family story in hindi
family story in hindi
काम करती हुई सविता सोच रही थी कि उस की मां ने घर को इतना साफसुथरा रखना सिखाया था. काम करने को अकेली मां ही तो थी, पर घर में हर चीज कायदे से अपनी जगह पर रखी होती थी. पिताजी, भैया और वे तीनों काम पर जाते थे, पर मजाल है कि किसी का अपना सामान इधरउधर बिखरा मिले. सब चीजों के लिए एक जगह निश्चित थी. यहां आज ठीक करो, कल फिर वैसा ही हाल. उस की ससुराल के लोग सीखते क्यों नहीं, समझते क्यों नहीं. देवर होस्टल में जरूर रहता है, पर घर आते ही वह भी इस घर के रंग में रंग जाता. ऐसा लगता था जैसे इस तरीके से रहना इन लोगों को कहीं से विरासत में मिला है.
अकसर शिकायत करती महरी की आवाज आई, ‘‘बरतन मेज से उठा कर सिंक में रख कर कुछ देर नल खोल दिया करो तो जल्दी साफ हो जाते,’’ कह कर वह चली गई. 4 दिन बाद कोई और मिली थी तो रात को खाना खाने के बाद हमेशा की तरह सब लोग बैठक में बातें करने के इरादे से बैठा करते थे.
तभी सविता ने कहा, ‘‘बहुत खोज कर कपड़े धोने के लिए मैं एक नई औरत को इस शर्त पर लाई थी कि सिर्फ कपड़ों के नीचे पहनने वाले कपड़े ही धोने होंगे. बड़े कपड़े यानी पैंट, शर्ट, कमीज, धोतियां, चादरें तो धोबी धोता ही है. पर आज वह मुझसे कह रही थी कि अब बड़े कपड़े भी उसे दिए जाने लगे हैं. वह तो इस बात पर काम छोड़ रही थी. मैं ने किसी तरह उसे समझा दिया है. अब आप लोग सोच लें वह बड़े कपड़े धोऊंगी नहीं.’’
कोई कुछ नहीं बोला, नवीन ने बेचैनी से 1-2 बार कुरसी पर पहलू जरूर बदला. गप्पों का मूड उखड़ चुका था. सब उठ कर अपनेअपने कमरे में चल गए. तभी सविता ने फैसला किया था नवीन के साथ अलग रहना ही इस समस्या का हल है. दोनों की मुलाकात उसे याद हो आई…
दांतों के डाक्टर की दुकान की बात है. एक खूबसूरत सी लड़की बैठी थी. तभी एक युवक भी आ कर बैठ गया. और भी बहुत से लोग बैठे थे. इंतजार तो करना ही था. तभी भीतर से एक तेज दर्दभरी चीख सुनाई दी और साथ में डाक्टर की आवाज भी, ‘‘अगर आप इतना शोर मचाएंगे तो बाहर बैठे मेरे सब मरीज भाग जाएंगे.’’
और तो कोई नहीं भागा, पर 2 मरीज जरूर भाग रहे थे और भागने में यह खूबसूरत सी लड़की उस लड़के से दो कदम आगे ही थी. वह बड़ी तेजी से सीढि़यां उतरती गई. बाहर ही एक औटो खड़ा था. वह औटो में बैठ गई. तभी वह युवक भी जो दो कदम ही पीछे था, घुस गया. उन के शहर में औटो शेयर करने का रिवाज था. रिकशाचालक हिसाब से पैसे ले लेता था.
रिकशा वाले ने लड़की से पूछा, ‘‘बहनजी, कहां जाना है?’’
हांफतेहांफते लड़की ने कहा, ‘‘हजरतगंज.’’
लड़के से रिकशा वाले ने कुछ नहीं पूछा.
कुछ देर बाद दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा और मुसकरा दिए. वे दोनों अब काफी बेहतर महसूस कर रहे थे. तभी युवक ने डरतेडरते धीरे से अपनी दुखती दाढ़ को छुआ. एक गोल सी छोटी सी चीज हाथ में आ गई. उसे संभाल कर मुंह से बाहर निकाल कर उस ने खिड़की की तरफ कर के देखा, ‘‘निकल गया.’’
‘‘क्या?’’ लड़की ने चौंक कर पूछा.
‘‘कुछ नहीं, कंकड़, जो दाढ़ में फंसा था,’’ झेंपकर लड़का बोला, ‘‘शायद चावल में था.’’
लड़की ने कुछ नहीं कहा और युवक की आंख बचाकर अपने सामने के एक दांत पर उंगली फेरी और फिर ‘‘ओह’’ कर अपनी सीट से उछल पड़ी.
‘‘क्या हुआ,’’ युवक ने पूछा.
जवाब में लड़की ने उंगलियों में पकड़ा एक लंबा सा कांटा निकाल कर युवक के हाथ पर रख दिया और फिर नजरें झुका कर कहा, ‘‘मछलीका है, यही मेरे दांत में अटक गया था.’’
‘‘जरूर अटक गया होगा. आप हैं ही ऐसी, कोई भी अटक सकता है.’’ कुछ देर की खामोशी के बाद लड़की फिर बोली, ‘‘आप कहां जाएंगे?’’
‘‘आप हजरतगंज जाएंगी, मैं चिडि़याघर के पास रहता हूं, वहीं उतर जाऊंगा.’’
‘‘चिडि़याघर के भीतर नहीं,’’ लड़की ने कहा और दोनों हंसने लगे. यह नवीन और सविता की पहली मुलाकात थी. यादों में खोई वह खड़ी थी. तभी नवीन ने पीछे से आ कर उसे बांहों के घेरे में ले लिया.
‘‘अंधेरे में खड़ी हो.’’ ‘‘आदत पड़ गई थी, पर अब चांदनी की आदत डाल रही हूं.’’
‘‘सविता, हम ने प्रेम विवाह किया है. तुम्हें प्यार करता हूं, इसीलिए सब घर वालों को छोड़ कर आया हूं हालांकि सब से मेरा प्यार आज भी है.’’ ‘‘प्रेम विवाह हम ने जरूर किया था, पर बाद में प्रेम तो रहा नहीं, सिर्फ विवाह रह गया. प्रेम तो घर के चौकेचूल्हे और घर की चीजें उठानेरखने में न जाए किस अलमारी में बंद हो गया था.’’
‘‘सही कह रही हो सविता.’’ ‘‘गलती मेरी ही थी. शादी से पहले मैं ने तुम से यह जो नहीं पूछा था कि मु?ो कहां ले जा कर रखोगे.’’
‘‘मैं हमेशा तुम्हारी परेशानियों को समझता रहा हूं सविता.’’ ‘‘पर कुछ कर नहीं रहे थे. सब साथ रहते तो कितना अच्छा रहता. अब मुझे अकेलापन खलता है,’’ सविता ने कहा.
