मेरे कानों में मैल बहुत जमा होता है, थोड़ा कड़ा भी हो जाता है, क्या करूं?

सवाल

मेरे कानों में मैल बहुत जमा होता है, थोड़ा कड़ा भी हो जाता है, क्या करूं?

जवाब 

 कई बार हम कानों को साफ करने के चक्कर में उन में कोई नुकीली चीज डाल लेते हैं जिस से अस्थाई रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है या कान का परदा फट सकता है. इसलिए अपने कानों में बिना सोचेसम?ो कुछ न डालें. ईयर वैक्स अपनेआप ईयर कैनाल से बाहर आ जाता है. अगर ईयर वैक्स कड़ा हो गया है और ईयर कैनल को अवरुद्ध कर रहा है तो डाक्टर से संपर्क करें.

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अकसर हवाई यात्रा करते समय मेरे कानों में दर्द होने लगता है. मुझे क्या सावधानी रखनी चाहिए?

हवाई यात्रा के दौरान अकसर लोगों को कानों में दर्द की शिकायत होती है. कान के परदे पर भी दबाव महसूस होता है. यह समस्या प्लेन के लैंडिंग करते समय अधिक होती है. इस से बचने के लिए ईयर प्लग का इस्तेमाल करें. आप च्यूइंगम चबा कर भी इस समस्या से बच सकती हैं. इन के अलावा अगर कोई और समस्या हो या प्लेन में यात्रा करने के अलावा भी कान में दर्द या परदे पर दबाव महसूस हो तो डाक्टर को दिखाएं.

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मेरी उम्र 35 वर्ष है. पिछले कुछ दिनों से मेरे कानों में घंटी बजने की समस्या हो रही है. मैं क्या करूं?

किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण या लगातार अत्यधिक शोर वाले स्थानों में रहने के कारण कई लोगों को कानों में घंटी बजने की समस्या हो जाती है, जिसे चिकित्सीय भाषा में टिन्निटस कहते हैं. अगर किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण कानों में घंटी बज रही है तो पहले उस का उपचार किया जाता है. कई बार इस का कारण सिर्फ कानों तक ही सीमित होता है, जैसे ईयर वैक्स के कारण कानों में ब्लौकेज हो रहा है तो उसे साफ किया जाता है.

कानों की रक्त नलिकाओं से संबंधित कोई समस्या है तो उसे दवाओं या सर्जरी के द्वारा ठीक करने का प्रयास किया जाता है. अगर उम्र बढ़ने के कारण सुनने की क्षमता प्रभावित होने से यह समस्या हो रही हो तो हियरिंग ऐड के इस्तेमाल से आराम मिलता है.

‘‘एक महिला खिलाड़ी के परिवार को लोगों की बहुत सी कड़वी बातें झेलनी पड़ती हैं’’: स्वीटी बूरा

हरियाणा के किसानों और खिलाडिय़ों ने दुनियाभर में देश का नाम रोशन किया है. किसान बेटियों के तो कहने ही क्या, जिन्होंने विपरीत हालात में ऐसेऐसे बड़े कारनामे किए हैं कि लोग खड़े हो कर उन्हें सलाम करते हैं मगर इस सब के पीछे उन बेटियों का जनून, जज्बा और जागरूकता होती है, जो अपनेआप में एक मिसाल होती है.

ऐसी ही हरियाणा की एक बेटी हैं स्वीटी बूरा, जिन्होंने अपने मुक्कों से बड़ेबड़े कंपीटिशन जीत कर देश की ?ाोली सोने के तमगों से भर दी है. इन का सब से बड़ा कारनामा 2023 में देखने को मिला था, जब दिल्ली में हुई आईबीए वल्र्ड वूमन बौङ्क्षक्सग चैंपियनशिप में इन्होंने गोल्ड मैडल जीता था.

शनिवार, 25 मार्च, 2023 को स्वीटी बूरा ने 75-81 किलोग्राम भारवर्ग में चीन की वांग लीना को 4-1 से हरा कर नया इतिहास रचा था मगर अगर स्वीटी बूरा के अतीत में ?ाांकें तो पता चलता है कि इस गोल्ड मैडल को चूमने के लिए उन्होंने कई ऐसे बलिदान दिए हैं, जो हर किसी के बस की बात नहीं है.

स्वीटी बूरा मूलरूप से हरियाणा के गांव घिराए की रहने वाली हैं. उन के पिता महेंद्र ङ्क्षसह बूरा किसान हैं और मां सुरेश कुमारी गृहिणी हैं. स्वीटी बूरा का जन्म 10 जनवरी, 1993 को गांव घिराए में हुआ था. उन्होंने जाट कालेज हिसार से 12वीं कक्षा पास की और उस के बाद गवर्नमैंट पीजी कालेज से बीए की, फिर एमपीएड (मास्टर औफ फिजिकल ऐजुकेशन) भी की.

मेहनत ने दिलाई सफलता

बौङ्क्षक्सग खेल को अपनाने को ले कर स्वीटी बूरा ने बताया, ‘‘मेरे हाथ बहुत चलते थे. कोई किसी के साथ गलत करता था, तो मैं उस को दे दनादन मारती थी. जब पहली बार मैं ने बौङ्क्षक्सग ग्लव्स पहने. तब मैं साई (स्पोट्र्स अथौरिटी औफ इंडिया) के हिसार सैंटर पर मामा और भाई के साथ 2008 में ट्रायल के लिए गई थी.

‘‘मेरे सामने वाली बौक्सर 6-7 महीने से बौङ्क्षक्सग कर रही थी. जब मैं ङ्क्षरग में गई तो उस ने मारमार कर मेरा मुंह लाल बना दिया. पहले राउंड के बाद रैस्ट के समय मेरा भाई बोला था कि दिखा दिए तु?ो दिन में तारे.

‘‘यह सुन कर मु?ो इतना गुस्सा आया कि मैं ङ्क्षरग में वापस गई. अब मु?ो पता है कि उसे अपरकट बोलते हैं, पर तब नहीं पता था. मैं ने इतने जोर से अपरकट मारा कि वह लडक़ी उधर ही गिर गई.’’

स्वीटी बूरा खेल को ले कर अपनी जद्दोजेहद पर आगे बताती हैं, ‘‘एक महिला खिलाड़ी के परिवार को लोगों की बहुत सी कड़वी बातें झेलनी पड़ती हैं. वे कहते हैं कि क्यों लडक़ी को खेल में डाला, यह बिगड़ जाएगी. किसी के साथ भाग जाएगी. अगर सारा पैसा इस के खेल पर लगा दोगे तो इस की शादी कैसे करोगे? शादी के बाद यह पराए घर चली जाएगी तो आप के पल्ले क्या आएगा?

‘‘जब खेत में प्रैक्टिस करती थी तो मेरे दिमाग में यही बातें गूंजती थीं. मैं और ज्यादा मेहनत करती थी. मु?ो उलटी तक हो जाती थी पर मैं ने ठान लिया था कि आज अगर मेरे मांबाप ने मु?ो खेलने की आजादी दी है तो मैं उन की सोच और फैसले को सही साबित करूंगी. लड़कियां भी अपने मांबाप के लिए कुछ भी कर सकती हैं.’’

जब मौत को मारा मुक्का

‘‘2014 में मैं अस्पताल में भरती थी. हुआ यों कि पिछले 3 साल से मु?ो टायफाइड था और मेरी हालत ऐसी थी कि मैं खुद खड़ी भी नहीं हो सकती थी. इस के बावजूद मैं प्रैक्टिस करती रही. अस्पताल में डाक्टर ने मेरी हालत देख कर कहा था कि बौङ्क्षक्सग को तो फिलहाल भूल ही जाओ.

‘‘तभी अस्पताल में मेरे पास फोन आया कि इस बार जो नैशनल प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीतेगा, वही दक्षिण कोरिया में आगे इंटरनैशनल लैवल पर खेलने जाएगा. यह सुन कर मैं परेशान हो गई और डाक्टर से कहा कि आप मु?ो आज ही ठीक कर दो. डाक्टर बोले थे कि मैं कोई जादूगर थोड़े ही न हूं, जो चुटकी बजा कर तुम्हें ठीक कर दूंगा. अभी पूरी ङ्क्षजदगी बची है, आगे खेल लेना.’’

इतने बड़े मैडल इन के नाम

स्वीटी बूरा ने अपने शानदार खेल से यूथ बौङ्क्षक्सग ट्रैङ्क्षनग कंपीटिशन, 2011 में गोल्ड मैडल जीता था. उन्होंने नवंबर, 2014 में एआईबीए वल्र्ड वूमन बौङ्क्षक्सग चैंपियनशिप दक्षिण कोरिया में सिल्वर मैडल अपने नाम किया था. अगस्त,

2015 में एबीएसी एशियन कौंफैडरेशन बौङ्क्षक्सग चैंपियनशिप में सिल्वर मैडल जीता था. इसी तरह जूनजुलाई, 2015 में इंडियाआस्ट्रेलिया प्रतियोगिता में सिल्वर मैडल जीता था. फरवरी, 2018 में फस्र्ट ओपन इंडिया इंटरनैशनल प्रतियोगिता में सिल्वर मैडल जीता था. 13 जून, 2018 में रूस के कौस्पिक में हुए उमाखानोव मैमोरियल टूरनामैंट में गोल्ड मैडल और 2021 में एशिया चैंपियनशिप में ब्रौंज मैडल जीता था.

