खुद को ऐसे रखें फिट

जिम की मैंबरशिप लेते समय तो बहुत उत्साह रहता है. 15 से 20 दिन रोजाना जिम जा कर कसरत भी बड़े मजे से करते हैं. लेकिन, धीरेधीरे रोज जिम जाना थकाने वाला हो जाता है. घर का कोई एक कोना जहां आप की कसरत के लिए थोड़ी जगह हो तो वहीं से अपना वर्कआउट शुरू कर दें.

1. सिटअप

सिटअप करने से पेट की मांसपेशियां मजबूत और टोन होती हैं. इस के साथसाथ यह एब्स एरिया को भी टोन करता है. इस से गरदन, छाती, पीठ का निचला हिस्सा और हिप फ्लैक्सर में मजबूती आती है. इसे नियमित करने से शरीर में लचीलापन भी बढ़ता है. सिटअप शरीर की मुद्रा को भी सही करता है.

सिटअप कैसे करें 

-किसी स्थान पर ऐक्सरसाइज मैट को बिछा कर उस पर सीधे लेट जाएं.

-दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ कर जमीन पर रखें.

-अपने दोनों हाथों को क्रौस की स्थिति में कंधे पर रख लें, अर्थात दायां हाथ बाएं कंधे पर और बायां हाथ दाएं कंधे पर रखें.

-अब सांस छोड़ते हुए अपने शरीर के ऊपर के हिस्से को अपने घुटनों की ओर ले जाएं.

-अब सांस लेते हुए दोबारा नीचे की ओर आएं और फिर से लेट जाएं.

2. क्रंचेस

क्रंचेस करने से पीठ के निचले हिस्से और पीठ की मांसपेशियों में चोट आने की संभावना कम होती है. इस से शारीरिक संतुलन में विकास होता है और शरीर में लचीलापन बढ़ता है. क्रंचेस से कैलोरी अधिक मात्रा में बर्न होती है, साथ ही मांसपेशियों में मजबूती आती है.

क्रंचेस कैसे करें

-किसी ऐक्सरसाइज मैट या जमीन पर पीठ के बल लेट जाएं.

-अपने दोनों घुटनों को मोड़ लें ताकि आप के पैर जमीन पर एकदम सीधे रहें.

-दोनों हाथों को गरदन या सिर के पीछे रखें और अपने कंधों को जमीन से 7-8 इंच ऊपर की तरफ उठाएं.

-ध्यान रखें कि केवल शरीर का ऊपरी हिस्सा ऊपर उठे और कमर व पीठ जमीन पर ही टिकी रहें.

-इस अवस्था में एक से दो सैकंड रहने के बाद नीचे आ जाएं.

-फिर तुरंत ही वापस उठें और इस प्रक्रिया को 8 से 10 बार दोहराएं.

3. प्लैंक्स

प्लैंक्स से आप के कोर मसल्स में मजबूती आती है और एब्स भी मजबूत होते हैं. प्लैंक्स कंधों, छाती, कमर और पैरों को भी मजबूत बनाता है व शारीरिक संतुलन बेहतर करता है.

प्लैंक्स कैसे करें –

प्लैंक्स के लिए आप पुशअप की अवस्था में आ जाएं.

-अपनी कुहनियों और कलाइयों को जमीन पर टिकाएं.

-अब अपनी पीठ को सीधा करते हुए शरीर को ऊपर उठाएं.

-गरदन से पुट्ठों तक शरीर को एक सीध में रखें.

-शरीर का पूरा भार कुहनियों, कलाइयों और पैरों के पंजों पर रखें.

-इस अवस्था में एक मिनट तक बने रहें.

-इसे 2 से 3 बार दोहराएं.

4. स्क्वैट्स

स्क्वैट्स करने से मांसपेशियों का विकास होता है. इस से फेफड़े और हृदय मजबूत होते हैं और शरीर के जोड़ों में भी फायदा होता है. इस से कैलोरी बर्न होती है, शरीर में लचीलापन आता है, हड्डियां मजबूत होती हैं और शरीर का संतुलन विकसित होता है.

स्क्वैट्स कैसे करें

-दोनों पैरों को फैला लें और पैरों की उंगलियों को बाहर की तरफ निकाल कर खड़े हो जाएं.

-पीठ सीधी रखें और कंधे को ढीला छोड़ें.

-अपने हाथों को कमर पर रखें या सामने सीधा फैला लें.

-पीठ को सीधा रखते हुए बैठने की मुद्रा में जाएं जैसे किसी कुरसी पर बैठते हैं.

-अपने घुटनों को पंजों के ठीक सीध में रखें और आगे की ओर न झुकें.

-इस अवस्था में एक सैकंड तक रह कर वापस सीधे खड़े हो जाएं.

-शुरुआत में इसे 10 बार दोहराएं.

5. घर को बना लें जिम

जिम की मैंबरशिप लेते समय तो बहुत उत्साह रहता है. 15 से 20 दिन रोजाना जिम जा कर कसरत भी बड़े मजे से करते हैं. लेकिन, धीरेधीरे रोज जिम जाना थकाने वाला हो जाता है. घर का कोई एक कोना जहां आप की कसरत के लिए थोड़ी जगह हो तो वहीं से अपना वर्कआउट शुरू कर दें.

घर की बालकनी या टैरेस का भी इस्तेमाल किया जा सकता है जहां आप को ऐक्सरसाइज मैट डालने की जगह आराम से मिल जाएगी.

अगर आप का बजट सही हो तो आप जिम के कुछ इक्विपमैंट भी रख सकते हैं, जैसे डंबल्स, बारबेल रौड, मल्टी बैंड, वैट लिफ्टर आदि.  इन सब से आप की पूरे बौडी की वर्कआउट हो जाती है. साथ ही, ऐक्सरसाइज करने के लिए स्पोर्ट्स शूज और वर्कआउट ड्रैस भी ले सकते हैं.

6. पर्सनल ट्रेनर भी है अच्छा

अगर आप रोजाना जिम जाने के झंझटों से बचना चाहते हैं तो  पर्सनल फिटनैस ट्रेनर भी रख सकते हैं. वे आप को ऐक्सरसाइज करने के सही तरीकों के बारे में गहराई से बताएंगे और सब से अच्छी बात कि वे आप को पूरा समय और अपना पूरा ध्यान देंगे. इस से आप को अपने हर एक फिटनैस लैवल के बारे में सही जानकारी मिलेगी, ऐक्सरसाइज सही कर रहे हैं या नहीं. कौन सी ऐक्सरसाइज को करने से कितना फायदा होगा जैसी छोटीछोटी बातें वे आप को बताएंगे जिस से कि आप बिना डर और वहम के ऐक्सरसाइज का फायदा उठा सकेंगे.

कैसे रखें जिम किट का ध्यान 

-अपनी जिम किट में इक्विपमैंट्स को पानी से बचा कर रखें. पानी से जंग लगने की संभावना रहती है.

-मल्टी बैंड का इस्तेमाल व्यायाम के अलावा किसी और काम के लिए न करें.

-वर्कआउट क्लौथ को कुछ दिनों के अंतराल पर धोना चाहिए.

-अपनी जिम किट को बच्चों की पहुंच से दूर रखें.

-भारी डंबल्स ऐसी जगह पर रखें जहां से वे गिरें नहीं.

-कुछ दिनों के अंतराल पर इक्विपमैंट के नटबोल्ट्स की जांच करते रहें ताकि किसी प्रकार की दुर्घटना न घटे.

-इक्विपमैंट की सफाई के लिए स्प्रे की जगह जिम वाइप्स का इस्तेमाल करें.

7. डांस भी है फायदेमंद

अगर आप अपने डेली वर्कआउट रूटीन से बोर हो गए हैं और कुछ मजेदार करना चाहते हैं तो डांस ऐक्सरसाइज शुरू कर दें. अगर आप को डांस की जानकारी है तो फिर बात ही क्या है, और अगर जानकारी नहीं है तो भी कोई परेशानी नहीं है. इस के लिए आप डांस क्लास जा सकते हैं या डांस वर्कआउट डीवीडी या औनलाइन वीडियो देख कर भी डांस, जैसे बालरूम या बैलेट, हिपहौप, एरोबिक्स कर सकते हैं. इन से आप के शरीर की लचक बढ़ेगी और साथ ही आप के मसल्स मजबूत होंगे व शारीरिक संतुलन भी बनेगा.

जिन्हें दिल की बीमारी है या हाई कोलैस्ट्रौल या डायबिटीज की समस्या है, उन के लिए भी डांस वर्कआउट बहुत फायदेमंद होता है. अगर आप की बीमारी ज्यादा गंभीर है तो पहले अपने डाक्टर से परामर्श ले लें. रोजाना 30 मिनट डांस ऐक्सरसाइज करने से 130 से 250 कैलोरी कम होती है. इतनी ही कैलोरी जौगिंग से भी बर्न होती है. अगर आप के शरीर में किसी प्रकार की कोई चोट हो या आप पहले से अस्वस्थ हों तो किसी भी नई ऐक्सरसाइज को रूटीन में शामिल करने से पहले अपने डाक्टर से सलाह जरूर लें.

8. यह भी करके देखें

दिनभर औफिस में बैठे रहने या ऐसे काम करने जिन से आप का शारीरिक श्रम न के बराबर होता हो और आप के शरीर से बहुत ही कम मात्रा में कैलोरी बर्न होती हो, तो उस स्थिति में यह जरूरी है कि ऐक्सरसाइज के अलावा भी छोटीछोटी बातों का ध्यान रख कर फिजिकली ऐक्टिव रहा जाए.

-लिफ्ट की जगह सीढि़यों का प्रयोग करें.

-बाजार अगर ज्यादा दूर न हो तो गाड़ी या दूसरी सवारी के बजाय पैदल चल कर जाएं.

-औफिस के लंचटाइम में 15 मिनट का वाक कर लें.

-पूरे दिन बैठे रहने की जगह कुछ घंटे खड़े हो कर भी काम करें.

एक अध्ययन के मुताबिक, अगर आप दिन के 6 घंटे खड़े रहते हैं तो आप का कुछ वजन कम हो सकता है.

-इस के अलावा अपना काम खुद से करने की आदत डालें. इस से आप के शरीर में हरकत होती रहेगी.

-अपने साथ कुछ हैल्दी स्नैक्स रखें और जरूरत से अधिक खाने से बचें.

-पूरे दिन में पानी पीते रहें, ताकि आप के शरीर में पानी की कमी न होने पाए.

फ्लोरिंग को दें स्टाइलिश लुक

आप अपने घर में कितनी भी महंगी चीजें क्यों न रखें, जब तक घर की फ्लोरिंग सही नहीं होगी तब तक घर का इंटीरियर अच्छा नहीं लगेगा. फर्श के तौर पर टाइल्स बेहद टिकाऊ होती हैं तथा मजबूती के मामले में भी इन का मुकाबला नहीं होता. ये पानी से जल्दी खराब नहीं होतीं और साफ-सफाई में भी किसी तरह की दिक्कत नहीं होती.

टाइल्स में मैट फिनिश का चलन जोरों पर है. चमचमाती या ग्लौसी टाइल्स अब चलन से आउट हो गई हैं. कई कंपनियां आप की पसंद अनुसार भी टाइल्स बनाने लगी हैं, जिन्हें कंप्यूटर की मदद से बनाया जाता है. इन में आप अपनी पसंदीदा मोटिफ्स या परिवार के फोटो भी प्रिंट करा सकती हैं.

टाइल्स फ्लोरिंग कराते समय इस बात का ध्यान रखें कि फ्लोरिंग आप की दीवारों से मैच करे. अगर आप के घर की दीवारें लाइट कलर की हैं, तो टाइल्स डार्क कलर की लगवाएं. अगर दीवारें डार्क कलर की हैं, तो लाइट टाइल्स लगवाएं.

कहां और कैसे लगवाएं टाइल्स

घर की अलग-अलग जगहों पर टाइल्स के चयन का तरीका भी अलग-अलग होता है:

– लिविंग एरिया वह स्थान होता है जहां आप अपने मेहमानों का स्वागत करती हैं, दोस्तों से मिलती हैं, उन से बातें करती हैं. इस स्थान को खास बनाना जरूरी है. यहां आप कारपेट टाइल्स लगवा सकती हैं.

