नथनी: भाग 1- क्या खत्म हुई जेनी की सेरोगेट मदर की तलाश

उन के मुल्क में जितनी भी सुविधाएं और तकनीकें हासिल थीं, सब पर प्रयास कर डाले गए थे, पर सफलता की कोई भी गुंजाइश न पा कर वहां के सभी डाक्टरों ने डेविड को आखिरी जवाब दे दिया था. डेविड ने भारी मन से यह सचाई जेनी को बताई थी. इस पर उस का भी दुखी होना स्वाभाविक ही था.

डेविड खुद अमेरिका के जानेमाने डाक्टरों में से एक थे. लिहाजा, उन से कोई डाक्टर झूठ बोले, सवाल ही नहीं उठता था. फिर सारी की सारी पैथालाजिकल रिपोट उन के सामने थीं. उन को सचाई का ज्ञान हो चुका था कि कमी किस में है और किस किस्म की है. पर उस का हल जब था ही नहीं तो क्या किया जा सकता था. नाम, सम्मान और आर्थिक रूप से काफी मजबूत होने के बावजूद उन के साथ यह एक ऐसी त्रासदी थी कि दोनों ही दुखी थे.

डेविड जेनी को बहुत ज्यादा प्यार करते थे. जब जेनी बच्चे की लालसा में आंखें नम कर लेती थी, डेविड तड़प उठते थे. पर इस खबर से पहले हमेशा उसे धीरज बंधाते रहते थे कि सही इलाज के बाद उन्हें संतानसुख अवश्य मिलेगा.

यह खबर ऐसी थी कि न तो छिपाई जा सकी और न ही उस के बाद जेनी को रोने से रोका ही जा सका था. वह लगातार रोए चली जा रही थी और डेविड उसे कंधे से लगाए ढाढ़स बंधाए जा रहे थे कि अभी भी एक रास्ता बचा है.

जब जेनी की सिसकियां कुछ थमीं और उस की सवालिया निगाहें उठीं तो डेविड ने कहा, ‘‘एक  ‘सेरोगेट मदर’ की जरूरत  होगी जो यहां अमेरिका में तो नहीं, पर हिंदुस्तान में बहुत आसानी से मिल जाएगी और फिर हम एक बच्चा आसानी से पा सकेंगे.’’

जेनी ने डेविड की आंखों में झांका जो पहले से ही उस के स्वागत में बिछी हुई थीं. जेनी की आंखों में चमक आ गई. उस ने डेविड को अपनी बांहों में कस लिया और कई चुंबन ले डाले.

डेविड ने अपने मुल्क की करेंसी में व हिंदुस्तान की करेंसी में मामूली सी तुलना करने के बाद बताया कि हिंदुस्तान में मात्र 2-3 लाख में ‘सेरोगेट मदर’ आसानी से मिल सकती है, जबकि इस से 10 गुनी कीमत पर भी अमेरिका में नहीं मिल सकती. जेनी पहले हिंदुस्तान को बड़ी हेयदृष्टि से देखा करती थी. उस के बारे में नए सिरे से सोचने को मजबूर हो गई.

अब जेनी ने स्थानीय अखबारों में एक विज्ञापन दे डाला, ‘तुरंत आवश्यकता है एक दुभाषिये की, जिसे अंगरेजी और हिंदी का अच्छा ज्ञान हो’ और प्रत्याशियों का बेसब्री से इंतजार करने लगी. अपने यहां के अखबारों में हिंदुस्तान के बारे में जिन खबरों से खास चिढ़ थी, उन्हें ध्यान से पढ़ने लगी. मन एकाएक हिंदुस्तान के रंग में रंगा नजर आने लगा. जिस मुल्क को वह भिखारी और निरीह देश कहा करती थी, अब फरिश्ता नजर आने लगा था. वहां की सामाजिक व्यवस्था, राजनीति व संस्कृति आदि के बारे में जेनी कम से कम समय में ज्यादा से ज्यादा जान लेने के लिए आतुर हो उठी.

एक अच्छे दुभाषिये के मिल जाने पर जेनी ने उस से पहली ही भेंट में तमाम सवाल कर डाले, ‘उस ने हिंदी क्यों सीखी? क्या वह कभी हिंदुस्तान गया था? क्या उसे हिंदुस्तानी रीतिरिवाजों का कुछ ज्ञान है? क्या वह कहीं से ऐसा साहित्य ला सकता है जो वहां के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दिला सके? क्या वह हिंदी के प्रचलित शब्दों और मुहावरों के बारे में जानता है आदि.’

यह सब जानने के बाद जेनी में इतना भी सब्र नहीं बचा कि वह डाक्टर डेविड को घर आने देती…उस ने फोन पर ही दुभाषिये के बारे में तमाम जानकारी उन्हें दे डाली. डेविड उस के दर्द से अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए किसी प्रकार का एतराज न करते हुए उसे आश्वस्त किया कि वह जल्दी ही हिंदुस्तान चलेंगे.

जेनी की भावनाओं की कद्र करते हुए डेविड ने भी हिंदुस्तानी अखबारों में एक ‘सेरोगेट मदर’ की आवश्यकता वाला विज्ञापन भिजवा दिया और बेताबी से जवाब का इंतजार करने लगे. मियांबीवी में अकसर हिंदुस्तान के बारे में जम कर चर्चाएं होने लगीं. उन लोगों को यहां के वैवाहिक विज्ञापनों पर बड़ा कौतूहल हुआ करता था. वह अकसर प्रणय व परिणय के बारे में अपने मुल्क और हिंदुस्तान के बीच तुलना करने बैठ जाते थे.

जब जेनी यह बताती कि हिंदुओं में लड़की वाले, शादी के लिए लड़के वालों के वहां जाते हैं, डेविड यह बताना नहीं भूलते कि मुसलमानों में लड़के वाले लड़की वालों के घर जाते हैं. मुसलमानों में लड़कियों में शीन काफ यानी नाकनक्श खासकर देखे जाते हैं. अगर किसी लड़की के यहां कोई भी लड़के वाला न आया तो वह आजीवन कुंआरी भी रह सकती है, पर धर्म के मामले में वह इतनी कट्टर होती है कि बगावत करने की हिम्मत कम ही कर पाती है.

सलमा एक ऐसी ही हिंदुस्तानी मुसलमान परिवार की लड़की थी. वह बहुत ही खूबसूरत थी, पर उस की बड़ी बहन मामूली नाकनक्श होने के कारण हीनता की शिकार होती चली जा रही थी. गरीबी के चलते बड़ी तो मदरसे की मजहबी तालीम से आगे नहीं बढ़ पाई थी, हां, छोटी ने 10वीं कर ली थी. बाप सब्जी का ठेला लगाता था. मामूली कमाई में 4 लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो पाता था.

वैसे तो शहर में 20 साल की लड़की होना कोई माने नहीं रखता पर उस की खूबसूरती एक अच्छीखासी मुसीबत बन गई थी. दिन भर तमाम लड़के  उस की गली के चक्कर लगाने  लगे थे. बड़ी बहन के लिए कोई रिश्ता न आने से गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही थी. मांबाप की राय थी, पहले बड़ी लड़की निबटा दी जाए तब ही छोटी के बारे में सोचा जाए पर छोटी वाली के लिए तमाम नातेरिश्तेदारों के अलावा लोग टूटे पड़ रहे थे.

एक तो उम्र का तकाजा, उस पर गरीबी की मार. आखिर सलमा के कदम बहक ही गए. जिस घर में भरपेट रोटी नसीब न हो रही हो, उस घर की इज्जत क्या और ईमान क्या? सलमा एक हिंदू लड़के को दिल दे बैठी. क्यों का जवाब भी बड़ा अजीब था. वह जब अपनी हमउम्र सहेलियों को साजशृंगार किए देखती तो उस का मन भी ललचा जाता. काश, वह भी आने वाली ईद पर एक सोने की नथनी खरीद सकती.

