पैट पालें स्वस्थ रहें

कुत्ता पालना स्टेटस सिंबल ही नहीं है, बल्कि यह आप के जवां, हंसमुख और ऊर्जावान व्यक्तित्त्व एवं सकारात्मक सोच का जिम्मेदार भी है. कुत्ता पालने वाले 65 वर्ष की उम्र वाले लोग अपनी वास्तविक उम्र से 10 साल कम ही नजर आते हैं. वे हर वक्त ऊर्जा से भरपूर दिखते हैं. कुत्ता पालने वाले आप को हमेशा तनावमुक्त और हंसमुख स्वभाव के मिलेंगे, जबकि उसी उम्र के अन्य लोगों के स्वभाव में नीरसता, तनाव, झुंझलाहट, रोष और गुस्सा दिखेगा.

हाल ही में हुए एक शोध से यह बात सामने आई है कि घर में कुत्ता रखना एक बुजुर्ग के मानसिक स्वास्थ्य के साथसाथ शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बेहद सकारात्मक प्रभाव डालता है.

बर्लिन स्थित यूनिवर्सिटी औफ सैंट ऐंड्रयूज के शोधकर्ता फेंग झिक्यांग का मानना है कि 65 वर्ष की उम्र से अधिक के लोगों में कुत्ते का मालिक होने और बढ़ी हुई शारीरिक सक्रियता के बीच सीधा संबंध होता है. बुजुर्ग कुत्ता मालिक कुत्ता न रखने वाले अपने समकक्षों की अपेक्षा 12% अधिक सक्रिय पाए गए हैं. कुत्तों का स्वामी होने का बोध व्यक्तिगत सक्रियता की प्रेरणा देता है और बुजुर्गों को सामाजिक सहयोग का अभाव नहीं खलता. यह खराब मौसम, बीमारी और निजी सुरक्षा सरीखी कई समस्याओं से उबरने में भी सक्षम बनाता है.

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यह शोध 547 बुजुर्गों पर किया गया. शोध में सामने आया कि कुत्तों के मालिक न केवल शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय थे, बल्कि उन की गतिशीलता का स्तर भी अपने से 10 साल छोटे लोगों के बराबर था. 40-45 साल की उम्र तक हम सभी अपने कैरियर, शादी, परिवार और बच्चों की देखभाल आदि में बिजी रहते हैं.

45 की उम्र के बाद हमारा शरीर धीरेधीरे बुढ़ापे की ओर बढ़ना शुरू होता है. 50-55 की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते हमें रिटायरमैंट और उस के बाद के खालीपन के खयाल भी तंग करने लगते हैं. ये तमाम तरह के तनाव हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर डालते हैं. ऐसे में पालतू कुत्ता आप के कितने काम आ सकता है, खुद ही जानिए:

कुत्ता पालने के फायदे

– घर में कुत्ता होगा तो आप रोज सुबह जल्दी उठ कर उसे घुमाने भी ले जाएंगे. शाम को भी उस के साथ वाक पर जाएंगे. इस तरह आप की प्रतिदिन 3-4 किलोमीटर की वाक हो जाएगी,

आप के फेफड़ों को सुबह की ताजा और साफ हवा भी मिल जाएगी, ब्लड सर्कुलेशन ठीक होगा और पूरे बदन की ऐक्सरसाइज के साथसाथ सारा तनाव भी छूमंतर हो जाएगा.

– घर में आप अपने पप्पी की देखभाल करेंगे. उसे समय पर खाना खिलाएंगे, नहलाएंगे, उस की साफसफाई का ध्यान रखेंगे और समय पर उसे दवाइ ंजैक्शन भी दिलवाने ले जाएंगे. इस तरह आप न सिर्फ उस का खयाल रख रहे होते हैं, बल्कि अपना भी ध्यान रख रहे होते हैं.

– जब आप कुत्ता पालते हैं तो उस से फैलने वाले बैक्टीरिया को ले कर भी आप काफी सतर्क रहते हैं. उस के शरीर से गिरने वाले बालों को हटाने के लिए आप रोजाना घर की सफाई करते या करवाते हैं यानी आप का कुत्ता आप को भी बीमारियों के प्रति सचेत रखता है.

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– कुत्ता पालने से आप की सोशल लाइफ भी बढ़ जाती है. सर्वेक्षण में पाया गया है कि उन लोगों की अजनबियों से जल्दी दोस्ती हो जाती है जो कुत्ते के साथ वाक पर निकलते हैं.

हैरत की बात यह है कि अध्ययनों से पता चलता है कि कुत्ता कैंसर का पता लगा सकता है. यह सुनने में थोड़ा फनी लगता है, लेकिन ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं जब कुत्ते ने अपने मालिक के बदन में पनप रहे कैंसर का पता लगा लिया. न्यूजर्सी की निवासी एलिना को पता भी नहीं था कि उन्हें ब्रैस्ट कैंसर है. वे कहती हैं कि उन की प्यारी पप्पी रोजमैरी जब भी उन के पास आती थी, उन के सीने पर सिर रख कर उदास लेट जाती थी.

वह काफी देर तक उस हिस्से को सूंघती भी रहती थी और कभीकभी उदास हो कर खाना भी छोड़ देती थी. तब भी उन्हें समझ में नहीं आता था कि वह ऐसा क्यों कर रही है. मगर 4 महीने बाद एलिना को पता चला कि उन की ब्रैस्ट में एक ग्रंथि है. जांच के बाद उन्हें कैसर बताया गया. उन का औपरेशन हुआ और अब वे बिलकुल ठीक हैं. अब उन की रोजमैरी खुश रहती है. अब वह उन के बदन में उस स्थान को सूंघती भी नहीं है.

ऐसा कई बार पाया गया है कि मालिक के शरीर में कुत्तों ने किसी विशेष हिस्से में चाटना शुरू कर दिया और जांच कराने पर उन्हें कैंसर निकला. कुत्तों में सूंघने की क्षमता बहुत तीव्र होती है. वे कई किलोमीटर तक सूंघने की क्षमता रखते हैं. ऐसे में अब कुत्तों को कैंसर का पता लगाने के लिए प्रशिक्षित भी किया जाने लगा है. इस के अलावा कुत्तों में विशेष प्रकार की संवेदनशीलता भी होती है जिस से वे सेंधमारों, चोरों, बदमाशों की हरकतों को भांप जाते हैं और भूंकने लगते हैं. अगर घर में कुत्ता पला है तो आप निश्चिंत हो कर बाहर भी जा सकते हैं.

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ब्लाइंड डेट पर लड़के रखें इन चीजों का ध्यान

ब्लाइंड डेट लड़का-लड़की दोनों को क्रेजी बनाती है लेकिन लड़के कुछ ज्यादा ही क्रेजी होते हैं. अपने अनदेखे, अनजाने पार्टनर से मिलने की चाहत उन में कुछ ज्यादा ही होती है लेकिन इसी उत्साह में कुछ गलतियां कुछ बैठते हैं और फिर पछताते हैं. ऐसे में लड़के रखें कुछ बातों का खास ध्यान.

1.  इंप्रेशन अच्छा डालें

ब्लाइंड डेट को अच्छी यादगार बनाने के लिए, लड़की से कुछ भी बोलने से पहले अच्छी तरह विचार कर लें, कहीं उस बात का दूसरा मतलब तो नहीं निकल रहा. फर्स्ट इंप्रेशन इज द लास्ट इंप्रेशन, इसलिए कुछ भी ऐसा न बोले जो उसे हर्ट कर जाए.

2. मिलने जा रहे हैं इंटरव्यू लेने नहीं

लड़की को ऐसा हरगिज नहीं लगना चाहिए कि आप उस का इंटरव्यू ले रहे हैं. बातचीत को पूरी तरह से हल्काफुल्का रखें. आप लड़की की पसंदनापसंद , शौक, पढ़ाई से संबंधित बातें कर सकते हैं

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 3. पार्टनर पर कौंसट्रेंट करें

लड़की को ऐसा महसूस कराएं कि आप का ध्यान सिर्फ उसी पर केंद्रित है. आप की नजरें लड़की के चेहरे पर टिकी हों, दूसरी लड़कियों पर कम ध्यान दें, तो आप अपनी ब्लाइंड डेट को कुछ खास बना सकते हैं.

4. मीटिंग प्लेस एकांत में न हो

अकसर लड़कियां लड़कों के व्यवहार और अक्लमंदी से प्रभावित होती है बजाय उन के बाहरी रंगरूप से. इसलिए लड़के व्यवहार अच्छा रखें और अपना सलीके से पेश आए. इसलिए लड़की को कभी भी अकेले स्थान पर मिलने के लिए न बुलाएं. ऐसा करने से आप का इंप्रेशन खराब हो सकता है. आप को देख कर लड़की को ऐसा न लगे कि आप डेट को ले कर बहुत उत्साहित हैं. नौर्मल बिहेव करें.

5. अच्छा एहसास कराएं

आप जहां भी मिलें, लड़की वहां कंफर्टेबल महसूस करें. वह कंफर्टेबल फील कर रही है तो ठीक है वरना आप उसे कहीं और चलने का सजेशन दे सकते हैं. अगर लड़की मना करती है, तो उसी जगह को उस के लिए कंफर्टेबल बनाएं ताकि वह सहज हो कर आप से बात कर सके और वह ब्लाइंड डेट उस के लिए भी थ्रिलिंग बन सके.

