क्या कोई ऐसी दवा है, जिससे जौ लाइन में सुधार आ सकता हो?

सवाल-

मेरे जबड़े बहुत अंदर हैं, जिस से चेहरे का संतुलन बिगड़ गया है. क्या कोई ऐसी दवा है जिसे लेने से जौ लाइन में सुधार आ सकता हो?

जवाब-

यह समस्या चेहरे की हड्डियों के ठीक अनुपात में विकसित न होने से खड़ी हुई हो सकती है. अकसर यह स्थिति आनुवंशिक होती है और इसे किसी दवा से नहीं सुधारा जा सकता. यदि आप इस समस्या से बहुत परेशान हैं तो अच्छा होगा कि आप किसी योग्य प्लास्टिक सर्जन से परामर्श लें. कुछ प्लास्टिक सर्जन मग्जोलाफशियल ऐस्थैटिक सर्जरी में विशेषरूप से निपुणता रखते हैं. आप के शहर में कोई ऐसा योग्य सर्जन हो तो उस से कंसल्ट करें और सर्जरी से जौ लाइन में कितना और क्या सुधार हो सकता है, इस पर विचारविमर्श करें. क्याक्या परेशानी हो सकती है, कितना समय लगेगा, क्या खर्च आएगा, इस बाबत ठीक से जान लेने के बाद ही सर्जरी कराने का फैसला लें.

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आप सभी जानते हैं कि ब्रशिंग, फ्लॉसिंग और मुंह में एंटीसेप्टिक सलूशन के साथ मुंह को अच्छे से कुल्ला करना बहुत ही अनिवार्य है. यह करने से मुंह में टारटर यानी कि प्लाक नहीं बनता है.

टार्टर क्या है?

जब आप अच्छे से ब्रश नहीं करते हैं और मुंह का अच्छे से ध्यान नहीं रखते हैं तो मुंह में कुछ प्रकार के बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं, यह बैक्टीरिया जब अपने खाने और खाने के जो प्रोटीन है उससे मिलते हैं तो एक चिपचिपी परत बना देते हैं, उस परत को प्लाक कहते हैं. प्लाक बहुत तरह के बैक्टीरिया से बनता है जो कि अपने दांत की बाहरी परत जो कि इनेमल कहलाती है, उसे खराब करता है और उसमें कैविटी यानी कि कीड़े उतपन्न करता है. तो जब हम इसको हटा देंगे तो मुंह में कैविटी यानी कीड़े नहीं लगेंगे और मसूड़े भी स्वस्थ रहेंगे.
सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब यह प्लाक आपके दांतों पर हमेशा रहता है और एक बहुत ही कड़क पर में बदल जाता है.
टाटर को हम कैलकुलस भी कहते हैं
जो कि दांत के ऊपर और मसूड़ों के अंदर बन जाती है. यह दांतो को हिला देती है और दातों में झनझनाहट कर देती है.यह परत डेंटल क्लीनिक में एक स्पेशल इंस्ट्रूमेंट से निकाली जा सकती है.

हमारे दांतों और मसूड़ों को किस तरह से प्रभावित करता है यह टारटर?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

लड़कियों को क्यों पसंद आते हैं गिटार बजाने वाले लड़के

आजकल प्यार करना कोई बड़ी बात नही है. हर किसी को कैसे न कैसे प्यार हो जाता है. जैसे अगर कौलेज की ही बात करें आपको कईं लवर्स मिल जाएंगे, लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि अक्सर लड़कियों को गिटार बजाने वाले लड़ते हैं. लड़कियों का मानना होता है कि इस तरह के लड़के लविंग और केयरिंग होते हैं. जो लड़कियों की नजर में ज्यादा काबिल होते हैं. इसी तरह गिटार बजाने वाले लड़को को पसंद करने के और भी कारण हैं, जिसके बारे में हम आपको बताएंगे.

1. गिटार बजाने वाले लड़के होते हैं टैलेंटिड

गिटार बजाने के लिए बुद्धि और प्रतिभा की आवश्यकता होती है. तो जो व्यक्ति गिटार बजाता है निश्चित रूप से वह प्रतिभाशाली और कुशल होगा ही, इस कारण लड़कियां उन्हें पसंद करती हैं.

2. गिटार से अट्रेक्शन होता है जल्दी

जो लड़के गिटार बजाते हैं वह बड़े ही आसान तरीके से सबका ध्यान अपनी तरफ खींच सकता है. जो पुरुष गिटार बजाते हैं वो अपने आस-पास सकारात्मक उर्जा का संचार करते हैं जिससे लोग उनके पास रहना पसंद करते हैं. साइकोलौजी के अनुसार, महिलाएं उन लोगों को पसंद करती हैं जो कि समूह बना पाते हैं.

3. दिल को सूकून देता है गिटार

संगीत का प्रभाव काफी सुखदायक होता है. जो व्यक्ति गिटार बजाते हैं वह अपने संगीत से दूसरे लोगों की भावनाओं और एहसासों को जगा सकता है और आसानी से सेन्सुअस वाइब्स(sensuous vibe) बना सकता है.

4. गिटार बजाने वाले लड़के होते हैं सेंटीमेंटल

किसी भी म्यूजिक इंसट्रूमेंट को बजाने के लिए संवेदनशील होने की जरुरत होती है. जो लोग गिटार बजाते हैं वो बाकी लोगों की तुलना में अधिक संवेदनशील होते हैं और जो लड़के संवेदनशील होते हैं वो अधिक आकर्षक, केयरिंग और दिलचस्प होते हैं जो लड़कियों को भाते हैं.

5. गिटार बजाते टाइम लड़के लगते हैं अट्रेक्टिव

एक गिटार के साथ अगर आप किसी लड़के को देखेंगे को वह दिखने में ज्यादा आकर्षक और सुदंर लगते हैं जिसके कारण लड़कियों का ध्यान उनकी तरफ चला जाता है. गिटार बजाने वाले लड़के अधिक उर्जावान भी होते हैं. गिटार बजाते टाइम लड़के ज्यादा एनर्जी और खुश नजर आते हैं जो कि गर्ल्स को अट्रैक्ट करता है.

कुछ मिनटों में ऐसे बनाएं ओट्स इडली

अगर आपके पास ब्रेकफास्‍ट बनाने का समय नहीं है तो आप इस ओट्स इडली को बना सकती हैं. यह काफी टेस्‍टी होती है और साथ ही इसे बनाना भी काफी आसान होता है. इडली बनाने के लिये आप उसमें गाजर, हरी मटर या अन्‍य अपनी मन पसंद सब्‍जियां भी मिला सकती हैं. इसमें अदरक भी मिलाया जा सकता है, जिससे इडली का स्‍वाद टेस्‍टी हो जाए. आप दही की मात्रा को अपने अनुसार एडजस्‍ट कर सकती हैं. अब आइये देखते हैं ओट्स इडली बनाने की विधि.

