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सही पकड़े हैं: भाग 3- कामवाली रत्ना पर क्यों सुशीला की आंखें लगी थीं

रत्ना उन की हालत देख कर हंसने लगी, ‘‘ठीक है, नहीं कहूंगी बाबूजी, पर एक शर्त है, अम्माजी को तो आप समझाओ कैसे भी कर के, हर वक्त वे मेरे पीछे पड़ी रहती हैं.’’ ‘‘तू चिंता मत कर उस का बंदोबस्त हो जाएगा.’’

उन के दिमाग में शरारती योजना घूम ही रही थी पर अब बच्चों को नहीं शामिल कर सकते, बच्चे तो सब को ही बता देंगे. फिर मैं सुशीला बहन को ब्लैकमेल कैसे कर पाऊंगा कि रत्ना को इन से बचा सकूं और रत्ना से अपने को. वरना तरुण, अदिति, तारा सब तक मेरी बात पहुंच गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा. सिर्फ परहेजी खाना, उफ्फ… क्यों बढि़याबढि़या मिठाईरबड़ी न खाऊं, मरे हुए सा सौ साल जियूं इसलिए… तो जीने का फायदा क्या?’ मनपसंद चीजों का दिमाग में खुला इंसायक्लोपीडिया देशी घी के बेसन के लड्डू, चमचम, रसमलाई… उन्हें बेचैन किए जा रहा था.

‘कुछ भी हो, सुशीला बहन को मुझे जल्दी, अकेले ही रंगेहाथ पकड़ना होगा. वरना रत्ना, बहनजी से तंग आ कर सब को मेरा सच बता देगी और मैं सूक्ष्म फलाहारी, परहेजी बाबा बन कर कहीं का नहीं रहूंगा.’ दिन में खाने के बाद एक घंटे बच्चों का सोने का टाइम और रात के खाने के बाद 9 बजे के बाद का समय, जब सुशीला बहन सब से नजरें बचा, अपना मिर्चखटाईर् का शौक पूरा करती होंगी क्योंकि नाश्ता भले ही साथ कर लेती हैं पर आदत का बहाना बता कर रात के खाने का अपना अलग ही टाइम बना रखा है, तभी पकड़ता हूं. अपने को बचाने का यही एक चारा है,’ तेजप्रकाश दिमाग की धार तेज किए जा रहे थे. आखिरकार दूसरे दिन ही सुशीला जैसे ही अपना खाना परोस कर कमरे में ले गईं, तेजप्रकाश दबेपांव उन के पीछे हो लिए. सुशीला ने पास पड़े स्टूल पर अपना खाना, पानी रखा, दरवाजा भेड़ा और परदा खींच कर तसल्ली से बैग का लौक खोल कर पसंदीदा लालमिर्च का अचार बड़े प्रेम से निकाला और साथ में चटपटी पकी इमली भी. प्लेट में नमक के ऊपर सजी बड़ीबड़ी 2 हरीमिर्चें देख परदे के पीछे खड़े तेजप्रकाश के मुंह से सीसी निकल रही थी, उस पर से यह और कि कैसे खा पाती हैं ये सब.’

सुशीला के खाना शुरू करते ही तेजप्रकाश सामने आ गए, ‘‘सही पकड़े हैं बहनजी, इतना सारा मिर्चखटाई. अदिति सही कहती है इतना मना है आप को पर चुपकेचुपके… बहुत गलत बात है.’’ वे उन का तकियाकलाम बोल कर उन्हीं के अंदाज में आंखें नचा रहे थे. सुशीला उन्हें सामने पा घबरा कर कातर हो उठीं. लिहाजन, तेजप्रकाश उन के कमरे में कभी वैसे आते न थे.

‘‘अअआप भाईसाहब, यहां, कैसे, बब…बैठिए. प्लीज, अदिति को कुछ मत कहिएगा,’’ वे खिसियाई सी बोलीं. ‘‘सही तो नहीं, पर इस उम्र में मन का खाएगा नहीं, तो आदमी करे क्या?’’

इस बात पर सुशीला थोड़ी हैरान हुईं, फिर सहज हो कर मुसकराती हुई बोलीं, ‘‘आप भी ऐसा ही मानते हैं. मैं तो घबरा ही गई थी. आप प्लीज, बताना नहीं किसी को.’’ ‘‘ठीक है, नहीं बोलूंगा, पर एक शर्त है. आप भी मेरे बारे में नहीं कहेंगी किसी से.’’

‘‘पर क्या?’’ वे सोच में पड़ गईं, ऐसा क्या है जो… ‘‘दरअसल, वह जो आप मलाई, मिठाई, चाय, चीनी सब के गायब होने के पीछे रत्ना को कारण समझती हैं, वह रत्ना नहीं, बल्कि मैं हूं.’’

‘‘क्या?’’ सुशीला का मुंह खुला रह गया. फिर वे मुंह दबा कर हंसने लगीं. ‘‘तारा, तरुण, अदिति सब मेरी जान खा जाएंगे, प्लीज.’’

‘‘फिर ठीक.’’ वे चटखारे ले कर अपना खाना खाने लगीं. ‘‘आप खाओगे?’’

‘‘नहीं बहनजी, आप मजे लो, मैं रसोई में जा कर अपनी तलब पूरी करता हूं, खौला कर स्ट्रौंग चाय बनाता हूं.’’ ‘‘इस समय?’’

‘‘आप पियोगी, बहुत बढि़या पकाने वाली मसालेदार मीठी कड़क?’’ उन के चेहरे पर राहत की मुसकान थी. ‘‘अरे नहीं, आप ही मजे लो,’’ कहती हुई उन्होंने लालमिर्च, अचार मुंह में भर लिया और हंसने लगीं.

‘‘यह भी खूब रही. और हां, बच्चों को जो चोर पकड़ने के लिए लगाया है, मना कर देना.’’ मुसकराते हुए तेजप्रकाश राहत से रसोई की ओर बढ़ गए. सोचते जा रहे थे कि ‘मैं भी कल बच्चों को कोई कहानी बना कर बहनजी को पकड़ने से मना कर दूंगा.’

इधर आंखें बंद किए बंटू और मिंकू दादू की स्टोरी से आज सो नहीं पाए थे. दादू उन्हें सोया जान कर अपने रूम में चले गए. काफी देर तक यों ही पड़े रहे. खट से हलकी सी आवाज क्या हुई, आंखें खोल कर दोनों ने एकदूसरे को कोहनी मारी. ‘‘उठ न, नींद नहीं आ रही. कोई है, लगता है.’’

‘‘हां, दादू की कहानी आज बहुत शौर्ट थी.’’ ‘‘दादू तो सोने गए, अब क्या करें?’’

‘‘सब सो गए हैं लगता है, रसोई में छोटी लाइट जल रही है. चल चोर को पकड़ते हैं.’’ दोनों पलंग से उतर कर अपनीअपनी टौयगन थाम लीं और सधे कदमों से कहतेफुसफुसाते हुए नन्हे जासूस मिशन पर चल पड़े. ‘‘तू इधर से जा बंटू, मैं उधर से, अकेला डरेगा तो नहीं?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं.’’ ‘‘अच्छा, तो यह मम्मी का स्टौल पकड़, अगर चोरी करते कोई दिखे, पीठ पर गन लगाना और झट से स्टौल में फंसा कर चिल्लाना. सही पकड़े हैं नानी के जैसे. खूब मजा आएगा.’’

‘‘रात के एक बज रहे थे. ताली मार कर दोनों अलगअलग दिशाओं में चल पड़े.

तेजप्रकाश और सुशीला स्वाद व खुशबू का पूरा मजा ले भी न पाए कि बच्चों ने अलगअलग पर लगभग एकसाथ उन्हें धर पकड़ा और खुशी से चिल्लाए, ‘‘सही पकड़े हैं दादू…, पापा…, मम्मी…सही पकड़े हैं नानी…, मम्मी… पापा…, सब जल्दी आओ.’’

घबराए से तेजप्रकाश किचन में मलाई की चोरी बयान करती अपनी मूंछों के साथ खौलती मसालेदार कड़क चाय को देख रहे थे तो कभी सामने गुस्से में खड़े तरुण को और सुशीला अपने खुले हुए बैग से झांकती लालमिर्च, अचार और मसालेदार इमली की खुली शीशियों को, तो कभी आगबबूला हुई नजरों से उन्हें देखती अदिति को देख कर नजरें चुरा रही थीं. ‘‘अदिति, देखो अपने लाड़ले पापाजी क्या कर रहे हैं, बड़ा विश्वास है न तुम्हें इन पर?’’