‘‘अब भी मेरी मजबूरी है तुम्हें.’’ ‘‘हां मुझे लगता है मैं ने तुम से कुछ छीन लिया है. मैं इतनी खुदगर्ज नहीं हूं नवीन.’’ ‘‘लगता है, तुम्हारी मजबूरी कभी खत्म नहीं होगी. जाओ, जा कर सो जाओ. मुझे सवेरे जल्दी उठना होगा.’’
भोपाल स्टेशन के जाते ही मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. फिर पता नहीं कब मेरी आंख लग गई और मैं इतनी गहरी नींद सोई कि सिकंदराबाद जंक्शन आने पर ही मेरी आंख खुली. मैं ने अपनी कलाई घड़ी में समय देखा, शाम के साढ़े 6 बज रहे थे.
मैं ने पर्स से निकाल कर अपना मास्क पहना, परदा पूरा खिसकाया और सामने देखा. अमित नीचे की बर्थ पर बैठा हुआ किन्हीं गहरे खयालों में खोया हुआ था. विंडो के नीचे लगे होल्डर पर रखे खाली टी कप को देख कर मेरी भी चाय पीने की इच्छा प्रबल हो उठी. मैं ने मास्क लगेलगे ही अमित से पूछा, “आई बेग योर पार्डन मिस्टर, आर द सर्विसेस औफ पेंट्री कार इज अवेलेबल एट दिस टाइम औफ कोविड 19, इन दिस स्पेशल ट्रेन.”
“यस. यू जस्ट काल द अटेंंडेंट औफ दिस कोच, ही विल अरेंज टी फौर यू. एंड माय नेम इज अमित. एंड आई विल बी हैप्पी, इफ यू टेल मी योर नेम.”
“नन्ना हेसारु सुम्मी,” मैं ने कन्नड़ भाषा में उत्तर दिया, जो अमित के सिर के ऊपर से गुजर गया.
उस ने हिंदी में कहा, “मैं कुछ समझा नहीं…?”
“ओह दैट मीन्स यू कांट स्पीक इन कन्नड़?”
“हां, मैं कन्नड़ भाषा न पढ़ सकता हूं, न लिख और बोल सकता हूं…”
“ओके. देन आई विल टाक इन इंगलिश?” मुझे ऐसा लग रहा था कि बहुत पहले उस से हुई वार्तालाप की जंग मैं ने जीत ली है, इसलिए जैसे ही उस ने कहा, “मैडम, क्यों न हम हिंदी में बात करें. मेरे खयाल से दिल्ली और आगरा में बोली जाने वाली भाषा में एक अजीब सा अपनापन लगता है.”
“तो क्या और भाषाओं में अपनापन नहीं रहता?”
“अपनापन जरूर रहता होगा, पर जब सामने वाला भी अपने जैसी भाषा में बात करने वाला हो तो मजा तो उसी भाषा में बात करने में आता है,” सुन कर मैं ने अपने ही मन से कहा, “तो ये बात उस दिन क्यों समझ में नहीं आ रही थी बच्चू, जब मुझ पर अंगरेजी बोल कर रोब झाड़ रहे थे.”
मैं ने ज्यादा देर उसे परेशानी में नहीं रखा और हिंदी में उस से बात करने लगी, “मेरा नाम सुमन है. मैं बैंगलोर यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर हूं. आगरा में लौकडाउन में फंस गई थी, अब वापस अपने ससुराल जा रही हूं.”
“सुमन” शब्द दोहराते हुए वह अपने मस्तिष्क पर जोर देता हुआ मुझे गौर से देखने लगा.
तभी अटेंडेंट मेरी बर्थ के सामने से गुजरा. उसे देख कर मैं समझ गई कि हो न हो, ये कर्नाटक का ही रहने वाला है, इसलिए मैं ने उस से कन्नड़ में कहा, “हे, नानू चाह कुडियालु बयसुत्तेने.” (सुनो, मुझे चाय पीने की इच्छा हो रही है.)
“निमगे इष्टो कप चाह बेकू.” (आप को कितने कप चाय चाहिए.)
अटेंडेंट से कन्नड़ में बात करते हुए मैं ने अमित से पूछा, “मिस्टर अमित, क्या आप मेरे साथ एक चाय पीना पसंद करेंगे?”
“हां, लेकिन पेमेंट मैं करूंगा.”
“ओके,” कहते हुए मैं फिर अटेंडेंट की तरफ मुखातिब हुई और उसे 2 कप चाय लाने का कन्नड़ में आदेश देते हुए उठ कर टायलेट के लिए चली गई. मास्क लगा ही हुआ था और सैनेटाइजर की छोटी स्प्रे बोतल अपने पर्स में रख कर लेती गई.
जब लौटी तो मैं ने अमित की तरफ देखे बिना ही अपने चादर, तकिए व कंबल को फिर से सैनेटाइज किया और अपनी बर्थ पर मास्क को नाक पर सेट करती हुई बैठ गई.
कुछ ही देर में ‘टी’ सर्व हो गई. अमित ने लपक कर वेटर को अपने पर्स से रुपए निकाल कर भुगतान किया.
ट्रेन अपनी रफ्तार पर थी. हम दोनों ने अपने मास्क ठुड्डी के नीचे सरका कर चाय के सिप लेने शुरू कर दिए थे.
चाय पी कर मैं ने मास्क फिर ठुड्डी से ऊपर की ओर सरका लिया और एक नजर अमित पर डाली. वह तेज रफ्तार चलती ट्रेन में खिड़की की तरफ मुंह किए हुए किन्हीं गहरे विचारों में खोया हुआ था.
अचानक उस ने मेरी तरफ मुंह घुमाया और मुझे अपनी तरफ देखता पा कर बोला, “दिल्ली से बैंगलोर का ट्रेन सफर तो बहुत लंबा है. अभी तो पूरी रात भी इसी ट्रेन में काटनी है. कल सवेरेसवेरे 6 बजे के आसपास ये ट्रेन वहां पहुंच पाएगी.”
कुछ देर चुप रहने के बाद वह मुझ से पूछ बैठा, ”क्या आप बैंगलोर की रहने वाली हैं?”
“नहीं. मैं तो आगरा की रहने वाली हूं. बैंगलोर में ससुराल है. लौकडाउन के कारण मैं आगरा में फंस गई थी, पर आप…?”
अचानक मेरा मन यह जानने को उत्सुक हो उठा कि मुझे ठुकराने के बाद उस की शादी किस से हुई और वह बैंगलोर क्यों जा रहा है?
उस ने बताना शुरू किया, “मैं विप्रो में हूं. दिल्ली में पोस्टिंग है. बैंगलोर तो मजबूरी में जाना पड़ रहा है.“
“मजबूरी में…? ऐसी क्या मजबूरी हो सकती है?” मैं ने पूछा, तो तुरंत कोई उत्तर न दे कर मौन हो कर कहीं खो गया… फिर कुछ देर बाद वह बोला, “वास्तविकता ये है कि अपनी इस स्थिति का जिम्मेदार मैं खुद हूं.”
“मैं कुछ समझी नहीं… कैसी स्थिति? कौन सी जिम्मेदारी?”