कितने- 8

तैयारी में समय- 15 मिनट

पकाने में समय- 15 मिनट

सामग्री-

ओट्स – 1 कप

रवा – 1/2 कप

दही – 1/2 कप

अपने पसंद की सब्जियां – जरूरत अनुसार

पानी – 1/2 कप

नमक – 1 छोटा चम्मच

इनो फ्रूट सॉल्‍ट – 1/2 छोटा चम्मच

नींबू – 1

हरी मिर्च, बारीक कटी- 2 नग

कटा हरा धनिया – 1 चम्‍मच

कटा हुआ अदरक – 1 छोटा चम्मच

तड़का लगाने के लिये तेल – 1 बड़ा चम्मच

सरसों – 3/4 छोटा चम्मच

उड़द की दाल – 1 छोटा चम्मच

चना दाल – 1 छोटा चम्मच

कडी पत्ते – 1 गुच्‍छा

विधि –

-सबसे पहले ओट्स को किसी गरम पैन में 3 मिनट के लिये रोस्‍ट कर लें. फिर उसे ठंडा कर के मिक्‍सी में पीस कर पाउडर बना लें.

-अब पैन को गैस पर चढा कर उसमें तेल गरम करें. फिर उसमें तड़के वाली सामग्रियां डज्ञल कर बाद में सब्‍जियां डालें.

-फिर उसमें अदरक, हरी मिर्च, धनिया डाल कर फ्राई करें.

-उसके बाद इसमें रवा डालें और फ्राई करें.

-अब इसे मिक्‍सी में डालें और उसमें ओट्स पावडर, दही, नींबू का रस तथा पानी डाल कर इडली के लिये घोल तैयार करें.

-मिक्‍सी से घोल निकाल कर उसमें इनो डालें. इससे आपकी इडली बिल्‍कुल फूली हुई बनेगी.

-अब इस घोल को इडली बनाने वाले सांचे में डालें और इडली को 10-15 मिनट के लिये पकाएं.

-सांचे में हमेशा तेल लगा लेना चाहिये नहीं तो इडली चिपक जाएगी.

-जब इडली हो जाए तब इसे थोड़ा ठंडा होने के बाद सर्व करें.

पीरियड्स के दिनों में रखें डाइट का ध्यान

पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों व मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है.

टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.

न्यूट्रीकेयर प्रोग्राम की सीनियर डाइटिशियन प्रगति कपूर और डाइट ऐंड वैलनैस क्लीनिक की डाइटिशियन सोनिया नारंग बता रही हैं कि उन दिनों के लिए किस तरह की डाइट प्लान करें ताकि आप पीरियड्स में भी रहें हैप्पीहैप्पी.

इन से करें परहेज

– व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.

– बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.

– पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.

– कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.

– ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.

– कैफीन का सेवन भी न करें.

अगर पीरियड्स आने में कठिनाई हो रही है तो इन चीजों का सेवन करें-

– ज्यादा से ज्यादा चौकलेट खाएं. इस से पीरियड्स में आसानी रहती है और मूड भी सही रहता है.

– पपीता खाएं. इस से भी पीरियड्स में आसानी रहती है.

– अगर पीरियड्स में देरी हो रही है तो गुड़ खाएं.

– थोड़ी देर हौट वाटर बैग से पेट के निचले हिस्से की सिंकाई करें. ऐसा करने से पीरियड्स के दिनों में आराम रहता है.

– यदि सुबह खाली पेट सौंफ का सेवन किया जाए तो इस से भी पीरियड्स सही समय पर और आसानी से होते हैं. सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर सुबह खाली पेट खा लीजिए.

यह भी रहे ध्यान

– 1 बार में ही ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5-6 बार खाना खाएं. इस से आप को ऐनर्जी मिलेगी और आप फिट रहेंगी.

– ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. इस से शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और शरीर डीहाइड्रेट नहीं होता. अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में बारबार बाथरूम जाने के डर से कम पानी पीती हैं, जो गलत है.

– 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.

– अपनी पसंद की चीजों में मन लगाएं और खुश रहें.

अन्य सावधानियां

– पीरियड्स में खानपान के अलावा साफसफाई पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है ताकि किसी तरह का बैक्टीरियल इन्फैक्शन न हो. दिन में कम से कम 3 बार पैड जरूर चेंज करें.

– भारी सामान उठाने से बचें. इस दौरान ज्यादा भागदौड़ करने के बजाय आराम करें.

– पीरियड्स के दौरान लाइट कलर के कपड़े न पहनें, क्योंकि इस दौरान ऐसे कपड़े पहनने से दाग लगने का खतरा बना रहता है.

– पैड कैरी करें. कभीकभी स्ट्रैस और भागदौड़ की वजह से पीरियड्स समय से पहले भी हो जाते हैं. इसलिए हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा पैड जरूर कैरी करें.

– अगर दर्द ज्यादा हो तो उसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द डाक्टर से चैकअप कराएं.

डाइट में फाइबर फूड शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. दलिया, खूबानी, साबूत अनाज, संतरा, खीरा, मकई, गाजर, बादाम, आलूबुखारा आदि खानपान में शामिल करें. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स व विटामिनों की पूर्ति करते हैं.

कैल्सियम युक्त आहार लें. कैल्सियम नर्व सिस्टम को सही रखता है, साथ ही शरीर में रक्तसंचार को भी सुचारु रखता है. एक महिला के शरीर में प्रतिदिन 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होनी चाहिए. महिलाओं को लगता है कि दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी हो जाती है. लेकिन सिर्फ दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी नहीं होती. एक दिन में 20 कप दूध पीने पर शरीर में 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होती है, पर इतना दूध पीना संभव नहीं. इसलिए डाइट में पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, बींस, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. ये सभी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर को ऐनर्जी प्रदान करते हैं.

आयरन का सेवन करें, क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर से औसतन 1-2 कप खून निकलता है. खून में आयरन की कमी होने की वजह से सिरदर्द, उलटियां, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं. अत: आयरन की पूर्ति के लिए पालक, कद्दू के बीज, बींस, रैड मीट आदि खाने में शामिल करें. ये खून में आयरन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनीमिया होने का खतरा कम होता है.

खाने में प्रोटीन लें. प्रोटीन पीरियड्स के दौरान शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. दाल, दूध, अंडा, बींस, बादाम, पनीर में भरपूर प्रोटीन होता है.

विटामिन लेना न भूलें. ऐसा भोजन करें, जिस में विटामिन सी की मात्रा हो. अत: इस के लिए नीबू, हरीमिर्च, स्प्राउट आदि का सेवन करें. पीएमएस को कम करने के लिए विटामिन ई का सेवन करें. विटामिन बी मूड को सही करता है. यह आलू, केला, दलिया में होता है. अधिकांश लोग आलू व केले को फैटी फूड समझ कर नहीं खाते पर ये इस के अच्छे स्रोत हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. विटामिन सी और जिंक महिलाओं के रीप्रोडक्टिव सिस्टम को अच्छा बनाते हैं. कद्दू के बीजों में जिंक पर्याप्त मात्रा में होता है.

प्रतिदिन 1 छोटा टुकड़ा डार्क चौकलेट जरूर खाएं. चौकलेट शरीर में सिरोटोनिन हारमोन को बढ़ाती है, जिस से मूड सही रहता है.

अपने खाने में मैग्निशियम जरूर शामिल करें. यह आप के खाने में हर दिन 360 एमजी होना चाहिए और पीरियड्स शुरू होने से 3 दिन पहले से लेना शुरू कर दें.

पीरियड्स के दौरान गर्भाशय सिकुड़ जाता है, जिस की वजह से ऐंठन, दर्द होने के साथसाथ चक्कर भी आने लगते हैं. अत: इस दौरान मछली का सेवन करें.

