family story in hindi
family story in hindi
गाहेबगाहे हम सभी को कभी न कभी डाक्टर के पास जाना ही पड़ता है. कुछ दिनों पूर्व मेरा भी एक डेंटिस्ट के यहां जाना हुआ. मेरे बगल वाली पेशेंट की सीट पर लेटी 30-35 वर्षीया युवा महिला इतने डीप गले का कुरता पहने थी कि कुरते के अंदर से उस का पूरा का पूरा उभार ही झांक रहा था, जिस के कारण डाक्टर ही बारबार स्वयं को असहज महसूस कर रहा था.
यह देख कर मैं सोचने लगी कि अमुक महिला बीमारी का इलाज करवाने आई है या किसी विज्ञापन की मौडलिंग करने.
इसी प्रकार कुछ महिलाएं अस्पताल में भी बेहिसाब मेकअप और परफ्यूम स्प्रे कर के जाती हैं. जिन्हें देख कर ऐसा लगता है मानो वे किसी अस्पताल में नहीं, बल्कि फैशन परेड में जा रही हों. कई बार लोग अपने जरूरी कागजात ही डाक्टर के पास ले जाना भूल जाते हैं और फिर ऐसे में पर्याप्त जानकारी के अभाव में डाक्टर को इलाज शुरू करने में बहुत परेशानी होती है.
आप किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज करवाने जाएं, परंतु डाक्टर के पास जाते समय इन कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें-
जिस तरह हमारा चमकता चेहरा हमारी पहचान बन जाता है उसी तरह हमारी दमकती एड़िया भी हमारी पर्सनालिटी को चार चाँद लगाती हैं. कई बार आपने देखा होगा की कई लोग अपने पैरों को दूसरों से छिपाते है या अपनी फ़टी एडियों को बंद जूतियों में छिपाने की कोशिश करते हैं. कई महिलाएं घरेलों नुस्खे अपनाते हुए थक भी जाती हैं लेकिन अपने पैरों को सॉफ्ट और स्मूथ कर पाने की इच्छा पूरी नहीं कर पाती. ऐसे में जरूरी है कि आप ऐसे उपकारणों का प्रयोग करें जिनके इस्तेमाल के बाद आपको अपनी एड़िया छुपाने की जरूरत ही ना पड़े और आप कम टाइम में मुलायम पैर पा सकें. तो चलिए आज हम आपको ऐसे कुछ कैलस रिमूवर के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके इस्तेमाल से आप के पैर चमक उठेंगे.
कैलस रिमूवर हैं क्या
यह एक छोटा सा रिचार्जेबल, कॉम्पैक्ट और पोर्टेबल उपकरण है जिसे आप आसानी से कहीं भी कैरी कर सकती हैं इसके इस्तेमाल से आप अपने पैरों की डेड स्किन, थिक स्किन और रफनेस प्रॉब्लम से छुटकारा पा सकती हैं . जिन महिलाओं को पार्लर में जाकर पेडीक्योर करना मुसीबत लगता है उनके लिए यह एक बेस्ट आइटम है इसके साथ कुछ रोलर भी आते है जिन्हे अपनी जरूरत के अनुसार आप इस्तेमाल कर सकती हैं. तो चलिए बताते हैं कुछ बेस्ट कैलस रिमूवर के बारे में जिन्हे आप ऑनलाइन व मार्किट से खरीद सकते हैं.
इसकी खासियत है कि यह रिमूवर महज सिर्फ 30 मिनट चार्ज करने पर ही आप इसे 2 घंटे के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं यह पूरी तरह वाटरप्रूफ है इसमें तीन अटैचमेंट दिये हैं जिससे कम, मीडियम या बहुत ज्यादा डेड स्किन को निकाल सकते हैं.इसकी कीमत 1300 ₹ तक है.
2. AGARO CR3001
यह 45 मिनट में चार्ज होकर 2 घंटे तक इस्तेमाल किया जा सकता है यह रिचार्जेबल डिवाइस है जिसमें 2 अटैचमेंट हैं इसे आप शावर या ड्राई दोनों तरह से यूज कर सकते हैं. इसकी कीमत 1100₹ तक है.
3. iGRiD
यह एक कम वजन वाला एलईडी लाइट के साथ रिमूवर है इसके साथ 3 रोलर मिलते हैं जिन्हे आप उपयोग के बाद आसानी से साफ कर के दोबारा इस्तेमाल कर सकती हैं। इसकी कीमत तकरीबन 900₹ -1100₹ तक है.
4. Vandelay (UK) CQR-FC800
इस रिमूवर में 12000mAh की बैटरी लाइफ मौजूद है यह पॉकेट साइज में आता है. इससे फाइन ग्राइंडिंग, मीडियम ग्राइंडिंग और रफ ग्राइंडिंग कर सकते हैं यह 2 स्पीड वेरिएशन के साथ आता है. इसमें डिजिटल डिस्प्लै भी मौजूद है.यह 1200₹ तक कि कीमत में आसानी से मिल जाता है.
5. Amope Pedi Perfect इलेक्ट्रॉनिक पेडीक्योर फुट फाइलर
यह एक इलेक्ट्रिक फुट फाइलर है जिसे बैटरी से ऑपरेट कर सकते है. यह 400 ₹ तक कि कीमत में आसानी से मिल जाता है.यदि आप कम खर्चे में अपने पैरों से डेड स्किन हटाना चाहती हैं तो यह एक बढ़िया ऑप्शन है.
नोट : अच्छे रिजल्ट के लिए आप कैलस रिमूवर को इस्तेमाल करने के बाद अपने पैरों पर अच्छा मॉइस्चरज़र लगाना ना भूले. साथ ही अपने पैरों कि सफाई सोने से पहले अवश्य करें जिससे ये रात भर में हील हो सकें. और अपने रिमूवर रोलर्स को भी साफ कर के रखें.
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) हार्मोन एक कॉमन और काम्प्लेक्स हार्मोनल डिसऑर्डर है, जो विश्व में करोडो महिलाओं को प्रभावित करती है. ये अधिकतर गायनोकोलोजिकल इश्यूज से जुडी हुई होती है. मसलन अनियमित माहवारी, इनफर्टिलिटी, ओवेरियन सिस्ट्स आदि, जो 8 से 13 प्रतिशत महिलाओं को होता है.
इस बारें में हॉर्मोन इंडिया, नोएडा के मैक्स सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल की कन्सल्टेंट एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. प्रियंवदा त्यागी कहती है कि PCOS का दायरा सिर्फ स्त्री-रोग से जुड़ी समस्याओं तक सीमित नहीं होता है, बल्कि इससे अलग कुछ खास सेहत पर भी प्रभाव डाल सकता है, जैसे महिलाओं के मेटाबॉलिज्म, कार्डियोवैस्कुलर और मानसिक स्वास्थ्य आदि.
रिस्क फैक्टर
पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का प्रभाव मेटाबोलिक स्वास्थ्य सबसे अधिक पड़ सकता है. उन्हें अक्सर इंसुलिन रेजिस्टेंस और टाइप-2 डायबिटीज होने की संभावना बनी रहती है. इंसुलिन रेजिस्टेंस तब होती है, जब बॉडी सेल्स का हर्मोन के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है, जिससे खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है. इससे वजन बढ़ना, अनचाहे बालों का बढ़ना, गर्दन के पीछे की त्वचा का काला पड़ना (एसेंथोसिस), नींद में कमी और डायबिटीज जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं.
डायबिटीज की संभावना को रोकने के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव करना पड़ता है, इससे इंसुलिन रेजिस्टेंस को नियंत्रित किया जा सकता है, जिसमें पौष्टिक आहार लेना और नियमित शारीरिक व्यायाम करना शामिल है. इसके अलावा, डिस्लिपिडेमिया की वजह से भी पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की समस्या हो सकती है, क्योंकि डिस्लिपिडेमिया में खून में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है.
इसके आगे डॉक्टर त्यागी कहती है कि कई बार मेटाबॉलिक में होने वाली इस तरह की गड़बड़ी से कार्डियोवैस्कुलर रोगों का खतरा बढ़ जाता है, खासकर हाई ब्लड प्रेशर की समस्या अगर हो, तो हृदय रोग तथा स्ट्रोक की संभावना बढ़ सकती है. PCOS से पीड़ित महिलाओं को सेहत पर पूरा ध्यान देना बेहद जरुरी है. ऐसी महिलाओं को लॉन्ग टर्म कॉम्प्लिकेशन से बचने के लिए मेटाबोलिक पैरामीटर्स को नियंत्रित करते रहना चाहिए.
मानसिक सेहत को न करे अनदेखा
डॉक्टर त्यागी आगे कहती है कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम शारीरिक सेहत पर बुरा असर डालने के अलावा, महिलाओं की मानसिक और भावनात्मक सेहत को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है. इससे पीड़ित कई महिलाएँ डिप्रेशन, चिंता और आत्म-सम्मान में कमी जैसे लक्षणों का अनुभव कर सकती हैं, क्योंकि हार्मोन का संतुलन बिगड़ने की वजह से शारीरिक परेशानियां बढ़ सकती है, जिसका प्रभाव मानसिक सेहत पर पड़ने की संभावना होती है.
इस प्रकार की हार्मोनल डिसऑर्डर से पीड़ित महिलाओं को गर्भधारण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है और उन्हें फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ सकती है, जिससे उनकी जिंदगी में भावनात्मक तनाव काफी बढ़ता है, क्योंकि बच्चे न होने का परिवार और सामाजिक प्रेशर इन महिलाओं पर अधिक रहता है. इसलिए ये जरुरी है कि इस समय महिलाओं की मानसिक स्थिति को मजबूती देने के लिए हर संभव प्रयास किये जाय.
गर्भावस्था के दौरान समस्या
डॉक्टर कहती है कि इस समय महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान जटिलताओं का अनुभव होने की संभावना भी अधिक होती है, जिसमें गर्भावस्था में डायबिटीज, प्री-एक्लेमप्सिया और समय से पहले बच्चे का जन्म, इत्यादि शामिल हैं. इस तरह की जटिलताओं से माँ और बच्चे, दोनों की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.
इलाज
पीसीओएस को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके लक्षणों के आधार पर ट्रीटमेंट संभव होता है. इसे खासकर वजन घटाने, स्वस्थ आहार, नियमित व्यायाम और दवा के माध्यम से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे हार्मोनल संतुलन बना रहे. कुछ सुझाव निम्न है,
इसके अलावा देखा गया है कि पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का प्रभाव आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ सकता है, जिसमे इस डिसऑर्डर से पीड़ित महिलाओं की बेटियों में इस तरह की स्थिति के विकसित होने का रिस्क अधिक होता है, जो कई बार इस समस्या के आनुवंशिक होने का संकेत भी देता है. इससे पीड़ित महिलाओं और उनके परिवारों के लिए सेहत पर पड़ने वाले इन प्रभावों को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए, ताकि ऐसी शारीरिक और मानसिक सेहत का पूरी तरह से ध्यान रखा जा सके.
पंजाब का लजीज पकवान काफी टेस्टी होता है. पंजाब अपने खाने के लिए फेमस है. पंजाबी लोग खानें के बहुत शौकीन होते है. आज हम लेकर आए पंजाब के लजीज पकवान की रेसिपी.
सामग्री
1. 200 ग्राम भीगी हुई साबूत उरद दाल
2. 3 बड़े चम्मच लहसुन का पानी
3. एक चौथाई कप बटर
4. जरूरत के अनुसार पानी.
सामग्री टैंपरिंग की
1. 1/2 बड़ा चम्मच
2. 1 बड़ा चम्मच अदरक
3. लहसुन का पेस्ट
4. 1 छोटा चम्मच देगी लालमिर्च पाउडर
5. 11/2 कप टमाटर की प्यूरी
6. एकचौथाई कप बटर
7. नमक स्वादानुसार
सामग्री दूसरी टैंपरिंग की
1. 2 बड़े चम्मच घी
2. 1 छोटा चम्मच कसूरी मेथी
3. 1/2 छोटा चम्मच देगी लालमिर्च पाउडर
4. 2 बड़े चम्मच पानी
5. एकचौथाई कप बटर.
