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न्यू ईयर पर घर में बनाएं चौको चिप कुकीज और डच चौकलेट

कुछ हटके बनाने का प्लान कर रहीं है तो इस नव वर्ष पर घर पर बनाएं लजीज और स्वादिष्ट  कुकीज. आइए रेसिपी आपको बताते है.

  1. चौको चिप कुकीज

सामग्री

80 ग्राम मैदा

 चुटकीभर बेकिंग सोडा

  20 ग्राम मक्खन

 15 ग्राम ब्राउन शुगर

  30 ग्राम कैस्टर शुगर

  1 बड़ा चम्मच दूध

  2-3 बूंदें वैनिला ऐसेंस

  2 बड़े चम्मच चौको चिप्स.

विधि

मैदा, बेकिंग पाउडर, ब्राउन शुगर और कैस्टर शुगर को एक बाउल में डाल कर मिलाएं. फिर उस में मक्खन डालें. फिर दूध डाल कर सौफ्ट डो तैयार करें. अब उस में थोड़े से चौको चिप्स डाल कर मिलाएं और कुकीज का आकार दें. इस के बाद इसे थोड़े से दूध व मक्खन से ग्लेज कर के पहले से गरम 1500 सैंटीग्रेड ओवन पर 10 मिनट बेक करें. ठंडा कर एक कंटेनर में रखें.

2.  डच चौकलेट

सामग्री

30 ग्राम नारियल बुरादा

  15 ग्राम चौकलेट पाउडर

  40 ग्राम बिस्कुट क्रंब्स

  15 ग्राम कंडैंस्ड मिल्क

  10 ग्राम पिघला मक्खन

  चुटकीभर इलायची पाउडर

  सजाने के लिए थोड़ी सी जेम्स

  कोटिंग के लिए नारियल बुरादा.

विधि

बिस्कुट क्रंब्स में चौकलेट, इलायची पाउडर और नारियल डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इस में मक्खन डाल कर अच्छी तरह चलाएं. अब इस में कंडैंस्ड मिल्क डाल कर डो तैयार करें. फिर हाथों पर थोड़ी सी चिकनाई लगा कर उस की छोटी बौल्स तैयार कर उन्हें नारियल के बुरादे से रोल कर जेम्स से सजा सर्व करें.

3. कोकोनट मैकरून

सामग्री

100 ग्राम नारियल का बुरादा

 चुटकीभर बेकिंग पाउडर

  चुटकीभर सोडा

  50 ग्राम मैदा

  40 ग्राम चीनी

15 ग्राम पिघला मक्खन

  1-2 बड़े चम्मच दूध

  1 बड़ा चम्मच नारियल का बुरादा गार्निशिंग के लिए

  नमक स्वादानुसार.

विधि

एक बाउल में नारियल का बुरादा ले कर उस में बेकिंग पाउडर, सोडा और नमक मिला कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर उस में मैदा, चीनी व मक्खन मिला कर तब तक चलाती रहें जब तक मिश्रण चूरे की तरह न हो जाए. अब इस में दूध मिला कर नर्म आटा गूंध कर लोइयां बनाएं और उन्हें ओवनप्रूफ ट्रे में रख थोड़ा सपाट करें. फिर पहले से गरम ओवन में 1500 सैंटीग्रेड पर 10 मिनट  बेक करें. मैकरून बन कर तैयार हैं. ऊपर से थोड़ा नारियल बुरक कर नारियल को हलका सुनहरा करने के लिए 2-3 मिनट और बेक करें. ठंडा कर सर्व करें.

सन्नाटा: पंछी की तरह क्यों आजाद होना चाहता था सुखलाल

इस वृद्ध दंपती का यह 5वां नौकर  सुखलाल भी काम छोड़ कर चला गया. अब वे फिर से असहाय हो गए. नौकर के चले जाने से घर का सन्नाटा और भी बढ़ गया. नौकर था तो वह इस सन्नाटे को अपनी मौजूदगी से भंग करता रहता था. काम करते-करते कोई गाना गुन-गुनाता रहता था. मुंह से सीटी बजाता रहता था. काम से फारिग हो जाने पर टीवी देखता रहता था. बाहर गैलरी में खड़े हो कर सड़क का नजारा देखने लगता था. उस की उपस्थिति का एहसास इस वृद्ध दंपती को होता रहता था. उन के जीवन की एकरसता इस के कारण ही भंग होती थी, इसीलिए वे आंखें फाड़फाड़ कर उसे देखते रहते थे. दोनों जब तब नौकर से बतियाने का प्रयास भी करते रहते थे.

दोनों ऊंचा सुनते थे, लिहाजा, आपस में बातचीत कम ही कर पाते थे. संकेतों से ही काम चलाते थे. इसी कारण आधीअधूरी बातें ही हो पाती थीं.

जब कभी वे आधीअधूरी बात सुन कर कुछ का कुछ जवाब दे देते थे तो नौकर की मुसकराहट या हंसी फूट पड़ती थी. तब वे समझ जाते थे कि उन्होंने कुछ गलत बोल दिया है. उन्हें अपनी गलती पर हंसी आती थी. इस तरह घर के भीतर का सन्नाटा कुछ क्षणों के लिए भंग हो जाता था.

मगर अब नौकर के चले जाने से यह क्षण भी दुर्लभ हो गए. बाहर का सन्नाटा बोझिल हो गया. अपनी असहाय स्थिति पर वे दुखी होने लगे. इस दुख ने भीतर के सन्नाटे को और भी बढ़ा दिया. इस नौकर ने काम छोड़ने के जो कारण बताए उस से इन की व्यथा और भी बढ़ गई. उन्हें अफसोस हुआ कि सुखलाल के लिए इस घर का वातावरण इतना असहनीय हो गया कि वह 17 दिन में ही चला गया.

वृद्ध दंपती को अफसोस के साथसाथ आश्चर्य भी हुआ कि मांगीबाई तो इस माहौल में 7-8 साल तक बनी रही. उस ने तो कभी कोई शिकायत नहीं की. वह तो इस माहौल का एक तरह से अंग बन गई थी. इस छोकरे सुखलाल का ही यहां दम घुटने लगा.

सुखलाल से पहले आए 4 नौकरों ने भी इस घर के माहौल की कभी कोई शिकायत नहीं की. वे अन्य कारणों से काम छोड़ कर चले गए. मांगीबाई के निधन के बाद उन्हें सब से पहले आई छोकरी को चोर होने के कारण हटाना पड़ा था. उस के बाद आई पार्वतीबाई को दूसरी जगह ज्यादा पैसे में काम मिल गया था, इसलिए उस ने क्षमायाचना करते हुए यहां का काम त्यागा था.

पार्वतीबाई के बाद आई हेमा कामचोर और लापरवाह निकली थी. बारबार की टोकाटाकी से लज्जित हो कर वह चली गई थी. इस के बाद आया वह भील युवक जो यहां आ कर खुश हुआ था. उसे यह घर बहुत अच्छा लगा था. पक्का मकान, गद्देदार बिस्तर, अच्छी चाय, अच्छा भोजन आदि पा कर वह अपनी नियति को सराहता रहा था. उस ने वृद्ध दंपती की अपने मातापिता की तरह बड़े मन से सेवा की थी. पुलिस में चयन हो जाने की सूचना उसे यदि नहीं मिलती तो वह घर छोड़ कर कभी नहीं जाता. वह विवशता में गया था.

उस के बाद आया यह सुखलाल, यहां आ कर दुखीलाल बन गया. 17 दिन बाद एक दिन भी यहां गुजारना उसे असहनीय लगा. 14-15 साल का किशोर होते हुए भी वह छोटे बच्चों की तरह रोने लगा था. रोरो कर बस, यही विनती कर रहा था कि उसे अपने घर जाने दिया जाए.

दंपती हैरान हुए थे कि इसे एकाएक यह क्या हो गया. यह रस्सी तुड़ाने जैसा आचरण क्यों करने लगा? इसीलिए उन्होंने पूछा था, ‘‘बात क्या है? रो क्यों रहा है?’’

इस के उत्तर में सुखलाल बस, यही कहता रहा था, ‘‘मुझे जाने दीजिए, मालिक. मुझ से यहां नहीं रहा जाएगा.’’

तब प्रश्न हुआ था, ‘‘क्यों नहीं रहा जाएगा? यहां क्या तकलीफ है?’’

सुखलाल ने हाथ जोड़ कर कहा था, ‘‘कोई तकलीफ नहीं है, मालिक. यहां हर बात की सुविधा है, सुख है. जो सुख मैं ने अभी तक भोगा नहीं था वह यहां मिला मुझे. अच्छा खानापीना, पहनना सबकुछ एक नंबर. चमचम चमकता मकान, गद्देदार पलंग और सोफे. रंगीन टीवी, फुहारे से नहाने का मजा. ऐसा सुख जो मेरी सात पीढि़यों ने भी नहीं भोगा, वह मैं ने भोगा. तकलीफ का नाम नहीं, मालिक.’’

‘‘तो फिर तुझ से यहां रहा क्यों नहीं जा रहा है? यहां से भाग क्यों रहा है?’’

‘‘मन नहीं लगता है यहां?’’

‘‘क्यों नहीं लगता है?’’

‘‘घर की याद सताती है. मैं अपने परिवार से कभी दूर रहा नहीं, इसलिए?’’

‘‘मन को मार सुखलाल?’’ वृद्ध दंपती ने समझाने की पूरी कोशिश की थी.

‘‘यह मेरे वश की बात नहीं है, मालकिन.’’

‘‘तो फिर किस के वश की है?’’

इस प्रश्न का उत्तर सुखलाल दे न पाया था. वह एकटक उन्हें देखता रहा था. जब इस बारे में उसे और कुरेदा गया था तो वह फिर रोने लगा था. रोतेरोते ही विनती करने लगा था, ‘‘आप तो मुझे बस, जाने दीजिए. अपने मन की बात मैं समझा नहीं पा रहा हूं.’’

वृद्ध दंपती ने इस जिरह से तंग आ कर कह दिया था, ‘‘तो जा, तुझे हम ने बांध कर थोड़े ही रखा है.’’

