गर्मियों का मौसम प्रारम्भ हो चुका है अक्सर गर्मी के कारण मुंह और गला सूखता है और कुछ ठंडा पीने का मन करता है. गर्मी को दूर करने के लिए हम शर्बत, ज्यूस, पना, और अन्य शीतल पेय का सेवन करते हैं उन्हीं में से एक है लस्सी. अन्य पेय पदार्थों की अपेक्षा लस्सी स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी होती है क्योंकि इसे दही से बनाया जाता है. दही में कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन्स, लैक्टोज, आयरन, और फॉस्फोरस भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. दही एक प्रोबायोटिक फ़ूड है जो पाचन क्षमता को दुरुस्त रखता है.
बर्फ, शकर और दही के द्वारा बनाई जाने वाली लस्सी के बारे में हम सभी जानते हैं परन्तु आज हम आपको फ्लेवर्ड लस्सी के बारे में बता रहे हैं जो सादा लस्सी के मुकाबले अधिक स्वादिष्ट होती हैं. चूंकि बच्चे सादा लस्सी पीने में आनाकानी करते हैं आप ये फ्लेवर्ड लस्सी बनाकर बच्चों को दें इससे उन्हें दही की पौष्टिकता भी मिलेगी और स्वाद भी तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं.
तरबूजी लस्सी
कितने लोंगों के लिए 2
बनने में लगने वाला समय 15 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
ताजा दही 2 कप
तरबूज के टुकड़े 2 कप
शकर 2 टीस्पून
काली मिर्च पाउडर 1 चुटकी
कुटी बर्फ 1 कप
रूहअफजा शर्बत 1 टीस्पून
विधि
तरबूज के टुकड़ों में से बीज निकाल दें. ब्लेंडर में तरबूज के टुकड़े, काली मिर्च पाउडर और शकर डालकर ब्लेंड कर लें. अब दही में रुहआफजा शर्बत, ब्लेंड किया तरबूज डालकर मथनी से अच्छी तरह चलाएं. सर्विग ग्लास में कुटी बर्फ डालकर तैयार लस्सी डालें. ऊपर से तरबूज के टुकड़ों से सजाकर सर्व करें.
ओरियो बिस्किट लस्सी
कितने लोंगों के लिए 2
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
ताजा दही 2 कप
ओरियो बिस्किट 6
चॉकलेट सॉस 2 टीस्पून
शकर 1 टीस्पून
चॉकलेट चिप्स 1 टीस्पून
बारीक कटे काजू 1 टीस्पून
आइस क्यूब्स 1 कप
विधि
ओरियो बिस्किट की परत को खोलकर क्रीम को अलग कर दें. दही में बिस्किट की क्रीम, शकर डालकर चलायें. बिस्किट को दरदरा क्रश कर लें. अब इस फेंटे हुए दही में क्रश्ड बिस्किट और आइस क्यूब्स डालकर भली भांति चलाएं. सर्विंग ग्लास के चारों तरफ चाकलेट सॉस फैलाकर तैयार लस्सी डालें ऊपर से चॉकलेट चिप्स और कटे काजू डालकर सर्व करें.
गर्मियों के मौसम में कुछ लोगों की त्वचा औयली हो जाती है, लेकिन जिन लोगों की त्वचा प्राकृतिक रूप से ड्राई होती है, उन की त्वचा गर्मी में ज्यादा ड्राई होने लगती है.
ड्राई स्किन को समझने के लिए जरूरी है कि आप पहले नौर्मल स्किन के बारे में जान लें. नौर्मल स्किन में पानी और लिपिड की मात्रा संतुलित बनी रहती है. लेकिन जब त्वचा में पानी या वसा या दोनों की मात्रा कम हो जाती है तो त्वचा ड्राई यानि शुष्क होने लगती है. इस से त्वचा में खुजली होना, उस की परतें उतरना, त्वचा फटना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं.
आमतौर पर त्वचा के निम्न हिस्से ड्राई होते हैं:
बारबार सख्त साबुन से हाथ धोने से त्वचा ड्राई होने लगती है. ऐसा मौसम बदलने के समय भी होता है. कपड़ों से रगड़ खाने पर भी बाजुओं और जांघों की त्वचा ड्राई होने लगती है. इसलिए गर्मियों में टाईट फिटिंग के कपड़े न पहनें.
एडि़यां फटना इस मौसम में आम है. नंगे पैर चलने या पीछे से खुले फुटवियर पहनने से यह समस्या बढ़ती है. इसलिए एडि़यों पर मौइश्चराइजर लगा कर इन्हें नम बनाए रखें.
अगर आप ड्राई स्किन पर ध्यान नहीं देंगे, तो यह समस्या रैशेज, ऐग्जिमा, बैक्टीरियल इन्फैक्शन आदि में बदल सकती है.
गरमी के मौसम में ड्राई स्किन के कारण कुछ इस तरह हैं:
पसीने के साथ त्वचा की नमी बनाए रखने वाला जरूरी औयल भी निकल जाता है जिस से त्वचा शुष्क होने लगती है.
गर्मियों में कम पानी पीने से डीहाइड्रेशन हो जाता है. इसलिए शरीर में पानी की सही मात्रा बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी और तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए.
ठंडी हवा में नमी की मात्रा कम होती है, जिस से आप की त्वचा ड्राई हो सकती है. इस के अलावा जब आप ठंडी हवा से गरम हवा में जाते हैं तो गरम हवा त्वचा की बचीखुची नमी भी सोख लेती है. इस से त्वचा ड्राई होने लगती है.
बारबार नहाने से त्वचा से औयल निकल जाता है. इस के अलावा स्विमिंग पूल में तैरने से क्लोरीन त्वचा के प्राकृतिक सीबम को घोल देती है, जिस से त्वचा की नमी खो जाती है और त्वचा ड्राई होने लगती है.
ऐसी चीजों से बचें जो त्वचा की नमी सोख लेती हैं जैसे ऐल्कोहल, ऐस्ट्रिंजैंट या हैंड सैनिटाइजिंग जैल.
सख्त साबुन और ऐंटीबैक्टीरियल साबुन का इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये त्वचा से प्राकृतिक तेल को सोख लेते हैं.
रोज स्क्रबिंग न करें. सप्ताह में एक से 3 बार स्क्रबिंग करें.
सनस्क्रीन लोशन लगा कर ही घर से बाहर जाएं. यूवी किरणों के संपर्क में आने से फोटो ऐजिंग की समस्या होने लगती है. इस से भी त्वचा ड्राई हो जाती है.
लिप बाम में मैंथौल और कपूर जैसे अवयव होते हैं जो होंठों का सूखापन बढ़ाते हैं.
औयल बेस्ड मेकअप का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इस से त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं.
प्रदूषण से त्वचा का विटामिन ए नष्ट होने लगता है, जो त्वचा के टिश्यूज को रिपेयर करने के लिए जरूरी है. ऐसे में दिन में 4-5 बार हर्बल फेस वाश से चेहरा साफ करें.
उम्र बढ़ने के साथसाथ त्वचा को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. खासतौर पर तब जब आप की त्वचा ड्राई हो. ऐंटीऐजिंग मौइश्चराइजर इस्तेमाल करें ताकि त्वचा की कसावट बनी रहे.
ऐसे आहार का सेवन करें, जिस में ऐंटीऔक्सीडैंट पर्याप्त मात्रा में हों. इस से त्वचा में तेल और वसा की मात्रा सही बनी रहती है और त्वचा मुलायम बनी रहती है. बेरीज, औरेंज, लाल अंगूर, चेरी, पालक व ब्रोकली इत्यादि ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर खाद्यपदार्थ हैं.
इस का इस्तेमाल हर मौसम में करना चाहिए, क्योंकि यूवी किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं.
इस से ड्राई स्किन की उपरी परत निकल जाती है और त्वचा में नमी बनी रहती है.
चेहरे और शरीर की त्वचा के लिए अलगअलग मौइश्चराइजर की जरूरत होती है. चेहरे का मौइश्चराइजर माइल्ड होना चाहिए, जबकि शरीर की त्वचा के लिए औयल बेस्ड थिक मौइश्चराइजर उपयुक्त है.
पैरों की अनदेखी न करें. पैरों को 10 मिनट के लिए कुनकुने पानी में भिगो कर रखने के बाद इन की स्क्रबिंग करें. इस के बाद फुट क्रीम या मिल्क क्रीम का इस्तेमाल करें. इस से पैरों की त्वचा नर्ममुलायम बनी रहेगी.
नारियल के तेल में मौजूद फैटी ऐसिड्स त्वचा को प्राकृतिक नमी देते हैं. सोने से पहले नारियल का तेल लगाएं. आप नहाने के बाद भी नारियल का तेल लगा सकते हैं.
औलिव औयल में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और फैटी ऐसिड ड्राई त्वचा को नम बनाते हैं. यह केवल त्वचा ही नहीं, बल्कि बालों और नाखूनों के लिए भी फायदेमंद है.
दूध मौइश्चराइजर का काम करता है. दूध त्वचा की खुजली, खुश्की, सूजन को दूर करता है. गुलाबजल या नींबू के रस में दूध मिला कर कौटन से त्वचा पर लगाने से वह नम और मुलायम बनी रहेगी.
शहद में कई जरूरी विटामिन और मिनरल्स होते हैं जो त्वचा के लिए फायदेमंद हैं. इसे पपीता, केला या ऐवोकाडो के साथ मिला कर हाथोंपैरों पर 10 मिनट के लिए लगाएं और पानी से धो दें.
योगर्ट त्वचा के लिए बेहतरीन मौइश्चराइजर है. इस में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटीइन्फ्लेमैटरी तत्व त्वचा को नर्म बनाते हैं. इस में मौजूद लैक्टिक ऐसिड बैक्टीरिया से भी बचाता है, जिस से त्वचा की खुजली दूर होती है. इसे चने के आटे, शहद और नींबू के रस में मिला कर त्वचा पर लगाएं. 10 मिनट बाद ठंडे पानी से धो दें.
