Hindi Kahaniyan : धन्यवाद- सासूमां की तारीफ क्यों करने लगी रवि की पत्नी

Hindi Kahaniyan : सपनाने जब घर के अंदर कदम रखा तब शाम के 6 बज चुके थे. अपनी सास की भृकुटियां तनी देख कर वह भी उन से उलझने को मन ही मन फौरन तैयार हो गई.

‘‘तुम्हारा स्कूल को 2 बजे बंद हो जाता है. देर कैसे हो गई बहू?’’ उस की सास शीला ने माथे में बल डाल कर सवाल पूछ ही लिया.

‘‘मम्मी, मैं भाभी का हाल पूछने चली गई थी,’’ सपना ने भी रूखे से लहजे में जवाब दिया.

‘‘तुम मायके गई थी?’’

‘‘भाभी से मिलने और कहां जाऊंगी?’’

‘‘तुम्हें फोन कर के हमें बताना चाहिए था या नहीं?’’

‘‘भूल गई, मम्मी.’’

‘‘ये कोई भूलने वाली बात है? लापरवाही तुम्हारी और चिंता करें हम, यह तो ठीक बात नहीं है, बहू.’’

‘‘चिंता तो आप मेरी नहीं करती हैं, पर

मुझ से झगड़ने का कारण आज आप को जरूर मिल गया,’’ सपना ने अचानक ऊंची आवाज

कर ली, ‘‘यहां थकाहारा इंसान घर लौटे तो

पानी के गिलास के बजाय झिड़कियां और ताने दिनरात मिलते हैं. आप मेरे पीछे न पड़ी रहा

करो, मम्मी.’’

‘‘तुम घर के कायदेकानूनों को मान कर चलो, तो मुझे कुछ कहना ही न पड़े,’’ शीला ने भी अपनी आवाज में गुस्से के भाव और बढ़ा लिए. आप घर के कायदेकानूनों के नाम पर मुझे यूं ही तंग करती रहीं, तो यहां से अलग होने के अलावा हमारे सामने और कोई रास्ता नहीं बचेगा, मम्मी,’’ अपनी सास को यह धमकी दे कर सपना पैर पटकती अपने शयनकक्ष की तरफ चली गई.

‘‘अपनी इकलौती संतान को घर से अलग करने का सद्मा और दुख हमारा मन झेल नहीं पाएगा. इस बात का तुम गलत फायदा उठाती हो, बहू…’’ शीला देर तक ड्राइंगरूम में बोलती रही, पर सपना ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करी.

वे बोलबोल कर थक जातीं, इस से पहले ही उन की छोटी बहन मीना उन से मिलने आ पहुंची. शीला के अंदर फौरन नई ऊर्जा का संचार हुआ और वह अपनी बहू की बददिमागी और बदमिजाजी केउदाहरण उन्हें जोश के साथ सुनाने लगीं.

दोनों बहनों के बीच चल रहे वार्त्तालाप के हिस्से सपना के कानों तक भी पहुंच रहे थे. अपने शयनकक्ष से बाहर आ कर उस ने पहले 4 कप चाय बनाई. अपने ससुरजी को चाय उन के कमरे   में देने के बाद वे 3 कप ट्रे में सजा कर ड्राइंगरूम में आ गई.

मीना मौसी के पैर छूने के बाद वह जब उन्हें चाय का कप पकड़ा रही थी तब पैर कालीन में उलझ जाने के कारण वह झटका खा गई और थोड़ी सी चाय छलक कर मौसी के हाथ व साड़ी पर गिर गई.

‘‘हाय रे,’’ मौसी कराह उठीं.

अपनी बहन की दर्दभरी आवाज सुन कर शीला का पारा फिर से चढ़ गया,

‘‘बहू, क्या तुम कोई काम समझदारी और ढंग से नहीं कर सकती है? इतनी बड़ी हो कर तुम्हें यों बातबात पर डांट खाना अच्छा लगता है?’’ शीला ने मौका न चूकते हुए फिर से सपना को कड़वे, तीखे शब्द सुनाने शुरू कर दिए.

‘‘मम्मी, जरा सी चाय ही तो गिरी है और आप ने मुझे छोटी बच्ची की तरह डांटना शुरू कर  दिया. यह बात मुझे जरा भी पसंद नहीं है. चाय की सफाई में 1 मिनट भी नहीं लगेगा, पर मेरा दिमाग कई घंटों को खराब हो जाएगा,’’ सपना ने बराबर का तीखापन अपनी आवाज में पैदा किया.

‘‘तुम बहस करने में ऐक्सपर्ट और ढंग से काम करने में एकदम फिसड्डी हो.’’

‘‘और आप मुझे हर आएगए के सामने अपमानित करने का कोई मौका नहीं चूकतीं.’’

‘‘कितनी तेज जबान है तुम्हारी.’’

‘‘आप मुझे नाजायज दबाए जाएं और मैं चूं भी न करूं, यह कभी नहीं होगा, मम्मी,’’ कह सपना ने अपना कप उठाया और पैर पटकती अपने कमरें में घुस गई.

अपनी बहन की साड़ी की सफाई भी शीला को ही करनी पड़ी. सपना की बुराइयां करतेकरते 1 घंटा कब बीत गया, दोनों बहनों को पता ही नहीं चला.

मीना मौसी के जाने के 15 मिनट बाद शीला का बेटा रवि घर आया. तब उस के पिता भी ड्राइंगरूम में टीवी देख रहे थे.

शीला ने रवि के सोफे पर बैठते ही सपना की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. उन की आवाज सपना तक पहुंची तो वह रसोई से निकल कर ड्राइंगरूम में आ धमकी.

अपनी सास को ज्यादा बुराई करने का मौका दिए बिना वह गुस्सैल स्वर में बीच में बोल पड़ी, ‘‘मम्मी, आप मुझ से इतनी ही दुखी हैं तो हमें घर से निकल जाने को क्यों नहीं कह देतीं?’’

‘‘यह बात बारबार उठाने के बजाय तुम खुद को सुधार क्यों नहीं लेती हो बहू?’’ शीला ने चिड़ कर उलटा सवाल पूछा.

‘‘आप के अलावा इस घर के बाकी के दोनों आदमी मुझे पसंद करते हैं… मम्मी न पापा को मुझ से कोई शिकायत है, न रवि को.’’

‘‘इन दोनों ने ही तुम्हें सिर पर चढ़ा रखा

है, लेकिन तुम्हारा असली रूप सिर्फ मैं ही पहचानती हूं.’’

‘‘जब दिल न मिलते हों, तो आंखें सामने वाले में सिर्फ कमियां और बुराइयां ही देख पाती हैं, मम्मी.’’

रवि ने उठते हुए उन दोनों से क्रोधित स्वर में कहा, ‘‘रातदिन जो तुम दोनों झिकझिक करती रहती हैं, उस ने मेरा दिमाग खराब कर दिया है. सपना, तुम जाओ यहां से.’’

रवि अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर उसे वहां से न ले गया होता, तो सासबहू की झड़प न जाने कितनी देर और चलती.

‘‘अब यह सारी रात मेरे बेटे के कान मेरे खिलाफ भरेगी. पता नहीं मुझे मेरे किन बुरे कर्मों की सजा ऐसी बदजबान और फूहड़ बहू पा कर मिल रही है,’’ अपने पति की सहानुभूति पाने के लिए शीला अपनी आंखों में आंसू भर लाई.

रात का खाना सासससुर और बहूबेटे ने अलगअलग खाया. दोनों औरतें एकदूसरे को गलत ठहराने का प्रयास अपनेअपने पतियों के सामने देर रात तक करती रहीं.

अगले दिन सुबह सासबहू के बीच तकरार फिर से शुरू हो गई. शीला ने ड्राइंगरूम की

सफाई करते हुए सपना के औफिस की कोई फाइल मेज पर से हटा कर अखबारों के बीच अनजाने में रख दी.

फाइल ढूंढ़ने में सपना को 15 मिनट लगे. वह पूरा समय अपनी सास को सुनाती रही, ‘‘आप पर भी रातदिन सफाई का भूत सवार रहता है. मेरी कोई चीज मत छेड़ा करो, ये बात मैं ने लाख बार तो आप को समझाई होगी, पर…’’

सपना बोलती रही और शीला उसे नाराजगी भरे अंदाज में घूरती जा रही थीं. अब फाइल मिल गई, तो सपना औफिस समय से पहुंचने के लिए हड़बड़ी मचाने लगी.

उस के पास अब अपना लंच बौक्स तैयार करने का समय नहीं था.

तब शीला ने उसे सुनाना शुरू कर दिया, ‘‘देर तक सोओगी, तो कभी तुम्हारा कोई काम समय पर नहीं होगा. हर दूसरे दिन मुझे रसोई में घुस कर अकेले सब का लंच तैयार करना पड़ता है. अपनी जिम्मेदारियां कब ढंग से निभाना सीखोगी तुम बहू?’’

‘‘अगले जन्म में,’’ ऐसा चिड़ा सा जवाब दे सपना बिना लंच बौक्स लिए औफिस के लिए निकल पड़ी.

वह औफिस डेढ़ घंटा देर से पहुंची. फौरन ही उस के बैड मास्टर अनिल साहब का बुलावा आ गया.

‘‘साहब गुस्से में हैं. जरा संभल कर पेश आना,’’ चपरासी रामप्रसाद की यह चेतावनी सुन कर सपना की हालत खस्ता हो गईर्.

अनिल साहब ने 2 मिनट तक उस की तरफ देखा ही नहीं और एक

फाइल का अध्ययन करते रहे. सपना के दिल की धड़कनें टैंशन के मारे लगातार तेज होती चली गईं.

‘‘तुम्हारा आए दिन औफिस लेट आना नहीं चलेगा, सपना,’’ अनिल साहब ने नाराजगी भरे अंदाज में कहा. तो मैं उन्हें देखने चली गई थी, ‘‘सपना ने पिछली रात घर देर से पहुंचने का कारण यहां भी दोहरा दिया.

‘‘मुझे वजह मत बताइए प्लीज. आप को अपनी भाभी को देखने जाना जरूरी था, तो दोपहर बाद जातीं. स्कूल के नियमों का पालन न करना गलत बात है, सपना.’’

‘‘सौरी, सर.’’

‘‘आप हर बार ‘सौरी’ कह कर नहीं छूट सकती हैं.’’ अनिल साहब भड़क उठे, ‘‘पिछले मंडे आप गायब ही हो गई थीं और फोन भी नहीं किया आप ने स्कूल में. देर से आना तो रोज की बात है आप के लिए. ऐसे काम नहीं चलेगा.’’

‘‘मैं आगे से सही समय पर आऊंगी सर.’’

‘‘आप को नौकरी करनी है तो टाइम से आइए, नहीं तो छोड़ दीजिए नौकरी. आप की लापरवाही से हम सब को परेशानी होती है.’’

‘‘आई एम सौरी, सर.’’

‘‘और जो स्टूडैंट रिपोर्ट आप को कल तक तैयार करनी थी वह कहां है?’’

‘‘उसे मैं आज जरूर बना दूंगी, सर.’’

‘‘सपना, क्या तुम कोई काम वक्त पर और सही ढंग से कर के नहीं दे सकती हो.’’

‘‘सर, काम का बोझ कभीकभी ज्यादा होता है, तो कुछ काम पैंडिग छोड़ना पड़ता है. मैं सारा काम कंप्लीट कर लूंगी आज सर.’’

‘‘क्या स्पोर्ट्स इंसैंटिव की फाइल मिल

गई है?’’

‘‘ अभी तक नहीं. वह मुझ तक आई होती, तो मेरी अलमारी में ही होती सर.’’

‘‘वह फाइल आप की पक्की सहेली रितु की क्लास की टेबल पर रखी मिली है, सपना. इस में कोई शक नहीं कि तुम ने ही उसे वहां छोड़ा और न जाने डांटे किसकिस को खानी पड़ी तुम्हारी इस लापरवाही के कारण.’’

‘‘आई एम सौरी…’’

‘‘मुझे तुम्हारी सौरी नहीं, अच्छा काम चाहिए, सपना. मैं तुम्हें इस रितु के साथ स्कूल टाइम में बेकार की गपशप करते अब बिलकुल न देखूं.’’

‘‘ओके सर.’’

‘‘आप को इस स्कूल से हर महीने अच्छी पगार मिलती है, इसलिए यह जरूरी है कि आप यहां दिल लगा कर मेहनत करें.’’

‘‘मैं करूंगी सर.’’