सुखलाल ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा था, ‘‘जाऊं? आप की इजाजत है?’’

‘‘हां सुखलाल, हां. हम तुझे यहां रहने के लिए मजबूर तो नहीं कर सकते?’’

सुखलाल का चेहरा खिल उठा. वह अपना सामान समेटने लगा था. इस बीच वृद्ध दंपती ने उस का हिसाब कर दिया था. वह अपना झोला ले कर उन के पास आया तो उन्होंने हिसाब की रकम उस की ओर बढ़ाते हुए कहा था, ‘‘ले.’’

सुखलाल ने यह रकम अपनी जेब में रख कर अपना झोला दंपती के सामने फैलाते हुए कहा था, ‘‘देख लीजिए,’’ मगर वृद्ध दंपती ने इनकार में हाथ हिला दिए थे.

सुखलाल ने दोनों के चरणस्पर्श कर भर्राए स्वर में कहा था, ‘‘मुझे माफ कर देना, मालिक. आप लोगों को यों छोड़ कर जाते हुए मुझे दुख हो रहा है, पर करूं भी क्या?’’ इतना कह कर वह फर्श पर बैठते हुए हाथ जोड़ कर बोला था, ‘‘एक विनती और है?’’

‘‘क्या…बोलो?’’

‘‘बड़े साहब से मेरी शिकायत मत करिएगा वरना मेरे मांबाप आदि की नौकरी खतरे में पड़ जाएगी. इतनी दया हम पर करना.’’

बड़े साहब से सुखलाल का आशय वृद्धा के भाई फारेस्ट रेंजर से था. वही अपने विश्वसनीय नौकर भिजवाता रहा था. उसी ने ही इस सुखलाल को भी नर्सरी में परख कर भिजवाया था. वह अपने परिवार के साथ वहीं काम कर रहा था.

वृद्ध दंपती से कोई आश्वासन न मिलने पर वह फिर गिड़गिड़ाया था, ‘‘बड़े साहब के डर के कारण ही इतने दिन मैं ने यहां काटे हैं. वरना मैं 2-4 दिन पहले ही चल देता. मेरा मन तो तभी से उखड़ गया था.’’

‘‘मन क्यों उखड़ गया था?’’

तब सुखलाल आलथीपालथी मार कर इतमीनान से बैठते हुए बोला था, ‘‘मन उखड़ने का खास कारण था यहां का सन्नाटा, घर के भीतर का सन्नाटा. यह सन्नाटा मेरे लिए अनोखा था क्योंकि मैं भरेपूरे परिवार का हूं, मेरे घर में हमेशा हाट बाजार की तरह शोरगुल मचा रहता है.

‘‘मगर यहां तो मरघट जैसे सन्नाटे से मेरा वास्ता पड़ा. हमेशा सन्नाटा. किसी से बातें करने तक की सुविधा नहीं. आप दोनों बहरे, इस कारण आप से भी बातें नहीं कर पाता था. अभी की तरह जोरजोर से बोल कर काम लायक बातें ही हो पाती थीं, इसीलिए मेरा दम जैसे घुटने लगता था. मैं बातूनी प्रवृत्ति का हूं. मगर यहां मुझे जैसे मौन व्रत साधना पड़ा, इसीलिए यह सन्नाटा मुझे जैसे डसने लगा.

‘‘मुझे ऐसा लगने लगा कि जैसे मैं किसी पिंजरे में बंद कर दिया गया हूं. इसीलिए मेरा मन यहां लगा नहीं. मेरा घर मुझे चुंबक की तरह खींचने लगा. आप दोनों को जब तब इस छोटी गैलरी में बैठ कर सामने सड़क की ओर ताकते देख कर मुझे पिंजरे के पंछी याद आने लगे. इस पिंजरे से बाहर जाने को मैं छटपटाने लगा. मेरा मन बेचैन हो गया. इसीलिए आप से यह विनती करनी पड़ी. मेरे मन की दशा बड़े साहब को समझा देना. मैं बड़े भारी मन से जा रहा हूं.’’

छोटे मुंह बड़ी बातें सुन कर वृद्ध दंपती चकित थे. उन्हें आश्चर्य हुआ था कि साधारण, दुबलेपतले इस किशोर की मूंछें अभी उग ही रही हैं मगर इस ने उन की व्यथा को मात्र 17 दिन में ही समझ लिया. गैलरी में बैठ कर हसरत भरी निगाहों से सामने सड़क पर बहते जीवन के प्रवाह को निहारने के उन के दर्द को भी वह छोकरा समझ गया, इसीलिए उन का मन हुआ था कि इस समझदार लड़के से कहें कि तू ने पिंजरे के पंछी वाली जो बात कही वह बिलकुल सही है. हम सच में पिंजरे के पंछी जैसे ही हो गए हैं. शारीरिक अक्षमता ने हमें इस स्थिति में ला दिया.

शारीरिक अक्षमता से पहले हम भी जीवन के प्रवाह के अंग थे, अब दर्शक भर हो गए. शारीरिक अक्षमता ने हमें गैलरी में बिठा कर जीवन के प्रवाह को हसरत भरी नजरों से देखते रहने के लिए विवश कर दिया. सामने सड़क पर जीवन को अठखेलियां करते, मस्ती से झूमते, फुदकते एवं इसी तरह अन्य क्रियाएं करते देख हमारे भीतर हूक सी उठती है. अपनी अक्षमता कचोटती है. हमारी शारीरिक अकर्मण्यता हमारी हथकड़ी, बेड़ी बन गई. पिंजरा बन गई. हम चहचहाना भूल गए.

वृद्ध दंपती का मन हो रहा था कि वे सुखलाल से कहें कि हाथपांव होते हुए भी वे हाथपांवविहीन से हो गए. बल्कि जैसे पराश्रित हो गए. पाजामे का नाड़ा बांधना, कमीज के बटन लगाना, खोलना, शीशी का ढक्कन खोलना, पैंट की बेल्ट कसना, अखबार के पन्ने पलटना, शेव करना, नाखून काटना, नहाना, पीठ पर साबुन मलना जैसे साधारण काम भी उन के लिए कठिन हो गए. घूमनाफिरना दूभर हो गया. हाथपांव के कंपन ने उन्हें लाचार कर दिया.

भील युवक ने उन की लाचारी समझ कर उन्हें हर काम में सहायता देना शुरू किया था. वह उन के नाखून काटने लगा था. शेव में सहायता करने लगा था. कपड़े पहनाने लगा था. बिना कहे ही वह उन की जरूरत को समझ लेता था. समझदार युवक था. ऐसी असमर्थता ने जीवन दूभर कर दिया है.

वृद्धा के मन में भी हिलोर उठी थी कि इस सहृदय किशोर को अपनी व्यथा से परिचित कराए. इसे बतलाए कि डायबिटीज की मरीज हो जाने से वह गठिया, हार्ट, ब्लडप्रेशर आदि रोगों से ग्रसित हो गई. उस की चाल बदल गई. टांगें फैला कर चलने लगी. एक कदम चलना भी मुश्किल हो गया. फीकी चाय, परहेजी खाना लेना पड़ गया. खानेपीने की शौकीन को इन वर्जनाओं में जीना पड़ रहा है. फिर भी जब तब ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ ही जाती है. मौत सिर पर मंडराती सी लगती है. परकटे पंछी जैसी हो गई है वह. पिंजरे के पंछी पिंजरे में पंख तो फड़फड़ा लेते हैं मगर उस में तो इतनी क्षमता भी नहीं रही.

मगर दोनों ने अपने मन का यह गुबार सुखलाल को नहीं बताया. वे मन की बात मन में ही दबाए रहे. सुखलाल से तो वह इतना ही कह पाए, ‘‘हम रेंजर साहब से तुम्हारी शिकायत नहीं करेंगे, बल्कि तुम्हारी सिफारिश करेंगे. तुम निश्चिंत हो कर जाओ. हम उन से कहेंगे कि तुम्हें आगे पढ़ाया जाए.’’

सुखलाल की बांछें खिल उठी थीं. वह खुशी से झूमता हुआ चल पड़ा था. जातेजाते उस ने वृद्ध दंपती के चरण स्पर्श किए थे. बाहर सड़क पर से उस ने गैलरी में आ खड़े हुए दंपती को ‘टाटा’  किया था. उन्होंने भी ‘टाटा’ का जवाब हाथ हिला कर ‘टाटा’ में दिया था. वे आंखें फाड़फाड़ कर दूर जाते हुए सुखलाल को देखते रहे. उन्हें वही प्रसन्नता हुई थी जैसे पिंजरे के पंछी को आजाद हो कर मुक्त गगन में उड़ने पर होती है.

शादी की ड्रेस को ऐसे बनाए रखें नया

शादी से पहले वेडिंग ड्रेस को सेलेक्ट करते समय हम जितना समय खर्च करते हैं, शायद ही शादी होने के बाद कोई अपने इस खास दिन की यादगार निशानी को संभाल के रख पाता है. अगर आपको अपनी वेडिंग ड्रेस से बहुत लगाव है और उसे हमेशा के लिए सहेज के रखना चाहती हैं तो फैशन एक्सपर्ट के इन सुझावों पर डालें एक नजर…

– अपने शादी के जोड़े को ऐसी जगह कभी न रखें जहां नमी रहती हो.

– इसे रोशनी से बचाने के लिए मलमल के कपड़े में लपेट कर रखें.

– ड्रेस को हैंगर में डालकर अच्छी तरह से अलमारी के अंदर रखें. इस तरह आप कपड़े के लुक को खराब होने से बचा सकते हैं.

– किसी फंक्शन में पहनने के तुरंत बाद इसे ड्राई क्लीनिंग के लिए दे दें ताकि उस पर दाग-धब्बे न पड़े और उसकी रंगत खराब न हो.

– सफर के दौरान अपने ड्रेस के डिजाइनर हिस्सों को एसिड-फ्री व रंग न छोड़ने वाले टिश्यू से कवर करें.

