Holi 2024: फेस्टिवल पर रखें अपनी सेहत का ख्याल, इन टिप्स को करें फॉलो

होली मौज-मस्ती, हर्ष-उल्लास, उधम-कूद, भागा-दौड़ी का त्योहार है. वसंत ऋतु में आने वाले इस पर्व की अलग की रौनक होती है. इस दौरान बनने वाले खास खाने, मिठाइयां, ठंडई, पकवान इसे और अधिक खास बनाते हैं.

अक्सर इस मौज मस्ती में लोग अपने और अपनो का ख्याल रखने से चूक जाते हैं. रंगों की मौज मस्ती में, खाने पीने में बहुत सी ऐसी लापरवाहियां हो जाती हैं जो होली के उमंग को फीका कर देती हैं. ऐसे में हम होली खेलने के दौरान और खानपान के बारे में कुछ खास टिप्स बताएंगे जिनको ध्यान में रख कर आप इस होली को यादगार और मजेदार बना सकती हैं. तो आइए शुरू करें

1. बचें सिंथेटिक रंगों से

होली में सिंथेटिक रंगों से बच कर रहें. इनमें लेड आक्साइड, मरकरी सल्फाइड ब्रोमाइड, कापर सल्फेट आदि भयानक केमिकल मिले होते हैं जो कि आंखों की एलर्जी, त्वचा में खुजली और अंधा तक बना देते हैं. इन रंगों के दूरी बनाने की कोशिश करें.

2. एलर्जी के मरीज रहें सतर्क

बहुत से लोगों को रंगों से एलर्जी होती है. उन्हें खास कर के इन रंगों से दूर रहना चाहिए. इसके अलावा जिन लोगों को त्वचा संबंधित परेशानियां हैं उन्हें भी इससे दूर रहना चाहिए. एक और जरूरी बात, रंग खेलने से पहले शरीर पर नारियल या सरसो का तेल लगा लें. इससे त्वचा पर रंग नहीं चिपकेगा और आप सुरक्षित रहेंगी.

3. अपने चोट-घाव को बचाएं

जिन लोगों को पहले से चोट या घाव लगी हो उन्हें ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. लंबे समय तक पानी के संपर्क में रहने से चोट के बढ़ने का खतरा होता है. ऐसे में अपने चोट पर एंटीसेप्टिक लगा कर रहें.

4. तेल लगाना ना भूलें

रंग खेलते वक्त बालों में खूब तेल लगा लें और सिर को रुमाल या स्कार्फ से ढंक लें. सिंथेटिक रंग आपकी बालों के लिए हानिकारक होते हैं.

5. भांग पीने से बचें

इस मौके पर कोशिश करें कि आप ज्यादा पानी में भींगे नहीं. इससे आपको बुखार, जुकाम जैसी परेशानियां हो सकती हैं.

6. गुब्बारे वाली होली ना खेलें

गुब्बारे वाली होली ना खेलें. इससे आपकी आंखे चोटिल हो सकती हैं.

Holi 2024: बीरा- गांव वालों ने क्यों मांगी माफी

आज भी बीरा के मांबाप को भजन सिंह चेताने आए थे, ‘‘तुम अपनी बेटी को संभाल कर रखो, नहीं तो मैं उस के हाथपैर तोड़ दूंगा.’’

हर रोज बीरा किसी न किसी लड़के से झगड़ा कर लेती थी. गांव के लड़के बीरा को हमेशा छेड़ा करते थे, ‘तुम लड़के जैसी लगती हो, लेकिन तुम्हारी आवाज लड़की जैसी है. एक पप्पी नहीं दोगी…’

कोई लड़का बीरा के गाल को पकड़ लेता तो कोई मौका मिलते ही उस की छाती को भी. बीरा कभी बरदाश्त नहीं करती और मारपीट पर उतारू हो जाती. स्कूल, गलीमहल्ले, खेतखलिहान, खेल के मैदान, बीरा को हर रोज इन समस्याओं से जूझना पड़ता था.

धीरेधीरे पूरे गांव में यह प्रचार होने लगा कि बीरा किन्नर है.

इसी बीच बीरा की मां की मौत हो गई. अब तो बीरा की परेशानियों को दुनिया में समझने वाला भी कोई नहीं रहा. बीरा की मां उसे एक लड़की की तरह जिंदगी जीने का सलीका सिखाने आई थी. खाना बनाना, बरतन धोना, लड़की की तरह सिंगार करना, सबकुछ उस ने अपनी मां से सीखा था.

बीरा के पिता को लोग चिढ़ाने लगे. खुलेआम मजाक उड़ाने लगे, ‘तेरी बेटी किन्नर है. इस ने तो गांव की नाक कटवा दी है. आज तक इस गांव में कोई किन्नर पैदा नहीं हुआ है.’

बीरा के पिता का भी बरताव बदलने लगा. जैसेजैसे बीरा के कदम जवानी की तरफ बढ़ने लगे, गांव के लड़के उस की तरफ खिंचने लगे और मौका मिलते ही और ज्यादा छेड़ने लगे. बीरा इन हरकतों से तंग आ चुकी थी.

एक दिन बीरा के पिता ने कहा, ‘‘तुम घर से निकल जाओ. रोजरोज के झगड़ों से मैं तंग आ चुका हूं.’’

बीरा भी अपने परिवार वालों का रुख देख कर घर से निकल गई और बिना मंजिल के एक ट्रेन पकड़ ली. उसे मालूम नहीं था कि कहां जाना है.

बीरा आसनसोल स्टेशन पहुंची, जहां किन्नरों की हैड से उस की मुलाकात हुई. उस ने खाना खिलाया, प्यार से बातें कीं और ट्रेन में ही गाने गा कर लोगों से पैसा वसूलने का हुनर सिखाया.

बीरा अब पैसा तो कमाती थी, लेकिन उस का सुख नहीं भोगती थी, क्योंकि सारा पैसा किन्नर की हैड ले लेती. वह 4 महीने तक आसनसोल में रही. वह वहां की जिंदगी से भी तंग आ चुकी थी.

एक दिन किसी को बिना बताए बीरा पटना चली आई. वहां उस की रेशमा नामक समाजसेवी किन्नर से मुलाकात हुई. रेशमा ने बीरा के दर्द को समझने की कोशिश की.

बीरा पढ़ना चाहती थी. रेशमा ने उस का बीए में दाखिला करा दिया. वह मन लगा कर पढ़ने लगी. अपना खर्च निकालने के लिए वह शादीब्याह और पर्वत्योहार के मौके पर आरकैस्ट्रा में नाचगाने का काम भी करने लगी.

बीए करने के बाद बीरा ने कोचिंग की और बीपीएससी की तैयारी करने लगी. पहली बार में वह नाकाम हुई, पर दूसरी बार बीपीएससी पास कर गई. उस की बहाली बीडीओ के पद पर हुई. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने अपने साथियों को जम कर पार्टी दी.

बीरा के पिता को जब गांव वालों से मालूम हुआ तो उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि जिसे वे और गांव वाले हिकारत की नजर से देखते थे, वह बीरा पढ़लिख कर अफसर बन जाएगी.

गांव वालों द्वारा यह सूचना भी उन्हें चिढ़ाने जैसी ही लगी. पर उन के गांव का ही एक लड़का बीरा से मिलवाने के लिए उन्हें ब्लौक दफ्तर ले गया. पिता को गलती का एहसास हुआ.

बीरा ने अपने पिता से गांव का हालचाल पूछा और यह भी बोली, ‘‘पिताजी, अब आप को गांव के लोग यह कह कर नीचा नहीं दिखाएंगे कि आप की बेटी किन्नर है.’’

बीरा ने यह भी पूछा कि गांव की मुख्य समस्या क्या है? पिता ने कहा, ‘‘गांव में स्कूल नहीं है.’’

