नेल पेंट के ये 11 टिप्स जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

अक्सर नेलपेंट का इस्तेमाल हम अपने खूबसूरत हाथों को सुंदर दिखाने के लिए करते हैं. अलग-अलग तरह की नेलपेंट हमारे हाथों को नया लुक देता है, लेकिन क्या आपने कभी नेल पेंट का इस्तेमाल घर से जुड़ी चीजों के लिए किया है. घर पर पढ़ी खराब नेलपेंट भी हमारे घर के सामान को डेकोरेट करने में मदद कर सकती है. तो आइए आपको बताते हैं नेलपेंट के कुछ होमकेयर टिप्स…

1. चाभियों पर बनाएं पहचान

शायद आपको चाभियों को लेकर प्रौब्लम हो. आपकी सभी चाभियां – घर की, दराज की या आलमारी की, सभी एक लगती हैं. हर चाभी को अलग-अलग रंग की नेल पॉलिश से चिन्हित करने से काम आसान हो जाता है.

2. मसालों को नामांकित करना

धनिया पाउडर, जीरा पाउडर और पिसा गरम मसाला एक जैसे दिखते हैं. क्यों न इन्हें नामाँकित कर दिया जाये. नामाँकित करने के बाद उनपर पारदर्शी नेल पॉलिश से फेर दें जिससे नामांकन नमी से सुरक्षित रहे.

3. लिफाफा चिपकाना

जब आपको लिफाफा चिपकाने की जरूरत पड़े और गोंद खो गया है. लिफाफे के किनारों पर नेलपॉलिश लगाने से काम हो जायेगा.

4. सुई में धागा डालना

सुई में धागा डालने के लिये हमें काफी मशक्कत करनी पड़ती है. धागे के सिरे को नेल पॉलिश में हल्के से डुबोयें. इससे धागा सख्त हो जायेगा और आसानी से सुई में चला जायेगा.

5. गहनों से सुरक्षा

हम सभी को ऐसे- वैसे गहने काफी पसन्द होते हैं लेकिन ये सभी की त्वचा के लिये अनुकूल नहीं होते. क्या आपने ध्यान दिया है कि इस प्रकार की अँगूठी या हार पहनने के बाद आपकी त्वचा हरी हो जाती है. इसे रोकने के लिये उन गहनों के त्वचा के सम्पर्क में आने वाली सतह पर पारदर्शी नेलपॉलिश की परत लगायें. कई कपड़ों पर के स्टोन काफी नाजुक होते हैं, उन्हे गिरने से बचाने के लिये पारदर्शी नेलपॉलिश की परत लगायें. आप यह परिधानी गहनों के लिये बी कर सकती हैं.

6. जूते के फीते चिपकाना

जूते के फीते के सिरे अक्सर खराब हो जाते हैं तो उन्हे ठीक करने के लिये या तो उन्हे हल्का सा जलाया जा सकता है या फिर नेल पॉलिश लगाई जा सकती है. मजे के लिये एक बार पारदर्शी नेलपॉलिश को छोड़कर रंगीन नेलपॉलिश अपनायें.

7. ढीले पेचों को कसना

याद है, आपके टूल बॉक्स के पेंच अकसर ढीले हो जाते हैं. पेंच को कसने के बाद उनपर नेलपॉलिश की परत लगायें. वे कभी नहीं गिरेंगें.

8. अपने जूते के तलवों को रंगें

अपने पुराने साधारण जूतों के तलवों को रंगबिरंगे रंगो में रंग कर नया जीवन प्रदान करें. फिरोजी, नारंगी या लाल रंग अपनायें.

9. फटने से रोकना

घर से निकले के बाद आपने देखा कि आपकी लेगिंग में छोटा सा छेद हो गया है. अब आप क्या करेंगी. पारदर्शी नेलपॉलिश को फटे भाग के किनारों पर लगायें. इससे वह छेद और बड़ा नहीं होगा.

10. बदरंग होने से बचायें

बेल्ट के बकल पर पारदर्शी नेलपॉलिश की परत लगाने से वे बदरंग नहीं होगें.

11. बटन सुरक्षित करें

अप्रत्याशित समय पर आपके ब्लाउज के बटन निकल आने पर काफी शर्मसार कर देने वाली स्थिति हो जाती है. उन्हे सुरक्षित करने के लिये नेलपौलिश की परत लगायें.

बीमार बना सकता है टैटू का क्रेज

पहले टैटू गुदवाना जहां महंगा और पेनफुल होता था, वहीं अब यह पेनलैस बन चुका है. वैसे भी लोग खुद को कूल, मौर्डन दिखाने के लिए असहनीय दर्द को भी बरदाश्त कर लेते हैं. टैटू बनवाना मानो आज एक रिवाज की तरह हो गया है. टैटू की दीवानगी का आलम इस तरह है कि कपल्स अपने प्यार को जताने के लिए स्किन पर एकदूसरे का नाम तक लिखवा लेते हैं. कुछ अपनी पर्सनैलिटी टैटू के जरीए दिखाना पसंद करते हैं तो कुछ ऐसे भी लोग हैं जो स्किन पर अनेक तरह की कलाकृति तक बनवा लेते हैं.

आजकल तो मातापिता के प्रति प्यार भी टैटू बनवा कर जताया जा रहा है. लेकिन क्या आप को पता है यह टैटू जो न जाने कितनों के प्यार की निशानी है, आप के लिए नुकसानदायक भी साबित हो सकता है. जो टैटू आज लोगों का स्टाइल स्टेटमैंट है और जो आज लोगों के शरीर के हर भाग में दिखाई देने लगता है, उसी टैटू से कई तरह की स्किन संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं:

स्किन प्रौब्लम्स

टैटू आजकल इतना ट्रैंड में है कि लगभग हर किसी के बौडी पार्ट पर बना हुआ देखा जा सकता है. लेकिन टैटू से हमारी स्किन पर लालिमा, मवाद, सूजन जैसी कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं. इस के अलावा कई तरह के स्किन इन्फैक्शन होने का भी डर रहता है. परमानैंट टैटू के दर्द से बचने के लिए कई लोग नकली टैटू का सहारा लेते हैं, लेकिन ऐसा न करें. इससे आप को और भी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.

कैंसर होने का डर

टैटू बनवाते समय हम अकसर यह सोचते हैं कि हम बहुत कूल दिखेंगे. टैटू से सोराइसिस नाम की बीमारी होने का भी डर रहता है. कई बार हम ध्यान नहीं देते और दूसरे इंसान पर इस्तेमाल की गई सूई हमारी स्किन पर इस्तेमाल कर दी जाती है, जिस से स्किन संबंधित रोग, एचआईवी और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है. टैटू बनवाने से कैंसर का खतरा भी बढ़ जाता है.

स्याही स्किन के लिए खतरनाक

टैटू बनाने के लिए हमारी स्किन पर अलगअलग तरह की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है, जो हमारी स्किन के लिए काफी खतरनाक होती है. टैटू बनाने के लिए नीले रंग की स्याही का इस्तेमाल किया जाता है, जिस में ऐल्यूमिनियम जैसी कई धातुएं मिली रहती हैं, जोकि स्किन के लिए हानिकारक होती हैं. ये स्किन के अंदर तक समा जाती हैं जिस से बाद में कई तरह की दिक्कतें हो सकती हैं.

मांसपेशियों को नुकसान

हम अपनी स्किन पर बड़े शौक से टैटू बनवा तो लेते हैं, लेकिन उस के बाद होने वाले नुकसान से अनजान रहते हैं. टैटू के कुछ डिजाइन ऐसे होते हैं जिन में सूइयों को शरीर में गहराई तक चुभाया जाता है, जिस के चलते मांसपेशियों में भी स्याही चली जाती है. इस कारण मांसपेशियों को काफी नुकसान पहुंचता है. स्किन विशेषज्ञों का मानना है कि शरीर के जिस हिस्से पर तिल हो उस हिस्से पर टैटू कभी नहीं बनवाना चाहिए. टैटू बनवाने के बाद किसी भी प्रकार की परेशानी लगे तो तुरंत डाक्टर के पास जाएं. इस की अनदेखी महंगी पड़ सकती है. इस के अलावा यह भी जान लें कि टैटू बनवाने के करीब 1 साल तक आप रक्तदान नहीं कर सकते.