ऐलोवेरा त्वचा की खुश्की मिटाने के साथसाथ डैड सैल्स हटाने में भी मददगार है.
ओटमील त्वचा पर सुरक्षा की परत बनाता है. बाथटब में एक कप प्लेन ओटमील और कुछ बूंदे लैवेंडर औयल डाल कर नहाने से फ्रैशनैस आती है. इसे पके केले के साथ मिला कर फेसमास्क बनाएं व लगाने के 15 मिनट बाद ठंडे पानी से धो दें.
इन उपायों को अपना कर गर्मियों का ये मौसम आप के लिए भी बन जाएगा हैप्पी समर सीजन.
– डा. साक्षी श्रीवास्तव, कंसल्टैंट डर्मैटोलौजिस्ट, जेपी हौस्पिटल
पपीहाने घर से आया कूरियर उत्सुकता से खोला. 2 लेयर्स के नीचे 3 साडि़यां झांक रही थीं. तीनों का ही फैब्रिक जौर्जेट था. एक मटमैले से रंग की थी, दूसरी कुछ धुले हरे रंग की, जिस पर सलेटी फूल खिले हुए थे और तीसरी साड़ी चटक नारंगी थी.
पपीहा साडि़यों को हाथ में ले कर सोच रही थी कि एक भी साड़ी का रंग ऐसा नहीं है जो उस पर जंचेगा. पर मम्मी, भाभी या दादी किसी को भी कोई ऐसी सिंथैटिक जौर्जेट मिलती है तो फौरन उपहारस्वरूप उसे मिल जाती है.
दीदी तो नाक सिकोड़ कर बोलती हैं, ‘‘मेरे पास तो रखी की रखी रह जाएगी… मु झे तो ऐलर्जी है इस स्टफ से. तू तो स्कूल में पहन कर कीमत वसूल कर लेगी.’’
पपीहा धीमे से मुसकरा देती थी. उस के पास सिंथैटिक जौर्जट का अंबार था. बच्चे भी हमेशा बोलते कि बैड के अंदर भी मम्मी की साडि़यां, अलमारी में भी मम्मी की साडि़यां. ‘‘फिर भी मम्मी हमेशा बोलती हैं कि उन के पास ढंग के कपड़े नहीं हैं.’’
आज स्कूल का वार्षिकोत्सव था. सभी टीचर्स आज बहुत सजधज कर आती थीं. अधिकतर टीचर्स के लिए यह नौकरी बस घर से बाहर निकलने और लोगों से मिलनेजुलने का जरीया थी.
पपीहा ने भी वसंती रंग की साड़ी पहनी और उसी से मेल खाता कंट्रास्ट में कलमकारी का ब्लाउज पहना. जब स्कूल के गेट पर पहुंची तो जयति और नीरजा से टकरा गई.
जयति हंसते हुए बोली, ‘‘जौर्जेट लेडी आज तो शिफौन या क्रैप पहन लेती.’’
जयति ने पिंक रंग की शिफौन साड़ी पहनी हुई थी और उसी से मेल खाती मोतियों की ज्वैलरी.
नीरजा बोली, ‘‘मैं तो लिनेन या कौटन के अलावा कुछ नहीं पहन सकती हूं.’’
‘‘कौटन भी साउथ का और लिनेन भी
24 ग्राम का.’’
पपीहा बोली, ‘‘आप लोग अच्छी तरह
कैरी कर लेते हो. मैं कहां अच्छी लगूंगी इन साडि़यों में?’’
पूरी शाम पपीहा देखती रही कि सभी छात्राएं केवल उन टीचर्स को कौंप्लिमैंट कर रही थीं, जिन्होंने महंगे कपड़े पहने हुए थे.
किसी भी छात्रा या टीचर ने उस की तारीफ नहीं की. वह घर से जब निकली थी तो उसे तो आईने में अपनी शक्ल ठीकठाक ही लग रही थी.
तभी उस की प्रिय छात्रा मानसी आई और बोली, ‘‘मैम, आप रोज की तरह आज भी अच्छी लग रही हैं.’’
पपीहा ये शब्द सुन कर अनमनी सी हो गई. उसे सम झ आ गया कि वह रोज की तरह ही बासी लग रही है.
घर आतेआते पपीहा ने निर्णय कर लिया कि अब अपनी साडि़यों का चुनाव सोचसम झ कर करेगी. क्या हुआ अगर उस के पति की आमदनी औरों की तरह नहीं है. कम से कम कुछ महंगी साडि़यां तो खरीद ही सकती है.
जब पपीहा घर पहुंची तो विनय और
बच्चों ने धमाचौकड़ी मचा रखी थी. उस का
मूड वैसे ही खराब था और यह देख कर उस
का पारा चढ़ गया. चिल्ला कर बोली, ‘‘अभी स्कूल से थकी हुई आई हूं… घर को चिडि़याघर बना रखा है.’’
मम्मी का मूड देख कर ओशी और गोली अपने 2 अपने कमरे में दुबक गए.
विनय प्यार से बोला, ‘‘पपी क्या हुआ है? क्यों अपने खूबसूरत चेहरे को बिगाड़ रही हो.’’
पपीहा आंखों में पानी भरते हुए बोली, ‘‘बस तुम्हें लगती हूं… आज किसी ने भी मेरी तारीफ नहीं की. सब लोग कपड़ों को ही देखते
हैं और मेरे पास तो एक भी ढंग की साड़ी
नहीं है.’’
विनय बोला, ‘‘बस इतनी सी बात. चलो तैयार हो जाओ, बाहर से कुछ पैक भी करवा लेते हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की साड़ी भी खरीद लेते हैं.’’
जब विनय का स्कूटर एक बहुत बड़ी साड़ी की दुकान के आगे रुका तो पपीहा बोली, ‘‘अरे फुजूलखर्ची क्यों कर रहे हो.’’
विनय बोला, ‘‘एक बार देख लेते हैं… तुम नौकरी करती हो, बाहर आतीजाती हो…. आजकल सीरत से ज्यादा कपड़ों का जमाना है.’’
पपीहा ने जब साड़ी के लिए कहा तो दुकानदार ने साडि़यां दिखानी आरंभ कर दीं. एक से बढ़ कर एक खूबसूरत साडि़यां थीं पर किसी भी साड़ी की कीमत क्व8 हजार से कम नहीं थी. पपीहा की नजर अचानक एक साड़ी पर ठहर गई. एकदम महीन कपड़ा, उस पर रंगबिरंगे फूल खिले थे.
दुकानदार भांप गया और बोला, ‘‘मैडम
यह साड़ी तो आप ही के लिए बनी है. देखिए फूल से भी हलकी है और आप के ऊपर तो खिलेगी भी बहुत.’’
विनय बोला, ‘‘क्या प्राइज है?’’
‘‘क्व12 हजार.’’
पपीहा बोली, ‘‘अरे नहीं, थोड़े कम दाम
की दिखाइए.’’
विनय बोला, ‘‘अरे एक बार पहन कर
तो देखो.’’
पपीहा ने जैसे ही साड़ी का पल्लू अपने से लगा कर देखा, ऐसा लगा वह कुछ और ही बन गई है.
पपीहा का मन उड़ने लगा, उसे लगा जैसे वह फिर से स्कूल पहुंच गई है. जयति और नीरजा उस की साड़ी को लालसाभरी नजरों से देख रही हैं.
छात्राओं का समूह उसे घेरे हुए खड़ा है और सब एक स्वर में बोल रहे थे कि मैम यू आर लुकिंग सो क्यूट.
तभी विनय बोला, ‘‘अरे, कब तक हाथों में लिए खड़ी रहोगी?’’
जब साड़ी ले कर दुकान से बाहर निकले तो पपीहा बेहद ही उत्साहित थी. यह उस की पहली शिफौन साड़ी थी.
पपीहा बोली, ‘‘अब मैं इस साड़ी की स्पैशल फंक्शन में पहनूंगी.’’
पपीहा जब अगले दिन स्कूल पहुंची तो स्टाफरूम में साडि़यों की चर्चा हो रही थी. पहले पपीहा ऐसी चर्चा से दूर रहती थी, परंतु अब उस के पास भी शिफौन साड़ी थी. अत: वह भी ध्यान से सुनने लगी.
नीरजा शिफौन के रखरखाव के बारे में बात कर रही थी.
पपीहा भी बोल पड़ी, ‘‘अरे वैसे शिफौन थोड़ी महंगी जरूर है पर सिंथैटिक जौर्जेट उस के आगे कहीं नहीं ठहरती है.’’
अब पपीहा प्रतीक्षा कर रही थी कि कब
वह अपनी शिफौन साड़ी पहन कर
स्कूल जाए. पहले उस ने सोचा कि पेरैंटटीचर मीटिंग में पहन लेगी पर फिर उसे लगा कि टीचर्स डे पर पहन कर सब को चौंका देगी. पपीहा ने पूरी तैयारी कर ली थी पर 5 सितंबर को जो बरसात की झड़ी लगी वह थमने का नाम ही नहीं ले रही थी.
जब पपीहा तैयार होने लगी तो विनय ने कहा भी, ‘‘पपी, वह शिफौन वाली साड़ी पहन लो न.’’
पपीहा मन मसोस कर बोली, ‘‘विनय इतनी महंगी साड़ी बरसात में कैसे खराब कर दूं?’’
जब पपीहा स्कूल पहुंची तो देखा चारों
तरफ पानी ही पानी भरा था पर तब भी जयति बड़ी अदा से शिफौन लहराते हुए आई और बोली, ‘‘जौर्जेट लेडी, आज तो तुम शिफौन
पहनने वाली.’’
पपीहा बोली, ‘‘बरसात में कैसे पहनती?’’
नीरजा ग्रे और गोल्डन लिनेन पहने इठलाती हुई आई और बोली, ‘‘अरे लिनेन सही रहती है इस मौसम में.’’