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8 टिप्स: ब्लाइंड डेट के दौरान जरूर रखें इन बातों का ध्यान

औनलाइन डेटिंग वैबसाइट्स, सोशल मीडिया और चैटिंग एप्स के जरिए बहुत सारे युवा लड़केलड़कियां एकदूसरे से जुड़ रहे हैं क्योंकि युवाओं तक इंटरनेट की पहुंच बहुत ज्यादा बढ़ी है. औनलाइन बातचीत में वे एकदूसरे के इतने करीब आ जाते हैं कि रियल लाइफ में भी मुलाकातों और डेटिंग के प्लान बनने शुरू हो जाते हैं. लेकिन जब आप किसी ऐसे व्यक्ति के साथ पहली बार डेट पर जाते हैं, जिस से आप पहले नहीं मिले हों तो मन में एक्साइटमेंट व डर होना स्वाभाविक है. इस के बावजूद अपनी डेट को परफैक्ट बनाना है तो कुछ बातों का रखे खास खयाल, क्योंकि सुरक्षा के लिहाज से भी सतर्कता बरतनी बेहद आवश्यक है.

1. औनलाइन प्रोफाइल चैक करें

सोशल मीडिया पर अकसर कई लोग अपनी गलत जानकारी देते हैं. ऐसे में अगर आप खुद को सेफ रखना चाहती हैं तो औनलाइन रिसर्च कर लें. आजकल एक व्यक्ति कई साइट्स पर होता है इसलिए क्रौस चेक करना बेहद जरूरी है.

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2. फोन पर बात करें

कभीकभी लोग अपनी औनलाइन प्रोफाइल में जो भी पोस्ट करते हैं उस से पूरी तरह से अलग औफलाइन व्यक्तित्व रखते हैं. इसलिए मिलने का प्रोग्राम बना लिया है तो बेहतर होगा पहले आप कुछ वक्त एकदूसरे के साथ फोन पर जरूर बिताएं. इस से आप को सामने वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व का काफी हद तक अंदाजा हो जाएगा. आप एकदूसरे के साथ सहज महसूस करने लगेंगे. इस के बाद ही मिलने का प्लान बनाएं.

3. पर्सनल बातें अभी नहीं

पहली मीटिंग के बाद अगर आप दोनों को एकदूसरे के साथ अच्छा लगा हो, तब भी बहुत अधिक पर्सनल बातों को शेयर करने से बचें. जब तक विश्वास कायम न हो जाए किसी को अपने घरपरिवार और अतिनिजी बातों की जानकारी देना सही नहीं.

4. सुरक्षा का ख्याल

जब पहली बार किसी से मिलने जा रहे हों, तो अपनी सुरक्षा का ध्यान रखें. इसलिए ऐसे रेस्तरां या कैफे में मिलने का प्रोग्राम बनाएं, जहां आप पहले भी गए हों. किसी नई जगह जाने की भूल न करें. यदि अपनी किसी क्लोज फ्रैंड को अपने इस प्लान के बारे में बता दें, तो अच्छा है. उसे मिलने वाले व्यक्ति का नाम, नंबर व मिलने की जगह के बारे में अवश्य बता दें.

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5. सकारात्मक बातचीत

पहली बार जब किसी से मिलें तो सकारात्मक बातचीत से शुरूआत करें. आप एकदूसरे के गोल्स या कुछ मीनिंगफुल बात कर सकते हैं. इस तरह की बात आप दोनों को सहज महसूस कराएंगी और आप आराम से बातचीत कर पाएंगे.

6. बैलेंस रहें

बातों में हमेशा बैलेंस बना रहे. पहली मुलाकात में ज्यादा फ्री हो कर बातें करना कई बार दूसरे के सामने आप की छवि को खराब कर देता है.

7. मुसकराहट बरकरार रखें

मुसकराने से आप आकर्षक तो लगते ही है साथ ही फ्रेंडली लुक भी देते हैं. इसलिए ब्लाइंड डेट में हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि मुसकराने में आपकी तरफ से बिलकुल कंजूसी न हो.

8. कपड़ों का चयन

इंसान का व्यक्तित्व उस के कपड़ों से  झलकता है, इसलिए कपड़ों का चयन सोचसम झ कर करें. ओवर ड्रैस हो कर न जाएं. बहुत ज्यादा मेकअप करने से अच्छा रहेगा कि नैचुरल रहा जाए.

9. सब्र से काम लें

सब से बड़ी बात, ब्लाइंड डेट कोई मजाक भी हो सकता है. आप किसी पर बिना जानेपहचाने एकदम से भरोसा नहीं कर सकते. यदि आप का यह भरोसा टूट जाए तो सब्र से काम लें और पूरी बात जानने की कोशिश करें.

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जब पति लगें बदले-बदले तो अपनाएं ये 8 टिप्स

जिंदगी का सफर उन पतिपत्नी के लिए और भी आसान बन जाता है, जो एकदूसरे को समझ कर चलते हैं. कई बार दिनबदिन बढ़ती जिम्मेदारियों व जीवन की आपाधापी की वजह से पति पारिवारिक जीवन में सही तालमेल नहीं रख पाते. जिस के कारण उन के व्यवहार में चिड़चिड़ापन व बदलाव आना स्वाभाविक होता है. ऐसी स्थिति में पत्नी ही पति के साथ सामंजस्य बैठा कर दांपत्य की गाड़ी को पटरी पर ला सकती है.

1. पति का सहयोग लें

पति की अहमियत को कम न आंकें. वैवाहिक जीवन से जुड़ी समस्याओं में उन की सलाह जरूर लें. परिवार की समस्याओं का समाधान अकेले न कर के उन का भी सहयोग लें. यकीनन उन के व्यवहार में बदलाव आएगा.

2. जब उम्मीदें पूरी नहीं होतीं

कई बार पति चाहते हैं कि घरेलू कामों में उन की साझेदारी कम से कम हो. लेकिन पत्नियां अगर कामकाजी हैं तो वे पति से घरेलू कामों में हाथ बंटाने की अपेक्षा करती हैं. इस स्थिति से उपजा विवाद भी पति के स्वभाव में बदलाव का कारण बनता है. ऐसे में कार्यों का बंटवारा आपसी सूझबूझ व प्यार से करें. फिर देखिएगा, पति खुशीखुशी आप का हाथ बंटाएंगे.

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3. छोटी पोस्ट को कम न आंकें

एक प्राइवेट फर्म में मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत आराधना को यह शिकायत रहती थी कि उन के पति एक फैक्टरी में सुपरवाइजर की छोटी पोस्ट पर हैं. इसे ले कर दोनों में गाहेबगाहे तकरार भी होती थी, जिस से पति चिड़चिड़े हो उठे. घर में अशांति रहने लगी. हार कर आराधना को साइकोलौजिस्ट के पास जाना पड़ा. उन्होंने समझाया कि पत्नी को पति के सुपरवाइजर पद को ले कर हीनभावना का शिकार नहीं बनना चाहिए और न ही पति की पोस्ट को कम आंकना चाहिए.

4. नजरिया बदलें

परिवार से जुड़ी छोटीछोटी समस्याओं का निबटारा स्वयं करें. रोज शाम को पति के सामने अपने दुख का पिटारा न खोलें. इस का सीधा असर पति के स्वभाव पर पड़ता है. वे किसी न किसी बहाने से ज्यादा समय घर के बाहर बिताने लगते हैं या स्वभाव से चिड़चिड़े हो जाते हैं.

संयुक्त परिवारों में रह रहे कपल्स में यह समस्या आम है. छोटीछोटी घरेलू समस्याओं का हल स्वयं निकालने से आप का आत्मविश्वास तो बढ़ेगा ही, पति भी आप जैसी समझदार पत्नी पर नाज करेंगे.

5. ज्यादा पजेसिव न हों

पति के पत्नी के लिए और पत्नी के पति के लिए जरूरत से ज्यादा पजेसिव होने पर दोनों में एकदूसरे के प्रति चिड़चिड़ाहट पैदा हो जाती है. अत: रिश्ते में स्पेस देना भी जरूरी है. पति की महिला मित्रों या पत्नी के पुरुष मित्रों को ले कर अकसर विवाद पनपता है, जिस का बुरा असर आपसी रिश्तों पर व पतिपत्नी के व्यवहार पर पड़ता है. जीवनसाथी को हमेशा शक की निगाहों से देखने के बजाय उन पर विश्वास करना आवश्यक है.

6. ईर्ष्यालु न बनने दें

कभीकभी ऐसा भी होता है कि कैरियर के क्षेत्र में पत्नी पति से आगे निकल जाती है. इस स्थिति में पति के स्वभाव मेंबदलाव आना तब शुरू होता है, जब पत्नी अपने अधिकतर फैसलों में पति से सलाहमशवरा करना आवश्यक नहीं समझतीं. ऐसे हालात अलगाव का कारण भी बन जाते हैं. अपनी तरक्की के साथसाथ पति की सलाह का भी सम्मान करें. इस से पति को अपनी उपेक्षा का एहसास भी नहीं होगा और रिश्ते में विश्वास भी बढ़ेगा.

7. खुल कर दें साथ

खुशहाल वैवाहिक जीवन जीने के लिए सैक्स संबंध में खुलापन भी बेहद जरूरी है. रोजरोज बहाने बना कर पति के आग्रह को ठुकराते रहने से एक समय ऐसा आता है कि पति आप से दूरी बनाने लगते हैं या कटेकटे से रहने लगते हैं, जिस से दांपत्य में नीरसता आने लगती है.

कभीकभी ऐसा हो सकता है कि आप पति का सहयोग करने में असक्षम हों. ऐसे में पति को प्यार से समझाएं. सैक्स में पति का खुल कर साथ दें, क्योंकि यह खुशहाल दांपत्य की ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य की भी कुंजी है.