जानें कैसा हो आपका फेशियल

फेशियल चेहरे की खोई रौनक फिर से लौटा देता है. 30 वर्ष की आयु के बाद माह में एक बार फेशियल कराया जा सकता है. इस से त्वचा की ऐक्सरसाइज होती है और त्वचा बनी रहती है जवां.

वाइटनिंग फेशियल

चेहरे से धूलमिट्टी व पहले का मेकअप हटाने के लिए वाइटनिंग क्लींजर से चेहरे को अच्छी तरह साफ करें. स्क्रब में कुछ बूंदें टोनर की इस्तेमाल करें. 10 मिनट तक स्क्रबिंग करने के बाद मसाज क्रीम से 15 मिनट तक मसाज करें. फिर गाढ़ा पैक लगा कर 15 मिनट के बाद चेहरा धो दें.

खास बातें

  1. फेशियल में आए ग्लो को बरकरार रखने के लिए अपने चेहरे की नियमित देखभाल करनी भी आवश्यक है. रोजाना मौइश्चराइजर वाइटनिंग क्लींजर से चेहरा साफ करें व बौडी लोशन का प्रयोग करें.
  2. स्क्रबिंग करते समय फेशियल स्टैप्स न करें केवल सरकुलेशन मोशन में (जैसे कि साबुन लगाते हैं) चेहरे को रब करें. फेशियल में प्रोडक्ट को पैनिट्रेट करना होता है, इसीलिए मसाज की जाती है. लेकिन स्क्रब में केवल मृत त्वचा हटाई जाती है.
  3. स्क्रब में पानी मिलाने के बजाय विटामिन ई युक्त टोनर इस्तेमाल करें. ध्यान रहे, वाटर सैंसेशन वाले टोनर का ही प्रयोग करें ताकि यह त्वचा पर चुभे नहीं.
  4. यह गलत धारणा है कि ज्यादा मसाज करने से फेशियल अच्छा होता है. अत्यधिक मसाज स्किन के लिए उचित नहीं.
  5. औयली स्किन पर 10-12 मिनट की मसाज करनी चाहिए. मसाज से तैलीय त्वचा का औयल कंट्रोल होता है.

क्यों कराएं वाइटनिंग फेशियल

यह फेशियल तकनीक रंग को निखारती है, यूवी रेज, पिगमैंटेशन व टैनिंग की समस्या से बचाती है. प्रदूषण से हमारी त्वचा बेजान हो जाती है. ऐसे में वाइटनिंग फेशियल से उसे फिर से तरोताजा बनाया जा सकता है.

ऐंटीऐजिंग फेशियल

चेहरे को क्लींजर से साफ करने के बाद ऐंटीऐजिंग स्क्रब करें, फिर 15 मिनट तक मसाज करें. इस के बाद पैक लगाएं और 15 मिनट बाद धो दें.

खास बातें

  1. पौष्टिक व संतुलित आहार से त्वचा स्वस्थ व कांतिमय बनी रहती है और लटकती नहीं  है. इसलिए पौष्टिक व संतुलित आहार ही लें.
  2. स्किन पर मसाज के बाद व पैक लगाने से पहले ऐंटीइन्फलेमेशन सिरम इस्तेमाल करना चाहिए. यह त्वचा लाल होने और जलन से बचाता है.

टीऐजिंग फेशियल के लाभ

यह फेशियल 35 से 40 वर्ष की आयु के पश्चात कराना अधिक उचित रहता है. यह चेहरे को झुर्रियों से बचाता है व स्किन को स्वस्थ बनाता है. झुर्रियों वाली लटकी व  बेजान त्वचा को युवा लुक देने के लिए ऐंटीऐजिंग फेशियल कराना फायदेमंद रहता है.

आई फेशियल

टरमरिक क्लींजर से आंखों को क्लीन करें. फिर 6-7 मिनट तक ही स्क्रबिंग करें, क्योंकि  यहां की स्किन अधिक संवेदनशील होती है. फिर हलके हाथों से कुछ मिनट मसाज करें. इस के बाद पैक लगाएं और कुछ देर बाद धो दें.

ध्यान रहे

  1. अति संवेदनशील त्वचा वाले चेहरे पर आई फेशियल कराएं, चूंकि यह बहुत माइल्ड होता है, इसलिए इसे झुर्रियों वाले चेहरे पर भी प्रयोग में लाया जा सकता है. जबकि साधारण फेशियल अति संवेदनशील त्वचा के  लिए ठीक नहीं रहता.
  2. कई बार अच्छे से अच्छा प्रोडक्ट इस्तेमाल करने, फेशियल तकनीक अपनाने व नियमित देखभाल करने पर भी चेहरे की समस्याएं ज्यों की त्यों बनी रहती हैं व त्वचा स्वस्थ नहीं रहती. इस का कारण त्वचा से नहीं बल्कि शरीर से जुड़ा होता है. अत: इस स्थिति में डाक्टर से संपर्क करें.
  3. लगभग 6 सिटिंग्स लेने से काले घेरों की समस्या काफी हद तक कम हो जाएगी.
  4. आंखों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए टीवी या कंप्यूटर के सामने ज्यादा न बैठें, भरपूर नींद व पौष्टिक आहार लें.

आई फेशियल की जरूरत : आई फेशियल ऐजिंग साइंस को रोकता है, आंखों में आई फुलावट व काले घेरों को कम कर के थकी दिखने वाली आंखों को आकर्षक व फ्रैश लुक देता है.

ट्रैंडी हेयरस्टाइल : अच्छी तरह तैयार होने में हेयरस्टाइल बहुत माने रखता है. एक अच्छा हेयरस्टाइल वही होता है, जो लुक में तो ट्रैंडी हो ही, बनाने में भी ज्यादा समय न ले.

ट्विस्टेड रोल जूड़ा

अवधि 7 से 10 मिनट, लंबे केशों के लिए उपयुक्त.

सब से पहले केशों क ो कंघी से अच्छी तरह सुलझा लें. फ्रंट से केश अलग कर के पीछे के सारे केशों की थोड़ी ऊंची पोनी बनाएं और पोनी के ऊपर (क्राउन एरिया में) स्टफिंग लगाएं. स्टफिंग को फ्रंट के छोंड़े गए केशों से कवर करें और बाकी केशों का साइड पार्टीशन कर लें. साइड की फ्लिक्स को कानों के पीछे पिन लगा कर सैट करें. वे लंबे हों तो पोनी के आसपास ही फोल्ड कर लें. बनाई गई पोनीटेल को 2 भागों में बांट लें, फिर हेयर स्प्रे करें. अलग किए गए एक भाग को फिर 2 भागों में बांट कर चोटी गूंथ लें और चोटी की नौट बना कर बन बनाएं. फिर ऊपर की ओर टक करें. दूसरे भाग के केशों को फिर 2 भागों में बांट कर चोटी गूंथें और इस गूंथी गई चोटी में भी नौट लगा कर बन बनाएं और ऊपर की ओर टक करें. नीचे के बचे छोटेछोटे केशों को हेयर स्प्रे कर के मैनेजेबल बनाएं, फिर पिन से ऊपर की ओर सैट करें.

