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जरा बताओ तो: जब संचित को पता उसकी सहकर्मी दूसरे धर्म की है

आज औफिस में लंच करते हुए चारों सहेलियों फलक, दीप्ता, वमिका और मनुश्री बहुत उत्साहित थीं, जबसे औफिस नई जगह गोरेगांव शिफ्ट हुआ था तब से औफिस के कई लोगों को घर बदलने की जरूरत आ पड़ी थी.

ये चारों अभी जहां रहती थीं, वहां से औफिस पास ही था. अब गोरेगांव से सब का घर दूर पड़ रहा था तो चारों ने फैसला किया था कि एक अच्छा सा फ्लैट औफिस के आसपास ही किराए पर ले कर शेयर कर लेंगीं. आज औफिस के बाद 3-4 फ्लैट देखने जाने वाली थीं, ब्रोकर से बात हो गई थी.

मुंबई शहर को देखने के कई नजरिए हो सकते हैं, बाहर से आने वालों को इस शहर की रंगीनियां भाती हैं, किसी को यहां का किसी से लेने देने में इंटरेस्ट न होना भाता है, किसी को यहां का स्ट्रीट फूड अच्छा लगता है, किसी को यहां के फैशन, किसी को इस शहर का एक अलग मिजाज पसंद आता है. एक मुंबई में कई मुंबई बसती हैं. कई इलाके हैं, कई बिल्डिंग्स हैं, कई सोसाइटी हैं. वैसे तो हर शहर का एक मिजाज होता है पर मुंबई पर कहने के लिए अकसर बहुत कुछ होता है जैसाकि इस समय ये चारों बात कर रही हैं, फलक कह रही है, ‘‘यार. मैं तो कल एक फ्लैट देखने गई तो फ्लैट के मालिक ने मेरा मुसलिम नाम देख कर ही मुंह बना लिया, पूछा, ‘मुसलिम हो.’ मैं ने कहा, ‘हां.’ तो नालायक बोला, ‘मैं अपना फ्लैट किसी मुसलिम को नहीं दे सकता,’ सोचो, यार. यह मुंबई है, एक महानगर. यहां लोग ऐसी सोच रख सकते हैं, अब देख रही हूं जब घर से बाहर रहने की नौबत आई है, नहीं तो मैं तो इसी शहर में पली बढ़ी हूं, इन सब चीजों से कभी वास्ता ही नहीं पड़ा था. अजीब सा लग रहा है.’’

दीप्ता ने कहा, ‘‘ऐसे लोगों का, ऐसी सोच का इलाज करना ही पड़ेगा, अपना काम निकालना ही है, फ्लैट हम लोग ले लेते हैं, फलक. किसी को बताने की जरूरत ही नहीं कि तुम भी फ्लैट ले रही हो, आराम से रहो हमारे साथ. लोगों को हिंदूमुसलिम करने दो. हम तुम्हें उदास देख ही नहीं पाते.’’

मनुश्री ने भी कहा, ‘‘अगर कोई मुश्किल आ भी गई तो मैं हर स्थिति संभाल सकती हूं. मैं स्कूल, कालेज में अच्छी एक्टिंग कर लेती थी, और मैं कई बार बौस को भी भोलीभोली बन कर दिखा देती हूं और काम से बच जाती हूं, सोचो, जब बौस से निपट लेती हूं तो लैंडलौर्ड क्या चीज है.’’

सब हंस पड़ीं, ‘‘तुम तो हो ही सदा की कामचोर. तुम्हारा काम हमें करना पड़ता है.’’

‘‘पर दोस्त. यह गलत होगा.’’

‘‘ऐसी सोच वालों के साथ होने दो गलत.’’ आखिर में तीनों ने फलक को इस बात के लिए तैयार कर ही लिया कि फ्लैट तीनों ही लेंगीं, बाकी सब वो भी शेयर करेगी और साथ ही रहेगी.

चारों एक बड़ी कंपनी में जौब कर रही थीं, सब की उम्र 28 के आसपास की थी, अभी चारों अविवाहित थीं. लंच के बाद चारों अपनेअपने काम करने लगीं. इस से पहले भी कई फ्लैट्स देखे जा चुके थे पर किसी न किसी कारण से रहने लायक नहीं लगे थे. अब बारिश शुरू होने वाली थी, लंबे ट्रैफिक जाम के दिन आने वाले थे, जल्दी ही फ्लैट फाइनल होना चाहिए, यही सब सोचते हुए सब काम करती रहीं, शाम होते ही सब ब्रोकर से मिलने भागी.

ब्रोकर का नाम जानी था, चारों उस के नाम पर मुसकराती रहीं, यह समय थोड़ा परेशानी का था पर इस उम्र में कुछ तो खास होता है कि हंसने खिलखिलाने के बहाने ढूंढ़ ही लिए जाते हैं. जानी कह रहा था, ‘‘मैडम. आप चारों एक बार फ्लैट देख लो, मना कर ही नहीं पाएंगीं, फुली फर्निश्ड फ्लैट है, आप लोगों को घर से कुछ लाना ही नहीं पड़ेगा. सब कुछ है. हां, फ्लैट पसंद आया तो एग्रीमेंट किस के नाम पर होगा.’’

दीप्ता ने कहा, ‘‘मेरे और मेरी 2 फ्रैंड्स के नाम पर.’’

‘‘ठीक है.’’

एक कुछ पुरानी सी बनी बिल्डिंग की तीसरी फ्लोर का यह टू बैडरूम फ्लैट चारों को देखते ही पसंद आ गया, अच्छी तरह देख परख लिया गया. दीप्ता ने कहा, ‘‘ठीक है, इसे फाइनल कर लें.’’

सब ने हां में सिर हिला दिया, ‘‘मैं कल फ्लैट के मालिक को बुला लेता हूं, आप लोग कुछ टोकन मनी ट्रांसफर कर दो, मेरे औफिस आ कर पेपर साइन कर देना. मैं सब तैयार रखता हूं.’’

‘‘ठीक है, कल मिलते हैं,’’ कह कर चारों फलक की कार से ही औफिस की पार्किंग पहुंची, सब की कार वहीं थी, सब अपनीअपनी कार से ही आती जाती थीं, मनुश्री ने कहा, ‘‘फ्लैट तो बिलकुल सुंदर, तैयार है. फ्लैट ओनर पता नहीं कैसा होगा.’’

‘‘हमें क्या करना है उस का, कैसा भी हो. फ्लैट बढि़या मिल गया, बस. अपना काम हो गया. औफिस से भी 15 मिनट ही दूर है.’’

अगले दिन सब काम तेजी से हुआ, मुंबई में काम सिस्टेमेटिक होते हैं, ये सच है. सब को काम खत्म करने की एक जल्दी सी रहती है, कोई ढीलम ढाल नहीं. कोई काम ज्यादा लटकाया नहीं जाता, करना है तो कर के खत्म कर दिया जाता है. ओनर संचित शर्मा करीब 40 साल का व्यक्ति था, लड़कियों से मिल कर खुश हुआ. युवा, सुंदर, स्मार्ट, आधुनिक लड़कियों से मिल कर कौन खुश नहीं होता. एग्रीमेंट हो गया. चारों अपना जरूरी सामान ले कर शिफ्ट कर गईं. औफिस वालों में से जो खास दोस्त थे, उन्हें बुला कर एक छोटी सी हाउस वार्मिंग की पार्टी भी हो गई.

सब के घर वाले फ्लैट देख ही चुके थे, आपस में मिल भी चुके थे, सब निश्चिंत थे, किसी की बेटी अकेली नहीं रहेगी, अच्छे साथी मिले हैं. जिस का अपने घर जाने का मन होता, घर भी चली जाती. वीकेंड में चारों अपने घर चली जातीं, वर्क फ्रौम होम करना होता तो भी घर रुक जातीं. कुल मिला कर सब की लाइफ में इस घर का होना एक आराम ले कर आया था.

सब ठीक चल रहा था, चारों लड़कियां आजाद जीवन का आनंद ले रही थीं. घर वालों की कोई रोकटोक नहीं, जो मन हुआ, खाया, बनाया, कभी कुछ खाना और्डर कर लिया. फलक अपने घर जाती तो मनु श्री कहती, ‘घर जा रही हो तो अपनी मौम से कुछ बढि़या नौन वेज बनवा लाना. बाजार से चाहे कितना भी और्डर कर लो, तुम्हारी मौम के हाथों के बने चिकेन करी और कबाब का जवाब नहीं है,’ फलक हंस कर अपनी मौम को उसी टाइम फोन कर के बता देती कि मनुश्री को क्या चाहिए. दीप्ता और वमिका शाकाहारी थीं पर उन्हें फलक और मनुश्री के नौनवेज खाने के शौक से कोई परेशानी नहीं थी. एक वीकेंड बारिश बहुत ज्यादा तेज थी, कोई अपने घर के लिए निकल नहीं पाई.

सब के घर वालों ने भी कह दिया था कि फ्लैट में ही रहें, इस बारिश और ट्रैफिक में न निकलें. ये चारों इस तरह जब भी खाना और्डर करतीं, अपनाअपना अपने मन के हिसाब से मंगा लेती थीं, मन होता तो एकदूसरे का खाना टेस्ट कर लेतीं. फलक ने अपने लिए मटन बिरयानी और्डर की थी. डिलीवरी बौय सुनील आया, उसे और्डर और नाम से सम?ा आ ही गया कि फलक एक मुस्लिम लड़की है, वह उस समय तो कुछ नहीं बोला पर बिल्डिंग के बाहर बनी दुकानों में से एक पर रुक गया, दुकानदार अजीत से उस

की अच्छी जान पहचान थी. सुनील ने कहा, ‘‘अजीत भाई. आप लोगों की सोसाइटी में तो मुसलमानों को कोई घर किराए पर नहीं देता था, अब कैसे दे दिया.’’