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8. घर का बजट

घर का बजट संतुलित रखने की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी पत्नी के कंधों पर होती है. अनापशनाप खर्चों का बोझ जब पति पर पड़ने लगे तो वे चिड़चिड़े होने लगते हैं. इस समस्या से निबटने का सब से सरल उपाय है महीने भर के बजट की प्लानिंग करना व खर्चों को निर्धारित करना. समझदार गृहिणी की तरह जब आप अपने बजट के अलावा बचत भी करेंगी, तो आप के पति की नजरों में आप के लिए प्यार दोगुना हो जाएगा.

आखिर क्या है ‘पिटी पार्टी’? जो दिलाए ब्रेकअप के दर्द से राहत

लेखक- पूनम

पिटी पार्टी मतलब मी टाइम

– इस में आप अपनी भावनाएं व्यक्त कर पाते हैं.

– यह ऐसा समय होता है जिस में तनाव कम हो जाता है.

– आप फिर से व्यवस्थित होते हैं, आगे की सोचते हैं. स्ट्रौंग होते हैं.

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– अपने साथ ही समय बिता कर आप कुछ अच्छा, पौजिटिव और तर्कसंगत सोच पाते हैं.

1978 में अमेरिकन सिंगर बारबरा मंड्रैल ने अपने ब्रेकअप के बाद एक गाना गाया था, ‘हैविंग अ सैड पिटी पार्टी…’ आप ने न जाने कितनी बार सुना होगा कि, ‘रो लो, तुम्हारा दिल हलका होगा,’ यह बिलकुल सही है. अपने साथ ही कुछ समय बिता कर अपनी सारी भावनाओं को बाहर निकाल कर आप फिर से अपने को ज्यादा स्ट्रौंग पाएंगी. दिल दुखी है? मूड बहुत खराब है? बहुत सारे टिश्यूज लीजिए, अपना मनपसंद खाना और्डर कीजिए और आराम से सोचिए कि क्या हो गया और अब कैसे आगे बढ़ना है.

इस स्थिति का एक नाम है, पिटी पार्टी. यह बहुत काम की चीज है, इसे कर के देखें.जब फैशन डिजाइनर रिद्धी जैन का अपने 7 महीने के अफेयर के बाद ब्रेकअप हुआ, उस का हाल बेहाल था. वे बताती हैं, ‘‘उस ने अचानक मुझे मैसेज भेजना बंद कर दिया. मेरे पूछने पर बहाने बनाने लगा. कोई फोन नहीं, कोई मैसेज नहीं. अचानक मिलना भी बंद कर दिया. मैं ने ऐसे समय पर वही किया जो सब करते हैं, घर पर बैठ गई. खूब रोती रहती. सब से मिलना बंद कर दिया. यह एक हफ्ता चला. पर फिर मैं धीरेधीरे सब भड़ास निकाल कर अपनेआप ही और स्ट्रौंग हुई.’’

रिद्धी को यह पता ही नहीं था कि जो उस ने किया, वही है पिटी पार्टी. ऐक्सपर्ट्स कहते हैं, ‘‘इस टाइप की पार्टी में रो कर मन हलका हो जाता है.साइको थेरैपिस्ट अनन्या सिंह कहती हैं, ‘‘यह एनरिचिंग, सोशलाइजिंग प्रोसैस है. इस में आप को खुद से कनैक्ट होने का समय मिलता है, एक स्पेस मिलता है जो आप की मैंटल हैल्थ के लिए जरूरी होता है. फिर आप चीजों को बेहतर तरीके से देख पाते हैं. मी टाइम जरूरी होता है.’’

अनन्या के अनुसार पिटी पार्टी अपनेआप पर थोपें नहीं. यह अनुभव एनरिचिंग होना चाहिए. यह अनुभव ऐसा होना चाहिए कि आप इस समय के बाद ज्यादा स्ट्रौंग, शांत हो कर बाहर आएं. आप का मन  एक बार शांत हो गया तो आप अपना आगे का समय कुछ नया सीखने में लगाएं. बस, फिर देखें कि आप ने अपना यह टैंशन का टाइम कितनी खूबसूरती से हैंडल कर लिया है.

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आप को खुशी होगी

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट प्राजक्ता कहती हैं, ‘‘इस समय आप काफी भावनात्मक उतारचढ़ाव से गुजरते हैं, गलत फैसला भी लिया जाता है. पर अपने मन की शांति के लिए अपने साथ ही कुछ समय बिताना जरूरी होता है. हमें एहसास नहीं होता पर यह पिटी पार्टी हम अपने साथ कई बार करते हैं, जैसे जब हम पर कोई नकारात्मक टिप्पणी करता है औफिस में या घर पर या दोस्तों में. अकसर लोग इस पर ध्यान नहीं देते पर मैं सलाह दूंगी कि बैलेंस बनाए रखें और कुछ नया व सकारात्मक सीखने के लिए तैयार रहें. किसी भी तरह की ऐक्सरसाइज करें.’’अपनी भड़ास निकालने के लिए अकेले में रोना बुरा नहीं है. अपना टाइम लें, शांत मन से सोचें, घबराएं नहीं. ब्रेकअप जीवन का अंत नहीं है. जो चला गया उसे जाने दें. उस के लिए अपना जीवन रोकें नहीं. पिटी पार्टी के ब्राद फ्रैश हो कर निकलें, मुसकराएं, आगे बढ़ें.

जानें क्यों वर्किंग वुमंस के लिए जरूरी है इमोशनल बैलेंस

आज की तेज रफ्तार भागतीदौड़ती जिंदगी में रोजमर्रा की कामकाजी चुनौतियों तथा घरपरिवार दोनों जिम्मेदारियों को संभालते हुए तनाव तथा भावनात्मक उतारचढ़ाव आज की नारी की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं.

आज महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर व्यावसायिक जगत में अपनी पहचान बनाने व पांव जमाने के लिए प्रयत्नशील हैं. किंतु पुरुष वर्चस्व को चुनौती देने का यह सफर आसान नहीं होता. आमतौर पर महिला को कहीं लिंग भेद का सामना करना पड़ता है, तो कहीं पुरुष की कामुक दृष्टि का. मातृत्व का दायित्व तथा घरेलू उत्तरदायित्वों का बोझ उस पर होने से अकसर बिना परखे ही उसे अयोग्य मान लिया जाता है. घर तथा बाहर के इस संघर्ष में खीज, क्रोध और चिड़चिड़ापन मन पर हावी होने लगता है और मन तनाव से घिरने लगता है. मानसिक संतुलन तथा निराशावादी सोच उसे हतोत्साहित करने लगती है. ऐसे में अपनी भावनात्मक ऊर्जा व शक्ति को बढ़ा कर स्थितियों का संयम, बुद्धिमत्ता तथा दृढ़ता से सामना करना और घर व नौकरी दोनों के अंतहीन कार्यों के मध्य सामंजस्य की क्षमता बढ़ाना ई क्यू यानी इमोशनल कोशंट ही करता है.

आप नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाती हैं तो आजकल आप का आईक्यू चैक नहीं किया जाता. इंटैलिजैंट तो आप हैं पर क्या आप का ईक्यू भी उतना ही स्ट्रौंग है? क्या आप में इतनी भावनात्मक शक्ति है कि आप प्रैशर में, तनाव में रह कर कार्य कर सकेंगी? आप टीम स्पिरिट में कितना चल पाएंगी? कहीं आप का नर्वस ब्रेकडाउन तो नहीं हो जाएगा? ऐसा कुछ न हो इस के लिए आप को अपना ई क्यू बढ़ाना पड़ेगा.

आज की नारी निस्संदेह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न है. लेकिन जहां एक ओर दफ्तर में उस से पूर्ण अपेक्षा की जाती है, वहीं घर को सुरुचिपूर्ण ढंग से व्यवस्थित करना, बच्चों को समुचित मार्गदर्शन देना, उन्हें प्यार व देखभाल से पालना, पढ़ाईलिखाई व खेलकूद में सहयोग देना, सोसाइटी में पति के कंधे से कंधा मिला कर चलना, परिवार व मित्रों के साथ सामाजिक आचारव्यवहार निभाना जैसे कार्य भी उसी से अपेक्षित होते हैं. ऐसे में शारीरिक व मानसिक थकावट कब तनाव का रूप धारण कर लेती है, पता ही नहीं चलता. बिना मानसिक संतुलन खोए आने वाली हर कठिन परिस्थिति का संयम, बुद्धिमत्ता तथा दृढ़ता से सामना करने के योग्य बनाना ही ई क्यू का लक्ष्य होता है.

परिस्थिति का मुकाबला

आज जब आप इंटैलिजैंस तथा अवेयरनैस यानी बुद्धिमत्ता व जागरूकता को अपने व्यक्तित्व का एक अहम पहलू मानती हैं, तो यह अति आवश्यक है कि इमोशनल स्मार्टनैस का भी ध्यान रखें. घर हो या दफ्तर, आप को हर रोज कई तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. याद रखें की विपरीत परिस्थितियां तो रहेंगी, कहीं न कहीं ऐसे लोग भी आप के आसपास रहेंगे, जो सिर्फ दूसरों के लिए परेशानियां तथा कठिनाइयां उत्पन्न करना ही अपना फर्ज मानते हैं.

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दफ्तर में बौस अगर आप को बेवजह डांटते हैं या आप के सहकर्मी आप से व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा रखते हैं अथवा किसी प्रोजैक्ट की डैड लाइन तक आप काम पूरा नहीं कर पा रही हैं, तो समस्या की जड़ पर ध्यान दें.

यह आप का नितांत व्यक्तिगत निर्णय होता है कि दुख, तनाव और परेशानी में घिर कर रोनाबिसूरना है या शांत व तटस्थ रह कर समस्या का हल ढूंढ़ना है.