‘‘शांत हो जाओ तरु, आगे से ऐसा नहीं होगा.’’ ‘‘और तुम अपनी चहेती मम्मीजी को देखो, डाक्टर ने सख्त मना किया है पर मानना ही नहीं, बच्ची बनी हुई हैं, मुझ से छिपा कर रखा था, छिपा कर, देखो ये…’’ वह एक हाथ में शीशी दूसरे से मम्मीजी को थामे रसोई में आ गई.

‘‘अदिति, सुन तो, अब ऐसा नहीं होगा.’’ तेजप्रकाश और सुशीला के हाथ बरबस अपनेअपने कानों तक चले गए, ‘‘देखो, इस बार हम सही पकड़े हैं… पर अपनेअपने कान…’’ सुशीला ने गोलगोल आंखें नचा कर कुछ यों कहा कि तरुण, अदिति की हंसी छूट गई.

‘‘कोई हमें भी तो बताए क्या हुआ,’’ दादी तारा की आवाज सुन बंटू, मिंकू भागे कि उन्हें कौन पहले बताएगा कि आज वे कैसे दादू, नानी की चोरी सही पकड़े हैं.

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क्या फर्क पड़ता है: भाग 1

‘‘आज मेरे दोनों बेटे साथसाथ आ गए. बड़ी खुशी हो रही है मुझे तुम दोनों को एकसाथ देख कर. बैठो, मैं सूजी का हलवा बना कर लाती हूं. अजय, बैठो बेटा… और सोम, तुम भी बैठो,’’ सोम की मां ने उसे मित्र के साथ आया देख कर कहा.

‘‘नहीं, मां. अजय है न. तुम इसी को खिलाओ. मुझे भूख नहीं है.’’

मैं क्षण भर को चौंका. सोम की बात करने का ढंग मुझे बड़ा अजीब सा लगा. मैं सोम के घर में मेहमान हूं और जब कभी आता हूं उस की मां मेरे आगेपीछे घूमती हैं. कभी कुछ परोसती हैं मेरे सामने और कभी कुछ. यह उन का सुलभ ममत्व है, जिसे वे मुझ पर बरसाने लगती हैं. उन की ममता पर मेरा भी मन भीगभीग जाता है, यही कारण है कि मैं भी किसी न किसी बहाने उन से मिलना चाहता हूं.

इस बार घर गया तो उन के लिए कुछ लाना नहीं भूला. कश्मीरी शाल पसंद आ गई थी. सोचा, उन पर खूब खिलेगी. चाहता तो सोम के हाथ भी भेज सकता था पर भेज देता तो उन के चेहरे के भाव कैसे पढ़ पाता. सो सोम के साथ ही चला आया. मां ने सूजी का हलवा बनाने की चाह व्यक्त की तो सोम ने इस तरह क्यों कह दिया कि अजय है न. तुम इसी को खिलाओ.

मैं क्या हलवा खाने का भूखा था जो इतनी दूर यहां उस के घर पर चला आया था. कोई घर आए मेहमान से इस तरह बात करता है क्या?

अनमना सा लगने लगा मुझे सोम. मुझे सहसा याद आया कि वह मुझे साथ लाना भी नहीं चाह रहा था. उस ने बहाना बनाया था कि किसी जरूरी काम से कहीं और जाना है. मैं ने तब भी साथ जाने की चाह व्यक्त की तो क्या करता वह.

‘तुम्हें जहां जाना है बेशक होते चलो, बाद में तो घर ही जाना है न. मैं बस मौसीजी से मिल कर वापस आ जाऊंगा. आज मैं ने अपना स्कूटर सर्विस के लिए दिया है इसलिए तुम से लिफ्ट मांग रहा हूं.’

‘वापस कैसे आओगे. स्कूटर नहीं है तो रहने दो न.’

‘मैं बस से आ जाऊंगा न यार… तुम इतनी दलीलों में क्यों पड़ रहे हो?’

‘‘घर में सब कैसे हैं, बेटा? अपनी चाची को मेरी याद दिलाई थी कि नहीं,’’ मौसी ने रसोई से ही आवाज दे कर पूछा तो मेरी तंद्रा टूटी. सोम अपने कमरे में जा चुका था और मैं वहीं रसोई के बाहर खड़ा था.

कुछ चुभने सा लगा मेरे मन में. क्या सोम नहीं चाहता कि मैं उस के घर आऊं? क्यों इस तरह का व्यवहार कर रहा है सोम?

मुझे याद है जब मैं पहली बार मौसी से मिला था तो उन का आपरेशन हुआ था और हम कुछ सहयोगी उन्हें देखने अस्पताल गए थे. मौसी का खून आम खून नहीं है. उन के ग्रुप का खून बड़ी मुश्किल से मिलता है. सहसा मेरा खून उन के काम आ गया था और संयोग से सोम की और हमारी जात भी एक ही है.

‘ऐसा लगता है, तुम मेरे खोए हुए बच्चे हो जो कभी किसी कुंभ के मेले में छूट गए थे,’ मौसी बीमारी की हालत में भी मजाक करने से नहीं चूकी थीं.

खुश रहना मौसी की आदत है. एक हाथ से उन के शरीर में मेरा दिया खून जा रहा था और दूसरे हाथ से वे अपना ममत्व मेरे मन मेें उतार रही थीं. उसी पल से सोम की मां मुझे अपनी मां जैसी लगने लगी थीं. बिन मां का हूं न मैं. चाचाचाची ने पाला है. चाची ने प्यार देने में कभी कोई कंजूसी नहीं बरती फिर भी मन के किसी कोने में यह चुभन जरूर रहती है कि अगर मेरी मां होतीं तो कैसी होतीं.

अतीत में गोते लगाता मैं सोचने लगा. चाची के बच्चों के साथ ही मेरा लालनपालन हुआ था. शायद अपनी मां भी उतना न कर पाती जितना चाची ने किया है. 2-3 महीने के बाद ही दिल्ली जा पाता हूं और जब जाता हूं चाची के हावभाव भी वैसी ही ममता और उदासी लिए होते हैं, जैसे मेरी मां के होते. गले लगा कर रो पड़ती हैं चाची. चचेरे भाईबहन मजाक करने लगते हैं.

‘अजय भैया, इस बार आप मां को अपने साथ लेते ही जाना. आप के बिना इन का दिल नहीं लगता. जोजो खाना आप को पसंद है मां पकाती ही नहीं हैं. परसों गाजर का हलवा बनाया, हमें खिला दिया और खुद नहीं खाया.’

‘क्यों?’

‘बस, लगीं रोने. आप ने नहीं खाया था न. ये कैसे खा लेतीं. अब आप आ गए हैं तो देखना आप के साथ ही खाएंगी.’

‘चुप कर निशा,’ विजय ने बहन को टोका, ‘मां आ रही हैं. सुन लेंगी तो उन का पारा चढ़ जाएगा.’

सचमुच ट्रे में गाजर का हलवा सजाए चाची चली आ रही थीं. चाची के मन के उद्गार पहली बार जान पाया था. कहते हैं न पासपास रह कर कभीकभी भाव सोए ही रहते हैं क्योंकि भावों को उन का खादपानी सामीप्य के रूप में मिलता जो रहता है. प्यार का एहसास दूर जा कर बड़ी गहराई से होता है.

‘आज तो राजमाचावल बना लो मां, भैया आ गए हैं. भैया, जल्दीजल्दी आया करो. हमें तो मनपसंद खाना ही नहीं मिलता.’

‘क्या नहीं मिलता तुम्हें? बिना वजह बकबक मत किया करो… ले बेटा, हलवा ले. पूरीआलू बनाऊं, खाएगा न? वहां बाजार का खाना खातेखाते चेहरा कैसा उतर गया है. लड़की देख रही हूं मैं तेरे लिए. 1-2 पसंद भी कर ली हैं. पढ़ीलिखी हैं, खाना भी अच्छा बनाती हैं…लड़की को खाना बनाना तो आना ही चाहिए न.’

‘2 का भैया क्या करेंगे. 1 ही काफी है न, मां,’ विजय और निशा ने चाची को चिढ़ाया था.

क्याक्या संजो रही हैं चाची मेरे लिए. बिन मां का हूं ऐसा तो नहीं है न जो स्वयं के लिए बेचारगी का भाव रखूं. जब वापस आने लगा तब चाची से गले मिल कर मैं भी रो पड़ा था.