ब्रीफ से लेकर बौय शौर्ट्स तक, जानें कौन सी पैंटी कब पहनें

परफैक्ट दिखने के लिए लड़कियां बाहरी कपड़ों का तो बखूबी ध्यान रखती हैं, लेकिन अंदरूनी कपड़ों का ध्यान रखना अकसर भूल जाती हैं, जबकि बाहरी कपड़ों के साथसाथ अंदरूनी यानी इनरवियर्स का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है. अधिकतर लड़कियां एक ही तरह की पैंटी का इस्तेमाल हर कपड़ों के साथ करती हैं. कई बार इनरवियर की वजह से लड़कियां अपनी मनपसंद ड्रैस में भी कंफर्ट महसूस नहीं कर पातीं, इसलिए उन के पास अलगअलग तरह की पैंटीज होना जरूरी है ताकि अलगअलग डै्रस के साथ मैच कर के कंफर्ट के साथसाथ पर्फैक्ट भी दिख सकें.आइए, जानते हैं अलगअलग तरह की पैंटीज के बारे में:

  1. ब्रीफ पैंटी:

ब्रीफ पैंटी प्राइवेट पार्ट को पूरा कवरेज देती है. इस की लास्टिक नाभि और कमर को भी कवर करती है. पीरियड्स के दिनों में ऐसी ही पैंटी पहननी चाहिए. पीरियड्स के दौरान जब ज्यादा चलना हो या ज्यादा सपोर्ट की जरूरत हो तो यह पैंटी बैस्ट है. इस में पैड अच्छे से सैट हो जाता है और कपड़े खराब होने की संभावना नहीं रहती. इस पैंटी को हाई वेस्ट जींस के साथ तो वियर किया जा सकता है, लेकिन लो वेस्ट जींस के साथ नहीं क्योंकि बैक साइड से पैंटी दिखने का डर रहता है, जो बहुत अजीब लगता है.

2. हाई कट ब्रीफ पैंटी:

यह पैंटी लो राइज जींस के साथ पहनी जा सकती है. इस की लास्टिक नाभि और कमर से डेढ़ इंच तक नीचे होती है. यह लगभग ब्रीफ पैंटी जैसी आरामदायक होती है. हालांकि इस की कवरेज ब्रीफ पैंटी से कम होती है.

3. बौय शौर्ट्स पैंटी:

बौय शौर्ट्स पैंटी लड़कों के बौक्सर ब्रीफ जैसी होती है. इस की लास्टिक कमर से थोड़ा नीचे हिप्स लाइन पर होती है. इस के लैग होल्स जाघों तक होते हैं. दिखने में यह बहुत छोटे शौर्ट्स की तरह लगती है. इस पैंटी को किसी भी टाइट ड्रैस के साथ पहना जा सकता है. इसे टाइट ड्रैस के नीचे पहनने से पैंटी की शेप नहीं बनती.

4. बिकिनी:

बिकिनी पैंटी लड़कियां रोजाना वियर करती हैं. यह पैंटी बहुत कम कवरेज देती है. इसे न पीरियड्स के दौरान पहन सकती हैं न टाइट कपड़ों के साथ. पीरियड्स के दौरान इसे पहनने से इन्फैक्शन फैलने का खतरा रहता है. यदि आप ज्यादा टाइट कपड़े पहनती हैं तो इसे न पहनें.

5. टांगा पैंटी:

यह पैंटी सिर्फ प्राइवेट पार्ट को कवर करती है और इस का साइड कट बहुत डीप होता है, जो कमर से ले कर हिप बोंस को कवर करता है. अगर आप चाहती हैं कि आप की पैंटी की शेप न बने तो आप इसे टाइट स्कर्ट, पैंट या अन्य किसी चुस्त ड्रैस के नीचे वियर कर सकती हैं. यदि आप को इन्फैक्शन या रैशेज है तो इस पैंटी का इस्तेमाल न करें.

दंश: क्या था श्रेया की जिंदगी से जुड़ा एक फैसला?

अपने साथ काम करने वाली किसी भी लड़की से गौतम औपचारिक बातचीत से ज्यादा ताल्लुकात नहीं बढ़ाता था. एक रोज एक रिपोर्ट बनाने के लिए उसे और श्रेया को औफिस बंद होने के बाद भी रुकना पड़ा और जातेजाते बौस ने ताकीद कर दी, ‘‘श्रेया को घर जाने में कुछ परेशानी हो तो देख लेना, गौतम.’’

पार्किंग में आने पर श्रेया को अपनी एक्टिवा स्टार्ट करने की असफल कोशिश करते देख गौतम ने कहा, ‘‘इसे आज यहीं छोड़ दो, श्रेया. ठोकपीट कर स्टार्ट कर भी ली तो रास्ते में परेशान कर सकती है. कल मेकैनिक को दिखाने के बाद चलाना.’’

‘‘ठीक है, पंकज से कहती हूं पिक कर ले,’’ श्रेया ने मोबाइल निकालते हुए कहा, ‘‘वह 15-20 मिनट में आ जाएगा.’’

‘‘उसे बुलाने से बेहतर है मेरी बाइक पर चलो,’’ गौतम बोला.

‘‘लेकिन मेरा घर दूसरी दिशा में है, तुम्हें लंबा चक्कर लगाना पड़ेगा.’’

‘‘यहां खड़े रहने से बेहतर होगा तुम मेरे साथ चलो. वैसे भी तुम्हें यहां अकेले छोड़ कर तो जाऊंगा नहीं.’’

बात श्रेया की समझ में आई और वह गौतम की बाइक पर बैठ गई. घर पहुंचने पर श्रेया का आग्रह कर के गौतम को अंदर ले जाना स्वाभाविक ही था. अपने पापा देवेश, मां उमा, छोटी बहन रिया और जुड़वां भाई पंकज से उस ने गौतम का परिचय करवाया.

‘‘ओह, मैं समझा था पंकज तुम्हारा बौयफ्रैंड है, सो तुम्हें लिफ्ट देने में कोई खतरा नहीं है,’’ गौतम बेसाख्ता कह उठा.

‘‘बेफिक्र रहो, पंकज के रहते मुझे बौयफ्रैंड की जरूरत ही महसूस नहीं होती,’’ श्रेया हंसी.

‘‘इसे छोड़ने आने के चक्कर में तुम्हें घर जाने में देर हो गई,’’ उमा ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं आंटी, घर जा अकेले

चाय पीता, यहां सब के साथ नाश्ता भी कर

रहा हूं.’’

उमा को उस की सादगी अच्छी लगी. उस ने गौतम के परिवार के बारे में पूछा. गौतम ने बताया कि उस के कोई बहनभाई नहीं है. मातापिता यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक थे. अब उन्होंने प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रत्याशियों के लिए अपना कोचिंग कालेज खोल लिया है.

‘‘छोटी सी फैमिली है मेरी, आप के यहां सब के साथ रौनक में बैठ कर बहुत अच्छा लग रहा है,’’ गौतम ने श्रेया के भाईबहन की ओर देखते हुए कहा, ‘‘आज पहली बार मम्मीपापा से शिकायत करूंगा कोई बहनभाई न देने के लिए.’’

‘‘अब मम्मीपापा तो बहनभाई दिलाने से रहे, यहीं आ जाया करो सब से मिलने. हमें भी अच्छा लगेगा,’’ देवेश ने कहा.

‘‘जी जरूर, अभी चलता हूं, पापा के आने से पहले घर पहुंचना है.’’

‘‘देर से पहुंचने पर पापा नाराज होंगे?’’ पंकज ने पूछा.

‘‘नाराज तो नहीं लेकिन मायूस होंगे जो मुझे पसंद नहीं है,’’ गौतम ने उठते हुए कहा, ‘‘पापा मुझे बहुत प्यार करते हैं और मैं उन्हें.’’

उस के बाद औफिस में तो दोनों के ताल्लुकात पहले जैसे ही रहे लेकिन जबतब श्रेया पापा की ओर से घर आने का आग्रह करने लगी जिसे गौतम तुरंत स्वीकार कर लेता था. एक रोज यह सुन कर कि गौतम को बिरयानी बहुत पसंद है, देवेश ने कहा, ‘‘हमारे यहां हरेक छुट्टी के रोज बिरयानी बनती है. कभी लखनवी, कभी हैदराबादी तो कभी अमृतसरी. तुम किसी रविवार को लंच पर आ जाओ.’’

‘‘रविवार की दावत तो मैं स्वीकार नहीं कर सकता अंकल, क्योंकि एक रविवार ही तो मिलता है पापा के साथ लंच करने को.’’

‘‘तो पापा को भी यहीं ले आओ.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ गौतम फड़क कर बोला, ‘‘पापा को भी बिरयानी बहुत पसंद है.’’

‘‘तो ठीक है, इस रविवार को तुम पापामम्मी के साथ लंच पर आ रहे हो. मुझे उन का नंबर

दो, मैं स्वयं उन से आने का आग्रह करूंगी,’’ उमा ने कहा.

‘‘इतनी औपचारिकता की आवश्यकता नहीं है आंटी, पापा मेरे कहने से ही आ जाएंगे. मम्मी तो शुद्ध शाकाहारी हैं, इसीलिए हमारे यहां यह सब नहीं बनता. मम्मी को फिर कभी ले आऊंगा, रविवार को मुझे और पापा को ही आने दीजिए,’’ कह कर गौतम चला गया.

रविवार को गौतम अपने पापा ब्रजेश के साथ आया. देवेश और उमा को

ब्रजेश बहुत सहज और मिलनसार व्यक्ति लगे और बापबेटे के आपसी लगाव व तालमेल ने उन्हें बहुत प्रभावित किया.

‘‘इतनी स्वादिष्ठ चिकन बिरयानी तो नहीं लेकिन गीता भी उंगलियां चाटने वाली मटर की कचौड़ी और अचारी आलू वगैरा बनाती है,’’ ब्रजेश ने कहा, ‘‘अगले रविवार को आप सब हमारे यहां आ रहे हैं?’’

देवेश और उमा सहर्ष मान गए.

देवेश, उमा और श्रेया रविवार को गौतम के घर पहुंच गए.

गीता भी बापबेटे की तरह ही मिलनसार और हंसमुख थी. कुछ ही देर में दोनों परिवारों

में अच्छा तालमेल हो गया और वातावरण सहज व अनौपचारिक. उमा किचन में गीता का हाथ बंटाने चली गई, ब्रजेश ने बड़े शौक से सब को अपना पूरा घर दिखाया और फिर आने का अनुरोध किया.

‘‘जरूर आएंगे लेकिन उस से पहले गीता बहन को हमारे यहां आना है,’’ उमा ने कहा.