अजीत ने ऐंठ से कहा, ‘‘भाई. अब भी कोई नहीं देता. यहां मुसलमान रह ही नहीं सकते. पूरी सोसाइटी में एक भी मुसलमान नहीं है.’’

‘‘नहीं, भाई. एक फ्लैट में लड़की को खाना डिलीवर करके आ रहा हूं, लड़की मुसलमान है.’’

‘‘न, न, हो ही नहीं सकता.’’

‘‘अरे भाई. बिल्डिंग नंबर बीस के तीन सौ दो नंबर से आ रहा हूं.’’

अजीत ने थोड़ी देर सोचा, बीस बिल्डिंग की पूरी सोसाइटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में ग्रौसरी की यही दुकान थी, वह सब को जानता था. कुछ देर सोचने के बाद बोला, ‘‘वो फ्लैट तो संचित साहब का है, किराए पर दिया होगा, वे दूसरे बड़े फ्लैट में शिफ्ट हो गए हैं न. बात करता हूं.’’

समाज में पहले से ही दिन पर दिन भड़क रही धर्म की आग में अपना भी योगदान दे कर एक तीली और डाल कर सुनील चला गया. अजीत ने संचित को फोन मिलाया, ‘‘क्या साहब. आप ने घर मुसलमान लड़की को किराए पर दे दिया.’’

‘‘नहीं तो. फ्लैट किसी दीप्ता शर्मा ने लिया है, जानी ने ही तो दिलवाया है, उस के साथ दो और रहती हैं, वे भी हिंदू ही हैं.’’

‘‘नहीं साहब. कुछ तो गड़बड़ है. आप अपने फ्लैट में जा कर ठीक से पता कर लो.’’

‘‘औफिस के बाद आज ही जाता हूं.’’

रात 8 बजे संचित ने जब पूछताछ के इरादे से फ्लैट में कदम रखा, चारों हैरान हुईं.

संचित उच्च पदस्थ अधिकारी था पर धर्म का चश्मा उस की आंखों पर भी वैसे ही लगा था जैसा कि आजकल ज्यादातर लोगों की आंखों पर लगा है. उसने चारों को ध्यान से देखा, उसे बस दीप्ता का ही चेहरा याद था, एग्रीमेंट के टाइम वह साइन करके जल्दी ही औफिस निकल गया था. पूछा, ‘‘फ्लैट तो आप तीनों ने लिया था, ये चौथी कौन हैं.’’

‘‘ये भी हमारी दोस्त है, कभी कभी साथ रहती है.’’

‘‘क्या नाम है.’’

‘‘फलक.’’

‘‘क्या कास्ट है.’’

‘‘मुसलिम.’’

‘‘दीप्ता, मैं आपसे और वमिका से ही

मिला हूं, आप लोगों ने मुझे फ्लैट लेने के टाइम बताया नहीं कि इस फ्लैट में एक मुसलिम लड़की भी रहेगी.’’

अपमान और दुख से फलक का चेहरा उतर गया. उस की दोस्तों ने महसूस किया कि यह ठीक नहीं हो रहा है. वमिका ने कहा, ‘‘इतना जरूरी नहीं लगा कि यह बताया जाए कि कभी कभी हमारी कौन दोस्त आ कर हमारे साथ रह सकती है.’’

दीप्ता ने कुछ कड़े से स्वर में कहा, ‘‘अंकल. आप के घर कभी कोई दोस्त अचानक नहीं आ सकता.’’

मनुश्री ने कहा, ‘‘अंकल, क्या लेंगें आप, पानी, चाय.’’

संचित ने फौरन ‘कुछ नहीं.’ कहा, ध्यान से लड़कियों पर एक नजर डाली, चेहरे पर कुछ नाराजगी के भाव थे.

मनुश्री ने थोड़ा ठोस अंदाज से कहा, ‘‘सर. आप को हम लोगों से किसी भी तरह की कोई प्रौब्लम हो रही हो तो हम तुरंत आप का फ्लैट खाली कर देंगें. बस आप खुल कर अपनी परेशानी हमें साफसाफ बताओ कि अगर इस फ्लैट में हमारे साथ हमारी एक मुसलिम दोस्त फ्लैट शेयर करती है तो मुश्किल क्या है. आपका क्या नुकसान हो रहा है. आप तो इतनी अच्छी पोस्ट पर हैं, आप बड़े हैं, हम तो आप से कितनी छोटी हैं. हम से क्या नुकसान हो सकता है आप को. सुबह औफिस चली जाती हैं, शाम को आ कर घर रहती हैं, वीकेंड में घर चली जाती हैं.’’ फिर उस ने बाकी तीनों को अपने साथ खड़ा करते हुए कहा, ‘‘जरा बताओ तो अंकल. हम में से कौन मुस्लिम है. आप बस इतना बता दो, हम फौरन आप का घर खाली कर देंगें.’’

संचित की बोलती बंद हो गई, उसने चारों पर एक नजर डाली, सब इस समय अपने रात के कपड़ों में थी, टीशर्ट और शौर्ट्स में इस माहौल में भी प्यारी सी धीरेधीरे मुसकराती चारों आधुनिक पर शालीन सी लड़कियां उस के सामने खड़ी  थीं, अपने औफिस की मीटिंग्स में अपने जूनियर्स पर अकारण गुर्राने वाले संचित शर्मा को समझ नहीं आ रहा था कि इन लड़कियों से क्या कहें. ध्यान आया कि लड़कियों को रहते 3 महीने हो चुके हैं, किराया टाइम से आ जाता है, घर साफसुथरा चमक सा रहा है, किसी ने कोई शिकायत नहीं की है.

सब ठीक तो है पर मुसलिम लड़की. उनके फ्लैट में. पर कहें क्या. कैसे कहें. इतनी पढ़ी लिखी लड़कियों के सामने धर्म का इशू बनाते हुए अच्छे लगेंगें. वे इस समय ही कितने गंवार, मूर्ख जैसे लग रहे होंगे. उन्होंने अपने सारे भावों को मन में रख कर एक फीकी सी हंसी के साथ उठते हुए कहा, ‘ठीक है. पर आप लोगों को झूठ नहीं बोलना चाहिए था.’

चारों ने उत्साह के साथ हंसते हुए ‘सौरी.’ कहा, संचित अब मुसकरा दिए तो दीप्ता ने कहा, ‘‘अंकल. यह तो बता कर जाइए कि इन में से फलक कौन है.’’

‘‘कोई भी हो, क्या फर्क पड़ता है. जो भी हो, वह कभी कबाब बना कर खिला दे,’’ हंसते हुए कह कर संचित फ्लैट से निकल गए.

संचित के जाने के बाद मनुश्री ने इठलाते हुए कहा, ‘‘देखा. मैं ने कहा था न कि मैं सब को पटा सकती हूं.’’

‘‘सही कहा था, ड्रामेबाज. बेचारे कुछ बोल ही नहीं पाए, ‘‘सब ने हंसते हुए उसे गुदगुदी करना शुरू कर दिया जो उस की कमजोरी थी, अब फ्लैट उन्मुक्त ठहाकों से चहक उठा था.

बेऔलाद: भाग 2- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

पुष्पा की बात सुनकर नायरा स्तब्ध रह गई, उसे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था जो उसने सुना वह सच है.

‘‘हां, बेटा सच है, एकदम सच.’’

‘‘लेकिन दादी फिर पापा क्यों कहते रहे कि मां मर गई? आप ने भी क्यों नहीं बताया मुझे कि मेरी मां जिंदा है, जिस ने मुझे जन्म दिया, जिस की वजह से मैं इस दुनिया में आई, वह मरी नहीं, बल्कि जिंदा है? आप सब ने मु?झ से ?झठ क्यों कहा? क्यों ऐसा किया आप लोगों ने?’’ बोलते हुए नायरा की आंखों से ?झर?झर कर आंसू बहे जा रहे थे. मन तो किया उस का अभी इसी वक्त उड़ कर अपनी मां के पास पहुंच जाए.

‘‘बेटा, हमें गलत मत सम?झ. हमारी मजबूरी थी इसलिए हम ने तुम से वह बात छिपा कर रखी. लेकिन मरने से पहले मैं तुम्हें सारी सचाई बता देना चाहती हूं,’’ अपनी पोती के गालों को प्यार से सहलाते हुए पुष्पा बताने लगीं कि नरेश के पिताजी उदयपुर के डांगी गांव के जमींदार के यहां नौकरी किया करते थे. पहले उन का कच्चा मकान हुआ करता था. लेकिन फिर बाद में नरेश के पिताजी ने आप ने कमाए पैसों से उस घर को पक्का बनवा लिया. घर में खानेपीने की कोई कमी नहीं थी. सब बढि़या चल रहा था कि एक दिन नरेश के पिताजी चल बसे. तब नरेश 10 साल का अबोध बच्चा था. दुनियादारी की उसे कोई सम?झ नहीं थी. लेकिन पिता के गुजर जाने के बाद नरेश जैसे अचानक से सम?झदार हो गया.  मां को रोता देख कर कहता कि मां मत रो, मैं हूं न, सब ठीक कर दूंगा. लेकिन क्या ठीक करता वह. उसे तो इतनी भी सम?झ नहीं थी कि पैसे कैसे कमाए जाते हैं. कौन सी चीज कैसे खरीदी जाती है. नरेश के पिताजी के गुजर जाने से घर की स्थिति दिनबदिन बिगड़ती ही जा रही थी. घर में एक ही कमाने वाला था, वह भी नहीं रहा तो नरेश और उस की बूढ़ी दादी की जिम्मेदारी पुष्पा पर ही आ पड़ी.

