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ऊंच नीच की दीवार: क्या हो पाई दिनेश की शादी

‘‘बाबूजी…’’

‘‘क्या बात है सुभाष?’’

‘‘दिनेश उस दलित लड़की से शादी कर रहा है,’’ सुभाष ने धीरे से कहा.

‘‘क्या कहा, दिनेश उसी दलित लड़की से शादी कर रहा है…’’ पिता भवानीराम गुस्से से आगबबूला हो उठे.

वे आगे बोले, ‘‘हमारे समाज में क्या लड़कियों की कमी है, जो वह एक दलित लड़की से शादी करने पर तुला है? अब मेरी समझ में आया कि उसे नौकरी वाली लड़की क्यों चाहिए थी.’’

‘‘यह भी सुना है कि वह दलित परिवार बहुत पैसे वाला है,’’ सुभाष ने जब यह बात कही, तब भवानीराम कुछ सोच कर बोले, ‘‘पैसे वाला हुआ तो क्या हुआ? क्या दिनेश उस के पैसे से शादी कर रहा है? कौन है वह लड़की?’’

‘‘उसी के स्कूल की कोई सरिता है?’’ सुभाष ने जवाब दिया.

‘‘देखो सुभाष, तुम अपने छोटे भाई दिनेश को समझाओ.’’

‘‘बाबूजी, मैं तो समझा चुका हूं, मगर वह तो उसी के साथ शादी करने का मन बना चुका है,’’ सुभाष ने जब यह बात कही, तब भवानीराम सोच में पड़ गए. वे दिनेश को शादी करने से कैसे रोकें? चूंकि उन के लिए यह जाति की लड़ाई है और इस लड़ाई में उन का अहं आड़े आ रहा है.

भवानीराम पिछड़े तबके के हैं और दिनेश जिस लड़की से शादी करने जा रहा है, वह दलित है, फिर चाहे वह कितनी ही अमीर क्यों न हो, मगर ऊंचनीच की यह दीवार अब भी समाज में है. सरकार द्वारा भले ही यह दीवार खत्म हो चुकी है, मगर फिर भी लोगों के दिलों में यह दीवार बनी हुई है.

दिनेश भवानीराम का छोटा बेटा है. वह सरकारी स्कूल में टीचर है. जब से उस की नौकरी लगी है, तब से उस के लिए लड़की की तलाश जारी थी. उस के लिए कई लड़कियां देखीं, मगर वह हर लड़की को खारिज करता रहा.

तब एक दिन भवानीराम ने चिल्ला कर उस से पूछा था, ‘तुझे कैसी लड़की चाहिए?’

‘मुझे नौकरी करने वाली लड़की चाहिए,’ दिनेश ने उस दिन जवाब दिया था. भवानीराम ने इस शर्त को सुन कर अपने हथियार डाल दिए थे. वे कुछ नहीं बोले थे.

जिस स्कूल में दिनेश है, वहीं पर सरिता नाम की लड़की भी काम करती है. सरिता जिस दिन इस स्कूल में आई थी, उसी दिन दिनेश से उस की आंखें चार हुई थीं. सरिता की नौकरी रिजर्व कोटे के तहत लगी थी.

सरिता उज्जैन की रहने वाली है. वहां उस के पिता का बहुत बड़ा जूतों का कारोबार है. इस के अलावा मैदा की फैक्टरी भी है. उन का लाखों रुपयों का कारोबार है.

फिर भी सरिता सरकारी नौकरी करने क्यों आई? इस ‘क्यों’ का जवाब स्टाफ के किसी शख्स ने नहीं पूछा.

सरिता को अपने पिता की जायदाद पर बहुत घमंड था. उस का रहनसहन दलित होते हुए भी ऊंचे तबके जैसा था. वह अपने स्टाफ में पिता के कारोबार की तारीफ दिल खोल कर किया करती थी. वह हरदम यह बताने की कोशिश करती थी कि नौकरी उस ने अपनी मरजी से की है. पिता तो नौकरी कराने के पक्ष में नहीं थे, मगर उस ने पिता की इच्छा के खिलाफ आवेदन भर कर यह नौकरी हासिल की.

स्टाफ में अगर कोई सरिता के पास आया, तो वह दिनेश था. ज्यादातर समय वे स्कूल में ही रहा करते थे. पहले उन में दोस्ती हुई, फिर वे एकदूसरे के ज्यादा पास आए. जब भी खाली पीरियड होता, उस समय वे दोनों स्टाफरूम में बैठ कर बातें करते रहते.

शुरूशुरू में तो वे दोस्त की तरह रहे, मगर उन की दोस्ती कब प्यार में बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला. स्टाफरूम के अलावा वे बगीचे और रैस्टोरैंट में

भी मिलने लगे, भविष्य की योजनाएं बनाने लगे.

ऐसे ही रोमांस करते 2 साल गुजर गए. उन्होंने फैसला कर लिया कि अब वे शादी करेंगे, इसलिए सरिता ने पूछा था, ‘हम कब शादी करेंगे?’

‘तुम अपने पिताजी को मना लो, मैं अपने पिताजी को,’ दिनेश ने जवाब दिया.

‘मेरे पिताजी ने तो अपने समाज में लड़के देख लिए हैं और उन्होंने कहा भी है कि आ कर लड़का पसंद कर लो. मैं ने मना कर दिया कि मैं अपने ही स्टाफ में दिनेश से शादी करूंगी,’ सरिता बोली.

‘फिर पिताजी ने क्या कहा?’ दिनेश ने पूछा.

‘उन्होंने तो हां कर दी…’ सरिता ने कहा, ‘तुम्हारे पिताजी क्या कहते हैं?’

‘पहले मैं बड़े भैया से बात करता हूं,’ दिनेश ने कहा.

‘हां कर लो, ताकि मेरे पिताजी शादी की तैयारी कर लें,’ कह कर सरिता ने गेंद दिनेश के पाले में फेंक दी. मगर दिनेश कैसे अपने पिता से कहे. उस ने अपने बड़े भाई सुभाष से बात करनी चाही, तो सुभाष बोला, ‘तुम समझते हो कि बाबूजी इस शादी के लिए तैयार हो जाएंगे?’

‘आप को तैयार करना पड़ेगा,’ दिनेश ने जोर देते हुए कहा.

‘अगर बाबूजी नहीं माने, तब तुम अपना इरादा बदल लोगे?’

‘नहीं भैया, इरादा तो नहीं बदलूंगा. अगर वे नहीं मानते हैं, तो शादी करने का दूसरा तरीका भी है,’ कह कर दिनेश ने अपने इरादे साफ कर दिए.

मगर सुभाष ने जब पिताजी से बात की, तब उन्होंने मना कर दिया. अब सवाल यह है कि कैसे शादी हो? सुभाष भी इस बात से परेशान है. एक तरफ पिता?हैं, तो दूसरी तरफ छोटा भाई. इन दोनों के बीच में उस का मरना तय है.

बाबूजी का अहं इस शादी में आड़े आ रहा है. इन दोनों के बीच में सुभाष पिस रहा?है. ऐसा भी नहीं है कि दोनों नाबालिग हैं. शादी के लिए कानून भी उन पर लागू नहीं होता है.

एक बार फिर बाबूजी का मन टटोलते हुए सुभाष ने पूछा, ‘‘बाबूजी, आप ने क्या सोचा है?’’

भवानीराम के चेहरे पर गुस्से की रेखा उभरी. कुछ पल तक वे कोई जवाब नहीं दे पाए, फिर बोले, ‘‘अब क्या सोचना है… जब उस ने उस दलित लड़की से शादी करने का मन बना ही लिया है, तब उस के साथ शादी करने की इजाजत देता हूं? मगर मेरी एक शर्त है.’’

‘‘कौन सी शर्त बाबूजी?’’ कहते समय सुभाष की आंखें थोड़ी चमक उठीं.