मैं ने पूछा, तो उस ने बताया, “दरअसल, विप्रो में मेरी नौकरी क्या लगी कि मम्मीपापा की महत्वाकांक्षाओं के साथसाथ मेरा दिमाग भी खराब हो गया और मैं इतने अभिमान में रहने लगा कि जो भी लड़की देखने जाऊं, उसे किसी न किसी बहाने रिजेक्ट कर मुझे बहुत खुशी महसूस हो…
“आखिर बैंगलोर में सेटल हुए. कभी दिल्ली के ही रहने वाले एक परिवार की लड़की मानसी मुझे और मम्मी दोनों को पसंद आ गई. वह लड़की माइक्रोसौफ्ट में अच्छे पैकेज पर थी. वह बहुत अच्छी अंगरेजी बोलती थी. स्मार्ट और डैशिंग. अपनी शर्तों पर दिल्ली पोस्टिंग लेने और जौब न छोड़ने का हम से वादा ले कर वह मुझ से शादी करने के लिए राजी हो गई…
“हमारी शादी हुई. दिल्ली का माइक्रोसौफ्ट औफिस भी उस ने ज्वाइन कर लिया, लेकिन मम्मी को जौब करने के लिए रातभर उस का घर से गायब रहना और सवेरे वापस आ कर देर तक सोते रहना अखरने लगा…
“बरसों तक तो वो इस आस में जीती रहीं कि बहू आएगी तो उन्हें घरगृहस्थी से फुरसत मिलेगी. पर यहां तो मानसी के हिसाब से घर का रूटीन सेट होता जा रहा था, इसलिए उन्होंने मानसी को रोकनाटोकना शुरू कर दिया. मुझे भी लगने लगा था कि वास्तव में मानसी को अपनी पत्नी बना कर लाने का फायदा ही क्या हुआ. मैं ने उसी को समझाना शुरू कर दिया, तो वह एक दिन मुझ से भिड़ गई और बोली, “तुम एक बात बताओ कि मां मुझे बहू बना कर लाई हैं या नौकरानी. जितना मुझ से बन पड़ता है, मैं घर संभालती तो हूं… फिर शादी से पहले मैं ने इसीलिए कुछ शर्तें…
“तुम ये रात का जौब छोड़ कर कोई दिन वाला…
“ओह… तो तुम भी एक ही पक्ष देख रहे हो. ऐसी स्थिति में मेरा यहां रहने का कोई औचित्य नहीं है… मैं बैक ट्रांसफर ले कर वापस बैंगलोर जा रही हूं…”
“इस के एक ही हफ्ते बाद वह बैंगलोर चली गई. मैं भी उसे रोक न पाया. उस ने वहां का औफिस फिर से ज्वाइन कर लिया. उस के महीनेभर बाद ही मुझे बैंगलोर कोर्ट से डिवोर्स का लीगल नोटिस प्राप्त हुआ और उसी कोर्ट में उपस्थित होने का सम्मन मिला.
“लेकिन, तभी कंप्लीट लौकडाउन लग गया और सभी कोर्टकचहरी के कामकाज ठप हो गए. अब जब फिर से सब खुला है, तो स्पीड पोस्ट से मिला नोटिस पा कर मजबूरी में मुझे वहां जाना पड़ रहा है.”
शायद रात में पड़ने वाला कोई बड़ा स्टेशन आने वाला था, क्योंकि इस राजधानी एक्सप्रेस की गति धीमी हो गई थी.
अमित चुप हो कर खिड़की के बाहर देखने लगा था और मेरा ध्यान उस वेटर की तरफ चला गया था, जो खाने की थाली का और्डर लेता हुआ हमारी बर्थ की तरफ चला आ रहा था.
अमित ने खाने का और्डर प्लेस करने से पहले मेरी तरफ देखा, तो मैं बोल पड़ी, ”मेरे पास अपना टिफिन है. तुम बस अपने लिए मंगा लो.”
खाना खा कर जब मैं सोने के लिए लेटी, तो मेरी रिस्ट वाच में रात का 12 बजा था और अमित अपनी ऊपर की बर्थ पर जा कर लेट गया था.
आपस का संवाद जैसे पूरा हो चुका हो. मैं परदा खींच कर चुपचाप लेट गई. ट्रेन की रफ्तार पर गौर करने लगी. सोचने लगी, “कहीं इस से मेरी शादी हो गई होती तो क्या मुझे भी इस से तलाक लेना पड़ता.
“लेकिन, मैं ये सब क्यों सोच रही हूं… मेरे लिए रमन से अच्छा तो कोई और हो ही नहीं सकता था. और मां…जैसी सास तो शायद ही किसी लड़की के नसीब में होती होगी.”
यही सब सोचते हुए मेरी न जाने कब आंख लग गई. जब आंख खुली तो बैंगलोर स्टेशन आ चुका था. मैं ने मोबाइल में अभीअभी फ्लैश हुए मैसेज को पढ़ा. रमन द्वारा भेजा गया मैसेज था, “कोविड 19 को स्प्रैड होने से बचाने के लिए किसी को भी स्टेशन के अंदर आ कर रिसीव करने की अनुमति नहीं दी जा रही है. मैं बाहर पार्किंग के पास तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. वहीं मिलो.”
मैं ने तेजी से मास्क चढ़ाया, धूप का चश्मा पहना और बैग व अटैची लिए ट्रेन से उतर कर स्टेशन के एक्जिट की तरफ बढ़ गई.
मुझे आभास था कि वो मेरे पीछे ही एक्जिट की तरफ बढ़ रहा है, पर मुझे उस से क्या लेनादेना. मुझे तो बाहर इंतजार करते रमन के पास जल्दी से जल्दी पहुंचना था.
लेखक- जीतेंद्र मोहन भटनागर
स्टेशन के भीतर प्रवेश करते ही मैं ने अपने फेस मास्क को नाक पर ढंग से चढ़ाया. स्टेशन के बाहर तो खामोशी थी ही, लेकिन अंदर प्लेटफार्म पर जैसा सन्नाटा था वैसा तो इस से पहले मैं ने कभी नहीं देखा था.
रेलवे द्वारा औपचारिक थर्मल चेकिंग के बाद जब मैं अपनी सेकंड एसी की साइड वाली बर्थ पर पहुंची, तो अमित को देख कर चौंक गई.
अमित इस राजधानी ट्रेन में दिल्ली से चढ़ा होगा, क्योंकि उस का बेड रोल पहले से ही ऊपरी बर्थ पर बिछा था और वो आगरा आने से पहले तक नीचे वाली बर्थ पर बैठा हुआ आया था.
उस सीमित यात्रियों वाले सैनेटाइज्ड कोच में मास्क लगाए हुए मुझे वो पहचान नहीं पाया.
मुझ से उस की मुलाकात तभी हुई थी, जब वो मुझे पसंद करने अपने मम्मीपापा के साथ आया था. मेरी मम्मी महेश मामाजी द्वारा सुझाए इस रिश्ते को ले कर अति उत्साह से भरी हुई थीं.