गंगटोक में लें एडवेंचर ऐक्टिविटीज का मजा

अगर आपने घूमने-फिरने के लिए भारत के नार्थ ईस्ट में और वह भी खासकर सिक्किम जाने का प्लान किया है तो समझ लीजिए कि आप खुद को इससे अच्छा और कोई गिफ्ट दे ही नहीं सकतीं. यहां जाकर आपको जो अनुभव होगा उसकी अच्छी यादें जीवनभर आपके साथ रहेंगी. सिक्किम की राजधानी गंगटोक में वकेशन मनाना आपके लिए पैसा वसूल एक्सपीरियंस होगा क्योंकि यहां आप प्रकृति की खूबसूरती को करीब से महसूस करने के साथ ही अलग-अलग जगहों पर घूम सकती हैं और कई तरह की अडवेंचर ऐक्टिविटीज में भी शामिल हो सकते हैं…

पैराग्लाइडिंग का लें मजा

पैराग्लाइडिंग का नाम लेते ही भले ही आपके दिमाग में सबसे पहले बीर-बिलिंग या फिर हिमाचल प्रदेश के सोलन वैली का नाम आता हो लेकिन अब गंगटोक में भी बड़ी संख्या में लोग पैराग्लाइडिंग कर रहे हैं जिस वजह से यह एक पॉप्युलर अडवेंचर स्पोर्ट्स ऐक्टिविटी बन गई है. आकाश में पंछी की तरह उड़ते हुए हिमालय की बर्फ से ढकी पहाड़ियों के ऊपर से गुजरना और उन्हें इतने करीब से देखने का अनुभव ही आपको अंदर तक रोमांचित कर देता है. पैराग्लाइडिंग के लिए आपको किसी तरह की ट्रेनिंग की जररूत नहीं कि क्योंकि एक सर्टिफाइड एक्सपीरियंड पायलट पैराग्लाइडिंग के दौरान आपके साथ होता है.

तीस्ता नदी में राफ्टिंग

गंगटोक जाकर मोनैस्ट्रीज में सुकून हासिल करने के बाद अगर आपका मन खुद को चैलेंज करने का कर रहा है तो पहुंच जाएं तीस्ता नदी के पास जहां होती है वाइट वाटर राफ्टिंग. तीस्ता को सिक्किम की लाइफलाइन के तौर पर जाना जाता है. राफ्ट में बैठकर, लाइफ जैकेट को टाइट से बांधकर और हाथों में चप्पू पकड़ने के साथ ही राफ्टिंग शुरू होने से पहले ही आप अपने अंदर रोमांच का अनुभव करने लगेंगे. तीस्ता नदी में राफ्टिंग के दौरान कई रैपिड्स आते हैं जिन्हें 2 से 4 के बीच क्लासिफाइड किया गया है.

याक सफारी

अगर आपने घुड़सवारी की है, हाथी की सवारी की है तो इस बार गंगटोक जाकर याक की सवारी का अनुभव करें. यह एक्सपीरियंस इसलिए भी अलग होगा क्योंकि गंगटोक में आपको मिलेगा रंग-बिरंगे सजे-धजे याक पर बैठकर त्सोमगो लेक के आसपास घूमने का मौका मिलेगा. डोंगरी और त्सोमगो लेक याक राइडिंग के लिए सबसे फेमस जगहें हैं और यहां आने वाले टूरिस्ट्स भी याक की सवारी का लुत्फ उठाए बिना वापस नहीं जाते.

माउंटेन बाइकिंग

गंगटोक में माउंटेन बाइकिंग करना आपके लिए बेस्ट अडवेंचर ऐक्टिविटी का विकल्प है. हिमालय की पहाड़ियों के ऊबर-खाबड़ वाले पथरीले रास्तों पर बाइक चलाने का अपना ही मजा है. आप चाहें तो प्रफेशनल माउंटेन बाइकिंग करने वालों के साथ बाइक पर पीछे बैठकर भी जर्नी का मजा ले सकते हैं.

बेऔलाद: भाग 5- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

मगर नायरा ने नरेश से बात तक करना छोड़ दिया था. उस की तो बस एक ही जिद थी कि उसे अपनी मां से मिलना है. हार कर नरेश ने ही घुटने टेक दिए और बताया कि उस की मां दक्षिण अमेरिका के चिली में रहती है. नायरा के सामने एक बहुत बड़ी समस्या यह थी कि वहां जाने के लिए पैसे भी बहुत लगेंगे… वहां तक पहुंचेगी कैसे? वहां की भी तो यहां से अलग है. लेकिन जब उसे पता चला 12 टूरिस्टों में से एक ‘चिली’ का है तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. जब उस ने उस से बात की और अपनी समस्या से अवगत कराया तो वह नायरा की मदद के लिए तैयार हो गया. उस ने यह भी कहा कि वह नायरा को वहां की थोड़ीबहुत भाषा भी सिखा देगा. 46 साल का जेम्स बहुत ही अच्छा इंसान था. वह नायरा को ‘सिस्टर’ कह कर बुलाता था. जगहजगह घूमना और वहां की युनीक चीजों को अपने कैमरे में कैद करना उस का फैशन था.

सिर पर हाथ रखे बैठी नायरा सोच ही रही थी कि यहां तक तो समस्या सुल?झते दिख रहा है, लेकिन पैसे… वे कहां से आएंगे? बिना पैसे के वह उतनी दूर अपनी मां से मिलने कैसे जाएगी? तभी अपने सामने अपने पापा नरेश को खड़े देख वह उठ खड़ी हुई. उसे लगा नरेश फिर उसे सम?झने आया है कि वह अपनी जिद छोड़ दे. लेकिन नरेश ने उस के हाथों में ब्लैंक चैक पकड़ाते हुए कहा कि वह जितने चाहे पैसे निकल ले. लेकिन वह अपना ध्यान रखे. पहुंचने पर एक फोन जरूर कर दे. बोलते हुए नरेश की आंखों से आंसू गिर पड़े, जिन्हें वह अपनी शर्ट से पोंछने लगा ताकि नायरा देख न ले. लेकिन अगर नायरा को अपने पापा के आंसुओं की इतनी ही चिंता होती तो वह उन्हें छोड़ कर जाती ही क्यों?

उसे तो अब भी यही लग रहा था कि नरेश ने उसे उस की मां से छीन कर उसे अपनी

जिंदगी से बाहर फेंक दिया. उसे लगा रहा था दुनिया के सारे मर्द एकजैसे हैं. नरेश ने कितना सम?झया कि जैसा वह सम?झ रही है वैसा बिलकुल नहीं है और अगर उस की मां को उस से प्यार होता तो क्या वह एक बार फोन कर के उस का हालचाल नहीं पूछती? लेकिन अपनी मां की तरह ही जिद्दी नायरा, 7 समुंदर पार उस से जोली से मिलने निकल पड़ी. नायरा की बहुत सी आदतें जोली से मिलतीजुलती थीं. नायरा को भी अपनी मां की तरह आर्किटैक्चर बनने का शौक था. वह भी शादी में विश्वास नहीं रखती थी. वह भी अपनी मां की तरह देशदुनिया घूमना पसंद करती थी.

अमेरिका रवाना होते समय नरेश ने खुद की और जोली की एक पेयर फोटो नायरा को थमाते हुए कहा था कि यही उस की मां है. नरेश ने फोटो इसलिए दिया ताकि जोली को लगे कि नायरा सच कह रही है. नायरा ने देखा, देखने में वह बहुत कुछ अपनी मां जैसी ही है. रास्ते भर वह अपनी मां से मिलने के खयालों में खोयी रही. उसे तो लग रहा था जैसे वह सपना देख रही है. लेकिन यह सच था कि जेम्स की मदद से वह चिली पहुंच चुकी थी. लेकिन कई दिनों की कोशिशों के बाद भी उसे जोली के बारे में कुछ पता नहीं चल रहा था. फिर एक दिन जेम्स ने उसे बताया कि जोली का पता चल गया. उस की मां यहीं चिली में ही अपना आर्किटेक्चर का फर्म चलाती है. जेम्स ने ही सु?झया कि क्यों न वह आर्किटेक्चर में इंटर्नशिप के बहाने जोली से मिले. नायरा को यह आइडिया बहुत ही अच्छा लगा और उस ने वही किया. अपनी मां को अपने इतने करीब देख कर नायरा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. मन तो किया उस का अपनी मां के गले लग जाए और कहे कि वह उस की बेटी है. लेकिन क्या वह किसी अंजान लड़की पर भरोसा करेगी? इसलिए नायरा को अभी कुछ बताना उचित नहीं लगा.

नायरा को तो पता था वह उस की मां है, पर जोली तो नहीं जानती थी कि वह उस की बेटी है. लेकिन फिर भी उसे नायरा का साथ बहुत अच्छा लगता था. अच्छा लगने का एक कारण यह भी था कि नायरा इंडिया से थी. नहीं, उसे नरेश की याद नहीं आती थी. मगर कुछ तो था जो उसे इंडिया से जोड़े हुए था लेकिन क्या, नहीं पता उसे. नायरा यहां एक पीजी में रहती है जो जेम्स की मदद से मिला था. पीजी अच्छा था लेकिन जोली के पूछने पर कह दिया कि वहां उसे अच्छा नहीं लगता है. ताकि जोली उसे अपने घर आ कर रहने को इनवाइट करे और वह जरा नानुकर के बाद मान जाए. यह आइडिया भी उसे जेम्स ने ही दिया था. जेम्स फोन पर उस से उस का हालचाल लेता रहता था. खैर, नायरा अब जोली के साथ उस के घर आ कर ही रहने लगी थी. लेकिन उसे जोली को अपने बारे में बताने का मौका नहीं मिल रहा था.