पपीहा को लग रहा था वह कितनी
फूहड़ हैं.
पपीहा के जन्मदिन पर विनय बोला,
‘‘शाम को डिनर करने बाहर जाएंगे तो वही साड़ी पहन लेना.’’
पपीहा बोली, ‘‘अरे किसी फंक्शन में
पहन लूंगी.’’
विनय चिढ़ते हुए बोला, ‘‘मार्च से फरवरी आ गया… कभी तो उस साड़ी को हवा लगा दो.’’
पपीहा बोली, ‘‘विनय इस बार पेरैंटटीचर मीटिंग पर पहन लूंगी.’’
पेरैंटटीचर मीटिंग के दिन जब विनय ने याद दिलाया तो पपीहा बोली, ‘‘अरे काम में लथड़पथड़ जाएगी.’’
ऐसा लग रहा था जैसे पपीहा के लिए वह साड़ी नहीं, अब तक की जमा की हुई जमापूंजी हो. पपीहा रोज अलमारी में टंगी हुई शिफौन साड़ी को ममता भरी नजरों से देख लेती थी.
पेरैंटटीचर मीटिंग में फिर पपीहा ने मैहरून सिल्क की साड़ी
पहन ली.
पपीहा ने सोच रखा था कि नए सैशन में वह साड़ी वही पहन कर सब टीचर्स के बीच ईर्ष्या का विषय बन जाएगी, परंतु कोरोना के कारण स्कूल अनिश्चितकाल के लिए बंद हो गए थे. पपीहा के मन में रहरह कर यह खयाल आ जाता कि काश वह अपनी साड़ी अपने जन्मदिन पर पहन लेती या फिर पेरैंटटीचर मीटिंग में. देखते ही देखते 10 महीने बीत गए, परंतु लौकडाउन के कारण क्या शिफौन कया जौर्जेट किसी भी कपड़े को हवा नहीं लगी.
धीरे- धीरे लौकडाउन खुलने लगा और जिंदगी की गाड़ी वापस पटरी पर
आ गई. पपीहा के भाई ने अपने बेटे के जन्मदिन पर एक छोटा सा गैटटुगैदर रखा था. पपीहा ने सोच रखा था कि वह भतीजे के जन्मदिन पर शिफौन की साड़ी पहन कर जाएगी. जरा भाभी भी तो देखे कि शिफौन पहनने का हक बस उन्हें ही नहीं है. कितने दिनों बाद घर से बाहर निकलने और तैयार होने का अवसर मिला था. सुबह भतीजे के उपहार को पैक करने के बाद पपीहा नहाने के लिए चली गई.
बाहर विनय और बच्चे बड़ी बेसब्री से पपीहा का इंतजार कर रहे थे.
विनय शरारत से बोल रहा था, ‘‘बच्चो आज मम्मी से थोड़ा दूर ही रहना. पूरे क्व12 हजार की शिफौन पहन रही है वह आज.’’
आधा घंटा हो गया पर पपीहा बाहर नहीं निकली तो विनय बोला, ‘‘अरे भई आज किस की जान लोगी.’’ फिर अंदर जा कर देखा तो पपीहा जारजार रो रही थी. शिफौन की साड़ी बिस्तर पर पड़ी थी.
विनय ने जैसे ही साड़ी को हाथ में लिया तो जगहजगह साड़ी में छेद नजर आ रहे थे. विनय सोचने लगा कि शिफौन साड़ी इस जौर्जेट लेडी के हिस्से में नहीं है.
मैं 32 साल की कामकाजी महिला हूं. मेरी शादी को 5 साल हो गए हैं. मेरे गर्भाशय की लाइनिंग बहुत पतली है. डाक्टरों का कहना है कि मैं मां नहीं बन सकती?
जब गर्भाशय की सब से अंदरूनी परत जिसे ऐंडोमिट्रिओसिस कहते हैं, बहुत पतली हो तो गर्भधारण करने में ज्यादातर परेशानी आती है. लेकिन आज बहुत सारी तकनीकें हैं, जिन से इस का उपचार संभव है. अगर आप को माहवारी सही समय पर आती है और फ्लो भी ठीक है तो दवा, इंजैक्शन, स्पेम सैल और पीआरपी (प्लेटलेट रिच प्लाज्मा-ग्रोथ फैक्टर) तकनीक के द्वारा गर्भाशय की लाइनिंग, जिसे ऐंडोमिट्रियल थिकनैस कहा जाता है को मोटा किया जा सकता है. आजकल ऐंडोमिट्रियल थिकनेस को बढ़ाने में पीआरपी का इस्तेमाल बहुत अधिक किया जा रहा है.
शादी के बाद मां बनने की ख्वाहिश हर महिला की होती है. लेकिन कैरियर के चक्कर में एक तो देरी से शादी करने का फैसला और उस के बाद भी मां बनने का फैसला लेने में देरी करना उन की प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है, जिस से उन्हें कंसीव करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में जरूरी है समय पर सही फैसला लेने की व कंसीव करने में सफलता नहीं मिलने पर डाक्टरी परामर्श ले कर इलाज करवाने की.
जानते हैं इस संबंध में गाइनोकोलौजिस्ट ऐंड ओब्स्टेट्रिशिन (नर्चर आईवीएफ सैंटर) की डा. अर्चना धवन बजाज से:
पीसीओडी, ऐंडोमिट्रिओसिस, अंडे कम बनना या बनने पर उन की क्वालिटी का सही नहीं होना, फैलोपियन ट्यूब में ब्लौकेज, हारमोंस का इंबैलेंस, पुरुष में शुक्राणुओं की कमी की वजह से दंपती संतान सुख से वंचित रह जाते हैं.
आज संतान सुख से वंचित दंपतियों की संख्या दिनप्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जो तनाव का भी कारण बनती जा रही है. ऐसे में जरूरी है कि अगर आप दोनों साथ रहते हैं और 1 साल से भी ज्यादा समय से बच्चे के लिए ट्राई कर रहे हैं और आप को सफलता नहीं मिल रही है तो आप तुरंत डाक्टर से संपर्क करें ताकि समय पर इलाज शुरू हो सके. सक्सैस नहीं मिलने पर आईयूआई, आईवीएफ व आईसीएसआई का विकल्प आइए, जानते हैं विस्तार से आईयूआई, आईवीएफ व आईसीएसआई प्रक्रिया के बारे में:
अक्सर आप गरमियों में कम्फरटेबल और लाइट कलर के कपड़े पहनना पसंद करते हैं, जिनमें सौफ्ट और गरमी को सहने वाला कौटन सबसे अच्छा कपड़ा होता है. वहीं, ऐसे मौसम में वाइट कलर सबसे ज्यादा लोग पसंद करते हैं, जबकि पेस्टल शेड्स दिमाग और बौडी दोनों को कूलिंग इफेक्ट करता है. बाजार में कौटन के कई तरह के फैशन मिलते हैं, जैसे शौर्ट या लौंग, हाफ या फुल स्लीव. इसी के साथ कपड़ों में अलग-अलग तरह के प्रिंट भी मिलते हैं. और आज हम ऐसे ही कौटन ड्रैसेज के बारे में बताएंगे, जो कंफर्ट के साथ-साथ आपके स्टाइल को भी एक अलग लुक देगा…
1. बोहेमियन कौटन ड्रेस…
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यह गरमियों में कूल और आरामदायक ड्रैस है, जिस पर बोहेमियन प्रिंट किया जाता है. यह एक स्लीवलेस लौंग ड्रैस होती है, जो कैज़ुअल आउटिंग्स के लिए परफैक्ट है. यह यूथ के लिए एक हिट ड्रैस है.
2. ब्लौक प्रिंट ड्रेस
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कौटन के कपड़े नौर्मली ब्लौक प्रिंट डिजाइन के साथ प्रिंट किए जाते हैं. यह राजस्थानी डिजाइन है जो इंडिया के साथ-साथ विदेश में भी पौपुलर है. यह ब्लौक प्रिंट कौटन ड्रेस लौंग होती है, जिसमें स्लीव्स छोटी होती हैं. ड्रैस में कमर वाले हिस्से पर एक पतली बेल्ट होती है. आम तौर पर ब्लॉक प्रिंट में फ्लावर एब्सट्रैक्ट डिजाइन आते हैं।
3. रैप कौटन ड्रैस…
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यहां एक सुंदर रैप कौटन समर ड्रेस है, जो पार्टियों के लिए परफेक्ट है. रैप स्टाइल ड्रेस बौडी को रैप की तरह कवर करती है. ड्रैस को कमर के किनारे एक बेल्ट के साथ फिट किया जाता है. फ्रिल्ड ड्रेस और बेल स्लीव्स ड्रेस को स्टाइलिश बनाता है. इसका प्रिंट और पैटर्न बौडी को पतला बनाता है.
4. बोट नैक ड्रेस
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गरमियो में लेडिज के लिए कौटन ड्रैसेज में बोट नैक ड्रैसेज पौपुलर है, ये ड्रैस हर तरह के प्रिंट और पैटर्न में आता है. बोट नेक ड्रेस सिंपल लोगों के लिए परफेक्ट है. पौकेट के साथ फ्लेयर्ड ड्रेस स्टाइलिश है. खूबसूरत महिलाओं के लिए बोट नेक डिजाइन बहुत ही शानदार हैं.
5. पौकेट कौटन ड्रैस…
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इसे लाइट कलर के साथ प्रिंट किया जाता है, जिसमें ए-लाइन कट किया जाता है. यह ड्रैस लंबी होती है जिसे आप डेली औफिस या घूमने के पहन सकते हैं. चार्मिंग लगने के साथ यह आपको आराम भी देगी.
