Makeup Tips: बस 10 मिनट में करें प्रोफेशनल जैसा ऑफिस मेकअप, आपसे इंप्रेस हो जाएंगे सभी

Makeup Tips: ऑफिस में काम के साथ ही आपकी अपीरियंस भी बहुत मायने रखती है. ऐसे में जरूरी है कि आप अच्छे आउटफिट्स के साथ ही अपने ऑफिस मेकअप पर भी पूरा ध्यान दें. आपको यह भी समझना होगा कि ऑफिस मेकअप पार्टी, गेट टुगेदर या आउटिंग वाले मेकअप से अलग होता है. ऑफिस मेकअप चुनने में आपको ज्यादा सावधान रहना पड़ता है, क्योंकि यह आपके चेहरे पर कम से कम आठ से नौ घंटे तक रहने वाला है. गलत मेकअप आपके लुक को बढ़ाने की जगह खराब कर सकता है. तो चलिए जानते हैं ऑफिस मेकअप कैसे करें और इसे करते समय क्या सावधानियां रखें.

  1. क्लींजिंग से करें शुरुआत

मेकअप करने से पहले सबसे जरूरी है क्लीनिंग. स्किन के डेड सेल्स को हटाने के लिए एक अच्छे क्लींजर का उपयोग करें. फिर गुनगुने पानी से चेहरा वॉश करें. टॉवल से थपथपाकर चेहरे को सुखाएं.

  1. बीबी क्रीम है बेस्ट

सुबह-सुबह की जल्दबाजी में महिलाओं के पास मॉइस्चराइजर, सनस्क्रीन, फाउंडेशन लगाने जितना समय नहीं होता. इसलिए इन सबकी जगह आप बीबी क्रीम का विकल्प चुनें. ये आपको फुल कवरेज देने के साथ ही प्राइमर की तरह आपकी स्किन को ग्लो देगीं. इसे लगाने से आपके चेहरे के डार्क स्पॉट्स भी नजर नहीं आएंगे. अगर आपकी स्किन ड्राई है तो आप मॉइस्चराइजर के बाद बीबी क्रीम लगाएं.

  1. जरूरत पर ही लगाएं कंसीलर

कंसीलर का उपयोग आप तब ही करें जब आप डार्क सर्कल या गहरे स्किन स्पॉट को छिपाना चाहती हैं. अगर आपकी स्किन पर ऐसी कोई समस्या नहीं है तो आप कंसीलर के बिना ही मेकअप करें.

  1. ब्लश चुनें सावधानी से

ऑफिस मेकअप में ब्लश सावधानी से चुनें, हालांकि यह जरूरी स्टेप है. आप हमेशा न्यूट्रल कलर का ब्लश अपने चीकबोन्स पर लगाएं. इससे आपके गालों को अलग ही चमक मिलेगी. आप चाहें तो ब्रोंजर का उपयोग भी कर सकती हैं. आप लिप और चीक टिंट का उपयोग भी कर सकती हैं. क्योंकि ये लंबे समय तक आपको कवरेज देंगे.

  1. आंखों पर दें खास ध्यान

आंखें किसी भी मेकअप का अहम हिस्सा है. अगर आप काजल लगाना पसंद करती हैं तो इसे अप्लाई करें. आईलाइनर हमेशा लिक्विड या जेल वाला यूज करें. आंखों को अच्छा लुक देने में आइब्रो का अहम रोल है. इसलिए ब्लैक की जगह डार्क ब्राउन आईब्रो पेंसिल का उपयोग करके इन्हें शेप दें. आप चाहें तो न्यूड शेड का आईशैडो लगाकर आंखों को और अट्रैक्टिव बना सकती हैं. हल्के प्लम, पिंक और ब्राउन कलर शेड्स न्यूट्रल ऑफिस मेकअप लुक के लिए बेस्ट हैं. पलकों पर मस्कारा का सिंगल कोट लगाएं. ध्यान रखें मस्कारा को बहुत ज्यादा न लगाएं. अगर आप नेचुरल लुक चाहती हैं तो न्यूड मस्कारा का यूज करें.

  1. संभलकर चुनें लिपस्टिक

सही लिपस्टिक आपके ऑफिस मेकअप में चार चांद लगा सकती है. लिपस्टिक लगाने से पहले लिप लाइनर जरूर लगाएं. इससे लिप्स को शेप मिलेगी और होंठ भरे हुए दिखेंगे. इसके बाद लाइट पिंक, न्यूड या फिर ब्राउन लिपस्टिक शेड्स लगाएं. कलर का चुनाव आप अपने आउटफिट के अनुसार करें. अगर होंठो को प्लंपी दिखाना है तो लिप कलर की जगह लिप ग्लॉस का यूज करें.

महिला कलाकारों के लिए यह एक अच्छा समय है: रवीना टंडन 

अभिनेत्री रवीना टंडन ने वैब सीरीज ‘अरण्यक’ से ओटीटी डेब्यू किया है. उन्होंने इस शो में एक छोटे से कसबे की कौप का रोल निभाया है. शो में दर्शकों ने उन के अभिनय को खूब सराहा. लोकप्रिय कन्नड़ फिल्म फ्रैंचाइजी ‘्यत्रस्न’ चैप्टर 2  में रवीना संजय दत्त के साथ नजर आई थीं. कन्नड़ सिनेमा में उन की यह पहली शुरुआत थी. 2023 में उन्हें चौथे सब से बड़े भारतीय नागरिक सम्मान पद्मश्री और कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. इस प्रकार रवीना टंडन के लिए दूसरी पारी काफी अहमियत वाली रही है.

