सही राह: भाग 2- नीरज को अपनी भूल का एहसास क्यों हुआ

नीरज को फिर   झटके से खामोश होना पड़ा, क्योंकि गुस्से से भरी संगीता उठ कर शयनकक्ष की तरफ चल पड़ी थी.

‘‘तुम कहां जा रही हो?’’ नीरज के इस सवाल का उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘वह फिल्म के टिकट ढूंढ़ने गई है, दामादजी. कहां रखा है तुम ने उन्हें? अपने पर्स

में या ब्रीफकेस में?’’ मीनाजी ने शरारती लहजे में पूछा.

नीरज  झल्ला उठा, बोला, ‘‘टिकट वहीं होंगे जहां उन्हें आप ने रखा होगा,

सासूमां. कम से कम मु  झे तो बता दो कि मु  झे फंसाने वाला यह सारा नाटक आप किसलिए…’’

‘‘मैं कोई नाटक नहीं कर रही हूं, दामादजी. अपनी बेटी की विवाहित जिंदगी की खुशियों और सुरक्षा को कौन मां सुनिश्चित नहीं करना चाहेगी? मैं तुम से पूछती हूं कि तुम मेरी बेटी को क्यों धोखा दे रहे हो?’’

‘‘पर सासूमां, मैं सचमुच किसी रितु को नहीं जानता…’’ नीरज को फिर   झटके से खामोश होना पड़ा, क्योंकि बहुत गुस्से में नजर आ रही संगीता हाथ में फिल्म के 2 टिकट लिए ड्राइंगरूम में लौट आई थी.

‘‘अब तो सच बोल ही डालो, दामादजी. गलतियां इंसान से ही होती हैं, पर तुम अगर दिल से माफी मांगोगे तो संगीता तुम्हें जरूर माफ कर देगी,’’ मीनाजी के इस डायलौग को सुन नीरज का मन किया कि वह अपने बाल नोच डाले.

‘‘तुम्हारी मम्मी न जाने किस बात का बदला मु  झ से ले रही हैं, जानेमन…’’

‘‘मु  झे जानेमन मत कहो,’’ संगीता इतनी जोर से चिल्लाई कि नीरज चौंक पड़ा.

‘‘सासूमां, प्लीज मु  झे अपनी बेटी के कहर से बचाओ,’’ नीरज ने फिर मीनाजी के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘तुम जो मेरी बेटी को धोखा दे रहे हो, वह बहुत गलत बात है, दामादजी. तुम्हारे साथ मेरे संबंध हमेशा बहुत अच्छे रहे हैं. मैं तुम्हें अपना बेटा ही मानती हूं, लेकिन इस मामले में मैं असलियत छिपा कर तुम्हारा साथ बिलकुल नहीं दूंगी,’’ मीनाजी भी अचानक नीरज से खफा नजर आने लगी थीं.

‘‘नीरज, तुम इसी वक्त मु  झे सचाई बता दो, वरना मैं कभी न लौट कर आने के लिए मायके जा रही हूं.’’

संगीता की इस धमकी को सुन नीरज के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी. बोला, ‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? क्या मैं ने आज तक कभी

तुम्हें इस तरह की शिकायत का मौका दिया है? मेरी जिंदगी में तुम्हारे अलावा कोई दूसरी औरत नहीं है.’’

संगीता रोने लगी तो मीनाजी ने उसे अपनी छाती से लगा कर प्यार करना शुरू कर दिया. साथ ही वे नीरज को गुस्से से घूर भी रही थीं.

‘‘मैं अभी इस रितु से तुम्हारी बात करा कर सारा मामला साफ करा देता हूं,’’ कह कर नीरज ने तुरंत अपने फोन से रितु का नंबर मिलाया.

रितु का फोन स्विच औफ मिला तो उस की आंखों में परेशानी के भाव बढ़ते चले गए.

‘‘मर्दों की जात पर भरोसा किया ही नहीं जा सकता है, मेरी गुडि़या. तू बेकार आंसू बहा रही है. बेटी, अब तो तू ऐसे बेवफा इंसान के साथ जिंदगी गुजारने की आदत डाल ले,’’ मीनाजी ने अपनी बेटी को यों सम  झाना शुरू किया तो नीरज की आंखें गुस्से से लाल हो उठीं.

‘‘अगर ये मु  झे धोखा दे रहे होंगे तो मैं इस घर में नहीं रहूंगी, मम्मी,’’ संगीता ने सुबकते हुए अपना फैसला सुना दिया.

‘‘अगर तू तलाक लेने का फैसला करती है तो मैं तेरा साथ दूंगी, मेरी बच्ची.’’

‘‘तुम्हें यह कैसी उलटी पट्टी पढ़ा रही हैं तुम्हारी मम्मी? कोई भी सम  झदार मां बिना कोई छानबीन किए अपनी बेटी को तलाक लेने की सलाह कैसे दे सकती है, संगीता?’’ नीरज के हावभाव से साफ जाहिर हो रहा था कि मीनाजी की भड़काऊ बातों से उस के दिल को जबरदस्त धक्का लगा है.

‘‘मेरी बेटी को मेरे खिलाफ भड़काने की कोशिश बेकार जाएगी, दामादजी,’’ मीनाजी गुस्से से भर उठीं, ‘‘तुम्हारी बेवफाई ने इस वक्त तुम्हें कठघरे में खड़ा किया हुआ है, मु  झे नहीं. क्यों धोखा दे रहे हो तुम मेरी बेटी को? क्या शिकायत है तुम्हें इस से?’’

‘‘मु  झे कोई शिकायत नहीं है तुम से, संगीता. तुम अपनी मम्मी के भड़काने में मत आओ, प्लीज,’’ अपनी सास से उल  झने के बजाय नीरज ने अपनी पत्नी को सम  झषना बेहतर सम  झा.

‘‘अगर तुम्हें इस से कोई शिकायत नहीं है तो फिर इस रितु के साथ इश्क क्यों फरमा रहे हो? अरे, क्या यह तुम्हारी घरगृहस्थी को ढंग से नहीं संभाल रही है?’’

‘‘बिलकुल संभाल रही है और मैं ने कभी कोई शिकायत…’’

‘‘यह हो सकता है कि अब राहुल की देखभाल के चक्कर में उल  झे रहने के कारण यह तुम्हारे लिए ज्यादा वक्त न निकाल पाती हो पर क्या ऐसा होना स्वाभाविक नहीं है?’’

‘‘मैं ने यह कभी नहीं कहा कि इसे राहुल की देखभाल पर कम ध्यान देना चाहिए.’’

‘‘क्या यह रितु बहुत सुंदर है?’’ नीरज के जवाब को अनसुना कर मीनाजी ने

आक्रामक लहजे में अगला सवाल पूछ डाला.

‘‘मु  झे क्या पता? मैं जब उसे जानता

ही नहीं…’’

‘‘अब इतना ज्यादा सीधा दिखने की कोशिश भी मत करो. क्या वह कुंआरी है?’’

‘‘यह मैं कैसे बता…’’

‘‘वह जरूर कुंआरी होगी. लेकिन मैं एक सवाल पूछती हूं तुम से, दामादजी. भला 1 बच्चे की मां बन चुकी संगीता का रंगरूप किसी कुंआरी लड़की जैसा कैसे हो सकता है? तुम इस की तुलना उस कुंआरी रितु के साथ कर इसे धोखा कैसे दे सकते हो?’’

‘‘मैं ने कब की तुलना?’’ नीरज ने गुस्से से पूछा.

‘‘अरे, बच्चे को जन्म देने के बाद औरत का फिगर खराब हो ही जाता है. संगीता भी मोटी हो गई है, लेकिन उस का चेहरा तो पहले जैसा सुंदर है या नहीं?’’

‘‘मुझे उस के मोटा हो जाने से कोई शिकायत नहीं…’’

‘‘तुम्हें कोई शिकायत इसलिए नहीं है, क्योंकि तुम इस रितु के साथ मौजमस्ती कर रहे हो. तुम्हें पिता बनने का सुख दिया है मेरी बेटी ने और तुम बदले में उसे धोखा दे रहे हो. इस रितु के पीछे लार टपकाते घूम रहे हो छि:…’’

‘‘मैं किसी के पीछे लार टपकाते…’’

‘‘मुझ से  झूठ मत बोलो. यह तो तुम से

हुआ नहीं कि संगीता को फिट और आकर्षक बनाने के लिए उस के साथ रोज घूमने जाओ.

उसे जिम जाने के लिए प्रेरित करो. डाइटिंग

करने के लिए उस का हौसला बढ़ाओ. लेकिन तुम ने…’’

‘‘मैं ने हजारों बार संगीत को यह सलाह दी होगी, सासूमां, लेकिन मैं इसे कोई धोखा…’’

‘‘इस के साथ तुम्हारा रूखा व्यवहार बताता है कि तुम इसे धोखा दे रहे हो, दामादजी. तुम ने क्यों इस की सारी सेवाओं को भुला दिया? इस के बेडौल शरीर के अंदर धड़कता प्यार करने वाला दिल तुम्हें दिखना क्यों बंद हो गया है?’’ बहुत भावुक हो जाने से मीनाजी का गला रुंध गया.

‘‘अब मैं आप को कैसे विश्वास दिलाऊं कि संगीता को मैं अभी भी बहुत प्यार करता हूं और मेरी जिंदगी में कोई दूसरी औरत नहीं है,’’ नीरज बहुत परेशान नजर आने लगा.

‘‘इस मैसेज और इन टिकटों को देख कर हम कैसे तुम पर विश्वास करें? खुद भटकने के बजाय अगर तुम मेरी इस कमअक्ल बेटी को प्यार से सम  झाते तो क्या यह तुम्हारे साथ बिताने के लिए ज्यादा वक्त न निकालने लगती? तुम इस का हौसला बढ़ाते तो क्या यह आज यों मोटी भैंस सी नजर आने के बजाय पतली और आकर्षक न दिख रही होती? इस जवान, कुंआरी और खूबसूरत रितु के साथ चक्कर चलाने से पहले तुम्हें इस बेवकूफ को यों बेडौल हो जाने व मां और पत्नी की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन न बैठाने के खतरे बड़े धैर्य के साथ सम  झाने चाहिए थे या नहीं?’’

‘‘ऐसा कुछ सम  झाने की कोशिश मैं ने की…’’

‘‘तुम ने सही ढंग से सम  झाने की कोशिश करने के बजाय इसे धोखा दिया है, दामादजी. लेकिन तुम मेरी एक चेतावनी कान खोल कर सुन लो. अगर तुम ने फौरन इस रितु से अपना चक्कर हमेशा के लिए खत्म नहीं किया तो मेरी बेटी तुम्हारे साथ रहने के बजाय तलाकशुदा स्त्री होने का ठप्पा अपने माथे पर लगवाना ज्यादा पसंद करेगी… उसे राहुल को बिना पिता के पालना मंजूर होगा… वह दुनिया की नजरों में दया और हंसी का पात्र बनना स्वीकार कर लेगी पर तुम जैसे धोखेबाज के साथ बिलकुल नहीं रहेगी,’’ ऐसी धमकियां देने के बाद गुस्से से भरी मीनाजी ने अपनी बेटी को छाती से लगाने के लिए अपने हाथ फैला दिए.

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Film Review: ‘‘दोनो’ ने कमाए पहले दिन केवल दस लाख रूपए

तेंतिस साल की उम्र में 15 अगस्त 1947 को स्व. ताराचंद बड़जात्या ने बेटों राज कुमार बड़जात्या,कमल बड़जात्या व अजीत कुमार बड़जात्या की बजाय अपनी बेटी राजश्री के नाम पर फिल्म प्रोडक्शन व वितरण कंपनी ‘राजश्री’ की नींव रखी थी. उन्होने शुरूआत में दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक कई शहरों में अपने आफिस खोलकर फिल्म वितरण/डिस्टिब्यूसन से शुरूआत की थी. ताराचंद्र बड़जात्या ने देश के कई शहरों में अपने सिनेमाघर भी बनाए. फिर भारतीय परंपरा व रीति रिवाजों की बात करने वाली पारिवारिक फिल्मों का निर्माण करने का संकल्प लेकर 1962 में फणी मजुमदार के निर्देशन में मीना कुमारी, अशोक कुमार व प्रदीप कुमार को लेकर पहली फिल्म ‘‘आरती’’ का निर्माण किया था. जिसे क्रिटिकली काफी सराहा गया था.1964 में सत्येन बोस के निर्देशन में ताराचंद बड़जात्या निर्मित फिल्म ‘दोस्ती’ ने सफलता के रिकार्ड स्थापित किए थे.उसके बाद से ‘राजश्री प्रोडक्शन’ ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा.