‘अपना खयाल रखना मेरे बच्चे. किसी से कुछ ले कर मत खाना.’

‘इतनी बड़ी कंपनी में भैया क्याक्या संभालते हैं मां, तो क्या अपनेआप को नहीं संभाल पाएंगे?’

‘तू नहीं जानती, सफर में कैसेकैसे लोग मिलते हैं. आजकल किसी पर भरोसा करने लायक समय नहीं है.’

मेरे बिना चाची को घर काटने को आता है. क्या इस में वे अपने को लावारिस महसूस करने लगी हैं? कहीं चाची मुझे बिन मां का समझ कर अपने बच्चों का हिस्सा तो मुझे नहीं देती रहीं? आज 27 साल का हो गया हूं. 4 साल का था जब एक रेल हादसे ने मेरे मांबाप को छीन लिया था. मैं पता नहीं कैसे बच गया था. चाचाचाची न पालते तो कौन जाने क्या होता. कहीं कोई कमी नहीं है मुझे. मेरे पिता द्वारा छोड़ा रुपया मेरे चाचाचाची ने मुझ पर ही खर्च किया है. जमीन- जायदाद पर भी मेरा पूरापूरा अधिकार है. मेरा अधिकार सदा मेरा ही रहा है पर कहीं ऐसा तो नहीं किसी और का अधिकार भी मैं ही समेटता जा रहा हूं.’

‘‘क्या सोच रहे हो, अजय?’’ मौसी ने पूछा तो मैं अतीत से वर्तमान में आ गया, ‘‘क्या अपनी चाची से कहा था मेरे बारे में. उन्हें बताना था न कि यहां तुम ने अपने लिए एक मां पसंद कर ली है.’’

‘‘मां भी कभी पसंद की जाती है मौसीजी, यह तो प्रकृति की नेमत है जो किस्मत वालों को नसीब होती है. मां इतनी आसानी से मिल जाती है क्या जिसे कोई कहीं भी…’’

‘‘अजय, क्या बात है बच्चे?’’ मौसी मेरे पास खड़ी थीं फिर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे तक ले आईं और अपने पास ही बैठा लिया. बोलीं, ‘‘क्या हुआ है तुम्हें, बेटा? कब से बुलाए जा रही हूं… मेरी किसी भी बात का तू जवाब क्यों नहीं देता. परेशानी है क्या कोई.’’

‘‘जी, नहीं तो. चाची ने यह शाल आप के लिए भेजी है. बस, मैं यही देने आया था.’’

New Year Special: फैशन में चार चांद लगाएंगी ये पेस्टल से लेकर बोल्ड नियॉन साड़ियां

New Year Special: साड़ी फैशन और भारतीय संस्कृति के लिहाज से बेजोड़ संगम पेश करत है. महिलाओं की खूबसूरती में विशेष योगदान फैशन का होता है. साड़ी में महिलाएं बेहद ही सुंदर लगती है. फेस्टिवल, टेडिशनल, पार्टी और ऑफिस के लिए साड़ी एकदम परफेक्ट मानी जाती है. साड़ी पहने में काफी मेहनत तो लगती है लेकिन इसे पहनने के बाद महिलाओं में काफी आत्मविश्वास निखर के आता है. दरअसल, इस साल फैशन की दुनिया में 5 खास ट्रेंड्स नजर आने वाले हैं, जो 2024 में साड़ी के जलवे को और बढ़ाएंगे.  इन ट्रेंड्स में शामिल है ग्लिटर और ग्लैमर के साथ-साथ बोल्ड और क्लासिक दोनों ही अंदाज सम्मिलित हैं. तो चलिए जानते हैं 2024 में कौन-सी साड़ियां फैशन के मामले मे राज करेंगी.

  1. बॉर्डरलेस एलिगेंस (Borderless Elegance)

अगर आपको एकदम क्लासिक और एलिगेंट लुक पसंद है तो आप बॉर्डरलेस साड़िया आपके लिए परफेक्ट लुक साबित होगी. इन साड़ियो में बॉर्डर की जगह सिंपल या पतले बॉर्डर होते है या बिलकुल बिना बॉर्डर के डिजाइन होती है. इसमे सिल्क, कॉटन या शिफॉन जैसे सॉफ्ट फैब्रिक्स में बनी बॉर्डरलेस साड़ियां आपको मिल जाएगी जो आपको एकदम रॉयल लुक देगी.

2. बोल्ड नियॉन साड़ियां ( Bold Neon Sarees)

अगर आपको बोल्ड लुक बहुत पसंद है तो 2024 ट्रेंड में आने वाली नियॉन साड़ियों का फैशन जरुर पसंद आएगा. हॉट पिंक, लेमन यलो और ग्रीन नियॉन जैसे चटक रंगों की साड़ियां भीड में आपको अलग दिखाएंगी और आपको एक स्टाइलिश लुक देगी.

3. पेस्टल सीक्विन साड़ियां ( Pastel sequin sarees)

इस साल भी पेस्टल साड़ियों का बोलबला रहा है और  2024 में भी ये साड़ियां कहर ढाएंगी. इन साड़ियों में आप लैवेंडर, मिंट ग्रीन, ब्लश पिंक, पेस्टल यलो और पीच जैसे सॉफ्ट कलर चयन कर सकते है. जिन  साड़ियों पर नाजुक सीक्विन का काम हो, वो पार्टियों, शादी समारोहों और खास मौकों के लिए परफेक्ट साबित होंगी.

4. टिश्यू साड़ियों का ग्लैमर (Tissue sarees)

इन साड़ियों में काफी हल्का फैब्रिक का इस्तेमाल किया जाता है जो काफी लाइट और हवादर होती है. टिश्यू साड़ियों पर जरी या जरदोजी काम होता जो इन साड़ियो बहुत ही ग्लैमरस बना देती है. साल 2024 में वेडिंग सीजन के लिए टिश्यू साड़ी काफी ट्रेंड में रहेंगी.

 

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5. बनारसी साड़ी (Banarasi saree)

बनारसी साड़ी का फैशन कभी आउट ऑफ फैशन नहीं होता. 2024 में भी महिलाओं को बनारसी साड़ी का फैशन काफी आकर्षित करेंगी. गोल्डन जरदोजी वर्क, जरी बॉर्डर और रिच फैब्रिक के साथ बनारसी साड़ियां किसी भी खास मौके पर परफेक्ट एटायर साबित होंगी.

बेऔलाद: भाग 1- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

तेजी से सीढि़यां उतरती हुई नायरा चिल्लाई, ‘‘दादी… दादी… जल्दी नाश्ता दो वरना मैं चली.’’

‘‘अरे, बस ला रही हूं,’’ हाथ में थाली लिए पुष्पा बड़बड़ाती हुई किचन से बाहर निकलीं और अपने हाथों से नायरा को जल्दीजल्दी आलूपरांठा और दही खिलाते हुए बोलीं, ‘‘सुन बताती जा कब आएगी क्योंकि तेरे इंतजार में मैं भूखी बैठी रहती हूं.’’

‘‘तो तुम खा लिया करो न दादी. मैं जब आऊंगी निकाल कर खा लूंगी.’’

नायरा की बात पर पुष्पा कहने लगीं, ‘‘आज तक ऐसा हुआ है कभी कि पोती भूखी रहे और मैं खा लूं.’’

‘‘ओ मेरी प्यारी दादी… इतना प्यार करती हो तुम मु?झ से,’’ कह कर नायरा ने दादी के गालों को चूम लिया और फिर अपने कंधे पर बैग टांगते हुए बोली, ‘‘ठीक है, आज जल्दी आने की कोशिश करूंगी, अब खुश?’’

लेकिन पुष्पा मन ही मन भुनभुनाते हुए कहने लगीं कि क्या खुश रहेंगी वे. जिस की जवान पोती अनजान लोगों के साथ पूरा दिन गलीगलीकूचेकूचे घूमतीफिरती रहती हो, वह दादी खुश कैसे रह सकती है. हर पल एक डर लगा रहता है कि नायरा ठीक तो होगी न… कितनी बार कहा नरेश से कि बेटी बड़ी हो गई है, ब्याह कर दो अब इस का. लेकिन उन का. सुनता ही कौन है?

पुष्पा के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख कर नायरा को सम?झते देर नहीं लगी कि उस की दादी उसे ले कर परेशान हैं. वह बोली, ‘‘दादी… तुम यही सोच रही हो न कि कैसे जल्दी से मेरी शादी हो जाए और तुम्हारी जान छूटे? तो बता दूं नहीं छूटने वाली सम?झ लो,’’ बड़ी मासूमियत से वह अंगूठा दिखाते हुए बोली और फिर डब्बे में से एक लड्डू निकाल कर पुष्पा के मुंह में ठूंसते हुए खिलखिला कर हंस पड़ी.