यही इमोशनल स्मार्टनैस है, जिस के अभाव में आप अपनी अक्षमताओं, असफलताओं तथा बेबसी पर बैठ कर आंसू बहाते हुए सब के सामने ‘इमोशनल फूल’ बन कर रह जाएंगी.

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने वर्ष 2001-2011 के बीच किए अध्ययन में पाया है कि 30 से 45 साल की 36% कामकाजी महिलाएं तनाव तथा हाई ब्लडप्रैशर की शिकार हैं. इतना ही नहीं, 31% कामकाजी युवा महिलाएं माइग्रेन के अथवा किसी अन्य प्रकार के दर्द की शिकार हैं. 65% दर्द के कारण 6 से 8 घंटे की सामान्य नींद नहीं ले पातीं. 49% पर दर्द की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर हो रहा है. वहीं 13% को क्रौनिक दर्द की वजह से नौकरी तक छोड़नी पड़ी है.

नैशनल इंस्टिट्यूट औफ औक्युपेशनल हैल्थ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 सालों में युवाओं की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल असर पड़ा है. मैट्रो शहरों में काम करने वाले पुरुष ही नहीं महिलाएं भी तनाव, अनिद्रा, डायबिटीज और मोटापे का शिकार पाई गई हैं.

आप क्या करें

आप ई क्यू के प्रयोग से कार्यक्षेत्र का तनाव कम करें और इस के लिए अपनाएं आगे बताए जा रहे तरीके:

न कहना सीखें

यह सत्य है कि अधिक योग्य व्यक्ति को ही अधिक जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं. बेशक आप योग्य हैं तथा सभी कार्य पूर्ण कुशलता से कर सकती हैं. पर कभीकभी ‘न’ कहने की कला भी सीखें. कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं होता, इस बात को स्वीकारें. बौस की नजरों में ऊपर उठने के लिए क्षमता से अधिक स्ट्रैस लेना ठीक नहीं.

रखें सकारात्मक सोच

कार्यक्षेत्र से जुड़ी समस्याओं से जूझने के लिए हमेशा अपनी सोच को आशावादी तथा सकारात्मक रखें. दूसरों से मिली आलोचनाओं तथा अतीत में मिली असफलताओं को स्वयं पर हावी न होने दें.

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एकाग्रता बढ़ाएं

जब आप तनावमुक्त तथा शांत हो कर कोई कार्य करेंगी तभी उस कार्य की गुणवत्ता प्रभावशाली होगी. इसलिए अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करें तथा एकाग्रचित्त हो कर बिना इधरउधर की व्यर्थ की बातों पर ध्यान दिए लगन से अपना कार्य करें.

कार्यक्षेत्र की राजनीति से दूर रहें

अकसर कार्यस्थलों में वैचारिक एवं कार्यप्रणाली संबंधी राजनीति हावी रहती है. आप बिना तनाव में आए ध्यानपूर्वक अपना कार्य करें. इमोशनल ब्लैकमेलिंग की राजनीति से बच कर रहें.

बौस के साथ संपर्क में रहें

कार्यक्षेत्र की किसी भी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक परेशानी सदैव बौस के साथ शेयर करें. अपने क्रियात्मक तथा व्यावहारिक सुझाव भी बौस के साथ बांटने की हिम्मत रखें. इस से आप की कार्यशैली का पता चलता है.

यह सदैव याद रखें कि तनाव तो हर कार्यक्षेत्र में होता ही है, किंतु अपनी योग्यता एवं इमोशनल स्मार्टनैस से आप अपने कार्य को सरल एवं तनावमुक्त बना सकती हैं. उसी कार्यकुशलता से आप घर में भी छोटेछोटे प्रयोगों द्वारा अपने कामकाज को सहजता से कर पाने में सक्षम होंगी.

नियमित करें व्यायाम

फिजियोथेरैपिस्ट रजनी कहती हैं कि व्यायाम से ऐंडोर्फिंस में वृद्धि होती है. यह रसायन दिमाग में उल्लास का संचार करता है, जिस से शारीरिक तनाव अपनेआप ही कम हो जाता है. व्यायाम शरीर की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को निर्मित करता है. याद रखें कि मोटापा तथा वजन कम करना ही व्यायाम का एकमात्र कार्य नहीं होता. इम्यून सिस्टम में सुधार के साथसाथ व्यायाम तनाव के नकारात्मक असर को भी समाप्त करता है.

यदि हम इमोशनली स्मार्ट व सुदृढ़ होंगे तो अपनी कार्यशैली व जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन ला कर तनाव को दफ्तर ही नहीं घरेलू कामकाज में अड़चन बनने से भी रोक पाएंगे.

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मान लीजिए कि आप को दफ्तर समय पर पहुंचना है किंतु आप की कामवाली बाई बिना पूर्व सूचना के छुट्टी पर चली गई है. सारा घर व रसोई फैली पड़ी है. नाश्ता बनाना, सब का लंच पैक करना, बच्चों को स्कूल भेजना आदि अंतहीन कामों में आप की चिड़चिड़ाहट सातवें आसमान को छूने लगती है. तनाव तथा बौखलाहट में आप अपना सारा क्रोध पति तथा बच्चों पर निकालेंगी. स्वयं पर तरस खाएंगी कि सब कुछ आप को अकेले ही झेलना पड़ता है. यह स्थिति वास्तव में विकट होती है किंतु इस से जूझने का जो तरीका आप चुनती हैं, वह आप की इमोशनल दृढ़ता व स्मार्टनैस पर ही निर्भर करता है.

आप स्मार्ट हैं तो सुबहसुबह क्रोध व तनाव से घिरीं रोतेझींकते हुए दिन की शुरुआत करने के बजाय धैर्य से काम लेंगी. पति को मुसकरा कर एक कप गरम चाय का प्याला पकड़ाएंगी तथा प्यार से उन्हें रसोई में अपनी सहायता के लिए बुलाएंगी. बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार करते हुए उन्हें अपना स्कूल बैग, यूनिफौर्म तथा जूते इत्यादि स्वयं तैयार करने को प्रेरित करेंगी. लंच यदि न भी पैक हो पाया तो कोई बात नहीं. चिकचिक करने से कहीं बेहतर होगा कि बच्चे स्कूल कैंटीन से ले कर कुछ खा लें. एकाध दिन बाहर खा लेने में कोई हरज नहीं. आप भी खुश और बच्चे भी.

रिश्तों का तनाव

कहते हैं कि रिश्ते बनाए नहीं निभाए जाते हैं. यदि आप इमोशनली स्मार्ट हैं, तो इस बात को आप बेहतर ढंग से समझ पाएंगी कि 2 व्यक्तियों में वैचारिक मतभेद होता ही है. अत: छोटीछोटी बातों से घबरा कर रिश्तों में कड़वाहट तथा तनाव लाने से बेहतर है उन्हें नजरअंदाज कर देना. कभीकभी ऐसा भी होता है कि न चाहते हुए भी आप स्वयं को भावनात्मक रूप से टूटा व हारा हुआ पाती हैं. घर का कोई न कोई सदस्य बेवजह आप को कुछ चुभने वाली बातें सुना जाता है. सास, जेठानी या ननद आप के हर काम में मीनमेख निकालती हैं, पति की अपेक्षाओं पर आप खरी नहीं उतरती हैं, इसलिए उन के क्रोध का पात्र बनी रहती हैं.

घबराएं नहीं, धैर्य से काम लें. एकांत में बैठ कर एकाग्रचित्त हो कर अपने व्यवहार तथा कार्यों का निष्पक्षता से विश्लेषण करें. यदि वास्तव में आप को अपने व्यवहार में कुछ गलत लगे तो बिना किसी पूर्वाग्रह व अहं को आड़े लाए स्वयं को बदलने की कोशिश करें तथा संबंधित व्यक्ति से माफी मांग लें. वार्त्तालाप कभी बंद नहीं होना चाहिए. ऐसा होने पर गलतफहमियां और बढ़ जाती हैं. आप स्मार्ट हैं, स्ट्रौंग हैं, आप में आत्मविश्वास भरा है, तो आप ये सब निश्चित रूप से कर पाएंगी, क्योंकि आप जानती हैं कि तनाव तथा परेशानियों में जीना स्वयं की गलतियां सुधार लेने से कहीं कठिन होता है.

यदि आप सही हैं तो अनर्गल तथा व्यर्थ की बातों से व्यथित होने की कतई आवश्यकता नहीं. स्वयं को भावनात्मक रूप से सबल बनाएं तथा परिवार वालों को अपना दृष्टिकोण प्यार से समझाएं. सामने वाला गरम हो रहा हो तो आप ठंडी रहें. पहले उसे ठंडा होने दें फिर स्नेह से उसे पिघला कर अपने सांचे में ढाल लें. बात बन जाएगी.

ये सब मेरे साथ ही क्यों होता है? सब मुझे ही गलत क्यों समझते हैं? सब मिल कर मेरे लिए सिर्फ समस्याएं ही क्यों बढ़ाते हैं? हर बार सिर्फ मैं ही क्यों झुकूं? यह सब सोचते ही आप स्वयं को बेचारी तथा शक्तिहीन मानने लगती हैं. ‘मैं ही क्यों’ आप को एहसास दिलाता है कि आप लोगों एवं परिस्थितियों की सताई हुई हैं. ‘बेचारी मैं’ का भाव आप को आत्मदया के अंधे कुएं में धकेल देता है.