‘राजश्री प्रोडक्शन्स’ अब तक 64 फिल्मों का निर्माण कर चुका है.जिनमें से ‘जीवन-मृत्यु‘, ‘गीत गाता चल‘, ‘तपस्या‘, ‘उपहार‘, ‘पिया का घर‘, ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए‘, ‘सावन को आने दो‘, ‘अंखियों के झरोखे से‘, ‘नदिया के पार‘, ‘सारांश‘, ‘मैंने प्यार किया‘, ‘हम आपके हैं कौन‘, ‘हम साथ-साथ हैं‘,‘विवाह’ और ‘प्रेम रतन धन पायो‘ जैसी चर्चित फिल्मों का समावेश है.इनमें से ‘मैने प्यार किया’,‘हम आपके हैं कौन’,‘हम साथ साथ हैं’,‘विवाह’ और ‘प्रेम रतन धन पाओ’का निर्देशन ताराचंद बड़जात्या के पोते और राज कुमार बड़जात्या के बेटे सूरज कुमार बड़जात्या ने किया. अब ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की 64वीं फिल्म ‘‘दोनो’ का निर्देशन सूरज बड़जात्या के बेटे अवनीश कुमार बड़जात्या ने किया है,जिसमें सनी देओल के बेटे राजवीर देओल व पूनम ढिल्लों की बेटी पालोमा ने अभिनय किया है. षश्भ मुहूर्त देखकर इस फिल्म को छह अक्टूबर,शुक्रवार की बजाय गुरूवार,पांच अक्टूबर की रात सवा आठ बजे पहला शो रखकर प्रदर्शित किया.लेकिन बड़जात्या की चाौथी पीढ़ी की अपनी कमजोरी के चलते यह मुहूर्त भी काम न आया. अफसोस थाईलैंड में फिल्मायी गयी 20 करोड़ की लागत वाली फिल्म ‘दोनो’ पहले दिन बाक्स आफिस पर महज दस लाख रूपए ही कमा सकी.जिसके चलते अब बौलीवुड में चर्चा गर्म हो गयी है कि ‘दोनो’ की असफलता की वजह क्या है और  ‘राजश्री’ के 76वें वर्ष में स्व.ताराचंद बड़जात्या की लीगसी /परंपरा को कौन डुबा रहा है…???

बहरहाल,ताराचंद बड़जात्या हमेशा समय के साथ चलते रहे हैं.राजश्री प्रोडक्शन्स ने 1985 में टीवी सीरियल के निर्माण के क्षेत्र में कदम रखते हुए ‘पेइंग गेस्ट‘ सीरियल का निर्माण किया.उसके बाद ‘वो रहने वाली महलों की‘,‘प्यार के दो नाम- एक राधा एक श्याम‘जैसे कुछ सीरियल बनाए.1998 में स्व. ताराचंद बड़जात्या की मृत्यू के बाद ‘राजश्री म्यूजिक‘ की भी नींव रखी गई, जिससे कई प्राइवेट अलबम आ चुके हैं.

जब ‘राजश्री’ की परंपरा से हटे थे सूरज बड़जात्याः

बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हैं कि ताराचंद बड़जात्या के पड़पोते और सूरज कुमार बड़जात्या के बेटे अवनीश ने अपने खानदान व परदादा की 76 वर्ष से चली आ रही परंपरा को धता बताते हुए लीक से हटकर फिल्म बनाने के प्रयास में ‘बड़जात्या’ की परंपरा व ‘राजश्री’ की नींव खोदने का काम किया है.उनके इस कृत्य से न सिर्फ फिल्म ‘दोनो’ डूबी है,बल्कि ‘राजश्री प्रोडक्षन’ की साख पर भी बट्टा लगा है.बौलीवुड से जुड़ा एक तबका ‘राजश्री प्रोडक्शन’ को डुबाने के लिए अपरोक्ष रूप से सूरज कुमार बड़जात्या पर भी उंगली उठा रहा है.कहा जा रहा है अपने परदादा ताराचंद बड़जात्या की 21 सितंबर 1992 को मृत्यू होने के बाद सूरज कुमार बड़जात्या ने ‘राजश्री’ पर अपना प्रभुत्व बढ़ाना शुरू कर दिया था.सबसे पहले सूरज कुमार बड़जात्या ने ही अपने परदादा की परंपरा के खिलाफ जाकर आधुनिकता का लबादा ओढ़कर 2003 में लगभग सवा तीन घंटे की अवधि की रोमांटिक काॅमेडी फिल्म ‘‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ का लेखन व निर्देशन किया था,जो कि ‘राजश्री’ की ही 1976 में प्रदर्शित बासु चटर्जी निर्देशित सफलतम फिल्म ‘‘चितचोर’’ का ही आधुनीकरण थी.फिल्म ‘मैं प्रेम की दीवानी हॅूं’ में करीना कपूर,हृतिक रोषन व अभिषेक बच्चन जैसे कलाकार थे.‘राजश्री प्रोडक्शन’ के बैनर तले बनी यह पहली फिल्म थी,जिसमें नायिका का विवाह संस्था में यकीन नही होता.अंततः उसकी शादी उसी इंसान के साथ होती है,जिससे वह प्यार करती है.इस फिल्म में पहली बार नायिका ने अपने शरीर पर कम कपड़े पहनकर ग्लैमर परोसा था.जब 27 जून 2003 को यह फिल्म सिनेमाघर पहुॅची,तो इसने पानी तक नही मांगा.

इससे ‘राजश्री’ के अंदर काफी हंगामा हुआ था.उसके बाद सूरज कुमार बड़जात्या ने अपनी गलती स्वीकार कर ‘बड़जात्या’ व ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की ही परंपरा पर आंख मूॅदकर कर 2006 में बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘‘विवाह’’ लेकर आए थे,जिसमें विवाह संस्था,शादी के रीतिरिवाज आदि को ‘मैने प्यार किया’ की ही तरह परोसा गया था.इस फिल्म में शाहिद कपूर और अमृता राव की जोड़ी थी.80 मिलियन की लागत से बनी इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर 539 मिलियन कमा कर दिए थे.फिर भी अच्छी कहानी की तलाश के नाम पर पूरे नौ वर्ष तक सूरज कुमार बड़जात्या ने कोई फिल्म निर्देशित नही की.2015 में उन्होने सलमान खान को लेकर फिल्म ‘प्रेम रतन यान पाओ’ का लेखन व निर्देशन किया.यह फिल्म भी काफी सफल रही.

सरकार बदलने के साथ बदलते बौलीवुड का असरः

लेकिन 2014 के बाद बौलीवुड में आ रहे बदलाव के रंग में सूरज कुमार बड़जात्या भी ख्ुाद को रंगने लगे.वास्तव में 2014 के बाद धीरे धीरे बौलीवुड पत्रकारों से दूरी बनाते हुए अपने पीआर व पीआर कंपनी के इशारे पर नाचने लगा था.इसी वजह से ‘राजश्री प्रोडक्शन’ निर्मित 2016 में ‘दावत ए इष्क’ और अभिषेक दीक्षित लिखित व निर्देशित ‘हम चार’ जैसी फिल्मों का ठीक से प्रचार नही किया गया और यह दोनों फिल्में बाक्स आफिस पर धराशाही हो गयी.तब सात वर्ष बाद असफल फिल्म ‘‘हम चार’’ के ही लेखक की कहानी पर बतौर निर्देषक सूरज कुमार बडजात्या ने फिल्म ‘‘उंचाई’ का निर्देषन किया.फिल्म की कहानी अच्छी थी,फिल्म बनी भी ठीक ठाक थी.लेकिन यह पहली बार था,जब ‘राजश्री प्रोडक्शन’ और सूरज कुमार बड़जात्या ने इस फिल्म का प्रचार उस पैमाने पर नही किया,जिस पैमाने पर ‘राजश्री प्रोडक्शन’ अपनी हर फिल्म को प्रचारित करता था.परिणामतः यह फिल्म बाक्स आफिस पर किसी तरह से महज अपनी लागत ही वसूल कर पायी.जबकि इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, डैनी,अनुपम खेर,सारिका,नीना गुप्ता जैसे कलाकार हैं.

सूरज के बेटे अवनीश बने निर्देशकः ताराचंद बड़जात्या की चैथी पीढ़ी का कारनामाः

अब सूरज बड़जात्या के बेटे,राज कुमार बड़जात्या के पोते और ताराचंद बड़जात्या के पड़पोते अवनीश बड़जात्या ने कुछ कमियों के बावजूद राजश्री की ही परंपरा को आज के परिवेश की कहानी बयां करते हुए आगे बढ़ाने का प्रयास किया है.फिल्म ‘दोनो’ में राजस्थानी परिवेश की शादी व्याह,पे्रम, विछोह, डेस्टीनेशन वेडिंग के साथ ही पारिवारिक मूल्य व वर्तमान पीढ़ी की आधुनिक सोच को भी रेखंाकित किया गया है.

फिल्म ‘दोनोः किसने डुबायी

पिछले पांच छह वर्ष के दौरान ‘राजश्री प्रोडक्शन’’ के कर्ताधर्ताओं और खुद सूरज कुमार बड़जात्या ने अनुभवो के आधार पर क्या सीखा,यह तो वही जाने.लेकिन सूरज कुमार बड़जात्या के बेटे अवनीश कुमार बड़जात्या निर्देशित फिल्म ‘दोनो’ का बाक्स आफिस पर जो हाल है,वह इसी ओर इंगित करता है कि शायद अब ‘राजश्री प्रोडक्शन’ से जुड़े लोग इसे डुबाने पर आमादा हो गए हैं.

जी हाॅ! ‘‘प्रेम रतन धन पाओ’’ और हम चार’ में बतौर सहायक निर्देशक तथा फिल्म ‘‘उंचाई’’ में बतौर एसोसिएट निर्देशक काम कर चुके अवनीश कुमार बड़जात्या ने अपने पिता सूरज बड़जात्या के पदचिन्हो पर चलते हुए बतौर स्वतंत्र निर्देशक रोमांटिक फिल्म ‘‘दोनो’’ के सह लेखन व निर्देशन की जिम्मेदारी संभाली तो तय किया कि वह ‘राजश्री’ की परंपरा के साथ ही लीक से हटकर फिल्म बनाएंगे.अवनीश बड़जात्या अपनी फिल्म ‘दोनो’ में जहां एक तरफ पुरानी मान्यताओं व रीति रिवाजों को चुनौती देने के साथ ही अपरोक्ष रूप से नारी समानता के नाम पर संयुक्त परिवारों को तोड़ने व धार्मिक रीति रिवाजों,पूजा आदि की अवमानना करने की वकालत करते हुए नजर आते हैं,तो वहीं वह भारतीय शादी व्याह के रीति रिवाजों की भी वकालत करते हुए नजर आते हैं.यानी कि वह पूरी तरह से द्विविधाग्रस्त हैं.

फिल्म ‘दोनो’ की कहानीः

रोमांटिक कहानी की शुरूआत बंगलोर में अपने स्टार्ट व्यवसाय को जमाने में व्यस्त देव सराफ (राजवीर देओल ) से षुरू होती है.उसके माता पिता मंुबई में रहते हैं और देव की स्कूल व कालेज की दोस्त अलीना (कनिका कपूर ) की षादी होने जा रही है.इससे वह परेषान हो गया है.क्योंकि वह पंद्रह साल की उम्र से ही अलीना से प्यार करता आया है,पर वह इस बात को आज तक अलीना से कह नहीं पाया.वह अपनी मां व अलीना को भी फोन पर शादी में शामिल होने पर असमर्थता जाहिर कर देता है.तब अलीना कहती है कि यदि वह षादी में नही आया तो वह शादी नही करेगी.

क्योंकि अलीना की नजर में देव सराफ अच्छा दोस्त है.यह शादी डेस्टीनेशन वेडिंग है,जो कि थाईलैंड में हैं.लेकिन मिस अंजली मल्होत्रा (टिस्का चोपड़ा ) के एक कार्यक्रम में एक काॅलर निशांत की इसी तरह की समस्या का जवाब देते हुए अंजली मल्होत्रा ,निशांत को सलाह देती हैं कि ‘स्टेशन पर बैठकर ऐसी ट्रेन का इंतजार करने से क्या फायदा, जो ट्रेन उस स्टेशन पर आती ही नहीं. दूसरी ट्रेन पकड़ने के लिए उसे दूसरे स्टेशन पर जाना पड़ेगा या फिर उसी स्टेशन पर आने वाली दूसरी ट्रेन को पकड़ना पड़ेगा. तभी उसको एक नई मंजिल मिल सकती है. इसलिए उसे अपनी दोस्त की षादी में जाना चाहिए,हो सकता है वहां पर उसे नई ट्ेन की राह मिल जाए.’’देव सराफ थाईलेंड में अलीना की शादी में शामिल होता है.जहां उसकी मुलाकात मेघना (पालोमा ढिल्लों) से होती है. छह साल तक गौरव (आदित्य नंदा) संग रिलेशनशिप में रहने के बाद एक माह पहले ही उसका ब्रेक अप हुआ है. इस शादी में गौरव भी आया हुआ है.देव और मेघना दोनो एक दूसरे के को समझने की कोशिश करते हैं.