सामग्री गार्निश की
1. 2-3 बटर के टुकड़े
2. 1/2 बड़ा चम्मच फ्रैश क्रीम.
विधि
पूरी रात भीगी हुई दाल में पानी और लहसुन का पानी डाल कर उसे भारी तले वाले बरतन में धीमी आंच पर 11/2 घंटों के लिए पकने के लिए रख दें. जब दाल पक जाए, तब उस में बटर डालें. विधि टैंपरिंग कीएक पैन में घी गरम कर के उस में अदरकलहसुन का पेस्ट, देगी लालमिर्च पाउडर व टमाटर की प्यूरी डाल कर चलाते हुए तब तक पकाएं जब तक प्यूरी अच्छे से पक न जाए. अब इस टैंपरिंग को तैयार दाल में डाल कर दाल को अच्छे से मैश करें. फिर इस में बटर और नमक ऐड कर के इसे अच्छे से दाल में मिलने तक पकाएं. विधि दूसरी टैंपरिंग कीएक पैन में घी गरम कर के उस में कसूरी मेथी, देगी लालमिर्च पाउडर और पानी डाल कर थोड़ा चलाएं. फिर इस टैंपरिंग को दाल में डाल कर उस में बटर डाल कर एक उबाल आने दें. अब तैयार दाल मखनी को सर्विंग बाउल में निकाल कर क्रीम और बटर क्यूब्स से गार्निश कर के रोटी या जीरा राइस के साथ सर्व करें.
2. पनीर लबाबदार
सामग्री ग्रेवी की
1. 2 बड़े चम्मच औयल
2. 3 लौंग
3. 2 हरी इलाइची
4. 8-10 कालीमिर्च के दाने
5. 2 तेजपत्ते
6. थोडा सा अदरक कटा
7. थोड़ा सा लहसुन कटा
8. 3 प्याज मीडियम आकार के कटे
9. 4 टमाटर मीडियम आकार के कटे
10. 4 कश्मीरी सूखी लालमिर्च
11. 1 छोटा चम्मच देगी लालमिर्च पाउडर
12. एकचौथाई छोटा चम्मच हलदी पाउडर
13. 8-10 काजू
14. पानी जरूरत के अनुसार
15. स्वादानुसार नमक.
सामग्री सब्जियों और पनीर के मैरिनेशन की
1. 1 प्याज मीडियम आकार का टुकड़ों में कटा
2. 1 शिमलामिर्च मीडियम आकार की टुकड़ों में कटी
3. एकचौथाई छोटा चम्मच देगी लालमिर्च पाउडर
4. चुटकीभर गरममसाला पाउडर
5. 500 ग्राम पनीर चकोर टुकड़ों में कटा
6. 1 बड़ा चम्मच औयल
7. 2 बड़े चम्मच औयल भूनने के लिए
8. स्वादानुसार नमक.
सामग्री
फिनिशिंग ग्रेवी की
1. 2 बड़े चम्मच घी
2. 1 छोटा चम्मच जीरा
3. 2 बड़े चम्मच लहसुन कटा
4. 1 प्याज मीडियम आकार का कटा
5. 1 टमाटर मीडियम आकार का कटा
6. 2 हरीमिर्चें कटी
7. 1/2 छोटा चम्मच देगी लालमिर्च पाउडर
8. 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर
9. एकचौथाई छोटा चम्मच हलदी पाउडर
10. तैयार की हुई ग्रेवी
11. 2 बड़े चम्मच मलाई या क्रीम
12. 1/2 छोटा चम्मच चीनी
13. 1/2 छोटा चम्मच कसूरी मेथी पाउडर
14. स्वादानुसार नमक.
सामग्री लच्छा परांठा बनाने की
1. 1 कप मैदा
2. 1 कप आटा
3. 1 छोटा चम्मच औयल
4. जरूरत के अनुसार पानी
5. 1 छोटा चम्मच घी
6. एकचौथाई छोटा चम्मच मैदा
7. 1 बड़ा चम्मच भूनने के लिए घी
8. स्वादानुसार नमक.
विधि
ग्रेवी बनाने की एक गहरे तले वाले पैन को गरम कर के उस में घी, लौंग, इलाइची, कालीमिर्च और तेजपत्ता डाल कर चटकाएं. अब इस में अदरक, लहसुन और प्याज डाल कर अच्छे से चलाएं. फिर इस में टमाटर, तेजपत्ता, सूखी लालमिर्च, देगी लालमिर्च और हलदी पाउडर डाल अच्छे से चलाएं. अब इस में काजू, नमक और थोड़ा पानी डाल कर अच्छे से मिक्स करें. ढक कर मीडियम आंच पर तब तक पकाएं, जब तक टमाटर नर्म न हो जाए.
इस के बाद इसे एक बाउल में निकाल कर ठंडा कर इसे हैंड ब्लैंडर की मदद से स्मूद प्यूरी तैयार करें. अब इस प्यूरी को दूसरे बाउल में छान कर एक तरफ रख दें. विधि सब्जियों और पनीर की मैरिनेशन कीएक बाउल में प्याज, शिमलामिर्च, नमक, देगी लालमिर्च पाउडर, पनीर और थोड़ा सा औयल डाल कर अच्छे से मिक्स करें और एक तरफ रख दें. अब एक गहरे तले वाले नौनस्टिक पैन में औयल गरम करें.
जब आयल गरम हो जाए तब उस में मैरिनेटेड पनीर मिश्रण डाल कर उलटतेपलटते हुए सेंकें.विधि फिनिशिंग ग्रेवी बनाने कीएक गहरे तले वाले पैन को गरम कर के उस में घी डाल कर जीरा, लहसुन डाल कर अच्छे से चलाएं. फिर इस में प्याज डाल कर सुनहरा होने तक भूनें.
इस के बाद इस में टमाटर, हरीमिर्च डाल कर थोड़ा चलाएं. अब इस में नमक, देगी लालमिर्च पाउडर, चुटकीभर हलदी व थोड़ा सा पानी डाल कर चलाते हुए मीडियम आंच पर तब तक पकाएं, जब तक मसाले अच्छे से भुन न जाएं. अब तैयार ग्रेवी को मिक्स्चर में डाल कर अच्छे से मिलाएं. फिर इस में मलाई या क्रीम डाल कर अच्छे से चलाएं. अब ग्रेवी में चीनी, टोस पनीर डाल कर 2-3 मिनट तक पकाएं. ऊपर से सूखी मेथी, धनियापत्ती, फ्रैश क्रीम से गार्निश कर के तैयार लच्छा परांठा के साथ सर्व करें.
लच्छा परांठा बनाने की विधि
एक परात में मैदा, आटा, नमक, औयल और पानी को डाल कर थोड़ा नर्म आटा लगाएं. फिर इस पर थोड़ा सा औयल लगा कर कपड़े से ढक कर 15 मिनट के लिए एक तरफ रख दें. फिर इस आटे से एक बड़े आकार की बाल लें और उसे रोटी की तरह जितना हो सके पतला बेल लें. फिर उस पर घी लगा कर उस पर थोड़ा आटा डालें. अब अपनी उंगलियों की मदद से आटे की प्लीट्स बनाना शुरू करें. प्लीट्स बना कर आटे को जितना संभव हो सके खींचें. इस के बाद आटे को स्विस रोल की तरह घुमाएं. इस बात का ध्यान रखें कि कोनों को अच्छे से दबा दें.
अब इसे 10 मिनट के लिए एक तरफ रख दें. अब एक बाउल में नमक और पानी मिलाएं. रोल की हुई बाल पर थोड़ा आटा डालें और फिर उसे पतले गोलाकार आकार में घुमाएं. अब तवे को गरम कर के उस पर नमक वाला पानी डालें और फिर उस पर रोल किया परांठा रखें. 1 मिनट के बाद उसे पलट कर दूसरी तरफ से भी सेंकें. दोनों तरह से सुनहरे स्पोट्स नजर आने के बाद उस पर दोनों तरफ घी लगा कर फिर थोड़ा और पकाएं. लच्छा परांठा तैयार है.
3. छोले मुर्ग
सामग्री
1. छोले उबालने की
2. 2 तेजपत्ता
3. 2-3 लौंग
4. 1 बड़ी इलायची
5. 1 बड़ा चम्मच घी
6. 150 ग्राम चिकन बोनस
7. 500 ग्राम भीगे छोले
8. पानी
9. नमक स्वादानुसार.
सामग्री
अदरकलहसुन पेस्ट की
1. 1 इंच अदरक छिला व कटा
2. 4-5 लहसुन की कलियां
3. 2-3 हरीमिर्चें बीच से कटी
4. नमक स्वादानुसार.
सामग्री मैरिनेशन की
1. तैयार अदरकलहसुन का पेस्ट
2. 650 ग्राम बड़े टुकड़ों में कटा साबूत चिकन
3. 1 छोटा चम्मच औयल.सामग्री छोले मुर्ग की
4. 1 बड़ा चम्मच घी
5. 1 छोटा चम्मच औयल
6. 2 हरी इलाइची
7. 1 लौंग द्य 1/2 इंच दालचीनी
8. 1 तेजपत्ता
9. 2 बड़े प्याज कटे
10. मैरिनेटिड चिकन
11. 1/2 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर
12. 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर
13. 1 छोटा चम्मच देगी लालमिर्च पाउडर
14. 1 कप ताजे टमाटर की प्यूरी
15. 11/2 बड़े चम्मच फेंटा दही
16. पके छोले
17. उबले छोलों का पानी
18. 1/2 बड़ा चम्मच धनिए की डंठल
19. 1/2 इंच लंबा कटा अदरक
20. 2 हरीमिर्चें बीच से कटी
21. 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी
22. 11/2 छोटे चम्मच तैयार मसाला.
सामग्री मसाला की
1. 1 तेजपत्ता
2. एकचौथाई इंच दालचीनी टुकड़ा
3. 15-20 कालीमिर्च
4. 4-5 बड़ी इलाइची
5. 9-10 हरी इलाइची
6. 1/2 बड़ी चम्मच धनिए के बीज
7. 1 जावित्री
8. नमक स्वादानुसार.
सामग्री गार्निश की
1. थोड़ी सी धनियापत्ती
2. लंबा अदरक कटा
3. थोड़ी सी हरीमिर्चें बीच से कटी.
विधि
अदरकलहसुन पेस्ट कीएक मूसली में अदरकलहसुन, हरीमिर्च और नमक को डाल कर स्मूद पेस्ट बना कर उसे एक तरफ रख दें.विधि कुकिंग छोलों की एक प्रैशर कुकर में तेजपत्ता, लौंग, घी, चिकन बोनस डाल कर कुछ मिनट के लिए चलाएं. फिर उस में छोले, नमक, जरूरत के हिसाब से पानी डाल कर 4-5 सीटियां आने तक पकाएं और एक तरफ रख दें. विधि मसाला कीएक पैन में तेजपत्ता, दालचीनी, कालीमिर्च, बड़ी इलायची, हरी इलायची, साबूत धनिया, जावित्री और नमक डाल कर ड्राई रोस्ट करें. फिर ग्राइंडर में डाल कर पाउडर बना कर एक तरफ रख दें. विधि छोले मुर्ग कीएक पैन में घी गरम कर के उस में हरी इलाइची, लौंग, दालचीनी, तेजपत्ता व प्याज को डाल कर सुनहरा होने तक चलाते हुए पकाएं. इस बीच पके हुए छोलों को छान कर एक तरफ रख दें.
अब इस में मैरिनेटेड चिकन, धनिया पाउडर, हलदी पाउडर व देगी लालमिर्च पाउडर को डाल कर मसालों को पकने तक पकाएं. अब इस में फ्रैश टमाटर की प्यूरी, दही, पके छोले व छोले स्टौक डाल कर कुछ मिनट तक पकाएं. अब इस में धनिया की डंडियां, अदरक व धनियापत्ती डाल कर इसे धीमी आंच पर तब तक पकाएं, जब तक चिकन नर्म न पड़ जाए. अब इस की सर्विंग बाउल में निकाल कर धनियापत्ती, अदरक और हरीमिर्च से गार्निश कर के रोटी के साथ सर्व करें.
