अलमारी का ताला : आखिर क्या थी मां की इच्छा?

हर मांबाप का सपना होता है कि उन के बच्चे खूब पढ़ेंलिखें, अच्छी नौकरी पाएं. समीर ने बीए पास करने के साथ एक नौकरी भी ढूंढ़ ली ताकि वह अपनी आगे की पढ़ाई का खर्चा खुद उठा सके. उस की बहन रितु ने इस साल इंटर की परीक्षा दी थी. दोनों की आयु में 3 वर्ष का अंतर था. रितु 19 बरस की हुई थी और समीर 22 का हुआ था. मां हमेशा से सोचती आई थीं कि बेटे की शादी से पहले बेटी के हाथ पीले कर दें तो अच्छा है. मां की यह इच्छा जानने पर समीर ने मां को समझाया कि आजकल के समय में लड़की का पढ़ना उतना ही जरूरी है जितना लड़के का. सच तो यह है कि आजकल लड़के पढ़ीलिखी और नौकरी करती लड़की से शादी करना चाहते हैं. उस ने समझाया, ‘‘मैं अभी जो भी कमाता हूं वह मेरी और रितु की आगे की पढ़ाई के लिए काफी है. आप अभी रितु की शादी की चिंता न करें.’’ समीर ने रितु को कालेज में दाखिला दिलवा दिया और पढ़ाई में भी उस की मदद करता रहता. कठिनाई केवल एक बात की थी और वह थी रितु का जिद्दी स्वभाव. बचपन में तो ठीक था, भाई उस की हर बात मानता था पर अब बड़ी होने पर मां को उस का जिद्दी होना ठीक नहीं लगता क्योंकि वह हर बात, हर काम अपनी मरजी, अपने ढंग से करना चाहती थी.

पढ़ाई और नौकरी के चलते अब समीर ने बहुत अच्छी नौकरी ढूंढ़ ली थी. रितु का कालेज खत्म होते उस ने अपनी जानपहचान से रितु की नौकरी का जुगाड़ कर दिया था. मां ने जब दोबारा रितु की शादी की बात शुरू की तो समीर ने आश्वासन दिया कि अभी उसे नौकरी शुरू करने दें और वह अवश्य रितु के लिए योग्य वर ढूंढ़ने का प्रयास करेगा. इस के साथ ही उस ने मां को बताया कि वह अपने औफिस की एक लड़की को पसंद करता है और उस से जल्दी शादी भी करना चाहता है क्योंकि उस के मातापिता उस के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हैं. मां यह सब सुन घबरा गईं कि पति को कैसे यह बात बताई जाए. आज तक उन की बिरादरी में विवाह मातापिता द्वारा तय किए जाते रहे थे. समीर ने पिता को सारी बात खुद बताना ठीक समझा. लड़की की पिता को पूरी जानकारी दी. पर यह नहीं बताया कि मां को सारी बात पता है. पिता खुश हुए पर कहा, ‘‘अपना निर्णय वे कल बताएंगे.’’

अगले दिन जब पिता ने अपने कमरे से आवाज दी तो वहां पहुंच समीर ने मां को भी वहीं पाया. हैरानी की बात कि बिना लड़की को देखे, बिना उस के परिवार के बारे में जाने पिता ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम खुश तो हम खुश.’’ यह बात समीर ने बाद में जानी कि पिता के जानपहचान के एक औफिसर, जो उसी के औफिस में ही थे, से वे सब जानकारी ले चुके थे. एक समय इस औफिसर के भाई व समीर के पिता इकट्ठे पढ़े थे. औफिसर ने बहाने से लड़की को बुलाया था कुछ काम समझाने के लिए, कुछ देर काम के विषय में बातचीत चलती रही और समीर के पिता को लड़की का व्यवहार व विनम्रता भा गई थी. ‘उल्टे बांस बरेली को’, लड़की वालों के यहां से कुछ रिश्तेदार समीर के घर में बुलाए गए. उन की आवभगत व चायनाश्ते के साथ रिश्ते की बात पक्की की गई और बहन रितु ने लड्डुओं के साथ सब का मुंह मीठा कराया. हफ्ते के बाद ही छोटे पैमाने पर दोनों का विवाह संपन्न हो गया. जोरदार स्वागत के साथ समीर व पूनम का गृहप्रवेश हुआ. अगले दिन पूनम के मायके से 2 बड़े सूटकेस लिए उस का मौसेरा भाई आया. सूटकेसों में सास, ससुर, ननद व दामाद के लिए कुछ तोहफे, पूनम के लिए कुछ नए व कुछ पहले के पहने हुए कपड़े थे. एक हफ्ते की छुट्टी ले नवदंपती हनीमून के लिए रवाना हुए और वापस आते ही अगले दिन से दोनों काम पर जाने लगे. पूनम को थोड़ा समय तो लगा ससुराल में सब की दिनचर्या व स्वभाव जानने में पर अधिक कठिनाई नहीं हुई. शीघ्र ही उस ने घर के काम में हाथ बटाना शुरू कर दिया. समीर ने मोटरसाइकिल खरीद ली थी, दोनों काम पर इकट्ठे आतेजाते थे.

समीर ने घर में एक बड़ा परिवर्तन महसूस किया जो पूनम के आने से आया. उस के पिता, जो स्वभाव से कम बोलने वाले इंसान थे, अपने बच्चों की जानकारी अकसर अपनी पत्नी से लेते रहते थे और कुछ काम हो, कुछ चाहिए हो तो मां का नाम ले आवाज देते थे. अब कभीकभी पूनम को आवाज दे बता देते थे और पूनम भी झट ‘आई पापा’ कह हाजिर हो जाती थी. समीर ने देखा कि पूनम पापा से निसंकोच दफ्तर की बातें करती या उन की सलाह लेती जैसे सदा से वह इस घर में रही हो या उन की बेटी ही हो. समीर पिता के इतने करीब कभी नहीं आ पाया, सब बातें मां के द्वारा ही उन तक पहुंचाई जाती थीं. पूनम की देखादेखी उस ने भी हिम्मत की पापा के नजदीक जाने की, बात करने की और पाया कि वह बहुत ही सरल और प्रिय इंसान हैं. अब अकसर सब का मिलजुल कर बैठना होता था. बस, एक बदलाव भारी पड़ा. एक दिन जब वे दोनों काम से लौटे तो पाया कि पूनम की साडि़यां, कपड़े आदि बिस्तर पर बिखरे पड़े हैं. पूनम कपड़े तह कर वापस अलमारी में रख जब मां का हाथ बटाने रसोई में आई तो पूछा, ‘‘मां, आप कुछ ढूंढ़ रही थीं मेरे कमरे में.’’

‘‘नहीं तो, क्या हुआ?’’

पूनम ने जब बताया तो मां को समझते देर न लगी कि यह रितु का काम है. रितु जब काम से लौटी तो पूनम की साड़ी व ज्यूलरी पहने थी. मां ने जब उसे समझाने की कोशिश की तो वह साड़ी बदल, ज्यूलरी उतार गुस्से से भाभी के बैड पर पटक आई और कई दिन तक भाईभाभी से अनबोली रही. फिर एक सुबह जब पूनम तैयार हो साड़ी के साथ का मैचिंग नैकलैस ढूंढ़ रही थी तो देर होने के कारण समीर ने शोर मचा दिया और कई बार मोटरसाइकिल का हौर्न बजा दिया. पूनम जल्दी से पहुंची और देर लगने का कारण बताया. शाम को रितु ने नैकलैस उतार कर मां को थमाया पूनम को लौटाने के लिए. ‘हद हो गई, निकाला खुद और लौटाए मां,’ समीर के मुंह से निकला.

ऐसा जब एकदो बार और हुआ तो मां ने पूनम को अलमारी में ताला लगा कर रखने को कहा पर उस ने कहा कि वह ऐसा नहीं करना चाहती. तब मां ने समीर से कहा कि वह चाहती है कि रितु को चीज मांग कर लेने की आदत हो न कि हथियाने की. मां के समझाने पर समीर रोज औफिस जाते समय ताला लगा चाबी मां को थमा जाता. अब तो रितु का अनबोलापन क्रोध में बदल गया. इसी बीच, पूनम ने अपने मायके की रिश्तेदारी में एक अच्छे लड़के का रितु के साथ विवाह का सुझाव दिया. समीर, पूनम लड़के वालों के घर जा सब जानकारी ले आए और बाद में विचार कर उन्हें अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया ताकि वे सब भी उन का घर, रहनसहन देख लें और लड़कालड़की एकदूसरे से मिल लें. पूनम ने हलके पीले रंग की साड़ी और मैचिंग ज्यूलरी निकाल रितु को उस दिन पहनने को दी जो उस ने गुस्से में लेने से इनकार कर दिया. बाद में समीर के बहुत कहने पर पहन ली. रिश्ते की बात बन गई और शीघ्र शादी की तारीख भी तय हो गई. पूनम व समीर मां और पापा के साथ शादी की तैयारी में जुट गए. सबकुछ बहुत अच्छे से हो गया पर जिद्दी रितु विदाई के समय भाभी के गले नहीं मिली.

रितु के ससुराल में सब बहुत अच्छे थे. घर में सासससुर, रितु का पति विनीत और बहन रिचा, जिस ने इसी वर्ष ड्रैस डिजाइनिंग का कोर्स शुरू किया था, ही थे. रिचा भाभी का बहुत ध्यान रखती थी और मां का काम में हाथ बटाती थी. रितु ने न कोई काम मायके में किया था और न ही ससुराल में करने की सोच रही थी. एक दिन रिचा ने भाभी से कहा कि उस के कालेज में कुछ कार्यक्रम है और वह साड़ी पहन कर जाना चाहती है. उस ने बहुत विनम्र भाव से रितु से कोई भी साड़ी, जो ठीक लगे, मांगी. रितु ने साड़ी तो दे दी पर उसे यह सब अच्छा नहीं लगा. रिचा ने कार्यक्रम से लौट कर ठीक से साड़ी तह लगा भाभी को धन्यवाद सहित लौटा दी और बताया कि उस की सहेलियों को साड़ी बहुत पसंद आई. रितु को एकाएक ध्यान आया कि कैसे वह अपनी भाभी की चीजें इस्तेमाल कर कितनी लापरवाही से लौटाती थी. कहीं ननद फिर कोई चीज न मांग बैठे, इस इरादे से रितु ने अलमारी में ताला लगा दिया और चाबी छिपा कर रख ली.

