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बेऔलाद: भाग 1- क्यों पेरेंट्स से नफरत करने लगी थी नायरा

तेजी से सीढि़यां उतरती हुई नायरा चिल्लाई, ‘‘दादी… दादी… जल्दी नाश्ता दो वरना मैं चली.’’

‘‘अरे, बस ला रही हूं,’’ हाथ में थाली लिए पुष्पा बड़बड़ाती हुई किचन से बाहर निकलीं और अपने हाथों से नायरा को जल्दीजल्दी आलूपरांठा और दही खिलाते हुए बोलीं, ‘‘सुन बताती जा कब आएगी क्योंकि तेरे इंतजार में मैं भूखी बैठी रहती हूं.’’

‘‘तो तुम खा लिया करो न दादी. मैं जब आऊंगी निकाल कर खा लूंगी.’’

नायरा की बात पर पुष्पा कहने लगीं, ‘‘आज तक ऐसा हुआ है कभी कि पोती भूखी रहे और मैं खा लूं.’’

‘‘ओ मेरी प्यारी दादी… इतना प्यार करती हो तुम मु?झ से,’’ कह कर नायरा ने दादी के गालों को चूम लिया और फिर अपने कंधे पर बैग टांगते हुए बोली, ‘‘ठीक है, आज जल्दी आने की कोशिश करूंगी, अब खुश?’’

लेकिन पुष्पा मन ही मन भुनभुनाते हुए कहने लगीं कि क्या खुश रहेंगी वे. जिस की जवान पोती अनजान लोगों के साथ पूरा दिन गलीगलीकूचेकूचे घूमतीफिरती रहती हो, वह दादी खुश कैसे रह सकती है. हर पल एक डर लगा रहता है कि नायरा ठीक तो होगी न… कितनी बार कहा नरेश से कि बेटी बड़ी हो गई है, ब्याह कर दो अब इस का. लेकिन उन का. सुनता ही कौन है?

पुष्पा के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख कर नायरा को सम?झते देर नहीं लगी कि उस की दादी उसे ले कर परेशान हैं. वह बोली, ‘‘दादी… तुम यही सोच रही हो न कि कैसे जल्दी से मेरी शादी हो जाए और तुम्हारी जान छूटे? तो बता दूं नहीं छूटने वाली सम?झ लो,’’ बड़ी मासूमियत से वह अंगूठा दिखाते हुए बोली और फिर डब्बे में से एक लड्डू निकाल कर पुष्पा के मुंह में ठूंसते हुए खिलखिला कर हंस पड़ी.

लेकिन वे ‘थूथू’ कर कहने लगीं कि पता है उसे कि मुझे शुगर की बीमारी है, फिर क्यों वह मुझे मीठा खिला रही है? मारना चाहती है क्या?

नायरा सिर्फ अपनी दादी की ही नहीं, बल्कि अपने पापा नरेश की भी जान है. वही

उन के जीने की वजह है. नायरा से ही पूरे घर में रौनक है. 21 साल की नायरा अपने पापा की तरह ही टूरिस्ट गाइड का काम करती है. जब नायरा बहुत छोटी थी तभी ये लोग दिल्ली आ कर बस गए थे. यहीं दिल्ली में ही नरेश का अपना खुद का मकान है.  देखने में बला की खूबसूरत नायरा को देख कर कोई कह ही नहीं सकता कि वह नरेश की बेटी है. उस का रंग ऐसा जैसे मक्खन में जरा सा सिंदूर बुरक दिया गया हो. उस की भूरी आंखें, पतले लाललाल होंठ, रेशमी बाल देख कर लोग उसे देखते ही रह जाते. उस की बातों में ऐसी चुंबकीय शक्ति कि जब वह बोलती तो लोग बस सुनते ही रहते. अपने व्यवहार से वह लोगों को अपना बना लेती.

मगर ऐसा भी नहीं था कि किसी पर भी वह आंख मूंद कर भरोसा कर लेती थी. अच्छेबुरे लोगों को पहचानना आता था उसे. 2 साल से टूरिस्ट गाइड का काम कर रही नायरा यह बात बहुत अच्छी तरह जानती कि दिल्ली में औटो वालों से मोलभाव कर के पैसे कम कैसे करवाए जाते हैं. अगर दिल्ली में कोई विदेशी टूरिस्ट परेशान है तो उस का साथ कैसे दिया जा सकता है, टूरिस्ट को कौन से ऐतिहासिक स्थानों पर घुमाना है. टूरिस्ट के साथ बातचीत करने से ले कर उन्हें सम?झने की कुशलता ही नायरा को एक कामयाब गाइड बनाता.

नायरा विदेशी टूरिस्टों को अपने देश, शहरों के बारे में बड़े विस्तार से बताती थी. जब वह गाइड बन कर अपने देश की धरोहर, सभ्यता और संस्कृति के बारे में टूरिस्टों को बताती थी तो इस काम से उसे बहुत खुशी मिलती थी.

टूरिस्ट की जौब के साथसाथ वह अपनी पढ़ाई भी जारी रखे हुए थी. 12वीं कर लेने के बाद वह आर्किटैक्चर की पढ़ाई कर रही थी. नायरा रोज लगभग 6-7 घंटे 10-12 लोगों को गाइड करने का काम करती थी. लेकिन कभी भी उसे इस काम से ऊब महसूस नहीं हुई बल्कि उसे नएनए लोगों से मिल कर, उन के बारे में जान कर मजा आता था. दुनिया के हर कोने से लोग यहां घूमने आते थे. उन के साथ समय बिताते हुए नायरा थोड़ीबहुत उन की भाषा भी बोलना सीख जाती थी. वह चाहे कभी घर देर से पहुंचे या अपने पढ़ाई की वजह से उसे देर रात तक जागना पड़े, उस का उस समय कोई साथ देता था, तो वह थी उस की दादी पुष्पा, जो उस के लिए ही जीती और मरती थीं. लेकिन उन्हें नायरा की चिंता लगी रहती है कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फंस जाए. वैसे भी दिल्ली लड़कियों के लिए महफूज नहीं रह गई. अगर कहीं नायरा के साथ कुछ ऐसावैसा हो गया तो क्या करेंगी वे सोच कर ही पुष्पा कांप उठतीं.

मगर नायरा उन्हें सम?झती कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा क्योंकि उन की पोती अब बच्ची नहीं रही, बल्कि वह तो लोगों को रास्ता दिखाती है. लेकिन पुष्पा अपने कमजोर दिल को कैसे सम?झएं? कैसे कहें कि सब ठीक है, कुछ नहीं होगा? कितना चाहा था उन्होंने कि नरेश शादी कर ले ताकि नायरा को एक मां मिल जाए. लेकिन नरेश तो शादी की बात से ही भड़क उठता था. उस का कहना था कि अब नायरा ही उस के लिए सबकुछ है. लेकिन पुष्पा को अब अपनी पोती नायरा की शादी की चिंता सताने लगी थी. वे चाहती हैं जल्द से जल्द उस की शादी हो जाए, तो वे चैन से मर सकें.

मगर नरेश का कहना था कि नायरा किस से शादी करेगी, कब करेगी, यह उस की अपनी मरजी होगी. नरेश को अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था. अपने पापा का खुद पर भरोसा देख नायरा के मन में तसल्ली जरूर हुई थी, लेकिन पुष्पा को अपने लिए इतना चिंतित देख उसे बुरा भी लगता था. ऐसे समय में नायरा को अपनी मां की याद सताने लगती और वह भावुक हो कर रो पड़ती थी.

नायरा के पैदा होते ही उस की मां चल बसी थी, यह बात उस के पापा ने ही उसे बताई थी. लेकिन नायरा जब भी अपने पापा से अपनी मां के बारे में पूछती है कि उन्हें क्या हुआ था? कैसे मर गईं वे? तो नरेश चिड़ उठता और कहता कि एक ही सवाल बारबार दोहरा कर वह उसे परेशान न किया करे.

नायरा सम?झ नहीं पाती कि मां के बारे में पूछने पर नरेश इतना भड़क क्यों जाते हैं, जबकि उस की मां तो अब इस दुनिया में भी नहीं है. लेकिन पुष्पा उसे सम?झतीं कि उस के पापा, उस की मां से बहुत प्यार करते थे और जब वह उसे छोड़ कर चली गई तो नरेश को अच्छा नहीं लगा था.

‘‘लेकिन दादी… इस में मां की क्या गलती थी? उन्होंने क्यों मरना चाहा होगा? उन्हें दुख नहीं हुआ होगा अपने पति व बच्चे को छोड़ कर जाते हुए? बोलो न दादी… चुप क्यों हो?’’

पुष्पा क्या बोलतीं? कैसे और किस मुंह से कहतीं कि उस की मां मरी नहीं, बल्कि जिंदा है.

‘‘हां, नायरा की मां जिंदा है.  लेकिन वह अपनी बेटी से कोसों दूर रहती है. इतनी दूर कि नायरा की आवाज भी उस तक नहीं पहुंच सकती है. पुष्पा नायरा को उस की मां के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थीं. लेकिन नरेश को दिया वचन उन्हें बोलने से रोक देता था. पुष्पा अंदर ही अंदर इस सोच में घुली जा रही थीं कि उन के जाने के बाद उन की पोती का क्या होगा? कौन ध्यान रखेगा उस का? उन्हें नायरा के भविष्य की चिंता सताने लगी थी. लेकिन यह बात वे नरेश से कह भी नहीं पाती थीं.

एक बार कहा था तो कैसे चिढ़ते हुए उस ने बोला था कि क्या वह मरने वाला है जो वे ऐसी बातें कह रही हैं? जिंदा है वह अभी और अपनी बेटी का खयाल रख सकता है. लेकिन पुष्पा अपने मन की उल?झन को कैसे सम?झएं कि वे क्या सोचती रहती हैं.

इधर कई दिनों से पुष्पा की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. सोतीं तो उठने का मन

ही नहीं होता. पूरे बदन में दर्द सा महसूस होता. शायद शुगर बढ़ गई हो उन की. लेकिन सारी दवाइयां तो समय से ले ही रही थीं वे, फिर क्या हुआ उन्हें? शुगर बढ़ने पर भूखप्यास ज्यादा लगती है. पर उन का तो खाना देखने तक का मन नहीं करता. पुष्पा को अब इस बात का एहसास होने लगा कि उस के पास समय कम है, लेकिन मरने से पहले वे नायरा को उस की मां के बारे में सबकुछ बता देना चाहती थीं.

