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डिलिवरी के बाद से मेरी फेस पर काफी काले दाग आ गए हैं, मैं अब क्या करुं

सवाल

करीब 2 महीने पहले मेरी डिलिवरी हुई है और मैं ने बहुत ही सुंदर बेटी को जन्म दिया है. लेकिन मेरे फेस पर काफी काले दाग आ गए हैं. मैं इन के लिए क्या करूं?

जवाब

डिलिवरी के बाद अकसर हारमोंस में बदलाव आने की वजह से काले दाग आ जाते हैं. अपने चेहरे पर काले दाग कम करने के लिए आप निम्नलिखित कदम उठा सकती हैं: एक अच्छे स्किनकेयर रूटीन का पालन करें जिस में फेस वाश, स्क्रब, मौइस्चराइजर और सनस्क्रीन शामिल हो. ड्रग स्टोर से मैडिकल या ओवर द काउंटर क्रीम या फिर सीरम का उपयोग करें जो काले दागों को कम करने में मदद कर सकते हैं. स्वस्थ आहार खाने के साथसाथ पर्याप्त पानी पीएं और विटामिन सी और विटामिन ई आप की त्वचा के लिए महत्त्वपूर्ण है. अगर काले दाग बहुत गहरे हैं या कुछ महीनों में गायब नहीं हो रहे हैं तो डाक्टर या डर्मैटोलौजिस्ट से सलाह ले कर क्लीनिकल इलाज जैसेकि कैमिकल पील. लेजर और माइक्रोडर्माब्रेशन लें. ये कालेपन को काफी हद तक ठीक करते हैं.

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मेरी स्किन धीरेधीरे लूज होती जा रही है. मैं ऐसा क्या करूं या  कैसा मास्क लगाऊं जिस से मेरी स्किन टाइट हो जाए?

जवाब

उम्र के साथ स्किन का लूज होना शुरू हो जाता है. हमारी स्किन के नीचे जो कोलोजन होता है वह ड्राई होने लग जाता है और कम होने लग जाता है. इसलिए स्किन को टाइट करने के लिए मौइस्चर और नरिशमैंट यानी कोलोजन की भी जरूरत होती है. कुछ होम रेमेडीज के द्वारा अपनी स्किन को टाइट रख सकती हैं हालांकि स्किन की डेली केयर करना बहुत जरूरी है. एक केला लें और उसे मैश कर लें. उस में 1/2 कप फ्रैश क्रीम डाल कर अच्छे से स्मूथ फेस मास्क बना लें. फिर इसे फैस और नैक पर लगा लें. 15-20 मिनट के बाद ठंडे पानी से धो लें. ऐसा प्रतिदिन करने से आप की स्किन में टाइटनैस आएगी. दूसरा 1 अंडा लें. उस में कुछ दाने चीनी और 1 चम्मच दही मिला लें. इन को अच्छे से फेंट कर अपनी स्किन पर मास्क की तरह लगा लें. 15-20 मिनट के बाद इसे ठंडे पानी से धो लें. यह नुसखा भी स्किन को टाइट करने में काफी फायदा पहुंचाता है. अगर हो सके तो रैगुलरली फैशियल जरूर करवा लें या फिर घर पर ही किसी अच्छे तेल से मसाज जरूर करें और मास्क लगाती रहें. अगर फिर भी स्किन ढीली हो रही है तो किसी अच्छे ब्यूटी क्लीनिक में जा कर क्लीनिकल ट्रीटमैंट ले सकती हैं.

-समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा 

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तो त्वचा नहीं रहेगी ड्राई

सर्द मौसम में त्वचा का रूखापन आम समस्या है. रूखापन बढ़ने से इचिंग और रैड रैशेज की समस्या भी बढ़ जाती है. लेकिन इन समस्याओं से छुटकारा पाने का यह हल तो नहीं कि आप कई तरह के मौइस्चराइजिंग लोशन, क्रीम या औयल खरीद कर अपनी ड्रैसिंग टेबल भर लें.

आइए, जानें ऐसे मौइस्चराइजर्स के बारे में जो आप के लिए विंटर शील्ड का काम करेंगे:

अल्ट्रा हाइड्रेटिंग मौइस्चराइजर्स ऐसा मौइस्चराइजर जिस में लंबे समय तक त्वचा की नमी को लौक करने वाले इनग्रीडिऐंट्स हों जैसे शीया बटर, आमंड औयल, ग्लिसरीन और सेरामाइड्स. बायोटीक, हिमालया इत्यादि के कुछ मौइस्चराइजर्स में इन तत्त्वों का मिश्रण मिलता है. यदि आप की त्वचा ज्यादा ड्राई रहती है तो इन इनग्रीडिऐंट्स वाले मौइस्चराइजर्स का इस्तेमाल कर सकती हैं.

क्रीमी ऐंड मिल्की: कुछ कम बजट में लौंगलास्टिंग मौइस्चराइजर की तलाश है तो क्रीम या मिल्क बेस्ड मौइस्चराइजर भी बाजार में उपलब्ध हैं. कुछ प्रोडक्ट्स तो बौडी वाश और मौइस्चराइजर के कौंबो के साथ आते हैं. यदि आप 12 घंटे या फिर इस से भी ज्यादा समय तक बाहर रहती हैं और बारबार मौइस्चराइजर का इस्तेमाल करना संभव नहीं तो ऐसा मिल्क बेस्ड मौइस्चराइजर चुनें जिस में विटामिन ई या आमंड औयल भी हो.

स्किन डैमेज रिपेयर: ज्यादा रूखी त्वचा पर इचिंग, रैड पैचेज इत्यादि की समस्या ज्यादा होती है. कई बार इचिंग इतनी ज्यादा होती है कि ऐसा लगता है फुलस्लीव ड्रैस पहनी ही क्यों. ऐसे में आप कुछ हर्बल औप्शंस ट्राई कर सकती हैं. लेकिन यह जरूर देख लें कि ऐसे औप्शंस में जोजोबा औयल, विटामिन ई, व्हीट जर्म इत्यादि की खूबियां हों. हिमालया के प्रोडक्ट्स में इन सभी का मिश्रण मिलता है.

नौनकोमेडोजेनिक मौइस्चराइजर: यानी ऐसा मौइस्चराइजर जिस में ऐसे इनग्रीडिऐंट्स का इस्तेमाल नहीं किया गया हो जो आप की त्वचा के पोर्स को बंद कर दें. इस तरह के मौइस्चराइजर जैंटली आप की त्वचा की नमी को लौक करते हैं और उस पर एक प्रोटैक्टिव लेयर बना देते हैं. कैटाफिल के मौइस्चराइजर्स नौनकोमेडोजेनिक हैं.

टिप्स

  •  ज्यादातर महिलाएं जल्दबाजी में वही मौइस्चराइजर फेस पर भी अप्लाई कर लेती हैं जो वे बौडी के लिए इस्तेमाल करती हैं. फेस स्किन बौडी स्किन से अलग होती है और फिर शरीर के दूसरे अंगों की तुलना में चेहरा हर समय ढक कर रखना भी संभव नहीं. तो फेस के लिए वही मौइस्चराइजर काम नहीं करेगा जो बौडी पर करता है. इस के लिए आप अपनी त्वचा के अनुसार विंटर क्रीम चुनें.
  •  क्रीम का सही फायदा तभी होगा जब आप मेकअप रिमूव करने के बाद इसे अप्लाई करेंगी.
  •  क्रीम लगाने से पहले स्किन क्लींजिंग करना बेहतर होता है ताकि पोर्स ओपन हो जाएं और क्रीम सही तरह से नमी को लौक कर सके.
  • विंटर क्रीम वही चुनें जिसे बनाने में नैचुरल फौर्मूला इस्तेमाल किया गया हो और जिस में विटामिन सी, कोको बटर, आमंड औयल इत्यादि इनग्रीडिऐंट्स हों.
  •  वर्किंग वूमन ऐसी फेस क्रीम लें जिस से सन प्रोटैक्शन भी मिले. साधारण मौइस्चराइजर्स यूवी रेज से त्वचा को प्रोटैक्ट नहीं कर पाते.

विंटर फैब्रिक टिप्स

  •  वैसे कौटन ब्रीदेबल फैब्रिक होता है लेकिन विंटर सीजन के लिए यह सही नहीं क्योंकि यह बौडी हीट को लौक नहीं कर सकता. ऐसा ही लिनन के साथ भी होता है.
  •  सिल्क को भी कभी इस सीजन में प्राइमरी फैब्रिक नहीं बनाना चाहिए क्योंकि यह शरीर से चिपकता भी है और बौडी हीट को भी लौक नहीं करता.
  •  सिंथैटिक वूल से बचें क्योंकि इस से शरीर पर रैशेज हो सकते हैं. हां, इसे आप तब इस्तेमाल कर सकती हैं जब आप ने अच्छे फैब्रिक से बना थर्मल पहना हो.

सिंगल पेरैंट ऐसे बनाएं जिंदगी आसान

निशा यादव 32 साल की है. उस की फैमिली उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रहती है. उस की पढ़ाई पूरी होने के बाद दिल्ली के एक मीडिया हाउस में जौब लग गई. यहीं उस की मुलाकात आशुतोष से हुई. कुछ सालों की कैजुअल डेटिंग के बाद वह आशुतोष के साथ रिलेशनशिप में आ गई.