ऋतिका हंसमुंख और मिलनसार स्वभाव की तो थी ही, पुरुष सहकर्मियों के साथ भी बेहिचक बात करती थी. साथ काम करने वाली लड़कियों के साथ शौपिंग पर भी चली जाती थी और वहां खानेपीने का बिल भी दे देती थी. लेकिन जब कोई लड़की उसे अपने घर पर बुलाती थी तो वह मना कर देती थी.
‘‘लगता है इस के घर में जरूर कुछ गड़बड़ है तभी यह नहीं चाहती कि कोई इस के घर आए और यह किसी के घर जाए,’’ आरती बोली.
‘‘मुझे भी यही लगता है, क्योंकि फिल्म देखने या रेस्तरां चलने को कहो तो तुरंत मान जाती है और बिल भरने को भी तैयार रहती है,’’ मीता ने जोड़ा, तो सोनिया और चंचल ने भी सहमति में सिर हिलाया.
‘‘इतनी अटकलें लगाने की क्या जरूरत है?’’ पास बैठे राघव ने कहा, ‘‘ऋतिका बीमार है, इसलिए आप सब उसे देखने के बहाने उस का घर देख आओ.’’
‘‘उस के पापा टैलीफोन विभाग के आला अफसर हैं और शाहजहां रोड की सरकारी कोठी में रहते हैं, इतनी जानकारी तो जाने के लिए काफी नहीं है,’’ मीता ने लापरवाही से कहा.
बात वहीं खत्म हो गई. अगले सप्ताह ऋतिका औफिस आ गई. उस के पैर में मोच आ गई थी, इसलिए चलने में अभी भी दिक्कत हो रही थी. शाम को उसे छुट्टी के बाद भी काम करते देख कर राघव ने कहा, ‘‘मैं ने आप का कोई काम भी पैंडिंग नहीं रहने दिया था, फिर क्यों आप देर तक रुकी हैं?’’
‘‘धन्यवाद राघवजी, मैं काम नहीं नैट सर्फिंग कर रही हूं.’’
‘‘मगर क्यों?’’
‘‘मजबूरी है. चार्टर्ड बस तक चल कर नहीं जा सकती और पापा को लेने आने में अभी देर है.’’
‘‘तकलीफ तो लगता है आप को बैठने में भी हो रही है?’’
‘‘हो तो रही है, लेकिन पापा मीटिंग में व्यस्त हैं, इसलिए बैठना तो पड़ेगा ही.’’
‘‘अगर एतराज न हो तो मेरे साथ चलिए.’’
‘‘इस शर्त पर कि आप चाय पी कर जाएंगे.’’
‘‘ठीक है, अभी और्डर करता हूं.’’
‘‘ओह नो… मेरा मतलब है मेरे घर पर.’’
‘‘इस में शर्त काहे की… किसी के भी घर जाने पर चायनाश्ते के लिए रुकना पड़ता ही है.’’
ऋतिका ने पापा को मोबाइल पर आने को मना कर दिया. फिर राघव के साथ घर पहुंच गई. मां भी विनम्र थीं. कुछ देर बाद ऋतिका के पापा भी आ गए. वे भी राघव को ठीक ही लगे. कुल मिला कर घर या परिवार में कुछ ऐसा नहीं था जिसे ऋतिका किसी से छिपाना चाहे. बातोंबातों में पता चला कि वे लोग कई वर्षों से हैदराबाद में रह रहे थे और उन्हें वह शहर पसंद भी बहुत था.
‘‘इन की तो विभिन्न जिलों में बदली होती रहती थी, लेकिन मैं बच्चों के साथ हमेशा हैदराबाद में ही रही. बहुत अच्छे लोग हैं वहां के… अकेले रहने में कभी कोई परेशानी नहीं हुई,’’ ऋतिका की मां ने बताया.
‘‘यहां तो अभी आप की जानपहचान नहीं हुई होगी?’’ राघव ने कहा.
‘‘पासपड़ोस में हो गई है. वैसे रिश्तेदार बहुत हैं यहां, लेकिन अभी उन से मिले नहीं हैं. ऋतु पत्राचार से एमबीए की पढ़ाई कर रही है, इसलिए औफिस के बाद का सारा समय पढ़ाई में लगाना चाहती है और हम भी इसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहते. मिलने के बाद तो आनेजाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा न.’’
राघव को ऋतिका की सहेलियों से मेलजोल न बढ़ाने की बात तो समझ आ गई, लेकिन एमबीए करने की बात छिपाने की नहीं.
यह सुन कर कि राघव के मातापिता सऊदी अरब में और बहन अपने पति के साथ सिंगापुर में रहती है और वह यहां अकेला, ऋतिका की मां ने आग्रह किया, ‘‘कभी घर वालों की याद आए तो आ जाया करो बेटा, अच्छा लगेगा तुम्हारा आना.’’
‘‘जी जरूर,’’ कह राघव ऋतिका की ओर मुड़ा, ‘‘आप डिस्टर्ब तो नहीं होंगी न?’’
‘‘कभीकभार कुछ देर के लिए चलेगा,’’ ऋतिका शोखी से मुसकाराई, ‘‘मगर यह एमबीए वाली बात औफिस में किसी को मत बताइएगा प्लीज.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि चंद घंटों की पढ़ाई के बाद सफलता की कोई गारंटी तो होती नहीं तो क्यों व्यर्थ में ढिंढोरा पीट कर अपना मजाक बनाया जाए. पास हो गई तो पार्टी कर के बता दूंगी.’’
राघव ने औफिस में किसी को ऋतिका के घर जाने की बात भी नहीं बताई. कुछ दिनों के बाद ऋतिका ने उसे डिनर पर आने को कहा.
‘‘आज मेरे छोटे भाई ऋषभ का बर्थडे है. वह तो आस्ट्रेलिया में पढ़ रहा है, लेकिन मम्मी उस का जन्मदिन मनाना चाहती हैं पकवान बगैरा बना कर… अब उन्हें खाने वाले भी तो चाहिए… आप आ जाएं… पापा के औफिस और पड़ोस के कुछ लोग होंगे… मम्मी खुश हो जाएंगी,’’ ऋतिका ने आग्रह किया.
न जाने का तो सवाल ही नहीं था. ऋतिका ने अन्य मेहमानों से उस का परिचय अपने सहकर्मी के बजाय अपना मित्र कह कर कराया. उसे अच्छा लगा.
अगले सप्ताहांत चंचल ने सभी को बहुत आग्रह से अपने भाई की सगाई में बुलाया तो सब सहर्ष आने को तैयार हो गए.
‘‘माफ करना चंचल, मैं नहीं आ सकूंगी,’’ ऋतिका ने विनम्र परंतु इतने दृढ़ स्वर में कहा कि चंचल ने तो दोबारा आग्रह नहीं किया, लेकिन राघव ने मौका मिलते ही अकेले में कहा, ‘‘अगर आप अकेले जाते हुए हिचक रही हों तो मुझे आप ने मित्र कहा है, मित्र के साथ चलिए.’’
‘‘मित्र कहा है सो बता देती हूं कि मैं इस तरह के पारिवारिक समारोहों में कभी नहीं जाती.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि ऐसे समारोहों में ही सहेलियों की मामियां, चाचियां अपने चहेतों के लिए लड़कियां पसंद करती हैं. सहेलियों के भाई और उन के दोस्त तो ऐसी दावतों में जाते ही लड़कियों को लाइन मारने लगते हैं. वैसे सुरक्षित लड़के भी नहीं हैं, कुंआरी कन्याओं के अभिभावक भी गिद्ध दृष्टि से शिकार का अवलोकन करते हैं.’’
‘‘आप मुझे डरा रही हैं?’’
‘‘कुछ भी समझ लीजिए… जो सच है वही कह रही हूं.’’
‘‘खैर, कह तो सच रही हैं, फिर भी मुझे तो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि औफिस से आप के सिवा सभी जा रहे हैं.’’
कुछ रोज बाद राघव को एक दूसरी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. ऋतिका बहुत खुश हुई.
‘‘अब हम जब चाहें मिल सकते हैं… औफिस की अफवाहों का डर तो रहा नहीं.’’
राघव की बढि़या नौकरी मिलने की खुशी और भी बढ़ गई. मुलाकातों का सिलसिला जल्दी दोस्ती से प्यार में बदल गया और फिर राघव ने प्यार का इजहार भी कर दिया.
ऋतिका ने स्वीकार तो कर लिया, लेकिन इस शर्त के साथ कि शादी सालभर बाद भाई के आस्ट्रोलिया से लौटने पर करेगी. राघव को मंजूर था क्योंकि उस के पिता को भी अनुबंध खत्म होने के बाद ही अगले वर्ष भारत लौटने पर शादी करने में आसानी रहती और वह भी नई नौकरी में एकाग्रता से मेहनत कर के पैर जमा सकता था.
भविष्य के सुखद सपने देखते हुए जिंदगी मजे में कट रही थी कि अचानक उसे टूर पर हैदराबाद जाना पड़ा. औफिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उसे वहां अपनी बहन को देने के लिए एक पार्सल दिया.
‘‘मेरी बहन और जीजाजी डाक्टर हैं, उन का अपना नर्सिंगहोम है, इसलिए वे तो कभी दिल्ली आते नहीं किसी आतेजाते के हाथ उन्हें यहां की सौगात सोहन हलवा, गज्जक बगैरा भेज देता हूं. तुम मेरी बहन को फोन कर देना. वे किसी को भेज कर सामान मंगवा लेंगी.’’
मगर राघव के फोन करने पर डा. माधुरी ने आग्रह किया कि वह डिनर उन के साथ करे. बहुत दिन हो गए किसी दिल्ली वाले से मिले हुए… वे उसे लेने के लिए गाड़ी भिजवा देंगी.
माधुरी और उस के पति दिनेश राघव से बहुत आत्मीयता से मिले और दिल्ली के बारे में दिलचस्पी से पूछते रहे कि कहां क्या नया बना है बगैरा. फिर उस के बाद उन्होंने अजनबियों के बीच बातचीत के सदाबहार विषय राजनीति और भ्रष्टाचार पर बात शुरू कर दी.