4. खीर पाठशाला
खीर बनाने के लिए सामग्री
1. 50-60 ग्राम धुले व भीगे चावल
2. 1 लिटर दूध
3. थोड़ी सी खस की जड़
4. 100 ग्राम चीनी
5. गार्निश करने के लिए थोड़े से कटे बादाम.
सामग्री फिरनी की
1. 50 ग्राम धुले व ड्राई किए छोटे चावल
2. 1 लिटर दूध
3. 1/2 कप दूध अलग से
4. 1 छोटा चम्मच केसर
5. 100 ग्राम चीनी.
सामग्री गुलाटी की
1. 1 कप पके चावल
2. 1 कप पानी
3. 11/2 कप दूध
4. 1 लिटर दूध
5. 2-3 हरी इलाइची
6. 1 कप चीनी
7. 2 बड़े चम्मच गुलाबजल
8. गार्निश करने के लिए थोड़ी सी सूखे गुलाब की पत्तियां.
विधि खीर की
एक कड़ाही में दूध डाल कर उस में उबाल आने के बाद उस में भीगे चावल ऐड करें. अब इसे मीडियम आंच पर थोड़ी देर तक पकाएं, फिर मलमल के कपड़े में खस की जड़ को इस में डालकर तब तक खीर को पकाएं जब तक चावल अच्छे से पक न जाएं. अब खस को इस से निकाल कर खीर में चीनी डाल कर चलाते हुए एक उबाल आने के बाद आंच को बंद कर दें. फिर इसे कटे हुए बादाम से गार्निश कर के ठंडा या गर्म सर्व करें. विधि फिरनी की सूखे चावलों का मोटा पाउडर बनाएं.
अब इस पाउडर को बाउल में निकाल कर इस में दूध, केसर डाल कर अच्छे से मिलाएं. अब एक कड़ाही में दूध गरम कर के उस में दूधचावल के मिक्स्चर को डाल कर मीडियम आंच पर तब तक पकाएं जब तक चावल पक न जाएं और मिक्स्चर गाढ़ा न हो जाए. अब इस में चीनी डाल कर चलाते हुए 3-4 मिनट तक और पकाएं. फिर गैस बंद कर दें. आखिर में इसे कटे पिस्ता से गार्निश कर के ठंडा या गरम सर्व करें. विधि गुलाटी की एक बाउल में पके चावल, पानी और हाथ की मदद से मैश किए चावल डाल कर उस में दूध डाल कर अच्छे से मिलाएं. फिर कड़ाही में दूध गरम कर के उस में चावल का मिक्स्चर, इलायची डाल कर मीडियम आंच पर 6-8 मिनट तक पकाएं. फिर इस में चीनी, रोजवाटर डाल कर चलाते हुए 3-4 मिनट तक पकाएं और फिर आंच बंद कर दें. आखिर में इसे सूखी गुलाब की पत्तियों से गार्निश कर के गरम या ठंडा सर्व करें.
5. पनीर टिक्का
सामग्री मैरिनेट की
1. 1/2 कप दही
2. 1 बड़ा चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट
3. 1 छोटा चम्मच कसूरी मेथी
4. 1 बड़ा चम्मच सरसों का तेल
5.1 छोटा चम्मच अजवाइन
6. 1 बड़ा चम्मच बेसन
7. 1 बड़ा चम्मच देगी लालमिर्च
8. 1 बड़ा चम्मच पंचरंगा अचार पेस्ट
9. एकचौथाई छोटा चम्मच हलदी पाउडर
10. 1/2 कप हरी शिमलामिर्च चौकोर कटी
11. 1/2 कप प्याज चौकोर कटा
12. 1/2 कप लाल शिमलामिर्च चौकोर कटी
13. 250 ग्राम पनीर चौकोर कटा
14. नमक स्वादानुसार.
सामग्री टिक्का की
1. 1 बड़ा चम्मच सरसों का तेल
2. 2 बड़े चम्मच बटर
3. गार्निश करने के लिए कसूरी मेथी
4. कोयला
5. 1 बड़ा चम्मच घी.
विधि एक बाउल में दही, अदरकलहसुन का पेस्ट, कसूरी मेथी और सरसों का तेल डाल कर अच्छे से मिलाएं. अब इस में नमक, अजवाइन और बेसन डाल कर अच्छे से मिलाएं. अब इस मिक्स्चर को 2 बराबर भागों में बांट लें. फिर एक हिस्से में देगी लालमिर्च डाल कर उसे एक तरह रख दें और दूसरे हिस्से में हलदी व अचार का पेस्ट डाल कर अच्छे से मिलाएं. अब दोनों में हरी व लाल शिमलामिर्च, प्याज और पनीर डाल कर अच्छे से मिलाते हुए कोट करें.
अब सब्जियों और पनीर को स्कीवर स्टिक में लगा कर एक तरफ रख दें. अब ग्रिल पैन में सरसों का तेल गरम कर के उस में थोड़ा बटर भी ऐड करें. अब इस में स्कीवर स्टिक में लगे पनीर टिक्के को दोनों तरफ से बटर लगा कर रोस्ट करें. अब तैयार पनीर टिक्का को सर्विंग प्लेट में निकाल कर उस में एक कटोरी में कोयला को गरम कर के उस पर घी डाल कर उसे ढक कर रख दें ताकि टिक्के में स्मोकी फ्लेवर आ सके. फिर आखिर में कसूरी मेथी से गार्निश कर के डिप, सौस या चटनी के साथ गरमगरम पनीर टिक्का सर्व करें.
यह सुन कर श्वेता दीदी मुसकराईं, ‘‘मुझे सब पता है आंटी और रिनी कितनी भली हैं, मैं यह भी जानती हूं. मेरे भाई ने शशि भाभी के बाद कभी न शादी करने का फैसला किया था आंटी. बच्चियां उन्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी हैं. उन्हें सौतेली मां का रिश्ता नहीं देना चाहता था मेरा भाई पर अब जब उस ने देखा रिनी बिना स्वार्थ मन से इन्हें प्यार करती है तो…’’
सोचने के लिए कुछ वक्त मांग कर अम्मू ने श्वेता दीदी को विदा कर दिया.
फिर रिनी को मनाने लगीं, ‘‘लड़का नेक है, शरीफ भी, खाताकमाता भी अच्छा है, देखने में भी बहुत अच्छा है और सब से बड़ी बात कि उम्र भी तेरे हिसाब से ही है. मना मत करना बेटी.’’
ऐसे कैसे एकदम से हां कह दे. अभी तो पिछले घाव भी नहीं भरे हैं.
रचना दीदी को पता चला तो दौड़ी चली आईं, ‘‘हां न कहना रिनी. और अम्मू आप को हो क्या गया है, जो ऐसी सुंदर, पढ़ीलिखी, गुणी बेटी को 2 बेटियों के विधुर बाप के हवाले करने की ठान बैठी हैं. पहले क्या कम गम उठाए हैं इस ने? अरे, एक से बढ़ कर एक कुंआरा लड़का मिल जाएगा हमारी गुडि़या को. आप पर भारी पड़ रही है तो मैं ले जाती हूं. मैं इस की 2 बेटियों के बाप से शादी नहीं होने दूंगी.’’
जीजाजी भी बेटी की तरह मानते थे उसे. अत: उन्होंने भी पत्नी की बात का समर्थन किया. फिर खूब अच्छी तरह बहन का ब्रेनवाश कर के रचना दीदी चली गईं.
रिनी घोर असमंजस की स्थिति में थी. एक ओर रुचिशुचि का मोह खींचता तो दूसरी ओर पहली शादी से डरा मन दूसरी शादी की बेडि़यां पहनने से साफ इनकार करता. अम्मू व पापा चाहते थे शेखर से शादी हो जाए पर रचना दीदी और जीजाजी इस के सख्त खिलाफ थे. वह करे तो करे क्या? तभी अचानक उस के दिमाग में बिजली सी कौंधी. शीतल चाची, जो ससुराल की गली की चचिया सास होते हुए भी मां की तरह थीं उस के लिए, जिन से संपर्कसूत्र अब भी नहीं टूटा था. वे हमेशा उसे सही राह सुझाती थीं.
पूरा किस्सा सुन कर शीतल चाची ने कहा, ‘‘यह ठीक है रिनी कि दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है, बल्कि कई बार तो दूध जैसी सफेद चीज को हाथ लगाने से भी इनकार कर देता है और तू ने रंजन से प्यार भी तो किया था. ये 2 बातें ही रोक रही हैं न तु झे. तो सुन रंजन तो दूसरा ब्याह रचा कर घर बसा कर बैठा है और तू?’’
‘‘कब चाची? यह कैसी खबर सुना दी आप ने?’’ वह बुदबुदाई.
‘‘अरे, तू क्यों गम करती है मेरी अच्छी बेटी? उस ने तो तलाक का भी इंतजार नहीं किया. लोग तो कहते हैं ब्याह से बहुत पहले से ही चक्कर चल रहा था रंजन का उस से. रंजन की कंपनी में ही मामूली सी नौकरी करती है. शक्लसूरत भी खास नहीं. नाम शन्नो है, इसी से जान ले किस तबके की है. तू किस के लिए जोग धारे बैठी है? कर ले रानी ब्याह, इसी में कल्याण है तेरा.’’
मन में बगावत जागी या रंजन के प्रति कड़वाहट कि रिनी ने शादी के लिए फौरन हां कर दी. रचना दीदी इतना बरसीं फोन पर, इतनी नाराज हुईं कि शादी में भी नहीं आईं.
जिंदगी के इस नए मोड़ की पहली रात को शेखर ने एक पोटली उस के हाथ में थमा दी, जिस में 5-7 गहने थे. एक मोटी चैन थी, जिस में पहली वाली के कुछ केश फंसे हुए थे. चूडि़यां धुलाई मांगती थीं और बुंदों के 2-4 नग निकले हुए थे. वितृष्णा सी हो आई रिनी को और उस ने फिर से पोटली बांध कर तकिए के नीचे रख दी.
श्वेता दीदी ने बच्चियों को अपने पास सुला लिया था. शेखर हाथ भर की दूरी पर बैठे थे. न चाहते हुए भी उसे रंजन के साथ की पहली रात याद आ गई और मन में टीस सी उठी. शेखर खिसक कर उस के पास आ बैठे तो वह कांप गई. लेकिन शेखर ने उसे छुआ तक नहीं. बस, मुलायम स्वर में बोले, ‘‘मेरी विनती है ये 2 शर्तें सम झ लो रिनी.’’
रिनी ने सवालिया निगाहें उठाईं, ‘‘एक तो पतिपत्नी वाले संबंध के लिए मु झे कुछ वक्त चाहिए. मैं शशि, मतलब… शुचिरुचि की मां को मन से नहीं निकाल पाया हूं और दूसरे, मु झे कभी कोई बच्चा नहीं चाहिए. मैं नहीं चाहता
मेरी बच्चियों का प्यार किसी के साथ बंटे. सम झ गईं न?’’
हां, सम झ गई थी वह. मन ही मन खुश भी हुई थी कि उस का जो बां झपन पहले पति के लिए श्राप था, इस घर के लिए वरदान बन गया.
अगली सुबह शायद बूआ के सम झाने पर शुचिरुचि िझ झकते हुए उस के पास आईं और एक सुर में बोलीं, ‘‘गुडमौर्निंग नई मम्मा.’’
रिनी ने दोनों को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘नई नहीं, सिर्फ मम्मा कहो बच्चो. मांमां होती है नई या पुरानी नहीं.’’
‘‘ओके मम्मा,’’ रिनी खिल उठी.
रिनी मातृत्व जैसे उस एक पल में ही तृप्त हो उठा.
4 दिन रह कर श्वेता दीदी भाई और बच्चियों की ओर से बेफिक्र हो कर चली गईं और रिनी की जिंदगी का नया दौर शुरू हुआ. वह बच्चियों के साथ ही स्कूल जाती और उन्हीं के साथ लौटती.