‘‘बेटा, यहां मेरे पास आ कर बैठ, मुझे तुम से कुछ बातें करनी हैं,’’ नायरा को अपने पास बुलाते हुए पुष्पा बोलीं, लेकिन नायरा कहने लगी कि वह उन की सारी बातें सुनेगी, लेकिन पहले वे ठीक हो जाएं.

‘‘नहीं बेटा, फिर शायद कहने के लिए मैं न रहूं,’’ बोलते हुए वे जोर से खांसने लगीं तो नायरा दौड़ कर उन के लिए पानी लाने चली.  लेकिन पुष्पा उस का हाथ पकड़ कर रोकते हुए बोलीं, ‘‘नहीं… पानी नहीं… तुम यहां… मेरे पास… बैठो और और सुन लो मेरी बात क्योंकि मेरे पास समय… नहीं है. बेटा… मैं तुम्हें यह बताना चाहती हूं कि तुम्हारी मां… जिंदा है, लेकिन यह बात तुम से इसलिए छिपा कर रखी गई क्योंकि नरेश नहीं चाहता था कि तुम्हें यह बात कभी पता चले.’’

फिल्मों में इंटिमेट सीन्स शूट करने का राज क्या होता है, आइये जानें

आज की फिल्मों या वेब सीरीज में किसिंग सीन या इंटिमेट सीन्स का होना कोई बड़ी बात नहीं है. सभी स्टार्स प्यार को दर्शाने के लिए किसिंग सीन को नॉर्मल मानते हैं और इसे करने में वे हिचकिचाती नहीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इस दृश्य के न होने पर फिल्म की कहानी अधूरी लगेगी. एक इंटरव्यू में अभिनेत्री कल्कि कोचलिन ने कही है कि जब पहली बार उन्हें एक इंटिमेट बेड सीन्स को करने के लिए कहा गया, तो उन्हें बहुत अजीब सी फीलिंग हुई थी और उस दृश्य को करने के लिए उन्होंने कुछ समय माँगा और बाद में किया, लेकिन उनकी शर्त यह रही कि निर्देशक को एक बार में दृश्य को शूट करना है, रिटेक वह नहीं देगी.

दर्शक इन दृश्यों को पैसा वसूल मानते आए हैं. आज लगभग हर फिल्म में किसिंग सीन तो देखे ही होंगे और जब फिल्म इमरान हाशमी की हो, तो इसमें बिना किस के फिल्म पूरी ही नहीं होती, लेकिन सवाल यह उठता है कि फिल्म में ये सीन कैसे शूट किए जाते हैं. डायरेक्टर और क्रू मेंबर्स के सामने अभिनेत्रियां कैसे आसानी से किसिंग या बेड सीन दे देती हैं, जाने कैसे शूट होती है ऐसे दृश्य.

डबल बॉडी का प्रयोग

ऐसे अन्तरंग दृश्यों के बारें में निर्देशक पहले से ही अभिनेत्री को बता देते है, ताकि वह भी मानसिक रूप से तैयार रहे. अगर कोई एक्ट्रेस इसे करने से मना करती है तो डबल बॉडी का प्रयोग किया जाता है, जिसकी तैयारी निर्देशक पहले से ही कर लेते है, ताकि शूटिंग में किसी प्रकार की बाधा न हो. इसके अलावा इंटिमेट सीन्स की शूटिंग के लिए निर्देशक इंटीमेसी स्पेशलिस्टों की सेवाएं लेने और वर्कशॉप करने से लेकर शूटिंग के समय सुरक्षित शब्दों का इस्तेमाल करते  हैं, ताकि कलाकारों को किसी तरह की असहजता महसूस न हो.

कलाकारों में अच्छी केमिस्ट्री

फिल्म निर्माता अलंकृता श्रीवास्तव और सिनेमाटोग्राफर जय ओझा ने फिल्म मेड इन हीवेन की शूटिंग के दौरान कलाकारों के बीच विश्वास का भाव पैदा करने और बार-बार रीटेक से बचने के बारे में विस्तार से कलाकारों से बातचीत की, उनके बीच में एक केमिस्ट्री तैयार की, ताकि सीन्स को फिल्माते वक़्त वे असहज न हो. मार्गरीटा विद ए स्ट्रा की शूटिंग से पहले निर्देशक शोनाली बोस ने तय कर लिया था कि उनके कलाकार खुद को सुरक्षित महसूस करें. इसलिए कल्कि और सयानी गुप्ता ने बोस के साथ इंटीमेसी वर्कशॉप की. जिस दिन सयानी गुप्ता को अपनी शर्ट उतारनी थी, उस समय सेट पर कुछ महिलाएं ही थीं. बोस ने भी शर्ट उतार दी और कमर पर एक तौलिया बांधा. इससे दोनों के बीच में हिचकिचाहट में कमी आई और सीन शूट करना आसान हुआ.

नहीं होता आसान  

अभिनेत्री अनुप्रिया गोयेंका से इंटिमेट सीन्स की सहजता के बारें में पूछने पर बताया कि कोई भी इन्तिनेट सीन्स को शूट करना आसान नहीं होता, उसमे अंतरंगता की फीलिंग लानी पड़ती है, जिसके लिए इंटिमेसी स्पेशलिस्ट होते है, जो उस सीन की कोरियोग्राफी करते है, जिससे उस सीन को फिल्माना आसान होता है. इन सीन्स को फिल्माते वक़्त अधिकतर एक छोटी टीम होती है, ताकि कलाकार को असहजता महसूस न हो. केवल एक्ट्रेस ही नहीं एक्टर भी कई बार ऐसी सीन्स करने में सहम जाते है.

अभिनेत्री तापसी पन्नू की फिल्म हसीन दिलरुबा में तापसी, विक्रांत मेसी और हर्षवर्धन के साथ इंटिमेट सीन्स करती हुई दिखी थी, जिसमे दोनों एक्टर सहमे हुए थे कि ये दृश्य वे कैसे शूट करेंगे, लेकिन तापसी ने उन्हें बातचीत कर सहज किया और दृश्य को फिल्माया गया.

रजामंदी जरुरी

हिंदी फिल्म निर्देशक अशोक मेहता कहते है कि फिल्म की कहानी को बताते हुये एक्ट्रेस को पहले से सीन के बारें में बताया जाता है, अगर उसने उसे करने से मना किया तो डबल बॉडी का प्रयोग होता है, जिसमे एक लेटर लिखकर अभिनेत्री और डबल बॉडी करने वाले की साइन करवाई जाती है, ताकि बाद में एक्ट्रेस आरोप न लगाए कि उस दृश्य के बारें में उन्हें पता नहीं था. अगर कोई एक्ट्रेस अधिक समस्या करती है तो उस सीन को हटा भी दिया जाता है. फिल्मों से अधिक ये समस्या ओटीटी पर होता है.

तकनीक का प्रयोग

तकनीक का प्रयोग भी ऐसे सीन्स के लिए किया जाता है, जिसमे डबल बॉडी के साथ उसे शूट कर उसमे अभिनेत्री का फेस लगा दिया जाता है. अशोक मेहता आगे कहते है कि कई बार एक्ट्रेस पहले इंटिमेट सीन्स को शूट तो कर लेती है, लेकिन बाद में परिवार वालों या बॉयफ्रेंड के पूछने पर साफ़ इनकार भी कर देती है कि उन्होंने ये सीन्स नहीं दिए है और निर्माता निर्देशक पर आरोप लगाती है, जिससे समस्या आती है. बड़े प्रोडक्शन हाउस को इससे अधिक फर्क नहीं पड़ता, लेकिन छोटे निर्माता, निर्देशक को कोर्ट तक जाना पड़ता है, जिसका सेटलमेंट अधिक पैसे से करना पड़ता है या सीन को हटाना पड़ता है. इंडस्ट्री में आई नई या दो तीन फिल्म कर चुकी एक्ट्रेस के साथ अधिकतर ऐसी समस्या है. कई बार कुछ इंटिमेट सीन्स की जरुरत खास कहानी के लिए होती है, मसलन फिल्म राम तेरी गंगा मैली में झरने के पानी में मन्दाकिनी का नहाना और बच्चे को स्तनपान कराने वाले दृश्य की वजह से फिल्म हिट हुई. लोग उसी को देखने हॉल तक अधिक गए. तब जमाना अलग था, आज के समय में इंडियन फिल्म इंडस्ट्री (Indian film industry) इंटिमेट सीन्स के मामले में वास्तविकता के बेहद करीब पहुंच गया है. मेड इन हेवन, फोर मोर शॉट्स प्लीज और सैक्रेड गेम्स, आदि वेब सीरीज और जिस्म मर्डर जैसी फिल्मों में ये देखा जा सकता है. फिल्म इंडस्ट्री में सभी इसे खुले दिल से स्वीकार कर रहे हैं और इसे हिट भी करवा रहे है.

इल्यूजन को करते है क्रिएट

आज अगर कोई अभिनेता या अभिनेत्री बोल्ड सींस करने से मना कर दे, तो कई बार टीम के क्रू को इल्यूजन क्रिएट करना पड़ता है यानि ब्यूटी शॉट्स से काम चलाना पड़ता है. सिनेमैटोग्राफी की कुछ ऐसी तकनीक का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे बिना कुछ हुए भी दर्शकों को लगता है कि बहुत कुछ हुआ है. ब्यूटी शॉट्स यानि हग करना, किस करना, हाथों में हाथ डालना या फिर कैमरा एंगल ऐसे रखना, जिसके जरिए बॉडी पार्ट्स को कवर किया जा सके. यह सभी सिनेमैटोग्राफी तकनीक होती हैं, जिसे वे रियल लुक देते है. बेड पर सैटिन के बेडशीट्स यूज किए जाते हैं और उससे ढककर केवल इल्यूशन क्रिएट किया जाता है.

लेते है क्रोमा शॉट्स

अगर कोई भी अभिनेता या अभिनेत्री ऐसे सीन करने में अनकंफरटेबल फील करते हैं, तो निर्देशक क्रोमा शॉट्स भी लेते हैं. क्रोमा यानि नीले या हरे रंग का कोई कवर जिसे बाद में गायब कर दिया जाता है, जैसे एक्टर और एक्ट्रेस को किसिंग सीन से आपत्ति है तो उनके बीच सब्जी जैसे लौकी या कद्दू रख दिया जाता है. ग्रीन कलर होने के कारण लौकी क्रोमा का काम करती है. दोनों लौकी को किस करते हैं और पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान उसे गायब कर दिया जाता है.