खास बातें

  1. चोटी को ज्यादा कस कर न गूंथें.
  2. हेयर स्पे्र जरूर करें. इस से हेयरस्टाइल ज्यादा समय तक टिकता है व छोटेछोटे केश बैठ जाते हैं तो हेयरस्टाइल सफाई से बनता है .
  3. हेयरस्टाइल के बीच में स्प्रे करने से केशों को ज्यादा मैनेजेबल बनाया जाता है. इस से वे कहीं भी आसानी से मुड़ जाते हैं.
  4. हेयरस्टाइल को सुंदर ऐक्सैसरीज व प्राकृतिक फूलों से सजाएं.

रोजबन जूड़ा

अवधि 12 से 15 मिनट, छोटे केशों के लिए उपयुक्त.

सारे केशों को कंघी से अच्छी तरह सुलझाएं. फ्रंट से मोटी साइड फ्लिक निकाल कर पीछे के सारे केशों की कंघी करें और ऊंची पोनी बनाएं. पोनी के ऊपर पफ स्टफिंग लगाएं, फिर पोनी के केशों से स्टफिंग क ो चारों तरफ से कवर कर के पिनों से सैट करें. इस के बाद हेयर स्प्रे करें. स्टफिंग से जूड़े का बेस तैयार करने के बाद इस के साथ स्विच (केशों क ा 4 भागों में विभाजित) क्लच करें. स्विच वाले केशों के एक भाग को ले कर इस की पतली लट लें और उसे ट्विस्ट करें, फिर उस लट के रोजबन (गोलाकार रोल) बनाएं और स्टफिंग के पास टक कर दें. इस तरह से चारों भागों के कई रोजबन बना कर स्टफिंग के चारों ओर टक कर दें. आगे के केशों की साइड लट को ट्विस्ट कर के कानों के पीछे पिन लगा कर सैट कर दें.

खास बातें

  1. रोजबन बनाने से पहले प्रत्येक लट पर हेयर स्प्रे करें, फिर रोजबन बनाएं.
  2. जूड़े में ज्यादा पिनों का इस्तेमाल करने की आवश्यकता हो तो इनविजिबल पिनों का प्रयोग करें. चूंकि ये नजर नहीं आतीं इसलिए हेयरस्टाइल ज्यादा सफाई से बनता है.

स्किन विशेषज्ञा और हेयर डिजाइनर सुनीता आहूजा के डेमो और बातचीत के आधार पर एम. दुआ का लेख.

वैलकम: भाग-2 आखिर क्या किया था अनुराग ने शेफाली के साथ

अभी तक तो शेफाली के अंदर साहस ही साहस था, लेकिन भाभी की बात और भाभी की घबराहट देख कर उसे भी पहली बार कुछ घबराहट सी हुई और जब वह बैठक के दरवाजे पर पहुंची तो कितना भी धैर्य रखने पर उस का मन आशंका से कांप उठा क्योंकि बैठक में बैठे सभी लोगों की नजरें उस के सैंडिलों पर ही थीं.

‘इन लोगों को मुझे देखना है या मेरी चाल अथवा सैंडिल को?’ यह प्रश्न उस के मन में हलचल मचा गया. फिर बरबस मुसकरा कर नमस्ते करने के बाद वह अनुराग की भाभी की बगल में बैठ गई. अनुराग से भी उस की यह फेस टू फेस पहली मुलाकात थी.

शेफाली प्रदर्शनी में सजी निर्जीव गुडि़या की तरह पलकें नीची किए बैठी थी. पुराने जमाने की लड़कियों की तरह उस के मन में अजीब सा संकोच था, जिस से उस के मुख का सौंदर्य फीका पड़ता जा रहा था. अनुराग की मां, छोटा भाई और बहन तीनों ही उस के अंगप्रत्यंग को नजरों से नापते हुए एकदूसरे को कनखियों से देखते हुए मुसकरा रहे थे. ‘‘रंग कैसा बताओगे? मेरे ही जैसा न? अच्छी तरह देख लो,’’ भाभी फुसफुसा कर

अपने देवर के कान में बोली, ‘‘रंग मु  झ से फीका नहीं होना चाहिए,’’ और फिर चश्मे के अंदर आंखें घुमाती हुई वह उस के मुख के और करीब आ गई. मगर तभी देवर ने अपनी भाभी को आंख मार कर हट जाने को कहा, जैसे कह रहा हो कि रंग की प्रतियोगिता में तो तुम हर तरह से पराजित हो भाभी. उसे अगर 100 से 90 मिलेंगे तो तुम्हें 10 भी नहीं मिलने के. ‘‘शेफाली, सुना है आप बहुत अच्छा गाती हैं. एक गाना सुना दीजिए न.’’

आंसू बह कर अपनी असमर्थता की पीड़ा खोल दें, इस से पूर्व ही शेफाली मुंह नीचा कर के कमरे से बाहर जाती हुई बोली, ‘‘मैं अभी आई,’’ उस का मन हुआ कि वह चीख-चीखकर कह दे कि वह ऐसे आदमी से शादी नहीं करना चाहती, जिस में इनसानियत का जरा भी मादा न हो, जिस के घर की महिलाओं को बात करने की भी तमीज न हो. किंतु होंठों तक आ कर भी शब्द रुक गए. उस के कानों में बारबार भाभी के ये शब्द गूंज रहे थे कि वे लोग कैसा भी व्यवहार करें, तू अपनी जबान न खोलना. सदा की तरह आज भी अपने भैया की लाज रखना. वह अपने कमरे में आ कर पलंग

पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. वह 32 साल की होने लगी थी. उस ने कभी अपने दोस्त नहीं बनाए थे.  पहले भैया ने अपने आसपास वालों को कहा था पर बात नहीं बनीं. फिर साइटों पर जाकर प्रोफाइल डाला. तब जा कर अनुराग मिला. भैया उसे हाथ से निकलने नहीं देना चाहते थे.

अब भैया बहुत ही नाराज हो चुके थे. उन्होंने अनुराग की भाभी से साफसाफ कह दिया, ‘‘बहनजी, आप लोगों ने शेफाली के साथ जो व्यवहार किया, उस से मु  झे बड़ा दुख पहुंचा है. सच बात तो यह है कि अगर मु  झे पहले से यह ज्ञात होता कि आप शेफाली के साथ ऐसा व्यवहार करेंगे तो मैं शेफाली को अनुराग से रिश्ता करने की सलाह ही न नहीं देता.’’ इस के बाद उन लोगों ने रुखसत ले ली. वे लोग कानपुर के थे. कानपुर लौट गए. दूसरे ही दिन एफएम रेडियो पर शेफाली का कार्यक्रम था. यद्यपि इस घटना ने उसका मन खराब कर दिया था, पर इस मनोस्थिति के कारण गजल गाते समय उस के स्वर और दर्दीले हो उठे थे. अपनी नौकरी पर वापस जाने के लिए जब वह बैंगलुरु के एअरक्राफ्ट में चढ़ी तो सिर   झुकाए अपराधी की तरह भैया और भाभी के हाहाकार करते मन की बात जान कर उस का रोमरोम सिसक उठा. उस ने मन में यह निश्चय कर लिया कि अब वह कुंआरी ही रहेगी.