अमित से एकांत में बात करते समय मैं ने महसूस किया कि वो घर में बोलने वाली आम बोलचाल की भाषा हिंदी में पूछी गई मेरी हर बात का उत्तर सिर्फ और सिर्फ अंगरेजी भाषा में दे कर मुझ पर अपना रोब डालने का लगातार प्रयास कर रहा था और मैं दो कारणों से उस से हिंदी में ही बात किए जा रही थी.
पहला कारण तो ये था कि अभी कुछ देर पहले सब के बीच वो खूब ढंग से हिंदी में बात कर रहा था. मेरे साथ एकांत मे ऐसा शो कर रहा था, जैसे लंदन से आया हो.
दूसरे, मैं एमए तक लगातार हिंदी मीडियम से पढ़ाई करते रहने के कारण अंगरेजी लिख, पढ़ और समझ तो लेती थी, पर बोलने और बात करने में हिचकिचाती थी.
इस के अलावा एक बात और थी कि मेरा झुकाव इन दिनों प्रोफैसर रमन की तरफ कुछ ज्यादा ही हो चला था, जिन के अंडर में मैं हिंदी में अपनी थीसिस लिख कर पीएचडी की डिगरी हासिल करने में जुटी हुई थी.
सच तो ये था कि मैं दरअसल अमित से शादी करने के मूड में थी ही नहीं और चाह रही थी कि मेरे न कहने के बजाय वो ही मुझे रिजेक्ट कर दे.
और वही हुआ. मुझ से इर्रिटेट हो कर उस ने मेरे मामाजी और मम्मी के सामने अपने मम्मीडैडी से कह ही दिया, “आई कान्ट एक्सेप्ट द गर्ल एज माई लाइफ पार्टनर, हू कान्ट स्पीक इंगलिश, फ्लुएन्टली… नो डैडी. नौट एट आल.”
इस इनकार के बाद मम्मी ने भी धीरज रख लिया और सब समय के हाथों में छोड़ दिया. मैं भी अपनी थीसिस पूरी करने में जुट गई.
मैं जानती थी कि आगरा यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर डाक्टर एस. रमन के अंडर में अगर अगले साल के अंत तक मैं थीसिस सबमिट नहीं कर पाई, तो फिर डाक्टरेट की उपाधि पाने में कई साल और लग सकते हैं, क्योंकि रमन पिछले कई महीनों से बैंगलोर यूनिवर्सिटी में प्रोफैसर की पोस्ट के लिए ट्राई कर रहे थे. इधर जब से उन्होंने न्यूजपेपर में निकले विज्ञापन के आधार पर उस यूनिवर्सिटी के लिए
औनलाइन फार्म सबमिट किया था, तब से उन्हें विश्वास था कि उन का सेलेक्शन अवश्य हो जाएगा और वो अपने पैतृक घर बैंगलोर अपने मांबाप के पास पहुंच जाएंगे.
और उन का विश्वास निराधार नहीं था. 34 साल के रमन बहुत ही स्मार्ट और आकर्षक व्यक्तित्व के प्रोफैसर थे. वे जितनी शुद्धता के साथ, धाराप्रवाह हिंदी बोल सकते थे, उसी प्रकार कन्नड़ और अंगरेजी भी बोलने में सक्षम थे.
घुंघराले काले सेट करे हुए बाल, सम्मोहन कर देने वाली आंखें, स्वस्थ होंठ और तराशी हुई प्रभावित करने वाली काली मूंछें, अकसर हलके बैगनी या नीले कलर की शर्ट के नीचे काला ट्राउजर उन की पहचान थी. उन के काले जूतों की चमक तो मैं ने कभी भी फीकी नहीं देखी.
सच तो ये था कि थीसिस के दौरान उन से 10 साल छोटी होने के बावजूद भी मन ही मन उन्हें चाहने लगी थी. उधर अमित मुझे रिजेक्ट कर के जा चुका था, लेकिन मैं इस बात से खुश थी कि अब मैं रमन के बारे में इतमीनान से सोच सकती हूं, उन से प्यार का इजहार भी कर सकती हूं.
उन्हें भी शायद इस बात का आभास होने लगा था, इसलिए एक दिन जब उन्होंने मुझे विषय से हट कर किन्हीं दूसरे खयालों में खोए देखा तो पूछ बैठे, ”तुम अचानक क्या सोचने लगती हो? अगर मेरा कहा एक बार में समझ नहीं आता, तो दोबारा पूछ सकती हो.”
“सर, यह बात नहीं है. मैं यही सोचने लगती हूं कि आगे चल कर जब मैं लेक्चरर बनूंगी तो क्या इसी तरह अपने स्टूडेंट्स को समझा सकूंगी.”
“क्या यह बात इतनी गहराई से सोचने वाली है? निश्चय ही कोई और बात तुम्हारे दिमाग में थी. ये बात मैं दावे से कह सकता हूं…”
“अच्छा इतना दावा कर रहे हैं तो बताइए कि और कौन सी बात हो सकती है?”
मैं ने जानबूझ कर छेड़ा, तो वो बोले, ”अकसर जब कोई किसी के प्यार में डूबा होता है, तभी वो इस ब्रह्माण्ड में खो जाता है. वह यह नहीं जानता है कि जिस ब्रह्माण्ड में वो अपने विचार भेज रहा है, उसे पूरा करने में ये प्रकृति जुट जाती है.”
“अच्छा… ऐसा है तो जो विचार मेरे दिमाग से निकल कर ऊपर ब्रह्माण्ड में गया, वो पूरा हो सकता है क्या?“
“ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि उस के मस्तिष्क से निकला विचार कितना स्ट्रांग था?
“ओह, अब ये निर्णय कौन करेगा कि वो विचार स्ट्रांग था या वीक?”
“इस पर हम बाद में बहस करेंगे. अब थीसिस के टौपिक पर फिर से आते हैं,” कह कर रमन मुझे थीसिस लिखवाने में जुट गए.
एक दिन मैं ने उन्हें फिर छेड़ा, ”आप तो कह रहे थे कि ब्रम्हाण्ड में भेजी गई इच्छा पूरी अवश्य होती है.“
“हां. अगर प्रबल हो तो जैसे किसी का सपना सोचते रहने से पूरा नहीं हो सकता, उसे उस सपने को पूरा करने का प्रयास तो करना ही होगा, ठीक इसी तरह मन की उस इच्छा की पूर्ति के लिए कदम तो बढ़ाना ही होगा.
“ठीक है तो मैं कदम बढ़ाती हूं…” कहती हुई मैं रमन के करीब पहुंच गई और मुसकराते हुए बोली, ”लीजिए, मैं ने कदम बढ़ा दिए. अब तो मेरी इच्छा पूरी हो जानी चाहिए?“
“अरे, मेरी तरफ कदम बढ़ाने से क्या होगा?”
