया और वापस रसोई में आ कर चाय बनाने लगी.

ट्रिंगट्रिंग…

शायद ये आ गए. बच्चों ने जल्दी से कंप्यूटर बंद कर किताबें खोल लीं. मेरी हंसी निकल गई.

‘‘कुंडी खोलने में बड़ी देर लगा दी. कितनी देर से वजन उठाए खड़ा हूं,’’ सब्जी और दूध के लिफाफे रसोई की तरफ लाते हुए ये भुनभुनाए.

‘‘अरे चाय बना रही थी इसीलिए.’’

‘‘जरा ढंग से बना लेना. मेरी चाय में अलग से चाय की पत्ती डाल कर कड़क कर देना. सुबह की चाय फीकीफीकी थी.’’

‘‘अरे सुबह तो मैं ने दोबारा कड़क चाय बनाई थी. किसी दिन पत्ती का सारा डब्बा उड़ेल दूंगी,’’ मैं ने नाराजगी दिखाते हुए कहा. फिर जल्दीजल्दी सुबह का बचा दूध गरम कर बच्चों को दे आई और ताजा दूध को गैस सिम कर उबलने के लिए रख दिया. चाय ले कर कमरे में आई तो मेरा पसंदीदा धारावाहिक शुरू हो चुका था.

विदेशी बहू: क्या तुषार की मां ने किया स्कारलेट को स्वीकार

तुषार उन दिनों कोलकाता के मैरीन इंजीनियरिंग कालेज के फाइनल ईयर में था. अंतिम वर्ष में जहाज पर प्रैक्टिकल ट्रेनिंग अनिवार्य होती है. उस की ट्रेनिंग एक औयल टैंकर पर थी. यह जहाज हजारों टन तेल ले कर देश की समुद्री सीमा के अंदर ही एक पोर्ट से दूसरे पोर्ट पर जाता है. जहाज पर यह उस का पहला सफर था. तुषार काफी खुश था. वह सपने देख रहा था कि कुछ ही महीनों में उस की पढ़ाई पूरी होने के बाद विदेश जाने वाले जहाज पर वह समुद्र पार जाएगा.

खैर, उस की पढ़ाई और ट्रेनिंग सब पूरी हो गई थी और उसे मैरीन इंजीनियरिंग की डिगरी भी मिल गई थी. तुषार के पिता की मौत हो चुकी थी. उस की मां उस के बड़े भाई कमल के साथ रहती थीं. कमल तुषार से 5 साल बड़ा था. यों तो उस के पिता ने इतनी संपत्ति छोड़ रखी थी कि मां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर थीं, फिर भी बुढ़ापे में कुछ गिरते स्वास्थ्य और बेटे से भावनात्मक लगाव के कारण वे कमल के साथ रहती थीं, पर बहू का स्वभाव अच्छा नहीं था. रोजाना सास को खरीखोटी सुनाती रहती थी. तुषार मां से कहता, ‘मैं ऐसी लड़की से शादी करूंगा जो आप को अपनी मां का दर्जा दे.’

एक शिपिंग कंपनी में तुषार को नौकरी मिल गई. शुरू में फिफ्थ इंजीनियर की पोस्ट पर जौइन करना होता है, जो जहाज का सब से जूनियर इंजीनियर होता है. उस की पोस्ंिटग एक नए जहाज पर हुई. वह जहाज जापान से बन कर आया था. जहाज को कोलकाता से कंपनी के हैडक्वार्टर मुंबई ले जाना था. हैडऔफिस ने इस जहाज को मुंबईआस्ट्रेलिया जलमार्ग पर चलाने का फैसला किया था. तुषार की मनोकामना पूरी होने जा रही थी.

आस्ट्रेलिया का सफर, वह भी नए जहाज पर. मेंटिनैंस के लिए ज्यादा माथापच्ची नहीं करनी थी. खैर, उस का जहाज कोलकाता से मुंबई के लिए रवाना हुआ. यह सफर भी किसी विदेश यात्रा से कम नहीं था, पूरे 5 दिन लग गए. भारत के तीनों सागर बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर पार करते हुए वह मुंबई पहुंचा. भारतीय जलमार्ग पर इन 5 दिनों के सफर में ही उसे अनुभव हुआ कि समुद्री यात्रा कितनी कठिन होती है. जहाज के समुद्री लहरों पर उछलते रहने से कारण उसे अकसर उलटी होती थी.