कुछ सालों तक तो सबकुछ सही रहा. फिर एक दिन निशा के पीरियड्स मिस हो गए. उस ने प्रेगा न्यूज प्रैंगनैंसी किट से अपना प्रैंगनैंसी टैस्ट किया. रिजल्ट पौजिटिव आया. इस बारे में उस ने आशुतोष को बताया. उस ने कहा कि उसे बच्चा नहीं चाहिए. इसलिए वह आईपील खा ले. निशा सोच में पड़ गई. कुछ दिन सोचने के बाद उस ने यह फैसला किया कि वह बच्चे को जन्म देगी.

उस ने इस बारे में अपने घर वालों को बताया. उस के घर वालों ने उसे बच्चा गिराने की सलाह दी. अब उस की फैमिली भी उस के साथ नहीं है. अब उस के दिमाग में उथलपुथल चलने लगी कि वह कैसे इस सोसाइटी से लड़ेगी. कैसे वह इस का पालनपोषण करेगी. उस के साथ तो कोई है ही नहीं. लेकिन वह जानती थी कि उसे क्या करना है.

निशा फाइनैंशली इंडिपैंडैंट थी. उस का अच्छाखासा पैकेज था. एक फुल टाइम मेड तो उस के पास पहले से ही थी. रही बात सोसाइटी की, तो सोसाइटी से उसे कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. निशा का फैसला अडिग था. इसलिए वह अपने बच्चे को इस दुनिया में ले कर आ सकी.

पर्सनल चौइस

अब निशा की बेटी इला 4 साल की हो गई है. निशा कहती है कि जबजब मैं अपनी बेटी को देखती हूं तो सोचती हूं कि मैं ने इसे जन्म दे कर बिलकुल सही किया. लेकिन अगर मैं फाइनैंशली इंडिपैंडैंट नहीं होती तो मैं अबौर्शन करवा लेती क्योंकि तब मैं इसे अच्छी परवरिश नहीं दे पाती. हमारी इंडियन सोसाइटी में आज भी एक लड़की का सिंगल पेरैंट होना बहुत मुश्किल है. समयसमय पर उस से और उस के बच्चे से उस के पिता का नाम पूछा जाता है.

उस के कैरेक्टर पर सवाल उठाया जाता है. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि हमारी सोसाइटी में चेंज आए. अगर कोई महिला सिंगल पेरैंट बनना चाहती है तो यह उस की पर्सनल चौइस होनी चाहिए. इस के बारे में कोई सवालजवाब न किया जाए.

हमारी इस रुढि़वादी दकियानुसी इंडियन सोसाइटी में एक लड़की का दुनिया में सिंगल पेरैंट होना आसान नहीं है. इस के पीछे कारण यह है कि इंडियन सोसाइटी ने सिंगल पेरैंट को कभी अपनाया ही नहीं है. खासकर सिंगल पेरैंट वूमन को. वह भी तब जबकि वह बिन ब्याही मां बनी हो.

मगर कुछ ऐसे भी अपवाद रहे हैं जिन्होंने इस सो कोल्ड इंडियन सोसाइटी की रूढि़वादी सोच पर चोट की है. ऐसा ही एक नाम बौलीवुड की फेमस सैलिब्रिटी नीना गुप्ता है जिन्होंने 1980 के दशक में बिना शादी के अपने बच्चे को जन्म दिया. असल में यह बच्चा उन का और उन के बौयफ्रैंड विवियन रिचर्डसन का था. नीना चाहती तो अर्बोशन करवा सकती थीं. लेकिन उन्होंने अपने बच्चे को इस दुनिया में लाना चुना. वे इस रूढि़वादी सोसाइटी से बिलकुल नहीं डरीं और अपने फैसले पर अटल रहीं. ऐसा कर के उन्होंने इस सोसाइटी की हजारों लड़कियों को प्रेरित किया.

सोच में बदलाव

नीना गुप्ता के ही नक्शे कदम पर चल कर हाल ही में बौलीवुड की सफल ऐक्ट्रैस इलियाना डिकू्रज ने भी 1 अगस्त को बच्चे को जन्म दिया है. समय बदल रहा है. अब इंडियन सोसाइटी की दकियानूसी सोच को टक्कर देने के लिए बहुत सी महिलाएं सामने आ रही हैं. समय के साथसाथ हमारी सोसाइटी को भी अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए.

हालांकि यह भी सच है कि अनमैरिड सिंगल पेरैंट होना आसान नहीं है. इस के लिए अपनेआप को मैंटली और फिजिकली तैयार करना होगा. इस के अलावा आप का फाइनैंशली इंडिपैंडैंट होना भी बहुत जरूरी है. अगर आप ने यह फैसला कर लिया है कि आप को अपने बच्चे को जन्म देना है तो आप को इन सभी मानदंडों पर खरा उतरना होगा.

अनमैरिड वूमन को अपने बच्चे को जन्म देना चाहिए या अबौर्शन करवा लेना चाहिए इस विषय पर अलगअलग लोगों की अलगअलग राय रही.

नई दिल्ली के साकेत इलाके में 30 साल की सीमा लकवाल अपने हसबैंड के साथ रहती हैं. वे एक हाउस मेकर हैं. इस के साथ ही वह अपने पति के इलैक्ट्रौनिक्स बिजनैस में उन का हाथ भी बंटाती हैं.

उन से हुई बातचीत में वह अपनी राय देते हुए कहती हैं, ‘‘मैं खुद 6 महीने की प्रैंगनैट महिला हूं. ऐसे में मैं सम?ाती हूं कि एक महिला के लिए मां बनना एक सुखद एहसास है. अगर कोई महिला अनमैरिड है और वह अपना बच्चा रखना चाहती है तो मैं ऐसी महिला की सपोर्ट में हूं. बस मैं उस से यही कहना चाहूंगी कि उसे इस दुनिया में अपने बच्चे को लाने से पहले मैंटली, फिजिकली और फाइनैंशियल स्ट्रौंग होना होगा. अगर उस में ये तीनों क्षमताएं हैं तो ही बच्चे को जन्म दे. इस में उस की उम्र भी मैटर करती है. अगर वह 20-22 साल की है. तब अबौर्शन को ही चुनें. क्योंकि यह उम्र कैरियर बनाने की है न कि बच्चे की जिम्मेदारी उठाने की.’’

वहीं बीएड की पढ़ाई करने वाली कामनी शर्मा कहती है, ‘‘अगर किसी महिला की उम्र अगर 30 से ऊपर है और वह वैल सैटल और इंडिपैंडैंट है, सोसाइटी का प्रैशर ?ोल सकती है, मैंटली व फिजीकली स्ट्रौंग भी है तब वह बच्चे को जन्म दे सकती है. वहीं अगर वह कम उम्र की है, इंडिपैंडैंट नहीं है, उस के पास इनकम का कोई सोर्स नहीं है, सपोर्ट इमोशनली वीक है. उस की फैमिली और फ्रैंडस उस की सपोर्ट में नहीं है तो उसे अर्बाशन करवा लेना चाहिए. यह उस के कैरियर और फ्यूचर दोनों के लिए सही होगा.’’

एक बिन ब्याही लड़की को सिंगल पेरैंट बनने में बहुत सी परेशानियां आती हैं. ये परेशानियां क्या हैं, आइए जानते हैं:

मनी है जरूरी

एक वूमन को सिंगल पेरैंट बनने में कई प्रौब्लम्स आती हैं. इस में सब से बड़ी प्रौब्लम पैसों की है. प्रैगनैंसी पीरियड में दवाइयां, डाक्टर विजिड और मैडिकल टैस्ट में हजारों के खर्चे होते हैं. वहीं अगर डिलिवरी की बात करें तो प्राइवेट हौस्पिटल में नौर्मल डिलिवरी में क्व30 से क्व50 हजार लग जाते हैं वहीं सिजेरियन में क्व90 हजार से क्व1 लाख तक का खर्चा आता है. इस के आलावा बच्चे की परवरिश का खर्चा. औसतन एक बच्चे पर सालाना क्व2 लाख से क्व3 लाख तक का खर्चा आता है.

इस के अलावा वूमन के पास इतना पैसा होना चाहिए कि वह अपने लिए मेड और बेबी सिटर रख सके ताकि अपनी जौब पर जा सके.

बनें मैंटली स्ट्रौंग

जो लड़कियां बिना शादी के मां बनती हैं  सोसाइटी उन से मुंह मोड़ लेती है. ऐसी लड़कियों का मैंटली स्ट्रौंग होना बहुत जरूरी है. ऐसे बहुत से मौके आएंगे जब सोसाइटी के लोग अनमैरिड सिंगल वूमन से उस के पति का नाम पूछेंगे. इतना ही नहीं उस बच्चे से उस के पिता का नाम जानना चाहेंगे. ऐसे में उसे सोसाइटी के इन लोगों से डील करना आना चाहिए.

फिजिकली स्ट्रौंग भी हो

वे लड़कियां जो बिना शादी के अपने बच्चे को जन्म देना चाहती हैं, लेकिन उन की सपोर्ट में कोई नहीं है तो उन के लिए जितना जरूरी मैंटली स्ट्रौंग होना है उतना ही जरूरी फिजिकली स्ट्रौंग होना भी. प्रैंगनैंसी के समय चक्कर आएंगे, उलटियां आएंगी, जी मचलाएगा, मूड स्विंग्स होंगे. ऐसे में उसे अपनी हैल्थ पर ध्यान देना होगा. उसे अपने खानपान का खास खयाल रखना होगा. इस के लिए हरी सब्जियां और प्रौटीन से युक्त खाना खाए. डाक्टर की सलाह से मल्टीविटामिन भी ले.