रखनी पड़ती है शारीरिक दूरी

इसके अलावा कोई भी बोल्ड या इंटीमेट सीन शूट करते वक्त इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है कि मेल और फीमेल के प्राइवेट पार्ट्स आपस में टच ना हों और न ही कुछ अधिक रिविल हो, क्योंकि करोड़ों की लगत से बनी हर फिल्म को बनाते वक़्त कलाकारों के स्टेटस को भी ध्यान में रखना जरुरी होता है. शूटिंग के समय असमंजस की स्थिती पैदा होने से बचने के लिए क्रिकेट खिलाड़ियों की तरह एक्टर के लिए लोगार्ड या कुशन या फिर एयर बैग का इस्तेमाल किया जाता है, जो दोनों के बीच गैप रखता है. वहीं एक्ट्रेस के लिए पुशअप पैड्स, पीछे से टॉपलेस दिखाना हो, तो आगे पहनने वाले सिलिकॉन पैड का यूज किया जाता है. किसी भी इंटीमेट सीन को शूट करने के लिए सबसे जरूरी अभिनेता या अभिनेत्री की आपसी एडजस्टमेंट होना जरूरी होता है. शारीरिक दूरी बनाये रखने के लिए कई बार प्रॉप का भी सहारा लेना पड़ता है, जो आर्टिस्ट के पसंद के आधार पर होता है, प्रॉप में सॉफ्ट पिलो, स्किन कलर ड्रेस, मोडेस्टी गारमेंट्स आदि कुछ चीजे शामिल होती है.

Christmas 2023: कियारा को बाहों में लेकर Kiss करते हुए नजर आए सिद्धार्थ मल्होत्रा, देखें रोमांटिक फोटो

Kiara Advani and Sidharth Malhotra Christmas Photos: बॉलीवुड के क्यूट और सबसे प्यारे कपल सिद्धार्थ मल्होत्रा- कियारा आडवाणी ने शादीशुदा जोड़े के रुप में पहली बार क्रिसमस साथ में मनाया. कपल की फोटो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है. कियारा आडवाणी ने इंस्टाग्राम पर बेहद ही रोमांटिक तस्वीर शेयर की है. क्रिसमस के मौके पर पत्नी कियारा ने सिद्धार्थ के साथ  रोमांटिक तस्वीर साझा की और फैंस को बधाई दी.

इस तस्वीर में सिद्धार्थ ने पत्नी कियारा को बाहों में कसकर पकड़ा हुआ है और उनके गालों पर प्यारा सा किस कर रहे हैं. बीते रात जब यह तस्वीर अपने फैंस के साथ शेयर की तो लाइक्स और कमेंट्स की बाढ़ आनी शुरु हो गई है. फैंस कियारा-सिद्धार्थ की रोमांटिक फोटो पर ढ़ेर सारा प्यार लूटा रहे है.

करण जौहर ने किया कमेंट

कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ की रोमांटिक फोटो पर फिल्म मेकर करण जौहर ने किया कमेंट. करण जौहर ने कमेंट सेक्शन में दिल के इमोजी बनाए हैं. इस तस्वीर में कियारा ने रेड कलर की सुंदर ड्रैस पहनी है वहीं सिद्धार्थ ने ब्लैक शर्ट और रेड कलर की पैंट पहन रखी है. इसके साथ ही कियारा ने अपने हैड पर रेंडियर वाला क्यूट सा हेयरबैंड लगाया हुआ है

 

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इसी साल हुई थी कियारा- सिद्धार्थ की शादी

दरअसल, कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा ने 7 फरवारी 2023 को राजस्थान के सूर्यगढ़ पैलेस में शादी की थी. इस शादी में बॉलीवुड के कई सितारों ने शिरकत की थी. ‘शेरशाह’ मूवी के दौरान दोनों में प्यार का परवान चढ़ा था. इसी फिल्म के गाने पर कियारा ने शादी में एंट्री ली थी, जो काफी वायरल हुई थी.

कियारा और सिद्धार्थ की अपकमिंग फिल्में

वर्कफ्रंट की बात करें तो सिद्धार्थ अपनी फिल्म ‘योद्धा’ पर काम कर रहे हैं और वेब सीरीज ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ के साथ अपना ओटीटी डेब्यू कर रहे है. वहीं कियारा आडवाणी की पाइपलाइन में ‘गेम चेंजर’ और एक्शन थ्रिलर ‘वॉर 2’ है.

जब घर बन जाए जंग का मैदान

‘‘अ रे यार मुझे तो घर में रहना पसंद ही नहीं है, जब देखो दोनों चिकचिक करते रहते हैं. इसे घर नहीं कहते हैं, मुझे तो बाहर दोस्तों के साथ ही अच्छा लगता है या फिर अपना कमरा, जहां लैपटौप पर मूवी देखो व मोबाइल से गप्पें मारो, बस यही हमारी दुनिया है और हमारा सुकून. हमें जो पसंद है वही करेंगे,’’ गुडि़या अपनी सहेली से कह रही थी. वह हमेशा अपने घर से दूर भागती है, जहां मांबाप बातबात पर झगड़ते हैं. उस ने कभी उन्हें प्यार से बात करते ही नहीं सुना, वह घर से बाहर सुकून तलाशने लगी.

आज सुबहसुबह नीलेश का फोन आया, बहुत गुस्से में था, ‘‘दीदी, आज मैं पूरी तरह हार गया. इन का कुछ नहीं हो सकता. जब देखो भूखे शेर की तरह खाने को दौड़ते हैं. जरा सा भी चैन नहीं है. बातबात पर झगड़ा करते रहते हैं, एक भी चुप नहीं होना चाहता है,’’ नीलेश गुस्से में लालपीला हो रहा था.

‘‘हां सही बात है भाई कितना लड़ते हैं, हम  कितना भी अच्छा करें इन्हें संतुष्टि नहीं मिलती है. कभी आपस में ?ागड़ेंगे तो कभी हमारे सिर पर तलवार लटकी रहती है,’’ निशा कुछ कहती कि तभी दूसरा भाई आ गया.

वह भी गुस्से में अपना आपा खोने लगा, ‘‘इस घर में कभी शांति नाम की चीज नहीं मिलेगी. घर का माहौल इतना खराब रहता है कि हम 2 पल चैन से बैठे नहीं सकते, नौकरी का  काम घर से ही चलता है, मन करता है दूसरे शहर चला जाऊं. इन के लिए हम करकर के मर जाएंगे तो भी इन को कभी संतुष्टि नहीं मिलेगी, ?ागड़ने के लिए कुछ नहीं मिला तो सूई हमारी तरफ घूम जाती है. हम इतने बड़े पद पर काम करते हैं, इन के साथ खड़े होने में शर्म आती है.’’

इधर बात करते समय नीलेश भी उग्र हो गया, ‘‘यार, इन्हें मरना हो मरें, कम से कम हमें तो चैन से जीने दें. दो पल खुशी नहीं दे सकते हैं, मैं तो भविष्य में अपने बच्चों पर इन का साया नहीं पड़ने दूंगा, दीदी तुम मुझे कुछ मत कहना.’’

उच्च शिक्षित परिवार के युवाओं का इस तरह बातें करना, सड़क किनारे ?ोंपड़पट्टी के परिवार की तरह लग रहा था. प्रवीण की उच्च पद पर नौकरी लगी, लेकिन उस ने आज तक अपने मित्रों को घर नहीं बुलाया. यदि कोई आने के लिए कहता तो वह बहाना बना कर बाहर ही मिलता क्योंकि घर में घुसते ही स्वयं उस के चेहरे के भाव बदल जाते हैं. उस के पिता बातबात पर औकात की बातें करते, मां को बिना बात मानसिक रूप से टौर्चर करते.

जब धैर्य खत्म हो जाए

आज सुबह से घर का माहौल खराब था क्योंकि नाश्ता समय पर नहीं मिला, मां देर से उठी थीं. उन्होंने मां को खूब सुनाना शुरू कर दिया और सुनातेसुनाते पुरानी बातें भी निकालनी शुरू कर दीं. जब वे उन पर हावी होने लगे तो अंत में मां का धैर्य खत्म हो गया. कितना सहन करतीं. सुबहसुबह घर में तूतू, मैंमैं हो गई. प्रवीण व उस की बहन ने घर के माहौल को ठीक करने की कोशिश की तो दोनों का गुस्सा अपने बच्चों पर फूट पड़ा. प्रवीण ने गुस्से में कह दिया कि यदि इतनी तकलीफ है तो तलाक दे दो और शांति से रहो. इन शब्दों ने आग में घी का काम किया. अब अगले कुछ दिन अंतहीन जंग होने वाली है. यह बोझिल माहौल कई दिनों तक खत्म नहीं होता है.

कृति अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान है. उस ने अपने मम्मीपापा के बीच हमेशा खटपट ही देखी है. बचपन में एक बार उस की मम्मी ने उस से पूछा था कि कृति तुम मम्मा के पास रहोगी या पापा के पास. कृति का पूरा बचपन इसी डर में बीता कि पता नहीं मम्मीपापा कब तलाक ले कर अलग हो जाएं. अब उस की शिक्षा पूर्ण हो गई लेकिन उस के मम्मीपापा का एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप जारी हैं. इसी कारण वह अपने घर से दूर होस्टल चली गई थी. आज घर पर आने के नाम से भी उसे चिढ़ होने लगी. कृति कहती है, ‘‘मैं इतनी दूर चली जाऊंगी जहां सुकून से रहूं. मुझे वापस आना ही नहीं है, न ही वे मेरे पास आ सकतें है.