मुंबई के कार्गो ले कर जहाज कोलंबो पहुंचा. यह तुषार का पहला विदेशी पड़ाव था. कोलंबो से मसाले, चाय आदि ले कर जहाज को सीधे सिडनी जाना था. जब जहाज समुद्र में चल रहा होता, उसे 4-4 घंटे की 2 शिफ्टें रोज करनी होतीं. जब जहाज पोर्ट या लंगर में होता तब 12 घंटे की शिफ्ट होती थी. उस ने अपने सीनियर्स से बात कर सिडनी पोर्ट पर 12 घंटे की डे शिफ्ट सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक की ड्यूटी रखवा ली थी ताकि वह सिडनी की नाइटलाइफ ऐंजौय कर सके.

इस के बारे में उस ने अपने दोस्तों से जानकारी ले रखी थी. खैर, लहरों पर उछलतेकूदते उस का जहाज सिडनी 12वें दिन पहुंचा. पर पोर्ट पर बर्थ खाली नहीं होने से जहाज को पोर्ट से कुछ दूरी पर लंगर डालना पड़ा. रात का समय था. तुषार डेक पर खड़ा हो कर नजारा देख रहा था. दूर से ही उसे सिडनी शहर की बहुमंजिली इमारतें दिख रही थीं. एक ओर विश्वप्रसिद्ध औपेरा हाउस था तो दूसरी तरफ मशहूर सिडनी हार्बर ब्रिज. उस का मन मचल रहा था कि कब लंगर उठे और जहाज को बर्थ मिले. दूसरे दिन दोपहर तक जहाज को पोर्ट पर एंटर करने की अनुमति मिल गई.

जहाज हार्बर ब्रिज के नीचे से गुजर रहा था और तुषार डेक पर खड़ा हो कर इस दृश्य को देख कर रोमांचित हो रहा था. कुछ ही देर बाद जहाज पोर्ट पर था. इस जहाज को सिडनी में एक सप्ताह रुकना था. अब उसे इंतजार था शाम का. जहाज पर डिनर शाम 6 बजे से मिलने लगता है. तुषार ने जल्दी से डिनर लिया और एक अन्य जहाजी के साथ शहर घूमने निकल पड़ा. एक क्लब में गया. दोनों ने बियर ली. 2 लड़कियां बगल की टेबल पर बैठी बातचीत कर रही थीं. तुषार का वह साथी पहले भी कई बार आस्ट्रेलिया आ चुका था, सो, उसे यहां का आइडिया था. उस ने लड़कियों को ड्रिंक औफर कर अपनी टेबल पर बुलाया.

फिर तो लड़कियों ने जम कर बियर पी. काफी देर तक वे डांस करते रहे. बीचबीच में कुछ देर के लिए टेबल पर आते. कुछ देर बैठ कर बातें करते. और बियर पी लेते. फिर डांसफ्लोर पर लड़की की कमर में बांहें डाल कर थिरकते. तुषार को बहुत मजा आ रहा था. यह उस का पहला मौका था गोरी बाला के साथ डांस करने का. रात 11 बजे वह अपने दोस्त के साथ वापस जहाज पर आ गया.

तुषार ने सिडनी की किंग क्रौस रोड की नाइटलाइफ के बारे में काफी सुन रखा था. दूसरे दिन उस ने किंग क्रौस जाने का फैसला किया, उस के सहकर्मी ने बताया कि वहां जा कर स्ट्रिप टीज का मजा लेना. किंग क्रौस पर नाइट शो क्लब काफी हैं. उस से कहा गया कि उस रोड पर पिंक पैंथर नामक क्लब में अच्छा शो होता है.अगले दिन रात को टैक्सी पकड़ ठीक 8 बजे वह पिंक पैंथर जा पहुंचा. वहां 10 डौलर का टिकट लिया और अंदर डांसिंग रैंप के नजदीक वाली कुरसी पर जा बैठा.