अचानक शेफाली के कानों में आवाज आई, ‘‘वी आर लैडिंग इन बैंगलुरु…’ शेफाली टैक्सी से उतर कर जब होस्टल में घुसी तब तक अंधेरा घिर आया था. उर्वशी ने अपने कमरे में उस के कुम्हलाए चेहरे को देखा तो उत्सुकता के बावजूद उस ने फिलहाल शेफाली से न मिलना ही उचित सम  झा. उस ने सोचा, सुबह जब शेफाली कुछ स्वस्थ हो जाएगी, तभी वह उस से सब जानने का प्रयत्न करेगी.

रात भर शेफाली को नींद नहीं आई. जीवन में पहली बार उसे महसूस हुआ कि प्राय: सभी दृष्टियों से अर्निद्य होते हुए भी उसे नीचा दिखाने का प्रयत्न किया गया है. देर से नींद आने के कारण वह सुबह देर तक सोती रही. ‘‘अरे शेफाली, उठ जल्दी… इसे कहते हैं दीवानापन. तू तैयार हो कर अपने दीवाने का स्वागत कर और मैं जाती हूं चाय बनाने,’’ गहरी नींद में सोती शेफाली को अचानक उर्वशी ने आ कर   झक  झोर दिया.

 

आखिरी पेशी: भाग-1 आखिर क्यों मीनू हमेशा सुवीर पर शक करती रहती थी

मीनू शक्की थी और अपने पति सुवीर पर अकसर शक करती रहती थी. उसका यही शक एक दिन दोनों में अलगाव की वजह बन गया. उस दिन कोर्ट में आखिरी पेशी थी…

उस दिन अदालत में सुवीर से तलाक के लिए चल रहे मुकदमे की आखिरी पेशी थी. सुबह से ही मेरा मन न जाने क्यों बहुत घबराया हुआ था. इतना समय बीत गया था, पर थोड़ी छटपटाहट और खीज के अलावा मेरा दिल इतना बेचैन कभी नहीं हुआ था.

शायद इस की वजह यह थी कि उस के ठीक 8 दिन बाद ही दीवाली थी. किसी को तो शायद याद भी न हो पर मुझे खूब याद था कि 4 साल पहले दीवाली से 8 दिन पहले ही सुवीर से रूठ कर मैं मायके चली आई थी.

क्या पता था कि जिस दिन मैं ससुराल की देहरी छोड़ूंगी, ठीक उसी दिन मेरे और सुवीर के तलाक के मुकदमे का फैसला होगा.

सुवीर से बिछुड़े मुझे पूरे 4 वर्ष हो चुके थे. साल के और दिन तो जैसेतैसे कट जाते थे परंतु दीवाली आते ही मेरे लिए वक्त जैसे रुक सा जाता था, रुलाई फूटफूट पड़ती थी. जब सब लोग खुशी और उमंग में डूबे होते तो मैं अपने ही खींचे दायरे में कैद हो कर छटपटाती रहती.

यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं कि सुवीर से बिछुड़ कर यह सारा वक्त मैं ने अजीब घुटन सी महसूस करते हुए काटा था. इस के बावजूद सुवीर से तलाक की अर्जी मैं किस निर्भीकता और जिद में दे आई थी, इस पर मुझे अभी भी अकसर आश्चर्य होता रहता है. शायद उस वक्त मैं ने सोचा था कि सुवीर तलाक की अर्जी पर अदालत का नोटिस मिलते ही कोर्टकचहरी के चक्करों से बचने के लिए अपनी गलती महसूस कर मुझे स्वयं आ कर मना कर ले जाएंगे पर यह मेरी भूल थी.

मुकदमे की पहली ही पेशी में सुवीर ने अपने जवाब में तलाक का विरोध न कर के अदालत से उन्होंने आपसी सहमति वाले तलाक के प्रावधान पर मेरे वकील के कहने पर हस्ताक्षर भी कर दिए थे. मेरे आवेदन को स्वीकार कर लेने का अनुरोध किया था. सुवीर के इस अप्रत्याशित रवैए से मेरे मन को बड़ा धक्का लगा था. मेरा मन खालीखाली सा हो गया था. अपने जीवन के अकेले, बोझिल और बासी क्षणों पर मैं कभीकभी बेहद खीज उठती थी. मन में अकसर यह विचार आता, यदि जिंदगी का सफर यों ही अकेले तय करना था तो शादी ही क्यों की मैं ने और फिर जब कर ही ली थी तो घर भर के कहे अनुसार एक बार लौट कर मुझे सुवीर के पास जरूर जाना चाहिए था. क्या पता, मुझे चिढ़ाने के लिए ही सुवीर उस लड़की के साथ घूमते रहे हों.

अब तक जितनी भी पेशियां हुई थीं उन में सुवीर मुझे बेहद उदास और टूटे हुए से दिखाई दिए थे. उन्होंने कभी अपने मुंह से वकील को कुछ  नहीं कहा था. बस, हर बार नजरें मिला कर और फिर  झुकाकर यही कहते रहे थे, ‘‘जैसा इन्हें मंजूर हो, मुझे भी मंजूर है.’’

जज हर बार मामले को 5-6 महीने के लिए टाल रहे थे,शायद इसलिए कि वे भांप गए थे कि यह आप का सिर्फ ईगो है.

कभी-कभी पेशियों से लौट कर मैं कितनी अनमनी हो जाती थी, सोचती, ‘क्या सुवीर नहीं चाहते कि मैं उन से अलग हो जाऊं? क्या सुवीर का उस लड़की से सचमुच ही कोई संबंध नहीं है? क्या सुवीर अभी भी मुझे प्यार करते हैं या यह सब नाटकबाजी है?’

बस, यहीं आ कर मैं हार जाती थी. पता नहीं क्यों मुझे लगता सुवीर नाटक कर रहे हैं. असल में वह खुद ही मुझसे छुटकारा पाना चाहते हैं और मैं सिर झटक कर सभी विचारों से मुक्ति पा लेती थी.

कचहरी 10 बजे तक पहुंचना था पर वक्त मानो रुका जा रहा था. पिताजी को मेरे  साथ जाने की वजह से उस दिन काम पर नहीं जाना था. वे बरामदे में बैठे थे.

मैं ऊबी सी कोई पत्रिका लेकर पलंग पर आ बैठी थी पर मन था कि बांधे नहीं बंध रहा था, उड़ा ही जा रहा था.

सुवीर से जब मेरा चट मंगनी पट ब्याह हुआ था तो मेरे सुनहलेरुपहले दिन न जाने कैसे पंख लगा कर उड़ जाते थे. कवियों की भाषा में यों कहूं कि मेरे दिन सोने के थे और रातें चांदी की तो कोई अतिशयोक्ति न होगी.

मुझे ऐसा घर मिला था कि मैं फूली न समाती थी. सुवीर अपने मांबाप के इकलौते बेटे थे. उन की 2 बहनें थीं, जिन की शादियां हो चुकी थीं. सासससुर साथ ही रहते थे और वे भी मु?ो खूब प्यार करते थे. सुवीर का प्यार पा कर तो मैं सब कुछ भूल ही गई थी. मैं ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया था जहां में शादी से पहले से ही पढ़ाती थी.

सुवीर एक फैक्टरी में प्रबंधक के पद पर थे. हर शाम को उन के लौटने तक मैं उन की पसंद की कोईर् चीज बनाया करती और सुंदर कपड़े पहन कर दरवाजे पर ही उन का स्वागत किया करती थी.