‘‘कितने भी अनशन और आंदोलन हो जाएं, कानून बन जाएं या सुधार हो जाएं सरकार या सत्ता से जुड़े लोग नहीं सुधरने वाले,’’ माधुरी ने कहा, ‘‘उन के पंख कितने भी कतर दिए जाएं, उन का फड़फड़ाना बंद नहीं होता.’’
‘‘प्रकाश का फड़फड़ाना फिर याद आ गया माधुरी?’’ दिनेश ने हंसते हुए पूछा.
राघव चौंक पड़ा. यह तो ऋतिका के पापा का नाम है. उस ने दिलचस्पी से माधुरी की ओर देखा, ‘‘मजेदार किस्सा लगता है दीदी, पूरी बात बताइए न?’’
माधुरी हिचकिचाई, ‘‘पेशैंट से बातचीत गोपनीय होती है, मगर वे मेरे पेशैंट नहीं थे,
2-3 साल पुरानी बात है और फिर आप तो इस शहर के हैं भी नहीं. एक साहब मेरे पास अबौर्शन का केस ले कर आए. पर मेरे यह कहने पर कि हमारे यहां यह नहीं होता उन्होंने कहा कि अब तो और कुछ भी नहीं हो सकेगा, क्योंकि वे टैलीफोन विभाग में चीफ इंजीनियर हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से हंसी रोक कर उन्हें बताया कि हमारे यहां तो प्राय सभी फोन, रिलायंस और टाटा इंडिकौम के हैं, सरकारी फोन अगर है भी तो खराब पड़ा होगा. उन की शक्ल देखने वाली थी. मगर फिर भी जातेजाते अन्य सरकारी विभागों में अपनी पहुंच की डुगडुगी बजा कर मुझे डराना नहीं भूले.’’
तभी नौकर खाने के लिए बुलाने आ गया. खाना बहुत बढि़या था और उस से भी ज्यादा बढि़या था स्नेह, जिस से मेजबान उसे खाना खिला रहे थे. लेकिन वह किसी तरह कौर निगल रहा था.
होटल के कमरे में जाते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा कि क्यों हुआ ऐसा उस के साथ? क्यों भोलीभाली मगर संकीर्ण स्पष्टवादी ऋतिका ने उस से छिपाया अपना अतीत? वह संकीर्ण मानसिकता वाला नहीं है.
जवानी में सभी के कदम बहक जाते हैं. अगर ऋतिका उसे सब सच बता देती तो वह उसे सहजता से सब भूलने को कह कर अपना लेता. ऋतिका के परिवार का रिश्तेदारों से न मिलनाजुलना, ऋतिका का सहेलियों के घर जाने से कतराना और उन के परिवार के लिए सटीक टिप्पणी करना, डा. माधुरी के कथन की पुष्टि करता था.
लौटने पर राघव अभी तय नहीं कर पाया था कि ऋतिका से कैसे संबंधविच्छेद करे. इसी बीच अकाउंट्स विभाग ने याद दिलाया कि अगर उस ने कल तक अपने पुराने औफिस का टीडीएस दाखिल नहीं करवाया तो उसे भारी इनकम टैक्स भरना पड़ेगा.
राघव ने तुरंत अपने पुराने औफिस से संपर्क किया. संबंधित अधिकारी से उस की अच्छी जानपहचान थी और उस ने छूटते ही कहा कि तुम्हारे कागजात तैयार हैं, आ कर ले जाओ. पुराने औफिस जाने का मतलब था ऋतिका से सामना होना जो राघव नहीं चाहता था.
‘‘औफिस के समय में कैसे आऊं नमनजी, आप किसी के हाथ भिजवा दो न प्लीज.’’
‘‘आज तो मुमकिन नहीं है और कल का भी वादा नहीं कर सकता. वैसे मैं तो आजकल 7 बजे तक औफिस में रहता हूं, अपने औफिस के बाद आ जाना.’’
राघव को यह उचित लगा, क्योंकि ऋतिका 5 बजे की चार्टर्ड बस से चली जाएगी. अत: उस के बाद वह इतमीनान से नमनजी के पास जा सकता है.
6 बजे के बाद नमनजी कागज ले कर जब वह लौट रहा था तो लिफ्ट का इंतजार करती ऋतिका मिल गई.
‘‘तुम अभी तक घर नहीं गईं?’’ वह पूछे बगैर नहीं रह सका.
‘‘एक प्रोजैक्ट रिपोर्ट पूरी करने के चक्कर में रुकना पड़ा. लेकिन तुम कहां गायब थे रविवार के बाद से?’’
‘‘सोम की शाम को अचानक टूर पर हैदराबाद जाना पड़ गया, आज ही लौटा हूं.’’
‘‘अच्छा किया जाने से पहले घर नहीं आए वरना मम्मी न जाने कितने पार्सल पकड़ा देतीं अपनी सखीसहेलियों के लिए.’’
‘‘पार्सल तो फिर भी ले कर गया था बड़े साहब की बहन डा. माधुरी के लिए,’’ राघव ने पैनी दृष्टि से ऋतिका को देखा, ‘‘तुम तो जानती होगी डा. माधुरी को?’’
ऋतिका के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया और वह लापरवाही से कंधे झटक कर बोली, ‘‘कभी नाम भी नहीं सुना. पापा को फोन कर दूं कि वे सीधे घर चले जाएं मैं तुम्हारे साथ आ रही हूं. पहले कहीं कौफी पिलाओ, फिर घर चलेंगे.’’
राघव मना नहीं कर सका और फिर घर पर डा. माधुरी का नाम बता कर प्रकाश और रमा की प्रतिक्रिया देखने की जिज्ञासा भी थी.
रमा के चेहरे पर तो डा. माधुरी का नाम सुन कर कोई भाव नहीं आया, मगर प्रकाश जरूर सकपका सा गए. रमा के आग्रह के बावजूद राघव खाने के लिए नहीं रुका और यह पूछने पर कि फिर कब आएगा उस ने कुछ नहीं कहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि मांबेटी सफल अदाकारा की तरह डा. माधुरी को न जानने का नाटक कर रही थीं या उन्हें बगैर कुछ बताए प्रकाश साहब अबौर्शन की व्यवस्था करने गए थे.
कुछ भी हो ऋतिका को निर्दोष तो नहीं कहा जा सकता. लेकिन चुपचाप सब बरदाश्त भी तो नहीं हो सकता. यह भी अच्छा ही था कि अभी न तो सगाई हुई थी और न इस बारे में परिवार के अलावा किसी और को पता था, इसलिए धीरेधीरे अवहेलना कर के किनारा कर सकता है. रात इसी उधेड़बुन में कट गई.
सुबह वह अखबार ले कर बरामदे में बैठा ही था कि प्रकाश की गाड़ी घर के सामने रुकी. उन का आना अप्रत्याशित तो नहीं था, मगर इतनी जल्दी आने की संभावना भी नहीं थी.
‘‘रात तो खैर अपनी थी जैसेतैसे काट ली, लेकिन दिन को तो तुम्हें भी काम करना है और मुझे भी और उस के लिए मन का स्थिर होना जरूरी है, इसलिए औफिस जाने से पहले तुम से बात करने आया हूं,’’ प्रकाश ने बगैर किसी भूमिका के कहा, ‘‘यहीं बैठेंगे या अंदर चलें?’’
‘‘अंदर चलिए अंकल,’’ राघव विनम्रता से बोला और फिर नौकर को चाय लाने को कहा.
‘‘मैं नहीं जानता डा. माधुरी ने तुम से क्या कहा, मगर जो भी कहा होगा उसे सुन कर तुम्हारा विचलित होना स्वाभाविक है,’’ प्रकाश ने ड्राइंगरूम में बैठते हुए कहा, ‘‘और यह सोचना भी कि तुम से यह बात क्यों छिपाई गई. वह इसलिए कि किसी की जिंदगी के बंद परिच्छेद बिना वजह खोलना न मुझे पसंद है और न ऋतु को. मैं ने अपनी भतीजी रुचि को हैदराबाद में एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब दिलवाई थी.
वह हमारे साथ ही रहती थी.
‘‘सौफ्टवेयर टैकीज के काम के घंटे तो असीमित होते हैं, इसलिए हम ने रुचि के देरसवेर आने पर कभी रोक नहीं लगाई और इस गलती का एहसास हमें तब हुआ जब रुचि ने बताया कि वह मां बनने वाली है, उस की सहेली का भाई उस से शादी करने को तैयार है, लेकिन कुछ समय यानी पैसा जोड़ने के बाद, क्योंकि उस की जाति में दहेज की प्रथा है और उस के मातापिता बगैर दहेज के विजातीय लड़की से उसे कभी शादी नहीं करने देंगे. पैसा जोड़ कर वह मांबाप को दहेज दे देगा.
‘‘फिलहाल रुचि को गर्भपात करवाना पड़ेगा. हम भी नहीं चाहते थे कि रुचि के मातापिता को इस बात का पता चले. अत: मैं ने गर्भपात करवाने की जिम्मेदारी ले ली. जिन अच्छे डाक्टरों से संपर्क किया उन्होंने साफ मना कर दिया और झोला छाप डाक्टरों से मैं यह काम करवाना नहीं चाहता था. बहुत परेशान थे हम लोग. तब हमें परेशानी से उबारा ऋतु और ऋषभ ने.
‘‘ऋतु को आईआईएम अहमदाबाद में एमबीए में दाखिला मिल गया था और ऋषभ भी अमेरिका जाने की तैयारी कर रहा था. दोनों ने कहा कि जो पैसा हम ने उन की पढ़ाई पर लगाना है, उसे हम रुचि को दहेज में दे कर उस की शादी तुरंत प्रशांत से कर दें. और कोई चारा भी नहीं था. मुझ में अपने भाईभाभी की नजरों में गिरने और लापरवाह कहलवाने की हिम्मत नहीं थी. अत: इस के लिए मैं ने अपने बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दिया.