यहां वह एक बार के टिकट में ही 2-2 घंटे के स्ट्रिप टीज शोज रातभर देख सकता था. इन 2 घंटों में 12 सुंदरियां एकएक कर आ कर अपने कपड़े उतारतीं और कम से कम वस्त्रों में या कभी बिलकुल नग्न हो कर गाने पर ‘पोल डांस’ भी दिखाती थीं. शो के बीच में बार टैंडर लड़कियां आ कर सिगरेट, बियर आदि बेचतीं. वे गले में पट्टे के सहारे एक टे्र में बियर, सिगरेट आदि बेचतीं. एक ने तुषार से पूछा, ‘‘कुछ चाहिए?’’ तो वह बोला, ‘‘एक स्वान लैगर बियर कैन प्लीज.’’ वह बोली, ‘‘आप को 5 मिनट बाद ला कर देती हूं. अभी मेरी ट्रे में नहीं है.’’ इतना बोल कर वह चली गई पर तुषार उसे देखे जा रहा था.

वह लगभग 18 साल की सुंदरी थी. 5 मिनट बाद उस ने बियर ला कर तुषार को दी और पूछा, ‘‘और कुछ?’’ तुषार बोला, ‘‘और कुछ नहीं, बट…’’ ‘‘बट मतलब?’’ ‘‘तुम इस शो के बाद मेरे साथ कुछ समय बिता सकती हो?’’ धीरे से मुसकरा कर वह बोली, ‘‘आप जो समझ रहे हैं, मैं वह लड़की नहीं हूं. हां, आप को उस टाइप की लड़की चाहिए तो यहां और भी हैं. क्या मैं उन में से एक को बोल दूं?’’ ‘‘अरे नहीं, मैं भी वैसा नहीं जो तुम समझ बैठी. बस, 2-3 घंटे टाइमपास, साथ बैठ कर बातें, डिनर और बियर, इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’ ‘‘श्योर?’’ लड़की ने पूछा. तुषार बोला, ‘‘हंड्रैड परसैंट श्योर. तो कल संडे है, शाम को मिलो.’’ ‘‘नहीं, छुट्टी के दिन यहां अच्छी कमाई हो जाती है.

50 डौलर से अधिक टिप्स में मिल जाते हैं. मैं भी बस पार्टटाइम 4 घंटे के लिए आती हूं.’’ तुषार ने कहा, ‘‘ओके, मंडे शाम को. डार्लिंग हार्बर के निकट तुंबलोंग पार्क में मिलो. मैं सिर्फ 5 दिन और यहां हूं. कल शाम भी यहां मिलूंगा, तुम अपना नाम तो बताओ.’’ ‘‘मैं, स्कारलेट,’’ लड़की बोली. ‘‘और मैं तुषार.’’ संडे शाम को तुषार फिर पिंक पैंथर में था. इस बार जान कर वह पीछे की सीट पर बैठा ताकि स्कारलेट से आराम से कुछ बातें कर सके. शो चल रहा था, स्कारलेट आ कर बोली, ‘‘आप का स्वान लैगर बियर?’’ तुषार ने बियर की पेमैंट और टिप दी और कहा, ‘‘दो मिनट मेरे पास रुको न.’’ ‘‘आज काफी भीड़ है. कुछ कमा लेने दो. कल शाम 6 बजे तो मिल ही रहे हैं. 4-5 घंटे आराम से बातें करेंगे दोनों.’’

उस दिन तुषार बस 2 घंटे का एक शो देख कर जहाज पर लौट आया. अगले दिन सोमवार शाम को ठीक 6 बजे तुषार और स्कारलेट पार्क में मिले. तुषार ने पूछा, ‘‘वेल स्कारलेट, तुम पिंक पैंथर जैसी जगह में क्यों काम करती हो?’’ ‘‘मैं अनाथ हूं. मेरे मातापिता दोनों की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी. कुछ साल मैं अंकल के साथ रही. उन्हीं के यहां रह कर स्कूलिंग कर रही थी. उन का व्यवहार ठीक नहीं था, तो पिछले साल मैं अलग एक गर्ल्स होस्टल में शिफ्ट हो गई. एक और लड़की के साथ रूम शेयर करती हूं. पिंक पैंथर जैसी जगह पर काम करने के लिए कोई डिगरी या अनुभव नहीं चाहिए.

