Film Review: ‘‘आठ सौ- असाधारण क्रिकेटर पर अति साधारण फिल्म..’’

रेटिंगः पांच में से एक स्टार

 निर्माताः विवेक रंगाचारी

लेखकः एम एस श्रीपति शेहान करुणातिलका

निर्देषकः एम एस श्रीपति

कलाकारः मधुर मित्तल,महिमा नांबियार, नारायण,किंग रत्नम, नासर, वाड़िवरकरासी, रियाथिका, वेला राममूर्ति,विनोद सागर, रित्विक, यारथ लोहितस्व, दिलीपन अन्य

भाषा: तमिल हिंदी

अवधिः दो घंटे 39 मिनट

अब तक क्रिकेट पर आधारित जितनी भी फिल्में बनी हैं,उन सभी को दर्शक सिरे से नकारते रहे हैं.इसकी मूल वजह यह रही है कि हर फिल्मकार सिनेमा की मूल जरुरत मनोरंजन को दरकिनार कर हमेशा क्रिकेट के खेल व खिलाड़ी को महान साबित करने का ही प्रयास करता रहा है.अब मशहूर तमिल फिल्मकार श्रीलंका के आफ स्पिनर गेंदबाज व क्रिकेट टीम के पूर्व कैप्टन मुथैया मुरलीधरन की बायोपिक फिल्म ‘‘800’’ लेकिन आए हैं.तमिल भाषा में बनी यह फिल्म हिंदी में डब करके भी प्रदर्शित की गयी है.फिल्म की कहानी अस्सी के दशक,जब श्रीलंका गृहयुद्ध से जूझ रहा था,से लेकर मुथैया मुरलीधरन के 800 विकेट लेने के बाद क्रिकेट से संयास लेने तक की कहानी है.इस फिल्म में इस बात को खास तौर पर रेखंाकित किया गया है कि तमीलियन श्रीलंकन क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरन के लिए प्रतिभा के बावजूद अपने देश श्रीलंका के लिए क्रिकेट खेलना कितना मुश्किल था.

जब इस फिल्म की घोषणा हुई थी,तब मुथैया मुरलीधरन का किरदार दक्षिण भारतीय अभिनेता विजय सेतुपति निभा रहे थे,पर बाद में उन्होने खुद को इस फिल्म से अलग कर लिया.उस वक्त कहा गया था कि विजय सेतुपति के प्रशंसकों ने उनके घर पर हमला बोलकर उनसे इस फिल्म का हिस्सा न बनने के लिए कहा था. लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद बात समझ में आ गयी कि विजय सेतुपति ने इस घटिया फिल्म से दूरी बनायी थी.इतना ही नही उस वक्त तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने भी फिल्म के निर्माण के खिलाफ आवाज उठाई थी,मगर निर्माता व निर्देशक ने आश्वस्त किया था कि इस फिल्म में मुरलीधरन की कहानी के साथ ही श्रीलंका के भारतीय तमिलों की अनकही कहानी भी बताएगी,जिन्हें अक्सर देश के अन्य श्रीलंकाई तमिलों व सिंहलियों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है.फिल्म में मुरलीधरन पत्रकारों के सवालों के जवाब देते हुए खुद को तमिल या सिंहली की बजाय एक क्रिकेटर ही कहते नजर आते हैं.पर उन्होने ‘तमिल’ होने की अपनी पहचान को कभी नहीं छिपाया.

कहानीः

फिल्म की शुरूआत तमिल बनाम सिंहली लड़ाई के दृष्य से होती है,जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह सिंहली एक एक तमीलियन को मौत के घाट उतारने के साथ ही उनकी फैक्टरी तक को आग लगा रहे हैं.कैंडी में अपने माता पिता व दादी के साथ रहने वाले छह सात वर्षीय मुथैया मुरलीधरन को जब उसके गांव के बड़े बच्चे अपने साथ क्रिकेट नही खेलने देते, तब वह अपनी दादी को बुलाकर लाता है.दादी के हड़काने के बाद वह गांव के लड़कों के साथ फील्डिंग करने व बल्लेबाजी करते हुए क्रिकेट खेलता है.

एक दिन उसे गेंदबाजी करने का अवसर मिलता है,तभी वहां सिंहली उपद्रवी आ जाते हैं,और तमीलियन की तलाश कर उन्हे मौत की नींद सुलाने लगते हैं.तब एक मुस्लिम षख्स मुरली व मुरली की मां सहित कई लोगों को अपने घर में शरण देता है.पर सिंहली उसके पिता की बिस्कुट फैक्टरी में आग लगा देते हैं..उसके बाद उनकी मां उन्हें एक चर्च में पादरी से मिलकर रख देती हैं.पादरी की शरण में मुरली चर्च के ही स्कूल में पढ़ाई करने के साथ ही क्रिकेट भी खेलता है.वह पढ़ाई पर कम पर क्रिकेट में ज्यादा रूचि रखते हैं.

लेखन निर्देशनः

मुथैया मुरलीधरन ने टेस्ट क्रिकेट में 800 और वनडे क्रिकेट में 532 विकेट लिए.इसी से उनकी खतरनाक गेदबाजी का अंदाजा लगाया जा सकता है.सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि आस्ट्रेलियन व इंग्लैंड के बल्लेबाज भी उनकी गेंदबाजी से डरते थे.पर तमीलियन श्रीलंकन क्रिकेटर मुथैया मुरलीधरन के लिए प्रतिभा के बावजूद अपने देश श्रीलंका के लिए क्रिकेट खेलना बहुत ही कठिनाइयों वाली डगर थी. इसे सही ढंग से परदे पर उकेरना हर फिल्मकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है. फिल्म में मुरलीधरन के संघर्ष व दर्द भरी कहानी का चित्रण है,जो कि किसी भी युवा के लिए प्रेरणा बन सकती है,मगर इसका चित्रण व तकनीकी पक्ष इस कदर कमजोर है कि यह युवा पीढ़ी तक नही पहुॅच पाएगी.

नेक मकसद से बनायी गयी इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसकी पटकथा है.पूरी पटकथा विखरी हुई है.फिल्म देखते हुए अहसास होता है कि लेखक व निर्देशक का फोकश तय नही है.परिणामतः दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती. फिल्म में मुरलीधरन द्वारा खेेले गए कुछ चर्चित मैचों को पुनः जीवित करके दिखाया गया है,ऐसे दृष्यों के साथ फिल्मकार न्याय नही कर पाए. काश उन्होने ऐसे क्रिकेट मैचों के मौलिक दृष्यों के अधिकार खरीदकर उन्हे इस फिल्म में पिरोया होता. इस कमी के चलते सिनेमा के दर्शक ही नही क्रिकेट के फैन को भी इस फिल्म से कुछ नहीं मिलता.

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी बहुत खराब है.क्रोमा पर शूट किए गए दृष्य अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहे हैं. इतना ही नही भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाफ मुरलीधरन द्वारा खेल गए क्रिकेट मैचों को नजरंदाज किया गया है.यॅूं तो मैं क्रिकेट का बहुत बड़ा फैन नही हॅूं,पर फिल्म देखकर अहसास होता है कि फिल्मकार का पूरा ध्येय मुरलीधरन को नेकदिल व बेहतरीन इंसान के रूप में पेश करने की रही है और उन्होने उन सभी घटनाक्रमो से बचने का प्रयास किया, जिनसे भारतीय दर्शक नाराज हो सकता है.

मसलन एक टुर्नामेंट में श्रीलंका ने पूरी भारतीय टीम को महज 54 रनों पर आउट किया था और इसमें अहम भूमिका मुरलीधरन की ही थी,जिन्होने पांच विकेट लिए थे.फिल्मकार ने चकिंग विवाद को कुछ ज्यादा ही विस्तार से चित्रित किया है,हो सकता है कि कहानी के लिए इसकी जरुरत हो,पर सिने प्रेमियों को यह अखरता है.फिल्मकार मुरलीधरन के निजी जीवन व उनकी पत्नी को भी ठीक से चित्रित नही कर पाए हैं. वास्तव में यह फिल्म मुरली धरन के लिए अपना दामन साफ करने व ख्ुाद का स्तुतिगान ही है,इसलिए भी फिल्म अपना महत्व खो देती है.

अभिनयः

इस फिल्म को बर्बाद करने में लेखक व निर्देशक के साथ ही अभिनेता मधुर मित्तल भी कम दोषी नही है.मधुर मित्तल ने ही इस फिल्म में मुथैया मुरलीधरन का किरदार निभाया है.जबकि छह सात वर्षीय मुरलीधरन के किरदार को निभाने वाला बाल कलाकार अपने अभिनय की छाप छोड़ जाता है.मधुर मित्तल का अभिनय व संवाद अदायगी काफी गड़बड़ है. इतना ही नहीं मधुर मित्तल एक भी दृश्य में मुथैया मुरलीधरन की तरह गेंदबाजी करते हुए नजर नही आए. मधुर मित्तल ने पहली बार अभिनय किया हो,ऐसा भी नही है.मधुर ने नौ वर्ष की उम्र में बाल कलाकार के रूप में अभिनय जगत में कदम रखा था.

2008 में उन्होने फिल्म ‘स्लमडाॅग मिलेनियर’ में सलीम का किरदार निभाया था.बाल कलाकार के तौर पर कुछ टीवी सीरियलों भी अभिनय किया.फिर तेइस वर्ष की उम्र में वह मिलियन डालर आर्म में भी नजर आए थे.फिर ‘पाॅकेट गैंगस्टर’ व ‘मातृ’ जैसी सुपर फ्लाप फिल्मों में नजर आए. दो वेब सीरीज भी की. इसके बावजूद बतौर अभिनेता वह इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं.मधुर मित्तल को चाहिए कि वह एक दो वर्ष अपने अंदर की अभिनय प्रतिभा को निखारने के लिए मेहनत करें.अखबार के संपादक की भूमिका में अभिनेता नासर ने शानदार   अभिनय किया है.अर्जुन रणतुंगा के किरदार में राजा रत्नम अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे हैं.इसके अलावा कोई भी कलाकार ठीक से अभिनय नही कर पाया.मुरलीधरन की पत्नी मधिमलार के किरदार में महिमा नांबियार के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं.

इस Festive सीजन पर घर में बनाएं ग्रीन ऐप्पल श्रीखंड

भारत विविधताओं का देश है यहां त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. जल्द ही Festive सीजन आ रहा है. घर की हर गृहणी इसी चिंता में है इस त्योहार पर मीठे में क्या बनाएं. परेशान बिल्कुल न हो गृहशोभा पर मिलेगी आपको अनगिनत फूड रेसिपी और मिठाई की रेसिपी. आज हम आपके लिए लेकर आए ग्रीन ऐप्पल श्रीखंड और औरेंज ऐंड लैमन ड्रिंक की रेसिपी.

  1. ग्रीन ऐप्पल श्रीखंड

सामग्री

 1. 1/2 कप योगर्ट

  2. 1 हरा सेब

 3. थोड़ा सा ग्रीन ऐप्पल सिरप

 4. थोड़ा सा दालचीनी पाउडर.