‘‘खैर, रुचि की शादी हो गई, बच्चा भी हो गया और उस के बाद दोनों को ही बैंगलुरु में बेहतर नौकरी भी मिल गई. ऋतु ने भी पत्राचार से एमबीए कर लिया और ऋषभ भी आस्ट्रेलिया चला गया. इस में रुचि और प्रशांत ने भी उस की सहायता करी.’’
‘‘मगर मेरा हैदराबाद में रहना मुश्किल हो गया. लगभग सभी नामीगिरामी
डाक्टरों के पास मैं गया था और उन सभी से गाहेबगाहे क्लब या किसी समारोह में आमनासामना हो जाता था. वे मुझे जिन नजरों से देखते थे उन्हें मैं सहन नहीं कर पाता था. मैं ने कोशिश कर के दिल्ली बदली करवा ली. सोचा था वह प्रकरण खत्म हो गया. लेकिन वह तो लगता है मेरी बेटी की ही खुशियां छीन लेगा.
‘‘तुम्हें मेरी कहानी मनगढं़त लगी हो तो मैं रुचि को यहां बुला लेता हूं. उस के बच्चे की उम्र और डा. माधुरी की बताई तारीखों से सब बात स्पष्ट हो जाएगी.’’
‘‘इस सब की कोई जरूरत नहीं है पापा.’’
अभी तक अंकल कहने वाले राघव के ऋतिका की तरह पापा कहने से प्रकाश को लगा कि राघव के मन में अब कोई शक नहीं है.
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को कई प्रौब्लम का सामना करना पड़ता है. कई बार ये प्रौब्लम्स प्रेग्नेंसी में ज्यादा न करने व एक्सरसाइज न करने से होता है. इसीलिए जरूरी है कि प्रेग्नेंसी में एक्सरसाइज करना न भूलें. प्रेग्नेंसी के दौरान डौक्टर कुछ खास एक्सरसाइज बताते हैं, जिसे करने से मां और बच्चे की सेहत बनी रहती है. साथ ही प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली प्रौब्लम्स से भी छुटकारा मिलते है.
एक्सरसाइज शरीर को मजबूती प्रदान करने वाले होने चाहिए. इस के लिए आप तैराकी करें, टहलें और अपने शरीर को स्ट्रैच करें. ये एक्सरसाइज हफ्ते में 3 बार किए जा सकते हैं. होने वाली मां ध्यान रखें कि उतनी ही देर तक एक्सरसाइज करें जितनी देर तक वे इस में कम्फर्ट महसूस करें. यह बात बेहद महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने शरीर और सुविधा के अनुसार ही एक्सरसाइज करें क्योंकि एक्सरसाइज के दौरान हार्ट रेट सामान्य ही होनी चाहिए. आप इसे इस तरह ले सकती हैं कि एक्सरसाइज के समय आप आराम से किसी से बातचीत कर सकें. आइए आपको बताते हैं प्रेग्नेंसी के दौरान किए जाने वाली खास एक्सरसाइज के बारे में…
यह पैरों के लिए बहुत अच्छा एक्सरसाइज है. पैरों को कंधे के बराबर में खोलें. अपनी रीढ़ की दिशा में नाभी को अंदर खीचें और एबडौमिनल्स को टाइट करें. धीरे-धीरे अपने शरीर को नीचे की ओर झुकाएं जैसे कि आप कुरसी पर बैठी हों. यदि आप इतनी नीचे जा सकें कि आप के पैर आप के घुटनों की सीध में आ जाएं तो अच्छा होगा. लेकिन ऐसा न हो तो आप जितनी कोशिश कर सकती हैं उतना ही नीचे जाएं. यह सुनिश्चित कर लें कि आप के घुटने आप के पैरों की उंगलियों के पीछे हैं. 4 तक गिनती गिनें और फिर धीर-धीरे अपने शरीर को पहले वाली स्थिति में वापस ले आएं. इस प्रक्रिया को 5 बार दोहराएं.
केगेल एक्सरसाइज मूत्राशय, गर्भाशय और आंत का समर्थन करने वाली मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद करता है. गर्भावस्था के दौरान इन मजबूत मांसपेशियों के सहारे आप आराम से प्रसव पीड़ा को झेल सकती हैं और शिशु को जन्म दे सकती हैं. केगेल करने के लिए आप को ऐसा सोचना पड़ेगा जैसे आप मूत्र के प्रवाह को रोकने का प्रयास कर रही हों. ऐसा करते वक्त आप पैल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को नियंत्रित करेंगी. ऐसा करते वक्त 5 बार गिनती गिनें. इस प्रक्रिया को 10 बार दोहराएं. यह एक्सरसाइज दिन में 3 बार करना चाहिए.
इस अभ्यास से पेट की मांसपेशियां मजबूत बनती हैं. जमीन पर पैरों को मोड़ कर बैठें और पीठ एकदम सीधी रखें. अब अपने पेट को अंदर की तरफ लें और उन्हें टाइट रख कर 10 सैकंड तक रखें. लेकिन यह सुनिश्चित कर लें कि ऐसा करते वक्त आप को सांस नहीं रोकनी है. इस के बाद आराम से अपनी प्रारंभिक अवस्था में लौट आएं. इस प्रक्रिया को 10 बार दोहराएं.
यह अभ्यास आप की पीठ और पेट को मजबूत बनाता है.इस अभ्यास को करने के लिए चटाई पर हाथों और घुटनों के बल बैठ जाएं. घुटने आप के कूल्हे की सीध में होने चाहिए और कलाई कंधों की सीध में. साथ ही यह सुनिश्चित कर लें कि पेट लटक न रहा हो.अब अपना सिर झुकाएं और अपने पेट को अंदर की तरफ ले जाएं. अपनी रीढ़ की हड्डी को ऊपर की तरफ निकालें. इस अवस्था में 10 सैकंड तक रहें. लेकिन सांस लेना बंद न करें.
– सीने में दर्द, पेट में दर्द, पैल्विक पेन या लगातार संकुचन.
– भ्रूण की स्थिति में ठहराव आना.
– योनि से तेजी से तरल पदार्थ का स्राव होना.
– अनियमित या तेज दिल की धड़कन.
– हाथपैरों में अचानक सूजन आ जाना.
– चलने या सांस लेने में दिक्कत.
– मांसपेशियों में कमजोरी.
– एक्सरसाइज तब भी हानिकारक है जब आप को गर्भावस्था से संबंधित कोई परेशानी हो.
– प्लेसैंटा का गर्भाशय ग्रीवा के पास होना या गर्भाशय ग्रीवा को पूरी तरह से कवर करना.
– पिछले प्रसव के दौरान आई समस्याएं जैसे प्रीमैच्योर बेबी का जन्म या समय से पहले लेबर पेन उठी हो.
– कमजोर गर्भाशय.
आपरेशन थियेटर से निकल करडा. मीता अपने केबिन में आईं. एप्रिन उतारने के बाद उन्होंने इंटरकाम का बटन दबाते हुए पूछा, ‘‘रीना, क्या डा. दीपक का कोई फोन आया था?’’
‘‘जी, मैम, वह 2 बजे तक कानपुर से लौट आएंगे और लंच घर पर ही करेंगे,’’ इंटरकाम पर रिसेप्शनिस्ट रीना की आवाज सुनाई पड़ी.
‘‘ठीक है,’’ कह कर डा. मीता ने फोन रख दिया और घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 12 बजे थे. वह सोचने लगीं कि
डा. दीपक के लौटने में अभी डेढ़ घंटे का समय है और इतनी देर में अस्पताल का एक राउंड लिया जा सकता है.
डा. मीता ने आज अकेले ही 3 आपरेशन किए थे, इसलिए कुछ थकावट महसूस कर रही थीं. तभी अटेंडेंट कौफी दे गया. वह कुरसी की पुश्त से टेक लगा कर कौफी की चुस्कियां लेने लगीं.
मीता और दीपक लखनऊ मेडिकल कालिज में सहपाठी थे. एम.एस. करने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी. पहले उन्होंने अपना नर्सिंग होम लखनऊ में खोला था किंतु अचानक घटी एक दुर्घटना के कारण उन्हें लखनऊ छोड़ना पड़ गया था.
उस के बाद वे इलाहाबाद चले आए. उन की दिनरात की मेहनत के कारण 3 वर्षों में ही उन के नए नर्सिंग होम की शोहरत काफी बढ़ गई थी. डा. दीपक आज सुबह किसी जरूरी काम से कानपुर गए थे. आज के आपरेशन पूरा करने के बाद डा. मीता उन की प्रतीक्षा कर रही थीं.
अचानक बाहर कुछ शोर सुनाई पड़ा. उन्होंने अटेंडेंट को बुला कर पूछा, ‘‘यह शोर कैसा है?’’
‘‘जी…एक्सीडेंट का एक केस आया है और स्टाफ उन्हें भगा रहा है लेकिन वे लोग भाग नहीं रहे हैं,’’ अटेंडेंट ने हिचकते हुए बताया.
‘‘क्यों भगा रहे हैं? क्या तुम लोगों को पता नहीं कि हमारे नर्सिंग होम में छोटेबड़े सभी का इलाज बिना किसी भेदभाव के किया जाता है,’’ मीता का चेहरा तमतमा उठा. वह जानती थीं कि शहर के कई नर्सिंग होम तो ऐसे हैं जिन में गरीबों को घुसने भी नहीं दिया जाता है.
‘‘जी…वो…’’ अटेंडेंट हकला कर रह गया. ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कहना चाह रहा है किंतु साहस नहीं जुटा पा रहा है.
‘‘यह क्या वो…वो…लगा रखी है,’’ डा. मीता ने अटेंडेंट को डांटा फिर पूछा, ‘‘घायल की हालत कैसी है?’’
‘‘खून काफी बह गया है और वह बेहोश है.’’
