Mother’s Day 2024: पुनरागमन- भाग 1- क्या मां को समझ पाई वह

मां के कमरे से जोरजोर से चिल्लाने की आवाज सुन कर नीरू ने किताबें टेबल पर ही एक किनारे खिसकाईं और मां के कमरे की ओर बढ़ गई. कमरे में जा कर देखा तो मां कस कर अपने होंठ भींचे और आंखें बंद किए पलंग पर बैठी थीं. आया हाथ में मग लिए उन से कुल्ला करने के लिए कह रही थी. नीरू के पैरों की आहट पा कर मां ने धीरे से अपनी आंखें खोलीं और फिर आंखें बंद कर के ऐसे बैठ गईं जैसे कुछ देखा ही न हो.

नीरू को देखते ही आया दुखी स्वर में बोली, ‘‘देखिए न दीदी, मांजी कितना परेशान कर रही हैं. एक घंटे से मग लिए खड़ी हूं पर मांजी अपना मुंह ही नहीं खोल रही हैं. मुझे दूसरे काम भी तो करने हैं. आप ही बताइए अब मैं क्या करूं?’’

मां की मुखमुद्रा देख कर नीरू को हंसी आ गई. उस ने हंस कर आया से कहा, ‘‘तुम जा कर अपना काम करो, मां को मैं संभाल लूंगी,’’ और यह कहतेकहते नीरू ने मग आया के हाथ से ले कर मां के मुंह के सामने लगा कर मां से कुल्ला करने के लिए कहा. पर मां छोटे बच्चे के समान मुंह बंद किए ही बैठी रहीं. तब नीरू ने उन्हें डांट कर कहा, ‘‘मां, जल्दी करो मुझे औफिस जाना है.’’

नीरू की बात सुन कर मां ने शैतान बच्चे की तरह धीरे से अपनी आधी आंखें खोलीं और मुंह घुमा कर बैठ गईं. परेशान नीरू बारबार घड़ी देख रही थी. आज उस के औफिस में उस की एक जरूरी मीटिंग थी. इसलिए उस का टाइम पर औफिस पहुंचना बहुत जरूरी था. पर मां तो कुछ भी समझना ही नहीं चाहती थीं.

थकहार कर नीरू ने उन के दोनों गाल प्यार से थपथपा कर जोर से कहा, ‘‘मां, मेरे पास इतना समय नहीं है कि तुम्हारे नखरे उठाती रहूं. अब जल्दी से मुंह खोलो और कुल्ला करो.’’

नीरू की बात सुन कर इस बार जब मां ने कुल्ला करने के लिए चुपचाप मुंह में पानी भरा तो नीरू ने चैन की सांस ली. थोड़ी देर तक नीरू इंतजार करती रही कि मां कुल्ला कर के पानी मग में डाल देंगी पर जब मां फिर से मुंह बंद कर के बैठ गईं तो नीरू के गुस्से का ठिकाना न रहा.

गुस्से में नीरू ने मां को झकझोर कर कहा, ‘‘मां, क्या कर रही हो? मैं तो थक गई हूं तुम्हारे नखरे सहतेसहते…’’ नीरू की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि मां ने थुर्र कर के अपने मुंह का पूरा पानी इस प्रकार बाहर फेंका कि एक बूंद भी मग में न गिर कर नीरू के मुंह पर और कमरे में फैल गया. यह देख कर नीरू को जोर से रुलाई आ गई.

रोतेरोते उस ने मां से कहा, ‘‘क्यों करती हो तुम ऐसा, क्या बिगाड़ा है मैं ने तुम्हारा? मैं अभी नहा कर साफ कपड़े पहन कर औफिस जाने के लिए तैयार हुई थी और तुम ने मेरे कपड़े और कमरा दोनों ही फिर से गंदे कर दिए. तुम दिन में कितनी बार कमरा गंदा करती हो, कुछ अंदाजा है तुम्हें? आज आया 5 बार पोंछा लगा चुकी है. अगर आया ने काम छोड़ दिया तो? मां तुम समझती क्यों नहीं, मैं अकेली क्याक्या करूं?’’ कहती हुई नीरू अपनी आंखें पोंछती मां के कमरे से बाहर चली गई.

अपने ही कहे शब्दों पर नीरू चौंक गई. उसे लगा उस ने ये शब्द पहले किसी और के मुंह से भी सुने हैं. पर कहां?

औफिस पहुंच कर नीरू मां और घर के बारे में ही सोचती रही. पिताजी की मृत्यु के बाद मां ने अकेले ही चारों भाईबहनों को कितनी मुश्किल से पाला, यह नीरू कभी भूल नहीं सकती. नौकरी, घर, हम छोटे भाईबहन और अकेली मां. हम चारों भाईबहन मां की नाक में दम किए रहते. कभीकभी तो मां रो भी पड़ती थीं. कभी पिताजी को याद कर के रोतेरोते कहती थीं, ‘‘कहां चले गए आप मुझे अकेला छोड़ कर. मैं अकेली क्याक्या करूं.’’

अरे, मां ही तो कहती थीं, ‘मैं अकेली क्याक्या करूं,’ मां तो सचमुच अकेली थीं. मेरे पास तो काम वाली आया, कुक सब हैं. बड़ा सा घर है, रुपयापैसा और सब सुविधाएं मौजूद हैं. तब भी मैं चिड़चिड़ा जाती हूं. अब मैं मां पर अपनी चिढ़ कभी नहीं निकालूंगी. मां की मेहनत से ही तो मुझे ये सबकुछ मिला है वरना मैं कहां इस लायक थी कि आईआईटी में नौकरी कर पाती.

कितनी मेहनत की, कितना समय लगाया मेरे लिए. अभी दिन ही कितने हुए हैं जब छोटी बहन मीतू ने मुझ से कहा था, ‘मां की वजह से तुम इस मुकाम तक पहुंची हो वरना हम सभी तो बस किसी तरह जी रहे हैं. हम तो चाह कर भी मां को कोई सुख नहीं दे सकते. वैसे तुम ने बचपन में मां को कितना परेशान किया है, तुम भूली नहीं होगी. अब मां इसी जन्म में अपना हिसाब पूरा कर रही हैं.’ आज लगता है कि सच ही तो कहती है मेरी बहन.

शाम को नीरू मां की पसंद की मिठाई ले कर घर गई. घर में कुहराम मचा था. आया मां के कमरे के बाहर बैठी रो रही थी और अंदर कमरे में मां जोरजोर से चिल्ला रही थीं. नीरू को देखते ही आया दौड़ कर उस के पास आई और रोतेरोते बोली, ‘‘दीदी, अब आप दूसरी आया रख लीजिए, मुझ से आप का काम नहीं हो पाएगा.’’

‘‘क्या हुआ?’’ नीरू ने परेशान हो कर पूछा, ‘‘काम छोड़ने की बात क्यों कर रही हो. मां पहले से ऐसी नहीं थीं. तुम बरसों से हमारे यहां काम कर रही हो. अच्छी तरह से जानती हो कि मां कुछ सालों से बच्चों जैसा व्यवहार करने लगी हैं. अब इस कठिन समय में अगर तुम चली जाओगी तो मैं क्या करूंगी? तुम्हारे सहारे ही तो मैं घर और औफिस दोनों संभाल पाती हूं. अच्छा चलो, मैं तुम्हारे पैसे बढ़ा दूंगी पर काम मत छोड़ना, प्लीज. मैं मां को भी समझाऊंगी.

ये लम्हा कहां था मेरा: भाग 1- क्या था निकिता का फैसला

‘‘हमारी बात मान लो न निकिता… मिल तो लो आज अभिनव से. मैनेजर है मल्टीनैशनल कंपनी में और फोटो में भी अच्छा दिख रहा है. तुम्हें पसंद आए तभी हां करना… उस के घर से फोन आया है. पापा पूछ रहे हैं क्या कहना है उन्हें?’’ मीनाक्षी अपनी बेटी से मनुहार करते हुए बोलीं.

‘‘मम्मी, शादी करने के लिए नहीं करता मेरा मन… सोचा भी नहीं जाता मुझ से शादी के बारे में… आप तो जानती हैं सब,’’ निकिता का स्वर निराशा में डूबा था.

‘‘कब तक तुम्हारी दुनिया को अंधेरे में रखेगा वह हादसा? पापा अपनेआप को कुसूरवार समझ दिनरात गमगीन रहते हैं… निकाल दो बेटा अपने दिमाग से वे सब बातें.’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं मम्मी? आप जो ठीक समझें कर लें,’’ कह कर निकिता गुमसुम सी फिर लैपटौप में खो गई.

‘‘तुम कितनी समझदार हो… ठीक है बेटा, फिर बुला लेते हैं आज उन लोगों को,’’ निकिता के सिर पर प्यार से हाथ फेर मीनाक्षी उस के कमरे से निकल गईं.

अपना काम निबटा निकिता न चाहते हुए भी आज शाम पहनने के लिए कपड़ों का चुनाव करने चल दी. शादी के लिए किसी रिश्ते की बात शुरू होते ही वह अनमनी सी हो जाती थी.

मेहमानों के लिए हो रही तैयारी से घर में रौनक दिख रही थी. उसी रौनक की छाया सुदीप पर भी पड़ रही थी वरना 2 सालों से बेटी निकिता का दर्द उन्हें चैन से सोने नहीं दे रहा था.

शाम को आ गए वे लोग. औसत कदकाठी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अभिनव की सादगी मीनाक्षी और सुदीप के मन में अंदर तक उतर गई. अभिनव और निकिता के बीच औपचारिक बातचीत हुई. एक नामी पब्लिशिंग हाउस में कंटैट राइटर की पोस्ट पर कार्य कर रही निकिता का गोरा रंग और खूबसूरत नैननक्श देख अभिनव के मम्मीपापा रिश्ता जोड़ने को बेताब हो रहे थे. डिनर के बाद जाते समय दोनों के मातापिता ने जल्द ही बच्चों से पूछ कर रिश्ता पक्का करने की बात कह खुशीखुशी एकदूसरे से बिदा ली.

उन के चले जाने के बाद मीनाक्षी और सुदीप अभिनव के विषय में निकिता की राय जानने को आतुर थे. निकिता सोच कर जवाब देने की बात कह अपने कमरे में चली गई. बिस्तर पर लेटते ही नींद की जगह विचारों का कारवां उसे घेरने लगा कि क्या करूं अब मना करती हूं शादी के लिए तो मम्मीपापा की परेशानी कम न कर पाने की गुनहगार बन जाती हूं. हां भी कैसे करूं? सोच कर ही सिहर उठती हूं कि अपना तन किसी को सौंप रही हूं.

मम्मीपापा का कहना है कि अभिनव समझदार लग रहा है. मैं खुश रह सकूंगी उस के साथ. पर क्या होगा अगर हर रात मुझे उस में राजन अंकल… नहीं… दरिंदा राजन दिखाई देने लगेगा… निकिता के दिमाग को एक बार फिर झकझोर गया वह दिन…

दिल्ली के नामी कालेज से एमए करने के बाद जब निकिता की प्लेसमैंट पुणे हुई तो मम्मी उस के दूर जाने की बात से चिंतित हो उठी थीं. तब पापा ने याद दिलाया कि उन के एक कुलीग राजन, जो पिछले साल नौकरी छोड़ गए थे, वहीं रह रहे हैं तो मीनाक्षी की सांस में सांस आ गई.