बीरा ने अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाने का वादा किया. 6 महीने के अंदर बीरा ने बच्चों को पढ़ने के लिए अपने पैसे से गांव में स्कूल खुलवाया, जहां गांव के बच्चे मुफ्त में पढ़ने लगे.

गांव वालों ने बीरा से माफी मांगते हुए उसे सम्मानित किया. सम्मान समारोह में लोगों ने यही कहा कि उन के गांव में आज तक कोई ऐसा लड़का या लड़की नहीं पैदा हुई, जो हमारे गांव का नाम रोशन कर सके. बीरा ने इस गांव का मानसम्मान बढ़ाया है.

Holi 2024: रंगों से अपने बालों को रखना चाहते हैं सुरक्षित, तो इन टिप्स को करें फॉलो

रंगों का त्योहार होली बिल्कुल करीब है. इस बसंती त्योहार में आप सभी लोग अपने कपड़ों, बालों, त्वचा और रंगरूप की परवाह किए बिना ही रंगों से रंग जाना पसंद करते हैं. आप भी कहीं न कहीं ये बात जानते हैं कि रंगों से आपके बालों को काफी नुकसान होता है और ऐसे में आपको काफी सावधान रहने की जरूरत भी होती है.

इस समस्या से निपटने के लिए आज हम आपके लिए कुछ सुझाव लेकर आए हैं. तो इस होली बिना किसी चीज की परवाह किए खेलें अपने मनपसंद रंगों से.

1. होली खेलने के 15 मिनट पहले आप अपने बालों पर तेल से मालिश कर लें. इसके लिए आप नारियल का तेल, जैतून, सरसों या किसी भी अन्य तेल का चयन कर सकते हैं. तेल लगाते वक्त ये बात ध्यान रखना चाहिए कि तेल गर्म न हो क्योंकि इससे बाद में आपके बालों को नुकसान हो सकता है.

2. एक बहुत महत्वपूर्ण बात को हमेशा ध्यान में रखें कि होली खेलने के दौरान बालों को कभी खुला न छोड़ें. आप शायद ये बात नहीं जानते होंगे कि आपके खुले बाल ज्यादा रंग सोखते हैं, जिससे सिर पर रंगों का बहुत अधिक मात्रा में जमाव हो जाता है. आप ये कर सकते हैं कि होली खेलने के दौरान बालों को टोपी या स्कार्फ से पूरी तरह अच्छे से ढंक लें.

3. होली खेलते समय टोपी के नीचे प्लास्टिक शॉवर कैप पहनने से बालों की सुरक्षा दोगुनी हो जाती है.

4. अगर आपने सूखे रंगों से होली खेली हो तब होली खेलने के बाद बालों को अच्छी तरह से ब्रश कर लें. केवल ब्रश करने से ही सिर पर जमे रंगों को हटाने में काफी मदद मिलती है.

5. अगर आपने गीले रंगों का प्रयोग कर होली का लुफ्त उठाया है तो सबसे पहले सादे पानी से अपने बालों को अच्छी तरह धो लीजिए, इसके बाद शैम्पू लगा के फिर बाद में बालों को में एक बार फिर साफ पानी से धोएं.

6. होली के कारण आपके बालों पर जमे रंगों को आप जल्दी निकालने की चाहत में शैम्पू को अपने बालों पर बार-बार रगड़ते हैं तो आपको ऐसा नहीं करना चाहिए. बालों पर जमा रंग साफ होने में कुछ समय तो लगता ही है.

7. आप होली के रंगों को अपने बालों से हटाने के लिए बेबी शैम्पू या प्राकृतिक शैम्पू का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.

8. होली के रंगों से सने बालों को गर्म पानी से धोने की गलती न करें, इससे आपके बाल बहुत खराब हो सकते हैं. गर्म पानी बालों को रूखा बना देता है.

9. होली में रंग खेलने के बाद, जब आप अपने बाल धों ले तो उसके बाद अपने बालों को ब्लो-ड्राई अर्थात हवा से बाल न सुखाएं. इसकी जगह साधारण तरीके से उन्हें सूखने दें.

10. आआप होली के बाद अपने बालों को स्पा ट्रीटमेंट भी दे सकते हैं और ये बात भी याद रखें कि होली में रंगों से खेलने के दो सप्ताह बाद तक बालों को कलर न करें.

Holi 2024: होली में मेहमानों को परोसें दही भल्ले, ये रही आसान रेसिपी

अक्सर आपने शादियों और पार्टियों में दही भल्ला खाया होगा, लेकिन क्या आपने कभी घर पर टेस्टी और हेल्दी दही भल्ला बनाकर फैमिली को परोसा है. नहीं तो आज हम आपको घर पर दही भल्ले की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

पनीर – 200 ग्राम,

दही– 04 कप,

आलू – 02 (उबले हुए),

अरारोट – 02 बड़े चम्मच चम्मच,

हरी मिर्च – 01 (बारीक कटी हुई),

अदरक – 1/2 इंच का टुकडा़ (कद्दूकस किया हुआ),

हरी चटनी – 01 कप,

मीठी चटनी – 01 कप,

भुना जीरा – 02 बड़े चम्मच,

लाल मिर्च पाउडर– 1/2 छोटा चम्मच,

काली मिर्च पाउडर– 1/2 छोटा चम्मच,

तेल – तलने के लिये,

काला नमक – 02 बड़ा चम्मच,

सेंधा नमक (व्रत के लिए)/नमक (अन्य दिनों के लिए)-स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

सबसे पहले पनीर को कद्दूकस कर लें. उसके बाद उबले हुए और आलुओं को छील कर कद्दूकस कर लें.

इसके बाद इन दोनों चीजों को एक प्याले में लेकर अच्छी तरह से मिला लें. इस मिश्रण में मिश्रण में अरारोट, अदरक, हरी मिर्च और नमक भी डालें और अच्छी तरह से गूंथ लें.

गुंथी हुई सामग्री में से थोडा सा मिश्रण लें और उसे हथेली से गोल करे वड़े के आकार कर बना लें. अब वड़ा तलने के लिए एक कढ़ाई में तेल डालें और गरम करें.

तेल गरम होने पर तीन-चार वड़े कढ़ाई में डालें और उन्हें उपलट-पलट कर सुनहरा होने तक तल लें. ऊपर से दही, सेंधा नमक/नमक, काला नमक, भुना हुआ जीरा, काली मिर्च पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, मीठी चटनी और हरी चटनी डालकर ठंडा-ठंडा अपनी फैमिली परोसें.

कृपया बताएं काजल लगाने से मेरी आंखें खराब तो नहीं होंगी?

सवाल-

मेरी उम्र 17 साल है. मुझे आंखों में काजल लगाना काफी पसंद है, लेकिन डरती हूं कि कहीं इस से आंखों पर बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा. कृपया बताएं कि काजल लगाने से मेरी आंखें खराब तो नहीं होंगी?

जवाब-

काजल लगाने से आंखों को नुकसान नहीं होता है बल्कि इस से वे और भी खूबसूरत दिखने लगती हैं. लेकन जरूरी है कि काजल अच्छी क्वालिटी की हो, जिस में लेड की मात्रा न हो. काजल कभी ऐक्सपायर होने के बाद न लगाएं. इससे आंखों को नुकसान पहुंचता है. आंखों में फ्लूया और किसी तरह का इन्फैक्शन हो तो काजल बिलकुल न लगाएं. अपना काजल कभी किसी के साथ शेयर न करें वरना इन्फैक्शन की आशंका रहती है. अगर काजल लगाने के बाद देखने में किसी तरह की परेशानी महसूस होती है तो काजल न लगाएं.

अगर आप जल्‍दी में हैं और आपके पास पूरा आई मेकअप करने का समय नहीं है तो आप अपनी आंखों को केवल काजल से ही सजा सकती हैं. काजल का प्रयोग आईलाइनर और आईशैडो के रुप में भी किया जा सकता है.