इंसान शराब तब पीता है जब वह बहुत खुश हो या बहुत ज्यादा दुखी. जोली बहुत

दुखी थी क्योंकि आज उस के एकलौते बेटे का जन्मदिन था और वह अपनी मां से मिलना भी नहीं चाहता था. जोली का अपने पति ग्रेग से सालों पहले तलाक हो चुका था. दोनों के बीच बच्चे की कस्टडी को ले कर ?झगड़ा चला, लेकिन जीत ग्रेग की हुई. उस ने कोर्ट में यह साबित कर दिया कि जोली एक अच्छी मां नहीं और आस्टिन, जोली का बेटा उस का भविष्य उस के साथ सुरक्षित नहीं है.  हालांकि, कोर्ट ने उसे अपने बेटे से मिलने की अनुमति दी थी. पर खुद आस्टिन ही अपनी मां से मिलना नहीं चाहता है. उसे उस की मां दुनिया की सब से बुरी मां लगती है. अपने बेटे को याद कर जोली पैग पर पैग लिए जा रही थी और बकबक बोले भी जा रही थी. ज्यादा शराब कहीं जोली को नुकसान न पहुंचा दे, यह सोच कर नायरा ने उसे और शराब पीने से रोका, तो वह कहने लगी कि उस से ज्यादा बदकिस्मत औरत इस दुनिया में और कोई नहीं होगी. कहते हैं इंसान जब नशे में होता है तो सच बोलता है और आज जोली भी सारी सचाई उगलने लगी. शराब के नशे में पुरानी सारी बातें उस ने नायरा के सामने खोल कर रख दीं. यह भी कि वह नरेश के बच्चे की मां बनने वाली थी और उस ने एक बेटी को जन्म दिया था.

‘‘तो अब वह बच्चा कहां है?’’ वह जानना चाहती थी कि आखिर ऐसा क्या हुआ था कि उसे अपनी बेटी को छोड़ कर यहां आना पड़ा.

‘‘बेटी को छोड़ कर. अरे नहीं, मुझे तो वह बच्चा चाहिए ही नहीं था,’’ शराब का एक घूंट भरते हुए वह बोली.

‘‘फुलिश मैन नरेश को लगा मैं उस से प्यार करती हूं और शादी करूंगी. पागल,’’ बोल कर एक ?झटके में ही पूरा ग्लास खाली कर दिया और ठहाके लगा कर आगे बोली, ‘‘वह बच्चा मेरी जिंदगी की पहली और आखिरी गलती थी जिसे मैं ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया. मैं ने कितनी कोशिश की थी अबौर्शन कराने की पर सारे डाक्टरों ने मना कर दिया. अपने देश आ कर अबौर्शन करा नहीं सकती थी क्योंकि मुझे जेल नहीं जाना था. इसलिए मजबूरन मुझे वहां रहना पड़ा ताकि उस बच्चे को जन्म दे सकूं.’’

‘‘तो वह बच्ची कहां है अब?’’ नायरा ने पूछा.

‘‘कचरे के डब्बे में… मैं उसे कचरे के डब्बे में फेंक आई थी क्योंकि उस की असली जगह वही थी.’’

जोली की बात सुन कर नायरा सन्न रह गई. उस की आंखों से ?झर?झर आंसू बहने लगे.

‘‘मुझे उस बच्चे से कुछ लेनादेना ही नहीं था तो फिर यहां ला कर क्या करती? पता नहीं, पर उसे जरूर लावारिस जानवर खा गए होंगे,’’ बोलते हुए जोली की जबान भी नहीं लड़खड़ाई.

आखिर कोई मां इतनी बेरहम दिल कैसे हो सकती है. नायरा को अपने पापा की याद सताने लगी थी. कहा था उन्होंने जैसे वह अपने पापा के बारे में सोच रही है, बात वह नहीं बल्कि… लेकिन कहां सुन पाई थी वह नरेश की पूरी बात. बीच में ही अपने कान बंद कर लिए थे ताकि कुछ सुन ही न पाए.

जोली की 1-1 बात उसे सूई की तरह चुभ रही थी. नायरा वहां से उठ कर जाने ही लगी कि उस का सिर घूम गया और वह वहीं पर गिर पड़ी.  होश आया तो वह अस्पताल में थी. जोली उस के पास बैठी उस का माथा सहला रही थी, पूछ रही थी कि अचानक उसे क्या हो गया. लेकिन नायरा के पास कोई जवाब नहीं था. उसे तो बस अब अपने पापा के पास जाना था. नरेश ने अपनी बेटी की खातिर आज तक शादी नहीं की और इस औरत ने सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ देखा.

नायरा ने फोन कर अपने बीमार होने की बात जब नरेश को बताई, तो वह पागलों की तरह भागता हुआ यहां पहुंच गया. अचानक वर्षों बाद नरेश को अपने सामने देख कर जोली की आंखें फटी की फटी रह गईं. उसे अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि नरेश उस के सामने खड़ा है. लेकिन जब भरोसा हुआ और जाना कि नायरा कोई और नहीं, बल्कि उस की वही बेटी है जिसे वह कचरे में फेंक आई थी. बेटी के लिए उस के दिल में प्यार उमड़ पड़ा. कहने लगी, ‘‘मैं मानती हूं कि मु?झ से गलती हुई, बहुत बड़ी गलती हुई. लेकिन मुझे माफ कर दो नरेश. इतनी बड़ी सजा मत दो मुझे. प्लीज, नरेश लौटा दो मेरी बेटी मुझे,’’ जोली नरेश के सामने हाथ जोड़ कर कहने लगी, ‘‘बोलो न नायरा को वह मुझे छोड़ कर न जाए. नायरा मैं तुम्हारी मां हूं मैं ने तुम्हें जन्म दिया है. मेरा हक है तुम पर… और देखो, यह घर, औफिस यहां तक की अपना सारा बैंक बैलेंस भी मैं तुम्हारे नाम कर दूंगी. प्लीज, बेटा, माफ कर दो अपनी मां को. मत जाओ मुझे छोड़ कर,’’ घिघियाते हुए जोली दोनों के सामने हाथ जोड़ने लगी. सब उस की जिंदगी से जा चुके थे. अब उसे नायरा में ही अपना सहारा नजर आ रहा था.

‘‘माफ कर दूं आप को जिस ने मेरे पापा को सिर्फ यूज किया अपने स्वार्थ के लिए. मुझे लगा था पापा गलत है इसलिए इन से लड़?झगड़ मैं यहां आप के पास आ गई थी. लेकिन गलत थी मैं.

हमारे यहां एक कहावत है, ‘पूत भले ही कुपूत बन जाए, पर माता कभी कुमाता

नहीं होती.’ लेकिन आज देख रही हूं कि एक माता भी कुमाता हो सकती है. एक मां अपने बच्चे को मरने के लिए छोड़ सकती है,’’ बोलतेबोलते नायरा का स्वर तेज हो गया…, ‘‘और आप ने सोच भी कैसे लिए कि सबकुछ जानने के बाद भी मैं आप के साथ आ कर रहूंगी? नहीं चाहिए मुझे आप का यह घर, औफिस और बैंक बैलेंस.

‘‘पापा, आप ने सही कहा था, मेरी मां मर चुकी है,’’ कह कर नायरा अपने पापा का हाथ पकड़ कर जाने लगी, लेकिन फिर पलट कर बोली, ‘‘एक बात और… 2 बच्चों को जन्म देने के बाद भी आज तुम बेऔलाद हो और रहोगी क्योंकि तुम इसी लायक हो.’’

अपनी बेटी को जाते वह देखती रह गई क्योंकि उसे रोकने का उसे कोई हक नहीं था. उस के लिए तो उस की बेटी कब की मर चुकी थी.

क्या फर्क पड़ता है: भाग 3

सोम के प्यार की गहराई समझ सकता हूं मैं. बहुत प्यार करता है वह अपनी मां से, तभी तो मेरे साथ बांट नहीं पाया. पहली बार सोम का मन समझा मैं ने, क्योंकि इस से पहले मुझे यथार्थ का पता नहीं था.

संतान की चाह में मौसी ने सोम को गोद लिया था, अधूरेअधूरे आपस में मिल जाएं तो संपूर्ण होने का सुख पा सकते हैं, यही समझ पा रहा हूं मैं. इन 2 अधूरों में एक अधूरा मैं भी आ मिला था जिस की वजह से जरा सी हलचल हो गई थी.

‘‘अपनापराया वास्तव में हमारे मन की ही समझ और नासमझ होती है अजय. मन जिसे अपना माने वही अपना. अपना होने के लिए खून के रिश्ते की जरूरत नहीं होती. सोम अनाथ था, मेरी गोद खाली थी… मिल कर पूरे हो गए न दोनों. मेरा जीना, मेरा मरना, मेरी विरासत… आज मेरा जो भी है सोम का ही है न. हर जगह सोम का नाम है, लेकिन इस के बावजूद मैं सोम की कैदी तो नहीं हूं न. मुझे जो प्यारा लगेगा, जो मेरे मन को छू लेगा, वह मेरा होगा. मुझे किसी सीमा में बांधना सोम को शोभा नहीं देता.’’

‘‘मां, सच तो यह है कि मैं तो यह सचाई ही नहीं सहन कर पा रहा हूं कि तुम ने मुझे जन्म नहीं दिया. तुम ने भी कभी नहीं बताया था न.’’

‘‘उस से क्या फर्क पड़ गया, जरा सोच ठंडे दिमाग से. अजय का खून मेरे खून से मिल गया. इस की जात भी हमारी जात से मिल गई, तो तुम्हें लगा अब यह तुम्हारी जगह ले लेगा? इतनी असुरक्षा भर गई तुम्हारे मन में.

‘‘अरे, यह बच्चा क्या छीनेगा तेरा. यह भूखानंगा है क्या. इसे पालने वाले हैं इस के पास. भाईबहन हैं इस के. इसे कोई कमी नहीं है, जो यह तेरा सब छीन ले जाएगा, लावारिस नहीं है तुम्हारी तरह.’’

‘‘मैं ने ऐसा नहीं सोचा था, मां.’’

‘‘अगर नहीं सोचा था तो भविष्य में सोचना भी मत. इतनी ही तकलीफ हो रही है तो बेशक चले जाओ अपने घर. शराबी पिता और सौतेली मां हैं वहां. अनपढ़गंवार भाईबहन हैं. तुम भी वैसे ही होते अगर मैं न उठा लाती, आज इतनी बड़ी कंपनी में अधिकारी नहीं होते. सच पता चल गया तो मेरे शुक्रगुजार नहीं हुए तुम, उलटा मुझ पर पहरे बिठाने शुरू कर दिए. बातबात पर ताना देते हो. क्या पाप कर दिया मैं ने? तुम को जमीन से उठा कर गोद में पालापोसा, क्या यही मेरा दोष है?’’