दोटूक जवाब

शिक्षा पूरी होने के बाद शादी के नाम पर कृति ने अपनी मां को दोटूक जवाब दे दिया, ‘‘मुझे शादी नहीं करनी है. किसी को घर में मत  बुलाना और न ही मुझ से पूछना. मेरा जब भी मन होगा खुद शादी कर लूंगी. उस की मां ने समझने की कोशिश की तो उस ने मां को पलट कर जवाब दिया, ‘‘तुम कौन से सुखी हो. बचपन से देख रही हूं, रोती रहती हो, कितना झगड़ते हो. तलाक क्यों नहीं ले लेते? यदि शादी ऐसी होती है तो मुझे शादी नहीं करनी है. मुझे शादी के नाम से भी नफरत है. पापा और आप कितना झगड़ते हैं. कुछ नहीं रखा है इन रिश्तों में… सिर्फ बंदिशें ही हैं. इस से तो हमारा जमाना अच्छा है कि हम पहले डेट करते हैं, साथ में रह कर देखते है, विचार मिले तो लिवइन में रहो वरना अलग हो जाओ. मैं अकेली रहूंगी.’’

मां सीमा अपनी बेटी की बात सुन कर अवाक खड़ी थी. आज उसे एहसास हुआ कि आपसी मतभेद व बहस ने उस के कोमल मन पर कितना नैगेटिव असर छोड़ा है. जानेअनजाने में अपने दुख को साझ कर के उस ने अपनी बेटी को भी उस का हिस्सा बना लिया. आज पतिपत्नी चाह कर भी नौर्मल नहीं हैं. कृति को उन्होंने ख़ूब समझाया कि यह आम बात है. हर घर में झगड़े होते हैं लेकिन कृति का गुबार बाहर आ गया, ‘‘जाने दो आप अपनी दुनिया में मस्त रहो व मुझे अपने अनुसार जीने दो.’’

शांति बिखर जाती है

इसी तरह साहिबा और साहिल एक दिन अपने मम्मीपापा व दादी के साथ लूडो खेल रहे थे. खेलतेखेलते मम्मी ने साहिल से कहा पापा कि गोटी मार दो तो पापा के गुस्सा 7वें आसमान जा पहुंचा. वे जोर से बोले कि तुम अपने खेल से मतलब रखो. नतीजा यह हुआ कि खेल कुछ ही पलों में जंग का मैदान बन गया. साहिबा ने हंसते हुए माहौल को बदलने की कोशिश की लेकिन तब तक कोल्ड वार शुरू हो गया, पलभर में शांति बिखर गई.

समुद्र किनारे बैठे एक युवा से बात हुई (बदला हुआ नाम) विजय भी अपने मांबाप का इकलौता बेटा है. लेकिन उस ने अपने घर में जो देखा उस के बाद उसे किसी से भी कोई सरोकार नहीं है. न उस के पेरैंट्स का स्वार्थ, उपेक्षा व झगडे ने उन के रिश्ते में जहर घोलने का काम किया है. गालीगलौज से बात करना उसे पसंद नहीं आया और उस ने अपना जिंदगी का रास्ता बदल दिया.

दोस्तों ने उस से कहा भी कि तुम अकेले हो तो तुम्हें यहीं रह कर अपना भविष्य देखना होगा. तुम्हारे मातापिता को बुढ़ापे में तुम्हारी जरूरत होगी.

तब विजय ने टका सा जवाब दिया कि मैं अब इस नर्क में नहीं रह सकता हूं, उन्होंने अपने जीवन जी लिया है. मैं अपना जीवन अपने तरीके से जीना चाहूंगा. मैं थक गया हूं इन के ?ागड़ो से, मु?ो प्यार के दो शब्द सुनने को नहीं मिलते हैं, न घर में हंसीमजाक होता है. डर लगता है कब किस बात पर बम फूट जाए. उस के चेहरे पर उदासी और दुख साफ नजर आ रहा था.

फिर कई युवाओं से बात की तो उन्होंने कहा, ‘‘हम युवा पीढ़ी इसी कारण से घर से दूर अपने दोस्तों के साथ सुकून तलाशती है. यही कारण है कि अपने घर लौटना नहीं चाहती हैं. यदि विदेश चले जाएं तो हमारे मातापिता कभी भी दखलंदाजी नहीं कर सकते हैं.’’

क्या कहते हैं ऐक्सपर्ट

मनोवैज्ञानिक ऐक्सपर्ट कहते हैं कि पेरैंट्स के बीच होते झगड़े व मतभेद बच्चों में ऐंग्जाइटी, डिप्रैशन, असहजता, एकाकीपन यहां तक कि आगे चल कर रिलेशनशिप में भी परेशानी उत्पन्न करने में सक्षम है. इस से बच्चों की शादीशुदा जिंदगी कितनी ख़राब होगी, इस का अंदाजा उन के मातापिता को नहीं होता है. बच्चे जो देखते हैं उन के दिमाग पर वही अंकित हो जाता है. हर बच्चा अपने पेरैंट्स से सलाह, मार्गदर्शन व सपोर्ट चाहता है. बच्चों में पेरैंट्स के झगड़े नैगेटिव विचारों का काम करते हैं. हर पतिपत्नी में झगड़े होते हैं लेकिन पेरैंट्स के ये झगड़े युवाओं के मन पर दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ रहे हैं.

आज की युवा पीढ़ी अपने में मस्त रह कर जीना चाहती है. युवाओं का यह आक्रोश गलत नहीं है. मातापिता को यह समझना होगा कि उन के झगड़े में बच्चे पिस रहे हैं. भविष्य में इस के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं. युवा अपने साथी से स्वस्थ और संतुलित संपन्न बनाने में समस्याओं का सामना कर सकते है. प्रेम और विश्वास की डोर की जगह असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है.

शायद यही वजह है कि अपने पेरैंट्स को देख कर युवा पीढ़ी अपनी पसंदनापसंद शादी के पहले ही तय कर लेती है. उस का कहना है कि हम अपनी तरह अपने बच्चों को असुरक्षा की भावना नहीं दे सकते हैं. पेरैंट्स को आज आंकलन की बहुत ज्यादा जरूरत है नहीं तो उन का यह व्यवहार आने वाली पीढ़ी को गलत दिशा में प्रेरित करेगा जो भविष्य की नींव को खोखला कर सकता है.

 

ऐसे बचें डैंड्रफ और ड्राई स्कैल्प से

शरीर की बाकी त्वचा की तुलना में सिर की त्वचा पर सब से ज्यादा औयल ग्लैंड्स होती हैं, फिर भी ड्राई स्कैल्प की समस्या बेहद आम है. इस का मुख्य कारण है बदला हुआ मौसम. कई बार समर सीजन में स्कैल्प पर सनबर्न भी हो जाता है जिस से समर सीजन में भी ड्राई स्कैल्प की समस्या हो जाती है लेकिन विंटर में यह ज्यादा होती है. ड्राई स्कैल्प है तो डैंड्रफ तो आएगा ही यह जरूरी नहीं. दोनों के लक्षणों में कुछ समानता जरूर है लेकिन दोनों से निबटने के तरीकों में थोड़ा अंतर है.

आइए, जानते हैं इन दोनों समस्याओं से निबटने के लिए क्या करें:

  •  यदि अचानक आप के बाल और स्कैल्प ड्राई होने लगी है तो या तो आप खुद को ठीक से हाइड्रेट नहीं कर रहीं या फिर आप ने कोई ऐसा कैमिकल वाला उत्पाद सिर या बालों के लिए इस्तेमाल किया है जो आप की त्वचा को सूट नहीं करता.
  • ड्राई स्कैल्प की समस्या ज्यादा बढ़ गई है और यीस्ट भी जमा होने लगा है तो डर्मैटोलौजिस्ट से मिलें. यदि सिर्फ मौसम बदलने पर ड्राई स्कैल्प की समस्या होती है तो समयसमय पर अच्छे पार्लर से हेयर स्पा ले सकती हैं या फिर ऐक्सफौलिएट करा सकती हैं. जहां भी ट्रीटमैंट लें यह जरूर देखें कि इस्तेमाल किए जाने वाले रिहाइड्रेटिंग टोनर में सोडियम सैलिसिलेट इनग्रीडिऐंट हो. यह स्कैल्प को धीरेधीरे आराम पहुंचाता है.
  • ऐलोवेरा जैल आजकल बाजार में आसानी से उपलब्ध है. इस का सीधे इस्तेमाल कर सकती हैं.
  • बाल धोने से 1-2 घंटे पहले जोजोबा या फिर कोकोनट औयल से मालिश करें.
  • ऐसे स्कैल्प मास्क जिन में ऐलोवेरा या माइल्ड ऐक्सफौलिएंट हों का इस्तेमाल हफ्ते में 2 बार कर सकती हैं.
  • स्कैल्प और बालों को प्रोटैक्शन देने के लिए स्कैल्प नैचुरल औयल प्रोड्यूस करती है लेकिन यदि आप जरूरत से ज्यादा हैड वाश करेंगी तो ड्राईनैस की समस्या और बढ़ेगी.
  • ज्यादा कैमिकल्स, सल्फेट्स या फ्रैगरैंस वाले शैंपू स्कैल्प को नुकसान पहुंचाते हैं. इन से बचें.
  •  अच्छी कंपनी के हाइड्रेटिंग हेयर सीरम का इस्तेमाल ड्राई स्कैल्प और डैंड्रफ दोनों समस्याओं को कम करेगा.

टिप्स

  •  औयल बेस्ड शैंपू चुन सकती हैं. टीट्री औयल बेस्ड शैंपू बिना किसी साइड इफैक्ट के डैंड्रफ की समस्या को कम कर सकता है.
  • आजकल बाजार में पाइरिथिऔन इनग्रीडिऐंट वाला शैंपू भी उपलब्ध है. डैंड्रफ की समस्या ज्यादा है तो इसे ट्राई कर सकती हैं.
  • डैंड्रफ की समस्या है तो हेयर स्ट्रेटनर और ब्लो ड्रायर का इस्तेमाल बिलकुल न करें. हीटिंग टूल्स स्कैल्प को और भी ड्राई कर सकते हैं जिस से इचिंग बढ़ जाएगी.
  • स्कैल्प को नैचुरली हैल्दी बनाना है तो अपनी डाइट में काबुली चने, अदरक, सेब, केला और सनफ्लौवर सीड्स का संतुलित उपयोग करना शुरू कर दें.
  • सफेद पास्ता, शुगर कैंडी, पोटैटो चिप्स, कुकीज, मफिंस, फ्लेवर्ड योगर्ट, व्हाइट राइस और ज्यादा मीठी डिशेज हाई कार्ब होती हैं जो डैंड्रफ की समस्या को बढ़ा सकती हैं.
  • डेली हेयर औयलिंग से डैंड्रफ खत्म हो जाता है यह एक मिथ है. ऐसा करने से डैंड्रफ स्कैल्प से चिपक जाता है.