पुणे में निकिता के रहने की व्यवस्था एक पीजी में करवाने के बाद सुदीप निकिता को साथ ले राजन के घर पहुंच गए. राजन का इकलौता बेटा यूके में रह रहा था. राजन की पत्नी भी उन दिनों वहीं गई हुई थी. राजन ने कहा कि निकिता इसे अपना घर समझ कभी भी यहां आ सकती है. पूरा आश्वासन भी दिया था कि उस के रहते निकिता को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी.

निकिता और राजन की फोन पर कभीकभी बात हो जाती थी, लेकिन निकिता की व्यस्तता के कारण दोबारा मिलना नहीं हुआ था उन का. एक दिन निकिता के पास राजन का फोन आया कि पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण उसे यूके जाना पड़ रहा है, अत: जाने से पहले एक बार वह निकिता से मिलना चाहता है. निकिता शाम को राजन के घर चली गई.

राजन का व्यवहार उस दिन निकिता को बदलाबदला सा लग रहा था. उस के नमस्ते करने पर राजन ने उस के हाथों को अपने दोनों हाथों में ले कर चूम लिया. निकिता को यह बहुत अखर रहा था. कुछ देर बातचीत करने के बाद निकिता जाने लगी तो राजन ने कौफी पी कर जाने का आग्रह किया. फिर उसे कमरे में बैठने को कह कौफी बनाने चल दिया. कामवाली के बारे में निकिता के पूछने पर बोला कि वह आज जल्दी छुट्टी ले कर चली गई है.

कुछ देर बाद कौफी ला कर टेबल पर रख राजन निकिता के सामने बैठ गया. निकिता को चुपचाप कौफी पीते देख हंसता हुआ बोला, ‘‘अरे, कुछ तो बात करो… अच्छा बताओ, मैं कैसा लगता हूं तुम्हें?’’

निकिता को कौफी का घूंट हलक से उतारना मुश्किल हो गया.

‘‘आप अच्छे लगते हैं, अंकल,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी कौफी पीने लगी ताकि वहां से निकल पाए. मगर तभी बैठेबैठे उसे चक्कर सा आने लगा. ‘कहीं कौफी में कुछ नशीला तो नहीं?’ सोच कर आधा भरा हुआ मग टेबल पर रख वह उठने लगी तो राजन उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘पता नहीं तुम क्यों मुझे अंकल कह कर बुला रही हो? लोग तो कहते हैं मैं अभी भी किसी बौलीवुड हीरो से कम नहीं लगता.’’

‘‘जी… अच्छा है अगर लोग ऐसा कहते हैं, आप ने फिट रखा हुआ है अपने को,’’ घबराई हुई सी निकिता खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘तो फिर जी नहीं चाहता मेरे पास आने का?’’ कहते हुए राजन निकिता से सट कर बैठ गया.

निकिता भीतर तक कांप उठी. इस से पहले कि हिम्मत जुटा वह उठ भागती राजन उसे अपनी गिरफ्त में ले चुका था. निकिता ने खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कौफी में मिलाए गए नशीले पदार्थ के असर से वह लड़खड़ा रही थी.

‘‘पता है मुझे, तुम भी यही चाहती हो… पर झिझकती हो कहने में. तभी तो एक बार बुलाते ही दौड़ी चली आई मिलने.’’

‘‘नहीं अंकल…’’ चीख उठी थी निकिता.

‘‘औरत की न का मतलब हां होता है,’’ कहते हुए अपना वहशियाना रूप दिखा दिया राजन ने.

अपनी हवस मिटा कर राजन सोफे पर ही औधे मुंह गिर गया. निकिता अपने कपड़े व्यवस्थित कर गिरतीपड़ती पीजी लौटी तो कुछ सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. उस की सहेली अदीबा ने मीनाक्षी को फोन किया. अगले दिन सुदीप और मीनाक्षी वहां पहुंच गए. निकिता से सब सुन कर वे अवाक रह गए. क्रोध से तमतमाया सुदीप राजन के घर पहुंचा, पर वह तो यूके निकल चुका था. पुलिस में शिकायत करने से भी तब कोई लाभ नहीं था. निकिता को साथ ले दोनों टूटेबिखरे से वापस आ गए.

सुदीप और मीनाक्षी निकिता का सहारा बन उसे दिनरात समझाते रहते. लगभग 2 महीने बाद वह इस हादसे से कुछ दूर हुई तो नई नौकरी की तलाश में जुट गई.

अदीबा के भाई की दिल्ली में अच्छी जानपहचान थी. उस की मदद से

कई जगह उसे रिक्त पदों के विषय में जानकारी मिली. अंतत: एक पब्लिशिंग हाउस में बतौर कंटैंट राइटर चुन लिया गया. फिर वहां काम संभालते हुए वह खुद को व्यस्त रखने लगी.

कुछ माह बाद सुदीप और मीनाक्षी ने विवाह की बात छेड़ी तो निकिता ने साफ मना कर दिया. उस का व्यथित मन किसी को भी अपना मानने को तैयार नहीं था, पर मम्मीपापा चाहते थे कि वह सब भूल कर नई जिंदगी शुरू करे.

आज भी तो नहीं मिलना चाह रही थी निकिता अभिनव से, लेकिन पापा की निराशा भी नहीं देखी जाती थी उस से. अभिनव से मिल कर उसे बुरा भी नहीं लगता था, परंतु पतिपत्नी संबंध के विषय में सोचते ही लगने लगता था कि अपनी देह कहां छिपा लूं कि किसी पुरुष की नजर ही न पड़े उस पर. अतीत के काले दलदल में फंसी निकिता रातभर बिस्तर पर करवटें बदलती रही.

सुबह औफिस जाने लगी तो मीनाक्षी उस के जवाब के इंतजार में थीं. ‘‘अभी देर हो रही है, बाद में बात करते हैं,’’ कहते हुए वह भारी मन से औफिस चली गई.

औफिस में उस के पास अलगअलग विषयों पर लिखने के लिए कई मेल आए हुए थे, लेकिन काम में मन ही नहीं लग रहा था उस का. किसी तरह मन बना कर एक टौपिक पर सोच लिखना शुरू ही किया था कि मोबाइल बज उठा.

आगे पढ़ें- हक्कीबक्की सी निकिता बिना कुछ सोचे…

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रिस्क से अनजान यूथ के बीच बढ़ता फाइनैंस क्रेज

सोशल मीडिया में फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स के चलते यूथ में शेयर मार्केट और फाइनैंस की खासी नौलेज तो बढ़ी है पर अधिकतर इन्फ्लुएंसर्स अपनी वीडियो को ज्यादा से ज्यादा वायरल कराने के लिए इस से होने वाले खतरों को छिपा देते हैं.

एक साल पहले मेरे दूर के भाई के हाथ अपने पिताजी के 1990 में खरीदे शेयर्स का पेपर लगा, जिसे उन्होंने डीमैट अकाउंट में ट्रांसफर करा लिया. उन शेयरों की कीमत आज लाखों में है. उस के बाद उन्हें शेयर मार्केट से जैसे प्यार ही हो गया है. वे आएदिन मु?ो अपने शेयर मार्केट के स्क्रीनशौट भेजते रहते हैं और मु?ो भी इन्वैस्ट करने के लिए एनकरेज करते रहते हैं. यह हाल सिर्फ मेरे भाई का ही नहीं, बल्कि वर्तमान में अधिक्तर युवाओं का है.

मिलेनियम हो या जेनजी, भारत के युवाओं में सोशल मीडिया से ले कर लग्जरी लाइफस्टाइल के क्रेज के साथसाथ एक क्रेज और बढ़ रहा है और वह है फाइनैंस का क्रेज. इंटरनैट पर मौजूद तमाम फाइनैंशियल जानकारी के जरिए युवा फाइनैंशियल लिट्रेसी पा रहे हैं, जिस के कारण उन में इन्वैस्टमैंट का क्रेज भी बढ़ रहा है.

बचत से अलग अब वे इन्वैस्टमैंट में बढ़चढ़ कर भाग ले रहे हैं. सोशल मीडिया में आधा कच्चा जैसा भी ज्ञान परोस रहे फाइनैंस के इंफ्लुएसरों की भूमिका इस में खासी रही है. यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म इस में मुख्य भुमिका अदा कर रहे हैं. डीमैट अकाउंट खोलना हो या एसआईपी में निवेश करना हो, बैंकों की फाइनैंस स्कीम्स के बारे में जानना हो या कंपनियों में इन्वैस्टमैंट के बारे में जानना हो, छोटे से ले कर बड़ेबड़े यूट्यूबर आप को हर तरह की जानकारी दे रहे हैं बिना किसी ?ां?ाट के, जो समस्या भी बनती जा रही है.

आजकल लोग, खासकर युवा, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और टैलीग्राम के माध्यम से फाइनैंस की जानकारी पा रहे हैं. यूट्यूब पर ढेरों ऐसे चैनल्स उपल्बध हैं जो फाइनैंस की एबीसीडी फ्री में मुहैया करा रहे हैं.

कोरोना के बाद से यह क्रेज और तेजी से बढ़ा है. नौकरीपेशा हो चाहे बेरोजगार युवा, सभी इन्वैस्टमैंट के बारे में जानने में इंट्रैस्टेड हैं और कहीं न कहीं से जानकारी इकट्ठा कर निवेश कर रहे हैं. बेरोजगारी इतनी है कि अपनी सेविंग को लोग अब इन्वैस्ट कर रहे हैं.

वर्तमान में देखा जाए तो पिछले वर्ष नैशनल स्टौक एक्सचेंज (एनएसई) के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी आशीष चौहान का कहना था कि वर्तमान में 17 प्रतिशत भारतीय परिवार शेयरों में निवेश कर रहे हैं. आम लोग निवेश कर रहे हैं. म्यूचुअल फंड हो या एसआईपी या फिर शेयर, कितने ही तरीके आजकल के युवा निवेश के तौर पर अपना रहे हैं, जिस से निवेशकों की संख्या बढ़ रही है.

एनएसई के माध्यम से भारतीय शेयर बाजारों में 80 मिलियन लोग पैसा लगा रहे हैं. हालांकि, यह अभी भी आबादी का एक छोटा सा हिस्सा ही है. अधिकांश नए निवेशक पिछले 2-3 वर्षों में आए हैं. मोबाइल फोन और एप्लिकेशन के माध्यम से अधिक लोग अब शेयर बाजार के माध्यम से बचत कर रहे हैं.

कोरोना के बाद से इन निवेशकों की संख्या लागातार बढ़ रही है. गुजरात, उत्तर प्रदेश से ले कर कर्नाटक तक निवेशकों ने शेयर बाजार में खूब पैसा लगाया है. उत्तर प्रदेश में निवेशकों की संख्या में रिकौर्ड बढ़ोतरी हुई. यूपी ने 2022 में गुजरात को पीछे छोड़ा और सैकंड बिग इन्वैस्टर स्टेट बन गया. मार्च 2015 में 1.24 मिलियन के मुकाबले 2025 तक यूपी से निवेश करने वालों की संख्या 9.36 मिलियन रही.