मगर बेटे के गम में कुछ दिन बाद नरेश की दादी भी चल बसीं. कुछ ही समय के

अंतराल पर पति और सास को यों खो देना पुष्पा के लिए बड़ा आहत था. ऊपर से पैसों की किल्लत, कैसे पालेगी वह अपने बेटे को? घर कैसे चलेगा? नरेश की पढ़ाई कैसे होगी, सोचसोच कर पुष्पा रोने बैठ जातीं. लेकिन उस वक्त उन की सहेली ने उन्हें उन का हुनर याद दिलाया और कहा कि क्यों न वे गांव की औरतों के कपड़े सिलना शुरू कर दें. सिलाईकढ़ाई तो आती ही है उन्हें और फिर वह है न, फिर चिंता क्यों करती हैं, उस आड़े वक्त में पुष्पा की सहेली ने उन का बड़ा साथ दिया था.

धीरेधीरे पुष्पा की मेहनत रंग लाई और उन की कमाई से घर में दालरोटी चलने लगी और नरेश फिर से स्कूल जाने लगा. लेकिन नरेश का पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. अपनी मां को काम करते देख कहींनकहीं उसे बुरा लगता था. किसी तरह खींचतान कर उस ने 12वीं तक पढ़ाई की और एक गैराज में नौकरी करने लगा. 1-2 साल किसी तरह नौकरी करने के बाद वहां से भी उस का मन ऊब गया, तो वह अपने दोस्तों की तरह गाइड का काम करने लगा. देशीविदेशी सैलनियों को घुमाना, उन्हें अपनी सभ्यता, संस्कृति के बारे में बताना नरेश को अच्छा लगता था.

पर्यटकों को भी नरेश का बातविचार खूब पसंद आते थे. सैलानी नरेश से इतने ज्यादा प्रभावित हो जाते थे कि जातेजाते वे उस का फोन नंबर और घर का पता नोट कर ले जाते और कहते कि अगर उन का कोई दोस्तरिश्तेदार यहां घूमने आएगा, तो वे उन्हें नरेश का फोन नंबर दे कर कहेंगे कि वह बहुत अच्छा गाइड है.

विदेशी सैलानियों की तरह ही जोली भी उदयपुर घूमने आई थी. नरेश ही उस का गाइड था. नरेश के साथ कुछ ही दिनों में वह काफी हिलमिल गई. कारण, नरेश सब से जुदा था. जोली देशविदेश घूमती रहती थी. बहुत गाइडों से उस का पाला पड़ा था. लेकिन नरेश जैसा हंसमुख सरल विचारों वाला गाइड उसे पहली बार मिला था. जब देखो वह मुसकराता रहता था जैसे उस की जिंदगी में कोई दुखतकलीफ हो ही न. वह इंसान सब से जुदा था. इसीलिए जोली को उस का साथ बहुत ही अच्छा लगता था. उस के साथ रहते हुए जोली की सारी टैंशन दूर हो जाती थी. नरेश जब जोली को मैडमजी कह कर बुलाता तो वह हंस पड़ती और कहती कि मैडमजी नहीं, तुम मुझे जोली बुला सकते हो.

एक रोज बातोंबातों में ही जोली ने बताया कि उसे राजस्थान बहुत पसंद है और वह अकसर यहां आती रहती है. लेकिन उसे होटल में रहना अच्छा नहीं लगता. अगर कोई पेइंगगैस्ट मिल जाता रहने को तो मजा आ जाता. वह जितना चाहे उतना पैसा पे करने को तैयार है पर उसे घर जैसा माहौल चाहिए.

उस पर नरेश संकुचाते हुए बोला था, ‘‘पैसे की तो कोई बात नहीं से मैडमजी, लेकिन अगर आप चाहें तो मेरे गरीबखाने में आ कर रह सकती हैं. वैसे भी हमारा ऊपर वाला कमरा खाली ही है.’’

अब जोली यही तो चाहती थी. वह तुरंत होटल से अपना सामान ला कर नरेश के ऊपर वाले कमरे में शिफ्ट हो गईं. पुष्पा के हाथों का बना खाना वह बड़े चाव से खाती और सब से अच्छा तो उसे दालबाटी लगता था. कहती, वहां जा कर यह डिश जरूर ट्राई करेगी. जब तब जोली पुष्पा के कामों में हाथ बंटा दिया करती थी. बड़ा अच्छा लगता था उसे किचन में पुष्पा की मदद कर के. उन के साथ रह कर वह बहुत कुछ बनाना भी सीख चुकी थी. दोनों के बीच मांबेटी जैसा रिश्ता बन गया था. मां का प्यार क्या होता है, उस ने पुष्पा के साथ रह कर ही जाना था वरना तो उसे कभी अपनी मां का प्यार नहीं मिला.

रोज की तरह उस रात भी दोनों खाना खाने के बाद छत पर बैठ कर कौफी का आनंद लेते हुए यहांवहां की बातें कर रहे थे. नरेश के पूछने पर कि उस के घर में कौनकौन हैं? तो जोली भावुक हो कर बताने लगी कि जब वह 8 साल की थी तभी उस के मांपापा का तलाक हो गया और वह अपनी नानी के साथ रहने चली गई थी. तलाक लेने के बाद उस के मांपापा ने दोबारा शादी कर अपनी नई दुनिया बसा ली. अपने पेरैंट्स होने का फर्ज वे बस इतना ही निभाते कि नायरा की पढ़ाई और खर्चे के लिए पैसे भेज दिया करते थे. कुछ समय बाद जब उस की नानी का देहांत हो गया, तो वह होस्टल रहने चली गई.

‘‘क्यों, आप अपने मांपापा के साथ भी तो जा कर रह सकती थी न?’’

नरेश की बात पर जोली ने बताया कि वह गई थी अपने पापा के पास रहने, पर

सौतेली मां उसे पसंद नहीं करती थी. इसलिए वह अपनी मां के पास रहने चली आई. लेकिन वहां उस का सौतेला पिता उस पर गंदी नजर रखता था. इसलिए फिर होस्टल ही उस का घर बन गया.

‘‘उफ, बहुत दुखभरी कहानी है आप की,’’ अफसोस जताते हुए नरेश बोला.

यह सुन मुसकराई और फिर ऊपर आसमान की तरफ देखती हुई एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोली, ‘‘मुझे तो यह सम?झ नहीं आता कि जब लोगों को पालना ही नहीं होता है, फिर बच्चे पैदा ही क्यों करते हैं?’’ बोलते हुए जोली की आंखें छलक आई थीं. लेकिन बड़ी सफाई से वह अपने आंसू पोंछ कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘वे सब छोड़ो… तुम बताओ, तुम्हारे जीवन में क्याक्या हुआ… मेरा मतलब है तुम्हारी परवरिश, पढ़ाई, सब जानना है मुझे.’’

फिल्म एनीमल किस देश मे क्यों हुई सुपर फ्लाप

निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा और अभिनेता रणबीर कपूर की फिल्म ‘‘एनीमल’’ ने बाक्स आफिस पर सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं. इस फिल्म को मिल रही सफलता से समाज का एक तबका आश्चर्य चकित है.और लोग सवाल रहे है कि क्या अब भारत के लोग सेक्स सीन,अल्फामैन व एक्शन ही फिल्मों में देखना चाहते हैं? कुछ लोग आहत भी हैं. उनकी राय में इस फिल्म में महिलाओें को गलत तरीके से चित्रित किया गया है. लोगों को लगता है कि फिल्म में नारी के साथ हिंसा और उनका गलत अंदाज में यौन शोषण किया गया है.कुछ लोगों की राय में इसका समाज पर गलत असर पड़ता है.

जबकि एक तबका मानता है कि यह सब समाज में आ रहे बदलाव का प्रतीक मात्र है.इसी सोच के चलते भारत में ‘एनीमल’ अब तक लगभग साढ़े पांच सौ करोड़ और भारत सहित पूरे विश्व में आठ सौ छाछठ करोड़ कमा लिए हैं.लेकिन विश्व में एक ऐसा देश भी है,जहां ‘एनीमल’ ने बाक्स आफिस पर पानी तक नही मांगा.शायद इस सच्चाई पर यकीन करना मुमकीन न हो रहा हो,मगर हकीकत यही है कि बांगलादेश में इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर पानी तक नही मांगा.और इसकी मूल वजह यह है कि जिन दृश्यों को देखने के लिए भारत के दर्शक सिनेमाघर की तरफ भाग रहे हैं,बांगलादेश के सेंसर बोर्ड ने उन दृश्यों पर कैंची चला दी है.पूरे विष्श् में तीन घंटे 21 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘एनीमल’ प्रदर्शित हुई है.मगर बांगला देश के सेंसर बोर्ड ने इसे आधा घंटा काटकर महज दो घंटे इक्कीस मिनट की कर दी है.

बांगला देश के दर्शकों के हाथ लगी निराशा

वास्तव में एक दिसंबर को भारत में प्रदर्शित फिल्म ‘‘एनीमल’’भले ही अपने उत्तेजक सेक्स दृश्यों व हिंसा प्रधान दृश्यों के चलते दर्शकों को अपनी तरफ खींच रही हो.मगर जब फिल्म ‘एनीमल’ सात दिसंबर को बांगला देश में प्रदर्शित हुई तो पता चला कि बांगला देश के सेंसर बोर्ड ने आधे घंटे के अति बोल्ड सेक्स दृश्यांे, सेक्स से जुड़ी बातों वाले संवाद और अति खूनखराबा वाले एक्शन दृश्यों पर कैंची चला दी.बांगलादेश एक इस्लामिक देश है,जहां के सेंसर बोर्ड के नियम कायदे भारत के मुकाबले ज्यादा सख्त हैं.फिल्म ‘एनीमल’ को लोग उसके सेक्स दृश्यों,सेक्स को लेकर अश्लील बातचीत व हिंसा प्रधान दृश्य के चलते ही पसंद कर रहे हैं.अन्यथा इस फिल्म की कहानी में कोई खास दम नही है.अब जब बांगला देश का संेसर बोर्ड इन दृश्यों को ही हटा दे और फिल्म के निर्माता इस बात को स्वीकार कर लें,तो फिर इसका असफल होना तय हो ही जाता है.