– अगर आप का घर छोटा है, तो एक ही तरह की टाइल्स लगवा सकती हैं, जो घर को अच्छा लुक देती हैं. अगर घर बड़ा है तो अलगअलग डिजाइनों की टाइल्स लगवाएं. लिविंग एरिया में पैटर्न और बौर्डर वाली टाइल्स का भी ट्रैंड इन है.

– बैडरूम में कई लोग डार्क कलर फ्लोरिंग करा लेते हैं. ऐसा करने से बचें. बैडरूम में हमेशा टाइल्स फ्लोरिंग के लिए हलके और पेस्टल शेड्स का इस्तेमाल करें.

– किचन छोटी हो तो दीवारों पर हलके रंग की टाइल्स लगवाना ही सही रहता है. बड़ी किचन में सौफ्ट कलर का इस्तेमाल करना चाहिए. इन दिनों किचन में स्टील लुक वाली टाइल्स ट्रैंड में हैं.

– बाथरूम घर में सब से ज्यादा इस्तेमाल होने वाली जगहों में से एक है. इसे सुंदर व आरामदेह बनाना बहुत जरूरी है. बाथरूम में हमेशा सौफ्ट फील वाली टाइल्स लगवाएं. ये टाइल्स नंगे पैरों को रिलैक्स फील कराती हैं. बाथरूम के लिए कई तरह की टाइल्स आती हैं. आप बौर्डर वाली, क्रिसक्रौस पैटर्न वाली टाइल्स लगवा सकती हैं.

टाइल्स कई सालों तक चलती हैं. इन्हें साफ करना भी आसान होता है. कई महिलाएं टाइल्स को साफ करने के लिए हार्ड कैमिकल का प्रयोग करती हैं. ऐसा न करें. टाइल्स को साफ करने के लिए टौयलेट क्लीनर का इस्तेमाल कर सकती हैं. सर्फ के पानी से भी टाइल्स को साफ किया जा सकता है.

नयनतारा : बेकसूर विनायक ने किस गलती का कर रहा था प्रायश्चित्त

बगुले के पंखों की तरह झक सफेद बर्फ, रुई के छोटेछोटे फाहों के रूप में गिर रही थी. यह सिलसिला परसों शुरू हुआ था और लगा था, कभी रुकेगा नहीं. लेकिन पूरे 44 घंटे बाद बर्फबारी थमी. पता नहीं रात के कितने बजे थे. आकाश में पूरा चांद मुसकरा रहा था. विनायक बिस्तर पर उठ कर बैठ गया. उस ने अपने एक हाथ से दूसरा हाथ छुआ. लेकिन पता न चल सका कि बुखार उतरा या नहीं. जब बर्फ गिरनी शुरू हुई थी तो उसे होश था. उस ने 2 गोलियां खाई थीं. लेकिन उन से कुछ हुआ नहीं था. उस ने अनुमान लगाया कि वह पूरे 2 दिनों तक अवचेतनावस्था में अपने बिस्तर में पड़ा रहा था. भूखप्यास तथा 2 दिनों तक बिस्तर में निष्क्रिय पड़े रहने से उपजी थकान ने शरीर के हर हिस्से में दर्द भर दिया था.

विनायक ने खिड़की के शीशे के पीछे मुसकरा रहे चांद के साथ आंख लड़ाने का खेल शुरू किया. 1 मिनट, 2 मिनट, फिर उस ने थक कर अपनी आंखें नीचे झुका लीं. उस ने अपनेआप से कहा, ‘इश्क करने में भला कोई चांद से जीता है, जो मैं जीतूंगा. जीतता तो यहां इतना लाचार, इस कदर तनहा क्यों पड़ा होता.’

दूनागिरि के उस उपेक्षित से बिमलजी के मकान की दूसरी मंजिल का खुलाखुला सहमासहमा सा कमरा. विनायक ने अपने अंतर में दस्तक दी, ‘दोस्त, तुम अपनी जिंदगी की किताब के तमाम पन्ने मथुरा, हरिद्वार, ऋषिकेश, नैनीताल और न जाने कहांकहां के होटलों, गैस्टहाउसों में छितरा कर अब आखिरी पन्ना फाड़ कर फेंक देने के लिए यहां आ गए हो.’

खिड़की के उस पार चमक रहा चांद फिर धुंध में सिमट गया. बाहर रेशारेशा बन कर गिर रही बर्फ फिर दिखलाई पड़ने लगी. दोस्त का पैगाम… ‘लो भई विनायक, मौत आ गई,’ आ गया, ‘एक परी आएगी, तुम से तुम्हारी जिंदगी छीन कर ले जाएगी. फिर इस धरती पर तुम्हारी पहचान खत्म, नयन की याद खत्म,’ उस ने घुटनों में अपना सिर रख कर अपने सिर्फ एक ऐसे गुनाह से रिहाई पाने की कोशिश की, जो कि उस ने किया ही नहीं था.

पतझड़, पेड़ों की पातविहीन नंगी डालें, नीचे गिरे हुए अरबोंखरबों पत्ते, फिर वसंत आएगा, फिर नई कोंपलें, नए फल, नए फूल उगेंगे. मौत से जिंदगी छीन लाने का वही पुराना खेल. अब के बिछुड़े कब मिलें, कहां मिलें, मिलें भी कि न मिलें, कुछ पता नहीं. लेकिन नयन से माफी वसूलने की बात…और कमरे के भीतर भूख, प्यास, बुखार से छटपटा रहा विनायक.

‘प्रायश्चित्त…स्वीकारोक्ति से तुम अपनी की गलती से नजात पा सकते हो?’ बहुत पहले एक वृद्धा के मुख से उस ने ये शब्द सुने थे. प्रायश्चित्त वह कर रहा है, लेकिन स्वीकारोक्ति? ‘कहां पाऊं नयन को जो स्वीकारोक्ति करूं?’

रजाई की परतों में छिपी यातना से बेहोश हो रही विनायक की काया. कल, परसों, नहीं, 5 साल पहले…

अपने पिता की विनायक को कुछ याद नहीं थी. सभी कहते थे कि वह अपने पिता की हूबहू नकल है. उसे मां की याद है. मामूली बुखार से हार कर वे चल बसी थीं. घर में बड़े भाई सुधाकर, भाभी अहिल्या तथा उन की 11 साल की बेटी कालिंदी, यही उस के अपने शेष थे. कालिंदी पूरी आफत थी. सारा दिन लौन में तितलियां पकड़ने से ले कर बंगले के बाहर लगे आम, कटहल, नीबू तथा जामुन के पेड़ों की खोहों से गिलहरी, चिडि़या के बच्चे पकड़ने का काम वह पूरे उत्साह के साथ किया करती थी. इसी से विनायक ने उस का नाम नौटी यानी शरारती रख दिया था.

दूनागिरि का वह मकान…दूसरी मंजिल का कमरा. बर्फ व अंधड़ से बिजली के खंभे टूट गए थे. पानी सप्लाई की लाइनें फट चुकी थीं. बिजली नहीं, पानी नहीं. उसे निपट अकेला छोड़ कर उस के मकानमालिक बिमलजी सपरिवार नीचे लालकुंआ चले गए थे.

उस ने नीचे उतर कर उन का घर टटोला. मिट्टी के सकोरे में डबलरोटी के टुकड़े, एक बोतल में थोड़ा सा कड़वा तेल, 2 दौनों में बांध कर सहेजा हुआ पावडेढ़पाव गुड़, एक छींके पर टंगे हुए गिनती के 15 आलू और इतने ही प्याज. छींके में ही 10 ग्राम चाय का पैकेट रखा था. बिमलजी की पत्नी 45 वर्ष की अधेड़, निखरे रंग की सुंदर, सुघढ़ महिला थीं. उन्होंने एक बार दबे मन से विनायक के लिए कुछ करने की बात कही थी लेकिन बिमलजी ने यह कह कर, ‘मरने वाले के साथ खुद नहीं मरा जाता,’ उन्हें चुप करा दिया था.

चिमटे से बर्फ खोद कर उस ने स्टोव पर अपने लिए बगैर दूध वाली गुड़ की चाय बनाई. बर्फ से सख्त डबलरोटी के एक टुकड़े को चाय में डुबोडुबो कर खाया. पर लगा, कुछ भी भीतर जाने को तैयार नहीं है. उस ने पूरी मनोशक्ति लगा कर भीतर के पदार्थ को बाहर आने से रोका. विनायक को लगा कि चायरोटी के बावजूद उस की 2 दिनों की भूखी काया की प्रतिरोधक शक्ति में कोई वृद्घि नहीं हुई है. बिस्तर में घुसते ही अर्धचेतनावस्था ने उसे फिर घेर लिया.

भैया, भाभी और नौटी, जो कि छठी क्लास में फिर फेल हो गई थी, फेल होने का उसे कोई मलाल नहीं था. विनायक ने नौटी को पढ़ाने की कोशिश की, मगर नतीजा…वह खुद भी लड़की के साथ तितलियों, गिलहरियों के पीछे भागने लगा. अहिल्या कभी खीझ कर तो कभी मुसकरा कर अपना माथा पीटने लगती, ‘कमाल की लड़की जन्मी है मेरी कोख से…आज चाचा को गिलहरी के पीछे दौड़ा रही है, कल बाप को दौड़ाएगी और फिर ससुराल जा कर मेरा नाम रोशन करेगी.’

नयन…हां, नयन को ही खोज कर लाया था, विनायक. 20 साल की लंबी, सांवली, छरहरी बंगाली लड़की…सदर मुकाम खुलना…वहीं से अपने चाचा राखाल के साथ शरणार्थी बन कर वह 1981 में बंगलादेश की सीमा पार कर पहले कलकत्ता, फिर वहां से दिल्ली और अंत में दिल्ली से गाजियाबाद आई थी. राखाल, भैया की कपड़े की दुकान में काम करता था. दिनभर ग्राहक निबटाने के बाद वह रात 9 बजे पूरा हिसाबकिताब निबटा कर गुलजारी लाला के ठेके से शराब पीता हुआ अपने घर लौटता था. पैसे के लिए मुंह न फाड़ने वाला राखाल दारू वाले ऐब के अलावा बाकी सब मामलों में सीधासादा, काम से काम रखने वाला एक मुनासिब किस्म का आदमी था.

प्रथम श्रेणी में एमए करने के बाद विनायक भी सुबह 9 से 12 बजे तक दुकान में बैठता था. दुकान में ही भोजन कर के लाइब्रेरी चला जाता, जहां से पढ़ कर शाम को 5-6 बजे तक घर वापस आता. कुछ देर वह नौटी को पढ़ाता या उस के साथ खेलता. भाभी के साथ रात 9 साढ़े 9 बजे खाना खाता. फिर 2-3 घंटे पढ़ता और सो जाता.

वह अखिल भारतीय या इसी किस्म की दूसरी सेवाओं में जाना चाहता था. उस की भाभी भी यही चाहती थीं, लेकिन भैया, विनायक की बात सुन कर धमकी देने लगते थे, ‘भई, हम से अकेले यह सब नहीं होता. यदि विनायक नौकरी पर गया तो मैं दुकान बंद कर घर बैठ जाऊंगा.’

एक दिन भैया किसी पेशी में कोर्ट गए हुए थे. वह अकेला राखाल के साथ दुकान देख रहा था कि एक लड़का उस के सामने तह की हुई एक चिट्ठी फेंक कर भाग गया.

पत्र 2 लाइनों का था, ‘जुबली रेस्तरां में फौरन मिलिए. किसी के जीवनमरण का प्रश्न है. हरे रंग की साड़ी और उसी रंग के ब्लाउज में आप मुझे पहचान जाएंगे.’

विनायक शर्मीला लड़का था. लड़कियों का सामना पड़ने पर तो उस की जान ही निकल जाती थी. सोचा, जाऊं या न जाऊं? लेकिन जीवनमरण का प्रश्न. उंह, ऐसा तो झूठ भी लिखा जा सकता है. पता नहीं कौन हो,

कैसे चालचलन की हो. बात भैया के कानों तक पहुंच सकती है और उन के मुंह से भाभी के कानों तक भी. इस के बाद दुनियाभर के सवालों का सिलसिला.

