पोटैटो चिप्स से लेकर दही सैंडविच तक, ये साइड डिशेज बढ़ा देगी खाने का जायका

Side Dishes Recipe In Hindi : दही सैंडविच

सामग्री

1 कप हंग कर्ड द्य 1/2 कप कच्चा नारियल कसा

1-2 हरीमिर्चें द्य 1 टुकड़ा अदरक, 4 ब्रैड स्लाइस

2 बड़े चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि

नारियल को मिर्च, अदरक, नमक व दही के साथ महीन पीस लें. इस चटनी को ब्रैड स्लाइस के बीच लगाएं व दूसरा ब्रैड स्लाइस ऊपर रख कर बंद करें. गरम तवे पर मक्खन लगा कर दोनों तरफ से सेंक लें. तिकोना काट कर गरमगरम सर्व करें.

‘जुकीनी को ट्विस्ट दे कर बनाएंगी तो बच्चे इसे मन से खाएंगे.’

जुकीनी नाचोज

सामग्री

1 जुकीनी, 2 बड़े चम्मच मैदा

1 बड़ा चम्मच कौर्न पाउडर, 1/2 कप ब्रैडक्रंब्स

3 बड़े चम्मच चीज कसा ,  तलने के लिए तेल

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च, 1/2 छोटा चम्मच मिक्स हर्ब्स

3 बड़े चम्मच टोमैटो चिली सौस, नमक स्वादानुसार.

विधि

जुकीनी के स्लाइस काट लें. मैदा व कौर्न पाउडर का पेस्ट बना लें. इस में नमक व मिर्च डाल दें. जुकीनी के स्लाइस को इस घोल में लपेट कर ब्रैडक्रंब्स में रोल कर गरम तेल में डीप फ्राई करें. ऊपर से चीज व मिक्स हर्ब्स डालें. टोमैटो चिली सौस के साथ परोसें.

‘कुछ नया ट्राई करना है तो ऐप्पल की यह डिश बना कर देखें.’

 स्पाइसी ऐप्पल पकौड़ा

सामग्री

1 कप ओट्स आटा, 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर, 1 सेब कटा द्य 1-2 हरीमिर्चें कटी, 1/4 छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर

1/4 छोटा चम्मच गरम मसाला, तलने के लिए तेल.

विधि

ओट्स आटे में कौर्नफ्लोर, नमक, दालचीनी पाउडर, गरममसाला व हरीमिर्च मिलाएं. पानी के साथ गाढ़ा घोल बनाएं. इस में सेब डालें व अच्छी तरह मिलाएं. कड़ाही में तेल गरम कर चम्मच से घोल तेल में डाल कर पकौड़े तल लें.

‘पोटैटो के साथ चीज का कौंबिनेशन सभी को अच्छा लगता है.’

पोटैटो चिप्स चीज बाउल

सामग्री

1 पैकेट चिप्स द्य 2 बड़े चम्मच चीज कसा हुआ

2 प्याज कटे द्य 1 बड़ा चम्मच शिमला मिर्च कटी

1 बड़ा चम्मच टोमैटो सौस द्य 1 छोटा चम्मच पिज्जा सीजनिंग.

विधि

एक बाउल में चिप्स डाल कर ऊपर से चीज, प्याज व शिमला मिर्च डालें. फिर टोमैटो सौस व सीजनिंग डाल कर पहले से गरम ओवन में चीज के पिघलने तक रखें फिर सर्व करें. ‘क्रीम और चीज से बनी यह डिश बच्चे लंच बौक्स में भी ले जा सकते हैं.’

क्रीम चीज वोंटोन्स

सामग्री

4-5 स्प्रिंग रोल शीट्स, 150 ग्राम पनीर

1 प्याज कटा द्य 1 हरीमिर्च कटी, 2 बड़े चम्मच थिक क्रीम, 2 बड़े चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि

पनीर, क्रीम, नमक, प्याज व हरीमिर्च को अच्छी तरह मिला लें. स्प्रिंग रोल शीट्स में पनीर की फिलिंग भर कर रोल कर लें. ऊपर से बटर की लेयर लगाएं व 1800 पर गरम ओवन में 7-8 मिनट तक बेक करें. पलट कर बटर लगा कर फिर 3-4 मिनट बेक करें.

Reader’s Problem : देवर को क्राइम शो देखने की लत लग गई है, कहीं वह गलत दिशा में तो नहीं जाएगा?

Reader’s Problem :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 32 वर्षीया विवाहिता हूं. सासससुर नहीं रहे इसलिए 17 साल का देवर साथ ही रहता है. मैं उसे अपने बच्चे जैसा प्यार करती हूं. पर इधर कुछ दिनों से देख रही हूं कि वह टीवी पर अकसर क्राइम शो देखता है और उसी पर बातें भी करता है. कुछ दिनों पहले उस का 2-4 लड़कों से झगड़ा भी हो गया था. मैं ने डांटा तो पलट कर जवाब तो नहीं दिया पर उस ने उस दिन से मुझ से बात कम करता है. क्राइम शो देखने की लत कई बार मना करने पर भी उस ने नहीं छोड़ी है. उस की यह लत उसे गलत दिशा में तो नहीं ले जाएगी? कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

टीवी पर दिखने वाले अधिकतर क्राइम शो काल्पनिक होते हैं, जो समाज में जागरूकता तो नहीं फैलाते अलबत्ता लोगों को गुमराह जरूर करते हैं.

अकसर रिश्ते में धोखाधड़ी, एक दोस्त द्वारा दूसरे दोस्त का कत्ल, पैसे के लिए हत्या, शादी में धोखा, अवैध संबंध, पतिपत्नी में रिश्तों में विश्वास का अभाव दिखाना कहीं न कहीं लोगों के मन में अपनों के प्रति अविश्वास का भाव ही पैदा करता है. यकीनन, टीवी पर दिखाए जाने वाले अधिकतर क्राइम शो न सिर्फ रिश्तों को प्रभावित करते हैं, अपराधियों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं.

हाल ही में एक खबर सुर्खियों में आई थी जिस में एक आदमी ने अपनी ही पत्नी की निर्मम हत्या कर दी थी. जब वह पकड़ा गया तो उस ने पुलिस को बताया कि यह हत्या उस ने टीवी पर प्रसारित एक क्राइम शो देखने के बाद की थी. यह कोई एक मामला नहीं. आएदिन ऐसी घटनाएं घट रही हैं.

अधिकतर क्राइम शो में दिखाया जाता है कि अपराधी किस तरह अपराध करते वक्त एहतियात बरतता है, ताकि वह कानून के चंगुल में फंस न सके. इस से कहीं न कहीं आपराधिक मानसिकता के लोगों का गलत मार्गदर्शन ही होता है.

बच्चों को तो इन धारावाहिकों से दूर ही रखने में भलाई है. और फिर आप के देवर की उम्र तो अभी काफी कम है. उस का मन अभी पढ़ाई की ओर लगना चाहिए. आप उसे प्यार से समझाने की कोशिश करें. उसे अच्छी पत्रिकाएं या अच्छा साहित्य पढ़ने को दें या प्रेरित करें. आप चाहें तो अपने पति से भी बात करें ताकि समय रहते उसे सही दिशा की ओर मोड़ा जा सके.

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Interesting Hindi Stories : अनाम रिश्ता- क्या मानसी को मिला नीरज का साथ

Interesting Hindi Stories :  एयरपोर्ट के अंदर जाने से पहले बकुल ने मां मानसी के पैर छुए तो वे भावुक हो उठीं.

उन्होंने देखा ही नहीं था कि अपनी बाइक से पीछेपीछे नीरज भी बकुल को सी औफ करने के लिए आए हैं. वे उन्हें देख कर चौंक पड़ीं.

बकुल ने नीरज के भी पैर छुए और बोला, ‘‘सर मौम का खयाल रखिएगा.’’

‘‘नीरज तुम?’’ वे आश्चर्य से बोलीं.

‘‘बकुल जा रहा था, तो मुझे उसे छोड़ने तो आना ही था.’’

‘‘आ जाओ मेरे साथ गाड़ी में चलना.’’

‘‘नहीं, मैं अपनी बाइक से आया हूं.’’

उन की निगाहें काफी देर तक बकुल का पीछा करती रहीं, फिर जब वह अंदर चला गया तो अपने युवा बेटे की सफलता की खुशी के साथसाथ उस के बिछोह का सोच कर आंखें छलछला उठीं. वे गाड़ी के अंदर गुमसुम हो कर बैठ गईं. सूनी आंखों से खिड़की के बाहर देखने लगीं.

घर पहुंचीं तो रूपा से कौफी बनाने को कह कर बालकनी में खड़ी हो गई थीं. वह अपने में ही खोई हुई सी थीं.

तभी रूपा बोली, ‘‘मैडम कौफी.’’

वे भूल गई थीं कि उन्होंने रूपा से कौफी के लिए कहा था. वे कप उठा ही रही थीं कि डोरबैल बज उठी. वे समझ गई थीं कि नीरज के सिवा इस समय भला कौन हो सकता है.

‘‘रूपा एक कौफी और बना दो,’’ मानसी बोली.

नीरज जिस ने उन के अकेलेपन में, उन के कठिन समय में, कहा जाए तो हर कदम पर उन का साथ दिया था.

‘‘अकेलेअकेले कौफी पी जा रही है… एयरपोर्ट पर आप का उदास चेहरा देख कर अपने को नहीं रोक पाया और बाइक अपनेआप इधर मुड़ गई.’’

‘‘आज स्कूल नहीं गए?’’

‘‘कहां खोई हुई हैं आप? आज तो संडे है,’’ कह कर आदत के अनुसार हंस पड़ा.

‘‘आज बकुल गया है तो मन भर आया.’

चलो, तुम्हारी इतने दिनों की तपस्या सफल हो गई. तुम्हारा बेटा पढ़ लिख कर लायक बन गया, अब कुछ दिनों में अपनी किसी गर्लफ्रैंड के साथ शादी करने को बोलेगा, फिर अपनी दुनिया में रम जाएगा. यही तो दुनिया की रीति है.’’

‘‘हां वह तो तुम ठीक कह रहे हो, लेकिन जो मेरे जीवन का ध्येय था कि बेटे को कामयाब बनाऊं, वह तो तुम्हारी मदद से पूरा कर ही लिया.’’

‘‘मानसी कभी अपनी खुशी के बारे में भी तो सोचा करो.’’

‘‘तुम मेरे दोस्त हो तो, जो हर समय मेरी खुशी के बारे में ही सोचते रहते हो. अभी देखो बकुल गया इसलिए मन उदास हो रहा था, तो मुझे सहारा देने के लिए आ गए.’’

‘‘हां दोस्ती की है तो जिंदगीभर निभाऊंगा,’’ कह कर वे जोर से हंस पड़े.

नीरज की हंसी उन्हें बहुत मोहक लगती थी. वे भी हंस पड़ी थीं.

‘‘फिर पकड़ो मेरा हाथ,’’ कहते हुए उन्होंने अपना हाथ उन की तरफ बढ़ा दिया.

मानसी ने झिझकते हुए उन के हाथ पर अपना हाथ रख दिया. पुरुष के स्पर्श से उन का सर्वांग कंपकंपा उठा और वे उठ खड़ी हो गईं.

‘‘मानसी, चलो आज हम दोनों लंच के लिए कहीं बाहर चलते हैं… अभी 10 बजे हैं मैं 1 बजे तक आऊंगा.’’

‘‘बैठो. क्यों जा रहे हो?’’

‘‘अरे यार समझ करो अभी नहाया भी नहीं हूं, फिर आप के साथ लंच पर जाना है तो जरा ढंग से कपड़े वगैरह पहन कर आऊंगा. अभी तो बस बाइक उठाई और आ गया था.’’

नीरज चले गए थे. रूपा गाने की शौकीन थी. उस के मोबाइल पर गाना बज रहा था…

‘‘महलों का राजा मिला कि रानी बेटी

राज करे…’’

इस गीत के शब्दों नें उन्हें उन के अतीत में पहुंचा दिया और उन के अतीत का 1-1 पन्ना खुलता चला गया.

कितने सुनहरे सपनों को अपने मन में संजो कर वे अपने घर की देहरी से बाहर निकली थीं. 19 वर्ष की मानसी करोड़पति पिता की लाड़ली थीं. उन्होंने बीए में एडमिशन लिया ही था कि पिता मनोहर लाल ने उन की शादी तय कर दी. पैसे को मुट्ठी में पकड़ने वाले पापा ने बेटी की खुशियों के लिए अपनी तिजोरी का मुंह खोल दिया था. वे भी राजकुमार से स्वप्निल के सपनों में खो गई थीं. जब हाथी पर सवार हो कर स्वप्निल दूल्हे के वेष में आए तो बांके से सलोने युवक की तिरछी सी मुसकान पर वे मर मिटी थीं.

‘‘वाह मानसी, जीजू तो बिलकुल फिल्मी हीरो हैं,’’ जब उन की सहेलियों ने कहा तो वे शरमा उठी थीं.

तभी शीला मौसी आ गई और कहने लगी, ‘कुंवरजी को नजर मत लगा देना छोरियों.’

‘‘जीजाजी ने दामाद तो हीरा जैसा ढूंढ़ा है, राज करेगी मेरी मानसी.’’

सिर से पैर तक जेवरों से लदी हुईं, भारी लहंगे में सजीधजी मानसी ने ससुराल में कदम रखा था, तो वहां पर उन का भव्य स्वागत हुआ. सास मालतीजी और ननदों ने मिल कर उन के सपने साकार कर दिए थे. उन लोगों का लाड़प्यार पा कर वे अभिभूत हो उठी थीं.

स्वप्निल की बांहों में उन्हें जीवन की सारी खुशियां मिल गई थीं. कश्मीर में गुलमर्ग और पहलगाम की वादियों में बर्फ के गोलों से खेलती हुई वहां के सौंदर्य में खो गई थीं. स्वप्निल को घूमने का शौक था, कभी मुंबई के जुहू चौपाटी तो कभी महाबलीपुरम का बीच. कितने खुशनुमा दिन और रातें थीं.

फिर जब उन की जिंदगी में जुड़वां गोलूमोलू आ गए तो उन की जिम्मेदारियां बढ़ गईं और स्वप्निल भी पापा के साथ बिजनैस में बिजी हो गए.

गोलूमोलू 3 साल के थे तब एक दिन स्वप्निल घबराए हुए आए और बोले, ‘‘मानसी अपना बैग पैक कर लेना, सुबह हम लोगों को आगरा पहुंचना है. वन्या दी हौस्पिटल में एडमिट हैं, उन की हालत खराब है.’’

‘‘स्वप्निल, प्लीज सुबह चलिएगा, रात में यदि ड्राइवर को नींद का झंका आ गया.’’

‘‘फालतू बात मत करो. रात में 11-12 बजे निकलेंगे सुबह पहुंच जाएंगे. रात में रोड खाली मिलता है.’’

वे सहम कर चुप हो गई थीं. उन्होंने जल्दीजल्दी कुछ कपड़े बच्चों के और अपने व स्वप्निल के रखे और निकल पड़ी थीं. स्वप्निल की आंखें थकान के मारे नींद से बो?िल हो रही थीं. वे बारबार आंखों पर पानी डाल रहे थे. नियति को दोष दे कर हम सब अपने को दोषमुक्त कर लेते हैं परंतु दुर्घटना के लिए दोषी तो हम भी होते ही हैं.

जीवन में सुख और दुख उसी तरह से सुनिश्चित और संभाव्य हैं जैसे दिन

और रात. खुशियों के झले में झलने वाली मानसी नहीं जानती थीं कि भविष्य उन्हें जीवन के दुखद क्षणों की ओर खींच कर ले जा रहा है. गाड़ी में बैठते ही दोनों बच्चे और वे गहरी नींद में सो गए थे. शायद थके हुए स्वप्निल को भी नींद आ गई. कुछ ही देर में जोर का धमाका हुआ और उन्हें लगा कि कोई पिघला शीशा उन के ऊपर डाल रहा है. फिर कुछ पलों में ही वे मूर्छित हो गई थीं. अफरातफरी का माहौल, रात के गहरे अंधेरे में एक ट्रक ने जोर की टक्कर मार दी थी. सारे सपने तहसनहस हो गए. स्वप्निल उन्हें अकेला छोड़ गए. मोलू भी उन के साथ विदा हो गया.

गोलू को खरोंच भी नहीं आई थी, लेकिन उन का एक हाथ और एक पैर बुरी तरह कुचल गया था इसलिए वे 2 महीने तक नर्सिंगहोम में एडमिट रहीं. पापा आया करते और जरूरी कागजों पर साइन करवाते. न ही वे कहते कि कागज पढ़ लो और न ही वे कोई रुचि दिखातीं. अब तो यही लोग उन के जीवनदाता थे. कभी ईशा दी, कभी मम्मीजी गोलू को ले कर आया करतीं, लेकिन उन्हें बैड पर लेटे देख कर मम्मीजी की गोद में छिप जाता. उन की आंखों से अविरल आंसू बहते रहते. उन के दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया था.

गोलू का नाम स्वप्निल ने बकुल रखा था, इसलिए अब सब लोग उसे बकुल ही पुकारा करते थे. उन के मम्मीपापा उन्हें अपने साथ आगरा ले जाना चाहते थे, लेकिन यहां पापाजी का कहना था कि जब तक औफिशियल काम न पूरे हों, तब तक यहीं रहो. बारबार कौन जाएगा साइन करवाने.

उन की अपनी मां दिनरात उन के साथ बनी रहतीं और पापा डाक्टरों से संपर्क में रहते. उन की कई बार प्लास्टिक सर्जरी भी होती रही. जब तक ये सब चलता रहा मम्मीजी खूब प्यार से बोलतीं और उन का ध्यान रखा करतीं.

6 महीने के बाद उन्हें पापा अपने साथ आगरा ले आए. यहां पर सब उन के बुरे दिनों को कोसते. मां के घर में तो बिलकुल भी चैन नहीं था. दादी, ताई, चाची, बूआ आदि का जमावड़ा और बस एक ही बात कि हायहाय 25 साल की छोरी. कैसे काटेगी पूरी जिंदगी और फिर जबरदस्ती रोने का नाटक करते हुए बातों में मशगूल हो जाना. पिछले जन्म के कर्म हैं, वे तो भुगतने ही पड़ेंगे.

ताई बोलीं, ‘‘मानसी तुम एकादशी का व्रत किया करो, मेरे साथ कल से मंदिर दर्शन करने चला करो. वहां गुरुजी बहुत बढि़या सत्संग करवाते हैं,’’

मम्मीपापा को यह विश्वास था कि पूजापाठ से कष्ट दूर हो जाएंगे.

‘‘यह क्या तुम ने लाल चूडि़यां पहन लीं?’’ बूआ ने घर में हंगामा मचा दिया. मम्मी उन के सामने जबान नहीं हिला सकती थीं.

‘‘मानसी अभी तक सो रही हो. उठो आज अमावस्या है. स्वप्निल की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मण भोजन और हवन है,’’ ताई ने उन्हें जगाते हुए जोर से कहा.