एक दिन शेखर ने कहा भी, ‘‘ये बच्चियां और घर तुम्हारे हवाले है रिनी. इस घर में किसी चीज की कमी नहीं पाओगी तुम. तुम्हारा मन चाहे तो नौकरी करो नहीं तो छोड़ दो. जैसा तुम ठीक सम झो.’’
रिनी ने विश्वास दिलाया कि वह घर, नौकरी, बच्चे, सब ठीक से निभा लेगी. बच्चियां उस से इतना घुलमिल गई थीं कि उस के बिना सांस भी नहीं लेती थीं. शेखर अलग सोते थे
और वह अलग बच्चियों के कमरे में. बड़ी मस्त और व्यस्त जिंदगी गुजर रही थी. शेखर भी दिल के बहुत अच्छे और सहयोगी प्रवृत्ति के थे. शुचिरुचि उस के अम्मू व पापा से भी खूब हिलमिल गई थीं.
शेखर की आंखों में एक गहरा संतोष नजर आने लगा था उसे और एक रात उन्होंने पत्नी का दर्जा दे ही डाला रिनी को, लेकिन बड़ा असहज और कष्टप्रद लगा था उसे वह सब. कहते हैं, वर्जित फल जब तक न खाया जाए तब तक ही वर्जित लगता है. एक बार चखने के बाद उस
की लालसा बढ़ती ही जाती है. यही बात शेखर पर ही लागू हुई, पर रिनी के दिल पर चोट लगती जब हर तरह से उस का पूरी तरह उपयोग करने के बाद भी शेखर जबतब उसे सुना ही देते कि यह शादी उन्होंने अपनी बेटियों की खुशी के लिए की है.
एक दोपहर बच्चों को सुला कर पड़ोस वाली राधा अम्मां के घर दही का जामन लेने गई तो लौटते हुए आंखों के आगे अंधेरा छा गया और हाथ से दही की कटोरी छूट गई. राधा अम्मां ने आगे बढ़ कर उसे संभाला. उन की अनुभवी आंखें फौरन ताड़ गईं, ‘‘तुम मां बनने वाली हो बहू.’’
यह सुन कर रिनी जैसे आकाश से गिरी, ‘‘यह कैसे हो सकता है अम्मांजी? ऐसा तो हो ही नहीं सकता.’’
‘‘क्यों नहीं हो सकता? तुम दोनों जवान हो, तंदुरुस्त हो.’’
‘‘यह बात नहीं अम्मांजी? मैं आप को कैसे बताऊं? कैसे सम झाऊं?’’ आंसू भरी आंखों से कह कर वह चली आई.
लेकिन अम्मां की बात की पुष्टि जब डाक्टर ने भी की तो रिनी अवाक सी खड़ी रह गई थी. उसे ऐसी सुखद अनुभूति इस से पहले कभी नहीं हुई थी. जी चाह रहा था कि वह डाक्टर की बात ‘आप मां बनने वाली हैं’ बारबार दोहराएं. मन खुशी से चिल्लाने को चाहा कि मैं बां झ नहीं हूं. मैं मां बनने वाली हूं… रंजन. सुना तुम ने. मैं बंजर खेत नहीं हूं… मेरे भीतर भी एक अंकुर फूटा है.
यह सुन कर श्वेता दीदी मुसकराईं, ‘‘मु झे सब पता है आंटी और रिनी कितनी भली हैं, मैं यह भी जानती हूं. मेरे भाई ने शशि भाभी के बाद कभी न शादी करने का फैसला किया था आंटी. बच्चियां उन्हें अपनी जान से भी ज्यादा प्यारी हैं. उन्हें सौतेली मां का रिश्ता नहीं देना चाहता था मेरा भाई पर अब जब उस ने देखा रिनी बिना स्वार्थ मन से इन्हें प्यार करती है तो…’’
सोचने के लिए कुछ वक्त मांग कर अम्मू ने श्वेता दीदी को विदा कर दिया.
फिर रिनी को मनाने लगीं, ‘‘लड़का नेक है, शरीफ भी, खाताकमाता भी अच्छा है, देखने में भी बहुत अच्छा है और सब से बड़ी बात कि उम्र भी तेरे हिसाब से ही है. मना मत करना बेटी.’’
ऐसे कैसे एकदम से हां कह दे. अभी तो पिछले घाव भी नहीं भरे हैं.
रचना दीदी को पता चला तो दौड़ी चली आईं, ‘‘हां न कहना रिनी. और अम्मू आप को हो क्या गया है, जो ऐसी सुंदर, पढ़ीलिखी, गुणी बेटी को 2 बेटियों के विधुर बाप के हवाले करने की ठान बैठी हैं. पहले क्या कम गम उठाए हैं इस ने? अरे, एक से बढ़ कर एक कुंआरा लड़का मिल जाएगा हमारी गुडि़या को. आप पर भारी पड़ रही है तो मैं ले जाती हूं. मैं इस की 2 बेटियों के बाप से शादी नहीं होने दूंगी.’’
जीजाजी भी बेटी की तरह मानते थे उसे. अत: उन्होंने भी पत्नी की बात का समर्थन किया. फिर खूब अच्छी तरह बहन का ब्रेनवाश कर के रचना दीदी चली गईं.
रिनी घोर असमंजस की स्थिति में थी. एक ओर रुचिशुचि का मोह खींचता तो दूसरी ओर पहली शादी से डरा मन दूसरी शादी की बेडि़यां पहनने से साफ इनकार करता. अम्मू व पापा चाहते थे शेखर से शादी हो जाए पर रचना दीदी और जीजाजी इस के सख्त खिलाफ थे. वह करे तो करे क्या? तभी अचानक उस के दिमाग में बिजली सी कौंधी. शीतल चाची, जो ससुराल की गली की चचिया सास होते हुए भी मां की तरह थीं उस के लिए, जिन से संपर्कसूत्र अब भी नहीं टूटा था. वे हमेशा उसे सही राह सुझाती थीं.
पूरा किस्सा सुन कर शीतल चाची ने कहा, ‘‘यह ठीक है रिनी कि दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है, बल्कि कई बार तो दूध जैसी सफेद चीज को हाथ लगाने से भी इनकार कर देता है और तू ने रंजन से प्यार भी तो किया था. ये 2 बातें ही रोक रही हैं न तु झे. तो सुन रंजन तो दूसरा ब्याह रचा कर घर बसा कर बैठा है और तू?’’
‘‘कब चाची? यह कैसी खबर सुना दी आप ने?’’ वह बुदबुदाई.
‘‘अरे, तू क्यों गम करती है मेरी अच्छी बेटी? उस ने तो तलाक का भी इंतजार नहीं किया. लोग तो कहते हैं ब्याह से बहुत पहले से ही चक्कर चल रहा था रंजन का उस से. रंजन की कंपनी में ही मामूली सी नौकरी करती है. शक्लसूरत भी खास नहीं. नाम शन्नो है, इसी से जान ले किस तबके की है. तू किस के लिए जोग धारे बैठी है? कर ले रानी ब्याह, इसी में कल्याण है तेरा.’’
मन में बगावत जागी या रंजन के प्रति कड़वाहट कि रिनी ने शादी के लिए फौरन हां कर दी. रचना दीदी इतना बरसीं फोन पर, इतनी नाराज हुईं कि शादी में भी नहीं आईं.
जिंदगी के इस नए मोड़ की पहली रात को शेखर ने एक पोटली उस के हाथ में थमा दी, जिस में 5-7 गहने थे. एक मोटी चैन थी, जिस में पहली वाली के कुछ केश फंसे हुए थे. चूडि़यां धुलाई मांगती थीं और बुंदों के 2-4 नग निकले हुए थे. वितृष्णा सी हो आई रिनी को और उस ने फिर से पोटली बांध कर तकिए के नीचे रख दी.
श्वेता दीदी ने बच्चियों को अपने पास सुला लिया था. शेखर हाथ भर की दूरी पर बैठे थे. न चाहते हुए भी उसे रंजन के साथ की पहली रात याद आ गई और मन में टीस सी उठी. शेखर खिसक कर उस के पास आ बैठे तो वह कांप गई. लेकिन शेखर ने उसे छुआ तक नहीं. बस, मुलायम स्वर में बोले, ‘‘मेरी विनती है ये 2 शर्तें सम झ लो रिनी.’’
रिनी ने सवालिया निगाहें उठाईं, ‘‘एक तो पतिपत्नी वाले संबंध के लिए मु झे कुछ वक्त चाहिए. मैं शशि, मतलब… शुचिरुचि की मां को मन से नहीं निकाल पाया हूं और दूसरे, मु झे कभी कोई बच्चा नहीं चाहिए. मैं नहीं चाहता
मेरी बच्चियों का प्यार किसी के साथ बंटे. सम झ गईं न?’’
हां, सम झ गई थी वह. मन ही मन खुश भी हुई थी कि उस का जो बां झपन पहले पति के लिए श्राप था, इस घर के लिए वरदान बन गया.
अगली सुबह शायद बूआ के सम झाने पर शुचिरुचि िझ झकते हुए उस के पास आईं और एक सुर में बोलीं, ‘‘गुडमौर्निंग नई मम्मा.’’
रिनी ने दोनों को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘नई नहीं, सिर्फ मम्मा कहो बच्चो. मांमां होती है नई या पुरानी नहीं.’’
‘‘ओके मम्मा,’’ रिनी खिल उठी.
रिनी मातृत्व जैसे उस एक पल में ही तृप्त हो उठा.
4 दिन रह कर श्वेता दीदी भाई और बच्चियों की ओर से बेफिक्र हो कर चली गईं और रिनी की जिंदगी का नया दौर शुरू हुआ. वह बच्चियों के साथ ही स्कूल जाती और उन्हीं के साथ लौटती.
एक दिन शेखर ने कहा भी, ‘‘ये बच्चियां और घर तुम्हारे हवाले है रिनी. इस घर में किसी चीज की कमी नहीं पाओगी तुम. तुम्हारा मन चाहे तो नौकरी करो नहीं तो छोड़ दो. जैसा तुम ठीक सम झो.’’
रिनी ने विश्वास दिलाया कि वह घर, नौकरी, बच्चे, सब ठीक से निभा लेगी. बच्चियां उस से इतना घुलमिल गई थीं कि उस के बिना सांस भी नहीं लेती थीं. शेखर अलग सोते थे
और वह अलग बच्चियों के कमरे में. बड़ी मस्त और व्यस्त जिंदगी गुजर रही थी. शेखर भी दिल के बहुत अच्छे और सहयोगी प्रवृत्ति के थे. शुचिरुचि उस के अम्मू व पापा से भी खूब हिलमिल गई थीं.
शेखर की आंखों में एक गहरा संतोष नजर आने लगा था उसे और एक रात उन्होंने पत्नी का दर्जा दे ही डाला रिनी को, लेकिन बड़ा असहज और कष्टप्रद लगा था उसे वह सब. कहते हैं, वर्जित फल जब तक न खाया जाए तब तक ही वर्जित लगता है. एक बार चखने के बाद उस
की लालसा बढ़ती ही जाती है. यही बात शेखर पर ही लागू हुई, पर रिनी के दिल पर चोट लगती जब हर तरह से उस का पूरी तरह उपयोग करने के बाद भी शेखर जबतब उसे सुना ही देते कि यह शादी उन्होंने अपनी बेटियों की खुशी के लिए की है.
एक दोपहर बच्चों को सुला कर पड़ोस वाली राधा अम्मां के घर दही का जामन लेने गई तो लौटते हुए आंखों के आगे अंधेरा छा गया और हाथ से दही की कटोरी छूट गई. राधा अम्मां ने आगे बढ़ कर उसे संभाला. उन की अनुभवी आंखें फौरन ताड़ गईं, ‘‘तुम मां बनने वाली हो बहू.’’
यह सुन कर रिनी जैसे आकाश से गिरी, ‘‘यह कैसे हो सकता है अम्मांजी? ऐसा तो हो ही नहीं सकता.’’
‘‘क्यों नहीं हो सकता? तुम दोनों जवान हो, तंदुरुस्त हो.’’
