डाइबिटीज को हराना चाहती हैं तो आज ही अपनाएं ये डाइट

आज लोगों के बीच तेजी से फैलने वाली बीमारियों में से एक है डायबिटीज. समय के साथ इसका रूप भयावह होता जा रहा है, ये एक जानलेवा बीमारी के तौर पर सामने आई है. ये बीमारी शरीर में इंसुलिन का अच्छे से प्रोड्कशन ना होने के कारण होती है. जानकारों की माने तो अगर डायबिटीज को नियंत्रण में न रखा जाए तो इससे किडनी और दिल की बीमारी होने के साथ व्यक्ति का वजन भी बढ़ने लगता है.

इस खबर में हम आपको कुछ घरेरू चीजों के बारे में बताएंगे जिसके नियमित प्रयोग से आप इस बीमारी से निजात पा सकती हैं.

तांबे के बर्तन में पिएं पानी

जानकारों की माने तो डाइबिटिक मरीजों को तांबे के बर्तन में पानी पीना पेट के लिए काफी असरदार होता है. इसके लिए तांबे के बर्तन में पानी भरकर रातभर रख दें, सुबह उठकर उस पानी को पीलें. इससे तांबे के एंटीऔक्सीडेंट और एंटी इंफ्लामेट्री गुण पानी में आ जाते हैं, जो डायबिटीज को कंट्रोल में रखने में मदद करते हैं.

मेथी का दाना

कई स्टडीज में ये बात स्पष्ट हुई है कि डाइबिटीज को कंट्रोल करने में मेथी का दाना काफी लाभकारी है. इस पर हुए शोधों के मुताबिक , रोजाना गर्म पानी में भीगी हुई 10 ग्राम मेथी दाने का सेवन करने से टाइप-2 डायबिटीज कंट्रोल में रहती है. मेथी दाने में मौजूद फाइबर धीरे-धीरे ही ब्लडस्ट्रीम में शुगर को रिलीज करता है.

डाइबिटीज मरीजों को केवल मीठी चीजों को छोड़ना ही काफी नहीं होता, बल्कि उन्हें अपनी डाइट में बहुत सी चीजें जोड़नी होती हैं. इस रोग के मरीजों को करेला, आंवला और एलोवेरा जैसे खाद्य पदार्थों को अपनी डाइट से जोड़ना चाहिए. डाइबिटीज में ये तत्व काफी असरदार होते हैं. आंवला में मौजूद फाइबर डायबिटीज के मरीजों को बहुत फायदा पहुंचाता है.

मसीहा: शांति के दुख क्या मेहनत से दूर हो पाए

दोपहर का खाना खा कर लेटे ही थे कि डाकिया आ गया. कई पत्रों के बीच राजपुरा से किसी शांति नाम की महिला का एक रजिस्टर्ड पत्र 20 हजार रुपए के ड्राफ्ट के साथ था. उत्सुकतावश मैं एक ही सांस में पूरा पत्र पढ़ गई, जिस में उस महिला ने अपने कठिनाई भरे दौर में हमारे द्वारा दिए गए इन रुपयों के लिए धन्यवाद लिखा था और आज 10 सालों के बाद वे रुपए हमें लौटाए थे. वह खुद आना चाहती थी पर यह सोच कर नहीं आई कि संभवत: उस के द्वारा लौटाए जाने पर हम वह रुपए वापस न लें.

पत्र पढ़ने के बाद मैं देर तक उस महिला के बारे में सोचती रही पर ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा था.

‘‘अरे, सुमि, शांति कहीं वही लड़की तो नहीं जो बरसों पहले कुछ समय तक मुझ से पढ़ती रही थी,’’ मेरे पति अभिनव अतीत को कुरेदते हुए बोले तो एकाएक मुझे सब याद आ गया.

उन दिनों शांति अपनी मां बंती के साथ मेरे घर का काम करने आती थी. एक दिन वह अकेली ही आई. पूछने पर पता चला कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं है. 2-3 दिन बाद जब बंती फिर काम पर आई तो बहुत कमजोर दिख रही थी. जैसे ही मैं ने उस का हाल पूछा वह अपना काम छोड़ मेरे सामने बैठ कर रोने लगी. मैं हतप्रभ भी और परेशान भी कि अकारण ही उस की किस दुखती रग पर मैं ने हाथ रख दिया.

बंती ने बताया कि उस ने अब तक के अपने जीवन में दुख और अभाव ही देखे हैं. 5 बेटियां होने पर ससुराल में केवल प्रताड़ना ही मिलती रही. बड़ी 4 बेटियों की तो किसी न किसी तरह शादी कर दी है. बस, अब तो शांति को ब्याहने की ही चिंता है पर वह पढ़ना चाहती है.

बंती कुछ देर को रुकी फिर आगे बोली कि अपनी मेहनत से शांति 10वीं तक पहुंच गई है पर अब ट्यूशन की जरूरत पड़ेगी जिस के लिए उस के पास पैसा नहीं है. तब मैं ने अभिनव से इस बारे में बात की जो उसे निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गए. अपनी लगन व परिश्रम से शांति 10वीं में अच्छे नंबरों में पास हो गई. उस के बाद उस ने सिलाईकढ़ाई भी सीखी. कुछ समय बाद थोड़ा दानदहेज जोड़ कर बंती ने उस के हाथ पीले कर दिए.

अभी शांति की शादी हुए साल भर बीता था कि वह एक बेटे की मां बन गई. एक दिन जब वह अपने बच्चे सहित मुझ से मिलने आई तो उस का चेहरा देख मैं हैरान हो गई. कहां एक साल पहले का सुंदरसजीला लाल जोड़े में सिमटा खिलाखिला शांति का चेहरा और कहां यह बीमार सा दिखने वाला बुझाबुझा चेहरा.

‘क्या बात है, बंती, शांति सुखी तो है न अपने घर में?’ मैं ने सशंकित हो पूछा.

व्यथित मन से बंती बोली, ‘लड़कियों का क्या सुख और क्या दुख बीबी, जिस खूंटे से बांध दो बंधी रहती हैं बेचारी चुपचाप.’

‘फिर भी कोई बात तो होगी जो सूख कर कांटा हो गई है,’ मेरे पुन: पूछने पर बंती तो खामोश रही पर शांति ने बताया, ‘विवाह के 3-4 महीने तक तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे पति का पाशविक रूप सामने आता गया. वह जुआरी और शराबी था. हर रात नशे में धुत हो घर लौटने पर अकारण ही गालीगलौज करता, मारपीट करता और कई बार तो मुझे आधी रात को बच्चे सहित घर से बाहर धकेल देता. सासससुर भी मुझ में ही दोष खोजते हुए बुराभला कहते. मैं कईकई दिन भूखीप्यासी पड़ी रहती पर किसी को मेरी जरा भी परवा नहीं थी. अब तो मेरा जीवन नरक समान हो गया है.’

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. मानव मन भी अबूझ होता है. कभीकभी तो खून के रिश्तों को भी भीड़ समझ उन से दूर भागने की कोशिश करता है तो कभी अनाम रिश्तों को अकारण ही गले लगा उन के दुखों को अपने ऊपर ओढ़ लेता है. कुछ ऐसा ही रिश्ता शांति से जुड़ गया था मेरा.

अगले दिन जब बंती काम पर आई तो मैं उसे देर तक समझाती रही कि शांति पढ़ीलिखी है, सिलाईकढ़ाई जानती है, इसलिए वह उसे दोबारा उस के ससुराल न भेज कर उस की योग्यता के आधार पर उस से कपड़े सीने का काम करवाए. पति व ससुराल वालों के अत्याचारों से छुटकारा मिल सके मेरे इस सुझाव पर बंती ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप अपना काम समाप्त कर बोझिल कदमों से घर लौट गई.

एक सप्ताह बाद पता चला कि शांति को उस की ससुराल वाले वापस ले गए हैं. मैं कर भी क्या सकती थी, ठगी सी बैठी रह गई.