वे उठीं और भुनभना कर बोलीं, ‘‘स्वप्निल ने तो मुझे जिंदा ही मरणतुल्य कर दिया है. ऐसी जिंदगी से तो उसी दिन मर जाती तो ये सब न देखना पड़ता,’’ उन का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

उन की बड़बड़ाहट को बूआ ने सुन लिया, ‘‘वाह रे छोकरी, मरे आदमी को कोस रही है. जाने कौन से पाप किए थे जो भरी जवानी  में  विधवा हो गई. अब तो चेत जाओ कम से कम अगला जन्म तो सुधार लो.’’

वे अपने को अनाथ सा महसूस कर रही थीं, तभी पापा आ गए और जोर से बोले, ‘‘मेरी लाडो को मत परेशान किया करो,’’ और वे पापा से लिपट कर सिसक पड़ीं.’’

अगले दिन सुबह विमला नहीं आई थी. बकुल भूखा था. वे किचन में बगैर नहाए चली गईं. मम्मी आ गईं और उन्हें किचन में देखते ही चिल्ला कर बोलीं, ‘‘मानसी तुम्हें जरा सा सबर नहीं था… मैं नहा कर आ तो रही थी?’’

‘‘बकुल जोर से रो रहा था.’’

‘‘आज पूर्णिमा है तुम ने बगैर नहाए सब छू लिया… अब फिर से किचन धोनी पड़ेगी.’’

‘‘उफ, मां कब तक इन कर्मकांड भरे ढकोसलों में पड़ी रहोगी. आप ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है,’’ वे पैर पटकते हुए अपने कमरे में जा कर सिसक पड़ीं, ‘‘यहां से अच्छा तो मेरे ससुराल वाले मुझे रखते हैं. आगरा रहते हुए 6 महीने हो चुके थे. मालती मम्मीजी का फोन लगभग रोज आ जाता और वे बकुल को याद करती रहतीं.

उन्होंने नाराज हो कर लखनऊ जाने का निश्चय कर लिया था. शायद मम्मी भी उन से परेशान हो चुकी थीं. उन्होंने बकुल से फोन पर कहला दिया, ‘‘दादी मुझे आना है.’’

अगली सुबह मम्मीजी ने गाड़ी भेज दी और वे लखनऊ पहुंच गईं. इस बीच पापा ने ईशा दी को अपने घर में बुला लिया. वे लोग सब अब यहीं रहने वाले हैं, यह बात तो उन्हें बहुत बाद में पता चली थी. उन का जीवन तो बोझ बन चुका था क्योंकि मम्मीजी का झकाव बेटियों की तरफ ज्यादा हो गया था. वे अब एक फालतू चीज बन कर रह गई थीं, जिस की कहीं कोई उपयोगिता नहीं थी. उन के पापा और ससुरजी के बीच जेवर, इंश्योरैंस के पैसे, बैंक लौकर के जेवर और एफडी आदि के लिए मनमुटाव शुरू हो गया था. पापा का कहना था कि उन की बेटी के नाम सब होना चाहिए. अकसर मीटिंग होती. दोनों तरफ के कुछ लोग बैठते. बहसा होती. लेकिन कुछ तय नहीं हो पाता क्योंकि पापाजी कुछ भी देना ही नहीं चाहते थे. लौकर के गहने, और इंश्योरैंस के रुपए, उन का स्त्री धन और कुछ प्रौपर्टी कुछ भी उन के नाम करने को तैयार नहीं हो रहे थे. 2 साल तक वे कभी ससुराल तो कभी मायके अपने दिन गुजारती रहीं.

वन्या दी, ईशा दी और मम्मीजी का एक ग्रुप बन गया था. वे उन्हें अपनी बातों में कम शामिल करतीं. खूब शौपिंग पर जातीं. लेकिन अपना सामान बहुत कम ही उन्हें दिखाया करतीं. वे अपने कमरे में टीवी और मोबाइल में सिर फोड़ती रहतीं.

ईशा दी की बेटी लवी और बकुल में दिनभर लड़ाईझगड़ा तो रोज की बात थी. लवी बड़ी थी, वह चुपचाप उस के चुटकी काट लिया करती. कभी बकुल रोते हुए उन के पास आता कि लवी ने मेरा खिलौना छीन लिया. दिनभर यही सब चलता रहता. वे लवी को कुछ नहीं कह सकती थीं. बकुल ही दिनभर डांट खाता. कभी वे नन्हे से बकुल को थप्पड़ लगा कर रो पड़ती थीं. मम्मीजी उस को अपनी गोद में बैठा कर प्यार तो करतीं, लेकिन लवी को कुछ न कहतीं.

एक दिन दोनों बच्चे लड़ रहे थे तो बकुल ने लवी को धक्का दे दिया. वह गिर गई

और होंठ में दांत चुभ गया. दी ने आव देखा न ताव बकुल के गाल पर जोर का थप्पड़ लगा दिया और जोरजोर चीखने लगी तो वे सह नहीं सकीं. गुस्से में बोलीं, ‘‘दी आपने नन्हे से बकुल को इतनी जोर से मारा कि देखिए उस के गाल पर आप की सारी उंगलियां छप गई हैं.’’

‘‘यह नहीं दिखता कि बकुल ने लवी को कितनी जोर से धक्का दिया है. कभी अपने बेटे को भी समझया करो. अब तुम बहुत बोलने लगी हो. भैया तो हैं नहीं जो तुम्हें कंट्रोल करें. अब तो बिना लगाम की घोड़ी बन गई हो,’’ वे बहुत देर तक बकबक करती रही थीं. मम्मीजी मूकदर्शक बनी सब सुनती रही थीं.’’

वे घंटों तक अपने कमरे में सिसकती रही थीं. मासूम बकुल उन के आंसू पोछता रहा.

वन्या दी भी आती रहतीं. ईशा दी तो रहती ही थीं. घर कभी खाली न रहता. वे बहू का फर्ज निभातेनिभाते दुखी हो जाती थीं. इस के बावजूद रोज की चिखचिख. खाना कैसा बना है. सलाद नहीं कटा, सब्जी बेकार है. दाल पतली है.

‘‘मानसी, तुम क्या करती रहती हो? रसोइए से ढंग से खाना भी नहीं बनवा सकतीं? जब खाने बैठो, तो इतना बेकार खाना,’’ कहते हुए पापाजी डाइनिंग टेबल से उठ गए थे. फिर तो हंगामा होना स्वाभाविक ही था.

ईशा दी के पति विनय उन के कमरे में आ कर उन्हें ज्ञान देने लगे, ‘‘भाभी, आप अकेली हो. भैया तो हैं नहीं. छोटा सा बच्चा भी साथ में है. इसलिए आप चुप रहा करिए और घर के कामों पर अपना ध्यान दिया करिए.’’

अब तो जबतब जीजू मौका देख कर उन से बात करते और उन के नजदीक भी आने की कोशिश करने लगे थे. अब वे उन के सामने जाने से कतराया करती थीं. वे उन की ललचाई निगाहों से झलस कर रह जाया करती थीं.

एक दिन तो हद हो गई जब अकेला पाते ही उन्होंने उन्हें अपने आगोश में जकड़ लिया. उन्होंने गुस्से में आव देखा न ताव एक थप्पड़ उन के गाल पर जड़ दिया.

वे उलटे चीखचीख कर कहने लगे कि यह तो उन्हें कब से परेशान कर रही थी. आज मौका लगते ही गले ही पड़ गई. मैं इसे धक्का न देता तो यह न जाने क्या करती.

सब लोग सबकुछ जानसमझ रहे थे, लेकिन वहां पर उन की तरफ से बोलने वाला तो कोई था ही नहीं क्योंकि उन का पति तो उन्हें मझधार में छोड़ कर जा चुका था. उन का जीवन तो बिना नाविक की नाव की तरह हो गया था जो भंवर में डूबउतरा रही थी. काश, पापा ने उन्हें पढ़लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा किया होता तो वे इस तरह से मायके और ससुराल की ठोकरें न खातीं.

अपनी बेबसी पर वे रो पड़ी थीं. अब उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वे

अब यहां एक दिन भी नहीं रहेंगी. उन्होंने पापा को फोन कर दिया था. वे सुबह आ गए, फिर तो जोर का झगड़ा शुरू हो गया. बकुल के लिए खींचातानी. बकुल स्वप्निल की निशानी है, इसलिए वह यहां पर उन लोगों के साथ ही रहेगा.

5 साल का अबोध बकुल भला क्या निर्णय लेता पापा 7-8 लोगों को ले कर आए. लंबी बैठक होती रही. जिन के भविष्य का फैसला होना था, उन की इच्छाअनिच्छा से किसी को कोई मतलब नहीं था. वे सब आपस में बुरी तरह उलझे हुए थे. जोरजोर से कहासुनी हो रही थी. पापा का कहना था कि उन्होंने मानसी को एक किलोग्राम सोने के जवर दिए थे. वह उस का स्त्रीधन है. आप को देना पड़ेगा. शादी में क्व4 करोड़ खर्च हुए थे, उस की भरपाई कैसे होगी?

अखिल पापाजी कह रहे थे, ‘‘यहां पर हम लोग उसे बेटी को तरह रख रहे हैं और इसे कोई बिजनैस करवा देंगे आखिर में वह मेरे वारिस की मां है, इसलिए इन लोगों को यहीं रहना होगा. जैसे पहले रहती थी वैसे रहे… जैसे मेरी ईशा वैसे यह मेरी तीसरी बेटी है.’’

नौबत यहां तक आ गई कि गालीगलौज और हाथापाई की स्थिति बन गई थी और मेरे पापा घमंड में बोले, ‘‘अखिल, कमीने, तेरा पाला जैसे रईस से पड़ा है, तेरे मुंह पर मैं मारता हूं सारा पैसा, सोना. तू पहले भी भिखमंगा था. शादी के नाम पर कहता रहा मुझे गाड़ी दो, सोना दो, कैश दो… नीच कहीं का.’’

पापा को अपने पैसे का गुरूर था और उन का अपना बचपना… बकुल को पापा ने अपनी गोद में उठाया और उन की उंगली पकड़ कर मैं बाहर गाड़ी में बैठ कर आगरा आ गई.

आगरा रहते भी 2 साल बीत गए थे. पापा ने एक साधारण परिवार के लड़के को पैसे का लालच दे कर उन के साथ शादी करने को राजी कर लिया. उस का नाम पीयूष था. वह भरतपुर में रहता था और वह इंश्योरैंस का काम करता था. इसी सिलसिले में वह पापा के पास आया करता और अपने को बैंक में कैशियर हूं, बताया करता. बकुल के लिए कभी चौकलेट तो कभी गेम वगैरह दे कर जाता. फिर धीरेधीरे उन के साथ भी मिलनाजुलना होने लगा. वह उन्हें भी लंच पर ले जाता. भविष्य को ले कर बातें करता. प्यार भरी बातें फोन पर भी होतीं. उस की आकर्षक पर्सनैलिटी की वे दीवानी होती जा रही थीं. उस के प्यार में वे अंधी हो रही थीं.

पीयूष ने कहा कि उन की मां बैड पर हैं, इसलिए वे चाहती हैं कि जल्दी से शादी कर ले, तो वे बहू को देख लें और उन्हें तो साथ में पोता भी मिल रहा है. पीयूष और बकुल के बीच जो ट्यूनिंग थी उस से वे आश्वस्त हो गई थी कि बकुल को पापा मिल जाएगा और उन के जीवन में फिर से खुशियां दस्तक दे देगी… उन के जीवन का अधूरापन भी समाप्त हो जाएगा. वे सादे ढंग से मंदिर शादी करना चाहती थीं, परंतु पीयूष की मां अपने बेटे को दूल्हे के वेष में देखने का सपना पूरा करना चाहती थीं.

फिर से वही धूमधाम हुई और वे पीयूष की दुलहनिया बन कर उस के घर पहुंच गईं. कुछ महीनों तक तो सबकुछ ठीकठाक रहा, लेकिन वे समझ गई थीं कि वह ठगी जा चुकी हैं. उन्हें बाद में मालूम हुआ कि पापा ने क्व20 लाख का लालच दिया था, इसलिए उस ने शादी की थी.

कुछ दिनों के बाद ही पीयूष दारू के नशे में रात में देर से आने लगा. नशे में बोलता कि तू तो जूठन है. तुझे छूने में घिन आती है. रोज रात को गालीगलौज करता. सुबह उठ कर झड़ू बरतन, नाश्ता, खाना बनाना, उन के लिए बहुत मुश्किल था. सबकुछ करने के बाद भी पीयूष की मां चिल्लातीं, ‘‘अपशकुनी एक को तो खा गई अब क्या मेरे लाल को भी खाएगी क्या.’’

पीयूष अपने साथ उन्हें मां के घर ले कर जाता और थोड़ी देर में लौटा लाता. पापा से कह कर उन्होंने एक नौकरानी बुलवाई, तो पीयूष के आत्मसम्मान को चोट पहुंची और वह नाराज हो उठा क्योंकि उस के मन में चोर था कि यहां की सब बातें नौकरानी के द्वारा मानसी के मातापिता तक पहुंच जाएंगी. इसीलिए पीयूष ने उसे तुरंत भगा दिया.

पीयूष की मां पैरालाइज्ड थीं. उन्हें नहलाना, गंदगी साफ करना जैसे काम उन के लिए बहुत कष्टदाई थे, परंतु 1 साल तक उस नर्क में गुजर करने की कोशिश करती रही थीं.

पीयूष ने झठ बोला था. वह बैंक में नौकरी नहीं करता था. उस ने पापा से दौलत ऐंठने के लिए शादी का ड्रामा रचा था. नन्हा बकुल पीयूष को देखते ही सहम जाता था, एक दिन वे बकुल को पढ़ा रही थीं कि नशे में झमता हुआ वह आ गया और बकुल को गाली दे कर उस की किताब उठा कर हवा में उछाल दी. फिर उसे जोर से धक्का देते हुए गालियों की बौछार कर दी. वे तेजी से उठीं और पीयूष के समने खड़ी हो कर बोली, ‘‘खबरदार यदि मेरे बेटे के साथ बदतमीजी की या उस पर हाथ उठाया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

वह न जाने किस नशे में डूबा हुआ था सो उस ने उन्हें भी जोर का धक्का दे दिया, ‘‘मुझ से मुंहजोरी करेगी… तेरी ऐसी दशा करूंगा कि सारा घमंड चूर हो जाएगा.’’

उन्होंने दीवार का सहारा ले कर अपने को गिरने से बचा लिया, परंतु उस दिन पीयूष की बदतमीजी और गालियां उन के लिए सहना मुश्किल हो गया.

बकुल उन की बांहों के घेरे में देर घंटों तक सिसकता रहा. वे भी कमरा बंद कर के आंसू बहाती रहीं.

सुबह हमेशा की तरह पीयूष उन के पैर पकड़ कर माफी मांगता रहा. लेकिन अब उन्होंने फैसला कर लिया था इस नर्कभरी जिंदगी से मुक्त होने का. अगले दिन मुंह अंधेरे बकुल का सामान एक बैग में रख कर वे भरतपुर से आगरा आने वाली बस में बैठ गई.

उस दिन एक नई मानसी ने जन्म लिया था. उन्होंने तय कर लिया था कि अब वे

अपने जीवन के निर्णय स्वयं किया करेंगी.

वे क्रोध में धधकती हुई अपने घर पहुंचीं और अपने पापा पर बरस पड़ी, ‘‘पापा, आप ने अपने पैसे के घमंड में मेरी जिंदगी को तमाशा बना कर रख दिया है. एक लालची को आप ने क्व20 लाख दे कर मेरे जीवन का सौदा कर दिया. अब किसी दूसरे ने आप से ज्यादा मोटी नोटों की गड्डी उस के मुंह पर मार दी और बस वह उन के सामने कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगा. पापा आप ने न ही पीयूष के बारे में कुछ ठीक से पता लगाया और न ही ढंग से उस का घर देखा. उस की चिकनीचुपड़ी बातों में आप फंस गए. उस ने दूसरे के घर को अपना घर बताया. बस आप ने झटपट अपनी बेटी उसे सौंप दी. आप ने अपने पैसे के बलबूते बेटी को उस के हवाले कर के उस की जिंदगी को तमाशा बना कर रख दिया.’’

‘‘बस बहुत हुआ. अब आगे कोई तमाशा नहीं होगा. मैं पीयूष के बच्चे को जेल की हवा खिलाऊंगा देखती जाओ… कमीना कहीं का.’’

‘‘पापा भैया की शादी होने वाली है , इसलिए मैं कमला नगर वाले फ्लैट में अकेली

रहा करूंगी.’’

उन की बात सुन कर मम्मीपापा कसमसाए थे लेकिन अब उन की हिम्मत नहीं थी कि वह बोलें. उन की सहायता के लिए सेविका लक्ष्मी भी आ गई थी.

बकुल 5वीं कक्षा में आ गया था. उसे पढ़ालिखा कर अच्छा इंसान बनाना ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था, परंतु अभी तो नियति को उन के हिस्से के बहुत सारे पन्ने लिखने बाकी थे.

उन्होंने एक बुटीक खोल लिया और उस में मन लगाने लगी थीं. बुटीक चल नहीं पा रहा था. अत: उन का बुटीक से भी मन उचटता जा रहा था.

मालती मम्मीजी का मायका आगरा में ही था. वे अकसर अपनी मां से मिलने आती रहती थीं और उन के जीवन के हर उतारचढ़ाव की जानकारी रखती थीं क्योंकि वे अपने मायके में पहले भी महीनों रहा करती थीं. वे पहले कई बार उन्हें फोन किया करतीं, लेकिन वे कभी फोन उठाया करतीं और न ही कभी मिलने गईं, जबकि वे बारबार उन से मिलने के लिए आग्रह करती रहती थीं.

एक दिन वे बकुल के लिए ढेरों सामान ले कर उन के घर आ गईं. बकुल उन से चिपट गया और दादी मैं आप के साथ चलूं कहने लगा. दादीपोते का मिलन देख उन की आंखें भी भर आईं. वे महसूस कर रही थीं कि उन की वजह से बच्चे का मासूम बचपन छिन गया है. उस के मन में अपनी दादीबाबा और बूआ लोगों के प्रति प्यार था, कहीं कोने में एक सौफ्ट सा कार्नर था.

जितनी देर दादी रहतीं बकुल बहुत खुश रहता. वे अपने साथ उसे ले जातीं कभी आइस्क्रीम पार्लर तो कभी डिनर या लंच पर धीरेधीरे उन्होंने उन के साथ भी नजदीकियां बढ़ा लीं. वे बोलीं कि यहां अकेले रहती हो. वहां इस के बाबा तो तुम लोगों को देखने के लिए तरस रहे हैं… आदि वहां अपना बुटीक चला ही रहा है, उसी में काम बढ़ा लेना.

अनिश्चित सी धारा में जीवन बहे जा रहा था. बकुल भी बड़ा हो रहा था. वह उद्दंड और जिद्दी होता जा रहा था. उन के लिए उसे अकेले संभालना मुश्किल होता जा रहा था. वह उन्हें ही दोषी मानता था कि दादी का घर आप ने क्यों छोड़ा. वह कहता कि किसी दिन बाबा के पास अकेले ही चला जाएगा.