“मैं आप की थ्योरी समझ गई. जैसे आप की तरफ कदम बढ़ाने से मेरी डाक्टरेट होने की इच्छा कम्प्लीट हो गई, वैसे ही मेरी आप से शादी करने की इच्छा भी पूरी हो जाएगी,“ कह कर मैं ने उन का हाथ पकड़ लिया और कहा, ”सर, मैं भी आप की आंखों में अपने लिए प्यार उमड़ता देख चुकी हूं.”
रमन ने अचानक मुझे अपनी बांहों में भर लिया और बोला, ”हमारे और तुम्हारे बीच जो उम्र का गैप था, उसे ले कर मैं इस तरफ से ध्यान हटा लिया करता था. पर अब तुम ने अपने प्यार का इजहार कर ही दिया है, तो मैं इसी समय अपनी मां से शादी की परमीशन ले लेता हूं. फिर तुम से कोर्ट मैरिज कर के मैं तुम्हें अपने साथ ही बैंगलोर ले जाऊंगा.”
“लेकिन, अभी तक तो वहां से आप के अपौइंटमेंट का कोई लेटर तो आया नहीं है?”
“मुझे विश्वास है कि जैसे तुम मेरे जीवन में आ गई हो, वैसे शीघ्र ही अपौइंटमेंट लेटर भी आ ही जाएगा,” कह कर पहली बार रमन ने मेरा प्रगाढ़ चुम्बन लिया. फिर अपने मोबाइल से वीडियो काल कर अपनी मां से मेरा परिचय कराते हुए कहा, ”मां, गौर से अपनी होने वाली बहू को देख लो. हम कोर्ट मैरिज करने जा रहे हैं.”
रमन की मां की हंसी देख कर मैं समझ गई कि उन्होंने मुझे पसंद कर लिया है… मुझे खुशी हुई कि उन्होंने मुझ से हिंदी में बात की, जबकि रमन बीचबीच में उन्हें कन्नड़ में कुछकुछ समझाते रहे.
मेरे मम्मीपापा की भी लव मैरिज हुई थी. बड़ी दीदी ने मां की पसंद के लड़के से शादी की थी. मेरी शादी को ले कर भी वो तब से और चिंतित रहने लगी थीं, जब से अमित मुझे रिजेक्ट कर गया था, इसलिए मुझे विश्वास था कि मुझे कोर्ट मैरिज करने में कोई दिक्कत नहीं आएगी, मैं ने उसी दिन रमन को अपने मम्मीडैडी से मिलवा दिया.
मम्मीडैडी को सामने देख रमन ने जैसे ही झुक कर उन के पैर छूना चाहे, तो मां बोल पड़ी, ”हमारे यहां दामाद से पैर नहीं छुआए जाते.”
“क्यों मम्मी…? बड़ों के पैर छूने में आखिर हर्ज ही क्या है..?”
“अरे भई, रीतिरिवाज तो मानने ही पड़ते हैं.”
“लेकिन, मैं इन रीतिरिवाजों से परे, शादी के बाद जब भी अपनी इस मां से मिलने आऊंगा तो पैर अवश्य ही छुऊंगा…”
मां से आगे कुछ कहते ना बन पड़ा था. वो डैडी के पास रमन को बिठा कर मुझे साथ लेती हुई किचन में घुस गई थीं. आखिर होने वाला दामाद घर जो आया था.
मेरी पीएचडी कम्प्लीट हो गई थी और रमन का बैंगलोर यूनिवर्सिटी से अपौइंटमेंट लेटर आ चुका था. इस बीच हम कोर्ट मैरिज कर चुके थे, इसलिए रमन ने अपना रेजिगनेशन लेटर दिया और नोटिस पीरियड पूरा होते ही मुझे ले कर बैंगलोर आ गए.
अपनी ससुराल आ कर मैं सास से मिल कर बहुत प्रभावित हुई थी. वो एक ऐसी सास थीं, जो पूरी जिंदादिली और बेबाकी से अपनी बात कहने से नहीं चूकती थीं.
मुझे ससुराल में आए हुए अभी चार महीने ही हुए थे. रमन का बैंगलोर यूनिवर्सिटी ज्वाइन करने के बाद का रूटीन फिक्स हो चला था.
हम दोनों एकदूसरे के प्रति पूरे समर्पण भरे प्यार में डूब चुके थे. एक दिन रात के अंतरंग क्षणों में मैं रमन से बोली, “मैं चाहती हूं कि यूनिवर्सिटी में लेक्चर बन कर अपनी डिगरी का मान रख लूं.”
“हां, चाहता तो मैं भी हूं, लेकिन लैंग्वेज प्रौब्लम कैसे फेस करोगी?” रमन मुझे अपनी बांहों में भींच कर… कुछ देर तक मेरे दिल की तेज धड़कनें सुनता रहा, फिर बोले, “सुमी, ऐसा करते हैं कि यहां की लोकल कन्नड़ भाषा तो तुम्हें मां बोलना सिखा देंगी और इंगलिश स्पीकिंग मैं सिखा देता हूं. मुझे विश्वास है कि ये दोनों भाषाएं सीखने के बाद तुम कौन्फिडेंस से बोलने लगोगी तो यूनिवर्सिटी में भी जौब लगने में कोई दिक्कत नहीं होगी.”
इस के बाद हम दोनों एकदूसरे में गहरे खो गए.
अगली सुबह जब सास को पता लगा कि मैं भी जौब करना चाहती हूं, तो वे मजाक में बोलीं, “इस का मतलब है कि बहू लाने के बाद भी चूल्हाचौका मुझे ही संभालना पड़ेगा…”
ऐसा सुन कर मैं एकदम से घबरा गई. बोली, “ऐसा आप मत सोचिए, मैं चौका भी संभाल लूंगी और जौब भी…”
“अरे पगली, तू घबरा मत. अभी मुझ में बहुत दम है. मेरा तो एमए इंगलिश से करना व्यर्थ गया, पर मैं तेरी पीएचडी पर ग्रहण नहीं लगने दूंगी. मैं ने भी तो कन्नड़ भाषा यहीं आने के बाद सीखी और मतलब भर की इंगलिश का उपयोग भी यहां मौका पड़ने पर कर लेती हूं.”
“ओह मांजी, आप जैसी सास हर लड़की को मिले,” कह कर वह उन के गले लग गई.
“देखो सुमी, तुम्हें आज मैं अपना अनुभव बताती हूं कि कोई भी भाषा हमें तब तक कठिन लगती है, जब तक हमारा मस्तिष्क उसी भाषा में शब्दों को नहीं सोचता अर्थात मस्तिष्क हिंदी में सोचता है और हम बोलना चाहते हैं इंगलिश तो निश्चित रूप से बोलने में अटक जाएंगे…
“इसे यों समझो कि तुम हिंदी का उच्चारण इसलिए अच्छा कर पाती हो कि तुम्हारा मस्तिष्क बिना समय गंवाए किसी भी वाक्य को तुरंत हिंदी भाषा में बना कर बुलवा देता है.
“ऐसा ही हर भाषा के साथ है. सब मस्तिष्क की सोच और विचारों का खेल है.