आज हम आपको कुछ मेकअप टिप्‍स देगें जिसके द्वारा आप केवल काजल के प्रयोग से ही अपनी आंखों से जादू कर सकती हैं.

काजल से आई मेकअप करने के टिप्‍स

  1. दिन और काम के हिसाब से आप अपनी आंखों को हाइलाइट कर सकती हैं. अगर आपको बस कैजुअल लुक चाहिए तो आप अपनी पलकों पर काजल लगा कर यह लुक पा सकती हैं.
  2. अगर आपको फारमल लुक चाहिए तो आंखों के नीचे का काजल मल कर मोटा न करें. आंखों के नीचे का काजल जितना पतला होगा उसके मिलने और खराब होने के चासेंज उतने ही कम होगें.
  3. अगर आपको अपनी आंखें थोडी बड़ी दिखानी हैं तो आंखों के नीचे और ऊपर मोटा काजल लगाएं इससे आंखें बड़ी और सुदंर दिखेगीं.
  4. शाम को अगर पार्टी में जाना हो तो आपकी आंखें बोलनी चाहिए इसलिए जरुरी है कि आंखों में लगाया जाने वाला काजल थोड़ा ज्‍यादा और उभरा हुआ हो. अपने काजल से आंखों की हाइलाइट करें वो भी सेमी डो आइ मेकअप से.

Holi 2024: धुंध- घर में मीनाक्षी को अपना अस्तित्व क्यों खत्म होने का एहसास हुआ?

‘‘अरे, अब बस भी करो रघु की मां, क्या बहू को पूरी दुकान ही भेज देने का इरादा है?’’

‘‘मेरा बस चले तो भेज ही दूं, पर अब अपने हाथों में इतना दम तो है नहीं. अरे, कमिश्नर की बेटी है कितना तो दिया है शादी में बेटी को. थोड़ा सा शगुन भेज कर हमें अपनी जगहंसाई करानी है क्या? मीनाक्षी, जरा गुझिया में खोया ज्यादा भरना वरना रघु की ससुराल वाले कहेंगे कि हमें गुझिया बनानी ही नहीं आती.’’

मीनाक्षी का मन कसैला हो उठा. इतनी आवभगत से कभी उस के मायके तो गया नहीं कुछ. मानते हैं, उस की शादी 10 वर्ष पूर्व हुई थी, उस समय के हिसाब से उस के बाबूजी ने खर्च भी किया था. पर उस की पहली होली जब मायके में पड़ी थी तब तो अम्माजी ने इतने मनुहार से कुछ नहीं भेजा था. पर यहां तो समधिन से ले कर छोटी बहन तक के कपड़े भेजे जा रहे हैं. ऊपर से बातबात में नसीहत दी जा रही है, ‘यह ठीक से रखो’, ‘यह सस्ता लग रहा है’, ‘इस में मेवा कम है’ आदि.

मखमल की चादर में टाट का पैबंद लगा हो तो दूर से झलकता है, पर रेशमी चादर में मखमल का पैबंद लग जाए तो उसे अच्छा समझा जाता है. मीनाक्षी की ससुराल भी ऐसी ही थी. मध्यम वर्ग के प्राणी थे. मीनाक्षी आई तो घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न थी. पति बाट व माप निरीक्षक थे. दोनों छोटे देवर पढ़ रहे थे, ननद विवाह के योग्य थी.

कितना कुछ तो सहा और किया था उस ने. यदि उंगलियों पर गिनना चाहे तो गिनती भूल जाए. उस ने गिनने का प्रयास भी कभी न किया. पर आज ही नहीं, देवर की शादी के बाद मधु के आगमन के साथ ही अम्माजी का सारा स्नेह मधु पर ही बरसते देख उस का मन खिन्न हो उठा था.

12 टोकरों के साथ बड़ी सी अटैची ले कर जब मीनाक्षी के पति गिरीश चलने लगे तो उस ने धीमे से पति से कहा, ‘‘मधु से मिल लीजिएगा. उस के बगैर होली फीकी लगेगी.’’

गिरीश ने कुछ कहा नहीं, पर मीनाक्षी के नेत्रों से झांकती उदासी उन से छिपी न रही.

होली के दिन सुबह हुल्लड़बाजी शुरू हो गई थी. महल्ले के लड़केलड़कियां आते गए और पुरानी भाभी से अपना रिश्ता निभाते हुए हंसीमजाक के बीच रंग भी खेलते गए.

मीनाक्षी मृदु स्वभाव की सीधीसादी महिला थी. महल्ले के सारे लड़के उस के देवर थे, लड़कियां ननदें एवं वृद्ध लोग चाचाचाची आदि.

शाम को मधु के मायके से उस के भाई मिठाई ले कर आए. जितना कुछ मीनाक्षी की सास ने भेजा था उस से कहीं ज्यादा ही वे लोग लाए थे. मीनाक्षी दौड़दौड़ कर सब की खातिर कर रही थी. बड़ी दीदी के नाते सब ने उस के पांव छुए तो मीनाक्षी को आंतरिक खुशी मिली.

अम्माजी भी बड़े ही प्यार एवं अपनत्व से सब की खातिर कर रही थीं. देखते ही देखते मात्र दिखावे के नाम पर काफी रुपए खर्च हो गए. मीनाक्षी जानती थी कि इतने पैसे खर्च होने से घर का मासिक बजट गड़बड़ा जाएगा, पर वह खामोश ही रही.

मीनाक्षी का देवर रघु प्रशासनिक अभियंता था. कमिश्नर की बेटी का रिश्ता स्वीकार करने के पीछे मधु की सुंदरता एवं उच्च शिक्षित होना भी उस के महत्त्वपूर्ण गुण थे. ढेर सारे दहेज के साथ मधु उस मध्यम वर्ग के घर में जब दुलहन बन कर आई तो पहली बार मीनाक्षी को अपनी वास्तविक स्थिति का भान हुआ.

सिर्फ 2 दिन ही तो मधु रह पाई थी. फिर होली का पर्व आ गया और उस के भाई आ कर उसे ले गए. होली के दूसरे ही दिन मधु को लेने रघु मीनाक्षी के

8 वर्षीय पुत्र के साथ जाने लगा तो अम्माजी ने फिर मधु के लिए साड़ी व मिठाई देनी चाही तो गिरीश ने कह दिया, ‘‘अम्मा, इतना सारा लेनदेन करना अच्छा नहीं है. उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर हमारी तो आर्थिक स्थिति चरमरा जाएगी. मानते हैं कि रघु की नौकरी अच्छी है पर यदि उसे भी अपने पैसे से यह सब करना पड़े तो शायद वह भी न करे.’’

‘‘तो क्या कुछ न भेज कर अपनी नाक नीची करवाएं? सुना तुम ने?’’ वह पति से बोली, ‘‘क्या हमें अपनी बहू को कुछ उपहार नहीं भेजना चाहिए? आखिर इतना कुछ दिया है उन्होंने.’’

‘‘पर रघु की मां, दिया उन्होंने अपनी बेटी को है. और जो नकद दिया है उस पर हमारा कोई हक नहीं बनता. वह हम ने मधु और रघु के संयुक्त खाते में जमा करवा दिया है. इतना कुछ खर्च करना तो मुझे भी ठीक नहीं लग रहा है.’’

पति का समर्थन न मिलते देख कर अम्माजी चुप हो गईं. हालांकि उन के चेहरे से यह प्रतीत हो रहा था कि वह इस से संतुष्ट नहीं हैं.

दोपहर का सारा काम निबटा कर मीनाक्षी अपने कमरे में चली आई थी. मधु भी सुबह आ गई थी. मीनाक्षी सोचने लगी, यदि मधु के पति की नौकरी कहीं अन्यत्र होती तो कोई परेशानी वाली बात नहीं थी पर चूंकि दोनों बहुओं को सासससुर के साथ एक ही घर में रहना था, चिंता का विषय यही था.