अगर टैनिंग हो जाये तो अपनाएं ये तरीके

यदि आपको सनटैन हो ही गया है तो उसका ट्रीटमेंट घर में उपलब्ध चीजों से ही करना चाहिए. मेडिकेटेड और फेयरनेस क्रीम नहीं लगाना चाहिए क्योंकि कभी-कभी इससे स्किन और भी खराब हो सकती हैं. आजकल कई टैन  रिमूविंग क्रीम मार्केट में मिल रही  हैं ,जिनमे  सनस्क्रीन और स्किन व्हाइटनिंग केमिकल्स होते हैं. जैसे हाइड्रोक्विनोन , ये आपकी स्किन को साफ तो करते हैं  लेकिन इनको बंद करने पर आपकी स्किन फिर काली पड़ जाती है.  इसलिए टैनिंग  रिमूव करने के लिए प्लीज ऐसी क्रीम ना लगाएं तो अच्छा है . अब मैं आपको सन टैन रिमूवल के बहुत ही सिंपल, सुरक्षित और फायदेमंद तरीके बताती हूँ-

1. दही और हल्दी

सबसे पहले दो टेबलस्पून सादे दही में एक चौथाई चम्मच हल्दी मिलाकर रात को सोने से पहले चेहरे पर, हाथों पर या पैरों पर जहां भी सन टैनिंग है वहां अच्छी तरह लगाकर छोड़ दे. जब वह अच्छे से सूख जाए तब सादे पानी से धुल  करके वहां पर वर्जिन कोकोनट ऑयल या प्योर सनफ्लावर ऑयल अच्छे से लगा कर सो जाएं. 15-20 दिन में आपकी स्किन स्वस्थ और नॉर्मल हो जाएगी और टैनिंग  खत्म हो जाएगी.

दही एसिडिक  एजेंट होता है. वह स्किन  के ph को ठीक करता है. उसमें जो एंजाइम्स होते हैं वह स्किन को साफ करते हैं और उसका पानी स्किन को हाइड्रेट करता है.

हल्दी एक बहुत स्ट्रांग नेचुरल एंटीसेप्टिक है.

कोकोनट ऑयल लगाने से आपकी स्किन सूखने से बच  जाती है .यह  स्किन को मॉइस्चराइज करता है और उसको हील भी करता है.

2. प्योर हनी और नींबू के रस का लेप

सबसे पहले  रात को दो बड़े चम्मच प्योर शहद में एक छोटा चम्मच फ्रेश नींबू का रस मिलाकर टैनिंग वाली  स्किन  के ऊपर अच्छी तरह से लगा ले .आधे घंटे तक रहने दें .फिर सादे पानी से धो कर नारियल का तेल लगा ले .

शहद एक बहुत ही हीलिंग एजेंट है

नींबू का रस एसिडिक होता है और स्किन की ph  को ठीक करता है और स्किन के कलर को भी लाइट करता है.

3. ऑयली स्किन वालों के लिए

जिन लोगों की स्किन ऑयली है वह लोग सिर्फ ताजी ककड़ी को पतला- पतला काटकर 20 मिनट तक अपनी टैनिंग स्किन के ऊपर लगाकर छोड़ दें. उसके बाद पानी से फेस वॉश करके एक अच्छा ऑयल फ्री मॉइश्चराइजर लगा ले. 15 से 20 दिन इस तरह करने से आपकी स्किन बिल्कुल साफ हो जाएगी .

एक चीज़ हमेशा याद रखें की अगर आपको सन टैनिंग हो गयी है तो  आप  साबुन कम से कम use करें या ना ही लगाएं तो अच्छा है.

ड्राई और पपड़ीदार स्किन से परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

वसंत ऋतु शुरू होते ही मेरी स्किन रूखी, पपड़ीदार हो जाती है और उस पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं. इस समस्या को दूर करने का उपाय बताएं?

जवाब-

वसंत ऋतु में ऐलर्जी की समस्या बढ़ जाती है. इस मौसम में सैंसिटिव स्किन में नमी की कमी की वजह से लाल चकत्ते भी पड़ जाते हैं. चकत्ते होने पर आप साबुन की जगह सुबहशाम अल्कोहल फ्री क्लींजर का उपयोग करें.

इसी तरह घरेलू आयुर्वेदिक उपचार के तौर पर स्किन पर तिल के तेल की मालिश कर सकती हैं. मलाई में कुछ शहद की बूंदें मिला कर उसे त्वचा पर लगा कर 10-15 मिनट तक लगा रहने दीजिए. फिर इसे फ्रैश वाटर  से धो लें. यह ट्रीटमैंट सामान्य तथा ड्राई दोनों प्रकार की स्किन के लिए उपयोगी है.

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युवतियां सुंदर दिखने के लिए कई सारे कौस्मेटिक्स और मेकअप प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं. ये प्रोडक्ट्स हालांकि सुंदरता बढ़ाते हैं लेकिन त्वचा के लिहाज से ज्यादातर उत्पाद सुरक्षित नहीं होते हैं. इन में कई प्रकार के हानिकारक रसायन होते हैं जो त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसी युवतियों, जो नियमित मेकअप का इस्तेमाल करती हैं, को मेकअप के कई हानिकारक प्रभावों का सामना करना पड़ता है. कौस्मेटिक्स के अत्यधिक प्रयोग से त्वचा में जलन, धब्बे, मुंहासों और बैक्टीरिया के फैलने की समस्या आम है.

इस्तेमाल मेकअप प्रोडक्ट्स का फेसक्रीम : सभी फेसक्रीम, जिनमें मौइश्चराइजर क्रीम, फाउंडेशन क्रीम आदि शामिल होती हैं, इसमे कई बेसिक इंग्रीडिएंट्स समान होते हैं, जैसे पेटोलैटम, प्रिजर्वेटिव्स, इमलसिफायर, पशु वसा, बीवैक्स, लैनोलिन, प्रोपलीन ग्लायकोल और खुशबू. रसायनयुक्त क्रीम से चेहरे, गरदन, पलकों और हाथों पर एलर्जी हो सकती है. अगर खुजली महसूस होती है, त्वचा पर चकते हो जाते हैं या वह लाल हो जाती है तो समझ जाइए कि आप को क्रीम से एलर्जी हो रही है. ऐसे में तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

  • लिपस्टिक : लिपस्टिक का इस्तेमाल करने से कुछ महिलाओं के होंठों पर दरारें पड़ जाती हैं और पपड़ी आ जाती है. कुछ के होंठ काले भी हो जाते हैं. लिपस्टिक में लैनोलिन, खुशबू, कोलोफोनी, सनस्क्रीन और एंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं, जिन से एलर्जी हो सकती है. इसलिए हमेशा अच्छे ब्रैंड की लिपस्टिक खरीदें.

लाल लिपस्टिक में लेड बड़ी मात्रा में पाया जाता है जो खानेपीने के साथ अंदर चला जाता है. लिपस्टिक में पाया जाने वाला मिनरल औयल त्वचा के रोमछिद्रों को बंद कर देता है. इस से त्वचा की कोशिकाओं का विकास और उन की उचित कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

अंतिम निर्णय: रिश्तों के अकेलेपन में समाज के दायरे से जुड़ी सुहासिनी की कहानी

सुहासिनी के अमेरिका से भारत आगमन की सूचना मिलते ही अपार्टमैंट की कई महिलाएं 11 बजते ही उस के घर पहुंच गईं. कुछ भुक्तभोगियों ने बिना कारण जाने ही एक स्वर में कहा, ‘‘हम ने तो पहले ही कहा था कि वहां अधिक दिन मन नहीं लगेगा, बच्चे तो अपने काम में व्यस्त रहते हैं, हम सारा दिन अकेले वहां क्या करें? अनजान देश, अनजान लोग, अनजान भाषा और फिर ऐसी हमारी क्या मजबूरी है कि हम मन मार कर वहां रहें ही. आप के आने से न्यू ईयर के सैलिब्रेशन में और भी मजा आएगा. हम तो आप को बहुत मिस कर रहे थे, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

उन की अपनत्वभरी बातों ने क्षणभर में ही उस की विदेशयात्रा की कड़वाहट को धोपोंछ दिया और उस का मन सुकून से भर गया. जातेजाते सब ने उस को जेट लैग के कारण आराम करने की सलाह दी और उस के हफ्तेभर के खाने का मैन्यू उस को बतला दिया. साथ ही, आपस में सब ने फैसला कर लिया कि किस दिन, कौन, क्या बना कर लाएगा.