‘‘अच्छी नौकरी प्राइवेट स्कूलों में आसानी से नहीं मिलती है.’’

‘‘जी.’’

‘‘मेरा इशारा समझ रही हैं न, आप?’’

‘‘आगे मैं आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी, सर.’’

‘‘गुड, ये फाइले ले जाइए,’’ अनिल साहब ने अपनी मेज पर रखी फाइलों के छोटे से ढेर की तरफ इशारा किया.

हड़बड़ाई सपना ने उस को उठाया तो एक फाइल फिसल गई.

फाइल मेज पर रखे पानी के गिलास से टकराई और पानी मेज पर फैलने लगा.

‘‘आई एम सो सौरी सर… सो सौरी,’’ सपना ने गट्ठर मेज पर रखा और अपने रूमाल से ही पानी पोंछने के काम में बड़ी तत्परता से लग गई.

वह फाइलों का गट्ठर ठीक से नहीं रख पाई थी. उस का संतुलन बिगड़ा और सारी फाइलें गिर कर फर्श पर फैल गईं.

सपना को मारे घबराहट के ठंडा पसीना आ गया, ‘‘आई एम बेरी सौरी, सर…’’ इसी वाक्य को रोआंसी आवाज में बारबार दोहराती. वह मेज को ठीकठाक करने के काम में 2 मिनट तक जुटी रही.

‘‘यू मस्ट इंप्रूव सपना. मैं तुम्हारे काम और व्यवहार से बहुत नाखुश हूं,’’ अनिल साहब ने यह चेतावनी दे कर उसे बाहर भेज दिया.

आधा दिन सपना का मूड उदास रहा. स्कूल इंटरवल के बाद मन हलका करने को उसे अनिल साहब पर गुस्सा आने लगा. रितु के पास जाने की उस की हिम्मत नहीं हुई, सो वह उन्हें बड़बड़ाते हुए अपनी सीट पर बैठी खरीखोटी सुनाती रही.

स्कूल खत्म होने पर रवि उसे लेने आया. उसे पूरे 1 घंटे तक इंतजार करना पड़ा क्योंकि सपना को अपना काम निबटाने के लिए इतनी देर तक सीट पर बैठना पड़ा.

वह बड़ी खुंदक से भरी स्कूल से बाहर आई. गेट के पास रवि कार में बैठा उस का इंतजार कर रहा था.

सपना कार के पास पहुंची तो एक मरियल सा कुत्ता उसे दरवाजे के पास बैठा नजर आया. अचानक उस ने अपने ऊपर से नियंत्रण खोया और एक जोरदार किक उस कुत्ते को जमा दी.

कुत्ता कूंकूं करता उठा, तो उस की आवाज से उत्तेजित हो एक ताकतवर कुत्ता, जो अपने मालिक के साथ शाम की सैर पर निकला था, उस कुत्ते की तरफ लड़ने को झपटा.

उस कुत्ते के तेवर देख कर सपना की जान सूख गई. उस ने बिजली की फूरती से कार का दरवाजा खोला और तुरंत कार में बैठ गई.

उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ती देख रवि ने हंस कर कहा, ‘‘वो चेन से बंधा था, डियर. तुम्हें काट नहीं सकता था वह इसलिए, बेकार डरो मत.’’

‘‘मुझे कुत्तों से बड़ा डर लगता है,’’ सपना ने मुसकराने का असफल सा प्रयास किया.

‘‘उस मरियल कुत्ते को फिर तुम ने जोरदार किक कैसे मार दी?’’

सपना ने फौरन कोई जवाब नहीं दिया. कुछ देर वह सोच में डूबी रही और फिर अचानक मंदमंद अंदाज में मुसकराने लगी.

यह पावर गेम है. घर में सास अपनी पावर दिखाना चाहती है तो बहू अपनी घर में

सास की जरा सी आलोचना सुनने पर उस ताकतवर कुत्ते की तरह गुर्राने वाले दफ्तर में बौस की झिड़की पर मरियल कुत्ते की तरह कूंकूं करने लगती है. अगर बौस से छुटकारा पाने के लिए नौकरी नहीं छोड़ी जा सकती तो सास की फटकार सुनने पर अलग होने की खोखली धमकी क्यों दी जाए. सपना को पावर गेम का एहसास हो गया था. उसे लगा उस के मन पर से टनों बोझ उतर गया है.

‘‘क्यों मुसकरा रही हो?’’ रवि ने फौरन उत्सुकता दर्शाई.

‘‘तुम नहीं समझोंगे. कार बाजार में से ले कर चलना,’’ सपना की मुसकान रहस्यमयी सी हो गई.

‘‘कुछ खरीदना है?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या?’’

‘‘एक फूलों का गुलदस्ता और गरमगरम जलेबियां.’’

‘‘गुलदस्ता किस के लिए लेना है?’’

‘‘मम्मी के लिए और जलेबियां भी. वही तो सब से ज्यादा शौक से खाती हैं.’’

‘‘तुम मम्मी को गुलदस्ता भेंट करोगी?’’ रवि हैरान हो उठा, ‘‘उन से तो तुम्हारी बिलकुल नहीं पटती है.’’

‘‘वैसी नोकझोंक तो हम सासबहू दोनों का  मनोरंजन होती है जनाब.’’

उन्होंने मुझे बराबर की लड़नेझगड़ने की छूट दे रखी है, मैं आज इसीलिए उन्हें धन्यवाद दूंगी फूलों का गुलदस्ता भेंट कर के और गरमगरम जलेबियां खिला कर, सपना की आवाज एकाएक बेहद कोमल और भावुक हो उठी.

रवि जबरदस्त उलझन का शिकार बना नजर आ रहा था. उसे सासबहू के बीच हुई रात व सुबह की तकरार का दृश्य पूरी तरह से याद था. कुछ ही घंटों में सपना के अंदर इतना बदलाव क्यों और कैसे आ गया है यह बात उसे कतई समझ में नहीं आ रही थी.

‘‘हम सासबहू के बीच जो गेम चलता है उसे समझने की कोशिश आप नहीं करें तो बेहतर है, जनाब,’’ सपना ने प्यार से रवि के गाल पर चिकोटी काटी और फिर प्रसन्न हो कर देर तक जोर से हंसती रही.

Thug Life : 70 साल के कमल हासन ने 28 साल छोटी तृषा कृष्णन के साथ किया इंटिमेट सीन

Thug Life : हाल ही में कमल हासन अभिनीत और मणि रत्नम निर्देशित फिल्म ठग लाइफ का ट्रेलर लौन्च संपन्न हुआ. फिल्म का ट्रेलर काफी छोटा था जिसमें फिल्म की कहानी को छुपाने की पूरी कोशिश की गई. लेकिन इस फिल्म के ट्रेलर को देखने के बाद कमल हसन ट्रोलर्स के निशाने पर आ गए. क्योंकि ठग लाइफ के इस छोटे से ट्रेलर में 70 वर्षीय कमल हासन अपने से 28 साल छोटी 42 वर्षीय त्रिशा कृष्णन के साथ इंटिमेट सीन और किसिंग सीन करते नजर आए.

इसके बाद कई लोगों ने कमेंट करना शुरू कर दिया कि कमल हासन अपनी बेटी की उम्र के हीरोइन के साथ इंटिमेट सीन करते अच्छे नहीं लग रहे. हालांकि ठग लाइफ के ट्रेलर ने तृषा कृष्णन के साथ रोमांस की वजह से दर्शकों का ध्यान और आलोचना दोनों अपनी तरफ खींच लिया. 28 वर्षीय त्रिशा कृष्णन के अनुसार उनको इस आलोचना से फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उनको पहले से पता था ऐसी प्रतिक्रिया मिलने वाली है. ठग लाइफ हिंदी और तमिल भाषा में बन रही है जो एक एक्शन गैंगस्टर पर आधारित ड्रामा फिल्म है.

इस फिल्म का संगीत ए आर रहमान ने दिया है  और सिनेमाटोग्राफी रवि के चंद्रन की है. कमल हासन और मणि रत्नम इससे पहले फिल्म नायकन में एक साथ आए थे. नायकन के बाद कमल हासन की मणि रत्नम के साथ ठग लाइफ दूसरी फिल्म है. इस फिल्म में कमल हासन किसिंग और इंटिमेट सीन के अलावा जबरदस्त एक्शन करते भी नजर आए हैं. ठग लाइफ से पहले कमल हासन की बिग बजट फिल्म इंडियन 2 रिलीज हुई थी जो बौक्स औफिस पर कमाल नहीं दिखा पाई. अब कमल हासन की ठग लाइफ फिल्म 5 जून 2025 को आईमैक्स और EPIQ में दुनिया भर में रिलीज होगी.

Mobile Lovers : क्यों खतरे में है युवा पीढ़ी

Mobile Lovers : आज का युवा वर्ग इंटरनैट और मोबाइल प्रेम के चलते दिमागी तौर पर इतना ज्यादा कुंद होता जा रहा है कि उसे पता ही नहीं चल रहा कि उस का पूरा शरीर स्थिर होता जा रहा है और सिर्फ उंगलियां ही काम कर रही हैं यानि चल रही हैं, वह भी सिर्फ मोबाइल पर क्योंकि मोबाइल चलाने के लिए उंगलियों का इस्तेमाल करना ही जरूरी होता है. फिर भले ही पूरा शरीर एक जगह स्थिर ही क्यों न पड़ा रहे.

यों देखा जाए तो गलती आज के युवा वर्ग की भी उतनी नहीं है क्योंकि आज के युवा वर्ग को बचपन से ही हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया गया है. बचपन में मां कुछ समय के लिए ही सही अपनी जान बचाने के लिए 2-3 साल के बच्चे के हाथ में मोबाइल पकड़ा देती है, ताकि वह बच्चा कार्टून देख कर या वीडियोगेम खेल कर कुछ समय के लिए ही सही शांत रहे, ताकि उस की मां अपना घर का कुछ काम कर पाएं या शांति से कुछ समय के लिए खुद भी मोबाइल पर रील्स या कुछ और मनोरंजन वाली चीजें देख पाएं.

उस के बाद वही बच्चा जब स्कूल जाता है तो स्कूल टीचर अपनी जान छुड़ाने के लिए बच्चों का सारा होमवर्क और स्कूल संबंधित बाकी सारे कार्य मोबाइल के व्हाट्सऐप के जरीए पेरैंट्स को दे देती हैं ताकि टीचर को खुद 1-1 बच्चे के मांबाप को बुला कर या बच्चे को खुद से होमवर्क समझाना न पड़े.

स्कूल भी कम जिम्मेदार नहीं

आजकल नामीगिरामी स्कूल ने बच्चों के लिए मोबाइल अनिवार्य कर दिया है ताकि मोबाइल का सहारा ले कर स्कूल वाले अपना काम आसानी से कर पाएं. एक समय था जब स्कूल में मोबाइल लाने की बिलकुल भी अनुमति नहीं थी लेकिन अब बड़ेबड़े स्कूलों में मोबाइल लाना अनिवार्य हो गया है क्योंकि स्कूल के टीचर मेहनत नहीं करना चाहते बल्कि मोबाइल के जरीए अपना काम आसानी से करना चाहते हैं.

कई नामीगिरामी स्कूलों में तो आर्टिफिशियल इंटेलिजैंस का इस्तेमाल विषय के तौर पर किया जा रहा है, जो कोई भी उम्र का बच्चा, बूढ़ा, जवान बिना किसी कानूनी रोकटोक के इस टेक्नोलौजी को इस्तेमाल कर सकता है। स्कूल वालों ने इस टेक्नोलौजी का फायदा उठाने के चक्कर में स्कूलों में एआई (AI) को विषय बना कर शामिल कर दिया लेकिन उन को नहीं पता आज के समय में एआई का इस्तेमाल आपराधिक गतिविधियों वाले मामलों के लिए ज्यादा किया जा रहा है. आजकल आएदिन सनसनीखेज घटनाएं सामने आ रही हैं जिस में एआई का इस्तेमाल कर के कम उम्र लड़कियों को, व्यवसाय से जुड़े लोगों को और व्यक्तिगत तौर पर एआई का सहारा ले कर अपराध को अंजाम दिया जा रहा है.

मोबाइल जरूरी या किताबें

क्या स्कूल के टीचर्स और मांबाप इस बात से आगाह हैं कि बच्चे एआई का गलत इस्तेमाल भी कर सकते हैं या मोबाइल पर कोई ऐसी चीजें भी देख सकते हैं जो बच्चों के दिमाग के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है?