विधि

सेब को चौकोर टुकड़ों में काट लें. फिर एक बाउल में योगर्ट ले कर उस में ग्रीन ऐप्पल सिरप मिलाएं. जब सिरप अच्छे से मिल जाए फिर इस में सेब के टुकड़े और दालचीनी पाउडर डाल कर फ्रिज में 45 मिनट के लिए ठंडा होने पर सर्व करें.

2. औरेंज ऐंड लैमन ड्रिंक

सामग्री

1. जरूरतानुसार और्गेनिक औरेंज जूस

  2. 15 मिली लैमन जूस

 3. 30 मिली और्गेनिक हनी

 4. 1/2 छोटा चम्मच अदरक पाउडर

5. थोड़ी सी पुदीनापत्ती

 6. 5-6 आइस क्यूब्स

 7. थोड़ा सा ठंडा पानी.

विधि

औरेंज और लैमन जूस के साथ सारी सामग्री को डाल कर अच्छे से मिला कर ऊपर से आइस क्यूब्स और पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

संविधान बड़ा या धर्म

सनातन धर्म का नाम ले कर भाजपा के कट्टरपंथी और उनके अंधभक्त एक बार फिर वही पौराणिक युग लाना चाहते हैं जिस में औरतों को केवल दासी के समान, पति की सेवा, पिता-पति-पुत्र की आज्ञाकारिणी और बच्चे पैदा करने की मशीन समझा जाता था. हमारे अधिकांश देवता यही सिद्ध करने में लगे रहे कि औरतों का अपना कोई वजूद नहीं है जबकि समाज का एक वर्ग, एक बड़ा वर्ग, इन्हीं औरतों की देवी के रूप में पूजा करता रहा.

आजकल इस अलिखित पौराणिक कानून को संविधान के बराबर सिद्ध करने की कोशिश करी जा रही है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के पुत्र उदयनिधि के सनातन धर्म के भेदभाव वाले बयान के कारण सनातन धर्म के दुकानदार तिलमिलाए हुए हैं क्योंकि उन्हें आधी आबादी केवल सेवा करने के लिए सदियों से मिलती रही है.

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि सनातन धर्म का अपमान करना संविधान का अपमान करना है. यह कैसे तर्क पर ठीक ठहरेगा? सनातन धर्म तो न लिखा गया है, न उस की अदालतें हैं और न ही उस में कोई बराबरी या न्याय का स्थान है जबकि संविधान लिखित है, अदालतों में उस की व्याख्या होती है. उस के दुकानदार नहीं हैं. इस का लाभ हर नागरिक और भारत निवासी को मिलता है.

सनातन धर्म का एक गुण भी भाजपाई नहीं बता सकते जबकि संविधान की हर धारा, हर पंक्ति नागरिक को सरकार के विरुद्ध कुछ अधिकार देती है. संविधान की ढाल में पैसा नहीं कमाया जा सकता जबकि सनातन धर्म का मुख्य ध्येय तो दानदक्षिणा है. पूजापाठ, देवीदेवता, रीतिरिवाज सभी सनातन के दुकानदारों को हलवापूरी का इंतजाम करते रहे हैं. हर मंदिर पैसे से लबालब भरा है और हर मंदिर में मौजूद हर जना इस पैसे का अघोषित मालिक है.

सनातन धर्म के केंद्र मंदिरों में देवदासियों का बोलबाला था, वहां नाचगाना होता था. वहां देश की 80% जनता को घुसने तक की इजाजत नहीं थी जबकि संविधान हर नागरिक को बराबर का हक देता है और औरतों को पुरुषों के बराबर खड़ा करता है.

अर्जुन राम मेघवाल ने धर्म की भगवा पट्टी आंखों पर बांध रखी हो तो कोई कुछ नहीं कर सकता पर सच फिर भी छिपाया नहीं जा सकता कि सनातन धर्म की देन संविधान की देन के सामने तुच्छ, रेत के कण के बराबर है जबकि संविधान को तो अभी 75 वर्ष भी नहीं हुए.

हार कर भी ऐसे जीतें

हर किसी व्यक्ति को अपने जीवन में कभी न कभी हार का सामना करना ही पड़ता है फिर हार चाहे कैरियर में हो, बिजनैस में हो, किसी रिश्ते में हो या जीवन की किसी भी परिस्थिति में, लेकिन यह हार हमें कुछ न कुछ नया सबक अवश्य सिखाती है और अकसर वही लोग अधिक कामयाब होते हैं जो अपनी हार से सीख लेते हैं न कि अपनी किस्मत को कोसते हैं. वृंद सतसई का दोहा, करतकरत अभ्यास के जड़मति होत सुजान. रसरी आवत-जात ते सिल पर पड़त निशान.

इस बात के लिए बिलकुल सटीक है कि यदि हम असफलता के बाद भी निरंतर प्रयास करते हैं तो कठिन से कठिन कार्य भी आसान बन जाता है इसलिए जरूरी है कि अपनी गलतियों से सीख लें और जीवन में सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहें क्योंकि आप की सही सोच आप के लक्ष्य को पाने में मदद करती है.

तो आइए जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स ऐंड ट्रिक्स जो आप को सफल बनाने में मदद करते हैं:

गलतियों से लें सीख

यदि हम अपनी हार को खुद पर हावी कर लेते हैं तो हमें सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है, लेकिन यदि अतीत में की गई गलती से हम सबक लेते हैं तो निश्चित ही एक न एक दिन कामयाबी हमारे कदम चूमती है. इसलिए अतीत में की गई गलती का पछतावा न करें बल्कि अपनी खामियों और खूबियों को जान कर उन पर और काम करें व सकारात्मक बदलाव के साथ आगे बढ़ें.

डरना मना है

एक मूवी का बहुत ही फेमस डायलौग है ‘जो डर गया सो मर गया’ और यह सही भी है. जो इंसान डर के सामने घुटने टेक देता है और पीछे हट जाता है वह अपना आत्मविश्वास बिलकुल खो देता है. रोजमर्रा के कामकाजों तक में निर्णय लेने में वह असहज महसूस करता है इसलिए जरूरी है कि असफलता से डरें नहीं बल्कि डट कर सामना करें और सफल बनें.

अपने सपने का पीछा करें

परिस्थिति कोई भी हो लेकिन असफलता मिलने पर हमें अपने सपनों को बिखरने नहीं देना चाहिए बल्कि अपने अनुभवों से सीख लेनी चाहिए क्योंकि दोबारा प्रयास करते समय आप की शुरुआत शून्य से नहीं बल्कि अनुभव से होती है. इसलिए अपने सपने को पूरा करे बिना हार न  मानें.

कंफर्ट जोन से हट कर कुछ नया करो

असफलता हमें सिखाती है कि हमें अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकल कर कुछ अलग, कुछ नया करना है. कुछ लोग किसी भी काम को करने से पहले ही उस से डरने लगते हैं. लेकिन हमें नकारात्मक विचारों को त्याग कर सकारात्मक सोच के साथ कुछ नया करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि जब तक नया करने की कोशिश नहीं करेंगे तब तक हम आगे नहीं बढ़ सकते. साथ ही हमें कभी भी किसी और के जीवन से खुद की तुलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि हर किसी व्यक्ति की क्षमता अलग होती है.

अक्षरज्ञान ही नहीं जनून भी है जरूरी

हमें सफल बनने के लिए केवल डिगरी की आवश्यकता नहीं होती बल्कि जनून की आवश्यकता होनी बेहद जरूरी है. कुछ लोग बिना किसी डिगरी के भी कामयाब होते हैं तो कुछ लोग पढ़ेलिखे होने के बाद भी नाकामयाब रहते हैं. सफलता के लिए इंसान के अंदर जनून और आगे बढ़ने की भूख होनी चाहिए. फिर कामयाबी आप के कदम अवश्य चूमेगी.

निर्मल: क्या नई दुनिया में खुश थी गोमती

आजकी सुबह भी कुछ उदासी भरी थी. मन बेहद बोझोल था. ऐसा लग रहा था कि उसे निकाल कर कहीं फेंक दूं और सब कुछ भुला कर निश्चिंत हो कर पड़ी रहूं. पूरी जिंदगी संघर्ष करते गुजर गई. एक समस्या खत्म होतेहोते दूसरी समस्या आ खड़ी होती थी. नौकरी पाने के लिए की गई भागदौड़, शेखर के साथ भाग कर शादी करना और उस के बाद शुरू हुए खत्म न होने वाले सवाल, कोर्टकचहरी की भागदौड़ और

आज मेरे ही घर में बुद्धिराज का मुझो फटकारना ये सारी बातें एकएक कर के आंखों के आगे तैरने लगी थीं.

‘‘तुम्हारा और करण का क्या रिश्ता है?

वह चंडाल चौकड़ी मेरे घर क्यों आई थी? उस करण के साथ कैसे चिपक रही थीं तुम…’’ शेखर के मुंह से आग बरस रही थी. पर उस से भी भयानक काम उस के हाथ कर रहे थे.

गोमती की लिखी कविताओं के पन्नों को वह एकएक कर जला रहा था. हर पन्ना जलाते वक्त वह कू्रर हंसी हंस रहा था.

गोमती यह देख कर तिलमिला उठी थी. वह उस के हाथपांव जोड़ने लगी थी. पर अपने पैरों पर गिरी गोमती को शेखर ने जोर से झोटक दिया.

‘‘मेरी बीवी पर नजर डालते हैं. एकएक की आंखें नोच लूंगा. कविता करने के लिए क्या मेरा ही घर नजर आता है?’’ देर तक गालीगलौज करने के बाद शेखर पांव पटकते हुए बैडरूम

में चला गया और फिर थोड़ी ही देर में खर्राटे भरने लगा.

पर उन्हें घर तक लाने वाला भी तो वही था. फिर ऐसा क्यों? उसे अच्छी तरह याद है जब उस के गांव में साहित्य मंच की शाखा खुलने वाली थी. तब मुंबई से साहित्य मंच के संस्थापक कवि माधव मानविंदे वहां स्वयं आने वाले थे. वहां उसे भी आमंत्रित किया गया था. उस वक्त साहित्य मंच की स्थापना की मीटिंग कहां की जाए, इस बाबत चर्चा चल रही थी. करण और पोटे साहब ने 1-2 नाम लिए पर उन की कुछ अपनी समस्याएं थीं.

‘‘गोमती दीदी, आप के घर में की जाए क्या?’’ करण के इस सवाल पर शेखर ने काफी उत्साह दिखाया.

‘‘हांहां, जरूरजरूर, हमें भी साहित्यिक लोगों के दर्शन हो जाएंगे…’’

यह सुन सभी ने खुशी से तालियां बजाईं. पर मेरे तो होंठ ही सिल गए थे.

‘‘पर हम दोनों भी तो नौकरी करते हैं. आप कहीं और मीटिंग रख लेंगे तो ज्यादा अच्छा होगा,’’ मैं ने बहुत ही रूखेपन से जवाब दिया.

‘‘पर आप के पति तो काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं,’’ विजया बोली.