‘‘यह बात नहीं अम्मांजी? मैं आप को कैसे बताऊं? कैसे सम झाऊं?’’ आंसू भरी आंखों से कह कर वह चली आई.
लेकिन अम्मां की बात की पुष्टि जब डाक्टर ने भी की तो रिनी अवाक सी खड़ी रह गई थी. उसे ऐसी सुखद अनुभूति इस से पहले कभी नहीं हुई थी. जी चाह रहा था कि वह डाक्टर की बात ‘आप मां बनने वाली हैं’ बारबार दोहराएं. मन खुशी से चिल्लाने को चाहा कि मैं बां झ नहीं हूं. मैं मां बनने वाली हूं… रंजन. सुना तुम ने. मैं बंजर खेत नहीं हूं… मेरे भीतर भी एक अंकुर फूटा है.
सुबह-सुबह अखबार के पन्ने पलटते हुए लीना की नजर स्थानीय समाचार वाले पन्ने पर छपी एक खबर पर पड़ी :
‘सुश्री हरिनाक्षी नारायण ने आज जिला कलक्टर व चेयरमैन, शहर विकास प्राधिकार समिति का पदभार ग्रहण किया.’
आगे पढ़ने की जरूरत नहीं थी क्योंकि लीना अपने कालिज और कक्षा की सहपाठी रह चुकी हरिनाक्षी के बारे में सबकुछ जानती थी.
यह अलग बात है कि दोनों की दोस्ती बहुत गहरी कभी नहीं रही थी. बस, एकदूसरे को वे पहचानती भर थीं और कभीकभी वे आपस में बातें कर लिया करती थीं.
मध्यवर्गीय दलित परिवार की हरिनाक्षी शुरू से ही पढ़ाई में काफी होशियार थी. उस के पिताजी डाकखाने में डाकिया के पद पर कार्यरत थे. मां एक साधारण गृहिणी थीं. एक बड़ा भाई बैंक में क्लर्क था. पिता और भाई दोनों की तमन्ना थी कि हरिनाक्षी अपने लक्ष्य को प्राप्त करे. अपनी महत्त्वाकांक्षा को प्राप्त करने के लिए वह जो भी सार्थक कदम उठाएगी, उस में वह पूरा सहयोग करेंगे. इसलिए जब भी वे दोनों बाजार में प्रतियोगिता संबंधी अच्छी पुस्तक या फिर कोई पत्रिका देखते, तुरंत खरीद लेते थे. यही वजह थी कि हरिनाक्षी का कमरा अच्छेखासे पुस्तकालय में बदल चुका था.
हरिनाक्षी भी अपने भाई और पिता को निराश नहीं करना चाहती थी. वह जीजान लगा कर अपनी पढ़ाई कर रही थी. कालिज में भी फुर्सत मिलते ही अपनी तैयारी में जुट जाती थी. लिहाजा, वह पूरे कालिज में ‘पढ़ाकू’ के नाम से मशहूर हो गई थी. उस की सहेलियां कभीकभी उस से चिढ़ जाती थीं क्योंकि हरिनाक्षी अकसर कालिज की किताबों के साथ प्रतियोगी परीक्षा संबंधी किताबें भी ले आती थी और अवकाश के क्षणों में पढ़ने बैठ जाया करती.
लीना, हरिनाक्षी से 1 साल सीनियर थी. कालिज की राजनीतिक गतिविधियों में खुल कर हिस्सा लेने के कारण वह सब से संपर्क बनाए रखती थी. वह विश्वविद्यालय छात्र संघ की सचिव थी. उस के पिता मुखराम चौधरी एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल ‘जनमत मोर्चा’ के अध्यक्ष थे. इस राजनीतिक पृष्ठभूमि का लाभ उठाने में लीना हमेशा आगे रहती थी. यही वजह थी कि कालिज में भी उस की दबंगता कायम थी.
एकमात्र हरिनाक्षी थी जो उस के राजनीतिक रसूख से जरा भी प्रभावित नहीं होती थी. लीना ने उसे कई बार छात्र संघ की राजनीति में खींचने की कोशिश की थी. किंतु हर बार हरिनाक्षी ने उस का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. उसे केवल अपनी पढ़ाई से मतलब था. जलीभुनी लीना फिर ओछी हरकतों पर उतर आई और उस के सामने जातिगत फिकरे कसने लगी.
‘अरे, यह लोग तो सरकारी कोटे के मेहमान हैं. थोड़ा भी पढ़ लेगी तो अफसर…डाक्टर…इंजीनियर बन जाएगी. बेकार में आंख फोड़ती है.’
कभी कहती, ‘सरकार तो बस, इन्हें कुरसी देने के लिए बैठी है.’
हरिनाक्षी पर उस के इन फिकरों का जरा भी असर नहीं होता था. वह बस, मुसकरा कर रह जाती थी. तब लीना और भी चिढ़ जाती थी.
लीना के व्यंग्य बाणों से हरिनाक्षी का इरादा दिनोदिन और भी पक्का होता जाता था. कुछ कर दिखाने का जज्बा और भी मजबूत हो जाता.
हरिनाक्षी ने बी.ए. आनर्स की परीक्षा में सर्वोच्च श्रेणी में स्थान प्राप्त किया तो सब ने उसे बधाई दी. एक विशेष समारोह में विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने उस का सम्मान किया.
हरिनाक्षी ने उस समारोह में शायद पहली और आखिरी बार अपने उद्गार व्यक्त करते हुए परोक्ष रूप से लीना के कटाक्षों का उत्तर देने की कोशिश की थी :
‘शुक्र है, विश्वविद्यालय में और सब मामलों में भले ही कोटे का उपयोग किया जाता हो, मगर अंक देने के मामले में किसी भी कोटे का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.’ यह कहते हुए हरिनाक्षी की आंखों में नमी आ गई थी. सभागार में सन्नाटा छा गया था. सब से आगे बैठी लीना के चेहरे का रंग उड़ गया था.
उस दिन के बाद से लीना ने हरिनाक्षी से बात करना बंद कर दिया था.
इस बीच हरिनाक्षी की एक प्यारी सहेली अनुष्का का दिन दहाडे़ एक चलती कार में बलात्कार किया गया था. बलात्कारी एक प्रतिष्ठित व्यापारी का बिगडै़ल बेटा था. पुलिस उस के खिलाफ सुबूत जुटा नहीं पाई थी. लिहाजा, उसे जमानत मिल गई थी.
क्षुब्ध हरिनाक्षी पहली बार लीना के पास मदद के लिए आई कि बलात्कारी को सजा दिलाने के लिए वह अपने पिता के रसूख का इस्तेमाल करे ताकि उस दरिंदे को उस के किए की सजा मिल सके.
लीना ने साफसाफ उसे इस झमेले में न पड़ने की हिदायत दी थी, क्योंकि वह जानती थी कि उस के पिता उस व्यापारी से मोटी थैली वसूलते थे.
अनुष्का ने आत्महत्या कर ली थी. लीना बुरी तरह निराश हुई थी.
हरिनाक्षी उस के बाद ज्यादा दिनों तक कालिज में रुकी भी नहीं थी. एम.ए. प्रथम वर्ष में पढ़ते हुए ही उस ने ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ की परीक्षा दी थी और अपनी मेहनत व लगन के बल पर तमाम बाधाओं को पार करते हुए सफल प्रतियोगियों की सूची में देश भर में 7वां स्थान प्राप्त किया था. आरक्षण वृत्त की परिधि से कहीं ऊपर युवतियों के वर्ग में वह प्रथम नंबर पर थी.
उस के बाद लीना के पास हरिनाक्षी की यादों के नाम पर एक प्रतियोगिता पत्रिका के मुखपृष्ठ पर छपी उस की मुसकराती छवि ही रह गई थी. अपनी भविष्य की योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करती हुई लीना ने जाने क्या सोच कर उस पत्रिका को सहेज कर रखा था. एक भावना यह भी थी कि कभी तो यह दलित बाला उस की राजनीति की राहों में आएगी.
लीना के पिता अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में हर जगह बेटी को पेश करते थे. लीना की शादी भी उन्होंने एक व्यापारिक घराने में की थी. उस के पति का छोटा भाई वही बलात्कारी था जिस ने लीना के कालिज की लड़की अनुष्का से बलात्कार किया था और सुबूत न मिल पाने के कारण अदालत से बरी हो गया था.
लीना शुरू में इस रिश्ते को स्वीकार करने में थोड़ा हिचकिचाई थी, लेकिन पिता ने जब उसे विवाह और उस के राजनीतिक भविष्य के बारे में विस्तार से समझाया तो वह तैयार हो गई. लीना के पिता ने लड़के के पिता के सामने यह शर्त रख दी थी कि वह अपनी होने वाली बहू को राजनीति में आने से नहीं रोकेंगे.
लीना आज अपनी राष्ट्रीय पार्टी ‘जनमत मोर्चा’ की राज्य इकाई की सचिव है. पूरे शहर के लिए हरदम चर्चा में रहने वाला एक अच्छाखासा नाम है. आम जनता के साथसाथ ब्लाक स्तर से ले कर जिला स्तर तक सभी प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी उसे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं. अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल वह अपने पति के भवन निर्माण व्यवसाय की दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति के लिए बखूबी कर रही थी. इन दिनों उस के पति कमलनाथ अपने एक नए प्रोजेक्ट का काम शुरू करने से पहले कई तरह की अड़चनों का सामना कर रहे थे.
लीना को पूरी उम्मीद थी कि हरिनाक्षी पुरानी सहपाठी होने के नाते उस की मदद करेगी और अगर नहीं करेगी तो फिर खमियाजा भुगतने के लिए उसे तैयार रहना होगा. ऐसे दूरदराज के इलाके में तबादला करवा देगी कि फिर कभी कोई महिला दलित अधिकारी उस से पंगा नहीं लेगी. कमलनाथ लीना को बता चुके थे कि इस प्रोजेक्ट में उन के लाखों रुपए फंस चुके थे.
दरअसल, शहर के व्यस्त इलाके में एक पुराना जर्जर मकान था. इस के आसपास काफी खाली जमीन थी. मकान मालिक शिवचरण उस मकान और जमीन को किसी भी कीमत पर बेचने को तैयार नहीं हो रहे थे. अपने बापदादा की निशानी को वह खोना नहीं चाहते थे. उस मकान से उन की बेटी अनुष्का की ढेर सारी यादें जुड़ी हुई थीं.
कमलनाथ ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को अपने प्रोजेक्ट में यह कह कर हिस्सेदारी देने की पेशकश की थी कि वह शिवचरण को ‘येन केन प्रकारेण’ जमीन खाली करने पर या तो राजी कर लेंगे या फिर मजबूर कर देंगे.
उस पुलिस अधिकारी ने अपने रोबदाब का इस्तेमाल करना शुरू किया, लेकिन शिवचरण थे कि आसानी से हार मानने को तैयार नहीं हो रहे थे. पहले तो वह पुलिसिया रोब से भयभीत नहीं हुआ बल्कि वह अपनी शिकायत पुलिस थाने में दर्ज कराने जा पहुंचा. यहां उसे बेहद जिल्लत झेलनी पड़ी थी. भला पुलिस अपने ही किसी आला अधिकारी के खिलाफ कैसे मामला दर्ज कर सकती थी? उन्होंने लानतमलामत कर उसे भगा दिया.
शिवचरण ने भी हार नहीं मानी और उन्हें पूरा विश्वास था कि एक न एक दिन उन की फरियाद जरूर सुनी जाएगी.
नई कलक्टर के कार्यभार संभालने की खबर ने उन के दिल में फिर से आस जगाई.
हर तरफ से निराश शिवचरण कलक्टर के दफ्तर पहुंचे.
आज कलक्टर साहिबा से वह मिल कर ही जाएंगे. चाहे कितना भी इंतजार क्यों न करना पडे़.
एक कागज पर शिवचरण ने अपना नाम लिखा और सचिव रामसेवक को दिया. रामसेवक ने कागज पर लिखा नाम पढ़ा तो उस के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं. एक सीनियर पुलिस अधिकारी के मामले में लिप्त होने के कारण उस का नाम जिले के सभी प्रशासनिक अधिकारी जानते थे.