‘‘मौसी, ऐसा क्यों कह रही हैं आप? आप का बेटा है सोम.’’

‘‘मेरा बेटा है तो मेरे मरने का इंतजार तो करे न मेरा बेटा. यह तो चाहता है कि आज ही अपना सब इस के नाम कर दूं. अगर यह मेरी कोख का जाया होता तो क्या तब भी ऐसा ही करता? जानते हो, तुम्हारे घर किस शर्त पर लाया है मुझे कि भविष्य में मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगी. घर के कागज भी तैयार करवा रखे हैं. अगर सचमुच इस से प्यार करती हूं तो सब इस के नाम कर दूं, वरना मुझे छोड़ कर ही चला जाएगा…तुम्हारे मौसा ने समझाया भी था कि किसी रिश्तेदार का ही बच्चा गोद लेना चाहिए. तब भी अपनी गरीब बाई का नवजात बच्चा उठा लिया था मैं ने. सोचा था, गीली मिट्टी को जैसा ढालूंगी, ढल जाएगी. नहीं सोचा था, मेरी शिक्षादीक्षा का यह इनाम मिलेगा मुझे.’’

सोम चुप था और उस की गरदन झुकी थी. मैं भी स्तब्ध था. यह क्याक्या भेद खोलती जा रही हैं मौसी.

‘‘अब मैं इस के साथ घर नहीं जाऊंगी, अजय. आज रात अपने घर रहने दो. सुबह 10 बजे की गाड़ी से मैं इलाहाबाद चली जाऊंगी. यह क्या छोड़ेगा मुझे, मैं ही इसे छोड़ कर जाना चाहती हूं.’’

सोम मौसी के पैर पकड़ कर रोने लगा था.

‘‘मुझे अब तुम पर भरोसा नहीं रहा. रात में गला दबा कर मार डालो तो किसे पता चलेगा कि तुम ने क्या किया. जब से अजय हम से मिलनेजुलने लगा है, तुम्हारे चरित्र का पलपल बदलता नया ही रूप मैं हर रोज देखती हूं…इस बच्चे को मुझ से क्या लालच है. जब भी मिलता है मुझे कुछ दे कर ही जाता है. कभी अपना खून देता है और कभी यह कीमती शाल. बदले में क्या ले जाता है, जरा सा प्यार.’’

नहीं मानी थीं मौसी. सोम चला गया वापस. रात भर मौसी मेरे घर पर रहीं.

‘‘मेरी वजह से आप दोनों में इतनी दूरी चली आई.’’

‘‘सोम ने अपना रंग दिखाया है, अजय. तुम नहीं आते तो कोई और वजह होती लेकिन ऐसा होता जरूर. तुम्हारे मौसाजी कहते थे, ‘मांबाप के खून का असर बच्चे में आता है. मनुष्य के चरित्र की कुछकुछ बुराइयां या अच्छाइयां पीढ़ी दर पीढ़ी सफर करती हैं. सोम के पिता ने शराब पी कर जिस तरह इस की मां को मार डाला था, ऐसा लगता है उसी चरित्र ने सोम में भी अपना अधिकार जमा लिया है. कल इस लड़के ने जिस बदतमीजी से मुझ से बात की, बरसों पुराना इस के पिता का वह रूप मुझे इस में नजर आ रहा था.’’

भर्रा गया था मौसी का स्वर.

सुबह मैं मौसी को इलाहाबाद की गाड़ी में चढ़ा आया. वहां मौसी का मायका है और मौसाजी की विरासत भी.

आफिस में सोम से मिला. क्या कहतासुनता मैं उस से. वह घर की बाई का बच्चा है, इसी शर्म में वह डूबा जा रहा था. कल को सब को पता चला तो आफिस के लोग क्या कहेंगे.

‘‘शर्म ही करनी है तो उस व्यवहार पर करो जो तुम ने अपनी मां के साथ किया. इस सत्य पर कैसी शर्म कि तुम बाई के बच्चे हो.’’

मैं ने समझाना चाहा सोम को. मांबेटा मिल जाएं, ऐसा प्रयास भी किया लेकिन ममता का धागा तो सोम ने खुद ही जला डाला था. मौसी ने सोम से हमेशा के लिए अपना रिश्ता ही तोड़ लिया था.

वास्तव में नाशुक्रा है सोम, जिसे ममता का उपकार ही मानना नहीं आया. धीरेधीरे हमारी दोस्ती बस सिर हिला देने भर तक ही सीमित हो गई. बहुत कम बात होती है अब हम दोनों में.

होली की छुट्टियों में घर गया तो मौसी का रंगरूप चाची में घुलामिला नजर आया मुझे. अगर मेरी भी मां होतीं तो चाची से हट कर क्या होतीं.

‘‘कैसी हो, मां? अब चाची नहीं कहूंगा तुम्हें. मां कहूं न?’’

सदा की तरह चाची मेरे बिना उदास थीं. क्याक्या बना रखा था मेरे लिए. नमकीन मठरी, गुझिया और शक्करपारे.

मेरा चेहरा चूम कर रो पड़ीं चाची.

‘‘क्या फर्क पड़ता है. कुछ भी कह ले. हूं तो मैं तेरी मां ही. इतना सा था जब गोद में आया था.’’

सच कहा चाची ने. क्या फर्क पड़ता है. हम मांबेटा गले मिल कर रो रहे थे और शिखा मां की टांग खींच रही थी.

‘‘मां, कल गाजर का हलवा बनाओगी न. अब तो भैया आ गए हैं.’’

गोरी बहू: कैथरीन की सास ने बहू की तारीफ कभी सामने क्यों नहीं की

‘‘अरे देखदेख लंगूर को कैसी हूर की परी मिली है.’’

‘‘सच यार, गोरी मेम को बगल में लिए कैसे शान से घूम रहा है. काश…’’

इस से पहले कि बोलने वाले की बात पूरी होती, अखिलेश ने पलट कर उन्हें घूरा तो यह सोच कर कि कहीं पिटाई न हो जाए, वे दोनों वहां से तुरंत खिसक लिए.

‘‘अकी, आई बिलीव दीज पीपल वेयर कमैंटिंग औन अस,’’ कैथरीन के कहने पर अखिलेश बोला, ‘‘नहींनहीं ऐसा कुछ नहीं है. डोंट थिंक अबाउट इट.’’

इस समय दोनों कनाट प्लेस घूम रहे थे. डेढ़ महीने पहले ही उन की शादी हुई थी. इंडिया आए 1 महीना ही हुआ था. शुरूशुरू में तो अखिलेश को बहुत गुस्सा आता था कि आखिर क्यों लोग कैथरीन को उस के साथ देख कमैंट करते हैं. लेकिन अब यह सुनने की आदत सी हो गई थी. उन दोनों को साथ देख कर देखने वाला कैथरीन को आश्चर्य से जरूर देखता था.

अखिलेश को लोगों का इस तरह रिएक्ट करना अजीब नहीं लगता था, क्योंकि उस ने अंतर्जातीय नहीं, बल्कि दूसरे देश की संस्कृति में पलीबढ़ी कैथरीन से विवाह किया था. वह अमेरिका से थी और एकदम दूध जैसी सफेद जबकि अखिलेश सांवला था. संस्कृति, भाषा और रंगरूप में इतना अंतर होने के कारण ऐसे कमैंट्स मिलने स्वाभाविक थे. ऐसे रिश्तों को आसानी से नहीं स्वीकारा जाता है. ऐसे विवाह पर लोगों के मन में अनेक सवाल उठते हैं कि आखिर क्यों इस अंगरेज लड़की ने एक भारतीय से शादी की? देखने में उस के सामने एकदम मामूली लगता है. शायद उस के पैसे के लिए की होगी या फिर उसी में कोई खामी होगी? हो सकता है तलाकशुदा हो या लड़के ने उसे फंसा लिया हो? भारत में कहां ऐडजस्ट कर पाएगी… देखना थोड़े ही दिनों में भाग जाएगी. वहां की लड़कियां बेहद तेज होती हैं. इंडिया में उस का मन लगने से रहा.

अपरिचितों की बात छोड़ दो, घर वालों ने भी उसे अभी तक कहां स्वीकारा है. कैथरीन जितनी देर तक घर में होती है, एक मातम सा छाया रहता है. जबकि वह अपनी तरफ से सब के हिसाब से पूरी तरह से ढलने की कोशिश कर रही है. पर अम्मां, बाबूजी और दोनों भाभियां उस से सीधे मुंह बात तक नहीं करती हैं. कैथरीन के टूटीफूटी हिंदी बोलने का मजाक उड़ाती हैं. हालांकि दोनों भाइयों ने कभी उस से गलत तरीके से बात नहीं की, पर वे भी अकसर कैथरीन को अवाइड ही करने की कोशिश करते हैं.

कैथरीन हालांकि साड़ी भी पहनने लगी है और शाकाहारी खाना ही खाती है, फिर भी अम्मां जबतब कहती रहती हैं कि अंगरेज का क्या भरोसा… कहीं तु  झे धोखा न दे दे.

यह सुन कर अखिलेश खून का घूंट पी कर रह जाता. उस में मां से कुछ कहने की हिम्मत नहीं. कैथरीन को ठीक से उन की बातें सम  झ नहीं आतीं तो वह उस से पूछती. तब वह हंस कर टाल जाता कि सब कुछ ठीक चल रहा है. घबराओ नहीं… थोड़ा संयम रखो. मु  झे यकीन है एक दिन तुम सब का दिल जीत लोगी.

अखिलेश कैथरीन से इतना प्यार करता कि उसे उदास होते नहीं देख सकता था. वह भी तो उस पर जान देती थी. उस की हर बात को ध्यान से सुन कर उस पर अमल करती थी. वह चाहती थी कि घर के सभी लोग उस से बात करें, उसे घर के काम में शामिल करें, लेकिन वे लोग उस से दूरी ही बनाए रखते.