एक दिन शाम जब रितु पति के साथ घूमने जाने के लिए तैयार होने के लिए अलमारी से साड़ी निकाल, फिर ताला लगाने लगी तो विनीत ने पूछा, ‘‘ताला क्यों?’’ जवाब मिला-वह किसी को अपनी चीजें इस्तेमाल करने के लिए नहीं देना चाहती. विनीत ने समझाया, ‘‘मम्मी उस की चीजें नहीं लेंगी.’’

रितु ने कहा, ‘‘रिचा तो मांग लेगी.’’ अगले हफ्ते रितु को एक सप्ताह के लिए मायके जाना था. उस ने सूटकेस तैयार कर अपनी अलमारी में ताला लगा दिया. सास को ये सब अच्छा नहीं लगा. सब तो घर के ही सदस्य हैं, बाहर का कोई इन के कमरे में जाता नहीं, पर वे चुप ही रहीं. मायके पहुंची तो मां ने ससुराल का हालचाल पूछा. रितु ने जब अलमारी में ताला लगाने वाली बात बताई तो मां ने सिर पकड़ लिया उस की मूर्खता पर. मां ने बताया कि यहां ताला पूनम ने नहीं बल्कि मां के कहने पर उस के भाई समीर ने लगाना शुरू किया था और चाबी हमेशा मां के पास रहती थी. ताला लगाने का कारण रितु का लापरवाही से भाभी की चीजों का बिना पूछे इस्तेमाल करना और फिर बिगाड़ कर लौटाना था. यह सब उस की आदतों को सुधारने के लिए किया गया था. वह तो सुधरी नहीं और फिर कितनी बड़ी नादानी कर आई वह ससुराल में अपनी अलमारी में ताला लगा कर. मां ने समझाया कि चीजों से कहीं ऊपर है एकदूसरे पर विश्वास, प्यार और नम्रता. ससुराल में अपनी जगह बनाने के लिए और प्यार पाने के लिए जरूरी है प्यार व मान देना. रितु की दोपहर तो सोच में डूबी पर शाम को जैसे ही भाईभाभी नौकरी से घर लौटे उस ने भाभी को गले लगाया. भाभी ने सोचा शायद काफी दिनों बाद आई है, इसलिए ऐसा हुआ पर वास्तविकता कुछ और थी.

रितु ने देखा यहां अलमारी में कोई ताला नहीं लगा हुआ, वह भी शीघ्र ससुराल वापस जा ताले को हटा मन का ताला खोलना चाहती है ताकि अपनी भूल को सुधार सके, सब की चहेती बन सके जैसे भाभी हैं यहां. एक हफ्ता मायके में रह उस ने बारीकी से हर बात को देखासमझा और जाना कि शादी के बाद ससुराल में सुख पाने का मूलमंत्र है सब को अपना समझना, बड़ों को आदरमान देना और जिम्मेदारियों को सहर्ष निभाना. इतना कठिन तो नहीं है ये सब. कितनी सहजता है भाभी की अपने ससुराल में, जैसे वह सब की और सब उस के हैं. मां के घुटनों में दर्द रहने लगा था. रितु ने देखा कि भाभी ने सब काम संभाल लिया था और रात को सोने से पहले रोज वे मां के घुटनों की मालिश कर देती थीं ताकि वे आराम से सो सकें. अब वही भाभी, जिस के लिए उस के मन में इतनी कटुता थी, उस की आदर्श बनती जा रही थीं.

एक दिन जब पूनम और समीर को औफिस से आने में देर हो गई तब जल्दी कपड़े बदल पूनम रसोई में पहुंची तो पाया रात का खाना तैयार था. मां से पता चला कि खाना आज रितु ने बनाया है, यह बात दूसरी थी कि सब निर्देश मां देती रही थीं. रितु को अच्छा लगा जब सब ने खाने की तारीफ की. पूनम ने औफिस से देर से आने का कारण बताया. वह और समीर बाजार गए थे. उन्होंने वे सब चीजें सब को दिखाईं जो रितु के ससुराल वालों के लिए खरीदी गई थीं. इस इतवार दामादजी रितु को लिवाने आ रहे थे. खुशी के आंसुओं के साथ रितु ने भाईभाभी को गले लगाया और धन्यवाद दिया. मां भी अपने आंसू रोक न सकीं बेटी में आए बदलाव को देख कर. रितु ससुराल लौटी एक नई उमंग के साथ, एक नए इरादे से जिस से वह सब को खुश रखने का प्रयत्न करेगी और सब का प्यार पाएगी, विशेषकर विनीत का.

रितु ने पाया कि उस की सास हर किसी से उस की तारीफ करती हैं, ननद उस की हर काम में सहायता करती है और कभीकभी प्यार से ‘भाभीजान’ बुलाती है, ससुर फूले नहीं समाते कि घर में अच्छी बहू आई और विनीत तो रितु पर प्यार लुटाता नहीं थकता. रितु बहुत खुश थी कि जैसे उस ने बहुत बड़ा किला फतह कर लिया हो एक छोटे से हथियार से, ‘प्यार का हथियार’.

मायूस मुसकान: भाग 2- आजिज का क्या था फैसला

विवाह के साथ ही शहर बदल गया. पापा का परिवार थोड़ा पुराने खयालों का था, सो मां कभी उस में सामंजस्य ही नहीं बैठा पाईं. शायद अंदर ही अंदर घुटती रही, पापा से कभी खुल कर बात ही नहीं की और पापा ने भी कभी यह नहीं जानना चाहा कि मां क्या चाहती हैं. बस अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारियां मां पर डाल दीं. कहने को तो संयुक्त परिवार, किंतु वहां सब जैसे एकदूसरे के दुश्मन, सभी जैसे अपनाअपना फायदा देख रहे थे.’’

‘‘हां तो इस में गलती तुम्हारे पापा की भी तो है, तुम मां को ही क्यों दोषी बता रही हो?’’ ऐशा ने उग्र स्वर में पूछा.

‘‘तुम्हारा सवाल भी ठीक है. कहते हैं न अन्याय सहने वाला अन्याय करने वाले से भी ज्यादा दोषी होता है इसीलिए.

‘‘मां कभी अपने मन की न कर पाईं. मन ही मन जलती रहीं और पापा को कोसती रहीं. खुल कर कभी बोल ही न पाईं, किंतु इन सब में मेरा व मेरे भाई का क्या दोष?

‘‘हमें इतना मारतीं जैसे सारी गलती हमारी ही हो. पूरे परिवार का गुस्सा हम दोनों भाइबहिनों पर उतारतीं.’’

‘‘तो तुम्हारे पापा ने कभी तुम्हारे बचाव के लिए कुछ नहीं किया?’’

‘‘किसे फुरसत और फिक्र थी हमारी लिए जो कुछ करते? उन्हें तो सिर्फ  अपनेअपने ईगो सैटिस्फाई करने होते थे. यह दिखाना होता था कि वे ही सर्वश्रेष्ठ हैं, मां सोचती कि इतनी पढ़ीलिखी हो कर भी गृहस्थी की चक्की में पिस रही हैं वे. पापा सोचते कि घर बैठ कर करती ही क्या है, पढ़ीलिखी है पर व्यवहार करना भी नहीं आता. एकदूसरे के लिए उन की आपसी खीज ने हमारे बचपन को नर्क बना दिया था. बच्चे तो आपसी प्रेम की पैदाइश और पहचान होते हैं, लेकिन उन के आपसी   झगड़ों ने हमारी मुसकराहट छीन ली थी.

‘‘नहीं निभती तो छोड़ क्यों न दिया था उस परिवार को मां ने या पापा से अलग हो जातीं. स्वयं कमा कर हम 2 बच्चों को अच्छी परवरिश तो दे ही सकती थीं.’’

‘‘इतना आसान नहीं होता मुसकान ये सब, जितना तुम सोच रही हो,’’ ऐशा ने कहा, ‘‘तलाक लेना या अपने पति से अलग हो जाना बहुत जटिल प्रक्रिया होती है, लोग क्या कहेंगे, कहां रहूंगी, क्या मातापिता पुन: स्वीकार करेंगे? न जाने कितने सवाल होते हैं एक महिला के समक्ष, सिर्फ रुपए कमा लेना ही सबकुछ नहीं होता मुसकान. हमारी संस्कृति परिवार से इस अलगाव को मान्यता नहीं देती और वह भी एक पीढ़ी पहले?’’

‘‘और बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, उन के साथ मारपिटाई, हर जगह उन्हें मुहरा बना कर पतिपत्नी का एकदूसरे से बदला लेना उचित है? किंतु उन बच्चों को इन सब से बचाने वाला कोई नहीं?

‘‘शायद तुम ने ऐसा माहौल न देखा हो ऐशा, किंतु मैं ने जब से होश संभाला मां की मार और ताने देखे और सहे. जब कभी वे पापा या परिवार के किसी भी सदस्य से गुस्सा होतीं, उन्हें पलट कर कुछ न कहतीं, बलि का बकरा मैं और मेरा भाई बन जाते. कभी बेलन से तो कभी चप्पल जो मां के हाथ में आता, हम पिट जाते. मां अपने ससुराल वालों से जुड़े सब ताने हमें देतीं,’’ जैसे औलाद किस की हो तुम, बड़ा ही जिद्दी परिवार है, तो तू कैसे सुधरी रह सकती है, घर का असर तो आएगा ही न. बाप पर गया है, उस ने किसी की सुनी जो तू सुनेगा.’’

‘‘मैं कहती हूं बच्चे अपने मांबाप पर न जाएं तो और किस पर जाएंगे, आसपास के वातावरण और जींस का असर तो आएगा ही न उन पर, पर इस में बच्चों का दोष क्या है?’’

‘‘क्यों नहीं स्वीकार पाते ये अपने ही बच्चों को? क्यों ढूंढ़ लेना चाहते हैं हम ही में सारी खूबियां, जबकि उन्होंने कभी घर का वातावरण और आपसी व्यवहार अच्छा रखने की कोशिश ही न की हो,’’ मुसकान के चेहरे पर न जाने कितने प्रश्न चिह्न अंकित हो गए थे.

