ढाई आखर प्रेम का: क्या अनुज्ञा की सास की सोच बदल पाई

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नारियल: भाग 3- जूही और नरेंद्र की गृहस्थी में नंदा घोल रही थी स्वार्थ का जहर

जूही ने सब के साथ ही नंदा को भी मांजी की लाई मिठाई और फल वगैरह दिए. मगर इतने सवालों के साथ मिठाई और फलों की मिठास जैसे गायब हो गई थी. वह साफ देख रही थी कि नरेंद्र मां के सामने आंख उठा कर उस की ओर देख भी नहीं पा रहा है. वह बिलकुल मेमने जैसा लग रहा है. जिस नरेंद्र ने उस से प्रेम किया था, उस के साथ जीनेमरने की कसमें खाई थीं, वह एक जिंदादिल इंसान था. उस का यह रूप तो रीढ़हीन केंचुए जैसा है. यह रूप ले कर क्या वह समाज से टक्कर ले सकेगा? उसे लगा, कम से कम मांजी के यहां रहते तो नहीं?

वह चुपचाप वहां से खिसकना चाहती थी कि मांजी ने कहा, ‘‘अभी इतनी जल्दी भी क्या है जाने की, बैठो.’’

फिर उन्होंने नरेंद्र से कहा, ‘‘बनियाइन, कमीज उतार…’’

कपड़े उतारने पर नरेंद्र पर ऐक्सरे जैसी नजर डाल कर बोलीं, ‘‘इसी सुख के लिए यहां रह रहा है, एकएक पसली गिन लो. बहू, तूने इसे यही खिलायापिलाया है? अब जब तक तू अपने जिले में तबादला नहीं करा लेता, मैं यहीं रहूंगी. अपना घर अपना ही होता है. इस बड़े शहर की फिजा में जहरीले मच्छर घूमते हैं. यहां से लाख दर्जा अच्छा अपना कसबा है, जहां हर चीज सस्ती है.’’

नरेंद्र और नंदा इस प्रवचन के बंद होने के  इंतजार में जैसे जमीन में आंखें गड़ाए बैठे थे. मां फिर नरेंद्र से बोलीं, ‘‘देख, ये हरीश और नवल तुझ से कितने छोटे हैं और कैसे खिले पट्ठे हो गए हैं. तेरे बापू की पैंशन और गांव की खेती के सहारे हम ने मकान को दोमंजिला कर दिया है और 2 भैंसें भी पाल रखी हैं.’’

नंदा का मन पूरी तरह से बुझ गया था. वह मांजी और उन के साथ आए हट्टेकट्टे बेटों को देख कर घबरा उठी कि यह औरत उस की  कामनाओं की कृषि पर मानो पाला बन कर पड़ गई है. निराशा से लंबी सांस ले कर वहां से चल दी.

बाहर निकल कर वह इस आशा से घूम कर पीछे देखने लगी कि शायद नरेंद्र उसे इशारों में ही कुछ दिलासा दे. मगर उस की आंखें उठ नहीं रही थीं.

अगले दोचार दिन नरेंद्र बड़ा व्याकुल रहा. रमाबाबू के घर चाय के बहाने नंदा से थोड़ी देर के लिए मुलाकात हो जाती थी, लेकिन इतने भर से प्यासे हृदयों को तसल्ली कैसे मिलती? रमाबाबू के सामने वे एकदूसरे को अधिक से अधिक देख ही सकते थे. दोनों के शरीर एकदूसरे से मिलने को तड़प रहे थे.

एक दिन रमाबाबू के न होने पर नंदा ने कहा था, ‘‘इसी बूते पर प्यार की कसमें खाते थे, संसार से टकराने की बात करते थे. अब मां के सामने भीगी बिल्ली बन गए.’’

नंदा के उत्तेजित करने से नरेंद्र का अहं जागृत हुआ, ‘‘मैं अब दूधपीता बच्चा नहीं हूं जो हर काम के लिए मां की मरजी का मुंह ताकूं…खुद कमाता हूं, खाता हूं, किसी से मांगने नहीं जाता हूं. अपनी जिंदगी अपनी मरजी से जीऊंगा,’’ उस ने नंदा को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘तुम घबराओ मत. मैं मां से साफसाफ बात कर लूंगा. तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकता.’’

नंदा को हालांकि भरोसा नहीं था, फिर भी वह उसे उत्साहित करती हुई बोली, ‘‘तुम हिम्मत से काम लो, सब काम बन जाएगा.’’

‘‘हां, जानेमन, मेरी हिम्मत देखनी हो तो शाम को घर चली आना,’’ नरेंद्र ने नंदा के हाथ पर हाथ मार कर कहा.

उस दिन शाम को औफिस से लौटने पर नरेंद्र, नंदा के साथ आया था. लाल साड़ी में नंदा बड़ी फब रही थी और नरेंद्र भी अकड़ाअकड़ा दिखाई दे रहा था. उन दोनोें को देख कर जूही के उन अरमानों पर पानी जैसा पड़ गया था जिन के साथ उस ने गोभी और प्याज की पकौडि़यां चाय के साथ तैयार की थीं, रसोई में जा कर वह आंसू बहाने लगी.

बहू के आंसू देख कर सास ने पूछा, ‘‘यह क्या, फिर टेसुए बहाने लगीं.’’

जूही सुबकती हुई बोली, ‘‘वह फिर आ गई है.’’

‘‘तो क्या हुआ? तू चुप बैठ, बाकी जिम्मा मेरा,’’ वे जूही की पीठ ठोंकने लगीं.

नंदा नरेंद्र के पास ही कुरसी पर बैठी थी. मांजी ने उन दोनों को घूरते हुए हरीश और नवल को भी वहीं बुला लिया. जूही ने प्यालों में चाय डाली, तो पहला घूंट ले कर ही मांजी नरेंद्र से बोलीं, ‘‘आज तुम कुछ भरेभरे लग रहे हो. मुझे आए इतने दिन हो गए. मगर तुम्हारे साथ कोई बात ही नहीं हो सकी. आज कुछ बातें करेंगे.’’

‘‘हांहां, यही मैं भी चाहता था. पहली बात तो यह कि आप कल घर को रवाना हो जाएं. खेतीबाड़ी और भैंसें देखना अकेले बापू के बस की बात नहीं है,’’ नरेंद्र बोला.

‘‘ठीक है, आई हूं तो चली भी जाऊंगी. आखिर यह भी मेरा घर है. मगर यह लड़की कौन है? अकेली तुम्हारे साथ इस के आने का कौन सा तुक है? जवान लड़कियां इस तरह घूमें, यह अच्छा नहीं है,’’ मांजी बोलीं.

‘‘मैं तो सोचता था, आप का अदब कायम रहे. पर जब आप ही नहीं चाहती हैं, तो सुनिए, यह नंदा है और मैं इस के बिना रह नहीं सकता. इस से शादी करूंगा. अब यही इस घर की मालकिन बनेगी,’’ जी कड़ा कर के नरेंद्र कह गया.

नंदा गर्वभरी दृष्टि से उसे देख रही थी.

‘‘लेकिन बहू का क्या होगा? जिस के साथ सात भांवरें ले कर तुम ने अग्नि के सामने जीवनभर साथ निभाने की प्रतिज्ञा की थी?’’ मांजी ने ठंडेपन से उसे तोला.

नरेंद्र की हिम्मत बढ़ गई, वह बोला, ‘‘वह ब्याह तुम लोगों की मरजी से हुआ था, तुम्हीं जानो. प्रतिज्ञा जैसे शब्द आज की दुनिया में बेमानी हो गए हैं.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं. फिर भी यह  शादी न हो, तो अच्छा है. यही जूही के साथसाथ तुम्हारे और नंदा के लिए भी भला होगा,’’ मांजी ने उसी तरह कहा.

‘‘हम अपना भलाबुरा सब समझते हैं. मैं आप की यह राय मानने को मजबूर नहीं हूं,’’ नरेंद्र ने दृढ़ता से कहा.

‘‘हां, हम किसी के लिए अपनी तमन्नाओं का गला तो घोंट नहीं सकते,’’ नंदा ने पहली बार हिम्मत की.

‘‘तू चुप रह. तेरी दवा तो मैं यों कर दूंगी,’’ मांजी ने चुटकी बजाई.

उन के चुटकी बजाने से स्वयं को अपमानित अनुभव कर नंदा ने नरेंद्र की ओर देखा और कहा, ‘‘यदि मैं शादी कर ही लूं तो आप क्या कर लेंगी? अब तो शादी हो कर रहेगी.’’

‘‘मैं क्या कर लूंगी? सुन,’’ इस के साथ ही उन की त्योरियां बदलीं और वे नरेंद्र से बोलीं, ‘‘पहले तो तुझे घर की जायदाद से वंचित कर दूंगी. दूसरे रमाबाबू से कह कर इस लौंडिया की लगाम कसूंगी. तब भी न मानी, तो इस की चोटी का एकएक बाल उखाड़ लूंगी और धक्के दे कर इसे घर से बाहर कर दूंगी. मेरी राय में इतने में सही हो जाएगी,’’ तीखी आवाज में बोलती मांजी ने नंदा के उतरे चहरे की ओर देखा.

नंदा सोच रही थी, जायदाद के लिए नरेंद्र शायद दब जाए, लेकिन उस पर इस का असर आंशिक ही पड़ा. नंदा के साथ वह नौकरी में भी गुजर कर सकता था. सो, बोला, ‘‘आप अपनी जायदाद ले जाइए, मुझे नहीं चाहिए. मगर शादी होगी.’’

‘‘शादी तो किसी कीमत पर नहीं होगी. जायदाद जाने से भी तुझ पर असर नहीं होगा तो थानाकचहरी बना है. एक रिपोर्ट में लैलामजनूं दोनों जेल में नजर आओगे. फिर नौकरी भी नहीं बचेगी. पहली बीवी के रहते दूसरी शादी करने पर 7 साल की सजा होती है,’’ मांजी का गंभीर स्वर गूंजा.

अब नंदा का हौसला भी पस्त हो चुका था. मां ने उसे जाने को कहा तो नरेंद्र बोला, ‘‘अब जो भी हो, यह जाएगी नहीं.’’

मांजी ने नंदा का झोंटा पकड़ कर उसे ऊंचे उठा दिया. वह चीख कर गालियां बक रही थी और उसे छुड़ाने को आगे बढ़े नरेंद्र को हरीश और नवल ने पकड़ लिया था. अब नंदा मांजी से रहम की भीख मांग रही थी. उन्होंने उसे धक्के दे कर दरवाजे से निकाल कर कहा, ‘‘देह दर्द करे, तो फिर आ जाना, मरम्मत कर दूंगी.’’

