हैप्पी बर्थेडे टू यू लारा, आज अपना 46वां जन्मदिन मना रही हैं लारा

एक्ट्रेस लारा दत्ता आज अपना 46वां जन्मदिन मना रही हैं. लारा ने साल 2000 में मिस यूनिवर्स का ताज अपने नाम किया था. एक्ट्रेस सुष्मिता सेन के बाद लारा यह खिताब जीतने वाली दूसरी भारतीय महिला थी.

 

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कौनटेस्ट के आखिरी राउंड में लारा से पूछा गया कि वेन्यू के बाहर जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, उन लोगों को कंविन्स करने के लिए आप क्या करेंगी.

इसके जवाब में लारा ने कहा था कि इस तरह का प्लैटफौर्म हम युवा लड़कियों को मौका देता है कि हम अपने पसंद के क्षेत्र में आगे बढ़ सकें और हमें अवसर मिलता है कि किसी भी विषय पर अपने विचार रख सकें. यह प्लैटफौर्म हमें स्ट्रॉंग और फाइनेंशिली इंडिपेंडेंट बनने का मौका भी देता है. इसी सवाल के जवाब के बाद लारा को मिस यूनिवर्स बना दिया गया था.

 

 

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इसके बाद उन्होंने वर्ष 2003 में बड़े पर्दे पर फिल्म अंदाज से कदम रखा. इस फिल्म में लीड रोल्स में मिस वर्ल्ड प्रियंका चोपड़ा और एक्टर अक्षय कुमार भी थे.

लारा को फिल्म अंदाज के लिए बेस्ट डेब्यू एक्ट्रेस का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी दिया गया था.

लारा की शादी भारतीय टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति के साथ हुई है. दोनों के एक बेटी है. इससे पहले लारा और मॉडल केली दौर्जी के अफेयर की खबरें भी खूब चर्चा में थीं.

लारा ने कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों में भी काम किया है जिनमें मस्ती, नो एंट्री, भागम-भाग, पार्टनर, हाउसफुल, डौन-2 आदि शामिल हैं.

कुछ मीठा खाने का मन है तो बनाएं चावल का जर्दा

त्योहारों का सीजन चल रहा है और ऐसे हर कोई मीठा खाना पसंद करता है. चावल की खीर बनाना तो सभी जानते हैं, लेकिन क्या आपने कभी चावल की जर्दी खाया है? आज आपको इस आर्टिकल में इसकी रेसिपी बताएंगे, जो आप त्योहार के दौरान ट्राई कर सकते हैं.

सामग्री

½ किलो चावल

चीनी-स्वादानुसार

काजू- 15-20

बादाम-20-22

पिसे हुए ड्राइफ्रूट्स- सजाने के लिए

सूखा गोला- 1साबुत छोटे-छोटे पीस में कटा हुआ

दालचीनी- थोड़ी सी

लौंग- 2 कली

खाने का रंग- दो चमच्च

दूध-1 लीटर

देसी घी- ज़रूरत के अनुसार

किशमिश-स्वादानुसार

गुलाब जल- 1 या दो बूंद

 

बनाने की विधि

सबसे पहले एक बर्तन में चावल को थोड़ा सा देसी घी, पानी, दालचीनी, लौंग और रंग मिलाकर ढककर उबाल लें. इसके बाद जब चावल आधे कच्चे-पक्के हो जाएं तो इन्हें अलग रख लें.

इसके बाद एक पैन में घी के साथ बादाम, काजू को गोल्डन ब्राउन कर लें फिर साइड में रखे चावल को इसमें डालकर थोड़ा-थोड़ा दूध मिलाकर चलाएं और फिर इसे पकने के लिए ढक दें. इस पूरे मिश्रण को आधे घंटे तक पकने दें और फिर दो बूंद गुलाब जल या फिर केवड़े की बूंद डालकर गरम-गरम परोसें.

 

Summer Special: अपनों के लिए बनाएं जूस, स्मूदी और शेक

गर्मी हो या सर्दी हम जूस स्मूदी और शेक के बारे में पूरे वर्ष भर ही सुनते रहते हैं. प्रत्येक कैफे, रेस्टोरेंट या आइसक्रीम पार्लर सभी के मेन्यू कार्ड में हमें इन तीनों के नाम देखने को मिलते हैं. ये सभी बहुत सेहतमंद होते हैं क्योंकि ये हमारे शरीर को मिनरल्स, विटामिन्स, एंजाइम्स और एंटीऑक्सीडेंट प्रदान करने के साथ एनर्जी लेवल को बढ़ाते हैं.

इनका नियमित प्रयोग करने से वजन को संतुलित रखने में भी मदद मिलती है. सेहत के लिए इनके महत्त्व को बताते हुए डायटीशियन डॉ सुधा कहतीं हैं,” स्वस्थ लोंगों के साथ साथ जो बुजुर्ग, बच्चे या गर्भवती महिलाएं किसी कारण से फलों का सेवन नहीं कर पाते हैं उनके लिए शेक, जूस और स्मूदी बहुत अच्छा विकल्प हैं इससे उन्हें फल और सब्जियों की भरपूर पौष्टिकता प्राप्त हो जाती है.” आमतौर पर हम इन्हें घर में बनाते भी हैं और बाहर जाकर आर्डर भी करते हैं परन्तु इन तीनों का समुचित लाभ प्राप्त करने के लिए हमें इन तीनों का अंतर जानना बेहद आवश्यक है. निस्संदेह गर्मियों की तपिश को कम करने के लिए इन तीनों का ही सेवन बहुतायत से किया जाता है. यहां पर प्रस्तुत हैं ज्यूस, शेक और स्मूदी के बारे में विस्तृत जानकारी, इनका अंतर और इन्हें बनाने का सही तरीका-

जूस

ज्यूस को ज्यूसर में फल और सब्जी से बनाया जाता है. जूस बनाने की प्रक्रिया में फल या सब्जी का छिलका निकालकर ज्यूसर में डाला जाता है जिसमें इसका गूदा और रेशा अलग हो जाता है और यह केवल तरल रूप में हमें प्राप्त होता है. ज्यूस शरीर को त्वरित ऊर्जा प्रदान करता है क्योंकि यह शरीर में शीघ्र ही अवशोषित हो जाता है. इसके सेवन से शरीर हल्का अनुभव करता है परन्तु केवल तरल स्वरूप में होने से स्मूदी के मुक़ाबले ज्यूस के कुछ विटामिन्स नष्ट हो जाते हैं.

स्मूदी

स्मूदी को भी फल और सब्जी दोनों से ही बनाया जाता है. इसमें रेशे और गूदे को अलग नहीं किया जाता बल्कि ब्लेंडर में सीधे ही पीसकर सेवन किया जाता है.ज्यूस की अपेक्षा इसका स्वरूप गाढ़ा होता है. स्मूदी में फलों के टुकड़े भी होते हैं और ये स्वाद में भी अच्छे लगते हैं. इसे बनाने के लिए दूध और दही का प्रयोग भी किया जाता है. इसे पीने के बाद पेट भरा भरा सा प्रतीत होता है. स्मूदी पीने के बाद पोषक तत्व धीरे धीरे शरीर में अवशोषित होते हैं. चूंकि स्मूदी बनाने के लिए फलों और सब्जी को सीधा ही ब्लेंडर में ब्लेंड किया जाता है इसलिए इसके सभी पौष्टिक तत्व बरकरार रहते हैं.