‘‘आप न कहतीं तो भी मैं इसे ले कर आने वाला ही था और आऊंगा भी,’’ ब्रजेश के कहने के अंदाज पर सभी हंस पड़े.

एक रोज गौतम लंचब्रेक में श्रेया के

पास आया, ‘‘मेरे पापामम्मी तुम्हारे घर हमारी शादी की बात करने जा रहे हैं और यह तुम

भी जानती हो कि तुम्हारे घर वाले इनकार नहीं करेंगे लेकिन इस से पहले कि तुम हां कहो, मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं, अपने और अपने परिवार के बारे में. मेरे जीवन में हमेशा सर्वोच्च स्थान मेरे पापा का ही रहेगा क्योंकि उन के मुझ पर बहुत एहसान हैं. वे मेरे जन्मदाता नहीं हैं. उन का देहांत तो मेरे जन्म के कुछ समय बाद ही हो गया था.

‘‘वैसे तो पापा भी वहीं पढ़ाते थे जहां

मम्मी लेकिन वे मेरे मामा के दोस्त भी थे. सो, अकसर घर पर आया करते थे और मेरे साथ

बहुत खेलते थे. एक रोज मामा से यह सुनने

पर कि घर में मम्मी की दूसरी शादी की चर्चा चल रही है, उन्होंने छूटते ही पूछा, ‘गौतम का क्या होगा?’

‘‘शादी ऐसे व्यक्ति से ही करेंगे जो गौतम को अपने बेटे की तरह अपना मानेगा,’’ मामा ने जवाब दिया.

‘‘इस की क्या गारंटी होगी कि शादी के बाद वह अपनी बात पर कायम रहेगा?’’ पापा ने फिर प्रश्न किया.

‘‘ऐसे रिश्तों में तो हमेशा ही गारंटी से ज्यादा रिस्क रहता है, जो लेना पड़ता ही है,’’ मामा ने फिर जवाब दिया.

‘‘गौतम बहुत प्यारा बच्चा है, उस के

साथ कोई रिस्क नहीं लेना चाहिए. मैं वादा

करता हूं, गौतम को आजीवन

पिता का प्यार दूंगा, गीता की शादी मुझ से कर दीजिए,’’ पापा ने छूटते ही कहा.

‘‘मम्मी के घर वाले तो तुरंत मान गए लेकिन पापा के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था. इसलिए पापा ने उन से रिश्ता

तोड़ कर मेरे मोह में पुश्तैनी

जायदाद भी छोड़ दी. यही नहीं, पापा उस समय आईएएस प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे लेकिन शादी के बाद उन्होंने पढ़ाई के बजाय अपना सारा ध्यान मेरे लालनपालन में लगा दिया और परीक्षा नहीं दी क्योंकि उन्हीं दिनों मम्मी का औपरेशन हुआ था और उन के लिए कई सप्ताह तक बैडरैस्ट अनिवार्य था.

‘‘यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि पापा ने अपना अस्तित्व ही मुझ में लीन कर दिया है. अब यह मेरा कर्तव्य है कि आजीवन पापा की खुशी को ही अपनी खुशी समझूं, शादी के बाद मेरी पत्नी को भी यह दायित्व निभाना पड़ेगा. जानता हूं श्रेया, घर वाले ही नहीं, हम दोनों भी एकदूसरे को चाहने लगे हैं, फिर भी हां करने से पहले मैं चाहूंगा कि तुम अच्छी तरह से सोच लो. तुम्हें उम्रभर संयुक्त परिवार में रहना

होगा और वह भी पापामम्मी की आज्ञा या इच्छानुसार.’’

‘‘पापा बहुत सुलझे हुए सहृदय व्यक्ति हैं और तुम्हारी मम्मी भी. उन के साथ रहने में मुझे कोई परेशानी नहीं होगी और अगर होगी भी तो उस की शिकायत मैं कभी तुम से नहीं करूंगी,’’ श्रेया ने दृढ़ स्वर में कहा.

‘‘करोगी भी तो मैं सुनूंगा नहीं, यह अच्छी तरह समझ लो,’’ गौतम के स्वर में चुनौती थी.

जल्दी ही दोनों की शादी तय हो गई लेकिन तुरंत

बाद ही एक अड़चन आ गई. औफिस के नियमानुसार वहां पतिपत्नी एकसाथ काम नहीं कर सकते थे. श्रेया ने बेहिचक नौकरी छोड़ दी. हनीमून से लौटने के बाद वह भी गीता और ब्रजेश के साथ कोचिंग कालेज में जाने लगी. उस ने वहां औफिस की सब व्यवस्था संभाल ली जो अब तक ब्रजेश संभालते थे. यह सब करने में वह ब्रजेश के और भी करीब आ गई, वैसे भी बहुत स्नेह करते थे वे

उस से.

‘‘यह काम संभाल कर तुम

ने मुझे बहुत राहत दी है श्रेया,

थक जाता था, पढ़ाने और फिर

उस के बाद यह सब सिरखपाई

वाले काम करने में. काम इतना ज्यादा भी नहीं है कि इस के लिए किसी को नियुक्त करूं,’’ एक रोज ब्रजेश ने कहा.

‘‘ऐसा है पापा तो यह काम अब आप मुझ पर ही छोड़ दीजिए, दूसरी नौकरी मिलने के बाद भी मैं इस के लिए समय निकाल लिया करूंगी,’’ श्रेया ने कहा.

‘‘मेरे लिए यानी अपने व्यथित पापा के लिए भी कभी थोड़ा समय निकाल सकोगी श्रेया?’’ ब्रजेश ने कातर भाव से पूछा.

श्रेया चौंक पड़ी, ‘‘क्या कह रहे हैं, पापा? आप और व्यथित? मम्मी और गौतम को पता चल गया तो वे आप से भी अधिक व्यथित

हो जाएंगे.’’

‘‘उन दोनों को तो पता भी नहीं चलना चाहिए. वैसे भी वे कुछ नहीं कर सकते.’’

‘‘तो कौन कर सकता है, पापा?’’

‘‘तुम, केवल तुम, श्रेया,’’ ब्रजेश ने बड़े विवश भाव से कहा.

‘‘वह कैसे, पापा?’’ श्रेया ने सहमे स्वर में पूछा.

‘‘मेरी व्यथा, मेरी करुण कहानी सुनोगी?’’

‘‘जरूर, पापा. अभी सुना दीजिए न, अभी तो आप की क्लास भी नहीं है.’’

‘‘लेकिन यहां नहीं. लौंगड्राइव पर चलोगी मेरे साथ?’’

‘‘चलिए, एनिथिंग फौर यू, पापा.’’

‘‘मैडम को कह देना हम लाइबे्ररी जा रहे हैं, अगर लौटने में देर हो जाए तो वे मेरी क्लास में कल रात तैयार किया प्रश्नपत्र बांट दें,’’ ब्रजेश ने चपरासी से कहा और श्रेया के साथ बाहर आ गए.

गाड़ी चलाते हुए ब्रजेश चुप रहे, शहर से दूर एक बहुत बड़े अहाते में बनी हवेलीनुमा

बहुमंजिली कोठी के सामने उन्होंने गाड़ी रोक दी.

‘‘यह हमारी पुश्तैनी कोठी

है. पिताजी मेरे और गीता के

विवाह के लिए एक ही शर्त पर राजी थे कि इस जायदाद पर सिर्फ उन के अपने खून यानी मेरी औलाद का ही हक होगा, गौतम का नहीं. गौतम के लिए ही तो मैं शादी कर रहा था, इसलिए मुझे यह बात इतनी बुरी लगी कि मैं ने फैसला कर लिया कि मेरी अपनी औलाद होगी ही नहीं.

‘‘गीता के गर्भाशय में फाइब्रौयड्ज थे जिन का वह इलाज करवा रही थी लेकिन मैं ने उसे दवाएं खाने के बजाय औपरेशन करवा कर गर्भाशय ही निकलवाने को मना लिया. उस के बाद एक शहर में रहते हुए भी न कभी पिताजी ने मुझे बुलाया, न मैं स्वयं ही गया.

‘‘कुछ वर्ष पहले ही पिताजी का निधन हुआ है. मरने से पहले उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि अंतिम संस्कार के लिए मुझे बुला लिया जाए. जायदाद तो खैर

लाचारी में मेरे नाम करनी ही थी क्योंकि दान देने से तो जायदाद पराए लोगों को ही मिलती, जो वे चाहते नहीं थे.

‘‘लेकिन मरने से पहले एक मार्मिक पत्र भी लिखा था उन्होंने जिस में मुझ पर अपने परिवार की वंशबेल नष्ट करने व पुरखों की मेहनत से बनाई जायदाद को पराए खून के हाथों देने का आरोप लगाया था और अनुरोध किया था कि हो सके तो ऐसा होने से रोक दूं, अपने पूर्वजों का नाम जीवित रखने के लिए गौतम के अतिरिक्त भी अपना बच्चा पैदा करूं.

‘‘उस पत्र को पढ़ने के बाद मैं

आत्मग्लानि से ग्रस्त हो गया हूं. एक जानेमाने परिवार की वंशबेल

नष्ट करने का मुझे कोई हक नहीं है. क्या नहीं किया था दादाजी और पापा ने अपने वंश का गौरव बढ़ाने के लिए, मुझे खुशहाल जीवन देने के लिए और मैं ने उन का बुढ़ापा ही खराब नहीं किया बल्कि उन का वंश ही खत्म कर दिया, महज इसलिए कि गौतम के मन में हीनभावना न आए. गौतम और गीता समझदार थे.

‘‘हमारा दूसरा बच्चा होने पर और उसे पिताजी की जायदाद मिलने पर उन्हें कोई मलाल नहीं होता, दोनों ही पिताजी की भावनाएं समझ सकते थे और गौतम के

लिए तो मेरी और उस की मां की कमाई ही काफी थी.

‘‘लेकिन भावावेश में आ

कर मैं ने गीता की हिस्ट्रेक्टोमी करवा कर सब संभावनाएं ही

खत्म कर दीं,’’ ब्रजेश बुरी तरह बिलख पड़े.