शाम की चाय हम इकट्ठे पी कर अकसर घूमने निकल जाया करते थे. कभी

कहीं, कभी कहीं. वैसे मेरी सास भी बहुत उदार दिल की थीं. हम न जाते तो वे सुवीर से कहतीं, ‘‘बहू सारा दिन काम कर के आई है. ऊब गई होगी. तू भी ऊब गया होगा. जा, कहीं इसे घुमा ला, बेटा. फिर यही दिन तो घूमनेफिरने के हैं. एक बार बच्चों और गृहस्थी के जंजाल में फंसोगे तो फिर चिंता ही चिंता.’’

और हम रोज ही शाम को बातें करतेकरते कहां के कहां पहुंच गए, यह हमें ध्यान ही नहीं रहता था. जब कुछ खापी कर घर लौटने लगते, तब कहीं रास्ते की दूरी का एहसास होता था. इसी तरह शादी हुए 8 महीने गुजर गए थे. एक दिन सुवीर की छुट्टी थी. हम पिकनिक मनाने के उद्देश्य से स्थानीय ?ाल गए थे. वहां काफी भीड़ थी.

घूमफिर कर हम एक जगह चादर बिछा कर बैठ गए थे. हम ने सस्ते में एक जगह से खाना पैक करा लिया था. खानेपीने की चीजें निकालने में व्यस्त हो गई थी और फिर सिर नीचा किएकिए ही मैं ने सुवीर से पूछा, ‘‘खाना निकालूं?’’

सुवीर ने कोई जवाब नहीं दिया. अपने ही विचारों में गुनगुनाते मैं ने यही सवाल दोबारा किया पर जवाब फिर नदारद था. अचानक मैं ने सिर उठा कर देखा तो सुवीर एक  बेहद सुंदर युवती को घूरघूर कर देख रहे थे और वह दबंग युवती भी सुवीर को बिना मेरी परवाह किए आंखों में आंखें डाल कर देखे जा रही थी.

मेरा मन नारी सुलभ ईर्ष्या से जल उठा. लाख सुंदर सही पर मेरे होते हुए

सुवीर का इस तरह उसे देखना मुझे फूटी आंख नहीं भाया. जी तो किया कि उसी समय उस लड़की का मुंह अपने लंबे नाखूनों से नोच लूं पर फिर न जाने क्या सोच कर मैं ने गुस्से में भर कर सुवीर को झकझोर दिया.

मेरे हिलाने से सुवीर मानो सम्मोहन की दुनिया से लौट आए थे. उधर वह युवती भी अचकचा कर चलती बनी थी. पर मैं ने सुवीर को खूब आड़े हाथों लिया, ‘‘क्यों, ऐसी क्या खास बात थी उस में जो भूखे शेर की तरह उसे घूर रहे थे? शर्म नहीं आती लड़कियों को इस तरह देखते हुए? बताओ, आखिर क्या देख रहे थे? क्या कोई पुरानी जानपहचान है?’’

इधर मैं तो गुस्से में आगबबूला हुई जा रही थी और उधर सुवीर अभी भी खोएखोए से थे. सिर्फ हांहूं कर रहे थे. आंखों की पुतलियां भले ही उस लड़की को नहीं देख पा रही थीं परंतु उन में नाचती तसवीर और आंखों का बावरापन साफ बता रहा था कि सुवीर अभी भी उसी के खयालों में डूबे बैठे हैं.

खिसिया कर मैं ने जोर से सुवीर को फिर झकझोरा तो एक बार फिर हां कह कर वे उसी ओर देखने लगे जिधर वह युवती गईर् थी.

मारे गुस्से के मैं पैर पटकती उठ खड़ी हुई और अकेली ही सारा सामान सुवीर के भरोसे छोड़ कर औटो कर के घर चल दी.

सास ने मुझे देखा तो आश्चर्य में पड़ गईं. बोली, ‘‘सुवीर कहां है? क्या अकेली आई हो? सामान कहां है?’’

न जाने वे क्याक्या पूछती रहीं. मैं ने आंखों के उमड़ते सैलाब को रोक कर कहा, ‘‘आएं तो उन्हीं से पूछिएगा.’’

और मैं फटाक से कमरे का दरवाजा बंद कर के पलंग पर गिर कर फूटफूट कर रोने लगी. सुवीर का बावरापन याद आते ही मुझे लगा कि जरूर इन दोनों में कोई गहरी सांठगांठ है और कोई बात मुझसे छिपाई गई है. बगैर जानपहचान के कोई भी लड़की इस तरह गैरमर्द को नहीं देख सकती. मेरे मन में तरहतरह के सवाल उठ रहे थे. क्या पता साथ पढ़ती रही हो? क्या पता सुवीर की प्रेमिका हो और शादी के बाद भी वह उन से प्यार करते हो? हो सकता है रखैल ही हो.

निर्णय: भाग 2- वक्त के दोहराये पर खड़ी सोनू की मां

कलेजा बर्फ हो गया था उस का. हाथपांव सुन्न हो गए थे. घरभर के ठंडे व उपेक्षित व्यवहार का कारण पलभर में उसे समझ आ गया था. उसे ट्रेन पर बिठाते ही नीलाभ ने इन लोगों के आगे वह सारा सच उगल दिया था जिसे वे दोनों आज तक अपनी परछाईं से भी छिपा कर रखते थे. मां ने क्या आग उगली, जिज्जी ने क्या दंश दिए, सब बेमानी हो गए थे नीलाभ के विश्वासघात के आगे. अपना वश नहीं चला तो उस पर घर वालों का दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे नीलाभ. यहीं चूक गए नीलाभ. पहचान नहीं पाए उसे. वह तो उसी क्षण उसी रात पूर्णरूपेण मां बन गई थी बेटे की. ममता भी कहीं आधीअधूरी होती है. अब शरर में कुछ दोष है तो है. इस नन्ही सी जान की सेवा के लिए परिवार या नीलाभ कौन होते हैं रोड़ा अटकाने वाले. अब यह तो नहीं हो सकता कि एक दिन अचानक से एक अनजान बालक को गोद में डाल दिया और कहा, ‘यह लो, बेटा बना लो. फिर कह दिया, नहीं, यह बेटा नहीं हो सकता, छोड़ आओ कहीं.’ वह हैरान थी कि कमी उजागर होते ही बेटे पर जान न्योछावर करने वाला पिता इतना कठोर हृदय कैसे हो सकता है.