छूटने पर नरेंद्र ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘रुको तो, नंदा.’’

पर वह कह रही थी, ‘‘नौकरी जाने के बाद तुम्हारे पास रह क्या जाएगा? मेरी इज्जत तक तो उतरवा दी. ऐसे कायर पर मैं थूकती हूं.’’

नरेंद्र को लग रहा था, वह वास्तव में नौकरी जाने के बाद कुछ भी नहीं रह जाएगा. जेल की कठोर यातनाएं सह कर वहां से छूटने के बाद दुनिया बदल चुकी होगी. वह धम्म से चारपाई पर बैठ गया.

मांजी जूही से कह रही थीं, ‘‘देखना, जो यह कलमुंही दोबारा घर की दहलीज पर पैर तक रखे. साहबजादे भी कुछ दिनों में ठीक हो जाएंगे. तुम मियांबीवी एक हो जाओगे, मैं ही कड़वी दवा रहूंगी.’’

मांजी का हाथ बहू की पीठ सहला रहा था और बहू को लग रहा था, जैसे उस की बिछुड़ी सगी मां एक हाथ में छड़ी और दूसरे में दूध का गिलास लिए हो, नारियल के फल की तरह ऊपर से कठोर, भीतर से नर्म.

ब्रह्म सत्य जगत मिथ्य: जब लूटने वाले स्वामीजी का अंत बहुत ही भयावह हुआ

आश्रमके सब से भव्य ध्यानधारण कक्ष में सितार की मधुर स्वरलहरियां गूंज रही थीं. अगरबत्ती की सुगंध धुएं के साथ पूरे कक्ष में फैलने लगी थी. मंच को आज मधुर सुगंधियुक्त ताजे श्वेत पुष्पों से सजाया जा रहा था.

स्वामी अमृतानंदजी के बड़े से आश्रम में यह प्रतिदिन का नियम था. स्वामीजी जब भी आश्रम में होते थे, अपने भक्तों तथा अनुयायियों को उसी कक्ष में दर्शन देते थे. उन के दुखसुख सुनते और अपनी दिव्यशक्ति से उन का निराकरण करने का आश्वासन भी देते थे. सहस्रों भक्तों में से कुछ की समस्याओं का समाधान तो स्वत: ही हो जाता था. उन्हीं को प्रचारितप्रसारित कर के स्वामीजी और उन के आश्रम ने न केवल ख्याति अर्जित की थी, प्रचुर मात्रा में धनसंपत्ति भी कमाई थी. उन के इंटरव्यू कई चैनलों पर प्रसारित किए जाते, जिन में नीचे आश्रम का पता होता था. दान की अपील भी लगातार की जाती थी.

आश्रम के अधिकतर कार्यकर्ता अवैतनिक ही थे. वे गुरु शक्ति में भावविभोर हो कर अपना घरबार छोड़ कर आ गए थे. उन के भरणपोषण का प्रबंध आश्रम की ओर से होता था और क्यों न हो, अधिकतर कार्यकर्ता स्नातक व स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त थे. न जाने कौन सा आकर्षण था, जो उन्हें आश्रम की ओर खींच लाता था. केवल खानेकपड़े पर अमृतानंदजी को ऐसे अद्भुत कार्यकर्त्ता और कहां मिलते. वैसे कार्यकर्ताओं को सुखों की कमी नहीं थी. भक्त आमतौर पर मोटी रकम कैश ले आते थे कि आश्रम में जमा करा दें. भक्तों को विश्वास था कि उन्हें जो भी मिल रहा है स्वामीजी की कृपा पर मिल रहा है.

आश्रम का अधिकतर प्रबंध स्वामी अद्भुतानंद देखते थे. उन का असली नाम क्या था, यह तो वे स्वयं भी संभवत: भूल चुके थे पर कहा जाता है कि अद्भुत रूप से मेधावी होने के कारण ही स्वामीजी ने उन्हें अद्भुतानंद की उपाधि प्रदान की थी. उन के बारे में प्रसिद्ध, यही था कि इंडियन इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी संस्थान से इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त कर वे ऊंची नौकरी कर रहे थे. कालेज के अंतिम वर्ष में ही नौकरी के लिए उन का चयन हो गया था. इस का पुख्ता सुबूत किसी के पास नहीं था पर जब नेताओं की डिगरी और बीवी को कोई नहीं पूछता तो कौन स्वामी अद्भुतानंद की डिगरी के बारे में पता करता.

वे कब और कैसे स्वामीजी के प्रभाव में आए, यह भी कोई नहीं जानता था पर वे शीघ्र ही स्वामी के विश्वासपात्र बन गए थे. आजकल वे स्वामीजी के कार्यकलापों तथा आश्रम की गतिविधियों दोनों को नियंत्रित करते हैं. उन की प्रबंधन क्षमता का सभी लोहा मानते और आश्रम में उन्हीं की तूती बोलती. पर आज वह अनमने से एक ओर बैठे थे. कैबिन के कार्यकलाओं के लिए तो वे ही पर्याप्त थे पर वे उन का मन बारबार भटक जाता था.

तभी मानो वे नींद से जागे थे. स्वामीजी के कक्ष में पधारने का समय हो चुका था. उन्हेें साजसज्जा के साथ ध्यानधारणा कक्ष में लाने का भार अद्भुतानंद के कंधों पर था. अत: वे  स्वामीजी के कक्ष की ओर चल पड़े.

‘‘अद्भुत, हमारे प्रस्ताव के विषय में क्या सोचा है?’’ स्वामीजी उन्हें देखते ही बोले.

‘‘सोचने का समय नहीं मिला, गुरुदेव,’’ उन का उत्तर था.

‘‘क्यों, अपने गुरु में श्रद्धा नहीं रही थी? मैं जो करता हूं, अपने शिष्यों के हित के लिए ही करता हूं. फिर तुम तो मेरे सर्वाधिक प्रियशिष्य हो,’’ स्वामीजी अनमने स्वर में बोल कर उठ खड़े हुए? आश्रम में उठ रहे विद्रोह को तुरंत दबाने में ही विश्वास करते थे.

‘‘आज ध्यानाभ्यास के पश्चात मुझे आप का उत्तर चाहिए,’’ वह ध्यानधारणा कक्ष की ओर प्रस्थान करते हुए बोले थे.

स्वामीजी ट्रांसवाल, दक्षिणी अफ्रीका में अपने लिए एक आश्रम की नींव रख आए थे. अब वे अद्भुतानंदजी पर दबाव डाल रहे थे कि वे वहां जा कर आश्रम का प्रबंधन अपने हाथों में ले लें. अद्भुतानंद को गुरुजी से ऐसी आशा नहीं थी. वे वस्तुस्थिति से पूर्णतया परिचित थे. वे बिना कहे ही समझ गए थे कि स्वामीजी अब उन्हें अपने बड़े होते बेटे को यह कांटा समझने लगे थे.

उन का पुत्र आरोहण किसी गुमनाम कालेज की पढ़ाई समाप्त कर लौट आया था. अब स्वामीजी उसे राजपाट सौंप कर राजकुमार की पदवी से विभूषित करना चाहते थे, जो अद्भुतानंद के आश्रम में रहते संभव नहीं था.

ध्यानधारणा कक्ष में पहुंचते ही अद्भुतानंद की विषाशृंखला टूटी. प्रतिदिन की भांति स्वामीजी अपने मंत्र पर विराजमान थे. उन के लिए विशेष रूप से लिखी गई प्रार्थना गाई जाने लगी थी, जिस में उन्हें ईश्वर की पदवी दी गई थी.

‘‘स्वामी अमृतानंद की बहती अमृत धारा, ईश्वर से भी पहले लेते हम सब नाम तुम्हारा.’’

प्रार्थना के प्रश्वात प्राणायाम तथा ध्यान का कार्यक्रम था. ध्यान के पश्चात स्वामीजी अपने भक्तों से सीधा संपर्क साधते थे और अपने विचारों से अवगत कराते थे. स्वामीजी अत्यंत मधुर वाणी में अपने भक्तों को आदेश देते थे कि गुरुदक्षिणा के रूप में अपने जैसा ही एक और भक्त जाएं पर भूल कर भी किसी पर अपने विचारों को थोपे नहीं. जो विरोध करे उस पर तो कभी नहीं. स्वामीजी की ओजपूर्ण वाणी ने अद्भुत समां बांध दिया था.

कुछ देर पश्चात स्वामीजी ने भक्तजनों को आंखें मूंदने का आदेश दिया क्योंकि 9 बजने वाले थे और प्रात: तथा रात्रि के 9 बजे स्वामीजी अपने भक्तों के कल्याण के लिए शक्तिपात करते थे. उन के भक्त संसार में कहीं भी हों, स्वामीजी से कभी दूर नहीं होते. वे उन्हें प्रात: तथा रात्रि के 9 बजे ध्यान लगा कर अपने ऊपर केंद्रित करने का आदेश देते थे, जिस से कि वे अपने गुरु की दिव्य शक्तियों से लाभान्वित हो सकें. स्वाइप, औनलाइन, व्हाट्सऐप सब से स्वामीजी सभी शिष्यों से जुड़े रहते थे. उन्हें बहुतों के नाम याद थे. यही तो उन का विशेष गुण था.

‘शक्तिपात’ के पश्चात भक्तगण गुरुजी की अमृतवाणी के पान की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि एक विचित्र घटना घटी. प्रथम पंक्ति में बैठी एक प्रौढ़ महिला तेजी से उठी और स्वामीजी के मंत्र के समीप पहुंच गई. कार्यकर्ताओं ने जब तक  रोकने का प्रयास किया तो उस ने कस कर स्वामीजी के चरण पकड़ लिए.

‘‘अरे, यह क्या करती हो, माता. यदि कोई समस्या हो तो दूर से कहो. हम ठहरे साधुसंन्यासी, किसी से स्पर्श नहीं कराते,’’ स्वामीजी सकपका गए.

‘‘दूर से कहने पर पता नहीं आप के कानों तक पहुंचे या नहीं इसीलिए पास आ कर ?ोली फैला कर भीख मांग रही हूं. स्वामीजी, मेरे पुत्र को छोड़ दीजिए, महिला रोंआसे स्वर में बोली.

