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5 Tips: कैसे रखें स्वस्थ और चमकदार बाल

सर्दी का मौसम आ गया है. इन दिनों सूरज की हानिकारक यूवीए और यूवीबी किरणों से बालों को कम नुकसान होता है. लेकिन सर्दी में भी कई कारण है जिन के चलते बालों को नुकसान पहुंचता है, इसलिए इस मौसम में भी बालों की देखभाल व सुरक्षा का ध्यान रखें. शीतलहर, सूखी हवा और कठोर मौसम में बालों का टूटना अधिक  होता है. इस दौरान बाल बहुत ज्यादा शुष्क हो जाते हैं. इसलिए जरूरी है कि इस मौसम में हम अपने बालों का कुछ ज्यादा ही खयाल रखें.

आइए जानते हैं, हेयर ऐक्सपर्ट व डा. एस क्लिनिक के फाउंडर डा. अरविंद पोसवाल से कुछ आसान टिप्स:

1. बालों को सही तरह से सुखाएं

सर्दी में बालों को पूरी तरह से सुखाना कठिन होता है. गीले बालों को बांधें नहीं, क्योंकि यह बालों और सिर में डैंड्रफ, ब्रेकेज और दोमुंह बालों जैसी कई समस्याओं को पैदा करता है. बालों को कभी भी तौलिए से न सुखाएं, क्योंकि रगड़ के कारण बाल टूटते हैं. बालों को सुखाने का सब से अच्छा तरीका है धीरेधीरे तौलिए के साथ अतिरिक्त नमी निचोड़ें और फिर धीमी सैटिंग पर हेयर ड्रायर का उपयोग कर लें, पर ध्यान रहे कि हेयर ड्रायर करने की दूरी बालों से कम से कम 15 सैंटीमीटर हो.

2. तेल से बालों का ध्यान रखें

2 चम्मच जैतून का तेल गरम करें. हलके हाथों से उसे सिर पर लगाएं और मालिश करें. धीमी मालिश से तेल बालों की जड़ों तक प्रवेश करता है और उन्हें मजबूत करता है. यह स्कल्प को मौइस्चराइज करने और रक्त संचार करने में मदद करता है और इस से बालों के रोमछिद्रों को पर्याप्त पोषण मिलता है, जिस से बाल स्वस्थ और मजबूत होने के साथसाथ झड़ने और गिरने से भी बचते हैं.

3. बाल कंडीशनिंग करना न भूलें

बालों को सर्दी के दौरान नमी की आवश्यकता होती है और ऐसे में बालों की कंडीशनिंग और देखभाल काफी महत्त्वपूर्ण है. हेयर औयल्स और गहरे कंडीशनिंग पैक का उपयोग सप्ताह में एक बार बालों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है. इन औयल्स और कंडीशनिंग पैक्स को बालों में लगा कर कुछ देर छोड़ने के बाद किसी अच्छे शैंपू से धो लें और फिर कंडीशनर का बालों के सिरों पर इस्तेमाल करें.

ध्यान रहे कि कंडीशनर बालों के सिरों पर करें. कंडीशनर को कुछ मिनट के लिए बालों पर लगा कर छोड़ दें और फिर ठंडे या गरम पानी से धोएं. कोशिश करें कि बालों को ठंडे पानी से ही धोएं, जिस से बालों की नमी बनी रहेगी और बाल चमकदार और खूबसूरत दिखेंगे.

4. फ्रीज से निबटें

सर्दी में सब से कष्टप्रद चीजों में से एक फ्रीज है. स्वेटर, स्कार्फ, दस्ताने सभी आप के बालों पर भारी पड़ते हैं, ये बालों को और भी ज्यादा स्टैटिक बना देते हैं. फ्रीज से निबटने के लिए बालों पर बाजार में उपलब्ध वेंटेड हेयर ब्रश से कंघी करें. साथ ही साथ, बालों को केवल कुनकुने या ठंडे पानी से धोएं क्योंकि गरम पानी सभी नैचुरल औयल्स को खींच लेता है जो बालों की सुरक्षा व पोषण के लिए जरूरी होता है.

5. डैंड्रफ से लड़ें

हवा में नमी की कमी के कारण सर्दी के दौरान सिर की स्कल्प पहले से रूखी रहती है और उस में खुजली होने लगती है. इस से डैंड्रफ और जलन जैसी समस्याएं हो जाती हैं, जो बालों के कमजोर हो कर टूटने व झड़ने का कारण बनती हैं. ज्यादातर लोगों को यह पता नहीं होता कि डैंड्रफ की समस्या सही देखभाल के साथ खत्म हो सकती है. इस के लिए केवल जैतून या नारियल के तेल के कुछ चम्मच और नीबू के रस का एक चम्मच चाहिए.

तेल कुछ सैकंड तक गरम करें और फिर नीबू का रस उस में मिलाएं. इस तेल और नीबू के रस मिश्रण से सिर में मालिश करें और इसे 20-30 मिनट तक सिर पर लगा रहने दें. इस के बाद किसी अच्छे शैंपू से बालों को धो लें.

बहारें फिर भी आएंगी

कहानी- रेणु श्रीवास्तव

आ मिर और मल्लिका ने कालेज के स्टेज पर शेक्सपियर का प्रसिद्ध नाटक रोमियोजूलियट क्या खेला कि ये पात्र उन के वास्तविक जीवन में भी प्रतिबिंबित हो उठे. महीनेभर की रिहर्सल उन्हें इतना करीब ले आई कि वे एकदूजे की धड़कनों में ही समा गए. स्टेज पर अपने पात्रों में वे इतने जीवंत हो उठे थे कि सभी ने इन दोनों का नाम भी रोमियोजूलियट ही रख दिया था.

कालेज कैंपस हो या बाहर, दीनदुनिया से बेखबर, हाथों को थाम चहलकदमी करते प्यार के हजारों रंगों को बिखराते वे दिख जाते. प्रीत की खुशबू से मदहोश हो कर वे  झूम उठे थे. जाति अलग, धर्म अलग फिर भी कोई खौफ नहीं आंखों में. विरहमिलन की अनगिनत गाथाओं को समेटे इस दीवाने प्रेम को जाति और धर्म से क्या लेनादेना था.

प्रेम ने तो कभी दरिया में, कभी पहाड़ों पर, कभी दीवारों में, कभी मरुस्थलों में दम तोड़ दिया पर प्रियतम का साथ नहीं छोड़ा. एक ही मन, एक ही चुनर, प्रीत के ऐसे पक्के रंग में रंगी विरहबेला में न छीजा न सूखा. दिनोंदिन प्रेमी प्रेमरस में भीगते और भिगोते सूली पर चढ़ गए. पर जातिधर्म की न समाप्त होने वाली सरहदों ने प्रेमीयुगल को शायद ही बख्शा हो. मल्लिका और आमिर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

पहले तो सभी इसे सहजता से लेते रहे लेकिन जैसे ही इश्क के गहराते रंग का अनुभव हुआ दोनों ओर के लोगों की तलवारें तन गईं. फिर प्यार भी कहीं छिपता है? यह तो पलभर में हरसिंगार के फूलों की तरह अपनी आभा बिखेरता है. बेहद सुंदर और प्रतिभा की मालकिन मल्लिका को पाने के लिए प्रोफैसरों से ले कर सजातीयविजातीय लड़कों में एक होड़ सी लगी थी. बहुत दीवाने थे उस के लेकिन सब को अनदेखा कर उन की नादानियों पर हंसती रही.

जिसे भी मल्लिका पलभर को देख लेती वह निहाल हो उठता था. जिधर से गुजर जाती, लोग उस की खूबसूरती के कायल हो जाते थे. कट्टर मानसिकता वाले राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली मल्लिका के लिए अपनी बिरादरी में भी एक से एक सुयोग्य लड़के शादी के लिए आंखें बिछाए कतार में खड़े थे. लेकिन मल्लिका के सपनों का राजकुमार आमिर बन चुका था.

मल्लिका का किसी गैरजाति के लड़के को चाहना जमाना इसे कितने दिनों तक सहन करता. आमिर पर न जाने कितने जानलेवा हमले हुए, मल्लिका को तो एसिड से जला देने की धमकियों से भरी न जाने कितनी गुमनाम चिट्ठियां मिलती रहीं, जो उन के प्रेम को और मजबूत ही करती रहीं. आमिर का एक प्यारभरा स्पर्श, एक स्नेहिल मुसकान उस की राहों में बिछे हर कांटे के डंक को मिटाती रही. आमिर के बारे में पता चलते ही मल्लिका के मातापिता ने अपनी लाड़ली को हर तरह से सम झाया, अपनी जान देने की धमकी तक दी. पर प्यार की इस मेहंदी का रंग लाल ही होता गया. जैसेजैसे समाज के शिकंजे कसते गए वह आमिर के प्यार में और डूबती गई.