दर्शकों को दूसरा झटका

बहरहाल,सबसे बड़ा सच यह है कि निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने तीन घंटे पचास मिनट की अवधि की फिल्म ‘एनीमल’ बनायी है,जिसके कई दृश्यों पर भारत के सेंसर बोर्ड ने कैंची चला कर ‘एनीमल’ को तीन घंटे इक्कीस मिनट की अवधि की कर दी और इसी अवधि वाली फिल्म भारत सहित ज्यादातर देशों में प्रदर्शित हुई है.अब तक निर्माता का दावा था कि यह पूरी फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर आएगी.यानी कि नेटफ्लिक्स के दर्शकों को उम्मीद हो गयी थी कि जिन आधे घंटे के दृश्यों पर भारत में सेंसर बोर्ड ने कैंची चला दी है,उन दृश्यों को वह नेटफ्लिक्स पर देख लेंगें.मगर अब दर्शकों की इन उम्मीदों पर भी पानी फिर गया.क्योकि नेटफ्लिक्स ने ऐलान कर दिया है कि अब वह भारत के सेंसर बोर्ड से पारित भारतीय फिल्मों को ही स्ट्रीम करेगा….

New Year 2024: नए साल में क्या है, सेलेब्स की नई सोच, जानें यहाँ

नया साल 2024 की शुरुआत होने वाली है, हर कोई अपने ढंग से इस साल को नए रूप में मनाने की कोशिश करने वाले है. होटलों, दुकानों और पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों की भीड़ की कमी नहीं है, ऐसे में फिल्म हो या टीवी सेलेब्रिटी थोड़े सुकून की जिंदगी अपने परिवार के साथ बिताना पसंद कर रहे है और एक नई और ताजगी के साथ आगे आने वाले वर्ष का स्वागत भी करना चाहते है. इस बार उन सभी ने नए साल में नई सोच को प्राथमिकता दी है, जिससे हर तरफ लोग खुश रह सकें, जो आज के तनाव भरे माहौल के लिए बहुत जरुरी है. इस साल को वे खुशियों से भर देना चाहते है, जिसमे वे अपने साथ अपने परिवार और अपने आसपास के सभी को नई सोच के साथ आगे बढ़ने के लिए कहते  है, क्या है उनके सुझाव, आइये जानते है.

रीवा अरोड़ा

‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ और ‘मॉम’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी अभिनेत्री रीवा अरोड़ा कहती है कि मैं नए साल में हर बार कुछ नई सोच के साथ प्रवेश करना चाहती हूँ. इस बार मैं अपने परिवार के साथ वृन्दावन में हूँ और सर्दी के मौसम को महसूस कर रही हूँ, मुझे ये खिला – खिला मौसम बहुत पसंद है. इस बार मैं दर्शकों को आने वाली दो फिल्मों में काम कर उन्हें खुश करना चाहती हूँ. शारीरिक रूप से इस बार मुझे थोडा बैकपैन है, जो मुझे डांस और वर्कआउट के दौरान हुआ था, उसे ठीक करने में लगी हूँ और रेस्ट कर रही हूँ. मैं नए साल में फिट रहना चाहती हूँ, ताकि मुंबई जाकर शूटिंग शुरू कर सकूँ. आगे मैं पूरे साल भारत के विभिन्न स्थानों पर घूमकर एक्स्प्लोर करना चाहती हूँ, मुझे वृन्दावन बहुत पसंद है, क्योंकि यहाँ के लोगों की सादगी बहुत अच्छी लगती है. पर्यावरण की बात करें तो हर नागरिक की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने आसपास और देश को स्वच्छ रखने की कोशिश करें. इधर – उधर न थूंके. इतनी सुन्दर वृन्दावन में भी हायजीन की कमी मुझे कई बार दुखी करती है.

सुमित राघवन

वागले की दुनिया फेम सुमित राघवन कहते है कि नए साल में सामाजिक रूप से मैं एक एलर्ट सिटीजन रहना चाहता हूँ, जिसमे अगर कोई राह चलते थूकता है तो मुझे उसे समझाना पड़ेगा कि ये गलत है, अगर कोई चलती हुई गाडी से खिड़की खोलकर कुछ बाहर फेंकता है, तो उसे रोकना पसंद करूँगा और यहाँ मैं अपने चेहरे का प्रयोग करूँगा, जिसे दर्शकों ने हमेशा चाहा है. शारीरिक रूप से नए साल में मैं फिट और हेल्दी रहना पसंद करूँगा. बीच – बीच में बड़ा पाँव, पिज़्ज़ा और चोकलेट केक भी खाऊंगा, लेकिन आधा घंटे की वर्कआउट मैं अवश्य करना चाहूँगा, जिससे मैं मानसिक रूप से स्वस्थ रहूँ. पर्यावरण की अगर मैं बात करूँ तो नए साल में जो लोग पर्यावरण को ख़राब अपनी गलत आदतों की वजह से कर रहे है, कचरा इधर – उधर फेंक रहे है, उन्हें बंद करने की कोशिश करूँगा. इसके अलावा मैंने अपनी स्टूडियों के आसपास प्लांट्स लगवाए है और आगे भी लगाता रहूँगा. मैंने अपने मेकअप रूम के आगे एक किचन गार्डेन भी बनाया है, ताकि क्लाइमेट चेंज को कम किया जा सकें.

इंद्राक्षी कांजीलाल

पुष्पा इम्पॉसिबल धारावाहिक में अभिनय कर रही कोलकाता की इंद्राक्षी कांजीलाल कहती है कि नए साल में सभी को अपने आसपास और परिवार से एक अच्छी बोन्डिंग बनाए रखने की जरुरत है, क्योंकि आजकल लोग बहुत अधिक सेल्फ सेंटर्ड होते जा रहे है. मैं भी यही कोशिश करूंगी, कि मैं अपनी उपस्थिति को समाज और परिवार में एक सम्मानजनक रूप में दर्ज करवा सकूं, गलत का समर्थन न करूँ. शारीरिक रूप से हेल्दी रहने की कोशिश करूँगी, क्योंकि स्वास्थ्य ही सबसे उत्तम धन है. पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाऊं, आसपास पेड़ लगाकर लोगों को प्रेरित करूँ, ताकि मौसम में आये इस अचानक बदलाव और पृथ्वी को गर्म होने से बचा सकूँ.

राकेश कौल

अभिनेता राकेश कौल कहते है कि आज विश्व में सभी लोगों पर काम का दबाव अधिक हो चुका है. हर स्माइल के पीछे एक संघर्ष की कहानी है, जिसे हम नहीं समझ पाते, इसलिए ऐसे लोगों के लिए मैं नए साल में दयावान रहना पसंद करूँगा और चारों तरफ खुशियाँ बिखेरना चाहूँगा. अगर किसी ने कुछ अच्छा काम मेहनत से किया है, तो उसे शाबासी देने में कंजूसी नहीं करूँगा. कोई अंजान अगर मुझे देखकर मुस्कुराये, तो एक स्माइल मैं भी करूँगा. एक मुस्कराहट हर किसी को एक सुकून देती है और इससे मैं नए साल में अधिक से अधिक बिखेरना चाहूँगा.

महेश ठाकुर

अभिनेता महेश ठाकुर का वर्ष 2024 के लिए सभी को नई सोच के साथ प्रवेश करने को कहते है, जिसमे अपने स्वास्थ्य, समाज और पर्यावरण प्रदूषण पर ध्यान देना जरुरी समझते है. वे कहते है कि आगे आने वाले साल में सभी को समवेत रूप से समाज को बदलने के लिए आगे आना पड़ेगा. तभी हमारे फ्यूचर जेनरेशन को आगे आने में मदद मिलेगी. जहाँ भष्टाचार है, अन्याय है, उसे दूर से नहीं, सामने आकर समन्वित रूप से दूर करें. जब तक सब साथ मिलकर आवाज नहीं उठायेंगे, बदलाव होना संभव नहीं हो सकता. पर्यावरण में बदलाव के लिए हर एक इंसान को एक या दो पौधे निश्चित स्थान पर लगाते रहना है, तभी जाकर जलवायु परिवर्तन की समस्या 20 साल में ख़त्म हो सकती है. ये मुश्किल नहीं, जहाँ आप रहते है, अपने पास एक प्लांट लगाकर उसकी सेवा कर बड़ा करें. 20 साल बाद पर्यावरण प्रदूषण में कमी अवश्य आएगी.

डिलिवरी के बाद से मेरी फेस पर काफी काले दाग आ गए हैं, मैं अब क्या करुं

सवाल

करीब 2 महीने पहले मेरी डिलिवरी हुई है और मैं ने बहुत ही सुंदर बेटी को जन्म दिया है. लेकिन मेरे फेस पर काफी काले दाग आ गए हैं. मैं इन के लिए क्या करूं?