बच्चे को किसी के पास छोड़ने का खतरा

ऐसी लड़कियां जिन के घर में बच्चे का खयाल रखने वाला कोई नहीं है उन्हें खुद को और अपने बच्चे दोनों को संभालना होगा. इतना याद रखें कि सिंगल पेरैंट बनने के बाद जिम्मेदारी काफी बढ़ जाएगी. अपना बेबी और नौकरी दोनों संभालने होंगे. अगर अच्छा कमाती हैं तो बेबी सिटर रख सकती है. इस से उसे हैल्प मिलेगी.

मगर अपना बच्चा किसी तीसरे के हाथ सौंप रही है तो इस वजह से वह हमेशा अपने बच्चे को ले कर चिंता में रहेगी. इस चिंता से उसे थोड़ी मुक्ति सीसीटीवी कैमरे दिलवा सकते हैं. इस के लिए मार्केट में बहुत सी कंपनियां अवेलेबल हैं. वह घर में सीसीटीवी लगवा कर उसे अपने फोन से कनैक्ट कराए ताकि औफिस में बैठ कर भी अपने बच्चे की हर ऐक्टिविटी को देख सके. इस बात का भी खास ध्यान रखे कि बेबी सिटर और मेड की फुल वैरिफिकेशन जरूर करे.

यह सोसाइटी बिना शादी के मां बनी महिला के चरित्र पर सवाल उठाती है. आम बोलचाल की भाषा में ऐसी महिलाओं को कैरेक्टरलैस कहा जाता है जोकि गलत है.

इस ज्ञान का क्या फायदा

आप को कुछ भी जानकारी चाहिए गूगल करें और सारी जानकारी आप की स्क्रीन पर होगी, बिना कुछ अतिरिक्त खर्च किए. अतिरिक्त का मतलब है कि आप फोन, चार्जिंग और डेटा कनैक्शन पर अच्छाखासा पैसा खर्च कर चुके हैं पर जो जानकारी ढूंढ़ रहे हैं वह बिना अतिरिक्त खर्च के मिल जाएगी.

गूगल आप को यों ही मुफ्त में जानकारी नहीं देता. आप के खर्च के बदले वह धड़ाधड़ आप को उस से संबंधित विज्ञापन दिखाना शुरू कर देता है. आप ने ‘धौलावीरा’, गुजरात में मोहनजोदाड़ो, हड़प्पा संबंधित एक जगह के बारे में खर्च किया नहीं कि आप को गुजरात के होटलों, गुजरात के कपड़ों, गुजरात सरकार के महान कामों, गुजरात के रेस्तरांओं या अस्पतालों के विज्ञापन दिखने शुरू हो जाएंगे.

गूगल ने जो जानकारी दी वह उपलब्ध समाचारपत्रों, बैवसाइटों, किताबों से जुटाई होगी. अब तक गूगल इन से कोई पैसा शेयर नहीं करता था. अब गूगल पर दबाव पड़ रहा है कि वह जहां की जानकारी दे रहा है वहां के स्रोत को पैसे दे.

सरकार के दबाव में गूगल कनाडा में क्व612 करोड़ मीडिया फर्मों को उन की जानकारी के बदले देगा. यह पैसा कैसे बंटेगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है पर यह अच्छी शुरुआत है.

ज्ञान की खोज में जो नुकसान गूगल ने दुनिया का किया है वह अभूतपूर्व है. उस ने ज्ञानियों और ज्ञान जुटाने वालों को भिखारी बना डाला और उन के नौलेज, विज्ञान और ऐनालिसिस की जानकारी का इस्तेमाल कर खुद अरबोंखरबों की कंपनी बन गई. उस ने जानकारी और ज्ञान जमा करने वाले के नामों को गूगल के हाथी पांवों के नीचे कुचल दिया.

दुनियाभर की सरकारों ने इसे होने दिया क्योंकि आज अधिकांश देशों की जनता की चुनी हुई सरकारें भी ?ाठ, छल, फरेब और बहकावे पर टिकी हैं. गूगल ने सत्ता में बैठी सरकारों के पक्ष में खूब जानकारी उस क्षेत्र में प्रचारित की जहां से सर्च की जा रही है. यदि आप भारत से सर्च कर रहे हैं तो आप को खालिस्तानियों या दलितों की विश्वभर में उठ रही मांगों पर बहुत कम मिलेगा. गूगल आप को ऐसी साइटों पर ही ले जाएगा जहां सरकार की अनुमति मिली है, उस ज्ञान की तरफ जिस में क्या फायदा सरकार, धर्म या किसी तरह के उद्योगों का हो.

गूगल आज भ्रमित जानकारी देने वाला स्रोत बन गया है. भारत की न्यूज मीडिया गोदी मीडिया इसीलिए गोदी मीडिया कहा जाता है क्योंकि यह जो सही बताता है, खास मकसद से बताता है: सरकार की प्रशंसा करने के लिए. जब गूगल को पैसे देने होंगे तो वह उस जानकारी को देगा जिसे लोग वास्तव में चाहते हैं. वह विज्ञापन की आय शेयर करेगा. लोगों को सही व पूरी जानकारी मिल सकती है, स्पौंसर्ड ही नहीं. जानकारी जमा करने वालों को अपनी मेहनत का सही पैसा मिलना शुरू हो जाएगा.

क्रोशिया आप की खुशियों की चाबी

क्रोशिया और बुनाई एक प्राचीन कला है जिसे हम सब ने अपनी नानी, दादी को करते जरूर देखा होगा. यह एक ऐसी कला है जो न सिर्फ हमें कुछ नया बनाने को प्रेरित करती है अपितु हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है. आइए, जानें इस कला के फायदों को जो इस को महत्त्वपूर्ण बनाते हैं:

मानसिक एकाग्रता

जब हम क्रोशिया करती हैं तो हम उस की डिजाइन में उलझ जाती हैं जिस से हमारा ध्यान एकाग्र होता है. इस से हमारी मानसिक एकाग्रता बढ़ाती है. डिजाइन बनाते समय हम छोटीछोटी बातों का ध्यान रखती हैं ताकि हमारी डिजाइन गलत न हो जाए और परिणामस्वरूप हमारा दिमाग ऐक्टिव रहता है. इस का चैलेंज हमारे दिमाग को मजबूती देता है जिस से हमारा दिमाग तेज होता है और हम बढ़ती उम्र में होने वाली बीमारी डिमेंशिया को काफी हद तक दूर रख सकती हैं. आप कह सकते हैं कि यह एक टौनिक का काम करता है.

क्रिएटिविटी का विकास

क्रोशिया के रंगीन धागे हमें आकर्षित करते हैं. उन्हें देख कर हमारा दिमाग खुदबखुद कुछ बुनने लगता है. जैसे लाल धागा देख कर अनायास आप को लाल गुलाब याद आ जाएगा. ये धागे हमें कुछ बनाने को उकसाते हैं और जब हम क्रोशिया और धागे से कुछ बनाती हैं तो खुदबखुद डिजाइन हमारी उंगलियों से उतरने लगती है.

शारीरिक लाभ

जब हम क्रोशिया या बुनाई करती हैं तो हाथ की उंगलियां अलगअलग तरीके से काम करती हैं. परिणामस्वरूप हमारे हाथों की मांसपेशिया मजबूत होती हैं. हाथों के लगातार क्रियाशील होने से हमारे हार्ट पर भी पौजिटिव असर देखने को मिलता है.

धैर्य में बढ़ोतरी

क्रोशिए की चीजें बनाने में समय लगता है और हम 1-1 लूप बना कर सुंदरसुंदर चीजें तैयार करती हैं क्योंकि काम धीरेधीरे आगे बढ़ता है जिस से हम में सब्र और संतुष्टि का विकास होता है.

बेहतरीन हौबी

क्रोशिया एक ऐसी हौबी है जिसे हम अकेले भी कर सकती हैं और ग्रुप में भी. किट्टी पार्टी छोडि़ए 2 घंटे की क्रोशिया पार्टी रखिए. घर लौटते हुए अपनी क्रिएटिविटी का नमूना ले कर जाएं, न कि समोसे कचौड़ी का बोझ. बाहर देशों में जगहजगह हौबी सैंटर खुले हैं जहां जा कर आप अपने ही तरह के लोगों से मिलती हैं और कुछ नया सीखती हैं. यह हौबी आप का गेटवे है अपनी कला को निखारने का और समय का सदुपयोग करने का.

निवेश

इस हौबी को बढ़ाने के लिए आप को बहुत पैसों की भी आवश्यकता नहीं होती. बस एक क्रोशिया और धागे का गोला ये 2 चीजें आप कहीं पर भी आसानी से ले जा सकती हैं. ट्रेन हो, बस हो या कार आप आराम से इसे बनाते हुए अपना खाली समय बिता सकती हैं.

आत्मविश्वास को बढ़ावा

क्रोशिया हमारे अंदर आत्मविश्वास पैदा करता है. जब हम क्रोशिया से या सलाइयों से कुछ बनाती हैं तो कुछ करने का जज्बा हमारे कौन्फिडैंस को बढ़ाता है और जब लोग तारीफ करते हैं तो हमारी खुशी दोगुनी हो जाती है.

बच्चों का विकास: क्रोशिए से आप खिलौने बना कर बच्चों को दे सकते हैं. ये खिलौने अपने रंगों से बच्चों को आकर्षित कर लेते हैं. खेलखेल में बच्चों को जानवरों के नाम भी आप आसानी से सिखा देंगे और इस से आप स्क्वायर, सर्कल आदि बना कर शेप्स भी सिखा सकती हैं.