सुहासिनी के विवाह को 5 साल ही तो हुए थे जब उस के पति उस की गोद में 5 साल के सुशांत को छोड़ कर इस दुनिया से विदा हो गए थे. परिजनों ने उस पर दूसरा विवाह करने के लिए जोर डाला था, लेकिन वह अपने पति के रूप में किसी और को देखने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. पढ़ीलिखी होने के कारण किसी पर बोझ न बन कर उस ने अपने बेटे को उच्चशिक्षा दिलाई थी. हर मां की तरह वह भी एक अच्छी बहू लाने के सपने देखने लगी थी.

सुशांत की एक अच्छी कंपनी में जौब लग गई थी. उस को कंपनी की ओर से किसी प्रोजैक्ट के सिलसिले में 3 महीने के लिए अमेरिका जाना पड़ा. सुहासिनी अपने बेटे के भविष्य की योजनाओं में बाधक नहीं बनना चाहती थी, लेकिन अकेले रहने की कल्पना से ही उस का मन घबराने लगा था.

अमेरिका में 3 महीने बीतने के बाद, कंपनी ने 3 महीने का समय और बढ़ा दिया था. उस के बाद, सुशांत की योग्यता देखते हुए कंपनी ने उसे वहीं की अपनी शाखा में कार्य करने का प्रस्ताव रखा तो उस ने अपनी मां से भी विचारविमर्श करना जरूरी नहीं समझा और स्वीकृति दे दी, क्योंकि वह वहां की जीवनशैली से बहुत प्रभावित हो गया था.

सुहासिनी इस स्थिति के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. उस ने बेटे को समझाते हुए कहा था, ‘बेटा, अपने देश में नौकरियों की क्या कमी है जो तू अमेरिका में बसना चाहता है? फिर तेरा ब्याह कर के मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहती हूं. साथ ही, तेरे बच्चे को देखना चाहती हूं, जिस से मेरा अकेलापन समाप्त हो जाए और यह सब तभी होगा, जब तू भारत में होगा. मैं कब से यह सपना देख रही हूं और अब यह पूरा होने का समय आ गया है, तू इनकार मत करना.’ यह बोलतेबोलते उस की आवाज भर्रा गई थी. वह जानती थी कि उस का बेटा बहुत जिद्दी है. वह जो ठीक समझता है, वही करता है.

जवाब में वह बोला, ‘ममा, आप परेशान मत होे, मैं आप को भी जल्दी ही अमेरिका बुला लूंगा और आप का सपना तो यहां रह कर भी पूरा हो जाएगा. लड़की भी मैं यहां रहते हुए खुद ही ढूंढ़ लूंगा.’ बेटे का दोटूक उत्तर सुन कर सुहासिनी सकते में आ गई. उस को लगा कि वह पूरी दुनिया में अकेली रह गई थी.

सालभर के अंदर ही सुशांत ने सुहासिनी को बुलाने के लिए दस्तावेज भेज दिए. उस ने एजेंट के जरिए वीजा के लिए आवेदन कर दिया. बड़े बेमन से वह अमेरिका के लिए रवाना हुई. अनजान देश में जाते हुए वह अपने को बहुत असुरक्षित अनुभव कर रही थी. मन में दुविधा थी कि पता नहीं, उस का वहां मन लगेगा भी कि नहीं. हवाई अड्डे पर सुशांत उसे लेने आया था. इतने समय बाद उस को देख कर उस की आंखें छलछला आईं.

घर पहुंच कर सुशांत ने घर का दरवाजा खटखटाया. इस से पहले कि वह अपने बेटे से कुछ पूछे, एक अंगरेज महिला ने दरवाजा खोला. वह सवालिया नजरों से सुशांत की ओर देखने लगी. उस ने उसे इशारे से अंदर चलने को कहा. अंदर पहुंच कर बेटे ने कहा, ‘ममा, आप फ्रैश हो कर आराम करिए, बहुत थक गई होंगी. मैं आप के खाने का इंतजाम करवाता हूं.’

सुहासिनी को चैन कहां, मन ही मन मना रही थी कि उस का संदेह गलत निकले, लेकिन इस के विपरीत सही निकला. बेटे के बताते ही वह अवाक उस की ओर देखती ही रह गई. उस ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. उस के बहू के लिए देखे गए सपने चूरचूर हो कर बिखर गए थे.

सुहासिनी ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए कहा, ‘मुझे पहले ही बता देता, तो मैं बहू के लिए कुछ ले कर आती.’

मां की भीगी आखें सुशांत से छिपी नहीं रह पाईं. उस ने कहा, ‘ममा, मैं जानता था कि आप कभी मन से मुझे स्वीकृति नहीं देंगी. यदि मैं आप को पहले बता देता तो शायद आप आती ही नहीं. सोचिए, रोजी से विवाह करने से मुझे आसानी से यहां की नागरिकता मिल गई है. आप भी अब हमेशा मेरे साथ रह सकती हैं.’ उस को अपने बेटे की सोच पर तरस आने लगा. वह कुछ नहीं बोली. मन ही मन बुदबुदाई, ‘कम से कम, यह तो पूछ लेता कि विदेश में, तेरे साथ, मैं रहने के लिए तैयार भी हूं या नहीं?’

बहुत जल्दी सुहासिनी का मन वहां की जीवनशैली से ऊबने लगा था. बहूबेटा सुबह अपनीअपनी जौब के लिए निकल जाते थे. उस के बाद जैसे घर उस को काटने को दौड़ता था. उन के पीछे से वह घर के सारे काम कर लेती थी. उन के लिए खाना भी बना लेती थी, लेकिन उस को महसूस हुआ कि उस के बेटे को पहले की तरह उस के हाथ के खाने के स्थान पर अमेरिकी खाना अधिक पसंद आने लगा था. धीरेधीरे उस को लगने लगा था कि उस का अस्तित्व एक नौकरानी से अधिक नहीं रह गया है. वहां के वातावरण में अपनत्व की कमी होने के चलते बनावटीपन से उस का मन बुरी तरह घबरा गया था.

सुहासिनी को भारत की अपनी कालोनी की याद सताने लगी कि किस तरह अपने हंसमुख स्वभाव के कारण वहां पर हर आयुवर्ग की वह चहेती बन गई थी. हर दिन शाम को, सभी उम्र के लोग कालोनी में ही बने पार्क में इकट्ठे हो जाया करते थे. बाकी समय भी व्हाट्सऐप द्वारा संपर्क में बने रहते थे और जरा सी भी तबीयत खराब होने पर एकदूसरे की मदद के लिए तैयार रहते थे.

उस ने एक दिन हिम्मत कर के अपने बेटे से कह ही दिया, ‘बेटा, मैं वापस इंडिया जाना चाहती हूं.’

यह प्रस्ताव सुन कर सुशांत थोड़ा आश्चर्य और नाराजगी मिश्रित आवाज में बोला, ‘लेकिन वहां आप की देखभाल कौन करेगा? मेरे यहां रहते हुए आप किस के लिए वहां जाना चाहती हैं?’ वह जानता था कि उस की मां वहां बिलकुल अकेली हैं.

सुहासिनी ने उस की बात अनसुनी  करते हुए कहा, ‘नहीं, मुझे जाना है, तुम्हारे कोई बच्चा होगा तो आ जाऊंगी.’ आखिर वह भारत के लिए रवाना हो गई.

सुहासिनी को अब अपने देश में नए सिरे से अपने जीवन को जीना था. वह यह सोच ही रही थी कि अचानक उस की ढलती उम्र के इस पड़ाव में भी सुनीलजी, जो उसी अपार्टमैंट में रहते थे, के विवाह के प्रस्ताव ने मौनसून की पहली झमाझम बरसात की तरह उस के तन के साथ मन को भी भिगोभिगो कर रोमांचित कर दिया था. उस के जीवन में क्या चल रहा है, यह बात सुनीलजी से छिपी नहीं थी.

सुहासिनी के हावभाव ने बिना कुछ कहे ही स्वीकारात्मक उत्तर दे दिया था. लेकिन उस के मन में आया कि यह एहसास क्षणिक ही तो था. सचाई के धरातल पर आते ही सुहासिनी एक बार यह सोच कर कांप गई कि जब उस के बेटे को पता चलेगा तो क्या होगा? वह उस की आंखों में गिर जाएगी? वैधव्य की आग में जलते हुए, दूसरा विवाह न कर के उस ने अपने बेटे को मांबाप दोनों का प्यार दे कर उस की परवरिश कर के, समाज में जो इज्जत पाई थी, वह तारतार हो जाएगी?