51 वर्षीय रवीना कहती हैं, ‘‘मैं ने दर्शकों का दिल जीता है, मेरे लिए यह एक अच्छी दूसरी पारी रही. आज महिला कलाकारों के लिए यह एक अच्छा समय है. 90 के दशक में एक ऐक्ट्रैस की शादी के बाद उस की शैल्फ लाइफ खत्म हो जाती थी. वह शायद रिटायर हो जाएगी या उम्मीद की जाती थी कि वह अब मां या भाभी की भूमिका में आएगी. आज यह रोमांचक दौर है, अधिकांश ओटीटी शो का नेतृत्व महिलाओं द्वारा किया जा रहा है और हमें अभी भी स्ट्रौंग भूमिकाएं मिल रही हैं.

काम से प्यार

इस के अलावा रवीना की वैब सीरीज ‘कर्मा काङ्क्षलग’ भी एक हिट सीरीज रही है. रवीना हमेशा एक डाइरैक्टर की ऐक्टर रही हैं. वे कहती हैं, ‘‘इस से मु?ो काम करने में बहुत आसानी रहती है क्योंकि एक निर्देशक के आगे पूरी फिल्म रहती है. वे सभी कलाकारों के काम को देखते हैं, जबकि मैं सिर्फ अपना पार्ट करती हूं. ये सब मैं ने अपनी पिता से सीखा है. इस के अलावा सैट पर नए कलाकरों के साथ काम करने का अनुभव बहुत अच्छा रहता है क्योंकि इस से मु?ो भी हमेशा कुछ नया सीखने को मिलता है.

‘‘स्टारडम मेरे लिए बहुत अधिक माने नहीं रखतीं. मेरे हिसाब से मेहनत, लगन और धैर्य से ही अच्छा काम होता है. आज की तारीख में सोशल मीडिया का प्रभाव सभी पर अधिक है, पलक ?ापकते ही लाइक और दिसलाइक मिलते रहते हैं लेकिन अगर कोई प्रतिभावान है, अपने काम के प्रति ईमानदार और कमिटमैंट रखता है तो कोई भी आप का कुछ गलत नहीं कर सकता. मैं अपनी सफलता का श्रेय मैं अपने पेरैंट्स को देना चाहती हूं क्योंकि उन्होंने हमेशा मेरे उतारचढ़ाव में मेरा साथ दिया. उन्होंने मु?ो कोई आसान रास्ता चुन कर नहीं दिया. यही वजह है कि आज मैं अपनी स्ट्रैंथ को जान सकी. आसानी से मिलने वाले किसी भी काम की अहमियत कम होती है.’’

पिता के करीब

जैनरेशन में आए बदलाव के बारे में रवीना कहती हैं ‘‘ये गैप सालों पहले था और आज भी है. हरकोई इसे अपने हिसाब से देखता है. बदलाव होता रहता है लेकिन इस से आप कैसे जुड़े रहते हैं, वह आप पर निर्भर करता है. मैं अपने बच्चों को अपने पेरैंट्स के बताए संस्कार देती हूं. कई बार कोई समस्या आने पर आज भी मां की याद आती है कि उन्होंने इसे कैसे हैंडल किया था और मु?ो भी वैसे ही करना है. मैं हमेशा अपने पिता के बहुत करीब रही हूं.’’

मैं अपने पति और प्रेमी दोनों से प्यार करती हूं, इस स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 28 साल की महिला हूं. मैं और मेरे पति एकदूसरे का बहुत खयाल रखते हैं, मगर इधर कुछ दिनों से मैं किसी दूसरे के प्रेम में पड़ गई हूं. हमारे बीच कई बार शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. मु झे इस में बेहद आनंद आता है. मैं अब पति के साथसाथ प्रेमी को भी नहीं खोना चाहती हूं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

आप के बारे में यही कहा जा सकता है कि दूसरे के बगीचे का फूल तभी अच्छा लगता है जब हम अपने बगीचे के फूल पर ध्यान नहीं देते. आप के लिए बेहतर यही होगा कि आप अपने ही बगीचे के फूल तक सीमित रहें. फिर सचाई यह भी है कि यदि पति बेहतर प्रेमी साबित नहीं हो पाता तो प्रेमी भी पति के रहते दूसरा पति नहीं बन सकता. विवाहेतर संबंध आग में खेलने जैसा है जो कभी भी आप के दांपत्य को  झुलस सकता है.

ऐसे में बेहतर यही होगा कि आग से न खेल कर इस संबंध को जितनी जल्दी हो सके खत्म कर लें. अपने साथी के प्रति वफादार रहें. अगर आप अपनी खुशियां अपने पति के साथ बांटेंगी तो इस से विवाह संबंध और मजबूत होगा.

क्या आपके फ्रिज से भी आती है बदबू

फ्रिज में हम खाने-पीने की चीजों को ये सोचकर रखते हैं कि वे वहां सुरक्षित हैं लेकिन अगर फ्रिज से बदबू आने लगे तो समझ जाइए कि आपके फ्रिज में रखा सामान सुरक्षित नहीं रह गया है.

कई बार ऐसा होता है कि फ्रिज में रखी चीजों की गंध आपस में मिलकर बदबू में बदल जाती है. या अगर कुछ सड़ जाए तो भी फ्रिज से बदबू आने लगती है.

ऐसे में फ्रिज की बदबू दूर करना बहुत जरूरी हो जाता है. फ्रिज की बदबू दूर करने के लिए आप ये घरेलू उपाय अपना सकती हैं.