दरअसल, स्कूल में हर तरह के बच्चे होते हैं। कई शैतान बच्चे होते हैं तो कुछ ज्यादा ही तेज दिमाग वाले भी होते हैं तो कई बहुत भोलेभाले भी, जिन को एआई का इस्तेमाल कर के आराम से परेशान किया जा सकता है। कई ऐसे शैतान बच्चे भी स्कूलों में होते हैं जो बिना सोचेसमझे अंजाम की परवाह किए बिना एआई का गलत इस्तेमाल कर सकते हैं, जो सिर्फ उन बच्चों के लिए ही नहीं दूसरे बच्चों के लिए भी हानिकारक साबित हो सकता है.

मोबाइल का गुलाम

बचपन से जवानी तक आतेआते युवा वर्ग कब इंटरनैट मोबाइल का गुलाम बन जाता है यह खुद उस को ही पता नहीं चलता. हालात तो यहां तक है कि अगर 1 घंटे के लिए या आधे घंटे के लिए इंटरनैट और मोबाइल बंद हो जाएं तो सब ऐसे घबरा जाते हैं, बेचैन हो जाते हैं जैसे मोबाइल के बिना अब वे सांस ही नहीं ले पाएंगे क्योंकि अब इंसान दिमाग से ज्यादा, शारीरिक मेहनत से ज्यादा मोबाइल पर निर्भर हो गया है।

इसलिए अगर कुछ समय के लिए भी मोबाइल बंद हो जाए तो इंसान अपनेआप को अपाहिज महसूस करने लगता है.

पहले हमें कुछ फोन नंबर याद रहते थे जो हमारे घर के और औफिस के खास नंबर होते थे, क्योंकि यह नंबर हम हमेशा डायल करते रहते थे, इसलिए यह सारे नंबर हमारे दिमाग में फिट हो जाते थे। आज मोबाइल युग में जबकि हर नंबर नाम के साथ सेव होता है इसलिए हमें कोई भी नंबर याद नहीं रहता. आज कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें अपने घर के खास सदस्यों के नंबर याद हैं? क्योंकि सारे नंबर मोबाइल में फीड रहते हैं इसलिए कोई भी नंबर याद रखने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

ऐसी ही कई सारी चीजे हैं जो पहले हमारे दिमाग में बसी होती थीं और हम कभी भी नहीं भूलते थे.

कहने का मतलब यह है कि जैसेजैसे टेक्नोलौजी बढ़ रही है, चीजें आसान हो रही हैं, वैसेवैसे हम मशीन के गुलाम बनते जा रहे हैं. हमारे दिमाग को धीरेधीरे जंग लग रहा है. खासतौर पर युवा वर्ग जो पहले शारीरिक कसरत करता था फुटबौल, कबड्डी क्रिकेट जैसे आउटडोर गेम खेलने के लिए शारीरिक मेहनत करता था, शतरंज के खेल के जरीए दिमाग को तेज करता था, अब वही युवा वर्ग पर्सनल और प्रोफैशनल कामों के लिए सिर्फ और सिर्फ मोबाइल पर ही निर्भर रहता है। अगर गेम भी खेलते हैं तो वह भी मोबाइल पर ही खेलते हैं.

अश्लीलता

इस के अलावा मोबाइल में कई सारी ऐसी नैतिकअनैतिक, सैक्सी नग्नता भरी चीजें लड़केलड़कियों के मोबाइल में रहती हैं कि भूलेभटके अगर किसी लड़के या लड़की से उन का मोबाइल खोलने के लिए पासवर्ड मांग ले तो उन की सांस ही रुक जाती है.

देश में वैसे ही बेरोजगारी और बेकारी का माहौल चल रहा है। करोना के चलते कई सारे नवयुवक पढ़ाई में भी पीछे हो गए हैं, जिन के पास नौकरी है वह भी खतरे में ही है। ऐसे में, देश का युवा वर्ग जो भारत का भविष्य है वह आधे से ज्यादा समय मोबाइल में मनोरंजनपूर्ण सामग्री देखने में बिता देता है। जब से व्हाट्सऐप और फेसबुक की शुरुआत हुई है, तभी से हमारे देश की नई पीढ़ी इसी में अपना टाइम बरबाद करने में जुटी है. अब तो ऐसे कई ऐप्स आ गए हैं.

लड़कियां कम से कम खूबसूरत दिखने के लिए, पैसे कमाने के लिए जतन करती हैं। भले ही वे फिर इंस्टाग्राम के लिए रील्स बनाएं या अपनी कोई और खूबी को इंटरनैट के जरीए लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करें, लड़कियां पैसा कमाने के लिए कम से कम इतना मेहनत तो करती हैं और मोबाइल भी कम समय तक ही इस्तेमाल करती हैं.

लङकों से आगे लङकियां

संघर्ष से गुजरती इन लड़कियों में अपनेआप को साबित करने की और पैसा कमा कर अच्छी जिंदगी जीने की ललक होती है. तभी ग्लैमर वर्ल्ड हो, या मिलिट्री और एअरफोर्स हो, कई जगहों पर युवतियां लङकों से आगे चल रही हैं, क्योंकि जहां कई सारे लड़के मनोरंजन के लिए मोबाइल में घुसे रहते हैं, वहीं लड़कियां मेहनत और संघर्ष से हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं.

सच बात तो यह है कि कोई भी टेक्नोलौजी जो देश के विकास के लिए बनाई गई है, वह बुरी नहीं होती बशर्ते आप उस का इस्तेमाल सही तरीके से और सही कामों में करें.

एक तरफ चीन जहां हमारे देश में कोविड जैसी खतरनाक बीमारी फैला कर तरक्की कर रहा है, वहीं हमारे देश के नवयुवक हिंदूमुसलमान जैसी नकारात्मक बातों को सोशल मीडिया पर प्रचार कर के देश को और खुद को कई सालों पीछे ले जा रहा है. नकारात्मक विचारों का हिस्सा बन कर अपनेआप को भी बरबादी की ओर भी ले जा रहा है.

कहने का मतलब यही है आप मशीन और टेक्नोलौजी का फायदा उठाते हुए उस को अपना गुलाम बनाएं। अपने फायदे के लिए उस का इस्तेमाल करें, न कि खुद मोबाइल और टेक्नोलौजी नामक मशीन का गुलाम बन जाएं और ऐसी टेक्नोलौजी पर निर्भर हो कर खुद ही जिंदा लाश बन कर रह जाए.

अभी भी वक्त है, मोबाइल और इंटरनैट की दुनिया से बाहर निकलें और अपना भविष्य संवारने के लिए आगे बढ़ें.

Melasma Treatment : चुरा न ले जिंदगी के रंग

Melasma Treatment : प्रियंका जब प्रैगनैंट हुई तो बेहद खुश थी. यह उस की जिंदगी के सब से खूबसूरत लमहे थे. मगर जैसेजैसे प्रैगनैंसी का सफर आगे बढ़ रहा था वैसेवैसे प्रियंका के चेहरे पर मेलास्मा के धब्बे इधरउधर नजर आने लगे थे. उस ने तो सुना और पढ़ा था कि मां बनने के समय औरत की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं मगर वह तो कुछ और ही अनुभव कर रही.

डाक्टर ने प्रियंका से कहा, ‘‘ये प्रैगनैंसी मास्क हैं जो बच्चा होने के बाद चले जाएंगे.’’

नियत समय पर प्रियंका ने एक खूबसूरत परी को जन्म दिया मगर मेलास्मा के धब्बे ज्यों के त्यों बने रहे. हरकोई प्रियंका के गोरे रंग पर पड़े मेलास्मा के धब्बो के बारे में पूछता. इस कारण प्रियंका का आत्मविश्वास इतना कम हो गया कि वह घर से बाहर निकलने से भी कतराने लगी. मेलास्मा के धब्बे उस के लिए इतने अधिक कड़वे अनुभव हैं कि वह दोबारा मां नहीं बनना चाहती.

अंशु भी इसी दौर से गुजर रही थी मगर उस का कारण प्रैगनैंसी नहीं, पेरीमेनोपौज था. अंशु ने आलू का जूस लगाना शुरू कर दिया था मगर कोई असर नहीं दिखाई दे रहा था. मेलास्मा को ले कर अंशु इतनी अधिक परेशान हो गई कि लेजर भी करवा लिया मगर चंद माह के बाद फिर धब्बे लौट आए.

लोग मजाक में अंशु से कह भी देते, ‘‘अंशु, ये तो ऐजिंग के साइन हैं. कहां तक इलाज करवाओगी?’’

चमकतादमकता चेहरा एक ऐसी मृगमरीचका है जिस के पीछे रातदिन लड़कियां भागती रहती हैं. ऐक्ने के लिए तो फिर भी आजकल काफी असरकारक इलाज है मगर मेलास्मा के साथ युद्ध करने के लिए आप को दवा, एक अच्छे डाक्टरी परामर्श के साथसाथ ढेर सारा धीरज और सैल्फ लव चाहिए.

मेलास्मा के निदान को जानने से पहले यह जानना भी जरूरी है कि मेलास्मा जीवन के कौनकौन से पड़ाव पर हो सकता है?

शौधों से पता चला है कि मेलास्मा त्वचा का एक ऐसा विकार है जिस की अवधि थोड़ी लंबी चलती है. कुछकुछ केसेज में अगर ठीक से रखरखाव न किया जाए तो यह साथी उम्रभर आप का साथ निभाता है.

मेलास्मा 90त्न महिलाओं और 10त्न पुरुषों में देखने को मिलता है. महिलाओ में ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोन के कारण मेलास्मा अधिक पाया जाता है.

महिलाओं में थायराइड ग्रंथि के विकार भी अधिक पाए जाते हैं. जो महिलाएं लंबे समय तक थायराइड से पीडि़त रहती हैं उन में भी मेलास्मा होने का चांस अधिक रहता है.

अगर आप के परिवार में आप की नानी, दादी, मां, बूआ, मौसी को मेलास्मा था तो आप की जिंदगी में यह आसानी से प्रवेश कर सकता है. जी हां यह वंशानुगत भी हो सकता है. बढ़ती उम्र में  मेनोपौज के दौरान कोलोजन के लौस के कारण महिलाओं की त्वचा पतली हो जाती है जिस कारण सूर्य की पैराबैगनी किरणें त्वचा को आसानी से हानि पहुंचा सकती हैं और इसी कारण  मेलास्मा महिलाओं के चेहरे को बेरौनक कर देता है. मेलास्मा से जीतने के लिए एक ही चाबी सब से अधिक जरूरी है. वह है सनस्क्रीन लगाएं लगातार, बारबार.

इस के अलावा मेलास्मा के लिए सब से अधिक जरूरी है आप जो भी रूटीन फौलो कर रहे हैं उस में निरंतरता बना कर रखें. मेलास्मा का ट्रीटमैंट है मगर कोई शौर्टकट नही है. अगर आप इस दुश्मन को अपने जीवन से सदा के लिए भगाना चाहती हैं तो इन चंद बातों का ध्यान अवश्य रखें. यकीन मानिए अगर आप निरंतरता बनाए रखेंगी तो 5-6 माह के भीतर ये धब्बे हलके भी हो जाएंगे और नए धब्बे भी चेहरे पर नहीं आएंगे:

घरेलू नुसखों से न होगा फायदा: आलू का जूस, ऐलोवेरा जैल, बेसन, चावल के आटे का पैक और भी न जाने कैसेकैसे पैक आप को सजैस्ट किए जाएंगे. इन्हें लगाने से आप की त्वचा को कोई नुकसान नहीं होगा मगर आप के जिद्दी दुश्मन मेलास्मा पर कोई असर भी नहीं होगा.

सनस्क्रीन है मेलास्मा के लिए संजीवनी बूटी: सनस्क्रीन मेलास्मा के लिए एक संजीवनी बूटी का काम करता हैं. मगर अधिकतर महिलाएं सनस्क्त्रीन को अपने रूटीन में कोई जगह नहीं देती हैं. वे फाउंडेशन, कंसीलर और भी न जाने कौनकौन से प्रोडक्ट अपने चेहरे पर लगा लेती हैं मगर सनस्क्रीन को कोई अहमियत नहीं देती हैं. याद रखिए आप कोई भी पौकेट फ्रैंडली सनस्क्रीन यूज कर सकती हैं. अगर टिंटेड सनस्क्रीन यूज करेंगी तो आप को डबल फायदा होगा. आप को फाउंडेशन लगाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी और मेलास्मा के धब्बों को भी कवरेज मिल जाएगी. सनस्क्रीन बस दिन में एक बार नहीं हर 4 घंटे बाद लगाना आवश्यक है. अगर आप को मेलास्मा के बढ़ते कदमों को रोकना है तो सनस्क्रीन को अपने जीवन का अनिवार्य अंग बना लें.