लेकिन वे ‘थूथू’ कर कहने लगीं कि पता है उसे कि मुझे शुगर की बीमारी है, फिर क्यों वह मुझे मीठा खिला रही है? मारना चाहती है क्या?

नायरा सिर्फ अपनी दादी की ही नहीं, बल्कि अपने पापा नरेश की भी जान है. वही

उन के जीने की वजह है. नायरा से ही पूरे घर में रौनक है. 21 साल की नायरा अपने पापा की तरह ही टूरिस्ट गाइड का काम करती है. जब नायरा बहुत छोटी थी तभी ये लोग दिल्ली आ कर बस गए थे. यहीं दिल्ली में ही नरेश का अपना खुद का मकान है.  देखने में बला की खूबसूरत नायरा को देख कर कोई कह ही नहीं सकता कि वह नरेश की बेटी है. उस का रंग ऐसा जैसे मक्खन में जरा सा सिंदूर बुरक दिया गया हो. उस की भूरी आंखें, पतले लाललाल होंठ, रेशमी बाल देख कर लोग उसे देखते ही रह जाते. उस की बातों में ऐसी चुंबकीय शक्ति कि जब वह बोलती तो लोग बस सुनते ही रहते. अपने व्यवहार से वह लोगों को अपना बना लेती.

मगर ऐसा भी नहीं था कि किसी पर भी वह आंख मूंद कर भरोसा कर लेती थी. अच्छेबुरे लोगों को पहचानना आता था उसे. 2 साल से टूरिस्ट गाइड का काम कर रही नायरा यह बात बहुत अच्छी तरह जानती कि दिल्ली में औटो वालों से मोलभाव कर के पैसे कम कैसे करवाए जाते हैं. अगर दिल्ली में कोई विदेशी टूरिस्ट परेशान है तो उस का साथ कैसे दिया जा सकता है, टूरिस्ट को कौन से ऐतिहासिक स्थानों पर घुमाना है. टूरिस्ट के साथ बातचीत करने से ले कर उन्हें सम?झने की कुशलता ही नायरा को एक कामयाब गाइड बनाता.

नायरा विदेशी टूरिस्टों को अपने देश, शहरों के बारे में बड़े विस्तार से बताती थी. जब वह गाइड बन कर अपने देश की धरोहर, सभ्यता और संस्कृति के बारे में टूरिस्टों को बताती थी तो इस काम से उसे बहुत खुशी मिलती थी.

टूरिस्ट की जौब के साथसाथ वह अपनी पढ़ाई भी जारी रखे हुए थी. 12वीं कर लेने के बाद वह आर्किटैक्चर की पढ़ाई कर रही थी. नायरा रोज लगभग 6-7 घंटे 10-12 लोगों को गाइड करने का काम करती थी. लेकिन कभी भी उसे इस काम से ऊब महसूस नहीं हुई बल्कि उसे नएनए लोगों से मिल कर, उन के बारे में जान कर मजा आता था. दुनिया के हर कोने से लोग यहां घूमने आते थे. उन के साथ समय बिताते हुए नायरा थोड़ीबहुत उन की भाषा भी बोलना सीख जाती थी. वह चाहे कभी घर देर से पहुंचे या अपने पढ़ाई की वजह से उसे देर रात तक जागना पड़े, उस का उस समय कोई साथ देता था, तो वह थी उस की दादी पुष्पा, जो उस के लिए ही जीती और मरती थीं. लेकिन उन्हें नायरा की चिंता लगी रहती है कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फंस जाए. वैसे भी दिल्ली लड़कियों के लिए महफूज नहीं रह गई. अगर कहीं नायरा के साथ कुछ ऐसावैसा हो गया तो क्या करेंगी वे सोच कर ही पुष्पा कांप उठतीं.

मगर नायरा उन्हें सम?झती कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा क्योंकि उन की पोती अब बच्ची नहीं रही, बल्कि वह तो लोगों को रास्ता दिखाती है. लेकिन पुष्पा अपने कमजोर दिल को कैसे सम?झएं? कैसे कहें कि सब ठीक है, कुछ नहीं होगा? कितना चाहा था उन्होंने कि नरेश शादी कर ले ताकि नायरा को एक मां मिल जाए. लेकिन नरेश तो शादी की बात से ही भड़क उठता था. उस का कहना था कि अब नायरा ही उस के लिए सबकुछ है. लेकिन पुष्पा को अब अपनी पोती नायरा की शादी की चिंता सताने लगी थी. वे चाहती हैं जल्द से जल्द उस की शादी हो जाए, तो वे चैन से मर सकें.

मगर नरेश का कहना था कि नायरा किस से शादी करेगी, कब करेगी, यह उस की अपनी मरजी होगी. नरेश को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था. अपने पापा का खुद पर भरोसा देख नायरा के मन में तसल्ली जरूर हुई थी, लेकिन पुष्पा को अपने लिए इतना चिंतित देख उसे बुरा भी लगता था. ऐसे समय में नायरा को अपनी मां की याद सताने लगती और वह भावुक हो कर रो पड़ती थी.

नायरा के पैदा होते ही उस की मां चल बसी थी, यह बात उस के पापा ने ही उसे बताई थी. लेकिन नायरा जब भी अपने पापा से अपनी मां के बारे में पूछती है कि उन्हें क्या हुआ था? कैसे मर गईं वे? तो नरेश चिड़ उठता और कहता कि एक ही सवाल बारबार दोहरा कर वह उसे परेशान न किया करे.

नायरा सम?झ नहीं पाती कि मां के बारे में पूछने पर नरेश इतना भड़क क्यों जाते हैं, जबकि उस की मां तो अब इस दुनिया में भी नहीं है. लेकिन पुष्पा उसे सम?झतीं कि उस के पापा, उस की मां से बहुत प्यार करते थे और जब वह उसे छोड़ कर चली गई तो नरेश को अच्छा नहीं लगा था.

‘‘लेकिन दादी… इस में मां की क्या गलती थी? उन्होंने क्यों मरना चाहा होगा? उन्हें दुख नहीं हुआ होगा अपने पति व बच्चे को छोड़ कर जाते हुए? बोलो न दादी… चुप क्यों हो?’’

पुष्पा क्या बोलतीं? कैसे और किस मुंह से कहतीं कि उस की मां मरी नहीं, बल्कि जिंदा है.

‘‘हां, नायरा की मां जिंदा है.  लेकिन वह अपनी बेटी से कोसों दूर रहती है. इतनी दूर कि नायरा की आवाज भी उस तक नहीं पहुंच सकती है. पुष्पा नायरा को उस की मां के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थीं. लेकिन नरेश को दिया वचन उन्हें बोलने से रोक देता था. पुष्पा अंदर ही अंदर इस सोच में घुली जा रही थीं कि उन के जाने के बाद उन की पोती का क्या होगा? कौन ध्यान रखेगा उस का? उन्हें नायरा के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. लेकिन यह बात वे नरेश से कह भी नहीं पाती थीं.

एक बार कहा था तो कैसे चिढ़ते हुए उस ने बोला था कि क्या वह मरने वाला है जो वे ऐसी बातें कह रही हैं? जिंदा है वह अभी और अपनी बेटी का खयाल रख सकता है. लेकिन पुष्पा अपने मन की उल?झन को कैसे सम?झएं कि वे क्या सोचती रहती हैं.

इधर कई दिनों से पुष्पा की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. सोतीं तो उठने का मन

ही नहीं होता. पूरे बदन में दर्द सा महसूस होता. शायद शुगर बढ़ गई हो उन की. लेकिन सारी दवाइयां तो समय से ले ही रही थीं वे, फिर क्या हुआ उन्हें? शुगर बढ़ने पर भूखप्यास ज्यादा लगती है. पर उन का तो खाना देखने तक का मन नहीं करता. पुष्पा को अब इस बात का एहसास होने लगा कि उस के पास समय कम है, लेकिन मरने से पहले वे नायरा को उस की मां के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थीं.

‘‘बेटा, यहां मेरे पास आ कर बैठ, मुझे तुम से कुछ बातें करनी हैं,’’ नायरा को अपने पास बुलाते हुए पुष्पा बोलीं, लेकिन नायरा कहने लगी कि वह उन की सारी बातें सुनेगी, लेकिन पहले वे ठीक हो जाएं.