रेस्तरां के केबिन में अपने सामने विनायक को बैठाते हुए उस ने कहा, ‘मेरा नाम नयन है. मैं आप को जानती हूं. मेरे बारे में आप, बस, इतना जान लें कि मैं आप की दुकान के कर्मचारी राखाल की भतीजी हूं.’

‘ओह,’ विनायक की घबराहट में थोड़ी कमी आई.

‘मेरे चाचाजी आजकल खूब शराब पीने लगे हैं. मेरी दिवंगत चाची को चाचाजी बहुत प्यार करते थे. वे कहते हैं, ‘नयन, तेरी चाची मुझे रोज रात में दिखाई देती है. जब नहीं पीता तो नहीं दिखाई देती.’ अब बताइए, मैं उन्हें कैसे रोकूं? आप और आप के भैया हमारे अन्नदाता हैं. हम आप के आश्रित हैं. एक आश्रिता की याचना समझ कर आप इस मामले में कुछ कीजिए.’

‘आप वैसे करती क्या हैं?’ समस्या का समाधान विनायक की समझ में न आ रहा था. सो, फिलहाल इस से नजात पाने के लिए उस ने वार्त्ता का रुख मोड़ा.

‘एमए कर रही हूं, अंगरेजी साहित्य में.’

‘बीए में कौन सी डिवीजन थी?’

‘प्रथम.’

विनायक को लगा कि इस समय भी नौटी बगीचे में गिलहरियों के पीछे भाग रही होगी. ‘आप क्या मेरा एक काम कर सकती हैं?’

‘हां, यदि मेरी सामर्थ्य में हुआ तो.’

‘आप मेरी नौटी को पढ़ा दिया कीजिए.’

‘नौटी, यानी?’

‘मेरी भतीजी, छठी क्लास में फेल हो गई है.’

‘पढ़ा दूंगी, 2 घंटे रोज ठीक रहेगा?’

‘बिलकुल ठीक रहेगा. क्या लेंगी?’

‘मैं ने कहा न, मैं आप लोगों की आश्रिता हूं. जैसा आप उचित समझें.’

‘8 सौ रुपए महीना ठीक रहेगा?’

‘कल से पढ़ाना शुरू कर दूंगी. लेकिन मेरा काम?’

‘यह काम मेरा नहीं, भाभी के करने का है. आप उन्हीं से कहिएगा. आप उन्हें नहीं जानतीं, वे सबकुछ कर सकती हैं. वे जितने अधिकार से मेरी बात भैया तक पहुंचाती हैं, उतने ही अधिकार से आप की बात भी पहुंचाएंगी.’

इस के बाद उचितअनुचित बहुतकुछ हो गया. पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती रहती है और प्रकृति इस घूमती धरती के वासियों को किस्मकिस्म के अनजाने खेल खिला कर हंसाती, रुलाती रहती है.

उम्मीद से जल्दी ही राखाल बाबू का निधन हो गया. भाभी नयन को अपने घर ले आईं. दारुण दुखों की बेला में वह पूस की धूप की तरह नयन के जख्मों को ठोंकती हुई बोलीं, ‘अच्छाखासा लड़का देख कर तुम्हारे हाथ पीले कर दूंगी. बस, अपनी जिम्मेदारी खत्म. तब तक यहीं रहो, मेरी छोटी बहन की तरह.’

नौटी थोड़ाबहुत पढ़ने लगी थी. नयन यदाकदा विनायक को दिखाई पड़ जाती. हालांकि दोनों एक ही घर में रह रहे थे.

एक दिन नौटी ने विनायक से कहा, ‘चाचू, अपनी तसवीर बनवाओगे?’

‘तसवीर? तू बनाएगी?’

‘मैं नहीं, नयन दीदी बनाएंगी. उन्होंने मेरी और मां की तसवीरें बनाई हैं. तुम भी बनवा लो. सच, बहुत सुंदर बनाती हैं.’

अगले दिन नौटी, विनायक को जबरदस्ती नयन के कमरे में ले गई. उस समय वह कहीं बाहर गई हुई थी. किसी लड़की के कमरे में उस की अनुपस्थिति में घुसना अच्छी बात नहीं होती, लेकिन वह गया. नौटी की जिद के आगे, हार कर गया. कमरे में चारों तरफ विभिन्न आकार की लगी पेंटिंग्स को दिखलाते हुए नौटी ने सगर्व कहा, ‘देखा चाचू, मैं कहती थी न कि हमारी नयन दीदी…’

नौटी की बात पूरा होने से पहले नयन ने कमरे में अपने पैर रखे, ‘आप?’

लज्जा, शर्म से विनायक का चेहरा काला पड़ गया, जैसे कोई चोर चोरी के माल के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया गया हो.

‘क्षमा चाहता हूं. यह नौटी उचितअनुचित कुछ नहीं समझती.’

‘इस में अनुचित क्या हुआ?’ नयन सहजता के साथ बोली, ‘आप का घर है. मेरा तो यहां अपना चौका तक नहीं है. भाभी ने सबकुछ अपने में समेट लिया है वरना मैं आप को चाय पिलाती.’

‘इतनी सारी पेंटिंग्स स्कैच, सब आप ने बनाए हैं?’

‘हां.’

‘बहुत अच्छे बने हैं.’

‘जैसे भी हैं, ये मेरे अपनों जैसे अंतरंग हैं. ये मुझ से बातें करते हैं और मैं इन से बतियाती हूं. इन की बातें, इन के सुखदुख और दर्दव्यथाएं इन के चित्रों में भर देती हूं.’

रात को खाना खाते समय भाभी ने पूछा, ‘मुन्ना, बोल तो कैसा लगा?’

‘क्या, कैसा लगा?’

‘नयन का कमरा, उस की बनाई तसवीरें और वह खुद?’

उसे लगा, एक अपराधबोध, जो दब चुका था, फिर कराह बन कर उभर रहा है. विनायक को कोई जवाब न देता पा कर भाभी फिर कहने लगीं, ‘वैसे, लड़की है अच्छी, रंग थोड़ा दबा जरूर है पर चेहरे से नजर हटाने को जी नहीं चाहता. बंगालिन है, मांसमछली जरूर खाती होगी. अपना वैष्णवों का घर है. और फिर, हम बनिए हैं और वह ब्राह्मण. ब्राह्मण माने गुरुजन. बिना मांबाप की बेटी. उसे देख कर मन न जाने कैसा हो जाता है. कौन जाने किस कुपात्र, सुपात्र के हाथ पड़े. पर मन करता है कि मैं अपने वे कंगन नयन के हाथों में पहना दूं जो कभी मांजी ने मुझे पहनाए थे.’

‘भाभी, एक अनजान लड़की का इतना मोह,’ भाभी की व्यथा देख कर विनायक को अजीब सा लगा.

‘मुन्ना, वैसे एक बात मैं तुझे बता दूं, अगर मैं अपनी पर आ जाऊं तो तेरे भैया की मुझ से बाहर जाने की हिम्मत नहीं हो सकती. दुकान उन की है, पर यह घर मेरा है.’

‘भाभी, जो होना नहीं, उस पर इतनी मायाममता क्यों, किसलिए?’

‘होना तो नहीं है,’ भाभी आंचल से आंखें पोंछने लगीं, ‘अगर हो जाता तो सच, मैं जी जाती.’

‘मतलब यह कि तुम्हारी नजर में मेरी पसंदनापसंद कुछ नहीं?’

‘तू, तू क्या है, मेरी पसंद के सामने सिर झुका लेने के अलावा क्या कोई दूसरा उपाय है तेरे पास? तू मुझ से बाहर जाएगा तो मैं मर नहीं जाऊंगी. ’

विनायक की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘मुझे भाभी का और भाभी को नयन का इतना मोह.’

‘भाभी को नयन इतनी अच्छी लगती है,’ विनायक बिस्तर में लेटा सोचता रहा, ‘काश, मैं पृथ्वीराज चौहान की तरह उस का हरण कर भाभी के चरणों में उसे डाल कर उन को सुखी कर सकता तो…’

उस रात विनायक देररात तक सो न सका. नीचे नयन के कमरे में बत्ती जल रही थी. विनायक शराब नहीं पीता, कोई दूसरा नशा भी नहीं करता, लेकिन नयन के कमरे में जल रही बत्ती को देख कर उसे ऐसा लगा, मानो तेज शराब की आधी से ज्यादा बोतल का नशा उस पर सवार हो गया हो. उन्मादी की तरह वह एक के बाद एक सीढि़यां लांघता हुआ बिना द्वार खटखटाए नयन के कमरे में घुस गया. वह तन्मय भाव से रंगों को स्कैच में भर रही थी. विनायक को देखते ही वह सख्त लहजे में बोली, ‘घड़ी इस वक्त रात के साढ़े 12 से ज्यादा बजा रही है. और आप बिना द्वार खटखटाए चुपके से एक चोर की तरह मेरे कमरे में घुस आए. आप को शर्र्म नहीं आई?’

विनायक की सांस फूल रही थी. होश या बेहोशी में उस के मुंह से निकला, ‘वैसे, पानी मक्खन से भी कोमल होता है, परंतु उन्माद आने पर वह मजबूत दीवार तोड़ डालता है. जो रोके रुक न पा रहा हो, मेरी दशा भी कुछ ऐसे ही पानी जैसी है. मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं, कुछ मांगना चाहता हूं…’

‘आप होश में नहीं हैं. लगता है आप ने नशा कर रखा है. आप अभी जाइए.’

विनायक संभला नहीं और लड़खड़ा गया. फिर चीख कर बोला, ‘जब आप कहती हैं तो ठीक है, समझिए मुझ पर नशा ही सवार है. मगर किस का, यह आप समय रहने पर ही जानेंगी. बाकी आज मैं आप से अपनी बात कह कर रहूंगा, फिर चाहे जो भी हो जाए. चाहे मैं मर जाऊं, चाहे आप मर जाएं. लेकिन मैं…’

‘विनायक बाबू, इस वक्त आप जाइए. मैं आप की आश्रिता हूं. जो आश्रय देता है, वह महान होता है,’ इतना कहने के बाद उस ने पूरी शक्ति के साथ विनायक को अपने कमरे से बाहर ढकेल कर दरवाजा बंद कर लिया.

अगली सुबह नयन न जाने कहां चली गई. विनायक पूरी रात सो न पाया था. सुबह 6 बजे उस की पलक झपकी थी. तभी भाभी ने उसे झकझोर कर जगाया था, ‘मुन्ना, उठ तो. देख, नयन अपने कमरे में नहीं है. न जाने कहां चली गई. उस के कपडे़, उस की अटैची भी नहीं है. बाकी सबकुछ जैसा का तैसा पड़ा है.’

कमरे के बाहर एक नया दिन जन्म ले रहा था और भीतर, जहां विनायक लेटा था, एक अंधेरा फैलता जा रहा था. विनायक बड़बड़ाया, ‘भाभी, जाओ, अपना काम देखो. नयन को भूल जाओ. वह वापस न आने के लिए ही गई है.’

‘मेरी तो कोई बुरी इच्छा नहीं थी. मैं ने तो उस का देहईमान कभी पाना नहीं चाहा था,’ विनायक हथेलियों के बीच दोनों कनपटियां दबाए सोच रहा था, ‘आश्रयदाता कहां था? मैं तो भाभी की बात उस से कहने गया था. मगर कैसे, छिछि, सोच कर लज्जा आती है. प्रायश्चित्त, हां, मैं यही करूंगा. नौकरी, चाकरी, दुकान…कुछ नहीं करना है मुझे. अब मेरी कोई मंजिल नहीं है सामने, केवल रास्ते हैं. नयन से अधिक दीनहीन, बन कर अनजानी राहों पर भटकूंगा.’

विनायक कई बार नयन के कालेज गया. किसी ने कहा कि वह पहाड़ों पर चली गई है तो किसी ने बताया कि वह एक अनजाने गांव में अज्ञातवास कर रही है. वह सबकुछ छोड़छाड़ कर स्वयं को दंड देने के लिए अनजानी राहों पर निकल पड़ा. नयन की कहानियां, कविताएं, लेख प्रकाशित होते रहते थे, उन के जरिए उस ने उस का पता जानने की कोशिश की. हर बार एक पोस्टबौक्स नंबर उसे दे दिया जाता. वह वहां यानी पोस्टऔफिस पहुंचता पर पता चलता कि वह उस जगह को छोड़ कर कहीं और चली गई है. इसी तरह कई माह बीत गए.