‘‘तो फौरन उसे आपरेशन थियेटर में ले चलो. मैं भी पहुंच रही हूं,’’
डा. मीता ने खड़े होते हुए आदेश दिया.
अटेंडेंट हक्काबक्का सा चंद पलों तक उन के चेहरे को देखता रहा फिर आंखें झुकाते हुए बोला, ‘‘जी, मैडम, वह विधायक उपदेश सिंह राणा हैं. नर्सिंग होम के पास ही उन की गाड़ी को एक ट्रक ने टक्कर मार दी है.’’
इतना सुनने के बाद डा. मीता को लगा जैसे कोई ज्वालामुखी फट पड़ा हो और पूरी सृष्टि हिल गई हो. वह धम्म से कुरसी पर गिर पड़ीं. अगर उन्होंने कुरसी के दोनों हत्थों को मजबूती से थाम न लिया होता तो शायद चकरा कर नीचे गिर पड़ती होतीं. उन के दिमाग पर हथौड़े बरसने लगे और सांस धौंकनी की तरह चलने लगी थी. अटेंडेंट उन की मनोदशा को समझ गया था अत: चुपचाप वहां से खिसक गया.
लगभग साढ़े 3 वर्ष पहले की बात है. उस दिन भी डा. मीता अपने पुराने नर्सिंग होम में अकेली थीं. तभी कुछ लोग गोली से बुरी तरह घायल एक व्यक्ति को ले कर आए. उस की गोली निकालने के लिए वह आपरेशन थियेटर में अभी जा ही रही थीं कि फोन की घंटी बज उठी :
‘डा. साहिबा, मैं उपदेश सिंह राणा बोल रहा हूं,’ फोन पर आवाज आई.
‘जी, कहिए,’ डा. मीता अचकचा उठीं.
उपदेश सिंह राणा शहर का आतंक था. छोटेबड़े सभी उस के नाम से थर्राते थे. उस का भला उन से क्या काम?
‘डा. साहिबा, वह मेरी गोली से तो बच गया है लेकिन आप के आपरेशन थियेटर से जिंदा वापस नहीं आना चाहिए,’ उपदेश सिंह राणा ने आदेशात्मक स्वर में कहा.
‘मैं एक डाक्टर हूं और डाक्टर के हाथ लोगों की जान बचाने के लिए उठते हैं, लेने के लिए नहीं,’ डा. मीता ने स्पष्ट इनकार कर दिया.
‘मैं आप के हाथों को बहकने की कीमत देने के लिए तैयार हूं. आप मुंह खोलिए,’ राणा ने हलका सा कहकहा लगाया.
‘आप अपना और मेरा समय बरबाद कर रहे हैं,’ राणा का प्रस्ताव सुन
डा. मीता का मन कसैला हो उठा.
‘डा. साहिबा, कुछ करने से पहले सोच लीजिएगा कि मैं महिलाओं को सिर्फ उपदेश ही नहीं देता बल्कि…’ इतना कहतेकहते राणा क्षण भर के लिए रुका फिर खतरनाक अंदाज में बोला, ‘अगर आप ने मेरे शिकार को बचाने की कोशिश की तो फिर आप का कुछ भी नहीं बच पाएगा.’
डा. मीता ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया और आपरेशन थियेटर में घुस गईं. उस व्यक्ति की हालत बहुत खराब थी. 3 गोलियां उस की पसलियों में घुस गई थीं. 2 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद वह गोलियां निकाल पाई थीं. अब उस की जान को कोई खतरा नहीं था.
किंतु राणा ने अपनी धमकी को सच कर दिखाया. 2 दिन बाद ही उस ने
डा. मीता का अपहरण कर उन की इज्जत लूट ली. दीपक ने बहुत भागदौड़ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. राणा गिरफ्तार हुआ किंतु 3 दिन बाद ही जमानत पर छूट गया. उस के आतंक के कारण कोई भी उस के खिलाफ गवाही देने के लिए तैयार नहीं हुआ था.
इस घटना ने डा. मीता को तोड़ कर रख दिया था. वह एक जिंदा लाश बन कर रह गई थीं. हमेशा बुत सी खामोश रहतीं. जागतीं तो भयानक साए उन्हें अपने आसपास मंडराते नजर आते. सोतीं तो स्वप्न में हजारों गिद्ध उन के शरीर को नोंचने लगते. उन की मानसिक हालत बिगड़ती जा रही थी.
मनोचिकित्सकों की सलाह पर दीपक ने वह शहर छोड़ दिया था. नए शहर के नए माहौल ने मरहम का काम किया. अतीत की यादों को करीब आने का मौका न मिल सके, इसलिए डा. दीपक अपने साथ
डा. मीता को भी मरीजों की सेवा में व्यस्त रखते. धीरेधीरे जीवन की गाड़ी एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगी थी. दोनों की मेहनत और लगन से इन चंद वर्षों में ही उन के नर्सिंग होम का काफी नाम हो गया था.
इन चंद वर्षों में और भी बहुत कुछ बदल चुका था. अपने आतंक और बूथ कैप्चरिंग के दम पर शहर का दुर्दांत गुंडा उपदेश सिंह राणा दबंग विधायक बन चुका था. अब इसे समय का क्रूर मजाक ही कहा जाए कि डा. मीता की जिंदगी बरबाद करने वाले दरिंदे उपदेश सिंह राणा की जिंदगी बचाने के लिए लोग आज उसे उन की ही शरण में ले आए थे.
डा. मीता की आंखों के सामने उस दिन के दृश्य कौंध गए जब वह गिड़गिड़ाते हुए उस शैतान से दया की भीख मांग रही थी और वह हैवानियत का नंगा नाच नाच रहा था. वह अपने डाक्टरी पेशे की मर्यादा और कर्तव्यनिष्ठा की दुहाई दे रही थीं और वह उन की इज्जत की चादर को तारतार किए दे रहा था. वह रोती रहीं, बिलखती रहीं, तड़पती रहीं पर उस नरपिशाच ने उन की अंतर आत्मा तक को अंगारों से दाग दिया था.
सोचतेसोचते डा. मीता के जबड़े भिंच गए और आंखों से चिंगारियां फूटने लगीं. बाहर बढ़ रहे शोर के कारण उन की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. क्रोध की अधिकता के चलते वह हांफने सी लगीं. व्याकुलता जब बरदाश्त से बाहर हो गई तो उन्होंने सामने रखा पेपरवेट उठा कर दीवार पर दे मारा. पर न तो पेपरवेट टूटा और न ही दीवार टस से मस हुई.
पेपरवेट फर्श पर गिर कर गोलगोल घूमने लगा. डा. मीता की दृष्टि उस पर ठहर सी गई. पेपरवेट के स्थिर होने पर उन्होंने अपनी दृष्टि ऊपर उठाई. उन में दृढ़ता के चिह्न छाए हुए थे. ऐसा लग रहा था कि वह कुछ कर गुजरने का फैसला कर चुकी हैं.
इंटरकाम का बटन दबाते हुए डा. मीता ने पूछा, ‘‘रीना, घायल को आपरेशन थियेटर में पहुंचा दिया गया है या नहीं?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘जी…वो…दरअसल…स्टाफ कह… रहा है…कि…’’ रिसेप्शनिस्ट झिझक के कारण अपनी बात कह नहीं पा रही थी.
‘‘तुम लोग सिर्फ वह करो जो कहा जा रहा है. बाकी क्या करना है, मैं जानती हूं,’’ डा. मीता ने सर्द स्वर में आदेश दिया और आपरेशन थियेटर की ओर चल दीं.
अचानक उन्हें कुछ याद आया. वापस लौट कर उन्होंने इंटरकाम का बटन दबाते हुए कहा, ‘‘रीना, मैं उस आदमी का चेहरा नहीं देख सकती. नर्स से कहो कि आपरेशन टेबल पर पहुंचाने से पहले उस का मुंह किसी कपड़े से बांध दे या ठीक से ढंक दे.’’
इतना कह कर बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए डा. मीता तेजी से आपरेशन थियेटर की ओर चली गईं. घायल के भीतर जाते ही आपरेशन थियेटर का दरवाजा बंद हो गया और उस पर लगा लाल बल्ब जल उठा.
टिक…टिक…टिक…की ध्वनि के साथ घड़ी की सूइयां आगे बढ़ती जा रही थीं. इसी के साथ आपरेशन कक्ष के बाहर खड़े स्टाफ के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. आपरेशन कक्ष के दरवाजे को बंद हुए 2 घंटे से अधिक समय बीत चुका था. भीतर डा. मीता क्या कर रही होंगी इस का अंदाजा होते हुए भी कोई सचाई को अपने होंठों तक नहीं लाना चाहता था.
डा. दीपक 3 बजे लौट आए. भीतर घुसते ही उन्होंने एक वार्ड बौय से पूछा, ‘‘डा. मीता कहां हैं?’’
‘‘थोड़ी देर पहले उन्होंने एक घायल का आपरेशन किया था. उस के बाद…’’ वार्ड बौय कुछ कहतेकहते रुक गया.
‘‘उस के बाद क्या?’’
‘‘उस के बाद वह उसे अपना खून दे रही हैं, क्योंकि उस का ब्लड गु्रप ‘ओ निगेटिव’ है और वह कहीं मिल नहीं सका,’’ वार्ड बौय ने हिचकिचाते हुए बताया.
‘‘ऐसा कौन सा खास मरीज आ गया है जिसे डा. मीता को खुद अपना खून देने की जरूरत आ पड़ी?’’
डा. दीपक ने उत्सुकता से पूछा.
‘‘जी…विधायक उपदेश सिंह राणा हैं.’’
‘‘तुझे होश भी है कि तू क्या कह रहा है?’’ वार्ड बौय का गिरेबान पकड़ डा. दीपक चीख पड़े.