यह बात कहीं से चल कर एक फल वाले नौजवान कमल तक पहुंच चुकी थी. उस ने सलमा से अकेले मिलने पर सोने की नथनी देने का वादा उस तक पहुंचवा दिया. पहले मिलन में ही कमल ने न जाने कौन सा जादू कर दिया कि दोनों ने न बिछड़ने की कसम ही खा डाली. नथनी की बात तो खैर काफी पीछे छूट गई.

दोनों का मामला धर्म के ठेकेदारों तक पहुंचा. उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई क्योंकि धर्म के ठेकेदार बड़े मामलों में ही हाथ डालते हैं, जिन से शोहरत व उन के निजी स्वार्थ सध सकें. एक मामूली सब्जी वाले की लड़की की इज्जत ही क्या होती है? ‘गरीबों में यह सब चलता है.’ कह कर कुछ लोगों ने टाल दिया, कुछ लोगों ने कुछ दिनों तक इस मुद्दे पर खूब चटखारे लगाए. मात्र एक रात का मातम मना कर मांबाप भी सामान्य हो गए. उन के मुंह से इतना ही निकला, ‘‘एक तरह से ठीक ही हुआ.’’

कमल का चालचलन ठीक न होने के कारण उस के घर वाले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे. जब लड़की वाले राजी थे तो उन्होंने मजबूरी में हां कर दी थी पर शादी के बाद बेटे को घर से अलग कर दिया था.

पलभर का सच: भाग 3- क्या था शुभा के वैवाहिक जीवन का कड़वा सच

शादी होते ही उस ने अपनी अलग इंडस्ट्री खोल ली और उस में पूजा को भी बराबर का हिस्सेदार बना दिया है. पूजा को सचिन के साथ काम करते देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है. जब पूजा को आफिस में काम करते देखती हूं तो 10 साल पहले की एक बात मुझे याद आती है.

‘‘10 साल पहले शेखर ने जब अपने आफिस में ‘पर्सनल आफिसर’ के तौर पर कविता की नियुक्ति की थी तब जाने कितने दिनों बाद शेखर से मेरी फिर एक बार जबरदस्त लड़ाई हुई थी.

‘‘वह सिर्फ झगड़ा नहीं था शालो… शेखर मुझे मारने पर भी उतर आया था.’’

यह सबकुछ बताते हुए शुभा की आंखें भर आई थीं और फिर जाने कितनी देर तक आंसू बहाते हुए वह निशब्द सी हो कर बैठ गई थी.

शुभा की सारी बातें सुन लेने के  बाद मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि उस से क्या कहूं. मन में बारबार एक ही सवाल उठ रहा था कि शुभा जैसी तेजतर्रार लड़की इतने दिनों तक यों चुप कर दब कर क्यों रह गई.

कुछ न सूझते हुए भी मैं ने अनायास ही शुभा से बेहद सरल सवाल करने शुरू किए थे

‘‘तू इतने दिनों तक चुप क्यों थी? और अगर इतने दिनों तक चुप थी तो अब एकदम ही तलाक लेने की आफत क्यों मोल ले रही है? क्या अपनी खुद्दारी दिखाने का यही एक रास्ता बचा है तेरे पास? अपना विरोध हर कदम पर दिखा कर भी तो तू शेखर के साथ रह सकती है.’’

‘‘नहीं शालो, मेरी खुद्दारी, स्वाभिमान सब खत्म हो चुके हैं. अब मैं सिर्फ शांति से और अपने तरीके से जीना चाहती हूं.’’

‘‘मतलब, क्या करने वाली है तू?’’

‘‘यहां दिल्ली में एक वृद्धाश्रम खुला है. उस के संचालन का काम मुझे मिल गया है. सोचती हूं जरूरतमंद वृद्धों की सेवा करूंगी तो जीवन में कुछ करने की चाह भी पूरी हो सकेगी.’’

‘‘क्या शेखर ने इस की इजाजत दी है?’’

‘‘उस की इजाजत मिलेगी ही नहीं, यह मुझे पता है तभी तो पहले उस से तलाक ले कर अलग होने का फैसला लिया है. फिर अपना काम करूंगी.’’

‘‘क्या सचिन यह सब जानता है?’’

‘‘हां, जानता है और कुछ हद तक मेरी भावनाओं को समझता भी है मगर तुम्हारी तरह वह भी कहता है कि अब यह सब करने की क्या जरूरत है.’’

‘‘तो फिर सच में जरूरत क्या है, शुभा?’’

‘‘जीवन में ‘जरूरत’ शब्द की व्याख्या हर इनसान अपनेअपने मन से करता है और तब ‘जरूरत’ हर किसी की अलग हो सकती है…10 साल पहले शेखर ने जब अपने आफिस में कविता की नियुक्ति की थी तब हमारा आखिरी झगड़ा हुआ था. उस के बाद मैं ने कभी शेखर से झगड़ा नहीं किया…मैं अपनेआप से ही झगड़ती रही हूं…10 साल से शेखर के मुंह से कविता की तारीफ सुनसुन कर मैं ऊब सी गई हूं.

‘‘मैं जानती हूं कि इस में मेरी स्त्रीसुलभ ईर्ष्या भी हो सकती है लेकिन सच तो यह है कि शेखर के मुंह से कविता की तारीफ सुन कर मैं हैरान हो कर सोचती हूं कि एक इनसान इस तरह अलगअलग हिस्सों में अलगअलग बरताव कैसे कर सकता है.’’

‘‘तो क्या तू समझती है कि शेखर और कविता में कुछ चल रहा है?’’ मैं ने बड़े ही संयत स्वरों में पूछा.

कुछ देर तक तो शुभा चुप रही फिर बड़े ही अटपटे से स्वर में बोली, ‘‘मैं दावे के साथ कुछ नहीं कह सकती मगर यह सच है कि शेखर का अधिकतर समय अब उस के साथ ही बीतता है. मैं यह भी नहीं कह सकती कि शेखर का मेरी तरफ ध्यान ही नहीं है, वह आज भी मेरी हर जिम्मेदारी को पूरा करता है.

त्योहारों में मुझे गहने व साडि़यां दिलाना, मुझे पार्टियों में ले जाना, यह सब कुछ पहले की तरह ही चल रहा है क्योंकि शेखर के जीवन में मैं आज भी ‘बीवी’ नामक ऐसी चीज हूं जिस पर कानूनन शेखर का ही अधिकार है. लेकिन शालो, अब इस तरह सिर्फ एक कानूनन हकदार चीज बन कर रहना मेरे लिए नामुमकिन हो गया है.’’

‘‘और दोनों बच्चों के बारे में तुम ने क्या सोचा है?’’

‘‘बच्चों का सोचतेसोचते ही तो शेखर के साथ 30 साल गुजारे, शालो, अब बच्चे बच्चे नहीं रहे… उन के जीने के अपनेअपने तरीके हैं, उन्हें अपने तरीके से जीने दें…मुन्ना ने भी अपनी शादी तय कर ली है और उस की शादी होते ही मैं मुक्त हो जाऊंगी… जब भी बच्चों को मेरी जरूरत होगी, मैं उन के पास जरूर हो आऊंगी.’’

‘‘उम्र के इस पड़ाव पर आ कर अचानक इस तरह का निर्णय लेने से तुझे डर नहीं लगा?’’

‘‘नहीं, शालो, अब सच में डर नहीं लगता. जीवन भर मैं ने जो मानसिक यातनाएं भोगी हैं उन्हें अब दोबारा बहूबेटों के सामने भुगतने से डर लगता है और इसी से अब मैं निर्भय हो कर जीना चाहती हूं.’’

शुभा की कहानी सुन कर मैं कुछ देर तक तो निशब्द सी बैठी रही फिर शुभा को गले लगा लिया और बोली, ‘‘तेरे इस निर्भीक फैसले पर मुझे गर्व है, शुभा. तेरे इस अनोखे निर्णय में तेरी यह सहेली हमेशा तेरे साथ रहेगी. जब कभी किसी चीज की जरूरत पड़ेगी तो बेहिचक मेरे पास चली आना, समधन समझ कर नहीं, अपनी प्रिय सहेली समझ कर.’’