शेक

शेक्स को मुख्यतया दूध, दही और आइसक्रीम जैसे डेयरी प्रोडक्ट के साथ मिलाकर बनाया जाता है. इसे बनाने में सब्जी का प्रयोग न करके केवल फलों, बिस्किट, आइसक्रीम और कॉफी आदि से बनाया जाता है. फ्लेवर बढ़ाने के लिए विभिन्न सीरप, क्रश और पाउडर का प्रयोग किया जाता है. शेक्स की गार्निशिंग के लिए बारीक कटी मेवा, टूटी फ्रूटी और व्हिपड क्रीम आदि का उपयोग किया जाता है.

बनाते समय रखें ध्यान

-सभी को बनाने के लिए ताजे फलों और सब्जी का ही प्रयोग करें.
-बनाने के तुरंत बाद प्रयोग कर लें क्योंकि रखे जाने से इसके पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं.
-केवल दूध का शेक बनाने की अपेक्षा इसमें फल को शामिल करें इससे आपका पेट भी भरेगा और शेक की पौष्टिकता भी बढ़ जाएगी.

-केवल एक ही फल का प्रयोग करने के स्थान पर दो तीन फल या सब्जी का प्रयोग करें. उदाहरण के लिए सेब के साथ गाजर, हरे सेब के साथ खीरा और तरबूज के साथ अदरक और गाजर तथा अनन्नास के साथ ककड़ी मिलाई जा सकती है.

 

-स्मूदी को पीसने के लिए पानी के स्थान पर दही या ठंडे दूध का प्रयोग करें.

-स्मूदी, शेक या ज्यूस बनाने के लिए फल और सब्जी का छिल्का अवश्य उतारें इनमें प्रयोग किये जाने वाले केमिकल्स के कारण छिल्का सहित उपयोग करना सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

-शेक बनाने के लिए मलाई निकले ठंडे दूध का प्रयोग करें अन्यथा शेक के ऊपर फेट बबल्स आ जाएंगे जो स्वाद को बिगाड़ देंगे.

-स्मूदी और ज्यूस में शकर या नमक मिलाने की अपेक्षा ऐसे ही प्रयोग करना अधिक सेहतमंद होता है.

-यदि आप तरबूज, खरबूज और लीची जैसे किसी बीज वाले फल का प्रयोग करने जा रहीं हैं तो बीजों को फल से भली भांति अलग कर दें अन्यथा ये स्वाद को कड़वा कर देंगे.

-शेक बनाने के लिए पिसी शकर का ही प्रयोग करें क्योंकि साबुत शकर बर्फ के साथ जल्दी घुलती नहीं है.

-यदि आप शुगर के मरीज हैं तो शेक में मिठास के लिए खजूर या शहद का प्रयोग करें.

Summer Special: गर्मियों में Oily स्किन से हैं परेशान, तो इन उपायों से पाएं निजात

गर्मियों के दिनों में स्किन का नॉर्मल दिनों के मुकाबले ज्यादा ध्यान देना पड़ता है. क्योंकि गर्मियों में हमारी स्किन पर सूरज की हानिकारक किरणें पड़ती है जो नॉर्मल स्किन के लिए तो खराब होती ही है बल्कि उससे ऑइली स्किन पर भी बुरा असर पड़ता है. क्योंकी यहीं वह वक्त है जब ऑइली स्किन पर एक्ने और पिंपल्स होने के चांसेज ज्यादा होते है.

गर्मियों के दिनों में गर्मी और ह्यूमिडिटी के कारण स्किन के सिबेसियस ग्लैंड्स पर ऑयल का उत्पादन ज्यादा होने लगता है. जो कई बार ऑयली स्किन के लिए काफी नुकसानदेह हो जाते है. इसलिए गर्मियों के दिनों में स्किनकेयर के लिए आप कुछ आसान से टिप्स बता रहें हैं, डॉ. अजय राणा  डर्मेटोलॉजिस्ट और एस्थेटिक फिजिशियन संस्थापक और निदेशक, आईएलएएमईडी.

समर में ऑयली स्किन के लिए अपनाएं 9 आसान टिप्स-

1.डबल क्लीजिंग करें

गर्मियों के दिनों में स्किन को डबल क्लींजिंग करना ऑयली स्किन वालों के लिए बेस्ट माना जाता है. क्लींजिंग के लिए आप गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें. इससे स्किन बार मौजुद सारे डर्ट और इंप्यूरिटीज को स्किन से निकाल देता है और स्किन के बंद पोर्स को खोल देता है.

 

2.डेड स्किन सेल्स निकाले

क्लींजिंग के लिए ऐसे क्लिंजर का उपयोग करें जिसमें सेलीसाइलिक एसिड, सिट्रिक एसिड और ग्लाइकोलिक एसिड की मात्रा ज्यादा हो. जो ऑइली स्किन से डेड स्किन सेल्स को निकाल देता है जो स्किन में पिंपल होने का एक महत्वपूर्ण कारक है.

3. स्किन एक्सफोलिएट करें

अगर आपकी स्किन ऑइली है तो आप सप्ताह है कम से कम 2 से 3 बार एक्सफोलिएट करें, जो स्किन से ब्लैकहेड्स निकालने में मदद करता है. पर यह याद रखें की स्किन को जरूरत से ज्यादा स्क्रब न करें.

4. ऑयल फ्री सनस्क्रीन लगाएं

अगर आपकी स्किन ऑयली है तो गर्मियों में आपको ज्यादा सूरज की हानिकारक किरणों से बचने की जरूरत है. इसके लिए आप एक अच्छे सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें. आप अपने ऑयली स्किन ने लिए ऑयल फ्री और ड्राई टच वाला सनस्क्रीन लगाए जो आपकी स्किन को सूरज की हानिकारक किरणों से निकलने वाले यूवी रेज और फ्री रेडिकल्स से बचाता है.

5.स्किन हाइड्रेट करना जरूरी

चाहे आपकी स्किन कैसी भी हो, खासकर ऑयली है तो आपको गर्मियों में हमेशा अपने स्किन को मॉइश्चराइज और हाइड्रेटेड रखना जरूरी है. इसके लिए आप एक ऑयल फ्री और जेल बेस्ड मॉइश्चराइजर का उपयोग करें, मॉइश्चराइजर में ज्यादा वॉटर कंटेंट होता है जो स्किन को लाईट फील करवाता है.

6. क्ले बेस्ड मास्क का इस्तेमाल

गर्मियों में ऑयली स्किन के लिए क्ले बेस्ड मास्क का उपयोग सप्ताह में कम से कम एक बार जरूर करें. यह मास्क आपकी ऑयली स्किन से डर्ट, ऑयल और बैक्टीरिया और जरूरत से ज्यादा सेबुम को निकालने में मदद करता है और स्किन को ग्लोइंग और चमकदार बनाता है. इसके साथ ही साथ यह ऑयली स्किन में होने वाले फाइन लाइन्स और रिंकल्स को होने से भी रोकता है.

