इसी तरह करते-करते 8 दिन निकल गए. अनिश्चय के झूले में उलझती मैं निश्चिय नहीं कर पाई कि मुझे क्या करना चाहिए कि तभी एक और घटना घट गई. दीवाली पास आ रही थी. शायद 9-10 दिन थे दीवाली में. मेरा जी चाह रहा था कि सुवीर पहले जैसे हो जाएं और हम फिर से नई उमंग के साथ अपनी शादी की पहली सालगिरह से पहले उमंगभरी पहली दीवाली मनाएं.
मैं मन ही मन उस दिन निश्चय कर रही थी कि यदि सुवीर वक्त पर घर आ जाएं तो मैं अब तक के अपने व्यवहार की माफी मांग लूंगी. यही सब सोचते हुए खिड़की के पास बैठ कर सुवीर का इंतजार करने लगी.
तभी आशा के विपरीत सुवीर मुझे वक्त पर आते दिखाई दिए. किंतु यह क्या? सुवीर अकेले नहीं थे. साथ में सविता भी थी. वही सुंदर, दबंग युवती, जिस ने मेरी सारी दुनिया उजाड़ कर रख दी थी.
मैं उसे देखकर अंदर ही अंदर सुलगने लगी. मुझे निश्चय हो गया कि सुवीर रोज इसी के साथ रंगरलियां मनाते हैं. इस वक्त भी दोनों हंस-हंसकर बातें कर रहे थे. तभी उन दोनों ने मुझे देख लिया. मैं बिना कुछ कहे उन्हें अजीब खा जाने वाली नजरों से देख कर उठ गई और बिस्तर पर आकर बिलख-बिलख कर रोने लगी.
थोड़ी देर बाद सुवीर कमरे में आए, पर अकेले ही, वह लड़की उन के साथ नहीं थी. सुवीर ने कहा, ‘‘सविता तुम से कुछ कहने आई है.’’ बस, इस के बाद और कुछ नहीं कहा उन्होंने. 8 दिन बाद हमारी बातचीत हुई थी, वह भी इतनी छोटी और वह भी सविता के बारे में.मन में तो आया कि खूब खरीखोटी सुनाऊं पर न जाने क्या सोच कर चुप रह गई. सुवीर ने यह नहीं बताया कि वह क्या कहने आई है.
मु?ो लगा यही कहने आई होगी कि मैं उन दोनों के रास्ते से हट जाऊं. तलाक ले लूं ताकि वे आपस में शादी कर सकें. यही सब सोचसोच कर मैं अंदर ही अंदर कुढ़तीजलती रही. क्षमायाचना के सारे फंदे यतन से समेटने पर भी जिद की सलाई से निकल ही गए. मैं ने आंख उठा कर देखा तो सुवीर बिलकुल स्वस्थ नजर आ रहे थे, ताजे से मानो कुछ हुआ ही न हो, फिर यह कह कर कि बाकी बातें रात में बताऊंगा, सुवीर कमरे से बाहर
चले गए.वह शाम मैं ने बहुत कठिनाई से बिताई थी. लगा था, उस अप्रिय बात को रात को कैसे सुन पाऊंगी.
रात के खाने के वक्त भी मुझे लगा कि सुवीर कुछ कहना चाहते हैं पर मन इस कदर भन्नाया हुआ था कि मैं ने उन्हें बात करने का मौका ही नहीं दिया. वे रोज पहले सो जाते थे. उस दिन मैं उन के कमरे में आने से पहले ही आ कर सोने का बहाना बना कर लेट गई. मुझे लगा था इस कड़वी, विषैली अप्रिय बात को जितनी देर न सुनूं, उतना ही अच्छा है.
मगर मुझे सचमुच सोई हुई समझकर सुवीर भी लेट गए. थोड़ी देर बाद सुबीर के खर्राटे सुनाई देने लगे. उन के खर्राटों के साथसाथ मेरा गुस्सा भी बढ़ने लगा. अचानक मैं ने निश्चय कर लिया कि मैं सुवीर के जीवन से निकल जाऊंगी. जब वह लड़की भी सुवीर को चाहती है तो बिना प्यार के इस घर में टिकना फुजूल है. दांपत्य संबंधों को जोड़ने वाली रेखा ही जब टूट गई तो रहने से क्या फायदा? सुबह होने को थी, तब कहीं जा कर मैं सो पाईर् थी. उठी तो सुवीर फैक्टरी जा चुके थे.