क्रोशिए का छोटा सा ब्रेक भी आप को रिलैक्स करेगा और आप की ऐंग्जाइटी को कम करेगा. क्रोशिया करने वालो के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातें:

  •  क्रोशिया की जो सब से खास बात है वह है इस की सिंम्लिसिटी. धागों का लूप बना कर हम 1 का 2 और 2 का 3 और फिर 3 का 2 और इक करने से ही कितनी सुंदर डिजाइन बना लेती हैं.
  •  क्रोशिया धागे या ऊन से करते हैं इसलिए इस को ज्यादा नहीं खींच सकते. इसलिए यह पर्स, ऐक्सैसरीज, टौप, स्कर्ट्स आदि बनाने के काम आता है.
  •  क्रोशिया से डिजाइन बनाने का कोई सैट फौर्मूला नहीं है. आप जैसे चाहें अपनी क्रिएटिविटी को उकेर सकती हैं. आप चाहें गोलाई में क्रोशिया बुनें या फिर सीधा टेढ़ा बना कर सूईधागे से जोड़ लें. आप चाहें तो सिंगल पीस बना लें या फिर छोटेछोटे मोटिफ बना कर जोड़ लें. आप जैसे चाहें अपना सामान बना सकती हैं. यह हर तरह से सुंदर ही लगता है.

धागे का चुनाव: आजकल बाजार में तरहतरह के धागे मिलते हैं मोटे, पतले, सिल्क के, कौटन के आप को जो भी धागा पसंद आए आप ले लें. बस एक बात का ध्यान रखें कि शुरुआत मोटे धागे से करें. ऊन सही रहता है क्योंकि ऊन का फाइबर क्रोशिया से आसानी से लूप को निकाल देता है. ऊन के साथ मोटा क्रोशिया ही लें.

इस का छोटा होना आप के लिए बहुत फायदेमंद साबित होता है. आप के पर्स में अपना चश्मा भी ज्यादा जगह घेरेगा इस क्रोशिए से.

क्रोशिया के प्रकार: क्रोशिया अलगअलग वैराइटी में मिलता है. आप चाहें तो लकड़ी का, प्लास्टिक का या फिर मैटल का भी क्रोशिया ले सकती हैं.

क्रोशियां पकड़ने का तरीका: क्रोशिए को 2 प्रकार से पकड़ा जाता है- एक पैंसिल की तरह और दूसरा चाकू की तरह. छोटे काम के लिए पैंसिल की तरह पकड़ें और बड़े काम के किए चाकू की तरह इस्तेमाल करें. इस से आप के हाथ पर खिंचाव नहीं पड़ेगा.

स्वीकृति नए रिश्ते की- भाग 2 : पिता के जाने के बाद कैसे बदली सुमेधा की जिंदगी?

रात को सोने लेटी तो नींद आंखों से कोसों दूर थी. वह लुभावनी खुशबू और तरल आवाज जेहन को सराबोर किए जा रही थी. लेकिन एक पल बाद सुमेधा ने रोमानी विचारों को झटक दिया. सुबोध, जिसे आज वर्षों बाद देखा, अब किसी और की अमानत है. उसका इस तरह की कल्पनाएं करना भी गलत है. और वह अबोध बच्ची कितनी प्यारी है. कौन होगी उस की मां? अब तो पुराने परिचय के तार कहां रहे, जो किसी से संपर्क कर के पूछताछ की जा सके. पुराने साथी न जाने कहां गुम हो गए. एक नंदिनी थी, लेकिन वह भी दिल्ली चली गई और गई भी ऐसी कि पीछे सुध लेने का होश तक न रहा. वह खुद भी तो एक नए लक्ष्य को पाने के लिए किसी तीरंदाज की तरह भिड़ गई थी. 1-2 बार पत्रों का आदानप्रदान कर दोनों ने अपनेअपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली और संपर्क के सूत्र ओझल होते गए.

‘‘बाबूजी, मां, यह देखिए मैं फौर्म ले आई,’’ सुमेधा आंगन से ही चिल्लाते हुए घर में घुसी और बाबूजी के सामने सोफे पर बैठ गई.

कुछ पल बाबूजी खामोश रहे, फिर एकएक शब्द सोचते हुए बोलने लगे, ‘‘बेटी, तुम्हारी जिद की खातिर बायोलौजी सब्जैक्ट तुम्हें दिला दिया था. लेकिन मैं तुम्हें ज्यादा से ज्यादा बी.एससी. करा सकता हूं. डाक्टरी कराने की हैसियत नहीं है मेरी.’’

बाबूजी की बेबस आवाज आज भी कानों में गूंजती रहती है. बाबूजी की हैसियत सुमेधा से छिपी कहां थी, लेकिन यौवन की उमंगों ने उन्हें अनदेखा कर कई सपने पाल लिए थे.

‘‘बाबूजी, आप ने मेरे सपने तोड़े हैं. मैं आप को कभी माफ नहीं करूंगी,’’ सुबकते हुए सुमेधा ने कहा और पी.एम.टी. प्रवेश परीक्षा के फौर्म के टुकड़ेटुकड़े कर हवा में उछाल दिए.

‘‘मुझे समझने की कोशिश कर बेटी,’’ बाबूजी के अंतिम शब्द थे वे. उस के बाद उन्हें लकवा मार गया, जो उन की वाणी ले गया.

‘‘सौरी बाबूजी, मेरे कहने का यह मतलब नहीं था. आप अपनेआप को संभालिए बाबूजी, मुझे नहीं बनना डाक्टर. मां तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?’’ न जाने क्याक्या कह गई सुमेधा, लेकिन तीर कमान से निकल कर सुनने वाले को जख्मी कर चुका था और वह जख्म लाइलाज था.

उस दिन के बाद तो सुमेधा की जिंदगी ही बदल गई. उस ने बी.ए. में दाखिला ले लिया.

परिचित कई बार हंसी भी उड़ाते, ‘‘अरे डाक्टर बनना हर किसी के बूते की बात नहीं. 2 साल साइंस पढ़ कर ही पसीने छूट गए, तभी तो आर्ट्स कालेज में अपना नाम लिखवा लिया है.’’

सुमेधा ऐसी बातों को अनसुना कर जाती. अब घर के 3 प्राणियों की जिम्मेदारी भी उसी की थी. उस ने पार्टटाइम जौब कर ली. बाबूजी की थोड़ी जमापूंजी और मां के गहने कितने दिन काम आते. बी.ए. की परीक्षा में वह पूरी यूनिवर्सिटी में अव्वल आई. बाबूजी की खुशी से चमकती आंखें देख सुमेधा की आत्मग्लानि कुछ कम होने लगी. फिर एम.ए., पीएच.डी. और कालेज में लैक्चररशिप. कालेज में जौब के बाद उसे महसूस हुआ कि अब कुछ विराम मिला है भटकती हुई जिंदगी को. लेकिन इस प्रयत्न में उम्र का पक्षी फरफर करता हुआ 32वें वर्ष की दहलीज पर पहुंचा गया.

बाबूजी उस के सैटल होते ही एक दिन खुली आंखों से उसे आशीर्वाद देते हुए चल बसे जैसे सुमेधा को सक्षम और सफल देखने के लिए ही उन के प्राण अटके पड़े थे.

अब सुमेधा और मां 2 ही प्राणी बचे थे घर में. 1-2 बार उस के विवाह की बात चली, लेकिन सुमेधा ने शर्त रख दी, ‘‘मां भी विवाह के बाद मेरे साथ ही रहेंगी.’’

धन के लालची युवक एक बूढ़े जीव को दहेज के रूप में अपनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, इसलिए ऐसे भागते जैसे गधे के सिर से सींग. धीरेधीरे 35वें साल तक पहुंचतेपहुंचते सुमेधा ने जीवनसाथी की आस को तिलांजलि दे दी. लेकिन आज की घटना ने उसे अच्छी तरह वाकिफ करा दिया कि चाहे वह ऊपर से कितनी भी कठोर क्यों न बने, एक साथी की आकांक्षा उसे अब भी है. कोमल भावों के अंकुर अब भी उस के हृदय की मरुभूमि में फूटते हैं.

सोचतेसोचते उसे नींद आ गई. सुबह उठ कर फिर कालेज जाने का रूटीन चालू हो गया.

एक दिन शाम को मां के साथ पास के ही गार्डन में टहलने गई, तो वहां बाइकचालक की उसी प्यारी बच्ची को देख कर खुद को रोक न सकी. पूछा, ‘‘बेटी, कैसी हैं आप?’’

‘‘आप कौन हैं आंटी?’’ बच्ची ने भोलेपन से पूछा.

‘‘मैं वही, उस दिन वाली आंटी, जिस ने चेहरे पर स्कार्फ बांधा था.’’

बच्ची कुछ देर सोचती रही, फिर प्यार से मुसकरा दी.

सुमेधा का मातृत्व उमड़ पड़ा. बच्ची

के गाल थपथपा कर बोली, ‘‘आप का नाम क्या है?’’

‘‘पहले अपना नाम बताइए?’’ बच्ची

द्वारा किए गए प्रश्न पर सुमेधा खिलखिला कर हंस पड़ी.

फिर बच्ची ‘‘पापापापा…’’ चिल्लाते हुए सुबोध को खींच लाई.

उसे देख कर चौंक पड़ा सुबोध, ‘‘अरे, सुमेधा तुम?’’