7. डाइट पर दे ध्यान

अगर आपकी स्किन ऑयली है तो गर्मियों के दिनों में आप क्या डाइट के रहे है, क्या खा रहे है इस पर ध्यान देना बहुत जरुरी है. गर्मियों में आप ऑयली और तला भुना खाना न खाए. क्योंकि इससे आपकी स्किन पर पिंपल्स और एक्ने होने के चांसेज बढ़ जाते है. डाइट में ऐसी चीज़े शामिल करें जिसमें विटामिन ए की मात्रा ज्यादा हो.

8. बॉडी डिटॉक्स जरूरी

गर्मियों के दिनों में अपनी ऑयली स्किन को हाइड्रेट रखना बहुत जरुरी है. इसके लिए आप दिन में कम से कम 8 से 10 ग्लास पानी जरूर पिए. इससे आपकी बॉडी डिटॉक्स होती है और यह स्किन को ग्लोइंग और हेल्दी बनाता है.

9.स्किन पोर्स का रखें ध्यान

गर्मियों के दिनों में आप कम से कम मेकअप का इस्तेमाल करें. क्योंकि गर्मियों के दिनों में ऑयली स्किन में मेकअप का इस्तेमाल करने से आपकी स्किन के पोर्स बंद हो सकते है जो आपकी स्किन को और भी ऑयली बना देता है.

मिर्गी के दौरे का क्या है उपचार और दोबारा ब्रेन स्ट्रोक होने पर क्या करें

सवाल

मेरी बेटी की उम्र 12 साल है. उसे पिछले 1 साल से मिर्गी के दौरे पड़ रहे हैं. क्या इस का कोई उपचार नहीं है?

जवाब

जब मस्तिष्क में स्थाई रूप से परिवर्तन हो जाता है और मस्तिष्क असामान्य संकेत भेजता है तब मिर्गी के दौरे पड़ते हैं. मिर्गी भी अन्य रोगों की तरह एक रोग ही है और अगर ठीक समय पर उचित उपचार मिल जाए तो मरीज पूरी तरह ठीक हो कर सामान्य जीवन जी सकता है. आप किसी अच्छे डाक्टर को दिखाएं. जरूरी जांचों के बाद उपचार के विभिन्न विकल्पों, दवाइयों, सर्जरी और विभिन्न थेरैपियों के द्वारा आप की बेटी को ठीक करने का प्रयास किया जाएगा.

सवाल

मेरी उम्र 57 साल है. मुझे एक बार ब्रेन स्ट्रोक हो चुका है. क्या दोबारा इस के होने का खतरा है?

जवाब

ब्रेन स्ट्रोक के दोबारा होने की आशंका काफी अधिक होती है इसलिए उपचार के बाद भी आवश्यक सावधानियां बरतना जरूरी है क्योंकि एक बार स्ट्रोक की चपेट में आने पर पुन: स्ट्रोक होने की आशंका पहले सप्ताह में 11त्न और पहले 3 महीनों में 20त्न तक होती है. डाक्टर द्वारा सु?ाई दवाइयां समय पर लें, संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें. शारीरिक सक्रियता बहुत जरूरी है, इसलिए नियमित रूप से टहलें या हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज करें.

दूसरा बच्चा लाता है जीवन में कई बदलाव

रोहन पढ़ाई में बहुत ही होशियार है क्लास में हमेशा प्रथम आता है बोलने में भी बहुत अच्छा है लेकिन उसके व्यवहार को लेकर सीमा (रोहन की मां )परेशान रहती है वह बताती है कि रोहन ना तो किसी बच्चे के साथ अच्छे से खेल पाता है थोड़ी देर में ही उसकी अपने दोस्तों से लड़ाई होने लगती है.

हर वक्त मुझसे शिकायते लगाता रहता है और ना ही किसी के साथ अपनी कोई चीज साझा करता है उसके इस व्यवहार का कसूरवार वह खुद को मानती है क्योंकि रोहन उसकी इकलौती संतान हैं जिसे उसने बड़े ही लाड़ प्यार से पाला है कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी लेकिन वह उसे शेयरिंग, केयरिंग जैसी अच्छी आदत नहीं सीखा पाई रोहन के इस बर्ताव का कारण है. अकेलेपन में परवरिश होना.

सीमा चाहती थी कि वह एक ही बच्चे को पूरा समय दें जिस कारण उसने दूसरे बच्चे का प्लान ही नहीं किया लेकिन आज जब वह खुद अपने बचपन के बारे में सोचती है तो उसे अपने बच्चे के लिए बुरा भी महसूस होता हैं क्योंकि यदि खुद उसके भाई-बहन न होते तो इस दुनिया में वह खुद को कितना अकेला महसूस करती और शायद उसका व्यवहार भी रोहन जैसा ही होता. यह बात समय रहते समझने की है कि दूसरा बच्चा आपके जीवन में मुश्किलें नहीं, बल्कि खुशहाली लेकर आता है. इस लेख में हम जानेगे कि दूसरा बच्चा क्यों जरूरी है.

आज के समय में यह ट्रेंड सा बन गया है कि अधिकतर कपल यही चाहते हैं कि उनको सिर्फ एक ही संतान हो जिसकी वह अच्छे से परवरिश कर सकें इसका कारण वह बढ़ती महंगाई को भी मानते हैं लेकिन सोचने वाली बात हैं कि हमें अपनी इस तरह की सोच से अपने बच्चे को अकेलेपन की आदत डाल रहें हैं क्योंकि आज के समय में तो संयुक्त परिवार भी नहीं रह गए हैं जिससे की बच्चा चाचा, ताऊ के बच्चों के साथ मिलकर रहना सीख जाए बल्कि अब तो एकल परिवार का चलन बन गया है और उसमे भी एक ही संतान होती है जिसका असर उस बच्चे के व्यवहार में साफ झलकता है.

जिम्मेदारी का गुण

जब पहले बच्चे से छोटा बच्चा परिवार में आता है तो उसे देख पहले बच्चे में बड़प्पन कि भावना आ जाती है. धीरे धीरे वह अपनी मां की छोटे मोटे कामों में हाथ तो बटाता ही है बल्कि उसकी कोशिश होती है कि वह अपने काम स्वयं करना सीख जाए. पहला बच्चा दूसरे बच्चे के साथ एंजॉय करना व उसकी केयर करना जल्दी ही सीख जाता है.

साझेदारी का गुण

पहला बच्चा जब अकेला होता है तो वह सोचता है कि जो भी कुछ उसके पास है वह सब उसी का है और किसी को भी अपनी चीजे साझा करने से कतराता है जिस कारण कभी-कभी माता पिता को भी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है. लेकिन दूसरे बच्चे के होने से वह चीज़ें साझा करना सीखता है. जो कि अच्छे व्यवहार के लिए बहुत जरूरी है.

व्यवहार में बदलाव

अक्सर अकेला बच्चा थोड़ा ज़िद्दी होने के साथ साथ चिड़चिड़ेपन का भी शिकार होता है जिसका कारण होता है उसका लम्बे समय से अकेला रहना लेकिन जब कोई उससे छोटा भाई या बहन होता है तो उसके व्यक्तित्व में अलग ही बदलाव देखने को मिलता है जिससे उसके अंदर शेयरिंग केयरिंग का तो भाव उत्पन्न होता ही है साथ ही उसे एक सच्चा दोस्त भी मिलता है. जिसके साथ वह खेलता भी है और दोनों के बीच एक अच्छी बॉन्डिंग बनती है.