इतनी सारी मन की बातें मुझ से कह लेने के बाद मेरे कहने पर ही शुभा बहुत ही सामान्य हो कर 2 दिन तक रह गई थी. लेकिन तीसरे दिन एक अनोखी घटना ने शुभा को और मुझे हिला कर रख दिया था.

एक कार दुर्घटना में शेखर की अचानक मौत हो गई और शुभा का जीवन फिर एक बार शेखर से जुड़ गया था.

शुभा को ले कर तुरंत हम लोग मुंबई पहुंचे थे. तो एक बार फिर वह भूचाल में घिर गई थी.

मुंबई में इतने बड़े इंडस्ट्रीयलिस्ट की मौत का ‘नजारा’ किसी त्योहार से कम नहीं था.

शुभा की शुष्क आंखों ने पति की मौत का राजसी ठाटबाट भी ‘संयत’ मन से सह लिया था.

अब इतने बड़े उद्योगपति की विधवा होने का मानसम्मान भी उस के जीवन को त्याग नहीं सकता था. जिस मुक्ति की कामना वह कर रही थी वह तो अपनेआप ही मिल गई थी मगर किस ढंग से?

जीवन को खदेड़ देने वाले मुझ से कहे हुए उस पल भर के ‘सच’ को क्या वह कभी भूल सकती है? और क्या मैं कभी भुला पाऊंगी?

केले के कबाब रेसिपी

सामग्री

– 4 कच्चे केले

– कुट्टू का आटा (01 कप)

– अदरक  (1 छोटा टुकड़ा कद्दूकस किया हुआ)

– भुनी हुई खड़ी धनिया (02 चम्मच पिसी हुई)

– लाल मिर्च पाउडर (1/2 चम्मच)

– छोटी इलायची (03 पिसी हुई)

– नींबू का रस (1/2 चम्मच)

– 2 हरी मिर्च

– हरी धनिया (01 बड़ा चम्मच कटी हुई)

– घी (तलने के लिए)

– सेंधा नमक/नमक (स्वादानुसार)

केले के कबाब बनाने की विधि :

– सबसे पहले केलों को पानी में डाल कर उबाल लें.

– उबले हुए केलों को छीलकर एक बर्तन में रख लें.

– उबले हुए केलों में अदरक, इलायची पाउडर डालकर अच्छी तरह से मैश कर लें.

– इसके बाद इसमें 1/4 कप कुट्टू का आटा, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर, हरी मिर्च, हरा धनिया, नींबू    का रस और सेंधा नमक/नमक अच्छी तरह मिक्स करके गूंथ लें.

– अब इस मिश्रण के मनचाहे आकार के कबाब बना लें और उन्हें बचे हुए सूखे कुट्टू के आटे में लपेट लें.

– अब गैस पर एक कड़ाही में घी गर्म करें.

– घी गर्म होने पर उसमें एक बार में तीन से चार केले के कबाब डालें और लाइट ब्राउन होने तक उलट-     पुलट  कर फ्राई कर लें.

 

प्यारा सा रिश्ता: परिवार के लिए क्या था सुदीपा का फैसला

12 साल की स्वरा शाम को खेलकूद कर वापस आई. दरवाजे की घंटी बजाई तो सामने किसी अजनबी युवक को देख कर चकित रह गई.

तब तक अंदर से उस की मां सुदीपा बाहर निकली और मुसकराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटे यह तुम्हारी मम्मा के फ्रैंड अविनाश अंकल हैं. नमस्ते करो अंकल को.’’

‘‘नमस्ते मम्मा के फ्रैंड अंकल,’’ कह कर हौले से मुसकरा कर वह अपने कमरे में चली आई और बैठ कर कुछ सोचने लगी.

कुछ ही देर में उस का भाई विराज भी घर लौट आया. विराज स्वरा से 2-3 साल बड़ा था.

विराज को देखते ही स्वरा ने सवाल किया, ‘‘भैया आप मम्मा के फ्रैंड से मिले?’’

‘‘हां मिला, काफी यंग और चार्मिंग हैं. वैसे 2 दिन पहले भी आए थे. उस दिन तू कहीं गई

हुई थी?’’

‘‘वे सब छोड़ो भैया. आप तो मुझे यह बताओ कि वह मम्मा के बौयफ्रैंड हुए न?’’

‘‘यह क्या कह रही है पगली, वे तो बस फ्रैंड हैं. यह बात अलग है कि आज तक मम्मा की सहेलियां ही घर आती थीं. पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की है मम्मा ने.’’

‘‘वही तो मैं कह रही हूं कि वह बौय भी है और मम्मा का फ्रैंड भी यानी वे बौयफ्रैंड ही तो हुए न,’’ स्वरा ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘ज्यादा दिमाग मत दौड़ा. अपनी पढ़ाई कर ले,’’ विराज ने उसे धौल जमाते हुए कहा.

थोड़ी देर में अविनाश चला गया तो सुदीपा की सास अपने कमरे से बाहर आती हुई थोड़ी नाराजगी भरे स्वर में बोलीं, ‘‘बहू क्या बात है, तेरा यह फ्रैंड अब अकसर घर आने लगा है?’’

‘‘अरे नहीं मम्मीजी वह दूसरी बार ही तो आया था और वह भी औफिस के किसी काम के सिलसिले में.’’

‘‘मगर बहू तू तो कहती थी कि तेरे औफिस में ज्यादातर महिलाएं हैं. अगर पुरुष हैं भी तो वे अधिक उम्र के हैं, जबकि यह लड़का तो तुझ से भी छोटा लग रहा था.’’

‘‘मम्मीजी हम समान उम्र के ही हैं. अविनाश मुझ से केवल 4 महीने छोटा है. ऐक्चुअली हमारे औफिस में अविनाश का ट्रांसफर हाल ही में हुआ है. पहले उस की पोस्टिंग हैड औफिस मुंबई में थी. सो इसे प्रैक्टिकल नौलेज काफी ज्यादा है. कभी भी कुछ मदद की जरूरत होती है तो तुरंत आगे आ जाता है. तभी यह औफिस में बहुत जल्दी सब का दोस्त बन गया है. अच्छा मम्मीजी आप बताइए आज खाने में क्या बनाऊं?’’

‘‘जो दिल करे बना ले बहू, पर देख लड़कों से जरूरत से ज्यादा मेलजोल बढ़ाना सही नहीं होता… तेरे भले के लिए ही कह रही हूं बहू.’’

‘‘अरे मम्मीजी आप निश्चिंत रहिए. अविनाश बहुत अच्छा लड़का है,’’ कह कर हंसती हुई सुदीपा अंदर चली गई, मगर सास का चेहरा बना रहा.

रात में जब सुदीपा का पति अनुराग घर लौटा तो खाने के बाद सास ने अनुराग को  कमरे में बुलाया और धीमी आवाज में उसे अविनाश के बारे में सबकुछ बता दिया.

अनुराग ने मां को समझाने की कोशिश की, ‘‘मां आज के समय में महिलाओं और पुरुषों की दोस्ती आम बात है. वैसे भी आप जानती ही हो सुदीपा कितनी समझदार है. आप टैंशन क्यों लेती हो मां?’’

‘‘बेटा मेरी बूढ़ी हड्डियों ने इतनी दुनिया देखी है जितनी तू सोच भी नहीं सकता. स्त्रीपुरुष की दोस्ती यानी घी और आग की दोस्ती. आग पकड़ते समय नहीं लगता बेटे. मेरा फर्ज था तुझे समझाना सो समझा दिया.’’

‘‘डौंट वरी मां ऐसा कुछ नहीं होगा. अच्छा मैं चलता हूं सोने,’’ अविनाश मां के पास से तो उठ कर चला आया, मगर कहीं न कहीं उन की बातें देर तक उस के जेहन में घूमती रहीं. वह सुदीपा से बहुत प्यार करता था और उस पर पूरा यकीन भी था. मगर आज जिस तरह मां शक जाहिर कर रही थीं उस बात को वह पूरी तरह इग्नोर भी नहीं कर पा रहा था.

रात में जब घर के सारे काम निबटा कर सुदीपा कमरे में आई तो अविनाश ने उसे छेड़ने के अंदाज में कहा, ‘‘मां कह रही थीं आजकल आप की किसी लड़के से दोस्ती हो गई है और वह आप के घर भी आता है.’’