‘‘पापा, ये तो वही आंटी हैं जिन को हम ने सौरी कहा था.’’

‘‘उस दिन तुम्हीं थीं, आई मीन आप ही थीं?’’

‘‘ठीक है, मुझे तुम भी कह सकते हो,’’ सुमेधा मुसकराते हुए बोली.

सुबोध कुछ झेंप सा गया.

‘‘नमस्ते डाक्टर साहब. बच्ची को घुमाने लाए हैं?’’

‘‘अरे मांजी आप भी यहां, अब कैसी तबीयत है आप की?’’

‘‘तुम लोग एकदूसरे को पहचानते हो?’’

सुबोध कुछ हंसते हुए बोला, ‘‘दरअसल, हम सभी लोग एकदूसरे को जानते हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि हम एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘पापा, पापा, आप क्या बोल रहे हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है,’’ बच्ची मासूमियत से बोली तो तीनों हंस पड़े.

सुबोध जान गया कि बुजुर्ग महिला जो 4 दिन पहले इलाज के लिए आई थीं, सुमेधा की मां हैं और सुमेधा भी जान गई कि मां जिन डाक्टर साहब का बखान करते हुए नहीं थक रही थीं, वह डाक्टर साहब और कोई नहीं, बल्कि सुबोध ही है.

मां ने तुरंत सुबोध को घर आने का निमंत्रण दे डाला. परिचय की कडि़यां कुछ इस तरह जुड़ीं कि सारे दायरे खत्म होते से नजर आने लगे. सुबोध की बेटी कनु सुमेधा को चाहने लगी थी. बिन मां की बच्ची कनु पर सुमेधा का प्यार कुछ ज्यादा ही उमड़ता था. एक दिन सुमेधा, कनु के जिद करने पर सुबोध के घर गई. वहां नंदिनी की तसवीर पर फूलों की माला देख कर सुमेधा का चेहरा फक पड़ गया. आंखें डबडबा आईं.

‘‘क्या नंदिनी ही…?’’

‘‘हां.’’

सुमेधा सोफे पर बैठ गई. अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था उसे.

कुछ ही देर में सुबोध 2 कप कौफी बना लाया. प्याला थामते हुए बड़ा असहज महसूस कर रही थी सुमेधा. कनु पड़ोस के घर में खेलने चली गई थी.

स्वीकृति नए रिश्ते की- भाग 3 : पिता के जाने के बाद कैसे बदली सुमेधा की जिंदगी?

कौफी पीते हुए सुबोध कह रहा था, ‘‘एम.बी.बी.एस. करने के बाद दिल्ली में ही एक अस्पताल में मैं ने प्रैक्टिस चालू कर दी थी. नंदिनी के मौसाजी हमारे डिपार्टमैंट के हैड थे. उन्हीं की पहल पर हमारी शादी हो गई. मेरे ख्वाबों में तो कोई और ही बसी थी. मैं राजी नहीं था, लेकिन मां की जिद के आगे मेरी एक न चली.

‘‘नंदिनी बहुत प्यारी लड़की थी, लेकिन मेरे स्वभाव के बिलकुल विपरीत. हम लोगों के दिल ज्यादा जुड़ नहीं पाए. उसे हर वक्त मुझ से शिकायत रहती थी कि मैं उसे समय नहीं देता हूं, उस के साथ शौपिंग पर और पार्टियों में नहीं जाता हूं. उस के शौक कुछ अलग ही थे मुझ से. न वह मुझे समझ पाई और न मैं उसे संतुष्ट कर पाया. सोचा था, बच्चे के आने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन डिलीवरी में ही कौंप्लिकेशन पैदा हो गया. लाख कोशिशों के बावजूद हम नंदिनी को बचा नहीं पाए. तब से मैं ही मां और बाप दोनों की भूमिका निभा रहा हूं कनु के लिए,’’ कहतेकहते सुबोध का गला रुंध गया.

किन शब्दों में सांत्वना देती सुमेधा. बड़ी देर तक बुत बनी बैठी रही.

‘‘मैं तो सोच भी नहीं सकती कि नंदिनी अब इस दुनिया में नहीं है. और इस मासूम कनु का क्या कुसूर है जो इसे बिन मां के रहना पड़ रहा है,’’ कहते हुए सुमेधा की आवाज कांप रही थी.

वह जैसे ही उठने को हुई, सुबोध की आवाज ने चौंका दिया, ‘‘तुम चाहो तो कनु को मां मिल सकती है.’’

‘‘मैं समझी नहीं?’’ उस ने चौंक कर पूछा.

‘‘कई दिनों से पूछना चाह रहा था सुमेधा मैं… मेरी कनु की मम्मी बनोगी तुम?’’

‘‘सुबोध, क्या कह रहे हो तुम? कुछ होश है तुम्हें?’’

‘‘मैं तो होश में हूं, लेकिन निर्णय तुम्हें लेना है,’’ सुबोध मुसकराते हुए अधिकार भाव से बोला.

सुबोध का अधिकार भाव से भरा स्वर सुमेधा को अपने अहं पर प्रहार सा ही लगा. उस का अप्रत्याशित सवाल सुमेधा के दिल में हलचल मचा गया. वह फिर सोफे पर बैठ गई.

‘‘मुझे सोचने के लिए वक्त चाहिए. अभी मैं कुछ नहीं कह सकती,’’ न चाहते हुए भी सुमेधा के स्वर में हलकी सी कड़वाहट घुल गई.

‘‘ठीक है, आखिर फैसला तो तुम्हें ही करना है,’’ सुबोध कोमलता से बोला.

घर वापस आई तो देखा मां अपने काम में व्यस्त थीं. सुमेधा मन ही मन बोली, ‘अच्छा हुआ, नहीं तो तरहतरह के सवालों से हैरान कर देतीं मुझे. पता नहीं कैसे मेरे मन की थाह मिल जाती है मां को.’

कुरसी पर बैठी सुमेधा के सामने टेबल पर दूसरे दिन के लैक्चर से संबंधित किताब थी, लेकिन दिल जरा भी नहीं लग रहा था. उसे एकएक पंक्ति पढ़ना भारी लग रहा था.

‘मेरी कनु की मम्मी बनोगी तुम?’ आखिर सुबोध के यह पूछने का मतलब क्या है? क्या मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं? क्या सहचर की आवश्यकता सुबोध को नहीं है या सिर्फ अपनी बेटी के लिए मां की प्राप्ति से उस की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाएगी? मैं कनु की मां बन सकती हूं, तो तुम्हारे जीवन में मेरा क्या स्थान होगा? लगता है, सुबोध अभी भी नंदिनी को भुला नहीं पाया है. साथ ही, उस के मन में बिन मां की कनु को देख कर अपराधभाव भी है. तभी तो उस ने प्रस्ताव अपने विवाह का नहीं, बल्कि कनु की मां बनने का रखा है. पर मेरी मां का क्या होगा? उस का तो इस दुनिया में कोई भी नहीं. कल अगर मैं विवाह के लिए हामी भर देती हूं, इस शर्त पर कि मां शादी के बाद मेरे साथ ही रहेगी, तो क्या सुबोध स्वीकारेगा इसे?

तरहत रह के सवालों ने सुमेधा के दिमाग को मथ दिया. दूसरे दिन अनमने भाव से वह कालेज पहुंची. क्लास में रोज की तरह उमंग और उत्साह नहीं था. थोड़ी ही देर में सिरदर्द का बहाना बना कर उस ने लड़कियों को फ्री कर दिया. कुछ ही पलों में सारी लड़कियां चहकती हुई चली गईं.

‘‘भई, आज हमारी संयोगिता कहां खोई है?’’ अनीता की जोशीली आवाज ने स्टाफरूम में बैठी सुमेधा का ध्यान भंग कर दिया. यों तो उम्र में वह सुमेधा से 3-4 साल बड़ी और सीनियर भी थी, फिर भी सुमेधा को अपने दोस्ताना व्यवहार की वजह से हमउम्र भी लगती थी.

‘‘रिलैक्स यार, किसी बात का इतना टैंशन ले लेती हो तुम कि पूछो मत. और तुम्हें टैंशन में देखती हूं न, तो मेरी भी तबीयत बिगड़ने लगती है,’’ अनीता, सुमेधा के कंधे पर हाथ रखते हुए बड़ी अदा से बोली.

अनीता की बात सुन कर सुमेधा की हंसी छूट गई.

‘‘आ गईं वापस मैडम आप?’’

‘‘हां बच्चू. तुम्हें तनहा छोड़ कर मैं कहां जाऊंगी?’’

‘‘मजाक छोड़ो यार. मैं अभी मजाक के मूड में बिलकुल नहीं हूं,’’ सुमेधा गंभीरता से बोली.

‘‘अभी क्या, तुम तो कभी भी मजाक के मूड में नहीं होतीं. क्यों संयोगिता, मैं ने कुछ गलत तो नहीं कहा?’’

‘‘यह क्या संयोगितासंयोगिता लगा कर रखा है?’’ सुमेधा परेशान हो कर बोली.

‘‘भई, जब हमारे पृथ्वीराज तुम पर जान छिड़कते हैं, तो तुम संयोगिता ही हुईं न,’’ अनीता मसखरी करती हुई बोली.