एजियलिक ऐसिड और आर्बुटिन हैं बेहद जरूरी: एजियालिक ऐसिड और अल्फा अरबुटिन युक्त किसी भी क्रीम को आप दिन में पूरे चेहरे पर डौटडौट कर के लगा सकती हैं. ये दोनों ही माइल्ड स्किन लाइटनिंग एजेंट हैं. इस के निरंतर उपयोग से आप के मेलास्मा के धब्बे अवश्य हलके हो जाएंगे. मगर किसी भी मैडिकेटेड क्रीम का उपयोग करने से पहले आप बांहों पर पैच टैस्ट अवश्य कर लें.

नियासिनमाइड से दोस्ती भी जरूरी: किसी भी स्किन लाइटनिंग क्रीम के बाद नियासिनमाइड सीरम की 4 बूंदें आप के मेलास्मा पर डबल असरदार होंगी.

रैटिनौल है एक अचूक बाण: रात के समय रैटिनौल युक्त क्रीम अगर आप लगाती हैं तो यह मेलास्मा के साथसाथ आप की फाइनलाइंस पर भी असर करेगी. अगर आप पहली बार रैटिनौल को अपनी स्किन केयर में यूज कर रही हैं तो किसी भी ब्रैंड के माइल्ड रैटिनौल से शुरुआत करें. रोज इस्तेमाल न कर के पहले हफ्ते में 2 बार फिर 3 बार और फिर हर रोज कर सकती हैं. अगर स्किन में कोई रिएक्शन न हो तो आप इसे हर रात ताउम्र इस्तेमाल कर सकती हैं. यह एक सस्ती क्रीम है जो मेलास्मा, ऐक्ने मार्क्स, फाइनलाइंस और पिगमैंटेशन सब पर असरकारक है. याद रहे रैटिनौल बेस्ड क्रीम का इस्तेमाल दिन में भूल कर भी न करें.

लेयरिंग करें ध्यान से: स्किन केयर में लेयरिंग को ठीक से करना बेहद जरूरी है. अगर आप कोई सीरम यूज करती हैं तो सब से पहले उसे साफ चेहरे पर लगाएं. किसी भी सीरम की बस 4 बूंदें काफी हैं. सीरम को रगड़ कर नहीं थपथपा कर लगाएं. सीरम के बाद ट्रीटमैंट क्रीम वह भी डौटडौट कर के पूरे चेहरे पर लगाना अवश्य है, केवल मेलास्मा पर नहीं. इस के बाद मौइस्चर और सब से आखिर में 3 उंगलियां भर कर सनस्क्रीन, अगर टिंटेड होगा तो आप को प्रोटैक्शन के साथसाथ कलर भी देगा.

मौइस्चर के हैं अनेक फायदे: मेलास्मा के उपचार के लिए जो भी ट्रीटमैंट क्रीम है वह आप के चेहरे को थोड़ा ड्राई कर देती है. इसलिए फेस मौइस्चर लगाना बेहद जरूरी है. इस से आप के चेहरे पर नमी बनी रहेगी.

औरेंज और रैड कंसीलर से भरें जिंदगी में रंग: जब तक हमारा ट्रीटमैंट चल रहा हैं क्यों न औरेंज और रैड कंसीलर की मदद से हम मेलास्मा को गायब कर दें? किस रंग का कंसीलर चलेगा यह मेलास्मा के रंग और आप की त्वचा के रंग पर निर्भर करेगा. याद रखिए कंसीलर को थोपिए मत, थोड़ा साथ ही बहुत है. मगर आप को जो भी मेकअप करना है वह सारी ट्रीटमैंट क्रीम के बाद करना है और सनस्क्रीन को आप को अवश्य लगाना है.

सतत प्रयास ही हैं मेलास्मा की चाबी:

अपनेआप को प्यार करना न छोडि़ए. मेलास्मा हो या कोई और विकार आप की खूबसूरती बस त्वचा तक ही सीमित नहीं है. खुद की संभाल ठीक से करिए चाहे आप किसी भी आयुवर्ग की हों. मेलास्मा बुढ़ापे की निशानी नहीं, हमारी लापरवाही की निशानी है.

मेलास्मा से हार न मानें

मेलास्मा त्वचा का एक विकार है जिसे आप निरंतर प्रयास के बाद ही कंट्रोल कर सकती हैं. लेजर ट्रीटमैंट से कुछ दिनों के लिए ये गायब हो जाता है मगर लेजर के बाद एक तो हमारी स्किन पतली और सैंसिटिव हो जाती है जिस से सूर्य की किरणों का हमारी त्वचा पर पहले से भी अधिक प्रभाव पड़ता है दूसरा बहुत बार औरतें सनस्क्रीन लगाने में लापरवाही बरतती हैं जिस के कारण लेजर के बाद भी मेलास्मा वापस आ जाता है.

बताई गई ये सभी मैडिकेटेड क्रीम्स हालांकि काफी असरदायक हैं मगर अगर आप की त्वचा संवेदनशील है या आप ने कभी इन उत्पादों का प्रयोग नहीं किया है तो डर्मैटोलौजिस्ट की सलाह एक बार अवश्य ले लें और हां सारे इनग्रीडिऐंट्स को एकसाथ रूटीन में न लाएं अगर अब तक आप ने कुछ नहीं किया है तो पहले दिन का रूटीन धीरेधीरे फौलो करें और फिर रात के रूटीन को फौलो करें. सनस्क्रीन को अगर इस्तेमाल कर रही हैं तो बहुत अच्छा है और अगर नहीं तो फटाफट कोई भी अपनी पसंद का सनस्क्रीन खरीद लीजिए.

RJs to Influencers: रेडियो से रील तक, आरजे कैसे बन रहे हैं डिजिटल स्टार

RJs to Influencers: रेडियो की वेव्स से ले कर सोशल मीडिया की दुनिया तक में भारत के कई जानेमाने आरजे एंट्री ले चुके हैं. रेडियो की दुनिया में अपना करिश्मा दिखाने के बाद अब ये इन्फ्लुएंसर्स डिजिटल प्लेटफौर्म पर भी अपना जलवा बिखेर रहे हैं. इन आरजे ने वाकई अपनी खूबियों का भरपूर लाभ उठाया है, जैसे कि अच्छी भाषाशैली, बेहतरीन प्रेजेंटेशन स्किल्स. सोशल मीडिया पर इन के बड़े पैमाने पर फैनफौलोइंग इस का सुबूत हैं. इन में से कुछ के फौलोअर्स तो फिल्मी सितारों से भी ज्यादा हैं. कौन हैं ये रेडियो जौकी से बने इन्फ्लुएंसर्स, आइए जानते हैं:

आरजे करिश्मा- आरजे करिश्मा कौमेडी कंटैंट के लिए जानी जाती हैं. वे अपने वीडियोज में कई किरदार एकसाथ निभाती हैं. उन के हर वीडियो पर भारीभरकम व्यूज आते हैं.

आरजे अभिनव- अभिनव चंद, जिन्हें फैंस आरजे अभिनव के नाम से जानते हैं, ने इंस्टाग्राम पर कंटैंट क्रिएशन के पौपुलर होने से बहुत पहले ही कौमेडी वीडियो बनाना शुरू कर दिया था.  वह कांस फिल्म फैस्टिवल में रेड कार्पेट पर चलने वाले भारत के पहले कौमेडी कंटेंट क्रिएटर हैं.

आरजे शोनाली- आरजे शोनाली अपने रिलेटेबल कंटैंट और पोएट्री के लिए सोशल मीडिया पर मिलेनियल और जेनजी जेनरेशन के बीच काफी पौपुलर हैं. हालांकि, वे अब भी रेडियो जौकी की जौब कर रही हैं.

आरजे महवश- आरजे महवश सोशल मीडिया पर प्रैंक वीडियो के लिए जानी जाती हैं. महवश ने रेडियो मिर्ची 98.3 एफएम से अपने कैरियर की शुरुआत की थी. वे अब फिल्म प्रोड्यूसर भी बन चुकी हैं.

आरजे प्रिंसी पारेख- प्रिंसी की जबरदस्त शायरी लोगों को काफी रिलेटेबल लगी, जिस की बदौलत आज वे इन्फ्लुएंसर्स की टौप लिस्ट में शामिल हो चुकी हैं.

आरजे किसना- ‘कड़क लौंडे किसना’ के नाम से फेमस आरजे किसना ने 12-13 साल रेडियो जौकी के तौर पर काम किया, फिर वे इंस्टाग्राम पर इंफ्लुएंसर बने और अब उन्होंने ऐक्टिंग में भी डैब्यू कर लिया है.

आरजे आशीष शर्मा- आशीष ने रेडियो पर ‘कड़क लौंडे’ और ‘किश्त आशीष की’ नाम से कई सफल शो किए. अब वे डिजिटल दुनिया में रिलेटेबेल कंटैंट बनाने लगे हैं, जहां उन की अच्छीखासी फैनफौलोइंग है.

Foods Of Rajsthan : गट्टे की सब्जी से लेकर कढ़ी तक, राजस्थानी जायके की है जबरदस्त स्वाद

Foods Of Rajsthan : राजस्थान की मिट्टी सरसों, बाजरा, गेहूं, तिलहन आदि की जननी है और भारतवर्ष में कई उपजें ऐसी हैं जो सर्वाधिक राजस्थान में ही उगाई जाती हैं. इन सब चीजों से राजस्थान में तरहतरह के व्यंजन बनाए जाते हैं.

देशविदेशी सैलानियों का विशेष आकर्षण केवल यहां के पर्यटन स्थल ही नहीं हैं यहां का खाना भी इस की संस्कृति का विशेष भाग है जिस के लगाव से पर्यटक यहां के लजीज खाने का लुत्फ उठाते हैं.

वैसे तो बहुत सारे खाने प्रसिद्ध हैं पर कुछ खाने विशेष रूप से यहां की पैदाइश हैं. मुख्य राजस्थानी खानों में भुजिया, सांगरी, दालबांटी चूरमा, दाल की पूरी, मालपुआ, घेवर, हलदी की सब्जी, बीकानेर का रसगुल्ला, पटोर की सब्जी, बाजरे की रोटी, पंचकूट की सब्जी, गट्टे की सब्जी आदि आते हैं. मावे की कचौरी और मिर्ची बहुत ही प्रसिद्ध है.

कुछ खाने ऐसे हैं जो अलग प्रकार से बनाए जाते हैं. कैर सांगरी की सब्जी स्वाद में अलग, बनाने में अनोखी. राजस्थानी जायके के साथ मौसम के अनुकूल कैर सांगरी की सब्जी बहुत ही अच्छी होती है. इस सब्जी की सब से बड़ी विशेषता यह है कि यह 3-4 दिन तक खराब नहीं होती है. राजस्थानी संस्कृति के विशेष त्योहार शीतला अष्टमी पर इसे मुख्य तौर पर बनाया जाता है.

जबरदस्त स्वाद

गट्टे की सब्जी बेसन से बनती है जो हर घर में मिल ही जाता है. बड़ी मोटी सेव, टमाटर की सब्जी, मिर्ची के टिपोरे, राजस्थान की कड़ी, हलदी की सब्जी, चक्की की सब्जी, गुलाबजामुन की सब्जी ऐसी सब्जियां हैं जिन के लिए हरी सब्जियों की नहीं अपितु बनी हुई सामग्री से सब्जी बनानी होती है.

मीठे में राजस्थानी बालूशाही, घेवर, मावे की कचौरी, ब्यावर की तिलपट्टी, मलाई घेवर, बीकानेर रसगुल्ला,चमचम, अलवर का मावा बहुत अधिक प्रसिद्ध हैं.

इन सब का स्वाद तो ऐसा है कि मुंह में जाते ही घुल जाए. वही यहां का चूरमा दाल बाटी बहुत प्रसिद्ध है और राजस्थानी थाली का सर्वाधिक मुख्य भाग है. यहां के गेहूं के आटे का चूरमा, बाजरे का चूरमा साथ में दालबांटी की खुशबू यहां की संस्कृति को बेहद सुगंधित बनाती है और उस में लगने वाला देशी घी का छौंक, बाटी का घी वाह क्या बात है, बन गया बेहतरीन खाना. यही तो है राजस्थानी खाना और उस की संस्कृति.