इन 10 दिनों के दौरान मीनाक्षी ने महसूस कर लिया था कि अम्माजी का सारा लाड़ अब मधु पर ही उतरेगा जोकि उचित न था. ऐसा नहीं कि उसे मधु से स्नेह न था पर यदि अम्मा अपना सारा स्नेह भंडार मधु पर ही न्योछावर करेंगी तो संभव है कि कल को वे मीनाक्षी की भी अवहेलना शुरू कर दें. संयुक्त परिवार में हर एक को त्याग कर के चलना पड़ता है. स्वार्थ की परिधि में रहने वाला प्राणी ऐसे परिवार में ज्यादा दिन नहीं रह सकता.

‘‘दीदी,’’ सहसा मधु के स्वर पर उस ने चौंक कर देखा, ‘‘अरे मधु, आओ, बैठो न,’’ मीनाक्षी उठ कर खड़ी हो गई.

‘‘यह आप के लिए है,’’ मधु ने एक पैकेट उस की तरफ बढ़ा दिया.

‘‘क्या है यह?’’

‘‘साड़ी. देखिए, रंग आप को पसंद है?’’

जाने कहां का आक्रोश एकदम से मीनाक्षी के मन में भर आया, वह खुद भी न समझ सकी. मधु के घर वालों के सामने होली के दिन उस ने सूती साड़ी पहनी थी. क्या इसीलिए मधु उस के लिए साउथ सिल्क की महंगी साड़ी ले कर चली आई?

‘‘मधु, मैं यह साड़ी नहीं ले सकती,’’ बड़ी मुश्किल से अपने भावों को बाहर आने से मीनाक्षी ने रोका.

‘‘क्यों, दीदी? पर मैं तो आप के लिए ले कर आई हूं.’’

‘‘क्योंकि मैं इस के बदले में तुम्हें इस से अच्छी साड़ी नहीं दे सकती. मेरे पति इतना नहीं कमाते कि हम अंधाधुंध खर्च कर सकें. अच्छा होगा, तुम भी यह सब समझ लो क्योंकि हमें साथ ही रहना है.’’

मधु सिर झुकाए चुपचाप सुनती रही. मीनाक्षी का क्रोध जब शांत हुआ तो उस ने देखा कि साड़ी का पैकेट यों ही पड़ा है और मधु वहां से जा चुकी है.

मधु के जाने के बाद मीनाक्षी को महसूस हुआ कि उस से कुछ गलत हो गया है. उसे इतना कठोर नहीं होना चाहिए था. आखिर वह कितने प्यार से उस के लिए उपहार लाई थी. उस समय रख लेती, नसीहत बाद में भी दे सकती थी. पर इतने दिनों का आक्रोश फटा भी तो नईनवेली मधु के ही ऊपर.

सुबह मीनाक्षी की आंख खुली तो धूप थोड़ी चढ़ आई थी. सोचने लगी कि इतनी देर कैसे हो गई? कमरे से निकल कर उस ने देखा, हर कोई अपने काम में लगा है. मधु ने उसे देखते ही कहा, ‘‘आप सो रही थीं, दीदी, इस कारण मैं ने चाय नहीं दी, आप ब्रश करें, तब तक मैं चाय बनाती हूं.’’

मीनाक्षी के लिए सब कुछ अप्रत्याशित था. सुबह घर का प्रत्येक सदस्य उस के हाथ की चाय पीने का अभ्यस्त था. आज मधु के हाथ की चाय पी कर भी किसी के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं झलक रहा था. बाबूजी वैसे ही लौन में अखबार पढ़ रहे थे. अम्माजी नहा कर भीगे बालों से धूप में कुरसी डाले माला फेर रही थीं. रघु दाढ़ी बना रहा था और गिरीश दोनों बच्चों के साथ लौन में खेल रहा था.

दोपहर के भोजन के लिए मीनाक्षी रसोई में पहुंची तो देखा, मधु डलिया में सब्जी निकाल रही थी, ‘‘सब्जी क्या बनेगी, दीदी?’’

‘‘देखो मधु, अभी तुम नईनवेली हो. नई बहू का यों काम करना अच्छा नहीं लगता. कुछ दिन आराम करो फिर काम करना.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है कि आप काम करें और मैं आराम करूं. आप बताती जाएं, मैं सब करती जाऊंगी.’’

बात सीधी थी, पर जाने क्यों मीनाक्षी को लग रहा था कि उस का स्थान मधु हथियाती जा रही है. पर घर की पूरी जिम्मेदारी ओढ़ कर पहले जहां वह कभीकभी झुंझला जाती थी, आज उसी को हस्तांतरित होता देख वह बेचैन हो उठी.

वह गरमी की उमस भरी दोपहर थी. अम्मा व बाबूजी किसी शादी में दूसरे शहर गए थे. घर पर मधु एवं मीनाक्षी ही थीं. मीनाक्षी ज्यादा न बोलती, पर मधु सदा उस के साथसाथ लगी रहती. मीनाक्षी को हमेशा लगता कि मधु अपनी अमीरी का रौब मारेगी. अपनी आर्थिक संपन्नता का एहसास जताएगी, पर मधु के व्यवहार में ऐसा कुछ भी न था.

उसी दिन दोपहर को मीनाक्षी को आंगन में नीचे कुछ हलचल सुनाई दी. उस ने झांक कर देखा. मधु की मां एवं भाई आए हुए थे. साथ में छोटी बहन भी थी. वह झट से नीचे उतर आई.

‘‘आइए, मांजी, बड़ा अच्छा हुआ, आप आ गईं. अरे, मधुप और सुधा भी आए हैं. अरे मधु, देखो तो कौन आया है,’’ मीनाक्षी ने उन्हें आदर के साथ बैठाया और खुद चाय आदि का प्रबंध करने के लिए रसोई में घुस गई.

पूरे 4 दिन मधु की मां वहां रहीं. इन दिनों पूरे घर पर उन्हीं का साम्राज्य छाया रहा. सास घर पर नहीं थीं. इस कारण पूरा आदरसम्मान मीनाक्षी उन्हें देती रही. इस का परिणाम यह रहा कि वे हर घड़ी हर चीज के बारे में अपनी राय जताती रहीं.

गिरीश वैसे ही शांत स्वभाव का था. मधु की मां की बात को वह खामोशी से सुनता रहता. रघु का भी स्वभाव सीधासादा था. इस कारण पूरे घर में मालिकाना अंदाज में मधु की मां घूमती रहीं.

एक दिन मीनाक्षी ने सुना, वे मधु से कह रही थीं, ‘‘मेरी मान, रघु से कह कर तबादला कहीं और करवा ले. मुझे तो तुम्हारे जेठ व जेठानी का स्तर अच्छा नहीं  लगता. देख, रघु का वेतन ज्यादा है, पर एकसाथ रहने से उस का सारा वेतन इसी घर में खर्च हो जाता है.’’

‘‘कैसी बातें करती हो मां. एक तो इन की नौकरी ऐसी है कि कभी भी तबादला हो सकता है. जितने दिन हमें साथ रहना है, हम कलह कर के क्यों रहें? फिर नौकरी से अवकाश के बाद हमें साथ ही रहना है. क्या हमारी इन हरकतों से भैया व भाभी को तकलीफ नहीं होगी?’’

‘‘तुम मकान क्या यहीं बनवाओगी? मैं ने तो तेरे बाबूजी से जमीन की बात भी कर ली है.’’

‘‘नहीं मां, मकान तो यही रहेगा. हां, दोनों भाई मिल कर इस की मरम्मत करवा लेंगे. सब एक ही परिवार के तो हैं.’’

मधु की मां एवं भाईबहन की विदाई मीनाक्षी ने अपनी समझ व हैसियत से अच्छी तरह की थी. सुधा को उस ने फिल्म दिखाई थी. मधुप को एक बैगी शर्ट दी थी. दोनों का स्वभाव उसे बहुत अच्छा लगा था. सुधा से उस के पलंग का नाइट लैंप टूट गया था, पर मीनाक्षी ने बजाय डांटने के उसे तसल्ली ही दी थी और मधु को भी सुधा को डांटने से रोक दिया था.