“कहने का तात्पर्य है कि प्रत्येक भाषा भावनाओं की अभिव्यक्ति से जुड़ी है. रही कन्नड़ भाषा की बात तो उस के लिए भी पहले तो नित्य प्रति बोले जाने वाले शब्दों के उच्चारण को समझना होगा और कौन शब्द जैसे है, हूं, हो का उपयोग न के बराबर करना होगा. मैं तुम्हें कल कुछ आवश्यक कन्नड़ वाक्य बोलना सिखा दूंगी.”
मां और रमन के सहयोग से तीन महीने में ही मेरी लगन काम आई और मैं अंगरेजी तो ऐसे बोलने लगी कि रमन भी हैरान रह गया और मां द्वारा सिखाई गई कन्नड़ भाषा का डर भी मेरे दिमाग से निकल गया.
मुझे भी बैंगलोर यूनिवर्सिटी में जौब मिल गई थी. तभी आगरा से डैडी का फोन आ गया. उन्होंने बताया कि मां कोविड सस्पेक्टेड हो कर होस्पिटलाइज्ड हैं और मुझे लगातार याद कर रही हैं, तो मैं अपने को रोक ना सकी. रमन को छुट्टी मिल न सकी, तो मैं फ्लाइट से आगरा पहुंच गई.
मां एक्चुअली कोविड की खबरें सुनसुन कर डिप्रेशन में आ गई थीं. फिर जब उन को तेज बुखार और खांसी हुई, तो पापा ने उन्हें घबरा कर अस्पताल में भरती करा दिया था.
लेकिन जब उन की कोविड रिपोर्ट नेगेटिव आई और 5 दिन में बुखार भी उतर गया, तो हम उन्हें घर ले आए. मेरे लगातार समझाने और समय से उन के खानपान का ध्यान रखने से वे ठीक हो गईं.
मैं वापस बैंगलोर जाने का प्लान बना ही रही थी कि अचानक पूरे भारत में कंप्लीट लौकडाउन की घोषणा कर दी गई. परिवहन के सारे साधन बंद होने के कारण आगरा में ही फंस कर रह गई. एक अजीब से भय का वातावरण आसपास हर आने वाले दिन गंभीर होता चला जा रहा था.
मेरा वो समय मायके में मां के साथ तो बीता, पर लगता रहा जैसे मुझे किसी पिंजरे में कैद कर दिया गया हो. वही घर जहां कभी मेरी किलकारियां गूंजती रही होंगी. जहां के फर्श पर मैं ने चलना सीखा. जहां मैं बड़ी हुई, पीएचडी किया, वही घर उन दिनों मेरे लिए कैदखाना बन कर रह गया.
रमन से तकरीबन रोज ही मोबाइल पर बात होती और मन करता कि अभी उड़ जाऊं और जा कर रमन की बांहों में समा जाऊं.
दोपहर में अकसर सासू मां का फोन आ जाता और वे भी मुझ से और मेरी मम्मी से बड़ी देर तक बातें करती रहतीं.
जैसेतैसे वो कठिन समय बीता और स्पेशल ट्रेनें चलाने की घोषणा हुई. रमन ने मेरा औनलाइन ट्रेन का टिकट बुक करा कर मेरे मेल पर भेज दिया.
और मैं ससुराल जाने के लिए मां से विदा ले कर राजधानी एक्सप्रेस पकड़ने आगरा कैंट स्टेशन पहुंच गई.
अचानक ट्रेन की धीमी स्पीड संकेत दे रही थी कि कोई स्टेशन आने वाला है.
मैं ने डबल कांच की काली खिड़की से बाहर चमकने वाली रोशनियों में स्टेशन पढ़ने का प्रयास किया. झांसी स्टेशन था. राजधानी एक्सप्रेस का एक और स्टापेज. गिनेचुने यात्री चढ़े.
मैं ने मन ही मन सोचा, ”ये क्या हाल कर दिया है इस कोरोना ने. फिजां में एक अजीब सी दहशत. भारत का हर स्टेशन इतना वीरान. झांसी, जहां शादी के बाद रमन के साथ इसी ट्रेन से यात्रा के दौरान इस स्टेशन से इतने यात्री चढ़े थे कि वो एसी कोच खचाखच भर गया था. और आज…?
आगरा कैंट स्टेशन से भी तो गिनती के यात्री चढ़े थे. मैं
ने कलाई घड़ी देखी, रात के 22 बज कर 40 मिनट हो चुके थे. ठीक 22 बज कर 45 पर ट्रेन चल दी.
चूंकि अमित पीछे से यात्रा करते हुए रिलैक्स था. इसी कारण उस ने मास्क अपनी जेब में रख लिया था, लेकिन मुझे अपनी बर्थ की तरफ आते देख उस ने मास्क जेब से निकाल कर पुनः पहन लिया. दाढ़ी बढ़ी होने के बावजूद भी मैं उसे पहचान चुकी थी.
अपनी तरफ से कोई भी प्रतिक्रिया न दिखाते हुए मैं ने अपनी साइड वाली लोअर बर्थ के नंबर पर गौर करते हुए बर्थ के नीचे अपना ब्रीफकेस और बैग सरकाया और अपना बेड रोल बिछाने के बाद फ्रेश हो कर आई, फिर अपनी बर्थ पर बैठते हुए परदा खींच दिया.
अपने पर्स से सैनेटाइजर निकाल कर हथेलियों और चादर, कंबल व तकिए को सैनेटाइज कर के मैं लेट गई.
मैं ने अपना मास्क उतार कर पर्स में रख लिया और साइड बर्थ की विंडो से पीछे जाते हुए खामोश आगरा स्टेशन को देखती रही.
सन्नाटे में डूबा प्लेटफार्म गुजर गया, तो मैं ने परदे की झिरी में से झांक कर देखा, अमित ऊपर वाली बर्थ पर चढ़ कर लेट गया था.
परदे को पूर्ववत कर के मैं बर्थ पर ही सीधी हो कर बैठ गई. ट्रेन रफ्तार पकड़ कर आगे बढ़ती चली जा रही थी. कुछ देर बाद जम्हाई आने पर मैं ने अपनी रिस्ट वाच पर नजर डाली. अगली तारीख का 1 बज कर 25 मिनट बजा था. मैं ने आंखें बंद कर लीं और रमन की याद करते हुए सो गई.
इस बार फिर जब ट्रेन रुकी, तो मैं ने सन्नाटे में डूबे स्टेशन के पिलर्स पर गौर से देखा, भोपाल जंक्शन था. लेटेलेटे ही उस स्टेशन की इलेक्ट्रानिक वाच में समय दिख गया 4 बज कर 35 मिनट अर्थात पौ फटने में कुछ ही देर थी.
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सवाल-
मेरे जबड़े बहुत अंदर हैं, जिस से चेहरे का संतुलन बिगड़ गया है. क्या कोई ऐसी दवा है जिसे लेने से जौ लाइन में सुधार आ सकता हो?