बीच बीच में गौरव की अपनी हरकतें हैं,तो वहीं अलीना के होने वाले पति निखिल(रोहण खुराना ) की अपनी हरकते हैं.षादी के रीति रिवाज संपन्न होते रहते हैं.हल्दी व संगीत कार्यक्रम हो जाते हैं.कहानी बढ़ती रहती हंै.कहानी में कई मोड़ आते हैं.एक मोड़ पर लगता है कि मेघना,गौरव के पास वापस जाएगी.उधर अलीना व निखिल की षादी से पहले की रात,अलीना व निखिल का समुद्री बीच पर सैकड़ों लोगो के सामने   लिया गया लंबा चुंबन वायरल हो जाता है.उस चुंबन दृष्य को लेकर रिश्तेदारों में फुसफुसाहट शुरू होती है.अलीना की मां उसे डांटती है,तब अलीनाप मन ही मन निखिल से प्याह न करने की सोचकर देव सराफ के साथ रात में ही कार में बैठकर होटल से बाहर घूमने निकल जाती है.रास्ते में अलीना,निखिल से षादी न करने व देव,अलीना से प्यार करने की बात कबूल करता है.

पर सारा सच जानने के देव सराफ, अलीना को सलाह देता है कि उसे इस बारे में  बात करके अंतिम निर्णय लेना चाहिए.निखिल पूरे परिवार व रिश्तेदारों के सामने अलीना से कह देता है कि वह दोनो राजी हैं,जिन्हे एतराज है वह भाड़ में जाएं.और दोनों एक दूसरे संग लंबे समय तक चुंबनबद्ध होते हैं.सब कुछ देख व सुनकर निखिल के पिता अलीना से वरमाला डालने के लिए कहते हैं.

बाक्स आफिस पर बुरी तरह से लुढ़की ‘दोनो’

राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘दोनों’ पूरे देश में महज 273 स्क्रीन्स में ही प्रदश्र्षत हो पायी है. इनमें उन स्क्रीन्स का भी समावेश है,जिनके मालिक ‘राजश्री फिल्मस’ खुद है.निर्माता ने एक टिकट खरीदने पर एक टिकट मुफ्त का प्रावधान भी रखा हुआ है, इसके बावजूद फिल्म ने पहले दिन केवल दस लाख रूपए कमाए.कुछ स्क्रीन्स में सिर्फ छह लोग नजर आए तो कुछ स्क्रीन्स के षो रद्द कर दिए गए.75 वर्षो से जिस कंपनी की चार पीढ़ियां फिल्म निर्माण व वितरण में सक्रिय हों,उस ‘राजश्री प्रोडक्षंस ’ की फिल्म की यह दुर्गति शुभ संकेत नही है.इस पर ‘राजश्री प्रोडक्षन’ से जुडे़ हर शख्स को गंभीरता से मनन करना चाहिए.

वास्तव में इसकी मूलतः दो बड़ी वजहें हैं.पहली वजह तो अनुभवी लोगों ने पहली बार अपनी फिल्म का ठीक से प्रचार नही किया.लोगों को पता ही नहीं चला कि ‘दोनो’ नाम की कोई फिल्म बनी है.इसके लिए फिल्म के प्रचार की जिम्मेदारी जिन लोगो को दी गयी,उन लोगों ने इमानदारी से काम नही किया.पी आर कंपनी का पत्रकारों के संग व्यवहार ऐसा रहा,जैसे कि पत्रकार उनके गुलाम हो.दूसर बात लेखक व निर्देशक की अपनी कमजोरियां व द्विविधाग्रस्त होकर फिल्म बनाना रहा.वहीं फिल्म के कलाकारों ने भी फिल्म को डुबाने में कोई कसर बाकी नही रखी.

कहानी के स्तर पर कमीः

फिल्म ‘दोनो’ एक प्रेम कहानी प्रधान रोमांटिक फिल्म है.मगर पूरी फिल्म में रोमांस कहीं नही है.लेखक व निर्देशक की अपनी कमजोरियों के चलते फिल्म गड़बड़ा गयी.फिल्म के नायक देव सराफ के साथ किसी को हमदर्दी नहीं होती? क्योंकि फिल्मकार इस बात को ठीक से चित्रित ही नहीं कर पाए कि देव सराफ का अलीना से एक तरफा प्यार की गहराई कितनी है? फिल्म देखने पर अहसास होता है कि देव का 15 वर्ष की उम्र में अलीना से प्यार का अहसास महज बचपना था.बचपने में किए गए प्यार का कोई महत्व नही होता.यही वजह है कि जब क्लायमेक्स से पहले अलीना को पता चलता है कि देव उसका सिर्फ अच्छा दोस्त ही नही है,बल्कि प्यार करता है.तब भी उस पर ज्यादा असर नही होता.यहां तक क्लायमेक्स मे जब देव,अलीना से निखिल से ब्याह करने की सलाह देता है,तब भी लोगों को देव पर तरह नही आता.देव के किरदार में हीरोईजम नजर ही नहीं आता.

 अवनीष की लीक से हटकर बनी फिल्म ‘दोनो’ की कमियांः

जैसा कि हमने पहले ही बताया कि ‘राजश्री प्रोडक्शन’ पिछले 76 वषों अपनी फिल्मों में भारतीय परंपरा,पारिवारिक जीवन मूल्यों की वकालत करते हुए विवाह व उसके रीति रिवाजों के इर्द गिर्द ही कहानियां पेश करते आया है.लेकिन पहली बार स्व.ताराचंद बड़जात्या के परिवार की चैथी पीढ़ी यानी कि सूरज बड़जात्या के बेटे व निर्देशक अवनीश बड़जात्या ने अपने निर्देषन में बनी पहली फिल्म ‘‘दोनों’’ में लीक से हटकर काम किया है.

स्टार्ट अप का माखौल

लीक से हटकर फिल्म बनाने के चक्कर में अवनीश बड़जात्या ने अपनी फिल्म ‘दोनो’ की शुरूआत ही गलत कर दी.फिल्म की शुरूआत में ही युवा पीढ़ी यानी कि नायक देव सराफ के ‘स्टार्ट अप’ व्यापार का माखौल उड़ाया गया है.फिल्म के पहले ही दृश्य में  देव की स्टार्ट अप कंपनी में एक ग्राहक आता है और उसे देखकर मजाक उड़ाता हुए कहता है-‘‘अरे आप इस कंपनी के सीईओ है.मैने तो किसी बुजुर्ग इंसान की कल्पना की थी’ और वह देव की कंपनी के साथ व्यापार नही करता.फिर फिल्म बताती है कि देव सराफ ‘लूजर’ हैं.उसकी स्टार्ट अप कंपनी सफल नही है और उस पर कर्जा है. इस तरह फिल्म की षुरूआत कर अवनीष बड़जात्या युवा पीढ़ी को अपनी फिल्म से दूर ले जाने का ही काम किया है.सच यह है कि वर्तमान समय में युवा पीढ़ी ‘स्टार्ट अप’ षुरू कर निरंतर प्रगति कर रही है.

गणपति भगवान की पूजा छोड़कर नायिका का होने वाले पति संग चुंबनबद्ध होनाः …??

फिल्म में एक दृष्य है,जहां विवाह से पूर्व गणपति पूजा का कार्यक्रम चल रहा है.वर व वधु दोनों पक्ष के लोग मौजूद हैं.नायिका अलीना अपनी मां के साथ गणपति पूजा कर रही है.पर अलीना को यही नही पता कि रक्त अक्षत व नैवेद्य किसे कहते हैं.इतना ही नहीं पूजा शुरू होेते ही अलीना अपने दोस्तों के इशारे पर गणपति पूजा छोड़कर अपने पति निखिल के पास समुद्र के किनारे पहंुच जाती है,जहां उसका होने वाला पति निखिल दोस्तों के सामने ही उसके सामने घुटने के बल बैठकर शादी का प्रस्ताव रखता है और फिर दोनों एक दूसरे के साथ लंबे समय तक चुंबन लेते हैं,जिसका वीडियो भी बनाया जाता है.मजेदार बात यह है कि यह बात दोनों परिवारों को पसंद नही है.सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ‘राजश्री प्रोडक्शन’ इससे पहले 63 फिल्में बना चुका है और अब तक किसी भी फिल्म में एक भी ‘चंुबन दृश्य’ नही रहा.मगर ‘दोनों’ राजश्री प्रोडक्शन’ की पहली फिल्म है,जिसमें एक नही बल्कि तीन तीन लंबे चुंबन दृश्य हैं.

अब क्लायमेक्स में अलीना विवाह से पूर्व समुद्री बीच पर सैकड़ाें लोगों के बीच अपने होने वाले पति निखिल संग लिए गए लंबे चुंबन दृश्य के वायरल हो जाने पर बतंगड़ खड़ा करती है,जिसे युवा पीढ़ी भी गलत मानती है,इस कारण भी किसी को भी अलीना से हमदर्दी नही होती.

दूसरी बात फिल्म के इस तरह के दृश्यों से अहसास होता है कि लेखक व निर्देशक पूरी तरह से द्विविधा में हैं,कि शादी के धार्मिक रीति रिवाजों को सही ठहराते हुए ‘राजश्री फिल्मस’ की 76 साल पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाएं अथवा लीक से हटकर आधुनिकता की बात करते हुए धार्मिक रीति रिवाजों व गणेश पूजा के खिलाफ जाएं. जब निर्देषक अवनीष बड़जात्या ने लीक से हटकर कुछ करने का निर्णय लिया था,तब उन्हे ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की फिल्मों  की परंपरा और आधुनिकता में से किसी एक का दामन थामना चाहिए था.

पुरानी फिल्मों का कचूमरः

लेकिन अपनी पिछली तीन पीढ़ी से चली आ रही परंपरा का निर्वाह करने के चक्कर में उन्होने अपनी ही कंपनी की कुछ पुरानी फिल्मों के दृश्यों को सही ढंग से ‘दोनो’ में पिरोने का असफल प्रयास किया है.वह भूल गए कि समय व संदर्भ बदलने के साथ ही षब्दों के भी अर्थ बदल जाते हैं,इसलिए नए तरह के दृष्य गढ़े जाने चाहिए थे.फिल्म ‘दोनो’ में अविष्वसनीय दृष्यों की भरमार है.कुछ दृष्य इस बात की ओर इंगित करते है कि वर्तमान पीढ़ी के लिए रिष्ते मायने नहीं रखते.इतना ही नही पति पत्नी में समानता व नारी स्वतंत्रता की बात करते हुए फिल्म निर्देशक ने जो बात कही है,उस पर अमल करने से संयुक्त परिवार विखरते हैं,जबकि ‘राजश्री’ की फिल्मों की परंपरा परिवार विखेरना नही रहा है..

इसी तरह फिल्म में चुंबन वाला दृश्य भी खटकता है.जिस तरह से राजस्थानी परिवेश की शादी में निर्देशक ने नायक व नायिका को सार्वजनिक रूप से सभी रिश्तेदारों के समक्ष लंबे लंबे चुंबन दृश्यों दिखाए हैं,वह स्वीकार नही किए जा सकते. क्या दो पीढ़ियों के बीच जो अंतर है,उसे अवनीश इसी तरह से समझते हैं.क्या उनके अपने परिवार के संस्कार अब यही हो गए हैं? इस तरह के सवाल उठना लाजमी हैं.वैसे अवनीश बड़जात्या ने फिल्म में यह सवाल उठाने की कोशिश की है कि जब किसी भी काम में लड़के और लड़की दोनों की समान भागीदारी है,तो दोष सिर्फ लड़की के सिर पर क्यों?

फिल्म ‘‘दोनो’’ में कुछ अच्छा संदेशः

वैसे लेखक व निर्देशक ने कई गल्तियों के बावजूद कुछ अच्छा संदेश परोसने में सफल रहे हैं.फिल्म इस बार पर रोशनी डालती है कि कोई भी इंसान हर किसी को खुश नहीं रख सकता है.अगर इंसान सारी जिंदगी इस बात से डर डर के जिए सिर्फ अपनी नजरो में उठने की जरूरत है,तो वह सफल नही हो सकता.हमारी जीवन शैली और रहने के तौर तरीके पर दूसरे क्या सोचते हैं, यह सोचने के बजाय, इस बात पर गौर करना चाहिए कि खुद को क्या पसंद है और क्या अच्छा लगता है? हर इंसान अपने आप में हीरो होता है,बशर्ते उसे खुद की काबिलियत समझ में आ जाए.

फिल्म के प्रचार में पत्रकारों कीे अनदेखी करना

पर फिल्म दोनो’ की असफलता का एक कारण फिल्म का सही प्रचार न किया जाना भी रहा.‘राजश्री’ की अपनी एक परंपरा रही है.वह कम बजट में अच्छी फिल्में बनाते हुए अपनी फिल्म का जमकर प्रचार करते रहे हैं.हमें अच्छी तरह से याद है कि 1986 में जब गोविंद मुनीस के निर्देशन में ज्ञान शिवपुरी, रश्मी मिश्रा व आकाशदीप जैसे नए कलाकारों को लेकर ताराचंद बड़जात्या ने फिल्म ‘बाबुल’ बनायी थी,तब उन्होने इस फिल्म के प्रचार के लिए अपने बेटे स्व.राज कुमार बड़जात्या के नेतृत्व में फिल्म की पूरी टीम को राजस्थान,दिल्ली,मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के कई शहरों में पत्रकारों व आम दर्शकों के साथ संवाद स्थापित करने के लिए भेजा था.