एक हिंदू लड़की अपनी जातिबिरादरी के एक से एक होनहार और खूबसूरत नौजवानों को नजरअंदाज कर के मुसलिम से प्यार करे, हिंदू समाज को यह सहन कैसे होता. राजनीति का अखाड़ा बने कालेज परिसर में ही आमिर पर ऐसा जानलेवा हमला हुआ कि उस की जान बालबाल बची. मल्लिका पर भी तेजाबी हमले हुए. गरदन और हाथ ही  झुलसे. चेहरे पर एकाध छींटे पड़े जरूर, पर वे उलटे उस की सुंदरता में चारचांद लगा गए.

पुलिस ने कुछ विरोधी हिंदू आतंकियों को पकड़ा पर जैसा इस तरह के मामलों में होता है, सुबूतों के अभाव में वे छूट गए. मुसलिम समाज क्यों पीछे रहता, वह भी दलबल के साथ आमिर के बचाव में उतर आया. हिंदूमुसलिम दंगा भड़कने ही वाला था कि मल्लिका और आमिर ने कोर्टमैरिज कर के दंगाइयों के मनसूबों पर पानी फेर दिया. मल्लिका के मातापिता ने जीतेजी उसे अपने लिए मरा करार दे दिया, तो आमिर के घरवालों ने उसे अपनाते हुए धूमधाम से अपने घर ले जा कर उस का भरपूर मानसम्मान किया जिसे उन दोनों ने कोई खास तरजीह नहीं दी. धर्म के सौदागरों के शह और मात के खेलों से वे अनजान नहीं थे.

अभी आमिर के घर में मल्लिका के कुछ ही घंटे बीते थे कि बाहर गेट पर पटाखे फूट कर आकाश को छू रहे थे. चेहरे को छिपाए

8-10 आदमियों का समूह चिल्ला रहा था. राजपूत की बेटी इन विधर्मियों के घर में. अकबर का इतिहास दोहरा रहे हो तुम लोग. राजपूतों का वह समाज नपुंसक था जिस ने पैरों पर गिर कर अपनी बहनबेटियों को म्लेच्छों के हवाले कर दिया था. उसे किसी भी हालत में दोहराने नहीं देंगे हम. सुनो विधर्मियो, हमें नीचा दिखाने के लिए बड़ी शान से मुसलिम बना कर जिसे विदा करा लाए हो तुम सभी, उस म्लेच्छ लड़की को घर से निकाल बाहर करो. हम यहीं पर उस के टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.

आज गौमांस खाएगी, कल रोजा रख कर कुरानपाठ करेगी. बुरका ओढ़ कर तुम्हारी बिरादरी में घूमेगी, तुम्हारे गंदे खून से बच्चे पैदा कर के राजपूतों की नाक कटवाएगी. निकालो इसे, नहीं तो इस का अंजाम बहुत भयानक होगा. आज पटाखों से केवल तुम्हारा गेट जला है. कल बम फोड़ कर तुम सब को भून डालेंगे.

उन की गगनभेदी आवाजों से घर के अंदर सभी दहशत से कांप रहे थे. आमिर की बांहों में मल्लिका अर्धमूर्च्छित पड़ी थी. हिंदुओं की कारगुजारी की जानकारी पाते उस के विरोध में मुसलिम समाज भी इकट्ठा होने लगा था. वह तो अच्छा हुआ कि आननफानन में पुलिस पहुंच गई, और दंगों के शोले भड़कने से रह गए.

फिर महीनों तक आमिर को पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी थी. उन का बाहर निकलना मुश्किल था. घात लगाए बैठे राजपूतों का खून खौल रहा था. कुछ अलग हट कर करने की चाह से ये आंखें मूंदे सभीकुछ सहन कर रहे थे. रिजल्ट निकलते ही इन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले जाना था. सभी तैयारियां हो चुकी थीं. बची हुई औपचारिकताओं को ये छिपछिपा कर पूरी कर रहे थे. पर मौत का खतरा टला नहीं था. अपने हनीमून को ये दोनों दहशतों के बीच ही मना रहे थे.

इन दोनों का रिजल्ट आ गया. तैयारियां तो थीं ही. जाने के दिन छिपतेछिपते किसी प्रकार से वे इंटरनैशनल हवाईअड्डे तक पहुंचे. रिश्तेदार तो दूर, इन्हें विदा करने कोई संगीसाथी भी नहीं आ सका. उमड़ आए आंसुओं के समंदर को दोनों पलकों से पी रहे थे. बुरके में मल्लिका का दम घुट रहा था तो खुले में आमिर के पसीने छूट रहे थे.

जब तक प्लेन उड़ा नहीं, वे डर के साए में ही रहे. किसी तरह की जांचपड़ताल से वे घबरा उठते थे. 17 घंटे के अंतराल के बाद ही एकदूसरे की बांहें थाम पहुंच गए अमेरिका के न्यूजर्सी में, जहां की गलियों में उन्नत सिर उठाए उन के सपनों की मंजिल, प्रिंसटन कालेज बांहें फैलाए उन का स्वागत कर रहा था. इस की तैयारी वे महीनों से कर रहे थे. बहुत हाईस्कोर के साथ उन्होंने टोफेल आदि को क्लीयर कर रखा था. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने दोनों का लोन सैंक्शन करते हुए पासपोर्ट, वीजा आदि के मिलने में बड़ा ही सहयोग दिया. प्यार के विरोध में उठे स्वरों एवं छलनी दिल के सिवा वे भारत से कुछ भी नहीं लाए थे. सामने चुनौतियों से भरे रास्ते थे, पर उन के पास हौसलों के पंख थे. ख्वाबों की दुनिया उन्हें खुद बनानी थी.

यहां आ कर भी महीनों तक मल्लिका दहशत में जीती रही. किसी भी हिंदू की नजर उसे सहमा कर रख देती थी. कालेज परिसर में रहने वाले विद्यार्थियों के आश्वासन भी उसे सामान्य नहीं बना सके थे. मल्लिका ने कभी पलट कर भी अपनों की खबर नहीं ली. आमिर के मांबाप और छोटी बहन से कभी बात कर लिया करती थी पर उन्हें भी कभी यहां आने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया.

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में इंटरनैशनल सिक्योरिटी, जो एक नया विषय था, उस में पीएचडी करने का फैसला मल्लिका और आमिर ने लिया. यह भी अच्छी बात रही कि यूनिवर्सिटी की ओर से ही उन दोनों को रहने के लिए जगह मिली, जिस ने उन के रहने की बड़ी समस्या को हल कर दिया. जैसेजैसे दिन गुजरते गए, उन की राहें आसान होती गईं.

अभी भी उन के रिश्ते पतिपत्नी से ज्यादा प्रेमीप्रेमिका जैसे ही थे. हाथों में हाथ डाले जिधर चाहा निकल गए. न किसी के देख लेने का डर था और न कोई दंगा भड़कने का. अकसर वे दोनों मखमली हरी घास पर लेट कर गरमी का आनंद लेते हुए पढ़ाई किया करते थे. जब? भी थक जाते, आइसक्रीम खा कर तरोताजा हो उठते.

वीकैंड में अकसर चहलकदमी करते हुए प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते दुकानों में जा कर शौपिंग करते. रैस्टोरैंट में हर तरह के कौंटिनैंटल फूड खाते. आमिर को कौफी बहुत पसंद थी तो मल्लिका को टोमैटो सूप और ग्रिल्ड सैंडविच.

इतने लंबे समय में दोनों कभी मंदिरमसजिद नहीं गए. प्यार ही उन का मजहब था. विवरस्पून स्ट्रीट की विशाल प्रिंसटन पब्लिक लाइब्रेरी में जा कर दोनों पढ़ाई करते. समय ने इन के परिश्रम और लगन का भरपूर रिवौर्ड दिया.

युद्ध के कारण, नेचर डेटरैंस, एलाएंस, फौर्मेशन, सिविल मिलिटरी रिलेशन, आर्म्स कंपीटिशन के साथ आर्म्स की रोक आदि पर इन की हर छानबीन को खूब वाहवाही मिली. इन का परफौर्मैंस इतना अच्छा रहा कि दोनों की नियुक्ति प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में ही हो गई. सपनों की मंजिल पर पहुंच कर दोनों अभिभूत थे.

प्रिंसटन के लिंडेन लेन में इन्होंने रहने के लिए एक टाउन हाउस ले लिया था, जिस के गैराज में चमचमाती हुई नई गाड़ी खड़ी थी.