मेरा मायका और ससुराल एक ही शहर में थे पर सुवीर के प्यार से बंधी मैं शादी के बाद 3-4 घंटों से ज्यादा मायके में कभी नहीं बिता पाई थी. पर अब अचानक ?झटके से उस कच्ची डोरी को तोड़ सुवीर के घर आने से पहले ही सास को यह कह कर कि मैं मायके जा रही हूं, उन से कह दीजिएगा कि अब वे जो चाहें कर सकते हैं. मैं अपने मांबाप के घर चल दी. यह सोच कर कि मैं सदैव के लिए ससुराल छोड़ कर आ गई हूं.
घर वालों ने मुझे लौट जाने को समझाया था. स्वयं चल कर छोड़ आने को भी कहा था, किंतु मैं दोबारा सुवीर के पास जाने को तैयार नहीं हुई. मैंने घर वालों को और भी नमक-मिर्च लगा कर सुवीर पर ऐसेऐसे इलजाम लगाए कि वे भी चुप बैठ गए.
किंतु कुछ दिनों बाद ही मुझे लगने लगा कि सुवीर के साथ बिताए क्षण मुझे पागल बना देंगे. तब मुझे लगता, सुवीर मनाने आएं तो मैं जा सकती हूं. पर जब सुवीर को ही मेरी जरूरत नहीं तो लद कर अनचाहे ही वहां टिकना बेकार है. और मैं नहीं गई थी. न ही सुवीर लेने आए थे. मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था. एक ही लमहे ने जीवन का रुख बदल दिया था. 8 दिन रुकरुक कर गुजर ही गए. अपनी शादी की पहली दीवाली मैं ने सब से छिपछिप कर रो कर कैसे गुजारी, यह सिर्फ मैं ही जानती थी.
मां-बाप ने उस के बाद एड़ी-चोटी का जोर लगा कर यह मामला सुलझाना चाहा. अकेले में शायद पिताजी सुवीर से मिलने भी गए थे, किंतु यह उत्तर पाकर कि यदि मैं स्वयं आना चाहूं तो आ सकती हूं क्योंकि अपनी इच्छा से ही मैं ने वह घर छोड़ा है, वे वापस आ गए थे.
उसके बाद बासी से दिन गुजरते चले गए. काफी कोशिशों के बाद मुझे एक अलग 1 रूम फ्लैट भी मिल गया. मैं ने उन का नंबर अपने मोबाइल से ब्लौक कर दिया. एक दिन मैं स्कूल से पढ़ा कर लौट रही थी कि मैं ने सुवीर को उसी लड़की के साथ चलते और बातें करते देख लिया. यद्यपि सुवीर की दाढ़ी बढ़ी हुई थी, शक्ल से वे काफी उदास और टूटे हुए से लग रहे थे. परेशान से वे सविता से न जाने क्या धीमेधीमे बातें कर रहे थे. वे दोनों मु?ो नहीं देख पाए थे, किंतु उन को एकसाथ फिर बाजार में देख कर मेरा तनमन बुरी तरह जल गया और उसी दिन मैं ने निश्चय कर लिया कि मैं सुवीर से तलाक ले लूंगी.