अनीता सुबोध की मुंहबोली बहन थी और उस से भी बढ़ कर दोस्त और सलाहकार. और जब से उसे सुबोध और सुमेधा के पूर्व परिचय के बारे में पता चला था वह दोनों का मेल कराने में बड़ी उत्सुक थी. कनु की प्यारी बातों और सुमेधा के प्रति उस के स्नेह ने, उस की इस चाहत को और बढ़ा दिया था. एक बार तो वह सुमेधा की मां के सामने ही यह किस्सा छेड़ बैठी. उन्होंने अनीता की बात सुनी तो उन्हें जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. लेकिन सुमेधा ने अपने स्वाभिमान का वास्ता दे कर मां को कभी भी यह बात करने से रोक दिया.

लेकिन सुमेधा मां के मन और उस के प्यार भरे दिल की हसरतों को कैसे रोकती?

एक दिन फिर वे यह बात करने लगीं तो वह बोली, ‘‘मां, बातचीत करना एक बात है और घरपरिवार बसाना दूसरी. पहले भी तुम 2-3 लड़कों को देख चुकी हो न, जो मेरी नौकरी के आकर्षण से शादी के लिए राजी हुए थे. लेकिन शादी के बाद तुम्हारे भी साथ रहने की बात सुन कर ऐसे गायब हुए कि दोबारा शक्ल न दिखाई.’’

‘‘मेरा क्या देखती है तू? मैं तो अकेली भी रह लूंगी,’’ मां सहमते हुए बोलीं.

‘‘तुम्हें अकेला छोड़ कर शादी करना इतना जरूरी नहीं है, मेरे लिए. और हां, यह

बात आज के बाद इस घर में नहीं होगी,’’ सुमेधा ने कड़े स्वर में मां की जबान पर ताला लगा दिया.

अनीता से विदा ले कर सुमेधा घर की तरफ रवाना हुई तो विचारों के चक्र में उलझी हुई थी. उसे जब होश आया, तब तक उस का स्कूटर विपरीत दिशा से तेज गति से आती कार की चपेट में आ चुका था. टक्कर होते ही सुमेधा उछल कर रोड पर जा गिरी.

राहगीरों ने सहारा दे कर उसे उठाया. फिर जब सामान्य हुई तो उसे आटोरिकशा में बैठा कर रवाना कर दिया. स्कूटर को पास ही के गैराज में खड़ा कर दिया.

मां सुमेधा को देखते ही सुधबुध खो बैठीं. बमुश्किल अपनेआप को संभाल कर उन्होंने सब से पहले सुबोध को ही फोन लगाया.

‘‘बेटा, सुमेधा का ऐक्सिडैंट हो गया है. आप जल्दी आ जाओ.’’

सुबोध आते ही बोला, ‘‘क्या हो गया? किस से भिड़ गईं?’’ फिर मां की तरफ पलट कर बोला, ‘‘चलिए मांजी, मेरे दोस्त डा. आकाश का क्लीनिक पास ही है. मैडम की ड्रैसिंग करवा लाते हैं.’’

सुमेधा मंत्रमुग्ध सी दोनों के साथ चलती रही. कब चलते हुए उस ने सुबोध का सहारा लिया और ड्रैसिंग कराते वक्त दर्द बढ़ने पर कब उस का हाथ थाम लिया, ध्यान न रहा. लेकिन इन लमहों ने अपनों के महत्त्व से

सुमेधा को परिचित करवा दिया. आज मां अकेली होतीं तो क्या करतीं? कोई न कोई मदद तो कर ही देता, लेकिन ऐसा अपनत्व भरा सहयोग, मदद का हाथ मिलना क्या संभव था?

शाम को सुबोध कनु को ले आया. सुमेधा को देख कर कनु उस से लिपट गई. सुमेधा असहनीय दर्द से कराह उठी. सुबोध ने आहिस्ता से कनु को अलग कर के बैठाया.

‘‘बेटा, आंटी को चोट लगी है न, उन को परेशान नहीं करना,’’ सुबोध ने समझाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, पापा. पापा, आंटी को दवा दो न.’’

‘‘हां बेटा, दवा देंगे.’’

‘‘अगर आंटी ने नहीं ली तो?’’ कनु ने मासूमियत से पूछा.

‘‘तो हम उन से कुट्टी कर लेंगे,’’ सुबोध मुसकरा कर बोला.

सुबोध की बात सुन कर कनु और मां खिलखिला कर हंस पड़ीं. माहौल में ताजगी भरी खुशबू फैल गई.

रात खाना खा कर सो गई सुमेधा. सुबह उठ कर देखा तो मां और सुबोध बतिया रहे थे. दोनों की आंखों के लाल डोरे बता रहे थे कि उन्होंने रात जाग कर काटी है. इस का मतलब सुबोध घर वापस नहीं गया. यानी कल से क्लीनिक भी बंद ही है. कोई किसी अपने के लिए ही ये सब कर सकता है. मैं बेकार की शंका में फंसी रही.

सुमेधा को जागा हुआ देख कर मां लपक कर आ गईं और सहारा दे कर बैठाया. हाथ और पैर की चोटों में दर्द बराबर बना हुआ था. मां सुमेधा को सहारा दे कर मुंह धुला लाईं. तब तक सुबोध चाय और बिस्कुट ले आया. कनु होमवर्क करने में व्यस्त थी. बगल के कमरे से उस के पढ़ने की आवाज आ रही थी. थोड़ी देर बाद कनु उन के पास पहुंच गई.

सुबोध बोला, ‘‘मांजी, अब मैं इजाजत चाहूंगा. कनु को तैयार कर स्कूल भेजना है और मेरे मरीज राह देखते होंगे. हां, मैं शाम को आऊंगा. अच्छा सुमेधा, मैं चलूं?’’

‘‘ठीक है, बाय कनु बेटा,’’ मां और सुमेधा ने दोनों को विदा दी.

शाम को 4 बजे अनीता कालेज से सीधे सुमेधा से मिलने चली आई.

‘‘मैं बोलती थी न, बेकार की चिंता मत पालो. कहां ध्यान रहता है और कैसे गाड़ी चलाती हो तुम?’’ अनीता आते ही बनावटी रोष में बरस पड़ी.

‘‘देखो, मेरा तो वैसे ही बुरा हाल है. तुम मुझे और तंग मत करो,’’ सुमेधा धीमी आवाज में बोली.

6 बजे तक सुबोध भी कनु को ले कर आ गया. बूआ को देख कर कनु चहक उठी.

अनीता बोली, ‘‘हम अपनी कनु बिटिया को अपने घर ले जाएंगे.’’

‘‘नहीं, जब तक आंटी ठीक नहीं हो जातीं हम कहीं नहीं जाएंगे,’’ कनु इतराते हुए बोली और सुमेधा के गले लग गई.

कनु का प्यार देख कर मां, सुबोध और अनीता की आंखें गीली हो गईं. सुमेधा भी इस से अछूती नहीं रह पाई.

‘‘चलिए मांजी, नाश्ते की तैयारी करें. चलो कनु, तुम भी हमारी हैल्प करो,’’ अनीता मांजी और कनु को किचन में ले गई.

सुबोध पास की कुरसी खींच कर बैठते हुए बोला, ‘‘सुमेधा, पता नहीं उस दिन की मेरी बात का क्या मतलब निकाला तुम ने. आज तुम्हारे लिए एक खास चीज लाया हूं. और हां, अनीता ने मुझे सब बता दिया है. मांजी की जितनी चिंता तुम्हें है, उतनी ही मुझे भी. यदि तुम ने इस नए रिश्ते को स्वीकार किया तो मांजी को अपने साथ पा कर मुझे बेहद खुशी होगी. तुम्हारे बाबूजी की असमय बीमारी और उन के गुजरने के बाद इतने सालों की तपस्या से तुम ने जिस स्वाभिमान की शिला को रचा है, मैं उसे भी ठेस नहीं पहुंचाना चाहता. हां, उस शिला में कोई दरवाजा निकल सके तो मैं और कनु जरूर उस से गुजर कर तुम्हारे करीब पहुंचना चाहेंगे.’’

सब सुन कर सुमेधा सिमट सी गई.

सुबोध ने एक पुरानी डायरी उस की ओर बढ़ा दी.

पहले ही पन्ने पर लिखी थी छोटी सी कविता-

‘‘सरस्वती कहूं तुम्हें कि तुम्हें मैं परी कहूं

कह दो तुम्हीं क्या मैं तुम्हें सुंदरी कहूं.

तुम को कुंतला पुकारूं या कहूं शकुंतला

या फिर तुम को मैं कादंबरी कहूं.

चित्रा कहूं या सुमित्रा चंदा या सितारा

अथवा सावित्री सत्य से तुम्हें भरी कहूं.’’

नीचे लिखा था- सुमेधा के लिए, जो इन पंक्तियों को कभी नहीं पढ़ेगी. उस में तारीख थी उस साल की जब वे 12वीं कक्षा में थे.

डायरी बंद कर सुमेधा ने सुबोध की ओर देखा. फिर हौले से बोली, ‘‘सुबोध, सुमेधा ने अपने लिए लिखी पंक्तियों को पढ़ लिया है,’’ और अपनी स्वीकृति देते हुए सुबोध के हाथों को अपनी हथेलियों में छिपा लिया.

उस पल दर्द के बावजूद सुमेधा के चेहरे पर मुसकान थी, नए रिश्ते को अपना कर मिली मुसकान. सुबोध की आंखों में खुशहाल परिवार के सपने झिलमिलाने लगे.

धमाका: शेफाली से रुचि की मुलाकात के बाद क्या हुआ?