युद्ध के कारणों और निवारणों पर रिसर्च करते हुए उन्होंने करीबकरीब दुनिया के सारे शक्तिशाली देशों की परिक्रमा कर डाली. यह अपनेआप में बहुत खास अनुभव रहा. पढ़तेपढ़ाते विभिन्न देशों की संस्कृति को मानसम्मान देते हुए उन्होंने मेल्ंिटग पौट औफ कल्चर को अपना लिया. दंगा, हिंसा और खूनखराबे के डर से अपने देश से क्या भागे कि सारी दुनिया को ही गले लगा लिया. यही कारण है कि अमेरिका में रह रहे सारे विश्ववासियों को इन्होंने प्यार से एक गुलदस्ते में ही संजो लिया. सभी वर्गों में इन का बड़ा मानसम्मान था.

2 साल में ही सारे लोन चुका कर इन्होंने अपना परिवार बढ़ाने का निर्णय लिया. गर्भावस्था में आमिर ने मल्लिका का बहुत ध्यान रखा. अपने जुड़वां बच्चों का नाम उन्होंने अर्थ और आशी रखा. ऐसे वक्त में गुजरात की रहने वाली पारुल बेन किसी सौगात की तरह उन्हें मिल गईं, जिन्होंने दोनों बच्चों की देखरेख के साथ मल्लिका का भी मां की तरह खयाल रखा. मल्लिका और आमिर ने भी उन्हें कभी नैनी नहीं सम झा.

अपने बच्चों को पारुल बेन को सौंप कर मल्लिका और आमिर पढ़नेपढ़ाने की दुनिया में ख्याति बटोरते रहे. पारुल बेन भी उन की कसौटी पर सब तरह से खरा सोना निकलीं. किसी बात के लिए उन्हें निराश नहीं किया. अर्श और आशी को पारुल बेन ने दोनों संस्कृतियों के सारे संस्कार दिए. घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर आमिर और मल्लिका को ऊंची उड़ान भरने के अवसर मिले. मल्लिका के सौंदर्य और प्रतिभा पर उस के क्षेत्र के लोग मुग्ध थे. ब्यूटी और ब्रेन का अनोखा सामंजस्य था उस में. उन से जुड़ कर सभी लाभान्वित ही होते रहे. अपने आसपास के ही नहीं, बल्कि जिस देश में भी गए वहां की संस्कृति को आत्मसात कर लिया. उन्होंने बहुत बड़ी पहचान को प्राप्त कर लिया था. यह उन के जीवन की बहुत बड़ी विजय थी.

समय पखेरू बन कर उड़ता रहा. अर्थ ने फाइनैंस में एमबीए कर के न्यूयौर्क की प्रतिष्ठित कंपनी को जौइन कर लिया. साल भी नहीं बीता था कि उस ने उसी कंपनी में कार्यरत चाइनीज लड़की से शादी कर ली और 4 महीने बाद ही 2 जुड़वां लड़कियों का पिता बन गया. वहां की खुली संस्कृति के लिए यह बड़ी आम बात थी. वहां बच्चे पहले पैदा होते हैं, शादी बाद में होती है.

आशी ने भी मैडिसिन की पढ़ाई कर के एक अफ्रीकीअमेरिकन से ब्याह रचा लिया. सालभर में वह भी अपने पिता के हमशक्ल जैसे बच्चे की मां बन गई. अपने बच्चों के उठाए इन कदमों की कोई आलोचना मल्लिका और आमिर ने कभी नहीं की. सब तरह से सहयोग देते हुए उन्हें संवारते हुए निखारा था. दोनों अपने बच्चों के बच्चे देख कर अभिभूत थे. सारे जहां की खुशियों को वे बटोर रहे थे.

अपने नानानानी और दादादादी बनने की खुशी में उन्होंने न्यूजर्सी में ही बड़ी शानदार पार्टी रखी थी. महीनेभर पहले सारी नाराजगी को भुलाते हुए दोनों ने अपने परिवारवालों को भी न्योता दिया था. वे आएं या न आएं, उस से उदासीन होते हुए वे अपनी खुशियों में मग्न थे. इतने लंबे समय में मल्लिका ने भूल कर भी अपनों को कभी याद नहीं किया था. उन के सारे रिश्तेनाते एकदूसरे के लिए वे स्वयं ही थे. बाकी कमी पारुल बेन ने आ कर पूरी कर दी थी. किसी अपने की तरह अर्थ और आशी की खुशियों से उन की भी आंखें छलक रही थीं. दोनों में से वे किस के पास जा कर, रह कर बच्चों की देखरेख करें, इस के लिए अर्थ और आशी को विवाद करते देख पारुल बेन भी अपने अस्तित्व के महत्त्व पर, अपनी काबिलीयत पर खुश थीं. 1,800 डौलर मासिक पगार पर काम करने वाली पारुल बेन लाखों डौलर की मालकिन होने के साथ अपना भविष्य संवारते हुए परिवार की बहुत बड़ी स्तंभ बन गई थीं.

भारत से आमिर और मल्लिका दोनों के मातापिताओं के साथ उन के भैयाभाभी भी आए. मिलन की खुशियों में छलकते आंसुओं ने दरिया ही बहा दिया था. फिर आरोपों और प्रत्यारोपों के लिए समय ही कहां था. वर्षों से बिछुड़े बच्चों के लिए नजराने में वे सारा भारत ही उठा लाए थे. उस प्यार के उफनते समंदर में न कोई जाति थी, न कोई धर्म, एक परिवार की तरह सारे भेदभाव को भूल कर सभी एकदूसरे से गले मिल रहे थे.

बेऔलाद: क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

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New Year Special: नए साल में रहना चाहते हैं स्वस्थ, तो बस अपनाएं ये आसान टिप्स

आज हर उम्र के लोग स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो चुके है. इस बारें में मुंबई के कोकिलाबेन धीरूबाई अम्बानी हॉस्पिटल कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट डॉ प्रवीण कहाले कहते हैं कि कोविड के बाद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है और ये अच्छी बात है, लेकिन कुछ बातें हर व्यक्ति को नए साल में समझने की जरुरत है, जो निम्न है.

अपना वज़न नियंत्रण में रखें

ध्यान रखें कि आपका वज़न जो सही होना चाहिए वही है. इसके लिए आपको अतिरिक्त कैलरीज़ से बचना होगा और नियमित रूप से कसरत करनी होगी. लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करने जैसे आसान उपाय आप हर दिन कर सकते हैं. बैठे रहना आपके लिए उतना ही हानिकारक है जितना, पैसिव स्मोकिंग है, लगातार लंबे समय तक बैठे रहने से हृदय की बीमारियों का खतरा बढ़ता है. जब आप बैठे रहते हैं तब आप अपने शरीर को उतना ही नुकसान पहुंचाते हैं जितना लकड़ी के धुंए में रहने से होता है. इसीलिए, कसरत न करने या बैठे रहने को पैसिव स्मोकिंग माना जाता है.

  • पैक्ड फूड्स खाना कम या बंद करें और स्वस्थ आहार को चुनें. रोज़ के खाने में बहुत सारी सब्ज़ियां
    होनी चाहिए, नमक और चीनी की मात्रा कम करें.
  • आहार पर नियंत्रण रखने के साथ-साथ, कसरत पर भी नियंत्रण रखना ज़रूरी है. बहुत ज़्यादा कसरत
    की वजह से कई बार समस्याएं खड़ी हो जाती हैं, कई बार लोग बॉडी बनाने के लिए स्टेरॉइड्स और
    इस तरह की दूसरी दवाइयां लेते हैं, जिससे कार्डिओवस्क्युलर यानी ह्रदय की बिमारियों का खतरा
    बढ़ता है.
  • बच्चों को डिजिटल दुनिया से दूर रखिए, उन्हें खेलने, कसरत करने के लिए बढ़ावा दें. बैडमिंटन, टेबलटेनिस, क्रिकेट और फुटबॉल जैसे आउटडोर खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इससे बच्चों में सहनशीलता बढ़ती है और हृदय की बिमारियों का खतरा कम होता है.

जीवनशैली में इन महत्वपूर्ण बदलावों को लाने के अलावा अच्छी गहरी नींद लेना बेहद जरूरी है.
कितनी नींद ले रहे हैं, उसके साथ-साथ नींद की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण है. सोने से पहले मोबाइल
उपकरणों और टेलीविजन से दूर रहें, क्योंकि यह आपके सर्केडियन रिदम को तोड़ता है या परेशान
करता है, जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. स्वास्थ्य अच्छा रख पाने के लिए नींद एक
महत्वपूर्ण पहलू है. दोपहर के समय में छोटी झपकी ले सकते हैं, लेकिन दिन में लंबे समय तक सोने से
निश्चित रूप से आपके हृदय संबंधी जोखिम बढ़ेगी. ये कुछ निवारक उपाय और स्वस्थ जीवन शैली को
अपनाकर आप अपना ह्रदय स्वस्थ रख सकते हैं.