पति के भाव समझते हुए सुदीपा ने भी उसी लहजे में जवाब दिया, ‘‘जी हां आप ने सही सुना है. वैसे मां तो यह भी कह रही होंगी कि कहीं मुझे उस से प्यार न हो जाए और मैं आप को चीट न करने लगूं.’’

‘‘हां मां की सोच तो कुछ ऐसी ही है, मगर मेरी नहीं. औफिस में मुझे भी महिला सहकर्मियों से बातें करनी होती हैं पर इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं कुछ और सोचने लगूं. मैं तो मजाक कर रहा था.’’

‘‘आई नो ऐंड आई लव यू,’’ प्यार से सुदीपा ने कहा.

‘‘ओहो चलो इसी बहाने ये लफ्ज इतने दिनों बाद सुनने को तो मिल गए,’’ अविनाश ने उसे बांहों में भरते हुए कहा.

सुदीपा खिलखिला कर हंस पड़ी. दोनों देर तक प्यारभरी बातें करते रहे.

वक्त इसी तरह गुजरने लगा. अविनाश अकसर सुदीपा के घर आ जाता. कभीकभी दोनों बाहर भी निकल जाते. अनुराग को कोई एतराज नहीं था, इसलिए सुदीपा भी इस दोस्ती को ऐंजौय कर रही थी. साथ ही औफिस के काम भी आसानी से निबट जाते.

सुदीपा औफिस के साथ घर भी बहुत अच्छी तरह से संभालती थी. अनुराग को इस मामले में भी पत्नी से कोई शिकायत नहीं थी.

मां अकसर बेटे को टोकतीं, ‘‘यह सही नहीं है अनुराग. तुझे फिर कह रही हूं, पत्नी को किसी और के साथ इतना घुलनमलने देना उचित नहीं.’’

‘‘मां ऐक्चुअली सुदीपा औफिस के कामों में ही अविनाश की हैल्प लेती है. दोनों एक ही फील्ड में काम कर रहे हैं और एकदूसरे को अच्छे से समझते हैं. इसलिए स्वाभाविक है कि काम के साथसाथ थोड़ा समय संग बिता लेते हैं. इस में कुछ कहना मुझे ठीक नहीं लगता मां और फिर तुम्हारी बहू इतना कमा भी तो रही है. याद करो मां जब सुदीपा घर पर रहती थी तो कई दफा घर चलाने के लिए हमारे हाथ तंग हो जाते थे. आखिर बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जा सके इस के लिए सुदीपा का काम करना भी तो जरूरी है न फिर जब वह घर संभालने के बाद काम करने बाहर जा रही है तो हर बात पर टोकाटाकी भी तो अच्छी नहीं लगती न.’’

‘‘बेटे मैं तेरी बात समझ रही हूं पर तू मेरी बात नहीं समझता. देख थोड़ा नियंत्रण भी जरूरी है बेटे वरना कहीं तुझे बाद में पछताना न पड़े,’’ मां ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘‘ठीक है मां मैं बात करूंगा,’’ कह कर अनुराग चुप हो गया.

एक ही बात बारबार कही जाए तो वह कहीं न कहीं दिमाग पर असर डालती है. ऐसा ही कुछ अनुराग के साथ भी होने लगा था. जब काम के बहाने सुदीपा और अविनाश शहर से बाहर जाते तो अनुराग का दिल बेचैन हो उठता. उसे कई दफा लगता कि सुदीपा को अविनाश के साथ बाहर जाने से रोक ले या डांट लगा दे. मगर वह ऐसा कर नहीं पाता. आखिर उस की गृहस्थी की गाड़ी यदि सरपट दौड़ रही है तो उस के पीछे कहीं न कहीं सुदीपा की मेहनत ही तो थी.

इधर बेटे पर अपनी बातों का असर पड़ता न देख अनुराग के मांबाप ने अपने पोते और पोती यानी बच्चों को उकसाना शुरू का दिया. एक दिन दोनों बच्चों को बैठा कर वे समझाने लगे, ‘‘देखो बेटे आप की मम्मा की अविनाश अंकल से दोस्ती ज्यादा ही बढ़ रही है. क्या आप दोनों को नहीं लगता कि मम्मा आप को या पापा को अपना पूरा समय देने के बजाय अविनाश अंकल के साथ घूमने चली जाती है?’’

‘‘दादीजी मम्मा घूमने नहीं बल्कि औफिस के काम से ही अविनाश अंकल के साथ जाती हैं,’’ विराज ने विरोध किया.

‘‘ भैया को छोड़ो दादीजी पर मुझे भी ऐसा लगता है जैसे मम्मा हमें सच में इग्नोर करने लगी हैं. जब देखो ये अंकल हमारे घर आ जाते हैं या मम्मा को ले जाते हैं. यह सही नहीं.’’

‘‘हां बेटे मैं इसीलिए कह रही हूं कि थोड़ा ध्यान दो. मम्मा को कहो कि अपने दोस्त के साथ नहीं बल्कि तुम लोगों के साथ समय बिताया करे.’’

उस दिन संडे था. बच्चों के कहने पर सुदीपा और अनुराग उन्हें ले कर वाटर पार्क जाने वाले थे.

दोपहर की नींद ले कर जैसे ही दोनों बच्चे तैयार होने लगे तो मां को न देख कर दादी के पास पहुंचे, ‘‘दादीजी मम्मा कहां हैं… दिख नहीं रहीं?’’

‘‘तुम्हारी मम्मा गई अपने फ्रैंड के साथ.’’

‘‘मतलब अविनाश अंकल के साथ?’’

‘‘हां.’’

‘‘लेकिन उन्हें तो हमारे साथ जाना था. क्या हम से ज्यादा बौयफ्रैंड इंपौर्टैं हो गया?’’ कह कर स्वरा ने मुंह फुला लिया. विराज भी उदास हो गया.

लोहा गरम देख दादी मां ने हथौड़ा मारने की गरज से कहा, ‘‘यही तो मैं कहती आ  रही हूं इतने समय से कि सुदीपा के लिए अपने बच्चों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण वह पराया आदमी हो गया है. तुम्हारे बाप को तो कुछ समझ ही नहीं आता.’’

‘‘मां प्लीज ऐसा कुछ नहीं है. कोई जरूरी काम आ गया होगा,’’ अनुराग ने सुदीपा के बचाव में कहा.

‘‘पर पापा हमारा दिल रखने से जरूरी और कौन सा काम हो गया भला?’’ कह कर विराज गुस्से में उठा और अपने कमरे में चला गया. उस ने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.

स्वरा भी चिढ़ कर बोली, ‘‘लगता है मम्मा को हम से ज्यादा प्यार उस अविनाश अंकल से हो गया है,’’ और फिर वह भी पैर पटकती अपने कमरे में चली गई.

शाम को जब सुदीपा लौटी तो घर में सब का मूड औफ था. सुदीपा ने बच्चों को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे अविनाश अंकल के पैर में गहरी चोट लग गई थी. तभी मैं उन्हें ले कर अस्पताल गई.’’

‘‘मम्मा आज हम कोई बहाना नहीं सुनने वाले. आप ने अपना वादा तोड़ा है और वह भी अविनाश अंकल की खातिर. हमें कोई बात नहीं करनी,’’ कह कर दोनों वहां से उठ कर चले गए.

स्वरा और विराज मां की अविनाश से इन नजदीकियों को पसंद नहीं कर रहे थे. वे अपनी ही मां से कटेकटे से रहने लगे. गरमी की छुट्टियों के बाद बच्चों के स्कूल खुल गए और विराज अपने होस्टल चला गया.

इधर सुदीपा के सासससुर ने इस दोस्ती का जिक्र उस के मांबाप से भी कर दिया. सुदीपा के मांबाप भी इस दोस्ती के खिलाफ थे. मां ने सुदीपा को समझाया तो पिता ने भी अनुराग को सलाह दी कि उसे इस मामले में सुदीपा पर थोड़ी सख्ती करनी चाहिए और अविनाश के साथ बाहर जाने की इजाजत कतई नहीं देनी चाहिए.