कैंसर में कार टी सेल थेरपी क्या है और कब दी जाती है

आज के समय में कैंसर के मरीजों कि तादाद लगतार बढ़ती जा रही है भारत में ही हर साल तकरीबन 14 लाख मरीज इस गंभीर  बीमारी  से ग्रस्त हो रहे हैं जिससे निजात पाने के लिए वैज्ञानिक हर मुमकिन प्रयास कर रहे हैं ऐसा ही एक प्रयास है काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर) टी-सेल थेरेपी जोकि ब्लड कैंसर से  पीड़ित मरीजों के लिए एक उम्मीद बन कर आई है. यह थेरेपी उन मरीजों के लिए है जिनका कीमो, सर्जरी जैसे ट्रीटमेंट के बाद भी कैंसर फिर से एक्टिव हो रहा है.

कब शुरू हुई

2017 में अमेरिका में इस थेरेपी को अनुमति मिली थी, जिसकी कीमत लगभग तीन से चार करोड़ के बीच में रखी गई लेकिन भारत में  आईआईटी बॉम्बे के एक्सपर्टस और टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) द्वारा यह  2018 में विकसित की गई. जिससे भारत में अब 40 से 45 लाख तक  में मरीज को इलाज मोहिया कराया जा सकता है शुरुवात में पहले इसे  मरीजों पर ट्रायल किया गया परिणाम अच्छे आने से अब दिल्ली के राजीव गाँधी कैंसर हॉस्पिटल, मैक्स, और फरीदाबाद के अमृता  हॉस्पिटल में भी यह प्रक्रिया शुरू हो गई है.

क्या हैं प्रोसेस

इस थेरेपी में मरीज के टी-लिम्फोसाइट्स या टी-सेल्स को रक्त में से निकला जाता है और इन सेल्स को लैब में मशीनों में रखा जाता है जिससे ये सेल्स कैंसर के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. इस थेरपी में कम से कम 2 हफ्ते लग जाते हैं इस दौरान मरीज को हॉस्पिटल में ही एडमिट रहना  बेहतर होता है. बाद में इन्हें फिर से शरीर में डाल दिया जाता है फिर इन टी सेल्स को मरीज के ब्लड में वापिस डाल दिया जाता है.  मरीज के शरीर में जाने के बाद कैंसर के साथ टी सेल्स अपनी लड़ाई लड़ते हैं और उन्हें अंदर ही अंदर खत्म करने लगते हैं.

 सामान्य साइड इफ़ेक्ट और देखरेख

इस प्रक्रिया के समय मरीज बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा होता है. इलाज के समय कई साइड इफ़ेक्ट हो सकते हैं जैसे मरीज को साइटोकिन रिलीज सिंड्रोम और न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं. जिससे खून की कमी, प्लेटलेट्स कम होना, बुखार,सिरदर्द, भ्रमित या उत्तेजित महसूस करना,बोलने में कठिनाई होना,दौरे पड़ना,कंपकंपी या मरोड़ उठना या संतुलन की समस्या शामिल हैं.

इस प्रोसेस के दौरान मरीज को  हल्की कीमो थेरपी दी जाती है।उपचार के बाद पहले महीने के लिए, मरीज को एक कमरे में अलग रहने कि सलाह दी जाती है जिस के लिए  किसी एक को मरीज  के साथ रहने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस समय शरीर बहुत कमजोर हो जाता है  दिन के 24 घंटे किसी को अपने साथ रखने की सलाह दी जाती है.

मेरे बाल बहुत ही ज्यादा कर्ली है क्या मैं स्मूदनिंग या केराटिन करा सकती हूं

सवाल

मेरे बाल बहुत ही कर्ली हैं और मुझे स्ट्रेट बाल पसंद हैं. स्ट्रेटनिंग के लिए क्या करना चाहिए? स्मूदनिंग या केराटिन क्या सही है?

जवाब

स्मूदनिंग एक रासायनिक प्रक्रिया है जिस में बालों के बौंड को मजबूत रासायनिक पदार्थों जैसे थायोग्लिकेट के जरीए तोड़ा जाता है, जो बालों को आंतरिक रूप से बिगाड़ते हैं. दोनों उपचार चमकदार, मुलायम और फ्रिज मुक्त बालों को सुनिश्चित करते हैं. स्मूदनिंग के परिणाम 2-3 महीने तक रहते हैं, जबकि केराटिन थेरैपी के परिणाम

5 महीने तक रहते हैं. केराटिन थेरैपी बालों को पोषण प्रदान करती है, उन में अंदर से सुधार करती है और उन्हें अत्यधिक चमकदार और मुलायमी बनाती है. यह स्ट्रेटनिंग के साथ बालों को स्वस्थ और मजबूत बनाती है. मगर इस में बाल 100त्न स्ट्रेट नहीं होते.

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मेरे हाथ हमेशा ड्राई रहते हैं. इतने ड्राई कि उन पर लिखा जा सकता है. उन्हें ठीक के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप हाथों की ड्राई स्किन को मौइस्चराइज करने के लिए निम्नलिखित कदम उठा सकती हैं: अपने हाथों को धोने के लिए ग्लिसरीन वाले साबुन का उपयोग करें. ज्यादा गरम पानी यूज नहीं करें. अच्छे गुणवत्ता वाले मौइस्चराइजर का उपयोग करें खासकर जब आप हाथ धोती हैं तब. सोने से पहले अच्छी हैंड क्रीम लगाने से हाथों में नमी बनी रहती है. गरमियों में ग्लिसरीन और बादाम तेल का मिश्रण भी आप के हाथों को मौइस्चराइज करने में मदद कर सकता है.

समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

मिल गई दिशा : राम्या किन परेशानियां को झेल रही थी

जब राम्या यहां आई थी तो बहुत सहमी सी थी. बरसों से झेली परेशानियां और जद्दोजहद उस के चेहरे से ही नहीं, उस की आंखों से भी साफ झलक रही थी. 21-22 साल की होने के बावजूद उसे देख लगता था मानो परिपक्वता के कितने बसंत पार कर चुकी है. एक खौफ सदा उस से लिपटा रहता था, कोई उस के पास से गुजर भी जाए तो कांपने लगती थी. किसी का भी स्पर्श उसे डरा जाता और वह एक कोने में दुबक कर बैठ जाती. किसी से घुलनामिलना तो दूर उसे बात तक करना पसंद नहीं था. न हंसती थी, न मुसकराती थी, बस चेहरे पर सदा एक तटस्थता छाई रहती मानो बेजान गुड़िया हो… मन के अंदर खालीपन हो तो खुशी किसी भी झिर्री से झांक तक नहीं पाती है.

बहुत समय लगा उन्हें उसे यह एहसास कराने में कि वह यहां महफूज है और किसी भी तरह का अन्याय या जोरजबरदस्ती उस के साथ नहीं होगी. वह एक सुरक्षित जिंदगी यहां जी सकती है. बस एक बार काम में मन लगाने की बात है, फिर बीते दिनों के घाव अपनेआप ही भरने लगेंगे. धीरेधीरे उन का प्यार और आश्वासन पा कर वह थोड़ीथोड़ी पिघलने लगी थी, कुछ शब्दों में भाव प्रकट करती, पर सिवाय उन के वह और किसी से बात करने से अभी भी डरती थी. खासकर अगर कोई पुरुष हो तो वह उन के पीछे आ कर छुप जाती थी. उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि वह उन पर भरोसा करने लगी है और इस तरह बरसों से उलझी उस की जिंदगी की गांठों को खोलने में मदद मिलेगी.

वैसे भी वह ज्यादातर उन के ही कमरे में बैठी रहती थी या वे जहां जातीं, वह उन के साथ ही रहने की कोशिश करती. जब वे पूछतीं, ‘‘दामिनी, यहां कैसा लग रहा है?’’ तो वह कहती, “ठीक, आप बहुत अच्छी हैं, मीरा दी. आप जैसे लोग भी होते हैं क्या दुनिया में. पीछे छूटी मेरी जिंदगी में क्यों मुझे आप जैसा कोई नहीं मिला.” फिर उस की आंखें छलछला जातीं.

मीरा उस की पीठ थपथपाती तो उस के मायूस चेहरे पर तसल्ली बिखर जाती.

“मीरा दी, फैंसी स्टोर का मालिक आया है. उसे इस बार माल जल्दी और ज्यादा चाहिए. आप के पास भेज दूं क्या?” सोनिया ने आ कर सूचना दी, तो अपने औफिस में बैठी मीरा ने इशारे से उसे भेजने को कहा.

“नमस्ते मीरा मैडम. आप के एनजीओ में बनने वाला सामान हाथोंहाथ बिक रहा है. लोग बहुत पसंद कर रहे हैं. आप ने अपनी लड़कियों को खूब अच्छी ट्रेनिंग दी है. बहुत ही सफाई से हर चीज बनाती हैं. बेंत की टोकिरयां, ग्रीटिंग कार्ड, मोमबत्ती, टेराकोटा और पेपरमैशी की वस्तुएं और अचार, पापड़, बड़ी बनाने में तो वे माहिर हैं ही. सच कहूं तो आप ने इन बेसहारा, समाज से सताई लड़कियों को सहारा तो दिया ही है, साथ ही एक लघु उद्योग भी कायम कर दिया है.

‘‘बहुत पुण्य का काम कर रही हैं आप. पूरे बनारस में नाम है आप के इस संस्थान का,” रामगोपाल लगातार मीरा की तारीफों के पुल बांध रहे थे.

“बस कीजिए रामगोपालजी. यह तो सब इन लड़कियों की मेहनत है, जो इतनी लगन से सारा काम करती हैं. दो बेसहारा लड़कियों को अपने घर में जब आसरा दिया था तो सोचा तक नहीं था कि कभी मैं इन बेसहारा लड़कियों के लिए कोई संस्था खोलूंगी. मेरी यही कोशिश रहती है कि जो भी लड़की मेरी इस ‘मीरा कुटीर’ में आए, वह स्वयं को सुरक्षित समझे और उस की सही ढंग से देखभाल हो. वे जो भी बनाती हैं, उसी की बिक्री से यह एनजीओ चल रहा है. अच्छा बताइए, क्या रिक्वायरमेंट है आप की.”