खाने वाला सोडा

खाने वाले सोडा को फ्रिज में एक कटोरी में रख दें. इससे फ्रिज की बदबू चली जाएगी. आप इसे स्थायी रूप से भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

नींबू

अगर आप चाहें तो नींबू की कुछ बूंदों को एक कटोरी में पानी के साथ मिलाकर रख सकती हैं. या फिर आधे कटे नींबू को यूं भी फ्रिज में रख सकती हैं.

काफी के बीज

काफी की कुछ बीन्स को कटोरी में रखकर फ्रिज में रख दें. फ्रिज से न केवल बदबू चली जाएगी बल्कि काफी की सोंधी खुशबू भी आने लगेगी.

संतरा या पुदीना

संतरा या पुदीने का अर्क फ्रिज की बदबू को दूर करके उसे एक बहुत अच्छी खुशबू से भर देता है. इसमें बदबू सोखने की क्षमता होती है. आप जिस पानी से फ्रिज साफ करें उसमें इनके अर्क की कुछ बूंदें मिला दें. आप चाहें तो इसे कटोरी में डालकर हमेशा के लिए रख भी सकती हैं.

न्यूजपेपर

अखबार फ्रिज की बदबू को सोख लेता है. आप चाहें तो पहले से ही फ्रिज में रखी जाने वाली चीजों को पेपर से लपेट दें. अगर आप ऐसा नहीं करना चाहती हैं तो फ्रिज में पेपर का एक बंडल रख दीजिए. बदबू चली जाएगी.

घर पर रेस्टोरेंट जैसे बनाएं कुरकुरे आलू, ये रही रेसिपी

अगर आप अपनी फैमिली के लिए स्नैक्स में टेस्टी डिश ट्राय करना चाहती हैं तो कुरकुरे आलू की रेसिपी जरुर ट्राय करें.

हमें चाहिए

–  3-4 आलू

–  1 छोटा चम्मच लहसुन कटा

–  1 छोटा चम्मच अदरक कसा

–  तेल आवश्यकतानुसार

–  1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

–  1 छोटा चम्मच ओरिगैनो

–  1 छोटा चम्मच पार्सले

–  नमक आवश्यकतानुसार.

विधि

आलुओं को आधा गलने तक उबाल लें. फिर छील कर टुकड़ों में काट लें. एक पैन में 1 चम्मच औयल गरम करें. अदरकलहसुन डाल कर कुछ देर तक भूनें. इस तेल में नमक और लालमिर्च डाल कर आंच से उतार लें. बचे तेल को उबले आलुओं पर डाल दें. पास्ले और ओरिगैनो मिक्स करें. आलुओं को अच्छी तरह से मिक्स कर लें. एक नौनस्टिक पैन पर थोड़ा सा तेल लगाएं. इन तैयार आलुओं को धीमी आंच पर सुनहरा होने तक तल लें. चाहें तो इन्हें गरम तेल में कुरकुरा होने तक तल लें.

हैप्पी एंडिंग: ऐसा क्या हुआ रीवा और सुमित के साथ?

हैप्पी एंडिंग: भाग-3

मां मेरे गले लगने आई मैं एक कदम पीछे हट गई, आसपास रिश्तेदारों की भीड़ थी इसलिए थोड़ा पास आ कर मैं ने उन से कहा ‘‘आज कसम ले कर जा रही हूं, पीछे मुड़ कर नहीं देखूंगी, आज के बाद आप लोग मुझ से मिलने की कोशिश मत करना, खत्म हुआ इस घर से

मेरा रिश्ता.’’

फिर मैं ने मुड़ कर नहीं देखा, हेमंत ने शादी तो की लेकिन पति बनने की कोशिश नहीं की… मुझ से दूर रहते थे… पहले तो मुझे लगा शायद मेरी बेरुखी और उदास रवैए की वजह से मुझ से दूर है, मगर मेरी यह गलतफहमी अमेरिका जाने के बाद दूर हुई… वहां पता चला हेमंत पहले से शादीशुदा है, मुझ से शादी उस ने घर वालों के लिए किया है, मुझे ये सुन कर बहुत खुशी हुई क्योंकि मैं खुद इस रिश्ते के बंधन से आजादी चाहती थी, मैं सिर्फ सुमित की थी मरते दम तक उसी की रहूंगी लेकिन मेरी मजबूरी थी कि मैं हेमंत के साथ रहूं, उस की पत्नी जेनी का मेरे साथ व्यवहार अच्छा था.

कुछ दिनों के बाद उस ने तलाक देने की बात कर मुझे इस मुश्किल परिस्थिति से अपना रास्ता निकालने का उपाय दे दिया… मैं ने एक शर्त रखी, ‘‘तलाक देने के लिए मैं तैयार हूं, बस मुझे यहां रहने और अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए सपोर्ट करो. लेकिन सपोर्ट मुझे लोन की तरह चाहिए क्योंकि मैं वापस भारत नहीं जाना चाहती, मेरी पढ़ाई पूरी होते ही सारे पैसे चुका दूंगी.’’

वे दोनों मान गए और शुरू हुई मेरी एक नई कहानी… वह कहते हैं जो होता है अच्छे के लिए होता है, यह मेरे लिए अच्छा था… चार्टड एकाउंटैंट बनने का मेरा सपना पूरा हुआ, अमेरिका में मेरा खुद का लौ फर्म है, कुछ साल काम करने के बाद हेमंत का एकएक पैसा मैं ने वापस कर दिया था, लेकिन उस का एहसान नहीं भूल सकती. जब सारे रास्ते बंद थे तब हेमंत और जेनी ही मेरे साथ थे… बीते इन सालों में हेमंत का परिवार ही मेरा परिवार था, उस की पत्नी जेनी मेरी बैस्ट फ्रैंड बन गई थी. सुमित की बहुत याद आती थी. उस से बात करने के लिए न जाने कितनी बार फोन उठाया पर हिम्मत नहीं कर पाई… अनजाने में ही सही मैं अपनी प्रेम कहानी में गलत बन गई.