इस बीच स्वरा की दोस्ती सोसाइटी के एक लड़के सुजय से हो गई. वह स्वरा से 2-4 साल बड़ा था यानी विराज की उम्र का था. वह जूडोकराटे में चैंपियन और फिटनैस फ्रीक लड़का था. स्वरा उस की बाइक रेसिंग से भी बहुत प्रभावित थी. वे दोनों एक ही स्कूल में थे. दोनों साथ स्कूल आनेजाने लगे. सुजय दूसरे लड़कों की तरह नहीं था. वह स्वरा को अच्छी बातें बताता. उसे सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग देता और स्कूटी चलाना भी सिखाता. सुजय का साथ स्वरा को बहुत पसंद आता.

एक दिन स्वरा सुजय को अपने साथ घर ले आई.  सुदीपा ने उस की अच्छे से आवभगत की. सब को सुजय अच्छा लड़का लगा इसलिए किसी ने स्वरा से कोई पूछताछ नहीं की. अब तो सुजय अकसर ही घर आने लगा. वह स्वरा की मैथ्स की प्रौब्लम भी सौल्व कर देता और जूडोकराटे भी सिखाता रहता.

एक दिन स्वरा ने सुदीपा से कहा, ‘‘मम्मा आप को पता है सुजय डांस भी जानता है. वह कह रहा था कि मुझे डांस सिखा देगा.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है. तुम दोनों बाहर लौन में या फिर अपने कमरे में डांस की प्रैक्टिस कर सकते हो.’’

‘‘मम्मा आप को या घर में किसी को एतराज तो नहीं होगा?’’ स्वरा ने पूछा.

‘‘अरे नहीं बेटा. सुजय अच्छा लड़का है. वह तुम्हें अच्छी बातें सिखाता है. तुम दोनों क्वालिटी टाइम स्पैंड करते हो. फिर हमें ऐतराज क्यों होगा? बस बेटा यह ध्यान रखना सुजय और तुम फालतू बातों में समय मत लगाना. काम की बातें सीखो, खेलोकूदो, उस में क्या बुराई है?’’

‘‘ओके थैंक यू मम्मा,’’ कह कर स्वरा खुशीखुशी चली गई.

अब सुजय हर संडे स्वरा के घर आ जाता और दोनों डांस प्रैक्टिस करते. समय इसी तरह बीतता रहा. एक दिन सुदीपा और अनुराग किसी काम से बाहर गए हुए थे.

घर में स्वरा दादीदादी के साथ अकेली थी. किसी काम से सुजय घर आया तो स्वरा उस से मैथ्स की प्रौब्लम सौल्व कराने लगी. इसी बीच अचानक स्वरा को दादी के कराहने और बाथरूम में गिरने की आवाज सुनाई दी.

स्वरा और सुजय दौड़ कर बाथरूम पहुंचे तो देखा दादी फर्श पर बेहोश पड़ी हैं. स्वरा के दादा ऊंचा सुनते थे. उन के पैरों में भी तकलीफ रहती थी. वे अपने कमरे में सोए थे. स्वरा घबरा कर रोने लगी तब सुजय ने उसे चुप कराया और जल्दी से ऐंबुलैंस वाले को फोन किया. स्वरा ने अपने मम्मीडैडी को भी हर बात बता दी. इस बीच सुजय जल्दी से दादी को ले कर पास के अस्पताल भागा. उस ने पहले ही अपने घर से रुपए मंगा लिए थे. अस्पताल पहुंच कर उस ने बहुत समझदारी के साथ दादी को एडमिट करा दिया और प्राथमिक इलाज शुरू कराया. उन को हार्ट अटैक आया था. अब तक स्वरा के मांबाप भी हौस्पिटल पहुंच गए थे.

डाक्टर ने सुदीपा और अनुराग से सुजय  की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘इस लड़के ने जिस फुरती और समझदारी से आप की मां को हौस्पिटल पहुंचाया वह काबिलेतारीफ है. अगर ज्यादा देर हो जाती तो समस्या बढ़ सकती थी यहां तक कि जान को भी खतरा हो सकता था.’’

सुदीपा ने बढ़ कर सुजय को गले से लगा लिया. अनुराग और उस के पिता ने भी नम आंखों से सुजय का धन्यवाद कहा. सब समझ रहे थे कि बाहर का एक लड़का आज उन के परिवार के लिए कितना बड़ा काम कर गया. हालात सुधरने पर स्वरा की दादी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.

घर लौटने पर दादी ने सुजय का हाथ पकड़ कर गदगद स्वर में कहा, ‘‘आज मुझे पता चला कि दोस्ती का रिश्ता इतना खूबसूरत होता है. तुम ने मेरी जान बचा कर इस बात का एहसास दिला दिया बेटे कि दोस्ती का मतलब क्या है.’’

‘‘यह तो मेरा फर्ज था दादीजी,’’ सुजय ने हंस कर कहा.

तब दादी ने सुदीपा की तरफ देख कर ग्लानि भरे स्वर में कहा, ‘‘मुझे माफ कर दे बहू. दोस्ती तो दोस्ती होती है, बच्चों की हो या बड़ों की. तेरी और अविनाश की दोस्ती पर शक कर के हम ने बहुत बड़ी भूल कर दी. आज मैं समझ सकती हूं कि तुम दोनों की दोस्ती कितनी प्यारी होगी. आज तक मैं समझ ही नहीं पाई थी.’’

सुदीपा बढ़ कर सास के गले लगती हुई बोली, ‘‘मम्मीजी आप बड़ी हैं. आप को मुझ से माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं. आप अविनाश को जानती नहीं थीं, इसलिए आप के मन में सवाल उठ रहे थे. यह बहुत स्वाभाविक था. पर मैं उसे पहचानती हूं, इसलिए बिना कुछ छिपाए उस रिश्ते को आप के सामने ले कर आई थी.’’

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सुदीपा ने दरवाजा खोला तो सामने हाथों में फल और गुलदस्ता लिए अविनाश खड़ा था. घबराए हुए स्वर में उस ने पूछा, ‘‘मैं ने सुना है कि अम्मांजी की तबीयत खराब हो गई है. अब कैसी हैं वे?’’

‘‘बस तुम्हें ही याद कर रही थीं,’’ हंसते

हुए सुदीपा ने कहा और हाथ पकड़ कर उसे अंदर ले आई.       

IND VS NZ: मैच के बाद स्पॉट हुए Virat Kohli-Anushka Sharma

किक्रेट वर्ल्ड कप 2023 का बीते दिन सेमी फाइनल का मुकाबला भारत और न्यूजीलैंड के बीच था. भारतीय टीम ने जबरदस्त प्रर्दशन किया उन्होंने न्यूजीलैंड को 70 रन से हरा के फाइनल में जगह बना लीं है. इन दिनों किक्रेट वर्ल्ड कप 2023 की धूम चारों तरफ फैली हुई है. वहीं इंडिया ने न्यूजीलैंड को हराकर फाइनल में जगह बनाई. इस मैच के बाद विराट कोहली काफी चर्चा में है. इस दौरान विराट कोहली का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है. इस वीडियो में विराट कोहली के साथ-साथ उनकी पत्नी बॉलीवुड एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा भी नजर आ रही हैं. विराट कोहली का ये वीडियो सोशल मीडिया पर आते ही छा गया. इस वीडियो में विराट कोहली और अनुष्का शर्मा काफी कूल अंदाज में दिखाई दिए.

मैच के बाद साथ नजर आए अनुष्का- विराट

न्यूजीलैंड से हुए किक्रेट वर्ल्ड कप 2023 के सेमीफाइनल में विराट कोहली ने शतक मारकर सबका दिल जीत लिया है. इसी के साथ विराट कोहली सबसे ज्यादा 50 शतक लगाने वाले खिलाड़ी बन गए. किंग कोहली सोशल मीडिया पर छाए हुए है. इस बीच विराट और अनुष्का का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. इस वायरल वीडियो में अनुष्का- विराट साथ में होटल से बाहर आते हुए दिखाई दे रहे है. विराट कोहली ने अपने हाथ में सामान लिया हुआ है, तो वहीं अनुष्का शर्मा अपने साथ बैग कैरी किए हुए दिखाई दीं. इस वीडियो में विराट कोहली और अनुष्का शर्मा दोनों ही कूल लुक में नजर आए.