‘‘शांत हो जाइए, पापा. हुआ तो गलत ही पर उसे सुधारने के लिए अब कुछ नहीं हो सकता,’’ श्रेया ने असहाय भाव से कहा.

‘‘बहुतकुछ हो सकता है यानी सब ठीक हो सकता है श्रेया, अगर तुम चाहो तो.’’

‘‘मैं समझी नहीं, पापा. मैं भला क्या कर सकती हूं?’’ श्रेया ने हैरानी

से पूछा.

‘‘मेरी वंशबेल को बढ़ा सकती हो, मुझे

मेरे खून का वारिस दे कर,’’ ब्रजेश ने आकुलता से कहा.

‘‘वह तो समय आने पर मिल ही जाएगा पापा,’’ श्रेया ने शरमा कर कहा.

‘‘गौतम का नहीं, मेरे अपने खून का वारिस, श्रेया,’’ ब्रजेश ने शब्दों

पर जोर दिया, ‘‘जिसे मैं पापा की अंतिम इच्छानुसार अपने पुरखों की विरासत सौंप सकूं. पापा ने वसीयत में बगैर किसी शर्त के सारी जायदाद मेरे नाम कर दी है जिस का मैं कुछ भी कर सकता हूं. केवल उस व्यक्तिगत पत्र में अपनी इच्छा जाहिर की है जिस का मेरे सिवा किसी को कुछ पता नहीं है. लेकिन मैं ग्लानिवश न उस जायदाद का स्वयं उपयोग कर रहा हूं न गीता और गौतम को करने दूंगा.

‘‘उस का उपयोग केवल पापा के खून का वह असली वारिस करेगा जो दुनिया की नजरों में तो गौतम की पहली संतान होगी पर वास्तव में वह मेरी… ब्रजेश की होगी. गौतम की उस पहली संतान के नाम हर्षावेग में आ कर अपनी पुश्तैनी जायदाद करने पर किसी को न शक होगा न कुछ पता चलेगा.’’

ब्रजेश की बात का मतलब समझ आते ही श्रेया सिहर गई. इतनी घिनौनी, इतनी अनैतिक बात पापा जैसा संभ्रांत व्यक्ति कैसे कर सकता है? तो यह वजह थी पापा का उस पर इतना स्नेह लुटाने की? अच्छा सिला दे रहे थे पापा गौतम के प्यार और विश्वास का?

लेकिन वह तो गौतम से विश्वासघात नहीं कर सकती, मगर गौतम को पापा की कलुषित भावनाओं के बारे में बताए भी तो कैसे? अव्वल तो गौतम इस बात पर विश्वास ही नहीं करेगा और करने पर सदमा बरदाश्त नहीं कर पाएगा…तो फिर क्या करे वह?

‘‘घबराओ मत श्रेया, न तो मैं तुम से जोरजबरदस्ती करूंगा और न ही कोई अश्लील या अनैतिक हरकत,’’ ब्रजेश ने समझाने के मकसद से कोमल स्वर में कहा, ‘‘मेरे पास इस समस्या का बहुत ही सरल समाधान है. बस, तुम्हें थोड़ी सी सतर्कता और गोपनीयता रखनी होगी. तुम ने स्पर्म ट्रांसप्लांट यानी आईवीएफ तकनीक के बारे में सुना होगा? जी, पापा सुना है.’’

श्रेया का स्वर कांप गया. पूर्णतया सक्षम पति के रहते किसी अन्य के वीर्य को अपनी कोख में रखने का विचार मात्र ही असहनीय था.

लेकिन ब्रजेश की कातरता और विवशता, गौतम के लिए असीम मोह, गौतम का ब्रजेश से लगाव और उस के प्रति कृतज्ञता उसे बाध्य कर रही थी कि वह अपनी भावनाओं को कुचल कर, ब्रजेश की वंशबेल को हरीभरी रखे. इस के सिवा उस के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था.

ब्रजेश को मना कर सकती थी लेकिन उस के बाद अगर वे उदास

या व्यथित रहने लगे तो स्वाभाविक

है उन पर जान छिड़कने वाला गौतम भी परेशान रहने लगेगा और एक खुशहाल परिवार अवसादग्रस्त हो जाएगा.

‘‘डा. अवस्थी मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं, उन के क्लीनिक में सबकुछ बहुत सावधानी से हो सकता है,’’ ब्रजेश ने कहा.

‘‘तो करवा लीजिए, पापा. आप जब कहेंगे मैं वहां चली जाऊंगी,’’ श्रेया ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘चलिए, वापस चलते हैं. आप की क्लास का समय हो रहा है.’’

ब्रजेश ने विस्फारित नेत्रों से श्रेया को देखा. उन्होंने बहुत पौराणिक कथाएं पढ़ रखी थीं

लेकिन जो श्रेया करने जा रही थी ऐसा तो उन काल्पनिक कथाओं की किसी भी नायिका ने कभी नहीं किया था.

सब छत एक समान: अंकुर के जन्मदिन पर क्या हुआ शीला के साथ?

शीला को जरा भी फुरसत नहीं थी. अगले दिन उस के लाड़ले अंकुर का जन्मदिन था. शीला ने पहले से ही निर्णय ले लिया था कि वह अंकुर के इस जन्मदिन को धूमधाम से मनाएगी और एक शानदार पार्टी देगी.

बारबार पिताजी ने सुरेश को समझाया कि वह बहू को समझाए कि इस महंगाई के दौर में इस तरह की अनावश्यक फुजूलखर्ची उचित नहीं. उन की राय में अपने कुछ निकटतम मित्रों और पड़ोसियों को जलपान करवा देना ही काफी था.

सुरेश ने जब शीला को समझाया तो वह अपने निर्णय से नहीं हटी, उलटे बिगड़ गई थी.

शीला बारबार बालों की लटें पीछे हटाती रसोई की सफाई में लगी थी. उस ने महरी को भी अपनी सहायता के लिए रोक रखा था. दिन में कुछ मसाले भी घर पर कूटने थे, दूसरे भी कई काम थे. इसलिए वह सुबह से ही काम निबटाने में लग गई थी.

‘‘शीला, जरा 3 प्याली चाय बना देना. पिताजी के दोस्त आए हैं,’’ सुरेश रसोई के दरवाजे पर खड़ा अखबार के पन्ने पलटते हुए बोला.

‘‘चाय, चाय, चाय,’’ शीला उबल कर बोली, ‘‘सुबह से अब तक 5 बार चाय बन चुकी है और अभी 10 भी नहीं बजे हैं. तुम्हें अखबार पढ़ने से फुरसत नहीं और पिताजी को चाय पीने से.’’

‘‘शीला, कभी तो ठंडे दिमाग से बात किया करो,’’ सुरेश अखबार मोड़ते हुए बोला, ‘‘जब कल पार्टी दे रही हो तो काम तो बढ़ेगा ही. अब तुम्हारा काम ही पूरा नहीं हुआ. बाहर का सारा काम पिताजी और मैं ने निबटा लिया है.’’

‘‘अकेली जान हूं, देख नहीं रहे. 10 दिन पहले कार्ड डाल दिए थे, न तो अब तक देवरानीजी पधारीं और न ही आप की प्यारी बहन,’’ शीला डब्बों से धूल झाड़ती हुई बोली, ‘‘काम करना पड़ता न. कल पधारेंगी पार्टी में, बड़े आदमी हैं दोनों ही, आप के भाईसाहब और जीजाजी भी.’’

थोड़ी देर बाद उस ने हाथ धो कर चाय के लिए पानी चढ़ा दिया और गुस्से से पति की ओर देखा, ‘‘6 साल का हो गया है मेरा अंकुर. कल उस का जन्मदिन है. मगर है जरा सी भी खुशी किसी के चेहरे पर?’’

सुरेश समझ गया कि शीला अब फिर शुरू हो गई है, इसलिए वह चुप ही रहा.

‘‘आप के पिताजी तो पार्टी को ही मना कर रहे थे, फुजूलखर्ची बता रहे थे, उन्हें तो घर से बाहर निकलना नहीं. समाज में रहना है तो साथ तो चलना पड़ेगा.’’

‘‘पिताजी ठीक कह रहे थे,’’ सुरेश ने उस के पास जा कर कहा.

‘‘क्या ठीक कहा? उन्हें तो मेरी हर खरीदी वस्तु फुजूलखर्ची लगती है. जब नया सोफा लाई तो कहने लगे कि क्या जरूरत थी इस की. नया रंगीन टैलीविजन लिया तो भी बड़बड़ करने लगे, ‘बहू, पैसा बचा कर रखो, काम आएगा.’

‘‘खुद तो अपनी गांठ ढीली करते नहीं. 700-800 से कम तो पैंशन भी नहीं मिलती. मगर मजाल है कि कभी अंकुर को भी 5-10 रुपए पकड़ा दें. सारा पैसा उस छोटे को पकड़ा दिया होगा, वरना कैसे इतनी जल्दी अपना मकान बना लेता इतने बड़े शहर में?’’

‘‘शीला, अरुण हमारा छोटा भाई है. पिताजी ने अगर उसे कुछ दे भी दिया होगा तो क्या बुरा है. तुम कुछ भी कहो, लेकिन पिताजी हमें भी उतना ही चाहते हैं जितना अरुण को,’’ सुरेश समझाने के लहजे में बोला.

‘‘तो क्यों नहीं हमारा भी मकान बनवा दिया? पड़े हैं हम इस किराए के मकान में. गांव में खाली पड़ा मकान बेच कर यहां क्यों नहीं ले लेते हमारे लिए एक मकान, तुम्हारे प्यारे पिताजी,’’ शीला ने फिर पुराना राग अलापना शुरू कर दिया था.

सुरेश चाय ले कर बैठक में चला गया.

अरुण अपनी पत्नी सीमा के साथ पहुंच चुका था. दीदी व जीजाजी भी आ गए थे. शीला, सीमा और दीदी तीनों रसोई में थीं. रात का खाना खाया जा चुका था. अंकुर व दीदी के दोनों बच्चे सो चुके थे. तीनों महिलाएं रसोई का काम निबटा रही थीं.

अरुण, सुरेश, पिताजी, जीजाजी सभी बैठक में बातें कर रहे थे.