अब भी सुनाई देती है उस धमाके की गूंज क्योंकि मैं स्वयं भी वहीं थी. किंतु तब से अब तक चाह कर भी ऐसा कुछ न कर पाई उस के लिए कि वह ठीक उसी तरह मुसकरा उठे जिस तरह वह मुझ से पहली बार मिलते समय मुसकराई थी. वह है शेफाली. मात्र 24-25 वर्ष की. सुंदर, सुघड़, कुंदन सा निखरा रूप एवं रंग ऐसा जैसे चांद ने स्वयं चांदनी बिखेरी हो उस पर. कालेघुंघराले बाल मानों घटाएं गहराई हों और बरसने को तत्पर हों. किंतु उस धमाके ने उसे ऐसा बना दिया गोया एक रंगबिरंगी तितली अपनी उड़ान भरना भूल गई हो, मंडराना छोड़ दिया हो उस ने.

मुझे याद है जब हम पहली बार पैरिस में मिले थे. उस ने होटल में चैकइन किया था. छोटी सी लाल रंग की टाइट स्कर्ट, काली जैकेट और ऊंचे बूट पहने बालों को बारबार सहेज रही थी. मेरे पति भी होटल काउंटर पर जरूरी औपचारिकता पूरी कर रहे थे. हम दोनों को ही अपनेअपने कमरे के नंबर व चाबियां मिल गई थीं. दोनों के कमरे पासपास थे. दूसरे देश में 2 भारतीय. वह भी पासपास के कमरों में. दोस्ती तो होनी ही थी. मैं अपने पति व 2 बच्चों के साथ थी और वह आई थी हनीमून पर अपने पति के साथ.

मैं ने कहा, ‘‘हाय, मैं रुचि.’’ उस ने भी हाथ बढ़ाते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘आई एम शेफाली. आप की बेटी बहुत स्वीट है.’’ उस की मुसकराहट ऐसी थी गोया मोतियों की माला पिरोई हो 2 पंखुडि़यों के बीच. रात के खाने के समय बातचीत में मालूम हुआ कि उन्होंने भी वही टूर बुक किया था जो हम ने किया था. अगले ही दिन मैं अपने परिवार के साथ और वह अपने पति के साथ निकल पड़ी ऐफिल टावर देखने, जोकि पैरिस का मुख्य आकर्षण एवं 7 अजूबों में से एक है. वहां पहुंच वह तो बूट पहने भी खटखट करती सीढि़यां चढ़ गई, मगर मैं बस 2 फ्लोर चढ़ कर ही थक गई और फिर वहीं से लगी पैरिस के नजारे देखने और फोटो खिंचवाने. वह और ऊपर तक गई और फिर थोड़ी ही देर में अपने पति के कंधों पर अपने शरीर का बोझ डाल कर व उस की कमर पकड़े चलती हुई लौट आई. हमारे पास आ कर जब उस ने कहा कि क्या आप हमारे फोटो खींचेंगे तो मैं ने कहा हांहां क्यों नहीं?

वह अलगअलग पोज में फोटो खिंचवा रही थी और जब मन होता अपने डायमंड से सजे फोन से सैल्फी भी ले लेती. इस के बाद हम चले पैलेस औफ वर्साइल्स के लिए जोकि अब म्यूजियम में तबदील हो गया है. वहां के लिए स्पैशल ट्रेन चलती है. उस की कुरसियां मखमल के कपड़े से ढकी थीं और ट्रेन में पैलेस के चित्र बने थे. वे दोनों पासपास बैठे एकदूसरे से प्यार भरी छेड़छाड़ कर रहे थे. न चाहते हुए भी मेरा ध्यान उन पर चला ही जाता. आरामदेह और एसी वाली ट्रेन से हम पैलेस औफ वर्साइल्स पहुंचे. इतना बड़ा पैलेस और उस का बगीचा देखते ही बनता था. बगीचे में लगे फुहारे उस की शान को दोगुना कर रहे थे. उस पैलेस की मशहूर चीज है मोनालिसा की पेंटिंग जिसे देखने भीड़ उमड़ी थी. वह उस भीड़ को चीरते हुए आगे जा कर पेंटिंग के फोटो ले आई और मिहिर को इतनी खुशी से दिखा रही थी गोया उस ने कोई किला जीत लिया हो.

पैलेस में यूरोपियन सभ्यता को दर्शाते सफेद पुतले भी हैं, जिन में पुरुष व स्त्रियां वैसे ही नग्न दिखाई गई हैं जैसेकि हमारे अजंताऐलोरा की गुफाओं में. कोई भी पुरुष उन्हें देख अपना नियंत्रण खो ही देगा. वही मिहिर के साथ हुआ और उस ने शेफाली के गालों और होंठों को चूम ही लिया. वैसे भी यूरोप में सार्वजनिक जगहों पर लिप किस तो आम बात है. पति के किस करने पर शेफाली इस तरह इधरउधर देखने लगी कि उन्हें ऐसा करते किसी ने देखा तो नहीं. फिर हम साइंस म्यूजियम, गार्डन आदि सभी जगहें घूम आए. अब था वक्त शौपिंग का. मैं तो हर चीज के दाम को यूरो से रुपए में बदल कर देखती. हर चीज बहुत महंगी लग रही थी. और शेफाली, वह तो इस तरह शौपिंग कर रही थी जैसे कल तो आने वाला ही न हो. हर पल को तितली की तरह मस्त हो कर जी रही थी वह. बस एक ही दिन और बचा था उस का व हमारा वहां पर. अत: शाम को मैट्रो स्टेशन, जोकि अंडरग्राउंड होते हैं और उन में दुकानें भी होती हैं, में भी वह शौपिंग करने लगी. फिर वापसी में जैसे ही हम ट्रेन पकड़ने को दौड़े तो वह पीछे रह गई. हम सब के ट्रेन में चढ़ते ही ट्रेन के दरवाजे बंद हो गए और वह रवाना हो गई. मैं चलती ट्रेन से उसे देख रही थी. एक बार को तो लगा कि अब क्या होगा? लेकिन अगले ही स्टेशन पर हम उतरे और उस का पति उलटी दिशा में जाती ट्रेन में चढ़ कर उसे 5 ही मिनट में ले आया.

मैं ने जब उस से पूछा कि तुम्हें डर नहीं लगा तो वह कहने लगी कि बिलकुल नहीं. उसे मालूम था कि मिहिर उसे लेने जरूर आएगा. मैं सोच रही थी कि कितने कम समय में वह अपने पति को पूरी तरह पहचान गई है. होटल में रात के खाने के समय वह हमारे पास आ कर कहने लगी कि भारत जा कर न जाने हम मिलें न मिलें, इसलिए चलिए आज साथ ही खाना खाते हैं. मेरी 7 वर्षीय बेटी उस से बहुत हिलमिल गई थी. अगले दिन सुबह हम वक्त से पहले तैयार हो गए. नाश्ता कर अपने पैरिस के अंतिम दिन का लुत्फ उठाने होटल से सड़क पर आ गए. अपने टूर की बस की राह देखते हुए चहलकदमी कर ही रहे थे कि तभी एक जोर के धमाके की आवाज आई और फिर न जाने कहां से कुछ लोग आ कर धायंधायं गोलियां बरसाने लगे. जिसे जहां जगह मिली छिप गया. मेरे पति बेटी को गोद में उठा कर भाग रहे थे और मेरा बेटा मेरे साथ भाग रहा था. मैं एक कार के पीछे छिप गई थी. तभी शेफाली का भागते हुए पैर मुड़ गया. उस का पति उसे गोद में ले कर भागा, किंतु इसी बीच 1 गोली उस के पैर में व 1 पीठ में लग गई. अगले ही पल शेफाली चीखचीख कर पुकार रही थी कि मिहिर उठो, मिहिर भागो. पर शायद मिहिर इस दुनिया को अलविदा कह चुका था. बाद में मालूम हुआ वह एक आतंकी हमला था. पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. बंदूकधारी वहां से भाग चुके थे. मैं यह सब कार के पीछे छिपी देख रही थी. पुलिस वाले मिहिर को अस्पताल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

मैं शेफाली को संभालने की कोशिश कर रही थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. शाम को जिस विमान से हनीमून का जोड़ा लौटने वाला था उस तक सिर्फ शेफाली जीवित पहुंची और मिहिर की लाश. हम भारत अपने शहर मुंबई पहुंचे फिर अगले ही दिन दिल्ली शेफाली के घर पहुंचे. उस के घर मातम पसरा था. शेफाली तो पत्थर हो चुकी थी. न हंसती थी न बोलती थी. हां, मुझे देख कर मुझ से लिपट कर रो पड़ी. मैं उस से कह रही थी, ‘‘रो मत शेफाली. सब ठीक हो जाएगा.’’ किंतु मैं स्वयं अपनेआप को नहीं रोक पा रही थी. वह धमाका जो हम ने एकसाथ सुना था, शायद हम उसे हादसा समझ भूल जाएं, लेकिन शेफाली की तो उस ने दुनिया ही उजाड़ दी थी. तब से वह पत्थर की मूर्ति बन गई है. ऐसा लगता है जैसे एक तितली के पर कट गए हों और वह उड़ान भरना भूल गई हो. मैं अब भी सोचती रहती हूं कि काश, वह धमाका न हुआ होता.

सही पकड़े हैं: भाग 3- कामवाली रत्ना पर क्यों सुशीला की आंखें लगी थीं

रत्ना उन की हालत देख कर हंसने लगी, ‘‘ठीक है, नहीं कहूंगी बाबूजी, पर एक शर्त है, अम्माजी को तो आप समझाओ कैसे भी कर के, हर वक्त वे मेरे पीछे पड़ी रहती हैं.’’ ‘‘तू चिंता मत कर उस का बंदोबस्त हो जाएगा.’’