‘‘न तो मैं उस की शादी में जाऊंगा और न ही उस दलित लड़की को बहू स्वीकार करूंगा और मेरे जीतेजी वह इस घर में कदम नहीं रखेगी. आज से मैं दिनेश को आजाद करता हूं,’’ कह कर बाबूजी की सांस फूल गई.

बाबूजी की यह शर्त भविष्य में क्या गुल खिलाएगी, यह तो बाद में पता चलेगा, मगर यह बात तय है कि परिवार में दरार जरूर पैदा होगी.

जब से अम्मां गुजरी हैं, तब से बाबूजी बहुत टूट चुके हैं. अब कितना और टूटेंगे, यह भविष्य बताएगा. उन की इच्छा थी कि दिनेश शादी कर ले तो एक और बहू आ जाए, ताकि बड़ी बहू को काम से राहत मिले, मगर दिनेश ने दलित लड़की से शादी करने का फैसला कर बाबूजी के गणित को गड़बड़ा दिया है.

उन्होंने अपनी शर्त के साथ दिनेश को खुला छोड़ दिया. उन की यह शर्त कब तक चल पाएगी, यह नहीं कहा जा सकता है.

मगर शादी की सारी जिम्मेदारी सरिता के बाबूजी ने उठा ली.

Rakul Preet Singh इस दिन बॉयफ्रेंड संग लेंगी सात फेरे ! सामने आई शादी की सारी डिटेल

Rakul Preet-Jackky Bhagnani Marriage : साल 2023 में जहां कई बॉलीवुड सेलेब्स शादी के बंधन में बंधे हैं. तो वहीं वर्ष 2024 में भी कई अभिनेता-अभिनेत्री सात फेरे लेने वाले हैं. जनवरी 2024 में जहां आमिर खान की बेटी इरा खान अपने बॉयफ्रेंड नुपुर शिखरे संग सात फेरे लेंगी. तो वहीं बॉलीवुड एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह भी अपने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड जैकी भगनानी संग शादी करने वाली हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभिनेत्री रकुल और अभिनेता जैकी इसी साल फरवरी के महीने में सात फेरे लेंगे. हालांकि दोनों की शादी की खबर को लेकर अभी आधिकारिक पुष्टी नहीं हुई है.

 

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फरवरी में होगी शादी

आपको बता दें कि, रकुल प्रीत सिंह और जैकी भगनानी (Rakul Preet-Jackky Bhagnani Marriage) 22 फरवरी को शादी के बंधन में बंधेगे. दोनों अपने परिवार के सदस्यों और करीबी दोस्तों की मौजूदगी में गोवा में सात फेरे लेंगे. कहा जा रहा है कि स्टार्स अपनी शादी को बहुत ज्यादा प्राइवेट रखना चाहते हैं. इसलिए वह इसकी आधिकारिक घोषणा भी नहीं करेंगे.

हालांकि इससे पहले भी दोनों की शादी की खबरों को लेकर रूमर्स उड़ी थी. कहा जा रहा था कि पिछले साल ही दोनों शादी करेंगे. लेकिन बाद में एक्ट्रेस ने इससे इनकार कर दिया था.

बैचलर पार्टी एंजॉय कर रहे हैं जैकी

इसके अलावा कहा तो ये भी जा रहा है कि इस वक्त एक्टर जैकी भगनानी (Jackky Bhagnani) अपनी बैचलर पार्टी एंजॉय कर रहे हैं. वहीं एक्ट्रेस रकुल, (Rakul Preet) फिल्मों से ब्रेक लेकर थाईलैंड में अपना क्वालिटी टाइम एन्जॉय कर रही हैं.

 

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रकुल-जैकी का वर्क फ्रंट

आपको बताते चलें कि, एकट्रेस रकुल, (Rakul Preet) एक्टर कमल हासन के साथ फिल्म इंडियन 2 में नजर आएंगी, जिसमें कमल एक वृद्ध स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका निभाएंगे. जो भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का फैसला करते है. तो वहीं दूसरी तरफ जैकी (Jackky Bhagnani) के प्रोडक्शन तले बनी फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ रिलीज होने को पूरी तरह से तैयार है. जो इसी साल ईद के मौके पर सिनेमाघरों में रिलीज होगी.

हेल्दी टिफिन हेल्दी किड्स कॉम्पटीशन

हेल्दी टिफिन बच्चों को हेल्दी रखने में सहायक होते हैं. हालांकि खाने में स्वाद और स्वास्थ्य दोनों को संतुलित करना मुश्किल है. ये एक ऐसी समस्या है, जिसका मदर्स हमेशा से समाधान निकालने की कोशिश में लगी रहती हैं. टिफिन सिर्फ हेल्दी फूड सर्व करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे साफ हेल्दी लंच बौक्स में परोसना भी जरूरी होता है. एंटी बैक्टीरियल एक्सो, सिर्फ सफाई नहीं करता, बल्कि गंदे बर्तनों पर 10 सेकंड में 700 पर्सेंट बढ़ने वाले बैक्टीरिया का खात्मा भी करता है और लंच बौक्स को साफ करके टिफिन बौक्स को भी हेल्दी बनाता है.

आइए आपको बताते हैं कुछ मजेदार रेसिपीज के बारे में…

  1. कटलेट रोल

एक पैन में 2 छोटे चम्मच तेल गरम कर 1/4 कप बारीक कटा प्याज भूनें. फिर 1 कप कटी मिक्स वैज (शिमला मिर्च, गाजर, उबली मटर) डाल कर 1 मिनट तक पकाएं. अब 2 कटी हरी मिर्च, 1/2 चम्मच अदरक लहसुन पेस्ट, 1/2 चम्मच कालीमिर्च पाउडर, 1/2 चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1/2 चम्मच ओरिगैनो, नमक, 2 आलू उबले व मैस किए, 3 चम्मच ब्रैड क्रंब्स, 1 चम्मच नीबू का रस, 1 चम्मच कटी हुई धनियापत्ती डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. ठंडा होने पर रोल बनाएं और ब्रैड क्रंब्स में कोट कर सुनहरा तल लें.

प्रतियोगिता की विजेता: अमिता गुप्ता, भोपल (मध्य प्रदेश)

2. लौकी पालक बौल्स

1 कप कसी हुई लौकी और 100 ग्राम कटी पालक को 1/2 कप बेसन में जरूरतानुसार पानी, नमक, अमचूर पाउडर, 1 चुटकी हींग, 1 छोटा चम्मच सूखा अनारदाना, थोड़ा जीरा पाउडर के साथ मिक्स कर बौल्स तैयार करें. कड़ाही में तेल गरम कर धीमी आंच पर सुनहरा तल लें. मेयो और कैचप के साथ टिफिन में दें.

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रेसिपी भेजने की अंतिम तिथि: 25 जनवरी 2024

चयनित रेसिपीज को पत्रिका में प्रकाशन और 1000/- का अमेजन गिफ्ट वाउचर जीतने का मौका.