और अब, चारों तरफ बर्फ ही बर्फ है. बिजली नहीं, पानी नहीं, खाना नहीं. जनशून्य धरती. दूनागिरि का एकाकी प्रवास और वह, तिलतिल कर पूरी तरह चुकचुका एक निस्सहाय जीव, धीरेधीरे मनमस्तिष्क पर सैकड़ों केंचुओं की तरह रेंगरेंग कर बढ़ रही अवचेतना.

सहसा कोई खट्टी सी, मीठी सी चीज विनायक को अपने गले के नीचे उतरती महसूस हुई.

‘‘कौन, बिमलजी?’’ आप लौट जाएं?’’ विनायक कराहा.

‘‘ज्यादा बात नहीं, अच्छे बच्चे की तरह, जो दिया जा रहा है, उसे लेते जाओ.’’

‘‘तो क्या आप बिमलजी की पत्नी हैं?’’

कोई जवाब न मिला. विनायक को लगा कि वह खट्टामीठा तरल पदार्थ ऐसे ही हजारों सालों से इन्हीं हाथों से पीता चला आ रहा है. 2 हाथ धीरे से रेंग कर उस के तलुए सहलाने लगे. तब ऐसा लगा, मानो प्राण आंखों तक लौट आए हैं.

उस ने धीरे से आंखें खोली, ‘‘नयन, आप?’’

‘‘आप नहीं, तुम कहो. मैं भी तुम्हें तुम ही कहूंगी.’’

‘‘यहां कैसे पहुंची?’’

‘‘रानीखेत के पोस्टऔफिस में अपनी डाक लेने गई थी,’’ नयन ने जवाब दिया, ‘‘वहां मुझे एक अधेड़ दंपती मिले. वहां तुम्हारा जिक्र होने से जाना कि तुम उन्हीं के मकान में रह रहे थे. बिमलजी की पत्नी कह रही थीं, ‘उस गाजियाबाद के आदमी को मरने के लिए अकेला छोड़ कर हम ने अच्छा नहीं किया,’ बस, मैं सब समझ गई कि वह तुम हो. उन से पता पूछ कर यहां चली आई.’’

‘‘लेकिन मैं, मेरा दोष, क्या तुम ने मुझे…?’’

‘‘गाजियाबाद में मेरी एक सहेली है, वह मुझे तुम्हारे, तुम्हारे घर के बारे में समाचार भेजती रहती है. उसी ने बताया कि तुम अपनी भाभी के हुक्म से उस रात मेरे कमरे में भाभी की बात कहने चले आए थे.’’

मेज पर रखे गुलदस्ते में 20 दिन पुराने गुलाब के फूल रखे थे. विनायक ने उस में से एक मुरझाया फूल निकाला, ‘‘जरा घूमो, तुम्हारे जूड़े में मैं यह गुलाब तो लगा दूं.’’

‘‘खबरदार, जो मेरे बालों में फूलवूल लगाया,’’ नयन ने आंखें तरेरीं, ‘‘मुझे तुम्हारा सामान बांधना है. पिघल रही बर्फ पर ड्राइवर जीप कैसे लाया और कैसे नीचे ले जाएगा, यह वह ही जानता होगा. जूड़े में लगा फूल देख कर वह क्या सोचेगा.’’

‘‘लेकिन यह फूल, इस का मैं क्या करूं?’’

‘‘संभाल कर रखे रहो. मैं ने गाजियाबाद फोन कर दिया है. अब तक भैया, भाभी और नौटी खुनौली पहुंच चुके होंगे. वहां चल कर भाभी के सामने यह फूल मेरे जूड़े में लगाना. अगर लगा सके तो मैं तुम्हारी गुलाम, वरना तुम्हें सारी जिंदगी मेरी…’’

‘‘देख लेना, भाभी के सामने मैं यह फूल लगा ही दूंगा. लेकिन तुम मेरी गुलाम बन कर नहीं, मेरी आंखों का तारा, मेरी नयनतारा बन कर रहोगी.’’

नीचे जीपचालक हौर्न बजा रहा था.

एक प्यार का नगमा: किस गैर आदमी से बात कर रही थी नगमा

नगमा आजाद खयाल की थी और वह मायके में सब को बहुत पसंद थी, मगर मुझे और मेरे परिवार वालों को इस तरह की आजाद परिंदों की तरह उड़ान भरने जैसी बातें कम ही रास आती थीं. नगमा ने अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएशन किया था और इतनी पढ़ाई उस के मायके से ले कर मेरे घर तक में किसी ने भी नहीं की थी.

आज नगमा को छोड़ कर कोई भी औरत हमारे घर में स्कूटी चलाना नहीं जानती है. बाजार स्कूटी से जाना और घरेलू सामान को खुद जांचपरख कर खरीदना उस को बेहद पसंद हैं. खरीदारी के लिए अकसर नगमा शहर के नामी मौल में जाना पसंद करती है पर सच कहूं तो मौल है बड़ी नामुराद जगह, वहां तो आदमी जरूरत के सामान से ज्यादा फालतू का सामान खरीद ले आता है. इस सामान के साथ यह औफर है तो उस सामान के साथ वह मुफ्त में मिल रहा है. अरे साहेब, जहां आज के दौर में पानी मुफ्त नहीं मिल रहा है तो कोई
कुछ और सामान मुफ्त मिलने की उम्म्मीद भी कैसे कर सकता है भला?

मौल के अंदर ऊपर वाले फ्लोर तक जाने के लिए नगमा हमेशा ही ऐस्कलैटर का प्रयोग करती है. अब भला यह भी कोई अच्छी तकनीक है, बस पैर जोड़ कर खड़े हो जाओ और ऊपर पहुंचने का इंतजार करो. कहीं पैर आगे बढ़ाने में जरा सा भी चूक गए तो मुंह के बल गिरने से कोई रोक नहीं सकता. अरे, कम से कम बगल में ही सुंदर सी सीढ़ियां भी तो बना रखी हैं, उन को काम में लाओ तो हाथपैरों में हरकत बनी रहे.

पर नगमा को तो हर नई चीज से प्यार हो जाता था. वैसे भी खरीदारी करते समय मैं सिर्फ गाड़ी में सामान रखने और भुगतान संबंधित काम ही देखता था बाकी खरीदारी के लिए तो जिम्मेदार नगमा ही थी.

एक दिन की बात है मैं नगमा के साथ खरीदारी करने के बाद घर पंहुचा ही था कि मेरा मोबाइल बजने लगा. नया नंबर था इसलिए जान नहीं सका कि उधर से कौन था पर कुछ देर बाद पता चला कि आदिल बोल रहा था.

आदिल मेरा चचेरा भाई था जो दुबई से भारत आ रहा था और आते ही मेरे घर पर रुकेगा ऐसा बता रहा था. उस की बातें सुन कर मेरा माथा बहुत बुरी तरह ठनका था क्योंकि मैं आदिल को बिलकुल पसंद नहीं करता था, जिस का कारण यह था कि आदिल भी नगमा के साथ अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी में पढ़ता था और दोनों में काफी लगाव भी था, कुछ ज्यादा ही लगाव जिसे प्यार की संज्ञा दी सकती है और इसी कारण दोनों के परिवार वालों ने आदिल और नगमा की शादी तय कर दी थी.

दोनों का निकाह हो ही गया होता अगर आदिल ने निकाह के ठीक बाद नगमा को अपने साथ दुबई ले जाने की शर्त न रख दी होती. हालांकि मैं अपने रिश्तेदारों से यह जान चुका था कि यह शर्त उस ने जानबूझ कर इसलिए रखी है क्योंकि वह भले ही प्यार तो नगमा से करता था पर नगमा के परिवार वालों की तरफ से जो दहेज उसे दिया जा रहा था उस से वह खुश नहीं था और कहीं और रिश्ता होने पर उसे ज्यादा रकम मिलने की उम्मीद थी. उसे लालच भी था, इसलिए आदिल ने यह दोहरी चाल चली.

आदिल जानता था कि नगमा के घर वाले उसे दुबई नहीं भेजेंगे क्योंकि वह उन की इकलौती लड़की है और नगमा की अम्मी भी बीमार रहती हैं.आदिल को नगमा से निकाह तोड़ देने में कोई बड़ी बात नहीं लगी बल्कि इस में भी नगमा के सामने वह उस के अम्मी और अब्बा को ही दोष देता
रहा.

निकाह टूटने के बाद नगमा अवसाद का शिकार होने लगी तो मेरे अब्बू ने आगे बढ़ कर नगमा और मेरा निकाह करा दिया. मैं तो अब्बू की मरजी के आगे कुछ बोल न सका और वैसे भी नगमा जैसी खूबसूरत लड़की को ठुकराने का कोई मतलब ही नहीं था.

नगमा की हालत खराब हो रही थी. उस को उस हालत से निकालने में मेरा किरदार अहम रहा. मैं ने नगमा को समझाया कि जो भी हुआ है उस में उस का कोई दोष नहीं है. यह सब सिर्फ आदिल के लालच के कारण हुआ है. अगर इस में किसी को भी शर्मिंदा होने की जरूरत है तो वह आदिल है.

मेरी लाख कोशिशों के बाद नगमा के चेहरे पर ही मुसकराहट आई थी पर भला मुझे क्या पता था कि आज इतने सालों बाद आदिल फिर सामने आ कर खड़ा हो जाएगा और मेरे और नगमा के पूरे वजूद को हिला कर रख देगा.

फिर जब नगमा से इतनी ही तल्खी हो गई थी तो आज आदिल मेरे पास क्यों आ रहा है? वह नगमा से कैसे मिलेगा? क्या उसे शर्म नहीं आएगी? और फिर वह मेरी और नगमा की शादी के बारे में भी सब जानता है.

अगली सुबह ही आदिल हमारे घर पर आ गया. कई बड़ेबड़े ब्रीफकेस और बैग थे उस के साथ. हां, यह जरूर कहना पड़ेगा कि पहले से अधिक खूबसूरत हो गया था आदिल. गोरा रंग, लंबा कद, क्लीन शेव, चेहरा और आंखों पर महंगा चश्मा.

उसे देख कर मुझे जलन हो रही थी. शायद इसलिए क्योंकि आज आदिल हर तरीके से मुझ से बेहतर माली हालत में था और नगमा व आदिल के पहले के रिश्तों के बारे में मुझे पता था.

आदिल ने आते ही समां बांध दिया. अम्मीअब्बू के लिए दुबई से चश्मे का फ्रेम, मेरे लिए पेन का सैट और इत्र. हमारी बेटी फुजला के लिए गुड़िया और विदेशी खिलौने वगैरह… यह सब देख कर मैं अंदर ही अंदर जला जा रहा था रहा था.

इतने में आदिल ने एक गिफ्ट का छोटा सा डब्बा नगमा की तरफ बढ़ा दिया. नगमा ने मुझ से इशारोंइशारों में ही पूछा कि तोहफा स्वीकार करूं या नहीं? मैं ने भी आंखों से ही उसे बता दिया. नगमा ने हाथ बढ़ा कर गिफ्ट ले लिया.

आदिल की यह बात मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लग रही थी या उस के रसूख के सामने मैं अपनेआप को कमतर महसूस कर रहा था. ड्राइंगरूम में पार्टी जैसा माहौल था. फुजला आदिल के साथ बेफिक्री से खेल रही थी और अम्मी और अब्बू को आदिल दुबई की शान और
शानोशौकत भरी जिंदगी के बारे में बारबार बता रहा था. आदिल की सारी अदाएं देख कर मैं ने भी अपने चेहरे पर एक फर्जी मुसकराहट चिपका ली गोया मुझ पर उस की इन सब बातों का कोई असर ही न हो रहा हो पर अंदर ही अंदर मैं कुढ़ रहा था. तभी आदिल ने घूमने जाने का प्लान बना लिया.

“इमामबाड़ा और चिड़ियाघर घूमे हुए काफी समय हो गया है. चलो हम सब लोग घूम कर आते हैं,” आदिल ने मुझ से भी साथ चलने को कहा.