‘‘मैं बिस्कुट के पैकेट्स ले आऊंगा. चाय बाहर से मंगा लेंगे,’’ करण बोला.

‘‘बिलकुल नहीं. आप घर में मेहमान बन कर आ रहे हो… कोई कुछ नहीं लाएगा. हम ही घर में गरमगरम पकौड़े बना देंगे. खा कर देखिएगा, उंगलियां चाटते रह जाएंगे. मैं कविता भले ही नहीं करता हूं, पर बीवी की कविताएं तो सुनता ही हूं,’’ शेखर बोला.

उस वक्त हर कोई शेखर की प्रशंसा कर रहा था. उस के बाद तो हर कार्यक्रम हमारे

ही घर होने लगा. मेरा विरोध खत्म हुआ और धीरेधीरे मेरी भी इस में रुचि बढ़ने लगी. पर शेखर नीरस होने लगा. उसे उन लोगों पर गुस्सा आने लगा. मेरी कविताओं की सभी प्रशंसा करने लगे. बाहर से भी मुझो कविताओं के औफर्स आने लगे. मैं भी औफिस से छुट्टी ले कर सम्मेलनों में भाग लेने लगी. शेखर का गुस्सा अब शक में बदलने लगा था. वह अब उन लोगों के साथ मेरा नाम जोड़ने लगा था. शराब पी कर गालीगलौज करना और मुझो से मारपीट करना उस की आदत बन गई थी. कभीकभी तो वह इतनी मारपीट करता कि पिटाई के निशान भी शरीर पर दिखाई देते.

रोजरोज के झोगड़े से तंग आ कर आखिर मैं ने शेखर से तलाक लेने का फैसला कर लिया. पर मेरी तनख्वाह इतनी ज्यादा नहीं थी. शेखर बैंक में अफसर था. मेरे 17 और 15 साल के बेटे बुद्धिराज और युवराज भी उस के साथ रहना पसंद कर रहे थे. वजह सिर्फ एक थी. जो शानशौकत और पैसा वह दे सकता था, वह मैं नहीं दे सकती थी. आज सचमुच रिश्तेनातों के कोई माने नहीं रह गए हैं. भावनात्मक तौर से भी उन्हें मेरी कोई कद्र नहीं थी. कोर्ट ने भी उन्हें शेखर के साथ ही भेज दिया. मैं 1 कमरे के छोटे से मकान में रहने आ गई. कुछ दिनों बाद मैं ने अपील कर के कोर्ट से बच्चों की कस्टडी मांगी तो 1 बेटे बुद्धिराज की कस्टडी मुझो सौंप दी गई. पर मैं उस की जरूरतें पूरी करने में असमर्थ थी. परिणामस्वरूप उस का चिड़चिड़ापन बढ़ता गया और एक दिन वह खुद ही मुझो छोड़ कर अपने पिता के पास चला गया.

एक दिन मेरा मार्केटिंग विभाग में ट्रांसफर हो गया. इस डिपार्टमैंट में जाने के लिए लोग क्याक्या कोशिशें नहीं करते, क्योंकि यहां की दहलीज लांघते ही पैसों की बरसात होती थी. पर इस विभाग में कमर कस कर काम करना पड़ता था, इसलिए मैं यह विभाग नहीं चाहती थी. पर मन के किसी कोने में मुझो भी पैसों की चाह थी. बड़ा घर चाहिए था. फिर शेखर को दुत्कार कर मेरे बच्चे मेरे पास वापस आएं, ऐसी चाह भी थी. इसलिए मैं कुछ भी करने को तैयार थी. पहले टैंडर को मंजूरी देते वक्त मुझको1 लाख का औफर मिला था. औफिस के बाहर एक पेड़ के नीचे रुपयों का वह बंडल लेते वक्त मेरे हाथ थरथरा रहे थे. फिर उस के बाद मैं ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. मैं ने नया घर खरीद लिया.

उधर शेखर के कुकर्मों का घड़ा भर गया था. उस के खिलाफ शिकायत हुई और उस की जांचपड़ताल शुरू हुई. उसे सस्पैंड कर दिया गया और उस के घर को सील कर दिया गया. दोनों बच्चे मेरे पास आ गए और फिर कभी उन्होंने मेरे आलीशान मकान से जाने का नाम नहीं लिया. एक बात तो समझो आ गई कि आज की पीढ़ी को रिश्तेनातों और भावनाओं की परवाह नहीं. केवल पैसा ही सब कुछ होता है.

बी.एससी. करते ही बुद्धिराज की अच्छी नौकरी लग गई. मैं अब भी शेखर को याद करती थी. अब भी मेरा मन उस से मिलने को करता था. एक बैंक मामले के बाद उस ने मुझो फोन किया था, ‘‘बैंक वाले शायद तुम्हारी जांच कर सकते हैं,’’ वकील की सलाह ले लो.’’

उस वक्त अपने किए पर पछतावा होने की बात भी उस ने कही थी और मुझो भी यह सलाह दी कि मैं ऐसे गैरकानूनी काम छोड़ दूं.

पर तब मैं ने कहा था, ‘‘मुझो तुम्हारी सलाह नहीं चाहिए,’’ और फोन पटक दिया था.

फिर मैं ने बुद्धिराज की उस की पसंद की लड़की निकिता से शादी करा दी. मेरे

घर में पैसों की बरसात हो रही थी. सुबह 9 से रात के 9 बजे तक मैं औफिस में ही पिसती रहती थी पर मेरे घर का कायाकल्प हो चुका था. रोज शाम को बुद्धिराज और निकिता की उन के दोस्तों के साथ शराब की पार्टियां चलने लगी थीं. इधर मुझो पर एक जांच कमेटी बैठा दी गई थी और मेरे एमडी ने 1 महीना घर बैठने की सलाह दी थी. पर बुद्धिराज के कहने पर मैं घर नहीं बैठी और मैं ने फिर से औफिस जौइन कर लिया. तब एमडी ने सीधे मेरा सस्पैंड और्डर निकाल दिया.

घर बैठने के बाद घर का सारा नजारा मेरे सामने आया. घर पर खाली बैठना मुझो मंजूर नहीं था और बच्चों की हरकतें मुझो से देखी नहीं जाती थीं, इसलिए मैं ने विनया के घर जाना शुरू कर दिया. वहां पर हम ने फिर से कविताएं पढ़नालिखना शुरू कर दिया. विनया ने मुझो नौकरी से रिजाइन कर देने की सलाह दी, क्योंकि रिजाइन करने के बाद प्रौविडैंट फंड के क्व35 लाख मुझो मिलते. उन्हें बैंक में जमा करने पर उन से मिलने वाले ब्याज से आराम से मेरा घर खर्च चलता. उस के बाद मैं आजादी से कहीं भी घूमफिर सकती थी. वर्ल्ड टूर कर सकती थी. मुझो काम की चिंता नहीं होती. न ही कोई बंधन होता. मैं अपनी सारी ख्वाहिशें पूरी कर सकती थी.

फिर मैं ने फैसला कर लिया. बैंक में मेरा और बुद्धिराज का जौइंट अकाउंट था. वहां जा कर मैं ने सारे पैसे निकालने चाहे तो मैनेजर ने बताया कि बुद्धिराज ने कब के सारे पैसे निकाल लिए हैं. इस बारे में बुद्धिराज से पूछने पर वह मुझो पर ही बिफर पड़ा और चिल्ला कर मुझो से कहने लगा कि बैंक जाने से पहले एक बार मुझो से क्यों नहीं पूछा? मैनेजर न जाने क्या सोचेगा.

उस की इस हरकत ने मुझो सोचने पर मजबूर कर दिया और एक ठोस निर्णय लेते हुए मैं ने बुद्धिराज, निकिता और युवराज को कमरे में बुला कर अपना फैसला सुना दिया कि मैं नौकरी से त्यागपत्र दे रही हूं. प्रौविडैंट फंड के जो रुपए मिलेगे उन्हें बैंक में जमा करा दूंगी. उन से मिलने वाले ब्याज से अपना खर्चा चलाऊंगी. आज के बाद न मैं किसी को कुछ दूंगी और न किसी से कुछ लूंगी. यह मेरा घर है. आज के बाद यहां शराब की पार्टियां नहीं चलेंगी. तुम सब को मेरी मरजी से रहना होगा. अगर मंजूर हो तो ठीक वरना तुम सब अपनी राह चुन सकते हो.

मेरी बात सुन कर तीनों सकते में आ गए और मैं मौर्निंग वाक के लिए निकल पड़ी.

नींव: अंजु ने ऐसा क्या किया कि संजीव खुश हो गया?

उसदिन करीब 8 साल के बाद मानसी को एक हेयर सैलून से बाहर आते देखा तो आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. कालेज के दिनों में वह कभी मेरी बहुत अच्छी दोस्त हुआ करती थी. फिर वह एमबीए करने मुंबई चली गई और हमारे बीच संपर्क कम होतेहोते समाप्त हो गया था.

मैं मुसकराता उस के सामने पहुंचा तो उस ने भी मुझे फौरन पहचान लिया. हम ने बड़े अपनेपन के साथ हाथ मिलाया और हंसतेमुसकराते एकदूसरे के बारे में जानकारी का आदानप्रदान करने लगे.

‘‘तुम यहां दिल्ली में कैसे नजर आ रही हो?’’

‘‘मेरे पति को यहां नई जौब मिली है.’’

‘‘क्या पति को घर छोड़ कर केश कटवाने आई हो?’’

‘‘नहीं भई. वे मुझे यहां छोड़ कर किसी दोस्त से मिलने गए हैं. बस, अब लेने आते ही होंगे. तुम बताओ जिंदगी कैसी गुजर रही है?’’

‘‘ठीकठीक सी गुजर रही है.’’

‘‘तुम्हारी पत्नी क्या करती है?’’

‘‘अंजु नौकरी करती है.’’

‘‘तुम तो कहा करते थे कि पत्नी को सिर्फ घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां संभालनी चाहिए. फिर अंजु को नौकरी कैसे करा रहे हो?’’ उस ने हंसते हुए पूछा.

‘‘मैं तो अभी भी यही चाहता हूं कि अंजु घर में रहे पर आज की महंगाई में डबल इनकम का होना जरूरी है.’’

‘‘बच्चे कितने बडे़ हो रहे हैं?’’

‘‘हमारा 1 बेटा है समीर, जो पिछले महीने 6 साल का हुआ है.’’

‘‘उस के लिए भाई या बहन अभी तक क्यों नहीं लाए हो?’’

‘‘अरे, दूसरे बच्चे की बात ही मत छेड़ो. आजकल 1 बच्चे को ही ढंग से पालना आसान नहीं है. तुम अपने बारे में बताओ.’’

‘‘मैं तो कोई जौब नहीं करती हूं. पति सौफ्टवेयर इंजीनियर हैं. 3 साल अहमदाबाद में रहे. अब यहां दिल्ली की एक कंपनी में जौब शुरू करने के कारण 2 महीने पहले यहां आए हैं. अभी तक मन नहीं लग रहा था पर अब तुम मिल गए हो तो अकेलेपन का एहसास कम हो ही जाएगा. कब मिलवा रहे हो अंजु और समीर से, संजीव?’’