श्रीदेवी के मुंबई स्थित दो फ्लैट बेचे उनके पति बोनी कपूर ने

अपने समय की मशहूर अदाकारा श्रीदेवी ने सफल फिल्म निर्माता बोनी कपूर से 1996 में प्रेम विवाह किया था.बोनी कपूर ने अपनी पहली पत्नी यानी कि अभिनेता अर्जुन कपूर की मां मोना शोरी को तलाक देकर श्रीदेवी संग विवाह किया था. बाद में 25 मार्च 2012 को मोना शोरी की मौत हो गयी. श्रीदेवी व बोनी कपूर की दो बेटियां जान्हवी कपूर और खुशी कपूर हैं.श्रीदेवी के पास मंुबई के अलावा दक्षिण भाारत में काफी प्रापर्टी रही है.श्रीदेवी का चेन्नई स्थित एक बंगला बोनी कपूर ने उस वक्त बेच दिया था,जब श्रीदेवी जिंदा थी.उस वक्त सूत्रों ने दावा किया था कि इससे श्रीदेवी काफी आहत हुई थीं..पर श्रीदेवी ने बोनी कपूर के खिलाफ कभी कुछ नहीं कहा.24 फरवरी 2018 को दुबई के एक होटल में श्रीदेवी की संदिग्ध हालत में मौत हो गयी थी.कुछ लोग आज भी इसे हत्या मानकर चल रहे हैं.हम यहां याद दिलाना चाहेंगे कि श्रीदेवी ‘‘गृहशोभा’’ पाक्षिक पत्रिका की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं.श्रीदेवी ने 2017 में अपने कैरियर की 300 वीं फिल्म ‘‘माॅम’’ के लिए हिंदी में सिर्फ ‘गृहशोभा’’ पत्रिका के साथ ही एक्सक्लूसिब बातचीत की थी.यह बातचीत मुंबई के जे डब्लू मेरिएट होटल में हुई थी.

बहरहाल, श्रीदेवी की मौत के पांच वर्ष बाद अब उनके पति बोनी कपूर ने श्रीदेवी के मुंबई में अंधेरी के लोखंडवाला स्थित ग्रीन एके्रड के चार बड़े आलीशान फ्लैट बेच दिए हैं. सूत्रों पर यकीन किया जाए तो इनमें से एक फ्लैट ग्रीन एक्रेड का निर्माण करने वाले बिल्डर ने श्रीदेवी को उपहार में दिया था.यह बात कितनी सच है,इसकी जानकारी शायद बोनी कपूर को हो. कहा जा रहा है कि श्रीदेवी के फ्लैट , श्रीदेवी की बेटियों जान्हवी कपूर और खुशी कपूर की सहमति से किया गया.बोनी कपूर ने ग्रीन एक्रेड बिल्डिंग में 1807 स्क्वायरफट का फ्लैट सिद्धार्थ नारायण और अंजू नारायण को बेचा है.जबकि 1614 स्क्वायर फुट का फ्लैट मुस्कान विरवानी और नरेंद्र विरवानी को.सभी जानते है कि अब तक ‘ग्रीन एक्रेड’ बिल्डिंग की पहचान श्रीदेवी के ही कारण हुआ करती रही है. श्रीदेवी की मौत के बाद दुबई से उनके पार्थिव षरीर को यहीं पर लाया गया था और उनकी अंतिम यात्रा भी ग्रीन एक्रेड से ही निकली थी.अब बोनी कपूर ने किन मजबूरियों के तहत यह कदम उठाया,यह तो बोनी कपूर के अलावा श्री देवी की दोनों बेटियां ही जानती है.पर सभी चुप हैं.बोनी कपूर ने ग्रीन एक्रेड के श्रीदेवी के फ्लैटों को बेचने की बात जरुर कबूली है.पर इससे अधिक वह कुछ भी कहने को तैयार नही है.इतना ही नही अभी तक इस पर राज बना हुआ कि श्रीदेवी के इन फ्लैटों को बेचने से बोनी कपूर को  कितनी रकम मिली है?

व्रत: भाग 1- क्या वर्षा समझ पाई पति की अहमियत

लेखक-अमृत कश्यप

साल में 2 बार नवरात्रे आते हैं. उन दिनों में अनिल की शामत आ जाती. घर में खेती कर दी जाती और सब्जीतरकारी में प्याज का इस्तेमाल बंद हो जाता. वहीं, जरा सी ही कोई प्यार की बात की तो उसे माता रानी के कोप से डराया जाता. अनिल के दिल में यह अरमान ही रहा कि कभी उस की पत्नी उसे प्यार करने के लिए उत्साहित करे. उस ने हमेशा अनिल का तिरस्कार ही किया. अनिल कपड़े पहन कर दफ्तर जाने के लिए तैयार हो चुका था. दूसरे कमरे में उस की पत्नी वर्षा गीता का पाठ करने में मग्न थी. वह दिल ही दिल में खीझ रहा था कि उसे दफ्तर को देर हो रही है और वर्षा पाठ करने में लगी हुई है. सत्ता में नरेंद्र मोदी का फरमान लागू है, समय पर दफ्तर पहुंचने के कड़े आदेश हैं, किंतु वर्षा है कि उसे कुछ परवा ही नहीं. खाना बनने की प्रतीक्षा करूं तो देर हो जाएगी और अधिकारियों की झाड़ सुननी पड़ेगी, भूखा ही जाना होगा आज भी. उस ने एक्टिवा पर कपड़ा मारा और बाहर निकाल कर खड़ी कर दी.

वापस कमरे में आ कर बोला, ‘‘मैं आज भी भूखा ही दफ्तर चला जाऊं या कुछ खाने को मिलेगा?’’

वर्षा ने कोई उत्तर न दिया और पाठ करती रही. अनिल ने थोड़ी देर और प्रतीक्षा की, फिर बड़बड़ाता हुआ एक्टिवा उठा कर भूखा ही दफ्तर चला गया. अनिल के लिए यह नई बात नहीं थी. उस की पत्नी रोज ही सुबह नहाधो कर पूजा करने बैठ जाती और वह नाश्ते के लिए चिल्लाता रहता, किंतु उस पर कोई असर न होता. उस की शादी को 8 साल हो चुके थे, किंतु अभी तक उन के यहां कोई संतान नहीं हुई थी.

पहले वह अपने मातापिता के साथ रहता था. वर्षा सुबह उठ कर पूजापाठ में लग जाती और उस की मां उसे खाना बना कर दे दिया करती थी. कुछ समय बाद उसे सरकारी फ्लैट मिल गया और वह अपनी पत्नी को ले कर फ्लैट में चला आया था. यहां आ कर उसे नई समस्या का सामना करना पड़ रहा था. अनिल को अकसर रोज भूखे ही दफ्तर जाना पड़ता था क्योंकि वर्षा पूजापाठ में लगी रहती थी, खाना कौन बनाता? उस ने कई बार उस से कहा भी था, किंतु वह कब मानने वाली थी. वह तो अपना धर्मकर्म छोड़ने को बिलकुल तैयार न थी. अनिल का विचार था कि इंसान को भगवान की आराधना नहीं, अपनी रोजीरोटी की चिंता करनी चाहिए.

वह वर्षा के रोजरोज के व्रत से भी बहुत परेशान था. आज क्या है? आज पूर्णमासी का व्रत है. आज सोमवती अमावस्या का व्रत है. आज मंगल का व्रत है. यह कहना शायद गलत न होगा कि रोज ही कोई न कोई व्रत होता था और वर्षा उसे अवश्य रखा करती थी. अनिल की उम्र 22 साल की थी और वर्षा की 20 साल. जवानी की उम्र थी, अनिल के दिल में अरमान थे, कुछ उमंगें थीं. वह अपनी पत्नी से प्यार करना चाहता था, किंतु जब भी वह उस से प्यार जताता या उसे छू भर देता तो वर्षा कहती, ‘मुझे हाथ मत लगाओ, जी, मैं आज अमुक व्रत में हूं. मुझे तो पाप लगेगा ही, तुम को भी पाप का भागीदार बनना पड़ेगा,’ बेचारा अनिल दिल मसोस कर रह जाता.

कभी अनिल जोरजबरदस्ती पर उतर आता तो वह अपना पल्ला छुड़ा कर दूसरे कमरे में चली जाती और रामायण या गीता ऊंचीऊंची आवाज में पढ़ने लग जाती. वह उस समय उसे क्या कहता. इन रोजरोज के व्रतों से वह खिन्न रहने लगा था. एक दिन अनिल ने निर्णयात्मक लहजे में कहा, ‘‘वर्षा, यह रोजरोज के व्रत रखने से भला तुम्हें क्या लाभ होता है? क्यों भूखी रहरह कर तुम अपने शरीर को दुर्बल बनाती जा रही हो? कभी अपनी शक्ल भी देखी है आईने में? आंखों के नीचे गड्ढे पड़ गए हैं, रंग पीला पड़ता जा रहा है.’’