17.4 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ महाराष्ट्र टौप पर रहा. 2024 तक महाराष्ट्र में 15.3 मिलियन शेयर बाजार निवेशक थे. इन में गुजरात के 9 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल 5.6 प्रतिशत, कर्नाटक 5.6 प्रतिशत और राजस्थान के 5.6 प्रतिशत निवशक शामिल हैं. इन 6 राज्यों से 54 प्रतिशत निवेशक हैं और यह नंबर लगातार बढ़ रहा है.

जिरोधा, ग्रो, 5 पैसे और अपस्टौक जैसे मोबाइल ऐप के माध्यम से इन्वैस्ंिटग अब आसान हो गई है. शायद शेयर मार्केट में लगातार बढ़ रहे निवेशकों का यही कारण है. स्मार्टफोन यूजर आसानी से इन ऐप्स के माध्यम से अलगअलग ब्रोकर के पास अपना डीमैट अकाउंट खोल सकते हैं और पैसा इन्वैस्ट कर सकते हैं. इन का इस्तेमाल करना भी आसान है. यही वजह है कि लोग इन का इस्तेमाल कर भी रहे हैं.

 

बहकाए भी जा रहे हैं युवा

नएनए युवा स्टौक मार्केट और इन्वैस्टमैंट के इस खेल, खासकर अपना भाग्य आजमाने में उतर रहे हैं, कभी अपनी बचत को ले कर, कभी मांबाप की जमापूंजी को ले कर तो कभी ब्याज और लोन पर पैसे ले कर. फिर अपनी जमापूंजी एक ?ाटके में डुबो देते हैं, इन्फ्लुएंसर्स के बहकावे में आकर. ये यूट्यूबर्स आप को एक दिन में घरबैठे 1,000 से 10,000 रुपए तक पैसे कमाने को इतने आसान तरीके से दिखाते हैं कि हर कोई इस में फंसता चला जाता है. हालांकि ऐसा नहीं है कि ये सब गलत ही बताते हैं लेकिन इन के वीडियोज इतने आकर्षक होते हैं कि आज का युवा इन पर आसानी से विश्वास कर लेता है.

हाल ही में सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) नें 20 लाख फौलोअर्स वाले फाइनैंस इन्फ्लुएंसर्स रविंद्र भारती को 12 करोड़ रुपए से अधिक की रकम लौटाने को कहा है, जोकि गैरकानूनी तरीके से कमाई गई है. बाजार नियामक सेबी की जांच से पता चला है कि यह शख्स शेयर बाजार प्रशिक्षण संस्थान के नाम पर एक गैर रजिस्टर्ड एडवाइजरी फर्म का संचालन कर रहा था.

10.8 लाख सब्सक्राइबर्स के साथ रविंद्र भारती के शेयर मार्केट मराठी और 8.22 लाख सब्सक्राइबर्स के साथ भारती शेयर मार्केट हिंदी नाम से 2 यूट्यूब चैनल हैं. वह एक फाइनैंस इंस्टिट्यूट भी चलाता है जहां वह शर्तों पर निवेश करने की सलाहें देता है.

सेबी के आदेश में कहा गया कि इन लोगों ने निवेशकों के विश्वास के साथ धोखा किया और व्यक्तिगत लाभ के लिए संस्था बना कर सिस्टम का दुरुपयोग किया. इन लोगों ने नियमकानूनों की अवहेलना करते हुए निवेशकों को 1,000 फीसदी तक की गारंटीकृत रिटर्न देने का वादा किया. यह पूरी तरह से इक्विटी मार्केट में निवेशकों के विश्वास का दुरुपयोग है. इस के बाद अब उसे 12 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान करना होगा.

इन्फ्लुएंसर्स का टारगेट पैसे ले कर प्रोडक्ट्स प्रमोट करना भी होता है, जिस के चलते कभीकभी वे ऐसे प्लेटफौर्म को प्रमोट करते हैं जो फ्रौड होते हैं और लोगों को फंसाने का काम करते हैं. यूट्यूब या फिर बाकी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर लोगों को निवेश से जुड़ी कई गलत सूचनाएं इन के द्वारा दी जाती हैं जिस के लिए ये लोग हजारों रुपए चार्ज करते हैं. वहीं, मुख्य रूप से ये इन्फ्लुएंसर्स अपने कोर्सेज बेच कर और यूट्यूब के जरिए अधिकतर पैसा कमाते हैं.

यूथ सौफ्ट टारगेट

आज युवा ?झटपट अमीर बनना चाहता है. उसे लगता है कि शेयर मार्केट ऐसी जादू की छड़ी है जहां पैसा डालो और रातोंरात अमीर बन जाओ. नया युवा बिना जानकारी के ऐसी धारणा बनाता है. वह थोड़ाबहुत कमाया दांव पर लगाता है. यह बात इन्फ्लुएंसर्स जानते हैं. वे हिंदीभाषी युवाओं को टारगेट करते हैं, क्योंकि हिंदी भाषा में फाइनैंस पर आसान जानकारी उपलब्ध हो, ऐसा कहा नहीं जा सकता. यही कारण है कि उत्तर भारत में अचानक से डीमैट अकाउंट की संख्या में खासी बढ़ोतरी देखने को मिली है. युवा इन इन्फ्लुएंसर्स की वीडियो देखता है और आंखें बंद कर के निवेश शुरू कर देता है. जहांतहां से पैसा उठाया और लगा दिया कभी स्टौक्स में, कभी क्रिप्टो में तो कभी औप्शन ट्रेडिंग में और फिर भारी लौस उठाते हैं.

इसी का उदाहरण है वाल्ड जोकि सिंगापुर स्थित क्रिप्टो ट्रेडिंग प्लेटफौर्म था. 2021 में इसे 4 लोकप्रिय फाइनैंस इन्फ्लुएंसर पी आर सुंदर, अंकुर वारिकू, अक्षत श्रीवास्तव और बूमिंग बुल्स ने प्रमोट किया. बाद में विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार वाल्ड ने निकासी और जमा सहित अपने सभी कामों को अचानक बंद कर दिया जिस के बाद कितने ही निवेशकों के पैसे इस में फंस गए.

रिक्स छिपाने की कला इस के अलावा, इस में कोई शक नहीं कि ये फाइनैंस इन्फ्लुएंसर देश में, खासकर युवाओं में, फाइनैंस लिट्रेसी बढ़ा रहे हैं लेकिन बात तब बहकावे की आ जाती है जब ये सिक्के के सिर्फ एक पहलू की बात करते हैं. फाइनैंस और मार्केट में ये इन्फ्लुएंसर्स केवल प्रौफिट की ही बात करते हैं.

आप किसी भी इन्फ्लुएंसर के वीडियो को देख लीजिए, अंकुर वारिकू, अक्षत श्रीवास्तव या रचना रानाडे या कोई भी और इन्फ्लुएंसर, इन्हें देख कर ऐसा लगता है कि ये आप को कुछ ही महीनों में करोड़पति बना देंगे. इन की वीडियो का बड़ा हिस्सा शेयर मार्केट से होने वाले फायदे को ले कर होता हैं. ये आप को मार्केट में होने वाले बड़ेबड़े लौसेज के बारे में नहीं बताएंगे, जिन में युवा अकसर अपनी पूरी इन्वैस्टमैंट उड़ा देते हैं.

ऐसे में युवाओं के लिए जरूरी हो जाता है कि वे फाइनैंस इन्फ्लुएंसर के बहकावे में न आ कर अपने फाइनैंस को समझा कर ही इन्वैस्ट करें. सरकारों को भी चाहिए कि वे स्कूल करिकुलम से ही बच्चों में फाइनैंस की समझ विकसित करें.

कानों में घंटियां बजने जैसी आवाजें आने का कारण और इलाज बताएं?

सवाल

मेरी उम्र 35 साल है. पिछले कुछ दिनों से कानों में घंटियां बजने जैसी आवाजें आने की समस्या हो रही है. क्या करूं?

जवाब

किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण या लगातार अत्यधिक शोर वाले स्थान में रहने के कारण कई लोगों को कानों में यह समस्या हो जाती है, जिसे चिकित्सीय भाषा में टिन्निटस कहते हैं. अगर किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण कानों में ये आवाजें आ रही हैं तो पहले उस का उपचार किया जाता है. जैसे इयर वैक्स के कारण कानों में ब्लौकेज हो रही है तो उसे साफ किया जाता है. कानों की रक्त नलिकाओं से संबंधित कोई समस्या है तो उसे दवा या सर्जरी के द्वारा ठीक करने का प्रयास किया जाता है. अगर उम्र बढ़ने के कारण सुनने की क्षमता प्रभावित होने से यह समस्या हो रही हो तो हियरिंग ऐड के इस्तेमाल से आराम मिलता है.

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नेहा खाती तो बहुत थी, लेकिन उस के खाने में पौष्टिक तत्त्वों की हमेशा कमी रहती थी जिस कारण किशोरावस्था में उस की ग्रोथ रुक गई थी. यही नहीं वह कोई भी काम करती तो उसे जल्दी थकान होने लगती. यह बात उस ने अपने पेरैंट्स से भी छिपाई. फिर एक दिन वह अचानक बेहोश हो गई. जब उसे अस्पताल में दाखिल किया गया तो पता चला कि उस के शरीर में आयरन की बहुत कमी है. ऐसा सिर्फ नेहा के साथ ही नहीं बल्कि बहुत सी किशोरियों के साथ होता है, जो अपने खानपान का बिलकुल ध्यान नहीं रखती हैं, जबकि इस उम्र में उन के शरीर को ज्यादा आयरन की जरूरत होती है. इसलिए उन्हें अपनी डाइट में भरपूर मात्रा में पौष्टिक तत्त्व लेने चाहिए ताकि वे स्वस्थ रहें.

क्या आप भी स्किन से जुड़े इन मिथ्स पर करती हैं भरोसा

सब तारीफ करते थे स्मेंथा के टीनएज में कदम रखने से पहले उस की स्किन की. लेकिन अब वह अपनी स्किन से परेशान रहती है. आए दिन उस पर दाने हो जाते हैं. हर तीसरा शख्स उसे दोनों की एक नई वजह के साथ एक नया उपाय भी मुफ्त में दे जाता है.

स्मेंथा भी नए-नए उपाय अपना कर परेशान हो चुकी है. इन से उस की स्किन के मुंहासे खत्म होना तो दूर, उस की स्किन रूखी होने के साथसाथ झुर्रियों से भी भर गई है. अपनी स्किन की वजह से वह हीनभावना से ग्रस्त रहने लगी है. अब तो वह भीड़ या दोस्तों की महफिल में जाने से भी कतराने लगी है.