सालों के बाद काम की वजह से भारत आई तो यहां आने से खुद को रोक नहीं

पाई. खुद को दी कसम मैं भूलना चाहती हूं.

‘‘रीवा… तुम रीवा हो न, कितनी खूबसूरत हो गई हो, सुंदर पहले से थी लेकिन अब नूर टपक रहा है तुम पर’’ बीना आंटी सब्जियों की थैलियों को संभालते हुए मेरे सामने खड़ी थीं.

‘‘जी, आंटी… रीवा हूं. कैसी हैं आप’’ उन को देख कर मुझे कोई खुशी नहीं हुई जो उन्हें समझ आ गया था.

‘‘रीवा, मैं जानती हूं तुम मुझे कभी माफ नहीं करोगी, सुमित ने भी आज तक मुझे माफ नहीं किया, तुम दोनों के बीच संवाद का सूत्र मैं थी लेकिन तुम्हारे दिए गए खत सुरेखा भाभी के कहने पर मैं ने भेजना बंद कर दिया और सुमित को कुछ नहीं बताया.’’

‘‘आंटी, अब इन सभी बातों का कोई फायदा नहीं… जो मेरी किस्मत में था वह मिला मुझे’’

‘‘रीवा… तू यहां… कितनी बदल गई है.’’

बड़ी चाची भी सब्जी ले कर आ रही थीं.

‘‘चाची नमस्ते… आप सब्जी लेने आई हैं?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘अब सब बदल गया बिटिया. घर के 6 हिस्से हो गए सब अपनी जिंदगी अपने अनुसार जीते हैं, अब कोई रोकटोक नहीं, तुम्हारी शादी की सचाई सुन कर भाभी तो जैसे पत्थर हो गई हैं, माताजी का रौब धीरेधीरे खत्म हो गया, अब तो बेटा… सब बदल गया’’ चाची ने एक सांस में घर की सारी कहानी बता दी.

‘‘अच्छा… चाची, बीना आंटी… मुझे कुछ काम है, कल घर आऊंगी.’’

मुझे निकलना था वहां से, अभी मां को फेस करने की हिम्मत नहीं थी मुझ में, आज मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा था. उस समय मेरा दिल टूटा था, गुस्से में थी लेकिन बाद में कई मौके थे जब मैं मां से बात कर सकती थी, गुस्से में लिए मेरे एक फैसले के कारण मेरी मां अपराधबोध में जीवन जी रही है… तड़प उठी मैं, मां से मिलने की इच्छा तीव्र हो रही थी, किसी तरह रात गुजरी, सूरज की किरणों के निकलने से पहले मैं हवेली के गेट के सामने खड़ी थी. मेरे आने की सूचना घर के अंदर पहुंच चुकी थी, सभी नींद से उठ कर बाहर निकल आए थे… ड्योढ़ी में दादी मिल गईं. मुझे अपनी बाहों में ले कर रोने लगी… यह मेरे लिए नया अनुभव था, आज तक मुझे कभी दादी की गोद नसीब नहीं हुई और अब इतना प्यार… सच कहा था चाची ने… सब बदल गया है.

मेरी आंखें मां को ढूंढ़ रही थी, पिताजी के पास गई उन्होंने सिर पर हाथ रखते हुए कहा ‘‘अच्छा किया बिटिया… घर आ गई, सुना है बड़ी अफसर बन गई है… जीती रहो, दुनिया भर की खुशियां मिलें तुम्हें.’’

‘‘पिताजी, मां कहां है?’’

‘‘बिटिया… वह अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती, जाओ उस के पास, हो सकता है तुम्हें देख कर ठीक हो जाए.’’

मैं भारी कदमों से कमरे में पहुंची… मां बिस्तर के एक कोने में सिर टिकाए छत को घूर रही थी, निस्तेज आंखें, उन का गोरा सुंदर चेहरा फीका पड़ा था. मां को ऐसे देख मेरा दिल तड़प उठा.

‘‘मां… देखो मैं आ गई, तुम मुझे कैसे भूल गई. माना मैं नाराज थी, तुम ने भी कभी मिलने की कोशिश नहीं की, ऐसे यहां आराम से बैठी हो. इतनी दूर से आई हूं, अपनी रीवा को कुछ खिलाओगी नहीं.’’

जैसेतैसे खुद को सयंत करते हुए मां से बात करने लगी.

‘‘रीवा… मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची… बहुत अन्याय किया मैं ने तेरे साथ.’’

मां ने कहा.

मेरी आंखें आज वर्षों बाद आंसुओं से भीग गईं. दोनों गले लग कर खूब रोए… आंसुओं के साथ गिलेशिकवे दूर हो रहे थे, 10 वर्षों के बाद आज मांबेटी का मिलन हो गया, मेरी मां आज मुझे वापस मिल गई. जिन रिश्तों से मुंह मोड़ कर में चली गई थी आज वो रिश्ते पहले से कहीं ज्यादा प्यार के साथ एक सुखद बदलाव के साथ मिले. कुछ नए रिश्ते भी… इस घर में आई बहुएं जो आजाद थीं, अपनी मर्जी की जिंदगी जी रही थीं, वे खुश थीं… जिंदगी में बदलाव हर लिहाज से अच्छा होता है.