इस पर वर्षा बोली, ‘‘व्रत रखने से बड़ा पुण्य मिलता है.’’

‘‘क्या पुण्य मिलता है? तुम वर्षों से नित्य ही कोई न कोई व्रत रखती आ रही हो. कोई परिवर्तन हुआ है घर में? वही दो वक्त की रोटी नसीब होती है, वही नपीतुली तनख्वाह है. तुम्हारे भोलेनाथ ने हमें क्या दिया? महालक्ष्मी ने धन की कौन सी वर्षा कर दी? तुम लौटरी के इतने टिकट लेती हो, कभी तुम्हारी महालक्ष्मी से यह तक तो हुआ नहीं कि एक पैसे का भी इनाम निकलवाया हो.’’

‘‘लौटरीवौटरी तो दूसरी बातें हैं.’’

‘‘फिर यह कथाकीर्तन और व्रत रख कर भूखे मरने से क्या लाभ? भगवान और देवताओं की चापलूसी, खुशामद का क्या फायदा?’’

‘‘इंसान को कर्म तो करना ही चाहिए.’’

‘‘अवश्य करना चाहिए.’’

लेकिन फिर भगवान, देवीदेवता बीच में कहां से कूद पड़े? जैसा कर्म करें वैसा ही उस का नतीजा होगा. मेहनत करेंगे तो पैसा आएगा ही और फिर इस का यह मतलब नहीं कि पति भूखा ही दफ्तर चला जाए और तुम पूजापाठ करती रहो. मुझे एक बूंद देसी घी नसीब नहीं होता और तुम हो कि पूरा एक किलो देसी घी का डब्बा जोत जलाजला कर ही बरबाद कर देती हो?’’

‘‘क्यों नास्तिकों जैसी बातें करते हो?’’

‘‘हां, मैं नास्तिक हूं, वर्षा, यह कहां का न्याय है कि पति असंतुष्ट रहे, अप्रसन्न रहे, पत्नी देवीदेवताओं को प्रसन्न करने के चक्कर में लगी रहे. सुबह उठ कर खाना बना दिया करो, जिस से मैं खाना खा कर दफ्तर जा सकूं. शायद तुम्हें पता नहीं है कि तुम्हारे

खाना न बनाने की वजह से मुझे रोज ही 100-200 रुपए की चपत लग जाती है. भूखे पेट तो मैं रह नहीं सकता. पूजापाठ करना हो तो दिन में किसी समय कर लिया करो,’’ अनिल ने गुस्से में कहा.

‘‘पूजापाठ तो सुबह ही किया जाता है, उसे कैसे छोड़ दूं?’’

‘‘मुझे चाहे भूखा रहना पड़े? देर से जाने पर मुझे भले ही नौकरी से निकाल दिया जाए?’’

‘‘तुम्हारी नौकरी कहीं नहीं जाती जी, बाबा बालकनाथ सब पर कृपा रखते हैं.’’

‘‘हां, अगर नौकरी से जवाब मिल गया तो तुम्हारे बाबा बालकनाथ की तरह मैं भी झोलीचिमटा ले कर हरिभजन कर लिया करूंगा. मांगने से दो रोटियां मिल ही जाया करेंगी.’’

‘‘तुम बाबा बालकनाथजी का निरादर कर रहे हो?’’ वर्षा ने चिढ़ कर कहा.

‘‘निरादर नहीं कर रहा हूं, मैं तो तुम्हें समझाने की चेष्टा कर रहा हूं. हैरानी है कि तुम्हारे समझ में कुछ नहीं आता.’’

और सचमुच अनिल के लाख समझाने पर भी वर्षा पर कोई असर नहीं हुआ. वह उसी प्रकार व्रत रखती रही, पूजा करती रही और नित्य ही अनिल भूखा दफ्तर जाता रहा. वर्षा का परिवार बेहद अंधविश्वासी था. मातापिता दोनों कईकई आश्रमों में जाते थे. वर्षा सुंदर थी, स्मार्ट थी पर पढ़ाई में साधारण थी और मातापिता व बाबाओं की बात आंख मूंद कर मान लेती थी. उस की शादी अनिल के साथ उस के मामा ने बड़ी भागदौड़ के बाद कराई थी क्योंकि मातापिता तो कहते थे कि बाबा अपनेआप करा देंगे. शादी के बाद अनिल को पता चला कि वर्षा कैसी अंधविश्वासी थी पर उस के अलावा वह हर तरह से ठीकठाक थी. हां, बच्चा न होने पर वह और भावुक हो गई. लेकिन डाक्टरों के पास जाने को वह तैयार नहीं हुई थी.

एक दिन रात के 11 बजे होंगे, अनिल के मन में तरंग उठी. वह उठ कर वर्षा के पलंग के पास जा कर बैठ गया. उस का बैठना था कि वर्षा की आंख खुल गई और वह झट से उठ कर बैठ गई. अनिल ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की, किंतु उस ने उसे हाथ तक न लगाने दिया. कहने लगी, ‘‘देखो जी, मैं ने सवा महीने के लिए आप से अलग रहने का व्रत लिया है, अभी 10 दिन बाकी हैं.’’ और फिर उस ने अनिल से अपने कमरे में जा कर सो जाने को कहा. उस के दिल को बहुत गहरी चोट लगी और वह चुपचाप अपने कमरे में आ गया. उसे वर्षा पर बहुत गुस्सा आ रहा था. वह अपनी भूल पर पश्चात्ताप कर रहा था कि मैं ने वर्षा जैसी धर्मांध से क्यों शादी की? मेरा प्यार करने को दिल चाहता है तो मैं कहांजाऊं? उस के दिल में तो यह अरमान ही रहा कि कभी उस की पत्नी उसे प्यार करने के लिए उत्साहित करे, कभी मुसकरा कर उस का स्वागत करे. वर्षा ने हमेशा ही उस का तिरस्कार किया है. उस ने कई तरीकों से उसे समझाने की चेष्टा की, किंतु वर्षा ने अपना नियम न छोड़ा.

आगे पढ़ें- वर्षा को शौचालय जाना था. जाते समय उसे…

मेरी पीठ में तेज दर्द होता है कृपया मुझे इस का कारण और समाधान बताएं?

सवाल

मेरी उम्र 60 साल है. पिछले महीने स्ट्रोक के कारण मैं जमीन पर सीने के बल गिर पड़ा, जिस के बाद मेरे सीने और रीढ़ में असहनीय दर्द उठा था. हालांकि एक अच्छे अस्पताल में इलाज कराया गया, लेकिन इलाज के बाद भी मेरी पीठ के निचले हिस्से में तेज दर्द हो रहा है, जिस के कारण न तो मैं बैठ कर खापी रहा हूं और न ही करवट बदल पा रहा हूं. कृपया मुझे इस का कारण और समाधान बताएं?

जवाब

आप के इस दर्द का कारण आर्थ्राइटिस या पुराने इलाज की कोई गलती हो सकती है. आप ने जिस अस्पताल में इलाज कराया है उन्हें इस समस्या की जानकारी दें. अस्पताल में आप की पीठ की एमआरआई की जाएगी. उस से दर्द का कारण पता चल जाएगा. कारण के अनुसार आप का उचित इलाज किया जाएगा. चूंकि आप को स्ट्रोक की समस्या थी और उम्र भी ज्यादा है, इसलिए किसी भी प्रकार के दर्द को हलके में न लें. समस्या हलकी होने पर सिर्फ मैडिकेशन से काम बन जाएगा. अनदेखा करने पर यह दर्द वक्त के साथ गंभीर हो सकता है. इसलिए बिना देर किए इस की जांच कराएं.