‘‘काम क्या है?’’ रामसेवक ने रूखे स्वर में पूछा.
‘‘वह मैं कलक्टर साहिबा को ही बताऊंगा,’’ शिवचरण ने गंभीरता से उत्तर दिया.
‘‘बिना काम के वह नहीं मिलतीं,’’ रामसेवक ने फिर टालना चाहा.
‘‘आज उन से मिले बगैर मैं नहीं जाऊंगा,’’ शिवचरण की आवाज थोड़ी तेज हो गई.
कलक्टर साहिबा के केबिन के बाहर खड़ा चपरासी यह सब देख रहा था.
अंदर से घंटी बजी.
चपरासी केबिन के अंदर जा कर वापस आया.
‘‘आप अंदर जाइए. मैडम ने बुलाया है,’’ चपरासी ने शिवचरण से कहा.
कुछ ही क्षणों के बाद शिवचरण कलक्टर साहिबा हरिनाक्षी के सामने बैठे थे.
शिवचरण को देख कर कलक्टर साहिबा चौंक पड़ीं, ‘‘चाचाजी, आप अनुष्का के पिता हैं न?’’
‘‘आप अनुष्का को कैसे जानती हैं?’’ शिवचरण थोडे़ हैरान हुए.
‘‘मैं अनुष्का को कैसे भूल सकती हूं. उस के साथ मेरी गहरी दोस्ती थी. उस का कालिज से घर लौटते समय अपहरण कर लिया गया था. 3 दिन बाद उस की विकृत लाश नेशनल हाइवे पर मिली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दरिंदों ने उस के साथ बलात्कार किया था और फिर गला घोंट कर उस की हत्या कर दी थी. अफसोस इस बात का है कि अपराधी आज भी बेखौफ घूम रहे हैं. खैर, आप बताइए कि आप की समस्या क्या है?’’
शिवचरण की आंखें भर आईं. एक तो बेटी की यादों की कसक और दूसरा अपनी समस्या पूरी तरह खुल कर बताने का अवसर मिलना. वह तुरंत कुछ न कह पाए.
‘‘चाचाजी, आप कहां खो गए?’’ हरिनाक्षी ने उन की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘आप अपना आवेदनपत्र दीजिए.’’
शिवचरण ने अपना आवेदनपत्र हरिनाक्षी की तरफ बढ़ाया तो वह उसे ले कर ध्यानपूर्वक पढ़ने लगी.
शिवचरण ने पूरी बातें विस्तार से लिखी थीं.
कैसे कमलनाथ ने एक पुलिस अधिकारी से मिल कर उन का जीना हराम कर दिया था और पुलिस अधिकारी ने अपनी कुरसी का इस्तेमाल करते हुए उन्हें धमकाने की कोशिश की थी. पत्र में और भी कई नाम थे जिन्हें पढ़ कर हरिनाक्षी हैरान हो रही थी. अनुष्का के बलात्कार के आरोपी निर्मलनाथ का नाम पढ़ कर तो उस के गुस्से का ठिकाना न रहा और लीना का नाम पढ़ कर तो उस ने अविलंब काररवाई करने का फैसला कर लिया.
‘खादी की ताकत का घमंड बढ़ता ही गया है लीना देवी का,’ हरिनाक्षी ने सोचा.
‘‘चाचाजी, आप चिंता न करें. आप की अपनी इच्छा के खिलाफ कोई आप को उस जमीन से, उस घर से निकाल नहीं सकता. आप जाएं,’’ हरिनाक्षी ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा.
‘‘तुम्हारा उपकार मैं जीवन भर नहीं भूल सकता, बेटी,’’ शिवचरण ने भरे गले से कहा.
‘‘इस में उपकार जैसा कुछ भी नहीं, चाचाजी. बस, मैं अपना कर्तव्य निभाऊंगी,’’ हरिनाक्षी की आवाज में दृढ़ता थी.
उस ने घंटी बजाई. चपरासी अंदर आया तो हरिनाक्षी बोली, ‘‘ड्राइवर से कहो इन्हें घर तक छोड़ आए.’’
‘‘चलिए, सर,’’ चपरासी ने शिवचरण से कहा.
चपरासी के साथ शिवचरण को बाहर आता देख कर रामसेवक आश्चर्य- चकित हो उठा और तुरंत अपना मोबाइल निकाला और दोएक नंबरों पर बात की.
इस बीच, अंदर से घंटी बजी तो रामसेवक मोबाइल जेब में रख कर तुरंत उठ कर केबिन में आने के लिए तत्पर हुआ.
‘‘एस.पी. साहब से कहिए कि वह हम से जितनी जल्द हो सके संपर्क करें,’’ हरिनाक्षी ने कहा.
‘‘जी, मैडम,’’ रामसेवक ने तुरंत उत्तर दिया और बाहर आ कर एस.पी. शैलेश कुमार को फोन घुमाने लगा.
‘‘साहब, रामसेवक बोल रहा हूं. मैडम ने फौरन याद किया है.’’
‘‘ठीक है,’’ उधर से आवाज आई.
आधे घंटे बाद एस.पी. शैलेश कुमार हरिनाक्षी के सामने आ कर बैठे नजर आए.
‘‘शैलेशजी, क्या हम जिले के सभी पुलिस अधिकारियों की एक संयुक्त बैठक कल बुला सकते हैं?’’ हरिनाक्षी ने पूछा.
‘‘हां…हां…क्यों नहीं?’’ एस.पी. साहब ने तुरंत उत्तर दिया.
‘‘तो फिर कल ही सर्किट हाउस में यह बैठक रखें,’’ हरिनाक्षी ने आदेशात्मक स्वर में कहा.
‘‘जी, मैडम,’’ एस.पी. साहब ने हामी भरी.
कलक्टर हरिनाक्षी के आदेश के अनुसार संयुक्त बैठक का आयोजन हुआ. जिले के सभी पुलिस थानों के थानेदारों समेत सभी छोटेबडे़ पुलिस अधिकारी बैठक में शामिल हुए.
सभी उत्सुक थे कि प्रशासनिक सेवा में बडे़ ओहदे पर कार्यरत यह सुंदर दलित बाला कितनी कड़कदार बातें कह पाएगी.
हरिनाक्षी ने बोलना शुरू किया :
‘‘साथियो, जिले की कानून व्यवस्था को संतुलित बनाए रखना और आम जनता के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना 2 अलगअलग चीजें नहीं हैं. आप को यह वरदी आतंक फैलाने या दबंगता बढ़ाने के लिए नहीं दी गई बल्कि आम लोगों के इस विश्वास को जीतने के लिए दी गई है कि हम उन की हिफाजत के लिए हर वक्त तैयार रहें.
‘‘बड़े अफसोस की बात है कि हमारे पुलिस थानों में आम जनता के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है. इसलिए आम जन पुलिस थाने में जाने से डरते हैं जबकि पैसे वाले और प्रभावशाली लोगों को तरजीह दी जाती है. मेरे पास कई ऐसी शिकायतें लिखित रूप में आई हैं जिन्हें पुलिस स्टेशन में दर्ज होना चाहिए था, लेकिन वहां उन की बात नहीं सुनी गई.
‘‘मेरा सभी पुलिस अधिकारियों से यह आग्रह है कि मेरे पास आए ऐसे सभी आवेदनपत्रों के आधार पर केस संख्या दर्ज की जाए और संबंधित व्यक्तियों को बताया जाए और उन्हें आश्वस्त किया जाए कि उन की शिकायतों पर उचित काररवाई की जाएगी.’’
सवाल-
मैं 22 वर्ष की हूं. मैं जब भी वैक्सिंग या थ्रैडिंग कराती हूं, तो मेरे बाल पूरी तरह से निकल नहीं पाते. यह बाल बहुत छोटे होते हैं, जो त्वचा से बाहर निकलते हुए दिखते हैं. कृपया इन्हें पूरी तरह निकालने का उपाय बताएं?
जवाब-
इन बालों को इनग्रोथ हेयर कहते हैं. इन्हें आप ऐक्स्फौलीऐट कर के निकाल सकती हैं. इस से त्वचा के अंदर के फसे बाल नर्म हो कर बाहर आ जाएंगे. इस के लिए घर में ही मौजूद सामग्री का इस्तेमाल कर सकती हैं.
ऐवोकैडो और शहद: ऐवोकैडो को मैश करें अब इस में
2 बड़े चम्मच शहद और 1 बड़ा चम्मच चीनी मिला दें. चीनी से नर्म ऐक्स्फोलिएशन होगा और शहद और ऐवोकैडो से आप की त्वचा को पोषण मिलेगा.
यदि आप की त्वचा तैलीय है, 1-2 छोटे चम्मच ताजा नीबू के रस को मिला सकती हैं. नीबू के रस से त्वचा टाइट होगी और इस से पोर्स भी बंद हो जाएंगे.
इस मास्क को 15-20 मिनट तक लगा रहने दें फिर इसे अच्छे से धो कर निकाल लें.
टीट्री औयल: टीट्री औयल में ऐंटीबैक्ट्रीयल, ऐंटीसैप्टिक और ऐंटीफ्लेमैटरी गुण होते हैं, जिस से स्किन इन्फैक्शन का खतरा भी नहीं रहता और इनग्रोथ हेयर की समस्या भी दूर होती है.
टीट्री औयल में डिस्टिल्ड वाटर मिला कर त्वचा पर लगाएं और कुछ देर बाद साफ पानी से साफ करें. इन उपायों का इस्तेमाल वैक्सिंग के 1 दिन बाद करें.
ये भी पढें-
चाहे लड़का हो या लड़की महिला हो या पुरुष खूबसूरत दिखने के लिए क्या नहीं करते.पार्लर जाते है मेकअप , फेशिअल आदि करवाते हैं. और वैक्सिंग भी. जिसके द्वारा शरीर के सभी बालों को हटाया जाता है या रिमूव किया जाता है. वैक्सिंग के जरिये शरीर के किसी भी भाग के अनचाहे बालों को आसानी से हटा जा सकता है. ताकि स्किन में निखार आ सके .
सुबह हम औफिस जाने की तैयारी कर रहे थे कि अचानक ऐसा लगा मानो तबीयत खराब हो रही है. घबराहट होने लगी, सीने में दर्द भी होने लगा और लगा कि हम चक्कर खा कर गिर पड़ेंगे.
हम ने अपनी श्रीमतीजी को आवाज देनी चाही तो आवाज गले में दब कर रह गई. पसीना आने लगा. हम सोचने लगे कि क्या करें? वहीं धम्म से बैठ गए. श्रीमतीजी किचन में हमारे लिए लंच बना रही थीं. हमें उन के गाने की आवाज सुनाई दे रही थी. अंतिम आवाज श्रीमतीजी की हमारे कानों में यह आई थी, ‘‘औफिस जाओ, लेट हो रहे हो, मैं ने लंच बना दिया है. कब तक इस तरह फर्श पर लेटे रहोगे?’’
उस के बाद क्या हुआ, हमें नहीं मालूम. हमारी श्रीमतीजी ने जो कुछ बखान किया वह कुछ इस तरह है, ‘‘तुम्हें फर्श पर पड़ा देख कर मैं समझी तुम मुझे परेशान करने के लिए लोट रहे हो. मैं ने तुम्हें खूब खरीखरी सुनाई. लेकिन तुम्हारी कोई भी प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मुझे हैरानी हुई. मैं ने जब तुम्हारे शरीर को देखा तो बर्फ की तरह ठंडा था. तुम पसीने से नहा चुके थे. मैं ने तुरंत पड़ोस के खड़से भैया और उन की बीवी खड़सी को बुलाया. वे तुरंत आ गए. उन्होंने बताया कि तुम्हें हार्ट अटैक आया है.
‘‘सुन कर मेरे हाथपांव फूल गए. फिर पूरे तीन दिनों तक आप को न जाने कितने इंजैक्शन, न जाने कितनी खून की बोतलें चढ़ाईं तब मेरा सुहाग बच पाया है,’’ कहतेकहते हमारी श्रीमतीजी की आंखों से गंगाजमना बहने लगी.