समस्याओं का हल

परीक्षा में बच्चों के परिणाम अच्छे न आना अथवा युवा होते बच्चों के साथ वैचारिक संघर्ष होना अथवा बच्चों की समुचित देखभाल की कमी के चलते बच्चों में असंयमित तथा असंतुलित व्यवहार का बढ़ना भी महिलाओं के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन जाता है. ऐसे में आप क्या करेंगी? संयम खो कर अनापशनाप डांटफटकार एवं टोकाटाकी तथा रोकटोक शुरू कर करेंगी या स्वयं पर काबू रख कर बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हुए अपने मित्रवत व्यवहार से उन्हें अपने विश्वास में ले कर समस्याओं का युक्तिपूर्ण हल निकालने की चेष्टा करेंगी? बच्चों के सामने कभी भी ‘परफैक्ट’ या ‘रोल मौडल’ बनने की चेष्टा न करें. अपनी समस्याओं, सफलताओं, कठिनाइयों, अपने डर, सपने, उम्मीदों तथा असफलताओं को खुल कर बच्चों के साथ बांटें.

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ऐसा भी होता है

कई बार महिलाओं के साथ ऐसा भी होता है कि सब कुछ जानतेसमझते हुए भी वे अपनी भावनाओं पर काबू पाने में असमर्थ रहती हैं तथा ‘इमोशनल ब्लास्ट’ का शिकार हो जाती हैं. इस की परिणिति डर, निराशा, अवसाद, हीनभावना, डिप्रैशन तथा आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याओं में होती है. हारमोनल परिवर्तन इस समस्या का कारण हो सकते हैं. बड़ी उम्र में मेनोपौज के समय में ऐसे लक्षण अकसर महिलाओं में दिखने लगते हैं.

ऐसे में योग्य चिकित्सक से सलाह लें. खानपान तथा जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन लाएं. अच्छी तथा आशावादी सोच को बढ़ाने वाली पुस्तकें पढ़ें तथा छोटीछोटी बातों में प्रसन्न रहना सीखें.

अगर आपका भी है इकलौता बच्चा तो हो जाएं सावधान

जिन मातापिता का एक ही बेटा या बेटी है, वे सावधान हो जाएं. एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जिन दंपतियों का एक ही बच्चा है तो उस के मोटापे का शिकार होने की संभावना 2 या 2 से अधिक बच्चों वाले परिवार की तुलना में ज्यादा होती है. यह अध्ययन 12,700 बच्चों पर किया गया. यह अध्ययन यूरोपीय रिसर्च प्रोजैक्ट आईडैंटिफिकेशन ऐंड प्रिवैंशन औफ डाइटरी ऐंड लाइफस्टाइल इंडस्ट हैल्थ इफैक्ट्स इन चिल्ड्रन ऐंड इंफैक्ट्स का हिस्सा है. इस प्रोजैक्ट का उद्देश्य 2 से 9 साल तक के बच्चों के खानपान, जीवनशैली और मोटापा व उस के प्रभावों पर गौर करना है. यूनिवर्सिटी औफ गोथेनबर्ग स्थित साहग्रैस्का ऐकैडमी में अनुसंधानकर्ता मोनिका हंसबर्गर का कहना है कि जिस परिवार में एक ही बच्चा है, उस में मोटापे का खतरा ज्यादा बच्चों वाले परिवार की तुलना में 50% से अधिक होता है. इस की वजह छोटे परिवार का माहौल और पारिवारिक संरचना में अंतर हो सकता है. अध्ययन के अनुसार यूरोप में 2.20 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार हैं. इटली, साइप्रस और स्पेन में बच्चों में मोटापा यूरोप के उत्तरी देशों की तुलना में 3 गुना अधिक है.

बीमारियों का खतरा

लगभग 70% मोटे बच्चों के भारीभरकम वयस्क में स्थानांतरित होने की पूरी आशंका रहती है. एकतिहाई बच्चे अपनी किशोरावस्था तक मोटे हो जाते हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 13 से 16 साल के बीच की उम्र सीमा में हर 10 में से 1 स्कूली बच्चा मोटापे का शिकार है. ऐसोचैम द्वारा विश्व हृदय दिवस के ठीक पहले किए गए सर्वेक्षण में 25 निजी और सरकारी स्कूलों के 3,000 बच्चों को शामिल किया गया. बच्चों में तेजी से बदलती जीवनशैली और खानपान की आदतों को इस के लिए जिम्मेदार बताया गया. लगभग 35% अभिभावक अपने बच्चों को रोज 40 से 100 रुपए दिन के समय कैंटीन में भोजन करने के लिए देते हैं, जबकि 51% बच्चे 30-40 रुपए पास्ता और नूडल्स में खर्च करते हैं. सर्वेक्षण में कहा गया है कि मोटापे के शिकार बच्चों में हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा 35% तक बढ़ जाता है. मोटे बच्चों में उच्च रक्तचाप, उच्च कोलैस्ट्रौल स्तर, मधुमेह और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है.

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अगर आप का बच्चा मोटा है

क्या आप नहीं चाहेंगे कि आप का बच्चा ताउम्र स्वस्थ और निरोगी रहे? लेकिन यदि वह बचपन में ही मोटापे की गिरफ्त में आ गया तो उस का परिणाम उसे ताउम्र भुगतना पड़ेगा. मोटापे से संबंधित नौनकम्युनिकेबल बीमारियां जैसे टाइप-2 डायबिटीज, मैलाइटस, इंसुलिन रैजिसटैंस, मैटाबोलिक सिंड्रोम और पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम ओवरवेट बच्चों को शिकार बना सकते हैं. यदि आप का बच्चा मोटा है तो उसे कैंसर का खतरा अन्य बच्चों की अपेक्षा ज्यादा है. वजन बढ़ने के कारण 10 तरह के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. मैडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि मोटापे के कारण गर्भाशय का कैंसर बढ़ने का खतरा ज्यादा है. इस के बाद पित्ताशय, गुरदा, गर्भाशय, थायराइड और ब्लड कैंसर की बारी आती है. बौडी मास इंडैक्स ज्यादा होने के कारण लिवर, मलाशय, अंडाशय और स्तन कैंसर होने का खतरा ज्यादा रहता है. लंदन स्कूल औफ हाइजीन ऐंड ट्रीपकल मैडिसिन के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन 50 लाख लोगों पर किया. वैसे मोटापा सौ रोगों की जड़ है. इस से उच्च रक्तचाप और हृदय रोग होने की आशंका भी बढ़ जाती है. जर्नल न्यूट्रीशन ऐंड डायबिटीज में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, बच्चों में मोटापे का संबंध उन का खानपान, उन की टीवी देखने की आदत और घर के बाहर खेलने जाने के वक्त पर बहुत निर्भर करता है और इस में मातापिता की भूमिका महत्त्वपूर्ण है. अध्ययन के अनुसार जिस परिवार में 1 ही बच्चा है, वह मुश्किल से ही बाहर खेलने जाता है. वह घर में ही दुबका रहता है और शिक्षा का स्तर भी प्राय: कम ही होता है. उस का अधिकांश वक्त बैडरूम में टीवी देखने में व्यतीत होता है.

परेशानी का सबब

एक शोध से पता चला है कि 97% इकलौते बच्चे ओवरइटिंग और ओवरडाइट के कारण मोटापे के शिकार हुए हैं. शोध में 5 से 8 साल की आयु के इकलौते स्कूली बच्चों को शामिल किया गया था. यह भी पाया गया कि ये बच्चे अपनी डाइट की तुलना में ऐक्सरसाइज बहुत कम करते हैं. एक सर्वे से पता चलता है कि 8 से 18 साल की उम्र के बच्चे औसतन 3 घंटे प्रतिदिन टीवी देखने में खर्च करते हैं. इकलौता बच्चा आमतौर पर घर पर ही रहता है. मैदानी खेलों से उस का कोई नाता नहीं रहता. पलंग या कुरसी पर बैठेबैठे या तो वह वीडियो गेम खेलता है या फिर टीवी देखता है. टीवी के सामने बैठ कर ही वह भोजन करता है. इस से उसे इस बात का पता ही नहीं चलता कि कितना खा गया. शुरू में तो मांबाप अपने इकलौते को गोलमटोल होते देख बडे़ खुश होते हैं, लेकिन जब वह ओवरवेट या गुब्बारे की भांति फूलता चला जाता है, तो उन्हें चिंता सताने लगती है. सच भी है, यदि 5 साल के बच्चे का वजन 75 किलोग्राम और 8 साल के बच्चे का वजन 140 किलोग्राम हो जाए तो यह न केवल बच्चों के लिए अपितु मातापिता के लिए भी परेशानी का सबब बन जाता है.

उड़ता है मजाक

सोशल मीडिया पर मोटापे को ले कर तकलीफदेह और डराने वाले मजाक बहुत ज्यादा होते हैं. विशेष कर ट्विटर ऐसे चुटकुलों का अहम ठिकाना बना हुआ है. अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट औफ हैल्थ के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन ब्लौग, ट्विटर, फेसबुक, फोरम, लिकर और यूट्यूब जैसी सोशल साइटों पर वजन को ले कर होने वाली चर्चाओं को ले कर किया गया. इस में ट्विटर शीर्ष पर रहा जहां मोटापे का सब से ज्यादा मजाक उड़ाया जाता है और कमैंट किए जाते हैं. ट्विटर के बाद फेसबुक दूसरे स्थान पर है. शोधकर्ताओं ने 2 महीनों के दौरान 13.7 लाख पोस्ट का अध्ययन किया, जिन में फैट, ओबेस, ओबैसिटी या ओवरवेट जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था. इन में सर्वाधिक इस्तेमाल ‘फैट’ शब्द का हुआ और ज्यादातर यह प्रयोग नकारात्मक था. जाहिर है ऐसे कमैंट्स से बच्चों में हीनभावना पैदा होती है और वे कुंठा के शिकार हो जाते हैं. वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से यह बात सामने आई है कि बच्चों के अभिभावक अपने बच्चों के मोटापे के प्रति समय के बाद चेतते हैं. वे तब अपने बच्चों के बारे में जान पाते हैं जब वे मोटापे की गिरफ्त में पूरी तरह आ चुके होते हैं.