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मेरी उम्र 70 साल है. मेरे जोड़ों में अकसर दर्द बना रहता है. इलाज चल रहा है, लेकिन कोई खास फायदा नहीं मिल रहा है. परिवार वालों का कहना है कि इस उम्र में तो दर्द होना आम बात है, लेकिन मेरे लिए यह दर्द बरदाश्त करना मुश्किल हो रहा है. क्या इस से छुटकारा पाने का कोई और तरीका है?

जवाब

इस उम्र में शरीर कई बीमारियों की चपेट में आने लगता है. इस उम्र में दर्द की शिकायत सभी को होने लगती है लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि इस से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है. आप ने बताया कि आप का इलाज चल रहा है. हर इलाज की एक प्रक्रिया होती है, जिस का असर होने में समय लगता है. हालांकि आज दर्द से नजात पाने के कई नौन इनवेसिव विकल्प मौजूद हैं, जैसेकि रेडियोफ्रीक्वैंसी ट्रीटमैंट, जौइंट रिप्लेसमैंट, रीजैनरेटिव मैडिसिन आदि. अपने डाक्टर से सलाह कर जरूरत के अनुसार उचित विकल्प का चुनाव कर सकती हैं. इस के साथ ही अपनी जीवनशैली और आहार में सुधार करें. अच्छा खाना खाएं, व्यायाम करें, हफ्ते में 2 बार जोड़ों की मालिश कराएं, शराब और धूम्रपान से दूर रहें, नियमित रूप से जोड़ों की जांच कराएं.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

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थप्पड़ है स्त्री के वजूद का अपमान

मेरठ के कंकरखेड़ा क्षेत्र में इस 26 दिसम्बर को बीटेक की एक छात्रा को सहपाठी लड़के द्वारा थप्पड़ मारने का मामला सामने आया. दरअसल छात्रा ने साथ में पढ़ने वाले इस छात्र की दोस्ती का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. जिस के बाद उस छात्र ने कक्षा में अन्य छात्रों के सामने ही बीटेक की सीनियर छात्रा को कई थप्पड़ जड़े. वह इतने पर ही शांत नहीं हुआ बल्कि गुस्से में कुर्सी उठाकर लड़की को मारने की कोशिश की. लड़की ने भाग कर अपनी जान बचाई. बाद में लड़की ने यह घटना घर पर परिजनों को बताई और थाने में रिपोर्ट लिखवाने पहुंची. छात्रा ने आरोप लगाया कि आरोपी कई दिन से उस पर दोस्ती करने का दबाव बना रहा था. दोस्ती स्वीकार न किए जाने पर वह हिंसा पर उतर आया.

इस बार के बिग बॉस में  ईशा मालवीय और अभिषेक कुमार ऐसे कंटेस्टेंट हैं जो अपने पास्ट रिलेशन को ले कर चर्चा में रहते हैं. अभिषेक ईशा के एक्स बॉयफ्रेंड हैं. एक साल पहले उन का रिश्ता ख़त्म हो चुका है. उन का रिश्ता टूटने की वजह भी कहीं न कहीं अभिषेक का थप्पड़ और उस की तरफ अग्रेसिव व्यवहार ही था. ईशा ने अंकिता और खानजादी से बात करते वक्त बताया था कि उस ने एक बार अभिषेक को अपने दोस्तों से मिलवाया. ईशा के ज्यादा दोस्त होने की वजह से अभिषेक को गुस्सा आ गया था और उस ने ईशा को सबके सामने थप्पड़ मार दिया था. थप्पड़ की वजह से ईशा के आंख के नीचे  निशान पड़ गए थे. इसी के बाद उन का रिश्ता टूटता चला गया.

कुछ समय पहले डायरेक्टर अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘थप्पड़’ कुछ ऐसे ही विषय को ले कर आई थी. इस में बात शुरू होती है सिर्फ एक थप्पड़ से लेकिन ये पूरी फिल्म महज थप्पड़ के बारे में नहीं थी बल्कि उस के इर्द-गिर्द तैयार हुए पूरे ताने बाने और हर उस सवाल को कुरेद के निकालने की कोशिश करती दिखी जिसने इस ‘सिर्फ एक थप्पड़’ को पुरुषों के हक का दर्जा दे दिया.

इस में अमृता की भूमिका में तापसी पन्नू अपने पति विक्रम के साथ एक परफेक्ट शादीशुदा जिंदगी बिताती दिखती है. अमृता सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक बस अपने पति और परिवार के इर्द गिर्द घिरी जिंदगी में बिजी है और इस ‘परफेक्ट’ सी जिंदगी में बहुत खुश है. लेकिन इसी बीच एक दिन उन के घर हुई पार्टी में विक्रम अमृता को एक जोरदार थप्पड़ मार देता है और सब कुछ बदल जाता है. किसी ने सोचा न था कि एक थप्पड़ रिश्ते की नींव हिला देगी. लेकिन अमृता ‘सिर्फ एक थप्पड़’ के लिए तैयार नहीं थी. एक औरत की जंग शुरू होती है एक ऐसे पति के साथ जिसका कहना है कि मियां बीवी में ये सब तो हो जाता है. उस के आसपास के लोगों के लिए ये बात पचा पाना बहुत मुश्किल था कि सिर्फ एक थप्पड़ की वजह से कोई स्त्री अपने ‘सुखी संसार’ को छोड़ने का फैसला कैसे ले सकती है जबकि पुरुष को तो समाज ने स्त्री को मारने पीटने का हक़ दिया ही हुआ है.

सवाल स्त्री के मान का

सच यही है कि एक थप्पड़ स्त्री के मान सम्मान और अस्तित्व पर सवाल खड़ा करता है. एक थप्पड़ यह दर्शाता है कि आज भी पुरुषों ने औरत को अपनी प्रॉपर्टी समझ रखी है. जबरन उस पर अपना हक़ जमाना चाहते हैं. अगर स्त्री ने हक़ नहीं दिया तो थप्पड़ की गूँज में उसे अहसास दिलाना चाहते हैं कि उस की औकात क्या है. समाज में उसका दर्जा क्या है.

 महिलाओं के खिलाफ हिंसा

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक महिलाओं से हिंसा पूरी दुनिया का भयंकर मर्ज़ है.  दुनिया की 70 फीसदी महिलाओं ने अपने करीबी साथियों के हाथों हिंसक बर्ताव झेला है. फिर चाहे वो शारीरिक हो या यौन हिंसा. दुनियाभर में हर रोज़ 137 महिलाएं अपने क़रीबी साथी या परिवार के सदस्य के हाथों मारी जाती हैं.

हमारे समाज में अक्सर लड़कियां और लड़के दोनों ही पुराने रिवाजों से बंधे हुए होते हैं. लड़कियों को ये सिखाया जाता है कि घर के काम करना, पति की सेवा करना और उस की हर बात मानना उन का कर्तव्य है. उन्हें सिखाया जाता है कि पुरुष महिलाओं का मौखिक , शारीरिक या यौन शोषण करने के लिए स्वतंत्र हैं. इस का उन्हें कोई नतीजा भी नहीं भुगतना होगा.

बचपन से लड़कियों का 40 फीसदी समय ऐसे कामों में जाता है जिसके पैसे भी नहीं मिलते. इस का ये नतीजा होता है कि उन्हें खेलने, आराम करने या पढ़ने का समय लड़कों के मुक़ाबले कम ही मिल पाता है.

 प्यू रिसर्च सेंटर की स्टडी

हाल ही में अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर ने एक दिलचस्प स्टडी की थी. इस में भारत में महिलाओं के बारे में पुरुषों की सोच का अध्ययन किया गया. स्टडी में पाया गया कि ज्यादातर भारतीय इस बात से काफी हद तक सहमत है कि पत्नी को हमेशा पति का कहना मानना चाहिए.