रामगोपाल ने अपनी लिस्ट उन के आगे रख दी और उन्हें नमस्ते कर वहां से चला गया.

रामगोपाल के जाने के बाद मीरा ने पहले जा कर रसोईघर की व्यवस्था देखी, फिर सफाई को जांचा. कच्चा सामान क्या चाहिए, उस की लिस्ट बनाई और वहां रहने वाली लड़कियों व महिलाओं को हिदायत दी कि माल बनाने में और तेजी लानी होगी. उस के बाद वे आराम करने के लिए अपने कमरे में जा ही रही थीं कि उन की नजर राम्या पर पड़ी. वह बहुत तन्मयता से बेंत की टोकरी बना रही थी. दो महीने हो गए थे उसे यहां आए और धीरेधीरे उस ने खुद को यहां के माहौल में ढालना शुरू कर दिया था. मीरा के कहने पर काम में दिल लगाने से उस के चेहरे पर हमेशा बने रहने वाले डर के चिह्न थोड़े धुंधले पड़ने लगे थे.

कमरे में आ कर पलकें बंद करने के बावजूद मीरा राम्या के ही बारे में सोच रही थीं. एक शाम जब वे दशाश्वमेध घाट से गंगा आरती देख कर लौट रही थीं, तो उन्हें एक गली में वह भागती दिखाई दी थी. तीन आदमी उस के पीछे थे. गली थोड़ी सुनसान थी, पर वे तो बनारस की हर गली से परिचित थीं.

बनारस में ही तो जन्म हुआ था उन का. अब तो पचास साल की हो गई हैं वे. फिर कैसे न पता होता हर रास्ता. पहले तो उन्हें लगा कि शोर मचा कर लोगों को बुलाना चाहिए, पर दिसंबर की ठंड में लोग जल्दी ही घरों में दुबक जाते हैं, सोच कर वे एक मोड़ पर ऐसी जगह खड़ी हो गईं, जहां से उन्हें कोई देख न सके. राम्या जब वहां से निकली, तो उन्होंने फौरन उस का हाथ पकड़ खींच लिया और वहीं बनी गौशाला में घुस गईं. अंधेरे में वे आदमी जान ही
नहीं पाए कि राम्या कहां गायब हो गई. वह बुरी तरह हांफ रही थी, कपड़े फटे हुए थे और शरीर पर जगहजगह चोटों के निशान थे.

“मुझे उन दुष्टों से बचा लीजिए, मैं वहां वापस नहीं जाना चाहती. कहीं आप भी तो उन्हीं की साथी नहीं,” डर कर उस ने उन से अपना हाथ छुड़ा कर फिर भागने की कोशिश की थी.

“चुपचाप खड़ी रहो. तुम यहां सुरक्षित हो,” इस के बावजूद वह आश्वस्त नहीं हो पाई थी. वह लगातार रोए जा रही थी. गौशाला के लोगों को साथ ले वे उसे मीरा कुटीर ले आई थीं. तब उस ने बताया था कि वह मथुरा की रहने वाली है और बनारस में उसे बेचने के लिए लाया गया था. एक दुर्घटना में बचपन में ही उस के मांबाप मर गए थे. चाचाचाची को मजबूरी में उसे और उस के छोटे भाई को अपने पास रखना पड़ा. उन की पहले ही तीन बेटियां थीं. भाई के साथ तो उन का व्यवहार ठीक था, क्योंकि उन्हें लगा कि वह उन का कमाऊ बेटा बन सकता है. पर राम्या जैसेजैसे बड़ी होती गई, चाची की मार और चाचा के ताने बढ़ते गए. सोलह साल की हुई तो उस का रूपरंग दोनों निखार पर थे. उस का गोरापन और नैननक्श दोनों ही चाचा की लड़कियों के लिए जलन का कारण बन गए थे. कई बार उसे लगता कि चाचा उसे लोलुप नजरों से देखता है. बेवजह यहांवहां छूने लगा था वह. एक बार चाची तीनों बेटियों के साथ जब मायके गई हुई थी, तो चाचा दुकान से जल्दी आ गए. भाई को घर का सामान लेने बाजार भेज दिया और फिर उस के साथ दुष्कर्म किया. वह अपने को संभाल भी नहीं पाई थी कि चाची लौट आई और चाचा ने उस पर ही झूठा दोष मढ़ दिया. पति की आदतों को जानने के बावजूद चाची ने कहा कि अब वह इस घर में नहीं रहेगी. चाचा ने तब उसे एक आदमी को बेच दिया. और तब से उसे जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया गया. यहां से वहां न जाने कितने शहरों में उसे बेचा गया. बनारस भी उसे बेचने के लिए ही लाया गया था, पर वह भाग निकली.

मीरा के यहां जाने कितनी बेसहारा लड़कियां थीं, पर राम्या की मासूमियत ने उन्हें रुला दिया था. उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा था, “अब यही तुम्हारा घर है. यहां तुम निश्चिंत हो कर रह सकती हो. बस जो काम तुम्हें यहां सिखाए जाएंगे, उन्हें मेहनत से करोगी तो मन लगा रहेगा. लेकिन कभी भी किसी से इस बात का जिक्र मत करना कि तुम जिस्मफरोशी के धंधे में थीं, पता नहीं बाकी लोग इसे किस रूप में लें.”

मीरा को खुशी थी कि राम्या उन के यहां पूरी तरह से रचबस गई थी और अपनी पुरानी जिंदगी भुला कर नए सिरे से जीने की कोशिश कर रही थी. हालांकि शुरुआत में उसे संभालना आसान नहीं था उन के लिए. उस के सब से कटेकटे रहने से मीरा कुटीर की बाकी लड़कियों ने उन से कई बार शिकायत की थी, पर उन्होंने उन्हें राम्या को सहयोग व वक्त देने के लिए कहा था.

“तुम लोग उस से प्यार से बातें करोगे तो वह भी धीरेधीरे हमारे इस परिवार का हिस्सा सा बन जाएगी. शुरू में तो तुम सभी को दिक्कत हुई थी अपने अतीत को भुला कर इस नए जीवन को अपनाने में.”

और फिर हुआ भी ऐसा ही. 6 महीने बीततेबीतते राम्या सब की आंखों का तारा बन गई. उम्र में सब से छोटी होने और अपने भोलेपन के कारण उस ने सब का दिल जीत लिया. काम भी वह बहुत फुरती से करती. खाना तो इतना बढ़िया बनाती कि सब के स्वाद तंतु जाग्रत हो जाते.

एकदम अनगढ़ राम्या ने कितने ही कामों में महारत हासिल कर ली थी. कढ़ाई तो ऐसी करती कि लगता कपड़ों पर असली फूलपत्ते खिले हुए हैं. उस की हंसी अब कुटीर के कोनेकोने में बिखरने लगी थी. जब वह खिलखिलाती तो लगता मानो सारे गम और कड़वाहट उस के साथ ही बह गई है. वह 5वीं तक ही पढ़ पाई थी, इसलिए जब उस ने आगे पढ़ने की इच्छा जाहिर की थी, तो मीरा ने उस का प्रबंध भी करवा दिया था.

“मीरा दी, मैं कुछ बनना चाहती हूं और मुझे यकीन है कि आप की छत्रछाया में मेरा यह सपना अवश्य पूरा होगा,” वह अकसर कहती.

“मैं तो खुद चाहती हूं कि मीरा कुटीर की हर लड़की को एक सार्थक दिशा मिल जाए, तभी मुझे तसल्ली होगी कि मैं अपने मकसद में कामयाब हो पाई हूं.”

मीरा कुटीर में गुझिया, नमकपारे , मट्ठी, बालूशाही, बेसन के लड्डू और नारियल की बर्फी आदि बनाने का औडर्र आ चुका था और सारे लोग उन्हें ही बनाने में बिजी थे.

मीरा औफिस में बैठी उन को पैक कराने की व्यवस्था देख रही थीं कि तभी चारपांच लड़कियां आ कर बोलीं, “मीरा दी, राम्या यहां नहीं रह सकती. उसे इस पवित्र कुटीर से बाहर निकाल फेंकिए. आप नहीं जानतीं कि वह क्या करती थी. हमें अभीअभी पता चला है. दुकानदार का जो आदमी सामान की डिलीवरी लेने आया है, वह उसे पहचान गया है. वह मथुरा का रहने वाला है.”

“मुझे उस के अतीत के बारे में सब पता है.”

“फिर भी आप ने उस जिस्मफरोशी करने वाली लड़की को यहां रख लिया?” फागुनी, जो सब से वाचाल थी, ने मानो उन्हें चुनौती देते हुए पूछा.

“हां, क्योंकि इस पेशे में वह मजबूरी में आई थी. उसे धकेला गया था इस में. अच्छा, अगर तुम्हारे कम उम्र में विधवा होने के बाद एक बूढ़े से विवाह हो ही जाता तो क्या होता. तुम शादी से पहले भाग गईं, इसलिए बच गईं. तुम ही क्या, यहां रहने वाली हर लड़की किसी न किसी त्रासदी का शिकार हुई है, फिर भी तुम राम्या के लिए ऐसा कह रही हो. अभी तक तो वह तुम लोगों को बहुत अच्छी लगती थी और अब एक सच ने उस के प्रति प्यार और ममता को दरकिनार कर दिया. मुझे तुम लोगों से ऐसी उम्मीद नहीं थी. हम समाज को अकसर इसलिए धिक्कारते हैं, क्योंकि उस पर पुरुषों का वर्चस्व है, उस की मनमानी को, ज्यादतियों को गाली देते हैं, पर विडंबना तो देखो यहां जिन पुरुषों की वजह से राम्या को नरक का जीवन जीना पड़ा, उन्हीं पुरुषों की करनी में तुम लोग उन का साथ दे रही हो. राम्या अपने उस नारकीय जीवन से निकल कर एक साफसुथरी जिंदगी जीने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रही है. और तुम उस का विरोध कर रही हो. उसे यहां से निकालना चाहती हो, ताकि फिर से कोई भेड़िया उस का सौदा करे. शर्म आनी चाहिए तुम सब को.”

मीरा दी को पता ही नहीं चला था कि कब राम्या वहां आ कर खड़ी हो गई थी.

“मुझे तो तुम लोगों पर गुरूर था कि मैं तुम्हें एक अच्छे जीवन के साथसाथ एक सही सोच भी देने में सफल हो पाई हूं. पर आज मुझे लग रहा है कि मेरी बरसों की तपस्या और मेहनत सब बेकार हो गई है.