पुष्कर के मालपुए, नसीराबाद का कचौरा और अजमेर की कड़ीकचौर, किसकिस सब अनोखे हैं. यहां के घेवर खासकर मलाई घेवर के आगे विदेशी केक भी कुछ नहीं.

गुड़ और बाजरे की रोटी सर्दियों के मुख्य आहारों में से एक हैं, सर्दियों में यहां बाजरे की खिचड़ी और मकई का दलिया भी बनाया जाता है.

राजस्थान के कुछ शहर वहां के कुछ स्थानीय व्यंजनों के लिए जाने और पहचाने जाते हैं.

गुलाबी नगरी के जायके

गुलाबी नगरी यानी जयपुर का दालबांटी चूरमा बहुत ही प्रसिद्ध है. यह व्यंजन जयपुर में आप को हर जगह मिलेगा लेकिन विरासत रेस्तरां आदि की बात ही अलग है. जहां तक घेवर की बात है तो यह भी पूरे राजस्थान में मिल जाता है लेकिन सब से ज्यादा जायकेदार लक्ष्मी मिष्टान्न भंडार यानी एलएमबी जोकि जयपुर में जौहरी बाजार में स्थित है वहां मिलता है.

घेवर कई प्रकार के होते हैं जैसेकि सादा घेवर, मावे वाला घेवर, मलाई वाला घेवर, जयपुर का रावत मिष्ठान्न भंडार अपनी मिठाई के लिए प्रसिद्ध है. यहां अलगअलग प्रकार की मिठाइयों का लुत्फ लिया जा सकता है. विशेष तौर पर यहां की प्याज की कचौरी की तो बात ही अलग है.

जयपुर की तरह जोधपुर भी अपने व्यंजनों के लिए अच्छाखासा प्रसिद्ध है. सब से पहले यहां की मखनिया लस्सी की बात करते हैं जो छाछ का एक मलाईदार मिश्रण है जिस में मेवा, केसर, गुलाबजल आदि सामग्री मिलाई जाती है. इस के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान है श्री मिश्रीलाल होटल, क्लौक टावर के पास सिर्फ, जोधपुर. मिर्चीबड़ा भी जोधपुर का बेहद प्रसिद्ध व्यंजन है जोकि गरम चाय के साथ अच्छा नाश्ता है.

यह अकसर टमाटर सौस और हरी चटनी के साथ परोसा जाता है. इस के लिए रौयल समोसा नामक जगह प्रसिद्ध है. जोधपुर की गुलाबजामुन की सब्जी, मावे की कचौरी, कैर सांगरी की सब्जी, हलदी और चक्की की सब्जी आदि प्रसिद्ध हैं.

मिठाइयों में तो गुलाब हलवा बहुत ही जानीपहचानी डिश है. यह शुद्ध देशी घी एवं पिश्ते से बना एक पोषक युक्त हलवा है. इस के लिए गुलाब हलवा वाला, थ्री बी रोड, सरदारपुरा प्रसिद्ध है.

मशहूर है बीकानेर

बीकानेर भी अपनी व्यंजनों की खासीयत के लिए प्रसिद्ध शहर है. यहां का मीठा और स्पंजी रसगुल्ला एक अलग पहचान रखता है. यहां अलगअलग प्रकार के रसगुल्ले मिलते हैं. यह व्यंजन आप को 56 भोग नामक स्थान पर जायकेदार मिलेगा. बीकानेर भुजिया भी जानापहचाना व्यंजन है. पूरे देश में यह अपनी अलग पहचान रखती है. यों तो शहर में आप जहां भी जाएंगे यह मिल जाएगी लेकिन छोटीमोटी जोशी मिठाई की दुकान पर जा कर इस का स्वाद चख तो देखिए आप को मजा आ जाएगा.

अलवर का मिल्क केक, गट्टे की सब्जी, अलअजीज रेस्तरां, शालीमार गेट के पास,भगवानपुरा, अलवर से ले सकते हैं, वहीं मिल्क केक के लिए ठाकुर दास एंड संस की दुकान बहुत लोकप्रिय है. विविध भोजन का आनंद लेने हेतु मोती डूंगरी बस टर्मिनल के पास काफी अच्छे भोजनालय हैं जहां आप भोजन का मजा ले सकते हैं.

लाजवाब शाकाहारी भोजन

जैसलमेर में भी कि देशविदेश के पर्यटक बहुतायत में आते हैं. तो यदि आप राजस्थानी थाली की तलाश में हैं तो प्लेस व्यू रेस्तरां में जाएं. यहां की मखनिया लस्सी के लिए कंचन श्री प्रसिद्ध है. यहां के घोटुआं लड्डू मशहूर हैं. मिठाइयां विशेष रूप से घोटुआं लड्डू के लिए धनराज रावल भाटिया की मिठाई की दुकान प्रसिद्ध है.

चित्तौड़गढ़ अपने किलों, पर्यटन स्थलों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. ऐतिहासिक तौर पर समृद्ध शहर है. यहां का स्थानीय खाना चखने का मजा आप अपने पर्यटन के दौरान ले सकते हैं. यहां का अरावली हिल रिजोर्ट शाकाहारी भोजन करने वालों की पसंदीदा जगह है. पारंपरिक भोजन अलग ही नवीनता लिए हुए है आप यहां पर नवीन और पारंपरिक भोजनों का अलग ही तालमेल देख सकते हैं.

यह रिजोर्ट उदयपुरकोटा राजमार्ग, सर्किल, किले के पीछे सेमलपुरा, चित्तौड़गढ़ पर स्थित है. राजसी रिजोर्ट अपनी पाक कला के लिए जाना जाता है. यह प्रामाणिक राजस्थानी व्यंजन बनाने के लिए मशहूर है. यहां का घेवर जरूर चखना चाहिए.

बेहतरीन अनुभव

राजस्थान का माउंट आबू एक अच्छा हिल स्टेशन है. यहां पर एक डिश कीचुचु विशेष रूप से प्रसिद्ध है जो चावल के आटे से बना नाश्ता है. माउंटआबू के गट्टे की खिचड़ी प्रसिद्ध है. जोधपुर भोजनालय टैक्सी स्टैंड पर माउंटआबू में यह आप को आसानी से मिल सकती है. राजस्थानी बाजरे की रोटी के लिए बिना यहां का स्वाद अधूरा है और अंबिका रेस्तरां, नक्की  झील लहसुन की चटनी और गुड़ के साथ इस प्रोटीन युक्त आहार का स्वाद लेने के लिए प्रसिद्ध है.

आबू चाट जंक्शन पर सब्जी मंडी, माउंटआबू पर आटे दूध और खीर से बनी मिठाई मालपुआ को चखा जा सकता है. इस के अलावा सांगरी की सब्जी अर्बुदा रेस्तरां माउंटआबू में खा सकते हैं, यह सब्जी रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाने वाली बेहतरीन सब्जियों में से एक है. तो राजस्थान आ कर यहां का खाना खा कर आप को यकीनन नैसर्गिक आनंद का अनुभव होगा.

-रितुप्रिया शर्मा

Open Pores के कारण मेकअप खराब लगता है, मैं क्या करूं?

Open Pores :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक

सवाल-

मेरे चेहरे पर छोटेछोटे ओपन पोर्स हैं जिन की वजह से मेकअप करना बहुत खराब लगता है. मेकअप उन के अंदर चला जाता है जो बहुत खराब दिखाई देता है. कोई उपाय बताएं?

जवाब-

ओपन पोर्स को कम करने के लिए हफ्ते में एक बार इस पैक को लगाएं. इस से आप को फायदा होगा- आप 2 बड़े चम्मच कुनकुना पानी ले. उस में एक डिस्प्रिन की गोली डाल दें और 1 बड़ा चम्मच चावल का आटा मिला लें. इस पैक को फेस पर लगा कर 1/2 घंटा लगाएं रखें और फिर धो लें.

ऐसा हफ्ते में 2 बार करने से 2-3 महीनों में आप को रिजल्ट नजर आने लग जाएगा. हर रात को विटामिन ई के कैप्सूल को फोड़ कर उस से हलकी मसाज करें. इस से भी फायदा होगा. अगर इस से फायदा न हो तो किसी अच्छे क्लीनिक में जा कर लेजर यंग स्किन मास्क की फिटिंग ले ले. इलास्टिन मास्क भी पोर्स को कम करने में फायदा देता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Fiction Stories : कागज का रिश्ता – क्या परिवार का शक दूर हुआ

Hindi Fiction Stories : ‘‘यह लो भाभी, तुम्हारा पत्र,’’ राकेश ने मुसकराते हुए गुलाबी रंग के पत्र को विभा की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

सर्दियों की गुनगुनी धूप में बाहर आंगन में बैठी विमला देवी ने बहू के हाथों में पत्र देखा तो बोलीं, ‘‘किस का पत्र है?’’

‘‘मेरे एक मित्र का पत्र है, मांजी,’’ कहते हुए विभा पत्र ले कर अपने कमरे में दाखिल हो गई तो राकेश अपनी मां के पास पड़ी कुरसी पर आ बैठा.

कालेज में पढ़ने वाला नौजवान हर बात पर गौर करने लगा था. साधारण सी घटना को भी राकेश संदेह की नजर से देखनेपरखने लगा था. यों तो विभा के पत्र अकसर आते रहते थे, पर उस दिन जिस महकमुसकान के साथ उस ने वह पत्र देवर के हाथ से लिया था, उसे देख कर राकेश की निगाह में संदेह का बादल उमड़ आया.

‘‘राकेश बेटा, उमा की कोई चिट्ठी नहीं आती. लड़की की राजीखुशी का तो पता करना ही चाहिए,’’ विमला देवी अपनी लड़की के लिए चिंतित हो उठी थीं.

‘‘मां, उमा को भी तो यहां से कोई पत्र नहीं लिखता. वह बेचारी कब तक पत्र डालती रहे?’’ राकेश ने भाभी के कमरे की तरफ देखते हुए कहा. उधर से आती किसी गजल के मधुर स्वर ने राकेश की बात को वहीं तक सीमित कर दिया.

‘‘पर बहू तो अकसर डाकखाने जाती है,’’ विमला देवी ने कहा.

‘‘आप की बहू अपने मित्रों को पत्र डालने जाती हैं मां, अपनी ननद को नहीं. जिन्हें यह पत्र डालने जाती हैं उन की लगातार चिट्ठियां आती रहती हैं. अब देखो, इस पिछले पंद्रह दिनों में उन के पास यह दूसरा गुलाबी लिफाफा आया है,’’ राकेश ने तनिक गंभीरता से कहा.

‘‘बहू के इन मित्रों के बारे में मुकेश को तो पता होगा,’’ इस बार विमला देवी भी सशंकित हो उठी थीं. यों उन्हें अपनी बहू से कोई शिकायत नहीं थी. वह सुंदर, सुघड़ और मेहनती थी. नएनए पकवान बनाने और सब को आग्रह से खिलाने पर ही वह संतोष मानती थी. सब के सुखदुख में तो वह ऐसे घुलमिल जाती जैसे वे उस के अपने ही सुखदुख हों. घर के सदस्यों की रुचि का वह पूरा ध्यान रखती.

इन पत्रों के सिलसिले ने विमला देवी के माथे पर अनायास ही बल डाल दिए. उन्होंने राकेश से पूछा, ‘‘पत्र कहां से आया है?’’

राकेश कंधे उचका कर बोला, ‘‘मुझे क्या मालूम? भाभी के किसी ‘पैन फ्रैंड’ का पत्र है.’’

‘‘ऐं, यह ‘पैन फ्रैंड’ क्या चीज होती है?’’ विमला देवी ने खोजी निगाहों से बेटे की तरफ देखा.

‘‘मां, पैन फ्रैंड यानी कि पत्र मित्र,’’ राकेश ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, जब मुकेश छोटा था तब वह भी बाल पत्रिकाओं से बच्चों के पते ढूंढ़ढूंढ़ कर पत्र मित्र बनाया करता था और उन्हें पत्र भेजा करता था,’’ विमला देवी ने याद करते हुए कहा.

‘‘बचपन के औपचारिक पत्र मित्र समय के साथसाथ छूटते चले जाते हैं. भाभी की तरह उन के लगातार पत्र नहीं आते,’’ कहते हुए राकेश ने बाहर की राह ली और विमला देवी अकेली आंगन में बैठी रह गईं.