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शारीरिक मेहनत भी है जरूरी

बच्चे स्लिप और चुस्तदुरुस्त हों तो ही अच्छे लगते हैं. इसलिए शैशव अवस्था से ही उन के मोटापे पर निगरानी रखें. उन का खानपान इस प्रकार निर्धारित करें कि वे कभी मोटापे का शिकार न हों. बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए पोषक आहार मिलना जरूरी तो है पर वह संतुलित होना चाहिए. किसी भी चीज की अति बुरी होती है. अपने बच्चों की फिटनैस पर ध्यान दें. इस के लिए कमर्शियल फिटनैस क्लबों की सेवाएं ली जा सकती हैं. मांबाप को चाहिए कि वे अपने ओवरवेट बच्चे को डाक्टर को दिखाएं. इस के अलावा डाइटिशियन से उस की खुराक निर्धारित करवाएं. बच्चों की सेहत का ध्यान रखना मांबाप का फर्ज है. दिन भर में एक बार जरूर बच्चे को अपने साथ खाना खिलाएं. खाने में साबूत अनाज, फलों, सब्जियों की मात्रा ज्यादा रखें तथा जंक और प्रोसैस्ड फूड पर लगाम लगाएं. बच्चों से अच्छी बात मनवाने के लिए जबरदस्ती न करें और न ही किसी तरह का लालच दें, बल्कि उन्हें दोस्त बन कर समझाएं ताकि वे अपनी खानपान संबंधी आदतों में सुधार करें तथा टीवी या कंप्यूटर के सामने घंटों गुजारने के बजाय उन का समय मैदान में खेलकूद में गुजरे.

ब्रेकअप के बाद सोशल मीडिया पर यह भूल न करें

ब्रेकअप कष्टदायक होते हैं, हमें इमोशनली तोड़ देते हैं. आजकल ब्रेकअप के बाद लोग सीधा सोशल मीडिया पर जाते हैं और अपनी भड़ास वहीं निकालते हैं. सुपर इमोशनल कोट्स ढूंढ़-ढूंढ़ कर पोस्ट कर वहां सब को पढ़वाते हैं. इमोशनल उठापटक समझी जा सकती है पर अकसर हम इस हरकत से अपना ही मजाक उड़वाते हैं और बाद में पछताते हैं. आप खुद सोचें कि किसी और के हार्टब्रेक की पोस्ट्स के बाद आप ने किस तरह की प्रतिक्रिया दी है? तो क्या आप स्वयं को इसी स्थिति में देखना पसंद करेंगे? ब्रेकअप के बाद आप का मन होता होगा कि आप जोरजोर से चिल्लाएं, खूब रोएं, ठीक है, यह सब करें, जो मन  हो वह करें पर सोशल मीडिया पर रिएक्ट न करें. तो यदि आप फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अपने इमोशंस निकालना चाह रही हैं तो इन पौइंट्स को जरूर ध्यान में रखें.

अपना रिलेशनशिप स्टेटस न बदलें फौरन

आप का अपने पार्टनर के साथ ब्रेकअप हुआ है, यह बात सारी दुनिया को जानने की जरूरत नहीं है. आप के खास अपने लोग यह जानते ही होंगे. फेसबुक फीड को आप का यह बदलाव फौरन जानने की जरूरत नहीं है. यह आप का पर्सनल दुख, संकट है. आप को छत पर जा कर चिल्ला कर सब को बताने की जरूरत नहीं है. इसे सब के लिए खोल न दें. लोगों को अपने तौर पर पता चलने दें. ग्राफिक डिजाइनर नेहा कहती हैं, ”2 साल पहले मैं ने यह गलती की कि ब्रेकअप होते ही फेसबुक पर रिलेशनशिप स्टेटस चेंज कर दिया, दोस्तों और परिचितों के कौल्स और मैसेज आने ही नहीं शुरू हुए, वे लोग जिन से मैं क्लोज भी नहीं थी उन्होंने भी बिना मांगे अपनी सलाह देनी शुरू कर दी. अधिकतर लोग यही जानना चाहते थे कि ब्रेकअप क्यों हुआ. बता नहीं सकती कि इस वजह से मुझे ब्रेकअप से उबरने में कितना समय लग गया, और मैं ने महसूस किया कि लोगों को गौसिप का विषय भी मिल गया.”

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एक्स को ब्लौक न करें…

सोशल प्लेटफौर्म पर अपने एक्स को ब्लौक करना एक मूर्खतापूर्ण कदम है. आप गुस्से में ऐसा कर देते हैं पर बाद मैं आप महसूस करते हैं कि आप को यह नहीं करना चाहिए था. यदि अपनी फ्रैंड लिस्ट में या अपडेट्स में उन की उपस्थिति बहुत अखर रही हो तो उन्हें अनफ्रैंड करना ठीक है. यदि आप अपने एक्स के साथ दोस्त बन कर रहना चाहते हैं तो उन्हें ब्लौक करना या अनफ्रैंड करना ठीक नहीं है. यदि आप सोशल मीडिया पर बहुत जल्दी रिएक्ट करते हैं तो आप के पार्टनर को पता चल जाएगा कि आप पर इस का कितना असर हुआ है, और शायद यह आप नहीं चाहेंगे. इस बात पर यकीन करें कि अपने एक्स को स्टौक करने से आप का नुकसान ही होगा. एक बार आप उसे स्टौक करना शुरू करते हैं, यह रूटीन हो जाता है और आप को पता भी नहीं चलता. आप रोज उस की प्रोफाइल देखते हैं और अपनेआप को दुखी करते हैं. उस की खुशी से भरी फोटोज और उस का दोस्तों के साथ समय बिताना आप को प्रभावित करता है. उसे उस के नए पार्टनर के साथ देखना आप को और दुखी करता है.

सी ए मेहुल कहते हैं, ”पांच साल साथ रहने के बाद जब मेरी गर्लफ्रैंड के साथ मेरा ब्रेकअप हुआ, मुझे बहुत कठिनाई हुई. मैं लगातार उस की प्रौफाइल देखता था. पूरी नजर रखता था कि वह कब क्या कर रही है. एक दिन अचानक उस ने मुझे ब्लौक कर दिया. शायद वह समझ गई थी कि मैं क्या कर रहा हूं. उस समय मैं दुखी तो हुआ पर उस के बाद ही मैं लाइफ में आगे बढ़ सका. आज मुझे समझ आया है कि सोशल मीडिया पर एक्स को स्टौक करना मूव औन करने में बाधा बनता है.”

बिलकुल शेयर न करें नए पार्टनर के साथ फोटोज

आप को किसी के इमोशनल सहारे की जरूरत पड़ रही होगी पर वह व्यक्ति इतनी जल्दी आप का नया पार्टनर नहीं हो सकता. उस की फोटो सोशल मीडिया पर बिलकुल न डालें. इस से आप परेशानी में पड़ सकते हैं. आप अनजाने में अपने एक्स को दुख पहुंचा सकते हैं. सोच कर देखिए कि यही चीज आप का एक्स करे तो आप को कैसा लगेगा. फोटोग्राफर रिद्धी बताती हैं, ”जब मेरा ब्रेकअप हुआ, मैं बहुत जल्दी ही नए रिश्ते में बंध गई और मैं ने उस के साथ अपनी फोटोज भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दीं. आज सोचती हूं तो लगता है कि यह नहीं करना चाहिए था. यह मेरी बचकानी हरकत थी. मेरे एक्स को दुख पहुंचा होगा, मुझे अपने व्यवहार पर आज अफसोस है.”

आप ठीक हैं, खुश हैं, यह एक्टिंग करने की जरूरत नहीं है…

ब्रेकअप के बाद कोई खुश नहीं होता है, दुख होता ही है. सोशल मीडिया पर यह न बताएं कि आप खुश हैं. सोशल मीडिया पर मोटिवेशनल कोट्स या प्यार और हार्टब्रेक पर पोस्ट न डालती रहें, यह मूर्खता लगती है.खुश होने का दिखावा न करें. कोई भी दोस्त आप  की पोस्ट की स्क्रीनशौट ले कर बाकी दोस्तों में भेज कर आप पर हंस सकता है. इस समय आप को यह सब करने की जरूरत नहीं है.

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औनलाइन डेटिंग, ब्रेकअप के बाद की समस्या का हल नहीं है…

ब्रेकअप के बाद दोस्त आप को डेटिंग साइट जौइन करने की सलाह देते हैं, पर डेटिंग ऐप हार्टब्रेक का इलाज नहीं है. वे आप का दर्द कम नहीं कर सकती. ब्रेकअप के बाद बिलकुल अजनबियों के साथ बात करना अजीब लग सकता है. इस के बजाय कुछ समय वे काम करें जिन से आप को खुशी मिलती है. आर्किटेक्ट आरती कहती हैं, ”ब्रेकअप होते ही मैं ने डेटिंग ऐप जौइन कर लिया. मैं कुछ लोगों से मिली भी, पर मुझे लगा इस तरह किसी से जुड़ कर शायद मैं कभी और ज्यादा दुखी हो सकती हूं. इस में उलझनें लगीं, मुझे लगा कि ब्रेकअप के बाद किसी को भूलने में समय लगेगा ही. अपना ध्यान हटाने या एक्स को जलाने के लिए डेटिंग ऐप का सहारा लेना बुद्धिमानी नहीं है.”