‘‘ऐसा थोड़े न होता है मुसकान. हर इंसान खुश ही रहना चाहता है, कौन जानबू  झ कर अपने घर में आग लगाएगा भला? पर कई बार परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते. तुम्हारी मां का हाल भी ऐसा ही रहा होगा, क्या करतीं बेचारी? पूरे परिवार से कैसे सामना करतीं, जबकि तुम्हारे पापा का कोई सहयोग न था.

मैं मानती हूं तुम्हारी बात सही है, क्या करती बेचारी वह? पर क्या हम दोनों बच्चों के  साथ बुरा व्यवहार कर के समस्या हल हो गयी?

‘‘वे पढ़ीलिखी थी इतना तो सोचना चाहिए था कि वे हमें क्या जिंदगी दे रही हैं? हम तो उन्हें प्यार करते थे, था ही कौन हमारा उन के सिवा इस दुनिया में.

‘‘एक बार तो मां को चाचा ने कुछ भलाबुरा कहा और बाहर चले गए, मां ने पापा को सब बताया तो पापा ने भी कह दिया कि मैं तंग आ गया हूं रोजरोज की शिकायतों से. तुम या तो साथ रह लो या मेरे घर से निकल जाओ. मां ने मेरे भाई को उस दिन खूब मारा, उस के हाथ में स्टिक थी और भाई डाइनिंग टेबल के चारों ओर डर के मारे चक्कर लगा रहा था. मां की गुस्से में भरी सूरत, मैं शायद 6 वर्ष की थी उस वक्त. मैं डर के मारे चीख रही थी. बस इसी तरह बड़े हुए हम.

‘‘मगर उस समय क्या तुम तीनों घर में अकेले थे? तुम्हारे दादादादी कहा थे मुस्कान?’’

‘‘सब वहीं थे, लेकिन किसी को हम से मतलब नहीं था. मां पर उन सब का दबाव तो था ही ऊपर से पिताजी का भी और किसी पर मां का बस तो चलता नहीं था सो ले दे कर सभी का गुस्सा हम पर उतार देतीं. भाई को पिटते देख कर मैं सहम जाती. जब कभी मां मु  झे कुछ जोर से बोलतीं, मैं उन के सामने हाथ जोड़ लेती ताकि किसी भी तरह से पिटाई से बच सकूं.

‘‘फिर भी मां को हम पर तरस न आता. मु  झे हाथ जोड़े देख कर और जोर से चीखतीं और कहतीं क्यों जोड़ती है हाथ, यह दुनिया तु  झे भी नहीं छोड़ने वाली, सारी जिंदगी हाथ ही जोड़ने पड़ेंगे सब के आगे.’’

‘‘फिर कभी प्यार नहीं करती थी तुम्हारी मां?’’ ऐशा ने उस की आंखों में   झांक कर पूछा.

‘‘जब मारपीट लेतीं, गुस्सा शांत होता तो आइस क्यूब ले कर मेरे चेहरे व पीठ पर उन की मार से पड़े निशानों पर लगातीं और खूब रोतीं. मु  झे सौरी भी बोलतीं, किंतु फिर जब कभी गुस्सा आता, वही सब करतीं,’’ मुसकान की आंखें भर आई थीं. उन के चेहरे की उदासी उन के गुलाबी होंठों को बदरंग कर रही थी.

‘‘इस का मतलब वह तुम्हें प्यार तो करती थी तभी तो स्वयं भी रोती थी, किंतु वह भी तो इंसान है जिसे इंसान सम  झा ही नहीं गया तो उस से इंसानियत की उम्मीद भी क्यों?’’

‘‘हो सकता है तुम सही हो, किंतु वह अपने अंदर की कुढ़न को रोक न पातीं और आग में सुलगती अपने होश खो बैठती थीं. हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार करती थीं. कारण कोई भी हो, किंतु मैं साधारण इंसान भी न बन पाई. बस मां के हुक्म की गुलाम बनी रही. हर वक्त यह डर सताता कि मां नाराज न हो जाएं वरना पीटेंगी. मैं अपने मन की कब करती? अपनी इच्छाअनिच्छा किस को बताती?’’

नथनी: भाग 3- क्या खत्म हुई जेनी की सेरोगेट मदर की तलाश

50 हजार रुपए के लिए दोनों मियांबीवी तमाम योजनाएं बना ही रहे थे कि तभी किसी साथी ने कमल को आवाज लगाई. कमल बाहर गया तो उस ने साथ चलने को कहा. कमल ने बिना कुछ सोचेसमझे उस के साथ जाने से मना कर दिया और साथ में यह भी साफ कर दिया कि अब वह अपने पैसों से नया धंधा शुरू करने जा रहा है.

इस बात की भनक लगते ही उस के साथियों में खलबली मच गई कि कहीं कमल उन लोगों के बारे में पुलिस को न बतला दे. वे लोग उसे धमकी दे कर चले गए. उस ने सब से पहले 40 हजार रुपए की एक जर्मन पिस्तौल खरीद डाली और 5 हजार की एक बढि़या सी सोने की नथनी.

यह बात जब उस के गैंग वालों को पता चली तो उन्होंने खतरे को भांपते हुए कमल से मिल कर यह आश्वासन लेना चाहा कि वह धंधा छोड़ दे तो कोई बात नहीं, पर उन के राज किसी और को न बताए, वरना अंजाम सभी के लिए खराब होगा. कमल राजी हो गया. चलतेचलते किसी ने पलट कर यह कह दिया, ‘‘तुझ को अपनी बीवी सलमा का वास्ता है.’’

‘‘तुम सब को मालूम है कि मैं सलमा को कितना प्यार करता हूं. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि मैं तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगा, पर यह याद रखना कि तुम भी मेरा राज कभी किसी से नहीं खोलोगे,’’ कहते हुए कमल ने खुशीखुशी सब को विदा कर दिया पर पिस्तौल तो वह खरीद ही चुका था.

सलमा ने सोचा था कि उस पैसे से वह कमल को कोई धंधा करा देगी, पर यह सब जान कर उस को एक सदमा लगा और वह चुप रह गई.

सलमा अब उस नर्सिंग होम के संरक्षण में आ चुकी थी. उस के पेट में जेनी का बच्चा आ चुका था. उस के खानेपीने व दवाओं का बढि़या इंतजाम हो गया था. एक नर्स उस की दोनों बेटियों की देखरेख के लिए भी रख दी गई थी. पर कमल नहीं बदला.

5वें महीने जेनी ने खुशी से झूमते हुए डेविड को बताया, ‘‘मैं ने सलमा के पेट में अपने बच्चे के दिल की धड़कनें सुन ली हैं. मैं बता नहीं सकती, मैं कैसा महसूस कर रही हूं.’’

यह सुन कर डेविड से भी नहीं रहा गया. उन्होंने भी उन धड़कनों को सुनने की इच्छा जाहिर कर दी.

जेनी ने सलमा से पूछा, ‘‘अगर तुम्हें एतराज न हो तो डेविड भी अपने बच्चे के दिल की धड़कनें सुन लें.’’

सलमा पसोपेश में पड़ गई कि कहीं उस के इजाजत दे देने पर कमल बुरा न मान जाए. पर जेनी और डेविड को रोतेगिड़गिड़ाते देख वह भावुक हो उठी. उसे वह दिन याद आ गया जब कमल ने भी पहली बार अपने बच्चे की धड़कनें सुनने के लिए उस के पेट पर अपने कान लगा दिए थे. काफी देर इंतजार के बाद भी जब कमल नहीं आया तो वे दोनों काफी उदास हो गए और प्रस्ताव रखा कि इस इजाजत के वे 25 हजार रुपए और देंगे. सलमा लालच की गिरफ्त में आ गई और इजाजत दे दी.

सलमा की खूबसूरती देख डेविड दंग रह गए. फिर उन्होंने जैसे ही सलमा के पेट पर कान लगाए वैसे ही वहां कमल आ पहुंचा और यह नजारा देख कर वह आगबबूला हो गया. उस के मुंह से बरबस निकल पड़ा, ‘‘तो यह राज है इतने पैसे मिलने का. जो अपने मांबाप की न हुई, आदमी की क्या होगी?’’

मारे गुस्से के कमल का हाथ भरी पिस्तौल तक पहुंच गया और उस ने एक गोली डेविड पर दाग दी. डेविड को गिरते देख, कमल भाग लिया. गोली की आवाज सुन कर बगल के कमरे में बैठी नर्स कमरे की तरफ दौड़ी और उन्हें संभालने की कोशिश की. नर्सिंग होम को फोन किया गया. डेविड को वहां पहुंचाया गया.

सभी की गोटियां एकदूसरे से ऐसी फंसी थीं कि कोई भी कुछ करने से पहले काफी सोचसमझ लेना चाहता था. पुलिस केस होने पर कमल फंस रहा था, जिस का सीधा असर सलमा पर पड़ता और घुमाफिरा कर उस का असर होने वाले बच्चे पर पड़ता.

जेनी को वह शर्त याद आई कि सलमा को सिर्फ जेनी ही देखेगी, डेविड नहीं. यों पुलिस रिपोर्ट में डेविड भी फंस रहे थे. नर्सिंग होम वालों को इतना पैसा मिला कि उन्होंने इलाज तो चुपचाप शुरू कर दिया था पर फिर भी घबराए हुए थे. डेविड को खतरे से बाहर बताए जाने के बाद ही सारे लोगों की सांस में सांस आई.

सारा खुशी का माहौल गमगीन और तनावपूर्ण हो चुका था. कमल के आरोप पर सलमा तड़प उठी थी. उस ने ही खामोशी तोड़ी, ‘‘मुझे आप लोगों से कोई पैसेवैसे नहीं चाहिए, मुझे मेरा आदमी वापस चाहिए. मैं तो इस के लिए तैयार ही नहीं हो रही थी,’’ कहतेकहते वह रो पड़ी.

इस पर जेनी ने डेविड की आंखों में कुछ झांका और फिर सलमा से कहा, ‘‘डेविड कमल का दर्द समझते हैं. उन के दिल में बदले की कोई भावना नहीं है. कमल को किसी भी कीमत पर वापस लाया जाएगा.’’