‘‘बहुत जल्दी मिलने का कार्यक्रम बना लेते हैं. तुम ने अपने बच्चों के बारे में तो कुछ बताया नहीं,’’ मैं ने जानबूझ कर विषय बदल दिया.

‘‘मेरी 2 बेटियां हैं – श्वेता और शिखा. श्वेता स्कूल जाती है और शिखा अभी 2 साल की है.’’

‘‘बहुत अच्छा मैंटेन किया हुआ है तुम ने खुद को. कोई देख कर कह नहीं सकता कि तुम 2 बेटियों की मम्मी हो.’’

‘‘थैंकयू, मैं नियम से डांस करती हूं. कोई टैंशन नहीं है, इसलिए स्वास्थ्य ठीक चल रहा है,’’ मेरे मुंह से अपनी प्रशंसा सुन वह खुश हो कर बोली, ‘‘वैसे तुम भी बहुत जंच रहे हो. तुम्हें देख कर कोई भी कह सकता है कि तुम ने जिंदगी में अच्छी तरक्की की है.’’

‘‘थैंकयू, ये शायद तुम्हारे पति ही हमारी तरफ आ रहे हैं,’’ अपनी तरफ एक ऊंचे कद व आकर्षक व्यक्तित्व वाले पुरुष को आते देख कर मैं ने कहा.

आत्मविश्वास से भरा वह व्यक्ति मानसी का पति रोहित ही निकला. उस ने रोहित से मेरा परिचय कालेज के बहुत अच्छे दोस्त के रूप में कराया.

रोहित ने बड़ी गर्मजोशी के साथ मुझ से हाथ मिलाया. फिर हम दोनों एकदूसरे के काम के विषय में बातें करने लगे.

मानसी अब चुप रह कर हमारी बातें सुन रही थी.

करीब 15 मिनट बातें करने के बाद रोहित ने विदा लेने को अपना हाथ आगे बढ़ा दिया और बोला, ‘‘संजीव, तुम्हें अपनी वाइफ और बेटे के साथ हमारे घर बहुत जल्दी आना ही है. मानसी को अपने शहर में बोर मत होने देना.’’

‘‘हम बहुत जल्दी मिलते हैं,’’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘अपना मोबाइल नंबर तो दो, नहीं तो एकदूसरे के संपर्क में कैसे रहेेंगे?’’ मानसी को याद आया तो हम ने एकदूसरे के मोबाइल नंबर ले लिया.

वे दोनों अपनी कार में बैठे और हाथ हिलाते हुए मेरी आंखों से ओझल हो गए.

मैं ने डिपार्टमैंटल स्टोर से घर का सामान खरीदा और अपनी 2 साल पुरानी कार से घर आ गया.

‘‘आप कहां अटक गए थे? मुझे मशीन लगानी थी पर बिना वाशिंग पाउडर के कैसे लगाती?’’ अंजु मुझे देखते ही नाराज हो उठी.

‘‘मशीन अब लगा लो. खाना देर से खा लेंगे,’’ मैं ने उसे शांत करने के लिए धीमी आवाज में जवाब दिया.

‘‘कितनी आसानी से कह दिया कि मशीन अब लगा लो. मैं नहा चुकी हूं और समीर को तो सही वक्त पर खाना चाहिए ही न. अब खाना बनाऊं या मशीन लगाऊं?’’ उस का गुस्सा कम नहीं हुआ था.

‘‘इतनी गुस्सा क्यों हो रही हो? तुम मशीन लगा लो, आज लंच करने बाहर चलते हैं.’’

‘‘अपना पेट खराब करने के लिए मुझे बाहर का खाना नहीं खाना है. आप यह बताओ कि अटक कहां गए थे?’’

‘‘अटका कहीं नहीं. ऐसे ही विंडो शौपिंग करते हुए समय का अंदाजा नहीं रहा,’’ न जाने क्यों उसे मानसी और रोहित से हुई मुलाकात के बारे में उस समय कुछ बताने को मेरा मन नहीं किया.

अंजु ड्राइंगरूम में समीर द्वारा फैलाई चीजें उठाने के काम में लग गई. अब उस का ध्यान मेरी तरफ न होने के कारण मैं उसे ध्यान से देख सकता था.

कितना फर्क था मानसी और अंजु के व्यक्तित्व में. शादी होने के समय वह आकर्षक फिगर की मालकिन होती थी, पर अब उस का शरीर काफी भारी हो चुका था. चेहरे पर तनाव की रेखाएं साफ पढ़ी जा सकती थीं. उस का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता. समीर के होने के समय से उसे पेट और कमर दर्द ने एक बार घेरा तो अब तक छुटकारा नहीं मिला है.

अंजु की मानसी से तुलना करते हुए मेरा मन अजीब सी खिन्नता महसूस कर रहा था. रोहित और हमारे आर्थिक स्तर में खास अंतर नहीं था. पर हमारी पत्नियों के व्यक्तित्व कितने विपरीत थे.

मेरा चेहरा सारा दिन मुरझाया सा रहा. रात में भी ढंग से नींद नहीं आई. मानसी का रंगरूप आंखों के सामने आते ही बगल में लेटी अंजु से अजीब सी चिढ़ हो रही थी.

किसी से अपनी हालत की तुलना कर के दिमाग खराब करने का कोई फायदा नहीं होता है. खुद को बारबार ऐसा समझाने के बाद ही मैं ढंग से सो पाया था. मेरे पास मानसी का 2 दिन बाद ही औफिस में लंच के समय फोन आ गया.

‘‘अपने घर का पता बताओ. हम आज रात को अंजु और समीर से मिलने आ रहे हैं,’’ उस की यह बात सुन कर मैं बहुत बेचैन हो उठा.

‘‘आज मत आओ. अंजु को अपने भाई के यहां जाना है,’’ मैं ने झूठ बोल कर उन के आने को टाल दिया.

‘‘चलो, उन से मिलने फिर किसी और दिन आ जाएंगे पर तुम अपना पता तो लिखवा ही दो.’’

मैं उसे घर बुलाना नहीं चाहता था पर मजबूरन उसे अपना पता लिखवाना पड़ा. मैं ने उस से ज्यादा बातें नहीं कीं. कहीं मन ही मन मैं ने यह फैसला कर लिया कि मैं उन के साथ ज्यादा घुलनेमिलने से बचूंगा.

फिर मैं शनिवार की शाम को औफिस से घर पहुंचा तो वे दोनों मुझे ड्राइंगरूम में बैठे मिले. अंजु उन से बातें कर रही थी. मानसी के सामने वह बहुत साधारण सी नजर आ रही है, ऐसी तुलना करते ही मेरा मन उखड़ सा गया.

तभी मैं एकदम चुपचुप सा हो गया. मेरे मुकाबले अंजु उन दोनों से वार्त्तालाप करने की जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से निभा रही थी.

मानसी ने अचानक मुझ से पूछ ही लिया, ‘‘इतने उदास क्यों दिख रहे हो, संजीव?’’

‘‘सिर में दर्द हो रहा है. आज औफिस में काम कुछ ज्यादा ही था,’’ मुझे यों झूठ बोलना पड़ा तो मेरा मन और बुझाबुझा सा हो गया.

रोहित ने मेरे बेटे समीर से बहुत अच्छी दोस्ती कर ली थी. मानसी अंजु के साथ खूब खुल कर हंसबोल रही थी. बस मैं ही खुद को उन के बीच अलगथलग सा महसूस कर रहा था.

उन दोनों को रोहित के किसी मित्र के घर भी जाना था, इसलिए वे ज्यादा देर नहीं बैठे और हमें जल्दी अपने घर आगामी रविवार को आने का निमंत्रण देने के बाद चले गए.

उन के जाने के बाद मैं बहुत चिड़चिड़ा हो गया. मैं ने उन से ज्यादा तअल्लुकात न रखने का फैसला करने में ज्यादा वक्त नहीं लिया.

‘‘ये अच्छे लोग हैं. दोनों का स्वभाव बहुत अच्छा है,’’ अंजु के मुंह से उन दोनों की तारीफ में निकले इन शब्दों को सुन कर मैं अपनी चिढ़ व नाराजगी को नियंत्रण में नहीं रख सका.

‘‘यार, इन लोगों की बात मुझ से मत करो. ये बनावटी लोग हैं. इन की सतही चमकदमक से प्रभावित न होओ. ऐसे लोगों के साथ मित्रता बढ़ा कर सिर्फ दुख और परेशानियां ही हासिल होती हैं,’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘क्या कालेज के दिनों में आप मानसी के बहुत अच्छे दोस्त नहीं थे?’’ मुझे यों अचानक उत्तेजित होता देख कर वह हैरान नजर आ रही थी.

‘‘मानसी मेरे एक अच्छे दोस्त नवीन की प्रेमिका थी. इस कारण मुझे उसे सहन करना पड़ता था. जब मानसी का उस के साथ चक्कर खत्म हो गया, तब मैं ने उस के साथ बोलना बिलकुल खत्म कर दिया था. वह न तब मुझे पसंद थी और न आज.’’

‘‘मुझे तो दोनों अच्छे इंसान लगे हैं. क्या अगले संडे हम उन के घर नहीं जाएंगे?’’

‘‘नहीं जाएंगे और अब कोई और बात करो. हमें नहीं रखना है इन के साथ ज्यादा संबंध,’’ रूखे से अंदाज में उसे टोक कर मैं ने मानसी और रोहित के बारे में चर्चा खत्म कर दी.

अंजु ने फिर उन दोनों के बारे में कोई बात नहीं की. सच तो यह है कि वह मुझे ज्यादा खुश नजर आ रही थी. उस ने बड़े प्यार से मुझे खाना खिलाया और सोने से पहले सिर की मालिश भी की.

अगले दिन अंजु ने मुझे सुबह उठा कर मुसकराते हुए कहा, ‘‘उठिए, सरकार. आज से हम दोनों रोज नियमित रूप से घूमने जाया करेंगे.’’

‘‘यार, तुम्हें जाना हो तो जाओ पर मुझे सोने दो,’’ मैं ने फिर से रजाई में घुसने की कोशिश की.

‘‘नहीं जनाब, ऐसे नहीं चलेगा. अगर आप मेरा साथ नहीं देगे तो मैं और मोटी हो जाऊंगी. क्या आप मुझे मानसी की तरह सुंदर और स्मार्ट बनता नहीं देखना चाहते हो?’’

अंजु की बात सुन कर मैं उठ बैठा और फिर बोला, ‘‘तुम उस के जैसा नकली पीतल नहीं, बल्कि खरा सोना हो. बेकार में उस के साथ अपनी तुलना कर के टैंशन में मत आओ.’’

अंजु ने अपनी बांहों का हार मेरे गले में डाल कर कहा, ‘‘टैंशन में मैं नहीं, बल्कि आप नजर आ रहे हो.’’

‘‘मैं टैंशन में नहीं हूं,’’ मैं ने उस से नजरें चुराते हुए जवाब दिया.