वह स्कूल नहीं जाना चाहता था, ट्यूशन

नहीं पढ़ना चाहता. बस मोबाइल या लैपटौप पर गेम खेलने में मशगूल रहता. वे तरहतरह से समझया करतीं.

मम्मी कभी किसी गुरु से ताबीज ला कर पहनातीं तो कभी उन की भभूत या जल उद्दंड बकुल उन्हीं के सामने उठा कर फेंक देता. उन्हें भी इन चीजों पर कोई विश्वास नहीं था.

पापा का पैसे का दिखावा बंद ही नहीं होता था. आज ये गुरुजी आ रहे हैं तो कल अखंड रामायण हो रही है. बेटी तुम इस मंत्र का जाप करते हुए 11 माला किया करो. बिटिया तुम्हारा मंगल भारी है इसीलिए वैवाहिक जीवन में संकट आ जाता है. मंगल का व्रत किया करो. बाबूजी मैं ऐसी पूजा करूंगा कि बिटिया के जीवन में खुशियां लौट आएंगी.

वे क्रोध में धधक पड़ी थीं, ‘‘पापा आप मेरी चिंता बिलकुल छोड़ दें. यदि ये गुरुजी मेरे जीवन में खुशियों की गारंटी लेते हैं तो ये अपना जीवन क्यों नहीं सुधार लेते? पाखंडी ठग कहीं के. बस लोगों को मूर्ख बना कर पैसा ऐंठना ही इन का धंधा है.’’

पापा भी उस दिन उन से नाराज हो गए कि यह जनम तो बिगड़ ही रखा है अगला भी बिगाड़ रही है. जो मन आए वह करो. कह कर चले गए.

मांपापा से उन्हें चिढ़ हो गई थी. पापा की जल्दबाजी में ही उन का जीवन बरबाद हुआ था. यदि पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होतीं तो भला उन के साथ यह सब होता.

स्वप्निल को दुनिया से विदा हुए 10 वर्ष पूरे हो चुके थे. पापाजी ने उन

की याद में एक मंदिर बनवाया था, जिस का उद्घाटन वे बकुल और उन के हाथों से करवाना चाहते थे, इसलिए पापाजी खुद उन्हें बुलाने के लिए आए थे. बकुल तो उन को देखते ही उन से लिपट गया और उन के साथ ही लखनऊ जाने के लिए मचल उठा. वहां चलने की जिद्द करता हुआ खानापीना छोड़ कर बैठ गया.

वे बकुल की बढ़ती उद्दंडता, उस का मोटापा, उस की बद्तमीजी के कारण परेशान हो चुकी थीं. मम्मीपापा उन को लखनऊ भेजने के लिए बिलकुल भी राजी नहीं थे, परंतु जब वन्या दी गाड़ी ले कर खुद आईं तो वे उन को देख कर भावुक हो गईं और उन के साथ लखनऊ पहुंच गई थी. वहां सब का लाड़प्यार पा कर उन्हें खुशी महसूस हुई थी.

एक बार उन्होंने स्त्रीधन और बकुल की परवरिश व खर्च की बात उठाई तो पापाजी ने उन के सामने सारे कागजात चाहे ऐक्सीडैंट का क्लेम, एफडी, प्रौपर्टी, लौकर से उन के गहने ला कर रख दिए. जब उन्होंने महीने के खर्च की बात करी तो फिर से माहौल गरम हो गया, लेकिन इस बार मम्मीजी ने बीचबचाव कर के यह कह दिया कि यदि यहां नहीं रहना चाहती तो गोमती नगर वाले फ्लैट में रह सकती हो. तुम मेरी बेटी हो, मेरी आंखों के सामने रहोगी और बकुल भी यहां रहेगा तो हम लोगों को खुशी होगी.

पापाजी भावुक हो कर बोले, ‘‘स्वप्निल तो  हम लोगों को छोड़ गया. अब उस की निशानी हम लोगों से मत दूर करो. जितना कुछ है सब बकुल के बालिग होने पर उसे मिलने वाला है. तब तक वे बकुल की कस्टोडियन बनी रहेंगी.’’

मम्मीजी का बुटीक था वे उसे उन्हें सौंपने को तैयार थीं.

एक तरह से सब उन के मनमाफिक हो रहा था. सब से खास बात तो यह थी कि बकुल उन लोगों के बीच बहुत खुश था और वहीं रहने की जिद कर रहा था.

उन्होंने अपनेआप फैसला किया कि बकुल की खुशी के लिए वे यहां रुकने को तैयार हैं. सब के चेहरे पर खुशी छा गई. बकुल दादीबाबा के पास आ कर बहुत ही खुश था.

बकुल का एडमिशन सिटी मौंटेसरी स्कूल में पापा ने करवा दिया. घर के कामों के लिए मम्मीजी ने सुरेखा को भेज दिया. सबकुछ उन के अनुकूल ही हो रहा था. बकुल की ट्यूशन के लिए पापाजी ने नीरज को भेज दिया.

लगभग 35-40 का नीरज गेहुएं रंग का सुदर्शन सा युवक था. वह सहमासहमा सा रहता, लेकिन पहली नजर में ही उन्हें वह अपनाअपना सा लगा. वह बकुल को पढ़ाने के साथसाथ इतना लाड़दुलार करता कि वह उन की बातों को बहुत ध्यान से सुनता और उन का कहना मानता. उस के स्वभाव में जल्द ही परिवर्तन दिखने लगा. वह अपने सर का इंतजार करता और उन का दिया होमवर्क पूरा कर के रखता.

धीरेधीरे नीरज उन से भी खुलने लगे थे. उन की पत्नी भी अपने बेटे को

ले कर उन्हें छोड़ कर अपने आशिक के साथ चली गई थी, इसलिए बकुल में उन्हें अपना बेटा सा नजर आता था.

वे स्वयं भी अपनी परित्यक्ता मां के इकलौते चिराग थे. अपनी मां के संघर्षों को, उन के अकेलेपन को, उन की मुसीबतों को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया था और अब किसी तरह से पोस्ट ग्रैजुएट हो कर एक कालेज में लैक्चरर बन गए थे, जहां क्व12 हजार दे कर क्व40 हजार पर साइन करवाते थे. अखिल अंकल उन के पापा के पुराने दोस्त थे और उन पर उन के बहुत एहसान भी थे. उन्हें पैसे की जरूरत भी थी. बस वे इस ट्यूशन के लिए तैयार हो गए थे.

बकुल को देख उन्हें अपने बचपन की दुश्वारियां और अकेलापन याद आने लगता था, इसलिए उन्हें अपना खाली समय उस के साथ बिताना अच्छा लगता था. वे छुट्टी वाले दिन बकुल को ले कर कभी अंबेडकर पार्क, कभी जू तो कभी इमामबाड़ा ले कर जाते और दोनों साथ में मस्ती कर के खुश होते. शायद बकुल को नीरज के अंदर अपने पापा की प्रतिमूर्ति दिखने लगी थी. बकुल के सुधरने की वजह से वे उन की बहुत एहसानमंद थी.

कभी नीरज अपनी दुख की कहानी सुनाते तो कभी वे अपने जीवन की व्यथा सुनातीं. बस दोनों को एकदूसरे से बातें करना अच्छा लगता. वे मन ही मन उन्हें प्यार करने लगी थीं. नीरज के लिए नाश्ता बनातीं, उन के आने से पहले तैयार हो जातीं और उन का इंतजार करतीं. जब नीरज के चेहरे पर मुसकराहट आती तो उन्हें बहुत अच्छा लगता था. जब वहे उन की बनाई चाय या खाने की तारीफ करते तो वे खुश हो जातीं.

चाहे उन की इच्छा हो या बकुल को पूरा करने के लिए वे हर समय तैयार रहते.

उन का बुटीक भी अच्छा चल रहा था. बकुल को हाई स्कूल में 98% मार्क्स मिले उन के तो पैर ही जमीं पर नहीं पड़ रहे थे.

मम्मीजीपापाजी उन की और नीरज की नजदीकियों से नाराज हो गए थे, लेकिन अब उन्हें किसी की परवाह नहीं थी. बकुल अपने दोस्तों और कोचिंग में बिजी हो गया था, परंतु नीरज के साथ वह अपनी सारी बातें शेयर करता.

नीरज के बिना अब उन्हें अपनी जिंदगी अधूरी लगने लगी थी. बकुल बड़ा हो

चुका था. वहीं लखनऊ से ही इंजीनियरिंग कर रहा था. उन्हें अपनी जिंदगी से कोई शिकायत नहीं थी और न ही अब कोई परवाह थी कि कौन क्या कह रहा है. जिसे मन हो रिश्ता जोड़ें न मन हो तो तोड़ दे. वे अपनी दुनिया में खुश थीं, नीरज को पहली नजर में देखते ही उन्हें एहसास हुआ था कि हां यही प्यार है. प्यार में कोई ऐक्सपैक्टेशन नहीं होती. बस बिना किसी चाहत के किसी को दिलोजान से चाहो. शायद इसे ही प्यार में डूब जाना कहते हैं.

नीरज ने हर कदम पर उन का साथ दिया था यद्यपि दोनों ने ही इस रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया था, लेकिन इस अनाम रिश्ते ने उन के जीवन में पूर्णता ला दी थी.

घंटी की आवाज से उन की तंद्रा टूटी.

नीरज तैयार हो कर आए तो वे अपने पर कंट्रोल नहीं कर सकीं और बच्चे की तरह उन की बांहों में झल गईं.

Hindi Folk Tales : लिपस्टिक – बौस की नजर में कौन रही सटीक

Hindi Folk Tales : मधुरिमा ने लाल ड्रैस के साथ लाल रंग की लिपस्टिक लगाई और जब वह आईने में देखने लगी तो उसे खुद अपने पर प्यार आ गया था.

मन ही मन खुद पर इतराते हुए वह सोच रही थी कि आज की डील तो फाइनल हो कर ही रहेगी. जब स्त्री हो कर उस का अपना मन खुद को देख कर काबू नहीं हो पा रहा है तो पुरुषों का क्या कुसूर?

औफिस पहुंची. मिस्टर देवेश उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. उसे देखते ही उन्होंने शरारत से सीटी बजाई. ये ही तो हैं उन की कंपनी का तुरुप का इक्का. लड़की में गजब का टैलेंट हैं. वह जहां कहीं भी उन के साथ जाती हैं, डील करवा कर ही आती हैं. 23 वर्ष की उम्र के हिसाब से मधुरिमा काफ़ी तेज़ थी.

मिस्टर देवेश जैसे ही मधुरिमा के साथ बाहर निकले तो करिश्मा से टकरा गए. करिश्मा को देखते ही उन का मूड खराब हो गया था. करिश्मा अगर चाहे तो इस कंपनी के वारेन्यारे कर सकती है, पर उसे तो बस काम से मतलब है. प्रैजेंटेशन गजब का बनाती है और हर क्लाइंट को अपनी बात अच्छे से समझाने में सक्षम है. पर फिर भी वह  आज तक उस लक्ष्मणरेखा को पार नहीं कर पाई है, जिसे बड़ी आसानी से पार कर के मधुरिमा ने अपने लिए सोने की लंका खड़ी कर ली थी.

मधुरिमा ज़्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. पर मर्दों को पटाने में दक्ष थी. यह ही उस की काबिलीयत थी जिस के सहारे वह धीरेधीरे एक रिसैप्शनिस्ट के पद से बौस की ख़ास बन गई थी. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि मधुरिमा, मिस्टर देवेश की उपपत्नी है. पर इन सब बातों से मधुरिमा की तेज रफ़्तार पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है.

करिश्मा जब मधुरिमा से कहती, ‘मधु, हर कंपनी में ऐसा वर्क कल्चर नहीं होता है. कुछ स्किल्स बढ़ाओ, कब तक इस कंपनी में रेंगती रहोगी?’

मधुरिमा तब मुसकराते हुए बोलती, ‘जिस के पास जो है करिश्मा, वह उसे ही तो प्रयोग करेगा. तुम जैसी साधरण शक्लसूरत वाली लड़कियां मुझ से अधिक पढ़ालिखा होने पर भी, मुझ से कम कमा रही हैं. प्रैजेंटेशन तुम बनाती हो, पर प्रोजैक्ट मैं ही फाइनल करवा सकती हूं. मेरी बात मानो, इस मुर्दनी से चेहरे पर लिपस्टिक के एकदो कोट अवश्य लगा लिया करो, सामने वाले को अच्छा लगेगा.’

करिश्मा को मालूम था कि मधुरिमा कुछ गलत नहीं कह रही थी. पर वह उन लड़कियों में से नहीं थी जो काबिलीयत के बजाय लिपस्टिक के बलबूते पर तरक़्क़ी करती हैं.

अगले दिन औफिस में मिस्टर देवेश ने पार्टी का आयोजन किया था. पार्टी के मौके पर मिस्टर देवेश ने बोला, ‘हमारी इवैंट कंपनी के लिए आज बहुत बड़ा दिन है. मिस मधुरिमा की मेहनत के कारण हमें इस वर्ष का सब से बड़ा कौन्ट्रैक्ट मिला है.

दफ़्तर के सभी लोगों के चेहरों   पर व्यंग्यात्मक मुसकान आ गई थी. मधुरिमा पार्टी की स्टार थी.

करिश्मा का मन खिन्न हो उठा था. दिनरात मेहनत कर के उस ने प्रैजेंटेशन बनाई थी. अगर प्रैजेंटेशन ही अच्छी न बनती तो उन लोगों को वहां एंट्री ही न मिल पाती. करिश्मा यही  सब सोच रही थी कि विवेक हाथों में जूस का गिलास ले कर आ गया और बोला, ‘करिश्मा, क्या सोच रही हो?’

‘इस रंगबिरंगी दुनिया का यह उसूल है कि  जो दिखता है वह ही बिकता है,’ करिश्मा बोली, ‘जानते तो हो , मैं चाह कर भी उस राह पर नहीं चल सकती.’

विवेक को करिश्मा से लगाव सा था. इस कंपनी में वह सब से अलग थी. विवेक करिश्मा को उत्साहित करते हुए बोला, ‘करिश्मा, तुम मेहनत करती रहो, मुझे विश्वास है कि तुम जरूर कोई करिश्मा कर के रहोगी.’

ग्रे और पर्पल सूट में करिश्मा बहुत ही सौम्य लग रही थी. वहीँ, मधुरिमा लाल फ्रौक में एकदम आग लग रही थी.

आज करिश्मा जैसे ही दफ़्तर में घुसी, तो देखा एक नया  चेहरा मिस्टर देवेश के केबिन में था. विवेक करिश्मा को देख कर हंसते हुए बोला, ‘अब देखो, मधुरिमा की  नई प्रतिद्वंद्वी आ गई है.’

करिश्मा गुस्से से  बोली, ‘क्या पता काम में बढ़िया हो, तुम लड़कियों के बारे में बहुत जजमैंटल हो, विकास. हर छोटे कपड़े पहनने वाली लड़की नाक़ाबिल नहीं होती.’

मिस्टर देवेश की छोटी सी इवैंट कंपनी थी- ‘पार्टी मास्टर.’ मिस्टर देवेश कानपुर  से दिल्ली नौकरी करने आए थे. लेकिन जल्द ही उन्हें समझ आ गया था कि उन की नौकरी के वेतन में उन के बड़ेबड़े सपने पूरे नहीं हो सकते. इसलिए कुछ सालों बाद उन्होंने यह इवैंट मैनेजमैंट कंपनी खोल ली थी. शुरू के एकदो वर्ष के भीतर ही उन्हें समझ आ गया था कि मेहनत के साथसाथ इस क्षेत्र में सफल होने के लिए और भी हुनर चाहिए. धीरेधीरे उन की कंपनी में विवेक, करिश्मा, मधुरिमा, सोहैल और जस्सी जुड़ गए थे. सोहैल और जस्सी कंपनी के लिए प्रोजैक्ट लाते थे. उन प्रोजैक्ट के लिए प्लानिंग का काम करिश्मा और विवेक करते थे. लेकिन बहुत बार फाइनल होतेहोते डील अटक जाती थी. हाई सोसाइटी में बहुत सारे क्लाइंट्स को कुछ फ़ेवर चाहिए होते थे.

मिस्टर देवेश ने इशारों से करिश्मा को ये सब समझाना चाहा था लेकिन वह टस से मस नहीं हुई थी. तभी सोहैल के तहत मधुरिमा का इस कंपनी में पदार्पण हुआ था. मधुरिमा कपड़ों के साथसाथ विचारों में भी काफी खुली हुई थी. उस ने  ‘पार्टी मास्टर’  को ग्लैमरस बना दिया था. कंपनी बहुत तेजी के साथ तरक्क़ी की राह पर अग्रसर थी. मधुरिमा कहने को किसी भी कार्य में

दक्ष नहीं थी पर वह देवेश को खुश करने के साथसाथ सारे क्लाइंट्स का भी ख़याल रखती थी. मधुरिमा ‘पार्टी मास्टर’ की स्टारपरफौर्मर थी.

परंतु आज यह शेख और हसीन चेहरा देख कर हर कोई एकदूसरे की तरफ देख रहा था. तभी मिस्टर देवेश केबिन से बाहर आए और बोले, ‘फ्रेंड्स जैसेजैसे हमारी कंपनी तरक्की कर रही है, हमारा परिवार भी बढ़ रहा है. ये हैं मिस नताशा,जो मिस भोपाल रह चुकी हैं. मैं आशा करता हूं, अब हमारी कंपनी का सक्सैस ग्राफ़ और तेज़ी के साथ ऊपर जाएगा.’

विवेक, जस्सी के कान में फुसफुसा रहा था, ‘हमारा काम तो और बढ़ गया है. ये लड़कियां उलटेसीधे तरीके से प्रोजैक्ट हथिया लेंगी और करिश्मा व मुझे रातदिन मेहनत करनी पड़ेगी.’

आज मधुरिमा के बजाय मिस्टर देवेश का पूरा ध्यान नताशा की तरफ था. मधुरिमा के चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उस के चेहरे पर राख पोत दी हो.

अब औफिस का नज़ारा बदल गया था. मिस्टर देवेश को नताशा से बहुत उम्मीदें थीं. अब मधुरिमा लिपस्टिक के कितने भी शेड्स लगा ले लेकिन मिस्टर देवेश को कोई भी शेड आकर्षित नहीं कर पाता था. क्लाइंट्स को भी अब नई लिपस्टिक गर्ल में अधिक इंटरैस्ट था. मधुरिमा के इतिहास और भूगोल से वे सब भलीभांति परिचित थे. अब उन्हें कुछ नया चाहिए था.

एक दिन मिस्टर देवेश, नताशा के साथ किसी मीटिंग को अटेंड करने गए हुए थे. करिश्मा विकास के साथ प्रैजेंटेशन बनाने में व्यस्त थी. मधुरिमा जस्सी और सोहैल के साथ ऐसे ही गपें लगा रही थी. तभी एक औरत ने दनदनाते हुए औफिस में प्रवेश किया. गौर वर्ण, छोटीछोटी बिल्ली जैसी सतर्क आंखें, उठी हुई नाक और विलासी मोटे अधर. आते ही  तेजी से हुंकार

भरते हुए बोली, ‘कौन हैं मधुरिमा?’