सर्दियों के गुनगुने दिन धूप ढलते ही बीत जाते हैं. विभा ने जब तक चायनाश्ते के बरतन समेटे, सांझ ढल चुकी थी. वह फिर रात का खाना बनाने में व्यस्त हो गई. मुकेश को बढि़या खाना खाने का शौक भी था और वह दफ्तर से लौट कर जल्दी ही रात का खाना खाने का आदी भी था.

दफ्तर से लौटते ही मुकेश ने विभा को बुला कर कहा, ‘‘सुनो, आज दफ्तर में तुम्हारे भैयाभाभी का फोन आया था. वे लोग परसों अहमदाबाद लौट रहे हैं, कल उन्होंने तुम्हें बुलाया है.’’

‘‘अच्छा,’’ विभा ने मुकेश के हाथ से कोट ले कर अलमारी में टांगते हुए कहा.

अगले दिन सुबह मुकेश को दफ्तर भेज कर विभा अपने भैयाभाभी से मिलने तिलक नगर चली गई. वे दक्षिण भारत घूम कर लौटे थे और घर के सदस्यों के लिए तरहतरह के उपहार लाए थे. विभा अपने लिए लाई गई मैसूर जार्जेट की साड़ी देख कर खिल उठी थी.

विभा की मां को अचानक कुछ याद आया. वे अपनी मेज पर रखी चिट्ठियों में से एक कार्ड निकाल कर विभा को देते हुए बोलीं, ‘‘यह तेरे नाम का एक कार्ड आया था.’’

‘‘किस का कार्ड है?’’ विभा की भाभी शीला ने कार्ड की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘मेरे एक मित्र का कार्ड है, भाभी. नव वर्ष, दीवाली, होली, जन्मदिन आदि पर हम लोग कार्ड भेज कर एकदूसरे को बधाई देते हैं,’’ विभा ने कार्ड पढ़ते हुए कहा.

‘‘कभी मुलाकात भी होती है इन मित्रों से?’’ शीला भाभी ने तनिक सोचते हुए कहा.

‘‘कभी आमनेसामने तो मुलाकात नहीं हुई, न ऐसी जरूरत ही महसूस हुई,’’ विभा ने सहज भाव से कार्ड देखते हुए उत्तर दिया.

‘‘तुम्हारे पास ससुराल में भी ऐसे बधाई कार्ड पहुंचते हैं?’’ शीला ने अगला प्रश्न किया.

‘‘हांहां, वहां भी मेरे कार्ड आते हैं,’’ विभा ने तनिक उत्साह से बताया.

‘‘क्या मुकेश भाई भी तुम्हारे इन पत्र मित्रों के बधाई कार्ड देखते हैं?’’ इस बार शीला भाभी ने सीधा सवाल किया.

‘‘क्यों? ऐसी क्या गलत बात है इन बधाई कार्डों में?’’ प्रत्युत्तर में विभा का स्वर भी बदल गया था.

‘‘अब तुम विवाहिता हो विभा और विवाहित जीवन में ये बातें कोई महत्त्व नहीं रखतीं. मैं मानती हूं कि तुम्हारा तनमन निर्मल है, लेकिन पतिपत्नी का रिश्ता बहुत नाजुक होता है. अगर इस रिश्ते में एक बार शक का बीज पनप

गया तो सारा जीवन अपनी सफाई देते हुए ही नष्ट हो जाता है. इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम यह पत्र मित्रता अब यहीं खत्म कर दो,’’ शीला ने समझाते हुए कहा.

‘‘भाभी, तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम लोग यह बधाई कार्ड सिर्फ एक दोस्त की हैसियत से भेजते हैं. इतनी साधारण सी बात मुकेश और मेरे बीच में शक का कारण बन सकती है, मैं ऐसा नहीं मानती,’’ विभा तुनक कर बोली.

शाम ढल रही थी और विभा को घर लौटना था, इसलिए चर्चा वहीं खत्म हो गई. विभा अपना उपहार ले कर खुशीखुशी ससुराल लौट आई.

लगभग पूरा महीना सर्दी की चपेट में ठंड से ठिठुरते हुए कब बीत गया, कुछ पता ही न चला. गरमी की दस्तक देती एक दोपहर में जब विभा नहा कर अपने कमरे में आई तो देखा, मुकेश का चेहरा कुछ उतरा हुआ सा है. वह मुसकरा कर अपनी साड़ी का पल्ला हवा में लहराते हुए बोली, ‘‘सुनिए.’’

विभा की आवाज सुन कर मुकेश ने उस की तरफ पलट कर देखा. विभा ने मुकेश की दी हुई गुलाबी साड़ी पहन रखी थी. उस पर गुलाबी रंग खिलता भी खूब था. कोई और दिन होता तो

मुकेश की धमनियों में आग सी दौड़ने लगती, पर उस समय वह बिलकुल खामोश था.

चिंता की गहरी लकीरें उस के माथे पर स्पष्ट उभर आई थीं. उस ने एक गुलाबी लिफाफा अपनी पत्नी के आगे रखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा पत्र आया है.’’

‘‘मेरा पत्र,’’ विभा ने आगे बढ़ कर वह पत्र अपने हाथ में उठाया और चहक कर बोली, ‘‘अरे, यह तो मोहन का पत्र है.’’

मुसकरा कर विभा वह पत्र खोल कर पढ़ने लगी. उस के चेहरे पर इंद्रधनुषी रंग थिरकने लगे थे.

मुकेश पत्नी पर एक दृष्टि फेंक कर सिगरेट सुलगाते हुए बोला, ‘‘यह मोहन कौन है?’’

‘‘मेरे पत्र मित्रों में सब से अधिक स्नेहशील और आकर्षक,’’ विभा पत्र पढ़तेपढ़ते ही बोली.

विभा पत्र पढ़ती रही और मुकेश चोर निगाहों से पत्नी को देखता रहा. पत्र पढ़ कर विभा ने दराज में डाल दिया और फिल्मी धुन गुनगुनाती हुई ड्रैसिंग टेबल के आईने में अपनी छवि निहारते हुए बाल संवारती रही.

मुकेश ने घड़ी में समय देखा और विभा से बोला, ‘‘आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’

‘‘खाना तो लगभग तैयार है,’’ कहते हुए विभा रसोई की तरफ चल दी. जब रसोई से बरतनों की उठापटक की आवाज आनी शुरू हो गई तो मुकेश ने दराज से वह पत्र निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया.

हिमाचल के चंबा जिले के किसी गांव से आया वह पत्र पर्वतीय संस्कृति की झांकी प्रस्तुत करता हुआ, विभा को सपरिवार वहां आ कर कुछ दिन रहने का निमंत्रण दे रहा था.

विभा के द्वारा भेजे गए नए साल के बधाई कार्ड और पूछे गए कुछ प्रश्नों के उत्तर भी उस पत्र में दिए गए थे. पत्र की भाषा लुभावनी और लिखावट सुंदर थी.

विभा ने मेज पर खाना लगा दिया था. पूरा परिवार भोजन करने बैठ चुका था, पर मुकेश न जाने क्यों उदास सा था. राकेश बराबर में बैठा लगातार अपने भैया के मर्म को समझने की कोशिश कर रहा था. उसे अपनी भाभी पर रहरह कर क्रोध आ रहा था.

राकेश ने मटरपनीर का डोंगा भैया के आगे सरकाते हुए कहा, ‘‘आप ने मटरपनीर की सब्जी तो ली ही नहीं. देखिए तो, कितनी स्वादिष्ठ है.’’

‘‘ऐं, हांहां,’’ कहते हुए मुकेश ने राकेश के हाथ से डोंगा ले लिया, पर वह बेदिली से ही खाना खाता रहा.

मुकेश की स्थिति देख कर राकेश ने निश्चय किया कि वह इस बार भाभी के नाम आया कोई भी पत्र मुकेश के ही हाथों में देगा. जितनी जल्दी हो सके, इन पत्रों का रहस्य भैया के आगे खुलना ही चाहिए.

राकेश के हृदय में बनी योजना ने साकार होने में अधिक समय नहीं लिया. एक दोपहर जब वह अपने मित्र के यहां मिलने जा रहा था, उसे डाकिया घर के बाहर ही मिल गया. वह अन्य पत्रों के साथ विभा भाभी का गुलाबी लिफाफा भी अपनी जेब के हवाले करते हुए बाहर निकल गया.

राकेश जब घर लौटा तब मुकेश घर पहुंच चुका था. भाभी रसोई में थीं और मांजी बरामदे में बैठी रेडियो सुन रही थीं. राकेश ने अपनी जेब से 3-4 चिट्ठियां निकाल कर मुकेश के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘भैया, शायद एक पत्र आप के दफ्तर का है और एक उमा दीदी का है. यह पत्र शायद भाभी का है. मैं सतीश के घर जा रहा था कि डाकिया रास्ते में ही मिल गया.’’

‘‘ओह, अच्छाअच्छा,’’ मुकेश ने पत्र हाथ में लेते हुए कहा. अपने दफ्तर का पत्र उस ने दफ्तरी कागजों में रख लिया और उमा का पत्र घर में सब को पढ़ कर सुना दिया. विभा के नाम से आया पत्र उस ने तकिए के नीचे रख दिया.

रात को कामकाज निबटा कर विभा लौटी तो मुकेश ने गुलाबी लिफाफा उसे थमाते हुए कहा, ‘‘यह लो, तुम्हारा पत्र.’’

‘‘मेरा पत्र, इस समय?’’ विभा ने आश्चर्य से कहा.

‘‘आया तो यह दोपहर की डाक से था, जब मैं दफ्तर में था. लेकिन अभी तक यह आप के देवर की जेब में था,’’ मुकेश ने पत्नी की तरफ देखते हुए कहा.

विभा ने मुसकरा कर वह पत्र खोला और पढ़ने लगी. शायद पत्र में कोई ऐसी बात लिखी थी, जिसे पढ़ कर वह खिलखिला कर हंस पड़ी. मुकेश ने इस बार पलट कर पूछा, ‘‘मोहन का
पत्र है?’’

‘‘हां, लेकिन आप ने कैसे जान लिया?’’ विभा ने हंसतेहंसते ही पूछा.

‘‘लिफाफे को देख कर. कुछ और बताओगी इन महाशय के बारे में?’’ मुकेश ने पलंग पर बैठते हुए कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. मोहन एक सुंदर नवयुवक है. उस का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक है. मुझे तो उस की शरारती आंखों की मुसकराहट बहुत भाती है,’’ विभा ने सहज भाव से कहा पर मुकेश शक और ईर्ष्या की आग में जल उठा.

मुकेश ने फिर पत्नी से कोई बात नहीं की और मुंह फेर कर लेट गया. विभा ने एक बार मुकेश की पीठ को सहलाया भी, पर पति का एकदम ठंडापन देख कर वह फिर नींद की आगोश में डूब गई.

घरगृहस्थी की गाड़ी ठीक पहले जैसी ही चलती रही पर मुकेश का स्वभाव और व्यवहार दिनोंदिन बदलता चला गया. अब अकसर वह देर रात घर लौटता. पति के इंतजार में भूखी बैठी विभा से वह ‘बाहर से खाना खा कर आया हूं’ कह कर सीधे अपने कमरे में घुस जाता. मांजी और राकेश भी मुकेश का व्यवहार देख कर परेशान थे. मुकेश और विभा के बीच धीरेधीरे एक ठंडापन पसरने लगा था. दोनों के बीच वार्त्तालाप भी अब बहुत संक्षिप्त होता था. मुकेश अब अगर दफ्तर से समय पर घर लौट भी आता तो सिगरेट पर सिगरेट फूंकता रहता.

आखिर एक शाम विभा ने मुकेश के हाथ से सिगरेट छीनते हुए तुनक कर कहा, ‘‘आप मुझे देखते ही नजरें क्यों फेर लेते हैं? क्या अब मैं सुंदर नहीं रही?’’

मुकेश ने विभा की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘आप किस सोच में डूबे रहते हैं? देखती हूं, आप आजकल सिगरेट ज्यादा ही पीने लगे हैं. बताइए न?’’ विभा की आंखों में आंसू भर आए.

‘‘तुम तो उतनी ही सुंदर हो जितनी शादी के समय थीं, पर मैं न तो मोहन की तरह सुंदर हूं न ही बलिष्ठ. न मैं उस की तरह योग्य हूं न आकर्षक,’’ मुकेश ने रूखे स्वर में जवाब दिया.

‘‘यह क्या कह रहे हैं आप?’’