यह सिर्फ स्मेंथा की समस्या नहीं है. अकसर टीनएज में ऐसी समस्याएं आ जाती हैं, जिन के बारे में उन्हें जानकारी तो होती है, लेकिन वह जानकारी सही नहीं होती. इसी के चलते परेशानी कम होने के बजाय बढ़ जाती है. स्किनकेयर को ले कर भी युवाओं में कई मिथ हैं, जिन पर अमल कर वे अपने ही हाथों से अपनी स्किन को नुकसान पहुंचा लेते हैं. आप के साथ ऐसा न हो, इसलिए सुनीसुनाई बातों को फौलो करने से पहले अच्छी तरह सोच लें.

1. मुंहासों पर टूथपेस्ट

अकसर चेहरे या शरीर के किसी दूसरे हिस्से पर मुंहासे होने पर लोग उस जगह टूथपेस्ट लगाने की सलाह देते हैं. लेकिन सच तो यह है कि टूथपेस्ट स्किन में मौजूद तेल को कम कर उसे रूखा बनाता है. टूथपेस्ट में ऐसे कई तत्व मौजूद होते हैं, जो आप की स्किन के मुंहासों को बढ़ाने में सहायक होते हैं. इसलिए टूथपेस्ट के बजाय किसी सौम्य आयलफ्री क्लींजर बार का इस्तेमाल करें, जो आप की स्किन की चमक खोए बिना ही मुंहासों से हटा सके.

2. ब्लैकहैड्स की वजह धूल

अगर आप सोचती हैं कि आप के चेहरे पर उभर आए ब्लैकहैड्स धूल की वजह से हैं, तो आप गलत सोचती हैं. वास्तव में ऐसा नहीं है. ब्लैकहैड्स की वजह डस्ट नहीं, बल्कि आप की स्किन में मौजूद प्राकृतिक आयल है. जब स्किन के पोर्स खुले होते हैं और टिप में हवा जा सकती है, तो वह औक्साइज्ड हो कर ब्लैकहैड्स के रूप में दिखने लगती है. इसलिए बारबार चेहरा धो कर डस्ट हटाने के बजाय कोई अच्छी आयल कंट्रोल क्रीम इस्तेमाल करें.

3. चेहरे की एक्सरसाइज

अकसर लोग इस गलतफहमी में रहते हैं कि शरीर की ही तरह चेहरे की फेशल एक्सरसाइज करने से उस की मसल्स ढीली नहीं होंगी, लेकिन सच तो यह है कि फेशल एक्सरसाइज आप के चेहरे को झुर्रियों का तोहफा दे सकती है. चेहरा शरीर का एकमात्र ऐसा हिस्सा है, जिस की मसल्स स्किन से बिना पिंगमेंट और टिशू की मदद के डायरेक्ट जुड़ी होती हैं. जब आप अपनी मसल्स पर दबाव बनाएंगे, तो वह सीधा स्किन पर पड़ेगा. यही वजह है कि जब हम फेशल एक्सप्रेशन ज्यादा देते हैं या हंसते हैं, तो उस हिस्से में लाइनें बन जाती हैं. रोजाना फेशल एक्सरसाइज आप के चेहरे को झुर्रियों से भर सकती है.

4. स्किन से जुडे़ सच

कम वसा, ज्यादा फाइबर और खूब सारा पानी स्किन को स्वस्थ रखने में सब से ज्यादा सहायक होता है.

अगर आप की स्किन धोने के बाद रूखी हो जाती है, तो पीएच संतुलन वाले साबुन या क्लींजर का इस्तेमाल करें. रूखी स्किन के लिए अल्फा हाइड्रोक्सी एसिड का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, जो स्किन को नमी देने के साथसाथ उसे कोमल बनाता है. नियमित रूप से एएचए बेस्ड प्रोडक्ट इस्तेमाल करने से भी अच्छा परिणाम मिल सकता है.

नौन कामेडोजेनिक स्किन क्रीम का इसतेमाल करें. यह स्किन के पोर्स को बंद नहीं करती, जैसा कि दूसरी क्रीमें करती हैं.

धूप से न केवल चेहरे की स्किन बल्कि आप के होंठों की स्किन भी जल सकती है, इसलिए होंठों पर भी सन प्रोटेक्टिव लिपबाम इस्तेमाल करें.

5. काम की बातें

अपनी स्किन को जरूरत से ज्यादा न छुएं. स्किन को बारबार छूने से चेहरे पर बैक्टीरिया से संक्रमण हो सकता है, जिस से स्किन पर अधिक दाने हो सकते हैं या वह फट सकती है.

मुंहासों को दबाने से स्किन खुरच जाती है, जो बाद में भद्दे निशानों के रूप में दिखाई देती है. इसलिए इस आदत को भी दूर करें.

टीनएज लड़कियों को ज्यादा मेकअप अवाइड करना चाहिए. ज्यादा मेकअप स्किन के पोर्स को बंद कर देता है.

लड़कों को खेलकूद या ज्यादा मेहनत या पोल्यूशन वाले काम के बाद अपनी स्किन को साफ करना चाहिए, ताकि स्किन के पोर्स खुले रहें, जिस से उन में जमा पसीना, तेल या डस्ट साफ हो सके.

परिंदे को उड़ जाने दो : भाग-1

“एंड द विनर इज…….”

‘शीना, प्लीज प्लीज….शीना,’ एक अन्य प्रतिभागी का हाथ पकड़े खड़ी शीना मन ही मन कह रही थी. उस के चहरे पर घबराई हुई मुस्कान थी लेकिन दिल की धड़कनें इतनी तेज थीं कि लग रहा था मानो सीना चीरते हुए बाहर आ जाएंगी.

“एंड द विनर इज… मिस नेहा कौशिक,” नाम सुनते ही पूरा औडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया.

शीना ने चेहरे पर मुस्कान सजाए रखी और अपनी साथी प्रतिभागी को जीत की बधाई देने लगी. साथी प्रतिभागी को अब अन्य प्रतिभागियों ने भी घेरना शुरू कर दिया था. शीना फर्स्ट रनरअप आई थी, जीती होती तो इस समय शायद लोगों ने उसे घेरा हुआ होता.

अपनी मम्मी शोभा के साथ ओडिटोरियम से बाहर निकलते हुए शीना कुछ उदास दिख रही थी, सिर्फ इसलिए नहीं कि वह हार गई बल्कि इसलिए भी कि अब वह अपने दोस्तों के साथ घूमने नहीं जा पाएगी क्योंकि घूमने जाने की शर्त ही मम्मी ने यह रखी थी कि शीना मिस डीवा दिल्ली का यह कौंपीटीशन जीते.

“हे, हाय शीना, कौंगरेट्स यार,” शीना की कार के पास आ नेहा ने कहा.

“जीती तो तुम हो, फिर मु…” शीना आगे कुछ कहती उस से पहले ही उस की मम्मी ने उस की बांह पकड़ उसे चुप कराने का इशारा किया और कहने लगीं, “ओह, कोंगरेट्स नेहा, तुम ने भी काफी अच्छा परफोर्म किया.”

“अरे आंटी, थैंकयू, अब सब खूबसूरती का तो खेल नहीं होता, परफौर्मेंस भी माने रखती है, क्यों शीना?” नेहा ने शीना की तरफ देखते हुए कहा. “वैसे तुम्हें न थोड़ा पढ़नालिखना भी चाहिए, तुम्हारा जवाब तो बहुत ही बुरा था आज, हाहाहाह,” शीना के मुंह पर हंसती हुए नेहा निकल गई.

“कैसी छिपकली जैसी शक्ल है और कैंची जैसी जबान, जाने क्या देख कर क्राउन दे दिया इस को,” झल्लाकर शोभा ने कहा.

“जवाब सुन कर मम्मी. उस की बौडी भी कितनी पर्फेक्ट है और बाल देखे आप ने नैचुरली सुंदर दिखते हैं,” शीना ने उदास होते हुए कहा.

“इस बार डांस के साथसाथ तेरा सोशल साइंस का ट्यूशन भी लगवा देती हूं, अच्छेअच्छे जवाब दे पाएगी तभी,” शोभा ने कुछ सोचते हुए कहा.

“इतना बुरा जवाब था क्या मेरा?”

“बेटा, आप की प्रेरणा कौन है सवाल का जवाब ऐश्वर्या राय नहीं होता बल्कि कहा जाता है कि प्रेरणा मां है. जजेस को भावुक करने की जरूरत होती है. जहां कोई जवाब न आए वहां मां को घुसा दो, बस हो गया काम. बचपन से समझाया है फिर भी आखिर में ऐश्वर्या राय बोल कर आ गई. इतनी सुंदर शक्ल के साथ थोड़ी बुद्धि भी होती तो बात बन जाती.”

“मम्मी आप न मेरा हौसला तोड़ रही हो.”

“लोगों की माएं उन के सपने तोड़ती हैं, मैं तो फिर भी बस हौसला तोड़ रही हूं,” शोभा ने कहा और कार में जा बैठ गई. शीना भी कार में बैठी और दोनों घर के लिए निकल गईं.

शीना को 7 साल की उम्र से ही उस की मम्मी छोटेमोटे ब्यूटी पेजैंट्स में ले जाती रही हैं. अधिकतर ब्यूटी पेजैंट्स उस ने जीते ही हैं. उस के पापा डाक्टर हैं तो अपनी बेटी को भी पढ़ाई में आगे जाता देखना चाहते थे, लेकिन शोभा अपनी बेटी की खूबसूरती को यों व्यर्थ करने के पक्ष में नहीं थी. उस का कहना था कि उस की बेटी ऐश्वर्या न सही जुही चावला ही बन जाए, मिस वर्ल्ड का न सही तो एक दिन मिस इंडिया का टाइटल तो लाए.

पेजैंट्स और कुछ शूट्स से जो पैसे मिलते वे सब शोभा के पास ही रहते थे. शीना के पापा और मम्मी की अरेंज मैरिज हुई थी तो ‘शादी के बात भी प्यार हो जाता है’ का नुक्ता यहां नहीं चल पाया था और शोभा के लिए अपने पति के साथ रहना उन्हें झेलना भर था. शोभा बचपन से ही मौडल बनना चाहती थी लेकिन मम्मीपापा के ‘लोग क्या कहंगे’ के तर्क का जवाब नहीं दे पाई. कालेज के सेकंड ईयर में ही जिस लड़के से प्यार था उस से शादी करने के लिए मम्मीपापा से खूब लड़ाई की थी. नतीजा यह हुआ कि मम्मीपापा तो नहीं माने लेकिन शोभा के लिए उन के मन में जो प्यार था वो उस के प्रेमकांड के चलते कम हो गया.

कालेज का प्यार तो कालेज तक ही रहा लेकिन थर्ड ईयर में अच्छे नंबरों ने भी शोभा से मुंह मोड़ लिया. किसी अच्छे कालेज में मेरिट के आधार पर एडमिशन की नौबत तो आने से रही और इस गम में एंट्रैन्स में भी वह कुछ खास कर नहीं पाई. मम्मी के अनुसार, कालेज में जो गुल खिलाएं हैं उस के लिए अब आगे की पढ़ाई के लिए घर से तो पैसा मिलेगा नहीं, शादी करो और ससुराल जाओ. हुआ भी यही, जल्द से जल्द शादी की गई और दूसरे ही साल शीना ने जन्म ले लिया. पति से शोभा की कभी बनी नहीं, सो, शीना का एकएक खर्च उस के पापा के ऊपर था और शीना की खूबसूरती से आए पैसे शोभा के खर्च के लिए थे. क्योंकि कुछ हो न हो शोभा में स्वाभिमान तो खूब था.