बस, अपनी इच्छाशक्ति मजबूत होनी चाहिए. पार्टटाइम काम करती हूं. स्कूल का फाइनल ईयर है और अब तुम बताओ अपने बारे में.’’ इतना कुछ वह एकसाथ बोल गई. तुषार ने अपना परिचय देते हुए अपने परिवार के बारे में संक्षेप में बताया. फिर उस ने पूछा, ‘‘पिंक पैंथर्स से तुम्हारा खर्च निकल आता है?’’ ‘‘नहीं. कुछ पैसे पिताजी भी छोड़ गए थे. हालांकि उसी की बदौलत पिछले साल तक मेरा काम चला है. कुछ अंकल ने हड़प लिए. वैसे पिंक पैंथर के अलावा सुबह 2 घंटे एक घर में मेड का भी काम करती हूं. दोनों मिला कर काम चल जाता है.’’ तुषार और स्कारलेट दोनों कुछ देर बातें करते रहे. फिर एक इंडियन रैस्टोरैंट में दोनों ने डिनर किया. स्कारलेट ने पहली बार इंडियन खाना खाया था.

उसे यह बहुत अच्छा लगा. तुषार ने पूछा, ‘‘ड्रिंक करती हो?’’ वह बोली, ‘‘सिर्फ बियर. और कुछ नहीं.’’ ‘‘अच्छा संयोग है. मैं भी सिर्फ बियर ही लेता हूं.’’ रैस्टोरैंट से निकल कर उस ने 2 बियर कैन लिए. एक स्कारलेट को दे दिया. दोनों ने अपनीअपनी बियर पी. तब तक रात के 10 बज चुके थे. तुषार ने टैक्सी बुलाईर् और कहा, ‘‘मैं तुम्हें होस्टल छोड़ते हुए जहाज पर चला जाऊंगा.’’ रास्ते में उस ने स्कारलेट से कल का प्रोग्राम पूछा तो वह बोली, ‘‘तुम ने औपेरा हाउस देखा है?’’ ‘‘हां, बाहर से देखा है. वैसे मुझे थिएटर में रुचि नहीं है.’’ ‘‘तो फिर कल तुम्हें हार्बर आईलैंड घुमा लाती हूं.’’ ‘‘मेरी डे शिफ्ट है. अपने मित्र से म्यूचुअल चेंज करने की कोशिश करता हूं. अगर चेंज हो गया तो तुम्हें फोन करूंगा.’’

स्कारलेट को होस्टल छोड़ कर वह पोर्ट चला आया. फिर अपने दोस्त से शिफ्ट म्यूचुअल चेंज कर फटाफट स्कारलेट को खबर दे दी. उस ने तुषार को सर्कुलर के फेरी स्टेशन के टिकट काउंटर पर सुबह 9 बजे मिलने बुलाया. अगले दिन दोनों फेरी पकड़ कर सागर के बीच में आईलैंड गए. वहां शहर की भीड़भाड़ से दूर आईलैंड पर तुषार को काफी अच्छा लगा. वहां से सिडनी शहर, हार्बर ब्रिज, औपेरा हाउस सब दिख रहे थे. दिनभर सैरसपाटे, गपशप करते 4 बजे तक वे वापस आ गए. फेरी स्टेशन पर कौफी सिप करते हुए तुषार बोला, ‘‘मेरा शिप परसों इंडिया के लिए रवाना हो जाएगा.’’ वह बोली, ‘‘ओह, रियली. अभी तो हम ठीक से मिले भी नहीं और इतनी जल्दी जुदाई. विल मिस यू स्वीट गाई.’’ ‘‘आई टू विल मिस यू. खैर, कल कहां मिलोगी?’’ स्कारलेट बोली, ‘‘वहीं पिंक पैंथर में.’’ ‘‘मुझे रोजरोज वहां अच्छा नहीं लगता है. तुम उस नौकरी को छोड़ नहीं सकतीं? मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’ ‘‘कोशिश करूंगी, पर तुम्हें क्यों बुरा लगता है. मैं न तो तुम्हारी गर्लफ्रैंड हूं और न ही वाइफ.’’