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. इस बीच मैं ने बंती से शांति के बारे में कभी कोई बात नहीं की पर एक दिन शांति के दूसरे बेटे के जन्म के बारे में जान कर मैं बंती पर बहुत बिगड़ी कि आखिर उस ने शांति को ससुराल भेजा ही क्यों? बंती अपराधबोध से पीडि़त हो बिलखती रही पर निर्धनता, एकाकीपन और अपने असुरक्षित भविष्य को ले कर वह शांति के लिए करती भी तो क्या? वह तो केवल अपनी स्थिति और सामाजिक परिवेश को ही कोस सकती थी, जहां निम्नवर्गीय परिवार की अधिकांश स्त्रियों की स्थिति पशुओं से भी गईगुजरी होती है.

पहले तो जन्म लेते ही मातापिता के घर लड़की होने के कारण दुत्कारी जाती हैं और विवाह के बाद अर्थी उठने तक ससुराल वालों के अत्याचार सहती हैं. भोग की वस्तु बनी निरंतर बच्चे जनती हैं और कीड़ेमकोड़ों की तरह हर पल रौंदी जाती हैं, फिर भी अनवरत मौन धारण किए ऐसे यातना भरे नारकीय जीवन को ही अपनी तकदीर मान जीने का नाटक करते हुए एक दिन चुपचाप मर जाती हैं.

शांति के साथ भी तो यही सब हो रहा था. ऐसी स्थिति में ही वह तीसरी बार फिर मां बनने को हुई. उसे गर्भ धारण किए अभी 7 महीने ही हुए थे कि कमजोरी और कई दूसरे कारणों के चलते उस ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया. इत्तेफाक से उन दिनों वह बंती के पास आई हुई थी. तब मैं ने शांति से परिवार नियोजन के बारे में बात की तो बुझे स्वर में उस ने कहा कि फैसला करने वाले तो उस की ससुराल वाले हैं और उन का विचार है कि संतान तो भगवान की देन है इसलिए इस पर रोक लगाना उचित नहीं है.

मेरे बारबार समझाने पर शांति ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और बच्चों के भविष्य को देखते हुए मेरी बात मान ली और आपरेशन करवा लिया. यों तो अब मैं संतुष्ट थी फिर भी शांति की हालत और बंती की आर्थिक स्थिति को देखते हुए परेशान भी थी. मेरी परेशानी को भांपते हुए मेरे पति ने सहज भाव से 20 हजार रुपए शांति को देने की बात कही ताकि पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद वह इन रुपयों से कोई छोटामोटा काम शुरू कर के अपने पैरों पर खड़ी हो सके. पति की यह बात सुन मैं कुछ पल को समस्त चिंताओं से मुक्त हो गई.

अगले ही दिन शांति को साथ ले जा कर मैं ने बैंक में उस के नाम का खाता खुलवा दिया और वह रकम उस में जमा करवा दी ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस का लाभ उठा सके.

अभी इस बात को 2-4 दिन ही बीते थे कि हमें अपनी भतीजी की शादी में हैदराबाद जाना पड़ा. 15-20 दिन बाद जब हम वापस लौटे तो मुझे शांति का ध्यान हो आया सो बंती के घर चली गई, जहां ताला पड़ा था. उस की पड़ोसिन ने शांति के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन मैं अवाक् रह गई.

हमारे हैदराबाद जाने के अगले दिन ही शांति का पति आया और उसे बच्चों सहित यह कह कर अपने घर ले गया कि वहां उसे पूरा आराम और अच्छी खुराक मिल पाएगी जिस की उसे जरूरत है. किंतु 2 दिन बाद ही यह खबर आग की तरह फैल गई कि शांति ने अपने दोनों बच्चों सहित भाखड़ा नहर में कूद कर जान दे दी है. तब से बंती का भी कुछ पता नहीं, कौन जाने करमजली जीवित भी है या मर गई.

कैसी निढाल हो गई थी मैं उस क्षण यह सब जान कर और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही थी. पर आज शांति का पत्र मिलने पर एक सुखद आश्चर्य का सैलाब मेरे हर ओर उमड़ पड़ा है. साथ ही कई प्रश्न मुझे बेचैन भी करने लगे हैं जिन का शांति से मिल कर समाधान चाहती हूं.

जब मैं ने अभिनव से अपने मन की बात कही तो मेरी बेचैनी को देखते हुए वह मेरे साथ राजपुरा चलने को तैयार हो गए. 1-2 दिन बाद जब हम पत्र में लिखे पते के अनुसार शांति के घर पहुंचे तो दरवाजा एक 12-13 साल के लड़के ने खोला और यह जान कर कि हम शांति से मिलने आए हैं, वह हमें बैठक में ले गया. अभी हम बैठे ही थे कि वह आ गई. वही सादासलोना रूप, हां, शरीर पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था. आते ही वह मेरे गले से लिपट गई. मैं कुछ देर उस की पीठ सहलाती रही, फिर भावावेश में डूब बोली, ‘‘शांति, यह कैसी बचकानी हरकत की थी तुम ने नहर में कूद कर जान देने की. अपने बच्चों के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, कोई ऐसा भी करता है क्या? बच्चे तो ठीक हैं न, उन्हें कुछ हुआ तो नहीं?’’

बच्चों के बारे में पूछने पर वह एकाएक रोने लगी. फिर भरे गले से बोली, ‘‘छुटका नहीं रहा आंटीजी, डूब कर मर गया. मुझे और सतीश को किनारे खड़े लोगों ने किसी तरह बचा लिया. आप के आने पर जिस ने दरवाजा खोला था, वह सतीश ही है.’’

इतना कह वह चुप हो गई और कुछ देर शून्य में ताकती रही. फिर उस ने अपने अतीत के सभी पृष्ठ एकएक कर के हमारे सामने खोल कर रख दिए.

उस ने बताया, ‘‘आंटीजी, एक ही शहर में रहने के कारण मेरी ससुराल वालों को जल्दी ही पता चल गया कि मैं ने परिवार नियोजन के उद्देश्य से अपना आपरेशन करवा लिया है. इस पर अंदर ही अंदर वे गुस्से से भर उठे थे पर ऊपरी सहानुभूति दिखाते हुए दुर्बल अवस्था में ही मुझे अपने साथ वापस ले गए.

‘‘घर पहुंच कर पति ने जम कर पिटाई की और सास ने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल पीठ दाग दी. मेरे चिल्लाने पर पति मेरे बाल पकड़ कर खींचते हुए कमरे में ले गया और चीखते हुए बोला, ‘तुझे बहुत पर निकल आए हैं जो तू अपनी मनमानी पर उतर आई है. ले, अब पड़ी रह दिन भर भूखीप्यासी अपने इन पिल्लों के साथ.’ इतना कह उस ने आंगन में खेल रहे दोनों बच्चों को बेरहमी से ला कर मेरे पास पटक दिया और दरवाजा बाहर से बंद कर चला गया.

‘‘तड़पती रही थी मैं दिन भर जले के दर्द से. आपरेशन के टांके कच्चे होने के कारण टूट गए थे. बच्चे भूख से बेहाल थे, पर मां हो कर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी उन के लिए. इसी तरह दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई. भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था और जीने की कोई लालसा शेष नहीं रह गई थी.

‘‘अपने उन्हीं दुर्बल क्षणों में मैं ने आत्महत्या कर लेने का निर्णय ले लिया. अभी पौ फटी ही थी कि दोनों सोते बच्चों सहित मैं कमरे की खिड़की से, जो बहुत ऊंची नहीं थी, कूद कर सड़क पर तेजी से चलने लगी. घर से नहर ज्यादा दूर नहीं थी, सो आत्महत्या को ही अंतिम विकल्प मान आंखें बंद कर बच्चों सहित उस में कूद गई. जब होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में पाया. सतीश को आक्सीजन लगी हुई थी और छुटका जीवनमुक्त हो कहीं दूर बह गया था.

‘‘डाक्टर इस घटना को पुलिस केस मान बारबार मेरे घर वालों के बारे में पूछताछ कर रहे थे. मैं इस बात से बहुत डर गई थी क्योंकि मेरे पति को यदि मेरे बारे में कुछ भी पता चल जाता तो मैं पुन: उसी नरक में धकेल दी जाती, जो मैं चाहती नहीं थी. तब मैं ने एक सहृदय

डा. अमर को अपनी आपबीती सुनाते हुए उन से मदद मांगी तो मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने इस घटना को अधिक तूल न दे कर जल्दी ही मामला रफादफा करवा दिया और मैं पुलिस के चक्करों  में पड़ने से बच गई.