 

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फैंस ने किए वीडियो पर कई कमेंट

विराट कोहली और अनुष्का शर्मा के वीडियो पर फैंस जमकर कमेंट कर रहे है. इस वीडियो पर कमेंट करते हुए लोगों ने विराट पर खूब प्यार लुटाया. वहीं कई यूजर्स को अनुष्का शर्मा का ये सादगी भरा अंदाज पसंद आया.

 

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अब गोदी मीडिया पर सख्ती संभव

जो काम इंगलैड में टैबलायड साइज के अखबार करते हैं उसी काम में हमारे देश के हिंदी न्यूज चैनल बढ़चढ़ कर के नए पैमाने तय कर रहे हैं. झूठ, सफेद झूठ, भ्रामक झूठ, हानिकारक झूठ में इन चैनलों ने फर्क ही मिटा दिया और जैसे इंगलैंड में टैबलायड हिटलर को कभी जिंदा कर देते हैं, कभी किंग चार्ल्स की 2 और बीवियां खोज लाते हैं, हमारे चैनल क्व2 हजार के नोट में चिप्स से ले कर हर मुसलिम में कोई न कोई खामी ढूंढ़ सकते हैं और सीधीसादी जनता को बहका सकते हैं.

इन चैनलों को दोष नहीं दिया जाना चाहिए, इन के दर्शकों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने बचपन से ही झूठ और चमत्कार की इतनी कहानियां पढ़ीसुनी हैं और इतने गलत तथ्यों को सनातन सत्य माना है कि उन के लिए ये चैनल दर्शनीय है और दूरदर्शन टाइप के बुलेटिन बोरिंग बन कर रह गए चैनल बेकार.

मामला आर्यन खान के ड्रग लेने का हो, तबलीगी जमात के कोविड फैलाने का हो, रिया चक्रवर्ती और सुशांत सिंह के आपसी संबंधों का हो, ये चैनल बिना सही झूठ परखे कुछ भी कर सकते हैं.

इन का हाल तो यह है कि जब मोदी की पार्टी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, केरल में हार रही हो तो ये बड़ी खबर बनाते हुए घंटों त्रिपुरा की 2 सीटों की बातें करते रहेंगे कि शायद कुछ चमत्कार हो जाए जिस में समाजवादी, तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस हार जाए.

यह एक तरह की वही भावना है जो हमारा हर अंधविश्वासी पाले रखता है जो पहाड़ पर बने अपने 4 मंजिले मकान को गिरते देख कर उस चमत्कार की कामना करने के लिए भगवद भजन शुरू कर देता है कि मकान 45 के कोण पर झुक जाए पर गिरे नहीं.

सरकार के बारे में कड़वे सच को छिपाने और बाकी दुनिया को छोटा, नीचा, बेईमान दिखाने के लिए हर झूठ का सहारा लेने वाले चैनलों की अपराध रिपोर्टिंग पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई है और कहा है कि हर जिले का पुलिस अफसर सूचनाएं देने से पहले 4 बार सोचे. ऐसा होगा या नहीं, पता नहीं पर जो बकबकिए ऐंकर हिंदी चैनलों ने पाल रखे हैं उन पर अंकुश उन के दर्शकों की सेहत के लिए अच्छा है.

इन चैनलों के भ्रामक समाचारों के कारण बहुत से साधारण लोग गुस्से में भरे रहते हैं, कुछ अनापशनाप दवाएं खा लेते हैं, कुछ हिंसक हो जाते हैं, कुछ मायूस भी हो जाते हैं. सरकार और सुप्रीम कोर्ट इन पर स्पीड ब्रेकर लगा सकेगा, इस की गुंजाइश कम है पर कोशिश ही संतोषजनक है.

सच्चाई: क्या सपना सचिन की शादी के लिए घरवलों को राजी कर पाई- भाग 2

‘‘हम ने तो इस संभावना के बारे में सोचा ही नहीं था,’’ सब सुनने के बाद सलिल ने कहा.

‘‘अगर ऐसा कुछ है तो हम उस का इलाज करवा सकते हैं. आजकल कोई रोग असाध्य

नहीं है, लेकिन अभी यह सब सचिन को मत बताना वरना अपने मम्मीपापा से और भी ज्यादा चिढ़ जाएगा.’’

‘‘उन का ऐतराज भी सही है सलिल, किसी व्याधि या पूर्वाग्रस्त लड़की से कौन अभिभावक अपने बेटे का विवाह करना चाहेगा? बगैर सचिन या सिमरन को कुछ बताए हमें बड़ी होशियारी से असलियत का पता लगाना होगा,’’ सपना ने कहा.

‘‘सिमरन के घर जाने के बजाय उस से पहले कहीं मिलना बेहतर रहेगा. ऐसा करो तुम कल लंचब्रेक में सचिन के औफिस चली जाओ. कह देना किसी काम से इधर आई थी, सोचा लंच तुम्हारे साथ कर लूं. वैसे तो वह स्वयं ही सिमरन को बुलाएगा और अगर न बुलाए तो तुम आग्रह कर के बुलवा लेना,’’ सलिल ने सु झाव दिया.

अगले दिन सपना सचिन के औफिस में पहुंची ही थी कि सचिन लिफ्ट से एक लंबी, सांवली मगर आकर्षक युवती के साथ निकलता दिखाई दिया.

‘‘अरे दीदी, आप यहां? खैरियत तो है?’’ सचिन ने चौंक कर पूछा.

‘‘सब ठीक है, इस तरफ किसी काम से आई थी. अत: मिलने चली आई. कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘सिमरन को लंच पर ले जा रहा था. शाम का प्रोग्राम बनाने के लिए…आप भी हमारे साथ लंच के लिए चलिए न दीदी,’’ सचिन बोला.

‘‘चलो, लेकिन किसी अच्छी जगह यानी जहां बैठ कर इतमीनान से बात कर सकें.’’

‘‘तब तो बराबर वाली बिल्डिंग की ‘अंगीठी’ का फैमिलीरूम ठीक रहेगा,’’ सिमरन बोली.

चंद ही मिनट में वे बढि़या रेस्तरां पहुंच गए.

‘‘बहुत बढि़या आइडिया है यहां आने का सिमरन. पार्किंग और आनेजाने में व्यर्थ होने वाला समय बच गया,’’ सपना ने कहा.

‘‘सिमरन के सु झाव हमेशा बढि़या और सटीक होते हैं दीदी.’’

‘‘फिर तो इसे जल्दी से परिवार में लाना पड़ेगा सब का थिंक टैंक बनाने के लिए.’’

सचिन ने मुसकरा कर सिमरन की ओर देखा. सपना को लगा कि मुसकराहट के साथ ही सिमरन के चेहरे पर एक उदासी की लहर भी उभरी जिसे छिपाने के लिए उस ने बात बदल कर सपना से उस के विदेश प्रवास के बारे में पूछना शुरू कर दिया.

‘‘मेरा विदेश वृतांत तो खत्म हुआ, अब तुम अपने बारे में बताओ सिमरन.’’

‘‘मेरे बारे में तो जो भी बताने लायक है वह सचिन ने बता ही दिया होगा दीदी. वैसे भी कुछ खास नहीं है बताने को. सचिन की सहपाठिन थी, अब सहकर्मी हूं और नेहरू नगर में रहती हूं.’’

‘‘अपने पापा के शौक से बनाए घर में जो लाख परेशानियां

आने के बावजूद इस ने बेचा नहीं,’’ सचिन ने जोड़ा, ‘‘अकेली रहती है वहां.’’

‘‘डर नहीं लगता?’’

‘‘नहीं दीदी, डर

तो अपना साथी है,’’ सिमरन हंसी.

‘‘आई सी…इस ने तेरे बचपन के नाम डरपोक को छोटा कर दिया है सचिन.’’