तुषार बोला, ‘‘पर क्या पता, आगे बन जाओ.’’ ‘‘यू नौटी बौय,’’ कह कर स्कारलेट उस से लिपट गई. दूसरे दिन दोनों थोड़ी देर के लिए उसी क्लब के बाहर मिले. तुषार अंदर नहीं जाना चाहता था. तुषार ने बताया कि कल सुबह 10 बजे उस का शिप भारत रवाना हो रहा है. अगले दिन वह सुबह 9 बजे शिप पर मिलने आई. थोड़ी देर दोनों साथ रहे. तुषार ने अपने पैंट्री से कुछ इंडियन स्नैक्स, बियर कैन्स और चौकलेट्स पहले से मंगवा कर पैक करा रखे थे. उन्हें स्कारलेट को दिया. दोनों ने फोन और ईमेल से कौंटैक्ट में रहने की बात की. स्कारलेट बोली, ‘‘फिर कब मिलोगे?’’ तुषार बोला, ‘‘कुछ कह नहीं सकता. पर अगर इसी शिप पर रहा तो 3-4 महीने बाद फिर आना हो सकता है.’’

इस बार तुषार ने स्कारलेट को गले से लगा लिया. उस ने आंसूभरी आंखों से तुषार को विदा किया. जहाज सिडनी हार्बर छोड़ चुका था. तुषार वापसी में कुछ और देशों के बंदरगाह होते हुए मुंबई पहुंचा. वहां उसे बताया गया कि 3 महीने बाद फिर उसे सिडनी जाना होगा. वह खुश हुआ यह सोच कर कि फिर स्कारलेट से मिल सकेगा. तुषार ने एक हफ्ते की छुट्टी ली. मां से मिलने कोलकाता गया. उस ने अपनी भाभी को स्कारलेट के बारे में बताया और उस की काफी तारीफ की, पर उन्हें उस की नौकरी की बात नहीं बताई. भाभी ने व्यंग्य करते हुए सास से कहा, ‘‘देवरजी, विदेशी बहू ला रहे हैं आप के लिए.’’ मां बोलीं, ‘‘तुषार जिस में खुश, मैं उसी में खुश.’’ तुषार के भैया कमल भी वहीं थे.

वे भी मां की बात से सहमत थे. पर तुषार बोला, ‘‘अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं है. बस, 4-5 दिनों की मुलाकात थी.’’ 3 महीने बाद तुषार का शिप फिर सिडनी पोर्ट पहुंचा. उस ने स्कारलेट को सूचित कर दिया था. उस ने फोन पर पूछा, ‘‘कहां मिलोगी, वहीं पिंक पैंथर में?’’ वह बोली, ‘‘नहीं, एक महीने पहले मैं ने वह नौकरी छोड़ दी है. अब एक ट्रैवल एजेंट के यहां रिसैप्शनिस्ट हूं और उसी होस्टल में रहती हूं पर अब सिंगल रूम में रहती हूं.’’ ‘‘ठीक है, शाम को मिलते हैं.’’ इस बार भी करीब एक हफ्ते तक उसे सिडनी रुकना था. दोनों रोज शाम को 3-4 घंटे साथ बिताते. कभी स्कारलेट ही उस से मिलने शिप पर आ जाती. अब दोनों पहले से ज्यादा करीब आ चुके थे. लगभग डेढ़ साल तक तुषार इसी तरह हर 3-4 महीने बाद स्कारलेट से मिलता. दोनों में अब प्यार हो गया था.