मन में तो आया कि तुरंत ही मना कर दूं पर मुझे लगा की ऐसा कहना गलत होगा. बड़े ही भारी मन से मैं ने चलने के लिए हामी भर दी. हम सब दिनभर घूमफिर कर शाम को घर आए. मन और दिमाग पूरी तरह से थक चुका था. रास्ते में नगमा आदिल से काफी बेपरवाही से बात कर रही थी. मैं ने कनखियों से कई बार देखा भी कि नगमा आदिल की हर बात में हामी भर रही थी. रैस्टोरेंट में भी दोनों ने एकदूसरे की थाली से खाने की चीजों की अदलाबदली करी.

मेरे दिल का हाल सिर्फ मैं ही जानता था. शाम को सिरदर्द का बहाना बना कर मैं कमरे में लेट गया पर नींद आंखों से कोसों दूर थी. कारण था ड्राइंगरूम से आदिल और नगमा की हंसती हुई आवाज… कमबख्तों को इतना भी लिहाज नहीं है कि अम्मीअब्बू के सामने जरा कम बात करें पर आंखों का पानी तो बिलकुल ही मर गया है.

रात में मुझे 2 बजे नींद आई या 3 बजे मुझे कुछ नहीं पता. सुबह आंख खुली तो देखा कि नगमा किचन में व्यस्त थी. अच्छा तो मैडम अब नाश्ता भी आदिल की पसंद से ही बनाएंगी, पर कुछ भी हो अब मैं यह लैलामजनू की कहानी और नहीं सहन कर पाऊंगा. मैं आज ही आदिल से साफसाफ बात कर लेता हूं कि भाई देखो, रिश्तेदारी तो अपनी जगह है पर शादीशुदा जिंदगी अपनी जगह है. वह मेरी जिंदगी में और जहर न घोले और यहां से चला जाए. अपने मन में एक कड़ा निश्चय ले कर बिस्तर से उठा और नहाधो कर नाश्ते की टेबल पर जा बैठा. सब लोग वहां पहले से ही बैठे हुए थे. नगमा भी अपनी हर्बल चाय ले कर आ गई थी. वहां पर आदिल नहीं था. पूछने पर पता चला कि बाहर घूमने गए थे अब तक लौटे नहीं. उस का यहां न होना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.

तभी मेज पर रखा हुआ नगमा का मोबाइल बज उठा. मेरी नजरों ने आंखों के कोने से देखा, स्क्रीन पर आदिल का नाम लिखा आ रहा था. मुझे ऐसा लगा कि नगमा ने मेरी नजरों से बचते हुए मोबाइल को उठा कर कान से लगा लिया हो और किचन की तरफ बात करते हुए बढ़ गई हो. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि आखिर नगमा ने मेरे सामने वहीं पर बात क्यों नहीं की? किसी का भी फोन होता है तो नगमा मेरे सामने ही बात कर लेती है फिर आज आदिल का फोन आने पर वह किचन में क्यों चली गई?

दिमाग में बवंडर चलने लगा. सामने प्लेट में नाश्ता पड़ा हुआ था पर मेरी आंखों को वह सब नहीं दिखाई दे रहा था. हालांकि नगमा 10 मिनट बाद ही वापस आ गई थी पर मेरे लिए यह 10 मिनट 10 साल जैसे लग रहे थे.

नगमा एकदम शांत सी लग रही थी. उस के चेहरे पर किसी भी तरह के भाव पढ़ पाने में मैं नाकाम था. क्या पूछूं और कैसे पूछूं? नगमा मेरे इस तरह से उस के फोन की जासूसी करने पर क्या कहेगी?

पर इस तरह से आदिल का नगमा के मोबाइल पर फोन आना मुझे नागवार गुजर रहा था और मैं बेचैन था कि मैं कैसे उन दोनों के बीच की बातों को जान या सुन सकूं. मुझ से नाश्ता नहीं किया गया. मैं बालकनी में जा कर टहलने लगा था और दिमाग लगा रहा था कि दोनों के बीच की बातों को कैसे जाना जाए?

अचानक से मुझे मोबाइल फोन के कौल रिकौर्डर का ध्यान आया जोकि लगभग हर मोबाइल में होता है और जिस में हर आने जाने वाली कौल रिकौर्ड हो जाती है. ऐसा सोच कर मुझे कुछ सुकून मिला. अब मैं काफी रोमांचित महसूस कर रहा था और काफी उत्तेजित भी हो रहा था. अब तो मुझे नगमा के मोबाइल की तलाश थी और वह तलाश जल्दी ही खत्म हो गई जब नगमा ने मोबाइल को नाश्ते की टेबल पर ही रख दिया और बरतन समेट कर किचन में चली गई.

मैं ने मौका ताड़ा और नगमा का मोबाइल ले सीधा अपने कमरे में घुस गया और कमरा बंद कर लिया और मोबाइल में कौल रिकौर्डर को ढूंढ़ने लगा.

शुक्र था कि इस मोबाइल में कौल रिकौर्डर था. आवाज बाहर न जाए इसलिए मैं ने कान में ईयरफोन लगा लिया और दोनों के बातचीत की रिकौर्डिंग सुनने लगा…

“हैलो… हां, हैलो नगमा. देखो फोन मत काटना. मुझे तुम से कुछ बात करनी है. मैं अपनी उस हरकत पर बहुत शर्मिंदा हूं कि मैं ने तुम से निकाह तोड़ दिया था. दरअसल, उस समय हालात ही कुछ ऐसे थे कि मुझे दुबई जाने के लिए पैसों की जरूरत थी और इसलिए मैं ने तुम से निकाह न कर के किसी दूसरी जगह निकाह किया पर उस लड़की से शादी करना मेरी बड़ी भूल साबित हुई. मैं उस से शादी कर के आज तक खुश नहीं
हो पाया हूं.”

“पर तुम आज यह सब बखेड़ा इस तरह से फोन पर क्यों बता रहे हो मुझे?” नगमा बोल रही थी.

“हा, जो गलती मैं ने कर दी थी उसे अब सुधारना चाहता हूं. मैं जानता हूं कि तुम्हारा निकाह करना भी एक समझौता ही था जो तुम ने हालात से मजबूर हो कर किया था… मैं भी दुखी और तुम भी परेशान… क्यों न हम दोनों एक नई जिंदगी की शुरुआत करें?

“मैं ने अपनी वाइफ को तलाक दे दिया है और यही मैं तुम से भी चाहता हूं कि तुम भी अपने शौहर को तलाक दे दो. मैं फुजला को भी अपना लूंगा…”आदिल कहे जा रहा था.

फोन पर थोडी देर सन्नाटा रहा. मैं नगमा का जवाब सुनने के लिए मरा जा रहा था.

“सुनो आदिल, जो हुआ जैसे भी हुआ वह सही ही था. तुम्हारे जैसे दहेज के लालची का क्या भरोसा? तुम जैसे लोग तो दहेज के लिए किसी लड़की की जान लेने से भी बाज नहीं आते और रही बात मेरे शौहर की तो उन से बेहतर शौहर मिलना तो मुमकिन ही नहीं है मेरे लिए… उन्होंने मुझे हर तरीके की आजादी दी है और मेरे हर काम में सहयोग करते हैं.

“बुरे वक्त में उन्होंने मुझे जो सहारा दिया वह किसी और के बस की बात नहीं थी.तुम ने यह बात सोच भी कैसे ली कि अब भी मैं तुम्हारी बन सकती हूं? मेरा तुम से हंसनाबोलना सिर्फ इसलिए है कि तुम मेरे शौहर के रिश्तेदार हो. तुम जैसे लोगों को बीवियां बदलने की आदत होती है जो मरते दम तक नहीं छुटती. पर मैं तुम्हे बता दूं कि मेरे शौहर मुझ से बहुत प्यार करते हैं जिस का सुबूत यह है कि मेरे और तुम्हारे बारे में जानने के बावजूद भी तुम्हारे यहां आने पर उन्होंने किसी तरह का सवाल नहीं उठाया.

“अब फोन रखो और दोबारा इस तरह करे बात करने की जुर्रत मत करना…”

फोन काटा जा चुका था. मैं ने एक लंबी सांस छोड़ी और मेरे सीने की धडकनें भी अब सामान्य हो रही थीं. मैं ने नगमा का मोबाइल नाश्ते की टेबल पर रख दिया. नगमा अब भी किचन में सफाई कर रही थी. अब्बू टीवी पर एक फिल्मी गाना देख रहे थे जिस के बोल थे,’एक प्यार का नगमा है…’

मेरी नगमा भी तो प्यार का नगमा ही ही है.

मोहपाश: क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

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नथनी: भाग 1- क्या खत्म हुई जेनी की सेरोगेट मदर की तलाश

उन के मुल्क में जितनी भी सुविधाएं और तकनीकें हासिल थीं, सब पर प्रयास कर डाले गए थे, पर सफलता की कोई भी गुंजाइश न पा कर वहां के सभी डाक्टरों ने डेविड को आखिरी जवाब दे दिया था. डेविड ने भारी मन से यह सचाई जेनी को बताई थी. इस पर उस का भी दुखी होना स्वाभाविक ही था.

डेविड खुद अमेरिका के जानेमाने डाक्टरों में से एक थे. लिहाजा, उन से कोई डाक्टर झूठ बोले, सवाल ही नहीं उठता था. फिर सारी की सारी पैथालाजिकल रिपोट उन के सामने थीं. उन को सचाई का ज्ञान हो चुका था कि कमी किस में है और किस किस्म की है. पर उस का हल जब था ही नहीं तो क्या किया जा सकता था. नाम, सम्मान और आर्थिक रूप से काफी मजबूत होने के बावजूद उन के साथ यह एक ऐसी त्रासदी थी कि दोनों ही दुखी थे.

डेविड जेनी को बहुत ज्यादा प्यार करते थे. जब जेनी बच्चे की लालसा में आंखें नम कर लेती थी, डेविड तड़प उठते थे. पर इस खबर से पहले हमेशा उसे धीरज बंधाते रहते थे कि सही इलाज के बाद उन्हें संतानसुख अवश्य मिलेगा.

यह खबर ऐसी थी कि न तो छिपाई जा सकी और न ही उस के बाद जेनी को रोने से रोका ही जा सका था. वह लगातार रोए चली जा रही थी और डेविड उसे कंधे से लगाए ढाढ़स बंधाए जा रहे थे कि अभी भी एक रास्ता बचा है.

जब जेनी की सिसकियां कुछ थमीं और उस की सवालिया निगाहें उठीं तो डेविड ने कहा, ‘‘एक  ‘सेरोगेट मदर’ की जरूरत  होगी जो यहां अमेरिका में तो नहीं, पर हिंदुस्तान में बहुत आसानी से मिल जाएगी और फिर हम एक बच्चा आसानी से पा सकेंगे.’’

जेनी ने डेविड की आंखों में झांका जो पहले से ही उस के स्वागत में बिछी हुई थीं. जेनी की आंखों में चमक आ गई. उस ने डेविड को अपनी बांहों में कस लिया और कई चुंबन ले डाले.

डेविड ने अपने मुल्क की करेंसी में व हिंदुस्तान की करेंसी में मामूली सी तुलना करने के बाद बताया कि हिंदुस्तान में मात्र 2-3 लाख में ‘सेरोगेट मदर’ आसानी से मिल सकती है, जबकि इस से 10 गुनी कीमत पर भी अमेरिका में नहीं मिल सकती. जेनी पहले हिंदुस्तान को बड़ी हेयदृष्टि से देखा करती थी. उस के बारे में नए सिरे से सोचने को मजबूर हो गई.

अब जेनी ने स्थानीय अखबारों में एक विज्ञापन दे डाला, ‘तुरंत आवश्यकता है एक दुभाषिये की, जिसे अंगरेजी और हिंदी का अच्छा ज्ञान हो’ और प्रत्याशियों का बेसब्री से इंतजार करने लगी. अपने यहां के अखबारों में हिंदुस्तान के बारे में जिन खबरों से खास चिढ़ थी, उन्हें ध्यान से पढ़ने लगी. मन एकाएक हिंदुस्तान के रंग में रंगा नजर आने लगा. जिस मुल्क को वह भिखारी और निरीह देश कहा करती थी, अब फरिश्ता नजर आने लगा था. वहां की सामाजिक व्यवस्था, राजनीति व संस्कृति आदि के बारे में जेनी कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जान लेने के लिए आतुर हो उठी.