‘‘नहीं बेटा, फिर शायद कहने के लिए मैं न रहूं,’’ बोलते हुए वे जोर से खांसने लगीं तो नायरा दौड़ कर उन के लिए पानी लाने चली.  लेकिन पुष्पा उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए बोलीं, ‘‘नहीं… पानी नहीं… तुम यहां… मेरे पास… बैठो और और सुन लो मेरी बात क्योंकि मेरे पास समय… नहीं है. बेटा… मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूं कि तुम्हारी मां… जिंदा है, लेकिन यह बात तुम से इसलिए छिपा कर रखी गई क्योंकि नरेश नहीं चाहता था कि तुम्हें यह बात कभी पता चले.’’

फिल्मों में इंटिमेट सीन्स शूट करने का राज क्या होता है, आइये जानें

आज की फिल्मों या वेब सीरीज में किसिंग सीन या इंटिमेट सीन्स का होना कोई बड़ी बात नहीं है. सभी स्टार्स प्यार को दर्शाने के लिए किसिंग सीन को नॉर्मल मानते हैं और इसे करने में वे हिचकिचाती नहीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस दृश्य के न होने पर फिल्म की कहानी अधूरी लगेगी. एक इंटरव्यू में अभिनेत्री कल्कि कोचलिन ने कही है कि जब पहली बार उन्हें एक इंटिमेट बेड सीन्स को करने के लिए कहा गया, तो उन्हें बहुत अजीब सी फीलिंग हुई थी और उस दृश्य को करने के लिए उन्होंने कुछ समय माँगा और बाद में किया, लेकिन उनकी शर्त यह रही कि निर्देशक को एक बार में दृश्य को शूट करना है, रिटेक वह नहीं देगी.

दर्शक इन दृश्यों को पैसा वसूल मानते आए हैं. आज लगभग हर फिल्म में किसिंग सीन तो देखे ही होंगे और जब फिल्म इमरान हाशमी की हो, तो इसमें बिना किस के फिल्म पूरी ही नहीं होती, लेकिन सवाल यह उठता है कि फिल्म में ये सीन कैसे शूट किए जाते हैं. डायरेक्टर और क्रू मेंबर्स के सामने अभिनेत्रियां कैसे आसानी से किसिंग या बेड सीन दे देती हैं, जाने कैसे शूट होती है ऐसे दृश्य.

डबल बॉडी का प्रयोग

ऐसे अन्तरंग दृश्यों के बारें में निर्देशक पहले से ही अभिनेत्री को बता देते है, ताकि वह भी मानसिक रूप से तैयार रहे. अगर कोई एक्ट्रेस इसे करने से मना करती है तो डबल बॉडी का प्रयोग किया जाता है, जिसकी तैयारी निर्देशक पहले से ही कर लेते है, ताकि शूटिंग में किसी प्रकार की बाधा न हो. इसके अलावा इंटिमेट सीन्स की शूटिंग के लिए निर्देशक इंटीमेसी स्पेशलिस्टों की सेवाएं लेने और वर्कशॉप करने से लेकर शूटिंग के समय सुरक्षित शब्दों का इस्तेमाल करते  हैं, ताकि कलाकारों को किसी तरह की असहजता महसूस न हो.

कलाकारों में अच्छी केमिस्ट्री

फिल्म निर्माता अलंकृता श्रीवास्तव और सिनेमाटोग्राफर जय ओझा ने फिल्म मेड इन हीवेन की शूटिंग के दौरान कलाकारों के बीच विश्वास का भाव पैदा करने और बार-बार रीटेक से बचने के बारे में विस्तार से कलाकारों से बातचीत की, उनके बीच में एक केमिस्ट्री तैयार की, ताकि सीन्स को फिल्माते वक़्त वे असहज न हो. मार्गरीटा विद ए स्ट्रा की शूटिंग से पहले निर्देशक शोनाली बोस ने तय कर लिया था कि उनके कलाकार खुद को सुरक्षित महसूस करें. इसलिए कल्कि और सयानी गुप्ता ने बोस के साथ इंटीमेसी वर्कशॉप की. जिस दिन सयानी गुप्ता को अपनी शर्ट उतारनी थी, उस समय सेट पर कुछ महिलाएं ही थीं. बोस ने भी शर्ट उतार दी और कमर पर एक तौलिया बांधा. इससे दोनों के बीच में हिचकिचाहट में कमी आई और सीन शूट करना आसान हुआ.

नहीं होता आसान  

अभिनेत्री अनुप्रिया गोयेंका से इंटिमेट सीन्स की सहजता के बारें में पूछने पर बताया कि कोई भी इन्तिनेट सीन्स को शूट करना आसान नहीं होता, उसमे अंतरंगता की फीलिंग लानी पड़ती है, जिसके लिए इंटिमेसी स्पेशलिस्ट होते है, जो उस सीन की कोरियोग्राफी करते है, जिससे उस सीन को फिल्माना आसान होता है. इन सीन्स को फिल्माते वक़्त अधिकतर एक छोटी टीम होती है, ताकि कलाकार को असहजता महसूस न हो. केवल एक्ट्रेस ही नहीं एक्टर भी कई बार ऐसी सीन्स करने में सहम जाते है.

अभिनेत्री तापसी पन्नू की फिल्म हसीन दिलरुबा में तापसी, विक्रांत मेसी और हर्षवर्धन के साथ इंटिमेट सीन्स करती हुई दिखी थी, जिसमे दोनों एक्टर सहमे हुए थे कि ये दृश्य वे कैसे शूट करेंगे, लेकिन तापसी ने उन्हें बातचीत कर सहज किया और दृश्य को फिल्माया गया.

रजामंदी जरुरी

हिंदी फिल्म निर्देशक अशोक मेहता कहते है कि फिल्म की कहानी को बताते हुये एक्ट्रेस को पहले से सीन के बारें में बताया जाता है, अगर उसने उसे करने से मना किया तो डबल बॉडी का प्रयोग होता है, जिसमे एक लेटर लिखकर अभिनेत्री और डबल बॉडी करने वाले की साइन करवाई जाती है, ताकि बाद में एक्ट्रेस आरोप न लगाए कि उस दृश्य के बारें में उन्हें पता नहीं था. अगर कोई एक्ट्रेस अधिक समस्या करती है तो उस सीन को हटा भी दिया जाता है. फिल्मों से अधिक ये समस्या ओटीटी पर होता है.

तकनीक का प्रयोग

तकनीक का प्रयोग भी ऐसे सीन्स के लिए किया जाता है, जिसमे डबल बॉडी के साथ उसे शूट कर उसमे अभिनेत्री का फेस लगा दिया जाता है. अशोक मेहता आगे कहते है कि कई बार एक्ट्रेस पहले इंटिमेट सीन्स को शूट तो कर लेती है, लेकिन बाद में परिवार वालों या बॉयफ्रेंड के पूछने पर साफ़ इनकार भी कर देती है कि उन्होंने ये सीन्स नहीं दिए है और निर्माता निर्देशक पर आरोप लगाती है, जिससे समस्या आती है. बड़े प्रोडक्शन हाउस को इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता, लेकिन छोटे निर्माता, निर्देशक को कोर्ट तक जाना पड़ता है, जिसका सेटलमेंट अधिक पैसे से करना पड़ता है या सीन को हटाना पड़ता है. इंडस्ट्री में आई नई या दो तीन फिल्म कर चुकी एक्ट्रेस के साथ अधिकतर ऐसी समस्या है. कई बार कुछ इंटिमेट सीन्स की जरुरत खास कहानी के लिए होती है, मसलन फिल्म राम तेरी गंगा मैली में झरने के पानी में मन्दाकिनी का नहाना और बच्चे को स्तनपान कराने वाले दृश्य की वजह से फिल्म हिट हुई. लोग उसी को देखने हॉल तक अधिक गए. तब जमाना अलग था, आज के समय में इंडियन फिल्म इंडस्ट्री (Indian film industry) इंटिमेट सीन्स के मामले में वास्तविकता के बेहद करीब पहुंच गया है. मेड इन हेवन, फोर मोर शॉट्स प्लीज और सैक्रेड गेम्स, आदि वेब सीरीज और जिस्म मर्डर जैसी फिल्मों में ये देखा जा सकता है. फिल्म इंडस्ट्री में सभी इसे खुले दिल से स्वीकार कर रहे हैं और इसे हिट भी करवा रहे है.