  •  अलग-अलग उम्र के लोगों के लिए कसरत भी अलग-अलग तरह की होती हैं, जिन लोगों को जोड़ों का
    दर्द या अन्य समस्या होती है, वे जॉगिंग और ट्रेडमिल के बजाय तैरने और साइकिल चलाने जैसे स्थिर
    व्यायाम कर सकते हैं, इस तरह के उपकरण जिम और घर में भी आसानी से उपलब्ध होते हैं.
  • यह ज़रूरी नहीं है कि हाई स्पीड वाला व्यायाम करें. मध्यम तीव्रता वाले व्यायाम नियमित रूप से,
    लगातार करके आप तनाव को दूर रख सकते हैं, ध्यान रखें कि कभी-कभी व्यायाम हानिकारक हो
    सकता है.
  • विटामिन डी, विटामिन बी12 जैसे पोषक तत्वों की कमी की जांच कराते रहें और आयरन की कमी मानकर उसकी पूर्ति करते रहें, युवा महिलाओं के साथ-साथ वयस्क महिलाओं में भी विटामिन, आयरन की कमी बेहद आम समस्या है. कुल स्वास्थ्य को अच्छा रख पाने और विशेष रूप से हृदय के स्वास्थ्य को अच्छा रख पाने के लिए पोषण की दृष्टी से यह एक महत्वपूर्ण पहलु है.
  • किसी व्यक्ति को डायबिटीज, रक्तचाप या कोलेस्ट्रॉल न हो तो भी, मोटापे और वज़न ज़्यादा होने से ह्रदय की बीमारी का खतरा 25 प्रतिशत तक बढ़ता है. डायबिटीज और मोटापा एक जानलेवा कॉम्बिनेशन है, क्योंकि मोटापे के कारण डायबिटीज की संभावना बढ़ती है और एक बार अगर मरीज़ को हाई शुगर हो जाता है, तो हार्ट अटैक की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.
  • धूम्रपान हार्ट अटैक की बहुत महत्वपूर्ण वजह होती है. सिगरेट के धुंए में जो केमिकल्स होते हैं उनसे शरीर में खून गाढ़ा हो जाता है, वाहिकाओं और शिराओं धमनियों में क्लॉट्स जमा होने लगते हैं.

अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है प्रोसेस्ड फूड कम खाना और नमक, चीनी की मात्रा कम रखना.
उम्र बढ़ने पर कार्डियोवेस्क्युलर रिस्क को कम करने के लिए बचपन से ही कुछ बातों का ख्याल
रखना चाहिए. शरीर को नमक और चीनी की आवश्यकता नहीं होती, यह दो चीज़ें आपके शरीर को
नहीं, बल्कि सिर्फ जीभ को खुश रखने के लिए होती हैं. अब आपको सोचना होगा कि नए साल में आप
सिर्फ जीभ को खुश रखना चाहते हैं या पूरे शरीर को?

करेले कड़वे हैं

‘‘कैसे करेले उठा लाए? सारे एकदम कड़वे हैं. न जाने कैसी खरीदारी करते हैं. एक भी सब्जी ठीक नहीं ला पाते.’’

श्रीमतीजी ने हमारे द्वारा लाए गए करेलों का सारा कड़वापन हम पर उड़ेला.

‘‘क्यों, क्या बुराई है भला इन करेलों में? बाजार से अच्छी तरह देख कर, चुन कर अच्छेअच्छे हरेहरे करेले लाए थे हम… अब सवाल रहा जहां तक इन के कड़वे होने का तो वह तो करेलों की प्रकृति ही है… करेले भी कभी मीठे सुना है क्या भला आज तक?’’ हम ने भी श्रीमतीजी की प्रतिक्रिया का पुरजोर विरोध किया.

‘‘करेले कड़वे होते हैं वह तो मैं भी जानती हूं, लेकिन इतने कड़वे करेले? अभी कल ही पड़ोस में कान्हा के दादाजी ने साइकिल वाले से करेले खरीदे. सच, भाभी बता रही थीं कि इतने अच्छे, इतने मुलायम और नरम करेले थे कि कुछ पूछो मत. ऊपर से कड़वापन भी बिलकुल न के बराबर. समझ में नहीं आता कि सब को अच्छी सब्जियां, अच्छे फल, अच्छा सामान कैसे मिल जाता है. बस एक आप ही हैं, जिन्हें अच्छी चीजें नहीं मिलतीं.

‘‘सच कई बार तो मन में आता है कि आप से कुछ कहने के बजाय स्वयं बाजार जा कर सामान खरीद लाया करूं. लेकिन उस में भी एक परेशानी है, आप के लिए तो यह और भी अच्छा हो जाएगा. काम न करने का बहाना मिल जाएगा,’’ श्रीमतीजी ने हम से कार्य करवाने की अपनी मजबूरी बताई.

‘‘संयोग की बात है कि ऐसा हो जाता है. वरना इस महंगाई में रुपए खर्च कर खराब सामान लाने का तो हमें स्वयं भी कोई शौक नहीं है. हमें स्वयं अफसोस होता है जब हमारे लिए सामान में कोई गड़बड़ निकलती है. लेकिन इस में भला हम कर भी क्या सकते हैं,’’ हम ने अपनी बेचारगी दिखाई.

‘‘संयोग है कि सारे संयोग सिर्फ आप के साथ ही होते हैं… संयोग से आप को ही अंदर से काले खराब आलू मिलते हैं… संयोग से ही आप को ऐसे सेब मिलते हैं, जो ऊपर से तो अच्छे दिखाई देते हैं, लेकिन होते हैं एकदम फीके. यह भी संयोग है कि आप के लाए नारियल फोड़ने पर प्राय: खराब निकल जाते हैं,’’ श्रीमतीजी के पास जैसे हमारे लाए खराब सामान की एक पूरी सूची थी.

‘‘यह क्यों भूल रही हैं कि तुम से विवाह कर के हम ही तुम्हें यहां इस घर में लाए थे… हम ने ही तुम्हें पसंद किया था… अब अपने विषय में तुम्हारा क्या विचार है? अपने ऊपर लगते लगातार आरोपों ने हमें भयभीत कर दिया…’’ इसीलिए वातावरण को हलका करने के लिए हम ने श्रीमतीजी से मजाक किया.

लेकिन यह क्या? हमारे मजाक को वे तुरंत समझ गईं. झल्ला कर बोलीं, ‘‘मजाक छोडि़ए, मैं आप से गंभीर बात कर रही हूं… आप की कमियां आप को बता रही हूं और एक आप हैं, जो मेरे कहे को गंभीरता से सुनने तथा स्वयं में सुधार लाने के स्थान पर मेरी बात को मजाक में उड़ा रहे हैं. आप की इस प्रवृत्ति का ही यहां के दुकानदार भरपूर फायदा उठा रहे हैं. वे खराब सामान आप के मत्थे मढ़ देते हैं. ऐसे में वे तो दोहरा लाभ उठा रहे हैं.

‘‘पहला उन के यहां का खराब सामान निकल जाता है. और दूसरा वे उसे बेच कर कमाई भी कर लेते हैं… और हम हैं कि सिर्फ नुकसान उठाए जा रहे हैं. मेरी तो समझ में नहीं आता कि क्या करूं, किन शब्दों में आप को चेताऊं ताकि हमें और नुकसान न झेलना पड़े.’’

‘‘तुम भी न बस जराजरा सी बातों को तूल देती हो… एक बड़ा मुद्दा बना देती हो… यह भी कोई बात हुई भला कि करेले कड़वे क्यों हैं? अरे करेले की तो प्रकृति ही है कड़वा होना. इस में भला हम क्या कर सकते हैं? रहा सवाल खरीदारी का तो यह तो किसी के साथ भी हो सकता है, बल्कि हो ही जाता होगा. लेकिन हमें क्या यह सब पता चलता है कि कौन कब बेवकूफ बना? किस के साथ क्या चालाकी हुई? इसलिए इन छोटीछोटी बातों को गंभीरता से न लिया करो. अब थोड़ाबहुत चला भी लिया करो,’’ अब हम कड़वे करेलों की बात को यहीं पर समाप्त करना चाहते थे.