दूसरी प्रगनेंसी को तजुर्बा बनाता हैं आसान

कभी-कभी मां पहली प्रेगनेंसी में आई परेशानियों को लेकर दूसरे बच्चे का प्लान नहीं करती लेकिन पहली प्रेगनेंसी में जो भी कॉम्प्लिकेशन या परेशानियां आती हैं दूसरी प्रेगनेंसी में उसका तजुर्बा हो जाता है जिस से बचने के लिए गर्भवाती महिला खुद को तैयार रखती है.

ध्यान रखने योग्य बातें

परिवार या अपने साथी के दबाव में आकर दूसरी प्रेगनेंसी का प्लान ना करें.  बल्कि पहले खुद को तैयार करें.  यदि आपकी फाइनेंशियल कंडीशन सही है और आपका स्वास्थ्य पूर्ण रूप से सही है तो दूसरा बच्चा प्लान करना आपके लिए सुखमय साबित होगा.

यदि आप ऑफिस जाती हैं या हाउस वाइफ भी हैं तो दूसरा बच्चा होने से मां को बच्चे के अकेलेपन की चिंता कम हो जाती है.  पहले बच्चे की चीज़े जैसे कपड़े, खिलौने ,किताबें छोटे बच्चे के काम आ जाती हैं. यदि आप दूसरा बच्चा करती हैं तो दोनों बच्चों पर ध्यान दें व उनके साथ क्वालिटी टाइम एन्जॉय करें.

रफ्तार: क्या सुधीर को मिली अपनी पसंद की लड़की?

गाड़ी की रफ्तार धीरेधीरे कम हो रही थी. सुधीर ने झांक कर देखा, स्टेशन आ गया था. गाड़ी प्लेटफार्म पर आ कर खड़ी हो गई थी. प्रथम श्रेणी का कूपा था, इसलिए यात्रियों को चढ़नेउतरने की जल्दी नहीं हो रही थी.

सुधीर इत्मीनान से अटैची ले कर दरवाजे की ओर बढ़ा. तभी उस ने देखा कि गाड़ी के दरवाजे पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगाए व सूटबूट पहने एक आदमी आरक्षण सूची में अपना नाम देख रहा था.

उस आदमी को अपना नाम दिखाई दिया तो उस ने पीछे खड़े कुली से सामान अंदर रखने को कहा.

सुधीर को उस की आकृति कुछ पहचानी सी लगी. पर चेहरा तिरछा था इसलिए दिखाई नहीं दिया. जब उस ने मुंह घुमाया तो दोनों की नजरें मिलीं. क्षणांश में ही दोनों दोस्त गले लग गए. सुधीर के कालेज के दिनों का साथी विनय था. दोनों एक ही छात्रावास में कई साल साथ रहे थे.

सुधीर ने पूछा, ‘‘आजकल कहां हो? क्या कर रहे हो?’’

विनय बोला, ‘‘यहीं दिल्ली में अपनी फैक्टरी है. तुम कहां हो?’’

‘‘सरकारी नौकरी में उच्च अधिकारी हूं. दौरे पर बाहर गया था. मैं भी यहीं दिल्ली में ही हूं.’’

वे बातें कर ही रहे थे कि गाड़ी की सीटी ने व्यवधान डाला. एक गाड़ी से उतर रहा था, दूसरा चढ़ रहा था. दोनों ने अपनेअपने विजिटिंग कार्ड निकाल कर एकदूसरे को दिए. सुधीर गाड़ी से उतर गया. दोनों मित्र एकदूसरे की ओर देखते हुए हाथ हिलाते रहे. जब गाड़ी आंखों से ओझल हो गई तो सुधीर के पांव घर की ओर बढ़ने लगे.

टैक्सी चल रही थी, पर सुधीर का मन विनय में रमा था. विनय और वह छात्रावास के एक ही कमरे में रहते थे. विनय का मन खेलकूद में ही लगा रहता था, जबकि सुधीर की आकांक्षा थी कि किसी प्रतियोगिता में चुना जाए और उच्च अधिकारी बने. इसलिए हर समय पढ़ता रहता था.

जबतब विनय उसे टोकता था, ‘क्यों किताबी कीड़ा बना रहता है, जिंदगी में और भी चीजें हैं, उन की ओर भी देख.’

‘मेरे कुछ सपने हैं कि उच्च अफसर बनूं, कार हो, बंगला हो, इसलिए मेरी मां मेरे सपने को पूरा करने के लिए जेवर बेच कर मेरी फीस भर रही है.’

उस की सब तमन्नाएं पूरी हो गई थीं. पर विनय से मिलने के बाद उसे ताज्जुब हो रहा था कि वह भी उसी की तरह गरीब परिवार से था. उस का यह कायापलट कैसे हो गया? एक फैक्टरी का मालिक कैसे बन गया? इसी उधेड़बुन में वह घर पहुंचा.

नौकर रामू ने कार का दरवाजा खोला. घर के अंदर मेज पर मां की बीमारी का तार पड़ा था. पड़ोसिन चाची ने बुलाया था.

रामू ने बताया, ‘‘मेम साहब अपनी सहेलियों के साथ घूमने गई हैं.’’

सुनते ही सुधीर को गुस्सा आ गया. वह सोच रहा था कि जब मां का तार आ गया था तो रश्मि को उन के पास जाना चाहिए था. वह उलटे पांव बस अड्डे की ओर चल दिया. वह रहरह कर रश्मि पर खीज रहा था कि उसे मां की बीमारी की जरा भी परवा नहीं है.

मां बेटे को देख प्रसन्न हो उठीं. पड़ोसिन चाची ने बताया, ‘‘तेरी मां को तेज बुखार था. हम तो घबरा गए. इसीलिए तुझे तार दे दिया. रश्मि को क्यों नहीं लाया?’’

‘‘वह अपनी मां के पास गई है. घर होती तो अवश्य आती.’’

सुधीर जानता था कि गांव के माहौल में मां के साथ रहना रश्मि को गवारा नहीं है. मां भी उस की आदतें जानती थीं, इसीलिए उन्होंने अधिक कुछ नहीं कहा.

दूसरे दिन सुधीर लौट आया था. रश्मि ने मां की बीमारी के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की थी.

अगली सुबह वह अभी दफ्तर पहुंचा ही था कि रश्मि का फोन आ गया, ‘‘आज घर में पार्टी है, नौकर नहीं आया है, तुम दफ्तर के किसी आदमी को थोड़ी देर के लिए भेज दो.’’

सुधीर कुढ़ गया, पर कुछ सोचते हुए बेरुखी से बोला, ‘‘ठीक है, भेज दूंगा.’’

शाम को वह घर पहुंचा. सोचा था कि थोड़ी देर आराम करेगा और कौफी पी कर थकान मिटाएगा. वह रश्मि के पास पहुंचा. वह लेटी हुई पुस्तक पढ़ रही थी.

