सनी देओल तक नहीं चुका पा रहे बैंक का कर्जा

देश के सुपररिचों से ज्यादा ईष्या न करें क्योंकि वे अपने पैसे पर ऐश नहीं करते बल्कि या तो पब्लिक को बेवकूफ बना कर पैसा जमा करते हैं या बैंकों से कर्ज लेते हैं, नीरव मोदी, ललित मोदी, चोखसी, विजय माल्या जैसे सुपर रिच ही नहीं, सोसो रिच सनी देओल जैसे भी बैंक से पैसा लेते हैं और ऐश करते हैं.

सनी  देवल की फिल्म ‘गदर-2’ ने पैसा तो कमाया है पर केवल उसी हिंदू-मुस्लिम खाई को भुना कर. वरना तो जो आलीशान जिंदगी वह जीता था उस में बहुत कुछ बैंकों का है. बैंक औफ बड़ोदा ने उस के वर्ली के 600 गज के मकान के 55 करोड़ के कर्ज को न चुका पाने के लिए अब निर्यात करने का नोटिस दिया है. ‘गदर-2’ की कमाई से आम हिंदू-मुस्लिम  तो एक दूसरे को दुश्मन कुछ और ज्यादा मानने लगेंगे पर सनी देओल शायद इस मकान को बचा ले जाएं.

अदानी, अंबानी जैसे सुपर रिच भी बैंकों के कर्जों में डूबे है और उन के चेहरों पर शिकन नहीं है क्योंकि सरकार की गोदी में फल रहे थे उद्योगपति जानते हैं कि बैंक कभी इन्हें तो छू भी नहीं पाएंगे. इन को वही प्रोटेक्शन हासिल है जो हरियाणा के बजरंगी बिट्टू या नुपूर शर्मा को मिली है.

बैंकों से कर्ज लेना हर जने का हक है पर उसे लौटाने का कर्तव्य भी है, आमतौर पर सुपररिचों को लौटाने की चिंता नहीं होती, सिर्फ किसानों की होती है जो आए दिन आत्महत्या करते रहते हैं और अब तो उन की खबरें भी छपनी सरकारी ईशारों पर बंद हो गई हैं. उन्हें इस हिंदू-मुस्लिम  भेदभाव या सरकारी गोदी का लाभ नहीं मिलता.

बहुत छोटे व्यापारियों के 5 लाख से ले कर 25 लाख तक के करों की निलामी के इश्तेहार अखबारों में छपते रहते है. व्यवसाय में गलत फैसलों या सरकारी परमिटों की देर के कारण कितने ही उद्योग नुकसान में चले जाते है और उन के ठीकठाक मकानों से खोलियों में जा कर रहना पड़ता है.

कर्ज देते समय बैंक बड़ी लुभावनी बातें करते हैं और बाद में जब कोई कठिन समय आए तो वे तुरंत पैसा ले कर बैठ जाते हैं और चलता उद्योग या चलती दुकान बंद हो जाती है.

अच्छा तो यही है कि कर्ज लिया न जाए क्योंकि चाह यह कितना लुभावना हो बाद में दर्द देता है. कर्ज में डुबे घर की बुरी हालत होती है. औरतों के जेवर बिकते हैं, बच्चे की पढ़ाई बंद होती है.

बड़े काम, बड़े मकान, बड़ी गाड़ी का सपना देखने वाले अवसर इस चक्कर में फंसते है. अधबने मकानों की किस्ते देतेदेते लाखों लोगों की हालत पतली हो रही है. हर कोई सनी देओल नहीं होता जिस से भाजपा से अच्छे संबंध है और उस का सांसद है. उस का मकान असल में बिकेगा, इस में शक है जैसे नरेंद्र मोदी के कहने के बावजूद चोखसी, नीरव मोदी, ललित मोदी और विजय माल्या देश में लौटेंगे, इस में शक है.

मैं सब से अधिक हैल्दी कुकिंग पर ध्यान देती हूं- शिप्रा खन्ना सैलिब्रिटी शैफ

शैफ शिप्रा खन्ना ने टीवी की दुनिया में ‘मास्टर शैफ सीजन 2’ से कदम रखा और आज विश्व में ग्लैमरस सैलिब्रिटी शैफ के नाम से जानी जाती हैं. इन्होंने कई रैसिपीज बुक लिखी हैं, कई टीवी शोज में ऐंकरिंग की है, अपना यूट्यूब चैनल चलाती हैं. शिप्रा खन्ना सिंगल मदर हैं और काम के साथसाथ अपने परिवार की भी देखभाल कर रही हैं.

उन्होंने केवल 9 साल की उम्र में किचन में कदम रखा और तब से ले कर आज तक तरहतरह की रैसिपीज से लोगों को अवगत कराया है.शिप्रा ने अपने काम के बल पर यह सिद्ध कर दिया है कि महिलाओं का केवल घर में खाना बनाना ही काम नहीं होता बल्कि वे पुरुषों की तरह बाहर भी सफल मास्टर शैफ बन सकती हैं. शिप्रा को कांस में 2023 में ‘वर्ल्ड इन्फ्लुएंसियल बिजनैस वूमन अवार्ड’ मिला.

यह ग्लोबली अवार्ड है, जिसे पा कर शिप्रा बहुत उत्साहित हैं.अवार्ड पर बात करते हुए शिप्रा कहती हैं कि अवार्ड किसी को भी आगे अच्छा करने की प्रेरणा देता है. मैं पहली इंडियन हूं, जिसे यह अवार्ड मिला है. ये एक बड़ी उपलब्धि है. विबा अवार्ड भारत में पहली बार किसी महिला को मिला है. इस के अलावा मैं डैजर्ट पर एक नई किताब लिख रही हूं. ‘सिंपली योर्स टू.’ इस में हर तरह की मिठाई की रैसिपी है. साथ ही टीवी पर भी एक शो आ रहा है.उस में मैं सब से अधिक ध्यान हैल्दी कुकिंग पर देती हूं.

अभी मैं सरकार के साथ, मिलेट्स पर रैसिपी बना रही हूं क्योंकि मिलेट्स वजन कम करने के साथसाथ पौष्टिक भी होती है. मैं किसी भी शो पर खाने के बारे में जागरूकता फैलाती हूं, जिस में सभी को में छोटीछोटी बातों पर ध्यान देने की सलाह देती हूं ताकि लाइफ की लौजिटिविटी बढ़े और व्यक्ति स्वस्थ रहे. प्लांट बेस्ड फूड का है ट्रैंड खाने में परिवर्तन के बारें में शिप्रा कहती है कि खाने में हमेशा नईनई चीजों का प्रयोग होता है.

हमारे देश के लोग अपने खानपान को भूलकर विदेशों की कौपी करते है, जबकि वहां के लोग यहां के भोजन को अधिक पसंद करते हैं. खाने की पसंद समय के साथ बदलती जाती है. अभी का ट्रैंड प्लांट बेस्ड फूड का है, जिस में दाल, चावल, आलू, सब्जी आदि को लोग पसंद करने लगे हैं.भोजन का ट्रैंड एक सर्कल की तरह है,जो बदलता रहता है खासकर पेंडेमिक के दौरान सभी ने अपनों को खोया है. ऐसे में लोगों ने अपने स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान देना अब शुरू कर दिया है और यह जरूरी भी हो चुका है. आज ग्लोबल वार्मिंग भी एक बड़ी समस्या विश्व में हो रही है.

कहीं अधिक बारिश तो कहीं सूखा पड़ रहा है.सस्टेनेबिलिटी के बारे में बहुतों को आज पता तक भी नहीं है. ऐसे में मिलेट्स का प्रयोग अच्छा रहेगा क्योंकि इसे अधिक बारिश की जरूरत नहीं पड़ती और यह पौष्टिक होने के साथसाथ कई बीमारियों से बचाती है.मिली प्रेरणा खाना बनाने की प्रेरणा के बारे में शिप्रा का कहना है कि खाना बनाने की प्रेरणा मुझे दादी से मिली.

मेरे लिए दादी खाना बनाती थीं और स्कूल से आने पर बहुत प्यार से खिलाती थीं. तब मुझे समझ में अधिक नहीं आती था, लेकिन प्यार से खाना बना कर खिलाना मुझे बहुत अच्छा लगता था. मैं ने खाना बनाने की शुरुआत तब की जब मेरी बेटी को डाक्टर ने हैल्दी खाना कहने के लिए कहा ताकि उस का वजन न बढें.यहीं से मैं ने हैल्दी खाना बनाना शुरू किया था. पहली डिश मैं ने 9 साल की उम्र में सब्जियों की बनाई थी. उस समय परिवार वालों ने मुझे सहयोग नहीं दिया क्योंकि मैं छोटी थी.

मुझे किचन में काम करने से मेरे पिता मना करते थे,पर मुझे वह काम करना था. बड़े होने के बाद मैं ने कुकिंग शुरू की. धीरेधीरे सभी ने सहयोग दिया.सिंगल मदर होने के बावजूद मैं ने सामंजस्य के साथ पूरा काम किया. मेरे हिसाब से जहां कुछ करने की इच्छा होती है तो व्यक्ति कर लेता है. उसे सहयोग भी मिलता है और मेरे परिवार वालों ने मेरा साथ दिया.

मेरे बच्चों को मेरे हाथ का बना सबकुछ पसंद होता है. करती है तनावमुक्तशिप्रा आगे कहती हैं कि आज का यूथ खाना बनाने से कतराता है, लेकिन उसे समझना होगा कि पहले लोग बहुत समय लगा कर, सोच कर खाना बनाते थे, लेकिन अब स्मार्ट किचन को लोग फौलो करते हैं क्योंकि उन के पास समय का अभाव है. खाना बनाने के अलावा उन के पास समय बिताने के काफी विकल्प उपलब्ध हैं, जिन्हें वे ऐंजौय करते हैं.हैल्दी रैसिपी बनाने में समय नहीं लगता. फल, सलाद, बौयल्ड सब्जियां आदि बनाना आसान होता है. रैडीमेड फूड जितना कम अपने दैनिक जीवन में शामिल करें, उतना सेहत के लिए अच्छा होता है और यह किसी भी तनाव से मुक्त करता है.

इंस्टैंट रैसिपीशिप्रा कहती हैं कि मीठा खाने की इच्छा हो तो फ्रैश नारियल को कद्दूकस कर उस में थोड़ा गुड़ और इलाइची डाल कर मिश्रण को लड्डू की शेप में बना लें. इस के अलावा हैंड मेड ओट्स और पीनट्स बटर के साथ मिल कर लड्डू की शेप दें, जो खाने में स्वादिष्ठ होने के साथसाथ यह खाना पौष्टिक भी होगा. डेजर्ट की ये कुछ खास रेसिपी कोई भी बना सकता है.

मेरी रैसिपी ही मेरी डाइट खुद की डाइट के बारे में शिप्रा बताती हैं कि जो रेसिपी मैं लोगों तक पहुंचाती हूं, उसे खाती मैं भी हूं. मुझे याद आता है कि एक बार किसी शैफ ने मुझ से कहा था कि अगर मैं हट्टीकट्टी नहीं, तो अच्छी शैफ नहीं. तब मैं ने उन से कहा था कि वक्त बदल गया है. अगर आप फिट नहीं हो, तो अच्छे शैफ नहीं हो क्योंकि फिट होने का अर्थ यह है कि मैं अच्छा खाना बना रही हूं और उसे खा कर फिट भी रहती हूं. इस के अलावा सप्ताह में 5 दिन वर्कआउट, योगा आदि करती हूं. डाइट के साथ वर्कआउट करना जरूरी है. यूथ के लिए मैसेज है कि वह इधरउधर न भटके, दृढ़ता से किया गया काम हमेशा सफलता दिलाता है.

11 तरीके ब्रैस्ट को हैल्दी रखने के

हर युवती के लिए ब्रैस्ट उस की पर्सनैलिटी का खास हिस्सा होती है. इसीलिए चेहरे की तरह ब्रैस्ट की केयर की भी बहुत जरूरत होती है. आइए, जानें कि ब्रैस्ट की केयर कैसे करें.

  1. ब्रैस्ट रखें साफ

अपनी ब्रैस्ट को हमेशा साफ रखें. ऐसे सौप या बौडीवाश का यूज करें जिस में सैलिसिलिक ऐसिड हो. इस का फायदा यह होता है कि इस के यूज से ब्रैस्ट पर रिंकल्स नहीं पड़ेंगी.

2. ब्रैस्ट की करें मसाज

नहाने के बाद ब्रैस्ट की मसाज करें. इस के लिए बायो औयल औलिव औयल और कोकोनट औयल का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस से ब्रैस्ट को पोषण मिलेगा, बल्ड फ्लो और ब्रैस्ट साइज बढ़ेगा. इस से ब्रैस्ट सौफ्ट और अट्रैक्टिव भी होगी. एक फायदा यह भी होता है कि इस के इस्तेमाल से बै्रस्ट ओल्ड ऐज में सैगी नहीं होती.

3.चुनें परफैक्ट ब्रा

अपने लिए परफैक्ट ब्रा चुनें. वह न ज्यादा टाइट हो न ही ज्यादा ढीली. अगर आप टीनऐजर हैं तो कोशिश करें कि टीशर्ट ब्रा लें. अगर आप 20 से 35 साल की हैं तो नौर्मल ब्रा पहनें. अगर आप ब्रैस्टफीडिंग मदर हैं तो हाई कवरेज ब्रा का इस्तेमाल करें. हमेशा ब्रैंडेड ब्रा ही पहनें.सिर्फ अपनी ब्रा पहनेंकभी दूसरी महिला की ब्रा न पहनें. इस से आप को इन्फैक्शन हो सकता है. क्रायोजेनिक ब्रैस्ट कैंसर भी हो सकता है. ब्रैस्ट का सीईए मार्कर पौजिटिव हो सकता है. अत: हमेशा अपनी ब्रा ही पहनें.

4. दौड़ते समय स्पोर्ट ब्रा

जब आप दौड़ती हैं तो ब्रैस्ट के बाउंस होने से तकलीफ हो सकती है. अगर आप रोजाना बिना स्पोर्ट ब्रा के दौड़ती हैं तो इस का ब्रैस्ट के टिशूज पर बुरा असर पड़ सकता है. अत: इस से बचने के लिए अच्छी क्वालिटी की स्पोर्ट ब्रा पहननी चाहिए.

5. निपल कवर का कम यूज करें

ज्यादा निपल कवर और ब्रा टेप का इस्तेमाल करने से बचें. इसे आप 1 हफ्ते में 1 बार यूज कर सकती हैं. इस बात का खास ध्यान रखें कि इसे 8 घंटे से ज्यादा यूज न करें.

6. मौइस्चराइजर लगाएं

ब्रैस्ट बौडी का सैंसिटिव पार्ट होता है. इसलिए बौडी के बाकी पार्ट्स की तरह ब्रैस्ट पर भी मौइस्चराइजर जरूर लगाएं. जब भी घर से बाहर जाएं फेस के साथसाथ ब्रैस्ट पर भी सनस्क्रीन जरूर लगाएं.

7. खानपान का रखें खयाल

जो युवतियां प्रैगनैंट होती हैं उन्हें अपने खाने का पूरा ध्यान रखना चाहिए. अपने खाने में मल्टीविटामिंस और आयरन प्रोडक्ट शामिल करें. इस के लिए आप हरी पत्तेदार सब्जी और टैबलेट ले सकती हैं. इन्हें इग्नोर करने से बै्रस्ट में मिल्क बनने में प्रौब्लम आती है. ऐसा प्रोलैक्टिन हारमोन की कमी के कारण होता है.

8.  मैग्नीशियम युक्त खाना

अपने खाने में मैग्नीशियम शामिल करें. मैग्नीशियम से युक्त खाना ब्रैस्ट को फूलने और ढीला होने से बचाता है. केले, बादाम, पालक, अंकुरित अनाज, काजू, सोयाबीन, डार्क चौकलेट, कददू के बीज, दही, मछली में मैग्नीशियम पाया जाता है. इन्हें इग्नोर करने पर प्यूबिक पीरियड में ब्रैस्ट इनक्रीज नहीं होती.

9.ऐक्सरसाइज करें

ब्रैस्ट को हैल्दी रखने के लिए ऐक्सरसाइज करें. पुशअप्स, डंबल प्रैस, कैमल पोज, आर्म प्रैस जैसी ऐक्सरसाइज ब्रैस्ट के लिए फायदेमंद हैं, जो ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाती हैं.

10. ब्रैस्ट की करें जांच

समयसमय पर बै्रस्ट की जांच करती रहें. अगर ब्रैस्ट में कुछ भी बदलाव, फुंसी या सूजन नजर आए तो तुरंत डाक्टर की सलाह लें.

11. नो स्मोकिंग नो ड्रिंकिंग

यह सच है कि स्मोकिंग और ड्रिंक करना हैल्थ के लिए सही नहीं है. इसलिए इन की आदत न डालें. स्मोकिंग बौडी में इलास्टिन को तोड़ती है, जो ब्रैस्ट के आसपास की स्किन लूज हो जाती है. यह ब्रैस्ट की शेप को भी खराब कर देता है.

मैंने बालों में हेयर कलर करवाया था लेकिन अब खास फर्क नजर नहीं आ रहा, मैं अब क्या करूं?

सवाल

बालों में कलर करवाने से पूरा लुक गौर्जियस नजर आता है. यही सोच कर मैं ने 2 महीने पहले अपने बालों में कलर करवाया था पर अब मुझे कोई खास फर्क नजर नहीं आ रहा?

जवाब

हेयर कलर का असली लुक तभी आता है जब वह आप की स्किन टोन के मुताबिक हो. यदि आप की रंगत गोरी है तो आप ब्लौंड कलर का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस के अलावा गोरेपन पर कौपर और लाल रंग की हाइलाइटिंग बहुत अच्छी लगती है यदि आप गेहुएं रंग की हैं तो आप कौपर कलर की हाइलाइटिंग करवा सकती हैं या फिर महोगनी कलर का इस्तेमाल कर सकती हैं.

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मेरी उम्र 25 साल है. मेरी समस्या यह है कि मेरे होंठ बहुत काले हो गए हैं. मेरे चेहरे का रंग काफी साफ है जिस से लिप्स और भी ज्यादा काले नजर आते हैं और देखने में बहुत बुरे लगते हैं. कोई उपाय बताएं?

जवाब

होंठों के कालेपन के कई कारण हो सकते हैं. सब से पहले तो आप अपने आहार को पौष्टिक और संतुलित बनाएं. दूध और दूध से बने खाद्यपदार्थों, फलों और हरी सब्जियों का सेवन करें. अगर लिपस्टिक न लगाती हों तो धूप की हानिकारक किरणों से बचाव के लिए किसी अच्छे किस्म के लिप गार्ड का इस्तेमाल करें. अगर आप नियमित रूप से लिपस्टिक का इस्तेमाल करती हैं तो उसे रोज रात को क्लीन जरूर करें. होंठों पर लिपस्टिक के अंश रहने से होंठ काले पड़ जाते हैं.

इस के साथ ही हमेशा अच्छी किस्म की लिपस्टिक का इस्तेमाल करें. होंठों के कालेपन का एक कारण अधिक धूम्रपान भी हो सकता है. अगर ऐसा है तो इस खराब आदत को छोड़ दें. काले होंठों के लिए आप मलाई में शहद व केसर मिला कर इस पेस्ट को होंठों पर लगाएं और हलकी मालिश करें या फिर थोड़ी सी मलाई में गुलाब की पत्तियां और ग्लिसरीन मिला कर भी लगा सकती हैं. 1 घंटे बाद धो कर लिप गार्ड लगा लें. आप किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लीनिक से परमानैंट लिप कलर भी करवा सकती हैं.

-समस्याओं के समाधान

ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर

डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा पाठक अपनी समस्याएं

इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

यंग फौरएवर थेरैपी

करवट बदल कर बांह फैलाई तो हाथ में सिरहाना आ गया. हम समझ गए कि श्रीमतीजी उठ चुकी हैं. सुबह की शुरुआत रोमांटिक हो तो कहना ही क्या. सोचते हुए लगे श्रीमतीजी को खोजने. फिर किचन से धुआं उठता देख समझ गए कि गरमगरम परांठे सिंक रहे हैं, सो वहीं पहुंच पीछे से ही गलबहियां डाल लगे हांकने, ‘‘दिन जवानी के चार यार प्यार किए जा…’’

झटके से हाथ हटातीं श्रीमतीजी बोलीं, ‘‘हटो, सुबहसुबह तुम्हें और कोई काम नहीं, जाओ बच्चों को उठाओ, स्कूल भेजना है. बुढ़ाती उम्र में भी इन्हें रोमांस सूझता है.’’

श्रीमतीजी के इस देखेभाले अंदाज को इग्नोर करते हम बोले, ‘‘जानम कहां तुम बुढ़ापे की बातें करने लगीं. तन से तो ढलकती जा रही हो मन से तो मत ढलको. यंग फौरएवर थेरैपी अपनाओ और सदाबहार रोमांटिक बनो,’’ कहते हुए हम फिर उन्हें बांहों में भरते हुए बोले, ‘‘ओ मेरी जोराजबीं, तुझे मालूम नहीं तू अभी तक है हसीं और मैं जवान…’’

‘‘हांहां, तुम होगे सदाबहार जवान और रोमांटिक. मैं तो न हसीन रही, न जवान. इस चूल्हेचौके में झोंक कर तुम ने मुझे हसीन और जवान रहने ही कहां दिया?’’ श्रीमतीजी ने ताना मारा, ‘‘और यह यंग फौरएवर थेरैपी क्या है बुड्ढों को जवान बनाने का नुसखा या रोमांटिक बनाने का?’’

‘‘भई अपना कर देखो इस फौर्मूले को, कैसे बुढि़या से गुडि़या बनती हो तुम भी, बिलकुल बार्बी डौल की तरह,’’ हम ने फिर उन्हें बांहों में भरते हुए कहा.

इसी बीच बच्चे खुद ही उठ कर आ गए और हमें आलिंगनबद्ध देख झेंप से गए. हम भी अपना रोमांसासन छोड़ चल दिए पानी गरम करने की रौड लगाने.

औरत सब कुछ सह सकती है लेकिन बूढ़ी, बहनजी होने का ताना नहीं. ऐसे में भाजीतरकारी बेचने वाला भी अगर गलती से माताजी कह दे तो राशनपानी ले कर उस पर सवार हो जाने वाली हमारी श्रीमतीजी के मुख से खुद के लिए खुद ही किया गया बुड्ढी का संबोधन सुन हम अचंभित थे. पर वापस रोमांटिक मुद्रा में आते हुए बोले, ‘‘हमारा मतलब है आप को फौरएवर यंग बनना चाहिए यानी हर बढ़ते वर्ष में भी पिछले वर्ष जैसा जवान और हसीन. फिर देखो आप भी सदाबहार रोमांटिक गाने न गाने लगो तो हमारा नाम नहीं.’’

‘‘यानी अपनी उम्र से भी कम दिखें? लेकिन कैसे, घर के खपेड़ों से फुरसत मिले तो न? हमेशा तो आप चूल्हेचौके में खपाए रहते हो. 15 वर्षों में ही 50 वर्ष की बूढ़ी लगने लगी हूं तिस पर शरीर थुलथुल होता जा रहा है सो अलग,’’ श्रीमतीजी ने अपनी टमी की ओर इशारा किया.

हम भी मौके पर चौका मारते हुए बोल उठे, ‘‘भई कुछ जौगिंग, ऐक्सरसाइज बगैरा कर फिगर का खयाल रखो, स्वास्थ्य का खयाल रखो तो फिर से गुडि़या बन जाओगी, मेरी बुढि़या. हम तो कहते हैं आज से ही शुरू कर दो यंग फौरएवर की जंग.’’

हमारी बात श्रीमतीजी की समझ में आई कि नहीं, पता नहीं पर इतना जरूर समझ गईं कि उन्हें बुढि़या नहीं गुडि़या दिखना है, बिलकुल बार्बी डौल जैसा. वैसे भी उम्र भले बढ़ती रहे, लेकिन नारी कभी नहीं चाहती कि  वह बुढि़या दिखे. अत: श्रीमतीजी ने सोच लिया कि चाहे लाख जतन करने पड़ें, बुढि़या से गुडि़या बन कर ही रहेंगी.

अगले दिन से ही मेकअप से ले कर ऐरोबिक्स और न जाने कौनकौन से नुसखों से खुद को यंग फौरएवर दिखाने के फौर्मूले ढूंढ़ने में ऐसे रातदिन एक किया कि अगर इतना पहले पढ़ लेतीं तो कालेज डिगरी के साथसाथ पीएचडी की डिगरी भी  मिल ही जाती.

लेकिन हमारे लिए पासा उलटा पड़ गया था. बुढि़या से गुडि़या बनने की धुन में सवार हमारी श्रीमतीजी रोज सुबह जौगिंग पर जातीं और जातेजाते हिदायत दे जातीं कि गैस पर दाल रखी है, 2 सीटियां आने पर उतार देना, बच्चों को उठा देना, नाश्ता करवा देना….

अब हम बच्चों को उठाते तो इतने में 2 की जगह 3 सीटियां बज जातीं, बच्चों को नहला रहे होते तो दूध उबल जाता, दाल को एक ओर तड़का लगाते तो दूसरे चूल्हे पर रखी सब्जी जल जाती. किसी तरह सब तैयार होता तो बच्चे लेट हो जाते. उन की स्कूल वैन निकलने का खामियाजा हमें उन्हें स्कूल छोड़ कर आने के रूप में भुगतना पड़ता.

तिस पर रोज श्रीमतीजी की अलगअलग हिदायतें कि आज मौसंबी का जूस पीना है, आज कौर्न का नाश्ता करना है… जवान दिखने के लिए पौष्टिक आहार जरूरी है न.

और तो और उस दिन जौगिंग से आते ही श्रीमतीजी ने फरमाइश रख दी, ‘‘इन कपड़ों में योगा नहीं होता. ट्रैक सूट लेना होगा, जौगिंग शूज भी चाहिए,’’ और फिर कई हजार की चपत लगा अगले ही दिन ट्रैक सूट पहन इतराती हुई बोलीं, ‘‘आज कौर्न का नाश्ता बना कर रखना, साथ में पालक का सूप और कुछ बादाम भिगो देना.’’

हम हां या न कहते उस से पहले घर का दरवाजा खोल निकल लीं. ट्रैक सूट पहने देख हमें लग रहा था कि बुढ़ाते कदम फिर बैक हो रहे हैं. सो हंस दिए. फिर मन में आया कि आज तो संडे है बच्चों ने भी नहीं जाना सो क्यो न पार्क में चल कर देखा जाए कि श्रीमतीजी कैसे बना रही हैं खुद को जवान. सो कौर्न का नाश्ता बनाया, बादाम भिगोए और पालक का सूप तैयार कर चल दिए हम भी पार्क की ओर.

पार्क का दृश्य देख कर तो हम जलभुन कर कोयला ही हो गए. एक बूढ़ा श्रीमतीजी

को योगा सिखाने के बहाने कभी हाथ पकड़ता तो कभी शीर्षासन करवाने के बहाने टांगें पकड़ कर बैलेंस बनवाता. हमें यह देख अच्छा न लगा, लेकिन अपना सा मुंह लिए बिना उन्हें डिस्टर्ब किए घर वापस आ गए.

थोड़ी ही देर में वही बूढ़ा भागता हुआ आता दिखा. आगेआगे हमारी श्रीमतीजी भी भाग रही थीं. फिर घर आ कर उस से परिचय करवाती बोलीं, ‘‘ये हमारे व्यायाम के टीचर हैं… घर देखना चाहते थे. बहुत अच्छी पकड़ है इन की हर आसन पर…’’

‘‘हां देख ली इन की पकड़. हमें तो बुढ़ापे में यौनासन करते नजर आते हैं ये,’’ हम ने कहना चाहा पर बोल न पाए और न चाहते हुए भी बूढ़े से हाथ मिलाया व सोचने लगे कि श्रीमतीजी को कैसे समझाएं कि योगा के बहाने ये आप को कैसेकैसे बैड टच करते हैं.

श्रीमतीजी ने नाश्ते की फरमाइश की तो हम ने बूढ़े के सामने कौर्न और भीगे बादाम ही रख दिए और मन ही मन बोले कि लो खाओ योगीजी.

उस के मना करने पर हम समझ गए कि न पेट में आंत, न मुंह में दांत, यह बुड्ढा क्या खाएगा कौर्न और बादाम.

उन के जाने पर हम ने चैन की सांस ली, लेकिन लगे श्रीमतीजी पर खीज उतारने, ‘‘यंग फौरएवर बनने को कहा था, फास्ट फौरवर्ड बनने को नहीं, जो उस बुड्ढे संग योगा करने लगीं. उस बुड्ढे की जवानी तो वापस आने से रही, हमारा रोमांस भी कहीं धराशायी न हो जाए.’’

हम कहते हुए कुढ़ते रहे और श्रीमतीजी पैर पटक कर चल दीं फ्रैश होने. फिर हम लगे श्रीमतीजी के गुस्से को शांत करने की जुगत ढूंढ़ने.

अब श्रीमतीजी दिनबदिन यंग होती जा रही थीं और हम चूल्हेचौके में फंसे बैकवर्ड. हमें कुढ़न थी कि हमारा रोमांस का मजा छिन रहा है और वह बुड्ढा दूध से मलाई लपकता जा रहा है.

दिन भर के  थकेहारे, सुबहशाम किचन के मारे हम रात को रोमांस की चाह लिए श्रीमतीजी के गलबहियां डालते तो वे कह उठतीं, ‘‘सोने दो सुबह जल्दी उठना है… बुढि़या से गुडि़या बनना है न तुम्हारे लिए.’’

हम खिसियाते से अपना रोमांस मन और सपनों में लिए दूसरी करवट सो जाते.

उस दिन हम औफिस से निकले तो सारे रास्ते इंतजार करते रहे पर श्रीमतीजी का फोन नहीं आया. पहले तो मैट्रो में पैर बाद में रखते थे कि घंटी बज उठती थी और खनखनाती आवाज में पूछा जाता कि कहां पहुंचे? फिर उसी हिसाब से चाय बनती. हम आशंकित हुए.

तभी फोन घनघनाया तो हम खुशी के मारे बल्लियों उछल पड़े. पर अगले ही पल तब हमारी खुशी काफूर हो गई जब श्रीमतीजी ने हिदायत दी कि घर पहुंच कर दाल चढ़ा देना. सब्जी काट रखना. मैं जिम में हूं. आज से ही जौइन किया है. थोड़ा लेट लौटूंगी.

हम खुद पर ही कुढ़े, ‘‘सुबह योगा, जौगिंग क्या कम थी जो अब जिम भी जौइन कर मारा? बुढि़या को गुडि़या बनने का मंत्र क्या मिला कि हमारी तो जान आफत में फंस गई. पर मरता क्या न करता. हम ने श्रीमतीजी की खुशी के लिए यह भी सह लिया यह सोच कर कि वे भी तो हमें जवां दिखाने के लिए संडे के संडे हमारे बाल रंगती हैं, फेशियल कर हमारे बुढ़ाते फेस की झुर्रियां हटाती हैं

खाने का इंतजाम कर श्रीमतीजी का इंतजार कर ही रहे थे कि डोरबैल बजी. दरवाजा खोला तो श्रीमतीजी का हुलिया देख दंग रह गए. स्लीवलैस टीशर्ट और निकर में उन्हें देख हमारी आंखें खुली की खुली रह गईं.

‘‘इस तरह टुकुरटुकुर क्या देख रहे हो? जिम ट्रेनर ने कहा था ऐसी ड्रैस के लिए,’’ श्रीमतीजी ने बताया तो हम समझ गए कि आज फिर यंग फौरएवर की धुन में हमारी जेब कटी.

इस यंग फौरएवर की धुन में हमारी श्रीमतीजी इतनी फास्ट फौरवर्ड हो गईर् थीं कि हमारी हालत पतली हो गई थी. हम रहरह कर उस क्षण को कोसते जब हम ने बुढि़या को गुडि़या बनने का सपना दिखाया था. इस का 1 ही महीने में इतना असर हुआ कि लग रहा था श्रीमतीजी अगले 3-4 महीनों में बुढि़या से गुडि़या नजर आने लगेंगी पर हम चूल्हेचौके और औफिस के बीच सैंडविच बन कर रह जाएंगे.

खैर, अब सुबह के साथ शाम का काम भी हमारे ही सिर मढ़ दिया गया था. तिस पर श्रीमतीजी के लिए अलग पौष्टिक आहार के चक्कर में घर का खर्च बढ़ा सो गलग.

उस दिन शाम को जल्दी औफिस से निकले तो सोचा जिम जा कर श्रीमतीजी की

ट्रेनिंग का जायजा लिया जाए. लेकिन जिम पहुंचते ही वहां का माहौल देख कर हम तमतमा उठे. हमारा चेहरा फक्क रह गया. श्रीमतीजी ट्रेड मिल पर दौड़ लगा रही थीं और आसपास सभी पुरुष ऐक्सरसाइज के बजाय ऐंटरटेनमैंट ज्यादा कर रहे थे. सब की नजरें हमारी श्रीमतीजी के सैक्सी बदन पर ही थीं, बावजूद इस के ट्रेनर भी डंबल, बैंच प्रैस आदि करवाने के बहाने यहांवहां टच कर जाता.

मूक दर्शक बने हम ने सब देखा, फिर न चाहते हुए भी श्रीमतीजी के कहने पर सब से मिले और वापस घर आ कर श्रीमतीजी पर बिगड़े, ‘‘तुम्हें यंग फौरएवर बनाने के चक्कर में हम काफी बैकवर्ड हो गए हैं. संभालो अपना घर हम तो हम, बच्चे भी इग्नोर हो रहे हैं.’’

‘‘हम ने सोचा था आप की काया छरहरी बनेगी, सुंदर दिखोगी, खुश रहोगी, तो रोमांस का मजा भी दोगुना हो जाएगा. लेकिन इस यंग फौरएवर के चक्कर में आप इतनी फास्ट फौरवर्र्ड हो जाएंगी, सोचा न था. देखा, कैसे ट्रेनिंग के बहाने वह ट्रेनर तुम्हें कहांकहां छू रहा था.’’

हमारी दुखती रग का मर्म श्रीमतीजी क्या समझतीं. उन्हें तो यही लग रहा था कि हम ईर्ष्यालु हो गए हैं. सो भड़कीं, ‘‘भाड़ में गया तुम्हारा यंग फौरएवर का फौर्मूला. हम ही पागल थीं जो आप को मेहंदी लगा तुम्हारे बाल काले कर आप को जवान दिखाने की पुरजोर कोशिश में लगी रहीं. समाज में 2 पुरुषों ने क्या देख लिया तुम से सहा न गया इस से तो हम बुढि़या ही ठीक हैं,’’ और फिर पैर पटकती चली गईं.

अब इन्हें कौन समझाए कि वे जिन योगाभ्यासियों और जिम ट्रेनर से ट्रेनिंग लेती हें वे सिर्फ उन्हें पराई नार समझते हैं और ऐसे कपड़ों में झांकते बदन को टुकुरटुकुर देखते हैं जो हमें कतई बरदाश्त नहीं. दूर से देखना तो अलग सिखाने, ऐक्सरसाइज करवाने के बहाने यहांवहां बैड टच करते रहते हैं, समझती हो क्या.

हालांकि श्रीमतीजी अब खूब छरहरी दिखने लगी थीं. खूबसूरत तो वे पहले से ही थीं तिस पर यंग फौरएवर की धुन ने ऐसा गजब ढाया कि बुढि़या वाकई गुडि़या दिखने लगी थीं. गली से निकलतीं तो सब देखते रह जाते. आसपास की सभी औरतें इस कायाकल्प का रहस्य जानने को उत्सुक थीं.

एक दिन श्रीमतीजी जौगिंग पर गई हुई थीं, किसी ने दरवाजा खटखटाया. हम ने दरवाजा खोला तो सामने महल्ले की नामीगरामी औरतें खड़ी दिखीं. पूछने लगीं, ‘‘भाभीजी घर पर हैं?’’

हम पहले तो अवाक उन्हें देखते रह गए, फिर सहज होते हुए बोले, ‘‘नहीं, वे तो जौगिंग पर गई हैं…’’

अभी हमारी बात पूरी भी न हुई थी कि वे बोल पड़ीं, ‘‘भईर्, आजकल भाभीजी कोे देख कर लगता है उन की जवानी वापस आ गई है… कितनी छरहरी हो गई हैं… स्लीवलैस टीशर्ट और निकर में तो किसी कमसिन हसीना से कम नहीं लगतीं. कल राज जब अपने पापा के साथ सैर कर रही थीं तो कितनी हसीन लग रही थीं. हमें भी बताओ इस का राज?’’

‘वे रात अपने पिताजी के साथ सैर कर रही थीं, सुन हम भी हैरान हुए. फिर सकते में आ गए, कल रात तो हम ही दोनों सैर कर रहे थे. और तो क्या हम इतने बुढ़ा गए कि… नहींनहीं,’ हम ने सोचा. दरअसल, बुढि़या से गुडि़या बनने के चक्कर में श्रीमतीजी का हम पर से ध्यान ही हट गया था, महीने से न बालों में मेहंदी लगी थी न फेशियल किया था. तो हम बुड्ढे तो लगेंगे ही.

‘‘बताइए न क्या घुट्टी पिलाई है आप ने उन्हें,’’ रीमा ने दोबारा पूछा तो हमारी तंद्रा भंग हुई. उन महिलाओं में से कोई मोटापे से परेशान थी तो कोई बढ़ा टमी लिए घूमना पसंद नहीं कर पा रही थी. किसी की जांघें बहुत मोटी थीं. रीना के नितंब तो इतने बड़े और बेडौल थे कि उस के सोफे पर बैठते समय हमें लगा कहीं सोफा ही न बैठ जाए.

‘हमारी तपस्या सफल हो गई,’ सोच हम इतराए और फूले न समाए. सोचा, ‘बता दें इन्हें कि यह तो हमारी यंग फौरएवर थेरैपी का कमाल है,’ लेकिन फिर यह सोच चुप रह गए कि ऐसा कहना अपने मुंह मियांमिट्ठू बनना होगा. अत: बोले, ‘‘श्रीमतीजी आएंगी तो स्वयं ही पूछ लीजिएगा आप. तब तक चाय बनाता हूं.’’

वे चाय पी रही थीं तभी श्रीमतीजी आ गईं. लेकिन हमारी उम्मीद कि वे सब को बताएंगी कि हम हैं उन्हें यंग फौरएवर का फौर्मूला बता बुढि़या से गुडि़या बनाने वाले, पर इस उम्मीद के विपरीत वे बोलीं, ‘‘यह तो सुबह पार्क में योगा करने और शाम को जिम जाने का कमाल है. पता है, हमारे योगा के सर बहुत अच्छी तरह योगा सिखाते हैं. उन की और जिम ट्रेनर की वजह से हमें ऐसी सैक्सी फिगर पाने में कामयाबी मिली है.’’

हम खुद पर कुढ़ रहे थे. आदमी छोटी सी भी सफलता हासिल कर ले तो सब कहते हैं कि इस के पीछे औरत का हाथ है, लेकिन आदमी लाख खपे और औरत को कितना भी ऊपर उठाए, तब भी कोई नहीं कहता कि इस के पीछे आदमी का हाथ है. तिस पर श्रीमतीजी ने उस बुड्ढे योगी और जिम ट्रेनर को इस का श्रेय दिया तो हमारी भृकुटियां तन गईं.

उन औरतों के जाने के बाद हम श्रीमतीजी पर बिगड़े, ‘‘हमारे चूल्हे में खपने का, आप को बुढि़या से गुडि़या बनाने हेतु औफिस और घर में तालमेल बैठाने का आप को जरा भी खयाल नहीं आया? सारा श्रेय उन खूसटों को दे दिया. हम तो कुछ हैं ही नहीं,’’ और फिर खूब हो हल्ला मचा हम औफिस चल दिए.

शाम को वापस आ कर भी अनमने से सब समेटा और सोचने लगे, ‘पार्क में भेजो

तो सब बुड्ढे खूसट दिखेंगे आंखें सेंकते. जिम भेजो तो युवकों का डर. ऐसे में हमें लगा दुनिया के सारे मर्द खासकर बुड्ढे ठरकी ही होते हैं जहां औरत देखी, लाइन मारना चालू.’

समाज के इन भेडि़यों से श्रीमतीजी की हिफाजत अपना फर्ज समझ हम ने यह निर्णय लिया कि हमें भी यंग फौरएवर थेरैपी अपनानी होगी. हम भी गृहस्थी का बोझ ढोतेढोते बुढ़ाने लगे हैं. मिल कर घर के काम निबटाएंगे और साथसाथ हैल्थ बनाएंगे.

यह सोच कर हम पलंग पर लेटे ही थे कि श्रीमतीजी आ गईं यह सोच कर कि हम रूठे हैं. फिर मनाती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ आप के सदाबहार रोमांस को? थोड़ी यंग फौरवर्ड थेरैपी खुद भी आजमा लो कुढ़ने से क्या फायदा?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं कल से ही हम भी यह फौर्मूला अपनाएंगे. जिंदगी की गृहस्थी की गाड़ी दोनों मिल कर खींचेंगे, फिर समय निकाल कर यंग फौरएवर थेरैपी पर चलते हुए बुढ़ापे को अंगूठा दिखाएंगे अब सो जाओ,’’ हम ने घुड़का और फिर चादर तान करवट बदल कर यह सोच सो गए कि कल से नई शुरुआत करनी है यंग फौरएवर बनने की.

श्रीमतीजी भी हमें मनातीं चादर में छिपे हमारे शरीर को गुदगुदाती हुई बोलीं, ‘‘चादर ओढ़ कर सो गया… हायहाय भरी जवानी में मेरा बालम बुड्ढा हो गया.’’

Raksha Bandhan: इस रक्षा बंधन पर अपनी बहन को दें ये खास गिफ्ट

अक्सर ये देखा जाता है कि रक्षाबंधन के दिन भाई अपनी बहनों को गिफ्ट्स दे कर खुश करने की कोशिश करते हैं और जब भाईयों को कुछ समझ नही आता कि उन्हे क्या देना चाहिए तो वे उन्हे कैश दे देते हैं ताकि उन्हे जो पसंद हो वे खुद लें. हर भाई चाहता है कि वे अपनी बहन को हमेशा खुश रख सके और बहनों की खुशी के लिए वे हर वो चीज़ सोचते है जो कोई और नही सोच सकता.

ज्यादातर लोग रक्षा बंधन के दिन अपनी बहनों के लिए या तो चौक्लेट्स खरीदते हैं या फिर कुछ मिठाइयां. आज हम आपको बताएंगे कि अपनी बहनों को क्या गिफ्ट देना चाहिए जिससे कि उनके चहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ सके.

1. इयरिंग्स करें गिफ्ट

एसा देखा जाता है कि लड़कियां छोटी-छोटी चीजों से काफी खुश हो जाती हैं और ज्यादा तब जब वो चीज़ उनका खुद का भाई ले कर आए. लड़कियों को ज्वैलरी पहनने का बहुत शौक होता है और खासकर इयरिंग्स पहनना. इस रक्षा बंधन आप भी अपनी बहनों को इयरिंग्स गिफ्ट कर खुश कर सकते हैं.

 

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2. कस्टमाइज्ड टी-शर्ट है ट्रेंड

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आजकल लड़कियों को टी-शर्ट पहनना बेहद अच्छा लगता है और खासकर तब तब टी-शर्ट पर उनके मन पसंद का कुछ लिखा हो. जी हां अब एसी बहुत सी वेब-साइट्स और दुकानों पर इस तरह की सुविधा उप्लब्ध है जहां आप अपनी मर्ज़ी का डिज़ाईन या टैक्सट टी-शर्ट पर लिखवा सकते हैं. तो आप इस रक्षा बंधन अपनी बहन के पसंदीदा डिज़ाईन और टैक्सट के अनुसार उन्हे टी-शर्ट गिफ्ट कर सकते हैं.

3. कौस्मेटिक आइटम्स रहेगा बेस्ट औप्शन

 

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हर उम्र की महिला को मेक-अप करने का शौक जरूर होता है फिर चाहे वे आपकी बहन हो या पत्नी. महिलाओं के अनुसार मेक-अस उनकी सुंदरता को और निखार देता है तभी उन्हे मेक-अप करना बहुत अच्छा लगता है. इस रक्षाबंधन अपनी बहन को उनकी पसंदीदा मेक-अप किट या कौस्मेटिक आइटम्स गिफ्ट कर सकते हैं.

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4. फिटनेस बैंड से रहेगी हेल्थ फिट

आजकल हर कोई अपनी फिटनेस का काफी ध्यान रखता है फिर चाहे वे पुरूष हो या महिलाएं. स्मार्ट वौच और फिटनेस बैंड के जरिए हम कहीं भी अपनी हेल्थ की जानकारी रख सकते है. इस बैंड के जरिए हम अपनी ‘हार्ट-बीट’, ‘कैलरीज’ ‘कार्डियो स्टैप्स’ जैसी बहुत सी चीज़े देख सकते हैं. तो अगर आपकी बहन भी है फिटनेस फ्रीक और अपनी हेल्थ का काफी ध्यान रखती हैं तो उन्हे फिटनेस बैंड जैसा गिफ्ट जरूर दें.

Raksha Bandhan: कन्यादान- भाग 3- भाई और भाभी का क्या था फैसला

अगले दिन वे कालेज की सीढि़यां चढ़ रहे थे, उसी समय प्रोफैसर रंजन तेजी से उन की तरफ आए, ‘क्यों अनिरुद्धजी, श्रेयसी तो आप के किसी रिलेशन में है न. आजकल रौबर्ट के साथ उस के बड़े चरचे हैं?’ अनिरुद्ध कट कर रह गए, उन्हें तुरंत कोई जवाब न सूझा. धीरे से अच्छा कह कर वे अपने कमरे में चले गए थे.

उसी शाम रौबर्ट और श्रेयसी को फिर से साथ देख कर उन का माथा ठनका था. वे रौबर्ट के मातापिता से मिलने के लिए शाम को अचानक रौबर्ट के घर पहुंच गए. रौबर्ट उन्हें अपने घर पर आया देख, थोड़ा घबराया, परंतु उस के पिता मैथ्यू और मां जैकलीन ने खूब स्वागतसत्कार किया. मैथ्यू रिटायर्ड फौजी थे. अब वे एक सिक्योरिटी एजेंसी में मैनेजर की हैसियत से काम कर रहे थे. जैकलीन एक कालेज में इंगलिश की टीचर हैं. गरमगरम पकौडि़यों और चटनी का नाश्ता कर के अनिरुद्ध का मन खुश हो गया था.

वे प्रसन्नमन से गुनगुनाते हुए अपने घर पहुंचे. ‘क्या बात है? आज बड़े खुश दिख रहे हैं.’

‘मंजू, आज रौबर्ट की मां के हाथ की पकौडि़यां खा कर मजा आ गया.’

‘आप रौबर्ट के घर पहुंच गए क्या?’

‘हांहां, बड़े अच्छे लोग हैं.’

‘आप ने उन लोगों से श्रेयसी के बारे में बात कर ली क्या?’

‘तुम तो मुझे हमेशा बेवकूफ ही समझती हो. तुम्हारे आदरणीय भाईसाहब की अनुमति के बिना भला मैं कौन होता हूं, किसी से बात करने वाला? लेकिन अब मैं ने निश्चय कर लिया है कि एक बार तुम्हारे भाईसाहब से बात करनी ही पड़ेगी.’ मंजुला नाराजगीभरे स्वर में बोली, ‘देखिए, आप को मेरा वचन है कि आप इस पचड़े में पड़ कर उन से बात न करें. आप मेरे भाईसाहब को नहीं जानते, किसी को बुखार भी आ जाए तो सीधे अपने महाराजजी के पास भागेंगे. उन के पास जन्मकुंडली दिखा कर ग्रहों की दशा पूछेंगे. उन से भभूत ला कर बीमार को खिलाएंगे और घर में ग्रहशांति की पूजापाठ करवाएंगे. डाक्टर के पास तो वे तब जाते हैं जब बीमारी कंट्रोल से बाहर हो जाती है.

‘जब से मैं ने होश संभाला है, भाईसाहब को कथा, भागवत, प्रवचन जैसे आयोजनों में बढ़चढ़ कर भाग लेते हुए देखा है. वे पंडे, पुजारी और कथावाचकों को घर पर बुला कर अपने को धन्य मानते हैं. उन सब को भरपूर दानदक्षिणा दे कर वे बहुत खुश होते हैं.’

‘मंजुला, तुम समझती क्यों नहीं हो? यह श्रेयसी के जीवन का सवाल है. रौबर्ट के साथसाथ उस का परिवार भी बहुत अच्छा है.’

‘प्लीज, आप समझते क्यों नहीं हैं.

2-4 दिनों पहले ही भाभी का फोन आया था कि जीजी, आप के भाईसाहब एक बहुत ही पहुंचे हुए महात्माजी को ले कर घर में आए थे. उन्होंने उन की जन्मकुंडली देख कर बताया है कि आप की बिटिया का मंगल नीच स्थान में है, इसलिए मंगल की ग्रहशांति की पूजा जब तक नहीं होगी, तब तक शादी के लिए आप के सारे प्रयास विफल होंगे.

‘जीजी, महात्माजी बहुत बड़े ज्ञानी हैं. वे बहुत सुंदर कथा सुनाते हैं. उन के पंडाल में लाखों की भीड़ होती है. कह रहे थे, सेठजी दानदाताओं की सूची में शहरभर में आप का नाम सब से ऊपर रहना चाहिए. आप के भाईसाहब ने एक लाख रुपए की रसीद तुरंत कटवा ली. वे कह रहे थे कि शास्त्रों में लिखा है कि ‘दान दिए धन बढ़े’ दान से बड़ा कोई भी धर्म नहीं है.

‘महात्माजी खुश हो कर बोले थे कि सेठजी, आप की बिटिया अब मेरी बिटिया हुई, इसलिए आप बिलकुल चिंता न करें. उस के विवाह के लिए मैं खुद पूजापाठ करूंगा. आप को कोई भी चिंता करने की जरूरत नहीं है.’ मंजुला अपने पति अनिरुद्ध को बताए जा रही थी, ‘भाभी कह रही थीं कि नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर महात्माजी भाईसाहब के हाथों से हवन करवाएंगे.’

‘वाह, आप के भाईसाहब का कोई जवाब नहीं है. अरे, जिन को महात्मा कहा जा रहा है वे महात्मा थोड़े ही हैं, वे तो ठग हैं, जो आम जनता को अपनी बातों के जाल में फंसा कर दिनदहाड़े ठगते हैं. छोड़ो, मेरा मूड खराब हो गया इस तरह की बेवकूफी की बातें सुन कर.’

‘इसीलिए तो आप से मैं कभी कुछ बताती ही नहीं हूं. जातिपांति के मामले में तो वे इतने कट्टर हैं कि घर या दुकान, कहीं भी नौकर या मजदूर रखने से पहले उस की जाति जरूर पूछेंगे.’ ‘मान गए आप के भाईसाहब को. वे आज भी 18वीं शताब्दी में जी रहे हैं. मेरा तो सिर भारी हो गया है. एक गिलास ठंडा पानी पिलाओ.’

‘अब तो आप अच्छी तरह समझ गए होंगे कि वे कितने रूढि़वादी और पुराने खयालों के हैं. आप भूल कर भी उन के सामने कभी भी ये सब बातें मत कीजिएगा.’

अनिरुद्ध बोले, ‘कम से कम एक बार श्रेयसी को अपने मन की बात भाईसाहब से कहनी चाहिए.’

‘अनिरुद्ध, आप समझते नहीं हैं, लड़की में परिवार वालों के विरुद्ध जाने की हिम्मत नहीं होती. उस के मन में समाज का डर, मांबाप की इज्जत चले जाने का ऐसा डर होता है कि वह अपने जीवन, प्यार और कैरियर सब की बलि दे कर खुद को सदा के लिए कुरबान कर देती है.’

‘इस का मतलब तो यह है कि बड़े भाईसाहब ने तुम्हारे साथ भी अन्याय किया था.’

‘मेरे साथ भला क्या अन्याय किया था?’ ‘तुम्हारी शादी जल्दी करने की हड़बड़ी देख मेरा माथा ठनका था. क्या सोचती हो, मैं नासमझ था. तुम्हारा उदास चेहरा, रातदिन तुम्हारी बहती आंखें, मुझे देखते ही तुम्हारी थरथराहट, संबंध बनाते समय तुम्हारी उदासीनता, तुम्हारी उपेक्षा, कमरा बंद कर के रोनाबिलखना, प्रथम रात्रि को ही तुम्हारी आंसुओं से भीगा हुआ तकिया देख कर मैं सब समझ गया था. ‘तुम्हारी भाभी का पकड़ कर फेरा डलवाना. तुम्हारे कानों में कभी दीदी फुसफुसा रही थीं तो कभी तुम्हारी बूआ. विदा के समय भाईसाहब के क्रोधित चेहरे ने तो पूरी तसवीर साफ कर दी थी. उन का बारबार कहना, ‘ससुराल में मेरी नाक मत कटवाना’ मेरे लिए काफी था.

‘मैं परेशान तो था, परंतु धैर्यपूर्वक तुम्हारे सभी कार्यकलापों को देखता रहा और चुप रहा. वह तो उन्मुक्त पैदा हुआ तो उस से ममता हो जाने के बाद तुम पूर्णरूप से मेरी हो पाई थीं.’ यह सब सुन कर मंजुला की अंतर्रात्मा कांप उठी थी. अनिरुद्ध ने तो आज उस की पूरी जन्मपत्री ही खोल कर पढ़ डाली थी. इधर उन्मुक्त और छवि शादी के लिए शौपिंग में लगे हुए थे. आयुषी भी अपने लिए लहंगा ले आई थी. परंतु अभी तक श्रेयसी से किसी की बात नहीं हो पाई थी, इसलिए मंजुला का मन उचटाउचटा सा था. एक दिन कालेज से आने के बाद अनिरुद्ध बोले, ‘‘रौबर्ट बहुत उदास था, उस ने बताया कि श्रेयसी के मम्मीपापा आए थे और उस को अपने साथ ले गए. उस के बाद से उस का फोन बंद है. सर, एक बार उस से बात करवा दीजिए.’’

उदास मन से ही सही, श्रेयसी को देने के लिए, मंजुला अच्छा सा सैट ले आई थी. शादी में 4-5 दिन ही बाकी थे कि मंजुला का फोन बज उठा. उधर भाईसाहब थे, ‘‘मंजुला, श्रेयसी घर से भाग गई. वह हम लोगों के लिए आज से मर चुकी है.’’ और उन्होंने फोन काट दिया था. घर में सन्नाटा छा गया था. सब एकदूसरे से मुंह चुरा रहे थे. मंजुला झटके से उठी, ‘‘अनिरुद्ध जल्दी चलिए.’’

‘‘कहां?’’

‘‘हम दोनों श्रेयसी का कन्यादान ले कर उस को उस के प्यार से मिला दें. मुझे मालूम है, इस समय श्रेयसी कहां होगी. जल्दी चलिए, कहीं देर न हो जाए.’’ बरसों बाद आज मंजुला अपने साहस पर खुद हैरान थी.

उन्मुक्त बोला, ‘‘मां, भाई के बिना बहन की शादी अच्छी नहीं लगेगी. मैं भी चल रहा हूं. आप लोग जल्दी आइए, मैं गाड़ी निकालता हूं.’’

छवि और आयुषी जल्दीजल्दी लहंगा ले कर निकलीं. दोनों आपस में बात करने लगीं, ‘‘श्रेयसी दी, लहंगा पहन कर परी सी लगेंगी.’’ सब जल्दीजल्दी निकले और खिड़की से आए हवा के तेज झोंके ने श्रेयसी की शादी के कार्ड को कटीपतंग के समान घर से बाहर फेंक दिया था.

Raksha Bandhan:अंतत- भाग 1- क्या भाई के सितमों का जवाब दे पाई माधवी

बैठक में तनावभरी खामोशी छा गई थी. हम सब की नजरें पिताजी के चेहरे पर कुछ टटोल रही थीं, लेकिन उन का चेहरा सपाट और भावहीन था. तपन उन के सामने चेहरा झुकाए बैठा था. शायद वह समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या कहे. पिताजी के दृढ़ इनकार ने उस की हर अनुनयविनय को ठुकरा दिया था.

सहसा वह भर्राए स्वर में बोला, ‘‘मैं जानता हूं, मामाजी, आप हम से बहुत नाराज हैं. इस के लिए मुझे जो चाहे सजा दे लें, किंतु मेरे साथ चलने से इनकार न करें. आप नहीं चलेंगे तो दीदी का कन्यादान कौन करेगा?’’

पिताजी दूसरी तरफ देखते हुए बोले, ‘‘देखो, यहां यह सब नाटक करने की जरूरत नहीं है. मेरा फैसला तुम ने सुन लिया है, जा कर अपनी मां से कह देना कि मेरा उन से हर रिश्ता बहुत पहले ही खत्म हो गया था. टूटे हुए रिश्ते की डोर को जोड़ने का प्रयास व्यर्थ है. रही बात कन्यादान की, यह काम कोई पड़ोसी भी कर सकता है.’’

‘‘रघुवीर, तुझे क्या हो गया है,’’ दादी ने सहसा पिताजी को डपट दिया.

मां और भैया के साथ मैं भी वहां उपस्थित थी. लेकिन पिताजी का मिजाज देख कर उन्हें टोकने या कुछ कहने का साहस हम लोगों में नहीं था. उन के गुस्से से सभी डरते थे, यहां तक कि उन्हें जन्म देने वाली दादी भी.

मगर इस समय उन के लिए चुप रहना कठिन हो गया था. आखिर तपन भी तो उन का नाती था. उसे दुत्कारा जाना वे बरदाश्त न कर सकीं और बोलीं, ‘‘तपन जब इतना कह रहा है तो तू मान क्यों नहीं जाता. आखिर तान्या तेरी भांजी है.’’

‘‘मां, तुम चुप रहो,’’ दादी के हस्तक्षेप से पिताजी बौखला उठे, ‘‘तुम्हें जाना हो तो जाओ, मैं ने तुम्हें तो कभी वहां जाने से मना नहीं किया. लेकिन मैं नहीं जाऊंगा. मेरी कोई बहन नहीं, कोई भांजी नहीं.’’

‘‘अब चुप भी कर,’’ दादी ने झिड़क कर कहा, ‘‘खून के रिश्ते इस तरह तोड़ने से टूट नहीं जाते और फिर मैं अभी जिंदा हूं, तुझे और माधवी को मैं ने अपनी कोख से जना है. तुम दोनों मेरे लिए एकसमान हो. तुझे भांजी का कन्यादान करने जाना होगा.’’

‘‘मैं नहीं जाऊंगा,’’ पिताजी बोले, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि सबकुछ जानने के बाद भी तुम ऐसा क्यों कह रही हो.’’

‘‘मैं तो सिर्फ इतना जानती हूं कि माधवी मेरी बेटी है और तेरी बहन और तुझे उस ने अपनी बेटी का कन्यादान करने के लिए बुलाया है,’’ दादी के स्वर में आवेश और खिन्नता थी, ‘‘तू कैसा भाई है. क्या तेरे सीने में दिल नहीं. एक जरा सी बात को बरसों से सीने से लगाए बैठा है.’’

‘‘जरा सी बात?’’ पिताजी चिढ़ गए थे, ‘‘जाने दो, मां, क्यों मेरा मुंह खुलवाना चाहती हो. तुम्हें जो करना है करो, पर मुझे मजबूर मत करो,’’ कह कर वे झटके से बाहर चले गए.

दादी एक ठंडी सांस भर कर मौन हो गईं. तपन का चेहरा यों हो गया जैसे वह अभी रो देगा. दादी उसे दिलासा देने लगीं तो वह सचमुच ही उन के कंधे पर सिर रख कर फूट पड़ा, ‘‘नानीजी, ऐसा क्यों हो रहा है. क्या मामाजी हमें कभी माफ नहीं करेंगे. अब लौट कर मां को क्या मुंह दिखाऊंगा. उन्होंने तो पहले ही शंका व्यक्त की थी, पर मैं ने कहा कि मामाजी को ले कर ही लौटूंगा.’’

‘‘धैर्य रख, बेटा, मैं तेरे मन की व्यथा समझती हूं. क्या कहूं, इस रघुवीर को. इस की अक्ल पर तो पत्थर पड़ गए हैं. अपनी ही बहन को अपना दुश्मन समझ बैठा है,’’ दादी ने तपन के सिर पर हाथ फेरा, ‘‘खैर, तू चिंता मत कर, अपनी मां से कहना वह निश्चिंत हो कर विवाह की तैयारी करे, सब ठीक हो जाएगा.’’

मैं धीरे से तपन के पास जा बैठी और बोली, ‘‘बूआ से कहना, दीदी की शादी में मैं और समीर भैया भी दादी के साथ आएंगे.’’

तपन हौले से मुसकरा दिया. उसे इस बात से खुशी हुई थी. वह उसी समय वापस जाने की तैयारी करने लगा. हम सब ने उसे एक दिन रुक जाने के लिए कहा, आखिर वह हमारे यहां पहली बार आया था. पर तपन ने यह कह इनकार कर दिया कि वहां बहुत से काम पड़े हैं. आखिर उसे ही तो मां के साथ विवाह की सारी तैयारियां पूरी करनी हैं.

तपन का कहना सही था. फिर उस से रुकने का आग्रह किसी ने नहीं किया और वह चला गया.

तपन के अचानक आगमन से घर में एक अव्यक्त तनाव सा छा गया था. उस के जाने के बाद सबकुछ फिर सहज हो गया. पर मैं तपन के विषय में ही सोचती रही. वह मुझ से 2 वर्ष छोटा था, मगर परिस्थितियों ने उसे उम्र से बहुत बड़ा बना दिया था. कितनी उम्मीदें ले कर वह यहां आया था और किस तरह नाउम्मीद हो कर गया. दादी ने उसे एक आस तो बंधा दी पर क्या वे पिताजी के इनकार को इकरार में बदल पाएंगी?

मुझे यह सवाल भीतर तक मथ रहा था. पिताजी के हठी स्वभाव से सभी भलीभांति परिचित थे. मैं खुल कर उन से कुछ कहने का साहस तो नहीं जुटा सकी, लेकिन उन के फैसले के सख्त खिलाफ थी.

दादी ने ठीक ही तो कहा था कि खून के रिश्ते तोड़ने से टूट नहीं जाते. क्या पिताजी इस बात को नहीं समझते. वे खूब समझते हैं. तब क्या यह उन के भीतर का अहंकार है या अब तक वर्षों पूर्व हुए हादसे से उबर नहीं सके हैं? शायद दोनों ही बातें थीं. पिताजी के साथ जो कुछ भी हुआ, उसे भूल पाना इतना सहज भी तो नहीं था. हां, वे हृदय की विशालता का परिचय दे कर सबकुछ बिसरा तो सकते थे, किंतु यह न हो सका.

मैं नहीं जानती कि वास्तव में हुआ क्या था और दोष किस का था. यह घटना मेरे जन्म से भी पहले की है. मैं 20 की होने को आई हूं. मैं ने तो जो कुछ जानासुना, दादी के मुंह से ही सुना. एक बार नहीं, बल्कि कईकई बार दादी ने मुझे वह कहानी सुनाई. कहानी नहीं, बल्कि यथार्थ, दादी, पिताजी, बूआ और फूफा का भोगा हुआ यथार्थ.

दादी कहतीं कि फूफा बेकुसूर थे. लेकिन पिताजी कहते, सारा दोष उन्हीं का था. उन्होंने ही फर्म से गबन किया था. मैं अब तक समझ नहीं पाई, किसे सच मानूं? हां, इतना अवश्य जानती हूं, दोष चाहे किसी का भी रहा हो, सजा दोनों ने ही पाई. इधर पिताजी ने बहन और जीजा का साथ खोया तो उधर बूआ ने भाई का साथ छोड़ा और पति को हमेशा के लिए खो दिया. निर्दोष बूआ दोनों ही तरफ से छली गईं.

मेरा मन उस अतीत की ओर लौटने लगा, जो अपने भीतर दुख के अनेक प्रसंग समेटे हुए था. दादी के कुल 3 बच्चे थे, सब से बड़े ताऊजी, फिर बूआ और उस के बाद पिताजी. तीनों पढ़ेपलेबढ़े, शादियां हुईं.

उन दिनों ताऊजी और पिताजी ने मिल कर एक फर्म खोली थी. लेकिन अर्थाभाव के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. उसी समय फूफाजी ने अपना कुछ पैसा फर्म में लगाने की इच्छा व्यक्त की. ताऊजी और पिताजी को और क्या चाहिए था, उन्होंने फूफाजी को हाथोंहाथ लिया. इस तरह साझे में शुरू हुआ व्यवसाय कुछ ही समय में चमक उठा और फलनेफूलने लगा. काम फैल जाने से तीनों साझेदारों की व्यस्तता काफी बढ़ गई थी.

औफिस का अधिकतर काम फूफाजी संभालते थे. पिताजी और ताऊजी बाहर का काम देखते थे. कुल मिला कर सबकुछ बहुत ठीकठाक चल रहा था. मगर अचानक ऐसा हुआ कि सब गड़बड़ा गया. ऐसी किसी घटना की, किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.

वाइल्ड लाइफ चीतों का पुनर्वास करना मुश्किल क्यों हो रहा है, जानें एक्सपर्ट की राय

मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लगातार हो रही चीतों की मौत ने सरकार और वनकर्मी की चिंता बढ़ा दी है. अब तक कुल नौ चीतों की मौत हो चुकी है. कुछ विशेषज्ञ इन मौतों का कारण चीतों को लगाए घटिया रेडियो कॉलर को मानते हैं. ये कॉलर टाइगर के थे मगर चीतों को लगा दिए गए, यही वजह है कि अब सभी बाकी बचे चीते के रेडियों कॉलर हटा दिए गए है और उनकी पूरी निगरानी की जा रही है.

असल में कूनो में नर चीते सूरज के रेडियो कॉलर को हटाने पर उसके गर्दन के नीचे संक्रमण पाया गया था. गहरे घाव में कीड़े भरे हुए थे. सूरज 8वां चीता था  जिसकी कूनों में मौत हुई. दावा है कि इसके पहले तेजस चीते में भी गर्दन में ऐसा ही इन्फेक्शन मिला था. ये इन्फेक्शन फ़ैल रहा है. कॉलर आईडी के कारण ऐसा हो रहा है, ऐसा विशेषज्ञ मान रहे है. जबकि 9वां मादा चीता धात्री भी इन्फेक्शन की वजह से ही मृत पाई गई.

असल में मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से आठ और दक्षिण अफ्रीका से 12 इस प्रकार कुल 20 चीते ‘प्रोजेक्ट चीता’ लाए गए. 29 मार्च को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ी गई तीन वर्ष की नामीबियाई मादा चीता ‘सियाया’ ने चार चीता शावकों को जन्म दिया. वर्तमान में 10 चीते खुले जंगल में विचरण कर रहे हैं और पांच चीतों को बाड़ों में रखा गया है. सभी चीतों की 24 घंटे मॉनीटरिंग की जा रही है. इसके अलावा कूनो वन्य-प्राणी चिकित्सक टीम और नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के विशेषज्ञों द्वारा स्वास्थ्य परीक्षण भी किया जा रहा है.

इसके बावजूद कूनो नेशनल पार्क में अब तक छह चीते और तीन शावकों की जान जा चुकी हैं. इन घटनाओं के बीच कई सवाल भी खड़े हुए. आखिर कूनो नेशनल पार्क में चीतों की लगातार हो रही मौत की वजह क्या है?

चीता न लाने की वजह

असल में चीता (Cheetah). दुनिया का सबसे तेज भागने वाला जानवर है. अधिकतम गति 120 किलोमीटर प्रतिघंटा के हिसाब से भाग सकता है. वर्ष 1948 में छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के खुले साल जंगल में तीन चीतों का शिकार किया गया. साल 1952 में चीतों को विलुप्त घोषित कर दिया गया. 70 साल से चीतें भारत में नहीं थे, फिर अचानक चीतों को लाने की जरुरत क्यों पड़ी? इसे पहले लाया क्यों नहीं गया? आइये जानते है इसका इतिहास, वर्ष 1970 के दशक में ईरान के शाहने कहा था कि वे ईरान से चीतें देने के लिए तैयार है, लेकिन बदले में उन्हें एशियाटिक लायन चाहिए.

लगभग उसी दौरान भारत सरकार ने वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट बनाया, जिसे साल 1972 में लागू किया गया. इसके अनुसार देश में किसी भी जगह किसी भी जंगली जीव का शिकार करना प्रतिबंधित है. जब तक इन्हें मारने की कोई वैज्ञानिक वजह न हो या फिर वो इंसानों के लिए किसी प्रकार का खतरा न हो. इसके बाद देश में जंगली जीवों के लिए संरक्षित इलाके बनाए गए, लेकिन किसी ने चीतों के बारें में नहीं सोचा. असल में इसकी आवाज साल 2009 में उठी.

जब वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI) ने राजस्थान के गजनेर में दो दिन का इंटरनेशनल वर्कशॉप रखा. सितंबर में हुए इस दो दिवसीय आयोजन में यह मांग की गई कि भारत में चीतों को लाया जा सकता है. दुनिया भर के एक्सपर्ट इस कार्यक्रम में शामिल थे. केंद्र सरकार के मंत्री और संबंधित विभाग के अधिकारियों ने भी इसमें भाग लिया था.

फ़ूड चैन में रखता है संतुलन

दरअसल चीतों के विलुप्त होने के बाद भारतीय ग्रासलैंड की इकोलॉजी खराब हो चुकी है, उसे ठीक करना जरुरी था, चीता अम्ब्रेला प्रजाति का जीव है, जो बहुत ही सेंसेटिव होता है, यानि फ़ूड चैन में सबसे ऊपर के जीव, जो फ़ूड चेन की संतुलन को बनाए रखता है. कूनो नेशनल पार्क को इसलिए चुना गया था, क्योंकि यहाँ चीतों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध है और चीता की सबसे पसंदीदा भोजन ब्लैक बग्स यानि काला हिरन है. इसके अलावा चीता की पसंदीदा जगह के बारें में बात करें, तो उन्हें ऊँचे घास वाले मैदान पसंद होते है, जहाँ वातावरण में अधिक उमस न हों.

कुल पांच राज्यों में चीतों के लायक वातावरण पाए गए, जहाँ पर चीतों को रखा जा सकता है. उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश के सभी स्थानों को एक्सपर्ट ने जाँच किया और पाया कि इन सबमें मध्यप्रदेश का वातावरण सबसे अधिक उपयुक्त है, लेकिन फिर इसे होल्ड पर रखा गया और एक्सपर्ट ने पाया कि ईरान और अफ्रीका के चीतों की जेनेटिक्स एक जैसी है, ऐसे में सभी ने अफ्रीका से चीतों को लाया जाना उचित समझा और 8 चीते नामीबिया से और बाकी 12 साउथ अफ्रीका से लाए गए.

सही वातावरण जरुरी

इस बारें में महाराष्ट्र के रिटायर्ड चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन विश्वजीत मजुमदार कहते है कि टाइगर, पैंथर, लेपर्ड, लायन आदि सभी बिग कैट के इकोलॉजी, फिजियोलोजी, टेरिटोरी जरूरतें अलग -अलग होती है, जो वातावरण टाइगर के लिए सही है वह पैंथर के लिए सही नहीं हो सकता. चीता को पुनर्वास करना पूरे विश्व में बहुत कठिन होता है. चीता की ब्रीडिंग सबसे अधिक मुश्किल होती है. चीता जेनिटिकली दो तरह के होते है. अफ्रीकन चीता भी जेनिटकली एशियन चीता से अलग होते है.

इंडिया में एशियन वाइल्ड चीता मरने की वजह कई है, उनके शिकार करने के तरीके भी बहुत स्पेशल होते है, उन्हें काले हिरन बहुत पसंद होते है, लेकिन काले हिरण की संख्या में लगातार कमी होने की वजह से चीता की नैचुरल फ़ूड में कमी आने लगी, जिससे उन्हें कम पोषक तत्व मिलने लगे. वर्ष 1960 में जब अंतिम चीता का शिकार हुआ, तब हंटिंग के विरुद्ध कानून नहीं थे, जिससे शिकार होते रहे. अब कानून की वजह से वह बंद हो गए.

असल में पहले इंडिया में एशियाटिक चीता हुआ करते थे. वाइल्ड एशियाटिक चीता अभी केवल ईरान में है. सरकार उन्हें इंडिया लाना चाहती थी, लेकिन वे इसके बदले एशियाटिक लायन मांग रहे थे , इसलिए ये डील नहीं हो पाई और बातें होल्ड पर चली गई. ईरान की तरह भारत में भी गुजरात के गिर फारेस्ट में ही केवल एशियाटिक लायन है. भारत ने उसे देने से मना कर दिया थ. ईरान के मना करने की वजह से सभी चीते अफ्रीका से लाये गए.

इन्फेक्शन के अतिसंवेदनशील जानवर

जानकारों की माने तो पहले कई बार एशियाटिक लायन को मध्यप्रदेश के कुनो फारेस्ट में भी लाने का प्रावधान रहा, ताकि कूनों में उनकी संख्या बढे और कूनों एशियाटिक लायन का दूसरा होम बन जाय, क्योंकि ये सभी बिग कैट्स  वायरल इन्फेक्शन के अतिसंवेदनशील होते है. ये अधिकतर वायरल इन्फेक्शन आसपास के जानवरों से प्राप्त करते है, क्योंकि जंगलों के पास रहने वालों की आबादी अधिकतर पशुपालन करती है.

उनके जानवर इधर-उधर चरते रहते है, उन्हें जंगल के शेर से बचाना आसान नहीं होता, ऐसे चरते हुए जानवरों को शेर अधिकतर शिकार करते है, उन्हें खाने पर शेर भी उस जानवर के इन्फेक्शन को कैरी कर लेते है. इसका उदाहण साउथ अफ्रीका के क्रूगर नेशनल पार्क से लिया जा सकता है. वहां लायन बेस्ड टूरिज्म नंबर वन है. वहां के शेरों के घटने की वजह इन्फेक्शन ही रही, जो उन्हें डोमेस्टिक कैटल से मिलता था, क्योंकि वहां के पशुपालक अपने जानवरों को चरने के लिए छोड़ देते थे और इन इन्फेक्शन वाले जानवरों का शिकार लायन करते थे, जिससे उनमे भी इन्फेक्शन आ जाता था.

इसे देखते हुए वहां की सरकार ने वन मिलियन किलोमीटर के जंगल के दायरे को फेंसिंग किया और सारें ग्रामवासी हटाये गए. इस तरह की समस्या किसी भी प्रकार की इन्फेक्शन वाली बीमारी बिग कैट्स या शेरों में आने पर उनकी पूरी जनसंख्या ख़त्म हो सकती है. इसलिए ऐसे जानवरों के लिए सेकंड होम बनाया जाना चाहिए, ताकि एक जगह इन्फेक्शन होने पर उनकी प्रजाति को सेकंड होम में सुरक्षित रखा जाय, लेकिन तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री ने ऐसा करने से मना किया. अभी केंद्र सरकार चीतों को लाई है और उन्हें कुनो फ़ॉरेस्ट में रखने का मन बनाया है, ताकि पर्यटन के साथ-साथ उनके काम को भी सराहा जाय. यही कड़वी सच्चाई है, लेकिन लगातार चीतों की मृत्यु ने सबको सोचने पर मजबूर किया है.

जेनेटिक वेरिएशन में सबसे नीचे

इसके आगे विश्वजीत कहते है कि चीता खासकर बहुत कम बच्चे को जन्म देती है. जिसमे बहुत कम बच्चे एडल्ट हो पाते है, क्योंकि वे बचपन में ही मर जाते है, या मेल चीता उन्हें मार डालते  है. इसके अलावा चीता जेनेटिक वेरिएशन में सबसे नीचे आता है, वे अपने ही समूह में ब्रीड करते है. वे अफ्रीका के नामीबिया, जोहेंसबर्ग आदि सभी जगहों पर संगीन जेनेटिक डाइवर्सिटी यानि बोटलनेक के अंदर आते है. पूरे विश्व में इनकी पूरी जनसंख्या केवल 2 या 3 चीतों पर टिकी हुई है.

जिसमे 1 पुरुष चीता दो या तीन फिमेल चीता के साथ सम्भोग करता है, उससे अलग वह किसी भी जगह के मादा चीते साथ सम्भोग नहीं करता, यही वजह है कि उनकी जनसँख्या किसी भी बिमारी के लिए अति संवेदनशील होते है, क्योंकि उनकी जेनेटिक गुण स्ट्रोंग नहीं होती. अफ्रीका के चीता किसी भी बीमारी के बहुत अधिक संवेदनशील है, लेकिन उनकी जनसंक्या वहां अधिक होने की वजह से उसपर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता.

कम रोगप्रतिरोधक क्षमता

फारेस्ट वार्डन का आगे कहना है कि चीतों को जब भारत लाया गया, तो यहाँ की जलवायु तक़रीबन एक जैसी है और फारेस्ट भी उनके अनुसार होने की वजह से कुनो में लाया गया, लेकिन ऐसा देखा गया है कि, ऐसे बीमारी के संवेदनशील चीतों को यहाँ लाकर बचाया जाना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि चीते ने यहाँ जन्म नहीं लिया है, उनकी रोगप्रतिरोधक क्षमता भारत के अनुसार विकसित नहीं हुई है और इसे विकसित होने में भी सालों लगेंगे और तकरीबन 10 से 15 साल बाद ही ये काम सफल हो सकेगा, इससे पहले होना संभव नहीं.

इसके अलावा सबसे जरुरी है जू में रखे जानवरों और जंगलों में रहने वालें जानवरों के बीच अंतर को समझना. चीता ने अगर कुनो में शावकों को जन्म दिया है तो इसकी वजह बहुत अधिक अफ्रीकन और इंडियन एक्सपर्ट के देखभाल का नतीजा है. इस बारें में बहुत अधिक टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी. उदहारण को लें तो वाइल्ड लाइफ में टाइगर की अगर बात करें तो 3 शावक में केवल एक शावक बहुत मुश्किल से बच पाता है.

मादा टाइगर अपने बच्चों को दूसरे जंगली जानवरों और नर बाघ से बचाती है, क्योंकि नर टाइगर हमेशा शावकों को मार डालता है, ताकि मादा बाघ फिर से सम्भोग के लायक हो जाय. इसलिए 90 प्रतिशत अपना समय मादा टाइगर अपने बच्चों को सुरक्षित रखने में बीता देती है. वाइल्ड एनिमल वर्ल्ड में ये सबसे बड़ी समस्या है, जब उनके बच्चे एडल्ट नहीं हो पाते.

एक शावक को एडल्ट होने में 4 से 5 साल लगते है. चीता लाने के पहले वैज्ञानिकों ने काफी छानबीन की है और उपयुक्त माहौल उन्हें देने की कोशिश भी की गयी है. चीता की देखरेख में आज पूरा जू कमिशन काम कर रहा है, जबकि वाइल्ड कमीशन में काम करना जू कमीशन बिल्कुल अलग होता है. इसलिए उन्हें चीता के बारें में अधिक जानकारी होना जरुरी है. रिस्क फैक्टर ये भी है कि आगे आने वाली किसी  सरकार को भी इस प्रोजेक्ट पर ध्यान देने और जिम्मेदारी लेने की जरुरत है.

रिहैबिलिटेशन करना नहीं आसान

इसके आगे वे कहते है कि भारत में जानवरों का रिहैबिलिटेशन बहुत कम किया जाता है, अगर कही पर जानवर आसपास के लोगों को अटैक कर रह हो, तो उसे उठाकर दूसरी जगह भेज दिया जाता है, लेकिन एक सफल रिहैबिलिटेशन दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में किया गया था, क्योंकि दुधवा राष्ट्रीय उद्यान कभी गैंडो (RHINOCEROS) का होम टाउन हुआ करता था, लेकिन अचानक सभी राइनो के गायब होने पर आसाम के काजीरंगा नेशनल पार्क से उन्हें लाकर दुधवा नेशनल पार्क में छोड़ा गया और सभी राइनो वहां पर सरवाईव कर गए, क्योंकि दुधवा के जंगल भी मार्शी और गीले है, जो असम के काजीरंगा नेशनल पार्क से मेल खाते है.

किसी भी जानवर को पुनर्वास कराने से पहले उसकी पूरी छानबीन करना पड़ता है, जिसमे वहां के वातावरण जानवर को सूट करें और उसे रहने में किसी प्रकार की असुविधा न हो. इसमे उनके आहार का सबसे अधिक ध्यान रखना पड़ता है, ताकि वे स्वस्थ रहे.

इसमें एक पूरी टीम होती है, जिसमे वेटेरनरी डॉक्टर, लोकल वैज्ञानिक, आब्जर्वर आदि होते है, जो उनके घूमने फिरने और उनके स्वास्थ्य और हाँव-भाव को मोनिटर करते है. कुनो में भी यही किया जा रहा है, जिसमे वाइल्ड लाइफ मैनेजर का सबसे अधिक भागीदारी होती है. इसके लिए रेडियो कॉलर लगाया जाता है, जिसपर विवाद चल रहा है, लेकिन चीतों को सेटल होने में अभी काफी समय लगेगा, इस बारें में अभी बहुत कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी.

YRKKH: अबीर के लिए फिर साथ आएंगे अक्षरा और अभिमन्यू

प्रणाली राठौड़ और हर्षद चोपड़ा स्टारर ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ इन दिनों काफी ड्रामा से गुजर रहा है. अभिनव के मौत के बाद अबीर काफी डिप्रेशन में चला जाता है जिससे अक्षरा काफी परेशान नजर आती है. इसी वजह से अक्षरा अबीर के खातिर अभिमन्यू के साथ रहने का फैसला करती है.

कसौली जाएगी अक्षरा

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अभिमन्यू गोयनका हाउस में अबीर से मिलने पहुंचा. लेकिन अबीर उससे नहीं मिलेगा वह सोता रहेगा. वहीं अक्षरा अभिमन्यू से सारी बातें शेयर करेगी. लेकिन मुस्कान को ये बातें पसंद नहीं आती. वहीं अबीर शाम के बाद भी नहीं उठेगा. वह सोने की जिद करता रहता है और रात में अबीर टीवी देखने लगता है. अगले दिन अक्षरा कसौली जाने का फैसला लेगी.

 

अभिमन्यू देगा अक्षरा का साथ

अक्षरा बड़े पापा से बोलेगी- कसौली में मेरी जिंदगी है. वहां जाकर मुझे अभिनव की बहुत याद आएगी. लेकिन अबीर खुश रहेगा. सब लोग अक्षरा को समझाते है लेकिन वह नहीं मानती. तभी शो में अभिमन्यू रूही,आरोही और शिव को लेकर गोयनका हाउस पहुंच जाता है. वह कहेगा- जहां जाना है चले जाओ. बस खुश रहो, मैं वीकेंड्स पर आ जाऊंगा. लेकिन मुस्कान यह सब सुनकर खुश नहीं रहती. वहीं रूही और शिव वीकेंड्स पर कसौली जाने की जिद करेंगे.

अक्षरा और अभिमन्यू साथ रहने का फैसला करेंगे

अभिनव के मौत के बाद अबीर काफी डिप्रेशन में चला गया है जिससे अक्षरा काफी परेशान नजर आती है. अबीर को डॉक्टर के पास ले जाएंगे. वहीं डॉक्टर दोनों को बात बताएंगे घर में खुशनामा महौल बनाएं. डॉक्टर की बात सुनकर अभिमन्यू और अक्षरा अबीर की खुशी के लिए दोनों साथ में रहने का फैसला करेंगे. वहीं दोनों परिवार गोयनका और बिड़ला परिवार से कहेंगे कि अबीर को डिप्रेशन से बाहर निकालने के लिए मदद करें.

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