तभी नर्सिंग होम से एक फोन आया, ‘‘देखिए, यह मामला कहीं से लीक हो चुका है, पुलिस केस होने जा रहा है, सतर्क रहें.’’

इस बात से सामान्य होता वातावरण फिर गरम हो उठा. खैर, जेनी की आंखों में काफी संतोष दिख रहा था, शायद वह हिंदुस्तान के बारे में सबकुछ जान गई थी कि यहां पैसे से सबकुछ मुमकिन हो जाता है. लिहाजा, सलमा को धीरज बंधाया और खुद अपने डाक्टर के साथ नर्सिंग होम जा पहुंची.

क ाफी पैसे खर्च करने के बावजूद मामला रफादफा करने में कई दिन लग गए पर जेनी को इस से बड़ा धक्का तब लगा जब उसे यह पता चला कि कमल चोरी की पिस्तौल खरीदने के मामले में कहीं पकड़ा जा चुका था. यह सभी के लिए बहुत खराब खबर थी. फिर भी जेनी ने सलमा को धीरज बंधाया कि उस के पास पैसों की कोई कमी नहीं है. वह किसी भी हद तक और कितना भी पैसा खर्च करने को तैयार था.

लेदे कर वह भी मामला निबटाया गया, तब जा कर सलमा सामान्य हो पाई. कमल की जमानत की काररवाई पूरी की गई. उसे जमानत पर छुड़वा कर लाया गया पर इस दौरान उसे पुलिस वालों को अपने पुराने साथियों के नाम बताने पड़े. उस के जमीर को इस से काफी धक्का लगा था. उसे एक बार तो यह लगा जैसे वह सलमा को खोने जा रहा हो.

लाख न चाहते हुए सलमा को इस कांड का काफी सदमा लगा था पर वह और डेविड दोनों ही अच्छे इलाज की बदौलत तेजी से सुधार की ओर अग्रसर थे. इस से भी बड़ी तसल्ली की बात यह थी कि कमल ने डेविड को अपनी मनोस्थिति बताते हुए माफी मांग ली थी.

समय कितनी तेजी से बीता, पता ही नहीं चला. जेनी और डेविड को, जिस सुखद घड़ी का बेसब्री से इंतजार था, वह आ ही गई. पर सलमा के लिए यह एक बड़े दुख का सबब था, क्योंकि उसे जो सुविधाएं, डेविड ने इस दौरान मुहैया कराई थीं, सब खत्म होने जा रही थीं. कमल पर चोरी की पिस्तौल के अलावा भी 2 मुकदमे दायर हो चुके थे. वह फिर बहुत उदास रहने लगी थी. भविष्य में आने वाली मुसीबतों के बारे में सोचसोच कर वह सहम सी उठती थी. उस का दिल बैठा जाता था.

अत: तमाम मेडिकल सुविधाओं के बावजूद आखिरी दिनों में उस का ब्लडप्रेशर काफी नीचे रहने लगा. प्रसव के समय वह काफी घबराई हुई सी लगी. बच्चे को जन्म देने के 12 घंटे बाद ही उस ने दम तोड़ दिया.

जेनी और डेविड जो एक तरफ बेहद खुश थे, दूसरी तरफ सलमा की मौत से इतने दुखी हुए कि अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए, बरबस रो पड़े. उन का मन था कि बच्चे की पहले 1 माह की परवरिश के लिए उसे सलमा के साथ ही रहने दिया जाता, पर नर्स ने उन्हें यह कह कर तसल्ली दिलानी चाही कि फिर मोह के कारण सलमा से उसे छुड़ाना अधिक दुखद हो जाता.

नर्सिंग होम से कमल जब सलमा का निष्प्राण शरीर ले कर निकला तो उस के परिवार के अलावा सलमा के परिवार के लोग भी आ चुके थे. पिता के कहने पर लाश को कमल अपने पिता के घर ले गया. इस दुखद और अकाल मौत पर जो सुनता दौड़ पड़ता. अंतिम संस्कार के लिए श्मशान तक जाने वाली विकराल भीड़ में जेनी और डेविड सब से आगे थे. कमल की छोटी बेटी तो नर्सिंग होम में नर्स के ही पास थी. बड़ी बेटी को कमल अपने सीने से चिपकाए दहाड़ें मारमार कर रोए जा रहा था.

जिन धर्म के ठेकेदारों ने इन की शादी के चक्कर में पड़ना उचित नहीं समझा था वे इस भीड़ को कैश कराने की गरज से वहां पहुंच चुके थे. सलमा की लाश पर राजनीति शुरू कर दी कि वह मुसलमान थी, इसलिए दफनाया जाना चाहिए. विरोधियों का कहना था कि वह हिंदू से शादी कर के हिंदू हो चुकी थी इसलिए जलाया जाना चाहिए. एक मत और उभर रहा था कि ईसाई बच्चे को जन्म देने के कारण उस को ईसाइयों के रीतिरिवाज से दफनाया जाए.

आखिरी फैसला यह हुआ कि हिंदू रीति ही अपनाई जाए. इस फैसले पर हिंदू पंडों की बाछें खिल उठीं. भीड़ देख कर उन के भाव बढ़ गए. मुखाग्नि के वक्त बोले, ‘‘बिना स्वर्ण दान के आत्मा नहीं तरती है.’’ कमल ने वह नथनी जो सलमा को देने के लिए बहुत संभाल कर रखी हुई थी, आखिरकार उसे दे दी.

बौयफ्रैंड को बेटा सौंपना

मुंबई में एक 42 साल की मां को गिरफ्तार किया गया है क्योंकि उस के 13 वर्ष के बेटे ने शिकायत की कि उस की मां और उन का बौयफ्रैंड उसे सैक्सुअली एब्यूज करते थे और इस दौरान उसे बुरी तरह टौर्चर भी कर रहे थे. मां अपने पति से अलग रह रही थी और लड़के का पिता मुंबई से पूना चला गया. बेटे की शिकायत पर वह मुंबई आया और पुलिस से कंपलेंट की.

इस कहानी में बहुत से पेंच लगते हैं पर सैक्स के उन्माद में क्या नहीं हो सकता, यह भी जानकार जानते हैं. बौयफ्रैंड को खुश करने के लिए 42 वर्षीया औरत, जिस का पति छोड़ गया हो, अगर बेटे को बौयफ्रैंड के हवाले कर दे तो कोई बड़ी बात नहीं. 13 साल का कोई बेटा सिर्फ बहकावे में आ कर मां की शिकायत करे, यह कम संभव है. वह मां के बौयफ्रैंड की तो ईर्ष्या में शिकायत कर सकता है पर फिर भी मां को बचाने की ही कोशिश करेगा.

मां का बेटोंबेटियों को बलिदान कर देने की कहानियां कम नहीं हैं. सैक्स बाजार में आमतौर पर औरतें नशे, सैक्स, पैसे की कमी, कर्ज, बीमारी आदि से इस कदर परेशान हो जाती हैं कि वे बेटियों को उसी बाजार में धकेल देती हैं और बेटों को भी अनैतिक काम करनेकरवाने को प्रेरित करती हैं.

मुंबई पुलिस का कहना है कि मुंबई में हर रोज औसतन 3 लड़कों की शिकायत आती है कि उन के साथ सैक्सुअल एब्यूज हुआ और करने वाला निकट संबंधी या परिचित ही था. इन मामलों में मांएं आमतौर पर चुप रह जाती हैं क्योंकि वे सिर्फ बेटे की खातिर घर का बैलेंस बिगड़ने से डरती हैं. वैसे भी, हमारे यहां औरतों की सुनता कौन है.

मां को आज अपने बचाव की चिंता ज्यादा होने लगी है क्योंकि अगर पति या बौयफ्रैंड छोड़ गया तो उस के पास कोई ढंग का सहारा नहीं होता. मुंबई जैसे शहर में हजारों युवतियां मांबाप को सैकड़ों मील दूर गांवकसबेशहर में छोड़ कर आती हैं. उन्हें जो भी सहारा मिलता है, उस पर चाहे जितनी ग्रीस लगी हो, चाहे जितने कांटे हों, उसे पकड़े रहना चाहती हैं और अनचाहे पैदा हुए बच्चों को बलिदान करने से कतराती नही हैं.

यह अफसोस की बात है कि ऐसे मामलों में जानकारी सतही ही रहती है. ये औरतें खुल कर सामने नहीं आतीं और इन के मन में क्या होता है, यह कम ही पता चलता है. सामाजिक व धार्मिक दबाव कितना होता है, यह आम लोगों को पता ही नहीं चलता.

चिल्ली पनीर रेसिपी

सामग्री:-

– पनीर (250 ग्राम)

– प्याज (1 कटा हुआ )

– हरा मिर्च  (4 काट ले)

– शिमला मिर्च (1 काट ले)

– हरा प्याज (2 काट ले )

– अदरक लहसुन (बारीक़ कटी हुई)

– अदरक लहसुन पेस्ट (2 टेबलस्पून)

– मैदा(50 ग्राम)

– मक्का का आटा (2 चम्मच)

– मिर्च सौस (1 चम्मच)

–  टोमैटो सौस (1 चम्मच)

– सोया सौस (1 चम्मच)

– काली मिर्च पाउडर (1/2 चम्मच)

– तेल (आवश्यकतानुसार)

– नमक(स्वादानुसार)

– हल्दी

– गरम मशाल/सब्जी मसाला(पर्याप्त मात्रा में)

बनाने की विधि :-

– सबसे पहले एक कटोरे में मैदा, मक्के का आटा, मिर्च और नमक डालकर उसमे थोड़ा सा पानी डालकर उसे मिलाये.

– फिर पनीर को उसमे डाल दें.

– पनीर को उस उसमे जाने के बाद पनीर वो इसके जैसा गढ़ा दिखाना चाहिए.

– अब गैस पे पैन रखे और उसमे तेल गरम होने के लिए डाल दें.

– तेल गरम होने के बाद चम्मच के सहारे पनीर को डाल दें और जो भी पनीर को छानने के लिए दाल दें.

– और हो भी ग्रेवी बच उसे कटोरे में ही छोड़ दें (उसे हम लास्ट में इस्तेमाल कर लेंगे)

– अब इसे माध्यम आंच पे छान लें.

– फिर उसी तेल में अदरक लहसुन बारीक़, प्याज, मिर्च, और शिमला मिर्च को डाल के भुनें.