ज्यादातर भारतीय इस बात से पूरी तरह या काफी हद तक सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा ही अपने पति का कहना मानना चाहिए. एक अमेरिकी थिंक टैंक के एक हालिया अध्ययन में यह कहा गया है. प्यू रिसर्च सेंटर की यह नई रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई. रिपोर्ट 29,999 भारतीय वयस्कों के बीच 2019 के अंत से लेकर 2020 की शुरुआत तक किए गए अध्ययन पर आधारित है.

इस के अनुसार करीब 80 प्रतिशत इस विचार से सहमत हैं कि जब कुछ ही नौकरियां है तब पुरुषों को महिलाओं की तुलना में नौकरी करने का अधिक अधिकार है. रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 10 में नौ भारतीय (87 प्रतिशत) पूरी तरह या काफी हद तक इस बात से सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा ही अपने पति का कहना मानना चाहिए. यही नहीं  इस रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर भारतीय महिलाओं ने इस विचार से सहमति जताई कि हर परिस्थिति में पत्नी को पति का कहना मानना चाहिए.

 महिलाओं पर केंद्रित होती हैं ज्यादातर गालियां

नारी शक्ति की बात तो होती है लेकिन अभी भी महिलाएं दोयम दर्जे पर हैं. पढ़ी लिखी महिलाएं भी प्रताड़ित हो रही हैं. अगर आपको किसी को अपमानित करना है तो आप उसके घर की महिला को गाली दे देते हैं. उसका चरम अपमान हो जाता है. और वो मर्दों के अहंकार को भी संतुष्ठ करता है. किसी पुरुष से बदला लेना होगा तो बोलेंगे स्त्री को उठा लेंगे, महिला अपमानित करने का माध्यम बन जाती है. गांव में तो बहुत होता था पहले अमूमन ये देखा गया था कि ये गालियां समाज के निचले पायदान पर रहने वाले लोग ही देते थे लेकिन अब आम पढ़े लिखे लोग भी देने लगे हैं.

जब भी कोई बहस झगड़े में तब्दील होने लगती है तो गालियों की बौछार भी शुरू हो जाती है. ये बहस या झगड़ा दो मर्दों के बीच भी हो रहा हो तब भी गालियां महिलाओं पर आधारित होती हैं. कुल मिला कर गालियों के केन्द्र में महिलाएं होती हैं. दरअसल समय के साथ स्त्री पुरुषों की संपत्ति होती चली गई और उस संपत्ति को गाली दी जाने लगी. ये गाली दे कर मर्द अपने अहंकार की तुष्टि करते हैं और दूसरे को नीचा दिखाते हैं. महिलाएं परिवार की इज़्ज़त के प्रतीक के तौर पर देखी जाती हैं. इज़्ज़त को बचाना है तो उसे देहड़ी के अंदर रखिए. महिलाएं समाज में कमज़ोर मानी जाती हैं. आप किसी को नीचा दिखाना चाहते हैं, तंग करना चाहते हैं तो उन के घर की महिलाओं- मां, बहन या बेटी को गालियां देना शुरू कर दीजिए.

गाली सिर्फ़ गाली देना ही नहीं है वो मानसिकता का प्रतीक भी है जो विभत्स गाली देते हैं और उसे व्यावहारिकता में लाते हैं इसलिए निर्भया जैसे मामले दिखाई देते हैं.

 धर्म है इस सोच का जिम्मेदार

जितने भी धर्म हैं, हिंदू, इस्लाम, कैथोलिक ईसाई, जैन, बौद्ध, सूफी, यहूदी, सिक्ख आदि सभी के संस्थापक पुरुष हैं स्त्री नहीं. न ही स्त्री किसी धर्म की संचालिका है. न वह पूजा-पाठ, कथा, हवन करानेवाली पंडित है, न मौलवी है, न पादरी है. वह केवल पुरुष की आज्ञा का पालन करने के लिए इस संसार में जन्मी है. धर्म का मूल आधार ही पुरुष सत्ता है. स्त्री का दोयम दर्जा सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, हर धर्मग्रंथ में वह चाहे कुरान हो, बाइबल हो या कोई और धर्मग्रंथ हो स्त्रियों को हमेशा पुरुष से कमतर माना गया. सिमोन द बोउवार ने कहा था- ‘जिस धर्म का अन्वेषण पुरुष ने किया वह आधिपत्य की उसकी इच्छा का ही अनुचिंतन है.’

धर्म की आड़ में कहानियों के माध्यम से स्त्री जीवन को दासी और अनुगामिनी के रोल मॉडल दिखा कर उसी सांचे में ढालने का प्रयास किया जाता है. सीता, सावित्री, माधवी, शकुंतला, दमयंती, द्रौपदी, राधा, उर्मिला जैसी कई नायिकाओं के ‘रोल मॉडल’ को सामने रखकर सदियों से स्त्री का अनावश्यक शोषण चलता आ रहा है. पुरुष सत्ता स्वीकृत भूमिका से अलग किसी स्थिति में स्त्री को देखना पसंद नहीं करती. इसलिए धार्मिक आचार संहिता बनाकर वह स्त्री की स्वतंत्रता और यौन शुचिता पर नियंत्रण रखती है.

दुनिया का कोई देश या जाति हो उसका धर्म से संबंध रहा है. सभी धर्मों में स्त्री की छवि एक ऐसी कैदी की तरह रही है जिसे पुरुष के इशारे पर जीने के लिए बाध्य होना पड़ता है. वह पितृसत्तात्मक समाज की बेड़ियों से जकड़ी होती है.

धर्मों में स्त्री सामान्यतः उपयोग और उपभोग की वस्तु है. उसकी ऐसी छवि गढ़ी गई है जिससे स्त्री ने भी स्वयं को एक वस्तु मान लिया है. धर्म ने स्त्री को हमेशा पुरुष की दासी के रूप में चित्रित किया. रामचरितमानस में सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है और महाभारत में द्रौपदी को चीरहरण जैसे सामाजिक कलंक से गुजरना पड़ता है.

स्त्री अधिकार की बात हमारे धर्मग्रंथों में कभी की ही नहीं गई. वह पुरुष के शाप से शिला बन जाती है, पुरुष के ही स्पर्श से फिर से स्त्री बन जाती है. पुरुष गर्भवती पत्नी को वनवास दे देता है, पुरुष अपनी इच्छा से उसे वस्तु की तरह दांव पर लगा देता है. सभी धर्मग्रंथों में उसे नरक की खान, ताड़न की अधिकारी और क्या-क्या नहीं कहा गया.

हिंदू धर्म की कोई भी किताब आप उठा कर देख लें उस में स्त्रियों के लिए कर्तव्य की लंबी सूची होगी लेकिन अधिकारों की नहीं. गीता प्रेस की एक किताब ‘स्त्रियों के लिए कर्तव्य शिक्षा’ है. इसे पढ़ कर देखा जा सकता है कि स्त्रियों को हम किस काल में धकेले रखना चाहते हैं.

महिला को चोट पहुंचाने के पुरुष अनेक बहाने दे सकता है जैसे कि वह अपना आपा खो बैठा या फिर वह महिला इसी लायक है .परंतु वास्तविकता यह है कि वह हिंसा का रास्ता केवल इसलिए अपनाता है क्योंकि वह केवल इसी के माध्यम से वह सब प्राप्त कर सकता है जिन्हें वह एक मर्द होने के कारण अपना हक समझता है.

आज की बहुत सी महिलाएं शिक्षित होकर भी पुरानी धार्मिक रूढ़ियों की अनुगामिनी बनी रहती हैं. देश की स्त्रियां अंधविश्वासों की तरफ फिर लौट रही हैं, महंतों-बाबाओं की तरफ दौड़ रही हैं और प्रवचनों में भीड़ की शोभा बढ़ा रही हैं. उन्हें देखकर लगता है कि वे शायद इक्कीसवीं शताब्दी में नहीं बल्कि बारहवीं या तेरहवीं शताब्दी में हैं.