काफी परेशानियों के बावजूद इस जिद को मैं ने क्रियान्वित करने के लिए कदम भी उठा डाला. सोचा सुवीर इस ?ाटके को सह नहीं सकेंगे और मु?ो लेने आ जाएंगे पर ऐसा नहीं हुआ था. फिर कचहरी में तारीखें लगती रहीं. एक बार अतिरिक्त जिला जज ने हम दोनों को एक अलग कमरे में बुला कर हमें सम?ाया कि हम तलाक लेने से पहले इस के परिणामों के बारे में अच्छी तरह सोच लें. यदि अब भी कोईर् गुंजाइश हो तो पिछली बातों को भूल कर फिर से एकसाथ जीवन बिताने की कोशिश करें. किंतु मेरा कहना था कि सुवीर को जिस लड़की की जरूरत थी, वह उसे मिल गई है. अब चूंकि
उसे मेरी जरूरत नहीं है, इसलिए मैं तलाक चाहती हूं.’’ किंतु आश्चर्य की बात यह कि सुवीर ने अपनी तरफ से कोई वकील नहीं कर रखा था. अदालत में वे चुपचाप नीची निगाहें कर के खड़े रहते और मेरे वकील के कुछ भी कहने के बाद यही कहते, ‘‘जैसी इन की इच्छा हो, वैसा ही कीजिए.’’
कभीकभी मु?ो उन पर तरस आने लगता था. उन के साथ बिताए प्यार के क्षण याद आते. साथसाथ घूमना और प्यारभरा जीवन जीना याद आता. जी में आता, तलाक की अर्जी वापस ले लूं. पर फिर मन कहता वह सब सुवीर की नाटकबाजी है. यदि वे मु?ो चाहते हैं तो उस लड़की से क्यों मिलते हैं और हर बार कचहरी से आ कर टूटीटूटी सी उदास शामों में घिरी रहती थी.’’
मगर अब दीवाली फिर आ रही थी और मैं न चाहते हुए भी अब से 3 साल पहले की स्याह हो गई दीवाली फिर दोहराने जा रही थी. शायद जीवनपर्यंत के लिए क्योंकि उस दिन मुकदमे की आखिरी पेशी थी, उस दिन जज साहब ने अपना फैसला सुनाना था.
अचानक मैं यादों के बवंडर से निकल आई. 9 बज गए थे. मैं कोर्ट जाने के लिए शीशे के आगे खड़ी हो कर कंघी कर ही रही थी कि अचानक बड़े जोर से घंटी बज उठी. सविता अंदर आते ही बोली, ‘‘माफ करना भाभी, सुवीर भैया के बेहद मना करने के बावजूद मैं आज यहां आई हूं, सिर्फ इसलिए कि गलतफहमी इंसान को कहीं का नहीं छोड़ती.’’ ‘‘मैं ने पहले भी कई बार आना चाहा था पर सुवीर भैया ने ही मु?ो नहीं आने दिया और न आप का पता बताया.’’
कुछ देर रुक कर और स्वयं ही सोफे पर बैठते हुए वह फिर बोली, ‘‘सुवीर मु?ो शादी से पहले बहुत प्यारकरते थे, यह बात मुझे बाद में मालूम हुई. असल में मैं ने उन्हें कभी इस नजर से देखा ही नहीं था. इन के घर में शुरू से ही थोड़ाबहुत आनाजाना था. उम्र में भी वे मुझे से काफी बड़े थे, इसलिए मैं अपने सवाल अकसर उन से हल करवाया करती थी और हमेशा उन्हें बड़े भाई की तरह ही समझती थी.
‘‘किंतु सुवीर के विचारों से मैं बिलकुल अनभिज्ञ थी, इसलिए जब पिताजी का अचानक तबादला हुआ तो मैं उन से मिले बिना ही चली गई.‘बाद में सुना कि सुवीर बहुत निराश हो गए थे. मैं तो इलाहाबाद जा कर अपनी पढ़ाई में लग गई और उन को लगभग भूल ही गई. इत्तफाक से 4 साल के बाद मेरी नौकरी इसी शहर में लग गई. उस दिन ?ाल पर सुवीर को देखा तो मु?ो लगा कि उन्हें कहीं देखा है पर याद नहीं आ रहा था कि कहां देखा है. तभी आप ने सुवीर को जोर से हिलाया तो मु?ो अपनी गलती महसूस हुई और मैं अपने होस्टल में लौट गई.