जवाब-
यह समस्या चेहरे की हड्डियों के ठीक अनुपात में विकसित न होने से खड़ी हुई हो सकती है. अकसर यह स्थिति आनुवंशिक होती है और इसे किसी दवा से नहीं सुधारा जा सकता. यदि आप इस समस्या से बहुत परेशान हैं तो अच्छा होगा कि आप किसी योग्य प्लास्टिक सर्जन से परामर्श लें. कुछ प्लास्टिक सर्जन मग्जोलाफशियल ऐस्थैटिक सर्जरी में विशेषरूप से निपुणता रखते हैं. आप के शहर में कोई ऐसा योग्य सर्जन हो तो उस से कंसल्ट करें और सर्जरी से जौ लाइन में कितना और क्या सुधार हो सकता है, इस पर विचारविमर्श करें. क्याक्या परेशानी हो सकती है, कितना समय लगेगा, क्या खर्च आएगा, इस बाबत ठीक से जान लेने के बाद ही सर्जरी कराने का फैसला लें.
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आप सभी जानते हैं कि ब्रशिंग, फ्लॉसिंग और मुंह में एंटीसेप्टिक सलूशन के साथ मुंह को अच्छे से कुल्ला करना बहुत ही अनिवार्य है. यह करने से मुंह में टारटर यानी कि प्लाक नहीं बनता है.
टार्टर क्या है?
जब आप अच्छे से ब्रश नहीं करते हैं और मुंह का अच्छे से ध्यान नहीं रखते हैं तो मुंह में कुछ प्रकार के बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं, यह बैक्टीरिया जब अपने खाने और खाने के जो प्रोटीन है उससे मिलते हैं तो एक चिपचिपी परत बना देते हैं, उस परत को प्लाक कहते हैं. प्लाक बहुत तरह के बैक्टीरिया से बनता है जो कि अपने दांत की बाहरी परत जो कि इनेमल कहलाती है, उसे खराब करता है और उसमें कैविटी यानी कि कीड़े उतपन्न करता है. तो जब हम इसको हटा देंगे तो मुंह में कैविटी यानी कीड़े नहीं लगेंगे और मसूड़े भी स्वस्थ रहेंगे.
सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब यह प्लाक आपके दांतों पर हमेशा रहता है और एक बहुत ही कड़क पर में बदल जाता है.
टाटर को हम कैलकुलस भी कहते हैं
जो कि दांत के ऊपर और मसूड़ों के अंदर बन जाती है. यह दांतो को हिला देती है और दातों में झनझनाहट कर देती है.यह परत डेंटल क्लीनिक में एक स्पेशल इंस्ट्रूमेंट से निकाली जा सकती है.
हमारे दांतों और मसूड़ों को किस तरह से प्रभावित करता है यह टारटर?
अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz सब्जेक्ट में लिखे… गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
आजकल प्यार करना कोई बड़ी बात नही है. हर किसी को कैसे न कैसे प्यार हो जाता है. जैसे अगर कौलेज की ही बात करें आपको कईं लवर्स मिल जाएंगे, लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि अक्सर लड़कियों को गिटार बजाने वाले लड़ते हैं. लड़कियों का मानना होता है कि इस तरह के लड़के लविंग और केयरिंग होते हैं. जो लड़कियों की नजर में ज्यादा काबिल होते हैं. इसी तरह गिटार बजाने वाले लड़को को पसंद करने के और भी कारण हैं, जिसके बारे में हम आपको बताएंगे.
1. गिटार बजाने वाले लड़के होते हैं टैलेंटिड
गिटार बजाने के लिए बुद्धि और प्रतिभा की आवश्यकता होती है. तो जो व्यक्ति गिटार बजाता है निश्चित रूप से वह प्रतिभाशाली और कुशल होगा ही, इस कारण लड़कियां उन्हें पसंद करती हैं.
2. गिटार से अट्रेक्शन होता है जल्दी
जो लड़के गिटार बजाते हैं वह बड़े ही आसान तरीके से सबका ध्यान अपनी तरफ खींच सकता है. जो पुरुष गिटार बजाते हैं वो अपने आस-पास सकारात्मक उर्जा का संचार करते हैं जिससे लोग उनके पास रहना पसंद करते हैं. साइकोलौजी के अनुसार, महिलाएं उन लोगों को पसंद करती हैं जो कि समूह बना पाते हैं.
3. दिल को सूकून देता है गिटार
संगीत का प्रभाव काफी सुखदायक होता है. जो व्यक्ति गिटार बजाते हैं वह अपने संगीत से दूसरे लोगों की भावनाओं और एहसासों को जगा सकता है और आसानी से सेन्सुअस वाइब्स(sensuous vibe) बना सकता है.
4. गिटार बजाने वाले लड़के होते हैं सेंटीमेंटल
किसी भी म्यूजिक इंसट्रूमेंट को बजाने के लिए संवेदनशील होने की जरुरत होती है. जो लोग गिटार बजाते हैं वो बाकी लोगों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं और जो लड़के संवेदनशील होते हैं वो अधिक आकर्षक, केयरिंग और दिलचस्प होते हैं जो लड़कियों को भाते हैं.
5. गिटार बजाते टाइम लड़के लगते हैं अट्रेक्टिव
एक गिटार के साथ अगर आप किसी लड़के को देखेंगे को वह दिखने में ज्यादा आकर्षक और सुदंर लगते हैं जिसके कारण लड़कियों का ध्यान उनकी तरफ चला जाता है. गिटार बजाने वाले लड़के अधिक उर्जावान भी होते हैं. गिटार बजाते टाइम लड़के ज्यादा एनर्जी और खुश नजर आते हैं जो कि गर्ल्स को अट्रैक्ट करता है.
अगर आपके पास ब्रेकफास्ट बनाने का समय नहीं है तो आप इस ओट्स इडली को बना सकती हैं. यह काफी टेस्टी होती है और साथ ही इसे बनाना भी काफी आसान होता है. इडली बनाने के लिये आप उसमें गाजर, हरी मटर या अन्य अपनी मन पसंद सब्जियां भी मिला सकती हैं. इसमें अदरक भी मिलाया जा सकता है, जिससे इडली का स्वाद टेस्टी हो जाए. आप दही की मात्रा को अपने अनुसार एडजस्ट कर सकती हैं. अब आइये देखते हैं ओट्स इडली बनाने की विधि.
कितने- 8
तैयारी में समय- 15 मिनट
पकाने में समय- 15 मिनट
सामग्री-
ओट्स – 1 कप
रवा – 1/2 कप
दही – 1/2 कप
अपने पसंद की सब्जियां – जरूरत अनुसार
पानी – 1/2 कप
नमक – 1 छोटा चम्मच
इनो फ्रूट सॉल्ट – 1/2 छोटा चम्मच
नींबू – 1
हरी मिर्च, बारीक कटी- 2 नग
कटा हरा धनिया – 1 चम्मच
कटा हुआ अदरक – 1 छोटा चम्मच
तड़का लगाने के लिये तेल – 1 बड़ा चम्मच
सरसों – 3/4 छोटा चम्मच
उड़द की दाल – 1 छोटा चम्मच
चना दाल – 1 छोटा चम्मच
कडी पत्ते – 1 गुच्छा
विधि –
-सबसे पहले ओट्स को किसी गरम पैन में 3 मिनट के लिये रोस्ट कर लें. फिर उसे ठंडा कर के मिक्सी में पीस कर पाउडर बना लें.