‘‘यह आप कैसी बातें कर रही हैं, माता. हम ठहरे साधुसंन्यासी हमें किसी के पुत्रपुत्री से क्या लेनादेना.’’

‘‘स्वामीजी, मैं आरोग्य की बात कर रही हूं. वह मेरा इकलौता पुत्र है, परिवार का एकमात्र प्राणाधार. देश के प्रसिद्ध संस्थान से एमबीए कर के वह ऊंचे वेतन वाली नौकरी कर रहा था कि आप की एक प्रिय शिष्या के बहकावे में सबकुछ ठुकरा कर चला आया है. मेरे घरसंसार को उजाड़ कर आप को क्या मिलेगा, स्वामीजी’’

‘‘बह्म सत्यं जगत मिथ्य’’ स्वामीजी ने नेत्र मूंद कर उद्घोष किया.

‘‘माता, आज आप जो प्रश्न कर रही हैं वही कभी नरेंद्र की माता ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस से किया था. यदि नरेंद्र अपनी माता के बहकावे में आ जाते तो स्वामी विवेकानंद नहीं बनते. गौतम बुद्ध ने भी राजपाट, सगेसंबंधियों का त्याग कर के ही बुद्धत्व प्राप्त किया था,’’ स्वामीजी अपनी गुरु गंभीर वाणी में बोलते जा रहे थे.

‘‘माता, आप भटक गई हैं. आरोग्य साधारण मानव नहीं, असाधारण आत्मा है, जिसे मेरे जैसे गुरु के माध्यम से अमरत्व प्राप्त होने वाला है. आरोग्य जन्मजन्मांतर के संस्कारों द्वारा अपने गुरु से बंध हुआ है. माता, आप चाह कर भी उसे रोक नहीं सकतीं. अपने श्रुद्र स्वार्थों के वशीभूत हो कर उसे सीमित मत करो. उसे असीमित हो कर सारे संसार का हो जाने दो, माता,’’ स्वाजीजी ने अपनी ओर से गूढ़ अर्थ वाले ज्ञानपूर्ण तर्क दिए.

मगर मंच के एक ओर खड़े अद्भुतानंद के सामने कुछ ?ान्न से गिरकर टूट गया. मानो नाटक के किसी दृश्य का पुन: मंचन किया जा रहा हो. आज आरोग्य की मां के स्थान पर तब उन की अपनी माताजी थीं पर संवाद तथा अभिनय हूबहू वैसा ही था.

मगर तभी कुछ अप्रत्याशित घट गया. आरोग्य की मां, अद्भुतानंद की माताजी की तरह बैठी सुबकती नहीं रही. वे तो अचानक शेरनी की तरह क्रोध में बिफ्र उठीं.

‘‘अरे, कैसा गुरु और कैसा निर्वाण. बड़ा आया जन्मजन्मांतर के साथ वाला. जनता को मूर्ख बना कर युवाओं को अपने सम्मोहन के जाल में फंसा कर न जाने कितने परिवारों को विनाश के कगार पर पहुंचाने वाले ढोंगियों को मैं भली प्रकार जानती हूं.

‘‘हम गृहस्थियों जैसा ही घरपरिवार है तुम्हारा. कौन सा त्याग किया है तुम ने? बात करते हो ध्यान और साधना की.’’

स्वामीजी ने दृष्टि का संकेत भर किया कि उन के 8-10 शिष्य महिला को उठा कर कक्ष के बाहर ले गए.

‘‘मैं पुलिस में जाऊंगी, कोर्टकचहरी तक जाऊंगी, धूर्त्त, पर तुम्हें चैन से नहीं बैठने दूंगी,’’ महिला रोते हुए भी स्वामी अमृतानंद को धमका गईर्.

शिष्यों द्वारा मां को जबरन घसीटे जाते देख कर आरोग्य उन की सहायता को लपका.

‘‘बेटा, आरोग्यानंद. साधना के मार्ग में अनेक विघ्नबाधाएं आती हैं पर साधक विचलित नहीं होते,’’ स्वामीजी ने आरोग्य को पुकारा.

‘‘गुरुजी, मैं मां को घर तक छोड़ कर शीघ्र ही लौट आऊंगा,’’ कहता हुआ आरोग्य मां को सहारा देने लगा. शिष्यों ने उसे जबरन मुख्यद्वार के बाहर धकेल दिया था, साथ ही धमकी भी दे डाली थी कि

पुन: इधर का रुख किया तो लाश तक नहीं मिलेगी तुम्हारी मां की.’’

उधर ध्यानधारणा कक्ष में ऐसी निस्तब्धता छा गई मानो उपस्थित जनसमूह सांस लेना भी भूल गया हो.

‘‘आप सब चित्रलिखित से क्यों बैठे हैं? साधना में ऐसे विघ्न तो आते ही रहते हैं. जो मार्ग के कंटकों से उल?ा जाएंगे वे उस परम सत्य को कैसे प्राप्त करेंगे. भटक गई हैं माता, इसी से व्यथित है पर जिस ने अपना सर्वस्व उस परमपिता के चरणों में अर्पित कर दिया उस के लिए तो संसार के सब बंधन व्यर्थ हैं. सब माया है. मनुष्य जब उसे जान लेता है, उस के सांसारित बंधन स्वत: ही ढीले पड़ जाते हैं. फिर तो बस, भक्त होता है और होते हैं उस के भगवान,’’ स्वामीजी की स्वरलहरी हवा के पंखों पर सवार हो पुन: भक्तगणों को प्रभावित करने लगी थी. उन का भक्तिभाव उन की भावभंगिमाओं में प्रकट हो रहा था.

मगर अद्भुतानंद अब भी सकते में थे. कम से कम आरोग्य में इतना साहस तो था कि स्वामीजी की इच्छा के विरुद्ध वह अपनी मां को सहारा देने चला गया था. उन की मां तो शिष्यों से अपमानित हो कर सुबकती हुई अकेली ही आश्रम से गई थी. उन के व्यथित मन में गहरी टीस उठ रही थी.

‘‘हां, तो आप ने क्या निर्णय लिया, अद्भुतानंद,’’ अपने कक्ष में तनिक सा एकांत मिलते ही स्वामी अमृतानंद ने पूछा.

‘‘निर्णय लेने का प्रश्न ही कहां है, गुरु की इच्छा तो मेरे लिए आदेश है,’’ वे बोले थे.

‘‘फिर यह रोनी सूरत क्यों बिना रखी है? साधना का लक्ष्य तो अखंड आनंद है, वत्स,’’ स्वामीजी बोले.

‘‘कहां आप और कहां हम, गुरुवर हम तो अभी तक रागद्वेष जैसी सांसारित भावनाओं से पीडि़त हैं,’’ अद्भुतानंद मुसकराए, ‘‘आप का और मेरा 8 वर्षों का साथ है, कष्ट तो होगा ही.’’

‘‘तो आप के लिए यही साधना का मार्ग भी है. आप तुरंत जाने की तैयारी कर लीजिए. इस सप्ताहांत तक आप देश छोड़ दें तो अच्छा है. हो सके तो आरोग्य को भी साथ ले जाइए. आया नहीं है वह. पर उस का लौट जाना अन्य शिष्यों को भी घर लौटने के लिए प्रेरित करेगा,’’ स्वामीजी बोले.

‘‘जैसी आज्ञा गुरुवर,’’ अद्भुतानंद ने झुक कर प्रणाम किया.

मगर आरोग्य के घर जाने के स्थान पर वे बहुत वर्षों के बाद अपने घर की ओर मुड़ गए.

द्वार उस के पिता ने खोला. उन्हें देख कर चश्मा ठीक किया और पहचानने का यत्न किया.

‘‘अरे, निर्मल तुम. कहो, आज कैसे राह भूल पड़े,’’ वे बोले.

‘‘कौन हैं जी?’’ अंदर से उन की मां ने

प्रश्न किया.

‘‘लीला, बाहर आओ, देखो तो कौन

आया है.’’

‘‘कौन? स्वामी अद्भुतानंद. कहिए, कैसे स्वागत करें आप का? आप ठहरे संन्यासी और साधक, पता नहीं हमारा अन्नजल भी ग्रहण करेंगे या नहीं,’’ लीला देवी ने व्यंग्य किया.

‘‘मां, अंदर आने को नहीं कहोगी?’’

‘‘स्वामी नहीं, मेरा निर्मल चाहे तो अंदर आ सकता है,’’ वह बोली.

फिर तो सब शिकवेशिकायत आंसुओं के सागर में धुल गए.

‘‘मैं दक्षिण अफ्रीका जा रहा हूं. चाहता हूं आप भी साथ चलें. मैं सब प्रबंध कर लूंगा. अब और कैसे जाना है, वह भी बता दूंगा. बस, आप तैयारी कर लें. मैं अभी चलता हूं अब तो वहीं भेंट होगी,’’ कहते हुए स्वामी अद्भुतानंद अर्थात निर्मल बाबू बाहर निकल गए.

उस के बाद वे आरोग्य के घर पहुंचे और उसे समझबुझ कर साथ चलने को तैयार कर लिया.

‘‘अपनी अनुपस्थिति में परिवार को यहां छोड़ने की भूल मत करना. हमारे गुरुजी बदला लेने के लिए कुछ भी कर सकते हैं,’’ उन्होंने आरोग्य को समझाया.

‘‘पर मैं तो वहां किसी को जानता तक नहीं. परिवार को कहां रखूंगा?’’ आरोग्य ने प्रश्न किया.

‘‘उस की चिंता मत करो. ट्रांसवाल में मेरे कई प्रभावशाली मित्र हैं. तुम्हारा परिवार मेरे मातापिता के साथ जाएगा. बाद में हम दोनों प्रस्थान करेंगे,’’ अद्भुतानंद ने समझाया.

जब से अमृतानंद ने अद्भुतानंद यानी निर्मल को साउथ अफ्रीका जाने को कहा था

तभी से अद्भुतानंद ने आरोग्य को साथ मिला कर काम शुरू कर दिया था. आश्रम की कितनी ही प्रौपर्टी गिरवी रख कर मोटा पैसा ले लिया था. बैंक अकाउंट वह ही चलाता था. उस ने उस पैसे को केमन आईलैंड, मोनाको, स्विटजरलैंड आदि में ट्रांसफर कर दिया था. आरोग्य भी इस कला में पारंगत था. पहले वह एक मल्टीनैशनल फाइनैंस कंपनी में ही था.