– थोड़ी देर भुनने के बाद उसमे सोया सौस, टोमेटो सौस, ग्रीन चिल्ली सौस,मिर्ची पाउडर, अदरक लहसुन   पेस्ट डाल दें और भुनें.

– थोड़ी देर भुनने के बाद उसमे थोड़ा सा पानी डाले और वो जो पनीर का ग्रेवी बचा था उसे डाल दे और   थोड़ी  देर पकाये.

– फिर उसमे पनीर डाल दें और फिर उसे थोड़ी डेडर के लिए पकाये.

– फिर गैस को बंद कर दे और और ऊपर से थोड़ा सा वो हरा प्याज डाल दे.

– और अब आपकी पनीर चिली तैयार है इसे किसी करोडे में निकल ले और उसे गरमा -गरम परोसें.

 

होमकेयर टिप्स: गुलाब के फूलों की ऐसे करें देखभाल

गुलाब के फूलों से आपके घर की खूबसूरती में चार चांद लग जाती है. जी हां ये फूल आपके घर की खूबसूरती को  बढ़ाते है.

गुलाब के फूल का इस्तेमाल आप कई सारे कामों में करती हैं. जैसे- घर सजाने में, खुशबू के लिए आदि कामों में. ऐसे में आपको इस पौधें की केयर भी उसी तरह करनी चाहिए जैसे आप इनका इस्तेमाल करती हैं,  आइए बताते हैं, आप कैसे इनका देखभाल कर सकती हैं.

1.गुलाब के पौधे बहुत ही नाजुक होते हैं. उन्हें सबसे ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. अगर आपके घर में गुलाब के पौधे के पास गंदगी या सूखी पत्तियां हो, तो उसे वहां से हटा दें इससे गुलाब के पौधें को संक्रमण सबसे ज्यादा लगता है.

2.गुलाब के पौधे को गमले में लगाएं जिससे आप उसे घर के अंदर रख सकें. आप चाहें तो घर के अंदर भी इनडोर गार्डनिंग कर सकते हैं और वैसे आजकल इंडोर प्लांट्स का फैशन अधिक है.

3. गमले में पौधा लगाते समय ध्यान दें कि पानी की निकासी का उचित प्रबंध होना चाहिए. गमले के छेद से अतिरिक्त पानी का बाहर निकलना जरूरी है.

4. गुलाब को कभी भी ओस में खुला न छोडें और सर्द हवाओं से इनका बचाव करें. सर्दियों के दिन में रात के वक्त ठंडी हवाएं चलने पर गुलाब के पौधे को किसी पौलीथीन के थैले से ढक दें. जिससे गुलाब को बचया जा सके.

60 सेकेंड के इस एक्सरसाइज से कम करिए पेट की चर्बी

पेट पर आई चर्बी को कम करना बेहद मुश्किल काम होता है. ज्यादातर लोगों के पेट से ही मोटापे की शुरुआत होती है. पर लाख कोशिशों के बाद भी ये चर्बी कम नहीं होती. इस खबर में हम आपको एक ऐसी एक्सर्साइज बताएंगे जिससे आप आसानी से पेट की चर्बी कम कर सकेंगी. इसका नाम है प्लैंक.

कैलोरी बर्न करने के लिए एक कामगर एक्सरसाइज है प्लैंक. आपको बता दें कि इसे करने में शरीर की बहुत सी मांसपेशियां एक साथ एक्टिव हो जाती हैं, इसका असर पुरे शरीर पर होता है. देखने में बेहद आसान सा दिखने वाला ये एक्सरसाइज करने में काफी मुश्किल होता है. इसे करने के लिए सबसे अधिक जरूरी होता है कि आप संतुलन ना छोड़ें. जितना ज्यादा समय आप खुद को प्लैंक के पोजिशन में रख सकेंगी आपकी सेहत के लिए अच्छा होगा. एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर आप 60 सेकेंड तक प्लैंक 3 बार करते हैं तो इससे बेली फैट कम करने में मदद मिलती है.

एक्सपर्ट्स की माने तो 60 सेकेंड तक प्लैंक होल्ड करना सेहत के लिए काफी असरदार होता है. शुरुआत में आपके लिए 60 सेकेंड तक प्लैंक करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है लेकिन धीरे-धीरे अभ्यास के साथ आप इस एक्सरसाइज को कर सकेंगे.

प्लैंक को करते वक्त ये ध्यान दें कि आपकी पोजिशन सही रहे. आपका शरीर बिल्कुल सीधा होना चाहिए. अगर आपके पोजिशन में अंतर है तो इसका असर नहीं होगा.

अब बनाइये अपने लिपिस्टि‍क को लौंग लास्टिंग

लिपिस्‍टिक लगाना भी अपने आप में एक कला है. लिपिस्टिक को होठों पर लगाना कोई कठिन कार्य नहीं है, पर इसे लगाते समय कई तरह की सावधानियां बरतने की जरूरत होती है, साथ ही इसके लिए थोड़ी खास तैयारी भी करनी पड़ती है. होठों को खूबसूरत और आकर्षक दिखाने के लिए जरूरत है कि हमारे होठ फटे न हो और साथ ही जिस लिपिस्टिक को हम इस्तेमाल कर रहें हैं, वह किसी अच्छी कंपनी का हो. ध्यान रखें कि लोकल लिपिस्टिक का इस्तेमाल करने से बचें, क्योंकि इसमें इस्तेमाल होने वाले सस्ते कैमिकल आपके होठों की शोभा को बिगाड़ सकते हैं.

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कई बार ऐसा होता है कि हम किसी पार्टी में जाने के लिए घर से अच्छे से तैयार होकर और होठों पर एक अच्छी सी लिपिस्टिक लगाकर निकलते हैं पर पार्टी में पहुंचते पहुंचते यह हल्की हो जाती है.

अगर आप के साथ भी ऐसा ही होता हो तो अब आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है क्योंकि हम यहां कुछ ऐसे टिप्स आपको दे रहे हैं, जिन्हें अपनाकर आप लिपिस्टिक को लंबे समय तक के लिए अपने होठों पर लगाकर रख सकती हैं.

सबसे पहले आपको इस बात के लिए सुनिश्चित होना होगा कि आपके होठ पर कोई मृत त्वचा तो नहीं है. अगर ऐसा है तो इसे हटाने के लिए किसी अच्छे प्रोडक्ट का इस्तेमाल कर पहले होठों पर स्क्रब करें. अब इसके बाद ऐसे लिप बाम का इस्तेमाल करें जिसमें तैल न हो.

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लिपिस्टिक लगाने से पहले अपने होठों के ऊपर थोड़ा सा क्लिंजर लगा कर साफ करें और बाद में फाउंडेशन का प्रयोग करें. ये आपके लिपिस्टिक के सही रंग को निखारने में मदद करती है.

सीधा लिपिस्टिक का उपयोग करने के बजाय इसे लगाने के लिए हमेशा एक ब्रश का इस्तेमाल करें.

अगर आप किसी बोल्ड या गहरे रंग का लिपिस्टिक इस्तेमाल करना चाहती हैं, तो कंसीलर की मदद से अपने होठों पर आउटलाइन करें. ऐसा करने से आपके लिपिस्टिक का रंग बाहर की तरफ नहीं फैलेगा.

लिप लाइनर का भी इस्तेमाल करें. यह लिपिस्टिक की अपेक्षा थोड़ा ड्राय होता है, जो लंबे समय तक आपकी लिपिस्टिक को बनाये रखने में मदद करता है.

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अब इन लाइन्स के अंदर लिपिस्टिक को लगाएं. लिपिस्टिक लगाने के बाद एक टिश्यु लेकर इसे अपने होठों के ऊपर रखें और इसके ऊपर कोई मेकअप पाउडर लगा लें. ये तरीका अक्सर फैशन शो में मौडल्स अपनाया करती हैं. ये तरीका आपके लिपिस्टिक के रंग को लंबे समय के लिए सेट करता है.

अब इसके ऊपर थोड़ा और लिपिस्टिक लगा लें. इसके बाद कोई अच्छा सा लिप-ग्लौस लगाएं और इसे फिनिशिंग टच दें.

तपस्या: अचानक क्यों हुई थी मंजरी से समीर की शादी

सागर विश्वविद्यालय का एम.ए. फाइनल का आखिरी परचा दे कर मंजरी हाल से बाहर आई. वह यह परीक्षा प्राइवेट छात्रा के रूप में दे रही थी. 6 महीने पहले एक दुर्घटना में उस के मातापिता का देहांत हो गया था और उस के बाद वह अपने चाचा के यहां रहने लगी थी. हाल से बाहर आते ही उसे अपनी पुरानी सहेली सीमा दिखाई दी. दोनों बड़े प्यार से मिलीं.

‘‘मंजरी, आज कितना हलका लग रहा है. है न? तेरे परचे कैसे हुए?’’

‘‘अच्छे हुए, तेरे कैसे हुए?’’

‘‘पास तो खैर हो जाऊंगी. तेरे जैसी होशियार तो हूं नहीं कि प्रथम श्रेणी की उम्मीद करूं. चल, मंजरी, छात्रावास में चल कर जी भर कर बातें करेंगे.’’

‘‘नहीं, सीमा, मुझे जल्दी जाना है. यहीं पेड़ की छांव में बैठ कर बातें करते हैं.’’

दोनों छांव में बैठ गईं.

‘‘मंजरी, तुम्हारे मातापिता की मृत्यु इतनी अकस्मात हो गई कि आज भी सच नहीं लगता. चाचाजी के यहां तू खुश तो है न?’’

मंजरी की आंखों में आंसू छलक आए. वह आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘चाचाजी के यहां सब लोग बड़े अच्छे स्वभाव के हैं. वहां पैसे की कोई कमी नहीं है. सब ठाटबाट से आधुनिक ढंग से रहते हैं. लेकिन सीमा, मुझे वहां रहना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘क्यों भला?’’

‘‘देखो, सीमा, मेरे पिताजी साधारण लिपिक थे और चाचाजी प्रखर बुद्धि के होने के कारण आई.ए.एस. हो गए. दोनों भाइयों की स्थिति में इतना अंतर था कि मेरे पिताजी हमेशा हीनभावना से पीडि़त रहते थे. फिर भी वह स्वाभिमानी थे. इसीलिए उन्होंने हमें चाचाजी के घर से यथासंभव दूर रखा था.