घर पहुंच कर थकी हारी शीना सीधा अपने कमरे में जा लेट गई. उस ने आंखें बंद ही की थीं कि बाहर से मम्मी पापा के झगड़ने की आवाजें आने लगीं. पापा शीना के कालेज जाने की बात कर रहे थे और मम्मी का कहना था कि वह कालेज जाएगी तो डांस क्लास, सिंगिंग क्लास, जिम और शूट्स पर कौन जाएगा.

आवाजों के बीच शीना को धीरेधीरे नींद ने अपनी आगोश में घेर लिया.

अगली सुबह वह अपने कमरे से नीचे ब्रेकफास्ट के लिए आई तो मम्मी मुंह फुलाए बैठी थीं और पापा के चेहरे पर संतुष्टि की लकीरें छाई हुई थीं.

“शीना,” पापा ने कहा.

“हां, पापा,” शीना ने जवाब दिया.

“तुम्हारा फर्स्ट ईयर दो महीने पहले ही स्टार्ट हो चुका है और तुम ने उस के लिए कोई पढ़ाई स्टार्ट नहीं की है न ज्यादा क्लासेज ली हैं, तो कल से तुम रोज कालेज जाओगी और सुबह जिम, कालेज से आ कर डांस और सिंगिंग क्लास. जो एक दो शूट्स हों उन्हें वीकेंड में कर लेना. इस से आगे मुझे कुछ नहीं सुनना है.”

“ओके पापा, पर मम्मी….”

“मम्मी के कहने से कुछ नहीं होता, एक दो साल पढ़ लोगी तो कुछ नहीं बिगड़ेगा,” पापा ने कहा.

“कैसे नहीं बिगड़ेगा, कालेज में मटरगश्ती करेगी, धूप में रंग पक्का कर आएगी और पता नहीं कैसेकैसे लोगों से मिलेगी. वैसे भी मेरी बेटी सेलेब्रिटी है, ऐसे आम लोगों के साथ उठनाबैठना करेगी तो….” शोभा मुंह मटकाते हुए गुस्से में बड़बड़ाए जा रही थीं.

“तो क्या? कोई सेलेब्रिटी नहीं है तुम्हारी बेटी, दो तीन पत्रिकाओं में फोटो आ जाने से कोई सेलेब्रिटी नहीं हो जाता, इसे इतना सिर पर मत चढ़ाओ.”

“पापा, अगले महीने कालेज से ट्रिप जा रही है मैं भी जाऊं?” शीना ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा.”

“नह…” मम्मी बोलने वाली ही थीं कि पापा ने कह दिया, “हां चले जाना.”

शीना का तो आज दिन ही बन गया था. दिन भर वह फेसपैक, हेयर मास्क, नेलपेंट आदि लगाने में व्यस्त थी. अब वह आखिर कालेज जाने वाली थी वो भी रोज. मम्मी पापा की बात इतनी जल्दी मान कैसे गईं यह उसे अब तक समझ नहीं आया था लेकिन जो भी था उसे खुशी खूब हो रही थी.

 

ताप्ती- भाग 1: ताप्ती ने जब की शादीशुदा से शादी

बहुत देर से ताप्ती मिहिम के लाए प्रस्ताव पर विचार कर रही थी. रविवार की शाम उसे अपने अकेलेपन के बावजूद बहुत प्रिय लगती थी. आज भी ऐसी ही रविवार की एक निर्जन शाम थी. अपने एकांतप्रिय व्यक्तित्व की तरह ही उस ने नोएडा ऐक्सटैंशन की एक एकांत सोसाइटी में यह फ्लैट खरीद लिया था. वह एक प्राइवेट बैंक में अकाउंटैंट थी, इसलिए लोन के लिए उसे अधिक भागदौड़ नहीं करनी पड़ी थी. कुछ धनराशि मां ने अपने जीवनकाल में उस के नाम से जमा कर दी थी और कुछ उस ने लोन ले कर यह फ्लैट खरीद लिया था.

मिहिम जो उस के बचपन का सहपाठी और जीवन का एकमात्र आत्मीय था उस के इस फैसले से खुश नहीं हुआ था. ‘‘ताप्ती तुम पागल हो जो इतनी दूर फ्लैट खरीद लिया? एक बार बोला तो होता यार… मैं तुम्हें इस से कम कीमत में घनी आबादी में फ्लैट दिलवा देता,’’ मिहिम ने कुछ नाराजगी के साथ कहा. ‘‘मिहिम मैं ने अपने एकांतवास की कीमत चुकाई है,’’ ताप्ती कुछ सोचते हुए बोली.

मिहिम ने आगे कुछ नहीं कहा. वह अपनी मित्र को बचपन से जानता था. ताप्ती गेहुएं रंग की 27 वर्षीय युवती, एकदम सधी हुई देह, जिसे पाने के लिए युवतियां रातदिन जिम में पसीना बहाती हैं, उस ने वह अपने जीवन की अनोखी परिस्थितियों से लड़तेलड़ते पा ली थी. शाम को मिहिम और ताप्ती बालकनी में बैठे थे. अचानक मिहिम बोला, ‘‘अंकल का कोई फोन आया?’’ ताप्ती बोली, ‘‘नहीं, उन क ा फोन पिछले 4 माह से स्विच्ड औफ है.’’ मिहिम फिर बोला, ‘‘देखो तुम मेरी ट्यूशन वाली बात पर विचार कर लेना. हमारे खास पारिवारिक मित्र हैं आलोक.

उन की बेटी को ही ट्यूशन पढ़ानी है. हफ्ते में बस 3 दिन. क्व15 हजार तक दे देंगे. तुम्हें इस ट्यूशन से फायदा ही होगा, सोच लेना,’’ यह कह कर जाने लगा तो ताप्ती बोली, ‘‘मिहिम, खाना खा कर जाना. तुम चले गए तो मैं अकेले ऐसे ही भूखी पड़ी रहूंगी.’’ फिर ताप्ती ने फटाफट बिरयानी और सलाद बनाया. मिहिम भी बाजार से ब्रीजर, मसाला पापड़ और रायता ले आया. मिहिम फिर रात की कौफी पी कर ही गया. मिहिम को ताप्ती से दिल से स्नेह था.

प्यार जैसा कुछ था या नहीं पता नहीं पर एक अगाध विश्वास था दोनों के बीच. उन की दोस्ती पुरुष और महिला के दायरे में नहीं आती थी. मिहिम नि:स्संकोच ताप्ती को किसी भी नई लड़की के प्रति अपने आकर्षण की बात चटकारे ले कर सुनाता तो ताप्ती भी अपनी अंदरूनी भावनाओं को मिहिम के समक्ष कहने में नहीं हिचकती थी.

जब ताप्ती की मां जिंदा थीं तो एक दिन उन्होंने ताप्ती से कहा भी था कि मिहिम और तुझे एकसाथ देख कर मेरी आंखें ठंडी हो जाती हैं. तू कहे तो मैं मिहिम से पूछ कर उस घर वालों से बात करूं?’’ ताप्ती हंसते हुए बोली, ‘‘मम्मी, आप क्या बोल रही हैं? मिहिम बस मेरा दोस्त है… मेरे मन में उस के लिए कोई आकर्षण नहीं है.’’ मम्मी डूबते स्वर में बोलीं, ‘‘यह आकर्षण ही तो हर रिश्ते का सर्वनाश करता है.’’

ताप्ती अच्छी तरह जानती थी कि मम्मी का इशारा किस ओर है. पर वह क्या करे. मिहिम को वह बचपन से अपना मित्र मानती आई है और उसे खुद भी आश्चर्य होता है कि आज तक उसे किसी भी लड़के के प्रति कोई आकर्षण नहीं हुआ… शायद उस का बिखरा परिवार, उस के पापा का उलझा हुआ व्यक्तित्व और उस की मां की हिमशिला सी सहनशीलता उसे सदा के लिए पुरुषों के प्रति ठंडा कर गई थी.

ताप्ती जब भी अपने बचपन को याद करती तो बस यही पाती, कुछ इंद्रधनुषी रंग भरे हुए दिन और फिर रेत जैसी ठंडी रातें, जो ताप्ती और उस की मां की साझा थीं. ताप्ती के पापा का नाम था सत्य पर अपने नाम के विपरीत उन्होंने कभी सत्य का साथ नहीं दिया. वे एक नौकरी पकड़ते और छोड़ते गृहस्थी का सारा बोझ एक तरह से ताप्ती की मां ही उठा रही थीं, फिर भी परिस्थितियों के विपरीत वे हमेशा हंसतीमुसकराती रहती थीं.

अपने नाम के अनुरूप ताप्ती की मां स्वभाव से आनंदी थीं, जीवन से भरपूर, दोनों जब साथसाथ चलतीं तो मांबेटी कम सखियां अधिक लगती थीं. ताप्ती ने अपनी मां को कभी किसी से शिकायत करते हुए नहीं देखा था. वे एक बीमा कंपनी में कार्यरत थीं. ताप्ती ने अपनी मां को हमेशा चवन्नी छाप बिंदी, गहरा काजल और गहरे रंग की लिपस्टिक में हंसते हुए ही देखा था.

उन के जीवन की दर्द की छाप कहीं भी उन के चेहरे पर दिखाई नहीं देती थी. ताप्ती के विपरीत आनंदी को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. अपने आखिरी समय तक वे सजीसंवरी रहती थीं. मगर आज ताप्ती सोच रही है कि काश आनंदी अपनी हंसी के नीचे अपने दर्द को न छिपातीं तो शायद उन्हें ब्लड कैंसर जैसी घातक बीमारी न होती. पापा से ताप्ती को कोई खास लगाव नहीं था.

पापा से ज्यादा तो वह मिहिम के पापा सुरेश अंकल के करीब थी. जहां अपने पापा के साथ उसे हमेशा असुरक्षा की भावना महसूस होती थी, वहीं सुरेश अंकल का उस पर अगाध स्नेह था. वे उसे दिल से अपनी बेटी मानते थे पर मिहिम की मां को यह अहंकारी लड़की बिलकुल पसंद नहीं थी.

बापबेटे का उस लड़की पर यह प्यार देख कर वे मन ही मन कुढ़ती रहती थीं. अंदर ही अंदर उन्हें यह भय भी था कि अगर मिहिम ने ताप्ती को अपना जीवनसाथी बनाने की जिद की तो वे कुछ भी नहीं कह पाएंगी. मिहिम गौर वर्ण, गहरी काली आंखें, तीखी नाक… जब से होश संभाला था कितनी युवतियां उस की जिंदगी में आईं और गईं पर ताप्ती की जगह कभी कोई नहीं ले पाई और युवतियों के लिए वह मिहिम था पर ताप्ती के लिए वह एक खुली किताब था, जिस से उस ने कभी कुछ नहीं छिपाया था.