उन के नए पास पोर्ट बन गए थे. पहले पास पोर्टों पर वास्तव में नकली नाम थे ताकि कोई उन के मातापिता को आसानी से ढूंढ़ न सके. अद्भुतानंद ने यह काम बहुत जल्दबाजी में किया था. वह जानता था कि पता चल गया तो उसे ही नहीं उस के मांबाप को पता तक नहीं चलेगा. अमृतानंद स्वामी सभी विविटयों को जलवा देते थे, यह कह कर कि उन का अंतिम काल आ गया है और उन के किसी रिश्तेदार को किसी आश्रम का इंचार्ज बना कर भेज देते थे.

निर्मल ने इस तरह आश्रम का ढांचा खोखला कर दिया था कि उस के जाने के बाद यह और खोखला हो  गया. कुछ दिन बाद खबर मिली कि स्वामी अमृतानंद ने देह त्याग दी है और उन का होनहार बेटा अब जैसेतैसे बची संपत्ति को बेच रहा है. भक्तों को क्या? वे तो किसी और स्वामी के संपर्क में आ कर आश्रम खाली कर रहे थे. आखिर धन तो मिथ्य ही है न.

बिखरे सपने: जब तंग आकर उसने तलाक की कही

पत्रिका के पन्ने पलटते एक शीर्षक पर नजर अटक गई, ‘‘कह दो सारी दुनिया से, कर दो टैलीफोन कम से कम 1 साल चलेगा अपना हनीमून,’’ उत्सुकतावश पूरा लेख पढ़ गई.

इस में एक जोड़े के बारे में बताया था जो 5 साल से हनीमून मना रहा था. मुझे लगा इतना समय क्या घूम ही रहे हैं ये लोग. 5 साल तक पर पढ़ने के बाद कुछ और ही निकला. जैसे दोनों को साहित्य का शौक, दोनों को घूमनेफिरने का शौक, दोनों को पिकनिकपिक्चर का शौक, दोनों को दोस्तों से मिलनेजुलने का शौक, दोनों को होटलिंग का शौक, दोनों ही जिंदादिल और इस तरह से दोनों अपना हनीमून अभी तक मना रहे हैं.

उफ, पढ़ कर ही मन में गुदगुदी होने लगी. हाय, क्या कपल है… जैसे एकदूसरे के लिए ही बने हैं. एकदूजे के प्यार में आकंठ डूबे. 5 साल से हनीमून की रंगीनियत में खोए. यहां तो 5 महीने में ही 50 बार झगड़ा हो गया होगा हमारा. 8 दिनों के लिए शिमला गए थे हनीमून पर. 2-4 फोटो खिंचवाए, खर्च का हिसाबकिताब किया और हो गया हनीमून. श्रीदेवी स्टाइल में शिफौन की साड़ी पहन न सही स्विट्जरलैंड शिमलाकुल्लू की बर्फीली वादियों में ‘तेरे मेरे होंठों पे मीठेमीठे गीत मितवा…’ गाने की तमन्ना तमन्ना ही रह गई.

मगर यह लेख पढ़ कर दिल फिर गुदगुदाने लगा, अरमान फिर मचलने लगे, कल्पनाएं फिर उड़ान भरने लगीं. चलो ऐसे नहीं तो ऐसे ही सही. मैं भी ट्राई करती हूं अपनी शादीशुदा जिंदगी में हनी की मिठास और मून की धवल चांदनी का रंग घोलने की. पर कैसे? मैं ने दोबारा लेख पढ़ा.

पहला पौइंट मैं ने चुटकी बजाई. साहित्य, उन की पता नहीं पर मेरी तो साहित्य में रुचि है. आज ही एक बढि़या सी कविता बना कर सुनाती हूं उन्हें. फिर मैं जुट गई हनीमून का आरंभ करने में.

दिनभर लगा कर शृंगाररस में छलकती, प्रेमरस में भीगी, आसक्ति में डूबी एक बढि़या कविता तैयार की और खुद भी हो गई शाम के लिए तैयार. करने लगी इंतजार डोरबैल बजी तो मैं ने खुशी से दरवाजा खोला.

ये मुझे देखते ही बोले, ‘‘कहीं जा रही हो क्या? पर पहले मुझे चाय पिला दो. बहुत थक गया हूं.’’

मैं बुझ गई. मुझे देख तारीफ करने के बजाय, सुंदरता को निहारने के बजाय थक गया हूं. हुं पर कोई बात नहीं चाय के साथ सही. मैं ने बड़े मन से इन के लिए चाय बनाई, शानदार तरीके से ट्रे सजाई, साथ में ताजा लिखी हुई कविता रखी और चली इन के पास.

ये आंखें मूंदे सोफे पर पसरे हुए थे. मैं ने चूडि़यां बजाईं और प्यार से कहा, ‘‘चाय…’’

इन्होंने आंखें खोलीं, ‘‘इतनी चूडि़यां क्यों पहन रखी हैं गंवारों की तरह? इन्हें उतारो और कोई कड़ा पहनो.’’

मैं चुप. फिर भी स्वर को भरसक कोमल बनाते हुए कहा, ‘‘उतार दूंगी अभी सुनो न, आज मैं ने एक बहुत अच्छी कविता लिखी है. सुनाऊं?’’

ये ?ाल्ला कर बोले, ‘‘यह कवितावविता लिखना बेकार लोगों का काम होता है. सिर दुखता है मेरा ऐसी कविताओं से. दिनभर घर में खाली बैठी रहती हो कुछ जौबवौब क्यों नहीं ढूंढ़ती.

‘‘उफ, मेरे कान लाल हो गए. मेरी शृंगाररस की कविता करुणरस में बदल गई. संयोग के बादल बरसने से पहले वियोग की तरह छितरा गए. उखड़े मूड में मैं बैडरूम में गई. चेंज किया और पलंग पर पसर गई.

कुछ देर में ये आए, ‘‘आज खानावाना नहीं बनेगा क्या?’’

मैं भन्ना कर कुछ तीखा जवाब देने ही वाली थी कि हनीमून का दूसरा पौइंट याद आ गया-

किसी अच्छे रेस्तरां में कैंडल लाइट डिनर. मैं ने तुरंत अपनी टोन बदली, ‘‘नहीं, आज मन नहीं कर रहा. चलो न आज कहीं बाहर ही खाना खाते हैं. कितने दिनों से हम कहीं बाहर नहीं गए.’’

ये तलख स्वर में बोले, ‘‘अपने मांबाप के घर रोज ही बाहर खाना खाती थी क्या? तुम्हारी ये फालतू की फरमाइशें पूरी करने के पैसे नहीं हैं मेरे पास. तुम से बनता है तो बनाओ नहीं बनता तो मुझे कह दो मैं बना लूंगा.’’

छनछन… छनाक… और ये सपने चकनाचूर… मन तो हुआ कि 2-4 खरीखरी सुनाऊं इस कंजूस मारवाड़ी को. फालतू फरमाइश पूरी करने के पैसे नहीं हैं मेरे पास. रख ले अपने पैसे अपने पास. मुझे भी कोई शौक नहीं है ऐसे पैसों का. पर बोलने से बात और बिगड़ती ही मन में दबाई और उठ कर खाना बनाने चल दी. मन में यह ठान कर कि हनीमून तो मैं मना कर रहूंगी चाहे कैसे भी.

‘आज है प्यार का फैसला ए सनम आज मेरा मुकद्दर बदल जाएगा तू अगर संग दिल है तो परवाह नहीं मेरे बनाए खाने से पत्थर पिघल जाएगा…’

हनीमून का तीसरा पौइंट- बढि़या खाना

बना कर पेट से दिल में पहुंचें. यह भी क्या याद रखेंगे कि क्या वाइफ मिली है जो इतनी कड़वीतीखी बात सुनने के बाद भी इतना स्वादिष्ठ खाना बना सकती है. मेरे हाथ चलने लगे. फुरती से मैं ने बनाई लौकी के कोफ्ते की सब्जी, पनीर भुर्जी, दालचावल, सलाद, गरमगरम फुलके. फुलके उतारते मैं ने इन्हें आवाज दी, ‘‘आइए खाना तैयार हैं.’’

ये आए. खाना देखते ही बोले, ‘‘यह क्या मिर्चमसालों वाला खाना बना दिया. इतना तेल, मसाले खाने की आदत नहीं है मुझे. हरी सब्जियों को हरा ही क्यों नहीं रहने देती तुम?’’

लो पेट के रास्ते दिल तक पहुंचने का रास्ता तो बड़ा संकरा निकला. इस रास्ते से दिल तक पहुंचना तो मुश्किल ही नहीं नामुमकिन नजर आने लगा. मन मसोस कर बोली, ‘‘अभी तो खा लो कल से हरी सब्जी हरी ही बनाऊंगी.’’

एकदूसरे को निवाले खिलाने के अरमान दम तोड़ने लगे. उस में तो लिखा था आपस में एकदूसरे को प्यार से खिलाते हनीमून को ताजा करते रहते थे. अब मैं कैसे करूं. फिर भी कोशिश की. बड़े प्यार से निवाला बनाया और इन्हें खिलाने लगी तो इन्होंने हाथ ?ाटक दिया, ‘‘यह नाटकबाजी मुझे पसंद नहीं. खा लूंगा अपनेआप. कोई बच्चा नहीं हूं. एक तो ऐसा खाना ऊपर से इतनी नौटंकी.’’

यह पौइंट भी बेकार गया. कोई बात नहीं. अभी और भी फौर्मूले हैं. दिनभर काम कर के थक जाते हैं बेचारे. रोजरोज वही रूटीन, वही बोरिंग लाइफ, कुछ चेंज तो होना चाहिए. हनीमून मनाने का चौथा पौइंट याद किया. 2 दिन बाद ही संडे है. मित्रों के साथ पिकनिक का प्रोग्राम होना चाहिए. दोस्तों की छेड़छाड़, हंसीमजाक, धमाचौकड़ी के बीच सब की नजर बचा कर प्यार के कुछ पल शरारत भरे. मन में फिर गुदगुदी सी हुई. मैं ने इन की तरफ करवट बदली. ये हलके खर्राटे भरते नींद में गुम. मैं गुमसुम. मैं ने फिर करवट बदली और नींद को बुलाने लगी. सुबह बात करूंगी इन से पिकनिक के बारे में.

सुबह इन की झल्लाती आवाज से नींद टूटी, ‘‘कितनी देर तक सोती रहोगी? उठने का इरादा है या नहीं? चायवाय नहीं मिलेगी आज?’’