‘‘उन्हें बहुत दुख था कि बचपन में उन्होंने पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं दिया. अपनी यह कमी वह मेरे द्वारा पूरी करना चाहते थे. आर्थिक स्थिति कमजोर थी, फिर भी उन्होंने शुरू से ही मुझे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. हर साल मुझे प्रथम श्रेणी में पास होते देख वह फूले नहीं समाते थे.’’

‘‘जाने दे ये दुखद बातें. चाचाजी के घर के बारे में बता.’’

‘‘चाचाजी के 2 बच्चे हैं. बड़ी लड़की रश्मि मेरी उम्र की है और वह भी एम.ए. फाइनल की परीक्षा दे रही है. छोटा कपिल कालिज में पढ़ता है. सीमा, तुझे यह सुन कर आश्चर्य होगा कि रश्मि और मैं चचेरी बहनें हैं, फिर भी हमारी शक्लसूरत एकदम मिलतीजुलती है.’’

‘‘तो इस का मतलब यह कि रश्मि बहन भी तुझ जैसी सुंदर है. है न?’’

‘‘रंग तो उस का इतना साफ नहीं, पर अच्छे कपड़ेलत्तों और आधुनिक साजशृंगार से वह काफी आकर्षक लगती है. तभी तो उस की शादी समीर जैसे लड़के से तय हुई है. आज 5 तारीख है न, 20 तारीख को दिल्ली में उन की शादी है.’’

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी खुशी की बात है. पर यह समीर है कौन और करता क्या है?’’

‘‘समीर चाचाजी के पुराने मित्र रामसिंहजी का बेटा है. रामसिंहजी मथुरा में ऊंचे पद पर हैं. उन की 2 लड़कियां हैं और एक बेटा. लड़कियों की शादी हो चुकी है. समीर भी आई.ए.एस. है और आजकल सरगुजा में अतिरिक्त कलक्टर के पद पर कार्य कर रहा है. देखने में सुंदर, हंसमुख और स्वस्थ है.’’

‘‘तो क्या यह प्रेम विवाह है?’’

‘‘प्रेम विवाह तो नहीं कह सकते, लेकिन दोनों एकदूसरे को जानते हैं.’’

‘‘मंजरी, अपने चाचाजी से कहना कि तेरे लिए भी ऐसा ही लड़का ढूंढ़ दें.’’

‘‘हट, कैसी बातें करती है? कहां रश्मि और कहां मैं. पगली, समीर सरीखा पति पाने के लिए मांबाप का रईस होना आवश्यक है और मेरे तो मांबाप ही नहीं हैं. मैं तो शादी की बात सोच भी नहीं सकती. पास होते ही मैं नौकरी तलाश करूंगी. चाचाजी पर मैं और ज्यादा बोझ नहीं डालना चाहती.’’

रहस्यमय ढंग से हंसते हुए सीमा बोली, ‘‘अरे, तू शादी नहीं करना चाहती, तो अपने चाचाजी से मेरे लिए लड़का ढूंढ़ने के लिए कह दे.’’ दोनों हंसने लगीं.

‘‘अरे सीमा, एक बात तो तुझे बताना भूल ही गई. रसोई में चाचीजी की मदद करतेकरते मैं भी रईसी खाना, नएनए व्यंजन बनाना सीख गई हूं. अगर किसी आई.ए.एस. अधिकारी से ब्याह करने की तेरी इच्छा पूरी हो जाए तो अपने पति के साथ मेरे घर अवश्य आना, खूब बढि़या खाना खिलाऊंगी.’’

एकदूसरे से हंसीमजाक करते उन्हें आधा घंटा बीत गया. जब वे तपती धूप से परेशान होने लगीं तो जाने के लिए उठ खड़ी हुईं. मंजरी ने एक कागज पर चाचाजी का पता और अपना रोल नंबर लिख कर सीमा को दे दिया.

‘‘सीमा, परिणाम निकलते ही मुझे खबर करना.’’

‘‘जरूर…जरूर. अब कब मुलाकात होगी?’’ कह कर सीमा मंजरी के गले लगी. फिर दोनों भारी मन से एकदूसरे से विदा हुईं.

रश्मि और मंजरी के परचे अच्छे होने पर चाचाचाची खूब खुश थे.

‘‘चाचीजी, अब मैं घर का काम संभालूंगी, आप निश्चिंत हो कर बाहर का काम करिए,’’ मंजरी ने कहा.

शादी का दिन आया, लेकिन घर में कोई होहल्ला नहीं था. दोनों तरफ के मेहमानों के लिए एक अच्छे होटल में कमरे ले लिए गए थे. शादी और खानेपीने का प्रबंध भी होटल में ही था. मेहमान भी सिर्फ एक दिन के लिए आने वाले थे.

रश्मि के मातापिता मेहमानों की अगवानी के लिए सवेरे से ही होटल में थे. बराती सुबह 10 बजे पहुंच गए थे. सब का उचित स्वागतसम्मान किया गया. दोपहर 1 बजे खाना हुआ. खाने के बाद रश्मि के मातापिता थोड़ी देर के लिए आराम करने अपने कमरे में आ गए. 4 बजे फिर तैयार हो कर रिश्तेदारों और बरातियों के पास चले गए. जातेजाते रश्मि से बोल गए कि वह जल्दी मेकअप कर के वक्त पर तैयार हो जाए.

मांबाप के जाते ही रश्मि ने मंजरी को अपने पास बुलाया और बोली, ‘‘मंजरी, मैं मेकअप के लिए जा रही हूं. लेकिन यदि मुझे देर हो गई तो पिताजी को अलग से बुला कर ठीक 6 बजे यह लिफाफा दे देना, भूलना नहीं.’’

‘‘नहीं भूलूंगी. लेकिन तुम 6 बजे तक आने की कोशिश करना.’’

रश्मि हाथ में छोटा सा सूटकेस ले कर चली गई, होटल के ग्राउंड फ्लोर पर ब्यूटी पार्लर में जाने की बात कह कर.

जब शाम को 6 बज गए और रश्मि नहीं आई तो मंजरी ने चाचाजी को कमरे में बुला कर वह लिफाफा उन के हाथ में दे दिया.

‘‘चाचाजी, यह रश्मि ने दिया है.’’

‘‘अब बिटिया की कौन सी मांग है?’’ कहतेकहते उन्होंने लिफाफा खोला और अंदर का कागज निकाल कर जैसेजैसे पढ़ने लगे, उन का चेहरा क्रोध से लाल हो गया.

‘‘मूर्ख, नादान लड़की,’’ कहतकहते वह दोनों हाथों में सिर पकड़ कर बैठ गए.

‘‘चाचाजी, क्या हुआ?’’

‘‘अब मैं क्या करूं, मंजरी?’’ कह कर उन्होंने वह कागज मंजरी को दे दिया और आंखों में आए आंसू पोंछ कर उन्होंने मंजरी से कहा, ‘‘जा बेटी, अपनी चाची को जल्दी से बुला ला. मैं रामसिंहजी को फोन कर के बुलाता हूं.’’

चिट्ठी पढ़ कर मंजरी सकपका गई और झट से चाची को बुला लाई. रश्मि के पिता ने वह चिट्ठी अपनी पत्नी के हाथ में पकड़ा दी. पढ़ते ही रश्मि की मां रो पड़ीं. चिट्ठी में लिखा था :

‘‘पिताजी, मैं जानती हूं, मेरी यह चिट्ठी पढ़ कर आप और मां बहुत दुखी होंगे. लेकिन मैं माफी चाहती हूं.

‘‘मैं मानती हूं कि समीर लाखों में एक है. मुझे भी वह अच्छा लगता है, लेकिन मैं रोहित से प्यार करती हूं और जब आप यह पत्र पढ़ रहे होंगे तब तक आर्यसमाज मंदिर में मेरी उस से शादी हो चुकी होगी. आप को पहले बताती तो आप राजी न होते.

‘‘मैं यह भी जानती हूं कि शादी के दिन मेरे इस तरह एकाएक गायब हो जाने से आप की स्थिति बड़ी विचित्र हो जाएगी. लेकिन मैं दिल से मजबूर हूं. हां, मेरा एक सुझाव है, मंजरी का कद मेरे जैसा ही है और रंगरूप में तो वह मुझ से भी बेहतर है. आप समीर से उस की शादी कर दीजिए. किसी को पता तक नहीं लगेगा. मैं फिर आप से क्षमा चाहती हूं. रश्मि.’’

इतने में रामसिंहजी भी अपनी पत्नी के साथ वहां आ गए. उन्हें देख कर रश्मि के पिता ने बड़े दुखी स्वर में कहा, ‘‘मेरे दोस्त, क्या बताऊं, इस रश्मि ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा,’’ और यह कह कर उन्होंने वह चिट्ठी उन्हें पकड़ा दी.

पत्र पढ़ कर समीर के माता और पिता दोनों ही हतप्रभ रह गए. फिर समीर के पिता ने मंजरी की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, तुम जरा बाहर जा कर देखो, कोई अंदर न आने पाए.’’

मंजरी बाहर चली गई. फिर कुछ देर उन लोगों में बातचीत हुई. इस के बाद रश्मि के पिता ने मंजरी को अंदर बुला कर कहा, ‘‘बेटी, हम सब की इज्जत अब तेरे हाथ में है. तू इस शादी के लिए हां कर दे तो हम लोग अभी भी बात संभाल लेंगे.’’

‘‘आप जो भी आज्ञा देंगे मैं करने को तैयार हूं,’’ मंजरी ने धीरे से कहा.

‘‘शाबाश, बेटी, तुझ से यही उम्मीद थी.’’

मंजरी ने सब के पैर छुए. सब ने राहत की सांस ले कर उसे आशीर्वाद दिया और आगे की तैयारी में लग गए.

शादी धूमधाम से हुई. किसी को कुछ पता नहीं चला. खुद समीर को भी इस हेरफेर का आभास न हुआ.