इल्यूजन को करते है क्रिएट

आज अगर कोई अभिनेता या अभिनेत्री बोल्ड सींस करने से मना कर दे, तो कई बार टीम के क्रू को इल्यूजन क्रिएट करना पड़ता है यानि ब्यूटी शॉट्स से काम चलाना पड़ता है. सिनेमैटोग्राफी की कुछ ऐसी तकनीक का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे बिना कुछ हुए भी दर्शकों को लगता है कि बहुत कुछ हुआ है. ब्यूटी शॉट्स यानि हग करना, किस करना, हाथों में हाथ डालना या फिर कैमरा एंगल ऐसे रखना, जिसके जरिए बॉडी पार्ट्स को कवर किया जा सके. यह सभी सिनेमैटोग्राफी तकनीक होती हैं, जिसे वे रियल लुक देते है. बेड पर सैटिन के बेडशीट्स यूज किए जाते हैं और उससे ढककर केवल इल्यूशन क्रिएट किया जाता है.

लेते है क्रोमा शॉट्स

अगर कोई भी अभिनेता या अभिनेत्री ऐसे सीन करने में अनकंफरटेबल फील करते हैं, तो निर्देशक क्रोमा शॉट्स भी लेते हैं. क्रोमा यानि नीले या हरे रंग का कोई कवर जिसे बाद में गायब कर दिया जाता है, जैसे एक्टर और एक्ट्रेस को किसिंग सीन से आपत्ति है तो उनके बीच सब्जी जैसे लौकी या कद्दू रख दिया जाता है. ग्रीन कलर होने के कारण लौकी क्रोमा का काम करती है. दोनों लौकी को किस करते हैं और पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान उसे गायब कर दिया जाता है.

रखनी पड़ती है शारीरिक दूरी

इसके अलावा कोई भी बोल्ड या इंटीमेट सीन शूट करते वक्त इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है कि मेल और फीमेल के प्राइवेट पार्ट्स आपस में टच ना हों और न ही कुछ अधिक रिविल हो, क्योंकि करोड़ों की लगत से बनी हर फिल्म को बनाते वक़्त कलाकारों के स्टेटस को भी ध्यान में रखना जरुरी होता है. शूटिंग के समय असमंजस की स्थिती पैदा होने से बचने के लिए क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह एक्टर के लिए लोगार्ड या कुशन या फिर एयर बैग का इस्तेमाल किया जाता है, जो दोनों के बीच गैप रखता है. वहीं एक्ट्रेस के लिए पुशअप पैड्स, पीछे से टॉपलेस दिखाना हो, तो आगे पहनने वाले सिलिकॉन पैड का यूज किया जाता है. किसी भी इंटीमेट सीन को शूट करने के लिए सबसे जरूरी अभिनेता या अभिनेत्री की आपसी एडजस्टमेंट होना जरूरी होता है. शारीरिक दूरी बनाये रखने के लिए कई बार प्रॉप का भी सहारा लेना पड़ता है, जो आर्टिस्ट के पसंद के आधार पर होता है, प्रॉप में सॉफ्ट पिलो, स्किन कलर ड्रेस, मोडेस्टी गारमेंट्स आदि कुछ चीजे शामिल होती है.

Christmas 2023: कियारा को बाहों में लेकर Kiss करते हुए नजर आए सिद्धार्थ मल्होत्रा, देखें रोमांटिक फोटो

Kiara Advani and Sidharth Malhotra Christmas Photos: बॉलीवुड के क्यूट और सबसे प्यारे कपल सिद्धार्थ मल्होत्रा- कियारा आडवाणी ने शादीशुदा जोड़े के रुप में पहली बार क्रिसमस साथ में मनाया. कपल की फोटो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है. कियारा आडवाणी ने इंस्टाग्राम पर बेहद ही रोमांटिक तस्वीर शेयर की है. क्रिसमस के मौके पर पत्नी कियारा ने सिद्धार्थ के साथ  रोमांटिक तस्वीर साझा की और फैंस को बधाई दी.

इस तस्वीर में सिद्धार्थ ने पत्नी कियारा को बाहों में कसकर पकड़ा हुआ है और उनके गालों पर प्यारा सा किस कर रहे हैं. बीते रात जब यह तस्वीर अपने फैंस के साथ शेयर की तो लाइक्स और कमेंट्स की बाढ़ आनी शुरु हो गई है. फैंस कियारा-सिद्धार्थ की रोमांटिक फोटो पर ढ़ेर सारा प्यार लूटा रहे है.

करण जौहर ने किया कमेंट

कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ की रोमांटिक फोटो पर फिल्म मेकर करण जौहर ने किया कमेंट. करण जौहर ने कमेंट सेक्शन में दिल के इमोजी बनाए हैं. इस तस्वीर में कियारा ने रेड कलर की सुंदर ड्रैस पहनी है वहीं सिद्धार्थ ने ब्लैक शर्ट और रेड कलर की पैंट पहन रखी है. इसके साथ ही कियारा ने अपने हैड पर रेंडियर वाला क्यूट सा हेयरबैंड लगाया हुआ है

 

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इसी साल हुई थी कियारा- सिद्धार्थ की शादी

दरअसल, कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा ने 7 फरवारी 2023 को राजस्थान के सूर्यगढ़ पैलेस में शादी की थी. इस शादी में बॉलीवुड के कई सितारों ने शिरकत की थी. ‘शेरशाह’ मूवी के दौरान दोनों में प्यार का परवान चढ़ा था. इसी फिल्म के गाने पर कियारा ने शादी में एंट्री ली थी, जो काफी वायरल हुई थी.

कियारा और सिद्धार्थ की अपकमिंग फिल्में

वर्कफ्रंट की बात करें तो सिद्धार्थ अपनी फिल्म ‘योद्धा’ पर काम कर रहे हैं और वेब सीरीज ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ के साथ अपना ओटीटी डेब्यू कर रहे है. वहीं कियारा आडवाणी की पाइपलाइन में ‘गेम चेंजर’ और एक्शन थ्रिलर ‘वॉर 2’ है.

जब घर बन जाए जंग का मैदान

‘‘अ रे यार मुझे तो घर में रहना पसंद ही नहीं है, जब देखो दोनों चिकचिक करते रहते हैं. इसे घर नहीं कहते हैं, मुझे तो बाहर दोस्तों के साथ ही अच्छा लगता है या फिर अपना कमरा, जहां लैपटौप पर मूवी देखो व मोबाइल से गप्पें मारो, बस यही हमारी दुनिया है और हमारा सुकून. हमें जो पसंद है वही करेंगे,’’ गुडि़या अपनी सहेली से कह रही थी. वह हमेशा अपने घर से दूर भागती है, जहां मांबाप बातबात पर झगड़ते हैं. उस ने कभी उन्हें प्यार से बात करते ही नहीं सुना, वह घर से बाहर सुकून तलाशने लगी.

आज सुबहसुबह नीलेश का फोन आया, बहुत गुस्से में था, ‘‘दीदी, आज मैं पूरी तरह हार गया. इन का कुछ नहीं हो सकता. जब देखो भूखे शेर की तरह खाने को दौड़ते हैं. जरा सा भी चैन नहीं है. बातबात पर झगड़ा करते रहते हैं, एक भी चुप नहीं होना चाहता है,’’ नीलेश गुस्से में लालपीला हो रहा था.

‘‘हां सही बात है भाई कितना लड़ते हैं, हम  कितना भी अच्छा करें इन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है. कभी आपस में ?ागड़ेंगे तो कभी हमारे सिर पर तलवार लटकी रहती है,’’ निशा कुछ कहती कि तभी दूसरा भाई आ गया.

वह भी गुस्से में अपना आपा खोने लगा, ‘‘इस घर में कभी शांति नाम की चीज नहीं मिलेगी. घर का माहौल इतना खराब रहता है कि हम 2 पल चैन से बैठे नहीं सकते, नौकरी का  काम घर से ही चलता है, मन करता है दूसरे शहर चला जाऊं. इन के लिए हम करकर के मर जाएंगे तो भी इन को कभी संतुष्टि नहीं मिलेगी, ?ागड़ने के लिए कुछ नहीं मिला तो सूई हमारी तरफ घूम जाती है. हम इतने बड़े पद पर काम करते हैं, इन के साथ खड़े होने में शर्म आती है.’’

इधर बात करते समय नीलेश भी उग्र हो गया, ‘‘यार, इन्हें मरना हो मरें, कम से कम हमें तो चैन से जीने दें. दो पल खुशी नहीं दे सकते हैं, मैं तो भविष्य में अपने बच्चों पर इन का साया नहीं पड़ने दूंगा, दीदी तुम मुझे कुछ मत कहना.’’