‘‘मैं आप के हर मूड को पहचानती हूं, जनाब. मुझ से कुछ भी छिपाने की कोशिश बेकार जाएगी.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘मतलब यह कि मेरी मानसिक सुखशांति की खातिर आप की झूठ बोलने की आदत बहुत पुरानी है.’’

‘‘तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आ रही है. मैं ने कब तुम से झूठ बोला है?’’

अंजु ने हलकेफुलके अंदाज में जवाब दिया, ‘‘मैं बताती हूं. जब हमारे पास कार नहीं थी तो आप कार की कितनी बुराई करते थे. कार के पुरजे महंगे आते हैं, सर्विसिंग महंगी होती है, पैट्रोल का खर्चा बहुत बढ़ जाता है, मुझे ड्राइव करना अच्छा नहीं लगता और भी न जाने आप क्याक्या कहते थे.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रही हो?’’

‘‘पहले एक और बात सुनो और फिर मैं आप के सवाल का जवाब दूंगी.

जब समीर के ऐडमिशन का समय आया तो आप महंगे पब्लिक स्कूलों के कितने नुक्स गिनाते थे. वहां पढ़ने वाले अमीर मांबाप के बच्चे छोटी उम्र में बिगड़ जाते हैं, बच्चे को अच्छे संस्कार घर में मिलते हैं स्कूल में नहीं, जैसी दलीलें दे कर आप ने मेरे मन को शांत और खुश रखने की सदा कोशिश की थी.’’

‘‘मैं जो कहता था वह गलत नहीं था.’’

‘‘मैं यह नहीं कह रही हूं कि आप गलत कहते थे.’’

‘‘मैं वही कह रही हूं, जो मैं ने शुरू में कहा था. मेरे मन की सुखशांति के लिए आप दलीलें गढ़ सकते हो, लेकिन ऐसे मौकों पर आप की जबान जो कहती है वह आप की आंखों के भावों से जाहिर नहीं होता है.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं.’’

‘‘देखिए, जब आप कार की बुराई करते थे तब हम कार नहीं खरीद सकते थे. लेकिन जब कार घर में आई तो आप कितने खुश हुए थे.

फिर जब समीर को अच्छे स्कूल में ऐडमिशन मिल गया तो भी आप की खुशी का ठिकाना नहीं रहा था.’’

‘‘अब यह भी समझा दो कि तुम ये पुरानी बातें आज क्यों उठा रही हो?’’

‘‘क्योंकि आज भी आप की जबान पर कुछ और है और दिल में कुछ और. आज भी मेरे मन के सुकून की खातिर आप मानसी जैसी सुंदर, स्मार्ट महिला की बुराई कर रहे हो. लेकिन कल रात मैं ने देखा था कि जब भी आप सहज हो कर उस से बातें करते थे तो आप की आंखें खुशी से चमक उठती थीं.’’

‘‘सचाई यह भी है कि मानसी के मुकाबले मैं मोटी और अनाकर्षक लगती हूं. तभी अपनी पुरानी आदत के अनुरूप आप ने अपना सुर बदल लिया है. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘लेकिन आप मुझे हीनभावना का शिकार बनने से बचाने के लिए न मानसी की बुराई करो और न ही उन के साथ परिचय गहरा करने से कतराओ. कार और समीर के ऐडमिशन का संबंध हमारी माली हालत से था पर यह मामला भिन्न है. मैं भली प्रकार समझती हूं कि अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने का प्रयास मुझे ही करना होगा. तभी मैं ने अपने में बदलाव लाने की कमर कस ली है.

‘‘आप बनावटी व्यवहार से मुझे झूठी तसल्ली दे कर मेरे मन की सुखशांति बनाए रखने की चिंता छोड़ दो. आप के सहज अंदाज में खुश रहने से ही हमारे बीच प्यार की नींव मजबूत होगी.

‘‘आप के सहयोग से मैं अपने लक्ष्य को बहुत जल्दी पा लूंगी. इसीलिए मेरी प्रार्थना है कि कुछ देर और सोने का लालच त्याग कर मेरे साथ घूमने चलिए.’’

‘‘यार, तुम तो बहुत समझदार हो,’’ मैं ने दिल से उस की प्रशंसा की.

‘‘और प्यारी भी तो कहो,’’ अंजु इतरा उठी.

‘‘बहुतबहुत प्यारी भी हो… मेरे दिल की रानी हो.’’

‘‘थैंकयू. अगले संडे हम मानसी के घर चलेंगे न?’’

‘‘श्योर.’’

‘‘और अभी मेरे साथ पार्क में घूमने चल रहे हो न?’’

‘‘जरूर चल रहा हूं पर वैसे इस वक्त मैं तुम्हारे साथ कहीं और होना चाहता हूं,’’ मेरी आवाज नशीली हो उठी.

‘‘कहां?’’

‘‘इस रजाई की गरमाहट में.’’

‘‘अभी सारा दिन पड़ा है. पहले पार्क चलो,’’ मेरी आंखों में प्यार से झांकते हुए अंजु का चेहरा लाजशर्म से लाल हो उठा तो वह मेरी नजरों में संसार की सब से खूबसूरत औरत बन गई थी.

Festive Season में खानपान ऐसे रखें Health का ध्यान

भारत अपनी विविधता और पूरे सालभर अलगअलग आस्थाओं तथा जातियोंधर्मों के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों की वजह से जाना जाता है. साल में अपने त्योहारों को मनाने के लिए परिवार और दोस्त अकसर भोजन के इर्दगिर्द जमा होते हैं और साथ मिल कर खातेपीते, मौज करते हैं. ऐसा घर पर, रैस्टोरैंट में या बारबेक्यू में हो सकता है. साथ मिलजुल कर खानेपीने के बहुत फायदे हैं. सब से बड़ा फायदा तो सामाजिक मेलमिलाप है जोकि मानसिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.

त्योहारों के अवसर पर हम सिर्फ अच्छे और खास व्यंजनों के बारे में सोचते हैं. लेकिन त्योहार और छुट्टियों के मौसम में ही हम सभी से कई बार चूक भी हो जाती है. हम सेहतमंद खानपान के बजाय ज्यादा मात्रा में भोजन, मिठाई, प्रोसैस्ड फूड वगैरह का सेवन करते हैं यानी हमारे शरीर में कैलोरी की अधिक मात्रा पहुंचती है.

अधिक कैलोरीयुक्त भोजन का मतलब है अधिक मात्रा में फैट, शुगर, अत्यधिक कंसंट्रेटेड ड्रिंक्सतथा अधिक नमकयुक्त यानी सोडियम से भरपूर भोजन का सेवन. ऐसे में जो आम

समस्याएं सामने आती हैं, उन में प्रमुख हैं: वजन बढ़ना या पाचन संबंधी समस्याएं जैसेकि ऐसिडिटी, गैस्ट्राइटिस, कब्ज, शरीर में पानी की कमी होना आदि.

त्योहारों के बीतने के बाद वजन कम करने को ले कर बढ़ता तनाव वास्तव में ज्यादा वजन बढ़ाता है क्योंकि तनाव की वजह से भूख का एहसास बढ़ाने वाले हारमोन ज्यादा बनते हैं. इसलिए त्योहारी सीजन में कुछ सावधानियों के साथ उन खास पलों का आनंद उठाएं, आगामी त्योहारों के मद्देनजर आप के लिए कुछ आसान उपायों की जानकारी दी जा रही है.

खाली पेट रहने से बचे

दिन की सेहतमंद और संतुलित शुरुआत के लिए ब्रेकफास्ट में साबूत अनाज, लो फैट प्रोटीन तथा फलों का सेवन करें. कहीं किसी से मिलनेजुलने के लिए खाली पेट न जा कर भरे पेट जाएंगे तो फैस्टिव ट्रीट्स के नाम पर अनापशनाप खाने से बचेंगे.

अकसर होता यह है कि व्यंजनों का लुत्फ उठाने के लिए हम मील्स स्किप करते हैं और इस के चलते ओवरईटिंग हो जाती है. खाली पेट होने पर सैरोटानिन लैवल गिरता है. इसलिए जब भी हम बिना कुछ खाएपीए हुए लंबे समय तक रहते हैं तो स्ट्रैस बढ़ने लगता है और यही से बिना सोचेसमझे हुए लगातार कुछ न कुछ खाते रहने की शुरुआत होती है और हम जरूरत से ज्यादा भोजन पेट में ठूंस लेते हैं.

इसलिए ओवरईटिंग से बचने और वजन को नियंत्रण में रखने के लिए नियमित रूप से (1 बड़ा मील+2 स्नैक मील्स) खाना खाएं.

मात्रा नियंत्रित करें

जो भी खाएं उस की मात्रा का भरपूर ध्यान रखें यानी ‘पोर्शन कंट्रोल’ करें क्योंकि आप का पेट भर चुका है यह एहसास शरीर को कुछ देर से होता है. इसलिए अगर आप तब तक खाते रहेंगे जब तक कि पेट भरने का एहसास न हो जाए तो आप ओवरईटिंग करेंगे.

इसलिए जरूरी है कि एक बार में कम मात्रा में ही खाएं. धीरेधीरे खाने से आप के शरीर को यह पता चलता रहता है कि आप ने पर्याप्त मात्रा में खा लिया और आप ओवरईट नहीं करते.

सही भोजन करें

यह सब से महत्त्वपूर्ण है. सही चयन/विकल्प का चुनाव करने से आप त्योहारों की मस्ती और मजे को दोगुना कर सकते हैं क्योंकि आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं और जोखिम वाले कारकों से दूर रहते हैं.

अधिक फाइबरयुक्त भोजन: ऐसा भोजन चुनें जो फाइबरयुक्त हो क्योंकि फाइबरयुक्त भोजन आप को तृप्ति का एहसास दिलाता है, आप देर तक पेट भरा हुआ महसूस करते हैं और इस तरह ओवरईटिंग से बचते हैं तथा अपने भोजन की मात्रा को भी नियंत्रित रखते हैं.

साबूत अनाज पोषण से भरपूर होता है, उस में कैलोरी की मात्रा कम होती है और पैकेज्ड एवं प्रोसैस्ड फूड्स की तुलना में इस के सेवन से पेट अधिक भरा हुआ महसूस होता है. साथ ही कैलोरीयुक्त मेन कोर्स मील शुरू करने से पहले किसी हैल्दी डिश का सेवन करें और कम ऐनर्जी वाले खाद्यपदार्थों जैसेकि सलाद या वैजिटेबल सूप आदि लें.

सब्जियों में विटामिन, मिनरल्स, फाइबर और पानी की मात्रा अधिक होती है यानी इन के सेवन से आप अपने पेट को भरा हुआ महसूस करते हैं और इस तरह खुद ही अपनी प्लेट में भोजन की मात्रा को नियंत्रित रखते हैं.

हर मील में प्रोटीन लें. प्रोटीन न सिर्फ शरीर के विभिन्न ऊतकों की बढ़त के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं, बल्कि लीन बौडी मास (एलबीएम) के लिए भी फायदेमंद होते हैं.