मथुरा में शानदार स्वागत आयोजन हुआ. जब सब रिश्तेदार वापस चले गए तो रामसिंहजी ने अपने पुत्र को बुला कर सब बात बता दी. सुन कर समीर ने अपने को बेहद अपमानित महसूस किया. उस के मन को गहरी ठेस लगी थी और उसे सब से अधिक अफसोस इस बात का था कि उस से संबंधित इतनी बड़ी बात हो गई और मांबाप ने कोई कदम उठाने से पहले उस से सलाह तक नहीं ली. मांबाप पर जैसे दुख का पहाड़ गिर पड़ा.

बेचारी मंजरी कमरे में ही दुबकी रहती. उसे समझ में नहीं आता था कि अब वह क्या करे. रश्मि की नादानी ने सब का जीवन अस्तव्यस्त कर दिया था. वह सोचती, रश्मि को समीर सरीखे भले लड़के के जीवन में इस तरह कड़वाहट भरने का क्या अधिकार था. मंजरी का मन सब के लिए करुणा से भर गया.

एक दिन मंजरी के सासससुर ने उसे बुला कर कहा, ‘‘मंजरी, हमारे इकलौते बेटे का जीवन सुखी करना अब तुम्हारे हाथ में है. समीर बहुत अच्छा लड़का है लेकिन उस के मन पर जो गहरा घाव हुआ है उसे भरने में समय लगेगा. तुम उस के मन का दुख समझने का प्रयास करो. हमें विश्वास है कि तुम्हारी सूझबूझ से उस का घाव जल्दी ही भर जाएगा. लेकिन तब तक तुम्हें सब्र से काम लेना होगा. किसी प्रकार की जल्दबाजी घातक सिद्ध हो सकती है.’’

‘‘आप निश्चिंत रहिए. मुझे उम्मीद है कि आप के आशीर्वाद और मार्गदर्शन से मैं सब ठीक कर लूंगी,’’ मंजरी बोली.

समीर को फिर से ड्यूटी पर जाना था. समीर के मातापिता ने सोचा, कहीं समीर सरगुजा जाते समय मंजरी को साथ ले जाने से मना न कर दे. इसलिए समीर के पिता ने लंबी छुट्टी ले ली और वह भी सरगुजा जाने के लिए सपत्नीक नवदंपती के साथ हो लिए.

जिन दिनों समीर के मातापिता सरगुजा में थे, उन दिनों मंजरी सब से पहले उठ कर नहाधो कर नाश्ते की तैयारी करती. खाना समीर की मां बनाती थीं. वह इस काम में भी अपनी सास का हाथ बंटाती. सासससुर के आग्रह से उसे सब के साथ ही नाश्ता और भोजन करना पड़ता.

एक दिन उस की सास अपने पति से बोलीं, ‘‘कुछ भी हो, लड़की सुंदर होने के साथसाथ गुणी भी है. मेरी तो यही प्रार्थना है कि जल्दी ही उसे पत्नी के योग्य सम्मान मिलने लगे.’’

‘‘मुझे तो लगता है, तुम्हारी इच्छा जल्दी ही पूरी होगी. बदलती हवा का रुख मैं महसूस कर रहा हूं,’’ मंजरी के ससुर बोले. और यही आशा ले कर उस के सासससुर वापस मथुरा चले गए.

एक रात खाने पर समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘मैं जानता हूं, तुम्हें अकारण ही इस झंझट में फंसाया गया. मुझे इस बात का बहुत अफसोस है.’’

‘‘मैं जानती हूं, आप कैसी कठिन मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे हैं. आप मेरी चिंता न करें. लेकिन कृपया मुझे अपना हितैषी समझें.’’

शादी के बाद दोनों में यह पहली बातचीत थी. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

दूसरे दिन नाश्ते के समय मंजरी को लगा कि समीर उस से नजर चुरा कर उस की तरफ देख रहा है. वह मन ही मन खुश हुई. उसी शाम को कमलनाथ और आनंद सपत्नीक मिलने आए.

‘‘मंजरीजी, दिन में आप अकेली रहती हैं, कभीकभी हमारे यहां आ जाया कीजिए न,’’ कमलनाथजी की पत्नी निशाजी बोलीं.

‘‘जरूर आऊंगी, लेकिन कुछ दिन बाद. अभी तो मैं दिन भर उलझी रहती हूं.’’

‘‘किस में?’’ निशाजी ने पूछा. समीर ने भी आश्चर्य से उस की तरफ देखा.

‘‘यों ही, यह नमक, तेल, मिर्च का मामला अभी जम नहीं पाया. कभी तेल ज्यादा, कभी नमक ज्यादा तो कभी मिर्च ज्यादा,’’ मंजरी ने कहा.

सब लोग सुन कर हंस पड़े.

‘‘शुरूशुरू में खाना बनाते समय ऐसा ही होता है,’’ फिर आनंदजी की पत्नी रामेश्वरी ने आपबीती सुनाई.

मंजरी ने मेज पर नमकीन, मिठाई और चाय रखी. कमलनाथ कह रहे थे, ‘‘तो  समीर कल का पक्का है न? भाभीजी, कल सवेरे 7 बजे पिकनिक पर चलना है आप दोनों को. 30-40 मील की दूरी पर एक बहुत सुंदर जगह है. वहां रेस्ट हाउस भी है. सब इंतजाम हो गया है. मैं आप दोनों को लेने 7 बजे आऊंगा.’’

समीर और मंजरी ने एकदूसरे की तरफ देखा. फिर उसी क्षण समीर बोला, ‘‘ठीक है, हम लोग चलेंगे.’’

थोड़ी देर बाद जब सब चले गए तो समीर ने मंजरी से कहा, ‘‘तुम इतना अच्छा खाना बनाती हो, फिर भी सब  के सामने झूठ क्यों बोलीं?’’

‘‘आप को मेरा बनाया खाना अच्छा लगता है?’’

‘‘बहुत,’’ समीर ने कहा.

दोनों की नजरें एक क्षण के लिए एक हो गईं. फिर दोनों अपनेअपने कमरे में चले गए.

लेकिन थोड़ी ही देर बाद तेज आंधी के साथ मूसलाधार बारिश होने लगी. बिजली चली गई. समीर को खयाल आया कि मंजरी अकेली है, कहीं डर न जाए.

वह टार्च ले कर मंजरी के कमरे के सामने गया और उसे पुकारने लगा. मंजरी ने दरवाजा खोला और समीर को देख राहत की सांस ले बोली, ‘‘देखिए न, ये खिड़कियां बंद नहीं हो रही हैं. बरसात का पानी अंदर आ रहा है.’’

समीर ने टार्च उस के हाथ में दे दी और खिड़कियां बंद करने लगा. खिड़कियों के दरवाजे बाहर खुलते थे. तेज हवा के कारण वह बड़ी कठिनाई से उन्हें बंद कर सका.

‘‘तुम्हारा बिस्तर तो गीला है. सोओगी कैसे?’’

‘‘मैं गद्दा उलटा कर के सो जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हें डर तो नहीं लगेगा?’’

मंजरी कुछ नहीं बोली. समीर ने अत्यंत मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मंजरी.’’ और उस ने उस की तरफ बढ़ने को कदम उठाए. फिर अचानक वह मुड़ा और अपने कमरे में चला गया.

दूसरे दिन सवेरे 7 बजे दोनों नहाधो कर पिकनिक के लिए तैयार थे. इतने में कमलनाथ भी जीप ले कर आ पहुंचे. समीर उन के पास बैठा और मंजरी किनारे पर. मौसम बड़ा सुहावना था. समीर और कमलनाथ में बातें चल रही थीं. मंजरी प्रकृति का सौंदर्य देखने में मगन थी.

अब रास्ता खराब आ गया था और जीप में बैठेबैठे धक्के लगने लगे थे.

‘‘तुम इतने किनारे पर क्यों बैठी हो? इधर सरक जाओ,’’ समीर ने कहा.

लज्जा से मंजरी का चेहरा आरक्त हो उठा. उसे सरकने में संकोच करते देख समीर ने उस का हाथ अपने हाथ में ले लिया और धीरे से उसे अपने पास खींच लिया. मंजरी ने भी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की.

शाम 7 बजे घर लौटे तो दोनों खुश थे. पिकनिक में खूब मजा आया था. दोनों ने आ कर स्नान किया और गरमगरम चाय पीने हाल में बैठ गए. समीर बातचीत करने के लिए उत्सुक लग रहा था. ‘‘रात के खाने के लिए क्या बनाऊं?’’ मंजरी ने पूछा तो उस ने कहा, ‘‘बैठो भी, जल्दी क्या है? आमलेटब्रेड खा लेंगे.’’ फिर उस ने अचानक गंभीर हो कर कहा, ‘‘मंजरी, मुझे तुम से कुछ पूछना है.’’

‘‘पूछिए.’’

‘‘मंजरी, इस शादी से तुम सचमुच खुश हो न?’’

‘‘मैं तो बहुत खुश हूं. खुश क्यों न होऊं, जब मेरे हाथ आप जैसा रत्न लगा है.’’

खुशी से समीर का चेहरा खिल उठा, ‘‘और मेरे हाथ भी तो तुम जैसी लक्ष्मी लगी है.’’

दोनों ही आनंदविभोर हो कर एकदूसरे को देखने लगे. शंका के

सब बादल छंट चुके थे. तनाव खत्म हो गया था.

इतने में कालबेल बजी. समीर उठ कर बाहर गया.

मंजरी सोच रही थी कि अगले दिन सवेरे वह सासससुर को फोन कर के यह खुशखबरी देगी.

‘‘मंजरी…मंजरी,’’ कहते हुए खुशी से उछलता समीर अंदर आया.

‘‘इधर आओ, मंजरी, देखो, तुम्हारा एम.ए. का नतीजा आया है.’’

दौड़ कर मंजरी उस के पास गई. लेकिन समीर ने आसानी से उसे तार नहीं दिया. मंजरी को छीनाझपटी करनी पड़ी. तार खोल कर पढ़ा :

‘‘हार्दिक बधाई. योग्यता सूची में द्वितीय. चाचा.’’

खुशी से मंजरी का चेहरा चमक उठा. तिरछी नजर से उस ने पास खड़े समीर की तरफ देखा.

समीर ने आवेश में उसे अपनी ओर खींच लिया और मृदुल आवाज में कहा, ‘‘मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई. तुम जैसी होशियार, गुणी और सुंदर पत्नी पा कर मैं भी आज योग्यता सूची में आ गया हूं, मंजरी.’’