“यह मीरा कुटीर तो अपवित्र राम्या के चले जाने से हो जाएगी. कोई सिर उठा कर इज्जत की जिंदगी जीना चाहता है, तो हमीं लोग उसे नीचा दिखाने के रास्ते खोल देते हैं. पति के अन्याय से मुक्त हो कर जब मैं ने इस कुटीर को बनाया था तो संकल्प लिया था कि हर दुखियारी लड़की को पनाह दे कर उस के जीवन को एक सार्थक दिशा दूंगी. दिनरात एक कर दिया मैं ने इस प्रयास में, पर आज एक ही पल में तुम लोगों ने मुझे मेरी ही नजरों में गिरा दिया.”

“माफ कर दो मीरा दी हमें,” फागुनी उन से लिपटते हुए बोली.

“माफी तो राम्या से मांगनी चाहिए तुम्हें. अपने दिल के मैल उस से माफी मांग कर धो लो.”

फागुनी नम आंखों से राम्या से जा कर लिपट गई. फिर उसे न जाने क्या सूझा, उस ने वहां पड़े सूखेगीले रंग, जो वे पैकिंग की खूबसूरती बढ़ाने और पेंटिंग बनाने के लिए किया करती थीं, अपनी मुट्ठी में भर लिए. उसे देख बाकी लड़कियों ने भी ऐसा ही किया और सब मिल कर राम्या पर रंग छिड़कने लगीं, मानो यह उन का उस से माफी मांगने का तरीका हो. रंगों की बौछारों से या खुशी से राम्या के गाल आरक्त हो गए थे. उसे लगा कि आज उसे एक दिशा मिल गई है, जिस पर चल कर वह अपने जीवन में आने वाले हर उतारचढ़ाव का अब आसानी से मुकाबला कर पाएगी.

हर तरफ उड़ते प्यार और विश्वास के रंगों को देख मीरा दी को लगा कि वे सचमुच आज इन लड़कियों को एक सार्थक दिशा देने में सफल हो गई हैं.

सही पकड़े हैं: भाग 2- कामवाली रत्ना पर क्यों सुशीला की आंखें लगी थीं

सुशीला की तेज नजरें सप्ताह बाद ही तेजी से खत्म हो रहे सामनों का लेखाजोखा किए जा रही थीं. खास चीनी, मक्खनमलाई, देशी घी, चाय, कौफी, मिठाई, बिस्कुट्स, नमकीन की खपत पर उस का शक 15 दिनों के भीतर यकीन में बदलने लगा.

एक दिन रंगेहाथ पकड़ेंगे रत्ना महारानी को. अदिति तो उस के खिलाफ सुनने वाली नहीं, तरुण को झमेले में पड़ना नहीं, भाभीजी को तो धर्मकर्म से फुरसत नहीं और भाईसाहब के तो कहने ही क्या. वे कहते हैं, ‘रत्ना के सिवा कौन ऐसा करेगा, वह काम समझ चुकी है, उस के बिना घर कैसे चलेगा, इसलिए उसे बरदाश्त तो करना ही होगा, कोई चारा नहीं. नजरअंदाज करें, बस.’ यह भी कोई बात हुई भला? बच्चों को पकड़ती हूं अपने साथ इस चोर को धरपकड़ने के मिशन में. अगले हफ्ते से ही बच्चों की गरमी की छुट्टियां शुरू होने वाली हैं. वे चोरसिपाही के खेल में खुशीखुशी साथ देंगे. तब तक हम अकेले ही कोशिश करते हैं, सुशीला ने दिमाग दौड़ाया.

रत्ना दिन में 3 बार काम करने आती थी. सुबह सफाई करती, बरतन मांजती और फिर नाश्ता बनाती. फिर 12 बजे आ कर लंच बनाती. और फिर शाम को आ कर बरतन साफ करती. शाम का चायनाश्ता, डिनर बना जाती. रत्ना के आने से पहले सुशीला तैयार हो जाती और उस के आते ही दमसाधे उस पर निगाह रखने में जुट जाती. हूं, सही पकड़े हैं, जाते समय तो बड़ा पल्ला झाड़ कर दिखा जाती है कि देख लो, जा रहे हैं, कुछ भी नहीं ले जा रहे, पर असल में वह अपना डब्बाथैला बाहर ऊपर जंगले में छिपा जाती है. काम करते समय मौका मिलते ही इधर से उधर कुछ उसी में सरका जाती है. सुशीला ने जाते वक्त उसे थैलाडब्बा जंगले से उठाते देख लिया था. कल चैक करेंगे, थैले में क्या लाती है और क्या ले जाती है,’ वह स्फुट स्वरों में बुदबुदा रही थी.

दूसरे दिन रत्ना जैसे ही आई, सुशीला मौका पाते ही बाहर हो ली. जंगले पर हाथ डाला और सामान उतार कर चैक करने लगी. ‘यह तो पहले ही इतना भरा है. दूध, कुछ आलूबैगन, 2-4 केले, आटा, थोड़ी चीनी उस ने फटाफट सामान का थैला फिर से ऊपर रख दिया और अंदर हो ली. पिछले घर से लाई होगी, आज ले जाए तो सही,’ सुशीला सोच रही थीं. रत्ना झाड़ू ले कर बाहर निकल रही थी, उस से टकरातेटकराते बची.

‘‘क्या है, थोड़ा देख कर चला कर, कोई घर का बाहर भी आ सकता है,’’ कह कर सुशीला अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराई, जैसे अब तो जल्द ही उस की करनी पकड़ी जाने वाली है. ‘‘जी अम्माजी,’’ वह अचकचा गई, उस अर्थपूर्ण मुसकराहट का अर्थ न समझते हुए वह मन ही मन बुदबुदा उठी, ‘अजीब ही हैं अम्माजी.’

तेजप्रकाश आधा कटोरा मलाई खा कर प्रसन्न थे कि चलो, अच्छा है कि बहनजी का रत्ना पर शक यों ही बना रहे. जब सब सो रहे होते, वे अपनी जिह्वा और उदर वर्जित मनपसंद चीजों से तृप्त कर लिया करते. हालांकि, सुशीला की जासूसी से उन के इस क्रियाकलाप में थोड़ी खलल पैदा हो रही थी.

‘गनीमत यही हुई कि मैं ने सुशीला बहनजी और बच्चों की प्लानिंग सुन ली,’ तेजप्रकाश सतर्क हो मन ही मन मुसकरा रहे थे. ‘बच्चों की छुट्टियां क्या शुरू हुईं, जासूसी और तगड़ी हो गई. मक्खनमलाई, मीठा खाना दुश्वार हो गया. अभी तक तो एक ही से उन्हें सावधान रहना था, अब तीनतीन से,’ तेजप्रकाश के दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे. सोचा, क्यों न बच्चों को अपनी ओर कर लिया जाए. और जो सब से छिपा कर सुशीला बहनजी अपने बैग से लालमिर्च का अचार और हरीमिर्च, नमक, खटाई अलग से खाती हैं, उस तरफ लगा देता हूं. अभी तक तो मैं ने नजरअंदाज किया था पर ये तो रत्नारत्ना करतेकरते अब मुझ तक ही न पहुंच जाएं, इसलिए जरूरी है कि मैं बच्चा पार्टी को इन की ओर ही मोड़ दूं. यह ठीक है. यह सब सोचते हुए तेजप्रकाश के चेहरे पर मुसकान फैल गई. वे शरारती योजना बुनने में लग गए.

‘‘बंटू, मिंकू इधर आओ,’’ तेज प्रकाश ने उन्हें धीरे से बुलाया. सुशीला कमरे में बैठी थीं. तारा के पैरों की मालिश वाली मालिश कर रही थी. तरुण, अदिति और रत्ना जा चुके थे. ‘‘मामा वाली चौकलेट खानी है?’’ बच्चों ने उतावले हो कर हां में सिर हिलाया.

‘‘यह जो नानी का बैग देख रहे हो, जिस में नंबर वाला लौक पड़ा है. इस में से नानी रोज निकाल कर कुछकुछ खाती रहती हैं, मुझे तो लगता है बहुत सारी इंपौर्टेड चौकलेट अभी भी हैं, जो आते ही इन्होंने तुम्हें दी थीं. तुम्हारे मामा ने तुम लोगों के लिए दी थीं इन्हें. पहले खाते हुए पकड़ लेना, फिर मांगना.’’ वे जानते थे कि बहनजी को स्वयं कहना कतई श्रेयस्कर नहीं होगा, अतएव खुद नहीं कहा. ‘‘सही में दादू, पर उन्होंने तो कहा था खत्म हो गई हैं,’’ दोनों एकसाथ बोले.

‘‘वही तो पकड़ना है. अब से जरा आतेजाते नजर रखना.’’ ‘‘ओए मिंकू, मजा आएगा. अब तो दोदो मिशन हो गए. अपनीअपनी टौयगन निकाल लेते हैं, चल…’’ दोनों उछलतेकूदते भाग जाते हैं. तेजप्रकाश मुसकराने लगे.

सुबह से दोनों बच्चों की धमाचौकड़ी होने लगती. दोनों छिपछिप कर जासूस बने फिरते. सुशीला अलग छानबीन में हैरानपरेशान थीं. आखिर मक्खनमलाई डब्बे से, कनस्तर से चीनी, मिठाई फ्रिज से, सब कैसे गायब हुए जा रहे हैं. रत्ना है बड़ी चालाक चोरनी.

रत्ना पर बेमतलब शक किए जाने से, उस की खुंदस बढ़ती ही जा रही थी. वह चिढ़ीचिढ़ी सी रहती. लगता, बस, किसी दिन ही फट पड़ेगी कि काम छोड़ कर जा रही है. कई बार अम्माजी डब्बे खोलखोल कर दिखा चुकी हैं कि ताजी निकाली सुबह की कटोराभर मलाई आधी से ज्यादा साफ, मक्खन पिछले हफ्ते आया था, कहां गया? परसों ही 2 पैकेट मिठाई के रखे थे, कहां गए? महीनेभर की चीनी 15 दिनों में ही खत्म. कितनी जरा सी बची है? मैं तो नहीं खाती, ले जाती नहीं, पर सही में ये चीजें जाती कहां हैं? वह भी सोचने लगी. कैसे पकड़ूं असली चोर, और रोजरोज के शक से जान छूटे. वह भी संदिग्ध नजरों से हर सदस्य को टटोलने लगी.