‘नहीं, नहीं, ऐसा मैं सोच भी नहीं सकती. ठीक है, अपनी सकारात्मक सोच के कारण वे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं और उन के प्रस्ताव ने यह भी प्रमाणित कर दिया कि यही हाल उन का भी है. वे भी अकेले हैं. उन की एक ही बेटी है, वह भी अमेरिका में रहती है. लेकिन समाज भी कोई चीज है,’ वह मन ही मन बुदबुदाई और निर्णय ले डाला.

जब सुनीलजी मिले तो उस ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘मैं आप की भावनाओं का आदर करती हूं, लेकिन समाज के सामने स्वीकार करने में परिस्थितियां बाधक हो जाती हैं और समाज का सामना करने की मेरी हिम्मत नहीं है, मुझे माफ कर दीजिएगा.’’ उस के इस कथन पर उन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, जैसे कि वे पहले से ही इस उत्तर के लिए तैयार थे. वे जानते थे कि उम्र के इस पड़ाव में इस तरह का निर्णय लेना सरल नहीं है. वे मौन ही रहे.

अचानक एक दिन सुहासिनी को पता चला कि सुनीलजी की बेटी सलोनी, अमेरिका से आने वाली है. आने के बाद, एक दिन वह अपने पापा के साथ उस से मिलने आई, फिर सुहासिनी ने उस को अपने घर पर आमंत्रित किया. हर दिन कुछ न कुछ बना कर सुहासिनी, सलोनी के लिए उस के घर भेजती ही रहती थी. उस के प्रेमभरे इस व्यवहार से सलोनी भावविभोर हो गई और एक दिन कुछ ऐसा घटित हुआ, जिस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

अचानक एक दिन सलोनी उस के घर आई और बोली, ‘‘एक बात बोलूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगी? आप मेरी मां बनेंगी? मुझे अपनी मां की याद नहीं है कि वे कैसी थीं, लेकिन आप को देख कर लगता है ऐसी ही होंगी. मेरे कारण मेरे पापा ने दूसरा विवाह नहीं किया कि पता नहीं नई मां मुझे मां का प्यार दे भी पाएगी या नहीं. लेकिन अब मुझ से उन का अकेलापन देखा नहीं जाता. मैं अमेरिका नहीं जाना चाहती थी. लेकिन विवाह के बाद लड़कियां मजबूर हो जाती हैं. उन को अपने पति के साथ जाना ही पड़ता है. मेरे पापा बहुत अच्छे हैं. प्लीज आंटी, आप मना मत करिएगा.’’ इतना कह कर वह रोने लगी. सुहासिनी शब्दहीन हो गई. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. उस ने उसे गले लगा लिया और बोली, ‘‘ठीक है बेटा, मैं विचार करूंगी.’’ थोड़ी देर बाद वह चली गई.

कई दिनों तक सुहासिनी के मनमस्तिष्क में विचारों का मंथन चलता रहा. एक दिन सुनीलजी अपनी बेटी के साथ सुहासिनी के घर आ गए. वह असमंजस की स्थिति से उबर ही नहीं पा रही थी. सबकुछ समझते हुए सुनीलजी ने बोलना शुरू किया, ‘‘आप यह मत सोचना कि सलोनी ने मेरी इच्छा को आप तक पहुंचाया है. जब से वह आई है, हम दोनों की भावनाएं इस से छिपी नहीं रहीं. उस ने मुझ से पूछा, तो मैं झूठ नहीं बोल पाया. अभी तो उस ने महसूस किया है, धीरेधीरे सारी कालोनी जान जाएगी. इसलिए उस स्थिति से बचने के लिए मैं अपने रिश्ते पर विवाह की मुहर लगा कर लोगों के संदेह पर पूर्णविराम लगाना चाहता हूं.

‘‘शुरू में थोड़ी कठिनाई आएगी, लेकिन धीरेधीरे सब भूल जाएंगे. आप मेरे बाकी जीवन की साथी बन जाएंगी तो मेरे जीवन के इस पड़ाव में खालीपन के कारण तथा शरीर के शिथिल होने के कारण जो शून्यता आ गई है, वह खत्म हो जाएगी. इस उम्र की इस से अधिक जरूरत ही क्या है?’’ सुनील ने बड़े सुलझे ढंग से उसे समझाया.

सुहासिनी के पास अब तर्क करने के लिए कुछ भी नहीं बचा था. उस ने आंसूभरी आंखों से हामी भर दी. सलोनी के सिर से मानो मनों बोझ हट गया और वह भावातिरेक में सुनील के गले से लिपट गई.

अब सुहासिनी को अपने बेटे की प्रतिक्रिया की भी चिंता नहीं थी.

Summer Gardenning Tips: गर्मियों में लगाएं ये पौधे, आपके घर को खुशबू से महकाएंगे

Summer Gardenning Tips: ऋतुओं के बदलते ही बदलने लगती है हर किसी की जीवन शैली फिर चाहे वो मनुष्य हो, जीव जंन्तु हो या पेड़ पौधे हर किसी पर इस बदलव का असर देखने को मिलता है. बात करें पेड़ पौधों कि तो गर्मियों के मौसम में कई ऐसे पौधे हैं जो हमारे घर को फूलों से सुगन्धित कर हमें मंत्रमुग्ध कर देते हैं, लेकिन सोचने वाली बात यह है यदि हमें इन्हें रोज़ पानी ना दें तो हमारे पौधे खराब हो सकते हैं क्योंकि गर्मियों में अधिक पानी कि जरूरत होती हैं तो आज हम आपको बताने जा रहें हैं कुछ ऐसे पौधों के बारे में जो कम पानी में भी खिलते रहते हैंऔर इन्हें मांटिनेंस की जरूरत भी कम होती है.

गुड़हल

गुड़हल का पौधा लगाने के लिए मार्च से अक्टूबर के बीच का समय बेहतर होता है इसे कुछ जगहों पर जसुद, शो फ्लावर और चाइना रोज भी कहा जाता है. देसी गुड़हल लाल रंग का होता हैं लेकिन हाई ब्रीड वैराइटी में कई रंगों के सिंगल और डबल लेयर वाले फूल होते हैं।साल भर इसका पौधा हरा-भरा रहता है पर गर्मियों में यह ज्यादा फूल देता है। इसे कटिंग या बीज दोनों से उगाया जा सकता है.

विन्का ( सदाबहार )

हाइब्रिड विंका फूल आपके बगीचे को खूबसूरत रंगो से भर देगा। इसके बीज अच्छी ड्रेनेज वाली मिट्टी में बोएं और उन्हें अंकुरण तक गीला रखें, दो सप्ताह बाद इसमें पौधे निकलने लगेंगे. विंका पौधे को पूरी धूप के साथ साथ कम मांटिनेंस की जरूरत होती हैं. इसकी देसी प्रजाति में हल्के पर्पल और सफेद फूल आते हैं. इसकी हाई ब्रीड वैराइटी में कई तरह के रंग-बिरंगे फूल होते हैं। ये एक बार उग जाएं तो आपके बगीचे को पौधों व फूलों से भर देता है.

चांदनी

गर्मियों के मौसम में यह झाड़ीनुमा पौधा छोटे-छोटे बहुत सारे फूलों से भर जाता है।चांदनी के फूल को जूही या रातरानी या चमेली भी कहते हैं। चांदनी के फूल बहुत ही सुन्दर तथा सफेद रंग के होते हैं।

यूफेबिया

यह कैक्टस प्रजाति का पौधा है। इसे स्लेंडर स्पर्ज या अफ्रीकन मिल्क बुश के नाम से भी जाना जाता है,इसका तना कांटों से भरा होता है, यह अफ्रीकन पौधा हैं. इसे कम पानी और ज्यादा धूप की जरूरत होती हैं इस पर गर्मियों के मौसन मे रानी रंग के बहुत सारे फूल खिलते हैं.

मोगरा

मोहक सुगंध इसकी सबसे बड़ी पहचान है। आप मिट्टी या सीमेंट के गमले में लगाए, प्लास्टिक में नहीं।यह हेवी फीडर पौधा है और इसे खाद, पानी, फर्टिलाइजर सभी की जरूरत पड़ती है और इसमें अच्छी फ्लॉवरिंग के लिए आप अपने पौधे में एप्सम सॉल्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं. तेज़ धूप मिलने पर इसके फुल ज्यादा खिलते हैं व इसे समय समय पर कटिंग की जरूरत होती है.