उच्च शिक्षित परिवार के युवाओं का इस तरह बातें करना, सड़क किनारे ?ोंपड़पट्टी के परिवार की तरह लग रहा था. प्रवीण की उच्च पद पर नौकरी लगी, लेकिन उस ने आज तक अपने मित्रों को घर नहीं बुलाया. यदि कोई आने के लिए कहता तो वह बहाना बना कर बाहर ही मिलता क्योंकि घर में घुसते ही स्वयं उस के चेहरे के भाव बदल जाते हैं. उस के पिता बातबात पर औकात की बातें करते, मां को बिना बात मानसिक रूप से टौर्चर करते.

जब धैर्य खत्म हो जाए

आज सुबह से घर का माहौल खराब था क्योंकि नाश्ता समय पर नहीं मिला, मां देर से उठी थीं. उन्होंने मां को खूब सुनाना शुरू कर दिया और सुनातेसुनाते पुरानी बातें भी निकालनी शुरू कर दीं. जब वे उन पर हावी होने लगे तो अंत में मां का धैर्य खत्म हो गया. कितना सहन करतीं. सुबहसुबह घर में तूतू, मैंमैं हो गई. प्रवीण व उस की बहन ने घर के माहौल को ठीक करने की कोशिश की तो दोनों का गुस्सा अपने बच्चों पर फूट पड़ा. प्रवीण ने गुस्से में कह दिया कि यदि इतनी तकलीफ है तो तलाक दे दो और शांति से रहो. इन शब्दों ने आग में घी का काम किया. अब अगले कुछ दिन अंतहीन जंग होने वाली है. यह बोझिल माहौल कई दिनों तक खत्म नहीं होता है.

कृति अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान है. उस ने अपने मम्मीपापा के बीच हमेशा खटपट ही देखी है. बचपन में एक बार उस की मम्मी ने उस से पूछा था कि कृति तुम मम्मा के पास रहोगी या पापा के पास. कृति का पूरा बचपन इसी डर में बीता कि पता नहीं मम्मीपापा कब तलाक ले कर अलग हो जाएं. अब उस की शिक्षा पूर्ण हो गई लेकिन उस के मम्मीपापा का एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप जारी हैं. इसी कारण वह अपने घर से दूर होस्टल चली गई थी. आज घर पर आने के नाम से भी उसे चिढ़ होने लगी. कृति कहती है, ‘‘मैं इतनी दूर चली जाऊंगी जहां सुकून से रहूं. मुझे वापस आना ही नहीं है, न ही वे मेरे पास आ सकतें है.

दोटूक जवाब

शिक्षा पूरी होने के बाद शादी के नाम पर कृति ने अपनी मां को दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘मुझे शादी नहीं करनी है. किसी को घर में मत  बुलाना और न ही मुझ से पूछना. मेरा जब भी मन होगा खुद शादी कर लूंगी. उस की मां ने समझने की कोशिश की तो उस ने मां को पलट कर जवाब दिया, ‘‘तुम कौन से सुखी हो. बचपन से देख रही हूं, रोती रहती हो, कितना झगड़ते हो. तलाक क्यों नहीं ले लेते? यदि शादी ऐसी होती है तो मुझे शादी नहीं करनी है. मुझे शादी के नाम से भी नफरत है. पापा और आप कितना झगड़ते हैं. कुछ नहीं रखा है इन रिश्तों में… सिर्फ बंदिशें ही हैं. इस से तो हमारा जमाना अच्छा है कि हम पहले डेट करते हैं, साथ में रह कर देखते है, विचार मिले तो लिवइन में रहो वरना अलग हो जाओ. मैं अकेली रहूंगी.’’

मां सीमा अपनी बेटी की बात सुन कर अवाक खड़ी थी. आज उसे एहसास हुआ कि आपसी मतभेद व बहस ने उस के कोमल मन पर कितना नैगेटिव असर छोड़ा है. जानेअनजाने में अपने दुख को साझ कर के उस ने अपनी बेटी को भी उस का हिस्सा बना लिया. आज पतिपत्नी चाह कर भी नौर्मल नहीं हैं. कृति को उन्होंने ख़ूब समझाया कि यह आम बात है. हर घर में झगड़े होते हैं लेकिन कृति का गुबार बाहर आ गया, ‘‘जाने दो आप अपनी दुनिया में मस्त रहो व मुझे अपने अनुसार जीने दो.’’

शांति बिखर जाती है

इसी तरह साहिबा और साहिल एक दिन अपने मम्मीपापा व दादी के साथ लूडो खेल रहे थे. खेलतेखेलते मम्मी ने साहिल से कहा पापा कि गोटी मार दो तो पापा के गुस्सा 7वें आसमान जा पहुंचा. वे जोर से बोले कि तुम अपने खेल से मतलब रखो. नतीजा यह हुआ कि खेल कुछ ही पलों में जंग का मैदान बन गया. साहिबा ने हंसते हुए माहौल को बदलने की कोशिश की लेकिन तब तक कोल्ड वार शुरू हो गया, पलभर में शांति बिखर गई.

समुद्र किनारे बैठे एक युवा से बात हुई (बदला हुआ नाम) विजय भी अपने मांबाप का इकलौता बेटा है. लेकिन उस ने अपने घर में जो देखा उस के बाद उसे किसी से भी कोई सरोकार नहीं है. न उस के पेरैंट्स का स्वार्थ, उपेक्षा व झगडे ने उन के रिश्ते में जहर घोलने का काम किया है. गालीगलौज से बात करना उसे पसंद नहीं आया और उस ने अपना जिंदगी का रास्ता बदल दिया.

दोस्तों ने उस से कहा भी कि तुम अकेले हो तो तुम्हें यहीं रह कर अपना भविष्य देखना होगा. तुम्हारे मातापिता को बुढ़ापे में तुम्हारी जरूरत होगी.

तब विजय ने टका सा जवाब दिया कि मैं अब इस नर्क में नहीं रह सकता हूं, उन्होंने अपने जीवन जी लिया है. मैं अपना जीवन अपने तरीके से जीना चाहूंगा. मैं थक गया हूं इन के ?ागड़ो से, मु?ो प्यार के दो शब्द सुनने को नहीं मिलते हैं, न घर में हंसीमजाक होता है. डर लगता है कब किस बात पर बम फूट जाए. उस के चेहरे पर उदासी और दुख साफ नजर आ रहा था.

फिर कई युवाओं से बात की तो उन्होंने कहा, ‘‘हम युवा पीढ़ी इसी कारण से घर से दूर अपने दोस्तों के साथ सुकून तलाशती है. यही कारण है कि अपने घर लौटना नहीं चाहती हैं. यदि विदेश चले जाएं तो हमारे मातापिता कभी भी दखलंदाजी नहीं कर सकते हैं.’’

क्या कहते हैं ऐक्सपर्ट

मनोवैज्ञानिक ऐक्सपर्ट कहते हैं कि पेरैंट्स के बीच होते झगड़े व मतभेद बच्चों में ऐंग्जाइटी, डिप्रैशन, असहजता, एकाकीपन यहां तक कि आगे चल कर रिलेशनशिप में भी परेशानी उत्पन्न करने में सक्षम है. इस से बच्चों की शादीशुदा जिंदगी कितनी ख़राब होगी, इस का अंदाजा उन के मातापिता को नहीं होता है. बच्चे जो देखते हैं उन के दिमाग पर वही अंकित हो जाता है. हर बच्चा अपने पेरैंट्स से सलाह, मार्गदर्शन व सपोर्ट चाहता है. बच्चों में पेरैंट्स के झगड़े नैगेटिव विचारों का काम करते हैं. हर पतिपत्नी में झगड़े होते हैं लेकिन पेरैंट्स के ये झगड़े युवाओं के मन पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ रहे हैं.

आज की युवा पीढ़ी अपने में मस्त रह कर जीना चाहती है. युवाओं का यह आक्रोश गलत नहीं है. मातापिता को यह समझना होगा कि उन के झगड़े में बच्चे पिस रहे हैं. भविष्य में इस के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. युवा अपने साथी से स्वस्थ और संतुलित संपन्न बनाने में समस्याओं का सामना कर सकते है. प्रेम और विश्वास की डोर की जगह असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है.