हम ने बिस्तर पर पड़ेपड़े ही कहा, ‘‘क्यों रोती हो? हमारे नहीं रहने पर तुम्हें अनुकंपा नौकरी मिल जाती, फंड का रुपया रिफंड हो जाता, बीमे के रुपए मिल जाते… अच्छा था तुम्हें चैन मिल जाता…’’
श्रीमतीजी ने साड़ी के पल्लू से अपनी तोते जैसी नाक को पोंछा और फिर कहने लगीं, ‘‘क्यों फालतू की बातें करते हो… अगर तुम ने ऐसी बातें की तो सच कहती हूं खटमल मार दवा पी कर मर जाऊंगी.’’
‘‘यानी मरतेमरते भी खर्च में डाल कर जाओगी,’’ हम ने नाराजगी भरे स्वर में कहा. फिर पूछा, ‘‘यह तो बताओ डाक्टर ने हमें बीमारी क्या बताई?’’
‘‘3 ट्यूब ब्लाकेज हैं, कोलैस्ट्रौल बढ़ गया है. हमेशा कहती थी कि घी, तेल वाली व चटपटी चीजें न खाया करो. लेकिन तुम सुनते कहां थे. हमेशा कहते थे कि उबली सब्जियां बनाती हो… कहो, मैं तुम्हारे अच्छे के लिए बनाती थी न? अब जो कुछ भी बनाऊंगी चुपचाप खा लेना.’’
‘‘ऐसे उबले खाने से तो मरना अच्छा है, हम नहीं खाएंगे,’’ हम ने गुस्से से कहा.
‘‘तुम्हें मैं क्या ठीक करूंगी… तुम्हें तो संसार में एक ही… ठीक कर सकती है…’’ न जाने किस का नाम लिया, हम सुन नहीं पाए और वे चली गईं.
एक शाम श्रीमतीजी ने हंसते हुए हमारे कमरे में प्रवेश किया और बताया, ‘‘शाम को मेरी मम्मी आ रही हैं.’’
‘‘आप की मम्मी आ रही हैं? मगर क्यों?’’
‘‘तुम्हें देखने.’’
‘‘हम ठीक तो हैं.’’
‘‘तो क्या मैं उन्हें आने से मना कर देती?’’
शाम को हमारी सासूमां आ धमकीं. आते ही हमारे पास आईं और फटाफट 1 दर्जन हिदायतें दीं.
अगले दिन सुबह से दूध के गिलास में मलाई बिलकुल नहीं थी. परांठे खाने को बैठे तो 2 फुलके बिना घी के आ गए. हम ने यह देखा तो माथा पीट लिया. यह सब परोसने के लिए हमारी सासूमां मौजूद थीं. खाने से घी गायब था, अंडे नहीं थे और जो फल यानी पपीते, सेब, अनार, आम आदि थे उन में से मात्र 25% हम तक आ रहे थे शेष 75% के छिलके हम ने अपनी सासूमां के बैडरूम में रखी डस्टबिन में देखे.
एक दिन पड़ोसी मिस्टर कैथवास और मिसेज कैथवासनी ने चिकन तंदूर चुपके से भेजने का वचन दिया. हम भी प्रतीक्षा कर रहे थे. श्रीमतीजी को हम ने कसम दे कर अपनी ओर मिला लिया था. रात को हम मुंह में पानी लिए खाने की प्रतीक्षा कर रहे थे कि तभी हमारी थाली में मुरगा नहीं, बल्कि दलिया लिए हमारी सासूमां प्रकट हुईं और आंखें तरेर कर कहने लगीं, ‘‘मैं ने आज आप के दोस्त कैथवास की खूब आरती उतारी है, मुरगा लाया था नालायक आप के लिए…’’
‘‘अरे,’’ हम ने आश्चर्य प्रकट किया, ‘‘मुरगा है कहां?’’ हम ने पूछा.
‘‘हमें आप के मित्र की इज्जत का ध्यान था इसलिए मुरगा रख लिया, आप दलिया जल्दी से खा लो ताकि मैं जा कर मुरगे को निबटाऊं.’’
हम ने आंखें बंद कर के दलिया खाया, पानी पीया और अपनी किस्मत पर बिसूरते हुए सो गए. हमारी सासूमां ने पूरा मुरगा और बटर को निबटाया. यह सिलसिला महीने भर तक चलता रहा.
डाक्टर ने चैकअप किया, रक्त परीक्षण किया और श्रीमतीजी को बधाई दी, ‘‘कोलैस्ट्रौल एकदम 1 महीने में सामान्य हो गया… ऐसा परहेज 3-4 माह और चलने दें, ब्लाकेज भी अपनेआप ठीक हो जाएंगे.’’
श्रीमतीजी प्रसन्न हो गईं, मगर इतना लंबा परहेज सुन कर हम परेशान हो गए. वजन की मशीन पर हमारी सासूमां ने वजन लिया जो पूरा 60 किलोग्राम था.
1 माह में 30 किलोग्राम की बढ़ोतरी हो चुकी थी. सच में हमारी सासूमां के गालों पर लाली आ गई थी, माशा अल्लाह हैल्थ भी अच्छी हो गई थी.
श्रीमतीजी ने कहा, ‘‘जब तक आप पूरी तरह ठीक नहीं हो जाएंगे मम्मी यहीं रहेंगी.’’
हम ने कभी विरोध नहीं किया था इसलिए चुप हो गए. पूरे 3 महीने तक हमें 25% भोजन दिया गया.
एक रोज सुबह श्रीमतीजी रोते हुए बोलीं, ‘‘मम्मीजी के सीने में दर्द है, पसीना आ रहा है, जी घबरा रहा है, बेहोशी आ रही है…’’
हम तेजी से उठे और उन्हें देखा. सच में वे ठीक हमारी तरह ही हो रही थीं. हम उन्हें तुरंत अस्पताल ले गए. डाक्टर ने उन्हें हार्ट अटैक बताया. खानेपीने के परहेज में घी, मक्खन, पनीर, मुरगा, अंडे सब खाने के लिए मना कर दिया. हम इलाज करा कर उन्हें घर ले आए. घर में उन के लिए बिस्तर लगा दिया.
हम उन्हें देखने जब उन के कमरे में गए तो उन्होंने हंसतेमुसकराते हुए हमें देखा और कहा, ‘‘दामादजी, आप की तबीयत ठीक रहे इसलिए नहीं चाहते हुए भी हम ने वह सब खाया, क्योंकि हमें आप की चिंता थी. यदि सामान घर में रहता तो आप भला किसी की सुनते?’’
‘‘हमारे स्वास्थ्य की आप को कितनी चिंता है सासूमां,’’ हम ने बड़े प्यार से कहा.
‘‘क्यों न हो? दामाद बेटे समान होता है.’’
हम प्रेमश्रद्धा से भर उठे और उन के चरण स्पर्श कर लिए. श्रीमतीजी परदे की ओट से सास और दामाद का स्नेह, श्रद्धा से भरा मिलन देख रही थीं. सच में, हमें पहली बार अपनी सास पर गर्व हुआ कि ऐसी महान सास सब को मिले.
‘‘इट्स टू मच यार, लड़के कितने चीप, आई मीन कितने टपोरी होते हैं.’’ कमरे में घुसते ही सीमा ने बैग पटकते हुए झुंझलाए स्वर में कहा तो मैं चौंक पड़ी.
‘‘क्या हुआ यार? कोई बात है क्या? ऐसे क्यों कह रही है?’’
‘‘और क्या कहूं प्रिया? आज विभा मिली थी.’’
‘‘तेरी पहली रूममेट.’’
‘‘हां, यार. उस के साथ जो हुआ मैं तो सोच भी नहीं सकती. कोई ऐसा कैसे कर सकता है?’’
‘‘कुछ बताएगी भी? यह ले पहले पानी पी, शांत हो जा, फिर कुछ कहना,’’ मैं ने बोतल उस की तरफ उछाली.
वह पलंग पर बैठते हुए बोली, ‘‘विभा कह रही थी, उस का बौयफ्रैंड आजकल बड़ी बेशर्मी से किसी दूसरी गर्लफैं्रड के साथ घूम रहा है. जब विभा ने एतराज जताया तो कहता है, तुझ से बोर हो गया हूं. कुछ नया चाहिए. तू भी किसी और को पटा ले. प्रिया, मैं जानती हूं, तेरी तरह विभा भी वन मैन वूमन थी. कितना प्यार करती थी उसे. और वह लफंगा… सच, लड़के होते ही ऐसे हैं.’’
‘‘पर तू सारे लड़कों को एक जैसा क्यों समझ रही है? सब एक से तो नहीं होते,’’ मैं ने जिरह की.
‘‘सब एक से होते हैं. लड़कों के लिए प्यार सिर्फ टाइम पास है. वे इसे गंभीरता से नहीं लेते. बस, मस्ती की और आगे बढ़ गए, पर लड़कियां दिल से प्यार करती हैं. अब तुझे ही लें, उस लड़के पर अपनी जिंदगी कुरबान किए बैठी है, जिस लफंगे को यह भी पता नहीं कि तू उसे इतना प्यार करती है. उस ने तो आराम से शादी कर ली और जिंदगी के मजे ले रहा है, पर तू आज तक खुद को शादी के लिए तैयार नहीं कर पाई. आज तक अकेलेपन का दर्द सह रही है और एक वह है जिस की जिंदगी में तू नहीं कोई और है. आखिर ऐसी कुरबानी किस काम की?’’
मैं ने टोका, ‘‘ऐक्सक्यूजमी. मैं ने किसी के लिए जिंदगी कुरबान नहीं की. मैं तो यों भी शादी नहीं करना चाहती थी. बस, जीवन का एक मकसद था, अपने पैरों पर खड़ा होना, क्रिएटिव काम करना. वही कर रही हूं और जहां तक बात प्यार की है, तो हां, मैं ने प्यार किया था, क्योंकि मेरा दिल उसे चाहता था. इस से मुझे खुशी मिली पर मैं ने उस वक्त भी यह जरूरी नहीं समझा कि इस कोमल एहसास को मैं दूसरों के साथ बांटूं, ढोल पीटूं कि मैं प्यार करती हूं. बस, कुछ यादें संजो कर मैं भी आगे बढ़ चुकी हूं.’’
‘‘आगे बढ़ चुकी है? फिर क्यों अब भी कोई पसंद आता है तो कहीं न कहीं तुझे उस में अमर का अक्स नजर आता है. बोल, है या नहीं…’’
‘‘इट्स माई प्रौब्लम, यार. इस में अमर की क्या गलती. मैं ने तो उसे कभी नहीं कहा कि मैं तुम से प्यार करती हूं, शादी करना चाहती हूं. हम दोनों ने ही अपना अलग जहां ढूंढ़ लिया.’’
‘‘अब सोच, फिजिकल रिलेशन की तो बात दूर, तूने कभी उस के साथ रोमांस भी नहीं किया और आज तक उस के प्रति वफादार है, जबकि वह… तूने ही कहा था न कि वह कालेज की कई लड़कियों के साथ फ्लर्ट करता था. क्या पता आज भी कर रहा हो. घर में बीवी और बाहर…’’
‘‘प्लीज सीमा, वह क्या कर रहा है, मुझे इस में कोई दिलचस्पी नहीं, लेकिन देख उस के बारे में उलटासीधा मत कहना.’’
‘‘हांहां, ऐसा करने पर तुझे तकलीफ जो होती है तो देख ले, यह है लड़की का प्यार. और लड़के, तोबा… मैं आजाद को भी अच्छी तरह पहचानती हूं. हर तीसरी लड़की में अपनी गर्लफ्रैंड ढूंढ़ता है. वह तो मैं ने लगाम कस रखी है, वरना…’’
मैं हंस पड़ी. सीमा भी कभीकभी बड़ी मजेदार बातें करती है, ‘‘चल, अब नहाधो ले और जल्दी से फ्रैश हो कर आ. आज डिनर में मटरपनीर और दालमक्खनी है, तेरी मनपसंद.’’