‘‘सुरेश, अब तुम लोग भी आराम करो. काफी रात हो चुकी है. सुबह फिर काम में लगना है,’’ पिताजी ने यह कहा और खुद भी चारपाई पर लेट गए.

अंकुर बड़ा खुश था. उस के जन्मदिन पर पार्टी जो दी जा रही थी. उसे ढेर सारे उपहार मिलने थे. वह बच्चों के साथ हंसखेल रहा था. हलवाई की पूरी टीम आ चुकी थी. खाने की तैयारी शुरू हो गई थी. शीला की भागदौड़ बढ़ती जा रही थी.

‘‘सुरेश, मैं जरा बाजार हो कर आता हूं, थोड़ा काम है,’’ पिताजी बोले.

अंकुर पीछे दौड़ने लगा तो दीदी ने उसे रोका, ‘‘बेटा, दादाजी के साथ जा कर क्या करेगा. अरे, तेरे लिए वह सुंदर सा उपहार लाएंगे. इकलौता, प्यारा पोता है तू उन का.’’

‘‘अरे, जानती नहीं दीदी, पिताजी को फुजूलखर्ची बिलकुल पसंद नहीं. क्या करेंगे तोहफा ला कर, दे देंगे ढेर सारे ‘आशीर्वाद’ अपने पोते को.’’

शीला फिर शुरू हो गई थी. उस के कटाक्ष को सब समझ रहे थे. सीमा, दीदी, अरुण, जीजाजी और सुरेश भी. मगर सब खामोश रहे.

केक पर अंकुर की कब से नजर टिकी थी. आखिर वह समय भी आ गया. उस ने फूंक मार कर मोमबत्तियां बुझा दीं. ‘हैप्पी बर्थ डे’ गाया गया. अंकुर केक के टुकड़े सब के मुंह में रखने लगा.

अंकुर को बहुत से उपहार मिले थे. सीमा उस के लिए बड़े सुंदर कढ़ाई किए हुए कपड़े लाई थी. दीदी भी कपड़े और खिलौने लाई थीं.

शीला बड़ी खुश नजर आ रही थी. लाल साड़ी में लिपटी वह अपने को काफी गर्वित महसूस कर रही थी.

‘‘अंकुर बेटा, इधर आना,’’ पिताजी छड़ी पकड़े उसे अपनी ओर बुला रहे थे.

वह सुरेश की बांहों से फिसल कर दादाजी की ओर लपक गया.

शीला मुंह बना कर उधर ही देखने लगी.

‘‘दादाजी, आप हमारे लिए क्या लाए हैं?’’ अंकुर को उन से उपहार मिलने की बड़ी उम्मीद थी.

‘‘हां बेटा,’’ पिताजी ने जेब में हाथ डाला. फिर एक लंबा लिफाफा जेब से निकाला और अंकुर के हाथों में थमा दिया. अंकुर को यह उपहार पसंद नहीं आया.

सुरेश ने उस के हाथ से लिफाफा ले लिया. शीला की नजरें अब सुरेश पर थीं. पिताजी चश्मा उतार कर उस के शीशे साफ करने में लगे थे

सुरेश ने ध्यान से कागज देखे और शीला की ओर बढ़ गया, ‘‘पिताजी ने अंकुर को एक छोटा सा उपहार दिया है. पता नहीं तुम पसंद करोगी या नहीं?’’ यह कह कर उस ने कागजों का वह छोटा सा पुलिंदा शीला के हाथ में थमा दिया.

‘‘मकान के कागज,’’ शीला को यकीन नहीं हो रहा था कि वह जिस किराए के मकान में अब तक रहती आई है, अब उस की मालकिन बन गई है और यह सब पिताजी ने किया है.

एक परदा सा हटने लगा था.

‘‘पिताजी,’’ शीला का स्वर बिलकुल बदला सा था.

‘‘हां, बेटी,’’ पिताजी बोले, ‘‘आखिर कब तक तुम्हें किराए के मकान में देखता. जब देखा कि अरुण ने भी मकान बना लिया है तो डरने लगा कि तुम्हें अपने घर में देखने से पहले ही न चल बसूं. गांव के घर की इतनी कीमत नहीं बनती थी कि यह खरीद पाता. इसलिए अपनी पैंशन के पैसे भी बचाने लगा. पिछले हफ्ते ही यह घर खरीद कर तुम्हारे नाम करवा दिया था. सोचा था, अंकुर के जन्मदिन पर यह खुशखबरी तुम्हें दूंगा. कई बार तुम्हारे गुस्से के बोल मेरे कानों में पड़ जाते थे मगर मैं ने कभी बुरा न माना.

‘‘बेटी, मैं यह नहीं कहता कि समाज या रीतिरिवाज के साथ न चलो. मगर बढ़ती महंगाई को भी देखना चाहिए और अपनी जेब को भी,’’ पिताजी अब खामोश हो गए.

शीला की नजरों के सामने से एकसाथ कई परदे उठ गए. वह कह तो कुछ न सकी. बस, पिताजी को निहारती रही, फिर उन के पैर छू लिए.

शीला अब भी पिताजी की ओर देखे जा रही थी. शायद वह समझ गई थी कि औलाद के लिए तो मांबाप बादल समान होते हैं जिन के लिए सब छत एक समान होती है. वे औलाद में भेदभाव नहीं करते.

‘‘शीला, अब जरा देखो…सब को खाना भी खिलाना है,’’ सुरेश ने कहा.

‘‘हां, आप, अरुण और पिताजी बाहर का देखिए. हम यहां का काम संभालती हैं,’’ शीला सीमा और दीदी के साथ अंदर बढ़ती हुई बोली, ‘‘और हां, पिताजी को याद से खाना खिला देना, पार्टी देर तक चलेगी. वे थक जाएंगे.’’ शीला के ये शब्द सुरेश की खुशी के लिए पर्याप्त थे.

मिटते फासले: शालिनी की जिंदगी में क्यों मची थी हलचल?

मोबाइल फोन ने तो सुरेखा की दुनिया ही बदल दी है. बेटी से बात भी हो जाती है और अमेरिका दर्शन भी घर बैठेबिठाए हो जाता है. अमेरिका में क्या होता है, सुरेखा को पूरी खबर रहती है. मोबाइल के कारण आसपड़ोस में धाक भी जम गई कि अमेरिका की ताजा से ताजा जानकारी सुरेखा के पास होती है.

सर्दी का दिन था. कुहरा छाया हुआ था. खिड़की से बाहर देख कर ही शरीर में सर्दी की एक झुरझुरी सी तैर जाती थी. अभी थोड़ी देर पहले ही शालिनी से बात हुई थी.

शालिनी 2 महीने बाद छुट्टियों में भारत आ रही है. कुरसी खींच कर आंखें मूंद प्रसन्न मुद्रा में सुरेखा शालिनी के बारे में सोच रही थी. कितनी चहक रही थी भारत में आने के नाम से. अपनों से मिलने के लिए, मोबाइल पर मिलना एक अलग बात है. साक्षात अपनों से मिलने की बात ही कुछ और होती है.

विवाह के 5 वर्षों बाद शालिनी परिवार से मिलने भारत आएगी. 5 वर्षों  में काफीकुछ बदल गया है. शालिनी भारत से गई अकेली थी, वापस 2 बच्चों के साथ आ रही है.

परदेस की अपनी मजबूरी होती है. सुखदुख खुद अकेले ही सहना पड़ता है. इतने दिनों में बहुतकुछ बदल गया है. छोटे भाई की शादी हो गई. उस के भी 2 बच्चे हो गए. बड़े भाई का एक बच्चा था, एक और हो गया. नानी गुजर गईं. जिस मकान में रहती थी उस को बेच कर दिल्ली में आशियाना बना लिया. पापा बीमार चल रहे हैं. दुकान अब दोनों भाई चलाते हैं. पापा तो कभीकभार ही दुकान पर जाते हैं.

पंजाब का एक छोटा सा शहर है राजपुरा, जहां शालिनी का जन्म हुआ, पलीबढ़ी. पढ़ाई में मन लगता नहीं था. बस जैसेतैसे 12वीं पास कर पाई. मांबाप को चिंता विवाह की थी. घरेलू कामों में दक्ष थी, इसलिए बिना किसी खास कोशिश के राजपुरा से थोड़ी ही दूर मंडी गोबिंदगढ़ में एक मध्यवर्गीय परिवार के बड़े लड़के महेश के साथ रिश्ता संपन्न हुआ. महेश के पिता सरकारी कर्मचारी थे. महेश एक किराना स्टोर चलाता था.

सुरेखा शालिनी के विवाह से काफी खुश थी कि लड़की आंखों के सामने है. राजपुरा और मंडी की दूरी एक घंटे की थी, जब दिल चाहा मिल लिए. लेकिन यह खुशी मुश्किल से 5 महीने भी नहीं चल सकी. एक दिन सड़क दुर्घटना में महेश की मौत हो गई. शालिनी का सुहाग मिट गया. वह विधवा हो गई. उस पर दुखों का पहाड़ टूट गया.

सास के तानों से तंग और व्यवहार से दुखी बेटी को सुरेखा अपने घर ले आई. आखिर कितने दिन तक ब्याहता पुत्री को घर में रखे, चाहे विधवा ही सही, ब्याहता का स्थान तो ससुराल में है.

एक दिन सुरेखा ने शालिनी से कहा, ‘बेटी, तेरी जगह तो ससुराल में है, आखिर कितने दिन मां के पास रहेगी?’

‘मां, वहां मैं कैसे रहूंगी?’

‘रहना तो पड़ेगा बेटी, दुनिया की रीति ही यही है,’ सुरेखा ने शालिनी को समझाया.

‘मां, आप तो मेरी सास के तानों और व्यवहार से परिचित हैं. मैं वहां रह नहीं सकूंगी,’ शालिनी ने अपनी असमर्थता जाहिर की.

‘दिल पर पत्थर तो रखना ही पड़ेगा, दुनियादारी भी तो कोई चीज है.’