भीतर की सारी उथलपुथल भीतर ही समेटे ऊपर से सामान्य दिखने की कोशिश में अपनी सारी ऊर्जा खर्च करती वह बूआ के घर में सब से मिलतीमिलाती रही थी. नामकरण से लौट कर रात को मां तथा जिज्जी ने उसे आ घेरा था. उन्हें हजम ही नहीं हो रहा था कि उस ने सब से इतना बड़ा झूठ बोला कैसे. शक तो पहले से ही था. न दिन चढ़ने की खबर लगने दी, न दर्द उठने की, सीधा छोरा जनने की खबर सुना दी थी. छोरा न हुआ, कुम्हड़ा हो गया कि गए और तोड़ लाए. ‘अब नीलाभ नहीं चाहता है तो तू क्यों सीने से चिपकाए है छोरे को. छोड़ क्यों नहीं देती इसे. पता नहीं किस जातकुजात का पाप है. अच्छा हुआ कि छोरा अपाहिज निकला वरना हमें कभी कानोंकान भनक न होती.’ बिफर तो सुबह से ही रही थीं दोनों, पर पता नहीं कैसे जब्त किए बैठी थीं. शायद उन्हें डर था कि ये सब बातें उठते ही क्लेश मच जाएगा घर में. उस के रोनेबिसूरने, विरोध तथा विद्रोह के स्वर इतने ऊंचे न हो जाएं कि उन की गूंज बूआ के घर एकत्र हुए मेहमानों तक पहुंच जाए. सब को पता था कि वह आई हुई है विशेष तौर पर समारोह में सम्मिलित होने. बिफर कर कहीं वहां जाने से इनकार कर देती तो बिरादरी में मां सब को क्या बतातीं उस के न आने का कारण.

सिर झुकाए बैठी वह सोच रही थी कि यदि सोनू की मां का कुछ अतापता होता तो नीलाभ अवश्य ही उसे वापस सौंप देते बच्चा. पर वह फिलहाल अनजान लड़की तो आसन्नप्रसवा थी जब नीलाभ के नर्सिंग होम में पहुंची थी. आधी रात का समय, स्टाफ और मरीज अधिक नहीं थे उस समय. बस, एक आपातकालीन मरीज की देखभाल करने के लिए रुके हुए थे नीलाभ. कुछ ही पलों में बच्चा जना और पता नहीं चुपचाप कब बच्चा वहीं छोड़ कर भाग निकली थी वह लड़की. पहले तो घबरा गए नीलाभ, पुलिस को सूचना देनी होगी. फिर अचानक उन की छठी इंद्रीय सक्रिय हो उठी. लड़का है. जो यों इसे पैदा कर के छोड़ कर भाग निकली है, वह वापस आने से तो रही. उन्होंने तुरंत उसे फोन किया तथा अस्पताल बुला लिया. एक बिस्तर पर लिटा कर पास ही पालने में वह नवजात शिशु लिटा दिया. सुबह  होतेहोते यह खबर चारों ओर फैल गई कि रात में पुत्र को जन्म दिया है डाक्टर साहब की पत्नी ने. सब हैरान थे. अच्छा, मैडम गर्भवती थी, पता ही न चला. अड़ोसपड़ोस भी हैरान था. सब को डाक्टर साहब ने अपनी बातों से संतुष्ट कर दिया. वैसे भी वह कहां ज्यादा उठतीबैठती थी पड़ोस में. छोटे शहरों में भी आजकल वह बात नहीं रही. कौन किस की इतनी खबर रखता है. बधाइयां दी गईं, मिठाइयां बांटी गईं, जश्न हुए. यही मां और जिज्जी बलाएं लेती न आघाती थीं. और अब इतना जहर. 5 बजे की ट्रेन थी उस की वापसी की. उस के निकलने से घंटा भर पहले सरिता आ पहुंची थी उस से मिलने. कोई और वक्त होता तो वह सौ गिलेशिकवे करती अपनी प्यारी ननद, अपनी बचपन की सखी सरिता से. पर जब से आई थी, इतने तनाव, क्लेश और परेशानियों में फंसी थी कि उसे स्वयं भी कहां याद रहा था एक बार सरिता को फोन ही कर लेना.

सरिता का ससुराल स्टेशन के पास ही रमेश नगर में  है. कुल आधे घंटे का रास्ता है यहां से. पर पता नहीं  क्यों वह कल बूआ के घर भी नहीं आई थी. आज आई है जब समय ही नहीं बचा है बैठ कर दो बातें करने का. सरिता आई तो जैसे उस की रुकी हुई सांसें भी चलने लगी थीं. बचपन में उस का मायका तथा ससुराल दोनों परिवार एक ही महल्ले में रहते थे. दोनों साथसाथ पढ़ती थीं एक ही कक्षा में. पक्की सहेलियां थीं दोनों. सूखे कुएं के पीछे, बुढि़या के घर से अमरूद तोड़ कर चुराने हों या पेटदर्द का बहाना कर स्कूल से छुट्टी मारनी हो, दोनों हमेशा साथ होती थीं. 7वीं-8वीं तक आतेआते तो इन दोनों की कारगुजारियां जासूसी एवं रूमानी उपन्यास पढ़ने तथा कभीकभार मौका पाते ही सपना टाकिज में छिप कर पिक्चर देख आने तक बढ़ गई थीं. क्या मजाल कि दोनों के बीच की बात की तीसरे को भनक तक लग जाए. उस के बाद साथ छूट गया था. सरिता के पिता का तबादला हो गया था. बाद में जब किसी बिचौलिए की सहायता से सरिता का रिश्ता नीलाभ के लिए आया तो सब ने स्वीकृति की मुहर इसीलिए लगाई थी कि कभी दोनों परिवार एकदूसरे के साथ, एक ही महल्ले में रहते थे. जानते हैं एकदूसरे को.

दूसरी ओर वह थी कि डाक्टर पति पाने से भी अधिक प्रसन्नता उसे सरिता को ननद के रूप में पाने की हुई थी. आज तक बदला नहीं है वह रिश्ता. यह बात छिपी तो नहीं किसी से फिर भी जिज्जी ने उस पर दबाव बढ़ाने के लिए सरिता को बुला भेजा था. उन्हें शायद लगा था कि इस विषय में सरिता अपनी सखी का नहीं बल्कि मां तथा जिज्जी का ही साथ देगी. आखिर उसे भी तो कुछ नहीं बताया गया था. वह धोखे में ही थी. आते ही सरिता उस के गले लग गई थी. 3 दिनों में पहली बार आंखें छलक आई थीं उस की. आंसू भी शायद तभी बहते हैं जब कोई पोंछने वाला हो सामने. उस ने इतना बड़ा सच छिपाया था सरिता से भी. पर उसे जरा भी बुरा नहीं लगा था. उस ने तो अहमियत ही न दी थी इस बात को. जिस बात को जानने का कोई कारण ही न हो, उसे न भी बताया जाए तो क्या हर्ज है. सब को सुना कर कहा था सरिता ने, ‘वे सब बड़े  हैं तो क्या दूसरों को सिर झुका कर उन की हर जायजनाजायज बात माननी पड़ेगी?’

 

सुखद नीड़ : भाग 1- आखिर क्या हुआ सलोनी के साथ

देखते-देखते सालभर बादलों की मानिंद पंख लगा कर उड़ गया. औफिस में सहकर्मीसाथियों के बीच दोनों के नाम की चर्चा अब जोर पकड़ने लगी थी. सलोनी को साथी सहकर्मी घटिया मानसिकता की महिला सम  झने लगे. 2 बच्चों की मां सलोनी अपने सुखी विवाहित जीवन में खुद आग लगा रही थी. महिला साथी सहकर्मी कनखियों से उसे आता हुआ देख कर एक व्यंग्य भरी मुसकराहट जब उस की ओर फेंकतीं तो सलोनी मन ही मन जलभुन जाती.