अब तक ताराचंद बड़जात्या के तीन बेटों में से किसी ने भी निर्देशन के क्षेत्र में कदम नहीं रखा था.सभी फिल्म निर्माण व वितरण के कार्य में अपने पिता की मदद कर रहे थे.लेकिन 1989 में जब राज कुमार बड़जात्या के बेटे और ताराचंद बड़जात्या के बेटे सूरज बड़जात्या ने निर्देशन में कदम रखने का फैसला किया,तब परिवार के सभी सदस्यों ने इसका विरोध किया था,मगर ताराचंद बड़जात्या ने सूरज को फिल्म निर्देशन की इजाजत दी थी.

सूरज बड़जात्या ने भाग्यश्री व सलमान खान को लेकर फिल्म ‘‘मैने प्यार किया’ का निर्माण किया था,जिसके प्रचार के लिए भी पूरा देष घूमे थे और फिल्म ने सफलता के नए रिकार्ड बनाए थे.  लेकिन अब ‘राजश्री प्रोडक्शन’ का 76 वर्ष और 64 फिल्मों के निर्माण के अनुभवांे के बावजूद पत्रकारों और समाचार पत्र व पत्रिकाओं की अनदेखी कर सोषल मीडिया के आगे घुटने टेकना भारी पड़ गया.फिल्म निर्माता यह भूल गए कि जब अखबार या पत्रिका में फिल्म के संबंध में कुछ छपता है,तो उसे पढ़कर पाठक/ दर्शक कल्पना करता है और फिर उसके अंदर फिल्म देखने की उत्सकुता पैदा होती है.पर ‘दोनो’ के प्रचार में ऐसा हुआ ही नहीं.

 इंफ्यूलंसर और छोटे छोटे यूट्यूबरों के आगे नतमस्तक होना

इतना ही नहीं यह पहली बार हुआ जब प्रेस शो में कुछ इन्फ्यूलंसर के साथ ही देश के कोन कोने से छोटे यूट्यूबरों को बुलाया गया था.शायद फिल्म के निर्माता व उनकी पीआर कंपनी ने सोचा होगा कि मुंबई के पत्रकारों से दूरी बना देश के छोटे छोटे यूट्यूबराें को बुलाकर फिल्म को सुपर हिट बना लेंगे. पर फिल्म के बाक्स आफिस की कमाई से साबित होता है कि फिल्म के निर्माता,निर्देशक,कलाकारों और उनकी पीआर कंपनी की हरकतों ने इस फिल्म को डुबाने में कोई कसर बाकी नही रखी.

कलाकारों का अहम और कमतर अभिनयः

फिल्म ‘दोनों’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इस फिल्म में नए कलाकारों की जोड़ी है.फिल्म के मुख्य कलाकार तो अपने परिवार के नाम पर अहम में रहे.फिल्म के नायक राजवीर देओल के दिमाग में हावी है कि वह महान अभिनेता धर्मेंद्र के पोते व सफल अभिनेता सनी देओल के बेटे हैं. जबकि अभिनय व संवाद अदायगी के मामले में वह शून्य हैं.उनका चेहरा सदैव सपाट रहता है.तो वहीं फिल्म की नायिका पालोमा ढिल्लों को अहम है कि वह तो मषहूर अभिनेत्री पूनम ढिल्लों व मशूहूर फिल्म निर्माता अशोक ठाकरिया की बेटी हैं.वह न खास सुंदर हैं और न ही उनके अंदर अभिनय क्षमता है.मजेदार बात यह है कि अब सोशल मीडिया पर मुहीम चलायी जा रही है सफलतम अभिनेता के बेटे राजवीर देओल को ‘‘राजश्री फिल्मस’’ ने फंसा दिया.मगर सोशल मीडिया पर इस तरह की बकवास करने वाले यह भूल जाते हैं कि 2019 में सनी देओल ने स्वयं अपने बड़े बेटे करण देओल के कैरियर की पहली फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ निर्देषित की थी,जिसने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था और करण देओल का कैरियर शुरू होने सेे पहले ही डूब गया था.

वैसे कुछ दिन पहले करण देओल के कैरियर को डुबाने का आरोप अपरोक्ष रूप से राजवीर देओल अपने पिता सनी देओल पर यह कहते हुए लगा चुके हैं कि उनके भाई करण देओल को अपने किरदार को चुनने की स्वतंत्रता नही मिली थी. जबकि उन्होेने ‘दोनों’ के देव के किरदार को स्वयं चुना है.अब यदि हम राजवीर देओल की बात सच मान ले,तो खुद देव का किरदार चुनकर राजवीर देओल ने कौन सी सफलता दर्ज करा ली. राजवीर को याद रखना चाहिए कि करण देओल की फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’ ने पहले दिन लगभग एक करोड़ कमाए थे,जबकि राजवीर की फिल्म ‘दोनो’ ने बाक्स आफिस पर केवल दस लाख रूपए ही कमाए.कड़वा सच सह है कि अभिनय के मामले में राजवीर देओल और पालोमा को बहुत अधिक मेहनत करने की जरुरत है.

राजवीर और पालोमा को इसी फिल्म में पंद्रह वर्षीय देव व अलीना के किरदारो में क्रमषः वरूण बुद्धदेवा और मुस्कान कल्याणी के अभिनय से कुछ सीखना चाहिए.इन दोनों किषोर वय के कलाकार अपने अभिनय से न सिर्फ अमिट छाप छोड़ जाते हैं,बल्कि इस ओर भी इशारा करते है कि उनमें आगे बढ़ने की असीम संभावनाए हैं.

जवाबदेही तय करने की आवश्यकता

हम स्वयं ‘दोनो’ की असफलता या ‘राजश्री प्रोडक्शन’ को पतन की ओर ले जाने के लिए किसी पर भी दोषारोपण नही करना चाहते.हम तो सिर्फ सच बयम कर रहे हैं,जिन पर पूरी टीम को गौर करना चाहिए.प्रिंट मीडिया एक शाश्वत सत्य है.इसकी अनदेखी से किसी भी शख्स को फायदा नही हो सकता.नए जमाने की आड़ में तेजी से उभर रही पीआर कंपनियों और ईवेंट कंपनियों का मकसद ऐन केन प्रकारेण अपनी जेंबें भरना है. सभी को रातोंरात करोड़पति बनना है.इन कंपनियों से काम लेने के लिए इनकी एकाउंटेबिलिटी/ जवाबदेही तय करना आवष्यक है.तो वहीं परंपराओं को तोड़ने वाला या लीक से हटकर सिनेमा बनाने में बुराई नही है,मगर उस दिषा में ठोस कहानी व ठोस तथ्यों के साथ विश्वसनीय दृश्य पेश किए जाना अनिवार्य है. ढुलमुल नीति कभी किसी भी क्षेत्र में सफल नही होती.

Film Review: ‘‘आठ सौ- असाधारण क्रिकेटर पर अति साधारण फिल्म..’’

रेटिंगः पांच में से एक स्टार

 निर्माताः विवेक रंगाचारी

लेखकः एम एस श्रीपति शेहान करुणातिलका

निर्देषकः एम एस श्रीपति

कलाकारः मधुर मित्तल,महिमा नांबियार, नारायण,किंग रत्नम, नासर, वाड़िवरकरासी, रियाथिका, वेला राममूर्ति,विनोद सागर, रित्विक, यारथ लोहितस्व, दिलीपन अन्य

भाषा: तमिल हिंदी

अवधिः दो घंटे 39 मिनट

अब तक क्रिकेट पर आधारित जितनी भी फिल्में बनी हैं,उन सभी को दर्शक सिरे से नकारते रहे हैं.इसकी मूल वजह यह रही है कि हर फिल्मकार सिनेमा की मूल जरुरत मनोरंजन को दरकिनार कर हमेशा क्रिकेट के खेल व खिलाड़ी को महान साबित करने का ही प्रयास करता रहा है.अब मशहूर तमिल फिल्मकार श्रीलंका के आफ स्पिनर गेंदबाज व क्रिकेट टीम के पूर्व कैप्टन मुथैया मुरलीधरन की बायोपिक फिल्म ‘‘800’’ लेकिन आए हैं.तमिल भाषा में बनी यह फिल्म हिंदी में डब करके भी प्रदर्शित की गयी है.फिल्म की कहानी अस्सी के दशक,जब श्रीलंका गृहयुद्ध से जूझ रहा था,से लेकर मुथैया मुरलीधरन के 800 विकेट लेने के बाद क्रिकेट से संयास लेने तक की कहानी है.इस फिल्म में इस बात को खास तौर पर रेखंाकित किया गया है कि तमीलियन श्रीलंकन क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरन के लिए प्रतिभा के बावजूद अपने देश श्रीलंका के लिए क्रिकेट खेलना कितना मुश्किल था.

जब इस फिल्म की घोषणा हुई थी,तब मुथैया मुरलीधरन का किरदार दक्षिण भारतीय अभिनेता विजय सेतुपति निभा रहे थे,पर बाद में उन्होने खुद को इस फिल्म से अलग कर लिया.उस वक्त कहा गया था कि विजय सेतुपति के प्रशंसकों ने उनके घर पर हमला बोलकर उनसे इस फिल्म का हिस्सा न बनने के लिए कहा था. लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद बात समझ में आ गयी कि विजय सेतुपति ने इस घटिया फिल्म से दूरी बनायी थी.इतना ही नही उस वक्त तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने भी फिल्म के निर्माण के खिलाफ आवाज उठाई थी,मगर निर्माता व निर्देशक ने आश्वस्त किया था कि इस फिल्म में मुरलीधरन की कहानी के साथ ही श्रीलंका के भारतीय तमिलों की अनकही कहानी भी बताएगी,जिन्हें अक्सर देश के अन्य श्रीलंकाई तमिलों व सिंहलियों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है.फिल्म में मुरलीधरन पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हुए खुद को तमिल या सिंहली की बजाय एक क्रिकेटर ही कहते नजर आते हैं.पर उन्होने ‘तमिल’ होने की अपनी पहचान को कभी नहीं छिपाया.

कहानीः

फिल्म की शुरूआत तमिल बनाम सिंहली लड़ाई के दृष्य से होती है,जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह सिंहली एक एक तमीलियन को मौत के घाट उतारने के साथ ही उनकी फैक्टरी तक को आग लगा रहे हैं.कैंडी में अपने माता पिता व दादी के साथ रहने वाले छह सात वर्षीय मुथैया मुरलीधरन को जब उसके गांव के बड़े बच्चे अपने साथ क्रिकेट नही खेलने देते, तब वह अपनी दादी को बुलाकर लाता है.दादी के हड़काने के बाद वह गांव के लड़कों के साथ फील्डिंग करने व बल्लेबाजी करते हुए क्रिकेट खेलता है.

एक दिन उसे गेंदबाजी करने का अवसर मिलता है,तभी वहां सिंहली उपद्रवी आ जाते हैं,और तमीलियन की तलाश कर उन्हे मौत की नींद सुलाने लगते हैं.तब एक मुस्लिम षख्स मुरली व मुरली की मां सहित कई लोगों को अपने घर में शरण देता है.पर सिंहली उसके पिता की बिस्कुट फैक्टरी में आग लगा देते हैं..उसके बाद उनकी मां उन्हें एक चर्च में पादरी से मिलकर रख देती हैं.पादरी की शरण में मुरली चर्च के ही स्कूल में पढ़ाई करने के साथ ही क्रिकेट भी खेलता है.वह पढ़ाई पर कम पर क्रिकेट में ज्यादा रूचि रखते हैं.

लेखन निर्देशनः

मुथैया मुरलीधरन ने टेस्ट क्रिकेट में 800 और वनडे क्रिकेट में 532 विकेट लिए.इसी से उनकी खतरनाक गेदबाजी का अंदाजा लगाया जा सकता है.सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि आस्ट्रेलियन व इंग्लैंड के बल्लेबाज भी उनकी गेंदबाजी से डरते थे.पर तमीलियन श्रीलंकन क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरन के लिए प्रतिभा के बावजूद अपने देश श्रीलंका के लिए क्रिकेट खेलना बहुत ही कठिनाइयों वाली डगर थी. इसे सही ढंग से परदे पर उकेरना हर फिल्मकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है. फिल्म में मुरलीधरन के संघर्ष व दर्द भरी कहानी का चित्रण है,जो कि किसी भी युवा के लिए प्रेरणा बन सकती है,मगर इसका चित्रण व तकनीकी पक्ष इस कदर कमजोर है कि यह युवा पीढ़ी तक नही पहुॅच पाएगी.

नेक मकसद से बनायी गयी इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसकी पटकथा है.पूरी पटकथा विखरी हुई है.फिल्म देखते हुए अहसास होता है कि लेखक व निर्देशक का फोकश तय नही है.परिणामतः दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती. फिल्म में मुरलीधरन द्वारा खेेले गए कुछ चर्चित मैचों को पुनः जीवित करके दिखाया गया है,ऐसे दृष्यों के साथ फिल्मकार न्याय नही कर पाए. काश उन्होने ऐसे क्रिकेट मैचों के मौलिक दृष्यों के अधिकार खरीदकर उन्हे इस फिल्म में पिरोया होता. इस कमी के चलते सिनेमा के दर्शक ही नही क्रिकेट के फैन को भी इस फिल्म से कुछ नहीं मिलता.