शाम को सब से नजरें छिपाते मैं फिर मुंडेर पर आ गई… सब से मिल कर भी मेरे दिल का एक कोना उदास था.

‘‘सुमित… इतने वर्ष बीत गए अब तो तुम मुझे भूल गए होगे’’ बुदबुदाते हुए मैं मुंडेर पर बैठ गई.

‘‘ऐसा सोच भी कैसे लिया रीवा… तुम्हारा सुमित तुम्हें भूल जाएगा’’ सुमित की आवाज सुन कर मैं मुंडेर से कूद पड़ी.

‘‘संभल कर उतरो, चोट लग जाएगी.’’

सुमित ही है… मेरे सुमित, कितने बदल गए हैं. लड़कपन की छवि से निकल कर धीरगंभीर बेहद खूबसूरत प्रभावशाली व्यक्ति के मालिक सुमित मेरे सामने है. मैं स्तब्ध थी. वाकई क्या

वही है या मेरी आंखों को छलावा हुआ. मुझे

न मेरी आंखों पर भरोसा था न कानों पर. वो मुसकान कैसे भूल सकती हूं जिस के सहारे इतने वर्ष बिता दिए, मेरा वजूद उस के पास होने के अनुभव मात्र से परिपूर्ण हो रहा था. रिक्तता भरने लगी, दिल के उस दर्द भरे हिस्से को जैसे अमृत मिल गया हो.

‘‘रीवा… तुम ठीक हो, बूआ ने फोन किया कि तुम वापस आ गई हो. मैं जानता था एक न एक दिन तुम मेरे पास आओगी. जब प्रेम सच्चा हो तो मिलन जरूर होता है देर से ही सही,’’ मेरा हाथ उस ने अपने हाथों में ले लिया. उस की बातें, उस के स्पर्श से मैं भीग रही थी.

‘‘तुम सच में मेरे पास हो’’मेरे शब्दों में कंपन था, चेतना खो रही थी… मैं बेसुध हो उस की बाहों में झूल गई.

आंख खुली तो सभी घरवाले मुझे घेर कर खड़े थे, बीना आंटी, मां एकदूसरे का

हाथ थामे मुसकरा रही थीं.

सुमित मेरे सिरहाने बैठे थे.

मैं ने हैरत से सब को देखा सब के चेहरे पर सहमति दिख रही थी, सुमित का हाथ मैं ने अपने हाथों में थाम लिया… आखिरकार मेरे प्यार की हैप्पी ऐंडिंग हो ही गई.

फूलप्रूफ फार्मूला: क्या हो पाई अपूर्वा औऱ रजत की शादी

family story in hindi

सही डोज: भाग 2- आखिर क्यों बनी सविता के दिल में दीवार

काम करती हुई सविता सोच रही थी कि उस की मां ने घर को इतना साफसुथरा रखना सिखाया था. काम करने को अकेली मां ही तो थी, पर घर में हर चीज कायदे से अपनी जगह पर रखी होती थी. पिताजी, भैया और वे तीनों काम पर जाते थे, पर मजाल है कि किसी का अपना सामान इधरउधर बिखरा मिले. सब चीजों के लिए एक जगह निश्चित थी. यहां आज ठीक करो, कल फिर वैसा ही हाल. उस की ससुराल के लोग सीखते क्यों नहीं, समझते क्यों नहीं. देवर होस्टल में जरूर रहता है, पर घर आते ही वह भी इस घर के रंग में रंग जाता. ऐसा लगता था जैसे इस तरीके से रहना इन लोगों को कहीं से विरासत में मिला है.

अकसर शिकायत करती महरी की आवाज आई, ‘‘बरतन मेज से उठा कर सिंक में रख कर कुछ देर नल खोल दिया करो तो जल्दी साफ  हो जाते,’’ कह कर वह चली गई. 4 दिन बाद कोई और मिली थी तो रात को खाना खाने के बाद हमेशा की तरह सब लोग बैठक में बातें करने के इरादे से बैठा करते थे.

तभी सविता ने कहा, ‘‘बहुत खोज कर कपड़े धोने के लिए मैं एक नई औरत को इस शर्त पर लाई थी कि सिर्फ कपड़ों के नीचे पहनने वाले कपड़े ही धोने होंगे. बड़े कपड़े यानी पैंट, शर्ट, कमीज, धोतियां, चादरें तो धोबी धोता ही है. पर आज वह मुझसे कह रही थी कि अब बड़े कपड़े भी उसे दिए जाने लगे हैं. वह तो इस बात पर काम छोड़ रही थी. मैं ने किसी तरह उसे समझा दिया है. अब आप लोग सोच लें वह बड़े कपड़े धोऊंगी नहीं.’’

कोई कुछ नहीं बोला, नवीन ने बेचैनी से 1-2 बार कुरसी पर पहलू जरूर बदला. गप्पों का मूड उखड़ चुका था. सब उठ कर अपनेअपने कमरे में चल गए. तभी सविता ने फैसला किया था नवीन के साथ अलग रहना ही इस समस्या का हल है. दोनों की मुलाकात उसे याद हो आई…

दांतों के डाक्टर की दुकान की बात है. एक खूबसूरत सी लड़की बैठी थी. तभी एक युवक भी आ कर बैठ गया. और भी बहुत से लोग बैठे थे. इंतजार तो करना ही था. तभी भीतर से एक तेज दर्दभरी चीख सुनाई दी और साथ में डाक्टर की आवाज भी, ‘‘अगर आप इतना शोर मचाएंगे तो बाहर बैठे मेरे सब मरीज भाग जाएंगे.’’