मेरा मन फट पड़ने को हुआ कि अजीब आदमी है सिवा चाय और खानेपीने के और कुछ सू?ाता ही नहीं इसे. सुबह नींद की खुमारी में डूबी, खूबसूरत, सिर्फ 15 महीने पुरानी बीवी को प्यार से, शरारत से उठाना तो दूर ऐसे उठा रहे हैं जैसे 25 साल पुरानी बीवी हो. न कभी खूबसूरती की तारीफ, न कभी खाने की, न कहीं शौपिंग, न बाहर खाना. उफ, हनीमून तो छोड़ो कैसे कटेगी जिंदगी इस बोर, उबाऊ, नीरस व्यक्ति के साथ. गुस्से से चादर झटकती, पैर पटकती मैं उठी. चाय का प्याला इन के सामने पटका और बाथरूम में जा घुसी. अब क्या करूं इन से पिकनिक की बात. फिर भी एक चांस तो और लेना ही पड़ेगा.

सो नाश्ता परोसते झूठ ही कहा, ‘‘कल श्वेता का फोन आया था. वह और नीरज इस संडे पिकनिक का प्रोग्राम बना रहे हैं आप के सभी दोस्तों के साथ. हमें भी चलने को कहा है. क्या कहूं?’’

सोचा अगर ये हां कह देंगे तो मैं खुद श्वेता को फोन कर प्रोग्राम बना लूंगी पर सपाट जवाब, ‘‘मना कर दो.’’

मैं हैरान, ‘‘क्यों?’’

ये हलकी चिढ़ से बोले, ‘‘क्यों क्या. सप्ताह में 1 दिन मिलता है थोड़ा रिलैक्स करने का, आराम करने का उसे भी फालतू दोस्तों के साथ आनेजाने में बिगाड़ दूं मैं नहीं चाहता.’’

उफ, अब मनाओ हनीमून. क्याक्या लिखा था उस लेख में. एकदूसरे को कविता सुनाओ, प्यारी रोमांटिक बातें करो, अच्छा खाना बनाओ, प्यार से एकदूसरे को खिलाओ, सजसंवर कर तैयार रहो, बीचबीच में प्यार का इजहार करो, बाहर जाओ, आइसक्रीम खाओ, खाना खाओ, शौपिंग पर जाओ, पिकनिक जाओ, पिक्चर जाओ. यहां तो लग रहा है कि अब सीधे अपने मायके जाओ. इन्होंने तो सब पर पानी फेर दिया. मैं ने मन ही मन में सोचा और इन्हें वह लेख पढ़ा दिया.

लेख पढ़ कर बोले, ‘‘ऐसे वाहियात लेख पढ़ कर ही तुम्हारा दिमाग खराब होता है. मेरी ऐसी वाहियात बातों में कोई रुचि नहीं समझ. बेहतर यही होगा कि दिनभर घर पर खाली बैठ कर यह फालतू मैगजीन पढ़ने के बजाय कुछ जौबवौैब करो ताकि घर में चार पैसे आएं और इस महंगाई में गुजारा हो सके.’’

अब मुझे पता चल गया मेरा हनीमून 5 साल तो क्या 2 साल भी नहीं चलेगा. तलाक समस्या का समाधान नहीं तो खुद को व्यस्त करना ही बेहतर उपाय लगा. अब मैं एक टीचर हूं और सब को व्यस्त रहने का ज्ञान बांटती रहती हूं.

अब तुम्हारी बारी

दीप्ति जल्दीजल्दी तैयार हो रही थी. उस ने अपने बेटे अनुज को भी फटाफट तैयार कर दिया. आज शनिवार था और अनुज को प्रदीप के घर छोड़ कर उसे औफिस भी जाना था. शनिवार और रविवार वह अनुज को प्रदीप के घर छोड़ कर आती है क्योंकि उस की छुट्टी होती है. प्रदीप की लिव इन पार्टनर यानी प्रिया भी उस दिन अपनी मां के यहां मेरठ गई हुई होती है. अगर वह कभीकभार घर में होती भी है तो अनुज के साथ ऐंजौय ही करती है.

बता दें कि दीप्ति है कौन और अनुज का प्रदीप से रिश्ता क्या है. दरअसल, अनुज प्रदीप का बेटा है और दीप्ति प्रदीप की ऐक्स वाइफ. वैसे उसे ऐक्स भी नहीं कह सकते क्योंकि अभी दोनों में डिवोर्स नहीं हुआ है. फिर भी दोनों ने अपने रास्ते और अपनी दुनिया अलग कर ली है. प्रदीप मूव औन भी हो चुका है और प्रिया के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा है. दीप्ति अभी मूव औन नहीं हुई है मगर वापस प्रदीप की जिंदगी में जाने का कोई इरादा भी नहीं है.

दोनों ने आपसी सहमति से तय किया था कि सप्ताह के 2 दिन अनुज प्रदीप के साथ रहेगा और बाकी के 5 दिन दीप्ति के साथ. दरअसल दीप्ति अनुज को अपने पिता से मिलने का मौका देना चाहती है ताकि उस की बचपन की ग्रोथ पर बुरा असर न पड़े. मासूम को यह महसूस न हो कि उस के पिता नहीं हैं. एक तरह से वह बच्चे को मनोवैज्ञानिक रूप से स्ट्रौंग बनाए रखना चाहती है वरना उस ने देखा है कि कैसे टूटे हुए घरों के बच्चे भी अंदर से टूट जाते हैं.

प्रदीप की नई पार्टनर यानी प्रिया से दीप्ति को कोई शिकायत नहीं है. वह जब प्रदीप के घर अनुज को छोड़ने जाती है तो कई दफा दीप्ति घर में ही होती है. उस वक्त दोनों एकदूसरे को देख कर मुंह नहीं बनाते बल्कि मुसकराते हैं. दीप्ति अनुज को छोड़ कर शांति से अपने औफिस निकल जाती है. दीप्ति को प्रिया पर विश्वास है कि वह अनुज का खयाल रखेगी और फिर प्रदीप तो उस का पिता है ही.

एक दिन दीप्ति ने प्रदीप को सुबहसुबह फोन किया, ‘‘आज तुम किसी भी समय वी3एस मौल में मु?ा से मिलने आ जाओ.

यहां आना मेरे लिए आसान होगा क्योंकि मैट्रो से उतरते ही मौल है. कहीं अलग से जाना नहीं पड़ेगा.’’

‘‘ओके मगर कोई जरूरी काम था क्या?’’ प्रदीप ने पूछा.

‘‘दरअसल, मुझे तुम से अनुज की पढ़ाई से जुड़ी कुछ बातों की

चर्चा करनी थी. तुम उस के डैडी हो और मैं मानती कि ऐसे मामलों में जहां बच्चे का भविष्य जुड़ा हो वहां कोई भी फैसला बच्चे के पिता और मां दोनों का मिल कर लेना जरूरी है.’’

‘‘ओके फिर मैं हाफ डे ले कर तुम से मिलने करीब 4 बजे तक मौल पहुंचता हूं.’’

दीप्ति 3 बजे ही मौल पहुंच गई क्योंकि उसे कुछ शौपिंग भी करनी थी. वहां उसे प्रिया दिखाई दी. प्रिया भी प्रदीप का इंतजार कर रही थी. प्रदीप ने उसे 3 बजे शौपिंग के लिए बुलाया था मगर वह मीटिंग में फंस गया था. इसी वजह से उसे आने में समय लग रहा था.

दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार से गले मिलीं और अच्छी सहेलियों की तरह एकदूसरे का हालचाल पूछने लगीं. आज पहली दफा दोनों को एकदूसरे के साथ वक्त बिताने का मौका मिला.

दीप्ति ने प्रिया का हाथ थाम कर कहा, ‘‘चलो कहीं बैठते हैं और खाते पीते हैं.’’

दोनों तीसरे फ्लोर पर स्थित फूड कोर्ट की तरफ बढ़ गईं. काउंटर पर पहुंच कर और्डर करने लगीं.

प्रिया बोली, ‘‘मुझे तो बस गोलगप्पे खाने हैं.’’

दीप्ति भी उत्साह से बोली, ‘‘भई गोलगप्पे खाने में तो मजा ही आ जाता है. ये खा कर सोचेंगे कि और क्या और्डर करें. वैसे यार हमारे टेस्ट कितने मिलते हैं. मैं खुद जब आती हूं चाट या गोलगप्पे बस यही 2 चीजें खाती हूं.’’

तब प्रिया बोल पड़ी, ‘‘सिर्फ खाने के टेस्ट ही नहीं मिलते हैं. तुम्हारा छोड़ा हुआ पति भी तो मु?ो पसंद आ गया.’’

दीप्ति हंस पड़ी और फिर पूछा, ‘‘यह बताओ प्रदीप की कौन सी बात तुम्हें सब से ज्यादा पसंद आती है?’’

प्रिया बताने लगी,’’ प्रदीप शायरी बहुत अच्छा करता है. जानती हो अकसर मु?ो देख कर मेरी खूबसूरती पर, मेरी आंखों पर, मेरे होंठों पर. बालों पर खूबसूरत शायरी सुनाता है.’’

इस बात पर दीप्ति हंसने लगी तो प्रिया चौंक कर बोली, ‘‘ऐसे क्यों हंस रही हो?

क्या तुम्हें उस की शायरी पसंद नहीं आई थी? क्या तुम्हारे लिए शायरी नहीं करते थे या फिर तुम्हें उस का शायरी सुनाने का अंदाज पसंद नहीं?’’

‘‘मैं मानती हूं कि उस का लहजा अच्छा है. मुझे भी उस से शायरी सुनना बहुत भाता था,

मगर एक बात बता दूं, वह शायरी सुनाता तो अच्छा है मगर यह शायरी वह खुद लिखता नहीं है.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’ प्रिया ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘सच कह रही हूं वह शायरी उस ने खुद नहीं लिखी है बल्कि चोरी की है और वह भी अपने दोस्त की डायरी से. क्या पता उस ने अपने दोस्त की डायरी भी चोरी की हो,’’ दीप्ति ने अपना शक जाहिर किया.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा? तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?’’

‘‘सही कह रही हूं. जब मैं नई थी तो मुझे भी उस ने अपनी शायरी से बहुत

प्रभावित किया था. मैं उस की शायरी की दीवानी हुआ करती थी. मगर एक दिन मैं ने उस की अलमारी में एक डायरी देखी. वह डायरी किसी अमन की थी और प्रौपर हैंडराइटिंग भी किसी और की थी यानी अमन की थी. लेकिन उस डायरी में शायरी वही थी जो प्रदीप मुझे अपनी कह कर सुनाया करता था.