एक अच्छे दुभाषिये के मिल जाने पर जेनी ने उस से पहली ही भेंट में तमाम सवाल कर डाले, ‘उस ने हिंदी क्यों सीखी? क्या वह कभी हिंदुस्तान गया था? क्या उसे हिंदुस्तानी रीतिरिवाजों का कुछ ज्ञान है? क्या वह कहीं से ऐसा साहित्य ला सकता है जो वहां के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दिला सके? क्या वह हिंदी के प्रचलित शब्दों और मुहावरों के बारे में जानता है आदि.’

यह सब जानने के बाद जेनी में इतना भी सब्र नहीं बचा कि वह डाक्टर डेविड को घर आने देती…उस ने फोन पर ही दुभाषिये के बारे में तमाम जानकारी उन्हें दे डाली. डेविड उस के दर्द से अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए किसी प्रकार का एतराज न करते हुए उसे आश्वस्त किया कि वह जल्दी ही हिंदुस्तान चलेंगे.

जेनी की भावनाओं की कद्र करते हुए डेविड ने भी हिंदुस्तानी अखबारों में एक ‘सेरोगेट मदर’ की आवश्यकता वाला विज्ञापन भिजवा दिया और बेताबी से जवाब का इंतजार करने लगे. मियांबीवी में अकसर हिंदुस्तान के बारे में जम कर चर्चाएं होने लगीं. उन लोगों को यहां के वैवाहिक विज्ञापनों पर बड़ा कौतूहल हुआ करता था. वह अकसर प्रणय व परिणय के बारे में अपने मुल्क और हिंदुस्तान के बीच तुलना करने बैठ जाते थे.

जब जेनी यह बताती कि हिंदुओं में लड़की वाले, शादी के लिए लड़के वालों के वहां जाते हैं, डेविड यह बताना नहीं भूलते कि मुसलमानों में लड़के वाले लड़की वालों के घर जाते हैं. मुसलमानों में लड़कियों में शीन काफ यानी नाकनक्श खासकर देखे जाते हैं. अगर किसी लड़की के यहां कोई भी लड़के वाला न आया तो वह आजीवन कुंआरी भी रह सकती है, पर धर्म के मामले में वह इतनी कट्टर होती है कि बगावत करने की हिम्मत कम ही कर पाती है.

सलमा एक ऐसी ही हिंदुस्तानी मुसलमान परिवार की लड़की थी. वह बहुत ही खूबसूरत थी, पर उस की बड़ी बहन मामूली नाकनक्श होने के कारण हीनता की शिकार होती चली जा रही थी. गरीबी के चलते बड़ी तो मदरसे की मजहबी तालीम से आगे नहीं बढ़ पाई थी, हां, छोटी ने 10वीं कर ली थी. बाप सब्जी का ठेला लगाता था. मामूली कमाई में 4 लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता था.

वैसे तो शहर में 20 साल की लड़की होना कोई माने नहीं रखता पर उस की खूबसूरती एक अच्छीखासी मुसीबत बन गई थी. दिन भर तमाम लड़के  उस की गली के चक्कर लगाने  लगे थे. बड़ी बहन के लिए कोई रिश्ता न आने से गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही थी. मांबाप की राय थी, पहले बड़ी लड़की निबटा दी जाए तब ही छोटी के बारे में सोचा जाए पर छोटी वाली के लिए तमाम नातेरिश्तेदारों के अलावा लोग टूटे पड़ रहे थे.

एक तो उम्र का तकाजा, उस पर गरीबी की मार. आखिर सलमा के कदम बहक ही गए. जिस घर में भरपेट रोटी नसीब न हो रही हो, उस घर की इज्जत क्या और ईमान क्या? सलमा एक हिंदू लड़के को दिल दे बैठी. क्यों का जवाब भी बड़ा अजीब था. वह जब अपनी हमउम्र सहेलियों को साजशृंगार किए देखती तो उस का मन भी ललचा जाता. काश, वह भी आने वाली ईद पर एक सोने की नथनी खरीद सकती.

यह बात कहीं से चल कर एक फल वाले नौजवान कमल तक पहुंच चुकी थी. उस ने सलमा से अकेले मिलने पर सोने की नथनी देने का वादा उस तक पहुंचवा दिया. पहले मिलन में ही कमल ने न जाने कौन सा जादू कर दिया कि दोनों ने न बिछड़ने की कसम ही खा डाली. नथनी की बात तो खैर काफी पीछे छूट गई.

दोनों का मामला धर्म के ठेकेदारों तक पहुंचा. उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि धर्म के ठेकेदार बड़े मामलों में ही हाथ डालते हैं, जिन से शोहरत व उन के निजी स्वार्थ सध सकें. एक मामूली सब्जी वाले की लड़की की इज्जत ही क्या होती है? ‘गरीबों में यह सब चलता है.’ कह कर कुछ लोगों ने टाल दिया, कुछ लोगों ने कुछ दिनों तक इस मुद्दे पर खूब चटखारे लगाए. मात्र एक रात का मातम मना कर मांबाप भी सामान्य हो गए. उन के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘एक तरह से ठीक ही हुआ.’’

कमल का चालचलन ठीक न होने के कारण उस के घर वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे. जब लड़की वाले राजी थे तो उन्होंने मजबूरी में हां कर दी थी पर शादी के बाद बेटे को घर से अलग कर दिया था.

पलभर का सच: भाग 3- क्या था शुभा के वैवाहिक जीवन का कड़वा सच

शादी होते ही उस ने अपनी अलग इंडस्ट्री खोल ली और उस में पूजा को भी बराबर का हिस्सेदार बना दिया है. पूजा को सचिन के साथ काम करते देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है. जब पूजा को आफिस में काम करते देखती हूं तो 10 साल पहले की एक बात मुझे याद आती है.

‘‘10 साल पहले शेखर ने जब अपने आफिस में ‘पर्सनल आफिसर’ के तौर पर कविता की नियुक्ति की थी तब जाने कितने दिनों बाद शेखर से मेरी फिर एक बार जबरदस्त लड़ाई हुई थी.

‘‘वह सिर्फ झगड़ा नहीं था शालो… शेखर मुझे मारने पर भी उतर आया था.’’

यह सबकुछ बताते हुए शुभा की आंखें भर आई थीं और फिर जाने कितनी देर तक आंसू बहाते हुए वह निशब्द सी हो कर बैठ गई थी.

शुभा की सारी बातें सुन लेने के  बाद मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि उस से क्या कहूं. मन में बारबार एक ही सवाल उठ रहा था कि शुभा जैसी तेजतर्रार लड़की इतने दिनों तक यों चुप कर दब कर क्यों रह गई.

कुछ न सूझते हुए भी मैं ने अनायास ही शुभा से बेहद सरल सवाल करने शुरू किए थे

‘‘तू इतने दिनों तक चुप क्यों थी? और अगर इतने दिनों तक चुप थी तो अब एकदम ही तलाक लेने की आफत क्यों मोल ले रही है? क्या अपनी खुद्दारी दिखाने का यही एक रास्ता बचा है तेरे पास? अपना विरोध हर कदम पर दिखा कर भी तो तू शेखर के साथ रह सकती है.’’

‘‘नहीं शालो, मेरी खुद्दारी, स्वाभिमान सब खत्म हो चुके हैं. अब मैं सिर्फ शांति से और अपने तरीके से जीना चाहती हूं.’’

‘‘मतलब, क्या करने वाली है तू?’’

‘‘यहां दिल्ली में एक वृद्धाश्रम खुला है. उस के संचालन का काम मुझे मिल गया है. सोचती हूं जरूरतमंद वृद्धों की सेवा करूंगी तो जीवन में कुछ करने की चाह भी पूरी हो सकेगी.’’

‘‘क्या शेखर ने इस की इजाजत दी है?’’

‘‘उस की इजाजत मिलेगी ही नहीं, यह मुझे पता है तभी तो पहले उस से तलाक ले कर अलग होने का फैसला लिया है. फिर अपना काम करूंगी.’’

‘‘क्या सचिन यह सब जानता है?’’

‘‘हां, जानता है और कुछ हद तक मेरी भावनाओं को समझता भी है मगर तुम्हारी तरह वह भी कहता है कि अब यह सब करने की क्या जरूरत है.’’

‘‘तो फिर सच में जरूरत क्या है, शुभा?’’

‘‘जीवन में ‘जरूरत’ शब्द की व्याख्या हर इनसान अपनेअपने मन से करता है और तब ‘जरूरत’ हर किसी की अलग हो सकती है…10 साल पहले शेखर ने जब अपने आफिस में कविता की नियुक्ति की थी तब हमारा आखिरी झगड़ा हुआ था. उस के बाद मैं ने कभी शेखर से झगड़ा नहीं किया…मैं अपनेआप से ही झगड़ती रही हूं…10 साल से शेखर के मुंह से कविता की तारीफ सुनसुन कर मैं ऊब सी गई हूं.

‘‘मैं जानती हूं कि इस में मेरी स्त्रीसुलभ ईर्ष्या भी हो सकती है लेकिन सच तो यह है कि शेखर के मुंह से कविता की तारीफ सुन कर मैं हैरान हो कर सोचती हूं कि एक इनसान इस तरह अलगअलग हिस्सों में अलगअलग बरताव कैसे कर सकता है.’’

‘‘तो क्या तू समझती है कि शेखर और कविता में कुछ चल रहा है?’’ मैं ने बड़े ही संयत स्वरों में पूछा.

कुछ देर तक तो शुभा चुप रही फिर बड़े ही अटपटे से स्वर में बोली, ‘‘मैं दावे के साथ कुछ नहीं कह सकती मगर यह सच है कि शेखर का अधिकतर समय अब उस के साथ ही बीतता है. मैं यह भी नहीं कह सकती कि शेखर का मेरी तरफ ध्यान ही नहीं है, वह आज भी मेरी हर जिम्मेदारी को पूरा करता है.

त्योहारों में मुझे गहने व साडि़यां दिलाना, मुझे पार्टियों में ले जाना, यह सब कुछ पहले की तरह ही चल रहा है क्योंकि शेखर के जीवन में मैं आज भी ‘बीवी’ नामक ऐसी चीज हूं जिस पर कानूनन शेखर का ही अधिकार है. लेकिन शालो, अब इस तरह सिर्फ एक कानूनन हकदार चीज बन कर रहना मेरे लिए नामुमकिन हो गया है.’’

‘‘और दोनों बच्चों के बारे में तुम ने क्या सोचा है?’’

‘‘बच्चों का सोचतेसोचते ही तो शेखर के साथ 30 साल गुजारे, शालो, अब बच्चे बच्चे नहीं रहे… उन के जीने के अपनेअपने तरीके हैं, उन्हें अपने तरीके से जीने दें…मुन्ना ने भी अपनी शादी तय कर ली है और उस की शादी होते ही मैं मुक्त हो जाऊंगी… जब भी बच्चों को मेरी जरूरत होगी, मैं उन के पास जरूर हो आऊंगी.’’

‘‘उम्र के इस पड़ाव पर आ कर अचानक इस तरह का निर्णय लेने से तुझे डर नहीं लगा?’’

‘‘नहीं, शालो, अब सच में डर नहीं लगता. जीवन भर मैं ने जो मानसिक यातनाएं भोगी हैं उन्हें अब दोबारा बहूबेटों के सामने भुगतने से डर लगता है और इसी से अब मैं निर्भय हो कर जीना चाहती हूं.’’

शुभा की कहानी सुन कर मैं कुछ देर तक तो निशब्द सी बैठी रही फिर शुभा को गले लगा लिया और बोली, ‘‘तेरे इस निर्भीक फैसले पर मुझे गर्व है, शुभा. तेरे इस अनोखे निर्णय में तेरी यह सहेली हमेशा तेरे साथ रहेगी. जब कभी किसी चीज की जरूरत पड़ेगी तो बेहिचक मेरे पास चली आना, समधन समझ कर नहीं, अपनी प्रिय सहेली समझ कर.’’

इतनी सारी मन की बातें मुझ से कह लेने के बाद मेरे कहने पर ही शुभा बहुत ही सामान्य हो कर 2 दिन तक रह गई थी. लेकिन तीसरे दिन एक अनोखी घटना ने शुभा को और मुझे हिला कर रख दिया था.