फैमिली के साथ ऐसे स्पेशल बनाएं फेस्टिवल

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में फेस्टिवल ही हमें हंसी-खुशी से सराबोर करते हैं पर आजकल फेस्टिवल पर महंगी चीजें खरीदने, महंगी चीजों से घर की सजावट करने और महंगे गिफ्टों के आदानप्रदान को ही अपनी शान समझा जाने लगा है. इन्हीं बेजान वस्तुओं में लोग अपनी खुशी ढूंढ़ने लगे हैं जबकि यह खुशी क्षणिक होती है. ऐसे में अपने परिवार के साथ फेस्टिवल को कैसे मनाया जाए ताकि वह आप और आप के परिवार के लिए यादगार बन जाए और उस की अनुभूति हमेशा आप को गुदगुदाती रहे. आइए हम बताते हैं:

प्राथमिकताओं पर अमल

इस फेस्टिवल पर आप यह जानने की कोशिश करें कि अब तक आप अपनी प्राथमिकताओं पर अमल करने में सफल रहे या नहीं. अगर नहीं तो इस फेस्टिवल पर सब कुछ छोड़ कर अपने परिवार के साथ रहें. इस अवसर पर परिवार को ज्यादा से ज्यादा समय दें. परिवार की इस भावना को समझें कि वह बजाय किसी महंगी वस्तु के केवल और केवल आप का साथ चाहता है.

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त्योहारों पर प्रियजनों के साथ समय बिताना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अपने परिवार से प्यारा और कुछ नहीं होता है. जिन्हें हम दिल से प्यार करते हैं उन के साथ कनैक्ट होने का यह सब से बैस्ट समय होता है. जब हम सारे गिलेशिकवे भुला कर एकसाथ फेस्टिवल मनाते हैं तो उस का आनंद ही कुछ और होता है.

पुरानी यादों को दें नया रंग

पेरैंट्स अपने बच्चों की बचपन की तसवीरों का अलबम बना कर इस फेस्टिवल पर उन्हें भेंट करें. इस से वे अपनी पुरानी यादों से जुड़ेंगे. इस से उन्हें जो खुशी होगी वह आप को और खुशी प्रदान करेगी.

इसी तरह बच्चे भी अपने पेरैंट्स की पुरानी तसवीरों को खोजें. फिर उन्हें फ्रेम करवा कर उन्हें गिफ्ट करें. इस फेस्टिवल पर पेरैंट्स के लिए इस से अच्छा और कोई उपहार नहीं. ऐसे उपहार ही एकदूसरे को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं.

यादों को संजोएं कुछ ऐसे

अपने बच्चों के पहले खिलौने से ले कर उन के रिपोर्ट कार्ड व कपड़ों तक को संजोएं. फिर उन्हें रैप करा कर बच्चों को गिफ्ट करें. माना कि गुजरा समय भले लौट कर न आता हो. पर आप इन छोटीछोटी चीजों से अपने बच्चों को फ्लैशबैक में पहुंचा कर सुखद अनुभूति दे सकते हैं कि वे बचपन में इन खिलौने से खेलते थे. ये कपड़े पहनते थे, उन के ऐसे मार्क्स आते थे.

बच्चों को उन के पूर्वजों से रूबरू करवाएं

आजकल एकल परिवारों के चलते बच्चे अपने पूर्वजों से अनजान रहते हैं. ऐसे में आप का फर्ज बनता है कि आप इस फेस्टिवल पर उन्हें अपने पूर्वजों से रूबरू होने का मौका दें खास कर बेटा, बहू, दामाद, बेटी, पोतीपोते को कि वे कैसे दिखते थे, उन में क्या खासीयत थी. इस के लिए आप पुरानी तसवीरों को अपडेट कर के उन्हें दें और उन्हें उन की बातें बताएं. अगर कोई पूर्वज अभी जीवित है, तो उन से इन्हें मिलाएं. इस से बच्चे तो खुश होंगे ही. उन से मिल कर बुजुर्गों को भी बहुत खुशी होगी. ऐसा करने से बच्चे भी परिवार के अन्य लोगों से मिल कर उन्हें जान सकेंगे कि हमारे परिवार में कौनकौन है.

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ईट टुगैदर

अपने परिवार के साथ लंच या डिनर का प्रोग्राम ऐसी जगह बनाएं, जो परिवार के सभी सदस्यों को पसंद हो. ऐसे माहौल में हंसीखुशी के अलावा और कोई बात न हो. एकदूसरे की बातों को सुनें, समझें, रुचियों के बारे में जानें. ऐसा करने से अपनेपन की भावना तो जगेगी ही, साथ ही इन सब बातों के बीच खाने का मजा भी बढ़ जाएगा.

लौंगड्राइव पर जाएं

इस फेस्टिवल पर अपनी खुशियों को आप अपने परिवार को लौंगड्राइव पर ले जा कर पूरी कर सकते हैं. इस से आप का भरपूर मनोरंजन होगा. पूरे परिवार का एकसाथ सफर करना यादगार ट्रिप बन जाएगा, क्योंकि ऐसे मौके कम ही आते हैं जब पूरी फैमिली एकसाथ कहीं जाए.

इस तरह यह फेस्टिवल आप और आप के परिवार के लिए यादगार बन जाएगा और आप इन सुनहरी यादों में सालोंसाल खोए रहेंगे.

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आजादी पर भारी शादी

‘‘बदलते समय के साथ न केवल लोगों की लाइफस्टाइल में बदलाव आया है, बल्कि उन की सोच और सामाजिक तौरतरीके भी बदले हैं. यह सही है कि आजकल लड़कियां अपने कैरियर और आजादी को प्राथमिकता दे रही हैं, लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि शादी के लिए अब लड़कों की लड़कियों से उम्मीदें भी बढ़ गई हैं. मैट्रो सिटी में रहनसहन के स्तर को संतुलित बनाए रखने के लिए लड़के उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियों को ही प्राथमिकता देते हैं. ऐसे में लड़कियां अपने सुरक्षित भविष्य के लिए शादी करने में समय ले रही हैं. मुझे इस में कोई बुराई नहीं नजर आती. हां, शादी टालने की एक सीमा जरूर होनी चाहिए क्योंकि इस को जरूरत से ज्यादा टालने के विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं.’’

सोनल, ऐसोसिएट एचआर

‘‘यह हमेशा याद रखें कि आप का ऐटिट्यूड किसी भी रिश्ते को बनने से पहले ही उसे खोखला करना शुरू कर देता है, जबकि बौंडिंग किसी भी रिश्ते को गहरा व मजबूत बनाती है.’’

28 साल की तान्या न सिर्फ गुड लुकिंग है बल्कि एक अच्छी मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर पोजिशन पर कार्यरत भी है. लेकिन अभी भी तान्या सिंगल है. शादी की बात आते ही तान्या उसे टाल जाती है.

हिना का भी हाल कुछ ऐसा ही है. हिना मौडलिंग करती है, ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी है और दिखने में काफी स्टाइलिश है. हिना से शादी करने को न जाने कितने लड़के बेताब हैं, लेकिन हिना अब तक कई प्रपोजल्स रिजैक्ट कर चुकी है. रिजैक्शन के पीछे वजह सिर्फ यही है कि हिना को लगता है कि भले ही उस का पार्टनर उसे शादी के बाद काम करने भी दे, लेकिन उस की आजादी तो कहीं न कहीं उस से छिन ही जाएगी. बस, यही वजह है कि हिना पेरैंट्स के कहने पर लड़कों से मिलती जरूर है, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ाती.

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यह कहानी सिर्फ तान्या और हिना की ही नहीं, बल्कि आज हमारे समाज की उन ढेर सारी लड़कियों की है, जो अपनी पढ़ाईलिखाई कर सिर्फ अपनी जौब और कैरियर को प्रिफरैंस देती है. इन के लिए शादी प्रिफरैंस लिस्ट में तो दूर की बात, ये तो शादी के नाम से ही कतराती हैं.

बदल गए हैं जिंदगी के माने

अगर हम यह कहें कि अब समाज में लड़कियों की जिंदगी के माने पूरी तरह बदल चुके हैं, तो शायद यह भी गलत नहीं होगा. लड़कियां शादी कर चूल्हाचौका संभालने की सोच से बाहर निकल कर अपने कैरियर और समाज की सोच को एक नई दिशा दे रही हैं. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि बदलते जमाने के साथ कदम से कदम मिला कर चलने वाली ये पीढ़ी वाकई सही है या इस सफलता में छिपा है डिपै्रशन और फ्रस्ट्रेशन भी.

हाल ही में कई बड़े शहरों में एक सर्वे के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया. बड़े शहरों की पढ़ीलिखी लड़कियां अच्छी पढ़ाई कर प्रोफैशनली बाजी जरूर मार रही हैं, लेकिन उन की व्यक्तिगत जिंदगी उन्हें इतना परेशान कर रही है कि उस के चलते कई लड़कियां डिप्रैशन की शिकार हैं.

दिल्ली में पढ़ीलिखी गुड लुकिंग 36 साल की प्रीति मल्टी नैशनल कंपनी में सीनियर लीगल ऐडवाइजर है. देखने में खूबसूरत व स्टाइलिश और कैरियर में सैटल होने के बावजूद भी प्रीति अभी भी सिंगल है. शादी के लिए उस के पास ढेर सारे प्रपोजल्स तो हैं मगर साथ ही कन्फ्यूजन भी कि शादी करे तो किस से? जो लड़का प्रीति को पसंद आता है उसे प्रीति को प्रोफाइल मैचिंग नहीं लगता और जिसे प्रीति पसंद आती है उस से प्रीति आगे बात बढ़ाना ही नहीं चाहती.