मधुरिमा उठते हुए बोली, ‘जी, मैं.’

वह औरत लगभग चिग्घाड़ते हुए बोली, ‘तुम जैसी लड़कियां मेरे पति के लिए बस एक टाइमपास हो. तुझे क्या लगा, अपने पेट में किसी का भी पाप ले कर घूमेगी और उस का इलजाम मेरे पति पर लगाएगी? उस की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह ऐसा करे, तू बस उस के लिए ऐयाशी के समान से ज्यादा कुछ नहीं है. जिस का बच्चा है, या तो उस के साथ शादी कर ले या मार दे. पर यहां से तेरा कोई फायदा नहीं होगा.’

जैसे आंधी की तरह वह औरत आई थी, वैसे ही तूफान की तरह चली गई. मधुरिमा जहां थी वहीं की वहीं की वही खड़ी रही और उस का शरीर पत्ते की तरह कांप रहा था. करिश्मा ने दूर से देखा, मधुरिमा का चेहरा हल्दी की तरह पीला पड़ गया था. अगर सोहैल सहारा न देता तो मधुरिमा जरूर लड़खड़ा कर गिर पड़ती. विकास और करिश्मा मधुरिमा को डाक्टर के पास ले कर गए. डाक्टर ने विकास से पूछा, ‘आप इन के हस्बैंड हैं क्या? देखिए, इन का तीसरा माह शुरू होने वाला है, ऐसी हालत में इतना तनाव इन के लिए सही नहीं है.’

उस रात विकास की सलाह पर  करिश्मा, मधुरिमा के पास उस के घर में ही रुक गई थी. उस के घर की हर दरोदीवार पर मिस्टर देवेश की मौजूदगी के चिन्ह इंगित थे. रात में खाना खाते हुए जब करिश्मा ने मधुरिमा से पूछा, ‘मधु, क्या करना है, क्या अकेले पाल पाओगी इस बच्चे

को?’

मधु आंखों में आंसू भरते हुए बोली, ‘देवेश इस बच्चे को अपना नाम देने के लिए तैयार नहीं है. उस के हिसाब से यह मेरी मौजमस्ती का परिणाम है. करिश्मा, मैं ने सब देवेश की तरक़्क़ी के लिए किया था और मैं दिल से उसे प्यार करती हूं, पर देवेश ने नताशा के आते ही मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया.’

करिश्मा ने कहा, ‘सब से पहले बच्चे के बारे में सोचो और फिर कहीं और नौकरी कर लो.’

मधुरिमा बोली, ‘पिछले 3 माह से कोशिश कर रही हूं, पर मुझ जैसी सिंपल ग्रेजुएट के लिए मार्केट में कोई नौकरी नहीं है. कंप्यूटर तक तो ठीक से औपरेट नहीं कर पाती हूं.’

करिश्मा को मधु के लिए बहुत दुख हो रहा था. पर यह राह मधु ने खुद ही अपने लिए चुनी थी. फिर  अचानक से 7 दिनों के लिए मधुरिमा दफ़्तर से गायब हो गई थी. जब 7 दिनों बाद मधुरिमा ने दफ़्तर में प्रवेश किया तो वह बेहद थकी हुई लग रही थी. मधुरिमा ने ही करिश्मा को बताया कि मिस्टर देवेश ने इस शर्त पर उसे अपनी ज़िंदगी में जगह दी है कि वह गर्भपात करा ले और अपना मुंह बंद कर के जो काम कर सकती है, करे. मिस्टर देवेश की ज़िंदगी के साथसाथ अब मधुरिमा दफ़्तर के लिए भी एक फ़ालतू सामान बन गई थी.

आज मिस्टर देवेश की बहुत बड़ी डील होनी थी. नताशा खूब अच्छे से तैयार हो कर आई थी. पर इस बार क्लाइंट को प्रैजेंटेशन समझाते हुए नताशा उन के प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाई. हर बार की तरह नताशा इस बार भी अपनी अदाओं के जलवे बिखेरने लगी. पर उस की दाल नहीं गल पा रही थी. जब डील हाथ से निकलने वाली ही थी, तभी ऐन वक्त पर करिश्मा ने आ कर बात संभाल ली. कंपनी के निदेशक करिश्मा से इतने अधिक प्रभावित हुए थे कि उन्होंने करिश्मा को अपनी कंपनी में क्रिएटिव हेड टीम की पोस्ट औफर कर दी और साथ ही साथ, रहने के लिए फ्लैट और यहां से दुगना वेतन.

विकास धीरे से करिश्मा के कान में फुसफुसा कर बोला, ‘मैं कहता था न, कि करिश्मा, तुम जरूर करिश्मा करोगी.’

करिश्मा मन ही मन सोच रही थी कि लिपस्टिक से मिलने वाली सफलता लिपस्टिक की तरह ही जल्दी फेड हो जाती हैं लेकिन मेहनत से प्राप्त किया हुआ हुनर कभी फेड नहीं हो सकता. काश, मधुरिमा इस बात को अब भी समझ कर कुछ कर ले. तभी करिश्मा ने देखा, नताशा एक कोने में खड़े हुए अपनी लिपस्टिक को टचअप कर रही थी.

Hindi Moral Tales : समय बड़ा बलवान – एक क्षण में राजा को रंक बनते लोग

Hindi Moral Tales : आधी रात को गांधीनगर जिला आरोग्य अधिकारी का फोन आया, ‘‘डा. माहेश्वरी, तुम्हें कल सुबह जितना जल्दी हो सके स्वास्थ्य टीम के साथ सूरत के लिए निकलना है. वहां बाढ़ से हालात बद से बदतर हो रहे हैं,’’ कहते हुए उन्होंने फोन काट दिया.

प्रतिनियुक्ति की बात सुन कर दूसरे सरकारी अधिकारियों की तरह मेरा दिमाग भी खराब हो गया. अपना घर व अस्पताल छोड़ कर अनजान शहर में जा कर चिकित्सा का कार्य करना. कई सरकारी चिकित्सकों ने प्रतिनियुक्ति की बारंबारता से हैरान हो कर सरकारी नौकरी ही छोड़ दी. पर नौकरी तो नौकरी ही होती है, भले ही चिकित्सक की सम्मानित नौकरी ही क्यों न हो.

अचानक सूरत जाने की बात सुन कर पत्नी उदास हो गई. बच्ची बहुत ही छोटी थी. शुक्र था कि मां मेरे यहां ही थीं. आधी रात को ही बैग तैयार कर दिया.

‘‘खाने का सूखा नाश्ता ले लो. पता नहीं, इस हालत में सूरत में कुछ मिलेगा भी कि नहीं?’’ पत्नी ने सलाह दी. हालांकि, जौहरियों का शहर अपने खानपान के लिए मशहूर था.

‘‘इतना बड़ा शहर है, कुछ न कुछ तो खाने को मिलेगा ही.’’

मेरे मना करने के बाद भी उस ने नमकीन व मूंगफली के पैकेट मेरे बैग में डाल दिए.

हम सरकारी एंबुलैंस वाहन से पूरी टीम के साथ सूरत के लिए निकल गए. हमारे साथ दूसरी गाडि़यां भी थीं जिन में आसपास के सरकारी चिकित्सकों की टीमें थीं. गांधीनगर में भी बरसात चालू थी और बादलों से पूरा आकाश भरा पड़ा था.

जैसे ही हम बड़ौदा से आगे निकले, टै्रफिक बढ़ता ही जा रहा था. गाडि़यां धीरेधीरे चल पा रही थीं. बड़ौदा से सूरत का 3 घंटे का रास्ता 6 घंटे से भी ज्यादा हो गया था. ऊपर से सड़क पर बड़ेबड़े गड्ढे.

करीब 5 बजे हम सूरत पहुंचे. सूरत शहर के अंदर पहुंचते ही भयावह स्थिति का अंदाजा लगा. शहर के किनारे पर ही एक फुट तक पानी था जो बढ़ ही रहा था. हमें ऐसे लग रहा था कि हम जैसे आस्ट्रिया की राजधानी वियना में प्रवेश कर रहे हैं, जहां पूरा शहर पानी के अंदर बसा हुआ है, सड़कें पानी की बनी हुई हैं और दोनों ओर खूबसूरत इमारतें हैं. हमें कंट्रोल रूम जा कर रिपोर्टिंग करनी थी जो शहर के बीचोंबीच था. यह जानकारी हमारा ड्राइवर पान की दुकान से लाया था.

सूरत शहर भव्य व हजारों साल पुराना है. हजारों वर्षों से यहां से गुजराती व्यापारी जलमार्ग से पूरी दुनिया में व्यापार करते थे. यहीं पर पुर्तगालियों ने अपनी पहली कोठी स्थापित की थी जिस की अनुमति मुगल सम्राट जहांगीर ने दी थी.

यह शहर उस समय पूरी दुनिया के सामने आया जब 90 के दशक में प्लेग ने पूरे शहर को जकड़ लिया था. पूरी दुनिया भारत आने से डर गई थी, उसी शहर से जहां पूरी दुनिया ने भारत में आधित्पय जमाने की कोशिश की थी.

यह शहर सच में बहुत ही खूबसूरत व भव्य था. बड़ी इमारतें, चौड़े रास्ते व खूबसूरत चौराहे. यह शहर अभी भी टैक्सटाइल व हीरेजवाहरात के लिए पूरी दुनिया में महत्त्वपूर्ण शहर है. कच्चे हीरे यहां लाए जाते हैं और तराश कर पूरी दुनिया में भेजे जाते हैं.

अब हम 2-3 फुट पानी में रेंग रहे थे. हम कंट्रोल रूम रात के 7 बजे पहुंचे. कंट्रोल रूम में भी 2-3 फुट पानी था. औफिस प्रथम मंजिल पर था. हम ने वहां प्रतिनियुक्ति पत्र दिया और अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. उन्होंने हमारा बेमन से स्वागत किया, शायद वे भी प्रतिनियुक्ति पर आए हुए थे.

‘‘तुम्हारा कार्यक्षेत्र उधना स्वाथ्य केंद्र में है और वहीं से वे तुम्हें जहां का आदेश दें वहां जाना है. और तुम्हारा कैंप स्थल पब्लिक स्कूल में है, वहीं तुम्हें रुकना है,’’ उन्होंने एक लिखित आदेश दिया जिस में पूरा पता था.

हम पब्लिक स्कूल की ओर चले. चाय की जोरदार तलब हो रही थी, हालांकि हम ने रास्ते में 3-4 बार चाय पी थी.

लंबा व उबाऊ रास्ता होने के कारण थकान व चिड़चिड़ाहट हो रही थी. दुकानें बंद थीं और चाय के ठेले नदारद थे. 3 किलोमीटर की दूरी एक घंटे में तय करने के बाद हमारा अस्थायी आशियाना एक पब्लिक स्कूल दिखा. यह पब्लिक स्कूल भी महानगर के प्राइवेट स्कूल जैसा दिखा. कैंपस छोटा, पर ऊंचा था. ड्राइवर ने गली में ही गाड़ी पार्क की और हम ने सामान उतार कर स्कूल में प्रवेश किया.

टेबल पर एक वृद्ध सज्जन बैठे थे. वे स्कूल के ट्रस्टी थे. पास में ही खाना बन रहा था, जो शायद हमारे जैसे प्रतिनियुक्ति वालों के लिए था. हमें ऊपर दूसरी मंजिल पर रुकवाया गया था जहां फर्श पर ही बिस्तर लगे हुए थे. मैं ने दूसरी मंजिल पर जाने से पहले उन सज्जन से पूछा, ‘‘क्या चाय मिल सकती है?’’ हालांकि सब की इच्छा थी पर कोईर् भी संकोच के कारण कह नहीं रहा था.

‘‘हां, पर उस ने अभी ही गैस बंद की है क्योंकि अब शाम का खाना बन रहा है,’’ उन्होंने सीधे न कह कर चाय न बनाने का कारण बताया.

‘‘ओह,’’ मेरे पीछे से डा. गज्जर की आवाज आई.

‘‘धन्यवाद, कोई बात नहीं,’’ मैं ने कहा और सामान ले कर दूसरी मंजिल पर पहुंच गया.

हम ने ऊपर जा कर हाथमुंह धोए, नाइट सूट पहन कर थोड़ी देर बाद नीचे आ गए क्योंकि खाने का समय हो गया था. हमारे साथ आए स्वास्थ्य कार्यकर्ता डोडियार भाई ने कहा, ‘‘साहब, जल्दी चलते हैं, नहीं तो वह भी खत्म हो जाएगा.’’ उस की बात सुन कर सब हंसते हुए नीचे आ गए.

दूसरे जिले से आईर् टीमों ने खाना शुरू कर दिया था. काफी लंबी लाइन लगी हुई थी. हम भी अनुशासित रूप से प्लेट ले कर लाइन में लग गए. ऐसा लग रहा था कि हम भी बाढ़ प्रभावित हैं. हमारे साथ आए डा. वैष्णव ने कहा, ‘‘मैं यहां लंगर का खाना नहीं खाऊंगा, मैं होटल में खाने जा रहा हूं.’’

यह सुन कर डा. पटेल हंसने लगे, ‘‘तो फिर तुम्हें उपवास रखना पड़ेगा. शहर में आज सारे होटल बंद हैं क्योंकि नदी का पानी काफी बढ़ चुका है.’’

मन मार कर उन्हें भी प्लेट ले कर लाइन में लगना पड़ा. खाना अच्छा व स्वादिष्ठ भी था. पर जब एक ही चपाती डाली तो मैं ने एक और चपाती के लिए कहा, तो उस ने ऐसा जवाब दिया कि मैं ने तो क्या, लाइन में खड़े किसी ने भी मांगने की गुस्ताखी नहीं की. उस का जवाब सुन कर मूड बहुत ही खराब हो गया था.

रात के 9 बज चुके थे. सब खाना खा कर बातें करने के मूड में थे. पर थकावट इतनी थी कि 10 बजतेबजते सब सो चुके थे.

दूसरे दिन सुबह 6 बजे उठ कर हम नहाधो कर नीचे आए. हालांकि उस में समय लगा क्योंकि लोग ज्यादा थे और बाथरूम कम थे. नीचे देखा तो रात को और भी टीमें आई थीं. मेरी पुरानी जगह पाटन शहर के पहचान वाले मिले. हम दोनों को ही काफी समय बाद मिलने की खुशी हुई.

चाय बन रही थी. चाय पी कर हम उधना स्वास्थ्य केंद्र गए जहां से हमें किधर जाना है, इस बात के आदेश मिलने थे.

वहां हमें निर्देश मिले कि हमें फलां जगह जाना है और एंबुलैंस में ही सब की जांच कर के दवा देनी है और कोई गंभीर हो तो उसे यहां लाना है. हमें आज सूरत की सब से मशहूर जगह पार्ले पौइंट मिली. वह वीआईपी जगह थी. हमें यहां ज्यादा मरीज मिलने की आशा नहीं थी. बाहर आ कर हम ने स्थानीय व्यक्ति से जगह पूछी. वहीं पर हमें आज का ही अखबार भी मिला, यह हमारे लिए खुशी की बात थी. मैं ने 2-3 तरह के अखबार ले लिए जिस से स्थानीय जानकारी ज्यादा मिल सके और यदि काम नहीं हो तो समय भी कट जाए. अखबार पर थोड़ी नजर रास्ते में ही डाल ली. काफी भयावह दृश्य थे. कुछ हादसों की तसवीरें भी थीं और हमेशा की तरह सरकारी तंत्र पर दोषारोपण भी थे.

ेहमारा पहला पड़ाव नजदीक ही था, पर पानी भरा होने व ड्राइवर को रास्ता पता न होने के कारण थोड़ा समय लगा. यह स्थल पानी में डूबा हुआ था और पानी तेज धार के साथ बह भी रहा था. मेरे कहने पर ड्राइवर ने गाड़ी फुटपाथ पर चढ़ा दी जिस से हम मरीजों को आसानी से देख सकें, हालांकि, हमें सूरत के सब से पौश एरिया में मरीजों के आने की उम्मीद कम थी.

पहले वहां नजदीक में कोई नहीं था, पर एंबुलैंस व डाक्टर देख कर धीरेधीरे लोग आने लगे. एंबुलैंस का पीछे का दरवाजा खुला हुआ था. मैं जांच कर रहा था और मेरा स्टाफ दवाई दे रहा था. इतने दिनों की बरसात के चलते ठंड के कारण लोग बीमार पड़ गए थे. उन्हें बुखार व सर्दी थी. दूसरे, काफी मरीज ब्लडप्रैशर व मधुमेह के थे. इतने दिनों की बाढ़ के कारण उन की दवाइयां खत्म हो गई थीं. मैं उन का रक्तचाप माप कर दवाइयां दे रहा था, तो कुछ लोग एडवांस में ही बुखार व सर्दी की दवा मांग रहे थे कि कहीं बीमार पड़ गए तो काम आएगी. हम ने हंसते हुए थोड़ी दवा उन्हें भी दे दी. मैं ने गौर से देखा कि सरकारी दवा लेने वाले लगभग सभी वर्गों के थे.

यहां 2-3 घंटे मरीजों को देख कर थोड़ी दूर दूसरी जगह गए. यह कमर्शियल जगह थी, ऊंचीऊंची बिल्ंिडगें थीं जिन के नीचे शौपिंग कौम्पलैक्स थे. और इन के बेसमैंट में पानी भरा हुआ था. पानी पहली मंजिल की दूसरी दुकान में भी घुस गया था. मैं सोच रहा था कि लाखों रुपयों का फर्नीचर और न जाने कितना सामान पानी के कारण खराब हो गया और इन व्यापारियों की जीवनभर की कमाई इस में लगी हुई होगी.

यहां पर हमारी एंबुलैंस तो थी ही साथ में, सड़क पर छोटीमोटी नावें भी चल रही थीं जहां कार व दोपहिए वाहन चलते थे. यह थोड़ा रोमांचक पर अजीब लग रहा था. यह तो ऐसा हुआ कि कभी नाव सड़क पर, तो कभी कार सड़क पर.

नाव में से सामाजिक कार्यकर्ता राहत सामग्री, दूध के पाउच व फूड पैकेट बांट रहे थे. कई नावों के ऊपर उन का एक कार्यकर्ता अपने संगठन का  झंडा लगाए हुए खड़ा था. हर श्रेणी के लोग हाथ आगे कर के पैकेट ले रहे थे.

पार्ले के आगे एक भाईसाहब जौगिंग के लिए निकल रहे थे. जहां खुली जगह थी वहां जौगिंग कर रहे थे. मैं ने उन की ओर हंसते हुए हाथ हिलाया तो वे रुक गए, ‘‘आज भी जौगिंग?’’

‘‘हां, 30 वर्षों से कर रहा हूं चाहे कैसी भी परिस्थतियां हों, आदत हो गई है. आज भी मन नहीं माना, तो घर से निकल पड़ा,’’ उन्होंने भी मुसकराते हुए कहा. उन से सूरत शहर व बाढ़ के बारे में बातें हुईं. वे अपनी सूरत शहर की नगरपालिका की बातबात पर बड़ाई कर रहे थे.