शायद यही वजह है कि अपने पेरैंट्स को देख कर युवा पीढ़ी अपनी पसंदनापसंद शादी के पहले ही तय कर लेती है. उस का कहना है कि हम अपनी तरह अपने बच्चों को असुरक्षा की भावना नहीं दे सकते हैं. पेरैंट्स को आज आंकलन की बहुत ज्यादा जरूरत है नहीं तो उन का यह व्यवहार आने वाली पीढ़ी को गलत दिशा में प्रेरित करेगा जो भविष्य की नींव को खोखला कर सकता है.

 

ऐसे बचें डैंड्रफ और ड्राई स्कैल्प से

शरीर की बाकी त्वचा की तुलना में सिर की त्वचा पर सब से ज्यादा औयल ग्लैंड्स होती हैं, फिर भी ड्राई स्कैल्प की समस्या बेहद आम है. इस का मुख्य कारण है बदला हुआ मौसम. कई बार समर सीजन में स्कैल्प पर सनबर्न भी हो जाता है जिस से समर सीजन में भी ड्राई स्कैल्प की समस्या हो जाती है लेकिन विंटर में यह ज्यादा होती है. ड्राई स्कैल्प है तो डैंड्रफ तो आएगा ही यह जरूरी नहीं. दोनों के लक्षणों में कुछ समानता जरूर है लेकिन दोनों से निबटने के तरीकों में थोड़ा अंतर है.

आइए, जानते हैं इन दोनों समस्याओं से निबटने के लिए क्या करें:

  •  यदि अचानक आप के बाल और स्कैल्प ड्राई होने लगी है तो या तो आप खुद को ठीक से हाइड्रेट नहीं कर रहीं या फिर आप ने कोई ऐसा कैमिकल वाला उत्पाद सिर या बालों के लिए इस्तेमाल किया है जो आप की त्वचा को सूट नहीं करता.
  • ड्राई स्कैल्प की समस्या ज्यादा बढ़ गई है और यीस्ट भी जमा होने लगा है तो डर्मैटोलौजिस्ट से मिलें. यदि सिर्फ मौसम बदलने पर ड्राई स्कैल्प की समस्या होती है तो समयसमय पर अच्छे पार्लर से हेयर स्पा ले सकती हैं या फिर ऐक्सफौलिएट करा सकती हैं. जहां भी ट्रीटमैंट लें यह जरूर देखें कि इस्तेमाल किए जाने वाले रिहाइड्रेटिंग टोनर में सोडियम सैलिसिलेट इनग्रीडिऐंट हो. यह स्कैल्प को धीरेधीरे आराम पहुंचाता है.
  • ऐलोवेरा जैल आजकल बाजार में आसानी से उपलब्ध है. इस का सीधे इस्तेमाल कर सकती हैं.
  • बाल धोने से 1-2 घंटे पहले जोजोबा या फिर कोकोनट औयल से मालिश करें.
  • ऐसे स्कैल्प मास्क जिन में ऐलोवेरा या माइल्ड ऐक्सफौलिएंट हों का इस्तेमाल हफ्ते में 2 बार कर सकती हैं.
  • स्कैल्प और बालों को प्रोटैक्शन देने के लिए स्कैल्प नैचुरल औयल प्रोड्यूस करती है लेकिन यदि आप जरूरत से ज्यादा हैड वाश करेंगी तो ड्राईनैस की समस्या और बढ़ेगी.
  • ज्यादा कैमिकल्स, सल्फेट्स या फ्रैगरैंस वाले शैंपू स्कैल्प को नुकसान पहुंचाते हैं. इन से बचें.
  •  अच्छी कंपनी के हाइड्रेटिंग हेयर सीरम का इस्तेमाल ड्राई स्कैल्प और डैंड्रफ दोनों समस्याओं को कम करेगा.

टिप्स

  •  औयल बेस्ड शैंपू चुन सकती हैं. टीट्री औयल बेस्ड शैंपू बिना किसी साइड इफैक्ट के डैंड्रफ की समस्या को कम कर सकता है.
  • आजकल बाजार में पाइरिथिऔन इनग्रीडिऐंट वाला शैंपू भी उपलब्ध है. डैंड्रफ की समस्या ज्यादा है तो इसे ट्राई कर सकती हैं.
  • डैंड्रफ की समस्या है तो हेयर स्ट्रेटनर और ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल बिलकुल न करें. हीटिंग टूल्स स्कैल्प को और भी ड्राई कर सकते हैं जिस से इचिंग बढ़ जाएगी.
  • स्कैल्प को नैचुरली हैल्दी बनाना है तो अपनी डाइट में काबुली चने, अदरक, सेब, केला और सनफ्लौवर सीड्स का संतुलित उपयोग करना शुरू कर दें.
  • सफेद पास्ता, शुगर कैंडी, पोटैटो चिप्स, कुकीज, मफिंस, फ्लेवर्ड योगर्ट, व्हाइट राइस और ज्यादा मीठी डिशेज हाई कार्ब होती हैं जो डैंड्रफ की समस्या को बढ़ा सकती हैं.
  • डेली हेयर औयलिंग से डैंड्रफ खत्म हो जाता है यह एक मिथ है. ऐसा करने से डैंड्रफ स्कैल्प से चिपक जाता है.

कैंसर में कार टी सेल थेरपी क्या है और कब दी जाती है

आज के समय में कैंसर के मरीजों कि तादाद लगतार बढ़ती जा रही है भारत में ही हर साल तकरीबन 14 लाख मरीज इस गंभीर  बीमारी  से ग्रस्त हो रहे हैं जिससे निजात पाने के लिए वैज्ञानिक हर मुमकिन प्रयास कर रहे हैं ऐसा ही एक प्रयास है काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर) टी-सेल थेरेपी जोकि ब्लड कैंसर से  पीड़ित मरीजों के लिए एक उम्मीद बन कर आई है. यह थेरेपी उन मरीजों के लिए है जिनका कीमो, सर्जरी जैसे ट्रीटमेंट के बाद भी कैंसर फिर से एक्टिव हो रहा है.

कब शुरू हुई

2017 में अमेरिका में इस थेरेपी को अनुमति मिली थी, जिसकी कीमत लगभग तीन से चार करोड़ के बीच में रखी गई लेकिन भारत में  आईआईटी बॉम्बे के एक्सपर्टस और टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) द्वारा यह  2018 में विकसित की गई. जिससे भारत में अब 40 से 45 लाख तक  में मरीज को इलाज मोहिया कराया जा सकता है शुरुवात में पहले इसे  मरीजों पर ट्रायल किया गया परिणाम अच्छे आने से अब दिल्ली के राजीव गाँधी कैंसर हॉस्पिटल, मैक्स, और फरीदाबाद के अमृता  हॉस्पिटल में भी यह प्रक्रिया शुरू हो गई है.

क्या हैं प्रोसेस

इस थेरेपी में मरीज के टी-लिम्फोसाइट्स या टी-सेल्स को रक्त में से निकला जाता है और इन सेल्स को लैब में मशीनों में रखा जाता है जिससे ये सेल्स कैंसर के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस थेरपी में कम से कम 2 हफ्ते लग जाते हैं इस दौरान मरीज को हॉस्पिटल में ही एडमिट रहना  बेहतर होता है. बाद में इन्हें फिर से शरीर में डाल दिया जाता है फिर इन टी सेल्स को मरीज के ब्लड में वापिस डाल दिया जाता है.  मरीज के शरीर में जाने के बाद कैंसर के साथ टी सेल्स अपनी लड़ाई लड़ते हैं और उन्हें अंदर ही अंदर खत्म करने लगते हैं.

 सामान्य साइड इफ़ेक्ट और देखरेख

इस प्रक्रिया के समय मरीज बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा होता है. इलाज के समय कई साइड इफ़ेक्ट हो सकते हैं जैसे मरीज को साइटोकिन रिलीज सिंड्रोम और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं. जिससे खून की कमी, प्लेटलेट्स कम होना, बुखार,सिरदर्द, भ्रमित या उत्तेजित महसूस करना,बोलने में कठिनाई होना,दौरे पड़ना,कंपकंपी या मरोड़ उठना या संतुलन की समस्या शामिल हैं.

इस प्रोसेस के दौरान मरीज को  हल्की कीमो थेरपी दी जाती है।उपचार के बाद पहले महीने के लिए, मरीज को एक कमरे में अलग रहने कि सलाह दी जाती है जिस के लिए  किसी एक को मरीज  के साथ रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस समय शरीर बहुत कमजोर हो जाता है  दिन के 24 घंटे किसी को अपने साथ रखने की सलाह दी जाती है.

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