‘मां, दुनियादारी तो यह भी कहती है कि बेटे की मृत्यु के बाद बहू को पूरा हक और सम्मान देना चाहिए. किसी भी ग्रंथ में यह नहीं लिखा कि बेटे की मौत के बाद बहू को घर से धक्के मार कर निकाल दिया जाए,’ कहतेकहते शालिनी की आंखें भर आईं.

फिर भी कुछ रिश्तेदारों के साथ शालिनी ससुराल पहुंची तो सास ने घर के अंदर ही नहीं घुसने दिया. घर के बाहर अकेली सास 10 रिश्तेदारों पर हावी थी.

‘शालिनी घर के अंदर नहीं घुस सकती,’ कड़कती आवाज में सास ने कहा.

‘यह आप की बहू है,’ सुरेखा ने विनती की.

‘बेटा मर गया, बहू भी मर गई,’ सास की आवाज में कठोरता अधिक हो गई. शालिनी के पिता ने महेश के पिता से बात करने की विनती की.

‘जो बात करनी है, मुझ से करो. मेरा फैसला न मानने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता.’

महेश के पिता केवल मूकदर्शक बने रहे. यह देखसुन कर सारे रिश्तेदारों ने शालिनी के मांबाप को समझाया कि लड़की को ससुराल में रखने का मतलब है कि लड़की को मौत के हवाले करना. गर्भवती लड़की को मायके में रखना ही ठीक होगा. थकहार कर शालिनी मायके आ गई. जवान दामाद की मृत्यु के बाद गर्भवती लड़की की दशा ने शालिनी के पिता को समय से पहले ही बूढ़ा कर दिया. शालिनी क्या कहे और क्या करे? वह तो अपने बच्चे के जन्म का इंतजार करने लगी.

समय पर शालिनी ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया. एक खिलौना पा कर शालिनी अपना दुख भूल गई, लेकिन यह सुख केवल कुछ पलों तक ही सीमित रहा. पोते के जन्म की खबर सुन कर शालिनी की सास पोते पर अपना अधिकार जताने पहुंच गई. शालिनी ने अपने बच्चे को सौंपने से मना कर दिया.

‘आप ने तो मुझे महेश की मृत्यु के बाद घर से बाहर कर दिया था, अब मैं अपने बच्चे को अपने से जुदा नहीं करूंगी,’ शालिनी ने दोटूक जवाब दे दिया.

महेश की मां से कोई पहले जीत न सका तो अब भी किसी को कोई आस नहीं रखनी चाहिए थी. शोर मचा कर अधिकार जताया, ‘मेरा पोता है, कोई मुझ से मेरे पोते को जुदा नहीं कर सकता. उस की जगह मेरे घर में है.’

‘जब मेरे गर्भ में आप का पोता पल रहा था, तब आप को अधिकार याद नहीं आया. तब मैं सब से बड़ी दुश्मन थी. बिरादरी के सामने आप ने घर में नहीं घुसने दिया था. अब किस मुंह से हक जता रही हैं. मैं आप की तरह निष्ठुर नहीं हूं कि धक्के मार कर बेइज्जत करूं, लेकिन न तो मैं आप के साथ जाऊंगी और न ही अपने बच्चे को जाने दूंगी,’ शालिनी ने जवाब दिया.

शालिनी की सास भी हार मानने को तैयार नहीं थी. उस ने पुलिस का सहारा लिया. कानूनी रूप से तो बहू और पोते का स्थान मरणोपरांत भी पति के घर में ही है. पुलिस के कहने पर भी शालिनी ने सास के साथ जाने से मना कर दिया. कुछ बड़ेबूढ़ों ने सुझाया कि शालिनी को मायके में ही रहना चाहिए और बच्चे को उस की सास को सौंप दिया जाए.

उन का तर्क यह था कि बच्चे के साथ शालिनी का दूसरा विवाह करना मुश्किल होगा. यदि उस की सास बच्चे को पा कर खुश है तो यह शालिनी के भविष्य के लिए सही है. दूसरे विवाह की सारी अड़चनें अपनेआप दूर हो जाएंगी.

शालिनी बच्चे को छोड़ने को तैयार नहीं थी. फिर बड़ेबूढ़ों के समझाने पर वह बच्चे को अपने से जुदा कर सास को देने को तैयार हो गई. सारी उम्र अकेले बच्चे के साथ बिताना कठिन है. मांबाप भी कब तक साथ रहेंगे, जीवनसाथी तो तलाशना होगा. उस के और बच्चे के भविष्य के लिए बलिदान आवश्यक है.

कलेजे पर एक शिला रख कर शालिनी ने बच्चा सास के सुपुर्द कर दिया. सास को शालिनी से कोई मतलब नहीं था. उसे तो वंश चलाने के लिए वारिस चाहिए था, जो मिल गया.

जहां चाह वहां राह. शालिनी के लिए वर की तलाश शुरू हुई, अमेरिका में रह रहे एक विधुर से रिश्ता पक्का हो गया. परिवार के फैसले को मानते हुए सात फेरे ले कर पति सुशील के साथ नई गृहस्थी निभाने सात समंदर पार चली गई.

समय सभी जख्मों को भर देता है. धीरेधीरे वह अपना अतीत भूल कर वह नई दुनिया में व्यस्त हो गई. अपने अंश की जुदाई की याद आती तो कभी व्यक्त नहीं करती थी. एक बच्चे की जुदाई ने अब 2 बच्चों की मां बना दिया. मां से अकसर फोन पर बातें हो जाती थीं तो ऐसा लगता था कि आसपास बैठ कर बातें कर रही हैं, वैसे तो कोई कमी नहीं खटकती थी. उदासी, मजबूरी, सुख और दुख में अपनों से दूरी जरूर परेशान करती थी.

समय हवा के झोंकों के साथ उड़ जाता है. आज शालिनी अपने पति सुशील और 2 बच्चों के साथ मायके आई तो मांबेटी गले मिल कर आत्मविभोर हो गईं. बच्चों को देख कर सुरेखा ने प्यार से पुचकारते हुए कहा, ‘‘शालिनी, बच्चे तो एकदम गोरेचिट्टे हैं.’’

हंसते हुए शालिनी ने कहा, ‘‘बोलते भी अंगरेजी ज्यादा हैं.’’ एकदम अमेरिकन अंगरेजी बोलते देख हैरानपरेशान हो कर सुरेखा ने पूछा, ‘‘हिंदी नहीं जानते?’’

‘‘समझ सब लेते हैं, पर बोलते नहीं हैं. आप की सब बात समझ लेंगे,’’ शालिनी ने कहा.

सर्दियों के दिन थे. सुरेखा और शालिनी दोपहर में फुरसत के समय धूप सेंकते हुए बातें कर रही थीं. बातोंबातों में शालिनी ने मां से महेश की मां अर्थात अपनी पहली सास और अपने बच्चे के बारे में पूछा तो सुरेखा अचंभे में आ गई. फिर कुछ क्षण रुक कर बोली, ‘‘बेटे, क्या तू अभी भी उस के बारे में सोचती है?’’

‘‘क्या करूं मां, अपनी कोख से जनमे बच्चे की याद कभीकभी आ ही जाती है. इंसान अतीत को कितना ही भुलाने की कोशिश करे, यादें पीछा नहीं छोड़ती हैं.’’

‘‘तू खुद ही सोच, अगर तू बच्चे को पालती तो क्या तेरी शादी सुशील से हो सकती थी? क्या यह सब तुझे मिलता? आज जो तेरे पास है.’’

‘‘वह तो ठीक है मां, फिर भी.’’

कुछ कहने से पहले सुरेखा ने शालिनी को बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘जो तेरे मन में है, मन में ही रख. अतीत भूल जा. यदि भूल नहीं सकती तो कभी भी किसी के आगे जबान पर ये बातें मत लाना. लोगों के कान बड़े पतले होते हैं. किसी का सुख कोई देख नहीं सकता है.’’ तभी फोन की घंटी बजी और बातों का सिलसिला रुक गया. सुशील ने बात की. सुशील ने शाम को सिनेमा देख कर बाहर होटल में डिनर का कार्यक्रम तय किया था.

‘‘शालिनी, अपनी सफल गृहस्थी को अपने हाथों में रख. सुशील ने सब जानते हुए तुझे अपनाया था. कोई ऐसी बात जबान पर मत ला जिस से कोई जरा सी भी दरार आए. शाम को सिनेमा देख और पुरानी बातों को भूल जा. जितनी खुश तू आज है, बच्चे को रख कर नहीं होती. भूल जा शालिनी, भूल जा.’’

मां की बात पल्ले बांध कर शाम को शालिनी ने परिवार के साथ सिनेमा देखा. 2 महीने कैसे बीते, सुरेखा को पता ही नहीं चला. आज शालिनी सपरिवार अमेरिका वापस जा रही है. एयरपोर्ट पर बेटी को विदा करते समय सुरेखा की आंखें नम हो गईं. मां को उदास देख कर शालिनी बोली, ‘‘यह क्या, बच्चों जैसी रो रही हो? मोबाइल पर हमेशा हम साथ ही तो रहते हैं? बातें तो होंगी ही तुम से बात न करूं तो मन फिर भी तो नहीं होता. सुरेखा को लगा जैसे फोन रिश्तों के फासलों के बीच एक पुल है. शालिनी का चेहरा उस की छलछलाई आंखों में तैरता रह गया.

खूबसूरत बालों के लिए दही से बनाएं ये 5 हेयर मास्क

बालों में दही का इस्तेमाल हमारी दादीनानी भी अपनी दादीनानी के समय से करती आई हैं. आमतौर पर इसे सिर से डैंड्रफ और खुजली को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इस के और भी अनेक फायदे हैं. दही विटामिन बी5 और डी से भरपूर होता है, इस में फैटी एसिड्स की भी अधिक मात्रा होती है जिस से यह बालों को स्मूथ और फ्रिज फ्री बनाता है. साथ ही, इस में जिंक, मैगनीशियम और पोटेशियम भी होता था. तो देर किस बात की, आइए जाने बालों में दही लगाने के कुछ तरीके.