एक कार दुर्घटना में शेखर की अचानक मौत हो गई और शुभा का जीवन फिर एक बार शेखर से जुड़ गया था.

शुभा को ले कर तुरंत हम लोग मुंबई पहुंचे थे. तो एक बार फिर वह भूचाल में घिर गई थी.

मुंबई में इतने बड़े इंडस्ट्रीयलिस्ट की मौत का ‘नजारा’ किसी त्योहार से कम नहीं था.

शुभा की शुष्क आंखों ने पति की मौत का राजसी ठाटबाट भी ‘संयत’ मन से सह लिया था.

अब इतने बड़े उद्योगपति की विधवा होने का मानसम्मान भी उस के जीवन को त्याग नहीं सकता था. जिस मुक्ति की कामना वह कर रही थी वह तो अपनेआप ही मिल गई थी मगर किस ढंग से?

जीवन को खदेड़ देने वाले मुझ से कहे हुए उस पल भर के ‘सच’ को क्या वह कभी भूल सकती है? और क्या मैं कभी भुला पाऊंगी?

केले के कबाब रेसिपी

सामग्री

– 4 कच्चे केले

– कुट्टू का आटा (01 कप)

– अदरक  (1 छोटा टुकड़ा कद्दूकस किया हुआ)

– भुनी हुई खड़ी धनिया (02 चम्मच पिसी हुई)

– लाल मिर्च पाउडर (1/2 चम्मच)

– छोटी इलायची (03 पिसी हुई)

– नींबू का रस (1/2 चम्मच)

– 2 हरी मिर्च

– हरी धनिया (01 बड़ा चम्मच कटी हुई)

– घी (तलने के लिए)

– सेंधा नमक/नमक (स्वादानुसार)

केले के कबाब बनाने की विधि :

– सबसे पहले केलों को पानी में डाल कर उबाल लें.

– उबले हुए केलों को छीलकर एक बर्तन में रख लें.

– उबले हुए केलों में अदरक, इलायची पाउडर डालकर अच्छी तरह से मैश कर लें.

– इसके बाद इसमें 1/4 कप कुट्टू का आटा, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, हरी मिर्च, हरा धनिया, नींबू    का रस और सेंधा नमक/नमक अच्छी तरह मिक्स करके गूंथ लें.

– अब इस मिश्रण के मनचाहे आकार के कबाब बना लें और उन्हें बचे हुए सूखे कुट्टू के आटे में लपेट लें.

– अब गैस पर एक कड़ाही में घी गर्म करें.

– घी गर्म होने पर उसमें एक बार में तीन से चार केले के कबाब डालें और लाइट ब्राउन होने तक उलट-     पुलट  कर फ्राई कर लें.

 

प्यारा सा रिश्ता: परिवार के लिए क्या था सुदीपा का फैसला

12 साल की स्वरा शाम को खेलकूद कर वापस आई. दरवाजे की घंटी बजाई तो सामने किसी अजनबी युवक को देख कर चकित रह गई.

तब तक अंदर से उस की मां सुदीपा बाहर निकली और मुसकराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटे यह तुम्हारी मम्मा के फ्रैंड अविनाश अंकल हैं. नमस्ते करो अंकल को.’’

‘‘नमस्ते मम्मा के फ्रैंड अंकल,’’ कह कर हौले से मुसकरा कर वह अपने कमरे में चली आई और बैठ कर कुछ सोचने लगी.

कुछ ही देर में उस का भाई विराज भी घर लौट आया. विराज स्वरा से 2-3 साल बड़ा था.

विराज को देखते ही स्वरा ने सवाल किया, ‘‘भैया आप मम्मा के फ्रैंड से मिले?’’

‘‘हां मिला, काफी यंग और चार्मिंग हैं. वैसे 2 दिन पहले भी आए थे. उस दिन तू कहीं गई

हुई थी?’’

‘‘वे सब छोड़ो भैया. आप तो मुझे यह बताओ कि वह मम्मा के बौयफ्रैंड हुए न?’’

‘‘यह क्या कह रही है पगली, वे तो बस फ्रैंड हैं. यह बात अलग है कि आज तक मम्मा की सहेलियां ही घर आती थीं. पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की है मम्मा ने.’’

‘‘वही तो मैं कह रही हूं कि वह बौय भी है और मम्मा का फ्रैंड भी यानी वे बौयफ्रैंड ही तो हुए न,’’ स्वरा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘ज्यादा दिमाग मत दौड़ा. अपनी पढ़ाई कर ले,’’ विराज ने उसे धौल जमाते हुए कहा.

थोड़ी देर में अविनाश चला गया तो सुदीपा की सास अपने कमरे से बाहर आती हुई थोड़ी नाराजगी भरे स्वर में बोलीं, ‘‘बहू क्या बात है, तेरा यह फ्रैंड अब अकसर घर आने लगा है?’’

‘‘अरे नहीं मम्मीजी वह दूसरी बार ही तो आया था और वह भी औफिस के किसी काम के सिलसिले में.’’

‘‘मगर बहू तू तो कहती थी कि तेरे औफिस में ज्यादातर महिलाएं हैं. अगर पुरुष हैं भी तो वे अधिक उम्र के हैं, जबकि यह लड़का तो तुझ से भी छोटा लग रहा था.’’

‘‘मम्मीजी हम समान उम्र के ही हैं. अविनाश मुझ से केवल 4 महीने छोटा है. ऐक्चुअली हमारे औफिस में अविनाश का ट्रांसफर हाल ही में हुआ है. पहले उस की पोस्टिंग हैड औफिस मुंबई में थी. सो इसे प्रैक्टिकल नौलेज काफी ज्यादा है. कभी भी कुछ मदद की जरूरत होती है तो तुरंत आगे आ जाता है. तभी यह औफिस में बहुत जल्दी सब का दोस्त बन गया है. अच्छा मम्मीजी आप बताइए आज खाने में क्या बनाऊं?’’

‘‘जो दिल करे बना ले बहू, पर देख लड़कों से जरूरत से ज्यादा मेलजोल बढ़ाना सही नहीं होता… तेरे भले के लिए ही कह रही हूं बहू.’’

‘‘अरे मम्मीजी आप निश्चिंत रहिए. अविनाश बहुत अच्छा लड़का है,’’ कह कर हंसती हुई सुदीपा अंदर चली गई, मगर सास का चेहरा बना रहा.

रात में जब सुदीपा का पति अनुराग घर लौटा तो खाने के बाद सास ने अनुराग को  कमरे में बुलाया और धीमी आवाज में उसे अविनाश के बारे में सबकुछ बता दिया.

अनुराग ने मां को समझाने की कोशिश की, ‘‘मां आज के समय में महिलाओं और पुरुषों की दोस्ती आम बात है. वैसे भी आप जानती ही हो सुदीपा कितनी समझदार है. आप टैंशन क्यों लेती हो मां?’’

‘‘बेटा मेरी बूढ़ी हड्डियों ने इतनी दुनिया देखी है जितनी तू सोच भी नहीं सकता. स्त्रीपुरुष की दोस्ती यानी घी और आग की दोस्ती. आग पकड़ते समय नहीं लगता बेटे. मेरा फर्ज था तुझे समझाना सो समझा दिया.’’

‘‘डौंट वरी मां ऐसा कुछ नहीं होगा. अच्छा मैं चलता हूं सोने,’’ अविनाश मां के पास से तो उठ कर चला आया, मगर कहीं न कहीं उन की बातें देर तक उस के जेहन में घूमती रहीं. वह सुदीपा से बहुत प्यार करता था और उस पर पूरा यकीन भी था. मगर आज जिस तरह मां शक जाहिर कर रही थीं उस बात को वह पूरी तरह इग्नोर भी नहीं कर पा रहा था.

रात में जब घर के सारे काम निबटा कर सुदीपा कमरे में आई तो अविनाश ने उसे छेड़ने के अंदाज में कहा, ‘‘मां कह रही थीं आजकल आप की किसी लड़के से दोस्ती हो गई है और वह आप के घर भी आता है.’’

पति के भाव समझते हुए सुदीपा ने भी उसी लहजे में जवाब दिया, ‘‘जी हां आप ने सही सुना है. वैसे मां तो यह भी कह रही होंगी कि कहीं मुझे उस से प्यार न हो जाए और मैं आप को चीट न करने लगूं.’’

‘‘हां मां की सोच तो कुछ ऐसी ही है, मगर मेरी नहीं. औफिस में मुझे भी महिला सहकर्मियों से बातें करनी होती हैं पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं कुछ और सोचने लगूं. मैं तो मजाक कर रहा था.’’

‘‘आई नो ऐंड आई लव यू,’’ प्यार से सुदीपा ने कहा.

‘‘ओहो चलो इसी बहाने ये लफ्ज इतने दिनों बाद सुनने को तो मिल गए,’’ अविनाश ने उसे बांहों में भरते हुए कहा.

सुदीपा खिलखिला कर हंस पड़ी. दोनों देर तक प्यारभरी बातें करते रहे.

वक्त इसी तरह गुजरने लगा. अविनाश अकसर सुदीपा के घर आ जाता. कभीकभी दोनों बाहर भी निकल जाते. अनुराग को कोई एतराज नहीं था, इसलिए सुदीपा भी इस दोस्ती को ऐंजौय कर रही थी. साथ ही औफिस के काम भी आसानी से निबट जाते.

सुदीपा औफिस के साथ घर भी बहुत अच्छी तरह से संभालती थी. अनुराग को इस मामले में भी पत्नी से कोई शिकायत नहीं थी.

मां अकसर बेटे को टोकतीं, ‘‘यह सही नहीं है अनुराग. तुझे फिर कह रही हूं, पत्नी को किसी और के साथ इतना घुलनमलने देना उचित नहीं.’’

‘‘मां ऐक्चुअली सुदीपा औफिस के कामों में ही अविनाश की हैल्प लेती है. दोनों एक ही फील्ड में काम कर रहे हैं और एकदूसरे को अच्छे से समझते हैं. इसलिए स्वाभाविक है कि काम के साथसाथ थोड़ा समय संग बिता लेते हैं. इस में कुछ कहना मुझे ठीक नहीं लगता मां और फिर तुम्हारी बहू इतना कमा भी तो रही है. याद करो मां जब सुदीपा घर पर रहती थी तो कई दफा घर चलाने के लिए हमारे हाथ तंग हो जाते थे. आखिर बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके इस के लिए सुदीपा का काम करना भी तो जरूरी है न फिर जब वह घर संभालने के बाद काम करने बाहर जा रही है तो हर बात पर टोकाटाकी भी तो अच्छी नहीं लगती न.’’

‘‘बेटे मैं तेरी बात समझ रही हूं पर तू मेरी बात नहीं समझता. देख थोड़ा नियंत्रण भी जरूरी है बेटे वरना कहीं तुझे बाद में पछताना न पड़े,’’ मां ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘ठीक है मां मैं बात करूंगा,’’ कह कर अनुराग चुप हो गया.

एक ही बात बारबार कही जाए तो वह कहीं न कहीं दिमाग पर असर डालती है. ऐसा ही कुछ अनुराग के साथ भी होने लगा था. जब काम के बहाने सुदीपा और अविनाश शहर से बाहर जाते तो अनुराग का दिल बेचैन हो उठता. उसे कई दफा लगता कि सुदीपा को अविनाश के साथ बाहर जाने से रोक ले या डांट लगा दे. मगर वह ऐसा कर नहीं पाता. आखिर उस की गृहस्थी की गाड़ी यदि सरपट दौड़ रही है तो उस के पीछे कहीं न कहीं सुदीपा की मेहनत ही तो थी.

इधर बेटे पर अपनी बातों का असर पड़ता न देख अनुराग के मांबाप ने अपने पोते और पोती यानी बच्चों को उकसाना शुरू का दिया. एक दिन दोनों बच्चों को बैठा कर वे समझाने लगे, ‘‘देखो बेटे आप की मम्मा की अविनाश अंकल से दोस्ती ज्यादा ही बढ़ रही है. क्या आप दोनों को नहीं लगता कि मम्मा आप को या पापा को अपना पूरा समय देने के बजाय अविनाश अंकल के साथ घूमने चली जाती है?’’