इन स्थितियों से महिलाएं तभी उबर सकती हैं जब वे पुरुष सत्ता और धर्मगुरुओं के षड्यंत्र को जान सकें और अपनी शक्ति की पहचान कर सकें. अपने मान की रक्षा के लिए खुद खड़ी हों न कि दूसरों की राह देखें.

 

शाम के नाश्ते में बनाएं चिली पनीर पॉकेट

मौसम कोई भी हो शाम होते होते बच्चों बड़ों सभी को हल्की फुल्की भूख लगने ही लगती है. यूं भी इस समय सर्दियां चल रहीं हैं और इस समय में हमारी पाचन शक्ति बढ़ जाती है और इसीलिए भूख भी जमकर लगती है. अब प्रश्न यह उठता है कि रोज रोज क्या ऐसा बनाया जाए जो आसानी से बने भी और जिसे सब लोग स्वाद से खाएं भी. बाजार से लाया गया नाश्ता जहां बजट फ्रेंडली भी नहीं होता दूसरे हाइजिंनिक भी नहीं रहता इसके अतिरिक्त बाजार से सीमित मात्रा में नाश्ता मंगवाया जाता है जिससे सब लोग भरपेट खा भी नहीं पाते वहीं घर पर बने नाश्ते को सब जमकर खा सकते हैं. आज हम आपके लिए ऐसी ही रेसिपी लेकर जिसे आप आसानी से घर की चीजों से ही बना सकते हैं तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए  6

बनने में लगने वाला समय   30 मिनट

मील टाइप  वेज

सामग्री

ब्रेड स्लाइस     6

पनीर  250 ग्राम

चौकोर कटी शिमला मिर्च    2

चौकोर कटा प्याज    2

अदरक, लहसुन हरी मिर्च पेस्ट      1/2 टीस्पून

सोया सॉस   1/2 टीस्पून

ग्रीन चिली सॉस   1/2 टीस्पून

वेनेगर  1/4 टीस्पून

टोमेटो सॉस  1 टीस्पून

चिली फ्लैक्स  1/4 टीस्पून

नमक   1/4 टीस्पून

कश्मीरी लाल मिर्च          

तेल तलने के लिए

बारीक कटा हरा प्याज    1 टेबलस्पून

मैदा  2 टेबलस्पून

पानी  1 टीस्पून

विधि

ब्रेड स्लाइसेज को किसी कटोरी से गोल काटकर किनारों को अलग कर दें. बचे किनारों को मिक्सी में पीसकर ब्रेड क्रम्ब्स बना लें. अब मैदा को पानी के साथ अच्छी तरह घोलकर स्लरी तैयार कर लें. कटे ब्रेड स्लाइसेज को स्लरी में भिगोकर ब्रेड क्रम्ब्स में अच्छी तरह कोट कर लें. इसी प्रकार सारे ब्रेड स्लाइसेज को तैयार करके 15 मिनट के लिए फ्रिज में रख दें. 15 मिनट बाद गर्म तेल में मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक तलकर ब्रेड स्लाइसेज को बटर पेपर पर निकाल लें. गर्म में ही इन्हें बीच से दो हिस्सों में काट दें. अब 1 टीस्पून तेल में अदरक, लहसुन, हरी मिर्च का पेस्ट भूनकर कटी सब्जियां डालकर मध्यम आंच पर सुनहरा होने तक भूनें. अब इसमें पनीर के टुकड़े डालकर अच्छी तरह चलाएं. सभी सॉसेज, वेनेगर, चिली फ्लैक्स, कश्मीरी लाल मिर्च और नमक डालकर चलाएं. जब पानी सूख बिल्कुल सूख जाए तो गैस बंद करके कटा हरा प्याज डालकर चलाएं. तैयार चिली पनीर को कटे ब्रेड के पॉकेट में अच्छी तरह भरकर सर्व करें.

एक संकल्प बदल सकता है जीवन जीने का तरीका

खट्टी मीठी यादों के साथ साल दर साल कैलेंडर बदलते जाते हैं और साथ ही बदलती जाती है हमारी सोच, आदतें और जीवन के प्रति हमारा नजरिया. कुछ लोगो की आदत होती है नया साल आते ही कुछ ना कुछ संकल्प लेने लगते हैं जैसे अपनी किसी बुरी  आदत को छोड़ना, कुछ लक्ष्य हासिल करना  या कुछ अच्छी  आदतों  को अपनाना. कुछ लोग इन में कामयाब भी होते हैं और कुछ का संकल्प दो  से तीन दिन में फुर होते नजर आते हैं जो लोग अपने संकल्प  हासिल करते जाते हैं उनके लिए हर वर्ष खुशियों भरा साबित होता है. लेकिन जो नाकामयाब होते है या संकल्प  को कामयाब बनाने की कोशिश तक  नहीं करते वे सिर्फ हाथ मलते रह जाते हैं और या तो खुद में कमी निकलते है या हालातो का रोना रोते हैं नई  साल पर लिये संकल्प को अगर पुरी निष्ठां के साथ पूरा  करते है तो हम अपने वर्तमान के साथ साथ अपनी  आने वाली पीढ़ी का भी भविष्य  सवार सकते हैं क्योंकि अक्सर बच्चे माता पिता को देख कर उनकी जैसी आदते अपनाते हैं. यदि कुछ कर गुजरने की इच्छा है तो आप हमारे बताए ये टिप्स अपना कर जीवन में लिए हर संकल्प को आसानी से पूरा कर सकते हैं.

दृढ निश्चय लें– जो भी आप कार्य करने जा रहे हैं उसके लिए दृढ संकल्प लें की आप हर परिस्थिति में अपने लक्ष्य को पाकर ही रहेंगे.

समय  की कीमत समझें अपने काम को आगे के लिए ना छोड़े. सही समय आने का इंतज़ार ना करें, क्योंकि सही समय कभी आता नहीं बल्कि लाना पड़ता है.

रिश्तों को महत्व दें -आज कल हम अपने आप में इतने मग्न रहने लगे  हैं कि हम अपने रिश्ते नातो को वक़्त ही नहीं देते जबकि रिश्ते जीवन की पूंजी कि तरह होते हैं जो हर अच्छे बुरे वक़्त में हमारे साथ खडे होते है मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखे तो अकेले व्यक्ति को भौतिक, भावनात्मक, मानसिक व आर्थिक सहयोग नहीं मिल पाता. जबकि जो अपने रिश्तों कि कदर करता है उस  अकेले व्यक्ति की पीड़ा पूरे परिवार व रिश्तेदारों की पीड़ा बन जाती है. इसलिए इन्हें अपनी सेविंग्स समझ कर आगे बढ़े और हर साल अपने रिश्तों को और भी बहतर बनाने कि कोशिश करते रहें.

खानपान को बदले – अच्छा खाना स्वस्थ जीवन की  नीव होता है और यदि हम स्वस्थ रहते हैं तो हम अपना हर काम को बड़ी ही लग्न से करते हैं अच्छी डाइट और व्यायाम हमारे भीतर पॉजिटिव एनर्जी पैदा करता है जिससे हमारे अंदर किसी भी कार्य को समय पर सफलता के साथ पूरा करने का जस्बा बढ़ता जाता है. और आप शरारिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहते हैं.

अपने कार्य को गंभीरता से लें कभी भी किसी की देखा देखी  ना करें, यह नहीं सोचे  की आपके दोस्तों ने अपना संकल्प तोड़ दिया तो आप भी उसे पूरा कर के क्या करेंगे बल्कि पुरी शिदत्त से अपने संकल्प को पाने की कोशिश करें जिससे आप और लोगो की प्रेरणा बने.