1. डैंड्रफ के लिए

1 कटोरी दही
4-5 टीस्पून मेथी दाना पाउडर
1 चम्मच नीबू

डैंड्रफ दूर करने के लिए एक कटोरी में दही लें, नीबू का रस और मेथी दाना पाउडर डालें. तीनों को अच्छी तरह मिला कर बालों में लगाएं और शावर कैप से बालों को ढक लें. अब 40 मिनट तक इसे बालों में रख माइल्ड शैम्पू से अच्छी तरह धो लें. इफेक्टिव रिजल्ट के लिए हफ्ते में दो बार एक महीने तक लगाएं.

2. डीप कंडीशनिंग के लिए

एक कटोरी दही
2 चम्मच शहद

दही और शहद को साथ में लगाने से यह न केवल आप के बालों को जड़ों से कंडीशन करता है बल्कि ड्राई हेयर की समस्या हटा उन्हें मुलायम और मैनेजेबल भी बनाता है. एक कटोरी में दही और शहद मिलाइए. फिर इस से बालों में अच्छी तरह मसाज कीजिए और 20 मिनट रखने के बाद धो लीजिए.

3. बाल बढ़ाने के लिए

एक कटोरी दही
मुट्ठीभर करी पत्ता

करी पत्ते प्रोटीन और बीटा केरोटीन से भरपूर होते हैं जो बालों को टूटने से रोकते हैं. इन में अमीनो एसिड्स और एंटीऔक्सीडेंट्स की भी अच्छी मात्रा होती है जिन से यह बालों को जड़ों से मौइस्चर देते हैं. इस मास्क को बनाने के लिए मुट्ठीभर करी पत्ते पीस कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट को दही में मिला कर बालों में जड़ों से टिप तक लगाएं और 30 मिनट रखने के बाद धो लें. हेयर ग्रोथ को बूस्ट करने के लिए हफ्ते में एक बार इस मास्क को लगाएं.

4. फ्रिज फ्री बालों के लिए

एक कटोरी दही
एक केला

बालों से फ्रिजिनेस हटाने के लिए एक कटोरी दही में एक पूरा पका केला मैश कर के मिला लें. इसे बालों में 20 मिनट तक रखें और धो लें. इस हेयर मास्क को हफ्ते में एक बार फ्रीजिनेस हटाने के लिए जरूर लगाएं.

5 प्रोटीन देने के लिए

एक कटोरी दही
एक अंडे का योक

बालों की मजबूती और ग्रोथ के लिए उसे प्रोटीन देना जरूरी होता है. दही में अंडे के बीच के भाग यानी योक को अच्छी तरह मिला कर बालों में मसाज करते हुए लगाएं. इस मास्क को 20 मिनट तक रखें और शैम्पू से अच्छी तरह धो लें. स्पा जैसे इस ट्रीटमेंट को अच्छे रिजल्ट के लिए हफ्ते में एक बार लगाएं.

गर्मियों में बनाएं दलिया कैरट पुडिंग

गर्मियों में सूरज देवता अपना प्रताप जमकर दिखाते हैं, इच्छा अनिच्छा से घर से बाहर भी निकलना ही पड़ता है. इन दिनों अक्सर ठंडी ठंडी चीजें खाने का ही मन करता है. यूं तो बाजार में गर्मियों के लिए अनेकों ठंडे विकल्प मौजूद हैं परन्तु रेडीमेड प्रोडक्ट न तो सेहत के लिहाज से उपयुक्त होते हैं और न ही जेब के हिसाब से. घर पर बनाई जानी वाली खाद्य सामग्री जहां सस्ती तो पड़ती ही है साथ ही हाइजीनिक और उत्तम क्वालिटी की सामग्री से बनाई जाने के कारण बहुत हैल्दी भी होती है. आजकल बाजार में भांति भांति के दलिया उपलब्ध हैं जो आटे की अपेक्षा बहुत स्वास्थ्यप्रद होते हैं. इसी तारतम्य में आज हम आपको गेहूं के दलिये से एक डेजर्ट बनाना बता रहे हैं जिसे आप बहुत आसानी से घर पर बनाकर परिवार के सदस्यों को खिला सकतीं हैं-

कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट

मील टाइप वेज

सामग्री

-गेहूं का भुना दलिया 1/2 कप
-फुल क्रीम दूध 1 लीटर
-मिल्क पाउडर 1/2 कप
-किसी गाजर 2
-इलायची पाउडर 1/4 टीस्पून
-शकर 2 टेबलस्पून
-कटे फल(केला, सेब, कीवी, अनार)1 कप
-बारीक कटी मेवा 1/2 कप
– 1/2 टीस्पून

विधि

दूध को एक उबाल आने तक गर्म करके भुना दलिया डाल कर अच्छी तरह चलाएं. इसे धीमी आंच पर दलिये के पूरा गलने तक पकाएं. एक नॉनस्टिक पैन में घी डालकर इलायची पाउडर और किसी गाजर डाल दें. धीमी आंच पर गाजर के गलने तक पकाएं. जब गाजर पक जाए तो शकर डालकर मिश्रण के गाढ़ा होने तक पकाएं और इसे तैयार दलिये में डालकर अच्छी तरह मिलाएं. ठंडा होने पर एक चौकोर सर्विंग डिश में डालें. ऊपर से कटे फल और मेवा डालें और फ्रिज में रखकर ठंडा होने पर आइसक्रीम बाउल या कांच की कटोरियों में डालकर सर्व करें. आप चाहें तो ऊपर से रुहाफ़ज़ा शर्बत भी डाल सकतीं हैं.

  मरीचिका: क्यों परेशान थी इला – भाग 2

सब्जी जलने की गंध से इला का ध्यान टूटा. शिमलामिर्च जल कर कोयला हो गई थी. फ्रिज खोल कर देखा तो एक बैगन के सिवा कुछ भी नहीं था. वही काट कर छौंक दिया और दाल कुकर में डाल कर चढ़ा दी. वैसे वह जानती थी कि  यह खाना राजन को जरा भी पसंद नहीं. कितने चाव से सवेरे शिमलामिर्च मंगवाई थी.

इला व राजन हिल कोर्ट रोड के 2 मंजिले मकान की ऊपरी मंजिल पर रहते थे व नीचे के तल्ले पर कंपनी का गैस्टहाउस था. वहीं का कुक जब अपनी खरीदारी करने जाता तो इला भी उस से कुछ मंगवा लेती थी. कभी खाना बनाने का मन न होने पर नीचे से ही खाना मंगवा लिया जाता जो खास महंगा न था. कभी कुछ अच्छा खाने का मन होता तो स्विगी और जोमैटो थे ही.

कमरों के आगे खूब बड़ी बालकनी थी, जहां शाम को इला अकसर बैठी रहती. पहाड़ों से आने वाली ठंडी हवा जब शरीर से छूती तो तन सिहरसिहर उठता. गहरे अंधेरे में दूर तक विशालकाय पर्वतों की धूमिल बाहरी रेखाएं ही दिखाईर् देतीं, बीच में दार्जिलिंग के रास्ते में ‘तिनधरिया’ की थोड़ी सी बत्तियां जुगनू की जगह टिमटिमाती रहतीं.

राजन अकसर दौरे पर दार्जिलिंग, कर्लिपौंग, गंगटोक, पुंछीशिलिंग या कृष्णगंज जाता रहता. इला को कई बार अकेले रहना पड़ता. वैसे नीचे गैस्टहाउस होने से कोई डर न था.

इला ने चाय बनाई व प्याला ले कर बालकनी में आ बैठी. शाम गहरा गई थी. हिल कोर्ट रोड पर यातायात काफी कम हो गया था. अकेली बैठी, हमेशा की तरह इला फिर अपने अतीत में जा पहुंची.

शादी के  बाद राजन की बदली सिलीगुड़ी में हो गई थी. कंपनी की ओर से उसे फ्लैट मिल गया था. राजन के साथ शादी के बाद भी इला रमण को नहीं भूला पाई थी. तन जरूर राजन को समर्पित कर दिया था परंतु मन को वह सम?ा नहीं पाती थी. वह भरसक अपने को घरगृहस्थी में उल?ा कर रखती.

इला का घर शीशे की तरह चमकता रहता. चाय, नाश्ता, खाना सब ठीक समय पर बनता. राजन के बोलने से पहले ही वह उस की सब आवश्यकताएं सम?ा जाती थी परंतु रात आते ही वह चोरों  की तरह छिपने लगती. राजन के गरम पानी के सोते की तरह उबलते प्रेम का वह कभी उतनी गरमजोशी से प्रतिदान न कर पाती. ऐसे में राजन अकसर ?ाल्ला कर बैठक में सोने चला जाता. इला ठंडी शिला की तरह पड़ी रोने लगती. राजन कई तरह से उस का मन बहलाने का प्रयत्न करता.

कभी दौरे पर अपने साथ ले जाता, कभी घुमाने. कभी उसे कई विदेशी साड़ी इत्र और सौंदर्यप्रसाधन मंगवा देता परंतु इला थी कि पसीजना ही भूल गई थी.

जीवन की सब खुशियां उस के हाथों से, मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह खिसकती जा रही थीं. राजन भी इसे अपनी नियति सम?ा कर चुप बैठ गया था. मगर कभीकभी मित्रों के परिवारों के साथ बाहर की सैर का कार्यक्रम बनने पर इला के इस अनोखे मूड के कारण उसे बड़ा दुख होता.

पुरुष एक कार्य एक कार्यकुशल गृहिणी ही नहीं, प्रेमिका, पूर्ण सहयोगी और काफी हद तक बिस्तर पर एक वेश्या की सी भूमिका अदा करने वाली पत्नी चाहता है. मगर इला न जाने किस मृग मारीचिका के पीछे भटक रही थी. एक कुशल गृहिणी की भूमिका निभा कर ही वह अपने पत्नीत्व को सार्थक और अपने कर्तव्यों की इतिश्री सम?ा रही थी.