हाल के अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि मील्स के बीच फिलर्स के तौर पर सही मात्रा में प्रोटीन के पर्याप्त सेवन से ब्लड शुगर लैवल में उतारचढ़ाव को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है. इसलिए मेवे और बीजों का सेवन करने से खाने के बीच हैल्दी स्नैकिंग का विकल्प मिलता है.

फू्रटी डैजर्ट: खाने के बाद मीठा (डैजर्ट) खाने की तलब स्वाभाविक है और यह भोजन को पूरा करने खासतौर से त्योहारी सीजन में बेहतरीन तरीका भी है. लेकिन चीनी और मैदे से बने डैजर्ट स्वास्थ्य केलिए अच्छे नहीं होते. इसलिए साबूत अनाज के आटे जैसेकि गेहूं और गुड़ (सीमित मात्रा में) का प्रयोग सेहतमंद विकल्प है. इसी तरह फल आधारित डैजर्ट जैसेकि फ्रूट योगर्ट शरबत पेट के लिए हलके होते हैं और सच तो यह है कि चाशनी में डूबे रसगुल्लों और जलेबियों जैसे तले हुए डैजर्ट की तुलना में ये काफी सेहतमंद भी होते हैं.

चांदी का वर्क लगी मिठाई खाने से बचें क्योंकि इस में ऐल्युमीनियम की मिलावट होती है जोकि सेहत के लिए अच्छी नहीं है. इसी तरह कृत्रिम रंगों के इस्तेमाल से बनी मिठाई खाने से भी बचना चाहिए. इन की जगह विभिन्न फू्रट आइटम्स के प्राकृतिक और स्वस्थ  रंगों के इस्तेमाल से बनी मिठाई का प्रयोग करें.

ऐसी गलती न करें: हम सभी एक बड़ी गलती यह करते हैं कि तलने के बाद बच गए तेल को दोबारा इस्तेमाल करते हैं. इस प्रकार तेल को दोबारा इस्तेमाल करने से फ्री रैडिकल्स बनते हैं जो शरीर की रक्तवाहिकाओं को अवरुद्ध करने के साथसाथ ऐसिडिटी का कारण भी बनते हैं. हो सके तो चीजों को तलने से बचना चाहिए और इन के बजाय स्नैक्स तथा मील्स के लिए स्टीमिंग, ग्रिलिंग, रोस्टिंग आदि को अपनाना सेहतमंद विकल्प है.

शरीर में पानी का पर्याप्त स्तर

कैलोरी को सीमित करने का एक आसान उपाय है- कैलोरी पीएं नहीं यानी सौफ्ट ड्रिंक्स पीने के बजाय पानी पीएं जिस से आप का पेट भर जाएगा और शरीर में फालतू कैलोरी भी नहीं जाएगी. इसलिए जूस की बोतल, सोडा/ऐरेटेड ड्रिंक्स या अलकोहलिक ड्रिंक लेने की बजाय पानी का सेवन करना अच्छा विकल्प है. ऐसा कर आप न सिर्फ कैलोरी की मात्रा नियंत्रित रखते हैं बल्कि अपने शरीर को प्राकृतिक रूप से हाइड्रेट भी रखते हैं. इस से भूख पर नियंत्रण आसान होता है.

खेलकूद या व्यायाम से शरीर को अधिक ऊर्जावान बनाया जा सकता है. गैस्ट्राइटिस से बचाव होता है, साथ ही कब्ज की शिकायत भी नहीं होती क्योंकि सभी प्रकार के ऐरेटेड ड्रिंक्स/ जूस ऐसिडिक होते हैं. इसी तरह नैचुरल ड्रिंक्स जैसेकि स्मूदी/ लस्सी/ मिल्कशेक (लो फैट, अतिरिक्त शुगर रहित), शिकंजी (चीनी रहित) आदि त्योहारों के मौसम में अच्छे विकल्प होते हैं.

शारीरिक गतिविधि

वजन को नियंत्रित करने के लिए डाइट कंट्रोल के साथसाथ शारीरिक व्यायाम करना महत्त्वपूर्ण होता है. इस से तनाव घटता है और उस का सीधा या परोक्ष असर आप की खानपान की आदतों पर पड़ता है. व्यायाम करने से ऐंडोमार्फिंस को बढ़ावा मिलता है जो आप को हर दिन सकारात्मक और ऊर्जावान बने रहने में मदद करते हैं.

साथ ही नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियां आप के मसल एनाबौलिज्म के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं जिस से मसल लौस से बचाव होता है. अच्छी सेहत के लिए सप्ताह में 5-6 दिन 30-45 मिनट तक शारीरिक व्यायाम करने की सलाह दी जाती है.

हम सभी को त्योहारों के उल्लास का हिस्सा बनना और समाज में खुशहाली बढ़ाने का कारण बनना अच्छा लगता है. खानपान जीवन के उत्सव का अहम हिस्सा है.

अच्छा भोजन अच्छी सेहत को बढ़ावा देता है, इसलिए समझदारी से भोजन कर सेहतमंद रहें.

सही राह: भाग 1- नीरज को अपनी भूल का एहसास क्यों हुआ

उस रविवार की सुबह चाय पीने के बाद नीरज आराम से अखबार पढ़ रहा था. तभी उस की सास मीनाजी ने अचानक उलाहना सा देते हुए कहा, ‘‘अब तुम मेरी बेटी को पहले जितना प्यार नहीं करते हो न दामादजी?’’

‘‘क्या बात करती हैं आप, सासूमां? अरे, मैं अब भी अपनी जान के लिए आसमान से चांदसितारे तोड़ कर ला सकता हूं,’’ अखबार पर से नजरें हटाए बिना ही नीरज ने कहा.

अपने 3 साल के बेटे राहुल को कपड़े पहना रही संगीता ने अपनी मां से उत्सुक लहजे में पूछा, ‘‘ऐसा क्यों कह रही हैं आप?’’

मीनाजी ने गहरी सांस छोड़ने के बाद जवाब दिया, ‘‘बड़ी सीधी सी बात है, मेरी भोली गुडि़या. जब कोई पति दूसरी औरत से इश्क फरमाने लगे तो यह सम  झ लेना चाहिए कि अब वह अपनी पत्नी को पहले की तरह दिल की गहराइयों से नहीं चाहता है.’’

राहुल को कपड़े पहना चुकी संगीता परेशान सी अपनी मां की बगल में आ बैठी. नीरज ने भी गहरी सांस छोड़ कर अखबार एक तरफ सरका दिया. फिर चुपचाप मांबेटी दोनों को उत्सुक अंदाज में देखने लगा.

‘‘यों खामोश रहने से काम नहीं चलेगा, दामादजी. मैं ने तुम्हारे ऊपर आरोप लगाया है. अब तुम अपनी सफाई में कुछ तो कहो,’’ मीनाजी की आंखों में शरारत भरी नाराजगी नजर आ रही थी.

‘‘सासूमां, पतिपत्नी के बीच गलतफहमी पैदा करने वाला ऐसा मजाक करना सही नहीं है. मेरी जिंदगी में कोई दूसरी औरत है, यह सुन कर अगर आप की इस भोलीभाली बेटी का हार्टफेल हो गया तो हम बापबेटे का क्या होगा?’’ नीरज ने मुसकराते हुए शिकायत सी की.

‘‘आप मजाक छोडि़ए और मु  झे यह बताइए कि क्या आप सचमुच किसी दूसरी औरत से इश्क लड़ा रहे हो?’’ संगीता ने पति से तनाव भरे स्वर में पूछा.

‘‘बस, इतना ही भरोसा है तुम्हें मेरे प्यार पर?’’ नीरज फौरन यों दुखी दिखने लगा जैसे उस के दिल को गहरी ठेस लगी हो, ‘‘अपनी मम्मी के मजाकिया स्वभाव को तुम जानती नहीं हो क्या? अरे पगली, वे मजाक कर रही हैं.’’

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं कर रही हूं, दामादजी,’’ मीनाजी ने अपने मुंह से निकले हर शब्द पर पूरा जोर दिया.

‘‘सासूमां, अब यह मजाक खत्म कर दो वरना संगीता सवाल पूछपूछ कर मेरी जान ले लेगी,’’ नीरज ने हंसते हुए अपनी सास के सामने हाथ जोड़ दिए.

मीनाजी उठ कर इधरउधर घूमते हुए गंभीर लहजे में बोलीं,

‘‘मुझे यहां आए अभी कुछ ही घंटे हुए हैं, लेकिन इतने कम समय में भी मैं ने तुम्हारे अंदर आए बदलाव को पकड़ लिया है, दामादजी. अब तुम्हारी आंखों में संगीता के प्रति चाहत के भाव नजर नहीं आते… बस काम की ही बातें करते हो तुम उस से… इसीलिए मैं मन ही मन यह सोचने पर मजबूर हो गई कि तुम दोनों के बीच पहले हमेशा नजर आने वाली रोमांटिक छेड़छाड़ कब, कहां और क्यों खो गई है?’’

नीरज ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘सासूमां, हमारी शादी को 5 साल हो गए हैं. अब हमारे रोमांटिक छेड़छाड़ करने के दिन बीत चुके हैं.’’

‘‘क्या तुम रितु के साथ भी रोमांटिक छेड़छाड़ नहीं करते हो, दामादजी?’’

‘‘यह रितु कौन है?’’ संगीता और नीरज ने एकसाथ पूछा तो मीनाजी रहस्यमयी अंदाज में मुसकराते हुए नीरज के सामने आ खड़ी हुईं.

कुछ देर खामोश रह कर मीनाजी ने सस्पैंस और बढ़ा दिया. फिर कहानी सुनाने वाले अंदाज में बोलीं, ‘‘चूंकि मैं अपनी लाडली के विवाहित जीवन की खुशियों को ले कर चिंतित हो उठी थी, इसलिए मैं ने कुछ देर पहले तुम्हारे फोन में आए सारे मैसेज तब पढ़ डाले जब तुम बाथरूम में नहाने गए हुए थे.’’

‘‘यह तो बड़ा गलत काम किया है सासूमां, पर सब मैसेज पढ़ लेने के बाद जब कुछ हाथ नहीं लगा तो आप को मायूसी तो बहुत हुई होगी,’’ नीरज ने उन का मजाक उड़ाया.

‘‘मेरे हाथ कुछ लगता भी कैसे, दामादजी? रितु के सारे मैसेज तो वहां से तुम ने हटा रखे थे, लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या, मम्मी?’’ संगीता ने उंगलियां मरोड़ते हुए परेशान लहजे में पूछा.

‘‘लेकिन संयोग से उसी वक्त रितु का ताजा मैसेज आ गया. मैं ने उसे पढ़ा और सारा मामला मेरी सम  झ में आ गया. लो, तुम भी पढ़ो अपने पति परमेश्वर के फोन में आए उन की इस रितु डार्लिंग का मैसेज,’’ मीनाजी ने मेज पर रखा नीरज का फोन उठा मैसेज निकालने के बाद संगीता को पकड़ा दिया.

संगीता ने मैसेज ऊंची आवाज में पढ़ा, ‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है. मूवी के टिकट वापस कर दो… आई लव यू, रितु.’