मुसकराते हुए सीमा चली गई तो मैं खयालों में खो गई. बंद आंखों के आगे फिर से अमर की मुसकराती आंखें आ गईं. मैं ने उसे एक बार कहा था, ‘तुम हंसते हो तो तुम्हारी आंखें भी हंसती हैं.’
वह हंस पड़ा और कहने लगा, ‘तुम ने ही कही है यह बात. और किसी ने तो शायद मुझे इतने ध्यान से कभी देखा ही नहीं.’
सच, प्यार को शब्दों में ढालना कठिन होता है. यह तो एहसास है जो सिर्फ महसूस किया जा सकता है. इस खूबसूरत एहसास ने 2 साल तक मुझे भी अपने रेशमी पहलू में कैद कर रखा था. कालेज जाती, तो बस अमर को एक नजर देखने के लिए. स्मार्ट, हैंडसम अमर को अपनी तरफ देखते ही मेरे अंदर एक अजीब सी सिहरन होती.
वह अकसर जब मेरे करीब आता तो गुनगुनाने लगता. मुझ से बातें करता तो उस की आवाज में कंपन सी महसूस होती. उस की आंखें हर वक्त मुझ से कुछ कहतीं, जिसे मेरा दिल समझता था, पर दिमाग कहता था कि यह सच नहीं है. वह मुझ से प्यार कर ही नहीं सकता. कहां मैं सांवली सी अपने में सिमटी लड़की और कहां वह कालेज की जान. पर अपने दिल पर एतबार तब हुआ जब एक दिन उस के सब से करीबी दोस्त ने कहा कि अमर तो सिर्फ तुम्हें देखने को कालेज आता है.
मैं अजीब सी खुशफहमी में डूब गई. पर फिर खुद को समझाने लगी कि यह सही नहीं होगा. हमारी जोड़ी जमेगी नहीं. और फिर शादी मेरी मंजिल नहीं है. मुझे तो कुछ करना है जीवन में. इसलिए मैं उस से दूरी बढ़ाने की कोशिश करने लगी. घर छोड़ने के लिए कई दफा उस ने लिफ्ट देनी चाही, पर मैं हमेशा इनकार कर देती. वह मुझ से बातें करने आता तो मैं घर जाने की जल्दी दिखाती.
इसी बीच एक दिन आशा, जो हम दोनों की कौमन फ्रैंड थी, मेरे घर आई. काफी देर तक हम दोनों ने बहुत सी बातें कीं. उस ने मेरा अलबम भी देखा, जिस में ग्रुप फोटो में अमर की तसवीरें सब से ज्यादा थीं. उस ने मेरी तरफ शरारत से देख कर कहा, ‘लगता है कुछ बात है तुम दोनों में.’ मैं मुसकरा पड़ी. उस दिन बातचीत से भी उसे एहसास हो गया था कि मैं अमर को चाहती हूं. मुझे यकीन था, आशा अमर से यह बात जरूर कहेगी, पर मुझे आश्चर्य तब हुआ जब उस दिन के बाद से वह मुझ से दूर रहने लगा.
मैं समझ गई कि अमर को यह बात बुरी लगी है, सो मैं ने भी उस दूरी को पाटने की कोशिश नहीं की. हमारे बीच दूरियां बढ़ती गईं. अब अमर मुझ से नजरें चुराने लगा था. कईकई दिन बीत जाने पर भी वह बात करने की कोशिश नहीं करता. मैं कुछ कहती तो शौर्ट में जवाब दे कर आगे बढ़ जाता, जबकि आशा से उस की दोस्ती काफी बढ़ चुकी थी. उस के इस व्यवहार ने मुझे बहुत चोट पहुंचाई. भले ही पहले मैं खुद उस से दूर होना चाहती थी, पर जब उस ने ऐसा किया तो बहुत तकलीफ हुई.
इसी बीच मुझे नौकरी मिल गई और मैं अपना शहर छोड़ कर यहां आ गई. हौस्टल में रहने लगी. बाद में अपनी एक सहेली से खबर मिली की अमर की शादी हो गई है. इस के बाद मेरे और अमर के बीच कोई संपर्क नहीं रहा.
मैं जानती थी, उस ने कभी भी मुझे याद नहीं किया होगा और करेगा भी क्यों? हमारे बीच कोई रिश्ता ही कहां था? यह मेरी दीवानगी है जिस का दर्द मुझे अच्छा लगता है. इस में अमर की कोई गलती नहीं. पर सीमा को लगता है कि अमर ने गलत किया. सीमा ही क्यों मेरे घर वाले भी मेरी दीवानगी से वाकिफ हैं. मेरी बहन ने साफ कहा था, ‘तू पागल है. उस लड़के को याद करती है, जिस ने तुझे कोई अहमियत ही नहीं दी.’
‘‘किस सोच में डूब गई, डियर?’’ नहा कर सीमा आ चुकी थी. मैं हंस पड़ी, ‘‘कुछ नहीं, फेसबुक पर किसी दूसरे नाम से अपना अकाउंट खोल रही थी.’’
‘‘किसी और नाम से? वजह जानती हूं मैं… यह अकाउंट तू सिर्फ और सिर्फ अमर को ढूंढ़ने के लिए खोल रही है.’’
‘‘जी नहीं, मेरे कई दोस्त हैं, जिन्हें ढूंढ़ना है मुझे,’’ मैं ने लैपटौप बंद करते हुए कहा.
‘‘तो ढूंढ़ो… लैपटौप बंद क्यों कर दिया?’’
‘‘पहले भोजन फिर मनोरंजन,’’ मैं ने प्यार से उस की पीठ पर धौल जमाई.
रात 11 बजे जब सीमा सो गई तो मैं ने फिर से फेसबुक पर लौगइन किया और अमर का नाम डाल कर सर्च मारा. 8 साल बाद अमर की तसवीर सामने देख कर यकायक ही होंठों पर मुसकराहट आ गई. जल्दी से मैं ने उस के डिटेल्स पढ़े. अमर ने फेसबुक पर अपना फैमिली फोटो भी डाला हुआ था, जिस में उस की बहन भी थी. कुछ सोच कर मैं ने उस की बहन के डिटेल्स लिए और उस के फेसबुक अकाउंट पर उस से दोस्ती के लिए रिक्वैस्ट डाल दी.
2 दिन बाद मैं ने देखा, उस की बहन निशा ने रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली है. फिर क्या था, मैं ने उस से दोस्ती कर ली ताकि अमर के बारे में जानकारी मिलती रहे. वैसे यह बात मैं ने निशा पर जाहिर नहीं की और बिलकुल अजनबी बन कर उस से दोस्ती की.
निशा औनलाइन अपने बारे में ढेर सारी बातें बताती. वह दिल्ली में ही थी और प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी. उस ने लाजपत नगर में कमरा किराए पर ले रखा था. अब तो जानबूझ कर मैं दिन में 2-3 घंटे अवश्य उस से चैटिंग करती ताकि हमारी दोस्ती गहरी हो सके.
एक दिन अपने बर्थडे पर उस ने मुझे घर बुलाया तो मैं ने तुरंत हामी भर दी. शाम को जब तक मैं उस के घर पहुंची तबतक पार्टी खत्म हो चुकी थी और उस के फ्रैंड्स जा चुके थे. मैं जानबूझ कर देर से पहुंची थी ताकि अकेले में उस से बातें हो सकें. कमरा खूबसूरती से सजा हुआ था. हम दोनों जिगरी दोस्त की तरह मिले और बातें करने लगे. निशा का स्वभाव बहुत कुछ अमर की तरह ही था, चुलबुली, मजाकिया पर साफ दिल की. वह सुंदर भी काफी थी और बातूनी भी.
मैं अमर के बारे में कुछ जानना चाहती थी जबकि निशा अपने बारे में बताए जा रही थी. उस के कालेज के दोस्तों और बौयफ्रैंड्स की दास्तान सुनतेसुनते मुझे उबासी आ गई. यह देख निशा तुरंत चाय बनाने के लिए उठ गई.
अब मैं चुपचाप निशा के कमरे में रखी चीजों का दूर से ही जायजा लेने लगी, यह सोच कर कि कहीं तो कोई चीज नजर आए, तभी टेबल पर रखी डायरी पर मेरी नजर गई तो मैं खुद को रोक नहीं सकी. डायरी के पन्ने पलटने लगी. ‘निशा ने अच्छा संग्रह कर रखा है,’ सोचती हुई मैं डायरी के पन्ने पलटती रही. तभी एक पृष्ठ पर नजरें टिक गईं. ‘बेवफा’ यह एक कविता थी जिसे मैं पूरा पढ़ गई.
मैं यह कविता पढ़ कर बुत सी बन गई. दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. ‘तुम्हारी आंखें भी हंसती हैं…’ यह पंक्ति मेरी आंखों के आगे घूम रही थी. यह बात तो मैं ने अमर से कही थी. एक नहीं 2-3 बार.
तभी चाय ले कर निशा अंदर आ गई. मेरे हाथ में डायरी देख कर उस ने लपकते हुए उसे खींचा. मैं यथार्थ में लौट आई. मैं अजीब सी उलझन में थी, नेहा ने हंसते हुए कहा, ‘‘यार, यह डायरी मेरी सब से अच्छी सहेली है. जहां भी मन को छूती कोई पंक्ति या कविता दिखती है मैं इस में लिख लेती हूं.’’ उस ने फिर से मुझे डायरी पकड़ा दी और बोली, ‘‘पढ़ोपढ़ो, मैं ने तो यों ही छीन ली थी.’’
डायरी के पन्ने पलटती हुई मैं फिर उसी पृष्ठ पर आ गई. ‘‘यह कविता बड़ी अच्छी है. किस ने लिखी,’’ मैं ने पूछा.
‘‘यह कविता…’’ निशा मुसकराई, ‘‘मेरे अमर भैया हैं न, उन्होंने ही लिखी है. पिछली दीवाली के दिन की बात है. वे चुपचाप बैठे कुछ लिख रहे थे. मैं पहुंच गई तो हड़बड़ा गए. दिखाया भी नहीं पर बाद में मैं ने चुपके से देख लिया.’’
‘‘किस पर लिखी है इतनी अच्छी कविता? कौन थी वह?’’ मैं ने कुरेदा.
‘‘थी कोई उन के कालेज में. जहां तक मुझे याद है, प्रिया नाम था उस का. भैया बहुत चाहते थे उसे. पहली दफा उन्होंने किसी को दिल से चाहा था, पर उस ने भैया का दिल तोड़ दिया. आज तक भैया उसे भूल नहीं सके हैं और शायद कभी न भूल पाएं. ऊपर से तो बहुत खुश लगते हैं, परिवार है, पत्नी है, बेटा है, पर अंदर ही अंदर एक दर्द हमेशा उन्हें सालता रहता है.’’
मैं स्तब्ध थी. तो क्या सचमुच अमर ने यह कविता मेरे लिए लिखी है. वह मुझे बेवफा समझता है? मैं ने उस के होंठों की मुसकान छीन ली.
हजारों सवाल हथौड़े की तरह मेरे दिमाग पर चोट कर रहे थे.
मुझ से निशा के घर और नहीं रुका गया. बहाना बना कर मैं बाहर आ गई. सड़क पर चलते वक्त भी बस, यही वाक्य जहर बन कर मेरे सीने को बेध रहा था… ‘बेवफा’… मैं बेवफा हूं…’
तभी भीगी पलकों के बीच मेरे होंठों पर हंसी खेल गई. जो भी हो, मेरा प्यार आज तक मेरे सीने में दहक रहा है. वह मुझ से इतना प्यार करता था तभी तो आज तक भूल नहीं सका है. बेवफा के रूप में ही सही, पर मैं अब भी उस के दिलोदिमाग में हूं. मेरी तड़प बेवजह नहीं थी. मेरी चाहत बेनाम नहीं. बेवफा बन कर ही सही अमर ने आज मेरे प्यार को पूर्ण कर दिया था.
‘आई लव यू अमर ऐंड आई नो… यू लव मी टू…’ मैं ने खुद से कहा और मुसकरा पड़ी.