‘‘मैं अब तुम्हें साफसाफ बता देना चाहता हूं कि अब मैं तुम्हारे साथ अधिक दिनों तक नहीं निभा सकता. मैं बहुत जल्दी ही तुम्हें आजाद करने की सोच रहा हूं जिस से तुम मोहन के पास आसानी से जा सको,’’ मुकेश ने अत्यंत ठंडे स्वर से कहा.

‘‘यह क्या कह रहे हैं आप?’’ विभा घबरा कर बोली. उसे लगा, संदेह के एक नन्हे कीड़े ने उस के दांपत्य की गहरी जड़ों को क्षणभर में कुतर डाला है.

‘‘मैं वही सच कह रहा हूं जो तुम नहीं कह सकीं और छिप कर प्रेम का नाटक खेलती रहीं,’’ अब मुकेश के स्वर में कड़वाहट घुल गई थी.

‘‘ऐसा मत कहिए. मोहन सिर्फ मेरा पत्र मित्र है और कुछ नहीं. मेरे मन में आप के प्रति गहरी निष्ठा है. आप मुझ पर शक कर रहे हैं,’’ कहते हुए विभा की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

‘‘तुम चाहे अब अपनी कितनी भी सफाई क्यों न दो लेकिन मैं यह नहीं मान सकता कि मोहन तुम्हारा केवल पत्र मित्र है. कौन पति यह सहन कर सकता है कि उस की पत्नी को कोई पराया मर्द प्रेमपत्र भेजता रहे,’’ मुकेश का स्वर अब नफरत में बदलने लगा था.

‘‘आप पत्र पढ़ कर देख लीजिए, यह कोई प्रेमपत्र नहीं है,’’ विभा ने जल्दी से मोहन का पत्र दराज से निकाल कर मुकेश के आगे रखते हुए कहा.

‘‘यह पत्र अब तुम अपने भविष्य के लिए संभाल कर रखो,’’ मुकेश ने मोहन का पत्र विभा के मुंह पर फेंकते हुए कहा.

‘‘तुम जानते नहीं हो मुकेश, मेरी दोस्ती सिर्फ कागज के पत्रों तक ही सीमित है. मेरा मोहन से ऐसावैसा कोई संबंध नहीं है. अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं?’’ विभा अब सचमुच रोने लगी थी.

‘‘तुम मुझे क्या समझाओगी? शादी के बाद भी तुम्हारी आंखों में मोहन का रूप बसता रहा. तुम्हारे हृदय में उस के लिए हिलोरें उठती हैं. मैं इतना बुद्धू नहीं हूं, समझीं,’’ मुकेश पलंग से उठ कर सोफे पर जा लेटा.

विभा देर तक सुबकती रही.

अगली सुबह मुकेश कुछ जल्दी ही उठ गया. जब तक विभा अपनी आंखों को मलते हुए उठी तब तक तो वह जाने के लिए तैयार भी हो चुका था. विभा ने आश्चर्य से घड़ी की तरफ देखा, 8 बज रहे थे. विभा घबरा कर जल्दी से रसोई में पहुंची. वह मुकेश के लिए नाश्ता बना कर लाई, परंतु वह जा चुका था.

विभा मुकेश को दूर तक जाते हुए देखती रही, नाश्ते की प्लेट अब तक उस के हाथों में थी.

‘‘क्या हुआ, बहू?’’ दरवाजे के बाहर खड़ी उस की सास ने भीतर आते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं, मांजी,’’ विभा ने सास से आंसू छिपाते हुए कहा.

‘‘मुकेश क्या नाश्ता नहीं कर के गया?’’ उन्होंने विभा के हाथ में प्लेट देख कर पूछा.

‘‘जल्दी में चले गए,’’ कहते हुए विभा रसोई की तरफ मुड़ गई.

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी कि आदमी घर से भूखा ही चला जाए. मैं देख रही हूं, तुम दोनों में कई दिनों से कुछ तनाव चल रहा है. बात बढ़ने से पहले ही निबटा लेनी चाहिए, बहू. इसी में समझदारी है.’’

शाम को मुकेश दफ्तर से लौटा तो मां ने उसे अपने समीप बैठाते हुए कहा, ‘‘मुकेश, आजकल इतनी देर से क्यों लौटता है?’’

‘‘मां, दफ्तर में आजकल काम कुछ ज्यादा ही रहता है.’’

‘‘आजकल तू उदास भी रहता है.’’

‘‘नहींनहीं, मां,’’ मुकेश ने बनावटी हंसी हंसते हुए कहा.

‘‘आज कोई पुरानी फिल्म डीवीडी पर लगाना,’’ मां ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए मुकेश उठ कर अपने कमरे में चला गया.

दिनभर के थके और भूख से बेहाल हुए मुकेश ने जैसे ही कमरे की बत्ती जलाई, उसे अपने बिस्तर पर शादी का अलबम नजर आया. कपड़े उतारने को बढ़े हाथ अनायास ही अलबम की तरफ बढ़ गए. वह अलबम देखने बैठ गया. हंसीठिठोली, मानमनुहार, रिश्तेदारों की चुहलभरी बातें एक बार फिर मन में ताजा हो उठीं. तभी विभा ने चाय का प्याला आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लीजिए.’’

मुकेश का गुस्सा अभी भी नाक पर चढ़ा था, पर उस ने पत्नी के हाथ से चाय का प्याला ले लिया. विभा फिर रसोईघर में चली गई.

मुकेश जब तक हाथमुंह धो कर बाथरूम से निकला, परिवार रात के खाने के लिए मेज पर बैठ चुका था. विमला देवी ने बेटे को पुकारा, ‘‘मुकेश, आओ बेटे, सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

कुरसी पर बैठते हुए मुकेश सामान्य होने का प्रयत्न कर रहा था, पर उस का रूखापन छिपाए नहीं छिप रहा था. सभी भोजन करने लगे तो विमला देवी बोलीं, ‘‘आज मुकेश जल्दीजल्दी में नाश्ता छोड़ गया तो विभा ने भी पूरे दिन कुछ नहीं खाया.’’

‘‘पतिव्रता स्त्रियों की तरह,’’ राकेश ने शरारत से हंसते हुए कहा.

विमला देवी भी मुसकराती रहीं, पर मुकेश चुपचाप खाना खाता रहा. गरम रोटियां सब की थालियों में परोसते हुए विभा ने यह तो जान लिया था कि मुकेश बारबार उस को आंख के कोने से देख रहा है, जैसे कुछ कहना चाहता हो, पर शब्द न मिल रहे हों.

रात में बिस्तर पर बैठते हुए विभा बोली, ‘‘देखिए, मेरे दिल में कोई ऐसीवैसी बात नहीं है. हां, आज तक मैं अपने बरसों पुराने पत्र मित्रों के पत्रों को सहज रूप में ही लेती रही. मेरे समझने में यह भूल अवश्य हुई कि मैं ने कभी गंभीरता से इस विषय पर सोचा नहीं…’’

मुकेश चुपचाप दूसरी तरफ निगाहें फेरे बैठा रहा. विभा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘आज दिनभर मैं ने इस विषय पर गहराई से सोचा. मेरी एक साधारण सी भूल के कारण मेरा भविष्य एक खतरनाक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है. हम दोनों की सुखी गृहस्थी अलगाव की तरफ मुड़ गई है. मैं आज ही आप के सामने इन कागज के रिश्तों को खत्म किए देती हूं.’’

यह कहते हुए विभा ने बरसों से संजोया हुआ बधाई कार्डों व पत्रों का पुलिंदा चिंदीचिंदी कर के फाड़ दिया और मुकेश का हाथ अपने हाथ में लेते हुए धीरे से कहा, ‘‘मैं आप को बहुत प्यार करती हूं. मैं सिर्फ आप की हूं.’’

शक के कारण अपनत्व की धुंधली पड़ती छाया मुकेश की पलकों को गीला कर के उजली रोशनी दे गई. वह पत्नी के हाथ को दोनों हाथों में दबाते हुए बोला, ‘‘मुझे अब तुम से कोई शिकायत नहीं है, विभा. अच्छा हुआ जो तुम्हें अपनी गलती का एहसास समय रहते ही हो गया.’’

‘‘जो कुछ हम ने कहासुना, उसे भूल जाओ,’’ विभा ने पति के समीप आते हुए कहा.

‘‘मुझे गुस्सा तुम्हारी लापरवाही ने दिलाया. एक के बाद एक तुम्हारे पत्र आते चले गए और मेरी स्थिति अपने परिवार में गिरती चली गई. जरा सोचो, अगर घर के बुजुर्ग इन पत्रों को गलत नजरिए से देखने लगते तो परिवार में तुम्हारी क्या इज्जत रह जाती?’’ मुकेश ने धीमे स्वर में कहा.

विभा कुछ नहीं बोली. मुकेश ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा, ‘‘उस शाम जब राकेश ने तुम्हारा वह पत्र मेरे हाथों में दिया था तो तुम नहीं जानतीं, वह कैसी विचित्र निगाहों से तुम्हें ताक रहा था. वह लांछित दृष्टि मैं बरदाश्त नहीं कर सकता, विभा. हम ऐसा कोई काम करें ही क्यों जिस में हमारे साथसाथ दूसरों का भी सुखचैन खत्म हो जाए?’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं,’’ विभा ने इस बार मुकेश की आंखों में देखते हुए कहा. उस ने मन ही मन अपने पति का धन्यवाद किया. जिस तरह मुकेश ने भविष्य में होने वाली बदनामी से विभा को बचाया, यह सोच कर वह आत्मविभोर हो उठी. फिर लाइट बंद कर सुखद भविष्य की कल्पना में खो गई.

Online Hindi Story : टौनिक – पायल के अंदर क्यों थी हीन भावना

Online Hindi Story :  पायलबालकनी में खड़ी बारिश की बूंदों को निहार रही थी. मन ही मन खुद को कोस रही थी कि आज भी वह जयंत को ठीक से नाश्ता नही करा पाई. पायल बचपन से ही हर काम को परफैक्ट करना चाहती थी. अगर कोई काम उस से गलत हो जाता तो खुद को कोसना शुरू कर देती थी. पायल 42 वर्ष की सामान्य शक्ल सूरत की महिला थी. उसे अपनी बहुत सारी बातों से प्रौब्लम थी. उसे अपने रंग से ले कर बालों तक से प्रौब्लम थी.

आज पायल की सोसाइटी में तीज का फंक्शन था. सभी लेडीज बनठन कर गई थी. पायल ने भी अवसर के हिसाब से हरे रंग की शिफौन की साड़ी पहन रखी थी. मगर पायल खुद से संतुष्ट नहीं थी. उस ने देखा निधि 50 वर्ष की उम्र में भी 30 वर्ष की दिख रही हैं, वहीं पूजा की त्वचा एकदम कांच की तरह दमक रही है. चारू की आंखों के नीचे कोई काला घेरा नहीं है तो अंशु अपनी अदाओं से पूरी महफिल की जान बनी हुई हैं. उधर ऊर्जा अपनी जुल्फों को इधरउधर लहरा रही थी तो पायल अपने बालों पर शर्मिंदा हो रही थी.

कितने घने, मुलायम बाल थे उस के, मगर कुछ बच्चों के जन्म के बाद, कुछ मुंबई के पानी ने और रहीसही कसर हाइपोथायरायडिज्म ने पूरी कर दी थी. अपने झड़ू जैसे रूखे बालों को वह आइने में देखना ही नहीं चाहती थी. क्या कुसूर था उस का कि कुदरत ने सारी प्रौब्लम्स उस के ही नाम कर दी थीं.

तभी म्यूजिक आरंभ हो गया और सभी ब्यूटी स्टेज पर थिरकने लगी. पायल भी साड़ी संभालते हुए स्टेज पर थिरकने लगी, तभी पूजा उस के करीब आ कर बोली, ‘‘अरे पायल यह साड़ी पहन कर क्यों आई हो? कोई इंडोवैस्टर्न ड्रैस पहन कर आती तो तुम्हें नाचते हुए बिलकुल असुविधा नहीं होती.’’

पायल फीकी हंसी हंसते हुए बोली, ‘‘हां तुम इस क्रौपटौप और प्लाजो में बेहद स्मार्ट लग रही हो.’’

अचानक पायल की नजर सामने लगे आईने पर पड़ी. बिखरे बाल

और आंखों के नीचे काले घेरे, एकदम से पायल का मूड खराब हो गया.