तो मैं ने कहा, ‘‘आप की नगरपालिका इतनी अच्छी है तो बाढ़ ही क्यों आई? क्या पानी निकासी के मार्ग अच्छे नहीं हैं?’’

‘‘डा. साहब, यह तो पूर्णिमा व महाराष्ट्र में भंयकर भारी बरसात के मेल के कारण हुआ.’’ उन्हें मेरा व्यंग्यबाण अच्छा नहीं लगा.

मेले व तीजत्योहार तो सम झा जो पूर्णिमा के कारण होते हैं. पर बाढ़ का कारण वह भी पूर्णिमा? मु झे सोचते हुए देखते उन्होंने कहा, ‘‘हां, यह शहर तापी नदी व समुद्र के बीच बसा हुआ है. तापी नदी यहीं शहर के बीचोंबीच बह कर समुद्र में मिलती है. तापी नदी पर ही सूरत से पहले उकाई डैम बना हुआ है. अभी पूर्णिमा के समय समुद्र में ज्वारभाटा आता है जिस से नदी का पानी समुद्र में जाना तो दूर, उलटा समुद्र का पानी बाहर किनारे पर आता है. इस कारण नदी का सारा पानी उबल कर सूरत शहर में ही फैल गया. ऊपर से शहर में बरसात हो रही है. पानी को कोई रास्ता ही नहीं मिल रहा है बाहर जाने का. आज ज्वार कम हुआ है, इसलिए आशा है कि जल्दी ही पानी समुद्र में चला जाएगा और शहर में पानी का लैवल कम हो जाएगा,’’ उन्होंने विस्तार से बाढ़ का कारण बताया जो मेरे जैसे मरु रेगिस्तानी बाश्ंिदे के लिए आश्चर्य का विषय था.

उन्होंने अपने शहर के लोगों की समृद्धि के किस्से सुनाए. कैसे यहां का सब्जी वाला सब्जी के भाव पूछने पर ही भड़क जाता है और व्यंग्य से बोलता है, ‘रहने दो न साहब, यह सब्जी तो यहां के हीरे तराशने वाले ही खा सकते हैं.’ हम उन की बातें गौर व आश्चर्य से सुन रहे थे. यह व्यावसायिक एरिया होने के कारण यहां मरीज ज्यादा नहीं थे. पर हमें आज का पूरा समय यहीं गुजारना था.

दोपहर के 2 बज रहे थे. अब खाने का सवाल था. मैं ने फोन कर के दूसरी टीम से पूछा, ‘‘खाने की कोई व्यवस्था पता चली?’’ तो पता चला कि मैडिकल कालेज, जो यहां से लगभग 5 किलोमीटर दूर है, में खाने की व्यवस्था है. मैं ने स्टाफ से कहा, ‘‘ठीक है, शाम को ही खा लेंगे.’’

‘‘सर, अभी 2-3 घंटे के बाद जब भूख लगेगी तो क्या करेंगे? चाय तक नहीं मिल रही है, खाना कहां मिलेगा?’’ उस की बात सही थी, आज सुबह नाश्ता भी नहीं किया था.

हम मैडिकल कालेज पहुंचे जहां दुनियाभर की एंबुलैंस व सरकारी गाडि़यां खड़ी थीं. नंबर प्लेट से लग रहा था कि पूरे गुजरात की गाडि़यां यहां आई हुई हैं, जीजे 01 से ले कर जीजे 30 तक.

हम भी खाने की लाइन में खड़े हो गए. आज मिनरल वाटर की बोतलें भी थीं. हम ने खाने के साथ कुछ ऐक्स्ट्रा भी लीं ताकि पूरे दिन काम आएं. यहां दूसरी बातें भी पता चलीं कि डीजल के कूपन भी मिल रहे थे. हमारा ड्राइवर कूपन ले कर आया.

यहां आए हुए 3-4 दिन हो गए थे. अब पानी उतरना शुरू हो गया था. उतरता हुआ पानी नयनरम्य लग रहा था. पानी बहुत ही तेजी से उतर रहा था क्योंकि बांध से पानी छोड़ा जाना बंद हो चुका था और ज्वारभाटे का असर खत्म हो चुका था. कुछ दिनों बाद पानी अपना निशान छोड़ चुका था.

अब शहर में चहलपहल बढ़ रही थी. नावें एक तरफ हो चुकी थीं. उस की जगह राहत गाडि़यों ने ली जो पूरे शहर में घूम रही थीं. जहां पानी उतर चुका थो वहां कीचड़ ही कीचड़ था. पर अभी भी बेसमैंट में पानी भरा हुआ था, जिसे उस के मालिक पंप से निकालने की कोशिश कर रहे थे. इतना पानी था कि 24 घंटे पंप चलने के बाद भी पानी निकल नहीं पाया. दुकान का फर्नीचर, जो प्लाइवुड का था, पानी में रह कर किताब, मतलब, परतदार बन चुका था. सामान का तो पूछो ही मत. सबकुछ जैसे शून्य हो गया. पार्किंग में खड़ी गाडि़यां खराब हो चुकी थीं और सर्विस सैंटर के आगे लंबी लाइनें लगी थीं. सर्विस सैंटर ने भी पूरे गुजरातभर से अपने कारीगर यहां बुलाए. चारों तरफ तबाही के मंजर थे.

सूरत आए हुए 5वां दिन था. आज हमें वराछा विस्तार में भेजा गया था. यह सूरत का सब से पौश विस्तार गिना जाता था. यह रईसों का इलाका माना जाता है. यहां पूरे सूरत शहर की तरह बड़ीबड़ी इमारतों की जगह बड़ेबड़े बंगले थे. ऐसे ही एक बड़े बंगले के सामने खाली जगह, जहां पेवर ब्लौक का मैदान था, हम ने अपनी एंबुलैंस पार्क की.

मैं वहीं मैडिसिन ले कर चाइना मोजैक की बैंच पर बैठ गया. यहां मरीजों के आने की संभावना बहुत ही कम थी. कुछ ही देर बाद एक सज्जन नए मौडल की मर्सिडीज गाड़ी से उतरे. उन्होंने इस मौसम में भी सफेद  झक नए कपड़े पहने हुए थे. पायजामे के किनारे कीचड़ लगा हुआ था. उन की दोनों हाथों की दस की दस उंगलियों में महंगे हीरेरत्न, जो सोने की भारीभरकम अंगूठियों में मढे़ हुए थे, दिख रहे थे. पीछे से उन का वरदीधारी ड्राइवर बहुत सारा सामान ले कर उतरा.

पहले तो वे बंगले की ओर, जिस के ऊपर गोल्डन रंग की धातु से स्वयं लिखा हुआ था, जा रहे थे, लेकिन हमें देख कर वे रुके और हमारी ओर आए.

‘‘सरकार की ओर से मैडिकल इमरजैंसी सेवा. आप डाक्टर हैं?’’ उन्होंने मेरे गले में स्टेथोस्कोप देख कर, मेरी ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘जी हां,’’ मैं ने भी अपना हाथ उन की ओर बढ़ाते हुए अपना परिचय दिया.

‘‘कहां से आए हैं डाक्टर साहब,’’ उन्होंने कुछ औपचारिक प्रश्न पूछे.

‘‘गांधीनगर से.’’

‘‘ओह, हैरान हो गए होंगे यहां आ कर?’’

‘‘इस शहर वालों से कम,’’ मैं ने अपने 5 दिन के अनुभव पर कहा.

यह सुन कर वे हंसने लगे, ‘‘यह आप का बड़प्पन है. आइए मेरे घर, सामने है,’’ उन्होंने अपने घर की ओर इशारा करते हुए कहा.

हम हिचक रहे थे.

‘‘आइए न प्लीज, हमारे यहां एक कप चाय पीजिए. आप तो हमारे शहर के मेहमान हैं,’’ उन्होंने आग्रहपूर्वक कहा.

स्टेथोस्कोप गाड़ी में रख कर स्टाफ के साथ मैं उन के बंगले में गया.

उन का ड्राइंगरूम प्रथम मंजिल पर था जो फाइवस्टार होटल जितना विशाल व भव्य था. छत पर बेल्जियम के  झूमर लटक रहे थे. उन के ड्राइंगरूम की एक भी चीज ऐसी नहीं थी जिसे मैं अपने वेतन से खरीद सकूं.

‘‘श्यामलाल, चाय व नाश्ता बनाना,’’ उन्होंने अपने नौकर को आदेश दिया. फिर सूरत शहर के बारे में वर्तमान हालात के बारे में हम से बातें कीं.

चाय व नाश्ता शानदार था. क्रौकरी शायद बेल्जियम के सब से अच्छे स्टोर की थी, एकदम क्रिस्टल क्लीयर और उस पर यूरोपियन संस्कृति की मीनाकारी थी. नाश्ता करते समय उन्होंने अपनी कंपनी के बारे में संक्षिप्त में बताया. उन की कंपनी अपने तराशे हुए डायमंड सिर्फ अमेरिका के मशहूर रिटेल स्टोर को ही सप्लाई करती है. यह पूरी फर्म उन्होंने अपने मजबूत इरादों व मेहनत से खड़ी की थी. उन के पिता का राजस्थान में अनाज का काम था.

‘‘आप बहुत ही सुशील व सह्यदयी व्यक्ति हैं जिन्हें अपने अरबों की दौलत पर और खुद की सफलता पर जरा सा भी घमंड नहीं है,’’ मैं ने शानदार मेहमाननवाजी के लिए धन्यवाद देते हुए कहा. यह सुन कर वे जोर से हंसने लगे, ‘‘डा. साहब, यदि आप मु झे बाढ़ से पहले मिलते, तो यह आप कभी नहीं कहते.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मेरे साथ मेरा स्टाफ भी उन की ओर हैरानी से देखने लगे.

‘‘सच बात है डाक्टर साहब. इस बाढ़ से पहले मु झे अपनी सफलता व मेहनत पर और मेरी मेहनत से कमाई अथाह दौलत पर बहुत ही घमंड था. मैं कभी भी किसी से सीधेमुंह बात तक नहीं करता था. मेरे पैसे के इस अहंकार से मेरे बचपन के दोस्त तक मुझ से दूर हो गए. मैं अपनी कंपनी में काम करने वालों को गुलाम सम झता था, जो मेरे द्वारा दिए गए वेतन के कारण जी रहे हैं.’’

‘‘फिर अचानक कुछ ही दिनों में आप पर यह जादुई बदलाव कैसे आया?’’ मेरे अंदर का कहानीकार जाग उठा.

‘‘जिस दिन हम ने सरकार की घोषणा सुनी कि तापी बांध से इतना पानी छोड़ेंगे कि पूरा सूरत शहर कई दिनों तक जल पल्लवित हो जाएगा और सभी नागरिक लंबे समय के लिए खानेपीने की व्यवस्था कर के रखें, मैं ने उस समय यही सोचा कि यह घोषणा मेरे जैसे लोगों के लिए नहीं है, जिन के घर में पूरे वर्ष में भी कभी कम नहीं पड़ता. पर पत्नी ने नौकर को भेज कर काफी सामान मंगा लिया था.

‘‘पर इस बार बाढ़ सूरतवासियों की अपेक्षा से भी ज्यादा लंबी चली. मेरे यहां बाकी वस्तुओं से सब चलता रहा, पर दूध तीसरे दिन ही खत्म हो गया. हम बड़ी उम्र के लोग चाय के बिना जैसेतैसे कुछ दिन निकाल दें, पर छोटेछोटे बच्चे बिना दूध के कैसे रह सकते हैं. पाउडर का दूध तो बच्चे सूंघ कर ही मना कर देते हैं. सारा बाजार बंद था.

‘‘ऐसे ही दोपहर को मेरा बच्चा दूध के बिना रो रहा था और उस समय सरकारी व स्वयंसेवी संस्थाएं हमारे घर के सामने नाव से दूध व दूसरे सामान का वितरण करने के लिए आई थीं. मैं ने भी मजबूरी में दूध के लिए हाथ लंबा कर के कहा, ‘दूध चाहिए,’ उन्होंने उस हाथ में दो थैली दूध की रखीं जिस हाथ में चारों उंगलियों में से एक तर्जनी में लक्जमबर्ग से खरीदा शुद्ध पुखराज था, मध्यमा में नीलम, जो गोलकुंडा की खानों से निकला हुआ था, अंगुष्ठा में लंदन का माणिक जगमगा रहा था. पहली अंगूठी में अफ्रीका से खरीदा हीरा था. 10 करोड़ रुपए से भी ज्यादा सोने की अंगूठियों में नग मढ़े हुए थे जो मैं ने दुनिया के बाजार से मुंहमांगी कीमत से खरीदे थे क्योंकि वे मु झे बहुत ही पसंद आए थे.

‘‘10 करोड़ के हाथ में 40 रुपए का दूध मु झे मेरी औकात बता रहा था कि, ‘सेठ, समय ही ताकतवर होता है,’ उन्होंने गहरी सांस ले कर कहा.

‘‘हमें हमारी उपलब्धि पर खुश होना चाहिए, न कि अभिमानी. इस बाढ़ ने मेरे गर्व व अभिमान को उसी तरह से तोड़ दिया जिस तरह बड़े से बड़ा चमकदार शीशा एक फेंके हुए छोटे से पत्थर के सामने टूट जाता है,’’ हमें मुख्य दरवाजे तक छोड़ते हुए उन्होंने कहा.

Latest Hindi Stories : बेहाल मध्यमवर्गीय परिवार

Latest Hindi Stories :  आपदा के समय रमेशचंद्र के मध्यमवर्गीय परिवार के भूखों मरने की नौबत आ गई. सरकार की तरफ से भी किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में उन्होंने देश में आपदा के हालात चल रहे थे, इस स्थिति में लोग न जाने कैसेकैसे अपने परिवार का पेट भर रहे थे. सरकार भी ऐसी स्थिति में जरूरतमंदों की यथासंभव सहायता कर रही थी. लेकिन एक परिवार ऐसा था जिसे खाने के लाले पड़े थे. सरकार से भी उसे कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. ऐसी स्थिति में रमेशचंद्र ने आपदा राहत कंट्रोल रूम में फोन किया, ‘‘नमस्कार जी, क्या आप आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहे हैं?’’

‘‘हां जी बोलिए, मैं आपदा राहत कंट्रोल रूम से बोल रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.
तभी रमेशचंद्र ने लड़खड़ाती जुबान से कहा, ‘‘साहब, हमारे घर के पास झुग्गियों में कुछ बेहद लाचार किस्मत के मारे मजदूर रहते हैं, जोकि अपना राशन खत्म होने के कारण कई दिनों से भूख से तड़प रहे हैं. इन बेचारों की तुरंत मदद कर के उन की जान बचा लो साहब.’’औफिसर ने रमेशचंद्र को हड़काते हुए कहा, ‘‘उन लोगों ने मदद के लिए फोन क्यों नहीं किया और तुम क्यों कर रहे हो?’’‘‘साहब, गुस्सा मत होइए. वो बेचारे भूख से बहुत परेशान हैं. बात करने तक की स्थिति में नहीं हैं.’’ रमेशचंद्र ने प्यार से कहा.
‘‘ठीक है एड्रेस बताओ, कहां मदद पहुंचवानी है और कितने लोग हैं?’’

औफिसर ने पूछा. ‘‘जी साहब, लिखो. मकान नबंर 1008, सेक्टर 27, सिटी सेंटर. यहां 2 बच्चे व 4 लोग बड़े लोग हैं.’’ रमेशचंद्र ने बताया. यह सुनते ही उस अफसर ने गुस्से में भर कर रमेशचंद्र को डांटते हुए कहा, ‘‘तेरा दिमाग खराब है क्या, अभी तो झुग्गी बता रहा था और अब मकान का पता लिखवा रहा है, इस सेक्टर में तो सब पैसे वाले लोग रहते हैं.’’रमेशचंद्र ने बड़ी लाचारी से कहा, ‘‘जी साहब, दिमाग भी खराब है और आजकल किस्मत भी खराब चल रही है. आप ठीक कह रहे हैं कि इस सेक्टर में पैसे वाले लोग रहते हैं.

लेकिन साहब झुग्गी का कोई नंबर तो होता नहीं और अगर आप की टीम झुग्गी ढूंढने में इधरउधर भटकती रही और उन को मदद देर से पहुंची तो उन मुसीबत के मारों पर भूख के चलते पहाड़ टूट सकता है. साहब, उन की जान जा सकती है. इसलिए मैं ने अपने घर का पता लिखवा दिया है.’’‘‘तुम्हारी बातों से लगता है कि उन लोगों की बहुत गंभीर स्थिति है. चलो ठीक है, हम तुरंत मदद भिजवा रहे हैं, लेकिन तुम को जरा भी इंसान व इंसानियत की फिक्र नहीं है, एक टाइम रोटी बनवा कर तुम भी उन बेचारों को खिलवा सकते थे.

‘‘ऐसा कर के तुम्हारा कुछ बिगड़ तो नहीं जाता. खैर, मैं तुरंत मदद करने वाली जिला राहत टीम को आप के पास भेज रहा हूं. टीम आधे घंटे में तुम्हारे पास उन लोगों के लिए खाना व एक महीने का राशन ले कर पहुंच रही है.’’ ‘‘बहुतबहुत धन्यवाद साहब. मैं हमेशा आप का बहुत एहसानमंद रहूंगा, वो लाचार भूखे लोग आप को हमेशा दिल से दुआ देंगे साहब.’’ रमेशचंद्र ने कहा.‘‘ठीक है, मैं ने इस काम के लिए टीम के वरिष्ठ अधिकारी विजय की ड्यूटी लगा दी. वो खाना व राशन ले कर निकलने वाले हैं. तुम उन का इंतजार करना.’’

‘‘जी साहब, मैं उन का इंतजार करूंगा, आप चिंता न करें.’’ लगभग आधे घंटे बाद रमेशचंद्र के मोबाइल पर काल आई. फोन करने वाले ने उन से कहा, ‘‘मैं जिला राहत टीम से विजय बोल रहा हूं, घर के बाहर आ जाओ. ‘‘जी साहब, अभी आया.’’ कहते हुए रमेशचंद्र घर से बाहर निकले तो देखा कि एक जीप में 2 लोग खाना व सामान ले कर इंतजार कर रहे थे, वह पास घबराते हुए उन के पहुंचे और बोले, ‘‘साहब नमस्कार, मैं रमेशचंद्र हूं.’’ ‘‘ठीक है, बताओ कौन सी झुग्गी है जिन लोगों की खाने और राशन से मदद करनी है?’’ विजय ने कहा.

‘‘आप क्यों परेशान होते हैं, आप खाना व सामान मुझे दे दो, मैं उन की झुग्गी पर खुद ही पहुंचा दूंगा.’’ रमेशचंद्र बोले. ‘‘नहीं, मैं खुद दे कर आऊंगा. साहब का आदेश है कि उन मुसीबत के मारे लोगों से मिल कर जरूर आना और उन की कोई और जरूरत हो तो उन से पूछ लेना. तुम मुझे उन से मिलवाओ, जिस से मैं समय से अपना काम कर के किसी दूसरे व्यक्ति की मदद करने जा सकूं.’’ यह सुन कर रमेशचंद्र पसीने से तरबतर हो घबराते हुए बोले, ‘‘जी ठीक है, जैसा आप का आदेश, चलिए.’’