‘‘दादीजी मम्मा घूमने नहीं बल्कि औफिस के काम से ही अविनाश अंकल के साथ जाती हैं,’’ विराज ने विरोध किया.

‘‘ भैया को छोड़ो दादीजी पर मुझे भी ऐसा लगता है जैसे मम्मा हमें सच में इग्नोर करने लगी हैं. जब देखो ये अंकल हमारे घर आ जाते हैं या मम्मा को ले जाते हैं. यह सही नहीं.’’

‘‘हां बेटे मैं इसीलिए कह रही हूं कि थोड़ा ध्यान दो. मम्मा को कहो कि अपने दोस्त के साथ नहीं बल्कि तुम लोगों के साथ समय बिताया करे.’’

उस दिन संडे था. बच्चों के कहने पर सुदीपा और अनुराग उन्हें ले कर वाटर पार्क जाने वाले थे.

दोपहर की नींद ले कर जैसे ही दोनों बच्चे तैयार होने लगे तो मां को न देख कर दादी के पास पहुंचे, ‘‘दादीजी मम्मा कहां हैं… दिख नहीं रहीं?’’

‘‘तुम्हारी मम्मा गई अपने फ्रैंड के साथ.’’

‘‘मतलब अविनाश अंकल के साथ?’’

‘‘हां.’’

‘‘लेकिन उन्हें तो हमारे साथ जाना था. क्या हम से ज्यादा बौयफ्रैंड इंपौर्टैं हो गया?’’ कह कर स्वरा ने मुंह फुला लिया. विराज भी उदास हो गया.

लोहा गरम देख दादी मां ने हथौड़ा मारने की गरज से कहा, ‘‘यही तो मैं कहती आ  रही हूं इतने समय से कि सुदीपा के लिए अपने बच्चों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण वह पराया आदमी हो गया है. तुम्हारे बाप को तो कुछ समझ ही नहीं आता.’’

‘‘मां प्लीज ऐसा कुछ नहीं है. कोई जरूरी काम आ गया होगा,’’ अनुराग ने सुदीपा के बचाव में कहा.

‘‘पर पापा हमारा दिल रखने से जरूरी और कौन सा काम हो गया भला?’’ कह कर विराज गुस्से में उठा और अपने कमरे में चला गया. उस ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

स्वरा भी चिढ़ कर बोली, ‘‘लगता है मम्मा को हम से ज्यादा प्यार उस अविनाश अंकल से हो गया है,’’ और फिर वह भी पैर पटकती अपने कमरे में चली गई.

शाम को जब सुदीपा लौटी तो घर में सब का मूड औफ था. सुदीपा ने बच्चों को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे अविनाश अंकल के पैर में गहरी चोट लग गई थी. तभी मैं उन्हें ले कर अस्पताल गई.’’

‘‘मम्मा आज हम कोई बहाना नहीं सुनने वाले. आप ने अपना वादा तोड़ा है और वह भी अविनाश अंकल की खातिर. हमें कोई बात नहीं करनी,’’ कह कर दोनों वहां से उठ कर चले गए.

स्वरा और विराज मां की अविनाश से इन नजदीकियों को पसंद नहीं कर रहे थे. वे अपनी ही मां से कटेकटे से रहने लगे. गरमी की छुट्टियों के बाद बच्चों के स्कूल खुल गए और विराज अपने होस्टल चला गया.

इधर सुदीपा के सासससुर ने इस दोस्ती का जिक्र उस के मांबाप से भी कर दिया. सुदीपा के मांबाप भी इस दोस्ती के खिलाफ थे. मां ने सुदीपा को समझाया तो पिता ने भी अनुराग को सलाह दी कि उसे इस मामले में सुदीपा पर थोड़ी सख्ती करनी चाहिए और अविनाश के साथ बाहर जाने की इजाजत कतई नहीं देनी चाहिए.

इस बीच स्वरा की दोस्ती सोसाइटी के एक लड़के सुजय से हो गई. वह स्वरा से 2-4 साल बड़ा था यानी विराज की उम्र का था. वह जूडोकराटे में चैंपियन और फिटनैस फ्रीक लड़का था. स्वरा उस की बाइक रेसिंग से भी बहुत प्रभावित थी. वे दोनों एक ही स्कूल में थे. दोनों साथ स्कूल आनेजाने लगे. सुजय दूसरे लड़कों की तरह नहीं था. वह स्वरा को अच्छी बातें बताता. उसे सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग देता और स्कूटी चलाना भी सिखाता. सुजय का साथ स्वरा को बहुत पसंद आता.

एक दिन स्वरा सुजय को अपने साथ घर ले आई.  सुदीपा ने उस की अच्छे से आवभगत की. सब को सुजय अच्छा लड़का लगा इसलिए किसी ने स्वरा से कोई पूछताछ नहीं की. अब तो सुजय अकसर ही घर आने लगा. वह स्वरा की मैथ्स की प्रौब्लम भी सौल्व कर देता और जूडोकराटे भी सिखाता रहता.

एक दिन स्वरा ने सुदीपा से कहा, ‘‘मम्मा आप को पता है सुजय डांस भी जानता है. वह कह रहा था कि मुझे डांस सिखा देगा.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है. तुम दोनों बाहर लौन में या फिर अपने कमरे में डांस की प्रैक्टिस कर सकते हो.’’

‘‘मम्मा आप को या घर में किसी को एतराज तो नहीं होगा?’’ स्वरा ने पूछा.

‘‘अरे नहीं बेटा. सुजय अच्छा लड़का है. वह तुम्हें अच्छी बातें सिखाता है. तुम दोनों क्वालिटी टाइम स्पैंड करते हो. फिर हमें ऐतराज क्यों होगा? बस बेटा यह ध्यान रखना सुजय और तुम फालतू बातों में समय मत लगाना. काम की बातें सीखो, खेलोकूदो, उस में क्या बुराई है?’’

‘‘ओके थैंक यू मम्मा,’’ कह कर स्वरा खुशीखुशी चली गई.

अब सुजय हर संडे स्वरा के घर आ जाता और दोनों डांस प्रैक्टिस करते. समय इसी तरह बीतता रहा. एक दिन सुदीपा और अनुराग किसी काम से बाहर गए हुए थे.

घर में स्वरा दादीदादी के साथ अकेली थी. किसी काम से सुजय घर आया तो स्वरा उस से मैथ्स की प्रौब्लम सौल्व कराने लगी. इसी बीच अचानक स्वरा को दादी के कराहने और बाथरूम में गिरने की आवाज सुनाई दी.

स्वरा और सुजय दौड़ कर बाथरूम पहुंचे तो देखा दादी फर्श पर बेहोश पड़ी हैं. स्वरा के दादा ऊंचा सुनते थे. उन के पैरों में भी तकलीफ रहती थी. वे अपने कमरे में सोए थे. स्वरा घबरा कर रोने लगी तब सुजय ने उसे चुप कराया और जल्दी से ऐंबुलैंस वाले को फोन किया. स्वरा ने अपने मम्मीडैडी को भी हर बात बता दी. इस बीच सुजय जल्दी से दादी को ले कर पास के अस्पताल भागा. उस ने पहले ही अपने घर से रुपए मंगा लिए थे. अस्पताल पहुंच कर उस ने बहुत समझदारी के साथ दादी को एडमिट करा दिया और प्राथमिक इलाज शुरू कराया. उन को हार्ट अटैक आया था. अब तक स्वरा के मांबाप भी हौस्पिटल पहुंच गए थे.

डाक्टर ने सुदीपा और अनुराग से सुजय  की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘इस लड़के ने जिस फुरती और समझदारी से आप की मां को हौस्पिटल पहुंचाया वह काबिलेतारीफ है. अगर ज्यादा देर हो जाती तो समस्या बढ़ सकती थी यहां तक कि जान को भी खतरा हो सकता था.’’

सुदीपा ने बढ़ कर सुजय को गले से लगा लिया. अनुराग और उस के पिता ने भी नम आंखों से सुजय का धन्यवाद कहा. सब समझ रहे थे कि बाहर का एक लड़का आज उन के परिवार के लिए कितना बड़ा काम कर गया. हालात सुधरने पर स्वरा की दादी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

घर लौटने पर दादी ने सुजय का हाथ पकड़ कर गदगद स्वर में कहा, ‘‘आज मुझे पता चला कि दोस्ती का रिश्ता इतना खूबसूरत होता है. तुम ने मेरी जान बचा कर इस बात का एहसास दिला दिया बेटे कि दोस्ती का मतलब क्या है.’’

‘‘यह तो मेरा फर्ज था दादीजी,’’ सुजय ने हंस कर कहा.

तब दादी ने सुदीपा की तरफ देख कर ग्लानि भरे स्वर में कहा, ‘‘मुझे माफ कर दे बहू. दोस्ती तो दोस्ती होती है, बच्चों की हो या बड़ों की. तेरी और अविनाश की दोस्ती पर शक कर के हम ने बहुत बड़ी भूल कर दी. आज मैं समझ सकती हूं कि तुम दोनों की दोस्ती कितनी प्यारी होगी. आज तक मैं समझ ही नहीं पाई थी.’’

सुदीपा बढ़ कर सास के गले लगती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी आप बड़ी हैं. आप को मुझ से माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं. आप अविनाश को जानती नहीं थीं, इसलिए आप के मन में सवाल उठ रहे थे. यह बहुत स्वाभाविक था. पर मैं उसे पहचानती हूं, इसलिए बिना कुछ छिपाए उस रिश्ते को आप के सामने ले कर आई थी.’’

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सुदीपा ने दरवाजा खोला तो सामने हाथों में फल और गुलदस्ता लिए अविनाश खड़ा था. घबराए हुए स्वर में उस ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि अम्मांजी की तबीयत खराब हो गई है. अब कैसी हैं वे?’’

‘‘बस तुम्हें ही याद कर रही थीं,’’ हंसते

हुए सुदीपा ने कहा और हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई.       

IND VS NZ: मैच के बाद स्पॉट हुए Virat Kohli-Anushka Sharma

किक्रेट वर्ल्ड कप 2023 का बीते दिन सेमी फाइनल का मुकाबला भारत और न्यूजीलैंड के बीच था. भारतीय टीम ने जबरदस्त प्रर्दशन किया उन्होंने न्यूजीलैंड को 70 रन से हरा के फाइनल में जगह बना लीं है. इन दिनों किक्रेट वर्ल्ड कप 2023 की धूम चारों तरफ फैली हुई है. वहीं इंडिया ने न्यूजीलैंड को हराकर फाइनल में जगह बनाई. इस मैच के बाद विराट कोहली काफी चर्चा में है. इस दौरान विराट कोहली का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. इस वीडियो में विराट कोहली के साथ-साथ उनकी पत्नी बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा भी नजर आ रही हैं. विराट कोहली का ये वीडियो सोशल मीडिया पर आते ही छा गया. इस वीडियो में विराट कोहली और अनुष्का शर्मा काफी कूल अंदाज में दिखाई दिए.

मैच के बाद साथ नजर आए अनुष्का- विराट

न्यूजीलैंड से हुए किक्रेट वर्ल्ड कप 2023 के सेमीफाइनल में विराट कोहली ने शतक मारकर सबका दिल जीत लिया है. इसी के साथ विराट कोहली सबसे ज्यादा 50 शतक लगाने वाले खिलाड़ी बन गए. किंग कोहली सोशल मीडिया पर छाए हुए है. इस बीच विराट और अनुष्का का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. इस वायरल वीडियो में अनुष्का- विराट साथ में होटल से बाहर आते हुए दिखाई दे रहे है. विराट कोहली ने अपने हाथ में सामान लिया हुआ है, तो वहीं अनुष्का शर्मा अपने साथ बैग कैरी किए हुए दिखाई दीं. इस वीडियो में विराट कोहली और अनुष्का शर्मा दोनों ही कूल लुक में नजर आए.

 

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फैंस ने किए वीडियो पर कई कमेंट

विराट कोहली और अनुष्का शर्मा के वीडियो पर फैंस जमकर कमेंट कर रहे है. इस वीडियो पर कमेंट करते हुए लोगों ने विराट पर खूब प्यार लुटाया. वहीं कई यूजर्स को अनुष्का शर्मा का ये सादगी भरा अंदाज पसंद आया.

 

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