‘‘आप इन्हें छोटीछोटी बातें समझ रहे हैं? कोई आप की आंखों में धूल फेंक दे, आप को बेवकूफ बना कर खराब सामान पकड़ा दे और आप के लिए यह कोई बात ही नहीं है? आप के लिए होगी ये सब जराजरा सी बातें, लेकिन मुझे तो यह सब किसी भी तरह अपने अपमान से कम नहीं लगता. कोई आप के संपूर्ण व्यक्तित्व को नकार कर अपना उल्लू सीधा कर ले, यह तो चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात हो गई. रहा सवाल दूसरों के बेवकूफ बनने का तो मुझे इस सब से कोई मतलब नहीं है कि कौन अपने घर में क्या कर रहा है, क्या खापका रहा है? वैसे भी राह चलता व्यक्ति चाहे जो कर रहा हो, हम न तो उस की ओर ध्यान देते हैं और न ही इस से कुछ खास फर्क पड़ता है. लेकिन आप तो मेरे पति हैं, आप के साथ यदि कुछ गलत होगा, चालाकी होगी तो उस का प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ेगा. हमें बुरा भी लगेगा. इसलिए कोशिश कीजिए कि आप के साथ ऐसा कुछ न हो, जिस से हमें नुकसान उठाना पड़े. इस महंगाई के दौर में जब वैसे ही इतनी कठिनाई आ रही है… आप अपनी इन नादानियों से मेरी परेशानी और बढ़ा रहे हैं,’’ श्रीमतीजी ने कहा.

‘‘यदि तुम्हें मेरे लिए सामान, मेरी लाई सब्जी, फलों से इतनी ही अधिक परेशानी है, तो एक काम क्यों नहीं करतीं? आज से सारा सामान स्वयं लाया करो. इस से तुम्हें तुम्हारा मनपसंद सामान भी मिल जाएगा और खराब सामान आने की समस्या से भी दोचार नहीं होना पड़ेगा,’’ अब इस विकट परिस्थिति में हमें यही एक उपाय सूझा, जिसे हम ने श्रीमतीजी के सामने रख दिया.

‘‘अच्छा तो मुझ पर यह अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपी जा रही है… आप क्या समझते हैं कि मैं आप की चालाकी नहीं समझती हूं? खरीदारी का काम मुझे सौंप कर आप इस काम से बचना चाहते हैं… ऐसा कतई नहीं होगा. आप को घर का इतना कार्य तो करना ही पड़ेगा… बाजार से सामान तो आप को ही लाना पड़ेगा,’’ श्रीमतीजी ने निर्णायक स्वर में कहा.

अब भला हम क्या कहते? चुप रहे. इस समय हमारी हालत उस व्यक्ति की तरह हो रही थी जिसे मारा भी जा रहा हो और रोने भी न दिया जा रहा हो.

ठंड में बच्चे की स्किन का ऐसे रखें ख्याल

सर्दी के मौसम में ठंडी हवाएं चलने लगती हैं. इस दौरान उन की कोमल स्किन का खास ध्यान रखना जरूरी है. इस बारे में क्यूटिस स्किन सौल्यूशन की स्किनरोग विशेषज्ञा डा. अप्रतिम गोयल कहती हैं कि असल में बच्चों की स्किन वयस्कों की स्किन से 5 गुना नाजुक होती है. सही देखभाल से उस में रैडनैस या रैशेज होने की संभावना नहीं रहती. इस के अलावा सर्दी के मौसम में ड्राई स्किन के लिए ऐक्स्ट्रा पोषण की जरूरत होती है, क्योंकि बच्चों की स्किन वयस्कों की स्किन से पतली होती है. ऐसे में सर्द हवाओं और ठंड से वह डैमेज होने लगती है.

बाहर की ठंड और घर के अंदर की हीट से स्किन के सूखा होने और उस पर रैशेज होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है. इस के अलावा जिन बच्चों की स्किन शुष्क किस्म की होती है, उन के लिए यह मौसम और भी घातक हो जाता है.

ठंड का बच्चों की स्किन पर प्रभाव

– रैड, रफ और स्कैली गाल.

– गालों, बटक्स और कलाइयों पर स्किन का ड्राई और परतदार होना.

– फटे होंठ.

– ऐक्जिमा होना.

– हीट रैश.

देखभाल

ठंड के मौसम में बच्चों की स्किन के प्रति थोड़ी सी भी अनदेखी घातक सिद्ध हो सकती है. अत: पेश हैं कुछ सु झाव:

– बच्चों के लिए मौइस्चराइजिंग क्रीम का प्रयोग उन की ड्राई और खारिश वाली स्किन पर करें. उस क्रीम में डाइमेथिकोन, सिरामाइडस, लिकोरिस, विटामिन ई आदि होना जरूरी है. ये बच्चों की स्किन को नम रखते हैं. सुगंध और कलर फ्री उत्पाद, जिन में पीएच बैलेंस हो उन्हें चुनें.

– जब बच्चा थोड़ा बड़ा होने लगता है तो कई बार उस की स्किन पर सफेद पैचेस दिखाई देने लगते हैं. ऐसे में अच्छे मौइस्चराइजर का प्रयोग करने से पैचेस गायब हो जाते हैं. 18 महीने के बाद बच्चे को विंटर में भी सनस्कीन लगाना अच्छा रहता है.

– फटे होंठ आम समस्या है. 5 साल से कम उम्र के बच्चों के होंठ अधिक फटते हैं. इस के लिए वैसलीन का प्रयोग करना ठीक रहता है.

– अधिक ऊनी कपड़े पहनाने से हीट रैश की संभावना अधिक बढ़ जाती है. इस के लिए बच्चों की स्किन की नियमित जांच करते रहना चाहिए. हीट रैश होने पर हलके और मुलायम ऊनी कपड़े पहनाना ही सही रहता है.

– जाड़े में बच्चों के डायपर को थोड़ेथोड़े अंतराल पर बदलें और डायपर एरिया को अच्छी तरह साफ कर दें, क्योंकि गीले डायपर से इन्फैक्शन और रैशेज होने का खतरा रहता है. बच्चे की स्किन को हमेशा हलके हाथों से साफ करें.

– ठंड में बच्चे की नहाने की अवधि कम रखें. नहाने के बाद 5 मिनट में उसे मौइस्चराइज कर कपड़े पहना दें. कुनकुने पानी से स्नान कराएं, सोप फ्री क्लींजर्स का प्रयोग करें ताकि स्किन का औयल बना रहे.

अगर बच्चे को ऐक्जिमा हुआ है तो स्किनरोग विशेषज्ञ से सलाह लें ताकि समय रहते उस का सही इलाज हो सके.

घरेलू नुसखे

– नारियल का तेल स्किन के लिए बहुत अच्छा होता है. बच्चे को नहलाने के बाद इसे लगाएं या नहलाने के 1 घंटा पहले भी लगा सकती हैं.

यह स्किन की नमी को प्रोटैक्ट करता है और स्किन की सौफ्टनैस को बनाए रखता है.

– सूखे व फटे होंठों और गालों पर देशी घी लगाया जा सकता है. दादीनानी का यह नुसखा स्किन के लिए सुरक्षित और अच्छा उपाय है, जो जाड़े में बहुत लाभदायक होता है.

– 2 बड़े चम्मच ओट्स को पीस कर एक बालटी में भिगो दें. फिर इस में थोड़ा औलिव औयल मिला कर बच्चे को इस पानी से नहलाएं.

माना कि घरेलू नुसखे अच्छे होते हैं, लेकिन किसी भी प्रकार के रैशेज या रैडनैस होने पर डाक्टर की सलाह जरूर लें.

शाहरुख खान का अहम या उनकी अति महत्वाकांक्षी व्यावसायिकता ने डुबायी फिल्म ‘‘डंकी’’

जब इंसान अपने अंदर की खूबी या यॅूं कहें कि अपने अंदर की क्षमता का उपयोग गलत मंशा से करना शुरू करता है,तो वह कालीदास की तरह उसी डाली को काटने लगता है,जिस पर वह खुद बैठा होता है.कम से कम फिल्म ‘डंकी’ के साथ जो कुछ हुआ,उसे देखते हुए यह बात शाहरुख खान पर एकदम सटीक बैठती है.