उन के दिमाग में शरारती योजना घूम ही रही थी पर अब बच्चों को नहीं शामिल कर सकते, बच्चे तो सब को ही बता देंगे. फिर मैं सुशीला बहन को ब्लैकमेल कैसे कर पाऊंगा कि रत्ना को इन से बचा सकूं और रत्ना से अपने को. वरना तरुण, अदिति, तारा सब तक मेरी बात पहुंच गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा. सिर्फ परहेजी खाना, उफ्फ… क्यों बढि़याबढि़या मिठाईरबड़ी न खाऊं, मरे हुए सा सौ साल जियूं इसलिए… तो जीने का फायदा क्या?’ मनपसंद चीजों का दिमाग में खुला इंसायक्लोपीडिया देशी घी के बेसन के लड्डू, चमचम, रसमलाई… उन्हें बेचैन किए जा रहा था.

‘कुछ भी हो, सुशीला बहन को मुझे जल्दी, अकेले ही रंगेहाथ पकड़ना होगा. वरना रत्ना, बहनजी से तंग आ कर सब को मेरा सच बता देगी और मैं सूक्ष्म फलाहारी, परहेजी बाबा बन कर कहीं का नहीं रहूंगा.’ दिन में खाने के बाद एक घंटे बच्चों का सोने का टाइम और रात के खाने के बाद 9 बजे के बाद का समय, जब सुशीला बहन सब से नजरें बचा, अपना मिर्चखटाईर् का शौक पूरा करती होंगी क्योंकि नाश्ता भले ही साथ कर लेती हैं पर आदत का बहाना बता कर रात के खाने का अपना अलग ही टाइम बना रखा है, तभी पकड़ता हूं. अपने को बचाने का यही एक चारा है,’ तेजप्रकाश दिमाग की धार तेज किए जा रहे थे. आखिरकार दूसरे दिन ही सुशीला जैसे ही अपना खाना परोस कर कमरे में ले गईं, तेजप्रकाश दबेपांव उन के पीछे हो लिए. सुशीला ने पास पड़े स्टूल पर अपना खाना, पानी रखा, दरवाजा भेड़ा और परदा खींच कर तसल्ली से बैग का लौक खोल कर पसंदीदा लालमिर्च का अचार बड़े प्रेम से निकाला और साथ में चटपटी पकी इमली भी. प्लेट में नमक के ऊपर सजी बड़ीबड़ी 2 हरीमिर्चें देख परदे के पीछे खड़े तेजप्रकाश के मुंह से सीसी निकल रही थी, उस पर से यह और कि कैसे खा पाती हैं ये सब.’

सुशीला के खाना शुरू करते ही तेजप्रकाश सामने आ गए, ‘‘सही पकड़े हैं बहनजी, इतना सारा मिर्चखटाई. अदिति सही कहती है इतना मना है आप को पर चुपकेचुपके… बहुत गलत बात है.’’ वे उन का तकियाकलाम बोल कर उन्हीं के अंदाज में आंखें नचा रहे थे. सुशीला उन्हें सामने पा घबरा कर कातर हो उठीं. लिहाजन, तेजप्रकाश उन के कमरे में कभी वैसे आते न थे.

‘‘अअआप भाईसाहब, यहां, कैसे, बब…बैठिए. प्लीज, अदिति को कुछ मत कहिएगा,’’ वे खिसियाई सी बोलीं. ‘‘सही तो नहीं, पर इस उम्र में मन का खाएगा नहीं, तो आदमी करे क्या?’’

इस बात पर सुशीला थोड़ी हैरान हुईं, फिर सहज हो कर मुसकराती हुई बोलीं, ‘‘आप भी ऐसा ही मानते हैं. मैं तो घबरा ही गई थी. आप प्लीज, बताना नहीं किसी को.’’ ‘‘ठीक है, नहीं बोलूंगा, पर एक शर्त है. आप भी मेरे बारे में नहीं कहेंगी किसी से.’’

‘‘पर क्या?’’ वे सोच में पड़ गईं, ऐसा क्या है जो… ‘‘दरअसल, वह जो आप मलाई, मिठाई, चाय, चीनी सब के गायब होने के पीछे रत्ना को कारण समझती हैं, वह रत्ना नहीं, बल्कि मैं हूं.’’

‘‘क्या?’’ सुशीला का मुंह खुला रह गया. फिर वे मुंह दबा कर हंसने लगीं. ‘‘तारा, तरुण, अदिति सब मेरी जान खा जाएंगे, प्लीज.’’

‘‘फिर ठीक.’’ वे चटखारे ले कर अपना खाना खाने लगीं. ‘‘आप खाओगे?’’

‘‘नहीं बहनजी, आप मजे लो, मैं रसोई में जा कर अपनी तलब पूरी करता हूं, खौला कर स्ट्रौंग चाय बनाता हूं.’’ ‘‘इस समय?’’

‘‘आप पियोगी, बहुत बढि़या पकाने वाली मसालेदार मीठी कड़क?’’ उन के चेहरे पर राहत की मुसकान थी. ‘‘अरे नहीं, आप ही मजे लो,’’ कहती हुई उन्होंने लालमिर्च, अचार मुंह में भर लिया और हंसने लगीं.

‘‘यह भी खूब रही. और हां, बच्चों को जो चोर पकड़ने के लिए लगाया है, मना कर देना.’’ मुसकराते हुए तेजप्रकाश राहत से रसोई की ओर बढ़ गए. सोचते जा रहे थे कि ‘मैं भी कल बच्चों को कोई कहानी बना कर बहनजी को पकड़ने से मना कर दूंगा.’

इधर आंखें बंद किए बंटू और मिंकू दादू की स्टोरी से आज सो नहीं पाए थे. दादू उन्हें सोया जान कर अपने रूम में चले गए. काफी देर तक यों ही पड़े रहे. खट से हलकी सी आवाज क्या हुई, आंखें खोल कर दोनों ने एकदूसरे को कोहनी मारी. ‘‘उठ न, नींद नहीं आ रही. कोई है, लगता है.’’

‘‘हां, दादू की कहानी आज बहुत शौर्ट थी.’’ ‘‘दादू तो सोने गए, अब क्या करें?’’

‘‘सब सो गए हैं लगता है, रसोई में छोटी लाइट जल रही है. चल चोर को पकड़ते हैं.’’ दोनों पलंग से उतर कर अपनीअपनी टौयगन थाम लीं और सधे कदमों से कहतेफुसफुसाते हुए नन्हे जासूस मिशन पर चल पड़े. ‘‘तू इधर से जा बंटू, मैं उधर से, अकेला डरेगा तो नहीं?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं.’’ ‘‘अच्छा, तो यह मम्मी का स्टौल पकड़, अगर चोरी करते कोई दिखे, पीठ पर गन लगाना और झट से स्टौल में फंसा कर चिल्लाना. सही पकड़े हैं नानी के जैसे. खूब मजा आएगा.’’

‘‘रात के एक बज रहे थे. ताली मार कर दोनों अलगअलग दिशाओं में चल पड़े.

तेजप्रकाश और सुशीला स्वाद व खुशबू का पूरा मजा ले भी न पाए कि बच्चों ने अलगअलग पर लगभग एकसाथ उन्हें धर पकड़ा और खुशी से चिल्लाए, ‘‘सही पकड़े हैं दादू…, पापा…, मम्मी…सही पकड़े हैं नानी…, मम्मी… पापा…, सब जल्दी आओ.’’

घबराए से तेजप्रकाश किचन में मलाई की चोरी बयान करती अपनी मूंछों के साथ खौलती मसालेदार कड़क चाय को देख रहे थे तो कभी सामने गुस्से में खड़े तरुण को और सुशीला अपने खुले हुए बैग से झांकती लालमिर्च, अचार और मसालेदार इमली की खुली शीशियों को, तो कभी आगबबूला हुई नजरों से उन्हें देखती अदिति को देख कर नजरें चुरा रही थीं. ‘‘अदिति, देखो अपने लाड़ले पापाजी क्या कर रहे हैं, बड़ा विश्वास है न तुम्हें इन पर?’’

‘‘शांत हो जाओ तरु, आगे से ऐसा नहीं होगा.’’ ‘‘और तुम अपनी चहेती मम्मीजी को देखो, डाक्टर ने सख्त मना किया है पर मानना ही नहीं, बच्ची बनी हुई हैं, मुझ से छिपा कर रखा था, छिपा कर, देखो ये…’’ वह एक हाथ में शीशी दूसरे से मम्मीजी को थामे रसोई में आ गई.

‘‘अदिति, सुन तो, अब ऐसा नहीं होगा.’’ तेजप्रकाश और सुशीला के हाथ बरबस अपनेअपने कानों तक चले गए, ‘‘देखो, इस बार हम सही पकड़े हैं… पर अपनेअपने कान…’’ सुशीला ने गोलगोल आंखें नचा कर कुछ यों कहा कि तरुण, अदिति की हंसी छूट गई.

‘‘कोई हमें भी तो बताए क्या हुआ,’’ दादी तारा की आवाज सुन बंटू, मिंकू भागे कि उन्हें कौन पहले बताएगा कि आज वे कैसे दादू, नानी की चोरी सही पकड़े हैं.

अपने चरित्र पर ही संदेह: क्यों खुद पर शक करने लगे रिटायर मानव भारद्वाज

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