वह विजय को अपने छोटे से अव्यवस्थित घर के अंदर ले जाने लगे. ‘‘तुम आपदा के समय में मेरा टाइम खराब नहीं करो, हमें और भी जरूरतमंदों की सहायता करनी है. इसलिए हमारे पास आप के यहां बैठने का समय नहीं है. हमें जल्दी से उन झुग्गियों पर ले चलो.’’ रमेशचंद्र उस से नजरें छिपा कर बोले, ‘‘साहब मैं आप का टाइम खराब नहीं कर रहा बल्कि आप को जरूरतमंद लोगों के पास ही ले जा रहा हूं.’’
‘‘मैं तुम्हारे खिलाफ कानूनी काररवाई करूंगा, तुम ने इस भयंकर आपदा काल में झूठ बोल कर हमारा टाइम खराब किया. तुम इंसानियत के दुश्मन हो, जिस घर में तुम चलने के लिए बोल रहे हो, उस घर के लोगों को मदद की आवश्यकता नहीं हो सकती. कोई भी इस बात का अंदाजा घर और गाड़ी देख कर लगा सकता है. मैं फोन कर के पुलिस को बुलाता हूं.’’

विजय गुस्से से लाल हो कर मोबाइल से कोई नंबर मिलाने लगा तो रमेशचंद्र घबरा गए. उन्होंने मानमनौव्वल कर के जैसेतैसे उसे रोका तो वह बेहद गुस्से में वापस अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगा.
रमेशचंद्र उसे रोकते हुए बोले, ‘‘साहब, अगर आप खाना और राशन दे जाएं तो आप का बहुत एहसान होगा. हम लोगों की जान बच जाएगी. मुझे और मेरे घर वालों को खाने व राशन की बहुत सख्त जरूरत है.’’

‘‘क्यों झूठ बोल रहे हो, तुम को जरूरतमंद लोगों का अधिकार मारते हुए शर्म नहीं आती. तुम्हारे घर के लोगों को मदद की क्या जरूरत है. तुम तो स्वयं सक्षम हो. तुम क्यों लाचार, मजबूर गरीबों का हक मारना चाहते हो, भयावह आपदा के काल में इतना बड़ा अपराध मत करो और वैसे भी तुम ने मदद झूठ बोल कर किसी अन्य व्यक्ति के लिए मंगवाई है.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘साहब, कुछ तो रहम करो मुझ पर और मेरे परिवार पर. हम लोग सक्षम नहीं हैं. आप एक बार घर के अंदर जा कर देखो तो सही, हमें मदद की बहुत सख्त जरूरत है साहब.’’

‘‘अगर तुम्हारी बात झूठ निकली तो मैं तुम्हें जेल भिजवा कर ही दम लूंगा. ठीक है, चलो तुम्हारे घर के अंदर चल कर देखते हैं.’’ विजय ने कहा. रमेशचंद्र घबराते, लड़खड़ाते हुए विजय को अपने घर के अंदर ले गए.घर के अंदर की हालत देख कर जैसे विजय के पैरों तले की जमीन खिसक गई, उस की आंखें फटी रह गईं. वहां पर भूख से बिलखते 12 व 15 साल के 2 बच्चे और रमेशचंद्र के बुजुर्ग मातापिता और उन की 40 वर्षीय पत्नी मौजूद थी. उन सभी की स्थिति बेहद दयनीय थी.

यह देख कर विजय कुछ नहीं बोल पाया. उस ने तुरंत उन लोगों की जांच के लिए डाक्टर को बुलाने के लिए फोन किया और साथ आए आदमी से गाड़ी से खाना व राशन घर के अंदर रखने के लिए कहा.
यह सब देख कर रमेशचंद्र की आंखों से आंसू की धारा फूट पड़ी और कहा, ‘‘साहब, आज आप ने मेरे परिवार की जान बचा कर मुझ को हमेशा के लिए अपना ऋणी बना लिया. साहब, मेरा परिवार एक हफ्ते से भूखा है और मुझ को कोई मदद नहीं मिल पा रही थी. इसलिए आज मैं ने परिवार की जान बचाने की खातिर झुग्गियों के नाम पर झूठ बोल कर राहत सामग्री मंगवाई थी.’’

रमेशचंद्र जमीन पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगे.विजय ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘जब तक डाक्टर साहब आते हैं, तब तक जरा मुझे अपने बारे में विस्तार से बताओ. यह घर और गाड़ी तो तुम्हारी ही है ना?’’‘‘हां साहब, यह घर भी मेरा है यह गाड़ी भी मेरी है. अभी साल भर पहले अपनी व मातापिता की ताउम्र की कमाई व बैंक से लोन ले कर दोनों खरीदे थे. लेकिन यह पता नहीं था कि लोन लेने के एक साल बाद ही आपदा के चक्कर में एकाएक मेरी नौकरी चली जाएगी और दरदर ठोकर खाने की स्थिति आ जाएगी.

‘‘साहब, हमारी कमाई तो बैंक का लोन भरने व बच्चों की पढ़ाई में ही खत्म हो जाती है. घर का खर्चा पिताजी की पेंशन से बड़ी ही मुश्किल से चल पाता है. हमारे पास किसी तरह की कोई भी बचत हो ही नहीं पाती. लेकिन अब तो खाने के भी लाले पड़ गए हैं. हम मध्यमवर्गीय तो आज के व्यावसायिक दिखावे वाले दौर में केवल कर्ज चुकाने के लिए जिंदा हैैं.’’ रमेशचंद्र ने अपनी व्यथा सुनाई. ‘‘लेकिन तुम अपने पड़ोसियों, परिचितों, रिश्तेदारों व यारदोस्तों से तो मदद मांग सकते थे.’’ विजय ने कहा.

‘‘आप ठीक कह रहे हैं साहब, मैं ने मदद के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन हर कोई मदद की बात को मजाक मान कर टाल देता था. यह उधार की गाड़ी व मकान आज मेरी व मेरे परिवार की जान का दुश्मन बन गया है, इस के चलते कोई भी मेरी मदद करने के लिए तैयार नहीं है. ‘‘कई बार मदद के लिए आपदा राहत कंट्रोल रूम भी फोन किया, लेकिन उन्होंने भी परिचय सुनते ही मुझे झिड़क दिया और दुत्कारते हुए कहा कि तुम गरीबों का हक मारना चाहते हो.

‘‘मैं खुद कई बार सामाजिक संगठनों द्वारा बंटने वाले भोजन व राशन भी लेने गया, पर वहां पर वो लोग मदद करते समय फोटो खींच रहे थे, इसलिए शर्म व बच्चों के भविष्य के बारे में सोच कर मैं बारबार वहां से वापस आ जाता था.’’ रमेश की दयनीय स्थिति समझने के बाद विजय की आंखों में आंसू आ गए. वह नि:शब्द हो गया. वह सोचने लगा कि एक मध्यमवर्गीय परिवार भी इतने गंभीर आर्थिक संकट में हो सकता है, आज उस की समझ में आ गया.

इतने में घर के गेट पर डाक्टर की गाड़ी आ कर रुकी, तो विजय उस गाड़ी के पास पहुंचा और डाक्टर को घर के अंदर ले गया. डाक्टर ने घर के सभी लोगों का चैकअप किया. चैकअप करने के बाद डाक्टर ने बताया, ‘‘भूख के चलते इन लोगों की हालत बहुत खराब है अगर इन को आज समय पर भोजन और चिकित्सा नहीं मिलती तो इन की जान जा सकती थी. अब मैं ने इन को एक हफ्ते की दवाई व विटामिन की गोलियां दे दी हैं. अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया है अगर कोई दिक्कत होगी तो मुझे फोन कर के बुला लेंगे.’’ ‘‘वैसे एक हफ्ते बाद मैं खुद इन को देखने आ जाऊंगा. खाना खाने के बाद ये एकएक खुराक दवा ले लेंगे. और बाकी कैसे खानी है, वह भी समझा दिया है. सुबह तक ये लोग अपने आप को काफी ठीक महसूस करने लगेंगे.’’ डाक्टर फिर वहां से चला जाता है.

विजय ने भी रमेशचंद्र को अपना पर्सनल नंबर देते हुए कहा, ‘‘आज सच में तुम ने मेरी आंखें खोल दीं, शासन, प्रशासन व जिला राहत टीम ने यह कभी भी नहीं सोचा था कि एक मध्यमवर्गीय परिवार पर भी आपदा के कारण इतनी भयंकर मार पड़ सकती है. मैं अभी औफिस जा कर अपने सीनियरों को स्थिति से अवगत करवाऊंगा और उन से भविष्य में मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद का भी प्रावधान करने की बात कहूंगा.’’‘‘साहब, मेरा भी आप से एक यही निवेदन है कि सरकार को अब मध्यमवर्गीय परिवारों की मदद के लिए भी ध्यान देना चाहिए. क्योंकि सामाजिक संस्थाओं द्वारा मदद करते समय फोटो खींचने की वजह से कई लोग चाहते हुए भी उन से मदद नहीं ले पाते.

यह मजबूरी व लाचारी उन के जीवन पर बहुत भारी पड़ सकती है, इसलिए सरकार को उन का ध्यान रखना चाहिए.’’ रमेशचंद्र ने कहा. ‘‘बिलकुल. तुम ने हमारी आंखें खोल दी हैं और हम मध्यमवर्गीय परिवारों के सहयोग के लिए भी हरसंभव प्रयास करेंगे.’’विजय ने अपनी जेब में रखे 5 हजार रुपए निकाल कर रमेश को दिए तो रमेश ने पैसे लेने से इनकार कर दिया. बहुत इनकार करने के बाद भी विजय ने अधिकार के साथ जबरन पैसे देते हुए कहा, ‘‘सब का ध्यान रखना, कोई दिक्कत हो तो मुझे फोन करना. अच्छा, अब मैं चलता हूं.’’ इस के बाद वह गाड़ी में बैठ कर आंखों में आंसू लिए अपने औफिस की तरफ यह सोचता हुआ चल दिया कि धनवान लोगों के पास दौलत की कोई कमी नहीं. वह आपदा में भी साधन इकट्ठा कर के जीवन जी लेंगे. गरीब की मदद सरकार व समाजसेवी और धनवान लोग करते हैं.

लेकिन एक मध्यमवर्गीय परिवार के पास न तो दौलत है न वो गरीब है, जो कोई उस की मदद करे. ऐसे में वो आपदा के वक्त कैसे अपना और अपने परिवार का गुजारा करेगा. सरकारी तंत्र को भी इस तरह के हालात बनने से पहले ही मध्यमवर्गीय परिवारों की इस समस्या का समाधान करना चाहिए.
हमारे देश के सिस्टम को ध्यान रखना चाहिए कि मजबूरी, लाचारी किसी भी वक्त किसी भी व्यक्ति के सामने आ सकती है, इसलिए हमेशा मानवीय मूल्यों व संवेदनाओं के आधार पर मदद का प्रावधान करना चाहिए.

Quick Recipes: रैसिपी क्रिएटर्स का नया तड़का- क्विक फूड ट्रैंड

Quick Recipes: हम सभी का खाने के साथ एक अनोखा रिश्ता है. खाना तैयार करना यानी कुकिंग एक आर्ट है. कलिनरी स्किल्स में खाना बनाना, गैस्ट्रोनौमी, तैयारी, प्लेटिंग, प्रेजैंटेशन व बहुतकुछ और शामिल है. कुछ लोग स्वादिष्ठ डिसेज बनाना पसंद करते हैं और कुछ लोग स्वादिष्ठ खाना खाने का लुत्फ उठाना पसंद करते हैं.

भोजन सिर्फ एक बेसिक जरूरत ही नहीं है, बल्कि यह एक लाइफस्टाइल चौइस भी है. आज के डिजिटल युग में खाना दुनियाभर में क्रिएटर्स, शेफ और आम लोगों द्वारा बनाया जा रहा है, वहीं, इस के बनाने, परोसने व खाने की प्रक्रिया भी खूब देखी जा रही है.

कोविड 19 महामारी के दौरान जब पूरी दुनिया सीमित सी हो गई थी, तब भोजन लोगों के जीवन का और भी अहम हिस्सा बन गया. डालगोना कौफी बनाने से ले कर ओरियो मगकेक बनाने, पैनकेक तलने से ले कर तवापिज्जा तक के कंटैंट से सोशल मीडिया चैनल भरे हुए थे.

दिल्ली की अंकिता का 18वां बर्थडे था. कोरोना की वजह से सभी बेकरी शौप्स बंद थीं. किराने की दुकानों पर केवल जरूरत का सामान मिल रहा था. अंकिता ने सोचा, इस बार तो उस का बर्थडे सैलिब्रेट नहीं होगा. तभी उस की बड़ी बहन आकृति ने यूट्यूब पर एक वीडियो का टाइटल पढ़ा जिस में लिखा था- ‘सिर्फ दो चीजों से 2 मिनट में बिना गैस जलाए बनाएं मार्केट से भी अच्छा सौफ्ट, स्पंजी, टैस्टी चौकलेट केक’. फिर क्या था, आकृति ने रैसिपी को फौलो करते हुए अंकिता के लिए केक बना दिया. अंकिता इसे देख कर बहुत खुश हुई. आकृति बोली, “आल थैंक्स टू दिस रैसिपी.”

सोशल मीडिया अब सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह एक ऐसा प्लेटफौर्म बन गया है जहां लोग नएनए ट्रैंड्स को फौलो करते हैं और अपनी रुचि के अनुसार कंटैंट देखते हैं. भारत में सोशल मीडिया पर सब से ज्यादा देखे जाने वाले कंटैंट में आजकल ‘क्विक फूड रैसिपी’ हैं.

चाहे इंस्टाग्राम हो, यूट्यूब हो या फेसबुक, हर जगह फूड व्लौगर्स और कंटैंट क्रिएटर्स तेजी से बढ़ रहे हैं और अपने दर्शकों को झटपट बनने वाली स्वादिष्ठ रैसिपी दिखा रहे हैं.

 

फूड कंटैंट क्रिएटर्स का बढ़ता प्रभाव

सोशल मीडिया प्लेटफौर्म्स पर फूड व्लौगर्स और कंटैंट क्रिएटर्स की संख्या लगातार बढ़ रही है. ये क्रिएटर्स न केवल स्वादिष्ठ और आकर्षक रैसिपी साझा करते हैं, बल्कि नएनए फूड ट्रैंड्स भी सेट कर रहे हैं.

 

कंटैंट क्रिएटर्स के लिए बढ़ते अवसर

सोशल मीडिया ने कई नए शेफ और फूड एंथुसियस्ट को पहचान दिलाई है. बीते कई सालों से कुकिंग रिऐलिटी शो चल रहे हैं, जिन में पार्टिसिपैंट्स को फिनाले में पहुंचने के बाद ही उन की कुकिंग को पहचान मिलती है. ऐसे शोज में आने के लिए भी कई जगह हाथपैर मारने पड़ते हैं. लेकिन सोशल मीडिया ने इस जरूरत को भी खत्म कर दिया है.

अब किसी को बड़े रैस्तरां या टीवी शो की जरूरत नहीं, वे सिर्फ एक स्मार्टफोन व अच्छी कुकिंग स्किल के जरिए लाखों दर्शकों तक अपनी पहुंच बना रहे हैं. इस से वीमेन को बड़ा एक्सपोजर मिला है. बचपन से लड़कियों को कहा जाता रहा कि उन की जगह सिर्फ किचन में है. उन्होंने इस बात को पौजिटिवली लेते हुए किचन के रास्ते अपनी अलग पहचान बनी ली है. आज ऐसी कई फीमेल फूड कंटैंट क्रिएटर हैं जो वीडियोज बना कर लाखोंकरोड़ों रुपए कमा रही हैं.

इन में सब से पहला नाम फूड कंटैंट के लिए नैशनल अवार्ड पाने वाली कबिता सिंह का आता है. नवंबर 2014 में, उन्होंने अपना यूट्यूब चैनल ‘कबीता किचन’ शुरू किया और रोजमर्रा की साधारण रैसिपी पोस्ट कीं. उन की लाइफ उन के चैनल पर पोस्ट 89वें वीडियो के बाद से बदल गई, जिस में उन्होंने ब्रेड-गुलाब-जामुन की रैसिपी शेयर की थी. उस से उन के चैनल को काफी पौपुलैरिटी मिली. उन्होंने लाखों व्यूज बटोरे. आज वो भारत की सब से सफल सोशल मीडिया क्रिएटर हैं. उन्हें यूट्यूब पर 1 करोड़ से ज्यादा लोग फौलो करते हैं.

इसी लिस्ट में ब्रिस्टी कुमारी का नाम भी आता है. ब्रिस्टी ने 2019 से सोशल मीडिया पर सिंपल रैसिपीज शेयर करना शुरू किया. उन का समय तब चमका जब उन्होंने कोरोना काल में केवल 3 इंग्रीडिएंट्स से बनने वाले केक की रैसिपी शेयर की. तब से ले कर आज तक उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. आज ब्रिस्टी के 60 लाख से भी ज्यादा सब्सक्राइबर हैं और इंस्टाग्राम पर 27 लाख लोग उन्हें फौलो करते हैं. इसी तरह कई अन्य ऐसी कंटैंट क्रिएटर हैं जो अपनी कूकिंग स्किल्स से फेमस हो चुकी हैं.

 

फूड व्लौगिंग अब सिर्फ एक शौक नहीं बल्कि एक फुलटाइम कैरियर बन चुका है. कंटैंट क्रिएटर्स ब्रैंड स्पौंसरशिप, एडवरटाइजमैंट, एफिलिएट मार्केटिंग और खुद की ई कुकबुक व औनलाइन क्लासेज से खासी कमाई कर रहे हैं. निशा मधुलिका और तरला दलाल इस का सब से बेहतरीन उदाहरण हैं. निशा मधुलिका खाने की रैसिपीज शेयर करतेकरते भारत की सब से अमीर महिला यूट्यूबर बन चुकी हैं.

 

फूड ट्रैंड्स और वायरल रैसिपीज

कई ऐसी रैसिपीज हैं जो सोशल मीडिया के कारण वायरल हुईं, जैसे कि डलगोना कौफी, चौकलेट लावा केक, और 2 मिनट मैगी ट्विस्ट. ये ट्रैंड्स सोशल मीडिया पर तेजी से फैलते हैं और लाखों लोगों तक पहुंचते हैं. क्रिएटर्स के इन फूड रैसिपीज को सैलिब्रिटी भी फौलो करने लगे हैं. लेकिन कुकिंग विडियोज का ट्रैंड अब पुराना हो चला है. आजकल क्विक फूड का ट्रैंड है.

जैसा कि अब सोशल मीडिया पर फूड कंटैंट क्रिएटर्स की भरमार हो चुकी है तो अब क्रिएटर्स बड़े कुकिंग विडियोज बनाने की जगह रील्स और शौर्ट्स का सहारा ले रहे हैं. 10 से 30 सैकंड के वीडियोज में कुकिंग रैसिपीज शेयर की जाती हैं. ये रील्स और शौर्ट्स लोगों को ज्यादा अट्रैक्ट कर रहे हैं.