शाहरुख खान एक अच्छे कलाकार ही नही बल्कि एक बेहतरीन व्यावसायी भी हैं.अपनी इसी व्यावसायिक बुद्धि का उपयोग कर शाहरुख खान ने ‘पठान’ और ‘जवान’ को पांच सौ करोड़ कमाने वाली फिल्मों में शामिल कर दिया.जबकि सिनेमाघर खाली थे.मगर तीसरी बार फिल्म ‘डंकी’ को रिकार्ड तोड़ सफलता वाली फिल्म साबित कराने में वह मात खा गए.इसकी मूल वजह उनका अहम और अपने व्यावसायिक फायदे के लिए दूसरे को तबाह करने की नीति उन्हे ले डूबी.शाहरुख खान ने अपनी फिल्म ‘‘डंकी’’ को सफलतम फिल्म साबित करने के सारे हथकंडे अपना लिए. फिर भी ‘डंकी’ बाक्स आफिस पर कारनामा नही कर सकी. शाहरुख खान की फिल्म ‘‘डंकी’’ 21 दिसंबर,गुरूवार को प्रदर्शित हुई थी.फिल्म का पहला षो सुबह छह बजे से शुरू हुआ था.पूरा दिन ‘डंकी’ को चुनौती देने वाली एक भी फिल्म नहीं थी.इसके बाद शनीवार,रवीवार व सोमवार की छुट्टी भी मिली.पर ‘डंकी’ छह दिन में सिर्फ 140 करोड़ ही कमा सकी.विश्वस्तर पर छह दिन में ‘डंकी’ दो सौ छप्पन करोड़ कमा सकी.यह आंकड़े भी निर्माता के दिए हुए हैं.हम सभी जानते हंै कि हर निर्माता अपनी फिल्म के बाक्स आफिस आंकड़े बढ़ा कर ही बताता है.तो वहीं ‘सलार’ को डुबाने के शाहरुख खान की तमाम कोशिशों के बावजूद ‘सलार’ 22 दिसंबर,शुक्रवार को प्रदर्शित हुई.जबकि ‘सलार’ ने महज पांच दिन के अंदर ही दो सौ अस्सी करोड़ से अधिक कमा लिए.तो वहीं विश्वस्तर पर ‘सलार’ ने पांच दिन में लगभग पांच सौ करोड़ से अधिक कमा लिए.

‘सलार’ को डुबाने में विफल शाहरुख खान ने अपनी हरकतों से अपनी फिल्म ‘‘डंकी’’ को डुबा दिया.फिल्म ‘डंकी’ की लागत ढाई सौ करोड़ बतायी जा रही है.जबकि यह फिल्म छह दिन में लागत से आधी रकम ही जुटा सकी है.इसके लिए पूरी तरह से शाहरुख खान और इसके वितरक पैन मरूधर कंपनी के जयंतीलाल गाड़ा है.

सूत्रों पर यकीन किया जाए तो व्यवसाय में माहिर षाहरुख खान ने ‘डंकी’ को हिट साबित कराने व ‘सलार’ को डुबाने के लिए कई स्तर पर काम किया.सबसे पहले अपनी फिल्म ‘‘डंकी’’ का सोषल मीडिया के अलावा कोई प्रचार नही किया,मगर  प्रचार में लगने वाली राषि कुछ बड़े मीडिया घरानों, एफएम रेडियो व कुछ यूट्यूबरों को इस षर्त पर दिया कि वह उनकी फिल्म ‘डंकी’ की हर हाल में प्रषंसा करेंगे.परिणामतः ऐसे मीडिया घराने व यूट्यूबरों ने एक माह पहले से ही चिल्लाना षुरू कर दिया था कि ‘डंकी’ इस साल हजार करोड़ से अधिक कमा कर सारे रिर्काड तोड़ देगी.जबकि वाहियात फिल्म ‘डंकी’ तो छह दिन बाद भी दो सौ करोड़ का आंकड़ा नहीं छू पायी है.

इन मीडिया घरानों,चाटुकार फिल्म क्रिटिक्स व यूट्यूबरों ने 21 दिसंबर को जब फिल्म ‘डंकी’  देखकर निकलने वाला दर्षक फिल्म को गालियां देते हुए अपनी टिकट के पैसे वापस मांग रहा था,तब भी यह फिल्म क्रिटिक्स व यूट्यूबर ‘डंकी’ को चार व साढ़े चार स्टार देते हुए अखबारो में अपने नाम का विज्ञापन छपवा रहे थे.कुछ यूट्यूबर तो पैसे लेकर इतना बिक गए कि वह छठे दिन भी ‘सलार’ की बनिस्बत ‘डंकी’ को ज्यादा अच्छी व सफल फिल्म होने का दावा कर रहे हैं.

दूसरा कदम उठाते हुए षाहरुख खान ने अलग अलग दिनों में मुंबई के ताज लैंड होटल में देश भर के अपने फैंस क्लब के पदाध्किारियों,कारपोरेट जगत व ब्रांड के प्रतिनिधियों तथा देश भर के फिल्म वितरक व एक्जबीटरों संग बैठक की.इन सभी को एक रणनीति समझायी गयी.फैंस क्लब और कारपोरेट ने ‘डंकी’ के टिकट एडवांस में बल्क में खरीदकर बताना षुरू कर दिया. परिणामतः पहले दिन थिएटर के सामने हाउस फुल का बोर्ड था,पर अंदर बामुष्किल दस प्रतिशत दर्शक ही थे.इतना ही नही शाहरुख खान ने अपनी फिल्म ‘डंकी’ को शुक्रवार 22 दिसंबर की बजाय 21 दिसंबर गुरूवार को ही प्रदर्षित कर दिया.इसके अलावा हर वितरक व एक्जीबीटर से कहा गया कि ‘सलार’ को किसी भी सिंगल थिएटर में एक भी षो नही मिलने चाहिए.मल्टीप्लैक्स में कम से कम शो ‘सलार’ को दिए जाएं.इस बात पर मुंबई के मशहूर वितरक व एक्जीबीटर, मराठी मंदिर और सिनेमा के मालिक मनोज देसाई ने अपनी नाराजगी भी जताई और बाकायदा मीडिया में घोषणा की कि वह 22 दिसंबर को ‘मराठी मंदिर’ तथा गेईटी ग्लैक्सी में ‘सलार’ जरुर दिखाएंगे.पर शाहरुख खान व पेन मरूधर कंपनी के कर्ताधर्ता जयंतीलाल गाड़़ा अपनी जिद पर अड़े रहे.उन्हे पीवीआर मल्टीप्लैक्स व मीराज सिनेमा का समर्थन मिला.‘डंकी’ की एडवांस बुकिंग 15 दिसंबर से ही षुरू हो गयी थी,पर ‘सलार’ की एडवांस बुकिंग भी षुरू नही होने दी गयी.

अंततः फिल्म ‘सलार’ के निर्माताओं ने विरोध स्वरुप बड़ा कदम उठाते हुए दक्षिण भारत में ‘पीवीआर मल्टीप्लैक्स’ और ‘मीराज’ सिनेमा को ‘सलार’ न देने का ऐलान कर दिया.जिसे मनोज देसाई ने बहुत बड़ा व सही कदम ठहराते हुए अभिनेता प्रभास की तारीफ की.निर्माता की ओर से दिए गए आंकड़ों के अनुसार 21 दिसंबर को ‘डंकी’ ने रो धोकर महज 28 करोड़ ही कमाए.अपनी फिल्म की इतनी बुरी गति और मनोज देसाई की धमकी के आगे झुकते हुए 21 दिसंबर की रात साढ़े आठ बजे ‘सलार’ की एडवांस बुकिंग षुरू की जा सकी.

22 दिसंबर को ‘सलार’ प्रदर्षित हुई.मनोज देसाई ने मुंबई के सिंगल थिएटर ‘मराठा मंदिर’ में ‘डंकी’ की बजाय ‘सलार’ लगाई और सभी षो हाउस फुल रहे.जबकि गेईटी ग्लैक्सी में दो षो लगाए थे,वह भी ‘हाउस फुल रहे.षाहरुख खान के चाटुकार यूट्यूबर व कई चैनल गला फाड़ फाड़कर ‘सलार’ को घटिया फिल्म बताते रहे.मगर थिएटर से निकलने वाला दर्शक ‘डंकी’ की बजाय ‘सलार’ की ही तारीफ कर रहा था.जब आंकड़े आए तो ‘सलार’ने पहले ही दिन नब्बे करोड़ से अधिक कमा लिए थे.पांच दिन के बाद ‘सलार’ अपनी लागत की दोगुनी रकम कमा चुकी है. माना कि ‘सलार’ भी बहुत अच्छी फिल्म नही है.इसकी कहानी काफी जटिल हैं.फिर भी फिल्म के एक्षन दृष्य काफी अच्छे हैं.इतना ही नहीं ‘डंकी’ के मुकाबले ‘सलार’अच्छी कही जाएगी.लेकिन ‘डंकी’ में कोई दम नही है.