‘‘अब तक डा. अमर मेरे बारे में सबकुछ जान चुके थे इसलिए वह मुझे बेटे सहित अपने घर ले गए, जहां उन की मां ने मुझे बहुत सहारा दिया. सप्ताह  भर मैं उन के घर रही. इस बीच डाक्टर साहब ने आप के द्वारा दिए उन 20 हजार रुपयों की मदद से यहां राजपुरा में हमें एक कमरा किराए पर ले कर दिया. साथ ही मेरे लिए सिलाई का सारा इंतजाम भी कर दिया. पर मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे सिले कपड़े बिकेंगे कैसे?

‘‘इस बारे में जब मैं ने डा. अमर से बात की तो उन्होंने मुझे एक गैरसरकारी संस्था के अध्यक्ष से मिलवाया जो निर्धन व निराश्रित स्त्रियों की सहायता करते थे. उन्होंने मुझे भी सहायता देने का आश्वासन दिया और मेरे द्वारा सिले कुछ वस्त्र यहां के वस्त्र विके्रताओं को दिखाए जिन्होंने मुझे फैशन के अनुसार कपड़े सिलने के कुछ सुझाव दिए.

‘‘मैं ने उन के सुझावों के मुताबिक कपड़े सिलने शुरू कर दिए जो धीरेधीरे लोकप्रिय होते गए. नतीजतन, मेरा काम दिनोंदिन बढ़ता चला गया. आज मेरे पास सिर ढकने को अपनी छत है और दो वक्त की इज्जत की रोटी भी नसीब हो जाती है.’’

इतना कह शांति हमें अपना घर दिखाने लगी. छोटा सा, सादा सा घर, किंतु मेहनत की गमक से महकता हुआ.  सिलाई वाला कमरा तो बुटीक ही लगता था, जहां उस के द्वारा सिले सुंदर डिजाइन के कपड़े टंगे थे.

हम दोनों पतिपत्नी, शांति की हिम्मत, लगन और प्रगति देख कर बेहद खुश हुए और उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त भी. शांति से बातें करते बहुत समय बीत चला था और अब दोपहर ढलने को थी इसलिए हम पटियाला वापस जाने के लिए उठ खड़े हुए. चलने से पहले अभिनव ने एक लिफाफा शांति को थमाते हुए कहा, ‘‘बेटी, ये वही रुपए हैं जो तुम ने हमें लौटाए थे. मैं अनुमान लगा सकता हूं कि किनकिन कठिनाइयों को झेलते हुए तुम ने ये रुपए जोड़े होंगे. भले ही आज तुम आत्मनिर्भर हो गई हो, फिर भी सतीश का जीवन संवारने का एक लंबा सफर तुम्हारे सामने है. उसे पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना है तुम्हें, और उस के लिए बहुत पैसा चाहिए. यह थोड़ा सा धन तुम अपने पास ही रखो, भविष्य में सतीश के काम आएगा. हां, एक बात और, इन पैसों को ले कर कभी भी अपने मन पर बोझ न रखना.’’

अभिनव की बात सुन कर शांति कुछ देर चुप बैठी रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘अंकलजी, आप ने मेरे लिए जो किया वह आज के समय में दुर्लभ है. आज मुझे आभास हुआ है कि इस संसार में यदि मेरे पति जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग हैं तो

डा. अमर और आप जैसे महान लोग भी हैं जो मसीहा बन कर आते हैं और हम निर्बल और असहाय लोगों का संबल बन उन्हें जीने की सही राह दिखाते हैं.’’

इतना कह सजल नेत्रों से हमारा आभार प्रकट करते हुए वह अभिनव के चरणों में झुक गई.

महंगे ख्वाब: भाग 3- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

राहुल और रश्मि इधरउधर बाइक से घूमने लगे. आज रश्मि काफी खुश थी, हो भी क्यों न, आज उस के सपनों के पर निकल आए थे. काफी देर घूमने के बाद राहुल ने रश्मि से कहा, ‘‘ऐसा है, इधरउधर घूमने से बेहतर है कि तुम आज मेरे रूम चलो, वहीं बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे.’’

रश्मि ने मारे खुशी के इस बात की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया कि शहर में किसी लड़के के रूम में जाने के क्या माने होते हैं.

रश्मि पहली बार राहुल के रूम में आई थी. राहुल किराए के मकान में रहता था और भी कई लड़के उसी मकान में किराएदार थे. इन सब बातों से बेपरवा रश्मि वहां आ गई थी. राहुल रूम में अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी के आने का कोई डर नहीं था. राहुल का कमरा देखने में अच्छा था, लेकिन सारा सामान इधर से उधर तक बिखरा था.

‘‘राहुल, तुम्हारा रूम कितना गंदा है, लगता है कभी इस की सफाई नहीं करते?’’

‘‘अब कौन रोजरोज सफाई अभियान चलाए,’’ राहुल एकदम पास आ कर बोला. थोड़ी देर बात करते हुए राहुल रश्मि से एकदम सट कर बैठ गया और उस के कंधे पर अपने हाथों को रख लिया.

रश्मि के कुछ न कहने पर उस का हौसला बढ़ गया और अचानक से रश्मि के नाजुक गालों को चूम लिया.

‘‘यह क्या कर रहे हो,’’ रश्मि उस के पास से हटते हुए बोली. लेकिन उसी पल राहुल ने पागल आशिकों की तरह उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया, रश्मि उस के ऊपर आ गिरी. अब रश्मि उस की मजबूत बांहों में समा चुकी थी.

ऐसा नहीं है कि रश्मि ने राहुल से छूटने की कोशिश न की हो, लेकिन राहुल उसे अपने फौलादी हाथों से जकड़े हुए था. रश्मि उस की बांहों में शिकार बने परिंदे की तरह छटपटा रही थी, लेकिन उस की सारी कोशिशें नाकाम रहीं. इस का दूसरा पहलू यह भी था, रश्मि खुद ही राहुल की बांहों में प्यार के गोते लगाना चाहती थी. रश्मि अब राहुल के जिस्म में लता की तरह लिपटी हुई थी और रेगिस्तान में मछली की तरह प्यार में तड़प रही थी. राहुल भी सारी सरहदें पार कर के हद से गुजर जाना चाहता था. प्यार की तड़प, जज्बातों की प्यास और जिस्म की आग दोनों तरफ से इस कदर लगी थी कि उन्हें अच्छेबुरे की सुध ही न रही.

रफ्तारफ्ता यह सिलसिला चलता रहा और प्यार करने की चाहत दिनबदिन बढ़ती गई. लेकिन क्या यह प्यार था या सिर्फ चाहत या जो जिस्मों की प्यास बुझाने के लिए था? इस रिश्ते का नाम कुछ भी हो, एक बात तो तय थी कि इन में से कोई भी ईमानदार नहीं था. रश्मि को मौडल बनना था और राहुल को जिस्म की आग ठंडी करनी थी. रश्मि अपने ख्वाबों को हकीकत बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा चुकी थी, उसे सिर्फ कामयाबी चाहिए थी, फिर चाहे जैसे मिले. इस से रश्मि को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

अकसर सुनने में आता है कि झूठ को इतनी बार बोलो कि वह सच लगने लगे, लेकिन आखिर कब तक? कब तक आप किसी से इस तरह से फरेब करते रहेंगे. एक दिन तो सचाई दुनिया के सामने आनी ही है और यह सचाईर् रश्मि के सामने बहुत भयानक रूप में आई.

रश्मि मौडल बनने के लिए कुछ भी कर सकती थी, इसलिए राहुल ने उसे उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया था. वह उसे आजकल में टालता रहा, फिर एक दिन उसे स्टूडियो में ले जा कर उस का फोटोशूट करवाया. विकास सर बोले ‘‘रश्मि, आप को मौडल बनना है?’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि बोली.

‘‘तो आप कल से इस तरह के गांव वाले कपड़े पहन कर मत आना.’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि ने हामी भरी.