साथी सहकर्मियों के द्विअर्थी संवादों से लिपटे जुमले उस के कानों में पिघले सीसे की मानिंद गूंजने लगते. ये सब सहकर्मी साथी बौस के नाराज हो जाने के भय से सलोनी से कुछ नहीं कहते थे. लेकिन उन लोगों की घटिया सोच की दबीदबी मुसकराहट और बातों को ध्यान से सुन कर सलोनी बहुत कुछ सोचनेसम  झने लगी थी.

अत: कभीकभी सलोनी का मन नीरज और कमल के बीच डांवांडोल हो जाता. उस की आंखों के सामने उन दोनों के चेहरे आपस में गड्डमड्ड हो जाते. अंतर्द्वंद्व से बाहर निकलने के प्रयास में जब वह उन दोनों के मध्य तुलना करती तो उसे नीरज गृहस्थी का बो  झ उठाता एक सांवले रंग का सामान्य कदकाठी का पुरुष नजर आता जो पति के दंभ से भरा हुआ, उबाऊ और अंहकारी पुरुष लगता जिस ने मर्दानगी के रोब में उस के मन की गहराइयों के भीतर धड़कते हुए दिल की खुशियों की कभी परवाह नहीं की. उसे अपने काम और बस काम से प्यार था. उसे पत्नी के मन से अधिक उस के तन के साथ शगल करने की जरूरत थी.

वहीं कमल सलोनी के मन में दबीछिपी अनेक सतहों को पार करता हुआ अब उस के दिल का करार बन गया था. स्वच्छंद प्रकृति का भंवरे सरीखा कमल, गुनगुन करता उस के आसपास मंडराता रहता. वह गुलाब के फूल सरीखा हमेशा तरोताजा और खिलाखिला लगता. अपनी सुंदरता की सारी खुशबुएं उस की एक मुसकान की खातिर लुटाना चाहता था. उस की मनमोहक बातें सुन कर उस का मन छलकने लगता.

कमल उस के रूपसौंदर्य के रस में गढ़ कर कमल ऐसी शायरी सुनाता कि सलोनी का मन निहाल हो कर दिल जान से निसार हो जाता. वह भी उस के सीने से लिपट कर हंसनारोना चाहती थी. कमल उस की शादीशुदा जिंदगी के बारे में सब जानता था. अत: उस ने दोनों के बीच की मर्यादा रेखा को पार करने के बारे में कभी कोई चर्चा नहीं की. वह तो सलोनी के जीवन के सुखदुख भरे पलों की उल  झनों को सुल  झाते हुए अपनी मनमोहक, लच्छेदार बातों से उसे कुछ पलों के लिए हर्ष और उल्लास से भर परी लोक जैसे सुखद कल्पना लोक में पहुंचा देता था.

सलोनी को पूरी तरह अपने प्रेमपाश के जाल में फंसा कर अब कमल उससे शारीरिक नजदीकियां बढ़ाने का प्रयास करने लगा. आज उस ने सलोनी के साथ शहर से दूर 3 दिन का टूर कार्यक्रम बनाने का प्रस्ताव रखा. कमल के टूर कार्यक्रम के पीछे छिपी शारीरिक सुख प्रस्ताव की भावना जान कर सलोनी जैसे सोते से जागी. आज कमल के दोहरे व्यक्तित्व से उस का सामना हुआ. कमल के सुखद मुसकान भरे सुंदर चेहरे के पीछे छिपी कुत्सित मानसिकता से आज वह बहुत असहज हो उठी.

तो क्या कमल की सोच भी अन्य मर्दों के जैसी है? कमल को भी उस के साथ से उत्पन्न मानसिक सुख नहीं चाहिए. वरन् उसे भी उस के शारीरिक संबंध का इस्तेमाल चाहिए. इस दुनिया में औरत और मर्द का रिश्ता केवल शरीर तक ही सीमित क्यों होता है? एक अच्छा साथी पुरुष महिला मित्र के लिए शरीर की जरूरतों से ऊपर उठ कर, मन की भावनाओं के अनुरूप सामंजस्य क्यों नहीं रख सकता? मन और आत्मा से निसार जब एक स्त्री सच्चे आत्मिक रिश्ते निभाने के लिए समर्पित होती है तो खुदगर्ज मर्द शरीर की भाषा से ऊपर उठ कर आत्मिक भाषा क्यों नहीं सम  झते?

सोचते-सोचते सलोनी का दिमाग सुन्न सा होने लगा. अब इस रिश्ते को बरकरार रखने और आगे बढ़ने से अन्य नजदीकी परिस्थितियों को भी स्वीकार करना पडे़गा और शायद तब तक मेरे लिए बहुत देर हो चुकी होगी. घर पहुंच कर काम निबटाते हुए आज सलोनी का दिलदिमाग अपने नन्हेमुन्ने प्यारे बच्चों के साथ लाड़मनुहार कर के खानाखिलाने से अधिक कमल के हावभाव की सोच में गुम था. यदि नीरज को सब पता चल गया तो… 2 नावों पर सवारी करने वाले व्यक्ति कभी तैर कर पार नहीं होते वरन डूबना ही उन की नियति होती है. सलोनी, तू भी तो 2 नावों पर सवार है. आखिर सचाई से वह कब तक मुंह छिपा सकती है. मन में निरंतर चलते विचारक्रम से व्यथित बेकल हो कर वह पसीनापसीना हो गई और बाहर बाल्कनी में निकल कर गहरी लंबी सांसें लेने लगी. तब भी उसे भीतर दिल के पास घुटन महसूस हो रही थी.

कहीं न कहीं सलोनी के संस्कार, उस की सोच फिसलन भरी डगर पर बढ़ते कदमों को फिसलने से रोक रहे थे. अब वैवाहिक जीवन की खंडित मर्यादा के भय से उस का अंतर्मन उसे धिक्कारने लगा था. गृहस्थी की सुखी और शांत नींव का आधार नारी का मर्यादित आचरण माना जाता है. जरा सी ठेस लगते ही बेशकीमती हीरा फिर शोकेस में सजाने के काबिल नहीं रहता. गृहस्थी में नारी या पुरुष दोनों की जीवनचर्या सीमा रेखा के इर्दगिर्द घूमती है. जिम्मेदारियों की अनदेखी कर के, राह से भटकने पर, सीमा रेखा पार करने वालों की जिंदगी में आने वाले भूचाल को फिर कोई नहीं रोक सकता. अत: जो कुछ करना है, अभी करना है.

पूरी रात सलोनी का मन उसे रहरह कर कचोटता रहा. सलोनी को अनमनी देख कर नीरज ने उस से परेशान होने का कारण जानना चाहा तो वह फीकी सी हंसी हंस कर बात टाल गई और सोने का उपक्रम करने लगी. लेकिन नींद तो आंखों से कोसों दूर थी. जीवन के उतारचढ़ाव सोचनेविचारने के लिए मजबूर सलोनी खुद से सवालजवाब करने लगी, ‘‘यह जिंदगी भी हमारे साथ कितना अन्याय करती है? हम हाड़मांस के मानवीय पुतलों के साथ कैसेकैसे भावनात्मक अनोखे खेल खेलती है? काश कि कमल अब से

10 साल पहले मु  झे मिला होता तो आज नीरज के स्थान पर कमल मेरी जिंदगी में पति के रूप में होता और अब तक जब वह नहीं मिला था तो मैं अपनी जिंदगी सुख से जी रही थी न, फिर इस मोड़ पर अब मु  झे कमल से क्यों मिलाया?

 

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