इतना ही नही शाहरुख खान ने वर्तमान सरकार की तरह ‘उत्तर बनाम दक्षिण’ तथा ‘हिंदी’ बनाम दक्षिण की भाषाओं की बात करते हुए लोगो से आव्हान किया कि हिंदी भाषी दर्षकों को बौलीवुड फिल्म ‘डंकी’ का समर्थन करना चाहिए.यह बात भी दर्शक को पसंद नही आयी.क्योंकि इन दिनों दर्शक क्षेत्रीय सिनेमा को ज्यादा पसंद कर रहा है.कुल मिलाकर शाहरुख खान ने जितने कदम उठाए,वह कदम उनके लिए ही नुकसान का सबक बन गए. अंदरूनी सूत्र दावा कर रहे हैं कि शाहरुख की इस हरकत से तो कारपोरेट जगत भी अंदर से उनका दुष्मन बन गया है,पर वह चुप है. लेकिन ‘डंकी’ से शाहरुख खान को जबरदस्त चोट लगी है.लोग उनकी अभिनय प्रतिभा पर भी सवालिया निशान लगा रहे हैं.

‘मराठा मंदिर’ और ‘गेईटी ग्लैक्सी’ के मालिक तथा एक्जबीटर मनोज देसाई तो शाहहरुख खान व पेन मरूधर के जयंतीलाल गाड़ा से काफी नाराज हैं.वह कहते हैं- ‘‘षाहरुख खान से मेरे अच्छे संबंध रहे हैं. इसके बावजूद उसने जो कुछ किया,वह गलत है.मैने ‘मराठा मंदिर’ में डंकी लगाने के लिए जो एडवांस रकम उन्हे दी थी,वह कब वापस मिलेगी या वापस नहीं मिलेगी,पता नहीं.पर सच यही है कि ‘डंकी’ अच्छी फिल्म नही है.‘सलार’ बहुत अच्छी फिल्म है.मैंने खुद दर्शकों को  फिल्म देखकर निकलते हुए ‘सलार’ की प्रषंसा करते हुए सुना.‘डंकी’ के शो खाली रहे,पर ‘सलार’ के सभी षो हाउस फुल जा रहे हैं.हमने ‘सलार’ से कमाई की.‘मराठा मंदिर’ में तीनों शो में हमने ‘सलार’ लगा रखा है.जबकि ‘गेईटी ग्लैक्सी’ मल्टीप्लैक्स में सलार व डंकी दोनो लगायी है,पर हम ‘सलार’ से कमा रहे हैं.प्रभास ने अच्छा काम किया है.आम दर्षक ‘सलार’ की ही तारीफ कर रहा है.आम जनता को ‘डंकी’ पसंद नही आ रही है. शाहरुख खान या राज कुमार हिरानी तो हमें फिल्म बेचकर कमा कर बैठ गए हैं.नुकसान तो हमें यानी कि एक्जबीटर को हो रहा है.हमारे पैसे तो वापस मिलने से रहे.‘सलार’ के अभिनेता प्रभास एक्स्ट्रा ऑर्डीनरी इंसान व कलाकार है.उन्होने हैदराबाद व चेन्नई में मिराज सिनेमा ग्रुप व ‘पीवीआर’ को ‘सलार’ न देने का ऐलान कर जो कदम उठाया वह बहुत सराहनीय कदम रहा.मैं तो प्रभास के इस कदम से बहुत खुष हुआ.किसी को भी दादागीरी नही करनी चाहिए.पेन मरुधर ने तो अनप्रोफेेषनल रवैय्या अपनाया.ऐसा किसी को नही करना चाहिए.अब आप खुद सोचिए कि मल्टीप्लैक्स होते हुए भी हमें ‘सलार’ की बुकिंग नही खोलने दी.गुरूवार की रात साढ़ेे आठ बजे बुकिंग खोलने दी.यह कितना गलत तरीका रहा.इससे षाहरुख खान को ही चैतरफा नुकसान हुआ है.मैं तो जयंतीलाल गाड़ा से कहना चाहॅंूगा कि इस तरह से थिएटर के साथ चीटिंग मत करो.यह पब्लिक सब जानती है.हमें तो पब्लिक की ही बात माननी है.‘सलार’ तो प्रोफेषनल इंसान अनिल थडानी के पास है.उसने एकदम सही काम किया.’’

‘पेन मरूधर’ के जयंतीलाल गाड़ा गुजराती हैं और बार बार दोहराते रहते हैं कि हर रचनात्मक काम को लोगों तक पहुॅचाने के लिए गुजराती का साथ जरुरी है.यही बात उन्होने फिल्म‘ में अटल हॅूं’ ट्रेलर लांच पर भी कही.

बहरहाल,‘डंकी’ को लेकर शाहरुख खान बतौर कलाकार व व्यवसायी विफल रहे.शायद उन्हे किसी ने यह नही बताया था कि जिससे मुकाबला हो,उससे जीत हासिल करने के लिए उसकी लकीर से बड़ी अपनी लकीर खींचनी चाहिए, न कि सामने वाले की लकीर को काटकर छोटा कर अपनी लकीर को बड़ा बताने का प्रयास करना चाहिए.जो ऐसा करते हैं,वह औंधे मुंह ही गिरते हैं.

मम्मियां: आखिर क्या था उस बच्चे का दर्द- भाग 2

अक्षय सभी बच्चों में अलग ही दिखता था. वह खूब शरारत करता. कभी मिट्टी किसी के ऊपर फेंकता, कभी अपने मित्रों के साथ दौड़ लगाता अब वह आता तो था किंतु खेलता नहीं था. कई बार तो शाम तक स्कूल यूनिफौर्म ही पहने होता. दूर से ही खेलते मित्रों को देखता, तो कभी पास बैठा उन सब की मम्मियों को देखता रहता.

अभी परसों शाम की ही बात है. चिरायु ने अपनी दोनों मुट्ठियों में रेत भर कर अक्षय पर उछाल दी. प्रत्युत्तर में अक्षय ने न तो रेत उस पर उछाली न ही उस से पहले की तरह ?ागड़ा किया. किसी परिपक्व व्यक्ति की तरह अपना सिर नीचा किया और रेत ?ाड़ दी अपने नन्हे हाथों से. न जाने क्यों उस का इस तरह अचानक सम?ादार हो जाना तनूजा को हिला गया भीतर तक. मन ही मन उस ने ठान लिया कि वह पता
लगा कर रहेगी कि आखिर इस की मम्मी को हुआ क्या है? क्यों यह 4 वर्ष का बच्चा परिपक्व व्यवहार कर रहा है?

इस की जानकारी के लिए शांति और नमिता सर्वश्रेष्ठ स्रोत थीं. अगली सुबह 6 बजे ही तनूजा नीचे आ गई. बच्चे चिढ़ रहे थे, ‘‘मां, इतनीजल्दी क्यों ले आईं आप हमें? अभी तो पूरे 15 मिनट हैं.’’
‘‘थोड़ा पहले आ गए तो क्या हो गया? देखो, कितनी फ्रैश हवा है इस समय. थोड़ा वाक करो, तुम्हें अच्छा लगेगा.’’

तभी तन्मयी बोली, ‘‘देखो भैया, सनराइज हो रहा है. कितना अच्छा लग रहा है न?’’
‘‘हां तन्मयी. और उधर देखो मून अब भी दिखाई दे रहा है, सन ऐंड मून टुगैदर… अमेजिंग न?’’
तनूजा का ध्यान उन की बातों पर नहीं गया. उस की आंखें तो शांति और नमिता को खोज रही थीं. उस ने बच्चों को गाड़ी में बैठाया और लौट चली. थोड़ी ही दूर बढ़ी थी कि देखा शांति सामने ही खड़ी थीं. उन से 10 कदम ही पीछे थीं नमिता. उन के बच्चे स्कूल बस में बैठ चुके थे.

तनूजा फुरती से उन की ओर बढ़ी और अभिवादन किया, ‘‘हैलो, गुडमौर्निंग शांतिजी.’’
‘‘गुडमौर्निंग, हम तो हर रोज आप को देखते हैं, आप से बात भी करना चाहते हैं पर आप इतना तेज चलती हो कि…’’ शांति ने कहा.

‘‘अगर वाक के दौरान बातें करने लगो तो वाक तो रह ही जाती है,’’ तनूजा ने शीघ्रता से उन की बात के प्रवाह को काट दिया, नहीं तो अनवरत बहता रहता.

नमिता के तेज गंध वाले डिओ से छींकने लगी तनूजा, तो नमिता ने अपने मिठासयुक्त धीमे स्वर में कहा, ‘‘आप को जुकाम हो गया है न?’’

‘‘हां बस हलका सा.’आज उसे भी मंथर गति से वाक करना था उन के साथ. लेकिन किसी के निजी जीवन में ताक?ांक करना उस का स्वभाव नहीं था, इसलिए जो जानना चाहती थी पूछ नहीं पा रही थी. अभी सोच ही रही थी कि कैसे पूछूं कि सामने से अक्षय आता दिखा. उस के पापा उत्तम सिब्बल उस के साथ आ रहे थे और वह सुबक रहा था.