सिमरन खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘नहीं दीदी, इस ने बताया ही नहीं कि इस का नाम डरपोक था. किस से डरता था यह दीदी?’’

‘‘बताने की क्या जरूरत है जब रातदिन इस के साथ रहोगी तो अपनेआप ही पता चल जाएगा,’’ सपना हंसी.

‘‘रातदिन साथ रहने की संभावना तो बहुत कम है, मैं मम्मीजी की भावनाओं को आहत कर के सचिन से शादी नहीं कर सकती,’’ सिमरन की आंखों में उदासी, मगर स्वर में दृढ़ता थी.

सपना ने घड़ी देखी फिर बोली, ‘‘अभी न तो समय है और न ही सही जगह जहां इस विषय पर बहस कर सकें. जब तक मेरा नर्सिंगहोम तैयार नहीं हो जाता, मैं तो फुरसत में ही हूं, तुम्हारे पास जब समय हो तो बताना. तब इतमीनान से इस विषय पर चर्चा करेंगे और कोई हल ढूंढ़ेंगे.’’

‘‘आज शाम को आप और जीजाजी चल रहे हैं न इस के घर?’’ सचिन ने पूछा.

‘‘अभी यहां से मैं नर्सिंगहोम जाऊंगी यह देखने कि काम कैसा चल रहा है, फिर घर जा कर दोबारा बाहर जाने की हिम्मत नहीं होगी और फिर आज मिल तो लिए ही हैं.’’

मैं जिस लड़के से प्यार करती हूं उसे खोना नहीं चाहती, मुझे कोई उपाय बताएं

सवाल 

मैं 12वीं में पढ़ती हूं, अगले साल एग्जाम्स के बाद कालेज में जाने की तैयारी शुरू हो जाएगी. मेरा स्कूल में बौयफ्रैंड है, मैं आर्ट स्टूडैंट हूं और वह साइंस का. वह बहुत एंबीशियस है. लाइफ में बहुतकुछ करना चाहता है. कहता है वह यह सब इसलिए भी चाहता है क्योंकि मुझ से बहुत प्यार करता है और मुझे लाइफ की सारी खुशियां देना चाहता है. मैं भी उसे बहुत प्यार करती हूं, जानती हूं कि स्कूल के बाद हायर स्टडीज के लिए हम दोनों अलगअलग हो जाएंगे. डरती हूं कि दूर जा कर? कहीं वह मुझ से दूर हो गया तो? उसे कोई और लड़की पसंद आ गई तो? मैं उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती, बहुत प्यार करती हूं उस से. मैं ने हम दोनों को ले कर कितने सपने देखे हैं. उस से दूर होने की बात सोच कर ही दिल बैठ जाता हैं. यही सोचसोच कर आजकल मैं बहुत बेचैन रहने लगी हूं. पढ़ाई में भी दिल नहीं लग रहा. मम्मीपापा मेरी हालत देख कर परेशान हैं. उन्हें कुछ बताना नहीं चाहती, अभी कुछ भी. जानती  हूं, वे यही कहेंगे कि अभी पढ़ाई पर ध्यान दो. प्लीज, मुझे गाइड करें कि मैं कैसे अपने मन को समझऊं?

जवाब

आप की बातों से स्पष्ट है कि आप समझदार हैं, स्थितियों को समझती हैं. दूसरे, आप जैसे स्कूलगोइंग बच्चों को हमारी सलाह हमेशा से यही रही है कि यह उम्र कैरियर बनाने की, पढ़नेलिखने की होती है. इस का मतलब यह हरगिज नहीं कि प्यार करना गलत है. बिलकुल नहीं. लेकिन प्यार में होश नहीं खोना है.

आप का बौयफ्रैंड भी समझदार है, लाइफ में कुछ बनना चाहता है. आप भी पढ़ाई में ध्यान लगाइए और कैरियर की तरफ फोकस कीजिए. दूर रह कर भी रिश्ते निभाए जा सकते हैं. आप दोनों को एकदूसरे पर भरोसा है तो क्यों घबरा रही हैं. प्रेम है तो दूरियों के बावजूद भी रिश्ता मजबूत बना रहेगा. प्यार नहीं हो तो पास रह कर भी दूरियां आ जाती हैं.

आप को तो बौयफ्रैैंड को लाइफ में और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए. इस से आप दोनों का फ्यूचर ब्राइट होगा. चिंता में अपना टाइम बरबाद मत कीजिए. खुश रहिए और पढ़ाई में ध्यान दीजिए. यह आप ने पढ़ा ही होगा कि यदि आप किसी से प्यार करते हैं तो उन्हें आजाद कर दें. यदि वे वापस आते हैं तो वे आप के हैं.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

कितनी भरोसेमंद होती है क्रेडिट रेटिंग

बाजार की दूरी, दुकानें खुली मिलने का निर्धारित सीमित समय, बाजार जाने में बढ़ता पैट्रोल का खर्च, औफलाइन खरीदारी में चुनाव की सीमित संभावना आदि कई कारण हैं, जो औनलाइन खरीदारी के लिए प्रेरित करते हैं. कपड़े खरीदने हों तो मंत्रा, नायिका, इलैक्ट्रानिक्स के लिए अमेजन, फ्लिपकार्ट, दवाइयों के लिए ट्रू मेड, फार्म इजी. फर्नीचर लेना हो तो पेपर फ्राई या वेकफिट, किराना के लिए बिग बास्केट, जियोमार्ट सहित अनेक स्थानीय प्लेटफौर्म सीधे मोबाइल पर ही ऐप्स के जरीए उपलब्ध हैं.

जोमैटो, स्विगी आदि ऐप्स के जरीए होटलों से बनाबनाया भोजन हम जहां चाहें वहां मंगा सकते हैं. इन प्लेटफौर्म्स पर कंपीटिटिव कीमतों में अच्छा सामान उपलब्ध होता है, जो सीधे आप के घर पर आ जाता है. भुगतान के भी कई विकल्प होते हैं जिस में कैश औन डिलिवरी की सुविधा शामिल है. पसंद न आने पर निर्धारित अवधि के भीतर सामान वापसी की सुविधाएं भी यह वैब साइट देती है. जो सब से बड़ी कठिनाई औनलाइन खरीदी में है वह है सामान को भौतिक रूप से देखे बिना चित्र देख कर पसंद करने की होती है.

सच बयां करें

इसी से प्रोडक्ट के फोटो के साथ उपभोक्ताओं द्वारा की गई रेटिंग का महत्त्व बहुत बढ़ जाता है. नए ग्राहक, पुराने उपयोगकर्ताओ के अनुभव के आधार पर उन के द्वारा की गई स्टार रेटिंग तथा अन्य उपभोक्ताओं के रिव्यू देख कर अपनी खरीदारी का निर्णय ले सकते हैं. कस्टमर रिव्यू पढ़ कर आप को प्रोडक्ट की क्वालिटी का एक अंदाजा हो जाता है. ई कौमर्स में रिव्यू बड़ी भूमिका निभाता है. रिव्यू की संख्या जितनी अधिक होती है, रिव्यू उतना ही विश्वसनीय होता है. लेकिन यह तभी संभव है जब कस्टमर रिव्यू वास्तविक उपभोक्ता ही लिखें और फीडबैक में सच बयां करें.

रिव्यू के महत्त्व को देखते हुए विक्रेता इन दिनों फेक रिव्यू का जाल बुन रहे हैं. प्राय: कंपनियां खुद ही औनलाइन फर्जी रिव्यू करवाती हैं और नए ग्राहकों को रिव्यू के आधार पर आकर्षित कर रही हैं. अमेजन से ही खरीदे गए कुछ प्रोडक्ट्स के साथ मु?ो कुछ कूपन प्राप्त हुए जिन में स्पष्ट उल्लेख है कि यदि मैं प्रोडक्ट की फाइव स्टार रेटिंग कर के उस का स्क्रीन शौट भेज दूं तो मु?ो सौ रुपए का कैश बैक दिया जाएगा, जबकि मूल सामान ही कुल 4 सौ रुपए का था. यूपीआई से पेमैंट की सुविधा के चलते इस तरह का लेनदेन बड़ा सरल हो चुका है. उपभोक्ता हित में रिव्यू के इस तरह के फर्जीवाड़े पर नियंत्रण बहुत जरूरी हो गया है.