अडेनियम

अडेनियम मूल रूप से रेगिस्तान में उगने वाला पौधा हैं इसमें कई रंग के फुल खिलते हैं जैसे लाल गुलाबी,सफ़ेद,नीले यह गुलाब की तरह दीखता हैं इसलिए इसे रागिस्तान का गुलाब भी कहते हैं इसे फ़रवरी से जून के महीने में लगाना चाहिए. इसे तेज़ धूप व कम पानी की आवश्यकता होती है इस पौधे को कटिंग या बीज दोनों से उगाया जाता हैं यह सालों साल चलने वाला पौधा है.

मधुमालती

मधूमालती बहुत ही खूबसूरत बेल होती हैं इसके फूलो की विशेषता है कि इसके फुल रंग-बिरंगे गुच्छों में खिलते हैं व इनका रंग सफेद, दोपहर में गुलाबी और रात को लाल हो जाता है और पूरे वातावरण में इसकी खुशबू फैल जाती है. इसे कटिंग व बीज दोनों से लगाया जा सकता है साथ ही इसे तेज़ धूप की जरूरत होती है व समय समय पर इसकी कटिंग होना जरूरी होता है. इस पौधे को पानी अधिक देने से फुल कम खिलते हैं.

क्यों महसूस होता है अकेलापन और कैसे पाएं इससे निजात

कोरोना महामारी के समय लोगों के जीवन में भारी बदलाव देखने को मिले. उस दौरान लोगों को महामारी से खुद को बचाए रखने के लिए मजबूरन घरों में आइसोलेट होना पड़ रहा था. महामारी में होने वाली मौतों के कारण लोगों ने अपनों को खोया और वे डिप्रैशन का शिकार हुए.

अकसर देखा गया है कि डिप्रैशन अकेलेपन को जन्म देता है. डिप्रैस्ड व्यक्ति अकेला रहना चाहता है, भीड़ से कटने लगता है, अपने दिलोदिमाग में पनप रहे खयालों को किसी से शेयर करने से कतराने लगता है.

ब्रेकअप के बाद भी लोग एकांत में चले जाते क्योंकि किसी बहुत खास व्यक्ति को खोना किसी की मानसिक स्थिति को बहुत प्रभावित कर सकता है.

द्य सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से भी ऐसा होता है. लोग घंटों सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं. ऐसे लोगों को फौलो कर रहे हैं जो अधिकतर अकेला रहने की हिदायतें देते हैं. इस से भी लोगों की बाहरी दुनिया में रुचि कम हो सकती है.

लंबी बीमारी से जू?ा रहे लोग अकसर खुद को बाहरी दुनिया से अलगथलग पाते हैं. उन के दोस्त रिश्तेदार उन से पहले की कि तरह मेलजोल नहीं रखते तो वे खुद भी दूसरों से स्वाभाविक दूरी बना लेते हैं. कभीकभी अनजाने में उन का सैल्फ आइसोलेशन गहरा हो जाता है, वे खुद को हीन सम?ाने लगते हैं.

‘‘बचपन में जब रोना आता है तो बड़े बोलते हैं आंसू पोंछो. जब गुस्सा आता है तो बड़े कहते हैं मुसकराओ ताकि घर की शांति बनी रहे. नफरत करना चाहे, तो इजाजत नहीं दी और जब प्यार करना चाहे तो पता चला यह साला इमोशनल सिस्टम ही गड़बड़ा गया, काम नहीं कर रहा, काम नहीं कर सकता. रोना, गुस्सा, नफरत कुछ भी खुल के ऐक्सप्रैस नहीं करने दिया. अब प्यार कैसे ऐक्सप्रैस करे?’’

फिल्म ‘डियर जिंदगी’ में शाहरुख खान के ये डायलौग जिस बात और मनोस्थिति की तरफ इशारा करते हैं वे वर्तमान में हर युवा की इमोशनल हालत को रिप्रैजेंट करते हैं.

ऐसे ही ‘लंचबौक्स’ जैसी फिल्म जो मिडल ऐज के लोगों में पनप रहे अकेलेपन को बयां करती है और ‘तमाशा,’ ‘तारे जमी पर,’ ‘बर्फी,’ ‘लुटेरा’ और ‘इंगलिशविंगलिश’ जैसी कितनी फिल्मों में किरदारों के माध्यम से अकेलेपन या लोनलीनैस जैसी समस्या को सामने रखने की कोशिश की गई है जोकि पिछले दशकों में बढ़ती ही जा रही है. इसे नजरअंदाज किया जा रहा है.

क्या है स्थिति

अकसर हम परेशानी में, गुस्से में या उदासी में अपनेआप को जाहिर करने के बजाय उसे दबाते चले जाते हैं, जो आगे चल कर उन्हें अकेलेपन की ओर धकेल देती है. असुरक्षा और रिश्तों में बढ़ती अविश्वसनियता के चलते और कभीकभार परिस्थितियों के कारण लोगों में खासकर युवा पीढ़ी में पहले के मुकाबले अकेलेपन की समस्या बढ़ती जा रही है. कहीं न कहीं आप को ऐसे लोग मिल ही जाएंगे जो अकेलेपन की समस्या से जू?ा रहे हैं.

अकेलापन थोड़ाबहुत मात्रा में सभी में रहता ही है इसलिए इसे अकसर नजरअंदाज किया जाता रहा है. जबकि अकेलापन व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक दोनों पहलुओं को प्रभावित करती है. डब्ल्यूएचओ भी इस बात से इनकार नहीं करता कि अकेलापन गंभीर स्वास्थ्य समस्या के तौर पर उभर रहा है खासकर युवाओं के इस से प्रभावित होने की संभावना तेजी से बढ़ी है.

भारत सहित कई देशों में इस का खतरा हाल के वर्षों में काफी बढ़ा है,. विशेषतौर पर कोरोना महामारी के बाद लोनलीनैस के कारण होने वाली मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की समस्या अब ज्यादा दर्ज की जा रही है.

2021 में एक वैश्विक सर्वेक्षण से पता चला था कि 43% भारतीय अकेलापन महसूस करते हैं. अकेलेपन की व्यापकता के मामले में भारत विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है. चिंताजनक बात यह है कि 13 से 15 वर्ष की आयु के लगभग 25% बच्चे अकेलेपन की भावनाओं की भी शिकायत करते हैं. इस के बाद 35 से 44 वर्ष के 26%, 18 से 24 वर्ष के 9% और 45 से 54 वर्ष के 6% लोगों ने चिकित्सकों से अपने अकेलेपन की बात कही है. कुल सलाह लेने वालों में 67% पुरुष तो 33% महिलाएं थीं. ये आंकडे़ निजी कंसल्टेशन यानी डाक्टरी सलाह पर आधारित रहे.

अकेलेपन के नुकसान भी कम नहीं

अकेलापन कोई मैंटल हैल्थ प्रौब्लम नहीं है हालांकि ये एकदूसरे से गहनता से जुड़े हुए हैं. खराब मैंटल हैल्थ आप को अकेलापन महसूस करा सकती है. इसी तरह अकेलापन मैंटल हैल्थ को इंपैक्ट कर सकता है.

अकेलापन डिप्रैशन, शराब का सेवन, बाल शोषण, नींद की समस्या, व्यक्तित्व विकार और अल्जाइमर रोग मानसिक विकारों को जन्म दे सकता है. ध्यान न देने पर अकेलापन लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम डाल सकता है.

अकेले रहने वाले लोग खुद पर ध्यान देना छोड़ देते हैं. नहाना, साफसफाई और खुद को अपग्रेड करने जैसी बातें उन्हें बेमानी सी लगने लगती हैं. लोगों और समाज से संपर्क टूट जाने के कारण, समाज में हो रहे बदलावों से भी वे दूर हो जाते है. कपड़ों में, खानेपीने की चीजों में और घूमनेफिरने में उन की कोई रुचि नहीं होती. वे हमेशा थके हुए होते हैं. कहीं जाने की बात पर ‘मन नहीं है, इच्छा नहीं है’ जैसी बातें बोलते हैं.

भारत में अकेलेपन के मनोवैज्ञानिक और शारीरिक प्रभावों पर बहुत कम शोध किया गया है. भारत में ऐसे कुछ ही अध्ययन हुए हैं, जिन में अकेलेपन के अन्य मानसिक विकारों के साथ संबंध का अध्ययन किया गया है. हालांकि इन में से अधिकांश अध्ययन केवल बुजुर्ग रोगियों पर किए गए थे, युवाओं पर नहीं.