तब मधु की मां बोली थीं, ‘‘क्या हो गया, शीशा ही तो टूटा है.’’

‘‘सुधा को क्या पता है कि यहां की हर चीज अनमोल है. दूसरी आने में सालों लग जाते हैं.’’

‘‘मां,’’ मधु की क्रोध भरी आवाज पर मीनाक्षी ने झट से उस का हाथ थाम लिया, ‘‘नहीं, मधु.’’

मीनाक्षी की सास जब लौट कर आईं और उन्हें पता चला कि मधु की मां आई थीं तो उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया, ‘‘अरे, कुछ खातिर भी की या यों ही टरका दिया. अरे मधु बेटी, मां का ध्यान ठीक से रखा न?’’

तभी बाबूजी ने गुस्से से पत्नी से कहा, ‘‘तुम तो ऐसे चिल्ला रही हो मानो रघु की सास नहीं, तुम्हारी बेटी की सास आई हों.’’

‘‘यह देखो,’’ हीरे की अंगूठी पति को दिखाते हुए वे बोलीं, ‘‘दी है किसी ने मुझे ऐसी अंगूठी? रघु की ससुराल की बदौलत हीरा तो पहन लिया. कैसे प्यार से समधिन के लिए भेजी थी उन्होंने.’’

‘‘तुम तो,’’ बाबूजी इतना कह कर चुप हो गए. वे समझ गए कि उन के सिर पर झूठे वैभव का भूत सवार है.

धीरेधीरे दिन बीतने लगे. मधु का पांव भारी हुआ. अम्माजी की खुशी की सीमा न रही. काफी दिनों बाद घर में किसी बच्चे की किलकारी गूंजने वाली थी. मीनाक्षी ने इतने दिनों में यह महसूस किया कि मधु काफी सुलझे विचारों की लड़की है. अपने मायके की अमीरी का जरा भी दंभ उस में नहीं है. एक दिन उस ने देखा, उस का बेटा पंकज अपनी पुस्तक लिए मधु के पास बैठा है.

‘‘क्या पढ़ रहा है, बेटा?’’

‘‘चाचीजी से गणित. तुम्हें पता है मां, चाचीजी गणित बहुत अच्छा पढ़ाती हैं.’’

मीनाक्षी ने हंस कर ‘हां’ में सिर हिला दिया. मधु ने उसे देख कर उठते हुए कहा, ‘‘आइए न, दीदी.’’

‘‘ठीक है मधु, तुम पढ़ाओ, मैं रसोई देखती हूं.’’

‘‘अच्छा दीदी,’’ कह कर मधु फिर से पंकज को पढ़ाने लगी.

मौसम बदलते हैं, ऋतुओं के साथ फूलों के रंग भी बदलते हैं. एक नहीं बदलता है तो इंसान का मन, लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि किसी घटना ने मानव का हृदय परिवर्तन कर दिया हो. मीनाक्षी ने 10 वर्ष जिस परिवेश में बिताए थे, अमीरी का उस में कोई स्थान न था. उस ने सास के व्यंग्यबाणों को झेला था तो ससुर का स्नेह भी पाया था. पति का प्यार मिला था, देवर से इज्जत और बच्चों से वात्सल्य.

इस भरेपूरे परिवार में व्यवधान पड़ा था मधु के आगमन से. इस को भी वह सुगमता से व्यवस्थित कर लेती, यदि अम्मा हर बात में यह एहसास न जताती रहतीं कि मधु बड़े घर की बेटी है.

दीवाली आई और बीत गई. होली का त्योहार पास आता गया और इस के साथ मधु का प्रसव दिन भी करीब आ गया.

एक दिन शाम को घर के सदस्य बैठे चाय पी रहे थे. तभी रघु आया तो मधु उसे कपड़े देने के लिए उठने लगी.

सहसा बाबूजी ने कहा, ‘‘पहले चाय पी लो, कपड़े बाद में बदलना.’’

मीनाक्षी ने रघु के लिए भी चाय बना दी. अम्माजी ने गिरीश की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘सोचती हूं, मधु को मायके भिजवा दूं. प्रसव का दिन पास आ रहा है.’’

तभी मधु ने पूछा, ‘‘मायके क्यों, मांजी?’’

‘‘रस्म के मुताबिक पहला जापा मायके में ही होता है.’’

तभी मधु उठ कर अंदर चली गई. शाम को मीनाक्षी सब्जी बना रही थी तो मधु ने आ कर कहा, ‘‘दीदी, मैं मायके नहीं जाऊंगी.’’

‘‘क्यों, मधु? पहले प्रसव में मैं भी तो मायके गई थी. यह तो घर की पुरानी रीति है.’’

‘‘दीदी, मायके जा कर कौन लड़की खुश नहीं होती, पर मैं नहीं चाहती कि फिर वही तमाशा हो जो मेरे होली के अवसर पर जाने पर हुआ था.’’

‘‘क्या?’’

‘‘दीदी, मैं इस घर की मेहमान नहीं, एक सदस्य हूं. मुझे इस घर की आर्थिक स्थिति का अनुमान है. मेरा प्रसव मायके में होगा तो अम्माजी उपहार भेजने से न चूकेंगी. बाबूजी शादी का पैसा लगाएंगे नहीं. फिर कहां से आएगा पैसा? घर की आर्थिक स्थिति जो सुधरी है, वह फिर से चरमरा न जाएगी. दीदी, तुम मांजी को समझा दो, मैं मायके नहीं जाऊंगी.’’

‘‘मधु, बावली मत बनो. कहीं कुछ उलटासीधा हो गया तो?’’

‘‘उलटासीधा होना होगा तो वहां भी हो सकता है. फिर जिस डाक्टर को मैं यहां दिखा रही हूं वह मेरे केस से पूरी तरह से परिचित है. वहां नई डाक्टर देखेगी न दीदी, मैं नहीं जाऊंगी.’’

मधु के मायके न जाने में रघु ने भी पूरा सहयोग दिया. मां से उस ने स्पष्ट कह दिया कि मधु मायके नहीं जाएगी.

होली के 1 दिन पूर्व मधु ने बेटे को जन्म दिया. प्रसव नर्सिंगहोम में हुआ था. होली के दिन लोग आते रहे और मधु व बच्चे की कुशलता पूछते रहे. चंचल लड़कों ने तो इनकार करने के बावजूद मधु के गाल पर हलका सा गुलाल लगा ही दिया.

चारों तरफ होली का शोर था. मीनाक्षी खुद बचने की कोशिश के बावजूद रंग से भीग गई थी. फिर भी वह दौड़दौड़ कर मधु के सब काम करती रही.

‘‘दीदी,’’ मधु के स्वर पर मीनाक्षी ने चौंक कर देखा. वह कुहनियों के सहारे बिस्तर पर बैठी थी.

‘‘क्या है, मधु, कोई तकलीफ है?’’

‘‘हां.’’

‘‘डाक्टर को बुलाऊं?’’

‘‘नहीं दीदी, तकलीफ इस बात की है कि मैं होली का आनंद नहीं उठा पा रही. पिछली होली मायके में पड़ी, इस बार अस्पताल में. सोचा था, इस बार यहां की रंगीनी देखूंगी. कितना अच्छा लग रहा है, आप का यह रंगों वाला रूप.’’

‘‘घबराओ मत, देवरजी खड़े हैं बाहर. जरा खापी कर तंदुरुस्त हो जाओ, फिर जी भर कर रंग खेल लेना.’’

मधु शरमा गई और मीनाक्षी मुद्दत के बाद खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के मन पर छाई धुंध छंट गई थी. बाहर शोर मचा था, ‘बुरा न मानो होली है.’