अगले दिन रश्मि काफी भड़कीला सूट पहन कर आई और फोटोशूट के लिए तैयार हो गई. कैमरामैन शौट लेने के लिए रेडी था. उस ने कई एंगल से शौट लिए. लेकिन विकास जिस तरह का शौट चाहते थे, उन्हें नहीं मिल पा रहा था. वे उठ खड़े हुए और रश्मि को डांटते हुए बोले कि तुम्हें इतना भी नहीं मालूम की कैसे कपड़े पहन कर आया जाता है.

फिर उन्होंने कैमरामैन से डिजाइन किए ड्रैसेज लाने को कहा. उस ने एक बौक्स से कुछ ड्रैसेस निकालीं और रश्मि को पहनने को दीं. रश्मि जब चेंजिंग रूम में गई और एक ड्रैस पहनी और वहीं लगे आईने में देखा तो शरमा गई. जो ड्रैस पहनी थी, उस से बमुश्किल ही जिस्म छिप पा रहा था. लेकिन यह सब तो करना ही था. इसी तरह कई ड्रैसेज में उस ने पोज दिए, रश्मि आज काफी नर्वस थी, उस की हालत देख कर राहुल उसे करीब कर के बोला, ‘‘रश्मि, यह सब तो करना ही पड़ेगा, अब मौडल जो बनना है.’’

‘‘हां राहुल, फिर भी मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा,’’ रश्मि उदासी से बोली.

रात को रश्मि काफी देर तक छत से लटकते पंखे को निहारती रही, ‘क्या मैं जो कर रही हूं, वह ठीक है? या मौडल बनने के चक्कर में किसी दलदल में फंस गई हूं.’ काफी रात तक वह जागती रही, लेकिन उस के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. एक तरफ बचपन से पाला हुआ ख्वाब था, तो दूसरी तरफ ख्वाबों को हकीकत में बदलने का मौका और इस मौके में कई तरह के खौफनाक मोड़. आज रश्मि का फोटोशूट भोपाल से बाहर एक फार्महाउस में होना था. इसलिए थोड़ी देर बाद रश्मि तैयार हो कर राहुल की बाइक पर शहर से दूर किसी हाइवे पर फर्राटा भरते हुए चली जा रही थी. करीब 40 मिनट बाद उन की बाइक हाइवे से उतर कर एक ऊबड़खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाते हुए मंजिल की तरफ बढ़ी.

बा?इक एक आलीशान फार्महाउस के सामने आ कर रुकी. राहुल ने हौर्न बजाया. गेट खुला. फिर दोनों अंदर साथ गए. वहां जा कर रश्मि ने देखा कि फार्महाउस काफी बड़ा है. सामने ही उसे विकास सर नजर आ गए. रश्मि ने नमस्ते कहा. इस के जवाब में विकास सर ने भी.

अंदर जा कर रश्मि ने देखा तो खानेपीने का इंतजाम पहले से ही था. वहीं टेबल पर कुछ बोतलें शराब की थीं. यह सब देख कर रश्मि को अजीब लगा, लेकिन फिर सोचा कि यह सब आज के दौर में चलता है. थोड़ी देर बाद सभी एक बड़े डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खानेपीने लगे.

‘‘रश्मि,’’ सक्सेना सर ने उसे शराब पीने का औफर दिया. लेकिन रश्मि ने साफ मना कर दिया. ‘‘यह सब चलता है,’’ राहुल पीते हुए बोला. इस बार रश्मि ने जाम को हाथों से थाम लिया. शराब पीते ही रश्मि को बड़ा अजीब लगा, जैसे कोई तीखी चीज गले को चीर कर अंदर उतर गई हो.

विकास सर और राहुल पर शराब का सुरूर चढ़ा तो उन्होंने इधरउधर की भद्दी बातें करनी शुरू कर दीं. थोड़ी ही देर में विकास सर ने रश्मि को अपने पास बुलाया और हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बैठा लिया और छेड़खानी करने लगे.

‘‘सर, आप क्या रहे रहे हैं, यह सब गलत है,’’ रश्मि ने कहा. लेकिन सही और गलत की किसे परवा थी.

‘‘तुम्हें मौडल नहीं बनना क्या, देखो रश्मि, जिंदगी में कुछ बड़ा करना है तो यह सब गलत नहीं है, और मेरे कुछ करने से तुम्हारी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आ जाएगी,’’ यह कहते हुए सक्सेना के हाथ रश्मि के गालों से होते हुए उस के सीने पर आ कर थम गए.

‘‘सर, यह तो मेरे बचपन का शौक है,’’ रश्मि धीमी आवाज में बोली.

‘‘फिर क्यों मना कर रही हो, हम कोई गैर नहीं हैं, हमें अपना ही समझो,’’ विकास सर कहते हुए बदहवास उस पर टूट पड़े.

रश्मि मौडल बनने के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगाने से गुरेज करने वालों में नहीं थी, वह जिस्म को मंजिल हासिल करने का सिर्फ जरिया मानती थी और आज उस ने वही किया. यह बात और है कि एक औरत होने के नाते उसे भी थोड़ीबहुत झिझक थी, जो अब टूट चुकी थी.

मन में बाराबर यही आ रहा था कि बचपन से संजोए ख्वाब शायद अब हकीकत बन जाएं. लेकिन यह ख्वाब महंगे साबित होंगे, उस ने सोचा न था. लेकिन महंगे ख्वाब आसानी से पूरे नहीं होते हैं, इस बात का एहसास उसे अब तक हो चुका था. तभी तो अब रश्मि इस खेल में मंझी हुई खिलाड़ी की तरह विकास का साथ दे रही थी. यह सब करते हुए अब उसे कोई पछतावा नहीं हो रहा था, बल्कि जिंदगी का अहम हिस्सा मान कर अपने सपनों के साथ सैक्स का भी मजा लेने लगी. उसे अपनी मंजिल मिल गई थी.

टैडी बियर: क्या था अदिति का राज

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पलभर का सच: भाग 2- क्या था शुभा के वैवाहिक जीवन का कड़वा सच

पूजा की शादी को साल भर हो चुका था. इस दौरान वह और सचिन अकसर दिल्ली मेरे यहां आया करते थे मगर शुभा पहली बार मेरे यहां बतौर समधन आ रही थी इसलिए भी मैं मन ही मन बहुत खुश हो रही थी. मुझ में बहुत सी पुरानी यादें उमड़ती जा रही थीं और उन मीठी सुहानी यादों की डोर मुझे कभी बचपन में तो कभी जवानी में ले जा कर ‘मायके’ पहुंचा रही थी.

ठीक 11 बजे राजू पूजा और शुभा को घर ले आया. कार से उतरते हुए मैं ने उन दोनों को देखा तो पूजा सिर्फ एक बैग ले कर आई थी मगर शुभा तो 3-4 बैग के साथ आई थी. बैगों को देख कर मेरे चेहरे पर आए अजीबोगरीब भावों को देख कर कुछ झेंपते हुए शुभा बोली, ‘‘मेरा सामान बहुत ज्यादा है न. दरअसल, मैं अब दिल्ली में अपने बेटे मुन्ना के पास रहने के इरादे से आई हूं. मेरा सामान यहीं बाहर ही रहने दो…अभी थोड़ी देर में मुन्ना आ जाएगा तो मैं उस के साथ चली जाऊंगी.’’

‘‘मेरी प्यारी समधन जी, आप हमारे घर अपनी इच्छा से आई हैं, मगर जाएंगी हमारी इच्छा से, समझीं? अब ज्यादा नखरे मत दिखाओ और चुपचाप अंदर चलो.’’

मैं ने शुभा से मजाक करते हुए कहा था तो मेरे बोलने के अंदाज से वह बहुत खुश हो गई और मेरे गले लग कर पहले की तरह हंसनेबोलने लगी थी.

खाना खा लेने के बाद हम सब कुछ देर तक गपशप करते रहे. पूजा अपने डैडी से अपने काम की बातें करती जा रही थी. पूजा की बातों से प्रभावित हो कर राजू भी अपनी छोटी बहन से सवाल पर सवाल पूछता जा रहा था. कुछ देर तक उन तीनों की बातें सुन लेने के बाद मैं शुभा को ले कर अपने कमरे में चली गई थी.

कमरे में जा कर हम दोनों जब पलंग पर लेट गए तो मैं ने सोचा कि हम दोनों एकसाथ होते ही पहले की तरह अनगिनत बातें शुरू कर देंगे और बातें करने को समय कम पड़ जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं था.