एकदूसरे से जुड़े हैं अकेलापन और बेरोजगारी: उन्होंने कहा कि आप ज्यादा अकेले हैं तो आप की नौकरी खोने की संभावना ज्यादा होती है. आप का काम में मन नहीं लगता और परफौरमैंस गिरती चली जाती है.

लाभदायक भी हो सकता है अकेलापन: अकेला महसूस करना एक स्वस्थ भावना है और वास्तव में एक अवधि का एकांतवास करना लाभदायक भी हो सकता है अगर उस का इस्तेमाल खुद अपग्रेड करने में किया जाए.

अपनी पर्सनैलिटी को सवारें, किताबें पढ़ें अपनी नौलेज को बढ़ाएं. सैड रह कर वक्त जाया न करें बल्कि उस का सदुपयोग करें.

कुछ लोगों में अस्थायी या लंबे समय का अकेलापन कला और रचनात्मक अभिव्यक्ति का रूप ले सकता है. लोग नईनई विद्याएं सीखते हैं. जैसे लैंग्वेज, डांस और पेंटिंग जो उन्हें नई ऐनर्जी देता है. नए उद्देश्य देता है.

अकेलापन आप को संवार भी सकता है और बिगाड़ भी: यह बिलकुल वैसा ही है जैसे दीवार में उगता हुआ पीपल का पेड़ जो अकेला होते हुए भी अपने आसपास के ऐन्वायरन्मैंट में खुद को ढाल लेता है. उतनी सफलता से विकसित होता है जितनी सफलता से कहीं और तो यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है.

बुड्ढा आशिक: किस तरह प्रोफेसर प्रसाद कर रहे थे मानसी का शोषण

मानसी अभी कालेज से लौट कर होस्टल पहुंची ही थी कि उस के डीन मिस्टर प्रसाद का फोन आ गया. वह बैग पटक कर मोबाइल अटैंड करने लगी. प्रसाद मानसी के पीएचडी गाइड थे और वे चाहते थे कि मानसी उन के साथ बाहर जाने के लिए तैयार हो जाए, उन्हें तुरंत बाहर जाना है.

मानसी को समझ नहीं आया कि क्या कहे? हां कहे तो मुश्किल और ना कर दे तो और भी मुसीबत. तभी उसे अपने बचपन के साथी शिशिर का बहाने बनाने का फार्मूला याद आया.

उस ने कराहते हुए कहा, ‘‘सर, मैं तो एक कदम भी चल नहीं पा रही हूं.’’

प्रसाद भी बड़े घाघ थे, बोले, ‘‘अभी तो यहां से अच्छीभली निकली हो, अब क्या हो गया?’’

‘‘ओह,’’ मानसी आवाज में दर्द भर कर बोली, ‘‘सर, अभी यहां बस से उतरते समय मेरा पांव मुड़ गया जिस से मोच आ गई,’’ कहते हुए मानसी ने एक और कराह भरी.

अब प्रसादजी परेशान हो उठे. प्रसाद थे तो 52-55 की उम्र के बीच, पर अपनी ही स्टूडैंट स्कौलर छात्रा मानसी पर ऐसे लट्टू हुए रहते कि सारे कालेज में उन्हें ‘बुड्ढा आशिक’ के नाम से जाना जाता.

वे मानसी को डांटते हुए बोले, ‘‘क्या मानसी, तुम ढंग से नहीं चल सकती, अभी आता हूं तुम्हें देखने.’’

प्रसाद की बात सुन मानसी और परेशान हो उठी. फिर वह कराहते हुए बोली, ‘‘वह मेरा दोस्त शिशिर आ रहा है, वह दवा दे देगा. आप चिंता न करें मैं ठीक हो जाऊंगी.’’ बेचारे प्रसाद सर ने बाहर जाने का अपना प्रोग्राम ही कैंसिल कर दिया. वे मानसी के बिना नहीं जाना चाहते थे. उन का हाल तो कुछ ऐसा था कि एक मिनट भी मानसी के बिना न रहें.

मानसी थी तो उन की एक रिसर्च स्कौलर छात्रा, किंतु उस के विरह में जैसे वे हलकान होते थे, यह देख कर उन के साथी तो क्या उन के स्टूडैंट भी परेशान हो जाते थे और कई बार उन्हें चिढ़ा कर कहते, ‘‘सर, मानसीजी तो कैंटीन में खा रही हैं.’’

इस पर वे बड़े परेशान हो जाते और फोन कर मानसी से कहते, ‘‘अरे मानसी, कैंटीन का खाना खा कर तुम बीमार हो जाओगी. आओ तो, यहां मेरे कैबिन में देखो, मनोरमा ने क्या लजीज खाना बना कर भेजा है.’’

इस पर मानसी की सारी सहेलियां उस की हंसी उड़ाती और कहतीं, ‘‘जा, तेरा बुड्ढा आशिक तुझे बुला रहा है.’’ मानसी भी कम नहीं थी, वह कहती, ’’कम से कम आशिक तो है, तुम्हारे तो वे भी नहीं हैं.’’

मानसी ने अपने कक्ष में बैड पर लेट कर कुछ देर रैस्ट किया, फिर फोन पर शिशिर का नंबर मिला कर बतियाने लगी, ’’अरे, कंपाउंडर साहब, कैसे हो,’’ शिशिर कोई कंपाउंडर नहीं था, वह तो अपने पिता का तेल का बिजनैस संभालता था. उस के पिता तेल के व्यापारी थे और उन का यह व्यवसाय पीढि़यों से चल रहा था. मानसी व शिशिर के घरमहल्ले थोड़ी दूरी पर ही थे. शिशिर उस के साथ ही कालेज तक पढ़ता रहा था. एमए के दौरान शिशिर के पिता के बीमार होने पर उसे पूरा बिजनैस संभालना पड़ा था. तब मानसी ही उस की मदद कर के एमए की परीक्षा जैसेतैसे दिलवा सकी. फिर वह आगे न पढ़ सका. मानसी ने पीएचडी की पढ़ाई जारी रखी. इस तरह वे थोड़े दूर तो हो गए, पर मोबाइल पर दोनों के बीच बातचीत होती रहती थी. यहां तक कि मानसी के घर पर कोई काम हो तो शिशिर ही कर जाता.

मानसी के पिता नहीं रहे थे. उस की बहन वैशाली ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया था, वह अपना बुटीक चलाती थी. वह मानसी से बड़ी थी.

मानसी को प्रसाद प्यार से मनु कहते. उन्हें लगता मनु ही उन की सच्ची संगिनी हो सकती है. उस समय वह भूल जाते कि उन की भी पत्नी है, बच्चे हैं, घरबार है. वे मानसी के पीएचडी के काम में जरा भी रुचि नहीं लेते थे. इस से मानसी को भीतर ही भीतर गुस्सा आता.

प्रसाद की पत्नी मनोरमा अपनी नई बहू व नाती में इतनी व्यस्त रहती कि उस बेचारी को पता ही नहीं था कि इधर उस के पति क्या रंगरलियां मना रहे हैं.

अगले दिन मानसी कालेज पहुंची, तो ठीकठाक थी, किंतु जैसे ही वह प्रसाद के कैबिन के सामने पहुंची, लंगड़ाने लगी. प्रसाद लपकते हुए बाहर आए और बोले, ’’अरे मानसी, संभल कर.’’

मानसी तो शर्म से पानीपानी हो गई. उस की सारी सहेलियां भी यह देख कर हंस कर लोटपोट हो रही थीं. वे बोलीं, ’’यह क्या मनु? लग रहा था, प्रसाद अभी तुम्हें गोद में उठा कर सीधे अपने कैबिन में ही ले जाएंगे.’’

मानसी ने किताबें समेटीं व लाइब्रेरी में जा बैठी. तभी प्रसाद भी वहां आ गए और पूछने लगे, ’’कल क्यों नहीं आई? कितना मजा आता, केरल का ट्रिप था?’’

मानसी को लगा, साफसाफ कह दे कि आप अपनी श्रीमतीजी को क्यों नहीं ले जाते? पर चुप रही, उसे पीएचडी भी तो पूरी करनी है. प्रसाद को टरका कर उस ने शिशिर को फोन मिलाया, ’’अरे, कंपाउंडर…’’ फिर शुरू हो गई दोनों की बातचीत. शिशिर को वह कंपाउंडर इसलिए कहती थी कि खुद पीएचडी कर के डाक्टर हो जाएगी.