‘‘बाद मैं याद आया कि वे सुवीर ही थे. इस के बाद सुवीर से मेरी मुलाकात 8 दिन बाद हुई. अचानक सुवीर ने ही मुझे बुलाया. मैं ने शादी के लिए उन को मुबारकबाद दी तो कुछ देर तो वे चुप रहे, फिर उन्होंने हंसतेहंसते मुझे अपनी एकतरफा प्यार की गलतफहमी बताई. मैं उस दिन उन के साथ आप के घर आ रही थी, पर जब आप हमें घूर कर अंदर चली गईं तो सुवीर बोले कि मैं मीनू को स्वयं बता दूंगा, कहीं वह गुस्से में तुम्हें उलटासीधा न कह दें.
‘‘इसीलिए मैं उस दिन आप के घर भी नहीं आई. उस के बाद हमारी मुलाकात नहीं हो पाई. अचानक डेढ़ साल बाद एक दिन वे बाजार में मिले तो उन्होंने बताया कि आप उन्हें छोड़ कर चली गई हैं. ‘‘मैं उस दिन भी उन से यही जिद करती रही कि वे इस गलतफहमी को स्वयं आप से मिल कर खत्म कर दें नहीं तो मु?ो आप का पता दे दें मैं जा कर खुद कह दूंगी.
‘‘किंतु सुवीर बोले कि मैं अपनी तरफ से मीनू को सब बात खोल कर बता चुका हूं पर उसे यकीन नहीं आया है. फिर वह मु?ा से कुछ कह या पूछ कर भी नहीं गई तो उसे अपनेआप ही आना चाहिए और इस तरह आप दोनों के स्वाभिमान की वजह से बात टलती रही, बढ़ती रही.
‘‘अभी पिछले साल ही मुझे पता चला कि आप ने कोर्ट में तलाक की अर्जी दे दी है. मुझे यह सुन कर बड़ी तकलीफ हुई, भाभी. गलतफहमी इंसान को कहां से कहां पहुंचा देती है, इस बात का अंदाजा मुझे उसी दिन हुआ.
‘‘आप को एक बात कह दूं कि सुवीर बेहद सीधे, भावुक, अंतर्मुखी और स्वाभिमानी हैं. काफी बार कहने पर भी उन्होंने मुझे आप का पता नहीं दिया. मैं तो जिन से प्यार करती हूं, उन से मेरा विवाह हो रहा है. कल शाम को जब मैं अपनी शादी का निमंत्रणपत्र उन्हें देने गई तो सुवीर की माताजी ने रोतेरोते मुझे बताया कि कल सुवीर के मुकदमे की आखिरी पेशी है, पर मुझे नहीं लगता कि वह कभी दोबारा शादी भी करेगा. मीनू ने जरा सी बात का बतंगड़ बना कर अपना घर बरबाद कर लिया है और सुवीर है कि ?ाकने को तैयार ही नहीं है. मुझे और अपने पिता को भी मीनू के पास नहीं जाने दिया और बात यहां तक आ पहुंची.
‘‘मां ने ही मुझे आप का पता दिया और सुबह उठते ही मैं आप के पास आ गई. अभी भी वक्त है, भाभी, आखिरी पेशी में भी आप अपनी गलती स्वीकार कर के अपनी अर्जी वापस ले लेंगी तो बात बन जाएगी. अब जल्दी कीजिए, देर न कीजिए. कहिए तो मैं भी आप के साथ चलूं? कृपया अपनी और सुवीर की जिंदगी बिखरने से बचा लीजिए.’’
सविता और कुछ कहती उस से पहले ही मैं ने उमड़ते आंसुओं को रोक कर उसे गले से लगा लिया था और बोली, ‘‘नहीं, मैं अकेली ही सब संभाल लूंगी.’’ और सविता से उस की शादी का निमंत्रणपत्र ले कर और कांपते बदन से उसे प्यार कर के जब उसे विदा किया तो मुझे लगा कि
एक घोंसला टूटते-टूटते रह गया. मैं हार्दिक क्षमायाचना का शब्द जाल बुनते, अपने सुनहरे दिनों के ख्वाब संजोती, अपनी उदास दीवाली को खुशगवार और रोशन करने का ताना बुनती हुई आखिरी पेशी का सुखद अंत करने के लिए कचहरी की ओर चल दी.