मां को गए 2 महीने हो गए थे. अब पूरा खर्च उसे अकेले ही चलाना था. मिहिम अच्छी तरह से जानता था कि यह स्वाभिमानी लड़की उस से कोई मदद नहीं लेगी, इसलिए वह अतिरिक्त आय के लिए कोई न कोई प्रस्ताव ले कर आ जाता था. यह ट्यूशन का प्रस्ताव भी वह इसीलिए लाया था.

आज बैंक की ड्यूटी के बाद बिना कुछ सोचे ताप्ती ने अपनी स्कूटी मिहिम के दिए हुए पते की ओर मोड़ दी. जैसे सरकारी आवास होते हैं, वैसे ही था खुला हुआ, हवादार और एक अकड़ के साथ शहर के बीचोंबीच स्थित था. आलोक पुलिस महकमे में ऊंचे पद पर हैं. और अफसरों की पत्नियों की तरह उन की पत्नी भी 3-4 समाजसेवी संस्थाओं की प्रमुख सदस्या थीं और साथ ही एक प्राइवेट कालेज में लैक्चरर की पोस्ट पर भी नियुक्त थीं.

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Mother’s Day Special- अधूरी मां- भाग 3: क्या खुश थी संविधा

तुम्हारे भैया तो दिन में न जाने कितनी बार औफिस से फोन कर के उस की आवाज सुनाने को कहते हैं. शाम 4 बजे तक सारा कामकाज मैनेजर को सौंप कर घर आ जाते हैं. रात को खाना खा कर सभी दिव्य को ले कर टहलने निकल जाते हैं. दिव्य के आने से मेरे घर में रौनक आ गई है. इस के लिए संविधा तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद. संविधा, अरेअरे दिव्य… संविधा मैं तुम्हें फिर फोन करती हूं. यह तेरा बेटा जो भी हाथ लगता है, सीधे मुंह में डाल लेता है. छोड़…छोड़…’’

इस के बाद दिव्य के रोने की आवाज आई और फोन कट गया.

‘‘यह भाभी भी न, दिव्य अब मेरा बेटा कहां रहा. जब उन्हें दे दिया तो वह उन का बेटा हुआ न. लेकिन जब भी कोई बात होती है, भाभी उसे मेरा ही बेटा कहती हैं. पागल…’’ बड़बड़ाते हुए संविधा ने फोन मेज पर रख दिया.

इस के बाद मोबाइल में संदेश आने की घंटी बजी. ऋता ने व्हाट्सऐप पर दिव्य का फोटो भेजा था. दिव्य को ऋता की मम्मी खेला रही थीं. संविधा आनंद के साथ फोटो देखती रही. ऋता का फोन नहीं आया तो संविधा ने सोचा, वह रात को फोन कर के बात करेगी.

इसी बीच संविधा को कारोबार के संबंध में विदेश जाना पड़ा. विदेश से वह दिव्य के लिए ढेर सारे खिलौने और कपड़े ले आई. सारा सामान ले कर वह ऋता के घर पहुंची.

ऋता ने उसे गले लगाते हुए पूछा, ‘‘तुम कब आई संविधा?’’

‘‘आज सुबह ही आई हूं. घर में सामान रखा, फ्रैश हुई और सीधे यहां आ गई.’’

पानी का गिलास थमाते हुए ऋता ने पूछा, ‘‘कैसी रही तुम्हारी कारोबारी यात्रा?’’

‘‘बहुत अच्छी, इतना और्डर मिल गया है कि 2 साल तक फुरसत नहीं मिलेगी,’’ बैड पर सामान रख कर इधरउधर देखते हुए संविधा ने पूछा, ‘‘दिव्य कहां है, उस के लिए खिलौने और कपड़े लाई हूं?’’

‘‘दिव्य मम्मी के साथ खेल रहा है. तभी दिव्य को ले कर सुधा आ गईं शायद उन्हें संविधा के आने का पता चल गया था. संविधा ने चुटकी बजा कर दिव्य को बुलाया, ‘‘देख दिव्य, तेरे लिए मैं क्या लाई हूं.’’

इस के बाद संविधा ने एक खिलौना निकाल कर दिव्य की ओर बढ़ाया. खिलौना ले

कर दिव्य ने मुंह फेर लिया. इस के बाद संविधा ने दिव्य को गोद में लेना चाहा तो वह रोने लगा.

इस पर ऋता ने कहा, अरे, यह तो रोने लगा.

वह क्या है न संविधा, यह किसी भी अजनबी के पास बिलकुल नहीं जाता.

संविधा ने हाथ खींच लिए तो दिव्य चुप हो गया. संविधा उदास हो गई. उस का मुंह लटक गया. वह कैसे अजनबी हो गई, जबकि असली मां तो वही है. संविधा जो कपड़े लाई थी, अपने हाथों से दिव्य को पहनाना चाहती थी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. कुछ देर बातें कर के वह सारा सामान भाभी को दे कर वहां से निकली तो सीधे मां के घर चली गई. वहां मां के गले लग कर रो पड़ी कि वह अपने ही बेटे के लिए अजनबी हो गई.

रमा देवी ने संविधा के सिर पर हाथ फेरते हुए समझाया कि वह जी न छोटा करे, दिव्य थोड़ा बड़ा होगा तो खुद ही उस के पास आने लगेगा. उस से अपनी खुशी भाईभाभी को दी है, इसलिए अब उसे अपना बेटा मान कर मन को दुखी न करे. इस के बाद संविधा को पानी पिला कर उस के कारोबार और विदेश की यात्रा के बारे में बातें करने लगीं तो संविधा उत्साह में आ गई.

कारोबार में व्यस्त हो जाने की वजह से संविधा को किसी से मिलने का समय नहीं मिल रहा था. सात्विक अब अकसर बाहर ही रहता था. फोन पर ही ऋता संविधा को दिव्य के बारे में बताती रहती थी कि आज उस ने यह खाया, ऐसा किया, यह सामान तोड़ा. मम्मी तो उस से बातें भी करने लगी हैं. अगर वह राजन के पास होता है तो वह उसे किसी दूसरे के पास नहीं जाने देते. जिस दिन दिव्य बैड पकड़ कर खड़ा हुआ और 4-5 कदम चला, ऋता ने उस का वीडियो बना कर संविधा को भेजा.

अब तक दिव्य 10 महीने का हो गया था. 2 महीने बाद उस का जन्मदिन आने वाला था. सभी उत्साह में थे कि खूब धूमधाम से जन्मदिन मनाया जाएगा. जन्मदिन मनाने में मदद के लिए संविधा को भी एक दिन पहले आने को कह दिया गया था. जब भी ऋता और संविधा की बात होती थी, ऋता यह बात याद दिलाना नहीं भूलती थी. संविधा भी खूब खुश थी.

उस दिन मीटिंग खत्म होने के बाद संविधा ने मोबाइल देखा तो ऋता की 10 मिस्डकाल्स थीं. इतनी ज्यादा मिस्डकाल्स कहीं मम्मी…? उस के मन में किसी अनहोनी की आशंका हुई. संविधा ने तुरंत ऋता को फोन किया.

दूसरी ओर से ऋता के रोने की आवाज आई. रोते हुए उस ने कहा, ‘‘कहां थीं तुम…कितने फोन किए… तुम ने फोन क्यों नही उठाया?’’

‘‘मीटिंग में थी, ऐसा कौन सा जरूरी काम था, जो इतने फोन कर दिए?’’

‘‘दिव्य को अस्पताल में भरती कराया है,’’ ऋता ने कहा.ॉ

संविधा ने तुरंत फोन काटा और सीधे अस्पताल जा पहुंची. दिव्य तमाम नलियों से घिरा स्पैशल रूम में बैड पर लेटा था. नर्स उस की देखभाल में लगी थी. डाक्टर भी खड़े थे.

वह अंदर जाने लगी तो ऋता ने रोका, ‘‘डाक्टर ने अंदर जाने से मना किया है.’’

‘‘क्या हुआ है दिव्य को?’’ संविधा ने पूछा.

‘‘कई दिनों से बुखार था. फैमिली डाक्टर से दवा ले रही थी. लेकिन बुखार उतर ही नहीं रहा था. आज यहां ले आई तो भरती कर लिया. अब ठीक है, चिंता की कोई बात नहीं है.’’

संविधा सोचने लगी, इतने दिनों से बुखार था, राजन ने ध्यान नहीं दिया. यह इन का अपना बेटा तो है नहीं. इसीलिए ध्यान नहीं दिया. खुद पैदा किया होता तो ममता होती. मेरा बच्चा है न, इसलिए इतनी लापरवाह रही. आज कुछ हो जाता, तो… संविधा ने सारे काम मैनेजर को समझा दिए और खुद अस्पताल में रुक गई बेटे की देखभाल के लिए. ऋता ने उस से बहुत कहा कि वह घर जाए, दिव्य की देखभाल वह कर लेगी, पर संविधा नहीं गई. उस की जिद के आगे ऋता को झुकना पड़ा.

अगले दिन किसी जरूरी काम से संविधा को औफिस जाना पड़ा. वह औफिस से लौटी तो देखा ऋता दिव्य के कमरे से निकल रही थी.

संविधा ने इस बारे में डाक्टर से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मां को तो अंदर जाना ही पड़ेगा. बिना मां के बच्चा कहां रह सकता है.’’

संविधा का मुंह उतर गया. मां वह थी.  अब उस का स्थान किसी दूसरे ने ले लिया था. वह दिव्य को देख तो पाती थी, लेकिन बीमार बेटे को गोद नहीं ले पाती थी. इसी तरह 2 दिन बीत गए. रोजाना शाम को सात्विक भी अस्पताल आता था. ऋता बारबार संविधा से निश्ंिचत रहने को कहती थी, लेकिन वह निश्ंिचत नहीं थी. अब वह दिव्य को पलभर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहती थीं. 5वें दिन डाक्टर ने दिव्य को घर ले जाने के लिए कह दिया.

सभी रमा देवी के घर इकट्ठा थे. संविधा ने दिव्य को गोद में ले कर कहा, ‘‘मैं ने इसे जन्म दिया है, इसलिए यह मेरा बेटा है. यह मेरे साथ रहेगा.’’

‘‘तुम्हारा बेटा कैसे है? मैं ने इसे गोद लिया है,’’ ऋता ने तलखी से कहा, ‘‘तुम इसे कैसे ले जा सकती हो?’’

‘‘कुछ भी हो, अब मैं दिव्य को तुम्हें नहीं दे सकती. तुम उस की ठीक से देखभाल नहीं कर सकी.’’

‘‘बिना देखभाल के ही यह इतना बड़ा हो गया? एक बार जरा…’’

‘‘एक बार जो हो गया, अब वह दोबारा नहीं हो सकता, ऐसा तो नहीं है.’’

‘‘अब तुम्हारा कारोबार कौन देखेगा… इसे दिन में संभालोगी औफिस कौन देखेगा?’’

‘‘तुम्हें इस सब की चिंता करने की जरूरत नहीं है. कारोबार मैनेजर संभाल लेगा तो औफिस सात्विक. मेरे कारोबार और औफिस के लिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. कुछ भी हो, अब मेरा बेटा मेरे पास ही रहेगा.’’