तनूजा से रहा नहीं गया. उस ने सुबकते अक्षय को थपथपा कर पूछा, ‘‘क्या हो गया बेटा, क्यों रो रहे हो?’’ उस की थपकी शायद उत्तम सिब्बल को नागवार गुजरी. अक्षय की बांह पकड़ कर उसे लगभग घसीटते हुए वे बोले, ‘‘चल जल्दीजल्दी, वैन छूट गई तो 2 ?ापड़ दूंगा खींच कर.’’ आग्नेय नेत्रों से वे तनूजा को भी घूर रहे थे.

पास खड़ी शांति ‘च्च, च्च, च्च…’ करती हुई बोली, ‘‘बेचारे… मम्मी तो भाग गई, इस बेचारे को छोड़ गई.’’
‘‘यू मीन कहीं चली गई है?’’ तनूजा व्यग्र थी.

‘‘नहीं जी, भाग गई.’’

तनूजा विस्मित सी खड़ी रह गई, ‘‘भाग गई, कहां…?’’

शांतिजी शांति से बोलीं, ‘‘आप को तो कुछ पता नहीं. बच्चाबच्चा जानता है कि वह बदमाश अर्चना सामने वाले चोपड़ाजी के लड़के के साथ…,’’ फिर अपनी तर्जनी को हवा में एक चक्र की भांति घुमा कर बोलीं, ‘‘सम?ा गईं न आप? ये उस को एसएमएस करती, वह इसको… पता नहीं कहांकहां घूमने जाते थे. घर पर पता चला तो अक्षय के पापा ने बहुत पीटा अर्चना को.’’

नमिता जो अब तक शांत थीं, बोल पड़ीं, ‘‘उन्होंने तो चोपड़ा साहब के घर जा कर उन के बेटे को भी बहुत मारा, गाली दी, तोड़फोड़ की.

फिर अर्चना पता नहीं कहां चली गई और यह बेचारा बच्चा…’’

शांतिजी अपने माथे पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘ये बेचारा तो यहां मां के कुकर्मों की सजा भुगत रहा है.’’
उन के शब्दों के चयन पर तनूजा को घृणा हो आई. वह वहीं खड़ी रह गई. वे दोनों आगे जा चुकी थीं. उसे इस बात पर विश्वास करना कठिन जान पड़ रहा था. अर्चना इतनी सुसंस्कृत… ऐसा कैसे कर सकती है? और चोपड़ाजी का लड़का तो 22-23 वर्ष का ही है. नहींनहीं, ऐसा हो नहीं सकता, सोचतेसोचते सिर भारी हो गया उस का.

गरमी की छुट्टियां चल रही थीं. तनूजा का आजकल सुबह नीचे आना नहीं होता था. तन्मयी और तनिष्क ने स्विमिंग क्लासेज जाना शुरू किया था. सुबह 9.30 बजे जाते और आतेआते 12 बज जाते. थके हुए वे दोनों खापी कर जो सोते तो शाम को ही नींद खुलती उन की. वह भी अकसर उन के पास सो जाती थी. उस दिन वह बहुत देर तक सोती रही तो उस के बेटे तनिष्क ने उसे उठाया. वह उठी तो उसे याद आया कि आज दिव्यांशु की बर्थडे पार्टी में जाना है. सलिल सुबह कह गए थे तैयार रहने को और गिफ्ट भी लाना है. वह फुरती से उठी और तैयार हो कर बाजार चली गई.

10 वर्ष के दिव्यांशु के लिए कोई गिफ्ट तनूजा को सू?ा नहीं रहा था. 3 गिफ्ट शौप्स छान मारी थीं. बस अब एक और देख लेती हूं और वहीं से कुछ न कुछ ले लूंगी, तय किया उस ने. सेल्समैन को गिफ्ट दिखाने को कह वह स्वयं भी रखी हुई चीजें देखने लगी. सेल्समैन ने दर्जनों चीजें दिखाईं किंतु एक न जंची उसे. तभी पिछले काउंटर से एक महिला स्वर उभरा, ‘‘मैडम, आप इधर आइए. यहां कुछ गेम्स ऐसे
हैं, जो इस ऐज ग्रुप के लिए काफी इंटरैस्टिंग और इन्फौर्मेटिव हैं.’’

तनूजा ने पीछे मुड़ कर देखा तो चौंक गई. वह अर्चना थी, अक्षय की मम्मी.

‘‘ओह आप, नमस्ते,’’ हाथ जोड़ कर बड़ी नम्रता से उस ने कहा.

‘‘तुम यहां कैसे अर्चना?’’

‘‘ये मेरे अंकल की शौप है. घर पर बैठी बोर हो रही थी, सोचा यहां थोड़ा टाइमपास हो जाएगा, बस इसीलिए चली आई.’’

पिछले कुछ समय से नन्हे अक्षय की उदासी से हो रही घुटन से तनूजा ने उसी क्षण मुक्त होना चाहा, इसलिए वह बोली, ‘‘टाइमपास? तुम यहां टाइमपास कर रही हो और वहां तुम्हारा बच्चा किस हाल में है, जानती हो? छोटा सा बच्चा न हंसता है, न खेलता है, न शरारत करता है. बस चुपचाप सब को देखता रहता है. आखिर बच्चों को जन्म क्यों देती हैं तुम्हारे जैसी औरतें…?’’

बीच में ही बात काटते हुए अर्चना बोली, ‘‘ऐक्सक्यूज मी, तुम्हारे जैसी औरतों से आप का क्या तात्पर्य है?’’ और तनूजा के कुछ कहने से पहले ही फिर बोली वह, ‘‘मैं आप की रिस्पैक्ट करती हूं, इसीलिए कुछ नहीं कहूंगी… प्लीज आप यहां से चली जाएं. और हां, मेरे बेटे के लिए आप परेशान न हों.’’

‘मेरा बेटा’ सुन कर एक आशा जागी तनूजा के मन में. साथ ही शर्मिंदगी भी हो आई कि आखिर क्या जरूरत थी मु?ो इस सब में पड़ने की?

फिर उस ने गाड़ी स्टार्ट की ही थी कि एक प्रौढ महिला को अपनी ओर आते देखा. वे उसे हाथ से रुकने का इशारा कर रही थीं. पास आने पर वे बोलीं, ‘‘अर्चना के व्यवहार के लिए मैं आप से माफी मांगती हूं. मैं उस की मां हूं. वह जब से अपने घर से आई है बहुत चिड़चिड़ी हो गई है.’’

मैं एक फोटोग्राफर हूं पूरे दिन काम करता हू दर्द होता है तो पेनकिलर लेना पड़ता, अब इस समास्या से छुटकारा पाना है

सवाल

मैं 25 साल का हूं. मैं एक फोटोग्राफर हूं, इसलिए मुझे पूरापूरा दिन खड़े हो कर फोटोशूट करना पड़ता है. कई बार बाहर भी जाना पड़ता है, जहां आराम के लिए वक्त ही नहीं मिल पाता है. ऐसे में मेरा शरीर दर्द से टूटने लगता है और सिरदर्द भी होता है, जिस के कारण मुझे पेनकिलर लेनी पड़ती है. मुझे डर है कि कहीं पेनकिलर मेरे स्वास्थ्य पर भारी न पड़ जाए. कृपया मुझे समस्या से छुटकारा पाने का समाधान बताएं?

जवाब

इस प्रकार की व्यस्त जीवनशैली के कारण युवा अकसर ऐसी समस्याओं की चपेट में आ जाते हैं. पूरा दिन एक ही मुद्रा में खड़े या बैठे रहने के कारण नसों पर दबाव पड़ता है, जिस से दर्द की शिकायत होती है. थकावट, भूखा रहने, कम पानी पीने और आराम न मिलने के कारण सिरदर्द की समस्या होती है. इस के जिम्मेदार हम खुद होते हैं. कामकाज को महत्त्व देने के चक्कर में खुद के स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं. समस्या से छुटकारा पाना है तो सब से पहले शरीर को आराम देना सीखें. काम के बीच में कुछ वक्त निकाल कर शरीर को स्ट्रैच करें, समय पर खाना खाएं, पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं और बीचबीच में बैठ कर शरीर को आराम दें. इस के अलावा रूटीन में ऐक्सरसाइज, पौष्टिक आहार आदि शामिल करें. समस्या ज्यादा होती है तो डाक्टर से परामर्श लें. इसे हलके में लेना भारी पड़ सकता है. किसी भी समस्या के लिए खुद से दवा कभी न लें. डाक्टर के परामर्श पर ही दवा का सेवन करें.

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