‘‘सर, हम लोग उसे नर्सिंग होम से भगा रहे थे लेकिन मैडम ने जबरन बुला कर उस का आपरेशन किया और अब उसे अपना खून भी दे रही हैं,’’ तब तकवहां जमा हो चुके कर्मचारियों में से एक ने हिम्मत कर के बताया.
डा. दीपक ने उसे घूर कर देखा फिर बिना कुछ कहे अपने केबिन की ओर चले गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर मीता ने ऐसा क्यों किया. क्या किसी ने मीता को इस के लिए मजबूर किया था या कोई और कारण था? सोचतेसोचते डा. दीपक के दिमाग की नसें फटने लगीं लेकिन वह अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं खोज सके.
थोड़ी देर बाद डा. मीता ने वहां प्रवेश किया. उन का चेहरा पत्थर की भांति भावनाशून्य था. डा. दीपक ने आगे बढ़ उन की बांह थाम कांपते स्वर में पूछा, ‘‘मीता…तुम ने… उस की जान क्यों बचाई?’’
‘‘हम लोग डाक्टर हैं. हमारा काम ही लोगों की जान बचाना है,’’ डा. मीता के होंठों ने स्पंदन किया.
डा. दीपक ने पत्नी की बांहों को छोड़ चंद पलों तक उस के चेहरे की ओर देखा फिर मुट्ठियां भींचते हुए बोले, ‘‘लेकिन क्या उस का आपरेशन करते समय तुम्हारे हाथ नहीं कांपे थे?’’
‘‘अगर हाथ कांप जाते तो हम में और सामान्य लोगों में क्या फर्क रह जाता,’’ डा. मीता ने धीमे स्वर में कहा. उन का चेहरा पूर्ववत भावनाशून्य था.
‘‘हम इनसान हैं मीता, इनसान,’’ डा. दीपक तड़प उठे.
‘‘मैं ने इनसानियत का ही फर्ज निभाया है,’’ डा. मीता के होंठ यंत्रवत हिले.
‘‘फर्ज निभाने का शौक था तो निभा लेतीं, महानता की चादर ओढ़ने का शौक था तो ओढ़ लेतीं, लेकिन अपना खून चूसने वाले को अपना खून तो न देतीं,’’
डा. दीपक मेज पर घूंसा मारते हुए चीख पड़े.
डा. मीता ने कोई उत्तर नहीं दिया.
दीपक ने आगे बढ़ कर उन के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और उन की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘मीता, प्लीज, मुझे बताओ ऐसी क्या मजबूरी थी जो तुम ने उस दरिंदे की जान बचाई? क्या किसी ने तुम्हें फिर धमकी दी थी?’’
डा. मीता ने अपनी आंखें बंद कर लीं पर उन्हें देख कर ऐसा लग रहा थामानो वह सप्रयास अपने को कुछ कहने से रोक रही हैं.
‘‘मैडम, उस मरीज को होश आ गया,’’ तभी एक नर्स ने वहां आ कर बताया.
डा. मीता के भीतर जैसे कोई शक्ति समा गई हो. दीपक को परे धकेल वह आंधीतूफान की तरह भागते हुए वार्ड की ओर दौड़ पड़ीं. भौचक्के से डा. दीपक अपने को संभालते हुए पीछेपीछे दौड़े.
उपदेश सिंह राणा को अब तक उन के पास खड़े पुलिस वालों ने बता दिया था कि जिस लेडी डाक्टर ने उन का आपरेशन किया था उसी ने उन्हें अपना खून भी दिया है क्योंकि उन के गु्रप का खून किसी ब्लड बैंक में उपलब्ध न था.
‘‘वह महान डाक्टर कौन हैं. मैं उन के दर्शन करना चाहता हूं,’’ राणा ने कराहते हुए कहा.
‘‘लो, वह आ गईं,’’ एक पुलिस वाले ने वार्ड के भीतर आ रही डा. मीता की ओर इशारा किया.
उन पर दृष्टि पड़ते ही राणा को ऐसा झटका लगा जैसे किसी को करंट लग गया हो. घबरा कर उस ने उठना चाहा लेकिन कमजोरी के कारण हिल भी न सका.
‘‘इन्होंने ही आप की जान बचाई है. जीवन भर इन के चरण धो कर पीजिएगा तब भी आप इस ऋण से उऋण नहीं हो सकेंगे,’’ दूसरे पुलिस वाले ने बताया.
पल भर के लिए राणा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ किंतु सत्य अपने पूरे वजूद के साथ सामने उपस्थित था. राणा की आंखों के सामने उस दिन के दृश्य कौंधने लगे जब रोती हुई
डा. मीता हाथ जोड़जोड़ कर विनती कर रही थीं कि उन्होंने सिर्फ एक डाक्टर के फर्ज का पालन किया है किंतु वह उन की एक नहीं सुन रहा था.
आज एक बार फिर उन्होंने सबकुछ भुला कर एक डाक्टर के फर्ज को पूरा किया है. तभी उस की सासें शेष बच पाई हैं.राणा के भीतर उन से आंख मिलाने का साहस नहीं बचा था. उन के विराट व्यक्तित्व के आगे वह अपने को बहुत छोटा महसूस कर रहा था.
बहुत मुश्किल से अपनी पूरी शक्ति को बटोर कर राणा, ने अपने हाथों को जोड़ा और कांपते स्वर में बोला, ‘‘डाक्टर साहिबा, मुझे माफ कर दीजिए.’’
‘‘माफ और तुम्हें,’’ डा. मीता दांत भींचते हुए चीख पड़ीं, ‘‘राणा, तुम ने मेरे साथ जो किया था उस के बाद मैं तो क्या दुनिया की कोई भी औरत मरते दम तक तुम्हें माफ नहीं कर सकती.’’
चीख सुन कर पूरे वार्ड में सन्नाटा छा गया. किसी में भी उसे भंग करने का साहस न था. अपनी ओर डा. मीता को आता देख कर राणा ने एक बार फिर अपनी बिखरती हुई सांसों को बटोरा और लड़खड़ाते स्वर में बोला, ‘‘आप ने जो एहसान किया है मैं उसे कभी…’’
‘‘मैं ने कोई एहसान नहीं किया है तुम पर,’’ डा. मीता राणा की बात को बीच में काट कर फिर चीख पड़ीं, ‘‘तुम क्या समझते हो अपनेआप को? सर्वशक्तिमान? जो जिस की जिंदगी से जब चाहे खेल लेगा? तुम ने मेरी जिंदगी से खेला था, आज मैं ने तुम्हारी जिंदगी से खेला है. मेरे जिस खून को तुम ने अपवित्र किया था आज वही खून तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है. तुम चाह कर भी उसे अपने शरीर से अलग नहीं कर सकते. जब तक जीवित रहोगे यह एहसास तुम्हें कचोटता रहेगा कि तुम्हारी जिंदगी मेरी दी हुई भीख है.
‘‘कमजोर समझ कर जिस नारी के चंद पलों को तुम ने रौंदा था उस के रक्त के चंद कतरे अब हर पल तुम्हारे स्वाभिमान को रौंदते रहेंगे. तुम्हारा रोमरोम तुम्हारे गुनाहों के लिए तुम्हें धिक्कारेगा लेकिन तुम्हें दया की भीख नहीं मिलेगी. जब तक जीवित रहोगे, राणा, तुम प्रायश्चित की आग में जलते रहोगे लेकिन तुम्हें शांति नहीं मिलेगी. यही मेरा प्रतिशोध है.’’
डा. मीता के मुंह से निकला एकएक शब्द गोली की तरह राणा के दिल और दिमाग को छेदे जा रहा था. गुनाहों के बोझ तले दबी उस की अंतर आत्मा में कुछ कहने की शक्ति नहीं बची थी. उस की कायरता बेबसी बन उस की आंखों से छलक पड़ी.
राणा के आंसुओं ने अग्निकुंड में घी का काम किया. डा. मीता गरजते हुए बोलीं, ‘‘इस से पहले कि मेरे अंदर की नारी, डाक्टर को पीछे ढकेल कर सामने आ जाए और मैं तुम्हारा खून कर दूं, दूर हो जाओ मेरी नजरों से. चले जाओ यहां से.’’
हतप्रभ डा. दीपक अब तक चुपचाप खड़े थे. उन्होंने पुलिस वालों को इशारा किया तो वे राणा के बेड को धकेलते हुए बाहर ले जाने लगे.
डा. मीता हिचकियां भरती हुई पूरी शक्ति से डा. दीपक के चौड़े सीने से लिपट गईं. उन्होंने उन्हें अपनी बांहों में यों संभाल लिया जैसे किसी वृक्ष की शाखाएं नन्हे घोंसले को संभाल लेती हैं.
कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के एक्टर द्वारकिश का लंबी बीमारी के बाद दिल का दौरा पड़ने से मंगलवार को निधन हो गया. द्वारकिश ने लगभग 100 फिल्मों में काम किया. इनमें से 50 फिल्मों में वो निर्देशक और निर्माता भी रहे.
साल 1966 में द्वारकिश ने थुंगा पिक्चर बैनर के तले बनी फिल्म ‘ममथ्या बंधन से कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था. द्वारकिश को इसलिए भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने हिंदी एक्टर किशोर कुमार को हिन्दी प्लेबैक सिंगर के तौर पर इंडस्ट्री में इंट्रड्यूस कराया था. द्वारकिश का जन्म 19 अगस्त 1942 को मैसूरु में हुआ था. उन्होंने मकैनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया हुआ था।
अंतिम दर्शन के लिए उनका पार्थिव शरीर उनके घर पर रखा जाएगा और बुधवार को अंतिम संस्कार किया जाएगा. कर्नाटक फिल्म इंडस्ट्री में उनके सहयोग के लिए कर्नाटक फिल्म चैंबर्स ने उन्हें सम्मानित भी किया था. उनके पास डॉक्टरेट की उपाधी भी थी.
फोटो क्रेडिट- श्रीनिवास देव (फेसबुक)