क्या उम्र के तकाजे ने या बदलते रिश्ते ने हमारे होंठ सिल दिए थे? मैं सोचने लगी कि शुभा बड़े धीरगंभीर और संयत स्वर में अचानक बोली थी, ‘‘मैं तलाक ले रही हूं, शालो.’’

‘‘क…क्याऽऽऽ?’’ कहते हुए मैं पलंग पर उठ कर बैठ गई थी.

‘‘हां, शालो, यह सच है. तुम्हें कहीं बाहर से खबर मिले और फिर तुम लोग परेशान हो जाओ, इस से अच्छा है कि मैं ही बता दे रही हूं…इसीलिए पहले मैं ने पूजा व सचिन की शादी 2 साल बाद करने की बात कही थी… सोचती थी कि बेटे की शादी के बाद यह सब अच्छा नहीं लगेगा… लेकिन अब मुझ से सहा नहीं जा रहा. अब मैं ने अपना मन पक्का कर लिया है.’’

‘‘लेकिन इतने सालों बाद यह फैसला क्यों, शुभा?’’

‘‘वैसे तो बहुत लंबी कहानी है, मगर जिस किसी को सुनाऊं उसे तो यह बहुत ही छोटी सी बात लगती है. कोई क्या जाने कि कभीकभी छोटी सी बात ही दिल में बवंडर बन कर समूचे जीवन को तहसनहस कर देती है.

‘‘तुम तो जानती ही हो कि शेखर मुझ से बेहद प्यार करता था. प्यार तो वह शायद आज भी बहुत करता है लेकिन शादी के बाद ही मैं ने उस के प्यार में बहुत बड़ा अंतर पाया है. शादी के पहले मुझे यह तो पता था कि हमारे यहां शादी सिर्फ पति से ही नहीं उस के पूरे परिवार से होती है. लेकिन शेखर से शादी करने के बाद मुझे लगा कि मेरी शादी शेखर के परिवार से नहीं उस के  परिवार की अजीबोगरीब अमीरी से हुई है.

‘‘शादी के बाद मुझे यह भी पता चला कि अमीरों की भी अलगअलग जातियां होती हैं. शेखर के पिता बड़े अमीर थे जो अपने दोनों बेटों के साथ अपने उद्योग को और बढ़ाना चाहते थे. शेखर की मां का बहुत पहले ही देहांत हो चुका था. घर में हम सिर्फ 4 लोग थे. शेखर के पिता, शेखर का छोटा भाई विशाल, शेखर और मैं. घर के इन 4 लोगों में से मेरी बातचीत सिर्फ शेखर से होती थी. शेखर के पिता ने कभी भी मुझ से आमनेसामने हो कर बात नहीं की थी. जब भी कुछ कहना होता तो शेखर से कह देते कि बहू से कहो…

‘‘विशाल, मेरा छोटा देवर शेखर से सिर्फ 2 साल छोटा था. वह स्वभाव से बेहद शर्मीला था. शुरूशुरू में मैं ने उस से दोस्ती करने के लिए हंसीमजाक करने की कोशिश की तो एक दिन शेखर ने बड़े गंभीर अंदाज में मुझ से कहा था, ‘तुम विशाल से यों हंसीमजाक न किया करो… डैडी को अच्छा नहीं लगता.’

‘‘ ‘तुम्हारे डैडी को तो मैं ही अच्छी नहीं लगती. तभी तो वह सीधे मुंह मुझ से बात ही नहीं करते, जो कहना होता है तुम से कहलवाते हैं और अब विशाल से बात करने क ो भी मना कर रहे हैं.’

‘‘मैं ने गुस्से में तुनक कर कहा था. इस पर शेखर का जो रौद्र रूप उस रात मैं ने पहली बार देखा था वह आजतक नहीं भूल पाई हूं.

‘‘अपने मजबूत हाथों से मुझे पलंग से उठा कर नीचे गिराते हुए एकदम ही राक्षसी अंदाज में शेखर ने कहा था, ‘इस घर में जो डैडी कहेंगे वही होगा, और तुम्हें भी वही करना होगा. अगर तुम्हें यह सब पसंद नहीं है तो तुम इस घर को छोड़ कर जा सकती हो…मगर तब मैं तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा.’

‘‘और फिर बड़ी बेदर्दी से शेखर बेडरूम छोड़ कर बाहर चला गया था. और मैं रात भर रोती रही थी पर मेरी सिसकियां सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

‘‘इस घटना के बाद 15-20 दिनों तक शेखर और मुझ में बोलचाल बिलकुल बंद थी. जाने कितने दिनों तक हम दोनों का यह मौनव्रत चालू रहता मगर एक दिन बात को निरर्थक न बढ़ाने की सोच कर मैं ने ही शेखर से बात करनी शुरू की और फिर शायद मुझे खुश करने के लिए ही वह उस समय मुझे घुमाने स्विट्जरलैंड ले गया था. वह 10-12 दिन जैसे परियों के पंख लगा कर उड़ गए थे. वापसी में मैं ने ही शेखर से कहा था, ‘सोचती हूं, कुछ दिन…मां से मिल आऊं.’

‘‘शेखर ने तब कहा था, ‘चलो, कल ही चले चलते हैं.’

‘‘मां और बाबूजी हम दोनों को देख कर बहुत खुश हो गए थे. मां तो दामाद की सेवा करतेकरते मुझे भूल ही गई थीं. लेकिन जब उन्होंने मुझे कुछ दिन उन के पास छोड़ जाने की बात शेखर से कही तो उस ने तपाक से मना कर दिया और फिर 2 दिन में ही मैं शेखर के साथ अपने घर वापस आ गई थी. उस वक्त भी मेरा मन बहुत खट्टा हो गया था और रात को शेखर से कुछ कहने ही वाली थी कि उस का तमतमाता हुआ चेहरा देख कर डर के मारे चुप ही रह गई थी.

‘‘इस घटना के बाद हर 15-20 दिनों के बाद कुछ न कुछ ऐसा घट जाता जिस से मैं जान गई कि इस घर में मुझे अपने मन की इच्छा पूरी करने की आजादी कभी मिल ही नहीं सकती. यह बात सच थी कि व्यावहारिक दृष्टिकोण से उस घर में सुख ही सुख था. गहने, कपड़े, खानापीना यानी किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी. शेखर मुझ से प्यार तो बहुत करता था मगर उस के प्यार में मेरी अपनी इच्छा की कोई कद्र नहीं होती थी.

‘‘घर में कुछ काम नहीं था तो मैं ने शेखर से आगे की पढ़ाई करने की बात कहीं तो ‘जरूरत क्या है’ कह कर उस ने मना कर दिया.

‘‘कुछ करने की बात छोड़ो, किसी सहेली से मिलने जाने की बात करती तो हर वक्त शेखर के साथ ही जाना होता था और उसी के साथ वापस भी आना होता था… इसी कारण मैं तुम्हारे घर बहुत कम आती थी. वैसे पूजा के डैडी की आंखों में मैं ने रईसी के प्रति नफरत कब की पढ़ ली थी. तभी तो सचिन व पूजा की शादी से मैं डरती थी. लगता था पूजा को मेरा ही इतिहास न दोहराना पड़े मगर सचिन बहुत समझदार है.

महंगे ख्वाब: भाग 2- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

12वीं का रिजल्ट आ गया, रश्मि ने स्कूल में टौप किया था. रश्मि के साथ घर वाले भी बहुत खुश थे. खुश भी क्यों न हों, बेटी ने उन का सिर फख्र से ऊंचा जो कर दिया था.

भोपाल के अच्छे कालेज में रश्मि का बीकौम में एडमिशन हो गया. वह पीजी में रहने लगी. उस का कालेज पीजी से आधे घंटे के फासले पर था, जिसे वह बस से तय करती.

रश्मि को आए हुए अभी 2 माह हुए थे कि 5 सितंबर नजदीक आ गया. यानी टीचर्स डे. इस के लिए क्लास के कई लड़केलड़कियों ने तरहतरह के सांस्कृतिक प्रोग्राम करने के लिए तैयारियां शुरू कर दीं. रश्मि को बड़ी जगह पर हुनर दिखाने का पहला मौका हाथ आया था, इसलिए वह किसी भी कीमत पर इसे गंवाना नहीं चाहती थी.

लिहाजा वह भी डांस की प्रैक्टिस में जीतोड़ मेहनत करने लगी. कालेज में प्रोग्राम के दौरान सभी ने एक से बढ़ कर एक झलकियां दिखा कर खूब वाहवाही लूटी, लेकिन अभी महफिल लूटने के लिए किसी का आना बाकी था.

‘तू शायर है, मैं तेरी शायरी…’ माधुरी की तरह डांस करती रश्मि की परफौर्मैंस देख हर तरफ तालियों की ताल सुनाई देने लगी.

सभी की जबां पर यही गीत खुदबखुद चलने लगा था. खैर, जब रश्मि स्टेज से ओझल हुई तब जा कर स्टुडैंट्स शांत हुए. लगभग एक बजे तक प्रोग्राम चला.

सभी टीचर्स के साथ ही लड़कों के बीच रश्मि को मुबारकबाद देने की होड़ सी लग गई. रश्मि के लिए ऐसा एहसास था जैसे हकीकत में वह कोई बड़ी सैलिब्रिटी हो. जितने भी लड़के थे, सभी उस के एकदम करीब हो जाना चाहते थे और यही मंशा रश्मि की थी.

घंटेभर बाद जब भीड़ कम हुई, तभी किसी की आवाज ने उस के कानों में दस्तक दी. उस ने मुड़ कर पीछे देखा, एक हैंडसम लड़के ने उसे मुबारकबाद देने के लिए हाथ बढ़ाया. रश्मि उसे नजरअंदाज न कर सकी और अपने नर्म व नाजुक हाथों को आगे बढ़ा दिया.

‘‘आप बहुत अच्छा डांस करती हैं, देख कर ऐसा लगा कि स्टेज पर माधुरी खुद ही परफौर्मैंस दे रही हों,’’ उस ने बड़ी सादगी से तारीफ की.

‘‘जी, शुक्रिया, मैं इतनी तारीफ के लायक नहीं कि आप मेरी इतनी तारीफ करें,’’ रश्मि सकुचाते हुए बोली.

‘‘मैं सच कह रहा हूं, आप ने वाकई में बहुत अच्छी परफौर्मैंस दी है,’’ अनजान लड़के ने बेबाकी से अपनी बात कही, ‘‘वैसे मेरा नाम राहुल है, और आप का?’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है,’’ रश्मि मुसकराई.

‘‘सोच रहा हूं जो दिखने में इतनी खूबसूरत है, उस का नाम कितना खूबसूरत होगा.’’

‘‘मेरा नाम रश्मि है,’’ रश्मि ने अपनी कातिल निगाहों से उस की तरफ देखा. राहुल ने भी रश्मि की आंखों में आंखें डाल दीं. काफी देर तक दोनों एकदूसरे को बिना पलक झपकाए देखते रहे, जब तक कि राहुल ने रश्मि की आंखों के सामने अपनी हथेलियों को ऊपरनीचे कर के कई बार इशारा नहीं किया.

तब जा कर रश्मि सपने से जागी और लजा गई. ‘‘आप से मिल कर खुशी हुई,’’ राहुल ने रश्मि के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘मैं पढ़ाई के साथ मौडलिंग करता हूं.’’ इतना सुनते ही रश्मि राहुल को देखते हुए सपनों के सागर में अठखेलियां खेलने लगी, उस ने कुछ ही देर में न जाने कितने सपने अकेले ही बुन लिए थे.

‘‘आप कहां खो गईं,’’ बोलते हुए राहुल का चेहरा रश्मि के इतना करीब हो गया था कि गरम सांसें एकदूसरे को महसूस होने लगीं. तभी रश्मि जागी, एक ऐसे सपने से जिस से वह जागना नहीं चाहती थी.

‘‘जी, कहिए क्या बात है,’’ रश्मि हड़बड़ा कर बोली.

‘‘आप किस दुनिया में खो गई थीं, मैं ने आप को कई बार पुकारा,’’ राहुल मुसकराया.

तभी उस का दोस्त रेहान आ गया और प्रैक्टिस पर जाने की बात कही. ‘‘अच्छा रश्मिजी, मैं चलता हूं, अब आप से कब मुलाकात होगी? अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं आप का नंबर ले सकता हूं.’’

‘‘जी, क्यों नहीं,’’ और रश्मि ने उसे अपना नंबर दे दिया. शायद यही उस के खुले आसमानों में परवाज करने के लिए कोई खुली फिजा मुहैया करा दे.

रश्मि का राहुल को नंबर देना भर था कि कुछ ही दिनों में दोनों काफी देर तक बातें करने लगे, जो पहले कुछ सैकंड से शुरू हो कर मिनटों पर सवार हो कर अब घंटों का सफर तय करते हुए, मंजिल की तरफ तेजी से बढ़े जा रहे थे.

अब सवाल उठता है कि आखिर वे दोनों कौन से सफर को अपनी मंजिल मान बैठे थे. एकदूसरे का हमसाया बन कर औरों की आंखों में खटकने लगे. लेकिन इन सब बातों से रश्मि और राहुल बेपरवा अपनी जिंदगी में मस्तमौला हो कर हंसीखुशी वक्त बिताने लगे.

एक शाम रश्मि ने राहुल को कौल किया, लेकिन उस के किसी दोस्त ने कौल रिसीव की. ‘‘हैलो, आप कौन? आप किस से बात करना चाहती हैं,’’ उधर से किसी लड़के की आवाज आई.

‘‘मैं रश्मि बोल रही हूं, मुझे राहुल से बात करनी है.’’

‘‘अभी वे बिजी हैं, ऐसा करें आप कुछ वक्त बाद फोन कर लीजिएगा.’’

‘‘जी, आप का शुक्रिया,’’ रश्मि अपनी आवाज में मिठास घोल कर बोली.

करीब आधे घंटे के बाद उधर से राहुल का कौल आया, ‘‘हैलो डार्लिंग, यार, क्या बताऊं थोड़ा काम में बिजी हो गया था.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ रश्मि रूखेपन से बोली.

‘‘समझने की कोशिश करो, रश्मि,’’ राहुल मनाने के अंदाज में बोला, ‘‘सच कह रहा हूं, एक जरूरी काम में बिजी था.’’

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ रश्मि ने तंज कसा.

‘‘अभी तक आप का मूड सही नहीं हुआ, अच्छा, कौफी पीने आओगी?’’ राहुल विनम्रता से बोला.

‘‘ठीक है, एक घंटे बाद मिलते हैं,’’ इतना कह कर रश्मि ने कौल काट दी.

एक घंटे बाद जब रश्मि बताए गए पते पर पहुंची तो राहुल पहले से उस के इंतजार में बैठा था.

‘‘क्या लोगी?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘कुछ भी मंगा लो,’’ रश्मि नजर उठा कर बोली.

‘‘ठीक है,’’ और राहुल ने 2 कौफी का और्डर दे दिया.

‘‘राहुल, मुझे तुम से एक बात करनी है,’’ रश्मि संजीदगी से बोली.

‘‘हां, बोलो, क्या बात करनी है?’’

‘‘बात यह है कि मैं मौडल बनना चाहती हूं और इस काम में तुम ही मेरी मदद कर सकते हो,’’ रश्मि उस की तरफ देखने लगी.

‘‘अच्छा, यह बात है, मैडम को मौडल बनना है,’’ राहुल बोला.

‘‘हां, मेरी दिलीख्वाहिश है.’’

‘‘ठीक है, मेरी कई लोगों से पहचान है और मैं खुद मौडलिंग करता हूं. इसलिए डोंट वरी. मैडम अब मुसकरा भी दो,’’ राहुल उसे छेड़ते हुए बोला.

इस बात पर रश्मि हंस दी और उस की हंसी ने चारों तरफ अपनी चमक बिखेर दी. थोड़ी देर में कौफी भी आ गई. दोनों गर्मजोशी से बातें करते हुए गर्म कौफी का मजा लेने लगे. रश्मि को अब सुकून था, लेकिन एक डर भी. यह डर कैसा था, खुद रश्मि को नहीं मालूम था. फिर भी उस ने आगे बढ़ने का फैसला कर लिया था.

रश्मि, राहुल के कदमों को फौलो करते हुए पीछेपीछे तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी. इन दोनों के पैर पहले फ्लोर में जा कर थमे.

‘‘हैलो राहुल,’’ उस अनजान आदमी ने कहा.

‘‘हैलो सर,’’ राहुल ने जवाब में हाथ बढ़ा दिया.

‘‘सर, ये हैं रश्मि, मिस रश्मि,’’ राहुल ने परिचय कराया.

‘‘और रश्मि, आप हैं विकास सर,’’ राहुल ने उस अनजान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘हैलो सर,’’ रश्मि मुसकरा कर बोली.

‘‘सर, रश्मि की बचपन से बड़ी ख्वाहिश थी कि वह बड़ी हो कर मौडल बने, इसलिए मैं आप से मिलाने लाया हूं, आप इस की मदद कर सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए कुछ करता हूं,’’ विकास सर बोले. इस के बाद विकास सर ने रश्मि से कुछ सवाल पूछे. सभी चायनाश्ता कर के वहां से चल दिए. विकास सर अपने काम से दूसरी तरफ चले गए.

पलभर का सच: भाग 1- क्या था शुभा के वैवाहिक जीवन का कड़वा सच

उस दिन रात में लगभग 12 बजे फोन की घंटी बजी तो नींद में हड़बड़ाते हुए ही मैं ने फोन उठाया था और फिर लड़खड़ाते शब्दों में हलो कहा तो दूसरी ओर से मेरे दामाद सचिन की चिरपरिचित आवाज मुझे सुनाई दी: ‘‘मैं सचिन बोल रहा हूं सा मां.’’

मेरी सब से प्रिय सहेली शुभ का बेटा सचिन पहले मुझे ‘आंटी’ कह कर बुलाता था. मगर जब से मेरी बेटी पूजा के साथ उस की शादी हुई है वह मुझे मजाक में ‘सा मां’ यानी सासू मां कह कर बुलाता था. उस रात उस की आवाज सुन कर मैं अनायास ही खुश हो गई थी और बोल पड़ी थी :

‘‘हां, बोलो बेटे…क्या बात है? इतनी रात गए कैसे फोन किया…सब ठीक तो है?’’

‘‘हां हां, सबकुछ ठीक है सा मां… पर आप को एक सरप्राइज दे रहा हूं. पूजा और मम्मी कल राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली आप के पास पहुंच रही हैं.’’

‘‘अरे वाह, क्या दिलखुश करने वाली खबर सुनाई है…और तुम क्यों नहीं आ रहे उन के साथ?’’

‘‘अरे, सा मां…आप को तो पता ही है कि मैं काम छोड़ कर नहीं आ सकता. और इन दोनों का प्रोग्राम तो अचानक ही बन गया. तभी तो प्लेन से नहीं आ रहीं. मैं तो कल से आप का फोन ट्राई कर रहा था. मगर फोन मिल ही नहीं रहा था…तभी तो आप को इतनी रात को तंग करना पड़ा… ये दोनों कल 10 साढ़े 10 बजे निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर उतरेंगी… राजू भैया को लेने के लिए भेज देना.’’

‘‘हां हां, राजू जरूर जाएगा और वह नहीं जा सका तो उस के डैडी जाएंगे… तुम चिंता मत करना.’’

यह कहते हुए मैं ने फोन रख दिया था और खुशी से तुरंत अपने पति को जगाते हुए उन्हें पूजा के आने की खबर सुना दी.

‘‘गुडि़या आ रही है यह तो बहुत अच्छी बात है पर उस के साथ तुम्हारी वह नकचढ़ी सहेली क्यों आ रही है?’’ हमेशा की तरह उन्होंने शुभा से नाराजगी जताते हुए मजाक में कहा.

‘‘अरे, उस का और एक बेटा भी यहां दिल्ली में ही रहता है. उस से मिलने का जी भी तो करता होगा उस का. पूजा को यहां पहुंचा कर शुभा कल चली जाएगी अपने बेटे के पास.’’

शुभा को शुरू से ही जाने क्यों यह पसंद नहीं करते थे जबकि वह मेरी सब से प्रिय सहेली थी. स्कूल और कालिज से ही हमारी अच्छीखासी दोस्ती थी. कालिज में शुभा को मेरी ही कक्षा के एक लड़के शेखर से प्यार हो गया था. उन दोनों के प्यार में मैं ने किसी नाटक के ‘सूत्रधार’ सी भूमिका निभाई थी. मुझे कभी शेखर की चिट्ठी शुभा को पहुंचानी होती तो कभी शुभा की चिट्ठी शेखर को. शुभा अपने प्यार की बातें मुझे सुनाती रहती थी.

खूबसूरत और तेज दिमाग की शुभा अमीर बाप की इकलौती बेटी होने के बावजूद मेरे जैसी सामान्य मिडल क्लास परिवार की लड़की से दोस्ती कैसे रखती है…यह उन दिनों कालिज के हर किसी के मन में सवाल था शायद. दोस्ती में जहां मन मिल जाते हैं वहां कोई कुछ कर सकता है भला?

शुभा का शेखर से प्यार हो जाने के बाद यह दोस्ती और भी पक्की हो गई थी. शेखर के पिता बहुत बड़े उद्योगपति थे. साइंस में इंटर करने के बाद शेखर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने मुंबई चला गया मगर शुभा को वह भूला नहीं था. आखिर कालिज की पढ़ाई पूरी करतेकरते ही शुभा और शेखर का प्रेम विवाह हम सब सहपाठियों के लिए एक यादगार बन कर रह गया था.

शुभा की शादी के साल भर बाद ही मेरी भी शादी हो गई और मैं यह जान कर बेहद खुश थी कि शादी के बाद मैं भी शुभा की ही तरह मुंबई में रहने जा रही थी.

मुंबई में हम जब तक रहे थे दोनों अकसर मिलते रहते थे मगर शुभा और शेखर के रईसी ठाटबाट से मेरे पति शायद कभी अडजस्ट नहीं हो सके थे. इसी से जब भी शुभा से मिलने की बात होती तो ये अकसर टाल देते.

मेरे पहले बेटे राजू के जन्म के बाद मेरे पति ने पहली नौकरी छोड़ कर दूसरी ज्वाइन की तो हम दिल्ली आ गए. यहां आने के 3 साल बाद पूजा का जन्म हुआ और फिर घरगृहस्थी के चक्कर में मैं पूरी तरह फंस गई.

शुभा से मेरी निकटता फिर धीरेधीरे कम होती गई थी. इस बीच शुभा भी 2 बच्चों की मां बन गई थी और दोनों बार लड़के हुए थे. यह सब खबरें तो मुझे मिलती रही थीं, मगर अब हमारी दोस्ती दीवाली, न्यू ईयर या बच्चों के जन्मदिनों पर बधाई भेजने तक ही सिमट कर रह गई थी.

पूजा को मुंबई के एक कालिज में एम.बी.ए. में एडमिशन मिल गया और वहीं उस की मुलाकात सचिन से हो गई.

पहले मुलाकात हुई, फिर दोस्ती हुई और फिर ठीक शुभा और शेखर की ही तरह पूजा और सचिन का प्यार भी परवान चढ़ा था.

मुझे धुंधली सी आज भी याद है… जब शादी तय करने की बारी आई थी तो सब से पहले शुभा ने ही शादी का विरोध किया था. कुछ अजीब से अंदाज में उस ने कहा था, ‘शादी के बारे में हम 2 साल बाद सोचेंगे.’

मैं तो उस के मुंह से यह सुन कर हैरान रह गई थी. शुभा के बात करने के तरीके को देख कर गुस्से में ही मैं ने झट से कहा था, ‘तू ने भी तो कभी लव मैरिज की थी… तो आज अपने बच्चों को क्यों मना कर रही है?’

इस पर बड़े ही शांत स्वर में शुभा बोली थी, ‘तभी तो मुझे पता है कि लव और मैरिज ये 2 अलगअलग चीजें होती हैं.’

‘ये दर्शनशास्त्र की बातें मत झाड़. तू सचसच बता…क्या तुझे पूजा पसंद नहीं? या फिर हमारे परिवारों की आर्थिक असमानताओं के लिए तू मना कर रही है?’

‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल, मैं शादी का विरोध नहीं कर रही हूं. मैं तो सिर्फ यह कह रही हूं कि शादी 2 साल बाद करेंगे.’

‘लेकिन क्यों, शुभा? सचिन तो अब अच्छाखासा कमा रहा है और पूजा की पढ़ाई खत्म हो चुकी है. फिर अब बेकार में 2 साल रुकने की क्या जरूरत है?’

‘यह मैं तुम्हें आज नहीं बता सकती,’ और पता नहीं कभी बता भी पाऊंगी कि नहीं.’

हम सब तो चुप हो गए थे लेकिन सचिन और पूजा दोनों ठहरे आज के आधुनिक विचारों के बच्चे. वे दोनों कहां समझने वाले थे. उन दोनों ने अचानक एक दिन कोर्ट में जा कर शादी कर ली थी और हम सब को हैरान कर दिया था.

शुभा और शेखर ने हालात को समझते हुए एक भव्य फाइव स्टार होटल में शादी की जोरदार पार्टी दी थी और फिर सबकुछ ठीकठाक हो गया था.

Tara Sutaria के एक्स Aadar Jain को मिला फिर से प्यार, कंफर्म किया रिलेशनशिप

तारा सुतारिया के एक्स बॉयफ्रेंड आदर जैन सोशल मीडिया पर छाए हुए है. आदर जैन ने हाल ही में करीना कपूर खान की दिवाली पार्टी में अपनी लेडीलव अलेखा आडवाणी के साथ स्टाइलिश अंदाज में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद सुर्खियों में आ गए है. एक्टर पहले तारा सुतारिया के साथ रिलेशनशिप में थे.

आदर ने अपने इंस्टाग्राम पर अलेखा का हाथ थामे हुए अपनी एक प्यारी सी तस्वीर साझा की है. वहीं एक्टर ने फोटो शेयर करके इसे इंस्टा पर रिलेशनशिप आधिकारिक कर दिया. उन्होंने उसे दुनिया के सामने ‘अपने जीवन की रोशनी’ के रूप में भी पेश किया है.

 

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आदर ने इंस्टा पर शेयर की तस्वीर

आदर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक तस्वीर साझा की है. इस फोटो में देख सकते है, एक आरामदायक लिविंग रूम में सोफे पर बैठे हुए दोनों हाथों में हाथ डाले हुए हैं.

आदर ने फोटो में अलेखा को टैग करते हुए कैप्शन दिया, “मेरे जीवन की रोशनी’. जो उनके रिश्ते से मिले गहरे स्नेह और खुशी को दर्शाता है.

पोस्ट शेयर करते ही लाइक्स और कमेंट्स की बाढ़ आ गई. रिद्धिमा कपूर साहनी ने पोस्ट पर कमेंट किया है और लिखा, ‘मैं आपकी ‘रोशनी’ से मिलने के लिए इंतजार नहीं कर सकती, इसके बाद एक दिल की एमोजी.

 

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कौन है ये मिस्ट्री गर्ल?

आदर जैन की नई गर्लफ्रेंड को लेकर सोशल मीडिया पर विषय का चर्चा बन गया है. एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की स्टार करीना कपूर खान की दिवाली पार्टी में भी आदर जैन मिस्ट्री गर्ल के साथ नजर आए थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मिस्ट्री गर्ल का नाम अलेखा आडवाणी है. बता दें कि अलेखा आडवाणी ‘वे वेल’ की क्रिएटिव डायरेक्टर हैं. इसके अलावा अलेखा एक मॉडल भी हैं.

आदर और अलेखा ने अपने स्टाइलिश एथनिक डैसअप से सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. इसके साथ ही उन्होंने करीना के आवास पर सितारों से सजी दिवाली पार्टी की शोभा बढ़ाई. अंदर जाने से पहले उन्हें रुकते और पपराज़ी के लिए पोज़ देते भी देखा गया.

अच्छी सेहत के लिए जरूरी है हर दिन बस एक कप ग्रीन टी

बदलती लाइफस्टाइल और काम के बढ़ते दवाब के बीच अगर एक कप ग्रीन टी ग्रीन टी ली जाए तो आपके स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा. एक नियत मात्रा में प्रतिदिन ग्रीन टी का सेवन आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद साबित हो सकता है. कई शोध में भी ग्रीन टी सेहत के लिए फायदेमंद बताया गया है, लेकिन ध्यान रखें कि जरूरत से ज्यादा ग्रीन टी आपके शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकती है, इसलिए जरूरी है कि आप अधिक मात्रा में ग्रीन टी का सेवन न करें.

क्या आपको पता है कि ग्रीन टी पीने के अनेक फायदे हैं, आइये जानते हैं इसके असली फायदों के बारे में.

मानसिक शांति

यदि आप पर घर और आफिस मे काम का दबाव होता है और आप कुछ काम करने के बाद ही मानसिक रूप से थकान महसूस करने लगती हैं तो ग्रीन टी आपके इस मानसिक थकान को भगाने के लिए अच्छा रहेगा. ग्रीन टी में थेनाइन तत्व होता है, जिसमें एमिनो एसिड बनता है. एमिनो एसिड शरीर में ताजगी बनाए रखता है और आपको थकावट महसूस नहीं होने देता. जिससे आपको हमेशा ताजगी का एहसास होता है और मानसिक शांति भी मिलती है.

वजन कम करें

वजन कम करने में भी ग्रीन टी काफी हद तक सहायक है. ग्रीन टी पीने से आपके शरीर का मेटाबालिज्म बढ़ता है, जिससे पाचन क्रिया संतुलित रहती है. ऐसा होने से व्यक्ति का अतिरिक्त वजन कम होता है

नार्मल ब्लडप्रेशर

भागदौड़ भरी जिंदगी और आफिस की बढ़ती टेंशन के बीच उच्च रक्तचाप की अक्सर ही लोगों को उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना पड़ता है. उच्च रक्तचाप आपके शरीर में अन्य कई बीमारियों का कारण भी हो सकता है. इसलिए यदि आपको ब्लड प्रेशर की समस्या है तो रोजाना ग्रीन टी पिए. इसे पीने से आपकी यह परेशानी नार्मल रहेगी. रक्तचाप सामान्य रहने से आपको गुस्सा भी नहीं आएगा.

कोलेस्ट्राल घटाएं

दिल के रोगियों के लिए ग्रीनटी का सेवन बहुत फायदेमंद है. ये शरीर में बेड कोलेस्ट्राल को कम करके गुड कोलेस्ट्राल को बढ़ाने में मददगार होती है. यदि आप आयली भोजन करती हैं तो आपको नियमित रूप से ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए.

डायबिटीज में फायदेमंद

यदि आपके शरीर में शुगर लेवल बढ़ रहा है तो ग्रीन टी का सेवन आपको बहुत फायदा पहुंचाता है. इसके अलावा जिन रोगियों को डायबिटीज की दिक्कत हैं तो उन्हें प्रतिदिन सुबह उठकर एक कप ग्रीन टी पीनी चाहिए. यह आपके शरीर में मौजूद शुगर लेवल को कंट्रोल करने में आपकी मदद करता है. मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्ति को भोजन के बाद ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए.

त्वचा में चमक

ग्रीन टी में एंटी एजिंग तत्व पाया जाता है जो आपकी त्वचा के लिए काफी फायदेमंद हैं. इसका सेवन करने से आपके चेहरे पर हमेशा चमक और ताजगी बनी रहती है साथ ही चेहरे की झुर्रियां भी कम होती है, इसके अलावा इसे पीने से आप चुस्त-दुरुस्त रहती हैं.

दांतों के लिए वरदान

आजकल युवा और बुजुर्गों में दांतों में पायरिया और केविटी की समस्या तेजी से बढ़ रही है. ग्रीन टी में पाया जाने वाले कैफीन दांतों में लगे कीटाणुओं को मारने में सक्षम होता है. बैक्टीरिया कम होने से आपके दांत लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं. इसलिए अगर आपको दांतो की समस्या है तो रोजाना एक कप ग्रीन टी का सेवन करना न भुलें, इससे आपके मसूड़ो में भी मजबूती आती है.

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