उस दिन रत्ना घर की चाबी प्लेटफौर्म पर छोड़ आई, आधे रास्ते जा कर लौटी तो तेजप्रकाश को फ्रिज में मुंह डाले पाया. वे मजे से एक, फिर दो, फिर तीन गपागप मिठाइयां उड़ाए जा रहे थे. उस का मुंह खुला रह गया. वह एक ओट में छिप कर देखने लगी. जब वह मिठाइयों से तृप्त हुए तो मलाई के कटोरे को जल्दीजल्दी आधा साफ कर, बाकी पहले की इकट्ठी मलाई के डब्बे में उलट कर अगलबगल देखने लगे. मूंछों पर लगी मलाई को देख कर रत्ना को हंसी आने लगी. जिसे एक झटके में उन्होंने हाथों से साफ करना चाहा.

‘‘सही पकड़े हैं…बाबूजी आप हैं और अम्माजी तो हमें…’’ वह हैरान हो कर मुसकराई. तेजप्रकाश दयनीय स्थिति में हो गए, चोरी पकड़ी गई. याचना करने लगे थे. ‘‘सुन, बताना मत री किसी को. सब की डांट मिलेगी सो अलग, चैन से कभी खाने को नहीं मिलेगा. यदि बीमार होऊं तो परहेज भी कर लूं, पहले से क्या, इतनी सी बात किसी के पल्ले नहीं पड़ती,’’ उन्होंने बड़ी आजिजी से कहा.

स्वीकृति नए रिश्ते की- भाग 1 : पिता के जाने के बाद कैसे बदली सुमेधा की जिंदगी?

परफ्यूम की लुभावनी खुशबू उड़ाता एक बाइकचालक सुमेधा की बिलकुल बगल से तेजी से गुजर गया.

‘‘उफ, गाड़ी चलाने की जरा भी तमीज नहीं है लोगों में,’’ सुमेधा गुस्से में बोली. उस की गाड़ी थोड़ी सी डगमगाई, लेकिन किसी तरह बैलेंस बना ही लिया उस ने.

वाकई रोड पर जबरदस्त ट्रैफिक था. अगर वह बाइक वाला फुरती से न निकला होता, तो आज 2 गाडि़यों में टक्कर हो ही जाती. शाम के समय कलैक्ट्रेट के सामने के रास्ते पर भीड़ बहुत बढ़ जाती है. धूप ढलते ही लोग खरीदारी करने निकल पड़ते हैं और फिर औफिसों के बंद होने का समय भी लगभग वही होता है.

थोड़ी दूर पहुंची थी सुमेधा कि वह बाइकचालक उस की बाईं ओर फिर से प्रकट हो गया और रुकते हुए बोला, ‘‘सौरी मैडम.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं,’’ सुमेधा हलकी सी खीज के साथ बोली. फिर बुदबुदाई कि अब यह क्या तुक है कि बीच रास्ते रुक कर सौरी बोले जा रहा है.

‘‘सौरी तो बोल दिया न आंटी,’’ सुमेधा ने आवाज की तरफ नजर उठा कर देखा तो बाइक की टंकी पर बैठी नन्ही सी बच्ची भोलेपन से उस की ओर ही देख रही थी.

‘सुबोध,’ हां सुबोध ही तो था वह, जो उस बच्ची की बात सुन कर उसे ही देख रहा था.

‘‘पापा, आंटी अभी भी गुस्से में हैं. आंटी ने क्या बांधा है?’’ सुमेधा को नकाब की तरह दुपट्टा बांधे देख कर बच्ची फिर से बोली.

‘‘बेटा, मैं गुस्से में नहीं हूं. अब जाओ,’’ इतना कह कर सुमेधा फुरती से आगे बढ़ गई.

घर पहुंची तो उस पर अजीब सी खुमारी छाई हुई थी. आज सालों बाद स्कूल के दिन याद आने लगे. सारी सखियां मिल कर कितनी अठखेलियां किया करती थीं. पता नहीं 11वीं में नए विषय पढ़ने की उमंग थी या उम्र के नए पड़ाव का प्रभाव, सब कुछ धुलाधुला और रंगीन लगता था. डाक्टर बनना सपना था उस का. इसी सपने को पूरा करने के लिए वह पढ़ाई में जीजान से जुटी हुई थी. सभी शिक्षिकाएं सुमेधा से बहुत खुश थीं, क्योंकि विज्ञान के साथसाथ साहित्य में भी खास दिलचस्पी रखती थी वह. हिंदी में उस का प्रदर्शन गजब का था.

उस की चित्रकला में रुचि होने की वजह से उस की फाइलें भी अन्य सहपाठियों के लिए उदाहरण बन गई थीं. किसी भी शिक्षिका को जब अच्छी फाइलें बनाने की बात विद्यार्थियों को बतानी होती, तो वे सुमेधा की फाइलें मंगवा लेतीं.

‘‘कोएड स्कूल में मत पढ़ाओ इसे. लड़कियां बिगड़ जाती हैं,’’ मां ने ऐडमिशन के समय बाबूजी से कहा था.

‘‘तुम चिंता मत करो. देखना, हमारी बेटी ऐसा कोई काम नहीं करेगी. यह तो हमारा नाम रौशन करेगी,’’ बाबूजी ने सुमेधा के पक्ष में निर्णय सुनाया था.

सिर झुका कर बैठी सुमेधा ने बाबूजी के शब्दों को दिमाग में अच्छी तरह बैठा लिया था. स्कूल में वह लड़कियों के ही ग्रुप में रहती थी. हालांकि सहपाठी लड़कों से थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी, लेकिन वह उन से कटीकटी ही रहती थी. कई लड़के उस के इस व्यवहार से उसे घमंडी कहते या फिर उस की कठोरता को देख कर बातचीत करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते थे.

एक दिन सुमेधा के एक सहपाठी रमेश ने उस के नाम प्रेमपत्र लिख कर नोटबुक में रख दिया. पत्र किसी तरह नंदिनी के हाथ में पड़ गया तो क्लास की सारी लड़कियां सुमेधा को छेड़ने से बाज नहीं आईं.

‘‘लाली, तुम बनती तो बड़ी भोली हो, लेकिन एक दिन यह गुल खिलाओगी हमें पता न था,’’ नंदिनी गंभीर स्वर में बोली तो सारी लड़कियां हंस पड़ीं.

सुमेधा आगबबूला हो गई और उस ने तुरंत रमेश का प्रेमपत्र प्रिंसिपल के समक्ष प्रस्तुत कर दिया. उस के बाद रमेश की ऐसी पेशी हुई कि भविष्य में स्कूल और कोचिंग के किसी भी लड़के का सुमेधा के सामने कोई प्रस्ताव रखने का साहस ही न हुआ.

लड़कों के ग्रुप में अकसर कहा जाता कि झांसी की रानी के आगे न जाना, नहीं तो अपनी जान से हाथ धोने पड़ सकते हैं.

इस घटना के बाद सुमेधा ने स्वयं को पढ़ाई में व्यस्त कर लिया. सुमेधा और नंदिनी में गहरी छनती थी. दोनों के व्यक्तित्व बिलकुल अलगअलग नदी के 2 किनारों की तरह थे, लेकिन एकदूसरे से प्यार की तरल धारा दोनों को जोड़े रखती थी. सुमेधा जहां शांत सरोवर की तरह थी, वहीं नंदिनी बरसात में उफनती हुई नदी की तरह थी. दोनों की पारिवारिक स्थितियों में भी जमीनआसमान का अंतर था. सुमेधा सरकारी स्कूल के टीचर की बेटी थी, तो नंदिनी एक बिजनैसमैन की बेटी. नंदिनी का सुबोध के प्रति आकर्षण किसी से छिपा नहीं रह सका था, लेकिन किताब का कीड़ा कहे जाने वाले सुबोध की नंदिनी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. हां, अनु और मनोज, प्रीति और रजत आदि कई जोडि़यां बन गई थीं स्कूल में, जो आगे चल कर साथसाथ पढ़ने और उस के बाद सैटल होने पर एकदूजे का हो जाने के सपने देखा करती थीं.

एक बार बायोलौजी की लैक्चरर सारिका ने बातों ही बातों में कह दिया, ‘‘यह तुम लोगों के पढ़नेलिखने की उम्र है. बेहतर है कि रोमांस का भूत अपनेअपने दिमाग से उतार दो.’’

क्लास के भावी जोड़ों ने सारिका मैडम को खूब कोसा. उन की बात में छिपे तथ्य को वे अपरिपक्व मस्तिष्क नहीं समझ पाए थे.

‘कितने सुहाने दिन थे वे,’ सुमेधा मुसकराते हुए सोचने लगी.

सुमेधा बालकनी में आ गई. गुनगुनाते हुए सामने के ग्राउंड में खेलते बच्चों को देखना उसे बहुत अच्छा लग रहा था. आज सुमेधा को न जाने क्या हो गया था. न उस ने हवा में उड़ते केशों को संवारने की कोशिश की, न उड़ान भरने को आतुर दुपट्टे को हमेशा की तरह काबू में करने का प्रयत्न.

‘‘बिट्टू, चाय ले ले,’’ मां की आवाज सुनते ही सुमेधा चौंक गई जैसे किसी ने चोरी करते पकड़ लिया हो.

‘‘अरे मां, मैं अंदर ही आ जाती,’’ सुमेधा कुछ झेंपते हुए बोली.

‘‘तो क्या हुआ. दिन भर तो तुम भागदौड़ करती रहती हो. इसी बहाने मैं भी थोड़ी देर ताजा हवा में बैठ लूंगी,’’ मां ने कुरसी खींच ली और चाय की चुसकियां लेने लगीं.

सुमेधा भी बेमन से कुरसी पर बैठ गई. आज किसी से भी बात करने का मन नहीं हो रहा था उस का. दिल चाह रहा था कि वह अकेली रहे. किसी से बात न करे.

‘‘बिट्टू, आज तो तू बड़ी खुश दिख रही है. तुझे ऐसा देखने के लिए तो आंखें तरस जाती हैं,’’ मां बोलीं.

‘‘नहीं मां ऐसा कुछ नहीं है,’’ कह बात टाल गई सुमेधा.

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