वार्निंग साइन बोर्ड: आखिर क्या हुआ था 7 साल की निधि के साथ?

Top 10 Best Family Story in Hindi: पढ़ें रिश्तों से जुड़ी भावुक कर देने वाली पारिवारिक कहानियां

Family Story in Hindi: परिवार हमारी लाइफ का सबसे जरुरी हिस्सा है, जो हर सुख-दुख में आपका सपोर्ट सिस्टम बनती है. साथ ही बिना किसी के स्वार्थ के आपका परिवार साथ खड़ा रहता है. इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Family Story in Hindi. रिश्तों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां, जो आपके दिल को छू लेगी. इन Family Story से आपको कई तरह की सीख मिलेगी. जो आपके रिश्ते को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौक तो पढ़िए Grihshobha की Best Family Story in Hindi 2024.

Top 10 Family Stories in Hindi : टॉप 10 फैमिली कहानियां हिंदी में

1. तबाही: आखिर क्या हुआ था उस तूफानी रात को

सब कुछ पहले की तरह सामान्य होने लगा था. 1 सप्ताह से जिन दफ्तरों में काम बंद था, वे खुल गए थे. सड़कों पर आवाजाही पहले की तरह सामान्य होने लगी थी. तेज रफ्तार दौड़ने वाली गाडि़यां टूटीफूटी सड़कों पर रेंगती सी नजर आ रही थीं. सड़क किनारे हाकर फिर से अपनी रोजीरोटी कमाने के लिए दुकानें सजाने लगे थे. रोज कमा कर खाने वाले मजदूर व घरों में काम करने वाली महरियां फिर से रास्तों में नजर आने लगी थीं.

पिछले दिनों चेन्नई में चक्रवाती तूफान ने जो तबाही मचाई उस का मंजर सड़कों व कच्ची बस्तियों में अभी नजर आ रहा था. अभी भी कई जगहों में पानी भरा था. एअरपोर्ट बंद कर दिया गया था. पिछले दिनों चेन्नई में पानी कमरकमर तक सड़कों पर बह रहा था. सारी फोन लाइनें ठप्प पड़ी थीं, मोबाइल में नैटवर्क नहीं था. गाडि़यों के इंजनों में पानी चला गया था, जिस के चलते कार मालिकों को अपनी गाडि़यां वहीं छोड़ जाना पड़ा था. कई लोग शाम को दफ्तरों से रवाना हुए, तो अगली सुबह तक घर पहुंचे थे और कई तो पानी में ऐसे फंसे कि अगली सुबह तक भी न पहुंचे. कई कालेजों और यूनिवर्सिटीज में छात्रछात्राएं फंसे पड़े थे, जिन्हें नावों द्वारा सेना ने निकाला.  पूरे शहर में बिजली नहीं थी.

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2. डिवोर्सी: मुक्ति ने शादी के महीने भर बाद ही लिया तलाक

वह डिवोर्सी है. यह बात सारे स्टाफ को पता थी. मुझे तो इंटरव्यू के समय ही पता चल गया था. एक बड़े प्राइवेट कालेज में हमारा साक्षात्कार एकसाथ था. मेरे पास पुस्तकालय विज्ञान में डिगरी थी. उस के पास मास्टर डिगरी. कालेज की साक्षात्कार कमेटी में प्राचार्य महोदया जो कालेज की मालकिन, अध्यक्ष सभी कुछ वही एकमात्र थीं. हमें बताया गया था कि कमेटी इंटरव्यू लेगी, मगर जब कमरे के अंदर पहुंचे तो वही थीं यानी पूरी कमेटी स्नेहा ही थीं. उन्होंने हमारे भरे हुए फार्म और डिगरियां देखीं. फिर मुझ से कहा, ‘‘आप शादीशुदा हैं.’’ ‘‘जी.’’

‘‘बी. लिब. हैं?’’ ‘‘जी,’’ मैं ने कहा.

फिर उन्होंने मेरे पास खड़ी उस अति सुंदर व गोरी लड़की से पूछा, ‘‘आप की मास्टर डिगरी है? एम.लिब. हैं आप मुक्ति?’’ ‘‘जी,’’ उस ने कहा. लेकिन उस के जी कहने में मेरे जैसी दीनता नहीं थी.

‘‘आप डिवोर्सी हैं?’’ ‘‘जी,’’ उस ने बेझिझक कहा.

‘‘पूछ सकती हूं क्यों?’’ ‘‘व्यक्तिगत मैटर,’’ उस ने जवाब देना उचित नहीं समझा.

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3. चिराग : करुणा को क्यों बहू नहीं मान पाए अम्मा और बापूजी

कानपुर रेलवे स्टेशन पर परिवार के सभी लोग मुझ को विदा करने आए थे, मां, पिताजी और तीनों भाई, भाभियां. सब की आंखोें में आंसू थे. पिताजी और मां हमेशा की तरह बेहद उदास थे कि उन की पहली संतान और अकेली पुत्री पता नहीं कब उन से फिर मिलेगी. मुझे इस बार भारत में अकेले ही आना पड़ा. बच्चों की छुट्टियां नहीं थीं. वे तीनों अब कालेज जाने लगे थे. जब स्कूल जाते थे तो उन को बहलाफुसला कर भारत ले आती थी. लेकिन अब वे अपनी मरजी के मालिक थे. हां, इन का आने का काफी मन था परंतु तीनों बच्चों के ऊपर घर छोड़ कर भी तो नहीं आया जा सकता था. इस बार पूरे 3 महीने भारत में रही. 2 महीने कानपुर में मायके में बिताए और 1 महीना ससुराल में अम्मा व बाबूजी के साथ.

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4.  अभियुक्त: सुमि ने क्या देखा था

घंटी बजने के साथ ही, ‘‘कौन है?’’ भीतर से कर्कश आवाज आई.

‘‘सुमि आई है,’’ दरवाजा खोलने के बाद भैया ने वहीं से जवाब दिया.

‘‘फिर से?’’ भाभी ने पूछा तो सुमि शरम से गड़ गई.

विवेक मन ही मन झुंझला उठा. पत्नी के विरोध भाव को वह बखूबी समझता है. सुमि की दूसरी बार वापसी को वह एक प्रश्नचिह्न मानता है जबकि दीपा इसे अपनी सुखी गृहस्थी पर मंडराता खतरा मानती है. विवेक के स्नेह को वह हिसाब के तराजू पर तौलती है.

चाय पीते समय भी तीनों के बीच मौन पसरा हुआ था.

विवेक की चुप्पी से दीपा भी शांत हो गई लेकिन रात को फिर विवाद छिड़ गया.

‘‘शैलेंद्रजी बातचीत में तो बड़े भले लगते हैं.’’

‘‘ऊपर से इनसान का क्या पता चलता है. नजदीक रहने पर ही उस की असलियत पता चलती है.’’

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5.  सब छत एक समान: अंकुर के जन्मदिन पर क्या हुआ शीला के साथ?

शीला को जरा भी फुरसत नहीं थी. अगले दिन उस के लाड़ले अंकुर का जन्मदिन था. शीला ने पहले से ही निर्णय ले लिया था कि वह अंकुर के इस जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगी और एक शानदार पार्टी देगी.

बारबार पिताजी ने सुरेश को समझाया कि वह बहू को समझाए कि इस महंगाई के दौर में इस तरह की अनावश्यक फुजूलखर्ची उचित नहीं. उन की राय में अपने कुछ निकटतम मित्रों और पड़ोसियों को जलपान करवा देना ही काफी था.

सुरेश ने जब शीला को समझाया तो वह अपने निर्णय से नहीं हटी, उलटे बिगड़ गई थी.

शीला बारबार बालों की लटें पीछे हटाती रसोई की सफाई में लगी थी. उस ने महरी को भी अपनी सहायता के लिए रोक रखा था. दिन में कुछ मसाले भी घर पर कूटने थे, दूसरे भी कई काम थे. इसलिए वह सुबह से ही काम निबटाने में लग गई थी.