अभी उस ने कुछ लिखा ही था कि फिर प्रसाद आ गए और शुरू हो गई वही उन की बकवास, ’’आप कितनी खूबसूरत हैं, आप पर तो सब फिदा होते होंगे?’’

इधर मानसी की सहेलियां चुपके से सुनतीं और कहतीं, ’’तेरा बुड्ढा आशिक बेचारा…’’

इन बातों से मानसी का दिमाग गरम हो जाता, लेकिन वह क्या करे? पीएचडी तो उसे करनी ही है. फिर लैक्चररशिप… फिर मजे ही मजे. पर इस बुड्ढे आशिक से कैसे पीछा छुड़ाए? वह बेचारी मन मसोस कर रह जाती.

एक दिन तो गजब हो गया. सारी सहेलियों के साथ वह फिल्म देखने गई थी. वहां सभी ऐंजौय कर रही थीं कि जाने कहां से प्रसाद टपक पड़े,’’अरे, अब क्या करें.’’ सारी सहेलियां एकदम चीखीं. ’मुझे इस बला से पिंड छुड़ाना ही होगा,’ एक दिन मानसी सोचने लगी, लेकिन ऐसे कि लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए.

अब तो हद ही हो गई थी, रोज कालेज से होस्टल पहुंचते ही उस के मोबाइल पर प्रसाद का मैसेज आ जाता, ’शाम को कहीं चलते हैं, वहीं डिनर करेंगे.’ अति होने पर मानसी ने सोच लिया कि कुछ तो करना ही पड़ेगा. रोज कहां तक बहाने बनाए. अत: उस ने शिशिर को फोन किया, ’’कंपाउंडर साहब, कल तैयार रहना…’’ और उसे अपनी सारी योजना भी बताई. वह पीली साड़ी और गले में मंगलसूत्र डाले शिशिर की स्कूटी से कालेज पहुंची और सीधे प्रसाद के कैबिन में विनम्रता से दाखिल हुई, ’’मे आई कम इन सर,’’ कुछ ऐसा ही मुंह से निकला मानसी के.

’’ओह… ’’प्रसाद ने सिर उठाया, वे पेपर पढ़ रहे थे. देख कर गिरतेगिरते बचे. ’’कम इन… कम इन…’’ वे बोले.

’’सर, ये मेरे मंगेतर शिशिर, अब मेरे जीवनसाथी बन गए हैं. हम दोनों ने शादी कर ली है. सर, आशीर्वाद दीजिए न.’’ मानसी ने हाथ जोड़ कर कहा.

प्रसाद की तो भृकुटी तन गई. उसे तो समझ ही नहीं आ रहा था कि वे मानसी से क्या कहें.

’’तुम… हांहां ठीक है, ठीक है, जाओ.’’ मानसी पर उन्हें गुस्सा आ रहा था.

मानसी बोली, ’’सर, डिनर…’’

प्रसाद बोले, ’’नहीं. आज मनोरमा को क्लीनिक ले कर जाना है. मानसी बोली,’’बधाई हो सर.’’

प्रसाद को जैसे काटो तो खून नहीं. मानसी बाहर आ गई. शिशिर को मंगलसूत्र उतार कर देते हुए बोली, ’’इसे संभाल कर रखना. फिर काम आएगा.’’

उस की सारी सहेलियां भी उस के इस नाटक से हैरान थीं. वे बोलीं, ’’तेरा जवाब नहीं मानसी, तूने सही तरीका ढूंढ़ा उस बुड्ढे आशिक से पीछा छुड़ाने का. अब शायद ही कभी वह ऐसी हरकतें करे.’’ मानसी बोली, ’’हम ऐसे ही डाक्टर थोड़े हैं,’’ और कैंपस में ठहाके गूंजने लगे.

घर और औफिस की टेंशन के कारण मुझे रात को नींद नहीं आती?

सवाल-

मैं 34 साल का हूं और प्राइवेट सैक्टर में काम करता हूं. घर की टैंशन और औफिस की टैंशन की वजह से मुझे रात को नींद नहीं आती है. इस वजह से मैं ने नींद की गोलियां खानी शुरू कर दीं. मगर कुछ प्रौब्लम खत्म नहीं हुई, बल्कि और बढ़ गई. प्लीज मुझे गाइड करें?

जवाब-

हैल्दी जीवन गुजारने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम कम से कम तनाव लें. सब से पहले तो आप अपने थौट्स और फीलिंग्स पर गौर करें. जानें कि आप को क्या बात परेशान कर रही है. फिर उन्हें दूर करने की कोशिश करें. मैडिटेटिंग ऐक्टिविटीज जैसे ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज करने से आप का माइंड रिलैक्स होगा और आप अपने काम पर फोकस कर पाएंगे. अपनी फैमिली के साथ समय बिताएं. उन से बातचीत करें, उन को समझें. धीरेधीरे आप अपनी लाइफ ऐंजौय करने लगेंगे.

एकल परिवारों में जहां मातापिता दोनों नौकरीपेशा होते हैं वहां बच्चे अपनी समस्या का हल खुद ही निकालने की कोशिश करते हैं और जब वे इस में कामयाब नहीं हो पाते हैं तब कई बार आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं.

रंजना एक सिंगल पेरैंट हैं. अपनी बेटी श्रेया को ले कर वे बहुत महत्त्वाकांक्षी रही हैं. वे उसे डाक्टर बनाना चाहती थीं, परंतु श्रेया की साइंस में बिलकुल दिलचस्पी नहीं थी. यह बात वह कभी रंजना को खुल कर नहीं बता पाई. धीरेधीरे वह कुंठित होती गई. घंटों कमरे में बंद रहती. धीरेधीरे डिप्रैशन में चली गई.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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घरवाली और रसोई वाली: ऐग्जिक्यूटिव साहब का घर से बाहर निकालना क्यों मुश्किल हो गया था

पढ़ाई पूरी हुई. कैंपस सलैक्शन से कोलकाता में अच्छी जौब लग गई. मैं ने एक अच्छे कौंप्लैक्स में डबलबैड अपार्टमैंट किराए पर ले लिया. नौकरी जौइन करने भर की देर थी कि माताश्रीपिताश्री ने मेरे लिए अपनी ओर से कन्या फाइनल कर दी. मेरी सहमति के लिए मुझे रांची बुलावा भेजा. मैं चर्च कौंप्लैक्स स्थित विशेष रैस्टोरैंट में सुहाना से मिला. हम ने साथसाथ पनीर कटलेट, पनीर चिली का आनंद लिया. सुहाना बोकारो की थी. उसे रैस्टोरैंट का माहौल बेहद पसंद आया. हम ने नक्षत्र वन में लंबी बातचीत की.

‘‘मैं खाने का बेहद शौकीन हूं. चटपटा, मसालेदार खाना पसंद है,’’ मैं ने सुहाना को बताया.

‘‘मैं भी कुछ बताना चाहती हूं,’’ मितभाषी सुहाना ने हिम्मत की. अब तक केवल हूंहां ही कर रही थी.

‘‘बेहिचक बताओ. किसी को चाहती हो? कोई अफेयर रहा है? कोई समस्या है?’’ मैं ने कई प्रश्न एकसाथ कर दिए. मुझे चिंता हो आई थी. मैं अब तक गोरीचिट्टी, लंबीछरहरी और शर्मीली सुहाना को अपना चुका था.

‘‘कुकिंग नहीं आती. कभी की नहीं. अपने बड़े परिवार में रसोइए महाराज लगे हैं. बस खाना जानती हूं,’’ सुहाना ने सिर झुकाए बताया. वह मुसकरा भी रही थी. शायद उस ने मेरी परेशानी भांप ली थी.

‘‘नो प्रौब्लम. हम रसोई वाली रख लेंगे. वैसे भी कोलकाता की चिपकूचिपकू गरमी में कुकिंग सचमुच एक बड़ी प्रौब्लम है… सुहाना सांवली हो जाएगी,’’ मेरी अफेयर वाली चिंता दूर हो चुकी थी.  मैं सुहाना को किसी भी हालत में खोना नहीं चाहता था.