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बहुत खराब है.क्रोमा पर शूट किए गए दृष्य अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहे हैं. इतना ही नही भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाफ मुरलीधरन द्वारा खेल गए क्रिकेट मैचों को नजरंदाज किया गया है.यॅूं तो मैं क्रिकेट का बहुत बड़ा फैन नही हॅूं,पर फिल्म देखकर अहसास होता है कि फिल्मकार का पूरा ध्येय मुरलीधरन को नेकदिल व बेहतरीन इंसान के रूप में पेश करने की रही है और उन्होने उन सभी घटनाक्रमो से बचने का प्रयास किया, जिनसे भारतीय दर्शक नाराज हो सकता है.

मसलन एक टुर्नामेंट में श्रीलंका ने पूरी भारतीय टीम को महज 54 रनों पर आउट किया था और इसमें अहम भूमिका मुरलीधरन की ही थी,जिन्होने पांच विकेट लिए थे.फिल्मकार ने चकिंग विवाद को कुछ ज्यादा ही विस्तार से चित्रित किया है,हो सकता है कि कहानी के लिए इसकी जरुरत हो,पर सिने प्रेमियों को यह अखरता है.फिल्मकार मुरलीधरन के निजी जीवन व उनकी पत्नी को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए हैं. वास्तव में यह फिल्म मुरली धरन के लिए अपना दामन साफ करने व ख्ुाद का स्तुतिगान ही है,इसलिए भी फिल्म अपना महत्व खो देती है.

अभिनयः

इस फिल्म को बर्बाद करने में लेखक व निर्देशक के साथ ही अभिनेता मधुर मित्तल भी कम दोषी नही है.मधुर मित्तल ने ही इस फिल्म में मुथैया मुरलीधरन का किरदार निभाया है.जबकि छह सात वर्षीय मुरलीधरन के किरदार को निभाने वाला बाल कलाकार अपने अभिनय की छाप छोड़ जाता है.मधुर मित्तल का अभिनय व संवाद अदायगी काफी गड़बड़ है. इतना ही नहीं मधुर मित्तल एक भी दृश्य में मुथैया मुरलीधरन की तरह गेंदबाजी करते हुए नजर नही आए. मधुर मित्तल ने पहली बार अभिनय किया हो,ऐसा भी नही है.मधुर ने नौ वर्ष की उम्र में बाल कलाकार के रूप में अभिनय जगत में कदम रखा था.

2008 में उन्होने फिल्म ‘स्लमडाॅग मिलेनियर’ में सलीम का किरदार निभाया था.बाल कलाकार के तौर पर कुछ टीवी सीरियलों भी अभिनय किया.फिर तेइस वर्ष की उम्र में वह मिलियन डालर आर्म में भी नजर आए थे.फिर ‘पाॅकेट गैंगस्टर’ व ‘मातृ’ जैसी सुपर फ्लाप फिल्मों में नजर आए. दो वेब सीरीज भी की. इसके बावजूद बतौर अभिनेता वह इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं.मधुर मित्तल को चाहिए कि वह एक दो वर्ष अपने अंदर की अभिनय प्रतिभा को निखारने के लिए मेहनत करें.अखबार के संपादक की भूमिका में अभिनेता नासर ने शानदार   अभिनय किया है.अर्जुन रणतुंगा के किरदार में राजा रत्नम अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे हैं.इसके अलावा कोई भी कलाकार ठीक से अभिनय नही कर पाया.मुरलीधरन की पत्नी मधिमलार के किरदार में महिमा नांबियार के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.

इस Festive सीजन पर घर में बनाएं ग्रीन ऐप्पल श्रीखंड

भारत विविधताओं का देश है यहां त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. जल्द ही Festive सीजन आ रहा है. घर की हर गृहणी इसी चिंता में है इस त्योहार पर मीठे में क्या बनाएं. परेशान बिल्कुल न हो गृहशोभा पर मिलेगी आपको अनगिनत फूड रेसिपी और मिठाई की रेसिपी. आज हम आपके लिए लेकर आए ग्रीन ऐप्पल श्रीखंड और औरेंज ऐंड लैमन ड्रिंक की रेसिपी.

  1. ग्रीन ऐप्पल श्रीखंड

सामग्री

 1. 1/2 कप योगर्ट

  2. 1 हरा सेब

 3. थोड़ा सा ग्रीन ऐप्पल सिरप

 4. थोड़ा सा दालचीनी पाउडर.

विधि

सेब को चौकोर टुकड़ों में काट लें. फिर एक बाउल में योगर्ट ले कर उस में ग्रीन ऐप्पल सिरप मिलाएं. जब सिरप अच्छे से मिल जाए फिर इस में सेब के टुकड़े और दालचीनी पाउडर डाल कर फ्रिज में 45 मिनट के लिए ठंडा होने पर सर्व करें.

2. औरेंज ऐंड लैमन ड्रिंक

सामग्री

1. जरूरतानुसार और्गेनिक औरेंज जूस

  2. 15 मिली लैमन जूस

 3. 30 मिली और्गेनिक हनी

 4. 1/2 छोटा चम्मच अदरक पाउडर

5. थोड़ी सी पुदीनापत्ती

 6. 5-6 आइस क्यूब्स

 7. थोड़ा सा ठंडा पानी.

विधि

औरेंज और लैमन जूस के साथ सारी सामग्री को डाल कर अच्छे से मिला कर ऊपर से आइस क्यूब्स और पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

संविधान बड़ा या धर्म

सनातन धर्म का नाम ले कर भाजपा के कट्टरपंथी और उनके अंधभक्त एक बार फिर वही पौराणिक युग लाना चाहते हैं जिस में औरतों को केवल दासी के समान, पति की सेवा, पिता-पति-पुत्र की आज्ञाकारिणी और बच्चे पैदा करने की मशीन समझा जाता था. हमारे अधिकांश देवता यही सिद्ध करने में लगे रहे कि औरतों का अपना कोई वजूद नहीं है जबकि समाज का एक वर्ग, एक बड़ा वर्ग, इन्हीं औरतों की देवी के रूप में पूजा करता रहा.

आजकल इस अलिखित पौराणिक कानून को संविधान के बराबर सिद्ध करने की कोशिश करी जा रही है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र उदयनिधि के सनातन धर्म के भेदभाव वाले बयान के कारण सनातन धर्म के दुकानदार तिलमिलाए हुए हैं क्योंकि उन्हें आधी आबादी केवल सेवा करने के लिए सदियों से मिलती रही है.

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि सनातन धर्म का अपमान करना संविधान का अपमान करना है. यह कैसे तर्क पर ठीक ठहरेगा? सनातन धर्म तो न लिखा गया है, न उस की अदालतें हैं और न ही उस में कोई बराबरी या न्याय का स्थान है जबकि संविधान लिखित है, अदालतों में उस की व्याख्या होती है. उस के दुकानदार नहीं हैं. इस का लाभ हर नागरिक और भारत निवासी को मिलता है.

सनातन धर्म का एक गुण भी भाजपाई नहीं बता सकते जबकि संविधान की हर धारा, हर पंक्ति नागरिक को सरकार के विरुद्ध कुछ अधिकार देती है. संविधान की ढाल में पैसा नहीं कमाया जा सकता जबकि सनातन धर्म का मुख्य ध्येय तो दानदक्षिणा है. पूजापाठ, देवीदेवता, रीतिरिवाज सभी सनातन के दुकानदारों को हलवापूरी का इंतजाम करते रहे हैं. हर मंदिर पैसे से लबालब भरा है और हर मंदिर में मौजूद हर जना इस पैसे का अघोषित मालिक है.

सनातन धर्म के केंद्र मंदिरों में देवदासियों का बोलबाला था, वहां नाचगाना होता था. वहां देश की 80% जनता को घुसने तक की इजाजत नहीं थी जबकि संविधान हर नागरिक को बराबर का हक देता है और औरतों को पुरुषों के बराबर खड़ा करता है.

अर्जुन राम मेघवाल ने धर्म की भगवा पट्टी आंखों पर बांध रखी हो तो कोई कुछ नहीं कर सकता पर सच फिर भी छिपाया नहीं जा सकता कि सनातन धर्म की देन संविधान की देन के सामने तुच्छ, रेत के कण के बराबर है जबकि संविधान को तो अभी 75 वर्ष भी नहीं हुए.

हार कर भी ऐसे जीतें

हर किसी व्यक्ति को अपने जीवन में कभी न कभी हार का सामना करना ही पड़ता है फिर हार चाहे कैरियर में हो, बिजनैस में हो, किसी रिश्ते में हो या जीवन की किसी भी परिस्थिति में, लेकिन यह हार हमें कुछ न कुछ नया सबक अवश्य सिखाती है और अकसर वही लोग अधिक कामयाब होते हैं जो अपनी हार से सीख लेते हैं न कि अपनी किस्मत को कोसते हैं. वृंद सतसई का दोहा, करतकरत अभ्यास के जड़मति होत सुजान. रसरी आवत-जात ते सिल पर पड़त निशान.

इस बात के लिए बिलकुल सटीक है कि यदि हम असफलता के बाद भी निरंतर प्रयास करते हैं तो कठिन से कठिन कार्य भी आसान बन जाता है इसलिए जरूरी है कि अपनी गलतियों से सीख लें और जीवन में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहें क्योंकि आप की सही सोच आप के लक्ष्य को पाने में मदद करती है.

तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स ऐंड ट्रिक्स जो आप को सफल बनाने में मदद करते हैं:

गलतियों से लें सीख

यदि हम अपनी हार को खुद पर हावी कर लेते हैं तो हमें सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है, लेकिन यदि अतीत में की गई गलती से हम सबक लेते हैं तो निश्चित ही एक न एक दिन कामयाबी हमारे कदम चूमती है. इसलिए अतीत में की गई गलती का पछतावा न करें बल्कि अपनी खामियों और खूबियों को जान कर उन पर और काम करें व सकारात्मक बदलाव के साथ आगे बढ़ें.

डरना मना है

एक मूवी का बहुत ही फेमस डायलौग है ‘जो डर गया सो मर गया’ और यह सही भी है. जो इंसान डर के सामने घुटने टेक देता है और पीछे हट जाता है वह अपना आत्मविश्वास बिलकुल खो देता है. रोजमर्रा के कामकाजों तक में निर्णय लेने में वह असहज महसूस करता है इसलिए जरूरी है कि असफलता से डरें नहीं बल्कि डट कर सामना करें और सफल बनें.

अपने सपने का पीछा करें

परिस्थिति कोई भी हो लेकिन असफलता मिलने पर हमें अपने सपनों को बिखरने नहीं देना चाहिए बल्कि अपने अनुभवों से सीख लेनी चाहिए क्योंकि दोबारा प्रयास करते समय आप की शुरुआत शून्य से नहीं बल्कि अनुभव से होती है. इसलिए अपने सपने को पूरा करे बिना हार न  मानें.

कंफर्ट जोन से हट कर कुछ नया करो

असफलता हमें सिखाती है कि हमें अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकल कर कुछ अलग, कुछ नया करना है. कुछ लोग किसी भी काम को करने से पहले ही उस से डरने लगते हैं. लेकिन हमें नकारात्मक विचारों को त्याग कर सकारात्मक सोच के साथ कुछ नया करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि जब तक नया करने की कोशिश नहीं करेंगे तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते. साथ ही हमें कभी भी किसी और के जीवन से खुद की तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि हर किसी व्यक्ति की क्षमता अलग होती है.

अक्षरज्ञान ही नहीं जनून भी है जरूरी

हमें सफल बनने के लिए केवल डिगरी की आवश्यकता नहीं होती बल्कि जनून की आवश्यकता होनी बेहद जरूरी है. कुछ लोग बिना किसी डिगरी के भी कामयाब होते हैं तो कुछ लोग पढ़ेलिखे होने के बाद भी नाकामयाब रहते हैं. सफलता के लिए इंसान के अंदर जनून और आगे बढ़ने की भूख होनी चाहिए. फिर कामयाबी आप के कदम अवश्य चूमेगी.

निर्मल: क्या नई दुनिया में खुश थी गोमती

आजकी सुबह भी कुछ उदासी भरी थी. मन बेहद बोझोल था. ऐसा लग रहा था कि उसे निकाल कर कहीं फेंक दूं और सब कुछ भुला कर निश्चिंत हो कर पड़ी रहूं. पूरी जिंदगी संघर्ष करते गुजर गई. एक समस्या खत्म होतेहोते दूसरी समस्या आ खड़ी होती थी. नौकरी पाने के लिए की गई भागदौड़, शेखर के साथ भाग कर शादी करना और उस के बाद शुरू हुए खत्म न होने वाले सवाल, कोर्टकचहरी की भागदौड़ और

आज मेरे ही घर में बुद्धिराज का मुझो फटकारना ये सारी बातें एकएक कर के आंखों के आगे तैरने लगी थीं.

‘‘तुम्हारा और करण का क्या रिश्ता है?

वह चंडाल चौकड़ी मेरे घर क्यों आई थी? उस करण के साथ कैसे चिपक रही थीं तुम…’’ शेखर के मुंह से आग बरस रही थी. पर उस से भी भयानक काम उस के हाथ कर रहे थे.

गोमती की लिखी कविताओं के पन्नों को वह एकएक कर जला रहा था. हर पन्ना जलाते वक्त वह कू्रर हंसी हंस रहा था.