‘‘फिर जब मैं ने उसे इस बात पर चार्ज किया और डायरी दिखा कर उस से पूछा कि यह सब क्या है, तब उस ने स्वीकार किया कि वह मुझे अपने दोस्त की शायरी सुनाता है,’’ दीप्ति ने बात साफ की.

‘‘यह तो बहुत गलत है. ऐसा तो मैं ने सोचा भी नहीं था. मैं तो बस आत्ममुग्ध हुआ करती थी कि मेरी खूबसूरती पर वह इतनी अच्छी शायरी कैसे कर लेता है.’’

‘‘कोई नहीं, बोलने का तरीका तो उसी

का है जो काफी अच्छा है,’’ दीप्ति ने बात संभालनी चाही.

‘‘हां यह तो सही कह रही हो,’’ प्रिया रोंआंसी हो कर बोली.

प्रिया के दिमाग में कुछ उधेड़बुन शुरू हो गई थी. फिर भी नौर्मल होने की कोशिश करती हुई बोली, ‘‘गोलगप्पे

तो बहुत अच्छे हैं. पता है प्रदीप को भी बाहर खाना बहुत पसंद है. सप्ताह में 2 दिन तो हम बाहर आ ही जाते हैं खाने को. वह कहता है कि बस रोज तुम क्यों मेहनत करो. कभीकभी बाहर का खाना अच्छा लगता है. स्वाद भी बदलता है और हमें साथ समय बिताने का मौका भी मिलता है.’’

‘‘मेरे खयाल से समय साथ बिताना है तो वह तो घर में बिताते ही हो. जहां तक बात स्वाद बदलने की है तो वह जरूर सच है. प्रदीप का मन स्वादिष्ठ खाने का मन करता रहता है.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों कह रही हो? मतलब मैं कुछ समझ नहीं?’’

‘‘समझना क्या है. समझ तो मैं भी नहीं थी. करीब 1 साल तक मुझे वह बात समझ नहीं आई थी. प्रदीप मुझे हमेशा बाहर खिलाने की जिद करता और कहता कि चलो आज बाहर चलते हैं या चलो बाहर खा कर आते हैं. मैं भी ख़ुशीख़ुशी उस के साथ निकल जाती थी.

‘‘एक दिन मुझे उस के दोस्त ने बताया कि वह औफिस में अपने दोस्तों से टिफिन भी ऐक्सचेंज करता है. तब मैं ने बैठ कर उस से पूछा था कि ऐसी क्या बात है. उस ने बताया कि उसे मेरा बनाया खाना पसंद नहीं आता. मुझे खयाल आया कि यह बंदा पहले तो मेरी डिशेज की बहुत तारीफ कर के खाता था.

‘‘फिर चुप रह कर खाने लगा था और इधर कुछ दिनों से सच में वह मेरे खाने में कभी नमक तेज, कभी जला हुआ, कभी कच्चा इस तरह की शिकायत करता. फिर जब उस दिन उस ने मुझे हकीकत बताई कि इस वजह से वह मुझे बाहर खिलाने ले जाता तो सम?ा आया कि उसे अपनी पत्नी के हाथ का बनाया खाना पसंद नहीं.

‘‘वही खाना अगर मैं उस के दोस्त के टिफिन में रखती तो वह जरूर बहुत स्वाद ले कर खाता मगर जब मैं बना कर खुद उस के टिफिन में रखती थी तो उसे पसंद नहीं आता था. मुझे लगता है उस का एक तरह से माइंड सैटअप बना हुआ है,’’ दीप्ति ने विस्तार से बताया.

प्रिया सोच में पड़ गई और फिर बोली, ‘‘यह सच हो सकता है क्योंकि मेरे खाने को भी वह कुछ दिन पहले तक तो स्वाद ले कर खाता था. पर इधर कुछ दिनों से वह कुछ कहता नहीं बस चुपचाप खा लेता है.’’

‘‘छोड़ो ज्यादा मत सोचो. अच्छा यह बताओ कि उस ने तुम्हें प्रपोज किया था या तुम ने उसे,’’ दीप्ति ने पूछा.

औफकोर्स उस ने ही किया था,’’ प्रिया बोली.

‘‘अच्छा कैसे?’’

‘‘बहुत ही अच्छे तरीके से. पता है पहले दिन उस ने मुझे अपने घर इनवाइट किया और जब मैं घर के अंदर दाखिल हुई…’’

‘‘तो उस ने ऊपर ऐसी सैटिंग की हुई थी कि दरवाजा खोलते ही ढेर सारी गुलाब की पंखुडि़यां तुम्हारे ऊपर बिखर गईं है न?’’

‘‘हां मगर तुम्हें कैसे पता?’’  प्रिया ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि मेरे साथ भी उस ने ऐसा ही

किया था. मुझे अपना घर दिखाने के लिए वह मुझे ले कर आया था. घर में मेरे कदम पड़ते ही गुलाब की पंखुडि़यां बिखरीं और उस ने मुझे प्रपोज किया. जमीन पर बैठ कर, घुटनों के बल, रिंगहाथ में ले कर, बिलकुल वैसे ही जैसे फिल्मों में होता है.’’

‘‘यह तो तुम ने बिलकुल सही कहा. सब कुछ वैसा ही था जैसा फिल्मों में होता है. पर ऐसा वह सब के साथ करता है यह मुझे नहीं पता था. क्या तुम से पहले कोई और भी थी उस की जिंदगी में,’’ प्रिया ने सवाल किया. उस का चेहरा बुझ चुका था.

‘‘मेरे से पहले उस की जिंदगी में कोई थी या नहीं वह तो नहीं पता पर मेरी जिंदगी में जो हुआ वह सब तुम्हारी जिंदगी में कर रहा है यह समझ आ रहा है. मैं तुम्हें उस के खिलाफ भड़का नहीं रही मगर सचेत कर रही हूं कि उस से इतना ही जुड़ो जितना टूटने पर दिल टूटे न,’’ दीप्ति ने बात साफ करते हुए कहा.

दोनों थोड़ी देर खामोश बैठी रहीं. दीप्ति ने 2 प्लेट इडली का और्डर दिया और प्लेट ले कर वापस आ गई. प्रिया का खाने का दिल नहीं था मगर दीप्ति के जोर देने पर खाने लगी.

फिर प्रिया ने ही पूछा, ‘‘और कुछ बताओ दीप्ति प्रदीप की कोई और आदत जिसे शेयर करना चाहोगी?’’

‘‘अच्छा यह बताओ कि उस ने तुम्हें अच्छीअच्छी जगह घुमाने का वादा भी किया

होगा न?’’

‘‘हां उस ने मुझे करीब 5 साल की प्लानिंग अभी से बता रखी है.’’

‘‘जब तुम लोग साथ हुए उस के 2-4 महीनों के अंदर वह तुम्हें अच्छी जगह ले कर जरूर गया होगा.’’

‘‘हम लोग मनाली गए थे,’’ प्रिया ने बताया.

‘‘बस मनाली के बाद वह आगे नहीं बढ़ेगा और जो वह 5 साल की प्लानिंग बता रहा हैं न वह अगले 5 साल बाद भी मैं तुम से बात करूंगी तो उस पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा होगा क्योंकि उस ने मेरे साथ भी ऐसा ही किया. हमारी 8 साल की शादी में वह बस एक बार मुझे घुमाने ले गया. उस के बाद से प्लानिंग ही होती रही,’’ दीप्ति ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘यह क्या कह रही हो?’’  प्रिया को विश्वास नहीं हुआ.

‘‘सच कह रही हूं. जो मेरे साथ हुआ वही बता रही हूं.’’

‘‘उफ, क्या प्रदीप ऐसा है,’’ प्रिया परेशान स्वर में बोली.

‘‘देखो प्रिया मैं फिर कह रही हूं कि तुम से उस की बुराइयां करना मेरा मकसद नहीं है और न ही मैं उस का बुरा चाहती हूं क्योंकि मन से वह अच्छा है. कई बार वह इतनी अच्छी तरह से केयर करता है, इतनी प्यारी बातें करता है कि उसे छोड़ने का दिल नहीं करता. यही नहीं मैं मानती हूं वह हैंडसम भी है. उस के पास दूसरों को प्रभावित करने का हुनर भी है. मगर सच कहूं मुझे जिंदगी में कुछ और चाहिए था.

‘‘उस ने मुझे धोखा नहीं दिया. हमेशा

मुझे खुश रखने की कोशिश भी की पर मुझे ऐसा बंदा चाहिए था जो मेरा विश्वास जीत सके. मगर प्रदीप मेरा विश्वास नहीं जीत पाया इसलिए मैं अलग हुई वरना उस में कोई ऐसी बहुत बड़ी बुराई नहीं है. तुम्हें डराना नहीं चाहती. कुछ अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. तुम्हें उस से क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए वह तुम डिसाइड करो. तुम्हें जिंदगी से क्या चाहिए यह भी तुम ही डिसाइड करोगी. वैसे एक बात और पूछूं?’’

‘‘हां पूछो न.’’

‘‘उस ने तुम्हें जरूर बताया होगा कि वह घर जिस में तुम दोनों रहते हो, उस ने अपने पैसों से खरीदा है. इस के अलावा 2 घर और हैं अलगअलग शहरों में और उस के पास बहुत जमीन जायदाद भी है. है न,’’ दीप्ति ने पूछा.

‘‘हां यह सब तो उस ने बताया मुझे.’’

‘‘इस में सचाई सिर्फ इतनी है कि उस ने यह घर लोन पर लिया है. बाकी उस के पास ऐसी कोई भारी जायदाद नहीं है. मगर इस से मुझे कोई दिक्कत नहीं थी. मुझे तो इंसान अच्छा चाहिए था. वह इंसान भी अच्छा था पर मेरी कसौटियों पर खरा नहीं उतरा. कई बार वह बहुत जल्दी गुस्सा हो जाता है और यह गुस्सा मैं सह नहीं पाती थी. अभी तुम नई हो. तुम्हारे साथ अभी वैसा गुस्सा नहीं होता होगा या हो सकता है मेरी ही कोई बात उसे गुस्सैल का बना रही होगी. समय के साथ क्या हो कुछ कह नहीं सकते.’’

‘‘यार तुम ने इतना कुछ बता दिया कि अब समझ नहीं आ रहा मुझे क्या करना चाहिए?’’ प्रिया की उलझन बढ़ गई थी.