मैसेज पढ़ने के बाद संगीता नीरज की तरफ सवालिया नजरों से देखने लगी. उस की शक्ल बता रही थी कि वह किसी भी क्षण नीरज के साथ   झगड़ा शुरू कर सकती है.

मीनाजी ने व्यंग्य भरे स्वर में नीरज से कहा, ‘‘दामादजी, अपनी चोरी पकड़ी जाने पर तुम्हें बहुत हैरान नजर आने का नाटक करते हुए ऊंची आवाज में कहना चाहिए कि संगीता, मैं किसी रितु को नहीं जानता हूं. यह मैसेज किसी और के लिए होगा… गलती से मेरे फोन में आ गया है.’’

‘‘सच भी यही है, संगीता. मैं किसी रितु को नहीं जानता हूं,’’ नीरज ने ऊंचे स्वर में खुद का निर्दोष साबित करने की कोशिश की.

‘‘अगर तुम उसे नहीं जानते हो तो तुम ने उस का फोन नंबर अपने फोन में क्यों सेव कर रखा है, दामादजी?’’ मीनाजी ने भौंहें चढ़ाते हुए पूछा.

उल  झन का शिकार बना नीरज जब जवाब में खामोश रहा तो मीनाजी ने उसे फिर छेड़ा, ‘‘अब ‘मु  झे नहीं पता कि यह नाम और नंबर

कैसे मेरे फोन में आया है’ यह डायलौग तो बोलो, दामादजी.’’

‘‘संगीता, सचमुच मु  झे नहीं मालूम…’’ नीरज सफाई देते हुए   झटके से रुका और फिर मीनाजी की तरफ घूम विनती कर उठा,

‘‘सासूमां, मु  झे यों फंसा कर आप को क्या मिल रहा है? अब संगीता को सच बता कर यह खेल खत्म करो…’’

पेड़: नीरेंद्र की मांग से कैसे खुल गई सब की असलियत

चीनू की नन्हीनन्ही हथेलियां दूर होती चली गईं और धीरेधीरे एकदम से ओझल हो गईं.

नीरेंद्र की आंखों में आंसू झिलमिला आए थे. आज उन के सूने घर में महीने भर से आई इस रौनक का अंतिम दिन था.

पूरे 30 दिन से उन का घर गुलजार था. बच्चों के होहल्ले से भरा था. साल भर में उन के घर में 2 ही तो खुशी के मौके आते थे. एक गरमी की लंबी छुट्टियों में और दूसरा, दशहरे की छुट्टियों के समय.

उन दिनों नीरेंद्र की उजाड़ जिंदगी में हुलस कर बहार आ जाती थी. उस का जी करता था कि इस आए वक्त को रोक कर अपने घर में कैद कर ले. खूब नाचेगाए और जश्न मनाए, पर ऐसा हो कहां सकता था.

छोटी बहन के साथ 2 बच्चे, छोटे भाई के 2 बच्चे और बड़ी दीदी के दोनों बच्चे, पूरे 6 नटखट ऊधमी सदस्यों के आने से ऐसा लगता जैसे घर छोटा पड़ गया हो. बच्चे उस कमरे से इस कमरे में और इस कमरे से उस कमरे में भागे फिरते, चिल्लाते और चीजें बिखेरते रहते.

बच्चों के मुंह से ‘चाचीजी’, ‘मामीजी’ सुनसुन कर वे अघाते न थे. दिनरात उन की फरमाइशें पूरी करने में लगे रहते. किसी को कंचा चाहिए तो किसी को गुल्लीडंडा. किसी को गुडि़या तो किसी को लट्टू.

4 माह में जितना पैसा वे बैंक से निकाल कर अपने ऊपर खर्च करते थे, उस से भी ज्यादा बच्चों की फरमाइशें पूरी करने में उन दिनों खर्च कर देते. फिर भी लगता कि कुछ खर्च ही नहीं किया है. वे तो नईनई चीजें खरीदने के लिए बच्चों को खुद ही उकसाते रहते.

कभीकभी भाईबहनों को गुस्सा आने लगता तो वे उन्हें झिड़कते, ‘‘क्या करते हो भैया. सुबह से इन मामूली चीजों के पीछे लगभग 100 रुपए फूंक चुके हो. बच्चों की मांग का भी कहीं अंत है?’’

नीरेंद्र हंस देते, ‘‘अरे, रहने दो, यह इन्हीं का तो हिस्सा है. बस, साल में 10 दिन ही तो इन के चाव के होते हैं. देता हूं तो बदले में इन से प्यार भी तो पाता हूं.’’

सिर्फ 30 दिन का ही तो यह मेला होता है. बाद में बच्चों की बातें, उन की गालियां याद आतीं. उन की छोड़ी हुई कुछ चीजें, कुछ खिलौने संभाल कर वे उन निर्जीव वस्तुओं से बातें करते रहते और मन को बहलाते. उन की एक बड़ी अलमारी तो बच्चों के खिलौनों से भरी पड़ी थी.

इस तरह नीरेंद्र अपने अकेलेपन को काटते. हर बार उन का जी करता कि बच्चों को रोक लें, पर रोक नहीं पाते. न बच्चे रुकना चाहते हैं न माताएं उन्हें यहां रहने देना पसंद करती हैं. पहले तो उन के छोटे होने का बहाना था. बड़े हुए तो छात्रावास में डाल दिए गए. इसी से नीरेंद्र उन्हीं बच्चों में से एक को गोद लेना चाहते थे. मगर हर घर में 2 बच्चे देख खुद ही तालू से जबान लग जाती थी.

किसीकिसी साल तो ऐसा भी होता है कि 30 दिनों में भी कटौती हो जाती. कभीकभी बच्चे यहां आने के बजाय कश्मीर, मसूरी घूमने की ठान लेते. फिर तो ऐसा लगने लगता जैसे जीने का बहाना ही खत्म हो जाएगा. पिछले साल यही तो हुआ था. बच्चे रानीखेत घूमने की जिद कर बैठे थे और यहां आना टल गया था. किसी तरह छुट्टियों के 7-8 दिन बचा कर वे यहां आए थे तो उन का मन रो कर रह गया था.

कभीकभी नीरेंद्र को अपनेआप पर ही कोफ्त होने लगती कि क्यों वे अकेले रह गए? आखिर क्या कारण था इस का? पिता की असमय मृत्यु ने उन के घर को अनाथ कर दिया था. घर में वे सब से बड़े थे, इसलिए जिम्मेदारी निभाना उन्हीं का कर्तव्य था. घर में सभी को पढ़ाया- लिखाया. पूरी तरह से हिम्मत बांध कर उन के शादीब्याह किए तब कहीं जा कर अपने लिए विचार किया था.

नीरेंद्र सीधीसादी लड़की चाहते थे. मां ने उन के लिए सुलभा को पसंद किया था. सुलभा में कोई दोष न था. नीरेंद्र खुश थे कि उम्र उन के विवाह में बाधक नहीं बनी. इस से पहले जब वे भाईबहनों का घर बसा रहे थे तब सदा उन्हें एक ही ताना मिला था, ‘‘क्यों नीरेंद्र, ब्याह करोगे भी या नहीं? बूढ़े हो जाओगे, तब कोई लड़की भी न देगा. बाल पक रहे हैं, आंखों पर चश्मा चढ़ गया है और क्या कसर बाकी है?’’

सुन कर नीरेंद्र हंस देते थे, ‘‘चश्मा और पके बाल तो परिपक्वता और बुद्धिमत्ता की निशानी हैं. मेरी जिम्मेदारी को जो लड़की समझेगी वही मेरी पत्नी बनेगी.’’

सुलभा उन्हें ऐसी ही लड़की लगी थी. सगाई के बाद तो वे दिनरात सुलभा के सपने भी देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगता जैसे सुलभा उन की जिंदगी में एक बहार बन कर आएगी.

विवाह की तिथि को अभी काफी दिन थे. एक दिन इसी बीच वे सुलभा के साथ रात को फिल्म देख कर लौट रहे थे. अचानक कुछ बदमाशों ने सुलभा के साथ छेड़छाड़ की थी. नीरेंद्र को बुढ़ऊ कह कर ताना मार दिया था.

सुन कर नीरेंद्र को सहन न हुआ था और वे बदमाशों से उलझ पड़े थे, पर उन से वे कितना निबट सकते थे. अपनेआप से वे पहली बार हारे थे. गुस्सा आया था उन्हें अपनी कमजोरी पर. वे स्वयं को अत्यंत अपमानित महसूस कर रहे थे. हतप्रभ रह गए थे अपने लिए बुढ़ऊ शब्द सुन कर. उस शाम किसी तरह वे और सुलभा बच कर लौट तो आए थे मगर सुलभा ने दूसरे ही दिन सगाई की अंगूठी वापस भेज दी थी. शायद उसे भी यकीन हो गया था कि वे बूढ़े हो गए हैं.

‘अच्छा ही किया सुलभा ने.’ एक बार नीरेंद्र ने सोचा था. परंतु मन में अपनी हीनता और कमजोरी का एक दाग सा रह गया. विवाह से मन उचट गया, कोई इस विषय पर बात चलाए भी तो उस से उलझ बैठते. मां जब तक रहीं नीरेंद्र को शादी के लिए मनाती रहीं, समझाती रहीं.

मां की मृत्यु के बाद वह जिद और मनुहार भी खत्म हो गई. कुछ यह भी जिद थी कि अब इसी तरह जीना है. पहले भाईबहनों पर भरोसा था, पर वे अपनी- अपनी जिंदगी में लग गए तो उन्होंने उन्हें छेड़ना भी उचित न समझा.

हां, भाईबहनों के बच्चों ने अवश्य ही नीरेंद्र के अंदर एक बार गृहस्थी का लालच जगा दिया था. अंदर ही अंदर वे आकांक्षा से भर उठे कि उन्हें भी कोई पिता कहता. वे भी किसी के भविष्य को ले कर चिंता करते. वे भी कोई सपना पालते कि उन का बेटा बड़ा हो कर डाक्टर बनेगा या कोई उन का भी दुखसुख सुनता. सोतेजागते वे यही सोचा करते.

तब कभीकभी मन में मनाते कि कोई उन्हें क्यों नहीं कहता कि ब्याह कर लो. अकेले ही वे रसोईचूल्हे से उलझे हुए हैं कोई पसीजता क्यों नहीं, कोई अजूबा तो नहीं इस उम्र में ब्याह करना. बहुत से लोग कर रहे हैं.

नीरेंद्र अपनी जिंदगी की तुलना भाई की जिंदगी से करते. सोचते कि उन की और धीरेंद्र की सुबह में कितना अंतर है. वे 4 बजे का अलार्म लगा कर सोते. सोचते हुए देर रात गए उन्हें नींद आती. परंतु सुबह तड़के घड़ी की तेज घनघनाहट के साथ ही उन की नींद टूट जाती जबकि वे जागना नहीं चाहते. लेकिन जानते हैं कि सुबह के नाश्ते की तैयारी, कमरों की सफाई, कपड़ों की धुलाई आदि सब उन्हीं को ही करनी है.