गोमती यह देख कर तिलमिला उठी थी. वह उस के हाथपांव जोड़ने लगी थी. पर अपने पैरों पर गिरी गोमती को शेखर ने जोर से झोटक दिया.

‘‘मेरी बीवी पर नजर डालते हैं. एकएक की आंखें नोच लूंगा. कविता करने के लिए क्या मेरा ही घर नजर आता है?’’ देर तक गालीगलौज करने के बाद शेखर पांव पटकते हुए बैडरूम

में चला गया और फिर थोड़ी ही देर में खर्राटे भरने लगा.

पर उन्हें घर तक लाने वाला भी तो वही था. फिर ऐसा क्यों? उसे अच्छी तरह याद है जब उस के गांव में साहित्य मंच की शाखा खुलने वाली थी. तब मुंबई से साहित्य मंच के संस्थापक कवि माधव मानविंदे वहां स्वयं आने वाले थे. वहां उसे भी आमंत्रित किया गया था. उस वक्त साहित्य मंच की स्थापना की मीटिंग कहां की जाए, इस बाबत चर्चा चल रही थी. करण और पोटे साहब ने 1-2 नाम लिए पर उन की कुछ अपनी समस्याएं थीं.

‘‘गोमती दीदी, आप के घर में की जाए क्या?’’ करण के इस सवाल पर शेखर ने काफी उत्साह दिखाया.

‘‘हांहां, जरूरजरूर, हमें भी साहित्यिक लोगों के दर्शन हो जाएंगे…’’

यह सुन सभी ने खुशी से तालियां बजाईं. पर मेरे तो होंठ ही सिल गए थे.

‘‘पर हम दोनों भी तो नौकरी करते हैं. आप कहीं और मीटिंग रख लेंगे तो ज्यादा अच्छा होगा,’’ मैं ने बहुत ही रूखेपन से जवाब दिया.

‘‘पर आप के पति तो काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं,’’ विजया बोली.

‘‘मैं बिस्कुट के पैकेट्स ले आऊंगा. चाय बाहर से मंगा लेंगे,’’ करण बोला.

‘‘बिलकुल नहीं. आप घर में मेहमान बन कर आ रहे हो… कोई कुछ नहीं लाएगा. हम ही घर में गरमगरम पकौड़े बना देंगे. खा कर देखिएगा, उंगलियां चाटते रह जाएंगे. मैं कविता भले ही नहीं करता हूं, पर बीवी की कविताएं तो सुनता ही हूं,’’ शेखर बोला.

उस वक्त हर कोई शेखर की प्रशंसा कर रहा था. उस के बाद तो हर कार्यक्रम हमारे

ही घर होने लगा. मेरा विरोध खत्म हुआ और धीरेधीरे मेरी भी इस में रुचि बढ़ने लगी. पर शेखर नीरस होने लगा. उसे उन लोगों पर गुस्सा आने लगा. मेरी कविताओं की सभी प्रशंसा करने लगे. बाहर से भी मुझो कविताओं के औफर्स आने लगे. मैं भी औफिस से छुट्टी ले कर सम्मेलनों में भाग लेने लगी. शेखर का गुस्सा अब शक में बदलने लगा था. वह अब उन लोगों के साथ मेरा नाम जोड़ने लगा था. शराब पी कर गालीगलौज करना और मुझो से मारपीट करना उस की आदत बन गई थी. कभीकभी तो वह इतनी मारपीट करता कि पिटाई के निशान भी शरीर पर दिखाई देते.

रोजरोज के झोगड़े से तंग आ कर आखिर मैं ने शेखर से तलाक लेने का फैसला कर लिया. पर मेरी तनख्वाह इतनी ज्यादा नहीं थी. शेखर बैंक में अफसर था. मेरे 17 और 15 साल के बेटे बुद्धिराज और युवराज भी उस के साथ रहना पसंद कर रहे थे. वजह सिर्फ एक थी. जो शानशौकत और पैसा वह दे सकता था, वह मैं नहीं दे सकती थी. आज सचमुच रिश्तेनातों के कोई माने नहीं रह गए हैं. भावनात्मक तौर से भी उन्हें मेरी कोई कद्र नहीं थी. कोर्ट ने भी उन्हें शेखर के साथ ही भेज दिया. मैं 1 कमरे के छोटे से मकान में रहने आ गई. कुछ दिनों बाद मैं ने अपील कर के कोर्ट से बच्चों की कस्टडी मांगी तो 1 बेटे बुद्धिराज की कस्टडी मुझो सौंप दी गई. पर मैं उस की जरूरतें पूरी करने में असमर्थ थी. परिणामस्वरूप उस का चिड़चिड़ापन बढ़ता गया और एक दिन वह खुद ही मुझो छोड़ कर अपने पिता के पास चला गया.

एक दिन मेरा मार्केटिंग विभाग में ट्रांसफर हो गया. इस डिपार्टमैंट में जाने के लिए लोग क्याक्या कोशिशें नहीं करते, क्योंकि यहां की दहलीज लांघते ही पैसों की बरसात होती थी. पर इस विभाग में कमर कस कर काम करना पड़ता था, इसलिए मैं यह विभाग नहीं चाहती थी. पर मन के किसी कोने में मुझो भी पैसों की चाह थी. बड़ा घर चाहिए था. फिर शेखर को दुत्कार कर मेरे बच्चे मेरे पास वापस आएं, ऐसी चाह भी थी. इसलिए मैं कुछ भी करने को तैयार थी. पहले टैंडर को मंजूरी देते वक्त मुझको1 लाख का औफर मिला था. औफिस के बाहर एक पेड़ के नीचे रुपयों का वह बंडल लेते वक्त मेरे हाथ थरथरा रहे थे. फिर उस के बाद मैं ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. मैं ने नया घर खरीद लिया.

उधर शेखर के कुकर्मों का घड़ा भर गया था. उस के खिलाफ शिकायत हुई और उस की जांचपड़ताल शुरू हुई. उसे सस्पैंड कर दिया गया और उस के घर को सील कर दिया गया. दोनों बच्चे मेरे पास आ गए और फिर कभी उन्होंने मेरे आलीशान मकान से जाने का नाम नहीं लिया. एक बात तो समझो आ गई कि आज की पीढ़ी को रिश्तेनातों और भावनाओं की परवाह नहीं. केवल पैसा ही सब कुछ होता है.

बी.एससी. करते ही बुद्धिराज की अच्छी नौकरी लग गई. मैं अब भी शेखर को याद करती थी. अब भी मेरा मन उस से मिलने को करता था. एक बैंक मामले के बाद उस ने मुझो फोन किया था, ‘‘बैंक वाले शायद तुम्हारी जांच कर सकते हैं,’’ वकील की सलाह ले लो.’’

उस वक्त अपने किए पर पछतावा होने की बात भी उस ने कही थी और मुझो भी यह सलाह दी कि मैं ऐसे गैरकानूनी काम छोड़ दूं.

पर तब मैं ने कहा था, ‘‘मुझो तुम्हारी सलाह नहीं चाहिए,’’ और फोन पटक दिया था.

फिर मैं ने बुद्धिराज की उस की पसंद की लड़की निकिता से शादी करा दी. मेरे

घर में पैसों की बरसात हो रही थी. सुबह 9 से रात के 9 बजे तक मैं औफिस में ही पिसती रहती थी पर मेरे घर का कायाकल्प हो चुका था. रोज शाम को बुद्धिराज और निकिता की उन के दोस्तों के साथ शराब की पार्टियां चलने लगी थीं. इधर मुझो पर एक जांच कमेटी बैठा दी गई थी और मेरे एमडी ने 1 महीना घर बैठने की सलाह दी थी. पर बुद्धिराज के कहने पर मैं घर नहीं बैठी और मैं ने फिर से औफिस जौइन कर लिया. तब एमडी ने सीधे मेरा सस्पैंड और्डर निकाल दिया.

घर बैठने के बाद घर का सारा नजारा मेरे सामने आया. घर पर खाली बैठना मुझो मंजूर नहीं था और बच्चों की हरकतें मुझो से देखी नहीं जाती थीं, इसलिए मैं ने विनया के घर जाना शुरू कर दिया. वहां पर हम ने फिर से कविताएं पढ़नालिखना शुरू कर दिया. विनया ने मुझो नौकरी से रिजाइन कर देने की सलाह दी, क्योंकि रिजाइन करने के बाद प्रौविडैंट फंड के क्व35 लाख मुझो मिलते. उन्हें बैंक में जमा करने पर उन से मिलने वाले ब्याज से आराम से मेरा घर खर्च चलता. उस के बाद मैं आजादी से कहीं भी घूमफिर सकती थी. वर्ल्ड टूर कर सकती थी. मुझो काम की चिंता नहीं होती. न ही कोई बंधन होता. मैं अपनी सारी ख्वाहिशें पूरी कर सकती थी.

फिर मैं ने फैसला कर लिया. बैंक में मेरा और बुद्धिराज का जौइंट अकाउंट था. वहां जा कर मैं ने सारे पैसे निकालने चाहे तो मैनेजर ने बताया कि बुद्धिराज ने कब के सारे पैसे निकाल लिए हैं. इस बारे में बुद्धिराज से पूछने पर वह मुझो पर ही बिफर पड़ा और चिल्ला कर मुझो से कहने लगा कि बैंक जाने से पहले एक बार मुझो से क्यों नहीं पूछा? मैनेजर न जाने क्या सोचेगा.

उस की इस हरकत ने मुझो सोचने पर मजबूर कर दिया और एक ठोस निर्णय लेते हुए मैं ने बुद्धिराज, निकिता और युवराज को कमरे में बुला कर अपना फैसला सुना दिया कि मैं नौकरी से त्यागपत्र दे रही हूं. प्रौविडैंट फंड के जो रुपए मिलेगे उन्हें बैंक में जमा करा दूंगी. उन से मिलने वाले ब्याज से अपना खर्चा चलाऊंगी. आज के बाद न मैं किसी को कुछ दूंगी और न किसी से कुछ लूंगी. यह मेरा घर है. आज के बाद यहां शराब की पार्टियां नहीं चलेंगी. तुम सब को मेरी मरजी से रहना होगा. अगर मंजूर हो तो ठीक वरना तुम सब अपनी राह चुन सकते हो.

मेरी बात सुन कर तीनों सकते में आ गए और मैं मौर्निंग वाक के लिए निकल पड़ी.

नींव: अंजु ने ऐसा क्या किया कि संजीव खुश हो गया?

उसदिन करीब 8 साल के बाद मानसी को एक हेयर सैलून से बाहर आते देखा तो आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. कालेज के दिनों में वह कभी मेरी बहुत अच्छी दोस्त हुआ करती थी. फिर वह एमबीए करने मुंबई चली गई और हमारे बीच संपर्क कम होतेहोते समाप्त हो गया था.

मैं मुसकराता उस के सामने पहुंचा तो उस ने भी मुझे फौरन पहचान लिया. हम ने बड़े अपनेपन के साथ हाथ मिलाया और हंसतेमुसकराते एकदूसरे के बारे में जानकारी का आदानप्रदान करने लगे.

‘‘तुम यहां दिल्ली में कैसे नजर आ रही हो?’’

‘‘मेरे पति को यहां नई जौब मिली है.’’

‘‘क्या पति को घर छोड़ कर केश कटवाने आई हो?’’

‘‘नहीं भई. वे मुझे यहां छोड़ कर किसी दोस्त से मिलने गए हैं. बस, अब लेने आते ही होंगे. तुम बताओ जिंदगी कैसी गुजर रही है?’’

‘‘ठीकठीक सी गुजर रही है.’’

‘‘तुम्हारी पत्नी क्या करती है?’’

‘‘अंजु नौकरी करती है.’’

‘‘तुम तो कहा करते थे कि पत्नी को सिर्फ घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां संभालनी चाहिए. फिर अंजु को नौकरी कैसे करा रहे हो?’’ उस ने हंसते हुए पूछा.

‘‘मैं तो अभी भी यही चाहता हूं कि अंजु घर में रहे पर आज की महंगाई में डबल इनकम का होना जरूरी है.’’

‘‘बच्चे कितने बडे़ हो रहे हैं?’’

‘‘हमारा 1 बेटा है समीर, जो पिछले महीने 6 साल का हुआ है.’’

‘‘उस के लिए भाई या बहन अभी तक क्यों नहीं लाए हो?’’

‘‘अरे, दूसरे बच्चे की बात ही मत छेड़ो. आजकल 1 बच्चे को ही ढंग से पालना आसान नहीं है. तुम अपने बारे में बताओ.’’

‘‘मैं तो कोई जौब नहीं करती हूं. पति सौफ्टवेयर इंजीनियर हैं. 3 साल अहमदाबाद में रहे. अब यहां दिल्ली की एक कंपनी में जौब शुरू करने के कारण 2 महीने पहले यहां आए हैं. अभी तक मन नहीं लग रहा था पर अब तुम मिल गए हो तो अकेलेपन का एहसास कम हो ही जाएगा. कब मिलवा रहे हो अंजु और समीर से, संजीव?’’

‘‘बहुत जल्दी मिलने का कार्यक्रम बना लेते हैं. तुम ने अपने बच्चों के बारे में तो कुछ बताया नहीं,’’ मैं ने जानबूझ कर विषय बदल दिया.