ऋता और संविधा को लड़ते देख सब हैरान थे. ननदभौजाई का प्यार पलभर में

खत्म हो गया था. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कोई किसी को क्या कह कर समझाए. ऋता ने धमकी दी कि उस के पास दिव्य को गोद लेने के कागज हैं तो संविधा ने कहा कि उन्हीं को ले कर देखती रहना.

ऋता ने दिव्य को गोद में लेने के लिए हाथ आगे बढ़ाए तो राजन ने उस के हाथ थाम लिए. उसे पकड़ कर बाहर लाया और कार में बैठा दिया. ऋता रो पड़ी. राजन ने कार बढ़ा दी. राजन ने ऋता को चुप कराने की कोशिश नहीं की.

रास्ते में ऋता के मोबाइल फोन की घंटी बजी. ऋता ने आंसू पोंछ फोन रिसीव किया, ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद भाई साहब, मेरी योजना किसी को नहीं बताई इस के लिए आभार, क्योंकि उस समय संविधा को गर्भपात न कराने का दबाव डालने के बजाय यह उपाय ज्यादा अच्छा था, जो सफल भी रहा.’’

राजन ने ऋता की ओर देखा, उस आंखों में आंसू तो थे, लेकिन चेहरे पर कोई पछतावा नहीं था.

जिंदगी की धूप- भाग 1 : मौली के मां बनने के लिए क्यों राजी नहीं था डेविड

उसका दिल जोरजोर से धड़कने लगा जब उस ने प्लास्टिक की छोटी सी पेशाबभरी कटोरी में स्टिक डाल दी और 10 सैकंड तक इंतजार करने लगी.

सिर्फ एक लकीर नीली गहरी हुई थी. इस का मतलब उसे अच्छी तरह से मालूम था. पिछले 9 साल से हर महीने यही करती आई थी और दोनों लकीरों के गहरे होने के इंतजार में जाने और कितने महीने वह इसी तरह अकेली यों ही सिसकती रहेगी.

उस ने गहरा सांस छोड़ी. फिर बाथरूम की खिड़की से बाहर  झांकने लगी. इस साल भारी वर्षा होने के कारण दूर तक पहाड़ों पर हरियाली जमी हुई थी और हवा के  झोंके अंदर के ताप को कुछ सुकून पहुंचा रहे थे. थोड़ी देर यों ही खड़ी रह कर उस ने खिड़की जोर से बंद कर दी. आज उस का मूड फिर से उखड़ा हुआ था. मूड उस का ऐसे ही रहता है जिस दिन वह यह परीक्षण करती है.

शाम को डेविड से भी जलीकटी बातें करती रही और इन सब का जिम्मेदार उसे ही ठहराती रही क्योंकि डेविड ने शुरू  के 10 सालों तक उसे गर्भनिरोधक गोलियां खिलाखिला कर खोखला कर दिया था. दरअसल, डेविड सैटल होने तक बच्चे का रिस्क नहीं लेना चाहता था.

जब भी मौली बच्चे के लिए कहती तो वह यही जवाब देता, ‘‘बच्चों को गरीब मांबाप पसंद नहीं होते. क्या तुम चाहोगी कि हमारे बच्चे हमें ही न पसंद करें?’’

डेविड को नहीं मालूम था और कितने साल सैटल होने में लग जाएंगे. शुरू के 10 साल तो यों ही पंख लगा कर उड़ गए. लेकिन डेविड बच्चे की बात भूल कर भी नहीं करता और अब तो मौली की किसी बात का डेविड पर कोई असर नहीं होता था.

सालों से वह यही सुनता आया था, ‘‘हमारा बच्चा कब होगा? तुम कभी खुद बच्चे की बात क्यों नहीं छेड़ते?’’

मजाल है जो इतना होने पर भी डेविड ने कभी बच्चे की बात शुरू की हो. उस के मन की बात कोई नहीं जानता, शायद वह खुद भी नहीं. हां, इतना जरूर था जब मौली रोने लगती तो वह कहता, ‘‘मैं भी वही चाहता हूं जो तुम चाहती हो. बताओ मैं क्या करूं?’’

यह सुन कर मौली और भड़क उठती और कहती, ‘‘मु झ से बात मत करो.’’

वह खुद भी 20 साल की अल्हड़ युवती थी जब वे प्रणयसूत्र में बंधे थे. कितने साल  तो पढ़ाईलिखाई डिगरी पाने और फिर नौकरी की तलाश में ही गुजर गए, फिर भी हमेशा एक कोने में बच्चे की चाह कुलबुलाती रहती.

पिछले 9 सालों से वे दोनों बच्चे के लिए भरपूर ट्राई कर रहे थे और 2 साल पहले तो उन्होंने डाक्टर से अपना ट्रीटमैंट भी कराने की सोची. सभी रिपोर्ट नौर्मल निकलीं तो डाक्टर ने कहा, ‘‘अब 40 की उम्र में अपनेआप बच्चे होने से रहे इसलिए ‘आईवीएफ’ करवाने की सोचो.

इस के लिए वे आर्थिक रूप से तैयार न थे लेकिन कुछ सस्ते ट्रीटमैंट जैसे ‘आईयूआई’ उन्होंने जरूर ले लिए थे. इस से उन्हें अंदाजा हो गया था कि इस आग के दरिए में डूब के ही जाना पड़ेगा. हर महीने टैबलेट लेना, फिर अपने पेट में खुद ही सीरिंज घोंपना मौली के लिए आसान काम न था. इस के बाद नियत समय पर मौली को क्लीनिक बुलाया जाता और हर बार जाने कौनकौन सी मशीनें उस के अंदर डाल दी जातीं. हाथ की मुट्ठियों को कस कर बंद कर वह सिर्फ अपने शरीर के अंदर की जा रही प्रक्रिया को महसूस कर पाती. दर्द से कई गरम धाराएं उस की आंखों से यों पड़तीं जो कई दिनों तक उस के बदन में सिहरन पैदा करती रहती थीं.

इस के अलावा हर बार क्लीनिक में जाने का खर्च 1 हजार डालर के ऊपर चला जाता. 5 बार ‘आईयूआई’ करवा कर तो दोनों ने तोबा कर ली. इस के ऊपर खर्च करना उन के बस का न था. अभी तक तो स्टूडैंट लोन भी नहीं चुकाया था. फिर दोनों की नौकरियों से कुछ खास बचता भी नहीं था इसलिए तन, मन और धन से निचुड़ चुके मौली और डेविड ने सोच लिया था कि अब अगर बच्चे होंगे तो अपनेआप नहीं तो नहीं.

खैर, अब मौली घर में ही हर महीने गर्भपरीक्षण करती और हर बार नैगेटिव रिपोर्ट आने से परेशान हो कर 2-4 दिन बाद फिर अपनेआप सामान्य हो जाती थी. और अपने अगले मासिकचक्र में गर्भवती होने के सपने देखने लगती जिस के लिए उसे खुश रहना बेहद जरूरी था.

उस के बदलते मूड से तो सभी परिचित थे. आज अपने दफ्तर में बैठी वह बहुत खुश लग रही थी. इश्योरैंस क्लेम की सभी फाइलें जल्दीजल्दी निबटाते हुए कुछ गुनगुना रही थी.

उस के सामने बैठी लौरा ने पूछ ही लिया, ‘‘कुछ खास है क्या?’’

वह अपनी मेज पर लगे हुए गुलदस्ते से फूल तोड़ते हुए बड़े ही सैक्सी अंदाज में बोली, ‘‘हां, आज की रात डेविड और मैं, मैं और डेविड बहुत बिजी होंगे,’’ लौरा खिलखिला कर हंसने लगी, तभी विक्टर आ टपका और दोनों की हंसी बिला गई.

विक्टर बोला, ‘‘जब भी मैं आता हूं तुम दोनों चुप क्यों हो जाती हो? लगता है कुछ मेरे ही बारे में बातें कर रही थीं.’’

मौली हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘बस और कोई काम नहीं है हमें, तुम्हारे बारे में बात करने के. तुम क्या स्पैशल हो?’’

‘‘तो हंस क्यों रही थीं?’’

‘‘हंसना मना है क्या?’’

‘‘जब मैं आता हूं तुम लोग चुप क्यों हो जाती हो? अब तक तो बड़े कहकहे छूट रहे थे. मु झे बताओ न, क्या चल रहा था?’’ विक्टर थोड़ी मिन्नत वाली टोन में बोला.

‘‘ये औरतों की बात है तुम नहीं सम झोगे,’’ लौरा अपने एक हाथ को आगे मेज पर रखते हुए स्टाइल से बोली.

‘‘ऐसी क्या बात है जो मैं नहीं सम झ सकता, एक बार बताओ तो सही.’’

मौली ने  झटके से क्लेम की कुछ फाइलें उठाईं और विक्टर की मेज पर पटक दीं.

‘‘पहले इन फाइलों का काम खत्म करो फिर बताऊंगी.’’

अगले ही क्षण मौली को लगने लगा जैसे उसे बुरी तरह से चक्कर आ गए. शायद वह  झटके से उठी इसी से चक्कर आए होंगे.

उस ने सोचा पिछला परीक्षण तो नैगेटिव आया था लेकिन उस की माहवारी अभी तक नहीं हुई. आज घर जा कर फिर से परीक्षण करना चाहिए.

वैसे इस तरह तो पहले भी कई बार हो गया है जब उस की माहवारी 15-15 दिन देर से हुई और वह हर बार यही आशा पाल लेती कि शायद इस बार वह गर्भवती हो गई है.

यह परीक्षण उस के तन के लिए तो नहीं, लेकिन मन के लिए बहुत दर्दनाक था. फिर भी हर महीने करना तो पड़ता था.

घर जा कर उस ने सब से पहले परीक्षण की वही प्रक्रिया दोहराई लेकिन परीक्षण स्टिक ने आज वही परिणाम नहीं दोहराया बल्कि दोनों लकीरें नीली हो गईं. उसे विश्वास नहीं हो रहा था. यह उस की 40 साल की जिंदगी में पहली बार हुआ था. उस ने सोचा कि कल नर्सिंगहोम में टेस्ट करवा लूंगी. इन स्टिकों का क्या भरोसा, शायद इन की ऐक्सपाइरी डेट निकल गई हों.

अगले दिन खून की जांच से भी जब यह खबर पक्की हो गई तो वह तेज  कदमों से बिल्डिंग के बाहर निकल आई और एक कौफी हाउस में जा कर बैठ गई. वह कुछ पल किसी से कोई बात नहीं करना चाहती थी बस अपने साथ रहना चाहती थी.

अब तक इस एक क्षण का उसे 2 दशकों से इंतजार था. कैसा लगता है जब आंखों में पला बरसों का सपना एक  झटके में पूरा हो जाता है और मन असीम आनंद के हिंडोले में डोलने लगता है. वह भी इसी हिंडोले में बैठ कर कहीं दूर उड़ना चाहती थी.

शायद इसी दिन के लिए यह गाना बना है, ‘आजकल पांव जमीन पे नहीं पड़ते मेरे, बोलो देखा है तुम ने मु झे उड़ते हुए…’

पूरी तरह से आश्वस्त हो कर वह डेविड को फोन मिलाने लगी. उस के चेहरे पर मुसकराहट रहरह कर अपने आप चढ़ जाती शायद इतनी बड़ी खबर सुन कर सभी का यही हाल होता होगा.