सुधीर को देख कर बोली, ‘‘आज मैं तो बहुत थक गई. नौकर भी नहीं आया. अब तो उठा भी नहीं जा रहा है. पर किटी पार्टी बहुत अच्छी रही. रमी में बारबार हारती ही रही, इसलिए थोड़ा जी खट्टा हो गया. आज तो रात का खाना बाहर ही खाना पड़ेगा.’’

रश्मि की बातें सुन सुधीर की कौफी पीने की इच्छा मर गई. वह पलंग पर लेट गया और सोचने लगा, ‘रश्मि का समय या तो घूमने में व्यतीत होता है या सखियों के साथ ताश खेलने में. घर के कामों में तो उस का मन ही नहीं लगता है, इसीलिए मोटी और भद्दी होती जा रही है. जब कभी मैं राय देता हूं कि घर के कामों में मन नहीं लगता है तो मत करो, लेकिन घूमने या रमी खेलने के बजाय कुछ रचनात्मक कार्य करो तो चिढ़ उठती है.’

सोचतेसोचते सुधीर सो गया. 9 बजे रश्मि ने जगाया, ‘‘चलिए, किसी होटल में खाना खाते हैं.’’

न चाहते हुए भी सुधीर को उस के साथ जाना पड़ा.

सुबह सुधीर दफ्तर जाने लगा तो रश्मि बोल उठी, ‘‘दफ्तर पहुंच कर ड्राइवर से कहिएगा कि कार घर ले आए. कुछ खरीदारी करनी है.’’

‘‘कल ही तो इतना सामान खरीद कर लाई हो, आज फिर कौन सी ऐसी जरूरत पड़ गई. अपने दोनों बच्चे मसूरी में पढ़ रहे हैं. उन का खर्चा भी है. इस तरह तो तनख्वाह में गुजारा होना मुश्किल है. ऊपरी आमदनी भी कम है, लोग पैसा देते हैं तो 10 काम भी निकालते हैं.’’

सुनते ही रश्मि के माथे पर बल पड़ गए, ‘‘बड़े भैया भी इसी पद पर हैं लेकिन उन की सुबह तो तोहफों से शुरू होती है और रात नोट गिनते हुए व्यतीत होती है. वह तो कभी टोकाटाकी नहीं करते.’’

‘‘आजकल जमाना खराब है, बहुत सोचसमझ कर कदम बढ़ाना पड़ता है. अगर कहीं छानबीन हो गई तो सारी इज्जत खाक में मिल जाएगी,’’ सुधीर बोला.

रश्मि रोंआसी हो गई, ‘‘कार क्या मांगी, पचास बातें सुननी पड़ीं.’’

सुधीर रश्मि के आंसू नहीं देख सकता था. माफी मांग कर उस के आंसू पोंछने के लिए रूमाल निकाला तो जेब से एक कार्ड गिर पड़ा.

कार्ड देख कर विनय का ध्यान आ गया, ‘‘मेरे कालेज के दिनों का मित्र इसी शहर में रह रहा है, मुझे पता ही नहीं चला. अब किसी दिन उस के घर चलेंगे.’’

रश्मि को गाड़ी भेजने का वादा कर के ही वह दफ्तर जा पाया. दफ्तर से विनय को फोन किया. दूसरे दिन छुट्टी थी. विनय ने दोनों को खाने पर आने का न्योता दे दिया.

दूसरे दिन सुधीर और रश्मि गाड़ी से विनय के घर की ओर चल पड़े. आलीशान कोठी के गेट पर दरबान पहरा दे रहा था. पोर्टिको में विदेशी गाड़ी खड़ी थी. लौन में बैठा विनय उन का इंतजार कर रहा था. उस ने मित्र को गले लगा लिया. फिर रश्मि को ‘नमस्ते’ कह कर उन्हें बैठक में ले गया.

सुधीर ने देखा कि बैठक विदेशी और कीमती सामानों से सजी हुई है. सभी सोफे पर बैठ गए. नौकर ठंडा पानी ले कर आया. रश्मि ने इधरउधर देख कर पूछा, ‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’

‘‘जरूरी काम पड़ गया था इसलिए फैक्टरी जाना पड़ा. आती ही होंगी,’’ विनय ने उत्तर दिया.

थोड़ी देर बाद क्षमा आती हुई दिखाई दी.

सुधीर ने देखा, इकहरे शरीर व सांवले रंगरूप वाली क्षमा सीधी चोटी और कायदे से बंधी साड़ी में भली और शालीन लग रही थी.

मेहमानों को अभिवादन कर के वह बैठ गई.

सुधीर को लगा कि इसे कहीं देखा है, पर याद नहीं आया. वह सोच रहा था, ‘रश्मि इस से सुंदर है, पर मोटापे के कारण कितनी भद्दी लग रही है.’

तभी 2 बच्चों की ‘नमस्ते’ से उस का ध्यान टूटा. दोनों बच्चे मां के पास बैठ गए थे. सुधीर ने देखा, बच्चे भी मांबाप के प्रतिरूप हैं. शीघ्र ही मां से खेलने जाने की आज्ञा मांगी तो क्षमा ने कहा, ‘‘जाओ, खेल आओ, परंतु खाने के समय आ जाना.’’

फिर वह रश्मि से बोली, ‘‘आप बच्चों को क्यों नहीं लाईं?’’

रश्मि के चेहरे पर गर्वीली मुसकान छा गई. कटे हुए बालों को झटक कर कहा, ‘‘दोनों बच्चे मसूरी में पढ़ते हैं, घर में ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाती है.’’

क्षमा ने बच्चों को स्नेह से देखा, जो बाहर खेलने जा रहे थे, ‘‘मैं तो इन के बिना रह ही नहीं सकती.’’

विनय और सुधीर अपने कालेज के दिनों की बातें कर रहे थे, जैसे कई साल पीछे पहुंच गए हों.

क्षमा को देख कर विनय बोला, ‘‘यह तो हमेशा पढ़ाई में लगा रहता था, लेकिन मैं खेलने में मस्त रहता था. परीक्षा के दिनों में यह मेरे पीछे पड़ा रहता कि किसी तरह से कुछ याद कर लूं. तब मैं इस का मजाक उड़ाता था. आज यह अपनी मेहनत और लगन से ही उच्च ओहदे पर पहुंचा है.’’

सुधीर ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाभीजी, झगड़ा यह करता था, निबटाने मैं पहुंचता था.’’

दोनों दोस्त बातों में मगन थे कि फोन की घंटी बजी. विनय कुछ देर बात करने के बाद पत्नी से बोला, ‘‘बाहर से कुछ लोग आए हैं, वे व्यापार के सिलसिले में हम से बात करना चाहते हैं. तुम्हारे पास कब समय है? वही समय उन्हें बता दूं. जरूरी मीटिंग है, हम दोनों को जाना होगा.’’

क्षमा ने घड़ी देख कर कहा, ‘‘कल की मीटिंग रख लीजिए, मैं फैक्टरी पहुंच जाऊंगी.’’

देखने में साधारण व घरेलू लगने वाली महिला क्या मीटिंग में बोल पाएगी? कैसे व्यापार संबंधी बातचीत करती होगी? सुधीर क्षमा को ताज्जुब से देख रहा था.