‘‘मेरी 2 बेटियां हैं – श्वेता और शिखा. श्वेता स्कूल जाती है और शिखा अभी 2 साल की है.’’

‘‘बहुत अच्छा मैंटेन किया हुआ है तुम ने खुद को. कोई देख कर कह नहीं सकता कि तुम 2 बेटियों की मम्मी हो.’’

‘‘थैंकयू, मैं नियम से डांस करती हूं. कोई टैंशन नहीं है, इसलिए स्वास्थ्य ठीक चल रहा है,’’ मेरे मुंह से अपनी प्रशंसा सुन वह खुश हो कर बोली, ‘‘वैसे तुम भी बहुत जंच रहे हो. तुम्हें देख कर कोई भी कह सकता है कि तुम ने जिंदगी में अच्छी तरक्की की है.’’

‘‘थैंकयू, ये शायद तुम्हारे पति ही हमारी तरफ आ रहे हैं,’’ अपनी तरफ एक ऊंचे कद व आकर्षक व्यक्तित्व वाले पुरुष को आते देख कर मैं ने कहा.

आत्मविश्वास से भरा वह व्यक्ति मानसी का पति रोहित ही निकला. उस ने रोहित से मेरा परिचय कालेज के बहुत अच्छे दोस्त के रूप में कराया.

रोहित ने बड़ी गर्मजोशी के साथ मुझ से हाथ मिलाया. फिर हम दोनों एकदूसरे के काम के विषय में बातें करने लगे.

मानसी अब चुप रह कर हमारी बातें सुन रही थी.

करीब 15 मिनट बातें करने के बाद रोहित ने विदा लेने को अपना हाथ आगे बढ़ा दिया और बोला, ‘‘संजीव, तुम्हें अपनी वाइफ और बेटे के साथ हमारे घर बहुत जल्दी आना ही है. मानसी को अपने शहर में बोर मत होने देना.’’

‘‘हम बहुत जल्दी मिलते हैं,’’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अपना मोबाइल नंबर तो दो, नहीं तो एकदूसरे के संपर्क में कैसे रहेेंगे?’’ मानसी को याद आया तो हम ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिया.

वे दोनों अपनी कार में बैठे और हाथ हिलाते हुए मेरी आंखों से ओझल हो गए.

मैं ने डिपार्टमैंटल स्टोर से घर का सामान खरीदा और अपनी 2 साल पुरानी कार से घर आ गया.

‘‘आप कहां अटक गए थे? मुझे मशीन लगानी थी पर बिना वाशिंग पाउडर के कैसे लगाती?’’ अंजु मुझे देखते ही नाराज हो उठी.

‘‘मशीन अब लगा लो. खाना देर से खा लेंगे,’’ मैं ने उसे शांत करने के लिए धीमी आवाज में जवाब दिया.

‘‘कितनी आसानी से कह दिया कि मशीन अब लगा लो. मैं नहा चुकी हूं और समीर को तो सही वक्त पर खाना चाहिए ही न. अब खाना बनाऊं या मशीन लगाऊं?’’ उस का गुस्सा कम नहीं हुआ था.

‘‘इतनी गुस्सा क्यों हो रही हो? तुम मशीन लगा लो, आज लंच करने बाहर चलते हैं.’’

‘‘अपना पेट खराब करने के लिए मुझे बाहर का खाना नहीं खाना है. आप यह बताओ कि अटक कहां गए थे?’’

‘‘अटका कहीं नहीं. ऐसे ही विंडो शौपिंग करते हुए समय का अंदाजा नहीं रहा,’’ न जाने क्यों उसे मानसी और रोहित से हुई मुलाकात के बारे में उस समय कुछ बताने को मेरा मन नहीं किया.

अंजु ड्राइंगरूम में समीर द्वारा फैलाई चीजें उठाने के काम में लग गई. अब उस का ध्यान मेरी तरफ न होने के कारण मैं उसे ध्यान से देख सकता था.

कितना फर्क था मानसी और अंजु के व्यक्तित्व में. शादी होने के समय वह आकर्षक फिगर की मालकिन होती थी, पर अब उस का शरीर काफी भारी हो चुका था. चेहरे पर तनाव की रेखाएं साफ पढ़ी जा सकती थीं. उस का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता. समीर के होने के समय से उसे पेट और कमर दर्द ने एक बार घेरा तो अब तक छुटकारा नहीं मिला है.

अंजु की मानसी से तुलना करते हुए मेरा मन अजीब सी खिन्नता महसूस कर रहा था. रोहित और हमारे आर्थिक स्तर में खास अंतर नहीं था. पर हमारी पत्नियों के व्यक्तित्व कितने विपरीत थे.

मेरा चेहरा सारा दिन मुरझाया सा रहा. रात में भी ढंग से नींद नहीं आई. मानसी का रंगरूप आंखों के सामने आते ही बगल में लेटी अंजु से अजीब सी चिढ़ हो रही थी.

किसी से अपनी हालत की तुलना कर के दिमाग खराब करने का कोई फायदा नहीं होता है. खुद को बारबार ऐसा समझाने के बाद ही मैं ढंग से सो पाया था. मेरे पास मानसी का 2 दिन बाद ही औफिस में लंच के समय फोन आ गया.

‘‘अपने घर का पता बताओ. हम आज रात को अंजु और समीर से मिलने आ रहे हैं,’’ उस की यह बात सुन कर मैं बहुत बेचैन हो उठा.

‘‘आज मत आओ. अंजु को अपने भाई के यहां जाना है,’’ मैं ने झूठ बोल कर उन के आने को टाल दिया.

‘‘चलो, उन से मिलने फिर किसी और दिन आ जाएंगे पर तुम अपना पता तो लिखवा ही दो.’’

मैं उसे घर बुलाना नहीं चाहता था पर मजबूरन उसे अपना पता लिखवाना पड़ा. मैं ने उस से ज्यादा बातें नहीं कीं. कहीं मन ही मन मैं ने यह फैसला कर लिया कि मैं उन के साथ ज्यादा घुलनेमिलने से बचूंगा.

फिर मैं शनिवार की शाम को औफिस से घर पहुंचा तो वे दोनों मुझे ड्राइंगरूम में बैठे मिले. अंजु उन से बातें कर रही थी. मानसी के सामने वह बहुत साधारण सी नजर आ रही है, ऐसी तुलना करते ही मेरा मन उखड़ सा गया.

तभी मैं एकदम चुपचुप सा हो गया. मेरे मुकाबले अंजु उन दोनों से वार्त्तालाप करने की जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से निभा रही थी.

मानसी ने अचानक मुझ से पूछ ही लिया, ‘‘इतने उदास क्यों दिख रहे हो, संजीव?’’

‘‘सिर में दर्द हो रहा है. आज औफिस में काम कुछ ज्यादा ही था,’’ मुझे यों झूठ बोलना पड़ा तो मेरा मन और बुझाबुझा सा हो गया.

रोहित ने मेरे बेटे समीर से बहुत अच्छी दोस्ती कर ली थी. मानसी अंजु के साथ खूब खुल कर हंसबोल रही थी. बस मैं ही खुद को उन के बीच अलगथलग सा महसूस कर रहा था.

उन दोनों को रोहित के किसी मित्र के घर भी जाना था, इसलिए वे ज्यादा देर नहीं बैठे और हमें जल्दी अपने घर आगामी रविवार को आने का निमंत्रण देने के बाद चले गए.

उन के जाने के बाद मैं बहुत चिड़चिड़ा हो गया. मैं ने उन से ज्यादा तअल्लुकात न रखने का फैसला करने में ज्यादा वक्त नहीं लिया.

‘‘ये अच्छे लोग हैं. दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा है,’’ अंजु के मुंह से उन दोनों की तारीफ में निकले इन शब्दों को सुन कर मैं अपनी चिढ़ व नाराजगी को नियंत्रण में नहीं रख सका.

‘‘यार, इन लोगों की बात मुझ से मत करो. ये बनावटी लोग हैं. इन की सतही चमकदमक से प्रभावित न होओ. ऐसे लोगों के साथ मित्रता बढ़ा कर सिर्फ दुख और परेशानियां ही हासिल होती हैं,’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘क्या कालेज के दिनों में आप मानसी के बहुत अच्छे दोस्त नहीं थे?’’ मुझे यों अचानक उत्तेजित होता देख कर वह हैरान नजर आ रही थी.

‘‘मानसी मेरे एक अच्छे दोस्त नवीन की प्रेमिका थी. इस कारण मुझे उसे सहन करना पड़ता था. जब मानसी का उस के साथ चक्कर खत्म हो गया, तब मैं ने उस के साथ बोलना बिलकुल खत्म कर दिया था. वह न तब मुझे पसंद थी और न आज.’’

‘‘मुझे तो दोनों अच्छे इंसान लगे हैं. क्या अगले संडे हम उन के घर नहीं जाएंगे?’’

‘‘नहीं जाएंगे और अब कोई और बात करो. हमें नहीं रखना है इन के साथ ज्यादा संबंध,’’ रूखे से अंदाज में उसे टोक कर मैं ने मानसी और रोहित के बारे में चर्चा खत्म कर दी.

अंजु ने फिर उन दोनों के बारे में कोई बात नहीं की. सच तो यह है कि वह मुझे ज्यादा खुश नजर आ रही थी. उस ने बड़े प्यार से मुझे खाना खिलाया और सोने से पहले सिर की मालिश भी की.

अगले दिन अंजु ने मुझे सुबह उठा कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘उठिए, सरकार. आज से हम दोनों रोज नियमित रूप से घूमने जाया करेंगे.’’

‘‘यार, तुम्हें जाना हो तो जाओ पर मुझे सोने दो,’’ मैं ने फिर से रजाई में घुसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जनाब, ऐसे नहीं चलेगा. अगर आप मेरा साथ नहीं देगे तो मैं और मोटी हो जाऊंगी. क्या आप मुझे मानसी की तरह सुंदर और स्मार्ट बनता नहीं देखना चाहते हो?’’

अंजु की बात सुन कर मैं उठ बैठा और फिर बोला, ‘‘तुम उस के जैसा नकली पीतल नहीं, बल्कि खरा सोना हो. बेकार में उस के साथ अपनी तुलना कर के टैंशन में मत आओ.’’

अंजु ने अपनी बांहों का हार मेरे गले में डाल कर कहा, ‘‘टैंशन में मैं नहीं, बल्कि आप नजर आ रहे हो.’’

‘‘मैं टैंशन में नहीं हूं,’’ मैं ने उस से नजरें चुराते हुए जवाब दिया.

‘‘मैं आप के हर मूड को पहचानती हूं, जनाब. मुझ से कुछ भी छिपाने की कोशिश बेकार जाएगी.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘मतलब यह कि मेरी मानसिक सुखशांति की खातिर आप की झूठ बोलने की आदत बहुत पुरानी है.’’

‘‘तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आ रही है. मैं ने कब तुम से झूठ बोला है?’’

अंजु ने हलकेफुलके अंदाज में जवाब दिया, ‘‘मैं बताती हूं. जब हमारे पास कार नहीं थी तो आप कार की कितनी बुराई करते थे. कार के पुरजे महंगे आते हैं, सर्विसिंग महंगी होती है, पैट्रोल का खर्चा बहुत बढ़ जाता है, मुझे ड्राइव करना अच्छा नहीं लगता और भी न जाने आप क्याक्या कहते थे.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’

‘‘पहले एक और बात सुनो और फिर मैं आप के सवाल का जवाब दूंगी.

जब समीर के ऐडमिशन का समय आया तो आप महंगे पब्लिक स्कूलों के कितने नुक्स गिनाते थे. वहां पढ़ने वाले अमीर मांबाप के बच्चे छोटी उम्र में बिगड़ जाते हैं, बच्चे को अच्छे संस्कार घर में मिलते हैं स्कूल में नहीं, जैसी दलीलें दे कर आप ने मेरे मन को शांत और खुश रखने की सदा कोशिश की थी.’’

‘‘मैं जो कहता था वह गलत नहीं था.’’

‘‘मैं यह नहीं कह रही हूं कि आप गलत कहते थे.’’

‘‘मैं वही कह रही हूं, जो मैं ने शुरू में कहा था. मेरे मन की सुखशांति के लिए आप दलीलें गढ़ सकते हो, लेकिन ऐसे मौकों पर आप की जबान जो कहती है वह आप की आंखों के भावों से जाहिर नहीं होता है.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं.’’

‘‘देखिए, जब आप कार की बुराई करते थे तब हम कार नहीं खरीद सकते थे. लेकिन जब कार घर में आई तो आप कितने खुश हुए थे.

फिर जब समीर को अच्छे स्कूल में ऐडमिशन मिल गया तो भी आप की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था.’’

‘‘अब यह भी समझा दो कि तुम ये पुरानी बातें आज क्यों उठा रही हो?’’

‘‘क्योंकि आज भी आप की जबान पर कुछ और है और दिल में कुछ और. आज भी मेरे मन के सुकून की खातिर आप मानसी जैसी सुंदर, स्मार्ट महिला की बुराई कर रहे हो. लेकिन कल रात मैं ने देखा था कि जब भी आप सहज हो कर उस से बातें करते थे तो आप की आंखें खुशी से चमक उठती थीं.’’