‘‘अपने दिल की सुनो बस सब समझ आ जाएगा. वैसे उस की एक और आदत बताती हूं. वह नहा कर अपना गीला हुआ तौलिया कहीं भी पटक देता है. यहां तक कि बिस्तर पर भी रख देता है,’’ कह कर दीप्ति हंस पड़ी.

‘‘हां, वह ऐसा ही करता है.’’

‘‘प्रिया मैं ने बहुत से रिऐलिटी चैक

मिलने के बाद यह फैसला किया था कि उस से अलग हो जाऊं. मैं नहीं कह रही कि तुम्हें भी ऐसा करना चाहिए पर तुम अपनेआप को इतना स्ट्रौंग बना कर रखो कि अगर कभी तुम्हें उस से अलग होना पड़े तो तुम अंदर से टूटो नहीं. इसलिए कहीं न कहीं उस से उतनी ज्यादा मत जुड़ो कि टूटने पर खुद को संभाल न सको. बस इतना ही कहना चाहती हूं.’’

अब तक दोनों ने इडली खा ली थी. तभी प्रदीप का फोन प्रिया के पास आया कि वह अपने औफिस से निकल चुका है और उस से मिलने और शौपिंग कराने आ रहा है.

दीप्ति ने भरपूर नजरों से प्रिया की तरफ देखा और उसे गले से लगा लिया, ‘‘तुम मेरी छोटी बहन की तरह हो. मैं तुम्हारे दिल को ठेस नहीं पहुंचने देना चाहती. बात याद रखना कि खुद को इतना मजबूत बनाओ कि कभी जरूरी लगे तो उस से अलग होना कठिन न हो. बस मैं ने तो सही फैसला ले लिया अब तुम्हारी बारी है. तुम अपना खयाल रखना.’’

प्रिया ने दीप्ति को प्यार से देखते हुए अलविदा कहा और दोनों अपनेअपने रास्ते चल दिए. मगर आज प्रिया के मन में बहुत सी बातें उठ रही थीं. बहुत से सवाल थे और बहुत सी उलझनें थीं. आज प्रदीप से मिलने जाने के लिए उस के कदम खुशी से नहीं उठ रहे थे बल्कि बहुत थकेथके से उठ रहे थे.

जिंदगी में पैसा ही सबकुछ है अलीजेह अग्निहोत्री

बौलीवुड के सुपरस्टार सलमान खान की भानजी और ऐक्टर अतुल अग्निहोत्री की बेटी अलिजेह अग्निहोत्री खान ने निर्देशक सोमेंद्र पाधी की फिल्म ‘फर्रे’ के जरीए बौलीवुड में डेब्यू किया है. सलमान खान प्रोडक्शन द्वारा निर्मित इस फिल्म की कहानी स्कूल और कालेज में पढ़ने वाले 4 दोस्तों के जीवन पर केंद्रित है. सलमान खान की बड़ी बहन अलवीरा की बेटी अलिजेह ने मुंबई में शिक्षा ग्रहण करने के बाद लंदन की यूनिवर्सिटी से बीए की डिगरी ली है.

अलिजेह ने अभिनय कैरियर चुनने से पहले क्या कोई और योजनाएं भी बनाई थीं? क्या पहले से ही उन का इरादा ऐक्टिंग लाइन में आने का था? फिल्म ‘फर्रे’ में अपना किरदार निभाने के लिए उन्होंने क्याक्या तैयारी की थी, ऐसे ही कई दिलचस्प सवालों के जवाब दिए अलिजेह अग्निहोत्री खान ने अपने खास अंदाज में:

 

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आप की फिल्म ‘फर्रे’ हाल ही में रिलीज हुई. अपनेआप को परदे पर देख कर आप की पहली प्रतिक्रिया क्या थी?

मिलीजुली प्रतिक्रिया थी. एक तरफ जहां बहुत ज्यादा खुशी थी वहीं दूसरी तरफ थोड़ा सा ऐंग्जाइटी भी थी यह सोच कर कि फिल्म को पता नहीं कैसा रिस्पौंस मिलेगा. हम सभी ने फिल्म में काफी मेहनत की है. काफी सारी वर्कशौप की. शूटिंग के दौरान इतनी घबराहट नहीं थी. लेकिन जैसेजैसे प्रमोशन शुरू हुआ और फिल्म की रिलीज डेट नजदीक आई तो टैंशन भी हो रही थी और खुशी भी. सच कहूं तो मुझे अपनेआप को परदे पर देख कर बहुत खुशी हुई.

सलमान खान की भानजी होने के आप के लिए क्या फायदेनुकसान थे?

बड़ा फायदा बहुत यह था कि मैं एक ऐसे स्टार की भानजी हूं जिसे सब प्यार करते हैं. लिहाजा, मुझे फिल्म इंडस्ट्री में अच्छा वैलकम मिला. मगर इस के साथ लोगों की मेरे से अपेक्षाएं भी बहुत ज्यादा हैं जिन पर खरे उतरना मेरी जिम्मेदारी हो गई है.

आप के पिता अतुल अग्निहोत्री भी अच्छे ऐक्टर हैं भले ही उन का ऐक्टिंग पीरियड बहुत लंबा नहीं था फिर भी उन्होंने जितनी भी फिल्में की दर्शकों ने उन फिल्मों में आप के डैडी को बहुत पसंद किया. ऐसे में जब आप ने फिल्मों में पदार्पण किया तो उन की तरफ से आप को क्या हिदायत मिली?

आप पहली पत्रकार हैं जिन्होंने मुझ से मेरे डैडी के बारे में बात की वरना अभी तक किसी ने ऐसा नहीं किया. मेरे डैडी ने मुझे यही कहा कि जब उन्होने अपना कैरियर शुरू किया था उस वक्त वे पैसों के लिए काम कर रहे थे. इसलिए अभिनय में अपना शतप्रतिशत नहीं दे पाए. आज के समय में हमें पैसे की किल्लत नहीं है. इसलिए मैं अपना पूरा ध्यान ऐक्टिंग कैरियर की तरफ दूं और अच्छी ऐक्ट्रैस कहला कर अपने पिता का अधूरा सपना पूरा करूं.

और अगर सलमान खान की बात करें तो उन्होंने अपनी भानजी से ऐक्टिंग कैरियर को ले कर क्या सलाह दी?

मामा का यही कहना है की जिंदगी में चाहे जो हो खुशी हो गम हो, कितने ही उतारचढ़ाव आएं लेकिन अपने काम पर पूरा ध्यान दो. ऐक्टिंग में अपना शतप्रतिशत दो. तभी आप ऐक्टिंग कैरियर में आगे बढ़ पाओगे क्योंकि बतौर ऐक्टर दर्शकों को आप की पर्सनल लाइफ में कोई इंटरैस्ट नहीं है. दर्शक सिर्फ आप का काम देख कर ही आप को जज करते हैं. इसलिए अगर आप का काम अच्छा होगा तो दुनिया की कोई ताकत आप को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाएगी. सफल होने के लिए यही गुरु मंत्र उन्होंने मुझे दिया.

आप की फिल्म में दिखाया गया है कि परीक्षा के दौरान नकल करने के लिए स्टूडैंट नएनए तरीके अपनाते हैं. क्या आप ने कभी अपने स्कूल मैं परीक्षा के दौरान नकल की थी?

नहीं नकल तो नहीं की, लेकिन एक बार नकल करने की कोशिश जरूर की थी. परीक्षा के दौरान मैं चिट ले कर गई थी. लेकिन डर के मारे मैं वह चिट निकाल ही नहीं पाई कि कहीं पकड़ी न जाऊं.

क्या आप शुरू से ही ऐक्टिंग लाइन में आना चाहती थीं?

नहीं शुरू में तो मैं ने सोचा था कि मैं डाइरैक्शन या ऐडिटिंग लाइन में कैमरे के पीछे काम करूंगी. मुझे निर्देशन और फोटोग्राफी का बहुत शौक है. इसलिए मैं ने सोचा था कि मैं कैमरे के पीछे ही काम करूंगी. लेकिन बाद में मेरा ध्यान ऐक्टिंग की तरफ जाने लगा. लिहाजा, मैं ने ऐक्टिंग सीखने के लिए कई सारी वर्कशौप कीं, ऐक्टिंग करते हुए रील बनाई और कई सारे प्रोडक्शन हाउस में मैं ने अपनी रील भेजी. फिल्म ‘फर्रे’ के लिए भी मैं ने औडिशन दिया था. उस के बाद मुझे इस फिल्म में काम करने का मौका मिला. पहले यह फिल्म ओटीटी के लिए बन रही थी लेकिन बाद में सलमान मामा ने बोला कि इसे सिनेमाघर में ही रिलीज करेंगे.

जब किसी हिट कलाकार का बेटा, बेटी या रिश्तेदार फिल्मों में शुरुआत करता है तो उसे नैपोटिजम, स्टार किड के टैग से गुजरना पड़ता है. आप इस के लिए कितनी तैयार हैं?

कहते हैं न कि मारने वाले का हाथ पकड़ सकते हैं लेकिन बोलने वाले का मुंह नहीं पकड़ सकते. लिहाजा, मेरा लक्ष्य सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना है, अच्छा अभिनय करना है और अपने आप को साबित करते हुए अपने खानदान का नाम रोशन करना है. अगर मेरे सामने ऐसा कोई सवाल आता है तो उस का जवाब भी मैं शालीनता से दूंगी. फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ने के बाद हमें हर चर्चा को स्वीकार करना होगा.

‘फर्रे’ फिल्म में काम करने के पीछे सब से खास वजह क्या थी?

इस फिल्म का कंटैंट बहुत अच्छा है. यह स्कूल के जीवन पर आधारित है जिस ने मुझे आकर्षित किया. इस फिल्म में काम करना मेरी खुद की पसंद है क्योंकि इस फिल्म में बहुत अच्छे ऐक्टर और डाइरैक्टर हैं. यहां मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है. यह एक कमर्शियल फिल्म है. लेकिन मेरी कोशिश अपने किरदार को दिलचस्प बनाने की थी.

आप ने फिल्म में नियति नामक लड़की का किरदार निभाया है. असल जिंदगी में आप नियति से अपनेआप को कितना रिलेट करती हैं?