कई बार अखिलेश ने कैथरीन से कहा भी कि वे अलग हो जाते हैं. तब वह कहती, ‘‘मैं नहीं चाहती कि तुम अपने परिवार से दूर रहो… मैं जानती हूं कि तुम अपने परिवार से बहुत घुलेमिले हो.’’

तब अखिलेश का मन होता कि वह अम्मां को बताए कि सुन लो. तुम जिस गोरी बहू से चिढ़ती हो, वह क्या सोचती है. दूसरी ओर भाभियां हैं, जो दिनरात भाइयों को अलग हो जाने के लिए उकसाती रहती हैं. जबतब बीमारी का बहाना कर अपने कमरों में चली जाती हैं. उधर कैथरीन हर काम खुशीखुशी करने की कोशिश करती है. वह रैसिपी बुक ला कर नईनई डिशेज बनाती पर उसे कोई सराहना नहीं मिलती. अम्मां ने तो एक बार भी उस के सिर पर ममता का हाथ नहीं फेरा. हां, बाबूजी बेशक थोड़े नरम पड़े हैं और कैथरीन को हिंदी सिखाने की कोशिश करते हैं.

‘‘उधर देखो वह क्या कर रही है,’’ कह कैथरीन ने उस का ध्यान भंग किया.

अब तक वे जनपथ पर आ गए थे. फुटपाथों पर अनेक चीजें बिक रही थीं.

‘‘मैं इन्हें खरीदना चाहती हूं,’’ कह कैथरीन ने 4-5 पोटलीनुमा पर्स उठा लिए और फिर बोली, ‘‘घर में सब को दूंगी.’’

वे वापस जाने के लिए जैसे ही कार में बैठने लगे कि तभी एक पुलिस वाले ने उन्हें रोक लिया कि गाड़ी गलत जगह पार्क की है. कैथरीन उस से बात करने लगी. अंगरेज महिला से बात करते हुए पुलिस वाले की बोलती बंद हो गई. बोला, ‘‘मैडम कोई बात नहीं… इस बार जाओ, अगली बार ध्यान रखना.’’

‘‘कई बार तुम्हारा गोरे होने का मु  झे बहुत फायदा मिल जाता है. उस दिन तुम फिल्म के टिकट खरीदने गईं तो विंडो बंद होने पर भी मैनेजर ने तुम्हें टिकट दे दिए. तुम्हारी वजह से भारत में मु  झे भी हाई स्टेटस मिलने लगा है. आई एम ऐंजौइंग दिस स्टेटस,’’ अखिलेश हंसते हुए बोला.

मुझे भरोसा है कि तुम दूसरों की तरह बुरा फील नहीं करते वरना कुछ हसबैंड्स को कौंप्लैक्स हो जाता है,’’ कैथरीन ने रात को सोते समय अपना डर प्रकट किया तो अखिलेश ने उसे बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘तुम्हें मु  झ से ज्यादा रिस्पैक्ट मिल रही है तो अच्छी बात है… आज ही देखो फाइन लगतेलगते बच गया. चाहे रैस्टोरैंट हो या कोई मौल, तुम्हारी वजह से हमें स्पैशल अटैंशन मिलती है. गोरे लोगों को आज भी हिंदुस्तान में मान दिया जाता है. देखा नहीं उस दिन कितने अदब से होटल का मैनेजर तुम्हें ग्रीट कर रहा था मानों तुम्हारे आने से उस के होटल की रौनक बढ़ गई हो.’’

‘‘तुम्हारा मतलब कि मेरी वजह से तुम्हारे कई काम बन जाते हैं… स्पैशल अटैंशन मिलती है?’’ कैथरीन ने हैरानी से पूछा. उसे इस बात की खुशी थी कि उस की वजह से उस के पति को देश में ज्यादा सम्मान मिल रहा है.

उस दिन भी तो ऐसा ही हुआ था. बड़ी भाभी के बेटे को स्कूल में परीक्षा में बैठने नहीं दिया जा रहा था, क्येंकि वह बहुत दिन गैरहाजिर रहा था. तब कैथरीन ही जा कर उन से मिली थी और बात बन गई थी. यहां तक कि कई बार बाबूजी उसे बैंक ले जाते तो काम चुटकियों में हो जाता था.

अखिलेश ने एक गोरी मेम से शादी की है, इसलिए औफिस में भी उस का ओहदा ऊंचा हो गया था. कोई उस से कहता कि उस की भी अंगरेज लड़की से शादी करा दे, तो कोई कहता कि विदेश भेजने का जुगाड़ करा दे. अकसर उन्हें कोई न कोई घर पर खाने के लिए आमंत्रित करता रहता. सब कैथरीन से बातें करने को इच्छुक रहते और सब से ज्यादा आश्चर्य तो उन्हें कैथरीन के व्यवहार पर होता, जो बहुत ही सहज होता. वह सब से घुलनेमिलने की कोशिश करती, जिस से सब को लगता कि वह उन्हीं में से एक है.

 

धीरेधीरे घर के लोगों का रवैया उस के प्रति कुछ नरम होने लगा था.

अम्मां उस से बात करने लगी थीं. वह भी दिनरात उन की सेवा में लगी रहती. एक बार अखिलेश की चाची आईं तो उन्होंने बहुत कुहराम मचाया कि गोरी बहू घर आ गई है, सब अपवित्र हो गया है, घर में हवन करा कर बहू का धर्म बदलो तभी शुद्धि होगी वरना सब तहसनहस हो जाएगा.

‘‘बेटा अखिलेश यह तूने क्या कर डाला? क्या हमारे देश में लड़कियों की कमी थी? तू विदेश क्या गया… विदेशी मेम के चक्कर में फंस गया,’’ वे अखिलेश से बोलीं.

‘‘चाची, बहुत हुआ,’’ पहली बार अखिलेश ने इस तरह आवाज उठाई थी. कैथरीन को ही नहीं, घर के बाकी सभी लोगों को भी उस के इस तरह रिएक्ट करने पर आश्चर्य हुआ.

‘‘मु  झे कैथरीन ने फंसाया नहीं है… हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं… इतना तो मु  झ पर विश्वास किया होता आप लोगों ने कि कैथरीन में कोई तो खूबी होगी, जिस की वजह से मैं ने उस से विवाह किया है… सिर्फ उस के गोरे रंग के कारण क्यों इतना बवाल मचाया हुआ है आप ने?’’

अखिलेश की बात सुन कर कैथरीन भी

अड़ गई कि वह इन अंधविश्वासों पर यकीन नहीं करती है.

‘‘धर्म के नाम पर आप यह पाखंड नहीं कर सकती हैं. शादी के बाद हम ने यह तय किया था कि न तो अखिलेश हिंदू है और न मैं कैथोलिक… हम बस इंसान हैं. हम ने तय किया है कि हमारे बच्चे भी किसी धर्म के नाम पर   झगड़ा नहीं करेंगे. हवन कराने से मैं और यह घर पवित्र कैसे हो जाएंगे, क्या मैं गंदी रहती हूं?’’ कैथरीन की आवाज में मासूमियत के साथसाथ विरोध भी था.

तभी पैसा कमाने के लालच में वहां पहुंचे पंडित राम शंकर यह सुन भड़क उठे, ‘‘रामराम, इस कलयुग में धर्म कैसे बचेगा? मांसमछली खाने वाले लोगों को घर में रखा जा रहा है और उस पर हवनपूजा करवाने से भी इनकार किया जा रहा है. अम्मांजी, अब मैं इस घर में पैर नहीं रखूंगा,’’ पंडित ने अपना   झोला संभालते हुए कहा तो अखिलेश तुरंत बोला, ‘‘पंडितजी अगर आप ऐसा करेंगे तो बहुत मेहरबानी होगी… आप जैसे लोगों से जितना दूर रहा जाए उतना ही अच्छा. धर्म के नाम पर लोगों के घरों में दरारें डालने में आप जैसे पंडित ही अहम भूमिका निभाते हैं.’’

पंडित के जाते ही चाची को लगा कि अब यहां उन की दाल नहीं गलने वाली है. उन्होंने एक बार अपनी जेठानी की ओर देखा, पर वहां से कोई जवाब न आने पर वह बोलीं, ‘‘मेरा क्या जाता है, जो होगा खुद भुगत लेना. मैं तो अच्छा ही करने आई थी. अब मैं यहां एक पल भी नहीं ठहरने वाली.’’

‘‘चाचीजी, हम आप का निरादर नहीं करना चाहते… हम तो केवल यही कह रहे हैं कि हम धर्म से जुड़े किसी भी तरह के पागलपन में साथ नहीं देंगे. हम लोग इस समाज में ऐसे नागरिक बनना चाहते हैं, जो पूरे सोचविचार के साथ निर्णय लेते हैं और जाति या धर्म के आधार पर किसी तरह का भेदभाव नहीं करना चाहते,’’ कैथरीन ने उन्हें सम  झाना चाहा, पर वे बिना कुछ और कहे चली गईं.

परिवार में तनाव न हो, इस वजह से कैथरीन विवाद से दूर ही रहना चाहती थी, पर धर्म के नाम पर होने वाले पाखंडों का विरोध किए बिना न रह सकी. अम्मां ने कुछ कहा तो नहीं, पर वे वहां से अपने कमरे में चली गईं. बाबूजी ने अवश्य उस की ओर प्रशंसा से देखा था.

भाभियों ने मुंह बनाया, ‘‘अब तो इसी की चलेगी घर में… हमें नए तौरतरीके सीखने पड़ेंगे.’’ मगर भाइयों ने उन्हें डांट दिया, ‘‘क्या गलत किया कैथरीन ने?’’

बड़े भैया तो तभी कैथरीन के कायल हो गए थे जब उस ने उन के बिजनैस में उन्हें सही राय दी थी और अमेरिका में भी उन के बिजनैस का रास्ता खोल दिया था.