मगर धीरेंद्र की सुबह भले ही झल्लाहट से शुरू हो लेकिन उत्सुकता से भरी जरूर होती है. 4 बजे का अलार्म बज जाए तो भी उसे कोई परवाह नहीं. नींद ही नहीं टूटती है. न जाने उसे कैसी गहरी नींद आती है.

घड़ी का कांटा जब 4 से 5 तक पहुंचता है तब उस की पत्नी चिल्लाती है, ‘‘उठो, दफ्तर जाने में देर हो जाएगी.’’

‘‘हूं,’’ धीरेंद्र उसी खर्राटे के साथ कहेगा, ‘‘क्या 5 बज गए?’’

‘‘तैयार होतेहोते 10 बज जाएंगे. फिर मुझे न कहना कि देर हो गई.’’

शायद फिर बच्चों को इशारा किया जाता होगा. पप्पू धीरेंद्र के बिछौने पर टूट पड़ता, ‘‘उठिए पिताजी, वरना पानी डाल दूंगा.’’

फिर वह बच्चों के अगलबगल बैठ कर कहता, ‘‘अरे, नहीं बाबा, मां से कहो कि चाय ले आए.’’

स्नानघर में जा कर भी धीरेंद्र बीवी से उलझता रहता, ‘‘मेरे कुरते में 2 बटन नहीं हैं और जूते के फीते बदले या नहीं? जाने मोजों की धुलाई हुई है या नहीं?’’

पत्नी तमक कर कहती, ‘‘केवल तुम्हें ही तो नौकरी पर नहीं जाना है, मुझे भी दफ्तर के लिए निकलना है.’’

‘‘ओह, तो क्या तुम्हारे ब्लाउज के बटन मुझे टांकने होंगे,’’ धीरेंद्र चुहल करता तो पत्नी उसे धप से उलटा हाथ लगाती.

इसे कोई कुछ भी कहे, पर नीरेंद्र का लोभी मन गृहस्थी के ऐसे छोटेमोटे सुखों की कान लगा कर आहट लेता रहता.

नीरेंद्र बेसन के खुशबूदार हलवे के बहुत शौकीन हैं. जी करता है नाश्ते में कोई सुबहसुबह हलवा परोस दे और वे जी भर कर खाएं. अम्मां थीं तो उन का यह पसंदीदा व्यंजन हफ्ते में 3-4 बार अवश्य मिला करता था. पर उन की मृत्यु के बाद सारे स्वाद समाप्त हो गए.

धीरेंद्र की पत्नी बेसन का हलवा देखते ही मुंह बनाती थी. खुद नीरेंद्र अम्मां की भांति कभी हलवा बना नहीं सके. अब तो बस हलवे की खुशबू मन में ही दबी रहती है.

धीरेंद्र को बेसन के पकौड़ों के एवज में कई बार बीवी के हाथ बिक जाना पड़ता है. बीवी का मन न हो तो कोई न कोई बात पक्की करवा कर ही वह पकौड़े बनाती है. नीरेंद्र भी अपने पसंद के हलवे पर नीलाम हो जाना चाहते हैं, पर वह नीलामी का चाव मन में ही दबा रह गया. अब तो रोज सुबह थोड़ा सा चिवड़ा फांक कर दफ्तर की ओर चल देते हैं.

दफ्तर में नए और पुराने सहयोगियों का रेला नीरेंद्र को देखदेख कर दबी मुसकराहट से अभिवादन करता. कम से कम इतनी तसल्ली तो जरूर रहती कि हर कोई उन से काम निकलवाने के कारण मीठीमीठी बातें तो जरूर करता है. उस के साहब, अपनीअपनी फाइल तैयार करवाने के चक्कर में उसे मसका लगाते रहते. किसी को पार्टी में जाना हो, पत्नी को ले कर बाजार जाना हो, बच्चे को अस्पताल पहुंचाना हो, तुरंत उन्हें पकड़ते. ‘‘नीरेंद्र, थोड़ा सा यह काम कर दो.’’

इतना ही नहीं दफ्तर के क्लर्क, चपरासी, माली, जमादार आदि अपने तरीके से इस अकेले व्यक्ति से नजराना वसूलते रहते. अगर देने में थोड़ी सी आनाकानी की तो वे लोग कह देते, ‘‘किस के लिए बचा रहे हो, बाबू साहब. आप की बीवी होती तो कहते, साड़ी की फरमाइश पूरी करनी है. बेटा होता तो कहते कि उस की पढ़ाई का खर्च है. अगर बेटी होती तो हम कभी धेला भी न मांगते…मगर कुंआरे व्यक्ति को भला कैसी चिंता?’’

पर धीरेंद्र को न तो दफ्तर में रुकने की जरूरत पड़ती और न ही अपने मातहतों के हाथ में चार पैसे धरने की नौबत आती. घर जल्दी लौटने के बहाने भी उसे नहीं बनाने पड़ते. खुद ही लोग समझ जाते हैं कि घर में देरी की तो जनाब की खैर नहीं.

पर नीरेंद्र किस के लिए जल्दी घर लौटें. बालकनी में टहलते ठीक नहीं लगता. अपनीअपनी छतों पर टहलते जोड़ों का आपस में हंसीमजाक सुनना अब उन से सहन नहीं होता. बारबार  लगता है जैसे हर बात उन्हें ही सुनाई जा रही है. खनकती, ठुनकती हंसी वे पचा नहीं पाते. घर के अंदर भाग कर आएं तो मच्छरों की भूखी फौज उन की दुबली देह पर टूट पड़ती है. तब एक ही उपाय नजर आता है कि मच्छरदानी गिरा कर अंदर घुस जाएं और घड़ी के भागते कांटों को देखते हुए समय निकालते रहें.

इसीलिए नीरेंद्र कभीकभी वैवाहिक विज्ञापनों में स्वयं ही अपने लिए उपयुक्त पात्र तलाशने लगते हैं. पर ऐसा कभी न हो सका. कई बार समझौतों के सहारे लगा कि बात बनेगी परंतु विवाह के लिए समझौता करना उन्हें उचित नहीं लगा. अकेलेपन के कारण झिझकते हुए उन्होंने छोटे भाई की लड़की नीलू को अपने पास रख लेने का प्रस्ताव किया तो वह बचने लगा था, ‘‘पता नहीं, बच्ची की मां राजी होगी या नहीं?’’

पर नीरेंद्र बजाय बच्ची की मां से पूछने के छोटी बहन के सामने ही गिड़गिड़ा उठे थे, ‘‘कामिनी, मैं चाहता हूं, क्यों न आशू यहीं मेरे साथ रहे. उस का जिम्मा मैं उठाऊंगा.’’

‘‘आशू?’’ बहन की आंखें झुक गईं, ‘‘बाप रे, इस की दादी तो मुझे काट कर रख देंगी.’’

जवाब सुन कर नीरेंद्र चकित रह गए थे, ‘अरे यह क्या? अपनी लगभग सारी कमाई इन के बच्चों पर उड़ाता हूं. कितने दुलार से यहां उन्हें रखता हूं. हर वर्ष राखी पर मुंहमांगी चीज बहन के हाथ में रखता हूं. इतना ही नहीं, किसी भी बच्चे को कुछ भी चाहिए तो साधिकार माएं चालाकी से उन की फरमाइश लिख भेजती हैं, लेकिन क्या कोई भी अपने एक बच्चे को मेरे पास नहीं छोड़ सकती. कल को वह बच्चा मेरी पूरी संपत्ति का वारिस होगा, लेकिन सब ने मेरी मांग ठुकरा दी.’

‘‘अच्छा, आशू से ही पूछती हूं,’’ बहन ने आशू को आवाज दी थी.

नीरेंद्र उस की बातों से बेजार छत ताकने लगे थे, लेकिन आशू को सिर्फ उन की चीजें ही अच्छी लगती थीं.

कुंआरे रह कर नीरेंद्र लोगों के लिए सिर्फ एक पेड़ बन कर रह गए थे, जिसे जिस का जी चाहे, नोचे, फलफूल, लकड़ी आदि प्रत्येक रूप में उस का उपयोग करे. अपने लिए भी वे एक पेड़ की भांति थे. जैसे बसंत के मौसम में पेड़ों के नए फूलपत्ते आते हैं उसी प्रकार वे भी किसी पेड़ की तरह हरेभरे हो जाते. क्या उन्हें वर्ष भर मुसकराने का हक नहीं है? स्वयं के नोचे जाने के विरोध का भी कोई अधिकार नहीं है?

तलाक के बाद ट्रोलिंग की शिकार हुई ये एक्ट्रेस, बोलींं- मुझे खूब बुली किया गया

बॉलीवुड एक्ट्रेस और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कुशा कपिला काफी सुर्खियों में हैं. कुशा की फिल्म थैंक यू फॉर कमिंग सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. इसी फिल्म के प्रामोशन के चलते कुशा ने कई इंटरव्यू दे रही है. अभी हाल ही में एक्ट्रेस ने अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर खुलकर बात कहीं है.

जी हां, इसी साल जून में कुशा कपिला ने पति जोरावर अहलूवालिया से तलाक हुआ है. इसकी घोषणा कुशा ने सोशल मीडिया पर की थी जिसके बाद उन्हें काफी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा था.

रोने में दिन बीत जाता है- कुशा

मीडिया इंटरव्यू में कुशा कपिला ने अपनी पर्सनल लाइफ लेकर खुलकर बात की और फिर इसके बाद उनका ज्यादातर समय रोने में बीत जाता और उन्हें बेहद बुरा फील होता था.

 

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मुझे खूब ट्रोल किया गया है

कुशा ने आगे बताया कि मुझे अपनी पर्सनल लाइफ को शेयर करने के चलते बुली किया गया है. ये पहला मौका था जब मैं ऐसा कुछ शेयर कर रही थी और उसमें मुझे 100% बुली किया गया लेकिन मैं खुश हूं कि मैंने अपनी शर्तों पर ये शेयर किया. मैं नहीं चाहती थी कि कोई और ये जानकारी दुनिया को दे वो भी मुझे बिना बताए. आपको बस अपनी आंखों पर पट्टी बांधनी पड़ती है. जिंदगी में करने के लिए बहुत कुछ है.

6 साल तक चली शादी

आपको बता दें कि कुशा की जोरावर से साल 2017 में शादी हुई थी. दोनों इससे पहले एक-दूसरे को डेट किया था. कुशा ने अपनी लव स्टोरी का खुलासा किया कि वह पहली बार जोरावर से अपने दोस्त की शादी में मिली थी. कुशा ने सोशल मीडिया पर अपनी शादी टूटने की घोषणा करते हुए कहा था, मैंने और जोरावर ने आपसी सहमति से अलग होने का फैसला किया है. ये बिलकुल भी आसान फैसला नहीं था लेकिन हमें लगता है कि जिंदगी के इस पड़ाव पर यही फैसला सही है.

दरअसल, तलाक के बाद कुशा का नाम अर्जुन कपूर से भी जुड़ा था जिसे उन्होंने नकार दिया था.

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