मैं नियति बहुत कुछ जैसी ही हूं. मैं एक लड़की से मिली थी जो बिलकुल नियति की तरह थी. मेरे यानी नियति और उस लड़की में ज्यादा फर्क नहीं है. उसे भी दोस्तों के साथ मजाक करने में, दुनिया देखने में दिलचस्पी थी मेरी भी कुछ वैसी ही है. वह अपने मांबाप को खुश देखना चाहती है मैं भी अपने मांबाप की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं. लेकिन नियति के साथ जो फिल्म में हुआ है वह अलग है, वही मैं ने अपने किरदार में प्रस्तुत किया है. मेरे किरदार को लगता है कि जिंदगी में पैसा ही सबकुछ है और उसी पैसे के लिए वह मुसीबत में फंस जाती है.

56 साल की उम्र में दूसरी बार शादी के बंधन में बंधे Arbaaz Khan, देखें फोटो

 Arbaaz Khan-Sshura Khan Wedding: बॉलीवुड के अभिनेता और प्रोड्यूसर अरबाज खान काफी समय से सुर्खियों में है. पिछले कई हफ्तों से दावा किया जा रहा था कि अरबाज खान जल्द ही 24 दिंसबर को मेकअप आर्टिस्ट शूरा खान के साथ शादी करने जा रहे है. यह रिपोर्ट एकदम सच निकली. बीती रात अरबाज खान ने बहन अर्पिता खान के घर पर फैमिली की मौजूदगी में शूरा खान के साथ निकाह किया. 56 साल के अरबाज खान अपने 15 साल छोटी शूरा खान के साथ शादी के बंधन में बंध गए है.

शूरा खान बॉलीवुड एक्ट्रेस रवीना टंडन की मेकअप आर्टिस्ट हैं. अरबाज खान ने देर रात इंस्टाग्राम पर शूरा खान के साथ अपनी शादी की तस्वीरें शेयर कीं. तस्वीरों में शूरा और अरबाज बेहद खूबसूरत लग रहे हैं.

अरबाज खान ने शेयर की शादी की तस्वीर

अरबाज खान और शूरा खान ने फ्लोरल आउटफिट पहने हुए. फोटों में देख सकते है कि बैकग्राउंड में भी फ्लोरल डेकोरेशन किया हुआ है. अरबाज ने शादी की तस्वीरें इंस्टाग्राम पर शेयर की है. उन्होंने कैप्शन में लिखा है कि ”अपने प्रियजनों की उपस्थिति में, मैं और मेरी प्रेमिका इस दिन से जीवन भर प्यार और एकजुटता की शुरुआत करते हैं! हमारे विशेष दिन पर आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की आवश्यकता है!”

 

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बेटे अरहान ने भी नई मां के साथ दिए पोज

सोशल मीडिया पर अरबाज खान और शूरा खान की तस्वीरें काफी वायरल हो रही है. न तस्वीरों में अरहान अपने पापा अरबाज और नई मम्मी शूरा खान के साथ पोज देते हुए नजर आ रहे हैं. हालांकि, मलाइका अरोड़ा इस शादी में शामिल नहीं हुईं.

 

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सलमान ने किया डांस

अरबाज खान और शूरा खान की शादी का एक डांस वीडियो काफी वायरल हो रहा है. इस वीडियो में सलमान खान अपनी फिल्म टाइगर जिंदा है कि ‘दिल दिया गल्ला’ गाने पर डांस करते हुए नजर आ रहे हैं. इतना ही नही सलमान ने ‘तेरे मस्त मस्त दो नैन’ पर भी डांस किया. सलमान खान के साथ-साथ इस वीडियो में अरबाज खान के बेटे अरहान खान भी नजर आ रहे हैं. सलमान खान इस दौरान कुर्ता-पजामा पहने नजर आए. सलमान खान के डांस स्टेप्स फैंस को काफी पसंद आ रहे हैं. इस वीडियो में हर्षदीप गाने को गाती हुई दिखाई दीं.

 

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शहीद सैनिकों पर राजनीति

नरेंद्र मोदी के हजार भाषणों में दावों के बावजूद जम्मू कश्मीर में आतंकवादी समाप्त नहीं हुए हैं और धारा-370 चाहे ढीली हो चुकी हो जम्मू कश्मीर में आतंकवादी ढीले नहीं पड़े हैं. नवंबर के अंतिम सप्ताह में आतंकवादियों के हमले जारी हैं और उन्होंने पैराट्रूपर सचिन लौर और कैप्टन एम वी प्रांजल, कैप्टन शुभम गुप्ता, हवलदार अब्दुल मजीद और लांस नायक संजय बिष्ट को अपना निशाना बना डाला.

सरकार की संविधान की धारा-370 से छेड़छाड़ तो तब सफल मानी जाती जब देश का कोई सैनिक आतंकवादियों के हाथों नहीं मर रहा होता. ये मौतें तो सैनिकों की हुई हैं कुछ दिनों में पर आतंकवादी अकसर आम लोगों को निशाना बना रहे हैं. बस फर्क है कि मोदीमय मीडिया इस तरह की खबरों को दिखाने की जगह सिर्फ इसराईल और गाजा युद्ध दिखाता रहता है या चुनावी सभाओं में भीड़ के अंश दिखाता रहता है.

ज्यादा अफसोस यह है कि हर सैनिक की दुखद मृत्यु पर भाजपा नेता उसे भुनाने के लिए फोटोग्राफरों का जत्था ले कर शहीद के घर चैक ले कर पहुंच जाते हैं और मरने वालों का दुख और गहरा अपनी पब्लिसिटी के नाम पर कर आते हैं. वे जबरन मरने वाले की पत्नी या मां या बहन को चैक दिखाते हुए फोटो खिंचाने में लग जाते हैं ताकि जनता को यह संदेश दे सकें कि उन्होंने किस तरह मृत सैनिकों को इस्तेमाल किया है.

2-4 महीनों के बाद मृत सैनिकों के परिवारों के साथ क्याक्या होता है, यह तो पता ही नहीं चलता क्योंकि सैनिक दफ्तरों में कानूनशाही तो अपने ढर्रे पर चलती है.

बड़ी बात तो यह है कि धारा-370 के हटने के बाद भी आखिर आतंकवादी हैं क्यों? भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा प्रचार किया है कि आतंकवाद की जड़ में तो यह धारा-370 है पर इसे हटाने के बाद भी अगर मांओं के बेटे जा रहे हैं, पत्नियों के पति जा रहे हैं, बहनों के भाई जा रहे हैं तो दोष उस सारे प्रचारतंत्र का भी है जिसे बड़े साजियाना ढंग से बनाया गया था.

सेना में नौकरी पर जाने वाला हर जना जान हथेली पर ले कर चलता है पर वह यह भी चाहता है कि उस की सरकार उसे सही समर्थन दे और उस की मौत पर लोग आंसू बहाएं पर उसे प्रचार का साधन न बनाएं. जब जोरशोर से हल्ला मचाया जाता है कि आतंकवादी समाप्त कर दिए गए हैं क्योंकि राज्य में नई तरह की सरकार आ गई है, तो सैनिकों के घर वाले संतुष्ट हो जाते हैं. मगर उन्हें झटका तब लगता है जब सच कुछ और ही निकलता है.

कैप्टन शुभम गुप्ता की मां को भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता किस तरह चैक पकड़ाने की कोशिश कर रहे थे और कैमरों को देख कर कोशिश कर रहे थे कि उन का चेहरा पूरा दिखे, वायरल हो रहा था क्योंकि यह एक शहीद के जाने का गम नहीं दर्शाता, अपनी राजनीति चमकाने का खुला व भद्दा प्रयास दिखता है.

हमेशा राजा सैनिकों को अपने हितों के लिए मरवाते रहे हैं. धर्म उस से भी आगे है. धर्म तो आम आदमी को उकसा देता है कि चलो धर्म की रक्षा के लिए मारने पर लग जाओ. न राजा न धर्म असल में जनता को सुरक्षा देते हैं. वह तो उसे डंडा संभाले कांस्टेबल से मिलती है.

मुझे पसीना बहुत आता है इससे छुटकारा पाने के लिए मेरी मदद कीजिए

सवाल

मुझे बहुत पसीना आता है और उस से बदबू भी बहुत आती है. इस की वजह कोई बीमारी तो नहीं और मुझे इस पसीने से कैसे छुटकारा मिले इस बारे में भी प्लीज मेरी हैल्प कीजिए?

जवाब

वैसे पसीना आना कोई बीमारी नहीं. अगर हम ओवरवेट हैं या हम बहुत साइक्लिंग या कुछ ज्यादा ऐक्सरसाइज करते हैं या फिर मौसम में बहुत ह्यूमिडिटी है तो भी पसीना आना बहुत ही नौर्मल है. मगर अगर आप के पसीने से कोई खास तरह की बदबू जैसे उस में से नमकीन मीठी इस तरह की फीलिंग आती है या आप का पसीना बहुत स्टिकी है तो यह बताता है कि हो सकता है आप को कोई बीमारी हो जैसेकि आप को लिवर डिजीज है या फिर आप की फिश लाइक्स स्मैल आती है तो आप को मैटाबोलिक डिसऔर्डर भी हो सकता है. अत: किसी फिजिशियन से कंसल्ट करें. लेकिन घर में इस बदबू से छुटकारा पाने के लिए आप रैगुलरली नहाएं. नहाने से आप के शरीर के ऊपर से पसीना तो हट जाता है लेकिन कोई अगर इन्फैक्शन होने का चांस हो तो वह भी खत्म हो जाता है.

दूसरा ऐसे कपड़े पहनें जो पसीने को सोख लें. कभीकभी हम नायलौन के कपड़े पहनते हैं और वे पसीना सोख नहीं पाएं तो पसीना बहता जाता है और ज्यादा पसीने से इन्फैक्शन होने का खतरा हो जाता है. जब बहुत गरमी हो तो कोशिश करें कि कूल और फ्रैश ऐन्वायरन्मैंट में रहें जैसेकि एसी में रहें तो भी पसीना कम आएगा. अपने शरीर पर चंदन और किसी ऐरोमैटिक तेल डाल कर एक पैक बना सकते हैं और नहाने के बाद उस पैक को लगा लें और फिर कुछ देर बाद धो लें. इस से भी पसीने की बदबू से आप को छुटकारा मिलेगा. अपने साथ बहुत सारे टिशू पेपर ले कर जाएं और उन से अपने फेस को हमेशा पोंछते रहें. खूब सारा पानी पीएं ताकि पसीने से आने वाले पानी की कमी को पूरा किया जा सके. गरमियों में फिश, ओनियन, गार्लिक या स्ट्रौंग स्मैल वाले स्पाइसेज को अवौइड करें या कम कर दें.

समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

 

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