और तो कोई नहीं भागा, पर 2 मरीज जरूर भाग रहे थे और भागने में यह खूबसूरत सी लड़की उस लड़के से दो कदम आगे ही थी. वह बड़ी तेजी से सीढि़यां उतरती गई. बाहर ही एक औटो खड़ा था. वह औटो में बैठ गई. तभी वह युवक भी जो दो कदम ही पीछे था, घुस गया. उन के शहर में औटो शेयर करने का रिवाज था. रिकशाचालक हिसाब से पैसे ले लेता था.

रिकशा वाले ने लड़की से पूछा, ‘‘बहनजी, कहां जाना है?’’

हांफतेहांफते लड़की ने कहा, ‘‘हजरतगंज.’’

लड़के से रिकशा वाले ने कुछ नहीं पूछा.

कुछ देर बाद दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा और मुसकरा दिए. वे दोनों अब काफी बेहतर महसूस कर रहे थे. तभी युवक ने डरतेडरते धीरे से अपनी दुखती दाढ़ को छुआ. एक गोल सी छोटी सी चीज हाथ में आ गई. उसे संभाल कर मुंह से बाहर निकाल कर उस ने खिड़की की तरफ कर के देखा, ‘‘निकल गया.’’

‘‘क्या?’’ लड़की ने चौंक कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं, कंकड़, जो दाढ़ में फंसा था,’’ झेंपकर लड़का बोला, ‘‘शायद चावल में था.’’

लड़की ने कुछ नहीं कहा और युवक की आंख बचाकर अपने सामने के एक दांत पर उंगली फेरी और फिर ‘‘ओह’’ कर अपनी सीट से उछल पड़ी.

‘‘क्या हुआ,’’ युवक ने पूछा.

जवाब में लड़की ने उंगलियों में पकड़ा एक लंबा सा कांटा निकाल कर युवक के हाथ पर रख दिया और फिर नजरें झुका कर कहा, ‘‘मछलीका है, यही मेरे दांत में अटक गया था.’’

‘‘जरूर अटक गया होगा. आप हैं ही ऐसी, कोई भी अटक सकता है.’’ कुछ देर की खामोशी के बाद लड़की फिर बोली, ‘‘आप कहां जाएंगे?’’

‘‘आप हजरतगंज जाएंगी, मैं चिडि़याघर के पास रहता हूं, वहीं उतर जाऊंगा.’’

‘‘चिडि़याघर के भीतर नहीं,’’ लड़की ने कहा और दोनों हंसने लगे. यह नवीन और सविता की पहली मुलाकात थी. यादों में खोई वह खड़ी थी. तभी नवीन ने पीछे से आ कर उसे बांहों के घेरे में ले लिया.

‘‘अंधेरे में खड़ी हो.’’ ‘‘आदत पड़ गई थी, पर अब चांदनी की आदत डाल रही हूं.’’

‘‘सविता, हम ने प्रेम विवाह किया है. तुम्हें प्यार करता हूं, इसीलिए सब घर वालों को छोड़ कर आया हूं हालांकि सब से मेरा प्यार आज भी है.’’ ‘‘प्रेम विवाह हम ने जरूर किया था, पर बाद में प्रेम तो रहा नहीं, सिर्फ विवाह रह गया. प्रेम तो घर के चौकेचूल्हे और घर की चीजें उठानेरखने में न जाए किस अलमारी में बंद हो गया था.’’

‘‘सही कह रही हो सविता.’’ ‘‘गलती मेरी ही थी. शादी से पहले मैं ने तुम से यह जो नहीं पूछा था कि मु?ो कहां ले जा कर रखोगे.’’

‘‘मैं हमेशा तुम्हारी परेशानियों को समझता रहा हूं सविता.’’ ‘‘पर कुछ कर नहीं रहे थे. सब साथ रहते तो कितना अच्छा रहता. अब मुझे अकेलापन खलता है,’’ सविता ने कहा.

‘‘अब भी मेरी मजबूरी है तुम्हें.’’ ‘‘हां मुझे लगता है मैं ने तुम से कुछ छीन लिया है. मैं इतनी खुदगर्ज नहीं हूं नवीन.’’ ‘‘लगता है, तुम्हारी मजबूरी कभी खत्म नहीं होगी. जाओ, जा कर सो जाओ. मुझे सवेरे जल्दी उठना होगा.’’

अब पछताए होत क्या: किससे शादी करना चाहती थी वह – भाग 2

भोपाल स्टेशन के जाते ही मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. फिर पता नहीं कब मेरी आंख लग गई और मैं इतनी गहरी नींद सोई कि सिकंदराबाद जंक्शन आने पर ही मेरी आंख खुली. मैं ने अपनी कलाई घड़ी में समय देखा, शाम के साढ़े 6 बज रहे थे.

मैं ने पर्स से निकाल कर अपना मास्क पहना, परदा पूरा खिसकाया और सामने देखा. अमित नीचे की बर्थ पर बैठा हुआ किन्हीं गहरे खयालों में खोया हुआ था. विंडो के नीचे लगे होल्डर पर रखे खाली टी कप को देख कर मेरी भी चाय पीने की इच्छा प्रबल हो उठी. मैं ने मास्क लगेलगे ही अमित से पूछा, “आई बेग योर पार्डन मिस्टर, आर द सर्विसेस औफ पेंट्री कार इज अवेलेबल एट दिस टाइम औफ कोविड 19, इन दिस स्पेशल ट्रेन.”

“यस. यू जस्ट काल द अटेंंडेंट औफ दिस कोच, ही विल अरेंज टी फौर यू. एंड माय नेम इज अमित. एंड आई विल बी हैप्पी, इफ यू टेल मी योर नेम.”