 

क्यों लोकप्रिय हो रही हैं क्विक फूड रैसिपीज?

आजकल लोग बिजी रहने लगे हैं. औफिस का काम, घर की जिम्मेदारियां और सोशल लाइफ को बैलेंस करने में समय की कमी होती है. ऐसे में लोग ऐसे व्यंजन पसंद करते हैं जो कम समय में बन जाएं और स्वादिष्ठ भी हों.

 

आसान और कम इंग्रीडिएंट्स

क्विक फूड रैसिपी में आमतौर पर ऐसे चीजों का उपयोग किया जाता है जो हर घर में आसानी से उपलब्ध होते हैं. यह एक बड़ा कारण है कि लोग इन डिसेज को देखना और आजमाना पसंद करते हैं. इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शौर्ट्स पर खूबसूरती से सजाए गए व्यंजन लोगों को आकर्षित करते हैं. ज्यादातर सोशल मीडिया यूजर्स ऐसी रैसिपीज पसंद करते हैं जो न केवल जल्दी बन जाएं बल्कि किफायती भी हों. इस वजह से कम बजट में बनने वाली रैसिपीज तेजी से वायरल होती हैं.

यहां कुछ ऐसे सोशल मीडिया अकाउंट्स के नाम हैं जो क्विक रैसिपी वीडियोज बनाते हैं और लाखों की संख्या में लोग इन के कंटैंट को पसंद कर रहे हैं.

  1. श्रेया जैन (स्पून औफ दिल्ली)
  2. पवित्रा कौर (द क्लासी फूडफिले)
  3. निधि जैन (कुक विद निधि)
  4. भारत वाधवा (भारत किचन)
  5. संज्योत कीर (योर फूड लैब)

 

क्विक फूड रैसिपी की लोकप्रियता भारत में लगातार बढ़ रही है. लोग इन्हें न केवल देख कर एंजौय कर रहे हैं, बल्कि इन्हें घर पर आजमा भी रहे हैं. आने वाले समय में यह ट्रैंड और भी तेजी से बढ़ेगा और सोशल मीडिया पर फूड कंटैंट की मांग और भी अधिक होगी. साथ ही, नए किचन गैजेट्स, हैल्दी फूड ट्रैंड्स और लाइव कुकिंग क्लासेज भी इस डिजिटल फूड क्रांति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे.

Famous Hindi Stories : असली पहचान

Famous Hindi Stories : वह मेरी पड़ोसिन की बूआ का बेटा था. मेरे परिवार के लोग राजेश को टपोरी समझते थे पर उसी टपोरी ने वह कर दिखाया था जिस के बारे में न तो मैं ने कभी सोचा था न मेरे परिवार में किसी को उम्मीद थी.

आज जब राजेश का फोन आया कि नीलू मां बनने वाली है तो मेरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई. मां और बाबूजी के साथ मेरे देवर भी तरहतरह के मनसूबे बनाने लगे और मैं सोचने लगी कि इस दुनिया में कितने ऐसे लोग हैं जो जैसे दिखते हैं वैसे अंदर से होते नहीं और जो बाहर से भोलेभाले दिखते हैं स्वभाव से भी वैसे हों यह जरूरी नहीं.

नीलू मेरी सब से छोटी ननद है. मेरी आंखों के सामने उस की बचपन की तसवीर घूमने लगी और मेरा मन 15 साल पीछे की बातों को याद करने लगा.

मैं इस घर में बहू बन कर जब आई थी तब मेरे दोनों देवर व ननद छोटेछोटे थे. मेरे पति सब से बड़े थे. उन में व बाकी बहनभाइयों में उम्र का काफी फासला था. हमारी शादी के दूसरे दिन ही बूआ सास ने मजाक में कहा था, ‘बहू, तुम्हें पता है कि तुम्हारे पति व अन्य बहनभाइयों में उम्र का इतना अंतर क्यों है? तुम्हारे पति के जन्म के बाद मेरी भाभी ने सोचा थोड़ा आराम कर लिया जाए…’ और इतना कह कर वह जोर का ठहाका मार का हंस पड़ी थीं.

नईनई भाभी पा कर मेरे छोटेछोटे देवर तो मेरे आगेपीछे चक्कर काटते और मेरा आंचल पकड़ कर घूमते रहते थे. पर मैं ने गौर किया कि मेरी सब से छोटी ननद नीलू जो लगभग 6-7 साल की थी, मेरे सामने आने से कतराती थी. यदि वह कभी हिम्मत कर के पास आती भी थी तो उस के भाई उसे झिड़क देते थे. यहां तक कि मांजी भी हमेशा उसे अपने कमरे में जाने को बोलतीं. नीलू मुझे सहमी सी नजर आती.

शादी के कुछ दिन बाद घर मेहमानों से खाली हो गया था. कोई काम नहीं था तो सोचा कमरे में पेंटिंग ही लगा दूं. मैं अपने कमरे में पेंटिंग लगा रही थी कि देखा, नीलू चुपचाप मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गई है. मुझे इस तरह उस का चुपचाप आना अच्छा लगा.

‘आओ नीलू, तुम अपनी भाभी के पास नहीं बैठोगी? तुम मुझ से बातें क्यों नहीं करतीं.’

मैं उस से प्यार से अभी पूछ ही रही थी कि मेरा बड़ा देवर संजय आ गया और नीलू की ओर देख कर बोला, ‘अरे, भाभी, यह क्या बातें करेगी…इतनी बड़ी हो गई पर इसे तो ठीक से बोलना तक नहीं आता.’

संजय ने बड़ी आसानी से यह बात कह दी. मैं ने देखा कि नीलू का खिला चेहरा बुझ सा गया. मैं ने सोचा कि इस बारे में संजय को कुछ नसीहत दूं. पर तभी मांजी मेरे कमरे में आ गईं और आते ही उन्होंने भी नीलू को डांटते हुए कहा, ‘तू यहां खड़ीखड़ी क्या कर रही है. जा, जा कर पढ़ाई कर.’

नीलू अपने मन के सारे अरमान लिए चुपचाप वापस अपने कमरे में चली गई.

उस के जाने के बाद मांजी बोलीं, ‘देखो बहू, मैं ने तुम्हारे लिए यह सूट खरीदा है,’ और वह मुझे सूट दिखाने लगीं, पर मेरा मन नीलू पर ही लगा रहा.

शाम को जब यह घर आए तो चायनाश्ते के समय मैं ने इन से पूछा, ‘आप एक बात बताइए कि यह नीलू इतनी डरीसहमी सी क्यों रहती है?’

यह गौर से मुझे देखते हुए बताने लगे कि वह साफसाफ बोल नहीं पाती. दरअसल, नीलू ने बोलना ही देर से शुरू किया और 6 साल की होने के बावजूद हकलाहकला कर बोलती है.

‘आजकल तो कितनी मेडिकल सुविधाएं हैं. आप नीलू को किसी स्पीच थेरेपिस्ट को क्यों नहीं दिखाते?’

उस समय उन्होंने मेरी बात हवा में उड़ा दी पर मैं ने मन ही मन सोचा कि मैं खुद नीलू को दिखाने के लिए किसी स्पीच थेरेपिस्ट के पास जाऊंगी. इस बारे में जब मैं ने बाबूजी से बात की तो उन्होंने भी कोई उत्सुकता नहीं दिखाई लेकिन उन्होंने सीधे मना भी नहीं किया.

अगले हफ्ते मैं नीलू को शहर की एक लोकप्रिय महिला स्पीच थेरेपिस्ट के पास ले गई.

थोड़ी देर बाद जब थेरेपिस्ट नीलू का विश्लेषण कर के बाहर आईं तो बोलीं, ‘इस का हकला कर बोलना उतनी परेशानी की बात नहीं है जितना इस के व्यक्तित्व का दबा होना. इसे लोगों के सामने आने में घबराहट होती है क्योंकि लोग इस के हकलाने का मजाक उड़ाते हैं. इसी से यह खुल कर नहीं रहती और न ही बोल पाती है.’

मैं नीलू को ले कर घर चली आई. मैं ने निश्चय किया कि नीलू को ले कर मैं बाहर निकला करूंगी, उसे अपने साथ घुमाने ले जाया करूंगी और उस दिन से मैं नीलू पर और ज्यादा ध्यान देने लगी.

मैं ने नीलू के व्यक्तित्व को निखारने की जैसे कसम खा ली थी. इस के नतीजे जल्दी ही हम सब के सामने आने लगे. उस दिन तो घर में खुशी की लहर ही दौड़ गई जब नीलू अपने स्कूल में कविता प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार ले कर घर आई थी.

समय पंख लगा कर कितनी तेजी से उड़ गया, पता ही नहीं चला. मेरे सभी देवरों की शादी हो गई. अब घर में बस, नीलू ही थी. उस ने भी एम.ए. कर लिया था. हम लोग उस की शादी के लिए लड़का देख रहे थे. जल्द ही लड़का भी मिल गया जो डाक्टर था. परिवार के लोगों ने बड़ी धूमधाम से नीलू की शादी की.

शादी के बाद के कुछ महीनों तक तो सब कुछ ठीकठाक चलता रहा. धीरेधीरे मैं ने महसूस किया कि नीलू की आवाज में खुशी नहीं झलकती. मैं ने पूछा भी पर उस ने कुछ बताया नहीं और शादी के केवल 2 साल बाद ही नीलू अकेले मायके वापस आ गई.

उस के बुझे चेहरे को देख कर हम सभी परेशान रहते थे. मैं ने सोचा भी कि कुछ दिन बीत जाएं तो उस के ससुराल फोन करूं. क्या पता पतिपत्नी में खटपट हुई हो.

15 दिन बाद जब मैं ने नीलू के ससुराल फोन किया तो उस की सास व पति के जवाब सुन कर सन्न रह गई.

‘मेरा तो एक ही बेटा है, आप ने हम से झूठ बोल कर शादी की और अपनी तोतली बेटी हमें दे दी. उस पर वह बांझ भी है. मैं तो सीधे तलाक के पेपर भिजवाऊंगी,’ इतना कह कर नीलू की सास ने फोन काट दिया.

घर में सन्नाटा छा गया. मांजी ने मुझे भी कोसना शुरू कर दिया, ‘मैं कहती थी कि यह कभी ठीक नहीं होगी. तुम्हारे उस ‘स्पीच थेरेपी’ जैसे चोंचलों से कुछ होने वाला नहीं है. लो, देखो, अब रखो अपनी छाती पर इसे जिंदगी भर.’

मुझे नीलू की सास की बात सुन कर उतना दुख नहीं हुआ जितना कि अपनी सास की बातों से हुआ. दरअसल, नीलू एकदम ठीक हो गई थी पर नए माहौल में एकाध शब्द पर थोड़ा अटकती थी जोकि पता नहीं चलता था. पर उस के ससुराल वालों ने उसे कैसे बांझ करार दे दिया यह बात मेरी समझ में नहीं आई. क्या 2 साल ही पर्याप्त होते हैं किसी स्त्री की मातृत्व क्षमता को नापने के लिए?

खैर, बात काफी आगे बढ़ चुकी थी. आखिर तलाक हो ही गया. इस के बाद नीलू एकदम चुप सी रहने लगी. जैसे कि मेरी शादी के समय थी. बंद कमरे में रहना, किसी से बातें न करना.

एक दिन मैं ने जिद कर के नीलू को अपने साथ बाहर चलने के लिए यह सोच कर कहा कि घर से बाहर निकलेगी तो थोड़ा बदलाव महसूस करेगी. रास्ते में ही पड़ोस की बूआ का बेटा राजेश मिल गया. उस ने मुझे रोक कर नमस्कार किया और बोला, ‘भाभी, मुझे मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई है और कंपनी वालों ने रहने के लिए फ्लैट दिया है. किसी दिन मम्मी से मिलने के लिए आप मेरे घर आइए न.’

‘ठीक है भैया, किसी दिन मौका मिला तो आप के घर जरूर आऊंगी,’ इतना कह कर मैं नीलू के साथ बाजार चली गई.

एक दिन मैं बूआ के घर गई. उन का घरपरिवार अच्छा था. अपना खुद का कारोबार था. मैं ने बातों ही बातों में बूआ से नीलू का जिक्र किया तो वह बोल पड़ीं, ‘अरे, उस बच्ची की अभी उम्र ही क्या है? कहीं दूसरी शादी करा दें तो ठीक हो जाएगी.’

‘लेकिन बूआ, कौन थामेगा उस का हाथ? अब तो उस पर बांझ होने का ठप्पा भी लग गया है. यद्यपि मैं ने उस के तमाम मेडिकल चेकअप कराए हैं पर उस में कहीं कोई कमी नहीं है,’ इतना कहते- कहते मेरा गला जैसे भर्रा गया.

‘मैं कैसा हूं आप के घर का दामाद बनने के लिए?’ राजेश बोला तो मैं ने उसे डांट दिया कि यह मजाक का वक्त नहीं है.

‘भाभी, मैं मजाक नहीं सच कह रहा हूं. मैं नीलू का हाथ थामने को तैयार हूं बशर्ते आप लोगों को यह रिश्ता मंजूर हो.’

मेरा मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया. आश्चर्य से मैं बूआ की ओर पलटी तो मुझे लगा कि उन्हें भी राजेश से यह उम्मीद नहीं थी.

थोड़ी देर रुक कर वह बोलीं, ‘मैं घूमघूम कर समाजसेवा करती हूं और जब अपने घर की बारी आई तो पीछे क्यों हटूं? फिर जब राजेश को कोई एतराज नहीं है तो मुझे क्यों होगा?’

राजेश मेरी ओर मुड़ कर बोला, ‘भाभी, जहां तक बच्चे की बात है तो इस दुनिया में सैकड़ों बच्चे अनाथ पड़े हैं. उन्हीं में से किसी को अपने घर ले आएंगे और उसे अपना बच्चा बना कर पालेंगे.’

राजेश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर मुझे सहसा विश्वास ही नहीं हुआ. जिस की पहचान हम उस के पहनावे से करते रहे वह तो बिलकुल अलग ही निकला और जो सूटटाई के साथ ‘जेंटलमैन’ बने घूमते थे वह कितने खोखले निकले.

मेरे मन से राजेश के लिए सैकड़ों दुआएं निकल पड़ीं. मेरा रोमरोम पुलकित हो उठा था. मुझे टपोरी ड्रेस में भी राजेश किसी राजकुमार की तरह लग रहा था.

घर आ कर मैं ने यह बात परिवार के दूसरे लोगों को बताई तो सब इस के लिए तैयार हो गए और फिर जल्दी ही नीलू की शादी राजेश के साथ कर दी गई. शादी के साल भर बाद ही वे दोनों अनाथ आश्रम जा कर एक बच्चा ले आए और आज जब नीलू खुद मां बनने वाली है तो मेरा मन खुशी से झूम उठा है.

मैं ने राजेश से फोन पर बात की और उसे बधाई दी तो वह कहने लगा कि भाभी, हम मांबाप तो पहले ही बन चुके थे पर बच्चों से परिवार पूरा होता है न. बेटी तो हमारे पास पहले से ही है अब जो भी होगा उसे ले कर कोई गिलाशिकवा नहीं रहेगा, क्योंकि वह हमारा ही अंश होगा.

राजेश के मुंह से यह सुन कर सचमुच मन भीग सा गया. राजेश ने मानवता की जो मिसाल कायम की है, यदि ऐसे ही सब हो जाएं तो समाज में कोई परेशानी आए ही न. यह सोच कर मेरी आंखों में राजेश व उसके परिवार के प्रति कृतज्ञता के आंसू आ गए.

लेखक- बबिता श्रीवास्तव

Short Stories in Hindi : खाउड्या – रिश्वत लेना आखिर सही है या गलत

Short Stories in Hindi :  सीतू झोंपड़पट्टी वाले थाने में नयानया सिपाही भरती हुआ था. एक दिन थानेदार ने उसे रामू बनिए को बुला लाने के लिए भेजा.

रामू बनिया तो घर पर नहीं मिला, पर उस के मुनीम ने सीतू को 50 रुपए का नोट पकड़ा कर कहा, ‘‘थानेदार से कह देना कि सेठजी आते ही थाने में हाजिर हो जाएंगे.’’

लौट कर सीतू ने 50 रुपए का नोट थानेदार की मेज पर रख दिया और साथ ही मुनीम का पैगाम भी कह सुनाया.

जब वह जाने लगा तो थानेदार ने 50 रुपए का नोट उसे पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इसे रख लो, यह तुम्हारा इनाम है.’’

बाद में थाने के सिपाहियों ने सीतू का काफी मजाक उड़ाया और बताया कि मुनीम ने 50 रुपए उसे दिए थे, न कि थानेदार को. थानेदार तो 100 रुपए से कम को हाथ तक नहीं लगाता.

सीतू 50 रुपए ले कर खुश हो गया. यह उस की पहली ऊपर की कमाई थी. थानेदार उस की ईमानदारी का कायल हो गया. इस के बाद से थानेदार को जहां से भी पैसा ऐंठना होता, तो वह सीतू को भेज देता या अपने साथ ले जाता.

सीतू जो भी पैसा ऐंठ कर लाता था, उस में से उसे भी हिस्सा मिलता था. धीरेधीरे उस के पास काफी पैसा जमा हो गया. पर मन के किसी कोने में उसे अपनी इस ऊपर की कमाई से एक तरह के जुर्म का अहसास होता, मगर जब वह अपनी तुलना दूसरों से करता तो यह अहसास कहीं गायब हो जाता.

सीतू को एक बात अकसर चुभती थी कि कसबे के लोग बाकी सिपाहियों को तो पूरी इज्जत देते और सलाम करते थे, मगर उसे केवल मजबूरी में ही सलाम करते थे. वह चाहता था कि उसे भी दूसरे सिपाहियों के बराबर समझा जाए, मगर वह इस बारे में कुछ कर नहीं सकता था.

वैसे, अब सीतू काफी सुखी था.

उस के पास सरकारी मकान था. एक साइकिल भी उस ने खरीद ली थी. वह शान से साफसुथरे कपड़ों में रहता था. कम से कम झोंपड़पट्टी के लोग तो उस की कद्र करते ही थे.

सीतू अपने साथी सिपाहियों के मुकाबले खुद को बेहतर समझता था. उस के सभी साथी शादीशुदा थे, मगर वह इस झंझट से अभी तक आजाद था. मांबाप की याद भी उसे ज्यादा नहीं आती थी, क्योंकि उसे उन से ज्यादा लगाव कभी रहा ही नहीं था.

एक दिन सीतू अपनी साइकिल पर सवार हो कर बाजार से गुजर रहा था कि एक जगह भीड़ लगी देख कर वह रुक गया. उस ने देखा कि झोंपड़पट्टी में रहने वाली एक लड़की भीड़ से घिरी खड़ी थी और रोते हुए गालियां बक रही थी. वह कभीकभार भीड़ पर पत्थर भी फेंक रही थी.