तेरे जाने के बाद- भाग 1 क्या माया की आंखों से उठा प्यार का परदा

मैं अकेली हूं पर मोहित की यादें अकसर ही मुझ से बातें करने आ जाया करती हैं. लगता जैसे मोहित आते ही मुझे चिढ़ाने लगते हैं. वास्तव में तुम्हारी हिम्मत न होती थी हकीकत की जमीन पर मुझे चिढ़ाने की, लेकिन खयालों में तुम कोई मौका न छोड़ते. मैं खयालों में ही रह जाती हूं, जवाब नहीं दे पाती तुम्हें. पता नहीं पिछले कुछ दिनों से जाने क्यों मुझे रहरह कर कमल की भी याद आ रही है. मै जानती हूं वह कभी नहीं आएगा. अगर आया तो भी उस के लिए मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है. आखिर मैं ने ही तो छोड़ा था उसे, फिर क्यों याद कर रही हूं मैं उस को. मैं खुश हूं अपनी जिंदगी में. क्या फर्क पड़ता है किसी के जाने से? कौन सी मैं ने मोहब्बत ही की थी उस से.

छल… हां, छल ही तो किया था उस ने मुझ से और खुद से. फिर क्यों याद बन कर सता रहा है मुझे. शायद असीम और अभिलाषा के एकदूसरे के प्रति लगन के कारण कमल का स्मरण हो आया है. मुझे अच्छी तरह से याद है. मैं ही उस के प्रति आकर्षित हुई थी पहले. कमल गोरा, लंबा आकर्षक पुरुष था. वह शादीशुदा नहीं था. मेरे पति मोहित पहले दिन ही कमल से मिलवाते हुए बता चुके थे. मुझे काफी दिलकश इंसान लगा था. खूबी होगी कुछ उस में. तभी दरवाजे की घंटी बजी. मैं खोलने चली गई.

सामने असीम खड़ा था. ‘‘अरे असीम, आ जाओ. तुम्हें ही याद कर रही थी.’’ ‘‘मुझे, पर क्यों भाभी?’’ असीम भाभी ही कहता हैं मुझे. वैसे तो हम रिश्तेदार बनने वाले हैं. उस की शादी मेरी छोटी बहन अभिलाषा से होने वाली है. लेकिन देवरभाभी का रिश्ता कमल का दिया हुआ था. असीम कमल को बड़ा भाई मानता था. ‘‘जस्ट जोकिंग डियर. अच्छा, तैयारी कैसी चल रही है शादी की?’’ ‘‘हा हा हा, तैयारी करने के लिए जब आपलोग हैं ही, फिर मुझे क्या चिंता?’’ ‘‘हींहींहीं मत कर. घोड़ी चढ़ कर भी क्या हम लोग ही आ जाएंगे.’’ ‘‘हा हा हा, लड़की आप की है, फिर आप घोड़ी चढ़ें या गदही चढ़ें, मेरी तरफ से सब मुबारका.’’

‘‘मस्ती सूझ रही दूल्हे मियां को.’’ ‘‘सोचता हूं कि कर ही लूं, फिर मौका मिले या न मिले’’, दांत निपोरते हुए असीम फिर बोला, ‘‘क्या बात है भाभी, मैं तब से आप को हंसाने की कोशिश कर रहा हूं पर आप का ध्यान कहीं और ही है?’’ ‘‘नहींनहीं, कुछ खास नही. बस, आज तुम्हारे मित्र कमल का ध्यान हो आया.’’ थोड़ी देर रुक कर मैं फिर बोली, ‘‘तुम्हारी तो बातचीत होती होगी. कहां है आजकल? क्या कर रहा है?’’ गंभीर भाव मुख पर लाते हुए असीम बोला, ‘‘जी, कभीकभी बातचीत पहले हो जाया करती थी. इधर काफी दिनों से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है. लेकिन आज अचानक कमल क्यों?’’ अचानक असीम के सवाल से मैं सहम सी गई.

‘‘क्योंक्या?’’ मैं झेंपते हुए बोली, बस, यों ही’’. असीम का मोबाइल बजने लगा और वह बीच में ही ‘अच्छा भाभी, मैं चलता हूं’, कहते हुए बाहर चला गया. मैं फिर से यादों से बातें करने लगी. मेरे जीवन में कमल और मोहित की यादें ही तो रह गई है सिर्फ, अन्यथा बचा ही क्या है. मैं मोहित का फोटो ले कर बैठ जाती हूं. मेरे जीवन के 2 पलड़े हैं और दोनों ही मुझ से टूट कर अलग हो गए. रह गई मेरे हाथों में केवल डंडी. आज मैं मोहित से बातें करना चाहती हूं. वे बातें जो उस के साथ रहते हुए भी कभी नहीं कर पाई थी. आज करूंगी वे बातें, वे सभी बातें तो कभी भी मैं मोहित को बताना नहीं चाहती थी. वे बातें जो मैं ने पूरी दुनिया से छिपा रखी हैं. वे बातें जो मैं ने खुद से भी छिपा रखी हैं. पता नहीं मैं किस दुनिया में पहुंच रही हूं. मैं फोटो से बात कर रही हूं या खुद से, समझ नहीं पा रही.

‘मोहित, तुम्हें क्या लगा कि मैं गलत थी. अरे एक बार पूछ कर तो देख लेते. पर तुम पूछते कैसे? मर्द जो ठहरे तुम. मैं नहीं जानती तुम ने ऐसा क्यों किया पर मैं अब समझ सकती हूं कि तुम्हें कैसा लगता होगा जब मैं कमल से हंसहंस कर बातें करती थी. मुझे परवा न थी दुनिया की. मैं तो सिर्फ अपनेआप में मस्त रहती थी. कभी तुम्हारे बारे में सोचा ही नहीं मैं ने. तुम मेरे पति थे और आज भी हो, लेकिन हम साथसाथ नहीं हैं. हम दोनों एकदूसरे के लिए परित्यक्त हैं. तलाकशुदा नहीं हैं हम. तुम चाहो तो मैं तुम्हारे पास वापस आने को तैयार हूं. पर तुम ऐसा क्यों चाहोगे? मैं ने कौन से पत्नीधर्म निभाए हैं.’ फिर से खयालों में खोती चली जाती हूं. ‘मैं भूल गई थी कि तुम मेरे पति हो. पर तुम कभी नहीं भूले. मोहित, तुम ने हमेशा मेरा साथ निभाया. खुदगर्जी मेरी ही थी. मैं जान ही नहीं पाईर् थी तुम्हारे समर्पण को. मेरे लिए तुम सिर्फ और सिर्फ मेरे पति थे. पर तुम्हारे लिए मैं जिम्मेदार थी. मेरी जिंदगी में भले ही तुम्हारे लिए जगह न थी लेकिन तुम्हारे लिए मैं हमेशा ही तुम्हारे सपनों की रानी रही.’

‘मैं जब अकेले में खुद से बातें करते हुए थकने लगती हूं तब तुम आ जाते हो मेरे खयालों में, बातें करने मुझ से. मुझे अच्छा लगने लगता है. मैं तुम से बातें करने लगती हूं. तुम कहने लगते हो, ‘जब तुम मुझ से खुश न थी तो फिर संग क्यों थीं? तुम्हें चले जाना चाहिए था कमल के साथ. मैं कभी नहीं रोकता तुम्हें.’ तुम मेरे अंदर से बोल पड़ते हो. ‘मैं तुम्हें जवाब देने लगती हूं.’ ‘तुम्हारे साथ मैं केवल तुम्हारे पैसों के लिए थी. अन्यथा तुम तो मुझे कभी पसंद ही नहीं थे. तुम्हारा काला रंग, निकली हुई तोंद, भारीभरकम देह, मुझ से न झेला जाता था. मैं कमल के साथ जाना चाहती थी मगर उस की लापरवाही मुझे खलती थी. कमल खुद में स्थिर नहीं था. अन्य औरतों की भांति मैं भी एक औरत के रूप मेें ठहरावपूर्ण जिंदगी चाहती थी जो कि तुम्हारे पास थी.’

‘तो फिर कमल ही क्यों? किसी अन्य पुरुष को भी तुम अपना सकती थी,’ मेरे मन का मोहित बोला. ‘हां, अपना सकती थी. लेकिन कमल सब से सुरक्षित औप्शन था. किसी को शक नहीं होता उस पर. और फिर संपर्क में भी तो कमल के अलावा मेरे पास अन्य पुरुष का विकल्प न था. और जो 2 पुरुष तुम्हारे अलावा मेरे संपर्क में थे उन में कमल मुझे कहीं अधिक आकर्षित करता था.’ ‘और असीम?’

‘असीम के प्रति मेरे मन में कभी वह भाव नहीं आया. कभी आया भी होगा तो मैं यह सोच कर रुक जाती कि वह मेरी छोटी बहन का आशिक है और उम्र में भी तो बहुत छोटा था. 10 साल, हां, 10 साल छोटा है असीम.’ ‘मेरी एक चिंता दूर करोगी क्या?’ ‘हां, बोलो, कोशिश करूंगी.’ ‘कमल मेें ऐसा क्या था जो मुझ में नहीं था?’ ‘यह तुम्हारा प्रश्न ही गलत है.’ ‘क्या मतलब?’ ‘तुम में वह सबकुछ था जो कमल में भी नहीं था. कमी तो मुझ में थी. मैं ही खयालों की दुनिया से बाहर नहीं आना चाहती थी. मुझे वाहवाही की लत जो लगी हुईर् थी. तुम कूल डूड थे और कमल एकदम हौट. तुम्हें मर्यादा में रहना पसंद था और मुझे बंधनमुक्त जीना पसंद था. तुम्हें समाज के साथ चलना पसंद था और मुझे पूरी दुनिया को अपने ठुमकों पर नचाना था.’

‘तुम एक बार बोल कर तो देखतीं. मैं तुम्हारी कला के बीच कभी नहीं आता.’ ‘आज जानती हूं तुम कभी न आते. लेकिन उस समय कहां समझ पाई थी मैं. समझ गई होती तो आज मैं…’ ‘मैं क्या?’ ‘तुम नहीं समझोगे.’ ‘मैं तब भी नहीं समझ सकता था और आज भी नहीं समझ सकता तुम्हारी नजरों को. समझदारी जो न मिली विरासत में.’ ‘तुम गलत व्यू में ले रहे हो.’ ‘तो सही तुम्हीं बात देतीं.’ मेरी तंद्रा फिर से टूट गई जब अभिलाषा आ कर मेरे गले से लिपट गई. मैं ने अभिलाषा को भले जन्म न दिया हो लेकिन वह मेरी बेटी से बढ़ कर है. मेरी सहेली, मेरी हमराज. कुछ भी तो नहीं छिपा है अभिलाषा से. मेरी और मोहित की शादी के समय अभिलाषा 6 साल की थी. दहेज में साथ ले कर मोहित के घर आ गई थी मैं. अब मेरी दुनिया अभिलाषा ही है.

 

 

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