उस की शंका का समाधान विनय ने किया, ‘‘क्षमा बहुत होशियार हैं, कुशाग्रबुद्धि और मेहनती हैं. इन्हीं की असाधारण प्रतिभा और मेहनत के कारण ही छोटी सी दुकान से शुरू कर के आज हम फैक्टरी के मालिक बन गए हैं.’’

क्षमा ने बातों का रुख बदलते हुए कहा, ‘‘चलिए, खाना लग गया है.’’

सभी भोजनकक्ष में आ गए तो क्षमा ने बच्चों को भी बुला लिया. खाने की मेज पर कुछ भारतीय तो कुछ विदेशी व्यंजन दिखाई दे रहे थे.

रश्मि ने कहा, ‘‘आप को तो घर का काम देखने की फुरसत ही नहीं मिलती होगी क्योंकि फैक्टरी में जो व्यस्त रहती हैं.’’

विनय ने पत्नी की ओर प्रशंसाभरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘यही तो इन की खूबी है, खाना अपने तरीके से बनवाती हैं. जिस दिन ये रसोई में नहीं जातीं तो बच्चों का और मेरा पेट ही नहीं भरता.’’

बच्चे खाना खा कर अपने कमरे में जा चुके थे. उन के हंसनेबोलने की आवाजें आ रही थीं. सारा माहौल अत्यंत खुशनुमा प्रतीत हो रहा था, जबकि सुधीर को अपना सूना घर कभीकभी अखर जाता था. वह तो चाहता था कि बच्चे घर पर ही पढ़ें. पर इस से रश्मि की आजादी में खलल पड़ता था. दूसरे, जिस तरह का जीवन रश्मि जी रही थी, उस माहौल में बच्चे पढ़ ही नहीं सकते थे. इसीलिए उन्हें मसूरी भेज दिया था.

जाड़ों की धूप का अलग ही आनंद होता है. खाना खा कर सभी धूप में बैठ कर गपशप करने लगे. गरमागरम कौफी भी आ गई. विनय ने पूछा, ‘‘मां कैसी हैं? मुझे तो उन्होंने बहुत प्यार दिया है.’’

‘‘वे रुड़की से आना ही नहीं चाहतीं. हम लोग तो बहुत चाहते हैं कि वे यहीं रहें,’’ सुधीर ने उदास स्वर में उत्तर दिया.

विनय ने बताया, ‘‘क्षमा का मायका भी रुड़की में ही है. इस तरह तो तू उस का भाई हुआ और मेरा साला भी बन गया. दोस्त और साला यानी पक्का रिश्ता हो गया.’’

विनय हंसा तो साथ में सभी हंस पड़े. अब सुधीर को सारी कहानी समझ में आ गई थी कि क्षमा को कहां और कब देखा था? उस की पढ़ाई समाप्त हो चुकी थी. मनमाफिक नौकरी मिल चुकी थी. दिलोदिमाग पर अफसरी की शान छाई थी. शादी के लिए हर तरह के रिश्ते आ रहे थे. लेकिन उस के दिमाग में ऐसी लड़की की तसवीर बन गई थी जो जिंदगी की गाड़ी तेजी से दौड़ा सके, जिस की रफ्तार धीमी न हो.

मां ने क्षमा की फोटो दिखाई थी. एक दिन वह उस को देखने उस के घर जा पहुंचा था. साधारण वेशभूषा में दुबलीपतली सांवले रंगरूप वाली क्षमा ने आ कर नमस्कार किया था.

तब सुधीर ने सोचा कि अगर इस साधारण सी लड़की से शादी की तो जिंदगी में कुछ चमकदमक नहीं होगी और न ही कोई नवीनता, वही पुरानी घिसीपिटी धीमी गति से गाड़ी हिचकोले खाती रहेगी.

उस का ध्यान दीनानाथ की बातों से टूटा था, ‘क्षमा बहुत कुशाग्रबुद्धि है, हमेशा प्रथम आई है. खाना तो बहुत ही अच्छा बनाती है. यह गुलाबजामुन इसी के बनाए हुए हैं.’

सुधीर यह कह कर लौट आया था कि मां से सलाह कर के जवाब देगा. रश्मि सुधीर के एक मित्र की बहन थी. जब वह आधुनिक पोशाक में उस के सामने आई तो सौंदर्य के साथसाथ उस की शोखी और चपलता भी सुधीर को भा गई.

उस ने सोचा, ‘यही लड़की मेरे लिए ठीक रहेगी. कहां क्षमा जैसी सीधीसादी लड़की और कहां यह तेजतर्रार आधुनिका…दोनों की कोई तुलना नहीं.’

सुधीर ने मां को फैसला सुना दिया और रश्मि उस की सहचरी बन गई.

अब उसे लग रहा था कि वास्तव में क्षमा की रफ्तार ही तेज है. रश्मि तो फिसड्डी और घिसीपिटी निकली, जिस में न कुछ करने की उमंग है, न लगन.

काठ की हांड़ी: मीना ने ऐसा क्या कारनामा किया

मीना का चेहरा देख कर शोभाजी हैरान रह गईं. वे 1-2 मुलाकातों में ही समझ जाती थीं कि सामने खड़ा इंसान कितने पानी में है. मगर मीना को लेकर उन की आंखें धोखा खा गईं.

‘‘जो चीज आंखों के बहुत ज्यादा पास हो उसे भी ठीक से पहचाना नहीं जा सकता और जो ज्यादा दूर हो उस की भी पहचान नहीं हो सकती. हमारी आंखें इंसान की आंखें हैं. हमारे पास गिद्ध की आंखें नहीं हैं,’’ सोमेश ने मां को समझाया था, ‘‘आप इतनी परेशान क्यों हो रही हैं? आजकल का युग सीधे व सरल इंसान का नहीं है. भेष बदलना पड़ता है.’’

दिल्ली वाले चाचाजी के किसी मित्र की बेटी है मीना और यहां लुधियाना में एक कंपनी में काम करती है. कुछ दिन उन के पास रहेगी. उस के बाद अपने लिए कोई ठिकाना देख लेगी. यही कह कर चाचाजी ने उसे उन के पास भेजा था.

3 महीने होने को आए हैं इस लड़की ने पूरे घर पर अपना अधिकार जमा रखा है. कल तो हद हो गई जब एक मां और बेटा उस की जांचपरख के लिए घर तक चले आए. मीना का उन के सामने जो व्यवहार था वह ऐसा था मानो वह इसी घर की बेटी है.

‘‘घर बहुत सुंदर सजाया है तुम ने बेटा… तुम्हारी पसंद का जवाब नहीं है. सोफा, परदे सब लाजवाब… यह पेंटिंग भी तुम ने बनाई है क्या? इतना समय कैसे निकाल लेती हो?’’

‘‘बस आंटी शौक है… समय निकल ही आता है.’’

शोभाजी यह सुन कर हैरान रह गईं कि उन की बनाई कलाकृति पर अपनी मुहर लगाने में इस लड़की को 1 मिनट भी नहीं लगा. फिर 3 महीने की सेवा पर कहीं पानी न फिर जाए, यह सोच वे चुप रहीं. मगर उसी पल तय कर लिया कि अब और नहीं रखेंगी वे मीना को अपने घर में. सामनेसामने उन्हीं को बेवकूफ बना रही है यह लड़की.