ऐसा सिर्फ प्रीति के साथ ही नहीं बल्कि न जाने कितनी लड़कियों के साथ होता है, जो कैरियर में सैटल होने के बावजूद भी सही उम्र में शादी नहीं कर पातीं क्योंकि शादी के लिए उन की कुछ शर्तें भी होती हैं. आमतौर पर सभी शर्तों को पूरा करने यानी उन की कसौटी पर खरा उतरने के नाम से ही लड़के कन्नी काटने लगते हैं और अच्छी पढ़ीलिखी बड़े शहरों की लड़कियों के बजाय छोटे कसबे या गांव की कम पढ़ीलिखी लड़कियों को ही चुनना ज्यादा पसंद करते हैं.

ये बात थोड़ी चौंकाने वाली जरूर है लेकिन यही हकीकत है कि कम से कम 50% बड़े शहरों की लड़कियां अपनी आजादी को खोने के डर से अब शादी को तवज्जो नहीं देतीं.

35 वर्षीय दीप्ति एक नैशनल न्यूज चैनल में एक अच्छी पोस्ट पर काम करती हैं और सिंगल हैं. शादी से जुड़े सवाल पर तपाक से कहती हैं, ‘‘अच्छी है न जिंदगी क्योंकि कोई रोकटोक नहीं है. अपने तरीके से अपनी लाइफ ऐंजौय कर रही हूं. अपने पेरैंट्स का खयाल रखती हूं. अपना घर, गाड़ी सब कुछ है, तो ऐसे में शादी कर कई हजार बंदिशों में बंध रिस्क क्यों लिया जाए?’’

असल में ऐसी सोच सिर्फ दीप्ति की ही नहीं बल्कि शहरों में पलीबढ़ी 60% लड़कियों की है. या तो ये शादी करना नहीं चाहतीं या फिर अगर शादी करती भी हैं तो अपनी शर्तों पर. ऐसे में जाहिर सी बात है कि हमारे पितृसत्तात्मक समाज के लड़कों के माथे पर सिकुड़न पड़ना तय है.

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कशमकश में उलझी हैं सफल महिलाएं

अजीब सी कशमकश में उलझी ऐसी सफल महिलाएं उम्र के इस पड़ाव पर आने के बावजूद भी शादी करने का फैसला सही उम्र में नहीं ले पातीं. जब तक हो सके अकेले ही रहना चाहती हैं, जिस की एक सीधी सी वजह यह है कि अब लड़कियां शादी जैसे बंधन में बंधने के लिए अपनी जिंदगी में न तो कोई बदलाव लाना चाहती हैं और न ही कोई समझौता करना चाहती हैं. जिस की सब से बड़ी वजह यही है कि अब लड़कियां अपनी आजादी नहीं खोना चाहतीं.

लेकिन इन का यही फैसला कहीं न कहीं इन के लिए एक वक्त के बाद मुश्किलें भी खड़ी कर देता है. एक वक्त के बाद सिंगल रहना अखरने भी लगता है. जिंदगी के सफर में तनहाई काटने को दौड़ती है. उस वक्त जरूरत महसूस होती है एक ऐसे साथी की जो हमसफर बन कर आप के साथ जिंदगी के सुखदुख साथ बांट सके.

अब सोचने वाली बात यह है कि लड़कियों की यह सोच वाकई समाज के माने बदल समाज को एक सही दिशा में जा रही है या फिर इस सोच के कल कई दुष्प्रभाव समाज पर पड़ सकते हैं?

सालता भी है अकेलापन

अगर देखा जाए तो लड़कियों का शादी जैसे मुद्दे पर खुद फैसला लेना सही है, लेकिन अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की चाहत में इस खूबसूरत पड़ाव से कतराना भी समझदारी नहीं, क्योंकि कुछ वक्त के बाद इंसान को अकेलापन सताने लगता है और अकेलेपन से बचना वाकई बड़ा मुश्किल है.

एक जमाने की मशहूर अदाकारा परवीन बौबी को ही ले लीजिए. उन की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. एक वक्त था जब परवीन के पास ढेरों प्रपोजल्स थे. न जाने कितने नौजवान उन से शादी करने को बेताब थे. मगर उस वक्त सफलता के नशे में चूर परवीन बौबी सारे प्रपोजल्स टालती गईं. शादी की बात को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन बाद में उन का यही फैसला उन के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुआ. उन की जिंदगी के अंतिम दिनों में उन का अकेलापन ही उन की मौत का कारण बना.

एक जमाने में लाखोंकरोड़ों दिलों पर राज करने वाली इस खूबसूरत अदाकारा की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया, जब इस ने खुद को अपनी तनहाई के साथ घर की चारदीवारी में कैद कर लिया. परवीन पर अकेलापन ऐसा हावी हुआ कि वे न सिर्फ डिप्रैशन में चली गईं बल्कि उन का मानसिक संतुलन तक बिगड़ गया. यहां तक कि उन्होंने लोगों से मिलनाजुलना तक बंद कर दिया और फिर एक दिन वही हुआ, जब करोड़ों दिलों पर राज करने वाली इस अदाकारा ने अंतिम सांस ली, इन के पास कोई नहीं था. यहां तक कि इन की मौत का पता भी कई दिनों के बाद इन के पड़ोसियों को दरवाजे पर लटकी दूध की थैलियों और दरवाजे के पास पड़े अखबार के बंडलों से चला. फिर जांचपड़ताल के बाद घर के अंदर उन की लाश मिली तब जा कर पता चला कि लाखोंकरोड़ों दिलों की चहेती परवीन बौबी इस दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं.

ऐसा सिर्फ परवीन बौबी के साथ ही नहीं हुआ. इस के और भी ढेर सारे उदाहरण आप को मिल जाएंगे. हकीकत में यह अकेलापन ऐसी बीमारी है, जो बाद में डिप्रैशन का रूप ले लेती है आगे चल कर जिंदगी के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकती है. इसलिए बेहतर है कि जिंदगी को गंभीरता से लें.

क्या करें क्या न करें

शादी का बंधन इतना नाजुक नहीं होता कि उसे जब चाहे तोड़ लो और जब मन करे जोड़ लो. निश्चित तौर पर काफी सोचनेसमझने के बाद ही यह फैसला लेना सही होता है. और अगर आप अपने हिसाब से जीवनसाथी चुनना चाहती हैं तो इस में भी हरज कुछ नहीं, लेकिन ध्यान रखें कि आप जरूरत से ज्यादा चूजी भी न हो जाएं क्योंकि यह इकलौती वजह ही ढेरों प्रपोजल रिजैक्ट करने के लिए काफी होती है.

किसी भी रिश्ते को पनपने से पहले ही अपनी शर्तों में न बांध दें. किसी भी रिश्ते की बौंडिंग मजबूत होने में वक्त लगता है, तो आप भी अपने रिश्ते को वक्त दें. सामने वाले इंसान को पहले समझने की कोशिश करें.

परफैक्शन में नहीं हकीकत में विश्वास करें. यह कोई प्रोफैशनल टास्क नहीं है, जिस में आप को या आप के हमसफर को परफैक्शन के मापदंड पर खरा उतरना है. यह फिल्मी दुनिया नहीं बल्कि हकीकत है. हकीकत पर भरोसा करें. चांद सब से खूबसूरत होता है, लेकिन उस में भी दाग है. वही कहानी इंसानों की भी है. इसलिए परफैक्शन में जाने के बजाय प्रैक्टिकल हो कर सोचें.

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फैसले का सही वक्त क्या हो

सही उम्र में सही फैसला लेना भी जरूरी होता है. कैरियर के साथसाथ पर्सनल लाइफ पर भी ध्यान दें. यदि आप ने समय से अपनी पढ़ाईलिखाई पूरी कर के मनचाहा मुकाम हासिल कर लिया है तो शादी का फैसला बेवजह टालने में समझदारी नहीं है.

ऐटिट्यूड में नहीं बौंडिंग में यकीन करना सीखें. हमेशा याद रखें कि आप का ऐटिट्यूड किसी भी रिश्ते को बनने से पहले ही उसे खोखला करना शुरू कर देता है जबकि बौंडिंग किसी भी रिश्ते को और गहरा और मजबूत बनाती है.

पहले से किसी इंसान या उस के प्रोफैशन को ले कर उस के प्रति अपने मन में कोई धारणा न बना लें. प्यार और विश्वास से एक नए रिश्ते की शुरुआत करें.

कई बार लड़कियां जब शादी के लिए किसी से मिलती हैं, तो वे उस लड़के की अपने ड्रीम बौय या फिर अपने आदर्श इंसान से तुलना शुरू कर देती हैं जो सही नहीं है, हर इंसान का व्यक्तित्व, व्यवहार और खूबियां अलगअलग होती हैं. इसलिए जब भी आप किसी से मिलें तो बेवजह उस की किसी और से तुलना न शुरू कर दें.

जैसे जीवनसाथी की कल्पना आप ने अपने लिए की है वैसा ही आप को मिले, यह थोड़ा मुश्किल है. ऐसे में बेहतर यही होगा कि समझदारी के साथ जीवनसाथी का चुनाव करें और यह विश्वास रखें कि शादी के बाद भी आपसी समझ से रिश्ते को बेहतर बनाया जा सकता है. अकेला रह कर आप क्षणिक सुख तो पा सकती हैं पर सारी जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए एक हमकदम का साथ जरूरी होता है.

इस बात पर यकीन करें कि एक खूबसूरत जिंदगी एक अच्छे हमसफर के साथ आप का इंतजार कर रही है. बस जरूरत है तो सिर्फ पहल करने और गंभीरता से सोचने की. तो देर किस बात की, शुरुआत कीजिए और कदम बढ़ाइए इस खूबसूरत जिंदगी की तरफ.

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