इस सुखद वाक्य को सुनते ही मंजरी ने अपना माथा समर्पित भाव से समीर के कंधे पर रख दिया. उस की तपस्या पूरी हो गई थी.

मायूस मुसकान- भाग 1- आजिज का क्या था फैसला

‘‘मुझेअब मां की हालत देख कर दुख भी नहीं होता है. मैं स्वयं जानती हूं कि वे परेशान हैं,

तन व मन दोनों से. फिर भी न जाने क्यों मु  झे उन से मिलने, उन का हालचाल जानने की कोई इच्छा नहीं होती,’’ मुसकान आज फिर अपनी मां के बरताव को याद कर क्षुब्ध हो उठी थी. ‘‘पर फिर भी तुम्हारी मां हैं वे, उन्होंने तुम्हें पालपोस कर बड़ा किया है, तुम्हे जन्म दिया है, तुम्हारा अस्तित्व उन्हीं से है,’’ ऐशा बोली.

मैं जानती थी कि मेरी बात सुन कर तुम यही कहोगी, मैं मानती हूं मेरे मातापिता ने मु  झे जन्म दिया, मां ने मु  झे नौ माह अपनी कोख में रखा, मु  झे पालपोस कर बड़ा किया, मु  झे इस लायक बनाया कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं. आत्मनिर्भर बन सकें. मैं सम  झती हूं मु  झ पर उन का उपकार है कि लड़कालड़की में भेद नहीं किया, हम भाइबहिन दोनों को एकसमान पाला. कि…’’ कह कर वह चुप हो गयी थी और एकटक जमीन से अपने पैर के अंगूठे से जैसे कुछ कुरेदने की कोशिश कर रही थी.

ऐशा उसके चेहरे पर आए भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी. उस के होंठ जैसे कुछ कहना चाहते हों किन्तु आंखों का इरादा हो कि चुप ही रहो.

वह अंदर ही अंदर जैसे सुलग रही थी, उस की आंखें आंसुओं से चमक उठी थीं और नथुने फूले से दिखाई पड़ रहे थे. चेहरे के भाव दर्शा रहे थे जैसे अंतस में दबे पुराने जख्म हरे हो रहे हों. वह आंखों में चमके आंसू अपने हलक में उतार रही थी.

पिछले 1 वर्ष से एक ही दफ्तर में कार्यरत उन दोनों सहेलियों ने अपार्टमेंट शेयर किया हुआ है,ऐशा ने मुसकान को इतना उदास पहले कभी नहीं देखा था.

समझ में नहीं आ रहा उस से आगे बात करूं या नहीं, ऐशा असमंजस में थी सो वह चुप ही रही. तभी मुस्कान का मोबाइल फिर से रिंग हुआ. उस ने स्क्रीन पर देखा और नजरें घुमा लीं. फोन रिंग होता ही रहा. उस ने कौल पिक नहीं की. लेकिन उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन्हें वह शायद ऐशा से छिपाने की कोशिश कर रही थी. उस की नजरें लैपटौप में गड़ी थीं, किंतु ध्यान लैपटौप स्क्रीन पर नहीं था. वह अंदर ही अंदर जैसे घुल रही थी. ऐशा चादर में आधा सा मुंह ढके उसे देखे जा रही थी.

ऐशा उठी और उस के पास गई. उस का हाथ अपने हाथों में थामा तो वह फफक कर रो पड़ी, ‘‘मैं क्या करूं, तुम ही बताओ तुम कहती हो मेरा भी मां के प्रति कुछ फर्ज होता है. मैं सभी फर्ज पूरे करना भी चाहती हूं, किंतु मेरा छत्तीस का आंकड़ा है अपनी मां से.’’

‘‘कैसी बात कर रही हो तुम मुसकान? भला ऐसे कोई बोलता है अपनी मां के लिए?’’

‘‘क्या किया मां ने मेरे लिए? मु  झे जन्म दिया, खानाकपड़ा दिया, बड़ा किया बस. उन्होंने अपना फर्ज ही तो पूरा किया.’’

‘‘और क्या कर सकते हैं मातापिता इन सब के सिवा? तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘बच्चों के लिए खानाकपड़ा, रहने को मकान ही सबकुछ नहीं होता, उन्हें प्यार भी तो चाहिए होता है. सोशल सिक्योरिटी क्या आवश्यक नहीं बच्चों के लिए?’’

‘‘पर तुम ये सब क्यों कह रही हो? ऐसा क्या हो गया?’’

‘‘हुआ, बहुत कुछ हुआ. हम 2 भाइबहिन हमेशा अपने मातापिता के प्यार को तरसते रहे. उन दोनों के आपसी   झगड़े कभी खत्म ही नहीं होते, आज तक भी नहीं. सम  झ नहीं आता, कैसी शादी थी उन की. शायद उन्होंने एकदूसरे से प्रेम तो कभी किया ही नहीं.

‘‘पापा अपने मातापिता, छोटे भाइबहिन की जिम्मेदारियों में व्यस्त रहे. मां ब्याह कर पापा के घर में तो आ गई, किंतु पापा ने उन का कोई खयाल नहीं रखा. घर में सिर्फ 24 घंटों की नौकरानी की तरह खटती रहीं.

‘‘संयुक्त परिवार था हमारा, दादादादी, चाचाबूआ, पापा, मां, मैं और मेरा बड़ा भाई. हम सभी साथ ही रहते थे. कहने को तो भरापूरा, हंसताखेलता परिवार, लेकिन सिर्फ दुनिया के सामने, वहां आपसी प्रेम और सच्ची खुशी तो कभी नजर ही नहीं आई. मैं ने अपनी मां को पापा के साथ कभी मुसकरा कर बात करते नहीं देखा. दोनों के आपसी तनातनी भरे वार्त्तालाप घर में अकसर तनाव का माहौल बनाए रखते.

‘‘मां अकसर पिताजी को हर बात आज तक भी घुमाफिरा कर बताती हैं. न जाने अपने 25 वर्ष के विवाह में भी वे पिताजी के साथ सहज व्यवहार क्यों न कर पाईं. पापा को ऐसा महसूस होता है जैसे मां उन के मांपिताजी व पूरे परिवार का मजाक बना रही हैं. न जाने कैसी कैमिस्ट्री है दोनों की आपस में. तेरा परिवार मेरे परिवार से ऊपर ही नहीं उठे अभी तक. 5 वर्ष की थी मैं तभी से मां को दादी के साथ विभिन्न रीतिरिवाजों को ढोते देखा.

‘‘दादी को सब रीतिरिवाज अपने हिसाब से करवाने होते और मां अकसर कुछ न कुछ चूक कर ही देतीं. बस फिर क्या था दादी उन्हें खूब ताने देती. बस यही सिखाया तेरी मां ने, कोई तौरतरीका तो आता नहीं, बस बांध दी हमारे गले.

‘‘मां सबकुछ सुन कर मन मसोस कर रह जाती. कभी पलट कर जवाब भी न दिया. पलटवार करती भी किस के भरोसे. पापा ने तो जैसे उन्हें मायके के खूंटे से खोला और ससुराल के खूंटे से बांध दिया.

‘‘विवाह का पवित्र बंधन पुरुष व स्त्री का आपसी रिश्ता होता है जो प्रेम की कलियों से गुंथा होता है, जिस में भरोसे की महक  होती है जो जीवन को महका देती है, किंतु उन दोनों के बीच यह रिश्ता तो आज तक बना ही नहीं. मां व पिताजी अन्य रिश्ते निभातेनिभाते अपने रिश्ते को तो जैसे कहीं पीछे ही छोड़ आए. उन्होंने शायद ही कभी एकदूसरे के मन की सुध ली हो.

‘‘मां को ससुराल में प्यार मिला ही नहीं. आज तक वे अपने मायके के प्रति प्रेम से बंधी हैं. मैं यह नहीं कहती कि उन्हें अपने मातापिता को भूल जाना चाहिए, किंतु वे पापा के परिवार को अपना न सकीं.

‘‘पापा को महसूस होता है कि जिस तरह आज भी वे अपने मायके के रिश्तेदारों के प्रेम में बंधी है, वैसे ही पापा के परिवार से क्यों नहीं मिल जाती.’’

‘‘लेकिन कोई भी संबंध एकतरफा तो नहीं हो सकता न?’’ ऐशा ने कहा.

‘‘हमारे रीतिरिवाज, परंपराएं जो जोड़ने और खुशियां बढ़ाने का एक माध्यम होती हैं, किंतु यहां तो परंपराओं ने दोनों परिवारों को कभी एक न होने दिया. पापा के परिवार ने सदा ही मां के परिवार को कमतर सम  झा व मां का बारबार अपमान किया.

‘‘दादी जबतब मां को उन के मायके का उलाहना देती रहतीं. मां कभीकभी पापा से शिकायत भी करतीं, किंतु वे कुछ कर ही न पाते. एक तरफ मां व दूसरी तरफ पापा का पूरा परिवार.

‘‘जब मैं छोटी थी शायद पांच या छ: साल की. मां मु  झे खूब मारतींपीटतीं. मु  झे सम  झ ही न आता कि मेरी गलती क्या है. बस पिट जाती, रोतीचीखती. जाती भी कहां फिर अपनी ही मां के पास ही जा कर चिपक जाती,’’ मुसकान फिर से सिसकने लगी थी.

‘‘क्यों बात का बतंगड़ बना रही हो मुसकान. ये सब बातें तो बहुत मामूली सी हैं. शायद हर घर में होती हैं. वह जमाना ऐसा ही था. लोग रीतिरिवाज, रिश्तेनाते और परंपराओं को निभाते थे. इस में तुम्हारी मां का क्या दोष? क्यों  तुम उन से किनारा कर बैठी हो?’’ ऐशा ने कड़क लहजे में कहा.

‘‘होगा जमाना ऐसा. मेरी मां तो अपना घर छोड़ आईं और पापा के परिवार से रिश्ता जोड़ा, किंतु उन्होंने मां को दिल से अपनाया भी तो नहीं, सिर्फ इस्तेमाल किया.

‘‘लेकिन मेरी मां पढ़ीलिखी थीं उस जमाने में भी. नौकरी भी करती थीं विवाहपूर्व.

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