‘‘आप मीना की आंटी हैं न… अभी कुछ दिन और रुकेंगी न… घर आइए न इस इतवार को,’’ जातेजाते उस महिला ने अपना कार्ड देते हुए.

शोभाजी अकेली रहती हैं. बेटा सोमेश बैंगलुरु में रहता है और पति का देहांत हुए 3 साल हो गए हैं. शोभाजी ने अपने फ्लैट को बड़े प्यार से सजाया है.

शोभाजी इस हरकत पर सकते में हैं कि कहीं यह लड़की कोई खतरनाक खेल तो नहीं खेल रही. फिर चाचा ससुर को फोन किया.

‘‘तो क्या अब तक वह तुम्हारे ही घर पर है… पिछली बार घर आई थी तब तो कह रही थी उस ने घर ढूंढ़ लिया है. बस जाने ही वाली है.’’

इस बात को भी 2 महीने हो गए हैं. अब तक तो उसे चले जाना चाहिए था.

हैरान थे चाचाजी. शोभाजी ने पूरी बात सुनाना उचित नहीं समझा. बस इतना ही पता लगाना था कि सच क्या है.

‘‘तुम्हें कुछ दिया है क्या उस ने? कह रही थी पैसे दे कर ही रहेगी. खानेपीने और रहने सब के.’’

‘‘नहींनहीं चाचाजी. अपना बच्चा खापी जाए तो क्या उस से पैसे लूंगी मैं?’’

हैरान रह गए थे चाचाजी. बोले, ‘‘यह लड़की इतनी होशियार है मैं ने तो सोचा भी नहीं था. जैसा उचित लगे वैसा करो. मेरी तरफ से पूरी छूट है. मैं ने तो सिर्फ 8-10 दिनों के लिए कहा था. 3 महीने तो बहुत लंबा समय हो गया है.’’

‘‘ठीक है चाचाजी,’’ कहने को तो शोभाजी ने कह दिया देख लेंगी, मगर देखेंगी कैसे यह सोचने लगीं.

पड़ोसी नमन परिवार से उन का अच्छा मेलजोल है. मीना की भी दोस्ती है

उन से. शोभाजी ने पहली बार उन से इस विषय पर बात की.

‘‘वह तो कह रही थी आप को क्10 हजार महीना देती है.’’

चौंक उठी शोभाजी. डर लगने लगा… फिर उन्होंने पूरी बात बताई तो नमनजी भी हैरान रह गए.

‘‘नहींनहीं शोभा भाभी, यह तो हद से

ज्यादा हो रहा है… क्या आप उन मांबेटे का पता जानती हैं?’’

‘‘उस महिला ने कार्ड दिया था अपना… रविवार को अपने घर बुलाया है.’’

‘‘इस लड़की को डर नहीं लगता क्या? वे मांबेटा किस भुलावे में हैं… यहां आए थे तो यह तो समझना पड़ेगा न कि क्या देखनेसुनने आए थे,’’ नमनजी ने कहा.

शोभाजी ने कार्ड ढूंढ़ कर फोन मिलाया, ‘‘जी मैं मीना की आंटी बोल रही हूं.’’

‘‘हांहां कहिए शोभाजी… आप आईं ही नहीं… मीना कह रही थी आप जल्दी वापस जाने वाली हैं, इसीलिए नहीं आ सकतीं… सुनाइए बच्चे कैसे हैं? दिल्ली में सब ठीक है न?’’

‘‘माफ कीजिएगा मैं कुछ समझी नहीं… दिल्ली   में मेरा क्या काम मैं तो यहीं रहती हूं लुधियाना में और जिस घर में आप आई थीं वही मेरा घर है. मीना तो मेरे चाचा ससुर के किसी मित्र की बेटी है जो 3 महीने पहले मेरे पास यह कह कर रहने आई थी कि 8-10 दिनों में चली जाएगी. मैं तो इस से ज्यादा उसे जानती तक नहीं हूं.’’

‘‘लेकिन उस ने तो बताया था कि वह फ्लैट उस के पापा का है,’’ हैरान रह गई थी वह महिला, ‘‘कह रही थी उस के पापा दिल्ली में हैं. मेरे बेटे को बहुत पसंद आई है मीना. उस ने कहा यहां लुधियाना में उस का अपना फ्लैट है. सवाल फ्लैट का भी नहीं है. मुझे तो सिर्फ अच्छी बहू चाहिए,’’ परेशान हो उठी थी वह महिला, ‘‘यह लड़की इतना बड़ा झूठ क्यों बोल गई? ऐसी क्या मजबूरी हो गई?’’

दोनों महिलाएं देर तक बातें करती रहीं. दोनों ही हैरान थीं.

शाम 6 बजे जब मीना घर आई तब तक उस का सारा सामान शोभाजी ने दरवाजे पर रख दिया था. यह देख वह हैरान रह गई.

‘‘बस बेटा अब तमाशा खत्म करो… बहुत समय हो गया… मुझे छुट्टी दो.’’

रंग उड़ गया मीना का. ‘‘सच बोल कर भी तुम्हारा काम चल सकता था. झूठ क्यों बोलती रही? पैसे बचाने थे उस के लिए चाचाजी से झूठ कहा. अपना रोब जमाना था उस के लिए नमनजी से कहा कि हर महीने मुझे क्व10 हजार देती हो. अच्छे घर का लड़का भा गया तो मेरा घर ही अपने पिता का घर बता दिया. तुम पर भरोसा कौन करेगा?’’

‘‘अच्छी कंपनी में काम करती हो… झूठ पर झूठ बोल कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली तुम ने.’’

‘‘आंटी आप… आप क्या कह रही हैं… मैं कुछ समझी नहीं.’’

‘‘बस करो न अब… मुझे और तकलीफ मत दो. अफसोस हो रहा है मुझे कि मैं ने

3 महीने एक ऐसी लड़की के साथ गुजार दिए जिस के पैरों के नीचे जमीन ही नहीं है. बेवकूफ तो मैं हूं जिसे समझने में इतनी देर लग गई. मिट्टी का बरतन बबनो बच्ची जो आंच पर रखरख कर और पक्का होता है. तुम तो काठ की हांड़ी बन चुकी हो.’’

‘‘रिकशा आ गया है मीना दीदी,’’ नमनजी के बेटे ने आवाज दी. मीना हैरान थी कि इस वक्त 6 बजे शाम वह कहां जाएगी.

‘‘पास ही बीवी रोड पर एक गर्ल्स होस्टल है. वहां तुम्हें आराम से कमरा मिल जाएगा. तुम्हें इस समय सड़क पर भी तो नहीं छोड़ सकते न…’’

रो पड़ी थी मीना. आत्मग्लानि से या यह सोच कर कि अच्छाखासा होटल हाथ से निकल गया.

‘‘आंटी मैं आप के पैसे दे दूंगी,’’ कह मीना ने अपना सामान रिकशे में रखा.

‘‘नहीं चाहिए… समझ लूंगी बदले में तुम से अच्छाखासा सबक ले लिया.

भारी मन से बिदा दी शोभाजी ने मीना को. ऐसी ‘बिदा’ भी किसी को देनी पड़ेगी, कभी सोचा नहीं था.