उस दिन कैथरीन सुबह से देख रही थी कि अम्मां कुछ कमजोरी महसूस कर रही हैं. पिछले दिनों में उन्होंने मठरियां, पापड़ और न जाने क्याक्या चीजें बना डाली थीं, जिस से वे थक गई थीं. जोड़ों का दर्द सर्दियों में वैसे भी ज्यादा परेशान करता है. ऊपर से डायबिटीज की मरीज भी थीं. कैथरीन ने उन्हें बिस्तर पर जा कर लिटा दिया. फिर खुद उन के लिए सूप बनाया. फिर डाक्टर को दिखाने ले गई तो पता चला कि कोलैस्ट्रौल बढ़ गया है. उस के बाद तो मां का पूरापूरा खयाल रखने लगी. भाभियां कहतीं कि चमचागीरी कर रही है. पर वह कहां परवाह करने वाली थी.

एक दिन बीपी बढ़ जाने से अम्मां चक्कर खा कर गिर गईं तो बड़ी भाभी देवरानी से बोलीं, ‘‘लो, बढ़ गया काम. मैं तो सोच रही थी कि कुछ दिनों के लिए मायके हो आऊं पर अब सब चौपट हो गया. अम्मां को भी अभी बीमार पड़ना था. अब करो इन की सेवाटहल.’’

छोटी भाभी भी मुंह बनाते हुए बोली, ‘‘सच, इतने दिनों से ये बाहर घूमने जाने का

प्रोग्राम बना रहे थे… अब तो लगता है टिकट वापस करने पड़ेंगे.’’

मगर उन्हें क्या पता था कि कैथरीन ही नहीं, अम्मां ने भी उन की बातें सुन ली हैं. अम्मां को डाक्टर ने पूरा आराम करने की हिदायत दी थी, क्योंकि उन्हें हलका सा हार्टअटैक भी आ चुका था. भाभियों ने घर में अम्मां के लिए नर्स रखने की सलाह दी तो कैथरीन अड़ गई.

‘‘नर्स रखने की क्या जरूरत है…मैं हूं न… और इतना परेशान होने की जरूरत नहीं… वे जल्दी ठीक हो जाएंगी.’’

उस के बाद कैथरीन ने अम्मां की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. डाक्टर से खुद बात करती, चैकअप कराने उन्हें खुद अस्पताल ले जाती. उन की बीमारी से संबंधित जानकारी इंटरनैट से हासिल कर उस पर अमल करती. उन की डाइट से ले कर उन के नहाने और दवा समय पर देने का खयाल रखती. दोनों भाभियों ने तो जैसे राहत की सांस ली थी. बड़ी भाभी तो इस बीच मायके भी रह आई थीं. अम्मां सब देखतीं, पर कहतीं कुछ नहीं. इसी कैथरीन का कितना अपमान किया था उन्होंने… मन ही मन वे उसे ढेरों आशीष दे डालतीं.

अम्मां कैथरीन की सेवा से ठीक होने लगी थीं, पर अचानक एक रात उन्हें फिर दिल का दौरा पड़ा और उन की मृत्यु हो गई. कैथरीन अवाक रह गई. उसे लगा कि उसी की सेवा में कुछ कमी रह गई होगी, पर अखिलेश और बाबूजी ने उसे संभाला. खबर सुनते ही चाची दौड़ी आईं और सलाह दी कि गोदान कराया जाए और पूरे कर्मकांड के साथ दाहसंस्कार किया जाए. फिर धीमे स्वर में बड़ी बहू से बोलीं, ‘‘यह सब इस गोरी बहू के घर में पैर पड़ने का नतीजा है वरना क्या अभी दीदी की जाने की उम्र थी? अभी भी   झाड़फूंक करा लो… और घर में गंगाजल छिड़को.’’

कैथरीन यह कतई नहीं चाहती थी, लेकिन चाचा पंडित को घर ले आए थे. गोदान कराने पर भी वे जोर दे रहे थे ताकि अम्मां की आत्मा को शांति मिल सके. इस बात पर अखिलेश और कैथरीन के साथ उन का बहुत   झगड़ा हुआ. बाबूजी एकदम शांत थे. कैथरीन ने किस तरह अखिलेश की मां की सेवा की थी, उन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा था. जमा भीड़ अपनीअपनी राय दे रही थी और कैथरीन अम्मां के शव के सामने बैठी रो रही थी. इस समय भी ऐसा   झगड़ा उसे दुखी कर रहा था.

तभी अम्मां की बहन हाथ में एक कागज लिए दौड़ीदौड़ी आई, बोली, ‘‘देखो, मु  झे दीदी की अलमारी से क्या मिला है. दीदी को शायद अपनी मौत का अहसास हो गया था. करीब

10 दिन पहले लिखा था उन्होंने शायद यह कागज… लिखा है कि मेरे मरने के बाद कैथरीन जैसा कहे, वैसा ही करना. मैं ने उसे गलत सम  झा, यह मेरी भूल थी… सच में वह मेरी बाकी दोनों बहुओं से अधिक सम  झदार है. जितना प्यार और सम्मान उस ने मु  झे इन कुछ महीनों में दिया, वह मेरी दोनों बहुओं ने 10 सालों में भी नहीं दिया. उन्होंने हमेशा एक बो  झ सम  झ मेरा काम किया, पर कैथरीन ने दिल से मेरी सेवा की. उस की तर्कसंगत बातें कड़वी बेशक लगें, पर वह जो भी कहती है, वह सही होता है. इसलिए वह जिस तरह से मेरा दाहसंस्कार करना चाहे, उसे करने दिया जाए. मेरी गोरी बहू को मेरा ढेरों आशीर्वाद.’’

कैथरीन ने आगे बढ़ कर वह कागज अपने हाथों में ले लिया और बेतहाशा उसे चूमने लगी मानों अम्मां के हाथों को चूम रही हो. उस के आंसू लगातार अम्मां के शव को भिगो रहे थे.

गर्लफ्रेंड तेजस्वी प्रकाश की याद में डूबे करण कुंद्रा, एक्टर ने शेयर किया वीडियो

Karan Kundra shared the video: टीवी इंडस्ट्री के मशहूर कपल करण कुंद्रा और तेजस्वी प्रकाश हमेशा लाइमलाइट में बनें रहते है. बिग बॉस 15 में ही करण और तेजस्वी की लव स्टोरी शुरु हो गई थी. आज भी इन दोनों कपल में ढ़ेर सारा प्यार देखने को मिलता है. करण और तेजस्वी साथ में क्वालिटी टाइम बिताने का कभी मौका नहीं छोड़ते. अक्सर इस प्यारे जोड़े की हर वीडियो और फोटो सोशल मीडिया पर धमाल मचा देती है.

करण कुंद्रा ने शेयर की वीडियो

दरअसल, करण कुद्रा ने बीती रात को अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक स्टोरी की है. इस वीडियो में एक्टर का चेहरा तो नहीं दिख रहा है. ये वीडियो करण या उनके साथ मौजूद किसी शख्स ने बनाया है. जिसे आगे कार की सीट पर बैठकर वीडियो बनाया गया है. इस वीडियो में देख सकते है कि, सामने सड़क का नजारा साफ दिख रहा है और बैकग्राउंड में ‘तेरे बिन जान मेरी जाए नहीं ना’ गाना बज रहा है। वीडियो के साथ करण ने ‘T’ लिखा है और साथ में हार्ट इमोजी भी बनाया है. सुबह-सुबह यह वीडियो देखकर उनके फैंस खुश हो गए है.

इस वीडियो को शेयर करते हुए करण ने यह जाहिर कर दिया है वह तेजस्वी को कितमा मिस कर रहे है. इतना ही नहीं अब एक्स ( ट्विटर) पर तेजस्वी और करण का नाम ट्रेंड कर रहा है. ट्विटर पर फैंस ने कपल के लिए “EVIL EYES OFF TEJRAN” सुबह-सुबह ट्रेंड करवा दिया है.

कब शादी करेंग करण कुंद्रा-तेजस्वी प्रकाश

बता दें कि, बिग बॉस 15 के सीजन के बाहर आने के बाद से ही करण और तेजस्वी की शादी खबरें आ रही हैं. दोनों कई बार अपने इंटरव्यूज में शादी पर बात कर चुके हैं. करण ने एक बार कहा था कि वह तो हमेशा से तेजस्वी से शादी करने के लिए तैयार हैं, लेकिन अब उनका सीरियल नागिन इतना हिट हो गया कि खत्म ही नहीं हो रहा. इसी तरह तेजस्वी ने बताया था कि दोनों सही टाइम आने पर शादी कर लेंगे

फैंस ने कहा- ‘नजर न लगे’

टीवी इंडस्ट्री के पावर कपल में शुमार करण कुंद्रा और तेजस्वी की अक्सर सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होती रहती है. हाल ही में करण ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक स्टोरी शेयर की है जो काफी ट्रेंड कर रही है. ऐसे में उनके फैंस इस वीडियो पर प्रतिक्रिया देते आ रहे है. एक्स (ट्विटर) पर एक फैन ने लिखा, ओह केके की स्टोरी उसे अपनी “बेबी टी” की याद आ रही है. कितना सुंदर गाना और कितना प्यारा #TejRan. वहीं अन्य यूजर ने लिखा, गुड मॉर्निंग, सुंदर क्यूटीपाई, भगवान आप दोनों को आशीर्वाद दें, कोई नजर न लगे.

वाणी कपूर का बड़बोलापन: खुद असफल पर दिग्गज कलाकारों को दे रही हैं सलाह..

‘‘यशराज फिल्मस’’ से अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली अदाकारा वाणी कपूर की अपनी कोई पहचान नही बन पायी है.दस साल के अभिनय कैरियर में वह महज सात फिल्मों में अभिनय करते हुए नजर आयीं,जिनमें से लगभग सभी फिल्में सुपर फ्लाप रही. मगर वह दूसरों को सलाह देने में काफी आगे हैं.हाल ही में वाणी कपूर ने बौलीवुड के दिग्गज कलाकारों की अफसल होती फिल्मों का जिक्र छिड़ने पर कहा-‘‘बौलीवुड के हर कलाकार को चाहिए कि वह दो या तीन वर्ष में एक फिल्म किया करें,तो उनकी फिल्में सफल होंगी. अब वह हर वर्ष तीन चार फिल्में करेंगे तो उनकी फिल्म कैसे सफल होंगी.और इसी का नुकसान पूरे बौलीवुड को उठाना पड़ रहा है. मैं तो दो साल में एक फिल्म ही करना पसंद करती हॅूं.’’वाह क्या कहने…वाणी कपूर को अपने गिरेहमाबन मे झांक कर देखना चाहिए कि उनकी फिल्में कितनी सफल हो रही हैं. उन्हे फिल्में मिलती ही नही है. हर फिल्म में वह अपने जिस्म की नुमाइश करते हुए नजर आयी हैं.उनके अभिनय की कटु आलोचनाएं होती रही है. इसके बाद भी वह अपने आपको महान बताते हुए दूसरों को सलाह देने पर आमादा है.