भीड़ में शामिल लोग लड़की के पत्थर फेंकने पर इधरउधर भागते हुए उस के बारे में उलटीसीधी बातें कर रहे थे.

सीतू ने देखा कि कुछ लफंगे से दिखाई देने वाले लड़के उस लड़की को घेरने की कोशिश कर रहे थे. सीतू ने पास खड़े झोंपड़पट्टी में रहने वाले एक बूढ़े आदमी से पूछा, ‘‘बाबा, आखिर माजरा क्या है?’’

बूढ़े ने सीतू को पुलिस की वरदी में देख कर पहले तो मुंह बिचकाया, फिर बोला, ‘‘यह लड़की यहां बैठ कर लकड़ी के खिलौने बेच रही थी. जब सब खिलौने बिक गए, तो उस ने पैसे रख लिए और थैले में से रोटी निकाल कर खाने लगी.

‘‘तभी ये 3 बदमाश लड़के यहां आ धमके. एक ने उसे 50 का नोट दिखा कर पूछा कि ‘चलती है क्या मेरे साथ?’ तो लड़की ने उस के मुंह पर थूक दिया.

‘‘बस फिर क्या था, तीनों लड़के उस पर टूट पड़े. लड़की की चीखपुकार सुन कर भीड़ जमा हो गई तो लड़कों ने शोर मचा दिया कि इस लड़की ने चोरी की है. बस, तभी से यह नाटक चल रहा है.’’

इतना बता कर वह बूढ़ा सीतू को इस तरह घूर कर देखने लगा मानो कह रहा हो, ‘है हिम्मत इस लड़की को इंसाफ दिलाने की?’

इतना सुनते ही सीतू साइकिल की घंटी बजाते हुए भीड़ में जा घुसा. उस ने कड़क लहजे में लड़की से पूछा, ‘‘ऐ लड़की, यह सब क्या हो रहा है?’’

‘‘साहब, ये तीनों मुझ से बदतमीजी कर रहे हैं. मैं ने रोका तो जबरदस्ती करने लगे. मैं ने शोर मचाया तो बोले कि मैं चोर हूं, पर मैं ने कोई चोरी नहीं की है,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘साहब, यह झूठी है. यह तो पक्की चोर है. इस ने पहले भी कई चोरियां की हैं. जो घड़ी इस के हाथ में बंधी है वह मेरी है,’’ एक लड़के ने कहा.

‘‘इस ने मेरा 50 का नोट चुराया है,’’ दूसरा लड़का बोला.

‘‘ये लड़के झूठ बोलते हैं साहब. मैं ने चोरी नहीं की है,’’ लड़की ने सीतू के आगे हाथ जोड़ कर कहा.

लड़की के मुंह से ‘साहब’ सुन कर सीतू की छाती चौड़ी हो गई. उस ने एक लड़के से पूछा, ‘‘क्या सुबूत है कि यह घड़ी तेरी है?’’

इस से पहले कि वह लड़का कुछ कह पाता, भीड़ में से किसी की आवाज आई, ‘‘इस लड़की के पास क्या सुबूत है कि यह घड़ी इसी की है?’’

यह सुन कर सीतू भड़क उठा. साइकिल स्टैंड पर लगा कर उस ने अपना डंडा निकाल लिया. फिर वह भीड़ की तरफ मुड़ गया और हवा में डंडा लहराते हुए बोला, ‘‘किसे चाहिए सुबूत? इस लड़की के पास यह सुबूत है कि घड़ी इस के कब्जे में है… और किसी को कुछ पूछना है? चलो, भागो यहां से. क्या यहां जादूगर का तमाशा हो रहा है?’’

सीतू की फटकार सुन कर वहां जमा हुए लोग धीरेधीरे खिसकने लगे.

‘‘देखो साहब, वे तीनों भी भाग रहे हैं,’’ लड़की बोली.

‘‘तुम तीनों यहीं रुको और बाकी सब लोग जाएं,’’ सीतू ने उन लफंगों को रोकते हुए कहा.

जब भीड़ छंट गई, तो सीतू उन लड़कों से बोला, ‘‘चलो, थाने चलो.’’

थाने का नाम सुन कर उन तीनों लड़कों के साथसाथ वह लड़की भी घबरा गई. वह बोली, ‘‘देखो साहब, ये तो बदमाश हैं, मगर मैं थाने नहीं जाना चाहती.’’

‘‘अरी, तुझे कोई खा जाएगा क्या वहां? मैं हूं न तेरे साथ,’’ सीतू उसे दिलासा देते हुए बोला.

‘‘साहब, घड़ी इसी के पास रहने दीजिए. कहां थाने के चक्कर में फंसाते हैं,’’ एक लड़का बोला.

‘‘साला… फिर कहता है कि मैं चोर हूं. चलो साहब, थाने ही चलो,’’ लड़की गुस्से में बोली.

‘‘गाली नहीं देते लड़की,’’ सीतू ने लड़की से कहा और फिर लड़कों से बोला, ‘‘मैं तुम लोगों को तब से देख रहा हूं, जब तुम ने इस लड़की को 50 का नोट दिखाया था.’’

यह सुन कर तीनों लड़कों के चेहरे फीके पड़ गए. सीतू ने लड़की को बूढ़े के पास रुकने को कहा और तीनों लड़कों को ले कर थाने की ओर बढ़ चला. लड़कों ने आपस में कानाफूसी की और एक लड़के ने सौ का नोट सीतू की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अब तो जाने दो साहब. कभीकभी गलती हो जाती है.’’

सीतू ने एक नजर नोट पर डाली और फिर इधरउधर देखा, कुछ लोग उन्हें देख रहे थे.

‘‘रिश्वत देता है. इस जुर्म की दफा और लगेगी,’’ कहते हुए सीतू उन्हें धकेलता हुआ सड़क के मोड़ पर ले गया.

‘‘साहब, इस समय तो हमारे पास इतने ही पैसे हैं,’’ कहते हुए लड़के ने 50 का नोट और बढ़ा दिया.

सीतू ने इधरउधर देखा, वहां उन्हें कोई नहीं देख रहा था. वह बोला, ‘‘ठीक है, अब आगे ऐसी घटिया हरकत मत करना.’’

‘अरे साहब, कसम पैदा करने वाले की, अब ऐसा कभी नहीं करेंगे,’ तीनों ने एकसाथ कहा.

‘‘अच्छा जाओ, मगर दोबारा अगर पकड़ लिया तो सीधा सलाखों के पीछे डाल दूंगा,’’ सीतू ने नोट जेब में रखते हुए कहा.

सीतू कुछ देर तक वहीं खड़ा रहा, फिर धीरेधीरे साइकिल धकेलता हुआ वहीं जा पहुंचा, जहां बूढ़े के पास लड़की को छोड़ कर गया था. लड़की तो वहां नहीं थी, पर बूढ़ा वहीं बैठा हुआ था. बूढ़ा सीतू को सिर से पैर तक घूर रहा था.

‘‘ऐ बूढ़े, वह लड़की कहां गई?’’ सीतू ने पूछा.

बूढ़े ने सीतू को घूरते हुए कहा, ‘‘पुलिस में भरती हो गए तो क्या यह तमीज भी भूल गए कि बड़ेबूढ़ों से किस तरह बात करते हैं. वह लड़की चली गई, पर इस से तुम्हें क्या मतलब? तुम्हारी जेब तो गरम हो गई न, जाओ ऐश करो.’’

‘‘क्या बकता है? किस की जेब की बात करता है? तुम ने उस लड़की को क्यों जाने दिया?’’ सीतू भड़क उठा.

‘‘इस इलाके में कोई भी तुम पुलिस वालों पर यकीन नहीं करता. ऐसे में वह लड़की क्या करती? सोचा था कि अपनी बिरादरी का एक आदमी पुलिस में आया है तो वह कुछ ठीक करेगा, मगर वाह री पुलिस की नौकरी, बेच दी अपनी ईमानदारी शैतान के हाथों और बन गया खाउड्या… जा खाउड्या अपना काम कर.’’

‘‘क्या बकता है? थाने में बंद कर दूंगा,’’ कहने को तो सीतू कह गया, मगर न जाने क्यों वह बूढ़े से नजरें नहीं मिला पाया.

सीतू इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि रिश्वत लेना जुर्म है, मगर आज तक किसी पुलिस वाले ने उसे यह बात नहीं बताई थी. हां, साथियों ने यह जरूर समझाया था कि रिश्वतरूलेते समय पूरी तरह से चौकस रहना बहुत ही जरूरी होता है.

लेखक- मदन बड़ोलिया

Hindi Story Collection : सबक – सुधीर जीजाजी के साथ क्या हुआ

Hindi Story Collection : रक्षाबंधन पर मैं मायके गई तो भैया ने मेरे ननदोई सुधीर जीजाजी के विषय में कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मुझे विश्वास नहीं हुआ.

‘‘नहीं भैया, ऐसा हो ही नहीं सकता, जरूर आप को कोई भ्रम हुआ होगा.’’

‘‘नहीं अनु, मुझे कोई भ्रम नहीं हुआ. पिछले महीने औफिस के काम से दिल्ली गया तो सोचा, सुधीर से भी मिल लूं क्योंकि उन से मुलाकात हुए काफी अरसा हो चुका था. काम से फारिग होने के बाद जब मैं सुधीर के घर पहुंचा तो वे मुझे अचानक आया हुआ देख कर कुछ घबरा से गए. उन्होंने मेरा स्वागत वैसा नहीं किया जैसा कि मेरे पहुंचने पर अकसर किया करते थे. तभी मेरी नजर शोकेस में रखी एक तसवीर पर गई. उस तसवीर में सुधीर के साथ संध्या नहीं, कोई और युवती थी. जब मैं बाथरूम से फ्रैश हो कर आया तो वह तसवीर वहां से गायब थी लेकिन वह तसवीर वाली युवती ही उन की रसोई में चायनाश्ता तैयार कर रही थी.’’

‘‘भैया, हो सकता है वह उन की मेड हो.’’

‘‘शायद मैं भी यही समझता, अगर मैं ने वह तसवीर न देखी होती.’’

‘‘देखने में कैसी थी वह युवती?’’ मैं अपनी उत्सुकता छिपा न सकी.

देखने में सुंदर मगर बहुत ही साधारण थी. एक बात और मैं ने नोटिस की, मेरे अचानक आ जाने से वह सुधीर की तरह असहज नहीं थी, बिलकुल सामान्य नजर आ रही थी. उस के हाथ की चाय और नाश्ते में आलूप्याज की पकौडि़यों और सूजी के हलवे के स्वाद से ही मैं ने जान लिया था कि वह साक्षात अन्नपूर्णा होने के साथसाथ एक कुशल गृहिणी है.

‘‘सुधीर जीजाजी ने आप का उस से परिचय नहीं करवाया?’’

‘‘उस को चायनाश्ते के लिए कहते वक्त सुधीर शायद मुझे यह दर्शा रहे थे कि वह उन की मेड है लेकिन उन के साथ उस की तसवीर, फिर तसवीर का गायब होना और मेरी उपस्थिति से सुधीर का असहज होना इस बात की तरफ साफ संकेत कर रहा था कि वह युवती उन की मेड नहीं बल्कि कुछ और है.’’

‘‘भैया, इस विषय में हमें संध्या दी को तुरंत बता देना चाहिए,’’ मैं ने उतावले स्वर में कहा.

‘‘नहीं अनु, इस विषय में तुम संध्या दी को कुछ नहीं बताओगी,’’ भैया के बजाय भाभी बड़े ही कठोर और आदेशात्मक लहजे में बोलीं. ‘‘भाभी, आप एक औरत हो कर भी औरत के साथ अन्याय की बात कर रही हैं. संध्या दी मेरे पति की सगी बहन हैं, मेरी ननद हैं. जैसे मैं आप की ननद हूं’’ ‘‘जानती हूं मैं, संध्या आप के पति की सगी बहन है, लेकिन 14 साल पहले वह अपने पति से बुरी तरह लड़झगड़ कर अपनी मरजी से अपनी दोनों बेटियों को ले कर मायके आ गई थी. सुधीर और उन के परिवार वालों ने लाख कोशिश की कि वह लौट आए लेकिन हर बार उन्हें संध्या दी ने अपमानित किया. ऐसी स्थिति में सुधीर के मांबाप ने चाहा भी कि दोनों का तलाक हो जाए लेकिन संध्या दी पर तो जैसे जिंदगीभर सुधीर को परेशान करने का जनून सवार था. शायद इसी वजह से उस ने सुधीर को तलाक भी नहीं दिया.’’

‘‘जानती हो अनु, जब तुम्हारी संध्या दी ने अपना ससुराल छोड़ा था तब अपने पति के मुंह पर थूक कर गई थी. तो भला, कौन पति अपनी ऐसी बेइज्जती सहेगा? इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद, सुधीर की इंसानियत और बड़प्पन देखो कि वे उस का और दोनों बेटियों का पूरा खर्चा बिना किसी हीलहुज्जत के नियम से दे रहे हैं. उन की हर सुखसुविधा का खयाल भी रखते हैं. महीने में उन से मिलने भी आते हैं.’’

‘‘यह तो उन का फर्ज है, भाभी. वे एक पिता और पति भी हैं,’’ मैं ने संध्या दी का पक्ष लेते हुए कहा. ‘‘सारे फर्ज सुधीर के ही हैं, तुम्हारी संध्या दी के कुछ भी नहीं,’’ भाभी कड़वे स्वर में बोलीं, ‘‘अनु, तुम ही बताओ तुम्हारी संध्या दी ने शादी के बाद अपने पति को क्या सुख दिया? उन का जीवन खराब कर दिया. कभी उन्हें मानसिक शांति नहीं मिली. मुझे तो आश्चर्य होता है कि उन की बेटियां कैसे हो गईं? उन्हें तो सुधीर के सान्निध्य से ही घिन आती थी. उन के हर काम, व्यवहार में उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में लगी रहती थीं. उन के कपड़े धोना तो दूर, उन्हें हाथ तक न लगाती थी. उन्हें खाने तक के लिए तरसा दिया था. वे बेचारे मां के पास खाते तो उन पर ताने कसती, उन पर व्यंग्य करती. तो बताओ अनु, क्या ऐसी औरत से हम सहानुभूति रखें? ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो अपने पति और ससुराल वालों

इतना कर्कश व्यवहार रखती हैं. एक अच्छी और सुघड़ औरत वह होती है जो परिवार को तोड़ती नहीं, बल्कि जोड़ती है. लेकिन तुम्हारी संध्या दी ने तो जोड़ना नहीं, तोड़ना सीखा है. प्रेम और मिलनसार व्यवहार जैसे शब्द तो शायद उन के शब्दकोश में हैं ही नहीं. सच पूछो, तो मुझे बेहद खुशी है कि सुधीर उस औरत के साथ हंसीखुशी रह रहे हैं.’’

‘‘भाभी, आप जो कुछ कह रही हैं वह हम सब जानते हैं. न वे व्यवहार की अच्छी हैं न स्वभाव की. जबान की भी बेहद कड़वी हैं या दूसरे शब्दों में कहें वे शुद्ध खालिस स्वार्थ की प्रतिमा हैं. मायके में भी किसी से नहीं बनी, तभी तो किराए के मकान में रह रही हैं. लेकिन एक औरत होने के नाते हमें ऐसा होने से रोकना चाहिए और संध्या दी को सबकुछ बता देना चाहिए.’’

‘‘अनु, इस मामले में मेरी सोच तुम से जुदा है. मैं भी एक औरत हूं लेकिन इस प्रकरण में मैं सुधीर का साथ दूंगी क्योंकि हर जगह आदमी ही गलत नहीं होता. 95 प्रतिशत मामलों में दोषी न होते हुए भी पुरुषों को ही दोषी ठहराया जाता है. अगर एक पति अपनी कर्कशा पत्नी को पूरा खर्चा दे रहा है, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहा है और इस के एवज में अगर वह अपना एकाकीपन दूर करने के लिए एक औरत के साथ सुखी, संतुष्ट और तनावमुक्त जीवन जी रहा है तो इस में गलत क्या है? वह औरत भी पूरी सचाई से वाकिफ है, तो बुरा क्या है. प्लीज, जैसा चल रहा है, चलने दो. इस बारे में संध्या को बताने का मतलब साफ है कि सुधीर का जीवन पहले से और भी बदतर हो जाना क्योंकि संध्या की फितरत से वाकिफ हूं मैं.’’

‘‘लेकिन भाभी, उस औरत को अंत में क्या हासिल होगा? कानूनी रूप से तो संध्या ही उन की पत्नी हैं. सुधीर जीजाजी के न रहने पर उन की सारी संपत्ति, जमीनजायदाद और पैंशन पर तो संध्या दी का ही हक होगा. यह सब छिपा कर हम उस औरत के साथ भी तो एक तरह से अन्याय ही कर रहे हैं,’’ मैं ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘नहीं अनु, तुम किसी के साथ कोई अन्याय नहीं कर रही हो. मैं जानती हूं, सुधीर जैसे नेकदिल इंसान मात्र अपने सुख और स्वार्थ के लिए उस औरत के साथ कोई धोखा नहीं करेंगे, न ही उसे अंधेरे में रखेंगे. पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ वे अपना रिश्ता निभाएंगे. मुझे पूरा विश्वास है सुधीर जैसे पढ़ेलिखे, समझदार और दूरदर्शी व्यक्ति ने उस के सुखी और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ न कुछ प्रबंध अवश्य कर दिया होगा.

‘‘रही बात संध्या की, तो ऐसी औरतों को तो सबक मिलना ही चाहिए जो बिना वजह अपने पति और ससुराल वालों को प्रताडि़त कर के उन्हें कानूनी धमकी दे कर अपने मायके आ जाती हैं. इस श्रेणी में तुम्हारी संध्या दी भी आती हैं. यह बात मैं ही नहीं, तुम और तुम्हारे ससुराल वाले और यहां तक कि दोनों तरफ के रिश्तेदार व पड़ोसी भी जानते हैं. इसलिए यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ती हूं कि तुम संध्या को बता कर सुधीर की खुशहाल जिंदगी में जहर घुलवाओगी या चुप रह कर उन की वर्तमान खुशियां बरकरार रखोगी,’’ कह कर भाभी चुप हो गईं.

जानती हूं मैं, भाभी ने जो कुछ कहा है वह एकदम सच कहा है क्योंकि सुधीर जीजाजी उन के करीबी रिश्तेदार हैं. उन्होंने अपना दर्द उन से बयां किया है. मैं अजीब कशमकश में हूं कि एक निर्दोष आदमी की खुशियों की खातिर चुप रहूं या फिर एक कटु, कठोर व कर्कशा औरत के न्याय के लिए बोलूं… फिर भी यह तो मैं भी मानती हूं कि पतिपत्नी के रिश्ते को चाहे वह पति हो या पत्नी, कोई एक भी उस रिश्ते को तोड़ने का जिम्मेदार है तो कुसूरवार वही है. ऐसे में दोषी के साथ सहानुभूति दिखाना बेकुसूर के साथ बेइंसाफी होगी. सुधीर जीजाजी को पूरा हक है कि वे अपनी जिंदगी को नए सिरे से संवारें.

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