“नन्ना हेसारु सुम्मी,” मैं ने कन्नड़ भाषा में उत्तर दिया, जो अमित के सिर के ऊपर से गुजर गया.

उस ने हिंदी में कहा, “मैं कुछ समझा नहीं…?”

“ओह दैट मीन्स यू कांट स्पीक इन कन्नड़?”

“हां, मैं कन्नड़ भाषा न पढ़ सकता हूं, न लिख और बोल सकता हूं…”

“ओके. देन आई विल टाक इन इंगलिश?” मुझे ऐसा लग रहा था कि बहुत पहले उस से हुई वार्तालाप की जंग मैं ने जीत ली है, इसलिए जैसे ही उस ने कहा, “मैडम, क्यों न हम हिंदी में बात करें. मेरे खयाल से दिल्ली और आगरा में बोली जाने वाली भाषा में एक अजीब सा अपनापन लगता है.”

“तो क्या और भाषाओं में अपनापन नहीं रहता?”

“अपनापन जरूर रहता होगा, पर जब सामने वाला भी अपने जैसी भाषा में बात करने वाला हो तो मजा तो उसी भाषा में बात करने में आता है,” सुन कर मैं ने अपने ही मन से कहा, “तो ये बात उस दिन क्यों समझ में नहीं आ रही थी बच्चू, जब मुझ पर अंगरेजी बोल कर रोब झाड़ रहे थे.”

मैं ने ज्यादा देर उसे परेशानी में नहीं रखा और हिंदी में उस से बात करने लगी, “मेरा नाम सुमन है. मैं बैंगलोर यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर हूं. आगरा में लौकडाउन में फंस गई थी, अब वापस अपने ससुराल जा रही हूं.”

“सुमन” शब्द दोहराते हुए वह अपने मस्तिष्क पर जोर देता हुआ मुझे गौर से देखने लगा.

तभी अटेंडेंट मेरी बर्थ के सामने से गुजरा. उसे देख कर मैं समझ गई कि हो न हो, ये कर्नाटक का ही रहने वाला है, इसलिए मैं ने उस से कन्नड़ में कहा, “हे, नानू चाह कुडियालु बयसुत्तेने.” (सुनो, मुझे चाय पीने की इच्छा हो रही है.)

“निमगे इष्टो कप चाह बेकू.” (आप को कितने कप चाय चाहिए.)

अटेंडेंट से कन्नड़ में बात करते हुए मैं ने अमित से पूछा, “मिस्टर अमित, क्या आप मेरे साथ एक चाय पीना पसंद करेंगे?”

“हां, लेकिन पेमेंट मैं करूंगा.”

“ओके,” कहते हुए मैं फिर अटेंडेंट की तरफ मुखातिब हुई और उसे 2 कप चाय लाने का कन्नड़ में आदेश देते हुए उठ कर टायलेट के लिए चली गई. मास्क लगा ही हुआ था और सैनेटाइजर की छोटी स्प्रे बोतल अपने पर्स में रख कर लेती गई.

जब लौटी तो मैं ने अमित की तरफ देखे बिना ही अपने चादर, तकिए व कंबल को फिर से सैनेटाइज किया और अपनी बर्थ पर मास्क को नाक पर सेट करती हुई बैठ गई.

कुछ ही देर में ‘टी’ सर्व हो गई. अमित ने लपक कर वेटर को अपने पर्स से रुपए निकाल कर भुगतान किया.

ट्रेन अपनी रफ्तार पर थी. हम दोनों ने अपने मास्क ठुड्डी के नीचे सरका कर चाय के सिप लेने शुरू कर दिए थे.

चाय पी कर मैं ने मास्क फिर ठुड्डी से ऊपर की ओर सरका लिया और एक नजर अमित पर डाली. वह तेज रफ्तार चलती ट्रेन में खिड़की की तरफ मुंह किए हुए किन्हीं गहरे विचारों में खोया हुआ था.

अचानक उस ने मेरी तरफ मुंह घुमाया और मुझे अपनी तरफ देखता पा कर बोला, “दिल्ली से बैंगलोर का ट्रेन सफर तो बहुत लंबा है. अभी तो पूरी रात भी इसी ट्रेन में काटनी है. कल सवेरेसवेरे 6 बजे के आसपास ये ट्रेन वहां पहुंच पाएगी.”

कुछ देर चुप रहने के बाद वह मुझ से पूछ बैठा, ”क्या आप बैंगलोर की रहने वाली हैं?”

“नहीं. मैं तो आगरा की रहने वाली हूं. बैंगलोर में ससुराल है. लौकडाउन के कारण मैं आगरा में फंस गई थी, पर आप…?”

अचानक मेरा मन यह जानने को उत्सुक हो उठा कि मुझे ठुकराने के बाद उस की शादी किस से हुई और वह बैंगलोर क्यों जा रहा है?

उस ने बताना शुरू किया, “मैं विप्रो में हूं. दिल्ली में पोस्टिंग है. बैंगलोर तो मजबूरी में जाना पड़ रहा है.“

“मजबूरी में…? ऐसी क्या मजबूरी हो सकती है?” मैं ने पूछा, तो तुरंत कोई उत्तर न दे कर मौन हो कर कहीं खो गया… फिर कुछ देर बाद वह बोला, “वास्तविकता ये है कि अपनी इस स्थिति का जिम्मेदार मैं खुद हूं.”

“मैं कुछ समझी नहीं… कैसी स्थिति? कौन सी जिम्मेदारी?”