35 वर्षीय अदाकारा वाणी कपूर ने 2013 में ‘यशराज फिल्मस’ की रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘शुद्ध देशी रोमांस’’ से अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत की थी.फिल्म ठीक ठाक चली थी.इसके बाद वह 2014 में तमिल फिल्म ‘‘आहा कल्याणम’’ व 2016 में रणवीर सिंह के साथ फिल्म ‘‘बेफिक्रे’’ में नजर आयी.दोनो ही फिल्मों में उनके अभिनय की कटु अलोचनाएं हुई. उसके बाद 2019 में ‘वार’,2021 में ‘बेल ऑटम’ और ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ तथा 2022 में रणबीर कपूर के साथ ‘शमशेरा’ मे नजर आयी.इन फिल्मों ने बाक्स आफिस पर पानी तक नहीं मांगा.यानी कि दस वर्ष के अंदर वाणी कपूर ने सिर्फ सात फिल्में की.इनमें से चार फिल्में ‘यशराज फिल्मस ’ के बैनर की ही हैं और एक तमिल फिल्म है.अब आदित्य चोपड़ा किस वजह से वाणी कपूर पर मेहरबान रहे,यह तो वही जाने,मगर चार में से पहली फिल्म को नजरंदाज कर दें तो सभी फिल्में असफल रही है.बहरहाल,अब तो ‘यशराज फिल्मस’ ने भी वाणी कपूर से तोबा कर लिया है.

काश…वाणी कपूर दूसरों को सलाह देने की बनिस्बत अपने अभिनय को संवारने पर ध्यान देंती….

बेऔलाद: भाग 4- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

‘‘शादी… और तुम से?’’ जोली अजीब तरह से हंसते हुए बोली, ‘‘तुम ने सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम से शादी करूंगी? वन सैकंड… कहीं तुम ने यह तो नहीं सम?झ लिया कि मैं तुम से प्यार करती हूं? ओह…,’’ और जोली ने अपने सिर पर हाथ रख लिया,’’ सही कहा है किसी ने कि तुम इंडियंस इमोशनी फूल होते हो. आज देख भी लिया. फिजिकल रिलेशनशिप का मतलब यह नहीं होता कि मैं तुम से प्यार करती हूं और तुम से शादी करना चाहती हूं. समझ लो जैसे पेट की भूख को शांत करने के लिए हम खाना खाते हैं, वैसे ही शरीर की भूख को भी शांत करना पड़ता है, ‘दैट्स इट, यू अंडर स्टैंड? और यह बच्चा एक गलती है जिसे मैं आज ही ठीक कर दूंगी.’’

जोली की दोटूक बातों से नरेश स्तब्ध हो उसे ताकने लगा. बाहर चाय ले कर खड़ी पुष्पा भी उन की बातें सुन कर वहीं जड़ हो गई. उन्हें तो सम?झ ही नहीं आ रहा था कि जो उन्हें सुना वह सही है या उन के कान बज रहे हैं?

फिर भी नरेश कहने लगा, ‘‘जोली, तुम भले ही मु?झ से प्यार न करो, पर मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और यह बच्चा, यह हमारे प्यार की निशानी है. प्लीज, इसे मत गिराओ, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं जोली.’’

लेकिन जोली उस के प्यार को अपने पैरों की जूती बताते हुए अपने कपड़े अटैची में भरने लगी कि अब उसे यहां रहना ही नहीं है.

‘‘ठीक है, चली जाओ, जहां भी जाना है. लेकिन मेरे बच्चे को मारने की सोचना तक नहीं,’’ नरेश ने उस का हाथ पकड़ते हुए कहा.

यह सुन कर जोली ने उसे घूर कर देखा और फिर गुर्राते हुए बोली, ‘‘लीव माई हैंड, आई सैड लीव माई हैंड.’’

नरेश ने भले ही उस का हाथ छोड़ दिया, लेकिन उस के बोल अब भी वही थे कि इस बच्चे पर उस का भी उतना ही अधिकार है जितना जोली का. इसलिए उस की मरजी के बिना वह इस बच्चे को गिरा नहीं सकती है.

‘‘तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई ऐसा सोचने की कि मैं तुम्हारे बच्चे को जन्म दूंगी?’’ एक नफरत भरी नजर नरेश पर डालते हुए जोली दनदनाती हुई उस के घर से निकल गई.

पीछे से पुष्पा रोकती रहीं, गिड़गिड़ाती रहीं, पर उस ने पलट कर भी नहीं देखा.

अभी कुछ ही वक्त पहले जो नरेश जोली से शादी के सपने देख रहा था, हकीकत में वही जोली उस की सारी खुशियों को अपने पैरों तले रौंदती हुई बाहर निकल गई.

जोली जल्द से जल्द यह बच्चा गिरवा कर अपने देश लौट जाना चाहती थी. जोली दक्षिण अमेरिका के देश ‘चिली’ की रहने वाली थी और वहां अबौर्शन कानूनन अपराध है. वहां बहुत ही जरूरी परिस्थिति में कोर्ट अबौर्शन की अनुमति देता है. इसलिए जोली यह ?झं?झट यही निबटा देना चाहती थी. लेकिन डाक्टर ने साफ तौर पर कह दिया कि यह अबौर्शन नहीं हो सकता क्योंकि इस से जोली की जान को खतरा है. सुन कर जोली की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. लेकिन उसे किसी भी हाल में, कैसे भी यह बच्चा गिराना ही था. इसलिए उस ने दूसरे डाक्टर से संपर्क किया और कहा कि वह पैसों की चिंता न करे, जितने चाहिए देने के लिए तैयार है, पर उसे यह बच्चा नहीं चाहिए. लेकिन सभी डाक्टरों का यही कहना था कि अब बच्चा अबौर्शन नहीं हो सकता. जोली के पास अब एक ही रास्ता बचा था कि वह इस बच्चे को जन्म दे.

बोलतेबोलते पुष्पा को ऐसी खांसी उठी कि उस की जान ले कर ही गई. दादी के जाने का गम और मां के जिंदा होने की खुशी न तो नायरा को रोने दे रही थी और न खुश होने. नायरा की एक आंख से दुख के आंसू, तो दूसरी से खुशी के आंसू बह रहे थे. गुस्सा उसे इस बात पर आ रहा था कि उसके पापा ने उस से ?झठ कहा कि उस की मां मर चुकी है, जबकि वह जिंदा है. ऐसा क्यों किया उस के पापा ने? लेकिन नरेश कहने लगा उस ने जो भी सुना वह आधा सच है.

‘‘तो पूरा सच क्या है बताइए न मुझे?’’ नायरा अपने पापा को हिकारत भरी नजरों से देखते हुए बोली, ‘‘क्या बताएंगे आप? फिर कोई ?झठी कहानी गढ़ कर सुना देंगे, है न? लेकिन अब मैं आप की बातों में आने वाली नहीं समझे आप और यह बात भी सुन लीजिए, मेरी मां चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहती हो मैं उन्हें ढूंढ़ निकालूंगी,’’ बोल कर नायरा दनदनाती हुई अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

बाहर से दरवाजा पीटते हुए नरेश ने कितना कहा कि जैसे वह अपने पापा के बारे में सोच रही है, वैसी बात नहीं है. लेकिन नायरा ने तो जैसे अपने कानों में रुई ठूंस ली थी कि उसे नरेश की कोई भी बात सुननी ही नहीं है.

नरेश पूरी रात चिंता और अनिद्रा के तनाव से करवटें बदलते हुए सोचता रहा कि आखिर गलती कहां हो गई उस से? काश, नायरा पूरी सचाई जान पाती, फिर उसे पता चलता कि नरेश ?झठ नहीं बोल रहा है बल्कि उस की मां उसे मरने छोड़ गई थी. जोली किसी बंधन में बंध कर नहीं रहना चाहती थी. वह तो आजाद पंछी की तरह अपने पंख फैला कर पूरे आकाश में उड़ना चाहती थी.

किसी तरह और 5 महीने यहां काटने के बाद जब नायरा का जन्म हुआ तो वह उसे एक कचरे के डब्बे में फेंक कर अपने देश लौट गई. लेकिन उसे क्या पता था कि जिस बच्चे को उस ने कचरे के डब्बे में मरने के लिए छोड़ दिया था, उसी बच्चे को नरेश ने अपने सीने से लगा लिया था. नरेश जो हर पल जोली पीछे साये की तरह घूमता रहता था, जब उस ने जोली को अपने नवजात बच्चे को ले कर अस्पताल से बाहर निकलते हुए देखा, तो वह उस के पीछे लग गया. जैसे ही वह उस नवजात बच्ची को कचरे के डब्बे में फेंक कर भागी दौड़ कर नरेश ने उस बच्ची को वहां से निकाल लिया नहीं तो कुछ पलों की भी देरी पर वह लावारिस कुत्तों का निवाला बन जाती.

एक मां ने अपनी ही बच्ची को अपने आंचल से दूर कर दिया, लेकिन वहीं एक पिता ने उसी बच्ची को अपने सीने से लगा लिया. नायरा नरेश की जान से भी बढ़ कर थी. वह नहीं चाहता था कि नायरा को कभी भी यह बात मालूम पड़े कि जन्मते ही उस की मां ने उसे कचरे के डब्बे में मरने के लिए फेंक दिया था. इसलिए उस ने पुष्पा को वादा दे दिया था कि यह बात नायरा को न बताएं. नरेश ने आज तक शादी भी इसीलिए नहीं की क्योंकि नायरा ही उस की सबकुछ थी.

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