जिस तरह आप किसी काम को किसी भी हाल में करने के लिए दृढ़ संकल्प लेते हैं. ठीक उसी तरह आप अपनी जिंदगी संवारने के लिए भी आने वाले नए साल पर कुछ  संकल्प ले जिससे आप अपने आने वाले साल को ही नहीं बल्कि जीवन को बेहतर बना सकें हमारी यही कामना है कि  आपका 2024 ही नहीं बल्कि आपका जीवन ही मंगलमय हो.

मैं वह नहीं: भाग 3- आखिर पाली क्यों प्रेम करने से डरती थी

तभी वहां मौली आ गई. उसे देख कर वह बोली, ‘‘दी, तुम ने कभी बताया नहीं तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड भी है?’’

‘‘कैसी बात करती हो मौली यह मेरा बौयफ्रैंड नहीं है.’’

‘‘झूठ बोल रही है तुम्हारी दी. यह भी मु?ो प्यार करती है लेकिन कहने से डरती

है. इस के मन में पता नहीं क्या है जिस से यह उबर नहीं पा रही है.’’

‘‘दी, तुम किस्मत वाली हो जो तुम्हें इतना चाहने वाले दोस्त मिले हैं. आज के जमाने में रिश्ते कपड़ों की तरह हो गए हैं. इस्तेमाल करो और फेंक दो. दी मु?ो लगता है तुम्हें इन्हें सम?ाना और कुछ वक्त देना चाहिए.’’

‘‘तुम कुछ नहीं सम?ाती मौली.’’

‘‘दी, मैं इतनी छोटी भी नहीं हूं. मु?ा से भी कई युवा दोस्ती करना चाहते हैं. देख रही हूं ये तुम्हारे लिए दूसरे शहर से यहां आए हैं. कोई किसी के लिए इतना वक्त नहीं निकालता जितना इन्होंने निकाला है. होश में आओ दी और इन्हें पहचानने की कोशिश करो. कब तक इसी तरह खुद से भागती रहोगी?’’

‘‘मैं भी यही सम?ा रहा हूं. जिंदगी में हादसे होते रहते हैं. उन का हिस्सा बन जाना कहां की सम?ादारी है? जो बीत गया उसे भूलने की कोशिश करो. जिंदगी को खुले दिल से अपना लो तो वह जन्नत बन जाती है.’’

‘‘आप ठीक कहते हैं. बड़ी मम्मी के चले जाने का दी पर बहुत बड़ा असर पड़ा है और उस के बाद वह किसी को अपना नहीं सकी.

सब दी को खुश देखना चाहते हैं लेकिन यह अपनी ही दुनिया में रहती है,’’ मौली बोली तो पाली को लगा जैसे किसी ने उस की चोरी पकड़ ली हो.

पहली बार पाली को एहसास हुआ कि वह मम्मी की मौत को भुला नहीं पाई और खो जाने के डर से कभी किसी को अपने जीवन का हिस्सा न बन सकी.

‘‘मैं तुम्हारे फोन का इंतजार करूंगा पाली और तब तक इसी शहर में रहूंगा जब तक तुम

मेरे प्यार को स्वीकार नहीं कर लेती,’’ कह कर वह चला गया. मौली और पाली भी चुपचाप घर चली आईं.

दोनों की बातों ने आज पाली को ?ाक?ार कर रख दिया था. पहली बार वह अपना आत्मविश्लेषण करने के लिए मजबूर हो गई. उसे लगा मौली ठीक कहती है. यह तो खुशी की बात है कि उसे इतने अच्छे पापा, नई मम्मी और छोटी बहन के रूप में मौली मिली लेकिन उस ने कभी उन्हें दिल से स्वीकार ही नहीं किया. दोस्त और प्रेमी के रूप में भी पार्थ जैसा हैंडसम लड़का उस के जीवन में आना चाहता है और वह उसे नकारते चली जा रही थी.

सारी रात पाली सो नहीं सकी. मौली उस की बेचैनी को महसूस कर रही थी लेकिन कुछ कह कर उस के विचारों की डोर को तोड़ना नहीं चाहती थी. सुबह वह देर से उठी.

मौली ने पूछा, ‘‘दी, तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘हां ठीक हूं. रात देर तक नींद आई… सुबह आंख लग गई.’’

‘‘दी, बुरा मत मानना पार्थ बहुत अच्छ हैं. उन्हें अपना लो. मु?ो यकीन है वे कभी शिकायत का मौका नहीं देंगे.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो मौली. मैं ही स्वार्थी हो गई थी. खोने के डर से मैं कभी किसी को अपना ही नहीं सकी. कुदरत न करे कभी किसी बच्चे को मांबाप के बगैर रहना पड़े.’’

‘‘बीमारी पर किसी का बस नहीं है. बड़ी मम्मी को पापा ने बचाने की बहुत कोशिश की थी लेकिन उन का साथ इतना ही लिखा था. वे तुम्हें छोड़ कर चली गईं. उसी का बदला तुम पूरी दुनिया से ले रही हो और वह भी अपनेआप से लड़ कर.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो. मैं खुद इस बात

को नहीं सम?ा सकी. बस अंदर एक खालीपन था. लगता था उसे मम्मी के अलावा कोई नहीं

भर सकता. उसी ने मु?ो सब से दूर कर दिया.’’

‘‘अभी भी देर नहीं हुई है दी. तुम्हें पार्थ को अपना लेना चाहिए.’’

‘‘तुम उस का नाम कैसे जानती हो?

मैं ने तो कभी उस का जिक्र भी नहीं किया?’’ पाली बोली तो मौली खिलखिला कर हंसने

लगी.

‘‘दी, तुम्हें भले ही यह जिंदगी अपनी

लगती रही हो लेकिन उस पर हमारा भी उतना

ही हक है दी. यही सोच कर पार्थ परसों मु?ा

से मिले थे. वे तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानना चाहते थे. मैं ही किसी अजनबी को बताने में हिचक रही थी. कल उन के कहने पर ही मैं कौफीहाउस आई थी.’’

‘‘तो यह सब तुम्हारी शरारत थी.’’

‘‘मु?ो भी एक हैंडसम जीजू चाहिए

इसीलिए मैं ने पार्थ का साथ दिया,’’ मौली बोली.

यह सुन पाली भी हंसने लगी. पहली बार उस ने उसे खिलखिलाते हुए देखा.

‘‘देर किस बात की है दी? पार्थ को फोन मिलाइए और मिलने के लिए बुला लो. मैं भी देखना चाहती हूं तुम कैसे अपने प्यार का इजहार करती हो?’’

‘‘सच कहूं कुदरत ने मु?ा से मम्मी छीन कर बहन के रूप में तुम्हें लौटा दिया. एक तुम ही हो जिसे मैं अपना सम?ाती हूं.’’

‘‘सब अपने हैं दी. तुम मम्मी से बात कर के तो देखो उन्होंने कभी हम दोनों में कोई भेद नहीं किया. वे बहुत अच्छी हैं.’’

‘‘जानती हूं उन्हें खोने के डर से मैं उन के पास कभी गई ही नहीं. सोचती थी कहीं तुम्हें भी मेरी जैसी स्थिति से न गुजरना पड़े.’’

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा दी,’’ कह कर मौली पाली से लिपट गई.

दोपहर में पाली ने पार्थ को फोन कर मिलने के लिए बुला लिया. पार्थ की खुशी का ठिकाना न था. वह निर्धारित समय से पहले कौफीहाउस पहुंच गया.

आज पाली बिलकुल बदली हुई थी. उस का चेहरा खुशी से चमक रहा था. खुले बाल और टाइट जींस में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी.

आते ही पाली ने पार्थ का हाथ पकड़ लिया और बोली, ‘‘चलो, घूमने चलते हैं. आज मैं अपना समय इस जगह पर नहीं तुम्हारे साथ किसी खुली जगह बिताना चाहती हूं.’’

दोनों एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले कौफीहाउस से बाहर चले गए. मौली उन्हें दूर तक जाते हुए देखती रही और दी के सुनहरे भविष्य की कल्पना में खो गई.

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