मेरी ‘ओके’ रिपोर्ट के साथ ही शादी की तैयारी शुरू हो गई. 30 दिनों में ही सुहाना मेरी सुप्रिया, जानेमन, हंप्टी शर्मा की दुलहनिया यानी मेरी प्यारीदुलारी घरवाली बन गई. हम ने मुंबई, गोवा, महाबलेश्वर में हनीमून मनाया. मुंबई के सिनेमाघर में लंबे समय से चल रही ‘दिल वाले दुलहनिया ले जाएंगे’ देखी. गोवा में सुहाना को बिकनी में कैमरे में उतारा. महाबेलश्वर में स्पैशल स्ट्राबैरी आइसक्रीम का आनंद उठाया. साथसाथ घुड़सवारी की, डूबते सूरज को निहारा.

‘‘रसोई वाली लगेगी तो फिर कोलकाता आ जाऊंगी,’’ सुहाना ने शर्त रखी.

मैं ने कोलकाता में औफिस के दोस्तों को पूरा किस्सा सुनाया. मेरे 2 दोस्त साथ ही कौंप्लैक्स में अलगअलग अपार्टमैंट में रहते थे. मैं ने सिक्युरिटी औफिस में रसोई वाली की अपनी जरूरत बता दी.

अगले दिन सुबहसुबह रसोई वाली हाजिर हो गई. छुट्टी का दिन था. मैं न्यूज पेपर में उलझा था.

मैं ने रसोई वाली को गौर से देखा. दुबलीपतली, सांवली, बड़ीबड़ी आंखें, कुल मिला कर सुंदर थी. सिकुड़ीमुड़ी लेकिन साफसुथरी सलवारकमीज में थी.

‘‘कुकिंग कर लेती हो?’’ मैं ने अटपटा प्रश्न पूछ लिया. मैं रसोई वाली के इंटरव्यू के लिए तैयार नहीं था.

‘‘मुझे कुकिंग नहीं आती तो ऐसे ही 2 फ्लैटों में रसोई करती?’’ सांवली सपाट स्वर में बोली.

‘‘आलू के परांठे बना लेती हो?’’ नाश्ते में आलू के परांठे, मक्खन, दही और कसे कच्चे आम की मसालेदार चटनी मैं चटखारे ले कर खाता था.

‘‘नाश्ते में 6 भरवां परांठे या 12 पूरीभाजी, लंच के लिए 10 रोटियां, पसंद की 1 भाजी. रात के खाने में 6 रोटियां, थोड़े चावल, सूखी भाजी और रसदार सब्जी. इतवार को राइस चिकन, सलाद, चिकन करेगी तो बच्चों के लिए थोड़ा ले जाएगी. नाश्ते का 500, लंच का 1000, डिनर का

1000 लेगी. महीने में 2 दिन छुट्टी करेगी. मंजूर हो तो बोलने का नहीं तो जाएगी,’’ सांवली ने एक ही सांस में अपनी बात पूरी की और फिर लिफ्ट के पास खड़ी हो गई.

‘‘सारी शर्तें मंजूर हैं…पहली तारीख से आ सकती हो?’’ मुझे तुनकमिजाज सांवली पसंद  आई. तपे सोने की तरह खरी लगी.

मैं ने सुहाना को पूरी रिपोर्ट दी. बयान करने में मजा आया.

‘‘सुंदर है? क्या नाम बताया?’’ सुहाना ने पूछा.

‘‘फोटोजेनिक है…तुम्हारी तरह गोरी और चिकनी नहीं है. नाम तो पूछा ही नहीं,’’ मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ.

‘‘सांवली पर जनाब फिदा हो गए… घरवाली से जी भर गया… रसोई वाली अब सुप्रिया बनेगी,’’ सुहाना ने मुझे छेड़ा.

‘‘कुकिंग नहीं सीखने का खमियाजा तो भुगतना पड़गा,’’ मैं ने माकूल जवाब दिया.

‘‘पूरी निगरानी रहेगी…रिटायर्ड कर्नल की बेटी हूं…फटाफट कुकिंग सीख कर सांवली का कोर्टमार्शल कर दूंगी,’’ सुहाना अब छुईमुई, गूंगी गुडि़या से बातूनी घरवाली बन चुकी थी.

अब और इंतजार संभव नहीं था. महीने के आखिरी दिन सुहाना कोलकाता पहुंच रही थी. मैं ने पूरे हफ्ते की छुट्टी ले रखी थी. एअरपोर्ट से वापसी में हम ने मिल कर खरीदारी की. किचन के लिए पूरी व्यवस्था की. सुहाना ने अपने लिए भी शौपिंग की. डिनर रैस्टोरैंट में लिया. दोनों ने मिल कर किचन के सामान को यथास्थान रखा.

सुबह 6.30 बजे सांवली आ गई. सुहाना से मिली. थोड़ी देर की बातचीत के बाद वह नाश्ता तैयार करने में जुट गई. घंटे भर में नाश्ता डाइनिंगटेबल पर सजा कर निकल गई.

नाश्ते के लिए हम साथसाथ बैठे. सांवली ने आलू के 6 करारे परांठे बनाए थे. लौकी की सादी भाजी थी. मक्खन, मिक्स्ड अचार का जार, गरम चाय सब कुछ करीने से रख गई थी.

‘‘परांठे अच्छे हैं, लेकिन 3 परांठों से जीभ को बहलाने में मुश्किल होगी.’’

‘‘लौकी की सादी भाजी भी अच्छी बनी है,’’ सुहाना ने भी सांवली की तारीफ की.

‘‘मेरे लिए बस 2 परांठे,’’ सुहाना ने अपने हिस्से का 1 परांठा मेरी प्लेट में डाल दिया. गरमगरम आलू के परांठे और उन पर मक्खन का लेप. नाश्ते में मजा आ रहा था. हम उस के काम से संतुष्ट थे. हम दोनों ने सांवली को अच्छी कुक मान लिया.

सांवली किचन की ड्यूटी बखूबी निभा रही थी. नौनवैज में चिकन राइस, चिकन बिरयानी अच्छी बना लेती थी. बेहद फुरतीली थी. समय का पूरा उपयोग करती थी. सलीके से रहती भी थी. नैननक्श तीखे थे. चेहरे में चमक और खिंचाव था. सचमुच अच्छी दिखती थी.

सुहाना खूब सजसंवर रही थी. उस का रंग निखर रहा था. देह मक्खन सी चिकनी थी. अकसर पार्लर जाती थी. महंगी ड्रैस पहनती थी. विदेशी परफ्यूम इस्तेमाल करती थी. मैं मंत्रमुग्ध हो उसे निहारता था. देह की सुंगध में भावविभोर हो जाता था. औफिस जाने से कतराता था. सुहाना जबरदस्ती भेजती थी. बहाना बना कर समय से पहले छुट्टी करने पर नाराज होती थी. पास नहीं आने देती थी.

सुहाना सांवली को भी समय देती थी. रसोई के गुर सीखती थी. सांवली छुट्टी करती तो नाश्ता बना लेती थी. करारे आलू के परांठों के साथ कच्चे आम की मसालेदार चटनी भी बना लेती थी.

सुहाना ने सचमुच भरपूर निगरानी रखी थी. तरीका अलग था. उस ने दूल्हे मियां का ध्यान पूरी तरह से अपनी ओर खींच रखा था. मुझे बांध रखा था. वह घरवाली थी, सुंदरी थी, सुप्रिया थी, सपनों की रानी थी, आकाश से उतरी परी थी, स्वर्गलोक की अप्सरा थी.

रसोई वाली सांवली अच्छी थी. उस में आकर्षण था, लेकिन सुहाना ने एमएनसी में कार्यरत सीनियर ऐग्जिक्यूटिव को पागल, दीवाना, मजनू, रांझा, रोमियो सब कुछ बना रखा था. रिटायर्ड कर्नल की बेटी यानी मेरी धर्मपत्नी यानी घरवाली ने रसोई वाली का कोर्टमार्शल कर दिया था.

‘‘ठीकठीक कुक बन गई हो, लेकिन रसोई वाली की छुट्टी नहीं होगी.’’

‘‘रसोई वाली अच्छी लगती है?’’

‘‘नहीं, रसोई में सांवली हो जाओगी. गरमी में पसीने से चिपकूचिपकू हो जाओगी.’’

‘‘रसोई में एसी लगा देना.’’

‘‘देह में मसाले की गंध समा जाएगी.’’

‘‘इत्र लगा देना.’’

यह कानाफूसी हमारी प्राइवेट बातें हैं. औफ द रिकौर्ड… नो नारेबाजी नो डिमौंस्ट्रेशन ऐंड नो रिमूवल डिमांड प्लीज.

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