‘‘सचाई यह भी है कि मानसी के मुकाबले मैं मोटी और अनाकर्षक लगती हूं. तभी अपनी पुरानी आदत के अनुरूप आप ने अपना सुर बदल लिया है. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘लेकिन आप मुझे हीनभावना का शिकार बनने से बचाने के लिए न मानसी की बुराई करो और न ही उन के साथ परिचय गहरा करने से कतराओ. कार और समीर के ऐडमिशन का संबंध हमारी माली हालत से था पर यह मामला भिन्न है. मैं भली प्रकार समझती हूं कि अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने का प्रयास मुझे ही करना होगा. तभी मैं ने अपने में बदलाव लाने की कमर कस ली है.

‘‘आप बनावटी व्यवहार से मुझे झूठी तसल्ली दे कर मेरे मन की सुखशांति बनाए रखने की चिंता छोड़ दो. आप के सहज अंदाज में खुश रहने से ही हमारे बीच प्यार की नींव मजबूत होगी.

‘‘आप के सहयोग से मैं अपने लक्ष्य को बहुत जल्दी पा लूंगी. इसीलिए मेरी प्रार्थना है कि कुछ देर और सोने का लालच त्याग कर मेरे साथ घूमने चलिए.’’

‘‘यार, तुम तो बहुत समझदार हो,’’ मैं ने दिल से उस की प्रशंसा की.

‘‘और प्यारी भी तो कहो,’’ अंजु इतरा उठी.

‘‘बहुतबहुत प्यारी भी हो… मेरे दिल की रानी हो.’’

‘‘थैंकयू. अगले संडे हम मानसी के घर चलेंगे न?’’

‘‘श्योर.’’

‘‘और अभी मेरे साथ पार्क में घूमने चल रहे हो न?’’

‘‘जरूर चल रहा हूं पर वैसे इस वक्त मैं तुम्हारे साथ कहीं और होना चाहता हूं,’’ मेरी आवाज नशीली हो उठी.

‘‘कहां?’’

‘‘इस रजाई की गरमाहट में.’’

‘‘अभी सारा दिन पड़ा है. पहले पार्क चलो,’’ मेरी आंखों में प्यार से झांकते हुए अंजु का चेहरा लाजशर्म से लाल हो उठा तो वह मेरी नजरों में संसार की सब से खूबसूरत औरत बन गई थी.

Festive Season में खानपान ऐसे रखें Health का ध्यान

भारत अपनी विविधता और पूरे सालभर अलगअलग आस्थाओं तथा जातियोंधर्मों के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों की वजह से जाना जाता है. साल में अपने त्योहारों को मनाने के लिए परिवार और दोस्त अकसर भोजन के इर्दगिर्द जमा होते हैं और साथ मिल कर खातेपीते, मौज करते हैं. ऐसा घर पर, रैस्टोरैंट में या बारबेक्यू में हो सकता है. साथ मिलजुल कर खानेपीने के बहुत फायदे हैं. सब से बड़ा फायदा तो सामाजिक मेलमिलाप है जोकि मानसिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.

त्योहारों के अवसर पर हम सिर्फ अच्छे और खास व्यंजनों के बारे में सोचते हैं. लेकिन त्योहार और छुट्टियों के मौसम में ही हम सभी से कई बार चूक भी हो जाती है. हम सेहतमंद खानपान के बजाय ज्यादा मात्रा में भोजन, मिठाई, प्रोसैस्ड फूड वगैरह का सेवन करते हैं यानी हमारे शरीर में कैलोरी की अधिक मात्रा पहुंचती है.

अधिक कैलोरीयुक्त भोजन का मतलब है अधिक मात्रा में फैट, शुगर, अत्यधिक कंसंट्रेटेड ड्रिंक्सतथा अधिक नमकयुक्त यानी सोडियम से भरपूर भोजन का सेवन. ऐसे में जो आम

समस्याएं सामने आती हैं, उन में प्रमुख हैं: वजन बढ़ना या पाचन संबंधी समस्याएं जैसेकि ऐसिडिटी, गैस्ट्राइटिस, कब्ज, शरीर में पानी की कमी होना आदि.

त्योहारों के बीतने के बाद वजन कम करने को ले कर बढ़ता तनाव वास्तव में ज्यादा वजन बढ़ाता है क्योंकि तनाव की वजह से भूख का एहसास बढ़ाने वाले हारमोन ज्यादा बनते हैं. इसलिए त्योहारी सीजन में कुछ सावधानियों के साथ उन खास पलों का आनंद उठाएं, आगामी त्योहारों के मद्देनजर आप के लिए कुछ आसान उपायों की जानकारी दी जा रही है.

खाली पेट रहने से बचे

दिन की सेहतमंद और संतुलित शुरुआत के लिए ब्रेकफास्ट में साबूत अनाज, लो फैट प्रोटीन तथा फलों का सेवन करें. कहीं किसी से मिलनेजुलने के लिए खाली पेट न जा कर भरे पेट जाएंगे तो फैस्टिव ट्रीट्स के नाम पर अनापशनाप खाने से बचेंगे.

अकसर होता यह है कि व्यंजनों का लुत्फ उठाने के लिए हम मील्स स्किप करते हैं और इस के चलते ओवरईटिंग हो जाती है. खाली पेट होने पर सैरोटानिन लैवल गिरता है. इसलिए जब भी हम बिना कुछ खाएपीए हुए लंबे समय तक रहते हैं तो स्ट्रैस बढ़ने लगता है और यही से बिना सोचेसमझे हुए लगातार कुछ न कुछ खाते रहने की शुरुआत होती है और हम जरूरत से ज्यादा भोजन पेट में ठूंस लेते हैं.

इसलिए ओवरईटिंग से बचने और वजन को नियंत्रण में रखने के लिए नियमित रूप से (1 बड़ा मील+2 स्नैक मील्स) खाना खाएं.

मात्रा नियंत्रित करें

जो भी खाएं उस की मात्रा का भरपूर ध्यान रखें यानी ‘पोर्शन कंट्रोल’ करें क्योंकि आप का पेट भर चुका है यह एहसास शरीर को कुछ देर से होता है. इसलिए अगर आप तब तक खाते रहेंगे जब तक कि पेट भरने का एहसास न हो जाए तो आप ओवरईटिंग करेंगे.

इसलिए जरूरी है कि एक बार में कम मात्रा में ही खाएं. धीरेधीरे खाने से आप के शरीर को यह पता चलता रहता है कि आप ने पर्याप्त मात्रा में खा लिया और आप ओवरईट नहीं करते.

सही भोजन करें

यह सब से महत्त्वपूर्ण है. सही चयन/विकल्प का चुनाव करने से आप त्योहारों की मस्ती और मजे को दोगुना कर सकते हैं क्योंकि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं और जोखिम वाले कारकों से दूर रहते हैं.

अधिक फाइबरयुक्त भोजन: ऐसा भोजन चुनें जो फाइबरयुक्त हो क्योंकि फाइबरयुक्त भोजन आप को तृप्ति का एहसास दिलाता है, आप देर तक पेट भरा हुआ महसूस करते हैं और इस तरह ओवरईटिंग से बचते हैं तथा अपने भोजन की मात्रा को भी नियंत्रित रखते हैं.

साबूत अनाज पोषण से भरपूर होता है, उस में कैलोरी की मात्रा कम होती है और पैकेज्ड एवं प्रोसैस्ड फूड्स की तुलना में इस के सेवन से पेट अधिक भरा हुआ महसूस होता है. साथ ही कैलोरीयुक्त मेन कोर्स मील शुरू करने से पहले किसी हैल्दी डिश का सेवन करें और कम ऐनर्जी वाले खाद्यपदार्थों जैसेकि सलाद या वैजिटेबल सूप आदि लें.

सब्जियों में विटामिन, मिनरल्स, फाइबर और पानी की मात्रा अधिक होती है यानी इन के सेवन से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करते हैं और इस तरह खुद ही अपनी प्लेट में भोजन की मात्रा को नियंत्रित रखते हैं.

हर मील में प्रोटीन लें. प्रोटीन न सिर्फ शरीर के विभिन्न ऊतकों की बढ़त के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं, बल्कि लीन बौडी मास (एलबीएम) के लिए भी फायदेमंद होते हैं.

हाल के अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि मील्स के बीच फिलर्स के तौर पर सही मात्रा में प्रोटीन के पर्याप्त सेवन से ब्लड शुगर लैवल में उतारचढ़ाव को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है. इसलिए मेवे और बीजों का सेवन करने से खाने के बीच हैल्दी स्नैकिंग का विकल्प मिलता है.

फू्रटी डैजर्ट: खाने के बाद मीठा (डैजर्ट) खाने की तलब स्वाभाविक है और यह भोजन को पूरा करने खासतौर से त्योहारी सीजन में बेहतरीन तरीका भी है. लेकिन चीनी और मैदे से बने डैजर्ट स्वास्थ्य केलिए अच्छे नहीं होते. इसलिए साबूत अनाज के आटे जैसेकि गेहूं और गुड़ (सीमित मात्रा में) का प्रयोग सेहतमंद विकल्प है. इसी तरह फल आधारित डैजर्ट जैसेकि फ्रूट योगर्ट शरबत पेट के लिए हलके होते हैं और सच तो यह है कि चाशनी में डूबे रसगुल्लों और जलेबियों जैसे तले हुए डैजर्ट की तुलना में ये काफी सेहतमंद भी होते हैं.

चांदी का वर्क लगी मिठाई खाने से बचें क्योंकि इस में ऐल्युमीनियम की मिलावट होती है जोकि सेहत के लिए अच्छी नहीं है. इसी तरह कृत्रिम रंगों के इस्तेमाल से बनी मिठाई खाने से भी बचना चाहिए. इन की जगह विभिन्न फू्रट आइटम्स के प्राकृतिक और स्वस्थ  रंगों के इस्तेमाल से बनी मिठाई का प्रयोग करें.

ऐसी गलती न करें: हम सभी एक बड़ी गलती यह करते हैं कि तलने के बाद बच गए तेल को दोबारा इस्तेमाल करते हैं. इस प्रकार तेल को दोबारा इस्तेमाल करने से फ्री रैडिकल्स बनते हैं जो शरीर की रक्तवाहिकाओं को अवरुद्ध करने के साथसाथ ऐसिडिटी का कारण भी बनते हैं. हो सके तो चीजों को तलने से बचना चाहिए और इन के बजाय स्नैक्स तथा मील्स के लिए स्टीमिंग, ग्रिलिंग, रोस्टिंग आदि को अपनाना सेहतमंद विकल्प है.

शरीर में पानी का पर्याप्त स्तर

कैलोरी को सीमित करने का एक आसान उपाय है- कैलोरी पीएं नहीं यानी सौफ्ट ड्रिंक्स पीने के बजाय पानी पीएं जिस से आप का पेट भर जाएगा और शरीर में फालतू कैलोरी भी नहीं जाएगी. इसलिए जूस की बोतल, सोडा/ऐरेटेड ड्रिंक्स या अलकोहलिक ड्रिंक लेने की बजाय पानी का सेवन करना अच्छा विकल्प है. ऐसा कर आप न सिर्फ कैलोरी की मात्रा नियंत्रित रखते हैं बल्कि अपने शरीर को प्राकृतिक रूप से हाइड्रेट भी रखते हैं. इस से भूख पर नियंत्रण आसान होता है.

खेलकूद या व्यायाम से शरीर को अधिक ऊर्जावान बनाया जा सकता है. गैस्ट्राइटिस से बचाव होता है, साथ ही कब्ज की शिकायत भी नहीं होती क्योंकि सभी प्रकार के ऐरेटेड ड्रिंक्स/ जूस ऐसिडिक होते हैं. इसी तरह नैचुरल ड्रिंक्स जैसेकि स्मूदी/ लस्सी/ मिल्कशेक (लो फैट, अतिरिक्त शुगर रहित), शिकंजी (चीनी रहित) आदि त्योहारों के मौसम में अच्छे विकल्प होते हैं.

शारीरिक गतिविधि

वजन को नियंत्रित करने के लिए डाइट कंट्रोल के साथसाथ शारीरिक व्यायाम करना महत्त्वपूर्ण होता है. इस से तनाव घटता है और उस का सीधा या परोक्ष असर आप की खानपान की आदतों पर पड़ता है. व्यायाम करने से ऐंडोमार्फिंस को बढ़ावा मिलता है जो आप को हर दिन सकारात्मक और ऊर्जावान बने रहने में मदद करते हैं.

साथ ही नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियां आप के मसल एनाबौलिज्म के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं जिस से मसल लौस से बचाव होता है. अच्छी सेहत के लिए सप्ताह में 5-6 दिन 30-45 मिनट तक शारीरिक व्यायाम करने की सलाह दी जाती है.

हम सभी को त्योहारों के उल्लास का हिस्सा बनना और समाज में खुशहाली बढ़ाने का कारण बनना अच्छा लगता है. खानपान जीवन के उत्सव का अहम हिस्सा है.

अच्छा भोजन अच्छी सेहत को बढ़ावा देता है, इसलिए समझदारी से भोजन कर सेहतमंद रहें.

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