-अब पैन को गैस पर चढा कर उसमें तेल गरम करें. फिर उसमें तड़के वाली सामग्रियां डज्ञल कर बाद में सब्जियां डालें.
-फिर उसमें अदरक, हरी मिर्च, धनिया डाल कर फ्राई करें.
-उसके बाद इसमें रवा डालें और फ्राई करें.
-अब इसे मिक्सी में डालें और उसमें ओट्स पावडर, दही, नींबू का रस तथा पानी डाल कर इडली के लिये घोल तैयार करें.
-मिक्सी से घोल निकाल कर उसमें इनो डालें. इससे आपकी इडली बिल्कुल फूली हुई बनेगी.
-अब इस घोल को इडली बनाने वाले सांचे में डालें और इडली को 10-15 मिनट के लिये पकाएं.
-सांचे में हमेशा तेल लगा लेना चाहिये नहीं तो इडली चिपक जाएगी.
-जब इडली हो जाए तब इसे थोड़ा ठंडा होने के बाद सर्व करें.
पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों व मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है.
टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.
न्यूट्रीकेयर प्रोग्राम की सीनियर डाइटिशियन प्रगति कपूर और डाइट ऐंड वैलनैस क्लीनिक की डाइटिशियन सोनिया नारंग बता रही हैं कि उन दिनों के लिए किस तरह की डाइट प्लान करें ताकि आप पीरियड्स में भी रहें हैप्पीहैप्पी.
इन से करें परहेज
– व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.
– बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.
– पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.
– कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.
– ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.
– कैफीन का सेवन भी न करें.
अगर पीरियड्स आने में कठिनाई हो रही है तो इन चीजों का सेवन करें-
– ज्यादा से ज्यादा चौकलेट खाएं. इस से पीरियड्स में आसानी रहती है और मूड भी सही रहता है.
– पपीता खाएं. इस से भी पीरियड्स में आसानी रहती है.
– अगर पीरियड्स में देरी हो रही है तो गुड़ खाएं.
– थोड़ी देर हौट वाटर बैग से पेट के निचले हिस्से की सिंकाई करें. ऐसा करने से पीरियड्स के दिनों में आराम रहता है.
– यदि सुबह खाली पेट सौंफ का सेवन किया जाए तो इस से भी पीरियड्स सही समय पर और आसानी से होते हैं. सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर सुबह खाली पेट खा लीजिए.
यह भी रहे ध्यान
– 1 बार में ही ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5-6 बार खाना खाएं. इस से आप को ऐनर्जी मिलेगी और आप फिट रहेंगी.
– ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. इस से शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और शरीर डीहाइड्रेट नहीं होता. अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में बारबार बाथरूम जाने के डर से कम पानी पीती हैं, जो गलत है.
– 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.
– अपनी पसंद की चीजों में मन लगाएं और खुश रहें.
अन्य सावधानियां
– पीरियड्स में खानपान के अलावा साफसफाई पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है ताकि किसी तरह का बैक्टीरियल इन्फैक्शन न हो. दिन में कम से कम 3 बार पैड जरूर चेंज करें.
– भारी सामान उठाने से बचें. इस दौरान ज्यादा भागदौड़ करने के बजाय आराम करें.
– पीरियड्स के दौरान लाइट कलर के कपड़े न पहनें, क्योंकि इस दौरान ऐसे कपड़े पहनने से दाग लगने का खतरा बना रहता है.
– पैड कैरी करें. कभीकभी स्ट्रैस और भागदौड़ की वजह से पीरियड्स समय से पहले भी हो जाते हैं. इसलिए हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा पैड जरूर कैरी करें.
– अगर दर्द ज्यादा हो तो उसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द डाक्टर से चैकअप कराएं.
डाइट में फाइबर फूड शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. दलिया, खूबानी, साबूत अनाज, संतरा, खीरा, मकई, गाजर, बादाम, आलूबुखारा आदि खानपान में शामिल करें. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स व विटामिनों की पूर्ति करते हैं.
कैल्सियम युक्त आहार लें. कैल्सियम नर्व सिस्टम को सही रखता है, साथ ही शरीर में रक्तसंचार को भी सुचारु रखता है. एक महिला के शरीर में प्रतिदिन 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होनी चाहिए. महिलाओं को लगता है कि दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी हो जाती है. लेकिन सिर्फ दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी नहीं होती. एक दिन में 20 कप दूध पीने पर शरीर में 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होती है, पर इतना दूध पीना संभव नहीं. इसलिए डाइट में पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, बींस, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. ये सभी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर को ऐनर्जी प्रदान करते हैं.
आयरन का सेवन करें, क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर से औसतन 1-2 कप खून निकलता है. खून में आयरन की कमी होने की वजह से सिरदर्द, उलटियां, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं. अत: आयरन की पूर्ति के लिए पालक, कद्दू के बीज, बींस, रैड मीट आदि खाने में शामिल करें. ये खून में आयरन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनीमिया होने का खतरा कम होता है.
खाने में प्रोटीन लें. प्रोटीन पीरियड्स के दौरान शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. दाल, दूध, अंडा, बींस, बादाम, पनीर में भरपूर प्रोटीन होता है.
विटामिन लेना न भूलें. ऐसा भोजन करें, जिस में विटामिन सी की मात्रा हो. अत: इस के लिए नीबू, हरीमिर्च, स्प्राउट आदि का सेवन करें. पीएमएस को कम करने के लिए विटामिन ई का सेवन करें. विटामिन बी मूड को सही करता है. यह आलू, केला, दलिया में होता है. अधिकांश लोग आलू व केले को फैटी फूड समझ कर नहीं खाते पर ये इस के अच्छे स्रोत हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. विटामिन सी और जिंक महिलाओं के रीप्रोडक्टिव सिस्टम को अच्छा बनाते हैं. कद्दू के बीजों में जिंक पर्याप्त मात्रा में होता है.
प्रतिदिन 1 छोटा टुकड़ा डार्क चौकलेट जरूर खाएं. चौकलेट शरीर में सिरोटोनिन हारमोन को बढ़ाती है, जिस से मूड सही रहता है.
अपने खाने में मैग्निशियम जरूर शामिल करें. यह आप के खाने में हर दिन 360 एमजी होना चाहिए और पीरियड्स शुरू होने से 3 दिन पहले से लेना शुरू कर दें.
पीरियड्स के दौरान गर्भाशय सिकुड़ जाता है, जिस की वजह से ऐंठन, दर्द होने के साथसाथ चक्कर भी आने लगते हैं. अत: इस दौरान मछली का सेवन करें.