बढ़ रहा घपला

एक और तरह का घपला इन दिनों चल रहा है. फेसबुक प्रमोशनल पेज के जरीए स्टाक क्लीयरेंस के नाम पर अति उच्च गुणवत्ता के मेवे, फर्नीचर या अन्य किसी सामान के फोटो लगा कर औनलाइन और्डर लिए जाते हैं. 5-6 दिनों में जैसे ही कुछ राशि इकट्ठी हो जाती है ये पेज गायब हो जाते हैं. कुछ दिन और्डर की प्रतीक्षा के बाद जब ठगे गए व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास होता है तब वह पुलिस में शिकायत तक नहीं करता क्योंकि जिस व्यक्ति के साथ यह घटना होती है, उस के लिए दी गई रकम ज्यादा बड़ी नहीं होती.

दरअसल, यह एक तरह का ई कौमर्स के नाम पर किया जा रहा साइबर अपराध है. इस से बचने का सब से बेहतर तरीका थोड़ी सी सजगता है. इस तरह की वैब साइट कभी भी कैश औन डिलिवरी का औप्शन नहीं देती. आशय यही है कि ई कौमर्स हमेशा ट्रस्टेड वैब साइट से किया जाना चाहिए.

ई कौमर्स सैक्टर के लिए प्रथक सरकारी रेगुलेटर आवश्यक है. वर्तमान में इन शिकायतों को ले कर उपभोक्ता नैशनल कंज्यूमर हैल्पलाइन पर ही निर्भर हैं. वाणिज्य और उपभोक्ता मंत्रालय ने ई कौमर्स के लिए नई गाइड लाइन बनाई है जिस के अनुसार प्रोडक्ट फेक या डैमेज हुआ तो विक्रेता के साथ ई कौमर्स पोर्टल को भी जिम्मेदार बनाया गया है. गलत या टूटा सामान पहुंचने पर 14 दिन के भीतर ग्राहक को रिफंड देना होगा. 30 दिन के भीतर ग्राहक की शिकायत पूरी तरह दूर करनी होगी. डिटेल्स के मुताबिक सामान नहीं होने पर ग्राहक को सामान लौटने का अधिकार होगा. अनफेयर बिजनैस प्रैक्टिस के तहत कंपनी द्वारा करवाए गए फर्जी रिव्यू पाए जाने पर कानूनी कदम उठाए जाएंगे.

ताकि उपभोक्ता सतर्क रहें

पोर्टल पर विक्रेता का पूरा पता और कौंटैक्ट नंबर देना जरूरी हो. रिफंड और रिटर्न पौलिसी स्पष्ट रूप से पठनीय हो तो उपभोक्ता खरीदारी से पहले ही सतर्क होगा.

पिछले वर्षों में औनलाइन उपभोक्ता लगातार बढ़ रहे हैं. साथ ही ई कौमर्स कंपनियों के खिलाफ शिकायतों में भी बढ़ोतरी हुई है. आमतौर पर डिलिवरी में देरी, गलत प्रोडक्ट, रिटर्न और रिप्लेसमैंट के साथ रिफंड को ले कर शिकायतें होती हैं. इसलिए समय के साथ चलते हुए अपनी सतर्कता से औनलाइन शौपिंग को मजेदार, सुविधाजनक अनुभव बनाएं न कि विवादों में उल?ा कर अपना समय बरबाद कर और तनाव बढ़ाएं. हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं.

औनलाइन प्लेटफौर्म्स को शोरूम या दुकान के खर्च से छुटकारा मिल जाती है, उन की बिक्री चौबीसों घंटे चलती रहती है. अत: वे अपेक्षाकृत सस्ता सामान उपलब्ध करवा सकते हैं, किंतु पैकिंग एवं डिलिवरी का अतिरिक्त व्यय भी उन्हें उठाना पड़ता है.

तो ठगी से बच सकते हैं

उपभोक्ता की दूरिज्ट से यदि हम और्डर करने से पहले फेक रेटिंग और रिव्यूज की जांच कर लें तो हम ठगी से बच सकते हैं. द्घड्डद्मद्गह्यश्चशह्ल.ष्शद्व वैब साइट की मदद से किसी भी सामान की फेक रेटिंग और रिव्यूज पढ़ सकते हैं. सभी यूजर्स के लिए यह वैब साइट मुफ्त उपलब्ध है. फेक चैक करने के लिए इस वैब साइट पर लौगइन करने की जरूरत नहीं होती.

जो भी सामान खरीदना चाहते हैं वह लिंक कापी करें और फिर लिंक को इस वैब साइट पर पेस्ट कर एनालाइज बटन पर क्लिक कर दें. इस के बाद आप नीचे फेक रेटिंग और रिव्यू देख सकते हैं. औनलाइन शौपिंग प्लेटफौर्म साल में 1 या 2 बार सेल के शौपिंग फैस्टिवल मनाते हैं, जिन में कम समय में ज्यादा विक्रीय होने के कारण कुछ कम कीमत पर सामान उपलब्ध हो जाता है, इसलिए जागरूग बने रहिए और औनलाइन शौपिंग के मजे उड़ाते रहिए. नई मोबाइल डिपैंडैंट पीढ़ी के साथसाथ दुनियाभर में औनलाइन शौपिंग का क्रेज बढ़ता जा रहा है.

मिनटों में बनाएं ये 3 खूबसूरत नेलआर्ट

नाखूनों की सजावट ना केवल आपके हाथों को सुंदर दिखाती है बल्कि आपकी खूबसूरती में भी चार चांद लगाती है. आजकल शादी-पार्टी से लेकर आफिस में भी नेल आर्ट बहुत खूबसूरत लगते हैं. ये आपको कूल लुक देते हैं. तो आइए एक नजर डालते हैं कुछ ऐसे ही ‘नेल आर्टस’ पर, जिन्हें आप मिनटों में घर पर ही बना सकती हैं.

पहली डिजाइन

काले चटक रंग और ट्रांसपेरेंट नेलपालिश लें. इसके बाद काली नेलपालिश को बेस कोट की तरह अपने नाखूनों पर लगा लें. जब यह सूख जाए तो बीच वाली ऊंगली पर एक लाईन में अलग-अलग रंगों से डौट्स रखें. वहीं दूसरी ऊंगलियों पर कुछ दो या तीन डौट्स रखें. सूख जाने पर इसके उपर ट्रांसपेरेंट नेलपालिश लगा लें.

दूसरी डिजाइन

अब दूसरा नेलआर्ट बनाने के लिए गुलाबी, ट्रांसपेरेंट और ग्लिटर नेलपालिश लें. नाखूनों पर ट्रांसपेरेंट नेलपालिश लगाकर सूखने दें. सूखने पर काले रंग से नेलआर्ट टूल या सेफ्टी पिन की मदद से बारीक लाइन खींचे. गुलाबी रंग से उस लाइन के दायीं ओर दो सुंदर पत्तियां बनाएं. काले रंग से पत्तियों की आउट लाइन बनाएं. पत्तियां सूख जाएं तो उनपर ग्लिटर नेलपालिश लगाएं. ये आपके नाखूनों पर बेहद जचेंगी.

तीसरी डिजाइन

इसके लिए पांच चटक रंग की नेलपालिश, पुराना टूथ ब्रश, काली और ट्रांसपेरेंट नेलपालिश लें. अब अपने पांचों नाखूनों पर अलग-अलग रंग की नेल पालिश लगा लें. सूखने पर एक प्लेट में इनसे अलग रंग की नेल पालिश लें. टूथ ब्रश में इन नेलपालिश को लगाकर बारी-बारी से हर एक नाखून पर स्प्रे करें. नेलपेंट अगर आसपास की स्किन पर लग जाए तो इसे रिमूवर की मदद से छुड़ा लें. आखिर में ट्रांसपेरेंट नेल पालिश से फिनिशिंग दें.

आप चाहे तो इसी तरह और भी कई नए डिजाइन के नेल आर्ट ट्राई कर सकती हैं.

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