मैं ने पूछा, तो उस ने बताया, “दरअसल, विप्रो में मेरी नौकरी क्या लगी कि मम्मीपापा की महत्वाकांक्षाओं के साथसाथ मेरा दिमाग भी खराब हो गया और मैं इतने अभिमान में रहने लगा कि जो भी लड़की देखने जाऊं, उसे किसी न किसी बहाने रिजेक्ट कर मुझे बहुत खुशी महसूस हो…

“आखिर बैंगलोर में सेटल हुए. कभी दिल्ली के ही रहने वाले एक परिवार की लड़की मानसी मुझे और मम्मी दोनों को पसंद आ गई. वह लड़की माइक्रोसौफ्ट में अच्छे पैकेज पर थी. वह बहुत अच्छी अंगरेजी बोलती थी. स्मार्ट और डैशिंग. अपनी शर्तों पर दिल्ली पोस्टिंग लेने और जौब न छोड़ने का हम से वादा ले कर वह मुझ से शादी करने के लिए राजी हो गई…

“हमारी शादी हुई. दिल्ली का माइक्रोसौफ्ट औफिस भी उस ने ज्वाइन कर लिया, लेकिन मम्मी को जौब करने के लिए रातभर उस का घर से गायब रहना और सवेरे वापस आ कर देर तक सोते रहना अखरने लगा…

“बरसों तक तो वो इस आस में जीती रहीं कि बहू आएगी तो उन्हें घरगृहस्थी से फुरसत मिलेगी. पर यहां तो मानसी के हिसाब से घर का रूटीन सेट होता जा रहा था, इसलिए उन्होंने मानसी को रोकनाटोकना शुरू कर दिया. मुझे भी लगने लगा था कि वास्तव में मानसी को अपनी पत्नी बना कर लाने का फायदा ही क्या हुआ. मैं ने उसी को समझाना शुरू कर दिया, तो वह एक दिन मुझ से भिड़ गई और बोली, “तुम एक बात बताओ कि मां मुझे बहू बना कर लाई हैं या नौकरानी. जितना मुझ से बन पड़ता है, मैं घर संभालती तो हूं… फिर शादी से पहले मैं ने इसीलिए कुछ शर्तें…

“तुम ये रात का जौब छोड़ कर कोई दिन वाला…

“ओह… तो तुम भी एक ही पक्ष देख रहे हो. ऐसी स्थिति में मेरा यहां रहने का कोई औचित्य नहीं है… मैं बैक ट्रांसफर ले कर वापस बैंगलोर जा रही हूं…”

“इस के एक ही हफ्ते बाद वह बैंगलोर चली गई. मैं भी उसे रोक न पाया. उस ने वहां का औफिस फिर से ज्वाइन कर लिया. उस के महीनेभर बाद ही मुझे बैंगलोर कोर्ट से डिवोर्स का लीगल नोटिस प्राप्त हुआ और उसी कोर्ट में उपस्थित होने का सम्मन मिला.

“लेकिन, तभी कंप्लीट लौकडाउन लग गया और सभी कोर्टकचहरी के कामकाज ठप हो गए. अब जब फिर से सब खुला है, तो स्पीड पोस्ट से मिला नोटिस पा कर मजबूरी में मुझे वहां जाना पड़ रहा है.”

शायद रात में पड़ने वाला कोई बड़ा स्टेशन आने वाला था, क्योंकि इस राजधानी एक्सप्रेस की गति धीमी हो गई थी.

अमित चुप हो कर खिड़की के बाहर देखने लगा था और मेरा ध्यान उस वेटर की तरफ चला गया था, जो खाने की थाली का और्डर लेता हुआ हमारी बर्थ की तरफ चला आ रहा था.

अमित ने खाने का और्डर प्लेस करने से पहले मेरी तरफ देखा, तो मैं बोल पड़ी, ”मेरे पास अपना टिफिन है. तुम बस अपने लिए मंगा लो.”

खाना खा कर जब मैं सोने के लिए लेटी, तो मेरी रिस्ट वाच में रात का 12 बजा था और अमित अपनी ऊपर की बर्थ पर जा कर लेट गया था.

आपस का संवाद जैसे पूरा हो चुका हो. मैं परदा खींच कर चुपचाप लेट गई. ट्रेन की रफ्तार पर गौर करने लगी. सोचने लगी, “कहीं इस से मेरी शादी हो गई होती तो क्या मुझे भी इस से तलाक लेना पड़ता.

“लेकिन, मैं ये सब क्यों सोच रही हूं… मेरे लिए रमन से अच्छा तो कोई और हो ही नहीं सकता था. और मां…जैसी सास तो शायद ही किसी लड़की के नसीब में होती होगी.”

यही सब सोचते हुए मेरी न जाने कब आंख लग गई. जब आंख खुली तो बैंगलोर स्टेशन आ चुका था. मैं ने मोबाइल में अभीअभी फ्लैश हुए मैसेज को पढ़ा. रमन द्वारा भेजा गया मैसेज था, “कोविड 19 को स्प्रैड होने से बचाने के लिए किसी को भी स्टेशन के अंदर आ कर रिसीव करने की अनुमति नहीं दी जा रही है. मैं बाहर पार्किंग के पास तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. वहीं मिलो.”

मैं ने तेजी से मास्क चढ़ाया, धूप का चश्मा पहना और बैग व अटैची लिए ट्रेन से उतर कर स्टेशन के एक्जिट की तरफ बढ़ गई.

मुझे आभास था कि वो मेरे पीछे ही एक्जिट की तरफ बढ़ रहा है, पर मुझे उस से क्या लेनादेना. मुझे तो बाहर इंतजार करते रमन के पास जल्दी से जल्दी पहुंचना था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें