नवजात के पहले स्नान से पहले जानें कुछ जरुरी बातें

नवजात शिशु को पहली बार नहलाना पेरेंट्स के लिए एक मुश्किल काम होता है, क्योंकि इस समय न्यू पेरेंट्स नवजात की देखभाल बहुत सावधानी से करती है, जिसमे वे कई बार अपनी माँ, सास या किसी बड़े का सहारा लेते है, लेकिन कई बार अकेले रहने पर उन्हें खुद ही सबकुछ करना पड़ता है. हालाँकि, डॉक्टर की सलाह के साथ नवजात शिशु को स्नान कराने पर समस्या नहीं होती साथ ही माता – पिता का बच्चे के साथ बोन्डिंग अच्छी हो जाती है, इसलिए डॉक्टर्स भी पेरेंट्स को इसे सीखने की सलाह देते है.

इस बारें में क्लाउडनाइन इंडिया एंड हेल्थकेयर डिलीवरी के कसल्टेंट, निओनाटोलॉजिस्ट डॉ आर किशोर कुमार कहते है कि शिशु की त्वचा तेजी से नमी खोती है, जिससे उसमें रूखापन और जलन पैदा होने का खतरा रहता है. असल में नवजात की त्वचा वयस्क की तुलना में तीन गुना अधिक पतली होने के साथ – साथ अपरिपक्व होती भी है. इससे त्वचा दोगुनी तेज़ी से नमी खो देती है. शिशु का pH भी बढ़ता है, जिससे उसमें सूखापन, जलन, चकत्ते, सूजन और डर्मेटाइटिस होने का खतरा बढ़ जाता है.

इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) ने नवजात शिशुओं और बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण त्वचा देखभाल सुनिश्चित करने के लिए मानकीकृत दिशानिर्देश लागू किए हैं, जो निम्न है,

  • नवजात को पहला स्नान जन्म के 6 से 24 घंटों के बाद कराना चाहिए.
  • पहले, अस्पतालों में जन्म के तुरंत बाद नवजात शिशुओं को नहलाना एक आम बात थी, लेकिन अब इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का सुझाव है कि जन्म के बाद एक बार जब बच्चा स्थिर हो जाए, जो आमतौर पर जन्म के 6 से 24 घंटों के बीच होता है, तब उसे नहलाया जा सकता है.

नहलाने के लिए प्रोडक्ट कैसे हो, उसकी जानकारी भी आवश्यक है.  

  • शिशु के लिए बेबी सेफ क्लींज़र चुने, जो लार्ज मिसेल्स वाला हो, ताकि यह बच्चे की त्वचा के भीतर न जा सके.
  • आजकल बाज़ार में शिशुओं के लिए उत्पादों की भरमार हैं. सही उत्पाद चुनना माता-पिता के लिए काफी कठिन होता है. ऐसे में उन उत्पादों को चुने, जो डोक्टर्स के द्वारा टेस्टेड, रिकमेंडेड हो और शिशुओं की त्वचा के लिए सुरक्षित हो. ये उत्पाद शिशु को क्लीन करने के अलावा त्वचा के लिए जेंटल भी होना जरुरी है, ताकि ये त्वचा के अंदर तक प्रवेश न कर सकें.
  • वयस्कों के क्लीन्ज़र की तुलना में बच्चों के क्लीन्ज़र के मोलिक्यूल्स बड़े अकार में होने चाहिए, जो नवजात के लिए सुरक्षित होते है और किसी प्रकार की रैशेज, आँखों में जलन या स्किन में जलन का खतरा नहीं रहता.
  • क्लीनर में ग्लिसरीन या नारियल तेल जैसे प्राकृतिक तत्व होने चाहिए जो शिशु की त्वचा को मॉइस्चराइज़ करें और उसमें माइक्रोबायोम को बनाए रखने में मदद करें. ध्यान रखें कि क्लींज़र स्किन की सतह के एसिड मेंटल अर्थात पसीने में सीबम मिश्रण से बने पसीने की एक परत, जिसे एसिड मेंटल कहा जाता है उसे प्रभावित न करें, नैचरल  मॉइस्चराइजिंग फैक्टर (NMF) को न हटाएं. हाइपोएलर्जेनिक और pH-संतुलित ऑल-पर्पज़ क्लीन्ज़र चुनें. इस तरह के जेंटल लिक्विड क्लींजर आमतौर पर त्वचा को आसानी से साफ कर देते हैं.
  • जन्म के बाद पहले दिन शिशु को कम से कम समय में नहलाएं और स्नान कराने के पानी का तापमान अवश्य जांच लें.
  • पहले स्नान के दौरान गर्भनाल को गुनगुने पानी से साफ करके सूखा और साफ रखना चाहिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन की सलाह है कि संक्रमण को रोकने के लिए कॉड स्टंप पर कुछ भी नहीं लगाना चाहिए.
  • शिशु को हमेशा गर्म कमरे में ही नहलाना चाहिए, स्नान की अवधि 5 से 10 मिनट से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. सर्दियों के दौरान शिशु को सप्ताह में दो या तीन बार ही नहलाएं.
  • स्पंज स्नान की तुलना में टब स्नान ज़्यादा सुरक्षित और आरामदायक विकल्प है क्योंकि इससे नवजात के शरीर को ठंडक मिलती है. बबल बाथ और बाथ एडिटिव्स का इस्तेमाल न करें क्योंकि ये त्वचा का pH बढ़ा सकते हैं और बच्चे को इरीटेशन हो सकता हैं.
  • पहले दिन की स्नान में बालों की देखभाल भी जरुरी होता है. गर्भनाल गिरने पर बच्चे के बाल धोने चाहिए. साबुन से बच्चे की आंखों में जलन न हो, इसके लिए बालों को धीरे-धीरे हाथ से धोना चाहिए. केशों को सप्ताह में दो बार से अधिक न धोएं.
  • शिशु की त्वचा लगातार नमी खोती रहती है, इस दौरान भले ही वह रूखी न दिखे, लेकिन उसमें रूखापन आने का खतरा रहता है, इसलिए बच्चे के स्किन पर मॉइस्चराइज़र लगाना ज़रूरी है. बच्चे को नहलाने के बाद, उसे धीरे से थपथपाकर सुखाएं और मॉइस्चराइज़र लगाएं. इसे आमतौर पर ‘सोक एंड सील’ मेथड कहा जाता है. इसमें क्लिनिकली टेस्टेड और नवजात शिशु के लिए बनाया गया मॉइस्चराइज़र चुनें ताकि शिशु की त्वचा को दिन भर सुरक्षा मिलती रहें. नारियल तेल जैसी सामग्री से बना सौम्य बेबी लोशन शिशु के पूरे शरीर पर लगाया जा सकता है. चेहरे पर डर्मटोलॉजिस्ट्स द्वारा टेस्टेड क्रीम लगाएं, क्योंकि इसकी कंसिस्टेंसी गाढ़ी होती है और यह शिशु की नाजुक त्वचा को धीरे से पोषण देती है और नमी को त्वचा में ही सील करके त्वचा को हाइड्रेटेड रखती है.

इन आसान टिप्स के जरिये न्यू पेरेंट्स, नवजात को फर्स्ट बाथ देने के साथ -साथ उन्हें स्वस्थ रख सकते हैं. उन्हें सुरक्षित तरीके से नहला सकते हैं और  उनकी इस प्रक्रिया को अपने लिए और शिशु के लिए भी एक खास अनुभव बना सकते हैं.

मेरे जीजा जी बड़े भाई की तरह मुझ से स्नेह करते हैं पर मेरे पति उन्हें पसंद नहीं करते, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी शादी को 1 साल हुआ है. यों तो पति और ससुराल वाले सब अच्छे हैं, पर पति को मेरा मायके जाना पसंद नहीं है. दरअसल, हमारा कोई भाई नहीं है. इसीलिए मेरी बड़ी बहन सपरिवार मम्मी पापा के पास रहती है. बहन मुझ से 10 साल बड़ी है. मेरे जीजा जी बिलकुल बड़े भाई की तरह मुझ से स्नेह करते हैं पर मेरे पति उन्हें पसंद नहीं करते. मुंह से कुछ नहीं कहते पर उन का चेहरा सब बयां कर जाता है. पति को कैसे समझाऊं?

जवाब

आप की शादी को थोड़ा ही वक्त बीता है, अभी आप को अपने पति को समय देना चाहिए. यदि आप के पति नहीं चाहते कि आप मायके ज्यादा जाएं या अपने बहनोई से खुल कर बात करें. तो आप उन्हें शिकायत का मौका न दें. हो सकता है कि समय के साथ उन का व्यवहार बदल जाए और उन्हें रिश्तों की अहमियत समझ आने लगे.

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सबक : साली ने जीजा को चखाया मजा

कल्पना से मेरी शादी 2 साल पहले हुई थी. उस की छोटी बहन शालिनी उस समय 16 साल की थी. वह कल्पना से ज्यादा खूबसूरत थी, चंचल भी बहुत थी.

कल्पना से शादी तय होने से पहले मैं अगर उसे देख लेता, तो उसी से शादी करता.

मैं ने कल्पना से शादी तो कर ली थी, मगर शालिनी को पाने की इच्छा मन में रह गई थी.

वैसे भी कहावत है कि साली आधी घरवाली होती है. मेरे 2 दोस्तों ने इस की पुष्टि भी की थी. उन्होंने मुझे बताया था कि उन के भी अपनी सालियों से नाजायज रिश्ते हैं.

मैं ने तय कर लिया था कि कोशिश करूंगा, तो मैं भी शालिनी को पा लूंगा.

शालिनी ने शादी के दिन मेरी खातिरदारी में कोई कमी नहीं की थी. मेरे साथ वह बराबर बनी रहती थी. वह कभी हंसीमजाक करती थी, तो कभी छेड़छाड़.

शालिनी ने बातोंबातों में यह भी कह दिया था, ‘‘आप इतने हैंडसम हैं कि मैं आप पर फिदा हो गई हूं. अगर मैं आप को पहले देख लेती, तो झटपट आप से शादी कर लेती. दीदी को पता भी नहीं चलने देती.’’

मैं ने भी झट से कह दिया था, ‘‘चाहो तो अब भी तुम मुझे अपना बना सकती हो. तुम्हारी दीदी को पता भी नहीं चलेगा.’’

उस ने भी मुसकराते हुए कह दिया था, ‘‘ऐसी बात है, तो किसी दिन आप को अपना बना लूंगी.’’

पता नहीं, शालिनी ने मजाक में यह बात कही थी या दिल से, मगर मैं ने उस की यह बात दिल में बैठा ली थी.

एक पत्नी से जो सुख मिलने चाहिए, वे तमाम सुख कल्पना से मुझे मिले. वह मेरी छोटीछोटी जरूरतों का भी खयाल रखती थी. इस के बावजूद मैं शालिनी को पाने की तमन्ना जेहन से निकाल नहीं पाया.

एक बार फोन पर मैं ने कहा था कि किसी बहाने से तुम से मिलने मुंबई आ जाऊं? तो उस ने जवाब दिया था, ‘‘आ जाते तो अच्छा होता, मेरे दिल को करार मिल जाता.

‘‘मगर, ऐसे में मामामामी को शक भी हो सकता है, इसलिए थोड़ा इंतजार कीजिए. मौका देख कर मैं खुद ही कोलकाता आ जाऊंगी?’’

उस के बाद मैं ने कभी मुंबई जाने का विचार नहीं किया. दरअसल, मैं नहीं चाहता था कि मेरे चलते शालिनी की बदनामी हो.

इसी तरह 2 साल बीत गए. एक दिन अचानक शालिनी ने फोन पर कहा, ‘जीजाजी, अब आप के बिना रहा नहीं जाता. हफ्तेभर बाद मैं आप के पास आ रही हूं.’

मैं खुशी से खिल उठा. शालिनी 12वीं पास कर कालेज में चली गई थी. वह गरमी की छुट्टियों में कोलकाता आ रही थी.

एक हफ्ते बाद शालिनी आई. उसे रिसीव करने मैं अकेले ही रेलवे स्टेशन पहुंच गया था. वह पहले से ज्यादा गदरा गई थी. उस की खूबसूरती देख कर मेरे मुंह से लार टपक गई. मुझ से रहा नहीं गया, तो उस से कह दिया, ‘‘तुम तो पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गई हो. तुम्हें चूम लेने का मन करता है.’’

‘‘रास्ते पर ही चूमेंगे क्या…? पहले घर तो पहुंचिए,’’ कह कर शालिनी ने मुसकान बिखेर दी.

घर पहुंचने के बाद उस से अकेले में मिलने का मौका नहीं मिला. वह अपनी बहन के साथ चिपक सी गई थी.

उस रात मुझे ठीक से नींद नहीं आई. रातभर यही सोचता रहा कि जब शालिनी के साथ हमबिस्तरी करूंगा, तो वह कितना सुखद पल होगा.

रातभर जगे रहने के चलते मेरी आंखें लाल हो गई थीं. सुबह बाथरूम से बाहर आया, तो शालिनी से सामना हो गया.

मेरी तरफ देखते हुए उस ने कहा, ‘‘क्या बात है जीजाजी, आप की आंखें लाल हैं. क्या रात में नींद नहीं आई?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘क्यों?’’

‘‘रातभर तुम्हारी याद आती रही?’’

‘‘मेरी क्यों? दीदी तो आप के साथ थीं. आप मुझ से जो चाहते हैं, वह दीदी भी तो दे ही सकती हैं. फिर मेरे लिए क्यों परेशान हैं?’’

‘‘देखो शालिनी, फालतू की बात मत करो. तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं तुम्हें पाना चाहता हूं. जब तक तुम्हें पा नहीं लूंगा, मुझे चैन नहीं मिलेगा.’’

मैं ने शालिनी को बांहों में लेना चाहा, तो वह बिजली सी तेजी के साथ बाथरूम में चली गई और झट से भीतर से दरवाजा बंद कर लिया.

फिर अंदर से वह बोली, ‘‘मुझे पाने के लिए सही मौका आने दीजिए जीजाजी. मैं खुद अपनेआप को आप के हवाले कर दूंगी.’’

2 दिन बाद कल्पना की तबीयत कुछ खराब थी, तो उस ने खाना बनाने के लिए शालिनी को रसोई में भेज दिया.

मौका ठीक देख कर मैं रसोई में गया. शालिनी खाना बनाने में बिजी थी. उस की पीठ दरवाजे की तरफ थी. पीछे से एकबारगी मैं ने उसे बांहों में भर लिया.

पहले तो वह घबराई, मगर मुझे देखते ही सबकुछ समझ गई. वह जोर लगा कर मेरी बांहों से अलग हो गई, फिर बोली, ‘‘अगर दीदी ने देख लिया होता, तो मेरा जीना मुश्किल कर देतीं. कहीं ऐसा किया जाता है क्या?

‘‘मुझे पाने  के लिए जिस तरह आप बेकरार हैं, मैं भी आप को पाने के लिए उसी तरह बेकरार हूं. मगर उस के लिए सही मौका चाहिए न.’’

कुछ सोचते हुए शालिनी ने कहा, ‘‘आप ऐसा कीजिए कि रात में जब दीदी गहरी नींद में सो जाएं, तो मेरे कमरे में आ जाइए.

‘‘दीदी जल्दी से गहरी नींद में सो जाएं, इसलिए उन के दूध में नींद की दवा मिला दूंगी. आप जा कर कैमिस्ट से नींद की दवा ले आइए.’’

शालिनी की बात मुझे जंच गई.

कुछ देर बाद नींद की दवा ला कर मैं ने उसे दे दी.

नींद की दवा ले कर शालिनी पहले मुसकराई, फिर बोली, ‘‘आप सो मत जाइएगा, नहीं तो रातभर जल बिन मछली की तरह मैं तड़पती रह जाऊंगी.’’

‘‘कैसी बात करती हो. तुम्हें पाने के लिए मैं खुद तड़प रहा हूं, फिर सो कैसे जाऊंगा. तुम दरवाजा खोल कर रखना. मैं हर हाल में आऊंगा.’’

रात का भोजन करने के बाद मैं अपने कमरे में जा कर बिस्तर पर लेट गया.

कल्पना 10 बजे के बाद बिस्तर पर आई और बोली, ‘‘आज मुझे तंग मत कीजिएगा. न जाने क्यों नींद से मेरी आंखें बंद होती जा रही हैं.’’

मैं समझ गया कि शालिनी ने नींद की दवा वाला दूध उसे पिला दिया है.

कुछ देर बाद ही कल्पना गहरी नींद में सो गई.

थोड़ी देर बाद बिस्तर से उठ कर मैं यह जानने के लिए मां के कमरे में गया कि वे भी सो गई हैं या जगी हुई हैं?

मां भी गहरी नींद में थीं.

जब मैं शालिनी के कमरे में गया, उस समय रात के 11 बज गए थे.

शालिनी मेरा इंतजार कर रही थी. वह फुसफुसाई, ‘‘आप ने अच्छी तरह देख लिया है न कि दीदी गहरी नींद में सो गई हैं?’’

‘‘मैं ने उसे हिलाडुला कर देखा है. वह गहरी नींद में है.’’

अचानक मुझे कुछ खयाल आया और मैं ने शालिनी से कहा, ‘‘आज हम दोनों के बीच जो कुछ भी होगा, वह तुम भूल से भी दीदी को मत बताना.’’

‘‘अगर बता दूंगी तो क्या होगा?’’ पूछ कर शालिनी मुसकरा उठी.

‘‘तुम बेवकूफ हो क्या? हमबिस्तरी की बात किसी को नहीं बताई जाती. अगर तुम्हारी दीदी को पता चला गया, तो तुम्हारी तो बेइज्जती होगी ही, मुझे भी नहीं छोड़ेगी.

वह पूरे महल्ले में मुझे बदनाम कर देगी. मैं सिर उठा कर चल नहीं पाऊंगा,’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘ऐसी बात है तो मुझ से हमबिस्तरी क्यों करना चाहते हैं? पत्नी के वफादार बन कर रहिए,’’ उस ने मुझे सीख देने की कोशिश की.

उस की बात से मैं चिढ़ गया और कहा, ‘‘तुम तो नाहक में बात बढ़ा रही हो. मैं तुम्हें हर हाल में पाना चाहता हूं और आज पा कर रहूंगा. वैसे भी तुम मेरी साली हो और साली पर जीजा का हक होता ही है.’’

‘‘तुम दीदी या किसी और को बताओगी तो बता देना. तुम्हें पाने के लिए मैं बदनामी सह लूंगा.’’

‘‘मैं ने तो ऐसे ही कहा था. आप नाराज क्यों हो गए? मैं जानती हूं कि ऐसी बातें किसी को नहीं बताई जाती हैं. मैं तो खुद आप को पाना चाहती हूं, फिर किसी को क्यों बताऊंगी.’’

मैं समय बरबाद नहीं करना चाहता. दरवाजा बंद करने लगा, तो शालिनी ने रोक दिया. कहा, ‘‘दरवाजा बंद करने से पहले मेरी एक बात सुन लीजिए.’’

‘‘बोलो?’’

‘‘बात यह है कि मैं पहली बार आप से संबंध बनाऊंगी, इसलिए मुझे शर्म आएगी.

‘‘मैं चाहती हूं कि हमबिस्तरी के समय कमरे में अंधेरा हो और हम दोनों में से कोई किसी से बात न करे. जो कुछ भी हो चुपचाप हो.’’

शालिनी का बेलिबास शरीर देखने की बहुत इच्छा थी. मुझे उस की इच्छा का भी ध्यान रखना था, इसलिए उस की बात मैं ने मान ली.

वह खुश हो कर बोली, ‘‘अब आप पलंग पर जा कर बैठिए. मैं बाथरूम हो कर तुरंत आती हूं.’’

लाइट बंद कर और दरवाजा बंद कर शालिनी चली गई. मैं उस के लौटने का इंतजार करने लगा.

कुछ देर बाद ही शालिनी आ गई. दरवाजा अंदर से बंद कर वह पलंग पर आई, तो मेरा दिल खुशी से बल्लियों उछलने लगा.

मेरा 2 साल का सपना पूरा होने जा रहा था. उसे बांहों में भर कर मैं ने खूब चूमा. उस के बाद…

घुप अंधेरा होने के चलते भले ही उस का शरीर नहीं देख पाया, मगर उसे भोगने का मौका तो मिला था.

मैं ने पूरे जोश के साथ उस के साथ हमबिस्तरी की. मंजिल पर पहुंचते ही मुंह से निकल गया, ‘‘मजा आ गया शालिनी.’’

शालिनी कुछ बोली नहीं.

कुछ देर बाद बिस्तर से उठ कर उस ने अपने कपड़े ठीक कर लिए.

मैं ने भी अपने कपड़े दुरुस्त कर लिए, तो उस ने लाइट जला दी.

फिर तो मेरी बोलती बंद हो गई. आंखों के आगे अंधेरा छा गया.

शालिनी समझ कर अंधेरे में जिस के साथ मैं ने हमबिस्तरी की थी, वह शालिनी नहीं, बल्कि पत्नी कल्पना थी. वह मुसकरा रही थी.

उस की मुसकान देख कर मैं शर्म से पानीपानी हो गया.

मैं कुछ कहता, उस से पहले कल्पना बोली, ‘‘आप तो मुझे प्यार करने का दावा करते थे. कहते थे कि किसी पराई औरत से नाजायज संबंध बनाने से बेहतर मर जाना पसंद करूंगा, फिर यह क्या था?’’

मैं चाह कर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था. सिर उठा कर मैं उसे देख भी नहीं पा रहा था.

अचानक दरवाजे पर किसी ने हौले से दस्तक दी. कल्पना ने दरवाजा खोल दिया.

दरवाजे पर शालिनी थी. वह झट से अंदर आ गई. फिर मुसकराते हुए मुझ से बोली, ‘‘क्यों जीजाजी, मजा आया?’’

मेरे कुछ कहने से पहले कल्पना बोली, ‘‘तुम्हारे जीजाजी को बहुत मजा आया शालिनी.’’

‘‘सच जीजाजी?’’

मैं कुछ बोल नहीं पाया. मगर यह समझ गया कि सब शालिनी और कल्पना की मिलीभगत है.

मेरे नजदीक आ कर शालिनी बोली, ‘‘आप तो साली को आधी घरवाली समझते थे, फिर आप ने शर्म से सिर क्यों झुका लिया?’’

फिर वह मुझे समझाते हुए बोली, ‘‘देखिए जीजाजी, साली को आधी घरवाली समझ कर उस के साथ नाजायज संबंध बनाने की सोच छोड़ दीजिए.

‘‘पत्नी को इतना प्यार कीजिए कि उसी में आप को हर दिन एक नया शरीर मिलने का एहसास होगा, जैसा कि आज आप ने महसूस किया.’’

कुछ देर चुप रह कर शालिनी ने कहा, ‘‘मैं ने दीदी के साथ मिल कर आप को जो सबक सिखाया, उस के लिए माफ कर दीजिएगा.

‘‘दरअसल बात यह थी कि जब मुझे एहसास हो गया कि आप मेरा जिस्म पाना चाहते हैं, तो एक दिन मैं ने आप का इरादा दीदी को बताया.

‘‘दीदी को मेरी बात पर यकीन नहीं हुआ. उन्हें आप पर पूरा यकीन था. उन्होंने मुझ से कहा कि आप मर जाएंगे, मगर किसी पराई औरत से संबंध नहीं बनाएंगे.

‘‘उस के बाद मैं ने दीदी को सुबूत देने का फैसला कर लिया. यह बात साबित करने के लिए ही मुझे मुंबई से कोलकाता आना पड़ा.’’

मैं सबकुछ समझ गया था. गलती के लिए पत्नी और साली से माफी मांगनी पड़ी. पत्नी का मैं ने विश्वास तोड़ा था, इसलिए वह मुझे माफ नहीं करना चाहती थी, मगर शालिनी के समझाने पर माफ कर दिया.

मुझे माफी मिल गई, तो शालिनी से पूछा, ‘‘मैं यह नहीं समझ पाया कि कमरे में तुम्हारी दीदी कब और कैसे आईं?’’

‘‘मैं ने दीदी को अपनी सारी योजना बता दी थी. उन्हें नींद की दवा नहीं दी गई थी.

‘‘जब आप दीदी को छोड़ कर मेरे पास आए थे, उस समय वे जगी हुई थीं.

‘‘आप को कमरे में बैठा कर मैं बाथरूम के बहाने गई और दीदी को भेज दिया.

‘‘अंधेरा होने के चलते आप को जरा भी शक नहीं हुआ कि साली है या घरवाली.’’

उम्र में शालिनी मुझ से छोटी थी, मगर उस ने मुझे ऐसा सबक सिखाया कि उस की चतुराई पर मैं गर्व किए बिना न रह सका.

शालिनी की सूझबूझ से मैं अपने चरित्र से गिरने से बच गया था.

Raksha Bandhan: सरप्राइज- भाई-बहनों का जीवन संवारने वाली सीमा क्या खुद खुश रह पाई?

रविवार को सुबह 10 बजे जब सीमा के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे लपक कर उठा लिया. स्क्रीन पर अपने बचपन की सहेली नीता का नाम पढ़ा तो वह भावुक हो गई और खुद से ही बोली कि चलो किसी को तो याद है आज का दिन.

लेकिन अपनी सहेली से बातें कर उसे निराशा ही हाथ लगी. नीता ने उसे कहीं घूमने चले का निमंत्रण भर ही दिया. उसे भी शायद आज के दिन की विशेषता याद नहीं थी.

‘‘मैं घंटे भर में तेरे पास पहुंच जाऊंगी,’’ यह कह कर सीमा ने फोन काट दिया.

‘सब अपनीअपनी जिंदगियों में मस्त हैं. अब न मेरी किसी को फिक्र है और न जरूरत. क्या आगे सारी जिंदगी मुझे इसी तरह की उपेक्षा व अपमान का सामना करना पड़ेगा?’ यह सोच उस की आंखों में आंसू

भर आए.

कुछ देर बाद वह तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर निकली और रसोई में काम कर रही अपनी मां को बताया, ‘‘मां, मैं नीता के पास जा रही हूं.’’

‘‘कब तक लौट आएगी?’’ मां ने पूछा.

‘‘जब दिल करेगा,’’ ऐसा रूखा सा जवाब दे कर उस ने अपनी नाराजगी प्रकट की.

‘‘ठीक है,’’ मां का लापरवाही भरा जवाब सुन कर उदास हो गई.

सीमा का भाई नवीन ड्राइंगरूम में अखबार पढ़ रहा था. वह उस की तरफ देख कर मुसकराया जरूर पर उस के बाहर जाने के बारे में कोई पूछताछ नहीं की.

नवीन से छोटा भाई नीरज बरामदे में अपने बेटे के साथ खेल रहा था.

‘‘कहां जा रही हो, दीदी?’’ उस ने अपना गाल अपने बेटे के गाल से रगड़ते हुए सवाल किया.

‘‘नीता के घर जा रही हूं,’’ सीमा ने शुष्क लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं कार से छोड़ दूं उस के घर तक?’’

‘‘नहीं, मैं रिकशा से चली जाऊंगी.’’

‘‘आप को सुबहसुबह किस ने गुस्सा दिला दिया है?’’

‘‘यह मत पूछो…’’ ऐसा तीखा जवाब दे कर वह गेट की तरफ तेज चाल से बढ़ गई.

कुछ देर बाद नीता के घर में प्रवेश करते ही सीमा गुस्से से फट पड़ी, ‘‘अपने भैयाभाभियों की मैं क्या शिकायत करूं, अब तो मां को भी मेरे सुखदुख की कोई चिंता नहीं रही.’’

‘‘हुआ क्या है, यह तो बता?’’ नीता ने कहा.

‘‘मैं अब अपनी मां और भैयाभाभियों की नजरों में चुभने लगी हूं… उन्हें बोझ लगती हूं.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारे घर वालों के व्यवहार में कोई बदलाव महसूस नहीं किया है. हां, कुछ दिनों से तू जरूर चिड़चिड़ी और गुस्सैल हो गई है.’’

‘‘रातदिन की उपेक्षा और अपमान किसी भी इंसान को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना देता है.’’

‘‘देख, हम बाहर घूमने जा रहे हैं, इसलिए फालतू का शोर मचा कर न अपना मूड खराब कर, न मेरा,’’ नीता ने उसे प्यार से डपट दिया.

‘‘तुझे भी सिर्फ अपनी ही चिंता सता रही है. मैं ने नोट किया है कि तुझे अब मेरी याद तभी आती है, जब तेरे मियांजी टूर पर बाहर गए हुए होते हैं. नीता, अब तू भी बदल गई है,’’ सीमा का गुस्सा और बढ़ गया.

‘‘अब मैं ने ऐसा क्या कह दिया है, जो तू मेरे पीछे पड़ गई है?’’ नीता नाराज होने के बजाय मुसकरा उठी.

‘‘किसी ने भी कुछ नहीं किया है… बस, मैं ही बोझ बन गई हूं सब पर,’’ सीमा रोंआसी हो उठी.

‘‘तुम्हें कोई बोझ नहीं मानता है, जानेमन. किसी ने कुछ उलटासीधा कहा है तो मुझे बता. मैं इसी वक्त उस कमअक्ल इंसान को ऐसा डांटूंगी कि वह जिंदगी भर तेरी शान में गुस्ताखी करने की हिम्मत नहीं करेगा,’’ नीता ने उस का हाथ पकड़ा और पलंग पर बैठ गई.

‘‘किसकिस को डांटेगी तू. जब मतलब निकल जाता है तो लोग आंखें फेर लेते हैं. अब मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार मेरे दोनों भाई और उन की पत्नियां कर रही हैं तो इस में हैरानी की कोई बात नहीं है. मैं बेवकूफ पता नहीं क्यों आंसू बहाने पर तुली हुई हूं,’’ सीमा की आंखों से सचमुच आंसू बहने लगे थे.

‘‘क्या नवीन से कुछ कहासुनी हो गई है?’’

‘‘उसे आजकल अपने बिजनैस के कामों से फुरसत ही कहां है. वह भूल चुका है कि कभी मैं ने अपने सहयोगियों के सामने हाथ फैला कर कर्ज मांगा था उस का बिजनैस शुरू करवाने के लिए.’’

‘‘अगर वह कुसूरवार नहीं है तब क्या नीरज ने कुछ कहा है?’’

‘‘उसे अपने बेटे के साथ खेलने और पत्नी की जीहुजूरी करने से फुरसत ही नहीं मिलती. पहले बहन की याद उसे तब आती थी, जब जेब में पैसे नहीं होते थे. अब इंजीनियर बन जाने के बाद वह खुद तो खूब कमा ही रहा है, उस के सासससुर भी उस की जेबें भरते हैं. उस के पास अब अपनी बहन से झगड़ने तक का वक्त नहीं है.’’

‘‘अगर दोनों भाइयों ने कुछ गलत नहीं कहा है तो क्या अंजु या निशा ने कोई गुस्ताखी की है?’’

‘‘मैं अब अपने ही घर में बोझ हूं, ऐसा दिखाने के लिए किसी को अपनी जबान से कड़वे या तीखे शब्द निकालने की जरूरतनहीं है. लेकिन सब के बदले व्यवहार की वजह से आजकल मैं अपने कमरे में बंद हो कर खून के आंसू बहाती हूं. जिन छोटे भाइयों को मैं ने अपने दिवंगत पिता की जगह ले कर सहारा दिया, आज उन्होंने मुझे पूरी तरह से भुला दिया है. पूरे घर में किसी को भी ध्यान नहीं है कि मैं आज 32 साल की हो गई हूं…

तू भी तो मेरा जन्मदिन भूल गई… अपने दोनों भाइयों का जीवन संवारते और उन की घरगृहस्थी बसातेबसाते मैं कितनी अकेली रह गई हूं.’’

नीता ने उसे गले से लगाया और बड़े अपनेपन से बोली, ‘‘इंसान से कभीकभी ऐसी भूल हो जाती है कि वह अपने किसी बहुत खास का जन्मदिन याद नहीं रख पाता. मैं तुम्हें शुभकामनाएं देती हूं.’’

उस के गले से लगेलगे सीमा सुबकती हुई बोली, ‘‘मेरा घर नहीं बसा, मैं इस बात की शिकायत नहीं कर रही हूं, नीता. मैं शादी कर लेती तो मेरे दोनों छोटे भाई कभी अच्छी तरह से अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाते. शादी न होने का मुझे कोई दुख नहीं है.

‘‘अपने दोनों छोटे भाइयों के परिवार का हिस्सा बन कर मैं खुशीखुशी जिंदगी गुजार लूंगी, मैं तो ऐसा ही सोचती थी. लेकिन आजकल मैं खुद को बिलकुल अलगथलग व अकेला महसूस करती हूं. कैसे काटूंगी मैं इस घर में अपनी बाकी जिंदगी?’’

‘‘इतनी दुखी और मायूस मत हो, प्लीज. तू ने नवीन और नीरज के लिए जो कुरबानियां दी हैं, उन का बहुत अच्छा फल तुझे मिलेगा, तू देखना.’’

‘‘मैं इन सब के साथ घुलमिल कर जीना…’’

‘‘बस, अब अगर और ज्यादा आंसू बहाएगी तो घर से बाहर निकलने पर तेरी

लाल, सूजी आंखें तुझे तमाशा बना देंगी.

तू उठ कर मुंह धो ले फिर हम घूमने चलते हैं,’’ नीता ने उसे हाथ पकड़ कर जबरदस्ती खड़ा कर दिया.

‘‘मैं घर वापस जाती हूं. कहीं घूमने जाने का अब मेरा बिलकुल मूड नहीं है.’’

‘‘बेकार की बात मत कर,’’ नीता उसे खींचते हुए गुसलखाने के अंदर धकेल आई.

जब वह 15 मिनट बाद बाहर आई, तो नीता ने उस के एक हाथ में एक नई काली साड़ी, मैचिंग ब्लाउज वगैरह पकड़ा दिया.

‘‘हैप्पी बर्थडे, ये तेरा गिफ्ट है, जो मैं कुछ दिन पहले खरीद लाई थी,’’ नीता की आंखों में शरारत भरी चमक साफ नजर आ रही थी.

‘‘अगर तुझे मेरा गिफ्ट खरीदना याद रहा, तो मुझे जन्मदिन की मुबारकबाद देना कैसे भूल गई?’’ सीमा की आंखों में उलझन के भाव उभरे.

‘‘अरे, मैं भूली नहीं थी. बात यह है कि आज हम सब तुझे एक के बाद एक सरप्राइज देने के मूड में हैं.’’

‘‘इस हम सब में और कौनकौन शामिल है?’’

‘‘उन के नाम सीक्रेट हैं. अब तू फटाफट तैयार हो जा. ठीक 1 बजे हमें कहीं पहुंचना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘उस जगह का नाम भी सीके्रट है.’’

सीमा ने काफी जोर डाला पर नीता ने उसे इन सीक्रेट्स के बारे में और कुछ भी

नहीं बताया. सीमा को अच्छी तरह से तैयार करने में नीता ने उस की पूरी सहायता की. फिर वे दोनों नीता की कार से अप्सरा बैंक्वेट हौल पहुंचे.

‘‘हम यहां क्यों आए हैं?’’

‘‘मुझ से ऐसे सवाल मत पूछ और सरप्राइज का मजा ले, यार,’’ नीता बहुत खुश और उत्तेजित सी नजर आ रही थी.

उलझन से भरी सीमा ने जब बैंक्वेट हौल में कदम रखा, तो अपने स्वागत में बजी तालियों की तेज आवाज सुन कर वह चौंक पड़ी. पूरा हौल ‘हैप्पी बर्थडे’ के शोर से

गूंज उठा.

मेहमानों की भीड़ में उस के औफिस की खास सहेलियां, नजदीकी रिश्तेदार और

परिचित शामिल थे. उन सब की नजरों का केंद्र बन कर वह बहुत खुश होने के साथसाथ शरमा भी उठी.

सब से आगे खड़े दोनों भाई व भाभियों को देख कर सीमा की आंखों में आंसू छलक आए. अपनी मां के गले से लग कर उस के मन ने गहरी शांति महसूस की.

‘‘ये सब क्या है? इतना खर्चा करने की क्या जरूरत थी?’’ उस की डांट को सुन कर नवीन और नीरज हंस पड़े.

दोनों भाइयों ने उस का एकएक बाजू पकड़ा और मेहमानों की भीड़ में से गुजरते हुए उसे हौल के ठीक बीच में ले आए.

नवीन ने हाथ हवा में उठा कर सब से खामोश होने की अपील की. जब सब चुप

हो गए तो वह ऊंची आवाज में बोला,

‘‘सीमा दीदी सुबह से बहुत खफा हैं. ये सोच रही थीं कि हम इन के जन्मदिन की तारीख भूल गए हैं, लेकिन ऐसा नहीं था. आज हम इन्हें बहुत सारे सरप्राइज देना चाहते हैं.’’

सरप्राइज शब्द सुन कर सीमा की नजरों ने एक तरफ खड़ी नीता को ढूंढ़ निकाला. उस को दूर से घूंसा दिखाते हुए वह हंस पड़ी.

अब ये उसे भलीभांति समझ में आ गया था कि नीता भी इस पार्टी को सरप्राइज बनाने की साजिश में उस के घर वालों के साथ मिली हुई थी.

नवीन रुका तो नीरज ने सीमा का हाथ प्यार से पकड़ कर बोलना शुरू कर दिया, ‘‘हमारी दीदी ने पापा की आकस्मिक मौत के बाद उन की जगह संभाली और हम दोनों भाइयों की जिंदगी संवारने के लिए अपनी खुशियां व इच्छाएं इन के एहसानों का बदला हम कभी नहीं भूल गईं.’’

‘‘लेकिन हम इन के एहसानों व कुरबानियों को भूले नहीं हैं,’’ नवीन ने फिर

से बोलना शुरू कर दिया, ‘‘कभी ऐसा वक्त था जब पैसे की तंगी के चलते हमारी आदरणीय दीदी को हमारे सुखद भविष्य की खातिर अपने मन को मार कर जीना पड़ रहा था. आज दीदी के कारण हमारे पास बहुत कुछ है.

‘‘और अपनी आज की सुखसमृद्धि को अब हम अपनी दीदी के साथ बांटेंगे.

‘‘मैं ने अपना राजनगर वाला फ्लैट दीदी के नाम कर दिया है,’’ ऊंची आवाज में ये घोषणा करते हुए नवीन ने रजिस्ट्री के कागजों का लिफाफा सीमा के हाथ में पकड़ा दिया.

‘‘और ये दीदी की नई कार की चाबी है. दीदी को उन के जन्मदिन का ये जगमगाता हुआ उपहार निशा और मेरी तरफ से.’’

‘‘और ये 2 लाख रुपए का चैक फ्लैट की जरूरत व सुखसुविधा की चीजें खरीदने

के लिए.

‘‘और ये 2 लाख का चैक दीदी को अपनी व्यक्तिगत खरीदारी करने के लिए.’’

‘‘और ये 5 लाख का चैक हम सब की तरफ से बरात की आवभगत के लिए.

‘‘अब आप लोग ये सोच कर हैरान हो रहे होंगे कि दीदी की शादी कहीं पक्की होने की कोई खबर है नहीं और यहां बरात के स्वागत की बातें हो रही हैं. तो आप सब लोग हमारी एक निवेदन ध्यान से सुन लें. अपनी दीदी का घर इसी साल बसवाने का संकल्प लिया है हम दोनों भाइयों ने. हमारे इस संकल्प को पूरा कराने में आप सब दिल से पूरा सहयोग करें, प्लीज.’’

बहुत भावुक नजर आ रहे नवीन और नीरज ने जब एकसाथ झुक कर सीमा के पैर छुए, तो पूरा हौल एक बार फिर तालियों की आवाज से गूंज उठा.

सीमा की मां अपनी दोनों बहुओं व पोतों के साथ उन के पास आ गईं. अब पूरा परिवार एकदूसरे का मजबूत सहारा बन कर एकसाथ खड़ा हुआ था. सभी की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे.

बहुत दिनों से चली आ रही सीमा के मन की व्याकुलता गायब हो गई. अपने दोनों छोटे भाइयों के बीच खड़ी वह इस वक्त अपने सुखद, सुरक्षित भविष्य के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त नजर आ रही थी.

सुदाम: आखिर क्यों हुआ अनुराधा को अपने फैसले पर पछतावा?

अनुराधा पूरे सप्ताह काफी व्यस्त रही और अब उसे कुछ राहत मिली थी. लेकिन अब उस के दिमाग में अजीबोगरीब खयालों की हलचल मची हुई थी. वह इस दिमागी हलचल से छुटकारा पाना चाहती थी. उस की इसी कोशिश के दौरान उस का बेटा सुदेश आ धमका और बोला, ‘‘मम्मी, कल मुझे स्कूल की ट्रिप में जाना है. जाऊं न?’’

‘‘उहूं ऽऽ,’’ उस ने जरा नाराजगी से जवाब दिया, लेकिन सुदेश चुप नहीं हुआ. वह मम्मी से बोला, ‘‘मम्मी, बोलो न, मैं जाऊं ट्रिप में? मेरी कक्षा के सारे सहपाठी जाने वाले हैं और मैं अब कोई दूध पीता बच्चा नहीं हूं. अब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ रहा हूं.’’

उस की बड़ीबड़ी आंखें उस के जवाब की प्रतीक्षा करने लगीं. वह बोली, ‘‘हां, अब मेरा बेटा बहुत बड़ा हो गया है और सातवीं कक्षा में पढ़ रहा है,’’ कह कर अनु ने उस के गाल पर हलकी सी चुटकी काटी.

सुदेश को अब अपेक्षित उत्तर मिल गया था और उसी खुशी मे वह बाहर की ओर भागा. ठीक उसी समय उस के दाएं गाल पर गड्ढा दे कर वह अपनी यादों में खोने लगी.

अनु को याद आई सुदेश के पिता संकेत से पहली मुलाकात. जब दोनों की जानपहचान हुई थी, तब संकेत के गाल पर गड्ढा देख कर वह रोमांचित हुई थी. एक बार संकेत ने उस से पूछा था, ‘‘तुम इतनी खूबसूरत हो, गुलाब की कली की तरह खिली हुई और गोरे रंग की हो, फिर मुझ जैसे सांवले को तुम ने कैसे पसंद किया?’’

इस पर अनु नटखट स्वर में हंसतेहंसते उस के दाएं गाल के गड्ढे को छूती हुई बोली थी, ‘‘इस गड्ढे ने मुझे पागल बना दिया है.’’

यह सुनते ही संकेत ने उसे बांहों में भर लिया था. यही थी उन के प्रेम की शुरूआत. दोनों के मातापिता इस शादी के लिए राजी हो गए थे. दोनों ग्रेजुएट थे. वह एक बड़ी फर्म में अकाउंटैंट के पद पर काम कर रहा था. उस फर्म की एक ब्रांच पुणे में भी थी.

दोपहर को अनु घर में अकेली थी. सुदेश 3 दिन के ट्रिप पर बाहर गया हुआ था और इधर क्रिसमस की छुट्टियां थीं. हमेशा घर के ज्यादा काम करने वाली अनु ने अब थोड़ा विश्राम करना चाहा था. अब वह 35 पार कर चुकी थी और पहले जैसी सुडौल नहीं रही थी. थोड़ी सी मोटी लगने लगी थी. लेकिन संकेत के लिए दिल बिलकुल जवान था. वह उस के प्यार में अब भी पागल थी. लेकिन अब उस के प्यार में वह सुगंध महसूस नहीं होती थी.

जब भी वह अकेली होती. उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगते. उसे अकसर ऐसा महसूस होता था कि संकेत अब उस से कुछ छिपाने लगा है और वह नजरें मिला कर नहीं बल्कि नजरें चुरा कर बात करता है. पहले हम कितने खुले दिल से बातचीत करते थे, एकदूसरे के प्यार में खो जाते थे. मैं ने उस के पहले प्यार को अब भी अपने दिल के कोने में संभाल कर रखा है. क्या मैं उसे इतनी आसानी से भुला सकती हूं? मेरा दिल संकेत की याद में हमेशा पुणे तक दौड़ कर जाता है लेकिन वह…

उस का दिल बेचैन हो गया और उसे लगा कि अब संकेत को चीख कर बताना चाहिए कि मेरा मन तुम्हारी याद में बेचैन है. अब तुम जरा भी देर न करो और दौड़ कर मेरे पास आओ. मेरा बदन तुम्हारी बांहों में सिमट जाने के लिए तड़प रहा है. कम से कम हमारे लाड़ले के लिए तो आओ, जरा भी देर न करो.

बच्चा छोटा था तब सासूमां साथ में रहती थीं. अनजाने में ही सासूमां की याद में उस की आंखें डबडबा आईं. उसे याद आया जब सुरेश सिर्फ 2 साल का था. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उसे नौकरी तो करनी ही थी. ऐसे में संकेत का पुणे तबादला हो गया था.

वे मुंबई जैसे शहर में नए फ्लैट की किस्तें चुकातेचुकाते परेशान थे, लेकिन क्या किया जा सकता था. बच्चे को घर में छोड़ कर औफि जाना उसे बहुत अखरता था, लेकिन सासूमां उसे समझाती थीं, ‘बेटी, परेशान मत हो. ये दिन भी निकल जाएंगे. और बच्चे की तुम जरा भी चिंता मत करो, मैं हूं न उस की देखभाल के लिए. और पुणे भी इतना दूर थोड़े ही है. कभी तुम बच्चे को ले कर वहां चली जाना, कभी वह आ जाएगा.’

सासूमां की यह योजना अनु को बहुत भा गई थी और यह बात उस ने तुरंत संकेत को बता दी थी. फिर कभी वह पुणे जाती तो कभी संकेत मुंबई चला आता. इस तरह यह आवाजाही का सिलसिला चलता रहा. इस दौड़धूप में भी उन्हें मजा आ रहा था.

कुछ दिनों बाद बच्चे का स्कूल जाना शुरू हो गया, तो उस की पढ़ाई में हरज न हो यह सोच कर दोनों की सहमति से उसे पुणे जाना बंद करना पड़ा. संकेत अपनी सुविधा से आता था. इसी बीच उस की सासूमां चल बसीं. उन की तेरही तक संकेत मुंबई  में रहा. तब उस ने अनु को समणया था, ‘अनु, मुझे लगता है तुम बच्चे को ले कर पुणे आ जाओ. वह वहां की स्कूल में पढ़ेगा और तुम भी वहां दूसरी नौकरी के लिए कोशिश कर सकोगी.’

इस प्रस्ताव पर अनु ने गंभीरता से नहीं सोचा था क्योंकि फ्लैट की कई किस्तें अभी चुकानी थीं. उस ने सिर्फ यह किया कि वह अपने बेटे सुरेश को ले कर अपनी सुविधानुसार पुणे चली जाती थी. संकेत दिल खोल कर उस का स्वागत करता था. बच्चे को तो हर पल दुलारता रहता था.

बच्चे की याद में तो उस ने कई रातें जाग कर काटी थीं. वह बेचैनी से करवट बदलबदल कर बच्चे से मिलने के लिए तड़पता था1 उस ने ये सब बातें साफसाफ बता दी थीं, लेकिन अनु ने उसे समणया था, ‘एक बार हमारी किस्तें अदा हो जाएं तो हम इस झंझट से छूट जाएंगे. तुम्हारे अकेलेपन को देख कर मेरा दिल भी रोता है. मेरे साथ तो सुरेश है, रिश्तेदार भी हैं. यहां तुम्हारा तो कोई नहीं. तुम्हें औफिस का काम भी घर ला कर करना पड़ता है, यह जान कर मुझे बहुत दुख होता है. मन तो यही करता है कि तुम जाग कर काम करते हो, तो तुम्हें गरमागरम चाय का कप ला कर दूं, तुम्हारे आसपास मंडराऊं, जिस से तुम्हारी थकावट दूर हो जाए.’

यह सुन कर संकेत का सीना गर्व से फूल जाता था और वह कहता था, ‘तुम मेरे पास नहीं हो फिर भी यादों में तो तुम हमेशा मेरे साथ ही रहती हो.’

अब फ्लैट की सारी किस्तों की अदायगी हो चुकी थी और फ्लैट का मालिकाना हक भी उन्हें मिल चुका था. सुदेश अब सातवीं कक्षा में पढ़ रहा था. उस ने फैसला कर लिया कि अब वह कुछ दिनों के लिए ही सही पुणे में जा कर रहेगी. सरकारी नौकरी के कारण उसे छुट्टी की समस्या तो थी नहीं.

उस ने संकेत को फोन किया दफ्तर के फोन पर, ‘‘हां, मैं बोल रही हूं.’’

‘‘हां, कौन?’’ उधर से पूछा गया.

‘‘ऐसे अनजान बन कर क्यों पूछ रहे हो, क्या तुम ने मेरी आवाज नहीं पहचानी?’’ वह थोड़ा चिड़चिड़ा कर बोली.

‘‘हां तो तुम बोल रही हो, अच्दी हो न? और सुदेश की पढ़ाई कैसे चल रही है?’’ उस के स्वर में जरा शर्मिंदगी महसूस हो रही थी.

‘‘मैं ने फोन इसलिए किया कि सुदेश

3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ है और मैं भी छुट्टी ले रही हूं. अकेलपन से अब बहुत ऊब गई हूं, इसलिए कल सुबह 10 बजे तक तुम्हारे पास पहुंच रही हूं. क्या तुम मुझे लेने आओगे स्टेशन पर?’’

‘‘तुम्हें इतनी जल्दी क्यों है? शाम तक आओगी तो ठीक रहेगा, क्योंकि फिर मुझे छुट्टी लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

संकेत का रूखापन अनु को समझने में देर नहीं लगी. एक समय उस से मिलने के लिए तड़पने वाला संकेत आज उसे टालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उस के प्यार को दिल में संजोने का पूरा प्रयास भी कर रहा था. दरअसल, अब वह दोहरी मानसिकता से गुजर रहा था.

काफी साल अकेले रहने के कारण इस बीच एक 17-18 साल की लड़की से उसे प्यार हो गया था. वह एक बाल विधवा रिश्तेदार थी. वह उस के यहां काम करती थी. वह काफी समझदार, खूबसूरत और सातवीं कक्षा तक पढ़ीलिखी थी. संकेत के सारे काम वह दिल लगा कर किया करती थी और घर की देखभाल भलीभांति करती थी.

कुछ दिनों बाद संकेत के अनुरोध पर चपरासी चाचा की सहमति से वह उसी घर में रहने लगी थी. फिर जबजब अनु वहां जाती तो उसे अपना पूरा सामान समेट कर चाचा के यहां जा कर रहना पड़ता था. यह सिलसिला कई सालों तक चलता रहा.

अभी अनु के आने की खबर मिलते ही वह परेशान हो गया था और अनु से बात करते वक्त उस की जुबान सूखने लगी थी. अब उसे तुरंत घर जा कर पारू को वहां से हटाना जरूरी था. उसे पारू पर दया आती, क्योंकि जबजब ऐसा होता वह काफी समझदारी से काम लेती. उसे अपने मालिक और मालकिन की परवाह थी, क्योंकि उसे उन का ही आसरा था1 कम उम्र में ही उस ने पूरी गंभीरता से सोचना शुरू कर दिया था.

शाम को अनु संकेत के साथ घर पहुंची तो रसोईघर से जायकेदार भोजन की खुशबू आ रही थी. इस खुशबू से उस की भूख बढ़ गई और उस ने हंसतेहंसते पूछा, ‘‘वाह, इतना अच्छा खाना बनाना तुम ने कब सीखा?’’

वह भी हंसतेहंसते बोला, ‘‘अपनी नौकरानी अभीअभी खाना बना कर गई है.’’

दूसरे दिन सुबहसुबह पारू आई और दोनों के सामने गरमागरम चाय के 2 कप रखे. चाय की खुशबू से वह तृप्त हो गई. थोड़ी देर बाद वह घर के चारों ओर फैले छोटे से बाग में टहलने लगी. घास का स्पर्श पा कर वह विभोर हो उठी. पेड़पौधों की सोंधी महक ने उस का मन मोह लिया.

अचानक उस का ध्यान एक 6-7 साल के बच्चे की ओर गया. वह वहां अकेला ही लट्टू घुमाने के खेल में खोया हुआ था. धीरेधीरे वह उस की ओर बढ़ी तो वह भागने की कोशिश करने लगा. अनु ने उस की छोटी सी कलाई पकड़ ली और बोली, ‘‘मैं कुछ नहीं करूंगी. ये बताओ तुम्हारा नाम क्या है?’’

वह घबरा गया तो कुछ नहीं बोला और सिर्फ देखता ही रह गया. उस के फूले हुए गाल और बड़ीबड़ी आंखें देख कर अनु को बहुत अच्छा लगा. वह हंस दी तो नादान बालक भी हंसा. उस की हंसी के साथ उस के दाएं गाल का गड्ढा भी मानो उस की ओर देख कर हंसने लगा.

यह देख कर उस का दिल दहल गया क्योंकि वह बच्चा बिलकुल संकेत की तरह दिख रहा था. ऐसा लगा कि संकेत का मिनी संस्करण उस के समाने खड़ा हो गया हो. वह दहलीज पर बैठ गई. उसे लगा कि अब आसमान टूट कर उसी पर गिरेगा और वह खत्म हो जाएगी. एक अनजाने डर से उस का दिल धड़कने लगा. उस का गला सूख गया और सुबह की ठंडीठंडी बयार में भी वह पसीने से तर हो गई. उस की इस स्थिति को वह नन्हा बच्चा समझ नहीं पाया.

‘‘क्या, अब मैं जाऊं?’’ उस ने पूछा.

इस पर अनु ने ठंडे दिल से पूछा, ‘‘तुम कहां रहते हो?’’

वह बोला, ‘‘मैं तो यहीं रहता हूं, लेकिन कल शाम को मैं और मेरी मां चाचा के घर चले गए. सुबह मैं मां के साथ आया तो मां बोलीं, बाहर बगीचे में ही खेलना, घर में मत आना.’’

बोझिल मन से उस ने उस मासूम बच्चे को पास ले कर उस के दाएं गाल के गड्ढे को हलके से चूमा. अब उसे मालूम हुआ कि पारू उस की खातिरदारी इतनी मगन हो कर क्यों करती है, उस की पसंद के व्यंजन क्यों बनाती है.

उसे संकेत के अनुरोध और विनती याद आने लगी, ‘‘हम सब एकसाथ रहेंगे. तुम्हारी और सुरेश की मुझे बहुत याद आती है.’’

लगता है मुझे उस समय उस की बात मान लेनी चाहिए थी. लेकिन मैं ने ऐसा क्या किया? मेरी गलती क्या है? मैं ने भी खुद के लिए नहीं बल्कि अपने परिवार के लिए नौकरी की. वह पुरुष है, इसलिए उस ने ऐसा बरताव किया. उस की जगह अगर मैं होती और ऐसा करती तो? क्या समाज व मेरा पति मुझे माफ कर देता? यहां कुदरत का कानून तो सब के लिए एक जैसा ही है. स्त्रीपुरुष दोनों में सैक्स की भावना एक जैसी होती है, तो उस पर काबू पाने की जिम्मेदारी सिर्फ स्त्री पर ही क्यों?

कहा जाता है कि आज की स्त्री बंधनों से मुक्त है, तो फिर वह बंधनों का पालन क्यों करती है? हम स्त्रियों को बचपन से ही माताएं सिखाती हैं इज्जत सब से बड़ी दौलत होती है, लेकिन उस दौलत को संभालने की जिम्मेदारी क्या सिर्फ स्त्रियों की है?

यह सब सोचते हुए उस के आंसू वह निकले तो उस ने अपने आंचल से पोंछ डाले. उसे रोता देख कर वह बच्चा फिर डर कर भागने की कोशिश करने लगा, तो अनु जरा संभल गई. उस ने उस मासूम बच्चे को अपने पास बिठा लिया और कांपते स्वर में बोली, ‘‘बेटा, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो, लेकिन तुम ने अब तक अपना नाम नहीं बताया? अब बताओ क्या नाम है तुम्हारा?’’

अब वह बच्चा निडर बन गया था, क्योंकि उसे अब थोड़ा धीरज जो मिल गया था. वह मीठीमीठी मुसकान बिखेरते हुए बोला, ‘‘सुदाम.’’ और फिर बगीचे में लट्टू से खेलने लगा.

Raksha Bandhan: 5 टिप्स-ताकि घर रहे महकता

सुगंध या खुशबू एक ऐसा एहसास है, जो किसी को भी आकर्षित करता है. महकता व सुगंधित घर न केवल किसी होममेकर की सुगढ़ता को दर्शाता है, बल्कि इस से उस की पसंद व स्टाइल की भी जानकारी मिलती है. कोई भी घर तभी संपूर्ण माना जाता है जब वह सही इंटीरियर के साथसाथ अच्छा महकता भी हो. क्या आप चाहेंगी कि जब कोई आप के घर में आए, तो उस का स्वागत घर की प्याजलहसुन की गंध से हो, जिस से वह आते ही नाकभौं सिकोड़े और उस का घर में बैठना दूभर हो जाए?

दरअसल, हर घर की एक अलग गंध होती है, जो अगर सुगंध है तो आने वाले को सम्मोहित कर देती है. इस से आने वाला तनावरहित व फ्रैश भी हो जाता है. लेकिन वही गंध अगर दुर्गंध हो यानी घर से प्याजलहसुन, सीलन, गीले कपड़ों वगैरह की गंध आती हो, तो आने वाला ज्यादा देर तक टिक नहीं पाता. वह घर से जल्दी निकलने के लिए मजबूर हो जाता है. घर से सुगंध आए, इस के लिए घर को महकाने का चलन बहुत पहले से चला आ रहा है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि घर से आने वाली अन्य तरह की गंध को कम किया जा सके. पुराने जमाने में लोग अपने घर के बाहर रात की रानी, चमेली या रजनीगंधा के पेड़पौधे लगा देते थे ताकि घर सदा महकता रहे. लेकिन बदलते समय के साथ समय व स्पेस की कमी ने इस तरीके को थोड़ा कम कर दिया है. इसलिए लोगों ने आर्टिफिशियल सुगंध पर निर्भर होना प्रारंभ कर दिया है.

होम फ्रैशनर मिलते कई

घर से आने वाली दुर्गंध को कम करने के लिए बाजार में अनेक तरह के होम फ्रैगरैंस उपलब्ध हैं, जिन का चुनाव आप अपनी पसंद व सुविधा के अनुसार कर सकती हैं.

अगरबत्तियां: घर को महकाने के लिए अगरबत्तियों का इस्तेमाल पहले से होता रहा है. लेकिन आजकल बाजार में अगरबत्तियों की अनेक खुशबुएं मिलती हैं, जिन्हें बेहतरीन होम फ्रैगरैंस के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. नैचुरल फ्रैगरैंस की बात की जाए तो जैसमीन, चंदन, गुलाब, देवदार आदि की प्राकृतिक खुशबुओं वाली अनेक अगरबत्तियां हैं.

बाजार में 2 प्रकार की अगरबत्तियां उपलब्ध हैं, जिन्हें आप अपनी जरूरत और सुविधा के अनुसार चुन सकती हैं. पहली, डायरैक्ट बर्न जिस में अगरबत्ती स्टिक को सीधे जलाया जाता है और उस की सुगंध से वातावरण सुगंधित हो जाता है. दूसरी, इनडायरैक्ट बर्न जिस में फ्रैगरैंस मैटीरियल को मैटल की हौटप्लेट या आंच पर रखा जाता है, जिस से न केवल पूरा घर महक जाता है वरन घर से मच्छरमक्खियां भी दूर भागती हैं.

फ्रैगरैंस कैंडल्स: कैंडल्स का प्रयोग सिर्फ दीवाली पर जगमगाहट के लिए करने के अलावा घर को महकाने व रोमानी वातावरण बनाने के लिए भी किया जा सकता है. रंगबिरंगी सैंटेड कैंडल्स बाजार में इतने आकर्षक डिजाइनों, रंगों व फ्रैगरैंस में उपलब्ध हैं, जिन से आप घर को महका सकती हैं और घर से आ रही प्याजलहसुन व सीलन की बदबू को दूर भगा सकती हैं.

कैंडल्स में वारमर्स भी मौजूद हैं, जो मोम को गरम करते हैं और पिघलते मोम से सारा घर महकता रहता है. सैंटेड कैंडल को बिना जलाए घर को महकाने का यह बेहतरीन तरीका साबित होता है.

एअर फ्रैशनर्स: घर को महकाने में एअर फ्रैशनर्स स्प्रे का भी प्रयोग किया जा सकता है. इस से घर से आने वाली दुर्गंध हट जाती है. खूबसूरत कैन्स में उपलब्ध इन फ्रैशनर्स को आप दीवार पर भी टांग सकती हैं और उस में लगे बटन को औन कर के घर को महका सकती हैं.

फ्रैगरैंस पौटपोरी: आकर्षक पैकिंग में उपलब्ध सूखे फूल व खुशबूदार सामान को भी घर को महकाने में प्रयोग किया जा सकता है. इन पैकेट से निकलने वाली सुगंध घर के माहौल को महकदार व रोमांटिक बना देती है.

रीड डिफ्यूजर: अनेक खुशबुओं को बोतल व कंटेनर में सैंटेड औयल व रीड्स के रूप में घर को महकाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है. इस रीड डिफ्यूजर को आप किचन, लिविंग रूम, बैडरूम, बाथरूम कहीं भी रख सकती हैं व घर के कोनेकोने को मस्ती भरी सुगंध से महका सकती हैं.

बाजार में मिलने वाले इन रैडीमेड होम फ्रैगरैंस के अलावा आप चाहें तो घर में भी होम फ्रैगरैंस बना सकती हैं यानी कुछ तरीके अपना कर घर को महका सकती हैं:

कमरे की खिड़कियां सुबहशाम अवश्य खोलें ताकि बाहर की फ्रैश हवा भीतर आ सके.

घर में प्राकृतिक खुशबू वाले फूलों के पौधे लगाएं, साथ ही किसी कांच के बाउल में पानी भर कर उन फूलों की पंखुडि़यों को उस में डाल कर सैंटर टेबल पर रखें. हवा के साथ आती फूलों की ताजा खुशबू पूरे घर को महकाएगी और प्राकृतिक होम फ्रैगरैंस का काम करेगी.

ऐसेंशियल औयल को 1 कप पानी में मिला कर किसी स्प्रे वाली बोतल में भर लें और एअर फ्रैशनर के तौर पर इस्तेमाल करें.

वाशबेसिन में रंगबिरंगी नैप्थेलीन बौल्स डालें.

कपड़े की अलमारियों में नैप्थेलीन बौल्स फ्रैगरैंस पौटपोरी रखें.

किचन में ऐग्जौस्ट फैन व चिमनी लगाएं.

घर के कालीन व परदों को समयसमय पर साफ कराती रहें.

महकते घर के फायदे

महकता घर उस घर में रहने वालों को तनावरहित रखने के साथसाथ उन्हें रिलैक्स भी करता है.

महकता घर, घर में आने वालों का मूड फ्रैश कर देता है और उन में पौजिटिव ऐनर्जी भर देता है.

दुर्गंधयुक्त वातावरण जहां रिश्तों में खटास लाता है, वहीं सुगंधित घर आपसी रिश्तों में भी मधुरता लाता है. उन्हें प्रकृति के करीब होने का एहसास कराता है. दिन भर की भागदौड़ व प्रदूषण से दूर जब आप महकते घर में प्रवेश करते हैं तब दिन भर की थकान दूर हो जाती है और घर में रोमांटिक वातावरण मिलता है. इस से पतिपत्नी के रिश्ते में भी नजदीकी आती है. तो फिर तैयार हैं न अपने महकते घर में रिश्तों को नई ताजगी देने के लिए और मेहमानों का स्वागत करने के लिए.

Raksha Bandhan: कच्ची धूप-कैसे हुआ सुधा को गलती का एहसास

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Raksha Bandhan: फैमिली के लिए बनाएं शाही ड्राईफ्रूट खीर

रक्षाबंधन पर अगर आप कुछ मीठा बनाने की रेसिपी ढूंढ रहे हैं तो शाही ड्राईफ्रूट खीर की ये रेसिपी जरुर ट्राय करें.

सामग्री

3 कप दूध

– 1/4 टिन मिल्कमेड

– 5-6 खजूर कटे

– 5-6 खुबानी कटी

– 7-8 बादाम लंबे कटे

– 8-10 किशमिश

शहद स्वादानुसार

– 1 बड़ा चम्मच नारियल कसा

– 1/8 छोटा चम्मच छोटी इलायची पाउडर

– चुटकी भर केसर.

विधि

खजूर और खुबानी को 20 मिनट के लिए 1 कप गरम दूध में भिगो दें. दूध कड़ाही में तब तक उबालें जब तक वह आधा न हो जाए. अब इस में मिल्कमेड मिला दें. फिर खजूर और खुबानी डाल दें. उस के बाद नारियल मिला कर 5-10 मिनट तक धीमी आंच पर उबालें. अब बादाम और किशमिश डालें और आंच बंद कर उतार लें. इस में केसर, इलायची पाउडर और स्वादानुसार शहद मिलाएं. अब नारियल से सजा कर ठंडा या गरम इच्छानुसार परोसें.

YRKKH: गोयनका हाउस जाएगी मंजरी, अक्षरा से करेगी ये गुजारिश

प्रणाली राठौड़ और हर्षद चोपड़ा स्टारर ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ सीरियल इन दिनों काफी सुर्खियों में है. शो में काफी ड्रामा चल रहा है. टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अभीर अभिनव के जाने के बाद गम बर्दाश्त नहीं कर पाएगा. वह यह नहीं मानेगा कि उसके पिता भगवान के पास चले गए है. अभीर को लगता है उसका पिता कसौली में है और वह कसौली जाने के लिए जिद करता है. वहीं मंजरी को ये डर सताएगा कही अक्षरा अभीर को अभिमन्यू के खिलाफ न कर दे.

अबीर पिता की याद में रोया

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अबीर, अभिनव के जाने का गम बर्दाश्त नहीं कर पाएगा. वह कसौली जाने की जिद करने लगेगा. वह कहेगा, ‘मुझे कसौली जाना है मेरे पापा वहीं हैं.’ हर कोई उसे समझाने की कोशिश करेगा लेकिन, वह मानने के लिए तैयार नहीं होगा कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे. अक्षरा उसकी जिद के आगे हार जाएगी. वह उसके साथ कसौली जाने के लिए तैयार हो जाएगी. वह अभीर का सामान कार में रख देगी और उसे कार में अकेला छोड़ देगी कार में बैठते ही अबीर को अभिनव की याद आने लगेगी और वह जोर-जोर से रोने लगेगा.

 

अक्षरा लेगी फैसला

दूसरी तरफ अक्षरा, अभीर को कोर्ट के फैसले के बाद अभिमन्यु का सच बताने का फैसला लेगी. वहीं दूसरी तरफ, मंजरी को ये फिक्र रहती है र कि कहीं अक्षरा, अबीर को अभिमन्यु के खिलाफ भड़का न दे. वह न समय देखेगी न माहौल, वह अक्षरा से मिलने गोयनका हाउस पहुंच जाएगी.

 

वह अक्षरा से पूछेगी कि क्या उसने अबीर को ये बताया है कि अभिनव जी के साथ जो कुछ भी हुआ वह एक हादसा था? अक्षरा, मंजरी को टोकते हुए कहेगी, ‘हादसा? हादसा नहीं वह आपके बेटे की सोची समझी साजिश थी. आपके बेटे ने मेरे पति का खून किया है.’ अक्षरा के इतना कहते ही कुछ गिरने की आवाज आएगी. जब सब पलटकर देखेंगे तब उन्हें अबीर बेहोश पड़ा मिलेगा. आरोही, अभीर का चेकअप करेगी और कहेगी कि वह ठीक है. वहीं शो में अभीर के लिए परेशान दिखता है अभिमन्यू

परिवार के करीब आ रहा है समर, अनुपमा- अनुज ने लगाई रोमिल की क्लास

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में होगा हाई वोल्टेज ड्रामा. शो के मेकर्स सीरियल को नंबर वन बनाने के लिए प्रयास में लगे हुए है. टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में आए दिन नए-नए ट्विस्ट देखने को मिलते है. ‘अनुपमा’ के ट्विस्ट ने दर्शकों का दिमाग हिला रखा है. टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में अपकमिंग एपिसोड में काफी धमाकेदार होने वाला है.

अनुपमा-अनुज ने रोमिल को सिखाया सबक

रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में देखने को मिलेगा कि एक बार फिर से अनुपमा और अनुज के सामने रोमिल होगा. इस बार वजह होगी कॉफी. कॉफी ऑर्डर देने के बाद अनुपमा- अनुज उसे समझाइस देंगे. वहीं रोमिल भी बिना किसी ना-नकुर के बात मान लेता है. उसी समय अनुज कहता है जब तक कॉफी आएगी उससे पहले यह हॉल साफ कर दो.

 

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पाखी रोमिल से बात करती है

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ के अपकमिंग एपिसोड में आगे देखने को मिलेगा कि डिंपी रोमिल से माफी मांगेगी. लेकिन वो उसे ही सुना देता है. उसके बाद पाखी फिर से कहती है कि अधिक के बारे में कुछ मत बोलना. तो रोमिल कहता है कि बिलकुल बता सकता हूं. इसके बाद वो पाखी को अपने कमरे से निकाल देता है.

इसके बाद शो में आगे देखने को मिलेगा कि कल्चर फेस्टिवल में अनुपमा की मुलाकात, वंदना कर्मकर से होती है. स्टेज पर जाने से पहले दोनों की बातें होती है. इसके बाद दोनों स्टेज पर साथ में परफॉर्में करती हैं, वंदना जहां गाना गाती हैं तो अनुपमा डांस करती हैं. आपको बता दें कि वंदना, स्टार प्लस के नए शो ‘बातें कुछ अनकही सी’ की लीड कैरेक्टर है.

समर अपने परिवार के करीब आ रहा है

वहीं टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में आगे देखने को मिलता है कि शाह परिवार में सभी लोग साथ में खाना खाते है. वहीं वनराज यह सोचता रहता है कि काव्या के कोख में उसका बच्चा नहीं है. वहीं समर आ जाता है वनराज समेत सभी लोगों से बात करता है.

कासनी का फूल: भाग 4- अभिषेक चित्रा से बदला क्यों लेना चाहता था

चित्रा के मनमस्तिष्क में अनवरत अभिषेक और ईशान के बीच के अंतर की सोच जारी थी. चैल में दुनिया का सब से ऊंचा क्रिकेट ग्राउंड देखते हुए चारों ओर का नयनाभिराम दृश्य चित्रा को ईशान के खुशदिल व्यक्तित्व सा लग रहा था तो वाइल्ड लाइफ सैचुरी देखते हुए जंगली जानवर अभिषेक का व्यवहार याद दिला रहे थे. जिस प्रकार ईशान पूरे मनोयोग से उसे स्थानस्थान पर ले जाते हुए विस्तृत जानकारी दे रहा था, वैसी आशा तो वह अभिषेक से कर ही नहीं सकती थी. जानकारी अभिषेक को भी थी लेकिन वह चित्रा से ज्यादा बातचीत करने और कुछ भी समझनेसमझने के चक्कर में नहीं पड़ता था. ईशान बारबार पूछ रहा था कि वह थक तो नहीं गई?

चाहती हूं.’’

‘‘मैं सुनना चाहता हूं, चिकोरी.’’

‘‘दिल जो न कह सका, वही राज ए दिल कहने की रात आई…’’

‘‘कितना रोमाटिक सौंग है. मुझे याद है मीना कुमारी पर फिल्माया गया है. तुम्हें बोल याद हैं तो अंतरा भी सुनाओ न,’’ ईशान ने आग्रह किया.

‘‘नगमा सा कोई जाग उठा बदन में, झंकार की सी थरथरी है तन में…’’ चित्रा की मीठी आवाज में नशा घुल रहा था. आकंठ प्रेम में डूबे उस के मादक स्वरों में ईशान भी डूबता चला गया.

चित्रा ने कमरे में जल रही खुशबूदार मोमबत्ती बुझ दी. जगमग रोशनी से डर कर नहीं, न ही उस की खुशबू से दूर भगाने का. आज वह बाहर से आ रही चांद, सितारों की रोशनी में उस रात को जीना चाहती थी जो उस के जीवन में कभी आई ही नहीं थी. ईशान के तन से आती हुई उस महक में डूब जाना चाहती थी जो उसे उन्मादी बनाए जा रही थी.

ईशान की बरसों पुरानी कल्पनाएं आज की रात साकार हो रही थीं. इस मिलन के साक्षी बनने आसमान के तारे जुगनुओं के रूप में धरती पर उतर आए थे. चांद भी नदी में झिलमला कर मुबारकबाद दे रहा था.

अगली सुबह वे वापस अपने ठिकानों पर आ गए. मिलनाजुलना अब बढ़ गया था. ईशान प्राय रात में रैस्टोरैंट से सीधा चित्रा के पास आ जाता. अचानक मिली इस खुशी ने चित्रा की झोली में एक और खुशी डाल दी. उसे पता लगा कि ईशान का अंश उस में पलने लगा है.

उस दिन यह सुखद समाचार वह ईशान के साथ साझ करने वाली थी. ईशान ने आते ही प्रश्न कर दिया, ‘‘चिकोरी, अगर मैं कुछ समय तुम से दूर रहूं तो सह लोगी?’’

‘‘मतलब? कहीं जा रहे हो क्या?’’

‘‘हां कहोगी तो ही जाऊंगा. कनाडा में एक इंस्टिट्यूट स्मौल बिजनैस करने वालों को 6-7 महीने की ट्रेनिंग देता है. इस बार मेरा नाम लिस्ट में आ गया है. वहां ट्रेनिंग लेने वालों को अपने छोटे व्यवसाय से जुड़ी किसी खास योजना पर प्रोजैक्ट तैयार कर दिखाना होता है. जो उन को पसंद आ जाता है उसे फैलोशिप के नाम से बड़ी रकम देते हैं बिजनैस में लगाने को. मैं अपने रैस्टोरैंट को बढ़ा कर एक होटल का रूप देना चाहता हूं. कासनी के फूल के थीम पर पूरा इंटीरियर होगा. बहुत कुछ और भी सोच रहा हूं जैसे सलाद के रूप में कासनी की पंखुडि़यों का इस्तेमाल कम लोग जानते हैं. इसे बड़े स्तर पर लाना और ऐसे ही अन्य उपयोग भी. इसी पर होगा मेरा प्रोजैक्ट.’’

‘‘वाह, इस मौके को हाथ से जाने मत देना. मैं सोच रही हूं कि अपनी जौब छोड़ दूं. तुम्हारे जाने के बाद रैस्टोरैंट की देखभाल कर लूंगी. यह ठीक से चलता रहेगा तभी तो होटल का रूप ले पाएगा भविष्य में,’’ चित्रा ने अपनी प्रैगनैंसी की बात नहीं बताई. जानती थी कि पता लगा तो ईशान विदेश नहीं जाएगा.

ईशान चला गया. चित्रा ने अपना पूरा ध्यान ईशान के व्यवसाय को संभालने में लगा दिया. अपने घर में कह दिया कि वह विदेश जा रही है ताकि कोई उस से मिलने न आ जाए और होने वाले बच्चे को ले कर हंगामा न हो जाए.

दोनों का परिश्रम और त्याग रंग लाया. ईशान का प्रोजैक्ट चुन लिया गया. 25 लाख की धनराशि मिली. वापस लौटा तो होने वाली संतान के विषय में जान कर अचंभित हो गया.

‘‘तुम ने मेरे लिए कितना बड़ा त्याग किया, चिकोरी, इस से पहले यह बच्चा दुनिया में आए हम कोर्ट मैरिज कर लेते हैं, घर पर सब को यही कहेंगे कि हम ने मेरे कनाडा जाने से पहले शादी कर ली थी,’’ ईशान भावुक हो रहा था.

‘‘तुम आराम से सोच लेना, ईशान. मेरे कारण तुम्हें अपमानित न होना पड़े. मेरी वजह से ?ाठ का सहारा लेना पड़ रहा है तुम्हें.’’

‘‘चिकोरी, 7 फेरों का नाम ही विवाह होता है क्या? मैं ने तो साधुपुल में बिताई रात के बाद ही पत्नी मान लिया था तुम्हें. कनाडा जा कर अपना सपना पूरा करने में मुझे तुम्हारा कितना सहयोग मिला मैं बता नहीं सकता. एकदूसरे के सुखदुख में साथ देने वाले हम क्या पतिपत्नी नहीं हैं? झूठ नहीं है इस में कुछ. भी,’’ ईशान ने चित्रा को गले से लगा लिया.

चित्रा को अचानक याद आया जब अभिषेक और वह इंदौर में ही घूमने गए थे. अभिषेक जल्दबाजी में एक के बाद एक कई जगह ले कर जा रहा था उसे. चित्रा के यह कहने पर कि हम छुट्टी वाले दिन आ कर आराम से एक दिन में एक जगह देखेंगे, अभिषेक भड़क उठा था, ‘‘मेरे पास तुम्हें घुमाने के सिवा और भी काम हैं. तुम्हारे कहने पर ही आया हूं आज वरना मैं तो दोस्तों के साथ कई बार आ चुका हूं इन जगहों पर.’’

सब याद कर चित्रा का मुंह कसैला होने लगा, किंतु कुछ देर बाद वह ईशान के मधुर व्यवहार में खो गई. साथसाथ घूमते हुए समय का पता ही नहीं लगा. शाम हो रही थी.

‘‘अब वापस चलें होटल? कल साधुपुल आएंगे. घूमने के बाद वहां रात को कैंपिंग करेंगे. परसों घर वापसी,’’ ईशान ने आगे के कार्यक्रम की जानकारी देते हुए कहा.

वापस होटल जा कर रात बिताने की कल्पना से चित्रा को अचानक दहशत होने लगी. वही जगमगती रोशनी, खुशबू और एक पुरुष. कैंप में शायद होटल सी चकाचौंध न हो, सोचते हुए वह बोली, ‘‘ईशान,क्या आज की रात हम साधुपुल के कैंप में नहीं बिता सकते?’’

‘‘साधुपुल यहां से दूर है. मेन रोड से नदी के किनारे तक जाने वाली सड़क ढलवां है. वहां से हट्स और कैंप्स तक पहुंचने का रास्ता कच्चा है, पैदल जाना पड़ेगा. कार बीच में कहीं लगानी पड़ेगी. अभी जाएंगे तो वहां तक पहुंचतेपहुंचते रात हो जाएगी. ऐसे में कल सुबह चलना ठीक रहेगा,’’ ईशान ने अभी चलने की मुश्किल बताई तो चित्रा के पास होटल वापस जाने के अलावा कोई उपाय न था.

डिनर के बाद वे कमरे में पहुंचे. चित्रा कपड़े बदलने बाथरूम में चली गई. बाहर आई तो जगमग रोशनी और कमरे में फैली रूमफ्रैशनर की सुगंध ने उसे झकझरना शुरू ही किया था कि बैड पर बैठे ईशान पर निगाहें ठहर गईं. ईशान दोनों हाथों से कासनी के फूलों का बड़ा सा बुके पकड़े हुए चित्रा को स्नेहसिक्त दृष्टि से देख रहा था. चित्रा सुधबुध खो कर बैड तक पहुंची. कासनी का रंग ईशान की आंखों में भी झिलमिला रहा था.

‘‘यह कहां से कब ले लिया?’’ चित्रा हैरानी से अपनी हथेलियां गालों पर रख कभी ईशान को तो कभी कासनी के पुष्पगुच्छ को निहार रही थी.

‘‘रास्ते में जहां चाय पीने रुके थे उस के पास ही है फूलों की बड़ी सी दुकान. मैं उन से खास मौकों पर रैस्टोरैंट की सजावट के लिए फूल मंगवाता रहता हूं. 2 दिन पहले ही फोन कर और्डर दे दिया था बुके का क्योंकि कासनी के फूल सब जगह नहीं मिलते. हम जब चाय पी रहे थे वह कार में रख गया था यह बुके,’’ ईशान ने अपने सरप्राइज का राज खोला.

‘‘ईशान आज तुम्हारे हाथों में कासनी के नीले फूल नहीं वह आसमान है जहां मैं पंख फैला कर उड़ना चाहती हूं, यह गुलदस्ता नहीं तुम्हारे एहसासों का नीला सागर है जिस की गहराई तक मैं कभी पहुंच नहीं सकती. इस तोहफे के लिए शुक्रिया कहना इस का अपमान होगा,’’ चित्रा भावविभोर थी. एकाएक उसे कमरे में फैली रोशनी की चकाचौंध ईशान के प्रेम की चमक सी लगने लगी, रूमफ्रैशनर की महक में कासनी के फूलों की सुगंध घुल गई. बुके हाथ में लिएलिए ही वह ईशान के गले लग गई.

उसे बेसाखता चूमते हुए चित्रा फफकफफक कर रो पड़ी, ‘‘हम पहले क्यों नहीं

मिले ईशान? मेरे साथ तब वह सब तो नहीं होता जो हुआ.’’

ईशान ने उसे बैड पर लिटा कर प्यार से सहलाया, पानी पिलाया फिर बोला, ‘‘बताओमु?ो क्याक्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’

चित्रा ने चंदनदास की करतूत, उस कारण अभिषेक से संबंध न बना पाने का सच और नतीजतन अभिषेक की बेरुखी और नाराजगी सबकुछ एकएक कर ईशान को बता दिया. चित्रा की आपबीती ईशान की कल्पना से बाहर थी. चित्रा के आंसुओं ने उस के चेहरे को भिगो दिया और ईशान के मन को भी.

 

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