जवाब

डिलिवरी के बाद अकसर हारमोंस में बदलाव आने की वजह से काले दाग आ जाते हैं. अपने चेहरे पर काले दाग कम करने के लिए आप निम्नलिखित कदम उठा सकती हैं: एक अच्छे स्किनकेयर रूटीन का पालन करें जिस में फेस वाश, स्क्रब, मौइस्चराइजर और सनस्क्रीन शामिल हो. ड्रग स्टोर से मैडिकल या ओवर द काउंटर क्रीम या फिर सीरम का उपयोग करें जो काले दागों को कम करने में मदद कर सकते हैं. स्वस्थ आहार खाने के साथसाथ पर्याप्त पानी पीएं और विटामिन सी और विटामिन ई आप की त्वचा के लिए महत्त्वपूर्ण है. अगर काले दाग बहुत गहरे हैं या कुछ महीनों में गायब नहीं हो रहे हैं तो डाक्टर या डर्मैटोलौजिस्ट से सलाह ले कर क्लीनिकल इलाज जैसेकि कैमिकल पील. लेजर और माइक्रोडर्माब्रेशन लें. ये कालेपन को काफी हद तक ठीक करते हैं.

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मेरी स्किन धीरेधीरे लूज होती जा रही है. मैं ऐसा क्या करूं या  कैसा मास्क लगाऊं जिस से मेरी स्किन टाइट हो जाए?

जवाब

उम्र के साथ स्किन का लूज होना शुरू हो जाता है. हमारी स्किन के नीचे जो कोलोजन होता है वह ड्राई होने लग जाता है और कम होने लग जाता है. इसलिए स्किन को टाइट करने के लिए मौइस्चर और नरिशमैंट यानी कोलोजन की भी जरूरत होती है. कुछ होम रेमेडीज के द्वारा अपनी स्किन को टाइट रख सकती हैं हालांकि स्किन की डेली केयर करना बहुत जरूरी है. एक केला लें और उसे मैश कर लें. उस में 1/2 कप फ्रैश क्रीम डाल कर अच्छे से स्मूथ फेस मास्क बना लें. फिर इसे फैस और नैक पर लगा लें. 15-20 मिनट के बाद ठंडे पानी से धो लें. ऐसा प्रतिदिन करने से आप की स्किन में टाइटनैस आएगी. दूसरा 1 अंडा लें. उस में कुछ दाने चीनी और 1 चम्मच दही मिला लें. इन को अच्छे से फेंट कर अपनी स्किन पर मास्क की तरह लगा लें. 15-20 मिनट के बाद इसे ठंडे पानी से धो लें. यह नुसखा भी स्किन को टाइट करने में काफी फायदा पहुंचाता है. अगर हो सके तो रैगुलरली फैशियल जरूर करवा लें या फिर घर पर ही किसी अच्छे तेल से मसाज जरूर करें और मास्क लगाती रहें. अगर फिर भी स्किन ढीली हो रही है तो किसी अच्छे ब्यूटी क्लीनिक में जा कर क्लीनिकल ट्रीटमैंट ले सकती हैं.

-समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें. 

तो त्वचा नहीं रहेगी ड्राई

सर्द मौसम में त्वचा का रूखापन आम समस्या है. रूखापन बढ़ने से इचिंग और रैड रैशेज की समस्या भी बढ़ जाती है. लेकिन इन समस्याओं से छुटकारा पाने का यह हल तो नहीं कि आप कई तरह के मौइस्चराइजिंग लोशन, क्रीम या औयल खरीद कर अपनी ड्रैसिंग टेबल भर लें.

आइए, जानें ऐसे मौइस्चराइजर्स के बारे में जो आप के लिए विंटर शील्ड का काम करेंगे:

अल्ट्रा हाइड्रेटिंग मौइस्चराइजर्स ऐसा मौइस्चराइजर जिस में लंबे समय तक त्वचा की नमी को लौक करने वाले इनग्रीडिऐंट्स हों जैसे शीया बटर, आमंड औयल, ग्लिसरीन और सेरामाइड्स. बायोटीक, हिमालया इत्यादि के कुछ मौइस्चराइजर्स में इन तत्त्वों का मिश्रण मिलता है. यदि आप की त्वचा ज्यादा ड्राई रहती है तो इन इनग्रीडिऐंट्स वाले मौइस्चराइजर्स का इस्तेमाल कर सकती हैं.

क्रीमी ऐंड मिल्की: कुछ कम बजट में लौंगलास्टिंग मौइस्चराइजर की तलाश है तो क्रीम या मिल्क बेस्ड मौइस्चराइजर भी बाजार में उपलब्ध हैं. कुछ प्रोडक्ट्स तो बौडी वाश और मौइस्चराइजर के कौंबो के साथ आते हैं. यदि आप 12 घंटे या फिर इस से भी ज्यादा समय तक बाहर रहती हैं और बारबार मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करना संभव नहीं तो ऐसा मिल्क बेस्ड मौइस्चराइजर चुनें जिस में विटामिन ई या आमंड औयल भी हो.

स्किन डैमेज रिपेयर: ज्यादा रूखी त्वचा पर इचिंग, रैड पैचेज इत्यादि की समस्या ज्यादा होती है. कई बार इचिंग इतनी ज्यादा होती है कि ऐसा लगता है फुलस्लीव ड्रैस पहनी ही क्यों. ऐसे में आप कुछ हर्बल औप्शंस ट्राई कर सकती हैं. लेकिन यह जरूर देख लें कि ऐसे औप्शंस में जोजोबा औयल, विटामिन ई, व्हीट जर्म इत्यादि की खूबियां हों. हिमालया के प्रोडक्ट्स में इन सभी का मिश्रण मिलता है.

नौनकोमेडोजेनिक मौइस्चराइजर: यानी ऐसा मौइस्चराइजर जिस में ऐसे इनग्रीडिऐंट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया हो जो आप की त्वचा के पोर्स को बंद कर दें. इस तरह के मौइस्चराइजर जैंटली आप की त्वचा की नमी को लौक करते हैं और उस पर एक प्रोटैक्टिव लेयर बना देते हैं. कैटाफिल के मौइस्चराइजर्स नौनकोमेडोजेनिक हैं.

टिप्स

  •  ज्यादातर महिलाएं जल्दबाजी में वही मौइस्चराइजर फेस पर भी अप्लाई कर लेती हैं जो वे बौडी के लिए इस्तेमाल करती हैं. फेस स्किन बौडी स्किन से अलग होती है और फिर शरीर के दूसरे अंगों की तुलना में चेहरा हर समय ढक कर रखना भी संभव नहीं. तो फेस के लिए वही मौइस्चराइजर काम नहीं करेगा जो बौडी पर करता है. इस के लिए आप अपनी त्वचा के अनुसार विंटर क्रीम चुनें.
  •  क्रीम का सही फायदा तभी होगा जब आप मेकअप रिमूव करने के बाद इसे अप्लाई करेंगी.
  •  क्रीम लगाने से पहले स्किन क्लींजिंग करना बेहतर होता है ताकि पोर्स ओपन हो जाएं और क्रीम सही तरह से नमी को लौक कर सके.
  • विंटर क्रीम वही चुनें जिसे बनाने में नैचुरल फौर्मूला इस्तेमाल किया गया हो और जिस में विटामिन सी, कोको बटर, आमंड औयल इत्यादि इनग्रीडिऐंट्स हों.
  •  वर्किंग वूमन ऐसी फेस क्रीम लें जिस से सन प्रोटैक्शन भी मिले. साधारण मौइस्चराइजर्स यूवी रेज से त्वचा को प्रोटैक्ट नहीं कर पाते.

विंटर फैब्रिक टिप्स

  •  वैसे कौटन ब्रीदेबल फैब्रिक होता है लेकिन विंटर सीजन के लिए यह सही नहीं क्योंकि यह बौडी हीट को लौक नहीं कर सकता. ऐसा ही लिनन के साथ भी होता है.
  •  सिल्क को भी कभी इस सीजन में प्राइमरी फैब्रिक नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यह शरीर से चिपकता भी है और बौडी हीट को भी लौक नहीं करता.
  •  सिंथैटिक वूल से बचें क्योंकि इस से शरीर पर रैशेज हो सकते हैं. हां, इसे आप तब इस्तेमाल कर सकती हैं जब आप ने अच्छे फैब्रिक से बना थर्मल पहना हो.

सिंगल पेरैंट ऐसे बनाएं जिंदगी आसान

निशा यादव 32 साल की है. उस की फैमिली उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रहती है. उस की पढ़ाई पूरी होने के बाद दिल्ली के एक मीडिया हाउस में जौब लग गई. यहीं उस की मुलाकात आशुतोष से हुई. कुछ सालों की कैजुअल डेटिंग के बाद वह आशुतोष के साथ रिलेशनशिप में आ गई.

कुछ सालों तक तो सबकुछ सही रहा. फिर एक दिन निशा के पीरियड्स मिस हो गए. उस ने प्रेगा न्यूज प्रैंगनैंसी किट से अपना प्रैंगनैंसी टैस्ट किया. रिजल्ट पौजिटिव आया. इस बारे में उस ने आशुतोष को बताया. उस ने कहा कि उसे बच्चा नहीं चाहिए. इसलिए वह आईपील खा ले. निशा सोच में पड़ गई. कुछ दिन सोचने के बाद उस ने यह फैसला किया कि वह बच्चे को जन्म देगी.

उस ने इस बारे में अपने घर वालों को बताया. उस के घर वालों ने उसे बच्चा गिराने की सलाह दी. अब उस की फैमिली भी उस के साथ नहीं है. अब उस के दिमाग में उथलपुथल चलने लगी कि वह कैसे इस सोसाइटी से लड़ेगी. कैसे वह इस का पालनपोषण करेगी. उस के साथ तो कोई है ही नहीं. लेकिन वह जानती थी कि उसे क्या करना है.

निशा फाइनैंशली इंडिपैंडैंट थी. उस का अच्छाखासा पैकेज था. एक फुल टाइम मेड तो उस के पास पहले से ही थी. रही बात सोसाइटी की, तो सोसाइटी से उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. निशा का फैसला अडिग था. इसलिए वह अपने बच्चे को इस दुनिया में ले कर आ सकी.

पर्सनल चौइस

अब निशा की बेटी इला 4 साल की हो गई है. निशा कहती है कि जबजब मैं अपनी बेटी को देखती हूं तो सोचती हूं कि मैं ने इसे जन्म दे कर बिलकुल सही किया. लेकिन अगर मैं फाइनैंशली इंडिपैंडैंट नहीं होती तो मैं अबौर्शन करवा लेती क्योंकि तब मैं इसे अच्छी परवरिश नहीं दे पाती. हमारी इंडियन सोसाइटी में आज भी एक लड़की का सिंगल पेरैंट होना बहुत मुश्किल है. समयसमय पर उस से और उस के बच्चे से उस के पिता का नाम पूछा जाता है.

उस के कैरेक्टर पर सवाल उठाया जाता है. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि हमारी सोसाइटी में चेंज आए. अगर कोई महिला सिंगल पेरैंट बनना चाहती है तो यह उस की पर्सनल चौइस होनी चाहिए. इस के बारे में कोई सवालजवाब न किया जाए.

हमारी इस रुढि़वादी दकियानुसी इंडियन सोसाइटी में एक लड़की का दुनिया में सिंगल पेरैंट होना आसान नहीं है. इस के पीछे कारण यह है कि इंडियन सोसाइटी ने सिंगल पेरैंट को कभी अपनाया ही नहीं है. खासकर सिंगल पेरैंट वूमन को. वह भी तब जबकि वह बिन ब्याही मां बनी हो.

मगर कुछ ऐसे भी अपवाद रहे हैं जिन्होंने इस सो कोल्ड इंडियन सोसाइटी की रूढि़वादी सोच पर चोट की है. ऐसा ही एक नाम बौलीवुड की फेमस सैलिब्रिटी नीना गुप्ता है जिन्होंने 1980 के दशक में बिना शादी के अपने बच्चे को जन्म दिया. असल में यह बच्चा उन का और उन के बौयफ्रैंड विवियन रिचर्डसन का था. नीना चाहती तो अर्बोशन करवा सकती थीं. लेकिन उन्होंने अपने बच्चे को इस दुनिया में लाना चुना. वे इस रूढि़वादी सोसाइटी से बिलकुल नहीं डरीं और अपने फैसले पर अटल रहीं. ऐसा कर के उन्होंने इस सोसाइटी की हजारों लड़कियों को प्रेरित किया.

सोच में बदलाव

नीना गुप्ता के ही नक्शे कदम पर चल कर हाल ही में बौलीवुड की सफल ऐक्ट्रैस इलियाना डिकू्रज ने भी 1 अगस्त को बच्चे को जन्म दिया है. समय बदल रहा है. अब इंडियन सोसाइटी की दकियानूसी सोच को टक्कर देने के लिए बहुत सी महिलाएं सामने आ रही हैं. समय के साथसाथ हमारी सोसाइटी को भी अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए.

हालांकि यह भी सच है कि अनमैरिड सिंगल पेरैंट होना आसान नहीं है. इस के लिए अपनेआप को मैंटली और फिजिकली तैयार करना होगा. इस के अलावा आप का फाइनैंशली इंडिपैंडैंट होना भी बहुत जरूरी है. अगर आप ने यह फैसला कर लिया है कि आप को अपने बच्चे को जन्म देना है तो आप को इन सभी मानदंडों पर खरा उतरना होगा.

अनमैरिड वूमन को अपने बच्चे को जन्म देना चाहिए या अबौर्शन करवा लेना चाहिए इस विषय पर अलगअलग लोगों की अलगअलग राय रही.

नई दिल्ली के साकेत इलाके में 30 साल की सीमा लकवाल अपने हसबैंड के साथ रहती हैं. वे एक हाउस मेकर हैं. इस के साथ ही वह अपने पति के इलैक्ट्रौनिक्स बिजनैस में उन का हाथ भी बंटाती हैं.

उन से हुई बातचीत में वह अपनी राय देते हुए कहती हैं, ‘‘मैं खुद 6 महीने की प्रैंगनैट महिला हूं. ऐसे में मैं सम?ाती हूं कि एक महिला के लिए मां बनना एक सुखद एहसास है. अगर कोई महिला अनमैरिड है और वह अपना बच्चा रखना चाहती है तो मैं ऐसी महिला की सपोर्ट में हूं. बस मैं उस से यही कहना चाहूंगी कि उसे इस दुनिया में अपने बच्चे को लाने से पहले मैंटली, फिजिकली और फाइनैंशियल स्ट्रौंग होना होगा. अगर उस में ये तीनों क्षमताएं हैं तो ही बच्चे को जन्म दे. इस में उस की उम्र भी मैटर करती है. अगर वह 20-22 साल की है. तब अबौर्शन को ही चुनें. क्योंकि यह उम्र कैरियर बनाने की है न कि बच्चे की जिम्मेदारी उठाने की.’’

वहीं बीएड की पढ़ाई करने वाली कामनी शर्मा कहती है, ‘‘अगर किसी महिला की उम्र अगर 30 से ऊपर है और वह वैल सैटल और इंडिपैंडैंट है, सोसाइटी का प्रैशर ?ोल सकती है, मैंटली व फिजीकली स्ट्रौंग भी है तब वह बच्चे को जन्म दे सकती है. वहीं अगर वह कम उम्र की है, इंडिपैंडैंट नहीं है, उस के पास इनकम का कोई सोर्स नहीं है, सपोर्ट इमोशनली वीक है. उस की फैमिली और फ्रैंडस उस की सपोर्ट में नहीं है तो उसे अर्बाशन करवा लेना चाहिए. यह उस के कैरियर और फ्यूचर दोनों के लिए सही होगा.’’

एक बिन ब्याही लड़की को सिंगल पेरैंट बनने में बहुत सी परेशानियां आती हैं. ये परेशानियां क्या हैं, आइए जानते हैं:

मनी है जरूरी

एक वूमन को सिंगल पेरैंट बनने में कई प्रौब्लम्स आती हैं. इस में सब से बड़ी प्रौब्लम पैसों की है. प्रैगनैंसी पीरियड में दवाइयां, डाक्टर विजिड और मैडिकल टैस्ट में हजारों के खर्चे होते हैं. वहीं अगर डिलिवरी की बात करें तो प्राइवेट हौस्पिटल में नौर्मल डिलिवरी में क्व30 से क्व50 हजार लग जाते हैं वहीं सिजेरियन में क्व90 हजार से क्व1 लाख तक का खर्चा आता है. इस के आलावा बच्चे की परवरिश का खर्चा. औसतन एक बच्चे पर सालाना क्व2 लाख से क्व3 लाख तक का खर्चा आता है.

इस के अलावा वूमन के पास इतना पैसा होना चाहिए कि वह अपने लिए मेड और बेबी सिटर रख सके ताकि अपनी जौब पर जा सके.

बनें मैंटली स्ट्रौंग

जो लड़कियां बिना शादी के मां बनती हैं  सोसाइटी उन से मुंह मोड़ लेती है. ऐसी लड़कियों का मैंटली स्ट्रौंग होना बहुत जरूरी है. ऐसे बहुत से मौके आएंगे जब सोसाइटी के लोग अनमैरिड सिंगल वूमन से उस के पति का नाम पूछेंगे. इतना ही नहीं उस बच्चे से उस के पिता का नाम जानना चाहेंगे. ऐसे में उसे सोसाइटी के इन लोगों से डील करना आना चाहिए.

फिजिकली स्ट्रौंग भी हो

वे लड़कियां जो बिना शादी के अपने बच्चे को जन्म देना चाहती हैं, लेकिन उन की सपोर्ट में कोई नहीं है तो उन के लिए जितना जरूरी मैंटली स्ट्रौंग होना है उतना ही जरूरी फिजिकली स्ट्रौंग होना भी. प्रैंगनैंसी के समय चक्कर आएंगे, उलटियां आएंगी, जी मचलाएगा, मूड स्विंग्स होंगे. ऐसे में उसे अपनी हैल्थ पर ध्यान देना होगा. उसे अपने खानपान का खास खयाल रखना होगा. इस के लिए हरी सब्जियां और प्रौटीन से युक्त खाना खाए. डाक्टर की सलाह से मल्टीविटामिन भी ले.

बच्चे को किसी के पास छोड़ने का खतरा

ऐसी लड़कियां जिन के घर में बच्चे का खयाल रखने वाला कोई नहीं है उन्हें खुद को और अपने बच्चे दोनों को संभालना होगा. इतना याद रखें कि सिंगल पेरैंट बनने के बाद जिम्मेदारी काफी बढ़ जाएगी. अपना बेबी और नौकरी दोनों संभालने होंगे. अगर अच्छा कमाती हैं तो बेबी सिटर रख सकती है. इस से उसे हैल्प मिलेगी.

मगर अपना बच्चा किसी तीसरे के हाथ सौंप रही है तो इस वजह से वह हमेशा अपने बच्चे को ले कर चिंता में रहेगी. इस चिंता से उसे थोड़ी मुक्ति सीसीटीवी कैमरे दिलवा सकते हैं. इस के लिए मार्केट में बहुत सी कंपनियां अवेलेबल हैं. वह घर में सीसीटीवी लगवा कर उसे अपने फोन से कनैक्ट कराए ताकि औफिस में बैठ कर भी अपने बच्चे की हर ऐक्टिविटी को देख सके. इस बात का भी खास ध्यान रखे कि बेबी सिटर और मेड की फुल वैरिफिकेशन जरूर करे.

यह सोसाइटी बिना शादी के मां बनी महिला के चरित्र पर सवाल उठाती है. आम बोलचाल की भाषा में ऐसी महिलाओं को कैरेक्टरलैस कहा जाता है जोकि गलत है.

इस ज्ञान का क्या फायदा

आप को कुछ भी जानकारी चाहिए गूगल करें और सारी जानकारी आप की स्क्रीन पर होगी, बिना कुछ अतिरिक्त खर्च किए. अतिरिक्त का मतलब है कि आप फोन, चार्जिंग और डेटा कनैक्शन पर अच्छाखासा पैसा खर्च कर चुके हैं पर जो जानकारी ढूंढ़ रहे हैं वह बिना अतिरिक्त खर्च के मिल जाएगी.

गूगल आप को यों ही मुफ्त में जानकारी नहीं देता. आप के खर्च के बदले वह धड़ाधड़ आप को उस से संबंधित विज्ञापन दिखाना शुरू कर देता है. आप ने ‘धौलावीरा’, गुजरात में मोहनजोदाड़ो, हड़प्पा संबंधित एक जगह के बारे में खर्च किया नहीं कि आप को गुजरात के होटलों, गुजरात के कपड़ों, गुजरात सरकार के महान कामों, गुजरात के रेस्तरांओं या अस्पतालों के विज्ञापन दिखने शुरू हो जाएंगे.

गूगल ने जो जानकारी दी वह उपलब्ध समाचारपत्रों, बैवसाइटों, किताबों से जुटाई होगी. अब तक गूगल इन से कोई पैसा शेयर नहीं करता था. अब गूगल पर दबाव पड़ रहा है कि वह जहां की जानकारी दे रहा है वहां के स्रोत को पैसे दे.

सरकार के दबाव में गूगल कनाडा में क्व612 करोड़ मीडिया फर्मों को उन की जानकारी के बदले देगा. यह पैसा कैसे बंटेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है पर यह अच्छी शुरुआत है.

ज्ञान की खोज में जो नुकसान गूगल ने दुनिया का किया है वह अभूतपूर्व है. उस ने ज्ञानियों और ज्ञान जुटाने वालों को भिखारी बना डाला और उन के नौलेज, विज्ञान और ऐनालिसिस की जानकारी का इस्तेमाल कर खुद अरबोंखरबों की कंपनी बन गई. उस ने जानकारी और ज्ञान जमा करने वाले के नामों को गूगल के हाथी पांवों के नीचे कुचल दिया.

दुनियाभर की सरकारों ने इसे होने दिया क्योंकि आज अधिकांश देशों की जनता की चुनी हुई सरकारें भी ?ाठ, छल, फरेब और बहकावे पर टिकी हैं. गूगल ने सत्ता में बैठी सरकारों के पक्ष में खूब जानकारी उस क्षेत्र में प्रचारित की जहां से सर्च की जा रही है. यदि आप भारत से सर्च कर रहे हैं तो आप को खालिस्तानियों या दलितों की विश्वभर में उठ रही मांगों पर बहुत कम मिलेगा. गूगल आप को ऐसी साइटों पर ही ले जाएगा जहां सरकार की अनुमति मिली है, उस ज्ञान की तरफ जिस में क्या फायदा सरकार, धर्म या किसी तरह के उद्योगों का हो.

गूगल आज भ्रमित जानकारी देने वाला स्रोत बन गया है. भारत की न्यूज मीडिया गोदी मीडिया इसीलिए गोदी मीडिया कहा जाता है क्योंकि यह जो सही बताता है, खास मकसद से बताता है: सरकार की प्रशंसा करने के लिए. जब गूगल को पैसे देने होंगे तो वह उस जानकारी को देगा जिसे लोग वास्तव में चाहते हैं. वह विज्ञापन की आय शेयर करेगा. लोगों को सही व पूरी जानकारी मिल सकती है, स्पौंसर्ड ही नहीं. जानकारी जमा करने वालों को अपनी मेहनत का सही पैसा मिलना शुरू हो जाएगा.

क्रोशिया आप की खुशियों की चाबी

क्रोशिया और बुनाई एक प्राचीन कला है जिसे हम सब ने अपनी नानी, दादी को करते जरूर देखा होगा. यह एक ऐसी कला है जो न सिर्फ हमें कुछ नया बनाने को प्रेरित करती है अपितु हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है. आइए, जानें इस कला के फायदों को जो इस को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं:

मानसिक एकाग्रता

जब हम क्रोशिया करती हैं तो हम उस की डिजाइन में उलझ जाती हैं जिस से हमारा ध्यान एकाग्र होता है. इस से हमारी मानसिक एकाग्रता बढ़ाती है. डिजाइन बनाते समय हम छोटीछोटी बातों का ध्यान रखती हैं ताकि हमारी डिजाइन गलत न हो जाए और परिणामस्वरूप हमारा दिमाग ऐक्टिव रहता है. इस का चैलेंज हमारे दिमाग को मजबूती देता है जिस से हमारा दिमाग तेज होता है और हम बढ़ती उम्र में होने वाली बीमारी डिमेंशिया को काफी हद तक दूर रख सकती हैं. आप कह सकते हैं कि यह एक टौनिक का काम करता है.

क्रिएटिविटी का विकास

क्रोशिया के रंगीन धागे हमें आकर्षित करते हैं. उन्हें देख कर हमारा दिमाग खुदबखुद कुछ बुनने लगता है. जैसे लाल धागा देख कर अनायास आप को लाल गुलाब याद आ जाएगा. ये धागे हमें कुछ बनाने को उकसाते हैं और जब हम क्रोशिया और धागे से कुछ बनाती हैं तो खुदबखुद डिजाइन हमारी उंगलियों से उतरने लगती है.

शारीरिक लाभ

जब हम क्रोशिया या बुनाई करती हैं तो हाथ की उंगलियां अलगअलग तरीके से काम करती हैं. परिणामस्वरूप हमारे हाथों की मांसपेशिया मजबूत होती हैं. हाथों के लगातार क्रियाशील होने से हमारे हार्ट पर भी पौजिटिव असर देखने को मिलता है.

धैर्य में बढ़ोतरी

क्रोशिए की चीजें बनाने में समय लगता है और हम 1-1 लूप बना कर सुंदरसुंदर चीजें तैयार करती हैं क्योंकि काम धीरेधीरे आगे बढ़ता है जिस से हम में सब्र और संतुष्टि का विकास होता है.

बेहतरीन हौबी

क्रोशिया एक ऐसी हौबी है जिसे हम अकेले भी कर सकती हैं और ग्रुप में भी. किट्टी पार्टी छोडि़ए 2 घंटे की क्रोशिया पार्टी रखिए. घर लौटते हुए अपनी क्रिएटिविटी का नमूना ले कर जाएं, न कि समोसे कचौड़ी का बोझ. बाहर देशों में जगहजगह हौबी सैंटर खुले हैं जहां जा कर आप अपने ही तरह के लोगों से मिलती हैं और कुछ नया सीखती हैं. यह हौबी आप का गेटवे है अपनी कला को निखारने का और समय का सदुपयोग करने का.

निवेश

इस हौबी को बढ़ाने के लिए आप को बहुत पैसों की भी आवश्यकता नहीं होती. बस एक क्रोशिया और धागे का गोला ये 2 चीजें आप कहीं पर भी आसानी से ले जा सकती हैं. ट्रेन हो, बस हो या कार आप आराम से इसे बनाते हुए अपना खाली समय बिता सकती हैं.

आत्मविश्वास को बढ़ावा

क्रोशिया हमारे अंदर आत्मविश्वास पैदा करता है. जब हम क्रोशिया से या सलाइयों से कुछ बनाती हैं तो कुछ करने का जज्बा हमारे कौन्फिडैंस को बढ़ाता है और जब लोग तारीफ करते हैं तो हमारी खुशी दोगुनी हो जाती है.

बच्चों का विकास: क्रोशिए से आप खिलौने बना कर बच्चों को दे सकते हैं. ये खिलौने अपने रंगों से बच्चों को आकर्षित कर लेते हैं. खेलखेल में बच्चों को जानवरों के नाम भी आप आसानी से सिखा देंगे और इस से आप स्क्वायर, सर्कल आदि बना कर शेप्स भी सिखा सकती हैं.

क्रोशिए का छोटा सा ब्रेक भी आप को रिलैक्स करेगा और आप की ऐंग्जाइटी को कम करेगा. क्रोशिया करने वालो के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातें:

  •  क्रोशिया की जो सब से खास बात है वह है इस की सिंम्लिसिटी. धागों का लूप बना कर हम 1 का 2 और 2 का 3 और फिर 3 का 2 और इक करने से ही कितनी सुंदर डिजाइन बना लेती हैं.
  •  क्रोशिया धागे या ऊन से करते हैं इसलिए इस को ज्यादा नहीं खींच सकते. इसलिए यह पर्स, ऐक्सैसरीज, टौप, स्कर्ट्स आदि बनाने के काम आता है.
  •  क्रोशिया से डिजाइन बनाने का कोई सैट फौर्मूला नहीं है. आप जैसे चाहें अपनी क्रिएटिविटी को उकेर सकती हैं. आप चाहें गोलाई में क्रोशिया बुनें या फिर सीधा टेढ़ा बना कर सूईधागे से जोड़ लें. आप चाहें तो सिंगल पीस बना लें या फिर छोटेछोटे मोटिफ बना कर जोड़ लें. आप जैसे चाहें अपना सामान बना सकती हैं. यह हर तरह से सुंदर ही लगता है.

धागे का चुनाव: आजकल बाजार में तरहतरह के धागे मिलते हैं मोटे, पतले, सिल्क के, कौटन के आप को जो भी धागा पसंद आए आप ले लें. बस एक बात का ध्यान रखें कि शुरुआत मोटे धागे से करें. ऊन सही रहता है क्योंकि ऊन का फाइबर क्रोशिया से आसानी से लूप को निकाल देता है. ऊन के साथ मोटा क्रोशिया ही लें.

इस का छोटा होना आप के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है. आप के पर्स में अपना चश्मा भी ज्यादा जगह घेरेगा इस क्रोशिए से.

क्रोशिया के प्रकार: क्रोशिया अलगअलग वैराइटी में मिलता है. आप चाहें तो लकड़ी का, प्लास्टिक का या फिर मैटल का भी क्रोशिया ले सकती हैं.

क्रोशियां पकड़ने का तरीका: क्रोशिए को 2 प्रकार से पकड़ा जाता है- एक पैंसिल की तरह और दूसरा चाकू की तरह. छोटे काम के लिए पैंसिल की तरह पकड़ें और बड़े काम के किए चाकू की तरह इस्तेमाल करें. इस से आप के हाथ पर खिंचाव नहीं पड़ेगा.

स्वीकृति नए रिश्ते की- भाग 2 : पिता के जाने के बाद कैसे बदली सुमेधा की जिंदगी?

रात को सोने लेटी तो नींद आंखों से कोसों दूर थी. वह लुभावनी खुशबू और तरल आवाज जेहन को सराबोर किए जा रही थी. लेकिन एक पल बाद सुमेधा ने रोमानी विचारों को झटक दिया. सुबोध, जिसे आज वर्षों बाद देखा, अब किसी और की अमानत है. उसका इस तरह की कल्पनाएं करना भी गलत है. और वह अबोध बच्ची कितनी प्यारी है. कौन होगी उस की मां? अब तो पुराने परिचय के तार कहां रहे, जो किसी से संपर्क कर के पूछताछ की जा सके. पुराने साथी न जाने कहां गुम हो गए. एक नंदिनी थी, लेकिन वह भी दिल्ली चली गई और गई भी ऐसी कि पीछे सुध लेने का होश तक न रहा. वह खुद भी तो एक नए लक्ष्य को पाने के लिए किसी तीरंदाज की तरह भिड़ गई थी. 1-2 बार पत्रों का आदानप्रदान कर दोनों ने अपनेअपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली और संपर्क के सूत्र ओझल होते गए.

‘‘बाबूजी, मां, यह देखिए मैं फौर्म ले आई,’’ सुमेधा आंगन से ही चिल्लाते हुए घर में घुसी और बाबूजी के सामने सोफे पर बैठ गई.

कुछ पल बाबूजी खामोश रहे, फिर एकएक शब्द सोचते हुए बोलने लगे, ‘‘बेटी, तुम्हारी जिद की खातिर बायोलौजी सब्जैक्ट तुम्हें दिला दिया था. लेकिन मैं तुम्हें ज्यादा से ज्यादा बी.एससी. करा सकता हूं. डाक्टरी कराने की हैसियत नहीं है मेरी.’’

बाबूजी की बेबस आवाज आज भी कानों में गूंजती रहती है. बाबूजी की हैसियत सुमेधा से छिपी कहां थी, लेकिन यौवन की उमंगों ने उन्हें अनदेखा कर कई सपने पाल लिए थे.

‘‘बाबूजी, आप ने मेरे सपने तोड़े हैं. मैं आप को कभी माफ नहीं करूंगी,’’ सुबकते हुए सुमेधा ने कहा और पी.एम.टी. प्रवेश परीक्षा के फौर्म के टुकड़ेटुकड़े कर हवा में उछाल दिए.

‘‘मुझे समझने की कोशिश कर बेटी,’’ बाबूजी के अंतिम शब्द थे वे. उस के बाद उन्हें लकवा मार गया, जो उन की वाणी ले गया.

‘‘सौरी बाबूजी, मेरे कहने का यह मतलब नहीं था. आप अपनेआप को संभालिए बाबूजी, मुझे नहीं बनना डाक्टर. मां तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?’’ न जाने क्याक्या कह गई सुमेधा, लेकिन तीर कमान से निकल कर सुनने वाले को जख्मी कर चुका था और वह जख्म लाइलाज था.

उस दिन के बाद तो सुमेधा की जिंदगी ही बदल गई. उस ने बी.ए. में दाखिला ले लिया.

परिचित कई बार हंसी भी उड़ाते, ‘‘अरे डाक्टर बनना हर किसी के बूते की बात नहीं. 2 साल साइंस पढ़ कर ही पसीने छूट गए, तभी तो आर्ट्स कालेज में अपना नाम लिखवा लिया है.’’

सुमेधा ऐसी बातों को अनसुना कर जाती. अब घर के 3 प्राणियों की जिम्मेदारी भी उसी की थी. उस ने पार्टटाइम जौब कर ली. बाबूजी की थोड़ी जमापूंजी और मां के गहने कितने दिन काम आते. बी.ए. की परीक्षा में वह पूरी यूनिवर्सिटी में अव्वल आई. बाबूजी की खुशी से चमकती आंखें देख सुमेधा की आत्मग्लानि कुछ कम होने लगी. फिर एम.ए., पीएच.डी. और कालेज में लैक्चररशिप. कालेज में जौब के बाद उसे महसूस हुआ कि अब कुछ विराम मिला है भटकती हुई जिंदगी को. लेकिन इस प्रयत्न में उम्र का पक्षी फरफर करता हुआ 32वें वर्ष की दहलीज पर पहुंचा गया.

बाबूजी उस के सैटल होते ही एक दिन खुली आंखों से उसे आशीर्वाद देते हुए चल बसे जैसे सुमेधा को सक्षम और सफल देखने के लिए ही उन के प्राण अटके पड़े थे.

अब सुमेधा और मां 2 ही प्राणी बचे थे घर में. 1-2 बार उस के विवाह की बात चली, लेकिन सुमेधा ने शर्त रख दी, ‘‘मां भी विवाह के बाद मेरे साथ ही रहेंगी.’’

धन के लालची युवक एक बूढ़े जीव को दहेज के रूप में अपनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, इसलिए ऐसे भागते जैसे गधे के सिर से सींग. धीरेधीरे 35वें साल तक पहुंचतेपहुंचते सुमेधा ने जीवनसाथी की आस को तिलांजलि दे दी. लेकिन आज की घटना ने उसे अच्छी तरह वाकिफ करा दिया कि चाहे वह ऊपर से कितनी भी कठोर क्यों न बने, एक साथी की आकांक्षा उसे अब भी है. कोमल भावों के अंकुर अब भी उस के हृदय की मरुभूमि में फूटते हैं.

सोचतेसोचते उसे नींद आ गई. सुबह उठ कर फिर कालेज जाने का रूटीन चालू हो गया.

एक दिन शाम को मां के साथ पास के ही गार्डन में टहलने गई, तो वहां बाइकचालक की उसी प्यारी बच्ची को देख कर खुद को रोक न सकी. पूछा, ‘‘बेटी, कैसी हैं आप?’’

‘‘आप कौन हैं आंटी?’’ बच्ची ने भोलेपन से पूछा.

‘‘मैं वही, उस दिन वाली आंटी, जिस ने चेहरे पर स्कार्फ बांधा था.’’

बच्ची कुछ देर सोचती रही, फिर प्यार से मुसकरा दी.

सुमेधा का मातृत्व उमड़ पड़ा. बच्ची

के गाल थपथपा कर बोली, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘पहले अपना नाम बताइए?’’ बच्ची

द्वारा किए गए प्रश्न पर सुमेधा खिलखिला कर हंस पड़ी.

फिर बच्ची ‘‘पापापापा…’’ चिल्लाते हुए सुबोध को खींच लाई.

उसे देख कर चौंक पड़ा सुबोध, ‘‘अरे, सुमेधा तुम?’’

‘‘पापा, ये तो वही आंटी हैं जिन को हम ने सौरी कहा था.’’

‘‘उस दिन तुम्हीं थीं, आई मीन आप ही थीं?’’

‘‘ठीक है, मुझे तुम भी कह सकते हो,’’ सुमेधा मुसकराते हुए बोली.

सुबोध कुछ झेंप सा गया.

‘‘नमस्ते डाक्टर साहब. बच्ची को घुमाने लाए हैं?’’

‘‘अरे मांजी आप भी यहां, अब कैसी तबीयत है आप की?’’

‘‘तुम लोग एकदूसरे को पहचानते हो?’’

सुबोध कुछ हंसते हुए बोला, ‘‘दरअसल, हम सभी लोग एकदूसरे को जानते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि हम एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘पापा, पापा, आप क्या बोल रहे हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है,’’ बच्ची मासूमियत से बोली तो तीनों हंस पड़े.

सुबोध जान गया कि बुजुर्ग महिला जो 4 दिन पहले इलाज के लिए आई थीं, सुमेधा की मां हैं और सुमेधा भी जान गई कि मां जिन डाक्टर साहब का बखान करते हुए नहीं थक रही थीं, वह डाक्टर साहब और कोई नहीं, बल्कि सुबोध ही है.

मां ने तुरंत सुबोध को घर आने का निमंत्रण दे डाला. परिचय की कडि़यां कुछ इस तरह जुड़ीं कि सारे दायरे खत्म होते से नजर आने लगे. सुबोध की बेटी कनु सुमेधा को चाहने लगी थी. बिन मां की बच्ची कनु पर सुमेधा का प्यार कुछ ज्यादा ही उमड़ता था. एक दिन सुमेधा, कनु के जिद करने पर सुबोध के घर गई. वहां नंदिनी की तसवीर पर फूलों की माला देख कर सुमेधा का चेहरा फक पड़ गया. आंखें डबडबा आईं.

‘‘क्या नंदिनी ही…?’’

‘‘हां.’’

सुमेधा सोफे पर बैठ गई. अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था उसे.

कुछ ही देर में सुबोध 2 कप कौफी बना लाया. प्याला थामते हुए बड़ा असहज महसूस कर रही थी सुमेधा. कनु पड़ोस के घर में खेलने चली गई थी.

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