6. मिटते फासले: शालिनी की जिंदगी में क्यों मची थी हलचल?

मोबाइल फोन ने तो सुरेखा की दुनिया ही बदल दी है. बेटी से बात भी हो जाती है और अमेरिका दर्शन भी घर बैठेबिठाए हो जाता है. अमेरिका में क्या होता है, सुरेखा को पूरी खबर रहती है. मोबाइल के कारण आसपड़ोस में धाक भी जम गई कि अमेरिका की ताजा से ताजा जानकारी सुरेखा के पास होती है.

सर्दी का दिन था. कुहरा छाया हुआ था. खिड़की से बाहर देख कर ही शरीर में सर्दी की एक झुरझुरी सी तैर जाती थी. अभी थोड़ी देर पहले ही शालिनी से बात हुई थी.

शालिनी 2 महीने बाद छुट्टियों में भारत आ रही है. कुरसी खींच कर आंखें मूंद प्रसन्न मुद्रा में सुरेखा शालिनी के बारे में सोच रही थी. कितनी चहक रही थी भारत में आने के नाम से. अपनों से मिलने के लिए, मोबाइल पर मिलना एक अलग बात है. साक्षात अपनों से मिलने की बात ही कुछ और होती है.

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7. नई रोशनी की एक किरण

बेटियां जिस घर में जाती हैं खुशी और सुकून की रोशनी फैला देती हैं. पर पता नहीं, बेटी के पैदा होने पर लोग गम क्यों मनाते हैं. सबा थकीहारी शाम को घर पहुंची. अम्मी नमाज पढ़ रही थीं. नमाज खत्म कर उन्होंने प्यार से बेटी के सलाम का जवाब दिया. उस ने थकान एक मुसकान में लपेट मां की खैरियत पूछी. फिर वह उठ कर किचन में गई जहां उस की भाभी रीमा खाना बना रही थीं. सबा अपने लिए चाय बनाने लगी. सुबह का पूरा काम कर के वह स्कूल जाती थी. बस, शाम के खाने की जिम्मेदारी भाभी की थी, वह भी उन्हें भारी पड़ती थी. जब सबा ने चाय का पहला घूंट लिया तो उसे सुकून सा महसूस हुआ.

‘‘सबा आपी, गुलशन खाला आई थीं, आप के लिए एक रिश्ता बताया है. अम्मी ने ‘हां’ कही है, परसों वे लोग आएंगे,’’ भाभी ने खनकते हुए लहजे में उसे बताया. सबा का गला अंदर तक कड़वा हो गया. आंखों में नमकीन पानी उतर आया. भाभी अपने अंदाज में बोले जा रही थीं, ‘‘लड़के का खुद का जनरल स्टोर है, देखने में ठीकठाक है पर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं है. स्टोर से काफी अच्छी कमाई हो जाती है, आप के लिए बहुत अच्छा है.’’

सबा को लगा वह तनहा तपते रेगिस्तान में खड़ी है. दिल ने चाहा, अपनी डिगरी को पुरजेपुरजे कर के जला दे. भाभी ने मुड़ कर उस के धुआं हुए चेहरे को देखा और समझाने लगीं, ‘‘सबा आपी, देखें, आदमी का पढ़ालिखा होना ज्यादा जरूरी नहीं है. बस, कमाऊ और दुनियादारी को समझने वाला होना चाहिए.’’

8. फूलप्रूफ फार्मूला: क्या हो पाई अपूर्वा औऱ रजत की शादी

औफिस से लौटने में कुछ देर हो गई थी लेकिन बच्चों ने मुंह फुलाने के बजाय चहकते हुए उस का स्वागत किया.

‘‘मम्मा, दिल्ली से रजत अंकल आए हैं, हमें उन के साथ खेलने में बड़ा मजा आ रहा है. आप भी हमारे कमरे में आ जाओ,’’ कह कर प्रणव और प्रभव अपने कमरे में भाग गए.

‘‘आ गई बेटी तू, रजत बड़ी देर से तेरे इंतजार में इन दोनों की शरारतें झेल रहा है,’’ मां ने बगैर रसोई से बाहर आए कहा.

हालांकि दिल्ली रिश्तेदारों से अटी पड़ी थी लेकिन अभी तक किसी रजत से तो कोई रिश्ता जुड़ा नहीं था. पापा और बच्चों के साथ एक सुदर्शन युवक कैरम खेल रहा था. अपूर्वा को याद नहीं आया कि उस ने उसे पहले कभी देखा है. अपूर्वा को देखते ही युवक शालीनता से खड़ा हो गया लेकिन इस से पहले कि वह कुछ बोलता, प्रभवप्रणव चिल्लाए, ‘‘आप गेम बीच में छोड़ कर नहीं जा सकते, अंकल. बैठ जाइए.’’

‘‘इन की बात मान लेने में ही इज्जत है बरखुरदार. जब तक यह खेल खत्म होता है, तू भी फे्रश हो ले बेटी. रजत को हम ने रात के खाने तक रुकने को मना लिया है,’’ विद्याभूषण चहके.

‘‘वैसे मैं अपूर्वाजी का सिर खाए बगैर जाने वाला भी नहीं था,’’ रजत ने हंसते हुए कहा.

‘किस खुशी में भई?’ अपूर्वा पूछना चाह कर भी न पूछ सकी और मुसकरा कर अपने कमरे में आ गई.

जब वह फे्रश हो कर बाहर आई तो बाई चाय ले कर आ गई. चाय की प्याली ले कर वह ड्राइंगरूम की बालकनी में आ गई.

9. प्यार की चाह: क्या रोहन को मिला मां का प्यार

झल्लाई हुई निशा ने जब गाड़ी गैरेज में खड़ी की तो रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी. ‘रवि का यह खेल पुराना है,’ वह काफी देर तक बड़बड़ाती रही, ‘जब भी घर में किसी सोशल गैदरिंग की बात होगी, वह बिजनैस ट्रिप पर भाग खड़ा होगा, अब भुगतो अकेले.’

‘तुम चिंता न करना, मेरा सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा.’

‘हूं,’ सैक्रेटरी सबकुछ देख लेगा. कार्ड बांटने और इनवाइट करने तो पर्सनली ही जाना पड़ता है न.’

‘न जाने पार्टी के नाम से उसे इतनी चिढ़ क्यों है? महेश ने विदेश जाने पर पार्टी दी थी तो अरविंद ने विदेश से लौटने की. राघव की बेटी रिंकी को फिल्मों में हीरोइन का चांस मिला तो पार्टी, भाटिया ने फिल्म का मुहूर्त किया तो पार्टी. अपनी सुधा तो कुत्तेबिल्लियों के जन्मदिन पर भी पार्टी देती है. इधर एकलौते बेटे का जन्मदिन मनाना भी खलता है. फिर इन्हीं पार्टियों की बदौलत सोशल स्टेटस बनता है. सोशल कौंटैक्ट्स बनते है,’ पर रवि के असहयोग से अपने किटी सर्किल में निशा पार्टीचोर के नाम से ही जानी जाती थी. इसी कारण वह तमतमा उठी.

‘‘मेमसाब, खाना गरम करूं?’’  मरिअम्मा ने पूछा.

10. जीवन लीला: क्या हुआ था अनिता के साथ

जीवन के आखिरी पलों में न जाने क्यों आज मेरा मन खुद से बातें करने को हो गया. सोचा अपनी  जिंदगी की कथा या व्यथा मेज पर पड़े कोरे कागजों पर अक्षरों के रूप में अंकित कर दूं.

यह मैं हूं. मेरा नाम अनिता है. कहां पैदा हुई, यह तो पता नहीं, पर इतना जरूर याद है कि मेरे पिता कनाडा में भारतीय दूतावास में एक अच्छे पद पर तैनात थे. उन का औफिस राजधानी ओटावा में था. मां भी उन्हीं के साथ रहती थीं. मैं और मेरा भाई मांट्रियल में मौसी के यहां रहते थे. मेरी पढ़ाई की शुरुआत वहीं से हुई. मेरा भाई रोहन मुझ से 5 साल बड़ा था.