नीचे आ कर उस ने जैसे ही कोल्डड्रिंक का गिलास उठाया कि तभी अंशु थिरकते हुए उस के करीब आई और बोली, ‘‘अरे पायल अगली बार साड़ी थोड़ी नीचे बांधना जैसे निधि ने बांधी हुई हैं, मगर थोड़ा सा पेट कम करो यार तुम अपना,’’ कह कर अंशु चली गई.

उस के बाद पायल वहां पर कुछ देर और बैठी रही, मगर उस का मन उड़ाउड़ा रहा.

घर आ कर सब से पहले उस ने अपने पति जयंत से पूछा, ‘‘कैसी लग रही हूं मैं?’’

जयंत उड़ती नजर उस पर डालते हुए बोला, ‘‘जैसी रोज लगती हो.’’

पायल बोली, ‘‘क्या तुम्हें लगता है मैं समय से पहले बूड़ी हो गई हूं?’’

जयंत चिढ़ते हुए बोला, ‘‘42 वर्ष की औरत बूढ़ी नहीं तो क्या जवान लगेगी?’’

‘‘अजीब हो तुम भी,’’ पायल रोतेरोते बोली और फिर उसी मनोस्थिति में उस ने खाना बनाया जो बेहद बेस्वाद था.

जयंत और बच्चों ने बड़ा बुरा मुंह बना कर खाना खाया. बेटी रिद्धिमा बोली, ‘‘निधि आंटी तो इतना अच्छा खाना बनाती है कि बस पूछो मत. एक आप हैं कि दाल भी ठीक से नहीं बना पाती हैं.’’

जयंत रूखे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारी मम्मी को रोने से ही फुरसत मिले तो ध्यान लगाए न खाने पर.’’

पायल बाथरूम में बंद हो गई और जोरजोर रोने लगी. जब कुछ मन हलका हुआ तो बाथरूम से बाहर निकली. जयंत पायल की लाललाल आंखें देख कर समझ गया कि आज वह फिर रोई है, मगर यह कोई नई बात नही है. जयंत पायल के करीब आ कर बोला, ‘‘आखिर कब तक पायल ये सब करती रहोगी? तुम जैसी हो, मुझे ठीक लगती हो.’’

पायल बोली, ‘‘बस ठीक ही लगती हूं न… जानती हूं औरों की तरह मैं खूबसूरत नही हूं और न ही स्मार्ट.’’

जयंत बिना कोई जवाब दिए अपने कमरे में चला गया.

पायल को बेहद घुटन हो रही थी. उसे लग रहा था कि वह खुल कर सांस नहीं ले पा रही है. उस ने चप्पलें डालीं और नीचे घूमने चली गई, घूमतेघूमते पायल बाहर निकल गई और सामने वाले पार्क में चली गई. हंसतेखिलखिलाते लोगों की भीड़ जमा थी पार्क में. कुछ दौड़ रहे थे, कुछ योगा कर रहे थे तो कुछ लोग घूम रहे थे. पायल ने खुद के कपड़े देखे, शायद ऐसे कपड़े पहन कर पार्क में आ गई थी बाकी सब लोग ट्रैक सूट या पैंट में थे.

पायल फिर से खुद को भलाबुरा कहने लगी. चलतेचलते पैरों में दर्द हो गया तो पायल बैठ गई. तभी एक 26-27 वर्ष का आकर्षक नौजवान आ कर पायल के बराबर में बैठ गया और बोला, ‘‘आप लगता है आज पहली बार घूमने आई हैं.’’

पायल को लगा कि उस ने अटपटे कपड़े पहन रखे हैं, इसलिए शायद यह लड़का ऐसे उस की खिल्ली उड़ा रहा है. फिर भी उस ने पूछा, ‘‘मेरे कपड़े देख कर पूछ रहे हो?’’

लड़का बोला, ‘‘अरे यह सूट तो आप पर एकदम फब रहा है. मैं तो यहां पर आने वाले हर खूबसूरत चेहरे की खबर रखता हूं. आप पहली बार दिखीं, इसलिए पूछ लिया.’’

पायल के होंठों पर बरबस मुसकान आ गई, ‘‘मेरे बारे में कह रहे हो?’’

लड़का बोला, ‘‘बाई दा वे मेरा नाम अकुल है, सामने वाले गुलमोहर गार्डन में रहता हूं्.’’

पायल बोली, ‘‘अरे मैं भी वहीं रहती हूं, मेरा नाम पायल है.’’

उस के बाद पायल वहां से उठ कर घूमने लगी. उस का मन फूल की तरह हलका हो उठा था. एक आकर्षक नौजवान ने आज उसे खूबसूरत बोला था. गुनगुनाते हुए वह घर पहुंची और सब के लिए मिल्क शेक बनाया.

जयंत हंसते हुए बोला, ‘‘ऐसे ही खुश रहा करो, बहुत अच्छी लगती हो.’’

अगले दिन पायल ने खुद ही जल्दीजल्दी डिनर बनाया और रात के डिनर के

बाद कदम खुदबखुद पार्क की ओर चल पड़े. अकुल अपने दोस्तों के साथ ऐक्सरसाइज कर रहा था. पायल ने भी घूमना शुरू कर दिया. तभी पीछे से अकुल की आवाज आई, ‘‘पायल एक मिनट रुको.’’

पायल को अकुल का पायल कहना थोड़ा अजीब, मगर अच्छा लगा.

अकुल पायल से बोला, ‘‘आप भी फिटनैस बैंड ले लीजिए, इस से आप को अपने गोल सैट करने आसान पड़ जाएंगे.’’

दोनों चलतेचलते बात कर रहे थे. देखते ही देखते 1 घंटा बीत गया. पायल को तब होश आया, जब उस के घर से बेटी का फोन आया, ‘‘मम्मी कितना घूमोगी? हम सब आप का वेट कर रहे हैं.’’

पायल और अकुल एकसाथ ही सोसाइटी

में वापस आ गए थे. अब यह रोज का नियम

हो गया था. पायल के आते ही अकुल अपने दोस्तों के गु्रप को बाय कह कर पायल के साथ घूमने लगता.

पायल और अकुल दोनों के बीच कुछ भी समान नहीं था इसलिए उन के पास ढेरों बातें होती थीं. अकुल बात करतेकरते पायल की कुछ ऐसी तारीफ कर देता कि पायल का अगला दिन बेहद अच्छा जाता.

पायल को जो तारीफ अपने पति से चाहिए होती थी वह उसे अब अकुल से मिल रही थी. अकुल पायल की जिंदगी में टौनिक का काम कर रहा था.

एक दिन अकुल पार्क नहीं आया, तो पायल बेहद

अनमनी सी रही. अगले दिन भी अकुल पार्क में नहीं आया तो पायल उस रात बिना घूमे ही घर लौट आई. घर आते ही पायल बिना किसी बात के अपने पति से उलझ पड़ी.

पायल रोज घूमने पार्क में जाती परंतु घूमने  से अधिक पायल की आंखें अकुल को ढूंढ़ती थीं. उस ने मन को समझ लिया था कि अब अकुल नहीं आएगा. दोनों ने ही एकदूसरे का नंबर भी नहीं लिया था. पायल और अकुल के बीच कोई गहरा रिश्ता न था, परंतु अकुल पायल के लिए टौनिक समान था. वह टौनिक जो उस की रुकीरुकी सी जिंदगी को चलाने में सहायक था.

पायल को फिर लगने लगा कि शायद उस से ही कुछ गलती हो गई होगी. कभी वह सोचती कि क्या पता अकुल उस से मजाक करता हो और वह बेवकूफ उसे सच मान बैठी. परंतु फिर भी रोज पायल न जाने क्यों पार्क जाती. उसे अब घूमने में मजा आने लगा था. उस ने अपने लिए ट्रैक सूट खरीद लिया था. अकुल को अब वह भूलने लगी थी.

एक दिन पायल घूम रही थी कि अचानक पीछे से आवाज आई, ‘‘हाय यंग लेडी.’’

पायल एकाएक मुड़ी तो देखा, अकुल खड़ा मुसकरा रहा था.

पायल रुखे स्वर में बोली, ‘‘कहां गायब हो गए थे.’’

अकुल बोला, ‘‘अपने होमटाउन चला

गया था.’’

पायल के मुंह से अचानक निकल गया, ‘‘पता है कितना मिस किया तुम्हें मैं ने.’’

अकुल शरारत से हंसता हुआ बोला, ‘‘वह क्यों भला? आखिर हम आप के हैं कौन?’’

पायल शरमा गई और बिना कुछ बोले वहां से चली गई. अब फिर से पायल की जिंदगी गुलजार हो गई थी.

एक दिन पायल का मूड बेहद खराब लग रहा था. अकुल बोला, ‘‘क्या हुआ पायल?’’

पायल रोनी सूरत बनाते हुए बोली, ‘‘पिछले

2 माह से मैं कितनी मेहनत कर रही हूं, मगर फिर भी मेरी स्किन, वेट पर कोई असर नहीं हो रहा है.’’

‘‘ठीक तो लग रही हैं आप, जैसे एक 40 वर्ष की महिला दिखती हैं?’’

पायल अकुल की तरफ देख कर मायूसी से बोली, ‘‘क्या मैं सच में 40 वर्ष की लगती हूं?’’

अकुल हैरान होते हुए बोला, ‘‘आप कितने वर्ष की दिखना चाहती हैं?’’

पायल बोली, ‘‘मगर तुम तो मुझे हमेशा यंग लेडी और ब्यूटीफुल और भी न जाने क्याक्या बोलते. सभी लड़के ऐसे ही होते हैं, पहले जयंत भी तुम्हारी तरह मेरी तारीफ करते थे और अब उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

अकुल हंसते हुए बोला, ‘‘आप को मेरी या जयंत की तारीफ की क्यों जरूरत है? अगर मैं कहूं आप 50 साल की लग रही हैं तो आप मान लेंगी और अगर मैं कहूं आप 20 वर्ष की लग रही हैं तो भी आप मान लेंगी?’’ आप की क्या अपनी कोई पहचान नहीं है या आप का अस्तित्व बस बाहरी खूबसूरती पर टिका हुआ है?’’

पायल कड़वे स्वर में बोली, ‘‘ये ज्ञान की बातें रहने दो, मगर जब दुनियाभर की कमियां तुम्हारे अंदर हों न तो तुम्हें मेरी बात समझ आएगी.’’

अकुल बोला, ‘‘आप गलत हैं पायल, आप कैसा दिखती हैं, यह इस बात

पर निर्भर करता है कि आप अंदर से कैसा महसूस करती हैं… ये बालों का रूखापन, थोड़ा सा वजन बढ़ना या चेहरे पर पिगमैंटेशन एक उम्र के साथ आम बात है… इन चीजों से खुद की पहचान मत बनाइए. सब से पहले खुद को प्यार करना सीखिए, अपने अंदर की औरत को दुलार करें, आप ने उस का बहुत तिरस्कार किया है… मेरी या जयंत की तारीफ की आप को जरूरत नहीं है. आप को जरूरत है खुद की तारीफ करने की… अगर कुछ कमी भी है तो उसे दिल से स्वीकार करें और उस पर काम करें और अगर कुछ न कर पाएं तो आगे बढ़ें… आप जैसी हैं अच्छी हैं, आप के पति या मेरी तारीफ के टौनिक की आप को जरूरत नहीं है…

‘‘कभी खुद की तारीफ खुद ही कीजिए, यकीन मानिए आप को किसी भी टौनिक की ताउम्र जरूरत नहीं पड़ेगी. खुद को प्यार करें, कोई गलती हो जाए तो खुद को माफ करें. जिंदगी बेहद खुशनुमा और प्यारी हो जाएगी… जिंदगी को खुल कर जीने के लिए अपने से बेहतर और कोई साथी नहीं होता है क्योंकि एक वही होता है जो बचपन से ले कर बुढ़ापे तक आप के साथ होता है. बाकी लोग तो आप की जीवन की रेलगाड़ी में आएंगे और जाएंगे, कुछ तारीफ करेंगे तो कुछ आलोचना. कब तक आप अपनी जिंदगी का रिमोट कंट्रोल दूसरों के हाथ में रखोगी… आज से नई शुरुआत करो और खुद से ही खुद का नया परिचय कराओ.’’

पायल हंसते हुए बोली, ‘‘ठीक है मेरे ज्ञानी बाबा… अब इस पायल को किसी और की तारीफों के टौनिक की जरूरत नहीं रहेगी, मगर तुम्हारी दोस्ती की अवश्य पड़ेगी.’’

अकुल अदा से सिर झकाते हुए बोला, ‘‘औलवेज ऐट योर सर्विस.’’

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