इस बात को दोनों ने स्वीकार भी किया. एक बार जब तुषार स्कारलेट को होस्टल ड्रौप कर पोर्ट लौट रहा था, उस की टैक्सी का ऐक्सिडैंट हो गया. तुषार के दाएं पैर में काफी चोट आई थी. इस के अलावा और भी चोटें आई थीं. पुलिस ने उसे अस्पताल में भरती कर शिप के कैप्टन और भारतीय कौंसुलेट को सूचित कर दिया था. तुषार ने स्कारलेट को भी खबर करवाई. स्कारलेट तुरंत अस्पताल पहुंच गई. तुषार के शिप से भी एक अफसर आया था. उस के दाएं पैर में मल्टीपल फ्रैक्चर थे. डाक्टर ने बताया कि उस के ठीक होने में लगभग 3 महीने लग सकते हैं.

उस के बाद भी जहाज के इंजनरूम में शायद काम करना उस के लिए सुरक्षित न हो. शिपिंग कंपनी ने तुषार के घर वालों को भी खबर भेज दी. उस की मां बहुत घबराई थी. उस ने बेटे से फोन पर बात की. शिप के अफसर ने उन्हें बताया कि चिंता की बात नहीं. कंपनी उन के बेटे का पूरा इलाज करा रही है. डाक्टर ने बताया कि कम से कम प्लास्टर कटने तक तुषार को अस्पताल में ही रहना पड़ेगा. स्कारलेट अब रोज शाम को तुषार से मिलने आती. विजिटिंग औवर्स तक उस के पास बैठी रहती. वीकैंड में वह 2 बार मिलने आती. अकसर इंडियन रैस्टोरैंट से कुछ देशी खाना भी उस के लिए लाती. अब उन का प्रेम और गहरा हो गया था. बीचबीच में स्कारलेट अपने फोन से ही तुषार की मां उस की बात करा देती.

3 हफ्ते बाद तुषार का प्लास्टर कटा. एक्सरे के बाद डाक्टर ने बताया कि अभी उस की हड्डी ठीक से नहीं जुड़ी है. दोबारा 3 हफ्ते के लिए प्लास्टर बांधना होगा. इसी बीच तुषार की मां ने बताया कि अब वे ओल्डएज होम में रह रही हैं. बहू की रोजरोज खिचखिच से तंग आ कर बेटे ने मां को वहां शिफ्ट कर दिया था. यह जान कर स्कारलेट को भी दुख हुआ. उस ने तो सुन रखा था कि इंडिया में रिश्तों की काफी अहमियत है. तुषार का प्लास्टर कटा. डाक्टर ने कहा कि अब वह घर जा सकता है. पर अगले एक महीने तक थेरैपी लेनी होगी और सावधानी से छड़ी के सहारे चलना होगा.

तुषार ने मां को स्कारलेट के बारे में बताया कि 2 महीने से वही उस की देखभाल कर रही थी. मां ने स्कारलेट को शुभकामनाएं दीं और पूछा कि क्या वह तुषार की जीवनसंगिनी बनेगी. इस पर स्कारलेट ने मां से कहा, ‘‘मुझे तो कभी परिवार के साथ रहने का अवसर ही नहीं मिला है. अगर आप और तुषार चाहें तो मैं आप की छोटी बहू बन कर गर्व महसूस करूंगी.’’ तुषार ने स्कारलेट को गले लगा कर उस के गाल को प्यार से चूम लिया.

इधर शिपिंग कंपनी ने तुषार की पोस्ंिटग कोलकाता के ही एक कारखाने में कर दी. वहां उसे जहाज के कलपुरजों की मेंटिनैंस का काम देखना होगा और मैरीन छात्रों की ट्रेनिंग भी देखनी होगी. तुषार और शिपिंग कंपनी ने मिल कर कौंसुलेट से स्कारलेट के वीसा का प्रबंध किया. दोनों कोलकाता आए. कंपनी ने तुषार के लिए एक फ्लैट का इंतजाम कर दिया था. सब से पहले तुषार और स्कारलेट दोनों ओल्डएज होम जा कर मां को घर ले आए. बंगाली विधि से दोनों की शादी हुई. तुषार की मां अपनी विदेशी बहू से संतुष्ट है.

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