 

चाहिए स्वस्थ और चमचमाते हुए दांत तो फॉलो करें ये टिप्स

एक प्यारी सी मुसकान सामने वाले के दिल में आप के लिए जगह बना सकती है और इस मुसकान को कायम रखने के लिए जरूरी है स्वस्थ, साफ और चमकते दांत. जिस तरह हम अपने शरीर को साफसुथरा रखते हैं ठीक वैसे ही अगर अपने मुंह की सफाई का भी खयाल नहीं रखेंगे तो दांतों व मसूढ़ों से संबंधित कई तरह के संक्रमणों के होने का खतरा बढ़ सकता है.

दांतों में सड़न, दर्द, बैक्टीरियल संक्रमण, सांस की बदबू जैसी परेशानियों के साथ ही शरीर के दूसरे हिस्से भी प्रभावित हो सकते हैं.

दूसरी गंभीर बीमारियों की वजह

दांतों में होने वाली परेशानियां कई गंभीर बीमारियों की वजह बन सकती हैं. अगर दांतों की परेशानी लंबे वक्त से चल रही है तो उसे अनदेखा न करें. ‘नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इनफौर्मेशन’ के अनुसार दांतों में होने वाली बीमारी की वजह से दिल और दिमाग से जुड़ी और अन्य बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप ओरल हाइजीन का खयाल रखें.

हार्ट अटैक का खतरा होता है कम

‘अमेरिकन कालेज औफ कार्डियोलौजी’ के अनुसार जहां मसूढ़ों के रोग होने से दिल का दौरा पड़ने का खतरा लगभग 50% तक बढ़ सकता है, वहीं ओरल हाइजीन मेंटेन करने से दिल की बीमारियों का खतरा कम किया जा सकता है.

‘सैंटर औफ डिजीज कंट्रोल’ के अनुसार जो लोग मुंह की सफाई का ध्यान नहीं रखते उन में दिल से संबंधित बीमारियां होने की संभावना 70% से भी ज्यादा होती?है. दरअसल, मुंह की सफाई ठीक से नहीं की जाए तो मुंह के बैक्टीरिया खून में मिल कर दिल तक पहुंच जाते हैं और उसे नुकसान पहुंचाने लगते हैं.

बढ़ता है कैंसर का खतरा

मुंह के कैंसर का खतरा तब सब से ज्यादा बढ़ जाता है जब लोग शराब, पान और गुटका जैसी चीजों का सेवन अधिक करते हैं और ओरल हैल्थ का खयाल नहीं रखते. ओरल प्रौब्लम्स सिर्फ मुंह के कैंसर के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य प्रकार के कैंसर की भी कारण बन सकती हैं.

कई बार मसूढ़ों की बीमारी के कारण गुरदे के कैंसर, अग्नाशय का कैंसर और ब्लड कैंसर का जोखिम भी अधिक बढ़ जाता है.

ओरल हाइजीन और लंग्स

ओरल केयर न करने से मुंह में पनपने वाले बैक्टीरिया की वजह से मसूढ़ों की बीमारी और संक्रमण हो सकता है. ये बैक्टीरिया सांस के द्वारा फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं. इस से श्वसन संबंधी संक्रमण जैसे क्रोनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है.

बच्चे का वजन सामान्य से कम होना

गर्भावस्था के दौरान कई बार गर्भवती महिला को मुंह में छाले हो जाते हैं. ऐसे में गर्भवती महिलाएं ठीक से आहार नहीं ले पाती है, जिस का असर मां और शिशु दोनों पर ही पड़ता है. जाहिर है ओरल हाइजीन के साथ हमारी सेहत के तार जुड़े होते हैं, जिस का असर मां और शिशु दोनों पर ही पड़ता है. ऐसे में मुंह और दांतों की सफाई का खयाल रखना शुरू करें ताकि लंबे समय तक हर तरह से स्वस्थ बने रह सकें.

कैसे रखें ओरल हाइजीन का खयाल

चुनें सही टूथपेस्ट: फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें. इस से दांतों की बाहरी परत इनैमल को मजबूती मिलती है और दांतों को सड़न से बचाने में भी मदद मिलती है.

टूथब्रश हो मुलायम: इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आप का टूथब्रश मुलायम हो ताकि दांतों की बेहतर सफाई भी हो जाए और मसूढ़ों को भी कोई नुकसान न पहुंचे. दांतों की सफाई में जहां टूथपेस्ट 10% भूमिका निभाता है वहीं 80 से 95% काम हमारा ब्रश ही करता है.

दिन में 2 बार ब्रश करें: दांतों को दिन में

2-3 मिनट तक ब्रश करें. इस से प्लाक के जमने की संभावना कम हो जाती है. प्लाक दांतों और मसूढ़ों के बीच जमने वाली एक चिपचिपी परत होती है, जो दांतों की तकलीफ की वजह बनती है. अत: कुछ भी खाने के बाद अच्छे से कुल्ला जरूर करें.

ब्रश करने का सही तरीका:

यह भी जरूरी है कि आप के ब्रश करने का तरीका सही हो. अपने ब्रश को दांतों के ऊपर से नीचे और दाएं से बाएं करते हुए साफ करें. वहीं ब्रश करने के दौरान जीभ की सफाई करना भी बेहद जरूरी है, लेकिन जीभ पर ब्रश बहुत तेजी से न रगड़ें.

माउथवाश भी जरूरी:

दिन में कम से कम 2 बार अपने मुंह को साफ करने के लिए एक अच्छे ऐंटीसैप्टिक माउथवाश का इस्तेमाल करें. माउथवाश ओरल हैल्थ को बनाए रखने में मदद करता है, क्योंकि यह उन हिस्सों तक पहुंच जाता है जो ब्रशिंग और फ्लासिंग से छूट जाते हैं.

डाइट पर भी दें ध्यान:

दांतों और मसूढ़ों  की देखभाल के लिए अपने आहार पर ध्यान देना भी जरूरी. फास्ट फूड के बजाय पौष्टिक भोजन करें. कौफी या सोडा ड्रिंक से बचें. ये आप के दांतों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं. शुगर की मात्रा कम करें.

खाने में जितना हो सके सलाद, सब्जियां, कच्चे फल आदि शामिल करें. प्रोबायोटिक्स जैसे पनीर, दही आदि मुंह के बैड बैक्टीरिया को गुड बैक्टीरिया में बदलते हैं. इस से दांत और मसूढ़े सेहतमंद रहते हैं.

अपनी डाइट में फ्लोरीन, कैल्सियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम आदि को भी खाद्यपदार्थों के रूप में शामिल करें. ये मिनरल्स दांतों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी होते हैं. अधिक से अधिक ऐंटीऔक्सीडैंट का सेवन करें. ऐंटीऔक्सीडैंट मुंह में कोलेजन का बनना बढ़ा कर इसे इन्फैक्शन से ज्यादा सुरक्षित बनाते हैं.

ओरल पियसिंग से बचें

जितना हो सके ओरल पियसिंग और ओरल टैटू से बचें, क्योंकि ये दोनों आप की ओरल हैल्थ के लिए खराब साबित हो सकते हैं. इन से आप के मुंह में बैक्टीरिया ट्रांसफर हो सकते हैं.

दाहिनी आंख: अनहोनी की आशंका ने बनाया अंधविश्वास का डर

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