कभीकभी इला को अपने पर क्रोध भी आता. क्या दोष है बेचारे राजन का? क्यों वह उसे हमेशा निराश करती है? क्यों वह दूसरी औरतों की तरह हंस और खिलखिला नहीं सकती? क्यों वह अन्य पत्नियों की तरह राजन को कभी डांट नहीं पाती? क्यों उन दोनों का कभी ?ागड़ा नहीं होता? ?ागड़े के बाद मानमनौअल का मीठा स्वाद तो उस ने शादी के बाद आज तक चखा ही न था.

इला की बात से राजन कितना खिन्न हो गया था. जब से मनाली में एक नया रिजोर्ट बना था, कई लोग वहां जाने को उत्सुक थे. कितने दिनों से राजन अपने दोस्तों के साथ वहां जाने का कार्यक्रम बना रहा था और इला ने उस के सारे उत्साह पर एक ही मिनट में पानी फेर दिया था. राजन ने ही सब के लिए वहां कमरे बुक करवाए थे, पर अब इला के न जाने से उस की स्थिति कितनी खराब होगी.

रात को राजन आया तो कपड़े बदल कर चुपचाप लेट गया. खाना भी नहीं खाया. इला ने धीरे से मनाली की बात चलानी चाही तो उस ने कह दिया, ‘‘मैं ने सब को कह दिया है कि एक आवश्यक कार्य के कारण मैं न जा सकूंगा. अब तुम क्यों परेशान हो रही हो?’’ कह कर उस ने करवट बदल कर आंखें बंद कर ली थीं जैसे सो गया हो.

‘‘लेकिन प्रोग्राम तो तुम ने ही बनाया था, तुम्हारे न जाने से सब को कितना बुरा लगेगा?’’ इला धीरे से बोली.

‘‘अच्छा या बुरा लगने से तुम्हें तो कुछ अंतर पड़ने वाला नहीं है. जो होगा मैं देख लूंगा. तुम तो वहीं अपनी रसोई, सब्जी, घरगृहस्थी के चक्कर में उल?ा रहो.’’

इला रोने लगी. राजन कुछ पिघला. करवट बदल कर कुहनी के बल लेट कर बोला, ‘‘इला, क्यों तुम मेरे साथ कहीं भी जा कर खुश नहीं होतीं? क्यों हर समय उदास रहती हो? इस घर में  तुम्हें क्या कमी है या मैं तुम्हें क्या नहीं दे पाया, जो अन्य पति अपनी पत्नियों को देते हैं?’’

इला कुछ बोल नहीं पाई. कहती भी क्या?

राजन फिर बोला, ‘‘हमारे घर में सुखसुविधा के कौन से साधन नहीं हैं? हम बहुत धनी न सही परंतु मजे में तो रह ही रहे हैं. फिर भी तुम में किसी बात के लिए उत्साह नहीं. मेरे मित्रों की पत्नियां पति द्वारा एक  साधारण साड़ी ला कर देने पर ही खुशी से उछल पड़ती हैं परंतु तुम तो हंसी, खुशी की सीमा से कहीं बहुत दूर हो. हिमखंड जैसी ठंडी. तुम अपने इस ठंडेपन से मेरी भावनाओं को भी सर्द कर देती हो.’’

इला को उस ने अपनी बांहों के घेरे में ले लिया, ‘‘क्या तुम किसी और को चाहती

हो, जो मेरा प्यार सदा प्यासा ही लौटा देती हो?’’

इला ने ?ाट से अपनी आंखें पोंछ डालीं, ‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो?’’

‘‘फिर क्या विवाह से पहले किसी को चाहती थीं?’’ राजन ने गहरी नजर डालते हुए पूछा.

‘‘तुम आज क्या बेकार की बातें ले बैठे

हो? यदि ऐसा होता तो मैं तुम से विवाह ही क्यों करती?’’

बात भी ठीक थी. इला कोई अनपढ़, भोलीभाली लड़की तो थी नहीं कि उसकी शादी जबरदस्ती कहीं कर दी जाती. सगाई से पहले 2-3 बार राजन उस से मिला था, उस समय कभी नहीं लगा था कि विवाह के लिए उस से जबरन हां कराई गई है.

जब राजन की मां उसे अपनी पसंद की ड्रैसें, लहंगे खरीदने के लिए बाजार ले गई थीं तो उस ने बड़े शौक से अपनी पसंद के कपड़े खरीदे थे. फिर बाद में रेस्तरां में भी सहज भाव से गपशप करती रही थी. प्रारंभ से ही इला उसे सम?ादार लड़की लगी थी, आम लड़कियों की तरह खीखी कर के लजानेशरमाने व छुईमुई हो जाने वाली नहीं.

अपने एक खास मित्र के कहने से वह जब उस की मंगेतर से मिलने गया था तो वह कमसिन छोकरी मुंह पर हाथ रखे सारा समय अपनी हंसी ही दबाती रही थी. बारबार उस के गाल और कान लाल हो जाते थे. राजन ने सोचा था, ‘यह पत्नी बन कर घर संभालने जा रही है या स्कूल की अपरिपक्व लड़की पिकनिक मनाने जा रही है?’

इसी से इला की गंभीरता ने उसे आकृष्ट किया था. स्वयं भी उस की आयु एकदम कम न थी, जो किसी अल्हड़ लड़की को ढूंढ़ता. उस ने सोचा था कि परिपक्व मस्तिष्क की लड़की से अच्छी जमेगी. मगर इला का मन तो न जाने कौन सी परतों में छिपा पड़ा था, जिस की थाह वह अभी तक नहीं पा सका था. विवाह के प्रारंभिक दिनों में उस ने सोचा था कि शायद नया माहौल होने से ऐसा है परंतु अब तो यहां उन दोनों के सिवा घर में कोई न था, जिस के कारण इला इस तरह दबीघुटी सी रहती. किसी तरह भी वह गुत्थी नहीं सुल?ा पा रहा था.

 

कई औरतें ऐसी ही शुष्क होती हैं, किसी तरह अपने मन को सम?ा कर वह संतोष कर लेता. बिना मतलब गृहस्थी उजाड़ने का क्या लाभ? आज भी इला को बांहों में लिएलिए ही वह सो गया. किसी तरह की मांग उस ने इला के सामने नहीं रखी.

इला मन ही मन स्वयं को कोसती रही और निश्चय करती रही कि  अब वह अपने को बदलने का प्रयत्न करेगी. मगर वह स्वयं भी जानती थी कि अगले दिन से फिर पहले वाला ही सिलसिला शुरू हो जाएगा.

वैसे अपने जीवन का यह निश्चय उस ने स्वयं किया था. इस के लिए वह किसी को भी दोषी नहीं ठहरा सकती थी. प्रेम कहानी के इस त्रिकोण में न किसी ने दगा की थी, न कोई दुष्ट बीच में आया था. जीवन की एक कड़वी सचाई थी और पात्र यथार्थ के धरातल पर जीने वाले इसी दुनिया के जीव थे. सिनेमा में गाते, नाचते, पियानो बजाते, बिसूरते नायकनायिका नहीं थे.

मगर अब अपने साथसाथ वह राजन को भी सजा दे रही थी. सचाई से पहले व बाद में वह उस से साधारण रूप में मिलती थी, जिस में सहज मित्रता थी परंतु शादी के बाद अपने उत्तरदायित्व को वह संभाल नहीं पा रही थी.

अर्चना राजपूत हौट मगर कैरियर ठंडा

इंस्टाग्राम पर 10 लाख से ऊपर फौलोअर्स बनाने वाली अर्चना सिंह राजपूत बहुत हौट हैं लेकिन जितनी हौट वह हैं उन का कैरियर उतना ही ठंडा है. अर्चना सिंह राजपूत एक अभिनेत्री हैं. उन्होंने अपनी इंस्टा बायो में सिर्फ ऐक्टर लिखा है. लेकिन न तो उन्होंने कोई याद करने लायक फिल्म की है न ऐसी ऐक्ंिटग. उन की कुछ फोटोज पर उन्हें 1 लाख से ऊपर लाइक्स मिले हैं.

अर्चना की ऐक्ंिटग की प्रोफैशनल जर्नी टैलीविजन सीरियल ‘बहू हमारी रजनीकांत’ से शुरू हुई. दिखने में खूबसूरत और बोल्ड अर्चना ने इस के बाद टी सीरीज, जी म्यूजिक और सोनी जैसे प्रतिष्ठित चैनलों पर 14 से 15 संगीत वीडियोज में अभिनय किया. हरजीत हरमन और बब्बू मान जैसे प्रसिद्ध गायकों के साथ काम कर के उन्होंने अपने टैलेंट का प्रदर्शन किया. हाल ही में वे सिजलिंग अलबम ‘भीगी राम में’ भी गाने में नजर आईं.

फिल्मों में अर्चना ने तेलुगू फिल्म ‘महाप्रस्थानम’ से डैब्यू किया था. वे जल्द ही आर्य बब्बर के साथ ‘द लास्ट पेज औफ डायरी’ में नजर आने वाली हैं जोकि ओटीटी प्लेटफौर्म पर रिलीज होने वाली है. लेकिन ये ऐसे प्रोजैक्ट हैं जो कब आते हैं व कब चले जाते हैं, पता नहीं चलता.

हौट काया वाली अर्चना कई ब्रैंड्स के लिए मौडलिंग कर चुकी हैं. उन के शौक और रुचियों की बात करें तो जिम, मार्शल आर्ट, मुक्केबाजी, नृत्य (विशेषकर कथक) और पढ़ने आदि की वे क्रेजी हैं.

अर्चना सोशल मीडिया पर बहुत ऐक्टिव रहती हैं. हौट और सिजलिंग बिकिनी फोटोज से उन की वाल भरी पड़ी है. बीते कुछ दिनों में अर्चना ने इंस्टा पर बिकिनी पहने हुए समुद्र के किनारे एंजौय किया. उन की ये फोटोज इतनी बोल्ड हैं कि कुछ टाइम बाद ही फोटो के कमैंट बौक्स को बंद करना पड़ा.

कहना गलत न होगा कि शोहरत के लिए अभिनेत्रियां बहुतकुछ करती हैं तो अगर अर्चना अपने सुपर हौट लुक और बिकिनी क्लिक से फैंस का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं तो क्या नई बात है.

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