स्कूल घर के पास ही था, मुश्किल से 3-4 मिनट का रास्ता था. तमाम बच्चे पैदल ही स्कूल आतेजाते थे. लेकिन हमारे घर और स्कूल के बीच एक बड़ी सड़क थी, जिस पर तेज रफ्तार से कारें आतीजाती थीं. इसलिए वहां के कानून के हिसाब से स्कूल बस हमें लेने और छोड़ने आती थी.

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Lakme Fashion Week 2024: रैंप पर इन हसीनाओं ने बिखेरा सस्टैनेबल फैशन का जलवा

Lakme Fashion Week 2024: लक्मे फैशन वीक एफडीसीआई की समर कलेक्शन में इस बार घरेलू सूत से बने कपड़ों की खूबसूरती दिखी, लेकिन इस बार का फैशन शो कुछ हद तक फीकी रही. शो की शुरुआत यावी ब्रांड की यादवी अग्रवाल, तिल की अंकुर वर्मा और इंका की अमित हंसराज ने किया. इसमे ब्यूटी और स्टाइल को अमित हंसराज ने रैम्प पर उतारा, जिसमे उनके फ्री फ्लोइंग कलर फुल आरामदायक कपड़े, देखने लायक थे. इस दिन सभी ने टिकाऊँ और स्लो फैशन को फॉलो करते हुए कपड़े रैम्प पर उतारें.

पर्यावरण पर ध्यान

डिजाइनर अमित हंसराज की शो स्टॉपर अभिनेत्री दिया मिर्जा रही, जो पर्यावरण के बारें में लोगों को जागरूक करने के लिए काफी काम करती है. वह कहती है कि हमारे देश में ही नहीं पूरे विश्व में पर्यावरण पर लोग कम ध्यान देते है, मुझे याद आता है कि मेरी दादी, नानी की साड़ियाँ आज भी मैँ पहन सकती हूँ, उन दिनों परंपरा के अनुसार इन चीजों को देने का रिवाज था, जिसे नई जेनरेशन खुशी – खुशी स्वीकार करती थी. मेरा सभी से अनुरोध है कि किसी भी प्राकृतिक चीजों को नष्ट न करें, उसका कम से कम उपयोग करें.

विश्व की चाय संस्कृति और चोला लेबल के साथ डिजाइनर सोहाया मिश्रा ने इन्क्लूसिव, सशक्तिकरण और प्रामाणिकता को दिखाते हुए अपने पोशाक रैम्प पर उतारे. हेरिटेज वस्त्रों के उपयोग ने शो को एक अद्भुत रूप दिया. जो आधुनिकता के साथ – साथ आरामदायक भी दिखे. गर्मी के महीने को ध्यान मे रखते हुए हल्के रंगों का प्रयोग अधिक किया गया.

रंगों का मेला    

डिजाइनर गौरांग ने होली यानि अबीर और गुलाल को ध्यान मे रखते हुए गुलाबी रंगों के परिधान से पूरे रैम्प को आकर्षक बना दिया.  45 मॉडल्स ने भारत के विभिन्न क्राफ्ट को साड़ी और घाघरा चोली के साथ रैम्प पर वाक किया, जिसमे कई सुपर मॉडल्स भी थी. उनकी परिधान में देश की एकता की झलक दिखी, क्योंकि गौरांग ने जामदानी, चँदेरी, पटोला, बांधनी, बनारसी, खादी सिल्क आदि सभी प्रकार के फेब्रिक पर हैन्ड एम्ब्रॉइडरी, फुलकारी, जारदोजी वर्क को प्रस्तुत किया.

इस अवसर पर अपने कलेक्शन के बारें में गौरांग का कहना है कि मैँ हमेशा फैशन के साथ ससटेंनिबिलिटी पर ध्यान देता हूँ, क्योंकि फैशन इंडस्ट्री का एक बहुत बड़ा भाग वातावरण को प्रदूषित करता है. इसलिए मैँ स्लो फैशन पर अधिक जोर देता हूँ.  मेरे कलेक्शन मे प्रयोग किये जाने वाले सारे रंग नैचुरल होते है और इसे बेटी से लेकर मा दादी या नानी कोई भी कभी भी मिक्स मैच के साथ पहन सकती है. इसके अलावा इंडियन ट्रेडिशन मे साड़ी और घाघरा चोली हमेशा सुंदर दिखती है और आज की लड़की भी मेरे किसी भी कलेक्शन को पहनकर एलीगेन्ट लग सकती है.

रिसाइकल से बने कपड़े

अनुभवी डिजाइनर जे जे वलाया ने फैशन वीक के दूसरे दिन शो के लिए आर|एलन के साथ साझेदारी की, जो स्टैबल फैशन का प्रतीक रहा. सारे कपड़े ग्रीन, गोल्ड जैसे पर्यावरण अनुकूल कपड़ों से बनाया गया.  100 प्रतिशत प्लास्टिक की बोतलों को रिसाइकल कर बने ये कपड़े फैशन इंडस्ट्री की एक बड़ी उपलब्धि है. उनका कहना है कि इन प्लास्टिक से बने कपड़े हल्के, आरामदायक और टिकाऊँ होते है, स्किन के लिए भी ये परफेक्ट है. उनके शो की शो स्टॉपर अभिनेत्री रसिका दुग्गल, कुब्रा सैत और सुशांत दिवगीकर रहे.

Anupamaa: अनुज और श्रुति अनुपमा को देंगे अपनी शादी का कार्ड, शो में आएगा बड़ा ट्विस्ट

Anupamaa: अनुपमा सीरियल  में इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में दिखाया जा रहा है कि यशदीप और बीजी अनुपमा का बर्थडे सेलिब्रेट करने की तैयारी कर रहे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ अनुज श्रुति के साथ शादी करने की तैयारी कर रहा है. शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा को श्रुति और अनुज अपनी शादी का इन्विटेशन देने जाएंगे. आइए विस्तार से जानते हैं शो के अपकमिंग एपिसोड के बारे में.

आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि आद्या को पता लग जाएगा कि उसके पापा ने रात में केक काटकर अनुपमा का बर्थडे मनाया है. ऐसे में वह अनुज को फिर से श्रुति के बारे में याद दिलाएगी.

आद्या यह भी कहेगी कि आज वह जानती है अनुपमा का बर्थडे है, तो आप उन्हें विश करने के लिए रेस्टोरेंट जाएंगे. ऐसे में अनुज कहेगा कि वह सिर्फ ऑफिस जा रहा है और कही नहीं. दूसरी तरफ श्रुति उन दोनों की बातें सुन लेगी.

 

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रेस्टोरेंट में पूरा स्टाफ अनुपमा का बर्थडे सेलिब्रेट करने की तैयारी में जुटेंगे. दूसरी तरफ यशदीप और बीजी अनु को सरप्राइज पार्टी देंगे. शो में आप यह भी देखेंगे कि गिफ्ट के तौर पर यशदीप, अनुपमा के नाम से चाय मसाला ब्रांड बनाकर देगा. जिसे देखकर अनुपमा बहुत खुश होगी.

अनुपमा बर्थ डे पार्टी एंजॉय करेगी, सभी मिलकर डांस करेंगे. तभी अनुज और श्रुति रेस्टोरेंट आ जाएंगे. श्रुति अनुपमा को बर्थडे विश करेगी और फिर अपनी शादी का कार्ड देगी और कहेगी कि मैं और अनुज शादी कर रहे हैं. यह सुनकर अनुपमा और अनुज के चेहरे का रंग उड़ जाएगा. शो में आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुज, अनुपमा और श्रुति के की कहानी में क्या नया मोड़ आएगा?

 

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